Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् Questions and Answers, Notes Pdf.
JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्
प्रत्ययस्य परिभाषा – धातोः प्रातिपादिकस्य वा पश्चात् यस्य प्रयोगः क्रियते सः प्रत्ययः इति कथ्यते। (धातु अथवा प्रातिपदिक (शब्द) के पश्चात् जिसका प्रयोग किया जाता है वह प्रत्यय कहा जाता है।)
प्रत्यानां भेदाः – प्रत्ययानां मुख्यरूपेण त्रयो भेदाः सन्ति। ते क्रमशः इमे सन्ति- (प्रत्ययों के मुख्य रूप से तीन भेद हैं। जो क्रमश: ये हैं-)
- कृत् प्रत्ययाः
- तद्धितप्रत्ययाः
- स्त्रीप्रत्ययाः
1. कृत-प्रत्ययाः – येषां प्रत्ययानां प्रयोगः धातोः (क्रियायाः) पश्चात् क्रियते ते कृत् प्रत्ययाः कथ्यन्ते। यथा- (जिन प्रत्ययों का प्रयोग धातु (क्रिया) के पश्चात् किया जाता है वे कृत् प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे -)
कृ + तव्यत् = कर्त्तव्यम् = करना चाहिए।
पठ् + अनीयर् = पठनयीम् = पढ़ना चाहिए।
2. तद्धितप्रत्ययाः – येषां प्रत्ययानां प्रयोगः संज्ञासर्वनामादिशब्दानां पश्चात् क्रियते ते तद्धितप्रत्ययाः कथ्यन्ते। यथा (जिन प्रत्ययों का प्रयोग संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्दों के पश्चात् किया जाता है वे तद्धित प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे-)
शिव + अण् = शैवः।
उपगु + अण् = औपगवः
दशरथ + इञ् = दाशरथिः
धन + मतुप् = धनवान्
3. स्त्रीप्रत्ययाः – येषां प्रत्ययानां प्रयोगः पुंल्लिङ्गशब्दान् स्त्रीलिङ्गे परिवर्तयितुं क्रियते ते स्त्रीप्रत्ययाः कथ्यन्ते। यथा (जिन प्रत्ययों का प्रयोग पुँल्लिङ्ग शब्दों को स्त्रीलिङ्ग में परिवर्तित करने के लिये किया जाता है वे स्त्री प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे-)
कुमार + ङीप् = कुमारी
अज + टाप् = अजा
कृत-प्रत्ययाः
शतृप्रत्ययः
वर्तमानकालार्थे अर्थात् गच्छन् (जाते हुए), लिखन् (लिखते हुए) इत्यस्मिन् अर्थे परस्मैपदिधातुभ्यः शतृप्रत्ययः भवति। अस्य ‘अत्’ भागः अवशिष्यतेः शकारस्य ऋकारस्य च लोपः भवति। शतप्रत्ययान्तस्य शब्दस्य प्रयोगः विशेषणवत् भवति। अस्य पल्लिङ्गे पठत-वत, स्त्रीलिङ्गगे नदी-वत, नपंसकलिङ्गे च जगत-वत चलन्ति। (वर्तमान काल के अर्थ में ‘गच्छन्’ (जाते हुए), लिखन् (लिखते हुए) अर्थात् ‘हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रहे’ इस अर्थ में (इस अर्थ का बोध कराने के लिए) परस्मैपदी धातुओं में ‘शत’ प्रत्यय होता है। जिसका (शतृ का) ‘अत्’ भाग शेष रहता है, शकार और ऋकार का लोप होता है। ‘शतृ’ प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग विशेषण की तरह होता है। इसके रूप पुंल्लिङ्ग में पठत्-वत्, स्त्रीलिङ्ग में नदी-वत् और नपुसंकलिङ्ग में जगत-वत् चलते हैं।)
शतप्रत्ययान्त-शब्दाः
शतृ प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि पुँल्लिते (शतृ प्रत्ययान्त अन्य उदाहरण केवल पुँल्लिङ्ग में)
शानच् प्रत्ययः
वर्तमानकालार्थे आत्मनेपदिधातुभ्यः शानच् प्रत्ययः भवति। अस्य शकारस्य चकारस्य च लोपः भवति, ‘आन’ इति अवशिष्यते। शानच् प्रत्ययान्तरस्य शब्दस्य प्रयोगः विशेषणवत् भवति। अस्य रूपाणि पुंल्लिङ्गे रामवत्, स्त्रीलिङ्गे रमावत्, नपुंसकलिङ्गे च फलवत् चलन्ति ! (वर्तमानकाल के अर्थ में आत्मनेपदी धातुओं में शानच प्रत्यय होता है। इसके (शानच् के) शकार और चकार का लोप होता है। ‘अ’ यह शेष रहता है। शानच् प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग विशेषण की तरह होता है। इसके रूप पुल्लिङ्ग में राम-वत् स्त्रीलिङ्ग में रमा-वत्, और नपुंसकलिङ्ग में फल-वत् चलते हैं।)
शानच् प्रत्ययान्त-शब्दाः
शानच् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि (पुल्लिड़े) (अन्य उदाहरण केवल पुल्लिङ्ग में दिये जा रहे हैं।)
तव्यत्-प्रत्ययः
तव्यत् प्रत्ययस्य प्रयोग: हिन्दीभाषायाः ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इत्यस्मिन् अर्थे भवति। अस्य ‘तव्य’ भागः अवशिष्यते, तकारस्य च लोपः भवति। अयं प्रत्ययः भाववाच्ये अथवा कर्मवाच्ये एव भवति। तव्यत्-प्रत्ययान्तशब्दानां रूपाणि पुँल्लिङ्गे रामवत्, स्त्रीलिङ्गे रमावत्, नपुंसकलिङ्गे च फलवत् चलन्ति। (तव्यत् प्रत्यय का प्रयोग हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इस अर्थ में होता है। इसका (तव्यत् का) ‘तव्य’ शेष रहता है और तकार का लोप होता है। यह प्रत्यय भाववाच्य में अथवा कर्मवाच्य में ही होता है। तव्यत् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुंल्लिङ्ग में राम-वत्, स्त्रीलिङ्ग में रमा-वत् और नपुंसकलिङ्ग में फल-वत् चलते हैं।)
तव्यत् प्रत्ययान्त शब्दाः
तव्यत् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि केवल पुल्लिङ्गे (तव्यत् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरण केवल पुंल्लिङ्ग में)
अनीयर्-प्रत्ययः
अनीयर् प्रत्ययः तव्यत् प्रत्ययस्य समानार्थकः अस्ति। अस्य प्रयोगः हिन्दीभाषायाः ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इत्यर्थे भवति। अस्य ‘अनीय’ भागः अवशिष्यते, रेफस्य च लोपः भवति। अयं प्रत्ययः कर्मवाच्ये अथवा भाववाच्ये एव भवति। अनीयर्-प्रत्ययान्त-शब्दानां रूपाणि पुंल्लिङ्गे रामवत्, स्त्रीलिङ्गे रमावत्, नपुंसकलिङ्गे च फलवत् चलन्ति। (‘अनीयर्’ प्रत्यय ‘तव्यत्’ प्रत्यय का समानार्थक है। इसका प्रयोग हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इस अर्थ में होता है। इसका (अनीयर का) ‘अनीय’ भाग शेष रहता है और रेफ का लोप होता है। यह प्रत्यय कर्मवाच्य अथवा भाववाच्य में ही होता है। अनीयर् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुंल्लिङ्ग में राम-वत्, स्त्रीलिङ्ग में रमा-वत् और नपुंसकलिङ्ग में फल-वत् चलते हैं।)
अनीयर्-प्रत्ययान्तशब्दाः
अनीयर् ग्रहणीयम् अनीयर प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि केवल पुंल्लिने (अनीयर् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरण केवल पुंल्लिङ्ग में)
क्तिन प्रत्यय-स्त्रियां क्तिन:
भाववाचक शब्द की रचना के लिए सभी धातुओं से ‘क्तिन’ प्रत्यय होता है। इसका ‘ति’ भाग शेष रहता है, ‘कृ’ और “न्’ का लोप हो जाता है। ‘क्तिन’ प्रत्ययान्त शब्द स्त्रीलिंग में ही होते हैं। इनके रूप ‘मति’ के समान चलते हैं।
उदाहरण –
ल्युट्-प्रत्ययः
भाववाचक शब्द की रचना के लिए सभी धातुओं से ल्युट् प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसका ‘यु’ भाग शेष रहता है तथा ‘ल’ और ‘ट्’ का लोप हो जाता है। ‘यु’ के स्थान पर ‘अन’ हो जाता है। ‘अन’ ही धातुओं के साथ जुड़ता है। ल्युट्-प्रत्ययान्त शब्द प्रायः नपुंसकलिङ्ग में होते हैं। इनके रूप ‘फल’ शब्द के समान चलते हैं।
ल्युट्-प्रत्ययान्तशब्दाः
तृच् प्रत्ययः
कर्ता अर्थ में अर्थात् हिन्दी भाषा में ‘करने वाला’ इस अर्थ में धातु के साथ तृच् प्रत्यय होता है। इसका ‘तृ’ भाग शेष रहता है और ‘च्’ का लोप हो जाता है। तृच्-प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं।
कृ + तृच् = कर्तृ (कर्ता)
पा + तृच् = पातृ (पिता)
गम् + तृच् = गन्तृ (गन्ता)
हृ + तृच् = हर्तृ (हर्ता)
भृ + तृच् = भर्तृ (भर्ता)
अन्य उदाहरण –
2. तद्धित-प्रत्ययाः
मतुप् प्रत्ययः
‘तदस्य अस्ति’ (वह इसका है अथवा वाला) अथवा ‘अस्मिन्’ (इसमें) इत्यर्थे तद्धितस्य मतुप् प्रत्ययः भवति। अस्य ‘मत्’ भागः अवशिष्यते, उकारस्य पकारस्य च लोपो भवति। ‘मत्’ इत्यस्य स्थाने क्वचित् ‘वत्’ इति भवति। मतुप् प्रत्ययान्तशब्दानां रूपाणि पुंल्लिङ्गे भगवत्-वत्, स्त्रीलिङ्गे ई (ङीप्) प्रत्ययं संयोज्य नदीवत्, नपुंसकलिङ्गे च जगत्-वत् चलन्ति। (‘वह इसका है’ अथवा ‘वाला’ अथवा ‘इसमें’ इन अर्थों में तद्धित का ‘मतुप्’ प्रत्यय होता है। इसका (मतुप् का) ‘मत्’ शेष रहता है, और उकार तथा पकार का लोप होता है। ‘मत्’ के स्थान पर कहीं ‘वत्’ भी होता है। मतुप् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुंल्लिङ्ग में ‘भगवत्-वत्’, स्त्रीलिङ्ग में ‘ई’ (ङीप्) प्रत्यय जोड़कर ‘नदीवत्’ और नपुंसकलिङ्ग में ‘जगत्-वत्’ चलते हैं।)
इदमत्र अवगन्तव्यम् (यहाँ इसको जान लेना चाहिए।)
“वत्’ इत्यस्य प्रयोगः प्रायः इयन्तशब्देभ्यः अथवा झकारान्तशब्देभ्यः भवति। यथा- (‘वत्’ इसका प्रयोग प्रायः झकारान्त शब्दों अथवा अकारान्त शब्दों में होता है जैसे-)
झयन्तेभ्यः – विद्युत् + मतुप् = विद्युत्वत्
अकारान्तेभ्य – धन + मतुप् = धनवत्
विद्या + मतुप् = विद्यावत्
‘मत्’ इत्यस्य प्रयोगः प्रायः झकारान्तशब्देभ्यः भवति। यथा- (‘मत्’ इसका प्रयोग प्रायः इकारान्त शब्दों के साथ होता है। जैसे-)
श्री + मतुप् – श्रीमत्
बुद्धि + मतुप् + बुद्धिमत्
मतुप् प्रत्ययान्तशब्दाः
2. इन्-ठन् प्रत्ययौ
‘अत इनिठनौ’ अकारान्ताद् प्रातिपदिकाद् ‘तदस्य अस्ति’ (वह इसका है) अथवा ‘अस्मिन्’ (इसमें) इत्यर्थे इनिठनौ प्रत्ययौ भवतः। (‘वह इसका है’ अथवा ‘इसमें’ इस अर्थ में अकारान्त प्रातिपदिक (संज्ञा शब्दों) से ‘इन्’-‘ठन्’ प्रत्यय होते हैं।)
इनि – प्रयोगकाले ‘इनि’ प्रत्ययस्य ‘इन्’ अवशिष्यते, स च प्रथमाविभक्त्यर्थके ‘सु’ प्रत्यये ‘इ’ रूपे परिवर्तते। यथा-दण्डम् अस्य अस्तीति = दण्ड + इन् = दण्डिन् सु = दण्डी। ठन्- प्रयोगकाले ‘ठन्’ प्रत्ययस्य ‘ठ’ इति शिष्यते। ठस्य स्थाने च ‘इक’ आदेश: “ठस्येकः” सूत्रेण जायते। (‘इनि’ के प्रयोग में ‘इनि’ प्रत्यय का ‘इन्’ शेष रहता है और वह प्रथमा विभक्ति के अर्थ में ‘स’ प्रत्यय ‘ई’ रूप में परिवर्तित हो जाता है। जैसे- ‘दण्डम्’ इसका होता है दण्ड + इन = दण्डिन् प्रथमा विभक्ति में ‘सु’ प्रत्यय लगने पर- ‘दण्डिन् + सु’ ‘सु’ ‘ई’ रूप में परिवर्तित होकर दण्डी यह रूप बना। ‘ठन्’ का प्रयोग करने में ‘ठन्’ प्रत्यय का ‘ठ’ शेष रहता है। ‘ठ’ के स्थान पर ‘इक’ आदेश ‘ठस्येक’ सूत्र से होता है।)
यथा- दण्डम् अस्य अस्तीति- दण्ड + ठन् (ठ) दण्ड + इक = दण्डिकाः। उदाहरणानि
(जैसे- ‘दण्डम्’ इसका होता है – दण्ड + ठन् (ठ) = दण्ड + इक = दण्डिकः। उदाहरण-)
3. स्व-तल प्रत्ययो- ‘तस्य भावस्त्वतली’- षष्ठीसमर्थात् प्रातिपदिकात् भाव इत्येतस्मिन्नर्थे त्व-तली प्रत्ययो भवतः। प्रयोगस्थलेषु त्व प्रत्ययान्तशब्दस्य रूपाणि फलवत् नपुंसकलिङ्गमनुसरन्ति। तथैव तल् प्रत्ययान्तशब्दस्य रूपाणि लतावत् स्त्रीलिङ्गे चलन्ति। यथा- (‘तस्य भावस्त्वतलौ’ षष्ठी से समर्थित प्रातिपदिक (संज्ञा शब्द) से भावाचक के अर्थ में त्व-तलौ प्रत्यय होते हैं।) अर्थात् भाववाचक संज्ञा बनाने के लिये किसी शब्द में त्व अथवा तल् (ता) प्रत्यय लगाते हैं।) प्रयोग स्थलों में ‘तव’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप फल-वत् नपुंसकलिङ्ग में चलते हैं। उसी प्रकार ‘तल’ प्रत्यन्त शब्द के रूप लता-वत् स्त्रीलिङ्ग में चलते हैं। जैसे-)
3. स्त्री-प्रत्ययाः
टाप प्रत्ययः- ‘अजाद्यतष्टाप’- अजादिभ्यः अकारान्तेभ्यश्च प्रातिपदिकेभ्यः स्त्रियां टाप टाप्प्रत्ययान्तशब्दानां रूपाणि आकारान्ताः स्त्रीलिङ्गे रमा-वत् चलन्ति। यथा- (‘अजाद्यतष्टाप्’- अकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए उनके आगे ताप् (आ) प्रत्यय होता है। अर्थात् भाववाचक एंत्रा बनाने के लिये किसी शब्द में त्व अथवा तल (ता) प्रत्यय लगाते हैं। प्रयोग स्थलों में ‘त्व’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप में फल. -वत् नपुंसकलिङ्ग में चलते हैं। उसी प्रकार ‘तल’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप लता-वत् स्त्रीलिंग में चलते हैं। जैसे-)
टाप-प्रत्ययान्तशब्देषु क्वचित् अकारस्य इकारः भवति। यथा – (टाप् प्रत्ययान्त शब्दों में कहीं अकार का इकार होता है। जैसे-)
2. गीप् प्रत्ययः – (1) ‘न्नेभ्यो गीप्’ – ऋन्त्रेभ्यो डीप् – नकारान्तेभ्यश्च प्रातिपादिकेभ्यः (शब्देभ्यः) स्त्रियाम् (स्त्रीलिओं) छीप् प्रत्ययो भवति। जीप् प्रत्ययस्य ‘ई’ अवशिष्यते। सामान्य-प्रयोगस्थले छात्रैः जीवन्ताः शब्दाः ईकारान्त-रूपेण स्मर्यन्ते। (‘अत्रेभ्यो जीप’ – प्रकारान्त और नकारान्त (पल्लिा ) शब्दों में स्त्रीलिज बनाने के लिए जीप (1) प्रत्यय होता है। डीप् प्रत्यय का ‘ए’ शेष रहता है। सामान्य प्रयोग स्थल में छात्रों द्वारा सीबत इकारान्त शब्दों के रूप में स्मरण किये जाते है।)
(ii) ‘उगितश्च’ – उगिदन्तात् प्रातिपादिकात् स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति। येषु प्रत्येषु ‘उ, ऋ लु’ इत्येतेषां वर्णानाम् इत्संज्ञकत्वे लोपः ज्ञातः ते उगित् प्रत्ययाः। तैः प्रत्ययैः ये शब्दाः निर्मिताः ते उगिदन्ताः शब्दाः प्रातिपादिकाः वा, तेभ्यः उगिदन्तेभ्यः स्त्रियां ङीप् प्रत्यय: स्यात्। (ऐसे प्रातिपादिकों से जिनमें उकार और ऋकार का लोप होता है (मतुप, वतुप, इयसु, तवतु, शत से बने हुए शब्दों से) स्त्रीलिङ्ग बनाने में ङीप् (ई) प्रत्यय होता है। जिन प्रत्ययों में ‘उ, ऋ, लु’ इन वर्गों की इत्संज्ञा होकर लोप हो जाता है वे ‘उगित’ प्रत्यय हैं। उन प्रत्ययों से जो शब्द निर्मित होते हैं वे उगिदन्त शब्द अथवा प्रातिपदिक होते हैं, उन उगिदन्तों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए डीप (ई) प्रत्यय होवे।)
(iii) ‘टिड्ढाणद्वयसज्दनज्मात्रच्तयप्टक्ठकञ्क्वरपः’ – टित्, ढ, अण, अब, द्वयसच्, दनच, मात्रच्, तयप्, ठक, ठ, कम्, क्वरप्, इत्येवमन्तेभ्यः अनुपसर्जनेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति। उदाहरणानि- (टित्, ढ, अण, अञ् द्वयसच्, दनच, मात्र, तयप्, ठक्, ठञ्, कञ्, क्वरप् इनसे अन्त होने वाले शब्दों के अनन्तर स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए डीप (ई) प्रत्यय होता है। जैसे-)
(iv) ‘वयसि प्रथमे’ – प्रथमे वयसि वर्तमानेभ्यः उपसर्जनरहितेभ्यः अदन्तेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति। उदाहरणानि- (प्रथम वयस् (अन्तिम अवस्था को छोड़कर) का ज्ञान कराने वाले अदन्त शब्दों के अन्तर स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए डीप (ई) प्रत्यय होता है। जैसे-)
(v) षिद्गौरादिभ्यश्च – (पा. सू.)- जहाँ ‘ष’ का लोप हुआ हो (षित्) तथा गौर, नर्तक, नट, द्रोण, पुष्कर आदि गौरादिगण में पठित शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा –
गौरी, नर्तकी, नटी, द्रोणी, पुष्करी, हरिणी, सुन्दरी, मातामही, पितामही, रजकी, महती आदि।
(vi) द्विगो:- द्विगुसंज्ञाकाद् अनुपसर्जनाद् अदन्तात् प्रातिपदिकात स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति।
अयमर्थः – अदन्ताः ये द्विगुसंज्ञकाः शब्दः तेभ्यः स्त्रीलिङ्गे ङीप् प्रत्ययः स्यात्। उदाहरणानि
(अदन्त जो द्विगुसंज्ञक शब्द हैं उनसे स्त्रीलिङ्ग में (स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए) ङीप् प्रत्यय होता है। जैसे-)
(vii) पुंयोगादाख्यायाम-पुरुषवाचक अकारान्त शब्द प्रयोग से स्त्रीलिंग हो तो उससे ङीष् (ई) हो जाता है। यथा गोपस्य स्त्री – गोप + ई = गोपी, शूद्रस्य स्त्री – शूद्र + ई = शूद्री।
(viii) जातेश्रस्त्रीविषयादयोपधात्-जो नित्य स्त्रीलिंग और योपध नहीं है, ऐसे जातिवाचक शब्द से स्त्रीलिंग में ङीष् होता है। ङीष् का भी ‘ई’ शेष रहता है। यथा –
ब्राह्मण + ई = ब्राह्मणी, मृग – मृगी, महिषी, हंसी, मानुषी, घटी, वृषली आदि।
(ix) इन्द्रवरुणभवशर्व० – इन्द्र आदि शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने पर अनुक् (आन्) और ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा –
इन्द्र की स्त्री-इन्द्र + आन् + ई = इन्द्राणी, वरुण-वरुणानी, भाव-भवानी, शर्व-शर्वाणी, मातुल-मातुलानी, रुद्र-रुद्राणी, आचार्य-आचार्यानी आदि।
(x) यव’ शब्द से दोष अर्थ में, यवन शब्द से लिपि अर्थ में तथा अर्य एवं क्षत्रिय शब्द से स्वार्थ में आनुक् (आन्) और ङीष् (ई) होता है। जैसे –
यव + आन् + ई = यवानी, यवन + आन् + ई = यवनानी।
मातुलानी, उपाध्यायानी, आर्याणी, क्षत्रियाणी-इनमें भी स्त्री अर्थ में ङीष् होता है।
(xi) हिमारण्ययोर्महत्त्वे – महत्त्व अर्थ में हिम और अरण्य शब्द से ङीष् और आनुक् होता है। यथा महद् हिम-हिम + आन् + ई = हिमानी। (हिम की राशि) महद् अरण्यम् अरण्यानी (विशाल अरण्य)
(xii) वोतो गुणवचनात् – गुणवाचक उकारान्त शब्दसे स्त्रीलिंग बनाने के लिए विकल्प से ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा
मृदु से मृद्वी, पटु से पट्वी, साधु से साध्वी।
(xiii) इतो मनुष्यजाते: – इदन्त मनुष्य जातिवाचक शब्द से स्त्रीलिंग बनाने पर ङीष् (ई) होता हैं जैसे दाक्षि + ई = दाक्षी (दक्ष के पुत्र की स्त्री)
(xiv) बहु आदि शब्दों से, शोण तथा कृत्प्रत्ययान्त इकारान्त शब्दों से तथा नासिका-उत्तरपद वाले शब्दों से विकल्प से ङीष् प्रत्यय होता है। यथा –
अभ्यासः
प्रश्न 1.
प्रदत्तेषु उत्तरेषु प्रत्ययानुसार यत् उत्तरम् शुद्धम् अस्ति, तत् चित्वा लिखत –
(दिए गये उत्तरों में प्रत्यय के अनुसार जो उत्तर शुद्ध हो, उसे चुनकर लिखिए)
1. गुरवः ……………. (वन्द् + अनीयर)
(अ) वन्दनीयः
(ब) वन्दनीयम्
(स) वन्दनीयाः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) वन्दनीयः
2. मानवसेवां ……………. (कृ + शानच्) वृक्षाः केषां न हितकराः।
(अ) कुर्वाणः
(ब) कुर्वाणाः
(स) कुर्वाणा
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) कुर्वाणः
3. ……………. (छाया + मतुप्) वृक्षाः आश्रयं यच्छन्ति।।
(अ) छायावान्
(ब) छायावन्तौ
(स) छायावन्तः
(द) न कोऽपि (कोकिल + टाप्)
उत्तरम् :
(स) छायावन्तः
4. ……………. आम्रवृक्षे मधुरं गायति।
(अ) कोकिला
(ब) कोकिले
(स) कोकिला:
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) कोकिला
5. ……………. (बल + इन) निर्बलान् रक्षन्ति।
(अ) बलिन्
(ब) बलिनी
(स) बलिनः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) बलिनः
6. अस्माभिः परस्परं स्नेहेन ……………. (वस् + तव्यत्)।
(अ) वसितव्यः
(ब) वसितव्या
(स) वसितव्यम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) वसितव्यम्
7. उद्यमस्य ……………. (महत् + त्व) सर्वविदितम् एव।
(अ) महत्त्वः
(ब) महत्त्वम्
(स) महत्त्वा
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) महत्त्वम्
8. ……………. (वर्ष + ठक् + ङीप) परीक्षा समीपम् एव।
(अ) वार्षिकी
(ब) वार्षिकी
(स) वार्षिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) वार्षिकी
9. त्वं कर्त्तव्यनिष्ठः ……………. (अधिकार + इन्) असि।
(अ) अधिकारी
(ब) अधिकारिन्
(स) अधिकारिणी
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) अधिकारी
10. छात्रैः अनुशासनम् ……………. (पाल् + अनीयर)।
(अ) पालनीयः
(ब) पालनीया
(स) पालनीयम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) पालनीयम्
11. मानवः ……………. (समाज + ठक्) प्राणी अस्ति।
(अ) सामाजिकः
(ब) सामाजिकी
(स) सामाजिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) सामाजिकः
12. ……………. (लौकिक + ङीप्) उन्नतिः यश: वर्धयति।
(अ) लौकिकः
(ब) लौकिकी
(स) लौकिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) लौकिकी
13. (शिष्य + टाप) ……………. जलेन लताः सिञ्चति।
(अ) शिष्या
(ब) शिष्ये
(स) शिष्या
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) शिष्या
14. गुरोः (गुरु + त्व) वर्णयितुं न शक्यते।
(अ) गुरुत्वम्
(ब) गुरुत्वः
(स) गुरुत्वम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) गुरुत्वम्
15. मा भव …………….. (मान + णिनि)।
(अ) मानी
(ब) मानिनौ
(स) मानिनः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) मानी
16. (उदार + तल्) ……………. गुणः न सुलभः।
(अ) उदारतम्
(ब) उदारता
(स) उदारतः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) उदारता
17. ……………. (राजन् + ङीप) प्रासादं गच्छति।
(अ) राजनी
(ब) राजिनी
(स) राज्ञी
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) राज्ञी
18. गता रेल …………… (गन्तु + ङीप्)।
(अ) गन्त्री
(ब) गन्त्री
(स) गन्त्र्यः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) गन्त्री
19. एकं …………… (सप्ताह + ठक्) पत्रम् आनय।।
(अ) साप्ताहिकः
(ब) साप्ताहिकी
(स) साप्ताहिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) साप्ताहिकम्।
20. …………… (योग + इनि) ईश्वरं भजन्ते।
(अ) योगी
(ब) योगिनो
(स) योगिनः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) योगिनः।
प्रश्न 2.
रिक्तस्थानानि यथानिर्दिष्ट पदेन पूरयत – (रिक्त-स्थानों की पूर्ति निर्देशानुसार कीजिए-)
(क) रूपं यथा ………….” महार्णवस्य। (शम् + क्त)
(ख) ” ” नृत्यन्ति। (शिखा + इनि)
(ग) सलिलतीरं ……………. पक्षिण: वायसगणाः च। (वस् + णिनि)
(घ) अपयानक्रमो नास्ति …………”” अप्यन्यत्र को भवेत्। (नी + तृच)
(ङ) तत्किमत्र प्राप्तकालं स्यादिति
समहात्मास्वकीय सत्यतपोबलमेव तेषां रक्षणोपायम् अमन्यत्। (वि + मृश् + शतृ)
(च) स्मरामि न प्राणिवधं यथाहं ………. कृच्छ्रे परमेऽपि कर्तुम्। (सम् + चिन्त् + ल्यप्)
(छ) अतः शील विशद्धौ ……..” …..” (प्र + यत् + तव्यत्)
(ज) …………” राज संसत्सु श्रुतवाक्या बहुश्रुता ! (वि + श्रु + क्त + टाप्)
(झ) स लोके लोके लभते कीर्तिं परत्र च शुभां (गम् + क्तिन्)
(ब) ततः प्रविशति दारकं ………” रदनिका। (ग्रह + क्तवा)
(ट) उष्णं हि ………….. स्वदते। (भुज् + कर्म + शानच)
(ठ) कालोऽपि नो ……………” यमो वा। (नश् + णिच् + तुमुन्)
(ड) अस्ति कालिन्दीतीरे …… पुरं नाम नगरम् (योग + इनि + ङीप)
(ढ) हम्मीरदेवेन साकं युद्धं ……… “। (कृ + क्तवतु)
(ण) सः पराक्रमं …”दुर्गान्निः सृत्य सङ्ग्रामभूमौ निपपात्। (कृ + शानच्)
उत्तराणि –
(क) शान्तम्
(ख) शिखिनः
(ग) वासिनः
(घ) नेता
(ङ) विमृशन्
(च) सञ्चिन्त्य
(ज) विश्रुता
(झ) गीतम्
(ञ) गृहीत्वा
(ट) भुज्यमान
(ठ) नाशायतुम्
(ड) यागिना
(ढ) कृतवान्
(ण) कुर्वाणः।
प्रश्न 3.
रिक्तस्थानं प्रकोष्ठात् पदं चित्वा लिखत – (रिक्तस्थान को कोष्ठक से पद चुनकर भरो-)
(क) इति दारकमादाय …………….. रदनिका। (निष्क्रान्तः/निष्क्रान्ता)
(ख) मम हृदये नित्य …………….. स्तः। (सन्निहितो/सन्निहितः)
(ग) किन्तु अनुज्ञां गन्तु शक्येत्। .. (प्राप्त्वा/प्राप्य)
(घ) वार्तालापं …………….. भृत्यौ रत्ना च बहिरायान्ति। (श्रुतौ/श्रुत्वा)
(ङ) दारकस्य कर्णमेव ……………” प्रवृत्तोऽसि। (भङ्क्तुम्/भञ्जयितुम्)
(च) ……………..” अस्मि तव न्यायालये। (पराजित:/पराजितम्)
(छ) रामदत्तहरणौ …………….” आगच्छतः। (धावन्ता/धावन्तौ)
(ज) देवस्य शत्रु ………….” प्रभोर्मनोरथं साधयिष्यामः। . (हनित्वा/हत्वा)
(झ) रे रे “” …………. ! अहं यवनराजेन समं योत्स्यामि। (योद्धाः/योद्धार:!)
(ब) रक्ष स्व ………….. परहा भवार्यः। (जातिम्/जात्याः)
(ट) नशक्तो कालोपि नो ……………..। (नष्टुम्/नाशयितुम्)
(ठ) अतिविलम्बितं हि ………….. न तृप्तिमधिगच्छति। (भुञ्जन्/भुञ्जानो)
(ड) …………” चाग्निमौदर्यमुदीयति। (भुक्तम्/भुक्त:)
(ढ) स्वबाहुबलम् … योऽभ्युज्जीवति सः मानवः। (आश्रित्य/आश्रित्वा)
(ण) निर्जितं सिन्धुराजेन …………..” दीनचेतसम्। (शयमानम्/शयानम्)
उत्तराणि –
(क) निष्क्रान्ता
(ख) सन्निहितौ
(ग) प्राप्य
(घ) श्रुत्वा
(ङ) भञ्जयितुम्
(च) पराजितः
(छ) धावन्तौ
(ज) हत्वा
(झ) योद्धारः !
(ब) जातिम्
(ट) नाशयितुम्
(ठ) भुञ्जानो
(ड) भुक्तम्
(ढ) आश्रित्य
(ण) शयानम्।
प्रश्न 4.
प्रकृतिप्रत्ययं योजयित्वा पदरचनां कुरुत – (प्रकृति-प्रत्यय को जोड़कर पदरचना कीजिये।)
(क) (सम् + उद् + बह + शतृ) सलिलाऽतिभारं बलाकिनो वारिधराः नदन्तः।
(ख) शालिवनं (वि + पच् + क्त)
(ग) तान् मत्स्यान् (भक्ष् + तुमुन्) चिन्तयन्ति।
(घ) (मुह + क्त) मुखेन अति करुणं मन्त्रयसि।
(ङ) जीवितार्थं कुलं (त्यज् + क्तवा) यो जनोऽतिदूरं व्रजेत् किं तस्य जीवितेन ?
(च) तेन (रक्ष + अनीयर) रक्षा भविष्यन्ति।
(छ) भृत्यौ (हस् + शत) गृहाभ्यन्तरं पलायेते।
(ज) भो किं (कृ + क्तवतु) सिन्धु।
(झ) स्वपुस्तकालये (नि + सद् + क्त) दूरभाषयन्त्रं बहुषः प्रवर्तयति।
(ब) वत्स सोमधर ! मित्रगृहान्नैव (गम् + तव्यत्)
(ट) देवागारे (अपि + धा + क्त) द्वारे भजसे किम् ?
(ठ) ध्यानं (हा + क्त्वा) बहिरेहित्वम्।
(ड) शाकफल (वि + क्री + तृच्) दारकः कथं त्वामतिशेते।
(ढ) स लोके लभते (क + क्तिन्)
(ण) तद् ग्रहाण एतम् (अलम् + कृ + ण्वुल्)।
उत्तराणि :
(क) समुद्वहन्तः
(ख) विपक्वम्
(ग) भक्षितुम्
(घ) मुग्धेन
(ङ) त्यक्त्वा
(च) रक्षणीय
(छ) हसन्तौ
(ज) कृतवान्
(झ) निषण्णः
(ब) गन्तव्यम्
(ट) पिहित
(ठ) हित्वा
(ड) विक्रेतुः
(ढ) कीर्तिम
(ण) अलङ्कारकम्।।
प्रश्न 5.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृति-प्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया। (कोष्ठकों में दिए गए शब्दों से प्रकृति-प्रत्यय के अनुसार रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए।)
1. (i) पाठः तु सदैव ध्यानेन एव ………………। (पठ् + अनीयर)
(ii) छात्रैः समये विद्यालयः ………………। (गम् + तव्यत्)
(iii) ……………. पुरुषः सफलतां लभते। (यत् + शानच्)
(iv) ……………. बालकः हसति। (गम् + शतृ)
(v) वाराणस्याम्……………. पुरुषाः निवसन्ति। (धर्म + ठक्)
उत्तराणि :
(i) पठनीयः
(ii) गन्तव्यः
(iii) यतमानः
(iv) गच्छन्
(v) धार्मिकाः।
2. (i) (विद्या + मतुप्) ……………… सर्वत्र सम्मान्यते।
(ii) पुत्रेण अनुशासनम् (पाल् + अनीयर) ……………।
(iii) सदा (सुख + इन्) …………… भव।
(iv) शस्त्रहीनः न (हन् + तव्यत्) ………………।
(v) जीवने (महत् + त्व) ……………… लभस्व।
उत्तराणि :
(i) विद्यावान्
(ii) पालनीयम्
(iii) सुखी
(iv) हन्तव्यः
(v) महत्त्वम्।
3. (i) बालिकाभिः राष्ट्रगीतं ……………… (गै + तव्यत्)।
(ii) छात्रैः ……………… (उपदेश) पालनीयाः।
(iii) ……………… (युष्मद्) शुद्धं जलं पातव्यम्।
(iv) मुनिभिः ……………… (तपस्) करणीयम्।
(v) न्यायाधीशेन न्यायः ……………..(कृ + अनीयर्)।
उत्तराणि :
(i) गातव्यम्
(ii) उपदेशाः
(iii) युष्माभिः
(iv) तपः
(v) करणीयः।
4. (i) ……………… (भवति) पाठः लेखनीयः।
(ii) विद्वद्भिः कविताः ……………… (रच् + अनीयर)।
(iii) अस्माभिः लताः ……………… आरोपयितव्याः।
(iv) पत्रवाहकेन पत्राणि ………………। (आ + नी + तव्यत्)
(v) ……………… (राजन्) प्रजाः पालनीयाः।
उत्तराणि :
(i) भवत्या
(ii) रचनीयाः
(iii) लताः
(iv) आरोपयितव्याः
(v) राज्ञा।
5. (i) त्वया सन्तुलित आहारः (कृ + तव्यत्) ………………
(ii) तव (कृश + तल्) ……………… मां भृशं तुदति।
(iii) विद्यायाः महत्त्वमपि ……………… (स्मृ + तव्यत्)।
(iv) सद्ग्रन्थाः सदैव ……………… (पठ् + अनीयर्)।
(v) अध्ययनेन मनुष्यः (गुण + मतुप्) ……………… भवति।
उत्तराणि :
(i) कर्त्तव्यः
(ii) कृशता
(iii) स्मर्तव्यम्
(iv) पठनीयाः
(v) गुणवान्।
6. (i) अस्याः ……………… (अनुज + टाप्) दीपिका अस्ति।
(ii) दीपिका क्रीडायाम् ……………… (कुशल + टाप्) अस्ति।।
(iii) प्रभादीपिकयो: माता ……………… (चिकित्सक + टाप्) अस्ति।
(iv) सा समाजस्य ……………… (सेवक + टाप्) अस्ति।
(v) सा तु स्वभावेन अतीव ……………… (सरल + आप्) अस्ति।
उत्तराणि :
(i) अनुजा
(ii) कुशला
(iii) चिकित्सिका
(iv) सेविका
(v) सरला।
7. (i) छात्रैः समये विद्यालयः (गम् + तव्यत्) ………………।
(ii) अद्य अस्माकं (वर्ष + ठक् + ङीप्) ……………… परीक्षा आरभते।
(iii) पर्यावरणस्य (महत् + त्व) ……………… सर्वे जानन्ति।
(iv) (बुद्धि + मतुप्) ……………… नरः सर्वत्र मानं लभते।
(v) जनकं (सेव् + शानच्) ……………… पुत्रः प्रसन्नः अस्ति।
उत्तराणि :
(i) गन्तव्यः
(ii) वार्षिकी
(iii) महत्त्वम्
(iv) बुद्धिमान्
(v) सेवमानः।
8. (i) मम ……………… (कीदृश + ङीप्) इयं क्लेशपरम्परा।
(ii) मारयितुम् ……………. (इष् + शतृ) स कलशं गृहाभ्यन्तरे क्षिप्तवान्।
(iii) छलेन अधिगृह्य ……………… (क्रूर + तल्) भक्षयसि।
(iv) अधुना ……………… (रमणीय + टाप्) हि सृष्टिरेव।
(v) अनेकानि अन्यानि ……………… (दृश् + अनीयर) स्थलानि अपि सन्त।
उत्तराणि :
(i) कीदृशी
(ii) इच्छन्
(iii) क्रूरतया
(iv) रमणीया
(v) रमणीयता।
9. (i) नृपेण प्रजा (पाल् + अनीयर) ………………।
(ii) आचार्यस्य (गुरु + त्व) ……………… वर्णयितुं न शक्यते।
(iii) पुरस्कार (लभ् + शानच्) ……………… छात्रः प्रसन्नः भवति।
(iv) मनुष्यः (समाज + ठक्) ……………… प्राणी अस्ति।
(v) प्रकृते (रमणीय + तल) ……………… दर्शनीया अस्ति।
उत्तराणि :
(i) पालनीया
(ii) गुरुत्वम्
(iii) लभमानः
(iv) सामाजिकः
(v) रमणीयता।
प्रश्न 6.
कोष्ठके दत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः उत्तर-पुस्तिकायां लिखत –
(कोष्ठक में दिए हुए प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद को पुनः उत्तर-पुस्तिका में लिखिए)
1. पर्यावरणस्य (महत् + त्व) (i) ……………… कः न जानाति ? परं निरन्तरं (वृध् + शानच्) (ii) ……….. प्रदूषणेन मानव जातिः विविधैः रोगैः आक्रान्ता अस्ति। अस्माभिः (ज्ञा + तव्यत्) (iii) …………… यत् पर्यावरणस्व रक्षणे एव अस्माकं रक्षणम्। एतदर्थम् (जन + तल) (iv) …………… जागरूका कर्तव्या। स्थाने स्थाने वृक्षारोपणम् अवश्यम् (कृ + अनीयर) (v) ……………। यतो हि वृक्षाः पर्यावरणरक्षणे अस्माकं सहायकाः सन्ति।
उत्तरम् :
पर्यावरणस्य महत्त्वं कः न जानाति ? परं निरन्तरं वर्धमानेन प्रदूषणेन मानवजातिः विविधैः रोगैः आक्रान्ना अस्ति। अस्माभिः ज्ञातव्यम् यत् पर्यावरणस्य रक्षणे एव अस्माकं रक्षणम्। एतदर्थम् जनता जागरूका कर्त्तव्याः। स्थान-स्थाने वृक्षारोपणम् अवश्यम् करणीयम्। यतो हि वृक्षाः पर्यावरणरक्षणे अस्माकं सहायकाः सन्ति।
2. ओदनं पचन्ती (i) ……………… (पुत्र + ङीप) कथितवती – किं त्वं जानासि कालस्य (ii) ……….. (महत् + त्व) ? काल: तु सततं चक्रवत् (ii) ……………… (परिवृत् + शानच्) वर्तते। ये जनाः अस्य अस्थिरता अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति, ते एव (iv) ……………… (बुद्धि + मतुप)। ते जनाः (v) ……. (बन्द अनीयर्) भवन्ति।
उत्तरम् :
ओदनं पचन्ती पुत्री कथितवती-किं त्वं जानासि कालस्य महत्त्वम् ? कालः तु सततं चक्रवत् परिवर्तमान वर्तते। ये जनाः अस्य अस्थिरताम् अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति, ते एव बुद्धिमन्तः। ते जनाः वन्दनीया: भाः
3. जानासि अस्माकं विद्यार्थिनां कानि (कृ + तव्यत्) (i) ……………… ? अस्माभिः विद्यालयस्य अनुशासनं (पान + अनीयर) (ii) ………………। सर्वैः सहपाठिभिः सह (मित्र + तल) (iii) ……………… आचरणीया। छात्रजीवने परिश्रमस्य (महत् + तल्) (iv) ……………… वर्तते। सत्यम् एव उक्तम् (सुखार्थ + इन्) (v) ……………… कुतो विद्या?
उत्तरम् :
जानासि अस्माकं विद्यार्थिनां कानि कर्त्तव्यानि ? अस्माभिः विद्यालयस्य अनुशासनं पालनीयम्। सबै सहपाठिभिः सह मित्रता आचरणीया। छात्रजीवने परिश्रमस्य महत्ता वर्तते। सत्यम् एव उक्तम् – सुखार्थिनः मन विद्या ?
4. कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव (i) ……………… (कृ + अनीयर)। (ii)……………… (फल + इन्) वृक्षाः एन सदैव नमन्ति। शिक्षायाः (iii) ……………… (महत् + त्व) तु अद्वितीयम् एव। (iv)……………… (वृध् + शानच बालाः नृत्यन्ति। (v) ……………… (अज + टाप्) शनैः शनैः चलति।
उत्तरम् :
कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव करणीयम्। फलिनः वृक्षाः एव सदैव नमन्ति। शिक्षायाः महत्त्वं तु अद्वितीयम् एव। वर्धमानाः बालाः नृत्यन्ति। अजा शनैः शनैः चलति।।
5. एकदा पितरं (सेव् + शानच्) (i) ……………… पुत्रः तम् अपृच्छत् – ‘हे पितः! संसारे कः पूज्यते ? ‘ पिता अवदत् – (गुण + मतुप्) (ii) ……………… सर्वत्र पूज्यते। यः सेवायाः (महत् + त्व) (iii) ……………… सम्यक् जानाति, सः समाजे सदा (वन्द् + अनीयर्) (iv) ……………… भवति। अतः सर्वैः (मानव + तल्) (v) ………… सेवितव्या।’
उत्तरम् :
एकदा पितरं सेवमानः पुत्रः तम् अपृच्छत् – ‘हे पितः, संसारे कः पूज्यते ?’ पिता अवदत् – ‘ गुणवान् सर्वत्र पूज्यते। यः सेवायाः महत्त्वं सम्यक् जानाति, सः समाजे सदा वन्दनीयः भवति। अतः सर्वैः मानवता सेवितव्या।’
6. त्वं (गुण + मतुप्) (i) ……………… असि। तव प्रकृतिः (शोभन + टाप) (ii) ……………… अस्ति। अतः (विनय + इन्) (iii) ……………… अपि भव। सदैव (समाज + ठक्) (iv) ……………… कार्यमपि (कृ + शतृ) (v) ……………… त्वं लोके यशः प्राप्स्यसि।
उत्तरम् :
त्वं गुणवान् असि। तव प्रकृतिः शोभना अस्ति। अतः विनयी अपि भव। सदैव सामाजिक कार्यमपि कुर्वन् त्वं लोके यशः प्राप्स्यसि।
7. छात्रैः यथाकालम् एव विद्यालयस्य कार्यः (i) …………………. (कृ + तव्यत्)। ये छात्राः अध्ययनस्य (ii) ……………… (महत् + त्व) न जानन्ति तेषां कृते (iii) ……………… (सफल + तल) सन्दिग्धा भवति, परञ्च ये छात्रा: आलस्यं विहाय अहर्निशं परिश्रमं कुर्वन्ति तेषां कृते (iv) ……………… (वर्ष + ठक् + ङीप्) परीक्षा भयं न जनयति। (v) ……………… (बुद्धि + मतुप्) छात्राः पुरुषार्थे विश्वसन्ति न तु केवलं भाग्ये। अतः सर्वैः स्वकार्याणि समये (vi) ……………… (कृ + अनीयर)।
उत्तरम् :
छात्रैः यथाकालम् एव विद्यालयस्य कार्यः कर्त्तव्यम्। ये छात्राः अध्ययनस्य महत्त्वं न जानन्ति तेषां कृते सफलता सन्दिग्धा भवति, परञ्च ये छात्रा: आलस्यं विहाय अहर्निशं परिश्रमं कुर्वन्ति तेषां कृते वार्षिकी परीक्षा भयं न जनयति। बुद्धिमन्तः छात्राः पुरुषार्थे विश्वसन्ति न तु केवलं भाग्ये। अतः सर्वैः स्वकार्याणि समये करणीयानि।।
8. पिता पुत्रम् उपादिशत् यत् त्वया कुमार्गः (i) ……………… (त्यज् + तव्यत्) (ii) ……………… (प्र + यत् + शानच्) जनाः साफल्यं प्राप्नुवन्ति। यः नरः सत्यवादी (iii) ……………… (निष्ठा + मतुप्) च सः एव श्रेष्ठः। वृक्षारोपणम् अस्माकं (iv) ……………… (नीति + ठक्) कर्त्तव्यम्। मातृभूमिः सदैव (v)……………… (वन्दनीय + टाप्) भवति।
उत्तरम् :
पिता पुत्रम् उपादिशत् यत् त्वया कुमार्गः त्यक्तव्यः प्रयतमानाः जनाः साफल्यं प्राप्नुवन्ति। यः नरः सत्यवादी निष्ठावान् च सः एव श्रेष्ठः। वृक्षारोपणम् अस्माकं नैतिकं कर्त्तव्यम्। मातृभूमिः सदैव वन्दनीया भवति।
9. एक: कैयट: नाम विद्वान् आसीत्। सः प्रातः (i) ……………… (काल + इ) शास्त्राणाम् अध्ययने रतः भवति स्म। एकदा राजा तं (ii) ……………… (बुद्धि + मतुप्) द्रष्टुं तस्य कुटीरं (iii) ……………… (गम् + तव्यत्) इति निश्चितवान्। तत्र गत्वा तस्य (iv) ……………… (दरिद्र + तल्) दूरीकर्तुं सः तस्मै स्वर्णमुद्राः अयच्छत्। कैयटः अवदत्- “धनस्य (v) ……………… (लोभ + इन्) जनाः आसक्ताः भूत्वा दुःखिनः भवन्ति। अतः मम आनन्दं मा नाशयतु इति।”
उत्तरम् :
एक: कैयटः नाम विद्वान् आसीत्। सः प्रात:काले शास्त्राणाम् अध्ययने रतः भवति स्म। एकदा राजा तं बुद्धिमन्तं द्रष्टुं तस्य कुटीरं गन्तव्यम् इति निश्चितवान्। तत्र गत्वा तस्य दरिद्रतां दूरीका सः तस्मै स्वर्णमुद्राः अयच्छत्। कैयटः अवदत् – “धनस्य लोभिनः जनाः आसक्ताः भूत्वा दुःखिनः भवन्ति। अतः मम आनन्दं मा नाशयतु इति।”
धानस्य शोभा खलु (i)……………… (दृश् + अनीयर)। शीघ्र-शीघ्रं (ii) ……………… (चल + शतृ) जनाः प्रसन्नाः भवन्ति। ते वायोः (iii) ……………… (शीतल + तल) अनुभवन्ति। (iv) ……………… (पक्ष + इन्) मधुर स्वरेण गायन्ति। बालकाः (v) ……………… (बालक + टाप्) च कन्दुकेन क्रीडन्ति।
उत्तरम् :
प्रात:काले उद्यानस्य शोभा खलु दर्शनीया। शीघ्रं-शीघ्रं चलन्तः जनाः प्रसन्नाः भवन्ति। ते वायोः शीतलताम् अनुभवन्ति। पक्षिणः मधुरस्वरेण गायन्ति। बालकाः बालिकाः च कन्दुकेन क्रीडन्ति।।
11. जीवने शिक्षायाः सर्वाधिकं (i) ……………… (महत् + त्व) वर्तते। बालः भवेत् (ii) ……………… (बालक + टाप्) वा भवेत्, ज्ञान प्राप्तुं सर्वैः एव प्रयत्नः (iii) ……………… (कृ + तव्यत्)। शिक्षिताः (iv) …….. (प्राण + इन्) परोपकारं (v) ………. …. (कृ + शानच) देशस्य सर्वदा हितमेव चिन्तयन्ति।
उत्तरम् :
जीवने शिक्षायाः सर्वाधिक महत्त्वं वर्तते। बालः भवेत् बालिका वा भवेत्, ज्ञानं प्राप्तुं सर्वैः एव प्रयत्नः कर्तव्यः। शिक्षिताः प्राणिनः परोपकारं कुर्वाणा: देशस्य सर्वदा हितमेव चिन्तयन्ति।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय को अलग कीजिए –
अधीतः, जग्धवान्, गृहीत्वा, उपगम्य, पातुम्।।
उत्तरम् :
अधि + इ + क्त; अद् + क्तवतु ग्रह + क्त्वा, उपगम् + ल्यप्, पा + तुमुन्।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित में प्रकृति-प्रत्यय का मेल कीजिए –
कर्ता + ङीप, एडक + टाप, भाग् + इनि, बहु + तमप, निम्न + तरप्, रक्ष् + तव्यत्, युध् + शानच्, वस् + शतृ, स्तु + क्तवतु।
उत्तरम् :
की, एडका, भागी, बहुतमः, निम्नतरः, रक्षितव्यः, युध्यमानः, वसन् स्तुतवान्।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित प्रत्ययान्त शब्दों को ‘कृत्”तद्धित’ और ‘स्त्री’ प्रत्ययान्त के रूप में अलग-अलग छाँटिये कोकिला, हन्त्री, शूद्रता, पीत्वा, नीति, भूता, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः, भगवती, लघुता, शिशुत्वम्।
उत्तरम् :
कृत्-पीत्वा, नीति, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः। तद्धित्-शूद्रता, लघुता, शिशुत्वम्। स्त्री-कोकिला, हन्त्री, भूता, भगवती।
प्रश्न 10.
प्रत्येक धातु में कोई पाँच प्रत्यय जोड़कर उनका एक-एक उदाहरण लिखिए –
पठ्, नम्, पच्, दा, लभ्, दृश्, गम्, हस्, इष्, लभ्।
उत्तरम् :
प्रश्न 11.
अधोलिखितवाक्येषु रेखांकितपदानां प्रकृति-प्रत्यय-विभाग प्रत्ययान्तपदं वा लिखत –
(निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों में प्रकृति-प्रत्यय अलग कीजिये अथवा प्रत्ययान्त शब्द लिखिए-)
(1) अहं शयनं परित्यज्य भ्रमणं गच्छामि।
(2) श्यामः पुस्तकं क्रेतुं गमिष्यति।
(3) मया रामायणं श्रुतम्।
(4) फलं खादन् बालकः हसति।
(5) सुरेशः ग्रामं गत्वा धावति।
(6) सर्वान् विचिन्त्य ब्रू (वच्) + तव्यत्।
(7) मुकेशः भोजनं खाद + शत पुस्तकं पठति।
(8) स: गृहकार्यं कृ + क्त्वा क्रीडति।
(9) सीता ग्रामात् आ + गम् + ल्यप् नृत्यति।
(10) भारत: पठ्+तुमुन् इच्छति।
उत्तर :
(1) परि + त्यज् + ल्यप्,
(2) क्री + तुमुन्,
(3) श्रु+ क्त,
(4) खाद् + शत,
(5) गम् + क्त्वा,
(6) वक्तव्यम्,
(7) खादन्,
(8) कृत्वा,
(9) आगत्य,
(10) पठितुम्।।
प्रश्न 12.
निर्देशम् अनुसृज्य उदाहरणानुसारं संयोज्य वाक्यसंयोजनं क्रियताम्।
(निर्देश का अनुसरण करके उदाहरणानुसार जोड़कर वाक्यों को जोड़िए।)
(क) पूर्ववाक्ये ‘क्त्वा’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं संयोजयत
(पहले वाक्य में ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए) महेशः खेलति। महेशः धावति।
उत्तरम् :
महेशः खेलित्वा धावति।
(ख) ‘तुमुन्’ प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा वाक्यसंयोजनं क्रियताम्-(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए –
रामः वनं गच्छति। रामः अश्वम् आरोहति।
उत्तरम् :
रामः वनं गन्तुम् अश्वम् आरोहति।
(ग) पूर्ववाक्ये शतृप्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत –
(पूर्व वाक्य में ‘शतृ’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-)
छात्राः श्यामपट्ट स्पृशति। छात्राः गृहं गच्छति।
उत्तरम् :
छात्राः श्यामपट्ट स्पृशन्तः गृहं गच्छन्ति।
(घ) ‘तुमुन्’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत –
(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-)
त्वं जलं पिबसि। त्वं कूपं गच्छसि।
उत्तरम् :
त्वं जलं पातुं कूपं गच्छसि।
प्रश्न 13.
स्थूलपदानाम् ‘प्रकृतिप्रत्ययः’ पृथक् संयोगं कृत्वा उत्तर-पुस्तिकायां लिखत –
(मोटे शब्दों के प्रकृति-प्रत्यय अलग करके उत्तर-पुस्तिका में लिखिए)
1. (i) अद्य मानवः सेवाया महत्त्वं न जानाति। (आज मनुष्य सेवा का महत्त्व नहीं जानता है।)
(ii) समाजसेवा करणीया। (समाज सेवा की जानी चाहिए।)
(iii) बालकोऽयं गुणवान् अस्ति। (यह बालक गुणवान् है।)
(iv) लोभी न भवेत्। (लोभी नहीं होना चाहिए।)
(v) सा बुद्धिमती अचिन्तयत्। (वह बुद्धिमती सोचने लगी।)
उत्तराणि :
(i) महत् + त्व
(ii) कृ + अनीयर् + टाप्
(iii) गुण + मतुप् (वत्)
(iv) लोभ + इनि
(v) बुद्धि + मतुप् + ङीप।
2. (i) गुरुः वन्दनीयः। (गुरु वन्दना के योग्य होता है।)
(ii) ज्ञानवान् एव गुरुत्वं प्राप्नोति। (ज्ञानवान् ही गुरुत्व को प्राप्त करता है।)
(iii) देशे अनेकानि दर्शनीयानि स्थानानि सन्ति। (देश में अनेक दर्शनीय स्थान हैं।)
(iv) गुणी एव सर्वत्र पूज्यः। (गुणी ही सब जगह पूज्य होता है।)
(v) शिक्षिका गणितं पाठयति। (शिक्षिका गणित पढ़ाती है।)
उत्तराणि :
(i) वन्द् + अनीयर्
(ii) गुरु + त्व
(iii) दृश् + अनीयर्
(iv) गुण + इन्
(v) शिक्षक + टाप्।
3. (i) पुस्तकानां महत्तां कः न जानाति ? (पुस्तकों की महत्ता को कौन नहीं जानता ?)
(ii) गायिका मधुरं गायति। (गायिका मधुर गाती है।)।
(iii) कार्यं कुर्वाणाः छात्राः अङ्कान् लभन्ते। (कार्य करते हुए छात्र अंक प्राप्त करते हैं।)
(iv) बालकैः गुरवः नन्तव्याः। (बालकों द्वारा गुरु को नमस्कार किया जाना चाहिए।)
(v) अश्वा धावति। (घोड़ी दौड़ती है।)
उत्तराणि :
(i) महत् + तल्
(ii) गायक + टाप्
(iii) कृ + शानच्
(iv) नम् + तव्यत्
(v) अश्व + टाप।
4. (i) सः वेत्रासने आसीनः। (वह कुर्सी पर बैठा है।)
(ii) राज्ञी राजानम् अपृच्छत्। (रानी ने राजा से पूछा।)
(iii) इन्द्राणी इन्द्रं पृच्छति। (इन्द्राणी इन्द्र से पूछती है।)
(iv) मन्त्रिणः संसदि भाषन्ते। (मन्त्री संसद में बोलते हैं।)
(v) अजाः क्षेत्रे चरन्ति। (बकरियाँ खेत में चरती हैं।)
उत्तराणि :
(i) आस् + शानच्
(ii) राजन् + ङीप्
(iii) इन्द्र + ङीप्
(iv) मन्त्र + इन्
(v) अज + टाप्।
5. (i) मासिकं पत्रम् आनय। (मासिक पत्र लाइए।)
(ii) सुखार्थिनः कुतो विद्या। (सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ ?)
(iii) वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्।(रेलगाड़ी शोर बाँटती हुई दौड़ रही है।)
(iv) जगति शुद्धिकरणं करणीयम्। (संसार में शुद्धिकरण करना चाहिए।)
(v) ललितलतानां माला रमणीया। (सुन्दर लताओं की माला रमणीय है।)
उत्तराणि :
(i) मास + ठक्
(ii) सुख + अर्थ + इन्
(iii) वितरत् + ङीप्
(iv) कृ + अनीयर्
(v) रमू + अनीयर् + टाप्।
6. (i) लक्षणवती कन्यां विलोक्य सः पृच्छति (लक्षणवाली कन्या को देखकर वह पूछता है।)
(ii) अन्योऽपि बुद्धिमान् लोके मुच्यते महतो भयात्।। (और भी बुद्धिमान् लोक के महान् भय से मुक्त हो जाते हैं।)
(iii) शृगालः हसन् आह। (शृगाल ने हँसते हुए कहा।)
(iv) मया सा चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा। (मैंने उसे थप्पड़ से प्रहार करती हुई देखा है।)
(v) तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः। (तो तुम मुझे मार देना।)
उत्तराणि :
(i) लक्षणवत् + ङीप्
(ii) बुद्धि + मतुप्
(iii) हस् + शतृ
(iv) प्रहरत् + ङीप
(v) हन् + तव्यत्।
7. (i) शुनी सर्वम् इन्द्राय निवेदयति। (कुतिया सब कुछ इन्द्र से निवेदन कर देती है।)
(ii) आचार्य सेवमानः शिष्यः विद्यां लभते। (आचार्य की सेवा करता हुआ शिष्य विद्या प्राप्त करता है।)
(iii) श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्।। (श्रद्धावान् ज्ञान प्राप्त करता है।)
(iv) अद्य अस्माकं वार्षिकी परीक्षा आरभते। (आज हमारी वार्षिक परीक्षा आरम्भ है।)
(v) सः कार्यं कुर्वन् पठति अपि। (वह कार्य करता हुआ भी पढ़ता है।)
उत्तराणि :
(i) श्वन् + ङीप्
(ii) सेव + शानच्
(iii) श्रद्धा + मतुप् (वत्)
(iv) वर्ष + ठक् + ङीप्।
(v) कृ + शतृ।
8. (i) जीवने विद्यायाः अपि महत्त्वं वर्तते। (जीवन में विद्या का भी महत्त्व है।)
(ii) तर्हि त्वया सद्ग्रन्थाः अपि पठनीयाः। (तो तुम्हें सद्ग्रन्थ भी पढ़ने चाहिए।)
(iii) पठनेन नरः गुणवान् भवति। (पढ़ने से मनुष्य गुणवान् होता है।)
(iv) किं त्वं जानासि कालस्य महत्त्वम् ? (क्या तुम समय का महत्त्व जानते हो ?)
(v) कालः तु सततम् चक्रवत् परिवर्तमानः वर्तते। (समय तो निरन्तर चक्र की तरह बदलता रहता है।)
उत्तराणि :
(i) महत् + त्व
(ii) पत् + अनीयर्
(iii) गुण + मतुप् (वत्)
(iv) महत् + त्व
(v) परिवृत् + शानच्।
9. (i) ये जनाः अस्थिरताम् अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति ते एव बुद्धिमन्तः।
(जो लोग अस्थिरता का अनुभव करके अपने कार्य समय पर करते हैं, वे ही बुद्धिमान् हैं।)
(ii) ते जनाः वन्दनीयाः भवन्ति। (वे लोग वन्दना करने योग्य होते हैं।)
(iii) जनाः तीव्र धावन्तः गच्छन्ति। (लोग तीव्र दौड़ते हुए जाते हैं।)
(iv) गृहं गच्छन्त्यः छात्राः प्रसीदन्ति। (घर जाती हुई छात्राएँ प्रसन्न होती हैं।)
(v) कालः परिवर्तमानः वर्तते। (समय बदलता रहता है।)
उत्तराणि :
(i) अस्थिर + तल, बुद्धि + मतुप्
(ii) वन्द् + अनीयर् + टाप्
(iii) धाव् + शतृ
(iv) गच्छत् + ङीप्
(v) परिवृत् + शानच्।
10. (i) कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव करणीयम्। (कार्य सदैव ध्यान से ही करना चाहिए।)
(ii) फलिनः वृक्षाः एव सदैव नमन्ति। (फल वाले वृक्ष ही सदा झुकते हैं।)
(iii) शिक्षायाः महत्त्वं तु अद्वितीयम् एव। (शिक्षा का महत्त्व तो अद्वितीय है।)
(iv) वर्धमानाः बालाः नृत्यन्ति। (बढ़ती हुई बालाएँ नाचती हैं।)
(v) अजाः शनैः शनैः चलति।
(बकरी धीरे-धीरे चलती है।)
उत्तराणि :
(i) कृ + अनीयर्
(ii) फल + इन्
(iii) महत् + त्व
(iv) वृध् + शानच्
(v) अज + टाप्।
11. (i) कार्यं सदैव शीघ्रं परन्तु धैर्येण कर्त्तव्यम्। (कार्य सदैव शीघ्र परन्तु धैर्यपूर्वक करना चाहिए।)
(ii) वर्धमाना बालिका शीघ्रं शीघ्रं धावति। (बढ़ती बालिका जल्दी-जल्दी दौड़ती है। )
(iii) गुणिनः जनाः सदा वन्दनीयाः। (गुणी लोग सदैव वन्दना करने योग्य हैं।)
(iv) वृक्षाणां महत्त्वं कः न जानाति ? (वृक्षों का महत्त्व कौन नहीं जानता ?)
(v) कोकिला मधुर स्वरेण गायति। (कोयल मधुर स्वर से गाती है।)
उत्तराणि :
(i) कृ + तव्यत्
(ii) वृध् + शानच् + ङीप
(iii) गुण + इन्
(iv) महत् + त्व
(v) कोकिल + टाप।
12. (i) पुस्तकानाम् अध्ययनं करणीयम्। (पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए।)
(ii) मन्त्रिणः सदसि भाषन्ते। (मन्त्री सभा में भाषण करते हैं।)
(iii) वर्तमाना शिक्षापद्धतिः सुकरा। (वर्तमान शिक्षा पद्धति सरल है।)
(iv) त्वं स्व अज्ञानतां मा दर्शय। (तुम अपनी अज्ञानता को मत दिखाओ।)
(v) नर्तकी शोभनं नृत्यति। (नर्तकी सुन्दर नाचती है।)
उत्तराणि :
(i) कृ + अनीयर्
(ii) मन्त्र + इन्
(iii) वृत् + शानच् + टाप्
(iv) अज्ञान + तल्
(v) नर्तक+ङीप्।
13. (i) अस्माभिः सेवकाः पोषणीयाः। (हमें सेवकों का पोषण करना चाहिए।)
(ii) पक्षिणः वृक्षेषु तिष्ठन्ति। (पक्षी वृक्ष पर बैठते हैं।)
(iii) पृथिव्याः गुरुत्वं सर्वे जानन्ति। (पृथ्वी की गुरुता को सभी जानते हैं।)
(iv) सेवमाना: सेवकाः धनं लभन्ते। (सेवा करते हुए सेवक धन पाते हैं।)
(v) अश्वा वरं धारयति। (घोड़ी वर को धारण करती है।)
उत्तराणि :
(i) पुष् + अनीयर्
(ii) पक्ष + इन्
(iii) गुरु + त्व
(iv) सेव् + शानच्।
(v) अश्व + टाप्।
14. (i) बालकैः गुरवः नन्तव्याः।
(बालकों को गुरुजनों का नमन करना चाहिए।)
(ii) कार्यं कुर्वाणा: छात्राः अङ्कान् लभन्ते। (कार्य करते छत्र अंक प्राप्त करते हैं।)
(iii) भाग्यशालिनः जनाः विश्रामं कुर्वन्ति। (भाग्यशाली लोग आराम करते हैं।)
(iv) गायिका मधुरं गायति। (गायिका मधुर गाती है।)
(v) पुस्तकानां महत्तां कः न जानाति। (पुस्तकों की महत्ता कौन नहीं जानता।)
उत्तराणि :
(i) नम् + तव्यत्
(ii) कृ + शानच्
(iii) भाग्यशाल + इन्
(iv) गायक + टाप्।
(v) महत् + तल्।
प्रश्न 14.
प्रकृतिप्रत्ययं योजयित्वा पदरचनां कुरुत।
(प्रकृति प्रत्यय को मिलाकर पदरचना कीजिये।)
(क) जन् + क्त
(ख) क्रीड् + शतृ
(ग) त्यज् + क्तवा
(घ) वि + श्रम् + ल्यप्
(ङ) भक्ष् + तुमुन्
(च) नि + वृत् + क्तिन्
(छ) प्र + यत् + तव्यत्
(ज) भुज् + शानच
(झ) गुह् + क्त + टाप्
(ब) जि + अच्
(ट) ग्रह् + ण्वुल्
(ठ) लभ् + क्तवतु
(ड) अधि + वच् + तृच्
(द) कृ + क्तवतु + ङीप्
(ण) कृ + अनीयर्
उत्तरम् :
(क) जातः
(ख) क्रीडन्
(ग) त्यक्तवा
(घ) विश्रम्य
(ङ) भक्षितुम्
(च) निवृत्तिः
(छ) प्रयतितव्यम्
(ज) भुञ्जानः
(झ) गूढ
(ब) जयः
(ट) ग्राहकः
(ठ) लब्धवान्
(ड) अधिवक्ता
(ढ) कृतती
(ण) करणीयः।
प्रश्न 15.
अधोलिखित पदेषु प्रकृतिप्रत्यय विभागः क्रियताम्।
(निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय पृथक् कीजिये)
(क) प्रयुक्तम्
(ख) भवितव्यम्
(ग) गन्तुम्
(घ) पर्यटन्तः
(ङ) वहमानस्य
(च) क्रीत्वा
(छ) दृष्टिः
(ज) कर्ता
(झ) अतितराम्
(ब) प्रतीक्षमाणः
(ट) करणीया
(ठ) प्रत्यभिज्ञाय
(ड) कारकः
(ढ) कृतवती
(ण) विक्रेता।
उत्तरम् :
(क) प्रयुक्तम् = प्र + युज् + क्त
(ख) भवितव्यम् = भू + तव्यत्
(ग) गन्तुम् = गम् + तुमुन्
(घ) पर्यटन्तः = परि + अट् + शत् (प्र.ब.व.)
(ङ) वहमानस्य = वह् + शानच् (ब.ए.व.)
(च) क्रीत्वा = क्री + क्तवा
(छ) दृष्टिः = दृश् + क्तिन्
(ज) कर्ता = कृ + तृच्
(झ) अतितराम् = अति + तरप् + टाप् (द्वि.ए.व.)
(ब) प्रतीक्षमाणः = प्रति + ईक्ष् + शानच
(ट) करणीया = कृ + अनीयर् + टाप
(ठ) प्रत्यभिज्ञाय = प्रति + अभि + ज्ञा + ल्यप्
(ड) कारकः = कृ + ण्वुल्
(ढ) कृतवती = क + क्तवतु + ङीप्
(ण) विक्रेता = वि + क्री + तृच