JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. राजस्थान और पंजाब सरकार के मध्य विवाद की सुनवाई कौन करेगा?
(क) राजस्थान उच्च न्यायालय
(ग) सर्वोच्च न्यायालय
(ख) पंजाब उच्च न्यायालय
(घ) जिला न्यायालय।
उत्तर:
(ग) सर्वोच्च न्यायालय

2. राजस्थान के जिला न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील कहाँ की जायेगी ।
(क) राजस्थान उच्च न्यायालय में
(ख) रिट के माध्यम से
(ग) सर्वोच्च न्यायालय में
(घ) दिल्ली उच्च न्यायालय में। किस अधिकार के तहत करता है-
उत्तर:
(क) राजस्थान उच्च न्यायालय में

3. सर्वोच्च न्यायालय किसी कानून को असंवैधानिक ।
(क) अपीलीय क्षेत्राधिकार के तहत
(ख) पंजाब उच्च न्यायालय में
(ग) न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के माध्यम से
(घ) सलाहकारी क्षेत्राधिकार द्वारा।
उत्तर:
(ग) न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के माध्यम से

4. निम्नलिखित में से कौनसा न्यायिक स्वतन्त्रता के अर्थ से सम्बन्धित नहीं है।
(क) सरकार के अन्य अंग न्यायपालिका के कार्यों में बाधा न पहुँचाएँ।
(ख) सरकार के अन्य अंग न्यायपालिका के निर्णयों में हस्तक्षेप न करें।
(ग) न्यायाधीश बिना भय या भेदभाव के अपना कार्य कर सकें।
(घ) न्यायपालिका स्वेच्छाचारी व अनुत्तरदायी हो।
उत्तर:
(घ) न्यायपालिका स्वेच्छाचारी व अनुत्तरदायी हो।

5. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की जाती है।
(क) प्रधानमन्त्री द्वारा
(ग) विधि मन्त्री द्वारा
(ख) राष्ट्रपति द्वारा
(घ) लोकसभा अध्यक्ष द्वारा।
उत्तर:
(ख) राष्ट्रपति द्वारा

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका

6. संघ और राज्यों के बीच के तथा विभिन्न राज्यों के आपसी विवाद सर्वोच्च न्यायालय के निम्न में से किस क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत आते हैं।
(क) अंपीली क्षेत्राधिकार
(ग) सलाहकारी क्षेत्राधिकार
(ख) मौलिक क्षेत्राधिकार
(घ) रिट सम्बन्धी क्षेत्राधिकार।
उत्तर:
(ख) मौलिक क्षेत्राधिकार

7. कोई व्यक्ति उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में उसके किस क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत अपील कर सकता है?
(क) मौलिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत
(ख) अपीलीय क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत
(ग) सलाहकारी क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) अपीलीय क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत

8. जनहित याचिका की शुरुआत भारत में कब से हुई ?
(क) 1979 से
(ख) 1984 से
(ग) 1989 से
(घ) 1999 से।
उत्तर:
(क) 1979 से

9. निम्न में से कौनसा न्यायिक सक्रियता का सकारात्मक पहलू है?
(क) इसने न्याय व्यवस्था को लोकतान्त्रिक बनाया।
(ख) इसने न्यायालयों में काम का बोझ बढ़ाया है।
(ग) इससे तीनों अंगों के कार्यों के बीच का अन्तर धुँधला पड़ा है।
(घ) इससे न्यायालय उन समस्याओं में उलझ गया है जिसे कार्यपालिका को करना चाहिए।
उत्तर:
(क) इसने न्याय व्यवस्था को लोकतान्त्रिक बनाया।

10. अग्र में से कौनसा मुद्दा सुलझ गया है?
(क) क्या संसद संविधान के मूल ढाँचे में संशोधन कर सकती है?
(ख) जो व्यक्ति विधायिका के विशेषाधिकार हनन का दोषी हो तो क्या वह न्यायालय की शरण ले सकता है?
(ग) सदन के किसी सदस्य के विरुद्ध स्वयं सदन द्वारा यदि कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाती है तो क्या वह सदस्य न्यायालय से सुरक्षा प्राप्त कर सकता है?
(घ) क्या संसद और राज्यों की विधानसभाओं में न्यायपालिका के आचरण पर अंगुली उठायी जा सकती है?
उत्तर:
(क) क्या संसद संविधान के मूल ढाँचे में संशोधन कर सकती है?

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. न्यायपालिका व्यक्ति के …………….. की रक्षा करती है।
उत्तर:
अधिकारों

2. ………………. के रूप में नियुक्त होने के लिए किसी व्यक्ति को वकालत का अनुभव या कानून का विशेषज्ञ होना चाहिए।
उत्तर:
न्यायाधीश

3. न्यायाधीशों के कार्यों एवं निर्णयों की …………………. आलोचना नहीं की जा सकती।
उत्तर:
व्यक्तिगत

4. भारतीय संविधान ………………… न्यायिक व्यवस्था की स्थापना करता है।
उत्तर:
एकीकृत

5. भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन …………………. रही है।
उत्तर:
जनहित याचिका

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये

1. न्यायपालिका सरकार का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।
उत्तर:
सत्य

2. भारत में न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ विधायिका द्वारा की जाती है।
उत्तर:
असत्य

3. भारत में न्यायपालिका विधायिका पर वित्तीय रूप से निर्भर है
उत्तर:
असत्य

4. भारत में न्यायपालिका की संरचना एक पिरामिड की तरह है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय, फिर उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे जिला व अधीनस्थ न्यायालय है।
उत्तर:
सत्य

5. उच्च न्यायालय संघ और राज्यों के बीच के विवादों का निपटारा करता है।
उत्तर:
असत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया। (क) सर्वोच्च न्यायालय
2. फैसले सभी अदालतों को मानने होते हैं। (ख) जिला अदालत
3. जिले में दायर मुकदमों की सुनवाई करती है। (ग) रिट के रूप में आदेश
4. सर्वोच्च न्यायालय व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए जारी करता है (घ) जनहित याचिका
5. न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन। (च) महाभियोग

उत्तर:

1. सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया। (च) महाभियोग
2. फैसले सभी अदालतों को मानने होते हैं। (क) सर्वोच्च न्यायालय
3. जिले में दायर मुकदमों की सुनवाई करती है। (ख) जिला अदालत
4. सर्वोच्च न्यायालय व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए जारी करता है (ग) रिट के रूप में आदेश
5. न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन। (घ) जनहित याचिका

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत का सबसे बड़ा न्यायालय कौनसा है? इसके मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति कौन करता है?
उत्तर:
उच्चतम न्यायालय भारत का सबसे बड़ा न्यायालय है। इसके मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 2.
भारत का सर्वोच्च न्यायालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
भारत का सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली में स्थित है।

प्रश्न 3.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति कौन और किसकी सलाह पर करता है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अन्य चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सलाह से कुछ नाम प्रस्तावित करेगा और इसी में से राष्ट्रपति अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान ने किन उपायों द्वारा न्यायपालिका की स्वतन्त्रता सुनिश्चित की है? (कोई दो का उल्लेख कीजिए)
उत्तर:

  1. न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में विधायिका को सम्मिलित नहीं किया जायेगा।
  2. न्यायाधीशों का कार्यकाल सेवानिवृत्ति की आयु तक निश्चित रखा गया है।

प्रश्न 5.
संसद न्यायाधीशों के आचरण पर कब चर्चा कर सकती है?
उत्तर:
संसद न्यायाधीशों के आचरण पर केवल तभी चर्चा कर सकती है जब वह उनको हटाने के प्रस्ताव पर चर्चा कर रही हो।

प्रश्न 6.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति से सम्बन्धित इस परम्परा को कि ‘सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया जायेगा।’ कितनी बार और कब-कब तोड़ा गया है?
उत्तर:
‘सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को ही राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त करेगा’ इस परम्परा को दो बार, सन् 1973 तथा सन् 1975 में तोड़ा गया है।

प्रश्न 7.
भारत में सर्वोच्च न्यायालय के किस न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग का असफल प्रयास किया गया?
उत्तर:
सन् 1991-92 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री रामास्वामी के विरुद्ध संसद में महाभियोग का असफल प्रयास किया गया।

प्रश्न 8.
‘भारतीय संविधान एकीकृत न्यायिक व्यवस्था की स्थापना करता है।’ इस कथन का क्या आशय है?
उत्तर:
इस कथन का आशय यह है कि भारत में अलग से प्रान्तीय स्तर के न्यायालय नहीं हैं। यहाँ सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय है और फिर उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय तथा अधीनस्थ न्यायालय हैं।

प्रश्न 9.
जिला अदालत के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  1. जिला अदालत जिले में दायर मुकदमों की सुनवाई करती है।
  2. यह निचली अदालतों के फैसलों पर की गई अपीलों की सुनवाई करती है।

प्रश्न 10.
सर्वोच्च न्यायालय के मौलिक क्षेत्राधिकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुछ मुकदमों की सुनवाई सीधे सर्वोच्च न्यायालय कर सकता है, उनकी सुनवाई निचली अदालतों में नहीं हो सकती उसे सर्वोच्च न्यायालय का मौलिक क्षेत्राधिकार कहा जाता है। ये विवाद हैं। केन्द्र और राज्यों के बीच या विभिन्न राज्यों के आपसी विवाद।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका

प्रश्न 11.
सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार से क्या आशय है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय अपील उच्चतम न्यायालय है। कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

प्रश्न 12.
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले कहाँ तथा किन पर लागू होते हैं?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले भारतीय भू-भाग के अन्य सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी हैं। उसके द्वारा दिए गए निर्णय सम्पूर्ण भारत देश में लागू होते हैं।

प्रश्न 13.
जनहित याचिका क्या है?
उत्तर:
जब पीड़ित लोगों की ओर से दूसरों द्वारा जनहित के मुद्दे के आधार पर न्यायालय में याचिका दी जाती है, तो ऐसी याचिका को जनहित याचिका कहा जाता है।

प्रश्न 14.
जनहित याचिका किस तरह गरीबों की मदद कर सकती है?
उत्तर:
‘जनहित याचिका’ गरीबों को सस्ते में न्याय दिलवाकर मदद कर सकती हैं तथा दूसरें लोगों द्वारा भी उनके हित में याचिका दी जा सकती है।

प्रश्न 15.
न्यायपालिका की कौनसी नई भूमिका न्यायिक सक्रियता के नाम से लोकप्रिय हुई?
उत्तर:
जब न्यायपालिका ने अखबार में छपी खबरों और डाक से प्राप्त शिकायतों को आधार बनाकर उन पर विचार शुरू कर दिया तो उसकी यह नई भूमिका न्यायिक सक्रियता के नाम से लोकप्रिय हुई

प्रश्न 16.
सर्वोच्च न्यायालय अपनी न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग कब कर सकता है?
उत्तर:

  1. मूल अधिकारों के विपरीत होने पर सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग कर किसी भी कानून को निरस्त कर सकता है।
  2. संघीय संबंधों के मामले में भी वह अपनी न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

प्रश्न 17.
भारत की तरह अन्य देशों में भी न्यायिक सक्रियता लोकप्रिय हो रही है। किन्हीं दो देशों के नाम
उत्तर:
दक्षिण एशिया और अफ्रीका के देशों में भी भारत की ही भाँति न्यायिक सक्रियता का प्रयोग किया जा रहा

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्र न्यायपालिका से क्या आशय है?
उत्तर:
स्वतन्त्र न्यायपालिका से आशय: न्यायपालिका की स्वतन्त्रता से आशय ऐसी स्थिति से है जहाँ न्यायाधीश विवादों का निर्णय करने तथा अपने न्यायिक कार्यों को करने में डर का महसूस नहीं करते हों तथा विधायिका और कार्यपालिका का उन पर कोई दबाव न हो। उनका कार्यकाल निश्चित हो; उनके वेतन तथा भत्तों में विधायिका या कार्यपालिका द्वारा कोई कटौती नहीं की जा सके; उनके कार्यों और निर्णयों की व्यक्तिगत आलोचना नहीं की जा सकती हो। न्यायाधीश आलोचना के भय से मुक्त होकर स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष निर्णय कर सके।

प्रश्न 2.
हमें स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर:
हमें निम्नलिखित कारणों से स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता पड़ती है।

  1. हमें निष्पक्ष ढंग से न्याय की प्राप्ति के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता पड़ती है। यदि न्यायपालिका पर अनावश्यक नियंत्रण होंगे, तो वह निष्पक्ष ढंग से न्याय नहीं कर पायेगी।
  2. हमें कानूनों की ठीक प्रकार से व्याख्या करने तथा उनको लागू करवाने के लिए, स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता पड़ती है।
  3. स्वतंत्र न्यायपालिका ही विधायिका और कार्यपालिका की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाकर हमारी स्वतंत्रता की रक्षा कर सकती है।

प्रश्न 3.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सेवानिवृत्ति की आयु से पूर्व किस आधार पर और किस प्रकार से पद से हटाया जा सकता है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को संसद सिद्ध कदाचार अथवा अक्षमता के आधार पर महाभियोग का प्रस्ताव पारित कर हटा सकती है। यदि संसद के दोनों सदन अलग-अलग अपने कुल सदस्यों के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित कर दें तो राष्ट्रपति के आदेश से उसे पद से हटाया जा सकता है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका

प्रश्न 4.
आधुनिक युग में न्यायपालिका का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
आधुनिक युग में न्यायपालिका का महत्त्व निम्नलिखित है।

  1. न्यायपालिका ‘कानून के शासन’ की रक्षा और कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करती है।
  2. न्यायपालिका व्यक्ति के मौलिक अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं की रक्षा करती है।
  3. यह विवादों को कानून के अनुसार हल करती है।
  4. न्यायपालिका यह भी सुनिश्चित करती है कि लोकतन्त्र की जगह किसी एक व्यक्ति या समूह की तानाशाही न ले। इस प्रकार यह विधायिका और कार्यपालिका की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाती है।

प्रश्न 5.
न्यायिक पुनरावलोकन के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
न्यायिक पुनरावलोकन के लाभ

  1. न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के माध्यम से न्यायपालिका विधायिका द्वारा पारित कानूनों तथा कार्यपालिका की नीतियों की व्याख्या करती है और संविधान के प्रतिकूल होने पर उनको असंवैधानिक घोषित कर संविधान की रक्षा का महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।
  2. न्यायपालिका न्यायिक पुनरावलोकन द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है।

प्रश्न 6.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सलाह सम्बन्धी क्षेत्राधिकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सलाह सम्बन्धी क्षेत्राधिकार: भारत का राष्ट्रपति लोकहित या संविधान की व्याख्या से सम्बन्धित किसी विषय को सर्वोच्च न्यायालय के पास परामर्श के लिए भेज सकता है। लेकिन न तो सर्वोच्च न्यायालय ऐसे किसी विषय पर सलाह देने के लिए बाध्य है और न ही राष्ट्रपति न्यायालय की सलाह मानने को बाध्य है।

प्रश्न 7.
उच्चतम न्यायालय को सबसे बड़ा न्यायालय क्यों माना जाता है?
उत्तर:
उच्चतम न्यायालय भारत का सबसे बड़ा न्यायालय है क्योंकि-

  1. इसका फैसला अन्तिम होता है, जो सबको मानना पड़ता है।
  2. इसके फैसले के विरुद्ध कोई अपील नहीं हो सकती।
  3. यह संविधान के विरुद्ध पास किए गए कानूनों को रद्द कर सकता है।
  4. यह केन्द्र और राज्यों के बीच तथा विभिन्न राज्यों के बीच के आपसी विवादों को हल करता है।
  5. इसे संविधान की व्याख्या का अधिकार है तथा यह नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करता है।

प्रश्न 8.
सर्वोच्च न्यायालय की परामर्श देने की शक्ति की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय के परामर्श देने की शक्ति की उपयोगिता: सर्वोच्च न्यायालय की परामर्श देने की शक्ति की निम्नलिखित उपयोगिताएँ हैं।

  1. इससे सरकार को छूट मिल जाती है कि किसी महत्त्वपूर्ण मसले पर कार्यवाही करने से पहले वह अदालत की कानूनी राय जान ले। इससे बाद में कानूनी विवाद से बचा जा सकता है।
  2. सर्वोच्च न्यायालय की सलाह मानकर सरकार अपने प्रस्तावित निर्णय या विधेयक में समुचित संशोधन कर सकती है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका

प्रश्न 9.
भारत की न्यायपालिका व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा किन विधियों से करती है?
उत्तर:
व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा – भारत की न्यायपालिका निम्नलिखित दो विधियों के द्वारा व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है।
1. रिट के माध्यम से: भारत के सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत और उच्च न्यायालयों को अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु रिट जारी करने का अधिकार है। इन रिटों के माध्यम से वह मौलिक अधिकारों को फिर से स्थापित कर सकता है।

2. न्यायिक पुनरावलोकन: सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 13 के तहत किसी कानून को गैर-संवैधानिक घोषित करके व्यक्ति के अधिकारों का संरक्षण करता है।

प्रश्न 10.
भारत के उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए कौन-कौनसी योग्यताएँ आवश्यक हैं?
उत्तर:
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की योग्यताएँ – राष्ट्रपति उसी व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है जिसमें निम्नलिखित योग्यताएँ हों।
(i) वह भारत का नागरिक हो।
(ii) वह कम-से-कम 5 वर्ष तक एक या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश के पद पर रह चुका हो।
अथवा
वह कम-से-कम 10 वर्ष तक किसी उच्च न्यायालय में अधिवक्ता रह चुका हो।
अथवा
वह राष्ट्रपति की दृष्टि में प्रसिद्ध कानून विशेषज्ञ हो।

प्रश्न 11.
“ उच्चतम न्यायालय भारतीय संविधान का संरक्षक है।” व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत के उच्चतम न्यायालय की न्यायिक पुनरावलोकन शक्ति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय को विधायिका द्वारा बनाए गये कानूनों और कार्यपालिका द्वारा जारी किये गये आदेशों ‘न्यायिक पुनरावलोकन’ का अधिकार प्राप्त है। इस अधिकार के तहत इस बात की जाँच कर सकता है कि कानून या आदेश संविधान के अनुकूल है या नहीं। यदि उसे जाँच में यह लगता है कि उस कानून या आदेश ने संविधान का उल्लंघन किया है तो वह उसे असंवैधानिक घोषित करके रद्द कर सकता है। इस प्रकार उच्चतम न्यायालय भारतीय संविधान के संरक्षक की भूमिका निभाता है।

प्रश्न 12.
अभिलेख न्यायालय के रूप में उच्चतम न्यायालय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अभिलेख न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय भी है क्योंकि यह न्यायालय अपनी कार्यवाही तथा निर्णयों का अभिलेख रखने के लिए उन्हें सुरक्षित रखता है ताकि किसी प्रकार के अन्य मुकदमों में उनका हवाला दिया जा सके सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय सभी न्यायालय मानने के लिए बाध्य हैं।

प्रश्न 13.
जिला न्यायालयों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
जिला न्यायालय: प्रत्येक राज्य में उच्च न्यायालयों के अधीन जिला न्यायालय हैं। ये जिला न्यायालय प्रत्येक जिले में तीन प्रकार के होते हैं।

  1. दीवानी,
  2. फौजदारी और
  3. भू-राजस्व न्यायालय।

ये न्यायालय उच्च न्यायालय के नियन्त्रण में कार्य करते हैं। जिला न्यायालयों में उप-न्यायाधीशों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनी जाती हैं। ये न्यायालय सम्पत्ति, विवाह, तलाक सम्बन्धी विवादों की सुनवाई करते हैं।

प्रश्न 14.
लोक अदालत पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
लोक अदालत: भारत में गरीब, दलित, जरूरतमंद लोगों को तेजी से, आसानी से व सस्ता न्याय दिलाने हेतु हमारे देश में न्यायालयों की एक नई व्यवस्था शुरू की गई है जिसे लोक अदालत कहा जाता है। लोक अदालत के पीछे मूल विचार यह है कि न्याय दिलाने में होने वाली देरी खत्म हो, और न्याय जल्दी मिले तथा तेजी से अनिर्णीत मामलों को निपटाया जाये। इस प्रकार लोक अदालत ऐसे मामलों को तय करती है जो अभी तक अदालत नहीं पहुँचे हों या अदालतों में अनिर्णीत पड़े हों।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका

प्रश्न 15.
एकीकृत न्यायपालिका से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एकीकृत न्यायालय: एकीकृत न्यायपालिका से अभिप्राय इस प्रकार की न्यायपालिका से है जिससे समूचे देश के न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार कार्य करते हैं। इसमें देश के सभी न्यायालय सब प्रकार के कानूनों की व्याख्या करते हैं। भारतीय संविधान एकीकृत न्यायिक व्यवस्था की स्थापना करता है। इसका अर्थ यह है कि विश्व के अन्य संघीय देशों के विपरीत भारत में अलग से प्रान्तीय स्तर के न्यायालय नहीं हैं।

यहाँ न्यायपालिका की संरचना पिरामिड की तरह है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय, फिर उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे जिला और अधीनस्थ न्यायालय है। नीचे के न्यायालय ऊपर के न्यायालयों की देखरेख में कार्य करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले भारतीय भू-भाग के अन्य सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी हैं। उसके द्वारा दिए गए निर्मय सम्पूर्ण देश में लागू होते हैं।

प्रश्न 16.
भारतीय संविधान ने किन उपायों के द्वारा न्यायपालिका की स्वतन्त्रता सुनिश्चित की है?
उत्तर:
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता के संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान ने अनेक उपायों द्वारा न्यायपालिका की स्वतन्त्रता सुनिश्चित की है। यथा
1. न्यायाधीशों की नियुक्ति को दलगत राजनीति से मुक्त रखा जाना: भारत के संविधान में न्यायाधीशों की नियुक्तियों के मामले में विधायिका की सम्मिलित नहीं किया गया है। इससे यह सुनिश्चित किया गया कि इन नियुक्तियों में दलगत राजनीति की कोई भूमिका नहीं रहे।

2. न्यायाधीशों की नियुक्ति का आधार योग्यता: न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए किसी व्यक्ति को वकालत का अनुभव या कानून का विशेषज्ञ होना चाहिए। उसे व्यक्ति के राजनीतिक विचार या निष्ठाओं को नियुक्ति का आधार नहीं बनाया गया है।

3. न्यायपालिका की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय और मन्त्रिपरिषद् की सम्मिलित भूमिक:
संविधान में कहा गया है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति वह सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह से करेगा। इस प्रकार संविधान में न्यायाधीशों की नियुक्ति में मन्त्रिपरिषद् को महत्त्व दिया गया था; लेकिन न्यायाधीशों की नियुक्ति में मंत्रिपरिषद् के बढ़ते हस्तक्षेप को देखते हुए अब सर्वोच्च न्यायालय ने नियुक्तियों की सिफारिश के सम्बन्ध में सामूहिकता का सिद्धान्त स्थापित किया है। इससे मन्त्रिपरिषद् का हस्तक्षेप कम हो गया है।

4. निश्चित कार्यकाल: भारत में न्यायाधीशों का कार्यकाल निश्चित होता है। वे सेवानिवृत्त होने तक पद पर बने रहते हैं। केवल अपवादस्वरूप, विशेष स्थितियों में, महाभियोग द्वारा ही न्यायाधीशों को हटाया जा सकता है।

5. वित्तीय निर्भरता नहीं: न्यायपालिका विधायिका या कार्यपालिका पर वित्तीय रूप से निर्भर नहीं है।

6. आलोचना से मुक्ति: न्यायाधीशों के कार्यों और निर्णयों की व्यक्तिगत आलोचना नहीं की जा सकती। अगर कोई न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया जाता है, तो न्यायपालिका को उसे दण्डित करने का अधिकार है।

प्रश्न 17.
सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसकी सेवानिवृत्ति की आयु से पूर्व किस प्रकार हटाया जा सकता है? क्या भारत में किसी न्यायाधीश को महाभियोग द्वारा हटाया गया है?
उत्तर:
न्यायाधीशों को पद से हटाना: सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाना काफी कठिन है। केवल संसद महाभियोग का प्रस्ताव पारित कर किसी न्यायाधीश को उसकी सेवानिवृत्ति की आयु से पूर्व पद से हटा सकती है।

महाभियोग की प्रक्रिया: किसी भी न्यायाधीश को उसके सिद्ध कदाचार अथवा अक्षमता के आधार पर पद से हटाया जा सकता है। इस सम्बन्ध में दोनों सदन पृथक्-पृथक् सदन की समस्त संख्या के बहुमत और उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पास करके राष्ट्रपति के पास भेजते हैं। इस प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद छोड़ने का आदेश देता है।

अब तक भारतीय संसद के पास किसी न्यायाधीश को हटाने का केवल एक प्रस्ताव विचार के लिए आया है। इस मामले में हालांकि दो-तिहाई सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में मत दिया, लेकिन न्यायाधीश को हटाया नहीं जा सका क्योंकि प्रस्ताव पर सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत प्राप्त न हो सका ।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका

प्रश्न 18.
भारत के उच्चतम न्यायालय के तीन क्षेत्राधिकारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के उच्चतम न्यायालय के तीन क्षेत्राधिकार निम्नलिखित हैं।
1. मौलिक क्षेत्राधिकार:
वे मुकदमे जो सर्वोच्च न्यायालय में सीधे ले जाए जा सकते हैं, उसके प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत आते हैं। ऐसे मुकदमे दो प्रकार के हैं। एक वे, जो केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं। संघ तथा राज्यों के बीच या राज्यों के आपसी विवाद इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। दूसरे वे विवाद हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय के अतिरिक्त उच्च न्यायालयों में भी प्रस्तुत किये जा सकते हैं। इस श्रेणी के अन्तर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों के हनन सम्बन्धी विवाद आते हैं। सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ रिट, जैसे- बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध आदि जारी कर सकता है।

2. अपीलीय क्षेत्राधिकार:
कुछ मुकदमे सर्वोच्च न्यायालय के पास उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील के रूप में आते हैं। ये अपीलें संवैधानिक, दीवानी तथा फौजदारी तीनों प्रकार के मुकदमों में सुनी जा सकती हैं।

3. सलाहकारी क्षेत्राधिकार: भारत का राष्ट्रपति लोकहित या संविधान की व्याख्या से सम्बन्धित किसी विषय को सर्वोच्च न्यायालय के पास परामर्श के लिए भेज सकता है। लेकिन न तो सर्वोच्च न्यायालय ऐसे किसी विषय पर सलाह देने के लिए बाध्य है और न ही राष्ट्रपति न्यायालय की सलाह मानने को।

प्रश्न 19.
जनहित याचिका क्या है? कब और कैसे इसकी शुरुआत हुई?
उत्तर:
जनहित याचिका का प्रारम्भ-कानून की सामान्य प्रक्रिया में कोई व्यक्ति तभी अदालत जा सकता है, जब उसका कोई व्यक्तिगत नुकसान हुआ हो। इसका अर्थ यह है कि अपने अधिकार का उल्लंघन होने पर या किसी विवाद में फँसने पर कोई व्यक्ति न्याय पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। 1979 में इस अवधारणा में परिवर्तन आया। 1979 में न्यायालय ने एक ऐसे मुकदमे की सुनवाई करने का निर्णय लिया जिसे पीड़ित लोगों ने नहीं बल्कि उनकी ओर से दूसरों ने दाखिल किया।

1979 में समाचार-पत्रों में विचाराधीन कैदियों के बारे में यह खबर छपी कि यदि उन्हें सजा भी दी गई होती तो उतनी अवधि की नहीं होती जितनी अवधि उन्होंने जेल में विचाराधीन होते हुए काट ली है। इस खबर को आधार बनाकर एक वकील ने एक याचिका दायर की। सर्वोच्च न्यायालय ने यह याचिका स्वीकार कर ली। सर्वोच्च न्यायालय में यह मुकदमा चला। यह याचिका जनहित याचिका के रूप में प्रसिद्ध हुई । इस प्रकार 1979 से इसकी शुरुआत सर्वोच्च न्यायालय ने की। बाद में इसी प्रकार के अन्य अनेक मुकदमों को जनहित याचिकाओं का नाम दिया गया।

प्रश्न 20.
जनहित याचिकाओं और न्यायिक सक्रियता की न्यायालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनहित याचिकाएँ न्यायिक सक्रियता का प्रभावी साधन सिद्ध हुई हैं। इस सम्बन्ध में न्यायालय की भूमिका निम्न रूपों में प्रकट हुई है।
1. पीड़ित लोगों के हित के लिए दूसरे लोगों की याचिकाओं को स्वीकार करना:
सबसे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने पीड़ित लोगों की ओर से दूसरे लोगों द्वारा की गई याचिकाओं को स्वीकार करना प्रारम्भ कर दिया । ऐसी याचिकाओं को जनहित याचिकाएँ कहा गया। 1979 के बाद से ऐसे मुकदमों की बाढ़ सी आ गयी जिनमें जनसेवा की भावना रखने वाले नागरिकों एवं स्वयंसेवी संगठनों ने अधिकारों की रक्षा, गरीबों के जीवन को और बेहतर बनाने, पर्यावरण की सुरक्षा और लोकहित से जुड़े अनेक मुद्दों पर न्यायपालिका से हस्तक्षेप की माँग की गई।

2. न्यायिक सक्रियता:
किसी के द्वारा मुकदमा करने पर उस मुद्दे पर विचार करने के साथ-साथ न्यायालय ने अखबार में छपी खबरों और डाक से शिकायतों को आधार बनाकर उन पर भी विचार करना शुरू कर दिया। न्यायपालिका की यह नई भूमिका न्यायिक सक्रियता के रूप में लोकप्रिय हुई।

3. समाज के जरूरतमंद और गरीब लोगों की ओर से सामाजिक संगठनों व वकीलों की याचिकाएँ स्वीकार करना:
1980 के बाद से न्यायिक सक्रियता और जनहित याचिकाओं के द्वारा न्यायपालिका ने उन मामलों में भी रुचि दिखाई जहाँ समाज के कुछ वर्गों के लोग आसानी से अदालत की शरण नहीं ले सकते थे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए न्यायालय ने जनसेवा की भावना से भरे नागरिक, सामाजिक संगठन और वकीलों को जरूरतमंद तथा गरीब लोगों की ओर से याचिकाएँ दायर करने की इजाजत दी। प्रभाव

  1. इसने न्यायालयों के अधिकारों का दायरा बढ़ा दिया।
  2. इससे विभिन्न समूहों को भी अदालत जाने का अवसर मिला।
  3. इसने न्याय व्यवस्था को लोकतान्त्रिक बनाया तथा कार्यपालिका उत्तरदायी बनने पर बाध्य हुई।
  4. लेकिन इससे न्यायालयों पर काम का बोझ भी पड़ा तथा सरकार के तीनों अंगों के कार्यों के बीच का अन्तर धुँधला गया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उच्चतम न्यायालय के गठन, क्षेत्राधिकारों एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संरचना, शक्तियों और भूमिका की विवेचना कीजिए। भारत के सर्वोच्च न्यायालय का संगठन (संरचना)
उत्तर:
संविधान के अनुसार भारत में एक सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है। सर्वोच्च न्यायालय भारत का सर्वोच्च न्यायालय है। शेष सभी न्यायालय इसके अधीन हैं। इसके फैसले भारतीय भू-भाग के अन्य सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी हैं तथा इसके द्वारा दिये गये निर्णय सम्पूर्ण देश में लागू होते हैं। इसके संगठन का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।
1. न्यायाधीशों की संख्या: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या समय- समय पर बदलती रही है वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 25 अन्य न्यायाधीश कार्यरत हैं।

2. योग्यताएँ: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए संविधान में निम्न योग्यताएँ निर्धारित की हैं।

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • वह कम-से-कम 5 वर्ष तक किसी उच्च न्यायालय में न्यायाधीश रह चुका हो।

वह कम-से-कम 10 वर्ष तक किसी एक उच्च न्यायालय या लगातार दो या दो से अधिक न्यायालयों में एडवोकेट रह चुका हो। राष्ट्रपति के विचार में वह कानून का ज्ञाता हो। या

3. कार्यकाल: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अपने पद पर 65 वर्ष तक की आयु तक रह सकते हैं। इससे पूर्व भी वह त्याग-पत्र दे सकते हैं।

4. नियुक्ति: सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। सामान्यतः राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त करता है। सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अन्य चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सलाह से प्रस्तावित नामों में से की जाती है।

5. न्यायाधीशों को पद से हटाना: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को संसद सिद्ध कदाचार अथवा अक्षमता के आधार पर मतदान करने वाले सदस्यों के पृथक्-पृथक् सदन द्वारा 2/3 बहुमत तथा कुल सदस्य संख्या के बहुमत से महाभियोग का प्रस्ताव पारित कर हटा सकती है। ऐसा प्रस्ताव पारित कर संसद राष्ट्रपति को भेजता है और राष्ट्रपति तब उसे पद से हटा सकता है।

6. वेतन-भत्ते: सर्वोच्च न्यायालय के वेतन-भत्ते समय-समय पर विधि द्वारा निर्धारित किये जाते रहते हैं। लेकिन संविधान के अनुसार न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते के लिए विधायिका की स्वीकृति नहीं की जायेगी। इसके अतिरिक्त उन्हें वाहन भत्ता तथा रहने के लिए मुफ्त सरकारी मकान भी प्राप्त होता है। केवल वित्तीय संकट के काल को छोड़कर और किसी भी स्थिति में न्यायाधीशों के वेतन व भत्ते में कटौती नहीं की जा सकती।

सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार एवं शक्तियाँ भारत का सर्वोच्च न्यायालय विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली न्यायालयों में से एक है। लेकिन वह संविधान द्वारा तय की गई सीमा के अन्दर ही काम करता है। सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है

1. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार: सर्वोच्च न्यायालय के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।

  • मौलिक क्षेत्राधिकार: सर्वोच्च न्यायालय का मौलिक प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत वे विवाद आते हैं जो केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही सुने जा सकते हैं। यथा
    1. यदि दो या दो से अधिक राज्य सरकारों के मध्य आपस में कोई विवाद उत्पन्न हो जाये तो वह मुकदमा केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही सुना जायेगा ।
    2. यदि किसी विषय पर केन्द्रीय सरकार तथा एक या एक से अधिक राज्यों के बीच कोई मतभेद उत्पन्न हो जाए तो वह मुकदमा भी सीधा सर्वोच्च न्यायालय में ही पेश किया जायेगा ।
  • मौलिक अधिकारों की रक्षा से सम्बन्धित प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार – इसके अन्तर्गत मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय कहीं भी प्रारम्भ किया जा सकता है। मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर कोई भी व्यक्ति न्याय पाने के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है । सर्वोच्च न्यायालय अपने विशेष आदेश रिट के रूप में दे सकता है। इन रिटों के माध्यम से न्यायालय कार्यपालिका को कुछ करने या न करने का आदेश दे सकता है ।

2. अपीलीय क्षेत्राधिकार: सर्वोच्च न्यायालय भारत का अन्तिम अपीलीय न्यायालय है। यह उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुन सकता है। सर्वोच्च न्यायालय में निम्नलिखित तीन प्रकार की अपीलें स्वीकार की जाती. हैं।

  • संवैधानिक विषय से सम्बन्धित मुकदमे: यदि उच्च न्यायालय एक प्रमाण-पत्र दे दे कि उसके विचारानुसार किसी मुकदमे में संविधान के किसी अनुच्छेद की व्याख्या सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्न अन्तर्निहित है तो ऐसे मुकदमों की अपील सर्वोच्च न्यायालय सुन सकता है।
  • दीवानी अपीलीय क्षेत्राधिकार: दीवानी मुकदमे सम्पत्ति सम्बन्धी होते हैं। उच्च न्यायालयों द्वारा दीवानी मुकदमों में दिये गए निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। लेकिन यह अपील केवल उन्हीं निर्णयों के विरुद्ध की जा सकती है जिनमें सार्वजनिक महत्त्व का कोई कानूनी प्रश्न अन्तर्निहित हो और जिसकी व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जानी आवश्यक है।
  • फौजदारी अपीलीय क्षेत्राधिकार: सर्वोच्च न्यायालय निम्न प्रकार के फौजदारी मुकदमों की अपीलें सुन सकता है।

(अ) उच्च न्यायालय ने निम्न न्यायालय से मुकदमा अपने पास मँगाकर अपराधी को मृत्यु – दण्ड दिया हो। जब उच्च न्यायालय ने किसी ऐसे अपराधी को मृत्यु – दण्ड दिया हो जिसे निम्न न्यायालय ने बरी कर दिया

(स) जब उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि किसी मामले के सम्बन्ध में कोई अपील सर्वोच्च न्यायालय के सुने जाने के योग्य है। अपीलीय क्षेत्राधिकार से अभिप्राय यह है कि सर्वोच्च न्यायालय पूरे मुकदमे पर पुनर्विचार करेगा और उसके कानूनी मुद्दों की जाँच करेगा । यदि न्यायालय को लगता है कि कानून या संविधान का अर्थ वह नहीं है जो निचली अदालतों ने समझा तो सर्वोच्च न्यायालय उनके निर्णय को बदल सकता है तथा इसके साथ उन प्रावधानों की नई व्याख्या भी दे सकता है

3. सलाह सम्बन्धी क्षेत्राधिकार: मौलिक और अपीली क्षेत्राधिकार के अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय का सलाह सम्बन्धी क्षेत्राधिकार भी है। इसके अनुसार भारत का राष्ट्रपति लोकहित या संविधान की व्याख्या से सम्बन्धित किसी विषय को सर्वोच्च न्यायालय के पास परामर्श के लिए भेज सकता है। लेकिन न तो सर्वोच्च न्यायालय ऐसे किसी विषय पर सलाह देने के लिए बाध्य है और न ही राष्ट्रपति न्यायालय की सलाह मानने के लिए बाध्य है।

4. संविधान के व्याख्याता के रूप में: संविधान के किसी भी अनुच्छेद के सम्बन्ध में व्याख्या करने का अन्तिम अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास है कि संविधान के किसी अनुच्छेद का सही अर्थ क्या है।

5. अभिलेख न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय को संविधान द्वारा अभिलेख न्यायालय बनाया गया है। अभिलेख न्यायालय का अर्थ ऐसे न्यायालय से है जिसके निर्णय सभी न्यायालयों को मानने पड़ते हैं तथा उसके निर्णय अन्य न्यायालयों में नजीर के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं। इस न्यायालय को अपनी अवमानना के लिए किसी को भी दण्ड देने का अधिकार प्राप्त है।

6. न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार के अन्तर्गत व्यवस्थापिका के उन कानूनों को और कार्यपालिका के उन आदेशों को अवैध घोषित कर सकता है जो कि संविधान के विरुद्ध हों।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका

प्रश्न 2.
भारत की न्यायपालिका की संरचना पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
भारतीय न्यायपालिका की संरचना: भारतीय संविधान एकीकृत न्यायिक व्यवस्था की स्थापना करता है। इसका अर्थ यह है कि विश्व के अन्य संघीय देशों के विपरीत भारत में अलग से प्रान्तीय स्तर के न्यायालय नहीं हैं। भारत में न्यायपालिका की संरचना पिरामिड की तरह है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय, फिर उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे जिला और अधीनस्थ न्यायालय हैं। नीचे के न्यायालय अपने ऊपर के न्यायालयों की देखरेख में कार्य करते हैं। यथा

1. सर्वोच्च न्यायालय: भारत में सर्वोच्च न्यायालय देश का सबसे ऊपर का न्यायालय है। इसके फैसले सभी अदालतों को मानने पड़ते हैं। यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का तबादला कर सकता है। यह किसी अदालत का मुकदमा अपने पास मँगवा सकता है। यह किसी भी उच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमे को दूसरे उच्च न्यायालय में भिजवा सकता है। यह उच्च न्यायालयों के फ़ैसलों पर की गई अपील की सुनवाई कर सकता है।

2. उच्च न्यायालय: उच्च न्यायालय प्रत्येक राज्य का सर्वोच्च न्यायालय है। इसके निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती हैं। इसके अन्य प्रमुख कार्य ये हैं। ये हैं।

  • यह निचली अदालतों के फैसलों पर की गई अपील की सुनवाई कर सकता है।
  • यह मौलिक अधिकारों को बहाल करने के लिए रिट जारी कर सकता है।
  • यह राज्य के क्षेत्राधिकार में आने वाले मुकदमों का निपटारा करता है।
  • यह अधीनस्थ अदालतों का पर्यवेक्षण तथा नियन्त्रण करता है।

3. जिला अदालतें: प्रत्येक उच्च न्यायालय के अधीन जिला न्यायालय आते हैं। जिला अदालतों के प्रमुख कार्य

  • जिला अदालत जिले में दायर मुकदमों की सुनवाई करती है।
  • यह निचली अदालतों के फैसले पर की गई अपील की सुनवाई करती है।
  •  यह गम्भीर किस्म के आपराधिक मामलों पर फैसला देती है।

4. अधीनस्थ अदालतें: जिला अदालतों के अधीन न्यायालयों को अधीनस्थ अदालतें कहा गया है। ये अदालतें फौजदारी और दीवानी मुकदमों पर विचार करती हैं।

प्रश्न 3.
भारत में सर्वोच्च न्यायालय और संसद के सम्बन्धों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
सर्वोच्च न्यायालय और संसद के मध्य सम्बन्ध: सरकार के तीन अंग होते हैं विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। इन तीनों अंगों में परस्पर सहयोग और आपसी सूझ-बूझ आवश्यक है ताकि देश का शासन सुचारु रूप से चलाया जा सके। लेकिन भारत में समय-समय पर न्यायपालिका और संसद के सम्बन्धों में किसी न किसी कारण से तनाव उत्पन्न होता रहा है। यथा

1. सम्पत्ति के अधिकार के सम्बन्ध में टकराव:
संविधान के लागू होने के तुरन्त बाद सम्पत्ति के अधिकार पर रोक लगाने की संसद की शक्ति पर दोनों के मध्य विवाद उत्पन्न हो गया । संसद सम्पत्ति रखने के अधिकार पर कुछ प्रतिबंध लगाना चाहती थी जिससे भूमि सुधारों को लागू किया जा सके। न्यायालय ने निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों को सीमित नहीं कर सकती। संसद ने तब संविधान संशोधन का प्रयास किया। लेकिन न्यायालय ने कहा कि संशोधन के द्वारा भी मौलिक अधिकारों को सीमित नहीं किया जा सकता अर्थात् संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती। इस प्रकार संसद और न्यायपालिका के बीच विवाद के निम्नलिखित मुद्दे उभरे।

  • निजी सम्पत्ति के अधिकार का दायरा क्या है?
  • मौलिक अधिकारों को सीमित, प्रतिबंधित और समाप्त करने की संसद की शक्ति का दायरा क्या है?
  • संसद द्वारा संविधान संशोधन की शक्ति का दायरा क्या है?
  • क्या संसद नीति निर्देशक तत्त्वों को लागू करने के लिए ऐसे कानून बना सकती है जो मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित करें?

1967 से 1973 के बीच यह विवाद काफी गहरा गया। भूमि सुधार कानूनों के अतिरिक्त निवारक नजरबंदी कानून, नौकरियों में आरक्षण सम्बन्धी कानून, निजी सम्पत्ति के अधिग्रहण सम्बन्धी नियम और अधिग्रहीत निजी सम्पत्ति के मुआवजे सम्बन्धी कानून आदि पर संसद और सर्वोच्च न्यायालय के बीच विवाद उठे। केशवानन्द भारती मुकदमा 1973 का निर्णय – 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय दिया जो संसद और न्यायपालिका के संबंधों के निर्धारण में बहुत महत्त्वपूर्ण बना। यह निर्णय केशवानंद भारती मुकदमे का निर्णय है। इस मुकदमे में न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि।

  • संविधान का एक मूल ढांचा है और संसद सहित कोई भी उस मूल ढांचे से छेड़-छाड़ नहीं कर सकता। संसद संविधान संशोधन द्वारा भी इस मूल ढाँचे को नहीं बदल सकती। है।
  • सम्पत्ति का मूल अधिकार मूल ढाँचे का हिस्सा नहीं है और इसलिए उस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता।
  • कोई मुद्दा मूल ढाँचे का भाग है या नहीं इसका निर्णय सर्वोच्च न्यायालय समय-समय पर संविधान की व्याख्या के तहत करेगी।

इस निर्णय से संसद और सर्वोच्च न्यायालय के बीच के विवादों की प्रकृति में परिवर्तन आ गया। क्योंकि संसद ने संविधान संशोधन कर 1979 में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया।

2. विवाद के वर्तमान मुद्दे: वर्तमान में दोनों दलों के बीच विवाद के निम्न मुद्दे बने हुए हैं।
(i) क्या न्यायपालिका विधायिका की कार्यवाही का नियमन और उसमें हस्तक्षेप कर उसे नियंत्रित कर सकती है? संसदीय व्यवस्था में संसद को अपना संचालन स्वयं करने तथा अपने सदस्यों का व्यवहार नियंत्रित करने की शक्ति है। संसदीय व्यवस्था में विधायिका को विशेषाधिकार के हनन का दोषी पाए जाने पर अपने सदस्य को दंडित करने का अधिकार है।

जो व्यक्ति विधायिका के विशेषाधिकार हनन का दोषी हो क्या वह न्यायपालिका की शरण ले सकता है? सदन के किसी सदस्य के विरुद्ध स्वयं सदन द्वारा कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है तो क्या वह सदस्य न्यायालय से सुरक्षा प्राप्त कर सकता है? ये मुद्दे अभी भी दोनों के बीच विवाद का विषय बने हुए हैं।

(ii) अनेक अवसरों पर संसद में न्यायपालिका के आचरण पर अंगुली उठाई गई और इसी प्रकार न्यायपालिका ने अनेक अवसरों पर विधायिका की आलोचना की तथा उसे विधायी कार्यों के सम्बन्ध में निर्देश दिए हैं। इन विवादों में न्यायपालिका का मत है कि संसद में न्यायपालिका के आचरण पर अंगुली नहीं उठायी जानी चाहिए और संसद न्यायपालिका के विधायी निर्देशों को संसदीय संप्रभुता के सिद्धान्त का उल्लंघन मानती है। लोकतंत्र में सरकार के दोनों अंगों के एक दूसरे की सत्ता के प्रति सम्मान करते हुए आचरण किये जाने की आवश्यकता है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 न्यायपालिका

प्रश्न 4.
भारत के उच्चतम न्यायालय का न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार क्या है? सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक पुनरावलोकन की भूमिका की संक्षिप्त विवेचना कीजिए। न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के महत्त्व को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
न्यायिक पुनरावलोकन से आशय:
न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय किसी भी कानून की संवैधानिकता की जाँच कर सकता है और यदि वह संविधान के प्रावधानों के विपरीत हो, तो न्यायालय उसे गैर-संवैधानिक घोषित कर सकता है।
संविधान में कहीं भी न्यायिक पुनरावलोकन शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है लेकिन संविधान मुख्यतः ऐसी दो विधियों का उल्लेख करता है जहाँ सर्वोच्च न्यायालय इस शक्ति का प्रयोग कर सकता है। यथा

  1. मूल अधिकारों की रक्षा करना: मूल अधिकारों के विपरीत होने पर सर्वोच्च न्यायालय किसी भी कानून को निरस्त कर सकता है।
  2. केन्द्र-राज्य या राज्यों के परस्पर विवाद को निपटारे के लिए: संघीय सम्बन्धों के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय अपनी न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
  3. इसके अतिरिक्त संविधान यदि किसी बात पर मौन है या किसी शब्द या अनुच्छेद के विषय में अस्पष्टता है तो वह संविधान का अर्थों को स्पष्टीकरण हेतु इस शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत सर्वोच्च न्यायालय किसी कानून को गैर-संवैधानिक घोषित कर उसे लागू होने से रोक सकता है। न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति राज्यों की विधायिका द्वारा बनाए कानूनों पर भी लागू होती है। न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति द्वारा न्यायपालिका विधायिका द्वारा पारित कानूनों की और संविधान की व्याख्या कर सकती है। इसके द्वारा न्यायपालिका प्रभावी ढंग से संविधान और नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करती है

न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग: जनहित याचिकाओं और न्यायिक सक्रियता से न्यायपालिका की न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति में विस्तार हुआ है।
1. मूल अधिकार के क्षेत्र में न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का विस्तार:
उदाहरण के लिए बन्धुआ मजदूर, बाल-श्रमिक अपने शोषण के विरुद्ध अधिकार के उल्लंघन की याचिका स्वयं न्यायपालिका में दायर करने में सक्षम नहीं थे। परिणामतः न्यायालय द्वारा पहले इनके अधिकारों की रक्षा करना सम्भव नहीं हो पा रहा था।

लेकिन न्यायिक सक्रियता व जनहित याचिकाओं के माध्यम से न्यायालय में ऐसे केस दूसरे लोगों, स्वयंसेवी संस्थाओं ने उठाये या स्वयं न्यायालय ने अखबार में छपी घटनाओं के आधार पर स्वयं प्रसंज्ञान लेते हुए ऐसे मुद्दों पर विचार किया। इस प्रवृत्ति ने गरीब और पिछड़े वर्ग के लोगों के अधिकारों को अर्थपूर्ण बना दिया है।

2. कार्यपालिका के कृत्यों के विरुद्ध जाँच:
न्यायपालिका ने कार्यपालिका की राजनैतिक व्यवहार बर्ताव के प्रति संविधान के उल्लंघन की प्रवृत्ति पर भी न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति द्वारा अंकुश लगाया है। इसी कारण जो विषय पहले न्यायिक पुनरावलोकन के दायरे में नहीं थे, उन्हें भी अब इस दायरे में ले लिया गया है, जैसे राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियाँ।

अनेक मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय की स्थापना के लिए कार्यपालिका की संस्थाओं को निर्देश दिए हैं, जैसे हवाला मामले, पैट्रोल पम्पों के अवैध आबण्टन जैसे अनेक मामलों में न्यायालय ने सी.बी.आई. को निर्देश दिया कि वह राजनेताओं और नौकरशाहों के विरुद्ध जाँच करे।

3. संविधान के मूल ढाँचे के सिद्धान्त का प्रतिपादन:
संविधान लागू होने के तुरन्त बाद सम्पत्ति के अधिकार पर रोक लगाने की संसद की शक्ति पर संसद और न्यायपालिका में विवाद खड़ा हो गया। संसद सम्पत्ति रखने के अधिकार पर कुछ प्रतिबन्ध लगाना चाहती थी जिससे भूमि सुधारों को लागू किया जा सके।

लेकिन न्यायालय ने न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के तहत यह निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों को सीमित नहीं कर सकती। संसद ने तब संविधान संशोधन कर ऐसा करने का प्रयास किया। लेकिन न्यायालय ने 1967 में गोलकनाथ विवाद में यह निर्णय दिया कि संविधान के संशोधन के द्वारा भी मौलिक अधिकारों को सीमित नहीं किया जा सकता।

फलतः संसद और न्यायपालिका के बीच यह मुद्दा केन्द्र में आया कि “संसद द्वारा संविधान संशोधनक शक्ति का दायरा क्या है।” इस मुद्दे का निपटारा सन् 1973 में केशवानन्द भारती के विवाद में सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से हुआ कि संविधान का एक मूल ढाँचा है और संसद उस मूल ढाँचे में संशोधन नहीं कर सकती। संविधान संशोधन द्वारा भी इस मूल ढाँचे को नहीं बदला जा सकता तथा संविधान का मूल ढाँचा क्या है? यह निर्णय करने का अधिकार न्यायालय ने अपने पास रखा है।

इस प्रकार संविधान के मूल ढाँचे के सिद्धान्त का प्रतिपादन कर न्यायपालिका ने अपनी न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति को व्यापक कर दिया है। साथ ही इस निर्णय में न्यायपालिका ने सम्पत्ति के अधिकार को संविधान का मूल ढाँचा नहीं माना है तथा संसद को उसमें संशोधन के अधिकार को स्वीकार कर लिया है।

न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का महत्त्व: न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।
1. लिखित संविधान की व्याख्या हेतु आवश्यक:
भारत का संविधान एक लिखित संविधान है। लिखित संविधान की शब्दावली कहीं-कहीं अस्पष्ट और उलझी हो सकती है। उसकी व्याख्या के लिए न्यायालय के पास उसकी व्याख्या की शक्ति आवश्यक है।

2. संघात्मक संविधान:
भारत का संविधान एक संघीय संविधान है जिसमें केन्द्र और राज्यों को संविधान द्वारा विभाजित किया गया है। लेकिन यदि केन्द्र और राज्य अपने क्षेत्रों विषयों की सीमाओं का उल्लंघन करें तो कार्य- संचालन मुश्किल हो जायेगा। इसलिए केन्द्र और राज्यों तथा राज्यों के बीच समय-समय पर उठने वाले विवादों का समाधान न्यायपालिका ही कर सकती है। इसलिए ऐसे विवादों के समाधान की दृष्टि से न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति अत्यन्त उपयोगी है।

3. संविधान व मूल अधिकारों की रक्षा:
न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की रक्षा का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इसी कार्य के तहत उसने ‘संविधान के मूल ढाँचे के सिद्धान्त’ का प्रतिपादन किया है। साथ ही उसने समय समय पर नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा की है तथा ऐसे कानूनों को असंवैधानिक घोषित किया है जो मूल अधिकारों के विरुद्ध हैं। यही नहीं, न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के अन्तर्गत ही उसने नागरिकों के मूल अधिकारों को अर्थपूर्ण भी बनाया है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत में न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

Leave a Comment