JAC Class 10 Social Science Solutions Geography Chapter 3 जल संसाधन

JAC Board Class 10th Social Science Solutions Geography Chapter 3 जल संसाधन

JAC Class 10th Geography जल संसाधन Textbook Questions and Answers

बहुवैकल्पिक

प्रश्न 1.
(i) नीचे दी गई सूचना के आधार पर स्थितियों को ‘जल की कमी से प्रभावित’ या ‘जल की कमी से अप्रभावित’ में वर्गीकृत कीजिए:
(क) अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र
(ख) अधिक वर्षा और अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र
(ग) अधिक वर्षा वाले परन्तु अत्यधिक प्रदूषित जल क्षेत्र
(घ) कम वर्षा और कम जनसंख्या वाले क्षेत्र
उत्तर:
(क) अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र – जल की कमी से अप्रभावित
(ख) अधिक वर्षा और अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र – जल की कमी से अप्रभावित
(ग) अधिक वर्षा वाले परन्तु अत्यधिक प्रदूषित जल क्षेत्र – जल की कमी से प्रभावित
(घ) कम वर्षा और कम जनसंख्या वाले क्षेत्र – जल की कमी से प्रभावित

(ii) निम्नलिखित में से कौन-सा वक्तव्य बहुउद्देशीय नदी परियोजनाओं के पक्ष में दिया गया तर्के नहीं है
(क) बहुउद्देशीय परियोजनाएँ उन क्षेत्रों में जल लाती हैं जहाँ जल की कमी होती है।
(ख) बहुउद्देशीय परियोजनाएं जल बहाव को नियन्त्रित करके बाढ़ पर काबू पाती हैं।
(ग) बहुउद्देशीय परियोजनाओं से वृहत स्तर पर विस्थापन होता है और आजीविका खत्म होती है।
(घ) बहुउद्देशीय परियोजनाएँ हमारे उद्योग और घरों के लिए विद्युत पैदा करती हैं।
उत्तर:
(ग) बहुउद्देशीय परियोजनाओं से वृहत स्तर पर विस्थापन होता है और आजीविका खत्म होती है।

(iii) यहाँ कुछ गलत वक्तव्य दिए गए हैं। इनमें गलती पहचानें और दोबारा लिखें
(क) शहरों की बढ़ती संख्या, उनकी विशालता और सघन जनसंख्या तथा शहरी जीवन शैली ने जल संसाधनों के सही उपयोग में मदद की है।
(ख) नदियों पर बाँध बनाने और उनको नियन्त्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव और तलछट बहाव प्रभावित नहीं होता।
(ग) गुजरात में साबरमती बेसिन में सूखे के दौरान शहरी क्षेत्रों में अधिक जल आपूर्ति करने पर भी किसान नहीं भड़के।
(घ) आज राजस्थान में इन्दिरा गाँधी नहर से उपलब्ध पेयजल के कारण छत वर्षाजल संग्रहण लोकप्रिय हो रहा है।
उत्तर:
(क) शहरों की बढ़ती जनसंख्या, उनकी विशालता और सघन जनसंख्या तथा शहरी जीवन-शैली ने जल संसाधनों के सही उपयोग में अवरोध उत्पन्न किया है।
(ख) नदियों पर बाँध बनाने और उनको नियन्त्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव और तलछट बहाव बुरे तरीके से प्रभावित होता है।
(ग) गुजरात में साबरमती बेसिन में सूखे के दौरान शहरी क्षेत्रों में अधिक जल आपूर्ति करने पर किसान भड़क गये।
(घ) आज राजस्थान में इन्दिरा गांधी नहर से उपलब्ध पेयजल के कारण छत वर्षाजल संग्रहण की लोकप्रियता घट रही है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
(i) व्याख्या करें कि जल किस प्रकार नवीकरण योग्य संसाधन है ?
उत्तर:
नवीकरण योग्य संसाधन वे संसाधन होते हैं जिनका बार-बार प्रयोग किया जा सकता है। इस परिभाषा के अनुसार जल एक नवीकरण योग्य संसाधन है। जल समुद्रों, नदियों, झीलों, तालाबों आदि से वाष्प बनकर उड़ता रहता है। जलवाष्प हवा में संघनित होकर बादलों में बदल जाती है। यह संघनित जलवाष्प पुनः वर्षा के रूप में धरती पर आ जाती है। धरती से जल पुनः सागरों आदि में पहुँचकर फिर वाष्पीकृत होता है। इस प्रकार यह सदैव गतिशील जलीय-चक्र, जल को एक नवीकरण योग्य संसाधन बना देता है, जिसका प्रयोग बार-बार किया जा सकता है।

(ii) जल दुर्लभता क्या है और इसके मुख्य कारण क्या हैं ?
उत्तर:
किसी स्थान पर माँग की तुलना में जल की कमी होना जल दुर्लभता कहलाता है। जल दुर्लभता के कारण

  1. निरन्तर बढ़ रही जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में निरन्तर कमी होना।
  2. जल का अतिदोहन।
  3. जल का अत्यधिक प्रयोग।
  4. समाज में जल संसाधनों का असमान वितरण
  5. जल का प्रदूषित होना।

(iii) बहुउद्देशीय परियोजनाओं से होने वाले लाभ और हानियों की तुलना करें।
उत्तर:

तुलना बहुउद्देशीय परियोजनाओं से लाभ बहुउद्देशीय परियोजनाओं से हानियाँ
(i) बाँधों में एकत्रित जल का प्रयोग सिंचाई के लिए (i) नदियों का प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध होने से तलछट किया जाता है। बहाव कम हो जाता है।
(ii) ये जल-विद्युत ऊर्जा प्राप्ति का प्रमुख साधन है। (ii) अत्यधिक तलछट जलाशय की तली पर जमा हो जाता है।
(iii) जल उपलब्धता के कारण जल की कमी वाले क्षेत्रों (iii) इनसे भूमि का निम्नीकरण होता है। में फसलें उगायी जा सकती हैं।
(iv) घरेलू और औद्योगिक उपयोग हेतु जल की प्राप्ति। (iv) भूकम्प की सम्भावना का बढ़ना।
(v) बाढ़ नियन्त्रण, मनोरंजन, आन्तरिक नौकायन, मत्स्य (v) किसी कारणवश बाँध के टूटने पर बाढ़ आ जाना। पालन व मृदा संरक्षण। जलजनित बीमारियाँ, प्रदूषण, वनों की कटाई, मृदा व वनस्पति का अपघटन।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए
(i) राजस्थान के अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण किस प्रकार किया जाता है ? व्याख्या कीजिए।
अथवा
राजस्थान के अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में जल संग्रहण की विधियों के बारे में बताइए।
उत्तर:
राजस्थान जैसे अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण निम्नलिखित विधियों से किया जाता है:

  1. राजस्थान जैसे अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में रहने वाले लोग पीने का पानी एकत्रित करने के लिए ‘छत वर्षा-जल संग्रहण’, तकनीक का प्रयोग करते हैं।
  2. शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षाजल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाये जाते हैं ताकि मृदा को सिंचित किया जा सके; जैसे-जैसलमेर में ‘खादीन’ (खडीन) एवं अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़’।
  3. राजस्थान में शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों विशेषकर बीकानेर, फलौदी और बाड़मेर में लगभग प्रत्येक घर में पीने का पानी एकत्रित करने के लिए भूमिगत टैंक अथवा टाँका होते हैं।
  4. इन क्षेत्रों में छत वर्षा जल संग्रहण तंत्र का प्रयोग पानी को एकत्रित करने के लिए होता है एवं ये टैंक सुविकसित छत वर्षा जल संग्रहण तंत्र का एक अभिन्न हिस्सा होते हैं। जिसे मुख्य घर या आँगन में बनाया जाता है। ये टैंक घरों की ढलवाँ छतों से पाइप द्वारा जुड़े होते हैं।
  5. छत से वर्षा का पानी इन पाइपों से होकर भूमिगत टाँका तक पहुँचता है जहाँ इसे एकत्रित किया जाता है। वर्षा का पहला जल छतों, पाइपों व नलों को साफ करने में प्रयोग होता है और इसे संग्रहीत नहीं किया जाता है। इसके बाद होने वाली वर्षा का जल संग्रहीत किया जाता है।
  6. टाँका में वर्षा जल जल संसाधन 151 अगली वर्षा ऋतु तक संग्रहीत किया जाता है तथा जल की कमी वाले दिनों में इस जल का उपयोग किया जाता है। यह वर्षा जल (पालर पानी) प्राकृतिक जल का शुद्धतम रूप माना जाता है। कुछ घरों में तो टाँकों के साथ भूमिगत कमरे भी बनाये जाते हैं, क्योंकि जल का यह स्रोत इन कमरों को भी ठण्डा रखता है, जिससे ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से राहत मिलती है।

(ii) परम्परागत वर्षा जल संग्रहण की पद्धतियों को आधुनिक काल में अपनाकर जल संग्रहण एवं भण्डारण किस प्रकार किया जा रहा है?
अथवा
“पारम्परिक वर्षा जल संग्रहण प्रणाली जल संरक्षण और जल भण्डारण के लिए उपयोगी है।” इस प्रणाली की महत्ता को दो उदाहरणों सहित उजागर कीजिए।
अथवा
वर्षा जल संग्रहण की पारम्परिक विधियाँ विभिन्न प्रदेशों में जल संसाधनों के संरक्षण के लिए किस प्रकार चलाई जाती रही हैं? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परम्परागत वर्षा जल संग्रहण की पद्धतियों को आधुनिक काल में अपनाकर निम्न प्रकार से जल संग्रहण एवं भण्डारण किया जा रहा है

  1. प्राचीन भारत में उत्कृष्ट जल संरचनाओं के साथ-साथ जल संग्रहण टैंक भी बनाये जाते थे। लोगों को वर्षा पद्धति एवं मृदा के गुणों के बारे में पूर्ण जानकारी थी। उन्होंने स्थानीय पारिस्थितिकीय स्थितियों और उनकी जल आवश्यकतानुसार वर्षाजल भौम-जल, नदी-जल एवं बाढ़-जल संग्रहण की अनेक विधियाँ विकसित कर ली थीं।
  2. पहाड़ी एवं पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों ने ‘गुल’ अथवा ‘कुल’ (पश्चिमी हिमालय क्षेत्र) जैसी वाहिकाएँ, नदी की – धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए बनाई हैं।
  3.  पश्चिमी राजस्थान में पीने का पानी एकत्रित करने के लिए ‘छत वर्षाजल संग्रहण’ की विधि एक सामान्य प्रचलित विधि है।
  4. पश्चिमी बंगाल में बाढ़ के मैदान में लोग अपने खेतों की सिंचाई करने के लिए बाढ़ जल वाहिकाएँ बनाते हैं।
  5. शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षाजल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाये जाते हैं ताकि मृदा को सिंचित किया जा सके तथा संरक्षित जल को खेती के लिए प्रयोग में लाया जा सके। उदाहरण-जैसलमेर (राजस्थान) में ‘खादीन (खडीन) एवं अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़’ बनाये जाते हैं।
  6. राजस्थान के अर्द्ध शुष्क एवं शुष्क क्षेत्रों विशेषकर फलौदी, बीकानेर व बाड़मेर आदि में लगभग प्रत्येक घर में पीने का पानी संग्रहण के लिए भूमिगत टैंक अथवा टाँका बने हुए हैं।
  7.  कर्नाटक के मैसूर जिले के गंडाथूर गाँव में ग्रामीणों ने अपने घर में जल की आवश्यकता-पूर्ति हेतु छत वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था की हुई है। शिलांग (मेघालय) में भी यह विधि प्रचलित है।
  8. मेघालय में नदियों एवं झरनों के जल को बाँस से बने पाइपों द्वारा एकत्रित करने वाली लगभग 200 वर्ष पुरानी सिंचाई विधि प्रचलन में है। इसे बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली कहा जाता है।

क्रियाकलाप आधारित एवं अन्य सम्बन्धित प्रश्न

पृष्ठ संख्या 27

प्रश्न 1.
अपने दिन-प्रतिदिन के अनुभव के आधार पर जल संरक्षण के लिए एक संक्षिप्त प्रस्ताव लिखें।
उत्तर:
मेरे अनुभव के आधार पर जल संरक्षण के लिए एक संक्षिप्त प्रस्ताव निम्न प्रकार से है:

  1. जल संरक्षण के प्रति जागरूक लोगों के एक समूह का निर्माण करें।
  2. इस समूह में अपने पड़ौसियों, मित्रों, परिवारीजनों एवं रिश्तेदारों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  3. जल संरक्षण का समाज में पर्चे बाँटकर अथवा बुलेटिन बोर्ड में नोटिस लगाकर प्रचार-प्रसार करें।
  4. दाँत साफ करते समय नल खुला रखने की अपेक्षा मग का उपयोग किया जाना चाहिए।
  5. स्नान करने में शॉवर अथवा ब्राथटब का उपयोग करने की अपेक्षा बाल्टी व मग का प्रयोग करना चाहिए।
  6. हाथ साफ करते समय नल को लगातार खुला न रखें।
  7. मग में पानी लेकर शेव बनानी चाहिए।
  8. शौचालय में प्रतिदिन फ्लश का प्रयोग करने की अपेक्षा बाल्टी को काम लिया में जाना चाहिए।
  9. वाहन को पाइप की अपेक्षा बाल्टी में पानी लेकर धोना चाहिए तथा वाहन को प्रतिदिन नहीं धोना चाहिए।
  10. पानी पीते समय गिलास को झूठा न करें बल्कि ऊपर से पानी पियें जिससे बार-बार धोने में लगने वाला पानी बचेगा।
  11. बर्तनों को साफ करते समय लगातार नल न चलायें। बल्कि पानी से भरे बड़े बर्तन (बेसिन) में बर्तनों को साफ किया जाना चाहिए।
  12. घर के बगीचे में कम पानी की जरूरत वाले पौधे लगाये जाने चाहिए।
  13. रसोईघर व स्नानागार से निकलने वाले पानी को पुनः बगीचे में काम में लिया जाना चाहिए।
  14. घास को पानी की अत्यधिक आवश्यकता होती है। अत: लॉन संस्कृति को नहीं अपनाना चाहिए।
  15. सब्जियों को सीधे नल के नीचे साफ करने की अपेक्षा किसी बर्तन में साफ किया जाना चाहिए।
  16. वर्षा के समय छत पर एकत्रित पानी को टैंक में एकत्रित किया जाना चाहिए अथवा इसे भूमि पर उतारना चाहिए।
  17. उपयोग में लेने के पश्चात् नल को अच्छी तरह बन्द किया जाना चाहिए। नल से पानी का रिसाव होने पर नल को तुरन्त ठीक कराना चाहिए।

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पृष्ठ संख्या 29

प्रश्न 2.
अन्तर्राज्यीय जल विवादों की सूची तैयार करें।
उत्तर:
प्रमुख अन्तर्राज्यीय जल विवादों की सूची इस प्रकार से है
1. कृष्णा-गोदावरी जल विवाद,
2. रावी-व्यास जल विवाद।

पृष्ठ संख्या 33

प्रश्न 3.
अपने क्षेत्र में पाये जाने वाले अन्य वर्षा जल संग्रहण तंत्रों के बारे में पता लगाएँ।.
उत्तर:
हमारे क्षेत्र में पाये जाने वाले अन्य वर्षा जल संग्रहण तन्त्र निम्नलिखित हैं

  1. तालाब
  2. पोखर
  3. बावड़ी
  4. छत पर पानी संग्रहण
  5. चेक बाँध
  6. कुई
  7. कुंडी
  8. एनिकट।

पृष्ठ संख्या 35

प्रश्न 4.
सूचना एकत्रित करें कि उद्योग किस प्रकार हमारे जल-संसाधनों को प्रदूषित कर रहे हैं ?
उत्तर:
अधिकांश उत्पादन जल के उपयोग पर निर्भर हैं तथा उत्पादन प्रक्रिया के अन्त में उद्योगों से निकलने वाला बहिस्राव हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों से युक्त रहता है जिनका निस्तारण अति आवश्यक होता है। सदा से ही उद्योगों को जल की माँग की पूर्ति के लिए तथा अपशिष्ट पदार्थों के सुगम निस्तारण के उद्देश्य से अधिकांशत: बड़ी नदियों तथा तालाबों के किनारे स्थापित किया जाता रहा है।

उद्योगों को यह आर्थिक सुरक्षा एवं सुविधा की दृष्टि से लाभप्रद भी होता है कि जो भी अनुपचारित बहिःस्राव हो तो उसे निकटतम जलाशय में सन्निक्षेपित कर दिया जाये। प्रारम्भ में तो इसके दुष्परिणाम परिलिक्षित नहीं होते, पर जैसे-जैसे औद्योगीकरण बढ़ता है, नदी तथा तालाब औद्योगिक अपशिष्टों की मात्रा में वद्धि के कारण अधिकाधिक प्रदूषित होते जाते हैं। यही कारण है कि औद्योगिक रूप से विकसित देशों के तो अधिकांश बड़े जलस्रोत गंभीर रूप से सन्दूषित होकर नष्ट होने की स्थिति में पहुँच गये हैं।

प्रत्येक उद्योग में उत्पादन प्रक्रिया के उपरान्त अनेक अनुपयोगी पदार्थ शेष बचे रहते हैं। अधिकांश उद्योगों के बहिःस्राव में अनेक धात्विक तत्व तथा अम्ल, क्षार, लवण, तेल, वसा आदि रासायनिक पदार्थ उपस्थित रहते हैं, जिनसे गम्भीर जल प्रदूषण की सम्भावना रहती है। लुगदी कागज उद्योग, शक्कर उद्योग, कपड़ा उद्योग, चमड़ा उद्योग, शराब उद्योग, औषधि निर्माण उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग एवं रासायनिक उद्योगों द्वारा विशाल मात्रा में विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट बहिःस्राव रूप में जलमार्गों में बहाये जाते हैं।

विभिन्न धातुओं के खनन के पश्चात् खुली खदानों में वर्षा-काल में जल के साथ बहकर बहुत-सी खनिज मृदा भी जलाशयों में जा मिलती है। इस मृदा में अनेक धातु अयस्क पर्याप्त मात्रा में होते हैं जो जलस्रोतों में प्रदूषणकारी परिवर्तन ला देते हैं। इनके अतिरिक्त पारा, ताँबा, केडमियम भी प्रमुख विपैली धातुएँ हैं जो औद्योगिक स्रोतों से जल में जा मिलती हैं। जिससे जल-संसाधन अत्यधिक प्रदूषित हो जाते हैं।

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