JAC Class 9 Maths Notes Chapter 8 चतुर्भुज

Students should go through these JAC Class 9 Maths Notes Chapter 8 चतुर्भुज will seemingly help to get a clear insight into all the important concepts.

JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 8 चतुर्भुज

चतुर्भुज : किसी एक ही समतल में स्थित चार सरल रेखाओं से घिरी बन्द आकृति को चतुर्भुज कहते हैं।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 8 चतुर्भुज 1

  • किसी चतुर्भुज में चार भुजाएँ, चार शीर्ष तथा चार कोण होते है।
  • चतुर्भुज के सम्मुख शीर्षों को मिलाने वाली रेखाखण्ड को विकर्ण कहते हैं। प्रत्येक चतुभुर्ज में दो विकर्ण होते हैं।
  • चतुर्भुज के अन्तः कोणों का योग 4 समकोण या 360° होता है।
  • किसी चतुर्भुज का परिमाप उसके विकर्णों के योग से अधिक होता है।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 8 चतुर्भुज

चतुर्भुज की सम्मुख भुजाएँ : चतुर्भुज की वे दो भुजाएँ, जिनका कोई उभयनिष्ठ बिन्दु न हो, सम्मुख भुजाएँ कहलाती हैं।
चतुर्भुज की क्रमागत भुजाएँ : चतुर्भुज की वे दो भुजाएँ, जिनका एक उभयनिष्ठ अंत्य बिन्दु (end-point) हो, क्रमागत भुजाएँ कहलाती हैं।
चतुर्भुज के सम्मुख कोण : चतुर्भुज के वे दो कोण. जिनको अन्तरित करने वाली भुजाओं में कोई भुजा उभयनिष्ठ न हो, सम्मुख कोण कहलाते हैं।
चतुर्भुज के क्रमागत कोण : चतुर्भुज के वे दो कोण, जिनको अंतरित करने वाली भुजाओं में से एक भुजा उभयनिष्ठ हो, क्रमागत कोण कहलाते हैं।
समलम्ब चतुर्भुज : यदि किसी चतुर्भुज की सम्मुख भुजाओं का एक युग्म समान्तर हो, तो उस चतुर्भुज को समलम्ब चतुर्भुज कहते हैं।
समान्तर चतुर्भुज : यदि किसी चतुर्भुज की सम्मुख भुजाओं का प्रत्येक युग्म समान्तर हो, तो उसे समान्तर चतुर्भुज कहते हैं। इसे संक्षेप में ||gm से निरूपित करते हैं।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 8 चतुर्भुज 2

गुणधर्म :
(i) यदि समान्तर चतुर्भुज के दो सम्मुख शीर्षों को मिला दिया जाये, तो बना विकर्ण चतुर्भुज को दो सर्वांगसम त्रिभुजों में विभाजित करता है।
(ii) समान्तर चतुर्भुज के सम्मुख कोण बराबर होते हैं।
(iii) समान्तर चतुर्भुज की सम्मुख भुजाएँ बराबर होती हैं।
(iv) समान्तर चतुर्भुज के विकर्ण एक-दूसरे को समद्विभाजित करते हैं।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 8 चतुर्भुज

एक ऐसा समान्तर चतुर्भुज जिसकी सम्मुख भुजाएँ बराबर हों तथा प्रत्येक कोण समकोण हो, आयत (rectangle) कहलाती है।
एक ऐसा समान्तर चतुर्भुज जिसकी सम्मुख भुजाएँ लम्बाई में समान हों, समचतुर्भुज (rhombus) कहलाता है।
एक ऐसा समान्तर चतुर्भुज जिसकी चारों भुजाएँ बराबर हों और चारों कोण समकोण हो, उसे वर्ग (square) कहते हैं।

यदि एक समतल में दो रेखाएँ l व m ( समान्तर या प्रतिच्छेदी) दी हुयी हों और यदि एक तीसरी रेखा x उन्हें भिन्न बिन्दुओं P और O पर प्रतिच्छेदित करती हो, तो रेखाखण्ड PQ को दी गयी रेखाओं द्वारा इस रेखा (x) पर बनाया गया अन्तः खण्ड कहते हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है –
(अ) सड़क
(स) आभूषण
(ब) मृदभाण्ड
(द) मुहर
उत्तर:
(द) मुहर

2. मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं –
(अ) मोहनजोदड़ो
(स) मिताथल
(ब) बनावली
(द) चन्लूदड़ो
उत्तर:
(ब) बनावली

3. पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता के किस स्थल से हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं?
(अ) धौलावीरा
(स) राखीगढ़ी
(ब) रंगपुर
(द) कालीबंगा
उत्तर:
(द) कालीबंगा

4. थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र क्या कहलाता है?
(अ) नखलिस्तान
(स) पोलिस्तान
(ब) पाकिस्तान
(द) अफगानिस्तान
उत्तर:
(स) पोलिस्तान

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

5. भारतीय पुरातत्व का जनक किसे कहा जाता है?
(अ) जॉन मार्शल
(ब) मैके
(स) दयाराम साहनी
(द) अलेक्जेण्डर कनिंघम
उत्तर:
(द) अलेक्जेण्डर कनिंघम

6. हड़प्पा सभ्यता के अन्तर्गत विशाल स्नानागार स्थित
(अ) मोहनजोदड़ो
(ब) कालीबंगा
(स) रंगपुर
(द) चन्हूदड़ो
उत्तर:
(अ) मोहनजोदड़ो

7. मनके बनाने के लिए कौनसी बस्ती प्रसिद्ध थी?
(अ) मोहनजोद
(ब) बणावली
(स) धौलावीरा
(द) चन्लूदड़ो
उत्तर:
(द) चन्लूदड़ो

8. बालाकोट तथा नागेश्वर किस वस्तु के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं ?
(अ) अस्त्र-शस्त्र
(ब) जहाज
(स) शंख की वस्तुएँ
(द) मृदाभाण्ड
उत्तर:
(स) शंख की वस्तुएँ

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

1…………….. प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं।
2. बाजरे के दाने …………. के स्थलों से प्राप्त हुए थे।
3. भोजन तैयार करने की प्रक्रिया को ………….. धातु तथा मिट्टी से बनाया जाता था।
4. सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ………….. पद्धति में बनाया गया था।
5. विद्वानों के अनुमान से मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग ………….. थी।
6. …………… पहले पेशेवर पुरातत्त्वविद थे, जो ………….. तथा क्रीट में अपने कार्यों का अनुभव लाए।
उत्तर:
1. पुरा वनस्पतिज्ञ
2. गुजरात
3. पत्थर
4. ग्रिड
5. 700
6. यूनान।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जान मार्शल ने 1924 में सिन्धुघाटी में उत्खनन के सन्दर्भ में क्या घोषणा की?
उत्तर:
सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा।

प्रश्न 2.
उन दो पुरास्थलों का उल्लेख कीजिए जिनके आधार पर पुरातत्त्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पाई समाज द्वारा कृषि के लिए जल संचय किया जाता था।
उत्तर:
(1) अफगानिस्तान में शोर्तुपई नामक पुरास्थल
(2) गुजरात में धौलावीरा नामक पुरास्थल।

प्रश्न 3.
उन दो पुरावस्तुओं का उल्लेख कीजिए जिनके आधार पर पुरातत्त्वविद् यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए हड़प्पा संस्कृति में बैलों का प्रयोग होता था।
उत्तर:
(1) मोहरों पर किए रेखांकन तथा मृण्मूर्तियाँ
(2) मिट्टी से बने हल

प्रश्न 4.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के डाइरेक्टर जनरल रहे किन्हीं दो पुरातत्त्ववेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) जनरल कनिंघम
(2) आर.ई. एम. व्हीलर।

प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के सबसे लम्बे अभिलेख में कितने चिह्न हैं ?
उत्तर:
लगभग 26 चिह्न।

प्रश्न 6.
पुरातत्व वैज्ञानिकों के द्वारा खोजे गए हड़प्पा सभ्यता के कोई चार नगरों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • हड़प्पा
  • मोहनजोदड़ो
  • लोथल
  • रंगपुर।

प्रश्न 7.
हड़प्पा स्थलों से किन जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं?
उत्तर:
भेड़, बकरी, भैंस, सूअर, हिरण तथा चढ़ियाल।

प्रश्न 8.
हड़प्पा स्थलों से मिले अनाज के दानों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा और चावल।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता में सिंचाई के साधनों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
कुएँ, नहरें तथा जलाशय।

प्रश्न 10.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के भवन किससे बने होते थे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के से बने होते थे।

प्रश्न 11.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के भवनों के निर्माण में अधिकतर किस आकार की ईंटों का प्रयोग होता था ?
उत्तर:
सामान्यतः हड़प्पा सभ्यता में 4:2:1 आकार की ईंटों का प्रयोग होता था।

प्रश्न 12.
मोहनजोदड़ो के दुर्ग पर स्थित दो प्रमुख संरचना का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) मालगोदाम
(2) विशाल स्नानागार।

प्रश्न 13.
पुरातत्वविदों द्वारा हड़प्पा सभ्यता में पाई जाने वाली सामाजिक भिन्नताओं का पता लगाने के लिए किन दो विधियों का प्रयोग किया गया?
उत्तर:
(1) शवाधानों का अध्ययन
(2) उपयोगी तथा विलासिता की वस्तुओं की खोज।

प्रश्न 14.
पुरातत्वविदों द्वारा खोजी गई उपयोगी वस्तुओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
चक्कियाँ, मृदभाण्ड सूइयाँ, झाँवा

प्रश्न 15.
पुरातत्वविदों द्वारा खोजी गई विलासिता की वस्तुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) फयॉन्स के छोटे पात्र
(2) सोने, चाँदी तथा बहुमूल्य पत्थरों के बने हुए आभूषण।

प्रश्न 16.
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के दो प्रमुख स्थानों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) चन्लूदड़ो
(2) लोथल।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 17.
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख शिल्प कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहरें बनाना तथा बाट बनाना।

प्रश्न 18.
हड़प्पावासी ताँबा तथा सोना कहाँ से मँगाते थे?
उत्तर:
हड़प्पावासी तौबा खेतड़ी (राजस्थान) और ओमान से तथा सोना दक्षिण भारत से मँगवाते थे।

प्रश्न 19.
किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए जिनसे हड़प्पावासियों के व्यापारिक सम्बन्ध थे।
उत्तर:
हड़प्पावासियों के ओमान तथा मेसोपोटामिया से व्यापारिक सम्बन्ध थे।

प्रश्न 20.
पुरुवस्तुओं के आधार पर बताइये कि हड़यावासी किनकी पूजा करते थे?
उत्तर:

  • मातृदेवी
  • आद्य शिव
  • पशु – पक्षियों की
  • वृक्षों की
  • लिंग पूजा।

प्रश्न 21.
शंख से वस्तुएँ बनाने के दो प्रमुख केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट शंख से वस्तुएँ बनाने के दो प्रमुख केन्द्र थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 22.
शिल्प-उत्पादन के केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद जिन वस्तुओं को ढूँढ़ते हैं, उनमें से किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • कच्चा माल
  • औजार
  • अपूर्ण वस्तुएँ
  • कूड़ा-करकट।

प्रश्न 23.
हड़प्पा की खुदाई का कार्य किसके नेतृत्व में किया गया और कब किया गया?
उत्तर:
1921 ई. में हड़प्पा की खुदाई का कार्य दयाराम साहनी के नेतृत्व में किया गया।

प्रश्न 24.
ऐसे चार भौतिक साक्ष्यों का उल्लेख कीजिये जो पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता के लोगों के जीवन को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करने में सहायक होते हैं।
उत्तर:

  • मृदभाण्ड
  • औजार
  • आभूषण
  • घरेलू सामान।

प्रश्न 25.
मोहनजोदड़ो में उत्खनन का कार्य किसके नेतृत्व में किया गया और कब ?
उत्तर:
1922 में श्री राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में।

प्रश्न 26.
हड़प्पा सभ्यता के पतन के चार कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • जलवायु परिवर्तन
  • वनों की कटाई
  • भीषण बाढ़
  • नदियों का सूख जाना।

प्रश्न 27.
हड़प्पा सभ्यता में कौन-कौन से शिल्पकार्य प्रचलित थे? कोई दो लिखिए।
उत्तर:
(1) मनके बनाना
(2) शंख की कटाई।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 28.
हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु कौनसी है?
उत्तर:
हड़प्पाई मुहर

प्रश्न 29.
हड़प्पाई मुहर किससे बनाई गई थी?
उत्तर:
सेलखड़ी पत्थर

प्रश्न 30.
अंग्रेजी में बी.सी. का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बिफोर क्राइस्ट (ईसा पूर्व)।

प्रश्न 31.
हड़प्पाई सभ्यता के किन स्थलों से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं?
उत्तर:
चोलिस्तान तथा बनावली (हरियाणा)।

प्रश्न 32.
हड़प्पा के किस स्थल से नहरों के अवशेष हैं ?
उत्तर:
अफगानिस्तान में स्थित शोर्तुधई से

प्रश्न 33.
अवतल चक्कियाँ हड़प्पाई सभ्यता के किस स्थल से प्राप्त हुई हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो से

प्रश्न 34.
‘फर्दर एक्सकैवेशन्स एट मोहनजोदड़ो’ नामक नुस्तक के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके

प्रश्न 35.
मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या कितनी नी?
उत्तर:
लगभग 7001

प्रश्न 36.
विशाल स्नानागार कहाँ स्थित है?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो में।

प्रश्न 37.
‘अर्ली इंडस सिविलाइजेशन’ नामक पुस्तक के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 38.
हड़प्पा सभ्यता में महँगी तथा दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः किन स्थानों पर मिली हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा जैसी बड़ी बस्तियों में।

प्रश्न 39.
मनकों में छेद करने के उपकरण किन स्थानों से मिले हैं ?
उत्तर:

  • चन्द्रदड़ो
  • लोथल
  • धोलावीरा।

प्रश्न 40.
नागेश्वर तथा बालाकोट कहाँ स्थित हैं ?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट समुद्र तट के समीप स्थित हैं।

प्रश्न 41.
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिये. किन कच्चे मालों का प्रयोग होता था?
उत्तर:
मिट्टी, पत्थर, लकड़ी तथा धातु।

प्रश्न 42.
हड़प्पाई सभ्यता में अभियान भेजकर राजस्थान तथा दक्षिण भारत से कौनसी वस्तुएँ प्राप्त की जाती थीं?
उत्तर:
राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से ताँबा तथा दक्षिण भारत से सोना।

प्रश्न 43.
हड़प्पाई लिपि में चिह्नों की संख्या कुल कितनी है?
उत्तर:
लगभग 375 से 400 के बीच।

प्रश्न 44.
‘द स्टोरी ऑफ इण्डियन आकिंयालोजी’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
एस. एन. राव

प्रश्न 45.
‘आद्य शिव मुहर’ किस पुरास्थल से प्राप्त हुई है?
उत्तर:
हड़या से।

प्रश्न 46.
हड़प्पाकालीन कृषि प्रौद्योगिकी की कोई दो विशेषताएँ बताओ।
उत्तर:
(1) खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग किया जाता था।
(2) हड़प्पा निवासी लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों या धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 47.
सिन्धुघाटी सभ्यता की खोज कब और किसने की ?
उत्तर:
सन् 1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा की तथा 1922 में श्री राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 48.
हड़प्पा पूर्व की बस्तियों की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:

  • बस्तियाँ प्रायः छोटी होती थीं।
  • इनकी अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली थी।
  • ये कृषि, पशुपालन तथा शिल्पकारी से परिचित थे।

प्रश्न 49.
सिन्धुघाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
सिन्धुघाटी सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान पर किया गया है, जहाँ वह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी।

प्रश्न 50.
हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण कीजिये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ई. पूर्व के बीच किया गया है।

प्रश्न 51.
मोहनजोदड़ो नगर किन दो भागों में विभाजित था?
उत्तर:
(1) दुर्ग – यह छोटा भाग था, जो ऊँचाई पर बनाया गया था।
(2) निचला शहर- यह बड़ा भाग था, जो नीचे बनाया गया था।

प्रश्न 52.
अलेक्जेण्डर कनिंघम कौन थे?
उत्तर:
अलेक्जेण्डर कनिंघम भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षणों के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। उन्हें सामान्यतः ‘भारतीय पुरातत्व का जनक’ कहा जाता है।

प्रश्न 53.
हड़प्पा सभ्यता की नालियों के निर्माण की क्या विशेषताएँ थीं? दो का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
घरों की नालियाँ एक हौदी में खाली होती थीं और गन्दा पानी गली की नालियों में बह जाता था।

प्रश्न 54.
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
(1) आवासीय भवन एक आँगन पर केन्द्रित थे
(2) प्रत्येक घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था।

प्रश्न 55.
हड़प्पा सभ्यता में मृतकों का अन्तिम संस्कार किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
सामान्यतः मृतकों को गत में दफनाया जाता था तथा मृतकों के साथ मृदभाण्ड, आभूषण आदि वस्तुएँ भी दफनाई जाती थीं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 56.
मनकों के निर्माण में किन पदार्थों का प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
मनकों के निर्माण में कार्नीलियन जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी तथा ताँबा, काँसा, सोने जैसी धातुओं का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 57.
चंन्हूदड़ो क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
चन्द्रदड़ो मनकों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ बड़ी मात्रा में मनके बनाये जाते थे।

प्रश्न 58.
हड़प्पा निवासी लाजवर्द मणि, सेलखड़ी कहाँ से मँगवाते थे?
उत्तर;
हड़प्पा निवासी लाजवर्द मणि अफगानिस्तान में शोधई से, सेलखड़ी दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से मंगवाते थे।

प्रश्न 59.
हड़प्पा निवासी किन वस्तुओं को सुदूर क्षेत्रों से मँगवाते थे?
उत्तर:
हड़प्पावासी ताँबा ओमान से, लाजवर्द अफगानिस्तान से तथा कार्नेलियन, लाजवर्द मणि, सोना आदि मेलुहा से मँगवाते थे।

प्रश्न 60.
हड़प्या लिपि के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
हड़प्पा संस्कृति की लिपि पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
अथवा
हड़प्पा की लिपि की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पाई लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें लगभग 375 से 400 के बीच चिड़ हैं। सम्भवतः यह लिपि दाई से बाई ओर लिखी जाती थी।

प्रश्न 61.
हड़प्पा की किन वस्तुओं पर लिखावट मिली है?
उत्तर:
मुहरों, ताँबे के औजारों, तांबे तथा मिट्टी की लघु पट्टिकाओं, आभूषणों अस्थि घड़ों और एक प्राचीन सूचना पट्ट पर लिखावट मिली है।

प्रश्न 62.
हड़प्पा सभ्यता में बाटों के मानदण्डों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
बाटों के निचले मानदण्ड द्विआधारी ( 1, 2, 4, 8, 16, 32 आदि) थे जबकि ऊपरी मानदण्ड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 63.
कनिंघम ने आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए किस स्रोत का उपयोग किया?
उत्तर:
कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।

प्रश्न 64.
1980 से पुरातत्वविद किन नई तकनीकों का अवलम्बन ले रहे हैं?
उत्तर:
1960 से पुरातत्वविद आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं जिसमें मिट्टी, पत्थर, धातु की वस्तुओं, वनस्पति आदि का अन्वेषण करते हैं।

प्रश्न 65.
मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग किस लिए होता था?
उत्तर:
मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था।

प्रश्न 66.
डीलर कौन थे ?
उत्तर:
हीलर एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वे 1944 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल बने थे।

प्रश्न 67.
हड़प्पा सभ्यता के शासकों के अस्तित्व के बारे में पुरातत्वविदों के मत का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) हड़प्पाई समाज में शासक नहीं था।
(2) यहाँ कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा के शासक
(3) हड़प्पा एक ही राज्य था।

प्रश्न 68.
ए.डी. का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यह एनी डामिनी’ नामक दो लेटिन शब्दों से बना है तथा इसका तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के वर्ष से है।

प्रश्न 69.
हड़प्पाई लोग किन वस्तुओं से अपना भोजन प्राप्त करते थे?
उत्तर:
हड़प्पाई लोग कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों और मछली सहित जानवरों से प्राप्त भोजन करते थे।

प्रश्न 70.
मोहनजोदड़ो का दुर्ग ऊंचाई पर क्यों बनाया गया था?
उत्तर:
क्योंकि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं।

प्रश्न 71.
1980 के दशक में हड़या के कब्रिस्तान में उत्खनन में कौनसी वस्तुएँ मिली थीं ?
उत्तर;
एक पुरुष की खोपड़ी के समीप शंख के तीन छल्ले, जैस्पर के मनके तथा सैकड़ों सूक्ष्म मनकों से बना एक आभूषण।

प्रश्न 72.
हड़प्पा सभ्यता में पुरातत्वविदों ने सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए कौनसी विधि का प्रयोग किया ?
उत्तर:
पुरातत्वविद पुरावस्तुओं को उपयोगी तथा विलासिता की वस्तुओं में वर्गीकृत करते हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 73.
नागेश्वर तथा बालाकोट क्यों प्रसिद्ध थे?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट शंख से बनी वस्तुओं के निर्माण के लिए विशिष्ट केन्द्र थे ।

प्रश्न 74.
जान मार्शल कौन थे?
उत्तर;
जान मार्शल भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल थे। 1924 ई. में उन्होंने सिन्धु घाटी की सभ्यता की खोज की घोषणा की।

प्रश्न 75.
‘भारतीय पुरातत्त्व का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
अलेक्जेण्डर कनिंघम को ‘भारतीय पुरातत्त्व का जनक’ कहा जाता है।

प्रश्न 76.
हड़प्पा निवासी ताँबा कहाँ से मँगवाते थे?
उत्तर:
हड़प्पा निवासी ताँबा राजस्थान के खेतड़ी अंचल से मँगवाते थे।

प्रश्न 77.
पुरातात्विक पुरास्थल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पुरातात्विक पुरास्थल वस्तुओं और संरचनाओं के निर्माण, प्रयोग और फिर उन्हें त्याग दिए जाने से बनते हैं।

प्रश्न 78.
सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा किसने की और कब की ?
उत्तर:
1924 ई. में जान मार्शल ने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।

प्रश्न 79.
‘मोहनजोदड़ो एण्ड द इंडस सिविलाइजेशन’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
जान मार्शल।

प्रश्न 80.
हड़प्पाई मर्तबान किस स्थल से प्राप्त हुआ
उत्तर:
हड़प्पाई मर्तबान ओमान से मिला है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 81.
भारत का सबसे आरम्भिक धार्मिक ग्रन्थ कौनसा है?
उत्तर:
ऋग्वेद।

प्रश्न 82.
ऋग्वेद कब संकलित किया गया था?
उत्तर:
ऋग्वेद लगभग 1500 से 1000 ईसा पूर्व के बीच संकलित किया गया था।

प्रश्न 83.
आधुनिक युग में पुरातत्वविद कौनसी दो आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं?
उत्तर:
(1) मिट्टी, पत्थर, धातु की वस्तुओं, वनस्पति आदि सतह का अन्वेषण
(2) उपलब्ध साक्ष्य के टुकड़ों का विश्लेषणः।

प्रश्न 84.
‘उत्तर हड़प्पा’ संस्कृति से क्या अभिप्राय
उत्तर:
जिस संस्कृति में पुरावस्तुएँ तथा बस्तियाँ एक ग्रामीण जीवन शैली को प्रकट करती हैं, उसे ‘उत्तर हड़प्पा’ कहा जाता है।

प्रश्न 85.
आपको कौनसी परिकल्पना सबसे बुक्तिसंगत दिखाई देती है?
(1) हड़प्पाई समाज में शासक नहीं था तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी
(2) हड़प्पा में कई शासक थे।
(3) हड़प्पा एक ही राज्य था।
उत्तर:
हड़प्पा एक ही राज्य था” यह परिकल्पना सबसे युक्तिसंगत प्रतीत होती है।

प्रश्न 86.
चोलिस्तान कहाँ स्थित है?
उत्तर:
थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र चोलिस्तान कहलाता है।

लघुत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
नगर योजना बनाते समय आप मोहनजोदड़ो नगर योजना की कौनसी बार विशेषताओं का उपयोग करेंगे?
उत्तर:
(1) नगर का समस्त भवन-निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था ईंटें एक निश्चित आकार की होती थीं।
(2) मोहनजोदड़ों की एक प्रमुख विशिष्टता उसकी नियोजित जल निकास प्रणाली थी।
(3) निचले शहरों में आवासीय भवन थे। कई आवासों में एक आँगन था जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे।
(4) हर घर का ईंटों के फर्श से बना एक स्नानपर होता था।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में ‘संस्कृति’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
सिन्धु घाटी सभ्यता को ‘हड़प्पा संस्कृति’ भी कहा जाता है। पुरातत्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं। ऐसे समूहों का सम्बन्ध प्रायः एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल खंड से होता है। हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन विशिष्ट पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं। ये वस्तुएँ अफगानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान (पाकिस्तान) तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों में मिली हैं।

प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता के नामकरण, काल तथा अवस्थाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण- हड़प्पा सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। हड़प्पा सभ्यता का काल हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है। हड़प्पा सभ्यता की अवस्थाएँ इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्या कहा जाता है ।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 4.
‘बी.सी.’ तथा ‘ए.डी.’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए। आजकल ‘ए.डी.’ तथा ‘बी.सी. के स्थान पर किन शब्दों का प्रयोग किया जाता है और क्यों?
उत्तर:
‘बी.सी.’ तथा ‘ए.डी.’ का अर्थ-अंग्रेजी में बी.सी. (हिन्दी में ईसा पूर्व) का तात्पर्य ‘बिफोर क्राइस्ट’ (ईसा पूर्व) से है। ए.डी. (A.D.) ‘एनो डॉमिनी’ नामक दो लैटिन शब्दों से बना है। इसका तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के वर्ष से है। आजकल ‘ए.डी.’ के स्थान पर सी.ई. तथा बी.सी. के स्थान पर बी.सी.ई. का प्रयोग होता है। ‘सी.ई. का प्रयोग ‘कामन एरा’ तथा ‘बी.सी.ई. का प्रयोग ‘बिफोर कामन एरा’ के लिए होता है।

प्रश्न 5.
सिन्ध और चोलिस्तान में बस्तियों के सम्बन्ध में आँकड़े प्रस्तुत कीजिए। इनमें आरम्भिक हड़प्पा स्थल तथा विकसित हड़प्पा स्थल कितने हैं ?
उत्तर:
आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियाँ- सिन्ध और चोलिस्तान (थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र) में बस्तियों की संख्या के सम्बन्ध में निम्नलिखित आँकड़े प्रस्तुत हैं –

सिन्ध चोलिस्तान
बस्तियों की कुल संख्या 106 239
आरम्भिक हड़प्पा स्थल 52 37
विकसित हड़प्पा स्थल 65 136
नए स्थलों पर विकसित हंड़प्पा बस्तियाँ 43 132
त्याग दिए गए आरम्भिक हड़प्पा स्थल 29 33

प्रश्न 6.
“इस क्षेत्र में विकसित हड़प्पा से पहले भी कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा में विकसित हड़प्पा से पहले भी कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं ये संस्कृतियाँ अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली से सम्बद्ध थीं। इनके संदर्भ में हमें कृषि, पशुपालन तथा कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य उपलब्ध होते हैं प्रायः बस्तियाँ छोटी होती थीं तथा इनमें बड़े आकार की संरचनाओं का अभाव था। कुछ स्थलों पर बड़े पैमाने पर जलाए जाने के प्रमाणों से तथा कुछ अन्य स्थलों के त्याग दिए जाने से यह जान पड़ता है कि आरम्भिक हड़प्पा तथा हड़प्पा सभ्यता के बीच क्रम भंग था।

प्रश्न 7.
हड़प्पावासियों के निर्वाह के तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पावासियों के निर्वाह के तरीके –

  • हड़प्पा सभ्यता के लोग कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों और जानवरों से प्राप्त मांस का सेवन करते थे। वे मछली का भी सेवन करते थे।
  • वे गेहूँ जी, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाजों का सेवन करते थे।
  • वे भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर के मांस का सेवन करते थे।
  • जंगली जानवरों जैसे बराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हट्टियाँ मिलने से ज्ञात होता है कि हड़प्पा- निवासी इन जानवरों का मांस भी खाते थे।

प्रश्न 8.
हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी का
वर्णन कीजिये।
उत्तर:

  • खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग किया जाता था।
  • हड़प्पा निवासी लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों या धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।
  • हड़प्पा निवासी कुओं तथा जलाशयों से प्राप्त पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए करते थे। सिंचाई के लिए नहरों का भी उपयोग किया जाता था अफगानिस्तान में शोधई नामक स्थान पर नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं।

प्रश्न 9.
“मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र था। ” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो दो भागों में विभाजित है, एक भाग छोटा है जो ऊँचाई पर बनाया गया है तथा दूसरा भाग अपेक्षाकृत अधिक बड़ा है जो नीचे बनाया गया है। छोटा भाग दुर्ग तथा बड़ा भाग निचला शहर कहलाता है। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था तथा निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। पहले शहर का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार उसका कार्यान्वयन किया गया था। ईंटें एक निश्चित अनुपात में होती थीं।

प्रश्न 10.
हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी । व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा की जल निकास प्रणाली शहरों में नालियाँ बनी हुई थीं। पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके आस पास आवासों का निर्माण किया गया था। घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा हुआ होना आवश्यक था। हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था। घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं और गंदा पानी गली की नालियों में वह जाता था।

प्रश्न 11.
प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद अलेक्जैंडर कनिंघम ने हड़प्पा नगर की दुर्दशा का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तर:
भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल अलेक्जेण्डर कनिंघम ने 1875 ई. में हड़प्पा नगर की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए लिखा था कि “हड़प्पा नंगर को ईंटें चुराने वाले लोगों ने बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। उनके अनुसार हड़प्पा से ले जाई गई ईटों की मात्रा लगभग 100 मील लम्बी लाहौर तथा मुल्तान के बीच की रेल पटरी के लिए ईंटें बिछाने के लिए पर्याप्त थीं।”

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 12.
मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार- विशाल स्नानागार मोहनजोदड़ो दुर्ग के आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। जलाशय के तल तक जाने के लिए इसके उत्तरी और दक्षिणी भाग में दो सीढ़ियाँ बनी थीं। इसके तीनों ओर कक्षा बने हुए थे जिनमें से एक में एक बड़ा कुआँ था। जलाशया से पानी एक बड़े नाले में यह जाता था। इसके उत्तर में एक छोटा कक्ष था, जिसमें आठ स्नानघर बने थे।

प्रश्न 13.
मोहनजोदड़ो सभ्यता में गृहस्थापत्य की चार विशेषताएँ बताइये।
अथवा
मोहनजोदड़ो के गृह स्थापत्य की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की विशेषताएँ

  • हड़प्पा सभ्यता के लोगों के मकान प्रायः पक्की ईंटों के बने होते थे। कई आवासों के मध्य में एक आँगन था जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे।
  • भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आन्तरिक भाग अथवा आँगन को नहीं देखा जा सकता था।
  • प्रत्येक घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था।
  • कुछ घरों में दूसरी मंजिल या छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। कई आवासों में कुएँ बने हुए थे। इससे मोहनजोदड़ो के गृह स्थापत्य की आज भी प्रासंगिकता बनी हुई है।

प्रश्न 14.
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • हड़प्पा सभ्यता के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था।
  • सड़कें पर्याप्त चौड़ी थीं तथा एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
  • मकानों के गन्दे पानी को निकालने के लिए नालियाँ बनी हुई थीं।
  • कई आवासों में कुएँ बने हुए थे।
  • हड़प्पा के लोगों के मकान प्रायः ईंटों के बने होते थे मकानों में रसोईघर, स्नानघर, शौचालय आदि की व्यवस्था थी। छतों अथवा दूसरी मंजिल पर जाने के लिए मकानों में सीढ़ियाँ होती थीं।

प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के शवाधानों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधानों में प्रायः मृतकों को गत में दफनाया गया था। कभी-कभी शवाधान गर्त की बनावट एक-दूसरे से भिन्न होती थी। कुछ कब्रों में मृदभाण्ड तथा आभूषण मिले हैं। हड़प्पा के एक कब्रिस्तान से एक पुरुष की खोपड़ी के पास शंख के तीन छल्ले, जैस्पर (एक. प्रकार का उपरत्न) के मनके तथा सैकड़ों की संख्या में बारीक मनकों से बना एक आभूषण मिला था। कहीं-कहीं पर शवों के साथ ताँबे के दर्पण रख दिए जाते थे।

प्रश्न 16.
मनकों के निर्माण में किन पदार्थों को प्रयुक्त किया जाता था?
उत्तर:

  • मनकों के निर्माण में विभिन्न प्रकार के पत्थर जैसे कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग का ), जैस्पर (एक प्रकार का उपरत्न), स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थरों को प्रयुक्त किया जाता था। –
  • इनके निर्माण में ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुओं को भी प्रयुक्त किया जाता था।
  • इनके निर्माण में शंख, फयॉन्स तथा पक्की मिट्टी आदि का भी प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 17.
मनके बनाने की तकनीकों में क्या भिन्नताएँ थीं ?
उत्तर:
मनके बनाने की तकनीकों में भिन्नताएँ –
(1) मनके बनाने की तकनीकों में प्रयुक्त पदार्थ के अनुसार भिन्नताएँ थीं। सेलखड़ी, जो एक बहुत मुलायम पत्थर है, पर सरलता से कार्य हो जाता था।
(2) कुछ मनके सेलखड़ी चूर्ण के लेप को साँचे में ढाल कर तैयार किए जाते थे। इससे विविध आकारों के मनके बनाए जा सकते थे सेलखड़ी के सूक्ष्म मनके कैसे बनाए जाते थे, यह प्रश्न प्राचीन तकनीकों का अध्ययन करने वाले पुरातत्वविदों के लिए एक पहेली बना हुआ है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 18.
मनके बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनके बनाने की प्रक्रिया-
(1) कार्नीलियन का लाल रंग, पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था।
(2) पत्थर के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था और फिर बारीकी से शल्क निकाल कर इन्हें अन्तिम रूप दिया जाता था।
(3) घिसाई, पॉलिश और इनमें छेद करने के साथ ही मनके बनाने की प्रक्रिया पूरी होती थी। चन्हूदड़ो, लोथल तथा धौलावीरा से छेद करने के विशेष उपकरण प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 19.
हड़प्पा शहरों में तैयार शंख और मनके कहाँ भेजे जाते थे ?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट नामक बस्तियाँ समुद्र- तट के समीप स्थित थीं। ये शंख से बनी वस्तुओं जैसे चूड़ियाँ, करछियाँ तथा पच्चीकारी की वस्तुओं के निर्माण के विशिष्ट केन्द्र थे यहाँ से ये वस्तुएँ दूसरी बस्तियों में भेजी जाती थीं। यह भी सम्भव है कि चन्हूदड़ो और लोथल से तैयार माल जैसे मनके, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े शहरी केन्द्रों में भेजे जाते थे।

प्रश्न 20.
शिल्प उत्पादन के केन्द्रों की पहचान पुरातत्वविदों द्वारा किस प्रकार की जाती है ?
उत्तर:
शिल्प-उत्पादन के केन्द्रों की पहचान –
(1) शिल्प उत्पादन के केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद प्राय: निम्नलिखित वस्तुओं को ढूँढ़ते हैं- प्रस्तरपिंड, पूरे शंख, तौबा- अयस्क जैसा कच्चा माल, औजार, अपूर्ण वस्तुएँ त्याग दिया गया माल तथा कूड़ा-करकट।
(2) कूड़ा-करकट शिल्प कार्य के सबसे अच्छे संकेतकों में से एक है।
(3) कभी-कभी बड़े बेकार टुकड़ों को छोटे आकार की वस्तुएँ बनाने के लिए प्रयुक्त किया जाता था अतः ये बड़े बेकार टुकड़े यह प्रकट करते हैं कि ये स्थल शिल्प- उत्पादन के केन्द्र रहे होंगे।

प्रश्न 21.
शिल्प उत्पादन के लिए हड़प्पा निवासी कच्चा माल प्राप्त करने के लिए कौनसी नीतियाँ अपनाते थे ?
उत्तर:
कच्चा माल प्राप्त करने सम्बन्धी नीतियाँ –
(1) हड़प्पा निवासी शिल्प उत्पादन के लिए कच्चा माल प्राप्त करने हेतु कई तरीके अपनाते थे नागेश्वर तथा बालाकोट में शंख आसानी से उपलब्ध था। वे लाजवर्द मणि अफगानिस्तान में स्थित शोर्तुमई से कार्नीलियन गुजरात में स्थित भड़ौच से, सेलखड़ी दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से और धातु राजस्थान से मँगवाते थे।
(2) अभियान भेजना हड़प्पा वासी ताँबा प्राप्त करने हेतु राजस्थान के खेतड़ी आँचल में तथा सोना प्राप्त करने के लिए दक्षिण भारत में अभियान भेजते थे

प्रश्न 22.
गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति से क्या तात्पर्य हैं?
उत्तर:
राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र में मिले साक्ष्यों को पुरातत्त्वविदों ने ‘गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति’ के नाम से पुकारा है। इस संस्कृति के विशिष्ट मृदभाण्ड हड़प्पाई मृदभाण्डों से भिन्न थे तथा यहाँ ताँबे की वस्तुओं की विपुल संपदा मिली थी। विद्वानों का अनुमान है कि इस क्षेत्र के निवासी हड़प्पा सभ्यता के लोगों को ताँबा भेजते थे। राजस्थान के खेतड़ी अंचल से ताँबा प्राप्त करने हेतु हड़प्पा से अभियान भेजे जाते थे।

प्रश्न 23.
हड़प्पा निवासियों का किन देशों से व्यापारिक सम्पर्क था?
उत्तर:
हड़प्पा निवासी अरब प्रायद्वीप के दक्षिण पश्चिम छोर पर स्थित ओमान से ताँबा मँगवाते थे मेसोपोटामिया के लेख दिलमुन (बहरीन द्वीप), मगान (ओमान) तथा मेलुहा (हड़प्पाई क्षेत्र) नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है। यह लेख मेलुहा से प्राप्त उत्पादों जैसे कार्नीलियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना, लकड़ी आदि का उल्लेख करते हैं। ओमान, बहरीन या मेसोपोटामिया से सम्पर्क समुद्री मार्ग से था।

प्रश्न 24.
हड़प्पा सभ्यता की मुहरों तथा मुद्रांकनों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्मकों को सुविधाजनक बनाने हेतु किया जाता था। उदाहरणार्थ, जब सामान से भरा हुआ एक बैला एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता था तो उसका मुँह रस्सी से बाँध दिया जाता था तथा गाँठ पर थोड़ी गीली मिट्टी जमाकर एक या अधिक मुहरों से दबा दिया जाता था। इससे मिट्टी पर मुहरों की छाप पड़ जाती थी। मुद्रांकन से प्रेषक की पहचान का भी पता चलता था।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 25.
हड़प्पा लिपि के बारे में आप क्या जानते
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की लिपि पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
“हड़प्पा लिपि एक रहस्यमयी लिपि थी।””
समझाइये
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की लिपि –

  1. हड़प्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है, जो सम्भवतः मालिक के नाम व पदवी को दर्शाते हैं। अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं, सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं।
  2. हड़प्पा सभ्यता की लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, इसलिए इसे रहस्यमयी लिपि कहा जाता है।
  3. यह लिपि निश्चित रूप से वर्णमालीय नहीं क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है। इस लगभग 375 से 400 के बीच चिह्न हैं।
  4. यह लिपि दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती थे।

प्रश्न 26.
हड़प्पा सभ्यता की बाट प्रणाली के बा में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की बाट प्रणाली –

  • विनिमय वाटों की एक सूक्ष्म या परिशुद्ध प्रणाल द्वारा नियन्त्रित थे।
  • ये बाट प्रायः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जा
  • सामान्यतः ये किसी भी प्रकार के निशान से रहित और घनाकार होते थे।
  • इन बाटों के निचले मानदंड द्विआधारी (12. 4, 8, 16, 32 इत्यादि 12,900 तक) थे, जबकि ऊपरी मानदंड दशमलव प्रणाली के
    अनुसार थे।
  • छोटे बाटों का प्रयोग सम्भवतः आभूषणों और मनकों को तौलने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 27.
” हड़प्पा सभ्यता में सत्ता अस्तित्व में थी।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई समाज में जटिल निर्णय लेने तथा उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। उदाहरण के लिए, मृदभाण्डों, मुहरों, बायें, ईटों आदि से स्पष्ट होता है कि इन पुरावस्तुओं में अत्यधिक एकरूपता दिखाई देती है। ईंटों का उत्पादन स्पष्ट रूप से किसी एक केन्द्र पर नहीं होता था, फिर भी जम्मू से गुजरात तक सम्पूर्ण क्षेत्र में ईंटें समान अनुपात की थीं। इसके अतिरिक्त ईंटें बनाने, विशाल दीवारों तथा चबूतरों आदि के निर्माण के लिए किसी सत्ता द्वारा ही श्रम संगठित किया गया था।

प्रश्न 28.
हड़प्पा सभ्यता में शासक का अस्तित्व था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में शासक का अस्तित्व –
(1) पुरातत्वविदों ने मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को एक प्रासाद की संज्ञा दी है।
(2) इसी प्रकार उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी गई थी।
(3) कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। कुछ पुरातत्वविदों की मान्यता है कि यहाँ कई शासक थे। कुछ का यह मत है कि यह एक ही राज्य था। यह मत सबसे युक्तिसंगत प्रतीत होता है।

प्रश्न 29.
हड़प्पा सभ्यता का अन्त किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का अन्त –
(1) कुछ साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि लगभग 1800 ईसा पूर्व तक चोलिस्तान जैसे क्षेत्रों में अधिकांश विकसित हड़प्पा स्थल उजड़ चुके थे।
(2) कुछ चुने हुए हड़प्पा स्थलों की भौतिक संस्कृति में परिवर्तन आया था, जो निम्नानुसार था-

  • सभ्यता की विशिष्ट पुरावस्तुएँ बाट, मुहरें या विशिष्ट मनके समाप्त हो गए।
  • लेखन, लम्बी दूरी का व्यापार तथा शिल्प- विशेषज्ञता भी समाप्त हो गई।
  • अब बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण बन्द हो गया।

प्रश्न 30.
हड़प्पा सभ्यता के पतन के क्या कारण
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के विनाश के कारण लिखिए।
उत्तर:

  1. सिन्धु नदी के मार्ग बदलने और जलवायु परिवर्तन से सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता नष्ट हो गई।
  2. वनों की कटाई के कारण भूमि में नमी की कमी हो गई।
  3. सिन्धु नदी की बाड़ें इस सभ्यता के विनाश के लिए उत्तरदायी थीं।
  4. नदियों के सूख जाने के कारण इस क्षेत्र में रेगिस्तान का प्रसार हुआ।
  5. सुदृढ़ एकीकरण के अभाव में सम्भवतः हड़प्पाई राज्य का अन्त हो गया।

प्रश्न 31.
हड़प्पा सभ्यता की खोज की कहानी संक्षेप में लिखिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की खोज पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की खोज –
बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में प्रसिद्ध पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकाल ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बद्ध थीं। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी ने हड़प्पा से प्राप्त हुई मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। 1924 ई. में जॉन मार्शल ने सिन्धुघाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 32.
‘पुरास्थल’ और ‘टीले’ से आप क्या समझते
उत्तर:
पुरातात्विक पुरास्थल वस्तुओं और संरचनाओं के निर्माण, प्रयोग और फिर उन्हें त्याग दिए जाने से बनते हैं जब लोग एक ही स्थान पर नियमित रूप से रहते हैं तो भूमिखंड के लगातार उपयोग और पुनः उपयोग से आवासीय मलबों का निर्माण हो जाता है, जिन्हें ‘टीला’ कहते हैं। अल्पकालीन या स्थायी परित्याग की स्थिति में हवा या प पानी की क्रियाशीलता और कटाव के कारण भूमि खंड के स्वरूप में परिवर्तन आ जाता है।

प्रश्न 33.
‘स्तर’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
टीलों में मिले स्तरों से प्राप्त प्राचीन वस्तुओं से आवास का पता चलता है ये स्तर एक-दूसरे से रंग, प्रकृति और इनमें मिली पुरावस्तुओं के संदर्भ में भिन्न होते हैं। परित्यक्त स्तर ‘बंजर स्तर’ कहलाते हैं। इनकी पहचान इन सभी लक्षणों के अभाव से की जाती है। सामान्यतः सबसे निचले स्तर प्राचीनतम और सबसे ऊपरी स्तर नवीनतम होते हैं। स्तरों में मिली पुरावस्तुओं को विशेष सांस्कृतिक काल-खंडों से सम्बद्ध किया जा सकता है।

प्रश्न 34.
अतीत के पुनर्निर्माण में आने वाली समस्याओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई लिपि से हड़प्पा सभ्यता को जानने में कोई सहायता नहीं मिलती। परन्तु भौतिक साक्ष्यों से पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करने में सहायता मिलती है। भौतिक साक्ष्यों में मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान आदि उल्लेखनीय हैं। केवल टूटी हुई अथवा अनुपयोगी वस्तुएँ ही फेंकी जाती थीं। परिणामस्वरूप जो बहुमूल्य वस्तुएँ अक्षत अवस्था में मिलती हैं, या तो वे अतीत में खो गई थीं या फिर संचयन के बाद कभी पुनः प्राप्त नहीं की गई थीं।

प्रश्न 35.
पुरातत्वविदों द्वारा अपनी खोजों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
खोजों का वर्गीकरण-
(1) पुरावस्तुओं की पुन: प्राप्ति के बाद पुरातत्वविद अपनी खोजों को वर्गीकृत करते हैं वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु अस्थि, हाथीदांत आदि के बारे में होता है।
(2) वर्गीकरणों का दूसरा सिद्धान्त पुरावस्तुओं की उपयोगिता के आधार पर होता है।
(3) किसी पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ प्राय: आधुनिक समय में प्रयुक्त वस्तुओं से उनकी समानता पर आधारित होती है। मनके, चक्कियाँ, पत्थर के फलक तथा पात्र इसके उदाहरण हैं।

प्रश्न 36.
हड़प्पा सभ्यता काल में उद्योग-धन्धों के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. हड़प्पा में सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के वस्व तैयार किये जाते थे।
  2. मिट्टी के बर्तन बनाने का उद्योग भी विकसित
  3. हड़प्पा के स्वर्णकार सोने, चाँदी, बहुमूल्य पत्थरों, पीतल, ताँबे आदि के आभूषण बनाते थे।
  4. यहाँ ताँबे के अनेक औजार और हथियार बनाए जाते थे।
  5. हड़प्पा में मनके बनाने, शंख की कटाई करने, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाने के उद्योग भी उन्नत थे।

प्रश्न 37.
सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए पुरातत्वविद वस्तुओं को किन भागों में वर्गीकृत करते हैं?
उत्तर:
सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए पुरातत्वविद प्रायः पुरावस्तुओं को दो भागों में वर्गीकृत करते हैं –
(1) उपयोगी वस्तुएँ तथा
(2) विलास की वस्तुएँ। पहले वर्ग में दैनिक उपयोग की वस्तुएँ शामिल हैं; जैसे- चक्कियाँ, मृदभाण्ड, सुइयाँ, झाँवा ये वस्तुएँ सभी नगरों में सर्वत्र पाई जाती हैं। दूसरे वर्ग में कीमती वस्तुएँ सम्मिलित हैं जैसे-फयॉन्स के छोटे पात्र ये केवल बड़े नगरों में – मिलती हैं।

प्रश्न 38.
महँगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ किन स्थानों से प्राप्त होती थीं?
उत्तर:
महँगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े शहरों से मिलती हैं। उदाहरणार्थ, फयॉन्स से बने छोटे पात्र, जो सम्भवतः सुगन्धित द्रव्यों के पात्रों के रूप में प्रयुक्त होते थे, अधिकांशतः मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा जैसे बड़े शहरों से मिले हैं, ये कालीबंगा जैसी छोटी बस्तियों से बिल्कुल नहीं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 39.
हड़प्पा सभ्यता की खोज में जान मार्शल के योगदान का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
1924 में भारत के प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद जान मार्शल ने सम्पूर्ण विश्व के सामने सिन्धुघाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। इस प्रकार विश्व को एक नवीन सभ्यता ‘हड़प्पा की सभ्यता’ की जानकारी : मिली जान मार्शल भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्त्वविद थे। यद्यपि कनिंघम की भाँति ही उन्हें भी आकर्षक खोजों में रुचि थी, परन्तु उनमें दैनिक जीवन की पद्धत्तियों को जानने की उत्सुकता भी थी परन्तु वह पुरास्थल के स्तर विन्यास को पूरी तरह अनदेखा कर देते थे।

प्रश्न 40.
हड़प्पावासियों के पश्चिमी एशिया के साथ व्यापारिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता काल में व्यापार के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता-काल में व्यापार का विकास –

  • हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था। व्यापार जल तथा थल दोनों मार्गों से होता था।
  • नागेश्वर तथा बालाकोट से शंख, अफगानिस्तान (शोतुंभई) से लाजवर्द मणि, ताँबा खेतड़ी (राजस्थान) से मंगाया जाता था।
  • हड़प्पा के लोगों का ईरान, मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित था ओमान से तांबा मंगाया जाता था।
  • ओमान, बहरीन या मेसोपोटामिया से सम्पर्क सामुद्रिक मार्ग से था।

प्रश्न 41.
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र हड़प्पा सभ्यता एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इस सभ्यता के अवशेष मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, चन्द्रदड़ो बणावली, राखीगढ़ी, रोपड़, रंगपुर, लोथल, धौलावीरा, कालीबंगा आदि अनेक पुरास्थलों से प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात तथा गंगा घाटी तक फैली हुई थी। हड़प्पा की सभ्यता का वर्तमान में ज्ञात भौगोलिक विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 42.
सिन्धु घाटी सभ्यता में प्रचलित धार्मिक अनुष्ठानों के संकेत पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक जीवन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन –

  • हड़प्पावासी मातृदेवी की पूजा करते थे।
  • हड़प्पावासी शिव की उपासना करते थे।
  • हड़प्पावासी पशुओं तथा वृक्षों की पूजा करते थे।
  • हड़प्पा के लोग लिंग और योनि की उपासना करते थे।

प्रश्न 43.
लिपि के अभाव में किन साक्ष्यों से हड़प्पाई सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त होती है?
उत्तर:
यद्यपि विद्वानों को हड़प्पाई लिपि के पढ़ने में अभी तक सफलता नहीं मिली है, फिर भी हड़प्पाई लोगों द्वारा पीछे छोड़ी गई पुरवस्तुओं जैसे उनके आवासों, मृदभाण्डों, आभूषणों, औजारों, मुहरों, मूर्तियों आदि से पर्याप्त जानकारी मिलती है। ये पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पाई सभ्यता एवं संस्कृति पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। इन पुरातात्विक साक्ष्यों से हड़प्पा के लोगों के भोजन, नगर योजना, भवन-निर्माण, धार्मिक जीवन, कृषि, व्यापार आदि के बारे में जानकारी मिलती है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 44.
” 1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्व में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि लगातार बढ़ रही है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्व में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि लगातार बढ़ रही है। हड़या और मोहनजोद दोनों स्थलों पर उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से कार्य करते रहे हैं। वे आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं, जिनमें मिट्टी, पत्थर धातु की वस्तुएँ तथा वनस्पति और जानवरों के अवशेष प्राप्त करने के लिए सतह की खोज और उपलब्ध साक्ष्य के प्रत्येक सूक्ष्म टुकड़े का विश्लेषण सम्मिलित है। इन खोजों से भविष्य में रोचक परिणाम निकल सकते हैं।

प्रश्न 45.
“हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा परवर्ती परम्पराओं में समानताएँ होती हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा परवर्ती परम्पराओं में समानताएँ होती हैं। इसका कारण यह है कि अधिकांशतः पुरातत्त्वविद ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ते हैं अर्थात् वर्तमान से अतीत की ओर यद्यपि यह नीति पत्थर की चक्कियों तथा पात्रों के सम्बन्ध में सही हो सकती है, परन्तु धार्मिक प्रतीक के बारे में यह अधिक संदिग्ध रहती है।

निबन्धात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित
(1) नगर योजना मोहनजोदड़ो के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। इन नालियों के द्वारा घरों, गलियों और सड़कों का गन्दा पानी शहरों से बाहर निकाल दिया जाता था। मकान प्रायः पकी ईंटों के बने होते थे मकानों में आंगन, रसोईघर, स्नानघर, शौचालय, दरवाजों व खिड़कियों की व्यवस्था रहती थी। इस सभ्यता में कुछ विशिष्ट भवन भी मिले हैं जिनमें मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार, माल गोदाम आदि उल्लेखनीय हैं।

(2) सामाजिक जीवन समाज में कई वर्ग थे। हड़मा समाज मातृ सत्तात्मक था। स्वी और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। ये लोग अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार तीन प्रकार से करते थे –

  • शव को जलाकर
  • शव को जमीन में गाड़कर
  • शव को पशु-पक्षियों को खाने के लिए छोड़ दिया जाना।

(3) आर्थिक अवस्था-मोहनजोदड़ो सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहाँ गेहूं, जौ, चावल, दाल, बाजरा, कपास, तिल आदि की खेती की जाती थी। सिंचाई के लिए नहरों, कुओं और जलाशयों का जल काम में लिया जाता था। ये लोग गाय, बैल, भेड़, बकरी, भैंस, कुत्ते आदि जानवर पालते थे। यहाँ अनेक उद्योग-धन्धे विकसित थे। (4) धार्मिक अवस्था हड़प्पा सभ्यता के लोग मातृदेवी तथा शिव की उपासना करते थे। ये लोग लिंग और योनि की, पशुओं और वृक्षों की, नांग की भी पूजा करते थे।

(5) राजनीतिक अवस्था हडप्पाई सभ्यता में जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। कुछ पुरातत्त्वविदों के अनुसार यहाँ पुरोहित, राज शासन करते थे। कुछ पुरातत्त्वविदों के अनुसार हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। परन्तु कुछ पुरातत्वविदों का कहना है कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।

(6) लिपि हड़प्पाकालीन लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है। इसमें लगभग 375 से 400 के बीच चिह्न हैं। यह लिपि दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी।

(7) कला वहाँ के लोग मुहर निर्माण करना, मूर्तिकला, चित्रकला आदि में निपुण थे। यहाँ के लोग मिट्टी के बर्तन और मूर्तियाँ बनाने में मुहर, मनके आदि बनाने में तथा सोने, चाँदी, ताँबे आदि के आभूषण में दक्ष थे।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के नामकरण तथा विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण –
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। 1920 ई. में दयाराम साहनी तथा माधोस्वरूप वत्स के नेतृत्व में हड़प्पा की खोज की गई थी। इसके बाद 1922 ई. में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो की खोज की गई। सिन्धु घाटी सभ्यता को ‘हड़प्पा संस्कृति’ भी कहा जाता है।

पुरातत्त्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं एक ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली होते हैं और सामान्यतया एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल-खंड से सम्बद्ध पाए जाते हैं। हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं। ये वस्तुएँ अफगानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान तथा गुजरात जैसे स्थानों से मिली हैं, जो एक-दूसरे से लम्बी दूरी पर स्थित हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

हड़प्पा सभ्यता का काल पुरातत्त्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ई. पूर्व के बीच किया है। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता विश्व की प्राचीन और उन्नत सभ्यताओं में गिनी जाती है। हड़प्पा सभ्यता की अवस्थाएँ इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्या की संस्कृतियाँ कहते हैं।

इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है। आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियाँ- सिन्ध और चोलिस्तान (थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र) में आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियों की अस्तियों के आँकड़े निम्नलिखित हैं-

सिन्ध चोलिस्तान
बस्तियों की कुल संख्या 106 239
आरम्भिक हड़प्पा स्थल 52 37
विकसित हड़प्पा स्थल 65 136
नए स्थलों पर विकसित हंड़प्पा बस्तियाँ 43 132
त्याग दिए गए आरम्भिक हड़प्पा स्थल 29 33

प्रश्न 3.
हड़प्पा निवासियों के निर्वाह के तरीकों का विवेचन कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के रहन-सहन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा निवासियों के निर्वाह के तरीके (रहन-सहन ) विकसित हड़प्पा संस्कृति का कुछ ऐसे स्थानों पर विकास हुआ, जहाँ पहले आरम्भिक हड़प्पा संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। इन संस्कृतियों में अनेक तत्त्व समान थे। इनके निर्वाह के तरीकों में भी समानता थी।
(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादन तथा जानवरों से प्राप्त भोजन हड़प्पा सभ्यता के लोग कई प्रकार के पेड़- पौधों से प्राप्त उत्पादन तथा जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे।

(2) गेहूँ, जौ, दाल, चना, तिल, बाजरे, चावल का प्रयोग जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्त्वविदों को हड़प्पाई लोगों के भोजन के बारे में काफी जानकारी मिली है। इनका अध्यचन पुरा वनस्पतिज्ञ करते हैं जो प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं हड़प्पाई लोग गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाजों का सेवन करते थे। हड़प्पा के अनेक स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरे तथा चावल के दाने प्राप्त हुए थे। बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए थे। चावल के दाने भी मिले थे, परन्तु वे अपेक्षाकृत कम पाए गए हैं।

(3) जानवरों के मांस का सेवन करना हड़या ‘के स्थलों के उत्खनन में अनेक जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं। इनमें भेड़, बकरी, भैंस या सूअर की हड्डियाँ सम्मिलित हैं। जीव पुरातत्वविदों के अनुसार ये सभी जानवर पालतू थे। अनुमान है कि हड़प्पाई लोग इन जानवरों के मांस का सेवन करते थे। इसके अतिरिक्त खुदाई में वराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं। इस आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा के लोग इन जानवरों के मांस का भी सेवन करते थे मुहरों पर उत्कीर्ण मछली के चित्रों से ज्ञात होता है कि हड़प्पाई लोग मछली का भी सेवन करते थे।

(4) मछली तथा पक्षियों के मांस का सेवन करना- उत्खनन में मछली तथा कुछ पक्षियों की हड्डियाँ भी मिली हैं। इससे प्रतीत होता है कि हड़प्पा निवासी मछली तथा पक्षियों के मांस का भी सेवन करते थे।

(5) जानवरों के शिकार के बारे में अनिश्चित जानकारी अभी तक विद्वान लोग यह नहीं जान पाए हैं कि हड़प्पा निवासी स्वयं इन जानवरों का शिकार करते थे अथवा अन्य आखेटक समुदायों से इनका मांस प्राप्त करते थे।

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी की विवेचना कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता काल की कृषि की स्थिति का विवेचन
कीजिए।
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी (कृषि की स्थिति)
हड़प्पा स्थलों से अनाज के दाने मिले हैं, जिनसे यहाँ कृषि के संकेत मिलते हैं परन्तु वास्तविक कृषि-विधियों के विषय में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग- मुहरों पर किए गए रेखांकन तथा मिट्टी की मूर्तियाँ यह संकेत देती हैं कि हड़प्पा निवासियों को वृषभ (बैल) के विषय में जानकारी थी।

इस साक्ष्य के आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। चोलिस्तान (पाकिस्तान) के कई स्थलों तथा बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हलों के प्रतिरूप मिले हैं। इनसे ज्ञात होता है कि लोग कृषि में हलों का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त कालीबंगा (राजस्थान) नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। यह आरम्भिक हड़प्पा स्तरों से सम्बद्ध है। इस खेत में हल रेखाओं के दो समूह एक-दूसरे को समकोण पर काटते थे। इससे यह अनुमान लगाया गया है कि एक खेत में एक साथ दो अलग-अलग फसलें उगाई जाती थीं।

(2) कृषि उपकरण – पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है। इसके लिए हड़प्पा के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों का प्रयोग करते थे या फिर वे धातु के औजारों का प्रयोग करते होंगे।

(3) सिंचाई अधिकांश हड़प्पा-स्थल अर्थ – शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ सम्भवतः कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती होगी। अफगानिस्तान में शोर्तुपई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं, परन्तु पंजाब और सिन्ध में ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले। ऐसा सम्भव है कि प्राचीन नहरें बहुत पहले ही गाद से भर गई थीं।

हड़प्पा स्थलों से कुओं के अवशेष भी मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि कुओं से प्राप्त पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए किया जाता होगा। इसके अतिरिक्त धौलावीरा में जलाशय के अवशेष मिले हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि जलाशयों का प्रयोग सम्भवत: कृषि के लिए जल संचयन के लिए किया जाता था। इस प्रकार जलाशयों से प्राप्त पानी का प्रयोग भी सिंचाई के लिए किया जाता था।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 5.
मोहनजोदड़ो में हुए उत्खनन में प्राप्त अवतल चक्की का अर्नेस्ट मैके द्वारा दिए गए वृत्तान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके द्वारा अवतल चक्की का दिया गया वृत्तान्त प्राचीन काल में भोजन तैयार करने की प्रक्रिया के अन्तर्गत अनाज पीसने के यन्त्र तथा उन्हें आपस में मिलाने, मिश्रण करने तथा भोजन पकाने के लिए बर्तनों की आवश्यकता थी। इन सभी वस्तुओं का निर्माण पत्थर, धातु तथा मिट्टी से किया जाता था। अर्नेस्ट मैके नामक प्रसिद्ध पुरातत्वविद् ने मोहनजोदड़ो के उत्खनन में प्राप्त अवतल चक्की का वृत्तान्त दिया है।

अवतल चक्कियाँ अर्नेस्ट मैके के अनुसार मोहनजोदड़ो के उत्खनन में अनेक अवतल चक्कियाँ प्राप्त हुई हैं। अनुमान किया जाता है कि इन चक्कियों का प्रयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता था। सम्भवतः अनाज पीसने के लिए प्रयुक्त ये एकमात्र साधन थीं प्राय: इन चक्कियों का निर्माण मोटे रूप से कठोर कंकरीले अग्निज अथवा बलुआ पत्थर से किया गया था।

सामान्यतः इन चक्कियों का अत्यधिक प्रयोग किया जाता था। चूँकि इन चक्कियों के तल सामान्यतया उत्तल हैं, अतः इन्हें जमीन में अथवा मिट्टी में जमा कर रखा जाता होगा, जिससे इन्हें हिलने से रोका जा सके। दो मुख्य प्रकार की चक्कियाँ उत्खनन में दो मुख्य प्रकार की अवतल चक्कियाँ मिली हैं –

  • एक प्रकार की चक्कियाँ वे थीं, जिन पर एक दूसरा छोटा पत्थर आगे-पीछे चलाया जाता था, जिससे निचला पत्थर खोखला हो गया था।
  • दूसरे प्रकार की चक्कियों से हैं, जिनका प्रयोग सम्भवतः केवल सालान अथवा तरी बनाने के लिए तथा जड़ी-बूटियों और मसालों को कूटने के लिए किया जाता था। इन चक्कियों के पत्थरों को ‘सालन पत्थर’ कहा जाता था अर्नेस्ट मैके के अनुसार इन पत्थरों को सालन पत्थर का नाम उनके श्रमिकों द्वारा दिया गया था। उनके एक रसोइये ने एक यही पत्थर रसोई में प्रयोग के लिए संग्रहालय से उधार माँगा था।

प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों की जल निकास प्रणाली का वर्णन कीजिये।
अथवा
“हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा शहरों की नियोजित जल निकास प्रणाली हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
(1) नालियों के साथ गलियों का निर्माण ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों का निर्माण किया गया था। घरों के गन्दे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था। हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था।

(2) मुख्य नालों का निर्माण-मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और इन्हें ऐसी ईटों से ढका गया था, जिन्हें सफाई के लिए हटाया जा सके कुछ स्थानों पर नालों को ढकने के लिए चूना पत्थर की पट्टिका का प्रयोग किया गया था। मकानों से आने वाली नालियाँ गली की नालियों में मिल जाती थीं।

(3) घरों की नालियों का एक हीदी या मलकुंड में खाली होना घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गन्दा पानी गली की नालियों में वह जाता था। जो नाले बहुत लम्बे थे, उनमें कुछ अन्तरालों पर सफाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थीं।

(4) नालियों के किनारे गड्ढों का बना होना- नालियों के किनारे भी कहीं-कहीं गड्ढे बने मिलते हैं।

(5) नालियों की सफाई समय समय पर नालियों की सफाई की जाती थी। कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि नालों की सफाई के बाद कचरे को सदैव हटाया नहीं जाता था।

(6) छोटी बस्तियों में भी जल निकास प्रणालियों का प्रचलित होना जल निकास प्रणालियाँ केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि ये कई छोटी बस्तियों में भी प्रचलित थीं। उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। नालियों के विषय में मैके ने लिखा है कि “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा सम्पूर्ण प्राचीन प्रणाली है।”

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 7.
हड़प्पावासियों के सुदूर क्षेत्रों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पुरातात्विक खोजों से ज्ञात होता है कि हड़प्यावासियों के सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क थे। निम्नलिखित तथ्यों से इस बात की पुष्टि होती है कि हड़प्पा सभ्यता के सुदूर क्षेत्रों से सम्बन्ध थे
(1) ओमान से सम्बन्ध – हाल ही में हुई पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि अरब प्रायद्वीप के दक्षिण – पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से रासायनिक विश्लेषण से ज्ञात होता है –

ताँबा लाया जाता था। कि ओमानी ताँबे तथा हड़प्पाई पुरावस्तुओं, दोनों में निकल के अंश मिले हैं जो दोनों के साझा उद्भव की ओर संकेत करते हैं। इसके अतिरिक्त ओमानी स्थलों से एक बड़ा हड़प्पाई मर्तबान, जिसके ऊपर काली मिट्टी की एक मोटी परत चढ़ाई गई थी भी मिला है। ऐसी मोटी परतें तरल पदार्थों के रिसाव को रोक देती हैं। अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी इनमें रखे सामान का ओमानी ताँबे से विनिमय करते थे।

(2) मेसोपोटामिया के लेखों से जानकारी प्राप्त होना मेसोपोटामिया के विभिन्न नगरों से हड़प्पा सभ्यता की लगभग दो दर्जन मुहरें मिली हैं। तीसरी सहस्राब्दी ई. पूर्व के मेसोपोटामिया के लेखों में मगान (सम्भवतः ओमान के लिए प्रयुक्त नाम) नामक क्षेत्र से ताँबे के आने का उल्लेख मिलता है। यह बात उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया के स्थलों से मिले ताँबे में भी निकल के अंश मिले हैं।

(3) लम्बी दूरी के सम्पर्कों की ओर संकेत करने वाली अन्य पुरातात्विक खोजें-लम्बी दूरी के सम्पर्कों की ओर संकेत करने वाली अन्य पुरातात्विक खोजों में हड़प्पाई मुहरें, बाट, पासे तथा मनके सम्मिलित हैं।

(4) मेसोपोटामिया के लेख से दिलमुन, मगान तथा मेलुहा से सम्पर्क की जानकारी मेसोपोटामिया के लेखों से दिलमुन (सम्भवतः बहरीन द्वीप), मगान (ओमान) तथा मेलुहा (सम्भवतः हड़प्पाई क्षेत्र के लिए प्रयुक्त शब्द ) नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है। ये लेख मेलुहा से प्राप्त अनेक उत्पादों का उल्लेख करते हैं, जैसे- कार्नी लियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना तथा विविध प्रकार की लकड़ियाँ।

(5) बहरीन में मिली मुहर पर हड़प्पाई चित्रों का मिलना बहरीन में मिली गोलाकार फारस की खाड़ी प्रकार की मुहर पर कभी-कभी हड़प्पाई चित्र मिलते हैं।

प्रश्न 8.
हड़प्पा सभ्यता में प्राप्त मुहरों, लिपि एवं तौल के साधनों की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की मुहरों पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की मुहरें हड़प्पा सभ्यता की मुहरों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(1) पत्थर, मिट्टी, ताँबे से निर्मित मुहरे हड़प्पाई मुहर सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है। अधिकांश मुहरें सेलखड़ी नामक पत्थर से बनी हुई हैं। कुछ मुहरें काँचली मिट्टी (फयॉन्स), गोमेद, चर्ट और मिट्टी से निर्मित हैं। ताँबे की बनी हुई मुहरें भी मिली हैं मुहरों पर सामान्यतः पशुओं के चित्र तथा हड़प्पा लिपि के चिह्न उत्कीर्ण हैं।

(2) कला के उत्कृष्ट नमूने – हड़प्पाई मुहरें तत्कालीन कला के उत्कृष्ट नमूने हैं अपने आकर्षक विशुद्ध आकार और हल्की चमकदार सतह के कारण वे सुन्दर कलाकृतियों में गिनी जाती हैं।

(3) आकार-प्रकार हड़प्पाई मुहरें वर्गाकार, आयताकार, बटन जैसी घनाकार और गोल हैं। परन्तु मुख्यतः वर्गाकार अथवा चौकोर मुहरें ही लोकप्रिय थीं।

(4) मुहरों पर पशुओं के चित्र एवं संक्षिप्त लेखों का उत्कीर्ण होना सामान्यतः मुहरों पर पशुओं के चित्र तथा संक्षिप्त लेख उत्कीर्ण हैं। इन पर बैल, हाथी, गेंडे, व्याघ्र आदि पशुओं का अंकन उल्लेखनीय है।

(5) रचना-शैली-मुहरों की रचना शैली उत्कृष्ट है। हड़प्पावासी मुहरों पर पशुओं के चित्र उत्कीर्ण करने में निपुण थे। मुहरों पर पीपल आदि वृक्षों के चित्रण भी मिलते हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(6) विशिष्ट मुहरें हड़प्पाई मुहरों में दो मुहरें विशेष उल्लेखनीय हैं। एक मुहर पर एक देवता की मूर्ति अंकित है इस देवता के तीन मुख और दो सींग हैं। यह देव- पुरुष एक हाथी, चीता, गैंडा तथा भैंस से घिरे हुए हैं। जॉन मार्शल के अनुसार यह मूर्ति शिव की है, दूसरी प्रसिद्ध मुहर पर एक कूबड़दार बैल का अंकन है।

(7) मुहरों का प्रयोग- इन मुहरों एवं मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था मुद्रांकन से प्रेषक की पहचान की भी जानकारी हो जाती थी । लिपि एवं तौल के साधन इसके लिए लघुत्तरात्मक प्रश्न संख्या 25 एवं 26 का उत्तर देखें।

प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक के बारे में विभिन्न मतों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक का अस्तित्व
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक के अस्तित्व के बारे में अनेक मत प्रकट किए गए हैं। इन मतों का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत दिया जा सकता
(1) हड़प्पा सभ्यता में सत्ता का अस्तित्व – हड़प्पाई समाज में जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। उत्खनन में जो मृदभाण्ड, मुहरें, ईंटें तथा बाढ़ मिले हैं, उनमें असाधारण एकरूपता दिखाई देती है। हड़प्पा सभ्यता काल में भिन्न-भिन्न कारणों से बस्तियाँ विशेष स्थानों पर आवश्यकतानुसार स्थापित की गई थीं। इसके अतिरिक्त ईंटें, विशाल दीवार तथा चबूतरे बनाने के लिए बड़े पैमाने पर मजदूरों को संगठित किया गया था ये कार्य बिना किसी सत्ता के सम्पन्न नहीं हो सकते थे। अतः पुरातत्वविदों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता काल में सत्ता का अस्तित्व अवश्य था।

(2) सत्ता के केन्द्र तथा शासक का अस्तित्व- सत्ता के केन्द्र तथा शासक के अस्तित्व के सम्बन्ध में पुरातत्वविदों ने निम्नलिखित मत व्यक्त किये हैं –

  • प्रासाद – मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को पुरातत्वविदों ने एक प्रासाद (महल) की संज्ञा दी है, परन्तु इससे सम्बन्धित कोई भव्य वस्तुएँ नहीं मिली हैं।
  • पुरोहित-राजा उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को पुरातत्वविदों ने ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी थी। इसे ‘पुरोहित-राजा’ की संज्ञा इसलिए दी गई थी क्योंकि पुरातत्वविद मेसोपोटामिया के इतिहास तथा वहाँ के ‘पुरोहित राजाओं’ से परिचित थे। यही समानताएँ उन्होंने सिन्धुक्षेत्र में भी ढूँढ़ीं।
  • शासक का अभाव – कुछ पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी।
  • अनेक शासकों का अस्तित्व-कुछ पुरातत्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।
  • हड़प्पा एक ही राज्य था कुछ पुरातत्वविद यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था। निष्कर्ष उपर्युक्त तर्कों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अभी तक की स्थिति में अन्तिम परिकल्पना सबसे तर्कसंगत जान पड़ती है क्योंकि यह सम्भव नहीं लगता कि सम्पूर्ण समुदायों द्वारा इकट्ठे ऐसे जटिल निर्णय लिए जाते होंगे और वे लागू किये जाते होंगे।

प्रश्न 10.
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने के बारे में पुरातत्वविदों को क्या भ्रम था ? क्या आप इस मत से सहमत हैं कि कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए ?
उत्तर:
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने में कठिनाई जब हड़प्पा सभ्यता के शहर नष्ट हो गए तो लोग धीरे-धीरे उनके विषय में सब कुछ भूल गए हजारों वर्षों बाद जब लोगों ने इस क्षेत्र में रहना शुरू किया, तब से यह नहीं समझ पाए कि बाढ़ या मिट्टी के कटाव के कारण अथवा खेत की जुताई के समय या फिर खजाने के लिए खुदाई के समय कभी-कभी पृथ्वी की सतह पर आने वाली अपरिचित वस्तुओं का क्या अर्थ लगाया जाए।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

कनिंघम का भ्रम:
कनिंघम एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। जब उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में कनिंघम ने पुरातात्विक उत्खनन शुरू किए, उस समय पुरातत्वविद अपनी खोजों के मार्गदर्शन के लिए लिखित स्रोतों जैसे साहित्य तथा अभिलेखों का प्रयोग करना अधिक पसन्द करते थे। कनिंघम की मुख्य रुचि भी आरम्भिक ऐतिहासिक (लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी) तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी। चीनी बौद्धयात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।

हड़प्पा कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं था चीनी तीर्थयात्रियों ने हड़प्पा जैसे पुरास्थल की यात्रा नहीं की थी। इसके अतिरिक्त हड़प्पा एक आरम्भिक ऐतिहासिक शहर भी नहीं था अतः इन तथ्यों के कारण हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था।

भारतीय इतिहास के प्रारम्भ के बारे में कनिंघम का भ्रम- एक बार एक अंग्रेज ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। कनिंघम ने मुहर पर ध्यान तो किया, पर उन्होंने उसे एक ऐसे काल-खंड में रखने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे। इसका कारण यह था कि कई और लोगों की भाँति ही उनका भी यह विचार था कि भारतीय इतिहास का प्रारम्भ गंगा की घाटी में विकसित पहले शहरों के साथ ही हुआ था। अपनी इस सुनिश्चित अवधारणा के कारण ही कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए।

प्रश्न 11.
हड़प्पा की सभ्यता की जानकारी किस प्रकार हुई ? सभ्यता की खोज में विभिन्न पुरातत्वविदों के योगदान का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकालीं ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया। उन्होंने हड़या से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं।

इससे अनुमान लगाया गया कि ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने मजदूरों को संगठित किया गया था। ये कार्य बिना किसी सत्ता के सम्पन्न नहीं हो सकते थे। अतः पुरातत्वविदों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता- काल में सत्ता का अस्तित्व अवश्य था।

(2) सत्ता के केन्द्र तथा शासक का अस्तित्व- सत्ता के केन्द्र तथा शासक के अस्तित्व के सम्बन्ध में पुरातत्वविदों ने निम्नलिखित मत व्यक्त किये हैं-

  • प्रासाद – मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को पुरातत्वविदों ने एक प्रासाद (महल) की संज्ञा दी है, परन्तु इससे सम्बन्धित कोई भव्य वस्तुएँ नहीं मिली हैं।
  • पुरोहित राजा उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को पुरातत्वविदों ने ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी थी। इसे ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा इसलिए दी गई थी क्योंकि पुरातत्वविद | मेसोपोटामिया के इतिहास तथा वहाँ के ‘पुरोहित राजाओं’ से परिचित थे। यही समानताएँ उन्होंने सिन्धुक्षेत्र में भी ढूँढ़ीं।
  • शासक का अभाव – कुछ पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी।
  • अनेक शासकों का अस्तित्व- कुछ पुरातत्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।
  • हड़प्पा एक ही राज्य था कुछ पुरातत्वविद वह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था।

निष्कर्ष उपर्युक्त तर्कों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अभी तक की स्थिति में अन्तिम परिकल्पना सबसे तर्कसंगत जान पड़ती है क्योंकि यह सम्भव नहीं लगता कि सम्पूर्ण समुदायों द्वारा इकट्ठे ऐसे जटिल निर्णय लिए जाते होंगे और वे लागू किये जाते होंगे।

प्रश्न 10.
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने के बारे में पुरातत्वविदों को क्या भ्रम था ? क्या आप इस मत से सहमत हैं कि कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए ?
उत्तर:
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने में कठिनाई जब हड़प्पा सभ्यता के शहर नष्ट हो गए तो लोग धीरे-धीरे उनके विषय में सब कुछ भूल गए हजारों वर्षों बाद जब लोगों ने इस क्षेत्र में रहना शुरू किया, तब वे यह नहीं समझ पाए कि बाढ़ या मिट्टी के कटाव के कारण अथवा खेत की जुताई के समय या फिर खजाने के लिए खुदाई के समय कभी-कभी पृथ्वी की सतह पर आने वाली अपरिचित वस्तुओं का क्या अर्थ लगाया जाए।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

कनिंघम का भ्रम:
कनिंघम एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। जब शुरू उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में कनिंघम ने पुरातात्विक उत्खनन किए, उस समय पुरातत्वविद अपनी खोजों के मार्गदर्शन के लिए लिखित स्रोतों जैसे साहित्य तथा अभिलेखों का प्रयोग करना अधिक पसन्द करते थे। कनिंघम की मुख्य रुचि भी आरम्भिक ऐतिहासिक (लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी) तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी।

चीनी बौद्धयात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग- आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।

हड़प्पा कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं था चीनी तीर्थयात्रियों ने हड़प्पा जैसे पुरास्थल की यात्रा नहीं की थी। इसके अतिरिक्त हड़प्पा एक आरम्भिक ऐतिहासिक शहर भी नहीं था।

अतः इन तथ्यों के कारण हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था। भारतीय इतिहास के प्रारम्भ के बारे में कनिंघम का भ्रम एक बार एक अंग्रेज ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। कनिंघम ने मुहर पर ध्यान तो किया, पर उन्होंने उसे एक ऐसे काल-खंड में रखने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे। इसका कारण यह था कि कई और लोगों की भाँति ही उनका भी यह विचार था कि भारतीय इतिहास का प्रारम्भ गंगा की घाटी में विकसित पहले शहरों के साथ ही हुआ था। अपनी इस सुनिश्चित अवधारणा के कारण ही कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए।

प्रश्न 11.
हड़प्पा की सभ्यता की जानकारी किस प्रकार हुई ? सभ्यता की खोज में विभिन्न पुरातत्वविदों के योगदान का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी:
बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़या में कुछ मुहरें खोज निकालीं। ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया।

उन्होंने हड़प्या से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। इससे अनुमान लगाया गया कि ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने विश्व के सामने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।

प्रसिद्ध पुरातत्वविद एस.एन. राव ‘द स्टोरी ऑफ इण्डियन आर्कियोलोजी’ में लिखते हैं कि “मार्शल ने भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा। ” मेसोपोटामिया के पुरास्थलों में हुए उत्खननों से हड़प्पा पुरास्थलों से प्राप्त मुहरों जैसी मुहरें मिली थीं। इस प्रकार विश्व को न केवल एक नई सभ्यता की जानकारी मिली, बल्कि यह भी ज्ञात हुआ कि यह सभ्यता मेसोपोटामिया की समकालीन थी।

हड़या सभ्यता की खोज में जॉन मार्शल का योगदान – भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल के रूप में जॉन मार्शल का कार्यकाल वास्तव में भारतीय पुरातत्व में एक व्यापक परिवर्तन का काल था। वह भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्वविद थे। वह भारत में यूनान तथा क्रीट से अपने कार्यों का अनुभव भी लाए थे। कनिंघम की भांति ही उनकी भी आकर्षक खोजों में रुचि थी परन्तु उनमें दैनिक जीवन की पद्धतियों को जानने की भी उत्सुकता थी।

जॉन मार्शल के उत्खनन कार्य में त्रुटि – जॉन मार्शल के उत्खनन कार्य में एक त्रुटि थी कि वह पुरास्थल के स्तर-विन्यास को पूर्णरूप से अनदेखा कर पूरे टीले में समान परिमाण वाली नियमित क्षैतिज इकाइयों के साथ-साथ उत्खनन करने का प्रयास करते थे। इस प्रकार पृथक्- पृथक् स्तरों से सम्बन्धित होने पर भी एक इकाई विशेष रूप से प्राप्त सभी पुरावस्तुओं को सामूहिक रूप से वर्गीकृत कर दिया जाता था। परिणामस्वरूप इन खोजों के संदर्भ के विषय में बहुमूल्य जानकारी सदा के लिए लुप्त हो जाती थी।

प्रश्न 12.
“बीसवीं शताब्दी में हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के लिए नई तकनीकें तथा प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नई तकनीकें तथा प्रश्न:
बीसवीं शताब्दी में हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के लिए नई तकनीकें तथा प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। इसके सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं –
(1) व्हीलर द्वारा जॉन मार्शल की त्रुटि को दूर करना 1944 में आर.ई. एम. व्हीलर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल बने। उन्होंने जॉन मार्शल द्वारा उत्खनन कार्य में की गई त्रुटि का निवारण किया। व्हीलर ने यह महसूस किया कि एकसमान क्षैतिज इकाइयों के आधार पर खुदाई की बजाय टीले के स्तर विन्यास का अनुसरण करना अधिक आवश्यक था। इसके अतिरिक्त सेना के पूर्व ब्रिगेडियर के रूप में उन्होंने पुरातत्व की पद्धति में एक सैनिक परिशुद्धता को भी शामिल किया।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(2) भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करना हड़प्पा सभ्यता की भौगोलिक सीमाओं का आज की राष्ट्रीय सीमाओं से बहुत थोड़ा या कोई सम्बन्ध नहीं है। परन्तु उपमहाद्वीप के विभाजन तथा पाकिस्तान के निर्माण के पश्चात् हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थान अब पाकिस्तान के क्षेत्र में हैं। इसी कारण से भारतीय पुरातत्वविदों ने भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करने का प्रयास किया। कच्छ में हुए व्यापक सर्वेक्षणों से कई हड़प्पा बस्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। इसी प्रकार पंजाब तथा हरियाणा में किए गए उत्खनन कार्यों के फलस्वरूप वहाँ भी अनेक पुरास्थलों के बारे में जानकारी ई। कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी, बणावली, धौलावीरा आदि हड़प्पा स्थल प्रकाश में आए हैं। नई खोजें अब भी जारी हैं।

(3) नये प्रश्नों का महत्त्वपूर्ण होना- इन दशकों में नए प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। कुछ पुरातत्वविद प्रायः सांस्कृतिक उपक्रम को जानने के इच्छुक रहते हैं जबकि अन्य पुरातत्वविद विशेष पुरास्थलों की भौगोलिक स्थिति के पीछे निहित कारणों को जानने का प्रयास करते हैं।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रुचि बढ़ना 1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्वों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि निरन्तर बढ़ती जा रही है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो दोनों स्थानों पर उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से अन्वेषण सम्बन्धी कार्य करते रहे हैं।

प्रश्न 13.
अतीत को जोड़ कर पूरा करने की क्या समस्याएँ हैं? पुरातत्वविद अपनी खोजों का वर्गीकरण किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर:
अतीत को जोड़ कर पूरा करने की समस्याएँ हड़प्पाई लिपि से हड़प्पा सभ्यता की जानकारी प्राप्त करने में कोई सहायता नहीं मिलती। वास्तव में पुरातत्वविद भौतिक साक्ष्यों की सहायता से हड़प्पा सभ्यता को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करते हैं। इन भौतिक साक्ष्यों में मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान सम्मिलित हैं। कुछ खोजें प्रारूपिक की बजाय संयोगिक होती हैं।

पुरातत्वविदों द्वारा खोजों का वर्गीकरण –
(1) वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे- पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि, हाथीदाँत आदि के सम्बन्ध में होता है।
(2) वर्गीकरण का दूसरा और अधिक जटिल सिद्धान्त वस्तुओं की उपयोगिता के आधार पर होता है। पुरातत्वविदों को यह निश्चित करना पड़ता है कि कोई पुरावस्तु एक औजार है या एक आभूषण है या यह आनुष्ठानिक प्रयोग की कोई वस्तु है।

पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ –
(1) किसी पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ प्रायः आधुनिक समय में प्रयुक्त वस्तुओं की समानता पर आधारित होती है। मनके, चकियाँ, पत्थर के फलक तथा पात्र इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।

(2) पुरातत्वविद किसी पुरावस्तु की उपयोगिता को समझने का प्रयास उस संदर्भ में भी करते हैं जिसमें वह मिली थी। उदाहरणार्थ, क्या वह वस्तु घर में मिली थी या नाले में, या कब्र में या भट्टी में मिली थी। अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना कभी-कभी पुरातत्त्वविदों को अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए, कुछ हड़प्पा स्थलों से कपास के टुकड़े मिले हैं। परन्तु उनकी वेशभूषा के विषय में जानने के लिए हमें अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है, जैसे मूर्तियों में चित्रण इन चित्रों को देखकर हमें तत्कालीन लोगों की वेशभूषा में जानकारी मिलती है।

संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना – पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना पड़ता है। उत्खनन में प्राप्त पहली हड़प्पाई मुहर को तब तक नहीं समझा जा सका, जब तक पुरातत्वविदों को उसे समझने के लिए सही संदर्भ नहीं मिला। सांस्कृतिक अनुक्रम जिसमें वह मुहर प्राप्त हुई थी तथा मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना, दोनों के सम्बन्ध में।

प्रश्न 14.
पुरातात्विक व्याख्या की समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पुरातात्विक व्याख्यां की समस्याएँ पुरातात्विक व्याख्या की समस्याओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) धार्मिक प्रथाओं का पुनर्निर्माण आरम्भिक पुरातत्वविद यह महसूस करते थे कि कुछ वस्तुएँ जो असामान्य और अपरिचित लगती थीं, वे सम्भवतः धार्मिक महत्त्व की होती थीं। इनमें आभूषणों से लदी हुई नारी मृण्मूर्तियाँ शामिल हैं। इन मृण्मूर्तियों के शीर्ष पर विस्तृत प्रसाधन थे। इन्हें ‘मातृ देवी’ की संज्ञा दी गई थी। दुर्लभ पत्थर से बनी पुरुषों की मूर्तियाँ, जिनमें उन्हें एक हाथ घुटने पर रख बैठा हुआ दिखाया गया था, को भी इसी वर्ग में रखा गया था।

(2) आनुष्ठानिक महत्त्व की संरचनाएँ कुछ अन्य मामलों में संरचनाओं को आनुष्ठानिक महत्त्व का माना गया है। इनमें विशाल स्नानागार तथा कालीबंगा और लोथल से मिली वेदियाँ सम्मिलित हैं।

(3) वृक्षों की पूजा कुछ मुहरों पर पेड़-पौधों के चित्र उत्कीर्ण हैं। इनसे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी प्रकृति (वृक्षों) की पूजा करते थे।

(4) शिव की पूजा कुछ मुहरों पर एक आकृति को पालथी मारकर ‘योगी’ की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है। उसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई है। उसे हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक का आरम्भिक रूप कहा गया है।

(5) लिंग की पूजा- उत्खनन में पत्थर की शंक्वाकार वस्तुएँ मिली हैं। इन्हें लिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है इससे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी लिंग की भी पूजा करते थे।

(6) आरम्भिक तथा बाद की परम्पराओं में समानताओं के आधार पर हड़प्पाई धर्म के पुनर्निर्माण- हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा बाद की परम्पराओं में समानताएँ होती हैं। इसका कारण यह है कि अधिकांशतः पुरातत्वविद ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ते हैं अर्थात् वर्तमान से अतीत की ओर अग्रसर होते हैं।

(7) ‘आद्य शिव’ मुहरों का विश्लेषण उदाहरण के लिए हम ‘आद्य शिव’ मुहरों का विश्लेषण करते हैं। आर्यों के सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ ऋग्वेद (लगभग 1500 से 1000 ईसा पूर्व के बीच संकलित) में रुद्र नामक एक देवता का उल्लेख मिलता है जो बाद की पौराणिक परम्पराओं में शिव के लिए प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के उद्भव और उसके विस्तार क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का उद्भव बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकालीं। ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 ई. में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया।

उन्होंने हड़प्पा से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। इससे अनुमान लगाया गया कि दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 ई. में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने विश्व के सामने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र – हड़प्पा सभ्यता एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इस सभ्यता के अवशेष केवल मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा से ही नहीं बल्कि अन्य स्थानों से भी प्राप्त हुए हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल निम्नलिखित प्रान्तों से प्राप्त हुए हैं –

  • बलूचिस्तान-सुत्कागेण्डोर, सुत्काकोह, बालाकोट, डाबरकोट।
  • सिन्ध – मोहनजोदड़ो, चन्दड़ो, कोटदीजी, अली मुरीद।
  • पंजाब (पाकिस्तान) – हड़प्या, जलीलपुर, रहमान ढेरी, सरायखोला, गनेरीवाल
  • पंजाब (भारत) – रोपड़, संघोल, बाड़ा, कोटलानिहंगखान।
  • हरियाणा- बणावली, मीताथल, राखीगढ़ी।
  • जम्मू-कश्मीर माण्डा।
  • राजस्थान कालीबंगा।
  • उत्तर प्रदेश – आलमगीरपुर (मेरठ), अम्बाखेड़ी (सहारनपुर), कौशाम्बी।
  • गुजरात – रंगपुर, लोथल, रोजदी, सुरकोटड़ा, मालवणा, भगवतराव, धौलावीरा
  • महाराष्ट्र – दाइमाबाद (अहमदनगर)।

इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, गंगाघाटी तक फैली हुई थी। डॉ. विमल चन्द्र पाण्डेय ने लिखा है कि ” इस सभ्यता के क्षेत्र के अन्तर्गत बलूचिस्तान, उत्तर- पश्चिमी सीमा प्रान्त, पंजाब, सिन्ध, काठियावाड़ का अधिकांश भाग, राजपूताना और गंगाघाटी का उत्तरी भाग शामिल था।” प्रो. रंगनाथ राव के अनुसार, “हड़प्पा सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण 1100 किलोमीटर के क्षेत्र में था।”

प्रश्न 16.
“मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र था।” विवेचना कीजिये।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता शहरी केन्द्रों का विकास था। हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था।
(1) नगर का दो भागों में विभाजित होना- मोहनजोदड़ो नगर एक नियोजित शहरी केन्द्र था। यह दो भागों में विभाजित था। इनमें से एक भाग छोटा था, जो ऊँचाई पर बनाया गया था तथा दूसरा भाग बड़ा था, जो निचले स्थल में बनाया गया था। छोटा भाग ‘दुर्ग’ कहलाता था तथा बड़ा भाग ‘निचला शहर’ कहलाता था। दुर्ग की ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं। दुर्ग दीवार से घिरा हुआ था। इस प्रकार दीवार ने दुर्ग को निचले शहर से पृथक् कर दिया था।

(2) निचला शहर निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। निचले शहर के अनेक भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था, जो नींव का कार्य करते थे। इन भवनों के निर्माण में बहुत बड़े पैमाने पर मजदूरों की आवश्यकता पड़ी होगी। एक अनुमान लगाया गया है कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा, तो केवल आधारों को बनाने के लिए ही चालीस लाख श्रम- दिवसों की आवश्यकता पड़ी होगी। इससे स्पष्ट होता है कि मोहनजोदड़ो के भवनों के निर्माण के लिए बहुत बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ी होगी।

(3) नगर का नियोजन किया जाना शहर का समस्त भवन निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। इससे ज्ञात होता है कि पहले मोहनजोदड़ो शहर का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार निर्माण कार्य किया गया था। नियोजन के अन्य लक्षणों में ईंटों का भी महत्त्व है। इन ईंटों को धूप में सुखाकर या भट्टी में पकाकर बनाया गया था। ये ईंटें निश्चित अनुपात की होती थीं इनकी लम्बाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी तथा दोगुनी होती थी। इस प्रकार की ईंटों का प्रयोग हड़प्पाई सभ्यता के सभी नगरों में किया गया था।

प्रश्न 17.
मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा के नगर नियोजन की वर्तमान संदर्भ में उपादेयता बताइये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना तथा जल निकास प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) नगर – हड़प्पा के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। इन नगरों की आधार- योजना, निर्माण शैली तथा नगरों की आवास व्यवस्था में समानता तथा एकरूपता दिखाई देती है। प्रायः नगर के पश्चिम में एक ‘दुर्ग भाग’ तथा पूर्व में ‘नगर भाग’ प्राप्त होता है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(2) सड़कें नगरों की सड़कें तथा गलियों एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई गई थीं ये सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।

(3) नालियाँ – शहरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। वर्षा और मकानों के पानी को निकालने के लिए सड़कों में पक्की नालियाँ बनी हुई थीं। नालियों की जुड़ाई तथा प्लास्तर में मिट्टी, चूने तथा जिप्सम का प्रयोग किया जाता था ये नालियाँ ईंट अथवा पत्थर से ढकी रहती थीं। समय-समय पर इन नालियों की सफाई की जाती थी। घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं, जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गंदा पानी गली की नालियों में वह जाता था।

(4) कुएं हड़प्पा सभ्यता काल में प्राय: प्रत्येक पर में एक कुआँ होता था। पानी रस्सी की सहायता से निकाला जाता था कुछ कुओं के अन्दर सीढ़ियाँ बनी हुई थीं।

(5) भवन निर्माण हड़प्पा सभ्यता के मकान एक निश्चित योजना के अनुसार बनाए जाते थे। मकान प्रायः पकी ईंटों के बने होते थे।

  • दीवारों पर प्लास्तर – दीवारों पर मिट्टी का प्लास्तर किया जाता था, कभी-कभी जिप्सम का प्लास्तर भी किया
    जाता था।
  • आँगन, रसोईघर, स्नानघर आदि की व्यवस्था- मकानों में आँगन, रसोईघर, स्नानघर, शौचालय, दरवाजों, रोशनदानों आदि की व्यवस्था रहती थी भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आन्तरिक भाग अथवा आँगने का सीधा अवलोकन नहीं होता था।
  • छतें मकानों की छतें समतल थीं ये लकड़ी की कड़ियों से बनाई जाती थीं।
  • सीढ़ियाँ मकान एक से अधिक मंजिल के भी होते थे। छत अथवा ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए मकानों में सीढ़ियाँ होती थीं ये पकी ईटों की बनती थीं।

(6) विशाल स्नानागार-मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिला है। इसमें नीचे उतरने के लिए पक्की ईंटों की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इसकी दीवारें और फर्श पक्की ईंटों के बने हैं। स्नानकुंड के चारों ओर गैलेरी, बरामदा और कमरे बने हुए हैं। स्नानकुंड के निकट ही एक कुआँ है जिससे स्नानकुंड में पानी भरा जाता होगा। स्नानकुंड के तीन ओर बरामदे थे। स्नानागार के भवन के उत्तर में आठ स्नानकक्ष थे।

प्रश्न 18.
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है—
(1) कृषि – हड़प्पा के निवासियों का मुख्य व्यवसायं कृषि था। यहाँ गेहूं, जौ, चावल, कपास, दाल, तिल आदि की खेती की जाती थी। सिंचाई के लिए नहरों, कुओं और जलाशयों का जल काम में लिया जाता था। पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है।

(2) पशुपालन उत्खनन में अनेक मुहरें मिली हैं जिन पर अनेक पशु-पक्षियों के चित्र उत्कीर्ण हैं। इनसे ज्ञात होता है कि हड़प्पावासी गाय, बैल, भैंस, सूअर, भेड़, बकरी, कुत्ते आदि जानवर पालते थे। ये लोग व्याघ्र, हाथी, गैंडा, भैंसा, हिरण, घड़ियाल आदि जानवरों से परिचित थे।

(3) उद्योग-धन्धे हड़प्पा सभ्यता काल में अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धे विकसित थे। यहाँ सूती तथा उनी दोनों प्रकार के वस्त्र तैयार किए जाते थे। यहाँ के कुम्भकार | मिट्टी के बर्तन बनाने में निपुण थे। हड़प्पा के स्वर्णकार सोने, चाँदी, बहुमूल्य पत्थरों, पीतल, ताँबे आदि धातुओं का प्रयोग करते थे। यहाँ मनके बनाने, शंख की कुटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाने के उद्योग भी उन्नत थे। सीप, घाँचा, हाथीदांत आदि के काम में भी निपुण थे।

(4) व्यापार हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था व्यापार जल तथा धल दोनों मार्गों से होता था। जल यातायात के लिए नावों तथा छोटे जहाजों का एवं थल यातायात के लिए पशु गाड़ियों का प्रयोग किया जाता था। आन्तरिक व्यापार उन्नत अवस्था में था। हड़प्पा के लोगों का विदेशी व्यापार भी उन्नत अवस्था में था उनका ओमान, मेसोपोटामिया, ईरान, अफगानिस्तान आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित था। मेसोपोटामिया में हड़प्पा सभ्यता की लगभग दो दर्जन मुहरें मिली हैं। मोहनजोदड़ो में भी मेसोपोटामिया की मुहरें मिली हैं।

(5) तोल तथा माप के साधन – हड़प्पा निवासी बाटों का प्रयोग करना भी जानते थे। मोहनजोदड़ो की खुदाई में छोटे-बड़े सभी प्रकार के बाट मिले हैं। ये बाट सामान्यतः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे और प्रायः ये किसी भी प्रकार के चिह्न से रहित घनाकार होते थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(6) यातायात के साधन स्थल मार्ग से जाने के लिए बैलगाड़ियों, इक्कों आदि का प्रयोग होता था। जलमार्ग से जाने के लिए नावों तथा छोटे जहाजों का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 19.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का सामाजिक जीवन हड़प्पा सभ्यता के लोगों के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) समाज का वर्गीकरण-उत्खनन में प्राप्त अवशेषों से यह अनुमान लगाया जाता है कि समाज में कई वर्ग थे। कुम्भकार, बढ़ई, सुनार, दस्तकार, जुलाहे, राजगीर आदि पेशेवर लोग रहे होंगे। सम्भवतः पुरोहितों का एक पृथक् वर्ग रहा होगा। राजकर्मचारियों एवं सेनाधिकारियों का भी एक विशिष्ट वर्ग रहा होगा। दुर्ग भाग में शासक, उच्च पदाधिकारी एवं सम्पन्न लोग रहते होंगे और नगर भाग में अधिकतर सामान्य लोग रहते होंगे

(2) परिवार – उत्खनन में जो भवन मिले हैं, उनसे प्रतीत होता है कि उनमें पृथक् पृथक् परिवार रहते होंगे। हड़प्पा समाज मातृसत्तात्मक था। ऐसी स्थिति में स्थियों का परिवार एवं समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा होगा।

(3) भोजन – हड़प्पा निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों तथा जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे। वे गेहूं, जौ, चना, दाल, तिल, बाजरा, चावल आदि का सेवन करते थे। वे मांस, मछली तथा अण्डों का भी सेवन करते थे। वे भेड़, बकरी, सूअर, भैंस, हिरण, कछुआ, घड़ियाल आदि के मांस का सेवन करते थे। वे मछली का भी सेवन करते थे।

(4) वेशभूषा हड़प्पावासी सूती तथा ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे। पुरुष प्रायः धोती तथा शाल का प्रयोग करते थे। स्त्रियाँ प्रायः घाघरे की तरह एक पेरेदार वस्त्र का प्रयोग करती थीं।

(5) आभूषण- हड़प्पा के स्वी और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। स्वी और पुरुष दोनों ही अंगूठी, कंगन, हार, भुजबन्द, कड़े आदि आभूषण पहनते थे आभूषण सोने, चाँदी, तांबे, काँसे, हाथीदाँत, मनकों तथा विविध बहुमूल्य पत्थरों के बने होते थे।

(6) सौन्दर्य प्रसाधन-स्विय बड़ी शृंगारप्रिय थीं तथा वे दर्पण, कंधी, काजल, सुरमा सिन्दूर, इत्र, पाउडर, लिपस्टिक आदि का प्रयोग करती थीं।

(7) आमोद-प्रमोद के साधन-शिकार करना, शतरंज खेलना, संगीत-नृत्य में भाग लेना, जुआ खेलना, पशु- पक्षियों की लड़ाइयाँ आदि हड़प्पावासियों के मनोरंजन के साधन थे। अनेक प्रकार के खिलौने बच्चों के मनोरंजन के साधन थे।

(8) मृतक संस्कार हड़प्पा निवासी अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार तीन प्रकार से करते थे –

  • पूर्णं समाधि – इसके अन्तर्गत शव को जमीन में गाड़ दिया जाता था। शव के साथ मिट्टी के बर्तन तथा आभूषण आदि वस्तुएँ भी रख दी जाती थीं। कुछ कनों में मृदभाण्ड तथा आभूषण मिले हैं। कुछ शवों के साथ शंख के छल्ले, जैस्पर (एक प्रकार का उपरत्न) के मनके तथा सूक्ष्म मनकों से बने आभूषण, ताँबे के दर्पण भी रख दिए जाते थे।
  • दाह-कर्म- इसमें शव को जला दिया जाता था तथा उसकी भस्म को मटके में डाल कर दबा दिया जाता था।
  • आंशिक समाधि इसमें शव को पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था और शव के बचे हुए भाग को जमीन में गाड़ दिया जाता था।

प्रश्न 20.
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति की विवेचना कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक जीवन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति (हड़प्पा के लोगों का धार्मिक जीवन) हड़प्पा के लोगों के धार्मिक जीवन का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) मातृदेवी की उपासना- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्द्रदड़ो आदि स्थानों से मिट्टी की बनी हुई नारी मूर्तियाँ मिली हैं। इन्हें मातृदेवी की मूर्तियाँ माना गया है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(2) शिव की उपासना हड़प्पा की खुदाई में एक मुहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति अंकित है। यह देव पुरुष योगासन में बैठा है। इस देवता के तीन मुख और दो सौंग हैं। उसे एक हाथी, एक व्याघ्र एक भैंसा तथा एक गैंडा से घिरा हुआ दिखाया गया है। आसन के नीचे हिरण अंकित है, इसे ‘आद्य शिव’ अर्थात् हिन्दू के प्रमुख देवताओं में से एक का आरम्भिक रूप की संज्ञा दी गई है।

(3) लिंग पूजा- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से हमें पत्थर, फॉन्स, सीप आदि से बने हुए छोटे-बड़े आकार के लिंग मिले हैं शिव के प्रतीक होने के कारण ये लिंग पवित्र समझे जाते थे तथा इनकी पूजा की जाती थी।

(4) योनि-पूजा – हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में बहुत से छाले मिले हैं। पुरातत्वविद जॉन मार्शल इन छल्लों को योनि का प्रतीक मानते हैं उनका मत है कि हड़प्पा सभ्यता में योनि-पूजा का भी प्रचलन था।

(5) पशु-पूजा – हड़प्पा से प्राप्त मुहरों पर बैल, भैंस, भैंसे, हाथी, गैंडा आदि के चित्र मिले हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा निवासी बैल, भैंस, भैंसे, हाथी, गैंडे आदि की उपासना करते थे। हड़प्पावासी नाग की भी पूजा करते थे।

(6) वृक्ष-पूजा मुहरों पर पीपल के वृक्ष के चित्र पर्याप्त मात्रा में अंकित हुए मिले हैं। हड़प्पावासी पीपल, बबूल, तुलसी, खजूर, नीम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे।

(7) अग्नि वेदिकाएँ- कालीबंगा, लोथल, बणावली और राखीगढ़ी की खुदाई से हमें अनेक अग्निवेदिकाएँ मिली हैं।

(8) जल-पूजा – हड़प्पावासियों को पवित्र स्नान तथा जल पूजा में गहरा विश्वास था।

(9) प्रतीक पूजा हड़या से प्राप्त मुहरों पर स्वस्तिक, चक्र, स्तम्भ आदि के चित्र मिले हैं। ये सम्भवत: मंगल- चिह्न थे। सम्भवतः इनका कुछ धार्मिक महत्व था।

(10) जादू-टोने में विश्वास हड़प्पावासी भूत-प्रेत आदि में विश्वास करते थे तथा ये लोग पशु बलि में भी विश्वास करते थे।

प्रश्न 21.
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताएँ:
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) मूर्तिकला – हड़प्पावासी मूर्तिकला में बड़े निपुण थें। मूर्तियाँ मिट्टी, पत्थर, सोना, चाँदी, पीतल, तांबे, कांस्य आदि की बनाई जाती थीं हड़प्पा से प्राप्त पत्थर की दो मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त काँसे की बनी हुई एक नर्तकी की मूर्ति अत्यन्त सुन्दर और सजीव है। इस मूर्ति में नारी अंगों का न्यास सुन्दर रूप से हुआ है।

(2) मुहर निर्माण कला-हड़प्पाई मुहर सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई गई इन मुहरों पर सामान्य रूप से जानवरों के चित्र तथा हड़प्पा लिपि में लेख मिलते हैं। इन मुहरों का प्रयोग पत्र अथवा पार्सल पर छाप लगाने के लिए किया जाता था। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा लोथल से विशाल संख्या में मुहरें मिली हैं। अधिकांश मुहरें सेलखड़ी पत्थर से बनी हुई हैं। कुछ मुहरें फयॉन्स (काँचली मिट्टी), गोमेद, चर्ट और मिट्टी की भी हैं। अनेक मुहरों पर हाथी, व्याघ्र गैंडे तथा कूबड़दार बैल आदि का अंकन मिलता है।

(3) चित्रकला खुदाई में अनेक बर्तन तथा मुहरें मिली हैं जिन पर चित्र अंकित हैं। ये चित्र बड़े सुन्दर और सजीव हैं। इनमें सांड तथा बैल के चित्र विशेष रूप से बड़े आकर्षक हैं।

(4) मिट्टी के बर्तन बनाने की कला-मिट्टी के बर्तन कुम्हार के चाक पर बनाए जाते थे तथा उन्हें भट्टियों पर पकाया जाता था।

(5) धातुकला हड़प्पावासी सोना, चाँदी आदि के सुन्दर आभूषण बनाते थे ये लोग धातुओं की मूर्तियाँ भी बनाते थे। धातुओं के बर्तनों पर नक्काशी भी की जाती थी।

(6) लेखन कला – सामान्यतः हड़प्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है जो सम्भवतः मालिक के नाम व पदवी को दर्शाता है। अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं, सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं। यह लिपि रहस्यमय बनी हुई है क्योंकि यह आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

विद्वानों के अनुसार निश्चित रूप से हड़प्या लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है- 400 के बीच ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाव से बायीं ओर लिखी जाती थी क्योंकि कुछ मुहरों पर दायीं ओर चौड़ा अन्तराल है और बायीं ओर यह संकुचित है जिससे जान पड़ता है कि लिखने वाले व्यक्ति ने दायीं ओर से लिखना शुरू किया और बाद में बायीं ओर स्थान कम पड़ गया।

प्रश्न 22.
1800 ई. तक हड़प्पाई सभ्यता का अन्त किन कारणों से हुआ? उल्लेख कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण विभिन्न विद्वानों और पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन के निम्नलिखित कारण बताए हैं –
(1) जलवायु परिवर्तन कुछ विद्वानों का मत है कि सिन्धु नदी के मार्ग बदलने से अनेक बस्तियाँ उजड़ गई और लोग बर्बाद हो गए।

(2) पर्यावरण का सूखा होना – ताँबे तथा काँसे के उत्पादन के लिए ईंट पकाने के लिए तथा अन्य कार्यों के लिए हड़प्पा निवासी बहुत अधिक लकड़ी जलाते थे, जिससे आस-पास के क्षेत्र के जंगल तथा वन नष्ट हो गए और भूमि में नमी की कमी हो गई।

(3) बाड़ों का प्रकोप कुछ विद्वानों के अनुसार सिन्धु नदी की बाड़ें इस सभ्यता के विनाश के लिए उत्तरदायी थीं।

(4) भूकम्प कुछ इतिहासकारों का मत है कि सम्भवतः किसी शक्तिशाली भूकम्प के द्वारा हड़प्पा सभ्यता का विनाश हुआ होगा।

(5) संक्रामक रोग-कुछ विद्वानों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता का विनाश मलेरिया अथवा किसी अन्य संक्रामक रोग के बड़े पैमाने पर फैलने से हुआ होगा।

(6) प्रशासनिक शिथिलता कुछ विद्वानों का विचार है कि शासक का अपने अधिकारियों पर नियन्त्रण नहीं रहा होगा ऐसा प्रतीत होता है कि एक सुदृढ़ एकीकरण के अभाव में सम्भवतः हड़प्पाई सभ्यता का अंत हो गया होगा।

(7) हड़प्पा के नगरों का समुद्र तट से दूर होना- डेल्स के अनुसार अनेक कारणों से हड़प्पा के अनेक नगर समुद्र तट से दूर होते चले गए। परिणामस्वरूप हड़प्पा सभ्यता के नगरों के व्यापार की प्रगति अवरुद्ध हो गई और उनकी सम्पन्नता नष्ट होती चली गई।

(8) आर्द्रता की कमी घोष के अनुसार कुछ स्थानों पर आर्द्रता की कमी तथा भूमि की शुष्कता के कारण भी हड़प्पा सभ्यता का अन्त हुआ।

(9) नदियों का दिशा परिवर्तन-डेल्स के अनुसार घग्घर तथा उसकी सहायक नदियों का दिशा परिवर्तन उस क्षेत्र में संस्कृति के विनाश का प्रमुख कारण रहा होगा।

(10) विदेशी आक्रमण कुछ विद्वानों का विचार है कि विदेशी आक्रमणकारियों ने हड़प्पा प्रदेश पर आक्रमण करके अपना अधिकार कर लिया होगा। सम्भवतः ये आक्रमणकारी आर्य लोग थे।

प्रश्न 23.
हड़प्पा सभ्यता के अंत के बारे में एक लेख लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का अंत:
(1) विकसित हड़प्पा स्थलों का त्याग उपलब्ध साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि लगभग 1800 ई. पूर्व तक चोलिस्तान जैसे क्षेत्रों में अधिकांश विकसित हड़प्पा- स्थलों को त्याग दिया गया था। दूसरी ओर गुजरात, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नयी बस्तियों में आबादी में वृद्धि होने लगी थी।

(2) भौतिक संस्कृति में परिवर्तन विद्वानों के अनुसार उत्तर हड़प्पा के क्षेत्र 1900 ई.पूर्व के पश्चात् भी अस्तित्व में रहे कुछ चुने हुए हड़प्पा स्थलों की भौतिक संस्कृति में बदलाव आया था जैसे हड़प्पा सभ्यता की विशिष्ट पुरावस्तुओं-बायें, मुहरों तथा विशिष्ट मनकों का समाप्त हो जाना लेखन, लम्बी दूरी का व्यापार तथा शिल्प विशेषज्ञता भी समाप्त हो गई। प्रायः थोड़े सामान के निर्माण के लिए थोड़ा ही माल प्रयुक्त किया जाता था।

इसके अतिरिक्त भवन निर्माण की तकनीकों का अन्त हुआ और बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण अब बन्द हो गया। इस प्रकार पुरावस्तुएँ तथा बस्तियाँ इन संस्कृतियों में एक ग्रामीण जीवन शैली को उजागर करती हैं। इन संस्कृतियों को ‘उत्तर हड़प्पा’ अथवा ‘अनुवर्ती संस्कृतियों’ की संज्ञा दी गई।

(3) हड़प्पा संस्कृति के अन्त होने के कारण विद्वानों के अनुसार हड़प्पा संस्कृति के अन्त होने के सम्भावित कारण निम्नलिखित थे-

  • जलवायु परिवर्तन- सिन्धु नदी के मार्ग बदलने से ‘अनेक बस्तियाँ उजड़ गई तथा हड़प्पा संस्कृति का अन्त हो गया।
  • वनों की कटाई वनों की कटाई से हड़प्पा सभ्यता के क्षेत्र के जंगल तथा वन नष्ट हो गए और भूमि में नमी की कमी हो गई। भी
  • अत्यधिक बाढ़-सिन्धु नदी की अत्यधिक बाड़ें हड़प्पा की सभ्यता के अन्त के लिए उत्तरदायी थीं।
  • नदियों का मार्ग परिवर्तन कुछ विद्वानों के अनुसार घग्घर तथा उसकी सहायक नदियों का मार्ग परिवर्तन उस क्षेत्र में सभ्यता के विनाश का एक प्रमुख कारण था।
  • सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्वों का अभाव- कुछ विद्वानों का मत है कि सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्वों के अभाव मैं हड़प्पा सभ्यता का अन्त हो गया था।

 

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

Jharkhand Board Class 12 History शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 226 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 1.
पता लगाने की कोशिश कीजिए कि आप जिस राज्य में रहते हैं, क्या वह मुगल साम्राज्य का भाग था ? क्या साम्राज्य स्थापित होने के परिणामस्वरूप उस क्षेत्र में किसी तरह के परिवर्तन हुए थे ?
उत्तर:
मुगल सम्राटों ने अपने साम्राज्य को अनेक प्रान्तों में विभाजित किया था। मुगल सम्राट अकबर के समय में मुगल साम्राज्य 15 प्रान्तों में विभक्त था जिनमें पंजाब, बंगाल, गुजरात, राजस्थान, कश्मीर, खानदेश आदि सम्मिलित थे। राजस्थान भी मुगल साम्राज्य का एक भाग था। मुगल साम्राज्य स्थापित होने के कारण राजस्थान के प्रशासन पर भी काफी प्रभाव पड़ा। राजस्थान के अनेक राजपूत – नरेशों को उच्च पदवियाँ प्राप्त हुई। औरंगजेब ने जयसिंह और जसवन्तसिंह को ‘मिर्जा’ की उपाधि प्रदान की।

पृष्ठ संख्या 228 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 2.
आज तैयार होने वाली पुस्तकें किन मायनों में मुगल इतिवृत्तों की रचना के तरीकों से भिन्न अथवा समान हैं ?
उत्तर:
(1) मुगल इतिवृत्तों की रचना का उद्देश्य निरंकुश और प्रबुद्ध मुगल सम्राटों की प्रशंसा करना तथा मुगल साम्राज्य को एक उत्कृष्ट साम्राज्य के रूप में दर्शाना है, परन्तु वर्तमान पुस्तकों के लेखकों का ऐसा उद्देश्य नहीं है।

(2) मुगल इतिवृत्तों के लेखक दरबारी इतिहासकार थे जो मुगल सम्राटों के दृष्टिकोणों को ध्यान में रखकर इतिवृत्त लिखते थे। परन्तु वर्तमान पुस्तकों के लेखक लोकतान्त्रिक विचारधारा के समर्थक हैं। ये रचनाएँ निष्पक्ष रूप से लिखी गई हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

पृष्ठ संख्या 229

प्रश्न 3.
अबुल फजल चित्रकला को महत्त्वपूर्ण क्यों मानता था? वह इस कला को वैध कैसे ठहराता था ?
उत्तर:
अबुल फजल ने चित्रकारी का एक ‘जादुई कला’ के रूप में वर्णन किया है। उसकी राय में यह कला किसी भी निर्जीव वस्तु को भी इस रूप में प्रस्तुत कर सकती है कि उसमें जीवन हो। अबुल फजल के अनुसार चित्रकला न केवल किसी वस्तु के सौन्दर्य को बढ़ावा देने वाली, बल्कि वह लिखित माध्यम से राजा और राजा की भक्ति के विषय में जो बात कही न जा सकी हों, ऐसे विचारों के सम्प्रेषण का भी एक शक्तिशाली माध्यम थी। ब्यौरे की सूक्ष्मता, परिपूर्णता और प्रस्तुतीकरण की निर्भीकता, जो चित्रों में दिखाई पड़ती है, वह अतुलनीय है। यहाँ तक कि निर्जीव वस्तुएँ भी प्राणवान प्रतीत होती हैं अबुल फसल का कहना था कि कलाकार के पास खुदा को पहचानने का अद्वितीय तरीका है। चूँकि कहीं-न-कहीं उसे यह महसूस होता है कि खुदा की रचना को वह जीवन नहीं दे सकता।

पृष्ठ संख्या 229

प्रश्न 4.
इस लघुचित्र में (चित्र 9.4) चित्रित मुगल पांडुलिपि की रचना में संलग्न अलग-अलग कार्यों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
पृष्ठ संख्या 229 के चित्र 94 को ध्यान से देखने पर व्यक्ति निम्न कार्यों में संलग्न दिखाई देते हैं –

  • पृष्ठों को व्यवस्थित करता व्यक्ति,
  • पृष्ठों को पढ़ता हुआ एक व्यक्ति,
  • एक दूसरे व्यक्ति को बोलकर लिखवाता एक व्यक्ति,
  • अपने वृत्तान्त लिखवाता एक व्यक्ति, (s) दुपट्टे से हवा करता एक व्यक्ति,
  • कार्मिकों की सेवा में खड़े कुछ व्यक्ति।

पृष्ठ संख्या 230 चर्चा कीजिए

प्रश्न 5.
चित्रकार के साहित्यिक और कलात्मक रचना प्रदर्शन की तुलना अबुल फजल की साहित्यिक और कलात्मक रचना-शक्ति से कीजिए।
उत्तर:
चित्र 94 की तुलना स्रोत 1 से करने पर निम्नलिखित विशेषताएँ दिखाई देती हैं-

  • पुस्तक लेखन में अनेक व्यक्ति कार्यरत हैं। जिनमें कुल व्यक्तियों की संख्या 8 है और 4 सेवक हैं।
  • अबुल फजल ने स्रोत-1 में निरीक्षक तथा लिपिकों की बात कही है जो चित्र 94 में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है
  • अबुल फजल ने उस समय की चित्रकारी को अत्यधिक सजीव कहा है। यह सच भी है क्योंकि चित्र 94 सजीवता के अत्यधिक समीप है।
  • अबुल फजल ने चित्रकारों की सूक्ष्मता के लिए भी प्रशंसा की है। चित्र 94 को देखने से स्पष्ट होता है कि यहाँ दरवाजे, खम्भों तथा मेहराबों पर सुन्दर तथा अतिसूक्ष्म नक्काशी का कार्य किया है।
  • उपर्युक्त के अतिरिक्त अबुल फजल ने उस समय के चित्रकारों के कार्य को परिपूर्ण तथा प्रस्तुतीकरण में उच्चकोटि का माना है। चित्र 94 को देखने से अबुल फजल की यह बात भी पूर्ण रूप से सत्य हो जाती है।

पृष्ठ संख्या 233

प्रश्न 6.
यह चित्र पिता-पुत्र के बीच के सम्बन्ध को कैसे चित्रित करता है? आपको क्यों लगता है कि मुगल कलाकारों ने निरन्तर बादशाहों को गहरी अथवा फीकी पृष्ठभूमि के साथ चित्रित किया है? इस चित्र में प्रकाश के कौनसे स्रोत हैं?
उत्तर:

  • यह चित्र पिता-पुत्र के मध्य आत्मीय सम्बन्धों को दर्शा रहा है।
  • मुगल चित्रकारों ने बादशाहों को गहरी तथा फीकी पृष्ठभूमि में दिखाया है क्योंकि इससे बादशाहों की तस्वीरें साफ तथा स्पष्ट दिखाई देती हैं।
  • इस चित्र में अकबर तथा जहाँगीर के पीछे सूरज को प्रकाश के स्रोत के रूप में दिखाया गया है।

पृष्ठ संख्या 235 चर्चा कीजिए

प्रश्न 7.
मुगल साम्राज्य में न्याय को राजतन्त्र का इतना महत्त्वपूर्ण सद्गुण क्यों माना जाता था?
उत्तर:
मुगल साम्राज्य में न्याय को राजतन्त्र का सर्वोत्तम सद्गुण माना जाता था अबुल फजल ने लिखा है कि बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्वों की रक्षा करता है –

  • जीवन (जन)
  • धन (माल)
  • सम्मान (नामस)
  • विश्वास (दीन)।

इसके बदले में वह आज्ञापालन तथा संसाधनों में हिस्से की माँग करता है। केवल न्यायपूर्ण सम्प्रभु ही शक्ति और देवी मार्गदर्शन के साथ इस अनुबन्ध का सम्मान कर पाते थे। इसी कारण न्याय के विचार के दृश्य रूप में निरूपण के लिए अनेक प्रतीकों की रचना की गई। कलाकारों द्वारा प्रयुक्त सर्वाधिक लोकप्रिय प्रतीकों में से एक था -एक-दूसरे के साथ चिपटकर। शान्तिपूर्वक बैठे हुए शेर और बकरी अथवा शेर और गाय इसका उद्देश्य राज्य को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में दर्शाना था, जहाँ दुर्बल तथा सबल सभी परस्पर सद्भाव से रह सकते 7 थे। गद्दी पर बैठने के बाद जहाँगीर ने जो पहला आदेश दिया वह न्याय की जंजीर को लगाने का था। कोई भी उत्पीड़ित व्यक्ति इस जंजीर को हिलाकर बादशाह के सामने अपनी फरियाद प्रस्तुत कर सकता था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

पृष्ठ संख्या 235

प्रश्न 8.
इस चित्र (चित्र 9.7) के प्रतीकों की पहचान कर उनकी व्याख्या कीजिए और इस चित्र का सार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:

  • यह चित्र जहाँगीर के प्रिय चित्रकार अबुल हसन ने बनाया है।
  • इस चित्र में जहाँगीर को दखितारूपी मानवीय आकृति को मारते हुए दिखाया गया है।
  • यहाँ देवदूत जहाँगीर को उसका मुकुट प्रदान कर रहे हैं। चित्र में देवदूत जहाँगीर को न्याय के अधिकार के रूप में अस्त्र प्रदान कर रहा है।
  • चित्र में एक प्लेटफार्म दिखाया गया है जिस पर जहाँगीर की न्याय की जंजीर बंधी हुई है तथा इसको आकाश में एक देवदूत पकड़े हुए है।
  • जहाँगीर के शासन काल को न्यायप्रिय शासनकाल के रूप में दिखाया गया है, जहाँ शेर तथा बकरी एक साथ रह सकते हैं। यहाँ शेर का सम्बन्ध सम्पन्न तथा सबल वर्ग से है तो बकरी का सम्बन्ध दुर्बल वर्ग से है। चित्र का सार चित्र में राजा के दैवीय रूप को पूर्ण रूप से स्थापित किया गया है तथा उसकी न्याय व्यवस्था को अत्यधिक न्यायसंगत तथा देवताओं को प्रिय के रूप में दर्शाया गया है।

पृष्ठ संख्या 237

प्रश्न 9.
मुगल सम्राट अकबर के दरबार में होने वाली गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • दरबार लगाते समय एक विशाल ढोल पीटा जाता था और साथ-साथ अल्लाह का गुणगान भी किया जाता था।
  • बादशाह के पुत्र, पौत्र, दरबारी तथा सभी लोग दरबार में उपस्थित होते थे जिन्हें दरबार में प्रवेश की अनुमति थी।
  • वे बादशाह का अभिवादन करके अपने स्थान पर खड़े हो जाते थे।
  • प्रसिद्ध विद्वान तथा विशिष्ट कलाओं में निपुण लोग बादशाह के प्रति आदर व्यक्त करते थे।
  • न्याय अधिकारी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते थे।
  • सम्राट अपनी सूझ-बूझ के अनुसार आदेश देते थे तथा मामलों को सन्तोषजनक ढंग से निपटाते थे।

पृष्ठ संख्या 240

प्रश्न 10.
चित्र 9.11 (क), 9.11 ( ख ), 9.11 (ग) में आप जो देख रहे हैं उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चित्र 9.11 (क) में दाराशिकोह का विवाह दिखाया गया है। चित्र 9.11 (क) में अभिजात दाराशिकोह के विवाह के अवसर पर विभिन्न उपहार अपने साथ ला रहे हैं। चित्र 9.11 (ख) में शाहजहां की उपस्थिति में मौलवी तथा काजी विवाह सम्पन्न करा रहे हैं। चित्र 9.11 (ग) में विवाह के अवसर पर महिलाएँ अपना नृत्य प्रस्तुत कर रही हैं। इसी चित्र में विभिन्न गायक तथा संगीतकार अपना कौशल दिखा रहे हैं।

पृष्ठ संख्या 241 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 11.
क्या मुगलों से जुड़े कुछ रिवाजों और | व्यवहारों का अनुपालन आज के राजनेता करते हैं?
उत्तर:
(1) आज के राजनेता भी मुगलों की भाँति अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह बड़ी धूम-धाम से करते हैं और इन अवसरों पर विपुल धन खर्च करते हैं।
(2) आज के राजनेता भी अपने निवास स्थानों पर होली, दीवाली ईद आदि अनेक त्यौहार धूम-धाम से मनाते हैं। इन अवसरों पर विभिन्न समुदायों और सम्प्रदायों के लोग वहाँ एकत्रित होते हैं और एक-दूसरे को बधाई देते हैं।
(3) योग्य व्यक्तियों को आज भी अनेक पुरस्कार, पदवियाँ आदि दी जाती हैं योग्य व्यक्तियों को भारतरत्न, पद्म विभूषण, पद्मश्री आदि अनेक पदवियाँ दी जाती हैं। खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार, खेल रत्न पुरस्कार आदि अनेक प्रकार के पुरस्कार दिए जाते हैं। सैनिकों को विशिष्ट सैनिक सेवाओं के कारण अशोक चक्र, महावीर चक्र आदि अनेक पुरस्कार दिए जाते हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

पृष्ठ संख्या 245

प्रश्न 12.
फादर मान्सेरेट की टिप्पणी मुगल बादशाह अकबर व उनके अधिकारियों के बीच सम्बन्ध के बारे में क्या संकेत देती है?
उत्तर:
फादर मान्सेरेट की टिप्पणी मुगल बादशाह अकबर व उनके अधिकारियों के बीच सम्बन्ध के बारे में यह संकेत देती है कि अकबर निरकुंशतापूर्वक शासन करता था। वह लिखता है कि सत्ता के निर्भीकतापूर्ण उपयोग से उच्च अभिजातों को नियन्त्रित करने के लिए सम्राट उन्हें अपने दरबार मैं बुलाता था और उन्हें निरंकुश आदेश देता था जैसे कि वे उसके दास हों। इन आदेशों का पालन उन अभिजातों के उच्च पदों और हैसियत से मेल नहीं खाता था। वास्तव में फादर मान्सेरेट का दृष्टिकोण जातीय अभिमान का प्रतीक है। अन्य साक्ष्यों से प्रतीत होता है कि अकबर अभिजात वर्ग के लोगों के साथ उदारतापूर्ण तथा सम्मानपूर्ण व्यवहार करता था । अभिजात वर्ग के लोग भी बादशाह के प्रति स्वामिभक्ति रखते थे तथा उसके आदेशों का सहर्ष पालन करते थे।

पृष्ठ संख्या 250

प्रश्न 13.
वे कौनसे मुद्दे और सरोकार थे जिन्होंने मुगल शासकों के उनके समसामयिकों के साथ सम्बन्धों को निर्धारित किया ?
उत्तर:
(1) मुगल सम्राट सामरिक महत्त्व के प्रदेशों विशेष कर काबुल और कन्धार पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे। दूसरी ओर ईरान के शासक भी कन्धार पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहते थे। अन्त में 1622 ई. में ईरानी सेना ने कन्धार पर आक्रमण किया और मुगल सेना को पराजित कर कन्धार पर अधिकार कर लिया।
(2) मुगल सम्राट आटोमन नियन्त्रण वाले क्षेत्रों में व्यापारियों व तीर्थयात्रियों के स्वतन्त्र आवागमन को बनाये रखना चाहते थे।
(3) इसी प्रकार जेसुइट धर्म प्रचारकों का सम्मान करता था। सार्वजनिक सभाओं में जेसुइट लोगों की अकबर के सिंहासन के निकट स्थान दिया जाता था। इन्हीं जेसुइट धर्म प्रचारकों, यात्रियों आदि के विवरणों से यूरोप को भारत के बारे में जानकारी प्राप्त हुई

Jharkhand Board Class 12 History शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार  Text Book Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 1.
मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। थीं?
अथवा
मुगल दरबार में पाण्डुलिपियाँ कैसे तैयार की जाती
अथवा
मुगलों के शासनकाल में पाण्डुलिपियों की रचना से जुड़े विविध कार्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मुगल दरबार में बांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया मुगल काल में पांडुलिपि रचना का मुख्य केन्द्र शाही किताबखाना था। किताबखाना एक लिपिपर था, जहाँ बादशाह की पांडुलिपियों का संग्रह रखा जाता था तथा नई पांडुलिपियों की रचना की जाती थी पांडुलिपि की रचना में विविध प्रकार के कार्य करने वाले लोग शामिल होते –

  • पांडुलिपि के पन्ने तैयार करने के लिए कागज बनाने वाले
  • पाठ की नकल तैयार करने हेतु सुलेखक
  • पृष्ठों को चमकाने के लिए कोफ्तगर
  • पाठ से दृश्यों को चित्रित करने के लिए चित्रकार
  • पन्नों को इकट्ठा करके उसे अलंकृत आवरण में बाँधने के लिए जिल्दसाज तैयार पांडुलिपि को एक बहुमूल्य वस्तु तथा बौद्धिक सम्पदा तथा सौन्दर्यपूर्ण कार्य के रूप में देखा जाता था। इस प्रकार के सौन्दर्य को उजागर करके इन पांडुलिपियों के संरक्षक मुगल सम्राट अपनी शक्ति को दर्शाते थे। मुगल सम्राट पाण्डुलिपि तैयार करने वालों को विभिन्न पदवियों तथा पुरस्कार प्रदान करते थे।

प्रश्न 2.
मुगल दरबार से जुड़े दैनिक कर्म और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह से बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित किया होगा?
उत्तर:
(1) राजसिंहासन मुगल शासन की सत्ता का केन्द्र बिन्दु राजसिंहासन था जिसने सम्राट के कार्यों को भौतिक स्वरूप प्रदान किया था।

(2) दरबार में अनुशासन दरबार में किसी भी दरबारी की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि वह बादशाह के कितना निकट और दूर बैठा है। किसी भी दरबारी को शासक द्वारा दिया गया स्थान सम्राट की दृष्टि से उसकी महत्ता का प्रतीक था। सिंहासन पर सम्राट के बैठने के बाद किसी भी दरबारी अतवा व्यक्ति को अपने स्थान से कहीं और जाने की अनुमति नहीं थी।

(3) अभिवादन के तरीके-बादशाह को किए गए अभिवादन के तरीके से पदानुक्रम में उस दरबारी की हैसियत का पता चलता था। अभिवादन का उच्चतम रूप ‘सिजदा या दंडवत लेटना था।

(4) राजनयिक दूतों से सम्बन्धित अभिवादन के तरीके मुगल दरबार में राजनयिक दूतों से सम्बन्धित अभिवादन के तरीके भी निर्धारित थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

(5) झरोखा दर्शन झरोखा दर्शन की प्रथा अकबर शुरू की थी। इसके अनुसार बादशाह अपने दिन की शुरुआत सूर्योदय के समय कुछ व्यक्तिगत धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था।

(6) दीवान-ए-आम व दीवान-ए-खास बादशाह सरकारी कार्यों के संचालन के लिए दीवान-ए-आम में आता था। इसके बाद बादशाह दीवान-ए-खास में गोपनीय मुद्दों पर चर्चा करता था।

(7) विशिष्ट अवसर बादशाह सिंहासनारोहण की वर्षगांठ, ईद, शब-ए-बारात तथा होली आदि त्यौहार अपने दरबार में धूम-धाम से मनाता था।

प्रश्न 3.
मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
मुगल राजघरानों में महिलाओं की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों की भूमिका-
(1) वित्तीय संसाधनों पर नियन्त्रण- जहाँगीर के शासन काल में नूरजहाँ ने शासन के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। नूरजहाँ के बाद मुगल रानियों और राजकुमारियों ने महत्त्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों पर नियन्त्रण रखना शुरू कर दिया। शाहजहाँ की पुत्रियों, जहाँआरा और रोशनआरा को ऊँचे शाही मनसबदारों के समान वार्षिक आय होती थी इसके अतिरिक्त, जहाँआरा को सूरत के बंदरगाह नगर से राजस्व प्राप्त होता था।

(2) निर्माण कार्य मुगल परिवार की महत्त्वपूर्ण महिलाओं ने इमारतों एवं बागों का निर्माण करवाया। जहाँआरा ने शाहजहाँ की नई राजधानी शाहजहाँनाबाद (दिल्ली) की अनेक वास्तुकलात्मक परियोजनाओं में भाग लिया। शाहजहाँनाबाद के मुख्य केन्द्र चाँदनी चौक की रूपरेखा भी जहाँआरा द्वारा बनाई गई थी।

(3) साहित्यिक क्षेत्र में योगदान गुलबदन बेगम द्वारा रचित ‘हुमायूँनामा’ से हमें मुगलों की घरेलू दुनिया की एक झलक मिलती है। गुलबदन ने जो लिखा, वह मुगल बादशाहों की प्रशस्ति नहीं थी। उसने राजाओं और राजकुमारों के बीच चलने वाले संघर्षों तथा तनावों के बारे में भी लिखा। उसने कुछ संघर्षों को सुलझाने में परिवार की वयोवृद्ध स्त्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं के बारे में भी विस्तार से लिखा था।

प्रश्न 4.
वे कौन से मुद्दे थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर क्षेत्रों के प्रति मुगल नीतियों व विचारों को आकार प्रदान किया?
उत्तर:
(1) सफ़ावी तथा कन्धार- मुगल सम्राटों तथा ईरान व तूरान के पड़ोसी देशों के बीच राजनीतिक व राजनयिक सम्बन्ध हिन्दुकुश पर्वत द्वारा निर्धारित सीमाओं के नियन्त्रण पर निर्भर करते थे। कन्धार सफ़ावियों ( ईरानियों) और मुगलों के बीच झगड़े का मुख्य कारण था कन्धार का किला नगर शुरू में हुमायूँ के अधिकार में था 1595 ई. में अकबर ने कन्धार पर पुनः अधिकार कर लिया था। 1613 में जहाँगीर ने ईरान के शासक शाह अब्बास को कहलवाया कि कन्धार को मुगल अधिकार में रहने दिया जाए, परन्तु उसे सफलता नहीं मिली। 1622 में फारसी सेना ने कन्धार पर अधिकार कर लिया।

(2) ऑटोमन साम्राज्य ऑटोमन साम्राज्य के साथ अपने सम्बन्धों में मुगल बादशाह प्रायः धर्म एवं वाणिज्य के मुद्दों को जोड़ने का प्रयास करते थे। वे विभिन्न वस्तुओं की बिक्री से अर्जित आय को उस क्षेत्र के धर्मस्थलों व फकीरों में दान में बाँट दिया करते थे परन्तु जब औरंगजेब को अरब भेजे जाने वाले धन के दुरुपयोग का पता चला, तो उसने भारत में उसके बाँटे जाने पर बल दिया।

(3) मुगल दरबार में जेसुइट धर्मप्रचारक-मुगल दरबार के यूरोपीय विवरणों में जेसुइट वृतांत सबसे पुराने वृतान्त हैं। 15वीं शताब्दी के अन्त में पुर्तगाली व्यापारियों ने भारत के तटीय नगरों में व्यापारिक केन्द्रों को स्थापित किया। अकबर के निमन्त्रण पर अनेक जेसुइट पादरी दरबार में आए। इन जेसुइट लोगों ने ईसाई धर्म के विषय में अकबर से बात की और उसे काफी प्रभावित किया। अकबर इन जेसुइट पादरियों का बड़ा सम्मान करता था।

प्रश्न 5.
मुगल प्रान्तीय शासन के मुख्य अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। केन्द्र किस तरह से प्रान्तों पर नियन्त्रण रखता था?
उत्तर:
प्रशासन की सुविधा के लिए मुगल साम्राज्य को अनेक प्रान्तों (सूबों में बाँटा गया था। प्रान्तीय शासन … का प्रमुख गवर्नर (सूबेदार) होता था, जो सीधा बादशाह को प्रतिवेदन प्रस्तुत करता था प्रान्त के अन्य अधिकारियों में दीवान, बख्शी, काजी तथा सद्र उल्लेखनीय थे दीवान प्रान्त की आय व्यय का विवरण रखता था। बख्शी प्रान्तीय सेना का प्रमुख अधिकारी होता था। सद्र लोगों के नैतिक चरित्र का निरीक्षण करता था तथा काजी प्रान्त का प्रमुख न्यायिक अधिकारी होता था।

सरकार प्रत्येक सूबा कई सरकारों में बँटा हुआ था। प्रायः सरकार की सीमाएँ फौजदार के नीचे आने वाले क्षेत्रों की सीमाओं से मेल खाती थीं। इन प्रदेशों में फौजदारों को विशाल घुड़सवार सेना तथा लोपचियों के साथ रखा जाता था। परगना प्रत्येक सरकार को अनेक परगनों में बाँटा गया था। परगना (उप-जिला) स्तर पर स्थानीय प्रशासन की देख-रेख तीन अर्थ वंशानुगत अधिकारियों द्वारा की जाती थी ये अधिकारी थे –

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

  • कानूनगो ( राजस्व आलेख रखने वाला)
  • चौधरी (राजस्व संग्रह का प्रभारी) तथा
  • काजी (न्याय करने वाला अधिकारी) थे।

लिपिकों का सहायक समूह-शासन के प्रत्येक विभाग के पास लिपिकों का एक बड़ा सहायक समूह लेखाकार, लेखा परीक्षक, सन्देशवाहक और अन्य कर्मचारी होते थे ये मानकीकृत नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार कार्य करते थे। मुगल इतिहासकारों के अनुसार ग्राम स्तर तक के सम्पूर्ण प्रशासनिक तन्त्र पर बादशाह तथा उसके दरबार का नियन्त्रण होता था।

निम्नलिखित प्रश्नों पर लघु निबन्ध लिखिए। (लगभग 250- 300 शब्दों में उत्तर)

प्रश्न 6.
उदाहरण सहित मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षण-मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षणों का वर्णन अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) दरबारी इतिहासकारों को इतिहास-लेखन का कार्यं सौंपना मुगल सम्राटों ने दरबारी इतिहासकारों को इतिहास-लेखन का कार्य सौंपा। इन विवरणों में बादशाहों के समय की घटनाओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया। इसके अतिरिक्त इन इतिहास-लेखकों ने बादशाहों को अपने प्रदेशों के शासन में सहायता के लिए उपमहाद्वीप के अन्य प्रदेशों से महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ भी एकत्रित कीं।

(2) कालक्रमानुसार घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करना मुगल इतिवृत्त घटनाओं का कालक्रम के अनुसार विवरण देते थे। मुगलों का इतिहास लिखने के इच्छुक विद्वानों के लिए ये इतिवृत्त अनिवार्य स्रोत हैं। ये एक ओर तो मुगल साम्राज्य की संस्थाओं के बारे में जानकारी देते थे तो दूसरी ओर उन उद्देश्यों का प्रसार करते थे, जिन्हें मुगल- सम्राट अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे।

(3) मुगल साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण स्रोत-मुगल सम्राटों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। ये इतिवृत्त मुगल- साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले सभी लोगों के सामने एक प्रबुद्ध राज्य के रूप में दर्शाने के उद्देश्य से लिखे गए थे। इतिवृत्तों के माध्यम से मुगल सम्राट यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए उनके शासन के विवरण उपलब्ध रहें।

(4) दरबारी लेखक- मुगल इतिवृत्त मुगल दरबारियों द्वारा लिखे गए थे। अकबर, शाहजहाँ और आलमगीर के शासनकाल की घटनाओं पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक ‘अंकबरनामा’, ‘शाहजहाँनामा’, ‘आलमगीरनामा’ यह संकेत देते हैं कि इनके लेखकों की दृष्टि में साम्राज्य एवं दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था।

(5) फारसी भाषा का प्रयोग मुगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे। ‘अकबरनामा’ जैसे मुगल इतिहास फारसी में लिखे गए थे, जबकि बाबर के संस्मरणों का ‘बाबरनामा’ के नाम से तुर्की से फारसी में अनुवाद किया गया था। मुगल बादशाहों ने ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद करवाया था।

(6) रंगीन चित्र एक मुगल बादशाह के शासन की घटनाओं का विवरण देने वाले इतिहासों में लिखित पाठ के साथ ही उन घटनाओं का चित्रों के माध्यम से दृश्य रूप में भी वर्णन किया जाता था।

प्रश्न 7.
इस अध्याय में दी गई दृश्य सामग्री किस सीमा तक अबुल फजल द्वारा किये गए ‘तसवीर’ के वर्णन (स्त्रोत 1) से मेल खाती है?
उत्तर:
अबुल फज्जाल द्वारा किए गए ‘तसवीर’ के वर्णन से इस अध्याय में दी गई दश्प-सामश्री का मेलइस अध्याद में दी गई दूर्य सामती मुख्य रूप से रंगीन चित्र हैं। यह दृश्य-सामग्री अयुल फणल द्वारा किए गए ‘ तास्वीर’ के बर्णन से मेल खाती है। (पाठ्य-पुस्तक के पूष्ठ संख्या 229 का अवलोकन करें)

(1) दुश्य-सामग्री का महत्च-सुगल हतिहाखें में रंगीन चिर्त्रों का समावेश किया जाता या। चित्र न केखल किसी पुस्तक के सौन्दर्य में वृद्धि करते थे, बस्कि वे लिखिए माध्यम से राजा और उसकी शक्ति के विषय में जो बातें न कही जा सकी हों, ऐसे बिचारों की अभिव्यक्ति के एक सशक्त माध्यम भी थे। इस अध्याय के चित्ञ 9.14 में चित्रकार रामदास ने फरेहपुर सीकरी में ज्ञाहजादे सलीम के जन्होत्सव का चित्र प्रस्तुज किया है जिससे मुगल दरबार में मनाए जाने वाले उस्सवों के बारे में जानकारी मिलती है। चित्र 9.10 में तुलादान समारोह में ज्ञाहजादे सहुरम को बहुमूल्य धातुओं से तोले जने का स्पष्ट और सजीव चित्रण किया गया है। चित्र 9.6 में जहांगीर द्वारा शाहजादे सुरंम को पगड़ी में लगाई जाने वाली मणी देने का दृश्य अंकित किया गया है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

(2) चित्रकला एक ‘जादुई कला’-इतिहासकार अबुल फरलल ने चित्रकला का एक ‘जाद्दई कला’ के रूप में वर्णन किला है।

(3) मुगल सम्राटों की चित्रकला में रुचि-ये चित्र मुगल सम्राटों की चित्रकला में गहरी रुचि दर्शाते हैं। बे इस कला को अध्ययन और मनोरंजन दोनों का ही साधन मानते थे तध्धा इस कला को हरसम्भव प्रोत्साहन देते थे। मुगल पांदुधििषियों में चिर्धो के अंकन के लिए चित्रकारों। की एक बड़ी संख्या लगाई जाठी थी।

(4) उत्कृष्ट चित्रकारों का उपलब्ध होना-चित्रकारों को प्रेत्साहन दिए जने के परिणामस्वश्र्प उस समय सर्यांिक उत्कृष्ट चित्रकार मिलने लगो घे।

(5) चित्रों की विशेषताएँ-विबरण की सूक्ष्मता, परिपूर्णत या प्रस्तुतीकरण की निर्भीकल जो मुगल-दूतिहासंें के चित्रों में दिखाई पझुती है, वह अतुलनीय थी। यहाँ तक कि निर्जींब वस्तुएँ भी सजीब प्रतीत होती थीं। इस अध्याय के चिन्न संख्या 9.1 में तैमूर बाबर को राजवंशीय मुकुट सीपता दिखाया गया है।

यह चित्र चित्रकार गोवर्धन द्वारा चिशित है। इससे ज्ञात होता है कि मुगल अपने को तैमूरी कहते थे क्योंकि फित पक्ष से वे तुर्की शासक वैमूर के बंझज थे। चिं्र $9.5$ में चितकार अवुल हसन ने जाँाँगीर को दैदीध्यमान वस्ग्रों तथा आभूषणों में अपने पिता अफघर के चित्र को हाथ में लिए दिख्या है। इससे ज्ञात होता है कि 17वीं शताब्दी से मुगल चित्रकारों ने मुगल-रु प्रभामंडल के साथ चित्रित करना शुरू किया था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

प्रश्न 8.
मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण क्या थे? बादशाह के साथ उनके सम्बन्ध किस तरह बने?
अथवा
मुगल अभिजात वर्ग की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण- मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण निम्नलिखित थे –
(1) विभिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समूह-मुगलकाल में अभिजात वर्ग अत्यन्त विस्तृत था। यह अभिजात वर्ग मुगल साम्राज्य का एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ था। अभिजात- वर्ग में भर्ती विभिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समूहों से होती थी। मुगल साम्राज्य की स्थापना के आरम्भिक वर्षों से ही तूरानी और ईरानी अभिजात अकबर की शाही सेवा में उपस्थित थे।

(2) भारतीय मूल के अभिजात 1560 के बाद भारतीय मूल के दो शासकीय समूहों – राजपूतों व भारतीय मुसलमानों (शेखजादाओं ने शाही सेवा में प्रवेश किया। इनमें नियुक्त होने वाला प्रथम व्यक्ति एक राजपूत सरदार आम्बेर का राजा भारमल कछवाहा था। खत्री जाति के टोडरमल को वित्तमंत्री के पद पर नियुक्त किया था।

(3) ईरानी जहाँगीर के शासन में ईरानियों को उच्च पद प्राप्त हुए।

(4) मराठे औरंगजेब ने राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्त किया। मुगल शासन में अधिकारियों के समूह में मराठे भी पर्याप्त संख्या में थे।

(5) ‘जात’ तथा ‘सवार’ मनसबदार सभी सरकारी अधिकारियों के दर्जे और पदों में दो प्रकार के संख्या- विषयक पद होते थे-जात और सवार ‘जात’ मनसबदार के पद और वेतन का सूचक था तथा ‘सवार’ वह सूचित करता था कि उसे सेवा में कितने घुड़सवार रखने होंगे।

(6) अभिजात वर्ग की भूमिका तथा बादशाह के

साथ उनके सम्बन्ध –

  • अभिजात वर्ग के लोग सैन्य अभियानों में अपनी सेनाओं के साथ भाग लेते थे।
  • वे प्रान्तों में साम्राज्य के अधिकारियों के रूप में भी कार्य करते थे।
  • प्रत्येक सैन्य कमांडर घुड़सवारों को भर्ती करता था तथा उन्हें हथियारों से सुसज्जित करता था और प्रशिक्षण देता था।
  • निम्नतम पदों के अधिकारियों को छोड़कर बादशाह स्वयं सभी अधिकारियों के पदों, पदवियों और आधिकारिक नियुक्तियों पर अपना नियन्त्रण रखता था। अकबर ने अपने अभिजात वर्ग के कुछ लोगों को शिष्य (मुरीद) की भाँति मानते हुए उनके साथ आध्यात्मिक सम्बन्ध भी स्थापित किये।
  • अभिजात वर्ग के लोगों के लिए शाही सेवा शक्ति, धन तथा उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक साधन थी।

केन्द्र में दो अन्य महत्त्वपूर्ण मन्त्री थे –

  • दीवान- ए-आला (वित्तमन्त्री) तथा
  • सद्र उस सुदूर (मदद- ए-माश अथवा अनुदान का मन्त्री और स्थानीय न्यायाधीशों अथवा काजियों की नियुक्ति का प्रभारी) ।

(7) तैनात ए रकाब दरबार में नियुक्त तैनात-ए- रकाब’ अभिजातों का एक ऐसा सुरक्षित दल था जिसे किसी भी प्रान्त या सैन्य अभियान में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था। वे दिन-रात बादशाह और उसके घराने की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उठाते थे।

(8) दरबार की सभी कार्यवाहियों का विवरण तैयार करना- अभिजातों और क्षेत्रीय शासकों के प्रतिनिधि (वकील) दरबार की बैठकों (पहर) की तिथि और समय के साथ ‘उच्च दरबार से समाचार’ (अखबारात ए-दरबार- ए-मुअल्ला ) शीर्षक के अन्तर्गत दरबार की सभी कार्यवाहियों का विवरण तैयार करते थे राजाओं और अभिजातों के सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन का इतिहास लिखने के लिए ये सूचनाएँ बहुत उपयोगी होती थीं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

प्रश्न 9.
राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्वों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्व – राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्वों का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) राजा दैवीय प्रकाश का प्रतीक दरबारी इतिहासकारों ने अनेक साक्ष्यों का हवाला देते हुए यह बताया कि मुगल सम्राटों को सीधे ईश्वर से शक्ति प्राप्त हुई थी।

(2) अबुल फजल द्वारा मुगल राजत्व को सर्वोच्च स्थान देना अबुल फजल ने ईश्वरीय प्रकाश को ग्रहण करने वाली चीजों में मुगल राजत्व को सबसे ऊँचे स्थान पर रखा। इस विषय में वह प्रसिद्ध ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के विचारों से प्रभावित था जिन्होंने सर्वप्रथम इस प्रकार का विचार प्रस्तुत किया था।

(3) चित्रकारों द्वारा बादशाहों को प्रभामंडलों के साथ चित्रित करना-सत्रहवीं शताब्दी से मुगल | कलाकारों ने बादशाहों को प्रभामण्डलों के साथ चित्रित करना शुरू कर दिया। ये प्रभामंडल ईश्वर के प्रकाश के प्रतीक थे।

(4) सुलह-ए-कुल एकीकरण का एक स्रोत- मुगल इतिवृत्तों के अनुसार साम्राज्य में हिन्दुओं, जैनों, जरतुश्तियों और मुसलमानों जैसे अनेक भिन्न-भिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समुदायों के लोग रहते थे। बादशाह शान्ति और स्थायित्व के स्रोत के रूप में इन सभी धार्मिक एवं नृजातीय समूहों से ऊपर होता था। वह इनके बीच मध्यस्थता करता था तथा यह सुनिश्चित करता था कि साम्राज्य में न्याय और शान्ति बनी रहे।

(5) सुलह-ए-कुल के आदर्श को लागू करना –
(i) तीर्थयात्रा कर तथा जजिया कर समाप्त करना- सुलह-ए-कुल का आदर्श राज्य नीतियों के द्वारा लागू किया गया। मुगलों के अधीन अभिजात वर्ग एक मिश्रित वर्ग था। उसमें ईरानी तूरानी, अफगानी, राजपूत, दक्खनी सभी शामिल थे। इन्हें दिए गए पद और पुरस्कार पूर्णरूप से राजा के प्रति उनकी सेवा और निष्ठा पर आधारित थे। इसके अतिरिक्त अकबर ने 1563 में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 में जजिया को समाप्त कर दिया क्योंकि ये दोनों कर धार्मिक पक्षपात पर आधारित थे।
(ii) उपासना स्थलों के निर्माण व रख-रखाव के लिए अनुदान देना सभी मुगल सम्राटों ने उपासना स्थलों के निर्माण व रख-रखाव के लिए अनुदान दिए। युद्ध के दौरान जब मन्दिरों को नष्ट कर दिया जाता था तो बाद में उनकी मरम्मत के लिए अनुदान जारी किये जाते थे।
(6) सामाजिक अनुबन्ध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभसुत्ता-अबुल फजल ने प्रभुसत्ता की एक सामाजिक अनुबन्ध के रूप में परिभाषा दी है उसने लिखा है कि बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्यों की रक्षा करता है –

  • जीवन (जन)
  • धन (माल)
  • सम्मान (नामस) तथा
  • विश्वास (दीन) केवल न्यायपूर्ण संप्रभु ही शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के साथ इस अनुबन्ध का सम्मान कर पाते थे।

(7) न्याय के विचार को दृश्य रूप में निरूपण के लिए प्रतीकों की रचना न्याय के विचार के दृश्य रूप में निरूपण के लिए अनेक प्रतीकों की रचना की गई। इसका उद्देश्य राज्य को एक ऐसी संस्था के रूप में दिखाना था जहाँ दुर्बल तथा सबल सभी परस्पर सद्भाव से रह सकते थे।

शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार JAC Class 12 History Notes

→ इतिवृत्त इतिवृत्त घटनाओं का अनवरत कालानुक्रमिक विवरण प्रस्तुत करते हैं। ये इतिवृत्त मुगल राज्य की संस्थाओं के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हैं इनका उद्देश्य उन नीतियों को स्पष्ट करना था जिन्हें मुगल शासक अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे।

→ मुगल शासक और उनका साम्राज्य मुगल की उत्पत्ति ‘मंगोल’ शब्द से हुई है। मुगल राजवंश के शासकों ने स्वयं के लिए यह नाम नहीं चुना था। वे अपने को तैमूरी कहते थे क्योंकि पितृपक्ष से वे तुर्की शासक तिमूर के वंशज थे। पहला मुगल शासक बाबर मातृपक्ष से चंगेज खाँ का सम्बन्धी था बाबर मुगल साम्राज्य का संस्थापक था। 1526 में वह अपने दल की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए क्षेत्रों और संसाधनों की खोज में भारतीय उपमहाद्वीप में आगे की ओर बढ़ा। हुमायूँ ने साम्राज्य की सीमाओं में विस्तार किया, परन्तु शेरशाह सूरी ने उसे पराजित किया। 1555 में उसने सूरों को पराजित कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया, परन्तु 1556 में उसकी मृत्यु हो गई।

→ अकबर और उसके उत्तराधिकारी- अकबर मुगल साम्राज्य का सबसे महान शासक (1556-1605) था। उसने न केवल मुगल साम्राज्य का विस्तार ही किया, बल्कि इसे अपने समय का विशालतम दृढ़तम और सब समृद्ध राज्य बना दिया। अकबर के बाद जहाँगीर ( 1605-1627), शाहजहाँ (1628-1658) और औरंग (1658-1707) के रूप में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्वों वाले तीन बहुत योग्य उत्तराधिकारी। हुए। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल साम्राज्य का विघटन शुरू हो गया। 1857 में इस वंश के अन्तिम शासक बहादुर शाह जफर द्वितीय को अंग्रेजों ने उखाड़ फेंका।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

→ इतिवृत्तों की रचना – मुगल सम्राटों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। ये इतिवृत्त एक प्रबुद्ध राज्य के दर्शन की प्रस्तुति के उद्देश्य से लिखे गए थे। इनका उद्देश्य लोगों को यह भी बताना था कि मुगल विरोधियों का असफल होना निश्चित था। मुगल इतिवृत्तों के लेखक दरबारी ही थे। उन्होंने जो इतिवृत्त लिखे उनके केन्द्रबिन्दु में शासक पर केन्द्रित घटनाएँ, शासक का परिवार, दरबार व अभिजात, युद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ थीं। अकबर, शाहजहाँ और आलमगीर (औरंगजेब) की कहानियों पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक ‘अकबरनामा’, ‘शाहजहाँनामा’, ‘आलमगीरनामा’ यह संकेत करते हैं कि इनके लेखकों की दृष्टि में साम्राज्य व दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था।

→ तुर्की से फारसी की ओर मुगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे। अकबर ने सोच समझकर | फारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाया। फारसी को दरबार की भाषा का उच्च स्थान दिया गया तथा उन लोगों को शक्ति तथा प्रतिष्ठा प्रदान की गई जिनका इस भाषा पर अच्छा नियन्त्रण था। यह सभी स्तरों के प्रशासन की भी भाषा | बन गई। स्थानीय मुहावरों को समाविष्ट करने से फारसी का भारतीयकरण हो गया था। फारसी के हिन्दवी के साथ | पारस्परिक सम्पर्क से उर्दू के रूप में एक नई भाषा का जन्म हुआ। मुगल सम्राटों ने ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ जैसे संस्कृत ग्रन्थों के फारसी में अनुवाद करवाए। ‘महाभारत’ का अनुवाद ‘रज्मनामा’ (युद्धों की पुस्तक) के रूप में हुआ।

→ पांडुलिपि की रचना – मुगल भारत की सभी पुस्तकें पांडुलिपियों के रूप में थीं अर्थात् वे हाथ से लिखी जाती थीं। पांडुलिपि रचना का मुख्य केन्द्र शाही किताबनामा था सुलेखन अर्थात् हाथ से लिखने की कला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कौशल मानी जाती थी। नस्तलिक अकबर की पसन्द की शैली थी। यह एक ऐसी तरल शैली थी जिसे लम्बे सपाट प्रवाही ढंग से लिखा जाता था।

→ रंगीन चित्र चित्र पुस्तक के सौन्दर्य में वृद्धि करते थे तथा राजा और राजा की शक्ति के विषय में जो बात न कही जा सकी हो, उसे चित्र के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता था। इतिहासकार अबुल फराल ने चित्रकारी को एक ‘जादुई कला’ के रूप में वर्णन किया है। उसके अनुसार चित्रकला किसी निर्जीव वस्तु में भी प्राण फूँक सकती है। ईरान से मीर सैयद अली तथा अब्दुस समद जैसे प्रसिद्ध चित्रकार मुगल दरबार में लाये गये। अबुल फसल ऐसे लोगों को पसन्द नहीं करता था, जो चित्रकला से घृणा करते थे।

→ अकबरनामा’ और ‘बादशाहनामा’ – महत्त्वपूर्ण चित्रित मुगल इतिहासों में ‘अकबरनामा’ तथा ‘बादशाहनामा’ सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। ‘अकबरनामा’ का लेखक अबुल फजल तथा ‘बादशाहनामा’ का लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी था।’ अकबरनामा’ को तीन जिल्दों में विभाजित किया गया है जिनमें से प्रथम दो इतिहास हैं। तीसरी जिल्द ‘आइन- ए-अकबरी’ है। ‘अकबरनामा’ में राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण घटनाओं का विवरण दिया गया है। इसमें अकबर के साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक सभी पक्षों का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है। अबुल फजल की भाषा बहुत अलंकृत थी। इस भाषा में लय तथा कथन शैली को बहुत महत्त्व दिया जाता था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

‘बादशाहनामा’ भी सरकारी इतिहास है। इसकी तीन जिल्दें हैं तथा प्रत्येक जिल्द दस चन्द्र वर्षों का विवरण देती है। लाहौरी ने शाहजहाँ के शासन (1627-47) के पहले दो दशकों पर पहली व दूसरी जिल्द लिखी। 1784 ई. सर विलियम जोन्स ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना की। इस संस्था ने कई भारतीय पांडुलिपियों के सम्पादन, प्रकाशन और अनुवाद का दायित्व अपने ऊपर लिया था।

→ आदर्श राज्य- एक दैवीय प्रकाश दरबारी इतिहासकारों के अनुसार मुगल सम्राटों को सीधे ईश्वर से | शक्ति मिली थी। ईश्वर से उद्भूत प्रकाश को ग्रहण करने वाली वस्तुओं में मुगल राजत्व को अबुल फजल ने सबसे ऊँचे स्थान पर रखा। इस विषय में वह प्रसिद्ध ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के विचारों से प्रभावित था। इस विचार के अनुसार एक पदानुक्रम के अन्तर्गत यह दैवीय प्रकाश राजा में सम्प्रेषित होता था जिसके बाद राजा अपनी | प्रजा के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था।

→ सुलह-ए-कुल एकीकरण का एक स्रोत अबुल फजल ने सुलह-ए-कुल (पूर्ण शान्ति) के आदर्श प्रबुद्ध शासन की आधारशिला बतलाया है। सुलह-ए-कुल में सभी धर्मों और मतों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता ओं, परन्तु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य सत्ता को हानि नहीं पहुँचायेंगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे। सुलह-ए- कुल के आदर्श को राज्य नीतियों के द्वारा लागू किया गया। अकबर ने 1563 में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 में जजिया कर को समाप्त कर दिया। सभी मुगल सम्राटों ने मन्दिरों के निर्माण व रख-रखाव के लिए अनुदान दिए।

→ सामाजिक अनुबन्ध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता अबुल फजल के अनुसार बादशाह अपनी प्रजा के | चार सत्त्वों की रक्षा करता था— (1) जीवन (जन), (2) धन (माल), (3) सम्मान (नामस) तथा (4) विश्वास (दीन)। इसके बदले में वह प्रजा से आज्ञापालक तथा संसाधनों में हिस्से की माँग करता था। केवल न्यायपूर्ण संप्रभु ही शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के साथ इस अनुबन्ध का सम्मान कर पाते थे। न्याय के विचार का प्रतिपादन करने के लिए अनेक प्रतीकों की रचना की गई। इन प्रतीकों में से एक सर्वाधिक लोकप्रिय था— एक-दूसरे के साथ चिपटकर शान्तिपूर्वक बैठे हुए शेर और बकरी या शेर और गाय ।

→ राजधानियाँ और दरबार- 1570 के दशक में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में एक नई राजधानी बनाने का निर्णय लिया। इसका एक कारण यह हो सकता है कि सीकरी अजमेर को जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था, जहाँ शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह उस समय तक एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन चुकी थी। 1585 में अकबर ने उत्तर- पश्चिम पर पूर्ण नियन्त्रण रखने के लिए राजधानी को लाहौर स्थानान्तरित कर दिया था। शाहजहाँ के समय में 1648 में शाहजहांनाबाद को नई राजधानी बनाया गया।

→ मुगल दरबार- दरबार में सभी दरबारियों का स्थान मुगल सम्राट द्वारा ही निर्धारित किया जाता था । सिंहासन पर बादशाह के बैठने के बाद किसी को भी अपने स्थान से कहीं और जाने की अनुमति नहीं थी और न ही कोई अनुमति के बिना दरबार से बाहर जा सकता था। शिष्टाचार का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को तुरन्त ही दण्डित किया जाता था। शासक को किए गए अभिवादन के तरीके से उस व्यक्ति की हैसियत का पता चलता था। जिस व्यक्ति के सामने अधिक झुक कर अभिवादन किया जाता था, उस व्यक्ति की हैसियत अधिक ऊँची मानी जाती थी। आत्म- निवेदन का उच्चतम रूप सिजदा या दंडवत लेटना था। शाहजहाँ के समय में इन तरीकों के स्थान पर चार तसलीम तथा जमींबोसी (जमीन चूमना) के तरीके अपनाए गए।

→ झरोखा दर्शन मुगल बादशाह अपने दिन की शुरुआत सूर्योदय के समय कुछ व्यक्तिगत धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था और इसके बाद वह एक छोटे छज्जे अर्थात् झरोखे में आता था। इसके नीचे लोगों की भीड़ बादशाह की एक झलक पाने के लिए प्रतीक्षा करती थी। अकबर द्वारा शुरू की गई झरोखा दर्शन की प्रथा का उद्देश्य जन विश्वास के रूप में शाही सत्ता की स्वीकृति को और विस्तार देना था।

→ दीवान-ए-आम तथा दीवान-ए-खास झरोखे में एक घंटा बिताने के बाद बादशाह अपनी सरकार के प्राथमिक कार्यों के संचालन के लिए सार्वजनिक सभा भवन (दीवान-ए-आम) में आता था। दो घण्टे बाद बादशाह ‘दीवान-ए-खास’ में निजी सभाएँ और गोपनीय मामलों पर चर्चा करता था।

→ दरबार को सुसज्जित करना सिंहासनारोहण की वर्षगाँठ, ईद, शब-ए-बरात तथा होली के अवसरों पर दरबार को खूब सजाया जाता था मुगल सम्राट वर्ष में तीन मुख्य त्यौहार मनाया करते थे-सूर्यवर्ष और चन्द्रवर्ष के अनुसार सम्राट का जन्मदिन तथा वसन्तगमन पर फारसी नववर्ष शाही परिवारों में विवाहों का आयोजन बहुत खर्चीला होता था।

→ पदवियाँ, उपहार और भेंट राज्याभिषेक के समय अथवा किसी शत्रु पर विजय के बाद मुगल सम्राट विशाल पदवियाँ ग्रहण करते थे। योग्य व्यक्तियों को बादशाह द्वारा पदवियाँ दी जाती थीं औरंगजेब ने जयसिंह और जसवन्त सिंह को ‘मिर्जा राजा’ की पदवी प्रदान की।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

→ शाही परिवार मुगल परिवार में बादशाह की पत्नियाँ और उपपत्नियाँ, उसके निकटस्थ और दूर के सम्बन्धी आदि होते थे। राजपूत कुलों तथा मुगलों दोनों के लिए विवाह राजनीतिक सम्बन्ध बनाने व मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने का एक तरीका थे। मुगल परिवारों में शाही परिवारों से आने वाली स्वियों (बेगमों) और अन्य स्वियों (अगहा) में अन्तर रखा जाता था। अगहा वे स्त्रियाँ थीं जिनका जन्म कुलीन परिवार में नहीं हुआ था। दहेज (मेहर) के रूप में विपुल धन नकद और बहुमूल्य वस्तुएँ लेने के बाद विवाह करके आई बेगमों को अपने पतियों से स्वाभाविक रूप से ‘अगहाओं’ की तुलना में अधिक ऊँचा दर्जा और सम्मान मिलता था। राजतन्त्र से जुड़े महिलाओं के पदानुक्रम में उपपत्नियों (अगाचा) की स्थिति सबसे निम्न थी।

→ शाही परिवार की महिलाओं की भूमिका नूरजहाँ के बाद मुगल रानियों और राजकुमारियों ने महत्त्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर नियन्त्रण रखना शुरू कर दिया। शाहजहाँ की पुत्रियों— जहाँआरा तथा रोशनआरा को उच्च शाही मनसबदारों के समान वार्षिक आय होती थी। इसके अतिरिक्त जहाँआरा को सूरत के बन्दरगाह नगर से राजस्व प्राप्त होता था जहाँआरा ने शाहजहाँ की नई राजधानी ‘शाहजहाँनाबाद’ (दिल्ली) की कई वास्तुकलात्मक परियोजनाओं में भाग लिया। गुलबदन बेगम ने ‘हुमायूँनामा’ पुस्तक लिखी। इससे हमें मुगलों की घरेलू दुनिया की झलक मिलती है। गुलबदन आबर की पुत्री हुमायूँ की बहन तथा अकबर की चाची थी। गुलबदन स्वयं तुर्की तथा फारसी में धाराप्रवाह लिख सकती थी।

→ शाही नौकरशाही मुगल साम्राज्य का एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ इसके अधिकारियों का दल था जिसे इतिहासकार सामूहिक रूप से अभिजात वर्ग भी कहते हैं अभिजात वर्ग में भर्ती विभिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समूहों से होती थी। इससे यह सुनिश्चित हो जाता था कि कोई भी दल इतना बड़ा न हो कि वह राज्य की सत्ता को चुनौती दे सके। मुगलों के अधिकारी वर्ग को गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया जाता था जो स्वामिभक्ति से बादशाह से जुड़े हुए थे। प्रारम्भ से ही तूरानी और ईरानी अभिजात अकबर की शाही सेवा में उपस्थित थे। 1560 से आगे भारतीय मूल के दो शासकीय समूहों – राजपूतों व भारतीय मुसलमानों (शेखजादाओं) ने शाही सेवा में प्रवेश किया। इसमें नियुक्त होने वाला पहला व्यक्ति आम्बेर का राजा भारमल कछवाहा था जिसकी पुत्री से अकबर का विवाह हुआ था। टोडरमल अकबर का वित्तमन्त्री था।

→ जात और सवार सभी सरकारी अधिकारियों के दर्जे तथा पदों में दो प्रकार के संख्या-विषयक पद होते थे – जात और सवार ‘जात’ शाही पदानुक्रम में अधिकारी (मनसबदार) के पद और वेतन का सूचक था तथा ‘सवार’ यह सूचित करता था कि उससे सेवा में कितने घुड़सवार रखना अपेक्षित था। सत्रहवीं शताब्दी में 1000 या उससे ऊपर जात वाले मनसबदार अभिजात (उमरा) कहे गए।

→ अभिजात सैन्य अभियानों में ये अभिजात अपनी सेनाओं के साथ भाग लेते थे तथा प्रान्तों में वे साम्राज्य के अधिकारियों के रूप में भी कार्य करते थे। प्रत्येक सैन्य कमांडर घुड़सवारों की भर्ती करता था, उन्हें हथियारों से सुसज्जित करता था और उन्हें प्रशिक्षण करता था। मनसब प्रथा की शुरुआत करने वाले अकबर ने अपने अभिजात वर्ग के कुछ लोगों को शिष्य (मुरीद) की भाँति मानते हुए उनके साथ आध्यात्मिक सम्बन्ध भी स्थापित किए।

अभिजात वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेवा शक्ति, धन तथा उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक साधन था। मीर बख्शी (उच्चतम वेतनदाता) मनसबदार के पद पर नियुक्ति तथा पदोन्नति के इच्छुक सभी उम्मीदवारों को प्रस्तुत करता था। उसका कार्यालय उसकी मुहर व हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर व हस्ताक्षर वाले आदेश तैयार करता था। केन्द्र में दो अन्य महत्त्वपूर्ण मंत्री थे दीवान-ए-आला (वित्तमन्त्री) तथा सद्र उस सुदूर ( मदद-ए-माश अथवा अनुदान का मन्त्री और स्थानीय न्यायाधीश अथवा काजियों की नियुक्ति का प्रभारी)।

→ तैनात-ए-रकाब – दरबार में नियुक्त (तैनात ए रकाब) अभिजातों का एक ऐसा सुरक्षित दल था, जिसे किसी भी प्रान्त या सैन्य अभियान में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था। वे प्रतिदिन दो बार प्रातःकाल व सायंकाल को सार्वजनिक सभा भवन में बादशाह को आत्म-निवेदन करते थे। वे दिन-रात बादशाह और उसके घराने की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उठाते थे।

→ सूचना तथा साम्राज्य-मीर बख्शी दरबारी लेखकों (वाकिया नवीस) के समूह का निरीक्षण करता था। ये लेखक ही दरबार में प्रस्तुत की जाने वाली सभी अर्जियों तथा दस्तावेजों और सभी शासकीय आदेशों (फरमान) का आलेख तैयार करते थे। इसके अतिरिक्त अभिजातों तथा क्षेत्रीय शासकों के प्रतिनिधि दरबार की बैठकों की तिथि और समय के साथ ‘उच्चदरबार से समाचार’ (अखबारात ए- दरबार-ए-मुअल्ला ) शीर्षक के अन्तर्गत दरबार की सभी कार्यवाहियों का विवरण तैयार करते थे। समाचार वृत्तान्त और महत्त्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज शाही डाक के द्वारा मुगल शासन के अधीन क्षेत्रों में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते थे। कागज के डिब्बों में लपेट कर हरकारों ( कसीद अथवा पथमार) के दल दिन-रात दौड़ते रहते थे। काफी दूर स्थित प्रान्तीय राजधानियों से भी वृत्तान्त बादशाह को कुछ ही दिनों में मिल जाया करते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

→ प्रान्तीय शासन केन्द्र के समान प्रान्तों में भी मंत्रियों के अनुरूप अधीनस्थ दीवान, बख्शी और सद्र होते थे। प्रान्तीय शासन का प्रमुख गवर्नर (सूबेदार) होता था, जो सीधा बादशाह को प्रतिवेदन प्रस्तुत करता था। प्रत्येक सूबा कई ‘सरकारों में बँटा होता था। ‘सरकार’ का प्रमुख अधिकारी फौजदार होता था जिसके पास विशाल घुड़सवार सेना और तोपची होते थे। सरकार ‘परगनों’ (उप-जिलों) में विभाजित थे। इनके प्रमुख अधिकारी कानूनगो, चौधरी और काजी होते थे। शासन के प्रत्येक विभाग के पास लिपिकों का एक बड़ा सहायक समूह, लेखाकार, लेखा परीक्षक, सन्देशवाहक और अन्य कर्मचारी होते थे जो तकनीकी रूप से दक्ष अधिकारी थे।

→ विदेशों से सम्बन्ध-सफावी और कन्धार – मुगल सम्राटों की यह नीति थी कि सामरिक महत्त्व की चौकियों विशेषकर काबुल व कन्धार पर नियन्त्रण रखा जाए। कन्धार सफावियों और मुगलों के बीच झगड़े का कारण था। 1595 में अकबर ने कन्धार पर अधिकार कर लिया। 1622 की शीत ऋतु में एक फारसी सेना ने कन्धार पर घेरा डाल दिया। फारसी सेना ने मुगल सेना को पराजित कर दिया और कन्धार के किले तथा नगर पर अधिकार कर लिया।

→ मुगल दरबार में जैसुइट धर्मप्रचारक – अकबर, ईसाई धर्म के विषय में जानने को बहुत उत्सुक था। उसने | जेसुइट पादरियों को आमन्त्रित करने के लिए एक दूतमंडल गोवा भेजा। पहला जेसुइट शिष्टमण्डल फतेहपुर सीकरी के मुगल दरबार में 1580 में पहुँचा और वहाँ लगभग दो वर्ष रहा। इन जेसुइट लोगों ने ईसाई धर्म के विषय में अकबर से बात की और इसकी विशेषताओं के विषय में उलमा से उनका वाद-विवाद हुआ। लाहौर के मुगल दरबार में दो और शिष्टमण्डल 1591 और 1595 में भेजे गए। जेसुइट विवरण व्यक्तिगत प्रेक्षणों पर आधारित हैं तथा वे मुगल बादशाह अकबर के चरित्र और सोच पर गहरा प्रकाश डालते हैं। सार्वजनिक सभाओं में जेसुइट लोगों को अकबर के सिंहासन के काफी निकट स्थान दिया जाता था। वे उसके साथ अभियानों में जाते, उसके बच्चों को शिक्षा देते तथा अवकाश के समय में वे प्रायः उसके साथ रहते थे।

→ इबादतखाना – सभी धर्मों और सम्प्रदायों के सिद्धान्तों की जानकारी प्राप्त करने के लिए 1575 ई. में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में ‘इबादतखाने’ का निर्माण करवाया। उसने विद्वान मुसलमानों, हिन्दुओं, जैनों, पारसियों और ईसाइयों के धार्मिक सिद्धान्तों पर चर्चा की। उसके धार्मिक विचार, विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के विद्वानों से प्रश्न पूछने और उनके धार्मिक सिद्धान्तों के बारे में जानकारी एकत्रित करने से परिपक्व हुए धीरे-धीरे वह धर्मों को समझने में रूढ़िवादी तरीकों से दूर प्रकाश और सूर्य पर केन्द्रित दैवीय उपासना के स्वकल्पित विभिन्न दर्शनग्राही रूप की ओर बढ़ा। अकबर और अबुल फजल ने प्रकाश के दर्शन का सृजन किया और राजा की छवि तथा राज्य की विचारधारा को आकार देने में इसका प्रयोग किया। इसमें दैवीय रूप से प्रेरित व्यक्ति का अपने लोगों पर सर्वोच्य प्रभुत्व तथा अपने शत्रुओं पर पूर्ण नियन्त्रण होता है।

→ हरम में होम अब्दुल कादिर बदायूँनी ने लिखा है कि युवावस्था के आरम्भ से ही अकबर अपनी पत्नियों अर्थात् भारत के राजाओं की पुत्रियों के सम्मान में हरम में होम का आयोजन कर रहे थे। यह एक ऐसी धर्म क्रिया थी जो अग्नि-पूजा से व्युत्पन्न हुई थी परन्तु अपने 25वें शासनवर्ष (1578) के नए वर्ष पर उसने सार्वजनिक रूप से सूर्य और अग्नि को दंडवत प्रणाम किया। शाम को चिराग और मोमबत्तियाँ जलाए जाने पर समस्त दरबार को आदरपूर्वक उठना पड़ा।

काल-रेखा
कुछ प्रमुख मुगल इतिवृत्त तथा संस्मरण

लगभग 1530 बाबर के संस्मरणों की पांडुलिपि का तिमूरियों के पारिवारिक संग्रह का हिस्सा बनना। तुर्की भाषा में लिखे गए ये संस्मरण किसी तरह एक तूफान से बचा लिए गए।
लगभग 1587 गुलबदन बेगम द्वारा ‘हुमायूँनामा ‘ के लेखन की शुरुआत।
1589 बाबर के संस्मरणों का ‘बाबरनामा’ के रूप में फारसी में अनुवाद।
1589-1602 अबुल फज़ल द्वारा ‘अकबरनामा ‘ पर कार्य करना।
1605-22 जहाँगीर द्वारा ‘जहाँगीरनामा ‘ नाम से अपना संस्मरण लिखना।
1639-47 लाहौरी द्वारा ‘बादशाहनामा ‘ के पहले दो दफ्तरों का लेखन।
लगभग 1650 मुहम्मद वारिस द्वारा शाहजहाँ के शासन के तीसरे दशक के इतिवृत्त लेखन की शुरुआत।
1668 मुहम्मद काज़िम द्वारा औरंगजेब के शासन के पहले दस वर्षों के इतिहास का ‘आलमगीरनामा’ के नाम से संकलन।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

Jharkhand Board Class 12 History किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 198

प्रश्न 1.
कृषि जीवन के उन पहलुओं का विवरण दीजिए जो बाबर को उत्तर भारत के इलाके की खासियत लगी।
उत्तर:
‘बाबरनामा’ के रचयिता बाबर के अनुसार भारत के कृषि समाज की यह विशेषता थी कि भारत में बस्तियाँ और गाँव, वस्तुतः शहर के शहर, एक क्षण में ही वीरान भी हो जाते थे और पुनः बस भी जाते थे वर्षों से बसे हुए किसी बड़े शहर के निवासी जो उसे छोड़कर चले जाते थे तथा वे लोग यह काम कुछ इस प्रकार करते थे कि डेढ़ दिनों के भीतर उनका हर नामोनिशान वहाँ से मिट जाता था।

दूसरी ओर, भारत के लोग यदि किसी स्थान पर बसना चाहते थे, तो उन्हें पानी के रास्ते खोदने की आवश्यकता नहीं होती थी; क्योंकि उनकी समस्त फसलें वर्षा के पानी में ही उगती थीं। चूँकि भारत की आबादी बेशुमार है, लोग उमड़ते चले आते थे। वे एक सरोवर या कुआँ बना लेते थे, उन्हें घर बनाने या दीवार खड़ी करने की भी आवश्यकता नहीं होती थी। यहाँ खस की घास बहुतायत में पाई जाती थी। यहाँ जंगल अपार थे तथा झोंपड़ियाँ बना ली जाती थीं। इस प्रकार अकस्मात् एक गाँव या शहर खड़ा हो जाता था।

पृष्ठ संख्या 199

प्रश्न 2.
सिंचाई के जिन साधनों का उल्लेख बाबर ने किया है, उनकी तुलना विजयनगर की सिंचाई व्यवस्था से कीजिए। इन दोनों अलग-अलग प्रणालियों में किस- किस तरह के संसाधनों की आवश्यकता पड़ती होगी? इनमें से किन-किन प्रणालियों में कृषि तकनीक में सुधार के लिए किसानों की भागेदारी आवश्यक होती होगी?
उत्तर:
बाबर के अनुसार शरद ऋतु की फसलें वर्षा के पानी से ही पैदा हो जाती थीं और बंसन्त ऋतु की फसलें तो तब भी पैदा हो जाती थीं, जब वर्षा बिल्कुल ही नहीं होती थी। छोटे पेड़ों तक बाल्टियों अथवा रहट के द्वारा पानी पहुँचाया जाता था। कुछ स्थानों पर रहट के द्वारा सिंचाई की जाती थी। रहट या लकड़ी के गुटकों पर बँधे घड़ों से कुओं से पानी निकाला जाता था रहट द्वारा निकाला गया कुओं का जल संकरा नाला खोदकर खेतों तक पहुँचाया जाता था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

उत्तर भारत में कुछ क्षेत्रों के लोग बाल्टियों से सिंचाई करते थे। विजयनगर में सिंचाई नहरों, झीलों, जलाशयों, बाँधों, वर्षा आदि के पानी से की जाती थी। बाबर के अनुसार सिंचाई के लिए रहट एवं बाल्टियों का प्रयोग किया जाता था। इसके लिए रस्सी, लकड़ी के गुटकों, घड़ों पहियों, बैलों, लकड़ी के कन्नों, बेलन आदि संसाधनों की आवश्यकता पड़ती थी। विजयनगर राज्य में जलाशयों, बाँधों, झीलों आदि के निर्माण के लिए फावड़े, टोकरियों, सीमेंट या कंकरीट, हजारों श्रमिकों, पाइपों आदि संसाधनों की आवश्यकता पड़ती थी।

सिंचाई की रहट प्रणाली, कुओं को खोदने, बैलों को पालने, चमड़े या लकड़ी की बाल्टियाँ बनाने के लिए किसानों की भागीदारी की आवश्यकता पड़ती थी। विजयनगर में तालाब बनाने, बाँध बनाने, जल आपूर्ति के लिए पाइप बनाने तथा जल धाराओं से पानी इकट्ठा करने आदि कार्यों में किसानों की भागीदारी की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। ये कार्य प्रायः शासकों द्वारा करवाए जाते थे।

पृष्ठ संख्या 201

प्रश्न 3.
चित्र (पृष्ठ 201, 8.3 ) में महिलाएँ और पुरुष क्या-क्या करते दिखाए गए हैं? गाँव की वास्तुकला का भी वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चित्र में महिलाएँ सूत कातते, बर्तन बनाने की मिट्टी को साफ करते और उसे गूँथते तथा बच्चों की देखभाल करते हुए दर्शायी गई हैं। साथ ही, उन्हें भोजन पकाते और मसाला कूटते भी दिखाया गया है। पुरुष को खड़ा होकर सभी व्यवस्था पर नजर रखते हुए दिखाया गया है। गाँव में मिट्टी और ईंट के बने मकान दिखाई दे रहे हैं। कुछ झोपड़ियाँ भी हैं। मिट्टी से बने अन्न भण्डार भी दिखाई पड़ रहे हैं।

पृष्ठ संख्या 203

प्रश्न 4.
चित्रकार ने गाँव के बुजुर्गों और कर अधिकारियों में फर्क कैसे डाला है ? (चित्र 8.4 )
उत्तर:

  1. चित्र में गाँव के बुजुर्ग अधिक संख्या (11 सदस्य) में दिखाए गए हैं
  2. कुछ बुजुर्ग जमीन पर बैठे हुए हैं तथा कुछ खड़े हुए हैं
  3. अधिकारी संख्या में दो हैं तथा दोनों अच्छी वेशभूषा में दर्शाए गए हैं
  4. अधिकारी लोग प्रभावशाली दिखाई देते हैं
  5. अधिकारियों के सम्मुख अनेक दस्तावेज दिखाए गए हैं।

पृष्ठ संख्या 204

प्रश्न 5.
चित्र में दर्शायी गयी गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • चित्र में कपड़ा बुनने के आरम्भ से लेकर पूर्ण होने तक के विभिन्न चरण दिखाए गए हैं।
  • चित्र में रंग-बिरंगे कपड़े दिखाए गए हैं।
  • एक व्यक्ति को कपास की खेती करते दिखाया गया है।
  • एक व्यक्ति को कपड़े की गाँठ ढोते दिखाया गया है।
  • एक व्यक्ति कपड़े को साफ कर रहा है।
  • एक व्यक्ति कपड़े को बुन रहा है।
  • एक व्यक्ति भट्टी पर कपड़े को रंग रहा है।
  • चित्र में दिखाए गए व्यक्ति कपड़े की विविधता को दर्शाते हैं।

पृष्ठ संख्या 206 चर्चा कीजिए

प्रश्न 6.
इस अनुभाग में जिन पंचायतों का जिक्र किया गया है, वे आपके अनुसार किस प्रकार से आज की ग्राम पंचायतों से मिलती-जुलती थीं अथवा भिन्न थीं?
उत्तर:
समानताएँ प्रस्तुत अनुभाग में वर्णित पंचायतों तथा आज की ग्राम पंचायतों में निम्नलिखित समानताएँ थीं –
(1). दोनों ग्रामीणों की विभिन्न समस्याओं का निवारण करने का प्रयास करती हैं।
(2) सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्राम पंचायत का एक मुखिया होता था। आज भी ग्राम पंचायत का एक प्रमुख होता है जो सरपंच कहलाता है।
(3) उस समय ग्रामीण लोगों की भलाई के लिए पंचायत द्वारा कुएँ, छोटे-मोटे बाँध, नहर, जलाशय आदि बनवाये जाते थे। आज भी ग्राम पंचायतों द्वारा गाँवों में सफाई करवाने, रोशनी का प्रबन्ध करने, स्कूल, अस्पताल, जलाशय, कुएँ आदि बनवाने, लोगों के मनोरंजन के लिए वाचनालय, पुस्तकालय, दूरदर्शन केन्द्र आदि बनवाने की व्यवस्था की जाती है।
(4) उस समय भी ग्राम पंचायतों को जुर्माना लगाने और छोटे-मोटे झगड़ों को निपटाने का अधिकार था आज भी ग्राम पंचायतों को सिविल और फौजदारी के छोटे-मोटे झगड़ों को निपटाने तथा साधारण जुर्माना करने का अधिकार है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

विभिन्नताएँ –
(1) 16वीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में ग्राम पंचायतों में बुजुर्ग लोग होते थे। प्रायः वे गाँव के महत्त्वपूर्ण लोग हुआ करते थे तथा उनके पास अपनी सम्पत्ति में पैतृक अधिकार होते थे। इनका चुनाव नहीं होता था परन्तु वर्तमान में ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव किया जाता है। गाँव के लोग एक सरपंच और कुछ पंचों का चुनाव करते हैं। उस समय ग्राम पंचायतों में अनुसूचित एवं जनजातियों और महिलाओं के लिए स्थान सुरक्षित नहीं रखे जाते थे परन्तु वर्तमान में इनके लिए स्थान सुरक्षित रखे जाते हैं।

(2) उस समय पंचायत का एक मुखिया होता था जो मुकदम या मंडल कहलाता थी। वर्तमान में ग्राम पंचायत का मुखिया सरपंच कहलाता है। राज्य की ओर से 1 एक सचिव . और कुछ अन्य अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है।

(3) उस समय पंचायत में विभिन्न जातियों तथा सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व होता था परन्तु इसमें सन्देह है कि छोटे-मोटे और निम्न काम करने वाले खेतिहर मजदूरों के लिए उसमें कोई स्थान होता होगा परन्तु वर्तमान में दलित जातियों के लोगों के लिए स्थान सुरक्षित रखे गए हैं।

(4) उस समय पंचायत का एक बड़ा काम यह सुनिश्चित करना था कि गाँव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोग अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रहें। वे जाति की अवहेलना रोकने के लिए प्रयत्नशील रहती र्थी; परन्तु वर्तमान में ग्राम पंचायतों का यह उत्तरदायित्व नहीं है।

(5) उस समय पंचायत को समुदाय से निष्कासित करने जैसे गम्भीर दंड देने का अधिकार था। परन्तु वर्तमान में ग्राम पंचायत को यह अधिकार नहीं है।

(6) उस समय गाँव में हर जाति की अपनी पंचायत होती थी तथा अधिकतर मामलों में राज्य जाति पंचायत के निर्णयों को मानता था परन्तु वर्तमान में राज्य जाति पंचायत के निर्णयों को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

पृष्ठ संख्या 207

प्रश्न 7.
क्या आपके प्रान्त में कृषि भूमि पर महिलाओं और मर्दों की पहुँच में कोई फर्क है?
उत्तर:
विद्यार्थी यह स्वयं करें।

पृष्ठ संख्या 208

प्रश्न 8
आप इस चित्र (89) में जो देखते हैं, उसका वर्णन कीजिए। इसमें ऐसा कौनसा सांकेतिक तत्त्व है, जो शिकार और एक आदर्श न्याय व्यवस्था को जोड़ता है ?
उत्तर:
मुगलकाल में सम्राट अपनी प्रजा को न्याय प्रदान करने के लिए शिकार अभियान का आयोजन करते थे। इस चित्र में हिरण, नीलगाय आदि अनेक जानवर दिखाए गए हैं। मुगल सम्राट शाहजहाँ नीलगाय का शिकार करते हुए दिखाए गए हैं। नीलगाय किसानों की फसलों को काफी नुकसान पहुँचाती है। इसलिए ऐसे जानवरों का शिकार करना एक आदर्श न्याय व्यवस्था का प्रतीक है। पृष्ठ संख्या 209

प्रश्न 9.
यह पद्यांश जंगल में घुसपैठ के कौनसे रूपों को उजागर करता है? जंगल में रहने वाले लोगों के अनुसार पद्यांश में किन्हें ‘विदेशी’ बताया गया है?
उत्तर:
यह पद्यांश सोलहवीं शताब्दी के एक कवि मुकुंदराम चक्रवर्ती द्वारा लिखित एक कविता चंडी मंगल का एक अंश है। इस पद्यांश में कालकेतु नामक एक सरदार द्वारा जंगल का सफाया कर साम्राज्य बनाने के सम्बन्ध में. काव्यात्मक रूप से वर्णन किया गया है। कालकेतु ने हजारों लोगों के साथ विभिन्न साधनों से जंगल का सफाया कर यहाँ के मूल निवासियों यहाँ तक कि पशुओं को भी पलायन करने को विवश कर दिया। इस कविता में बाहर से आए इन लोगों को विदेशी कहा गया है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

पृष्ठ संख्या 210

प्रश्न 10.
अबुल फजल ने परिवहन के कौन स तरीकों का उल्लेख किया है? आपके अनुसार इनका प्रयोग क्यों किया जाता था? मैदानों से जो सामान पहाड़ पर ले जाए जाते थे, उनमें से हर एक वस्तु किस काम में लाई जाती होगी? इसका खुलासा कीजिए।
उत्तर:
(1) अबुल फजल ने परिवहन के निम्न तरीकों का उल्लेख किया है –

  • इन्सानों के सिर तथा पीठ पर सामान ढोया जाता था।
  • मोटे-मोटे घोड़ों की पीठ पर
  • मोटे-मोटे बकरों की पीठ पर सामान ढोया जाता था।

(2) मेरे विचारानुसार, उस समय बड़े पैमाने पर आधुनिक यातायात के साधन जैसे- ट्रक, रेलगाड़ी, मोटर, वारुयान आदि उपलब्ध नहीं थे, इसलिए इन्सानों, घोड़ों, आदि का यातायात के साधनों के रूप में प्रयोग किया जाता था। इसके अतिरिक्त मोटे-मोटे बकरे तथा घोड़े आदि दुर्गम पहाड़ी रास्तों में सामान ढोने का काम सुगमता से करते थे।

कुछ गरीब लोग भी अपने जीवन निर्वाह के लिए सामान ढोने का काम करते थे। वे पहाड़ी रास्तों में सामान ढोने के अभ्यस्त भी थे इसलिए इन्सानों, घोड़ों, बकरों आदि का यातायात के साधनों के रूप में प्रयोग किया जाता था। मैदानों से जो वस्तुएँ पहाड़ों पर ले जाई जाती थीं, इनमें से अधिकांश का प्रयोग दैनिक जीवन में होता था। कुछ वस्तुओं का प्रयोग छोटे-मोटे उद्योगों में किया जाता था। कुछ वस्तुएँ विलासिता से सम्बन्धित थीं।

पृष्ठ संख्या 213 चर्चा कीजिए

प्रश्न 11.
आजादी के बाद भारत में जमींदारी व्यवस्था समाप्त कर दी गई। इस अनुभाग को पढ़िए तथा उन कारणों की पहचान कीजिए जिनकी वजह से ऐसा किया गया।
उत्तर:
आजादी के बाद भारत में जमींदारी व्यवस्था को समाप्त कर दिए जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित धे –

  1. जमींदारों की आय तो खेती से आती थी, परन्तु वे कृषि उत्पादन में सीधे भागीदारी नहीं करते थे। उन्हें समाज में उच्च स्थिति प्राप्त थी तथा उन्हें कुछ विशेष सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ मिली हुई थीं।
  2. जमींदार वर्ग बड़ा समृद्ध वर्ग था। इस समृद्धि का कारण उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन थी। प्रायः इन जमीनों पर दिहाड़ी के मजदूर या पराधीन मजदूर काम करते थे। वे इन मजदूरों का शोषण करते थे।
  3. जमींदारों के पास विपुल आर्थिक और सैनिक संसाधन थे वे राज्य की ओर से कर वसूल करते थे जिसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था। अधिकांश जमींदारों के पास अपने किले और सैनिक टुकड़ियाँ थीं। इन साधनों के बल पर वे गरीबों, किसानों और मजदूरों का शोषण करते थे। ये कमजोर लोगों को उनकी जमीनों से बेदखल कर देते थे।
  4. जमींदारी प्रथा, जाति प्रथा और ऊँच-नीच के भेद- भाव को प्रोत्साहन देती थी।
  5. दारों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे।
  6. यह व्यवस्था असमानता, विशेषाधिकारों एवं शोषण पर आधारित थी।

पृष्ठ संख्या 214

प्रश्न 12.
अपने अधीन इलाकों में जमीन का वर्गीकरण करते समय मुगल राज्य ने किन सिद्धान्तों का पालन किया? राजस्व निर्धारण किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
(1) मुगल सम्राटों ने अपनी गहरी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए जमीनों का वर्गीकरण किया। उन्होंने प्रत्येक (वर्ग की जमीन) के लिए अलग-अलग राजस्व निर्धारित किया ताकि न्यायोचित राजस्व निर्धारित किया जा सके।
(2) मुगल काल में भूमि चार वर्गों में बाँटी गई –
(1) पोलज
(2) परौती
(3) चचर
(4) बंजर पोलज जमीन वह थी, जिसमें एक के बाद एक हर फसल की वार्षिक खेती होती थी और जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था। परौती वह जमीन थी, जिस पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती थी। चचर वह भूमि थी, जो कि तीन या चार वर्षों तक खाली रहती थी। बंजर वह जमीन थी, जिस पर पाँच या उससे अधिक वर्षों से खेती नहीं की गई थी।

पहले दो प्रकार की जमीन की तीन किस्में थीं –
(1) अच्छी
(2) मध्यम
(3) खराब हर वर्ग की जमीन की उपज को जोड़ दिया जाता था और इसका तीसरा हिस्सा मध्यम उत्पाद माना जाता था तथा उसका एक- तिहाई हिस्सा राजकीय शुल्क माना जाता था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

पृष्ठ संख्या 215 चर्चा कीजिए

प्रश्न 13.
क्या आप मुगलों की भूराजस्व प्रणाली को एक लचीली व्यवस्था मानेंगे ?
उत्तर:
हाँ, हम मुगलों की भूराजस्व प्रणाली को एक लचीली व्यवस्था मानते हैं। इसके निम्नलिखित कारण हैं –
(1) किसानों से भूमिकर नकद अथवा अनाज के रूप में वसूल किया जाता था।
(2) साम्राज्य की भूमि की पैमाइश करवाई गई और भूमि के आंकड़ों को संकलित किया गया।
(3) राजस्व अधिकारियों को आदेश दिया गया कि वे राजस्व वसूली में बल प्रयोग करें।
(4) अतिवृष्टि, अकाल, अनावृष्टि आदि की दशा में भूराजस्व माफ कर दिया जाता था। राज्य द्वारा पीड़ित किसानों को आर्थिक सहायता दी जाती थी।

पृष्ठ संख्या 215

प्रश्न 14.
राजस्व निर्धारण व वसूली की प्रत्येक प्रणाली में खेतिहरों पर क्या फर्क पड़ता होगा?
उत्तर:
(1) कणकुत प्रणाली में प्रायः अनुमान से किया गया भूमि का आकलन पर्याप्त रूप से सही परिणाम देता था। इसलिए इस प्रणाली में खेतिहरों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता होगा।
(2) मटाई अथवा भाओली प्रणाली में अनेक समझदार निरीक्षकों की आवश्यकता पड़ती थी परन्तु उस काल में प्रायः अधिकांश निरीक्षक स्वाथी, धोखेबाज तथा मक्कार होते थे इसलिए खेतिहरों को उनकी धोखेबाजी का शिकार बनना पड़ता था।
(3) खेत बढाई प्रणाली में बीज बोने के बाद खेत बाँट लिए जाते थे। यह प्रणाली भी त्रुटिपूर्ण थी। अतः इसका भी खेतिहरों पर हानिप्रद प्रभाव पड़ता होगा।
(4) लॉंग बटाई प्रणाली में फसल काटने के बाद राजस्व अधिकारी उसका ढेर बना लेते थे और फिर उसे आपस में बाँट लेते थे। इस प्रणाली में बेइमानी की गुंजाइश रहती थी जिसके परिणामस्वरूप खेतिहरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता होगा।

प्रश्न 15.
आपकी राय में मुगल बादशाह औरंगजेब ने विस्तृत सर्वेक्षण पर क्यों जोर दिया?
उत्तर:
मुगल सम्राट औरंगजेब एक कुशल प्रशासक था। उसे वित्तीय मामलों की अच्छी जानकारी थी। मुगल काल में प्रत्येक प्रान्त में जुती हुई जमीन और जोतने योग्य जमीन दोनों की नपाई की गई औरंगजेब चाहता था कि राज्य अधिक से अधिक राजस्व वसूल करे; परन्तु इसके साथ-साथ किसानों के कल्याण को भी ध्यान में रखा जाए। एक ओर वह सरकार के वित्तीय हितों को भी सुनिश्चित करना चाहता था, दूसरी ओर वह किसानों की भलाई पर भी उचित ध्यान देना चाहता था इसलिए उसने हर गाँव, हर किसान के बारे में खेती की वर्तमान स्थिति का पता लगाने का आदेश दिया। औरंगजेब द्वारा विस्तृत सर्वेक्षण पर जोर देने का यही कारण था।

पृष्ठ संख्या 216 चर्चा कीजिए

प्रश्न 16.
पता लगाइए कि वर्तमान में आपके राज्य में कृषि उत्पादन पर कर लगाए जाते हैं या नहीं। आज की राज्य सरकारों की राजकोषीय नीतियों और मुगल राजकोषीय नीतियों में समानताओं और भिन्नताओं को समझाइए।
उत्तर:
(1) वर्तमान में अधिकांश राज्य सरकारें कृषि उत्पादनों पर कर नहीं लगाती हैं, अपितु कृषकों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करती हैं।
(2) मुगल राज्य की आय का मुख्य स्रोत कृषि तथा भू-राजस्व व्यवस्था थी।
(3) वर्तमान सरकारें कृषि से आय प्राप्त नहीं करतीं अपितु उन्हें अनेक प्रकार की सब्सिडी प्रदान करती हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

Jharkhand Board Class 12 History किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य Text Book Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए।

प्रश्न 1.
कृषि इतिहास लिखने के लिए ‘आइन’ को स्रोत के रूप में इस्तेमाल करने में कौनसी समस्याएँ हैं? इतिहासकार इन समस्याओं से कैसे निपटते हैं?
उत्तर:
कृषि इतिहास लिखने के लिए ‘आइन’ का स्रोत के रूप में प्रयोग करने में समस्याएँ –

  1. शासक वर्ग का दृष्टिकोण किसानों के बारे में, जो कुछ हमें ‘आइन’ से ज्ञात होता है, वह शासक वर्ग का दृष्टिकोण है। यह किसानों के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व नहीं करती।
  2. आँकड़ों के जोड़ में गलतियाँ आइन’ में आँकड़ों के जोड़ में कई गलतियाँ पाई गई हैं।
  3. संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ ‘ आइन’ के संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ हैं। सभी प्रान्तों से आँकड़े एक ही रूप में एकत्रित नहीं किए गए उदाहरणार्थ, जहाँ कई प्रान्तों के लिए जमींदारों की जाति से सम्बन्धित विस्तृत सूचनाएँ संकलित की गई, वहीं बंगाल और उड़ीसा के लिए ऐसी सूचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
  4. मूल्यों और मजदूरी की दरों की अपर्याप्त सूची मूल्यों और मजदूरी की दरों की जो विस्तृत सूची ‘आइन’ में दी भी गई है, वह साम्राज्य की राजधानी आगरा या उसके आस-पास के क्षेत्रों से ली गई है।

इससे स्पष्ट है कि देश के शेष भागों के लिए इन आँकड़ों की प्रासंगिकता सीमित है। इतिहासकारों का इन समस्याओं से निपटना- इन समस्याओं से निपटने के लिए इतिहासकार सत्रहवीं तथा अठारहवीं सदियों के गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से मिलने वाले उन दस्तावेजों का प्रयोग कर सकते हैं, जो सरकार की आमदनी की विस्तृत जानकारी देते हैं। इसके अतिरिक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भी बहुत से दस्तावेज हैं जो पूर्वी भारत में कृषि सम्बन्धों की उपयोगी रूप-रेखा प्रस्तुत करते हैं। इनमें किसानों, जमींदारों और राज्य के मध्य विवाद दर्ज हैं।

प्रश्न 2.
सोलहवीं सत्रहवीं सदी में कृषि उत्पादन को किस हद तक महज गुजारे के लिए खेती कह सकते हैं? अपने उत्तर के कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं सत्रहवीं सदी में कृषि उत्पादन को केवल गुजारे के लिए खेती नहीं कहा जा सकता यद्यपि सोलहवीं सत्रहवीं सदी में दैनिक आहार की खेती पर | अधिक जोर दिया जाता था तथा गेहूं, चावल, ज्वार आदि फसलों का अधिक उत्पादन किया जाता था, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं था कि इस युग में भारत में खेती केवल गुजारा करने के लिए की जाती थी। कृषि राजस्व का भी एक महत्त्वपूर्ण स्रोत थी। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं –
(1) खेती मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान की जाती थी –

  1. एक खरीफ ( पतझड़ में) और
  2. दूसरी रबी (बसन्त में)।

इस प्रकार सूखे इलाकों और अंजर भूमि को छोड़कर अधिकांश स्थानों पर वर्ष में कम से कम दो फसलें होती थीं। जहाँ वर्षा या सिंचाई के अन्य साधन हर समय उपलब्ध थे, वहाँ तो वर्ष में तीन फसलें भी उगाई. जाती थीं।
(2) इस युग में मुगल राज्य किसानों को जिन्स-ए- कामिल (सर्वोत्तम फसलें) नामक फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहन देता था; क्योंकि इन फसलों से राज्य को अधिक कर मिलता था। इन फसलों में कपास और गन्ने की फसलें मुख्य थीं तिलहन (जैसे, सरसों) तथा दलहन भी नकदी फसलों में सम्मिलित थी। थे। इससे ज्ञात होता है कि एक औसत किसान की जमीन पर पेट भरने के लिए होने वाले उत्पादन तथा व्यापार के लिए किए जाने वाले उत्पादन एक दूसरे से जुड़े हुए व्यापार भी कृषि पर पर्याप्त सीमा तक निर्भर थे।

प्रश्न 3.
मुगलकालीन कृषि समाज में महिलाओं की भूमिका की विवेचना कीजिए।
अथवा
कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का विवरण दीजिए।
अथवा
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी में कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिये।
अथवा
मुगलकालीन भारत में कृषि आधारित समाज में महिलाओं की भूमिका की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका –
(1) खेती के कार्य में सहायता करना- सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में महिलाएँ और पुरुष कन्धे से कन्धा मिलाकर खेतों में काम करते थे। पुरुष खेत जोतते थे व हल चलाते थे, जबकि महिलाएँ बुआई, निराई कटाई तथा पकी हुई फसलों बने का दाना निकालने का काम करती थीं। फिर भी महिलाओं की जैव-वैज्ञानिक क्रियाओं को लेकर लोगों के मन में पूर्वाग्रह रहे। उदाहरण के लिए, पश्चिमी भारत में मासिक-धर्म वाली महिलाओं को हल या कुम्हार का चाक छूने की अनुमति नहीं थी। इसी प्रकार बंगाल में अपने मासिक धर्म के समय महिलाएँ पान के बागान में प्रवेश नहीं कर सकती थीं।

(2) अन्य कृषि सम्बन्धी गतिविधियों में संलग्न – रहना – इस समय महिलाएँ कृषि के अतिरिक्त अन्य कृषि सम्बन्धी गतिविधियों में भी संलग्न रहती थीं, जैसे-सूत काराना, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करना और गूंधना, कपड़ों पर कढ़ाई करना आदि। ये सभी कार्य महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे। किसी वस्तु का जितना वाणिज्यीकरण होता था, उसके उत्पादन के लिए महिलाओं के श्रम की उतनी ही माँग होती थी। वास्तव में किसान और दस्तकार महिलाएँ आवश्यकता पड़ने पर न केवल खेतों में काम करती थीं, बल्कि नियोक्ताओं के घरों पर भी जाती थीं और बाजारों में भी इस प्रकार कृषि उत्पादन में महिलाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

प्रश्न 4.
विचाराधीन काल में मौद्रिक कारोबार की अहमियत की विवेचना उदाहरण देकर कीजिए।
उत्तर:
विचाराधीन काल (मुगल काल ) में मौद्रिक कारोबार की अहमियत ( महत्त्व ) – सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में यूरोप के साथ भारत के व्यापार में अत्यधिक विस्तार हुआ। इस कारण भारत के समुद्र पार व्यापार की अत्यधिक उन्नति हुई तथा कई नई वस्तुओं का व्यापार भी शुरू हो गया। निरन्तर बढ़ते व्यापार के कारण, भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चाँदी आई। इस चाँदी का एक बड़ा भाग भारत में पहुँचा। यह स्थिति भारत के लिए लाभप्रद थी क्योंकि यहाँ चाँदी के प्राकृतिक संसाधन नहीं थे।

परिणामस्वरूप सोलहवीं से अठारहवीं सदी के बीच भारत में धातु मुद्रा विशेषकर चाँदी के रुपयों की उपलब्धि में अच्छी स्थिरता बनी रही। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में मुद्रा संचार और सिक्कों की ढलाई में अभूतपूर्व विस्तार हुआ तथा मुगल – साम्राज्य को नकदी कर वसूलने में आसानी इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी ने लगभग 1690 ई. में भारत की यात्रा की थी उसने इस बात का बड़ा सजीव चित्र प्रस्तुत किया है कि किस प्रकार चाँदी समस्त विश्व से होकर भारत पहुँचती थी उसके वृत्तान्त से हमें यह भी जात होता है कि सत्रहवीं शताब्दी के भारत में भारी मात्रा में नकदी और वस्तुओं का आदान-प्रदान हो रहा था। इसके अतिरिक्त गाँवों में भी आपसी लेन देन नकदी में होने लगा। जो दस्तकार निर्यात के लिए उत्पादन करते थे, उन्हें उनकी मजदूरी या पूर्व भुगतान भी नकद में ही मिलता था।

प्रश्न 5.
उन सबूतों की जाँच कीजिए जो ये सुझाते हैं कि मुगल राजकोषीय व्यवस्था के लिए भू-राजस्व बहुत महत्त्वपूर्ण था।
उत्तर:
मुगल राजकोषीय व्यवस्था के लिए भू-राजस्व का महत्त्वपूर्ण होना –
(1) मुगल साम्राज्य की आय का प्रमुख साधन- भूमि से मिलने वाला राजस्व मुगल साम्राज्य की आय का प्रमुख साधन था। इसलिए कृषि उत्पादन पर नियन्त्रण रखने के लिए तथा तीव्रगति से फलते मुगल साम्राज्य में राजस्व के आकलन तथा वसूली के लिए एक प्रशासनिक तन्त्र की स्थापना की आवश्यकता थी। दीवान इस प्रशासनिक तन्त्र का एक महत्त्वपूर्ण अंग था। दीवान के कार्यालय पर सम्पूर्ण राज्य की वित्तीय व्यवस्था के देख-रेख की जिम्मेदारी थी। इस प्रकार हिसाब रखने वाले तथा राजस्व अधिकारी कृषि- सम्बन्धों को नया रूप देने में एक निर्णायक शक्ति के रूप में प्रकट हुए। अमील गुजार प्रमुख रूप से राजस्व वसूल करने वाला अधिकारी था।

(2) अधिक से अधिक राजस्व वसूल करने का प्रयास अकबर ने अमील-गुजार या राजस्व वसूल करने वाले अधिकारियों को यह आदेश दिया कि वे किसानों से नकद भुगतान वसूल करने के साथ फसलों के रूप में भी भुगतान का विकल्प खुला रखें। राजस्व निर्धारित करते समय राज्य अपना हिस्सा अधिक से अधिक रखने का प्रयास करता था, परन्तु स्थानीय स्थिति के कारण कभी-कभी वास्तव में इतनी वसूली कर पाना सम्भव नहीं हो पाता था।

(3) जोतने योग्य जमीन की माप करवाना प्रत्येक प्रान्त में जुती हुई जमीन और जोतने योग्य जमीन दोनों की माप करवाई गई। अकबर के शासनकाल में अबुल फ़जल ने अपने ग्रन्थ’ आइन’ में ऐसी जमीनों के सभी आँकड़े संकलित किये। अकबर के बाद के मुगल सम्राटों के शासनकाल में भी जमीन की माप करवाये जाने के प्रयास जारी रहे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

निम्नलिखित पर लघु निबन्ध लिखिए। (लगभग 250- 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
आपके अनुसार कृषि समाज में सामाजिक व आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने में जाति किस हद तक एक कारक थी?
उत्तर:
कृषि समाज में सामाजिक
व आर्थिक सम्बन्धों को
प्रभावित करने में जाति की भूमिका –
(1) खेतिहर किसानों का अनेक समूहों में विभक्त होना जाति तथा अन्य जाति जैसे भेदभावों के कारण खेतिहर लगा जो दस्तकार निर्यात के लिए उत्पादन करते थे, उन्हें उनकी मजदूरी या पूर्व भुगतान भी नकद में ही मिलता था। किसान कई प्रकार के समूहों में विभक्त थे। खेतों की जुताई करने वालों में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की थी जो निकृष्ट समझे जाने वाले कार्यों में लगे हुए थे अथवा फिर खेतों में मजदूरी करते थे।

यद्यपि खेती योग्य जमीन का अभाव नहीं था, फिर भी कुछ जातियों के लोगों को केवल निकृष्ट समझे जाने वाले काम ही दिए जाते थे। इस प्रकार वे निर्धनता में जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य थे। उपलब्ध आँकड़ों तथा तथ्यों से ज्ञात होता है कि गाँव की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग ऐसे ही लोगों के समूहों का था। इन लोगों के पास संसाधन सबसे कम थे तथा ये जाति-व्यवस्था के प्रतिबन्धों से बंधे थे। इनकी स्थिति न्यूनाधिक आधुनिक भारत में रहने वाले दलितों जैसी ही थी।

(2) अन्य सम्प्रदायों में भी भेदभावों का प्रसार- ऐसे भेदभावों का प्रसार अन्य सम्प्रदायों में भी होने लगा था। मुसलमान समुदायों में हलालखोरान जैसे निकृष्ट काम से जुड़े समूह गांव की सीमाओं के बाहर ही रह सकते थे। इसी प्रकार बिहार में मल्लाहजादाओं (शाब्दिक अर्थ – नाविकों के पुत्र) की स्थिति भी दासों जैसी थी ।

(3) बीच के समूहों में जाति, गरीबी और सामाजिक स्थिति के बीच सम्बन्ध न होना-यद्यपि समाज के निम्न वर्गों में जाति, गरीबी और सामाजिक स्थिति के बीच सीधा सम्बन्ध था, परन्तु ऐसा सम्बन्ध बीन के समूहों में नहीं था। सत्रहवीं शताब्दी में मारवाड़ में लिखी गई एक पुस्तक राजपूतों की चर्चा किसानों के रूप में की गई है। इस पुस्तक के अनुसार जाट भी किसान थे, परन्तु जाति व्यवस्था में उनको स्थिति राजपूतों की तुलना में नीची थी।

(4) अन्य जातियों की स्थिति सत्रहवीं सदी में वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) के क्षेत्र में रहने वाले गौरव समुदाय के लोगों ने भी राजपूत होने का दावा किया, यद्यपि ये लांग जमीन को जुताई के काम से जुड़े हुए थे। पशुपालन और बागवानों में बढ़ते मुनाफे के कारण अहीर, गुज्जर और माली जैसी जातियाँ सामाजिक सोढ़ी में ऊपर उठीं अर्थात् उनके सामाजिक स्तर में वृद्धि हुई। पूर्वी प्रदेशों में पशुपालक और मछुआरी जातियाँ भी किसानों जैसी सामाजिक स्थिति पाने लगीं। इनमें सदगोप एवं कैवर्त जातियाँ सम्मिलित थीं।

प्रश्न 7.
सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में जंगलवासियों की जिन्दगी किस तरह बदल गई?
अथवा
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में जंगलवासियों के जीवन में किस प्रकार परिवर्तन आ गया? वर्णन कीजिये।
अथवा
बनवासी कौन थे? सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में उनके जीवन में कैसे परिवर्तन आया?
उत्तर:
जंगलवासी सोलहवीं एवं सत्रहवीं सदी में भारत में जमीन के विशाल भाग जंगलों या झाड़ियों से घिरे थे। समसामयिक रचनाएँ जंगल में रहने वालों के लिए ‘जंगली’ शब्द का प्रयोग करती हैं परन्तु जंगली होने का अर्थ यह नहीं था कि वे असभ्य थे। उन दिनों इस शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता था जिनका जीवन निर्वाह जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानान्तरीय खेती से होता था। ये काम मौसम के अनुसार होते थे जैसे भीलों में बसन्त के मौसम में जंगल के उत्पाद इकट्ठे किये जाते, गर्मियों में मछलियाँ पकड़ी जातीं, मानसून के महीनों में खेती की जाती तथा शरद और जाड़े के महीनों में शिकार किया जाता था। निरन्तर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहना जंगलों में रहने वाले कबीलों की एक प्रमुख विशेषता थी। सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में जंगलवासियों . के जीवन में परिवर्तन

सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में जंगलवासियों के जीवन ‘में निम्नलिखित परिवर्तन हुए –
(1) बाहरी शक्तियों का जंगलों में प्रवेश – बाहरी शक्तियों, जंगलों में कई तरह से प्रवेश करती थीं। उदाहरणार्थ- राज्य को सेना के लिए हाथियों की आवश्यकता होती थी। इसलिए मुगल सम्राटों के द्वारा जंगलवासियों से ली जाने वाली पेशकश (भेंट) में प्राय: हाथी भी सम्मिलित होते थे। दरबारी इतिहासकारों के अनुसार शिकार अभियान के नाम पर युगल सम्राट अपने विशाल साम्राज्य के कोने-कोने का दौरा करता था। इस प्रकार वह अपने साम्राज्य के भिन्न- भिन्न प्रदेशों के लोगों की समस्याओं और शिकायतों से अवगत होता था और उन पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देता था दरबारी कलाकारों के चित्रों में शिकारी के अनेक दृश्य दिखाए गए हैं। र इन चित्रों में चित्रकार प्राय: छोटा-सा एक ऐसा दृश्य अंकित कर देते थे जो शासक के सद्भावनापूर्ण होने का संकेत देता 5 था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

(2) वाणिज्यिक खेती का प्रभाव- वाणिज्यिक खेती का असर एक बाह्य कारक के रूप में जंगलवासियों के जीवन पर भी पड़ता था। शहद, मधुमोम और लाक जैसे जंगल के उत्पादों की बहुत माँग थी। लाक जैसी वस्तुएँ तो सत्रहवीं सदी में भारत से समुद्र पार होने वाले निर्यात की मुख्य वस्तुएँ थीं। हाथी भी पकड़े और बेचे जाते थे। 5 व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं की अदला-बदली भी होती थी। कुछ कबीले भारत और अफगानिस्तान के बीच होने वाले स्थलीय व्यापार में लगे हुए थे जैसे पंजाब का लोहानी कबीला। वे पंजाब के गाँवों और शहरों के बीच होने वाले व्यापार में भी भाग लेते थे।

(3) सामाजिक प्रभाव सामाजिक कारणों से भी जंगलवासियों के जीवन में परिवर्तन हुए। ग्रामीण समुदाय के बड़े आदमियों की भाँति जंगली कबीलों के भी सरदार होते थे। कई कबीलों के सरदार जमींदार बन गए तथा कुछ तो राजा भी हो गए। इस स्थिति में उन्हें सेना का गठन करने की आवश्यकता हुई। उन्होंने अपने ही वंश के लोगों को सेना में भर्ती किया अथवा अपने ही भाई बन्धुओं से सैन्य सेवा की माँग की।

(4) सांस्कृतिक प्रभाव जंगली प्रदेशों में नए सांस्कृतिक प्रभावों के विस्तार की भी शुरुआत हुई कुछ इतिहासकारों की मान्यता है कि नए बसे हुए प्रदेशों के खेतिहर समुदायों ने जिस प्रकार धीरे-धीरे इस्लाम को ग्रहण किया, उसमें सूफी सन्तों (पीर) ने भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

प्रश्न 8.
मुगलकालीन जमींदारी व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
अथवा
मुगल भारत में जमींदारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मुगल भारत में जमींदारों की भूमिका मुगल भारत में जमींदारों की भूमिका का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) कमाई का स्रोत कृषि- मुगल भारत में जमींदारों की कमाई का स्रोत तो कृषि था, परन्तु वे कृषि उत्पादन में सीधे भागीदारी नहीं करते थे।
(2) विशेष सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त होना-ग्रामीण समाज में उच्च स्थिति के कारण जमींदारों को कुछ विशेष सामाजिक

और आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त थीं। समाज में जमींदारों की उच्च स्थिति के दो कारण थे –
(1) उनकी जाति तथा
(2) उनके द्वारा राज्य को दी जाने वाली कुछ विशेष प्रकार की सेवाएँ।
(3) जमींदारों की समृद्धि-जमींदार वर्ग समृद्धि का कारण उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन थी। इसे मिल्कियत कहते थे अर्थात् सम्पत्ति प्रायः इन जमीनों पर दिहाड़ी के मजदूर अथवा पराधीन मजदूर काम करते थे। जमींदार अपनी इच्छा के अनुसार इन जमीनों को बेच सकते थे, किसी अन्य व्यक्ति के नाम कर सकते थे अथवा उन्हें गिरवी रख सकते थे।
(4) जमींदारों की शक्ति के स्रोत जमींदारों की शक्ति का एक अन्य स्रोत यह था कि वे प्रायः राज्य की ओर से कर वसूल कर सकते थे। इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था। सैनिक संसाधन भी जमींदारों की शक्ति का एक और स्रोत था।
(5) मुगलकालीन गाँवों में सामाजिक सम्बन्धों की पिरामिड के रूप में कल्पना-यदि हम मुगलकालीन गाँवों में सामाजिक सम्बन्धों को एक पिरामिड के रूप में देखें, तो जमींदार इसके संकरे शीर्ष का हिस्सा थे अर्थात् जमींदारों का समाज में सर्वोच्च स्थान था।
(6) जमींदारों की उत्पत्ति का स्त्रोत- समसामयिक दस्तावेजों से ऐसा प्रतीत होता है कि युद्ध में विजय जमींदारों की उत्पत्ति का सम्भावित स्रोत रहा होगा। प्रायः जमींदारी फैलाने का एक तरीका था शक्तिशाली सैनिक सरदारों द्वारा कमजोर लोगों को बेदखल करना।
(7) जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया – जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया धीमी थी।

इसे निम्न तरीकों से पुख्ता किया जा सकता था –

  • नयी जमीनों को बसा कर
  • अधिकारों के हस्तान्तरण के द्वारा
  • राज्य के आदेश से
  • या फिर खरीद कर

(8) परिवार या वंश पर आधारित जमींदारियों का पुख्ता होना कई कारणों ने मिलकर परिवार या वंश पर आधारित जमदारियों को पुख्ता होने का अवसर दिया। उदाहरणार्थ, राजपूतों और जाटों ने ऐसी रणनीति अपनाकर उत्तर भारत में जमीन की बड़ी-बड़ी पट्टियों पर अपना नियन्त्रण पुख्ता किया।

(9) खेती योग्य जमीनों को बसाने में नेतृत्व प्रदान करना- जमींदारों ने खेती योग्य जमीनों को बसाने में नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने खेतिहरों को खेती के उपकरण व उधार देकर उन्हें वहाँ बसने में भी सहायता दी।

(10) गाँव के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आना- जमींदारी के क्रय-विक्रय से गाँवों के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई। इसके अतिरिक्त जमींदार अपनी मिल्कियत की जमीनों की फसल भी बेचते थे।

(11) बाजार (हाट) स्थापित करना- जमींदार प्रायः बाजार (हाट) स्थापित करते थे जहाँ किसान भी अपनी फसलें बेचने आते थे।

(12) किसानों से सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृक तथा संरक्षण का पुट होना- यद्यपि इसमें कोई सन्देह नहीं कि जमींदार शोषण करने वाला वर्ग था, परन्तु किसानों से उनके सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृकवाद तथा संरक्षण का पुट था। सत्रहवीं शताब्दी में भारी संख्या में कृषि विद्रोह हुए और उनमें राज्य के विरुद्ध जमींदारों को किसानों का समर्थन मिला।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

प्रश्न 9.
पंचायत और गाँव का मुखिया किस प्रकार से ग्रामीण समाज का नियमन करते थे? विवेचन कीजिए।
उत्तर:
पंचायत और गाँव का मुखिया –
(1) पंचायत गाँव की पंचायत बुजुगों की सभा होती थी। प्रायः वे गाँव के महत्त्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी सम्पत्ति के पैतृक अधिकार होते थे। जिन गाँवों में कई जातियों के लोग रहते थे, वहाँ प्राय पंचायत में भी विविधता पाई जाती थी यह एक ऐसा अल्पतन्त्र था, जिसमें गाँव के अलग-अलग सम्प्रदायों और जातियों का प्रतिनिधित्व होता था। पंचायत का निर्णय गाँव में सबको मानना पड़ता था।
(2) पंचायत का मुखिया पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था। मुखिया ‘मुकदम या मंडल’ कहलाता था। गाँव की आय व खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का प्रमुख काम था। इस काम में पंचायत का पटवारी उसकी सहायता करता था।
(3) पंचायत का खर्चा पंचायत का खर्चा गाँव के उस आम खजाने से चलता था जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान देता था।

  • इस आम खजाने से उन कर अधिकारियों की खातिरदारी का खर्चा भी किया जाता था, जो समय-समय पर गाँव का दौरा किया करते थे।
  • इस खजाने का प्रयोग बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदाओं से निपटने के लिए भी होता था।
  • इस कोष का प्रयोग ऐसे सामुदायिक कार्यों के लिए किया जाता था, जो किसान स्वयं नहीं कर सकते थे, जैसे कि मिट्टी के छोटे-मोटे बाँध बनाना या नहर खोदना।

(4) ग्रामीण समाज का नियमन –

  • जाति की अवहेलना को रोकना पंचायत का एक प्रमुख काम यह सुनिश्चित करना था कि गाँव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोग अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रहें।
  • जुर्माना लगाने तथा समुदाय से निष्कासित करने का अधिकार पंचायतों को जुर्माना लगाने तथा दोषी को समुदाय से निष्कासित करने जैसे अधिक गम्भीर दंड देने के अधिकार थे। समुदाय से निष्कासित करना एक कठोर कदम था, जो एक सीमित समय के लिए लागू किया जाता था। इस अवधि में वह अपनी जाति तथा व्यवसाय से हाथ धो बैठता था।

(5) जाति पंचायतें ग्राम पंचायत के अतिरिक्त गाँव में प्रत्येक जाति की अपनी पंचायत होती थी। समाज में ये जाति पंचायतें पर्याप्त शक्तिशाली होती थीं।

  • राजस्थान में जाति-पंचायतें भिन्न-भिन्न जातियों के लोगों के बीच दीवानी के झगड़ों का निपटारा करती थीं।
  • वे जमीन से जुड़े दावेदारियों के झगड़ों को सुलझाती थीं।
  • वे यह तय करती थीं कि विवाह जातिगत मानदंडों के अनुसार हो रहे हैं या नहीं।
  • फौजदारी न्याय को छोड़कर अधिकांश मामलों में राज्य जाति पंचायतों के निर्णयों को मानता था।

(6) पंचायतों से शिकायत करना पश्चिमी भारत विशेषकर राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रान्तों से प्राप्त दस्तावेजों में ऐसे कई प्रार्थना पत्र सम्मिलित हैं, जिनमें पंचायत से ‘ऊँची ‘ जातियों या राज्य के अधिकारियों के विरुद्ध जबरन कर वसूली अथवा बेगार वसूली की शिकायत की गई है।

किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य JAC Class 12 History Notes

→ किसान और कृषि उत्पादन सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी में भारत में लगभग 85 प्रतिशत लोग गाँवों में रहते थे। खेतिहर समाज की बुनियादी इकाई गाँव थी जिसमें किसान रहते थे। किसान जमीन की जुताई, बीज बोने फसल की कटाई करने आदि का कार्य करते थे। इसके अतिरिक्त वे कृषि आधारित वस्तुओं के उत्पादन में भी भाग लेते थे; जैसे शक्कर, तेल इत्यादि।

→ ग्रामीण समाज के स्रोत सोलहवीं और सत्रहवीं सदियों के कृषि इतिहास को समझने के लिए हमारे मुख्य स्रोत वे ऐतिहासिक ग्रन्थ व दस्तावेज हैं जो मुगल दरबार की निगरानी में लिखे गए थे। ‘आइन-ए-अकबरी’ इनमें से महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थों में एक था ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुलफजल ने की थी। इस ग्रन्थ में खेतों की नियंत्रित जुताई की व्यवस्था करने के लिए राज्य के प्रतिनिधियों द्वारा करों की वसूली के लिए और राज्य तथा जमींदारों के बीच के सम्बन्धों के नियमन के लिए जो प्रबन्ध राज्य ने किए थे, उनका लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

अन्य स्रोत थे –
(1) गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान आदि से मिलने वाले दस्तावेज तथा
(2) ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दस्तावेज

→ आइन-ए-अकबरी का उद्देश्य आइन-ए-अकबरी का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य की एक ऐसी रूपरेखा प्रस्तुत करनी थी जहाँ एक सुदृद सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बनाकर रखता था। किसानों के बारे में जो कुछ हमें ‘आइन’ से ज्ञात होता है, वह शासक वर्ग का दृष्टिकोण है।

→ किसान और उनकी जमीन मुगलकाल के भारतीय फारसी स्रोत किसान के लिए प्रायः रैयत या मुजरियान शब्द का प्रयोग करते थे। इसके साथ ही किसान या आसामी जैसे शब्दों का प्रयोग भी किया जाता था। सत्रहवीं शताब्दी के स्रोत दो प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं –
(1) खुद काश्त तथा
(2) पाहि काश्त।
खुद काश्त किसान उन्हीं गाँवों में रहते थे, जिनमें उनकी जमीनें थीं। पाहि काश्त किसान वे खेतिहर थे, जो दूसरे गाँवों से ठेके पर खेती करने आते थे लोग अपनी इच्छा से भी पाहि काश्त किसान बनते थे। उत्तर भारत के एक औसत किसान के पास शायद ही कभी एक जोड़ी बैल और दो हल से अधिक कुछ होता था। अधिकतर किसानों के पास इससे भी कम होता था। गुजरात में वे किसान समृद्ध माने जाते थे जिनके पास लगभग 6 एकड़ जमीन होती थी। दूसरी ओर बंगाल में एक औसत किसान की जमीन की ऊपरी सीमा 5 एकड़ थी। वहाँ 10 एकड़ जमीन वाले किसान को धनी माना जाता था। खेती निजी स्वामित्व के सिद्धान्त पर आधारित थी।

→ सिंचाई – जमीन की प्रचुरता, मजदूरों की उपलब्धता तथा किसानों की गतिशीलता के कारण कृषि का निरन्तर विस्तार हुआ चावल, गेहूँ, ज्वार इत्यादि फसलें सबसे अधिक उगाई जाती थीं। मानसून भारतीय कृषि की रीढ़ था जैसा कि आज भी है परन्तु कुछ ऐसी फसलें भी थीं, जिनके लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी इसलिए इनके लिए सिंचाई के कृत्रिम उपाय बनाने पड़े। उत्तर भारत में राज्य ने कई नहरें व नाले खुदवाये और कई पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई जैसे कि शाहजहाँ के शासनकाल में पंजाब में ‘शाह नहर’।

→ तकनीक किसान पशुबल पर आधारित तकनीकों का भी प्रयोग करते थे। वे लकड़ी के उस हल्के हल का प्रयोग करते थे जिसको एक छोर पर लोहे की नुकीली धार या फाल लगाकर बनाया जा सकता था चैलों के जोड़े के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था। परन्तु बीजों को हाथ से छिड़ककर बोने का रिवाज अधिक प्रचलित था। मिट्टी की गुड़ाई और निराई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार प्रयुक्त किये जाते थे।

→ फसलें — मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी – (1) खरीफ ( पतझड़ में) तथा (2) रबी (बसन्त में)। सूखे प्रदेशों और बंजर भूमि को छोड़कर अधिकतर स्थानों पर वर्ष में कम से कम दो फसलें होती थीं। जहाँ वर्षा या सिंचाई के अन्य साधन हर समय उपलब्ध थे, वहाँ तो वर्ष में तीन फसलें भी उगाई जाती थीं।

→ जिन्स-ए-कामिल स्रोतों में हमें प्राय: जिन्स-ए-कामिल (सर्वोत्तम फसलें) जैसे शब्द मिलते हैं। कपास और गन्ना जैसी फसलें ‘जिन्स-ए-कामिल थीं। तिलहन (जैसे सरसों) तथा दलहन भी नकदी फसलें कहलाती थीं। 9. विश्व के विभिन्न भागों से भारतीय उपमहाद्वीप में पहुँचने वाली फसलें सत्रहवीं शताब्दी में विश्व के विभिन्न भागों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुंचीं। उदाहरणार्थ, मक्का भारत में अफ्रीका और स्पेन के मार्ग से आया। टमाटर, आलू और मिर्च जैसी सब्जियाँ भी नई दुनिया से लाई गई। अनानास और पपीता जैसे फल भी वहीं से भारत लाए गए।

→ खेतिहर किसान- किसान एक सामूहिक ग्रामीण समुदाय के भाग थे। ग्रामीण समुदाय के तीन घटक थे –
(1) खेतिहर किसान
(2) पंचायत
(3) गाँव का मुखिया (मुकद्दम वा मंडल)।

खेतिहर किसान कई प्रकार के समूहों में बटे हुए थे। खेतों की जुताई करने वालों में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की थी, जो नीच समझे जाने वाले कामों में लगे थे अथवा फिर खेतों में काम करते थे। कुछ जातियों के लोगों को केवल नीच समझे जाने वाले काम ही दिए जाते थे। गाँव की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग ऐसे ही समूहों का था। इनके पास संसाधन सबसे कम थे और ये जाति व्यवस्था के प्रतिबन्धों से बँधे हुए थे। इनकी दशा न्यूनाधिक वैसी ही थी जैसी कि आधुनिक भारत में दलितों की। समाज के निम्न वर्गों में जाति, गरीबी तथा सामाजिक हैसियत के बीच सीधा सम्बन्ध था ऐसा बीच के समूहों में नहीं था। सत्रहवीं शताब्दी में मारवाड़ में लिखी गई एक पुस्तक में राजपूतों का उल्लेख किसानों के रूप में किया गया है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

→ पंचायतें और मुखिया – गाँव की पंचायत में बुजुर्ग लोग होते थे। प्रायः वे गाँव के प्रतिष्ठित एवं महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हुआ करते थे। उनके पास अपनी सम्पत्ति के पैतृक अधिकार होते थे। पंचायत का निर्णय गाँव में सबको मानना पड़ता था। पंचायत का सरदार (प्रधान) एक मुखिया होता था, जिसे मुकद्दम या मंडल कहते थे। प्रायः मुखिया का चुनाव गाँव के बुजुर्गों की आम सहमति से होता था। मुखिया अपने पद पर तभी तक बना रहता था जब तक कि गाँव के बुजुर्गों को उस पर भरोसा था। गाँव की आय व खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का प्रमुख कार्य था और इसमें पंचायत का पटवारी उसकी सहायता करता था।

पंचायत का खर्चा गाँव के उस सामान्य कोष से चलता था, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान देता था पंचायत का एक अन्य बड़ा काम यह सुनिश्चित करना था कि गाँव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोग अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रहें। पंचायतों को जुर्माना लगाने और समुदाय से निष्कासित करने जैसे गम्भीर दंड देने के अधिकार थे। ग्राम पंचायत के अतिरिक्त गाँव में हर जाति की अपनी पंचायत होती थी। समाज में ये पंचायतें काफी शक्तिशाली होती थीं। राजस्थान में जाति पंचायतें अलग-अलग जातियों के लोगों के बीच दीवानी के झगड़ों का निपटारा करती थीं तथा ये जमीन से सम्बन्धित दावेदारियों के झगड़ों का निपटारा करती थीं।

→ ग्रामीण दस्तकार – गाँवों में दस्तकार काफी अच्छी संख्या में रहते थे। कहीं-कहीं तो कुल घरों के 25 प्रतिशत पर दस्तकारों के थे। कई खेतिहर दस्तकारी का काम भी करते थे; जैसे – रंगरेजी, कपड़े पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाना, खेती के औजारों को बनाना या उनकी मरम्मत करना। कुम्हार, लुहार, बढ़ई, नाई, सुनार जैसे ग्रामीण दस्तकार भी अपनी सेवाएँ गाँव के लोगों को देते थे जिसके बदले गाँव वाले उन्हें विभिन्न तरीकों से उन सेवाओं की अदायगी करते थे। प्रायः या तो उन्हें फसल का एक भाग दे दिया जाता था या फिर गाँव की जमीन का एक टुकड़ा। – बंगाल में जमींदार उनकी सेवाओं के बदले लौहारों, बढ़ई और सुनारों को दैनिक भत्ता तथा भोजन के लिए नकदी देते थे। इस व्यवस्था को जजमानी कहते थे।

→ ग्राम ‘एक छोटा गणराज्य – उन्नीसवीं शताब्दी के कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय गाँवों को एक ऐसे ‘छोटे गणराज्य’ के रूप में देखा जहाँ लोग सामूहिक स्तर पर भाईचारे के साथ संसाधनों और श्रम का बँटवारा करते थे। परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि गाँव में सामाजिक बराबरी थी। सम्पत्ति का व्यक्तिगत स्वामित्व होता था और जाति तथा सामाजिक लिंग के नाम पर समाज में गहरी विषमताएँ थीं कुछ शक्तिशाली लोग गाँव की समस्याओं पर निर्णय लेते थे तथा दुर्बल वर्गों का शोषण करते थे। न्याय करने का भी अधिकार उन्हें ही प्राप्त था मुगलों के केन्द्रीय क्षेत्रों |में कर की गणना तथा वसूली भी नकद में की जाती थी।

→ कृषि समाज में महिलाएँ पुरुष खेत जोतते थे व हल चलाते थे तथा महिलाएँ बुआई, निराई और कटाई के साथ-साथ पकी हुई फसल का दाना निकालती थीं। सूत कातने, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने और गूंथने, कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के काम उत्पादन के ऐसे पहलू थे जो महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे। वास्तव में किसान और दस्तकार महिलाएँ आवश्यकता पड़ने पर न केवल खेतों में काम करती थीं, बल्कि नियोक्ताओं के घरों पर भी जाती थीं और बाजारों में भी कई ग्रामीण सम्प्रदायों में विवाह के लिए ‘वधू की कीमत अदा करने की आवश्यकता पड़ती थी, न कि दहेज की तलाकशुदा महिलाएँ और विधवाएँ दोनों ही वैधानिक रूप से विवाह कर सकती थीं।

इसका कारण यह था कि बच्चे पैदा करने की योग्यता के कारण महिलाओं को महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में देखा जाता था। महिलाओं की प्रजनन शक्ति के महत्व को ध्यान में रखते हुए महिला पर परिवार और समुदाय के पुरुषों द्वारा प्रबल नियंत्रण रखा जाता था। बेवफाई के संदेह पर ही महिलाओं को भवानक दंड दिए जा सकते थे। भूमिहर भद्रजनों में महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार था। पंजाब में महिलाएँ पैतृक सम्पत्ति के विक्रेता के रूप में ग्रामीण भूमि के बाजार में सक्रिय भागेदारी रखती थीं। वे उसे बेचने अथवा गिरवी रखने के लिए स्वतंत्र थीं। बंगाल में भी महिला जमींदार पाई जाती थीं। अठारहवीं शताब्दी की सबसे बड़ी और प्रसिद्ध जमींदारियों में राजशाही की जमींदारी थी जिसकी कर्त्ता-धर्ता एक महिला थी।

→ जंगल और कबीले इस काल में जमीन के विशाल भाग जंगल या झाड़ियों से घिरे थे उस समय जंगलों के प्रसार का औसत लगभग 40 प्रतिशत था। समसामयिक रचनाएँ जंगल में रहने वालों के लिए ‘जंगली’ शब्द का प्रयोग करती थीं। परन्तु जंगली होने का अर्थ सभ्यता का न होना बिल्कुल नहीं था। उन दिनों इस शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता था जिनका जीवन निर्वाह जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानान्तरित खेती से होता था ये काम ऋतु के अनुसार होते थे। उदाहरण के लिए भीलों में बसन्त के मौसम में जंगल के उत्पाद इकट्ठे किये जाते। गर्मियों में मछिलयाँ पकड़ी जातीं, मानसून के महीनों में खेती की जाती और शरद व जाड़े के महीनों में शिकार किया जाता था। लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहना, इन जंगलों में रहने वाले कबीलों की एक विशेषता थी। राज्य के लिए जंगल बदमाशों को शरण देने वाला अड्डा था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

→ जंगलों में घुसपैठ जंगलों में बाहरी शक्तियाँ कई प्रकार से प्रवेश करती थीं। उदाहरण के लिए, राज्य को सेना के लिए हाथियों की आवश्यकता होती थी इसलिए जंगलवासियों से ली जाने वाली पेशकश में प्रायः हाथी भी शामिल होते थे।

→ शिकार अभियान-मुगल राजनीतिक विचारधारा में प्रजाजनों से न्याय करने का राज्य के गहरे सरोकार का एक लक्षण ‘शिकार अभियान’ था दरबारी इतिहासकारों के अनुसार शिकार अभियान के नाम पर मुगल सम्राट अपने विशाल साम्राज्य के भिन्न-भिन्न प्रदेशों का दौरा करते थे और इस प्रकार वहाँ के लोगों की समस्याओं और शिकायतों पर व्यक्तिगत रूप से मनन करते थे।

→ जंगलवासियों पर वाणिज्यिक खेती का प्रभाव- वाणिज्यिक खेती का प्रभाव जंगलवासियों के जीवन पर भी पड़ता था। शहद, मधु, मोम और लाक जैसे जंगलों के उत्पादों की बहुत माँग थी। हाथी भी पकड़े और बेचे जाते थे व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं का विनिमय भी होता था।

→ सामाजिक प्रभाव कई कबीलों के सरदार जमींदार बन गए, कुछ तो राजा भी हो गए, उन्होंने अपनी सेनाओं का गठन किया। उन्होंने अपने ही खानदान के लोगों को सेना में भर्ती किया। सिन्ध प्रदेश की कबीलाई सेनाओं में 6000 घुड़सवार तथा 7000 पैदल सैनिक होते थे। असम में अहोम राजाओं के अपने ‘पायक’ होते थे ये वे लोग थे जिन्हें जमीन के बदले सैनिक सेवा देनी पड़ती थी।

→ सांस्कृतिक प्रभाव कुछ इतिहासकारों के अनुसार नये बसे क्षेत्रों के खेतिहर समुदायों ने जिस प्रकार धीरे- धीरे इस्लाम को अपनाया, उसमें सूफी सन्तों ने एक बड़ी भूमिका निभाई थी।

→ जमींदार जमींदार अपनी जमीन के स्वामी होते थे। इन्हें ग्रामीण समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त थी तथा कुछ विशेष सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ भी प्राप्त थीं, जमींदारों की बढ़ी हुई प्रतिष्ठा के कारण थे –
(1) जाति
(2) उनके द्वारा राज्य को कुछ विशेष प्रकार की सेवाएँ देना।
जमींदारों के पास विस्तृत व्यक्तिगत जमीन थी। यह उनकी समृद्धि का कारण था। उनकी व्यक्तिगत जमीन ‘मिल्कियत’ कहलाती थी मिल्कियत जमीन पर जमींदार के निजी प्रयोग के लिए खेती होती थी। प्रायः इन जमीनों पर दिहाड़ी के मजदूर या पराधीन मजदूर काम करते थे। जमींदार अपनी इच्छानुसार इन जमीनों को बेच सकते थे, किसी और के नाम कर सकते थे या इन्हें गिरवी रख सकते थे।

→ जमींदार की शक्ति के स्रोत जमींदारों की शक्ति के स्रोत थे –
(1) वे प्राय: राज्य की ओर से कर वसूल करते थे। इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था।
(2) सैनिक संसाधन भी उनकी शक्ति के स्रोत थे। अधिकतर जमींदारों के पास अपने किले भी थे और अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भी थीं जिनमें घुड़सवारों, तोपखाने तथा पैदल सैनिकों के जत्थे होते थे।

→ सामाजिक स्थिति यदि हम मुगल कालीन गाँवों में सामाजिक सम्बन्धों की कल्पना एक पिरामिड के रूप में करें, तो जमींदार इसके संकरे शीर्ष का भाग थे अर्थात् उनका स्थान सबसे ऊँचा था।

→ जमींदारों की उत्पत्ति के स्रोत जमींदारों की उत्पत्ति के स्रोत थे –
(1) युद्ध में जमींदारों की विजय
(2) शक्तिशाली सैनिक सरदारों द्वारा दुर्बल लोगों को बेदखल करना।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

→ जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया – जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया धीमी थी। यह काम कई प्रकार से किया जा सकता था –

  1. नई जमीनों को बसाकर
  2. अधिकारों के हस्तान्तरण द्वारा
  3. राज्य के आदेश से
  4. भूमि खरीदकर यही वे प्रक्रियाएँ थीं जिनके द्वारा अपेक्षाकृत निम्न जातियों के लोग भी जमींदारी वर्ग में सम्मिलित हो सकते थे क्योंकि इस काल में जमींदारी खुलेआम खरीदी और बेची जाती थी।

→ परिवार या वंश पर आधारित जमींदारियों को पुख्ता होने का अवसर मिलना-कई कारणों ने मिलकर परिवार या वंश पर आधारित जमींदारियों को पुख्ता होने का अवसर दिया। उदाहरण के तौर पर राजपूतों और जाटों ने ऐसी रणनीति अपनाकर उत्तर भारत में जमीन की बड़ी-बड़ी पट्टियों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। इसी प्रकार मध्य तथा दक्षिण-पश्चिम बंगाल में किसान पशुचारियों (जैसे सद्गोप) ने शक्तिशाली जमींदारियाँ खड़ी कीं।

→ जमींदारों का योगदान –

  1. जमींदारों ने कृषि योग्य जमीनों को बसाने में नेतृत्व प्रदान किया और खेतिहरों को खेती के उपकरण व उधार देकर उन्हें वहाँ बसने में भी सहायता की।
  2. जमींदारी के क्रय-विक्रय से गाँवों के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई
  3. जमींदार अपनी मिल्कियत की जमीनों की फसल भी बेचते थे।
  4. जमींदार प्राय: बाजार (हाट) स्थापित करते थे जहाँ किसान भी अपनी फसलें बेचने आते थे।

→ जमींदारों से किसानों के सम्बन्ध-यद्यपि जमींदार शोषण करने वाला वर्ग था, परन्तु किसानों से उनके सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृकवाद तथा संरक्षण का पुट था भक्ति संतों ने जमींदारों को किसानों के शोषक या उन पर अत्याचार करने वाले के रूप में नहीं दर्शाया। इसके अतिरिक्त सत्रहवीं सदी में हुए कृषि विद्रोहों में राज्य के विरुद्ध जमींदारों को प्रायः किसानों का समर्थन मिला।

→ भू-राजस्व प्रणाली जमीन से मिलने वाला राजस्व मुगल साम्राज्य की आर्थिक नींव थी सम्पूर्ण साम्राज्य में राजस्व के आकलन व वसूली के लिए उचित व्यवस्था की गई थी। दीवान के कार्यालय पर सम्पूर्ण साम्राज्य की वित्तीय व्यवस्था की देख-रेख की जिम्मेदारी थी।

भू-राजस्व के प्रबन्ध के दो चरण थे –
(1) कर निर्धारण
(2) वास्तविक वसूली ‘जमा’ निर्धारित रकम थी तथा ‘हासिल’ वास्तव में वसूली गई रकम थी।

राजस्व निर्धारित करते समय राज्य अपना भाग अधिक से अधिक रखने का प्रयास करता था प्रत्येक प्रान्त में जुती हुई जमीन और जोतने योग्य जमीन दोनों की नपाई की गई। अकबर के शासनकाल में अबुलफजल ने अपने ग्रन्थ ‘आइन-ए-अकबरी’ में ऐसी जमीनों के सभी आँकड़े संकलित किए। अकबर के बाद के शासकों के शासनकाल में भी जमीन की नपाई के प्रयास जारी रहे। 1665 में औरंगजेब ने अपने राजस्व कर्मचारियों को स्पष्ट निर्देश दिया कि हर गाँव में खेतिहरों की संख्या का वार्षिक हिसाब रखा जाए।

→ अकबर के शासनकाल में भूमि का वर्गीकरण-अकबर के शासनकाल में भूमि का वर्गीकरण किया गया –
(1) पोलज
(2) परौती
(3) चचर
(4) बंजर पोलज भूमि को कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था तथा परौती भूमि पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती थी। चचर भूमि वह थी जिसे तीन या चार वर्षों तक खाली रखा जाता था। बंजर भूमि वह भूमि थी जिस पर पाँच या दस से अधिक वर्षों से खेती नहीं की गई थी।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

पोलज और परती भूमि की तीन किस्में थीं –
(1) अच्छी
(2) मध्यम
(3) खराब हर प्रकार की जमीन की उपज को जोड़ दिया जाता था तथा इसका तीसरा भाग ओसत उपज माना जाता था इसका एक तिहाई भाग राजकीय शुल्क माना जाता था।

→ अमीन – अमीन एक सरकारी कर्मचारी था। उसे यह सुनिश्चित करना होता था कि प्रान्तों में राजकीय नियम-कानूनों का पालन हो रहा है।

→ राजस्व वसूल करने की प्रणालियां मुगल काल में राजस्व वसूल करने की प्रमुख प्रणालियाँ थीं –
(1) कणकुत प्रणाली
(2) बटाई प्रणाली
(3) खेत बटाई
(4) लांग बटाई।

→ मनसबदारी व्यवस्था मुगल प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर एक सैनिक नौकरशाही तंत्र ( मनसबदारी ) था, जिस पर राज्य के सैनिक व नागरिक मामलों की जिम्मेदारी थी कुछ मनसबदारों को नकदी भुगतान किया जाता था, जबकि उनमें से अधिकांश मनसबदारों को साम्राज्य के विभिन्न भागों में राजस्व के आवंटन के द्वारा भुगतान किया | जाता था। समय-समय पर मनसबदारों का तबादला किया जाता था।

→ चाँदी का बहाव खोजी यात्राओं तथा नयी दुनिया की खोज से यूरोप के साथ भारत के व्यापार में अत्यधिक विस्तार हुआ। इस कारण भारत के समुद्रपार व्यापार में एक ओर भौगोलिक विविधता आई, तो दूसरी ओर अनेक नई वस्तुओं का व्यापार भी शुरू हो गया। निरन्तर बढ़ते व्यापार के साथ, भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान न करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चाँदी आई। इस चाँदी का एक बड़ा भाग भारत की ओर खिंच गया।

परिणामस्वरूप सोलहवीं से अठारहवीं सदी के बीच भारत में धातु मुद्रा विशेषकर चाँदी के रुपयों की उपलब्धि में अच्छी स्थिरता बनी रही इसके साथ ही एक ओर तो अर्थ व्यवस्था में मुद्रा संचार और सिक्कों की ढलाई में अभूतपूर्व विस्तार हुआ, तो दूसरी ओर मुगल राज्य को नकदी कर वसूलने में आसानी हुई। इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी ने लिखा है कि संसार भर में विचरने वाला सारा सोना-चांदी अन्ततः भारत में पहुँच जाता है। इसी यात्री से हमें यह भी ज्ञात होता है कि सत्रहवीं सदी के भारत में बड़ी अद्भुत मात्रा में नकद और वस्तुओं का आदान-प्रदान हो रहा था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

→ अबुल फजल की आइन-ए-अकबरी अकबर के शासन के बयालीसवें वर्ष, 1598 ई. में पाँच संशोधनों के बाद, इस ग्रन्थ को पूरा किया गया। इस ग्रन्थ में दरबार, प्रशासन, सेना के संगठन, राजस्व के स्रोत, अकबरकालीन प्रान्तों के भूगोल, लोगों के साहित्यिक, सांस्कृतिक व धार्मिक रिवाजों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है। अकबर के प्रशासन के समस्त विभागों और प्रान्तों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। यह ग्रन्थ अकबर के शासन के अन्तर्गत | मुगल साम्राज्य के बारे में सूचनाओं की खान है। आइन-ए-अकबरी पाँच भागों में विभाजित है। इसके पहले तीन भागों में मुगल प्रशासन का विवरण मिलता है। चौथे और पाँचवें भागों में भारत के लोगों के धार्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का वर्णन है। इनके अन्त में अकबर के ‘शुभ वचनों का एक संग्रह भी है।

कालरेखा 1
मुगल साम्राज्य के इतिहास के मुख्य पड़ाव

1526 दिल्ली के सुल्तान, इब्राहीम लोदी को पानीपत में हराकर बाबर का पहला मुगल बादशाह बनना
1530-40 हुमायूँ के शासन का पहला चरण
1540-55 शेरशाह से हार कर हुमायूँ का सफावी दरबार में प्रवासी बनकर रहना
1555-56 हुमायूँद्वारा खोये हुए राज्य को फिर से प्राप्त करना
1556-1605 अकबर का शासनकाल
1605-1627 जहाँगीर का शासनकाल
1628-1658 शाहजहाँ का शासनकाल
1658-1707 औरंगजेब का शासनकाल
1739 नादिरशाह द्वारा भारत पर आक्रमण करना और दिल्ली को लूटना
1761 अहमद शाह अब्दाली द्वारा पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को पराजित करना
1765 बंगाल के दीवानी अधिकार ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सौंपे जाना
1857 अंग्रेजों द्वारा अन्तिम मुगल बादशाह शाह जफर को गद्दी से हटाना और देश निकाला देकर रंगून (आज का यांगोन, म्यांमार में) भेजना।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया Textbook Exercise Questions and Answers

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

Jharkhand Board Class 12 Political Science समकालीन दक्षिण एशिया InText Questions and Answers

पृष्ठ 66

प्रश्न 1.
दक्षिण एशिया के देशों की कुछ ऐसी विशेषताओं की पहचान करें जो इस क्षेत्र के देशों में तो समान रूप से लागू होती हैं परन्तु पश्चिम एशिया अथवा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों पर लागू नहीं होतीं।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के देशों में सद्भाव एवं शत्रुता, आशा व निराशा तथा पारस्परिक शंका और विश्वास साथ- साथ पाये जाते हैं जो पश्चिम एशिया अथवा दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में इस रूप में नहीं पाये जाते हैं।

पृष्ठ 69

प्रश्न 2.
सेना के जेनरल और पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में पाकिस्तान के शासक परवेज मुशर्रफ की दोहरी भूमिका की ओर यह कार्टून ( पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 69 ) संकेत करता है। कार्टून में दिए गए समीकरण को ध्यान से पढ़ें और कार्टून के संदेश को लिखें।
उत्तर:
इस कार्टून में सेना के जेनरल और पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में पाकिस्तान के शासक परवेज मुशर्रफ की दोहरी भूमिका की ओर संकेत करता है कि इस दोहरी भूमिका में मुख्य भूमिका सेना के जेनरल की ही है क्योंकि यदि राष्ट्रपति के पद से सेना के जेनरल के पद को घटा दिया जाये तो राष्ट्रपति की शक्ति शून्य रह जाती है और यदि सेना के जेनरल के पद पर रहते हुए मुशर्रफ राष्ट्रपति नहीं रहते हैं तो भी वे शक्ति सम्पन्न बने रहेंगे और जब मुशर्रफ दोनों पदों को धारण कर लेते हैं तो उनकी शक्ति दुगुनी हो जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान के प्रशासन में सेना का दबदबा है।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

पृष्ठ 75

प्रश्न 3.
ऐसा क्यों है कि हर पड़ोसी देश को भारत से कुछ-न-कुछ परेशानी है? क्या हमारी विदेश नीति में कुछ गड़बड़ी है? या यह केवल हमारे बड़े होने के कारण है?
उत्तर:
इसका पहला कारण दक्षिण एशिया का भूगोल है जहाँ भारत बीच में स्थित है और बाकी देश भारत की सीमा के इर्द-गिर्द पड़ते हैं। दूसरे, दक्षिण एशिया के अन्य पड़ोसी देशों की तुलना में भारत काफी बड़ा है और वह शक्तिशाली है। इसकी वजह से अपेक्षाकृत छोटे देशों का भारत के इरादों को लेकर शक करना लाजिमी है। तीसरे, भारत नहीं चाहता कि उसके पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो। उसे भय लगता है कि ऐसी स्थिति में बाहरी ताकतों को इस क्षेत्र में प्रभाव जमाने में मदद मिलेगी। भारत इस अस्थिरता को रोकने के जो प्रयास करता हैं, उसमें छोटे देशों को लगता है कि भारत दक्षिण एशिया में दबदबा कायम करना चाहता है। चौथे, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन दक्षिण एशिया की राजनीति में जिस प्रकार अपनी भूमिका निभा रहे हैं, उससे भी भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच कड़वाहट पैदा होती रही है।

पृष्ठ 77

प्रश्न 4.
अगर अमरीका के बारे में लिखे गए अध्याय को ‘अमरीकी वर्चस्व’ का शीर्षक दिया गया तो इस अध्याय को भारतीय वर्चस्व क्यों नहीं कहा गया?
उत्तर:
अमरीका के बारे में लिखे गये अध्याय को ‘अमरीकी वर्चस्व’ का शीर्षक इसलिए दिया गया कि विश्व में इस समय अमेरिका ही एकमात्र महाशक्ति है। सैनिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में उसकी वर्चस्वकारी स्थिति है तथा आज सभी देश अमरीकी ताकत के समक्ष बेबस हैं। उसका व्यवहार असहनीय होने के बावजूद सहन करना पड़ रहा है और अन्य देश उसके इस असहनीय व्यवहार का प्रतिरोध भर कर सकते हैं।

यद्यपि दक्षिण एशिया में सैन्य, आर्थिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से भारत की शक्ति अन्य देशों की तुलना में प्रबल है, वर्चस्वकारी है, लेकिन भारत ने अपने इन पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में कभी हस्तक्षेप नहीं किया, बल्कि उनके साथ बराबरी का व्यवहार किया है। इसीलिए इस अध्याय को भारतीय वर्चस्व नहीं कहा गया है।

पृष्ठ 78

प्रश्न 5.
भारत और पाकिस्तान से लिए गए दो कार्टून ( पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 78 पर ) इस क्षेत्र में दिलचस्पी रखने वाले दो बाहरी खिलाड़ियों की भूमिका की व्याख्या करते हैं। ये बाहरी खिलाड़ी कौन हैं? क्या आपको इन दोनों के दृष्टिकोण में कुछ समानता दिखाई देती है?
उत्तर:

  1. ये दोनों कार्टून भारत तथा पाकिस्तान में दिलचस्पी रखने वाले दो बाहरी खिलाड़ियों की भूमिका की व्याख्या करते हैं
  2. ये बाहरी खिलाड़ी चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं।
  3. इन दोनों के दृष्टिकोण में समानता यह है कि दोनों इस क्षेत्र में दखल देकर अपना प्रभाव बनाए रखना चाहते हैं। दोनों ही भारत के विरुद्ध पाकिस्तान को आर्थिक तथा शस्त्रास्त्रों का सहयोग देकर उसे भारत के विरोध में खड़ा करने की शक्ति प्रदान करते रहे हैं।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

पृष्ठ 78

प्रश्न 6.
लगता है हर संगठन व्यापार के लिए ही बनता है? क्या व्यापार लोगों के आपसी मेलजोल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
विश्व के अधिकांश संगठन व्यापार के लिए ही बनाए गए हैं। इसलिए ऐसा लगता है कि हर संगठन व्यापार के लिए ही बनता है। यद्यपि व्यापार लोगों के आपसी मेलजोल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है तथापि व्यापार के माध्यम से लोगों का आपसी मेल-जोल भी बढ़ता है, इसलिए इसका महत्त्व अधिक हो जाता है।

Jharkhand Board Class 12 Political Science समकालीन दक्षिण एशिया Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
देशों की पहचान करें-
(क) राजतंत्र, लोकतंत्र – समर्थक समूहों और अतिवादियों के बीच संघर्ष के कारण राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बना।
उत्तर:
(क) नेपाल,

(ख) चारों तरफ भूमि से घिरा देश।
उत्तर:
(ख) नेपाल, भूटान

(ग) दक्षिण एशिया का वह देश जिसने सबसे पहले अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया।
उत्तर:
(ग) श्रीलंका,

(घ) सेना और लोकतंत्र – समर्थक समूहों के बीच संघर्ष में सेना ने लोकतंत्र के ऊपरी बाजी मारी।
उत्तर:
(घ) पाकिस्तान,

(ङ) दक्षिण एशिया के केंद्र में अवस्थित । इस देश की सीमाएँ दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों से मिलती हैं।
उत्तर:
(ङ) भारत,

(च) पहले इस द्वीप में शासन की बागडोर सुल्तान के हाथ में थी । अब यह एक गणतंत्र है।
उत्तर:
(च) मालदीव,

(छ) ग्रामीण क्षेत्र में छोटी बचत और सहकारी ऋण की व्यवस्था के कारण इस देश को गरीबी कम करने में मदद मिली है।
उत्तर:
(छ) बांग्लादेश,

(ज) एक हिमालयी देश जहाँ संवैधानिक राजतंत्र है। यह देश भी हर तरफ से भूमि से घिरा है।
उत्तर:
(ज) भूटान।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 2.
दक्षिण एशिया के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(क) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।
(ख) बांग्लादेश और भारत ने नदी जल की हिस्सेदारी के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
(ग) ‘साफ्टा’ पर हस्ताक्षर इस्लामाबाद के 12वें सार्क सम्मेलन में हुए।
(घ) दक्षिण एशिया की राजनीति में चीन और संयुक्त राज्य अमरीका महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर:
(क) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।

प्रश्न 3.
पाकिस्तान के लोकतंत्रीकरण में कौन-कौनसी कठिनाइयाँ हैं ?
अथवा
पाकिस्तान में लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियों का वर्णन कीजिये।
अथवा
दक्षिण एशियायी देश पाकिस्तान लोकतान्त्रिक व्यवस्था को लगातार स्थापित क्यों नहीं रख सका? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पाकिस्तान निम्नलिखित कठिनाइयों के कारण प्रजातान्त्रिक व्यवस्था को लगातार स्थापित नहीं रख सका:

  1. सैनिक तानाशाही – पाकिस्तान में सदैव ही सेना का प्रभुत्व रहा है। वहाँ सैनिक तानाशाही ने लोकतंत्र के मार्ग में सर्वाधिक रुकावटें पैदा की हैं। पाकिस्तान और भारत के कड़वाहट भरे सम्बन्धों की आड़ में पाकिस्तानी सेना ने सदैव पाकिस्तान में अपना दबदबा बनाये रखा तथा किसी भी निर्वाचित सरकार को ठीक ढंग से काम नहीं करने दिया।
  2. लोकतंत्र के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समर्थन का अभाव – पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शासन चले – इसके लिये कोई खास अंतर्राष्ट्रीय समर्थन नहीं मिलता। अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों ने अपने-अपने स्वार्थों से गुजरे वक्त में पाकिस्तान में सैनिक शासन को बढ़ावा दिया।
  3. धर्मगुरुओं एवं अभिजन का प्रभाव – पाकिस्तानी समाज में भू-स्वामी अभिजनों और धर्मगुरुओं का काफी प्रभुत्व रहता है। ये लोग सेना के शासन के पक्षधर रहे हैं।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 4.
नेपाल के लोग अपने देश में लोकतंत्र को बहाल करने में कैसे सफल हुए?
उत्तर:
एक मजबूत लोकतंत्र समर्थक आंदोलन से विवश होकर नेपाल के राजा ने 1990 में नये लोकतंत्र संविधान की मांग मान ली। लेकिन नेपाल में लोकतांत्रिक सरकारों का कार्यकाल बहुत छोटा और समस्याओं से भरा हुआ रहा। 1990 के दशक में ही राजा की सेना, लोकतंत्र समर्थकों और भाओवादियों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। 2002 में राजा ने संसद को भंग कर दिया और लोकतंत्र को समाप्त कर दिया। अप्रैल 2006 में यहाँ सात दलों के गठबंधन, माओवादी तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने देशव्यापी लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन किये और राजा ज्ञानेन्द्र ने बाध्य होकर संसद को बहाल किया। इस प्रकार नेपाल के लोग अपने देश में लोकतंत्र को बहाल करने में समर्थ हुए।

प्रश्न 5.
श्रीलंका के जातीय संघर्ष में किनकी भूमिका प्रमुख है?
उत्तर – श्रीलंका के जातीय संघर्ष में सिंहली – बहुसंख्यकवाद और तमिल – आतंकवाद दोनों की ही प्रमुख भूमिका रही है । श्रीलंका में सिंहली समुदाय बहुसंख्यक है जो अल्पसंख्यक तमिलों के खिलाफ है । सिंहली राष्ट्रवादियों का मानना था कि श्रीलंका में तमिलों के साथ कोई रियायत’ नहीं बरती जानी चाहिये क्योंकि श्रीलंका सिर्फ सिंहली लोगों का है। तमिलों के प्रति उपेक्षा भरे बरताव से एक उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद हुई।

1983 के बाद से उग्र तमिल संगठन ‘लिबरेशन टाईगर्स ऑव तमिल ईलम’ (लिट्टे) ने ‘तमिल ईलम’ यानी’ श्रीलंका के तमिलों के लिये एक अलग देश की मांग की है। श्रीलंका के उत्तर-1 -पूर्वी हिस्से पर लिट्टे का नियंत्रण है। धीरे-धीरे श्रीलंका में जातीय संघर्ष तेज होने लगा और विस्फोटक तथा व्यापक हत्याएँ की जाने लगीं। भारत और श्रीलंका में इस जातीय संघर्ष समाप्त करने के लिए काफी प्रयास किये गये लेकिन सफलता प्राप्त नहीं हुई। लेकिन सन् 2009 में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन के सैनिक कार्यवाही में मारे जाने के पश्चात् यह समस्या समाधान के कगार पर है।

प्रश्न 6.
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल में क्या समझौते हुये?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल में निम्नलिखित समझौते हुये

  1. 2004 में श्रीनगर-मुजफ्फराबाद के बीच बस सेवा की शुरुआत पर दोनों देशों में सहमति बनी।
  2. भारत-पाक ने परस्पर आर्थिक समझौते किये।
  3. भारत-पाक ने साहित्य, कला एवं संस्कृति तथा खिलाड़ियों को वीजा देने के लिये आपस में समझौता किया।
  4. भारत-पाक युद्ध के खतरे को कम करने के लिये परस्पर विश्वास बहाली के उपायों पर सहमत हुये हैं।
  5. सन् 2005 में बम्बई और कराची में वाणिज्य दूतावास खोलने पर दोनों देशों में सहमति हुई।

प्रश्न 7.
ऐसे दो मसलों के नाम बताएँ जिन पर भारत-बांग्लादेश के बीच आपसी सहयोग है और इसी तरह दो ऐसे मसलों के नाम बताएँ जिन पर असहमति है।
उत्तर:
(1) सहयोग के मुद्दे-
(क) आपदा प्रबंधन और पर्यावरण के मुद्दे पर दोनों देशों ने निरंतर सहयोग किया है।
(ख) आर्थिक सम्बन्ध के क्षेत्र में दोनों देश परस्पर सहयोगी रहे हैं। बांग्लादेश भारत की ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति का हिस्सा है।

(2) असहयोग के मुद्दे –
(क) भारतीय सेना को पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके से रास्ता देने से बांग्लादेश का इन्कार।
(ख) गंगा, ब्रह्मपुत्र नदी के जल के बँटवारे की समस्या।

प्रश्न 8.
दक्षिण एशिया में द्विपक्षीय संबंधों को बाहरी शक्तियाँ कैसे प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों दक्षिण एशिया में द्विपक्षीय संबंधों को अत्यधिक प्रभावित करते हैं-
1. चीन की रणनीतिक साझेदारी पाकिस्तान के साथ है और यह भारत-चीन संबंधों में एक बड़ी कठिनाई है।

2. शीत युद्ध के बाद दक्षिण एशिया में अमरीकी प्रभाव तेजी से बढ़ा है। अमरीका ने शीत युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों से अपने संबंध बेहतर किये हैं। वह भारत-पाक के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है। उसके प्रभाव स्वरूप ही दोनों देशों में आर्थिक सुधार हुए हैं और उदार नीतियाँ अपनायी गयी हैं। इससे दक्षिण एशिया में अमरीकी भागीदारी ज्यादा गहरी हुई है। साथ ही इस क्षेत्र की सुरक्षा एवं शांति के भविष्य से अमेरिका के हित भी बंधे हुए हैं।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 9.
दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस (सार्क) की भूमिका और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। दक्षिण एशिया की बेहतरी में ‘दक्षेस’ (सार्क) ज्यादा बड़ी भूमिका निभा सके, इसके लिये आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर:
आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में सार्क की भूमिका दक्षिण एशिया के देशों में आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। साफ्टा – दक्षेस के सदस्य देशों ने सन् 2002 में ‘दक्षिण एशियायी मुक्त व्यापार क्षेत्र – समझौता (SAFTA) हुआ। इस पर 2004 में हस्ताक्षर हुए तथा यह समझौता 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी हो गया। इस समझौते का लक्ष्य है कि इन देशों के बीच आपसी व्यापार में लगने वाले सीमा शुल्क को 2007 तक 20 प्रतिशत कम कर दिया जाये।

अन्य कार्य – सार्क के देशों ने अपने शिखर सम्मेलनों में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विरुद्ध क्षेत्रीय कानूनी खाका तैयार करने, ऊर्जा व खाद्यान्न संकट की चुनौतियों का एकजुट होकर मुकाबला करने, क्षेत्र के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए व्यापक कार्य योजना बनाने तथा सुरक्षा, गरीबी, उन्मूलन व आपदा प्रबन्धन की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।

  • दक्षेस की सीमाएँ
    1. इस क्षेत्र के दो बड़े देशों भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण सम्बन्ध हैं।
    2. सार्क के कुछ देशों का मानना है कि साफ्टा के माध्यम से भारत यहाँ के बाजार को हस्तगत करना चाहता है तथा यहाँ की राजनीति को प्रभावित करना चाहता है।
    3. दक्षेस के देशों में दक्षिण एशियाई पहचान की कमी है। सार्क देशों की समस्याओं के कारण चीन तथा अमेरिका इस क्षेत्र की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
    4. सार्क के अधिकांश देशों में आंतरिक अशान्ति और अस्थिरता और आतंकवाद इसके विकास के मार्ग में प्रमुख बाधा बने हुए हैं।
  • सार्क की सफलता के लिए सुझाव
    1. भारत और पाक अपने राजनैतिक या सीमा सम्बन्धी विवादों को सार्क से दूर रखें।
    2. सार्क देशों को भारत पर विश्वास करना चाहिए।
    3. इन देशों में आन्तरिक शांति तथा स्थिरता की स्थापना हो।
    4. सार्क देशों को इस क्षेत्र से निरक्षरता, बेरोजगारी तथा गरीबी जैसी समस्याओं से निपटने पर एकजुट प्रयास करने पर बल देना चाहिए।

प्रश्न 10.
दक्षिण एशिया के देश एक-दूसरे पर अविश्वास करते हैं। इससे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यह क्षेत्र एकजुट होकर अपना प्रभाव नहीं जमा पाता इस कथन की पुष्टि में कोई भी दो उदाहरण दें और दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के लिए उपाय सुझाएँ।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के देश एक-दूसरे पर अविश्वास करते हैं जिसके कारण ये देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर एक स्वर में नहीं बोल पाते और इस कारण यह क्षेत्र वहाँ एकजुट होकर अपना प्रभाव नहीं जमा पाता उदाहरण के लिए-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत और पाक के विचार सदैव एक-दूसरे के विपरीत होते हैं।
  2. दक्षेस के अन्य सदस्य देशों को हमेशा यह डर सताता रहता है कि भारत कहीं बड़े होने का दबाव हम पर न बनाए।

दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के उपाय – यदि हम दक्षिण एशिया को मजबूत बनाना चाहते हैं तो इसके लिए यह आवश्यक है कि;

  1. सभी देश आपस में एक-दूसरे पर विश्वास करें।
  2. सभी देशों को दक्षेस के मंच पर परस्पर के विवादों को अलग रखते हुए व्यापारिक, सामाजिक-सांस्कृतिक सहयोग की दिशा में सार्थक पहल करनी चाहिए।
  3. ये मिलकर वार्ता द्वारा अपनी समस्याओं के समाधान की दिशा में पहल करें।
  4. बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप पर रोक लगाएं।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 11.
दक्षिण एशिया के देश भारत को एक बाहुबली समझते हैं जो इस क्षेत्र के छोटे देशों पर अपना दबदबा जमाना चाहता है और उनके अंदरूनी मामलों में दखल देता है। इन देशों की ऐसी सोच के लिये कौन-कौन सी बातें जिम्मेदार हैं?
उत्तर:
दक्षिण एशिया के देश भारत को एक बाहुबली समझते हैं जो इस क्षेत्र के छोटे देशों पर अपना दबदबा जमाना चाहता है और उनके अंदरूनी मामलों में दखल देता है। इन देशों की ऐसी सोच के लिए निम्नलिखित बातें जिम्मेदार हैं-
1. भारत का आकार बड़ा है और वह दक्षिण एशिया का सर्वाधिक शक्तिशाली परमाणु एवं सैनिक शक्ति सम्पन्न देश है। इसकी वजह से अपेक्षाकृत छोटे देशों का भारत के इरादों को लेकर शक करना लाजिमी है।

2. भारत नहीं चाहता कि इन देशों में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो। उसे भय लगता है कि ऐसी स्थिति में बाहरी ताकतों को इस क्षेत्र में प्रभाव जमाने में मदद मिलेगी। इससे छोटे देशों को लगता है कि भारत दक्षिण एशिया में अपना दबदबा कायम करना चाहता है।

3. दक्षिण एशिया का भूगोल ही ऐसा है कि भारत इसमें बीच में स्थित है और बाकी देश भारत की सीमा के इर्द-गिर्द पड़ते हैं।

4. भारत विश्व की तेजी से उभरती आर्थिक व्यवस्था है। भारत जब ‘साफ्टा’ के द्वारा दक्षेस के देशों में मुक्त व्यापार नीति अपनाने पर बल देता है तो कुछ छोटे देश मानते हैं कि ‘साफ्टा’ की ओट लेकर भारत उनके बाजार में सेंध मारना चाहता है और व्यावसायिक उद्यम तथा व्यावसायिक मौजूदगी के जरिये उनके समाज और राजनीति पर असर डालना चाहता है।

समकालीन दक्षिण एशिया JAC Class 12 Political Science Notes

→ परिचय:
बीसवीं सदी के आखिरी सालों में जब भारत और पाकिस्तान ने युद्ध को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की बिरादरी में बैठा लिया तो यह क्षेत्र पूरे विश्व की नजर में महत्त्वपूर्ण हो उठा। इस क्षेत्र के देशों के बीच सीमा और नदी जल को लेकर विवाद कायम है। इसके अतिरिक्त विद्रोह, जातीय संघर्ष और संसाधनों के बँटवारे को लेकर होने वाले झगड़े भी हैं। इन वजहों से दक्षिण एशिया का इलाका बड़ा संवेदनशील है। इस इलाके के बहुत से लोग इस तथ्य की निशानदेही करते हैं कि दक्षिण एशिया के देश आपस में सहयोग करें यह क्षेत्र विकास करके समृद्ध बन सकता है। क्या है दक्षिण एशिया?

1. प्राय: बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका को इंगित करने के लिए ‘दक्षिण एशिया’ पद का व्यवहार किया जाता है।

2. उत्तर की विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला, दक्षिण का हिंद महासागर, पश्चिम का अरब सागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से यह क्षेत्र एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है। यह भौगोलिक विशिष्टता ही इस उप-महाद्वीपीय क्षेत्र के भाषाई, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अनूठेपन के लिए जिम्मेदार है। भू राजनैतिक धरातल पर दक्षिण एशिया एक क्षेत्र विशेष है, लेकिन यह विविधताओं से भरा क्षेत्र है।

→ दक्षिण एशिया में राजनैतिक प्रणाली- दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में एक-सी राजनीतिक प्रणाली नहीं है।

  • भारत और श्रीलंका में स्वतंत्रता के बाद से लोकतांत्रिक व्यवस्था सफलतापूर्वक कायम है।
  • पाकिस्तान और बांग्लादेश में लोकतांत्रिक और सैनिक दोनों तरह के नेताओं का शासन रहा है।
  • भूटान में वर्तमान में राजतंत्र है, लेकिन यहाँ बहुदलीय लोकतंत्र की स्थापना की दिशा में आगे बढ़ा जा रहा है।
  • मालदीव में 1968 तक सल्तनत का शासन था। 1968 के बाद यहाँ लोकतांत्रिक गणराज्य बना और अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अपनायी गयी है।
  • नेपाल में 2006 तक संवैधानिक राजतंत्र था, लेकिन अप्रेल, 2006 में एक सफल जन विद्रोह के बाद यहाँ लोकतंत्र की बहाली हुई है।

इस प्रकार दक्षिण एशिया में लोकतंत्र का रिकार्ड मिला-जुला रहा है। इसके बावजूद दक्षिण एशियायी देशों की जनता लोकतंत्र की आकांक्षाओं में सहभागी है। इन देशों के लोग शासन की किसी और प्रणाली की अपेक्षा लोकतंत्र को वरीयता देते हैं।

दक्षिण एशिया का घटनाक्रम ( 1947 से )
→ 1947: ब्रिटिश राज की समाप्ति के बाद भारत और पाकिस्तान का स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उदय।

→ 1948: श्रीलंका (तत्कालीन सिलोन) को आजादी मिली; कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई।

→ 1954-55: पाकिस्तान शीतयुद्धकालीन सैन्य गुट ‘सिएटो’ और ‘सेंटो’ में शामिल हुआ।

→ सितम्बर, 1960: भारत और पाकिस्तान ने सिंधु नदी जल समझौते पर हस्ताक्षर किए।

→ 1962: भारत और चीन के बीच सीमा विवाद।

→ 1965: भारत-पाक युद्ध; संयुक्त राष्ट्रसंघ का भारत – पाक पर्यवेक्षण मिशन।

→ 1966: भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता शेख मुजीबुर्रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान को ज्यादा स्वायत्तता देने के लिए छ: सूत्री प्रस्ताव रखा।

→ मार्च, 1971: बांग्लादेश के नेताओं द्वारा आजादी की उद्घोषणा।

→ अगस्त, 1971: भारत और सोवियत संघ ने 20 सालों के लिए मैत्री संधि पर दस्तखत किए।

→ दिसंबर, 1971: भारत-पाक युद्ध; बांग्लादेश की मुक्ति।

→ जुलाई, 1972: भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता।

→ मई, 1974: भारत ने परमाणु परीक्षण किए।

→ 1976: पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच कूटनयिक संबंध बहाल हुए।

→ दिसम्बर, 1985: ‘दक्षेस’ के पहले सम्मेलन में दक्षिण एशिया के देशों ने ‘दक्षेस’ के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए।

→ 1987: भारत-श्रीलंका समझौता; भारतीय शांति सेना का श्रीलंका में अभियान (1987-90)।

→ 1988: मालदीव में भाड़े के सैनिकों द्वारा किए गए षड्यन्त्र को नाकाम करने के लिए भारत ने वहाँ सेना भेजी। भारत और पाकिस्तान के बीच एक-दूसरे के परमाणु ठिकानों और सुविधाओं पर हमला न करने के समझौते पर हस्ताक्षर हुए।

→ 1988-91: पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में लोकतंत्र की बहाली।

→ 1993: ‘दक्षेस’ के सातवें सम्मेलन में आपसी व्यापार में दक्षेस के देशों को वरीयता देने की संधि पर हस्ताक्षर।

→ दिसम्बर, 1996: गंगा नदी के पानी में हिस्सेदारी के मसले पर भारत और बांग्लादेश के बीच फरक्का संधि पर हस्ताक्षर हुए।

→ मई, 1998: भारत और पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किए।

→ दिसंबर, 1998: भारत और पाकिस्तान ने मुक्त व्यापार संधि पर हस्ताक्षर किए।

→ फरवरी, 1999: भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस – यात्रा करके लाहौर गए तथा शांति के एक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए।

→ जून – जुलाई, 1999: भारत और पाकिस्तान के बीच करगिल – युद्ध।

→ जुलाई 2001: वाजपेयी – मुशर्रफ के बीच आगरा – बैठक असफल।

→ फरवरी 2004: 12वें दक्षेस सम्मेलन में ‘मुक्त व्यापार संधि’ पर हस्ताक्षर हुए।

→ 2007: अफगानिस्तान दक्षेस का सदस्य बना।

→ नवम्बर, 2014: 8वां दक्षेस सम्मेलन काठमांडू, नेपाल में हुआ।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

→ पाकिस्तान में सेना और लोकतंत्र:
→ 14 अगस्त, 1947 को भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन करके पाकिस्तान की स्थापना हुई स्थापना के समय पाकिस्तान दो खंडों में विभाजित था, जिसे पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था।

→ मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मुहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल बने और लियाकत अली खाँ ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। जिन्ना की मृत्यु के पश्चात् शासन की बागडोर लियाकत अली खाँ के हाथों में आ गई। लियाकत अली खाँ की हत्या के बाद ख्वाजा निजामुद्दीन को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया गया। 1953 निजामुद्दीन का मंत्रिमंडल भंग कर दिया और मुहम्मद अली को प्रधानमंत्री बनाया गया।

→ पाकिस्तान में पहले संविधान के बनने के बाद देश के शासन की बागडोर जनरल अयूब खान ने अपने हाथों में ले ली और जल्दी ही अपना निर्वाचन भी करा लिया। परन्तु उनके शासन के खिलाफ जनता का गुस्सा भड़का फलस्वरूप सैनिक शासन का रास्ता साफ हुआ और याहिया खान ने शासन की बागडोर संभाली।

→ याहिया खान के शासनकाल में पाकिस्तान को बांग्ला देश संकट का सामना करना पड़ा और 1971 को भारत-पाक के बीच युद्ध हुआ और युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान पाकिस्तान से टूटकर एक अलग देश- बांग्लादेश का निर्माण हुआ।

→ बांग्लादेश के निर्माण के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व में पाकिस्तान में निर्वाचित सरकार बनी जो 1977 तक कायम रही।

→ 1977 में जनरल जियाउल हक ने इस सरकार को अपदस्थ कर दिया 1982 के बाद जनरल जियाउल – हक को लोकतंत्र – समर्थक आंदोलन का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप 1988 में पुनः बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में लोकतांत्रिक सरकार बनी। निर्वाचित लोकतंत्र की यह अवस्था 1999 तक बनी रही।

→ 1999 में फिर सेना ने दखल दी तथा सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पदच्युत करके सत्ता संभाल ली। 2001 में मुशर्रफ ने राष्ट्रपति के रूप में अपना निर्वाचन करा लिया।

→ 2008 में पाकिस्तान में चुनाव हुए जिसमें पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ। वर्तमान में पाकिस्तान में लोकतंत्रीय शासन है जिसमें नवाज शरीफ प्रधानमंत्री हैं।

→ पाकिस्तान में लोकतंत्र के स्थायी न बन पाने के कई कारण हैं। यथा-

  • यहाँ सेना, धर्मगुरु और भू-स्वामी अभिजनों का दबदबा है।
  • पाकिस्तान की भारत के साथ तनातनी के कारण यहाँ सेना समर्थक समूह ज्यादा मजबूत है।
  • पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शासन चले इसके लिए कोई खास अन्तर्राष्ट्रीय समर्थन नहीं मिलता।
  • अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों ने अपने निहित स्वार्थों की सिद्धि के लिए पाकिस्तान में सैनिक शासन को बढ़ावा दिया है।

→ बांग्लादेश में लोकतंत्र

  • 1947 से 1971 तक बांग्लादेश पाकिस्तान का अंग था।
  • 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के आजादी के आंदोलन तथा भारत – पाक युद्ध के कारण स्वतंत्र राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ का निर्माण हुआ।
  • 1971 में बांग्लादेश ने अपना संविधान बनाकर उसमें अपने को एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित किया।
  • 1975 में शेख मुजीब ने संविधान में संशोधन कराकर उसे अध्यक्षात्मक प्रणाली का रूप दिया तथा अवामी पार्टी को छोड़कर अन्य पार्टियों को समाप्त कर दिया। इससे तनाव व संघर्ष की स्थिति पैदा हुई तथा एक त्रासद घटनाक्रम में शेख मुजीब सेना के हाथों मारे गये।
  • 1975 में सैनिक शासक जियाउर्रहमान ने बांग्लादेश नेशनल पार्टी बनायी और 1979 के चुनाव में विजयी रही। लेकिन जियाउर्रहमान की हत्या हुई और एच. एम. इरशाद के नेतृत्व में एक सैनिक शासन ने बागडोर संभाली। वे 1990 तक सत्ता में बने रहे।
  • 1991 में चुनाव हुए। इसके बाद से बांग्लादेश में बहुदलीय चुनावों पर आधारित प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र कायम है।

→ नेपाल में राजतंत्र और लोकतंत्र

  • नेपाल अतीत में एक हिन्दू राज्य था।
  • आधुनिक काल में 1990 तक यहाँ संवैधानिक राजतंत्र रहा।
  • एक मजबूत लोकतंत्र – समर्थक आंदोलन के कारण राजा ने 1990 में नये लोकतांत्रिक संविधान की माँग मान ली । लेकिन नेपाल में लोकतांत्रिक सरकारों का कार्यकाल बहुत छोटा रहा।
  • 1990 के दशक में नेपाल में राजा की सेना, लोकतंत्र – समर्थकों और माओवादियों के बीच त्रिकोणात्मक संघर्ष हुआ। फलस्वरूप 2002 में राजा ने संसद को भंग कर लोकतंत्र को समाप्त कर दिया।
  • अप्रैल, 2006 में यहाँ देशव्यापी लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन हुए। अहिंसक रहे इस आंदोलन का नेतृत्व सात दलों के गठबंधन, माओवादी तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किया और पुनः नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना हुई है। माओवादी और कुछ अन्य राजनीतिक समूह भारत की सरकार और नेपाल के भविष्य में भारतीय सरकार की भूमिका को लेकर बहुत शंकित थे। 2008 में नेपाल राजतंत्र को खत्म करने के बाद लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया। 2015 में नेपाल ने नया संविधान अपनाया।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

→ श्रीलंका में जातीय संघर्ष और लोकतंत्र

  • स्वतंत्रता (1948) के बाद से लेकर अब तक श्रीलंका में लोकतंत्र कायम है।
  • श्रीलंका को जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है जिसकी मांग है- श्रीलंका के एक क्षेत्र को तमिलों के लिए एक अलग राष्ट्र बनाया जाये।
  • श्रीलंका की राजनीति में बहुसंख्यक सिंहली समुदाय का दबदबा रहा है। इन लोगों का मानना है कि श्रीलंका सिर्फ सिंहली लोगों का है। अतः तमिलों के साथ कोई रियायत नहीं बरती जाये।
  • सिंहलियों के इस उपेक्षा भरे व्यवहार की प्रतिक्रिया में श्रीलंका में उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद हुई। 1983 के बाद से उग्र तमिल संगठन ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑव तमिल ईलम’ (लिट्टे) ने श्रीलंका की सेना के साथ सशस्त्र संघर्ष प्रारंभ कर दिया।
  • श्रीलंका के इस संकट का हिंसक चरित्र बरकरार है। वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थ के रूप में नार्वे और आइसलैंड जैसे देश दोनों पक्षों को आपस में बातचीत के लिए राजी कर रहे हैं। श्रीलंका का भविष्य इन्हीं वार्ताओं पर निर्भर है।
  • अंदरूनी संघर्ष के झंझावातों को झेलकर भी श्रीलंका ने लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था कायम रखी है।

→ भारत-पाकिस्तान संघर्ष

→ विभाजन के तुरन्त बाद भारत और पाकिस्तान दोनों देश कश्मीर के मुद्दे पर लड़ पड़े पाकिस्तान सरकार का दावा था कि कश्मीर पाकिस्तान का है।
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के मुद्दे पर पहले 1947-48 में युद्ध हुआ और फिर 1965 में। लेकिन युद्ध से इसका समाधान नहीं हुआ। युद्ध से कश्मीर के दो भाग हो गए एक भाग पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहलाया और दूसरा हिस्सा भारत का जम्मू-कश्मीर प्रान्त बना। दोनों के बीच एक नियंत्रण – सीमा रेखा है।

→ सामरिक मसलों, जैसे- सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण तथा हथियारों की होड़ को लेकर दोनों देशों के बीच तनातनी रहती है ।

→ दोनों देशों की सरकारें लगातार एक-दूसरे को संदेह की नजरों से देखती हैं।

→ दोनों के बीच नदी जल बँटवारे के सवाल पर भी तनातनी हुई है।

→ कच्छ के रन में सरक्रिक की सीमा रेखा को लेकर दोनों देशों के बीच मतभेद हैं।

→ भारत और पाक के बीच इन सभी मसलों पर वार्ताओं के दौर चल रहे हैं।

→ भारत तथा बांग्लादेश सम्बन्ध-

  • बांग्लादेश और भारत के बीच गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के जल में हिस्सेदारी सहित कई मुद्दों पर मतभेद हैं।
  • भारत में बांग्लादेशी शरणार्थियों के अवैध आप्रवास, भारत-विरोधी इस्लामी कट्टरपंथी जमातों को समर्थन, म्यांमार को बांग्लादेशी क्षेत्र से होकर भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने देने आदि मुद्दों पर दोनों में मतभेद हैं।
  • भारत-बांग्लादेश के सहयोग के क्षेत्र हैं आर्थिक सम्बन्धों में सुधार, आपदा प्रबंधन और पर्यावरण के मुद्दे पर दोनों में सहयोग।

→ भारत तथा नेपाल सम्बन्ध-

  • भारत और नेपाल के बीच मधुर सम्बन्ध हैं। दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के देश में बिना पासपोर्ट और वीजा के आ-जा सकते हैं और काम कर सकते हैं।
  • नेपाल की चीन के साथ बढ़ती दोस्ती को लेकर भारत ने अपनी अप्रसन्नता बताई है। वह भारत – विरोधी तत्वों के प्रति कठोर कदम नहीं उठाता। नेपाल में माओवाद के बढ़ने से भारत के नक्सलवाद को बढ़ावा मिलता है
  • नेपाल सरकार भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने, नदी- जल, पन- बिजली आदि मुद्दों पर भारत से नाराज है।
  • विभेदों के बावजूद दोनों देश व्यापार, वैज्ञानिक सहयोग, साझे प्राकृतिक संसाधन, बिजली उत्पादन, जल प्रबंधन के मसले पर सहयोग कर रहे हैं।

भारत तथा श्रीलंका सम्बन्ध-
→ श्रीलंका और भारत की सरकारों के सम्बन्धों में तनाव इस द्वीप में जारी जातीय संघर्ष को लेकर है।

→ 1987 के बाद से भारत सरकार श्रीलंका के मामले में असंलग्नता की नीति अपनाये हुए है।

→ दोनों ने एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर व्यापारिक सम्बन्धों को सुदृढ़ किया है। भारत-भूटान – भारत तथा भूटान के बीच बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं। भारत- मालदीव – भारत और मालदीव के साथ भी भारत के सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध हैं। दक्षिण एशिया में भारत केन्द्र में स्थित है और अन्य देश भारत की सीमा के इर्द-गिर्द पड़ते हैं। इसलिए इस क्षेत्र में सभी बड़े झगड़े भारत और उसके पड़ौसी देशों के बीच हैं।

→ दक्षिण एशिया में शांति और सहयोग
दक्षिण एशिया के देश आपस में दोस्ताना रिश्ते तथा सहयोग के महत्त्व को पहचानते हैं। यथा-

  • इस क्षेत्र में शांति के प्रयास द्विपक्षीय भी हुए हैं और क्षेत्रीय स्तर पर भी।
  • दक्षेस (सार्क) इन देशों का आपस में सहयोग की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है। दक्षेस ने इस क्षेत्र में मुक्त व्यापार हेतु साफ्टा समझौता किया है।
  • भारत ने भूटान, नेपाल, श्रीलंका से द्विपक्षीय व्यापार समझौते किये हैं।
  • भारत-पाकिस्तान के बीच वार्ताओं के दौर जारी हैं। पिछले कुछ वर्षों से दोनों देशों के पंजाब वाले हिस्से के बीच कई बस मार्ग खुले हैं।
  • पिछले दस वर्षों से भारत-चीन के सम्बन्ध बेहतर हुए हैं।
  • अमेरिका, भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है।
  • भारत और अमरीका के बीच शीत युद्ध की समाप्ति के बाद सम्बन्धों में निकटता आई है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र Textbook Exercise Questions and Answers

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

Jharkhand Board Class 12 Political Science सत्ता के वैकल्पिक केंद्र InText Questions and Answers

पृष्ठ 56

प्रश्न 1.
क्या भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है? भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के इतने निकट क्यों हैं?
उत्तर:
भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया का हिस्सा है। भारत आसियान देशों क पड़ोसी देश है, इसलिए भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के काफी निकट हैं।

पृष्ठ 57

प्रश्न 2.
आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) के सदस्य कौन हैं?
उत्तर:
कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, थाईलैण्ड, वियतनाम इत्यादि।

JAC Class 12 Political Science Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

पृष्ठ 58

प्रश्न 5.
आसियान क्यों सफल रहा और दक्षेस (सार्क) क्यों नहीं? क्या इसलिए कि उस क्षेत्र में कोई बहुत बड़ा देश नहीं है?
उत्तर:
आसियान इसलिए सफल रहा क्योंकि इसके सदस्य देशों ने टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति अख्तियार करते हुए निवेश, श्रम और सेवाओं के मामले में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने में सफलता पायी है। इसने आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार किया है तथा इस क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में सहयोग किया है। दक्षेस (सार्क) इसलिए सफल नहीं रहा क्योंकि इसके सदस्य देश बातचीत के माध्यम से टकराव को टालकर एक साझा बाजार स्थापित करने में असफल रहे हैं और निवेश, श्रम तथा सेवाओं के मामलों में इसे मुक्त व्यापार क्षेत्र नहीं बना सके हैं।

पृष्ठ 60

प्रश्न 6.
कार्टून में (पृष्ठ संख्या 60 ) साइकिल का प्रयोग आज के चीन के दोहरेपन को इंगित करने के लिए किया गया है। यह दोहरापन क्या है? क्या हम इसे अन्तर्विरोध कह सकते हैं?
उत्तर:
चीन विश्व में सर्वाधिक साइकिल प्रयोग करने वाला देश है। इस कार्टून में साइकिल का प्रयोग दोहरापन दर्शाता है क्योंकि एक तरफ तो चीन साम्यवादी विचारधारा वाले देशों का नेता होने की बात करता है, जबकि दूसरी ओर अपनी अर्थव्यवस्था में डालर अर्थात् पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को आमंत्रित कर रहा है। कार्टून में दोनों पहियों में अगला पहिया जहाँ साम्यवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है, वहीं पीछे का पहिया पूँजीवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है। यह एक प्रकार का विचारधारागत अन्तर्विरोध है।

पृष्ठ 61

प्रश्न 7.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2019 में भारत का दौरा किया। 2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन गए थे । इन दौरों में जिन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए उनके बारे में पता करें।
उत्तर:
अप्रैल, 2018 में प्रधानमंत्री मोदी चीन यात्रा पर गए यात्रा के दौरान द्विपक्षीय व राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर वार्ता हुई इसके अतिरिक्त सीमा विवाद को शीघ्रता से निपटाने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की, द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर भी दोनों पक्षों में सहमति हुई। अक्टूबर, 2019 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत यात्रा पर आये। शी जिनपिंग ने तमिलनाडु के महाबलीपुरम में भारतीय प्रधानमंत्री के साथ औपचारिक वार्ता में भाग लिया। इसके अतिरिक्त बीजा नियमों में शिथिलता देने, सीमाविवाद को शीघ्र सुलझाने, कैलाश मानसरोवर के लिए नाथूला से नया रास्ता खोलने, आतंकवाद को रोकने, इन्फ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए चीन को आमंत्रित करने, दो इंडस्ट्रियल पार्क बनाने, रेलवे का आधुनिकीकरण करने, अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग करने जैसे समझौतों पर हस्ताक्षर हुए।

Jharkhand Board Class 12 Political Science सत्ता के वैकल्पिक केंद्र Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
तिथि के हिसाब से इन सबको क्रम दें-
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना।
उत्तर:
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना (1957)
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना (1967)
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना (1992)
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश (2001 )।

JAC Class 12 Political Science Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 2.
‘ASEAN way’ या आसियान शैली क्या है?
(क) आसियान के सदस्य देशों की जीवन शैली है।
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।
(ग) आसियान सदस्यों की रक्षा नीति है।
(घ) सभी आसियान सदस्य देशों को जोड़ने वाली सड़क है।
उत्तर:
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।

प्रश्न 3.
इनमें से किसने ‘खुले द्वार’ की नीति अपनाई?
(क) चीन
(ख) दक्षिण कोरिया
(ग) जापान
(घ) अमरीका।
उत्तर:
(क) चीन।

प्रश्न 4.
खाली स्थान भरें-
(क) 1962 में भारत और चीन के बीच ……… और ……….. को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच के कामों में ………… और ……… करना शामिल है।
(ग) चीन ने 1972 में ……………. के साथ दोतरफा संबंध शुरू करके अपना एकांतवास समाप्त किया।
(घ) ………….. योजना के प्रभाव से 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई।
(ङ) आसियान का एक स्तम्भ है जो इसके सदस्य देशों की सुरक्षा के मामले देखता है।
उत्तर;
(क) अरुणाचल, लद्दाख
(ख) आसियान के देशों की सुरक्षा, विदेश नीतियों में तालमेल
(ग) अमेरिका
(घ) मार्शल
(ङ) सुरक्षा समुदाय।

प्रश्न 5.
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर;
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य हैं-

  1. अपने-अपने इलाके (क्षेत्र) में चलने वाली ऐतिहासिक दुश्मनियों और कमजोरियों का क्षेत्रीय स्तर पर समाधान ढूंढ़ना।
  2. अपने-अपने क्षेत्रों में अधिक शांतिपूर्ण और सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करना।
  3. अपने क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्थाओं का समूह बनाने की दिशा में काम करना।
  4. बाहरी हस्तक्षेप का डटकर मुकाबला करना।

प्रश्न 6.
भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर क्या असर होता है?
उत्तर:
भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर सकारात्मक असर पड़ता है। यथा-

  1. इसके कारण उस क्षेत्र के देशों की कई समस्यायें, धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाज तथा भाषाएँ समान होती हैं, जिससे क्षेत्रीय संगठन के निर्माण में मदद मिलती है।
  2. इसके कारण क्षेत्र विशेष के देशों में क्षेत्रीय संगठन बनाने की भावना विकसित होती है और इस भावना के विकास के साथ पारस्परिक संघर्ष और युद्ध का स्थान, पारस्परिक सहयोग और शांति ले लेती है।
  3. क्षेत्रीय निकटता और भौगोलिक एकता मेल-मिलाप के साथ आर्थिक सहयोग तथा अन्तर्देशीय व्यापार को बढ़ावा देती है।
  4. भौगोलिक निकटता के कारण उस क्षेत्र विशेष के राष्ट्र बड़ी आसानी से सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था कर सकते
  5. एक क्षेत्र के विभिन्न राष्ट्र यदि क्षेत्रीय संगठन बना लें तो वे परस्पर सड़क मार्गों और रेल सेवाओं से आसानी से जुड़ सकते हैं।

JAC Class 12 Political Science Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 7.
‘आसियान- विजन 2020′ की मुख्य-मुख्य बातें क्या हैं? उत्तर–‘आसियान-विजन 2020’ की मुख्य-मुख्य बातें ये हैं-

  1. आसियान-विजन 2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है।
  2. आसियान द्वारा टकराव की जगह बातचीत द्वारा हल निकालने की नीति पर बल दिया गया है। इस नीति से आसियान ने कम्बोडिया के टकराव एवं पूर्वी तिमोर के संकट को संभाला है।
  3. आसियान – विजन 2020 के तहत एक आसियान सुरक्षा समुदाय, एक आसियान आर्थिक समुदाय तथा एक आसियान सामाजिक तथा सांस्कृतिक समुदाय बनाने की संकल्पना की गई है।
  4. आसियान अपने सदस्य देशों, सहभागी सदस्यों और गैर- क्षेत्रीय संगठनों के बीच निरन्तर संवाद और परामर्श को महत्त्व देगा।

प्रश्न 8.
आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों और उनके उद्देश्यों के बारे में बताएँ।
उत्तर:
आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभ- 2003 में आसियान ने तीन मुख्य स्तंभ बताये हैं। ये हैं

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय,
  2. आसियान आर्थिक समुदाय और
  3. आसियान सामाजिक- सांस्कृतिक समुदाय।

आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों के उद्देश्य-आसियान समुदाय के तीनों मुख्य स्तंभों के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय – यह क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाकर उन्हें बातचीत के द्वारा सुलझाने का प्रयास करता है।
  2. आसियान आर्थिक समुदाय – आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार करना तथा इस इलाके के सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद करना है। यह संगठन इस क्षेत्र के देशों के आर्थिक विवादों को निपटाने के लिए बनी मौजूदा व्यवस्था को भी सुधारता है।
  3. आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय – इसका मुख्य उद्देश्य आसियान क्षेत्र का सामाजिक और सांस्कृतिक विकास करना है। इस हेतु यह सदस्य देशों में संवाद और परामर्श के लिए रास्ता तैयार करता है।

प्रश्न 9.
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है?
उत्तर:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था और आज की अर्थव्यवस्था में अन्तर आज की चीनी अर्थव्यवस्था, उसकी नियंत्रित अर्थव्यवस्था से भिन्नता लिए हुए है। दोनों के अन्तर को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) नियंत्रित अर्थव्यवस्था बनाम खुले द्वार की अर्थव्यवस्था:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योगों पर राज्य का नियंत्रण था। विदेशी बाजारों से तकनीक और सामान खरीदने पर प्रतिबंध था। इसमें विदेशी व्यापार न के बराबर था, प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी तथा औद्योगिक उत्पादन पर्याप्त तेजी से नहीं बढ़ पा रहा था। चीन ने 1970 के बाद अमेरिका से सम्बन्ध बनाकर अपने राजनीतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया। कृषि, उद्योग, सेना और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण पर बल दिया तथा विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के ‘निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त करने पर बल दिया गया।

(2) राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था बनाम निजीकरण की बाजारमूलक अर्थव्यवस्था:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था में कृषि तथा उद्यमों पर राज्य का नियंत्रण था। लेकिन चीन की वर्तमान अर्थव्यवस्था निजीकरण लिये हुए बाजारमूलक अर्थव्यवस्था है।

(3) रोजगार तथा सामाजिक कल्याण सम्बन्धी अन्तर:
चीन की राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था में सभी नागरिकों को ‘रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के दायरे में लाया गया। लेकिन वर्तमान चीन की बाजारमूलक अर्थव्यवस्था का लाभ सभी नागरिकों को नहीं मिल रहा है।

(4) विदेशी निवेश सम्बन्धी अन्तर;
चीन की नियन्त्रित अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश नगण्य रहा जबकि वर्तमान अर्थव्यवस्था में वह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए आकर्षक देश बनकर उभरा है।

JAC Class 12 Political Science Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 10.
किस तरह यूरोपीय देशों ने युद्ध के बाद की अपनी परेशानियाँ सुलझाई? संक्षेप में उन कदमों की चर्चा करें जिनसे होते हुए यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।
उत्तर:
यूरोपीय देशों ने दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् आपसी बातचीत, सहयोग एवं परस्पर विश्वासों के आधार पर अपनी परेशानियों को दूर किया। यथा यूरोपीय देशों की प्रमुख समस्यायें – 1945 के बाद यूरोपीय देशों की प्रमुख समस्यायें निम्नलिखित थीं:

  1. 1945 तक यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाएँ बर्बाद हो गयी थीं।
  2. 1945 तक यूरोपीय देशों की वे मान्यताएँ और व्यवस्थाएँ ध्वस्त हो गईं जिन पर यूरोप खड़ा हुआ था।
  3. यूरोप के देशों में प्राचीन समय से ही दुश्मनियाँ चली आ रही थीं।

समस्याओं का निवारण- यूरोप के देशों ने अपनी समस्याओं का निवारण निम्न प्रकार से किया:

  1. शीत युद्ध से सहायता – 1945 के बाद यूरोप के देशों में मेल-मिलाप को शीत युद्ध से भी मदद मिली।
  2. मार्शल योजना से अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन – अमरीका से यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त मदद मिली। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है।
  3. सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था – अमेरिका ने नाटो के तहत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया।

यूरोपीय संघ की स्थापना के प्रमुख कदम-

  1. यूरोपीय परिषद् का गठन – 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनैतिक सहयोग के मामले में एक अगला कदम साबित हुआ।
  2. अर्थव्यवस्था के पारस्परिक एकीकरण की प्रक्रिया – यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप 1957 में यूरोपियन इकॉनोमिक कम्युनिटी का गठन व यूरोपीय संसद का गठन हुआ तथा 1992 में मॉस्ट्रिस्ट संधि के द्वारा यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।
  3. यूरोपीय संघ एक विशाल राष्ट्र-राज्य के रूप में- अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। यद्यपि यूरोपीय संघ का कोई संविधान नहीं बन सका है, तथापि इसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है।

प्रश्न 11.
यूरोपीय संघ को क्या चीजें एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं?
उत्तर:
यूरोपीय संघ एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन के रूप में यूरोपीय संघ को निम्न तत्त्व एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन सिद्ध करते हैं:

  1. समान राजनैतिक रूप-यूरोपीय संघ यूरोपीय देशों का एक ऐसा राजनैतिक संगठन है जिसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस तथा मुद्रा है। इससे साझी विदेश नीति और सुरक्षा नीति में मदद मिली है।
  2. सहयोग की नीति – यूरोपीय संघ ने सहयोग की नीति अपनाते हुए यूरोप के देशों में परस्पर सहयोग को बढ़ावा दिया है। इससे इसका प्रभाव बढ़ा है।
  3. यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रभाव – यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है। 2005 में यह विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। विश्व व्यापार संगठन के अन्दर भी यह एक महत्त्वपूर्ण समूह के रूप में कार्य करता है। इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव इसके नजदीकी देशों पर ही नहीं, बल्कि एशिया और अफ्रीका के दूर-दराज के देशों पर भी है।
  4. राजनैतिक और कूटनीतिक प्रभाव – यूरोपीय संघ का राजनैतिक और कूटनीतिक प्रभाव भी कम नहीं है। इसके दो सदस्य देश
    •  ब्रिटेन और
    •  फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। यूरोपीय संघ के कई और देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं।
  5. सैनिक तथा तकनीकी प्रभाव – यूरोपीय संघ के पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसका कुल रक्षा बजट अमेरिका के बाद सबसे अधिक है। इसके दो देशों – ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान तथा संचार प्रौद्योगिकी के मामले में यूरोपीय संघ का विश्व में द्वितीय स्थान है।

प्रश्न 12.
चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने तर्कों से अपने विचारों को पुष्ट करें।
उत्तर:
हम इस कथन से सहमत हैं कि चीन और भारत में मौजूदा विश्व – व्यवस्था को चुनौती देने की क्षमता है। इसके समर्थन में अग्र तर्क दिये जा सकते हैं: संजीव पास बुक्स

  1. चीन और भारत दोनों एशिया के दो प्राचीन, महान शक्तिशाली, साधन- सम्पन्न देश हैं। दोनों में परस्पर सुदृढ़ मित्रता और सहयोग अमेरिका के लिए चिंता का कारण बन सकता है।
  2. चीन और भारत दोनों ही विशाल जनसंख्या वाले देश हैं। इतना विशाल जनमानस अमेरिका के निर्मित माल के लिए एक विशाल बाजार प्रदान कर सकता है। दोनों देश पश्चिमी व अन्य देशों को कुशल और अकुशल सस्ते श्रमिक दे सकते हैं।
  3. भारत और चीन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएँ उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ हैं। तेजी से आर्थिक विकास करके ये आर्थिक क्षेत्र में एकध्रुवीय विश्व को चुनौती दे सकते हैं।
  4. दोनों ही राष्ट्र अपने यहाँ वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों में परस्पर सहयोग करके प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति कर एकध्रुवीय विश्व को चुनौती प्रस्तुत कर सकते हैं।
  5. दोनों देश विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेते समय अमेरिकी एकाधिकार की प्रवृत्ति को नियंत्रित कर सकते हैं।
  6. दोनों देश बहुउद्देश्यीय योजनाओं में, यातायात के साधनों के विकास में, जल-विद्युत निर्माण क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग और आदान-प्रदान की नीतियाँ अपनाकर अपने को शीघ्र महाशक्ति की श्रेणी में ला सकते हैं।

JAC Class 12 Political Science Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 13.
मुल्कों की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है। इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
विश्व शांति और समृद्धि के लिए क्षेत्रीय आर्थिक संगठन आवश्यक है। प्रत्येक देश की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के निर्माण और उन्हें सुदृढ़ बनाने पर टिकी है क्योंकि-

  1. क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर कृषि, उद्योग-धन्धों, व्यापार, यातायात, आर्थिक संस्थाओं आदि को बढ़ावा मिलता है।
  2. क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर लोगों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा। इससे बेरोजगारी और गरीबी दूर होगी।
  3. क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के निर्माण से जब रोजगार बढ़ेगा और गरीबी दूर होगी तो लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। वे अपने बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, यातायात आदि की अच्छी सुविधाएँ प्रदान करेंगे।
  4. सभी देश चाहते हैं कि उनके उद्योगों को कच्चा माल मिले तथा अतिरिक्त संसाधनों का निर्यात हो। यह तभी संभव हो सकता है कि सभी पड़ोसी देशों में शांति तथा सहयोग की भावना हो और यह भावना क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के माध्यम से पैदा होती है। इस प्रकार क्षेत्रीय संगठन समृद्धि और शांति लाते हैं।

प्रश्न 14.
भारत और चीन के बीच विवाद के मामलों की पहचान करें और बताएँ कि वृहत्तर सहयोग के लिए इन्हें कैसे निपटाया जा सकता है। अपने सुझाव भी दीजिए।
उत्तर:
भारत और चीन के बीच विवाद के मुद्दे – भारत और चीन के बीच विवाद के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं।

  1. सीमा विवाद – दोनों देशों के बीच सीमा विवाद 1962 से चला आ रहा है
  2. मैकमोहन रेखा – मैकमोहन रेखा, जो भारत तथा चीन के क्षेत्र की सीमा निश्चित करती है कि सम्बन्ध में दोनों देशों में मतभेद है।
  3. अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश सम्बन्धी मुद्दा – अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र के सम्बन्ध में दोनों देशों के बीच विवाद चला आ रहा है।
  4. तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा का मुद्दा – तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा की भारत में उपस्थिति चीन के लिए निरंतर एक परेशानी का कारण रही है।
  5. चीन का पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति करना – चीन ने सदैव पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति की है, जिनका प्रयोग पाकिस्तान भारत के विरुद्ध करता है।

वृहत्तर सहयोग हेतु मतभेदों को निपटाने के लिए सुझाव: वृहत्तर सहयोग के लिए भारत-चीन मतभेदों को निपटाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं।

  1. दोनों देशों की सरकारें, नेतागण, जनसंचार माध्यम पारस्परिक बातचीत के द्वारा हर विवाद का समाधान निकाल सकते हैं
  2. दोनों देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यथासंभव समान दृष्टिकोण अपना कर और परस्पर सहयोग कर इन्हें निपटाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
  3. दोनों देश पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण फैलाने वाली समस्याओं के समाधान में सहयोग दे सकते हैं।
  4. दोनों देशों के प्रमुख नेता समय-समय पर एक-दूसरे के देशों की यात्राएँ करें तथा अपने विचारों का अदानप्रदान करें जिससे दोनों देशों में सद्भाव और मित्रता स्थापित हो।
  5. भारत और चीन के पारस्परिक व्यापार को बढ़ावा दिया जाये।

सत्ता के वैकल्पिक केंद्र JAC Class 12 Political Science Notes

→ परिचय:
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद द्वि-ध्रुवीयता का अन्त हो गया । आज विश्व में स्वतंत्र देशों ने मिलकर अनेक असैनिक संगठन, जैसे—यूरोपीय संघ और आसियान आदि, खड़े किए हैं जिनका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों का आर्थिक विकास करना है। इन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसके अतिरिक्त विश्व में चीन के आर्थिक क्षेत्र में बढ़ते कदमों ने भी विश्व राजनीति में नाटकीय प्रभाव डाला है। चीन की आर्थिक व्यवस्था में बढ़ोतरी व यूरोपियन संघ तथा आसियान जैसे संगठनों के द्वारा आर्थिक क्षेत्र में जो प्रयास किये गये हैं, उनसे ऐसा लगने लगा है कि आज विश्व में अमरीका के अलावा सत्ता के अन्य विकल्प भी मौजूद हैं।

→ यूरोपीय संघ
लम्बे समय से यूरोपीय नेताओं का यह स्वप्न रहा था कि यूरोपीय राज्यों का एक संघ या साझी राजनीतिक- आर्थिक व्यवस्था बनाई जाए। विश्व युद्धों ने इस स्वप्न को आवश्यकता में बदल दिया।

→ यूरोपीय संघ का उद्भव:

  • मार्शल योजना के तहत 1948 ई. में ‘यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन ‘ की स्थापना की गई। इसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार व आर्थिक मामलों में परस्पर मदद शुरू की।
  • 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनैतिक सहयोग के मामले में एक अगला कदम साबित हुई।
  • यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी, परिणामस्वरूप 1957 में यूरोपीयन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ यूरोपियन पार्लियामेंट के गठन के बाद इस प्रक्रिया ने राजनीतिक स्वरूप प्राप्त कर लिया।

सोवियत गुट के पतन के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आयी और 1992 में इस प्रक्रिया की परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। एक लम्बे समय बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर ज्यादा से ज्यादा राजनैतिक रूप लेता गया है यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। अन्य देशों से संबंधों के मामले में इसने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति भी बना ली है। यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनैतिक, कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है। 2016 में यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और इसका सकल घरेलू उत्पादन 17000 अरब डालर से ज्यादा था जो अमरीका के लगभग है।

विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमरीका सें तीन गुनी ज्यादा है। यह विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठनों के अंदर एक महत्त्वपूर्ण समूह के रूप में काम करता है। यूरोपीय संघ के दो सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। यूरोपीय देश के कई और देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं। सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। यूरोपीय संघ के दो देशों- ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान और संचार प्रौद्योगिकी के मामले में भी यूरोपीय संघ का दुनिया में दूसरा स्थान है। अधिराष्ट्रीय संगठन के तौर पर यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक मामलों में दखल देने में सक्षम है।

यूरोपीय एकता के महत्त्वपूर्ण पड़ाव
→ अप्रैल, 1951: पश्चिमी यूरोप के छह देशों – फ्रांस, पश्चिम जर्मनी, इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग ने पेरिस संधि पर दस्तखत करके यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन (Euratom) किया ।

→ मार्च 1957: संजीव पास बुक्स इन्हीं छह देशों ने रोम की सन्धि के माध्यम से यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) और यूरोपीय एटमी ऊर्जा समुदाय ( Euratom) का गठन किया।

→ जनवरी, 1973: डेनमार्क, आयरलैंड और ब्रिटेन ने भी यूरोपीय समुदाय की सदस्यता ली।

→ जून, 1979: यूरोपीय संसद के लिए पहला प्रत्यक्ष चुनाव।

→ जनवरी, 1981: यूनान ( ग्रीस) ने यूरोपीय समुदाय की सदस्यता ली।

→ जून, 1985: शांगेन संधि ने यूरोपीय समुदाय के देशों के बीच सीमा नियंत्रण समाप्त किया

→ जनवरी, 1986: स्पेन ओर पुर्तगाल भी यूरोपीय समुदाय में शामिल हुए।

→ अक्टूबर, 1990: जर्मनी का एकीकरण।

→ फरवरी, 1992: यूरोपीय संघ के गठन के लिए मास्ट्रिस्ट संधि पर दस्तखत।

→ जनवरी, 1993: एकीकृत बाजार का गठन।

→ जनवरी, 2002: नई मुद्रा यूरो को 12 सदस्य देशों ने अपनाया।

→ मई, 2004: साइप्रस, चेक गणराज्य, एस्टोनिया, हगरी, लताविया, लिथुआनिया, माल्टा, पोलैंड, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया भी यूरोपीय संघ में शामिल।

→ जनवरी, 2007: बुल्गारिया और रोमानिया यूरोपीय संघ में शामिल स्लोवेनिया ने यूरो को अपनाया।

→ दिसम्बर, 2009: लिस्बन संधि लागू हुई।

→ 2012: यूरोपीय संघ को नोबेल शांति पुरस्कार।

→ 2013: क्रोएशिया यूरोपीय संध का 28वाँ सदस्य बना।

→ 2016: ब्रिटेन में जनमत संग्रह, 51.9 प्रतिशत मतदाताओं ने फैसला किया कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर हो जाए।

JAC Class 12 Political Science Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

→ दक्षिण – पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) (Association of South-East Asian Nations)
गठन: आसियान का गठन 1967 को हुआ इसके 5 संस्थापक सदस्य देश – इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, फिलीपींस और सिंगापुर हैं। बाद के वर्षों में ब्रुनेई दारुस्सलाम, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया भी इसके सदस्य बने। इस प्रकार वर्तमान में इसके दस सदस्य देश हैं। उद्देश्य – इसके उद्देश्य हैं

  • क्षेत्र में आर्थिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक विकास को बढ़ावा देना;
  • क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा स्थापित करना;
  • साझे हितों, प्रशिक्षण, शोध-सुविधाओं, कृषि, व्यापार तथा उद्योग के क्षेत्रों में परस्पर सहयोग कायम करना;
  • समान उद्देश्यों व लक्ष्यों वाले दूसरे क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ लाभप्रद व निकटतम संबंध कायम करना।

→ भूमिका व उपलब्धियाँ-

  • आसियान आर्थिक संवृद्धि, सामाजिक उन्नयन, सांस्कृतिक विकास और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहा है।
  • आसियान ने आर्थिक सहयोग के उद्देश्य को भी सही रूप में पूरा किया है। मुक्त व्यापार क्षेत्र का गठन, आसियान आर्थिक समुदाय के गठन पर बल, चीन व कोरिया के साथ मुक्त व्यापार समझौता इसकी उपलब्धियाँ हैं।
  • आसियान ने सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।
  • पूर्वी एशिया के देशों के बीच आसियान एक सेतु का कार्य कर रहा है।
  • यह टकराव के स्थान पर बातचीत को बढ़ावा देने की नीति अपनाए हुए है।
  • यह भारत तथा चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्धों को सुदृढ़ करने की ओर प्रयासरत है।

→ चीनी अर्थव्यवस्था का उत्थान
1978 के बाद चीन की आर्थिक सफलता को देखकर इसको एक महाशक्ति के रूप में देखा जाने लगा है। जनसंख्या की दृष्टि से चीन सबसे आगे है। क्षेत्रफल की दृष्टि से चीन का विश्व में चौथा स्थान है। विश्व में चीन की थल सेना सबसे: जुलाई, 2013 को क्रोएशिया द्वारा यूरोपीय संघ की सदस्यता ग्रहण करने से यूरोपीय संघ के सदस्यों की कुल संख्या 28 हो गई है। बड़ी है। आज इसकी प्रति व्यक्ति जी एन पी विश्व में दूसरे स्थान पर है। आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने के बाद से चीन सबसे जयादा तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहा है। 1949 में माओ के नेतृतव में हुई साम्यवादी क्रांति के बाद चीनी जनवादी गणराज्य की स्थापना के समय यहाँ की आर्थिकी सोवियत मॉडल पर आधारित थी।

इसने विकास का जो मॉडल अपनाया उसमें खेती से पूँजी निकालकर सरकारी नियंत्रण में बड़े उद्योग खड़े करने पर जोर था। इस मॉडल में चीन ने अभूतपूर्व स्तर पर औद्योगिक अर्थव्यवस्था खड़ा करने का आधार बनाने के लिए सारे संसाधनों का इस्तेमाल किया। सभी नागरिकों को रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के दायरे में लाया गया, स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने के मामले में चीन सबसे विकसित देशों से भी आगे निकल गया।

चीनी नेतृत्व ने 1972 में अमरीका से संबंध बनाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया। चीन ने ‘शॉक थेरेपी’ पर अमल करने के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला 1982 में खेती का ओर 1998 में उद्योगों का निजीकरण किया व्यापार संबंधी अवरोधों को सिर्फ ‘विशेष आर्थिक क्षेत्रों’ के लिए ही हटाया गया जहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम लगा सकते हैं। उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SE2) के निर्माण से विदेश व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई । अब चीन की योजना विश्व आर्थिकी से अपने जुडाव को और गहरा करके भविष्य की विश्व व्यवस्था को एक मनचाहा रूप देने की है।

चीन की आर्थिकी में तो नाटकीय सुधार हुआ है लेकिन वहाँ बेरोजगारी बढ़ी है। वहाँ महिलाओं के रोजगार और काम करने के हालात उतने ही खराब हैं जितने यूरोप में 18वीं और 19वीं सदी में थे। हालाँकि क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन आर्थिक शक्ति बनकर उभरा है। 1977 के वित्तीय संकट के बाद आसियान देशों की अर्थव्यवस्था को टिकाए रखने में चीन के आर्थिक उभार ने काफी मदद की है। लातिनी अमरीका और अफ्रीका में निवेश और मदद की नीतियाँ बताती हैं कि विकासशील देशों के मामले में चीन एक नई विश्व शक्ति के रूप में उभरता जा रहा है।

चीन के साथ भारत के सम्बन्ध
→ सकारात्मक पक्ष-

  • दोनों देशों के बीच महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं।
  • भारत और चीन के राजनीतिक सम्बन्ध उतार-चढ़ावों के बाद वर्तमान में सौहार्दपूर्ण हो रहे हैं।
  • भारत व चीन ने व्यापारिक तथा आर्थिक क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। 1999 से दोनों के बीच व्यापार 30 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है।
  • दोनों ने चिकित्सा विज्ञान, बैंकिंग क्षेत्र, ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की सहमति जतायी है।
  • शिक्षा के क्षेत्र में भी दोनों के मध्य सहयोगी सम्बन्ध बढ़ रहे हैं

→ नकारात्मक पक्ष-

  • दोनों देशों के बीच सीमा विवाद लम्बे समय से चला आ रहा है।
  • तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा की भारत में उपस्थिति चीन के लिए निरंतर परेशानी का कारण रही है।
  • चीन का सैन्य आधुनिकीकरण भी भारतीय चिंता का विषय है।
  • चीन द्वारा पाकिस्तान को सैन्य सहायता व नाभिकीय सहायता भारत के लिए एक सिरदर्द है।
  • भारत के कुछ महत्त्वपूर्ण व संवेदनशील आर्थिक क्षेत्रों में चीनी कंपनियों की भागीदारी का बढ़ना भारतीय चिंता का विषय है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

Jharkhand Board Class 12 Political Science दो ध्रुवीयता का अंत InText Questions and Answers.

पृष्ठ 24

प्रश्न 1.
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 24 पर दिये गये मानचित्र में स्वतंत्र मध्य एशियाई देशों को चिह्नित करें।
उत्तर;
स्वतंत्र मध्य एशियाई देश ये हैं-

  1. उज्बेकिस्तान
  2. ताजिकिस्तान
  3. कजाकिस्तान
  4. किरगिझस्तान
  5. तुर्कमेनिस्तान।

प्रश्न 2.
मैंने किसी को कहते हुए सुना है कि, “सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है। ” क्या यह संभव है?
उत्तर:
यह सही है कि सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है। यद्यपि सोवियत संघ समाजवादी विचारधारा का प्रबल समर्थक तथा उसका प्रतीक था, लेकिन वह समाजवाद के एक रूप का प्रतीक था। समाजवाद के अनेक रूप हैं और समाजवादी विचारधारा के उन रूपों को अभी भी विश्व के अनेक देशों ने अपना रखा है। दूसरे, समाजवाद एक विचारधारा है जिसमें देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार विकास होता रहा है और अब भी हो रहा है। इसलिए सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है।

पृष्ठ 28

प्रश्न 1.
सोवियत और अमरीकी दोनों खेमों के शीत युद्ध के दौर के पाँच-पाँच देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
शीत युद्ध के दौर के सोवियत और अमरीकी खेमों के 5-5 देशों के नाम निम्नलिखित हैं-

  • अमरीकी खेमे के देश:
    1. संयुक्त राज्य अमेरिका
    2. इंग्लैंड
    3. फ्रांस
    4. पश्चिमी जर्मनी
    5. इटली।
  • सोवियत खेमे के देश:
    1. सोवियत संघ
    2. पूर्वी जर्मनी
    3. पोलैंड
    4. रोमानिया
    5. हंगरी।

Jharkhand Board Class 12 Political Science दो ध्रुवीयता का अंत Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है?
(क) सोवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।
(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व / नियन्त्रण होना।
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियन्त्रण राज्य करता था।
उत्तर:
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित को कालक्रमानुसार सजाएँ।
(क) अफगान – संकट
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(ख) बर्लिन – दीवार का गिरना
(घ) रूसी क्रान्ति।
उत्तर:
(क) रूसी क्रान्ति, (1917)
(ख) अफगान संकट, (1979)
(ग) बर्लिन – दीवार का गिरना (1989)
(घ) सोवियत संघ का विघटन, (1991)।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में कौनसा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है?
(क) संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अन्त
(ख) स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल ( सी आई एस ) का जन्म
(ग) विश्व – व्यवस्था के शक्ति सन्तुलन में बदलाव
(घ) मध्य-पूर्व में संकट
उत्तर:
(घ) मध्य-पूर्व में संकट

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में मेल बैठाएँ-

(1) मिखाइल गोर्बाचेव (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(2) शॉक थेरेपी (ख) सैन्य समझौता
(3) रूस (ग) सुधारों की शुरुआत
(4) बोरिस येल्तसिन (घ) आर्थिक मॉडल
(5) वारसॉ (ङ) रूस के राष्ट्रपति

उत्तर:

(1) मिखाइल गोर्बाचेव (ग) सुधारों की शुरुआत
(2) शॉक थेरेपी (घ) आर्थिक मॉडल
(3) रूस (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(4) बोरिस येल्तसिन (ङ) रूस के राष्ट्रपति
(5) वारसॉ (ख) सैन्य समझौता

प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली”…………”की विचारधारा पर आधारित थी।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबन्धन” …………था।
(ग) ………… पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) …………. ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ङ) …………. का गिरना शीतयुद्ध के अन्त का प्रतीक था।
उत्तर:
(क) समाजवाद
(ख) वारसॉ पैक्ट
(ग) कम्युनिस्ट
(घ) मिखाइल गोर्बाचेव
(ङ) बर्लिन की दीवार।

प्रश्न 6.
सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं का जिक्र करें।
उत्तर:

  1. सोवियत अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी जबकि पूँजीवादी देशों में मुक्त व्यापार की नीति को अपनाया गया था।
  2. सोवियत अर्थव्यवस्था समाजवादी अर्थव्यवस्था पर आधारित थी जबकि अमेरिका ने पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया था।
  3. सोवियत अर्थव्यवस्था में भूमि और अन्य उत्पादक सम्पदाओं तथा वितरण व्यवस्था पर राज्य का ही स्वामित्व और नियन्त्रण था जबकि पूँजीवादी देशों में निजीकरण को अपनाया गया था।

प्रश्न 7.
किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए?
उत्तर:
गोर्बाचेव द्वारा सोवियत संघ में सुधार के कारण
गोर्बाचेव निम्नलिखित कारणों से सोवियत संघ में सुधार करने के लिए बाध्य हुए-
(1) अर्थव्यवस्था का गतिरुद्ध हो जाना:
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था कई सालों तक गतिरुद्ध हुई। इससे उपभोक्ता वस्तुओं की बड़ी कमी हो गयी थी। लोगों का जीवन कठिन हो गया था। गोर्बाचेव ने जनता से अर्थव्यवस्था के गतिरोध को दूर करने का वायदा किया था। अतः वह सुधार लाने के लिए बाध्य हुआ।

(2) पश्चिम के देशों की तुलना में पिछड़ जाना:
सोवियत संघ हथियारों के निर्माण की होड़ में प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे (मसलन परिवहन, ऊर्जा) के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत पिछड़ गया था। पश्चिमी देशों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ के आम नागरिकों की जानकारी बढ़ी। अपने पिछड़ेपन की पहचान से लोगों को राजनीतिक मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा। गोर्बाचेव ने सोवियत संघ को पश्चिम की बराबरी पर लाने का वायदा किया था । इसलिए वह सुधार लाने को बाध्य हुआ।

(3) प्रशासनिक ढाँचे की त्रुटियाँ;
सोवियत संघ के गतिरुद्ध प्रशासन, नौकरशाही में भारी भ्रष्टाचार और सत्ता के केन्द्रीकृत होने आदि के कारण आम जनता शासन से अलग-थलग पड़ गयी थी। गोर्बाचेव ने जनता को विश्वास में लेने के लिए प्रशासनिक ढाँचे में ढील देने का वायदा किया था। अतः गोर्बाचेव प्रशासनिक ढाँचे में सुधार लाने के लिए बाध्य हो गए थे।

प्रश्न 8.
भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
सोविय संघ के विघटन के भारत पर प्रभाव
सोवियत संघ के विघटन से भारत जैसे देशों के लिए निम्नलिखित परिणाम हुए-

  1. सोवियत संघ भारत का एक सच्चा व महान् मित्र रहा था। भारत को अपने आर्थिक विकास के लिए सोवियत संघ से भारी मात्रा में आर्थिक, सैनिक व तकनीकी सहायता प्राप्त होती थी। सोवियत संघ के विघटन के बाद अब भारत की अपने आर्थिक विकास के लिए अमरीका व अन्य पश्चिमी देशों पर निर्भरता बढ़ गयी; जिन्होंने भारत पर आर्थिक सहायता के द्वारा दबाव की कूटनीति थोपी।
  2. सोवियत संघ के पतन के परिणामस्वरूप शीतयुद्ध समाप्त हो गया तथा अन्तर्राष्ट्रीय तनावपूर्ण वातावरण एवं संघर्ष में कमी आई। इससे हथियारों की तेज दौड़ में कमी आई। भारत जैसे देशों के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की सम्भावना दिखाई दी तथा वे अपने विकास की तरफ अधिक ध्यान देने को उन्मुख हुए।
  3. सोवियत संघ के पतन के बाद भारत जैसे राष्ट्रों के लिए अमेरिका या अन्य किसी राष्ट्र से नजदीकी सम्बन्ध बनाने के लिए किसी गुट में शामिल होने की बाध्यता नहीं रही।
  4. भारत जैसे देशों में लोग पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शक्तिशाली व महत्त्वपूर्ण मानने लगे। परिणामस्वरूप मिश्रित अर्थव्यवस्था को छोड़कर भारत में उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीतियां अपना ली गईं।
  5. सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत ने विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका के साथ मजबूती के रिश्ते बनाने की ओर रुख किया।

प्रश्न 9.
शॉक थेरेपी क्या थी? क्या साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे बेहतर तरीका था?
उत्तर:
साम्यवादी के पतन के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों में पूँजीवाद की ओर संक्रमण का एक खास मॉडल अपनाया गया। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल को ‘शॉक थेरेपी’ कहा गया । भूतपूर्व ‘दूसरी दुनिया’ के देशों में शॉक थेरेपी की गति और गहनता अलग-अलग रही परंतु इसकी दिशा और चरित्र बड़ी सीमा तक एक जैसे थे।

हर देश को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर पूरी तरह मुड़ना था। ‘शॉक थेरेपी’ की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा। इसके अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढाँचे को तुरंत अपनाने की बात शामिल थी। सामूहिक ‘फार्म’ को निजी ‘फार्म’ में बदला गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती शुरू हुई।

‘शॉक थेरेपी’ से इन अर्थव्यवस्थाओं के बाहरी व्यवस्थाओं के प्रति रूझान बुनियादीतौर पर बदल गए। पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति महत्त्वपूर्ण मानी गई। अंततः इस संक्रमण में सोवियत खेमे के देशों के बीच मौजूद व्यापारिक गठबंधनों को समाप्त कर दिया गया। खेमे के प्रत्येक देश को एक-दूसरे से जोड़ने की जगह पर प्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी मुल्कों से जोड़ा गया। इस तरह धीरे-धीरे इन देशों को पश्चिमी अर्थतंत्र में समाहित किया गया।

साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण के ‘शॉक थेरेपी’ के तरीके को सबसे बेहतर तरीका नहीं कहा जा सकता। अधिक बेहतर उपाय यह होता कि इन देशों में पूँजीवादी सुधार तुरन्त किये जाने की अपेक्षा धीरे-धीरे किये जाते। एकदम से ही सभी प्रकार के परिवर्तनों को लाद देने से सोवियत खेमे में अनेक नकारात्मक प्रभाव पड़े, जैसे- इससे इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तहस-नहस हो गई; इससे जनता को अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा; समाज में गरीबी – अमीरी का भेद बढ़ा तथा जल्दबाजी में लोकतंत्रीकरण का काम भी सही ढंग से नहीं हो पाया।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथन के पक्ष या विपक्ष में एक लेख लिखें -” दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परम्परागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।”
उत्तर:
उक्त कथन के विपक्ष में तर्क-दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भी भारत को अपनी विदेश नीति बदलने की आवश्यकता नहीं है। रूस को छोड़कर अमेरिका से ज्यादा दोस्ती भारत के लिए निम्न तथ्यों के आलोक में उचित नहीं कही जा सकती करता है।

  1. अमेरिका भारत के महत्त्व को कम करने के लिए पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध खड़ा करता आ रहा है
  2. अमेरिका भारत की स्वतन्त्र विदेश नीति को प्रभावित करके अपना पिछलग्गू बनाना चाहता है।
  3. अमेरिका भारत को शक्तिशाली रूप में देखना पसन्द नहीं करता है। इस हेतु वह भारत के प्रयासों का विरोध
  4. चीन-अमेरिकी – पाक धुरी भी भारत और अमेरिका के सम्बन्धों में कटुता का कारण बनती रही है।
  5. आतंकवाद की समस्या से निपटने में भी अमेरिका दोहरी नीति अपनाये हुए है।

उक्त कथन के पक्ष में तर्क- उक्त कथन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं:

  1. सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् अब विश्व में अमेरिका ही सुपर शक्ति है, इसलिए अब भारत को अमरीका के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध बनाए रखना चाहिए।
  2. भारत और अमरीका दोनों ही देशों में लोकतंत्र है, दोनों ने ही आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई हुई है। अतः भारत को अमरीका के साथ सम्बन्ध बढ़ाने की नीति अपनानी चाहिए।
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को समय-समय पर विभिन्न प्रकार की सहायता की है। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत द्वारा उदारीकरण की नीति अपनाने से भारत को अमरीका से सम्बन्ध बढ़ाने चाहिए।
  4. भारत और अमरीका दोनों ही आतंकवाद विरोधी देश हैं।

दो ध्रुवीयता का अंत JAC Class 12 Political Science Notes

→ सोवियत प्रणाली:

  • समाजवादी सोवियत गणराज्य रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रान्ति के बाद अस्तित्व में आया।
  • सोवियत प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।
  • वियत अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी।
  • दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के देश सोवियत संघ के अंकुश में आ गए। इन सभी देशों की राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था को सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली में ढाला गया । इन्हें ही
  • समाजवादी खेमे के देश या दूसरी दुनिया कहा गया । इनका नेता सोवियत संघ था। इस प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरा।
  • अमरीका को छोड़कर शेष विश्व की तुलना में सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था कहीं ज्यादा विकसित थी।
  • लेकिन, सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया।

यह प्रणाली सत्तावादी होती गयी और नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया। सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था जिसका सभी संस्थाओं पर गहरा अंकुश था तथा यह दल जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं था। सोवियत संघ के 15 गणराज्यों में रूसी गणराज्य का हर मामले में वर्चस्व था। अन्य क्षेत्रों की जनता उपेक्षित और दमित महसूस करती थी। हथियारों की होड़ में सोवियत संघ ने समय-समय पर अमरीका को बराबर टक्कर दी लेकिन उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।

वह प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में पीछे रह गया। यह अपने नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सका। 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप से उसकी अर्थव्यवस्था और कमजोर हुई। उपभोक्ता वस्तु की कमी हो गयी। 1970 के दशक के अन्तिम वर्षों में यह व्यवस्था लड़खड़ाने लगी थी।

→ गोर्बाचेव और सोवियत संघ का विघटन:
1980 के दशक के मध्य में गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने। उसने पश्चिम के देशों के साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाने, सोवियत संघ को लोकतान्त्रिक रूप देने और वहाँ सुधार करने का फैसला किया। इस फैसले की अकल्पनीय परिणतियाँ हुईं

  • पूर्वी यूरोप की साम्यवादी सरकारें जनता के दबाव में एक के बाद एक गिर गईं। वहाँ लोकतान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना हुई।
  •  देश के अन्दर आर्थिक-राजनीतिक सुधारों और लोकतन्त्रीकरण का जहाँ साम्यवादी दल के नेताओं द्वारा विरोध किया गया, वहीं जनता और तेजी से सुधार चाहती थी। परिणामतः 1991 में सोवियत संघ के तीन बड़े गणराज्यों रूस, यूक्रेन और बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की। इन्होंने पूँजीवाद और लोकतन्त्र को अपना आधार बनाया। इन्होंने स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल का गठन किया। बाकी गणराज्यों को राष्ट्रकुल का संस्थापक सदस्य बनाया गया।
  • रूस को सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की सीट मिली। सोवियत संघ के अन्तर्राष्ट्रीय करार और सन्धियों को निभाने की जिम्मेदारी रूस को सौंपी गयी। इस प्रकार सोवियत संघ का पतन हुआ।

सोवियत संघ के विघटन का घटना चक्र:
→ मार्च, 1985: मिसाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए। बोरिस येल्तसिन को रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाया। सोवियत संघ में सुधारों की श्रृंखला शुरू की।

→ 1988: लिथुआनिया में आजादी के लिए आंदोलन शुरू एस्टोनिया और लताविया में भी फैला ।

→ अक्टूबर, 1989: सोवियत संघ ने घोषणा की कि ‘वारसा समझौते’ के सदस्य अपना भविष्य तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। नवम्बर में बर्लिन की दीवार गिर।

→ फरवरी, 1990: शुरुआत गोर्बाचेव ने सोवियत संसद ड्यूमा के चुनाव के लिए बहुदलीय राजनीति की सोवियत सत्ता पर कम्युनिष्ट पार्टी का 72 वर्ष पुराना एकाधिकार समाप्त।

→ जून, 1990: रूसी संसद ने सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता घोषित की।

→ मार्च, 1990: लिथुआनिया स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला पहला सोवियत गणराज्य बना।

→ जून, 1991: येल्तसिन का कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा रूस के राष्ट्रपति बने।

→ अगस्त, 1991: कम्युनिस्ट पार्टी के गरमपंथियों ने गोर्बाचेव के खिलाफ एक असफल तख्तापलट किया।

→  सितम्बर, 1991: एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया बाल्टिक गणराज्य संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने।

→ दिस0म्बर, 1991: रूस, बेलारूस और उक्रेन ने 1922 की सोवियत संघ के निर्माण से संबद्ध संधि को समाप्त करके स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल बनाया। आर्मेनिया, अजरबैजान, माल्दोवा, कजाकिस्तान, किरगिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान भी राष्ट्रकुल का हिस्सा बने। 1993 में जार्जिया राष्ट्रकुल का सदस्य बना संयुक्त राष्ट्रसंघ में सोवियत संघ की सीट रूस को मिली।

→ 25 दिसंबर, 1991: गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दिया सोवियत संघ का अंत

→  सोवियत संघ का विघटन क्यों हुआ?

  • सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएं अन्दरूनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाएँ पूरा नहीं कर सकीं। यही सोवियत संघ के पतन का प्रमुख कारण रहा।
  • परमाणु हथियार, सैन्य साजो-सामान तथा पूर्वी यूरोप के पिछलग्गू देशों के विकास पर हुए खर्चों से सोवियत संघ पर गहरा आर्थिक दबाव बना, सोवियत व्यवस्था इसका सामना नहीं कर सकी।
  • पश्चिमी देशों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ की जनता को यह जानकारी मिली कि सोवियत संघ पश्चिमी देशों से काफी पीछे है। इससे जनता को राजनीतिक मनोवैज्ञानिक धक्का लगा।
  • गतिरुद्ध प्रशासन, भारी भ्रष्टाचार, पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह न होना, खुलापन का अभाव तथा केन्द्रीकृत सत्ता के कारण जनता शासन से अलग-थलग पड़ चुकी थी। सरकार का जनाधार
  • खिसक गया था।
  • गोर्बाचेव ने जब सुधारों को लागू किया तो आकांक्षाओं- अपेक्षाओं का जनता का जो ज्वार उमड़ा, शासक उसका सामना नहीं कर सका। जहाँ आम जनता और तीव्र सुधार चाहती थी, वहाँ सत्ताधारी वर्ग इस बात से असन्तुष्ट था कि गोर्बाचेव सुधारों में बहुत जल्दबाजी दिखा रहे हैं। फलतः गोर्बाचेव का समर्थन हर तरफ से जाता रहा।
  • रूस, बाल्टिक गणराज्यों, उक्रेन तथा जार्जिया में राष्ट्रवादी भावनाओं और सम्प्रभुता की इच्छा का उभार सोवियत संघ के विघटन का तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ।

विघटन की परिणतियाँ:
→  सोवियत संघ के विघटन से प्रमुख परिणाम ये निकले:

  • शीत युद्ध के दौर की समाप्ति हुई।
  • अमेरिका विश्व में अकेला महाशक्ति बन बैठा। इस प्रकार एकध्रुवीय विश्व का उदय हुआ।
  •  उदारवादी लोकतन्त्र राजनीतिक जीवन को सूत्रबद्ध करने की सर्वश्रेष्ठ धारणा के रूप में उभरा।
  •  सोवियत संघ से अलग होकर अनेक नये देशों का उदय हुआ।

साम्यवादी शासन के बाद ‘शॉक थेरेपी’:
→  साम्यवाद के पतन के बाद सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतान्त्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। यथा-

  • निजी स्वामित्व को मान्यता: राज्य की सम्पदा का निजीकरण और पूँजीवादी ढाँचे को तुरन्त अपनाने पर बल दिया गया।
  • मुक्त व्यापार: मुक्त व्यापार को पूर्ण रूप से अपनाना जरूरी माना गया।
  • पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाना: पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति पर बल दिया गया।
  • पश्चिमी देशों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध की स्थापना: सोवियत खेमे के देशों के बीच मौजूद व्यापारिक गठबन्धनों को समाप्त कर प्रत्येक देश को सीधे पश्चिमी देशों से जोड़ा गया।

→  शॉक थेरेपी के परिणाम:

  • ‘शॉक थेरेपी’ से पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई। पूरा राज्य नियन्त्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा गया। 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी कम्पनियों को बेचा गया।
  • रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आयी। मुद्रास्फीति इतनी बढ़ गई कि लोगों की जमा पूँजी जाती रही।
  • पुराने व्यापारिक ढाँचे के स्थान पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था स्थापित नहीं हो पायी।
  • खाद्यान्न सुरक्षा व्यवस्था, समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था को नष्ट कर दिया गया। इससे अमीर-गरीब की खाई और बढ़ गयी
  • लोकतान्त्रिक संस्थाओं के निर्माण के कार्य को प्राथमिकता के साथ नहीं किया गया। फलतः संसद एक कमजोर संस्था रह गयी। न्यायिक संस्कृति और न्यायपालिका की स्वतन्त्रता स्थापित नहीं हो पायी।
  • अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवन का आधार बना – खनिज तेल, प्राकृतिक गैस और धातु।

→  संघर्ष और तनाव:

  • अनेक गणराज्यों में गृहयुद्ध और बगावत हुई।
  • इन देशों में बाहरी ताकतों की दखल बढ़ी।
  • अनेक में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले।
  • मध्य एशियाई गणराज्य पेट्रोलियम के विशाल तेल भण्डारों के कारण बाहरी ताकतों और तेल कम्पनियों की आपसी प्रतिस्पर्द्धा का अखाड़ा बन गये अमेरिका इस क्षेत्र में सैनिक ठिकाना बनाना चाहता है और रूस इन राज्यों को अपना निकटवर्ती विदेश मानता है और उसका मानना है कि इन्हें रूस के प्रभाव में रहना चाहिए। चीनियों ने भी सीमावर्ती क्षेत्र में आकर व्यापार शुरू कर दिया है।

→  पूर्व – साम्यवादी देश और भारत:
भारत के सम्बन्ध रूस के साथ गहरे हैं। भारत-रूस सम्बन्धों का इतिहास आपसी विश्वास और साझे हितों का इतिहास है। ये सम्बन्ध जनता की अपेक्षाओं से मेल खाते हैं। रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है। भारत को रूस के साथ अपने सम्बन्धों के कारण अनेक मसलों में फायदे हुए हैं, जैसे कश्मीर समस्या, ऊर्जा आपूर्ति, चीन के साथ सम्बन्धों में सन्तुलन लाना आदि रूस का भारत से लाभ यह है कि भारत उसके हथियारों का एक बड़ा खरीददार देश है। रूस ने तेल के संकट की घड़ी में भारत की हमेशा मदद की। रूस भारत की परमाणविक योजना के लिए महत्त्वपूर्ण है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

JAC Class 9 Hindi धूल Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
हीरे के प्रेमी उसे किस रूप में पसंद करते हैं ?
उत्तर :
हीरे के प्रेमी हीरे को साफ़-सुथरे, तराशे हुए और आँखों में चकाचौंध पैदा करने वाले रूप में पसंद करते हैं।

प्रश्न 2.
लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?
उत्तर :
लेखक ने संसार में उस सुख को दुर्लभ माना है, जो जवानी में अखाड़े की मिट्टी में सनने से मिलता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

प्रश्न 3.
मिट्टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती है ?
उत्तर :
मिट्टी की आभा धूल है। मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती ?
उत्तर :
धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना इसलिए नहीं की जा सकती, क्योंकि शिशुओं को धूल में खेलना अच्छा लगता है। धूल से सना शिशु का मुख उसकी सहजता को और भी अधिक निखार देता है। इसी कारण शिशुओं को ‘धूलि भरे हीरे’ कहा गया है।

प्रश्न 2.
हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है ?
उत्तर :
आधुनिक युग का अभिजात वर्ग धूल से इसलिए बचना चाहता है, ताकि उसकी दिखावे की चमक-दमक फीकी न पड़ जाए। ये लोग अपने बच्चों को धूल-मिट्टी में खेलने से मना करते हैं। वे धूल से सने हुए शिशु को इसलिए नहीं उठाते कि कहीं उनके वस्त्र मैले न हो जाएँ।

प्रश्न 3.
अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है ?
उत्तर :
अखाड़े की मिट्टी साधारण धूल नहीं होती। यह मिट्टी अखाड़े में दाव आज़माने वाले जवानों के शरीर पर लगे तेल, मट्ठे और उनकी मेहनत से बहे हुए पसीने से सिझाई हुई होती है। अखाड़े में मेहनत करने से पसीने से तर-बतर जवानों के शरीर पर यह मिट्टी ऐसे फिसलती है, जैसे वह कुआँ खोदकर बाहर निकला हो।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

प्रश्न 4.
श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है ?
उत्तर :
लोग कहते हैं कि धूल के समान तुच्छ कोई नहीं है, जबकि सती धूल को माथे से लगाकर उसके प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करती है। वीर योद्धा धूल को आँखों से लगाकर उसके प्रति अपनी श्रद्धा जताते हैं तथा युलिसिस ने विदेश से लौटने के बाद अपने देश के प्रति अपना स्नेह व्यक्त करने के लिए इथाका की धूलि को चूमा था। इस प्रकार धूल श्रद्धा, भक्ति और स्नेह व्यक्त करने का सर्वोत्तम साधन है।

प्रश्न 5.
इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य किया है ?
उत्तर :
इस पाठ में लेखक ने बताया है कि जो लोग गाँव से जुड़े हुए हैं, वे यह कल्पना नहीं कर सकते कि धूल के बिना भी कोई शिशु हो सकता है। वे धूल से सने हुए बच्चे को ‘धूलि भरे हीरे’ कहते थे। आधुनिक नगरीय सभ्यता बच्चों को धूल में खेलने से मना करती है, क्योंकि यदि वे धूल से सने बच्चे को उठाएँगे तो मैले हो जाएँगे। नगर वाले गोधूलि अथवा धूलि का महत्व जानते ही नहीं हैं क्योंकि नगरों में तो धूल-धक्कड़ होते हैं, गोधूलि नहीं होती। लेखक नगरीय सभ्यता को हीनभावना से युक्त मानता है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
लेखक ‘बालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ क्यों मानता है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि जिस प्रकार फूल के ऊपर धूल के महीन कण शोभा पाते हैं, उसी प्रकार से बालकृष्ण के मुँह पर छाई हुई गोधूलि उनके मुख की शोभा को और अधिक निखार देती है। उनके मुख की ऐसी कांति आधुनिक युग में प्रचलित प्रसाधन-सामग्री के उपयोग से नहीं आ सकती। गोधूलि की सहजता ने बालकृष्ण के मधुर स्वरूप को और भी अधिक आकर्षक बना दिया है। इसलिए लेखक ने बालकृष्ण के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ माना है।

प्रश्न 2.
लेखक ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार धूल और मिट्टी में विशेष अंतर नहीं है। उसके अनुसार धूल और मिट्टी में केवल उतना ही अंतर है, जितना कि शब्द और रस, देह और प्राण अथवा चाँद और चाँदनी में होता है। जिस प्रकार ये अलग-अलग होते हुए भी एक हैं, उसी प्रकार धूल और मिट्टी अलग नाम होकर भी एक हैं। मिट्टी की आभा का नाम धूल है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है। मिट्टी और धूल एक दूसरे के पूरक हैं। धूल ही मिट्टी के आरंभ को प्रस्तुत करती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

प्रश्न 3.
ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है ?
उत्तर :
संध्या के समय जब गोपालक गायें चराकर गाँव में लौटते हैं, तो उनके और उनकी गायों के चलने से उत्पन्न हुई धूल वातावरण में ऐसे भर जाती है कि संध्या के समय को गोधूलि का नाम दे दिया गया है। गाँव की अमराइयों के पीछे अस्त होते हुए सूर्य की किरणें धूलि पर पड़ती हैं, तो वह धूल भी स्वर्णमय हो जाती है। सूर्यास्त के बाद जब गाँव की कच्ची डगर से कोई बैलगाड़ी निकल जाती है, तो उसके पीछे उड़ने वाली धूल रूई के बादल के समान दिखाई देती है और चाँदनी रात में मेले जाने वाली बैलगाड़ियों के पीछे उड़ने वाली धूल चाँदी जैसी लगती है।

प्रश्न 4.
‘हीरा वही घन चोट न टूटे’ – का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक का विचार है कि धूल में लिपटा किसान आज भी तथाकथित अभिजात वर्ग की उपेक्षा का पात्र है। किसान सब की उपेक्षा सहकर भी अपनी मिट्टी से प्यार करता है और अपने परिश्रम से अन्न पैदा करता है। उसके हाथ, पैर, मुँह आदि पर छाई हुई धूल उसके परिश्रमी होने का प्रमाण है। वह ऐसा हीरा है, जो धूल भरा है। हीरा अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है, जो हथौड़े की चोट से भी नहीं टूटता। इसी प्रकार से भारतीय किसान भी कठोर परिश्रम से नहीं घबराता, इसलिए वह अटूट है।

प्रश्न 5.
धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक ने धूल को जीवन का यथार्थवादी गद्य कहा है। धूलि को वह उसकी कविता मानता है। धूली को वह छायावादी दर्शन मानता है, जिसकी वास्तविकता उसे संदिग्ध लगती है। धूरि को लेखक ने लोक-संस्कृति का नवीन जागरण माना है। गोधूलि से अभिप्राय संध्या के समय उड़ने वाली उस धूल से है, जो गायें चराकर गाँव की ओर लौटते समय ग्वालों और गायों के पैरों से उठती है। इस प्रकार लेखक ने चारों को अलग-अलग रूप में चित्रित किया है।

प्रश्न 6.
‘धूल’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘धूल’ पाठ में लेखक ने धूल के माध्यम से निम्न वर्ग के महत्व को स्पष्ट किया है। उनका मानना है कि धूल से सना व्यक्ति घृणा अथवा उपेक्षा का पात्र नहीं होता, बल्कि धूल तो परिश्रमी व्यक्ति का परिधान है। धूल से सना शिशु ‘धूलि भरा हीरा’ कहलाता है। धूल में सना किसान-मजदूर सच्चा हीरा है, जो देश की उन्नति में सहायक है। आधुनिक सभ्यता में पले लोग धूल से घृणा करते हैं। वे नहीं जानते कि धूल अथवा मिट्टी ही जीवन का सार है। मिट्टी से ही सब पदार्थ उत्पन्न होते हैं। इसलिए सती मिट्टी को सिर से, सिपाही आँखों से तथा आम नागरिक स्नेह से स्पर्श करता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

प्रश्न 7.
कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है ?
उत्तर
लेखक ने कहा है कि गोधूलि पर अनेक कवियों ने कविताएँ लिखी हैं, परंतु वे उस धूलि को सजीवता से चित्रित नहीं कर पाए, जो कि संध्या के समय गायें चराकर लौटते समय ग्वालों और गायों के पैर से उठकर सारे वातावरण में फैल जाती है। अधिकांश कवि शहरों के रहने वाले हैं। शहरों में धूल-धक्कड़ तो होता है, परंतु गाँव की गोधूलि नहीं होती। इसलिए वे अपनी कविताओं में गाँव की गोधूलि का सजीव वर्णन नहीं कर पाए हैं। अभिप्राय यह है कि कवियों ने जिसे देखा नहीं, महसूस नहीं किया, भोगा नहीं – उसी को अपनी कविताओं में उतार दिया। इसमें कविता यथार्थ से परे हो गई है। इसी को लेखक ने कविता की विडंबना माना है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि शिशु धूल-मिट्टी से सना हुआ ही अच्छा लगता है। धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती। इस प्रकार धूल से सने शिशु को ‘धूलि भरे हीरे’ कहा गया है। लेखक के अनुसार जैसे फूल के ऊपर पड़े हुए धूल के कण उसकी शोभा को बढ़ा देते हैं, वैसे ही शिशु के मुँह पर पड़ी हुई धूल उसके सहज स्वरूप को और भी निखार देती है।

प्रश्न 2.
‘धन्य-धन्य’ वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की ‘ – लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
लेखक कहना चाहता है कि धूल भरे बच्चे को गोद में उठाए हुए व्यक्ति को सौभाग्यशाली अवश्य माना जाता है, परंतु साथ ही ‘धूल भरे बच्चों को उठाने से मैले हुए’ कहने से यह स्पष्ट होता है कि कवि ने धूल को गंदगी जैसा माना है। इसी पंक्ति में ‘ऐसे लरिकान’ से यह भावार्थ निकलता है कि ये बच्चे निम्न वर्ग के हैं इसलिए धूल से लिपटे हैं। इस प्रकार वह व्यक्ति चमक-दमक देखता है, गुण नहीं। उसे हीरे पसंद हैं, धूलि भरे हीरे नहीं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

प्रश्न 3.
मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि मिट्टी और धूल में कोई अंतर नहीं है। दोनों एक ही हैं। मिट्टी और धूल की अभिन्नता स्पष्ट करने के लिए लेखक उदाहरण देता है कि जैसे शब्द और रस दो होते हुए भी एक हैं। शब्द के बिना रस उत्पन्न नहीं होता। देह और प्राण अलग-अलग होते हुए भी अभिन्न हैं, क्योंकि प्राण के बिना देह मृत है और देह के बिना प्राण का कोई अस्तित्व नहीं है। चाँद और चाँदनी अलग-अलग हैं, परंतु चाँद के बिना चाँदनी नहीं हो सकती। इसी प्रकार से मिट्टी है, तो धूल है। मिट्टी की पहचान धूल से ही होती है।

प्रश्न 4.
हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।
उत्तर :
लेखक के अनुसार हमारी देशभक्ति का स्तर इतना गिर गया है कि हम अपने देश की मिट्टी को आदर देने के स्थान पर उसका तिरस्कार करते हैं। हम अपने देश को छोड़कर विदेशों की ओर भाग रहे हैं। इसलिए लेखक चाहता है कि हम चाहे अपने देश की मिट्टी के प्रति समर्पित न हों, परंतु हमें अपने देश को छोड़कर विदेश नहीं जाना चाहिए। हमारे पैर हमारी धरती पर टिके रहे।

प्रश्न 5.
वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
उत्तर :
लेखक ने यह संबोधन भारत के किसानों और मज़दूरों के लिए किया है। लेखक ने इन्हें ‘धूल भरे हीरे’ कहा है। आधुनिक अभिजात वर्ग इनकी अपेक्षा करता है और काँच जैसी क्षणभंगुर वस्तुओं के पीछे भाग रहा है। इन किसान-मज़दूरों की उपेक्षा करना तथा इन्हें तुच्छ मानना उचित नहीं है, क्योंकि इनमें दृढ़ता तथा परिश्रम करने की शक्ति है। जब ये अपनी शक्ति पहचान कर अभिजात वर्ग पर अपनी उपयोगिता सिद्ध कर देंगे, तो आधुनिकतावादियों के पास काँच और हीरे में भेद करने का अवसर नहीं होगा।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग छाँटिए –
उदाहरण : विज्ञापित – वि (उपसर्ग) ज्ञापित
संसर्ग, उपमान, संस्कृति, दुर्लभ, निद्वंद्व, प्रवास, दुर्भाग्य, अभिजात, संचालन।
उत्तर :
संसर्ग – सम् (सर्ग), उपमान – उप (मान), संस्कृति सम्-कृ – सम्-कृ + क्तिन्
दुर्लभ – दुर् (लभ), निद्वंद्व – निर् (द्वंद्व), प्रवास – प्र (वास)
दुर्भाग्य – दुर् (भाग्य), अभिजात – अभि (जात), संचालन – सम् (चालन)

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

प्रश्न 2.
लेखक ने इस पाठ में धूल चूमना, धूल माथे पर लगाना, धूल होना जैसे प्रयोग किए हैं। धूल से संबंधित अन्य पाँच प्रयोग और बताइए तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :

  1. धूल में मिलना – रोहित ने बहुत परिश्रम से चित्र बनाया था, लेकिन सीमा ने उस पर पानी डालकर उसे धूल में मिला दिया।
  2. धूल फाँकना – सतीश पढ़-लिखकर भी कोई काम न मिलने के कारण इधर-उधर धूल फाँकता फिर रहा है
  3. धूल चाटना – पुलिस के डंडे खाकर चोर धूल चाटने लगा।
  4. धूल उड़ना – सुमिता जब चुनाव हार गई, तब उसके घर पर धूल उड़ने लगी।
  5. धूल समझना – रावण अपने सामने सबको धूल समझता था।

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता ‘मिट्टी की महिमा’, नरेश मेहता की कविता ‘मृत्तिका’ तथा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ‘धूल’ शीर्षक से लिखी कविताओं को पुस्तकालय से ढूँढ़कर पढ़िए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
इस पाठ में लेखक ने शरीर और मिट्टी को लेकर संसार की असारता का जिक्र किया है। इस असारता का वर्णन अनेक भक्त कवियों ने अपने काव्य में किया है। ऐसी कुछ रचनाओं का संकलन कर कक्षा में भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi धूल Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘नीच को धूरि समान’ कथन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
कवि का कथन है कि धूलि के समान नीच कौन है ? कोई नहीं। इस संबंध में लेखक का कहना है कि कवि के इस कथन को वेद- वाक्य के समान सत्य नहीं मान लेना चाहिए, क्योंकि धूल तो इस देश की पवित्र मिट्टी है। इस मिट्टी को सती श्रद्धावश अपने सिर पर धारण करती है; देशभक्त इसे अपनी आँखों से लगाते हैं और प्रत्येक नागरिक देशप्रेम के कारण अपने देश की मिट्टी का प्रेम से स्पर्श करता है। इसलिए धूल नीच न होकर श्रद्धा, भक्ति और स्नेह के योग्य है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

प्रश्न 2.
किसान के हाथ-मुँह पर छाई धूल हमारी आधुनिक सभ्यता से क्या कहती है ?
उत्तर :
किसान के हाथ-मुँह पर छाई धूल हमारी आधुनिक सभ्यता से कहती है कि वह धूल परिश्रम की प्रतीक है। इसी के फलस्वरूप किसान देश के लिए अनाज पैदा करता है। हमारी आधुनिक सभ्यता को इन्हें हेय-दृष्टि से देखने के स्थान पर इनका सम्मान करना चाहिए. क्योंकि ये वे सच्चे हीरे हैं, जो घन की चोट से भी नहीं टूटते। किसान कभी भी परिश्रम से जी नहीं चुराता; वह कठोर-से-कठोर स्थिति में भी अपना काम करता रहता है।

प्रश्न 3.
हमारी आधुनिक सभ्यता में धूल की उपेक्षा क्यों की जाती है ?
उत्तर :
हमारी आधुनिक सभ्यता में पले-बढ़े लोग चमक-दमक तथा दिखावे के पीछे भागते हैं। उन्हें धूल से सने हुए लोगों से नफ़रत है। वे अपने बच्चों को धूल-मिट्टी में खेलने से मना करते हैं। वे काँच के समान चमकीली वस्तुओं के पीछे दीवाने हैं। वे यह नहीं सोचते कि काँच क्षणभंगुर होता है। इसके विपरीत परिश्रम की धूल में लिपटा हुआ हीरा ही असली है। वे शारीरिक श्रम को हीनदृष्टि से देखने के कारण भी धूल की उपेक्षा करते हैं।

प्रश्न 4.
गोधूलि गाँव में ही क्यों होती है ?
उत्तर :
गोधूलि गाँव की संपत्ति है गाँव के कच्चे रास्तों पर संध्या के समय जब ग्वाले अपनी गायों को चराकर लौटते हैं, तो उनके तथा गायों के पैरों से उड़ने वाली धूल अस्त होते हुए सूर्य की सुनहरी किरणों में रंगकर स्वर्णमयी हो जाती है। इसी धूल को गोधूलि कहते हैं इसके विपरीत शहर की पक्की सड़कों पर यह दृश्य दिखाई नहीं देता। इसलिए गोधूलि गाँव में ही होती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

प्रश्न 5.
लेखक ने किसे हीरे के समान कीमती कहा है और क्यों ?
उत्तर :
लेखक ने से भरे हुए बच्चों को हीरे के समान कीमती कहा है। ऐसा इसलिए कहा गया है, क्योंकि धूल से बच्चों का बचपन लिपटा होता है। बच्चा धूल में खेलकर बड़ा होता है। बच्चों को ज़मीन पर खेलना अच्छा लगता है। उसका सारा शरीर धूल से भर जाता है, इसी कारण वह हीरे से अधिक कीमती है।

प्रश्न 6.
प्रसाधन-सामग्री की तुलना किससे की गई है और क्यों ?
उत्तर :
प्रसाधन – सामग्री की तुलना गोधूलि से की गई है, क्योंकि गोधूलि से ही प्रकृति अपना श्रृंगार करती है। फूल, गलियाँ, पेड़-पौधे इत्यादि सभी इससे भरकर अपना अलग रंग प्रस्तुत करते हैं। बच्चे भी गोधूलि से भरे होते हैं। उस समय सब समान लगते हैं- कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। सभी का रूप उसके परिवार वालों को आकर्षित करता है। इसलिए प्रसाधन-सामग्री को गोधूलि के समक्ष तुच्छ माना गया है।

प्रश्न 7.
बड़े लोग अपने बड़प्पन को दिखाने के लिए क्या ढोंग करते हैं ?
उत्तर :
बड़े लोग जब गाँवों में जाते हैं, उस समय अपनी महानता दिखाने के लिए धूल से भरे बच्चों को गोद में उठा लेते हैं। लोग उन्हें इस तरह बच्चों को उठाते देख उनकी प्रशंसा करते हैं कि किस प्रकार उन्होंने मैले-कुचैले धूल से भरे बच्चों को अपनी गोद में उठा रखा है। उन्हें अपनी मिट्टी से प्यार है। यह ढोंग उन्हें आम लोगों की नज़र में महान बना देता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

प्रश्न 8.
मिट्टी का हमारे जीवन में क्या महत्व है ?
उत्तर :
मिट्टी का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। हमारा शरीर अंत में मिट्टी में विलीन हो जाता है। जीवन जीने के लिए जितने भी सार तत्व अनिवार्य होते हैं, वे सब हमें मिट्टी से मिलते हैं। हमारे जीवन के रूप, रस, गंध, स्पर्श सभी मिट्टी से संबंधित हैं। धूल भी मिट्टी का अंश है, जिसमें बच्चे अपने को पहचानते हैं।

प्रश्न 9.
गोधूलि गाँव की संपत्ति क्यों है ?
उत्तर :
गोधूलि गाँव की संपत्ति मानी जाती है। शहरों में धूल तो है, परंतु वह गोधूलि नहीं है; क्योंकि संध्या के समय जब ग्वाले गाएँ चराकर घरों को लौटते हैं, तो उनके तथा गायों के पदचापों से उठने वाली धूल से वहाँ के वातावरण में अद्भुत आकर्षण दिखाई देता है। जब इस धूल पर अस्त होते हुए सूर्य की सुनहरी किरणें पड़ती हैं; तो धूल स्वर्णिम हो जाती है। ये सब दृश्य गाँवों में ही दिखाई देते हैं। शहरों में ऊँची-ऊँची इमारतों में सूर्य भी छिप जाता है। वहाँ गोधूलि के समय गाँवों जैसा वातावरण दिखाई नहीं देता है। इसलिए गोधूलि को गाँव की संपत्ति माना गया है।

प्रश्न 10.
लेखक धूल पर पैर रखने का आग्रह क्यों कर रहा है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार आज की पीढ़ी चमक-दमक में खो गई है। उसे अपनी मिट्टी से प्यार नहीं है। वह काँच के टुकड़े प्राप्त करने के लिए विदेशों में जाकर रहना पसंद करती है। इसलिए लेखक कहता है कि हम एक बार अपनी मिट्टी में पैर रखें, जिसमें हमें हमारी सभ्यता की सुगंध मिलेगी। लेखक चाहता है कि हम अपनी धरती पर टिके रहे तथा अपना देश छोड़कर

प्रश्न 11.
विदेश न जाएँ। मानव शरीर किससे बना हुआ है ?
उत्तर :
मानव शरीर मिट्टी से बना हुआ है। यही मिट्टी मानव के शरीर को मज़बूत बनाती है। इसी से उसके शरीर में शक्ति का संचार होता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

प्रश्न 12.
मिट्टी हमें किसका ज्ञान करवाती है ?
उत्तर :
मानव शरीर मिट्टी से बना है। इसी से मानव में शक्ति का संचार होता है। संसार में रूप, रस, गंध और स्पर्श का ज्ञान मिट्टी से ही होता है। यह हमें किसी को पहचानने तथा उसके गुणों व अवगुणों से अवगत करवाने का काम करती है।

प्रश्न 13.
लेखक को किस प्रकार का शिशु अच्छा लगता है और क्यों ?
उत्तर :
लेखक को धूल से लथपथ तथा उसमें सना हुआ बालक अति सुंदर लगता है। धूल उसके तन को शोभा युक्त बनाती है; उसके शरीर में चमक तथा कांति उत्पन्न करती है। धूल से युक्त बालक का शरीर सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। ऐसा बालक हीरे की चमक को भी फीका कर देता है।

प्रश्न 14.
मिट्टी की आभा क्या है ? उसकी पहचान कैसे होती है ?
उत्तर :
मिट्टी की आभा ‘धूल’ है। इसी धूल से मिट्टी के रंग-रूप को देखा और जाना जा सकता है। यही धूल मिट्टी के महत्व को प्रतिपादित करती है; उसकी विभिन्नता को एक रूप देकर मिट्टी के गुणों से लोगों को परिचित करवाती है।

प्रश्न 15.
‘धूल’ किस प्रकार की रचना है ? लेखक ने इस रचना के माध्यम से क्या कहना चाहा है ?
उत्तर :
धूल’ डॉ० रामविलास शर्मा द्वारा रचित एक ललित निबंध है। लेखक की यह कृति ग्रामीण अंचल से अवश्य जुड़ी है, लेकिन इसने संपूर्ण मानव जाति को एक बहुमूल्य संदेश देना चाहा है। लेखक ने ‘धूल’ रचना के माध्यम से मिट्टी के महत्व, उपयोगिता तथा महिमा का वर्णन किया है। इसमें लेखक ने मानव-जीवन में मिट्टी का स्थान निर्धारित करते हुए धूल को उसकी आभा कहा है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

प्रश्न 16.
लेखक ने ‘धूल’ निबंध में बहुत-से मुहावरों का वर्णन किया है। आप भी ‘धूल’ से संबंधित कुछ मुहावरे लिखिए।
उत्तर :
धूल से संबंधित निम्नलिखित मुहावरे हो सकते हैं –

  1. धूल चाटना
  2. धूल झाड़ना
  3. धूल चूमना
  4. धूल में मिलना
  5. धूल उड़ाना
  6. धूल में उड़ना
  7. धूल फाँकना
  8. धूल समझना

प्रश्न 17.
लेखक ने धूल के महत्व को किस प्रकार रेखांकित किया है ?
उत्तर :
लेखक ने धूल के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया है कि सती धूल को माथे से लगाकर स्वयं को सौभाग्यशाली समझती है तथा योद्धा इसी धूल को अपनी आँखों से लगाकर स्वयं को परमवीर समझता है। युलिसिस नामक योद्धा ने स्वदेश लौटने पर सबसे पहले अपने देश इथाका की धूलि को ही चूमा था।

धूल Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन-परिचय – सुप्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार, विचारक एवं कवि श्री रामविलास शर्मा जी का जन्म 10 अक्टूबर, सन् 1912 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम० ए० तथा पी०एच डी० की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1938 से ही वे अध्यापन क्षेत्र में आ गए। वर्ष 1943 से 1974 ई० तक इन्होंने बलवंत राजपूत कॉलेज, आगरा के अंग्रेजी विभाग में कार्य किया और विभाग के अध्यक्ष रहे। प्रगतिवादी समीक्षा-पद्धति को हिंदी में सम्मान दिलाने वाले लेखकों में डॉ० रामविलास शर्मा का स्थान प्रमुख है।

प्रगतिशील लेखक संघ के मंत्री के रूप में मार्क्सवादी साहित्य- दृष्टि को समझने का इन्हें पर्याप्त अवसर मिला और इन्होंने उसका भरपूर प्रयोग अपनी रचनाओं में किया। इनका मार्क्सवादी साहित्य-समीक्षा के अग्रणी समीक्षकों में इनका नाम लिया जा सकता है। रामविलास शर्मा जी ने कबीर, तुलसी, भारतेंदु, रामचंद्र शुक्ल, प्रेमचंद आदि पर नवीन ढंग से विचार किया और प्राचीन मान्यताओं को खंडित किया। डॉ० रामविलास शर्मा स्पष्ट वक्ता एवं स्वतंत्र चिंतक थे।

आपने ‘हंस’ मासिक पत्रिका के ‘काव्य-विशेषांक’ का संपादन किया तथा दो वर्ष तक आगरा से निकलने वाली ‘समालोचना’ पत्रिका का भी संपादन किया। सन् 2000 में दिल्ली में इनकी मृत्यु हुई।

रचनाएँ – शर्मा जी की ख्याति हिंदी समालोचक के रूप में अधिक रही है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
निराला की साहित्य साधना (तीन खंड), भारतेंदु और उनका युग, प्रेमचंद और उनका युग, महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण, भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी (तीन खंड), भाषा और समाज, भारत में अंग्रेज़ी राज और मार्क्सवाद (दो खंड), इतिहास दर्शन, भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेश आदि।

भाषा-शैली – ‘ धूल’ रामविलास शर्मा का ललित निबंध है, जिसमें लेखक ने प्रसंगानुकूल भावपूर्ण भाषा-शैली का प्रयोग किया है। लेखक ने सहज, सरल तथा व्यावहारिक हिंदी भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग किया है जिसमें कहीं-कहीं शिशु, पार्थिवता, संसर्ग, विज्ञापित, विडंबना आदि तत्सम प्रधान शब्दों के साथ-साथ सिझाई, बाटे, कनिया, मट्ठा आदि देशज शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। लेखक ने धूल चाटने, धूल झाड़ने, धूल चूमने, धूल होना आदि मुहावरों का सटीक प्रयोग किया है। लेखक ने काव्यात्मक भावपूर्ण शैली का बहुत सफलता से प्रयोग किया है; जैसे- ‘फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुख पर उसकी सहज पार्थिवता निखार देती है।’ अतः कह सकते हैं कि इस पाठ में लेखक ने सहज, स्वाभाविक तथा भावपूर्ण भाषा-शैली में ‘ धूल’ के महत्व को रेखांकित किया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

पाठ का सार :

‘धूल’ पाठ में डॉ० रामविलास शर्मा ने धूल की महिमा, महत्व और उपयोगिता का वर्णन किया है। लेखक पाठ का प्रारंभ कविता की इस पंक्ति से करता है- ‘जिसके कारण धूलि भरे हीरे कहलाए’। लेखक का मानना है कि हीरे को तो साफ-सुथरा चमकाकर रखा जाता है, परंतु धूल से लिपटा हुआ शिशु इतना प्यारा लगता है कि वह धूल से भरा हीरा सबका मन मोह लेता है। धूल से सने हुए बालकृष्ण सबके मन के मोहन हैं। आधुनिक सभ्यता में पले हुए लोग बच्चों को धूल में खेलने से रोकते हैं। उन्हें लगता है कि धूल में खेलने से उनका स्तर गिर जाएगा। इसके विपरीत किसी कवि ने धूल-भरे शिशुओं को गोद में लेने वाले लोगों को सौभाग्यशाली मानते हुए लिखा है-‘धन्य धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की।’

लेखक के अनुसार जो लोग भोले-भाले धूल भरे शिशु को उठाने से शरीर का मैला होना मानते हैं, उन्हें तो अखाड़े की मिट्टी से सने हुए लोगों के शरीर से बदबू ही आने लगेगी। परंतु जो बचपन से ही धूल में खेलता रहा है, उसे जवानी में अखाड़े की मिट्टी से दूर नहीं रखा जा सकता। अखाड़े की मिट्टी साधारण धूल नहीं है वह तो तेल, मट्ठे और मेहनत के पसीने से सनी हुई वह मिट्टी है, जो पसीने से तर शरीर पर ऐसे फिसलती है जैसे कोई कुआँ खोदकर बाहर निकल आया हो। अखाड़े में मेहनत करने से व्यक्ति की मांसपेशियाँ फूल उठती हैं और अखाड़े में चित्त लेटकर वह स्वयं को सारे संसार को जीतने वाला मानता है।

मानव शरीर मिट्टी का बना हुआ है और मिट्टी ही उसके शरीर को मज़बूत बनाती है। फूल मिट्टी की उपज हैं। संसार में रूप, रस, गंध और स्पर्श का ज्ञान भी इसी से होता है। मिट्टी और धूल में उतना ही अंतर है, जितना कि शब्द व रस, देह व प्राण तथा चाँद व चाँदनी में होता है। मिट्टी की आभा का नाम धूल है, जिससे उसके रंग-रूप की पहचान होती है। धूल वह है, जो सूर्यास्त के पश्चात गाँव में गोधूलि, शिशु के मुख पर धूल तथा फूल की पंखुड़ियों पर साकार सौंदर्य बनकर छा जाती है। गोधूलि पर कवियों ने बहुत लिखा है। यह गाँव में होती है, शहरों में नहीं। यह गो और गोपालों के पदों से उत्पन्न होती है। एक प्रसिद्ध पुस्तक-विक्रेता के निमंत्रण-पत्र में गोधूलि की बेला में आने का आग्रह पढ़कर लेखक सोचता है कि शहर के धूल-धक्कड़ में गोधूलि कहाँ ?

धूलि के महत्व को रेखांकित करते हुए लेखक बताता है कि सती इसे माथे से और योद्धा आँखों से लगाता है। युलिसिस ने विदेश से स्वदेश लौटने पर सबसे पहले अपने देश इथाका की धूलि चूमी थी। यूक्रेन के मुक्त होने पर सैनिक ने वहाँ की धूल का अत्यंत श्रद्धा से स्पर्श किया था। जहाँ श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना धूल से होती है, वहीं घृणा के लिए धूल चाटने, धूल झाड़ने आदि मुहावरों का प्रयोग किया जाता है। धूल जीवन का यथार्थ व धूलि उसकी कविता है। मिट्टी काली, पीली, लाल आदि अनेक रंगों की होती है, परंतु धूलि शरत के धुले उजले बादलों जैसी होती है। किसान के हाथ, पैर, मुँह आदि पर छाई हुई धूल के नीचे ही असली हीरे हैं। जब हम यह जान जाएँगे, तब हम हीरे से लिपटी हुई धूल को माथे से लगाना सीख जाएँगे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • खरादा हुआ – सुडौल और चिकना।
  • रेणु – धूल।
  • नयन-तारा – आँखों का तारा, बहुत प्यारा।
  • पार्थिवता – मिट्टी से बना।
  • अभिजात – कुलीन, उच्च वर्ग।
  • प्रसाधन सामग्री – श्रृंगार की वस्तु।
  • संसर्ग – संपर्क।
  • गात – शरीर।
  • कनिया – गोद।
  • लरिकान – शिशुओं।
  • विज्ञापित – सूचित।
  • वंचित – विमुख, रहित, अलग।
  • रिझाई – पकाई हुई, सनी हुई।
  • निद्वर्वद्व – बिना किसी दुविधा के, जहाँ कोई द्वंद्व न हो।
  • व्यंजित – व्यक्त करना।
  • असारता – सारहीनता, जिसका कोई सार न हो।
  • सूक्ष्मबोध – गहराई से समझना।
  • अमराइयों – आम के बागों।
  • उपरांत – बाद।
  • गोधूलि की बेला – संध्या का समय।
  • विडंबना – छलना।
  • बाटे – हिस्से।
  • प्रवास – विदेश में रहना।
  • असूया – ईर्ष्या।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

JAC Class 9 Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
वह कौन-सी बात रही होगी जिसने लेखक को दिल्ली जाने के लिए बाध्य कर दिया ?
उत्तर :
लेखक को कटाक्ष भरे वाक्य कहे गए थे। इन वाक्यों ने उसे आहत कर उसके मन-मस्तिष्क को झिंझोड़ दिया था। उसने तय कर लिया था कि अब उसे जो भी काम करना है, करना शुरू कर देना चाहिए। लेखक की रुचि पेंटिंग में थी। उकील आर्ट स्कूल का नाम लेखक ने सुन रखा था जो दिल्ली में था। अपने प्रति कहे गए वाक्यों से आहत होकर तथा अपने सपने को पूरा करने के लिए ही लेखक दिल्ली जाने को बाध्य हुआ होगा।

प्रश्न 2.
लेखक को अंग्रेज़ी में कविता लिखने का अफसोस क्यों रहा होगा ?
उत्तर :
लेखक घर में उर्दू के वातावरण में पला था। उसकी भावनाओं की अभिव्यक्ति या तो उर्दू भाषा में होती थी या अंग्रेज़ी में। हिंदी में प्रतिष्ठित कवियों हरिवंशराय बच्चन, निराला और पंत से परिचय होने पर लेखक का रुझान हिंदी की तरफ बढ़ा। बच्चन से तो लेखक विशेष रूप से प्रभावित था। बच्चन हिंदी के विख्यात कवि थे। उनके नोट का जवाब लेखक ने अंग्रेज़ी में दिया था। बच्चन ने हिंदी साहित्य के प्रांगण में लेखक को स्थापित किया था। हिंदी के क्षेत्र में अपने उच्च स्थान को पाकर ही लेखक को अपने अंग्रेज़ी में कविता लिखने का अफसोस रहा होगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

प्रश्न 3.
अपनी कल्पना से लिखिए कि बच्चन ने लेखक के लिए ‘नोट’ में क्या लिखा होगा ?
उत्तर :
बच्चन लेखक से मिलना चाहते थे। परंतु लेखक उस समय स्टूडियो में नहीं थे इसलिए बच्चन ने लेखक के लिए एक ‘नोट’ छोड़ा था। उस समय के प्रतिष्ठित कवि द्वारा लेखक के लिए नोट छोड़ा जाना लेखक के लिए आनंददायक अनुभव रहा होगा। उसने लेखक के हृदय पर गहरी छाप छोड़ी थी। लेखक स्वयं को कृतज्ञ महसूस कर रहा था। इससे लगता है कि बच्चन ने लेखक के विषय में कुछ काव्य पंक्तियाँ लिखी होंगी तथा उनसे मिलने की इच्छा भी की होगी। यह भी हो सकता है कि बच्चन ने स्टूडियो में लेखक के चित्र और कविताएँ देखी हों और उनके प्रति ‘नोट’ में अपना दृष्टिकोण प्रकट किया हो।

प्रश्न 4.
लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के किन-किन रूपों को उभारा है ?
उत्तर :
लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के अग्रांकित रूपों को उभारा है-
1. सहायक – बच्चन सच्चे सहायक थे। लेखक को इलाहाबाद लाकर उसके एम० ए० के दोनों सालों का ज़िम्मा उन्होंने अपने ऊपर ले लिया था। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में भी लेखक की रचनाओं, उसकी कविताओं के लिए बच्चन प्रेरक रहे। हिंदी साहित्य के प्रांगण में लेखक को स्थापित करने का श्रेय बच्चन को ही जाता है।
2. समय नियोजक – बच्चन समय का दृढ़ता से पालन करने वाले थे। अपने स्थान पर वे नियत समय पर ही पहुँचा करते थे
3. निश्छलता – निश्छलता बच्चन के व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण गुण था। उनके हृदय में किसी के प्रति छल-कपट नहीं था। वे एक ऐसे निश्छल कवि थे जिसके हृदय के आर-पार देखा जा सकता था।
4. कोमल हृदय – बच्चन कोमल हृदय के व्यक्ति थे। वे दूसरों के दुख को अपना समझकर उसे दूर करने की चेष्टा करते थे।
5. दृढ़ संकल्प शक्ति – बच्चन की संकल्प शक्ति फौलाद के समान मज़बूत थी। पत्नी के देहांत के पश्चात् वे दुखी और उदास फिर भी उन्होंने साहित्य – साधना में लीन होकर अपने आदर्शों और संघर्षों को जीवित रखा।
6. मौन सजग प्रतिभा – बच्चन प्रतिभावान व्यक्ति थे। उनकी मौन सजग प्रतिभा तो दूसरों की प्रतिभा को नया आयाम देने की स्वाभाविक क्षमता रखती थी।

प्रश्न 5.
बच्चन के अतिरिक्त लेखक को अन्य किन लोगों का तथा किस प्रकार का सहयोग मिला ?
उत्तर
बच्चन के सहयोग ने तो लेखक को हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ स्थान प्रदान किया था, परंतु बच्चन के साथ-साथ सुमित्रानंदन पंत ने भी लेखक को सहयोग दिया। पंत जी की ही कृपा से लेखक को इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला था, तभी उन्होंने हिंदी में गंभीरता से कविता रचना करने का निर्णय लिया था। पंत जी ने ‘निशा- निमंत्रण’ के कवि के प्रति लेखक की इस कविता में संशोधन करके लेखक को सहयोग दिया था। ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित एक कविता पर लेखक को निराला की प्रशंसा भी मिली। प्रशंसा उत्साहवर्धन करती है और क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए सहयोग करती है दिल्ली में रह रहे। लेखक को उनके भाई तेज बहादुर ने भी उनका सहयोग किया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

प्रश्न 6.
लेखक के हिंदी लेखन में कदम रखने का क्रमानुसार वर्णन कीजिए।
उत्तर :
लेखक घर में उर्दू के वातावरण में पला था। उसकी आंतरिक भावनाएँ कविता के रूप में उर्दू में ही उभरती थीं। अभिव्यक्ति के लिए वह अंग्रेज़ी भाषा का भी प्रयोग करता था। हिंदी से लेखक का संबंध नहीं था। बच्चन से परिचय होने के बाद लेखक हिंदी की ओर आकृष्ट हुआ। बच्चन लेखक को इलाहाबाद लाए जहाँ लेखक एम० ए० करने लगे। पंत जी की कृपा से उन्हें इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला। तभी लेखक ने हिंदी कविता को गंभीरता से लिखने का निर्णय किया। उनकी रचनाएँ ‘सरस्वती’ और ‘चाँद’ पत्रिकाओं में छपने लगी थीं।

लेखक की चेतना में पंत और निराला के विचार, उनके संस्कार, इलाहाबाद के हिंदी साहित्यिक वातावरण तथा मित्रों के प्रोत्साहन ने लेखक को हिंदी लेखन में आगे बढ़ाया। बच्चन का प्रभाव लेखक पर सबसे अधिक पड़ा। बच्चन के नवीन प्रयोगों को लेखक भी अपनी रचनाओं में अपनाता था। इसी प्रकार निरंतर अभ्यास से उसका हिंदी लेखन प्रसिद्धि पाने लगा। लेखन में पंत जी ने भी संशोधन कर सहयोग किया। लेखक स्वयं मानते हैं कि हिंदी के साहित्यिक प्रांगण में बच्चन ही उन्हें घसीट लाए थे। कविता के क्षेत्र से निकलकर लेखक ने निबंध और कहानी के क्षेत्र में भी लेखन कार्य किया।

प्रश्न 7.
लेखक ने अपने जीवन में किन कठिनाइयों को झेला है, उनके बारे में लिखिए।
उत्तर :
लेखक का जीवन संघर्षों और कठिनाइयों से परिपूर्ण रहा है। दिल्ली में रहकर अपने पेंटिंग की शिक्षा को पूरा करने के लिए लेखक को या तो अपने भाई से सहायता लेनी पड़ती थी या वह स्वयं साइनबोर्ड पेंट कर अपना गुजारा चलाता था। पत्नी का देहांत हो जाने के कारण उसका जीवन एकाकी था। एकाकीपन की पीड़ा हृदय को उद्विग्न और खिन्न बनाए रखती थी। इसी पीड़ा की अभिव्यक्ति वह कविताओं एवं चित्रों के माध्यम से करता था। कुछ समय बाद लेखक ने देहरादून जाकर अपने ससुराल की केमिस्ट्स की दुकान पर कंपाउडरी भी सीखी।

लेखक लोगों से कम ही मिलता-जुलता था इसलिए अपनी पीड़ा की अभिव्यक्ति वह किसी के समक्ष नहीं कर पाता था। केवल खिन्न और दुखी मन से परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठाने की चेष्टा करता रहता। बच्चन के कहने पर लेखक ने यदि एम० ए० शुरू किया तो दिमाग में नौकरी न करने की बात बैठे होने के कारण उसने पढ़ाई पूरी नहीं की। इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला तो हिंदी भाषा में निपुणता की समस्या सामने आई।

भाषा और शिल्प पर लेखक को गंभीरता से ध्यान देना पड़ा। बच्चन के नवीन प्रयोगों को वह अपनी रचनाओं में प्रयोग करता तो उसे कभी सफलता मिलती तो कभी असफलता। ‘निशा-निमंत्रण’ के रूप-प्रकार के अनुसार लिखने में उसे सफलता नहीं मिली। पंत जी ने उसकी कविता का संशोधन किया। अभ्यास के द्वारा, संघर्षो के बीच तथा बच्चन के सहयोग के साथ ही लेखक हिंदी साहित्य में अपना स्थान बनाने में सफल हो सका।

JAC Class 9 Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक को हिंदी साहित्य में प्रतिष्ठित करने में बच्चन कैसे सहायक सिद्ध हुए ?
उत्तर :
लेखक के उद्विग्न हृदय की पीड़ा कविता के माध्यम से उर्दू और अंग्रेज़ी में ही अभिव्यक्त होती थी। बच्चन जैसे प्रतिष्ठित कवि से परिचय होने के पश्चात् लेखक हिंदी लेखन की ओर प्रवृत्त हुआ। बच्चन ने लेखक को इलाहाबाद लाकर उसके एम० ए० के दोनों वर्षों का जिम्मा उठा लिया था। विभिन्न पत्रिकाओं में लेखक की छपी रचनाओं की प्रशंसा कर बच्चन ने लेखक को हिंदी लेखन को प्रेरित किया। उसके ‘अभ्युदय’ में प्रकाशित सॉनेट को बच्चन ने विशेष तौर पर पसंद कर उसे खालिस सॉनेट कहा। हिंदी लेखन के क्षेत्र में बच्चन ही उसकी प्रेरणा बने।

बच्चन की कविताओं के उच्च घोषों का लेखक पर प्रभाव पड़ा और यही भाव उसके जीवन का लक्ष्य बन गया। बच्चन अपने नवीन प्रयोगों के विषय में लेखक को बताते थे। लेखक भी उन प्रकारों का प्रयोग अपनी कविताओं में करने का प्रयास करता था। लेखक ने स्वयं स्वीकार किया है-“निश्चय ही हिंदी के साहित्यिक प्रांगण में बच्चन मुझे घसीट लाए थे।” बच्चन की सहायता और निरंतर अभ्यास से लेखक हिंदी लेखन में निपुण होता गया। उसने कविता के साथ-साथ कहानी एवं निबंध के क्षेत्र में भी कार्य किया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

प्रश्न 2.
बच्चन के जीवन की किन घटनाओं का उल्लेख लेखक ने इस पाठ में किया है?
उत्तर :
बच्चन और लेखक देहरादून में साथ-साथ थे। बड़ा भयंकर तूफान आया था। बड़े-बड़े पेड़ सड़कों पर बिछ गए थे। टीन की छतें उड़ गई थीं। बच्चन उस तूफान में एक गिरते हुए पेड़ के नीचे आने के कारण बाल-बाल बचे थे। लेखक ने उस दिन स्पष्ट देखा था कि उस तूफान से बढ़कर एक और तूफान था जो उनके मन और मस्तिष्क से गुज़र रहा था। वे पत्नी के वियोग को झेल रहे थे। उनकी पत्नी उनकी अर्धांगिनी ही नहीं उनके संघर्षों और आदर्शों की संगिनी भी थी। इस पीड़ा को झेलते हुए भी वे साहित्य साधना में लीन थे।

लेखक ने उनकी समय का पाबंद होने की घटना का उल्लेख भी किया है। इलाहाबाद में भारी बरसात हो रही थी। बच्चन को स्टेशन पहुँचना था। मेजबान के लाख रोकने पर भी बच्चन नहीं रुके। भारी बरसात में उन्हें कोई सवारी नहीं मिली। बच्चन ने बिस्तर काँधे पर रखा और स्टेशन की ओर चल पड़े। उन्हें जहाँ पहुँचना था, वहाँ सही समय पर पहुँचे

प्रश्न 3.
करोल बाग से कनाट प्लेस तक के रास्ते को लेखक किस प्रकार व्यतीत करता था ?
उत्तर :
करोल बाग से कनाट प्लेस के रास्ते में लेखक कभी तो अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति चित्रों के रूप में करता तो कभी कविताओं के माध्यम से। उस समय लेखक को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि ये कविताएँ कहीं छपेंगी। केवल अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति और मन की मौज के लिए वह चित्र बनाता और कविताएँ लिखता था। लेखक हर चेहरे, हर चीज़ और हर दृश्य को गौर से देखता और उसमें अपनी ड्राइंग का तत्व खोज लेता। अपनी कल्पनाशीलता के माध्यम से लेखक किसी भी दृश्य या किसी भी चेहरे को अपनी ड्राइंग और कविता का आधार बना लेता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

प्रश्न 4.
कल्पनाशील होते हुए भी लेखक उद्विग्न क्यों रहता था ?
उत्तर :
लेखक में अद्भुत कल्पनाशीलता थी। उसमें अपने आप को आस-पास के दृश्यों और चित्रों में खो देने की अद्भुत शक्ति थी। इन्हीं से वह अपनी कविताओं और चित्रों के लिए तत्व प्राप्त करता था। यह सब होते हुए भी लेखक उद्विग्न था क्योंकि उसकी पत्नी का देहांत टी० बी० के कारण हो चुका था। दिल्ली में वह एकदम अकेला। एकाकीपन की पीड़ा उसके हृदय में खिन्नता भरती जा रही थी। अपने इसी एकाकीपन को वह अपने चित्रों और कविताओं द्वारा भरने की चेष्टा करता। किसी से अधिक न मिलने-जुलने के कारण आंतरिक पीड़ा को किसी से बाँट भी न पाता था, इसी कारण वह उद्विग्न रहता था।

प्रश्न 5.
लेखक के दिल्ली आने का क्या कारण था ?
उत्तर :
लेखक को किसी ने कुछ व्यंग्य-भरे वाक्य कह दिए थे। उन वाक्यों से लेखक के मन को बहुत चोट पहुँची, इसलिए उसने जीवन में कुछ करने का निश्चय किया। वह जिस हालत में बैठा था, उसी हालत में दिल्ली के लिए चल दिया। उसकी जेब में पाँच-सात रुपए थे। उसका दिल्ली आने का कारण आहत मन और कुछ कर दिखाने की चाह थी।

प्रश्न 6.
उकील आर्ट स्कूल लेखक का दाखिला कैसे हुआ ?
उत्तर :
लेखक अपने जीवन में कुछ करना चाहता था। उसने पेंटिंग करने का निर्णय लिया। पेंटिंग की शिक्षा के लिए उसने उकील आर्ट में दाखिला लेने के लिए सोचा। वह उकील आर्ट स्कूल गया, वहाँ उसका इम्तिहान लिया गया। उसका शौक और हुनर देखकर, उसको बिना फीस के आर्ट स्कूल में दाखिला मिल गया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

प्रश्न 7.
उस समय लेखक की आर्थिक स्थिति कैसी थी ?
उत्तर :
लेखक जब घर से चला था तब उसकी जेब में पाँच-सात रुपए थे। उकील आर्ट स्कूल में बिना फीस के दाखिला हो गया था। लेखक अपना गुजारा चलाने के लिए साइन बोर्ड पेंट करता था या फिर कभी – कभी लेखक के भाई तेज़ बहादुर से मदद लेता था। इस तरह स्पष्ट होता है कि लेखक की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।

प्रश्न 8.
उन दिनों लेखक का मन उद्विग्न क्यों रहता था ?
उत्तर :
उन दिनों लेखक का मन उदास रहता था। यद्यपि वह अपने चित्रों और कविताओं के माध्यम से अपने विचारों को प्रकट करता था परंतु मन का एकाकीपन समाप्त नहीं होता था। इसका कारण यह था कि लेखक ने अपनी पत्नी को खो दिया था अर्थात् उनकी पत्नी की टी० बी० से मृत्यु हो गई थी, इसलिए उसे अकेलापन अधिक कचोटता था। वह अपने कमरे में आकर अपने अकेलेपन से लड़ता और उद्विग्न होता था।

प्रश्न 9.
लेखक में क्या बुरी आदत थी ?
उत्तर :
लेखक में एक बहुत बुरी आदत थी कि वह पत्रों का जवाब नहीं देता था। यह नहीं था कि उसे पत्रों का जवाब सूझता नहीं था, परंतु उसे पत्र लिखने की आदत नहीं थी। वह सैकड़ों पत्रों के जवाब मन-ही-मन लिखकर हवा में साँस के साथ बिखेर देता था।

प्रश्न 10.
लेखक अपने जीवन के साथ कैसे ताल-मेल बैठाने का प्रयास कर रहा था ?
उत्तर :
लेखक अपने एकाकी जीवन के साथ तालमेल बैठाने का प्रयास कर रहा था। वह कुछ महीने दिल्ली में रहने के बाद देहरादून आ गया था। देहरादून में अपनी ससुराल की केमिस्ट्स एवं ड्रगिस्ट्स की दुकान पर कंपाउंडरी सीखने लगा। धीरे-धीरे उसे टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में लिखे नुस्खा को पढ़ने में महारत हासिल हो गई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

प्रश्न 11.
लेखक स्वयं को एकाकी क्यों अनुभव करता था ?
उत्तर :
लेखक को कम बोलने की आदत थी। वह अपनी आंतरिक भावनाओं को दूसरों के सामने व्यक्त करने से कतराते था। दूसरे लोगों को उसके एकाकीपन और आंतरिक भावनाओं से कोई मतलब नहीं था। वे बड़ों के सामने जुबान नहीं खोलते थे, इसीलिए वे अपनी आंतरिक पीड़ा से जूझते हुए अकेले रहते थे। अपनी इसी आदत के कारण वे एकाकी अनुभव करते थे।

प्रश्न 12.
लेखक के अनुसार बच्चन जी के मन और मस्तिष्क में कैसा तूफान चल रहा था ?
उत्तर :
सन् 1930 की बात है। उन दिनों बच्चन जी के मन और मस्तिष्क में अलग ही तरह का तूफ़ान चल रहा था। इसका कारण यह था कि उनके जीवन में सहयोग देने वाली अर्द्धांगिनी उन्हें मँझधार में छोड़कर चली गई थी। उनकी पत्नी उनके भावुक आदर्शों, उत्साहों और संघर्ष की युवासंगिनी थी। वह उनके सपनों को साकार करने वाली साथिन थीं, जो उनको छोड़कर जा चुकी थीं। उस समय बच्चन जी अंदर से टूट गए थे परंतु वे ऊपर से कठोर तथा उच्च मनोबल के बने हुए थे।

प्रश्न 13.
बच्चन जी ने लेखक से ऐसा क्यों कहा कि तुम यहाँ रहोगे तो मर जाओगे ?
उत्तर :
एक बार बच्चन जी देहरादून आए थे। उस समय लेखक अपने ससुराल की केमिस्ट की दुकान पर नौकरी कर रहा था। वे उसकी कला को परख कर वहाँ से चलने के लिए बोल पड़े। उन्हें लगा, यदि ये यहाँ रहेगा तो टी०बी० की दवाई बाँटते- बाँटते वह एक दिन इसी तरह मर जाएगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

प्रश्न 14.
लेखक लेखन कला में किससे प्रभावित थे ? क्यों ?
उत्तर :
लेखक लेखन कला में बच्चन जी से बहुत प्रभावित थे। वे लेखन कला में नए-नए प्रयोग करते थे। लेखक उनके नवीन प्रयोगों से प्रभावित होकर स्वयं की कविता में उनका प्रयोग करने लगे थे। परंतु उन्हें उस प्रकार की लेखन कला में कठिनाई आती थी। उन्होंने निरंतर प्रयास से उसी प्रकार के प्रयोग कर कई रचनाएँ लिखीं। उन्हें साहित्य क्षेत्र में स्थापित करने और लाने का श्रेय बच्चन जी को जाता है, इसीलिए लेखक बच्चन जी से बहुत प्रभावित था।

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Summary in Hindi

पाठ का सार :

प्रस्तुत पाठ में लेखक शमशेर बहादुर सिंह ने अपने हिंदी के क्षेत्र में आने और हिंदी में लेखन यात्रा का विवरण दिया है। लेखक घर में उर्दू के ही वातावरण में पला-बढ़ा था। बी०ए० में भी उसने उर्दू ही एक विषय लिया था। हिंदी से उसका संबंध नहीं था। उसकी भावनाएँ कविता और गज़ल बनकर उर्दू में निरुपित होतीं। अपने आंतरिक भावों को लेखक कभी-कभी अंग्रेजी भाषा में अभिव्यक्त करता था। हिंदी के क्षेत्र में आने के बाद लेखक का हिंदी से इतनी आत्मीयता का संबंध बन गया कि उसे अपने अंग्रेजी में लेखक का अफसोस होने लगा। इस पाठ में लेखक ने अपनी हिंदी तक पहुँचने की यात्रा का वर्णन करने के साथ-साथ हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि हरिवंश राय बच्चन के सहयोग और उनके व्यक्तित्व का चित्रांकन भी किया है।

लेखक की रुचि अपनी भावनाओं को शब्दों और चित्रों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की थी। उसे पेंटिंग का बहुत शौक था। लोगों द्वारा कहे गए वाक्य से आहत होकर लेखक ने दिल्ली आकर उकील आर्ट स्कूल में प्रवेश लेकर पेंटिंग में महारत हासिल करने का निर्णय किया। लेखक सुबह जब अपनी कक्षा तक पहुँचने का मार्ग तय करता तो अपने शौक के अनुसार मार्ग में उसकी दृष्टि आस- पास के लोगों के चेहरों और दृश्यों में अपनी ड्राइंग के लिए तत्व खोजने लगती। यह तत्व उसकी कविताओं और उसके चित्रों का आधार बनते। दिल्ली में रह रहे लेखक को उनके भाई तेज बहादुर द्वारा कभी-कभी सहायता मिल जाती और कभी वे साइनबोर्ड पेंट कर अपना गुजारा चला लेते।

लेखक का हृदय पत्नी के देहांत के बाद से ही उदास और खिन्न रहने लगा था। लेखक अपनी भावनाओं को लिखकर या कागज़ पर उकेर कर अपने एकाकीपन को भरने का प्रयास करता। एक बार बच्चन जी लेखक से मिल नहीं पाए लेकिन उन्होंने लेखक के लिए एक नोट छोड़ दिया जिसे पाकर लेखक ने अपने आप को कृतज्ञ अनुभव किया। अपनी कृतज्ञता की अभिव्यक्ति स्वरूप लेखक ने एक कविता लिखी। वह कविता अंग्रेजी में थी जिसका हिंदी क्षेत्र में आने पर लेखक को अफसोस हुआ। लेखक ने बच्चन को वह कविता भेजी।

लेखक का जीवन एकाकी था। खिन्न और उदास होते हुए भी लेखक अपनी परिस्थितियों से तालमेल बैठाने की कोशिश कर रहा था। एक बार बच्चन लेखक के भाई के मित्र ब्रजमोहन गुप्त के साथ लेखक से मिलने आए। लेखक उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए। बच्चन उस समय पत्नी वियोग की पीड़ा झेल रहे थे। वे निश्छल कवि थे जिसके मन में कोई छल-कपट नहीं था। बात और वाणी के धनी थे। हृदय मक्खन-सा कोमल था तो संकल्प फौलाद से मजबूत। समय का कठोरता से पालन करना बच्चन की आदत थी। वे वक्त पर अपने स्थान पर पहुँचते थे।

बच्चन जी ने ही लेखक को इलाहाबाद चलकर एम० ए० करने के लिए प्रेरित किया। लेखक ने एम० ए० के दोनों सालों का जिम्मा भी बच्चन ने अपने ऊपर ले लिया था। उनकी यही इच्छा थी कि लेखक पढ़-लिखकर अपने पैर जमाकर एक अच्छा आदमी बन जाए। परंतु लेखक ने अपने मन में नौकरी न करने की बात ठान रखी थी। पंत जी की कृपा से लेखक को इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला। तब लेखक ने हिंदी कविता को गंभीरता से लिखने का निर्णय लिया। लेखक की ‘सरस्वती’ और ‘चाँद’ में रचनाएँ छपीं। बच्चन ने ‘अभ्युदय’ में प्रकाशित उनके सॉनेट को पसंद किया।

निराला और पंत के विचार, उनसे प्राप्त संस्कार, इलाहाबाद का हिंदी साहित्यिक वातावरण, मित्रों का प्रोत्साहन आदि लेखक के हिंदी के प्रति खिंचाव के लिए कारक सिद्ध हुए। बच्चन के प्रभाव और उनकी प्रेरणा से लेखक ने बहुत कुछ सीखा। बच्चन ने कविता के क्षेत्र में नवीन प्रयोग किए। लेखक ने भी उसी प्रकार का प्रयोग कर अपनी रचनाएँ लिखीं। लेखक अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सका जिसका बच्चन जी को क्षोभ रहा। लेखक का हिंदी कविता में अभ्यास सफल हुआ। ‘सरस्वती’ में छपी उनकी कविता की निराला ने प्रशंसा की।

लेखक ने निबंध और कहानी के क्षेत्र में भी कार्य किया। लेखक अपने आप को हिंदी के साहित्यिक प्रांगण में लाने का श्रेय बच्चन जी को ही देता है। बच्चन जी वह मौन सजग प्रतिभा थी जिसने लेखक की प्रतिभा को स्वाभाविक रूप से जीवन दिया था। लेखक बच्चन के व्यक्तित्व को उनकी श्रेष्ठ कविता से बड़ा आँकता है। उन्हीं के कारण ही लेखक शमशेर सिंह बहादुर हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ लेखन कर सके। लेखक की दृष्टि में उसका हिंदी तक पहुँचने का यह अनुभव नया या अनोखा नहीं है परंतु बच्चन जैसा व्यक्तित्व अवश्य दुष्प्राप्य है –

JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • जुमला – वाक्य
  • फौरन – तत्काल
  • इम्तिहान – परीक्षा
  • लबे-सड़क – सड़क के किनारे
  • चुनाँचे – इसलिए
  • शेर – गाल के दो चरण
  • आकर्षण – खिंचाव
  • उद्विग्न – बेचैन
  • संलग्न – लीन
  • उपलब्धि – सफलता
  • महारत – निपुणता
  • अजूबा-इबारत – वाक्य की बनावट
  • अदब – सम्मान
  • सामंजस्य – तालमेल
  • प्रबल – शक्तिशाली
  • मेजबान – आतिथ्य करने वाला
  • बराय नाम – नाम के लिए
  • न्नेह – प्यार
  • प्लान – योजना
  • संकीर्ण – संकुचित
  • द्योतक – परिचायक
  • विन्यास – व्यवस्थित करना
  • क्षोभ – दुख
  • आकस्मिक – अचानक
  • व्यवधान – रुकावट, बाधा
  • दुष्प्राप्य – जिसका मिलना कठिन हो
  • तय – निश्चित
  • मुख्तसर – संक्षिप्त
  • बिला फीस – बिना फीस के
  • वहमो गुमान – ख्वाबो ख्याल, अंदेशा
  • गाल – फारसी और उर्दू में मुक्तक काव्य का एक प्रकार
  • विशिष्ट – अनूठा
  • जिक्र – चर्चा
  • देहांत – निधन
  • वसीला – सहारा
  • सॉनेट – यूरोपीय कविता का एक लोकप्रिय छंद जिसका प्रयोग
  • हिंदी कवियों ने भी किया है
  • गोया – मानो
  • एकांत – सुनसान
  • एकांतिकता – एकाकीपन
  • इत्तिफ़ाक – संयोग
  • झंझावात – तूफान
  • इसरार – आग्रह
  • बेफिक्र – चिंतामुक्त
  • अरसे तक – लंबे समय तक
  • खालिस – शुद्ध
  • उच्च-घोष – ऊँचे स्वर
  • स्टैंजा – गीत का चरण
  • आकृष्ट – आकर्षित
  • निरर्थक – व्यर्थ, अर्थहीन
  • सजग – जागरूक
  • मर्यांदा – सीमा

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Vyakaran रस Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Vyakaran रस

प्रश्न 1.
साहित्य में रस से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
दैनिक जीवन में हम रस शब्द का उपयोग अनेक अथों में करते हैं। सर्वप्रथ हम विभिन्न पदार्थो के रस की बात करते हैं। खट्य-माठा, नमकीन अथवा कड़वा रस होता है। जिह्वा के द्वारा हम इस प्रकार के छह रसों का आनंद लेते हैं। दूसरी प्रकार के रस जिनसे हमारा। दैनिक जीवन में परिचय रहता है, वे हैं विभिन्न पदार्थों का सार या निचोड़। किसी पदार्थ का निचोड़, तरलता अथवा पारे गंधक से बनी औषधि आदि को भी रस कह दिया जता है। प्रायः यह भी सुनने को गाने में रस है। इसका अभिप्राय कर्णप्रियता या मधुरता है।

साधु महात्मा एक और रस का वर्णन करते हैं, जिसे ब्रह्मानंद कहा जाता है। पहुँचे हुए योगी ब्रह्म के साथ ऐसा संबंध स्थापित कर लेते हैं कि हर क्षण उन्हें ब्रह्म के निकट होने का आभास होता है और वे उससे आनंदित रहते हैं। यह स्थायी आनंद भी रस माना जाता है। साहित्य में रस, ऐसे आनंद को कहते हैं जो कि पाठक, श्रोता या दर्शक को किसी रचना को गढ़ने, सुनने अथवा मंच पर अभिनीत होते देखकर होता है। जब सहदय (पाठक, श्रोता आदि) को अपने व्यक्तित्व का एहसास पहीं रहता, वह आत्म-विभोर हो उदतार अपे पारेवेश को भूलकर आनद विभीर हो उठता है तो कार्य रस या आजंद ब्रहमानंद के समान हो जाता है । रस का संध यु० के भाव जगत से है।

प्रश्न 2.
रस के अंग अथवा कारण सामग्री का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
आचार्य विश्वनाथ ने अपने ग्रंथ ‘साहित्य दर्पण’ में रस के स्वरूप एवं अवयवों पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार ‘विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों से व्यक्त हुआ स्थायी भाव ही रस का रूप धारण करता है। इस प्रकार रस के चार अंग स्पष्ट हो जाते हैं, जो निम्नलिखित हैं –
(i) स्थायी भाव – मनुष्य के मन में जन्म से ही कुछ भाव रहते हैं, जिनका धीरे-धीरे विकास होता है। वे भा या अधिक मात्रा में स्थायी रूप से रहते हैं। प्रेम, क्रोध, शोक, घृणा, भय, विस्मय, हास्य आदि ऐसे ही स्थायी भाव हैं। ये भाव मन में सुप्तावस्था में रहते हैं और अवसर आने पर जाग जाते हैं। कोई व्यक्ति हर समय क्रोधित दिखाई नहीं पड़ता। जब उसे अपना कोई शत्रु दिखाई दे, अपने को हानि पहुँचाने वाला दिखाई दे तो मन में क्रोध का भाव जागता है। स्थायी भावों को जागृत करने वाली सामग्री को विभाव कहते हैं। स्थायी भाव ही अभिव्यक्त होकर रस में बदलता है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

(ii) विभाव – विभिन्न प्रकार के स्थायी भावों को जगा देने के जो कारण हैं, उन्हें ‘विभाव’ कहते हैं। विभाव शब्द का अर्थ है विशेष रूप से भाव को जगा देने वाला। स्थायी भाव मन में सोए रहते हैं, विभाव उन्हें जागृत या तीव्र करते हैं। विभाव दो होते हैं –
(क) आलंबन विभाव – आलंबन शब्द का अर्थ हैं, सहारा या आधार। जिन पदार्थों का सहारा लेकर स्थायी भाव जागते हैं, उन्हें आलंबन विभाव कहते हैं। उदाहरण के लिए बालकृष्ण को देखकर माता यशोदा के हृदय में वात्सल्य जागता है तो ‘बालकृष्ण’ यहाँ पर आलंबन विभाव है। इनकी संख्या असीम है। माता यशोदा के मन में भाव जागा, वह आश्रय है। बालकृष्ण के लिए जागा, कृष्ण यहाँ पर विषय है।

(ख) उद्दीपन विभाव – उद्दीपन का अर्थ है, उद्दीप्त करना, तेज़ करना। आलंबन विभाव द्वारा जगाए गए भावों को उद्दीप्त करने वाले पदार्थ, चेष्टाएँ अथवा भाव उद्दीपन विभाव कहलाते हैं। उदाहरण के लिए बाल-कृष्ण माता यशोदा के निकट आकर खीझते हुए, तोतली बोली में बड़े भाई की शिकायत करते हैं तो उनकी खीझ और तुतलाहट यहाँ पर माँ के हृदय में और अधिक प्यार का संचार करती है। यह खीझ और तुतलाहट यहाँ पर माँ के वात्सल्य भाव को तीव्र कर रही है। इसलिए इसे उद्दीपन विभाव कहा जा सकता है। जितने प्रकार के आलंबन हैं, उनसे कहीं ज्यादा उद्दीपन विभाव हैं। इसलिए इनकी संख्या भी असीम है। आलंबन की चेष्टाएँ और उसके आसपास का वातावरण भी उद्दीपन में गिना जाता है।

(iii) अनुभाव – अनु का अर्थ है पीछे। अनुभाव का अर्थ हुआ, जो भाव के पश्चात जन्म लेते हैं। जब किसी आश्रय या पात्र में विभावों को देखकर स्थायी भाव जाग उठता है तब वह कुछ चेष्टाएँ करेगा, उन्हीं को अनुभाव कहेंगे। अनुभाव, भावों के जागृत होने का परिचय देते हैं। अनुभाव, भावों के कार्य हैं, ये भावों का अनुभव करवाते हैं। उपर्युक्त उदाहरण को यदि आगे बढ़ाएँ तो कहेंगे कि माता यशोदा, बालकृष्ण की चेष्टाओं को देखकर आनंद विभोर हो उठीं और उन्होंने कृष्ण की बलाएँ लीं, उन्हें चूमा तथा गोद में उठा लिया। यशोदा द्वारा बालकृष्ण को चूमना, गोद में उठाना और बलाएँ लेना इस बात का प्रतीक है कि उसमें प्रेमभाव वात्सल्य जाग गया है। इस प्रकार माता यशोदा की ये चेष्टाएँ अनुभाव कही जाएँगी। आश्रय की चेष्टाओं के अनुभाव तथा विषय की चेष्टाओं को उद्दीपन में गिनते हैं। अनुभाव संख्या में आठ माने गए हैं –
(क) स्तंभ (अंगों की जकड़न) – हर्ष, भय, शोक आदि के कारण अंगों की गति अवरुद्ध हो जाती है।
(ख) स्वेद (पसीना आना) – क्रोध, भय, दुख अथवा श्रम से पसीना आ जाता है।
(ग) रोमांच (रोंगटे खड़े होना) – विस्मय, हर्ष अथवा शीत से रोमांच हो जाता है।
(घ) स्वरभंग (स्वर का गद्गद होना) – यह भय, हर्ष, मद, क्रोध आदि से उत्पन्न होता है।
(ङ) कंप (काँपना) – भय, क्रोध, आनंद आदि से भरकर आश्रय का शरीर काँपने लगता है।
(च) विवर्णता (रंग फीका पड़ना, हवाइयाँ उड़ना) – क्रोध, भय, काम, शीत आदि से यह उत्पन्न होता है।
(छ) अश्रु (आँसू बहाना) – आनंद, शोक, भय आदि में आश्रय आँसू बहाने लगता है।
(ज) मूर्छा प्रलाप (होश खो जाना) – काम, मोह, मद आदि से इसकी उत्पत्ति होती है।

(iv) संचारी भाव – स्थायी भावों के बीच-बीच में प्रकट होने वाले भावों को संचारी या व्यभिचारी भाव कहते हैं। संचारी इन्हें इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये थोड़े समय के लिए जागृत होकर लुप्त हो जाते हैं। यदि माता यशोदा कृष्ण की माखनचोरी से क्रोधित होती हैं, उसे मारने के लिए छड़ी उठाती हैं तो माता यशोदा का यह क्रोध अस्थायी है। बालकृष्ण के प्रति वात्सल्य भाव के कारण ही उन्हें क्रोध आ रहा है। यहाँ पर क्रोध संचारी भाव बनकर आया है। कृष्ण ज्यों ही क्षमा माँग लेगा या दुखी दिखाई पड़ेगा, माँ का वात्सल्य उमड़ आएगा।

क्रोध के रहते हुए भी माँ का कृष्ण के प्रति प्रेम रहता है। इस प्रकार स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए समय-समय पर आश्रय के मन में जो भाव जागते हैं, उन्हें संचारी भाव कहते हैं। संचारी भावों को व्यभिचारी भी कह दिया जाता है क्योंकि ये भाव किसी भी स्थायी भाव के साथ आ सकते हैं। किस स्थायी भाव के साथ कौन-सा संचारी भाव आएगा, यह निश्चित नहीं किया जा सकता। इसलिए संचारी भावों को व्यभिचारी भाव भी कह दिया जाता है। संचारी भावों का उदय केवल स्थायी भावों की पुष्टि के लिए होता है। भावों को अनुभावों द्वारा व्यक्त होना चाहिए। भावों का नाम लेकर उनकी गिनती करवाना काव्य में दोष माना जाता है। संचारी भावों की संख्या 33 मानी जाती है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

प्रश्न 3.
‘रस’ के बारे में बताते हुए इसके भेदों के नाम लिखिए।
उत्तर :
साहित्य या काव्य से प्राप्त आनंद को रस कहा जाता है। विभाव, अनुभाव एवं संचारी भावों के द्वारा रस की निष्पत्ति होती है। निष्पत्ति का अर्थ है अभिव्यक्ति या प्रकट होना। काव्य, आत्मा के ऊपर पड़े आवरणों को हटाकर हमारे गुप्त भावों को जगा देता है, जिससे आनंद प्राप्त होता है। स्थायी भाव अभिव्यक्त होकर ही आनंद देने योग्य बनते हैं। इस प्रकार परिपक्व एवं अभिव्यक्त स्थायी भाव ही रस बनते हैं। रस की संख्या सामान्यता नौ स्वीकार की जाती है। ये शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, शांत और अद्भुत रस हैं।

कुछ विद्वानों ने वात्सल्य तथा भक्ति को भी रस की कोटि में रखना चाहा है परंतु सामान्यतः इन्हें भावों की कोटि में ही रखा जाता है। इनका स्थायी भाव भी रति ही है। स्थायी भाव एवं संचारी भाव का अंतर स्पष्ट कीजिए। स्थायी भाव, जैसा कि शब्द से ही स्पष्ट है, वे भाव हैं जोकि स्थायी रूप से हृदय में स्थित रहते हैं। एक बार जागृत होने पर ये नष्ट नहीं होते बल्कि अंत तक बने रहते हैं।

संचारी भाव संचरण करते रहते हैं, चलते रहते हैं। ये स्थायी रूप में मन में नहीं रहते बल्कि किसी भी स्थायी भाव के साथ उत्पन्न हो जाते हैं। प्रत्येक रस का स्थायी भाव निश्चित रहता है परंतु संचारी भाव निश्चित रूप से न तो किसी रस से जुड़ते हैं और न ही किसी स्थायी भाव से। एक ही संचारी भाव अनेक स्थायी भावों तथा रसों से जुड़ सकता है। इसीलिए संचारी भाव को व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। इनका उपयोग स्थायी भाव को पुष्ट करने में है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

प्रश्न 4.
स्थायी भाव रसों के अनुसार नौ हैं जबकि संचारी भावों की संख्या 33 है।
उत्तर :
स्थायी भाव, जैसा कि शब्द से ही स्पष्ट है, वे भाव हैं जोकि स्थायी रूप से हृदय में स्थित रहते हैं। एक बार जागृत होने पर ये नष्ट नहीं होते बल्कि अंत तक बने रहते हैं। संचारी भाव संचरण करते रहते हैं, चलते रहते हैं। ये स्थायी रूप में मन में नहीं रहते बल्कि किसी भी स्थायी भाव के साथ उत्पन्न हो जाते हैं।

प्रत्येक रस का स्थायी भाव निश्चित रहता है परंतु संचारी भाव निश्चित रूप से न तो किसी रस से जुड़ते हैं और न ही किसी स्थायी भाव से। एक ही संचारी भाव अनेक स्थायी भावों तथा रसों से जुड़ सकता है। इसीलिए संचारी भाव को व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। इसका उपयोग स्थायी भाव को पुष्ट करने में है।

स्थायी भाव – रस
(क) रति – शृंगार
(ख) हास – हास्य
(ग) शोक – करुण
(घ) क्रोध – रौद्र
(ङ) उत्साह – वीर
(च) भय – भयानक
(छ) जुगुप्सा – वीभत्स
(ज) विस्मय – अद्भुत
(झ) निर्वेद – शांत

कुछ विद्वान प्रभुरति (भक्ति) और वात्सल्य को स्थायी भावों में गिनते हैं और इनसे क्रमशः भक्ति रस और वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति स्वीकार करते हैं।

संचारी भाव – निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, श्रम, आलस्य, दैन्य, चिंता, मोह, स्मृति, धृति, लज्जा, चपलता, हर्ष, आवेग, जड़ता, गर्व, विषाद, औत्सूक्य, नीरसता, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अमर्ष, अवहित्य, उग्रता, मति, व्यधि, उन्माद, त्रास, वितर्क और मरण हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

प्रश्न 5.
रस के भेदों का सोदाहरण परिचय दीजिए।
उत्तर :
1. श्रृंगार रस

विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से अभिव्यक्त रति स्थायी भाव शृंगार रस कहलाता है।
रति, प्रेम एक कोमल भाव है। सामाजिक दृष्टि से स्वीकार्य प्रेम ही श्रृंगार का स्थायी भाव बन सकता है। इस रस की रचना में रति का भाव झलकना चाहिए। अश्लील चित्रण इस रस में बाधक ही हैं। ग्राम्य अथवा अशिष्ट व्यवहार का वर्णन श्रृंगार के लिए उपयोगी नहीं। श्रृंगार के दो भेद हैं-संयोग और वियोग शृंगार।

संयोग एवं वियोग शृंगार के उदाहरण निम्नलिखित ढंग से समझे जा सकते हैं –

(क) संयोग श्रृंगार

जब नायक-नायिका एक-दूसरे के निकट होते हैं तब संयोग अवस्था होती है। ऐसे चित्रण में संयोग श्रृंगार रस होता है। संयोग श्रृंगार में नायक-नायिका एक दूसरे की ओर प्रेम से देखते हैं, आपस में बातें करते हैं, साथ-साथ घूमते हैं, तथा वे आपस में प्रेम क्रीड़ा कर सकते हैं।
उदाहरण :

1. “राम को रूप निहारत जानकी, कंकन की नग की परछांही।
यातें सबै सुधि भूलि गई कर टैकि रही पल टारत नाही॥”

(राम के सुंदर रूप पर मुग्ध जानकी लज्जावश सीधे उनकी ओर नहीं देखतीं बल्कि अपने कंगन की परछाईं में राम के सुंदर रूप को देख रही हैं। कंगन जिस बाजू में पहना है उसे बिलकुल भी हिला नहीं रही कि कहीं राम का रूप ओझल न हो जाए। वह निरंतर उस कंगन को देख रही है, जिसमें श्री रामचंद्र जी की परछाईं है।) इस पद्यांश में स्थायी भाव-रति (सीता का राम के प्रति प्रेम)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 1

उदाहरण 2.

कंकन किंकिन नूपुर धुनि-सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि।
मानहु मदन दुंदुभी दीन्हीं।
मनसा विस्व विजय कह कीन्हीं।
अस कहि फिरि चितये तेहि ओरा।
सीय-मुख ससि भये नयन चकोरा।
भये विलोचन चारु अचंचल।
मनहु सकुचि निमि तजेड दुगंचल।

(श्रीराम अपने हृदय में विचारकर लक्ष्मण से कहते हैं कि कंकण, करधनी और पाजेब के शब्द सुनकर लगता है मानो कामदेव ने विश्व को जीतने का संकल्प कर डंके पर चोट मारी है। ऐसा कहकर राम ने सीता के मुखरूपी चंद्रमा की ओर ऐसे देखा जैसे उनकी आँखें चकोर बन गई हों। सुंदर आँखें स्थिर हो गईं। मानो निमि ने सकुचाकर पलकें छोड़ दी हों।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 2

उदाहरण 3.

सुनि सुंदर बैन सुधारस साने सयानी हैं जानकी जानी भली।
तिरछे करि नैन, दे सैन तिन्हैं समुझाई कछू मुसकाइ चली।
तुलसी तेहि ओसर सोहे सबै, अवलोकति लोचन लाहु अली।
अनुराग तड़ाग में मानु उदै विगसी मनो मंजुल कंजकली।

(सीता ने ग्रामवासिनियों के अमृत रस भरे सुंदर वचनों को सुनकर समझ लिया कि वे सब समझदार और चंचल हैं। इसलिए उन्होंने आँखों से कटाक्ष करते हुए संकेत ही में उन्हें समझा दिया और मुसकराकर आगे बढ़ गईं। तुलसीदास कहते हैं कि उस समय मानो उनकी कमल कलियों के समान आँखें प्रेमरूपी तालाब में सूर्य के प्रकाश के कारण खिल गईं।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 3

(ख) वियोग श्रृंगार –

उदाहरण 1.

जहाँ नायक-नायिका, एक-दूसरे से अलग, दूर हो जाते हैं। ऐसे चित्रांकन को वियोग श्रृंगार कहते हैं।

निसिदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पै जब तै स्याम सिधारे॥
दृग अंजन लागत नहिं कबहू उर कपोल भये कारे॥

(गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव यह वर्षा ऋतु हमारे लिए घातक बन गई है। हमारी आँखों से निरंतर आँसुओं की वर्षा होती है। हम पर तो सदा ही पावस, बरसात छाई रहती है, जब से कृष्ण गोकुल को छोड़कर गए हैं। हमारी आँखों में काजल नहीं ठहरता है तथा आँसुओं के साथ बहे काजल से हमारे गाल और छाती काली हो गई है।) इस पद्यांश में रस की दृष्टि से विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से हैं –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 4

वियोग श्रृंगार के तीन भेद हैं –
(क) पूर्वराग – जब नायक अथवा नायिका वास्तविक रूप में एक-दूसरे से मिलने से पूर्व ही चित्र-दर्शन, गुण कथन अथवा सौंदर्य श्रवण आदि से एक-दूसरे को प्यार करने लगें, तब उस समय के विरह को पूर्वराग का विरह कहेंगे।
(ख) मान – नायक अथवा नायिका रूठकर एक-दूसरे से अलग हो जाएँ तथा अपने अहम के कारण नायक ऊपर से रूठने का नाटक करे तो यह ‘मान’ विरह की स्थिति है।
(ग) प्रवास – मिलने के पश्चात नायक अथवा नायिका का विदेश यात्रा के लिए तैयार होना प्रवास की स्थिति है। वियोग श्रृंगार में वियोगी की दस दशाएँ अभिलाषा, चिंता, स्मृति, गुण कथन, उद्वेग, प्रलाप, उन्माद, व्याधि, जड़ता और मरण स्वीकार की जाती हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 2.
मधुवन तुम कत रहत हरे।
विरह-वियोग स्थान सुंदर के ठाढ़े क्यों न जरे?
(अरे, मधुवन ! तुम हरे-भरे क्यों हो? तुम श्रीकृष्ण के वियोग में खड़े-खड़े जल क्यों नहीं गए।)
स्थायी भाव-रति।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 5

उदाहरण 3.
कहा लडैते दृग करे, पटे लाल बेहाल।
कहुं मुरली, कहुं पीत पट, कहुं मुकुट वनमाल॥
(राधा के वियोग में श्रीकृष्ण की बाँसुरी कहीं, पीले वस्त्र कहीं और मुकुट कहीं पड़ा है। वे स्वयं निश्चेष्ट दिखाई दे रहे हैं।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 6

उदाहरण 4.

खड़ी खड़ी अनमनी तोड़ती हुई कुसुम-पंखुड़ियाँ,
किसी ध्यान में पड़ी गवाँ देती घड़ियाँ की घड़ियाँ।
दृग से झरते हुए अश्रु का ज्ञान नहीं होता है,
आया-गया कौन, इसका कुछ ध्यान नहीं होता है।

(देवलोक की अप्सरा उर्वशी पुरुरवा के प्रेम में डूबी अनमनी-सी खड़ी फूलों की पत्तियाँ तोड़ती रहती है, उसी के ध्यान में घंटों व्यतीत कर देती है, आँखों से बहते आँसुओं का उसे पता ही नहीं लगता, उसके पास कौन आया और कौन गया इससे अनजान रहती है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 7

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

2. हास्य रस

किसी व्यक्ति या पदार्थ को साधारण से भिन्न अथवा विकृत आकृति में देखकर, विचित्र-रूप में देखकर, विभिन्न प्रकार की चेष्टाएँ देखकर जब पाठक, श्रोता या दर्शक के मन में हास्य विनोद का भाव जागता है, तो उसे हास या हास्य कहते हैं।

उदाहरण –
एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है?
उसने कहा अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है।
उत्तेजित हो पूछा उसने, उड़ा? अरे वह कैसे?
‘फड़’ से उड़ा दूसरा बोली, उड़ा देखिए ऐसे।

उपर्युक्त पद्यांश में नूरजहाँ और जहाँगीर में वार्तालाप हो रहा है। रस के आधार पर विश्लेषण आगे दिया गया है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 8

उदाहरण 2.

बाबू बनने का यार फार्मूला सुनो।
कीजिए इकन्नी खर्च मूंछ की मुँडाई में।
लीजिए सैकेंड हैंड सूट डेढ़ रुपये में,
देसी रिस्ट वाच चार पैसे की कलाई में॥
गूदड़ी बाज़ार का हो बूट भी अधेली वाला,
करो पूरे खर्च आने तीन नेकटाई में।
अठन्नी में हो कोट और चश्मा दुअन्नी में,
‘मुरली’ बनो न बाबू मुद्रिका अढ़ाई में॥

(बाबू बनने के लिए इकन्नी में अपनी मूंछे मुंडवाओ, डेढ़ रुपये में पुराना सूट लो, चार पैसे वाली नकली घड़ी कलाई पर बाँधो, गूदड़ी बाजार से अधेले का पुराना बूट खरीदो, तीन आने में नेकटाई खरीदो, अठन्नी में कोट और दुअन्नी में चश्मा लो। अढ़ाई रुपये खर्च करके बाबू बन जाओ।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 9

उदाहरण 3.
चना बनावे घासी राम। जिनकी झोली में दुकान।
चना चुरमुर चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुख खोले।
xxxxxxx
चना खाते सब बंगाली। जिनकी धोती ढीली ढाली।
चना जोर गर्म।
(चौपट राजा की अँधेर नगरी में घासी राम चने वाला अपने समय का वर्णन व्यंग्यात्मक ढंग से करता है।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 10

3. करुण रस

किसी प्रिय पात्र के लंबे वियोग की पीड़ा या उसके न रहने पर होने वाले क्लेश को शोक कहते हैं और इसमें करुण रस का परिपाक होता है। करुण रस में शोक स्थायी भाव रहता है, आश्रय शोक संतप्त व्यक्ति होता है, आलंबन विभाव नष्ट प्रिय वस्तु या व्यक्ति रहता है तथा उद्दीपन विभाव से प्रिय का दाह, विलाप, रात्रि, एकांत, श्मशान तथा उस प्रिय की वस्तुएँ आदि रहती हैं। अनुभाव में रोना, पीटना, पछाड़ खाना, आहे भरना आदि आता है। संचारी भावों में विकलता, मोह, ग्लानि, व्याधि, स्मृति, जड़ता आदि प्रयोग होते हैं। करुण में प्रिय के मिलने की आशा नहीं रहती।

उदाहरण 1.

हाय पुत्र हा ! रोहिताश्व ! कहि रोवन लागे,
विविध गुणवान महामर्म वेधी जिय जागे।
हाय ! भयो हो कहा हमें यह जात न जान्यो,
जो पत्नी और पुत्रादिक लौं नाहिं पिछान्यौ॥

रस की दृष्टि से उपर्युक्त पद्य का विश्लेषण आगे दिया गया है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 11

संचारी भाव – हरिश्चंद्र की चिंता, जड़ता तथा शंका व्यक्त करना है।

यहाँ पर करुण रस का आश्रय हरिश्चंद्र है क्योंकि उसके मन का करुण भाव, विभावादि से जागृत होकर अनुभावादि से व्यक्त होता हुआ रस में बदल रहा है। करुण रस किसी प्रिय की मृत्यु पर होता है, विरह या विप्रलंभ श्रृंगार केवल बिछुड़ने पर होता है। करुण में प्रिय से मिलने की आशा शेष नहीं रहती, विप्रलंभ या वियोग श्रृंगार में यह आशा बनी रहती है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 2.
मेरे हृदय के हर्ष हा ! अभिमन्यु अब तू है कहाँ।
दृग खोलकर बेटा तनिक तो देख हम सबको यहाँ।
माना खड़े हैं पास तेरे, तू यहीं पर है पड़ा।
निज गुरुजनों के मान का तो, ध्यान था तुझको बड़ा॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 12

उदाहरण 3.

फिर पीटकर सिर और छाती अश्रु बरसाती हुई।
कुररी सदृश सकरुण गिरा से दैन्य दरसाती हुई।
बहु विधि विलाप-प्रलाप वह करने लगी उस शोक में।
निजप्रिय वियोग समान दुःख होता न कोई लोक में।
स्थायी भाव – शोक।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 13

4. रौद्र रस

किसी शत्रु, विपक्षी, अहितकारी, बुरा चाहने वाले, अथवा उदंड लोगों की चेष्टाओं और कार्यों को देखकर अपने अपमान, अहित, निंदा, अवहेलना अथवा अपकार का जो भाव मन में जागता है, वही पुष्ट होकर रौद्र रस का रूप धारण कर लेता है। पाठक को रौद्र रस का अनभव किसी अन्यायी, अत्याचारी तथा दष्ट व्यक्ति को कहे जाने वाले वचनों अथवा उसके विरुदध की गई चेष्टाओं से होता है।

रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। आश्रय क्रोधी व्यक्ति होता है; आलंबन विभाव के रूप में शत्रु, देशद्रोही, कपटी, दुराचारी व्यक्ति होते हैं; उद्दीपन विभाव के रूप में उनके किए गए अपराध, अपशब्द, कुचेष्टाएँ तथा अपकार लिए जाते हैं। अनुभावों में हथियार दिखाना, आँखों का लाल होना, क्रूरता से देखना, गर्जना, ललकारना आदि क्रियाएँ आती हैं। संचारी भावों में मोह, मद, उग्रता, स्मृति, गर्व आदि आते हैं।

रौद्र रस में आश्रय के शरीर में विकार आते हैं; जैसे-आँखों तथा मुँह का लाल होना, क्रोध से काँपना आदि। वीर रस में आश्रय उत्साह से भरकर कार्य करता है। उसमें किसी प्रकार का विकार नहीं आता। उदाहरण 1. ‘माखे लखन कुटिल भई भौहें, रद पट फरकत नयन रिसौहे।’ (क्रुद्ध लक्ष्मण की भौंहों में बल बढ़ गए हैं। उनके ओंठ फड़क रहे हैं, आँखें लाल हो गई हैं।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 14

उदाहरण 2.

रे नृप बालक काल बस बोलत तोहि न संभार।
धनही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 15

उदाहरण 3.
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे,
सब शील अपना भूलकर कर तल युगल मलने लगे।
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े,
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठकर खड़े।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 16

5. वीर रस

शत्रु के घमंड को तोड़ने, दीनों की बुरी दशा तथा धर्म की दुर्गति को मिटाने अथवा किसी कठिन कार्य को करने का निश्चय करते हुए जो तीव्र भाव हृदय में पैदा होता है, वह उत्साह है। यह उत्साह ही विभावों द्वारा जागृत, अनुभावों द्वारा व्यक्त तथा संचारियों द्वारा पुष्ट होकर रस बनता है। वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है। शत्रु, दीन, याचक अथवा खलनायक आलंबन बनते हैं। सेना, दुश्मन की ललकार, युद्ध के बाजे अथवा वीर गीत उद्दीपन बनते हैं। आँखों में खून उतरना, शस्त्र सँभालना, गर्जन करना, ताल ठोंकना आदि अनुभाव हैं। स्मृति, ईर्ष्या, हर्ष, गर्व तथा रोमांच आदि संचारी भाव हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

वीर रस के भेद –
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उत्साह दिखाया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों के आधार पर वीरों की विभिन्न कोटियाँ हैं। वीर रस की भी उनके अनुसार चार कोटियाँ बन गई हैं – (1) युद्धवीर (2) दानवीर (3) धर्मवीर (4) दयावीर। कुछ विद्वानों ने कर्मवीर नामक एक अन्य श्रेणी का भी उल्लेख किया है।

उदाहरण 1.
सौमित्र के घननाद का रव अल्प भी न सहा गया।
निज शत्रु को देखे बिना उनसे तनिक न रहा गया।
रघुवीर का आदेश ले युद्धार्थ वे सजने लगे।
रणवाद्य भी निघोष करके धूम से बजने लगे।
सानंद लड़ने के लिए तैयार जल्दी हो गए।
उठने लगे उन के हृदय में भाव नए-नए॥

रस की दृष्टि से विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से होगा –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 17

उदाहरण 2.
उस काल, जिस ओर वह संग्राम करने को गया।
भागते हुए अरि वृंद से मैदान खाली हो गया।
रथ-पथ कहीं भी रुद्ध उसका दृष्टि में आया नहीं।
सन्मुख हुआ जो वीर वह मारा गया तत्क्षण वहीं॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 18

उदाहरण 3.

मुझ कर्ण का कर्तव्य दृढ़ है माँगने आए जिसे,
निज हाथ से झट काट अपना शीश भी देना उसे।
बस क्या हुआ फिर अधिक, घर पर आ गया अतिथि विसे,
हूँ दे रहा, कुंडल तथा तन-प्राण ही अपने इसे।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 19

6. भयानक रस

किसी डरावनी वस्तु या व्यक्ति को देखने से, किसी अपराध का दंड मिलने के भय से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती है, वही भय है। भय का भाव जब विभावादि द्वारा जागृत होकर, अनुभावों द्वारा व्यक्त होकर तथा संचारियों द्वारा पुष्ट होकर सामने आता है तो वह भयानक रस में बदल जाता है। भयानक रस का स्थायी भाव भय है। इसका आश्रय भयभीत व्यक्ति है। इस रस के आलंबन भयानक दृश्य, भयानक घटनाएँ भयानक जीव, दुर्घटनाएँ अथवा बलवान शत्रु आदि होते हैं। अनुभावों में कंप, स्वेद, रोमांच, स्वरभंग एवं मूर्छा आदि को लिया जा सकता है। संचारी भावों में चिंता, स्मृति, ग्लानि, आवेग, त्रास तथा दैन्य आते हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 1.

एक ओर अजगरहि लखि एक ओर मृग राय।
विकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाय॥

रस की दृष्टि से उपर्युक्त पंक्तियों का विश्लेषण निम्नलिखित ढंग से किया जा सकता है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 20

उदाहरण 2

कर्तव्य अपना इस समय होता न मुझको ज्ञात है,
कुरुराज, चिंताग्रस्त मेरा जल रहा सब गात है।
अतएव मुझ को अभय देकर आप रक्षित कीजिए।
या पार्थ-प्रण करने विफल अन्यत्र जाने दीजिए।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 2.

सिर पर बैठो काग, आंखि दोऊ खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार, अतिहि आनंद उर धारत॥
गिद्ध जांघ कहँ खोदि खोदि के मांस उचारत।
स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खात विदारत॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 21

उदाहरण 3.

कहूँ घूम उठत बरति कतहुं है चिता,
कहूँ होत शोर कहूं अरथी धरी है।
कहूं हाड़ परौ कहूं जरो अध जरो बाँस,
कहूं गीध-भीर मांस नोचत अरी अहै॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 22

8. अद्भुत रस

किसी आश्चर्यजनक, असाधारण अथवा अलौकिक वस्तु को देखकर हृदय में आश्चर्य का भाव घर कर लेता है। ऐसी अवस्था का जब वर्णन किया जाता है तो अद्भुत रस प्रकट होता है। यह रस चमत्कार से पैदा होता है। किसी विलक्षण वस्तु को देखने से जागृत विस्मय का भाव जब अनुभावों से व्यक्त एवं संचारियों से पुष्ट होकर सामने आता है, तो उसे अद्भुत रस कहते हैं।

इस रस का स्थायी भाव विस्मय है, विस्मित व्यक्ति इसका आश्रय है। अद्भुत वस्तु, विचित्र दृश्य, विलक्षण अनुभव अथवा अलौकिक घटना आदि आलंबन बनते हैं। मुँह खुला रह जाना, दाँतों तले अंगुली दबाना, आँखें फाड़कर देखते रह जाना, स्वरभंग, स्वेद एवं स्तंभ आदि अनुभाव होते हैं। वितर्क, हर्ष, आवेग एवं भ्रांति आदि संचारी भाव हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 1.

अखिल भुवन चर-अचर सब, हरिमुख में लखि मातु।
चकित भई गद्-गद् वचन, विकसत दृग, पुलकातु॥

(प्रसंग उस समय का है जबकि माता यशोदा कृष्ण को मुँह खोलने के लिए कहती हैं। उन्हें संदेह है कि कृष्ण के मुँह में मिट्टी है और वह मिट्टी खा रहा था। कृष्ण ने ज्यों ही मुँह खोला तो माता यशोदा को उसमें सारा ब्रह्मांड दिखाई दिया। माता के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।) रस की दृष्टि से उपर्युक्त पद का विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 23

इस पद्य में आश्चर्य का भाव पुष्ट होकर अद्भुत रस में बदल गया है।

उदाहरण 2.

लीन्हों उखारि पहार विसाल
चल्यो तेहि काल विलंब न लायौ।
मारुत नंदन मारुत को मन को
खगराज को वेग लजायो॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 24

उदाहरण 3.

गोपों से अपमान जान अपना क्रोधांध होके तभी,
की वर्षा व्रज इंद्र ने सलिल से चाहा, डुबाना सभी।
यों ऐसा गिरिराज आज कर से ऊँचा उठा के अहो।
जाना था किसने कि गोपाशिशु ये रक्षा करेगा कहो।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 25

9. शांत रस

सांसारिक वस्तुओं से विरक्ति, हृदय में तत्व ज्ञान आदि से जो वैराग्य भाव उत्पन्न होता है, उससे चित्त को शांति मिलती है। उस शांति का वर्णन पढ़-सुनकर पाठक के हृदय में ‘शांत रस’ की उद्भावना होती है। शांत रस का स्थायी भाव ‘निर्वेद’ या ‘शम’ है। निर्वेद का अर्थ है-वेदना रहित होना। शम का अर्थ शांत हो जाना है। इस रस का आलंबन प्रिय वस्तु का विनाश, आशा के विरुद्ध वस्तु की प्राप्ति, संसार की नश्वरता, प्रभु चिंतन आदि हैं। यहाँ सत्संग, कथा-श्रवण, तीर्थ-स्नान आदि उद्दीपन होते हैं। अश्रु, रोमांच एवं पुलक आदि अनुभाव बनते हैं तथा धृति, हर्ष, स्मरण और निर्वेद आदि संचारी भाव बनते हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 1.

तुम तजि और कौन पै जाऊँ
काके द्वार जाय सिर नाऊँ, पर हाथ कहाँ बिकाऊँ॥
ऐसो को दाता है समरथ, जाके दिये अघाऊँ।
अंतकाल तुमरो सुमिरन गति अनत कहूँ नहिं जाऊँ॥

रस की दृष्टि से विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 26

उदाहरण 2.
गुरु गोविंद तो एक है, दूजा यह आकार।
आपा मेटि जीवित मरै, तो पावै करतार॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 27

उदाहरण 3.
भारतमाता का मंदिर यह, समता का संवाद यहाँ।
सबका शिव कल्याण यहाँ, पावे सभी प्रसाद यहाँ॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 28

दो नये रस

प्राचीन ग्रंथों में नौ रसों को ही मान्यता दी जाती थी पर हिंदी-साहित्य के भक्तिकाल में भक्ति रस और वात्सल्य रस को इनमें सम्मिलित कर रसों की संख्या ग्यारह तक बढ़ा दी गई थी।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

10. भक्ति रस

ईश्वर के गुणों के प्रति श्रद्धाभाव से भरकर जब कोई भक्त प्रेम में लीन हो जाता है, तो उसे आनंद देने वाले भक्ति रस का अनुभव होता है। भक्ति राग प्रधान है जबकि ज्ञान विराग प्रधान है। शांत रस में वैराग्य भाव रहता है, भक्ति रस में रागात्मक प्रेम, पूर्ण संबंध रहता है। इसलिए – विद्वानों ने शांत रस से पृथक भक्ति रस को माना। भक्ति का स्थायी भाव देवताओं आदि के प्रति रति है। भक्त के हृदय में रस की उत्पत्ति होने योग्य कोमल तन्मयता का भाव रहता है। भक्ति रस में आश्रय भक्त हृदय होता है। आलंबन प्रभु होता है, उद्दीपन प्रभु का गुण, रूप एवं कार्य होते हैं, भक्त की विह्वलता, आसक्ति आदि से उत्पन्न आँसू अनुभाव होते हैं। हर्ष, औत्सुक्य, चपलता, दैन्य तथा स्मरण आदि संचारी भाव होते हैं। तुलसी, सूर, मीरा आदि की रचनाओं में भक्ति रस को देखा जा सकता है।

उदाहरण 1.
माधव अब न द्रवहु केहि लेखे।
प्रनतपाल पन तोर मोर पन, जिअहुँ कमलपद देखे॥
जब लगि मैं न दीन, दयालु तैं, मैं न दास, तें स्वामी।
तब लगि जो दुख सहेउँ कहेउँ नहिं, जद्यपि अंतरजामी।
तू उदार, मैं कृपन, पतित मैं, तैं पुनीत श्रुति गावै।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 29

उदाहरण 2.
अँखड़ियाँ, झाई पड़ी, पंथ निहारि-निहारि।
जीभड़िया छाला पड़ा, राम पुकारि-पुकारि॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 30

उदाहरण 3.
म्हारो परनाम बाँके बिहारी जी।
मोर मुकुट माथाँ तिलक बिराज्याँ, कुँडल, अलकाँ कारी जी,
अधर मधुर घर वंशी बजावाँ, रीझ रिझावाँ ब्रजनारी जी।
या छब देख्याँ मोहयाँ मीराँ मोहण गिरधारी जी॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 31

11. वात्सल्य रस

जब बड़ों के हृदय में बच्चों के प्रति स्नेह भाव, विभावादि से पुष्ट होकर अभिव्यक्त होता है तब वहाँ पर वात्सल्य रस होता है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव अपत्य स्नेह अथवा संतान स्नेह है, आलंबन बच्चा होता है। उद्दीपन बच्चों की चेष्टाएँ होती हैं। अनुभाव हँसना, पुलकित होना, चूमना आदि आश्रय की चेष्टाएँ होती हैं। हर्ष, आवेग, मोह, चिंता, विषाद, गर्व, उन्माद आदि संचारी भाव हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 1.

किलक अरे, मैं नेक निहारूँ,
इन दाँतों पर मोती वारूँ।
पानी भर आया फूलों के मुँह में आज सवेरे,
हाँ गोपा का दूध जमा है, राहुल! मुख में तेरे।
लटपट चरण, चाल अटपट सी मन भाई है मेरे,
तू मेरी अंगुली धर अथवा मैं तेरा कर धारूँ
इन दाँतों पर मोती वारूँ।

(माता यशोधरा अपने नन्हे राहुल के नए निकले दाँतों की शोभा को देखकर आनंदित होकर कहती है, अरे राहुल! एक बार फिर से तू किलकारी मार, मैं तुम्हारे दूधिया दाँत देखना चाहती हूँ। वह कल्पना करती है कि राहुल के दाँत फूलों पर अटकी चमकीली ओस की बूंदें हैं अथवा माँ का दूध ही जमकर राहुल के श्वेत दाँतों में बदल गया है। बालक राहुल ने अभी-अभी डगमगाते कदमों से चलना सीखा है। इसलिए माँ उसकी बाँह पकड़कर उसे चलाना चाहती है।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

रस की दृष्टि से व्याख्या –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 32

उदाहरण 2.

मैया मैं नहिं माखन खायो।
भोर भये गैयन के पाछे मधुबन मोहि पठायो।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 33

उदाहरण 3.
सुभग सेज सोभित कौसिल्या रुचिर राम-सिसु गोद लियो।
बार-बार विधु-वदन विलोकति लोचन चारु चकोर किये।
कबहुँ पौढ़ि पय-पान करावति, कबहुंक राखाति लाइ हिये।
बाल केलि गावति हलरावति, फुलकति प्रेम-पियूष जिये।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 34

रस : एक दृष्टि में

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 35

पाठ्यपुस्तक पर अधारित कबिताओं में वर्णित रसों का विश्लेषण –

शांत रस –

रस की दृष्टि से पद्य की पंक्तियों का विश्लेषण निम्न प्रकार से किया जा सकता है –

1. कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 36

2. माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 37

3. तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाढ़स बँधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 38

4. एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म :
फ़सल क्या है ?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण-धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा का थिरकन का!

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 39

वीर रस

रस की दृष्टि से विश्लेषण –

1. लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहु भुज छे दनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 40

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

2. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।
बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें॥
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥
जो बिलोकि अनुचित कहेडँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 41

3. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥
भानुबंस राके स कलंकू। निपट निरंकु सु अबुधु असंकू ॥
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥
तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥
अपने मुह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरबती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 42

4. कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी कें॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा॥
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली॥
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय-हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही॥
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 43

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

वात्सल्य रस

रस की दृष्टि से व्याख्या –

1. डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावै, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 44

2. तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात….
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लगे पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल ?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान ?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो ?
आँख लूँ मैं फेर ?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 45

3. यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जबकि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 46

शंगार टस 

मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोरा सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 47

2. हमारै हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 47

3. फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥

रस की दृष्टि से उपर्युक्त पद्य का विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 49

करुण रस 

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास,
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

रस की दृष्टि से उपर्युक्त पद्य का विश्लेषण निम्न प्रकार से है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 50

अभ्यास के लिए प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रसों के नाम बताइए –
(i) ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
(ii) सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी॥
(iii) हमारै हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
(iv) मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर ।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥
(v) जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर ॥
(vi) आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।
(vii) फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
(viii) जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत हे ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी॥
(ix) तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
(x) धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात ……….
छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात ॥
(xi) भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण-धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का।
(xii) यश है न वैभव, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
(xiii) इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
(xiv) तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान
(xv) कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
(xvi) वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
(xvii) सुर महिसुर हरिजन अरूरू गाई।
हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।
(xviii) हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
(xix) सुनि कटु बचन कुठार सुधारा,
हाय-हाय सब सभा पुकारा।
(xx) तार सप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
उत्तर :
(i) वियोग शृंगार रस
(ii) वियोग शृंगार रस
(iii) वियोग शृंगार रस
(iv) भयानक रस
(v) वीर रस
(vi) शृंगार रस
(vii) श्रृंगार रस
(viii) वियोग श्रृंगार रस
(ix) करुण रस
(x) वात्सल्य रस
(xi) शांत रस
(xii) करुण रस
(xiii) करुण रस
(xiv) वात्सल्य रस
(xv) वियोग श्रृंगार रस
(xvi) शांत रस
(xvii) वीर रस
(xviii) भक्ति रस
(xix) भयानक रस
(xx) शांत रस

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रसों के नाम बताइए –
(i) “डोलि-डोलि कुंडल उठत देई बार-बार,
एरी! वह मुकुट हिये मैं हालि-हालि उठै॥”
(ii) “बारी टारि डारौ कुम्भकर्णहिं बिदारि डारौं,
मारि मेघनादै आजु यौं बल अनन्त हौं।”
(iii) “केशव, कहि न जाइ का कहिये।
देखत तब रचना विचित्र अति समुझि मनहिं मन रहिये॥”
(iv) “हँसि-हँसि भाजे देखि दूलह दिगम्बर को,
पाहुनी जै आवै हिमाचल कै, उछाह में।” “दीठ पर्यो जोतें तोते, नाहिंन टरति छवि,
आँखिन छयो री, छिन-छिन छालि-छालि उठे।”
(vi) सून्य भीति पर चित्र, रंग नहि, तनु बिन लिखा चितेरे।
धोये मिटै न मरै भीति, द:ख : पाइय इहि तन हेरे।।
(vii) मगन भयेई हँसे मगन महेस ठाढ़े,
और हँसे एक हँसि हँसी के उमाह में।
(viii) यज्ञ समाप्त हो चुका, तो भी धधक रही थी ज्वाला
दारुण-दृश्य! रुधिर के छोटे-अस्थि खंड की माला।
(ix) बाजि-बाजि उठत मिठौंहैं सुर बसी भोर,
ठौर-ठौर ढीली गरबीली चालि-चालि उठे।
(x) कहै ‘पद्माकर’ त्रिकूट ही को ढाय डारौं,
डरत करेई जातुधानन को अंत हौं॥
(xi) रविकर नीर बसै अति दारुन मकर रूप तेहि माहीं।
बदन हीन सो ग्रसै चराचर पान करन जे जाहीं॥
(xii) कहै ‘पद्माकर’ सु काहू सौं कहै को कहा,
जोई जहाँ देखै सो हँसेई तहाँ राह में॥
(xiii) वेदों की निर्मम प्रसन्नता पशु की कातर वाणी;
मिलकर वातावरण बना था कोई कुत्सित प्राणी।
(xiv) सीस पर गंगा हँसे भुजनि भुजंग हँसै,
हास ही को दंगा भयौ नंगा के विवाह में।
(xv) कोउ कह सत्य, झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल कोउ माने।
‘तुलसीदास’ परिहरै तीन भ्रम सो आतम पहचान।
(xvi) अच्छहिं निरच्छ कपि ऋच्छहिं उचारौ इनि,
तोत्र तुच्छ तुच्छन को कछुवै न गंत हौं।
(xvii) कहरि-कहरि उठै पीरै पटुका को छोर,
साँवरे की तिरछी चितौनि सालि-सालि उठे।
(xviii) जा दिन मन-पंछी उड़ि-जैहै।
ता दिन तेरे तन तरुवर के सबै पात झरि जैहैं।
(xix) सेवक सेव्य भाव बिनु भव न तरिय उरगारि।
(xx) अनुचर अनाथ से रोते थे। जो थे अधीर सब होते थे।
(xxi) जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दुलराइ, मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥
(xxii) अति भीषण हाहाकार हुआ, सूना सब संसार हुआ।
(xxiii) ज्यों-त्यों ‘तुलसी’ कृपालु चरण शरण पावै।
(xxiv) कबहुँ पलक हरि नूदि लेत हैं, कबहुँ उधर फरकावै
(xxv) तू दयालु दीन हौँ तू दानि हौं भिखारी।
उत्तर :
(i) वियोग श्रृंगार रस
(ii) रौद्र रस
(iii) अद्भुत रस
(iv) हास्य रस
(v) वियोग श्रृंगार रस
(vi) अद्भुत रस
(vii) हास्य रस
(viii) वीभत्स रस
(ix) वियोग श्रृंगार रस
(x) रौद्र रस
(xi) अद्भुत रस
(xii) हास्य रस
(xiii) वीभत्स रस
(xiv) हास्य रस
(xv) अद्भुत रस
(xvi) रौद्र रस
(xvii) वियोग श्रृंगार रस
(xviii) शांत रस
(xix) भक्ति रस
(xx) करुण रस
(xxi) वात्सल्य रस
(xxii) करुण रस
(xxiii) भक्ति रस
(xxiv) वात्सल्य रस
(xxv) भक्ति रस

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर – 

1. निर्देशानुसार उचित विकल्प चुनकर लिखिए –
(क) पंक्ति में प्रयुक्त रस है –
कहत, नटत, रीझत, खिझत,
मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौंन में करत हैं,
नैननु ही सौं बात।
(i) वीर रस
(ii) श्रृंगार रस
(iii) शांत रस
(iv) करुण रस
उत्तर :
(ii) श्रृंगार रस

(ख) पंक्ति में प्रयुक्त रस है –
एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय। विकल बटोही बीच ही, पर्यो मूरछा खाय।।
(i) भयानक रस
(ii) करुण रस
(iii) हास्य रस
(iv) वात्सल्य रस
उत्तर :
(i) भयानक रस

(ग) पंक्ति में प्रयुक्त रस है –
एक मित्र बोले, “लाला तुम किस चक्की का खाते हो? इतने महँगे राशन में भी, तुम तोंद बढ़ाए जाते हो।”
(i) शृंगार रस
(ii) हास्य रस
(iii) करुण रस
(iv) रौद्र रस
उत्तर :
(ii) हास्य रस

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

(घ) करुण रस का स्थायी भाव क्या है?
(i) भय
(ii) शोक
(iii) क्रोध
(iv) उत्साह
उत्तर :
(ii) शोक

(ङ) पंक्तियों में कौन-सा स्थायी भाव है?
संकटों से वीर घबराते नहीं,
आपदाएँ देख छिप जाते नहीं।
लग गए जिस काम में, पूरा किया
काम करके व्यर्थ पछताते नहीं।
(i) रति
(ii) भय
(iii) क्रोध
(iv) उत्साह
उत्तर :
(iv) उत्साह

(च) पंक्तियों में प्रयुक्त रस है –
एक पल, मेरी प्रिया के दृग-पलक,
थे उठे-ऊपर, सहज नीचे गिरे।
चपलता ने इस विकंपित पुलक से,
दृढ़ किया मानो प्रणय-संबंध था।
(i) हास्य रस
(ii) वीर रस
(iii) शांत रस
(iv) शृंगार रस
उत्तर :
(iv) शृंगार रस

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

(छ) काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव है?
जसोदा हरि पालने झुलावै। हलरावै, दुलरावै, मल्हावै, जोई-सोई कछु गावै।
(i) उत्साह
(ii) क्रोध
(iii) हास
(iv) वात्सल्य
उत्तर :
(iv) वात्सल्य

(ज) काव्यांश में प्रयुक्त रस है –
साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं, पूरा करूँगा कार्य सब कथनानुसार यथार्थ मैं। जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैं अभी, वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दीखेंगे सभी।
(i) रौद्र रस
(ii) करुण रस
(iii) शृंगार रस
(iv) वात्सल्य रस
उत्तर :
(i) रौद्र रस

(झ) काव्यांश में प्रयुक्त रस है –
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए।
(i) हास्य रस
(ii) करुण रस
(iii) वीभत्स रस
(iv) रौद्र रस
उत्तर :
(ii) करुण रस

(ञ) काव्यांश में स्थायी भाव है –
मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावै।
तू काहै नहिं बेगहिं आवै, तोको कान्ह बुलावै।
(i) विस्मय
(ii) शोक
(iii) रति
(iv) वत्सल
उत्तर :
(iv) वत्सल

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(i) रति’ किस रस का स्थायी भाव है?
(ii) ‘करुण’ रस का स्थायी भाव क्या है?
(iii) ‘हास्य’ रस का एक उदाहरण लिखिए।
(iv) निम्नलिखित पंक्तियों में रस पहचान कर लिखिए:
मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे,
यमराज से भी युद्ध को प्रस्तुत सदा मानो मुझे।
उत्तर :
(i) शृंगार
(ii) शोक
(iii) चना बनावे घासी राम। जिनकी झोली में दुकान।
(iv) वीर रस चना चुरमुर-चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुँह खोले।

2. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) ‘हास्य रस’ का एक उदाहरण लिखिए।
(ख) निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में रस पहचानकर लिखिए
रे नृप बालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।
(ग) ‘वीर’ रस का स्थायी भाव क्या है?
(घ) ‘रति’ किस रस का स्थायी भाव है?
उत्तर :
(क) चना बनावे घासी राम। जिनकी झोली में दुकान।
चना चुरमुर चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुख खोले।
(ख) रौद्र रस।
(ग) उत्साह।
(घ) श्रृंगार रस।

3. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) ‘करुण रस’ का एक उदाहरण लिखिए।
(ख) निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित रस पहचान कर लिखिए –
तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता,
धीर-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता।
(ग) “उत्साह’ किस रस का स्थायी भाव है?
(घ) ‘वात्सल्य’ रस का स्थायी भाव क्या है?
(ङ) ‘शृंगार’ रस के कौन-से दो भेद हैं?
उत्तर :
(क) चना बनावे घासी राम। जिनकी झोली में दुकान।
चना चुरमुर चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुख खोले।
(ख) हास्य रस।
(ग) वीर रस।
(घ) वात्सल्य / वत्सल रस
(ङ) संयोग शृंगार, वियोग शृंगार।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

4. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) स्थायी भाव से आप क्या समझते हैं?
(ख) हास्य रस का एक उदाहरण लिखिए।
(ग) वत्सल रस का स्थायी भाव क्या है?
(घ) निम्नलिखित पंक्तियों में से रस पहचानकर लिखिए –
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
(ङ) क्रोध किस रस का स्थायी भाव है?
उत्तर :
(क) मन में स्थायी रूप से विद्यमान भावों को स्थायी भाव कहते हैं।
(ख) एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है?
उसने कहा अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है।
उत्तेजित हो पूछा उसने, उड़ा? अरे वह कैसे?
‘फड’ से उडा दसरा बोली, उडा देखिए ऐसे।
(ग) वात्सल्य
(घ) श्रृंगार रस
(ङ) रौद्र रस

5. निम्नलिखित पाँच में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
1. भय की अधिकता में किस रस की निष्पत्ति होती है?
(क) वीर रस
(ख) करुण रस
(ग) भयानक रस
(घ) रौद्र रस
उत्तर :
(घ) रौद्र रस

2. ‘निर्वेद’ किस रस का स्थायी भाव है?
(क) शांत रस
(ख) करुण रस
(ग) हास्य रस
(घ) शृंगार रस
उत्तर :
(क) शांत रस

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

3. “तनकर भाला यूँ बोल उठा
राणा मुझको विश्राम न दें।
मुझको वैरी से हृदय-क्षोभ
तू तनिक मुझे आराम न दे’।
उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में निहित रस है?
(क) वीर रस
(ख) शांत रस
(ग) करुण रस
(घ) रौद्र रस
उत्तर :
(क) वीर रस

4. किस रस को ‘रसराज’ भी कहा जाता है?
(क) शांत रस
(ख) करुण रस
(ग) हास्य रस
(घ) शृंगार रस
उत्तर :
(घ) शृंगार रस

5. ‘वीभत्स रस’ का स्थायी भाव है?
(क) उत्साह
(ख) शोक
(ग) जुगुप्सा
(घ) हास
उत्तर :
(ग) जुगुप्सा

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

6. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार के उत्तर लिखिए –

(क) निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में रस पहचान कर लिखिए –
उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के ज़ोर-से, सोता हुआ सागर जगा।
(ख) ‘वीर रस’ का एक उदाहरण लिखिए।
(ग) ‘शांत रस’ का स्थायी भाव क्या है?
(घ) उद्दीपन से आप क्या समझते हैं?
(ङ) स्थायी भाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
(क) वीर रस।
(ख) धरती की लाज रखने को धरती के वीर,
समर विजय हेतु कसर उठाएँ क्यों?
हमें ललकार, दुत्कार, फुफकार कर,
जीवित यहाँ से ये अरि दल जाएँ, जाएँ क्यों?
(ग) निर्वेद/उदासीनता।
(घ) स्थायी भावों को उद्दीप्त कर रस की अवस्था तक ले जाने वाले भाव उद्दीपन कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-एक पात्रों की चेष्टाओं के रूप में, दूसरे बाह्य वातावरण या प्रकृति रूप में।
(ङ) सहृदय मनुष्य के हृदय में जो भाव स्थायी (स्थिर) रूप से विद्यमान रहते हैं, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं। प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव होता है।
(ग) निर्वेद/उदासीनता

7. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार के उत्तर लिखिए –
(क) निम्नलिखित काव्य पक्तियों में रस पहचान कर लिखिए –
एक ओर अजगरसिंह लखि, एक ओर मश्गराय।
विकल बटोही बीच ही, पर्यो मूर्छा खाय।।
(ख) रौद्र रस का एक उदाहारण लिखिए।
(ग) करुण रस का स्थायी भाव क्या है?
उत्तर :
(क) भयानक रस
(ख) श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर करतल-युगल मलने लगे।
(ग) शोक।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

8. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार के उत्तर लिखिए –
(क) निम्नलिखित काव्य पंक्तियों से रस पहचानकर लिखिए –
विरह का जलजात जीवन, वरिह का जलजात
वेदना जन्म वरुणा में मिला आवास
अश्रु चुनता दिवस इसका, अश्रु गिनती रात
(ख) वीभत्स रस का एक उदाहरण लिखिए।
(ग) हास्य रस का स्थायी भाव लिखिए।
उत्तर :
(क) श्रृंगार रस (वियोग)
(ख) सिर पै बैठ्यो काग, आँख दोऊ खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार, अतिहि आनंद उर धारत।
(ग) हास स्थायी भाव

9. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
(क) ‘वीर रस’ का एक उदाहरण लिखिए।
(ख) घृणा के भाव उत्पन्न करने वाले काव्य में कौन-सा रस होगा?
(ग) ‘शृंगार रस’ के दो भेद कौन-से हैं?
(घ) निम्नलिखित काव्य-पक्तियों में रस पहचानकर रस का नाम लिखिए –
वह लता वहीं की, जहाँ कली
तू खिली, स्नेह से लिी, पली
अंत भी उसी गोद में ष्टारण
ली, मूंदै दृग वर महामरण!
(ङ) उद्दीपन किसे कहते हैं?
उत्तर :
(क) वीर रस का उदाहरण –
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
हाथ में ध्वज रहे बाल दल सजा रहे,
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो।
(ख) वीभत्स रस।
(ग) 1. संयोग शृंगार रस,
2. वियोग शृंगार रस
(घ) करुण रस।
(ङ) उद्दीपन – आश्रय के मन में उत्पन्न हुए स्थायी भाव को और तीव्र करने वाले विषय की बाहरी चेष्टाओं और बाहरी वातावरण को उद्दीपन कहते हैं।

10. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
(ख) निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में रस पहचानकर रस का नाम लिखिए –
“यह मुरझाया हुआ फूल है, इसका हृदय दुखाना मत।
स्वयं बिखरने वाली इसकी, पंखुड़ियाँ बिखराना मत।।”
(घ) भयानक रस का स्थायी भाव क्या है?
उत्तर :
(ख) करुण रस।
(घ) स्थायी भाव-भय।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

11. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
(ख) यशोदा हरि पालने झुलावै
हलरावै, दुलरावै, जेहि सेहि कछु गावै।
उपर्युक्त पंक्तियों में किस रस की निज़्पत्ति होती है? रस का नाम लिखिए।
(घ) आलंबन विभाव किसे कहते हैं?
उत्तर :
(ख) वात्सल्य रस।
(घ) आलंबन विभाव – जिन पात्रों या व्यक्तियों के आलंबन अर्थात सहारे से स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, वे आलंबन विभाव कहलाते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

JAC Class 9 Hindi रहीम के दोहे Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता ?
(ख) हमें अपना दुख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपनी मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है ?
(ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?
(घ) एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?
(ङ) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता ?
(च) ‘नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है ?
(छ) मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) जिस प्रकार टूटे हुए सामान्य धागे को जोड़ने पर उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार प्रेम के टूटे हुए धागे को जोड़ने पर वह पहले के समान नहीं रह पाता। उसमें अविश्वास की गाँठ पड़ जाती है।
(ख) हमें अपना दुख दूसरों पर इसलिए प्रकट नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे हमारा दुख बाँट नहीं सकते। अपनी व्यथा कहने से वे हमारा मजाक उड़ाने लगते हैं।
(ग) सागर का जल खारा होता है, जिससे किसी की प्यास नहीं बुझती; जबकि पंक जल मीठा होने के कारण लघु जीवों की प्यास बुझाकर उन्हें तृप्त करता है। उसकी इसी उपयोगिता के कारण कवि ने पंक जल को धन्य कहा है।
(घ) एक पर अटूट विश्वास करके उसकी सेवा करने से सब कार्य सफल हो जाते हैं तथा मनुष्य को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता।
(ङ) कमल जल में ही खिलता है; उसके अभाव में कमल का कोई अस्तित्व नहीं होता। इसलिए जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी नहीं कर सकता।
(च) नट कुंडली विद्या में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है।
(छ) जिस मोती का पानी अर्थात उसकी चमक समाप्त हो जाती है, उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता। मनुष्य का पानी उतरने से आशय मनुष्य के मान-सम्मान के समाप्त होने से है। जाता है। चूना पानी के अभाव में घुलता नहीं है और सूखा आटा पानी के बिना पेट भरने के काम नहीं आता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।
(ख) सुनि अठि हैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।
(ग) रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।
(घ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
(ङ) नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
(च) जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
(छ) पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष चून।
उत्तर :
(क) यदि प्रेम संबंधों में एक बार भी टूटन या दरार आ जाती है, तो वे संबंध पुनः पहले की तरह सहज नहीं हो पाते। उनमें कहीं-न-कहीं अविश्वास – रूपी गाँठ पड़ जाती है।
(ख) मानव को अपने जीवन के दुख सबके सामने प्रकट नहीं करने चाहिए, बल्कि उन्हें अपने हृदय में छिपाकर रखने चाहिए। लोग उन्हें जान कर केवल मज़ाक उड़ाते हैं; कोई भी उन दुखों को बाँटता नहीं है।
(ग) अनेक देवी-देवताओं की भक्ति करने के स्थान पर एक ही इष्टदेव के प्रति आस्था रखना अधिक अच्छा होता है। जिस प्रकार जड़ के सींचने से पेड़ से फल की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार अपने एक इष्ट के प्रति ध्यान केंद्रित करने से ही फल की प्राप्ति होती है।
(घ) दोहा – छंद आकार में छोटा और स्वरूप में सरल होता है, पर थोड़े से अक्षरों से ही दीर्घ भावों को प्रकट करने की क्षमता रखता है।
(ङ) हिरण संगीत पर मुग्ध होकर अपना जीवन तक त्याग देते हैं। वे भागने की क्षमता रखते हुए भी भागते नहीं और संगीत के पुरस्कार स्वरूप शिकार बन जाते हैं। इसी प्रकार मनुष्य किसी के गुणों पर रीझकर पुरस्कारस्वरूप धन देते हैं।
(च) जहाँ छोटी चीज़ का उपयोग होता है। वहाँ बड़ी वस्तु किसी काम की नहीं होती और जहाँ बड़ी चीज़ प्रयुक्त होती है, वहाँ छोटी वस्तु बेकार है। सुई जो काम करती है, वह काम तलवार नहीं कर सकती और जिस काम के लिए तलवार है, वह काम सूई नहीं कर सकती। हर चीज़ की अपनी ही उपयोगिता है।
(छ) मोती में यदि चमक न रहे तो वह व्यर्थ है; मनुष्य यदि आत्म-सम्मान के भावों से रहित हो जाए तो बेकार है। सूखा आटा जल के बिना किसी का पेट भरने में सहायक नहीं। मोती, मनुष्य और चून के लिए पानी का अपना विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है –
(क) जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।
(ख) कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।
(ग) पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहिए।
उत्तर :
(क) चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध- नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस ॥
(ख) बिगरी बात बन नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ॥
(ग) रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून ॥

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 4.
उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए –
उदाहरण: कोय – कोई, जे जो
उत्तर :

  • ज्यों – जैसे
  • नहिं – नहीं
  • धनि – धन्य
  • जिय – जीव
  • होय – होना
  • तरवारि – तलवार
  • मूलहिं – मूल को
  • पिआसो – प्यासा
  • आवे – आना
  • ऊबरै – उबरना
  • बिथा – व्यथा
  • परिजाय – पड़ जाती है
  • कछु – कुछ
  • कोय – कोई
  • आखर – अक्षर
  • थोरे – थोड़े
  • माखन – मक्खन
  • सींचिबो – सींचना
  • पिअत – पीना
  • बिगरी – बिगड़ी
  • सहाय – सहायक
  • बिनु – बिना
  • अठिलैहैं – इठलाना

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
‘सुई की जगह तलवार काम नहीं आती’ तथा ‘बिन पानी सब सून’ इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 2.
‘चित्रकूट’ किस राज्य में स्थित है ? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
‘चित्रकूट’ उत्तर प्रदेश में स्थित है।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
नीति संबंधी अन्य कवियों के दोहे / कविता एकत्र कीजिए और उन दोहों / कविताओं को चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi रहीम के दोहे Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रहीम की भाषा पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
रहीम ने अपने काव्य में प्रचलित ब्रज और अवधी भाषा का अधिक प्रयोग किया था। वे तुर्की, अरबी और फ़ारसी के परम विद्वान थे। इसलिए उनकी भाषा पर इन भाषाओं का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। इन्होंने दोहे, सवैये, कवित्त और छप्पयों की रचना ब्रजभाषा में की थी। इनके सभी बरवै अवधी भाषा में हैं। इन्होंने खड़ी बोली की कविता भी इन्होंने की थी। ‘मद नाष्टक’ खड़ी बोली में है। कहीं- कहीं इन्होंने एक ही रचना में आठ-आठ भाषाओं का प्रयोग भी किया है। इनकी कविता में माधुर्य और प्रसाद गुण की अधिकता है। इनकी भाषा भावों का अनुसरण करने वाली है, जिसमें सभी गुणों का वहन करने की क्षमता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 2.
‘गाँठ पड़ना’ से तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रहीम के दोहे में ‘ गाँठ पड़ना’ लाक्षणिक प्रयोग है। इसका तात्पर्य है कि जिस प्रकार प्रयत्न करके जोड़ने के बाद भी धागा पहले जैसा एक सार नहीं होता, उसी प्रकार एक बार झगड़ा हो जाने के बाद मन में झगड़े की खटास कभी नहीं मिट पाती; फिर चाहे विवाद को मिटाने का लाख प्रयत्न भी कर लिया जाए। दोनों पक्षों के हृदय में अविश्वास रूपी गाँठ का भाव अवश्य विद्यमान रहता है।

प्रश्न 3.
‘चटकाय’ में निहित प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘चटकाय’ शब्द प्रयोजनमूलक शब्द है, जो किसी विशेष प्रयोजन को प्रकट करता है। यह ‘झटके से तोड़ना और बिना अधिक सोच-समझ कर तोड़ना’ के भाव को प्रकट करता है। जब कोई व्यक्ति बिना किसी कारण के दूसरे व्यक्ति के साथ लड़ता – झगड़ता है और आपसी संबंधों को एकदम से समाप्त कर देता है, तब वह अधिक सोचता – विचारता नहीं है।

प्रश्न 4.
लोग दूसरों के दुखों को क्यों नहीं बाँटना चाहते ?
उत्तर :
इस संसार में सभी व्यक्ति दुखी हैं। सबके पास अपने-अपने दुख हैं। उन्हें अपने दुख ही बहुत बड़े लगते हैं। कोई भी व्यक्ति किसी दुख का मूल कारण नहीं समझना चाहता और न ही उसके दुख को दूर करने की सोचता है। जब तक किसी भी व्यक्ति को दूसरे का सुख-दुख अपना नहीं लगता, तब तक कोई उन्हें बाँटने को तैयार नहीं होता।

प्रश्न 5.
रहीम ने पेड़ के दृष्टांत से क्या स्पष्ट किया है ?
उत्तर :
रहीम ने पेड़ के दृष्टांत से यह स्पष्ट किया है कि जैसे पेड़ की जड़ में पानी डालने से फल-फूल प्राप्त होते हैं; उसी प्रकार किसी एक इष्टदेव के प्रति भक्ति भाव से सेवा करने से भक्त को सब प्रकार के फलों की प्राप्ति हो जाती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 6.
कवि ने ‘नाद रीझि तन देत मृग’ के माध्यम से किस काव्य इस रूढ़ि के बारे में बताया है ?
उत्तर :
कवि ने ‘नाद रीझि तन देत मृग’ के माध्यम से साहित्य में प्रचलित काव्य रूढ़ि को प्रकट किया है कि हिरण संगीत की मधुर ध्वनि पर मुग्ध हो जाते हैं और उस समय इतने तल्लीन हो जाते हैं कि शिकारी के सामने होने पर भी भागते नहीं हैं। शिकारी उनकी इस कमज़ोरी को जानते हैं और शिकार करते समय इस विधि को अपनाते हैं। हिरण अपनी इस कमज़ोरी के कारण अपने प्राण खो देते हैं

प्रश्न 7.
कवि दोहे में प्रयुक्त ‘लघु’ शब्द से क्या भाव प्रकट करना चाहता है ?
उत्तर :
‘लघु’ का शाब्दिक अर्थ है – ‘छोटा’। कोई भी व्यक्ति आयु, जाति, पद, शक्ति, साहस, धन, बुद्धि आदि किसी भी प्रकार से दूसरों की तुलना में छोटा हो सकता है। इसके माध्यम से कवि यह प्रकट करना चाहता है कि कभी भी किसी को छोटा मानकर उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इस संसार में सभी अपना-अपना महत्व रखते हैं और सभी की अपनी-अपनी उपयोगिता है। कई बार ऐसा होता है कि जो काम बड़े-बड़े लोग नहीं कर पाते, उस काम को छोटे समझे जाने वाले लोग सरलता से कर देते हैं।

प्रश्न 8.
‘जलज’ शब्द के माध्यम से कवि मनुष्य को क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
‘जलज’ शब्द से अभिप्राय है- ‘जल से उत्पन्न होने वाला अर्थात कमल’। कमल का फूल सूर्य की उपस्थिति में जल में उगता है; लेकिन जब तालाब का जल सूख जाता है, उस समय सूर्य की किरणों से कमल को सूखने से कोई नहीं बचा सकता। कवि मनुष्य से कहना चाहता है कि मुसीबत के समय अपनी संपत्ति ही काम आती है, कोई किसी का सहायक नहीं बनता। कवि के अनुसार परिस्थितियों के अनुकूल होने या न होने से अधिक साधन के न होने का अधिक प्रभाव पड़ता है। संचित धन की कमी अनुकूल परिस्थितियों को भी प्रतिकूल बना देती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 9.
मोती का मूल्य कब तक होता है और कवि इसके माध्यम से क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
मोती का मूल्य तब तक होता है, जब तक उस पर चमक होती है। वास्तव में मोती की गुणवत्ता उसके बाहरी भाग पर विद्यमान चमक है। जब चमक समाप्त हो जाती है, तो वह मूल्यहीन हो जाता है। कवि मोती के माध्यम से मनुष्य को यह शिक्षा देना चाहता है कि उसे सदा अपने सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन महत्वहीन हो जाता है।

प्रश्न 10.
रहीम के दोहों की प्रसिद्धि का क्या कारण है ?
उत्तर :
रहीम के दोहे नीतिगत ज्ञान तथा मानव कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होने के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। रहीम ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों की सुप्त चेतना को जगाना चाहा है। उन्होंने लोगों में नई चेतना तथा जागृति लाने का भरसक प्रयास किया है। रहीम के दोहों में निहित संदेश लोगों के मन को झकझोर कर रख देता है।

प्रश्न 11.
रहीम ने मानव को अपना दुख मन में ही छिपाकर रखने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर :
रहीम ने मानव को समझाते हुए कहा है कि मनुष्य को अपने मन की पीड़ा तथा दर्द को सदैव अपने मन में ही छिपाकर रखना चाहिए। उसे यह पीड़ा जग-जाहिर नहीं करनी चाहिए। संसार में लोग एक-दूसरे की पीड़ा देखकर उसकी सहायता करने के स्थान पर उसका मज़ाक ही उड़ाते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 12.
कवि ने किसी एक देव को इष्टदेव मानने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि ने मानव को अनेक देवी-देवताओं की पूजा-आराधना करने की बजाय एक देव की पूजा करने तथा उसे इष्टदेव मानकर सेवा करने की सलाह दी है। ऐसा करने से मानव मन अलग-अलग दिशाओं की ओर नहीं दौड़ता। वह शांत मन होकर एक ईश्वर की पूजा करता है, तो उसके सभी कार्य सफल होते हैं।

प्रश्न 13.
कवि रहीम ने अपने दोहों में सुख-दुख के विषय में क्या कहा है ?
उत्तर :
कवि रहीम ने अपने दोहों में सुख-दुख के विषय में कहा है कि सुख-दुख सभी के जीवन के अंग हैं। ये सभी के जीवन में आते-जाते हैं। समय परिवर्तनशील है। जीवन में अनेक बार ऐसा समय आता है, जब मानव को ऐसे स्थानों पर आना-जाना पड़ता है जो उसके लिए अनुकूल नहीं होते। सुख-दुख समयानुसार व्यक्ति की परिस्थितियों को बदल देते हैं।

प्रश्न 14.
रहीम के अनुसार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की शरण में कब जाता है ?
उत्तर :
रहीम के अनुसार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की शरण में अपने कष्टों को दूर करने के लिए जाता है। विपरीत परिस्थितियों में उसे ऐसी वस्तुओं एवं स्थानों को भी अपनाना पड़ता है, जिसके लिए वह स्वयं को अनुकूल नहीं मानता। अतीत में भगवान राम को भी अयोध्या छोड़कर जंगलों के कष्टों एवं दुखों को भोगना पड़ा था।

प्रश्न 15.
रहीम के दोहे गागर में सागर भरने का साहस रखते हैं, कैसे ?
उत्तर :
रहीम एक नीति परख कवि हैं। इनके दोहे सीधे दिल और दिमाग पर प्रहार करते हैं। इनके दोहों में शब्द तो कम होते हैं, किंतु उन शब्दों की चोट और घाव अत्यंत गहरे होते हैं। इनके दोहों में निहित संदेश अत्यंत गंभीर और मानव कल्याण से ओत-प्रोत होते हैं। कवि ने छोटे-छोटे छंदों के माध्यम से मानव-जीवन की गंभीर समस्याओं को उठाने तथा उनके निवारण का तरीका बताया है। उनके दोहे कम शब्दों में भी मनुष्य को ज्ञान का अथाह सागर प्रदान करते हैं। इसलिए रहीम के दोहों को गागर में सागर की उपमा दी गई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 16.
कवि ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों को सोच-समझकर बोलने के लिए क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने अपने दोहों में लोगों को सोच-समझकर बोलने की शिक्षा देते हुए कहा है कि हमें बहुत विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई बात मुँह से बाहर निकालनी चाहिए। यदि एक बार मुख से निकली हुई बात से कोई हानि हो जाती है, तो अथाह प्रयास करने पर भी वह बात ठीक नहीं हो पाती। बिना सोचे-समझे कहे गए शब्द ऐसे तीर की भाँति होते हैं, जिन्हें लौटाया नहीं जा सकता। इसलिए हमें सोच-समझकर बोलना चाहिए।

रहीम के दोहे Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – अब्दुर्रहीम खानखाना अर्थात रहीम का जन्म सन् 1556 ई० में लाहौर में हुआ था। बचपन से ही इनका मुगल दरबार से संबंध रहा। इसी कारण रहीम विद्या – व्यसनी हो गए। इन्होंने संस्कृत, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं में अच्छी योग्यता प्राप्त की थी। युवावस्था में अकबर के दरबार में सेनापति के पद को सुशोभित करते हुए भी रहीम कविता करते थे। रहीम दानी स्वभाव के व्यक्ति थे, अतः याचक को यथेच्छ दान देकर संतुष्ट करना अपना कर्तव्य समझते थे। ये तुलसीदास के परम मित्र थे। जहाँगीर के समय में इनकी दशा बिगड़ गई थी। इनकी संपत्ति को राज्याधिकार में लेकर इन्हें पदच्युत कर दिया गया था। सन् 1626 ई० में इनकी मृत्यु हुई थी।

रचनाएँ – रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, श्रृंगार सोरठा, रहीम सतसई, श्रृंगार सतसई, रहीम रत्नावली, भाषिक वर्ण भेद, सदनाष्टक तथा रास पंचाध्यायी इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। इन्हें रहीम ग्रंथावली में संकलित किया गया है।

काव्य की विशेषताएँ – रहीम की कविता का विषय श्रृंगार, नीति और प्रेम है। इनका जीवन – अनुभव बहुत अधिक था। इस कारण इन्होंने जो कुछ लिखा, वह निजी अनुभव के आधार पर लिखा। इसलिए उसमें पाठक को प्रभावित करने की अपूर्व शक्ति है। इन्होंने केवल कल्पना पर उड़ने का प्रयत्न कहीं नहीं किया। जहाँ कहीं कल्पना को स्वीकार किया, वहाँ यथार्थ को भी साथ रखा गया है। इनकी अनेक सूक्तियाँ और नीति-संबंधी दोहे आज भी मानव का पथ-प्रदर्शन करते हैं। आपके कृष्ण-संबंधी दोहे भी सुंदर हैं और रहीम के हृदय की विशालता के परिचायक हैं।

रहीम का अवधी और ब्रजभाषा दोनों पर ही समान अधिकार था। कविता के लिए इन्होंने सामान्य ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया। दोहों के अतिरिक्त इन्होंने कवित्त, सवैये और सोरठे भी लिखे हैं। इनकी प्रसिद्धि अपनी दोहावली के आधार पर ही है। इन्होंने अपनी कविता में लोकोक्तियों और लोक – प्रचलित उदाहरणों के आधार पर विषय को सरल तथा सुगम बनाने का यत्न किया है। अपनी भावुकतापूर्ण और अनुभव पर आधारित उक्तियों के कारण हिंदी – साहित्य दोहे में रहीम का विशेष स्थान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

दोहों का सार :

रहीम के नीति के दोहे अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अनुभव के आधार पर जिन तथ्यों का संग्रह किया है, वे इन दोहों में प्रस्तुत किए गए हैं। उन्होंने मानव जीवन के लिए उपयोगी सभी बातों का बड़ा मार्मिक वर्णन किया है। वे नीति-सिद्ध कवि थे। उनके काव्य में भक्ति, नीति तथा वैराग्य की त्रिवेणी बह रही है। उनके सूक्तिपरक दोहे भी अत्यधिक प्रभावशाली बन गए हैं। रहीम ने अपने दोहों के माध्यम से उन सब बातों की निंदा की है, जो मानव की प्रतिष्ठा में बाधक होती हैं। उनके दोहे अपनी सरलता, मधुरता, उपदेशात्मकता, सहजता एवं कलात्मकता के कारण हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि बन गए हैं।

व्याख्या –

1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय ॥

शब्दार्थ : चटकाय – झटके से। परि – पड़ना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने प्रेम-संबंधों को सदा बनाकर रखने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि रहीम कहते हैं कि हमें प्रेम-रूपी धागे को चटकाकर नहीं तोड़ना चाहिए, क्योंकि टूटे हुए धागे को फिर से जोड़ा नहीं जा सकता। यदि जोड़ते भी हैं, तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। इसी प्रकार आपसी प्रेम-संबंध भी यदि टूट जाएँ, तो वे फिर जुड़ नहीं पाते। यदि जुड़ भी जाएँ, तो उनमें पहले जैसी मधुरता नहीं रहती।

2. रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥

शब्दार्थ : बिथा – व्यथा, दुख। गोय – छिपाकर। अठि हैं – मज़ाक उड़ाना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने यह समझाया है कि कभी भी किसी को अपने मन का दुख नहीं बताना चाहिए।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि अपने मन का दुख-दर्द मन में ही छिपाकर रखना चाहिए, क्योंकि सब तुम्हारी बातें सुनकर तुम्हारा मज़ाक ही उड़ाएँगे; कोई तुम्हारा दुख नहीं बाँटेगा। भाव है कि अपने हृदय के भावों को जगजाहिर मत करो। कोई किसी के दुखों को बाँटता नहीं है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

3. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय ॥

शब्दार्थ : मूलहिं – जड़ को। अघाय – संतुष्ट होना, तृप्त होना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि किसी एक को अपना इष्टदेव मानने की प्रेरणा देता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि किसी एक इष्टदेव की सेवा करने से सभी कार्य सफल हो जाते हैं परंतु कई लोगों की सेवा करने से सबकुछ नष्ट हो जाता है। रहीम कहते हैं कि वृक्ष की जड़ को सींचने से वृक्ष पर खूब फल उगते हैं, जिन्हें खाकर मनुष्य तृप्त हो जाता है। इसी प्रकार से एक इष्ट को साधने से सब कार्य सफल होते हैं।

4. चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध- नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस ॥

शब्दार्थ : अवध – अयोध्या। रमि – रहना, बसना। नरसे – राजा। बिपदा – मुसीबत।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने चित्रकूट की महिमा का वर्णन किया है।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि अयोध्या नरेश श्री रामचंद्र जी चित्रकूट में निवास कर रहे हैं। चित्रकूट ऐसा पवित्र स्थान है कि कष्ट आने पर सभी यहाँ चले आते हैं। जिस पर मुसीबत पड़ती है, वह अपने कष्टों को दूर करने के लिए इस क्षेत्र में चला आता है।

5. दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं ॥

शब्दार्थ : दीरघ – दीर्घ, विशाल, गहरे। अरथ – अर्थ, भाव। आखर अक्षर। थोरे थोड़े, कम। नट – अभिनेता, बाजीगर। कुंडली – साँप के बैठने की गोलाकार मुद्रा।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। कवि ने इस छोटे-से छंद में छिपे अर्थ- गांभीर्य की ओर संकेत किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि दोहे जैसे छोटे-से छंद में अक्षर तो बहुत कम होते हैं, परंतु उसमें अर्थ बहुत अधिक होता है। जैसे बाजीगर कुंडली मारकर और अपने को समेटकर ऊँचे-से-ऊँचे स्थान पर कूदकर चढ़ जाता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

6. धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय ॥

शब्दार्थ : पंक – कीचड़। लघु – छोटे। जिय – जीत। अघाय – तृप्त हो जाना। उदधि – सागर। पिआसो – प्यासा।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है कि कई बार छोटे-से भी बड़े-बड़े काम बन जाते हैं, जबकि बड़ों से छोटा काम भी नहीं बनता।

व्याख्या : कवि कहता है कि कीचड़ से भरा वह जल भी प्रशंसा करने योग्य है, जिसे पीकर छोटे-छोटे जीव अपनी प्यास बुझाकर तृप्त हो जाते हैं। इसके विपरीत उस सागर की प्रशंसा कौन करेगा, जिसके पास जाकर भी लोग प्यासे रह जाते हैं; क्योंकि सागर का जल खारा होने के कारण पीने योग्य नहीं होता।

7. नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत ॥

शब्दार्थ : नाद – ध्वनि, संगीत। रीझि – प्रसन्न होकर, मोहित होकर। मृग – हिरन। नर – मनुष्य। हेत – उद्देश्य, कारण।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने किसी के कार्य से प्रसन्न होने पर उसे समुचित पुरस्कार देने का संदेश दिया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि कर्णप्रिय ध्वनि अथवा संगीत सुनकर मृग अपने प्राण तक न्योछावर कर देता है, लोग भी किसी के कार्य से प्रसन्न होकर उसे कुछ न कुछ देते हैं। रहीम उस व्यक्ति को पशु से भी अधिक निम्न श्रेणी का मानते हैं, जो प्रसन्न होने पर भी किसी को कुछ नहीं देता।

8. बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

शब्दार्थ : बिगरी – बिगड़ी हुई। मथे – मथने से।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने सदा सोच-समझकर बोलने पर बल दिया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि मनुष्य को सोच-विचार कर ही कोई बात मुँह से निकालनी चाहिए। जैसे फटे हुए दूध को मथने से उसमें से मक्खन नहीं निकाला जा सकता, उसी तरह यदि एक बार कही हुई किसी बात से बिगाड़ हो जाता है, तो फिर चाहे कोई लाख प्रयत्न भी करे बिगड़ी हुई बात बन नहीं सकती।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

9. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि ॥

शब्दार्थ : बड़ेन – बड़े, धनवान तथा प्रतिष्ठित। लघु – छोटे, निर्धन। तरवारि – तलवार।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में रहीम ने यह स्पष्ट किया है कि बड़ी वस्तुओं और बड़े प्राणियों के साथ-साथ छोटी वस्तुओं और छोटे प्राणियों का भी महत्व होता है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि बड़े लोगों का संपर्क पाकर छोटों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए; क्योंकि जहाँ छोटी-सी सुई काम करती है, वहाँ तलवार काम नहीं आ सकती। भाव है कि छोटे-बड़े सभी महत्वपूर्ण हैं और सभी की अपनी-अपनी उपयोगिता है, इसलिए किसी की भी अवहेलना नहीं करनी चाहिए।

10. रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय ॥

शब्दार्थ : बिपति – मुसीबत। जलज – कमल। रवि – सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने यह संदेश दिया है कि कठिनाई में सदा अपनी संपत्ति ही काम आती है।

व्याख्या : कवि रहीम कहते हैं कि जैसे पानी के बिना कमल को सूर्य भी नहीं बचा सकता, उसी तरह अपनी संपत्ति के बिना मुसीबत में कोई भी सहायता नहीं करता, विपत्ति के समय व्यक्ति को अपने पास संचित धन ही सहायता देता है। कष्ट के समय कोई किसी की सहायता नहीं करता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

11. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून ॥

शब्दार्थ : पानी – (i) स्वाभिमान, इज्ज़त (ii) चमक (iii) जल। ऊबरे – महत्व पाना। मानुष – मनुष्य।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहे के रचयिता रहीम हैं। इसमें उन्होंने पानी के विभिन्न अर्थों के माध्यम से अपने काव्य में चमत्कार उत्पन्न किया है।

व्याख्या : रहीम का कथन है कि मनुष्य को अपने मान-सम्मान का सदैव ध्यान रखना चाहिए। मान-सम्मान के अभाव में मनुष्य उसी प्रकार महत्वहीन हो जाता है, जिस प्रकार चमक रहित मोती तथा बिना जल के आटे का महत्व नहीं होता।