Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 9 संस्कृतियों का टकराव Important Questions and Answers.
JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 9 संस्कृतियों का टकराव
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
1. अरावाकी लुकायो समुदाय के लोग रहते थे-
(अ) क्यूबा
(ब) अन्ध महासागर के क्षेत्र
(स) मैक्सिको
(द) कैरीबियन द्वीप-समूह।
उत्तर:
(द) कैरीबियन द्वीप-समूह।
2. एजटेक लोग रहते थे –
(अ) ब्राजील
(ब) काँगो
(स) मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी
(द) न्यूयार्क।
उत्तर:
(स) मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी
3. मक्का की खेती किन लोगों की सभ्यता का मुख्य आधार था –
(अ) तुपिनांबा
(ब) अरावाकी
(स) एजटेक
(द) माया।
उत्तर:
(द) माया।
4. दक्षिणी अमरीकी देशों की संस्कृतियों में से सबसे बड़ी संस्कृति थी –
(अ) स्पेनिश लोगों की
(ब) इंका लोगों की
(स) एजटेक लोगों की
(द) अरावाकी लोगों की।
उत्तर:
(ब) इंका लोगों की
5. पन्द्रहर्वीं शताब्दी में खोज-यात्रियों में कौनसे यूरोपीय देश सबसे आगे थे?
(अ) इंग्लैण्ड
(ब) हालैण्ड
(स) स्पेन और पुर्तगाल
(द) बेल्जियम और फ्रांस।
उत्तर:
(स) स्पेन और पुर्तगाल
6. कोलम्बस द्वारा खोजे गए उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का नामकरण किसके नाम पर किया गया-
(अ) कोलम्बस
(ब) वास्कोडिगामा
(स) अमेरिगो वेस्पुस्सी
(द) हेनरी।
उत्तर:
(ब) वास्कोडिगामा
7. मैक्सिको पर अधिकार करने वाला स्पेन का निवासी था-
(अ) डियाज –
(ब) हेनरी
(स) मोंटेजुमा
(द) कोर्टेस।
उत्तर:
(द) कोर्टेस।
8. इंका साम्राज्य पर अधिकार करने वाला स्पेन का निवासी था-
(अ) कैब्राल
(ब) पिजारो
(स) क्वेटेमोक
(द) कोर्टेस।
उत्तर:
(ब) पिजारो
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. . …………… लोग लड़ने की बजाय बातचीत से झगड़ा निपटाना अधिक पसंद करते थे।
2. …………….. क्जिए ………….. लोग दक्षिणी अमरीका के पूर्वी समुद्र तट तथा ब्राजील-पेड़ों के जंगलों में बसे हुए गांवों में रह थे।
3. 12 वीं सदी में ………….. लोग उत्तर से आकर मेक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में बस गए थे।
4. ………….. की खेती मैक्सिको की माया संस्कृति का मुख्य आधार थी।
5. दक्षिणी अमरीकी देशज संस्कृतियों में सबसे बड़ी पेरू में …………….. लोगों की संस्कृति थी।
उत्तर:
1. अरावाक
2. तुपिनांबा
3. एजटेक
4. मक्का
5. इंका
निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये-
(अ) बहामा द्वीप समूह के गुहानाहानि द्वीप की खोज की
(ब) मैक्सिको पर विजय प्रास की
(स) इंका राज्य पर विजय प्राप्त की
(द) ‘ज्योग्राफी’ नामक पुस्तक लिखी
(य) ब्राजील की खोज की
1. टॉलेमी
2. कोलम्बस
3. कोर्टेस
4. पिजारो
5. क्रैब्राल
उत्तर-
1. टॉलेमी
(द) ‘ज्योग्राफी’ नामक पुस्तक लिखी
2. कोलम्बस
(अ) बहामा द्वीप समूह के गुहानाहानि द्वीप की खोज की
3. कोर्टेस
(ब) मैक्सिको पर विजय प्रास की
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
18वीं शताब्दी में सबसे बड़ा शहर कौन सा था ?
उत्तर:
लन्दन।
प्रश्न 2.
बैंक ऑफ इंग्लैण्ड की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1694 ई. में।
प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड में मशीनीकरण में काम आने वाली दो मुख्य सामग्रियों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) कोयला तथा
(2) लोहा।
प्रश्न 4.
म्यूल का आविष्कार किसने किया और कब ?
उत्तर:
1779 में, सैम्युअल क्राम्पटन ने।
प्रश्न 5.
वाटर फ्रेम का आविष्कार किसने किया और कब ?
उत्तर:
1769 में, रिचर्ड आर्कराइट ने।
प्रश्न 6.
प्रथम भाप से चलने वाले रेल का इंजन किसने बनाया और कब ?
उत्तर:
1814 में, स्टीफेन्सन ने।
प्रश्न 7.
इंग्लैण्ड में 1788 से 1796 की अवधि किस नाम से पुकारी जाती है?
उत्तर:
‘नहरोन्माद’ के नाम से।
प्रश्न 8.
इंग्लैण्ड में पहली नहर किसने बनाई और कब ?
उत्तर:
1761 में, जेम्स ब्रिंडली ने।
प्रश्न 9.
1801 में किसने इंजन बनाया?
उत्तर:
रिचर्ड ट्रेविथिक ने।
प्रश्न 10.
रिचर्ड ट्रेविथिक द्वारा निर्मित इंजन क्या कहलाता था ?
उत्तर:
पफिंग डेविल (फुफकारने वाला दानव)।
प्रश्न 11.
1814 में जार्ज स्टीफेन्सन ने किस रेल इंजन का निर्माण किया ?
उत्तर:
‘ब्लुचर’ नामक रेल इंजन का।
प्रश्न 12.
1850 में इंग्लैण्ड में 50 हजार से अधिक की आबादी वाले कितने नगर थे ?
उत्तर:
29।
प्रश्न 13.
अंग्रेजी में ‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसके द्वारा किया गया ?
उत्तर:
आरनाल्ड टायनबी द्वारा।
प्रश्न 14.
स्पिन्निंग जैनी का आविष्कार किसने किया और कब किया ?
उत्तर:
1765 में, हारग्रीव्ज ने।
प्रश्न 15.
‘पावरलूम’ का आविष्कार किसने किया और कब किया?
उत्तर:
1787 में, एडमण्ड कार्टराइट ने।
प्रश्न 16.
भाप के इंजन का आविष्कार किसने किया और कब किया ?
उत्तर:
1769 में, जेम्स वाट ने।
प्रश्न 17.
किस देश के साथ लम्बे समय तक युद्ध करने में इंग्लैण्ड को औद्योगिक क्षेत्र में हानि उठानी पड़ी?
उत्तर:
फ्रांस के साथ।
प्रश्न 18.
फ्लाइंग शटल का आविष्कारक कौन था ?
उत्तर:
जान के।
प्रश्न 19.
चार्ल्स डिकन्स ने अपने किस उपन्यास में एक काल्पनिक औद्योगिक नगर कोकटाउन की दशा का वर्णन किया है ?
उत्तर:
‘हार्ड टाइम्स’ में।
प्रश्न 20.
मजदूरों की दशा में सुधार के लिए ‘लुडिज्म’ नामक आन्दोलन किसने चलाया था?
उत्तर:
जनरल नेडलुड ने।
प्रश्न 21.
‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ब्रिटेन में 1780 के दशक और 1850 के दशक के बीच उद्योग और अर्थव्यवस्था का जो रूपान्तरण हुआ, उसे ‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ कहते हैं।
प्रश्न 22.
इंग्लैण्ड में दूसरी औद्योगिक क्रान्ति कब हुई ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में दूसरी औद्योगिक क्रान्ति लगभग 1850 के बाद आई। इसमें रसायन तथा बिजली जैसे नये औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार हुआ।
प्रश्न 23.
‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किन विद्वानों के द्वारा किया गया ?
उत्तर:
‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांस के विद्वान जार्जिस मिशले तथा जर्मनी के विद्वान फ्रेडरिक एंजेल्स द्वारा किया गया।
प्रश्न 24.
लन्दन इंग्लैण्ड के बाजारों का केन्द्र क्यों बना हुआ था ?
उत्तर:
लन्दन इंग्लैण्ड का सबसे बड़ा शहर था। लन्दन ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए ऋण-प्राप्ति के प्रमुख स्रोत के रूप में एम्सटर्डम का स्थान ले लिया था।
प्रश्न 25.
‘औद्योगिक क्रान्ति’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब हाथ के स्थान पर बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा विशाल कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाने लगा, उसे ‘औद्योगिक क्रान्ति’ कहते हैं।
प्रश्न 26.
सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के शुरू होने के दो कारण बताइए।
उत्तर:
(1) इंग्लैण्ड सत्रहवीं शताब्दी से राजनीतिक दृष्टि से सुदृढ़ एवं सन्तुलित रहा था।
(2) इंग्लैण्ड में कोयला और लोहा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था।
प्रश्न 27.
1750 से 1800 के बीच इंग्लैण्ड में बड़ी आबादी वाले शहरों की संख्या कितनी थी ? उनमें सबसे बड़ा शहर कौनसा था ?
उत्तर:
(1) 11
(2) लन्दन।
प्रश्न 28.
इंग्लैण्ड की वित्तीय प्रणाली का केन्द्र कौनसा बैंक था ? उस बैंक की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की वित्तीय प्रणाली का केन्द्र बैंक ऑफ इंग्लैण्ड था। बैंक ऑफ इंग्लैण्ड की स्थापना 1694 में हुई
प्रश्न 29.
लोहा प्रगलन की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं? इसमें किसका प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर:
लोहा प्रगलन की प्रक्रिया के द्वारा लौह खनिज में से शुद्ध तरल – धातु के रूप में निकाला जाता है। इसमें काठ कोयले (चारकोल) का प्रयोग किया जाता था।
प्रश्न 30.
लोहा प्रगलन की प्रक्रिया में काठ कोयले (चारकोल) के प्रयोग करने से उत्पन्न दो समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) काठ कोयला लम्बी दूरी तक ले जाने की प्रक्रिया में टूट जाया करता था।
(2) घटिया प्रकार के लोहे का ही उत्पादन होता था।
प्रश्न 31.
लौह धातुकर्म उद्योग में क्रान्ति लाने का श्रेय किस परिवार को है?
उत्तर:
लौह धातुकर्म उद्योग में क्रान्ति लाने का श्रेय श्रीप शायर के एक डर्बी परिवार को है। इस परिवार की तीन पीढ़ियों ने धातुकर्म उद्योग में क्रान्ति ला दी।
प्रश्न 32.
धमन भट्टी का आविष्कार किसने किया और कब किया?
उत्तर:
1709 में प्रथम अब्राहम डर्बी ने धमन भट्टी का आविष्कार किया जिसमें सर्वप्रथम ‘कोक’ का प्रयोग किया गया।
प्रश्न 33.
धमन भट्टी में कोक के प्रयोग के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) कोक में उच्च ताप उत्पन्न करने की शक्ति थी।
(2) अब भट्टियों को काठ कोयले पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था।
प्रश्न 34.
लौह- उद्योग के क्षेत्र में हेनरी कोर्ट ने क्या आविष्कार किया ?
उत्तर:
हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी तथा बेलन मिल का आविष्कार किया।
प्रश्न 35.
लौह उद्योग के विकास में जोन विल्किन्सन के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1770 के दशक में जोन विल्किन्सन ने सर्वप्रथम लोहे की कुर्सियाँ, आसव तथा शराब की भट्टियों के लिए टंकियाँ और लोहे की सभी आकार की पाइपें बनाईं।
प्रश्न 36.
विश्व में प्रथम लोहे का पुल किसने और कब बनाया?
उत्तर:
1779 ई. में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल कोलब्रुकडेल में सेवर्न नदी पर बनाया।
प्रश्न 37.
इंग्लैण्ड में मशीनीकरण में काम आने वाले कौनसे मुख्य खनिज बहुतायत में उपलब्ध थे ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में मशीनीकरण में काम आने वाले मुख्य खनिज कोयला तथा लौह-अयस्क बहुतायत में उपलब्ध
प्रश्न 38.
कपास की कताई और बुनाई के क्षेत्र में हुए दो आविष्कारों और उनके आविष्कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) 1733 ई. में जान के ने ‘उड़न तुरी करघे’ (फ्लाइंग शटल लूम) तथा
(2) 1765 में हारग्रीव्ज ने स्पिन्निंग जैनी का आविष्कार किया।
प्रश्न 39.
‘वाटर फ्रेम’ का आविष्कार किसने किया और कब किया?
उत्तर:
1769 ई. में रिचर्ड आर्कराइट ने ‘वाटर फ्रेम’ नामक मशीन का आविष्कार किया।
प्रश्न 40.
औद्योगीकरण में भाप की शक्ति का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भाप की शक्ति उच्च तापमानों पर दबाव उत्पन्न करती जिससे अनेक प्रकार की मशीनें चलाई जा सकती
प्रश्न 41.
भाप की शक्ति के क्षेत्र में थामस सेवरी ने क्या आविष्कार किया ?
उत्तर:
1698 में थामस सेवरी ने खानों से पानी बाहर निकालने के लिए ‘माइनर्स फ्रेंड’ (खनक-मित्र) नामक एक भाप के इंजन का मॉडल बनाया।
प्रश्न 42.
थॉमस न्यूकामेन ने भाप के इंजन का कब आविष्कार किया?
उत्तर:
1712 में थॉमस न्यूकामेन ने भाप का इंजन बनाया।
प्रश्न 43.
जेम्स वाट ने भाप का इंजन कब बनाया? इसकी क्या विशेषता थी ?
उत्तर:
1769 में जेम्स वाट ने ऐसा भाप का इंजन बनाया जिससे कारखानों में शक्ति चालित मशीनों को ऊर्जा मिलने लगी।
प्रश्न 44.
‘सोहो फाउन्ड्री’ का निर्माण किसने किया?
उत्तर:
1775 में जेम्स वाट ने एक धनी निर्माता मैथ्यू बॉल्टन की सहायता से बर्मिंघम में ‘सोहो फाउन्ड्री’ की स्थापना की।
प्रश्न 45.
1800 ई. के पश्चात् किन तत्त्वों ने भाप के इंजन की प्रौद्योगिकी के विकास में योगदान दिया ?
उत्तर:
अधिक हल्की तथा सुदृढ़ धातुओं के प्रयोग ने, अधिक सटीक मशीनी औजारों के निर्माण ने और वैज्ञानिक उन्नति के अधिक प्रसार ने।
प्रश्न 46.
प्रारम्भ में इंग्लैण्ड में नहरों का निर्माण क्यों किया गया?
उत्तर:
प्रारम्भ में इंग्लैण्ड में नहरों का निर्माण कोयले को शहरों तक ले जाने के लिए किया गया।
प्रश्न 47.
इंग्लैण्ड में पहली नहर कब और किसके द्वारा बनाई गई ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में पहली नहर ‘वर्सली कैनाल ‘ 1761 ई. में जेम्स ब्रिंडली द्वारा बनाई गई।
प्रश्न 48.
नहरों के निर्माण के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) नहरों के आपस में जुड़ जाने से नए-नए शहरों में बाजार बन गए।
(2) बर्मिंघम शहर का विकास तीव्र गति से हुआ।
प्रश्न 49.
पहला भाप से चलने वाला रेल का इंजन किसके द्वारा बनाया गया और कब ?
उत्तर:
पहला भाप से चलने वाला रेल का इंजन ‘रॉकेट’ 1814 में स्टीफेंसन के द्वारा बनाया गया।
प्रश्न 50.
रेलवे परिवहन के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) रेलगाड़ियाँ वर्ष भर उपलब्ध रहती थीं।
(2) ये सस्ती और तेज भी थीं तथा माल और यात्री दोनों को ढो सकती थीं।
प्रश्न 51.
रिचर्ड ट्रेविथिक ने रेल के इंजन का निर्माण कब किया? इसे क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
1801 में रिचर्ड ट्रेविथिक ने रेल के इंजन का निर्माण किया। इसे ‘पफिंग डेविल’ (फुफकारने वाला दानव) कहते थे।
प्रश्न 52.
‘ब्लचर’ नामक रेलवे इंजन किसने बनाया और कब ?
उत्तर:
1814 में जार्ज स्टीफेन्सन नामक एक रेलवे इन्जीनियर ने ‘ब्लचर’ नामक रेल इंजन बनाया।
प्रश्न 53.
इंग्लैण्ड में पहली रेलवे लाइन कब बनाई गई ?
उत्तर:
1825 में इंग्लैण्ड में पहली रेलवे लाइन स्टाकटन तथा डार्लिंगटन शहरों के बीच बनाई गई।
प्रश्न 54.
1830 के दशक में नहरी परिवहन में कौनसी समस्याएँ आईं ?
उत्तर:
(1) नहरों के कुछ भागों में जलपोतों की भीड़भाड़ के कारण परिवहन की गति धीमी पड़ गई।
(2) पाले, बाढ़ या सूखे के कारण नहरों के प्रयोग का समय सीमित हो गया।
प्रश्न 55.
‘छोटे रेलोन्माद’ तथा ‘बड़े रेलोन्माद’ के दौरान कितने मील लम्बी रेल लाइन बनाई गई ?
उत्तर:
1833-37 के ‘छोटे रेलोन्माद’ के दौरान 1400 मील लम्बी रेल लाइन और 1844-47 के ‘बड़े रेलोन्माद’ के दौरान 9500 मील लम्बी रेल लाइन बनाई गई।
प्रश्न 56.
ब्रिटेन के उद्योगपति प्रायः स्त्रियों और बच्चों को अपने कारखानों में काम पर क्यों लगाते थे? दो कारण बताइए।
उत्तर:
(1) स्त्रियों और बच्चों को पुरुषों की अपेक्षा कम मजदूरी दी जाती थी।
(2) स्त्रियाँ और बच्चे अपने काम की घटिया परिस्थितियों की कम आलोचना करते थे।
प्रश्न 57.
कारखानों में काम करते समय बच्चों को किन दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता था ?
उत्तर:
(1) कारखानों में काम करते समय कई बार तो बच्चों के बाल मशीनों में फँस जाते थे अथवा उनके हाथ कुचल जाते थे। (2) कभी – कभी बच्चे मशीनों में गिर कर मर जाते थे।
प्रश्न 58.
कोयले की खानें बच्चों के काम करने के लिए क्यों खतरनाक होती थीं? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) खानों की छतें धँस जाती थीं अथवा वहाँ विस्फोट हो जाता था।
(2) छोटे बच्चों को ‘ट्रैपर’ का काम करना पड़ता था।
प्रश्न 59.
कारखानों के मालिक बच्चों से काम लेना आवश्यक क्यों समझते थे ?
उत्तर:
कारखानों के मालिक बच्चों से काम लेना बहुत आवश्यक समझते थे ताकि वे अभी से काम सीख कर बड़े होकर उनके लिए अच्छा काम कर सकें।
प्रश्न 60.
फ्रांस के साथ लम्बे समय तक युद्ध करते रहने से इंग्लैण्ड पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
(1) इंग्लैण्ड तथा यूरोप के बीच होने वाला व्यापार अस्त-व्यस्त हो गया।
(2) अनेक फैक्ट्रियों को बन्द करना पड़ा।
(3) बेरोजगारी में वृद्धि हुई।
प्रश्न 61.
1795 के अधिनियम के अन्तर्गत ब्रिटेनवासियों पर क्या प्रतिबन्ध लगाए गए ?
उत्तर:
1795 के अधिनियम के अन्तर्गत ब्रिटेनवासियों को भाषण या लेखन द्वारा उकसाना अवैध घोषित कर दिया
प्रश्न 62.
ब्रिटेनवासियों ने ‘पुराने भ्रष्टाचार’ के विरुद्ध अपना आन्दोलन जारी रखा। ‘पुराना भ्रष्टाचार’ क्या था ?
उत्तर:
‘पुराना भ्रष्टाचार’ शब्द का प्रयोग राजतन्त्र और संसद के सम्बन्ध में किया जाता था।
प्रश्न 63.
‘कार्न लाज’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
‘कार्न लाज’ कानून के अन्तर्गत ब्रिटेन में विदेशों से सस्ते अनाज के आयात पर रोक लगा दी गई थी।
प्रश्न 64.
लुडिज्म आन्दोलन क्या था ?
उत्तर:
ब्रिटेन के जनरल नेडलुड के नेतृत्व में लुडिज्म (1811-17) नामक एक आन्दोलन चलाया गया। यह एक प्रकार के विरोध प्रदर्शन का उदाहरण था।
प्रश्न 65.
लुडिज्म के अनुयायियों की प्रमुख माँगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) न्यूनतम मजदूरी
(2) नारी एवं बाल-श्रम पर नियन्त्रण
(3) मशीनों के आविष्कारों से बेरोजगार हुए लोगों के लिए काम।
प्रश्न 66.
‘पीटरलू के नरसंहार’ की घटना से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ब्रिटेन में अगस्त, 1819 में 80,000 लोग अपने लिए लोकतान्त्रिक अधिकारों की माँग करने के लिए सेंट पीटर्स मैदान में इकट्ठे हुए, परन्तु उनका बलपूर्वक दमन कर दिया गया।
प्रश्न 67.
1819 के कानूनों के अनुसार ब्रिटेन में मंजदूरों को क्या सुविधाएँ प्रदान की गई ?
उत्तर:
1819 के कानूनों के अन्तर्गत 9 वर्ष से कम की आयु वाले बच्चों से फैक्ट्रियों में काम करवाने पर प्रतिबन्ध लंगा दिया गया।
प्रश्न 68.
फैक्ट्री पद्धति की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) एक ही कारखाने में असंख्य लोगों का एक-साथ काम करना।
(2) मशीनों का यान्त्रिक शक्ति से चलना।
प्रश्न 69.
औद्योगिक क्रान्ति के दो सामाजिक परिणाम (प्रभाव) बताइए।
उत्तर:
(1) स्त्रियों और बच्चों की स्थिति शोचनीय हो गई।
(2) मजदूरों की स्थिति भी शोचनीय हो गई।
प्रश्न 70.
औद्योगिक क्रान्ति के दो आर्थिक परिणाम बताइए।
उत्तर:
(1) वस्तुओं के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई।
(2) औद्योगिक पूँजीवाद का विकास हुआ।
प्रश्न 71.
‘नहरोन्माद’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
1788 से 1796 ई. तक की अवधि को ‘नहरोन्माद’ कहा जाता है क्योंकि इस अवधि में 46 नहरों के निर्माण की परियोजनाएँ शुरू की गई थीं।
लघुत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
ब्रिटेन में सम्पन्न हुई ‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ एवं ‘द्वितीय औद्योगिक क्रान्ति’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
ब्रिटेन में ‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ – ब्रिटेन में 1780 के दशक और 1850 के दशक के बीच उद्योग और अर्थव्यवस्था का जो रूपान्तरण हुआ, उसे ‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ कहते हैं। इस क्रान्ति के ब्रिटेन में दूरगामी प्रभाव हुए। ब्रिटेन में ‘द्वितीय औद्योगिक क्रान्ति’ – इंग्लैण्ड में ‘दूसरी औद्योगिक क्रान्ति’ लगभग 1850 ई. के बाद आई। इस क्रान्ति में रसायन तथा बिजली जैसे नये औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार हुआ। उस अवधि में ब्रिटेन, जो पहले विश्व- भर में औद्योगिक शक्ति के रूप में अग्रणी था, पिछड़ गया और जर्मनी तथा संयुक्त राज्य अमेरिका उससे आगे निकल गए।
प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक क्रान्ति का अर्थ- जब हाथ के स्थान पर मशीनों द्वारा बड़े-बड़े कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा, जिसके परिणामस्वरूप उद्योग, व्यवसाय, यातायात, संचार आदि क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए, उन्हें ‘औद्योगिक क्रान्ति’ के नाम से पुकारा जाता है। अब घरेलू उत्पादन पद्धति का स्थान कारखाना पद्धति ने ले लिया, जहाँ बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन होने लगा। इस प्रकार, औद्योगिक जीवन में परिवर्तन इतने बड़े और तीव्र गति से हुए कि उन्हें व्यक्त करने के लिए ‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। इंग्लैण्ड में 1780 के दशक और 1850 के दशक के बीच उद्योग और अर्थव्यवस्था का जो रूपान्तरण हुआ, उसे प्रथम ‘औद्योगिक क्रान्ति’ कहते हैं। इंग्लैण्ड में दूसरी औद्योगिक क्रान्ति लगभग 1850 के बाद आई। इतिहासकार डेविस ने ‘औद्योगिक क्रान्ति’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है कि ” ‘औद्योगिक क्रान्ति’ का अभिप्राय उन परिवर्तनों से है, जिन्होंने यह सम्भव कर दिया कि मनुष्य उत्पादन के प्राचीन साधनों को त्याग कर विशाल पैमाने पर विशाल कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन कर सके।”
प्रश्न 3.
‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किन विद्वानों द्वारा किया गया ?
उत्तर:
‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग – ‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग फ्रांस के विद्वान जार्जिस मिले और जर्मनी के विद्वान फ्रेडरिक एंजेल्स द्वारा किया गया। अंग्रेजी में इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम दार्शनिक एवं अर्थशास्त्री आरनाल्ड टायनबी द्वारा उन परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए किया गया जो ब्रिटेन के औद्योगिक विकास में 1760 और 1820 के बीच हुए थे। इस सम्बन्ध में टायनबी ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कई व्याख्यान दिए थे। उनके व्याख्यान उनकी मृत्यु के पश्चात् 1884 में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुए, जिसका नाम था -‘लेक्चर्स ऑन दि इण्डस्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैण्ड’।
प्रश्न 4.
सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में ही औद्योगिक क्रान्ति के प्रारम्भ होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
1. इंग्लैण्ड में सुदृढ़ राजनीतिक व्यवस्था – इंग्लैण्ड सत्रहवीं शताब्दी से राजनीतिक दृष्टि से सुदृढ़ एवं सन्तुलित रहा था। इंग्लैण्ड में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही सिक्का ( मुद्रा – प्रणाली) और एक ही बाजार व्यवस्था थी। मुद्रा का प्रयोग विनिमय के रूप में होने से लोगों को अपनी आय से अधिक खर्च करने के लिए साधन प्राप्त हो गए और वस्तुओं की बिक्री के लिए बाजार का विस्तार हो गया।
2. कृषि क्रान्ति – अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में ‘कृषि क्रान्ति’ सम्पन्न हुई। इसके परिणामस्वरूप बड़े जमींदारों ने छोटे-छोटे खेत खरीद लिए। इससे भूमिहीन किसान और चरवाहे एवं पशुपालक रोजगार की तलाश में शहरों में चले गए।
3. भूमंडलीय व्यापार – 18वीं सदी तक आते-आते भूमंडलीय व्यापार का केन्द्र इटली और फ्रांस के पत्तनों से हटकर हालैंड और ब्रिटेन के पत्तनों पर आ गया और लंदन ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में एम्सटर्डम का स्थान ले लिया।
4. कोयला, लोहा आदि की उपलब्धता – इंग्लैण्ड इस मामले में सौभाग्यशाली था कि वहाँ मशीनीकरण में काम आने वाली मुख्य सामग्रियाँ – कोयला और लौह अयस्क तथा उद्योगों में काम आने वाली खनिज जैसे सीसा, ताँबा, रांगा (टिन) आदि बहुतायत में उपलब्ध थीं।
5. अन्य कारण – उक्त कारणों के साथ-साथ अन्य कारण थे-
(i) गाँवों से आए गरीब लोग नगरों में काम करने के लिए उपलब्ध हो गए।
(ii) बड़े-बड़े उद्योग धंधे स्थापित करने के लिए आवश्यक ऋण राशि उपलब्ध कराने के लिए बैंक मौजूद थे।
(iii) परिवहन के लिए एक अच्छी व्यवस्था उपलब्ध थी। रेल मार्गों के निर्माण से वहाँ एक नया परिवहन तंत्र तैयार हो गया था।
(iv) प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों (आविष्कारों) की एक श्रृंखला ने उत्पादन के स्तर में अचानक वृद्धि कर दी थी।
प्रश्न 5.
18वीं शताब्दी तक ब्रिटेन में लोहे के क्षेत्र में क्या समस्याएँ थीं?
उत्तर:
18वीं शताब्दी तक ब्रिटेन में प्रयोग योग्य लोहे की कमी थी। लोहा प्रगलन की प्रक्रिया के द्वारा लौह खनिज में से शुद्ध तरल – धातु के रूप में निकाला जाता था। प्रगलन प्रक्रिया के लिए काठ कोयले (चारकोल) का प्रयोग किया जाता था। इस कार्य में निम्नलिखित समस्याएँ थीं-
(1) काठ कोयला लम्बी दूरी तक ले जाने की प्रक्रिया में टूट जाया करता था।
(2) इसकी अशुद्धताओं के कारण घटिया प्रकार के लोहे का ही उत्पादन होता था।
(3) यह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध भी नहीं था, क्योंकि लकड़ी के लिए जंगल काट लिए गए
(4) यह उच्च तापमान उत्पन्न नहीं कर सकता था।
प्रश्न 6.
18वीं शताब्दी में ब्रिटेन में लोहा उद्योग के क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
18वीं सदी में ब्रिटेन में लोहा उद्योग के क्षेत्र में हुए विकास –
(i) 1709 में प्रथम अब्राहम डर्बी ने धमन भट्टी का आविष्कार किया। इसमें सर्वप्रथम ‘कोक’ का प्रयोग किया गया। कोक में उच्च ताप उत्पन्न करने की शक्ति थी। इस आविष्कार से काठ कोयले की निर्भरता समाप्त हो गई।
(ii) द्वितीय डर्बी ने ढलवाँ लोहे से पिटवाँ लोहे का विकास किया जो कम भंगुर था।
(iii) हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी और बेलन मिल का आविष्कार किया। अब लोहे से अनेकानेक उत्पाद बनाना संभव हो गया।
(iv) 1770 के दशक में जोन विल्किन्सन ने सर्वप्रथम लोहे की कुर्सियाँ, आसव तथा शराब की भट्टियों के लिए टंकियाँ तथा लोहे की नलियाँ (पाइपें ) बनाईं।
(v) 1779 में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल कोलब्रुकडेल में सेवर्न नदी पर बनाया। (vi) विलकिन्सन ने पेरिस को पानी की आपूर्ति के लिए 40 मील लम्बी पानी की पाइपें पहली बार ढलवाँ लोहे में बनाई। ब्रिटेन के लौह उद्योग ने 1800 से 1830 की अवधि में अपने उत्पादन को चौगुना बढ़ा लिया।
प्रश्न 7.
कपास की कताई और बुनाई के क्षेत्र में ब्रिटेन में हुए विभिन्न आविष्कारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. उड़न तुरी करघा (फ्लाइंग शटल लूम ) – 1733 ई. में लंकाशायर निवासी जान के ने उड़न तुरी करघा (फ्लाइंग शटल लूम) का आविष्कार किया। इसकी सहायता से कम समय में अधिक चौड़ा कपड़ा बनाना सम्भव हो गया।
2. स्पिनिंग जैनी – 1765 ई. में ब्लैकबर्न निवासी जेम्स हारग्रीव्ज ने ‘स्पिन्निंग जैनी’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इस पर एक अकेला व्यक्ति एक साथ कई धागे कात सकता था।
3. वाटर फ्रेम – 1769 ई. में रिचर्ड आर्कराइट ने ‘वाटर फ्रेम’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इस मशीन द्वारा पहले से कहीं अधिक मजबूत धागा बनाया जाने लगा।
4. म्यूल – 1779 ई. में सेम्युल क्राम्पटन ने ‘म्यूल’ नामक मशीन का आविष्कार किया।
5. पावरलूम – 1787 में एडमंड कार्टराइट ने पावरलूम अर्थात् शक्ति-चालित करघे का आविष्कार किया।
प्रश्न 8.
18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ब्रिटेन में कताई व बुनाई के उद्योग में क्या समस्याएँ थीं?
उत्तर:
ब्रिटेन में कताई व बुनाई के उद्योग में समस्याएँ – अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ब्रिटेन में कताई का काम इतनी धीमी गति और परिश्रम से किया जाता था कि एक बुनकर को व्यस्त रखने के लिए आवश्यक धागा कातने के लिए 10 कातने वालों, अधिकतर स्त्रियों की आवश्यकता पड़ती थी। इसलिए कातने वाले दिन भर कताई के काम में व्यस्त रहते थे, जबकि बुनकर बुनाई के लिए धागे की प्रतीक्षा में समय नष्ट करते रहते थे।
प्रश्न 9.
“1780 के दशक से कपास उद्योग कई रूपों में ब्रिटिश औद्योगीकरण का प्रतीक बन गया। ” स्पष्ट कीजिए। इस उद्योग की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में कपास की कताई और बुनाई के उद्योग में अनेक आविष्कार हुए जिसके फलस्वरूप वस्त्र उद्योग में अत्यधिक उन्नति हुई। 1780 के दशक से कपास उद्योग कई रूपों में ब्रिटिश औद्योगीकरण का प्रतीक बन गया। इस उद्योग की दो प्रमुख विशेषताएँ थीं –
(1) कच्चे माल के रूप में आवश्यक कपास सम्पूर्ण रूप से आयात करना पड़ता था।
(2) जब उससे कपड़ा तैयार हो जाता था, तो उसका अधिकांश भाग निर्यात किया जाता था। इसके लिए इंग्लैण्ड के पास अपने उपनिवेश होना आवश्यक था ताकि वह इन उपनिवेशों से कच्चा कपास प्रचुर मात्रा में मँगा सके और फिर इंग्लैण्ड में उससे कपड़ा बनाकर तैयार माल को उन्हीं उपनिवेशों के बाजारों में बेच सके।
प्रश्न 10.
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में भाप की शक्ति के क्षेत्र में हुए आविष्कारों व परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. भाप के इंजन के मॉडल का आविष्कार – भाप की शक्ति का प्रयोग सर्वप्रथम खनन उद्योगों में किया गया। 1698 में थॉमस सेवरी ने खानों से पानी बाहर निकालने के लिए माइनर्स फ्रेंड ( खनक – मित्र) नामक एक भाप के इंजन का मॉडल बनाया। ये छिछली गहराइयों में धीरे-धीरे काम करते थे।
2. थॉमस न्यूकामेन द्वारा भाप का इंजन बनाना – 1712 ई. में थॉमस न्यूकामेन ने भाप का एक और इंजन बनाया। इसमें सबसे बड़ी कमी यह थी कि संघनन बेलन के निरन्तर ठण्डा होते रहने से इसकी ऊर्जा समाप्त होती रहती थी।
3. जेम्स वाट द्वारा भाप के इंजन का आविष्कार – 1769 ई. में जेम्स वाट ने भाप के इंजन का आविष्कार किया। जेम्स वाट ने एक ऐसी मशीन विकसित की, जिससे भाप का इंजन केवल एक साधारण पम्प की बजाय एक प्रमुख चालक के रूप में काम देने लगा जिससे कारखानों में शक्ति चालित मशीनों को ऊर्जा मिलने लगी।
4. सोहो फाउन्डरी का निर्माण – 1775 में जेम्स वाट ने मैथ्यू बाल्टन की सहायता से बर्मिंघम में ‘सोहो फाउन्डरी’ का निर्माण किया। उस फाउन्डरी से जेम्स वाट के स्टीम इंजन बराबर बढ़ती हुई संख्या में निकलने लगे। 18वीं सदी के अन्त तक जेम्स वाट के भाप इंजन ने द्रवचालित शक्ति का स्थान लेना शुरू कर दिया था। 1800 के बाद भाप के इंजन की प्रौद्योगिकी और अधिक विकसित हो गई।
प्रश्न 11.
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में नहरों के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटेन में प्रारम्भ में नहरें कोयले को शहरों तक ले जाने के लिए बनाई गईं। इसका कारण यह था कि कोयले को नहरों के मार्ग से ले जाने में समय और खर्च दोनों ही कम लगते थे।
इंग्लैण्ड में पहली नहर ‘वर्सली कैनाल ‘1761 ई. में जेम्स ब्रिंडली द्वारा बनाई गई। इस नहर के निर्माण का केवल यही उद्देश्य था कि इसके द्वारा वर्सले के कोयला भण्डारों से शहर तक कोयला ले जाया जाए। नहरों के आपस में जुड़ जाने से नए-नए शहरों में बाजार बन गए और उनका विकास हुआ। उदाहरणार्थ बर्मिंघम शहर का विकास केवल इसलिए तेजी से हुआ क्योंकि वह लन्दन, ब्रिस्टल चैनल और करसी तथा हंबर नदियों के साथ जुड़ने वाली नहर प्रणाली के बीच में स्थित था। ब्रिटेन में 1760 से 1790 के बीच नहरें बनाने की 25 परियोजनाएँ शुरू की गईं। 1788 से 1796 तक की अवधि में 46 नई परियोजनाएँ शुरू की गईं। उसके पश्चात् अगले 60 वर्षों में अनेक नहरें बनाई गईं जिनकी लम्बाई कुल मिलाकर 4000 मील से अधिक थी।
प्रश्न 12.
औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप ब्रिटेन में वेतनभोगी मजदूरों के जीवन की औसत अवधि कम क्यों थी?
उत्तर:
1842 में ब्रिटेन में किए गए एक सर्वेक्षण से यह ज्ञात हुआ कि वहाँ वेतनभोगी मजदूरों या कामगारों के जीवन की औसत अवधि शहरों में रहने वाले अन्य सामाजिक समूहों के जीवन-काल से कम थी जैसे बर्मिंघम में यह 15 वर्ष, मैनचेस्टर में 17 वर्ष तथा डर्बी में 21 वर्ष थी। नए औद्योगिक नगरों में गाँवों से आकर रहने वाले लोग ग्रामीण लोगों की तुलना में काफी छोटी आयु में मौत के मुँह में चले जाते थे। वहाँ उत्पन्न होने वाले बच्चों में से आधे तो पाँच वर्ष की आयु प्राप्त करने से पूर्व ही मर जाते थे।
मजदूरों की मृत्यु अधिकतर उन महामारियों के कारण होती थी जो जल- प्रदूषण से जैसे हैजा तथा आंत्रशोथ से और वायु-प्रदूषण से जैसे क्षय रोग से होती थी। 1832 में ब्रिटेन में हैजे की महामारी फैल गई जिसमें 31,000 से अधिक लोग मौत के मुँह में चले गए। 19वीं सदी के अंतिम दशकों तक नगर – प्राधिकारी जीवन की इन भयंकर परिस्थितियों की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे और इन बीमारियों के निदान व उपचार के बारे में चिकित्सकों को कोई जानकारी नहीं थी।
प्रश्न 13.
औद्योगिक क्रान्ति से ब्रिटेनवासियों के जीवन में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर:
1. पूँजी में वृद्धि – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप धनी लोगों ने उद्योग-धन्धों में पूँजी निवेश किया जिससे उन्हें खूब मुनाफा हुआ और उनके धन में अत्यधिक वृद्धि हुई।
2. अन्य क्षेत्रों में वृद्धि – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप धन, माल, आय, सेवाओं, ज्ञान और उत्पादक कुशलता के रूप में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई।
3. नगरीय जनसंख्या में वृद्धि – 1750 में इंग्लैण्ड में 50,000 से अधिक की आबादी वाले नगरों की संख्या केवल दो थी जो बढ़कर 1850 में 29 हो गई।
4. परिवारों का टूटना – पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों और बच्चों को भी कारखानों में काम करना पड़ता था। परिणामस्वरूप अनेक परिवार टूट गए।
5. नवीन समस्याएँ उत्पन्न होना – मजदूरों को अनेक नई समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्हें कारखानों के आस-पास भीड़भाड़ वाली गन्दी बस्तियों में रहना पड़ा। वे अनेक बीमारियों के शिकार बन गए और असमय मौत के मुँह में जाने लगे।
प्रश्न 14.
फैक्ट्री पद्धति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फैक्ट्री पद्धति की विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
(1) बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हुई जिनमें हजारों लोग एक-साथ काम करते थे
(2) उत्पादन के सभी साधनों पर पूँजीपतियों का स्वामित्व था।
(3) श्रमिकों की देखभाल के लिए निरीक्षकों की नियुक्ति की जाती थी।
(4) पूँजीपति कारखानों के स्वामी होते थे तथा मजदूर कारखानों में अपनी मजदूरी पाने के लिए कार्य करते थे।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
इंग्लैण्ड में ही सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति के प्रारम्भ होने के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में ही सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति के प्रारम्भ होने के कारण
इंग्लैण्ड में ही सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति के प्रारम्भ होने के कारण निम्नलिखित थे-
1. इंग्लैण्ड में राजनीतिक स्थिरता – इंग्लैण्ड सत्रहवीं शताब्दी से राजनीतिक दृष्टि से सुदृढ़ एवं सन्तुलित था और इसके तीनों भागों—इंग्लैण्ड, वेल्स और स्कॉटलैण्ड पर एक ही राजतन्त्र अर्थात् सम्राट का एकछत्र शासन रहा था। वहाँ अन्य देशों की अपेक्षा राजनीतिक स्थिरता अधिक थी। इंग्लैण्ड में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही सिक्का ( मुद्रा- प्रणाली) और एक ही बाजार व्यवस्था थी। इस बाजार व्यवस्था में स्थानीय प्राधिकरणों का कोई हस्तक्षेप नहीं था। सत्रहवीं शताब्दी तक आते-आते, मुद्रा का प्रयोग विनिमय के रूप में व्यापक रूप से होने लगा था। तब तक बड़ी संख्या में ब्रिटेनवासी अपनी कमाई वस्तुओं की बजाय मजदूरी और वेतन के रूप में प्राप्त करने लगे। इससे उन्हें अपनी आय से अधिक खर्च करने के लिए साधन प्राप्त हो गए और वस्तुओं की बिक्री के लिए बाजार का विस्तार हो गया।
2. कृषि क्रान्ति – अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में ‘कृषि – क्रान्ति’ सम्पन्न हुई। इसके परिणामस्वरूप बड़े जमींदारों ने अपनी जमीनों के आस-पास छोटे-छोटे खेत खरीद लिए और गाँव की सार्वजनिक जमीनों को घेर लिया। इससे विवश होकर भूमिहीन किसान, चरवाहे और पशुपालक रोजगार की तलाश में शहरों में चले गए।
3. शहरों का विकास – यूरोप के जिन 19 शहरों की आबादी सन् 1750 से 1800 के बीच दोगुनी हो गई थी; उनमें से 11 ब्रिटेन में थे। इन 11 शहरों में लन्दन सबसे बड़ा था, जो देश के बाजारों का केन्द्र था, शेष बड़े- बड़े शहर भी लन्दन के आसपास ही स्थित थे। लन्दन ने सम्पूर्ण विश्व में भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया था। शहरों में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वस्तुओं की माँग बहुत बढ़ गई। इससे उद्योगपतियों को बड़े पैमाने पर वस्तुओं के उत्पादन की प्रेरणा मिली।
4. व्यापार की उन्नति – 18वीं सदी तक आते-आते भू-मण्डलीय व्यापार का केन्द्र इटली तथा फ्रांस के भूमध्य सागरीय बन्दरगाहों से हट कर हालैण्ड और ब्रिटेन के अटलान्टिक बन्दरगाहों पर आ गया था। इसके बाद लन्दन ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु ऋण प्राप्ति के प्रमुख स्रोत के रूप में एम्स्टर्डम का स्थान ले लिया था। लन्दन इंग्लैण्ड, अफ्रीका और वेस्टइण्डीज के बीच स्थापित त्रिकोणीय व्यापार का केन्द्र बन गया था।
5. यातायात का विकास – 1724 से इंग्लैण्ड के पास नदियों के द्वारा लगभग 1160 मील लम्बा जलमार्ग था जिसमें नौकाएँ चल सकती थीं तथा पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर देश के अधिकांश स्थान नदी से अधिक से अधिक 15 मील की दूरी पर थे। इंग्लैण्ड की नदियों के समस्त नौचालन के भाग समुद्र से जुड़े हुए थे, इसलिए नदी पोतों के द्वारा ढोया जाने वाला माल समुद्र-तटीय जहाजों तक सरलता से ले जाया और सौंपा जा सकता था।
6. बैंकों का विकास – इंग्लैण्ड में बैंकों का विकास हो चुका था। 1694 में बैंक ऑफ इंग्लैण्ड की स्थापना हो चुकी थी। यह देश की वित्तीय प्रणाली का केन्द्र था। 1784 तक इंग्लैण्ड में कुल मिलाकर एक सौ से अधिक प्रान्तीय बैंक थे। 1820 के दशक तक प्रान्तों में 600 से अधिक बैंक थे। अतः बड़े-बड़े उद्योग-धन्धे स्थापित करने के लिए आवश्यक ऋण-राशि उपलब्ध कराने के लिए बैंक मौजूद थे।
7. लोहे तथा कोयले का प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होना – इंग्लैण्ड में लोहे और कोयले की खानें आसपास थीं। वहां लोहा तथा कोयला प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे। इससे पक्के लोहे का निर्माण सरलता से होने लगा।
8. पूँजी की अधिकता – इंग्लैण्ड में पूँजी की अधिकता थी। वाणिज्यवाद के परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड में प्रचुर पूँजी जमा हो गई थी। बैंकिंग व्यवस्था ने भी इंग्लैण्ड में पूँजी – संचय तथा विनियोग को समान बनाया।
9. वैज्ञानिक आविष्कार – 18वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में अनेक वैज्ञानिक हुए जिन्होंने कृषि, व्यवसाय, यातायात आदि क्षेत्रों के अनेक आविष्कार किये। इन आविष्कारों ने औद्योगिक क्रान्ति को सफल बनाने में योगदान दिया।
10. कुशल श्रमिकों की उपलब्धि – इंग्लैण्ड में कुशल श्रमिक बड़ी संख्या में उपलब्ध थे। यूरोप के अधिकांश देशों में आन्तरिक शान्ति तथा व्यवस्था का अभाव था। इसलिए वहाँ के बहुत से कुशल श्रमिक भाग कर इंग्लैण्ड में आ गए थे।
11. औपनिवेशिक साम्राज्य – अठारहवीं शताब्दी के अन्त तक इंग्लैण्ड ने एक विस्तृत औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित कर लिया था। इंगलैण्ड इन उपनिवेशों से कच्चा माल प्राप्त कर सकता था तथा वहाँ अपना तैयार माल बेच सकता था।
प्रश्न 2.
अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में कोयले और लोहे के उद्योग क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में कोयले और लोहे के उद्योग क्षेत्र में विकास
इंग्लैण्ड में मशीनीकरण में काम आने वाली मुख्य सामग्रियाँ – कोयला और लौह-अयस्क प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थीं। इसके अतिरिक्त वहाँ उद्योग में काम आने वाले अन्य खनिज, जैसे-सीसा, ताँबा और राँगा (टिन) आदि भी उपलब्ध थे। परन्तु अठारहवीं शताब्दी तक, वहाँ प्रयोग योग्य लोहे की कमी थी।
1. काठ कोयले ( चारकोल ) के प्रयोग की समस्याएँ – लोहा प्रगलन की प्रक्रिया के द्वारा लौह खनिज में से शुद्ध तरल – धातु के रूप में निकाला जाता है। सैकड़ों वर्षों तक इस प्रगलन प्रक्रिया के लिए काठ – कोयले ( चारकोल) का प्रयोग किया जाता था। इस प्रक्रिया की निम्नलिखित समस्याएँ थीं –
(i) काठ – कोयला लम्बी दूरी तक ले जाने की प्रक्रिया में टूट जाया करता था।
(ii) इसकी अशुद्धताओं के कारण घटिया प्रकार के लोहे का ही उत्पादन होता था।
(iii) यह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं था क्योंकि लकड़ी के लिए जंगल काट लिये गए थे।
(iv) यह उच्च तापमान भी उत्पन्न नहीं कर सकता था।
2. धमन भट्टी का आविष्कार – लौह उद्योग के क्षेत्र में, 1709 में प्रथम अब्राहम डर्बी ने धमन भट्टी का आविष्कार किया जिसमें सर्वप्रथम कोक का प्रयोग किया गया। इस आविष्कार के परिणामस्वरूप भटिट्यों को काठ कोयले पर निर्भर नहीं रहना पड़ा। इन भट्टियों से निकलने वाला पिघला हुआ लोहा पहले की अपेक्षा श्रेष्ठ होता था। 3. पिटवाँ लोहे का विकास- द्वितीय अब्राहम डर्बी ने ढलवाँ लोहे से पिटवाँ लोहे का विकास किया जो कम भंगुर था।
4. आलोडन भट्टी तथा बेलन मिल का आविष्कार – हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी तथा बेलन मिल का आविष्कार किया, जिसमें परिशोधित लोहे से छड़ें तैयार करने के लिए भाप की शक्ति का प्रयोग किया जाता था। अब लोहे से अनेकानेक उत्पाद बनाना सम्भव हो गया।
5. लोहे की कुर्सियाँ, आसव तथा शराब की भट्टियों के लिए टंकियाँ बनाना – 1770 के दशक में जोन विल्किन्सन ने सर्वप्रथम लोहे की कुर्सियाँ, आसव तथा शराब की भट्टियों के लिए टंकियां और लोहे की सभी आकारों की नलियाँ (पाइपें ) बनाई।
6. लोहे के पुल का निर्माण – 1779 ई. में तृतीय अब्राहम डर्बी ने विश्व में प्रथम लोहे का पुल कोलब्रुकडेल में सेवर्न नदी पर बनाया। विल्किन्सन ने पानी की पाइपें पहली बार ढलवाँ लोहे से बनाईं।
7. इस्पात बनाने की विधि – 1856 में हेनरी बैस्सेमर ने इस्पात बनाने की विधि खोज निकाली।
8. लौह उत्पादन में वृद्धि – ब्रिटेन के लौह उद्योग ने 1800 से 1830 के दौरान अपने उत्पादन को चौगुना बढ़ा लिया और उसका उत्पादन सम्पूर्ण यूरोप में सबसे सस्ता था। 1820 में एक टन ढलवाँ लोहा बनाने के लिए 8 टन कोयले की आवश्यकता होती थी, परन्तु 1850 तक आते-आते यह मात्रा घट गई और केवल 2 टन कोयले से ही एक टन ढलवाँ लोहा बनाया जाने लगा। 1848 तक ब्रिटेन द्वारा पिघलाए जाने वाले लोहे की मात्रा शेष सम्पूर्ण विश्व द्वारा कुल मिलाकर पिघलाए जाने वाले लोहे से अधिक थी।
प्रश्न 3.
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में कपास की कताई व बुनाई के उद्योग में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में कपास की कताई व बुनाई के उद्योग में हुए आविष्कारों का वर्णन कीजिए। उत्तर- अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में कपास की कताई तथा बुनाई के उद्योग में विकास – अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ब्रिटेन में कताई का काम धीमी गति से किया जाता था। एक ओर कातने वाले लोग दिन-भर कताई के काम में व्यस्त रहते थे, तो दूसरी ओर बुनकर लोग बुनाई के लिए धागे के लिए अपना समय नष्ट करते रहते थे। परन्तु कालान्तर में कताई व बुनाई की प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक आविष्कार हुए जिसके फलस्वरूप कपास से धागा कातने और उससे कपड़ा बनाने की गति में जो अन्तर था, वह समाप्त हो गया।
कपास की कताई और बुनाई के उद्योग में महत्त्वपूर्ण आविष्कार अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में कपास की कताई और बुनाई के उद्योग में निम्नलिखित आविष्कार हुए-
1. उड़न तुरी करघा (फ्लाइंग शटल लूम ) – 1733 ई. में लंकाशायर निवासी जान के ने उड़न तुरी करघा (फ्लाइंग शटल लूंम) का आविष्कार किया। इसकी सहायता से कम समय में चौड़ा कपड़ा बनाना सम्भव हो गया। इसकी सहायता से दुगुनी गति से कपड़ा बुना जा सकता था।
2. स्पिन्निंग जैनी – 1765 में ब्लैकबर्न निवासी जेम्स हारग्रीव्ज ने ‘स्पिन्निंग जैनी’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इस पर एक अकेला व्यक्ति एक-साथ सूत के आठ धागे कात सकता था। इससे बुनकरों को उनकी आवश्यकता से अधिक तेजी से धागा मिलने लगा।
3. वाटर फ्रेम – 1769 ई. में रिचर्ड आर्कराइट ने ‘वाटर फ्रेम’ नामक सूत कातने की मशीन का आविष्कार किया। इस मशीन द्वारा पहले से कहीं अधिक मजबूत धागा बनाया जाने लगा। इससे लिनन और सूती धागा दोनों को मिलाकर कपड़ा बनाने की बजाय अकेले सूती धागे से ही विशुद्ध सूती कपड़ा बनाया जाने लगा। इसने भावी ‘कारखाना पद्धति’ को जन्म दिया।
4. म्यूल – 1779 ई. में सैम्युल क्राम्पटन ने ‘म्यूल’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इससे कता हुआ धागा बहुत मजबूत और श्रेष्ठ होता था।
5. पावरलूम – 1787 ई. में एडमण्ड कार्टराइट ने शक्ति से चलने वाले ‘पावरलूम’ नामक करघे का आविष्कार किया। ‘पावरलूम’ को चलाना अत्यन्त आसान था। जब भी धागा टूटता, वह अपने आप काम करना बन्द कर देता था। इससे किसी भी प्रकार के धागे से बुनाई की जा सकती थी। 1830 के दशक से, वस्त्र उद्योग में नई-नई मशीनें बनाने की बजाय श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाने पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। इन आविष्कारों के बाद कताई – बुनाई का काम अब घरों से हटकर, कारखानों में चला गया ताकि इस कार्य में और कुशलता लायी जा सके।
प्रश्न 4.
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में भाप की शक्ति के क्षेत्र में क्या परिवर्तन एवं आविष्कार हुए?
अथवा
‘भाप की शक्ति बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के लिए निर्णायक सिद्ध हुई। “स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में भाप की शक्ति के क्षेत्र में आविष्कार एवं परिवर्तन भाप की शक्ति ने ब्रिटेन के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। भाप की शक्ति उच्च तापमानों पर दबाव पैदा करती थी जिससे अनेक प्रकार की मशीनें चलाई जा सकती थीं। इस प्रकार भाप की शक्ति ऊर्जा का एकमात्र ऐसा स्त्रोत था जो मशीनरी बनाने के लिए विश्वसनीय एवं कम खर्चीला था। अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में भाप की शक्ति के क्षेत्र में निम्नलिखित आविष्कार एवं परिवर्तन हुए-
1. भाप के इंजन के मॉडल का आविष्कार – भाप की शक्ति का प्रयोग सर्वप्रथम खनन उद्योगों में किया गया। खानों में अचानक पानी भर जाना भी एक जटिल समस्या थी। 1698 ई. में थॉमस सेवरी ने खानों से पानी बाहर निकालने के लिए ‘माइनर्स फ्रेंड’ नामक एक भाप के इंजन का मॉडल बनाया। ये इंजन छिछली गहराइयों में धीरे-धीरे काम करते थे तथा अधिक दबाव हो जाने पर उनका बायलर फट जाता था।
2. थॉमस न्यूकॉमेन द्वारा भाप का इंजन बनाना – 1712 ई. में थॉमस न्यूकॉमेन ने भाप का एक और इंजन बनाया। इसमें सबसे बड़ी कमी यह थी कि संघनन बेलन के निरन्तर ठंडा होते रहने से इसकी ऊर्जा समाप्त होती रहती थी।
3. जेम्स वाट द्वारा भाप के इंजन का आविष्कार – 1769 तक भाप के इंजन का प्रयोग केवल कोयले की खानों में ही होता था। परन्तु 1769 में जेम्स वाट ने इसका एक और प्रयोग खोज निकाला। 1769 में जेम्स वाट ने ऐसी मशीन विकसित की, जिससे भाप का इंजन केवल एक साधारण पम्प की बजाय एक प्रमुख चालक के रूप में काम देने लगा। इससे कारखानों में शक्ति चालित मशीनों को ऊर्जा मिलने लगी। इस प्रकार जेम्स वाट के भाप के इंजन के आविष्कार के कारण अब कारखानों में भी भाप की शक्ति का प्रयोग किया जाने लगा।
4. सोहो फाउन्डरी का निर्माण – 1775 में जेम्स वाट ने एक धनी निर्माता मैथ्यू बाल्टन की सहायता से बर्मिंघम में ‘सोहो फाउन्डरी’ का निर्माण किया। इस फाउन्डरी से जेम्स वाट के भाप के इंजन बड़ी संख्या में बनकर निकलने लगे। अठारहवीं सदी के अन्त तक जेम्स वाट के भाप के इंजन ने द्रवचालित शक्ति का स्थान लेना शुरू कर दिया था।
5. भाप के इंजन की प्रौद्योगिकी का विकास – 1800 ई. के बाद भाप के इंजन की प्रौद्योगिकी का और अधिक विकास हुआ। इसमें निम्नलिखित तत्त्वों ने सहयोग दिया –
(i) अधिक हल्की तथा मजबूत धातुओं का प्रयोग।
(ii) अधिक सटीक मशीनी औजारों का निर्माण।
(iii) वैज्ञानिक जानकारी का अधिक व्यापक प्रसार।
1840 में स्थिति यह थी कि ब्रिटेन में बने भाप के इंजन ही सम्पूर्ण यूरोप में आवश्यक ऊर्जा की 70 प्रतिशत से अधिक अश्व शक्ति का उत्पादन कर रहे थे।
प्रश्न 5.
अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटेन में रेलों के विकास का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटेन में रेलों का विकास अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटेन में रेलों के विकास का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
1. भाप से चलने वाले रेल के इंजन का आविष्कार – 1814 में पहला भाप से चलने वाला रेल का इंजन- स्टीफेन्सन का राकेट बना। अब रेलगाड़ियाँ परिवहन का एक ऐसा नया साधन बन गईं, जो साल भर उपलब्ध रहती थीं, सस्ती तथा तेज भी थीं और माल तथा यात्री दोनों को ढो सकती थीं। इस साधन में एक-साथ दो आविष्कार शामिल थे –
(1) लोहे की पटरी जिसने 1760 के दशक में लकड़ी की पटरी का स्थान ले लिया था तथा
(2) भाप के इंजन द्वारा इस लोहे की पटरी पर रेल के डिब्बों को खींचना।
2. रिचर्ड ट्रेविथिक द्वारा ‘पफिंग डेविल’ नामक रेलवे इंजन का निर्माण करना – 1801 में रिचर्ड ट्रेविथिक ने एक इंजन का निर्माण किया जिसे ‘पंफिंग डेविल’ (फुफकारने वाला दानव) कहते थे। यह इंजन ट्रकों को कार्नवाल में उस खान के चारों ओर खींच कर ले जाता था, जहाँ रिचर्ड ट्रेविथिक काम करता था।
3. ‘ब्लचर’ नामक रेल इंजन का निर्माण करना – 1814 में जार्ज स्टीफेन्सन नामक एक रेलवे इंजीनियर ने एक रेल इंजन का निर्माण किया, जिसे ‘ब्लचर’ कहा जाता था। यह इंजन 30 टन भार 4 मील प्रति घण्टे की गति से एक पहाड़ी पर ले जा सकता था।
4. ब्रिटेन में रेल मार्ग का विस्तार – सर्वप्रथम 1825 में स्टाकटन और डार्लिंगटन शहरों के बीच 9 मील लम्बा रेलमार्ग 24 किलोमीटर प्रति घण्टा की रफ्तार से 2 घण्टे में रेल द्वारा तय किया गया। 1830 में लिवरपूल तथा मैनचेस्टर को आपस में रेल मार्ग से जोड़ दिया गया। 20 वर्षों के अन्दर रेलें 30 से 50 मील प्रति घण्टे की गति से दौड़ने लगीं। 1830 से 1850 के बीच ब्रिटेन में रेल पथ कुल मिलाकर दो चरणों में लगभग 6000 मील लम्बा हो गया। 1833-37 के ‘छोटे रेलोन्माद’ के दौरान, 1400 मील लम्बी रेल लाइन बनाई गई। इसके बाद 1844-47 के ‘बड़े रेलोन्माद’ के दौरान फिर 9500 मील लम्बी रेल लाइन बनाने की स्वीकृति दी गई। रेलवे लाइन के निर्माण में कोयले और लोहे का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया गया तथा बड़ी संख्या में लोगों को . काम पर लगाया गया। इसके फलस्वरूप निर्माण तथा लोक कार्य उद्योगों की गतिविधियों में तेजी आई। 1850 तक अधिकांश इंग्लैण्ड के नगर और गाँव रेल मार्ग से जुड़ गए।
प्रश्न 6. ब्रिटेन की स्त्रियों और बच्चों पर औद्योगिक क्रान्ति के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
ब्रिटेन की स्त्रियों और बच्चों पर औद्योगिक क्रान्ति के प्रभाव ब्रिटेन की स्त्रियों और बच्चों पर औद्योगिक क्रान्ति के अग्रलिखित प्रभाव पड़े –
1. स्त्रियों और बच्चों के काम करने के तरीकों में परिवर्तन-औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप स्त्रियों और बच्चों के काम करने के तरीकों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए। औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व गरीब ग्रामीणों के बच्चे घरों में या खेतों में अपने माता-पिता अथवा सम्बन्धियों की देख-रेख में अनेक प्रकार के काम किया करते थे। ये काम समय, दिन अथवा मौसम के अनुसार परिवर्तित होते रहते थे। इसी प्रकार गाँवों में स्त्रियाँ भी खेती के काम में हिस्सा लेती थीं और अपने घरों में चरखे चलाकर सूत कातती थीं।
2. प्रतिकूल परिस्थितियों में कारखानों में काम करना – औद्योगिक क्रान्ति के सूत्रपात के बाद स्त्रियों तथा बच्चों को प्रतिकूल परिस्थितियों में कारखानों में काम करना पड़ा। क्योंकि पुरुषों को बहुत कम मजदूरी मिलती थी जिससे परिवार का खर्च नहीं चल पाता था। उन्हें निरन्तर कई घण्टों तक नीरस काम कठोर अनुशासन में करना पड़ता था तथा साधारण-सी गलतियों पर उन्हें कठोर दण्ड दिया जाता था। कारखानों के मालिक पुरुषों की बजाय स्त्रियों और बच्चों को अपने यहाँ काम पर लगाना अधिक पसन्द करते थे। इसके दो कारण थे –
(1) स्त्रियों और बच्चों की मजदूरी कम होती थी तथा
(2) स्त्री एवं बच्चें कठोर और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी प्रायः शान्तिपूर्ण बने रहते थे।
3. सूती कपड़ा उद्योग में स्त्रियों और बच्चों को काम पर लगाना – स्त्रियों और बच्चों को लंकाशायर तथा यार्कशायर नगरों के सूती कपड़ा उद्योग में बड़ी संख्या में काम पर लगाया जाता था। रेशम, फीते बनाने और बुनने के उद्योग-धन्धों में और बर्मिंघम के धातु – उद्योगों में बच्चों के साथ-साथ स्त्रियों को ही अधिकतर कारखानों में काम पर लगाया जाता था। कपास कातने की जेनी जैसी अनेक मशीनें तो कुछ इस प्रकार की बनाई गई थीं कि उनमें बच्चे ही अपनी चुस्त उंगिलयों और छोटी कद-काठी के कारण सरलता से काम कर सकते थे। बच्चों को प्रायः कपड़ा मिलों में रखा जाता था क्योंकि वहाँ सटाकर रखी गई मशीनों के बीच से छोटे बच्चे सरलता से आ-जा सकते थे।
4. बच्चों का शोषण – कारखानों में बच्चों से कई घण्टों तक काम लिया जाता था। उन्हें हर रविवार को भी मशीनें साफ करने के लिए काम पर आना पड़ता था। इसके परिणामस्वरूप उन्हें विश्राम करने, ताजा हवा खाने या व्यायाम करने का कभी कोई अवसर नहीं मिलता था। काम करते समय कई बार तो बच्चों के बाल मशीनों में फँस जाते थे अथवा उनके हाथ कुचल जाते थे। निरन्तर कई घण्टों तक काम करते रहने के कारण बच्चे इतने थक जाते थे कि उन्हें नींद की झपकी आ जाती थी और वे मशीनों में गिरकर मर जाते थे।
5. कोयले की खतरनाक खानों में बच्चों द्वारा काम करना – बच्चों के लिए कोयले की खानों में काम करना बहुत खतरनाक था। खानों की छतें धँस जाती थीं या वहाँ विस्फोट हो जाता था। इससे बच्चों को चोट लगना सामान्य बात थी। कोयला खानों के मालिक कोयले के गहरे अन्तिम छोरों को देखने के लिए संकरे रास्ते पर जाने के लिए, वहाँ बच्चों को ही भेजते थे। छोटे बच्चों को कारखानों में ‘ट्रैपर’ का काम भी करना पड़ता था। कोयला कारखानों में जब कोयला भरे डिब्बे इधर-उधर ले जाये जाते थे, तो वे आवश्यकतानुसार उन दरवाजों को खोलते तथा बन्द करते थे। उन्हें अपनी पीठ पर रख कर कोयले का भारी वजन भी ढोना पड़ता था।
6. कारखानों के मालिकों द्वारा बच्चों से काम लेना – कारखानों के मालिक बच्चों से काम लेना अत्यन्त आवश्यक समझते थे, ताकि वे अभी से काम सीख कर बड़े होकर उनके लिए अच्छा काम कर सकें।
7. स्त्रियों पर प्रभाव – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप स्त्रियों को मजदूरी मिलने से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ तथा उनके आत्म-सम्मान में भी वृद्धि हुई। परन्तु इससे उन्हें लाभ कम हुआ और हानि अधिक हुई। उन्हें अपमानजनक परिस्थितियों में काम करना पड़ता था। प्रायः उनके बच्चे पैदा होते ही या बचपन में ही मर जाते थे। उन्हें विवश होकर शहर की गन्दी एवं घिनौनी बस्तियों में रहना पड़ता था।
प्रश्न 7.
ब्रिटेन में अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध मजदूरों के विरोध- आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटेन में अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध मजदूरों का विरोध- आन्दोलन इंग्लैण्ड में फैक्ट्रियों में काम करने की कठोर एवं अपमानजनक परिस्थितियों के विरुद्ध राजनीतिक विरोध बढ़ता जा रहा था और मजदूर लोग मताधिकार प्राप्त करने के लिए आन्दोलन कर रहे थे। परन्तु ब्रिटिश सरकार ने मजदूरों की माँगों को स्वीकृत करने की बजाय दमनकारी नीति अपनाना शुरू कर दिया।
1. ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति – 1795 ई. में ब्रिटिश संसद ने दो जुड़वाँ अधिनियम पारित किए। इनके अन्तर्गत लोगों को भाषण या लेखन द्वारा सम्राट, संविधान या सरकार के विरुद्ध घृणा या अपमान करने के लिए उकसाना अवैध घोषित कर दिया गया और 50 से अधिक लोगों की अनधिकृत, सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। परन्तु लोगों ने ‘पुराने भ्रष्टाचार’ के विरुद्ध आन्दोलन करना जारी रखा जो मजदूरों को मताधिकार दिए जाने की माँग से संबंधित था। .
2. ब्रेड के लिए दंगे – 1790 के दशक से सम्पूर्ण इंग्लैण्ड में ब्रेड अथवा खाद्य के लिए दंगे होने लगे। गरीब लोगों का मुख्य आहार ब्रैड ही था और इसके मूल्य पर ही उनके रहन-सहन का स्तर निर्भर करता था। आन्दोलनकारियों ने ब्रैड के भण्डारों पर अधिकार कर लिया और उन्हें मुनाफाखोरों द्वारा निर्धारित ऊँची कीमतों से काफी कम मूल्य में बेचना शुरू किया। यह कीमत सामान्य व्यक्ति के लिए उचित थी और नैतिक दृष्टि से भी सही थी। ऐसे दंगे, विशेषकर 1795 ई. में इंग्लैण्ड और फ्रांस के बीच चलने वाले युद्ध के दौरान बार- बार हुए परन्तु वे 1840 के दशक तक जारी रहे।
3. चकबन्दी या बाड़ा पद्धति से मजदूरों में असन्तोष – इंग्लैण्ड के लोगों में चकबन्दी या बाड़ा-पद्धति के विरुद्ध भी तीव्र असन्तोष था। इस पद्धति के अन्तर्गत 1770 के दशक से छोटे-छोटे सैकड़ों खेत शक्तिशाली जमींदारों के बड़े फार्मों में मिला दिए गए। इससे गरीब लोगों में घोर असन्तोष उत्पन्न हुआ और उन्होंने औद्योगिक काम देने की माँग की। परन्तु मशीनों के प्रचलन के कारण हजारों की संख्या में हथकरघा बुनकर बेरोजगार हो गए थे तथा गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहे थे।
4. बुनकरों द्वारा हड़ताल – 1790 के दशक से बुनकर लोग अपने लिए न्यूनतम वैध मजदूरी की माँग करने लगे। परन्तु जब ब्रिटिश संसद ने उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया, तो वे हड़ताल पर चले गए। परन्तु सरकार ने दमनकारी नीति अपनाते हुए आन्दोलनकारियों को तितर-बितर कर दिया। इससे हताश और क्रुद्ध होकर सूती कपड़े के बुनकरों ने लंकाशायर में पावरलूमों को नष्ट कर दिया। इसका कारण यह था कि वे अपना रोजगार छिन जाने के लिए इन बिजली के करघों को ही उत्तरदायी मानते थे। नोटिंघम में ऊनी वस्त्र उद्योग में भी मशीनों के प्रयोग का प्रतिरोध किया गया। इसी प्रकार लैसेस्टरशायर और डर्बीशायर में भी मजदूरों ने विरोध-प्रदर्शन किये।
5. यार्कशायर में विरोध आन्दोलन – यार्कशायर में ऊन कतरने वालों ने ऊन कतरने के ढाँचों को नष्ट कर दिया। ये लोग अपने हाथों से भेड़ों के बालों को काटते थे। 1830 के दंगों में फार्मों में काम करने वाले, मजदूरों को भी उनके धन्धे के चौपट हो जाने की आशंका पैदा हुई क्योंकि खेती में भूसी से दाना अलग करने के लिए नई खलिहानी मशीनों का प्रयोग शुरू हो गया था। दंगाइयों ने इन खलिहानी मशीनों को नष्ट कर दिया। परिणामस्वरूप नौ दंगाइयों को फाँसी की सजा हुई और 450 लोगों को बन्दियों के रूप में आस्ट्रेलिया भेज दिया गया।
6. लुडिज्म आन्दोलन – इंग्लैण्ड में जनरल नेडलुड के नेतृत्व में लुडिज्म नामक आन्दोलन चलाया गया। लुडिज्म के अनुयायी मशीनों की तोड़-फोड़ में ही विश्वास नहीं करते थे, बल्कि न्यूनतम मजदूरी आदि अनेक माँगों पर भी जोर देते थे। लुडिज्म के अनुयायियों की माँगें निम्नलिखित थीं –
(i) न्यूनतम मजदूरी प्रदान की जाए
(ii) नारी एवं बाल-श्रम पर नियन्त्रण स्थापित किया जाए
(iii) मशीनों के आविष्कार एवं प्रचलन से बेरोजगार हुए लोगों को काम दिया जाए
(iv) कानूनी तौर पर अपनी माँगें प्रस्तुत करने के लिए उन्हें मजदूर संघ (ट्रेड यूनियन) बनाने का अधिकार दिया जाए।
7. ‘पीटरलू का नर-संहार’ – अगस्त, 1819 में 80,000 लोग अपने लिए लोकतान्त्रिक अधिकारों अर्थात् राजनीतिक संगठन बनाने, सार्वजनिक सभाएँ करने तथा प्रेस की स्वतन्त्रता के अधिकारों की माँग करने हेतु मैनचेस्टर में सेन्टपीटर्स मैदान में इकट्ठे हुए। वे शान्तिपूर्ण थे, परन्तु सरकार ने उनका कठोरतापूर्वक दमन कर दिया। इसे ‘पीटरलू का नरसंहार’ के नाम से पुकारा जाता है। उन्होंने जिन अधिकारों की माँग की थी, उन्हें उसी वर्ष संसद द्वारा ठुकरा दिया गया। परन्तु इससे कुछ लाभ भी हुए। पीटरलू के नरसंहार के बाद ब्रिटिश संसद के निचले सदन ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ को अधिक प्रतिनिधित्वकारी बनाए जाने की आवश्यकता उदारवादी राजनीतिक दलों द्वारा अनुभव की गई। 1824-25 ई. में 1795 के जुड़वाँ अधिनियमों को भी निरस्त कर दिया गया।
प्रश्न 8.
ब्रिटिश सरकार द्वारा मजदूरों की दशा सुधारने के लिए बनाए गए कानूनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार द्वारा मजदूरों की दशा सुधारने के लिए बनाए गए कानून धीरे-धीरे मजदूरों में जागृति उत्पन्न हुई और उन्होंने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। अन्त में बाध्य होकर सरकार को मजदूरों की दशा में सुधार करने के लिए अनेक कानून बनाने पड़े। ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का वर्णन निम्नानुसार है –
1. 1819 के कानून-1819 में ब्रिटिश सरकार द्वारा कुछ कानून बनाए गए जिनके अन्तर्गत नौ वर्ष से कम की आयु वाले बच्चों से फैक्ट्रियों में काम करवाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। नौ से सोलह वर्ष की आयु वाले बच्चों से काम कराने की सीमा 12 घण्टे तक सीमित कर दी गई। परन्तु इस कानून में प्रमुख दोष यह था कि इस कानून का पालन कराने के लिए आवश्यक अधिकारों की व्यवस्था नहीं की गई।
2. 1833 का अधिनियम – 1833 में एक अन्य अधिनियम पारित किया गया जिसके अन्तर्गत नौ वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को केवल रेशम की फैक्ट्रियों में काम पर लगाने की अनुमति दी गई। बड़े बच्चों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिए गए और कुछ फैक्ट्री निरीक्षकों की व्यवस्था की गई ताकि अधिनियम के प्रावधानों का उचित प्रकार से पालन कराया जा सके।
3. दस घण्टा विधेयक – 1847 में ‘दस घण्टा विधेयक’ पारित किया गया। इस कानून के अन्तर्गत स्त्रियों और युवकों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिए गए तथा पुरुष श्रमिकों के लिए 10 घण्टे का दिन निश्चित कर दिया गया। ये अधिनियम वस्त्र उद्योगों पर ही लागू होते थे, खान उद्योग पर नहीं। ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित, 1842 के खान आयोग ने यह घोषित किया कि खानों में काम करने की परिस्थितियाँ वास्तव में 1833 के अधिनियम के लागू होने से पहले कहीं अधिक खराब हो गई हैं। इसका कारण यह था कि पहले से अधिक संख्या में बच्चों को कोयला खानों में काम पर लगाया जा रहा था।
4. 1842 का खान और कोयला खान अधिनियम – 1842 के खान और कोयला खान अधिनियम के अन्तर्गत दस वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से खानों में नीचे काम लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
5. फील्डर्स फैक्ट्री अधिनियम – फील्डर्स फैक्ट्री अधिनियम ने 1847 में यह कानून बना दिया कि अठारह वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से 10 घण्टे प्रतिदिन से अधिक काम न लिया जाए।
6. त्रुटियाँ – इन कानूनों का पालन फैक्ट्री निरीक्षकों के द्वारा किया जाना था, परन्तु यह एक कठिन और जटिल काम था। निरीक्षकों का वेतन बहुत कम था। प्रायः प्रबन्धक उन्हें रिश्वत देकर सरलता से चुप कर देते थे। दूसरी ओर, बच्चों के माता-पिता भी उनकी आयु के सम्बन्ध में झूठ बोलकर उन्हें काम पर लगवा देते थे ताकि उनकी मजदूरी से परिवार का खर्च चलाने में सुविधा मिले।
प्रश्न 9.
क्या 1780 के दशक से 1820 के दशक के बीच हुए औद्योगिक विकास को ‘औद्योगिक क्रान्ति’ के नाम से पुकारना तर्कसंगत है ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक क्रान्ति – 1970 के दशक तक, इतिहासकार ‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग ब्रिटेन में 1780 के दशक से 1820 के दशक के बीच हुए औद्योगिकी विकास व विस्तारों के लिए करते थे। परन्तु उसके पश्चात् इस शब्द के प्रयोग को अनेक आधारों पर चुनौती दी जाने लगी। 1780 के दशक से 1820 के दशक के बीच हुए औद्योगिक विकास को औद्योगिक क्रान्ति की संज्ञा देना तर्क-संगत नहीं – कुछ विद्वानों का विचार है कि 1780 के दशक से 1820 के दशक के बीच हुए औद्योगिक विकास को ‘औद्योगिक क्रान्ति’ की संज्ञा देना तर्क संगत नहीं है। इन विद्वानों का कहना है कि औद्योगीकरण की क्रिया इतनी धीमी गति से होती रही कि इसे क्रान्ति की संज्ञा देना उचित नहीं है। इसके परिणामस्वरूप फैक्ट्रियों में मजदूरों की संख्या अवश्य बहुत अधिक बढ़ गई तथा धन का प्रयोग भी पहले से अधिक व्यापक रूप से होने लगा। इस सम्बन्ध में विद्वानों निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए हैं –
1. इंग्लैण्ड के बड़े-बड़े क्षेत्रों में फैक्ट्रियाँ या खानों का अभाव – उन्नीसवीं शताब्दी शुरू होने के काफी समय बाद तक भी इंग्लैण्ड के बड़े-बड़े क्षेत्रों में कोई फैक्ट्रियाँ या खानें नहीं थीं। इसलिए इसे ‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द की संज्ञा देना उपयुक्त नहीं है। इंग्लैण्ड में परिवर्तन प्रमुख रूप से लन्दन, मैनचेस्टर, बर्मिंघम, न्यूकासल आदि नगरों के चारों ओर हुआ, परन्तु यह परिवर्तन सम्पूर्ण देश में नहीं हुआ।
2. कपास या लोहा उद्योगों में हुए विकास को क्रान्तिकारी कहना उचित नहीं है- इन विद्वानों का कहना है कि 1780 के दशक से 1820 के दशक तक कपास या लौह उद्योग अथवा विदेशी व्यापार में हुए विकास को क्रान्तिकारी कहना उचित नहीं है। नई मशीनों के कारण सूती वस्त्र उद्योग में जो उल्लेखनीय विकास हुआ, वह एक ऐसे कच्चे माल (कपास) पर आधारित था जो इंग्लैण्ड में बाहर से मँगाया जाता था। इसी प्रकार तैयार माल भी दूसरे देशों में विशेषतः भारत में बेचा जाता था। धातु से निर्मित मशीनें तथा भाप की शक्ति तो उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक दुर्लभ रहीं। 1780 के दशक में ब्रिटेन के आयात-निर्यात में वृद्धि अमरीकी स्वतंत्रता संग्राम के खत्म होने के कारण हुई, न कि औद्योगिक क्रांति के कारण।
3. सतत् औद्योगीकरण का 1815-20 के बाद में दिखाई देना- विद्वानों के अनुसार सतत् औद्योगीकरण 1815-20 से पहले की बजाय बाद में दिखाई दिया था। लाभदायक निवेश उत्पादकता के स्तरों के साथ – साथ 1820 के बाद धीरे-धीरे बढ़ने लगा। 1840 के दशक तक कपास, लोहा और इन्जीनियरिंग उद्योगों से आधे से भी कम औद्योगिक उत्पादन होता था। तकनीकी उन्नति केवल इन्हीं शाखाओं में नहीं हुई, बल्कि वह कृषि उपकरणों तथा मिट्टी के बर्तन बनाने जैसे अन्य उद्योग-धन्धों में भी देखी जा सकती थी। स्पष्ट है कि ब्रिटेन में औद्योगिक विकास 1815 से पहले की अपेक्षा उसके बाद ही अधिक तीव्र गति से हुआ।
4. क्रांति के साथ प्रयुक्त ‘औद्योगिक’ शब्द सीमित अर्थ वाला है – ब्रिटेन में इस काल में जो रूपान्तरण हुआ वह केवल आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उसका विस्तार इन क्षेत्रों से परे समाज के भीतर भी हुआ। इसके फलस्वरूप ही दो वर्गों – मध्यम वर्ग और मजदूर ( सर्वहारा ) वर्ग को प्रधानता मिली। अतः इसे औद्योगिक क्रांति कहना इस परिवर्तन के आयामों को सीमित करना है।
प्रश्न 10.
औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक एवं आर्थिक परिणामों की विवेचना कीजिए।
अथवा
औद्योगिक क्रान्ति के परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
I. औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक परिणाम – औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक परिणामों का विवेचन निम्नानुसार है –
1. मजदूरों की दयनीय दशा – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप मजदूरों की दशा दयनीय बनी हुई थी। उनसे अधिक से अधिक काम लिया जाता था परन्तु उन्हें मजदूरी बहुत कम दी जाती थी। मजदूरों को गन्दे मकानों में पशुओं की भाँति जीवन व्यतीत करना पड़ता था।
2. संयुक्त परिवारों का विघटन – मजदूर रोजगार की तलाश में गाँव छोड़कर नगरों में आ गए जिससे संयुक्त परिवार प्रथा विघटित होती चली गई। अब संयुक्त परिवार टूट गए।
3. गन्दी बस्तियों की समस्या – कारखानों के आसपास मजदूरों के परिवार बस गए। वे कच्चे-पक्के झोंपड़ों में रहने लगे। इससे गन्दी बस्तियों का जन्म हुआ।
4. स्वास्थ्य की हानि – मजदूरों को गन्दे कारखानों में काम करना पड़ता था। कारखानों में शुद्ध वायु तथा प्रकाश का अभाव था। गन्दी बस्तियों में रहने तथा शुद्ध पेय जल की व्यवस्था न होने से मजदूर कई प्रकार की बीमारियों के शिकार बन जाते थे।
5. नैतिक पतन – थकावट को दूर करने के लिए मजदूरों को मनोरंजन के रूप में मद्यपान, जुए, वेश्यावृत्ति आदि का सहारा लेना पड़ा। इसके फलस्वरूप उनका नैतिक पतन हुआ।
6. मध्यम वर्ग का उदय – कारखानों के संचालन के लिए पूँजी तथा व्यावसायिक बुद्धि की आवश्यकता थी। मध्यम वर्ग के लोगों के पास पूँजी तथा व्यावसायिक बुद्धि दोनों ही थीं। इसके फलस्वरूप मध्यम वर्ग का उदय हुआ।
7. पारिवारिक जीवन पर बुरा प्रभाव – जीवन – निर्वाह करने के लिए पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों और बच्चों को भी कारखानों में काम करना पड़ता था। अतः अब घर सुनसान रहने लगे। स्त्री, पुरुष और बच्चों को आपस में मिलने- जुलने का समय नहीं मिल पाता था।
8. मानव समाज की सुख-सुविधा में वृद्धि – औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप लोगों के रहन-सहन, खान-पान, वस्त्रादि में परिवर्तन आ गया। अब मानव जीवन को अधिक से अधिक सुखदायक बनाए जाने पर बल दिया जाने लगा।
II. औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक परिणाम – औद्योगिक क्रान्ति के निम्नलिखित आर्थिक परिणाम हुए –
1. औद्योगिक पूँजीवाद का विकास – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप औद्योगिक पूँजीवाद का विकास हुआ। नवीन औद्योगिक व्यवस्था में वही लोग ठहर सके जिनके पास अधिक पूँजी थी।
2. नये नगरों का विकास – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप हजारों भूमिहीन किसान अपने गाँव छोड़कर आजीविका की तलाश में नगरों में आ गए और औद्योगिक केन्द्रों के आसपास रहने लगे। इस प्रकार औद्योगिक केन्द्रों के आसपास नये नगरों का विकास हुआ।
3. राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि – उद्योग-धन्धों तथा व्यापार की उन्नति के कारण अनेक देशों की राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि हुई।
4. बड़े कारखानों की स्थापना – औद्योगिक क्रान्ति के कारण बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हुई जिनमें हजारों लोग एक-साथ काम करते थे। बड़े-बड़े कारखानों में ‘फैक्ट्री पद्धति अपनाई गई।
5. बड़े पैमाने पर उत्पादन – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप उत्पादन बहुत बढ़ गया। इंग्लैण्ड में वस्त्र – उद्योग, लौह एवं इस्पात उद्योग, कोयला उद्योग, जहाज, मशीनों तथा रेलों के उद्योगों में आश्चर्यजनक उन्नति हुई।
6. दैनिक जीवन की वस्तुओं का सस्ता होना – बड़े-बड़े कारखानों में दैनिक आवश्यकता में काम में आने वाली वस्तुओं का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाने लगा। परिणामस्वरूप दैनिक जीवन में काम में आने वाली वस्तुएँ सस्ती हो गईं।
7. घरेलू उद्योगों का विनाश – मशीनों से बनी हुई वस्तुएँ घरेलू उद्योगों की वस्तुओं से काफी सस्ती तथा सुन्दर होती थीं। परिणामस्वरूप घरेलू उद्योग-धन्धे नष्ट होते गए।
8. बेरोजगारी की समस्या – घरेलू उद्योग-धन्धों के नष्ट हो जाने से असंख्य लोग बेरोजगार हो गए। एक मशीन कई व्यक्तियों का कार्य कर सकती थी। परिणामस्वरूप घरेलू उद्योगों में लगे हुए कारीगर बड़ी संख्या में बेरोजगार हो गए।