JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

JAC Class 10th Sanskrit बुद्धिर्बलवती सदा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत- (एक शब्द में उत्तर लिखिए-)
(क) बुद्धिमती कुत्र व्याघ्रं ददर्श (बुद्धिमती ने बाघ को कहाँ देखा?)
उत्तरम् :
गहन कानने (सघन जंगल में)।

(ख) भामिनी कया मुक्ता? (स्त्री किससे मुक्त हुर्ह ?)
उत्तरम् :
निजबुद्या (अपनी बुद्धि से)।

(ग) सर्वदा सर्वकार्येषु का बलवती? (हमेशा सभी कार्यों में क्या बलवान है?)
उत्तरम् :
बुद्धिः (अक्ल)।

(घ) व्याघ्र कस्मात् बिभेति? (व्याघ किससे डरता है?)
उत्तरम् :
व्याघ्रमारीतः (बाघ करनी है)

(क) प्रत्युत्पन्नमतिः बुद्धिमती किमाक्षिपन्ती उवाच?
(प्रत्युत्पन्नमति बुद्धिमती किस पर आक्षेप करती हुई बोली?)
उत्तरम् :
जम्बुकम् (गीदड़)।

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प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए)
(क) बुद्धिमती केन उपेता पितुर्गहं प्रति चलिता ?
(बुद्धिमती किनके सहित पीहर की ओर चली गई ?)
उत्तरम् :
बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
(बुद्धिमती दो पुत्रों सहित पीहर की ओर चली गई 1)

(ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायितः?
(बाघ क्या सोचकर भाग गया ?)
उत्तरम् :
व्याघ्रमारी काचिद् इयम् इति विचार्य व्याघ्रः पलायितः।
(यह कोई व्याघ्रमारी है, ऐसा सोचकर बाघ भाग गया।)

(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते ?
(संसार में महान् भय से कौन मुक्त हो जाता है ?)
उत्तरम् :
बुद्धिमान् लोके महतो भयात् मुच्यते।
(बुद्धिमान् लोक में महान् भय से मुक्त हो जाता है।)

(घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति ?
(गीदड़ क्या बोलता हुआ बाघ का उपहास करता है ?)
उत्तरम् :
‘भवान् कुतः भयात् पलायितः ?’ इति वदन् जम्बुक: व्याघ्रस्य उपहासं करोति।
(‘आप भय से कहाँ भाग रहे हैं ? ‘ ऐसा बोलते हुए गीदड़ बाघ का उपहास करता है।)

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(ङ) बुद्धिमती शृगालं किमुक्तवती ?
(बुद्धिमती ने गीदड़ से क्या कहा ?)
उत्तरम् :
रे रे धूर्त ! त्वया मह्यं पुरा व्याघ्रत्रयं दत्तम्। विश्वास्य (अपि) अद्य एकम् एव आनीय कथं यासि, वद इदानीम्। इति उक्तवती। (अरे-अरे छलिया ! पहले तुमने मेरे लिए तीन बाघ दिए थे (परन्तु) विश्वास देकर आज एक ही ‘बाघ’ ला कर जा रहे हो। अब बोलो। ऐसा कहा।)

प्रश्न 3.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (मोटे शब्दों को आधार मानकर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) तत्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म। (वहाँ राजसिंह नाम का राजा का पुत्र रहता था।)
(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्रौ प्रहृतवती। (बुद्धिमती ने थप्पड़ से दोनों पुत्रों को पीटा।)
(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्। (बाघ को देखकर धूर्त गीदड़ बोला।)
(घ) त्वं मानुषात् बिभेषि। (तुम मानव से डरते हो।)
(ङ) परा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्। (पहले तुमने मुझे तीन बाघ दिए।)
उत्तरम् :
(क) तत्र किम् नाम राजपुत्रः वसति स्म? (वहाँ किस नाम का राजा का पुत्र रहता था ?)
(ख) बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती ? (बुद्धिमती ने किससे दोनों पुत्रों को पीटा ?)
(ग) कं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत् ? (किसको देखकर धूर्त गीदड़ बोला ?)
(घ) त्वं कस्मात् बिभेषि ? (तुम किससे डरते हो ?)
(ङ) पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम् ? (पहले तुमने किसको तीन बाघ दिए ?)

प्रश्न 4.
अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमेण योजयत (निम्नलिखित वाक्यों को घटना-क्रम से लगाइए)
(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
(घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच- अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यत।
(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
(छ) ‘त्व व्याघ्रत्रयम् आनयितुं प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः पुनः पलायितः।
उत्तरम् :
(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
(घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच- अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यत।
(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनयितुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः पुनः पलायितः।

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प्रश्न 5.
सन्धिं/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत (सन्धि/सन्धि-विच्छेद कीजिए)
(क) पितुर्गृहम् = ……………… …………
(ख) एकैकः = ………………
(ग) ………………… = अन्यः + अपि
(घ) ………………… = इति + उक्त्वा
(ङ) ………………… = यत्र + आस्ते
उत्तरम् :
(क) पितुः + गृहम्
(ख) एक + एकः
(ग) अन्योऽपि
(घ) इत्युक्त्वा
(ङ) यत्रास्ते।

प्रश्न 6.
अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत (निम्नलिखित पदों के अर्थ कोष्ठक से चुनकर लिखिए)।
(क) ,ददर्श – (दर्शितवान्, दृष्टवान्)
(ख) जगाद – (अकथयत्, अगच्छत्)
(ग) ययौ – (याचितवान्, गतवान्)
(घ) अत्तुम् – (खादितम्, आविष्कर्तुम्)
(ङ) मुच्यते – (मुक्तो भवति, मग्नो भवति)
(च) ईक्षते – (पश्यति, इच्छति)
उत्तरम् :
(क) ददर्श = दृष्टवान्
(ख) जगाद = अकथयत्
(ग) ययौ = गतवान्
(घ) अत्तुम् = खादितुम्।
(ङ) मुच्यते = मुक्तो भवति
(च) ईक्षते = पश्यति।

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प्रश्न 7.
(अ) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत (पाठ से चुनकर पर्यायवाची लिखो)
(क) वनम् (ख) शृगालः (ग) शीघ्रम् (घ) पत्नी (ङ) गच्छसि।
उत्तरम् :
(क) काननम् (ख) जम्बुकः (ग) सत्वरम् (घ) भार्या (ङ) यासि।

(आ) पाठात् चित्वा विपरीतार्थकं पदं लिखत (पाठ से चुनकर विलोम शब्द लिखिये)
(क) प्रथमः (ख) उक्त्वा (ग) अधुना (घ) अवेला (ङ) बुद्धिहीना
उत्तराणि-
(क) द्वितीयः (ख) श्रुत्वा (ग) तदा (घ) वेला (ङ) बुद्धिमती।

परियोजनाकार्यम् :

बुद्धिमत्याः स्थाने आत्मानं परिकल्प्य तद्भावनां स्वभाषया लिखत।
(बुद्धिमती के स्थान पर स्वयं की कल्पना करके उसकी भावना को अपनी भाषा में लिखिए।)
उत्तरम् :
बुद्धिमती के स्थान पर यदि मैं होता तो चलते समय आगामी संभावनीय स्थिति को देखते हुए अपनी सुरक्षा के लिए कोई-न-कोई हथियार लेकर चलता/चलती तथा वन के खतरे पर विचार करके हर स्थिति से निपटने के लिये तैयार होकर जाता/जाती। इसमें कोई शक नहीं कि बुद्धि अधिक बलवती होती है परन्तु बुद्धि शरीर में रहती है और उसकी रक्षा के लिए कोई शस्त्र आवश्यक है। विवेक के रक्षार्थ वीरता की भी आवश्यकता होती है।

योग्यताविस्तार :

यह पाठ शुकसप्ततिः नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित कर लिया गया है। इसमें अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक नारी के बुद्धिकौशल को दिख पा गया है, जो सामने आए हुए शेर को डराकर भगा देती है। इस कथाग्रन्थ में नीतिनिपुण शुक और सारिका की कहानियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सद्वृत्ति का. विकास कराया गया है।

भाषिकविस्तार :

ददर्श-दृश् धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
बिभेषि ‘भी’ धातु, लट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन।
प्रहरन्ती – प्र + हृ धातु, शतृ प्रत्यय, स्त्रीलिङ्ग प्र.वि. एकवचन।
गम्यताम् – गम् धातु, कर्मवाच्य, लोट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
ययौ – ‘या’ धातु, लट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन।
यासि – गच्छसि ‘या’ धातु, लट् लकार, मध्यमपुरुष, एकवचन।

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समास :

गलबद्धशृगालकः – गले बद्धः शृगालः यस्य सः।
प्रत्युत्पन्नमतिः – प्रत्युत्पन्ना मतिः यस्यः सः।
जम्बुककृतोत्साहात् – जम्बुकेन कृतः उत्साहः – जम्बुककृतोत्साहः तस्मात्।
पुत्रद्वयोपेता – पुत्रद्वयेन उपेता।
भयाकुलचितः – भयेन आकुलं चित्तम् यस्य सः।
व्याघ्रमारी – व्याघ्र मारयति इति।
गृहीतकरजीवितः – गृहीतं करे जीवितुं येन सः।
भयङ्कराः – भयं करोति या इति।

ग्रन्थ-परिचय – शुकसप्ततिः के लेखक और काल के विषय मे यद्यपि भ्रान्ति बनी हुई है, तथापि इसका काल 1000 ई. से 1400 ई. के मध्य माना जाता है। हेमचंद्र ने (1088 – 1172) में शुकसप्ततिः का उल्लेख किया है। चौदहवीं शताब्दी में इसका फारसी भाषा में ‘तूतिनामह’ नाम से अनुवाद हुआ था।

शुकसप्ततिः का ढाँचा अत्यन्त सरल और मनोरजंक है। हरिदत्त नामक सेठ का मदनविनोद नामक एक पुत्र था। वह विषयासक्त और कुमार्गगामी था। सेठ को दुखी देखकर उसके मित्र त्रिविक्रम नामक ब्राह्मण ने अपने घर से नीतिनिपुण शुक और सारिका लेकर उसके घर जाकर कहा-इस सपत्नीक शुक का तुम पुत्र की भाँति पालन करो। इसका संरक्षण करने से तुम्हारा दुख दूर होगा। हरदित्त ने मदनविनोद को वह तोता दे दिया। तोते की कहानियों में नदनविनोद का हृदय परिवर्तन कर दिया और वह अपने व्यवसाय में लग गया। व्यापार प्रसंग में जब वह देशान्तर गया तब शुक अपनी मनोरंजक कहानियों से उसकी पत्नी का तब तक विनोद करता रहा, जब तक उसका पति वापस नहीं आ गया। संक्षेप में शुकसप्ततिः अत्यधिक मनोरंजक कथाओं का संग्रह है।

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हन् (मारना) धातोः रूपम्
लट्लकारः

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा 1

JAC Class 10th Sanskrit बुद्धिर्बलवती सदा Important Questions and Answers

शब्दार्थ चयनम् –

अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित पदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थ चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म।
(अ) ग्रामः
(ब) न्यवसत्
(स) सिंहः
(द) पुत्रः
उत्तर :
(ब) न्यवसत्

प्रश्न 2.
मार्गे गहनकानने सा एकं व्यानं ददर्श –
(अ) लोमशिका
(ब) गजः
(स) मण्डूकः
(द) शार्दूलम्
उत्तर :
(द) शार्दूलम्

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प्रश्न 3.
व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्ट: –
(अ) ददर्श
(ब) धाष्र्यात्
(स) पलायित:
(द) भुज्यताम्।
उत्तर :
(स) पलायित:

प्रश्न 4.
गच्छ, गच्छ जम्बुक ! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम् –
(अ) शृगाल!
(ब) गजः
(स) लोमशिका
(द) मण्डूक
उत्तर :
(अ) शृगाल!

प्रश्न 5.
त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि?
(अ) परम्
(ब) भयाक्रान्तोऽसि
(स) तदग्रतः
(द) आवेदितम्
उत्तर :
(ब) भयाक्रान्तोऽसि

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प्रश्न 6.
यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात्।
(अ) चपेटया
(ब) यत्रास्ते
(स) परित्यज्य
(द) कौतुकम्
उत्तर :
(स) परित्यज्य

प्रश्न 7.
स व्याघ्रः तथाकृत्वा काननं ययौ।
(अ) वनम
(ब) निजगले
(स) बद्ध्वा
(द) कृत्वा
उत्तर :
(अ) वनम

प्रश्न 8.
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा –
(अ) बुद्धिमती
(ब) जम्बुककृतोत्साहात्
(स) व्याघ्रात्
(द) पूर्वे
उत्तर :
(द) पूर्वे

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प्रश्न 9.
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः –
(अ) त्वया
(ब) अकस्मात्
(स) गलबद्धः
(द) अपि
उत्तर :
(ब) अकस्मात्

प्रश्न 10.
बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा –
(अ) सदैव
(ब) उच्यते
(स) पुनरपि
(घ) बुद्धि
उत्तर :
(अ) सदैव

II. संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि –

एकपदेन उत्तरत –
(एक शब्द में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 1.
गहनकानने सा किं ददर्श? (सघन वन में उसने क्या देखा ?)
उत्तरम् :
व्याघ्रम् (बाघ)।

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प्रश्न 2.
भामिनी व्याघ्रस्य भयात् कया मुक्ता ?
(रूपवती स्त्री बाघ के भय से किससे मुक्त हुई ?)
उत्तरम् :
निजबुद्ध्या (अपनी बुद्धि से)।

प्रश्न 3.
‘बद्धा’ इत्यस्य पदस्य विलोमार्थकं पदं लिखत।
(‘बद्धा’ इस शब्द का विलोम शब्द लिखिए-)
उत्तरम् :
विमुक्ता (खुला या बन्धन रहित)।

प्रश्न 4.
गृहीतकरजीवितः बुद्धिमत्याः अग्रतः कः नष्टः?
(जान हथेली पर लेकर बुद्धिमती के आगे से कौन भाग गया?)
उत्तरम् :
व्याघ्रः (बाघ)।

प्रश्न 5.
‘तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः’ इति केन उक्तम्?
(तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः’ यह किसने कहा?)
उत्तरम् :
शृगालेन (सियार ने)।

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प्रश्न 6.
‘गृहीतकरजीवित:’ अस्य पदस्य विशेष्यः कः ?
(‘गृहीतकरजीवितः’ यहाँ विशेष्य क्या है ?)
उत्तरम् :
व्याघ्रः।

प्रश्न 7.
बुद्धिमती शृगालेन सहितं दूरात् कमायान्तम् अपश्यत्?
(बुद्धिमती ने सियार सहित दूर से किसको आते हुए देखा?)
उत्तरम् :
व्याघ्रम् (बाघ को)।

प्रश्न 8.
‘वध्यताम्’ अस्य पदस्य विलोमार्थकं पदं लिखत।
(‘वध्यताम्’ इस शब्द का विलोम अर्थ वाला शब्द लिखिए।)
उत्तरम् :
मुच्यताम् (खोलो, मुक्त करो)।

प्रश्न 9.
‘दत्तं मां व्याघ्रत्रयम्’ अत्र ‘मां’ सर्वनामपदं केन प्रयुक्तम् ?
(‘दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयम्’ यहाँ ‘मां’ सर्वनाम पद का प्रयोग किसके लिये किया गया है ?)
उत्तरम् :
बुद्धिमत्यै (बुद्धिमती के लिए)।

प्रश्न 10.
राजसिंहः कुत्र वसति स्म ?
(राजसिंह कहाँ रहता था ?)
उत्तरम् :
देउलाख्ये ग्रामे (देउल नाम के गाँव में।)

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प्रश्न 11.
बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता कुत्र चलिता?
(बुद्धिमती दोनों पुत्रों को लेकर कहाँ चल पड़ी?)
उत्तरम् :
पितुर्गृहम् (पिता के घर)।

प्रश्न 12.
व्याघ्रः जम्बुकं कुत्र गन्तुं निर्दिष्टवान् ?
(बाघ ने गीदड़ को कहाँ जाने का निर्देश दिया ?)
उत्तरम् :
गूढप्रदेशम् (गुप्त स्थान पर)।

प्रश्न 13.
सा बुद्धिमती व्याघ्रण का मता ?
(उस बुद्धिमती को बाघ ने क्या माना ?)
उत्तरम् :
व्याघ्रमारी (बाघ मारने वाली)।

प्रश्न 14.
सर्वेषु कार्येषु का बलवती ?
(सभी कामों में क्या बलवती है ?)
उत्तरम् :
बुद्धिः (बुद्धि)।

प्रश्न 15.
व्याघ्रः जम्बुकं कुत्र अबध्नात् ?
(बाघ ने गीदड़ को कहाँ बाँधा?)
उत्तरम् :
निजगले (अपने गले में)।

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पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए) –

प्रश्न 16.
भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः किम् आह ?
(भय से व्याकुल बाघ को देखकर धूर्त सियार ने क्या कहा ?)
उत्तरम् :
सः व्याघ्रम् अवदत् – ‘भवान् कुतः भयात् पलायित:?’
(वह बाघ से बोला – ‘आप कहाँ से डर से भागे हुए हो ?’)

प्रश्न 17.
व्याघ्रः प्रत्यक्षं किम् अपश्यत् ?
(बाघ ने प्रत्यक्ष क्या देखा ?)
उत्तरम् :
व्याघ्रः बुद्धिमतीम् आत्मपुत्रौ एकैकशः व्याघ्रम् अत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्तीम् अपश्यत्।
(बाघ ने बुद्धिमती को अपने पुत्रों को एक-एक बाघ खाने के लिए कलह करते हुए थप्पड़ से प्रहार करती हुई को देखा।).

प्रश्न 18.
बुद्धिमती कीदृशी आसीत् ?
(बुद्धिमती कैसी थी ?)
उत्तरम् :
बुद्धिमती प्रत्युत्पन्नमतिः आसीत्।
(बुद्धिमती प्रत्युत्पन्नमति अर्थात् तुरंत उत्तरम् देने वाली थी।)

प्रश्न 19.
भामिनी निजबुध्या कस्मात् विमुक्ता ?
(रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि से किससे मुक्त हो गई ?)
उत्तरम् :
भामिनी निजबुद्ध्या व्याघ्रस्य भयात् विमुक्ता।
(रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि से बाघ के डर से मुक्त हो गई।)

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प्रश्न 20.
व्याघ्रण किं महत्कौतुकम् आवेदितम् ?
(बाघ ने क्या आश्चर्य की बात निवेदन की ?)
उत्तरम् :
यद् असौ मानुषाद् अपि बिभेति।
(कि यह मानव से भी डरता है।)

प्रश्न 21.
व्याघ्रः किं कृत्वा काननं ययौ ?
(बाघ क्या करके जंगल को गया ?)
उत्तरम् :
शृगालं निजगले बद्ध्वा व्याघ्रः काननं ययौ।
(सियार को अपने गले में बाँधकर बाघ वन में गया।)

III. अन्वय-लेखनम् –

अधोलिखितश्लोकस्यान्वयमाश्रित्य रिक्तस्थानानि मञ्जूषातः समुचितपदानि चित्वा पूरयत।
(नीचे लिखे श्लोक के अन्वय के आधार पर रिक्तस्थानों की पूर्ति मंजूषा से उचित पद चुनकर कीजिए।)
(क) निजबुद्ध्या ……………………………… भयात्।
मञ्जूषा – महतो, भयाद्, बुद्धिमान्, निजबुद्ध्या। सा भामिनी
(i) ………… व्याघ्रस्य (ii) ………… विमुक्ता अन्योऽपि (iii) ………… लोके (iv) ……….. भयात् मुच्यते।।1।।
उत्तरम् :
(i) निजबुद्ध्या (ii) भयाद् (iii) बुद्धिमान् (iv) महतो।

(ख) रे रे धर्त ! ……………………….. वदाधुना।
मञ्जूषा – एकम्, त्वया, यासि, त्रयम्। रे रे धूर्त !

पुरा (i) ………… मह्यं व्याघ्र (ii) ………… दत्तम् (परञ्च) अद्य (iii) ………… आनीय कथं (iv) …………, अधुना वद।
उत्तरम् :
(i) त्वया (ii) त्रयम् (iii) एकम् (iv) यासि।

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(ग) इत्युक्त्वा ……………………………. गलबद्धशृगालकः।

मञ्जूषा – शृगालकः, तूर्णं, सर्वकार्येषु, भयङ्करा।।

इति उक्त्वा (i) ………… व्याघ्रमारी (ii) ………… धाविता। गलबद्ध: (iii) ………… व्याघ्रः अपि सहसा नष्टः। हे तन्वि ! सर्वदा (iv) ………… बुद्धिर्बलवती।
उत्तरम् :
(i) भयङ्करा (ii) तूर्णं (iii) शृगालकः (iv) सर्वकार्येषु।

IV. प्रश्ननिर्माणम् –

अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

  1. देउलाख्ये ग्राम राजसिंहः वसति स्म। (देउल नाम के गाँव में राजसिंह रहता था।)
  2. मार्गे गहन कानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श। (मार्ग में सघन वन में उसने एक बाघ को देखा।)
  3. ‘व्याघ्रमारी काचिदियमिति’ मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः। (‘यह कोई बाघमारनी है’ ऐसा मानकर बाघ भयभीत हुआ और भाग गया।)
  4. सा व्याघ्रस्य भयात् निजबुद्ध्या विमुक्ता। (वह बाघ के भय से अपनी बुद्धि से मुक्त हुई 1)
  5. बुद्धिमान् लोके निजबुद्ध्या महतो भयात् मुच्यते। (बुद्धिमान् व्यक्ति लोक में अपनी बुद्धि द्वारा महान् भय से भी मुक्त होता है।)
  6. भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा शृगालः हसन्नाह। (भयभीत बाघ को देखकर गीदड़ ने हँसते हुए कहा।)
  7. जम्बुक: गूढप्रदेशं गच्छेत्। (गीदड़ को कहीं गुप्त स्थान पर जाना चाहिए।)
  8. स व्याघ्रः शृगालं निजगले बद्ध्वा काननं ययौ। (वह बाघ गीदड़ को अपने गले से बाँधकर वन में चला गया।)
  9. व्याघ्रमारी शृगालेन सहितमायान्तं व्याघ्रमपश्यत्। (बाघमारी ने गीदड़ सहित बाघ को आते हुए देखा।)
  10. शृगालेन पुरा त्रयः व्याघ्राः आनीय दत्ताः। (गीदड़ ने पहले तीन बाघ लाकर दिए।)

उत्तराणि :

  1. कस्मिन् ग्रामे राजसिंहः वसति स्म ?
  2. मार्गे गहनकानने सा कं ददर्श?
  3. किं मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः ?
  4. सा कस्य भयात् निजबुद्धया विमुक्ता ?
  5. बुद्धिमान् लोके कया महतो भयात् मुच्यते ?
  6. कीदृशं व्याघ्रं दृष्ट्वा शृगालः हसन्नाह ?
  7. जम्बुकः कुत्र गच्छेत् ?
  8. स व्याघ्रः शृगालं कुत्र बद्ध्वा काननं ययौ ?
  9. व्याघ्रमारी केन सहितमायान्तं व्याघ्रमपश्यत् ?
  10. शृगालेन पुरा कति व्याघ्राः आनीय दत्ताः ?

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V. भावार्थ-लेखनम् –

अधोलिखितानां भावार्थ संस्कृतभाषया लिखत-
(निम्नलिखित का भावार्थ संस्कृत में लिखिए-)
(i) निजबुद्धया विमुक्तो सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी।
बुद्धिमान् लोके मुच्यते महतो भयात् ॥

भावार्थ – सा भामिनी निजबुद्धया व्याघ्रस्य भयाद् विमुक्ता अन्योऽपि प्रज्ञावान् जनः अस्मिन् लोके स्वस्य प्रज्ञया महतः भयात् अपि मुक्तिं लभते।।

(ii) रे रे धर्त त्वया दत्तं महयं व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्यायैकमानीय कथं यासिः वदाधुना॥

भावार्थ – त्वरितमतिः असौ शृगालं सङ्केत्य भयं प्रदर्शयन्ती अब्रवीत्- ओ: वञ्चक! पूर्वे त्वं मे त्रीन् मृगान्तकान् आनीय प्रदत्तवान्। कथय विश्वासं प्रदाय अद्य त्वं मे एकमेव प्रदाय कथं गच्छसि।

(iii) इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्ट: गलबद्धशृगालकः॥

भावार्थ – एवं कथयित्वा सा भयोत्पादिका मृगान्तक हन्त्री द्रुतगत्या अधावत्। मृगान्तकोऽपि अकस्मारेव गले जम्बुकं बद्ध्वा पलायते। अनेन प्रकारेण सा मतिमती मृगान्तकस्य भयात् पुनः उन्मुक्ता अजायत्।

(iv) बद्धिर्बलवती तन्वि ! सर्वकार्येष सर्वदा।

भावार्थ – हे प्रिये, तन्वङ्गि ! सदैव अस्मिन् संसारे सर्वाषु क्रियासु बुद्धिः प्रज्ञा वा एव शक्तिशालिनी सामर्थ्यवती .. वा भवति।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

VI. पाठ-सार लेखनम् –

प्रश्न: ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ इति पाठस्य सारांश: हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
देउल नाम का एक गाँव था। उस गाँव में एक राजसिंह नाम का राजपूत रहता था। एक दिन एक महत्वपूर्ण काम से उसकी पत्नी बुद्धिमती नाम की दो पुत्रों के साथ अपने मायके गई थी। रास्ते में गहन जंगल में उसने एक बाघ को देखा। बाघ को आता देखकर उसने तीव्रता के साथ पुत्रों को थप्पड़ मार कर कहा-क्या तुम एक-एक बाघ खाने के लिये विवाद कर रहे हो। यह तो एक ही है, इसे बाँट कर खा लो। बाद में जब दूसरा कोई आयेगा तब खा लेना।

यह सुनकर उसने सोचा कि यह तो बाघ मारने वाली है। ऐसा मानकर बाघ भयभीत हुआ वहाँ से भाग गया।

भयभीत बाघ को देखकर कोई वंचक गीदड़ उसका उपहास करते हुये बोला-“श्रीमान् किसके डर से भाग रहे हो?” बाघ ने कहा – जाओ, जाओ गीदड़ आप भी कहीं गुप्त स्थान पर जाओ। क्योंकि बाघमारी जो शास्त्रों में सुनी जाती है, यह मुझे मारने वाली थी, परन्तु मैं तो जान बचाकर भाग आया हूँ। गीदड़ बोला – बाघ तुमने बड़ी आश्चर्य की बात कही कि मनुष्य से भी डर कर भागते हो। बाघ ने कहा- मैंने साक्षात् देखा है कि वह झगड़ते हुए अपने पुत्रों को मारती हुई मुझे खाने के लिए कह रही थी। गीदड़ बोला – स्वामी! तुम वहाँ पहुँच जाते हो, यदि पास में उसे देखते हो तो उसे मारना। बाघ ने कहा – यदि तुम मुझे अकेले छोड़ गये तो शर्त बेशर्त हो जायेगी।

इस प्रकार बाघ को समझाकर गीदड़ पुनः वहाँ आया, जहाँ बुद्धिमती थी। गीदड़ के साथ पुनः आते हुये बाघ को देखकर बुद्धिमती ने सोचा-“गीदड़ द्वारा प्रोत्साहित किए गये इस बाघ से अब कैसे मुक्त होऊँ?” परन्तु उस त्वरित बुद्धि ने गीदड़ रा करके भयभीत करते हुये कहा – “अरे मूर्ख, पहले तुमने मुझे तीन बाघ लाकर दिये थे। विश्वास दिलाकर आज एक ही कैसे लाये हो, बोलो।” ऐसा कहकर वह बाघमारी बाघ के भय से मुक्त हुई शीघ्र ही तेज गति दौड़ गई। बाघ तुरन्त गले में गीदड़ को लटकाये हुये भाग गया। इस प्रकार वह बुद्धिमती बाघ के भय से पुनः मुक्त हो गई।

बुद्धिर्बलवती सदा Summary and Translation in Hindi

बुद्धिर्बलवती सदा (बुद्धि सदा बलशालिनी है)

पाठ-परिचय – संस्कृत में कथा साहित्य की समृद्धशाली परम्परा रही है। इसी परम्परा में ‘शुकसप्तति’ भी एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें एक तोते द्वारा अकेली औरत के मनोरञ्जनार्थ कही गई रोचक एवं शिक्षाप्रद कथाएँ संग्रहीत हैं, जो कालान्तर में हिन्दी भाषा में ‘किस्सा तोता-मैना’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। प्रस्तुत कथा ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ इसी कथा-ग्रन्थ से संकलित है। इस कथा में अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ वन-मार्ग से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक स्त्री के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है। वह अपने बुद्धिकौशल से काल के समान सामने आए हुए शेर को भी भयभीत कर भगा देती है। इसी प्रकार इस कथा-ग्रन्थ में नीति-निपुण शुक-सारिका की कहानियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सवृत्ति का विकास कराने का प्रयत्न किया गया है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

मूलपाठः,शब्दार्थाः,सप्रसंगःहिन्दी-अनुवादः

1 अस्ति देउलाख्यो ग्रामः। तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बद्धिमती पत्रद्वयोपेता पितर्गहं प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श। र धाष्ात् पुत्रौ चपेटया प्रहत्य जगाद- “कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।”
इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः।
निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी।
अन्योऽपि बुद्धिमाँल्लोके मुच्यते महतो भयात्।।
भयाकुलं व्याघ्नं दृष्ट्वा कश्चित् धूर्तः शृगालः हसन्नाह-“भवान् कुतः भयात् पलायित:?”

शब्दार्थाः – देउलाख्यः = देउल इत्यभिधः, देउल इति नाम (देउल नाम का), ग्रामः अस्ति = ग्रामः विद्यते (गाँव है), तत्र = तस्मिन् ग्रामे (उस गाँव में), राजसिंहः नाम = राजसिंह इत्यभिधः (राजसिंह नाम का), राजपुत्रः = राजकुमारः (राजकुमार), वसति स्म = न्यवसत् (निवास करता था), एकदा = एकस्मिन् दिवसे (एक दिन), केनापि = केनचिद् (किसी), आवश्यककार्येण = अपरिहार्येण कार्येण (आवश्यक काम से), तस्य = अमुष्य (उसकी), भार्या = जाया, पत्नी, परिणीता (पत्नी), बुद्धिमती = प्रज्ञा, धीः, मेधायुता (बुद्धिमती), पुत्रद्वयोपेता = द्वाभ्याम् आत्मजाभ्याम् सहिता (दो पुत्रों सहित), पितुर्ग्रहं प्रति = पितृगृहं प्रति (पिता के घर को या पीहर की ओर), चलिता = गता, प्रस्थिता (चल पड़ी), मार्गे = पथे (राह में), गहनकानने = सघनवने (सघन जंगल में), सा = असौ (उसने), एकं व्याघ्रम् = एकं शार्दूलम् (एक बाघ को), ददर्श = अपश्यत्, एक्षत (देखा), सा = असौ (उसने), व्याघ्रमागच्छन्तम् = शार्दूलमायान्तम् (बाघ को आते हुए को), दृष्ट्वा = अवलोक्य (देखकर), धाष्ात् = धृष्टभावात्, धृष्टतापूर्वकम् (ढीठतापूर्वक), पुत्रौ = आत्मजौ (दोनों बेटों को), चपेटया = हस्ताघातेन, करप्रहारेण (थप्पड़ से), प्रहृत्य = प्रहारं कृत्वा, चपेटिकां दत्त्वा (प्रहार कर, मारकर), जगाद = उक्तवती (कहा), कथम् = कस्मात् (किसलिए), एकैकशः = एकम् एकम् (एक-एक), व्याघ्रभक्षणाय = शार्दूलं खादितुम् (बाघ को खाने के लिए), कलहं कुरुथः = विवादं कुर्वथे (लड़ाई करते हो), अयमेकः = एष एक एव (यह तो एक ही है), तावत् = तर्हि (तो), विभज्य = विभक्तं कृत्वा (बाँटकर के), भुज्यताम् = खाद्यताम् (खाना चाहिए, खाओ), पश्चाद् = तदनन्तरम् (इसके बाद), अन्यो द्वितीयः = भिन्नः, अपरः, द्वितीयः (और दूसरा), कश्चित् लक्ष्यते = कोऽपि दृश्यते (कोई दिखाई पड़ता है), इति श्रुत्वा = एवं निशम्य, एवम् आकर्ण्य (इस प्रकार सुनकर), व्याघ्रमारी = व्याघ्र मारयति (हन्ति), इति, शार्दूल-हन्त्री (बाघ को मारने वाली है), इति मत्वा = इति निश्चित्य, इति मनसि कृत्वा (ऐसा मानकर), व्याघ्रः = शार्दूलः (बाघ), भयाकुलचित्तः = भयभीतः, भयात् व्याकुलचित्तः (भय से व्याकुल चित्त हुआ), नष्टः = पलायितः (भाग गया)।

निजबुद्ध्या …………………………………………. महतो भयात्।।

अन्वयः – सा भामिनी निजबुद्ध्या व्याघ्रस्य भयाद् विमुक्ता अन्योऽपि बुद्धिमान् लोके महतो भयात् मुच्यते।

शब्दार्थाः – निजबुद्ध्या = आत्मनः प्रज्ञया, स्वमेधया (अपनी बुद्धि से), विमुक्ता = मुक्तिम् अलभत् (मुक्त हो गई, हुई), सा = असौ (वह), भयात् = त्रासात् (डर से), व्याघ्रस्य = शार्दूलस्य (बाघ की), भामिनी = रूपवती नारी (रूपवती स्त्री), अन्योऽपि = अपरः अपि (दूसरा भी), बुद्धिमान् = मतिमान् (बुद्धिमान् व्यक्ति), लोके = संसारे (संसार में), मुच्यते = त्यज्यते (त्याग दिया जाता है), महतः = अत्यधिकात् (अत्यधिक), भयात् = त्रासात् (डर से), भयाकुलम् = भयात्, त्रासात् व्याकुलम् (भय से आकुल), व्यानं = शार्दूलम् (बाघ को), दृष्ट्वा = अवलोक्य (देखकर), धूर्तः शृगालः = चतुरः जम्बुकः (चतुर सियार), हसन्नाह = हसन्नवदत् (हँसते हुए बोला), भवान् = त्वम् (आप), भयात् = त्रासात् (डर से), कुतः = कस्मात्, कुत्र (कहाँ), पलायितः = गतः, गतवान्, अगच्छत् (भाग गए)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश शेमुषी पाठ्यपुस्तक के ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ शुकसप्तति कथा ग्रन्थ से संकलित है। गद्यांश में लेखक नायिका बुद्धिमती के परिचय के साथ उसके चातुर्य और साहस का वर्णन करता है। वह कहता है कि अपनी बुद्धि से मनुष्य भय से मुक्त हो जाता है। अतः मनुष्य को बुद्धिमान् और साहसी होना चाहिये।

हिन्दी-अनुवादः – देउल नाम का (एक) गाँव है। उस गाँव में राजसिंह नाम का राजपूत (राजकुमार) निवास करता था। एक दिन किसी आवश्यक कार्य से उसकी बुद्धिमती पत्नी दो पुत्रों सहित पीहर की ओर चल पड़ी। राह में सघन वन में उसने एक बाघ को देखा। उसने आते हुए बाघ को देखकर ढीठता के साथ दोनों पुत्रों को थप्पड़ मारकर कहा “किसलिए एक-एक बाघ खाने के लिए विवाद करते हो (लड़ाई करते हो)। यह तो एक ही है, तो बाँटकर खा लो, इसके बाद कोई और दिखाई पड़े।” इस प्रकार सुनकर ‘बांघ मारने वाली है’ ऐसा मानकर भय से व्याकुल-चित्त हुआ भाग गया। वह रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि (बल) से सिंह के भय से मुक्त हो गई। दूसरे बुद्धिमान भी इस लोक में महान् डरों से मुक्त कर दिये जाते हैं।।

बाघ को भय से व्याकुल देखकर किसी चतुर (चालाक) गीदड़ ने हँसते हुए कहा- “आप भय से कहाँ भाग चले?”

2 व्याघ्रः – गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम्। यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्र श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तदग्रतः।
शृगालः – व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि?
व्याघ्रः – प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा।
जम्बुकः – स्वामिन्! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र! तव पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः इति।
व्याघ्रः – शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात्।

शब्दार्थाः – गच्छ, गच्छ = याहि, याहि (जाओ-जाओ, जा-जा), जम्बुक! = शृगाल! (गीदड़!), त्वमपि = त्वम् अपि (तू भी), किञ्चिद् = किंचित् (किसी), गूढप्रदेशम् = गुप्तप्रदेशम्/स्थानम् (गोपनीय स्थान पर), यतो व्याघ्रमारीति = यतः शार्दूलहन्त्री (क्योंकि बाघमारी), या शास्त्रे श्रूयते = या पुरातन साहित्ये निगमेषु आकर्ण्यते (जो शास्त्रों में सुनी जाती है), तयाहं = अमुयाहं (उसके द्वारा मैं), हन्तुमारब्धः = हननाय तत्परा, उद्यतः (मारने वाली थी), परम् = परञ्च (लेकिन), गृहीतकरजीवितः = हस्ते प्राणान् नीत्वा (जान हथेली पर लेकर), तदग्रतः = तस्याः सम्मुखात् (उसके आगे से), शीघ्रं = क्षिप्रम्, त्वरितम् (जल्दी, शीघ्र ही), नष्टः = पलायितः (भाग गया), व्याघ्र ! = रे शार्दूल ! (अरे बाघ), त्वया महत्कौतुकम् = भवता अत्यधिकमाश्चर्यकरम् (बड़े आश्चर्य की बात), आवेदितम् = विज्ञापितम् (बताई), यन्मानुषादपि = यत् मानवात् अपि (कि मनुष्य से भी), बिभेषि = भयाक्रान्तोऽसि (डरते हो), प्रत्यक्षमेव = साक्षातमेव, समक्षमेव (प्रत्यक्ष ही/सामने ही), मया सात्मपुत्रावेकैकशः = अहम् ताम् स्वात्मजौ एकैकं कृत्वा (मैंने वह अपने दो बेटों को एक-एक), मामत्तु = मां खादितुम्/भक्षयितुम् (मुझे खाने के लिए), कलहायमानौ = कलहं कुर्वन्तौ (लड़ते हुओं को, झगड़ते हुओं को), चपेटया = कराघातेन (थप्पड़ से), प्रहरन्ती = प्रहारं कुर्वन्तीम् (प्रहार करती हुई को, मारती हुई को), दृष्टा = अपश्यम् (देखा है), स्वामिन् ! = प्रभो ! (मालिक !), यत्रास्ते = यस्मिन् स्थाने स्थिता (जहाँ बैठी है), सा धूर्ता = असौ वञ्चिका, प्रवीणा (वह चालाक), तत्र = तस्मिन् स्थाने (उस स्थान पर), गम्यताम् = गच्छेव (जाना चाहिए), व्याघ्र ! = शार्दूल ! (बाघ!), तव = ते (तुम्हारे), पुनः तत्र गतस्य = भूयः तस्मिन् स्थाने प्राप्तस्य (फिर वहाँ पहुँचे हुए के), सम्मुखमपीक्षते यदि = समक्षमपि पश्यति चेत् (यदि सामने भी देखती है), तर्हि = तदा (तो), त्वया अहम् = भवता अहम् (आप/तुम मुझे) हन्तव्यः इति, हननीयः इति (मार देना), शृगाल! = रे जम्बुक ! (अरे गीदड़!), यदि त्वम् = त्वम् चेत् (तुम यदि), मां मुक्त्वा = मा परित्यज्य (मुझे छोड़कर), यासि = गच्छसि (जाते हो), तदा = तस्मिन् काले (तव), वेलाप्यवेला = समयोऽप्यसमयः (शर्त भी बेशर्त), स्यात् = भवेत् (हो जानी चाहिए, हो जाएगी)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी शेमुषी पाठ्यपुस्तक के ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ शुकसप्तति कथा ग्रन्थ से संकलित है। इस गद्यांश में लेखक बाघ और जम्बुक के संवाद से डरे हुए बाघ की स्थिति का वर्णन करता है। इस सम्वाद से ज्ञात होता है कि बाघ शक्तिशाली होते हुये भी भयभीत हुआ भागता है।

हिन्दी-अनुवादः – बाघ – जा, जा गीदड़ ! तू भी किसी गुप्त स्थान पर जा। क्योंकि ‘बाघमारी’ जो शास्त्रों में बताई गई है वह मुझे मारने ही वाली थी लेकिन जान हथेली पर लेकर (जान बचाकर) शीघ्र ही उसके आगे से भाग आया।

गीदड़ – अरे बाघ ! तुमने बड़े आश्चर्य की बात बताई कि मनुष्य से भी डरते हो।
बाघ – सामने ही मैंने उसे अपने दो बेटों को ‘मुझे एक-एक खाने के लिए झगड़ते हुओं को थप्पड़ मारते हुए देखा है।’
गीदड़ – मालिक! वह चालाक जहाँ बैठी है उस स्थान पर (हमें) जाना चाहिए। हे बाघ ! फिर तुम्हारे वहाँ गए हुए के सामने भी यदि वह देखती हो, तो आप मुझे मार देना।
बाघ – अरे गीदड़ ! यदि तू मुझे छोड़कर चला जाता है तो शर्त भी बेशर्त हो जाएगी।

3 जम्बुकः – यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। स व्याघ्रः तथाकृत्वा काननं ययौ। शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती – जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम्? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गल्या तर्जयन्त्युवाच –
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा। विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना।।
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा। व्याघ्रोऽपि सहसा नष्ट: गलबद्धशृगालकः।।
एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत्। अत एव उच्यते
बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा।।

शब्दार्थाः – यदि एवं तर्हि = इत्थम् चेत् तदा (यदि ऐसा है तो), माम् निजगले = मां (व्याघ्र) आत्मनः कण्ठे, ग्रीवायाम् (मुझे अपनी गर्दन में), बद्ध्वा = संलग्नं कृत्वा (बाँधकर), सत्वरम् = शीघ्रम् (जल्दी), चल = पलायनं कुरु, प्रस्थानं कुरु (भाग चल), स व्याघ्रः = असौ शार्दूल: (वह बाघ), तथाकृत्वा = तत्प्रकारकं कृत्वा विधाय (उसी प्रकार करके), काननम् = वनम् (वन को), ययौ = जगाम (गया), शृगालेन सहितम् = सजम्बुकम् (गीदड़ सहित को), पुनरायान्तम् = भूयः आगच्छन्तम् (फिर आते हुए), व्याघ्रम् = शार्दूलम् (बाघ को), दूरात् दृष्ट्वा = दूरादवलोक्य (दूर से देखकर), बुद्धिमती = मतिमती (बुद्धिमती), चिन्तितवती = अचिन्तयत् (सोचा, सोचने लगी), जम्बुककृतोत्साहात् = शृगालेन विहितेन उत्साहात् (गीदड़ द्वारा किए गए उत्साह वाले), व्याघ्रात् = शार्दूलात् (बाघ से), कथम् = केन प्रकारेण (कैसे), मुच्यताम् = मुक्तो भवेत् (मुक्त हुआ जाए, छुटकारा पाया जाए), परम् = परञ्च (लेकिन), प्रत्युत्पन्नमतिः = त्वरितबुद्धिः (तत्काल उत्तर देने वाली), सा = असौ (वह), जम्बुकम् = शृगालम् (गीदड़ को), आक्षिपन्ती = आक्षेप कुर्वन्ती (आक्षेप करती हुई, झिड़कती हुई, भर्त्सना करती हुई), अगुल्या = तर्जन्या (तर्जनी अंगुली से), तर्जयन्ति = तर्जनं कुर्वन्ती, प्रताडयन्ती (धमकाती, डाँटती हुई), उवाच = अवदत् (बोली)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

अन्वयः – रे रे धूर्त! पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम् (परञ्च) विश्वास्य अद्य एकम् आनीय कथं यासि, अधुना वद। इति उक्त्वा भयङ्करा व्याघ्रमारी तूर्णं धाविता। गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः अपि सहसा नष्टः। हे तन्वि ! सर्वदा सर्वकार्येषु बुद्धिर्बलवती।

शब्दार्थाः – रे रे धूर्त ! = रे रे वञ्चक ! (अरे धूर्त !), पुरा = पूर्वे (पहले), त्वया = भवता (तुमने), मह्यं = मे (मेरे लिए), व्याघ्रत्रयं = त्रयः व्याघ्राः (तीन बाघ), दत्तम् = प्रदानं कृतम्, समर्पिता: (दिये थे), विश्वास्य = समाश्वास्य (आश्वासन देकर, वायदा करके) (अपि = भी), अद्य एकम् आनीय कथं यासि = अधुना/इदानीम् एकमेव उपाहृत्य कस्मात् गच्छसि (आज एक ही लाकर क्यों जाते हो), अधुना = इदानीम् (अब), वद = कथय (बोलो), इति उक्त्वा = एवं उदित्वा (ऐसा कहकर), भयङ्करा = भयोत्पादका भीषणा (भयानक), व्याघ्रमारी = शार्दूलहन्त्री (बाघमारी), तूर्णम् = शीघ्रम् (जल्दी, शीघ्र), धाविता = धावितवती, अधावत् (दौड़ गई), गलबद्धः = कण्ठे संलग्न: (गले में बँधा हुआ), शृगालः = जम्बुकः (गीदड़), (यस्य सः = जिसके वह), व्याघ्रः अपि = शार्दूलोऽपि (बाघ भी), सहसा = अकस्मात् (अचानक), नष्टः = पलायितः (भाग गया), एवं प्रकोरण = इत्थम् (इस प्रकार से), बुद्धिमती = मतिमती (बुद्धिमती), व्याघ्रजाद् भयात् = शार्दूलोद्भवात् त्रासात्, भयात् (बाघ से उत्पन्न भय से), पुनरपि = भूयोऽपि (फिर से), मुक्ताऽभवत् = निर्बन्धोऽजायत् (मुक्त हो गई), अत एव उच्यते = अतः कथ्यते (इसलिए कहा जाता है), तन्वि = हे तन्वंगि ! (हे पतली कमर वाली मैना), सर्वकार्येषु = सर्वेषु कर्तव्येषु (सभी कामों में), सर्वदा = सदैव (हमेशा), बुद्धिर्बलवती = मतिरेव शक्तिशालिनी भवति (बुद्धि ही बलवती होती है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी शेमुषी पाठ्यपुस्तक के ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ शुकसप्तति कथा ग्रन्थ से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखक बुद्धिमती की बुद्धि-चतुरता, साहस और त्वरित बुद्धि का वर्णन करता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

हिन्दी-अनुवादः – गीदड़ – यदि ऐसा है तो मुझे अपनी गर्दन (गले) में बाँधकर जल्दी भाग चलो। वह बाघ उसी प्रकार करके वन को चला गया। गीदड़ सहित फिर आते हुए बाघ को दूर से देखकर बुद्धिमती सोचने लगी- “गीदड़ द्वारा उत्साहित किए गए बाघ से कैसे बचा जाए?” परन्तु प्रत्युत्पन्नमति (व्याघ्रमारी) गीदड़ को झिड़कती हुई (भर्त्सना करती हुई) अँगुली से डाँटती (धमकाती) हुई बोली अरे अरे वञ्चक ! (छलिया) पहले तुमने मेरे लिए तीन बाघ (लाकर) दिए थे (परन्तु) विश्वास देकर आज एक ही लाकर क्यों जा रहे हो, अब बोलो ? ऐसा कहकर वह भयङ्कर व्याघ्रमारी दौड़ी। गले में जिसके गीदड़ बँधा हुआ है ऐसा वह बाघ भी अचानक (वहाँ से) भाग गया।
इस प्रकार बुद्धिमती बाघ के भय से फिर भी मुक्त हो गई (बच गई।) इसलिए कहा जाता है –
हे पतली कमर वाली (हे मैना!) सभी कार्यों में हमेशा बुद्धि ही बल से अधिक बलवान होती है।

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