Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल
JAC Class 10 Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Questions and Answers
1. यह दंतुरित मुसकान
प्रश्न 1.
बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह उसके सुंदर और मोहक मुख पर छाई मनोहारी मुसकान देखकर प्रसन्नता से भर उठा। उसे ऐसा लगा कि धूल-धूसरित वह चेहरा किसी तालाब में खिले सुंदर कमल के फूल के समान है, जो उसकी झोंपड़ी में आ गया है। कवि उसे एकटक देखता रह गया। उसकी मुसकान ने उसे अपनी पत्नी के प्रति कृतज्ञात प्रकट कर देने के लिए विवश कर दिया।
प्रश्न 2.
बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर :
बच्चे की मुसकान में बनावटीपन नहीं होता; वह सहज और स्वाभाविक होती है। लेकिन किसी बड़े व्यक्ति की मुसकान बनावटी हो सकती है। वह समय और स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। बच्चे की मुसकान में निश्छलता रहती है, पर बड़े व्यक्ति की मुसकान में हर समय स्वाभाविकता नहीं होती।
प्रश्न 3.
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है ?
उत्तर :
कवि ने बच्चे की मुसकान से चाक्षुक और मानस बिंबों की सुंदर सृष्टि की है। छोटे-छोटे दाँतों से युक्त उसकी मुसकान किसी मृतक को पुन: जीवन देने की क्षमता रखती है। उसके धूल-धूसरित शरीर के अंग कमल के सुंदर फूल के समान प्रतीत होते हैं। पत्थर भी मानो उसके स्पर्श को पाकर जल का रूप पा गए होंगे। चाहे कोई कितना भी कठोर क्यों न रहा हो; बाँस या बबूल के समान ही उसका रूप क्यों न हो, पर वे सब उसे छूकर शेफालिका के फूलों के समान कोमल हो गए होंगे।
प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?
उत्तर :
(क) कवि को ऐसा लगा कि उस छोटे बच्चे की अपार सुंदरता ईश्वरीय वरदान के समान है। धूल-धूसरित अंग-प्रत्यंगों वाला वह बालक जैसे तालाब में खिले कमल के समान मोहक और मनोरम था, जो उसकी झोंपड़ी में आकर बस गया था।
(ख) उस छोटे दंतुरित बच्चे का ऐसा मनोरम रूप है कि चाहे कोई कितना भी कठोर क्यों न रहा हो, पर उसे देख मन-ही-मन प्रसन्नता से भर उठता है। चाहे वह बाँस के समान हो या काँटों भरे कीकर के समान; उसकी सुदंरता से प्रभावित होकर वह मुसकराने के लिए विवश हो जाता है।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 5.
मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
मुसकान और क्रोध दोनों मानव-मन में उत्पन्न होने वाले भाव हैं। मुसकान एक सुखद मनोभाव है, तो क्रोध एक मनोविकार है। मुसकान में व्यक्ति अपने हृदय के सुखद भावों को प्रकट करता है; क्रोध में वह अतृप्ति, क्लेश और पीड़ा के भावों को प्रकट करता है। मुसकान सदा सुखदायी होती है, जबकि क्रोध दुखदायी। क्रोध उन सभी को दुख देता है, जो-जो उसकी समीपता को प्राप्त करते हैं। मुसकान से किसी के भी हृदय को जीता जा सकता है, पर क्रोध से अपनों को भी पलभर में दुश्मन बनाया जा सकता है।
प्रश्न 6.
‘दंतुरित मुसकान’ से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
बच्चे की उम्र लगभग आठ-नौ महीने से लेकर एक वर्ष के बीच होनी चाहिए। उसके मुँह में छोटे-छोटे दाँत हैं, जो सामान्यतः इसी आयु में निकलते हैं। वह कवि को पहचानता नहीं, पर उसके हृदय में उत्सुकता का भाव है। वह उसे बुलाना चाहता है, पर अनजान होने के कारण बुलाता नहीं बल्कि कनखियों से उसकी ओर देखता है। प्रायः ऐसी क्रियाएँ इस उम्र के बच्चे ही करते हैं।
प्रश्न 7.
बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
वह बच्चा अत्यंत सुंदर है। वह छोटा-सा है; एक साल से भी छोटा होगा। उसका चेहरा कमल के फूल के समान मोहक है। वह मिट्टी में खेलता है; कच्चे आँगन में इधर-उधर रेंगता है। उसके सारे शरीर पर धूल लगी हुई है। कवि लंबे समय के बाद घर लौटा है। बच्चे के बारे में उसे अपनी पत्नी से पता लगा है। वह भाव-विभोर है और एकटक उस बच्चे की ओर निहार रहा है।
वह उसकी मोहक ‘दंतुरित मुसकान’ पर मंत्र-मुग्ध है। बच्चा उसे पहचानना चाहता है, पर पहचान नहीं पाता। उसने कवि को पहली बार देखा है, इसलिए वह कनखियों से अतिथि को देखकर मुस्कराता है। कवि को लगता है कि इस बच्चे की मुसकान पत्थर को भी पिघला देने की क्षमता रखती है। कठोर-से-कठोर व्यक्ति भी इसकी मोहक मुसकान पर स्वयं को न्योछावर कर सकता है।
पाठेतर सक्रियता –
प्रश्न 1.
आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।
उत्तर :
कल मैं अपनी सहेली के घर गई थी। वह मेरी कक्षा में ही पढ़ती है। जब मैं उसके साथ उसके घर के आँगन में बैठी थी, तो मैंने देखा कि लगभग डेढ़-दो वर्ष की एक छोटी-सी लड़की दरवाज़े की ओट में खड़ी होकर एकटक मुझे देख रही थी। उसने अपने एक हाथ की उँगली मुँह में डाल रखी थी और दूसरे हाथ से दरवाज़ा थाम रखा था। मैंने इशारे से उसे बुलाया, पर वह वहीं खड़ी रही। मेरी सहेली ने बताया कि वह उसकी भतीजी है, जो दो दिन पहले ही दिल्ली से आई है। उसका नाम सलोनी था। मैंने उसे नाम से पुकारा।
वह मुस्कराई अवश्य, पर वहाँ से आगे नहीं बढ़ी। मैं अपनी जगह से उठकर जैसे ही उसकी तरफ़ बढ़ी, वह झट से भीतर भाग गई। मैं वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। कुछ देर बाद मैंने फिर उधर देखा, तो वह वहीं खड़ी थी। मेरी सहेली ने उसे बुलाया, तो वह हमारे पास आ गई। मैंने उसे पुचकारा; उसका नाम पूछा। वह चुप रही; बस धीरे-धीरे मुस्काती रही।
मैंने उससे पूछा कि क्या उसे गाना आता है, तो उसने हाँ में सिर हिलाया और फिर धीरे से पूछा कि क्या वह गाना सुनाए? मेरे हाँ कहने के बाद उसने गाना शुरू किया और एक के बाद एक न जाने कितनी देर तक वह आधे-अधूरे गाने गाती रही; ठुमकती रही। उसकी झिझक दूर हो गई थी। जब मैं चलने लगी, तो वह मेरी उँगली थाम कर मेरे साथ चलने को तैयार थी। कुछ देर पहले मुझसे शर्माने और झिझकने वाली सलोनी अब मेरे साथ थी। उसके चेहरे पर झिझक के भाव नहीं थे; उसके व्यवहार में भय नहीं था। वह बहुत मीठा और अच्छा बोलती थी।
प्रश्न 2.
एन० सी० ई० आर० टी० द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फ़िल्में देखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता लें।
2. फसल
प्रश्न 1.
कवि के अनुसार फसल क्या है?
उत्तर :
कवि के अनुसार फसल मनुष्य की लगन और शारीरिक परिश्रम के साथ-साथ प्रकृति के जादुई सहयोग का परिणाम है। जब मनुष्य और प्रकृति मिलकर कार्य करते हैं, तभी फसल होती है। यह लाखों करोड़ों हाथों के स्पर्श की महिमा और गरिमा है।
प्रश्न 2.
कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
कविता में फसल उपजाने के लिए जिन आवश्यक तत्वों की बात कही है, वे हैं-‘नदियों के पानी का जादू, करोड़ों हाथों का परिश्रम, मिट्टी के अद्भुत गुण, सूर्य की किरणें और हवा।
प्रश्न 3.
फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर :
कवि ने लाखों-करोड़ों लोगों के द्वारा किए जाने वाले परिश्रम और उनकी एकनिष्ठ लगन को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा और ‘महिमा’ कहा है। कवि कहता है कि फसल उत्पन्न करना किसी एक व्यक्ति का काम नहीं है; न जाने कितने दिन-रात मेहनत करके वे इसे उगाने का गौरव प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) रूपांतर है सूरज की किरणों का सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
उत्तर :
कवि कहता है कि फसल केवल मनुष्य के परिश्रम का परिणाम नहीं है। प्रकृति भी इसमें सम्मिलित है। सूर्य की किरणें इसे प्रकाश देती हैं; अपनी ऊष्मा और ऊर्जा प्रदान करती हैं, जिससे फसलें उत्पन्न होती हैं। फसल प्रकृति से अपना भोजन प्राप्त करती हैं और बढ़ती हैं। हवा उन्हें थिरकन प्रदान करती है, तभी उसमें बीज बनता है और दानों के रूप में हमें प्राप्त होता है।
रचमा और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 5.
कवि ने फसल को हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है –
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है? (घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर :
(क) मिट्टी का गुण-धर्म इसकी उपजाऊ-शक्ति है, जो इसमें मिले अनेक तत्वों के कारण होती है। उन तत्वों की उपस्थिति के कारण ही मिट्टी भिन्न-भिन्न रंगों को प्राप्त करती है; हल्की-हल्की गंध प्राप्त करती है। वे तत्व ही फसल को बढ़ने में सहायता देते हैं।
(ख) वर्तमान जीवन-शैली मिट्टी को प्रदूषित कर रही है। जाने-अनजाने तरह-तरह के रासायनिक पदार्थ इसमें मिलाए जाते हैं, जिस कारण इसके गुण बदल जाते हैं। उद्योग-धंधे और प्रदूषित जल इसे बिगाड़ रहे हैं । तरह-तरह के कीटनाशक इसे खराब कर रहे हैं। इनके प्रयोग से भले ही हमें फसल कुछ अधिक प्राप्त हो जाती है, पर इससे मिट्टी की प्रकृति बदल रही है।
(ग) मिट्टी के अपने स्वाभाविक गुण-धर्म को छोड़ देने से जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यदि मिट्टी फसल उगाने का गुण-धर्म त्याग दे, तो हमारा जीवन असंभव-सा हो जाएगा क्योंकि सभी प्राणियों का जीवन फसल पर ही निर्भर करता है।
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी भूमिका अति महत्वपूर्ण हो सकती है। हम इसे प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। इसमें मिलाए जाने वाले रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवार नाशियों के स्थान पर हम प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग कर सकते हैं। इसमें मिलने वाले औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों की रोकथाम कर सकते हैं।
पाठेतर सक्रियता –
प्रश्न 1.
इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया के माध्यमों द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तर :
सेवा में,
प्रमुख संपादक,
दैनिक भास्कर,
लखनऊ।
विषय : सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था हेतु सुझाव
मान्यवर,
मैं आपके समाचार-पत्र के माध्यम से सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था हेतु कुछ सुझाव देना चाहता हूँ, जो किसानों के लिए निश्चित रूप से महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे। हमारा देश कृषि-प्रधान देश है। इसकी लगभग 80% जनता गाँवों में रहती है और पूरी तरह से कृषि पर आश्रित है।
सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए खेती योग्य अधिकतर भूमि पर हमें फसल उगाने की योजनाएँ बनानी चाहिए। परंपरागत पद्धति को त्यागकर वैज्ञानिक आधार पर खेती करनी चाहिए। हमें समझना होगा कि हर खेत की मिट्टी एक-सी फसल उगाने योग्य नहीं होती। इसलिए कृषि-संस्थानों से मिट्टी की परख करवाकर हमें जान लेना चाहिए कि वह किस प्रकार की फसल के लिए अधिक उपयोगी है।
यदि उसमें किसी विशेष तत्व की कमी है, तो उसे रासायनिक पदार्थों के प्रयोग से पूरा करना चाहिए। हमें फसल के लिए उन्नत और संकरण से प्राप्त बीज ही बोने चाहिए, जो कृषि-संस्थानों से प्राप्त हो जाते हैं। समय-समय पर मान्यता प्राप्त खरपतवार नाशियों और कीटनाशियों का प्रयोग करना चाहिए। सिंचाई के लिए परंपरागत तरीके छोड़कर स्पिंरकरज़ का प्रयोग करना चाहिए। इससे सारे खेत की सिंचाई एक समान होती है। उर्वरकों के साथ-साथ कंपोस्ट और वर्मीकंपोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। इससे फसल की प्राप्ति अच्छी होती है।
सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के अंतर्गत फूलों की खेती की ओर भी ध्यान देना चाहिए। वर्षभर में केवल दो फसलों पर निर्भर न रहकर तीन-चार अंतराफसलें प्राप्त करनी चाहिए। कीटनाशियों के उचित प्रयोग से भी हम अपनी फसलों को नष्ट होने से बचा सकते हैं। आशा है कि आप अपने प्रतिष्ठित समाचार-पत्र में इन सुझावों को अवश्य स्थान देंगे।
भवदीय,
राकेश भारद्वाज
प्रश्न 2.
फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्व क्यों नहीं दिया जाता है ? इस बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अध्यापक-अध्यापिका की सहायता से करें।
JAC Class 10 Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
कवि ने स्वयं को प्रवासी क्यों कहा है ?
उत्तर :
नागार्जुन प्रायः घूमते रहते थे। वे फक्कड़ और घुमक्कड़ थे। राजनीति और घुमक्कड़ी के शौक के कारण प्रायः अपने घर से दूर रहते थे इसलिए उन्होंने स्वयं को प्रवासी कहा है। साहित्य जगत में भी उन्हें ‘यात्री’ के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 2.
‘दंतुरित मुसकान’ क्या-क्या कर सकती थी ?
उत्तर :
‘दंतुरित मुसकान’ किसी कठोर-से-कठोर व्यक्ति के हृदय को भी कोमलता से भर सकती थी। वह किसी मृतक को जीवित कर सकती थी। उसकी सुंदरता से प्रभावित होकर पत्थर भी पिघलकर पानी बन सकता था।
प्रश्न 3.
कवि ने फसल के द्वारा किन-किन में आपसी सहयोग का भाव व्यक्त किया है?
उत्तर :
कवि ने फसल के द्वारा मनुष्य के शारीरिक बल, परिश्रम तथा प्रकृति में छिपी अथाह ऊर्जा के आपसी सहयोंग का भाव व्यक्त किया है। जब ममुष्य की मेहन्त और प्रकृति का सहयोग आपस में मिल जाते हैं, तो फसल उत्पन्न होती है।
प्रश्न 4.
कवि ने मुसकान के लिए दंतुरित विशेषण का प्रयोग क्यों किया है ?
उत्तर :
मुसकान अपने-आप में ही सभी को आकर्षित कर लेती है, परंतु एक नन्हे से बालक के छोटे-छोटे दाँतों से युक्त मुसकान उसे और भी विशिष्ट बना देती है।
प्रश्न 5.
‘छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात’ का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर :
धूल-मिट्टी से सने बालक के शरीर को देखकर कवि को लगता है कि जैसे कोई कमल सरोवर को छोड़कर उसके घर में आकर खिल गया है। अपने नन्हें से बच्चे को देख कवि अति प्रसन्न है।
प्रश्न 6.
पाषाण का पिघलना और जल बनना से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
पत्थर या पाषाण पिघलने का अर्थ है-‘ऐसा व्यक्ति जो कोमल भावनाओं से दूर है, इस सुंदर बालक का कोमल स्पर्श पाकर भावुक बन जाता है।’ कवि के अनुसार बालक की मुसकान से कठोर हृदय भी पिघलकर जल बन जाता है।
प्रश्न 7.
‘दंतुरित मुसकान’ कविता में किस भाव की अभिव्यक्ति है?
उत्तर :
इस कविता में एक ऐसे पिता के मन के भावों की अभिव्यक्ति है, जिसने काफ़ी समय के बाद अपने पुत्र को देखा है। ये भाव अपने शिशु को देखकर पिता के हृदय में स्नेह से परिपूर्ण होकर जागते हैं। शिशु की छोटी-से-छोटी भाव-भंगिमा भी पिता को अभिभूत कर देती है। वात्सल्स तथा स्नेहमयी अभिव्यक्ति इस कविता का मुख्य भाव है।
प्रश्न 8.
कवि और शिशु के बीच माध्यम कौन है?
उत्तर :
कवि तथा शिशु के बीच माध्यम है-‘शिशु की माँ’। जो दोनों के बीच एक कड़ी का काम करती है। दोनों को एक-दूसरे के साथ
पिता-पुत्र के संबंध में बाँधती है।
प्रश्न 9.
कवि शिशु की माँ तथा शिशु को धन्य क्यों कहता है ?
उत्तर :
कवि जब अपने शिशु को काफी समय के बाद देखता है, तो उसे बड़ी प्रसन्नता होती है। कवि की अनुपस्थिति में शिशु की माँ ने ही उसका पालन-पोषण किया। उसके कारण ही शिशु की दंतुरित मुसकान को देखने का कवि को सौभाग्य मिला। यदि माँ न होती, तो शिशु का अस्तित्व ही न होता और यदि ये दोनों न होते, तो कवि को यह खुशी देखने को न मिलती। इसी कारण कवि ने माँ तथा शिशु दोनों को धन्य कहा है।
प्रश्न 10.
‘उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क’ में मधुपर्क से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
नन्हें शिशु के समुचित विकास के लिए माँ पाँच पौष्टिक पदार्थों को मिलाकर अपनी उँगलियों से उसे चटाती है। मधुपर्क जिन पाँच वस्तुओं के मिश्रण से बनता है, वे हैं-दूध, दही, शहद, घी और जल। मधुपर्क की पौष्टिकता के साथ-साथ माँ की उँगलियों में जो स्नेहरूपी अमृत है, वह भी महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 11.
कवि ने ‘फसल’ के निर्माण में किसान के परिश्रम को अधिक महत्वपूर्ण क्यों कहा है?
उत्तर :
फसल के निर्माण में प्रकृति और किसान दोनों का ही योगदान होता है। मनुष्य को प्रकृति के अनुसार चलकर अधिक उत्पादन मिल सकता है। फिर भी कृषक का अथक परिश्रम अधिक महत्वपूर्ण है। किसान बीज बोता है; जुताई-सिंचाई करता है; धैर्य के साथ फसल की सेवा करता है। समय के अनुसार उसमें खाद डालता है। जानवरों से उसकी रक्षा करता है। इसी कारण किसान फसल निर्माण की प्रक्रिया में अधिक महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 12
हजार-हजार खेतों की मिट्टी के गुण-धर्म से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
फसल मिट्टी में ही उगती है। तरह-तरह की फसल के लिए मिट्टी के मुण भी अलग-अलग होते हैं। हर तरह की फसल एक 4 ही खेत में नहीं उगाई जा सकती। मिट्टी के खनिज तत्व अलग-अलग होते हैं। मिट्टी या खेत की उपजाऊ-शक्ति भी एक-सी नहीं होती। खेतों की उर्वरा शक्ति के अनुसार ही उनमें बीज बोए जाते हैं और तरह-तरह की फसल उगाई जाती है।
प्रश्न 13.
फसल कविता दवारा कवि हमें क्या संदेश देना च –
उत्तर :
कवि का मानना है कि फसल मानव और प्रकृति के सहयोग से लहलहाती है। प्रकृति के अनेक तत्वों का सहयोग ही किसान के परिश्रम को फसल के रूप में उत्पन्न करता है। एक-दूसरे के अभाव में फसल कदापि तैयार नहीं हो सकती। मानव तथा प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं।
प्रश्न 14.
प्रकृति के कौन-कौन से तत्व फसल के लिए अपना योगदान देते हैं?
उत्तर :
खेतों की मिट्टी, उसमें समाहित खनिज तत्व, पानी, सूरज की किरणें, हवाएँ तथा प्रकृति के सहयोग से प्राप्त विभिन्न प्रकार के बीज ये सभी तत्व प्रकृति हमें प्रदान करती हैं, ताकि हमें तरह-तरह की फसल मिल सके।
प्रश्न 15.
कवि ने फसल को जादू क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि के अनुसार फसल एक जादू है। एक बीज में से जो अंकुर फूटकर बाहर निकलता है; जिसे मिट्टी, नदियों का पानी, सूर्य की ऊर्जा, हवा तथा किसान का सहयोग प्राप्त है, वह ईश्वर का जादू है। हर बीज अलग-अलग तरह का तथा अलग तरह की फसल पैदा करने में सक्षम है। यह एक चमत्कार से कम नहीं है।
पठित धनाश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –
दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –
1. तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात….
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि किसे संबोधित कर रहा है?
(i) बालक को
(ii) वृद्ध को
(iii) स्त्री को
(iv) युवक को
उत्तर :
(i) बालक को
(ख) बच्चे का अंग-प्रत्यंग कैसा है?
(i) स्वच्छ
(ii) कठोर
(iii) धूल-मिट्टी से सना
(iv) काला
उत्तर :
(iii) धूल-मिट्टी से सना
(ग) बच्चे की मुसकान किसका संदेश देती है?
(i) मृत्यु का
(ii) जीवन का
(iii) दुख का
(iv) चिंताओं का
उत्तर :
(ii) जीवन का
(घ) कवि के अनुसार कठिन पाषाण किस प्रकार पिघला होगा?
(i) तप कर
(ii) बच्चे के स्पर्श से
(ii) बच्चे के प्राणों का स्पर्श पाकर
(iv) जल कर
उत्तर :
(iii) बच्चे के प्राणों का स्पर्श पाकर
(ङ) बच्चे के स्पर्श से कौन-से फूल झड़ने लगेंगे?
(i) बबूल के
(ii) गुलाब के
(iii) गुलमोहर के
(iv) शेफालिका के
उत्तर :
(iv) शेफालिका के
2. हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह नदियों के पानी का जादू है वह हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा का थिरकन का!
(क) फसल में कितने खेतों की मिट्टियों के गुण-धर्म मौजूद हैं?
(i) दो खेतों की
(ii) सैकड़ों खेतों की
(iii) हज़ारों खेतों की
(iv) लाखों खेतों की
उत्तर :
(iii) हज़ारों खेतों की
(ख) फसल किसका जादू है?
(i) अनाज का
(ii) झरनों के पानी का
(iii) झीलों के पानी का
(iv) नदियों के पानी का
उत्तर :
(iv) नदियों के पानी का
(ग) फसल किसके स्पर्श की महिमा है?
(i) परिश्रमी हाथों के स्पर्श की
(ii) पानी के स्पर्श की
(iii) बच्चे के स्पर्श की
(iv) मिट्टी के स्पर्श की
उत्तर :
(i) परिश्रमी हाथों के स्पर्श की
(घ) कवि ने मिट्टी की किन विशेषताओं को प्रकट किया है?
(i) खुशबू की
(ii) काले, भूरे और संदले रंगों की
(iii) उपजाऊपन की
(iv) नमी की
उत्तर :
(ii) काले, भूरे और संदले रंगों की
(ङ) फसल किसका रूपांतर है?
(i) परिश्रम का
(ii) पानी का
(iii) सूर्य की किरणों का
(iv) अनाज का
उत्तर :
(iii) सूर्य की किरणों का
काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –
काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
(क) कवि और बच्चे के बीच का माध्यम कौन है?
(i) कवि की माँ
(ii) बच्चे की माँ
(iii) मुसकान
(iv) बच्चे का भोलापन
उत्तर :
(ii) बच्चे की माँ
(ख) ‘मधुपर्क’ किसका प्रतीक है?
(i) बच्चे की मुसकान का
(ii) माँ के प्यार का
(iii) कमल की सुंदरता का
(iv) पालन-पोषण का
उत्तर :
(ii) माँ के प्यार का
(ग) कवि के अनुसार फसल क्या है?
(i) परिश्रम का फल
(ii) अनाज का ढेर
(iii) जादू
(iv) खेत-खलिहान
उत्तर :
(iii) जादू
(घ) फसल को थिरकना कौन सिखाता है?
(i) हवा
(ii) किसान
(iii) मिट्टी
(iv) पानी
उत्तर :
(i) हवा
यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Summary in Hindi
कवि-परिचय : वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’ जो ‘नागार्जुन’ के नाम से विख्यात हुए, हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कवि एवं कथाकार हैं। आधनिक कबीर के रूप में विख्यात नागार्जन घुमंत व्यक्ति थे। इनका जन्म 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत पाठशाला में हुई थी। बाद में ये संस्कृत अध्ययन के लिए बनारस और कोलकाता भी गए। सन 1936 में नागार्जुन अध्ययन के लिए श्रीलंका गए और वहीं बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए। वर्ष 1938 में वे स्वदेश वापस आ गए।
नागार्जुन अपने घुमक्कड़पन और फक्कड़पन के लिए प्रसिद्ध रहे। शिक्षा-प्राप्ति के दौरान उनकी भेंट मैथिली के प्रकांड पंडित सीताराम झा से हुई और उन्होंने उनसे भाषा, छंद, अलंकार आदि का विशेष ज्ञान प्राप्त किया। बनारस में रहते हुए नागार्जुन संस्कृत के साथ-साथ मैथिली में भी साहित्य-रचना करने लगे। बीस वर्ष की अवस्था में नागार्जुन का विवाह हुआ। लेकिन अध्ययन, घुमक्कड़ी और राजनीति में रुचि होने के कारण ये परिवार की देख-रेख नहीं कर सके। नागार्जुन के चार पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं।
मैथिल समाज में उन्हें समुचित आदर नहीं मिला; क्योंकि एक तो वे समुद्र पार की यात्रा कर आए थे, दूसरे संन्यास भ्रष्ट थे और तीसरे बौद्ध होने के कारण उनकी खान-पान की पवित्रता नष्ट हो गई थी। वर्ष 1941 में नागार्जुन पुनः घर लौटे। लगभग पाँच दशक तक इन्होंने अनेक हिंदी साहित्य को समृद्ध करने के बाद 5 नवंबर, 1998 को नागार्जुन का देहांत हुआ। साहित्य-रचना-नागार्जुन ने वर्ष 1935 में हिंदी मासिक ‘दीपक’ में काम किया तथा वर्ष 1942-43 में ‘विश्व बंधु’ साप्ताहिक का संपादन किया।
ये अपनी मातृभाषा मैथिली में ‘यात्री’ उपनाम से रचना करते थे। इनके कविता-संग्रह ‘चित्रा’ से मैथिली में नवीन भाव बौद्ध का प्रारंभ माना जाता है। संस्कृत में चाणक्य उपनाम से इन्होंने अनेक कविताएँ लिखीं। वर्ष 1930 से विधिवत लेखन करते हुए नागार्जुन ने हिंदी को महत्वपूर्ण रचनाएँ दीं…’ सतरंगे पंखों वाली’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘युगधारा’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘हज़ार-हजार बाहों वाली’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने’, ‘रत्नगर्भा’, ‘ऐसे भी हम क्या, ऐसे भी तुम क्या’, ‘पका है कटहल’, ‘मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा’ तथा ‘भस्मांकुर’।
नागार्जुन के उपन्यासों में ‘बलचनमा’, ‘रतिनाथ की चाची’, ‘कुंभीपाक’, ‘उग्रतारा’, ‘जमनिया का बाबा’ तथा ‘उग्रतारा’ प्रमुख है। नागार्जुन का संपूर्ण साहित्य सात खंडों में प्रकाशित हो चुका है। सन 1956 में प्रकाशित ‘युगधारा’ में कवि ने अपना परिचय निम्न शब्दों में दिया है –
‘पैदा हुआ था मैं दीन-हीन अपठित किसी कृषक-कुल में
आ रहा हूँ पीता अभाव का आसव ठेठ बचपन से।’
काव्य-सौंदर्य – नागार्जुन की कविता राष्ट्रीय-चेतना की कविता है, जिसमें राष्ट्रीय आंदोलनों की धड़कन सुनाई पड़ती है। व्यंग्यात्मकता उनकी कविता का अभिन्न अंग है। ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘हिम कसमों का चंचरीक’ तथा ‘फाहियान के वंशधर’ आदि कविताएँ राष्ट्रीय भावों से ओत-प्रोत हैं। मातृभूमि के प्रति उनका प्रेम निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त हुआ – है
‘भारत माता के गालों पर कसकर पड़ा तमाचा है।
राम राज्य में अब की रावन नंगा होकर नाचा है।’
तथा
‘खेत हमारे, भूमि हमारी, सारा देश हमारा है।
इसीलिए तो हमको इसका, चप्पा-चप्पा प्यारा है।’
नागार्जुन अपनी कविता में वामपंथी विचारधारा को लेकर आए। वे प्रगतिशील जनवादी कवि थे। उन्होंने जनता के सुख-दुख; उसके संघर्ष और कष्ट; उसकी आस्था और जिजीविषा को अपने काव्य में व्यक्त किया है। सामाजिक अन्याय, शोषण, जड़ता, अंधविश्वास, ढोंग, पाखंड आदि के विरोध में नागार्जुन ने बहुत लिखा। नागार्जुन ने ‘पोस्टर कविता’ के रूप में व्यंग्यात्मक राजनीतिक कविताएँ वर्ष 1965 के आपातकाल में लिखीं। राजनीतिक आंदोलनों के कारण ये अनेक बार जेल भी गए। नागार्जुन की कविताओं में गहन राजनीतिक समझ दिखाई देती है।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर इन्होंने अनेक रचनाएँ लिखी हैं। मार्क्सवादी विचारधारा से जुड़े होने पर भी इनके काव्य में वैचारिक कट्टरता नहीं है। कवि का ग्रामीण संस्कार भी इनकी कविताओं में व्यक्त हुआ है। नागार्जुन घुमक्कड़ थे, इसलिए देश-विदेश के अनेक सुंदर स्थानों के शब्द-चित्र इनकी कविताओं में हैं। प्रकृति से जुड़ी इनकी कविताएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। ‘बादल को घिरते देखा है’ तथा ‘घन कुरंग’ जैसी कविताएँ बहुत सुंदर हैं। नागार्जुन के काव्य-विषय जीवन से लिए गए हैं, इसलिए रिक्शा खींचते गरीब के पाँवों में फटी बिवाइयाँ भी वहाँ हैं; फटी बनियान और टपकता कटहल भी उनका काव्य विषय बना है।
काव्य-भाषा – नागार्जुन की काव्य-भाषा भावों का अनुसरण करती है। तत्सम शब्दावली के साथ तद्भव और देशी-विदेशी शब्द आवश्यकतानुसार प्रयुक्त हुए हैं। मुहावरों का सटीक प्रयोग इनके काव्य की विशेषता है; यथा –
वतन बेचकर पंडित नेहरू फूले नहीं समाते हैं।
बापू के भी ताऊ निकले, तीनों बंदर ताऊ के।
गिरगट के अंडे सेता हूँ, मैं देख रहा।
सत्तर चूहे खाकर रीझा वृद्ध बिलौटा अब जन मन पर।
नागार्जुन की कविता बिंबात्मक है। हिरण की तरह उछलते-कूदते बादल का बिंब देखिए –
‘नभ में चौकड़ियाँ भरे भले
शिशु घन-कुरंग
खिलवाड़ देर तक करें भले
शिशु घन कुरंग।’
नागार्जुन ने मधुर गीत भी लिखे हैं और मुक्त छंद में काव्य-रचना भी की है। इन्होंने प्रणय, प्रकृति, राजनीति और देश-प्रेम पर कविताएँ लिखी। हैं। इनकी कविताओं का स्वर मानवतावादी है। प्रसिद्ध आलोचक रामविलास शर्मा के शब्दों में-“इनकी कविताएँ दिल पर चोट करने वाली हैं; कर्तव्य की याद दिलाने वाली हैं और राह दिखाने वाली भी हैं।” नागार्जुन मित्रों के लिए नागा बाबा थे। समाज, राजनीति, धर्म तथा साहित्य में एक साथ संघर्ष करने वाला हिंदी का यह कवि अद्भुत था, क्योंकि कवि के विवेक पर यह किसी तरह का बंधन स्वीकार नहीं करता था।
नागार्जुन मानते थे कि पार्टी देश और समाज से बड़ी नहीं होती, इसलिए वामपंथियों ने इन्हें अंततः ठुकरा दिया। वर्ष 1962 में इन्होंने ० चीन विरोधी कविताएँ लिखीं और वर्ष 1965 में आपातकाल विरोधी कविताएँ लिखीं। इन्होंने जय प्रकाश आंदोलन का भी खुलकर साथ दिया था। नागार्जुन कोमल भावनाओं के कवि भी थे। जब संन्यासी जीवन काटकर बरसों बाद गृहस्थ बने, पत्नी की उम्र ढल चुकी थी। उसकी पीड़ा पर कविता लिखी ‘प्रत्यावर्तन’ अर्थात लौटना। इसमें पत्नी की दशा पर लिखा –
‘हृदय में पीड़ा दृगों में लिए पानी।
देखते पथ काट दी सारी जवानी।’
1. यह दंतुरित मुसकान
कविता का सार :
कवि किसी ऐसे छोटे बच्चे की मुसकान को देखकर अपार प्रसन्न है, जिसके मुंह में अभी छोटे-छोटे दाँत निकले हैं। कवि को उसकी मुसकान जीवन का संदेश प्रतीत होती है। उस मुसकान के सामने कठोर-से-कठोर मन भी पिघल सकता है। उसकी मुसकान तो किसी मृतक में भी नई जान फूंक सकती है। धूल-मिट्टी से सना हुआ नन्हा-सा बच्चा ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कमल का सुंदर-कोमल फूल तालाब छोड़कर झोंपड़ी में खिल उठा हो। उसे छूकर पत्थर भी जल बन जाता है; उसे छूकर शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं। नन्हा-सा बच्चा कवि को नहीं पहचान पाया, इसलिए एकटक उसकी तरफ देखता रहा। कवि मानता है कि उस बच्चे की मोहिनी छवि और उसके संदर दांतों को वह उसकी मां के कारण देख पाया था। वह मां धन्य है और बच्चे की मुसकान भी धन्य है। वह स्वयं इधर-उधर जाने वाला प्रवासी । था, इसलिए उसकी पहचान नन्हे बच्चे के साथ नहीं हो सकी। जब उसकी माँ कहती, तब वह कनखियों से कवि की ओर देखता और उसकी छोटे-छोटे दाँतों से सजी मसकान कवि के मन को मोह लेती।
सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
जात
1. तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात….
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष! थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
शब्दार्थ : दंतुरित – बच्चों के नए-नए दाँत। मृतक – मरा हुआ। धूलि-धूसर – धूल-मिट्टी। गात – शरीर के अंग-प्रत्यंग। जलजात – कमल का फूल। परस – स्पर्श। पाषाण – चट्टान, पत्थर। अनिमेष – बिना पलक झपकाए लगातार देखना।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से ली गई हैं। इसके रचयिता कवि नागार्जुन हैं ! घुमक्कड़ स्वभाव का होने के कारण कवि जगह-जगह घूमता रहता था। उसने जब अपने छोटे-से बच्चे के मुँह में छोटे-छोटे दाँत देखे तो उसे अपार प्रसन्नता हुई। उसने अपने भावों को अनेक बिंबों के माध्यम से प्रकट किया।
व्याख्या : कवि छोटे-से बच्चे को संबोधित करता हुआ कहता है कि तुम्हारे छोटे-छोटे दाँतों से सजे मुँह की मुसकान इतनी आकर्षक है कि वह मृतकों में भी जान डालने की क्षमता रखती है। वह जीवन का संदेश देती है। तुम्हारे शरीर का अंग-प्रत्यंग धूल-मिट्टी से सना हुआ है। मुझे ऐसा लगता है कि तुम तालाब को छोड़कर मेरी निर्धन की झोपड़ी में खिलने वाले कमल हो।
वह तालाब भी पहले पत्थर होगा, पर तुम्हारे प्राणों का स्पर्श पाकर वह पिघल गया होगा और जल बन गया होगा। चाहे वह बाँस हो या बबूल, पर तुम से छूकर उससे भी शेफालिका के कोमल फूल झड़ने लगते हैं। कवि उस बच्चे से पूछता है कि क्या उसने उसे पहचाना है या नहीं। क्या तुम बिना पलकें झपकाए हैरानी से लगातार मेरी ओर देखते ही रहोगे? क्या तुम थक गए हो? कवि कहता है कि यदि वह उसे पहले पहचान नहीं पाया तो भी कोई बात नहीं। भाव है कि वह अभी बहुत छोटा है, पर वह बहुत भोला-भाला और सुंदर है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. ‘दंतुरित मुसकान’ किसकी है?
3. बच्चे का शरीर किससे सना हुआ है ?
4. कवि की झोंपड़ी में बच्चा किसे प्रतिबिंबित कर रहा है?
5. बच्चे के शरीर के स्पर्श मात्र से कौन-से फूल झड़ने लगे थे?
6. कवि की दृष्टि में जीवन का संदेश कौन देता है?
7. बच्चा कवि की ओर किस प्रकार देख रहा था?
8. ‘बाँस था कि बबूल’ की प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
9. कवि को कौन नहीं पहचान पाया था?
उत्तर :
1. कवि अपने बच्चे को काफ़ी लंबे समय के बाद मिला और उसके छोटे-छोटे दाँतों को देखकर अति प्रसन्न हो उठा है। उसे यह प्रतीत हुआ कि उसकी मुसकान में अपार सुंदरता छिपी हुई है।
2. ‘दंतुरित मुसकान’ कवि के नन्हे-से बच्चे की है।
3. बच्चे का सारा शरीर धूल-मिट्टी से सना हुआ है।
4. कवि की झोपड़ी में नन्हा-सा बच्चा कमल के फूल को प्रतिबिंबित कर रहा है।
5. बच्चे के शरीर के स्पर्श मात्र से शेफालिका के फूल झड़ने लगे थे।
6. कवि की दृष्टि में जीवन का संदेश बच्चे का सौंदर्य देता है।
7. बच्चा कवि की ओर बिना पलकें झपकाए लगातार देखता रहा था।
8. ‘बाँस था कि बबूल’ में कठोर और विपरीत स्थितियों का भाव छिपा है। कठिनाइयों की स्थिति में भी वह अपनी सुंदरता और भोलेपन से सबके मन को हर रहा था।
9. कवि को नन्हा-सा बच्चा नहीं पहचान पाया था।
सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. कवि ने किसके दाँतों की सराहना की और उसे भोला-भाला माना है?
2. किस बोली का प्रयोग किया गया है?
3. किस प्रकार के शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है ?
4. छंद कौन-सा है?
5. किस शैली ने नाटकीयता उत्पन्न की है?
6. कौन-सा काव्य-गुण विद्यमान है?
7. काव्य-रस का नाम लिखिए।
8. किस शब्द-शक्ति के प्रयोग से कथन को सरलता-सरसता प्राप्त हुई है ?
9. ‘जलजात’ शब्द की विशिष्टता क्या है?
10. पंक्तियों में आए ‘दो तत्सम और दो तद्भव’ शब्द छाँटकर लिखिए।
11. ‘दंतुरित मुसकान’ में कौन-सा बिंब है?
12. पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने छोटे-से बच्चे के दाँतों की सुंदरता की सराहना करते हुए उसे भोला और सीधा माना है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
3. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग किया गया है।
4. अतुकांत छंद है।
5. प्रश्न-शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है।
6. प्रसाद गुण विद्यमान है।
7. वात्सल्य रस।
8. अभिधात्मकता ने कवि के कथन को सरलता, सरसता और सहजता प्रदान की है।
9. प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
10. तत्सम –
- मृतक, पाषाण तद्भव
- तालाब, फूल
11. चाक्षुक बिंब।
12. अतिशयोक्ति –
- तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
- मृतक में भी डाल देगी जान उत्प्रेक्षा
- छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल उठे जलजात।
- पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण।
- छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल। अनुप्रास
- ‘परस पाकर’, ‘धूलि-धूसर’
2. यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियों माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगली बड़ी ही छविमान!
शब्दार्थ : चिर प्रवासी – लंबे समय तक बाहर रहने वाला। इतर – दूसरा ! मधुपर्क – दही, घी, शहद, जल और दूध का मिश्रण, जो देवता और अतिथि के सामने रखा जाता है। इसे पंचामृत भी कहते हैं। बच्चे को जीवन देने वाला आत्मीयता की मिठास से युक्त माँ का प्यार। कनखी – तिरछी निगाह से देखना। अतिथि – मेहमान। संपर्क – संबंध: छविमान – सुंदर।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) से ली गई हैं। ये पंक्तियाँ नागार्जुन के द्वारा रचित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ में निहित हैं। कवि लंबे समय तक कहीं बाहर रहने के पश्चात वापस अपने घर लौटा था और उसने अपने बच्चे के छोटे-छोटे दाँतों की सुंदर चमक से शोभायमान मुसकान को देखा था। इससे उसे अपार प्रसन्नता हुई थी।
व्याख्या : कवि कहता है कि हे सुंदर दाँतों वाले बच्चे ! यदि तुम्हारी माँ तुम्हारे और मेरे बीच माध्यम न बनी होती, तो मैं कभी भी तुम्हें और तुम्हारी सुंदर मुसकान को देख न पाता और न ही तुम्हें जान पाता। तुम धन्य हो और तुम्हारो माँ भी धन्य है। मैं तुम दोनों का आभारी हूँ। मैं लंबे समय से बाहर था, इसलिए मैं तुम्हारे लिए कोई दूसरा हूँ। मेरे प्यारे बच्चे ! मैं तुम्हारे लिए मेहमान की तरह हूँ, इसलिए तुम्हारा मेरे साथ कोई संबंध नहीं रहा; तुम्हारे लिए मैं अनजाना-सा हूँ।
मेरी अनुपस्थिति में तुम्हारी माँ ही आत्मीयतापूर्वक तुम्हारा पालन-पोषण करती रही। तुम्हें अपना प्यार प्रदान करती रही। वही तुम्हारा पंचामृत से पालन-पोषण करती रही। तुम मुझे देखकर हैरान से थे और मेरी ओर कनखियों से देख रहे थे। जब कभी अचानक तुम्हारी और मेरी दृष्टि मिल जाती थी, तो मुझे तुम्हारे मुँह में तुम्हारे चमकते हुए सुंदर दाँतों से युक्त मुसकान दिखाई दे जाती है। सच ही मुझे तुम्हारी दूधिया दाँतों से सजी मुसकान बहुत सुंदर लगती है। मैं तुम्हारी मुसकान पर मुग्ध हूँ।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. बच्चे की दंतुरित मुसकान और कवि के बीच कौन माध्यम बना था?
3. किस अवस्था में कवि अपने बच्चे को नहीं देख पाता?
4. कवि ने किसे-किसे धन्य माना है और क्यों?
5. कवि ने स्वयं को क्या माना है?
6. माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण क्या खिलाकर करती रही थी?
7. ‘मधुपर्क’ में निहित प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
8. कवि को छविमान क्या लगती है?
9. नन्हा बच्चा बाहर से आए कवि की ओर किस प्रकार देख रहा था ?
उत्तर :
1. कवि ने अपने बच्चे की सुंदर दाँतों को देखा था और उसकी मुसकान पर मुग्ध हो उठा था। वह अपनी पत्नी के प्रति आभारी था कि उसकी अनुपस्थिति में उसने बहुत अच्छे तरीके से बच्चे का प्रेमपूर्वक पालन-पोषण किया था।
2. बच्चे की ‘दंतुरित मुसकान’ और कवि के बीच कवि की पत्नी माध्यम थी, जिसने कवि को बच्चे की मधुर मुसकान से परिचित करवाया था।
3. यदि कवि की पत्नी बच्चे की मधुर मुसकान से उसका परिचय न करवाती तो वह उसके विषय में न जान पाता और उसे न देख सकता, क्योंकि वह बहुत लंबे समय के बाद वापस अपने घर लौटा था।
4. कवि ने अपने बच्चे और अपनी पत्नी को धन्य माना है, क्योंकि उनके कारण ही उसे अपार प्रसन्नता की प्राप्ति हुई थी। वह स्वयं को उनसे मिलकर धन्य मानता है।
5. कवि ने स्वयं को ‘चिर प्रवासी’ माना है। वह लंबे समय के बाद वापस घर लौटा था।
6. माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण दही, घी, शहद और दूध के मिश्रण से बने पंचामृत से करती रही थी।
7. मधुपर्क में प्रतीकात्मकता छिपी हुई है। इसमें बच्चे को जीवन देने वाला आत्मीयता की मिठास से युक्त माँ का प्यार छिपा हुआ है।
8. कवि को बच्चे की ‘दंतुरित मुसकान’ बहुत छविमान लगती है।
9. नन्हा बच्चा बाहर से आए कवि की ओर आश्चर्य और उत्सुकता के कारण कनखियों से देखता है। वह उसकी ओर सीधा नहीं देखता।
सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. किस शब्द-शक्ति के प्रयोग से सरलता-सरसता प्रकट हुई है?
3. किस काव्य-गुण का प्रयोग हुआ है?
4. काव्य-रस का नाम लिखिए।
5. किस बोली का प्रयोग किया है?
6. किस प्रकार के शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है?
7. छंद का नाम लिखिए।
8. किन मुहावरों का सहज प्रयोग है?
9. दो तद्भव और दो तत्सम शब्द लिखिए।
10. प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
11. कौन-सा बिंब प्रधान है?
उत्तर :
1. कवि ने अपने नन्हें से बच्चे की मधुर मुसकान के आकर्षण का सहज सुंदर वर्णन किया है और अपनी पत्नी की कर्तव्यनिष्ठा का उल्लेख किया है, जिसने उसकी अनुपस्थिति में अपने पुत्र का प्रेमपूर्वक पालन-पोषण किया था।
2. अमिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है, जिससे कवि का कथन सरलता-सरसता से प्रकट हुआ है।
3. प्रसाद गुण विद्यमान है।
4. वात्सल्य रस।
5. खड़ी बोली का प्रयोग है।
6. तत्सम तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग किया गया है।
7. अतुकांत छंद है।
8. आँखें चार होना, कनखी मारना जैसे मुहावरों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
9. तद्भव
– माँ, मुसकान तत्सम
– प्रवासी, संपर्क
10. अनुप्रास-माँ न माध्यम; माँ को कराती रही मधुपर्क
11. चाक्षुक बिंब।
2. फसल
किविता का सार :
फसलें हमारे जीवन की आधार हैं। ‘फसल’ शब्द सुनते ही हमारी आँखों के सामने खेतीं में लहलहाती फसलें आ जाती हैं। फसल को पैदा करने के लिए न जाने कितने तत्व और कितने हाथों का परिश्रम लगता है। फसल प्रकृति और मनुष्य के आपसी सहयोग से ही संभव होती है। न जाने कितनी नदियों का पानी और लाखों-करोड़ों हाथों का परिश्रम इसे उत्पन्न करता है। खेतों की उपजाऊ मिट्टी इसे शक्ति देती है; सूर्य की किरणें इसे जीवन देती हैं और हवा इसे धिरकना सिखाती है। फसल अनेक दुश्य-अदृश्य शक्तियों के मिले-जुले बल के कारण उत्पन्न होती है।
सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य सराहना से बंधी प्रश्नोत्तर –
1. एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म :
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा का थिरकन का!
शब्दार्थ : ढेर – बहुत-सी। कोटि – करोड़ों। स्पर्श – छूना। गरिमा – गौरव। गुण धर्म – विशेषताएँ। संदली – चंदन की। रूपांतर – परिवर्तन।
सिमटा – इकट्ठा। प्रसंग प्रस्तुत कविता ‘फसल’ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-2) में संकलित है, जिसके रचयिता नागार्जुन हैं। कवि ने स्पष्ट किया है कि फसल उत्पन्न करने के लिए मनुष्य और प्रकृति मिलकर एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।
व्याख्या : कवि कहता है कि फसल को उत्पन्न करने के लिए एक-दो नहीं बल्कि अनेक नदियों से प्राप्त होने वाला पानी अपना जादुई प्रभाव दिखाता है। उसी पानी के कारण यह पनपती है; बढ़ती है। इसे उगाने के लिए किसी एक या दो व्यक्ति के नहीं, बल्कि लाखों-करोड़ों हाथों के द्वारा छूने की गरिमा छिपी हुई है। यह लाखों-करोड़ों इनसानों के परिश्रम का परिणाम है। इसमें एक-दो खेतों की मिट्टी नहीं प्रयुक्त हुई। इसमें हजारों खेतों की उपजाऊ मिट्टी की विशेषताएँ छिपी हुई हैं। मिट्टी का गुण-धर्म इसमें छिपा हुआ है।
फसल क्या है ? यह तो नदियों के द्वारा लाए गए पानी का जादू है, जिसने इसे उपजाने में सहायता दी। इसमें न जाने कितने लोगों के हाथों का परिश्रम छिपा है। यह उन हाथों की महिमा का परिणाम है। भूरी-काली-संदली मिट्टी की विशेषताएँ इसमें विद्यमान हैं। यह सूर्य की किरणों का फसल के रूप में पनी किरणों से उसे बढ़ाया है। जीवन दिया है। हवा ने इसे थिरकने और इधर-उधर डोलने का गुण प्रदान किया है। भाव यह है कि फसल प्रकृति और मनुष्य के सामूहिक प्रयत्नों का परिणाम है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. कविता में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. नदियों का पानी फसल के लिए क्या करता है?
3. फसल किनके स्पर्श की गरिमा है?
4. किसकी मिट्टी का गुण-धर्म फसल में विद्यमान है?
5. मिट्टी की किन विशेषताओं को कवि फसल के माध्यम से प्रकट किया है ?
6. मिट्टी के लिए ‘संदली’ शब्द का प्रयोग क्यों किया जाता है?
7. हवा फसल को क्या सिखाती है?
8. फसल किसका रूपांतर है?
9. कवि ने कौन-सा काव्य लिखकर नाटकीयता की सृष्टि की है?
उत्तर :
1. कविता का भावार्थ है कि फसल केवल मनुष्य उत्पन्न नहीं करता। यह प्रकृति और मनुष्य के द्वारा मिल-जुलकर किए जाने वाले सहयोग का परिणाम है।
2. नदियों का पानी फसल के लिए जादू का काम करता है, वही इसे बढ़ाता है, जीवन देता है।
3. फसल लाखों-करोड़ों मनुष्यों के स्पर्श की गरिमा है।
4. हज़ारों खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म फसल में विद्यमान है।
5. मिट्टी के काले-भूरे और चंदन जैसे रंग की विशेषताओं को कवि ने फ़सल के माध्यम से प्रकट किया है।
6. ‘संदल’ का अर्थ है-‘चंदन’। मिट्टी में सदा सोंधी-सोंधी सी गंध होती है। मिट्टी की इसी विशेषता को प्रकट करने के लिए कवि ने ‘संदली’ शब्द का प्रयोग किया है।
7. हवा फसल को थिरकना सिखाती है।
8. फसल अनाज के रूप में सूर्य के प्रकाश का रूपांतरण है।
9. कवि ने ‘फसल क्या है?’ लिखकर नाटकीयता की सृष्टि की है।
सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. किस बोली का प्रयोग किया गया है ?
3. किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है ?
4. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है ?
5. छंद का नाम लिखिए।
6. किस शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है?
7. काव्य-गुण का नाम लिखिए।
8. कौन-सा रस विद्यमान है?
9. पंक्तियों में प्रयुक्त दो तत्सम और दो तद्भव शब्द लिखिए।
10. लाक्षणिक भाषा का एक प्रयोग लिखिए।
11. कविता में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने फसलों के उत्पन्न होने का आधार केवल मनुष्य को न मानकर मनुष्य और प्रकृति के मिले-जुले सहयोग को माना है।
2. खड़ी बोली का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
3. तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहज-सुंदर प्रयोग किया गया है।
4. अभिधा शब्द-शक्ति ने कवि के कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है।
5. अतुकांत छंद का प्रयोग है।
6. प्रश्न शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है।
7. प्रसाद गुण।
8. शांत रस विद्यमान है।
9. तत्सम –
स्पर्श, गरिमा
तद्भव –
हाथ, मिट्टी
10. नदियों के पानी का जादू है वह।
11. पुनरुक्ति प्रकाश –
- लाख-लाख,
- कोटि-कोटि,
- हज़ार-हज़ार
प्रश्न –
फसल क्या है?
अनुप्रास –
- सूरज की किरणों का
- सिमटा हुआ संकोच है