Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे
Jharkhand Board Class 12 History महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे In-text Questions and Answers
पृष्ठ संख्या 349
प्रश्न 1.
1915 से पूर्व भारत में हुए राष्ट्रीय आन्दोलनों के बारे में और जानकारी इकट्ठा कीजिए व पता लगाइए कि क्या महात्मा गाँधी की टिप्पणियाँ न्यायसंगत हैं?
उत्तर:
1915 से पूर्व भारत में निम्नलिखित राष्ट्रीय आन्दोलन हुए –
- 1857 का विद्रोह
- 1885 में कांग्रेस की स्थापना
- 1905 में बंगाल का विभाजन
- स्वदेशी आन्दोलन।
महात्मा गाँधी की टिप्पणियां न्यायसंगत हैं।
पृष्ठ संख्या 354
प्रश्न 2.
आपने अध्याय 11 में अफवाहों के बारे में पढ़ा और देखा कि इन अफवाहों का प्रसार एक समय के विश्वास के ढाँचों के बारे में बताता है, यह बताता है उन लोगों के मन-मस्तिष्क के बारे में जो इन अफवाहों में विश्वास करते हैं और उन परिस्थितियों के बारे में जो इन विश्वासों को संभव बनाती है। आपके अनुसार गाँधीजी के विषय में अफवाहों से क्या पता चलता है?
उत्तर:
गाँधीजी के बारे में फैली अफवाहों से हमें यह पता चलता है कि लोग उन्हें एक पहुँचा हुआ महात्मा या सिद्ध पुरुष मानकर उनमें अपनी श्रद्धा प्रकट करते थे। भले ही ये घटनाएँ किन्हीं परिस्थितियोंश घट गई हों, लेकिन आम जनता ने उन्हें सच मानकर उनमें अपना विश्वास प्रकट किया। गरीब जनता गाँधीजी को अपना उद्धारक मानने लगी थी।
पृष्ठ संख्या 355 चर्चा कीजिए
प्रश्न 3.
असहयोग क्या था? विभिन्न सामाजिक वर्गों ने आन्दोलन में किन विभिन्न तरीकों से भाग लिया, इसके बारे में पता लगाइए।
उत्तर:
(1) असहयोग एक ऐसा आन्दोलन था जिसमें से भारतीयों ने अंग्रेजों द्वारा बनाये गये सामान को प्रयोग करने मना कर दिया था। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों की नौकरी न करना भी इसका एक मुख्य भाग था
(2) सामाजिक वर्गों की प्रतिक्रिया
- व्यक्तियों ने सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया।
- विदेशी सामान का प्रयोग बन्द कर दिया।
- विदेशी उपाधि वापस कर दी गयी।
- विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी।
पृष्ठ संख्या 357
प्रश्न 4.
औपनिवेशिक सरकार द्वारा नमक को क्यों नष्ट किया जाता था? महात्मा गाँधी नमक कर को अन्य करों की तुलना में अधिक दमनात्मक क्यों मानते थे?
उत्तर:
(1) औपनिवेशिक सरकार द्वारा नमक पर कर लगाया गया था। यह कर नमक की लागत का 14 गुना तक होता था। बिना कर अदा किए गए नमक का प्रयोग करने से रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार उस नमक को, जिससे वह लाभ नहीं कमा पाती थी, नष्ट कर देती थी। वह देश की जनता को नमक के उत्पादन से रोकती थी। प्रकृति ने जिसे बिना किसी श्रम के उत्पादित किया जाता उसे भी नष्ट कर देती थी। यह उसकी अन्यायपूर्ण नीति की विशेषता कही जा सकती थी। सरकार बेरहम थी तथा भारतीयों की समस्या को बिलकुल नहीं समझती थी
(2) महात्मा गाँधी नमक कर को इसलिए अन्य करों की तुलना में दमनात्मक मानते थे क्योंकि नमक भोजन का अनिवार्य अंग है और इसे अमीर-गरीब सभी प्रयोग करते हैं। नमक कर की माश भी बहुत अधिक थी। यह लागत का 14 गुना तक लगाया जाता था। नमक हमारी राष्ट्रीय संपदा का मूल्यवान अंश था। इस पर लगाया जाने वाला कर भूखे लोगों से हजार प्रतिशत से अधिक की उगाही की जाती थी। आम लोगों की उदासीनता के कारण यह कर लम्बे समय तक बना रहा। अब जनता जाग चुकी है। अतः इस कर को समाप्त करना ही होगा।
पृष्ठ संख्या 358
प्रश्न 5.
उल्लिखित भाषण के आधार पर बताइये कि गाँधीजी औपनिवेशिक राज्य को कैसे देखते थे?
उत्तर:
5 अप्रैल, 1930 को दाण्डी में दिए गए भाषण में गाँधीजी के सरकार के बारे में निम्नलिखित विचारों का पता लगता है –
(1) वे ब्रिटिश सरकार को पर्याप्त उदार मानते थे। जब गाँधीजी नमक बनाने के लिए अपने साथियों के साथ दाण्डी यात्रा पर निकले तो उन्हें विश्वास नहीं था कि उन्हें दाण्डी तक पहुँचने दिया जाएगा।
(2) वे ब्रिटिश शासन में यह आस्था रखते थे कि वह औपनिवेशिक राज्य होते हुए भी कानून की सीमा में रहने वालों को अनावश्यक रूप से हतोत्साहित नहीं करेगी।
(3) उनका मानना था कि औपनिवेशिक राज्य शान्ति और अहिंसा में विश्वास रखने वाले राष्ट्रभक्तों की सेना को गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं रखता।
(4) गाँधीजी मानते थे कि सरकार को शान्ति व अहिंसा में विश्वास रखने वालों को गिरफ्तार करने में शर्म महसूस होती है। उनके अनुसार सरकार शान्तिप्रिय सत्याग्रहियों को गिरफ्तार न करके अपनी शिष्टता का परिचय दे रही है। यदि वह अन्यायपूर्ण ढंग से गिरफ्तार करती तो उसके देश में ही उसकी आलोचना होती।
(5) गाँधीजी औपनिवेशिक राज्य द्वारा जनमत की परवाह करने के लिए उसे बधाई का पात्र मानते थे। पृष्ठ संख्या 362 चर्चा कीजिए
प्रश्न 6.
स्रोत 5 एवं 6 को पढ़िए। दमित वर्गों के लिए पृथक् निर्वाचिका के मुद्दे पर अम्बेडकर और महात्मा गाँधी के बीच काल्पनिक संवाद को लिखिए।
उत्तर:
- गाँधीजी के अनुसार पृथक् निर्वाचिका से यह समस्या समाप्त नहीं हो सकती अपितु स्थायी हो जाएगी।
- गाँधीजी के अनुसार अस्पृश्यता की समस्या को सामाजिक प्रयासों से हल करना चाहिए।
- अम्बेडकर के अनुसार हिन्दू व्यवस्था अत्यधिक जटिल है। यहाँ दमित वर्ग का कोई स्थान नहीं है।
- अम्बेडकर के अनुसार राजनैतिक भागीदारी ही दमित वर्ग का कल्याण कर सकती है ।
पृष्ठ संख्या 369
प्रश्न 7.
(क) इन पत्रों से इस बारे में क्या पता चलता है कि समय के साथ काँग्रेस के आदर्श किस तरह विकसित हो रहे थे?
(ख) राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका के बारे में इन पत्रों से क्या पता चलता है?
(ग) क्या ऐसे पत्रों से काँग्रेस की आन्तरिक कार्यप्रणाली तथा राष्ट्रीय आन्दोलन के बारे में कोई विशेष दृष्टि प्राप्त होती है?
उत्तर:
(क) इन पत्रों से हमें यह पता चलता है कि काँग्रेस के आदर्शों में निम्न रूप में परिवर्तन आ रहा था –
- जवाहरलाल नेहरू सोवियत रूस से प्रभावित होकर समाजवादी विचारधारा के अनुसार काँग्रेस को चलाना चाहते थे
- सरदार पटेल व डॉ. राजेन्द्र प्रसाद अपनी पुरानी रूढ़िवादी विचारधारा के समर्थक थे।
- इन्हीं विचारों के कारण दोनों में टकराहट भी बढ़ रही थी जिसमें गाँधीजी मध्यस्थता करते थे।
(ख) राष्ट्रीय आन्दोलन में गांधीजी की भूमिका के बारे में हमें पता चलता है कि गांधीजी दोनों पक्षों को समझाने का प्रयास करते थे तथा उनका शुकाव जवाहरलाल नेहरू के प्रति अधिक था।
(ग) इन पत्रों से हमें कॉंग्रेस की आन्तरिक कार्यप्रणाली का भी पता चलता है कि काँग्रेस में अन्तर्कलह भी शुरू हो गया था। नेहरूजी समाजवाद की ओर बढ़ रहे थे तथा उनके सहयोगी रूढ़िवादी विचारधारा के समर्थक थे। पृष्ठ संख्या 370, चित्र संख्या 13.16
प्रश्न 8.
क्या आपको इस तस्वीर और पुलिस की पाक्षिक रिपोटों में दी गई जानकारियों के बीच कोई अन्तर्विरोध दिखाई देता है?
उत्तर:
हाँ, हमें प्रस्तुत तस्वीर और पाक्षिक रिपोर्टों के मध्य अन्तर्विरोध स्पष्ट दिखाई पड़ता है पाक्षिक रिपोर्ट बताती है कि गृह विभाग यह मानने को तैयार ही नहीं था कि महात्मा गाँधी की कार्यवाहियों को व्यापक जन समर्थन मिल रहा था रिपोर्ट में इस जन आन्दोलन को एक नाटक करतब तथा हताश लोगों का प्रयास बताया गया, जबकि तस्वीर को देखने से पता चलता है कि गाँधीजी की कार्यवाही को भरपूर जनसमर्थन मिल रहा था।
पृष्ठ संख्या 373
प्रश्न 9.
पाक्षिक रिपोर्टों को ध्यान से पढ़िए। बाद रखिए कि ये औपनिवेशिक गृह विभाग की गोपनीय रिपोर्टों के अंश हैं। इन रिपोर्टों में हमेशा केवल पुलिस की ओर से भेजी गई जानकारियों को ही नहीं लिखा जाता था।
(1) स्रोत की पृष्ठभूमि से यह बात किस हद तक प्रभावित होती है कि इन रिपोटों में क्या कहा जा रहा है? उपर्युक्त अंशों से उद्धरण लेते हुए अपने तर्क को पुष्ट कीजिए।
(2) क्या आपको लगता है कि गृह विभाग महात्मा गाँधी की संभावित गिरफ्तारी के बारे में लोगों की सोच को अपनी रिपोर्टों में सही ढंग से दर्ज नहीं कर रहा था? यदि आपका उत्तर हाँ है तो उसके समर्थन में कारण बताइए। 5 अप्रैल, 1930 को दांडी में अपने भाषण में गाँधीजी ने गिरफ्तारियों के सवाल पर जो कहा था, उसे दुबारा पढ़िए।
(3) महात्मा गाँधी को क्यों गिरफ्तार नहीं किया गया? गृह विभाग लगातार यह क्यों कहता रहा कि दांडी यात्रा के प्रति लोगों में कोई उत्साह नहीं है?
उत्तर:
(1) रिपोर्टों की पृष्ठभूमि को पढ़ने से पता लगता है कि इन गोपनीय रिपोर्टों में सही तथ्यों को छिपाया जा रहा था। गाँधीजी की दाण्डी यात्रा में एक बड़ा जनसमूह उनके साथ था लेकिन रिपोर्ट में उसे कम आँका गया उदाहरण के लिए मार्च, 1930 के पहले पखवाड़ा की रिपोर्ट हमारे तर्क को पुष्ट करती है। 44 “गुजरात में आ रहे तेज राजनीतिक बदलावों पर यहाँ गहरी नजर रखी जा रही है। इनसे प्रांत की राजनीतिक परिस्थितियों पर किस हद तक और क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका अभी अंदाजा लगाना मुश्किल है। रबी की फसल अच्छी हुई है इसलिए फिलहाल किसान फसलों की कटाई में व्यस्त हैं। विद्यार्थी आने वाली परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हैं।” यह रिपोर्ट वास्तविकता को प्रकट नहीं करती है।
(2) गृह विभाग महात्मा गाँधी की गिरफ्तारी को लेकर जनता की सोच को वास्तव में प्रकट नहीं कर रहा था। इसका कारण यह था कि सत्याग्रह की सक्रियता और निष्क्रियता दोनों से सरकार को ही नुकसान पहुँचेगा। यदि सरकार गाँधीजी को गिरफ्तार करती है तो उसे राष्ट्र के कोप का भाजन बनना पड़ेगा और यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो सविनय अवज्ञा आन्दोलन फैलता जायेगा। इसलिए हमारा मानना है कि अगर सरकार गांधीजी को दण्डित करती है तो भी राष्ट्र की विजय होगी और अगर सरकार उन्हें अपने रास्ते पर चलने देती है तो राष्ट्र की और भी बड़ी विजय होगी। (केसरी अखबार से)
(3) सरकार ने गाँधीजी को इस कारण से गिरफ्तार नहीं किया कि यदि वह गाँधीजी को गिरफ्तार करती है तो राष्ट्र के कोप का भाजन बनना पड़ेगा तथा आन्दोलन और जोर पकड़ जायेगा।
(4) गृह विभाग अपनी रिपोर्ट में वास्तविकता बताता तो जनता में इसका और प्रचार होता तथा आन्दोलन और जोर पकड़ सकता था। इसी बात को ध्यान में रखकर गृह विभाग अपनी सही रिपोर्ट नहीं देता था।
Jharkhand Board Class 12 History महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे स्थापत्य Text Book Questions and Answers
उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)
प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने स्वयं को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए निम्नलिखित कार्य किए –
(1) गाँधीजी ने आम आदमी की तरह साधारण वस्त्र विशेषकर खादी से बने वस्त्र पहनना शुरू किया। उन्होंने चरखा चलाया, कुटीर उद्योग-धंधों, दलितों के हितों, महिलाओं के प्रति सद्व्यवहार और सच्ची सहानुभूति प्रदर्शित की।
(2) वह आम लोगों की तरह रहते थे और उनकी ही भाषा में बोलते थे। अन्य नेताओं की भाँति वह सामान्य बल्कि वे उनसे सहानुभूति रखते थे तथा उनसे पनिष्ठ सम्बन्ध भी स्थापित कर लेते थे। जनसमूह से अलग नहीं खड़े होते थे –
(3) गाँधीजी आम लोगों के बीच एक साधारण धोती में जाते थे।
(4) गाँधीजी प्रतिदिन कुछ समय के लिए चरखा चलाते थे।
(5) वह मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम में कोई भेदभाव नहीं करते थे।
(6) वह सामान्यजनों के सुख-दुःख में निरन्तर भाग लोते थे।
(7) गाँधीजी साधारण लोगों की तरह मात्र धोती पहनते थे। वे अपने कार्य स्वयं किया करते थे।
प्रश्न 2.
किसान महात्मा गाँधी को किस तरह देखते थे?
उत्तर:
किसान गाँधीजी को निम्न रूप में देखते थे –
(1) अपना सच्चा हितैषी किसान गाँधीजी को अपना सच्चा हितैषी मानते थे किसानों की मान्यता थी कि वे उनके दुःखों एवं कठिनाइयों का निवारण कर सकते हैं तथा उनके पास सभी स्थानीय अधिकारियों के निर्देशों को अस्वीकृत कराने की शक्ति है।
(2) उद्धारक के रूप में गांधीजी किसानों में बहुत लोकप्रिय थे। वे गाँधीजी को ‘गाँधी बाबा’, ‘गाँधी महाराज’, ‘सामान्य महात्मा’ आदि नामों से पुकारते थे। गाँधीजी किसानों के लिए एक उद्धारक के समान थे जो उनको भूराजस्व की ऊंची दरों और दमनकारी अधिकारियों से सुरक्षा करने वाले तथा उनके जीवन में मान-मर्यादा तथा स्वायत्तता वापस लाने वाले थे। गाँधीजी की सात्विक शैली तथा साधारण वेशभूषा किसानों को प्रभावित करती थी।
(3) चमत्कारी शक्ति किसानों की दृष्टि में गाँधीजी एक चमत्कारी व्यक्ति थे। किसानों की मान्यता थी कि गाँधीजी औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिला सकते हैं। उस समय ये अफवाहें भी प्रचलित थीं कि गाँधीजी की आलोचना करने वाले लोगों के पर गिर गए और उनकी फसलें नष्ट हो गई।
प्रश्न 3.
नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था?
उत्तर:
नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष के लिए एक विशेष विषय या मुद्दा बन गया था, क्योंकि –
(1) उन दिनों नमक के निर्माण और बेचने पर ब्रिटिश शासन का एकाधिकार था।
(2) नमक ऐसी वस्तु थी जिसका गरीब से गरीब और अमीर से अमीर सभी अपने भोजन में प्रयोग करते थे परन्तु उन्हें ऊंचे दामों पर नमक खरीदना पड़ता था।
(3) नमक कानून को तोड़ने का अर्थ था विदेशी शासन व ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देना। नमक पर सरकार का एकाधिकार बहुत अलोकप्रिय था। गाँधीजी नमक के इस कानून को सबसे घृणित मानते थे। इसी को मुद्दा बनाते हुए गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आन्दोलन शुरू करने का निश्चय कर लिया। अधिकांश भारतीयों को गाँधीजी की इस चुनौती का महत्त्व समझ में आ गया था यह स्वतंत्रता प्राप्ति का साधन था। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए गाँधीजी ने मार्च, 1930 में दाण्डी यात्रा शुरू की तथा समुद्र के किनारे नमक का उत्पादन करके ब्रिटिश कानून को तोड़ा।
प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आन्दोलन के अध्ययन के लिए अखबार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं?
उत्तर:
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को भली-भाँति समझने के लिए अखबार बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत हैं, क्योंकि
(1) अखबार जनसंचार का अच्छा माध्यम हैं और विशेषकर शिक्षित समुदाय पर अपना व्यापक प्रभाव डालते हैं प्रबुद्ध जनता लेखकों, कवियों, पत्रकारों, विचारकों तथा साहित्यकारों से अधिक प्रभावित होती है।
(2) समाचार पत्र जनमत का निर्माण करने के साथ जनता की अभिव्यक्ति को भी बताते हैं।
(3) यह सरकार और सरकारी अधिकारियों और आम लोगों में विचारों और समस्या के विषय में जानकारी देते हैं तथा कार्य में क्या प्रगति हो रही है तथा कौन से कार्य या क्षेत्र उपेक्षित हैं, उनकी जानकारी प्रदान करते हैं।
(4) राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान अखवार जिन लोगों द्वारा पढ़े जाते थे वे देश में घटित घटनाओं, नेतागणों और अन्य लोगों की गतिविधियों तथा विचारों को जानते थे अखबार गाँधीजी की गतिविधियों पर नजर रखते थे तथा आम भारतीय उनके बारे में क्या सोचता है, वे इसको भी बताते थे।
प्रश्न 5.
चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?
उत्तर:
(1) चरखा गाँधीजी को बहुत ही प्रिय था। वे अपने खाली समय में चरखा चलाते थे और स्वयं कती खादी से बने वस्त्र ही पहनते थे।
(2) उनका मानना था कि आधुनिक युग में मशीनों ने आदमी को अपना गुलाम बनाकर रख दिया है तथा बेरोजगारी को भी बढ़ावा दिया है। उन्होंने मशीनों की आलोचना की तथा चरखे को एक ऐसे मानव समाज के प्रतीक के रूप में देखा जिसमें मशीनों और प्रौद्योगिकी को बहुत महिमा मंडित नहीं किया जाएगा।
(3) गाँधीजी के अनुसार भारत एक गरीब देश है। चरखे के द्वारा लोगों को पूरक आमदनी प्राप्त होगी, जिससे वे स्वावलंबी बनेंगे, बेरोजगारी और गरीबी से छुटकारा दिलाने में चरखा मदद करेगा।
(4) उनके अनुसार मशीनों से काम करके जो श्रम की बचत हो रही है उससे लोगों को मौत के मुंह में धकेला जा रहा है। उन्हें बेरोजगारी की दलदल में फेंका जा रहा है।
(5) चरखा धन के विकेन्द्रीकरण में भी सहायक होगा। निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में )-
प्रश्न 6.
असहयोग आन्दोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन निम्नलिखित कारणों से एक तरह का प्रतिरोध ही था –
(1) रॉलेट एक्ट वापस लेने के लिए प्रतिरोध – यह आन्दोलन गाँधीजी के द्वारा ब्रिटिश सरकार द्वारा थोपे गए रॉलेट एक्ट जैसे काले कानून को वापस लेने के लिए जन आक्रोश और प्रतिरोध प्रकट करने का लोकप्रिय माध्यम था।
(2) जलियाँवाला बाग हत्याकांड के दोषियों को बचाने की कार्यवाही का प्रतिरोध असहयोग आन्दोलन इसलिए भी प्रतिरोध आन्दोलन था क्योंकि भारत के राष्ट्रीय नेता उन अंग्रेज अधिकारियों कों दण्डित करवाना चाहते थे जिन्होंने जलियांवाला बाग में निर्दोष लोगों का संहार किया था। जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड में 400 से अधिक लोग मारे गए थे।
(3) खिलाफत आन्दोलन के साथ सहयोग – असहयोग आन्दोलन इसलिए भी प्रतिरोधात्मक आन्दोलन था क्योंकि यह खिलाफत आन्दोलन के साथ सहयोग करके देश के दो प्रमुख धार्मिक समुदायों हिन्दुओं और मुसलमानों को संगठित कर औपनिवेशिक शासन का अन्त कर देगा।
(4) सरकारी संस्थाओं व शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार – असहयोग आन्दोलन के दौरान विदेशी शिक्षा संस्थाओं और सरकारी विद्यालयों और कॉलेजों का बहिष्कार किया गया।
(5) वकीलों द्वारा सरकारी अदालतों का बहिष्कार- असहयोग आन्दोलन में गांधीजी के आह्वान पर वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार कर दिया।
(6) मजदूरों द्वारा हड़ताल करना- इस व्यापक लोकप्रिय प्रतिरोध का असर कस्बों और शहरों में काम करने वाले मजदूरों पर भी पड़ा, उन्होंने हड़ताल कर दी जानकार सूत्रों से पता चलता है कि 1921 में 396 हड़तालें हुई, जिनमें 6 लाख से अधिक मजदूरों ने भाग लिया।
(7) जनजातियों तथा किसानों का प्रतिरोध- असहयोग आन्दोलन का प्रभाव देश के ग्रामीण इलाकों में भी दिखाई पड़ रहा था। उदाहरण के लिए, उत्तरी आंध्र की पहाड़ी जनजातियों ने वन-कानूनों की अवहेलना करनी शुरू कर दी। अवध के किसानों ने सरकारी लगान नहीं चुकाया । कुमाऊँ के किसानों ने अंग्रेज अधिकारियों का सामान दोने से मना कर दिया।
(8) असहयोग आन्दोलन को स्थगित करना- चौरी- चौरा की हिंसात्मक घटना के कारण गाँधीजी ने 1922 में असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर दिया। फिर भी यह आन्दोलन काफी सफल रहा।
प्रश्न 7.
गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?
उत्तर:
गाँधीजी की दाण्डी यात्रा की सफलता से अंग्रेजों को इस बात का एहसास हो गया कि अब भारत में उनका राज अधिक दिन तक नहीं चल पायेगा तथा उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए। लेकिन ये सम्मेलन सफल नहीं हो पाये।
(1) पहला गोलमेज सम्मेलन – पहला गोलमेज सम्मेलन नवम्बर, 1930 में लंदन में आयोजित किया गया, जिसमें देश के प्रमुख नेता सम्मिलित नहीं हुए। अतः यह सम्मेलन निरर्थक साबित हुआ।
(2) गाँधी इर्विन समझौता जनवरी, 1931 में गाँधीजी को जेल से मुक्त कर दिया गया। अगले ही महीने गाँधीजी और लार्ड इर्विन के साथ कई बैठकें हुईं। इन्हीं बैठकों के बाद गाँधी इर्विन समझौते पर सहमति बनी, जिसकी शर्तें इस प्रकार थीं –
(क) सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेना।
(ख) सारे कैदियों की रिहाई और तटीय इलाकों में नमक उत्पादन की अनुमति देना शामिल था। रैडिकल राष्ट्रवादियों ने इस समझौते की आलोचना की क्योंकि गांधीजी वायसराय से भारतीयों की राजनैतिक स्वतंत्रता का आश्वासन नहीं ले पाए थे।
(3) दूसरा गोलमेज सम्मेलन – दूसरा गोलमेज सम्मेलन 1931 के आखिर में लंदन में आयोजित किया गया। उसमें गाँधीजी भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में शामिल होकर नेतृत्व कर रहे थे। गाँधीजी का कहना था कि उनकी पार्टी पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है। उनके दावे को तीन पार्टियों ने चुनौती दी
(क) मुस्लिम लीग का इस विषय में कहना था कि वह भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में काम करती है।
(ख) भारत के राजे-रजवाड़ों का कहना था कि काँग्रेस का उनके नियन्त्रण वाले भागों पर कोई अधिकार नहीं है।
(ग) तीसरी चुनौती तेज-तर्रार वकील और विचारक ‘भीमराव अम्बेडकर की तरफ से थी, जिनका कहना था कि गाँधीजी और कॉंग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। इसका परिणाम यह हुआ कि यह सम्मेलन भी असफल हो गया और गांधीजी लंदन से खाली हाथ लौट आए।
(4) तीसरा गोलमेज सम्मेलन भारत में जिन दिनों सविनय अवज्ञा आन्दोलन चल रहा था, ब्रिटिश सरकार ने लंदन में तीसरा गोलमेज सम्मेलन बुलाया। परन्तु कॉंग्रेस पार्टी ने इसमें भाग नहीं लिया। सम्मेलन में लिए गए निर्णयों पर एक श्वेत पत्र प्रकाशित किया गया, फिर इसके आधार पर 1935 का गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट पास किया गया। इससे स्पष्ट होता है कि ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को स्वतन्त्रता प्रदान न करने और साम्प्रदायिकता की नीति को बढ़ावा देने के कारण गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ताओं का कोई परिणाम नहीं निकला।
प्रश्न 8.
महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप को निम्नलिखित तरीकों से बदल डाला—
(1) विश्व स्तर पर ख्याति – 1915 में भारत आने से पहले गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह को सफल बना चुके थे। उन्होंने मानववाद, समानता आदि के लिए प्रयास किए तथा रंगभेद और जातीय भेदभाव के विरुद्ध सत्याग्रह किया तथा विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त की।
(2) राष्ट्रीय आन्दोलन को विशिष्ट वर्गीय आन्दोलन से जन-आन्दोलन में बदलना गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन के माध्यम से राष्ट्रीय आन्दोलन में किसानों, श्रमिकों और कारीगरों को भी शामिल कर एक जन- आन्दोलन में परिणत कर दिया।
(3) भारत के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक शोषण के लिए ब्रिटिश भारत सरकार जिम्मेदार – गाँधीजी ने अपने भाषणों तथा लेखों के माध्यम से ब्रिटिश सत्ता को बता दिया कि भारत में फैली गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, दरिद्रता, निम्न जीवन स्तर, अशिक्षा और अंधविश्वास के लिए ब्रिटिश शासन जिम्मेदार है।
(4) जन – अनुरोध – गाँधीजी एक कुशल संगठनकर्त्ता थे। उन्होंने राष्ट्रवादी संदेश का संचार अंग्रेजी भाषा के स्थान पर मातृभाषा में किया। भारत के विभिन्न भागों में कांग्रेस की नवीन शाखाएँ खोली गईं तथा देशी राज्यों में ‘प्रजामण्डलों’ की स्थापना की गई।
(5) जननेता तथा अन्याय व शोषण के प्रति आवाज मुखरित करना – गाँधीजी समझते थे कि जब तक वे किसानों, मजदूरों और जनसाधारण के प्रति सरकार, जमींदारों, ताल्लुकदारों आदि के द्वारा किए जा रहे अन्याय व शोषण के विरुद्ध आवाज नहीं उठाएँगे तब तक जनता उन्हें अपने बीच का व्यक्ति नहीं समझेगी। इसलिए उन्होंने गरीब किसानों, मजदूरों और आम आदमी के शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की।
(6) साम्प्रदायिक एकता के समर्थक – गाँधीजी हिन्दू और मुसलमान दोनों को अपनी दो आँखें मानते थे। वे साम्प्रदायिक एकता के हामी थे वे हिन्दू और मुसलमान में कोई भेद नहीं मानते थे। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों का समर्थन प्राप्त करने के लिए खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया।
(7) नारी सशक्तिकरण के समर्थक गांधीजी नारी सशक्तिकरण के समर्थक थे। वे स्त्री और पुरुष में कोई भेदभाव नहीं करते थे। उन्होंने नारियों को राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल होने, चरखा कातने, खादी का प्रचार-प्रसार करने, शराब व नशाबंदी का विरोध करने को प्रेरित किया।
(8) प्रमुख समाज सुधारक – गाँधीजी ने समाज सुधार के कार्यों पर भी बहुत अधिक बल दिया। उन्होंने साबरमती आश्रम में स्वयं अपने हाथों से कार्य किया, ‘हरिजन सेवक पत्र’ के माध्यम से अस्पृश्यता के विरुद्ध शंखनाद किया। जब देश में धार्मिक घृणा व उन्माद फैला तो उन्होंने कई बार आमरण अनशन किया और दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा कर शान्ति स्थापना की।
उन्होंने चर्खा चलाने, स्वदेशी वस्त्रों का प्रयोग करने, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने, दलितोद्धार, स्वयं साधारण वस्त्र पहनने तथा सामान्य लोगों की तरह रहने, जनसामान्य की भाषा का प्रयोग करने आदि पर बल दिया। इस प्रकार गाँधीजी ने अपनी गतिविधियों और कार्यकलापों के माध्यम से भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप बदल डाला तथा अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त की।
प्रश्न 9.
निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है? ये स्रोत सरकारी ब्यौरों से किस तरह भिन्न होते हैं?
उत्तर:
निजी पत्रों तथा आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में हमें निम्नलिखित जानकारी प्राप्त होती है –
(1) सम्पूर्ण जीवन वृत्त आत्मकथाओं या पत्रों से सम्बन्धित व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन काल, जन्म-स्थान, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, शिक्षा, व्यवसाय संचयों, कठिनाइयों तथा जीवन में आए उतार-चढ़ाव का पता लग जाता है। आत्मकथा में जीवन से जुड़ी घटनाएँ भी शामिल होती हैं।
(2) काँग्रेस के आदर्श और प्राथमिकताएँ – निजी पत्र जो राष्ट्रीय आन्दोलन के समय डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा नेहरूजी को लिखे गये या नेहरूजी ने गाँधीजी को लिखे अथवा गाँधीजी ने नेहरू या अन्य नेताओं को समय-समय पर लिखे से काँग्रेस के आदर्श कैसे विकसित हुए, काँग्रेस के कार्यक्रम तथा प्राथमिकताएँ क्या र्थी इनका पता लगता है (छात्र/छात्राएँ पृष्ठ 367, स्रोत 7 में दिये गये पत्रों को पढ़कर देखें ) समय-समय पर उठने वाले आन्दोलनों में गाँधीजी की क्या भूमिका रही, यह हमें उस समय लिखे पत्रों से पता लगता है। इन पत्रों से हमें कॉंग्रेस की आंतरिक कार्यप्रणाली तथा राष्ट्रीय आन्दोलन के बारे में अलग-अलग नेताओं के दृष्टिकोणों का पता लगता है।
(3) विभिन्न नेताओं की चारित्रिक विशेषताओं/ त्रुटियों की जानकारी – निजी पत्रों के माध्यम से विभिन्न राष्ट्रीय नेताओं की चारित्रिक विशेषताओं अथवा त्रुटियों के बारे में जानकारी मिलती है। उदाहरण के लिए, गाँधीजी ने जवाहरलाल नेहरू को पत्र में लिखा, “तुम्हारे साथियों में तुम्हारे जैसा साहस और बेबाकी नहीं है। इसके परिणाम विनाशकारी हो रहे हैं। उनके पास साहस न होने के कारण वे जब भी बोलते हैं ऊटपटांग बोलते हैं जिससे तुम चिढ़ जाते हो। मैं तुम्हें बताता हूँ कि वे तुम्हें इसलिए डरा रहे हैं कि तुम उनसे चिढ़ जाते हो और उनके सामने धैर्य खो देते हो।”
इस प्रकार इस पत्र के माध्यम से हमें जवाहरलाल नेहरू के स्वभाव का पता चलता है तथा दूसरे नेताओं के व्यवहार का भी पता लग जाता है। सरकारी ब्यौरों और निजी पत्रों में अन्तर सरकारी ब्यौरों से निजी पत्र और आत्मकथाएँ बिल्कुल अलग होती हैं सरकारी ब्यौरे प्रायः गुप्त रूप से लिखे जाते हैं। ये लिखाने वाली सरकार और लिखने वाले विवरणदाता या लेखकों के पूर्वाग्रहों, नीतियों, दृष्टिकोणों आदि से प्रभावित होते हैं।
दूसरी ओर प्रायः निजी पत्र दो व्यक्तियों के बीच में आपसी सम्बन्ध, विचारों के आदान-प्रदान और निजी स्तर से जुड़ी सूचनाएँ देने के लिए होते हैं किसी भी व्यक्ति की आत्मकथा, उसकी ईमानदारी, निष्पक्षता और सच्चे विवरण पर उसका मूल्य निर्धारित करती है। इस तरह सरकारी ब्यौरों से आत्मकथा तथा निजी पत्र बिल्कुल भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा में अपनी बुराइयों को भी दर्शाया है और अच्छाइयों को भी।
महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे JAC Class 12 History Notes
→ प्रस्तावना-राष्ट्रवाद के इतिहास में प्राय: एक अकेले व्यक्ति को राष्ट्र-निर्माण के साथ जोड़कर देखा जाता है। इसी दृष्टि से भारत की आजादी के साथ महात्मा गाँधी को जोड़ कर देखा जाता है और उन्हें राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित किया जाता है।
→ स्वयं की उद्घोषणा करता एक नेता –
(क) दक्षिणी अफ्रीका काल – मोहनदास करमचन्द गाँधी 20 वर्ष तक विदेश में रहने के बाद 1915 में भारत लौटे। इन वर्षों का उनका अधिकांश समय दक्षिण अफ्रीका में बीता, जहाँ वे इस क्षेत्र के भारतीय समुदाय के नेता बन गये। यहाँ उन्होंने पहली बार सत्याग्रह के रूप में अपनी विशिष्ट तकनीक का इस्तेमाल किया, विभिन्न धर्मों के बीच सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया।
(ख) भारत लौटने पर भारत की स्थिति – जब वे भारत आए तो उस समय का भारत 1893 में जब वे विदेश गए थे, तब के समय से अपेक्षाकृत भिन्न था।
- भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का विकास – अभी भी ब्रिटिश शासन था लेकिन अधिकांश शहरों में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की शाखाएँ खुल चुकी थीं।
- प्रमुख उग्रवादी नेता – 1905-07 के स्वदेशी आन्दोलन ने कुछ प्रमुख नेताओं को जन्म दिया जिनमें लाल, बाल और पाल अत्यधिक प्रसिद्ध थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लड़ाकू प्रतिरोध का समर्थन किया था।
- उदारवादी नेता – इसके अतिरिक्त कुछ उदारवादी नेता भी थे, जो क्रमिक विकास के हिमायती थे। इनमें प्रमुख गोपाल कृष्ण गोखले थे जो गाँधीजी के राजनीतिक गुरु थे 1
(ग) पहली सार्वजनिक उपस्थिति – उनकी पहली सार्वजनिक उपस्थिति फरवरी, 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के समय दर्ज हुई। इसमें उन्होंने मजदूर गरीबों की ओर ध्यान न देने के कारण भारत के विशिष्ट वर्ग के लोगों को आड़े हाथों लिया।
(घ) चम्पारन में सत्याग्रह – 1916 के दिसम्बर में गाँधीजी को अपने नियमों को व्यवहार में लाने का मौका मिला। जब लखनऊ में चम्पारन से आये एक किसान ने उन्हें वहाँ अंग्रेज नील उत्पादकों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों के बारे में बताया। यहीं से गांधीजी के राजनीतिक जीवन का प्रारम्भ हुआ और चंपारन (बिहार) में प्रथम सत्याग्रह करके किसानों को मुक्ति दिलाई।
→ असहयोग की शुरुआत और अन्त- गाँधीजी का 1917 का अधिकतर समय काश्तकारी की सुरक्षा के साथ किसानों को मनपसन्द फसल पैदा करने की आजादी दिलाने में बीता।
(i) चंपारन, अहमदाबाद और खेड़ा में पहल – चंपारन, अहमदाबाद और खेड़ा में की गई पहल से गाँधीजी एक ऐसे राष्ट्रवादी के रूप में उभरे जिसमें गरीबों के लिए गहरी सहानुभूति थी। ये सभी स्थानिक संघर्ष थे।
(ii) रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह 1919 में औपनिवेशिक सरकार ने गाँधीजी की झोली में एक ऐसा मुद्दा डाल दिया जिससे वे कहीं अधिक विस्तृत आन्दोलन खड़ा कर सकते थे। प्रथम विश्व युद्ध (1914 1918) के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगाया तथा बिना जाँच के कारावास की अनुमति दे दी थी। युद्ध के बाद ‘रॉलेट एक्ट’ के द्वारा ये प्रतिबन्ध जारी रखे गए।
गाँधीजी ने रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह शुरू कर दिया। रॉलेट एक्ट के विरुद्ध किए गए सत्याग्रह से गाँधीजी एक राष्ट्रीय नेता बन गए थे। इस सफलता से प्रोत्साहित होकर गाँधीजी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक बड़ा आन्दोलन चलाने का निश्चय किया। 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में जनरल डायर द्वारा भयंकर जनसंहार किया गया।
(iii) असहयोग आन्दोलन- गाँधीजी को यह आशा थी कि असहयोग को खिलाफत के साथ मिलाने से भारत के दो प्रमुख धार्मिक समुदाय हिन्दू और मुसलमान मिलकर औपनिवेशिक शासन का अन्त कर देंगे। छात्रों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार कर दिया, वकीलों ने अदालत में जाना छोड़ दिया। कस्बों, नगरों और शहरों में मजदूरों ने हड़ताल कर दी। सरकारी आँकड़े बताते हैं कि 1921 में 396 हड़तालें हुई और इससे 70 लाख कार्य दिवसों का नुकसान हुआ। इस हड़ताल में 6 लाख मजदूर शामिल थे।
(iv) चौरी-चौरा काण्ड और असहयोग आन्दोलन का अन्त-फरवरी 1922 में संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले में स्थित एक पुलिस चौकी को आग लगा दी गई, जिसमें करीब 20 पुलिसकर्मी जलकर मर गए। आन्दोलन हिंसक हो जाने के कारण गाँधीजी ने इसे वापस ले लिया। आन्दोलन के दौरान हजारों भारतीयों को जेल में डाल दिया गया। स्वयं गाँधीजी को मार्च, 1922 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। गाँधीजी को 6 वर्ष की सजा दी गई।
→ गाँधीजी जन नेता के रूप में अब गाँधीजी एक जन नेता के रूप में स्थापित हो गए। निम्न स्थितियों ने उन्हें एक जन नेता बना दिया
(i) राष्ट्रीय आन्दोलन को जन आन्दोलन में परिणत करना – 1922 तक गांधीजी ने भारतीय राष्ट्रवाद को एकदम बदल दिया था इस प्रकार फरवरी, 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अपने भाषण में किए वायदे को उन्होंने पूरा किया। अब यह व्यावसायिकों और बुद्धिजीवियों का आन्दोलन न रहकर हजारों श्रमिकों, कारीगरों, किसानों और आम जनता का आन्दोलन बन गया था। इनमें से कई लोग गाँधीजी के प्रति आदर प्रकट करते हुए उन्हें ‘महात्मा’ कहने लगे। गाँधीजी साधारण वेशभूषा धारण करते थे। उन्होंने पारंपरिक जाति व्यवस्था में प्रचलित मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम की दीवार तोड़ने में मदद की।
(ii) किसानों के उद्धारक – गांधीजी भारतीय किसान के लिए उद्धारक के समान थे। लोग उन्हें ‘गांधी बाबा’, ‘गांधी महाराज’ अथवा ‘सामान्य महात्मा’ जैसे अलग-अलग नामों से पुकारते थे वे किसानों की दमनात्मक अधिकारियों से सुरक्षा करने वाले, ऊँची दर के करों से मुक्ति दिलाने वाले और उनके जीवन में मान-मर्यादा और स्वायत्तता वापस लाने वाले थे।
(iii) भारतीय उद्योगपति और व्यापारी भी आन्दोलन के समर्थक कांग्रेस में कुछ भारतीय उद्योगपति और व्यापारी भी शामिल हो गए थे उनकी सोच थी कि अंग्रेजों द्वारा जो उनका शोषण हो रहा है, वह स्वतन्त्र भारत में समाप्त हो जाएगा।
(iv) गाँधी व उनके अनुयायी नेता- 1917 से 1922 के बीच भारतीयों के एक बहुत ही प्रतिभाशाली वर्ग ने स्वयं को गाँधीजी से जोड़ लिया था। इनमें महादेव भाई देसाई, वल्लभ भाई पटेल, जे. बी. कृपलानी, सुभाष चन्द्र बोस, अबुल कलाम आजाद, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, गोविन्द वल्लभ पंत और सी. राजगोपालाचार्य शामिल थे।
(v) समाज सुधारक के रूप में गाँधीजी – 1924 में जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने अपना ध्यान खादी को बढ़ावा देने तथा छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों को मिटाने तथा बाल विवाह को रोकने में लगाया। उन्होंने हिन्दू-मुसलमानों के बीच सौहार्द पर बल दिया। उन्होंने विदेशों से आयातित वस्त्रों को पहनने के स्थान पर खादी पहनने की महत्ता पर जोर दिया।
→ नमक सत्याग्रह नजदीक से एक नजर-
(i) साइमन कमीशन के विरुद्ध आन्दोलन – असहयोग आन्दोलन की समाप्ति के कई वर्षों तक गाँधीजी ने अपने को समाज सुधार कार्यों में केन्द्रित रखा। 1927 में साइमन कमीशन के विरुद्ध होने वाले आन्दोलन तथा बारदोली में किसानों के सत्याग्रह में स्वयं भाग न लेकर दोनों को केवल अपना आशीर्वाद दिया था।
(ii) लाहौर अधिवेशन और पूर्ण स्वराज की घोषणा – 1929 में दिसम्बर के अन्त में लाहौर में काँग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन किया। इस अधिवेशन की दो बातें मुख्य थीं –
(1) जवाहरलाल नेहरू द्वारा अध्यक्षता करना और
(2) भारत को ‘पूर्ण स्वराज’ अथवा पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा करना। 26 जनवरी, 1930 को देशभर में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर और देशभक्ति के गीत गाकर औपनिवेशिक भारत में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया जो हर 26 जनवरी के दिन प्रतिवर्ष 1947 तक मनाया जाता रहा।
(iii) दाण्डी यात्रा स्वतंत्रता दिवस’ मनाए जाने के तुरन्त बाद महात्मा गाँधी ने एक घोषणा की कि वे ब्रिटिश भारत के सबसे अधिक घृणित कानूनों में से एक, जिसने नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य को एकाधिकार दे दिया है, को तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करेंगे। प्रत्येक भारतीय के घर में नमक का प्रयोग अपरिहार्य था इसके बावजूद उन्हें नमक बनाने से रोका गया। नमक कानून को निशाना बनाकर गाँधीजी ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक असंतोष को संघटित करने की सोच रहे थे।
(iv) मुट्ठीभर नमक – अधिकांश भारतीयों को गाँधीजी की इस चुनौती का महत्त्व समझ में आ गया था, लेकिन ब्रिटिश शासन इसे नहीं समझ सका। अपनी दाण्डी यात्रा की सूचना गाँधीजी ने लार्ड इरविन को दे दी थी, लेकिन उसकी समझ में बात नहीं आई। 12 मार्च, 1930 को गाँधीजी ने साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा शुरू की तीन हफ्ते बाद समुद्र किनारे पहुँचकर उन्होंने मुट्ठीभर नमक बनाकर कानून को तोड़ा और स्वयं को कानून की निगाह में अपराधी बना दिया।
(v) स्वराज की सीढ़ियाँ – वसना नामक गाँव में गाँधीजी ने ऊंची जाति वालों को संबोधित करते हुए कहा था कि “यदि आप स्वराज के हक में आवाज उठाते हैं तो आपको अछूतों की सेवा करनी पड़ेगी सिर्फ नमक कर या अन्य करों के खत्म हो जाने से आपको स्वराज नहीं मिल जायेगा। स्वराज के लिए आपको अपनी उन गलतियों का प्रायश्चित करना होगा जो आपने अछूतों के साथ की हैं। स्वराज के लिए हिन्दू, मुसलमान, पारसी और सिक्ख सबको एकजुट होना पड़ेगा ये स्वराज की सीढ़ियाँ हैं।”
(vi) नमक यात्रा का महत्त्व – नमक याश कम से कम निम्नलिखित तीन कारणों से उल्लेखनीय थी –
(क) यही वह घटना थी जिसके चलते महात्मा गाँधी दुनिया की नजर में आए इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज दी
(ख) यह पहली गतिविधि थी जिसमें औरतों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। समाजवादी कार्यकर्ता कमला देवी चट्टोपाध्याय ने गाँधीजी को समझाया कि वे अपने आन्दोलनों को पुरुषों तक ही सीमित न रखें। कमला देवी खुद उन असंख्य औरतों में से एक थीं जिन्होंने नमक या शराब कानूनों को तोड़ते हुए सामूहिक गिरफ्तारी दी।
(ग) तीसरा और संभवतः सबसे महत्वपूर्ण कारण यह था कि नमक यात्रा के कारण अंग्रेजों को यह एहसास हुआ था कि अब उनका राज बहुत दिन तक नहीं टिक पाएगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा।
→ गोलमेज सम्मेलन –
(i) पहला गोलमेज सम्मेलन नवम्बर, 1930 में लंदन में आयोजित किया गया, जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए।
(ii) दूसरा गोलमेज सम्मेलन दिसम्बर, 1931 में लंदन में आयोजित हुआ जिसमें गाँधीजी शामिल हुए। लेकिन यह सम्मेलन सफल नहीं हुआ।
(7) सविनय अवज्ञा आन्दोलन भारत लौटकर गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया।
(8) गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया एक्ट 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट में सीमित प्रातिनिधिक शासन व्यवस्था का आश्वासन व्यक्त किया गया। दो साल बाद सीमित मताधिकार के आधार पर हुए चुनावों में काँग्रेस -को जबरदस्त सफलता मिली 11 में से 8 प्रांतों में काँग्रेस के प्रधानमंत्री’ सत्ता में आए जो ब्रिटिश गवर्नर की देखरेख में काम करते थे।
(9) पाकिस्तान की माँग मार्च, 1940 में मुस्लिम लीग ने ‘पाकिस्तान’ के नाम से पृथक् राष्ट्र की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया और उसे अपना लक्ष्य घोषित कर दिया। अब राजनीतिक भू-दृश्य काफी जटिल हो गया था। यह संघर्ष भारतीय बनाम ब्रिटिश न रहकर काँग्रेस, मुस्लिम लीग और ब्रिटिश शासन के बीच शुरू हो गया।
(10) भारत छोड़ो आन्दोलन- क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आन्दोलन छेड़ने का फैसला लिया। अगस्त, 1942 में शुरू हुए इस आन्दोलन को ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नाम दिया गया था। हालांकि गाँधीजी फौरन गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन युवा कार्यकर्ता देश में हड़तालों और तोड़फोड़ के जरिए आन्दोलन चलाते रहे। भारत छोड़ो आन्दोलन सही मायने में जन आन्दोलन था जिसमें लाखों आम हिन्दुस्तानी शामिल थे।
(11) द्वितीय विश्व युद्ध व गाँधीजी की रिहाई-जून, 1944 में जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था तो गाँधीजी को जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से छूटने के बाद उन्होंने काँग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच फासले को पाटने के लिए जिला के साथ कई बार बातचीत की। 1945 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी, जो भारत को स्वतंत्र करने के पक्ष में थी।
(12) कैबिनेट मिशन – 1946 की गर्मियों में कैबिनेट मिशन भारत आया। इस मिशन ने काँग्रेस और मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर राजी करने का प्रयास किया जिसमें भारत के भीतर विभिन्न प्रान्तों को सीमित स्वायत्तता दी जा सकती थी कैबिनेट मिशन का यह प्रयास विफल रहा।
(13) प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस जिन्ना ने पाकिस्तान स्थापना के लिए लीग की माँग के समर्थन में एक ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ का आह्वान किया। इसके लिए 16 अगस्त, 1946 का दिन तय किया। उसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष शुरू हो गया। यह संघर्ष कलकत्ता से लेकर ग्रामीण बंगाल, बिहार संयुक्त प्रान्त और पंजाब तक फैल गया।
(14) स्वतंत्रता व विभाजन फरवरी, 1947 में वावेल की जगह माउंटबैटन वायसराय बनकर आये, उन्होंने वार्ताओं के लिए अन्तिम दौर का आह्वान किया। जब सुलह के लिए उनका अन्तिम प्रयास भी विफल हो गया तो उन्होंने ऐलान कर दिया कि ब्रिटिश भारत को स्वतंत्र कर दिया जायेगा, लेकिन उसका विभाजन होगा। इसके लिए 15 अगस्त का दिन नियत किया गया। दिल्ली में संविधान सभा के अध्यक्ष ने गांधीजी को ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि से संबोधित किया।
(15) आखिरी, बहादुराना दिन –
(i) 15 अगस्त, 1947 को राजधानी में हो रहे उत्सवों में गाँधीजी नहीं थे उस समय वे कलकत्ता में थे लेकिन उन्होंने वहाँ भी न तो किसी कार्यक्रम में भाग लिया, न ही कहीं शण्डा फहराया। गाँधीजी उस दिन 24 घण्टे के उपवास पर थे। उन्होंने इतने दिन तक जिस स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था वह एक अकल्पनीय कीमत पर उन्हें मिली थी। उनका राष्ट्र विभाजित था, हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरे की गर्दन पर सवार थे।
(ii) काँग्रेस ने आश्वासन दिया कि “वह अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकारों के किसी भी अतिक्रमण के विरुद्ध हर मुमकिन रक्षा करेगी।”
(iii) बहुत सारे विद्वानों ने स्वतंत्रता के बाद के महीनों को गाँधीजी के जीवन का ‘ श्रेष्ठतम क्षण’ कहा है। बंगाल में शान्ति स्थापना के बाद वे दिल्ली आ गए।
(iv) गाँधीजी ने स्वतंत्र और अखण्ड भारत के लिए जीवन भर संघर्ष किया। फिर भी जब देश विभाजित हो गया तो उनकी दिली इच्छा थी कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ सम्मान और दोस्ती के सम्बन्ध बनाए रखेंगे।। लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी।
(v) गाँधीजी की हत्या 30 जनवरी, 1948 की शाम को दैनिक प्रार्थना सभा में एक युवक ने गोली मारकर गाँधी जी की हत्या कर दी। उनके हत्यारे ने कुछ समय बाद आत्मसमर्पण कर दिया। वह नाथूराम गोडसे नाम का व्यक्ति था। पुणे का रहने वाला गोडसे एक अखबार का संपादक था।
काल-रेखा | |
1915 | महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से वापस लौटते हैं। |
1917 | चम्पारन आन्दोलन। |
1918 | खेड़ा (गुजरात) में किसान आन्दोलन तथा अहमदाबाद में कपड़ा मिल मजदूर आन्दोलन। |
1919 | रॉलेट सत्याग्रह (मार्च-अप्रैल)। |
1919 | जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड (13 अप्रैल)। |
1921 | असहयोग आन्दोलन और खिलाफत आन्दोलन। |
1928 | बारदोली में किसान आन्दोलन। |
1929 | लाहौर अधिवेशन (दिसम्बर) में ‘पूर्ण स्वराज्य’ को काँग्रेस का लक्ष्य घोषित किया जाता है। |
1930 | सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू; दांडी यात्रा (मार्च-अप्रैल)। |
1931 | गाँधी-इर्विन समझौता (मार्च); दूसरा गोलमेज सम्मेलन। |
1935 | गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया एक्ट में सीमित प्रातिनिधिक सरकार के गठन का आश्वासन। |
1939 | काँग्रेस मंत्रिमण्डलों का त्याग-पत्र, द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ (सितम्बर)। |
1942 | भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू (अगस्त)। |
1946 | महात्मा गाँधी सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए नोआखाली तथा अन्य हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करते हैं। |
1947 | भारत को स्वतंत्रता (15 अगस्त) व विभाजन। |
1948 | जनवरी 30, गाँधीजी का बलिदान-दिवस। |