JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Jharkhand Board Class 11 Political Science भारतीय संविधान में अधिकार InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
भारतीय संविधान कौन-कौनसे मौलिक अधिकार प्रदान करता है?
उत्तर:
1978 में किये गये 44वें संविधान संशोधन के बाद से भारतीय संविधान निम्नलिखित छः मौलिक अधिकार प्रदान करता है।

  1. समता का अधिकार
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
  5. शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

प्रश्न 2.
मूल अधिकारों को कैसे सुरक्षित किया जाता है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में सूचीबद्ध मूल अधिकार वाद योग्य हैं। कोई व्यक्ति, निजी संगठन या सरकार के कार्यों से किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन होता है या उन पर सरकार द्वारा अनुचित प्रतिबन्ध लगाया जाता है, तो वह व्यक्ति ऐसे कार्य के विरुद्ध वाद दायर कर सकता है। न्यायालय सरकार के ऐसे कार्य को अवैध घोषित कर सकती है या सरकार को आदेश व निर्देश दे सकती है।

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प्रश्न 3.
मौलिक अधिकारों की व्याख्या और सुरक्षा करने में न्यायपालिका की क्या भूमिका रही है?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों की व्याख्या और सुरक्षा करने में न्यायपालिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यथा

  1. न्यायपालिका ने जब-जब उसके समक्ष मूल अधिकारों के अतिक्रमण के वाद नागरिकों के द्वारा दायर किये गये, न्यायपालिका ने तब-तब उनकी व्याख्या कर मूल अधिकारों के अतिक्रमण को रोका है।
  2. विधायिका या न्यायपालिका के किसी कार्य या निर्णय से यदि मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है या उन पर अनुचित प्रतिबन्ध लगाया गया है तो न्यायपालिका ने उस कार्य या प्रतिबन्ध को अवैध घोषित कर मूल अधिकारों की सुरक्षा प्रदान की है।

प्रश्न 4.
मौलिक अधिकारों तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में अन्तर: मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं।

  1. नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है, लेकिन राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों को कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।
  2. नीति-निर्देशक तत्त्व राज्य से सम्बन्धित हैं, जबकि मौलिक अधिकार नागरिकों से सम्बन्धित हैं।
  3. जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं, वहीं नीति-निर्देशक तत्त्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।
  4. मौलिक अधिकार खास तौर से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करते हैं, जबकि नीति-निर्देशक तत्त्व पूरे समाज के हित की बात करते हैं।

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प्रश्न 5.
अगर लालुंग धनी और ताकतवर होता तब क्या होता? यदि निर्माण करने वाले ठेकेदार के साथ काम करने वाले इंजीनियर होते तो क्या होता? क्या उनके साथ भी अधिकारों का इसी तरह से हनन होता?
उत्तर:
अगर लालुंग धनी और ताकतवर होता तो वह अपने संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए न्यायालय में स्वस्थ होने के बाद ही जेल से मुक्त होने के लिये चुनौती देता और न्यायालय के निर्णय के अनुसार ही जेल की सजा काटता।
यदि निर्माण करने वाले ठेकेदार के साथ काम करने वाले इंजीनियर होते तो वह उनका शोषण करने में सक्षम नहीं होता और उनके साथ अधिकारों का इस तरह से हनन नहीं होता।

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प्रश्न 6.
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों की तुलना दक्षिण अफ्रीका के संविधान में दिये गये अधिकारों के घोषणा-पत्र से करें। उन अधिकारों की एक सूची बनायें जो।
(क) दोनों संविधानों में पाये जाते हों।
(ख) दक्षिण अफ्रीका में हों पर भारत में नहीं।
(ग) दक्षिण अफ्रीका के संविधान में स्पष्ट रूप से दिये गये हों पर भारतीय संविधान में निहित माने जाते हैं?
उत्तर:
(क) भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों के संविधानों में पाये जाने वाले अधिकार निम्नलिखित हैं।

  1. निजता का अधिकार अर्थात् स्वतन्त्रता और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार।
  2. श्रम सम्बन्धी समुचित व्यवहार का अधिकार अर्थात् रोजगार में अवसर की समानता, शोषण के विरुद्ध अधिकार तथा कोई भी पेशा चुनने व व्यापार करने की स्वतन्त्रता।
  3. सांस्कृतिक, धार्मिक एवं भाषायी समुदायों का अधिकार ( धार्मिक स्वतन्त्रता तथा शिक्षा और संस्कृति सम्बन्धी अधिकार)।

(ख) वे अधिकार जो दक्षिण अफ्रीका में हैं, लेकिन भारत के संविधान में नहीं हैं, ये हैं।

  1. स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण का अधिकार
  2. स्वास्थ्य सुविधाएँ, भोजन, पानी और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
  3. बाल अधिकार
  4. बुनियादी और उच्च शिक्षा का अधिकार
  5. सूचना प्राप्त करने का अधिकार।

(ग) वे अधिकार जो दक्षिण अफ्रीका के संविधान में स्पष्ट रूप से दिये गये हों, पर भारतीय संविधान में निहित माने जाते हैं, ये हैं।

  1. समुचित आवास का अधिकार
  2. गरिमा का अधिकार।

सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकार में उपर्युक्त दोनों अधिकारों को निहित माना है।

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प्रश्न 7.
आप एक न्यायाधीश हैं। आपको उड़ीसा के पुरी जिले के दलित समुदाय के एक सदस्य- हादिबन्धु – से एक पोस्टकार्ड मिलता है। उसमें लिखा है कि उसके समुदाय के पुरुषों ने उस प्रथा का पालन करने से इन्कार कर दिया जिसके अनुसार उन्हें उच्च जातियों के विवाहोत्सव में दूल्हे और सभी मेहमानों के पैर धोने पड़ते थे। इसके बदले उस समुदाय की चार महिलाओं को पीटा गया और उन्हें निर्वस्त्र करके घुमाया गया। पोस्टकार्ड लिखने वाले के अनुसार, “हमारे बच्चे शिक्षित हैं और वे उच्च जातियों के पुरुषों के पैर धोने, विवाह में भोज के बाद जूठन हटाने और बर्तन मांजने का परम्परागत काम करने को तैयार नहीं हैं। यह मानते हुए कि उपर्युक्त तथ्य सही हैं, आपको निर्णय करना है कि क्या इस घटना में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है? आप इसमें सरकार को क्या करने का आदेश देंगे?
उत्तर:
यह मानते हुए कि उपर्युक्त तथ्य सही है। एक न्यायाधीश होने के नाते मैं एक निर्णय करूँगा कि इस घटना में ‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ तथा कोई भी पेशा चुनने तथा व्यापार करने की स्वतन्त्रता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। अपने देश में करोड़ों लोग गरीब, दलित-शोषित और वंचित हैं या लोगों द्वारा उनका शोषण बेगार या बन्धुआ मजदूरी के रूप में किया जाता रहा है। ऐसे शोषणों पर संविधान प्रतिबन्ध लगाता है। इसे अपराध घोषित कर दिया गया है और यह शोषण कानून द्वारा दण्डनीय है।

अतः शोषण का विरोध करने पर उस समुदाय की चार महिलाओं को जिन व्यक्तियों ने निर्वस्त्र करके घुमाया, उन्हें मैं कानून सम्मत दण्ड निर्धारित करूँगा तथा सरकार को यह आदेश दूँगा कि समाज में ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करें कि सभी लोग बिना किसी बाधा के स्वतन्त्रतापूर्वक अपने व्यवसाय का चुनाव कर सकें। जो व्यक्ति, समुदाय, संगठन इसमें बाधा डालता है, उसे रोके तथा दण्डित करे।

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प्रश्न 8.
कुछ ऐसे मामले भी हो सकते हैं जिनमें कानून एक आदमी की जिन्दगी ले सकता है? यह तो अजीब बात है। क्या आपको कोई ऐसा मामला याद आता है?
उत्तर:
कानून किसी भी आदमी की जिन्दगी नहीं ले सकता क्योंकि भारतीय संविधान में स्वतन्त्रता के अधिकारों के तहत ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है।’ किसी भी नागरिक को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किये बिना उसे जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। इसका अभिप्राय यह है कि किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताये गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। गिरफ्तार किये जाने पर उस व्यक्ति को अपने पसन्दीदा वकील के माध्यम से अपना बचाव करने का अधिकार है।

इसके अलावा, पुलिस के लिए यह आवश्यक है कि वह अभियुक्त को 24 घण्टे के अन्दर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश करे। मजिस्ट्रेट ही इस बात का निर्णय करेगा कि गिरफ्तारी उचित है या नहीं। इस अधिकार के द्वारा किसी व्यक्ति के जीवन को मनमाने ढंग से समाप्त करने के विरुद्ध गारण्टी मिलती है। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमा से पूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी अन्तर्निहित माना है।

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प्रश्न 9.
क्या आप मानते हैं कि निम्न परिस्थितियाँ स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्धों की माँग करती हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें।
(क) शहर में साम्प्रदायिक दंगों के बाद लोग शान्ति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं।
(ख) दलितों को मन्दिर में प्रवेश की मनाही है । मन्दिर में जबर्दस्ती प्रवेश के लिए एक जुलूस का आयोजन किया जा रहा है।
(ग) सैकड़ों आदिवासियों ने अपने परम्परागत अस्त्र तीर-कमान और कुल्हाड़ी के साथ सड़क जाम कर रखा है। ये माँग कर रहे हैं कि एक उद्योग के लिए अधिग्रहित खाली जमीन उन्हें लौटाई जाये।
(घ) किसी जाति की पंचायत की बैठक यह तय करने के लिए बुलाई गई कि जाति से बाहर विवाह करने के लिए एक नव दंपति को क्या दंड दिया जाए।
उत्तर:
(क) ‘शहर में साम्प्रदायिक दंगों के बाद लोग शान्ति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं।’ यह परिस्थिति स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्ध की माँग नहीं करती क्योंकि इसमें शान्तिपूर्वक ढंग से स्वतन्त्रता के अधिकार का उपयोग किया जा रहा है जिसका उद्देश्य साम्प्रदायिक दंगे फैलाना नहीं, बल्कि शान्तिमय वातावरण की स्थापना करना है।

(ख) ‘दलितों को मन्दिर में प्रवेश की मनाही है। मन्दिर में जबर्दस्ती प्रवेश के लिए एक जुलूस का आयोजन किया जा रहा है।’ यह परिस्थिति भी स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्ध की माँग नहीं करती क्योंकि समता के मूल अधिकार के अन्तर्गत सार्वजनिक स्थलों, जैसे दुकान, होटल, मनोरंजन स्थल, कुआँ, स्नान घाट और पूजा-स्थलों में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव वर्जित करता है। अतः दलितों को मन्दिर प्रवेश की मनाही इस मूल अधिकार का उल्लंघन है। इस मूल अधिकार के प्रयोग के लिए मन्दिर में जबरदस्ती प्रवेश का आयोजन करना अनुचित नहीं है। यह स्थिति भी स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्ध की माँग नहीं करती है। मन्दिर में जबरन प्रवेश का आयोजन किसी के स्वतन्त्रता के अधिकार का हनन नहीं कर रहा है, बल्कि समता के अधिकार को व्यावहारिक बना रहा है।

(ग) आदिवासियों द्वारा अस्त्र-शस्त्र आदि के साथ एकत्रित होना बिना अस्त्र-शस्त्र के शान्तिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने के स्वतन्त्रता के अधिकार का अतिक्रमण है। अस्त्र-शस्त्र के साथ एकत्रित होने व सभा करने की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध आवश्यक है।

(घ) जाति के बाहर विवाह करने के लिए एक नवदम्पति को दण्ड देने के लिए बुलाई गई जाति की पंचायत की बैठक स्वतन्त्रता के किसी अधिकार का अतिक्रमण नहीं है, बल्कि ‘विवाह कानून’ का उल्लंघन है। जाति की पंचायत को ऐसा दण्ड देने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। फिर भी यदि वह दण्ड देने की कार्यवाही करती है तो उसे सामान्य कानून की प्रक्रिया के तहत रोका जा सकता है।

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प्रश्न 10.
मैं अपने मुहल्ले में तो अल्पसंख्यक हूँ पर शहर में बहुसंख्यक भाषा के हिसाब से तो अल्पसंख्यक हूँ लेकिन धर्म के लिहाज से मैं बहुसंख्यक हूँ। क्या हम सभी अल्पसंख्यक नहीं?
उत्तर:
अल्पसंख्यक वह समूह है जिनकी अपनी एक भाषा या धर्म होता है और देश के किसी एक भाग में या पूरे देश में संख्या के आधार पर वे किसी अन्य समूह से छोटा है। इस प्रकार किसी समुदाय को केवल धर्म के आधार पर ही नहीं बल्कि भाषा और संस्कृति के आधार पर भी अल्पसंख्यक माना जाता है। हम सभी अल्पसंख्यक नहीं हैं। चूँकि आप बहुसंख्यक धर्म वाले समुदाय के सदस्य हैं, लेकिन इस क्षेत्र की भाषा आपकी मातृभाषा नहीं है । इसलिए भाषा की दृष्टि से आप अल्पसंख्यक हैं।

दूसरे जिस क्षेत्र में आप निवास कर रहे हैं, उस क्षेत्र के बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय से भिन्न जो दूसरे धार्मिक समुदाय के लोग निवास करते हैं, चाहे वे बहुसंख्यक भाषायी समुदाय के सदस्य है, अल्पसंख्यक कहलायेंगे। तीसरे, उस क्षेत्र में ऐसे लोग जो बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय और बहुसंख्यक भाषायी समुदाय के सदस्य हैं, वे अल्पसंख्यक नहीं कहलायेंगे।

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प्रश्न 11.
ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग शहरों में बेघर हैं। इनमें से 5 प्रतिशत लोगों के पास रात में सोने की जगह भी नहीं है। इनमें सैकड़ों बूढ़े और बीमार बेघर लोगों की जाड़े में शीतलहर से मृत्यु हो जाती है। उन्हें ‘निवास प्रमाण-पत्र’ न दे पाने के कारण रार्शन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र नहीं मिल पाते। इसके अभाव में उन्हें जरूरतमंद मरीज के रूप में सरकारी मदद भी नहीं मिल पाती। इनमें एक बड़ी संख्या में लोग दिहाड़ी मजदूर हैं जिन्हें बहुत कम मजदूरी मिलती है। वे मजदूरी की तलाश में देश के विभिन्न हिस्सों से शहरों में आते हैं। आप इन तथ्यों के आधार पर ‘संवैधानिक उपचारों के अधिकार’ के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भेजें। आपकी याचिका में निम्न दो बातों का उल्लेख होना चाहिए।
(क) इन बेघर लोगों के किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है?
(ख) आप सर्वोच्च न्यायालय से किस प्रकार का आदेश देने की प्रार्थना करेंगे?
उत्तर:
सेवा में,

श्रीमान मुख्य न्यायाधीश
सर्वोच्च न्यायालय, भारत

महोदय,
निवेदन है कि ” ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग शहरों में बेघर हैं। …………….-वे मजदूरी की तलाश में विभिन्न हिस्सों से शहरों में आते हैं।”
(क) महोदय, उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि इन लोगों के ‘जीवन जीने’ के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। क्योंकि आपके न्यायालय द्वारा पूर्व में दिये गए एक निर्णय के अनुसार, इस अधिकार में शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमा से पूर्ण जीवन जीने का अधिकार अन्तर्निहित है। इस प्रकार न्यायालय ने माना है कि जीवन के अधिकार का अर्थ है कि व्यक्ति को आश्रय और आजीविका का अधिकार हो क्योंकि इसके बिना कोई जिन्दा नहीं रह सकता।

(ख) उपर्युक्त उद्धरण में दिये गए तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग आवास और मजदूरी के अभाव में सर्दी की शीतलहर में मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। सरकार इन लोगों के ‘गरिमापूर्ण जीवन जीने’ के अधिकार की ओर उदासीन है। अतः आप देश की सरकार को ऐसा आदेश या निर्देश दें कि ये लोग गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उपभोग कर सकें और भविष्य में ऐसे लोगों के बेघर होने तथा शोषण व बिना आजीविका के कारण शीतलहर में मृत्यु न हो सके।

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प्रश्न 12.
मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्त्वों के बीच सम्बन्धों पर उठे विवाद के पीछे एक महत्त्वपूर्ण कारण था: मूल संविधान में सम्पत्ति अर्जन, स्वामित्व और संरक्षण को मौलिक अधिकार दिया गया था। लेकिन संविधान में स्पष्ट कहा गया था कि सरकार लोक-कल्याण के लिए सम्पत्ति का अधिग्रहण कर सकती है। 1950 से ही सरकार ने अनेक ऐसे कानून बनाये जिससे सम्पत्ति के अधिकार पर प्रतिबन्ध लगा। मौलिक अधिकारों और नीति- निर्देशक तत्त्वों के मध्य विवाद के केन्द्र में यही अधिकार था। आखिरकार 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में ‘सम्पत्ति के अधिकार’ को ‘संविधान के मूल ढाँचे’ का तत्त्व नहीं माना और कहा कि संसद को संविधान का संशोधन करके इसे प्रतिबन्धित करने का अधिकार है। 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने 44वें संविधान संशोधन के द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल दिया और संविधान के अनुच्छेद 300 ( क ) के अन्तर्गत उसे एक सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया। आपकी राय में ‘सम्पत्ति के अधिकार’ को मौलिक अधिकार से कानूनी अधिकार बनाने से क्या फर्क पड़ता है?
उत्तर:
मेरी राय में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से कानूनी अधिकार बनाने से यह फर्क पड़ता है कि अब सरकार कोई कानून बनाकर लोक-कल्याण के लिए जब किसी सम्पत्ति का अधिग्रहण करेगी तो उसका मालिक सम्पत्ति के मौलिक अधिकार के हनन के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय में सरकार के विरुद्ध याचिका प्रस्तुत नहीं कर सकेगा। अब उसे सम्पत्ति के सामान्य कानून के अन्तर्गत ही न्यायालय में वाद दायर करना होगा।

दूसरे, सम्पत्ति के मौलिक अधिकार के होने पर सरकार को उसके लोकहित में अधिग्रहण करने पर उसके बाजार मूल्य की राशि का मुआवजा देना पड़ता था, अब सरकार कोई भी राशि उसके एवज में कानून के अन्तर्गत निर्धारित कर सकती है। तीसरे, सम्पत्ति के मौलिक अधिकार के कारण ही नीति-निर्देशक तत्त्व और मूल अधिकारों के मध्य विवाद पैदा हुए। अब ऐसा कोई विवाद पैदा नहीं होगा।

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प्रश्न 13.
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में अधिकारों के घोषणा पत्र और भारतीय संविधान में दिए नीति- निर्देशक तत्त्वों को पढ़ें। दोनों सूचियों में आपको कौनसी बातें एकसमान लगती हैं?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में अधिकारों को घोषणा-पत्र और भारतीय संविधान में दिये नीति-निर्देशक तत्त्वों की सूचियों में निम्नलिखित बातें एकसमान लगती है।

  1. स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण
  2. स्वास्थ्य सुविधाएँ, भोजन, पानी और सामाजिक सुरक्षा
  3. बुनियादी और उच्च शिक्षा का अधिकार।

प्रश्न 14.
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में संवैधानिक अधिकारों को अधिकारों के घोषणा-पत्र में क्यों रखा? उत्तर-दक्षिण अफ्रीका का संविधान तब बनाया तथा लागू किया गया जब रंगभेद वाली सरकार के हटने के बाद दक्षिण अफ्रीका गृहयुद्ध के खतरे से जूझ रहा था। ऐसी स्थिति में नस्ल, लिंग, गर्भधारण, वैवाहिक स्थिति, जातीय या सामाजिक मूल, रंग, आयु, अपंगता, धर्म, अन्तरात्मा, आस्था, संस्कृति, भाषा और जन्म के आधार पर भेदभाव वर्जित करने के लिए नागरिकों को व्यापक अधिकार देना आवश्यक था। यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका के संविधान में संवैधानिक अधिकारों को अधिकारों के घोषणा-पत्र में रखा।

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प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि वह सही है या गलत।
(क) अधिकार-पत्र में किसी देश की जनता को हासिल अधिकारों का वर्णन रहता है।
(ख) अधिकार-पत्र व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा करता है।
(ग) विश्व के हर देश में अधिकार – पत्र होता है।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) सत्य
(ग) असत्य।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन मौलिक अधिकारों का सबसे सटीक वर्णन है?
(क) किसी व्यक्ति को प्राप्त समस्त अधिकार
(ख) कानून द्वारा नागरिक को प्रदत्त समस्त अधिकार
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त और सुरक्षित समस्त अधिकार
(घ) संविधान द्वारा प्रदत्त वे अधिकार जिन पर कभी प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता।
उत्तर:
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त और सुरक्षित समस्त अधिकार।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित स्थितियों को पढ़ें। प्रत्येक स्थिति के बारे में बताएँ कि किस मौलिक अधिकार का उपयोग या उल्लंघन हो रहा है और कैसे?
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल (Cabin Crew) के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है। नौकरी में तरक्की दी गई लेकिन उनकी ऐसी महिला सहकर्मियों को दण्डित किया गया जिनका वजन बढ़ गया था।
(ख) एक निर्देशक एक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाता है जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है।
(ग) एक बड़े बाँध के कारण विस्थापित हुए लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं।
(घ) आन्ध्र-सोसायटी आन्ध्र प्रदेश के बाहर तेलगू माध्यम से विद्यालय चलाती है।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है। पदोन्नति दी गई, लेकिन उन्हीं की साथी महिला सहकर्मियों को जिनका वजन बढ़ गया था, दण्डित किया गया। इस दशा में समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन हो रहा है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 16

  1. के अनुसार राज्य के अधीन किसी नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर की समानता होगी। अनुच्छेद 16
  2. के अनुसार राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के सम्बन्ध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान, निवास के आधार पर कोई विभेद नहीं किया जायेगा। लेकिन उपर्युक्त घटना में लिंग के आधार पर भेदभाव किया गया है। यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

(ख) ‘एक निर्देशक एक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाता है जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है।’ इस स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार का उपयोग हो रहा है। अनुच्छेद 19(i) के अनुसार सभी नागरिकों को विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है।

(ग) ‘एक बड़े बांध के कारण विस्थापित लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं।
इस स्थिति में अनुच्छेद 19(ii) के नागरिकों को प्रदत्त शान्तिपूर्ण सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता का उपयोग हो रहा है।

(घ) ‘आन्ध्र-सोसायटी आन्ध्र प्रदेश के बाहर तेलगू माध्यम से विद्यालय चलाती है।’
इस स्थिति में अल्पसंख्यकों के अधिकार का उपभोग हो रहा है। संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है। इसी के आधार पर आन्ध्र सोसायटी आन्ध्र प्रदेश के बाहर तेलगू भाषा के विद्यालय चलाती है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में कौन सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या है?
(क) शैक्षिक संस्था खोलने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के ही बच्चे उस संस्थान में पढ़ाई कर सकते हैं।
(ख) सरकारी विद्यालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों को उनकी संस्कृति और धर्म-विश्वासों से परिचित कराया जाए।
(ग) भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।
(घ) भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक यह माँग कर सकते हैं कि उनके बच्चे उनके द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं के अतिरिक्त किसी अन्य संस्थान में नहीं पढ़ेंगे।
उत्तर:
उपर्युक्त चारों कथनों में (ग) ‘भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।’ यही सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या है।

प्रश्न 5.
इनमें कौन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और क्यों?
(क) न्यूनतम देय मजदूरी नहीं देना।
(ख) किसी पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाना।
(ग) 9 बजे रात के बाद लाऊड स्पीकर बजाने पर रोक लगाना।
(घ) भाषण तैयार करना।
उत्तर:
(क) न्यूनतम देय मजदूरी नहीं देना: शोषण के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है। सर्वोच्च न्यायालय में अपने एक निर्णय में इस बात को स्वीकार किया है कि न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देना ‘बेगार’ या ‘बंधुआ मजदूरी’ जैसा है और नागरिकों को प्राप्त ‘शोषण के विरुद्ध’ मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

(ख) किसी पुस्तक पर प्रतिबंध लगाना: इस उदाहरण में विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है क्योंकि पुस्तक किसी एक व्यक्ति के या समूह के विचारों की अभिव्यक्ति है।

(ग) एवं

(घ) में किसी भी मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं है।

प्रश्न 6.
गरीबों के बीच काम कर रहे एक कार्यकर्त्ता का कहना है कि गरीबों को मौलिक अधिकारों की जरूरत नहीं है। उनके लिए जरूरी यह है कि नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बना दिया जाय। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताइए।
उत्तर:
मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ। यदि मूल अधिकारों को समाप्त कर दिया जायेगा तो समानता, स्वतन्त्रता और शोषण के विरुद्ध मौलिक अधिकार नहीं रहेगा। ऐसी स्थिति में अराजकता आ जायेगी। राजनैतिक स्वतन्त्रता और समानता के अभाव में आर्थिक समानता की स्थापना बाध्यकारी ढंग से करने पर नौकरशाही का बोलबाला हो जायेगा और वह निरंकुश हो जायेगी।

परिणामतः गरीब कार्यकर्त्ता को नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को लागू किये जाने का काम नहीं मिल पायेंगा। दूसरे, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों को बाध्यकारी बनाना संभव नहीं है। यदि इन सिद्धान्तों को बाध्यकारी बना दिया जाये तो उसके लिए व्यापक संसाधनों की व्यवस्था करनी पड़ेगी जो कि एक दुष्कर कार्य है।

प्रश्न 7.
अनेक रिपोर्टों से पता चलता है कि जो जातियाँ पहले झाडू देने के काम में लगी थीं, उन्हें अब भी मजबूरन यही काम करना पड़ रहा है। जो लोग अधिकार- पद पर बैठे हैं वे इन्हें कोई और काम नहीं देते। इनके बच्चों को पढ़ाई-लिखाई करने पर हतोत्साहित किया जाता है। इस उदाहरण में किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।
उत्तर:
इस उदाहरण से अग्रलिखित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
1. स्वतन्त्रता का अधिकार:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार सभी नागरिकों को वृत्ति, उपजीविका, व्यापार अथवा व्यवसाय की स्वतन्त्रता है। उक्त रिपोर्टों से यह पता चलता है कि आजीविका या पेशा चुनने की स्वतन्त्रता नहीं दी जा रही है । अतः उनके स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार का हनन हुआ है।

2. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार:
उपर्युक्त रिपोर्टों में दी गई स्थिति में झाडू देने वाली जातियों के व्यक्तियों के संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार का भी उल्लंघन हुआ है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 29 में यह स्पष्ट कहा गया है कि राज्य द्वारा घोषित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के भी आधार पर वंचित नहीं किया जायेगा।

3. समानता का अधिकार:
उपरोक्त घटना में समानता के अधिकार का भी उल्लंघन होता है। समानता के अधिकार के अनुसार भारत के राज्य-क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति कानून के समक्ष समान समझा जायेगा। धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। लेकिन उपरोक्त घटना में जाति के आधार पर भेदभाव किया गया है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 8.
एक मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत का ध्यान देश में मौजूद भुखमरी की स्थिति की तरफ खींचा भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में 5 करोड़ टन से ज्यादा अनाज भरा हुआ था। शोध से पता चलता है कि अधिकांश राशन कार्डधारी यह नहीं जानते कि उचित मूल्य की दुकानों से कितनी मात्रा में वे अनाज खरीद सकते हैं। मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत से निवेदन किया कि वह सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार करने का आदेश दे।
(क) इस मामले में कौन-कौनसे अधिकार शामिल हैं? ये अधिकार आपस में किस तरह जुड़े हैं?
(ख) क्या ये अधिकार जीवन के अधिकार का एक अंग हैं?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त उदाहरण के अन्तर्गत संवैधानिक उपचारों का अधिकार तथा जीवन का अधिकार शामिल हैं। ये अधिकार परस्पर जुड़े हुए हैं। भूख से मरने के कारण ‘जीवन के अधिकार’ का उल्लंघन हुआ। गोदामों में पाँच करोड़ टन अनाज होते हुए भी सरकार ने वितरण व्यवस्था ठीक नहीं की और मानव अधिकार समूह द्वारा न्यायालय से यह प्रार्थना की गई कि सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार के आदेश दे। इस प्रकार इसमें संवैधानिक उपचारों का अधिकार सम्मिलित है।

(ख) ये अधिकार यद्यपि अलग-अलग मूल अधिकार हैं तथापि ये इस मामले में ‘जीवन के अधिकार’ के भाग हैं।

प्रश्न 9.
इस अध्याय में उद्धृत सोमनाथ लाहिडी द्वारा संविधान सभा में दिये गये वक्तव्य को पढ़ें। क्या आप उनके कथन से सहमत हैं? यदि ‘हाँ’ तो इसकी पुष्टि में कुछ उदाहरण दें। यदि ‘नहीं’ तो उनके कथन के विरुद्ध तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
सोमनाथ लाहिडी द्वारा संविधान सभा में दिया गया वक्तव्य इस प्रकार है: “मैं समझता हूँ कि इनमें से अनेक मौलिक अधिकारों को एक सिपाही के दृष्टिकोण से बनाया गया है। आप देखेंगे कि काफी कम अधिकार दिये गये हैं और प्रत्येक अधिकार के बाद एक उपबन्ध जोड़ा गया है। लगभग प्रत्येक अनुच्छेद के बाद एक उपबन्ध है जो उस अधिकार को पूरी तरह से वापस ले लेता है। मौलिक अधिकारों की हमारी क्या अवधारणा होनी चाहिए? हम उस प्रत्येक अधिकार को संविधान में पाना चाहते हैं जो हमारी जनता चाहती हैं। ” मैं इस कथन से सहमत हूँ क्योंकि।

1. हमारे संविधान में मौलिक अधिकार कम दिये गये हैं। बहुत-सी ऐसी बातों को छोड़ दिया गया है जो मौलिक अधिकारों में शामिल होनी चाहिए थीं। जैसे काम करने का अधिकार, निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार, आवास का अधिकार, सूचना प्राप्त करने का अधिकार आदि।

2. प्रत्येक मौलिक अधिकार के साथ अनेक प्रतिबन्ध लगा दिये गए हैं जिससे यह समझना कठिन हो जाता है कि व्यक्ति को मौलिक अधिकारों से क्या मिला है। भारतीय संविधान इस प्रकार एक हाथ से नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है और दूसरे हाथ से वह उनसे उन मौलिक अधिकारों को छीन लेता है।

3. प्रत्येक मौलिक अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाने से यह स्पष्ट होता है कि ये अधिकार पुलिस के सिपाही के दृष्टिकोण से दिये गये हैं। हरिविष्णु कामथ ने भी संविधान सभा में कहा था कि “इस व्यवस्था द्वारा हम तानाशाही राज्य और पुलिस राज्य की स्थापना कर रहे हैं।” इसी प्रकार सरदार हुकुमसिंह ने कहा था कि “यदि हम इन स्वतन्त्रताओं को व्यवस्थापिका की इच्छा पर ही छोड़ देते हैं जो कि एक राजनीतिक दल के अलावा कुछ नहीं है, तो इन स्वतन्त्रताओं के अस्तित्व में भी सन्देह हो जायेगा ।” उदाहरण के लिए ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता’ पर कानून व्यवस्था, शान्ति और नैतिकता के आधार पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं। प्रशासन इस शक्ति का आसानी से दुरुपयोग कर सकता है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 10.
आपके अनुसार कौनसा मौलिक अधिकार सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? इसके प्रावधानों को संक्षेप में लिखें और तर्क देकर बताएँ कि यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
44वें संविधान द्वारा 1979 में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल देने के पश्चात् भारतीय संविधान में नागरिकों को छः मूल अधिकार दिये गये हैं। ये हैं।

  1. समता का अधिकार,
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार,
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार,
  4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार,
  5. शिक्षा तथा सम्पत्ति का अधिकार और
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार। यद्यपि ये सभी अधिकार महत्त्वपूर्ण हैं, तथापि इनमें ‘संवैधानिक उपचारों का अधिकार’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

संवैधानिक उपचारों के मौलिक अधिकार के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में सीधे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सरकार या उल्लंघनकर्त्ता को आदेश या निर्देश दे सकते हैं। ये न्यायालय इस हेतु बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध लेख, अधिकार पृच्छा या उत्प्रेषण लेख जारी कर सकते हैं। यह मौलिक अधिकार भारतीय संविधान में दिये अन्य मौलिक अधिकारों से निम्नलिखित कारणों से अधिक महत्त्वपूर्ण है-

  1. संवैधानिक उपचार के मौलिक अधिकार के माध्यम से ही न्यायालय ऐसे मामलों में त्वरित कार्यवाही करता है ताकि एक क्षण के लिए भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो सके।
  2. संवैधानिक उपचार के मौलिक अधिकार के माध्यम से ही मौलिक अधिकारों को व्यवहार में लाया जा सकता है तथा मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने पर उनकी रक्षा की जा सकती है। डॉ. अम्बेडकर ने इसीलिए इस अधिकार को ‘संविधान का हृदय’ और ‘आत्मा’ की संज्ञा दी है। इस अधिकार के बिना सभी मूलकार अव्यावहारिक हो जायेंगे।

भारतीय संविधान में अधिकार JAC Class 11 Political Science Notes

→ परिचय: भारत के संविधान के तीसरे भाग में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है; उसमें प्रत्येक मौलिक अधिकार के प्रयोग की सीमा का भी उल्लेख है।

→ अधिकारों का घोषणा-पत्र: अधिकतर लोकतान्त्रिक देशों में नागरिकों के अधिकारों को संविधान में सूचीबद्ध कर दिया जाता है। संविधान द्वारा प्रदान किये गये और संरक्षित अधिकारों की ऐसी सूची को ‘अधिकारों का घोषणा- पत्र’ कहते हैं। अधिकारों का घोषणा-पत्र सरकार को नागरिकों के अधिकारों के विरुद्ध काम करने से रोकता है और उसका उल्लंघन हो जाने पर उपचार सुनिश्चित करता है। संविधान नागरिकों के अधिकारों को अन्य व्यक्ति या नागरिकों, निजी संगठन तथा सरकार की विभिन्न संस्थाओं से संरक्षित करता है।

→ भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार।

  • मौलिक अधिकार से आशय – संविधान में उन अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया है जिन्हें सुरक्षा देनी थी और इन अधिकारों को मौलिक अधिकारों की संज्ञा दी गई है। उनकी सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान बनाये गये हैं। वे इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि संविधान स्वयं यह सुनिश्चित करता है कि सरकार भी उनका उल्लंघन न कर सके।
  • मौलिक अधिकार अन्य अधिकारों से भिन्न हैं।
    • कानूनी अधिकारों की सुरक्षा हेतु जहाँ साधारण कानूनों का सहारा लिया जाता है, वहाँ मौलिक अधिकारों की गारण्टी व सुरक्षा संविधान स्वयं करता है।
    • सामान्ये अधिकारों को संसद कानून बनाकर परिवर्तित कर सकती है, लेकिन मौलिक अधिकारों में परिवर्तन के लिए संविधान संशोधन आवश्यक है।
    • सरकार के कार्यों से मौलिक अधिकारों के हनन को रोकने की शक्ति और इसका उत्तरदायित्व न्यायपालिका के पास है।
    • मौलिक अधिकार निरंकुश या असीमित अधिकार नहीं हैं। सरकार मौलिक अधिकारों के प्रयोग पर ‘औचित्यपूर्ण’ प्रतिबन्ध लगा सकती है।

→ भारतीय संविधान में प्रदत्त प्रमुख मौलिक अधिकार; भारतीय संविधान में नागरिकों को निम्नलिखित प्रमुख मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं। समता का अधिकार: समता के अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का समावेश किया गया है।

  • कानून के समक्ष समानता
  • कानून का समान संरक्षण
  • धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध दुकानों, होटलों, कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों आदि में प्रवेश की समानता
  • रोजगार में अवसर की समानता
  • उपाधियों का अन्त
  • छुआछूत की समाप्ति।

→ स्वतन्त्रता का अधिकार:
(क) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार इस अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित स्वतन्त्रताओं का समावेश किया गया है।

  • भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
  • शान्तिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने की स्वतन्त्रता,
  • संगठित होने की स्वतन्त्रता,
  • भारत में कहीं भी आने-जाने की स्वतन्त्रता,
  • भारत के किसी भी हिस्से में बसने और रहने की स्वतन्त्रता,
  • कोई भी पेशा चुनने, व्यापार करने की स्वतन्त्रता,

(ख) अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण;
(ग) जीवन की रक्षा और दैहिक स्वतन्त्रता का अधिकार;
(घ) शिक्षा का अधिकार तथा
(ङ) अभियुक्तों और सजा पांए लोगों के अधिकार।

→ शोषण के विरुद्ध अधिकार: इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का समावेश किया गया है।

  • मानव के दुर्व्यापार और बंधुआ मजदूरी पर रोक,
  • 14 वर्ष से कम उम्र के बालकों को जोखिम वाले कामों में मजदूरी कराने पर रोक। बाल-श्रम को अवैध बनाकर और शिक्षा को बच्चों का मौलिक अधिकार बनाकर शोषण के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार को और अर्थपूर्ण बनाया गया है।

→ धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार: सके अन्तर्गत इन बातों का समावेश किया गया है।

  • आस्था और प्रार्थना की आजादी,
  • धार्मिक मामलों के प्रबन्धन,
  •  किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए कर अदायगी की स्वतंत्रता,
  • कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित होने की स्वतंत्रता,
  • सभी धर्मों की समानता।

→ सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार: इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बातें समाहित हैं।

  1. अल्पसंख्यकों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।
  2. अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार।

→ संवैधानिक उपचारों का अधिकार: इसके तहत मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए न्यायालय में जाने का अधिकार आता है। न्यायालय बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध आदेश, अधिकार पृच्छा तथा उत्प्रेषण लेख के माध्यम से मूल अधिकारों की रक्षा करता है। राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व: नीति-निर्देशक तत्त्व से आशय संविधान के भाग चार में नीतियों की एक निर्देशक सूची रखी गयी है। निर्देशों की इस सूची को राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व कहते हैं। नीति-निर्देशक तत्त्व ‘वाद  योग्य’ नहीं हैं। नीति-निर्देशक तत्त्वों की सूची में तीन प्रमुख बातें हैं।

  • वे लक्ष्य और उद्देश्य जो एक समाज के रूप में हमें स्वीकार करने चाहिए।
  • वे अधिकार जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अलावा मिलने चाहिए।
  • वे नीतियाँ जिन्हें सरकार को स्वीकार करना चाहिए।

समय-समय पर सरकार ने कुछ नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने का प्रयास किया है।

→  नीति-निर्देशक तत्त्वों के उद्देश्य: राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के उद्देश्य ये हैं।

  • लोगों का कल्याण; सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय।
  • जीवन स्तर ऊँचा उठाना; संसाधनों का समान वितरण।
  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा देना।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

→ प्रमुख नीतियाँ:

  • समान नागरिक संहिता,
  • मद्यपान निषेध,
  • घरेलू उद्योगों को बढ़ावा,
  • उपयोगी पशुओं को मारने पर रोक,
  • ग्राम पंचायतों को प्रोत्साहन।

→ ऐसे अधिकार जिनके लिए न्यायालय में दावा नहीं किया जा सकता:

  • पर्याप्त जीवन-यापन,
  • महिलाओं और पुरुषों को समान काम की समान मजदूरी,
  • आर्थिक शोषण के विरुद्ध अधिकार,
  • काम का अधिकार तथा
  • छः वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-रेख और शिक्षा।

→ नीति-निर्देशक तत्त्वों और मौलिक अधिकारों में सम्बन्ध: मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्त्वों को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जा सकता है। यथा

  • जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं, वहीं नीति-निर्देशक तत्त्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।
  • मौलिक अधिकार खास तौर से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करते हैं, पर नीति-निर्देशक तत्त्व पूरे समाज के हित की बात करते हैं। लेकिन कभी-कभी जब सरकार नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने का प्रयास करती है, तो वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों से टकरा सकते हैं।

→ नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्य: 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों की एक सूची का समावेश किया गया है जिसमें कुल 10 कर्त्तव्यों का उल्लेख किया गया है। लेकिन इन्हें लागू करने के सम्बन्ध में संविधान मौन है।

→ प्रमुख कर्त्तव्यु: संविधान में वर्णित नागरिकों के प्रमुख कर्त्तव्य हैं। संविधान का पालन करना, देश की रक्षा करना, सभी नागरिकों में भाईचारा बढ़ाने का प्रयत्न करना तथा पर्यावरण की रक्षा करना। संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों के समावेश से हमारे मौलिक अधिकारों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है।

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