Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय Important Questions and Answers.
JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. निम्नलिखित में राजनीति के सम्बन्ध में कौनसा कथन उपयुक्त है।
(अ) राजनीति एक अवांछनीय गतिविधि है।
(ब) राजनीति वही है जो राजनेता करते हैं
(स) राजनीति दांवपेंच, कुचक्र और घोटालों से संबंधित नीति है।
(द) राजनीति सामाजिक विकास के उद्देश्य से जनता की परस्पर वार्ता व सामूहिक गतिविधि में भाग लेने की स्थिति है।
उत्तर:
(द) राजनीति सामाजिक विकास के उद्देश्य से जनता की परस्पर वार्ता व सामूहिक गतिविधि में भाग लेने की स्थिति है।
2. महात्मा गांधी की पुस्तक का नाम है।
(अ) हिंद स्वराज
(ब) लेवियाथन
(स) रिपब्लिक
(द) पॉलिटिक्स
अथवा
निम्नलिखित में से हिन्द-स्वराज के लेखक हैं।
(अ) महात्मा गांधी
(ब) पण्डित नेहरू
(स) सरदार पटेल
(द) डॉ. अम्बेडकर
उत्तर:
(अ) हिंद स्वराज
3. आधुनिक काल में सबसे पहले किस विचारक ने यह सिद्ध किया कि स्वतंत्रता है।
(अ) हॉब्स
(ब) लॉक
(स) रूसो
(द) जे. एस. मिल
उत्तर:
(स) रूसो
4. ‘द रिपब्लिक’ पुस्तक का लेखक है।
(अ) सुकरात
(ब) प्लेटो
(स) सेफलस
(द) ग्लाकॉन
अथवा
प्लेटो ने निम्न में से कौनसी पुस्तक की रचना की थी ?
(अ) पॉलिटिक्स
(ब) द रिपब्लिक
(स) प्रिंस
(द) दास कैपीटल
उत्तर:
(ब) प्लेटो
5. निम्नलिखित में से कौनसा कथन समानता शब्द से सरोकार नहीं रखता है।
(अ) समानता का अर्थ सभी के लिए समान अवसर होता है।
(ब) समानता में किसी न किसी प्रकार की निष्पक्षता का होना आवश्यक है।
(स) अक्षमता के शिकार व्यक्तियों के लिए विशेष प्रावधान भी समानता का एक अंग है।
(द) व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव समानता है।
उत्तर:
(द) व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव समानता है।
6. राजनीतिक सिद्धान्त के अन्तर्गत विवेचित किया जाता है।
(अ) राजनीतिक विचारधाराओं को
(स) राजनीतिक संकल्पनाओं को
(ब) राजनीतिक समस्याओं को
(द) उपर्युक्त सभी को
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी को
7. “राजनीति ने हमें साँप की कुण्डली की तरह जकड़ रखा है।” यह कथन है।
(अ) सुकरात का
(स) महात्मा गाँधी का
(ब) कार्ल मार्क्स का
(द) डॉ. भीमराव अम्बेडकर का
उत्तर:
(स) महात्मा गाँधी का
8. हमारी आर्थिक, विदेशी तथा शिक्षा नीतियों का निर्धारण किया जाता है।
(अ) सरकार द्वारा
(ब) परिवार द्वारा
(स) विद्यालय द्वारा
(द) समाज द्वारा
उत्तर:
(अ) सरकार द्वारा
9. ‘समानता भी उतनी ही निर्णायक होती है, जितनी कि स्वतंत्रता।” यह कथन है।
(अ) रूसो का
(ब) कार्ल मार्क्स का
(स) हॉब्स का
(द) महात्मा गाँधी का
उत्तर:
(ब) कार्ल मार्क्स का
10. राजनीति के अन्तर्गत लिया जाता है।
(अ) सामाजिक घटनाओं को
(ब) धार्मिक घटनाओं को
(स) पारिवारिक घटनाओं को
(द) राजनीतिक घटनाओं को
उत्तर:
11. इण्टरनेट का प्रयोग करने वाले को कहा जाता है।
(अ) नेटिजन
(ब) नैटीकैल
(स) सिटीजन
(द) हैरिजन
उत्तर:
(अ) नेटिजन
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
1. एक अकुशल और भ्रष्ट सरकार लोगों के जीवन और सुरक्षा को भी ……………….. में डाल सकती है।
उत्तर:
संकट
2. अगर सरकार साक्षरता और रोजगार बढ़ाने की नीतियाँ बनाती है तो हमें अच्छे स्कूल में जाने और बेहतर …………….. पाने के अवसर मिल सकते हैं।
उत्तर:
रोजगार
3. भारतीय संविधान में ………………….. राजनीतिक क्षेत्र में समान अधिकारों के रूप में बनी है, लेकिन यह आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में उसी तरह नहीं है।
उत्तर:
समानता
4. जैसे-जैसे हमारी दुनिया बदल रही है, हम आजादी और आजादी पर संभावित खतरों के नए-नए ……………………. की खोज कर रहे हैं।
उत्तर:
आयामों
5. परिस्थितियों के मद्देनजर संविधान में दिए गए …………………. की निरंतर पुनर्व्याख्या की जा रही है।
उत्तर:
मौलिक अधिकारों
निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये
1. समानता जैसे शब्दों का सरोकार किसी वस्तु के बजाय अन्य मनुष्यों के साथ हमारे संबंधों से होता है।
उत्तर:
सत्य
2. राजनीति किसी भी तरीके से निजी स्वार्थ साधने की कला है।
उत्तर:
असत्य
3. राजनीति एक अवांछनीय गतिविधि है, जिससे हमें अलग रहना चाहिए और पीछा छुड़ाना चाहिए।
उत्तर:
असत्य
4. राजनीति का जन्म इस तथ्य से होता है कि हमारे और हमारे समाज के लिए क्या उचित एवं वांछनीय है और क्या नहीं।
उत्तर:
सत्य
5. राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों व नीतियों के व्यवस्थित रूप को प्रतिबिंबित करता है, जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान ने आकार ग्रहण किया है।
उत्तर:
सत्य
निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये
1. ‘राजतंत्र और लोकतंत्र में कौनसा तंत्र बेहतर है’ की विवेचना की। | (अ) रूसो |
2. ‘स्वतंत्रता मानव का मौलिक अधिकार है’ को सबसे पहले सिद्ध किया। | (ब) गाँधीजी |
3. हिन्द – स्वराज। | (स) डॉ. अम्बेडकर |
4. अनुसूचित जातियों को विशेष संरक्षण मिलना चाहिए। | (द) मार्क्स |
5. ‘समानता भी उतनी ही निर्णायक होती है, जितनी कि स्वतंत्रता’। | (य) अरस्तू |
उत्तर:
1. ‘राजतंत्र और लोकतंत्र में कौनसा तंत्र बेहतर है’ की विवेचना की। | (य) अरस्तू |
2. ‘स्वतंत्रता मानव का मौलिक अधिकार है’ को सबसे पहले सिद्ध किया। | (अ) रूसो |
3. हिन्द – स्वराज। | (ब) गाँधीजी |
4. अनुसूचित जातियों को विशेष संरक्षण मिलना चाहिए। | (स) डॉ. अम्बेडकर |
5. ‘समानता भी उतनी ही निर्णायक होती है, जितनी कि स्वतंत्रता’। | (द) मार्क्स |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘पॉलिटिक्स’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
अरस्तू।
प्रश्न 2.
गाँधीजी की राजनीतिक पुस्तक का नाम लिखिये।
उत्तर:
हिन्द-स्वराज।
प्रश्न 3.
प्लेटो की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम लिखिये।
उत्तर:
द रिपब्लिक।
प्रश्न 4.
राजनीति का सकारात्मक रूप क्या है?
उत्तर:
राजनीति का सकारात्मक रूप जनसेवा तथा समाज में सुधारों के कार्य करना है।
प्रश्न 5.
राजनीति का नकारात्मक रूप क्या है?
उत्तर:
राजनीति का नकारात्मक रूप दांव-पेंचों द्वारा अपनी जरूरतों एवं महत्त्वाकांक्षाओं को पूरी करना है।
प्रश्न 6.
राजनीति से जुड़े लोग किस प्रकार के दांव-पेंच चलाते हैं?
उत्तर:
राजनीति के दांव-पेंचों में दल-बदल, झूठे वायदे तथा बढ़-चढ़कर दावे करना आदि आते हैं।
प्रश्न 7.
आधुनिक लेखकों ने राजनीति को किस रूप में देखा है?
उत्तर:
आधुनिक लेखकों ने राजनीति को शक्ति के लिए संघर्ष के रूप में देखा है।
प्रश्न 8.
राजनीतिक सिद्धान्त किस तरह के मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय के मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है।
प्रश्न 9.
गांधीजी ने स्वराज शब्द की व्याख्या किस पुस्तक में की थी?
उत्तर:
‘हिन्द-स्वराज’ नामक पुस्तक में।
प्रश्न 10.
अस्पृश्यता या छुआछूत का अन्त भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में है?
उत्तर:
अनुच्छेद 17 में।
प्रश्न 11.
इन्टरनेट का प्रयोग करने वाले को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
नेटिजन।
प्रश्न 12.
राजनीतिक सिद्धान्त का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त का उद्देश्य नागरिकों को राजनीतिक प्रश्नों के बारे में तर्कसंगत ढंग से सोचने और सामयिक राजनीतिक घटनाओं को सही तरीके से आंकने का प्रशिक्षण देना है।
प्रश्न 13.
राजनीति को एक प्रकार की जनसेवा बताने वाले कौनसे लोग हैं?
उत्तर:
राजनेता, चुनाव लड़ने वाले तथा राजनीतिक पदाधिकारी लोग।
प्रश्न 14.
सरकार की नीतियाँ लोगों की कैसे सहायता कर सकती हैं?
उत्तर:
सरकारें आर्थिक, विदेश और शिक्षा नीतियों के माध्यम से लोगों के जीवन को उन्नत करने में सहायता कर सकती हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मनुष्य किन दो मामलों में अद्वितीय है?
उत्तर:
- मनुष्य के पास विवेक होता है और अपनी गतिविधियों में उसे व्यक्त करने की योग्यता होती है। वह अपने अंतरतम की भावनाओं और आकांक्षाओं को व्यक्त कर सकता है।
- उसके पास भाषा का प्रयोग तथा एक-दूसरे से संवाद करने की भी क्षमता होती है।
प्रश्न 2.
राजनीतिक सिद्धान्त किस तरह के प्रश्नों की पड़ताल करता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त कुछ खास बुनियादी प्रश्नों की पड़ताल करता है, जैसे- समाज को कैसे संगठित होना चाहिए? क्या कानून हमारी स्वतंत्रता को सीमित करता है? राजसत्ता की अपने नागरिकों के प्रति क्या देनदारी है? हमें सरकार की जरूरत क्यों है? सरकार का सर्वश्रेष्ठ रूप कौनसा है? नागरिक के रूप में एक-दूसरे के प्रति हमारी क्या देनदारी होती है? आदि।
प्रश्न 3.
राजनीतिक सिद्धान्त कैसे मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसे मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है। यह इनके और अन्य संबद्ध अवधारणाओं के अर्थ और महत्त्व की व्याख्या करता है। इन अवधारणाओं की मौजूदा परिभाषाओं को स्पष्ट करता है।
प्रश्न 4.
हमारा सामना राजनीति की किन परस्पर विरोधी छवियों से होता है?
उत्तर:
हमारा सामना राजनीति की अनेक परस्पर विरोधी छवियों से होता है, जैसे
- राजनेताओं की राय में राजनीति एक प्रकार की जनसेवा है।
- कुछ अन्य लोगों की राय में राजनीति दांवपेंच और कुचक्रों भरी नीति है।
- कुछ अन्य लोगों की राय में जो राजनेता करते हैं, वही राजनीति है।
प्रश्न 5.
हम किस तरह से एक बेहतर दुनिया रचने की आकांक्षा करते हैं?
उत्तर:
हम संस्थाएँ बनाकर, अपनी मांगों के लिए प्रचार अभियान चलाकर, सरकार की नीतियों का विरोध करके, वाद-विवाद तथा विचार-विमर्श आदि के द्वारा मौजूदा अव्यवस्था और पतन के तर्कसंगत कारण तलाशते हैं और एक बेहतर दुनिया रचने की आकांक्षा करते हैं।
प्रश्न 6.
राजनीति का जन्म किस तथ्य से होता है?
उत्तर:
राजनीति का जन्म इस तथ्य से होता है कि हमारे व हमारे समाज के लिए क्या उचित एवं वांछनीय है और क्या नहीं? इस सम्बन्ध में परस्पर वार्ताएँ करके निर्णय लेना। एक तरह से इन वार्ताओं से जनता और सरकार दोनों जुड़ी होती हैं।
प्रश्न 7.
राजनीतिक सिद्धान्त क्यों प्रासंगिक है? कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त इसलिए प्रासंगिक है; क्योंकि इसकी अवधारणाओं से संबंधित मुद्दे वर्तमान सामाजिक जीवन में अनेक मामलों में उठते हैं और इन मुद्दों की निरन्तर वृद्धि हो रही है। दूसरे, जैसे-जैसे हमारी दुनिया बदल रही है, हम आजादी और आजादी पर संभावित खतरों के नए-नए आयामों की खोज कर रहे हैं।
प्रश्न 8.
राजनीति क्या है? संक्षेप में समझाओ।
उत्तर:
राजनीति: जब जनता सामाजिक विकास को बढ़ावा देने और सामान्य समस्याओं के समाधान हेतु परस्पर वार्ता करती है और सामूहिक गतिविधियों तथा सरकार के कार्यों में भाग लेती है तथा विभिन्न प्रकार के संघर्षों से सरकार के निर्णयों को प्रभावित करती है तो इसे राजनीति कहते हैं।
प्रश्न 9.
राजनीतिक सिद्धान्त में हम क्या पढ़ते हैं? संक्षेप में लिखिये।
अथवा
राजनीतिक सिद्धान्त में पढ़े जाने वाले किन्हीं दो तत्वों का उल्लेख करो।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त की विषय-सामग्री:
- राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों और नीतियों के व्यवस्थित रूप को प्रतिबिंबित करता है, जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान ने आकार ग्रहण किया है।
- यह स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता’ जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता है।
- यह कानून का राज, अधिकारों का बंटवारा और न्यायिक पुनरावलोकन जैसी नीतियों की सार्थकता की जाँच करता है।
- राजनीतिक सिद्धान्तकार हमारे वर्तमान राजनीतिक अनुभवों की छानबीन भी करते हैं और भावी रुझानों तथा संभावनाओं को भी चिन्हित करते हैं ।
प्रश्न 10.
राजनीतिक सिद्धान्तकारों को किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्तकारों को रोजमर्रा के विचारों से उलझना पड़ता है, संभावित अर्थों पर विचार-विमर्श करना पड़ता है और नीतिगत विकल्पों को सूत्रबद्ध करना पड़ता है। स्वतंत्रता, समानता, नागरिकता, अधिकार, विकास, न्याय, राष्ट्रवाद तथा धर्मनिरपेक्षता आदि अवधारणाओं पर विचार-विमर्श के दौरान उन्हें विवादकर्ताओं से उलझन भी पड़ता है।
प्रश्न 11.
एक छात्र के लिए राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन की प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
एक छात्र के रूप में हम राजनेता, नीति बनाने वाले नौकरशाह, राजनीतिक सिद्धान्त पढ़ाने वाले अध्यापक में से किसी एक पेशे को चुन सकते हैं। इसलिए परोक्ष रूप से यह अभी भी हमारे लिए प्रासंगिक है। दूसरे, एक नागरिक के रूप में दायित्वपूर्ण कार्य निर्वहन के लिए भी हमारे लिए राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन प्रासंगिक है। तीसरे, राजनीतिक सिद्धान्त हमें न्याय या समानता के बारे में सुव्यवस्थित सोच से अवगत कराते हैं।
प्रश्न 12.
” कितना नियमन न्यायोचित है और किसको नियमन करना चाहिए – सरकार को या स्वतंत्र नियामकों को?” कथन के संदर्भ में राजनीतिक सिद्धान्त की प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
जैसे-जैसे हमारी दुनिया बदल रही है, हम स्वतंत्रता और स्वतंत्रता पर संभावित खतरों के नये-नये आयामों की खोज कर रहे हैं। जैसे – वैश्विक संचार तकनीक दुनियाभर में आदिवासी संस्कृति या जंगल की सुरक्षा के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं का परस्पर तालमेल करना आसान बना रही है; लेकिन दूसरी तरफ इसने आतंकवादियों और अपराधियों को भी अपना नेटवर्क कायम करने की क्षमता दी है। इसी प्रकार भविष्य में इन्टरनेट द्वारा व्यापार में बढ़ोतरी तय है। इसका अर्थ है कि वस्तुओं अथवा सेवाओं की खरीद के लिए हम अपने बारे में सूचना ऑन लाइन दें, उसकी सुरक्षा हो।
यद्यपि इन्टरनेट का प्रयोग करने वाले नेटिजन सरकारी नियंत्रण नहीं चाहते, लेकिन वे भी वैयक्तिक सुरक्षा और गोपनीयता को बनाए रखने के लिए किसी न किसी प्रकार का नियमन जरूरी मानते हैं। इसलिए वर्तमान में यह प्रश्न उठता है कि इन्टरनेट इस्तेमाल करने वालों को कितनी स्वतंत्रता दी जाये, ताकि वे उसका सदुपयोग कर सकें और कितना नियमन न्यायोचित है, ताकि उसका दुरुपयोग न हो सके। और यह नियमन करने वाली संस्था कौन होनी चाहिए— सरकार या कोई अन्य स्वतंत्र संस्था? राजनीतिक सिद्धान्त इन प्रश्नों के संभावित उत्तरों को देने में हमारी बहुत सहायता कर सकता है। इसीलिए आज इसकी प्रासंगिकता बहुत अधिक है।
प्रश्न 13.
राजनीतिक सिद्धान्तों को व्यवहार में कैसे उतारा जा सकता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्तों को व्यवहार में उतारना: राजनीतिक अवधारणाओं के अर्थ को राजनीतिक सिद्धान्तकार यह देखते हुए स्पष्ट करते हैं कि आम भाषा में इसे कैसे समझा और बरता जाता है। वे विविध अर्थों और रायों पर विचार-विमर्श और उनकी जांच-पड़ताल भी सुव्यवस्थित तरीके से करते हैं। जैसे- समानता की अवधारणा के सम्बन्ध में, अवसर की समानता कब पर्याप्त है? कब लोगों को विशेष बरताव की आवश्यकता होती है? ऐसा विशेष बरताव कब तक और किस हद तक किया जाना चाहिए?
ऐसे अनेक प्रश्नों की ओर वे मुखातिब होते हैं। ये मुद्दे बिल्कुल व्यावहारिक हैं। वे शिक्षा और रोजगार के बारे में सार्वजनिक नीतियाँ तय करने में मार्गदर्शन करते हैं। धर्मनिरपेक्षता समानता की ही तरह अन्य अवधारणाओं, जैसे स्वतंत्रता, नागरिकता, अधिकार, न्याय, विकास, आदि के मामलों में भी राजनीतिक सिद्धान्तकार रोजमर्रा के विचारों में उलझता है, संभावित अर्थों पर विचार-विमर्श कर नीतिगत विकल्पों को सूत्रबद्ध कर उन्हें व्यावहारिक बनाता है।
प्रश्न 14.
राजनीतिक सिद्धान्त की आवश्यकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये । उत्तर – राजनीतिक सिद्धान्त की आवश्यकताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।
- राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन राजनीति करने वाले राजनेताओं, नीति बनाने वाले नौकरशाहों तथा राजनीतिक सिद्धान्त पढ़ाने वाले अध्यापकों, संविधान और कानूनों की व्याख्या करने वाले वकील, जंज तथा उन कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के लिए अति आवश्यक है, जो शोषण का पर्दाफाश करते हैं और नये अधिकारों की माँग करते हैं।
- राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन दायित्वपूर्ण कार्य निर्वहन के लिए उन राजनीतिक विचारों और संस्थाओं की बुनियादी जानकारी हमारे लिए मददगार होती है, जो हमारी दुनिया को आकार देते हैं।
- राजनीतिक सिद्धान्त हमें राजनीतिक चीजों के बारे में अपने विचारों और भावनाओं के परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करता है तथा इसके अध्ययन से हमारे विचारों और भावनाओं में उदारता आती है।
- राजनीतिक सिद्धान्त हमें न्याय तथा समानता के बारे में सुव्यवस्थित सोच से अवगत कराते हैं, ताकि हम अपने विचारों को परिष्कृत कर सकें और सार्वजनिक हित में सुविज्ञ तरीके से तर्क-वितर्क कर सकें।
प्रश्न 15.
क्या विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेना चाहिए?
उत्तर:
विद्यार्थियों को न सिर्फ राजनीति के विषय में जानकारी ही होनी चाहिए बल्कि उन्हें इसमें सक्रिय रूप से भाग भी लेना चाहिए क्योंकि।
- हमारा समाज लोकतंत्र की भावना में अटूट आस्था रखता है तथा वर्तमान विद्यार्थी ही कल के समाज के जिम्मेदार नागरिक बनेंगे।
- इन्हीं नागरिकों में से हमें अपने राजनीतिज्ञों एवं प्रतिनिधियों का चयन करना है, जिन्हें राजनीतिक सिद्धान्तों का पर्याप्त ज्ञान सैद्धान्तिक और व्यावहारिक रूप से होना चाहिए।
- यदि विद्यार्थी राजनीतिक गतिविधियों एवं क्रियाकलापों से अवगत नहीं होंगे तो देश के उचित सूत्रधार नहीं बन पायेंगे। इसलिए विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेकर राजनीतिक ज्ञान का व्यवहार में सही प्रयोग करना सीखना चाहिए।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राजनीतिक सिद्धान्त में हम क्या पढ़ते हैं? इनकी प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त: राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों और नीतियों के व्यवस्थित रूप को प्रतिबिंबित करता है, जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान ने आकार ग्रहण किया है। राजनीतिक सिद्धान्त की विषय-सामग्री राजनीतिक सिद्धान्त में हम निम्न बातों का अध्ययन करते हैं।
- यह स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता है।
- यह कानून का राज, अधिकारों का बँटवारा और न्यायिक पुनरावलोकन जैसी नीतियों की सार्थकता की जांच करता है। यह इस काम को विभिन्न विचारकों द्वारा इन अवधारणाओं के बचाव में विकसित युक्तियों की जांच-पड़ताल के ये करता है।
- राजनीतिक सिद्धान्तकार हमारे ताजा राजनीतिक अनुभवों की छानबीन भी करते हैं और भावी रुझानों तथा संभावनाओं को चिन्हित करते हैं।
राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन की प्रासंगिकता: राजनीतिक सिद्धान्तों की उपयोगिता या इनके अध्ययन की प्रासंगिकता का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।
1 .स्वतंत्रता, समानता और लोकतंत्र से संबंधित मुद्दों में वृद्धि:
राजनीतिक सिद्धान्त स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र जैसी धारणाओं के अर्थ स्पष्ट करता है। वर्तमान में भी स्वतंत्रता, समानता तथा लोकतंत्र से संबंधित मुद्दे सामाजिक जीवन के अनेक मामलों में उठते हैं और विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रफ्तार से उनकी बढ़ोतरी हो रही है। उदाहरण के लिए राजनीतिक क्षेत्र में समानता समान अधिकारों के रूप में है, लेकिन यह आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में उसी तरह नहीं है।
लोगों के पास समान राजनीतिक अधिकार हो सकते हैं, लेकिन हो सकता है कि समाज में उनके साथ जाति या गरीबी के कारण अभी भी भेदभाव होता है। संभव है कि कुछ लोगों को समाज में विशेषाधिकार प्राप्त हों, वहीं कुछ दूसरे बुनियादी आवश्यकताओं तक से वंचित हों। कुछ लोग अपना मनचाहा लक्ष्य पाने में सक्षम हैं, जबकि कई लोग भविष्य में अच्छा रोजगार पाने के लिए जरूरी स्कूली पढ़ाई के लिए भी ‘अक्षम हैं। इनके लिए स्वतंत्रता अभी भी दूर का सपना है। इस दृष्टि से राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन अब भी प्रासंगिक बना हुआ है।
2. नित नई व्याख्याओं की दृष्टि से प्रासंगिकता:
यद्यपि हमारे संविधान में स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है, तथापि हमें हरदम नई व्याख्याओं का सामना करना पड़ता है। नई परिस्थितियों के मद्देनजर संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की निरंतर पुनर्व्याख्या की जा रही है। जैसे ‘आजीविका के अधिकार’ को ‘जीवन के अधिकार’ में शामिल करने के लिए अदालतों द्वारा उसकी पुनर्व्याख्या की गई है। सूचना के अधिकार की गारंटी एक नए कानून द्वारा की गई है। इस प्रकार समाज बार-बार चुनौतियों का सामना करता है। इस क्रम में नई व्याख्याएँ पैदा होती हैं। समय के साथ संवैधानिक मूल अधिकारों में संशोधन भी हुए हैं और इनका विस्तार भी। अतः राजनैतिक अवधारणाओं की नई व्याख्याओं को समझने के लिए राजनैतिक सिद्धान्त के अध्ययन की प्रासंगिकता बनी हुई है।
3. स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के संभावित खतरों के नये आयामों से जुड़े प्रश्नों के उत्तरों के लिए प्रासंगिक:
जैसे-जैसे हमारा विश्व परिवर्तित हो रहा है, हम स्वतंत्रता और स्वतंत्रता पर संभावित खतरों के नए-नए आयामों की खोज कर रहे हैं। जैसे वैश्विक संचार तकनीक विश्व भर में आदिवासी संस्कृति या जंगल की सुरक्षा के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं का एक-दूसरे से तालमेल करना आसान बना रही है। पर इसने आतंकवादियों और अपराधियों को भी अपना नेटवर्क कायम करने की क्षमता दी है। इसी प्रकार, भविष्य में इंटरनेट द्वारा व्यापार में वृद्धि निश्चित है।
इसका अर्थ है कि वस्तुओं अथवा सेवाओं की खरीद के लिए हम अपने बारे में जो सूचना ऑन लाइन दें, उसकी सुरक्षा हो। इसलिए, यद्यपि नेटिजन सरकारी नियंत्रण नहीं चाहते तथापि वे भी वैयक्तिक सुरक्षा और गोपनीयता बनाए रखने के लिए किसी-न-किसी प्रकार का नियमन जरूरी मानते हैं। लेकिन कितना नियमन न्यायोचित है और किसको नियमन करना चाहिए? राजनीतिक सिद्धान्त में इन प्रश्नों के संभावित उत्तरों के सिलसिले में हमारे सीखने के लिए बहुत कुछ है और इसीलिए यह बेहद प्रासंगिक है।