Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 शांति Important Questions and Answers.
JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 शांति
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. आधुनिक युग की सबसे बड़ी माँग है।
(अ) परमाणु शस्त्रीकरण को बढ़ावा देकर शक्ति संतुलन स्थापित करना।
(ब) आतंकवाद को बढ़ावा देना।
(स) विश्व शांति की स्थापना करना।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) विश्व शांति की स्थापना करना।
2. विश्व शांति के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधा है।
(अ) निःशस्त्रीकरण
(ब) आतंकवाद
(स) अन्तर्राष्ट्रीय कानून
(द) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
उत्तर:
(ब) आतंकवाद
3. विश्व शांति के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने का उपाय है।
(अ) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
(ब) युद्ध
(स) साम्प्रदायिकता
(द) शस्त्रीकरण
उत्तर:
(अ) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
4. निम्न में से कौनसा शांति का तत्व नहीं है।
(अ) अहिंसा
(ब) करुणा
(स) सहयोग
(द) बंधुत्व की भावना का अभाव
उत्तर:
(द) बंधुत्व की भावना का अभाव
5. निम्न में से कौनसा विचारक युद्ध को महिमा मंडित करने वाला था?
(अ) महात्मा गांधी
(ब) मार्टिन लूथर किंग
(स) फ्रेडरिक नीत्शे
(द) गौतम बुद्ध
उत्तर:
(स) फ्रेडरिक नीत्शे
6. भारत में प्रमुख शांतिवादी विचारक रहे हैं।
(अ) सुभाष चंद्र बोस
(ब) महात्मा गाँधी
(स) भगतसिंह
(द) चन्द्रशेखर आजाद
उत्तर:
(ब) महात्मा गाँधी
7. हिरोशिमा और नागासाकी पर अणु बम गिराये।
(अ) अमेरिका ने
(ब) जर्मनी ने
(स) फ्रांस ने
(द) इंग्लैण्ड ने
उत्तर:
(अ) अमेरिका ने
8. जातिभेद हिंसा का उदाहरण है।
(अ) युद्धजनित हिंसा
(ब) विचारजनित हिंसा
(स) संरचनात्मक हिंसा
(द) आतंकवाद
उत्तर:
(स) संरचनात्मक हिंसा
9. युद्ध जनित विनाश को और अधिक भीषण बनाने में योगदान है-
(अ) उन्नत तकनीक का
(ब) हिंसक विचारों का
(स) हथियारों का
(द) उपर्युक्त सभी का
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी का
10. निम्न में से वर्तमान में जिस प्रकार की अशांति सर्वाधिक आम हो गई है, वह
(अ) साम्प्रदायिक हिंसा
(ब) पड़ोसी देशों में युद्ध
(स) विश्व युद्ध
(द) आतंकवाद
उत्तर:
(द) आतंकवाद
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
1. ………………… की अनुपस्थिति की भारी कीमत चुकाने के बाद मानवता ने इसका महत्त्व पहचाना है।
उत्तर:
शांति
2. शांति की परिभाषा अवसर ………………….. की अनुपस्थिति के रूप में की जाती है।
उत्तर:
युद्ध
3. न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति अप्रकट शिकायतों और ………………….. के कारणों को साफ-साफ व्यक्त करने और बातचीत द्वारा हल करके ही प्राप्त की जा सकती है।
उत्तर:
संघर्ष
4. चूंकि युद्ध का आरंभ लोगों के दिमाग में होता है, इसलिए शांति के बचाव भी लोगों के ……………….. में ही रचे जाने चाहिए।
उत्तर:
दिमाग
5. शांतिवादी का मकसद लड़ाकुओं की क्षमता को कम करके आंकना नहीं, …………………. के अहिंसक स्वरूप पर बल देना है।
उत्तर:
प्रतिरोध
निम्नलिखित में सत्य / असत्य कथन छाँटिये
1. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गाँधीजी द्वारा सत्याग्रह का प्रयोग प्रतिरोध के अहिंसक स्वरूप का एक प्रमुख उदाहरण है।
उत्तर:
सत्य
2. जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे शांति को महिमामंडित करने वाला विचारक था।
उत्तर:
असत्य
3. हिंसा प्राय: समाज की मूल संरचना में ही रची-बसी है।
उत्तर:
सत्य
4. शांति एक बार में हमेशा के लिए हासिल की जा सकती है।
उत्तर:
असत्य
5. गाँधीजी के अनुसार अहिंसा अतिशय सक्रिय शक्ति है, जिसमें कायरता और कमजोरी का कोई स्थान नहीं है।
उत्तर:
सत्य
निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये
1. फ्रेडरिक नीत्शे | (अ) इटली के समाज – सिद्धान्तकार |
2. विल्फ्रेडो पैरेटो | (ब) शीतयुद्ध |
3. क्यूबाई मिसाइल संकट | (स) नस्लवाद और साम्प्रदायिकता |
4. संरचनात्मक हिंसा का उदाहरण | (द) शांति कायम करने का एक तरीका |
5. विभिन्न देशों के बीच विकासमान सामाजिक | (य) एक जर्मन दार्शनिक |
उत्तर:
1. फ्रेडरिक नीत्शे | (य) एक जर्मन दार्शनिक |
2. विल्फ्रेडो पैरेटो | (अ) इटली के समाज – सिद्धान्तकार |
3. क्यूबाई मिसाइल संकट | (ब) शीतयुद्ध |
4. संरचनात्मक हिंसा का उदाहरण | (स) नस्लवाद और साम्प्रदायिकता |
5. विभिन्न देशों के बीच विकासमान सामाजिक | (द) शांति कायम करने का एक तरीका |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शांतिवाद क्या है?
उत्तर:
शांतिवाद विवादों से सुलझाने के औजार के बतौर युद्ध या हिंसा के बजाय शांति का उपदेश देता है।
प्रश्न 2.
जर्मन दार्शनिक नीत्शे का क्या मानना था?
उत्तर:
जर्मन दार्शनिक नीत्शे का मानना था कि सिर्फ संघर्ष ही सभ्यता की उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, इसलिए युद्धं श्रेष्ठ है।
प्रश्न 3.
शांति लगातार बहुमूल्य क्यों बनी हुई है?
उत्तर:
शांति लगातार बहुमूल्य बनी हुई है क्योंकि शांति की अनुपस्थिति में मानवता ने भारी कीमत चुकाई है।
प्रश्न 4.
शांति को परिभाषित कीजिये अथवा शांति क्या है?
उत्तर:
शांति एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यापकतम अर्थों में मानव-कल्याण की स्थापना हेतु आवश्यक नैतिक व भौतिक संसाधनों के सक्रिय क्रियाकलाप शामिल होते हैं। हिंसा ।
प्रश्न 5.
संरचनात्मक हिंसा के किन्हीं दो रूपों के नाम लिखिये।
उत्तर:
संरचनात्मक हिंसा के दो रूप ये हैं।
- जाति-भेद आधारित हिंसा व शोषण
- वर्ग-भेद आधारित
प्रश्न 6.
रंगभेदी हिंसा का कोई एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
दक्षिणी अफ्रीका की गोरी सरकार की 1992 तक अपनी बहुसंख्यक अश्वेत आबादी के साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार।
प्रश्न 7.
न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति कैसे प्राप्त की जा सकती है?
उत्तर:
न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति अप्रकट शिकायतों और संघर्षों के कारणों को साफ-साफ व्यक्त करने और बातचीत द्वारा हल करने के जरिये ही प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्न 8.
शांतिवादियों का मकसद ( उद्देश्य ) क्या है?
उत्तर:
शांतिवादियों का उद्देश्य है। प्रतिरोध के अहिंसक स्वरूप पर बल देना। वैसे संघर्षों का एक प्रमुख तरीका सविनय नागरिक अवज्ञा है।
प्रश्न 9.
शांतिवादी उत्पीड़न से लड़ने के लिए किसकी वकालत करते हैं?
उत्तर:
शांतिवादी उत्पीड़न से लड़ने के लिए सत्य और प्रेम को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं।
प्रश्न 10.
गांधीजी के अहिंसा सम्बन्धी विचार को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
गांधीजी के लिए अहिंसा का अर्थ कल्याण और अच्छाई का सकारात्मक और सक्रिय क्रियाकलाप है। इसमें किसी को चोट न पहुँचाने का विचार भी शामिल है।
प्रश्न 11.
शांति के मार्ग में आने वाली दो बाधायें लिखिये।
उत्तर:
आतंकवाद, शस्त्रीकरण।
प्रश्न 12.
शांति स्थापना के कोई दो उपाय लिखिये।
उत्तर:
युद्धों को रोकना, संरचनात्मक हिंसा के रूपों को खत्म करना।
प्रश्न 13.
द्वितीय विश्व युद्ध का अन्त किस घटना के साथ हुआ?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध का अन्त अमरीका द्वारा जापान के दो नगरों हिरोशिमा और नागासाकी पर अणुबम गिराने के साथ हुआ।
प्रश्न 14.
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् किन दो देशों ने सैन्य बल नहीं रखने का निर्णय लिया?
उत्तर:
जापान, कोस्टारिका।
प्रश्न 15.
विश्व में परमाणविक हथियार से मुक्त क्षेत्र कितने हैं?
उत्तर:
छ: क्षेत्र
प्रश्न 16.
क्यूबाई मिसाइल संकट कब हुआ था और इसका प्रमुख कारण क्या था?
उत्तर:
क्यूबाई मिसाइल संकट 1962 में हुआ था। इसका कारण अमरीकी जासूसी विमानों द्वारा क्यूबा में सोवियत संघ की आणविक मिसाइलों को खोजना था।
प्रश्न 17.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कौनसी दो महाशक्तियाँ उभरीं?
अथवा
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् कि दो महाशक्तियों में प्रतिस्पर्द्धा का दौर चला?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद:
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- सोवियत संघ नामक दो महाशक्तियाँ उभरी और उनके बीच प्रतिस्पर्द्धा का दौर चला।
प्रश्न 18.
आज जीवन किस कारण अत्यधिक असुरक्षित है?
उत्तर:
आतंकवादी गतिविधियों के बढ़ने के कारण।
प्रश्न 19.
संरचनात्मक हिंसा को समाप्त करने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की रचना।
प्रश्न 20.
शांति की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
मानव कल्याण की स्थापना के लिए।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हिंसा की समाप्ति और शांति की स्थापना के कोई दो उपाय सुझाइए।
उत्तर:
हिंसा की समाप्ति और शांति की स्थापना के लिये ये दो उपाय किये जाने चाहिए
- सर्वप्रथम लोगों के सोचने-समझने के तरीकों में बदलाव लाना चाहिए। इसके लिए करुणा, हैं।
- समाज में संरचनात्मक हिंसा के रूपों को समाप्त कर सह अस्तित्व वाले समाज का निर्माण किया जाये।
प्रश्न 2.
शांति के बारे में नकारात्मक सोच वाले दो विचारकों के विचारों को संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
- नीत्शे का मानना था कि सिर्फ संघर्ष ही सभ्यता की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
- विल्फ्रेडो पैरेटो का दावा था कि अधिकतर समाजों में शासक वर्ग का निर्माण सक्षम और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए शक्ति का प्रयोग करने के लिए तैयार लोगों से होता है।
प्रश्न 3.
आज लोग शांति का गुणगान क्यों करते हैं?
उत्तर:
आज लोग शांति का गुणगान निम्न कारणों से करते हैं।
- वे इसे अच्छा विचार मानते हैं।
- शांति की अनुपस्थिति की भारी कीमत चुकाने के बाद मानवता ने इसका महत्व पहचाना है।
- आज जीवन अतीत के किसी भी समय से कहीं अधिक असुरक्षित है क्योंकि हर जगह के लोग आतंकवाद के बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं।
प्रश्न 4.
संरचनात्मक हिंसा के कोई पाँच उदाहरण लिखिये।
उत्तर:
संरचनात्मक हिंसा से उत्पन्न कुछ प्रमुख उदाहरण ये हैं।
- जातिभेद
- वर्गभेद
- पितृसत्ता
- उपनिवेशवाद
- नस्लवाद
- साम्प्रदायिकता।
प्रश्न 5.
परम्परागत जाति-व्यवस्था के दुष्परिणाम को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
परम्परागत जाति-व्यवस्था कुछ खास समूह के लोगों को अस्पृश्य मानकर बरताव करती थी। छुआछूत के प्रचलन ने उन्हें सामाजिक बहिष्कार और अत्यधिक वंचना का शिकार बना रखा था।
प्रश्न 6.
वर्ग-व्यवस्था से उत्पन्न हिंसा को समझाइये
उत्तर:
वर्ग आधारित सामाजिक व्यवस्था ने भी असमानता और उत्पीड़न को जन्म दिया है। विकासशील देशों की अधिकांश कामकाजी जनसंख्या असंगठित क्षेत्र से सम्बद्ध है, जिसमें मजदूरी और काम की दशा बहुत खराब है।
प्रश्न 7.
पितृ सत्ता की अभिव्यक्ति किस प्रकार की हिंसाओं में होती है?
उत्तर:
पितृ सत्ता से स्त्रियों को अधीन बनाने तथा उनके साथ भेदभाव के रूप सामने आते हैं। इसकी अभिव्यक्ति कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों को अपर्याप्त पोषण, बाल-विवाह, अशिक्षा, पत्नी को पीटना, दहेज- अपराध, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और बलात्कार में होती है।
प्रश्न 8.
रंगभेद से जनित हिंसा को एक उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
रंगभेद में एक समूचे नस्लगत समूह या समुदाय का दमन करना शामिल रहता है। उदाहरण के लिए दक्षिण अफ्रीका की गोरी सरकार ने 1992 तक अपनी बहुसंख्यक अश्वेत जनसंख्या के साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार किया।
प्रश्न 9.
न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति कैसे प्राप्त की जा सकती है?
उत्तर:
न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति अप्रकट शिकायतों और संघर्ष के कारणों को साफ-साफ व्यक्त करने और बातचीत द्वारा हल करने के जरिये प्राप्त की जा सकती है। इसमें हर तबके के लोगों के बीच अत्यधिक सम्पर्क को प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिए।
प्रश्न 10.
लोगों के दिमाग में शांति के विचार कैसे लाये जा सकते हैं?
उत्तर:
लोगों के दिमाग में शांति के विचार लाने के लिए करुणा जैसे अनेक पुरातन आध्यात्मिक सिद्धान्त और ध्यान जैसे अभ्यास बिल्कुल उपयुक्त हैं। आधुनिक नीरोगकारी तकनीक और मनोविश्लेषण जैसी चिकित्सा पद्धतियाँ भी यह काम कर सकती हैं।
प्रश्न 11.
शांति कैसे समाज की उपज हो सकती है?
उत्तर:
न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की रचना संरचनात्मक हिंसा को निर्मूल करने के लिए अनिवार्य है और शांति, ऐसे ही समाज की उपज हो सकती है।
प्रश्न 12.
क्या विश्व शांति बनाए रखने के लिए हिंसा जरूरी है?
उत्तर:
नहीं, विश्व शांति बनाए रखने के लिए हिंसा जरूरी नहीं है, बिना हिंसा के भी शांति स्थापित की जा सकती है। अन्तर्राष्ट्रीय कानून ने सभी राज्यों को अन्य राज्यों के आक्रमण के विरुद्ध आत्मरक्षा का अधिकार दिया है। यह आत्मरक्षा प्रत्येक देश अन्य देश के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाकर, परस्पर सामाजिक-आर्थिक सहयोग द्वारा कर सकता है।
प्रश्न 13.
शांति को बेकार या महत्वहीन बताने वाले विचारों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
- जर्मन दार्शनिक विचारक फ्रेडरिक नीत्शे ने शांति को महत्त्व नहीं दिया क्योंकि उसका मानना था कि सिर्फ संघर्ष ही सभ्यता की उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
- अनेक विचारकों ने शांति को बेकार बताया है और संघर्ष की प्रशंसा व्यक्तिगत बहादुरी और सामाजिक जीवन्तता के वाहक के तौर पर की है।
- विल्फ्रेडो पेरेटो का दावा था कि अधिकतर समाजों में शासक वर्ग का निर्माण सक्षम और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए ताकत का इस्तेमाल करने के लिए तैयार लोगों से होता है।
प्रश्न 14.
क्या हिंसा कभी शांति को प्रोत्साहित कर सकती है?
उत्तर:
हिंसा कभी भी शांति को प्रोत्साहित नहीं कर सकती। कई बार यह तर्क दिया जाता है कि तानाशाहों या लोगों को उत्पीड़न करने वाले शासकों को हटाने के लिए हिंसा का प्रयोग उचित है। लेकिन व्यवहार में अच्छे उद्देश्य की पूर्ति के लिए भी हिंसा का प्रयोग हानिकारक होता है क्योंकि हिंसा से जन और धन की हानि होती है। इसके अतिरिक्त एक बार शुरू होने के पश्चात् हिंसा में वृद्धि हो सकती है और उस पर नियंत्रण करना कठिन हो जाता है। अतः हिंसा के परिणाम सदा बुरे होते हैं।
प्रश्न 15.
” हिंसा प्राय: समाज की मूल संरचना में रची-बसी है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक संस्थाएँ और प्रथाएँ जैसे जाति प्रथा, वर्ग-भेद, पितृसत्ता, लिंगभेद आदि असमानता को बढ़ाते हैं। इन आधारों पर उच्च वर्ग अन्य वर्गों से भेदभाव पूर्ण व्यवहार करते हैं। शोषित वर्ग द्वारा चुनौती या विरोध करने पर हिंसा पैदा होती है। इस प्रकार हिंसा प्राय: समाज की मूल संरचना में रची-बसी होती है क्योंकि लगभग प्रत्येक समाज में इस प्रकार के भेदभाव व असमानताएँ पाई जाती हैं।
प्रश्न 16.
आज की दुनिया में शांति इतनी कमजोर क्यों है?
उत्तर:
आज की दुनिया में शांति पर खतरे का सायां निरन्तर छाया हुआ है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
- आतंकवाद: आज विश्व में जीवन अतीत के किसी भी समय से कहीं अधिक असुरक्षित है क्योंकि हर जगह के लोग आतंकवाद के बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं और इस खतरे का साया हमेशा मौजूद है।
- आक्रामक राष्ट्रों या महाशक्ति का स्वार्थपूर्ण आचरण: आधुनिक काल में दबंग राष्ट्रों ने अपनी संप्रभुता का प्रभावपूर्ण प्रदर्शन किया है और क्षेत्रीय सत्ता संरचना तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को भी अपनी प्राथमिकताओं और धारणाओं के आधार पर बदलना चाहा है। इसके लिए उन्होंने सीधी सैनिक कार्यवाही का भी सहारा लिया है और विदेशी क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है। ऐसे आचरण का ज्वलंत उदाहरण अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका का ताजा हस्तक्षेप है। इससे उभरे युद्ध में बहुत-सी जानें गई हैं।
- नस्ल – संहार; वैश्विक समुदाय नस्ल संहार अर्थात् किसी समूचे जन- समूह के व्यवस्थित संहार का मूक दर्शक बना रहता है। यह खासकर रवांडा में साफ तौर पर दिखा।
प्रश्न 17.
क्या वर्तमान में शांति एक चुका हुआ सिद्धान्त है?
उत्तर:
यद्यपि आतंकवाद, ताकतवर आक्रामक शब्दों के स्वार्थपूर्ण आचरण, आधुनिक हथियारों एवं उन्नत तकनीक का दक्ष और निर्मम प्रयोग, नस्ल संहार आदि की घटनाओं के कारण ऐसा लगता है कि वर्तमान में शांति एक चुका हुआ सिद्धान्त हो चुका है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि शांति एक चुका हुआ सिद्धान्त है। शांति आज भी विश्व में महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त बना हुआ है। इसे निम्न उदाहरणों से स्पष्ट किया जा सकता है।
- दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान और कोस्टारिका जैसे देशों ने सैन्यबल नहीं रखने का फैसला किया हुआ है।
- विश्व के अनेक हिस्सों में परमाणविक हथियार से मुक्त क्षेत्र बने हैं, जहाँ आणविक हथियारों को विकसित और तैनात करने पर एक अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त समझौते के तहत पाबंदी लगी है। आज इस तरह के छः क्षेत्र हैं जिनमें ऐसा हुआ है। ये हैं
-
- दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र,
- लैटिन अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र,
- दक्षिण – पूर्व एशिया,
- अफ्रीका,
- दक्षिण प्रशांत क्षेत्र और
- मंगोलिया।
- सोवियत संघ के विघटन से अति शक्तिशाली देशों के बीच सैनिक व परमाणविक प्रतिद्वन्द्विता पर पूर्ण विराम लग गया है और अन्तर्राष्ट्रीय शांति के लिए प्रमुख खतरा समाप्त हो गया है।
- समकालीन युग में एक शांति आंदोलन जारी है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से राजनैतिक और भौगोलिक अवरोधों के बावजूद दुनिया में बड़े पैमाने पर इसने अनुयायी पैदा किए हैं। इस आंदोलन को विभिन्न तबके के लोगों ने बढ़ावा दिया है तथा इसका लगातार विस्तार हो रहा है। इसने शांति अध्ययन नामक ज्ञान की एक नई शाखा का सृजन किया है।
प्रश्न 18.
शांति आंदोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
शांति आंदोलन: वर्तमान काल में शांति को बढ़ावा देने के लक्ष्य को लेकर होने वाली अनेक लोकप्रिय पहलकदमियों को प्राय: शांति आंदोलन कहा जाता है। दोनों विश्वयुद्ध के कारण हुए विध्वंस ने इस आंदोलन को प्रेरित किया और तभी से यह जोर पकड़ता गया है। राजनैतिक और भौगोलिक अवरोधों के बावजूद दुनिया में बड़े पैमाने पर इसने अनुयायी पैदा किए हैं।
इसके अनुयायी: शांति आंदोलन को विभिन्न तबके के लोगों ने बढ़ावा दिया है। इन लोगों में लेखक, वैज्ञानिक, शिक्षक, पत्रकार, पुजारी, राजनेता और मजदूर सभी शामिल हैं। विस्तार: इसका लगातार विस्तार हुआ है। महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण सुरक्षा जैसे अन्य आंदोलनों के समर्थकों से पारस्परिक फायदेमंद जुड़ाव होने से यह और सघन हुआ है। इस आंदोलन ने शांति अध्ययन नामक ज्ञान की एक नई शाखा का भी सृजन किया है तथा इण्टरनेट जैसे माध्यम का इसने कारगर इस्तेमाल भी किया है।
प्रश्न 19.
शांतिवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
शांतिवाद: शांतिवाद विवादों को सुलझाने के औजार के बतौर युद्ध यां हिंसा के बजाय शांति का उपदेश देता है। इसमें विचारों की अनेक छवियाँ शामिल हैं। इसके दायरे में कूटनीति को अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान करने में प्राथमिकता देने से लेकर किसी भी हालत में हिंसा और ताकत के इस्तेमाल के पूर्ण निषेध तक आते हैं शांतिवाद सिद्धान्तों पर भी आधारित हो सकता है और व्यावहारिकता पर भी। यथा
- सैद्धान्तिक शांतिवाद: सैद्धान्तिक शान्तिवाद का जन्म इस विश्वास से होता है कि युद्ध, सुविचारित घातक हथियार, हिंसा या किसी भी प्रकार की जोर-जबरदस्ती नैतिक रूप से गलत है।
- व्यावहारिक शांतिवाद: व्यावहारिक शांतिवाद ऐसे किसी चरम सिद्धान्त का अनुसरण नहीं करता है। यह मानता है कि विवादों के समाधान में युद्ध से बेहतर तरीके भी हैं या फिर यह समझता है कि युद्ध पर लागत ज्यादा आती है और फायदे कम होते हैं।
प्रश्न 20.
अहिंसा के बारे में गांधीजी के विचारों पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
अहिंसा के बारे में गांधीजी के विचार:
1. नकारात्मक अर्थ:
नकारात्मक अर्थ में गांधीजी के लिए अहिंसा का अर्थ शारीरिक चोट, मानसिक चोट या आजीविका की क्षति से बाज आना भर नहीं है। इसका अर्थ किसी को नुकसान पहुँचाने के विचार तक को छोड़ देना है। गांधीजी का मानना था कि “यदि मैंने किसी की हानि पहुँचाने में किसी किसी अन्य की सहायता की अथवा किसी हानिकर कार्य से लाभान्वित हुआ तो मैं हिंसा का दोषी होऊंगा।” इ अर्थ में हिंसा के बारे में उनके विचार संरचनात्मक हिंसा को समाप्त करने के पक्ष में थे।
2. सकारात्मक अर्थ:
सकारात्मक अर्थ में अहिंसा के सम्बन्ध में गांधीजी का कहना है कि अहिंसा को सजग संवेदना के माहौल की अपेक्षा होती है। उनके लिए अहिंसा का अर्थ कल्याण और अच्छाई का सकारात्मक और सक्रिय क्रियाकलाप है। अहिंसा में कायरता और कमजोरी को कोई स्थान नहीं है।
प्रश्न 21.
शांतिवादी किसी न्यायपूर्ण संघर्ष में भी हिंसा के इस्तेमाल के खिलाफ नैतिक रूप से क्यों खड़े होते हैं?
उत्तर:
शांतिवादियों का मत है कि अच्छे मकसद से भी हिंसा का सहारा लेना आत्मघाती हो जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया में अतिवादी हिंसक आंदोलन प्रायः संस्थागत रूप धारण करता है और राजनीतिक व्यवस्था का पूर्ण अंग बन जाता है। उदाहरण के लिए नेशनल लिबरेशन फ्रंट ने हिंसात्मक साधनों का प्रयोग कर अल्जीरिया के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया।
उसने अपने देश को फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों के बोझ से 1962 में मुक्त तो कराया, लेकिन उसका शासन जल्दी ही निरंकुशवाद में परिणत हो गया। इसकी प्रतिक्रिया वहाँ इस्लामी रूढ़िवाद के उभार के रूप में हुई। इसीलिए शांतिवादी किसी न्यायपूर्ण संघर्ष में भी हिंसा के प्रयोग का विरोध करते हैं । वे उत्पीड़न से लड़ने के लिए उत्पीड़नकारियों का दिल-दिमाग जीतने के लिए प्रेम और सत्य को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शांति को परिभाषित कीजिए। इसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
शांति का अर्थ: शांति आज विश्व का लोकप्रिय विचार है। इसकी कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार दी गई
1. शांति की परिभाषा अक्सर युद्ध की अनुपस्थिति के रूप में की जाती है।
यह परिभाषा सरल है, लेकिन भ्रामक भी है। सामान्य रूप से हम युद्ध को देशों के बीच हथियारबंद संघर्ष समझते हैं। बोस्निया में इस तरह का संघर्ष नहीं था; लेकिन इससे शांति का उल्लंघन तो हुआ ही था। इससे यह स्पष्ट होता है कि यद्यपि प्रत्येक युद्ध शांति को भंग करता है, लेकिन शांति का हर अभाव केवल युद्ध के कारण ही हो यह आवश्यक नहीं। युद्ध न होने पर भी शांति हो, यह आवश्यक नहीं है।
2. शांति को युद्ध, दंगा, नरसंहार, कत्ल या सामान्य शारीरिक प्रहार समेत सभी प्रकार के हिंसक संघर्ष के अभाव के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
यह परिभाषा पहली परिभाषा की तुलना में अधिक विस्तृत है लेकिन संरचनात्मक हिंसा के रूपों की इसमें उपेक्षा की गई है। जबकि संरचनात्मक हिंसा के चलते भी समाज में शांति स्थापित नहीं हो पाती है। संरचनात्मक भेदभावों के रूप हैं जातिभेद, वर्गभेद, पितृसत्ता, उपनिवेशवाद, नस्लवाद और साम्प्रदायिकता। इन संरचनात्मक हिंसाओं का शिकार व्यक्ति जिन मनोवैज्ञानिक और भौतिक नुकसानों से गुजरता है, वे उसके भीतर शिकायतों को पैदा करते हैं। ये शिकायतें पीढ़ियों तक कायम रहती हैं। ऐसे समूह कभी – कभी किसी घटना या टिप्पणी से भी उत्तेजित होकर संघर्षों के ताज़ा दौर की शुरुआत कर सकते हैं। अतः न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति अप्रकट शिकायतों और संघर्ष के कारणों को साफ-साफ व्यक्त करने और बातचीत द्वारा हल करने के जरिये ही प्राप्त की जा सकती है।
3. शांति को संतुष्ट लोगों के समरस सहअस्तित्व के रूप में समझा जा सकता है। संतुष्ट लोगों के समरस सहअस्तित्वपूर्ण न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की रचना संरचनात्मक हिंसा को समाप्त करके ही की जा सकती है शांति ऐसे ही समाज की उपज हो सकती है।
4. शांति एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें व्यापकतम अर्थों में मानव कल्याण की स्थापना के लिए जरूरी नैतिक और भौतिक संसाधनों के सक्रिय क्रियाकलाप शामिल होते हैं- चूंकि शांति एक बार में हमेशा के लिए हासिल नहीं की जा सकती। यह कोई अन्तिम स्थिति नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है।
शांति का महत्त्व: शांति के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
1. जीवन की सुरक्षा संभव:
राज्य का पहला और प्रमुख कार्य है लोगों के जीवन की रक्षा करना। लोगों के जीवन की रक्षा केवल शांतिपूर्ण वातावरण में ही संभव है। यदि किसी समाज में शांति का वातावरण नहीं होगा तो उसके सदस्य निरन्तर रूप से जीवन की असुरक्षा से भयभीत रहेंगे। जहाँ शक्ति का शासन है, शक्ति ही कानून है, वहाँ न तो शांति हो सकती है और न जीवन की सुरक्षा।
2. व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास संभव:
प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीविका हेतु कोई न कोई कार्य करता है। व्यक्ति अपने जीविका उत्पादन के विभिन्न कार्यों को तभी कुशलता के साथ सम्पन्न कर सकते हैं जब समाज में शान्ति
हो। जब हिंसा, उपद्रवों का वातावरण होता है तो लोग घर के अन्दर ही रहना पसंद करते हैं और वे स्वतंत्रतापूर्वक, निर्भय होकर, ठीक प्रकार से अपनी जीविका पूर्ति के कर्तव्यों को नहीं कर पाते हैं। इसलिए समाज के विकास के लिए, व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए, समाज के उपयोगी कार्यों को करने के लिए समाज में शांति का होना आवश्यक है।
3. विविध प्रकार की सांसारिक गतिविधियों के कुशल संचालन के लिए आवश्यक:
समस्त व्यापारिक गतिविधियों, औद्योगीकरण, कृषिगत गतिविधियाँ आदि सभी केवल शांतिमय वातावरण में ही संचालित हो सकती हैं। जहाँ कानून-व्यवस्था का अभाव हो, अशान्ति का वातावरण हो या हिंसा का वातावरण हो, ये सभी गतिविधियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं।
4. समृद्धि का पूरक:
शांति और समृद्धि परस्पर पूरक हैं। जहाँ शांति नहीं है, वहाँ समृद्धि नहीं आ सकती। अशान्ति के वातावरण में विकास के सभी कार्य पिछड़ जाते हैं। सरकारी मशीनरी को अपना सारा ध्यान शांति एवं व्यवस्था की स्थापना में लगा देना पड़ता है। एक देश जिसे निरन्तर साम्प्रदायिक दंगों, हिंसक संघर्षों, जातीय संघर्षों तथा सामाजिक वैमनस्य का सामना करना पड़ता है, वह विकास की आशा नहीं कर सकता क्योंकि सरकार की आय का अधिकांश भाग शांति व्यवस्था की स्थापना में ही खर्च हो जाता है। अतः स्पष्ट है कि शांति समृद्धि और विकास लाती है।
5. विदेशी व्यापार में वृद्धि: विदेशी व्यापार शांति के समय में ही फलता-फूलता है। यदि दो राष्ट्र हथियारों की प्रतियोगिता या शीत युद्ध में रत हैं, उनके बीच पारस्परिक व्यापार रुक जाता है। भारत और पाकिस्तान के बीच अधिकांश व्यापार इसीलिए अवरुद्ध है क्योंकि दोनों के बीच शांति के सम्बन्ध नहीं हैं। विदेशी व्यापार मित्रवत सम्बन्धों में ही विकसित होता है और मित्रवत सम्बन्ध परस्पर शांति के सम्बन्धों में ही संभव है।
6. मानवता का विकास: जब युद्ध होता है, तब मानवता पीड़ित होती है और शांतिकाल में विकसित होती है। मानवता का विकास शांति को बढ़ावा देता है। समस्त वैज्ञानिक और तकनीकी आविष्कार, खोजें, जीवन की सुविधाएँ शांतिमय वातावरण और परस्पर सहयोग के कारण ही संभव हुई हैं। इसीलिए यह कहा जा सकता है कि शांति हमारी इसी पीढ़ी के लिए ही आवश्यक नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी आवश्यक है।
प्रश्न 2.
संरचनात्मक हिंसा क्या है? संरचनात्मक हिंसा के विभिन्न रूपों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संरचनात्मक हिंसा का अर्थ-हिंसा प्रायः समाज की मूल संरचना में ही रची-बसी है। जब हिंसा सामाजिक संस्थाओं से समाज में निहित रीति-रिवाजों से, समाज द्वारा मान्य संस्थाओं से प्रकट होती है, तो उसे संरचनात्मक हिंसा कहते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में जाति प्रथा के तहत जाति आधारित असमानताएँ समाज में मान्य तथा स्वीकृत होती हैं और उच्च जातियाँ तथाकथित निम्न जातियों को दबाती हैं, तो यह स्थिति हिंसा को जन्म देती है। जब एक उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों पर आक्रमण करते हैं, उनके घरों को जलाते हैं, उन्हें उत्पीड़ित करते हैं, तो यह संरचनात्मक हिंसा का स्पष्ट उदाहरण है।
जब एक स्त्री द्वितीय स्तर की नागरिक समझी जाती है और उसे समाज में पुरुष के साथ समानता का दर्जा नहीं दिया जाता है तथा उसका शोषण तथा उत्पीड़न किया जाता है, तो यह भी एक संरचनात्मक हिंसा है। इस प्रकार वह हिंसा जो समाज की संरचना के कारण प्रकट होती है, संरचनात्मक हिंसा कहलाती है। संरचनात्मक हिंसा के रूप: संरचनात्मक हिंसा के अनेक रूप हैं। इनका विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।
1. भारत में परम्परागत जाति व्यवस्था:
भारत में परम्परागत जाति व्यवस्था कुछ खास समूह के लोगों को अस्पृश्य मानकर बरताव करती थी। आजाद भारत के संविधान द्वारा गैर-कानूनी करार दिये जाने तक छुआछूत के प्रचलन ने उन्हें सामाजिक बहिष्कार और अत्यधिक वंचना का शिकार बना रखा था । भयावह रीति-रिवाजों के इन जख्मों से उबरने के लिए देश अभी तक संघर्ष कर रहा है।
2. वर्ग व्यवस्था:
विश्व में हर समाज में वर्ग-व्यवस्था विद्यमान है और वर्गों के आधार पर समाज में स्तरीकरण पाया जाता है। वर्ग-व्यवस्था ने भी काफी असमानता और उत्पीड़न को जन्म दिया है। विकासशील देशों की कामकाजी आबादी असंगठित क्षेत्र से सम्बद्ध है, जिसमें मेहनताना और काम की दशा बहुत खराब है। विकसित देशों में भी निम्न वर्गीय लोगों की अच्छी-खासी आबादी मौजूद है। कुछ वर्ग गरीबी के कारण झुग्गी-झोंपड़ियों या गंदी बस्तियों
में रहते हैं और बेरोजगारी, अशिक्षा, भूख और बीमारी का सामना करते रहते हैं। वर्गों के बीच ऐसी असमानता समाज की समरसता और शांति को भंग कर देती है।
3. पितृसत्ता आधारित भेदभाव:
प्रायः सभी पितृसत्तात्मक परिवार व्यवस्था में सबसे बड़ा पुरुष सदस्य परिवार का मुखिया होता है। पितृसत्ता पर आधारित ऐसे सामाजिक संगठन की परिणति स्त्रियों को व्यवस्थित रूप से अधीन बनाने और उनके साथ भेदभाव करने में होती है। इसकी अभिव्यक्ति कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों को अपर्याप्त पोषण और शिक्षा न देना, बाल-विवाह, पत्नी को पीटना, दहेज से सम्बंधित अपराध, कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न, बलात्कार और घर की इज्जत के नाम पर हत्या में होती है। भारत में निम्न लिंगानुपात पितृसत्तात्मक विध्वंस का मर्मस्पर्शी सूचक है। हम उस स्थिति में समाज में शांति की आशा कैसे कर सकते हैं जब संसार की लगभग आधी आबादी भेदभाव, उत्पीड़न तथा समान अधिकारों से वंचित हो।
4. उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद:
साम्राज्यवाद और उपानिवेशवाद भी संरचनात्मक हिंसा का एक रूप है। द्वितीय महायुद्ध तक उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद ने विदेशी शासन के रूप में लोगों पर प्रत्यक्ष और लम्बे समय तक गुलामी थोप दी थी । यद्यपि वर्तमान में यह लगभग असंभव है लेकिन इजरायली प्रभुत्व के खिलाफ चालू फिलिस्तीनी संघर्ष दिखाता है कि इसका अस्तित्व पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। इसके अलावा, यूरोपीय उपनिवेशवादी देशों के पूर्ववर्ती उपनिवेशों को अभी भी बहुआयामी शोषण के उन प्रभावों से पूरी तरह उबरना शेष है, जिसे उन्होंने औपनिवेशिक काल में झेला।
5. रंगभेद और साम्प्रदायिकता:
रंगभेद और साम्प्रदायिकता में एक समूचे नस्लगत समूह या समुदाय पर लांछन लगाना और उनका दमन करना शामिल रहता है। कई बार इसका उपयोग मानव विरोधी कुकृत्यों को जायज ठहराने में किया जाता रहा है। 1865 तक अमेरिका में अश्वेत लोगों को गुलाम बनाने की प्रथा, हिटलर के समय जर्मनी में यहूदियों को कत्लेआम तथा दक्षिण अफ्रीका की गोरी सरकार की 1992 तक अपनी बहुसंख्यक अश्वेत आबादी के साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार करने वाली रंगभेद की नीति इसके उदाहरण हैं।
पश्चिमी देशों में नस्ली भेदभाव गोपनीय तौर पर अभी भी जारी है। अब इसका प्रयोग प्रायः एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विभिन्न देशों के आप्रवासियों के खिलाफ होता है। साम्प्रदायिकता को नस्लवाद का दक्षिण एशियाई प्रतिरूप माना जा सकता है जहाँ शिकार अल्पसंख्यक धार्मिक समूह होते हैं। हिंसा का शिकार व्यक्ति जिन मनोवैज्ञानिक और भौतिक नुकसानों से गुजरता है वे उसके भीतर शिकायतें पैदा करती हैं। ये शिकायतें पीढ़ियों तक कायम रहती हैं।
ऐसे समूह कभी: कभी किसी घटना या टिप्पणी से भी उत्तेजित होकर संघर्षों के ताजा दौर की शुरुआत कर सकते हैं। दक्षिण एशिया में विभिन्न समुदायों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ लम्बे समय से मन में रखी पुरानी शिकायतों के उदाहरण हमारे पास हैं, जैसे 1947 में भारत के विभाजन के दौरान भड़की हिंसा से उपजी शिकायतें।
प्रश्न 3.
हिंसा को कैसे समाप्त किया जा सकता है? क्या हिंसा कभी शांति को प्रोत्साहित कर सकती है?
उत्तर;
हिंसा की समाप्ति: शांति को प्रोत्साहित करने के लिए यह आवश्यक है कि समाजों से हिंसा को समाप्त किया जाये । हिंसा की समाप्ति के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए-
1. लोगों के सोचने के तरीके में बदलाव:
एक शांतिपूर्ण दुनिया की ओर बदलाव के लिए लोगों के सोचने के तरीके में बदलाव जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनिसेफ) के संविधान ने उचित ही टिप्पणी की है कि “चूंकि युद्ध का आरंभ लोगों के दिमाग में होता है, इसलिए शांति के बचाव भी लोगों के दिमाग में ही रचे जाने चाहिए।”
गौतम बुद्ध ने भी कहा है कि “सभी दुष्कर्म मन के कारण उपजते हैं। यदि मन रूपान्तरित हो जाए तो क्या दुष्कर्म बने रह सकते हैं?” इस तरह के प्रयास के लिए करुणा जैसे अनेक पुरातन आध्यात्मिक सिद्धान्त और ध्यान जैसे अभ्यास बिल्कुल उपयुक्त हैं। आधुनिक नीरोगकारी तकनीक और मनोविश्लेषण जैसी चिकित्सा पद्धतियाँ भी यह काम कर सकती हैं।
2. संरचनात्मक हिंसा की समाप्ति:
हिंसा का आरंभ महज किसी व्यक्ति के दिमाग में नहीं होता; इसकी जड़ें कतिपय सामाजिक संरचनाओं में भी निहित होती हैं। इसलिए हिंसा की समाप्ति के लिए यह आवश्यक है कि सामाजिक संरचनाओं में निहित हिंसा के कारणों को समाप्त किया जाये। इसके लिए सामाजिक भेदभावों, सामाजिक असमानताओं, जाति आधारित उत्पीड़न तथा दबाव, प्रजातिगत भेदभाव को समाप्त करने के प्रयास किये जाने चाहिए ताकि समाज में सामाजिक समानता, आर्थिक और राजनीतिक समानता, लैंगिक समानता, विभिन्न धर्मों व समुदायों के बीच सौहार्द्र कायम किया जा सके। न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की रचना संरचनात्मक हिंसा को निर्मूल करने के लिए आवश्यक है। शांति, जिसे संतुष्ट लोगों के समरस सह-अस्तित्व के रूप में समझा जाता है, ऐसे ही समाज की उपज हो सकती है।
3. हिंसा की समाप्ति तथा शांति की स्थापना स्थायी नहीं ह:
शांति एक बार में हमेशा के लिए हासिल नहीं की जा सकती। शांति कोई अंतिम स्थिति नहीं बल्कि ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें व्यापकतम अर्थों में मानव कल्याण की स्थापना के लिए जरूरी नैतिक और भौतिक संसाधनों के सक्रिय क्रियाकलाप शामिल होते हैं हिंसा से शांति की स्थापना नहीं की जा सकती कुछ लोगों का विचार है कि शक्ति का प्रयोग करके, हिंसा के द्वारा हिंसा को समाप्त किया जा सकता है।
उनका कहना है कि यदि आप शांति चाहते हैं तो हमें युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए। वे इस आधार पर अपने विचारों के समर्थन में तर्क देते हैं कि राज्य कानून तोड़ने वालों तथा अपराधियों को दंडित करने के लिए तथा हिंसा को समाप्त करने के लिए समाज में राज्य सर्वाधिक भौतिक शक्ति का प्रयोग करता है।
यह तर्क दिया जाता है कि तानाशाहों और उत्पीड़क शासकों को हिंसा और शक्ति के द्वारा जबरन हटाकर भी जनता को निरन्तर नुकसान होने से रोका जा सकता है। या फिर उत्पीड़ित लोगों के मुक्ति संघर्षों को हिंसा के कुछ इस्तेमाल के बावजूद न्यायपूर्ण ठहराया जा सकता है। लेकिन उक्त विचार कुछ विचारकों के ही हैं, सभी के नहीं। अधिकांश विद्वान और विचारकों का मत है कि हिंसा के द्वारा शांति की स्थापना नहीं की जा सकती। हिंसा के द्वारा हिंसा की समाप्ति हमेशा अल्प अवधि के लिए ही होती है। हिंसा के द्वारा शांति की स्थापना नहीं की जा सकती, इस कथन के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं।
1. राज्य का आधार शक्ति नहीं, इच्छा है:
टी. एच. ग्रीन ने लिखा है कि राज्य का आधार लोगों की इच्छा है। अतः राज्य हिंसा और शक्ति पर आधारित नहीं है। राज्य शक्ति का उपयोग केवल कुछ अपराधियों तथा कानून तोड़ने वालों के विरुद्ध करता है, न कि जनता के विरुद्ध। जब आम जनता सरकार के विरुद्ध हो जाती है, तो उसकी सेना भी हथियार डाल देती है। क्रांतियाँ इसकी उदाहरण हैं।
2. हिंसा के द्वारा हिंसा की समाप्ति अल्प होती है:
जब हिंसा के द्वारा हिंसा को समाप्त किया जाता है, तो यह थोड़े समय के लिए हो सकती है, स्थायी नहीं। जब शत्रु या विपक्षी यह देखता है कि वह इस समय कमजोर है, वह झुक जाता है और हमेशा इस अवसर की तलाश में रहता है कि इसका बदला ले सके। जिस व्यक्ति के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग किया जाता है, वह हिंसा उसके मस्तिष्क में उससे बदला लेने की भावना पैदा कर देती है। इस प्रकार हिंसा द्वारा हिंसा की समाप्ति या शांति की स्थापना अल्पकालिक होती है।
3. हिंसा की प्रवृत्ति नियंत्रण से बाहर हो जाने की है:
चाहे हिंसा का मकसद कितना ही अच्छा क्यों न रहा हो, लेकिन अपनी नियंत्रण से बाहर हो जाने की प्रवृत्ति के कारण यह आत्मघाती होती है। एक बार शुरू हो जाने पर इसकी प्रवृत्ति नियंत्रण से बाहर हो जाने की होती है और इसके कारण यह अपने पीछे मौत और बर्बादी की एक श्रृंखला छोड़ जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि हिंसा हिंसा को बढ़ाती है, न कि कम करती है।
4. हिंसा हृदय परिवर्तन के द्वारा समाप्त की जानी चाहिए:
शांतिवादियों का मकसद लड़ाकुओं की हिंसा को कम करके आंकना नहीं, प्रतिरोध के अहिंसक स्वरूप पर बल देना है। वैसे संघर्षों का एक प्रमुख तरीका सविनय अवज्ञा है और उत्पीड़न की संरचना की नींव हिलाने में इसका सफलतापूर्वक इस्तेमाल होता रहा है। भारतीय स्वतंत्रता आदोलन के दौरान गांधीजी द्वारा सत्याग्रह का प्रयोग इसका प्रमुख उदाहरण है। नागरिक अवज्ञा के दबाव में अन्यायपूर्ण संरचनाएँ भी रास्ता दे सकती हैं। कभी-कभार वे अपनी विसंगतियों के बोझ से ध्वस्त भी हो सकती हैं।