JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

JAC Board Class 9th Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

JAC Class 9th History आधुनिक विश्व में चरवाहे  InText Questions and Answers

विद्यार्थियों हेतु आवश्यक निर्देश:
पाठ्य-पुस्तक में इस अध्याय के विभिन्न पृष्ठों पर बॉक्स के अन्दर क्रियाकलाप दिए हुए हैं। इन क्रियाकलापों के अन्तर्गत पूछे गए प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर अग्र प्रकार से हैं

क्रियाकलाप (पृष्ठ सख्या-101)

प्रश्न 1.
इन स्रोतों के आधार पर संक्षेप में बताइए कि चरवाहा परिवारों के औरत-मर्द क्या-क्या काम करते थे?
उत्तर:
चरवाहा परिवारों के महिला-पुरुष द्वारा किये जाने वाले कार्य निम्नलिखित थे

  1. पुरुष मुख्य रूप से मवेशियों को चराने का कार्य करते थे एवं इसके लिए वे कई सप्ताहों तक अपने घरों से दूर रहते थे।
  2. महिलाएँ प्रतिदिन सुबह अपने सिर पर टोकरी और कंधे पर हँडिया लटकाकर बाजार जाती थीं। इन टोकरियों एवं हाँड़ियों में दैनिक खान-पान की चीजें, जैसे दूध, मक्खन, घी आदि होते थे। इन्हें बेचकर वे अपने घर के लिए आवश्यक सामग्री खरीदती थीं।

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प्रश्न 2.
आपकी राय में चरवाहे जंगलों के आस-पास ही क्यों रहते हैं?
उत्तर:
चरवाहों के जंगलों के आस-पास निवास करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1. जंगल के आस-पास छोटे-छोटे गाँवों में रहते हुए चरवाहे जंगल की जमीन पर कृषि-कार्य करते हैं।
  2. चरवाहे जंगलों में अपने मवेशियों को चरा लेते हैं।
  3. चरवाहे जंगलों से अनेक ऐसी वस्तुएँ प्राप्त करते हैं जिनको शहरों में बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-104)

प्रश्न 1.
मान लीजिए कि जंगलों में जानवरों को चराने पर रोक लगा दी गई है। इस बात पर निम्नलिखित की दृष्टि से टिप्पणी कीजिए
1. एक वन अधिकारी
2. एक चरवाहा।
उत्तर:
एक वन अधिकारी की दृष्टि से टिप्पणी-चरवाहे जंगलों एवं जंगली जानवरों को नुकसान पहुंचाते हैं। वे पर्यावरण का ध्यान रखे बिना ही अपनी अधिक से अधिक आमदनी करने के लिए जंगलों का अव्यवस्थित विदोहन करते हैं। अतः इन्हें जंगलों में प्रवेश नहीं देना चाहिए। एक चरवाहा की दृष्टि से टिप्पणी-जंगली लकड़ी, फूल-फल, पत्ते, मसाले आदि सभी मानव के उपयोग के लिए ही हैं।

हम सभी लोग जंगल के आस-पास के गाँवों में ही रहते हैं तथा जंगल की रखवाली भी करते हैं। यही हमारी आजीविका का साधन हैं तथा हमारे पशुओं को भी यहीं से चारा मिलता है। जंगल के बिना हमारे पशु एवं हम जीवित नहीं रह पायेंगे अत: हमें जंगलों में अपने पशु चराने की अनुमति मिलनी ही चाहिए।

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-105)

प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए कि आप 19वीं सदी के आखिरी सालों यानी सन् 1890 ई. के आस-पास रह रहे हैं। आप घुमंतू चरवाहों या कारीगरों के एक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। आपको पता चला है कि सरकार ने आपके समुदाय को अपराधी समुदाय घोषित कर दिया है।
1. संक्षेप में बताइए कि यह जानकर आपको कैसा महसूस होता और आप क्या करते?
उत्तर:
यह बहुत स्वाभाविक है कि मुझे बुरा लगता क्योंकि किसी समुदाय को अपराधी घोषित कर देना वह भी सिर्फ इस कारण से कि एक घुमंतू समुदाय है, बहुत ही गलत है। ऐसी स्थिति में, मैं सरकार से अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील करता।

2. स्थानीय कलेक्टर को चिट्ठी लिखकर बताइए कि आपकी नज़र में यह कानून किस तरह अन्यायपूर्ण है और इससे आपकी जिन्दगी पर क्या असर पड़ेंगे?
उत्तर:
सेवा में, श्रीमान् कलेक्टर महोदय जैसलमेर विषय-राइका समुदाय को अपराधी समुदाय घोषित करने के सन्दर्भ में। महोदय, विषयानुसार निवेदन है कि आपकी सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम, 1871 के तहत् हमारे राइका समुदाय को अपराधी घोषित कर दिया है। यह एक अनुचित कार्यवाही है क्योंकि बिना किसी ठोस सबूत के सिर्फ घुमंतू होने के आधार पर हमारे समुदाय को अपराधी जनजाति घोषित किया गया है। समाज में आगे भी आने वाली पीढ़ियों को सिर्फ इसी आधार पर अपराधी बुलाया जायेगा जो कि घोर अन्याय होगा।

इतना ही नहीं इस अधिनियम के लागू हो जाने पर हमें एक अधिसूचित क्षेत्र की सीमा के अन्दर अपनी जीवन-यापन सम्बन्धी गतिविधियाँ करनी पड़ेगी। इससे बाहर जाने के लिए हमें सरकार से पूर्वानुमति लेनी होगी। पुलिस हमेशा हम पर कड़ी नजर रखेगी। यह बार-बार हमें अपने अपराधी होने का अहसास दिलायेगा। अतः इस तरह का अधिनियम हमारे जीवन पर व्यापक प्रभाव डालेगा एवं हमारी स्वतन्त्रता पूर्णरूपेण बाधित हो जायेगी। अतः इस अधिनियम को निरस्त करने की सरकार से सिफारिश करने की कृपा करें। दिनांक: प्रार्थी जगपत राइका जैसलमेर

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-116)

प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए कि यह सन् 1950 ई. का समय है और आप 60 वर्षीय राइका पशुपालक हैं। आप अपनी पोती को बता रहे हैं कि आजादी के बाद से आपके जीवन में क्या बदलाव आए हैं? आप उसे क्या बताएँगे?
उत्तर:
हमारी जीवन-शैली में स्वतन्त्रता के पश्चात् अनेक तरह के बदलाव आए हैं। पहले हमारे पास बहुत बड़ी संख्या में भेड़-बकरियाँ होते थे किन्तु अब चरागाहों की कमी के कारण हमें इनकी संख्या में कमी लानी पड़ी है। हममें से कुछ लोग पुराने चरागाहों पर प्रतिबन्ध के कारण नये चरागाहों की खोज कर रहे हैं, जो कि एक कठिन कार्य है। भारत एवं पाकिस्तान के विभाजन से आज हम पहले की तरह सिन्ध क्षेत्र में जाकर सिन्धु नदी के किनारे के मैदानों में अपने पशुओं को नहीं चरा सकते।

भारत एवं पाकिस्तान के बीच नई राजनीतिक सीमाओं ने हमारी गतिविधियों पर एक तरह से रोक लगा दी है। आजकल हमारे समुदाय के कुछ लोग हरियाणा की ओर जाने लगे हैं। वहाँ फसल कटने के बाद खेतों में उग आया घास पशुओं को चराने के काम आता है। हमारे समुदाय के कुछ लोग अपनी परम्परागत घुमंतू जीवन-शैली को छोड़ कर एक ही जगह स्थाई रूप से बसने लगे हैं और मैंने भी ऐसा ही किया। अब हम अपनी जमीन पर मेहनत करेंगे एवं फसल उगाएँगे और अपने परिवार का खूब अच्छे ढंग से पालन- पोषण करेंगे।

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प्रश्न 2.
मान लीजिए कि आपको एक प्रसिद्ध पत्रिका ने उपनिवेशवाद से पहले अफ्रीका में मासाइयों की स्थिति के बारे में एक लेख लिखने के लिए कहा है। वह लेख लिखिए और उसे एक सुन्दर शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
मासाइयों का जीवन मासाई नाम ‘मा’ शब्द से निकला है। मा-साई का अर्थ होता है-‘मेरे लोग’। परम्परागत रूप से मासाई घुमंतू और चरवाहा समुदाय के लोग होते हैं जो अपनी आजीविका के लिए दूध एवं मॉस पर आश्रित रहते हैं। ये गाय-बैल, ऊँट, बकरी, भेड़ एवं गधे पालते हैं।

ये दूध, माँस, पशुओं की खाल एवं ऊन बेचते हैं। मासाई पशुपालक मूल रूप से पूर्वी अफ्रीका के निवासी हैं। मासाई क्षेत्र उत्तरी कीनिया से लेकर तंज़ानिया के घास के मैदानों तक फैला हुआ है। ऊँचे तापमान और कम वर्षा के कारण यहाँ शुष्क, धूल भरे और बेहद गर्म हालात रहते हैं।

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प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है? इस निरन्तर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ हैं?
उत्तर:
सूखे से चरवाही समूहों का जीवन प्रायः प्रभावित होता है। जब वर्षा नहीं होती है, चरागाह सूख जाते हैं तो पशुओं के लिए भूखे मरने की स्थिति आ जाती है। यही कारण है कि घुमंतू जनजातियों को, जो चरावाही से अपनी जीविका प्राप्त करते हैं पशुओं के लिए चरागाहों एवं पानी की खोज में एक जगह से दूसरी जगह तक घूमते रहने की आवश्यकता पड़ती है।

घुमंतू समुदायों को कई बार अपने पशुओं को कठोर जलवायु से बचाने के लिए भी स्थान परिवर्तन करना पड़ता है। इस घुमंतू जीवन के कारण उन्हें जीवित रहने तथा संकट से बचने का अवसर प्राप्त होता है। घुमंतू समुदायों के निरन्तर आवागमन से पर्यावरण को लाभ

  1. घुमंतू समुदायों की निरन्तर गतिशीलता के कारण प्राकृतिक वनस्पति को फिर से वृद्धि करने का अवसर प्राप्त होता है। फलस्वरूप, वनस्पति संरक्षण के कारण पर्यावरण सन्तुलन बना रहता है।
  2. उनके मवेशियों को हरा-भरा नया चारा प्राप्त होता है।
  3. घुमंतू समुदायों के लगातार स्थान-परिवर्तन से भूमि की उर्वरा-शक्ति बनी रहती है क्योंकि उनके पशु जिन खेतों में चरते हैं, उन खेतों को उनसे गोबर के रूप में खाद भी मिलती है।
  4. घुमंतू समुदायों के लगातार स्थान-परिवर्तन से क्षेत्र विशेष का अधिक दोहन नहीं होता है।

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प्रश्न 2.
इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा
(क) परती भूमि नियमावली,
(ख) वन अधिनियम,
(ग) अपराधी जनजाति अधिनियम,
(घ) चराई कर।
उत्तर:
(क) परती भूमि नियमावली:
औपनिवेशिक सरकार चरागाह भूमि क्षेत्र को ‘बेकार’ भूमि मानती थी। उनके अनुसार चरागाह भूमि से न तो लगान मिलता था और न ही उत्पादन। इसी बात को ध्यान में रखते हुए औपनिवेशिक सरकार ने उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से देश के विभिन्न भागों में ‘परती भूमि के विकास के लिए नियम बनाए।

इस नियम के द्वारा बहुत-सी चरागाह भूमि को कृषि के अन्तर्गत लाया गया। औपनिवेशिक सरकार ने ऐसी भूमियों को गाँव के मुखियाओं को सौंप दिया जिससे वे उनमें खेती का कार्य करायें जिसके परिणामस्वरूप चरागाह क्षेत्र कम हो गए और चरवाहों के लिए अपने पशुओं को चराने की समस्या उत्पन्न हो गई।

(ख) वन अधिनियम:
औपनिवेशिक सरकार द्वारा 1878 ई. में वन अधिनियम लागू किया गया। इसके द्वारा सरकार ने ऐसे कई जंगलों को आरक्षित वन घोषित कर दिया जहाँ देवदार या साल जैसी कीमती लकड़ी पैदा होती थी। चरवाहे इन वनों का प्रयोग अपने पशुओं को चराने के लिए नहीं कर सकते थे। उनकी किसी भी गतिविधि के लिए इन वनों में पाबन्दी लगा दी गयी। जिन वनों में उन्हें प्रवेश करने की अनुमति थी, उन वनों में भी उनकी गतिविधियों पर नियन्त्रण रखा जाता था।

उन्हें उन वनों में प्रवेश के लिए अनुमति पत्र लेना पड़ता था। जंगल में उनके प्रवेश और वापसी की तारीख पहले से तय होती थी तथा वह जंगल में बहुत ही कम दिन बिता सकते थे। यदि वे निश्चित दिनों से अधिक समय तक वन में रहते थे, तो उन पर जुर्माना लगा दिया जाता था। इस प्रकार इन वन अधिनियमों ने चरवाहों के लिए आजीविका की गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने में कठिनाई उत्पन्न कर दी। अब उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी।

(ग) अपराधी जनजाति अधिनियम:
औपनिवेशिक सरकार घुमंतू किस्म के लोगों को शक की नजर से देखती थी। औपनिवेशिक शासकों का मानना था कि जो लोग गाँव-गाँव जाकर वस्तुएँ बेचते हैं तथा वे चरवाहे जो ऋतु परिवर्तन के साथ अपना स्थान बदल लेते हैं, वे अपराधी हैं। इसलिए 1871 में औपनिवेशिक सरकार ने ‘अपराधी जनजाति अधिनियम’ पारित किया। इस कानून के तहत् दस्तकारों, व्यापारियों एवं चरवाहों के अनेक समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में रखा गया।

उन्हें कुदरती एवं जन्मजात अपराधी घोषित किया गया। इस कानून के द्वारा ऐसे सभी समुदायों (दस्तकारों, व्यापारियों एवं चरवाहों) को एक निश्चित गाँव में ही रहना पड़ता था। वे बिना अनुमति पत्र (परमिट) के अपना स्थान नहीं बदल सकते थे। ग्रामीण पुलिस उन पर लगातार निगरानी रखती थी।

(घ) चराई कर:
औपनिवेशिक सरकार ने अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में देश के अधिकांश चरवाही क्षेत्रों में ‘चराई कर’ लागू कर दिया, यह कर प्रति पशु पर लिया जाता था। प्रति पशु कर की दर तेजी से बढ़ती चली गई एवं कर वसूली की व्यवस्था दिन- प्रतिदिन मजबूत होती गई। 1850 से 1880 के दशकों के मध्य कर वसूली का काम ठेकेदारों के माध्यम से किया जाता था परन्तु बाद में सरकार ने अपने कारिंदों के माध्यम से सीधे चरवाहों से ही कर वसूलना शुरू कर दिया।

प्रत्येक चरवाहे को एक ‘पास’ जारी किया जाता था। किसी भी चरागाह में प्रवेश करने के लिए चरवाहों को पास दिखाकर पहले कर जमा कराना पड़ता था। इस प्रकार चरवाहों का शोषण होने लगा जिससे बाध्य होकर उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी। परिणामस्वरूप, चरवाहों को अपनी आजीविका की पूर्ति करना मुश्किल हो गया।

प्रश्न 3.
मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छिन गए? कारण बताएँ। उत्तर-मासाई समुदाय को निम्नलिखित कारणों से अपने चरागाह छोड़ने पड़े
1. साम्राज्यवादी प्रसार:
औपनिवेशिक काल से पहले मासाई समुदाय के पास उत्तरी कीनिया से लेकर तंज़ानिया के स्टेपीज तक का क्षेत्र था, परन्तु साम्राज्यवादी प्रसार के कारण सन् 1885 में मासाईलैण्ड को ब्रिटिश कीनिया एवं जर्मन तंज़ानिया के बीच विभाजित कर दिया गया।

इसके बाद श्वेत बस्तियों ने उत्तम चरागाह भूमि पर अधिकार कर लिया और मासाइयों को दक्षिण कीनिया एवं उत्तरी तंज़ानिया के छोटे क्षेत्रों की ओर खदेड़ दिया गया। इस प्रकार मासाइयों की लगभग 60 प्रतिशत भूमि ले ली गई। वे एक शुष्क प्रदेश तक ही सीमित रह गए, जहाँ निम्न श्रेणी के घटिया चरागाह थे।

2. कृषि का विस्तार:
19वीं शताब्दी के अन्त में ब्रिटिश उपनिवेशी सरकार ने पूर्वी अफ्रीका के स्थानीय किसानों को खेती का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया। जैसे ही कृषि आरम्भ हुई, चरागाह कृषि भूमि में बदलते गए। मासाई लोगों के चरागाहों पर स्थानीय किसानों ने अपना अधिकार कर लिया और वे असहाय हो गए।

3. शिकार हेतु आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना:
चरागाहों का एक बहुत बड़ा क्षेत्र शिकार के लिए आरक्षित कर दिया गया था। इनमें कीनिया के मासाई मारा, साम्बुरू नेशनल पार्क एवं तंज़ानिया का सेरेंगेटी पार्क प्रमुख थे। मासाई लोग इन पार्कों में न तो पशु चरा सकते थे और न ही शिकार कर सकते थे। परिणामस्वरूप, चराई क्षेत्रों के छिन जाने से पशुओं के लिए चारा जुटाने की समस्या गम्भीर हो गई।

4. चरागाहों की गुणवत्ता में कमी:
मासाई लोगों को आरक्षित वनों में घुसने की मनाही कर दी गई। अब ऐसे आरक्षित चरागाहों से मासाई न लकड़ी काट सकते थे और न ही अपने पशुओं को चरा सकते थे। अत: मासाई लोगों के पास छोटा क्षेत्र होने से उसमें निरन्तर चराई से चरागाह की गुणवत्ता प्रभावित हुई।

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प्रश्न 4.
आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीका चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों के बीच समान रूप से मौजूद थे।
उत्तर:
भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों में निम्नलिखित दो परिवर्तन समान रूप से मौजूद थे

  1. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों की विभिन्न नीतियों ने भारतीय चरवाहों तथा मासाई गड़रियों दोनों को अपने-अपने चरागाहों से बेदखल कर दिया। फलस्वरूप मासाई तथा भारतीय चरवाहों की चरागाह भूमि निरन्तर कम होती गई।
  2. दोनों ही देशों में सरकारों ने विभिन्न वन अधिनियम पारित किए। इन अधिनियमों के द्वारा कुछ वन क्षेत्रों में चरवाहों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई और कुछ में उनकी गतिविधियों को सीमित कर दिया गया।

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