JAC Board Class 9th Social Science Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता: एक चुनौती
JAC Class 9th Economics निर्धनता: एक चुनौती InText Questions and Answers
पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या- 32
प्रश्न 1.
विभिन्न देश विभिन्न निर्धनता रेखाओं का प्रयोग क्यों करते हैं?
उत्तर:
व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक वस्तुएँ विभिन्न कालों एवं विभिन्न देशों में भिन्न होने के कारण विभिन्न देश विभिन्न निर्धनता रेखाओं का प्रयोग करते हैं।
प्रश्न 2.
आपके अनुसार आपके क्षेत्र में न्यूनतम आवश्यक स्तर’ क्या होगा?
उत्तर:
हमारे अनुसार हमारे क्षेत्र में न्यूनतम आवश्यक स्तर 2500 रुपये प्रतिमाह प्रतिव्यक्ति होना चाहिए। पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या-33 प्रश्न 3. तालिका 3.1 का अध्ययन कीजिए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए तालिका 3.1 : भारत में निर्धनता के अनुमान ( तेंदुलकर कार्य प्रणाली) निर्धनता अनुपात (प्रतिशत)
1. 1993-94 और 2004-05 के मध्य निर्धनता अनुपात में गिरावट आने के बावजूद निर्धनों की संख्या 407 मिलियन के आस-पास क्यों बनी रही?
उत्तर:
इसका प्रमुख कारण इन वर्षों में देश की तीव्र जनसंख्या वृद्धि हुई है।
2. क्या भारत में निर्धनता में कमी की गति ग्रामीण और शहरी भारत में समान है?
उत्तर:
भारत में निर्धनता में कमी की गति ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में समान नहीं है क्योंकि तालिका 3.1 यह दर्शाती है के निर्धनता में कमी की गति शहरों की अपेक्षा गाँवों में अधिक तीव्र है।
पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या 36
प्रश्न 4.
आरेख 3.2 के आधार पर निम्न प्रश्नों का उत्तर दीजिए
1. तीन राज्यों की पहचान करें जहाँ निर्धनता अनुपात सर्वाधिक है।
उत्तर:
बिहार, ओडिशा तथा असम सर्वाधिक निर्धनता अनुपात वाले राज्य हैं।
2. तीन राज्यों की पहचान करें जहाँ निर्धनता अनुपात सबसे कम है।
उत्तर:
केरल, पंजाब और हिमाचल प्रदेश ऐसे राज्य हैं जहाँ निर्धनता अनुपात सबसे कम है।
JAC Class 9th Economics निर्धनता: एक चुनौती Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण मानव के लिए आवश्यक प्राथमिक आवश्यकताओं, जैसे-खाद्य आवश्यकता, कपड़े, ईंधन, शिक्षा, चिकित्सा आदि की भौतिक मात्रा को रुपये में उनकी कीमतों से गुणा करके किया जाता है। निर्धनता रेखा का आकलन करते समय खाद्य आवश्यकता के लिए वर्तमान सूत्र वांछित कैलोरी आवश्यकता पर आधारित है जो कि ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन ऊर्जा देने वाले भोजन से है।
प्रश्न 2.
क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही है?
उत्तर:
हम यह मानते हैं कि वर्तमान में निर्धनता आकलन के तरीके में व्यक्ति की आय और उपभोग को आधार बनाया गया है। वर्तमान में केवल व्यक्ति की मूल आवश्यकता उदर-पूर्ति नहीं है इसलिए मानव की दूसरी प्राथमिक आवश्यकताओं जैसे वस्त्र, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ मनोरंजन को भी शामिल किया जाये तो निर्धनता का आकलन अधिक प्रभावी रहेगा तथा जीवन स्तर सुधार हेतु किये गये प्रयासों में अधिक सफलता प्राप्त होगी।
प्रश्न 3.
भारत में 1973 से निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर:
भारत में 1973 में लगभग 55% निर्धन लोग थे जिनमें शहरी क्षेत्र में 49% तथा ग्रामीण क्षेत्र में 56.4% निर्धन लोग थे। इनकी देश में कुल संख्या 32 करोड़ के आस-पास थी। दो दशक बाद निर्धनता के प्रतिशत में तो कमी आई क्योंकि यह प्रतिशत केवल 36 रह गया। लेकिन कुल संख्या में कोई खास कमी नहीं आई, इसका प्रमुख कारण देश में तीव्र जनसंख्या वृद्धि रहा।
लेकिन अगले 5 वर्षों में न केवल निर्धनता का प्रतिशत घटकर 26 रह गया बल्कि कुल निर्धनों की संख्या भी घटकर 26 करोड़ रह गयी। निर्धनों की संख्या में कमी का यह क्रम शीघ्र ही टूट गया तथा 2009-10 में यह संख्या पुन: बढ़कर 35 करोड़ के लगभग हो गयी जो कुल जनसंख्या का 30 प्रतिशत थी परन्तु सरकारी आँकड़ों के अनुसार 2011-12 में निर्धनों की संख्या में तेजी गिरावट आई, तब यह संख्या 27 करोड़ हो गई थी।
प्रश्न 4.
भारत में निर्धनता में अन्तर-राज्य असमानताओं का एक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
भारतीय निर्धनता का एक पहलू यह भी है कि यहाँ सभी राज्यों में निर्धनता का अनुपात समान नहीं है। राज्यों में निर्धनता को कम करने की सफलता दर विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न है। देश के 20 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में निर्धनता का अनुपात राष्ट्रीय निर्धनता औसत से कम है तथा शेष राज्यों, जैसे-उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा व उत्तर-प्रदेश में यह एक गम्भीर समस्या है। देश के बिहार और उड़ीसा में क्रमश: 33.7 और 326% निर्धनता का औसत है तथा यही दोनों राज्य सर्वाधिक निर्धनता वाले राज्य हैं।
उड़ीसा, मध्य-प्रदेश, बिहार व उत्तर-प्रदेश में ग्रामीण निर्धनता के साथ-साथ नगरीय निर्धनता का प्रतिशत भी अधिक है। उक्त राज्यों की तुलना में केरल, आन्ध्र-प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और पश्चिमी बंगाल में उल्लेखनीय कमी आई है। पंजाब, हरियाणा में उच्च कृषि वृद्धि दर से, केरल में मानव संसाधन विकास से, पश्चिमी बंगाल में भूमि सुधार कार्यक्रमों से, आन्ध्र-प्रदेश व तमिलनाडु में सार्वजनिक वितरण प्रणाली सुधार से निर्धनता को कम करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की गई है।
प्रश्न 5.
उन सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान करें जो भारत में निर्धनता के समक्ष निरुपाय हैं?
उत्तर:
भारत में अग्रलिखित सामाजिक और आर्थिक समूह निर्धनता के समक्ष निरूपाय हैं
1. सामाजिक समूह:
यद्यपि निर्धनता रेखा के नीचे के लोगों का औसत भारत में सभी समूहों के लिए 22 है, अनुसूचित जनजातियों के 100 में से 43 लोग अपनी मूल आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हैं। इसी तरह नगरीय क्षेत्रों में 34 प्रतिशत अनियत मजदूर निर्धनता रेखा के नीचे हैं। लगभग 34 प्रतिशत अनियत कृषि श्रमिक ग्रामीण क्षेत्र में और 29 प्रतिशत अनुसूचित जातियाँ भी निर्धन हैं।
अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सामाजिक रूप से सुविधा वंचित समूहों का भूमिहीन अनियत दिहाड़ी श्रमिक होना उनकी दोहरी असुविधा की समस्या की गम्भीरता को दिखाता है। 1990 के दशक के दौरान अनुसूचित जनजाति परिवारों को छोड़कर अनुसूचित जाति, ग्रामीण कृषि श्रमिक और शहरी अनियत मजदूर परिवार की निर्धनता में कमी आई है।
2. आर्थिक समूह: इस समूह के अन्तर्गत ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार तथा शहरी अनियत श्रमिक परिवार आते
प्रश्न 6.
भारत में अन्तर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के कारणों को बताइए।
उत्तर:
भारत में अन्तर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
- राज्यों में जनसंख्या घनत्व की असमानता का पाया जाना।
- राज्यों में लोगों की शिक्षा के प्रतिशत की असमानता का विद्यमान होना।
- प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता में भी असमानता की विद्यमानता।
- धरातल की असमानता भी राज्यों में निर्धनता की विभिन्नता को दर्शाता है।
- औपनिवेशिक राज्य की अवधि भी राज्यों में निर्धनता की विभिन्नता का एक कारण है।
- राज्य सरकारों द्वारा किए गए प्रयासों ने भी राज्यों की निर्धनता में विभिन्नताएँ पैदा की हैं।
प्रश्न 7.
वैश्विक निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर:
वैश्विक निर्धनता पर दृष्टि डालते हैं तो पता चलता है कि विकासशील देशों में अधिक आर्थिक निर्धनता व्याप्त है। हालांकि निर्धनता (विश्व बैंक की परिभाषा के अनुपात प्रतिदिन 1.9 से कम पर जीवन निर्वाह करना) में रहने वाले लोगों का अनुपात 1990 के 35% से गिरकर 2013 में 10.68 प्रतिशत हो गया है जो महत्त्वपूर्ण गिरावट को दर्शाता है। फिर भी वैश्विक निर्धनता में बहुत क्षेत्रीय विभिन्नताएँ विद्यमान हैं।
चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में तीव्र आर्थिक विकास और मानव संसाधन विकास में वृहत् निवेश से विशेष कमी हुई है। चीन में निर्धनों की संख्या 1981 के 88.3 प्रतिशत से घटकर 2008 में 14.7 प्रतिशत और वर्ष 2013 में 1.9 प्रतिशत रह गई है। दक्षिण एशिया के देशों जैसे भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान में निर्धनों की संख्या में गिरावट इतनी ही तीव्र रही है।
यह 54 प्रतिशत से गिरकर 15 प्रतिशत हो गई है। निर्धनों के प्रतिशत में गिरावट के बावजूद निर्धनों की संख्या में भी कमी आई जो 1990 में 44 प्रतिशत से घटकर 2013 में 17 प्रतिशत रह गई। भिन्न निर्धनता रेखा परिभाषा के कारण भारत में भी निर्धनता राष्ट्रीय अनुमान से अधिक है।
सब-सहारा अफ्रीकी देशों में निर्धनता वास्तव में 1991 के 54 प्रतिशत से घटकर 2013 में 41 प्रतिशत हो गई है। लैटिन अमेरिका निर्धनता का अनुपात वही रहा है। यहाँ पर निर्धनता रेखा 1990 में 16 प्रतिशत से गिरकर 2013 में 5.4 प्रतिशत रह गई है। रूस जैसे पूर्व समाजवादी देशों में भी निर्धनता पुनः समाप्त हो गई, जहाँ पहले आधिकारिक रूप से कोई निर्धनता थी ही नहीं। संयुक्त राष्ट्र के नये सतत विकास के लक्ष्य को 2030 तक सभी प्रकार की गरीबी खत्म करने का प्रस्ताव है।
प्रश्न 8.
निर्धनता उन्मूलन की वर्तमान सरकारी रणनीति की चर्चा करें।
उत्तर:
निर्धनता उन्मूलन भारतीय सरकारी रणनीति का एक प्रमुख उद्देश्य रहा है। भारत सरकार की वर्तमान निर्धनता उन्मूलन रणनीति प्रमुख रूप से निम्नलिखित दो कारकों पर निर्भर है
- आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन, और
- लक्षित निर्धनता निरोधी कार्यक्रमों को पूरा करना।
भारत में 1980 के अन्त तक 30 वर्ष की योजना अवधि के दौरान प्रतिव्यक्ति आय में कोई वृद्धि नहीं हुई जिससे निर्धनता में भी अधिक कमी नहीं आई। 1980-90 के दशक में भारतीय आर्थिक संवृद्धि दर विश्व में सबसे ज्यादा 6% के आस-पास रही। इस आर्थिक संवृद्धि दर ने देश में व्याप्त निर्धनता को कम करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इससे एक बात यह स्पष्ट हुई कि आर्थिक संवृद्धि और निर्धनता-उन्मूलन के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध है।
क्योंकि आर्थिक संवृद्धि अवसरों की व्यापकता को बढ़ाकर मानवीय विकास में निवेश हेतु आवश्यक संसाधनों को उपलब्ध कराती है। इसके बाद भी यह सम्भव है कि आर्थिक विकास से उपलब्ध अवसरों के द्वारा निर्धन लोग प्रत्यक्ष रूप में लाभ नहीं उठा पाते। इसके अलावा कृषि क्षेत्रों में संवृद्धि की दर बहुत कम होने का सीधा प्रभाव निर्धनता पर पड़ा क्योंकि निर्धन लोगों की बड़ी संख्या गाँवों में निवास करती है जो कृषि पर निर्भर है।
उक्त परिस्थितियों में लक्षित निर्धनता निरोधी कार्यक्रमों की आवश्यकता प्रत्यक्ष में दिखाई देने लगी। देश में ऐसी अनेक योजनाएँ हैं जिन्हें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्धनता कम करने हेतु तैयार किया गया है इनमें से कुछ निम्नांकित महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) सितम्बर 2005 में पारित किया गया। इस विधेयक द्वारा देश के 200 जिलों में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित करने का प्रावधान है।
इसका उद्देश्य सतत् विकास में मदद करना ताकि सूखा, वन कटाई एवं मिट्टी के कटाव जैसी समस्याओं से बचा जा सके। इस प्रावधान के अन्तर्गत एक-तिहाई रोजगार महिलाओं के लिये सुरक्षित किया गया है। इस स्कीम के अन्तर्गत 4.78 करोड़ परिवार को 220 करोड़ प्रतिव्यक्ति रोजगार उपलब्ध कराया गया है। इस योजना के अन्तर्गत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं का हिस्सा क्रमश: 23 प्रतिशत, 17 प्रतिशत एवं 53 प्रतिशत हैं। औसतन रोजगार वर्ष 2006-07 में 65 रुपये से बढ़कर वर्ष 2013-14 में 132 रुपये कर दिया गया है। केन्द्र सरकार राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कोष भी स्थापित करेगी। इसी तरह राज्य सरकारें भी योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्य रोजगार गारंटी कोष की स्थापना करेंगी।
कार्यक्रम के अन्तर्गत अगर आवेदक को 15 दिन के अन्दर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दैनिक बेरोजगार भत्ते का हकदार होगा। एक और महत्वपूर्ण योजना राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम है जिसे 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए है, जिन्हें मजदूरी पर रोजगार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने के इच्छुक हैं। इसका कार्यान्वयन शत-प्रतिशत केन्द्रीय वित्तपोषित कार्यक्रम के रूप में किया गया है और राज्यों को खाद्यान्न नि:शुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं। एक बार एन. आर. ई. जी. ए. लागू हो जाए तो काम के बदले अनाज (एन. एफ. डब्ल्यू. पी.) का राष्ट्रीय कार्यक्रम भी इस कार्यक्रम के अन्तर्गत आ जाएगा।
इन्हीं कार्यक्रमों के अन्तर्गत एक और योजना ‘प्रधानमन्त्री रोजगार योजना’ सन् 1993 में प्रारम्भ की गई। इसका उद्देश्य ग्रामीण और छोटे शहरों के शिक्षित बेरोजगारों के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। ‘स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना’ का श्रीगणेश सन् 1999 में सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों का स्वसहायता समूहों में संगठित करके बैंक व सरकारी सहायिकी संयोजन के द्वारा निर्धनता रेखा के ऊपर उठाना है। उक्त योजनाओं के अलावा प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना-2000, अन्त्योदय अन्न योजना आदि निर्धनता निवारण हेतु लक्षित कार्यक्रम प्रारंभ किए गए हैं।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित प्रश्नों का संक्षेप में उत्तर दें:
(क) मानव निर्धनता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मानव निर्धनता एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति या समूह उन सुविधाओं, लाभों और अवसरों से वंचित रहते हैं जिनका उपभोग दूसरे लोग उनसे अधिक करते हैं।
(ख) निर्धनों में भी सबसे निर्धन कौन है?
उत्तर:
महिलाएँ, बच्चे विशेषकर लड़कियाँ तथा वृद्ध व्यक्ति निर्धनों में सबसे अधिक निर्धन हैं।
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताओं में प्रत्येक वर्ष देश 200 जिलों में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोजगार का प्रावधान करना है। योजना में प्रस्तावित रोजगारों में से एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे।
केन्द्र में राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी कोष की स्थापना के साथ राज्यों में राज्य रोजगार गारण्टी कोषों’ की स्थापना की जायेगी। कार्यक्रम के अन्तर्गत यदि आवेदक को 15 दिन में रोजगार उपलब्ध नहीं होता है तो वह बेरोजगार भत्ता का हकदार होगा। इस योजना के नाम में आंशिक परिवर्तन किया गया है। अब इसका नाम महात्मा गाँधी ग्रामीण रोजगार गारण्टी (मनरेगा) योजना हो गया है। यह योजना अब 600 जिलों में लागू है।