JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 10 विकास
Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 10 विकास Textbook Exercise Questions and Answers.
Jharkhand Board Class 11 Political Science विकास Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
आप विकास से क्या समझते हैं? क्या विकास की प्रचलित परिभाषा से समाज के सभी वर्गों को लाभ होता है?
उत्तर:
विकास से आशय: ‘विकास’ शब्द अपने व्यापकतम अर्थ में उन्नति, प्रगति, कल्याण और बेहतर जीवन की अभिलाषा के विचारों का वाहक है। लेकिन ‘विकास’ शब्द का प्रयोग व्यवहार में व्यापक अर्थ में नहीं किया है, बल्कि इसका प्रयोग प्रायः ‘आर्थिक विकास की दर में वृद्धि और समाज का आधुनिकीकरण’ जैसे संकीर्ण अर्थों में किया गया है। इसे प्राय: पहले से निर्धारित लक्ष्यों या बांध, उद्योग, अस्पताल जैसी परियोजनाओं को पूरा करने से जोड़कर देखा जाता है।
विकास का प्रभाव:
प्रचलित अर्थ में विकास का अर्थ आर्थिक विकास और आधुनिकीकरण से लिया गया है। विकास की इस प्रचलित परिभाषा में विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों तक नहीं पहुँचा। इस प्रक्रिया में समाज के कुछ हिस्से लाभान्वित हुए जबकि बाकी लोगों को अपने घर, जमीन, जीवन शैली को बिना किसी भरपाई के खोना पड़ा। उदाहरण के लिए बड़े बांधों के निर्माण, औद्योगिक गतिविधियों और खनन कार्यों की वजह से बड़ी संख्या में लोगों का उनके घरों और क्षेत्रों से विस्थापन हुआ।
विस्थापन का परिणाम आजीविका खोने और दरिद्रता में वृद्धि के रूप में सामने आया। अगर ग्रामीण खेतिहर समुदाय अपने परम्परागत पेशे और क्षेत्र से विस्थापित होते हैं, तो वे समाज के हाशिये पर चले जाते हैं। बाद में वे शहरी और ग्रामीण गरीबों की विशाल आबादी में शामिल हो जाते हैं। लम्बी अवधि में अर्जित परम्परागत कौशल नष्ट हो जाते हैं। संस्कृति का भी विनाश होता है, क्योंकि जब लोग नई जगह पर जाते हैं, तो वे अपनी पूरी सामुदायिक जीवन-पद्धति खो बैठते हैं। ऐसे विस्थापनों ने अनेक देशों में संघर्षों को जन्म दिया है।
प्रश्न 2.
जिस तरह का विकास अधिकतर देशों में अपनाया जा रहा है उससे पड़ने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की चर्चा कीजिये।
उत्तर:
अधिकतर देशों में आर्थिक उन्नति और समाज के आधुनिकीकरण के रूप में पश्चिमी देशों के स्तर पर पहुँचने का प्रयास विकास के अन्तर्गत किया जा रहा है। इस प्रक्रिया में विकासशील देशों ने औद्योगीकरण, कृषि और शिक्षा के आधुनिकीकरण एवं विस्तार के जरिए तेज आर्थिक उन्नति का लक्ष्य निर्धारित किया। यह विश्वास किया गया कि विकास की यह प्रक्रिया समाज को अधिक आधुनिक और प्रगतिशील बनाएगी तथा उसे उन्नति के पथ पर ले जाएगी। विकास के प्रभाव विकास की इस प्रक्रिया से निम्नलिखित सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव पड़े।
(अ) सामाजिक प्रभाव: विकास के इस मॉडल को अपनाने के कारण बहुत बड़ी सामाजिक कीमत चुकानी पड़ी है। यथा
- विस्थापन, दरिद्वत्ता में वृद्धि और आजीविका का खोना-बांधों के निर्माण, औद्योगिक गतिविधियों और खनन कार्यों की वजह से बड़ी संख्या में लोगों का उनके घरों और क्षेत्रों से विस्थापन हुआ जिसका परिणाम आजीविका खोने और दरिद्रता में वृद्धि के रूप में सामने आया।
- परम्परागत कौशल और संस्कृति का नष्ट होना: ग्रामीण खेतिहर समुदाय अपने परम्परागत पेशे और क्षेत्र से विस्थापित होकर समाज के हाशिये पर चले जाते हैं तथा वे गरीबों की विशाल आबादी में शामिल हो जाते हैं । इससे उनके परम्परागत कौशल नष्ट हो जाते हैं और संस्कृति का भी विनाश होता है तथा वे नई जगह पर जाकर अपनी पूरी सामुदायिक जीवन पद्धति खो बैठते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि विकास की इस प्रक्रिया से समाज के कुछ हिस्से ही लाभान्वित हुए हैं जबकि शेष लोगों को अपने घर, जमीन, जीवन-शैली को बिना किसी भरपाई के खोना पड़ा है। लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार हुए हैं। ग्रामीण लोग अपने पारम्परिक व्यवसाय को भूलते जा रहे हैं तथा विद्यमान संस्कृतियों का विनाश होता जा रहा है।
- संघर्षों का जन्म: ऐसे विस्थापनों ने अनेक देशों में संघर्षों को जन्म दिया है।
- विकास के लाभ और कीमत का असमान वितरण: विकास के अधिकांश फायदों को ताकतवर लोगों ने हथिया लिया और इसकी अधिकांश कीमत अति दरिद्रों तथा आबादी के असुरक्षित हिस्सों ने चुकाई। यथा
(ब) पर्यावरण पर प्रभाव: विकास की वजह से अनेक देशों में पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचा है।
- विशाल जंगली भू-भाग विकास के कारण बांधों में डूब रहा है और इससे पारिस्थितिकी का संतुलन बिगड़ रहा है।
- तटीय वनों के नष्ट होने और समुद्रतट के निकट वाणिज्यिक उद्यमों के स्थापित होने के कारण दक्षिणी और दक्षिणी पूर्वी – एशिया के तटों पर समुद्री तूफानों ने अत्यधिक नुकसान किया है।
- वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से आर्कटिक और अंटार्कटिक ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही है। इससे तटीय इलाकों के समुद्र में डूब जाने का खतरा पैदा हो रहा है।
- विकास के प्रभावस्वरूप वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, जिसके कारण अनेक बीमारियाँ बढ़ रही हैं।
- ऊर्जा के उत्तरोत्तर बढ़ते उपयोग से ऊर्जा के स्रोत खत्म होते जा रहे हैं।
प्रश्न 3.
विकास की प्रक्रिया ने किन नए अधिकारों के दावों को जन्म दिया है?
उत्तर:
विकास के अधिकांश लाभों को ताकतवर लोगों ने हथिया लिया है और इसकी कीमत अति दरिद्रों और आबादी के असुरक्षित हिस्से को चुकानी पड़ी है। इसलिए विकास की प्रक्रिया ने अनेक नये अधिकारों के दावों को जन्म दिया है। यथा
- लोकतंत्र में लोगों को यह अधिकार मिलना चाहिए कि उनके जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णयों में उनसे सलाह ली जाये।
- लोगों को आजीविका का अधिकार दिया जाना चाहिए ताकि वे लोग, जिनकी आजीविका के स्रोत को विकास के कारण खतरा पैदा होने पर, आजीविका के अधिकार का दावा सरकार से कर सकें।
- समुदाय को नैसर्गिक संसाधनों के उपयोग के परम्परागत अधिकार मिलने चाहिए। यह दावा विशेषकर आदिवासी और आदिम समूहों द्वारा किया जा रहा है, जिनका सामुदायिक जीवन और पर्यावरण के साथ सम्बन्ध विशेष प्रकार का होता है।
- पूरी मानवता के साझे नैसर्गिक संसाधनों की व्यवस्थाओं का काम जनसमूह के विभिन्न तबकों की प्रतिस्पर्द्धात्मक मांगों को पूरा करने के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य की दावेदारियों के बीच संतुलन भी कायम करना आवश्यक है।
प्रश्न 4.
विकास के बारे में निर्णय सामान्य हित को बढ़ावा देने के लिए किए जाएँ, यह सुनिश्चित करने में अन्य प्रकार की सरकार की अपेक्षा लोकतांत्रिक व्यवस्था के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
विकास के बारे में निर्णय सामान्य हित को बढ़ावा देने के लिए करने के लिए अन्य प्रकार की सरकार की अपेक्षा लोकतांत्रिक सरकार के निम्नलिखित अधिक लाभ हैं।
1. लोकतंत्र में संसाधनों को लेकर विरोध या बेहतर जीवन के बारे में विभिन्न विचारों के द्वन्द्व का हल विचार- विमर्श और सभी के अधिकारों के प्रति सम्मान के जरिए होता है, जबकि अन्य प्रकार की सरकारों में ये विचार ऊपर से थोपे जाते हैं।
2. लोकतांत्रिक देशों में निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा लेने के अधिकार पर जोर दिया जाता है। अगर बेहतर जीवन हासिल करने में समाज का हर व्यक्ति साझीदार है, तो विकास की योजनाएँ बनाने और उसके क्रियान्वयन के तरीके ढूँढ़ने में भी हर व्यक्ति को शामिल करने की आवश्यकता है और लोकतंत्र में ही यह व्यवस्था संभव है।
3. लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्णय प्रक्रिया में स्थानीय लोगों के शामिल रहने से समुदायों को नुकसान पहुँचा सकने वाली परियोजनाओं को रद्द करना संभव होता है। इसके साथ ही योजना बनाने और नीतियों के निर्धारण में स्थानीय लोगों की संलग्नता से लोगों के लिए अपनी जरूरतों के मुताबिक संसाधनों के उपयोग की भी गुंजाइश रहती है।
4. लोकतांत्रिक व्यवस्था में विकास की विकेन्द्रित पद्धति आसानी से क्रियान्वित की जा सकती है। इससे परम्परागत और आधुनिक स्रोतों से मिलने वाली तमाम तरह की तकनीकों के रचनात्मक तरीकों के इस्तेमताल को संभव बनाती है।
प्रश्न 5.
विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को जवाबदेह बनाने में लोकप्रिय संघर्ष और आन्दोलन कितने सफल रहे हैं?
उत्तर:
विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को उत्तरदायी बनवाने में लोकप्रिय संघर्षों और आन्दोलनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यथा-
1. पर्यावरण संरक्षण के प्रति सरकार को जिम्मेदार, जवाबदेह और जागरूक बनाना:
इस प्रकार के संघर्ष और आन्दोलन सरकार को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जिम्मेदार, जवाबदेह तथा जागरूक बनाते हैं। वे उन तथ्यों और आंकड़ों को लोगों के समक्ष लाते हैं, जिन्हें सरकार छुपाने का प्रयास करती है। उदाहरण के लिए नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने बांधों से लोगों की जमीन डूबने और उसके कारण उनकी आजीविका छिनने से लगभग दस लाख लोगों के विस्थापन की समस्या को सरकार के समक्ष उजागर किया तथा इस तथ्य को भी स्पष्ट किया कि विशाल जंगली भू-भाग भी इस बांध में डूब जायेगा, इससे पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ेगा। इस प्रकार ये आन्दोलन विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को जागरूक करता है तथा उनके लिए सरकार को उत्तरदायी ठहराता है।
2. जन चेतना को जाग्रत करना: ऐसे संघर्ष व आन्दोलन जन चेतना को भी जागृत करते हैं और लोग संबंधित परियोजना के औचित्य पर सरकार से प्रश्न करते हैं। एक बहुत बड़े जनसमुदाय के आन्दोलन में शामिल होने के कारण सरकार प्रभावित लोगों की समस्याओं को सुनने व उनका समाधान करने को बाध्य होती है।
विकास JAC Class 11 Political Science Notes
→ विकास पद का अर्थ
व्यापक अर्थ – विकास शब्द अपने व्यापकतम अर्थ में उन्नति, प्रगति, कल्याण और बेहतर जीवन की अभिलाषा के विचारों का वाहक है।
→ संकीर्ण अर्थ:
विकास शब्द का प्रयोग प्रायः आर्थिक विकास की दर में वृद्धि और समाज का आधुनिकीकरण जैसे संकीर्ण अर्थों में भी होता है। साधारण बोलचाल में विकास को प्राय: पहले से निर्धारित लक्ष्यों या बांध, उद्योग, अस्पताल जैसी परियोजनाओं को पूरा करने से जोड़कर देखा जाता है । इस अर्थ में विकास की प्रक्रिया में समाज के कुछ हिस्से लाभान्वित होते हैं जबकि शेष लोगों को अपने घर, जमीन, जीवन शैली को बिना किसी भरपाई के खोना पड़ता है।
→ विकास की चुनौतियाँ:
विकास की अवधारण ने 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में महत्त्वपूर्ण सफलता हासिल की। उस समय एशिया और अफ्रीका के बहुत से देशों ने राजनीतिक आजादी हासिल की थी। इनके निवासियों का जीवन स्तर निम्न था। चिकित्सा, शिक्षा और अन्य सुविधाएँ कम थीं। इन्हें अक्सर ‘अविकसित’ या ‘विकासशील’ देश कहां जाता था। इन्हें अपने देश की गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, निरक्षरता और शिक्षा व चिकित्सा आदि बुनियादी सुविधाओं के अभाव की समस्याओं का समाधान करना था जिसे उनकी बहुसंख्यक आबादी भुगत रही थी। स्वतंत्रता के बाद इन देशों ने अपने संसाधनों का उपयोग अपने राष्ट्रीय हित में सर्वश्रेष्ठ तरीके से कर इन चुनौतियों से निपटने हेतु विकास परियोजनाएँ शुरू कीं।
आरंभिक वर्षों में अविकसित या विकासशील देशों द्वारा प्रयुक्त विकास की अवधारणा – आरंभिक वर्षों में विकास की अवधारणा में जोर आर्थिक उन्नति और समाज के आधुनिकीकरण के रूप में पश्चिमी देशों के स्तर तक पहुँचने पर था। विकासशील देशों ने औद्योगीकरण, कृषि और शिक्षा के आधुनिकीकरण एवं विस्तार के जरिए तेज आर्थिक उन्नति का लक्ष्य निर्धारित किया गया था । अनेक देशों ने विकास की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं का सूत्रपात किया। ऐसा प्राय: विकसित देशों की मदद और कर्ज के जरिए किया गया।
→ भारत और अन्य देशों में अपनाया गया विकास का मॉडल:
स्वतंत्रता के बाद भारत में विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं की एक श्रृंखला बनी। इनमें भाखड़ा नागल बांध, देश के विभिन्न हिस्सों में इस्पात संयंत्रों की स्थापना, खनन, उर्वरक उत्पादन और कृषित तकनीकों में सुधार जैसी अनेक वृहद् परियोजनाएँ शामिल थीं। विकास का जो मॉडल भारत और अन्य देशों द्वारा अपनाया गया, उसकी विगत वर्षों में बहुत अधिक आलोचना हुई है।
→ भारत में अपनाए गए विकास के मॉडल के उद्देश्य – इसके प्रमुख उद्देश्य थे
- देश की सम्पदा में वृद्धि करना
- बढ़ती सम्पन्नता असमानता को कम करने में सहायक
- समाज को अधिक आधुनिक और प्रगतिशील बनाना तथा
- सम्पूर्ण समाज की उन्नति करना।
→ विकास के मॉडल की आलोचनाएँ- विकास का उक्त मॉडल अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं रहा। इसकी निम्न प्रमुख आलोचनाएँ हुईं: आर्थिक हानि
- मंहगा विकास अधिक वित्तीय लागत – दीर्घकालिक कर्ज में वृद्धि।
- गरीबी और रोगों में कमी नहीं आई।
→ सामाजिक हानि:
- बड़ी संख्या में विस्थापन आजीविका का छिनना, दरिद्रता में वृद्धि, परम्परागत कौशल का नष्ट होना तथा सांस्कृतिक विनाश।
- ऐसे विस्थापनों ने अनेक देशों में संघर्षों को जन्म दिया।
- विशाल बांधों में विशाल जंगली भू-भाग बांध में डूब जायेंगे जिससे पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ेगा। नर्मदा नदी पर बनी सरदार सरोवर योजना के तहत बनने वाले बाँधों के निर्माण के खिलाफ चलने वाला आंदोलन; इन्हीं तथ्यों को रेखांकित करता है।
→ पर्यावरण की हानि: विकास के कारण वनों का कटाव, वायु प्रदूषण का बढ़ना, वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन से ताप का बढ़ना तथा ध्रुवों की बर्फ अधिक पिघलने से तटीय इलाकों के डूबने का खतरा। इसका वंचितों पर तात्कालिक और तीखा प्रभाव पड़ेगा। ऊर्जा के स्रोतों की कमी आयेगी।
→ नकारात्मक मॉडल: विकास का यह मॉडल ऊर्जा के उत्तरोतर बढ़ते उपयोग पर निर्भर है और विश्व में प्रयुक्त ऊर्जा का अधिकांश भाग कोयला या पैट्रोलियम से आता है, जिनको पुनः प्राप्त करना संभव नहीं है। इन संसाधनों की परिमित प्रकृति को देखते हुए यह मॉडल नकारात्मक है।
→ विकास का मूल्यांकन:
- सकारात्मक प्रभाव: विकास के कारण कुछ देशों ने अपनी आर्थिक उन्नति की दर बढ़ाने, यहाँ तक कि गरीबी घटाने में भी कुछ सफलता हासिल की है।
- नकारात्मक प्रभाव:
- असमानताओं में विशेष कमी नहीं आयी है।
- गरीबी लगातार एक समस्या बनी हुई है।
- अमीर और गरीब के बीच की दूरी बढ़ती गयी है।
- विकास का लाभ सबको समान रूप से नहीं मिला है।
विकास की संकीर्ण अवधारणा के मॉडल की असफलता को देखते हुए विकास की व्यापक अवधारणा को अपनाने की आवश्यकता महसूस की गई। व्यापक अर्थ में अब विकास ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है, जो सभी लोगों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करे। विकास को मापने के वैकल्पिक तरीके: मानव विकास प्रतिवेदन तथा मानव विकास सूचकांक – इस अवधारणा के अनुसार विकास को ऐसी प्रक्रिया होना चाहिए, जो अधिकाधिक लोगों को उनके जीवन में अर्थपूर्ण तरीके से विकल्पों को चुनने की अनुमति दे। इसकी पूर्व शर्त है। बुनियादी जरूरतों की पूर्ति। इनकी पूर्ति के बिना किसी व्यक्ति के लिए गरिमामय जीवन गुजारना और अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना असंभव है।
→ विकास की वैकल्पिक अवधारणा: आवश्यकता क्यों?
- परम्परागत विकास से मानव और पर्यावरण दोनों के लिहाज से भारी कीमत चुकानी पड़ी है।
- विकास के फायदे का वितरण भी लोगों में असमान रूप से हुआ।
- विकास की कीमत अतिदरिद्रों व आबादी के असुरक्षित हिस्सों को अधिक चुकानी पड़ी है।
- अधिकतर देशों में विकास की ‘ऊपर से नीचे’ की रणनीतियाँ अपनायी गईं अर्थात् इससे सम्बन्धित नीतियों का निर्णय राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही के उच्चतर स्तरों पर लिया गया तथा आम नागरिकों से सलाह नहीं ली गयी या विकास से प्रभावित होने वाले लोगों को इसमें शामिल नहीं किया गया। न तो सदियों से हासिल उनके अनुभवों और ज्ञान का उपयोग किया गया और न उनके हितों का ध्यान रखा गया। इस तरह परम्परागत विकास परियोजनाओं से लाभ उठाने वाले सत्ताधारी तबकों द्वारा तैयार व लागू किया गया। फलतः न्यायपूर्ण और टिकाऊ विकास हेतु विकास की वैकल्पिक अवधारणा की आवश्यकता महसूस की गयी।
→ विशेषताएँ: विकास की वैकल्पिक अवधारणा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं। अधिकारों के दावे – विकास की वैकल्पिक अवधारणा ने अनेक नए अधिकारों के दावों को जन्म दिया है। ये हैं।
- लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णयों में सरकार उनसे सलाह ले।
- लोगों को जीविका का अधिकार है और विकास के द्वारा यदि सरकार उनकी आजीविका के स्रोत को खतरा पैदा करती है, तो वे लोग सरकार से आजीविका का दावा कर सकते हैं।
- समुदाय को नैसर्गिक संसाधनों के उपयोग का परम्परागत अधिकार मिलना चाहिए। यह विशेष रूप से आदिवासी और आदिम समुदायों पर लागू होता है।
- जनसमूह के विभिन्न तबकों की प्रतिस्पर्द्धात्मक माँगों को पूरा करने के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य की दावेदारियों के बीच भी संतुलन कायम करना आवश्यक है।
→ लोकतांत्रिक सहभागिता:
- अगर बेहतर जीवन हासिल करने में समाज का हर व्यक्ति साझीदार है तो विकास की योजनाएँ बनाने और उसके क्रियान्वयन तरीके ढूँढ़ने में भी हरेक व्यक्ति को शामिल करने की जरूरत है।
- भागीदारी सुनिश्चित करने का एक प्रस्तावित रास्ता स्थानीय विकास योजनाओं के बारे में निर्णय स्थानीय निर्णयकारी संस्थाओं को लेने देना है।
- विकास की विकेन्द्रीकृत पद्धति परम्परागत और आधुनिक स्रोतों से मिलने वाली समस्त तकनीकों के रचनात्मक तरीके से इस्तेमाल को संभव बनाती है।
→ विकास और जीवन शैली- विकास का वैकल्पिक मॉडल विकास की मंहगी, पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली और प्रौद्योगिकी से संचालित सोच से दूर होने की कोशिश करता है। विकास को लोगों के जीवन की उस गुणवत्ता से नापा जाना चाहिए, जो उनकी प्रसन्नता, सुख-शांति और बुनियादी जरूरतों के पूरा होने में झलकती है। इस हेतु निम्न प्रयास किये जाने चाहिए
- प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने और ऊर्जा के फिर से प्राप्त हो सकने वाले स्रोतों का यथासंभव उपयोग करने के प्रयास किये जाने चाहिए। जैसे – वर्षा जल संचयन, सौर व जैव गैस संयंत्र, लघु पन बिजली परियोजना आदि।
- इन गतिविधियों को स्थानीय स्तर पर लागू करना तथा लोगों की अधिक संलग्नता आवश्यकता होगी।
- छोटे-छोटे बाँध बनाए जाएँ: इससे विस्थापन कम होगा तथा लागत कम आयेगी तथा स्थानीय आबादी के लिए हितकर होंगे।
- स्वतंत्रता और सृजनशीलता भरा जीवन स्तर: लोग विकास लक्ष्यों को तय करने में सक्रिय भागीदार हों। इससे अधिकार, स्वतंत्रता तथा न्याय का भी विस्तार होगा।