Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता
Jharkhand Board Class 12 History ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता InText Questions and Answers
पृष्ठ संख्या 4
प्रश्न 1.
क्या आपको लगता है कि इन औजारों का प्रयोग फसल कटाई के लिए किया जाता होगा ?
उत्तर:
पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है।इसके लिए हड़प्पा सभ्यता के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों का प्रयोग करते थे या फिर वे धातु के औजारों का प्रयोग करते होंगे। इन औजारों को देखने से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इनका प्रयोग फसलों की कटाई के लिए किया जाता होगा।
पृष्ठ संख्या 4 : चर्चा कीजिए
प्रश्न 2.
आहार सम्बन्धी आदतों को जानने के लिए पुरातत्वविद किन साक्ष्यों का इस्तेमाल करते हैं ?
उत्तर:
आहार सम्बन्धी आदतों को जानने के लिए पुरातत्वविद निम्नलिखित साक्ष्यों का प्रयोग करते हैं –
(1) जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज- जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्वविद आहार सम्बन्धी आदतों के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं। इनका अध्ययन पुरा वनस्पतिज्ञ करते हैं जो प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं। अनाज के दानों में गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना तथा तिल शामिल हैं। बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए थे।
(2) जानवरों की हड्डियाँ हड़प्पा स्थलों से मिली जानवरों की हड्डियों में पशुओं भेड़, बकरी, भैंसे या सूअर की हड्डियाँ शामिल हैं। पुरा प्राणि विज्ञानियों अथवा जीव- पुरातत्त्वविदों द्वारा किए गए अध्ययनों से ज्ञात होता है कि ये सभी जानवर पालतू थे। वे मछली तथा पक्षियों की हड्डियों का भी सेवन करते थे।
(3) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों का भी सेवन करते थे।
पृष्ठ संख्या 4.
प्रश्न 3.
पुरातत्वविद वर्तमान समय की तुलनाओं से यह समझने का प्रयास करते हैं कि प्राचीन पुरावस्तुएँ किस प्रयोग में लायी जाती थीं। मैके खोजी गई वस्तु की तुलना आजकल की चक्कियों से कर रहे थे। क्या यह एक उपयोगी नीति है ?
उत्तर:
पुरातत्वविद खोजों का वर्गीकरण दो सिद्धान्तों पर करते हैं –
(1) प्रयुक्त पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि, हाथीदाँत आदि के आधार पर।
(2) पुरावस्तुओं की उपयोगिता के आधार पर।
पुरातत्वविद मिली हुई वस्तुओं की आजकल की मिलती-जुलती चीजों से तुलना करके निष्कर्ष निकाल लेते हैं। पुरातत्वविद यह भी देखते हैं कि पुरावस्तु घर में मिली थी अथवा नाले में कब्र में या फिर भट्टी में प्रसिद्ध पुरातत्वविद मैके द्वारा खोजी गई वस्तु की तुलना आजकल की चक्कियों से करते थे और निष्कर्ष निकाल लेते थे। वर्तमान समय की तकनीकी अत्यधिक उन्नत है तथा हड़प्पा सभ्यता की तकनीक अपेक्षाकृत पिछड़ी हुई और अविकसित थी अतः उसकी तुलना आज की तकनीक से करना उचित नहीं है। इस प्रकार हड़प्पा में प्राप्त वस्तुओं की तुलना आज की वस्तुओं से करना उचित नहीं है।
पृष्ठ संख्या 5
प्रश्न 4.
निचला शहर दुर्ग से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो दो भागों में विभाजित था –
(1) निचला शहर तथा
(2) दुर्ग। निचला शहर दुर्ग से निम्न बातों में भिन्न है –
- दुर्ग मोहनजोदड़ो नगर के पश्चिमी भाग में बना हुआ था। इसके भवन कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बने थे।
- दुर्ग ऊँचाई पर बनाया गया था, जबकि निचला शहर नीचे बनाया गया था।
- निचला शहर मोहनजोदड़ो के पूर्वी भाग में था। यहाँ कई भवन ऊँचे चबूतरों पर बने हुए थे जो नींव का कार्य करते थे।
- दुर्ग में अनेक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्मारक एवं भवन स्थित थे जिनमें मालगोदाम तथा विशाल स्नानागार उल्लेखनीय थे। निचले शहर में योजनाबद्ध तरीके से बने हुए भवन मिलते हैं। निचले शहर में सामान्य लोग रहते थे।
पृष्ठ संख्या 7
प्रश्न 5.
आँगन कहाँ है? दो सीढ़ियाँ कहाँ हैं? आवास का प्रवेशद्वार कैसा है?
उत्तर:
1. आँगन 18 क बिन्दु पर देखें।
2. सीढ़ियाँ 14 तथा 16 अंक पर हैं।
3. आवास का प्रवेश द्वार पीछे की ओर तथा दरवाजे से रहित है।
पृष्ठ संख्या 8
प्रश्न 6.
क्या दुर्ग पर मालगोदाम तथा स्नानागार के अतिरिक्त अन्य संरचनाएँ भी हैं ?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो के दुर्ग पर मालगोदाम तथा स्नानागार के अतिरिक्त कुछ अन्य संरचनाएँ भी मिली हैं। मोहनजोदड़ो के दुर्ग में एक विशाल भवन मिला है जो 230 फीट लम्बा तथा 115 फीट चौड़ा है। इसमें दो आँगन, भण्डारागार तथा कुछ कमरे बने हुए हैं। डॉ. मैके के अनुसार इस विशाल भवन में शायद नगर के राज्यपाल निवास करते थे। मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार के निकट एक भवन मिला है जो 80 फीट लम्बा तथा 80 फीट चौड़ा है। इसकी छत 20 स्तम्भों पर टिकी हुई है। पृष्ठ संख्या 8 : चर्चा कीजिए
प्रश्न 7.
मोहनजोदड़ो के कौनसे वास्तुकला सम्बन्धी लक्षण नियोजन की ओर संकेत करते हैं ?
उत्तर:
(1) प्रत्येक नगर दो भागों में विभाजित था –
(i) दुर्ग
(ii) निचला शहर
(2) कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे।
(3) एक बार चबूतरों यथास्थान बनने के बाद शहर का समस्त भवन-निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था।
(4) ईंटें एक निश्चित अनुपात की होती थीं।
(5) मोहनजोदड़ो में नियोजित जल-निकास प्रणाली थी।
(6) सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति में बनाया गया था और ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
पृष्ठ संख्या 10 चर्चा कीजिए
प्रश्न 8.
आधुनिक समय में प्रचलित मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियों पर चर्चा कीजिए ये किस सीमा तक सामाजिक भिन्नताओं को परिलक्षित करती हैं ?
उत्तर:
आधुनिक समय में प्रचलित मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियों निम्नलिखित हैं-
(1) दाहकर्म – इसमें शव को जला दिया जाता है।
(2) पूर्ण समाधि – इसमें शव को पृथ्वी के नीचे गाड़ दिया जाता है।
(3) आंशिक समाधि इसमें शव को पशु-पक्षियों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है।
मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियों से सामाजिक भिन्नताओं का पता चलता है हिन्दू धर्मावलम्बी सर्वो को जलाते हैं तथा मुसलमान एवं ईसाई शवों को दफनाते हैं। कुछ सम्प्रदायों के लोग शवों को पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते हैं। इस प्रकार किसी भी सभ्यता एवं संस्कृति के लोगों के बीच सामाजिक मित्रता की जानकारी प्राप्त कराने में मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियाँ महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।
पृष्ठ संख्या 11 चर्चा कीजिए
प्रश्न 9.
इस अध्याय में दिखाई गई पत्थर की पुरावस्तुओं की एक सूची बनाइये। इनमें से प्रत्येक के संदर्भ में चर्चा कीजिए कि क्या इन्हें उपयोगी अथवा विलास की वस्तुएँ माना जाए। क्या इनमें ऐसी वस्तुएँ भी हैं, जो दोनों वर्गों में रखी जा सकती हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता से हमें पत्थर की अनेक पुरावस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। इनमें अवतल चक्की, मुहरें, बाट, फलक, औजार तथा हथियार, पाषाण मूर्तियाँ, लिंग, लघु चक्राकार पत्थर आदि वस्तुएँ उपयोगी जानी जाती हैं। बहुमूल्य पत्थरों के बने हुए आभूषण तथा मनके विलासिता की वस्तुएँ मानी जाती हैं। मनकों तथा आभूषणों को हम दोनों वर्गों में रख सकते हैं अर्थात् ये उपयोगी एवं विलासिता की वस्तुएँ मानी जा सकती हैं।
पृष्ठ संख्या 14 चर्चा कीजिए
प्रश्न 10.
हड़प्पाई क्षेत्र से ओमान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया तक कौनसे मार्गों से जाया जा सकता था ?
उत्तर:
हड़प्पाई क्षेत्र से ओमान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया तक समुद्री मार्गों से जाया जा सकता था। मेसोपोटामिया के लेखों में मेलुहा को नाविकों का देश कहा गया है। इसके अतिरिक्त हड़प्पाई मुहरों पर बने जहाजों तथा नावों के चित्रों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि हड़प्पाई क्षेत्र से ओमान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया तक समुद्री मार्गों से जाया जा सकता था।
पृष्ठ संख्या 15
प्रश्न 11.
मिट्टी के इस टुकड़े पर कितनी मुहरों की छाप दिखती है?
उत्तर:
मिट्टी के इस टुकड़े पर स्पष्टतः तीन मुहरों की छाप दिखाई देती है।
पृष्ठ संख्या 15 चर्चा कीजिए
प्रश्न 12.
वर्तमान समय में सामान के लम्बी दूरी के विनिमय के लिए प्रयुक्त कुछ तरीकों पर चर्चा कीजिये। उनके क्या-क्या लाभ और समस्याएँ हैं?
उत्तर:
वर्तमान समय में सामान के लम्बी दूरी के विनिमय के लिए निम्नलिखित साधन प्रयुक्त किये जाते हैं –
- वायुयान वायुयान में सामान को बड़ी शीघ्रतापूर्वक दूर-दूर के स्थानों पर भेजा जा सकता है, परन्तु यह साधन बड़ा खर्चीला है और इसके द्वारा केवल सीमित मात्रा में ही सामान भेजा जा सकता है।
- जहाज जहाज के माध्यम से विपुल मात्रा में सामान विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में भेजा जा सकता है, परन्तु इसमें काफी समय लगता है।
- रेलगाड़ी – रेलगाड़ी के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में बड़ी मात्रा में सामान भेजा जा सकता है परन्तु इसके माध्यम से दूसरे देशों में सामान भेजना सम्भव नहीं
है।
पृष्ठ संख्या 16 चर्चा कीजिए
प्रश्न 13.
क्या हड़प्पाई समाज में सभी लोग समान रहे होंगे ?
उत्तर:
कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। परन्तु कुछ पुरातत्वविदों की मान्यता है कि हड़प्पा में एक नहीं, बल्कि कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग राजा होते थे परन्तु कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि हड़प्पा एक ही राज्य था जैसा कि पुरावस्तुओं में समानताओं, नियोजित बस्तियों के साक्ष्यों, ईंटों के आकार में निश्चित अनुपात तथा बस्तियों के कच्चे माल के स्रोतों के निकट स्थापित होने से स्पष्ट है। अतः यह सम्भव प्रतीत नहीं होता कि हड़प्पाई समाज में सभी लोग समान रहे होंगे कुछ विद्वानों का मत है कि उस काल में पुरोहितों का एक अलग वर्ग रहा होगा और तत्कालीन समाज में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान रहा होगा।
पृष्ठ संख्या 21 चर्चा कीजिए
प्रश्न 14.
इस अध्याय में दिए गए विषयों में से कौनसे कनिंघम को रुचिकर लगते? 1947 के बाद से कौन- कौन से प्रश्न रोचक माने गए हैं?
उत्तर:
कनिंघम की मुख्य रुचि आरम्भिक ऐतिहासिक लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी। वे सांस्कृतिक महत्त्व के विषयों में अधिक रुचि लेते थे। 1947 के बाद से पुरातत्वविद सामान्यतया सांस्कृतिक उपक्रम का पता लगाने, भौगोलिक स्थिति के पीछे निहित कारणों को समझने तथा पुरावस्तु रूपी विधि की खोज करने और उनकी संभावित उपयोगिता को समझने का प्रयास करते हैं।
पृष्ठ संख्या 24: चर्चा कीजिए
प्रश्न 15.
हड़प्पाई अर्थव्यवस्था के वे कौन-कौनसे पहलू हैं, जिनका पुनर्निर्माण पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर किया गया है?
हड़प्पा
उत्तर:
निम्नलिखित पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर की अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं का पुनर्निर्माण किया जा सकता है-
- विभिन्न प्रकार के खाद्यान्नों की जानकारी
- कृषि प्रौद्योगिकी की जानकारी
- शिल्प-उत्पादन के विषय में जानकारी
- उत्पादन केन्द्रों की जानकारी
- मेसोपायमिया, ओमान, बहरीन आदि से व्यापारिक सम्बन्धों की जानकारी
- कच्चा माल प्राप्त करने की नीतियाँ
- स्थल मार्ग एवं जलमार्ग से व्यापार
- आन्तरिक एवं विदेशी व्यापार की व्यवस्था
- व्यापार के लिए वस्तु विनिमय की प्रणाली
- निश्चित माप-तौल के बाटों का प्रचलन।
Jharkhand Board Class 12 History ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Text Book Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए –
प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइये। इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के शहरों के लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची निम्नलिखित है –
(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद
(2) मांस तथा मछली
(3) गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, बाजरा, चावल, तिल आदि खाद्य पदार्थ।
हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों तथा जानवरों से प्राप्त मांस आदि का सेवन करते थे। ये लोग मछली का भी सेवन करते थे। हड़प्पा- स्थलों से गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाज के दाने प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा निवासी भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर के मांस का सेवन करते थे। इस बात की पुष्टि हड़प्पा स्थलों से मिली इन जानवरों की हट्टियों से होती है। इसके अतिरिक्त हिरण, घड़ियाल आदि की हड्डियाँ भी मिली हैं। सम्भवतः हड़प्पा निवासी इन जानवरों के मांस का भी सेवन करते थे। मुख्यतः हड़प्पा निवासी उपर्युक्त भोजन सामग्री को स्थानीय स्तर पर प्राप्त करते थे। आखेटक, मछुआरे, किसान तथा खाद्यान्न व्यापारी इत्यादि इन भोज्य पदार्थों को उन्हें उपलब्ध कराते थे।
भोजन सामग्री को उपलब्ध कराने वाले समूह
भोजन सामग्री की सूची | समूह |
(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद | संग्राहक |
(2) मांस तथा मछली | आखेटक समुदाय |
(3) गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल | किसान |
प्रश्न 2.
पुरातत्वविद हड़प्पाई समाज में सामाजिक- आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं? वे कौनसी भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं?
उत्तर:
पुरातत्त्वविदों को हड़प्पाई स्थलों के उत्खनन में कई सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं जिनके आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि समाज में कई वर्ग थे। इन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता हैं –
(1) अनेक स्थलों पर बड़े मकान तथा राजप्रासाद जैसे भवन मिले हैं वहीं दूसरी ओर एक तथा दो कमरों वाले मकान आर्थिक तथा सामाजिक भिन्नता को दर्शाते हैं।
(2) खुदाई में अनेक स्थानों पर स्वर्ण, रजत तथा अन्य बहुमूल्य धातुओं के आभूषण प्राप्त हुए हैं।
(3) शवाधानों में मृतकों को दफनाते समय विभिन्न प्रकार की सामग्री रखी जाती थी। इन सामग्रियों से महिलाओं तथा पुरुषों की आर्थिक स्थिति की विभिन्नता का अंदाजा लगाया जा सकता था। शवों को दफनाने वाले गत की बनावट में भी अन्तर था।
(4) हड़प्पाई वस्त्रों में भी सामाजिक भिन्नता दिखाई देती है। जहाँ धनी लोग रेशम तथा मलमल के वस्त्रों का प्रयोग करते थे वहीं निम्न आर्थिक स्थिति वाले सूती तथा ऊनी वस्त्र का प्रयोग करते थे।
इस प्रकार प्राप्त अवशेषों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि समाज में कई वर्ग थे। सामान्य वर्ग में कुम्भकार, बढ़ई, सुनार, शिल्पकार, लुहार, जुलाहे, राजगीर, श्रमिक तथा किसान आदि लोग रहे होंगे। विशिष्ट वर्ग में राजकर्मचारी, सेनाधिकारी आदि रहे होंगे। इस प्रकार पुरातत्त्वविदों को उत्खनन में अनेक ऐसी सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं जिनके आधार पर हमें सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नता का पता चलता है।
प्रश्न 3.
क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली, नगर-योजना की ओर संकेत करती है? अपने उत्तर के कारण बताइये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली हम इस तथ्य से पूर्णतया सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली नगर योजना की ओर संकेत करती है। इसकी पुष्टि में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं –
(1) हड़प्पा के शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके आस-पास आवासों का निर्माण किया गया था। मकानों से आने वाली नालियों गली की नालियों से मिल जाती थीं। प्रत्येक मकान की कम से कम एक दीवार गली से सटी होती थी ताकि मकानों के गन्दे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ा जा सके। इस प्रकार हर आवास गली की नालियों से जोड़ा गया था।
(2) मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और ये नाले ऐसी ईंटों से ढके रहते थे जिन्हें सफाई के लिए हटाया जा सके। कुछ स्थानों पर इन्हें ढकने के लिए चूना पत्थर की पट्टिका का प्रयोग किया गया था।
(3) घरों की नालियाँ पहले एक होदी अथवा मलकुंड़ में खाली होती थीं जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गन्दा पानी गली की नालियों में यह जाता था। कुछ नाले बहुत लम्बे होते थे। उनमें कुछ फासले पर सफाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थीं। इस प्रकार नालियों के द्वारा घरों, गलियों और सड़कों का गन्दा पानी नगर के बाहर निकाल दिया जाता था।
प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइये कोई भी एक प्रकार का मनका बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची हड़प्पा निवासी मनके बनाने में निपुण थे। मनकों के निर्माण में अनेक पदार्थों का प्रयोग किया जाता था। इनके बनाने में सुन्दर लाल रंग के पत्थर कार्नीलियन जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर, ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ तथा शंखं फयॉन्स तथा पक्की मिट्टी आदि पदार्थों का प्रयोग किया जाता था। चन्हूदड़ो में मनके बनाने का एक कारखाना था।
मनके बनाने की प्रक्रिया मनके बनाने की प्रक्रिया का वर्णन निम्नानुसार है –
- कुछ मनके सेलखड़ी चूर्ण के लेप को साँचे में ढाल कर तैयार किये जाते थे। इससे ठोस पत्थरों से बनने वाले केवल ज्यामितीय आकारों के विपरीत कई विविध आकारों के मनके बनाए जा सकते थे।
- कार्नीलियन का लाल रंग, पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में भनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था।
- पत्थर के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था और फिर बारीकी से शल्क निकालकर इन्हें अन्तिम रूप दिया जाता था।
- इसके बाद पिसाई, पालिश और इनमें छेद करने के साथ ही मनके बनाने की प्रक्रिया पूरी होती थी।
प्रश्न 5.
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 26 के चित्र को देखिए और उसका वर्णन कीजिए। शव किस प्रकार रखा गया है? उसके समीप कौनसी वस्तुएँ रखी गई हैं? क्या शरीर पर कोई पुरावस्तुएँ हैं? क्या इनसे कंकाल के लिंग का पता चलता है?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में हमें अनेक करें प्राप्त हुई हैं। पुरातत्व विज्ञानी साधारणतया किसी समुदाय की सामाजिक तथा आर्थिक विभिन्नताओं को जानने के लिए उनकी कब्रों की जाँच करते थे। इन कब्रों से हमें हड़प्पा संस्कृति के विषय में महत्वपूर्ण सूचनाएँ मिलती हैं। चित्र में दिखाई गई कब्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह शव उत्तर-दक्षिण दिशा में रखा गया है। अधिकांश शवाधान इसी दिशा में किए जाते थे जो किसी विशेष विश्वास के द्योतक हैं।
चित्र में दिखाए गए शव के पास दैनिक जीवन के उपयोग में आने वाली वस्तुएँ रखी गयी हैं। लोगों को यह विश्वास था कि वह वस्तुएँ मरने वाले व्यक्ति के अगले जन्म में उसके काम आएंगी। इस शव के पास मृदभांड, विभिन्न मनके, शंख, ताँबे का दर्पण तथा विभिन्न आभूषण इत्यादि रखे हुए हैं। चित्र में देखने के पश्चात् हाथों में दिखाई देने वाले कंगन से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह शव किसी महिला का है। निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए। (उत्तर लगभग 500 शब्दों में)
प्रश्न 6.
मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताएँ. मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा नियोजित शहरी केन्द्र था। यह हड़प्पा सभ्यता का सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है। मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) एक नियोजित शहरी केन्द्र-मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र था। यह दो भागों में विभाजित था। इनमें से एक भाग छोटा था जो ऊँचाई पर बनाया गया था तथा दूसरा बड़ा भाग निचला शहर कहलाता था। दुर्ग की ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था। इस प्रकार दीवार ने दुर्ग को निचले शहर से अलग कर दिया था।
(2) निचला शहर निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। निचले शहर के अनेक भवनों को अन्य चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे। एक अनुमान लगाया गया है कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा तो केवल आधारों को बनाने के लिए ही 40 लाख श्रम दिवसों की आवश्यकता पड़ी होगी। इस प्रकार मोहनजोदड़ो के निर्माण के लिए बहुत बड़े पैमाने पर श्रम की आवश्यकता पड़ी होगी।
(3) शहर का नियोजन शहर का समस्त भवन- निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले मोहनजोदड़ो का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार निर्माण कार्य किया गया होगा। नियोजन के अन्य लक्षणों में ईंटें शामिल हैं। भले ही ईंटें धूप में सुखा कर अथवा भट्टी में पका कर बनाई गई हों, ये एक निश्चित अनुपात की होती थीं। इनकी लम्बाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी तथा दोगुनी होती थीं। इस प्रकार की ईंटें सभी हड़प्पा बस्तियों में प्रयोग में लाई गई थीं।
(4) नियोजित जल निकास प्रणाली-मोहनजोदड़ो की एक प्रमुख विशिष्टता उसकी नियोजित जल निकास प्रणाली थी। शहर की सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति से बनाया गया था और ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके आस-पास घरों का निर्माण किया गया था। घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था।
(5) गृह स्थापत्य (आवासीय भवन ) – मोहनजोदड़ो के निचले शहरों में आवासीय भवन थे। इनमें से कई आवासों में एक आँगन था जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे। सम्भवतः आँगन खाना पकाने और कताई करने जैसी गतिविधियों का केन्द्र था, विशेष रूप से गर्म और शुष्क मौसम में मोहनजोदड़ो के लोग अपनी एकान्तता को बड़ा महत्त्व देते थे। इसका प्रमाण यह है कि भूमितल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं हैं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आन्तरिक भाग अथवा आँगन को सीधा नहीं देखा जा सकता था।
(i) स्नानघर हर घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था इसकी नालियाँ दीवार के माध्यम से सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थीं।
(II) सीढ़ियाँ कुछ घरों में दूसरी मंजिल या छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई थीं।
(iii) कुएँ कुछ घरों में कुएँ थे। कुएँ प्रायः ऐसे कक्ष में बनाए गए थे जिसमें बाहर से आया जा सकता था। इनका प्रयोग सम्भवतः राहगीरों द्वारा किया जाता था। विद्वानों के अनुसार मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग 700 थी।
(6) दुर्ग- मोहनजोदड़ो नगर के दुर्ग पर ऐसी संरचनाएँ मिली हैं जिनका प्रयोग सम्भवतः विशिष्ट सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए किया जाता था।
(i) मालगोदाम- इनमें एक महत्त्वपूर्ण संरचना मालगोदाम है। यह एक विशाल संरचना है जिसके ईटों से बने केवल निचले हिस्से ही बाकी रह गए हैं जबकि ऊपरी हिस्से नष्ट हो गए हैं। ये हिस्से सम्भवतः लकड़ी के बने थे।
(ii) विशाल स्नानागार – विशाल स्नानागार मोहनजोदड़ो के दुर्ग की एक अन्य प्रमुख विशिष्टता है। विशाल स्नानागार आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है। यह चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है।
जलाशय के तल तक जाने के लिए इसके उत्तरी और दक्षिणी भाग में दो सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। जलाशय के किनारों पर ईंटों को जमाकर तथा जिप्सम के गारे के प्रयोग से इसे जलबद्ध किया गया है। इसके तीनों ओर कक्ष बने हुए हैं, जिनमें से एक कक्ष में एक बड़ा कुआँ है। जलाशय से जल एक बड़े नाले में बह जाता था। इसके उत्तर में एक गली के दूसरी ओर एक अपेक्षाकृत छोटी संरचना बनी हुई थी जिसमें आठ स्नानघर बनाए गए थे। एक गलियारे के दोनों ओर चार-चार स्नानघर बने थे। प्रत्येक स्नानघर से नालियों, गलियारे के साथ-साथ बने एक नाले में मिलती थीं। इस जलाशय का प्रयोग सम्भवतः किसी प्रकार के विशेष आनुष्ठानिक स्नान के लिए किया जाता था।
प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सूची बनाइये तथा चर्चा कीजिए कि ये किस प्रकार प्राप्त किये जाते होंगे?
उत्तर:
निश्चय ही हड़प्पा निवासियों की संस्कृति में पर्याप्त विभिन्नता दिखाई देती है जहाँ हड़प्पाई विभिन्न प्रकार के सुन्दर मृदभाण्ड बनाते थे, वहीं अनेक प्रकार की धातुओं तथा पत्थरों से बने मनके उनकी शिल्पकला में सम्मिलित थे। विभिन्न प्रकार की मूर्तियाँ, मुहरें तथा टेरा- कोटा आकृतियाँ उनकी शिल्पकला को विस्तृत बनाती हैं। हड़प्पा निवासियों को इसके लिए अनेक प्रकार के कच्चे माल की आवश्यकता होती थी। इन कच्चे माल की संक्षिप्त ‘सूची निम्नलिखित है-
- विभिन्न धातुएँ – सोना, ताँबा, काँसा, टिन, जस्ता, चाँदी।
- पत्थर जैस्पर, कार्नीलियन, क्वार्ट्ज, स्फटिक, सेलखड़ी, पन्ना, फयॉन्स, गोमेद, मूंगा, लाजवर्द मणि।
- अन्य सामग्री ऊन, कपास, चिकनी मिट्टी, पकी मिट्टी, अस्थियाँ शंख तथा विभिन्न प्रकार की लकड़ियाँ इत्यादि।
हड़प्पा निवासियों के शिल्प की उपर्युक्त सूची अत्यधिक विस्तृत है। स्थानीय स्तर पर ही सभी सामग्रियों का एकत्रीकरण हड़प्पा निवासियों के लिए सम्भव नहीं था अतः हड़प्पा निवासी अपनी अन्य समकालीन सभ्यताओं से उनका आयात भी करते थे। हड़प्पा निवासियों के कच्चे माल के इन स्रोतों को हम निम्नलिखित तालिका से समझ सकते हैं –
तालिका 1.1 कच्चे माल के स्रोत
कच्चा माल | स्रोत |
1. सोना | कोलार (दक्षिण भारत), ईरान |
2. ताँबा | खेतड़ी (राजस्थान), ओमान |
3. शंख | नागेश्वर तथा बालाकोट |
4. ਵਿਸ | अफगानिस्तान एवं ईरान |
5. कार्नीलियन | भाँच (गुजरात) |
6. ‘सेलखड़ी | दक्षिणी राजस्थान, उत्तरी |
7. कपास | गुजरात तथा बलूचिस्तान |
8. उत्तम प्रकार की लकड़ी | ‘स्थानीय स्तर पर |
9. लाजवर्द मणि | मेसोपोटामिया |
10. चाँदी | बदख्शां (अफगानिस्तान) |
11. गोमेद | मेसोपोटामिया, ईरान एवं |
12. मूँगा | अफगानिस्तान |
13. पन्ना | अफगानिस्तान, ईरान, राजस्थान |
14. ऊन | अफगानिस्तान, महाराष्ट्र, ईरान |
कच्चा माल प्राप्त करने के तरीके –
मिट्टी आदि कुछ कच्चे माल स्थानीय स्तर पर उपलब्ध थे परन्तु पत्थर, लकड़ी तथा धातु जलोदक मैदान से बाहर के क्षेत्रों से मँगाने पड़ते थे। हड़प्पा सभ्यता के लोग कच्चे माल प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उपाय करते थे –
(1) बस्तियाँ स्थापित करना हड़प्पावासियों ने नागेश्वर तथा बालाकोट में बस्तियाँ स्थापित कीं, क्योंकि यहाँ शंख आसानी से उपलब्ध था ऐसे ही कुछ अन्य पुरास्थल थे- सुदूर अफगानिस्तान में शोर्तुधई यहाँ से अत्यन्त कीमती माने जाने वाले नीले रंग के पत्थर लाजवर्द मणि को प्राप्त किया जाता था। इसी प्रकार लोथल कार्नीलियन (गुजरात में भड़ौच), सेलखड़ी (दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से) और धातु ( राजस्थान से) के स्रोतों के निकट स्थित था।
(2) अभियान भेजना हड़प्पावासी कच्चा माल प्राप्त करने के लिए कुछ क्षेत्रों में अभियान भेजते थे। वे राजस्थान के खेतड़ी आँचल में ताँबे तथा दक्षिण भारत में सोने के लिए अभियान भेजते थे इन अभियानों के माध्यम से स्थानीय समुदायों के साथ सम्पर्क स्थापित किया जाता था। इन क्षेत्रों में कभी-कभी मिलने वाली हड़प्पाई पुरावस्तुएँ ऐसे सम्पकों की सूचक हैं। खेतड़ी क्षेत्र में मिले साक्ष्यों को पुरातत्वविदों ने गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति की संज्ञा दी है। यहाँ ताँबे की वस्तुएँ बड़े पैमाने पर मिली थीं ऐसा प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र के निवासी हड़प्पा सभ्यता के लोगों को ताँबा भेजते थे।
(3) सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क- हड़प्यावासियों के अनेक देशों से सम्बन्ध थे। विद्वानों के अनुसार ताँबा ओमान से, चाँदी ईरान अथवा अफगानिस्तान से मँगाई जाती थी।
प्रश्न 8.
चर्चा कीजिए कि पुरातत्वविद किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं?
उत्तर:
पुरातत्वविदों द्वारा अतीत का पुनर्निर्माण हड़प्पाई लिपि से हड़प्पा सभ्यता को जानने में कोई सहायता नहीं मिलती। वास्तव में ये भौतिक साक्ष्य हैं, जो पुरातत्वविदों को हड़प्पा की सभ्यता को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करने में सहायक होते हैं। इन वस्तुओं में मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान, मुहरें आदि उल्लेखनीय हैं।
(1) हड़प्पा सभ्यता के विस्तार क्षेत्र के बारे में जानकारी उत्खनन में हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, रोपड़, संघोल, बणावली, राखीगढ़ी, रंगपुर, धौलावीरा, लोथल आदि अनेक स्थानों से प्राप्त हुए हैं। इसके आधार पर पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पा सभ्यता का विस्तार अफगानिस्तान, ब्लूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात एवं उत्तर भारत में गंगा घाटी
तक व्याप्त था।
(2) नियोजित शहरी केन्द्र हड़प्पा सभ्यता के शहर नियोजित केन्द्र थे। मोहनजोदड़ो दो भागों में विभाजित था –
(1) ऊंचे टीले पर दुर्ग तथा
(2) निचले भाग में विस्तृत नगर दुर्ग के उच्च वर्ग तथा निचले भाग में सामान्य लोग रहते थे। दुर्ग में अनेक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्मारक एवं भवन स्थित थे।
(3) धार्मिक जीवन के बारे में जानकारी हड़प्पा की खुदाई में मातृदेवी को अनेक मूर्तियाँ मिली हैं। इनके आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा निवासी मातृदेवी की उपासना करते थे। हड़प्पा की खुदाई में एक मुहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति अंकित है। यह देव पुरुष योगासन में बैठा है वह जानवरों से घिरा हुआ दर्शाया गया है।
इसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई है। खुदाई में काफी संख्या में लिंग और छल्ले मिले हैं। पुरातत्वविद इन छल्लों को योनियाँ मानते हैं। इनसे ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासी शिव लिंग और योनि की पूजा करते थे। हड़प्पा से प्राप्त मुहरों पर वृक्ष, पशु-पक्षियों के चित्र मिले हैं। इससे प्रतीत होता है कि हड़प्पा निवासी वृक्षों, पशु-पक्षियों की भी पूजा करते थे।
(4) भोजन के बारे में जानकारी- जले अनाज के दानों और बीजों की खोज से पुरातत्वविदों को हड़प्पावासियों के भोजन के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है। हड़प्पा स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि के दाने प्राप्त हुए हैं। इसी प्रकार उत्खनन में भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर की हड्डियाँ मिली हैं इनसे ज्ञात होता है। कि हड़प्पावासी गेहूं, जौ, सफेद चने, तिल, दाल, चावल और बाजरा तथा विभिन्न पशुओं के मांस का सेवन करते थे।
(5) आर्थिक जीवन के बारे में जानकारी – पुरातत्वविदों को ऐसी मुहरें मिली हैं जिन पर रेखांकन है। उन्हें पकी मिट्टी से बने वृषभ की मूर्तियाँ भी मिली हैं। इस आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। पुरातत्वविदों को कालीबंगा नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। पुरातत्वविदों को फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त होने वाले औजार भी मिले हैं। इससे प्रतीत होता है कि फसलों की कटाई के लिए इन औजारों का प्रयोग किया जाता था। हड़प्या स्थलों से नहरों, कुओं तथा जलाशयों के अवशेष मिले हैं। इनसे ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासी नहरों, कुओं, जलाशयों आदि का प्रयोग सिंचाई के लिए करते थे।
(6) सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क पुरातात्विक खोजों से ज्ञात होता है कि ताँबा ओमान से भी लाया जाता था। रासायनिक विश्लेषण से पता चलता है कि ओमानी ताँबे तथा हड़प्पाई पुरावस्तुओं, दोनों में निकल के अंश मिले हैं। इसी प्रकार एक विशिष्ट प्रकार का पात्र अर्थात् एक बड़ हड़प्पाई मर्तबान ओमानी स्थलों से मिला है। इससे पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता का ओमान से सम्पर्क था। मेसोपोटामिया के लेख दिलमुन (बहरीन द्वीप), भगान (ओमान) तथा मेलुहा नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है।
(7) सामाजिक और आर्थिक भिन्नताओं की जानकारी – हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधानों में प्रायः मृतकों को गर्तों में दफनाया गया था। कभी-कभी शवाधान गर्त की बनावट एक-दूसरे से भिन्न होती थी। ये विविधताएँ सामाजिक भिन्नताओं की ओर संकेत करती हैं। कुछ कब्रों में मृदभाण्ड और आभूषण मिले हैं जिनसे अनुमान लगाया जाता है कि इन वस्तुओं का मृत्योपरान्त प्रयोग किया जा सकता था। पुरातत्वविद पुरावस्तुओं को दो वर्गों में बाँटते हैं –
- उपयोगी वस्तुएँ
- विलासिता की वस्तुएँ चकियाँ, मृदभाण्ड, सुइयाँ, शाँबा आदि उपयोगी वस्तुओं के वर्ग में सम्मिलित हैं।
दूसरी ओर फयॉन्स के छोटे पात्र कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था। विलासिता की वस्तुओं का प्रयोग केवल धनी लोगों द्वारा किया जाता था। उत्खनन में दुर्ग और निचले शहर के अवशेष मिले हैं। इनके आधार पर पुरातत्वविद अनुमान लगाते हैं कि दुर्ग- क्षेत्र में अधिकारी एवं शासक वर्ग के लोग तथा निचले शहर में सामान्य लोग रहते थे।
(8) कला-कौशल – हड़प्पा के उत्खनन में अनेक प्रकार की धातुओं से बनी वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं जिनसे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी विभिन्न धातुओं से मूर्तियाँ, आभूषण, बर्तन, औजार और हथियार बनाते थे यहाँ से मिले मनकों से ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासी बहुमूल्य पत्थरों, सोने, चाँदी, ताँबे आदि से सुन्दर मनके बनाते थे।
प्रश्न 9.
हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्यों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्य हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्य निम्नलिखित –
(1) जटिल निर्णय लेना और उन्हें कार्यान्वित करना हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा जटिल निर्णय लेने तथा उन्हें कार्यान्वित करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए जाते थे। हड़प्पाई पुरावस्तुओं में असाधारण एकरूपता दिखाई देती है जैसा कि मृदभाण्डों, मुहरों, बाटों तथा ईंटों से स्पष्ट है।
(2) श्रम संगठित करना विशिष्ट स्थानों पर बस्तियाँ स्थापित करने, ईंटें बनाने, विशाल दीवारें बनाने, विशिष्ट भवन बनाने, मालगोदाम, सार्वजनिक स्नानागार आदि बनाने के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती थी। इन सब कार्यों के लिए श्रम संगठित करने का कार्य शासक- वर्ग द्वारा ही किया जाता था।
(3) नियोजित नगर- हड़प्पा सभ्यता के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। इन नगरों की आधार योजना, निर्माण शैली तथा नगरों की आवास व्यवस्था में समानता तथा एकरूपता दिखाई देती है। इससे ज्ञात होता है कि इन नगरों तथा भवनों का निर्माण करने वाले कुशल इज्जीनियर थे प्रायः नगर के पश्चिम में एक ‘दुर्ग’ भाग तथा पूर्व में ‘नगर’ भाग होता था। यह व्यवस्था शासग वर्ग द्वारा ही की जाती थी।
(4) सड़क निर्माण नगरों की सड़कें भी एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई गई थीं सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। ये सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं।
(5) नालियों की व्यवस्था-नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। वर्षा और मकानों के पानी को निकालने के लिए सड़कों में नालियाँ बनी हुई थीं। ये नालियाँ ईंट अथवा पत्थर से ढकी रहती थीं। नगरों में सफाई और रोशनी की भी व्यवस्था थी। ये समस्त कार्य शासकों द्वारा किये जाते थे।
(6) भवन निर्माण हड़प्पा के लोगों के मकान प्रायः पक्की ईंटों के बने होते थे मकानों में आँगन, रसोईघर, स्नानघर, शौचालय, दरवाजों, खिड़कियों, सीढ़ियों आदि की व्यवस्था थी। ईंटों की लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई में एक निश्चित अनुपात होता था। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि में अनेक विशाल भवनों का भी निर्माण किया गया था। इनमें मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार उल्लेखनीय है। इसी प्रकार हड़प्पा की गढ़ी में निर्मित विशाल अन्नागार, लोथल में निर्मित गोदीबाड़ा, धौलावीरा में निर्मित विशाल स्टेडियम और जलाशय भी उल्लेखनीय हैं।
(7) उद्योग-धन्धे हड़प्पा सभ्यता काल में अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धे विकसित थे। यहाँ सूती तथा ऊनी वस्व तैयार करने, मिट्टी के बर्तन बनाने, सोने-चाँदी आदि के आभूषण बनाने, औजार और हथियार बनाने, मनके बनाने, मुहरें बनाने आदि के उद्योग-धन्धे विकसित थे।
(8) व्यापार हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था व्यापार जल तथा धल दोनों मार्गों से किया जाता था। जल यातायात के लिए नौकाओं तथा छोटे जहाजों का एवं धल यातायात के लिए पशु गाड़ियों का प्रयोग किया जाता था। हड़प्पा के लोगों का विदेशी व्यापार भी उन्नत था। उनका मेसोपोटामिया, ओमान, बहरीन आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध था।
(9) तोल तथा माप के साधन हड़प्पा सभ्यता के लोग बाटों का भी प्रयोग करते थे। उनकी तोल में 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64 आदि का अनुपात है इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता काल में वस्तुओं को तोलने के लिए एक समान पद्धति के वाटों का प्रयोग किया जाता था। माप के साधन भी प्रचलित थे।
(10) बस्तियाँ स्थापित करना-शिल्प उत्पादन के लिए शंख, लाजवर्द मणि, कार्नीलियन सेलखड़ी आदि कच्चे मालों की आवश्यकता थी। इन कच्चे मालों को प्राप्त करने के लिए राज्य की ओर से अनेक बस्तियाँ स्थापित की गईं।
(11) अभियान भेजना शासक वर्ग की ओर से कच्चा माल प्राप्त करने के लिए अनेक अभियान भेजे गए। उदाहरणार्थ, राजस्थान के खेतड़ी आँचल में ताँबे के लिए तथा दक्षिण भारत में सोने के लिए अभियान भेजे गए।
(12) सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क – हड़प्पा सभ्यता- काल में विदेशी व्यापार भी उन्नत था हड़प्पा सभ्यता का ओमान, बहरीन आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध थे हड़प्पा के शासक ओमान से ताँबा मँगवाते थे।
ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता JAC Class 12 History Notes
→ हड़प्पा सभ्यता – सिन्धुघाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है। इस सभ्यता का नामकरण, हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है। इस क्षेत्र में इस सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं, जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है। इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।
→ आरम्भिक हड़प्पा संस्कृतियाँ इस क्षेत्र में विकसित हड़प्पा से पहले की कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। संस्कृतियाँ अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली से सम्बद्ध र्थी इसके संदर्भ में हमें कृषि, पशुपालन तथा कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य भी मिलते हैं।
→ निर्वाह के तरीके विकसित हड़प्पा संस्कृति कुछ ऐसे स्थानों पर पनपी जहाँ पहले आरम्भिक हड़प्पा संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद तथा जानवरों से प्राप्त भोजन करते थे। ये लोग गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि का सेवन करते थे ये लोग भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर के मांस का भी सेवन करते थे। हड़प्पा स्थलों से भेड़, बकरी, भैंसे, सूअर आदि जानवरों की हड्डियाँ प्राप्त हुई हैं। ये मछली का भी सेवन करते थे।
→ कृषि प्रौद्योगिकी हड़प्पा निवासी बैल से परिचित थे। पुरातत्वविदों की मान्यता है कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। चोलिस्तान के कई स्थलों से तथा बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं। कालीबंगा नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। कुछ पुरातत्वविदों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों तथा धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।
→ मोहनजोदड़ो : एकं नियोजित शहर-मोहनजोदड़ो बस्ती दो भागों में विभाजित है। एक छोटा परन्तु ऊँचाई | पर बनाया गया। दूसरा अधिक बड़ा परन्तु नीचे बनाया गया। पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमशः दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था, जिसका अर्थ है कि इसे निचले शहर से अलग किया गया था। मोहनजोदड़ो का दूसरा भाग निचला शहर था जो दीवार से घेरा गया था। यहाँ कई भवनों को ऊंचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे। पहले बस्ती का नियोजन किया गया था, फिर उसके अनुसार उसका कार्यान्वयन किया गया। ईंटें एक निश्चित अनुपात में होती थीं ये धूप में सुखाकर अथवा भट्टी में पका कर बनाई गई थीं।
→ नालों का निर्माण – सड़कों या गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड पद्धति’ में बनाया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। घरों के गन्दे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ा गया था। हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था। मुख्य नाले ईंटों से बने थे और उन्हें ईंटों से ढका गया था।
→ गृह स्थापत्य मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। कई भवन एक आँगन पर केन्द्रित थे जिसके चारों ओर कमरे बने थे। आँगन खाना पकाने, कताई करने जैसी गतिविधियों का केन्द्र था। प्रत्येक मकान में एक स्नानघर होता था। कई मकानों में कुएँ थे। मोहनजोदड़ो में 700 कुएँ थे मकानों में भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं।
→ दुर्ग- मोहनजोदड़ो में दुर्ग पर अनेक संरचनाएँ थीं जिनमें माल गोदाम तथा विशाल स्नानागार उल्लेखनीय थे। माल गोदाम एक ऐसी विशाल संरचना है जिसके ईंटों से बने केवल निचले हिस्से शेष हैं। विशाल स्नानागार आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। जलाशय के तल तक जाने के लिए दो सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। इसके उत्तर में एक छोटी संरचना थी जिसमें आठ स्नानागार बने हुए थे।
→ शवाधान – सामान्यतया मृतकों को गर्तों में दफनाया जाता था। मृतकों के साथ मृदभाण्ड, आभूषण, शंख के छल्ले, तांबे के दर्पण आदि वस्तुएँ भी दफनाई जाती थीं ।
→ विलासिता की वस्तुओं की खोज-फयॉन्स (घिसी हुई रेत अथवा बालू तथा रंग और चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पकाकर बनाया गया पदार्थ) के छोटे पात्र सम्भवतः कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था । महंगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी बड़ी बस्तियों में ही मिलती हैं, छोटी बस्तियों में ये विरले हीं मिलती हैं।
→ शिल्प उत्पादन के विषय में जानकारी- चन्हूदड़ो नामक बस्ती पूरी तरह से शिल्प उत्पादन में लगी हुई | थी। शिल्प कार्यों में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाना सम्मिलित थे। मनके जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज, सेलखड़ी जैसे पत्थर, ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुओं, शंख आदि से बनाए जाते थे । | नागेश्वर तथा बालाकोट शंख से बनी हुई वस्तुओं के प्रसिद्ध केन्द्र थे। यहाँ शंख से चूड़ियाँ, करहियाँ, पच्चीकारी की वस्तुएँ बनाई जाती थीं।
→ उत्पादन केन्द्रों की पहचान – शिल्प-उत्पादन में केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद सामान्यत: इन चीजों को ढूँढ़ते हैं- प्रस्तरपिंड, पूरा शंख, ताँबा अयस्क जैसा कच्चा माल, औजार, अपूर्ण वस्तुएँ त्याग किया गया माल तथा कूड़ा-करकट।
→ माल प्राप्त करने सम्बन्धी नीतियाँ- बैलगाड़ियाँ सामान तथा लोगों के लिए स्थलमार्गों द्वारा परिवहन का एक महत्त्वपूर्ण साधन थीं। सिन्धु नदी तथा इसकी उपनदियों के आस-पास बने नदी मार्गों और तटीय मार्गों का भी प्रयोग किया जाता था।
→ उपमहाद्वीप तथा उसके आगे से आने वाला माल नागेश्वर तथा बालाकोट से शंख प्राप्त किये जाते थे । नीले रंग का कीमती पत्थर लाजवर्द मणि को शोर्तुघई (सुदूर अफगानिस्तान) से गुजरात में स्थित भड़ौच से कार्नीलियन, दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से सेलखड़ी और धातु राजस्थान से मंगाई जाती थी। लोथल इनके स्रोतों के निकट स्थित था। राजस्थान के खेतड़ी आँचल (ताँबे के लिए) तथा दक्षिणी भारत ( सोने के लिए) को अभियान भेजे जाते थे।
→ सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क – पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि ताँबा सम्भवतः अरब प्रायद्वीप के दक्षिण- पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से भी लाया जाता था। मेसोपोटामिया के लेख से ज्ञात होता है कि कार्नीलियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना आदि मेलुहा से प्राप्त किये जाते थे।
→ मुहरें और मुद्रांकन मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था।
→ एक रहस्यमय लिपि – हड़प्पाई मुहरों पर कुछ लिखा हुआ है जो सम्भवतः मालिक के नाम और पदवी को | दर्शाता है। यह लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है। सम्भवतः यह लिपि दाय से बायीं ओर लिखी जाती थी।
→ बाट – विनिमय बाटों की एक सूक्ष्म या परिशुद्ध प्रणाली द्वारा नियन्त्रित थे। ये सामान्यतया चनाकार होते थे। इन बार्टो के निचले मानदंड द्विआधारी ( 1, 2, 4, 8, 16 32 इत्यादि) थे जबकि ऊपरी मानदंड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे। छोटे बाटों का प्रयोग सम्भवतः आभूषणों और मनकों को तौलने के लिए किया जाता था ।
→ प्राचीन सत्ता- हड़प्पाई पुरावस्तुओं में जैसे मुहरों, बाटों, ईंटों आदि में एकरूपता थी। बस्तियाँ विशेष स्थानों पर आवश्यकतानुसार स्थापित की गई थीं। इन सभी क्रियाकलापों को कोई राजनीतिक सत्ता संगठित करती थी।
→ प्रासाद तथा शासक – कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि मोहनजोदड़ो में एक विशाल भवन मिला है, वह एक राज- प्रासाद ही है। कुछ पुरातत्वविदों की मान्यता है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। कुछ पुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ कई शासक थे। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था।
→ हड़प्पा सभ्यता का अन्त-लगभग 1800 ई. पूर्व तक चोलिस्तान में अधिकांश विकसित हड़प्पा स्थलों को त्याग दिया गया था। सम्भवतः उत्तरी हड़प्पा के क्षेत्र 1900 ई. पूर्व के बाद भी अस्तित्व में रहे। हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण थे –
- जलवायु परिवर्तन
- वनों की कटाई
- भीषण बाढ़
- नदियों का सूख जाना
- नदियों का मार्ग बदल लेना
- भूमि का अत्यधिक उपयोग
- सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्व का अन्त होना।
→ हड़प्पा सभ्यता की खोज बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरों की खोज की। राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो से कुछ मुहरें खोज निकालीं। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के सामने सिन्धुघाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।
→ कनिंघम का भ्रम – डायरेक्टर जनरल कनिंघम ने उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में पुरातात्त्विक उत्खनन आरम्भ किए, तब पुरातत्त्वविद् अपने अन्वेषणों के मार्गदर्शन के लिए लिखित स्रोतों (साहित्य तथा अभिलेख) का प्रयोग अधिक पसन्द करते थे। हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम के अन्वेषण के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था। कनिंघम समझ नहीं पाए कि ये पुरावस्तुएँ प्राचीन थीं।
→ एक नवीन प्राचीन सभ्यता – बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्त्वविदों ने हड़प्पा में मुहरें खोज निकालीं जो निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बद्ध थीं एवं इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के समक्ष सिन्धु घाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।
→ नई तकनीकें तथा प्रश्न हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल अब पाकिस्तान के क्षेत्र में हैं। इसी कारण से भारतीय पुरातत्वविदों ने भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करने का प्रयास किया। कच्छ में हुए सर्वेक्षणों से कई हड़प्पा बस्तियाँ प्रकाश में आई तथा पंजाब और हरियाणा में किए गए अन्वेषणों से हड़प्पा स्थलों की सूची में कई नाम और जुड़ गए हैं। कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी, धौलावीरा की खोज इन्हीं प्रयासों का हिस्सा है। 1980 के दशक से हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से कार्य करते रहे हैं।
→ अतीत को जोड़कर पूरा करने की समस्याएँ – मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान आदि भौतिक साक्ष्यों से हड़प्पा सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है।
→ खोजों का वर्गीकरण-वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि, हाथीदाँत आदि के सम्बन्ध में होता है। दूसरा सिद्धान्त उनकी उपयोगिता के आधार पर होता है। कभी-कभी पुरातत्वविदों को अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है। पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना पड़ता है।
→ व्याख्या की समस्याएँ पुरातात्विक व्याख्या की समस्याएँ सम्भवतः सबसे अधिक धार्मिक प्रथाओं के पुनर्निर्माण के प्रयासों में सामने आती हैं। कुछ वस्तुएँ धार्मिक महत्त्व की होती थीं। इनमें आभूषणों से लदी हुई नारी मृण्मूर्तियाँ शामिल हैं। इन्हें मातृदेवी की संज्ञा दी गई है। कुछ मुहरों पर पेड़-पौधे उत्कीर्ण हैं ये प्रकृति की पूजा के संकेत देते हैं। कुछ मुहरों पर एक व्यक्ति योगी की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है। उसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई। है। पत्थर की शंक्वाकार वस्तुओं को लिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
कालरेखा 1 आरम्भिक भारतीय पुरातत्व के प्रमुख कालखंड |
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20 लाख वर्ष (वर्तमान से पूर्व) | निम्नपुरापाषाण |
80,000 | मध्यपुरापाषाण |
35,000 | उच्चपुरापाषाण |
12,000 | मध्यपाषाण |
10,000 | नवपाषाण (आरम्भिक कृषक तथा पशुपालक) |
6,000 | ताम्रपाषाण (ताँबे का पहली बार प्रयोग) |
2600 ई. पूर्व | हड़प्पा सभ्यता |
1000 ई. पूर्व | आरम्भिक लौहकाल, महापाषाण शवाधान आरम्भिक ऐतिहासिक काल |
600 ई. पूर्व 400 ई. पूर्व | निम्नपुरापाषाण |
सभी तिथियाँ अनुमानित हैं। इसके अतिरिक्त उपमहाद्वीप के अलग-अलग भागों में हुए विकास की प्रक्रिया में व्यापक विविधताएँ हैं। यहाँ दी गई तिथियाँ हर चरण के प्राचीनतम साक्ष्य को इंगित करती हैं। |
कालरेखा 2 हड़प्पाई पुरातत्व के विकास के प्रमुख चरण |
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उन्नीसवीं शताब्दी 1875 | हड़प्पाई मुहर पर कनिंघम की रिपोर्ट |
बीसवीं शताब्दी | – |
1921 | माधोस्वरूप वत्स द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरम्भ |
1925 | मोहनजोदड़ो में उत्खननों का प्रारम्भ |
1946 | आर.ई. एम. व्हीलर द्वारा हड़प्पा में उत्खनन |
1955 | एस. आर. राव द्वारा लोथल में खुदाई का आरम्भ |
1960 | बी.बी. लाल तथा बी.के. थापर के नेतृत्व में कालीबंगन में उत्खननों का आरम्भ |
1974 | एम. आर. मुगल द्वारा बहावलपुर में अन्वेषणों का आरम्भ |
1980 | जर्मन – इतालवी संयुक्त दल द्वारा मोहनजोदड़ो में सतह अन्वेषणों का आरम्भ |
1986 | अमरीकी दल द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरम्भ |
1990 | आर. एस. बिष्ट द्वारा धौलावीरा में उत्खननों का आरम्भ |