Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक
JAC Class 10 Hindi जॉर्ज पंचम की नाक Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है, वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है?
उत्तर :
हमारा देश चाहे पिछले अनेक वर्षों से स्वतंत्र हो चुका है, पर यहाँ अभी भी मानसिक गुलामी का भाव विद्यमान है। सरकारी तंत्र अपने देश की मान-मर्यादा की रक्षा करने की अपेक्षा उन विदेशियों के तलवे चाटने की इच्छा रखता है, जिन्होंने लंबे समय तक देशवासियों को अपने पैरों तले कुचला था; उन्हें परेशान किया था; देशभक्तों को अपने जुल्मों का शिकार बनाया था। सरकारी तंत्र की चिंता और बदहवासी का कोई कारण नहीं था; पर फिर भी वह परेशान था। उसे देश की जनता और देश की मान-मर्यादा से अधिक चिंता उस पत्थर की नाक की थी, जिसे आंदोलनकारियों ने अपने गुस्से का शिकार बना दिया था। इससे सरकारी तंत्र की अदूरदर्शिता, संकुचित सोच और जनता के पैसे के अपव्यय के साथ-साथ अखबारों में छपने की तीव्र इच्छा प्रकट होती है। उनकी गुलाम मानसिकता किसी भी दृष्टि से सराहनीय नहीं कही जा सकती।
प्रश्न 2.
रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?
उत्तर :
रानी एलिजाबेथ के दरज़ी की परेशानी का कारण रानी के द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र थे, जो उसने हिंदुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर पहनने थे। दरजी की परेशानी उसकी अपनी दृष्टि से तर्कसंगत थी। हर व्यक्ति अपने द्वारा किए गए कार्य को सर्वश्रेष्ठ रूप में प्रस्तुत करना चाहता है, ताकि वह दूसरों के द्वारा की जाने वाली प्रशंसा को बटोर सके।
एलिजाबेथ उस देश की रानी थी, जिसने उन देशों पर राज्य किया था जहाँ अब वह दौरे के लिए पधार रही थी। हर व्यक्ति की दृष्टि में पहली झलक शारीरिक सुंदरता और वेशभूषा की ही होती है और उसी से वह बाहर से आने वाले के बारे में अपने विचार बनाने लगता है। इसलिए दरजी रानी के लिए अति सुंदर और उच्च स्तरीय वस्त्र तैयार करना चाहता था। उसकी परेशानी तर्कसंगत और सार्थक है।
प्रश्न 3.
‘और देखते-ही-देखते नई दिल्ली का काया पलट होने लगा’-नई दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे?
उत्तर :
जब रानी एलिज़ाबेथ ने तीन देशों की यात्रा में सबसे पहले हिंदुस्तान आने का निश्चय किया, तो तत्कालीन सरकार प्रसन्नता और उत्साह से भर उठी होगी। उसके मन में नई दिल्ली की शोभा के माध्यम से सारे देश की झलक दिखा देने का भाव उत्पन्न हुआ होगा। नई दिल्ली की वे सड़कें जो धूल-मिट्टी से भरी रहती हैं, उन्हें अच्छी तरह से साफ़ करके सँवारा गया होगा; उनकी टूट-फूट ठीक की गई होगी। जगह-जगह बंदनवार और फूलों से सजे स्वागत द्वार लगाए गए होंगे। रानी के स्वागत में बड़े-बड़े बैनर और रंग-बिरंगे बोर्ड तैयार किए गए होंगे। सड़क किनारे उगे झाड़-झंखाड़ काटे गए होंगे और घास को सँवारा गया होगा। न जाने कहाँ-कहाँ से फूल-पौधों के गमले लाकर सजा दिए गए होंगे।
प्रश्न 4.
आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?
उत्तर :
(क) चर्चित हस्तियों के पहनावे, खान-पान संबंधी आदतों आदि के बारे पत्र-पत्रिकाओं में छपे वर्णन से सामान्य लोग उन तथाकथित बड़े लोगों के निजी जीवन की शाब्दिक झलक पा सकते हैं, जिनके बारे में वे न जाने क्या-क्या सोचते हैं। जिस जीवन को वे जी नहीं सकते; निकट से देख नहीं सकते, शब्दों और तसवीरों के माध्यम से उस जीवन-शैली का अहसास तो कर ही सकते हैं। इस प्रकार की पत्रकारिता में कुछ भी अनुचित नहीं है। पत्रकारिता का जो उद्देश्य है, पत्रों के माध्यम से वे वही पूरा करते हैं।
(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता को केवल चर्चित हस्तियों के बारे में सतही जानकारी ही प्रदान नहीं करती, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी करती है। युवा वर्ग तो उनके जीवन-स्तर से प्रभावित होकर वैसा ही करना चाहता है, जैसा वे करते हैं। कभी-कभी ऐसा करते हुए कई युवक गलत मार्ग की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं। अधिक धन न होने के कारण वे अनुचित तरीके से धन प्राप्त करने की चेष्टा करने लगते हैं और अपराध मार्ग की ओर बढ़ जाते हैं।
प्रश्न 5.
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने सारे देश के पर्वतीय क्षेत्रों का भ्रमण किया; पत्थरों की खानों को देखा। इससे पहले पुरातत्व विभाग से यह जानने की कोशिश भी की गई थी कि मूर्ति कहाँ बनी, कब बनी और किस पत्थर से बनी? मूर्ति जैसा पत्थर प्राप्त न हो पाने के कारण देशभर के महापुरुषों की मूर्तियों की नाक उस मूर्ति पर लगाने का प्रयत्न किया, लेकिन सभी मूर्तियों की नाक लंबी होने के कारण ऐसा नहीं हो सका।
उसने अपनी हिम्मत बनाए रखते हुए अंत में जॉर्ज पंचम की नाक की जगह देशवासियों में से किसी की जिंदा नाक लगाने का प्रस्ताव रखा, जिसे स्वीकार कर लिया गया। उसने इंडिया गेट के पास तालाब को सुखाकर साफ़ किया। उसकी रवाब निकलवाई और उसमें ताजा पानी भरवाया, ताकि जिंदा नाक लगने के बाद सूख न पाए।
प्रश्न 6.
प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं, जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए ‘फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं।’ या ‘सब हुक्कामों ने एक-दूसरे की तरफ़ ताका’ आदि। पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।
(क) शंख इंग्लैंड में बज रहा था, गूंज हिंदुस्तान में आ रही थी।
(ख) और देखते-देखते नयी दिल्ली का कायापलट होने लगा।
(ग) अगर यह नाक नहीं है तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी।
(घ) दिमाग खरोंचे गए और यह तय किया गया कि हर हालत में इस नाक का होना बहुत ज़रूरी है।
(ङ) जैसे भी हो, यह काम होना है।
(च) इस मेहनत का फल हमें मिलेगा…आने वाला ज़माना खुशहाल होगा।
(छ) लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं।
(ज) लेकिन बड़ी होशियारी से।
प्रश्न 7.
नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए। उत्तर :
वास्तव में नाक मान-सम्मान और प्रतिष्ठा की प्रतीक है। रानी एलिजाबेथ का चार सौ पौंड का हल्का नीला सूट उसकी नाक अर्थात् सम्मान और प्रतिष्ठा की प्रतीक है, तो दरजी की चिंता उसके नाक की प्रतिष्ठा को प्रकट करती है कि कहीं उसकी सिलाई-कढ़ाई रानी के स्तर से कुछ कम न रह जाए। अखबारों की नाक की प्रतिष्ठा इस बात में छिपी है कि कोई भी, कैसी भी खबर छपने से रह न जाए। रानी के इंग्लैंड में रहने वाले कुत्ते की भी फोटो समेत खबर हिंदुस्तान की जनता को अखबारों में दिख जानी चाहिए।
सरकार की नाक तभी ऊँची रह सकती है, जब सदा धूल-मिट्टी से भरी रहने वाली टूटी-फूटी सड़कें विदेशियों के सामने जगमगाती। दिखाई दें। आंदोलन करने वालों की नाक की ऊँचाई इसी बात पर टिकती है कि वे कुछ और कर सकें या न कर सकें, पर पत्थर की बनी जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक को जरूर तोड़ दें। इससे कोई लाभ होगा या हानि, उन्हें इस बात से कुछ लेना-देना नहीं है। उन्होंने एक बार निर्णय कर लिया कि मूर्ति की नाक नहीं रहनी चाहिए, तो वह नहीं रहेगी।
देश के शुभचिंतकों ने एक बार ठान लिया। कि मूर्ति की नई नाक लगानी है, तो वह लगेगी; क्योंकि यह उनके मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रश्न था। भले ही इसके लिए वे देश के महान नेताओं की मूर्तियों की नाक हटवाएँ या किसी जिंदा व्यक्ति की नाक ही क्यों न लगवाएँ। मूर्तिकार की नाक इसी में ऊँची रहनी थी कि वह किसी भी तरह मूर्ति को नाक लगा दे। ऐसा न कर पाने पर उसकी नाक दाँव पर लग जाती। लेखक ने अपनी व्यंग्य रचना में नाक को मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक मानकर अपनी बात को स्पष्ट किया है कि सभी अपने अहं को ऊँचे स्थान पर प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। इसी से उनके नाक की ऊँचाई बनी रह सकती है।
प्रश्न 8.
जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता या बच्चे की नाक फिट न हो सकने की बात से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया कि सभी भारतीय अपनी मान-मर्यादा और प्रतिष्ठा को सदा ध्यान में रखने वाले थे। उन्होंने किसी दूसरे देश की भूमि पर अपनी नाक स्थापित करने की कभी कोशिश नहीं की थी। इंग्लैंड की सत्ता ही ऐसी थी, जो देश-देश में अपनी नाक को घुसेड़कर अपना प्रभुत्व दिखाना चाहती थी पर इससे उनकी प्रतिष्ठा नहीं बढ़ी थी; चाहे उन्हें राजनैतिक लाभ उन्हें प्राप्त हुए थे। भारतीय बच्चे भी देश के लिए मर मिटने को तैयार थे। वे देश की स्वतंत्रता चाहते थे, ताकि उनकी नाक ऊँची हो और विदेशी सत्ता की नाक नीची हो।
प्रश्न 9.
अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
उत्तर :
अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को केवल इतना ही प्रस्तुत किया कि नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है।
प्रश्न 10.
‘नयी दिल्ली में सब था… सिर्फ नाक नहीं थी।’ इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
लेखक इस कथन के माध्यम से कहना चाहता है कि देश की स्वतंत्रता के बाद नई दिल्ली में अब सबकुछ था, केवल जॉर्ज पंचम का अभिमान और मान-मर्यादा की प्रतीक उनकी ऊँची नाक यहाँ नहीं थी। अंग्रेजी राज में उनकी यहाँ तूती बोलती थी; उन्हीं का आदेश चलता था, पर अब इंडिया गेट के निकट लगी उसकी मूर्ति की नाक नहीं बची थी।
प्रश्न 11.
जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?
उत्तर :
मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की मूर्ति को चालीस करोड़ भारतीयों में से किसी एक की जिंदा नाक लगाने का जिम्मा लिया था। अखबारों में छप गया था कि उसे जिंदा नाक लगा दी गई। इस कृत्य से भारतवासियों को ऐसा लगा, जैसे उन सबकी नाक कट गई; सबका घोर अपमान हुआ। आज़ाद देश में उस व्यक्ति की मूर्ति को जिंदा नाक लगाई गई, जिसने सारे देश को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ रखा था। इस अपमानजनक घटना के बाद अखबार चुप थे। इस अपमान से पीड़ित होने के कारण उनके पास कहने के लिए कुछ म भी शेष नहीं बचा था।
JAC Class 10 Hindi जॉर्ज पंचम की नाक Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
इंग्लैंड की रानी के हिंदुस्तान आगमन पर अखबारों में क्या-क्या छप रहा था?
उत्तर :
अखबारों में इंग्लैंड की रानी के हिंदुस्तान आने के उपलक्ष्य में की जाने वाली तैयारियों की ख़बरें छप रही थीं। उनमें रानी के द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों का वर्णन था। रानी की जन्मपत्री, प्रिंस फिलिप के कारनामे, नौकरों, बावरचियों, खानसामों और अंगरक्षकों की लंबी-चौड़ी बातों के साथ-साथ शाही महल में पलने वाले कुत्तों की तसवीरें तक अखबारों में छप रही थीं।
प्रश्न 2.
जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक कैसे और कहाँ चली गई थी?
उत्तर :
किसी समय दिल्ली में इस विषय पर तहलका मचा था कि हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक रहे या। न न रहे। इस विषय पर राजनीतिक पार्टियों ने प्रस्ताव पास किए; नेताओं ने भाषण दिए; गर्मागर्म बहसें हुई और अखबारों के पन्ने रंग दिए गए। कुछ लोग इस पक्ष में थे कि नाक नहीं रहनी चाहिए और कुछ लोग इसके विरोध में थे। आंदोलन को देखते हुए जॉर्ज पंचम की नाक की रक्षा के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे। किसी की क्या मजाल कि कोई उनकी नाक तक पहुंच – सकता, पर उन्हीं हथियारबंद पहरेदारों की उपस्थिति में लाट की नाक चली गई। पता नहीं गश्त लगाते पहरेदार की ठीक नाक के नीचे से लाट की नाक को कौन ले गया और कहाँ ले गया।
प्रश्न 3.
मूर्तिकार लाट की नाक लगाने को तैयार क्यों हुआ?
उत्तर :
मूर्तिकार भारतीय था और हर हिंदुस्तानी की तरह उसमें भी हिंदुस्तानी दिल धड़कता था, पर वह पैसों से लाचार था। खाली पेट व्यक्ति से कौन-सा काम नहीं कराता? इसी विवशता के कारण मूर्तिकार लाट की नाक लगाने को तैयार हो गया था।
प्रश्न 4.
मूर्तिकार ने मूर्ति की नाक के लिए उपयुक्त पत्थर प्राप्त न कर पाने का क्या कारण बताया था?
उत्तर :
मूर्तिकार ने लाट की नाक के लिए उचित पत्थर प्राप्त करने हेतु देश के सारे पर्वतीय क्षेत्रों का भ्रमण किया था; उसने पत्थरों की खादानों में भी खोजबीन की थी। पर जब उसे मूर्ति के लिए उपयुक्त पत्थर नहीं मिला, तो उसने इसका कारण बताया था कि मूर्ति का पत्थर विदेशी है।
प्रश्न 5.
सभापति ने किस आधार पर कहा था कि हम भारतवासियों ने अंग्रेजी सभ्यता को स्वीकार कर लिया है?
उत्तर :
देश की आजादी के बाद भले ही अंग्रेजी शासन हिंदुस्तान से चला गया, पर अंग्रेजी प्रभाव पूरी तरह से यहाँ रह गया। सभापति ने तभी तैश में आकर कहा था कि ‘लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं-दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन, जब हिंदुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?’ अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव के कारण ही शुभचिंतक लाट की टूटी हुई नाक की जगह नई नाक लगवाना चाहते थे।
प्रश्न 6.
जॉर्ज पंचम की नाक की लंबी दास्तान क्या थी?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की नाक की एक लंबी दस्तान थी। किसी समय इस नाक के लिए बड़े तहलके मचे थे; आंदोलन हुए थे; राजनीतिक पार्टियों ने प्रस्ताव पास किए थे; चंदा जमा किया था। कुछ नेताओं ने भाषण भी दिया था और गरमागरम बहसें भी हुए थीं। अखबारों में भी खूब छपा था कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए।
प्रश्न 7.
नई दिल्ली की कायापलट क्यों और कैसे हुई ?
उत्तर :
नई दिल्ली की कायापलट इसलिए हो रही थी, क्योंकि इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ भारत की यात्रा पर आ रही थी। भारतीय राजनेता उनके शाही सम्मान की तैयारी में जुटे थे, इसलिए नई दिल्ली की सड़कें जवान हो रही थीं; उनके बुढ़ापे की धूल साफ़ हो रही थी। इमारतों को सजाया जा रहा था।
प्रश्न 8.
मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को किन-किन भारतीय नेताओं की नाक से मिलाया?
उत्तर :
मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को भारत के विभिन्न नेताओं की नाक से मिलाया था। इनमें शिवाजी, तिलक, गोखले, जहाँगीर, दादा भाई नौरोजी, गुरुदेव रवींद्रनाथ, सुभाषचंद बोस, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, विट्ठल भाई पटेल, राजा राममोहन राय, मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, भगतसिंह आदि थे।
प्रश्न 9.
मूर्तिकार ने अंत में परेशान होकर क्या योजना बताई ?
उत्तर :
मूर्तिकार ने अंत में परेशान होकर कहा कि जॉर्ज पंचम की मूर्ति को नाक लगाना आवश्यक है, इसलिए चालीस करोड़ भारतीयों में से किसी एक की जिंदा नाक काटकर मूर्ति पर लगा दी जाए।
प्रश्न 10.
मूर्तिकार की योजना सुनकर राजनेता क्यों परेशान हो उठे और उन्हें शांत करने के लिए मूर्तिकार ने क्या किया?
उत्तर :
मूर्तिकार की यह योजना सुनकर कि मूर्ति पर जिंदा नाक लगानी होगी, सभी राजनेता और अधिकारी परेशान हो गए। तब मूर्तिकार ने उन सभी को शांत करते हुए कहा कि उन्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है, वह स्वयं ही किसी की नाक चुन लेगा जो मूर्ति पर सटीक बैठ सके।
प्रश्न 11.
जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर जिंदा नाक लगाने से पहले क्या इंतजाम किए गए और क्यों?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर जिंदा नाक लगाने से पहले मूर्ति के चारों ओर हथियारबंद सैनिक खड़े कर दिए गए। मूर्ति के आसपास जो तालाब था, उसका पानी निकाल दिया गया और उसमें पुनः ताज़ा पानी भरा गया। यह सब इसलिए किया गया ताकि जो जिंदा नाक मूर्ति पर लगने वाली थी, वह किसी भी प्रकार से सूखने न पाए।
प्रश्न 12.
सभापति ने तैश में आकर क्या कहा था?
उत्तर :
सभापति ने तैश में आकर कहा-“लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं- दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन, जब हिंदुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?”
प्रश्न 13.
मूर्तिकार को शहीद बच्चों की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी क्यों लगी?
उत्तर :
मूर्तिकार ने महसूस किया कि जॉर्ज पंचम ने भारत को गुलाम बनाया था; इस पर शासन किया था, जबकि बच्चों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इसलिए उसे बच्चों की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी लगी।
प्रश्न 14.
पत्रकारिता क्या है?
उत्तर :
पत्रकारिता समाज का दर्पण होती है। वह समाज को नई दिशा प्रदान करती है। समाज की अच्छी-बुरी सोच का निर्धारण पत्रकारिता के द्वारा ही होता है। पत्रकारिता आम जनता तथा युवा पीढ़ी पर अपनी सोच का अनुकूल प्रभाव डालती है।
जॉर्ज पंचम की नाक Summary in Hindi
लेखक-परिचय :
नई कहानी के सुविख्यात रचनाकार कमलेश्वर का जन्म 6 जनवरी, 1932 ई० को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी कस्बे में हुआ। बचपन में ही इनके पिता का स्वर्गवास हो गया था। मैनपुरी से इन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद में इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय इलाहाबाद से हिंदी में एम०ए० पास किया। पत्रकारिता से भी इनका विशेष लगाव रहा है। नई कहानी’, ‘सारिका’, ‘दैनिक जागरण’ और ‘दैनिक भास्कर’ का संपादन कमलेश्वर ने बहुत ही कुशलता के साथ किया। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर इन्होंने अनेक परिचर्चाओं में भी भाग लिया। जीवन के कुछ वर्ष इन्होंने मुंबई की फ़िल्मी दुनिया में व्यतीत किए। वहाँ इन्होंने अनेक फ़िल्मों और दूरदर्शन धारावाहिकों की पटकथाएँ एवं संवाद लिखे। इनकी कहानियों में कस्बे मैनपुरी, इलाहाबाद, दिल्ली और बंबई (मुंबई) जैसे महानगरों का रंग स्पष्ट उभरा है। इनका देहांत 27 जनवरी, 2007 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ।
रचनाएँ – कमलेश्वर की रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
कहानी संग्रह – राजा निरबंसिया, कस्बे का आदमी, मांस का दरिया, बयान, खोई हुई दिशाएँ, तलाश, जिंदा मुर्दे, आधी दुनिया, मेरी प्रिय कहानियाँ आदि।
उपन्यास – काली आँधी, समुद्र में खोया हुआ आदमी, वही बात, एक सड़क सत्तावन गलियाँ, सुबह… दोपहर… शाम, डाक बंगला, कितने पाकिस्तान आदि।
नाटक – चारुलता, अधूरी आवाज़, कमलेश्वर के बाल नाटक आदि।
यात्रावृत्त – खंडित यात्राएँ। संस्मरण-अपनी निगाह में।
समीक्षा – नई कहानी की भूमिका, समांतर सोच, मेरा पन्ना आदि।
साहित्यिक विशेषताएँ – कमलेश्वर नई कहानी के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। इनकी कहानियों में आधुनिक जन-जीवन की विभिन्न विसंगतियों, कुंठाओं, पीड़ाओं और वर्जनाओं का चित्रण यथार्थ के धरातल पर किया गया है। समाज का प्रत्येक पक्ष इनकी कहानियों में मुखरित हुआ है। इनमें आधुनिक समाज में व्याप्त स्वार्थ, घृणा, नफ़रत, घुटन, संत्रास और आत्महत्या जैसी भावनाओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
कमलेश्वर ने अपनी कहानियों के माध्यम से आधुनिक मूल्यों की अन्वेषणा की है। इनमें जीवन की त्रासदी उभरकर सामने खड़ी हो। गई है। कहीं-कहीं वे व्यंग्य-शैली के माध्यम से समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, पापाचार, संवेदनहीनता तथा आर्थिक विषमताओं का चित्रण बड़ी ही बेबाकी के साथ करते हैं। इनकी कहानियों में आधुनिक जीवन में व्याप्त बनावटीपन और खोखलेपन का पर्दाफ़ाश यथार्थ दृष्टि से हुआ है।
कमलेश्वर मानव मन के कथाकार हैं। कमलेश्वर की कहानियों में सर्वत्र अंतरवंद परिभाषित होता है। इनकी कहानियों में पीड़ाग्रस्त और अभावग्रस्त आम आदमी का चित्रण मनोवैज्ञानिक दृष्टि से हुआ है। आज की भाग-दौड़ और आर्थिक तंगहाली किस प्रकार आम आदमी को परेशान एवं हताश कर रही है, यह चिंतनपरक शैली में प्रस्तुत है। इन्होंने अपनी कहानियों में चित्रित पात्रों के माध्यम से गिरते-पड़ते एवं बेचैन मानव के अंदर एक नई शक्ति का संचार किया है।
आधुनिक जन-जीवन में मानवीय संबंधों में आए बिखराव को कमलेश्वर ने अपनी कहानियों में उकेरा है। पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच बढ़ती दूरी संबंधों में विकेंद्रीकरण की स्थिति उत्पन्न करती है। पति-पत्नी के दांपत्य संबंधों में आपसी टकराव दांपत्य जीवन को नाटकीय बना रहा है। किशोरावस्था में आया चिढ़चिढ़ापन युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट कर रहा है। मानवीय जीवन में आई इन्हीं सभी विसंगतियों के कारण समाज में बिखराव और टकराव को कमलेश्वर ने अपनी कहानियों में चित्रित किया है।
कमलेश्वर की कहानियों की भाषा परिमार्जित है, जिसमें उर्दू, अंग्रेजी तथा आंचलिक शब्दों का प्रयोग हुआ है। मुहावरों के सटीक प्रयोग से इनकी भाषा प्रवाहमयी हो गई है। इनकी अधिकांश कहानियाँ वर्णनात्मक और आत्मकथात्मक-शैली में लिखी गई हैं। अपनी लेखन शैली में वे लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता से अधिक काम लेते हैं।
पाठ का सार :
इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिंदुस्तान पधारने वाली थी। सारे देश की अखबारे इस शाही दौरे की खबरों से भरी : थीं। लंदन से उड़ने वाली हर खबर यहाँ सुर्खियों में दिखाई देती थी। इस दौरे के लिए छोटी-से-छोटी बात पर भी सबकी निगाहें टिकी हुई। थीं। वहाँ का दरजी इस बात से परेशान था कि हंदुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर महारानी कब-क्या पहनेंगी।
उनके सेक्रेटरी, जासूस और फ़ोटोग्राफर सब भाग-दौड़ में लगे थे। रानी ने चार सौ पौंड खर्च कर हलके नीले रंग का रेशमी सूट बनवाया था, जिसकी खबर भी। अखबारों में छपी थी। रानी की जन्मपत्री और प्रिंस फिलिप के कारनामों के अतिरिक्त अखबारों में उनके नौकरों, बावरचियों, खानसामों, अंगरक्षकों और कुत्तों की तसवीरें छापी गई थीं। दिल्ली में शाही सवारी के आगमन से धूम मची हुई थी।
वहाँ की सदा धूल-मिट्टी से भरी रहने वाली सड़कें साफ़ हो गईं। इमारतों को सजाया गया, सँवारा गया। पर एक बहुत बड़ी मुश्किल सामने आ गई थी। नई दिल्ली में जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक नहीं थी। कई राजनीतिक पार्टियों ने इस मूर्ति को लेकर आंदोलन किए थे; कई प्रस्ताव पास हुए थे, अनेक भाषण : दिए गए थे और गरमागरम बहसें भी हुई थीं कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए।
कुछ लोग इसके पक्ष में थे, तो कुछ विपक्ष में। सरकार ने जॉर्ज पंचम की नाक की सुरक्षा के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए थे। पर हादसा हो ही गया। इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम की लाट की नाक अचानक गायब हो गई थी। हथियारबंद पहरेदार अपनी जगह तैनात रहे, गश्त लगती रही पर लाट की नाक चली गई। अब महारानी देश में आ रही थी और लाट की नाक न हो, तो परेशानी होनी ही थी।
देश की भलाई चाहने वालों की एक मीटिंग बुलाई गई। मीटिंग में उपस्थित सभी इस बात से सहमत थे कि लाट की नाक तो होनी ही चाहिए। यदि वह नाक न लगाई गई, तो देश की नाक भी नहीं बचेगी। उच्च स्तर पर सलाह-मशविरे हुए और तय किया गया कि किसी मूर्तिकार से मूर्ति की नाक लगवा दी जाए। मूर्तिकार ने कहा कि नाक तो लग जाएगी, पर उसे पता होना चाहिए कि वह मूर्ति कहाँ बनी थी, कब बनी थी और इसके लिए पत्थर कहाँ से लाया गया । था। पुरातत्व विभाग से जानकारी मांगी गई, पर वहाँ से इस बारे में कुछ पता नहीं चला।
मूर्तिकार ने सुझाव दिया कि वह देश के हर पहाड़ पर जाएगा और वैसा ही पत्थर ढूँढ़कर लाएगा, जैसा मूर्ति में लगा था। हुक्कामों से आज्ञा मिल गई। मूर्तिकार हिंदुस्तान के सभी पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे पर निकल गया, पर कुछ दिनों बाद खाली हाथ लौट आया। उसे वैसा पत्थर नहीं मिला। उसने कह दिया कि वह पत्थर विदेशी है। मूर्तिकार ने सुझाव दिया कि देश में नेताओं की अनेक मूर्तियाँ लगी है। यदि उनमें से किसी एक की नाक लाट की मूर्ति पर लगा दी जाए। तो ठीक रहेगा।
सभापति ने सभा में उपस्थित सभी लोगों की सहमति से ऐसा करने की आज्ञा दे दी, पर साथ ही उन्हें सावधान रहने की बात भी समझा दी ताकि यह खबर अख़बार वालों तक न पहुँचे। मूर्तिकार ने फिर देशभर का दौरा किया। जॉर्ज पंचम की खोई हुई नाक का नाप उसके पास था। उसने दादा भाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, कॉवस जी जहाँगीर, गांधीजी, सरदार पटेल, महादेव देसाई, गुरुदेव रवींद्रनाथ, सुभाषचंद्र बोस, राजा राममोहन राय, चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल, मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, सत्यमूर्ति, लाला लाजपत राय, भगतसिंह आदि सबकी मूर्तियों को भली-भाँति देखा-परखा। सभी के नाक की नाप लो, पर सबकी नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी।
थी। वे इस पर फिट नहीं बैठती थी। इस बात से बड़े हुक्कामों में खलबली मच गई। अगर जॉर्ज की नाक न लग पाई, तो रानी के स्वागत का कोई मतलब नहीं था। मूर्तिकार ने फिर एक सुझाव दिया। एक ऐसा सुझाव, जिसका पता किसी को नहीं लगना चाहिए था। देश की चालीस करोड़ जनता में से किसी की जिंदा नाक काटकर मूर्ति पर लगा देनी चाहिए। यह सुनकर सभापति परेशान हुआ, पर मूर्तिकार को इसकी इजाजत दे दी गई।
अखबारों में केवल इतना छपा कि ‘नाक का मसला हल हो गया है और इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है।’ नाक लगने से पहले फिर हथियारबंद पहरेदारों की तैनाती हुई। मूर्ति के आसपास का तालाब सुखाकर साफ़ किया गया। उसकी रवाब निकाली गई और ताजा पानी डाला गया, ताकि लगाई जाने वाली जिंदा नाक सूख न जाए। वह दिन आ गया जब अख़बारों में छप गया कि जॉर्ज पंचम के जिंदा नाक लगाई गई है, जो बिलकुल पत्थर की नहीं लगती।
उस दिन अखबारों में किसी प्रकार के उल्लास और उत्साह की खबर नहीं छपी; किसी का ताजा चित्र नहीं छपा। ऐसा लगता था कि जैसे जॉर्ज पंचम को जिंदा नाक लगाने से सारे देशवासियों की नाक कट गई थी। जिन विदेशियों ने हमारे देश को इतने लंबे समय तक गुलाम बनाकर रखा था, उनकी नाक के लिए हम अपनी नाक कटवाने को क्यों तैयार रहते हैं।
कठिन शब्दों के अर्थ :
मय – के साथ। पधारने – सम्मान सहित आने। तूफानी दौरा – जल्दबाज़ी में किया गया भ्रमण। बावरची – रसोइए। बेसाख्ता – स्वाभाविक रूप से। खुदा की रहमत – ईश्वर की दया। काया पलट – पूरी तरह से परिवर्तन। करिश्मा – जादू। नाज़नीनों – कोमलांगी। दास्तान – कहानी, गाथा। तहलका – शोर शराबा, फ़साद। खामोश – चुप्प, शांत। एकाएक – अचानक। लाट – खंभा, मूर्ति। खेरख्वाहों – भलाई चाहने वाले। उच्च स्तर – ऊँचा दरजा। फौरन – शीघ्र। हाज़िर – उपस्थित। लाचार – परेशान। हुक्कामों – स्वामियों। ताका – देखा। मसला – विषय, समस्या। खता – अपराध, गलती। दारोमदार – किसी कार्य के होने या न होने की पूरी ज़िम्मेदारी, कार्यभार। किस्म – प्रकार। बदहवासी – परेशानी। परिक्रमा – चारों ओर का चक्कर। हैरतअंगेज ख्याल – आश्चर्यचकित करने वाला विचार। सन्नाटा – पूर्ण शांति। खामोशी – चुप्पी। कानाफूसी – फुसफुसाहट, धीमे स्वर में बातचीत। इजाज़त – आज्ञा। हिदायत – सलाह, सावधानी।