JAC Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

Jharkhand Board Class 12 History औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 323 चर्चा कीजिए

प्रश्न 1.
जनगणना के अलावा ऐसी दो विधियाँ बताइए जिनके माध्यम से आधुनिक शहरों में आँकड़े इकट्ठा करने और उनको संकलित करने का काम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बन चुका है। सांख्यिकीय आँकड़ों या शहर के नक्शों में से किसी एक का अध्ययन कीजिए। पता लगाइए कि ये आँकड़े किसने और क्यों इकट्ठा किए? इस तरह के संग्रह में कौनसे सम्भावित भेद छिपे हो सकते हैं? कौनसी जानकारियाँ थीं जिनको दर्ज नहीं किया गया? यह पता लगाइए कि वे नक्शे क्यों बनाए गए और क्या उनमें शहर के सभी भागों को समान बारीकी से चिन्हित किया गया है?
उत्तर:
(1) नगरपालिका के द्वारा किया जाने वाला गृह-सर्वेक्षण
(2) पल्स पोलियो अभियान।
शेष प्रश्नों की जानकारी विद्यार्थी शिक्षक के माध्यम से प्राप्त करें।

पृष्ठ संख्या 325

प्रश्न 2.
चित्र 12.8 तथा 12.9 को देखिए। सड़कों पर होने वाली उन गतिविधियों पर ध्यान दीजिए, जिन्हें डेनियल बन्धु चित्र में दर्शाना चाहते हैं। इन गतिविधियों से अठारहवीं सदी के आखिर में कलकत्ता की सड़कों के सामाजिक जीवन के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
चित्र संख्या 128 और 12.9 में डेनियल बन्धुओं ने कलकत्ता की सड़कों पर आवागमन के साधनों को दर्शाया है। चित्र संख्या 12.8 से पता चलता है कि सड़कों में सुधार हो गया था। सम्पन्न लोग पालकी और टमटम (बन्द घोड़ागाड़ी) में बैठकर चलते थे जिनके आगे -पीछे घुड़सवार चलते थे सामान ढोने के लिए बैलगाड़ी का प्रयोग होता था, आम आदमी अपने सिर पर टोकरों में सामान लेकर चलता था। लोग पैदल भी चलते थे। सड़कें पक्की बन गई थीं। चित्र में राइटर्स बिल्डिंग चित्र थीं भी दर्शायी गई है, जो एक प्रमुख प्रशासनिक केन्द्र था। संख्या 12.9 से हमें पता चलता है कि सड़कें कच्ची तथा आवागमन के लिए बग्गी, बैलगाड़ी, ऊँट आदि का प्रयोग सम्पन्न लोगों द्वारा किया जाता था तथा आम आदमी पैदल चलता था।

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पृष्ठ संख्या 334

प्रश्न 3.
रिपोटों में लिखी बातों से अक्सर रिपोर्ट लिखने वाले के विचारों का पता चलता है। उपरोक्त वक्तव्य में लिखने वाला व्यक्ति किस तरह के शहरी भू- दृश्य को बेहतर मानता है और वह किस तरह की बसावट को हेय दृष्टि से देख रहा है? क्या आप इन विचारों से सहमत हैं?
उत्तर:
उपरोक्त वक्तव्य में लिखने वाला यूरोपीय ढंग से बनने वाले व्हाइट टाउन पार्क जैसे मकानों को अच्छी दृष्टि से देख रहा है और भारतीय ढंग से बसे व बने ब्लैक टाउन के मकानों को हेय दृष्टि से देख रहा है। |यद्यपि व्यक्ति को अपने देश की इमारतों तथा भवन निर्माण की शैली से विशेष लगाव या प्यार होता है, लेकिन दूसरे | देश की शैली की भी अपनी विशेषता होती है। इसलिए उसे हेय दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। हम लिखने वाले के विचार से सहमत नहीं हैं।

पृष्ठ संख्या 337

प्रश्न 4.
वेलेजली ने सरकार की जिम्मेदारी को किस तरह परिभाषित किया है? इस भाग को पढ़िए और चर्चा कीजिए कि इन विचारों को लागू किया जाता तो उनसे शहर में रहने वाले भारतीयों पर क्या असर पड़ता ?
उत्तर:
वेलेजली ने कलकत्ता मिनट्स (1803) में लिखा था, “यह सरकार की बुनियादी जिम्मेदारी है कि इस विशाल शहर में सड़कों, नालियों और जलमार्गों में एक समग्र व्यवस्था बनाकर तथा मकानों व सार्वजनिक भवनों के निर्माण व प्रसार के बारे में स्थायी नियम बनाकर और हर तरह की गड़बड़ियों को नियंत्रित करने के स्थायी नियम बनाकर यहाँ के निवासियों को स्वास्थ्य, सुरक्षा और सुविधा उपलब्ध कराए।”

यदि वेलेजली के इन विचारों को लागू किया जाता तो शहर में रहने वाले भारतीयों पर इसके अच्छे और बुरे दोनों प्रभाव पड़ते। जो सम्पन्न और धनी मानी लोग थे, उन्हें उपरोक्त सुविधाएँ उपलब्ध हो सकती थीं लेकिन जो मजदूर वर्ग के या गरीब तबके के लोग थे, उन्हें शहर के बाहर बस्तियों में रहने को मजबूर होना पड़ता। जैसा आगे चलकर लॉटरी कमेटी द्वारा बहुत सारी झोंपड़ियों को साफ करके गरीब मेहनतकशों को बाहर निकालकर कलकत्ता के बाहरी किनारे पर रहने की जगह दी गई।

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उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सम्भाल कर क्यों रखे जाते थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक शहरों में निम्नलिखित कारणों से रिकॉर्ड्स सम्भाल कर रखे जाते थे –

  • शहर की आबादी कितनी बढ़ी है या घटी है, यह जानने के लिए उसका रिकॉर्ड रखा जाता था। शहरों तथा ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत जानने में भी ये रिकार्ड उपयोगी थे।
  • शहर की चारित्रिक विशेषताओं के अन्वेषण के समय उन रिकार्डों का प्रयोग सामाजिक और अन्य परिवर्तनों को जानने के लिए आवश्यक था।
  • इन रिकार्डों के द्वारा शहरों में यातायात, व्यापारिक गतिविधियाँ, सफाई, परिवहन और प्रशासनिक कार्यालयों की आवश्यकताओं को जानने, समझने और उन पर आवश्यकतानुसार कार्य करने के लिए नागरिकों की मृत्यु दर तथा बीमारियों का पता लगाने के लिए यह रिकार्ड सहायक होते थे। ये आंकड़े स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते थे।
  • शहरों में मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराने तथा शहरों के विकास की योजनाएँ बनाने के लिए भी ये रिकार्ड उपयोगी होते थे।
  • इन आंकड़ों से कानून व्यवस्था बनाये रखने में सहायता प्राप्त होती थी।

प्रश्न 2.
औपनिवेशिक सन्दर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनगणना सम्बन्धी आँकड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं?
उत्तर:

  • जनगणना सम्बन्धी आँकड़े शहरीकरण की गति को दर्शाते हैं। इन आँकड़ों से हमें पता चलता है कि सन् 1800 के बाद हमारे देश में शहरीकरण की गति धीमी रही। पूरी 19वीं शताब्दी और बीसवीं सदी के प्रथम दो दशकों में शहरी आबादी का अनुपात बहुत साधारण और लगभग स्थिर रहा।
  • जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़ों से नागरिकों के लिंग, जाति, धर्म एवं व्यवसाय आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
  • इन आँकड़ों से नागरिकों की जन्म दर एवं मृत्यु दर के प्रतिशत के बारे में जानकारी मिलती है।
  • जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़े विभिन्न समुदायों तथा जातियों के लोगों के रोजगार तथा व्यवसायों की जानकारी देते हैं।
  • ये आंकड़े लोगों के स्वास्थ्य के स्तर की भी जानकारी देते हैं।
  • जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़े श्वेत व अश्वेत टाऊन के निर्माण, विस्तार एवं उनके जीवन सम्बन्धी स्तर, भयंकर बीमारियों के जनसंख्या पर पड़े दुष्प्रभाव आदि को जानने में भी उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 3.
‘हाइट’ और ‘ब्लैक’ टाउन शब्दों का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
डाइट और ब्लैक टाउन शब्दों का महत्व- अंग्रेज लोग नस्लभेद, रंग-भेद व जातीय भेदभाव में विश्वास करते थे। हाइट टाउन गोरे लोगों की बस्ती के लिए जाना जाता था और ब्लैक टाउन भारतीय व्यापारी, कारीगर और कामगारों की बस्ती के लिए जाना जाता था। हाइट टाउन- 18वीं सदी में अंग्रेजों ने मद्रास, कलकत्ता और बम्बई में जो बस्तियों के किले बनाए उनमें किले के अन्दर रहने के लिए गोरे लोगों की बस्तियाँ बसाई गई। इन्हें उस समय के लेखन में ‘हाइट टाउन’ के नाम से उद्धृत किया जाता था। यहाँ गोरे लोगों को जीवन की सभी मूलभूत सुविधाएँ प्राप्त थीं। यहाँ चौड़ी सड़कों, बड़े बगीचों में बने बंगलों, बैरकों, परेड मैदान, चर्च, क्लब आदि की समुचित व्यवस्था थी। यहाँ सफाई और सुरक्षा की उत्तम व्यवस्था थी।

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अंग्रेजों की दृष्टि में –

  • भारतीयों की बस्ती ब्लैक टाउन कहलाती थी।
  • ब्लैक टाउन घने और बेतरतीब ढंग से बसे हुए थे।
  • ये अराजकता और हो-हल्ले के केन्द्र थे तथा गन्दगी और बीमारी के स्रोत भी थे।
  • अंग्रेजों ने यहाँ सफाई और स्वच्छता के लिए कोई ध्यान नहीं दिया।
  • ब्लैक टाउन में मन्दिर और बाजार के इर्द- गिर्द रिहायशी मकान बनाए गए थे
  • शहर के बीच से गुजरने वाली आड़ी-टेढ़ी संकरी गलियों में अलग-अलग जातियों के मोहल्ले थे। चिन्ताद्रीपेठ इलाका केवल बुनकरों के लिए था। वाशरमेनपेट में रंगसाज तथा धोबी रहते थे।

प्रश्न 4.
प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया?
उत्तर:
प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों अर्थात् कलकत्ता, मद्रास और बम्बई में खुद को निम्न प्रकार स्थापित किया –
(1) मद्रास में दुबाश लोग एजेन्ट और व्यापारी के रूप में काम करते थे और भारतीय समाज तथा अंग्रेजों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे।

(2) 18वीं शताब्दी तक मद्रास, बम्बई और कलकत्ता महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह बन चुके थे। यूरोपीय व्यापारियों के साथ लेन-देन चलाने वाले भारतीय व्यापारी, कारीगर अलग बस्तियों में रहते थे। रेलवे के विकास के साथ शहरों का भी विकास हुआ। 1850 के दशक के बाद भारतीय व्यापारियों ने भी बम्बई में सूती कपड़ा मिलें स्थापित कीं।

(3) भारतीय व्यापारी कम्पनी के व्यापार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे बम्बई के रहने वाले व्यापारी चीन को जाने वाली अफीम के व्यापार में हिस्सेदार थे। उन्होंने बम्बई की अर्थव्यवस्था को मालवा, सिंध और राजस्थान जैसे अफीम उत्पादक इलाकों से जोड़ने में सहायता दी। कम्पनी के साथ गठजोड़, एक मुनाफे का सौदा था, जिससे आगे चलकर पूँजीपति वर्ग का जन्म हुआ। भारतीय व्यापारियों में सभी समुदाय – पारसी, मारवाड़ी, यहूदी, कोंकणी, मुसलमान, गुजराती बनिए, बोहरा आदि शामिल थे। 1869 में स्वेज नहर को व्यापार के लिए खोले जाने से बम्बई के व्यापारिक सम्बन्ध विश्व अर्थव्यवस्था के साथ और मजबूत हुए। उनीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक बम्बई में भारतीय व्यापारी काटन मिल जैसे नए उद्योगों में अपना धन लगा रहे थे।

प्रश्न 5.
औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्व किस हद तक घुल-मिल गए थे?
अथवा
औपनिवेशिक काल में मद्रास के क्रमिक शहरीकरण का वर्णन कीजिये।
अथवा
अंग्रेजों ने मद्रास का शहरीकरण किस प्रकार किया?
उत्तर:
(1) आसपास के गाँवों से लोग आकर मद्रास में रहने लगे थे। ग्रामीण तथा शहरी लोग मुख्यतः मद्रास के ‘ब्लैक टाउन’ में रहते थे। ब्लैक टाउन में परम्परागत भारतीय ढंग के मन्दिर, रिहायशी मकान, आड़ी-टेढ़ी सँकरी गलियाँ और अलग-अलग जातियों के मोहल्ले थे।

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(2) मद्रास में विविध प्रकार के व्यवसाय करने वाले लोग रहते थे। स्थानीय ग्रामीण जाति के बेल्लालार लोग ब्रिटिश कम्पनी के अधीन नौकरियाँ करते थे। पेरियार और वन्नियार गरीब कामगार वर्ग के तमिल लोग थे।

(3) यूरोपवासी भी धीरे-धीरे किले से बाहर जाने लगे। उन्होंने गार्डेन हाउसेज बनाये। इसी दौरान सम्पन्न भारतीय भी अंग्रेजों की भाँति रहने लगे। परिणामस्वरूप मद्रास के आस-पास स्थित गाँवों की जगह अनेक नये उपनगर बस गए। गरीब लोग निकट पड़ने वाले गाँवों में बस गए। इस प्रकार मद्रास के बढ़ते शहरीकरण के परिणामस्वरूप इन गाँवों के बीच वाले इलाके शहर के भीतर आ गए। इस प्रकार मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्त्व काफी हद तक घुल-मिल गए।

निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए ( लगभग 250 से 300 शब्दों में ) –

प्रश्न 6.
अठारहवीं सदी में शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण किस तरह हुआ?
अथवा
18वीं शताब्दी के मध्य में नगरों का रूप परिवर्तन क्यों और कैसे हुआ?
उत्तर:
18वीं सदी में शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण 16वीं और 17वीं सदी में आगरा, दिल्ली और लाहौर मुगलकालीन प्रशासन और सत्ता के महत्त्वपूर्ण केन्द्र थे तथा मदुरई और कांचीपुरम दक्षिण भारत के प्रमुख धार्मिक और व्यापारिक केन्द्र थे। लेकिन 18वीं सदी में इन शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण होने लगा। इन शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण निम्न प्रकार हुआ—
(1) राजनीतिक पुनर्गठन के कारण नये शहरी केन्द्रों का विकास – राजनीतिक पुनर्गठन के कारण नये शहरी केन्द्रों का विकास हुआ। यथा –

  • मुगल राजधानियों का पतन – मुगल सत्ता के पतन के कारण ही उसके शासन से सम्बद्ध नगरों का अवसान हो गया। मुगल राजधानियों, दिल्ली और आगरा ने अपना राजनीतिक प्रभुत्व खो दिया।
  • क्षेत्रीय राजधानियों का विकास-नयी क्षेत्रीय ताकतों का विकास क्षेत्रीय राजधानियों – लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगपद्म पूना (पुणे), नागपुर, बड़ौदा और तंजौर (तंजावुर ) के बढ़ते महत्त्व में परिलक्षित हुआ। व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग पुराने मुगल केन्द्रों से इन नयी राजधानियों की ओर काम तथा संरक्षण की तलाश में आए। नये राज्यों के बीच निरन्तर लड़ाइयों का परिणाम यह था कि भाड़े के सैनिकों को भी यहाँ तैयार रोजगार मिलता था।
  • कस्बे और गंज जैसी नयी शहरी बस्तियों का विकास – कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों तथा उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य से सम्बद्ध अधिकारियों ने भी इस अवसर का उपयोग ‘कस्बे’ और ‘गंज’ जैसी नयी शहरी बस्तियों को बसाने में किया।

(2) व्यापारिक पुनर्गठन के कारण नये शहरी केन्द्रों का विकास – व्यापार तन्त्रों में परिवर्तन शहरी केन्द्रों के रूपान्तरण में परिलक्षित हुए।

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यथा –
यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों की व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने पहले, मुगलकाल में ही विभिन्न स्थानों पर अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित कर लिये थे। जैसे – पुर्तगालियों ने 1510 में पणजी में, डचों ने 1605 में मछलीपट्नम में अंग्रेजों ने मद्रास में 1639 में तथा फ्रांसीसियों ने 1673 में पांडिचेरी में व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार के साथ ही इन व्यापारिक केन्द्रों के आसपास नगर विकसित होने लगे।

(3) ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राजनीतिक नियंत्रण के स्थापित होने के बाद विकसित आर्थिक राजधानियाँ- मध्य 18वीं सदी से परिवर्तन का एक नया चरण प्रारम्भ हुआ। जब व्यापारिक गतिविधियाँ अन्य स्थानों पर केन्द्रित होने लगीं तो 17वीं सदी में विकसित हुए सूरत, मछलीपट्नम तथा ढाका पतनोन्मुख हो गये 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद जैसे-जैसे अंग्रेजों ने राजनीतिक नियंत्रण हासिल किया और ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का व्यापार फैला तो मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई जैसे औपनिवेशिक बन्दरगाह शहर तेजी से नयी आर्थिक राजधानियों के रूप में उभरे इन तीनों शहरी केन्द्रों का विकास इस प्रकार हुआ –

  • ये शहर औपनिवेशिक प्रशासन और सत्ता के केन्द्र बन गये थे।
  • यहाँ नए भवनों और संस्थानों का विकास हुआ।
  • यहाँ शहरी स्थानों को नए तरीकों से व्यवस्थित किया गया।
  • यहाँ नए रोजगार विकसित हुए और लोग इन औपनिवेशिक शहरों की ओर उमड़ने लगे। लगभग सन् 1800 तक ये जनसंख्या की दृष्टि से भारत के विशालतम शहर बन गये थे।

प्रश्न 7.
औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान कौन से थे? उनके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक शहरों में सामने आने वाले नए सार्वजनिक स्थान और उनके उद्देश्य निम्नलिखित थे –
(i) गोदियों और घाटियों का विकास -18वीं सदी तक मद्रास, बम्बई तथा कलकत्ता महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह बन चुके थे। यहाँ अनेक कारखाने तथा व्यापारिक केन्द्र स्थापित हुए नदी या समुद्र के किनारे आर्थिक गतिविधियों से गोदियों वा घाटियों का विकास हुआ।

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(ii) गोदामों, बीमा एजेंसियों आदि की स्थापना- समुद्र किनारे गोदामों, वाणिज्यिक कार्यालयों, जहाजरानी उद्योग के लिए बीमा एजेंसियों, यातायात डिपो और बैंकिंग संस्थानों की स्थापना हुई।

(iii) प्रशासनिक कार्यालय- कम्पनी के मुख्य प्रशासकीय कार्यालय समुद्र तट से दूर बनाये गये। कलकत्ता में स्थित ‘राइटर्स बिल्डिंग’ इसी तरह का एक दफ्तर हुआ करती थी। यह ब्रिटिश शासन में नौकरशाही के बढ़ते प्रभाव का संकेत था। यहाँ ‘राइटर्स’ से तात्पर्य क्लर्कों से था।

(iv) यूरोपीय शैली के मकान – किले की चारदीवारी के आसपास यूरोपीय व्यापारियों और एजेण्टों ने यूरोपीय शैली के महलनुमा मकान बना लिए थे। कुछ लोगों ने शहर की सीमा से सटे उपशहरी इलाकों में बगीचाघर बना लिए थे। शासक वर्ग के लिए शहरों में क्लब, रेसकोर्स और रंगमंच भी बनाए गए।

(v) ह्वाइट और ब्लैक टाउन- 19वीं शताब्दी के मध्य में औपनिवेशिक शहरों को दो भागों में बाँट दिया गया, जिनको क्रमश: सिविल लाइन्स या हाइट टाउन, जिसमें सफेद रंग वाले गोरे यूरोपीय रहते थे तथा दूसरा ब्लैक टाउन, जिसमें देसी भारतीय लोग रहते थे, कहा गया। ह्वाइट टाउन व सिविल लाइन्स में यूरोपीय शैली के महलनुमा मकान, बगीचा घर, क्लब, रेसकोर्स और रंगमंच, सड़कें, बंगले, परेड मैदान, चर्च आदि थे जो शासक वर्ग के लिए नस्ली विभेद पर आधारित थे।

(vi) भूमिगत पाइपलाइन तथा नालियों की व्यवस्था – साफ-सफाई का ध्यान रखने के लिए भूमिगत पाइपलाइन तथा ढकी हुई नालियों की व्यवस्था की गई।

(vii) हिल स्टेशन – गर्म जलवायु के प्रभाव को कम करने के लिए तथा अंग्रेज सैनिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अंग्रेजों ने शिमला, माउन्ट आबू तथा दार्जिलिंग में हिल स्टेशन स्थापित किए।

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(viii) मिलने-जुलने के स्थान, शिक्षा संस्थान व अन्य सार्वजनिक स्थल-यहाँ यूरोपीय शैली की इमारतों, विला, काटेज, एंग्लिकन चर्च तथा शैक्षणिक संस्थाओं का निर्माण किया गया। टाउन हाल सार्वजनिक पार्क, रंगशालाएँ तथा सिनेमा हाल जैसे मिलने-जुलने के स्थान बनाए गए। शिक्षा से जुड़ी संस्थाओं, जैसे – स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी उपलब्ध थे। सार्वजनिक सेवा केन्द्र या सामुदायिक भवन भी थे, जहाँ लोगों को समाचार पत्र तथा पत्रिकाएँ मिल सकती थीं।

(ix) रेलवे का नेटवर्क-1853 में भारत में रेलवे की शुरुआत हुई। रेलवे के फैलते नेटवर्क ने औपनिवेशिक शहरों को शेष भारत से जोड़ दिया।

प्रश्न 8.
उन्नीसवीं सदी में नगर नियोजन को प्रभावित करने वाली चिन्ताएँ कौनसी थीं?
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी में औपनिवेशिक शहरों में नगर नियोजन का कार्य प्रारम्भ करते समय चिन्ताएँ निम्नलिखितं थीं –
(i) बढ़ती आबादी लोग गाँवों से शहरों की ओर उमड़ रहे थे। ऐसे में बढ़ती हुई आबादी को बसाने की चिन्ता थी, जिससे सभी को आवास उपलब्ध हो सके।

(ii) नगर नियोजन व सफाई व्यवस्था – शहरों को उचित प्रकार से बसाने के लिए योजना व नक्शे बनाना तथा नियमित साफ-सफाई की व्यवस्था करना, जिससे बीमारियों को फैलने से रोका जा सके, यह भी चिन्ता का विषय था । गन्दे तालाबों, सड़ांध और निकासी की शोचनीय अवस्था से अंग्रेज शासक परेशान थे। उनका मानना था कि दलदली जमीन और ठहरे हुए पानी के तालाबों से जहरीली गैसें निकलती हैं जिनसे बीमारियाँ फैलती हैं। अतः शहरों में खुले स्थान छोड़े जाने पर बल दिया गया।

(iii) रंग व जातिभेद – रंगभेद व जातिभेद को आधार बनाकर शहरों का विभाजन करना तथा उनमें सार्वजनिक सुविधाओं का प्रबन्ध करना अंग्रेज अधिकारियों के लिए चिन्ता का विषय था। अंग्रेज भारतीयों को हीन मानते थे और उनके साथ उठने-बैठने में अपना अपमान समझते थे।

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(iv) सुरक्षा प्रबन्ध – 1857 के विद्रोह से सबक लेकर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा का विशेष प्रबन्ध करना भी अंग्रेजों के लिए चिन्ता का कारण था, जिसमें उनके सम्मान की रक्षा, यूरोपीय सम्पत्ति की रक्षा तथा इमारतों और साजो-सामान की रक्षा करना भी शामिल था। इसलिए अंग्रेजों के लिए अधिक सुरक्षित व पृथक् बस्तियों की व्यवस्था की गई और ‘सिविल लाइन्स’ के नाम से नये शहरी क्षेत्र विकसित किए गए।

(v) चालों का निर्माण – शहरों की फैक्ट्रियों तथा अन्य काम-धन्धों में लगे हुए लोग विभिन्न राज्यों से आए थे, उनको निवास उपलब्ध कराने की भी चिन्ता थी। इसके लिए बहुमंजिली इमारतें तथा चालों का निर्माण किया गया।

(vi) स्थापत्य शैलियों की भिन्नता – शहरों में भवन और इमारतों का निर्माण किस शैली के आधार पर किया जाए, यह भी चिन्ता का विषय था अंग्रेजों ने अपनी आवश्यकताओं और रुचियों की पूर्ति के लिए स्थापत्य में अनेक यूरोपीय शैलियों का उपयोग किया। बम्बई में बम्बई सचिवालय, बम्बई विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय, विक्टोरिया टर्मिनस आदि इमारतें नव-गॉथिक शैली में बनाई गई।

(vii) धन सम्बन्धी समस्या- अंग्रेजी सरकार शहरों के सुनियोजित विकास के लिए धन की व्यवस्था करना नागरिकों की जिम्मेदारी मानती थी। अतः कलकत्ता में नगर सुधार के लिए पैसे की व्यवस्था जनता के बीच लॉटरी बेचकर की जाती थी। इस प्रकार कलकत्ता में नगर नियोजन का काम लॉटरी कमेटी करती थी। लॉटरी कमेटी ने भारतीय बस्तियों में सड़क- निर्माण और नदी किनारे से अवैध कब्जों को हटवाया।

(viii) यातायात के साधन उपलब्ध करवाना – समस्त लोगों को कारखानों या कार्यालयों में जाने के लिए यातायात के साधनों को उपलब्ध करवाना भी एक प्रमुख समस्या थी।

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(ix) महामारी की समस्या- अंग्रेज महामारी की आशंका से भी चिन्तित थे। शहरों में हैजा व प्लेग की बीमारियों से लोग पीड़ित रहते थे।

(x) अग्निकांड की घटनाएँ शहरों में होने वाली अग्निकांड की घटनाओं से भी अंग्रेज चिन्तित थे। इसी आशंका के कारण 1836 में कलकत्ता में पास-फूंस की झोंपड़ियों को अवैध घोषित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त मकानों में ईंटों की छत अनिवार्य कर दी गई।

प्रश्न 9.
नए शहरों में सामाजिक सम्बन्ध किस हद तक बदल गए थे?
अथवा
नये औपनिवेशिक नगरों में सामाजिक सम्बन्धों का स्वरूप किस सीमा तक परिवर्तित हो गया था? चर्चा कीजिये ।
उत्तर:
नए अनुभव – साधारण भारतीय आबादी के लिए ये नए शहर आश्चर्यचकित कर देने वाले अनुभव थे, जहाँ पर जिन्दगी हमेशा दौड़ती भागती सी दिखाई पड़ती थी। वहाँ पर एक ओर चरम सम्पन्नता दिखाई देती थी तो दूसरी ओर गहन गरीबी के भी दर्शन होते थे। यातायात के नए साधन आने से सम्पन्न लोग उपनगरों में भी रहने लगे थे।
नये शहरों में सामाजिक सम्बन्धों में आए परिवर्तन

नये शहरों में सामाजिक सम्बन्ध निम्न प्रकार बदल गये थे –
(1) यातायात के नये साधनों का विकास – घोड़ा गाड़ी जैसे नये यातायात के साधन और बाद में ट्रामों तथा बसों के आगमन के परिणामस्वरूप लोग शहर के केन्द्र से दूर जाकर भी बस सकते थे। समय के साथ काम की जगह और रहने की जगह दोनों एक-दूसरे से अलग होते गए। घर से कार्यालय या फैक्ट्री जाना एक नये प्रकार का अनुभव बन गया।

(2) सार्वजनिक मेल-मिलाप के स्थलों में परिवर्तन यद्यपि अब पुराने शहरों में पहले जैसा सामंजस्य नहीं दिखाई पड़ता था, लेकिन फिर भी लोगों का मेल- मिलाप सार्वजनिक पार्कों, टाउन हॉलों, सिनेमाघरों और रंगशालाओं के माध्यम से हो जाता था।

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(3) नये सामाजिक समूहों का निर्माण शहरों में अब नए सामाजिक समूह बनने लगे और पुरानी पहचान अब गौण होने लगी। एक मध्यम वर्ग का शहरों में उदय होने लगा, जिनमें डॉक्टर, शिक्षक, वकील, एकाउन्टेन्ट्स, इंजीनियर क्लर्क आदि आते थे। पढ़े-लिखे होने के कारण ये लोग पत्र पत्रिकाओं, समाचार पत्रों और सार्वजनिक सभाओं में अपने विचार प्रकट कर सकते थे। सामाजिक रीति-रिवाज, कायदे-कानून और तौर-तरीकों पर सवाल उठने लगे थे।

(4) सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की बढ़ती उपस्थिति – शहरों में स्त्रियों के लिए नए अवसर मौजूद थे। समाचार-पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों के द्वारा मध्यम वर्ग की नारियाँ स्वयं को अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रही थीं परन्तु महिला शिक्षा के समर्थक चाहते थे कि स्त्रियाँ घर की चारदीवारी के भीतर ही रहें। समय बीतने के साथ सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की उपस्थिति बढ़ने लगी। कालान्तर में महिलाएँ भी नौकरानी, फैक्ट्री मजदूर, शिक्षिका और रंगकर्मी के रूप में दिखाई पड़ने लगीं। लेकिन ऐसी महिलाओं को लम्बे समय तक सामाजिक रूप से सम्मानित नहीं माना जाता था, जो घर से निकलकर सार्वजनिक स्थानों पर जा रही थीं।

(5) मेहनतकशों का नया वर्ग उभरना तथा नई शहरी संस्कृति-शहरों में मेहनतकश गरीबों या कामगारों का एक नया वर्ग उभर रहा था। ज्यादातर पुरुष अपना परिवार गाँव में छोड़कर आते थे। शहरी जिन्दगी संघर्षपूर्ण तथा नौकरी पक्की नहीं थी, खाना महँगा था, रिहायश का खर्चा भी उठाना मुश्किल था। फिर भी गरीब मजदूरों ने वहाँ प्रायः अपनी एक शहरी संस्कृति रच ली थी। वे धार्मिक त्यौहारों, तमाशों (लोक रंगमंच) और स्वांग आदि में पूरे उत्साह से भाग लेते थे, जिनमें ज्यादातर भारतीय और यूरोपीय स्वामियों का मजाक उड़ाया जाता था।

(6) औपनिवेशिक शहरों में दोहरी व्यवस्था – बम्बई, कलकत्ता, मद्रास में निवास हेतु दोहरी व्यवस्था अपनाई गई। यूरोपीय लोगों के लिए सिविल लाइन्स (डाइट टाउन) बसाये गये तथा भारतीय व शेष एशियाई लोगों के लिए ब्लैक टाउन बसाए गए हाइट टाउन में भवन यूरोपीय शैली के आधार पर बनाए गए और वहाँ पर स्वच्छता, सफाई सड़कों आदि की अच्छी व्यवस्था थी, जबकि ब्लैक टाउन में परम्परागत भारतीय शैली के मकान थे तथा साफ-सफाई की व्यवस्था नगण्य थी।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य JAC Class 12 History Notes

→ औपनिवेशिक भारत में शहरीकरण – औपनिवेशिक भारत में शहरीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत शहरों और | कस्बों में आए उन परिवर्तनों को सम्मिलित किया जाता है, जो यूरोपीय कम्पनियों अथवा शासकों के पैर भारत में जम जाने के कारण आए। इनमें औपनिवेशिक शहरों की मुख्य विशेषताओं तथा उनमें होने वाले सामाजिक बदलाव को भी शामिल किया जाता है। इसी सन्दर्भ में हम तीन बड़े शहरों मद्रास (चेन्नई), कलकत्ता (कोलकाता) और बम्बई (मुम्बई) के विकास के बारे में पढ़ेंगे।

→ पृष्ठभूमि तीनों शहर मुख्य रूप से मछली पकड़ने तथा बुनाई के गाँव थे, जो ईस्ट इण्डिया कम्पनी की व्यापारिक गतिविधियों के कारण व्यापार के महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गए। कम्पनी के एजेन्ट 1639 में मद्रास तथा 1690 में कलकत्ता में बस गए। 1661 में बम्बई को भी ब्रिटेन के राजा ने कम्पनी को दे दिया। कम्पनी ने इन तीनों ही शहरों में अपने व्यापारिक तथा प्रशासनिक कार्यालय स्थापित किए।

→ पूर्व औपनिवेशिक काल में कस्बे और शहर –
(क) कस्बे कस्बे मुख्यतः विशेष प्रकार की आर्थिक गतिविधियों और संस्कृतियों के प्रतिनिधि बनकर उभरे। कस्बों में व्यापारी, शिल्पकार, प्रशासक और शासक रहते थे। कस्बों का ग्रामीण जनता पर प्रभाव रहता था और वे खेती से प्राप्त करों तथा अधिशेष के आधार पर फलते-फूलते थे। ज्यादातर कस्बों और शहरों की किलेबन्दी की जाती थी, जो ग्रामीण क्षेत्र से इनकी पृथकता को दिखाती थी फिर भी कस्बों और गाँवों की पृथकता अनिश्चित होती थी।

(ख) मुगलों द्वारा बनाए गए शहर –
16वीं तथा 17वीं शताब्दियों में मुगलों द्वारा बनाए गए शहर-आगरा, दिल्ली और लाहौर – जनसंख्या के केन्द्रीकरण, अपने विशाल भवनों तथा शाही शोभा और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध थे मनसबदार जागीरदार और कुलीन वर्ग की उपस्थिति के कारण यहाँ अच्छे शिल्पकार, बाजार तथा राजकोष स्थित थे। सम्राट एक किलेबन्द महल में रहता था और नगर एक दीवार से घिरा होता था तथा द्वारों से आने-जाने पर नियंत्रण रखा जाता था। नगरों के भीतर उद्यान, मस्जिदें, मन्दिर, महाविद्यालय, बाजार, सराय, मकबरे आदि स्थित होते थे। नगर का केन्द्र महल और मुख्य मस्जिद होते थे। दक्षिण भारत के नगरों – मदुरई, कांचीपुरम- मुख्य केन्द्र मन्दिर होता था। कोतवाल नगर में आन्तरिक मामलों पर नजर रखता था और कानून व्यवस्था को मैं बनाए रखता था।

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(ग) अठारहवीं शताब्दी में परिवर्तन –
(1) राजनीतिक और व्यापारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगरों का पतन हुआ और नए नगरों का विकास होने लगा। मुगल राजधानियों दिल्ली और आगरा ने अपना राजनीतिक प्रभुत्व खो दिया। नई क्षेत्रीय ताकतों का विकास क्षेत्रीय राजधानियों, लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगपट्म, पूना (पुणे), नागपुर, बड़ौदा तथा तंजौर (तंजावुर) के बढ़ते महत्त्व में दिखाई पड़ने लगा। (2) व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग इन नई राजधानियों में आने लगे।
(3) भाड़े के सैनिक भी यहाँ रोजगार हेतु आए तथा कुछ स्थानीय तथा विशिष्ट लोगों ने इस काल में ‘कस्बे’ और ‘गंज’ जैसी नई शहरी बस्तियों का विकास किया।
(4) यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने मुगलकाल में ही विभिन्न स्थानों पर अपने आधार स्थापित कर लिए थे।
(5) 1757 ई. में प्लासी के युद्ध के बाद जैसे-जैसे अंग्रेजों ने राजनीतिक नियंत्रण हासिल किया और इंग्लिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का व्यापार फैला, मद्रास, कलकत्ता और बम्बई जैसे औपनिवेशिक बन्दरगाह तेजी से नयी आर्थिक राजधानियों के रूप में उभरे तथा औपनिवेशिक प्रशासन और सत्ता के केन्द्र बन गए।

→ औपनिवेशिक शहरों की पड़ताल
(क) रिकार्ड्स और शहरी इतिहास – औपनिवेशिक शासन बेहिसाब आँकड़ों और जानकारियों के संग्रह पर आधारित था। बढ़ते हुए शहरों में जीवन की गति और दिशा पर नजर रखने के लिए वे नियमित रूप से सर्वेक्षण कराते थे। सांख्यिकीय आँकड़े एकत्र करते थे तथा विभिन्न प्रकार की सरकारी रिपोर्ट प्रकाशित करते थे।

यथा –
(i) मानचित्र पर जोर शुरुआत के वर्षों में औपनिवेशिक सरकार ने मानचित्र बनाने पर विशेष जोर दिया। सरकार का मानना था कि किसी स्थान की बनावट और भू-दृश्यों को समझने के लिए नक्शे जरूरी होते हैं। इस जानकारी के आधार पर वे इलाके पर ज्यादा बेहतर नियंत्रण स्थापित कर सकते थे जब शहरों का विकास होने लगा तो उनके विकास और व्यवसाय को विकसित करने के लिए नक्शे बनाए जाने लगे।

(ii) कर वसूली उन्नीसवीं शताब्दी के आखिर से अंग्रेजों ने वार्षिक नगरपालिका कर के माध्यम से शहरों के रख-रखाव के वास्ते पैसा एकत्र करना शुरू कर दिया। नगर निगम जैसे संस्थानों का उद्देश्य शहरों में जलापूर्ति, निकासी सड़क निर्माण और स्वास्थ्य व्यवस्था जैसी अत्यावश्यक सेवाएँ उपलब्ध कराना था।

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(iii) नियमित गिनती शहरों के फैलाव पर नजर रखने के लिए नियमित रूप से लोगों की गिनती की जाती थी। उन्नीसवीं सदी के मध्य तक विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर जनगणना शुरू की जा चुकी थी। अखिल भारतीय जनगणना का प्रथम प्रयास 1872 में किया गया। इसके बाद, 1881 से दशकीय (हर दस साल में होने वाली) जनगणना एक नियमित व्यवस्था बन गई। जनगणनाओं का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने से कुछ दिलचस्प रुझान सामने आते हैं। सन् 1800 के बाद हमारे देश में शहरीकरण की गति धीमी रही। पूरी उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के पहले दो दशकों में देश की जनसंख्या में कुल जनसंख्या में शहरी जनसंख्या का हिस्सा बहुत मामूली और स्थिर रहा। 1900 से 1940 के बीच 40 सालों के मध्य शहरी आबादी 10 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 13 प्रतिशत हो गई थी।

(ख) वस्त्र संग्रह डिपो औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के केन्द्र होने के कारण ये शहर भारतीय सूती कपड़े जैसे निर्यात उत्पादों के लिए संग्रह डिपो थे मगर इंग्लैण्ड में होने वाली औद्योगिक क्रान्ति के बाद इस प्रवाह की दिशा बदल गई और इन शहरों में ब्रिटेन के कारखानों में बनी चीजें उतरने लगीं। भारत से तैयार माल की जगह कच्चे माल का निर्यात होने लगा।

(ग) रेलवे का विकास सन् 1853 में रेलवे की शुरुआत हुई। इसने शहरों की काया पलट दी। आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र परम्परागत शहरों से दूर जाने लगा क्योंकि ये शहर पुराने मार्गों और नदियों के समीप थे। हरेक रेलवे स्टेशन कच्चे माल का संग्रह केन्द्र और आयातित वस्तुओं का वितरण बिन्दु बन गया था।

→ नये शहरों का स्वरूप नये शहरों का स्वरूप इस प्रकार था –

→ बन्दरगाह, किले और सेवाओं के केन्द्र तथा हाइट टाउन और ब्लैक टाउन का निर्माण अठारहवीं सदी तक मद्रास, कलकत्ता और बम्बई महत्वपूर्ण बन्दरगाह बन चुके थे अंग्रेजों ने अपने कारखानों की सुरक्षा हेतु इन बस्तियों में किलेबन्दी की मद्रास में फोर्ट सेंट जार्ज, कलकत्ता में फोर्ट विलियम और बम्बई में फोर्ट, ये इलाके ब्रिटिश आबादी के रूप में जाने जाते थे। यूरोपीय व्यापारियों के साथ लेन-देन चलाने वाले भारतीय व्यापारी, कारीगर और कामगार इन किलों के बाहर बस्तियों में रहते थे। यूरोपीय और भारतीयों के लिए शुरू से ही अलग क्वार्टर बनाए जाते थे उस समय के लेखन में इन्हें ‘हाइट टाउन’ (गोरा शहर) और ‘ब्लैक टाउन’ (काला शहर) कहा जाता था। राजनीतिक सत्ता अंग्रेजों के हाथ में आने के बाद यह नस्ली भेदभाव और बढ़ गया था।

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→ एक नया शहरी परिवेश – नये शहरों का शहरी परिवेश भी नया था।

यथा –
(i) शासकों की वाणिज्यिक संस्कृति के दिग्दर्शक- औपनिवेशिक शहर नए शासकों की वाणिज्यिक संस्कृति को प्रकट करते थे। राजनीतिक सत्ता और संरक्षण भारतीय शासकों के हाथों से निकल कर अंग्रेजों के हाथों में जाने लगा। दुभाषिए, बिचौलिए, व्यापारियों और माल की आपूर्ति करने वाले भारतीयों का भी इन नए शहरों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान था। नदी या समुद्र के किनारे आर्थिक गतिविधियों से गोदियों और घाटों का विकास हुआ। समुद्र के किनारे गोदाम, वाणिज्यिक कार्यालय, जहाजरानी उद्योग के लिए बीमा कम्पनियाँ यातायात डिपो और बैंकिंग संस्थानों की स्थापना होने लगी। कम्पनी के मुख्य प्रशासकीय कार्यालय समुद्र से दूर बनाए गए। कलकत्ता में स्थित ‘राइटर्स बिल्डिंग’ इसी तरह का एक दफ्तर हुआ करती थी। ‘राइटर्स’ से तात्पर्य यहाँ क्लकों से था।

(ii) सिविल लाइन्स नाम से नये शहरी इलाकों का विकास-उन्नीसवीं सदी के मध्य इन शहरों का रूप और भी बदल गया। 1857 के विद्रोह के बाद भारत में अंग्रेजों का रवैया विद्रोह की लगातार आशंका से तय होने लगा था। उनको लगता था कि शहरों की और अच्छी प्रकार हिफाजत करना जरूरी है और अंग्रेजों को देशियों के खतरे से दूर सुरक्षित स्थान पर रहना चाहिए। पुराने कस्बों के पास चरागाहों और खेतों को साफ करके ‘सिविल लाइन्स’ नाम से नए शहरी इलाके विकसित किए गए।

(iii) छावनियाँ छावनियों को भी सुरक्षित स्थानों के रूप में विकसित किया गया। यहाँ यूरोपीय कमान के अन्तर्गत भारतीय सैनिक तैनात किये जाते थे ये छावनियाँ यूरोपीय लोगों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल थीं।

(iv) हिल स्टेशन छावनियों की तरह हिल स्टेशन भी औपनिवेशिक शहरी विकास का एक खास पहलू था।

यथा –
(अ) शिमला – हिल स्टेशनों की स्थापना का उद्देश्य सर्वप्रथम ब्रिटिश सेना की जरूरतों से सम्बन्धित था। शिमला की स्थापना गुरखा युद्ध ( 1815 1816) के दौरान की गई थी।
(ब) माउन्ट आबू – अंग्रेज-मराठा युद्ध 1818 के कारण अंग्रेजों की दिलचस्पी माउन्ट आबू में बनी जबकि दार्जिलिंग को 1835 में सिक्किम के राजाओं से छीना गया था। ये हिल स्टेशन फौजियों के ठहरने, सरहद की चौकसी करने और दुश्मन के खिलाफ हमला करने के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान थे।

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→ नए शहरों में सामाजिक जीवन – नये शहरों में चरम सम्पन्नता और गहन गरीबी दोनों के दर्शन एक साथ होते थे। इनमें सामाजिक जीवन इस प्रकार का था –

(i) बढ़ते यातायात के साधनों से निवास स्थल और कार्यस्थल की दूरी बढ़ी घोड़ागाड़ी जैसे यातायात के नए साधन और बाद में बसों और ट्रामों के आने से यह हुआ कि अब लोग शहर के केन्द्र से दूर जाकर भी बस सकते थे। समय के साथ काम की जगह और रहने की जगह दोनों एक-दूसरे से अलग होते गए। घर से फैक्ट्री या दफ्तर जाना एक नए प्रकार का अनुभव था।

(ii) औरतों की सार्वजनिक उपस्थिति में बढ़ोतरी – शहरों में औरतों के लिए नए अवसर थे। पत्र-पत्रिकाओं, आत्मकथाओं और पुस्तकों के द्वारा मध्यम वर्ग की औरतें खुद को अभिव्यक्त करने का प्रयास कर रही थीं। सार्वजनिक स्थानों पर औरतों की उपस्थिति बढ़ रही थी।

(ii) कामगारों के एक नए वर्ग का उदय शहरों में मेहनतकश गरीबों या कामगारों का एक नया वर्ग उभर रहा था। ग्रामीण इलाकों से गरीब रोजगार की उम्मीद में शहरों की तरफ भाग रहे थे। कुछ लोगों को शहर नए अवसरों के स्रोत के रूप में दिखाई पड़ रहे थे कुछ को एक भिन्न जीवन शैली शहरों की तरफ खींच रही थी। ज्यादातर पुरुष प्रवासी अपना परिवार गाँव में छोड़कर आते थे।

→ पृथक्करण, नगर-नियोजन और भवन निर्माण मद्रास, कलकत्ता और बम्बई तीनों औपनिवेशिक शहर पहले के भारतीय कस्बों और शहरों से अलग थे।

यथा –
→ मद्रास में बसावट और पृथक्करण
(i) वस्त्र उत्पादों की खोज में 1639 ई. में अंग्रेज व्यापारियों ने मद्रासपद्म में अपनी व्यापारिक कोठी स्थापित की। यह बस्ती स्थानीय लोगों द्वारा ‘चेनापट्टनम’ कही जाती थी।

(ii) सफेद कस्बा में फ्रांसीसियों की हार के फ्रेंच कम्पनी के साथ प्रतिद्वन्द्विता के कारण अंग्रेजों को यहाँ किलेबन्दी करनी पड़ी। 1761 बाद मद्रास स्थित फोर्ट सेंट जार्ज हाइट टाउन का केन्द्रक बन गया था, जिसमें अधिकतर यूरोपीय लोग ही रहते थे दीवारों और बुर्जों ने इसे एक घेराबन्दी में बदल दिया था किले के अन्दर रहने का फैसला रंग और धर्म पर आधारित था।

(iii) सुरक्षा क्षेत्र का निर्माण – ब्लैक टाउन किले के बाहर विकसित हुआ। इस आबादी को भी सीधी कतारों में बसाया गया था जो कि औपनिवेशिक शहरों की विशेषता थी। लेकिन अठारहवीं सदी के प्रथम दशक के मध्य में सुरक्षा कारणों से उसे गिरा दिया गया, ताकि किले के चारों ओर एक सुरक्षा क्षेत्र बनाया जा सके।

(iv) नया अश्वेत कस्बा – उत्तर दिशा में दूर जाकर एक नया ब्लैक टाउन बसाया गया। नया ब्लैक टाउन परम्परा से चले आ रहे शहरों के जैसा था। वहाँ मन्दिर तथा बाजार के आस-पास रिहायशी मकान बनाए गए थे। शहर के बीच से गुजरने वाली आड़ी-टेढ़ी संकरी गलियों में अलग-अलग जातियों के लोग अपने मोहल्लों में रहते थे। इनमें बुनकरों, कारीगरों, विचौलियों और दुभाषियों को बसाया गया था।

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(v) आबादी का ढाँचा – मद्रास का विकास बहुत सारे गाँवों को मिलाकर किया गया था। यहाँ विविध समुदायों के लिए अवसरों और स्थानों का इंतजाम था। विभिन्न प्रकार के आर्थिक कार्य करने वाले समुदाय आए और मद्रास में ही बस गए। जैसे—दुबाश, वेल्लालार, ब्राह्मण, तेलुगू कोमाटी समुदाय, गुजराती बैंकर, पेरियार और बनियार आदि ।

(vi) उपशहरी इलाके – अंग्रेजी सत्ता के मजबूत होने के बाद यूरोपीय निवासी किले से बाहर जाकर गार्डन हाउसेज बनाने लगे। किले से छावनी तक जाने वाली सड़कों पर ये निवास बनाए गए। सम्पन्न भारतीयों ने मद्रास के इर्द-गिर्द बहुत सारे उपशहरी इलाकों का निर्माण कर लिया। बढ़ते शहरीकरण के कारण गाँवों के बीच वाले इलाके शहर के भीतर आ गए।

→ कलकत्ता में नगर नियोजन आधुनिक नगर नियोजन का प्रारम्भ औपनिवेशिक शहरों से हुआ। इस प्रक्रिया में भू-उपयोग और भवन- निर्माण के नियमन के द्वारा शहर के स्वरूप को परिभाषित किया गया। इसका एक मतलब यह था कि शहरों में लोगों के जीवन को सरकार ने नियन्त्रित करना शुरू कर दिया था। इसके लिए एक योजना तैयार करना और पूरी शहरी परिधि का स्वरूप तैयार करना जरूरी था।

(1) कम्पनी द्वारा किलेबन्दी – बंगाल में अंग्रेजों द्वारा नगर नियोजन के कार्य को अपने हाथ में लेने का तात्कालिक उद्देश्य सुरक्षा से सम्बन्धित था। इसीलिए प्लासी के युद्ध (1757) में सिराजुद्दौला की हार होने के बाद कम्पनी ने एक ऐसा किला बनाने का विचार किया, जिस पर आसानी से आक्रमण नहीं किया जा सके। कलकत्ता को सुतानाती कोलकाता और गोविन्दपुर इन तीनों गाँवों को मिलाकर बसाया गया था। इस तरह कलकत्ता में फोर्ट विलियम का निर्माण किया गया।

(2) मैदान या गारेर मठ – फोर्ट विलियम के इर्द-गिर्द एक विशाल खाली जगह छोड़ी गई, जिसे मैदान या गारेर मठ कहा जाता था।

(3) गवर्नमेंट हाउस नामक नये महल का निर्माण – कलकत्ता में नगर नियोजन का काम केवल फोर्ट विलियम और मैदान के निर्माण के साथ पूरा होने वाला नहीं था। 1798 में लार्ड वेलेजली गवर्नर जनरल बने। उन्होंने अपने रहने के लिए कलकत्ता में ‘गवर्नमेन्ट हाउस’ के नाम से एक महल बनवाया।

(4) स्वास्थ्य की दृष्टि से नगर नियोजन की आवश्यकता- शहर को ज्यादा स्वास्थ्यपरक बनाने का एक तरीका यह था कि शहर में खुले स्थान छोड़े जाएँ। वेलेजली ने 1803 में नगर नियोजन की आवश्यकता पर एक प्रशासकीय आदेश जारी किया और इसके लिए कई कमेटियाँ बनाई गई।

(5) लॉटरी कमेटी – वेलेजली के जाने के बाद नगर नियोजन का काम सरकार की मदद से लॉटरी कमेटी (1817) ने जारी रखा। इसका नाम लॉटरी कमेटी इसलिए पड़ा क्योंकि नगर सुधार के लिए पैसों की व्यवस्था जनता के बीच लॉटरी बेचकर की जाती थी। लॉटरी कमेटी ने शहर का एक नया नक्शा बनवाया जिससे कलकत्ता की एक पूरी तस्वीर सामने आ सके। इसके साथ ही अवैध कब्जे हटाये गए तथा बहुत सारी झोंपड़ियों को साफ कर दिया गया।

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(6) महामारी की आशंका से नगर नियोजन की अवधारणा को बल- अगले कुछ दशकों में महामारी की आशंका से नगर नियोजन के विचार को अधिक बल मिला। 1817 में हैजा फैलने लगा और 1896 में प्लेग ने शहर को अपनी चपेट में ले लिया। कामकाजी लोगों की बस्तियों और झोंपड़ियों को तेजी से हटाया गया तथा इनकी कीमत पर ब्रिटिश आबादी वाले हिस्सों को तेजी से विकसित किया गया। स्वास्थ्यकर और अस्वास्थ्यकर के नये विभेद के सहारे ‘हाइट’ और ‘ब्लैक’ टाउन वाले नस्ली विभाजन को बल मिला।

→ बम्बई में भवन निर्माण कार्यकलाप जैसे-जैसे ब्रिटिश साम्राज्य फैला, अंग्रेज कलकत्ता, मद्रास और बम्बई जैसे शहरों को शानदार राजधानियों में बदलने की कोशिश करने लगे। उनकी सोच से ऐसा लगता था मानो शहरों की भव्यता से ही शाही सत्ता की ताकत प्रतिबिम्बित होती है।

(1) शानदार भव्य इमारतों के निर्माण पर बल – यदि इस शाही दृष्टि को साकार करने का एक तरीका नगर नियोजन था तो दूसरा तरीका यह था कि शहर में शानदार इमारतों का निर्माण किया जाए। शहरों में बनने वाली इमारतों में किले, सरकारी दफ्तर, शिक्षा संस्थान आदि हो सकते थे बुनियादी तौर पर ये इमारतें रक्षा, प्रशासन और वाणिज्य जैसी प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती थीं।

(2) टापुओं का जुड़ाव प्रारम्भ में बम्बई सात टापुओं का इलाका था। जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, इन टापुओं को आपस में जोड़ दिया गया ताकि ज्यादा जगह पैदा की जा सके। आखिरकार ये टापू एक-दूसरे से जुड़ गए और एक विशाल शहर अस्तित्व में आया। बम्बई औपनिवेशिक भारत की आर्थिक राजधानी थी। पश्चिमी तट पर एक प्रमुख बन्दरगाह होने के कारण यह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र था। उन्नीसवीं सदी के अन्त तक भारत का आधा निर्यात और आयात बम्बई से ही होता था।

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(3) अमेरिकी गृहयुद्ध का प्रभाव – 1861 में अमेरिका में गृहयुद्ध छिड़ने से वहाँ से कपास का आयात बहुत कम हो गया। इससे भारतीय कपास की माँग बहुत बढ़ गई। इसकी खेती मुख्य रूप से दक्कन में की जाती थी। भारतीय व्यापारियों और बिचौलियों के लिए यह बहुत मुनाफे का सौदा था। 1869 में स्वेज नहर खुल जाने के कारण विश्व अर्थव्यवस्था के साथ बम्बई के सम्बन्ध और मजबूत हो गए। बम्बई सरकार और भारतीय व्यापारियों ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए बम्बई को ‘Urts prima in Indis’ यानी भारत का सरताज शहर घोषित कर दिया। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध तक बम्बई में भारतीय व्यापारी कॉटन मिल जैसे नए उद्योगों में अपना पैसा लगा रहे थे। निर्माण गतिविधियों में भी उनका काफी दखल था।

(4) शैलियों का आपसी विनिमय प्रारम्भ में ये भवन भारतीय भवनों के बीच कुछ अजीब से दिखाई देते थे, लेकिन धीरे-धीरे भारतीयों ने भी यूरोपीय शैली को स्वीकार कर भवनों का निर्माण कराया। दूसरी तरफ अंग्रेजों ने भी अपनी आवश्यकता के अनुरूप भारतीय शैली को अपना लिया। इस तरह दोनों शैलियों में परस्पर विनिमय हो गया। इसकी एक मिसाल उन बंगलों को माना जा सकता है जिन्हें बम्बई और पूरे देश में सरकारी अफसरों के लिए बनाया जाता था। सार्वजनिक भवनों के लिए मोटे तौर पर तीन स्थापत्य शैलियों का प्रयोग किया गया।
ये थीं –
(1) नवशास्त्रीय या नियोक्लासिकल शैली
(2) नव-गॉथिक शैली
(3) इंडो-सारासेनिक शैली।

(5) चाल शहर में जगह की कमी और भीड़-भाड़ की वजह से बम्बई में खास तरह की इमारतों का भी निर्माण हुआ, जिन्हें ‘चाल’ कहा गया।

→ इमारतें और स्थापत्य शैलियाँ क्या बताती हैं?
(1) स्थापत्य शैलियों से अपने समय के सौन्दर्यात्मक आदर्शों और उनमें निहित विविधताओं का पता चलता है। इमारतों के माध्यम से सभी शासक अपनी ताकत को प्रदर्शित करना चाहते थे इस प्रकार एक खास वक्त की स्थापत्य शैली को देखकर हम यह समझ सकते हैं कि उस समय सत्ता को किस तरह देखा जा रहा था और वह इमारतों और उनकी विशेषताओं – ईंट-पत्थर खम्भे और मेहराब, आसमान छूते गुम्बद या उभरी हुई छतों के जरिये किस प्रकार की अभिव्यक्ति होती थी।

(2) रूपरेखा सम्बन्धी निर्णय स्थापत्य शैलियों से केवल प्रचलित रुचियों का ही पता नहीं चलता, वे उनको बदलती भी हैं वे नयी शैलियों को लोकप्रियता प्रदान करती हैं और संस्कृति की रूपरेखा तय करती हैं।

काल-रेखा
1500-1700 यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियाँ भारत में अपने ठिकाने स्थापित करती हैं। पणजी में पुर्तगाली (1510) ; मछलीपट्नम में डच (1605); मद्रास (1639); बम्बई (1661) और कलकत्ता (1690) में अंग्रेज तथा पाण्डिचेरी (1673) में फ्रांसीसी अपने ठिकाने बनाते हैं।
1757 प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की निर्णायक जीत होती है। वे बंगाल के शासक हो जाते हैं।
1773 ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना।
1803 कलकत्ता नगर सुधार पर लॉर्ड वेलेजली द्वारा लिखित मिनट्स।
1818 दक्कन पर अंग्रेजों का कब्जा, बम्बई को नए प्रान्त की राजधानी बनाया जाता है।
1853 बम्बई से ठाणे तक रेल लाइन बिछाई जाती है।
1857 बम्बई में पहली स्पिनिंग और वीविंग मिल की स्थापना।
1857 बम्बई, मद्रास और कलकत्ता में विश्वविद्यालयों की स्थापमा।
1870 का दशक नगरपालिकाओं में निर्वाचित प्रतिनिधियों को शामिल किया जाने लगा।
1881 मद्रास हार्बर का निर्माण पूरा हुआ।
1896 बम्बई के वाटसन्स होटल में पहली बार फिल्म दिखाई गई।
1896 बड़े शहरों में प्लेग फैलने लगता है।
1911 कलकत्ता की जगह दिल्ली को राजधानी बनाया जाता है।

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