JAC Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. यूरोप में सबसे पहले विश्वविद्यालय किस देश के शहरों में स्थापित हुए –
(अ) इंग्लैण्ड
(ब) फ्रांस
(स) इटली
(द) जर्मनी
उत्तर:
(स) इटली

2. जो अध्यापक विश्वविद्यालयों में व्याकरण, अलंकार शास्त्र, कविता, इतिहास आदि विषय पढ़ाते थे, वे कहलाते थे –
(अ) बुद्धिजीवी
(ब) अभिजात
(स) प्रकाण्ड विद्वान
(द) मानवतावादी
उत्तर:
(द) मानवतावादी

3. मानवतावादियों के अनुसार पन्द्रहवीं शताब्दी से शुरू होने वाला युग कहलाता है –
(अ) मध्य युग
(स) आधुनिक युग
(ब) उत्तर मध्य युग
(द) अन्धकार युग
उत्तर:
(स) आधुनिक युग

4. वे कौन महान चित्रकार थे, जिनकी रुचि वनस्पति विज्ञान और शरीर रचना विज्ञान से लेकर गणित शास्त्र और कला तक विस्तृत थी-
(अ) दोनातल्लो
(स) जोटो
(ब) माईकल एंजेलो बुआनारोत्ती
(द) जोंटो
उत्तर:
(द) जोंटो

5. ‘दि पाइटा’ नामक प्रतिमा का निर्माण किया था-
(अ) गिबर्टी
(स) राफेल
(ब) राफेल
(द) लियानार्डो दा विंची
उत्तर:
(ब) राफेल

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6. जोहानेस गुटेनबर्ग ने पहले छापेखाने का निर्माण किया-
(अ) 1459 में
(ब) 1558 में
(स) 1650 में
(द) 1455 में
उत्तर:
(द) 1455 में

7. जर्मनी में प्रोटेस्टेन्ट सुधार आन्दोलन का सूत्रपात किया-
(अ) इरैस्मस
(ब) जान हस
(स) सेवोनोरोला
(द) मार्टिन लूथर
उत्तर:
(द) मार्टिन लूथर

8. “पृथ्वी समेत समस्त ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।” इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था –
(अ) गैलिलियो
(ब) मार्टिन लूथर
(स) कैप्लर उत्तरमाला
(द) कोपरनिकस
उत्तर:
(द) कोपरनिकस

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

1. कैथोलिक चर्च के परम्परागत रीति-रिवाजों, कर्मकांडों के विरुद्ध जो आंदोलन चला उसे …………….. आंदोलन का नाम दिया गया।
2. चर्च के अधिकारियों ने प्राचीन कैथोलिक धर्म का सुधार कर उसकी प्रतिष्ठा के पुनर्स्थापन के प्रयास को …………….. के नाम से जाना जाता है।
3. जर्मनी में प्रोटेस्टेन्ट आंदोलन को शुरू करने वाला …………….. था।
4. यूरोप में 14वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक के सांस्कृतिक परिवर्तन को ……………… कहा जाता है।
5. शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी और सौंदर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप दिया गया जिसे बाद में …………….. कहा गया।
उत्तर:
1. धर्म सुधार
2. प्रतिधर्म सुधार
3. मार्टिन लूथर
4 पुनर्जागरण
5. यथार्थवाद

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये –

1. बाइजेंटाइन साम्राज्य और इस्लामी देशों के बीच व्यापार के बढ़ने से इटली के तटवर्ती बंदरगाह पुनर्जीवित हो गए।
2. यूरोप में सबसे पहले विश्वविद्यालय फ्रांस के शहरों में स्थापित हुए।
3. ‘रेनेसाँ व्यक्ति’ शब्द का प्रयोग प्रायः उस मनुष्य के लिए किया जाता था जिसकी अनेक रुचियाँ हों और उसे अनेक हुनर में महारत प्राप्त हो।
4. धार्मिक व आध्यात्मिक शिक्षा ने मानवतावादी विचारों को आकार दिया।
5. मानवतावादी संस्कृति की विशेषताओं में से एक था-मानवीय जीवन पर धर्म का नियंत्रण कमजोर होना।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. असत्य
5. सत्य

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निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –

1. इग्नेशियस लोयोला (अ) यूटोपिया
2. कोपरनिकस (ब) प्रोटैस्टेंट सुधारवादी आंदोलन के जनक
3. टॉमस मोर (स) ‘द कोर्टियर’
4. मार्टिन लूथर (द) पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं
5. वाल्यासार कास्टिलोनी (य) 1540 ई. में ‘सोसायटी ऑफ जीसिस’ संस्था की स्थापना

उत्तर:

1. इग्नेशियस लोयोला (य) 1540 ई. में ‘सोसायटी ऑफ जीसिस’ संस्था की स्थापना
2. कोपरनिकस (द) पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं
3. टॉमस मोर (अ) यूटोपिया
4. मार्टिन लूथर (ब) प्रोटैस्टेंट सुधारवादी आंदोलन के जनक
5. वाल्यासार कास्टिलोनी (स) ‘द कोर्टियर’

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दो मुसलमान लेखकों के नाम लिखिए जिनके ग्रन्थों का यूनानी विद्वान अनुवाद कर रहे थे।
उत्तर:
(1) इब्नसिना
(2) अल- राजी।

प्रश्न 2.
लियोनार्दो दा विंची द्वारा बनाए गए दो चित्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) मोनालिसा
(2) द लास्ट सपर।

प्रश्न 3.
पन्द्रहवीं शताब्दी में वास्तुकला में अपनाई गई नई शैली किस नाम से विख्यात हुई ?
उत्तर:
‘शास्त्रीय शैली’ के नाम से।

प्रश्न 4.
ऐसे दो व्यक्तियों के नाम लिखिए जो कुशल चित्रकार, मूर्तिकार और वास्तुकार : सभी कुछ थे।
उत्तर:
(1) माइकल एंजेलो
(2) फिलिप्पो ब्रुनेलेशी।

प्रश्न 5.
सेन्ट पीटर के गिरजे के गुम्बद का डिजाइन किसने बनाया था ?
उत्तर:
माईकल एंजेलो ने।

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प्रश्न 6.
माइकल एंजेलो अपनी किन कृतियों के कारण अमर हो गए?
उत्तर:
(1) सिस्टाइन चैपल की छत में लेप चित्र
(2) दि पाइटा
(3) सेन्ट पीटर का गिरजाघर।

प्रश्न 7.
यूरोपवासियों ने चीनियों और मंगोलों से किन तीन प्रमुख तकनीकी नवीकरणों के विषय में ज्ञान प्राप्त किया ?
उत्तर:
(1) आग्नेयास्त्र
(2) कम्पास
(3) फलक।

प्रश्न 8.
सोलहवीं शताब्दी की यूरोप की दो मानवतावादी महिलाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) कसान्द्रा फैदेल
(2) मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते।

प्रश्न 9.
सोलहवीं शताब्दी के दो मानवतावादी विद्वानों के नाम लिखिए जिन्होंने कैथोलिक चर्च की कटु आलोचना की थी ।
उत्तर:
(1) इंग्लैण्ड के टामस मोर
(2) हालैण्ड के इरैस्मस

प्रश्न 10.
जर्मनी में प्रोटेस्टेन्ट आन्दोलन को शुरू करने वाला कौन था ?
उत्तर:
मार्टिन लूथर।

प्रश्न 11.
स्विट्जरलैण्ड में प्रोटेस्टेन्ट धर्म का प्रचार करने वाले दो धर्म सुधारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) उलरिक ज्विंग्ली
(2) जौं कैल्विन।

प्रश्न 12.
इग्नेशियस लायोला के अनुयायी क्या कहलाते थे ?
उत्तर:
जैसुइट।

प्रश्न 13.
कोपरनिकस कौन था?
उत्तर:
कोपरनिकस पोलैण्ड का वैज्ञानिक था।

प्रश्न 14.
विलियम हार्वे कौन था ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड का प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री।

प्रश्न 15.
विलियम हार्वे ने किस सिद्धान्त की खोज की?
उत्तर:
उसने हृदय को रक्त संचालन से जोड़ा।

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प्रश्न 16.
आइजक न्यूटन कौन था ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड का प्रसिद्ध वैज्ञानिक

प्रश्न 17.
आइजक न्यूटन ने किस ग्रन्थ की रचना की ?
उत्तर:
‘प्रिन्सिपिया मैथेमेटिका’।

प्रश्न 18.
आइजक न्यूटन ने किस सिद्धान्त की खोज की ?
उत्तर:
पृथ्वी के गुरुत्व – आकर्षण के सिद्धान्त की।

प्रश्न 19.
जर्मनी में किसने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध आन्दोलन शुरू किया और कब ?
उत्तर:
1517 में मार्टिन लूथर ने।

प्रश्न 20.
फ्लोरेन्स के चर्च के गुम्बद का डिजाइन किसने बनाया था?
उत्तर:
फिलिप्पो ब्रुनेलेशी ने।

प्रश्न 21.
दोनातल्लो कौन था?
उत्तर:
इटली का प्रसिद्ध मूर्तिकार।

प्रश्न 22.
टालेमी ने किस ग्रन्थ की रचना की ? यह ग्रन्थ किस विषय से सम्बन्धित था ?
उत्तर:
(1) अलमजेस्ट की
(2) खगोलशास्त्र से।

प्रश्न 23.
ओटोमन तुर्कों ने कुस्तुन्तुनिया के बाइजेन्टाइन शासकों को कब पराजित किया?
उत्तर:
1453 ई. में।

प्रश्न 24.
चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप में ‘नगरीय संस्कृति’ किस प्रकार विकसित हो रही थी ?
उत्तर:
नगरों के लोग अब यह सोचने लगे थे कि वे गाँव के लोगों से अधिक सभ्य हैं । फ्लोरेन्स, वेनिस आदि अनेक नगर कला और विद्या के केन्द्र बन गए।
होती है।

प्रश्न 25.
चौदहवीं शताब्दी से यूरोपीय इतिहास की जानकारी के स्रोतों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर:
इस युग के इतिहास की जानकारी दस्तावेजों, मुद्रित पुस्तकों, चित्रों, मूर्त्तियों, भवनों तथा वस्त्रों से प्राप्त

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प्रश्न 26.
‘रेनेसाँ’ (पुनर्जागरण ) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘रेनेसाँ’ का शाब्दिक अर्थ है – पुनर्जन्म । यह यूरोप में चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक के सांस्कृतिक परिवर्तनों का सूचक है।

प्रश्न 27.
रांके तथा जैकब बर्कहार्ट नामक इतिहासकारों के विचारों में क्या अन्तर था ?
उत्तर:
रांके के अनुसार इतिहास का पहला उद्देश्य यह है कि वह राज्यों और राजनीति के बारे में लिखे। बर्कहार्ट के अनुसार इतिहास का सरोकार उतना ही संस्कृति से है जितना राजनीति से ।

प्रश्न 28.
बर्कहार्ट ने किस पुस्तक की रचना की और कब की ?
उत्तर:
1860 ई. में बर्कहार्ट ने ‘दि सिविलाईजेशन आफ दि रेनेसाँ इन इटली’ नामक पुंस्तक की रचना की।

प्रश्न 29.
बर्कहार्ट ने इस पुस्तक में क्या बताया है ?
उत्तर:
बर्कहार्ट ने इस पुस्तक में यह बताया कि चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी तक इटली के नगरों में एक ‘मानवतावादी संस्कृति’ पनप रही थी।

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प्रश्न 30.
बर्कहार्ट ने चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी तक इटली के नगरों में पनपने वाली मानवतावादी संस्कृति के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
इटली के नगरों में पनपने वाली मानवतावादी संस्कृति इस नए विश्वास पर आधारित थी कि व्यक्ति अपने बारे में स्वयं निर्णय लेने में समर्थ है।

प्रश्न 31.
इटली में स्वतन्त्र नगर- राज्यों का उदय किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
पश्चिमी यूरोपीय देशों के व्यापार की उन्नति में इटली के नगरों ने प्रमुख भूमिका निभाई। अब वे अपने को स्वतन्त्र नगर-राज्यों का समूह मानते थे ।

प्रश्न 32.
इटली के वेनिस तथा जिनेवा यूरोप के अन्य क्षेत्रों से किस प्रकार भिन्न थे ?
उत्तर:
इन नगरों के धनी व्यापारी नगरों के शासन में सक्रिय रूप से भाग लेते थे जिससे नागरिकता की भावना विकसित होने लगी।

प्रश्न 33.
ग्यारहवीं शताब्दी से पादुआ और बोलोनिया विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केन्द्र क्यों बने रहे ?
उत्तर:
पादुआ और बोलोनिया नगरों के प्रमुख क्रियाकलाप व्यापार और वाणिज्य सम्बन्धी थे । इसलिए यहाँ वकीलों तथा नोटरी की आवश्यकता होती थी।

प्रश्न 34.
इन विश्वविद्यालयों में कानून के अध्ययन में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर:
इन विश्वविद्यालयों में कानून के अध्ययन में यह परिवर्तन आया कि अब कानून का अध्ययन रोमन संस्कृति के संदर्भ में किया जाने लगा।

प्रश्न 35.
‘मानवतावाद’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मानववादियों के अनुसार अभी बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त करना शेष है और यह सब हम केवल धार्मिक शिक्षण से नहीं सीख सकते। मानवतावाद का तात्पर्य उन्नत ज्ञान से लिया जाता है।

प्रश्न 36.
पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में किन लोगों को ‘मानवतावादी’ कहा जाता था ?
उत्तर:
पन्द्रहवीं शताब्दी के शुरू में उन अध्यापकों को ‘मानवतावादी’ कहा जाता था जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, कविता, इतिहास और नीति दर्शन विषय पढ़ाते थे।

प्रश्न 37.
फ्लोरेन्स नगर की प्रसिद्धि में किन दो लोगों की प्रमुख भूमिका थी?
उत्तर:
फ्लोरेन्स नगर की प्रसिद्धि में दाँते अलिगहियरी तथा जोटो की प्रमुख भूमिका थी।

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प्रश्न 38.
‘रेनेसाँ व्यक्ति’ शब्द का प्रयोग किस मनुष्य के लिए किया जाता है ?
अथवा
‘मानवतावादी’ किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
‘रेनेसाँ व्यक्ति’ शब्द का प्रयोग प्रायः उस मनुष्य के लिए किया जाता है जिसकी अनेक रुचियाँ हों और अनेक कलाओं में उसे निपुणता प्राप्त हो ।

प्रश्न 39.
मानवतावादियों ने पन्द्रहवीं शताब्दी से शुरू होने वाले काल को ‘आधुनिक युग’ ( नये युग) की संज्ञा क्यों दी?
उत्तर:
पन्द्रहवीं शताब्दी में यूरोप में यूनानी और रोमन ज्ञान का पुनरुत्थान हुआ । इसलिए इसे मानवतावादियों ने आधुनिक युग की संज्ञा दी।

प्रश्न 40.
टालेमी द्वारा रचित पुस्तक का नाम लिखिए । यह ग्रन्थ किससे सम्बन्धित था?
उत्तर:
टालेमी ने ‘अलमजेस्ट’ नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ खगोल शास्त्र से सम्बन्धित था जो यूनानी भाषा में लिखा गया था।

प्रश्न 41.
इब्नरुश्द कौन थे ?
उत्तर:
इब्नरुश्द स्पेन के अरबी दार्शनिक थे। उन्होंने दार्शनिक ज्ञान तथा धार्मिक विश्वासों के बीच चल रहे तनावों को सुलझाने का प्रयास किया।

प्रश्न 42.
मानवतावादी विचारों के प्रसार में किन दो तत्त्वों ने योगदान दिया?
उत्तर:
(1) विश्वविद्यालयों तथा स्कूलों में पढ़ाये जाने वाले मानवतावादी विषयों ने की।
(2) कला, वास्तुकला तथा साहित्य ने।

प्रश्न 43.
दोनातेल्लो कौन था ?
उत्तर:
दोनातेल्लो इटली का एक प्रसिद्ध मूर्त्तिकार था। 1416 में उसने सजीव मूर्त्तियाँ बनाकर नयी परम्परा स्थापित

प्रश्न 44.
यूरोप के कलाकारों को वैज्ञानिकों के कार्यों से क्यों सहायता मिली?
उत्तर:
यूरोप के कलाकार हूबहू मूल आकृति जैसी मूर्तियाँ बनाने के इच्छुक थे। इसके लिए उन्हें वैज्ञानिकों के कार्यों से सहायता मिली।

प्रश्न 45.
कलाकारों को अपनी कलाकृतियों की रचना में वैज्ञानिकों के कार्यों से किस प्रकार सहायता मिली?
उत्तर:
नर-कंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकार आयुर्विज्ञान कालेजों की प्रयोगशालाओं में गए।

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प्रश्न 46.
आन्ड्रीयस वसेलियस कौन थे ?
उत्तर:
आन्ड्रीयस वसेलियस बेल्जियम मूल के थे तथा पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान के प्राध्यापक थे1

प्रश्न 47.
आन्ड्रीयस वसेलियस ने आयुर्विज्ञान के विकास में क्या योगदान दिया ?
उत्तर:
वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ की। इसी समय से शरीर क्रिया विज्ञान का प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 48.
लियोनार्दो दा विंची कौन थे ?
उत्तर:
लियानार्दो दा विंची इटली के प्रसिद्ध चित्रकार थे। उनकी अभिरुचि वनस्पति विज्ञान और शरीर रचना विज्ञान से लेकर गणित शास्त्र तथा कला तक विस्तृत थी।

प्रश्न 49.
‘यथार्थवाद’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
शरीर-विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी और सौन्दर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप दिया, जिसे बाद में यथार्थवाद कहा गया।

प्रश्न 50.
माईकल एंजेलो के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
माईकल एंजेलो एक कुशल चित्रकार, मूर्तिकार एवं वास्तुकार था। उसने पोप के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत में लेप चित्र तथा ‘दि पाइटा’ नामक मूर्ति बनाई।

प्रश्न 51.
सोलहवीं शताब्दी में यूरोपीय लोग मुद्रण प्रौद्योगिकी के विकास के लिए किसके ऋणी थे? इसका क्या कारण था ?
उत्तर:
सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में मुद्रण प्रौद्योगिकी का विकास हुआ। इसके लिए यूरोपीय लोग चीनियों तथा मंगोल शासकों के ऋणी थे।

प्रश्न 52.
पन्द्रहवीं शताब्दी में यूरोप में सबसे पहले किस व्यक्ति ने छापेखाने का निर्माण किया और कब किया ?
उत्तर:
1455 में जर्मन मूल के जोहानेस गुटेनबर्ग ने सबसे पहले छापेखाने का निर्माण किया।

प्रश्न 53.
15वीं शताब्दी में यूरोप में नवीन विचारों का प्रसार तेजी से क्यों हुआ ?
उत्तर:
छापेखाने के आविष्कार के बाद यूरोपवासियों को छपी पुस्तकें बड़ी संख्या में उपलब्ध होने लगीं और उनका क्रय-विक्रय होने लगा।

प्रश्न 54.
पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त से यूरोप में मानवतावादी संस्कृति का प्रसार तीव्र गति से क्यों हुआ ?
उत्तर:
15वीं सदी के अन्त से यूरोपीय देशों में छपी हुई पुस्तकों का बड़ी संख्या में उपलब्ध होने से वहाँ मानवतावादी संस्कृति का प्रसार तीव्र गति से हुआ।

प्रश्न 55.
मानवतावादी संस्कृति की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
(1) मानव जीवन पर धर्म का नियन्त्रण कमजोर हो गया।
(2) इटली के निवासी भौतिक सम्पत्ति, शक्ति और गौरव से आकृष्ट थे।

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प्रश्न 56.
फ्रेन्चेस्को बरबारो कौन थे ?
उत्तर:
फ्रेन्चेस्को बरबारो वेनिस के एक मानवतावादी लेखक थे।

प्रश्न 57.
लोरेन्जो वल्ला कौन थे ? उनके मानवतावादी संस्कृति के बारे में क्या विचार थे?
उत्तर:
लोरेन्जो वल्ला एक प्रसिद्ध मानवतावादी लेखक थे। उन्होंने अपनी पुस्तकं ‘आन प्लेजर’ में भोग-विलास पर लगाई गई ईसाई धर्म की निषेधाज्ञा की आलोचना की।

प्रश्न 58.
मैकियावली कौन था ? उसने किस पुस्तक की रचना की ?
उत्तर:
मैकियावली इटली का एक प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक था । उसने ‘दि प्रिंस’ ( 1513 ई.) नामक पुस्तक की रचना की ।

प्रश्न 59.
मैकियावली ने अपनी पुस्तक ‘दि प्रिंस’ में मानव के स्वभाव में क्या विचार प्रकट किए हैं?
उत्तर:
मैकियावली के अनुसार कुछ राजकुमार दानी, दयालु, साहसी होते हैं तो कुछ कंजूस, निर्दयी और कायर होते हैं। उसके अनुसार सभी मनुष्य बुरे हैं।

प्रश्न 60.
कसान्द्रा फैदेल कौन थी ?
उत्तर:
वेनिस निवासी कसान्द्रा फैदेल एक विदुषी महिला थी । वह मानवतावादी शिक्षा की समर्थक थी ।

प्रश्न 61.
कसान्द्रा फैदेल ने स्त्रियों को शिक्षा प्रदान किये जाने के बारे में क्या विचार प्रकट किए हैं?
उत्तर:
कसान्द्रे फैदेल ने लिखा है कि ” प्रत्येक महिला को सभी प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने की इच्छा रखनी चाहिए और उसे ग्रहण करना चाहिए । ”

प्रश्न 62.
कसान्द्रा फैदेल ने किस तत्कालीन विचारधारा को चुनौती दी थी ?
उत्तर:
कसान्द्रा फैदेल ने तत्कालीन इस विचारधारा को चुनौती दी कि एक मानवतावादी विद्वान के गुण एक महिला के पास नहीं हो सकते।

प्रश्न 63.
मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते कौन थी ?
उत्तर:
मार्चिसा ईसाबेला 16वीं शताब्दी की एक प्रतिभाशाली महिला थी । उसने अपने पति की अनुपस्थिति में अपने मंटुआ नामक राज्य पर शासन किया।

प्रश्न 64.
सोलहवीं शताब्दी की रचनाओं से महिलाओं की किन आकांक्षाओं का बोध होता है ?
उत्तर:
स्त्रियों को पुरुष – प्रधान समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए अधिक आर्थिक स्वायत्तता, सम्पत्ति तथा शिक्षा मिलनी चाहिए।

प्रश्न 65.
‘पाप-स्वीकारोक्ति’ (Indulgences) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
‘पाप स्वीकारोक्ति’ एक दस्तावेज था जो पादरियों द्वारा लोगों से धन ऐंठने का सबसे आसान तरीका था। यह दस्तावेज चर्च द्वारा जारी किया जाता था।

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प्रश्न 66.
‘कान्स्टैन्टाइन के अनुदान’ से क्या अभिप्राय है ? मानवतावादियों का इसके बारे में क्या विचार था ?
उत्तर:
‘कान्स्टैन्टाइन के अनुदान’ एक दस्तावेज था। मानवतावादियों के अनुसार न्यायिक और वित्तीय शक्तियों पर पादरियों का दावा इस दस्तावेज से उत्पन्न होता है।

प्रश्न 67.
‘कान्स्टैन्टाइन के अनुदान’ की व्याख्या से यूरोपीय शासक क्यों प्रसन्न हुए?
उत्तर:
क्योंकि मानवतावादी विद्वान यह उजागर करने में सफल रहे कि ‘कान्स्टैन्टाइन के अनुदान’ नामक दस्तावेज असली नहीं था ।

प्रश्न 68.
मार्टिन लूथर कौन था ?
उत्तर:
मार्टिन लूथर जर्मनी का एक महान धर्म – सुधारक था । 1517 में उसने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध प्रोटेस्टेन्ट सुधारवाद आन्दोलन शुरू किया।

प्रश्न 69.
एनाबेपटिस्ट सम्प्रदाय के धर्म-सुधारकों की क्या विचारधारा थी?
उत्तर:
एनाबेपटिस्ट सम्प्रदाय के धर्म-सुधारक अधिक उग्र सुधारक थे। उन्होंने हर तरह के सामाजिक उत्पीड़न का विरोध किया ।

प्रश्न 70.
न्यू टेस्टामेन्ट बाइबल के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
न्यू टेस्टामेन्ट बाइबल का वह खण्ड है जिसमें ईसा मसीह का जीवन चरित्र, धर्मोपदेश और प्रारम्भिक अनुयायियों का उल्लेख है ।

प्रश्न 71.
इग्नेशियस लायोला कौन था? उसने किस संस्था की स्थापना की ?
उत्तर:
स्पेन निवासी इग्नेशियस लायोला कैथोलिक चर्च का प्रबल समर्थक था । उसने 1540 में ‘सोसाइटी ऑफ जीसस’ की स्थापना की।

प्रश्न 72.
जेसुइट का क्या ध्येय था ?
उत्तर:
उनका ध्येय निर्धन लोगों की सेवा करना और अन्य संस्कृतियों के बारे में अपने ज्ञान को अधिक व्यापक बनाना था। है।

प्रश्न 73.
ईसाइयों की पृथ्वी के बारे में क्या धारणा थी ?
उत्तर:
ईसाइयों का यह विश्वास था कि पृथ्वी पापों से भरी हुई है और पापों की अधिकता के कारण वह अस्थिर

प्रश्न 74.
‘कोपरनिकसीय क्रान्ति’ से क्या अभिप्राय है?
अथवा
कोपरनिकस ने किस नए सिद्धान्त का प्रतिपादन किया?
उत्तर:
पोलैण्ड के वैज्ञानिक कोपरनिकस ने यह घोषणा की कि पृथ्वी समेत समस्त ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इसे कोपरनिकसीय क्रान्ति कहते हैं ।

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प्रश्न 75.
कोपरनिकस के सिद्धान्त की पुष्टि करने वाले दो खगोलशास्त्रियों के नाम लिखें।
उत्तर:
दो खगोलशास्त्रियों जोहानेस कैप्लर तथा गैलिलियो गैलिली ने कोपरनिकस के सिद्धान्त की पुष्टि की।

प्रश्न 76.
कैप्लर ने किसके सिद्धान्त का समर्थन किया और किस प्रकार किया ?
उत्तर:
खगोलशास्त्री कैप्लर ने अपने ग्रन्थ ‘कास्मोग्राफिकल मिस्ट्री’ (खगोलीय रहस्य) में कोपरनिकस के सूर्य-केन्द्रित सौर – मण्डलीय सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाया ।

प्रश्न 77.
गैलिलियो कौन था? उसने किस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया ?
उत्तर:
गैलिलियो इटली का प्रसिद्ध खगोलशास्त्री और वैज्ञानिक था। उसने अपने ग्रन्थ ‘दि मोशन ‘(गति) में गतिशील विश्व के सिद्धान्तों की पुष्टि की।

प्रश्न 78.
वैज्ञानिक संस्कृति के प्रसार में योगदान देने वाली दो संस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) 1670 में स्थापित ‘पेरिस अकादमी’ और
(2) 1662 में वास्तविक ज्ञान के प्रसार के लिए लन्दन में गठित ‘रॉयल सोसाइटी’।

प्रश्न 79.
मानववाद की कोईं चार विशेषताएँ बताइये
उत्तर:

  • मानव के विचारों, गुणों पर बल
  • वर्तमान सांसारिक जीवन को सुखी बनाना
  • धार्मिक रूढ़ियों का विरोध
  • स्वतन्त्र चिन्तन, तार्किक दृष्टिकोण।

प्रश्न 80.
पुनर्जागरण ने यूरोप में क्या बदलाव किये?
उत्तर:

  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास
  • मानव के महत्त्व में वृद्धि
  • भौतिक दृष्टिकोण का विकास
  • देशी भाषाओं का विकास।

प्रश्न 81.
प्रोटेस्टेन्ट आन्दोलन के प्रमुख चार उद्देश्य बताइये।
उत्तर:

  • पोप के जीवन में नैतिक सुधार करना
  • चर्च की बुराइयों को दूर करना
  • कैथोलिक धर्म में व्याप्त आडम्बरों को दूर करना
  • ईसाइयों के नैतिक जीवन में सुधार।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के अन्त तक यूरोपीय देशों में विकसित हो रही ‘नगरीय संस्कृति’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
नगरीय संस्कृति – चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के अन्त तक यूरोप के अनेक देशों में नगरों की संख्या बढ़ रही थी। नगरों में एक विशेष प्रकार की ‘नगरीय संस्कृति’ विकसित हो रही थी। नगर के लोगों की अब यह धारणा बनने लगी थी कि वे गाँव के लोगों से अधिक सभ्य हैं। नगर कला और ज्ञान के केन्द्र बन गए।

धनी और अभिजात वर्ग के लोगों ने कलाकारों और विद्वानों को आश्रय प्रदान किया। इसी समय छापेखाने के आविष्कार से लोगों को छपी हुई पुस्तकें प्राप्त होने लगीं। यूरोप में इतिहास की समझ विकसित होने लगी और लोग अपने ‘आधुनिक विश्व’ की तुलना यूनानी व रोमन ‘प्राचीन दुनिया’ से करने लगे। अब यह माना जाने लगा कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार अपना धर्म चुन सकता है।

प्रश्न 2.
चौदहवीं शताब्दी के यूरोपीय इतिहास की जानकारी के साधनों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी से यूरोपीय इतिहास की जानकारी के लिए प्रचुर सामग्री दस्तावेजों, मुद्रित पुस्तकों, चित्रों, मूर्तियों, भवनों तथा वस्त्रों से प्राप्त होती है जो यूरोप और अमेरिका के अभिलेखागारों, कला – चित्रशालाओं और संग्रहालयों में उपलब्ध है। स्विट्जरलैण्ड के ब्रेसले विश्वविद्यालय के इतिहासकार जैकब बर्कहार्ट ने उस काल में हुए सांस्कृतिक परिवर्तनों पर प्रकाश डाला है। रेनेसाँ इन सांस्कृतिक परिवर्तनों का सूचक है। 1860 में बर्कहार्ट ने अपनी पुस्तक ‘दि सिविलाइजेशन ऑफ दि रेनेसां इन इटली’ में साहित्य, वास्तुकला तथा चित्रकला पर प्रकाश डाला तथा इस काल में इटली में पनप रही मानवतावादी संस्कृति को इंगित किया है।

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प्रश्न 3.
पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् किन परिवर्तनों ने इतालवी संस्कृति के पुनरुत्थान में सहयोग दिया?
उत्तर:
पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् इटली के राजनीतिक और सांस्कृतिक केन्द्र नष्ट हो गए। इस समय कोई भी संगठित सरकार नहीं थी और रोम का पोप समस्त यूरोपीय राजनीति में अधिक शक्तिशाली नहीं था। वह अपने राज्य में निःसन्देह सार्वभौम था। लेकिन निम्नलिखित परिवर्तनों ने इतालवी संस्कृति के पुनरुत्थान में सहयोग दिया-

  • पश्चिमी यूरोप के देशों का सामन्ती संबंधों तथा लातीनी चर्च के नेतृत्व में एकीकरण होना।
  • पूर्वी यूरोप का बाइजेंटाइन साम्राज्य के शासन में बदलना।
  • धुर पश्चिम में इस्लाम द्वारा एक सांझी सभ्यता का निर्माण करना।

इन परिवर्तनों के कारण बाइजेंटाइन साम्राज्य और इस्लामी देशों के बीच व्यापार बढ़ने से इटली के तटवर्ती बंदरगाह पुनर्जीवित हो गए। मंगोल व चीन के रेशम मार्ग के व्यापार में भी इटली के नगरों की प्रमुख भूमिका रही और वे नगर एक स्वतंत्र भार राज्य के रूप में विकसित हुए।

प्रश्न 4.
कार्डिनल गेसपारो कोन्तारिनी ने अपने नगर – राज्य वेनिस की लोकतान्त्रिक सरकार के बारे में सरकार के बारे में क्या विवरण दिया है?
उत्तर:
कार्डिनल गेसपारो कोन्तारिनी (1483-1542) ने अपने ग्रन्थ ‘दि कॉमनवेल्थ एण्ड गवर्नमेन्ट ऑफ वेनिस’ में लिखा है –
“हमारे वेनिस के संयुक्त मण्डल की संस्था के बारे में जानने पर आपको ज्ञात होगा कि नगर का सम्पूर्ण प्राधिकार एक ऐसी परिषद् के हाथों में है जिसमें 25 वर्ष से अधिक आयु वाले (संभ्रान्त वर्ग के ) सभी पुरुषों को सदस्यता मिल जाती है।” उन्होंने लिखा है कि हमारे पूर्वजों ने सामान्य जनता को नागरिक वर्ग में, जिनके हाथ में संयुक्त मण्डल के शासन की बागडोर है, इसलिए शामिल नहीं किया क्योंकि उन नगरों में अनेक प्रकार की गड़बड़ियाँ और जन-उपद्रव होते रहते थे, जहाँ की सरकार पर जन-सामान्य का प्रभाव रहता था ।

कुछ लोगों का यह विचार था कि यदि संयुक्त मण्डल का शासन-संचालन अधिक कुशलता से करना है, तो योग्यता और सम्पन्नता को आधार बनाना चाहिए। दूसरी ओर सच्चरित्र नागरिक प्रायः निर्धन हो जाते हैं। इसलिए हमारे पूर्वजों ने यह विचार रखा कि धन-सम्पन्नता को आधार न बनाकर कुलीनवंशीय लोगों को प्राथमिकता दी जाए। गरीब लोगों को छोड़ कर सभी नागरिकों का प्रतिनिधित्व सत्ता में होना चाहिए।

प्रश्न 5.
विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में अरबों के योगादन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी में अनेक विद्वानों ने प्लेटो और अरस्तू के ग्रन्थों के अनुवादों का अध्ययन किया। इसके लिए वे अरब के अनुवादकों के ऋणी थे जिन्होंने अतीत की पाण्डुलिपियों का संरक्षण और अनुवाद सावधानीपूर्वक किया था। जिस समय यूरोप के विद्वान यूनानी ग्रन्थों के अरबी अनुवादों का अध्ययन कर रहे थे, उसी समय यूनानी विद्वान अरबी और फारसी विद्वानों की रचनाओं का अनुवाद कर रहे थे।

ये ग्रन्थ प्राकृतिक विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, औषधि विज्ञान और रसायन विज्ञान से सम्बन्धित थे। मुसलमान लेखकों में अरबी के हकीम तथा मध्य एशिया के बुखारा के दार्शनिक ‘इब्न- सिना’ और आयुर्विज्ञान विश्वकोश के लेखक अल-राजी सम्मिलित थे । स्पेन के अरबी दार्शनिक इब्न रुश्द ने दार्शनिक ज्ञान और धार्मिक विश्वासों के बीच रहे तनावों को दूर करने का प्रयास किया। उनकी पद्धति को ईसाई चिन्तकों द्वारा अपनाया गया।

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प्रश्न 6.
मानवतावादियों ने किस काल को ‘मध्य युग’ और किस काल को ‘आधुनिक युग’ की संज्ञा दी ? उत्तर – मानवतावादियों की मान्यता थी कि वे अन्धकार की कई शताब्दियों के पश्चात् सभ्यता के सही रूप को पुनः स्थापित कर रहे हैं। इसके पीछे यह धारणा थी कि रोमन साम्राज्य के टूटने के पश्चात् ‘अन्धकार युग’ प्रारम्भ हुआ। मानवतावादियों की भाँति बाद के विद्वानों ने भी यह स्वीकार कर लिया कि यूरोप में चौदहवीं शताब्दी के बाद ‘नये युग’ का उदय हुआ।

‘मध्यकाल’ शब्द का प्रयोग रोम साम्राज्य के पतन के बाद एक हजार वर्ष की समयावधि के लिए किया गया। उन्होंने ये तर्क प्रस्तुत किये कि ‘मध्य युग’ में कैथोलिक चर्च ने लोगों की सोच को इस प्रकार जकड़ रखा था कि यूनान और रोमवासियों का समस्त ज्ञान उनके मस्तिष्क से निकल चुका था। मानवतावादियों ने ‘आधुनिक’ शब्द का प्रयोग पन्द्रहवीं शताब्दी से शुरू होने वाले काल के लिए किया।
मानवतावादियों और बाद के विद्वानों द्वारा प्रयुक्त कालक्रम निम्नानुसार था –
1. 5-14 शताब्दी – मध्य युग
2. 15वीं शताब्दी से – आधुनिक युग।

प्रश्न 7.
कला के बारे में चित्रकार अल्बर्ट ड्यूरर द्वारा व्यक्त किये गये विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कला के बारे में चित्रकार अल्बर्ट ड्यूरर द्वारा व्यक्त किये गये विचार – कला के बारे में चित्रकार अल्बर्ट ने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि ” कला प्रकृति में रची-बसी होती हैं। जो इसके सार को पकड़ सकता है वही इसे प्राप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त आप अपनी कला को गणित द्वारा दिखा सकते हैं। जीवन की अपनी आकृति से आपकी कृति जितनी जुड़ी होगी, उतना ही सुन्दर आपका चित्र होगा। कोई भी व्यक्ति केवल अपनी कल्पना मात्र से एक सुन्दर आकृति नहीं बना सकता, जब तक उसने अपने मन को जीवन की प्रतिछवि से न भर लिया हो। ”

प्रश्न 8.
चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक मूर्त्तिकला के क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस युग में मूर्त्तिकला का पर्याप्त विकास हुआ। रोमन साम्राज्य के पतन के एक हजार वर्ष बाद भी प्राचीन रोम और उसके नगरों के खंडहरों में कलात्मक वस्तुएँ मिलीं। अनेक शताब्दियों पहले बनी आदमी और औरतों की ‘संतुलित मूर्तियों’ के प्रति आदर ने उस परम्परा को कायम रखने हेतु इतालवी वास्तुविदों को प्रोत्साहित किया। 1416 में दोनातेल्लो ने सजीव मूर्त्तियाँ बनाकर नयी परम्परा स्थापित की। गिबर्टी ने फ्लोरेन्स के गिरजाघर के सुन्दर द्वार बनाए।

माईकल एंजेलेस एक महान मूर्त्तिकार था। उसने ‘दि पाइटा’ नामक प्रसिद्ध मूर्ति का निर्माण किया। यह मूर्ति तत्कालीन मूर्त्तिकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। कलाकार हूबहू मूल आकृति जैसी मूर्त्तियाँ बनाना चाहते थे। उनकी इस उत्कंठा को वैज्ञानिकों के कार्यों से सहायता मिली। नर कंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकार आयुर्विज्ञान कॉलेजों की प्रयोगशालाओं में गए। आन्ड्रीस वसेलियस पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीरफाड़ की । इसी समय से आधुनिक शरीर – क्रिया विज्ञान का प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 9.
आधुनिक काल में चित्रकला के क्षेत्र में हुई उन्नति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चित्रकारों के लिए नमूने के रूप में प्राचीन कृतियाँ नहीं थीं, परन्तु मूर्त्तिकारों की भाँति उन्होंने यथार्थ चित्र बनाने का प्रयास किया। उन्हें अब यह ज्ञात हो गया कि रेखागणित के ज्ञान से चित्रकार अपने परिदृश्य को भली-भाँति समझ सकता है तथा प्रकाश के बदलते गुणों का अध्ययन करने में उनके चित्रों में त्रि-आयामी रूप दिया जा सकता है। चित्रकारों ने लेपचित्र बनाए। लेपचित्र के लिए तेल के एक माध्यम के रूप में प्रयोग ने चित्रों को पूर्व की तुलना में अधिक रंगीन तथा चटख बना दिया।

उनके अनेक चित्रों में प्रदर्शित वस्त्रों के डिजाइन और रंग संयोजन में चीनी और फारसी चित्रकला का प्रभाव दिखाई देता है जो उन्हें मंगोलों से प्राप्त हुए थे। लियोनार्डो दा विन्ची इस युग के एक महान चित्रकार थे। उन्होंने ‘मोनालिसा’ तथा ‘द लास्ट सपर’ नामक चित्र बनाए। माईकल एंजेलो भी इस युग के एक महान चित्रकार थे।

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प्रश्न 10.
चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी तक इटली में वास्तुकला के क्षेत्र में हुए विकास की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पन्द्रहवीं शताब्दी में रोम नगर भव्य इमारतों से सुसज्जित हो उठा। पुरातत्वविदों द्वारा रोम के अवशेषों का उत्खनन किया गया। इसने वास्तुकला की एक ‘नई शैली’ को बढ़ावा दिया, जो वास्तव में रोम साम्राज्यकालीन शैली का पुनरुद्धार थी, जो अब ‘शास्त्रीय शैली’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। धनी व्यापारियों और अभिजात वर्ग के लोगों ने उन वास्तुविदों को अपने भवन बनवाने के लिए नियुक्त किया, जो शास्त्रीय वास्तुकला से परिचित थे।

चित्रकारों और शिल्पकारों ने भवनों को लेपचित्रों, मूर्त्तियों और उभरे चित्रों से भी सुसज्जित किया।
माइकल एंजेलो एक कुशल चित्रकार, मूर्त्तिकार और वास्तुकार थे। उन्होंने पोप के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत में लेपचित्र, ‘दि पाइटा’ नामक मूर्ति तथा सेंट पीटर गिरजाघर के गुम्बद का डिजाइन तैयार किया। इन कलाकृतियों के कारण माईकल एंजेलो अमर हो गए। ये समस्त कलाकृतियाँ रोम में ही हैं। फिलिप्पो ब्रुनेलेशी एक प्रसिद्ध वास्तुकार थे जिन्होंने फ्लोरेन्स के भव्य गुम्बद का परिरूप प्रस्तुत किया था।

प्रश्न 11.
मानवतावादी संस्कृति के प्रसार में मुद्रित पुस्तकों के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यूरोप में सोलहवीं शताब्दी में क्रान्तिकारी मुद्रण प्रौद्योगिकी का विकास हुआ। सन् 1455 में जर्मन मूल के व्यक्ति जोहानेस गुटनबर्ग ( 1400-1458) ने पहले छापेखाने का निर्माण किया। उनकी कार्यशाला में बाइबल की 150 प्रतियाँ छपीं। पन्द्रहवीं शताब्दी तक अनेक क्लासिकी ग्रन्थों का मुद्रण इटली में हुआ था। इन ग्रन्थों में अधिकतर लातिनी ग्रन्थ थे। अब मुद्रित पुस्तकें लोगों को उपलब्ध होने लगीं तथा उनका क्रय-विक्रय होने लगा।

अब लोगों में नये विचारों, मतों आदि का तीव्र गति से प्रसार होने लगा। नये विचारों का प्रसार करने वाली एक मुद्रित पुस्तक सैकड़ों पाठकों तक शीघ्रतापूर्वक पहुँच सकती थी। अब प्रत्येक पाठक बाजार से पुस्तकें खरीदकर पढ़ सकता था। इसके परिणामस्वरूप लोगों को नई-नई जानकारियाँ मिलने लगीं। पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त से इटली की मानवतावादी संस्कृति का यूरोपीय देशों में तीव्र गति से प्रसार हुआ। इसका प्रमुख कारण वहाँ पर छपी हुई पुस्तकों का उपलब्ध होना था।

प्रश्न 12.
लिओन बतिस्ता अल्बर्टी कौन था? उसके कला सिद्धान्त और वास्तुकला सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लिओन बतिस्ता अल्बर्टी – लिओन बतिस्ता अल्बर्टी एक प्रसिद्ध वास्तुकार था। उसने कला सिद्धान्त तथा वास्तुकला के सम्बन्ध में लिखा है कि, “मैं उसे वास्तुविद मानता हूँ जो नए-नए तरीकों का आविष्कार कर इस तरह अपने निर्माण को पूरा करे कि उसमें भारी वजन को ठीक बैठाया गया हो और सम्पूर्ण कृति के संयोजन और द्रव्यमान में ऐसा सामंजस्य हो कि उसका सर्वाधिक सौन्दर्य उभरकर आए ताकि मानवमात्र के लिए इसका श्रेष्ठ उपयोग हो सके।”

प्रश्न 13.
‘“मानवतावादी संस्कृति के फलस्वरूप मनुष्य की एक नई संकल्पना का प्रसार हुआ। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानवतावादी संस्कृति के परिणामस्वरूप मानव जीवन पर धर्म का नियन्त्रण कमजोर हुआ। इटली – निवासी अपने वर्तमान जीवन को सुखी और समृद्ध बनाना चाहते थे। वे भौतिक सम्पत्ति, शक्ति तथा गौरव की भावनाओं के प्रति आकृष्ट थे। परन्तु इसका यह मतलब नहीं था कि वे अधार्मिक थे। वेनिस के मानवतावादी लेखक फ्रेन्चेस्को बरबारो ने अपनी एक पुस्तिका में सम्पत्ति प्राप्त करने को एक विशेष गुण बताकर उसका समर्थन किया। लोरेन्जो वल्ला का विश्वास था कि इतिहास का अध्ययन मनुष्य को पूर्णतया जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करता है।

उन्होंने अपनी पुस्तक ‘आन प्लेजर’ में भोग-विलास पर लगाई गई ईसाई धर्म की निषेधाज्ञा की आलोचना की। इस समय लोग अच्छे व्यवहारों में रुचि ले रहे थे। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि व्यक्ति को विनम्रता से बोलना चाहिए, उचित ढंग से वस्त्र पहनने चाहिए तथा सभ्य व्यक्ति की भाँति आचरण करना चाहिए। मानवतावाद ने मानव जीवन को सुखी और सम्पन्न बनाने पर बल दिया। मानवतावाद का अभिप्राय यह भी था कि व्यक्ति विशेष सत्ता और सम्पत्ति की होड़ को छोड़कर अन्य कई माध्यमों से अपने जीवन को एक नये रूप दे सकता था। यह आदर्श इस विश्वास के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था कि मनुष्य का स्वभाव बहुमुखी है।

प्रश्न 14.
“मध्यकाल की कुछ महिलाएँ बौद्धिक रूप से बहुत रचनात्मक थीं तथा मानवतावादी शिक्षा की भूमिका के बारे में संवेदनशील थीं। ” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मानवतावाद ने यूरोपीय महिलाओं को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
14वीं सदी से 17वीं सदी तक के काल की कुछ महिलाएँ बौद्धिक रूप से बहुत रचनात्मक थीं और मानवतावादी शिक्षा की भूमिका के बारे में संवेदनशील थीं । वेनिस निवासी कसान्द्रा फेदेले (1465-1558) एक सुशिक्षित एवं मानवतावादी महिला थी। उसने लिखा, ” यद्यपि महिलाओं को शिक्षा न तो पुरस्कार देती है और न किसी सम्मान का आश्वासन, तथापि प्रत्येक महिला को सभी प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने की इच्छा रखनी चाहिए और उसे ग्रहण करना चाहिए।”

फेदेले ने तत्कालीन इस विचारधारा को चुनौती दी कि एक मानवतावादी विद्वान के गुण एक महिला के पास नहीं हो सकते। फेदेले यूनानी और लातिनी भाषा के विद्वान के रूप में विख्यात थी। इस काल की एक अन्य प्रतिभाशाली महिला मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते ( 1474 – 1539) थी। वह मंटुआ निवासी थी। उसने अपने पति की अनुपस्थिति में अपने राज्य पर शासन किया। महिलाएँ पुरुष-प्रधान समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए अधिक आर्थिक स्वायत्तता, सम्पत्ति और शिक्षा प्राप्त करना चाहती थीं।

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प्रश्न 15.
ईसाई धर्म के अन्तर्गत वाद-विवाद का विवरण दीजिए।
अथवा
यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन के प्रारम्भ होने के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर – ईसाई धर्म के अन्तर्गत वाद-विवाद ( यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन के प्रारम्भ होने के कारण ) –
(1) मानवतावादियों ने उत्तरी यूरोप में ईसाइयों को अपने पुराने धर्म-ग्रन्थों में बताए गए तरीकों से धर्म का पालन करने का आह्वान किया।
(2) उन्होंने कैथोलिक चर्च में व्याप्त कुरीतियों, अनावश्यक कर्मकाण्डों की आलोचना की।
(3) मानववादी मानते थे कि ईश्वर ने मनुष्य बनाया है तथा उसे अपना जीवन स्वतन्त्र रूप से व्यतीत करने की पूरी स्वतन्त्रता भी दी है।
(4) टामस मोर तथा हालैण्ड के इरेस्मस की यह मान्यता थी कि चर्च एक लालची तथा साधारण लोगों से लूट- खसोट करने वाली संस्था बन गई है।
(5) पादरी लोग ‘पाप-स्वीकारोक्ति’ नामक दस्तावेज के माध्यम से लोगों से धन ऐंठ रहे थे। मानवतावादियों ने इसका विरोध किया।
(6) कृषकों ने चर्च द्वारा लगाए गए करों का घोर विरोध किया।
(7) राजकाज में चर्च की हस्तक्षेप की नीति से यूरोप के शासक भी नाराज थे।
(8) 1517 में जर्मनी के युवा भिक्षु मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध आन्दोलन शुरू किया जो ‘प्रोटेस्टेन्ट सुधारवाद’ कहलाया।

प्रश्न 16.
चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच यूरोप में विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) ईसाइयों की यह धारणा थी कि पृथ्वी पापों से भरी हुई है और पापों की अधिकता के कारण वह स्थिर है। पृथ्वी ब्रह्माण्ड के बीच में स्थिर है जिसके चारों ओर खगोलीय ग्रह घूम रहे हैं।
(2) पोलैण्ड के वैज्ञानिक कोपरनिकस ने यह घोषणा की कि पृथ्वी समेत सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।
(3) जर्मन वैज्ञानिक तथा खगोलशास्त्री जोहानेस कैपलर ने अपने ग्रन्थ ‘खगोलीय रहस्य’ में कोपरनिकस के सूर्य- केन्द्रित सौरमण्डलीय सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाया जिससे यह सिद्ध हुआ कि सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार रूप में नहीं, बल्कि दीर्घ वृत्ताकार मार्ग पर परिक्रमा करते हैं।
(4) इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और खगोलशास्त्री गैलिलियो ने अपने ग्रन्थ ‘दि मोशन’ (गति) में गतिशील विश्व के सिद्धान्तों की पुष्टि की।
(5) इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की शक्ति का सिद्धान्त प्रतिपादित किया।
(6) वैज्ञानिकों ने बताया कि ज्ञान विश्वास से हटकर अवलोकन एवं प्रयोगों पर आधारित है। परिणामस्वरूप भौतिकी, रसायनशास्त्र, जीवविज्ञान आदि के क्षेत्र में अनेक प्रयोग और अन्वेषण कार्य हुए। इतिहासकारों ने मनुष्य और प्रकृति के ज्ञान के इस नए दृष्टिकोण को ‘वैज्ञानिक क्रान्ति’ की संज्ञा दी।

प्रश्न 17.
‘पुनर्जागरण’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक यूरोप में सांस्कृतिक क्षेत्र में जो आश्चर्यजनक प्रगति हुई उसे ‘पुनर्जागरण’ के नाम से पुकारा जाता है। ‘पुनर्जागरण’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘फिर से जागना’ परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से इसे मानव समाज की बौद्धिक चेतना तथा तर्कशक्ति का पुनर्जन्म कहना अधिक उचित होगा। साधारणतया चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच यूरोप में अनेक सांस्कृतिक तथा बौद्धिक परिवर्तन हुए, जिन्हें ‘पुनर्जागरण’ के नाम से पुकारा जाता है। पुनर्जागरण के फलस्वरूप साहित्य, कला, विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उन्नति हुई। इसी को ‘बौद्धिक पुनरुत्थान’, ‘नवयुग’ आदि नामों से पुकारा जाता है।

प्रश्न. 18.
पुनर्जागरण की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) स्वतन्त्र चिन्तन को प्रोत्साहन – पुनर्जागरण ने स्वतन्त्र चिन्तन की विचारधारा को प्रोत्साहन दिया।
(2) मानवतावादी विचारधारा का विकास – ‘पुनर्जागरण’ के फलस्वरूप मानवतावादी विचारधारा का विकास हुआ। मानवतावादियों ने प्राचीन यूनानी और रोमन साहित्य के अध्ययन पर बल दिया।
(3) देशी भाषाओं का विकास – पुनर्जागरण के फलस्वरूप देशी भाषाओं का विकास हुआ।
(4) वैज्ञानिक विचारधारा का विकास – पुनर्जागरण के कारण वैज्ञानिक विचारधारा का विकास हुआ।
(5) प्राचीन रूढ़ियों तथा अन्धविश्वासों का विरोध – पुनर्जागरण ने प्राचीन रूढ़ियों, अन्धविश्वासों तथा धार्मिक आडम्बरों पर कुठाराघात किया।
(6) सहज सौन्दर्य की उपासना – अब साहित्य एवं कला में सौन्दर्य एवं प्रेम की भावनाओं को प्रमुख स्थान दिया जाने लगा।

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प्रश्न 19.
माईकल एंजेलो पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
माईकल एंजेलो ( 1475-1564 ) –
माईकल एंजेलो एक कुशल चित्रकार, मूर्त्तिकार तथा वास्तुकार था। उसने पोप के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत में 145 चित्रों का निर्माण किया। इन चित्रों में ‘द लास्ट जजमेंट’ (अन्तिम निर्णय ) नामक चित्र सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। उसने ‘दि पाइटा’ नामक मूर्त्ति बनाई, जो तत्कालीन मूर्त्तिकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इस चित्र में माईकल एंजेलो ने मेरी को ईसा के शरीर को धारण करते हुए दिखाया है। माइकेल एंजेलो ने ठोस संगमरमर को तराशकर डेविड और मूसा की विशाल मूर्त्तियों का भी निर्माण किया। उसने सेंट पीटर के गिरजाघर के गुम्बद का डिजाइन तैयार किया। यह पुनर्जागरणकालीन स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना माना जाता है। इन कलाकृतियों के कारण माइकेल एंजेलो अमर हो गए।

प्रश्न 20.
लियोनार्डो दा विंची पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
लियोनार्डो दा विंची (1452-1519 ई.) –
लियोनार्डो दा विंची इटली का एक प्रसिद्ध चित्रकार था। वह एक कलाकार, वैज्ञानिक, आविष्कारक और शरीर रचना शास्त्र का अच्छा ज्ञाता था। उसकी आश्चर्यजनक अभिरुचि वनस्पति विज्ञान और शरीर रचना, विज्ञान से लेकर गणितशास्त्र तथा कला तक विस्तृत थी। उसने ‘मोनलिसा ‘ तथा ‘द लास्ट सपर’ नामक चित्र बनाए। इनमें ‘मोनालिसा’ विश्वविख्यात है। लियोनार्डो दा विंची की चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ हैं – प्रकाश और छाया, रंगों का चयन और शारीरिक अंगों का सफल प्रदर्शन। लियोनार्डो का यह स्वप्न था कि वह आकाश में उड़ सके। वह वर्षों तक आकाश में पक्षियों के उड़ने का परीक्षण करता रहा और उसने एक उड़न-मशीन का प्रतिरूप बनाया। उसने अपना नाम ‘लियोनार्डो दा विंची, परीक्षण का अनुयायी’ रखा।

प्रश्न 21.
मार्टिन लूथर कौन था? धर्म सुधार आन्दोलन में उसके योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मार्टिन लूथर – मार्टिन लूथर का जन्म 10 नवम्बर, 1483 को जर्मनी के अजलेवन नामक गाँव में हुआ था। 1517 में मार्टिन लूथर ने ‘पाप – स्वीकारोक्ति’ नामक दस्तावेज की कटु आलोचना की और कैथोलिक चर्च के विरुद्ध आन्दोलन शुरू कर दिया। उसने घोषित किया कि मनुष्य को ईश्वर से सम्पर्क साधने के लिए पादरी की आवश्यकता नहीं है। उसने अपने अनुयायियों को आदेश दिया कि वे ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखें।

1520 में पोप ने मार्टिन लूथर को ईसाई धर्म से बहिष्कृत कर दिया। परन्तु लूथर ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखा। इस आन्दोलन को प्रोटैस्टेन्ट सुधारवाद की संज्ञा दी गई । जर्मनी तथा स्विट्जरलैण्ड के चर्च ने पोप तथा कैथोलिक चर्च से अपने सम्बन्ध विच्छेद कर लिए। अन्ततः यूरोप के अनेक देशों की भाँति जर्मनी में भी कैथोलिक चर्च ने प्रोटेस्टेन्ट लोगों को अपनी इच्छानुसार पूजा करने की स्वतन्त्रता प्रदान की। 1546 में मार्टिन लूथर की मृत्यु हो गई।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मानवतावाद’ के विकास में इटली के विश्वविद्यालयों के योगदान की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मानवतावाद के विकास में इटली के विश्वविद्यालयों का योगदान
मानवतावाद के विकास में इटली के विश्वविद्यालयों के योगदान की विवेचना निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत की गई है-
(1) इटली के शहरों में विश्वविद्यालयों की स्थापना – यूरोप में सबसे पहले विश्वविद्यालय इटली के शहरों में स्थापित हुए। ग्यारहवीं शताब्दी में पादुआ और बोलेनिया विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केन्द्र रहे। इसका कारण यह था कि नगरों के प्रमुख क्रियाकलाप व्यापार और वाणिज्य सम्बन्धी थे। इसलिए वकीलों और नोटरी की बहुत आवश्यकता होती थी। इनके बिना बड़े पैमाने पर व्यापार करना सम्भव नहीं था। इसलिए विश्वविद्यालयों में कानून का अध्ययन एक उपयोगी एवं लोकप्रिय विषय बन गया था।

(2) कानून के अध्ययन में बदलाव – अब कानून का रोमन संस्कृति के संदर्भ में अध्ययन किया जाने लगा। फ्रांचेस्को पेट्रार्क (1304-1378 ई.) इस परिवर्तन के प्रतिनिधि थे। पेट्राक ने प्राचीन यूनानी तथा रोमन साहित्यकारों की रचनाओं के अध्ययन करने पर बल दिया।

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(3) मानवतावाद – विश्वविद्यालयों के नवीन शिक्षा कार्यक्रम में यह बात शामिल थी कि ज्ञान बहुत विस्तृत है और बहुत कुछ जानना बाकी है। यह सब हम केवल धार्मिक शिक्षण से नहीं सीख सकते। इसी नई संस्कृति को उन्नीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों ने ‘मानवतावाद’ की संज्ञा दी। पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में ‘मानवतावादी’ शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त होता था जो व्याकरण, अलंकार शास्त्र, कविता, इतिहास और नीति दर्शन विषय पढ़ाते थे।

(4) फ्लोरेन्स विश्वविद्यालय – इन क्रान्तिकारी विचारों से इटली के अनेक विश्वविद्यालय प्रभावित हुए। इनमें एक नव – स्थापित विश्वविद्यालय फ्लोरेन्स भी था, जो प्रसिद्ध साहित्यकार पेट्रार्क का स्थायी नगर – निवास था। पन्द्रहवीं शताब्दी में फ्लोरेन्स नगर ने व्यापार, साहित्य, कला आदि अनेक क्षेत्रों में बहुत उन्नति की।

फ्लोरेन्स की प्रसिद्धि में दान्ते अलिगहियरी तथा जोटो नामक दो व्यक्तियों का प्रमुख हाथ था । दाँते इटली का एक प्रसिद्ध साहित्यकार था। उसने धार्मिक विषयों पर एक पुस्तक लिखी । जोटो इटली का एक प्रसिद्ध कलाकार था। उसने जीते-जागते रूपचित्र (पोर्टरेट) बनाए । उसके द्वारा बनाए गए रूपचित्र पहले के कलाकारों की भांति निर्जीव नहीं थे। इसके पश्चात् धीरे-धीरे फ्लोरेन्स इटली के सबसे जीवन्त बौद्धिक नगर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। वह शीघ्र ही कलात्मक कलाकृतियों की रचना का केन्द्र बन गया।

प्रश्न 2.
चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक मूर्तिकला के क्षेत्र में हुए विकास की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक मूर्ति कला के क्षेत्र में विकास –
(1) प्राचीन रोम की कलात्मक मूर्त्तियाँ – चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक यूरोप में मूर्तिकला का पर्याप्त विकास हुआ। रोमन साम्राज्य के पतन के एक हजार वर्ष बाद भी प्राचीन रोम और उसके नगरों के खण्डहरों में कलात्मक वस्तुएँ प्राप्त हुईं। अनेक शताब्दियों पूर्व बनी पुरुषों और स्त्रियों की सन्तुलित मूर्तियों के प्रति आदर की भावना ने उस परम्परा को बनाए रखने के लिए इतालवी मूर्तिकारों को प्रोत्साहन दिया। मूर्तिकला में भी नवीन शैली अपनाई गई। मूर्तिकला में यथार्थवादी अंकन की शुरुआत इटली की मूर्तिकला में देखी जा सकती है।

(2) दोनातेल्लो और मूर्तिकला – 1416 में फ्लोरेन्स निवासी दोनातेल्लो (1386-1466) ने सजीव मूर्त्तियाँ बना कर नयी परम्परा स्थापित की। उसने प्राचीन यूनानी तथा रोमन मूर्त्तियों का गहन अध्ययन किया था। उसके द्वारा बनाई गई मूर्तियों का विषय मानव-जीवन था। दोनातेल्लो द्वारा निर्मित सन्त मार्क की आदमकद मूर्ति पुनर्जागरण काल की श्रेष्ठ मूर्ति मानी जाती है।

(3) गिबर्टी और मूर्त्तिकला – गिबर्टी भी इस युग का एक महान मूर्त्तिकार था। उसके द्वारा बनाए गए फ्लोरेन्स के गिरजाघर के द्वार अत्यन्त सुन्दर थे। ये दरवाजे काँसे के थे तथा दस लम्बे फलकों पर नक्काशी की गई थी। इन दरवाजों को देखकर प्रसिद्ध मूर्त्तिकार माइकल एंजेलो ने कहा था कि “ये द्वार तो स्वर्ग के द्वार पर रखे जाने योग्य हैं।”

(4) माईकल ऐंजेलो और मूर्त्तिकला – माईकल ऐंजेलो भी इटली का एक महान मूर्त्तिकार था। उसने ‘दि पाइटा’ नामक प्रसिद्ध मूर्ति का निर्माण किया। यह मूर्त्ति तत्कालीन मूर्तिकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इसमें माईकल ऐंजेलो ने मेरी को ईसा के शरीर को धारण करते हुए दिखाया है। माईकल ऐंजेलो ने ठोस संगमरमर को तराश कर डेविड और मूसा की विशाल मूर्त्तियाँ बनाई थीं।

(5) कलाकारों को वैज्ञानिकों के कार्यों से सहायता मिलना- कलाकार हूबहू मूल आकृति जैसी मूर्त्तियाँ बनाना चाहते थे। उनकी इस उत्कंठा को वैज्ञानिकों के कार्यों से सहायता मिली। नर कंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकार आयुर्विज्ञान कॉलेजों की प्रयोगशालाओं में गए। आन्ड्रीयस वसेलियस पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान के प्राध्यापक थे । वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ की। इसी समय से आधुनिक शरीर क्रिया- विज्ञान का प्रारम्भ हुआ।

(6) अन्य यूरोपीय देशों में मूर्त्तिकला का विकास – इंग्लैण्ड के शासक हेनरी सप्तम तथा फ्रांस के शासक फ्रांसिस प्रथम ने अपने-अपने देश में इटली के मूर्तिकारों को आमन्त्रित किया। परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड और फ्रांस में भी नवीन शैली में अनेक सुन्दर मूर्त्तियों का निर्माण किया गया।

प्रश्न 3.
पुनर्जागरण काल में यूरोप में हुए चित्रकला के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में यूरोप में चित्रकला का विकास –
(1) यथार्थ चित्रों का निर्माण- पुनर्जागरण काल में चित्रकला का भी पर्याप्त विकास हुआ। चित्रकारों के लिए नमूने के रूप में प्राचीन कलाकृतियाँ नहीं थीं, परन्तु मूर्तिकारों की भांति उन्होंने यथार्थ चित्र बनाने का प्रयास किया। उन्हें अब यह ज्ञात हो गया कि रेखा – गणित के ज्ञान से चित्रकार अपने परिदृश्य को भलीभाँति समझ सकता है तथा प्रकाश के बदलते गुणों का अध्ययन करने से उनके चित्रों में त्रि-आयामी रूप दिया जा सकता है।

चित्रकारों ने लेपचित्र बनाए। लेपचित्र के लिए तेल के एक माध्यम के रूप में प्रयोग ने चित्रों को पूर्व की तुलना में अधिक रंगीन तथा चटख बनाया। उनके अनेक चित्रों में दिखाए गए वस्त्रों के डिजाइन और रंग संयोजन में चीनी और फारसी चित्रकला का प्रभाव दिखाई देता है जो उन्हें मंगोलों से प्राप्त हुई थी।

(2) यथार्थवाद – इस प्रकार शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी और सौन्दर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नवीन रूप प्रदान किया, जिसे बाद में ‘यथार्थवाद’ की संज्ञा दी गई। यथार्थवाद की यह परम्परा उन्नीसवीं शताब्दी तक चलती रही।

(3) लियोनार्डो दा विंची और चित्रकला – लियोनार्डो दा विंची इटली का एक महान चित्रकार था। उसकी अभिरुचि वनस्पति विज्ञान और शरीर रचना विज्ञान से लेकर गणितशास्त्र तथा कला तक विस्तृत थी। उसने ‘मोनालिसा’. तथा ‘द लास्ट सपर’ नामक चित्र बनाए। इनमें ‘मोनालिसा’ विश्वविख्यात है। लियोनार्डो की चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ थीं – प्रकाश और छाया, रंगों का चयन और शारीरिक अंगों का सफल प्रदर्शन।

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(4) माईकल ऐंजेलो और चित्रकला – माईकल ऐंजेलो भी इटली का एक प्रसिद्ध चित्रकार था। उसने पोप के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत में 145 चित्रों का निर्माण किया। इन चित्रों में ‘द लास्ट जजमेंट’ ( अन्तिम निर्णय) नामक चित्र सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

(5) राफेल और चित्रकला – राफेल भी पुनर्जागरण काल का एक प्रसिद्ध चित्रकार था। उसके चित्र अपनी सुन्दरता तथा सजीवता के कारण प्रसिद्ध हैं। उसका सबसे प्रसिद्ध चित्र ‘सिस्टाइन मेडोना ‘ है, जिसकी गिनती विश्व के सर्वश्रेष्ठ चित्रों में की जाती है।

( 6 ) टीशियन और चित्रकला – टीशियन भी एक प्रसिद्ध चित्रकार था। उसने पोपों, पादरियों, सामन्तों आदि के अनेक सुन्दर पोर्टरेट (रूपचित्र) बनाए।

(7) जोटो और चित्रकला – जोटो भी एक कुशल चित्रकार था। उसने जीते-जागते रूपचित्र (पोर्टरेट) बनाए। उसके बनाए रूपचित्र पहले के कलाकारों की भांति निर्जीव नहीं थे।

प्रश्न 4.
चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच यूरोप में वास्तुकला के विकास का विवेचन कीजिए।
अथवा
यूरोप में हुए पुनर्जागरण के बारे में विस्तृत जानकारी दीजिये।
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच यूरोप में वास्तुकला का विकास चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच यूरोप में वास्तुकला का पर्याप्त विकास हुआ। इस युग में वास्तुकला के क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन निम्नानुसार है –
(1) इटली में वास्तुकला का विकास – पन्द्रहवीं शताब्दी में रोम नगर भव्य इमारतों से सुसज्जित हो उठा। पुरातत्वविदों द्वारा रोम के अवशेषों का उत्खनन किया गया।

इसने वास्तुकला की एक नई शैली को बढ़ावा दिया। यह अब ‘शास्त्रीय शैली’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह शैली वास्तव में रोमन साम्राज्य के समय की शैली का पुनरुद्धार थी। धनी व्यापारियों तथा अभिजात वर्ग के लोगों ने उन वास्तुविदों को अपने भवन बनवाने के लिए नियुक्त किया, जो ‘शास्त्रीय वास्तुकला’ से परिचित थे। चित्रकारों और शिल्पकारों ने भवनों को लेपचित्रों, मूर्त्तियों तथा उभरे चित्रों से भी सुसज्जित किया।

(2) नई शैली – पुनर्जागरण काल में स्थापत्य कला में एक नई शैली का जन्म हुआ जिसमें यूनानी, रोमन तथा अरबी शैलियों का समन्वय था। इस शैली की विशेषताएँ थीं – शृंगार, सजावट तथा डिजाइन। इस शैली में मेहराबों, गुम्बदों तथा स्तम्भों की प्रधानता थी। अब नुकीले मेहराबों के स्थान पर गोल गुम्बदों का निर्माण किया जाने लगा।

(3) फिलिप्पो ब्रूनेलेशी और वास्तुकला – फिलिप्पो ब्रूनेलेशी एक प्रसिद्ध वास्तुकार था। उसने फ्लोरेन्स के भव्य गुम्बद का परिरूप प्रस्तुत किया था। प्रारम्भ में उसने अपना पेशा एक मूर्तिकार के रूप में शुरू किया था।

(4) माईकल ऐंजेलो और वास्तुकला – इस काल में कुछ ऐसे व्यक्ति भी हुए जो कुशल चित्रकार, मूर्तिकार और वास्तुकार, सभी कुछ थे। माईकल ऐंजेलो ऐसे ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जो एक कुशल चित्रकार, मूर्तिकार और वास्तुकार थे। उन्होंने सेन्ट पीटर के गिरजाघर के गुम्बद का डिजाइन बनाया जो तत्कालीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। उन्होंने ‘दि पाइटा’ नामक मूर्ति बनाई तथा पोप के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत में अनेक लेपचित्र बनाए। इन कलाकृतियों के कारण माईकल ऐंजेलो अमर हो गए।

(5) अन्य देशों में वास्तुकला का विकास – इटली के पुनर्जागरणकालीन वास्तुकला की नवीन शैली का विकास यूरोप के अनेक देशों में हुआ। पेरिस में ‘लूबरे का प्रासाद’ इसी नवीन शैली में बनाया गया जो तत्कालीन स्थापत्य कला का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। जर्मनी में ‘हैडलबर्ग का दुर्ग’ इस नवीन स्थापत्य शैली की रचना है। लन्दन में निर्मित सन्त पाल का गिरजाघर भी इसी नवीन शैली का एक उत्कृष्ट नमूना है।

प्रश्न 5.
पुनर्जागरण काल में यूरोप में महिलाओं की स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में यूरोप में महिलाओं की स्थिति पुनर्जागरण काल में यूरोप में महिलाओं की स्थिति की विवेचना निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत की जा सकती –
(1) महिलाओं की शोचनीय स्थिति – प्रारम्भिक वर्षों में यूरोप में महिलाओं की स्थिति सन्तोषजनक नहीं थी। उन्हें वैयक्तिकता तथा नागरिकता के नवीन विचारों से दूर रखा गया। सार्वजनिक जीवन में अभिजात तथा सम्पन्न परिवार के पुरुषों का बोलबाला था। घर-परिवार के मामलों में भी वे ही निर्णय लेते थे। पुरुष विवाह में मिलने वाले महिलाओं के दहेज को अपने पारिवारिक कारोबारों में लगा देते थे, फिर भी महिलाओं को यह अधिकार नहीं था कि वे अपने पति को कारोबार के संचालन के सम्बन्ध में कोई राय या सलाह दें।

प्रायः कारोबारी मैत्री को सुदृढ़ करने के लिए दो परिवारों में परस्पर विवाह – सम्बन्ध होते थे। यदि वधू पक्ष की ओर से पर्याप्त दहेज की व्यवस्था नहीं हो पाती थी, तो विवाहित स्त्रियों को ईसाई मठों में भिक्षुणी का जीवन व्यतीत करने के लिए भेज दिया जाता था। सामान्यतया सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी अत्यन्त सीमित थी और उन्हें घर-परिवार का संचालन करने वाले के रूप में देखा जाता था।

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(2) व्यापारी परिवारों की महिलाओं की अच्छी स्थिति – व्यापारी परिवारों की महिलाओं की स्थिति काफी अच्छी थी। दुकनदारों की स्त्रियाँ दुकानों को चलाने में प्रायः अपने पति की सहायता करती थीं। व्यापारी और साहूकार परिवारों की पत्नियाँ, परिवार के कारोबार को उस समय सम्भालती थीं, जब उनके पति लम्बे समय के लिए व्यापार के लिए दूरस्थ प्रदेशों में चले जाते थे अभिजात एवं सम्पन्न परिवारों के विपरीत, व्यापारी परिवारों में यदि किसी व्यापारी की कम आयु में मृत्यु हो जाती थी, तो उसकी पत्नी सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।

(3) बौद्धिक रूप से रचनात्मक महिलाओं की भूमिका – पुनर्जागरण काल में कुछ महिलाएँ बौद्धिक रूप से बहुत रचनात्मक थीं तथा मानवतावादी शिक्षा की भूमिका के बारे में संवेदनशील थीं। वेनिस निवासी सान्द्रा फेदेले (1465-1558 ई.) एक सुशिक्षित एवं मानवतावादी महिला थी। उसने महिलाओं की शिक्षा पर बल दिया। फेदेले ने तत्कालीन इस विचारधारा को चुनौती दी कि एक मानवतावादी विद्वान के गुण एक महिला के पास नहीं हो सकते। फेदेले यूनानी और लातिनी भाषा की विदुषी के रूप में विख्यात थी। उसे पादुआ विश्वविद्यालय में भाषण देने के लिए आमन्त्रित किया गया था।

उस समय पादुआ विश्वविद्यालय मानवतावादी शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था। इस काल की एक अन्य प्रतिभाशाली महिला, मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते (1474 – 1539 ई.) थी। वह मंटुआ निवासी थी। उसने अपने पति की अनुपस्थिति में अपने राज्य पर शासन किया। उसका राज दरबार अपनी बौद्धिक प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध था। इस काल की महिलाओं की रचनाओं से उनके इस दृढ़ विश्वास का पता चलता है कि उन्हें पुरुष-प्रधान समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए अधिक आर्थिक स्वायत्तता, सम्पत्ति और शिक्षा मिलनी चाहिए।

प्रश्न 6.
चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच यूरोप में हुई विज्ञान की प्रगति का वर्णन कीजिए।
अथवा
पुनर्जागरण युग में विज्ञान का जो विकास हुआ, उसका विस्तार से वर्णन कीजिये।
अथवा
पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच यूरोप में विज्ञान की प्रगति
चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच यूरोप में हुई विज्ञान की प्रगति का वर्णन निम्नानुसार है –
(1) ज्योतिष एवं खगोल – ईसाइयों की यह धारणा थी कि पृथ्वी पापों से भरी हुई है और पापों की अधिकता के कारण वह स्थिर है। पृथ्वी ब्रह्माण्ड के बीच में स्थिर है, जिसके चारों ओर खगोलीय ग्रह घूम रहे हैं पोलैण्ड के वैज्ञानिक कोपरनिकस ने ईसाइयों की इस धारणा का खण्डन करते हुए यह घोषणा की कि पृथ्वी समेत सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। यह ‘कोपरनिकसीय क्रान्ति’ थी। इटली के वैज्ञानिक ब्रुनो ने कोपरनिकस के सिद्धान्त की पुष्टि की।

इसके बाद जर्मन वैज्ञानिक तथा खगोलशास्त्री जोहानेस कैप्लर ने अपने ग्रन्थ ‘खगोलीय रहस्य’ में कोपरनिकस के सूर्य-केन्द्रित सौर मण्डलीय सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाया जिससे यह सिद्ध हुआ कि सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार रूप में नहीं, बल्कि दीर्घ वृत्ताकार मार्ग पर परिक्रमा करते हैं। इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं खगोलशास्त्री गैलिलियो ने अपने ग्रन्थ ‘द मोशन’ (गति) में गतिशील विश्व के सिद्धान्तों की पुष्टि की। इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइजक न्यूटन (1642-1727 ई.) ने ‘गुरुत्वाकर्षण की शक्ति’ का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। उसने यह सिद्ध किया कि पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। इसलिए हर वस्तु ऊपर से नीच की ओर आती है। पृथ्वी अन्य सभी ग्रहों को भी अपनी ओर खींचती रहती है।

(2) वैज्ञानिक क्रान्ति – वैज्ञानिकों ने बताया कि ज्ञान विश्वास से हटकर अवलोकन एवं प्रयोगों पर आधारित है। परिणामस्वरूप भौतिकी, रसायनशास्त्र, जीव विज्ञान आदि के क्षेत्र में अनेक प्रयोग एवं अन्वेषण कार्य हुए। इतिहासकारों ने मनुष्य और प्रकृति के ज्ञान के इस नवीन दृष्टिकोण को ‘वैज्ञानिक क्रान्ति’ की संज्ञा दी । परिणामस्वरूप सन्देहवादियों और नास्तिकों के मन में समस्त सृष्टि की रचना के स्रोत के रूप में प्रकृति ईश्वर का स्थान लेने लगी। इससे सार्वजनिक क्षेत्र में एक नई वैज्ञानिक संस्कृति की स्थापना हुई।

(3) भौतिक शास्त्र – 1593 में गैलिलियो ने पेण्डुलम का आविष्कार किया जिसके आधार पर आधुनिक घड़ियों का निर्माण हो सका। उसने दूरबीन का आविष्कार किया।

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(4) चिकित्साशास्त्र – नीदरलैण्ड निवासी वेसेलियस (1514-1564) ने 1543 ई. में ‘मानव शरीर की बनावट’ नामक पुस्तक लिखी। उसने इस पुस्तक में शरीर के विभिन्न अंगों की जानकारी दी। वह पहला व्यक्ति था जिसने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ की। इसी समय से आधुनिक शरीर – क्रिया विज्ञान का प्रारम्भ हुआ । सर विलियम हार्वे ने रक्त प्रवाह के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उसने बताया कि हृदय से रक्त का प्रवाह शुरू होता है और तब शरीर के अन्य अंगों में पहुँचता है।

प्रश्न 7.
इटली में सर्वप्रथम पुनर्जागरण आरम्भ होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
इटली में सर्वप्रथम पुनर्जागरण के आरम्भ होने के कारण इटली में सर्वप्रथम पुनर्जागरण आरम्भ होने के निम्नलिखित कारण थे-
1. उन्नत व्यापार-भूमध्य सागर के मध्य में स्थित होने के कारण इटली में वाणिज्य – व्यापार की खूब उन्नति हुई और वहाँ बड़े-बड़े नगरों का उदय हुआ। वेनिस, फ्लोरेन्स, मिलान आदि इटली के प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र थे। इन नगरों के धनी लोग विद्वानों, साहित्यकारों, कलाकारों आदि को उदारतापूर्वक संरक्षण देते थे।

2. इटली की भौगोलिक स्थिति – भौगोलिक निकटता की सुविधा के कारण इटली पूर्वी एवं पश्चिमी देशों के बीच व्यापार का प्रमुख केन्द्र बन गया था। इसके अतिरिक्त पूर्वी देशों से आने वाले नवीन विचारों को भी सर्वप्रथम इटली ने ग्रहण किया।

3. सांस्कृतिक विशिष्टता – इटली प्राचीन रोमन संस्कृति की जन्मभूमि एवं केन्द्र – बिन्दु था। इटली के नगरों में प्राचीन रोमन सभ्यता तथा संस्कृति के बहुत से स्मारक अब भी लोगों को उसकी याद का आभास कराते थे।

4. रोम ईसाई संस्कृति का प्रमुख केन्द्र- रोम ईसाई संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था। ईसाई धर्म का सर्वोच्च धर्मगुरु पोप रोम में निवास करता था। कुछ पोप विद्या – प्रेमी थे और सांस्कृतिक विकास में रुचि लेते थे।

5. धर्म – युद्ध – धर्म – युद्धों से लौटने वाले सैनिक, व्यापारी आदि लोग सर्वप्रथम इटली के नगरों में रुकते थे। ये लोग पूर्वी देशों की उन्नत सभ्यता तथा संस्कृति से बड़े प्रभावित थे। वे एक नवीन दृष्टिकोण लेकर इटली लौटे थे।

6. नगरों का विकास – इटली में ही नगरों का अधिक विकास हुआ था। इटली के अनेक नगर जैसे फ्लोरेन्स, वेनिस, मिलान आदि काफी समृद्ध एवं उन्नत थे। ये नगर ज्ञान-विज्ञान के भी केन्द्र थे। इन स्वतन्त्र नगरों के सम्पन्न लोगों ने साहित्यकारों तथा कलाकारों को आश्रय प्रदान किया।

7. इटली के विश्वविद्यालय – इटली के प्रमुख नगरों में अनेक विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई जिससे लोगों में – विज्ञान के प्रति रुचि बढ़ी। इन विश्वविद्यालयों में रोमन कानून, चिकित्साशास्त्र आदि विषयों की पढ़ाई भी होती ज्ञान-1 थी।

8. कुस्तुन्तुनिया पर तुर्कों का अधिकार – 1453 में जब तुर्कों ने कुस्तुन्तुनिया नगर पर अधिकार कर लिया, तो वहाँ के यूनानी विद्वान एवं कलाकार अपने ग्रन्थों तथा कलाकृतियों को लेकर सर्वप्रथम इटली पहुँचे और वहीं बस गए। इन यूनानी विद्वानों एवं कलाकारों ने इटलीवासियों को अत्यधिक प्रभावित किया। अतः यूनानी साहित्य, ज्ञान-विज्ञान आदि का अध्ययन सर्वप्रथम इटली के नगरों में ही शुरू हुआ।

9. राजनीतिक स्थिति की अनुकूलता – इटली के कुछ नगर जैसे वेनिस, फ्लोरेन्स आदि स्वतन्त्र नगर – राज्यों के रूप में विकसित हो गए और उनमें जनतन्त्रवादी प्रवृत्तियों का भी विकास होने लगा। ये नगर राज्य पवित्र रोमन सम्राट तथा पोप के नियन्त्रण से मुक्त होकर स्वतन्त्र रूप से अपना विकास कर रहे थे। इसलिए इन नगर- राज्यों में साहित्य, कला एवं विज्ञान की पर्याप्त उन्नति हुई।

प्रश्न 8.
यूरोप में हुए पुनर्जागरण के प्रारम्भ होने के कारणों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
यूरोप में पुनर्जागरण के प्रारम्भ होने के कारण यूरोप में हुए पुनर्जागरण के कारण निम्नलिखित थे –
1. धर्म- – युद्ध-धर्म-युद्धों के कारण यूरोपवासी पूर्वी देशों के लोगों के साथ सम्पर्क में आए। इस सम्पर्क के फलस्वरूप यूरोपवासियों को पूर्वी देशों की तर्क शक्ति, प्रयोग-पद्धति तथा वैज्ञानिक खोजों की जानकारी प्राप्त हुई। धर्म- -युद्ध ने यात्राओं तथा भौगोलिक खोजों को बढ़ावा दिया।

2. व्यापार का विकास – व्यापार के विकास के कारण अनेक नगरों का विकास हुआ। इन नये नगरों ने नवीन विचारों के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। नये नगरों ने स्वतन्त्र चिन्तन की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया। धन-सम्पन्न व्यापारियों ने शिक्षा, साहित्य, कला को प्रोत्साहित किया।

3. अरबों का योगदान – व्यापार के सम्बन्ध में यूरोपवासियों का अरबों से सम्पर्क हुआ। अरब लोगों ने अरस्तू, प्लेटो आदि की पुस्तकों का अध्ययन किया था। अतः अरबों के सम्पर्क में आने से यूरोपवासी बड़े लाभान्वित हुए। इन्हीं अरबों के द्वारा उन्हें अपने प्राचीन ज्ञान-विज्ञान, साहित्य और कला की फिर से जानकारी हुई।

4. मंगोलों का योगदान – मंगोल – सम्राट कुबलई खाँ ने अपने दरबार में अनेक देशों के विद्वानों एवं साहित्यकारों को संरक्षण दे रखा था। यूरोपवासियों ने अरबों तथा मंगोलों से छापाखाना, कागज, बारूद तथा कुतुबनुमा की जानकारी प्राप्त की थी।

5. कागज और छापाखाना – कागज तथा छापेखाने का आविष्कार सर्वप्रथम चीन ने किया। छापेखाने के आविष्कार से पुस्तकें सस्ती कीमत पर बड़ी संख्या में मिलने लगीं। पुस्तकों तथा समाचार-पत्रों के अध्ययन से यूरोपवासी बड़े लाभान्वित हुए। उनके अन्धविश्वास धीरे-धीरे समाप्त होने लगे तथा उनमें तर्क, स्वतन्त्र चिन्तन की भावनाएँ उत्पन्न हुईं।

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6. स्कालिस्टिक विचारधारा – मध्ययुग में यूरोप में स्कालिस्टिक विचारधारा का उदय हुआ था। इस विचारधारा का आधार अरस्तू का तर्कशास्त्र तथा सन्त आगस्टाइन का तत्त्व – ज्ञान था। अरबी ज्ञान से प्रोत्साहित होकर पेरिस, ऑक्सफोर्ड तथा बर्लिन के विश्वविद्यालयों ने इस आन्दोलन को चलाया था। इससे शिक्षा तथा वाद-विवाद को प्रोत्साहन मिला।

7. कुस्तुन्तुनिया पर तुर्कों का अधिकार – 1453 में तुर्कों ने कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार कर लिया। अतः वहां के यूनानी विद्वान अनेक ग्रन्थों, कलाकृतियों आदि के साथ इटली, फ्रांस आदि देशों में शरण लेने के लिए पहुँचे। यूरोपवासी यूनान एवं रोम के साहित्य, कला, ज्ञान-विज्ञान आदि से बड़े प्रभावित हुए।

8. भौगोलिक खोजें – भौगोलिक खोजों के कारण यूरोपीय व्यापार की उन्नति हुई। नवीन देशों की खोज से यूरोपवासी विश्व की अन्य सभ्यताओं के सम्पर्क में आए, जिससे उनके ज्ञान में वृद्धि हुई।

9. नगरों का उदय-व्यापार की उन्नति के कारण यूरोप में अनेक नगरों का विकास हुआ। इनमें वेनिस, फ्लोरेन्स, जिनेवा आदि नगर उल्लेखनीय थे। नगरों में रहने वाले लोग स्वतन्त्र वातावरण को पसन्द करते थे तथा अपने वर्तमान जीवन को आनन्द व उल्लास के साथ व्यतीत करना चाहते थे।

10. वैज्ञानिक चेतना – इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक रोजर बैकन ने वैज्ञानिक चेतना जागृत करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उसने तर्क और प्रयोग पर बल दिया। कोपरनिकस, ब्रूनी, गैलिलियो आदि वैज्ञानिकों ने ज्योतिष तथा खगोलशास्त्र के क्षेत्र में अनेक नये आविष्कार किये और प्राचीन मान्यताओं का खण्डन किया।

प्रश्न 9.
पुनर्जागरण के परिणामों की विवेचना कीजिए।
अथवा
पुनर्जागरण के यूरोप पर पड़े प्रभावों की विवेचना कीजिए।
अथवा
पुनर्जागरण के प्रभाव बहुत ही व्यापक थे। इसके परिणामों के आधार पर स्पष्ट कीजिये।
अथवा
पुनर्जागरण का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके परिणामों का वर्णन कीजिये।
उत्तर?;
पुनर्जागरण का अर्थ – इसके उत्तर के लिए लघूत्तरात्मक प्रश्न संख्या 17 का अवलोकन करें। पुनर्जागरण के परिणाम / प्रभाव पुनर्जागरण के निम्नलिखित परिणाम / प्रभाव हुए –

1. स्वतन्त्र चिन्तन एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहन – पुनर्जागरण के फलस्वरूप लोग स्वतन्त्रतापूर्वक चिन्तन करने लगे। पुनर्जागरण काल में तर्क और विवेक का महत्त्व बढ़ा। इससे वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हुआ।

2. मानव के महत्त्व में वृद्धि – पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप मानव के महत्त्व में वृद्धि हुई, अब पठन-पाठन तथा चिन्तन-मनन का विषय धर्म न होकर मनुष्य अथवा संसार हो गया। अब मानव को केन्द्र में रखकर सोचने पर जोर दिया गया।

3. राष्ट्रीयता की भावना का विकास – पुनर्जागरण के फलस्वरूप यूरोपवासियों में अपनी-अपनी सभ्यता तथा संस्कृति के प्रति अभिरुचि बढ़ी, जिससे राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। देशी भाषाओं के विकास ने भी राष्ट्रीयता की भावना के विकास में योगदान दिया।

4. धर्म-सुधार आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार करना – पुनर्जागरण के फलस्वरूप लोगों में स्वतन्त्र चिन्तन एवं तार्किक दृष्टिकोण का उदय हुआ। अब लोगों की धार्मिक कर्मकाण्डों एवं अन्धविश्वासों में आस्था नहीं रही। इसके परिणामस्वरूप यूरोप में धर्म- -सुधार आन्दोलन शुरू हुआ।

5. भौतिकवादी दृष्टिकोण का विकास – पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप मनुष्य की धर्म तथा परलोक में रुचि कम हो गई और वह अपने वर्तमान जीवन को सुखी तथा सम्पन्न बनाने के लिए अधिक प्रयास करने लगा। परिणामस्वरूप अधिक सुन्दर नगरों तथा आरामदायक घरों का निर्माण किया जाने लगा ।

6. शिक्षा के क्षेत्र में सुधार – अब विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रमों को उन्नत बनाने का प्रयास किया जाने लगा। अब विज्ञान एवं गणित के अध्ययन के साथ-साथ समाज – विज्ञान के विषयों पर भी काफी जोर दिया जाने
लगा।

7. इतिहास का वैज्ञानिक अध्ययन – पुनर्जागरण के फलस्वरूप इतिहास का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया जाने लगा। अब इतिहास में प्रामाणिक तथ्यों पर बल दिया जाने लगा। मैकियावली का ‘फ्लोरेन्स का इतिहास’ इसी पद्धति पर लिखा गया ।

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8. देशी भाषाओं का विकास – पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप देशी भाषाओं का अत्यधिक विकास हुआ। अंग्रेजी, फ्रांसीसी, इतालवी, जर्मन, डच आदि भाषाओं के साहित्य का पर्याप्त विकास हुआ।

9. व्यापार – वाणिज्य की उन्नति – पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप यूरोप में उद्योग-धन्धों तथा व्यापार की महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई जिससे औद्योगिक क्रान्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हुईं।

प्रश्न 10.
धर्म-सुधार आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
धर्म – सुधार आन्दोलन का अर्थ- सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में एक धार्मिक क्रान्ति हुई, जिसे धर्म-सुधार आन्दोलन कहते हैं। मध्यकाल में धार्मिक क्षेत्र में अनेक पाखण्ड, आडम्बर तथा अन्धविश्वास फैले हुए थे। पुनर्जागरण से प्रभावित लोगों ने सोलहवीं शताब्दी में पोप के धार्मिक प्रभुत्व को नष्ट करने, चर्च की कुरीतियों को दूर करने तथा धार्मिक पाखण्डों एवं अन्धविश्वासों को समाप्त करने के लिए आन्दोलन शुरू किया, उसे धर्म-सुधार आन्दोलन कहते हैं। वार्नर तथा मार्टिन लूथर का कथन है कि, ” धर्म-सुधार आन्दोलन पोप पद की सांसारिकता एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक नैतिक विद्रोह था। ”

धर्म-सुधार आन्दोलन के उद्देश्य – धर्म-सुधार आन्दोलन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे –

  • पोप तथा धर्माधिकारियों के जीवन में नैतिक सुधार करना।
  • चर्च की बुराइयों एवं भ्रष्टाचार को दूर करना।
  • कैथोलिक धर्म में व्याप्त आडम्बरों को दूर कर जनता के सामने धर्म का सच्चा स्वरूप प्रस्तुत करना।
  • रोम के पोप के व्यापक धर्म सम्बन्धी अधिकारों को नष्ट करना।
  • ईसाइयों के नैतिक एवं आध्यात्मिक जीवन को उन्नत करना।

प्रश्न 11.
यूरोप में धर्म-सुधार आन्दोलन के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
यूरोप में धर्म-सुधार आन्दोलन के कारण यूरोप में धर्म-सुधार आन्दोलन के कारण निम्नलिखित थे –
1. मानवतावाद का प्रभाव – पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दियों में उत्तरी यूरोप के विश्वविद्यालयों के अनेक विद्वान मानवतावादी विचारों के प्रति आकृष्ट हुए । उत्तरी यूरोपीय देशों में मानवतावाद ने कैथोलिक चर्च के अनेक अनुयायियों को आकर्षित किया। उन्होंने ईसाइयों को अपने पुराने धर्म-ग्रन्थों में बताए गए तरीकों से धर्म का पालन करने पर बल दिया। उन्होंने कैथोलिक चर्च में व्याप्त कुरीतियों और कर्मकाण्डों की कटु आलोचना की और उनका परित्याग करने पर बल दिया।

2. मानव के सम्बन्ध में नवीन दृष्टिकोण – मानव के बारे में मानवतावादियों का दृष्टिकोण बिल्कुल नया था। वे मानव को एक मुक्त विवेकपूर्ण कर्त्ता मानते थे। वे एक दूरवर्ती ईश्वर में विश्वास रखते थे। उनकी मान्यता थी कि यद्यपि ईश्वर ने मनुष्य बनाया है, परन्तु उसे अपना जीवन मुक्त रूप से चलाने की पूर्ण स्वतन्त्रता भी दी है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि मनुष्य को अपनी प्रसन्नता इसी विश्व में वर्तमान में ही ढूँढ़नी चाहिए।

3. चर्च द्वारा जनता का आर्थिक शोषण – चर्च जनता से अनेक प्रकार के कर वसूल करता था। इंग्लैण्ड के टॉमस मोर तथा हॉलैण्ड के इरैस्मस नामक मानवतावादियों का कहना था कि चर्च एक लालची और भ्रष्ट संस्था है। यह साधारण लोगों से मामूली बातों पर लूट-खसोट करता रहता है। किसानों ने चर्च द्वारा लगाए गए अनेक प्रकार के करों का विरोध किया।

4. पोप का राजनीति में हस्तक्षेप – पोप राज्य के आन्तरिक एवं वैदेशिक मामलों में भी हस्तक्षेप करता था। इस कारण यूरोप के शासक भी पोप से नाराज थे।

5. पोप की सांसारिकता तथा विलासिता – पोप अपने धार्मिक एवं नैतिक कर्त्तव्यों को भूलकर अनैतिक और विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। इस कारण जन-साधारण में असन्तोष था।

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6. पादरियों की अनैतिकता – पोप की भाँति पादरी भी अनैतिक और विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। वे उचित – अनुचित तरीकों से धन इकट्ठा करते थे तथा ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। चर्च और मठ दुराचार तथा भ्रष्टाचार के केन्द्र बने हुए थ।

7. विभिन्न धर्म-सुधारकों का योगदान- जॉन वाइक्लिफ तथा जॉन हस नामक धर्म-सुधारकों ने चर्च में व्याप्त बुराइयों तथा पादरियों के अनैतिक जीवन की कटु आलोचना की। सेवोनारोला ने भी चर्च के पाखण्डों की आलोचना की।

8. धनिक वर्ग और व्यापारी वर्ग में असन्तोष- यूरोप का धनिक वर्ग भी चर्च के नियन्त्रण से मुक्त होना चाहता था क्योंकि चर्च वैभवपूर्ण जीवन का पक्षपाती नहीं था। चर्च की आर्थिक नीति से व्यापारी वर्ग में भी असन्तोष था। चर्च के अनुसार ब्याज लेना अनैतिक और पाप है। चर्च की आर्थिक नीति व्यापार की प्रगति में बाधक थी।

9. ‘पाप – स्वीकारोक्ति’ दस्तावेज का विरोध – पादरी लोग ‘पाप-स्वीकारोक्ति’ नामक दस्तावेज के माध्यम से लोगों से धन ऐंठते थे। पादरियों के अनुसार जो व्यक्ति इस दस्तावेज को खरीदेगा, उसे समस्त पापों से मुक्ति मिल जायेगी। परन्तु बुद्धिजीवी और मानवतावादी लोगों ने इस दस्तावेज का विरोध किया।

10. तात्कालिक कारण – 1517 में टेटजल नामक पोप का एक एजेण्ट ‘पाप-स्वीकारोक्ति’ नामक दस्तावेज को बेचने के लिए जर्मनी के विटनबर्ग नगर में पहुँचा। वहाँ जर्मनी के प्रसिद्ध धर्म-सुधारक मार्टिन लूथर ने इसका घोर विरोध किया। उसने इस प्रश्न पर पोप तथा टेटजल को चुनौती दी। यह चुनौती ही धर्म-सुधार आन्दोलन की शुरुआत थी।

प्रश्न 12.
धर्म – सुधार आन्दोलन के परिणामों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
धर्म-स-सुधार आन्दोलन के परिणाम धर्म-सुधार आन्दोलन के निम्नलिखित परिणाम हुए –
1. ईसाई धर्म की एकता की समाप्ति-धर्म-सुधार आन्दोलन के परिणामस्वरूप ईसाई धर्म दो प्रमुख सम्प्रदायों में विभाजित हो गया-कैथोलिक धर्म तथा प्रोटेस्टेन्ट धर्म। इस प्रकार ईसाई धर्म की एकता समाप्त हो गई।

2. प्रतिवादात्मक धर्म – सुधार आन्दोलन – कैथोलिक धर्म के अनुयायियों ने कैथोलिक चर्च में सुधार लाने के लिए एक आन्दोलन प्रारम्भ किया जिसे प्रतिवादात्मक धर्म-सुधार आन्दोलन कहते हैं। इस आन्दोलन के फलस्वरूप कैथोलिक चर्च की अनेक बुराइयों को दूर किया गया।

3. असहिष्णुता का विकास-धर्म-सुधार आन्दोलन के परिणामस्वरूप कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेन्ट सम्प्रदायों के बीच संघर्ष छिड़ गया। धर्म के नाम पर हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। जर्मनी में प्रोटेस्टेन्ट तथा कैथोलिकों के बीच 30 वर्ष तक भयंकर संघर्ष चला जिसमें हजारों लोग मारे गए।

4. नैतिक विकास – धर्म – सुधार आन्दोलन के फलस्वरूप ईसाई धर्म के सभी सम्प्रदायों ने चारित्रिक शुद्धता, नैतिकता, सरल जीवन, आचरण की पवित्रता आदि पर बल दिया। अब कर्मकाण्डों के स्थान पर आचरण की शुद्धता पर अधिक जोर दिया गया।

5. राष्ट्रीय भावना का विकास – विभिन्न देशों में राष्ट्रीय चर्च की स्थापना हुई। प्रोटेस्टेन्ट मत को स्वीकार करने वाले राजाओं पर पोप का अब कोई नियन्त्रण नहीं रहा। इससे भी राष्ट्रीयता को प्रोत्साहन मिला।

6. राजाओं की शक्ति में वृद्धि – पोप के प्रभाव से मुक्त होने के पश्चात् राजाओं की शक्ति तथा निरंकुशता में वृद्धि हुई। अनेक प्रोटेस्टेन्ट राजाओं ने चर्च की भूमि पर अधिकार करके अपनी शक्ति में वृद्धि की

7. शिक्षा का विकास – सभी धार्मिक सम्प्रदायों ने शिक्षा के विकास पर बल दिया। सुधारवादी पोप तथा जैसुइट प्रचारकों ने शिक्षा के विकास में योगदान दिया। इसी प्रकार प्रोटेस्टेन्ट धर्म-प्रचारकों ने भी शिक्षा के विकास पर बल दिया। अब शिक्षा का स्वरूप धर्मनिरपेक्ष हो गया और चर्च के स्थान पर उस पर राजकीय प्रभाव बढ़ने लगा!

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8. बौद्धिक क्रान्ति – धर्म – सुधार आन्दोलन ने प्राचीन रूढ़ियों और अन्धविश्वासों को समाप्त कर दिया और स्वतन्त्र चिन्तन को प्रोत्साहन दिया। अब यूरोपवासियों के मस्तिष्क में क्रान्ति उत्पन्न हो गई और बौद्धिक विकास के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया।

9. व्यापार वाणिज्य की उन्नति – प्रोटेस्टेन्ट धर्म के नेताओं ने एक उचित सीमा तक के अन्दर ब्याज लेना तथा मुनाफा कमाना उचित बताया। इससे वाणिज्य – व्यापार की उन्नति को प्रोत्साहन मिला।

10. लोक-साहित्य का विकास – धर्म-सुधारकों ने अपने विचारों एवं धार्मिक सिद्धान्तों का लोक-भाषाओं में ही प्रचार किया। बाइबल का जर्मन तथा अन्य लोक-भाषाओं में अनुवाद किया गया। परिणामस्वरूप लोक-साहित्य का विकास हुआ।

11. मतभेदों की उत्पत्ति-धर्म-सुधार आन्दोलन के कारण ईसाई धर्म में अनेक सम्प्रदाय बन गए। प्रोटेस्टेन्ट धर्म भी अनेक सम्प्रदायों में विभाजित हो गया। कालान्तर में कैथोडिज्म, बैपटिज्म आदि विभिन्न सम्प्रदायों के उदय से भी मतभेदों में और वृद्धि हुई।

प्रश्न 13.
धर्म-सुधार आन्दोलन में मार्टिन लूथर के योगदान की विवेचना कीजिए।
अथवा
मार्टिन लूथर कौन था ? धर्म-सुधार आन्दोलन में इसने क्या योगदान दिया?
उत्तर:
1. प्रारम्भिक जीवनी – धर्म – सुधार आन्दोलन में मार्टिन लूथर का योगदान – जर्मनी में धर्म-सुधार आन्दोलन का सूत्रपात करने वाला मार्टिन लूथर था। मार्टिन लूथर का जन्म 10 नवम्बर, 1483 को जर्मनी के अजलेवन नामक गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था। 1508 में वह विटनबर्ग विश्वविद्यालय में धर्म-शास्त्र का प्राध्यापक बन गया।

2. ‘पाप – स्वीकारोक्ति’ दस्तावेज का विरोध – 1517 में टेटजल नामक पोप का एक एजेण्ट जर्मनी के विटनबर्ग नामक नगर में पहुँचा और धन-संग्रह करने के लिए ‘पोप- स्वीकारोक्ति’ दस्तावेज बेचना शुरू कर दिया। परन्तु मार्टिन लूथर ने इन दस्तावेजों की कटु आलोचना करते हुए कहा कि मनुष्य को ईश्वर से सम्पर्क साधने के लिए पादरी की आवश्यकता नहीं है। उसने लोगों से कहा कि मोक्ष के लिए ईश्वर पर विश्वास करना आवश्यक है। अतः उन्हें ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए। यह विश्वास ही उन्हें स्वर्ग में प्रवेश दिला सकता है।

3. मार्टिन लूथर को ईसाई धर्म से निष्कासित करना – मार्टिन लूथर ने विटनबर्ग के चर्च पर ‘पाप-स्वीकारोक्ति’ के विरोध में 95 निबन्ध लिखे। उसने अपने मत के प्रतिपादन के लिए तीन लघु पुस्तिकाओं की रचना की। ये लघु- पुस्तिकाएँ थीं –
(1) एन ओपन लैटर टू दी क्रिश्चियन नोबिलिटी ऑफ दी जर्मन नेशन
(2) चर्च का ‘बेबीलोनिया का कैदी’
(3) ‘एक ईसाई व्यक्ति की स्वतन्त्रता’। लूथर के कार्यों से पोप लियो दशक नाराज हो गया और 1520 में उसने लूथर को ईसाई धर्म से बहिष्कृत कर दिया।

4. मार्टिन लूथर और चार्ल्स पंचम – पवित्र रोमन सम्राट चार्ल्स पंचम ने 1521 में लूथर के सम्बन्ध में वर्म्स नामक नगर में एक धर्म-सभा बुलाई। इस सभा में चार्ल्स पंचम ने लूथर को ‘नास्तिक’ तथा ‘विधि – बहिष्कृत’ घोषित कर दिया। इस अवसर पर सेक्सनी के राजा फ्रेडरिक ने लूथर को वार्टबर्ग के दुर्ग में शरण दी । यहीं रहते हुए लूथर ने बाइबल का जर्मन भाषा में अनुवाद किया।

5. प्रोटेस्टेन्ट सुधारवाद – मार्टिन लूथर द्वारा चलाया गया आन्दोलन ‘प्रोटेस्टेन्ट सुधारवाद’ कहलाया। जर्मनी तथा स्विट्जरलैण्ड के चर्च ने पोप तथा कैथोलिक चर्च से अपने सम्बन्ध समाप्त कर लिए। लूथर ने आमूल परिवर्तनवाद का समर्थन नहीं किया । अतः 1525 में दक्षिण व मध्य जर्मनी में किसानों ने विद्रोह कर दिया, तो लूथर ने आह्वान किया कि जर्मन शासक किसानों के विद्रोह का दमन कर दे । अत: 1525 में जर्मन शासकों ने किसानों के विद्रोह को कुचल दिया।

6. जर्मनी में लूथर के विचारों का प्रसार – शीघ्र ही जर्मनी में मार्टिन लूथर के विचारों ने एक लोकप्रिय धर्म- सुधार आन्दोलन का रूप धारण कर लिया। 1546 में लूथर की मृत्यु हो गई। जर्मनी में 1546 से 1555 तक गृह-युद्ध छिड़ गया। अन्त में 1555 में आग्सबर्ग की सन्धि के अनुसार गृह-युद्ध समाप्त हो गया। इस सन्धि के अनुसार निम्नलिखित शर्तें तय की गईं-हुआ।

  • साम्राज्य – परिषद में कैथोलिकों तथा प्रोटेस्टेन्टों को एकसमान प्रतिनिधित्व दिया जायेगा।
  • प्रत्येक राजा को अपनी प्रजा का धर्म निर्धारित करने का अधिकार दिया गया।
  • प्रोटेस्टेन्ट मत को कानूनी मान्यता प्रदान की गई। जर्मनी के अधिकांश राज्यों में प्रोटेस्टेन्ट धर्म का प्रसार

प्रश्न 14.
प्रतिवादात्मक धर्म-सुधार आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? वह कैथोलिक चर्च की बुराइयों का निवारण करने में कहाँ तक सफल रहा?
उत्तर:
प्रतिवादात्मक धर्म-सुधार आन्दोलन – प्रोटेस्टेन्ट धर्म की बढ़ती हुई लोकप्रियता से कैथोलिक धर्म के नेताओं को अत्यधिक चिन्ता हुई। अतः प्रोटेस्टेन्ट धर्म की प्रगति को रोकने तथा कैथोलिक चर्च की बुराइयों को दूर करने के लिए प्रतिवादात्मक धर्म-सुधार आन्दोलन शुरू किया गया।
प्रतिवादात्मक धर्म-सुधार आन्दोलन को सफल बनाने के मुख्य साधन –
1. ट्रेन्ट की कौंसिल (1545-1563 ई.) – कैथोलिक धर्म की बुराइयों को दूर करने तथा कैथोलिक धर्म के मौलिक सिद्धान्तों का स्पष्टीकरण करने के लिए इटली के ट्रेन्ट नामक नगर में एक कौंसिल आयोजित की गई। इस सभा की बैठकें 1545 से 1563 ई. तक होती रहीं। इन बैठकों में पोप तथा अन्य धर्माधिकारियों ने भाग लिया।

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ट्रेन्ट की कौंसिल के सैद्धान्तिक कार्य –

  1. पोप कैथोलिक धर्म का सर्वोच्च अधिकारी है तथा सभी सिद्धान्तों का अन्तिम व्याख्याता है।
  2. केवल चर्च ही धर्म-ग्रन्थ का अर्थ लगा सकता है।
  3. बाइबल का लैटिन अनुवाद ही प्रामाणिक है।

ट्रेन्ट की कौंसिल के सुधारात्मक कार्य –

  1. चर्च के पदाधिकारियों की पवित्रता, नैतिकता तथा सादगी पर विशेष बल दिया गया।
  2. बिशपों तथा पादरियों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर की जाने लगी।
  3. पादरियों का शिक्षित होना अनिवार्य कर दिया गया।
  4. ‘पाप – स्वीकारोक्ति’ दस्तावेजों की बिक्री बन्द कर दी गई।
  5. कैथोलिक चर्चों में पूजा की एक-सी विधि व एक-सी प्रार्थना – पुस्तक रखी गई।

2. सोसाइटी ऑफ जीसस – प्रोटेस्टेन्ट लोगों से संघर्ष करने के लिए स्पेन – निवासी इग्नेशियस लायोला ने 1540 ई. में ‘सोसाइटी ऑफ जीसस’ नामक संस्था की स्थापना की। उनके अनुयायी ‘जैसुइट’ कहलाते थे। उनका ध्येय गरीबों की सेवा करना तथा दूसरी संस्कृतियों के बारे में अपने ज्ञान को अधिक व्यापक बनाना था। इस संस्था ने अनेक स्थानों पर स्कूल स्थापित किये, जहां निःशुल्क शिक्षा दी जाती थी। जैसुइट लोगों ने कैथोलिक धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप इटली, स्पेन, पोलैण्ड, हंगरी, पुर्तगाल आदि देशों में कैथोलिक धर्म पुनः प्रतिष्ठित हो गया।

3. धार्मिक न्यायालय – पोप पाल तृतीय ने 1542 ई. में रोम में धार्मिक न्यायालय की स्थापना की। इसका उद्देश्य कैथोलिक धर्म के विरोधियों को दण्डित करना था । इस न्यायालय ने स्पेन, हालैण्ड, इटली, बेल्जियम आदि देशों में प्रोटेस्टेन्टों का कठोरतापूर्वक दमन किया।

प्रतिवादात्मक धर्म-सुधार आन्दोलन के परिणाम –

  1. ईसाई समाज का विभाजन – इस आन्दोलन के फलस्वरूप ईसाई समाज अनेक सम्प्रदायों में विभाजित हो
  2. प्रोटेस्टेन्ट धर्म की प्रगति का अवरुद्ध होना- इस आन्दोलन के फलस्वरूप प्रोटेस्टेन्ट धर्म की प्रगति अवरुद्ध
  3. कैथोलिक धर्म का पुनरुद्धार – इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप कैथोलिक धर्म का पुनरुद्धार हुआ।
  4. धर्माधिकारियों के जीवन में नैतिकता – कैथोलिक धर्माधिकारियों के जीवन में नैतिकता, सदाचार आदि का हुआ
  5. राष्ट्रीय भावना का विकास – इस आन्दोलन ने राष्ट्रीय भावना के विकास में योगदान दिया।

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