JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

JAC Class 10 Hindi बिहारी के दोहे Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
छाया भी कब छाया ढूँढ़ने लगती है?
अथवा
बिहारी के दोहों के आधार पर ग्रीष्म ऋतु की प्रचंड गर्मी और दोपहरी का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
अथवा
बिहारी ने ग्रीष्म ऋतु की तुलना किससे की है?
उत्तर :
कवि ग्रीष्म ऋतु की तपोवन से तुलना करते हुए कहता है कि जून के महीने में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है। उस समय ऐसा लगता है, जैसे चारों ओर अंगारे बरस रहे हों। गर्मी की ऐसी भयंकरता को देखकर लगता है कि शायद छाया भी छाया की तलाश में है। उस समय छाया घने जंगलों में अथवा घरों के अंदर होती है। छाया भी गर्मी से परेशान होकर छाया की तलाश में भटकती दिखाई देती है।

प्रश्न 2.
बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’- स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
नायिका परदेस गए नायक को प्रेम-पत्र लिखती है। वह विरह की अत्यधिक पीड़ा के कारण कागज़ पर लिखने में स्वयं को असमर्थ पाती है। किसी अन्य के माध्यम से नायक को संदेश भेजने में उसे लज्जा आती है। ऐसे में वह कहती है कि अब उसे किसी साधन की आवश्यकता नहीं है। नायक का हृदय ही उसे नायिका के हृदय की विरह व्यथा का आभास करवा देगा। वह ऐसा इसलिए कहती है, क्योंकि वह नायक से सच्चा प्रेम करती है और यदि नायक भी उसे समान सच्चा प्रेम करता होगा तो उसका हृदय भी विरह की अग्नि में जल रहा होगा। ऐसे में वह अपने हृदय की पीड़ा से नायिका के हृदय की पीड़ा का सहज ही अनुमान लगा लेगा।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

प्रश्न 3.
सच्चे मन में राम बसते हैं-दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बिहारी ने ईश्वर प्राप्ति में किन साधनों को साधक और किनको बाधक माना है?
अथवा
‘सच्चे मन में ईश्वर बसते हैं। इस भाव में बिहारी के दोहे का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि का मत है कि बाह्य आडंबरों से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। मनकों की माला का जाप करने, रंगे वस्त्र पहनने और तिलक लगाने से ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता। जो व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर को याद करता है, ईश्वर उसी पर प्रसन्न होते हैं। छल-कपटपूर्ण आचरण करने वाला व्यक्ति कितनी भी भक्ति कर ले, ईश्वर को नहीं पा सकता। ईश्वर तो सच्चे हृदय वाले व्यक्ति के मन में निवास करते हैं।

प्रश्न 4.
गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं ?
उत्तर :
गोपियों को श्रीकृष्ण की बाँसुरी से विशेष ईर्ष्या है। एक बार बाँसुरी हाथ में आने पर श्रीकृष्ण गोपियों को भूल जाते हैं। वे बाँसुरी बजाने में इतने खो हो जाते हैं कि गोपियों की ओर ध्यान नहीं देते। गोपियाँ चाहती हैं कि श्रीकृष्ण उनसे प्रेमपूर्ण बातचीत करें और इसलिए वे बाँसुरी को छिपा देती हैं। वे जानती हैं कि श्रीकृष्ण बाँसुरी के विषय में अवश्य पूछेगे और इस प्रकार वे श्रीकृष्ण से बातचीत करने का आनंद प्राप्त कर सकती हैं।

प्रश्न 5.
बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
नायक और नायिका एक ऐसे स्थान पर बैठे हैं, जहाँ बहुत-से लोग हैं। नायक नायिका से बातचीत करना चाहता है, किंतु लोगों की उपस्थिति में यह संभव नहीं था। ऐसे में नायक और नायिका आँखों के संकेतों से सारी बात कर लेते हैं। नायक आँखों के संकेत से नायिका को कुछ कहता है। नायिका आँखों के संकेत से मना कर देती है। नायिका के मना करने के सरस ढंग पर नायक प्रसन्नता व्यक्त करता है, तो नायिका झूठी खीझ व्यक्त करती है। थोड़ी देर में उनके नेत्र पुनः मिलते हैं, तो दोनों खिल उठते हैं और शरमा जाते हैं। इस प्रकार नायक और नायिका सभी की उपस्थिति में बातचीत भी कर लेते हैं और किसी को पता भी नहीं चलता।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

प्रश्न 6.
बिहारी ने ‘जगतु तपोबन सौ कियौ’ क्यों कहा है?
उत्तर :
ग्रीष्म ऋतु में जंगल तपोवन जैसा पवित्र बन जाता है क्योंकि शेर, हिरण, मोर साँप जैसे हिंसक जीव भी परस्पर शत्रुता भूलकर एक साथ रहने लगते हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न :
1. मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।
2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निराघ।
3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥
उत्तर :
1. कवि के अनुसार श्रीकृष्ण के नीले शरीर पर पीले वस्त्र ऐसे सुशोभित हैं, जैसे नीलमणि पर्वत पर सूर्य की पीली किरणें फैली हों अर्थात् प्रात:कालीन धूप फैली है।
2. इन पंक्ति के अनुसार ग्रीष्म ऋतु की गर्मी ने जंगल को तपोवन जैसा पवित्र बना दिया है। हिंसा की जगह सभी में आपसी प्रेम, सौहार्द्र और मित्रता का भाव उत्पन्न हो गया है। शेर, हिरण, मोर, साँप आदि जीव शत्रुता भूलकर एक साथ गर्मी को सहन कर रहे हैं।
3. कवि कहता है कि हाथ में माला लेकर जपने से, छपे वस्त्र पहनने से या तिलक लगाने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। चंचल मन से ईश्वर भक्ति करना केवल आडंबर है। कवि ने इन्हें व्यर्थ के नृत्य कहा है। उसके अनुसार ईश्वर की प्राप्ति केवल सच्चे हृदय वाले लोगों को ही होती है। नि:स्वार्थ भक्ति ही ईश्वर को प्रिय है।

योग्यता विस्तार –

प्रश्न :
सतसैया के दोहरे ज्यौं नावक के तीर।
देखन में छोटे लगें घाव करैं गंभीर।
अध्यापक की मदद से बिहारी विषयक इस दोहे को समझने का प्रयास करें। इस दोहे से बिहारी की भाषा संबंधी किस विशेषता का पता चलता है।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

परियोजना कार्य –

प्रश्न :
बिहारी कवि के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए और परियोजना पुस्तिका में लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi बिहारी के दोहे Important Questions and Answers

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बिहारी ने अपने दोहों में बाह्याडंबरों का खुलकर विरोध किया है, क्यों?
उत्तर :
बिहारी के ऐसे अनेक दोहे हैं, जिनमें भक्ति-भावना का चित्रांकन किया गया है। उन्होंने भक्ति के सरल, दास्य और माधुर्य भावों का उल्लेख किया है किंतु उनकी भक्ति आडंबर रहित है। बिहारी ने बाह्याडंबरों का खुलकर खंडन किया है, क्योंकि उनका मानना है कि बाह्याडंबरों से भक्ति कलुषित हो जाती है; भक्त का ध्यान भटक जाता है। उन्होंने भक्ति के लिए मन की पवित्रता पर बल दिया है। वे बायाडंबरों को भक्ति-मार्ग में बाधक और व्यर्थ मानते हैं। उनका कहना है कि जपमाला रटने, तिलक लगाने आदि आडंबरों से कोई भी कर्म पूर्ण नहीं होता।

जपमाला, छाएँ, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

प्रश्न 2.
बिहारी की नायिका कागज़ पर संदेश लिखने में भी क्यों असहाय है?
उत्तर :
बिहारी की नायिका कागज़ पर संदेश लिखने में असहाय है, क्योंकि वह अपने प्रियतम की विरह-व्यथा से अत्यंत पीड़ित है। वह उसकी राह देखते-देखते अत्यंत कमज़ोर और शक्तिहीन हो गई है। उसे अपने प्रियतम से मिलने की निरंतर व्याकुलता व्यथित कर रही है। अब उसमें थोड़ी-सी भी शक्ति नहीं बची कि वह कागज़ पर संदेश लिख सके।

प्रश्न 3.
बिहारी ने लोगों से भरे भवन में भी नायक-नायिका के मिलन का कैसा शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है?
उत्तर :
बिहारी श्रृंगार रस के अनूठे कवि हैं। उन्होंने नायक-नायिका के संयोग पक्ष के विविध भावों का सुंदर एवं सजीव चित्रण किया है। नायक नायिका लोगों से भरे भवन में आँखों के संकेत के माध्यम से ही सब बातें करते हैं। नायक नायिका को आँखों से संकेत करता है, तो लज्जावश नायिका इनकार कर देती है। नायक उसके इनकार पर भी मुग्ध हो जाता है। इस पर नायिका अपनी खीझ प्रकट करती है। तत्पश्चात दोनों के नेत्र पुनः एक-दूसरे से मिलते हैं। वे दोनों आनंदित हो उठते हैं और लज्जाने लगते हैं।

प्रश्न 4.
बिहारी ने माला जपने और तिलक लगाने को व्यर्थ कहकर क्या संदेश देना चाहा है?
उत्तर :
बिहारी ने अपने दोहे में माला जपने और तिलक लगाने को व्यर्थ बताया है। उनके अनुसार ये सब बाहरी आडंबर के प्रतीक हैं। मनुष्य को इन आडंबरों को छोड़कर सच्चे हृदय से ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। कवि के अनुसार ईश्वर केवल उसी को प्राप्त होता है, जो सच्चे हृदय से उसका ध्यान करते हैं।

प्रश्न 5.
बिहारी के दोहों’ की रचना मुख्यतः किन भावों पर आधारित हैं? उनके मुख्य ग्रंथ और भाषा के नाम का उल्लेख , कीजिए।
उत्तर :
बिहारी के दोहे मुख्य रूप से श्रृंगारी, नीतिपरक और भक्ति से संबंधित और जीवन के व्यावहारिक पक्षों से जुड़े हुए हैं। इनका मुख्य ग्रंथ ‘बिहारी सतसई’ है। इनकी भाषा ब्रज है, जिसमें अन्य स्थानीय, उर्दू, फारसी के शब्दों का भी कहीं-कहीं प्रयोग मिलता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

प्रश्न 6.
(क) “बिहारी के दोहे’ के आधार पर लिखिए कि किन प्राणियों में स्वाभाविक बैर है? वे आपसी बैर कब और क्यों भूल जाते हैं?
(ख) “बिहारी के दोहे’ के आधार पर लिखिए कि माला जपने और तिलक लगाने से क्या होता है? ईश्वर किससे प्रसन्न रहते हैं?
उत्तर :
(क) साँप, मोर, हिरण और बाघ में स्वाभाविक रूप से बैर है परंतु लंबी ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी ने सारे जंगल को तपोवन जैसा बना दिया है जिस कारण वे अपनी स्वाभाविक दुश्मनी भूलकर मिल-जुलकर रहने लगे हैं।

(ख) हाथ में माला ले कर जपने और तिलक लगाने मात्र से ईश्वर-भक्ति का कार्य पूरा नहीं होता, इससे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती, क्योंकि मन तो अस्थिर था। सच्चे मन से ईश्वर पर विश्वास रखते हुए उनका नाम स्मरण करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं।

बिहारी के दोहे Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – बिहारी हिंदी साहित्य के रीतिकाल के कवियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। वे मुख्य रूप से श्रृंगारी कवि हैं। उनका जन्म ग्वालियर के वसुआ गोविंदपुर गाँव में सन 1595 ई० में हुआ था। वे राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे और उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने ‘सतसई’ की रचना की। बिहारी राज्याश्रित होते हुए भी स्वतंत्र प्रकृति के कवि थे। अतः उन्होंने कोई भी प्रशंसात्मक काव्य नहीं लिखा। 1663 ई० में उनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – बिहारी ने अपनी सारी प्रतिभा एक ही पस्तक के निर्माण में लगा दी, जो साहित्य जगत में ‘बिहारी सतसई’ या ‘सतसैया’ नाम से विख्यात है। इसमें लगभग 719 दोहे संग्रहीत हैं। प्रत्येक दोहे के भाव गांभीर्य को देखकर पता चलता है कि बिहारी में गागर में सागर भरने की क्षमता थी। उन्होंने अपने एक ही दोहे के प्रभाव से राजा जयसिंह को सचेत कर दिया था। राजा जयसिंह आरंभ में विलासी राजा था। वह अपनी नव-विवाहिता पत्नी पर इतना आसक्त हुआ कि उसने राज-दरबार के कामों से मुँह मोड़ लिया। लेकिन बिहारी के निम्नलिखित दोहे ने राजा जयसिंह की आँखें खोल दीं नहिं पराग

नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अलि कलि ही सौं बिंध्यो, आगे कौन हवाल॥

साहित्यिक विशेषताएँ-बिहारी ने अपनी सतसई की रचना मुक्तक शैली में की है। इसमें श्रृंगार, भक्ति एवं नीति की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है। सभी आलोचकों ने सतसई के महत्व को स्वीकार किया है। बिहारी को श्रृंगार रस के चित्रण में अधिक सफलता प्राप्त हुई है। श्रृंगार रस के दोनों पक्षों संयोग एवं वियोग पर बिहारी ने दोहों की रचना की है। राधा एवं कृष्ण की प्रेम-क्रीड़ा का वर्णन कितना स्वाभाविक है –

बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करें भौंहनु हँसे, दैन कहैं नटि जाय॥

संयोग के समान बिहारी का वियोग वर्णन भी अनूठा है, पर कहीं-कहीं अतिशयोक्ति के प्रभाव ने अस्वाभाविकता ला दी है –

इति आवति चली जाति उत, चली छः सातक हाथ।
चढ़ी हिंडौर सी हैं, लगी उसासनु साथ ॥

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

बिहारी ने सतसई में प्रकृति के सौंदर्य का भी चित्रण किया है। इस सौंदर्य में ऋतु वर्णन का विशेष महत्व है। वसंत ऋतु की मादकता का चित्रण देखिए –

छकि रसाल सौरभ सने, मधुर माधुरी गंध।
ठौर ठौर झारत झंपत, भौंर-झऔर मधु अंध॥

बिहारी भक्ति-भावना से भी प्रेरित रहे हैं। उनके बहुत-से दोहों में दीनता एवं विनय का भाव व्यक्त हुआ है –

कब को टेरत दीन ह्वै, होर न स्याम सहाइ।
तुमहूं लागी जगत गुरु, जग नाइक जग बाइ॥

बिहारी ने ब्रजभाषा को अपनाया है। भाषा पर उनका पूरा अधिकार है। इसका चित्रण बड़ा सुंदर एवं स्वाभाविक है। बिहारी के प्रत्येक दोहे में किसी-न-किसी अलंकार का प्रयोग हआ है। शुक्ल जी के अनुसार, “बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है। वाक्य-रचना व्यवस्थित है और शब्दों के रूपों का व्यवहार एक निश्चित प्रणाली पर है। ब्रजभाषा के अनेक कवियों ने शब्दों को तोड़-मरोड़ कर उन्हें विकृ कर दिया है। परंतु बिहारी की भाषा इस दोष से मुक्त है।” बिहारी की भाषा पर बुंदेलखंडी तथा अरबी-फारसी के शब्दों का भी प्रभाव है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

दोहों का सार –

अपनी शत्रुता को त्यागकर एक साथ छाया में एकत्रित हो गए हैं। उन्हें देखकर जंगल भी तपोवन के समान प्रतीत होता है। तीसरे दोहे में गो उनसे बाँसुरी माँगते हैं, तो वे मना कर देती हैं। मना करते समय उनका भौंहों से हास्य प्रकट करना श्रीकृष्ण को संदेह में डाल देता है और वे पुनः अपनी बाँसुरी मांगने लगते हैं। चौथे दोहे में नायक और नायिका की संकेतों में बातचीत का वर्णन है। नायक आँखों के संकेतों से नायिका से कुछ कहता है। नायिका उसे मना कर देती है। नायक उसके मना करने के ढंग पर रीझ जाता है, तो नायिका झूठी खीझ प्रकट करती है।

जब दोनों के नेत्र पुनः मिलते हैं, तो दोनों प्रसन्न हो जाते हैं और एक-दूसरे को देखकर लजा जाते हैं। इस प्रकार वे भीड़ भरे भवन में भी बातचीत कर लेते हैं। पाँचवें दोहे में कवि कहता है कि प्रेमियों के नेत्र मिलने पर उनमें प्रेम होता है। वे आपस में तो प्रेम के बंधन में बँध जाते हैं, किंतु परिवार से छूट जाते हैं। उनके इस प्रेम को देखकर दुष्ट लोग कष्ट का अनुभव करते हैं। छठे दोहे में एक सखी द्वारा राधा को समझाने का वर्णन है। राधा श्रीकृष्ण से रूठी हुई है। उसकी सखी उसे समझाती है कि उसके सौंदर्य पर तो उर्वशी नामक अप्सरा को भी न्योछावर किया जा सकता है।

वह तो श्रीकृष्ण के हृदय में उसी प्रकार समाई है, जिस प्रकार उर्वशी नामक आभूषण हृदय पर लगा रहता है। सातवें दोहे में कवि ने गर्मी की भयंकरता का वर्णन किया है। ज्येष्ठ मास में गर्मी की प्रचंडता इतनी अधिक है कि छाया भी छाया की तलाश में है और वह घने जंगल में और घरों में जाकर छिप गई है। आठवें दोहे में विरहणी नायिका की विरह व्यथा को उसी के माध्यम से व्यक्त किया गया है। वह परदेस गए अपने प्रियतम को पत्र लिखने में असमर्थ है और उस तक संदेश भिजवाने में उसे लज्जा आती है।

अंततः वह अपने प्रियतम से कहती है कि तुम अपने ही हृदय से पूछ लेना, वह तुम्हें मेरे दिल की बात कह देगा। नौवें दोहे में कवि ने श्रीकृष्ण से अपने संकट दूर करने की प्रार्थना की है। दसवें दोहे में कवि कहता है कि बड़े लोगों के कार्यों की पूर्ति छोटे लोगों से नहीं हो सकती। विशाल नगाड़ों का निर्माण कभी भी चूहे जैसे छोटे जीव की खाल से नहीं हुआ करता। अंतिम दोहे में बिहारी ने स्पष्ट है उसे सहज ही ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है।

सप्रसंग व्याख्या –

दोहे –

1. सोहत ओ पीतु पटु स्याम, सली. गाता
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु परयौ प्रभात।।

शब्दार्थ : सोहत – शोभा देना। ओढ़े – ओढ़ कर। पीतु पटु – पीले वस्त्र। सली. – साँवले। गात – शरीर। नीलमनि – नीलमणि। सैल – पर्वत, चट्टान। आतपु – धूप।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। यह दोहा उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया है।

व्याख्या : बिहारी श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र अत्यंत सुशोभित हो रहे हैं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो किसी नीलमणि पर्वत पर प्रात:काल की धूप पड़ रही हो। यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले शरीर को नीलमणि पर्वत तथा पीले वस्त्रों को सूर्य की धूप के समान माना गया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

2. कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ ॥

शब्दार्थ कहलाने – क्यों। एकत – इकट्ठे। बसत – रहते हैं। अहि – साँप। मयूर – मोर। मृग – हिरण। बाघ – शेर। दीरघ – लंबा। दाघ – गर्मी। निदाघ – ग्रीष्म ऋतु।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। यह दोहा बिहारी की प्रसिद्ध रचना ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी का वर्णन किया है। इस दोहे की प्रथम पंक्ति प्रश्न के रूप में है तथा दूसरी पंक्ति में उसका उत्तर है।

व्याख्या : कवि बिहारी स्वयं प्रश्न करते हैं कि किस कारण से साँप, मोर, हिरण और बाघ एक स्थान पर इकट्ठे हो रहे हैं। इस प्रश्न का स्वयं ही उत्तर देते हुए वे कहते हैं कि शायद इसका कारण भयंकर गर्मी का होना है। लंबी ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी ने सारे जंगल को एक तपोवन के समान बना दिया है, जहाँ सारे जीव अपना वैर-भाव भूलकर एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहने लगे हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

3. बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौह करैं भौहनु हैसै, दैन कहैं नटि जाइ॥

शब्दार्थ : बतरस – बातें करने का आनंद। लालच – लोभ। लाल – नायक अर्थात श्रीकृष्ण। मुरली – बाँसुरी। धरी – रख दी। लुकाइ – छिपाकर। सौंह – कसम। भौंहनु हँसै – भौंहों से हास्य व्यक्त करना। नटि जाइ – मना कर देना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा कविवर बिहारी द्वारा रचित है। यह उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने बताया है कि नायिका ने अपने प्रिय से बात करने के लालच में उसकी बाँसुरी छिपा दी। इसके बाद उन दोनों में जो बात हुई, उसे इस दोहे में बताया गया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि नायिका ने श्रीकृष्ण से प्रेम भरी बातचीत का सुख प्राप्त करने के लिए उनकी बाँसुरी कहीं छिपाकर रख दी। श्रीकृष्ण उसे तरह-तरह की कसम देकर अपनी बाँसुरी के विषय में पूछते हैं। नायिका कसम खाकर कहती है कि उसने बाँसुरी नहीं छिपाई। श्रीकृष्ण उसकी बात पर विश्वास कर लेते हैं, किंतु तभी नायिका भौंहें घुमाकर हँसने लगी। श्रीकृष्ण को उस पर संदेह हो गया और वे फिर से उसे अपनी बाँसुरी देने के लिए कहते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

4. कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।

शब्दार्थ : नटत – इनकार करना। रीझत – मुग्ध होना। खिझत – चिढ़ना। खिलत – प्रसन्न होना। लजियात – लजा जाना, शर्माना। भौन – भवन, घर। नैननु – नेत्रों से।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने नायक और नायिका की आँखों द्वारा की जाने वाली बातचीत का सुंदर चित्रण किया है। व्याख्या कवि के अनुसार नायक आँखों से कुछ संकेत करके नायिका से कुछ कहता है, परंतु नायिका आँखों के संकेत से ही इनकार कर देती है।

नायिका के इनकार करने का ढंग कुछ ऐसा है कि नायक मुग्ध हो जाता है। यह देखकर नायिका आँख के इशारे से अपनी खीझ प्रकट करती है। उसकी यह खीझ बनावटी है। थोड़ी देर बाद जब पुनः उनकी आँखें मिलती हैं, तो दोनों एक-दूसरे को देखकर खिल उठते हैं और लजा जाते हैं। इस प्रकार भीड़ भरे घर में भी नायक-नायिका आँखों-ही-आँखों में बातचीत कर लेते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

5. बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह॥

शब्दार्थ : सघन बन – घने जंगल। पैठि – घुसकर। सदन-तन – घरों में। जेठ – ज्येष्ठ मास, जून का महीना। छाँहौं – छाया भी। छाँह – छाया।

प्रसंग प्रस्तुत दोहा कवि बिहारी द्वारा रचित है, जो उनके प्रसिद्ध ग्रंथ सतसई से लिया गया है। इस दोहे में उन्होंने गर्मी की भयंकरता का सुंदर
चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि जेठ मास की इस दोपहर में भयंकर गर्मी है; छाया भी गर्मी से बचने के लिए छाया चाहती है। इसी कारण छाया या तो घने जंगल में है या घरों के भीतर छिपना चाहती है। भाव यह है कि गर्मी बहुत अधिक है, जिस कारण गर्मी से घबराकर छाया भी छाया ढूँढ़ रही है। वह भी छिपना चाहती है।

6. कागद पर लिखत न बनत, कहत संदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात॥

शब्दार्थ : कागद – कागज़। लिखत न बनत – लिखा नहीं जाता। संदेसु – संदेश। लजात – लज्जा आना। कहिहै – कह देगा। हिय – हृदय।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी दवारा रचित है। इस दोहे में उन्होंने एक नायिका की विरह-व्यथा का वर्णन किया है। वह परदेस गए हुए अपने प्रियतम को प्रेम-पत्र लिखना चाहती है, किंतु लिख नहीं पाती।

व्याख्या : नायिका कहती है कि हे प्रियतम! मैं अपनी विरह की पीड़ा को कागज पर लिखने में असमर्थ हूँ। मैं तुम्हें मौखिक रूप से किसी के द्वारा अपना प्रेम-संदेश भी नहीं भिजवा सकती, क्योंकि ऐसा करने में मुझे लज्जा का अनुभव होता है। अतः मैं केवल इतना ही कहना चाहती

हूँ कि तुम अपने ही हृदय से पूछ लेना; वह तुम्हें मेरे हृदय की सब बातें बता देगा। भाव यह है कि तुम्हारी विरह में जैसे मेरा हृदय दुखी है, वैसे ही मेरी विरह में तुम्हारा हृदय भी दुखी होगा। इस प्रकार तुम अपने हृदय से मेरी स्थिति का सहज ही अनुमान लगा सकते हो।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

7. प्रगट भए द्विजराज-कुल, सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ॥

शब्दार्थ : प्रगट भए – उत्पन्न हुए। द्विजराज-कुल – ब्राह्मण वंश, चंद्र वंश। सुबस – अपनी इच्छा से। हरौ – दूर करो। कलेस – कष्ट, दुख। केसव – श्रीकृष्ण। केसवराइ – केशवराय, बिहारी के पिता।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। इस दोहे में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का रूपक अपने पिता केशवराय से करके उनसे अपने कष्टों का निवारण करने की प्रार्थना की है।

व्याख्या : उनसे कवि कहता है कि हे श्रीकृष्ण! आपने चंद्रवंश में जन्म लिया है और आप अपनी इच्छा से ही ब्रज में आकर बस गए हैं। ब्रज में बसे हुए केशवराय रूपी केशव! मेरी प्रार्थना है कि आप मेरे सभी संकटों और दुखों को दूर करो। भाव यह है कि आप सर्वशक्तिमान हैं, अतः मेरे कष्टों का भी निवारण करो।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

8. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥

शब्दार्थ : जपमाला – माला द्वारा ईश्वर के नाम का जाप करना। छापा – ईश्वर नाम के छपे हुए वस्त्र पहनना। सरै – पूरा होना। मन-काँचै – कच्चे मन वाला, अस्थिर मन वाला। नाचै – नाचना। बृथा – बेकार में। साँचै – सच्चे मन वाला। राँचै – प्रसन्न होना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा कविवर बिहारी द्वारा रचित ‘सतसई’ में से लिया गया है। इसमें उन्होंने बाह्य आडंबरों के स्थान पर सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करने पर बल दिया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि हाथ में माला लेकर निरंतर जाप करने से, ईश्वर नाम के छपे वस्त्र पहनने से तथा तिलक लगाने से ईश्वर-भक्ति का कार्य पूरा नहीं होता। यदि मनुष्य का मन अस्थिर है और उसके मन में ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास नहीं है, तो उसका भक्ति में नाचना भी व्यर्थ है। इसके विपरीत जो व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर पर विश्वास करके भक्ति करते हैं, भगवान उन्हीं पर प्रसन्न होते हैं।

Leave a Comment