Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
JAC Class 10 Hindi तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र Textbook Questions and Answers
मौखिक –
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –
लघु उत्तरीय प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को राष्ट्रपति स्वर्णपदक मिला था। इसे बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म तथा कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इसके साथ-साथ मास्को फ़िल्म फेस्टिवल में भी यह फ़िल्म पुरस्कृत हुई थी।
प्रश्न 2.
शैलेंद्र ने कितनी फ़िल्में बनाई?
उत्तर :
शैलेंद्र ने केवल एक ही फ़िल्म बनाई थी। इस फ़िल्म का नाम ‘तीसरी कसम’ है।
प्रश्न 3.
राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए।
उत्तर :
राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ प्रमुख फ़िल्में बॉबी, मेरा नाम जोकर, जागते रहो, सत्यम् शिवम् सुंदरम् हैं।
प्रश्न 4.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक राजकपूर तथा नायिका वहीदा रहमान हैं। राजकपूर ने एक भोले-भाले गाड़ीवान ‘हीरामन’ का तथा वहीदा रहमान ने नौटंकी की बाई ‘हीराबाई’ की भूमिका निभाई है।
प्रश्न 5.
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किसने किया था?
उत्तर :
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण कवि और गीतकार शैलेंद्र ने किया था।
प्रश्न 6.
राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?
उत्तर :
राजकपूर को ‘मेरा नाम जोकर’ फ़िल्म के एक भाग को बनाने में छह वर्ष लग गए थे। उन्होंने यह कल्पना नहीं की थी कि इस फ़िल्म के बनने में इतना अधिक समय लग जाएगा।
प्रश्न 7.
राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया ?
उत्तर :
राजकपूर ने शैलेंद्र की फ़िल्म में काम करने के लिए मज़ाक में एडवांस माँग लिया। शैलेंद्र ने सोचा कि वे मित्र होकर भी उनसे पारिश्रमिक माँग रहे हैं। यह सोचकर उनका चेहरा मुरझा गया।
प्रश्न 8.
फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?
उत्तर :
फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को आँखों से बात करने वाला कलाकार मानते थे।
लिखित (क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए –
लघु उत्तरीय प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
सैल्यूलाइड से तात्पर्य किसी चीज्त को कैमरे की रील में भरकर चित्र पर प्रस्तुत करना होता है। फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में कवि हृदयी शैलेंद्र की संवेदनशीलता और उनकी भावनाएँ पूरी सफलता से प्रस्तुत की गई थीं। हिंदी साहित्य की एक अत्यंत मार्मिक रचना को आधार बनाकर बनाई गई इस फ़िल्म में कविता के समान ही भावनाओं की प्रधानता है। इसी कारण ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता कहा गया है।
प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?
उत्तर :
फ़िल्मी बाज़ार में बिकाऊ कोई भी चीज़ ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में नहीं थी। इस फ़िल्म से लाभ नहीं कमाया जा सकता था। हर क्षेत्र में बेहतरीन फ़िल्म होने के बावजूद भी खरीददारों को इससे अधिक कमाई की आशा नहीं थी। यह एक भावात्मक आदर्शवादी फ़िल्म थी, जबकि फ़िल्मों से पैसा कमाने वालों के लिए भावनाओं और संवेदनाओं का कोई महत्व नहीं होता। इसी कारण इस फ़िल्म को खरीददार नहीं मिल रहे थे।
प्रश्न 3.
शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है ?
उत्तर :
शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे। उनकी दृढ़ मान्यता थी कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर थोपना नहीं चाहिए।
प्रश्न 4.
फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरीफ़ाई क्यों कर दिया जाता है ?
अथवा
हमारी फिल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ‘ग्लोरीफाई’ क्यों कर दिया जाता है? ‘तीसरी कसम’ के शिल्पकार शैलेन्द्र के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर :
दर्शकों को अधिक भावुक बनाने के लिए ही फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों के चित्रांकन को ग्लोरीफ़ाई किया जाता है। त्रासद स्थितियों में दुख के वीभत्स रूप को प्रस्तुत किया जाता है, ताकि दर्शक उसमें डूब जाए। ऐसा करके दर्शकों का सरलता से भावनात्मक शोषण किया जा सकता है।
प्रश्न 5.
‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’-इस कथन से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में शैलेंद्र ने राजकपूर दवारा निभाए गए किरदार हीरामन की भावनाओं के अनुसार ही गीतों में शब्द दिए हैं। राजकपूर द्वारा गीत गाते-गाते हीराबाई से ‘मन’ के विषय में पूछना उनकी कोमल भावनाओं को ही दर्शाता है। एक नौटंकी की बाई में अपनापन खोजने वाले सरल हृदय हीरामन की जैसी भावनाएँ हो सकती थीं, उसी के अनुरूप गीतों में शब्द दिए गए हैं। इसी प्रकारं ‘सजनवा बैरी हो गए हमार’ गीत में भावप्रवणता अपनी चरम-सीमा पर है।
प्रश्न 6.
लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
शोमैन से अभिप्राय ऐसे फ़िल्म निर्माता से है, जो बहुत अधिक लोकप्रिय हो; जिसके नाम से ही फ़िल्में बिकती हों। इसके साथ-साथ फ़िल्मों के खरीददार जिसकी फ़िल्में हाथों-हाथ खरीद लेते हों। फ़िल्म इंडस्ट्री में जिसकी कई फ़िल्में लगातार हिट हो जाती हैं, उसे शोमैन की संज्ञा दी जाती है।
प्रश्न 7.
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के गीत ‘रातों दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपति क्यों की?
उत्तर :
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ में दिशाएँ दस कही गई हैं। संगीतकार जयकिशन का कहना था कि दर्शक दस दिशाओं की बात नहीं समझ सकता। गीत में दस की बजाय ‘चार दिशाएँ’ होनी चाहिए थी, इसलिए उन्हें गीत में आई ‘दस दिशाएँ’ शब्द पर आपत्ति थी।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए –
निबंधात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?
उत्तर :
राजकपूर और शैलेंद्र दोनों अच्छे मित्र थे। जब शैलेंद्र ने ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म बनाने के बारे में सोचा, तो राजकपूर ने उन्हें फ़िल्म की असफलता के खतरों के बारे में पहले ही बता दिया था फिर भी शैलेंद्र ने फ़िल्म बनाने का निर्णय नहीं बदला। वे एक आदर्शवादी भावुक कवि थे। उनका उद्देश्य फ़िल्म का निर्माण करके उससे धन कमाना नहीं था। उन्हें अपार संपत्ति और धन की कोई कामना नहीं थी। वे आत्म-संतुष्टि के सुख के लिए फ़िल्म बना रहे थे। उनके लिए आत्म-संतुष्टि सबसे बड़ी चीज़ थी। अतः राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह किए जाने पर भी शैलेंद्र ने ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म बनाई।
प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
राजकपूर एक महान कलाकार थे। फ़िल्म के पात्र के अनुरूप अपने आपको ढाल लेना वे भली-भाँति जानते थे। जब ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म बनी थी, उस समय राजकपूर एशिया के सबसे बड़े शोमैन के रूप में स्थापित हो चुके थे। फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में उन्हें एक सरल हृदय ग्रामीण गाड़ीवान के रूप में प्रस्तुत किया गया। उन्होंने अपने आपको उस ग्रामीण गाड़ीवान हीरामन के साथ एकाकार कर लिया। एक शुद्ध देहाती का जैसा अभिनय राजकपूर ने किया, वह अद्वितीय है।
एक गाड़ीवान की सरलता, नौटंकी की बाई में अपनापन खोजना, हीराबाई की बोली पर रीझना, उसकी भोली सूरत पर न्योछावर होना और हीराबाई की तनिक-सी उपेक्षा पर अपने अस्तित्व से जूझना जैसी हीरामन की भावनाओं को राजकपूर ने बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। फ़िल्म में राजकपूर कहीं भी अभिनय करते नहीं दिखते, अपितु ऐसा लगता है जैसे वह ही हीरामन हो। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर का पूरा व्यक्तित्व ही जैसे हीरामन की आत्मा में उतर गया है।
प्रश्न 3.
लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म साहित्यिक रचना पर आधारित थी। इस फ़िल्म से पहले भी साहित्यिक रचनाओं पर आधारित फ़िल्में बनती रही थीं। उन फ़िल्मों में साहित्यिक रचना की मूल कथा में कुछ काल्पनिक तत्वों का समावेश करके उसे मनोरंजक बनाया जाता था। उन फ़िल्मों का उद्देश्य दर्शकों की रुचि के अनुरूप सामग्री डालकर धन कमाना होता था, किंतु ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में ऐसा नहीं था। इस फ़िल्म में मूल साहित्यिक रचना को उसके वास्तविक रूप में प्रस्तुत किया गया। उसमें किसी प्रकार के काल्पनिक अथवा मनोरंजक तत्वों को न डालकर उसकी गरिमा को भी बनाए रखा गया। इसी कारण लेखक ने लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है।
प्रश्न 4.
शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषताएँ हैं? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
शैलेंद्र एक कवि और सफल गीतकार थे। उनके लिखे गीतों में अनेक विशेषताएँ दिखाई देती हैं। उन्होंने कभी भी निम्न-स्तर के गीत नहीं लिखे। उनमें सस्ती लोकप्रियता पाने की ललक नहीं थी। उनके गीतों में भावनाओं का प्रवाह है। उनके गीतों की एक अन्य विशेषता सरलता है। उन्होंने अपने गीतों में कठिन शब्दों के स्थान पर सरल शब्दों का प्रयोग किया है, जिससे सामान्य दर्शक भी उसे समझ लेता है।
उनके गीतों में करुणा के साथ-साथ संघर्ष की भावना भी दिखाई देती है। शैलेंद्र के गीत मनुष्य को जीवन में दुखों से घबराकर रुकने के स्थान पर निरंतर आगे बढ़ने का संदेश देते हैं। शैलेंद्र के गीतों की एक अन्य विशेषता उसकी भावप्रवणता है। उनके गीत का एक एक शब्द भावनाओं की अभिव्यक्ति करने में पूर्णतः सक्षम है।
प्रश्न 5.
फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
फ़िल्म निर्माता के रूप में ‘तीसरी कसम’ शैलेंद्र की पहली और अंतिम फ़िल्म थी। उन्होंने इस फ़िल्म का निर्माण पैसा कमाने के उद्देश्य से नहीं किया था। उन्होंने फ़िल्म निर्माता के रूप में यश और संपत्ति की कभी कामना नहीं की। वे एक आदर्शवादी भावुक कवि थे। उन्होंने तो आत्म-संतुष्टि के लिए फ़िल्म बनाई थी। शैलेंद्र फ़िल्म की असफलता से होने वाले खतरों से परिचित थे, फिर भी उन्होंने शुद्ध साहित्यिक फ़िल्म बनाकर साहसी फ़िल्म निर्माता का परिचय दिया। शैलेंद्र एक मानवतावादी फ़िल्म निर्माता थे।
उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी अपनी आदमियत नहीं खोई थी। शैलेंद्र की एक अन्य विशेषता फ़िल्म में दुख को भी सहज स्थिति में जीवन सापेक्ष प्रस्तुत करना था। शैलेंद्र ने तीसरी कसम फ़िल्म का निर्माण पूरी तरह साहित्यिक रचना के अनुसार करके उसके साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है। वे चाहते तो इसमें फेरबदल करके इसे अधिक मनोरंजक बना सकते थे। उन्होंने फ़िल्म के असफल होने के डर से घबराकर अपने सिद्धांतों के साथ कोई समझौता नहीं किया। इस प्रकार वे एक आदर्श फ़िल्म निर्माता के रूप में सामने आए हैं।
प्रश्न 6.
शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है-कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
शैलेंद्र ने अपने जीवन में एक ही फ़िल्म का निर्माण किया, जिसका नाम ‘तीसरी कसम’ था। यह एक संवेदनात्मक और भावनापूर्ण फ़िल्म थी। शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई उनके निजी जीवन की विशेषता थी और यही विशेषता उनकी फ़िल्म में भी दिखाई देती है। ‘तीसरी कसम’ का नायक हीरामन अत्यंत सरल हृदयी और भोला-भाला नवयुवक है; जो केवल दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं। उसके लिए मोहब्बत के सिवा किसी चीज का कोई अर्थ नहीं। ऐसा ही व्यक्तित्व शैलेंद्र का था।
वे एक भावुक एवं संवेदनशील कवि थे। हीरामन को धन की चकाचौंध से दूर रहने वाले एक देहाती के रूप में प्रस्तुत किया गया है। शैलेंद्र स्वयं भी यश और धन-लिप्सा से कोसों दूर थे। इसके साथ-साथ फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में दुख को भी सहज स्थिति में जीवन सापेक्ष प्रस्तुत किया गया है। शैलेंद्र अपने निजी जीवन में भी दुख को सहज रूप से जी लेते थे। वे दुख से घबराकर उससे दूर नहीं भागते थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है।
प्रश्न 7.
लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में भावनाओं और संवेदनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति है। फणीश्वरनाथ रेणु की साहित्यिक कृति पर आधारित – इस फ़िल्म में शैलेंद्र ने संवेदनशीलता को पूरी तीव्रता के साथ व्यक्त किया है। इस पूरी फ़िल्म में कोमल भावनाओं की प्रधानता है। ऐसी कोमल भावनाओं को एक कवि-हृदय व्यक्ति ही भली प्रकार समझ सकता है और उन्हें अच्छे ढंग से प्रस्तुत कर सकता है। कवि स्वभाव से अत्यंत संवेदनशील होते हैं; वे दिल से काम लेते हैं, दिमाग से नहीं।
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में नायक और नायिका के मनोभावों को प्रस्तुत करने के लिए एक कवि-हदय की ही आवश्यकता थी। शैलेंद्र एक भावुक कवि और गीतकार थे। वे उन कोमल अनुभूतियों को बारीकी से समझते थे और उन्हें प्रस्तुत करने में भी सक्षम थे। उनके कवि-हृदय के कारण ही फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण संभव हो पाया। इस फ़िल्म में कोमल भावनाओं की प्रधानता होने के कारण ही लेखक ने कहा है कि इसे कोई सच्चा कवि हृदय ही बना सकता था। हम लेखक के कथन से पूर्णतः सहमत हैं।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –
प्रश्न 1.
वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।
उत्तर :
यहाँ लेखक का आशय यह है कि शैलेंद्र ने ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म का निर्माण धन-संपत्ति कमाने और यश पाने के उद्देश्य से नहीं किया था। उनका इस फ़िल्म को बनाने का कारण आत्म-संतुष्टि के सुख को पाने की इच्छा थी। शैलेंद्र एक भावुक और आदर्शवादी कवि थे। उन्हें धन और यश की कोई इच्छा नहीं थी, अपितु वे तो समाज को एक साफ़-सुथरी और अच्छी फ़िल्म देना चाहते थे। वे तो इस बात की संतुष्टि पाना चाहते थे कि उन्होंने एक अच्छी फ़िल्म बनाई।
प्रश्न 2.
उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।
उत्तर :
लेखक ने यहाँ फ़िल्म-निर्माता और कलाकार के विषय में कवि शैलेंद्र के विचारों को प्रस्तुत किया है। लेखक के अनुसार कवि एवं संगीतकार शैलेंद्र की दृढ़ मान्यता थी कि फ़िल्मों में दर्शकों की रुचि का सहारा लेकर निम्न-स्तर की सामग्री का प्रयोग नहीं होना चाहिए। फ़िल्म निर्माता को उच्च-स्तर के दर्शकों का भी ध्यान रखना चाहिए। दर्शक सभी प्रकार के होते हैं।
केवल कुछ दर्शकों को प्रसन्न करने के लिए अन्य दर्शकों पर घटिया सामग्री को नहीं थोपना चाहिए। साथ ही उनका यह भी मानना था कि कलाकार को चाहिए कि वह दर्शकों की रुचियों को साफ़-सुथरा बनाने की कोशिश करे। कलाकार का कर्तव्य है कि वह दर्शकों को निम्न रुचियों को ध्यान में रखकर अभिनय न करे, अपितु उसे दर्शकों की रुचियों को अपने अभिनय से श्रेष्ठ रूप में बदलने का प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 3.
व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।
उत्तर :
लेखक का आशय यह है कि जीवन में आने वाले दुख मनुष्य को कभी पराजित नहीं करते, बल्कि वे तो जीवन में आगे बढ़ने का संदेश देते हैं। जो लोग दुखों से घबराकर बैठ जाते हैं, वे जीवन में कभी भी सफल नहीं हो सकते। जीवन में आने वाले दुख और पीड़ाएँ हमें अधिक मज़बूत बनाती हैं और जीवन में निरंतर आगे बढ़ने की ओर प्रेरित करती हैं। दुखों से घबराने के स्थान पर इनसे प्रेरणा लेकर निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। जो लोग ऐसा कर पाते हैं, वही सफ़ल होते हैं।
प्रश्न 4.
दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।
उत्तर :
लेखक का आशय यह है कि फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ एक संवेदनशील फ़िल्म थी। यह संवेदना फ़िल्मों से पैसा कमाने वाले लोगों की समझ में आने वाली नहीं थी। जिस फ़िल्म में दर्शकों के मनोरंजन के लिए पर्याप्त सामग्री होती है, उसे फ़िल्मों के खरीददार हाथों-हाथ खरीद लेते हैं। फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में भावनाओं और संवेदनाओं की प्रधानता थी। फ़िल्मों से पैसा कमाने वालों के लिए संवेदनाओं का कोई महत्व नहीं था। इसी कारण इस फ़िल्म को कोई खरीददार नहीं मिला।
प्रश्न 5.
उनके गीत भाव-प्रवण थे-दुरूह नहीं।
उत्तर :
लेखक का आशय यह है कि कवि एवं गीतकार शैलेंद्र के गीतों में भावप्रवणता बहुत थी, लेकिन वे कठिन नहीं थे। उनके गीतों में भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति होती थी। गहरी से गहरी भावनाओं को भी बड़ी सरलता से प्रस्तुत किया जाता था। उनके गीत भावनात्मक होते हुए भी सरल थे। सामान्य से सामान्य श्रोता और दर्शक भी उनके गीतों के भाव को बड़ी आसानी से समझ लेता था। उनके गीत भावनाओं से परिपूर्ण होते हुए भी आम आदमी से जुड़े हुए थे।
भाषा-अध्ययन –
प्रश्न 1.
पाठ में आए ‘से’ के विभिन्न प्रयोगों से वाक्य की संरचना को समझिए।
(क) राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र की हैसियत से शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगह भी किया।
(ख) रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ।
(ग) फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ़ थे।
(घ) दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने के गणित जानने वाले की समझ से परे थी।
(ङ) शैलेंद्र राजकपूर की इस याराना दोस्ती से परिचित तो थे।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
इस पाठ में आए निम्नलिखित वाक्यों की संरचना पर ध्यान दीजिए
(क) ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।
(ख) उन्होंने ऐसी फ़िल्म बनाई थी जिसे सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था।
(ग) फ़िल्म कब आई, कब चली गई, मालूम ही नहीं पड़ा।
(घ) खालिस देहाती भुच्च गाड़ीवान जो सिर्फ़ दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 3.
पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए –
चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना
उत्तर :
चेहरा मुरझाना – परीक्षा में पास न होने पर रमेश का चेहरा मुरझा गया।
चक्कर खा जाना – आई०ए०एस० की परीक्षा पास करने में बड़े-बड़े चक्कर खा जाते हैं।
दो से चार बनाना – दो से चार बनाना भी किसी-किसी का काम है, सबका नहीं।
आँखों से बोलना – राम की आँखें बहुत कुछ कहती हैं; वह तो आँखों से बोलता है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के हिंदी पर्याय दीजिए –
(क) शिद्दत
(ख) याराना
(ग) बमुश्किल
(घ) खालिस
(ङ) नावाकिफ़
(च) यकीन
(छ) हावी
(ज) रेशा
उत्तर :
(क) शिद्दत – तीव्रता
(ख) याराना – मित्रता
(ग) बमुश्किल – कठिनतापूर्वक
(घ) खालिस – शुद्ध
(ङ) नावाकिफ़ – अपरिचित
(च) यकीन – विश्वास
(छ) हावी – भारी
(ज) रेशा – कण
प्रश्न 5.
निम्नलिखित का संधिविच्छेद कीजिए –
(क) चित्रांकन
(ख) सर्वोत्कृष्ट
(ग) चर्मॉत्कर्ष
(घ) रूपांतरण
(ङ) घनानंद
उत्तर :
(क) चित्रांकन – चित्र + अंकन
(ख) सर्वोत्कृष्ट – सर्व + उत्कृष्ट
(ग) चर्मोत्कर्ष – चरम + उत्कर्ष
(घ) रूपांतरण – रूप + अंतरण
(ङ) घनानंद – घन + आनंद
प्रश्न 6.
निम्नलिखित का समास विश्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए –
(क) कला-मर्मज्ञ
(ख) लोकण्रिय
(ग) राष्ट्रपति
उत्तर :
(क) कला-मर्मज्ञ – कला का मर्मझ – संबंध तत्पुरुष
(ख) लोकप्रिय – लोगों में प्रिय – अधिकरण तत्पुरुष
(ग) राष्ट्रपति – राष्ट्र का पति – संबंध तत्पुरुष
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1.
फणीश्वरनाथ रेणु की किस कहानी पर तीसरी कसम फ़िल्म आधारित है, जानकारी प्राप्त कीजिए और मूल रचना पढ़िए।
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म फणीश्वरनाथ रेणु की रचना ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ पर आधारित है।
प्रश्न 2.
समाचार-पत्रों में फिल्मों की समीक्षा दी जाती है। किन्हीं तीन फ़िल्मों की समीक्षा पढ़िए और ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को देखकर इस फ़िल्म की समीक्षा स्वयं लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
परियोजना कार्य –
प्रश्न 1.
फ़िल्मों के संदर्भ में आपने अकसर यह सुना होगा-‘जो बात पहले की फ़िल्मों में थी, वह अब कहाँ’। वर्तमान दौर की फ़िल्मों और पहले की फ़िल्मों में क्या समानता और अंतर है? कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी समूहों में विभाजित होकर चर्चा करें।
प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ जैसी और भी फ़िल्में हैं जो किसी-न-किसी भाषा की साहित्यिक रचना पर बनी हैं। ऐसी फ़िल्मों की सूची निम्नांकित प्रपत्र के आधार पर तैयार करें।
उत्तर :
प्रश्न 3.
लोकगीत हमें अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं। तीसरी कसम’ फ़िल्म में लोकगीतों का प्रयोग किया गया है। आप भी अपने क्षेत्र के प्रचलित दो-तीन लोकगीतों को एकत्र कर परियोजना कॉपी पर लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने-अपने क्षेत्र के अनुसार स्वयं करें।
JAC Class 10 Hindi तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र Important Questions and Answers
निबंधात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
लेखक ने शैलेंद्र को फ़िल्म-निर्माता बनने के सर्वथा अयोग्य क्यों कहा है?
उत्तर :
फ़िल्म निर्माता बनने के लिए खूब चालाकी और चतुरता की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत शैलेंद्र बिलकुल सरल-हृदयी थे। फ़िल्म निर्माता दर्शकों की रुचि के अनुसार निम्न स्तरीय सामग्री का भी उपयोग कर लेते हैं, किंतु शैलेंद्र आदर्शवादी व्यक्ति थे। वे अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करते थे। इसी कारण लेखक ने उन्हें फ़िल्म-निर्माता बनने के सर्वथा अयोग्य बताया है।
प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर के अभिनय की तुलना किस फ़िल्म से की गई है? उनका श्रेष्ठ अभिनय किस फ़िल्म में है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर के अभिनय की तुलना उनकी एक अन्य फ़िल्म ‘जागते रहो.’ से की गई है। यद्यपि ‘जागते रहो’ फ़िल्म में भी उनके अभिनय को बहुत अधिक सराहा गया है, किंतु ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में उनका अभिनय सर्वश्रेष्ठ है। इस फ़िल्म में उन्होंने पात्र के साथ स्वयं को एकाकार कर लिया है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो उनका व्यक्तित्व पूरी तरह से उनके द्वारा निभाए गए पात्र हीरामन की आत्मा में उतर गया है।
प्रश्न 3.
‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के आधार पर राजकपूर के व्यक्तित्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
राजकपूर भारतीय सिनेमा जगत के एक सुप्रसिद्ध अभिनेता तथा फ़िल्म निर्माता थे। वे एक महान कलाकार थे। उनकी कीर्ति और यश अपने देश में तो फैला ही था, विदेशों में भी उन्होंने खूब नाम कमाया था। एशिया महाद्वीप में उन्हें शोमैन के रूप में जाना जाता था।
वे जिस भी फ़िल्म में काम करते थे, उसमें अपनी भूमिका को बड़े सटीक ढंग से निभाते थे। कला के जानकार राजकपूर को एक ऐसा कलाकार मानते थे, जो आँखों से बात करता था। राजकपूर ने अनेक फ़िल्मों का निर्माण किया था, जिनमें से कुछ फ़िल्में मेरा नाम जोकर, सत्यम् शिवम् सुंदरम, मैं और मेरा दोस्त आदि थीं। फ़िल्म में वे अपनी भूमिका में खोकर शीघ्र ही एकाकार हो जाते थे।
प्रश्न 4.
आजकल हमारी फ़िल्मों की सबसे बड़ी कमज़ोरी क्या है?
उत्तर :
आजकल हमारी फ़िल्मों की सबसे बड़ी कमी है-‘लोक तत्वों का न होना’। आज हमारी फ़िल्में आम जीवन तथा उनकी जिंदगी से बहुत दूर होती जा रही हैं। आज फ़िल्मों में जो फ़िल्माया जा रहा है, वह जनता को उससे न जोड़कर मात्र मनोरंजन का साधन बन गया है। इसमें दुख को इतनी गहराई और गंभीरता से पेश कर देते हैं कि दर्शक न चाहकर भी स्वयं को उसमें डुबा दे तथा उसी में खो जाए। लेकिन यह दुख के स्वरूप को अधिक वीभत्स करता है।
प्रश्न 5.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर का अभिनय किस प्रकार का है ?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर का अभिनय बेजोड़ है। उन्होंने इस फ़िल्म में एक शुद्ध देहाती हीरामन नामक गाड़ीवान की भूमिका निभाई है। उनके द्वारा निभाई गई भूमिका इतनी उत्कृष्ट है कि वे कहीं भी अभिनय करते प्रतीत नहीं होते। वे अपनी भूमिका में इतने खो गए हैं कि वे हीरामन ही लगते हैं। उनका महिमामय व्यक्तित्व पूरी तरह से हीरामन में ढल गया है। उन्होंने एक सरल-हृदय गाड़ीवान की भावनाओं को बड़े ही सुंदर एवं सजीव ढंग से प्रस्तुत किया है।
लघु उत्तरीय प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘संगम’ फ़िल्म की अद्भुत सफलता से प्रभावित होकर राजकपूर ने क्या किया?
उत्तर :
‘संगम’ फ़िल्म की अद्भुत सफलता से प्रभावित होकर राजकपूर ने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा कर दी। इन फ़िल्मों के नाम ‘मेरा नाम जोकर’, ‘अजंता’, ‘मैं और मेरा दोस्त’ तथा ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ थे। इनमें से केवल एक ही फ़िल्म ‘मेरा नाम जोकर’ के एक भाग को बनाने में ही उन्हें छह वर्ष का समय लग गया था।
प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान ने किसकी भूमिका निभाई है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर ने एक शुद्ध देहाती गाड़ीवान की भूमिका निभाई है, जिसका नाम ‘हीरामन’ है। वह सरल-हृदयी है। वह भोला-भाला ग्रामीण केवल दिल की बात समझता है। उसके लिए मोहब्बत के सिवा किसी दूसरी चीज़ का कोई अर्थ नहीं है। इस फ़िल्म में वहीदा रहमान ने नौटंकी में काम करने वाली एक बाई की भूमिका निभाई है, जिसका नाम ‘हीराबाई’ है।
प्रश्न 3.
आज भी ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म शैलेंद्र की पहली तथा अंतिम फ़िल्म थी। इस फ़िल्म ने अनेक पुरस्कार प्राप्त किए थे। इस फ़िल्म की पटकथा प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु ने तैयार की थी। फ़िल्म में छोटी-से-छोटी बारीक चीजें भी पूरी स्पष्टता के साथ दृष्टिगोचर होती हैं। यह फ़िल्म समाज के लिए मात्र मनोरंजन का साधन नहीं थी; यह फ़िल्म लोगों को एक संदेश देने में भी सफल रही।
प्रश्न 4.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म की प्रसिद्धि के क्या कारण थे?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म की प्रसिद्धि के अनेक कारण थे। यह फ़िल्म कलात्मक दृष्टि से उच्च कोटि की फ़िल्म थी। इसके गीत, संगीत अपने आप में बेजोड़ थे। फ़िल्म के कलाकार राजकपूर और अभिनेत्री वहीदा रहमान का अपने पात्रों में कुशल प्रस्तुति देने के कारण भी यह फ़िल्म प्रसिद्धि पाने में सफल रही।
प्रश्न 5.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में कवि हृदय शैलेंद्र के किस रूप के दर्शन होते हैं ?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में शैलेंद्र की संवेदनशीलता के दर्शन होते हैं। लेखक ने ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता की संज्ञा दी है। यह इनके भावुक होने और समाज के प्रति इनके चिंतन के भाव को मुखरित करता है। वे एक अत्यंत भावुक कवि थे। इनकी भावात्मकता इस फ़िल्म में स्पष्ट दिखाई पड़ती है।
प्रश्न 6.
“तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर :
इस पाठ के माध्यम से लेखक वास्तविकता का ज्ञान करवाना चाहता है कि कला फिल्में मर जाती हैं और लोगों को पता तक नहीं चलता। इसका कारण इनमें संवेदनाएँ तो होती हैं, लेकिन मनोरंजक तथ्य एवं भंगिमाएँ नहीं होती। इसी कारण दर्शक उनसे जुड़ नहीं पाते। हमें जीवन संदेश को आत्मसात् करना चाहिए, न कि मनोरंजन में ही डूबे रहना चाहिए।
प्रश्न 7.
‘तीसरी कसम’ फिल्म के मुख्य नायक कौन थे? उन्होंने इसमें क्या भूमिका निभाई है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फिल्म के मुख्य नायक राजकपूर थे। उनका अभिनय बेजोड़ था। उनके द्वारा किया गया अभिनय इतना बेजोड़ था कि वह कहीं भी अभिनय करते दिखाई नहीं देते थे। उनके अभिनय में वास्तविकता झलक रही थी। उनका व्यक्तित्व हीरामन में समाहित हो गया था। उन्होंने एक सरल-हृदय गाड़ीवान की भावनाओं को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया।
तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र Summary in Hindi
लेखक-परिचय :
जीवन – फ़िल्म-क्षेत्र पर लेखनी चलाने वाले प्रहलाद अग्रवाल का जन्म सन 1947 में मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ था। बचपन से ही इनकी रुचि फ़िल्मों की ओर रही। इन्हें किशोरावस्था में हिंदी फ़िल्मों के इतिहास और फ़िल्मकारों के जीवन व उनके अभिनय के बारे में जानने तथा उस पर चर्चा करने का शौक रहा। इन्होंने हिंदी विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। वर्तमान में ये सतना के शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापन कार्य कर रहे हैं।
रचनाएँ – प्रहलाद अग्रवाल ने अपनी रुचि के अनुरूप फ़िल्म क्षेत्र से जुड़े लोगों और फ़िल्मों के लिए ही अधिक लिखा है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – सातवाँ दशक, तानाशाह, मैं खुशबू, सुपर स्टार, राजकपूरः आधी हकीकत आधा फ़साना, कवि शैलेंद्र जिंदगी की जीत में यकीन, प्यासा चिर अतृप्त गुरुदत्त, उत्ताल उमंग सुभाष घई की फ़िल्मकला, ओ रे माँझी बिमल राय का सिनेमा और महाबाज़ार के महानायक इक्कीसवीं सदी का सिनेमा।
भाषा-शैली – प्रहलाद अग्रवाल की भाषा-शैली अत्यंत सरल, सहज, सरस और प्रभावशाली है। इनकी भाषा में रोचकता और प्रवाहमयता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। इन्होंने तत्सम व तद्भव शब्दों के साथ-साथ उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का सुंदर चित्रण किया है। प्रस्तुत पाठ में उर्दू फ़ारसी के अनेक शब्दों के अतिरिक्त अंग्रेजी के अनेक शब्दों जैसे फेस्टिवल, जर्नलिस्ट एसोसिएशन, एडवांस, ग्लोरीफ़ाई आदि का प्रयोग भी किया गया है।
फ़िल्म क्षेत्र पर अधिक लिखने के कारण इनकी भाषा में फ़िल्मी दुनिया में प्रयोग होने वाले शब्दों की भरमार है; जैसे रिलीज़, फ़िल्म इंडस्ट्री, स्टार, पटकथा, सैल्यूलाइड, शोमैन, फ़िल्म वितरक आदि। इसके साथ-साथ इनकी भाषा में आंचलिक शब्दों का भी र खूब प्रयोग हुआ है। जैसे-भुच्च, बांचे, भाग, टप्पर गाड़ी, उकड़, फेनू-गिलासी, मनुआ-नटुआ आदि। प्रहलाद अग्रवाल की शैली वर्णनात्मक है। कहीं-कहीं उन्होंने संवादात्मक शैली का भी प्रयोग किया है, जिसमें नाटकीयता का पुट है।
पाठ का सार :
प्रस्तुत पाठ ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ में लेखक ने कवि एवं गीतकार शैलेंद्र द्वारा बनाई एकमात्र फिल्म ‘तीसरी कसम’ के विषय में बताया है। तीसरी कसम’ फ़िल्म सन 1966 ई० में प्रदर्शित हुई। इसमें मुख्य भूमिका शैलेंद्र के मित्र और अभिनेता राजकपूर ने निभाई। इस फ़िल्म को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यह फ़िल्म फणीश्वरनाथ रेणु की एक साहित्यिक रचना पर आधारित थी। इस फ़िल्म में कवि हृदय शैलेंद्र की संवेदनशीलता का स्वरूप दिखाई देता है। लेखक ने ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता की संज्ञा दी है।
शैलेंद्र एक भावुक कवि थे। यद्यपि राजकूपर ने उन्हें फ़िल्म की असफलता के खतरों से पहले ही आगाह कर दिया था, फिर भी उन्होंने फ़िल्म बनाने का निर्णय नहीं छोड़ा। उनका फ़िल्म बनाने का उद्देश्य धन और यश न होकर आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी। ‘तीसरी कसम’ में फ़िल्म में लोकप्रिय सितारे, संगीत और गीत होने के बावजूद इसे कोई खरीददार नहीं मिल पाया। इसका कारण यह था कि इस फ़िल्म में पेश की गई संवेदना और करुणा फ़िल्मों से पैसा कमाने वाले खरीददारों की समझ से परे थी।
परिणामस्वरूप यह फ़िल्म कब आई और कब चली गई, किसी को पता ही नहीं चला। लेखक कहता है कि शैलेंद्र फ़िल्म इंडस्ट्री के तौर-तरीकों को भली-भाँति जानते थे, फिर भी उन्होंने अपनी मनुष्यता को नहीं खोया था। उनकी दृढ़ मान्यता थी कि दर्शकों की रुचि का सहारा लेकर निर्माताओं को फ़िल्मों में निम्न-स्तरीय सामग्री पेश नहीं करनी चाहिए। वे चाहते किया गया है। तत किया।
थे कि कलाकार भी दर्शकों की रुचियों का परिष्कार करें। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में संवेदनशीलता अपनी चरम-सीमा पर है। कहीं-कहीं तो नायिका आँखों से बोलती प्रतीत होती है। इसके अतिरिक्त फ़िल्म में मस्ती में डूबते और झूमते गाड़ीवान, नौटंकी की बाई में अपनापन खोजते गाड़ीवान और अभावों की जिंदगी जीने वाले लोगों के सुनहरी सपनों का सुंदर चित्रण किया गया है। लेखक के अनुसार हमारी फ़िल्मों में सबसे बड़ी कमजोरी लोक-तत्व का अभाव है। तीसरी कसम’ फ़िल्म में लोक तत्वों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
इस फ़िल्म में दुख को भी सहज स्थिति में जीवन-सापेक्ष प्रस्तुत किया गया है। लेखक कहता है कि शैलेंद्र के गीत भी अपनी अलग विशेषताओं के कारण प्रसिदध रहे हैं। उनके गीतों में भावप्रवणता, सरलता और करुणा के साथ-साथ संघर्ष का स्वर भी : दिखाई देता है। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के तो सभी गीत भावप्रवणता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
लेखक कहता है कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर का अभिनय बेजोड़ है। उन्होंने इस फ़िल्म में एक शुद्ध देहाती हीरामन नामक गाड़ीवान की भूमिका निभाई है। उनके द्वारा निभाई गई भूमिका इतनी उत्कृष्ट है कि वे कहीं भी अभिनय करते प्रतीत नहीं होते। अपितु वे हीरामन ही बन गए हैं। उनका महिमामय व्यक्तित्व पूरी तरह से हीरामन में ढल गया है। उन्होंने एक सरल-हृदय गाड़ीवान की भावनाओं को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म की पटकथा फणीश्वरनाथ रेणु ने तैयार की थी। उनकी मूल रचना का छोटे से छोटा भाग और उसकी बारीकियाँ इस फ़िल्म में बड़ी सफलता से प्रस्तुत की गई हैं।
कठिन शब्दों के अर्थ :
गहन – गहरा, अंतराल – के बाद, अभिनीत – अभिनय किया गया, सर्वोत्कृष्ट – सबसे अच्छा, अत्यंत – बहुत अधिक, सैल्यूलाइड – कैमरे की रील में उतार चित्र पर प्रस्तुत करना, सार्थकता – सफलता के साथ, कलात्मकता – कला से परिपूर्ण, संवेदनशीलता – भावुकता, तारीफ़ प्रशंसा, फेस्टिवल – उत्सव, शिद्दत – तीव्रता, अनन्य – परम, अत्यधिक, तन्मयता – तल्लीनता, पारिश्रमिक – मेहनताना, उम्मीद – आशा, याराना मस्ती – दोस्ताना अंदाज़, सर्वथा – बिलकुल, पूरी तरह, आगाह – सचेत, भावुक – संवेदनशील, भावनाओं में बहने वाला, आत्म-संतुष्टि – अपनी तुष्टि, अभिलाषा – चाह, इच्छा,
बमुश्किल – बहुत कठिनाई से, वितरक – प्रसारित करने वाले लोग, नामजद – विख्यात, प्रसिद्ध, बेहद – बहुत अधिक, दरअसल – वास्तव में, नावाकिफ़ – अनजान, आदमियत – मानवता, मनुष्यता, इकरार – सहमति, मंतव्य – मान्यता, उथलापन – सतही, नीचा, भावप्रवण – भावनाओं से भरा हुआ, दुरूह – कठिन, एकमात्र – अकेली मोड़कर पैर के तलवों के सहारे बैठना, सूक्ष्मता – बारीकी, स्पंदित – संचालित करना, गतिमान, लालायित – इच्छुक, टप्पर-गाड़ी – अर्धगोलाकार छप्पर युक्त बैलगाड़ी,
हुजूम – भीड़, प्रतिरूप – छाया, रूपांतरण – किसी एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित करना, लोक तत्व – लोक संबंधी, त्रासद – दुखद, ग्लोरीफ़ाई – गुणगान, महिमामंडित करना, वीभत्स – भयावह, व्यथा – पीड़ा-दुख, जीवन, सापेक्ष – जीवन के प्रति, धन-लिप्सा – धन की अत्यधिक चाह, तहत – द्वारा, प्रक्रिया – प्रणाली, अद्वितीय – जिसके समान दूसरा न हो, बाँचै – पढ़ना, भाग – भाग्य, समीक्षक – समीक्षा करने वाला, कला-मर्मज्ञ – कला की परख करने वाला, चर्मोत्कर्ष – ऊँचाई के शिखर पर, खालिस – शुद्ध, देहाती – ग्रामीण, सिर्फ़ – केवल, भुच्च – निरा, बिलकुल, मुकाम – पड़ाव, किंवदंती – कहावत, तनिक सी – थोड़ी-सी