JAC Board Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप
→ भारत विभिन्न स्थलाकृतियों वाला एक विशाल देश है।
→ हमारे देश में पर्वत, मैदान, मरुस्थल, पठार, द्वीप समूह आदि सभी प्रकार की भू-आकृतियाँ पायी जाती हैं।
→ भारत की भौगोलिक आकृतियों को हिमालय पर्वत श्रृंखला, उत्तरी मैदान, प्रायद्वीपीय पठार, भारतीय मरुस्थल, तटीय मैदान एवं द्वीप समूह में विभाजित किया जा सकता है।
→ हिमालय पर्वत श्रृंखला का विस्तार पश्चिम-पूर्व दिशा में सिन्धु से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी तक है। यह विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी है।
→ हिमालय की सबसे बाहरी श्रृंखला को शिवालिक कहा जाता है।
→ निम्न हिमालय तथा शिवालिक के बीच स्थित लम्बवत् घाटी को दून के नाम से जाना जाता है-देहरादून, कोटलीदून एवं पाटलीदून प्रसिद्ध दून हैं।
→ सतलुज एवं सिंधु के बीच स्थित हिमालय के भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है।
→ उत्तरी मैदान का निर्माण तीन प्रमुख नदी प्रणालियों सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र एवं इनकी सहायक नदियों द्वारा हुआ
→ दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार अत्यन्त प्राचीन है। यहाँ स्थित पर्वत बाह्य शक्तियों द्वारा अपरदित हो गये हैं। ये पठार क्रिस्टलीय, आग्नेय एवं रूपान्तरित शैलों से बने हैं।
→ दक्षिण का पठार एक त्रिभुजाकार भू-भाग है जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।
→ अरावली पर्वत के पश्चिमी किनारे पर थार का मरुस्थल स्थित है।
→ भारत में दो द्वीपों के समूह भी स्थित हैं अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप समूह। लक्षद्वीप समूह छोटे प्रवाल द्वीपों से बना है। यह 32 वर्ग कि. मी. के छोटे से क्षेत्र में फैला है। पहले इनको लकादीव, मीनीकाय तथा एमीनदीव के नाम से जाना जाता था, 1973 में इनका नाम लक्षद्वीप रखा गया।
→ बंगाल की खाड़ी में उत्तर से दक्षिण की तरफ फैले द्वीपों की श्रृंखला को अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के नाम से जाना जाता है। इसके उत्तरी भाग के अंडमान तथा दक्षिणी भाग को निकोबार कहा जाता है।
→ भारत के सभी भू – आकृतिक विभाग एक-दूसरे के पूरक हैं और देश को अन्न भण्डार, खनिज, मत्स्यन आदि के द्वारा समृद्ध बनाते हैं।
→ उच्चावच – धरातल अथवा समुद्र तली पर प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले ऊँचाइयों के अन्तर को उच्चावच कहते हैं।
→ अपक्षय – भौतिक अथवा रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा शैलों का अपने ही स्थान पर टूटना-फूटना या सड़ना-गलना अपक्षय कहलाता है। अपरदन-गतिशील साधनों, जैसे-बहता जल, हिमनदी, पवन आदि द्वारा शैलों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण अपरदन कहलाता है। निक्षेपण-ढाल और वेग में कमी आने पर नदी, हिमनदी या पवन आदि अपने साथ लाई गई सामग्री को जमा करने लगते हैं तो उसे निक्षेपण कहते हैं।
→ निमज्जन – धरातल की सतह के नीचे धंसने की क्रिया।
→ पर्वत – पृथ्वी के धरातल का ऊपर की ओर उठा हुआ भाग जो बहुत ऊँचा होता है और साधारणतया तीव्र ढालों वाला होता है।
→ पठार – ऊपर उठा हुआ एक विस्तृत भू-भाग जिसके ऊपर का भाग अपेक्षाकृत समतल हो एवं किनारे तेज ढाल वाले हों।
→ मैदान – समतल अथवा बहुत कम ढाल वाली भूमि का एक विस्तृत क्षेत्र।
→ जलोढ़ मैदान – नदियों द्वारा बहाकर लायी गई बारीक गाद या शिला कणों वाली काँप अथवा जलोढ़ मिट्टी के निक्षेपण से बना समतल भू-भाग।
→ नवीन/युवा पर्वत – पृथ्वी के भूपटल के नवीनतम दौर में बने मोड़दार या वलित पर्वत, जैसे—हिमालय, आल्पस, एंडीज एवं रॉकी पर्वत।
→ आग्नेय शैल – वे शैलें, जो मैग्मा या लावा के पृथ्वी की सतह या पृथ्वी के भीतर जम जाने से बनती हैं।
→ अवसादी शैल – अवसाद से बनी हुई शैलें जिनमें प्रायः परतदार संरचना होती है।
→ कायान्तरित शैल – पूर्व निर्मित आग्नेय अथवा अवसादी शैलों पर अधिक दबाव या ताप के कारण भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तन द्वारा बनी शैलें। इन्हें रूपान्तरित शैल भी कहते हैं।
→ महाखण्ड – नदी की अपरदन क्रिया द्वारा बनी अंग्रेजी के ‘I’ अक्षर के आकार की गहरी एवं सँकरी घाटी।
→ बेसिन (द्रोणी) – भूपृष्ठ एक बहुत बड़ा गर्त।
→ तराई यह क्षेत्र भाबर से लगा हुआ होता है जो कि अधिक नम एवं दलदली होता है, यहाँ घने वन एवं विभिन्न वन्य जीव पाये जाते हैं।
→ भाबर – पर्वतों से उतरने वाली नदियों द्वारा शिवालिक के ढाल पर गुटिका (कंकड़ियाँ) जमा हो जाने से निर्मित मैदान।
→ भांगर – उत्तरी मैदान की पुरानी जलोढ़ को भांगर या बांगर कहते हैं।
→ खादर – बाढ़ के मैदानों की नवीन जलोढ़ को खादर कहा जाता है।
→ प्रवाल जीव – अल्पजीवी सूक्ष्म समुद्री जीव जिसके ढाँचों के निरन्तर जमाव से द्वीपों आदि का निर्माण होता है।
→ झील एक जलराशि, जो पृथ्वी की सतह के गर्त/गड्ढे में हो एवं चारों ओर से पूर्णतया स्थल से घिरी हो।
→ दोआब – दो नदियों के मध्य का भाग।
→ सहायक नदियाँ – छोटी नदियाँ, जो एक बड़ी नदी में मिल जाती हैं।
→ डेल्टा – नदी के मुहाने पर समतल, निचला त्रिभुजाकार भू-भाग जहाँ नदी अपनी धीमी गति के कारण भारी गाद जमा करती है एवं स्वयं अनेक उपनदियों में विभाजित हो जाती है।
→ जलोढ़क – नदियों द्वारा बहाकर लायी गई बहुत ही बारीक मिट्टी को जलोढ़क अथवा अवसाद कहते हैं। दर्रा पर्वत श्रेणी का वह निचला भाग या घाटी जो पर्वत श्रेणी को पार करने हेतु प्राकृतिक मार्ग प्रदान करता है।
→ लैगून मुख्य समुद्र से बालू भित्ति अथवा रोधिका बनने के कारण अलग हुई खारे पानी की झीलें।
→ बरकान-अर्द्ध – चंद्राकार बालू के टीले।