JAC Class 10 Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन

Jharkhand Board JAC Class 10 Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन

Jharkhand Board Class 10 Science प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन Textbook Questions and Answers

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या-314)

प्रश्न 1.
अपने घर को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए आप उसमें कौन-कौन से परिवर्तन सुझा सकते हैं?
उत्तर:
अपने घर को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए हम तीन R का प्रयोग करेंगे-
1. कम उपयोग (Reduce) – इसका अर्थ है कि आपको कम से कम वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। जैसे- बिजली के पंखे एवं बल्ब का स्विच बंद कर देना, खराब नल की मरम्मत करना, ताकि जल व्यर्थ न टपके आदि।

2. पुनः चक्रण (Recycle ) – इसका अर्थ है कि आपको प्लास्टिक, कागज, काँच, धातु की वस्तुओं को कचरे के साथ नहीं फेंकना चाहिए, बल्कि पुनः चक्रण के लिए देना चाहिए।

3. पुन: उपयोग ( Reuse) – यह पुनः चक्रण से भी अच्छा तरीका है क्योंकि उसमें भी कुछ ऊर्जा व्यय होती है। यह एक तरीका है, जिसमें किसी वस्तु का उपयोग बार-बार किया जाता है। जैसे-लिफाफों को फेंकने की अपेक्षा फिर से उपयोग करना, प्लास्टिक की बोतलें, डिब्बों का उपयोग रसोई में करना, खराब बाल्टी गमला बनाना, बोतलों तथा डिब्बों से कलमदान एवं सजावटी सामान बनाना इत्यादि।

उपर्युक्त तरीकों के अलावा भी कुछ तरीके निम्न हैं-

  • सौर ऊर्जा का उपयोग करना; जैसे- सौर जल ऊष्मक, सौर कुकर, सौर पैनल इत्यादि।
  • बल्ब के स्थान पर CFLs तथा LED का उपयोग करना चाहिए।
  • अपने घर के आस-पास जल संग्रह नहीं होने दें तथा कूड़ा-कचरा सड़क के किनारे न फेंकें।

प्रश्न 2.
क्या आप अपने विद्यालय में कुछ परिवर्तन सुझा सकते हैं जिनसे इसे पर्यानुकूलित बनाया जा सके।
उत्तर:
प्रश्न 1 के उपर्युक्त तरीकों को अपनाकर अपने विद्यालय को भी पर्यानुकूलित बना सकते हैं।

प्रश्न 3.
इस अध्याय में हमने देखा कि जब हम वन एवं वन्य जन्तुओं की बात करते हैं तो चार मुख्य दावेदार सामने आते हैं। इनमें से किसे वन उत्पाद प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिए जा सकते हैं? आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
उत्तर:
इन चार दावेदारों जैसे, वन के अंदर एवं इसके निकट रहने वाले लोगों, सरकार का वन विभाग, उद्योगपति तथा वन्य जीवन एवं प्रकृति प्रेमी में मेरे विचार से उत्पादों के प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिये जाने के लिए स्थानीय उपयुक्त हैं। क्योंकि स्थानीय लोग भवन का संपोषित तरीके से उपयोग करते हैं। सदियों से ये स्थानीय लोग इन वनों का उपयोग करते आ रहे हैं साथ ही इन्होंने ऐसी पद्धतियों का भी विकास किया है जिससे संपोषण रहा है तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए उत्पाद बचे रहेंगे। इसके अतिरिक्त गडरियों द्वारा वनों के पारम्परिक उपयोग ने वन के पर्यावरण संतुलन को भी सुनिश्चित किया है।

दूसरी तरफ वन के प्रबंधन से स्थानीय लोगों को दूर रखने का हानिकारक प्रभाव वन की क्षति के रूप में सामने आ सकता है। वास्तव में वन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा कि यह पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो तथा नियंत्रित दोहन का फायदा स्थानीय लोगों को प्राप्त हो।

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प्रश्न 4.
अकेले व्यक्ति के रूप में आप निम्न के प्रबंधन में क्या योगदान दे सकते हैं- (a) वन एवं वन्य जंतु (b) जल संसाधन (c) कोयला एवं पेट्रोलियम?
उत्तर:
(a) वन एवं वन्य जंतु स्थानीय लोगों की भागीदारी के बिना बना के बिना वनों का प्रबंधन संभव नहीं है। इसका एक सुंदर उदाहरण अराबारी वन क्षेत्र है जहाँ एक बड़े क्षेत्र में वनों का का पुनर्भरण संभव सका। अतः मैं लोगों की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करना चाहूँगा। मैं सम्पोषित तरीके संसाधन के समान वितरण पर जोर देना चाहूँगा ताकि इसका फायदा सिर्फ मुट्ठी भर अमीर एवं शक्तिशाली लोगों को ही प्राप्त न हो।

(b) जल संसाधन – अपने दैनिक जीवन में हम जाने- अनजाने पानी की एक बहुत मात्रा का अपव्यय करते हैं जिसे निश्चित रूप से रोका जाना चाहिए। मैं यह सुनिश्चित करना चाहूँगा कि मुझमें ऐसी आदतों का विकास हो जिसके द्वारा पानी बचाना संभव हो सके। इसके अतिरिक्त किसी जल संभर तकनीकी की सहायता से भी जल को संरक्षित किया जा सकता है।

(c) कोयला एवं पेट्रोलियम – वर्तमान में ये ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। इन्हें हम कई तरीकों से बचा सकते हैं। उदाहरण के दाहरण के लिए-

  • LED बल्बों ट्यूबलाईट का उपयोग करके।
  • अनावश्यक बल्ब तथा पंखों का स्विच बंद करके।
  • सौर उपकरणों का उपयोग करके।
  • वाहनों की जगह पैदल अथवा साइकिल द्वारा छोटी दूरियाँ तय करके।
  • यदि हम वाहन का प्रयोग करते हैं, तो जब हम रेड लाइट पर रुकते हैं तो हमें अपने वाहन के इंजन को बंद कर देना चाहिए।
  • लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करके।
  • वाहनों के टायरों में हवा का उपयुक्त दबाव रखकर।

प्रश्न 5.
अकेले व्यक्ति के रूप में आप विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत कम करने के लिए क्या कर सकते हैं?
उत्तर:
विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत निम्नलिखित तरीकों से कम की जा सकती है-

  • अनावश्यक बल्ब तथा पंखे बंद करके हम बिजली की बचत कर सकते हैं।
  • सामान्य बल्ब की जगह हम LED बल्बों का उपयोग कर सकते हैं।
  • लिफ्ट की जगह सीढ़ी का इस्तेमाल करके हम बिजली की बचत कर सकते हैं।
  • छोटी दूरियाँ तय करने के लिए हम वाहनों की जगह पैदल अथवा साइकिल का उपयोग करके पेट्रोल की बचत कर सकते हैं।
  • जब गाड़ियाँ रेड लाइट पर खड़ी होती हैं तो उनका इंजन बंद करके हम पेट्रोल की बचत कर सकते हैं।
  • टपकने वाले नलों की मरम्मत कराकर हम पानी की बचत कर सकते हैं।
  • हम खाने को व्यर्थ में न फेंककर भोजन की बचत कर सकते हैं।

प्रश्न 6.
निम्न से सम्बन्धित ऐसे पाँच कार्य लिखिए जो आपने पिछले एक सप्ताह में किए हैं-
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है।
उत्तर:
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण-

  • अनावश्यक पंखे एवं बल्ब को बंद करके हमने बिजली बचाई।
  • वाहन की जगह पैदल चलकर हमने पेट्रोल बचाया।
  • हमने टपकने वाले नल की मरम्मत कराकर पानी बचाया।
  • हमने लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल क बिजली बचाई।
  • हमने चटनियों के खाली बोतल का उपयोग मसाले रखने के लिए किया।

(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है-

  • दाढ़ी बनाते समय हमने पानी का अपव्यय किया है।
  • मैं सो गया किंतु टेलीविजन चलता रहा।
  • कमरे को गर्म रखने के लिए बिजली उपकरणों का उपयोग किया।
  • ट्यूबलाइट की जगह बल्ब का उपयोग किया।
  • अपना भोजन फेंका।

प्रश्न 7.
इस अध्याय में उठाई गई समस्याओं के आधार पर आप अपनी जीवन शैली में क्या परिवर्तन लाना चाहेंगे जिससे हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिल सके?
उत्तर:
हम अपनी जीवन शैली में तीन ‘Rs’ की संकल्पना को लागू करना चाहेंगे। ये तीन ‘Rs’ हैं-कम करना, पुनः चक्रण, पुन: उपयोग ये हमें संसाधनों के संपोषित उपयोग में हमारी मदद करते हैं।

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पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या-303)

प्रश्न 1.
पर्यावरण मित्र बनने के लिए आप अपनी आदतों में कौन-से परिवर्तन ला सकते हैं?
उत्तर:

  • ऊर्जा का न्यूनतम उपयोग करें, जब आवश्यकता न हो तो कूलर, बल्ब तथा पंखे ऑफ कर दें।
  • जैव निम्नीकरणीय और अजैव निम्नीकरणीय कचरे को अलग-अलग कूड़ेदान में डालें।
  • जहाँ तक संभव हो पैदल या साइकिल का प्रयोग करें।
  • पेट्रोल, डीजल के बजाए C. N. G. का प्रयोग कीजिए।
  • ईंधन के रूप में लकड़ी, कोयला व केरोसिन के बजाए L.P.G. का प्रयोग करें।
  • जैव निम्नीकरणीय कचरे को जलाने के बजाए मिट्टी में दबा करें।
  • पॉलिथीन बैग के स्थान पर कपड़े या जूट के बैग का प्रयोग करके।

प्रश्न 2.
संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य के परियोजना के क्या लाभ हो सकते हैं?
उत्तर:
संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि वाली परियोजनाएँ वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। इससे तत्काल भोजन, पानी तथा ऊर्जा की पूर्ति होती है, परन्तु यह परियोजना पर्यावरण पहुँचा सकती है।

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प्रश्न 3.
यह लाभ, लम्बी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं के लाभ से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
लम्बी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं का उद्देश्य संपोषित विकास तथा पर्यावरण संरक्षण की संकल्पना पर आधारित है। संपोषित विकास में मनुष्य की वर्तमान आधारभूत आवश्यकताओं के साथ-साथ भावी संतति के लिए संसाधनों का संरक्षण भी निहित होता है। प्रदूषण नियंत्रण पर भी ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न 4.
क्या आपके विचार में संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए? संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कौन-कौन सी ताकतें कार्य कर सकती हैं?
उत्तर:

  • संसाधनों का वितरण सभी वर्गों में समान रूप से होना चाहिए।
  • अमीर और शक्तिशाली लोग समान वितरण के विरुद्ध हो सकते हैं।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या-308)

प्रश्न 1.
हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
उत्तर:
वनों का संरक्षण आवश्यक है क्योंकि यह हमारे लिए अनेक प्रकार से उपयोगी हैं-

  • वनों से हमें इमारती लकड़ी (टिम्बर), गोंद, कागज, लाख, दवाई तथा खेल के उद्योगों को कच्चे माल प्राप्त होते हैं।
  • वन मृदा अपरदन (soil erosion) तथा बाढ़ (flood) को रोकने में सहायता करता है।
  • जलचक्र बनाए रखने तथा वर्षा कराने में वन की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
  • वन प्राकृतिक रूप से जंगली जानवरों, पक्षियों आदि को निवास स्थान (habital) प्रदान करता है।

वन्य जीव संरक्षण आवश्यक है क्योंकि-

  • पर्यावरण संतुलन कायम करता है।
  • जंगली मांसाहारी जानवर शाकाहारी जानवरों को खाते हैं, जिससे घास एवं छोटे पौधों का अस्तित्व कायम रहता है तथा वन एवं वनस्पति के रहने से पर्याप्त वर्षा होती है।
  • जंगलों साफ रखने तथा बीजों को एक जगह में सहायता करता है, जिससे पौधे वृद्धि करते हैं।
  • घास चरने से भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है।

प्रश्न 2.
सरंक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर:
वन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा कि यह पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो। दूसरे शब्दों में जब पर्यावरण अथवा वन संरक्षित किए जाएँ, उनके सुनियोजित उपयोग का लाभ स्थानीय लोगों को मिलना चाहिए। यह विकेन्द्रीकरण की एक ऐसी व्यवस्था है जिससे आर्थिक विकास एवं पारिस्थितिक संरक्षण दोनों साथ-साथ चल सकते हैं।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 311)

प्रश्न 1.
अपने निवास क्षेत्र के आस-पास जल संग्रहण की परम्परागत पद्धति का पता लगाइए।
उत्तर:
भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों में जल संग्रहण की पद्धति (तरीका) भिन्न-भिन्न होती है। यहाँ कुछ राज्यों की पद्धतियाँ निम्न हैं-

1. महाराष्ट्र बंधारस एवं तीले
2. बिहार अहार तथा पोइने
3. हिमाचल प्रदेश कुल्ह
4. दिल्ली बावड़ी तथा तालाब
5. केरल सुरंगम
6. कर्नाटक कट्टा
7. MP और UP बंधिस
8. राजस्थान खादिन, बड़े पात्र एवं नाड़ी
9. जम्मू के काँदी क्षेत्र में तालाब
10. तमिलनाडु एरिस (Tank)

प्रश्न 2.
इस पद्धति की पेयजल व्यवस्था (पर्वतीय क्षेत्रों में, मैदानी क्षेत्र अथवा पठार क्षेत्र) से तुलना कीजिए।
उत्तर:
हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में नहर सिंचाई की स्थानीय प्रणाली का विकास हुआ है। इन्हें ‘कुल्ह’ कहा जाता है। झरनों से बहने वाले जल को मानव-निर्मित छोटी-छोटी नालियों से पहाड़ी पर स्थित निचले गाँवों तक ले जाया जाता है। इन कुल्ह से प्राप्त जल का प्रबंधन क्षेत्र के सभी गाँवों की सहमति किया जाता था। कृषि के मौसम में जल सर्वप्रथम दूरस्थ गाँव को दिया जाता था फिर उत्तरोत्तर पर स्थित गाँव उस जल का उपयोग करते थे।

हरियाणा में बावड़ी, राजस्थान राजस्थान खादिन, बड़े पात्र तथा नाड़ी, महाराष्ट्र के बंधारस एवं ताल, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में बंधिस, बिहार में अहार तथा पाइन, जम्मू के काँदी क्षेत्र में तालाब तथा तमिलनाडु में एरिस, केरल सुरंगम, कर्नाट कट्टा इत्यादि प्राचीन जल संग्रहण तथा जल परिवहन संरचनाएँ आज भी उपयोग में हैं।

प्रश्न 3.
अपने क्षेत्र में जल के स्रोत का पता लगाइए। क्या इस स्त्रोत से प्राप्त जल उस क्षेत्र के सभी निवासियों को उपलब्ध है?
उत्तर:
हमारे क्षेत्र में जल का स्रोत (दिल्ली क्षेत्र में) गंगा और यमुना नदियों का जल है। इस जल को म्युनिसिपल कमेटी द्वारा पाइप लाइनों की सहायता से लोगों के घरों तक पहुँचाया जाता है। हाँ, इस स्रोत से उपलब्ध जल हमारे क्षेत्र के सभी निवासियों को उपलब्ध है।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

क्रिया-कलाप – 16.1

प्रश्न 1.
कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के विनियमन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक का पता लगाइए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ की देख-रेख में क्योटो प्रोटोकॉल में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के नियमन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों की चर्चा की गई है। वातावरण में में होने सम्बन्धित यह यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्रसंघ इस समझौते के वाले परिवर्तनों की देखरेख में में आयोजित किया गया तहत गया था। इस 1 औद्योगिक राष्ट्र राष्ट्रों को 1990 में अपने कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य हरित गैस उत्सर्जन के स्तर में 5.29% की कमी लाने के लिए कहा गया है। ऑस्ट्रेलिया एवं आइसलैंड के के लिए र क्रमश: 8% तथा 10% के राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं।

स्पष्टत: क्योटो प्रोटोकॉल के अधिकतर उपबंध विकसित देशों पर लागू होते हैं। ये समझौते जापान में क्योटो शहर में दिसम्बर, 1997 में हुआ था तथा 16 फरवरी, 2005 को इसे लागू किया गया था। दिसम्बर 2006 तक 169 देशों तथा सरकारी प्रतिष्ठानों ने इस समझौते का अनुमोदन कर दिया था। हालाँकि अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ अपवाद भी हैं। चीन एवं भारत जैसे देश जिन्होंने इसका अनुमोदन कर दिया है, उन्हें वर्तमान समझौते के तहत अपने CO2 उत्सर्जन को मात्रा में कोई कटौती नहीं करनी होगी।

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प्रश्न 2.
इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए कि हम इन मानकों को प्राप्त करने हेतु किस प्रकार सहयोग कर सकते हैं?
उत्तर:
हम CO2 के उत्सर्जन को कई तरीकों से रोक सकते हैं। जैसे- किसी वाहन के इस्तेमाल की जगह पैदल चलना या साइकिल का उपयोग करना, लालबत्ती पर वाहनों के इंजन को बंद रखना, बल्ब की जगह कम खपत वाली LED बल्बों लाईट का उपयोग करना, लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करना, जाड़े के दिनों में गर्म रखने वाले उपकरणों का कम उपयोग करना, आदि ये उपाय ऊर्जा व्यय को निश्चित रूप से कम करेंगे तथा अंततः इसका प्रभाव ऊर्जागृहों द्वारा उत्सर्जित होने वाले CO2 की मात्रा पर पड़ेगा। लोगों को CO2 के आधिक्य मात्रा से होने वाली समस्याओं से अधिक संख्या में उनकी सहभागिता सुनिश्चित की जा सके।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

क्रिया-कलाप – 16.2

प्रश्न 1.
ऐसे अनेक संगठन हैं जो पर्यावरण के प्रति जागरुकता फैलाने में लगे हैं। वे ऐसे क्रिया-कलापों का भी प्रोत्साहन करते हैं जिससे हमारे पर्यावरण एवं प्राकृतिक संरक्षण को बढ़ावा मिलता है। अपने आसपास के क्षेत्र / शहर / कस्बे / गाँव में कार्य करने वाले संगठनों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
दिल्ली में ऐसे कई संगठन हैं जो हमारे पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र (CSE)
  • भारतीय वन्य जीवन ट्रस्ट (WTI)
  • विकास विकल्प
  • कल्पवृक्ष
  • सृष्टि
  • ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (TERI)
  • वातावरण
  • इंडिया हैबिटेट सेंटर (IHC)

प्रश्न 2.
पता लगाइए कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आप क्या योगदान दे सकते हैं?
उत्तर:
तीन ‘R’ अर्थात् कम करना (Reduce), पुन: चक्रण (Recycle) तथा पुन: उपयोग ( Reuse) पर कार्य की शुरुआत करके इस समस्या को प्रभावी रूप से कम करने योगदान दे सकते हैं। विद्युत, जल, कोयला, पेट्रोलियम आदि की बचत करके भी ‘इस समस्या को कम अपना किया जा सकता है। नई वस्तुओं के निर्माण के लिए उपलब्ध संसाधनों का दोहन करने की जगह प्लास्टिक, कागज, काँच तथा धातुओं से बनी वस्तुओं का पुनः चक्रण तथा पुनः उपयोग भी इस समस्या से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

क्रिया-कलाप – 16.3

प्रश्न 1.
सासूचक (Universal indicator) की सहायता अपने घर में आपूर्त पानी का pH ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
सार्वसूचक द्वारा पानी का pH ज्ञात करना- वसूचक एक pH सूचक है जो pH के विभिन्न परासों विलयनों में रखे जाने पर विभिन्न रंग प्रदर्शित करता है।

पानी के कुछ नमूने अलग-अलग परखनलियों में लिए जाते हैं। इन परखनलियों में ड्रॉपर की सहायता से सार्वसूचक की कुछ बूँदें डाली जाती हैं। परखनली में रखे पानी के रंग में आया परिवर्तन, उनमें pH की जानकारी देता है।

रंग तथा निष्कर्ष –

  • लाल – अत्यधिक अम्लीय
  • नारंगी / पीला – अम्लीय
  • हरा – उदासीन
  • नीला – भस्मीय या क्षारीय
  • बैंगनी – अत्यधिक भस्मीय या क्षारीय

लिटमस पत्र द्वारा pH ज्ञात करना – पानी में कुछ नमूने अलग-अलग बीकरों में लिये जाते हैं तथा इनमें लिटमस कागज डाला जाता है। पत्र के में आने वाले परिवर्तनों से नमूनों की प्रकृति ज्ञात की जा सकती है। यदि रंग में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो वह नमूना उदासीन है अर्थात् उसका PH 7 है।

रंग तथा निष्कर्ष –

  • लाल – अत्यधिक अम्लीय
  • नारंगी – अम्लीय
  • नीला – भस्मीय / क्षारीय
  • बैंगनी – अत्यधिक भस्मीय / क्षारीय

प्रश्न 2.
अपने अड़ोस-पड़ोस के जलाशय (तालाब, झील, ल, नदी, झरने) का pH भी ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
pH पत्र से अलग-अलग स्थानों के जल का pH भिन्न-भिन्न पाया गया; जैसे- तालाब के जल का pH = 8, झील का pH = 6 तथा नदी के जल का pH = 6.5 है।

प्रश्न 3.
क्या अपने प्रक्षेणों के आधार पर आप कह सकते हैं कि जल प्रदूषित है या नहीं।
उत्तर:
हाँ, क्योंकि शुद्ध जल का pH = 7 होता है। परंतु यहाँ pH का मान या तो 7 से कम या 7 से अधिक पाया गया।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

क्रिया-कलाप – 16.4

प्रश्न 1.
क्या आप कई वर्षों के बाद किसी गाँव अथवा शहर में गए हैं? यदि हाँ, तो क्या पिछली बार की अपेक्षा नए घर एवं सड़कें बन गई हैं? आपके विचार में इन्हें बनाने के लिए आवश्यक वस्तुएँ कहाँ प्राप्त हुई होंगी?
उत्तर:
हाँ, पिछली बार की अपेक्षा नए घर एवं सड़कें बन गई हैं। मैं सोचता हूँ कि नए घरों के निर्माण के लिए लकड़ियाँ वनों से लाई गई हैं। प्लाईवुड भी लकड़ियों के संसाधित उत्पाद हैं जो वनों से प्राप्त होते हैं। ईंटें मिट्टी से बनाई जाती हैं तथा प्रयुक्त स्टील लौह अयस्कों से प्राप्त किया जाता है।

उसी तरह कोलतार जो सड़कें बनाने में प्रयुक्त होती है, भी खानों से प्राप्त होता है। सीमेंट विभिन्न अयस्कों तथा पत्थरों आदि से बनता है। ग्रेनाइट खदानों से प्राप्त होता है।

प्रश्न 2.
उन पदार्थों की सूची बनाइए तथा उनके स्त्रोतों का भी पता लगाइए।
उत्तर:

पदार्थ संभावित स्रोत
लकड़ियाँ वन
प्लाईवुड वन
ईेटें मिट्टी
सीमेंट पत्थर, रसायन
स्टील खदान
पेंट रसायन
कोयला खदान
ग्रेनाइट चट्टान
संगमरमर पत्थर
प्लास्टिक रसायन

प्रश्न 3.
अपने द्वारा बनाई गई सूची को अपने सहपाठियों के साथ चर्चा कीजिए। क्या आप ऐसे उपाय सुझा सकते हैं जिनसे इन वस्तुओं के उपयोग में कमी लाई जा सके।
उत्तर:
हम निश्चित रूप से इन वस्तुओं के उपयोग में कमी ला सकते हैं। कंक्रीट के बीम अथवा ऐलुमिनियम या फाइबर से बने खिड़कियाँ या दरवाजों के उपयोग द्वारा हम लकड़ी के उपयोग को कम कर सकते हैं।

आजकल राख से बनी ईटें उपलब्ध जो हल्के होने के साथ-साथ अन्य कई खास गुणों वाली होती हैं। इनका उपयोग मिट्टी से बनी ईंटों की जगह किया जा सकता है। उसी तरह कोलतार की जगह सीमेंट के उपयोग द्वारा सड़कें अनाई जा सकती हैं। वनों को बचाने के लिए-

  • ईंधन के रूप में लकड़ी का उपयोग कम-से-कम करना चाहिए। CNG तथा LPG का उपयोग बढ़ाना चाहिए।
  • इमारतों में जहाँ तक संभव हो लकड़ी व प्लाईवुड के स्थान पर लोहे या ऐलुमिनियम का उपयोग करें। 16.2 वन एवं वन्य जीवन

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

क्रिया-कलाप – 16.6

प्रश्न 1.
जिन वन उत्पाद का आप प्रयोग करते हैं, उनकी एक सूची बनाइए।
उत्तर:
लकड़ी, विभिन्न प्रकार के फल, जड़ी-बूटी, ओषधि, बाँस, मछली आदि।

प्रश्न 2.
आपके विचार में वन के निकट रहने वाला व्यक्ति किन वस्तुओं का उपयोग करता होगा?
उत्तर:
वन के निकट रहने वाला व्यक्ति लकड़ी, फल, जड़ी-बूटी, सूखी पत्तियाँ (ईंधन के लिए), बाँस, चारा आदि का उपयोग करता है। इसके अतिरिक्त वे वन का उपयोग मछली मारने तथा शिकार करने वाले स्थान के रूप में करते हैं। यहाँ वे अपने पशुओं / मवेशियों को भी चराते हैं।

प्रश्न 3.
वन के अंदर रहने वाला व्यक्ति किन वस्तुओं का उपयोग करता होगा?
उत्तर:
वन के अंदर रहने वाला व्यक्ति अपनी प्रत्येक आवश्यकता के लिए वन पर ही निर्भर करता है। ऊपर (प्रश्न 2) में बताए गए सभी तरह के उपयोग वन के अंदर रहने वाले व्यक्ति द्वारा होता है।

JAC Class 10 Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन

प्रश्न 4.
अपने सहपाठियों के साथ चर्चा कीजिए कि उपरोक्त व्यक्तियों की आवश्यकताओं में क्या कोई अंतर है अथवा कोई अंतर नहीं है एवं इनके कारण का भी पता लगाइए।
उत्तर:
शहरों या गाँवों में रहने वाले लोग वन के नजदीक रहने वाले अथवा वन में रहने वाले लोगों की अपेक्षा वन पर कम निर्भर करते हैं। एक व्यक्ति जो शहर में रहता है उसे विभिन्न वन उत्पादों जैसे- फल, लकड़ी, जड़ी-बूटी, ओषधि आदि की आवश्यकता होती है जबकि वे लोग जो वन के नजदीक या वन के अंदर रहते हैं वे लगभग अपनी प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति जैसे भोजन, आवास आदि के लिए पूर्णतया वन पर निर्भर करते हैं।

उन्हें जलावन की लकड़ी, सूखी पत्ती, झोपड़ी, टोकरी आदि बनाने के लिए बाँस और लकड़ी की आवश्यकता होती है। खेती के औजार, मछली पकड़ने तथा शिकार करने आदि के औजारों के लिए भी वे वन पर ही निर्भर करते हैं। इसके अतिरिक्त उनके पशु तथा मवेशी आदि वहीं चरते हैं या वे वन से ही उनके लिए चारा इकट्ठा करते हैं। इस तरह उनकी आवश्यकताओं में अन्तर हैं। इसका मुख्य कारण उनका परिवेश है।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

क्रिया-कलाप 16.7

प्रश्न 1.
किन्हीं दो वन उत्पादों का पता लगाइए जो किसी उद्योगों के आधार हैं।
उत्तर:
तेंदुपत्ती (बीड़ी बनाने के लिए), बाँस, (कागज उद्योगों के लिए), लकड़ी (प्लाईवुड उद्योग के लिए)।

प्रश्न 2.
चर्चा कीजिए कि यह उद्योग लंबे समय तक संपोषित हो सकता है। अथवा क्या हमें इन उत्पादों की खपत को नियंत्रित करने की आवश्यकता है?
उत्तर:
हाँ, लंबे समय तक इन उद्योगों को कच्चा माल वन से प्राप्त हो सके इसके लिए हमें विवेकपूर्ण ढंग से इन उत्पादों की खपत करनी होगी। इसलिए काटे गए पेड़ के स्थान पर नए पेड़ लगाएँ तथा खपत में कमी करें, ताकि वनों दोहन की गति कम हो जाए।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

क्रिया-कलाप – 16.8
निम्न के द्वारा वनों को होने वाली क्षति पर परिचर्चा कीजिए-

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय उद्यानों में पर्यटकों हेतु आरामगृह (rest house) का निर्माण करना।
उत्तर:
आरामगृह बनाने से निम्न हानियाँ हैं-

  • यह केवल छुट्टियाँ बिताने का स्थल हो जाता है जहाँ पर्यटक आकर कूड़ा-करकट फैलाते हैं।
  • जानवरों का शिकार एवं तश्करी बढ़ती है।
  • वनों का कटाव होता है तथा पर्यावरण संतुलन बिगड़ जाता है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय उद्यानों में पालतू पशुओं को चराना।
उत्तर:
पालतू पशुओं को चराने से घास एवं छोटे पौधे खत्म हो जाते हैं, जिससे प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला या जैव पिरामिड को क्षति पहुँचती है। घास एवं छोटे पौधे मिट्टी को जकड़े रहते हैं, जिससे मृदा अपरदन नहीं हो पाता है। इस तरह राष्ट्रीय उद्यानों के पर्यावरण प्रभावित होते हैं।

प्रश्न 3.
पर्यटकों द्वारा प्लास्टिक बोतल, थैलियों तथा अन्य कचरों को राष्ट्रीय उद्यान फेंकना।
उत्तर:
प्लास्टिक बोतल, पॉलिथीन की थैलियाँ अजैव निम्नीकरणीय हैं, जो प्रदूषण फैलाती हैं। कूड़े-कचरे से रोगाणुओं को पनपने का अवसर मिलता है तथा पर्यावरण में प्रदूषण भी होता है।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

क्रिया-कलाप – 16.9

प्रश्न 1.
महाराष्ट्र के एक गाँव में जल की कमी की दीर्घकालीन समस्या से जूझ रहे ग्रामीण एक जल मनोरंजन पार्क का घेराव कर लेते हैं। इस पर परिचर्चा कीजिए कि क्या यह उपलब्ध जल का समुचित उपयोग है?
उत्तर:
यह संसाधन के असमान वितरण का एक सरल उदाहरण है। एक तरफ जहाँ लोगों को अपनी मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जल उपलब्ध नहीं है वहीं दूसरी तरफ अन्य व्यक्तियों द्वारा अपने मनोरंजन के लिए इसका अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है। यह कुछ ऐसी जिसे जितनी जल्दी हो सके रोका जाना चाहिए।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

क्रिया-कलाप – 16.10

प्रश्न 1.
एक एटलस की सहायता से भारत वर्षा के पैटर्न का अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
उत्तर:
भारत में सामान्यतः जून के प्पहले सप्व़न में प्रायद्वीपीय भारत के दक्षिणी सिरे पर मानसून के आगमन के साथ वर्षा ऋतु की शुरुआत होती है। इसके बाद यह दो शाखाओं अरब-सागर शाखा तथा बंगाल की खाड़ी शाखा में बँट जाती है। अरब सागर शाखा 10 जून तक मुंबई पहुँच जाती है। बंगाल की खाड़ी शाखा भी तेजी से आगे बढ़ती है तथा जून के पहले सप्ताह में असम पहुँच जाती है। ऊँची पर्वत शृंखलाओं द्वारा मानसूनी हवाओं को पश्चिम की तरफ गंगा के विशाल मैदानों के ऊपर मोड़ दिया जाता है।

अरब सागर शाखा सौराष्ट्र-कच्छ तथा भारत के मध्यवर्ती हिस्से में पहुँच जाती है। अरब सागर शाखा तथा बंगाल की खाड़ी शाखा गंगा के मैदान के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में एक-दूसरे से मिल जाती हैं। दिल्ली को सामान्यतः जून के अंत तक बंगाल की खाड़ी शाखा से वर्षा प्राप्त होती है। जुलाई के पहले सप्ताह तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा पूर्वी राजस्थान में मानसून पहुँच जाता है। मध्य जुलाई तक मानसून हिमाचल प्रदेश तथा शेष भारत में पहुँच जाता है।

मानसून का वापस लौटना अपेक्षाकृत एक धीमी प्रक्रिया है। इसकी शुरुआत सितम्बर के आरम्भ में उत्तर-पूर्वी राज्यों से होती है। मध्य अक्टूबर तक यह प्रायद्वीपीय भारत के उत्तरी आधे हिस्से से लौट चुका होता है। प्रायद्वीप के दक्षिणी आधे हिस्से से मानसून बहुत तेजी से लौटता है। दिसम्बर के आरम्भ तक पूरे देश से मानसून लगभग लौट चुका होता है।

द्वीपों को पहला मानसून अप्रैल के पहले सप्ताह से लेकर मई के पहले सप्ताह तक प्राप्त होता है जबकि दिसम्बर के पहले सप्ताह से जनवरी के पहले सप्ताह के बीच यहाँ से मानसून वापस लौट चुका होता है। इस समय के अंत तक शेष भारत शीत लहर के प्रभाव में आ चुका होता है।

प्रश्न 2.
ऐसे क्षेत्रों की पहचान कीजिए जहाँ पर जल की प्रचुरता है तथा ऐसे क्षेत्रों की जहाँ इसकी बहुत कमी है?
उत्तर:
भारी वर्षा वाले क्षेत्र (अर्थात् जहाँ प्रतिवर्ष 200 cm से अधिक वर्षा होती है) – इनमें महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश एवं असम शामिल हैं।

हल्की वर्षा वाले क्षेत्र (अर्थात् जहाँ प्रतिवर्ष 58- 100 cm) वर्षा होती है) – इनमें ऊपरी गंगा घाटी, पूर्वी राजस्थान, हरियाणा एवं पंजाब के कुछ हिस्से, जम्मू एवं कश्मीर, दक्कन का पठार तथा सिंधु का मैदान शामिल हैं।

शुष्क या अर्द्धशुष्क क्षेत्र (जहाँ प्रतिवर्ष 50em कम वर्षा होती है) – इनमें कश्मीर का उत्तरी हिस्सा, दक्षिणी पंजाब, हरियाण का कुल भाग, पश्चिमी राजस्थान, थार, कच्छ प्रायद्वीप तथा पश्चिमी घाट के वर्षा छाया क्षेत्र शामिल हैं।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

क्रिया-कलाप – 16.11

प्रश्न 1.
कोयले का उपयोग ताप बिजलीघरों में एवं पेट्रोलियम उत्पाद जैसे कि डीजल एवं पेट्रोल का यातायात के विभिन्न साधनों मोटरवाहन, जलयान एवं वायुयान में प्रयोग किया जाता है। आज के युग में विद्युत साधित्रों एवं यातायात में विद्युत के प्रयोग के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अतः क्या आप कुछ ऐसी युक्ति सोच सकते हैं जिससे कोयला एवं पेट्रोलियम के उपयोग को कम किया जा सके?
उत्तर:
अधिकतर ताप विद्युत गृह में कोयले का उपयोग किया जाता है। अतः विद्युत को बचाकर हम कोयले की बचत कर सकते हैं। ऐसे कई तरीके हैं जिनके द्वारा हम विद्युत की बचत कर सकते हैं। जैसे- अनावश्यक पंखों एवं बल्बों को बंद करके, बल्ब की जगह LED बल्बों एवं टयूबलाइटों का प्रयोग करके, लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करके।

इसी तरह पेट्रोलियम के उत्पादों की बचत के लिए हमें छोटी दूरियों के लिए वाहनों का उपयोग करने की जगह या तो पैदल चलना चाहिए या फिर साइकिल का उपयोग करना चाहिए। रेडलाइट पर गाड़ी का इंजन बंद कर देना चाहिए, भोजन पकाने के लिए कुकर का उपयोग करना चाहिए तथा गाड़ियों के पहियों में हवा का दबाव सही रखना चाहिए।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

क्रिया-कलाप – 16.12

प्रश्न 1.
आपने वाहनों से निकलने वाली गैसों के यूरो- I एवं यूरो- II मानक के विषय में तो अवश्य ही सुना होगा। पता लगाइए कि ये मानक वायु प्रदूषण कम करने में किस प्रकार सहायक हैं?
उत्तर:
यूरो मानक से तात्पर्य यूरोप में पेट्रोल एवं डीजल वाहनों को मान्यता प्राप्त उत्सर्जन स्तर से है। इन मानकों के अनुसार वाहन निर्माताओं को अपने वाहन के इंजन के डिजाइन का सुधार लाना होता है कि प्रदूषक उत्सर्जन का स्तर वर्तमान स्तर से कम हो। यूरो I के तहत CO का उत्सर्जन स्तर 2.75 ग्रा/किमी. है तथा यूरो- II में यह स्तर 2.20 ग्रा/किमी. है। इन मानकों को लागू करके प्रदूषण स्तर में काफी कमी लाई गई है।

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