JAC Class 10 Hindi रचना अनुच्छेद लेखन

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Rachana अनुच्छेद लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Rachana अनुच्छेद लेखन

अनुच्छेद – लेखन से अभिप्राय है किसी विषय से संबद्ध अपने विचारों को प्रकट करना। इसमें कुशलता प्राप्त करने के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है।
अनुच्छेद लिखने के लिए निम्नलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए –
(i) सबसे पहले विषय को भली-भाँति समझ लेना चाहिए। कभी-कभी किसी सूक्ति, लोकोक्ति अथवा कहावत पर भी लिखने के लिए कहा जाता है। अतः शीर्षक में निहित भावों एवं विचारों को समझने की चेष्टा करनी चाहिए।
(ii) अनुच्छेद की भाषा शुद्ध तथा उपयुक्त शब्दों से युक्त होनी चाहिए।
(iii) इसकी शैली इतनी सारगर्भित होनी चाहिए कि कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक भाव तथा विचार निहित हों।
(iv) इसके लेखन में केवल प्रतिपाद्य विषय पर ही ध्यान देना चाहिए। इधर-उधर की बातें नहीं लिखना चाहिए। अप्रासंगिक बातों का उल्लेख अनुच्छेद के गठन एवं सौंदर्य को नष्ट कर देता है।
(v) अनुच्छेद का प्रत्येक वाक्य दूसरे वाक्य से उचित रूप में संबद्ध होना चाहिए।
(vi) विषय के अनुरूप ही भाषा का प्रयोग होना चाहिए। विचार – प्रधान विषय में विचार एवं तर्क की तथा भावात्मक विषय में अनुभूति की प्रधानता होनी चाहिए।
(vii) भाव और भाषा की अभिव्यक्ति में स्पष्टता, मौलिकता और सरलता होनी चाहिए। अनुच्छेद अपने आप में पूर्ण होना चाहिए।

1. मेरी माँ की ममता

संकेत बिंदु – माँ का महत्त्व, माँ के कार्य, माँ की ममता और स्नेह, उपसंहार।

माँ का रिश्ता दुनिया के सब रिश्ते-नातों से ऊपर है, इस बात से कौन इनकार कर सकता है। माँ को हमारे शास्त्रों में भगवान माना गया है। जैसे भगवान हमारी रक्षा, हमारा पालन-पोषण और हमारी हर इच्छा को पूरा करते हैं वैसे ही माँ भी हमारी रक्षा, पालन-पोषण और स्वयं कष्ट सहकर हमारी सब इच्छाओं को पूरा करती है। इसलिए कहा गया है कि माँ के कदमों में स्वर्ग है। मुझे भी अपनी माँ दुनिया में सबसे प्यारी लगती हैं।

वे मेरी हर ज़रूरत का ध्यान रखती हैं। मैं भी अपनी माँ की सेवा करता हूँ। मेरी माँ घर में सबसे पहले उठती हैं। उठकर वे घर की सफ़ाई करने के बाद स्नान करती हैं और पूजा-पाठ से निवृत्त होकर हमें जगाती हैं। जब तक हम स्नानादि करते हैं, माँ हमारे लिए नाश्ता तैयार करने में लग जाती हैं। नाश्ता तैयार करके वे हमें स्कूल जाने के लिए कपड़े निकालकर देती है। जब हम स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाते हैं तो वे हमें नाश्ता परोसती हैं। स्कूल जाते समय वे दोपहर के भोजन के लिए हमारे बस्तों में टिफिन रख देती हैं।

स्कूल में हम आधी छुट्टी के समय मिलकर भोजन करते हैं। कई बार हम अपना खाना एक-दूसरे से बाँट भी लेते हैं। मेरे सभी मित्र मेरी माँ के बनाए भोजन की बहुत तारीफ़ करते हैं। सचमुच मेरी माँ बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाती हैं। मेरी माँ हमारे सहपाठियों को भी उतना ही प्यार करती हैं जितना हमसे। मेरे सहपाठी ही नहीं हमारे मुहल्ले के सभी बच्चे भी उनका आदर करते हैं। हम सब भाई-बहन अपनी माँ का कहना मानते हैं। छुट्टी के दिन हम घर की सफ़ाई में अपनी माँ का हाथ बँटाते हैं। मेरी माँ इतनी अच्छी है कि मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि उस जैसी माँ सब को मिले।

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2. प्रदर्शनी अवलोकन

संकेत बिंदु – भूमिका, प्रदर्शनी स्थल, प्रदर्शित वस्तुएँ, उपसंहार।

पिछले महीने मुझे दिल्ली में अपने किसी मित्र के पास जाने का अवसर प्राप्त हुआ। संयोग से उन दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी चल रही थी। मैंने अपने मित्र के साथ इस प्रदर्शनी को देखने का निश्चय किया। लगभग दो बजे हम प्रगति मैदान पहुँचे। प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर हमें यह सूचना मिल गई कि इस प्रदर्शनी में लगभग तीस देश भाग ले रहे हैं। हमने देखा की सभी देशों ने अपने-अपने पंडाल बड़े कलात्मक ढंग से सजाए हुए हैं। उन पंडालों में उन देशों की निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का प्रदर्शन किया जा रहा था।

अनेक भारतीय कंपनियों ने भी अपने- अपने पंडाल सजाए हुए थे। प्रगति मैदान किसी दुल्हन की तरह सजाया गया था। प्रदर्शनी में सजावट और रोशनी का प्रबंध इतना शानदार था कि अनायास ही मन से वाह निकल पड़ती थी। प्रदर्शनी देखने आने वालों की काफ़ी भीड़ थी। हमने प्रदर्शनी के मुख्य द्वार से टिकट खरीद कर भीतर प्रवेश किया। सबसे पहले हम जापान के पंडाल में गए। जापान ने अपने पंडाल में कृषि, दूरसंचार, कंप्यूटर आदि से जुड़ी वस्तुओं का प्रदर्शन किया था। हमने वहाँ इक्कीसवीं सदी में टेलीफ़ोन एवं दूरसंचार सेवा कैसी होगी इसका एक छोटा-सा नमूना देखा। जापान ने ऐसे टेलीफ़ोन का निर्माण किया था जिसमें बातें करने वाले दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की फोटो भी देख सकेंगे। वहीं हमने एक पॉकेट टेलीविज़न भी देखा, जो माचिस की डिबिया जितना था।

सारे पंडाल का चक्कर लगाकर हम बाहर आए। उसके बाद हमने दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के पंडाल देखे। उस प्रदर्शनी को देखकर हमें लगा कि अभी भारत को उन देशों का मुकाबला करने के लिए काफ़ी मेहनत करनी होगी। हमने वहाँ भारत में बनने वाले टेलीफ़ोन, कंप्यूटर आदि का पंडाल भी देखा। वहाँ यह जानकारी प्राप्त करके मन बहुत खुश हुआ कि भारत दूसरे बहुत-से देशों को ऐसा सामान निर्यात करता है। भारतीय उपकरण किसी भी हालत में विदेशों में बने सामान से कम नहीं थे। हमने प्रदर्शनी में ही बने रेस्टोरेंट में जल-पान किया और इक्कीसवीं सदी में दुनिया में होने वाली प्रगति का नक्शा आँखों में बसाए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में होने वाली अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त करके घर वापस आ गए।

3. नदी किनारे एक शाम

संकेत बिंदु – भूमिका, नदी पर जाना, नदी का दृश्य, प्राकृतिक सौंदर्य, उपसंहार।

गर्मियों की छुट्टियों के दिन थे। स्कूल जाने की चिंता नहीं थी और न ही होमवर्क की। एक दिन चार मित्र एकत्र हुए और सभी ने यह तय किया कि आज की शाम नदी किनारे सैर करके बिताई जाए। कुछ तो गर्मी से राहत मिलेगी और कुछ प्रकृति के सौंदर्य के दर्शन करके जी खुश होगा। एक ने कही दूजे ने मानी के अनुसार हम सब लगभग छह बजे के करीब एक स्थान पर एकत्र हुए और पैदल ही नदी की ओर चल पड़े। दिन अभी ढला नहीं था बस ढलने ही वाला था। ढलते सूर्य की लाल-लाल किरणें पश्चिम क्षितिज पर ऐसे लग रही थीं मानो प्रकृति रूपी युवती लाल-लाल वस्त्र पहने खड़ी हो। पक्षी अपने- अपने घोंसलों की ओर लौटने लगे थे।

खेतों में हरियाली छायी हुई थी। ज्यों ही हम नदी किनारे पहुँचे सूर्य की सुनहरी किरणें नदी के पानी पर पड़ती हुई बहुत भली प्रतीत हो रही थीं। ऐसे लगता था मानो नदी के जल में हज़ारों लाल कमल एक साथ खिल उठे हों। नदी तट पर लगे वृक्षों की पंक्ति देखकर ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’ कविता की पंक्ति याद हो आई। नदी तट के पास वाले जंगल से ग्वाले पशु चराकर लौट रहे थे। पशुओं के पैरों से उठने वाली धूलि एक मनोरम दृश्य उपस्थित कर रही थी। हम सभी मित्र बातें कम कर रहे थे, प्रकृति के रूप-रस का पान अधिक कर रहे थे। थोड़ी ही देर में सूर्य अस्ताचल की ओर जाता हुआ प्रतीत हुआ।

नदी का जो जल पहले लाल-लाल लगता था अब धीरे-धीरे नीला पड़ना शुरू हो गया था। उड़ते हुए बगुलों की सफ़ेद सफ़ेद पंक्तियाँ उस धूमिल वातावरण में और भी अधिक सफ़ेद लग रही थीं। नदी तट पर सैर करते-करते हम गाँव से काफ़ी दूर निकल आए थे। प्रकृति की सुंदरता निहारते – निहारते ऐसे खोए थे कि समय का ध्यान ही न रहा। हम सब गाँव की ओर लौट पड़े। नदी तट पर नृत्य करती हुई प्रकृति रूपी नदी की यह शोभा विचित्र थी। नदी किनारे सैर करते हुए बिताई यह शाम हम ज़िंदगी भर नहीं भूलेंगे।

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4. परीक्षा से पहले

संकेत बिंदु – भूमिका, परीक्षा की चिंता, परीक्षा की तैयारी, उपसंहार।

वैसे तो हर मनुष्य परीक्षा से घबराता है किंतु विद्यार्थी इससे विशेष रूप से घबराता है। परीक्षा में पास होना ज़रूरी है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। अपने साथियों से बिछड़ जाएँगे। ऐसी चिंताएँ हर विद्यार्थी को रहती हैं। परीक्षा शुरू होने से पूर्व जब मैं परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक-धक कर रहा था। परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले मैं वहाँ पहुँच गया था। मैं सोच रहा था कि सारी रात जागकर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्न-पत्र में न आए तो मेरा क्या होगा ? इसी चिंता में मैं अपने सहपाठियों से खुलकर बात नहीं कर रहा था। परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था।

परीक्षा देने आए कुछ विद्यार्थी बिलकुल बेफ़िक्र लग रहे थे। वे आपस में ठहाके मार-मार कर बातें कर रहे थे। कुछ भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों या नोट्स से चिपके हुए थे। मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था क्योंकि मेरे पिता जी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल जाता है। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं जिससे सवेरे उठकर विद्यार्थी तरो ताज़ा होकर परीक्षा देने जाए न कि थका- थका महसूस करे। परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं।

उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी स्मरण शक्ति पर पूरा भरोसा था। थोड़ी ही देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी। इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया। हँसते हुए चेहरों पर अब गंभीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना अनुक्रमांक और स्थान देखकर मैं परीक्षा भवन में प्रविष्ट हुआ और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न-पत्र बँटने की प्रतीक्षा करने लगा।

5. रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य

संकेत बिंदु – भूमिका, प्लेटफ़ॉर्म का दृश्य, गाड़ी का आना, लोगों की भगदड़, तरह-तरह की गतिविधियाँ, उपसंहार।

एक दिन संयोग से मुझे अपने बड़े भाई को लेने रेलवे स्टेशन जाना पड़ा। मैं प्लेटफार्म टिकट लेकर रेलवे स्टेशन के अंदर गया। पूछताछ खिड़की से पता लगा कि दिल्ली से आने वाली गाड़ी प्लेटफार्म नंबर चार पर आएगी। मैं रेलवे पुल पार करके प्लेटफार्म नंबर चार पर पहुँच गया। वहाँ यात्रियों की बड़ी संख्या थी। कुछ लोग अपने प्रियजनों को लेने के लिए आए थे तो कुछ अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराने के लिए आए हुए थे।

जाने वाले यात्री अपने-अपने सामान के पास खड़े थे। कुछ यात्रियों के पास कुली भी खड़े थे। मैं भी उन लोगों की तरह गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगा। इसी दौरान मैंने अपनी नज़र रेलवे प्लेटफार्म पर दौड़ाई। मैंने देखा कि अनेक युवक और युवतियाँ आधुनिक पोशाक पहने इधर-उधर घूम रहे थे। कुछ यात्री टी-स्टाल पर खड़े चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, परंतु उनकी नज़रें बार-बार उस तरफ़ उठ जाती थीं, जिधर से गाड़ी आने वाली थी। कुछ यात्री बड़े आराम से अपने सामान के पास खड़े थे, लगता था कि उन्हें गाड़ी आने पर जगह प्राप्त करने की कोई चिंता नहीं।

उन्होंने पहले से ही अपनी सीट आरक्षित करवा ली थी। कुछ फेरीवाले भी अपना माल बेचते हुए प्लेटफार्म पर घूम रहे थे। सभी लोगों की नज़रें उस तरफ थीं जिधर से गाड़ी ने आना था। तभी लगा जैसे गाड़ी आने वाली हो। प्लेटफार्म पर भगदड़ – सी मच गई। सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाकर तैयार हो गए। कुलियों ने सामान अपने सिरों पर रख लिया। सारा वातावरण उत्तेजना से भर गया। देखते-ही-देखते गाड़ी प्लेटफार्म पर आ पहुँची। कुछ युवकों ने तो गाड़ी के रुकने की भी प्रतीक्षा न की।

वे गाड़ी के साथ दौड़ते-दौड़ते गाड़ी में सवार हो गए। गाड़ी रुकी तो गाड़ी में सवार होने के लिए धक्का-मुक्की शुरू हो गई। हर कोई पहले गाड़ी में सवार हो जाना चाहता था। उन्हें दूसरों की नहीं केवल अपनी चिंता थी। मेरे भाई मेरे सामने वाले डिब्बे में थे। उनके गाड़ी से नीचे उतरते ही मैंने उनके चरण-स्पर्श किए और उनका सामान उठाकर स्टेशन से बाहर की ओर चल पड़ा। चलते-चलते मैंने देखा जो लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराकर लौट रहे थे, उनके चेहरे उदास थे और मेरी तरह जिनके प्रियजन गाड़ी से उतरे थे, उनके चेहरों पर खुशी थी।

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6. सूर्योदय का दृश्य

संकेत बिंदु – भूमिका, सूर्योदय, प्रकृति में परिवर्तन, घर – मंदिर की हलचल, प्राकृतिक सौंदर्य, उपसंहार।

पूर्व दिशा की ओर उभरती हुई लालिमा को देखकर पक्षी चहचहाने लगते हैं। उन्हें सूर्य के आगमन की सबसे पहले सूचना मिल जाती है। वे अपनी चहचहाहट द्वारा समस्त प्राणी जगत को रात के बीत जाने की सूचना देते हुए जागने की प्रेरणा देते हैं। सूर्य देवता का स्वागत करने के लिए प्रकृति रूपी नदी भी प्रसन्नता में भर कर नाच उठती है। फूल खिल उठते हैं, कलियाँ चटक जाती हैं और चारों ओर का वातावरण सुगंधित हो जाता है। सूर्य देवता के आगमन के साथ ही मनुष्य रात भर के विश्राम के बाद जाग उठते हैं।

हर तरफ चहल-पहल नज़र आने लगती है। किसान हल और बैलों के साथ अपने खेतों की ओर चल पड़ते हैं। गृहणियाँ घरेलू काम-काज में व्यस्त हो जाती हैं। मंदिरों एवं गुरुद्वारों में लगे लाउडस्पीकर से भजन- -कीर्तन के कार्यक्रम प्रसारित होने लगते हैं। भक्तजन स्नानादि से निवृत्त हो पूजा-पाठ में लग जाते हैं। स्कूली बच्चों की माताएँ उन्हें जगाने लगती हैं। दफ़्तरों को जाने वाले बाबू जल्दी-जल्दी तैयार होने लगते हैं, जिससे समय पर बस पकड़ कर अपने दफ्तर पहुँच सकें। थोड़ी देर पहले जो शहर सन्नाटे में लीन था आवाज़ों के घेरे में घिरने लगता है।

सड़कों पर मोटरों, स्कूटरों, कारों के चलने की आवाजें सुनाई देने लगती हैं। ऐसा लगता है मानो सड़कें भी नींद से जाग उठी हों। सूर्योदय के समय की प्राकृतिक सुषमा का वास्तविक दृश्य तो किसी गाँव, किसी पहाड़ी क्षेत्र अथवा किसी नदी तट पर ही देखा जा सकता है। सूर्योदय के समय सूर्य के सामने आँखें बंद कर दो-चार मिनट खड़े रहने से आँखों की ज्योति कभी क्षीण नहीं होती।

7. अपना घर

संकेत बिंदु – भूमिका, अपना घर, मनुष्य और पशु का घर के प्रति प्रेम, उपसंहार।

कहते हैं कि घरों में घर अपना घर। सच है अपना घर अपना ही होता है। अपने घर में चाहे सारी सुख-सुविधाएँ न भी प्राप्त हों तो भी वह अच्छा लगता है। जो स्वतंत्रता व्यक्ति को अपने घर में होती है वह बड़े-बड़े आलीशान घर में भी प्राप्त नहीं होती। पराये घर में जो झिझक, असुविधा होती है वह अपने घर में नहीं होती। अपने घर में व्यक्ति अपनी मर्ज़ी का मालिक होता है। दूसरे के घर में उस घर के स्वामी की इच्छानुसार अथवा उस घर के नियमों के अनुसार चलना होता है।

अपने घर में आप जो चाहें करें, चो चाहें खाएँ, जहाँ चाहें बैठें, जहाँ चाहें लेटें पर दूसरे के घर में यह सब संभव नहीं। शायद यही कारण है कि आजकल नौकरी करने वाले प्रतिदिन मीलों का सफ़र करके नौकरी पर जाते हैं परंतु रात को अपने घर वापस आ जाते हैं। पुरुष तो पहले भी नौकरी करने बाहर जाते थे। आजकल स्त्रियाँ भी नौकरी करने घर से कई मील दूर जाती हैं परंतु शाम को सभी अपने-अपने घरों को लौटना पसंद करते हैं। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी तक भी अपने घर के महत्त्व को समझते हैं।

सारा दिन जंगल में चरने वाली गाएँ, भैंसें, भेड़, बकरियाँ संध्या होते ही अपने-अपने घरों को लौट आते हैं। पक्षी भी दिनभर दाना – तिनका चुगकर संध्या होते ही अपने- अपने घोंसलों को लौट आते हैं। घर का मोह ही उन्हें अपने घोंसला में लौट आने के लिए विवश करता है क्योंकि जो सुख अपने घर में मिलता है वह और कहीं नहीं मिलता। इसीलिए कहा गया है कि घरों में घर अपना घर।

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8. जब आँधी आई

संकेत बिंदु – भूमिका, भयंकर गर्मी का प्रभाव, क्षितिज पर कालिमा का दिखाई देना, वातावरण में परिवर्तन, धूलभरी आँधी, उपसंहार।

मई का महीना था। सूर्य देवता लगता था मानो आग बरसा रहे हों। धरती भट्ठी की तरह जल रही थी। हवा भी गर्मी के डर से सहमी हुई थम- सी गई थी। पेड़-पौधे तक भीषण गर्मी से घबराकर मौन खड़े थे। पत्ता तक नहीं हिल रहा था। उस दिन विद्यालय से छुट्टी होने पर मैं अपने कुछ सहपाठियों के साथ पसीने में लथपथ अपने घर की ओर लौट रहा था कि अचानक पश्चिम दिशा में कालिमा-सी दिखाई दी। आकाश में चीलें मँडराने लगीं। चारों ओर शोर मच गया कि आँधी आ रही है।

हम सब ने तेज़ – तेज़ चलना शुरू किया, जिससे आँधी आने से पूर्व सुरक्षित अपने-अपने घर पहुँच जाएँ। देखते-ही-देखते तेज़ हवा के झोंके आने लगे। दूर आकाश धूलि से अट गया लगता था। हम सब साथी एक दुकान के छज्जे के नीचे रुक गए और प्रतीक्षा करने लगे कि आँधी गुज़र जाए तो चलें। पलक झपकते ही धूल का एक बहुत बड़ा बवंडर उठा। दुकानदारों ने अपना सामान सहेजना शुरू कर दिया। आस-पास के घरों की खिड़कियाँ – दरवाज़े ज़ोर-ज़ोर से बजने लगे। धूल भरी उस आँधी में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

हम सब आँखें बंद करके खड़े थे जिससे हमारी आँखें धूल से न भर जाएँ। राह चलते लोग रुक गए। स्कूटर, साइकिल और कार चलाने वाले भी अपनी-अपनी जगह रुक गए थे। अचानक सड़क के किनारे लगे वृक्ष की एक बहुत बड़ी टहनी टूट कर हमारे सामने गिरी। दुकानों के बाहर लगी कनातें उड़ने लगीं। बहुत से दुकानदारों ने जो सामान बाहर सजा रखा था, वह उड़ गया। धूल भरी आँधी में कुछ भी दिखाई न दे रहा था। चारों तरफ अफ़रा तफ़री मची हुई थी। आँधी का यह प्रकोप कोई घंटा भर रहा। धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी।

यातायात फिर से चालू हो गया। हम भी उस दुकान के छज्जे के नीचे से बाहर आकर अपने-अपने घरों की ओर रवाना हुए। सच ही उस आँधी का दृश्य बड़ा ही डरावना था। घर पहुँचते-पहुँचते मैंने देखा रास्ते में बिजली के कई खंभे, वृक्ष आदि उखड़े पड़े थे। सारे शहर में बिजली भी ठप्प हो गई थी। मैं कुशलतापूर्वक अपने घर पहुँच गया। घर पहुँच कर मैंने चैन की साँस ली।

9. जब भूचाल आया

संकेत बिंदु – भूमिका, रात की शांति, कुत्तों का भौंकना, चारपाई का हिलना, मकान का गिरना, सबका घरों से दौड़ना, उपसंहार।

गर्मियों की रात थी। मैं अपने भाइयों के साथ मकान की छत पर सो रहा था। रात लगभग आधी बीत चुकी थी। गर्मी के मारे मुझे नींद नहीं आ रही थी। तभी अचानक कुत्तों के भौंकने का स्वर सुनाई पड़ा। यह स्वर लगातार बढ़ता ही जा रहा था और लगता था कि कुत्ते तेज़ी से इधर-उधर भाग रहे हैं। कुछ ही क्षण बाद हमारी मुर्गियों ने दड़बों में फड़फड़ाना शुरू कर दिया। उनकी आवाज़ सुनकर ऐसा लगता था कि जैसे उन्होंने किसी साँप को देख लिया हो। मैं बिस्तर पर लेटा – लेटा कुत्तों के भौंकने के कारण का विचार करने लगा।

मैंने समझा कि शायद वे किसी चोर को या संदिग्ध व्यक्ति को देखकर भौंक रहे हैं। अभी मैं इन्हीं बातों पर विचार कर ही रहा था कि मुझे लगा जैसे मेरी चारपाई को कोई हिला रहा है अथवा किसी ने मेरी चारपाई को झुला दिया हो। क्षण भर में ही मैं समझ गया कि भूचाल आया है। यह झटका भूचाल का ही था। मैंने तुरंत अपने भाइयों को जगाया और उन्हें छत से शीघ्र नीचे उतरने को कहा।

छत से उतरते समय हमने परिवार के अन्य सदस्यों को भी जगा दिया। तेज़ी से दौड़कर हम सब बाहर खुले मैदान में आ गए। वहाँ पहुँच कर हमने शोर मचाया कि भूचाल आया है। सब लोग घर से बाहर आ जाओ। सभी गहरी नींद में सोये पड़े थे हड़बड़ाहट में सभी बाहर की ओर दौड़े। मैंने उन्हें बताया कि भूचाल के झटके कभी-कभी कुछ मिनटों के बाद भी आते हैं। अतः हमें सावधान रहना चाहिए।

अभी यह बात मेरे मुँह में ही थी कि भूचाल का एक और ज़ोरदार झटका आया। सारे मकानों की खिड़कियाँ – दरवाज़े खड़-खड़ा उठे। हमें धरती हिलती महसूस हुई। हम सब धरती पर लेट गए। तभी पड़ोस से मकान ढहने की आवाज़ आई। साथ ही बहुत से लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें भी आईं। हममें से कोई भी डर के मारे अपनी जगह से नहीं हिला। कुछ देर बाद जब हमने सोचा कि जितना भूचाल आना था आ चुका, हम उन जगहों की ओर बढ़े। निकट जाकर देखा तो काफ़ी मकान क्षतिग्रस्त हुए थे। ईश्वर की कृपा से जान-माल की कोई हानि न हुई थी। वह रात सारे गाँववासियों ने पुनः भूचाल के आने की आशंका में घरों से बाहर रह कर ही बिताई।

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10. परीक्षा भवन का दृश्य

संकेत बिंदु – भूमिका, परीक्षा से घबराहट, परीक्षार्थियों का आना, घबराहट और बेचैनी, परीक्षा भवन का दृश्य, उपसंहार।

मार्च महीने की पहली तारीख थी। उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएँ शुरू हो रही थीं। परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परंतु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है। मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक् धक् कर रहा था। मैं रात भर पढ़ता रहा था और चिंता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न-पत्र में न आया तो क्या होगा ? परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिंतित से नज़र आ रहे थे। कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उसके पन्ने उलट-पुलट रहे थे।

कुछ बड़े खुश-खुश नज़र आ रहे थे। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न-पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई। यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया। भीतर पहुँच कर हम सब अपने-अपने अनुक्रमांक के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर-पुस्तिकाएँ बाँट दी गईं और हमने उस पर अपना-अपना अनुक्रमांक आदि लिखना शुरू कर दिया। ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्न- पत्र बाँट दिए। मैंने प्रश्न- पत्र पढ़ना शुरू किया। मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न-पत्र के सभी

प्रश्न मेरे पढ़े हुए प्रश्नों में से थे। मैंने किए जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाए और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया। मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो। तीन घंटे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा। मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।

11. साइकिल चोरी होने पर

संकेत बिंदु – भूमिका, साइकिल स्कूल के बाहर खड़ी करना, साइकिल की चोरी होना, चोरी की रिपोर्ट लिखना, रिपोर्ट दर्ज न होना, निराशा, उपसंहार।

एक दिन मैं अपने स्कूल में अवकाश लेने का आवेदन-पत्र देने गया। मैं अपनी साइकिल स्कूल के बाहर खड़ी करके, उसे ताला लगाकर स्कूल के भीतर चला गया। जब थोड़ी देर में मैं लौट तो मैंने देखा मेरी साइकिल वहाँ नहीं थी, जहाँ मैं उसे खड़ी करके गया था। मैंने आसपास देखा पर मुझे मेरी साइकिल कहीं नज़र नहीं आई। मुझे यह समझते देर न लगी कि मेरी साइकिल चोरी हो गई है। मैं सीधा घर आ गया।

घर आकर मैंने अपनी माँ को बताया कि मेरी साइकिल चोरी हो गई है। मेरी माँ यह सुनकर रोने लगी। उसने कहा कि बड़ी मुश्किल से एक हज़ार रुपया खर्च करके तुम्हें साइकिल लेकर दी थी तुमने वह भी गँवा दी। मेरी साइकिल चोरी हो गई है, यह बात सारे मुहल्ले में फैल गई। किसी ने सलाह दी कि पुलिस में रिपोर्ट अवश्य लिखवा देनी चाहिए। मैं पुलिस से बहुत डरता हूँ। मैं डरता – डरता पुलिस चौकी गया।

मैं इतना घबरा गया था, मानो मैंने ही साइकिल चुराई हो। पुलिस वालों ने कहा साइकिल की रसीद लाओ, उसका नंबर बताओ, तब हम तुम्हारी रिपोर्ट लिखेंगे। साइकिल खरीदने की रसीद मुझसे गुम हो गई थी और साइकिल का नंबर मुझे याद नहीं था। मुझे क्या मालूम था कि मेरी साइकिल चोरी हो जाएगी ? निराश हो मैं घर लौट आया। सभी मुझसे साइकिल कैसे चोरी हुई? प्रश्न का उत्तर जानना चाहते थे। मैं एक ही उत्तर सभी को देता देता उकता – सा गया। पिताजी ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा- जो होना था सो हो गया। ईश्वर चाहेंगे तो साइकिल ज़रूर मिल जाएगी। मेरा एक मित्र विशेष रूप से दुखी था। क्योंकि यदा-कदा वह मुझसे साइकिल माँग कर ले जाता था। मुझे अपनी साइकिल चोरी हो जाने का बहुत दुख हुआ था।

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12. जीवन की अविस्मरणीय घटना

संकेत बिंदु – भूमिका, चिड़िया के बच्चे का घायल अवस्था में मिलना, सेवा, सेवा से आनंद, उपसंहार।

आज मैं दसवीं कक्षा में हूँ। माता-पिता कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गए हो। मैं भी कभी – कभी सोचता हूँ कि क्या मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। हाँ, मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। मुझे बीते दिनों की कुछ बातें आज भी याद हैं जो मेरा मार्गदर्शन कर रही हैं। एक घटना ऐसी है जिसे मैं आज भी याद करके आनंद विभोर हो उठता हूँ। घटना कुछ इस तरह से है। कोई दो-तीन साल पहले की घटना है। मैंने एक दिन देखा कि हमारे आँगन में लगे वृक्ष के नीचे एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में पड़ा है।

मैं उस बच्चे को उठाकर अपने कमरे में ले आया। मेरी माँ ने मुझे रोका भी कि इसे इस तरह न उठाओ यह मर जाएगा किंतु मेरा मन कहता था कि इस चिड़िया के बच्चे को बचाया जा सकता है। मैंने उसे चम्मच से पानी पिलाया। पानी मुँह में जाते ही उस बच्चे ने जो बेहोश था पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिए। यह देखकर मैं प्रसन्न हुआ। मैंने उसे गोद में लेकर देखा कि उस की टाँग में चोट आई है। मैंने अपने छोटे भाई को माँ से मरहम की डिबिया लाने को कहा। वह तुरंत मरहम की डिबिया ले आया।

उसमें से थोड़ी-सी मरहम मैंने उस चिड़िया के बच्चे की चोट पर लगाई। मरहम लगाते ही मानो उसकी पीड़ा कुछ कम हुई। वह चुपचाप मेरी गोद में ही लेटा था। मेरा छोटा भाई भी उस के पंखों पर हाथ फेरकर खुश हो रहा था। कोई घंटा भर मैं उसे गोद में ही लेकर बैठा रहा। मैंने देखा कि बच्चा थोड़ा उड़ने की कोशिश करने लगा था। मैंने छोटे भाई से रोटी मँगवाई और उसकी चूरी बनाकर उसके सामने रखी। वह उसे खाने लगा। हम दोनों भाई उसे खाते हुए देख कर खुश हो रहे थे। मैंने उसे अब अपनी पढ़ाई की मेज़ पर रख दिया।

रात को एक बार फिर उस के घाव पर मरहम लगाई। दूसरे दिन मैंने देखा चिड़िया का वह बच्चा मेरे कमरे में इधर-उधर फुदकने लगा है। वह मुझे देख चीं-चीं करके मेरे प्रति अपना आभार प्रकट कर रहा था। एक-दो दिनों में ही उस का घाव ठीक हो गया और मैंने उसे आकाश में छोड़ दिया। वह उड़ गया। मुझे उस चिड़िया के बच्चे के प्राणों की रक्षा करके जो आनंद प्राप्त हुआ उसे मैं जीवन भर नहीं भुला पाऊँगा।

13. आँखों देखा हॉकी मैच

संकेत बिंदु – भूमिका, खेल का महत्त्व, हॉकी मैच, दो टीमों का रोमांच, दर्शकों का उत्साह और शोर, उपसंहार।

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं परंतु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सबसे आगे रहा किंतु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों-दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यंत रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला। यह मैच सुभाष एकादश और चंद्र एकादश की टीमों के बीच चेन्नई के खेल परिसर में खेला गया।

दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए देश भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भाग ले रहे थे। चंद्र एकादश की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने सुभाष एकादश को मैच के आरंभिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फॉरवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किए। सुभाष एकादश का गोलकीपर

बहुत ही चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। जब सुभाष एकादश ने तेज़ी पकड़ी तो देखते ही देखते चंद्र एकादश के विरुद्ध एक गोल दाग दिया। गोल होने पर चंद्र एकादश की टीम ने एकजुट होकर दो-तीन बार सुभाष एकादश पर कड़े आक्रमण किए परंतु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच चंद्र एकादश को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। सुभाष एकादश ने कई अच्छे मूव बनाए। उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था।

इसी बीच सुभाष एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला, जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे चंद्र एकादश के खिलाड़ी हताश हो गए। चेन्नई के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए। मध्यांतर के समय सुभाष एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यांतर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ। चंद्र एकादश के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दाएँ कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर सुभाष एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से चंद्र एकादश के जोश में जबरदस्त वृद्धि हो गई। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी से नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनंद आ गया।

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14. आँखों देखी दुर्घटना

संकेत बिंदु – भूमिका, प्रातः भ्रमण के लिए जाना, सड़क पर भीड़ की अधिकता, कार और ताँगे में टक्कर, पुलिस – अस्पताल, उपसंहार।
रविवार की बात है मैं अपने मित्र के साथ सुबह – सुबह सैर करने माल रोड पर गया। वहाँ बहुत से स्त्री-पुरुष और बच्चे भी सैर करने आए हुए थे। जब से दूरदर्शन पर स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम आने लगे हैं अधिक-से-अधिक लोग प्रातः भ्रमण के लिए इन जगहों पर आने लगे हैं। रविवार होने के कारण उस दिन भीड़ कुछ अधिक थी। तभी मैंने वहाँ एक युवा दंपति को अपने छोटे बच्चे को बच्चागाड़ी में बैठा कर सैर करते देखा। अचानक लड़कियों के स्कूल की ओर एक रिक्शा आता हुआ दिखाई दिया।

उसमें दो सवारियाँ भी बैठी थीं। बच्चागाड़ी वाले दंपत्ति ने रिक्शे से बचने के लिए सड़क पार करनी चाही। जब वे सड़क पार कर रहे थे तो दूसरी तरफ से बड़ी तेज़ गति से आ रही एक कार उस रिक्शे से टकरा गई। रिक्शा चलाने वाला और दोनों सवारियाँ बुरी तरह से घायल हो गए थे। बच्चागाड़ी वाली स्त्री के हाथ से बच्चागाड़ी छूट गई। किंतु इससे पूर्व कि वह बच्चे समेत रिक्शे और कार की टक्कर वाली जगह पर पहुँचकर उन से टकरा जाती, मेरे साथी ने भागकर उस बच्चागाड़ी को सँभाल लिया।

कार चलाने वाले सज्जन को भी काफ़ी चोटें आई थीं पर उसकी कार को कोई खास क्षति नहीं पहुँची थी। माल रोड पर गश्त करने वाले पुलिस के तीन-चार सिपाही तुरंत घटना स्थल पर पहुँच गए। उन्होंने वायरलैस द्वारा अपने अधिकारियों और अस्पताल को फोन किया। चंद मिनटों में वहाँ ऐम्बुलेंस गाड़ी आ गई। हम सब ने घायलों को उठा कर ऐम्बुलेंस में लिटाया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी तुरंत वहाँ पहुँच गए।

उन्होंने कार चालक को पकड़ लिया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि सारा दोष कार चालक का था। इस सैर-सपाटे वाली सड़क पर वह 100 कि० मी० की स्पीड से कार चला रहा था और रिक्शा सामने आने पर वह ब्रेक न लगा सका। दूसरी तरफ़ बच्चे को बचाने के लिए मेरे मित्र द्वारा दिखाई फुर्ती व चुस्ती की भी लोग सराहना कर रहे थे। उस दंपत्ति ने उसका विशेष धन्यवाद दिया।

15. हमने मनाई पिकनिक

संकेत बिंदु – भूमिका, पिकनिक का अर्थ, पिकनिक के लिए उचित स्थान का चुनाव, साइकिलों से जाना, प्राकृतिक सौंदर्य, खान-पान, मनोरंजन, उपसंहार पिकनिक एक ऐसा शब्द है जो थके हुए शरीर एवं मन में एकदम स्फूर्ति ला देता है। मैंने और मेरे मित्र ने परीक्षा के दिनों में बड़ी मेहनत की थी। परीक्षा का तनाव हमारे मन और मस्तिष्क पर विद्यमान था। उस तनाव को दूर करने के लिए हम दोनों ने यह निर्णय किया कि क्यों न किसी दिन माधोपुर हैडवर्क्स पर जाकर पिकनिक मनाई जाए। अपने इस निर्णय से अपने मुहल्ले के दो-चार और मित्रों को अवगत करवाया तो वे भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गए। माधोपुर हैडवर्क्स हमारे नगर से दस कि० मी० दूरी पर था। हम सबने अपने – अपने साइकिलों पर जाने का निश्चय किया।

पिकनिक के लिए रविवार का दिन निश्चित किया गया। रविवार को हम सबने नाश्ता करने के बाद अपने-अपने लंच बॉक्स तैयार किए तथा कुछ अन्य खाने का सामान अपने-अपने साइकिलों पर रख लिया। मेरे मित्र के पास एक छोटा टेपरिकार्डर भी था उसे भी अपने साथ ले लिया तथा साथ में कुछ अपने मनपसंद गानों की टेप्स भी रख लीं। हम सब अपनी-अपनी साइकिल पर सवार होकर, हँसते-गाते एक-दूसरे को चुटकले सुनाते पिकनिक स्थल की ओर बढ़ चले।

लगभग 45 मिनट में हम सब माधोपुर हैडवर्क्स पर पहुँच गए। वहाँ हमने प्रकृति को अपनी संपूर्ण सुषमा के साथ विराजमान देखा। चारों तरफ़ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, शीतल और मंद-मंद हवा बह रही थी। हमने एक ऐसी जगह चुनी जहाँ घास की प्राकृतिक कालीन बिछी हुई थी। हमने वहाँ एक दरी बिछा दी। साइकिल चलाकर हम थोड़ा थक गए थे, अतः हमने पहले थोड़ी देर विश्राम किया। हमारे एक साथी ने हमारी कुछ फ़ोटो उतारीं। थोड़ी देर सुस्ता कर हमने टेप रिकार्डर चला दिया और गीतों की धुन पर मस्ती में भर कर नाचने लगे।

कुछ देर तक हमने इधर-उधर घूम कर वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों का नज़ारा देखा। दोपहर को हम सबने अपने-अपने टिफ़िन खोले और सबने मिल बैठ कर एक-दूसरे का भोजन बाँट कर खाया। उसके बाद हमने वहाँ स्थित कैनाल रेस्ट हाउस रेस्तराँ में जाकर चाय पी। चाय-पान के बाद हमने अपने स्थान पर बैठकर अंताक्षरी खेलनी शुरू की। इसके बाद हमने एक-दूसरे को कुछ चुटकले और कुछ आपबीती हँसी मज़ाक की बातें बताईं। समय कितनी जल्दी बीत गया इसका हमें पता ही न चला। जब सूर्य छिपने को आया तो हम ने अपना-अपना सामान समेटा और घर की तरफ चल पड़े।

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16. जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत

संकेत बिंदु – भूमिका, संगति का महत्त्व, सत्संगति, दुर्जन का साथ, उपसंहार।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब तक वह समाज से संपर्क स्थापित नहीं करता तब तक उसके जीवन की गाड़ी नहीं चल सकती। समाज में कई प्रकार के लोग होते हैं। कुछ सदाचारी हैं तो कुछ दुराचारी। हमें ऐसे लोगों की संगति करनी चाहिए जो हमारे जीवन को उन्नत एवं निर्मल बनाएँ। अच्छी संगति का प्रभाव अच्छा तथा बुरी संगति का प्रभाव बुरा होता है। क्योंकि ‘जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत’ कहा भी है कि किसी व्यक्ति के आचरण को जानने के लिए उसकी संगति को जानना चाहिए।

क्योंकि दुष्टों के साथ रहने वाला व्यक्ति भला हो ही नहीं सकता। संगति का प्रभाव जाने अथवा अनजाने अवश्य पड़ता है। बचपन में जो बालक परिवार अथवा मुहल्ले में जो कुछ सुनते हैं, प्रायः उसी को दोहराते हैं। कहा गया है “दुर्जन यदि विद्वान भी हो तो उसकी संगति छोड़ देनी चाहिए। मणि धारण करने वाला साँप क्या भयंकर नहीं होता ?” सत्संगति का हमारे चरित्र के निर्माण में बड़ा हाथ रहता है। अच्छी पुस्तकों का अध्ययन भी सत्संग से कम नहीं। विद्वान लेखक अपनी पुस्तक रूप में हमारे साथ रहता है।

अच्छी पुस्तकें हमारी मित्र एवं पथ-प्रदर्शक हैं। महान व्यक्तियों के संपर्क ने अनेक व्यक्तियों के जीवन को कंचन के समान बहुमूल्य बना दिया। दुष्टों एवं दुराचारियों का संग मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है। मनुष्य को विवेक प्राप्त करने के लिए सत्संगति का आश्रय लेना चाहिए। अपनी और समाज की उन्नति के लिए सत्संग से बढ़कर दूसरा साधन नहीं है। अच्छी संगति आत्म- बल को बढ़ाती है तथा सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

17. सब दिन होत न एक समान

संकेत बिंदु – भूमिका, सुख-दुख, ऋतु परिवर्तन, उपसंहार।

जीवन को जल की संज्ञा दी गई है। जल कभी सम भूमि पर बहता है तो कभी विषम भूमि पर। कभी रेगिस्तान की भूमि उसका शोषण करती है तो कभी वर्षा की धारा उसके प्रवाह को बढ़ा देती है। मानव जीवन में भी कभी सुख का अध्याय जुड़ता है तो कभी दुख अपने पूरे दल-बल के साथ आक्रमण करता है। प्रकृति में दुख-सुख की धूप-छाया के दर्शन होते हैं। प्रातः काल का समय सुख का प्रतीक है तो रात्रि दुख का। विभिन्न ऋतुएँ भी जीवन के विभिन्न पक्षों की प्रतीक हैं। राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा है –
संसार में किसका समय है एक सा रहता सदा,
है निशा दिवा सी घूमती सर्वत्र विपदा – संपदा।
संसार के बड़े-बड़े शासकों का समय भी एक-सा नहीं रहा है। अंतिम मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह ज़फर का करुण अंत इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य का समय हमेशा एक-सा नहीं रहता। जो आज दीन एवं दुखी है वह कल वैभव के झूले में झूलता दिखाई देता है। जो आज सुख-संपदा एवं ऐश्वर्य में डूबा हुआ है, संभव है भाग्य के विपरीत होने के कारण उसे दर-दर की ठोकरें खाने पर विवश होना पड़े। जो वृक्ष, लताएँ एवं पौधे वसंत ऋतु में वातावरण को मादकता प्रदान करते हैं, वही पतझड़ में वातावरण को नीरस बना देते हैं। जीवन सुख-दुख, आशा-निराशा एवं हर्ष – विषाद का समन्यव है। एक ओर जीवन का उदय है तो दूसरी ओर जीवन का अस्त। अतः ठीक ही कहा गया है ‘सब दिन होत न एक समान।’

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18. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

संकेत बिंदु – भूमिका, अर्थ, देशानुराग, अधिकार और कर्तव्य, उपसंहार।

इस कथन का भाव है “जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है।” जो व्यक्ति अपनी माँ से और भूमि से प्रेम नहीं करता, वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। देश-द्रोह एवं मातृद्रोह से बड़ा अपराध कोई और नहीं है। यह ऐसा अपराध है जिसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं है। देश – प्रेम की भावना ही मनुष्य को यह प्रेरणा देती है कि जिस भूमि से उसका भरण-पोषण हो रहा है, उसकी रक्षा के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर देना उसका परम कर्तव्य है। जननी एवं जन्मभूमि के प्रति प्रेम की भावना जीवधारियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। अतः उसके हृदय में देशानुराग की भावना का उदय स्वाभाविक है। मरुस्थल में रहने वाले लोग हाँफ- हाँफकर जीते हैं, फिर भी उन्हें अपनी जन्मभूमि से अगाध प्रेम है। ध्रुववासी अत्यंत शीत के कारण अंधकार तथा शीत में काँप – काँप कर तो जीवन व्यतीत कर लेते हैं, पर अपनी मातृभूमि का बाल- बाँका नहीं होने देते। मुग़ल साम्राज्य के अंतिम दीप सम्राट बहादुरशाह ज़फर की रंगून के कारागार से लिखी ये पंक्तियाँ कितनी मार्मिक हैं –
कितना है बदनसीब ज़फर दफन के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कूचा-ए-यार में।
जिस देश के लोग अपनी मातृ-भूमि से जितना अधिक स्नेह करते हैं, वह देश उतना ही उन्नत माना जाता है। देश-प्रेम की भावना ने ही भारत की पराधीनता की जंज़ीरों को काटने के लिए देश-भक्तों को प्रेरित किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के प्रति हमारा कर्तव्य और भी बढ़ गया है। इस कर्तव्य की पूर्ति हमें जी-जान लगाकर करनी चाहिए।

19. नेता नहीं, नागरिक चाहिए

संकेत बिंदु – भूमिका, नेता, आदर्श नेता, आदर्श नागरिक और सद्गुण, अधिकार – कर्तव्य में संतुलन, उपसंहार।

लोगों का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को नेता कहते हैं। आदर्श नेता एक मार्ग-दर्शक के समान है, जो दूसरों को सुमार्ग की ओर ले जाता है। आदर्श नागरिक ही आदर्श नेता बन सकता है। आज के नेताओं में सद्गुणों का अभाव है। वे जनता के शासक बनकर रहना चाहते हैं, सेवक नहीं। उनमें अहं एवं स्पर्धा का भाव भी पाया जाता है। वर्तमान भारत की राजनीति इस तथ्य की परिचायक है कि नेता बनने की होड़ ने आपसी राग-द्वेष को ही अधिक बढ़ावा दिया है। इसीलिए यह कहा गया है – नेता नहीं नागरिक चाहिए। नागरिक को अपने कर्तव्य एवं अधिकारों के बीच समन्वय रखना पड़ता है।

यदि नागरिक अपने समाज के प्रति अपने कर्तव्य का समुचित पालन करता है तो राष्ट्र किसी संकट का सामना कर ही नहीं सकता। नेता बनने की तीव्र लालसा ने नागरिकता के भाव को कम कर दिया है। नागरिक के पास राजनीतिक एवं सामाजिक दोनों अधिकार रहते हैं। अधिकार की सीमा होती है। हमारे ही नहीं दूसरे नागरिकों के भी अधिकार होते हैं। अतः नागरिक को अपने कर्तव्यों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। नेता अधिकारों की बात ज्यादा जानता है, लेकिन कर्तव्यों के प्रति उपेक्षा भाव रखता है। उत्तम नागरिक ही उत्तम नेता होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह परम कर्तव्य है कि वह अपने आपको एक अच्छा नागरिक बनाए। नागरिक में नेतृत्व का भाव स्वयंमेव आ जाता है। नेता का शाब्दिक अर्थ है जो दूसरों को आगे ले जाए अर्थात् अपने साथियों के प्रति सहायता एवं सहानुभूति का भाव अपनाए। अतः देश को नेता नहीं नागरिक चाहिए।

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20. आलस्य दरिद्रता का मूल है

संकेत बिंदु – भूमिका, परिश्रम का महत्त्व, उन्नति का मार्ग, आलस्य की हानियाँ, उपसंहार।

जो व्यक्ति श्रम से पलायन करके आलस्य का जीवन व्यतीत करते हैं वे कभी भी सुख-सुविधा का आनंद प्राप्त नहीं कर सकते। कोई भी कार्य यहाँ तक कि स्वयं का जीना भी बिना काम किए संभव नहीं। यह ठीक है कि हमारे जीवन में भाग्य का बड़ा हाथ है। दुर्भाग्य के कारण संभव है मनुष्य को विकास और वैभव के दर्शन न हों पर परिश्रम के बल पर वह अपनी जीविका के प्रश्न को हल कर ही सकता है। यदि ऐसा न होता तो श्रम के महत्त्व को कौन स्वीकार करता। कुछ लोगों का विचार है कि भाग्य के अनुसार ही मनुष्य सुख-दुख भोगता है। दाने-दाने पर मोहर लगी है, भगवान सब का ध्यान रखता है। जिसने मुँह दिया है, वह खाना भी देगा। ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि भाग्य का निर्माण भी परिश्रम द्वारा ही होता है। राष्ट्रकवि दिनकर ने ठीक ही कहा है –

ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में, मनुज नहीं लाया है।
उसने अपना सुख, अपने ही भुजबल से पाया है ॥

भगवान ने मुख के साथ-साथ दो हाथ भी दिए हैं। इन हाथों से काम लेकर मनुष्य अपनी दरिद्रता को दूर कर सकता है। हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने वाला व्यक्ति आलसी होता है। जो आलसी है वह दरिद्र और परावलंबी है क्योंकि आलस्य दरिद्रता का मूल है। आज इस संसार में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह श्रम का ही परिणाम है। यदि सभी लोग आलसी बने रहते तो ये सड़कें, भवन, अनेक प्रकार के यान, कला-कृतियाँ कैसे बनतीं ? श्रम से मिट्टी सोना उगलती है परंतु आलस्य से सोना भी मिट्टी बन जाता है। अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की दरिद्रता दूर करने के लिए आलस्य का परित्याग कर परिश्रम को अपनाने की आवश्यकता है। हमारे राष्ट्र में जितने हाथ हैं, यदि वे सभी काम में जुट जाएँ तो सारी दरिद्रता बिलख-बिलखकर विदा हो जाएगी। आलस्य ही दरिद्रता का मूल है 1

21. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत (2018)

संकेत बिंदु – भूमिका, मन का महत्त्व, मानसिक शक्ति, उन्नति का मार्ग, उपसंहार।

मानव-शरीर यदि रथ के समान है तो यह मन उसका चालक है। मनुष्य के शरीर की असली शक्ति उसका मन है। मन के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। मन ही वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य से बड़े-से-बड़े काम करवा लेती है। यदि मन में दुर्बलता का भाव आ जाए तो शक्तिशाली शरीर और विभिन्न प्रकार के साधन व्यर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एक सैनिक को लिया जा सकता है। यदि उसने अपने मन को जीत लिया है तो वह अपनी शारीरिक शक्ति एवं अनुमान से कहीं अधिक सफलता पा सकता है।

यदि उसका मन हार गया तो बड़े-बड़े मारक अस्त्र-शस्त्र भी उसके द्वारा अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। मन की शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं। मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अतः ठीक ही कहा गया है- ” मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”

22. सबै सहायक सबल के

संकेत बिंदु – भूमिका, बल की महत्ता, शक्ति और साहस, जिसकी लाठी उसकी भैंस, शक्ति के बल पर कुकृत्य छिपाना, उपसंहार।

यह संसार शक्ति का लोहा मानता है। लोग चढ़ते सूर्य की पूजा करते हैं। शक्तिशाली की सहायता के लिए सभी तत्पर रहते हैं लेकिन निर्बल को कोई नहीं पूछता। वायु भी आग को तो भड़का देती है, पर दीपक को बुझा देती है। दीपक निर्बल है, कमज़ोर है, इसलिए वायु का उस पर पूर्ण अधिकार है। व्यावहारिक जीवन में भी हम देखते हैं कि जो निर्धन हैं, वे और निर्धन बनते जाते हैं, और जो धनवान हैं उनके पास और धन चला आ रहा इसका एकमात्र कारण यही है कि सबल की सभी सहायता कर रहे हैं और निर्धन उपेक्षित हो रहा है।

सर्वत्र जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। सामाजिक जीवन से लेकर अंतर्राष्ट्रीय जीवन तक यह भावना काम कर रही है। एक शक्तिशाली राष्ट्र दूसरे शक्तिशाली राष्ट्र की सहायता सहर्ष करता है जबकि निर्धन देशों को शक्ति संपन्न देशों के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है। परिवार जैसे सीमित क्षेत्र में भी प्रायः यह देखने को मिलता है कि जो धनवान हैं, उनके प्रति सहायता एवं सत्कार की भावना अधिक होती है। घर में जब कभी कोई धनवान आता है तो उसकी खूब सेवा की जाती है, लेकिन जब द्वार पर भिखारी आता है तो उसको दुत्कार दिया जाता है।

निर्धन ईमानदारी एवं सत्य के पथ पर चलता हुआ भी अनेक कष्टों का सामना करता है जबकि शक्तिशाली दुराचार एवं अन्याय के पथ पर बढ़ता हुआ भी दूसरों की सहायता प्राप्त करने में समर्थ होता है। इसका कारण यही है कि उसके पास शक्ति है तथा अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिए साधन हैं। अतः वृंद कवि का यह कथन बिल्कुल सार्थक प्रतीक होता है- सबै सहायक सबल के, कोऊ न निबल सहाय।

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23. सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है

संकेत बिंदु – भूमिका, सामाजिक जीवन, मित्र की आवश्यकता, मित्र का चुनाव, सच्चा मित्र, उपसंहार।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अभाव में उसका जीवन निर्वाह संभव नहीं। सामाजिकों के साथ हमारे संबंध अनेक प्रकार के हैं। कुछ हमारे संबंधी हैं, कुछ परिचित तथा कुछ मित्र होते हैं। मित्रों में भी कुछ विशेष प्रिय होते हैं। जीवन में यदि सच्चा मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमें बहुत बड़ी निधि मिल गई है। सच्चा मित्र हमारा मार्ग प्रशस्त करता है।

वह दिन-प्रतिदिन हमें उन्नति की ओर ले जाता है। उसके सद्व्यवहार से हमारे जीवन में निर्मलता का प्रसार होता है। दुख के दिनों में वह हमारे लिए विशेष सहायक होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तो वह हम में उत्साह भरता है। वह हमें कुमार्ग से हटा कर सुमार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है। सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया।

सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता। वह मित्र की सहायता करना अपना कर्तव्य समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है, अतः ठीक ही कहा गया है “सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है।”

24. जीवन का रहस्य निष्काम सेवा है

संकेत बिंदु – भूमिका, जीवन लक्ष्य का महत्त्व, परोपकार, सेवा-भाव, उपसंहार।

प्रत्येक मनुष्य अपनी रुचि के अनुसार अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है। कोई व्यापारी बनना चाहता है तो कोई कर्मचारी, कोई इंजीनियर बनने की लालसा से प्रेरित है तो कोई डॉक्टर बनकर घर भरना चाहता है। स्वार्थ पूर्ति के लिए किया गया काम उच्च कोटि की संज्ञा नहीं पा सकता। स्वार्थ के पीछे तो संसार पागल है। लोग भूल गए हैं कि जीवन का रहस्य निष्काम सेवा है। जो व्यक्ति काम – भावना से प्रेरित होकर काम करता है, वह कभी भी सुपरिणाम नहीं ला सकता। उससे कोई लाभ हो भी तो वह केवल व्यक्ति विशेष को ही होता है। समाज को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। निष्काम सेवा के द्वारा ही मनुष्य समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभा सकता है। कबीरदास ने भी अपने एक दोहे में यह स्पष्ट किया है –

जब लगि भक्ति सकाम है, तब लेगि निष्फल सेव।
कह कबीर वह क्यों मिले निहकामी निज देव ॥

निष्काम सेवा के द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। समाज एवं देश को उन्नति की ओर ले जाने का श्रेष्ठतम तथा सरलतम साधन निष्काम सेवा है। हमारे संत कवियों तथा समाज सुधारकों ने इसी भाव से प्रेरित होकर अपनी चिंता छोड़ देश और जाति का कल्याण किया। इसलिए वे समाज और राष्ट्र के लिए कुछ कर सके। अपने लिए तो सभी जीते हैं। जो दूसरों के लिए जीता है, उसका जीवन अमर हो जाता है। तभी तो गुप्त जी ने कहा है – “वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे। ”

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25. भीड़ भरी बस की यात्रा का अनुभव

संकेत बिंदु – भूमिका, यात्रा का कारण, बस की यात्रा, भीड़, उपसंहार।

वैसे तो जीवन को ही यात्रा की संज्ञा दी गई है पर कभी-कभी मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए गाड़ी अथवा बस का भी सहारा लेना पड़ता है। बस की यात्रा का अनुभव भी बड़ा विचित्र है। भारत जैसे जनसंख्या प्रधान देश में बस की यात्रा अत्यंत असुविधानजनक है। प्रत्येक बस में सीटें तो गिनती की हैं पर बस में चढ़ने वालों की संख्या निर्धारित करना एक जटिल कार्य है। भले ही बस हर पाँच मिनट बाद चले पर चलेगी पूरी तरह भर कर। गर्मियों के दिनों में तो यह यात्रा किसी भी यातना से कम नहीं।

भारत के नगरों की अधिकांश सड़कें सम न होकर विषम हैं। खड़े हुए यात्री की तो दुर्दशा हो जाती है, एक यात्री दूसरे यात्री पर गिरने लगता है। कभी-कभी तो लड़ाई-झगड़े की नौबत पैदा हो जाती है। लोगों की जेबें कट जाती हैं। जिन लोगों के कार्यालय दूर हैं, उन्हें प्रायः बस का सहारा लेना ही पड़ता है। बस यात्रा एक प्रकार से रेल यात्रा का लघु रूप है। जिस प्रकार गाड़ी में विभिन्न जातियों एवं प्रवृत्तियों के लोगों के दर्शन होते हैं, उसी प्रकार बस में भी अलग-अलग विचारों के लोग मिलते हैं।

इनसे मनुष्य बहुत कुछ सीख भी सकता है। भीड़ भरी बस की यात्रा जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का छोटा-सा शिक्षालय है। यह यात्रा इस तथ्य की परिचायक है कि भारत अनेक क्षेत्रों में अभी तक भरपूर प्रगति नहीं कर सका। जो व्यक्ति बस यात्रा के अनुभव से वंचित है, वह एक प्रकार से भारतीय जीवन के बहुत बड़े अनुभव से ही वंचित है।

26. अधजल गगरी छलकत जाय

संकेत बिंदु – भूमिका, अधूरा ज्ञान- व्यर्थ, डींग हाँकना, झूठा प्रदर्शन और अपूर्णता, हीनता की ग्रंथि, झूठा गौरव और दिखावे की भावना,

उपसंहार। जल से आमुख भरी गगरी चुपचाप बिना उछले चलती है। आधी भरी हुई जल की मटकी उछल-उछल कर चलती है। ठीक यही स्वभाव मानव मन का भी है। वास्तविक विद्वान विनम्र हो जाते हैं। नम्रता ही उनकी शिक्षा का प्रतीक होता है। दूसरी ओर जो लोग अर्द्ध- शिक्षित होते हैं अथवा अर्द्ध- समृद्ध होते हैं, वे अपने ज्ञान अथवा धन की डींग बहुत हाँकते हैं।

अर्द्ध- शिक्षित व्यक्ति का डींग हाँकना बहुत कुछ मनोवैज्ञानिक भी है। वे लोग अपने ज्ञान का प्रदर्शन करके अपनी अपूर्णता को ढकना चाहते हैं। उनके मन में अपने अधूरेपन के प्रति एक प्रकार की हीनता का मनोभाव होता है जिसे वे प्रदर्शन के माध्यम से झूठा प्रभाव उत्पन्न करके समाप्त करना चाहते हैं। यही कारण है कि मध्यमवर्गीय व्यक्तियों के जीवन जितने आडंबरपूर्ण, प्रपंचपूर्ण एवं लचर होते हैं उतने निम्न या उच्च वर्ग के नहीं। उच्च वर्ग में शिक्षा, धन और समृद्धि रच जाती है।

इस कारण ये चीजें महत्त्व को बढ़ाने का साधन नहीं बनतीं। मध्यमवर्गीय व्यक्ति अपनी हर समृद्धि को, अपने गुण को, अपने महत्त्व को हथियार बनाकर चलाता है। प्रायः यह व्यवहार देखने में आता है कि अंग्रेज़ी की शिक्षा से अल्प परिचित लोग अंग्रेज़ी बोलने तथा अंग्रेज़ी में निमंत्रण- पत्र छपवाने में अधिक गौरव अनुभव करते हैं। अतः यह सत्य है कि अपूर्ण समृद्धि प्रदर्शन को जन्म देती है अर्थात् अधजल गगरी छलकत जाय।

27. मन चंगा तो कठौती में गंगा

संकेत बिंदु – भूमिका, संत रविदास का कथन, निर्मल मानव-मन की महत्ता, स्वच्छ और निष्पाप हृदय, आत्मिक शांति, उपसंहार।

संत रविदास का यह वचन एक मार्मिक सत्य का उद्घाटन करता है। मानव के लिए मन की निर्मलता का होना आवश्यक है। जिसका मन निर्मल होता है, उसे बाहरी निर्मलता ओढ़ने या गंगा के स्पर्श से निर्मलता प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जिनके मन में मैल होती है, उन्हें ही गंगा की निर्मलता अधिक आकर्षित करती है। स्वच्छ एवं निष्पाप हृदय का व्यक्ति बाह्य आडंबरों से दूर रहता है। अपना महत्त्व प्रतिपादित करने के लिए वह विभिन्न प्रपंचों का सहारा नहीं लेता।

प्राचीन भारत में ऋषि-मुनि घर-बार सभी त्याग कर सभी भौतिक सुखों से रहित होकर भी परमानंद की प्राप्ति इसीलिए कर लेते थे कि उनकी मन – आत्मा पर व्यर्थ के पापों का बोझ नहीं होता था। बुरे मन का स्वामी चाहे कितना भी प्रयास कर ले कि उसे आत्मिक शांति मिले, परंतु वह उसे प्राप्त नहीं कर सकता। भक्त यदि परमात्मा को पाना चाहते हैं तो भगवान स्वयं भी उसकी भक्ति से प्रभावित हो उसके निकट आना चाहता है। वह भक्त के निष्कपट, निष्पाप और निष्कलुष हृदय में मिल जाना चाहता है।

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28. जहाँ चाह, वहाँ राह

संकेत बिंदु – भूमिका, मनुष्य की संघर्षशीलता, उन्नति की राह, परिश्रम की उपयोगिता, उपसंहार।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में प्रतिष्ठापूर्वक जीवन यापन करने के लिए उसे निरंतर संघर्षशील रहना पड़ता है। इसके लिए वह नित्य नवीन प्रयास करता है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा बनी रहे तथा वह नित्य प्रति उन्नति करता रहे। यदि मनुष्य के मन में उन्नति करने की इच्छा नहीं होगी तो वह कभी उन्नति कर ही नहीं सकता। अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए मनुष्य अनेक प्रयत्न करता है तब कहीं अंत में उसे सफलता मिलती है। सबसे

पहले मन में किसी कार्य को करने की इच्छा होनी चाहिए, तभी हम कार्य करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं। संस्कृत में एक कथन है कि ‘ उदयमेन हि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथ:’ अर्थात परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है। परिश्रम मनुष्य तब करता है जब उसके मन में परिश्रम करने की इच्छा उत्पन्न होती है। जिस मनुष्य के मन में कार्य करने की इच्छा ही नहीं होगी वह कुछ भी नहीं कर सकता। जैसे पानी पीने की इच्छा होने पर हम नल अथवा कुएँ से पानी लेकर पीते हैं। यहाँ पानी पीने की इच्छा ने पानी को प्राप्त करने के लिए हमें नल अथवा कुएँ तक जाने का मार्ग बनाने की प्रेरणा दी। अतः कहा जाता है कि जहाँ चाह, वहाँ राह।

29. का वर्षा जब कृषि सुखाने

संकेत बिंदु – भूमिका, साधन और समय में तारतम्यता, उचित अवसर, अनुकूल समय की परख, उपसंहार।

गोस्वामी तुलसीदास की इस सूक्ति का अर्थ है – जब खेती ही सूख गई, तब पानी के बरसने का क्या लाभ है ? जब ठीक अवसर पर वांछित वस्तु उपलब्ध न हुई तो बाद में उस वस्तु का मिलना बेकार ही है। साधन की उपयोगिता तभी सार्थक हो सकती है, जब वे समय पर उपलब्ध हो जाएँ। अवसर बीतने पर सब साधन व्यर्थ पड़े रहते हैं। अंग्रेज़ी में एक कहावत है- लोहे पर तभी चोट करो जबकि वह गर्म हो अर्थात् जब लोहा मुड़ने और ढलने को तैयार हो, तभी उचित चोट करनी चाहिए।

उस अवसर को खो देने पर केवल लोहे की टन टन की आवाज़ के अतिरिक्त कुछ लाभ नहीं मिल सकता। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह उचित समय की प्रतीक्षा में हाथ पर हाथ रख कर न बैठा रहे, अपितु समय की आवश्यकता को पहले से ध्यान करके उसके लिए उचित तैयारी करे। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि समय एक ऐसी स्त्री है जो अपने लंबे बाल मुँह के आगे फैलाए हुए निरंतर दौड़ती चली जा रही है।

जिसे भी समय रूपी उस स्त्री को वश में करना हो, उसे चाहिए कि वह समय के आगे-आगे दौड़ कर उस स्त्री के बालों से उसे पकड़े। उसके पीछे-पीछे दौड़ने से मनुष्य उसे नहीं पकड़ पाता। आशय यह है कि उचित समय पर उचित साधनों का होना ज़रूरी है। जो लोग आग लगने पर कुआँ खोदते हैं, वे आग में अवश्य झुलस जाते हैं। उनका कुछ भी शेष नहीं बचता।

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30. परिश्रम सफलता की कुंजी है –

संकेत बिंदु – भूमिका, परिश्रम का महत्त्व, समयानुसार बुद्धि का सदुपयोग, परिश्रम और बुद्धि का तालमेल, उपसंहार।

संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्ति है – ‘उद्यमेनहि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथः ‘ अर्थात् परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है, मात्र इच्छा करने से नहीं। सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम ही एकमात्र मंत्र है। ‘श्रमेव जयते’ का सूत्र इसी भाव की ओर संकेत करता है। परिश्रम के बिना हरी-भरी खेती सूखकर झाड़ बन जाती है जबकि परिश्रम से बंजर भूमि को भी शस्य – श्यामला बनाया जा सकता है।

असाध्य कार्य भी परिश्रम के बल पर संपन्न किए जा सकते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति कितने ही प्रतिभाशाली हों, किंतु उन्हें लक्ष्य में सफलता तभी मिलती है जब वे अपनी बुद्धि और प्रतिभा को परिश्रम की सान पर तेज़ करते हैं। न जाने कितनी संभावनाओं के बीज पानी, मिट्टी, सिंचाई और जुताई के अभाव में मिट्टी बन जाते हैं, जबकि ठीक संपोषण प्राप्त करके कई बीज सोना भी बन जाते हैं। कई बार प्रतिभा के अभाव में परिश्रम ही अपना रंग दिखलाता है। प्रसिद्ध उक्ति है कि निरंतर घिसाव से पत्थर पर भी चिह्न पड़ जाते हैं।

जड़मति व्यक्ति परिश्रम द्वारा ज्ञान उपलब्ध कर लेता है। जहाँ परिश्रम तथा प्रतिभा दोनों एकत्र हो जाते हैं वहाँ किसी अद्भुत कृति का सृजन होता है। शेक्सपीयर ने महानता को दो श्रेणियों में विभक्त किया है – जन्मजात महानता तथा अर्जित महानता। यह अर्जित महानता परिश्रम के बल पर ही अर्जित की जाती है। अतः जिन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है, उन्हें अपने श्रम-बल का भरोसा रखकर कर्म में जुटना चाहिए। सफलता अवश्य ही उनकी चेरी बन कर उपस्थित होगी।

31. समय का महत्त्व अथवा
अथवा
समय सबसे बड़ा धन है

संकेत बिंदु – भूमिका, जीवन की क्षणिकता, समय का महत्त्व, मनोरंजन और समय का मूल्य, परिश्रम ही प्रगति की राह, उपसंहार।

दार्शनिकों ने जीवन को क्षणभंगुर कहा है। इनकी तुलना प्रभात के तारे और पानी के बुलबुले से की गई है। अतः यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हम अपने जीवन को सफल कैसे बनाएँ। इसका एकमात्र उपाय समय का सदुपयोग है। समय एक अमूल्य वस्तु है। इसे काटने की वृत्ति जीवन को काट देती है। खोया समय पुनः नहीं मिलता। दुनिया में कोई भी शक्ति नहीं जो बीते हुए समय को वापस लाए।

हमारे जीवन की सफलता-असफलता समय के सदुपयोग तथा दुरुपयोग पर निर्भर करती है। कहा भी है- क्षण को क्षुद्र न समझो भाई, यह जग का निर्माता है। हमारे देश में अधिकांश लोग समय का मूल्य नहीं समझते। देर से उठना, व्यर्थ की बातचीत करना, ताश खेलना आदि के द्वारा समय नष्ट करते हैं। यदि हम चाहते हैं तो हमें पहले अपना काम पूरा करना चाहिए। बहुत से लोग समय को नष्ट करने में आनंद का अनुभव करते हैं।

मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना बहुत बड़ी भूल है। समय का सदुपयोग करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक कार्य को करने का समय निश्चित कर लें। फिर उस कार्य को उसी समय में करने का प्रयत्न करें। इस तरह का अभ्यास होने से हम समय का मूल्य समझ जाएँगे और देखेंगे कि हमारा जीवन निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता जा रहा है। समय के सदुपयोग से ही जीवन का पथ सरल हो जाता है। महान व्यक्तियों के महान बनने का रहस्य समय का सदुपयोग ही है। समय के सदुपयोग के द्वारा ही मनुष्य अमर कीर्ति का पात्र बन सकता है। समय का सदुपयोग ही जीवन का सदुपयोग है। इसी में जीवन की सार्थकता है –
“कल करै सो आज कर, आज करै सो अब। पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब॥

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32. स्त्री शिक्षा का महत्त्व

संकेत बिंदु – भूमिका, शिक्षा का महत्त्व, नारी का घर और समाज में स्थान, सामाजिक कर्तव्य, गृह विज्ञान की शिक्षा, उपसंहार।

विद्या हमारी भी न तब तक काम में कुछ आएगी।
नारियों को भी सुशिक्षा दी न जब तक जाएगी।

आज शिक्षा मानव – जीवन का एक अंग बन गई है। शिक्षा के बिना मनुष्य ज्ञान – पंगु कहलाता है। पुरुष के साथ-साथ नारी को भी शिक्षा की आवश्यकता है। नारी शिक्षित होकर ही बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सकती है। बच्चों पर पुरुष की अपेक्षा नारी के व्यक्तित्व का प्रभाव अधिक पड़ता है। अतः उसका शिक्षित होना ज़रूरी है। ‘स्त्री का रूप क्या हो ?’ – यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि नारी और पुरुष के क्षेत्र अलग-अलग हैं।

पुरुष को अपना अधिकांश जीवन बाहर के क्षेत्र में बिताना पड़ता है जबकि नारी को घर और बाहर में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है। सामाजिक कर्तव्य के साथ-साथ उसे घर के प्रति भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। अतः नारी को गृह विज्ञान की शिक्षा में संपन्न होना चाहिए। अध्ययन के क्षेत्र में भी वह सफल भूमिका का निर्वाह कर सकती है।

शिक्षा के साथ-साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी उसे योगदान देना चाहिए। सुशिक्षित माताएँ ही देश को अधिक योग्य, स्वस्थ और आदर्श नागरिक दे सकती हैं। स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार होना चाहिए। नारी को फ़ैशन से दूर रह कर सादगी के जीवन का समर्थन करना चाहिए। उसकी शिक्षा समाजोपयोगी होनी चाहिए।

33. स्वास्थ्य ही जीवन है

संकेत बिंदु – भूमिका, स्वास्थ्य का महत्त्व, अस्वस्थ व्यक्ति की मानसिकता, अक्षमता, नशीले पदार्थों की अनुपयोगिता, पौष्टिक और सात्विक भोजन की आवश्यकता, भ्रमण की उपयोगिता, उपसंहार।

जीवन का पूर्ण आनंद वही ले सकता है जो स्वस्थ है। स्वास्थ्य के अभाव में सब प्रकार की सुख-सुविधाएँ व्यर्थ प्रमाणित होती हैं। तभी तो कहा है – ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात शरीर ही सब धर्मों का मुख्य साधन है। स्वास्थ्य जीवन है और अस्वस्थता मृत्यु है। अस्वस्थ व्यक्ति का किसी भी काम में मन नहीं लगता। बढ़िया से बढ़िया खाद्य पदार्थ उसे विष के समान लगता है। वस्तुतः उसमें काम करने की क्षमता ही नहीं होती। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपने स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहे। स्वास्थ्य-रक्षा के लिए नियमितता तथा संयम की सबसे अधिक ज़रूरत है।

समय पर भोजन, समय पर सोना और जागना अच्छे स्वास्थ्य के लक्षण हैं। शरीर की सफाई की तरफ भी पूरा ध्यान देने की ज़रूरत है। सफाई के अभाव से तथा असमय खाने-पीने से स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। क्रोध, भय आदि भी स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। नशीले पदार्थों का सेवन तो शरीर के लिए घातक साबित होता है। स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए पौष्टिक एवं सात्विक भोजन भी ज़रूरी है। स्वास्थ्य रक्षा के लिए व्यायाम का भी सबसे अधिक महत्त्व है। व्यायाम से बढ़कर न कोई औषधि है और न कोई टॉनिक।

व्यायाम से शरीर में स्फूर्ति आती है, शक्ति, उत्साह एवं उल्लास का संचार होता है। शरीर की आवश्यकतानुसार विविध आसनों का प्रयोग भी बड़ा लाभकारी होता है। खेल भी स्वास्थ्य लाभ का अच्छा साधन है। इनसे मनोरंजन भी होता है और शरीर भी पुष्ट तथा चुस्त बनता है। प्रायः भ्रमण का भी विशेष लाभ है। इससे शरीर का आलस्य भागता है, काम में तत्परता बढ़ती है। जल्दी थकान का अनुभव नहीं होता।

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34. मधुर वाणी

संकेत बिंदु – भूमिका, श्रेष्ठ वाणी की उपयोगिता, कटुता और कर्कश वाणी, चरित्र की स्पष्टता, विनम्रता और मधुरवाणी, उपसंहार।

वाणी ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है। वाणी के द्वारा ही मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान दूसरे व्यक्तियों से करता है। वाणी का मनुष्य के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। सुमधुर वाणी के प्रयोग से लोगों के साथ आत्मीय संबंध बन जाते हैं, जो व्यक्ति कर्कश वाणी का प्रयोग करते हैं, उनसे लोगों में कटुता की भावना व्याप्त हो जाती है। जो लोग अपनी वाणी का मधुरता से प्रयोग करते हैं, उनकी सभी लोग प्रशंसा करते हैं। सभी लोग उनसे संबंध बनाने के इच्छुक रहते हैं। वाणी मनुष्य के चरित्र को भी स्पष्ट करने में सहायक होती है।

जो व्यक्ति विनम्र और मधुर वाणी से लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उसके बारे में लोग यही समझते हैं कि इनमें सद्भावना विद्यमान है। मधुर वाणी मित्रों की संख्या में वृद्धि करती है। कोमल और मधुर वाणी से शत्रु के मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। वह भी अपनी द्वेष और ईर्ष्या की भावना को विस्तृत करके मधुर संबंध बनाने का इच्छुक हो जाता है। यदि कोई अच्छी बात भी कठोर और कर्कश वाणी में कही जाए तो लोगों पर उसकी प्रतिक्रिया विपरीत होती है। लोग यही समझते हैं कि यह व्यक्ति अहंकारी है। इसलिए वाणी मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है तथा उसे उसका सदुपयोग करना चाहिए।

35. नारी शक्ति

संकेत बिंदु – भूमिका, नारी का स्वरूप, प्राचीन ग्रंथों में नारी, नारी के बिना नर नारी की सक्षमता, उपसंहार।

नारी त्याग, तपस्या, दया, ममता, प्रेम एवं बलिदान की साक्षात मूर्ति है। नारी तो नर की जन्मदात्री है। वह भगिनी भी और पत्नी भी है। वह सभी रूपों में सुकुमार, सुंदर और कोमल दिखाई देती है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी नारी को पूज्य माना गया है। कहा गया है कि जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। उसके हृदय में सदैव स्नेह की धारा प्रवाहित होती रहती है। नर की रुक्षता, कठोरता एवं उद्दंडता को नियंत्रित करने में भी नारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वह धात्री, जन्मदात्री और दुखहर्त्री है।

नारी के बिना नर अपूर्ण है। नारी को नर से बढ़कर कहने में किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है। नारी प्राचीन काल से आधुनिक काल तक अपनी महत्ता एवं श्रेष्ठता प्रतिपादित करती आई है। नारियाँ, ज्ञान, कर्म एवं भाव सभी क्षेत्रों में अग्रणी रही हैं। यहाँ तक कि पुरुष वर्ग के लिए आरक्षित कहे जाने वाले कार्यों में भी उसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। चाहे एवरेस्ट की चोटी ही क्यों न हो, वहाँ भी नारी के चरण जा पहुँचे हैं। अंटार्कटिका पर भी नारी जा पहुँची है। प्रशासनिक क्षमता का प्रदर्शन वह अनेक क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कर चुकी है। आधुनिक काल की प्रमुख नारियों में श्रीमती इंदिरा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू, बछेंद्री पाल, सानिया मिर्ज़ा आदि का नाम गर्व के साथ लिया जा सकता है।

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36. चाँदनी रात में नौका विहार

संकेत बिंदु – भूमिका, ग्रीष्म ऋतु में यमुना नदी में विहार, रात्रिकालीन प्राकृतिक सुषमा, उन्माद भरा वातावरण, उपसंहार।

ग्रीष्मावकाश में हमें पूर्णिमा के अवसर पर यमुना नदी में नौका विहार का अवसर प्राप्त हुआ। चंद्रमा की चाँदनी से आकाश शांत, तर एवं उज्ज्वल प्रतीत हो रहा था। आकाश में चमकते तारे ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो वे आकाश के नेत्र हैं जो अपलक चाँदनी में डूबे पृथ्वी के सौंदर्य को देख रहे हैं। तारों से जड़े आकाश की शोभा यमुना के जल में द्विगुणित हो गई थी। इस रात – रजनी के शुभ प्रकाश में हमारी नौका धीरे-धीरे चलती हुई ऐसी लग रही थी मानो कोई सुंदर परी धीरे-धीरे चल रही हो।

जब नौका नदी के मध्य में पहुँची तो चाँदनी में चमकता हुआ पुलिन आँखों से ओझल हो गया तथा यमुना के किनारे खड़े हुए वृक्षों की पंक्ति भृकुटि सी वक्र लगने लगी। नौका के चलने से जल में उत्पन्न लहरों के कारण उसमें चंद्रमा एवं तारकवृंद ऐसे झिलमिला रहे थे मानो तरंगों की लताओं में फूल खिले हों। रजत सर्पों-सी सीधी-तिरछी नाचती हुई चाँदनी की किरणों की छाया चंचल लहरों में ऐसी प्रतीत होती थी मानो जल में आड़ी-तिरछी रजत रेखाएँ खींच दी गई हों। नौका के चलते रहने से आकाश के ओर-छोर भी हिलते हुए लगते थे।

जल में तारों की छाया ऐसी प्रतिबिंबित हो रही थी मानो जल में दीपोत्सव हो रहा हो। ऐसे में हमारे एक मित्र ने मधुर राग छेड़ दिया, जिससे वातावरण और भी अधिक उन्मादित हो गया। धीरे-धीरे हम नौका को किनारे की ओर ले आए। डंडों से नौका को खेने पर जो फेन उत्पन्न हो रही थी वह भी चाँदनी के प्रभाव से मोतियों के ढेर – सी प्रतीत हो रही थी। समस्त दृश्य अत्यंत दिव्य एवं अलौकिक ही लग रहा था।

37. राष्ट्रीय एकता

संकेत बिंदु – भूमिका, क्षेत्रीयता के प्रति मोह, देश की एकता के लिए घातक, राष्ट्रीय भावना का महत्त्व, भाषाई एकता, अनेकता में एकता, उपसंहार।

आज देश के विभिन्न राज्य क्षेत्रीयता के मोह में ग्रस्त हैं। सर्वत्र एक-दूसरे से बिछुड़ कर अलग होने तथा अपना-अपना मनोराज्य स्थापित करने की होड़ लगी हुई है। यह स्थिति देश की एकता के लिए अत्यंत घातक है क्योंकि राष्ट्रीय एकता के अभाव में देश का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। राष्ट्र से तात्पर्य किसी भौगोलिक भू-खंड मात्र अथवा उस भू-खंड में सामूहिक रूप से रहने वाले व्यक्तियों से न होकर उस भू-खंड में रहने वाली संवेदनशील जनता से होता है।

अतः राष्ट्रीय एकता वह भावना है, जो किसी एक राष्ट्र के समस्त नागरिकों को एकता के सूत्र में बाँधे रखती है। राष्ट्र के प्रति ममत्व की भावना से ही राष्ट्रीय एकता की भावना का जन्म होता है। भारत प्राकृतिक, भाषायी, रहन-सहन आदि की दृष्टि से अनेक रूप वाला होते हुए भी राष्ट्रीय स्वरूप में एक है। पर्वतराज हिमालय एवं सागर इसकी प्राकृतिक सीमाएँ हैं, समस्त भारतीय धर्म एवं संप्रदाय आवागमन में आस्था रखते हैं।

भाषाई भेदभाव होते हुए भी भारतवासियों की भावधारा एक है। यहाँ की संस्कृति की पहचान दूर से ही हो जाती है। भारत की एकता का सर्वप्रमुख प्रमाण यहाँ एक संविधान का होना है। भारतीय संसद की सदस्यता धर्म, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र आदि के भेदभाव से मुक्त हैं। इस प्रकार अनेकता में एकता के कारण भारत की राष्ट्रीय एकता सदा सुदृढ़ है।

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38. बारूद के ढेर पर दुनिया

संकेत बिंदु – भूमिका, नए-नए वैज्ञानिक आविष्कार, अस्त्र-शस्त्रों की भरमार, रासायनिक पदार्थों की अधिकता, रसायनों से जीवन को ख़तरे, उपसंहार।

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। मनुष्य ने अपने भौतिक सुखों की वृद्धि के लिए इतने अधिक वैज्ञानिक उपकरणों का आविष्कार कर लिया है कि एक दिन वे सभी उपकरण मानव सभ्यता के विनाश का कारण भी बन सकते हैं। एक- दूसरे देश को नीचा दिखाने के लिए अस्त्र-शस्त्रों, परमाणु बमों, रासायनिक बमों के निर्माण ने जहाँ परस्पर प्रतिद्वंद्विता पैदा की है वहीं इनका प्रयोग केवल प्रतिपक्षी दल को ही नष्ट नहीं करता अपितु प्रयोग करने वाले देश पर भी इनका प्रभाव पड़ता है।

नए-नए कारखानों की स्थापना से वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है। भोपाल गैस दुर्घटना के भीषण परिणाम हम अभी भी सहन कर रहे हैं। देश में एक कोने से दूसरे कोने तक ज़मीन के अंदर पेट्रोल तथा गैस की नालियाँ बिछाईं जा रही हैं, जिनमें आग लगने से सारा देश जलकर राख हो सकता है। घर में गैस के चूल्हों से अक्सर दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। पनडुब्बियों के जाल ने सागर तल को भी सुरक्षित नहीं रहने दिया है।

धरती का हृदय चीर कर मेट्रो रेल बनाई गई है। इसमें विस्फोट होने से अनेक नगर ध्वस्त हो सकते हैं। इस प्रकार आज की मानवता बारूद के एक ढेर पर बैठी है, जिसमें छोटी-सी चिंगारी लगने मात्र से भयंकर विस्फोट हो सकता है।

39. शक्ति अधिकार की जननी है

संकेत बिंदु – भूमिका, शक्ति के प्रकार, शारीरिक और मानसिक शक्तियों का संयोग, अधिकारों की प्राप्ति, सत्य और अहिंसा का बल, अनाचार का विरोध, उपसंहार।

शक्ति का लोहा कौन नहीं मानता है ? इसी के कारण मनुष्य अपने अधिकार प्राप्त करता है। प्रायः यह दो प्रकार की मानी जाती है – शारीरिक और मानसिक। दोनों का संयोग हो जाने से बड़ी से बड़ी शक्ति को घुटने टेकने पर विवश किया जा सकता है। अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष की आवश्यकता होती है। इतिहास इस बात का गवाह है कि अधिकार सरलता, विनम्रता और गिड़गिड़ाने से प्राप्त नहीं होते। भगवान कृष्ण ने पांडवों को अधिकार दिलाने की कितनी कोशिश की पर कौरव उन्हें पाँच गाँव तक देने के लिए सहमत नहीं हुए थे।

तब पांडवों को अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए युद्ध का रास्ता अपनाना पड़ा। भारत को अपनी आज़ादी तब तक नहीं मिली थी जब तक उसने शक्ति का प्रयोग नहीं किया। देशवासियों ने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज़ सरकार से टक्कर ली थी। तभी उन्हें सफलता प्राप्त हुई थी और देश आज़ाद हुआ था। कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र उसे शक्ति का प्रयोग करना ही पड़ता है। तभी अधिकारों की प्राप्ति होती है। शक्ति से ही अहिंसा का पालन किया जा सकता है, सत्य का अनुसरण किया जा सकता है, अत्याचार और अनाचार को रोका जा सकता है। इसी से अपने अधिकारों को प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में ही शक्ति अधिकार की जननी है।

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40. भाषण नहीं राशन चाहिए

संकेत बिंदु – भूमिका, भाषण की उपयोगिता और अनुपयोगिता, नेताओं की करनी कथनी में अंतर, आम जनता की पीड़ा, उपसंहार।

हर सरकार का यह पहला काम है कि वह आम आदमी की सुविधा का पूरा ध्यान रखे। सरकार की कथनी तथा करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। केवल भाषणों से किसी का पेट नहीं भरता। यदि बातों से पेट भर जाता तो संसार का कोई भी व्यक्ति भूख-प्यास से परेशान न होता। भूखे पेट से तो भजन भी नहीं होता। भारत एक प्रजातंत्र देश है। यहाँ के शासन की बागडोर प्रजा के हाथ में है, यह केवल कहने की बात है।

इस देश में जो भी नेता कुर्सी पर बैठता है, वह देश के उद्धार की बड़ी-बड़ी बातें करता है पर रचनात्मक रूप से कुछ भी नहीं होता। जब मंच पर आकर नेता भाषण देते हैं तो जनता उनके द्वारा दिखाए गए सब्जबाग से खुशी का अनुभव करती है। उसे लगता है कि नेता जिस कार्यक्रम की घोषणा कर रहे हैं, उससे निश्चित रूप से गरीबी सदा के लिए दूर हो जाएगी, लेकिन होता सब कुछ विपरीत है।

अमीरों की अमीरी बढ़ती जाती है और आम जनता की ग़रीबी बढ़ती जाती है। यह व्यवस्था का दोष है। इन नेताओं के हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ होती है। जनता को भाषण की नहीं राशन की आवश्यकता है। सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को ज़रूरत की वस्तुएँ प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव न हो। उसे रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या का सामना न करना पड़े। सरकार को अपनी कथनी के अनुरूप व्यवहार भी करना चाहिए। उसे यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए। भाषणों की झूठी खुराक से जनता को बहुत लंबे समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।

41. सपने में चाँद की यात्रा

संकेत बिंदु – भूमिका, मन में विचार, सपना, चाँद पर भ्रमण, नींद का खुलना।

आज के समाचार-पत्र में पढ़ा कि भारत भी चंद्रमा पर अपना यान भेज रहा है। सारा दिन यही समाचार मेरे अंतर में घूमता रहा। सोया तो स्वप्न में लगा कि मैं चंद्रयान से चंद्रमा पर जाने वाला भारत का प्रथम नागरिक हूँ। जब मैं चंद्रमा के तल पर उतरा तो चारों ओर उज्ज्वल प्रकाश फैला हुआ था। वहाँ की धरती चाँदी से ढकी हुई लग रही थी। तभी एकदम सफ़ेद वस्त्र पहने हुए परियों ने मुझे पकड़ लिया और चंद्रलोक के महाराज के पास ले गईं। वहाँ भी सभी सफ़ेद उज्ज्वल वस्त्र पहने हुए थे।

उनसे वार्तालाप में मैंने स्वयं को जब भारत का नागरिक बताया तो उन्होंने मेरा सफ़ेद रसगुल्लों जैसी मिठाई से स्वागत किया। वहाँ सभी कुछ अत्यंत निर्मल और पवित्र था। मैंने मिठाई खानी शुरू ही की थी कि मेरी मम्मी ने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे उठा दिया और डाँटने लगीं कि चादर क्यों खा रहा है ? मैं हैरान था कि यह क्या हो गया ? कहाँ तो मैं चंद्रलोक का आनंद ले रहा था और यहाँ चादर खाने पर डाँट पड़ रही है। मेरा स्वप्न भंग हो गया था और मैं भागकर बाहर की ओर चला गया।

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42. मेट्रो रेल : महानगरीय जीवन का सुखद सपना

संकेत बिंदु – भूमिका, गति, व्यवस्थित, आराम।

मेट्रो रेल वास्तव में ही महानगरीय जीवन का एक सुखद सपना है। भाग-दौड़ की जिंदगी में भीड़-भाड़ से भरी सड़कों पर लगते हुए गतिरोधों से आज मुक्ति दिला रही है मेट्रो रेल। जहाँ किसी निश्चित स्थान पर पहुँचने में घंटों लग जाते थे, वहीं मेट्रो रेल मिनटों में पहुँचा देती है। यह यातायात का तीव्रतम एवं सस्ता साधन है। यह एक सुव्यवस्थित क्रम से चलती है। इससे यात्रा सुखद एवं आरामदेह हो गई है। बसों की धक्का-मुक्की, भीड़- भाड़ से मुक्ति मिल गई है। समय पर अपने काम पर पहुँचा जा सकता है। एक निश्चित समय पर इसका आवागमन होता है, इसलिए समय की बचत भी होती है। व्यर्थ में इंतज़ार नहीं करना पड़ता है। महानगर के जीवन में यातायात क्रांति लाने में मेट्रो रेल का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

43. युवाओं के लिए मतदान का अधिकार

भारत एक लोकतंत्र है जहाँ प्रत्येक व्यस्क को मताधिकार प्राप्त है। पंचायत से लेकर लोकसभा तक के सदस्यों को भारत की व्यस्क जनता अपने मतदान द्वारा चुनती है। युवाओं को अपने मत का महत्त्व समझकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए। एक – एक व्यक्ति का मत बहुत ही अमूल्य होता है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की हार-जीत का निर्णय एक मत से भी हो जाता है, जिसके पक्ष में पड़ने से जीत और विपक्ष में जाने से हार का सामना करना पड़ता है।

युवा वर्ग को अपने मत का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जिसे वे अपना मत देने जा रहे हैं, वह उनके, समाज के तथा देश के लिए कितना उपयोगी सिद्ध हो सकता है। ईमानदार, परिश्रमी, समाजसेवी, परोपकारी तथा दयालु व्यक्ति ही आप के मत का अधिकारी हो सकता है। जात-बिरादरी – धर्म-संप्रदाय के नाम पर किसी को अपना मत नहीं देना चाहिए। अपने मत का प्रयोग सदा स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति को देकर ही करें।

44. शिक्षक : शिक्षार्थी संबंध

शिक्षक-शिक्षार्थी के संबंध प्राचीन भारत में गुरू-शिष्य परंपरा के रूप में जाने जाते थे। राजा से रंक तक के बच्चे गुरूकुलों में शिक्षा ग्रहण करते थे, जहाँ कोई भेदभाव नहीं होता था। गुरू अपने शिष्यों को अपना समस्त ज्ञान दे देने में ही अपने कर्त्तव्य की इति समझते थे। वह उनके लिए उन की संतान से भी अधिक प्रिय होता था। जैसे गुरू द्रोणाचार्य के लिए अश्वत्थामा से भी अधिक प्रिय अर्जुन था। वर्तमान भौतिकतावादी युग में शिक्षक – शिक्षार्थी के संबंधों में भी अर्थ प्रधान हो गया है।

शिक्षार्थी पैसे खर्च करके शिक्षा ग्रहण करता है तथा शिक्षक उसे पढ़ाने के लिए निर्धारित शुल्क लेता है। इस प्रकार शिक्षक को शिक्षार्थी अपने धन से खरीदा हुआ समझता है तथा दोनों में वस्तु और उपभोक्ता का संबंध रह जाता है। वह गरिमा नहीं रह जाती जो प्राचीन गुरू-शिष्य परंपरा में थी। इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि शिक्षा के बाजारीकरण पर रोक लगाई जाए। इसे मात्र व्यवसाय न बना कर देश के भावी नागरिक बनाने वाले शिक्षकों को वह सम्मान दिया जाए जो उन्हें धन देकर नहीं दिया जा सकता।

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45. मित्रता

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अभाव में उसका जीवन-निर्वाह संभव नहीं। सामाजिकों के साथ हमारे संबंध अनेक प्रकार के हैं। कुछ हमारे संबंधी हैं, कुछ परिचित तथा कुछ मित्र होते हैं। मित्रों में भी कुछ विशेष प्रिय होते हैं। जीवन में यदि सच्चा मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमें बहुत बड़ी निधि मिल गई है। सच्चा मित्र हमारा मार्ग प्रशस्त करता है। वह दिन-प्रतिदिन हमें उन्नति की ओर ले जाता है। उसके सद्व्यवहार से हमारे जीवन में निर्मलता का प्रसार होता है। दुख के दिनों में वह हमारे लिए विशेष सहायक होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तो वह हम में उत्साह भरता है।

वह हमें कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है। सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया। सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता। वह मित्र की सहायता करना अपना कर्त्तव्य समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है।

46. दहेज प्रथा : एक अभिशाप

दहेज का अर्थ है, विवाह के समय दी जाने वाली वस्तुएं। हमारे समाज में विवाह के साथ लड़की को माता-पिता का घर छोड़कर पति के घर जाना होता है। इस अवसर पर अपना स्नेह प्रदर्शित करने के लिए कन्या के पक्ष के लोग लड़की, लड़कों के संबंधियों को यथाशक्ति भेंट दिया करते हैं। यह प्रथा कब शुरू हुई, कहा नहीं जा सकता। लगता है कि यह प्रथा अत्यंत प्राचीन है। दहेज प्रथा जो आरंभ में स्वेच्छा और स्नेह से भेंट देने तक सीमित रही होगी धीरे-धीरे विकट रूप धारण करने लगी है।

वर पक्ष के लोग विवाह से पहले दहेज में ली जाने वाली धन-राशि तथा अन्य वस्तुओं का निश्चय करने लगे हैं। आधुनिक युग में कन्या की श्रेष्ठता शील-सौंदर्य से नहीं, बल्कि दहेज में आंकी जाने लगी। कन्या की कुरूपता और कुसंस्कार दहेज के आवरण में आच्छादित हो गए। खुलेआम वर की बोली बोली जाने लगी। दहेज में प्रायः राशि से परिवारों का मूल्यांकन होने लगा। इस प्रकार दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या बन गई है।

दहेज प्रथा समाप्त करने के लिए स्वयं युवकों को आगे आना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपने माता-पिता तथा संबंधियों को स्पष्ट शब्दों में कह दें – शादी होगी तो बिना दहेज के होगी। इन युवकों को चाहिए कि वे उस संबंधी का डटकर विरोध करें जो नवविवाहिता को शारीरिक या मानसिक कष्ट देता है। दहेज प्रथा की विकटता को कम करने में नारी का आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र होना भी बहुत हद तक सहायक होता है।

अपने पैरों पर खड़ी युवती को दूसरे लोग अनाप-शनाप नहीं कह सकते। इसके अतिरिक्त चूंकि वह चौबीस घंटे घर पर बंद नहीं रहेगी, सास और ननदों की छींटाकशी से काफ़ी बची रहेगी। बहू के नाराज़ हो जाने से एक अच्छी खासी आय हाथ से निकल जाने का भय भी उनका मुख बंद किए रखेगा। दहेज-प्रथा हमारे समाज का कोढ़ है। यह प्रथा साबित करती है कि हमें अपने को सभ्य मनुष्य कहलाने का कोई अधिकार नहीं है।

जिस समाज में दुल्हिनों को प्यार की जगह यातनाएं दी जाती हैं, वह समाज निश्चित रूप से सभ्यों का नहीं नितांत असभ्यों का समाज है। अब समय आ गया है कि इस कुरीति को समूल उखाड़ फेंकेंगे।

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47. कम्प्यूटर / कम्प्यूटर हमारा मित्र

कम्प्यूटर आधुनिक विज्ञान का अद्भुत करिश्मा है, जिसने सारे विश्व को एक बार तो अपने आकर्षण में जकड़ लिया है। यह पूरी तरह से हम सब का मित्र-सा बन गया है. कोई वैज्ञानिक प्रतिष्ठान हो या औद्योगिक प्रतिष्ठान, बैंक हो या बीमा निगम, रेलवे स्टेशन हो या बस डिपो, सार्वजनिक स्थल हो या सेना का मुख्यालय – सभी जगह कम्प्यूटर का बोल-बाला है। यही आज के बुद्धिजीवियों के चिन्तन का विषय बन रहा है और यही स्कूल-कॉलेजों में विद्यार्थियों की रुचि का केन्द्र है। भारत तेजी से इसके माध्यम से इक्कीसवीं शताब्दी में प्रवेश कर चुका है। हमारे नेता भी यह मानने लगे हैं कि बिना कम्प्यूटर के देश सर्वोन्मुखी विकास की ओर अग्रसर नहीं हो सकता।

कम्प्यूटर का प्रयोग शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान, चिकित्सा, व्यवसाय, मनोरंजन, सरकारी, गैर-सरकारी आदि सभी क्षेत्रों में होने लगा है। इंटरनेट के माध्यम से कम्प्यूटर विद्यार्थियों की लाइब्रेरी तथा पाठशाला बन गया है। बैंकों, प्रकाशन के क्षेत्र, परीक्षा परिणाम आदि सभी कार्य कम्प्यूटर द्वारा होने लगे हैं। कम्प्यूटर ने आज के जीवन को अत्यंत सुगम तथा सहज बना दिया है।

जहाँ कम्प्यूटर के इतने लाभ हैं, वहीं दिन-रात इस से चिपके रहने से शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। आँखें कमज़ोर हो जाती हैं तथा एक ही स्थिति में बैठे रहने से शरीर के अंगों में भी विकृति आ जाती है। इसलिए कम्प्यूटर का प्रयोग अत्यधिक समय तक नहीं करना चाहिए।

48. अपनी भाषा प्यारी भाषा

अपनी भाषा के उत्थान के बिना व्यक्ति उन्नति कर ही नहीं सकता। भाषा अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम है। भाषा सामाजिक जीवन का अपरिहार्य अंग है। इसके बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अपनी भाषा में अपने मन के विचारों को प्रकट करने में सुविधा रहती है। विदेशी भाषा कभी भी हमारे भावों को उतनी गहरी अभिव्यक्ति नहीं दे सकती जितनी हमारी मातृभाषा महात्मा गांधीजी ने भी इसी बात को ध्यान में रखकर मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया था।

हमारे देश में अंग्रेज़ी के प्रयोग पर इतना अधिक बल दिए जाने के उपरांत भी अपेक्षित सफलता इसी कारण नहीं मिल पा रही हैं क्योंकि इसके द्वारा हम अपने विचारों को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं दे सकते। हम हीनता की भावना का शिकार हो रहे हैं। अंग्रेज़ी – परस्तों द्वारा दिया जाने वाला यह तर्क भ्रमित कर रहा है कि, ” अंग्रेज़ी ज्ञान का वातायन है।” अपनी भाषा के बिना मानव की मानसिक भूख शांत नहीं हो सकती। निज भाषा की उन्नति से ही समाज की उन्नति होती है। निज भाषा जननी तुल्य है। अतः कहा गया है कि –

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिना निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

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49. स्वच्छता अभियान

स्वच्छता ही किसी घर, समाज और देश को स्वस्थ वातावरण और सुखद जीवन प्रदान करती है और इसलिए देश में सर्वत्र स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है। इसके लिए केंद्रीय तथा राज्य सरकारों की ओर से भरपूर सहयोग तथा सहायता दी जा रही है। खुले में शौच के स्थान पर गाँव-गाँव, बस्ती-बस्ती में शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है। लोगों को शिक्षित भी किया जा रहा है कि खुले में शौच से कैसे वातावरण दूषित हो जाता है तथा बीमारियाँ फैलती हैं। विद्यालयों से लेकर कार्यालयों तक और घर से लेकर गली मुहल्ले तक साफ-सुथरे किए जा रहे हैं।

स्थानीय निकाय घर-घर जाकर कूड़ा एकत्र कर कूड़े का वैज्ञानिक रीति से संशोधन कर रहे हैं। साफ-सफाई के लिए गली, मुहल्ले, नगर, गाँव पुरस्कृत भी किए जा रहे हैं। इस अभियान को पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए हमें अपना घर, गली, मुहल्ला साफ रखना चाहिए तथा दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए कि वे भी स्वच्छता अभियान को अपना कर देश को स्वस्थ बनाएँ।

50. लड़कियों की शिक्षा

विद्या हमारी भी न तब तक काम में कुछ आएगी।
अर्धांगनियों को भी सुशिक्षा दी न जब तक जाएगी॥

ऐम बी डी आज शिक्षा मानव-जीवन का एक आवश्यक अंग बन गई है। शिक्षा के बिना मनुष्य ज्ञान – पंगु कहलाता है। पुरुष के साथ-साथ नारी को भी शिक्षा की आवश्यकता है। नारी शिक्षित होकर ही बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सकती है। बच्चों पर पुरुष की अपेक्षा नारी के व्यक्तित्व का प्रभाव अधिक पड़ता है। अतः उसका शिक्षित होना ज़रूरी है।

‘स्त्री का रूप क्या हो ?’ – यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि नारी और पुरुष के क्षेत्र अलग-अलग हैं। पुरुष को अपना अधिकांश जीवन बाहर के क्षेत्र में बिताना पड़ता है जबकि नारी को घर और बाहर में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है। सामाजिक कर्तव्य के साथ-साथ उसे घर के प्रति भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। अतः नारी को गृह विज्ञान की शिक्षा में संपन्न होना चाहिए। अध्ययन के क्षेत्र में भी वह सफल भूमिका का निर्वाह कर सकती है। शिक्षा के साथ-साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी उसे योगदान देना चाहिए। सुशिक्षित माताएँ ही देश को अधिक योग्य, स्वस्थ और आदर्श नागरिक दे सकती हैं।

स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री-शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार सर्वत्र होना चाहिए। नारी को फैशन से दूर रहकर सादगी के जीवन का समर्थन करना चाहिए। उसकी शिक्षा समाजोपयोगी हो।

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51. स्वच्छ भारत अभियान

संकेत बिंदु – सर्वमान्य विचारधारा, उद्देश्यमूलक बनाना, जागरूकता फैलाना

गांधी जी का यह कहना था कि स्वच्छता परमात्मा की आराधना के समान है। उनकी इस सर्वमान्य विचारधारा को ध्यान में रखते हुए 2 अक्टूबर, 2014 को भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के द्वारा गांधी जी की समाधि राजघाट से स्वच्छ भारत अभियान का श्रीगणेश किया गया था। इस अभियान में सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारी, सभी राज्यों के मंत्री, विद्यालयों के छात्र, शैक्षणिक और औद्योगिक संस्थानों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।

स्वच्छता को केवल अपने घर, दुकान या दफ़्तर तक सीमित न रखकर अपने बाहरी वातावरण को भी स्वच्छ बनाने का जज्बा होना चाहिए। सभी देशवासियों को मिलकर इस स्वच्छ भारत अभियान को उद्देश्यमूलक बनाना है जिसके अंतर्गत सड़कों, शहरों, गांव, शैक्षिक और औद्योगिक संस्थानों इत्यादि की स्वच्छता का ध्यान रखना आवश्यक होगा। आज स्वच्छता का विस्तार करने के लिए देश के प्रत्येक घर में शौचालयों का निर्माण कर इस दिशा में अभूतपूर्व सफलता मिली है, इससे हमारा वातावरण स्वच्छ और स्वस्थ दिखाई देने लगा है और हर घर में पीने का स्वच्छ जल उपलब्ध भी हो रहा है।

इस अभियान को सफल बनाने के लिए बहुत से जाने-माने लोगों ने आगे बढ़कर हिस्सा लिया है और इस अभियान को नई गति दी है। देश के लाखों छात्रों, युवा-युवतियों ने अपना योगदान जागरूकता फैलाकर दिया है। हमें यह याद रखना चाहिए, कि इस स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाना केवल सरकार का नहीं बल्कि हम सब देशवासियों का दायित्व है। हमारे आस-पास किसी तरह की अस्वच्छता हमें बीमार कर सकती है। नाक बंद कर लेने से गंदगी दूर नहीं होगी, उसके लिए हमें खुद आगे बढ़कर उसे दूर करने का प्रयास करना होगा। हम सभी को यह प्रण लेना चाहिए कि इस देश को स्वच्छ बनाने में हम अपना पूर्ण योगदान देंगे।

52. कोरोना वायरसः एक महामारी अथवा कोरोना वायरस

संकेत बिंदु – कोरोना का संक्रमण, लॉकडाउन के सकारात्मक प्रभाव, कोरोना वायरस के लक्षण क्या हैं?

“कोरोना” का अर्थ ‘मुकुट जैसी आकृति’ होती है। इस अदृश्य वायरस को सूक्षदर्शी यंत्र से ही देखा जा सकता है। इसके वायरस के कणों के इर्द-गिर्द उभरे हुए काँटे जैसे ढाँचों से सूक्ष्मदर्शी में मुकुट जैसा आकार दिखाई देता है, इसी आधार पर इसका नाम रखा गया था। दूसरे अर्थ को समझने के लिए सूर्य ग्रहण के समय चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है तो चंद्रमा के चारों और किरणें निकलती प्रतीत होती हैं उसको भी ‘कोरोना’ कहते हैं। कोरोना वायरस का प्रकोप चीन के वुहान में दिसंबर 2019 के मध्य में शुरू हुआ था और इसी कारण से इसका कोविड-19 नामकरण किया गया।

इसके प्रसार होते ही से ज़्यादातर मौतें चीन में हुई हैं लेकिन दुनिया भर में इससे कई लाख लोग प्रभावित होकर जान गँवा चुके हैं। चीन ने इस वायरस से बचने के लिए इमरजेंसी कदम उठाया जिसमें कई शहरों को लोकडाउन कर दिया गया था। इसकी रोकथाम के लिए सार्वजनिक परिवहन को रोक दिया गया था और सार्वजनिक जगहों और पर्यटन स्थलों को बंद कर दिया गया था। केवल चीन ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देश वायरस से बचने के लिए लोकडाउन लगाने जैसे कदम उठाए थे।

कोरोना वायरस मुख्य तौर पर जानवरों के बीच फैलता है लेकिन बाद में इसने मानवों को भी संक्रमित कर दिया। कोरोना वायरस के जो लक्षण हैं, उनमें 90 फीसदी मामलों में बुखार, 80 फीसदी मामलों में थकान और सूखी खाँसी, 20 फीसदी मामलों में साँस लेने में परेशानी देखी गई है। दोनों फेफड़ों में इससे परेशानी देखी गई। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों को निमोनिया की भी शिकायत हुई है। इस बात को माना जा रहा है कि इस वायरस की शुरुआत वुहान शहर के सीफूड बाज़ार में हुई थी।

जिन लोगों में शुरुआत में यह पाया गया, वे लोग उस थोक बाजार में काम करते थे। इसके फैलने का जरिया अभी पूरी तरह साफ़ नहीं है। लेकिन इसके एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैलने के प्रमाण हैं। इसके साथ ऐसा माना जा रहा है कि इससे प्रभावित एक व्यक्ति कम से कम तीन से चार स्वस्थ लोगों तक वायरस को फैला सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम चीन में इसकी उत्पत्ति को जाँच कर रही है। वर्तमान में कोरोना वायरस से बचने के लिए अनेक वैक्सीन मौजूद हैं। विश्व के कई देशों में टीकाकरण अभियान शुरू हो चुका है।

आप इससे बचने के लिए टीकाकरण करवा सकते हैं। टीकाकरण के दौरान भी अभी आप अपने हाथों को साबुन और पानी के साथ कम से कम 20 सेकेंड तक धोएँ। दो गज की सामाजिक दूरी बनाए रखें बिना धुले हुए हाथों से अपनी आँखों, नाक या मुँह को न स्पर्श करें। जो लोग बीमार हैं, उनके ज़्यादा नजदीक न जाएँ, फेस मास्क लगाना न भूलें। टीकाकरण के लिए आप अपनी बारी का इंतजार कर लाभ उठा सकते हैं।

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53. कमरतोड़ महँगाई

संकेत बिंदु – महँगाई के मुख्य कारण, भारत में महँगाई, महँगाई की रोकथाम के उपाय

आमतौर पर महँगाई का प्रमुख कारण उपभोक्ता वस्तुओं का अभाव तथा मुद्रास्फीति की दर है। जीवन के लिए आवश्यक दैनिक वस्तुओं की कमी कई बातों पर निर्भर करती है। इनमें, जैसे- अधिक वर्षा, हिमपात, अल्पवर्षा, अकाल, तूफान, फसलों की रोगग्रस्तता, प्रतिकूल मौसम, ओले, अनावृष्टि आदि। इसके अलावा स्वार्थी मानव द्वारा की गई गलत हरकतों द्वारा भी दैनिक उपयोगी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा किया जाता है और फिर उन वस्तुओं को अधिक कीमत वसूल करके बेचा जाता है।

इस प्रकार के अनर्गल काम आमतौर पर थोक व्यापारियों द्वारा किए जाते हैं। वे किसी वस्तु विशेष की जमाखोरी करके आकस्मिक अभाव पैदा करते हैं और फिर उस वस्तु को जरूरतमंद के हाथों बेचकर मनमाने दाम वसूल करते हैं। यही कारण है कि भारत में महँगाई बढ़ जाती है और फिर अचानक घट जाती है। प्राइवेट सेक्टर के उत्पादनों की कीमतों पर प्रतिबंध लगाने तथा लाभ की सीमा तय करने में सरकार असमर्थ है। देश में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है जिसका कारण जमाखोर तथा मुनाफाखोर हैं।

वेतन में हुई भारी वृद्धि का लाभ उठाकर उत्पादकों ने सभी प्रकार के उत्पादों की कीमतें काफी बढ़ा दीं। महँगाई भारत में हीं नहीं वरन पूरे विश्व में गंभीर समस्या के रूप में सामने आई है। समय के साथ महँगाई और भ्रष्टाचार के कारण हमारे देश की हालत कुछ ऐसी हो गई है कि अमीर और अमीर होता जा रहा है, गरीब गरीबी। उपभोक्ता और सरकार के बीच अच्छे तालमेल से महँगाई पर काबू पाया जा सकता है। महँगाई बढते ही सरकार देश मे ब्याज दर बढ़ा देती है। सरकार द्वारा तय की हुई राशि का आम आदमी तक पहुँचना बेहद जरूरी है।

इससे गरीबी में भी गिरावट आएगी और लोगों के जीने के स्तर में भी सुधार आएगा। समय – समय पर यह जाँच करना ज़रूरी है कि कोई व्यापारी या फिर कोई अन्य व्यक्ति कालाबाज़ारी या अधिक मुनाफाखोरी के काम में तल्लीन तो नहीं है। सरकार द्वारा सर्वेक्षण करना ज़रूरी है कि बाज़ार मे किसी वस्तु का दाम कितना है, यह तय मानक दरों से अधिक तो नहीं है। मूल सुविधाओं और अन्न के दाम समय – समय पर देखने होगे क्योंकि मनुष्य के जीवन के लिए अन्न बेहद ज़रूरी है।

54. बदलती जीवन शैली के परिणाम

संकेत बिंदु – जीवन-शैली का अर्थ, बदलती जीवन शैली के प्रभाव, मानव के लिए सीख

जीवन-शैली किसी व्यक्ति, समूह, रुचि, राय, व्यवहार की दिशा आदि को संयुक्त रूप से व्यक्त करता है। आधुनिकता की इस अंधी दौड़ और हमारी जीवन-शैली ने आज हमारे स्वास्थ्य को जानलेवा बीमारियों से ग्रसित कर दिया है। जितनी तेजी से विज्ञान ने तरक्की कर हमें सुविधाएँ उपलब्ध करवाई हैं उतनी ही तेजी से तरह – तरह की बीमारियों का शिकार बनाया है। मानसिक तनाव, जैसे रोग तथा अन्य रोग जैसे मोटापा, गैस, कब्ज अस्थमा, जोड़ों का दर्द, माइग्रेन, बवासीर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह व हृदयरोग जैसे गंभीर रोग इसी आधुनिक जीवन शैली की देन हैं।

दरअसल, इस तनावभरी जीवनशैली में आज के युवा भूलते जा रहे हैं कि देर रात पार्टियों में धूम्रपान व शराब का सेवन उनके ही जीवन को किस कदर दुष्प्रभावित कर रहा है। धूम्रपान करने वाले युवाओं में नपुंसकता का प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है. शारीरिक श्रम के नाम पर लोग दिनभर कुछ नहीं करते। पैदल नहीं चलते, सीढियाँ नहीं चढ़ते, शारीरिक श्रम न करने की वजह से लोगों का पाचन-तंत्र खराब हो जाता है।

हम अपना जीवन जी रहे हें या काट रहे हैं, यह जानना हमारे लिए बेहद जरूरी है। हमने आने-जाने के लिए खूब चौड़े मार्ग तो बना लिए लेकिन हम संकीर्ण विचारों से बुरी तरह ग्रस्त हैं। हम अनावश्यक खर्च करते हैं और बदले में काम बहुत कम करते हैं। हम खरीदते बहुत अधिक हैं परंतु आनंद कम ही उठा पाते हैं। हमारे घर बहुत बड़े – बड़े हैं परंतु उनमें रहने वाले परिवार छोटे हैं। हम बहुत निपुण हैं लेकिन समस्याओं में उलझे रहते हैं। हमारे पास दवाइयाँ अधिक हैं किंतु स्वास्थ्य कमजोर है, हम अधिक खाते-पीते हैं परंतु हँसते कम हैं।

देर रात तक जागते हैं और सुबह भारी थकान के साथ उठते हैं। कम पढ़ते हैं और अधिक टी.वी. देखकर तनाव मोल लेते हैं। हम प्रार्थना कम करते हैं और दूसरों से घृणा और नफ़रत अधिक करते हैं। हमने रहने का तरीका सीख लिया है किंतु हमें जीना नहीं आया। हम चाँद पर जाकर वापस आ गए लेकिन अभी तक अपने पड़ोसी से मुलाकात नहीं की। हमने बाहरी क्षेत्र जीत लिए परंतु भीतर से टूटे और हारे हुए हैं। हमने बड़े-बड़े काम किए परंतु बेहतर नहीं। हमारी ‘आधुनिक जीवन-शैली’ कितनी बुरी तरह बिगड़ी और बिखरी हुई है।

इस बात का शायद हमें अनुमान भी नहीं है। इस बिखराव के कारण हमें कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है और चुकानी पड़ेगी, इस बात को समझने में शायद अभी सदियाँ लगेंगी। फिर भी, क्योंकि ‘मनुष्य जीवन’ हमारे पास प्रकृति की एक अमूल्य धरोहर और उपहार है, इसलिए प्रकृति से हमें सुसभ्य ढंग से जीने की कला सीखनी चाहिए न कि अर्थहीन व भ्रमित आधुनिक जीवन शैली के प्रभाव में आकर उसके चकाचौंध में जीवन-यापन करें।

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55. बढ़ते प्रदूषण की समस्या

संकेत बिंदु – प्रदूषण शब्द का अर्थ, अनेक समस्याएँ, स्वस्थ और प्रदूषण मुक्त वातावरण

प्रदूषण शब्द का अर्थ है – दूषित करना। प्रदूषण वर्तमान युग का एक ऐसा अभिशाप है, जो विज्ञान की शक्ति से जन्मा है और इसे झेलने के लिए आज संपूर्ण विश्व विवश है। मनुष्य ने प्रकृति की गोद में जन्म लिया है और प्रकृति सदैव से ही उसकी सहचरी रही है। मनुष्य अपने लोभ और स्वार्थ के कारण पर्यावरण की लगातार उपेक्षा करने लग गया है। मानव सभ्यता का विकास होता गया और वह अपने आसपास के पर्यावरण को जमकर प्रदूषित करता गया। आज प्रदूषण के बढ़ने से हमारी धरती पर अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं।

यदि समय रहते इन पर नियंत्रण न किया गया तो वे दिन दूर नहीं जब धीरे-धीरे सभी जीव-जंतुओं का विनाश हो जाएगा। वनों की अंधाधुंध कटाई, कारखानों की चिमनियों का प्रदूषित धुआँ, वाहनों का धुआँ धरती के पवित्र वातावरण को दूषित करता जा रहा है। प्रदूषण कई तरह के होते हैं। इनमें से सबसे हानिकारक जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, और ध्वनि प्रदूषण हैं।

महानगरों का सारा कूड़ा-करकट और मलमूत्र जल में डाल दिया जाता है जिससे हमारे पीने का पानी अशुद्ध और मलिन हो गया है और इस मलिन जल के सेवन से हमारे शरीर को अनेक तरह की बीमारियाँ लग रही हैं। वायु प्रदूषण हमारे द्वारा उत्पन्न की गई गैसों से संपूर्ण वायु में फैल जाता है और वही दूषित हवा को हम श्वसन क्रिया द्वारा अंदर लेते हैं और भयंकर बीमारियों का शिकार बन जाते हैं। ध्वनि प्रदूषण का कारण बढ़ती जनसंख्या भी है, जिसके कारण शोर-शराबा बढ़ता जा रहा है; जैसे – वाहनों का शोर, कल-कारखानों में मशीनों का शोरगुल इत्यादि। प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए सभी लोगो के संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है जिससे की हम एक स्वस्थ और प्रदूषणमुक्त वातावरण का उपभोग कर सकें।

56. डिजिटल इंडिया मिशन

संकेत बिंदु – अति उत्तम मिशन, क्रांतिकारी कदम, देश की प्रगति में चार चाँद

भारत सरकार द्वारा चलाई जाने वाली डिजिटल इंडिया एक अति उत्तम मिशन है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य भारत के सभी छोटे बड़े सरकारी विभागों को डिजिटल रूप देकर उनकी कार्य करने की गति को द्रुत करना और देश के हर कोने तक सरकारी और गैरसरकारी क्षेत्र में सुविधा पहुँचाना है। भारत के द्रुत विकास के लिए डिजिटल इंडिया योजना के तहत अनेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं जिससे कि सभी नागरिकों को डिजिटल सुख-सुविधाएँ मिल सकेंगी। इस मिशन के अंतर्गत भारत के सभी क्षेत्र के कामों को इंटरनेट से जोड़ना भी आवश्यक समझा जा रहा है।

यह एक ऐसा क्रांतिकारी कदम है जिसमें इंटरनेट और कंप्यूटर के माध्यम से सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे आम आदमी के बैंक खाते में पहुँचाकर लाभ देना। शिक्षा और कृषि से संबंधित जानकारी दूर-दूर ग्रामीणों तक पहुँचाना सुगम हो गया है। बिना पैसे प्रयोग किए क्रेडिट, डेबिट कार्ड या कैश वॉलेट द्वारा भुगतान, लैपटॉप या मोबाइल द्वारा फॉर्म जमा करना, रुपयों का भुगतान, रेलवे या होटलों की बुकिंग करना, समाचार या पत्रिका इंटरनेट पर पढ़ना आदि इसके बहुआयामी लाभ हैं।

डिजिटल इंडिया हमें भौगोलिक दृष्टि से एक दूसरे के अत्यंत निकट ले आया हैं। घर बैठे आज मोबाइल से ही सब कुछ किया जा रहा है। इस मिशन ने डिजिटल इंडिया अभियान में हमें विश्व के प्रमुख देशों के साथ कदम से कदम मिला कर चलने में हमारी सहायता की है। आज की आधुनिक सदी में डिजिटल इंडिया हमारे देश की प्रगति में चार चाँद लगा रहा है।

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57. परीक्षा से पहले मेरी मनोदशा

संकेत बिंदु – परीक्षा के नाम से भय, पर्याप्त तैयारी, प्रश्नपत्र देखकर भय दूर हुआ

वैसे तो हर मनुष्य परीक्षा से घबराता है किंतु विद्यार्थी इससे विशेष रूप से घबराता है। परीक्षा में पास होना ज़रूरी है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। अपने साथियों से बिछड़ जाएँगे। ऐसी चिंताएँ हर विद्यार्थी को रहती हैं। परीक्षा शुरू होने से पूर्व जब मैं परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक-धक कर रहा था। परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले मैं वहाँ पहुँच गया था।

मैं सोच रहा था कि सारी रात जागकर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्न-पत्र में न आए तो मेरा क्या होगा ? इसी चिंता में मैं अपने सहपाठियों से खुलकर बात नहीं कर रहा था। परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था। परीक्षा देने आए कुछ विद्यार्थी बिलकुल बेफ़िक्र लग रहे थे। वे आपस में ठहाके मार-मार कर बातें कर रहे थे। कुछ ऐसे भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों से चिपके हुए थे।

मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था क्योंकि मेरे पिता जी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल जाता है। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं जिससे सवेरे उठकर विद्यार्थी तरो ताज़ा होकर परीक्षा देने जाए न कि थका-थका महसूस करे।

परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं। उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी स्मरण शक्ति पर पूरा भरोसा था। थोड़ी ही देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी। इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया हँसते हुए चेहरों पर अब गंभीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना अनुक्रमांक और स्थान देखकर मैं परीक्षा भवन में प्रविष्ट हुआ और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न – पत्र बँटने की प्रतीक्षा करने लगा !

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58. परीक्षा भवन का दृश्य

संकेत बिंदु – परीक्षा से घबराहट, परीक्षार्थियों का आना, घबराहट और बेचैनी, परीक्षा भवन का दृश्य

मार्च महीने की पहली तारीख थी। उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएँ शुरू हो रही थीं। परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परंतु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है। मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक् धक् कर रहा था। मैं रात भर पढ़ता रहा था और चिंता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न-पत्र में न आया तो क्या होगा ? परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिंतित से नज़र आ रहे थे। कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उसके पन्ने उलट-पुलट रहे थे।

कुछ बड़े खुश-खुश नज़र आ रहे थे। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न-पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई। यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया। भीतर पहुँच कर हम सब अपने-अपने अनुक्रमांक के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर-पुस्तिकाएँ बाँट दी गईं और हमने उस पर अपना-अपना अनुक्रमांक आदि लिखना शुरू कर दिया।

ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्न- पत्र बाँट दिए। मैंने प्रश्न – पत्र पढ़ना शुरू किया। मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न-पत्र के सभी प्रश्न मेरे पढ़े हुए प्रश्नों में से थे। मैंने किए जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाए और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया। मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो। तीन घंटे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा। मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।

59. जीवन की अविस्मरणीय घटना

संकेत बिंदु – चिड़िया के बच्चे का घायल अवस्था में मिलना, सेवा से आनंद

आज मैं दसवीं कक्षा में हूँ। माता-पिता कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गए हो। मैं भी कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। हाँ, मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। मुझे बीते दिनों की कुछ बातें आज भी याद हैं जो मेरा मार्गदर्शन कर रही हैं। एक घटना ऐसी है जिसे मैं आज भी याद करके आनंद विभोर हो उठता हूँ। घटना कुछ इस तरह से है। कोई दो-तीन साल पहले की घटना है। मैंने एक दिन देखा कि हमारे आँगन में लगे वृक्ष के नीचे एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में पड़ा है।

मैं उस बच्चे को उठाकर अपने कमरे में ले आया। मेरी माँ ने मुझे रोका भी कि इसे इस तरह न उठाओ यह मर जाएगा किंतु मेरा मन कहता था कि इस चिड़िया के बच्चे को बचाया जा सकता है। मैंने उसे चम्मच से पानी पिलाया। पानी मुँह में जाते ही उस बच्चे ने जो बेहोश था पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिए। यह देखकर मैं प्रसन्न हुआ। मैंने उसे गोद में लेकर देखा कि उस की टाँग में चोट आई है। मैंने अपने छोटे भाई को माँ से मरहम की डिबिया लाने को कहा। वह तुरंत मरहम की डिबिया ले आया।

उसमें से थोड़ी-सी मरहम मैंने उस चिड़िया के बच्चे की चोट पर लगाई। मरहम लगाते ही मानो उसकी पीड़ा कुछ कम हुई। वह चुपचाप मेरी गोद में ही लेटा था। मेरा छोटा भाई भी उस के पंखों पर हाथ फेरकर खुश हो रहा था। कोई घंटा भर मैं उसे गोद में ही लेकर बैठा रहा। मैंने देखा कि बच्चा थोड़ा उड़ने की कोशिश करने लगा था। मैंने छोटे भाई से रोटी मँगवाई और उसकी चूरी बनाकर उसके सामने रखी।

वह उसे खाने लगा। हम दोनों भाई उसे खाते हुए देख कर खुश हो रहे थे। मैंने उसे अब अपनी पढ़ाई की मेज़ पर रख दिया। रात को एक बार फिर उस के घाव पर मरहम लगाई। दूसरे दिन मैंने देखा चिड़िया का वह बच्चा मेरे कमरे में इधर-उधर फुदकने लगा है। वह मुझे देख चीं-चीं करके मेरे प्रति अपना आभार प्रकट कर रहा था। एक-दो दिनों में ही उस का घाव ठीक हो गया और मैंने उसे आकाश में छोड़ दिया। वह उड़ गया। मुझे उस चिड़िया के बच्चे के प्राणों की रक्षा करके जो आनंद प्राप्त हुआ उसे मैं जीवन भर नहीं भुला पाऊँगा।

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60. आँखोंदेखी दुर्घटना

संकेत बिंदु – प्रातः भ्रमण के लिए जाना, सड़क पर भीड़ की अधिकता, कार और ताँगे में टक्कर, पुलिस- अस्पताल

रविवार की बात है मैं अपने मित्र के साथ सुबह – सुबह सैर करने माल रोड पर गया। वहाँ बहुत से स्त्री-पुरुष और बच्चे भी सैर करने आए हुए थे। जब से दूरदर्शन पर स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम आने लगे हैं अधिक-से-अधिक लोग प्रातः भ्रमण के लिए इन जगहों पर आने लगे हैं। रविवार होने के कारण उस दिन भीड़ कुछ अधिक थी। तभी मैंने वहाँ एक युवा दंपति को अपने छोटे बच्चे को बच्चागाड़ी में बैठाकर सैर करते देखा। अचानक लड़कियों के स्कूल की ओर एक रिक्शा आता हुआ दिखाई दिया।

उसमें दो सवारियाँ भी बैठी थीं। बच्चागाड़ी वाले दंपत्ति ने रिक्शे से बचने के लिए सड़क पार करनी चाही। जब वे सड़क पार कर रहे थे तो दूसरी तरफ से बड़ी तेज़ गति से आ रही एक कार उस रिक्शे से टकरा गई। रिक्शा चलाने वाला और दोनों सवारियाँ बुरी तरह से घायल हो गए थे। बच्चागाड़ी वाली स्त्री के हाथ से बच्चागाड़ी छूट गई। किंतु इससे पूर्व कि वह बच्चे समेत रिक्शे और कार की टक्कर वाली जगह पर पहुँचकर उन से टकरा जाती, मेरे साथी ने भागकर उस बच्चागाड़ी को सँभाल लिया।

कार चलाने वाले सज्जन को भी काफ़ी चोटें आई थीं पर उसकी कार को कोई खास क्षति नहीं पहुँची थी। माल रोड पर गश्त करने वाले पुलिस के तीन – चार सिपाही तुरंत घटना स्थल पर पहुँच गए। उन्होंने वायरलैस द्वारा अपने अधिकारियों और अस्पताल को फोन किया। चंद मिनटों में वहाँ ऐंबुलेंस गाड़ी आ गई। हम सब ने घायलों को उठा कर ऐंबुलेंस में लिटाया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी तुरंत वहाँ पहुँच गए। उन्होंने कार चालक को पकड़ लिया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि सारा दोष कार चालक का था।

इस सैर-सपाटे वाली सड़क पर वह 100 कि० मी० की स्पीड से कार चला रहा था और रिक्शा सामने आने पर वह ब्रेक न लगा सका। दूसरी तरफ़ बच्चे को बचाने के लिए मेरे मित्र द्वारा दिखाई फुरती व चुस्ती की भी लोग सराहना कर रहे थे। उस दंपति ने उसका विशेष धन्यवाद दिया।

61. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

संकेत बिंदु – अर्थ, देशानुराग, अधिकार और कर्तव्य

इस कथन का भाव है “जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है।” जो व्यक्ति अपनी माँ से और भूमि से प्रेम नहीं करता, वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। देश-द्रोह एवं मातृद्रोह से बड़ा अपराध कोई और नहीं है। यह ऐसा अपराध है जिसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं है। देश-प्रेम की भावना ही मनुष्य को यह प्रेरणा देती है कि जिस भूमि से उसका भरण-पोषण हो रहा है, उसकी रक्षा के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर देना उसका परम कर्तव्य है। जननी एवं जन्मभूमि के प्रति प्रेम की भावना जीवधारियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है।

मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। अतः उसके हृदय में देशानुराग की भावना का उदय स्वाभाविक है। मरुस्थल में रहने वाले लोग हाँफ – हाँफकर जीते हैं, फिर भी उन्हें अपनी जन्मभूमि से अगाध प्रेम है। ध्रुववासी अत्यंत शीत के कारण अंधकार तथा शीत में काँप-काँप कर तो जीवन व्यतीत कर लेते हैं, पर अपनी मातृभूमि का बाल- बाँका नहीं होने देते। मुग़ल साम्राज्य के अंतिम दीप सम्राट बहादुरशाह ज़फर की रंगून के कारागार से लिखी ये पंक्तियाँ कितनी मार्मिक हैं –

कितना है बदनसीब ज़फर दफन के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कूचा – ए – यार में।

जिस देश के लोग अपनी मातृ-भूमि से जितना अधिक स्नेह करते हैं, वह देश उतना ही उन्नत माना जाता है। देश-प्रेम की भावना ने ही भारत की पराधीनता की जंजीरों को काटने के लिए देश भक्तों को प्रेरित किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के प्रति हमारा कर्तव्य और भी बढ़ गया है। इस कर्तव्य की पूर्ति हमें जी-जान लगाकर करनी चाहिए।

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62. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

संकेत बिंदु – मन का महत्व, मानसिक शक्ति, उन्नति का मार्ग

मानव-शरीर यदि रथ के समान है तो यह मन उसका चालक है। मनुष्य के शरीर की असली शक्ति उसका मन है। मन के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। मन ही वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य से बड़े-से-बड़े काम करवा लेती है। यदि मन में दुर्बलता का भाव आ जाए तो शक्तिशाली शरीर और विभिन्न प्रकार के साधन व्यर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एक सैनिक को लिया जा सकता है। यदि उसने अपने मन को जीत लिया है तो वह अपनी शारीरिक शक्ति एवं अनुमान से कहीं अधिक सफलता पा सकता है।

यदि उसका मन हार गया तो बड़े- बड़े मारक अस्त्र-शस्त्र भी उसके द्वारा अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। मन की शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं। मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अतः ठीक ही कहा गया है – ” मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”

63. मन चंगा तो कठौती में गंगा

संकेत बिंदु – संत रविदास का कथन, निर्मल मानव मन की महत्ता, स्वच्छ और निष्पाप हृदय, आत्मिक शांति

संत रविदास का यह वचन एक मार्मिक सत्य का उद्घाटन करता है। मानव के लिए मन की निर्मलता का होना आवश्यक है। जिसका मन निर्मल होता है, उसे बाहरी निर्मलता ओढ़ने या गंगा के स्पर्श से निर्मलता प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जिनके मन में मैल होती है, उन्हें ही गंगा की निर्मलता अधिक आकर्षित करती है। स्वच्छ एवं निष्पाप हृदय का व्यक्ति बाह्य आडंबरों से दूर रहता है। अपना महत्व प्रतिपादित करने के लिए वह विभिन्न प्रपंचों का सहारा नहीं लेता।

प्राचीन भारत में ऋषि-मुनि घर-बार सभी त्याग कर सभी भौतिक सुखों से रहित होकर भी परमानंद की प्राप्ति इसीलिए कर लेते थे कि उनकी मन- आत्मा पर व्यर्थ के पापों का बोझ नहीं होता था। बुरे मन का स्वामी चाहे कितना भी प्रयास कर ले कि उसे आत्मिक शांति मिले, परंतु वह उसे प्राप्त नहीं कर सकता। भक्त यदि परमात्मा को पाना चाहते हैं तो भगवान स्वयं भी उसकी भक्ति से प्रभावित हो उसके निकट आना चाहता है। वह भक्त के निष्कपट, निष्पाप और निष्कलुष हृदय में मिल जाना चाहता है।

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64. समय सबसे बड़ा धन है
अथवा
समय का सदुपयोग

संकेत बिंदु – जीवन की क्षणिकता, समय का महत्व, मनोरंजन और समय का मूल्य, परिश्रम ही प्रगति की राह

दार्शनिकों ने जीवन को क्षणभंगुर कहा है। इनकी तुलना प्रभात के तारे और पानी के बुलबुले से की गई है। अतः यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हम अपने जीवन को सफल कैसे बनाएँ। इसका एकमात्र उपाय समय का सदुपयोग है। समय एक अमूल्य वस्तु है। इसे काटने की वृत्ति जीवन को काट देती है। खोया समय पुनः नहीं मिलता। दुनिया में कोई भी शक्ति नहीं जो बीते हुए समय को वापस लाए। हमारे जीवन की सफलता-असफलता समय के सदुपयोग तथा दुरुपयोग पर निर्भर करती है। कहा भी है- ” क्षण को क्षुद्र न समझो भाई, यह जग का निर्माता है।”

हमारे देश में अधिकांश लोग समय का मूल्य नहीं समझते। देर से उठना, व्यर्थ की बातचीत करना, ताश खेलना आदि के द्वारा समय नष्ट करते हैं। यदि हम चाहते हैं तो हमें पहले अपना काम पूरा करना चाहिए। बहुत से लोग समय को नष्ट करने में आनंद का अनुभव करते हैं। मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना बहुत बड़ी भूल है। समय का सदुपयोग करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक कार्य को करने का समय निश्चित कर लें। फिर उस कार्य को उसी समय में करने का प्रयत्न करें।

इस तरह का अभ्यास होने से हम समय का मूल्य समझ जाएँगे और देखेंगे कि हमारा जीवन निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता जा रहा है। समय के सदुपयोग से ही जीवन का पथ सरल हो जाता है। महान व्यक्तियों के महान बनने का रहस्य समय का सदुपयोग ही है। समय के सदुपयोग के द्वारा ही मनुष्य अमर कीर्ति का पात्र बन सकता है। समय का सदुपयोग ही जीवन का सदुपयोग है। इसी में जीवन की सार्थकता है- “कल करै सो आज कर, आज करै सो अब। पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब॥ ”

65. राष्ट्रीय एकता

संकेत बिंदु – क्षेत्रीयता के प्रति मोह, भाषाई एकता, देश की एकता के लिए घातक, अनेकता में एकता

आज देश के विभिन्न राज्य क्षेत्रीयता के मोह में ग्रस्त हैं। सर्वत्र एक-दूसरे से बिछुड़ कर अलग होने तथा अपना-अपना मनोराज्य स्थापित करने अनुच्छेद-लेखन की होड़ लगी हुई है। यह स्थिति देश की एकता के लिए अत्यंत घातक है क्योंकि राष्ट्रीय एकता के अभाव में देश का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। राष्ट्र से तात्पर्य किसी भौगोलिक भू-खंड मात्र अथवा उस भू-खंड में सामूहिक रूप से रहने वाले व्यक्तियों से न होकर उस भू-खंड में रहने वाली संवेदनशील जनता से होता है।

अतः राष्ट्रीय एकता वह भावना है, जो किसी एक राष्ट्र के समस्त नागरिकों को एकता के सूत्र में बाँधे रखती है। राष्ट्र के प्रति ममत्व की भावना से ही राष्ट्रीय एकता की भावना का जन्म होता है। भारत प्राकृतिक, भाषायी, रहन-सहन आदि की दृष्टि से अनेक रूप वाला होते हुए भी राष्ट्रीय स्वरूप में एक है। पर्वतराज हिमालय एवं सागर इसकी प्राकृतिक सीमाएँ हैं, समस्त भारतीय धर्म एवं संप्रदाय आवागमन में आस्था रखते हैं।

भाषाई भेदभाव होते हुए भी भारतवासियों की भावधारा एक है। यहाँ की संस्कृति की पहचान दूर से ही हो जाती है। भारत की एकता का सर्वप्रमुख प्रमाण यहाँ एक संविधान का होना है। भारतीय संसद की सदस्यता धर्म, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र आदि के भेदभाव से मुक्त हैं। इस प्रकार अनेकता में एकता के कारण भारत की राष्ट्रीय एकता सदा सुदृढ़ है।

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66. भाषण नहीं राशन चाहिए –

संकेत बिंदु – भाषण की उपयोगिता और अनुपयोगिता, नेताओं की करनी – कथनी में अंतर, आम जनता की पीड़ा

हर सरकार का यह पहला काम है कि वह आम आदमी की सुविधा का पूरा ध्यान रखे। सरकार की कथनी तथा करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। केवल भाषणों से किसी का पेट नहीं भरता। यदि बातों से पेट भर जाता तो संसार का कोई भी व्यक्ति भूख-प्यास से परेशान न होता। भूखे पेट से तो भजन भी नहीं होता। भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। यहाँ के शासन की बागडोर प्रजा के हाथ में है, यह केवल कहने की बात है। इस देश में जो भी नेता कुरसी पर बैठता है, वह देश के उद्धार की बड़ी-बड़ी बातें करता है पर रचनात्मक रूप से कुछ भी नहीं होता।

जब मंच पर आकर नेता भाषण देते हैं तो जनता उनके द्वारा दिखाए गए सब्ज़बाग से खुशी का अनुभव करती है। उसे लगता है कि नेता जिस कार्यक्रम की घोषणा कर रहे हैं, उससे निश्चित रूप से गरीबी सदा के लिए दूर हो जाएगी, लेकिन होता सब कुछ विपरीत है। अमीरों की अमीरी बढ़ती जाती है और आम जनता की ग़रीबी बढ़ती जाती है। यह व्यवस्था का दोष है।

इन नेताओं के हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ होती है। जनता को भाषण की नहीं राशन की आवश्यकता है। सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को ज़रूरत की वस्तुएँ प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव न हो। उसे रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या का सामना न करना पड़े। सरकार को अपनी कथनी के अनुरूप व्यवहार भी करना चाहिए। उसे यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए। भाषणों की झूठी खुराक से जनता को बहुत लंबे समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।

67. युवाओं के लिए मतदान का अधिकार

संकेत बिंदु – प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार, उपयोगी मताधिकार, मत का अधिकारी

भारत एक लोकतंत्र है जहाँ प्रत्येक वयस्क को मताधिकार प्राप्त है। पंचायत से लेकर लोकसभा तक के सदस्यों को भारत की वयस्क जनता अपने मतदान द्वारा चुनती है। युवाओं को अपने मत का महत्व समझकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए। एक – एक व्यक्ति का मत बहुत ही अमूल्य होता है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की हार-जीत का निर्णय एक मत से भी हो जाता है, जिसके पक्ष में पड़ने से जीत और विपक्ष में जाने से हार का सामना करना पड़ता है।

युवा वर्ग को अपने मत का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जिसे वे अपना मत देने जा रहे हैं, वह उनके, समाज के तथा देश के लिए कितना उपयोगी सिद्ध हो सकता है। ईमानदार, परिश्रमी, समाजसेवी, परोपकारी तथा दयालु व्यक्ति ही आप के मत का अधिकारी हो सकता है। जात-बिरादरी – धर्म-संप्रदाय के नाम पर किसी को अपना मत नहीं देना चाहिए। अपने मत का प्रयोग सदा स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति को देकर ही करें। युवाओं को अपने मत के अधिकार का प्रयोग देश हित में ज़रूर करना चाहिए। देश के अच्छी सरकार के गठन में युवाओं का मताधिकार एक क्रांतिकारी कदम माना जाता है।

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68. अपनी भाषा प्यारी भाषा

संकेत बिंदु – अभिव्यक्ति का माध्यम, भाषा की उन्नति से समाज की उन्नति

अपनी भाषा के उत्थान के बिना व्यक्ति उन्नति कर ही नहीं सकता। भाषा अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम है। भाषा सामाजिक जीवन का अपरिहार्य अंग है। इसके बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अपनी भाषा में अपने मन के विचारों को प्रकट करने में सुविधा रहती है। विदेशी भाषा कभी भी हमारे भावों को उतनी गहरी अभिव्यक्ति नहीं दे सकती जितनी हमारी मातृभाषा। महात्मा गांधी जी ने भी इसी बात को ध्यान में रखकर मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया था।

हमारे देश में अंग्रेज़ी के प्रयोग पर इतना अधिक बल दिए जाने के उपरांत भी अपेक्षित सफलता इसी कारण नहीं मिल पा रही है क्योंकि इसके द्वारा हम अपने विचारों को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं दे सकते। हम हीन भावना का शिकार हो रहे हैं। अंग्रेज़ी-परस्तों द्वारा दिया जाने वाला यह तर्क भ्रमित कर रहा है कि, “अंग्रेज़ी ज्ञान का वातायन है।” अपनी भाषा के बिना मानव की मानसिक भूख शांत नहीं हो सकती। निज भाषा की उन्नति से ही समाज की उन्नति होती है। निज भाषा जननी तुल्य है। अतः कहा गया है कि-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिना निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।

69. हमने मनाई पिकनिक

संकेत बिंदु – साइकिलों से जाना, प्राकृतिक सौंदर्य, खान-पान, मनोरंजन

संकेत बिंदु- पिकनिक के लिए उचित स्थान का चुनाव पिकनिक एक ऐसा शब्द है जो थके हुए शरीर एवं मन में एकदम स्फूर्ति ला देता है। मैंने और मेरे मित्र ने परीक्षा के दिनों में बड़ी मेहनत की थी। परीक्षा का तनाव हमारे मन और मस्तिष्क पर विद्यमान था। उस तनाव को दूर करने के लिए हम दोनों ने यह निर्णय किया कि क्यों न किसी दिन माधोपुर हैडवर्क्स पर जाकर पिकनिक मनाई जाए। अपने इस निर्णय से अपने मुहल्ले के दो-चार और मित्रों को अवगत करवाया तो वे भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गए।

माधोपुर हैडवर्क्स हमारे नगर से दस कि० मी० दूरी पर था। हम सबने अपने-अपने साइकिलों पर जाने का निश्चय किया। पिकनिक के लिए रविवार का दिन निश्चित किया गया। रविवार को हम सबने नाश्ता करने के बाद अपने-अपने लंच बॉक्स तैयार किए तथा कुछ अन्य खाने का सामान अपने-अपने साइकिलों पर रख लिया। मेरे मित्र के पास एक छोटा टेपरिकार्डर भी था उसे भी अपने साथ ले लिया तथा साथ में कुछ अपने मनपसंद गानों की टेप्स भी रख लीं। हम सब अपनी-अपनी साइकिल पर सवार होकर, हँसते-गाते एक-दूसरे को चुटकले सुनाते पिकनिक स्थल की ओर बढ़ चले।

लगभग 45 मिनट में हम सब माधोपुर हैडवर्क्स पर पहुँच गए। वहाँ हमने प्रकृति को अपनी संपूर्ण सुषमा के साथ विराजमान देखा। चारों तरफ़ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, शीतल और मंद-मंद हवा बह रही थी। हमने एक ऐसी जगह चुनी जहाँ घास की प्राकृतिक कालीन बिछी हुई थी। हमने वहाँ एक दरी बिछा दी। साइकिल चलाकर हम थोड़ा थक गए थे, अतः हमने पहले थोड़ी देर विश्राम किया। हमारे एक साथी ने हमारी कुछ फ़ोटो उतारीं। थोड़ी देर सुस्ता कर हमने टेप रिकार्डर चला दिया और गीतों की धुन पर मस्ती में भर कर नाचने लगे। कुछ देर तक हमने इधर-उधर घूम कर वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों का नज़ारा देखा।

दोपहर को हम सबने अपने-अपने टिफ़िन खोले और सबने मिल बैठ कर एक-दूसरे का भोजन बाँट कर खाया। उसके बाद हमने वहाँ स्थित कैनाल रेस्ट हाउस रेस्तराँ में जाकर चाय पी। चाय-पान के बाद हमने अपने स्थान पर बैठकर अंताक्षरी खेलनी शुरू की। इसके बाद हमने एक-दूसरे को कुछ चुटकले और कुछ आपबीती हँसी-मज़ाक की बातें बताईं। समय कितनी जल्दी बीत गया इसका हमें पता ही न चला। जब सूर्य छिपने को आया तो हम ने अपना-अपना सामान समेटा और घर की तरफ चल पड़े।

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70. भीड़ भरी बस की यात्रा का अनुभव

संकेत बिंदु – यात्रा का कारण, बस की यात्रा, भीड़

वैसे तो जीवन को ही यात्रा की संज्ञा दी गई है पर कभी-कभी मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए गाड़ी अथवा बस का भी सहारा लेना पड़ता है। बस की यात्रा का अनुभव भी बड़ा विचित्र है। भारत जैसे जनसंख्या प्रधान देश में बस की यात्रा अत्यंत असुविधानजनक है। प्रत्येक बस में सीटें तो गिनती की हैं पर बस में चढ़ने वालों की संख्या निर्धारित करना एक जटिल कार्य है। भले ही बस हर पाँच मिनट बाद चले पर चलेगी पूरी तरह भर कर। गर्मियों के दिनों में तो यह यात्रा किसी भी यातना से कम नहीं।

भारत के नगरों की अधिकांश सड़कें सम न होकर विषम हैं। खड़े हुए यात्री की तो दुर्दशा हो जाती है, एक यात्री दूसरे यात्री पर गिरने लगता है। कभी-कभी तो लड़ाई-झगड़े की नौबत पैदा हो जाती है। लोगों की जेबें कट जाती हैं। जिन लोगों के कार्यालय दूर हैं, उन्हें प्रायः बस का सहारा लेना ही पड़ता है। बस यात्रा एक प्रकार से रेल – यात्रा का लघु रूप है। जिस प्रकार गाड़ी में विभिन्न जातियों एवं प्रवृत्तियों के लोगों के दर्शन होते हैं, उसी प्रकार बस में भी अलग-अलग विचारों के लोग मिलते हैं।

इनसे मनुष्य बहुत कुछ सीख भी सकता है। भीड़ भरी बस की यात्रा जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का छोटा-सा शिक्षालय है। यह यात्रा इस तथ्य की परिचायक है कि भारत अनेक क्षेत्रों में अभी तक भरपूर प्रगति नहीं कर सका। जो व्यक्ति बस यात्रा के अनुभव से वंचित है, वह एक प्रकार से भारतीय जीवन के बहुत बड़े अनुभव से ही वंचित है।

71. परिश्रम सफलता की कुंजी है

संकेत बिंदु – परिश्रम का महत्व, समयानुसार बुद्धि का सदुपयोग, परिश्रम और बुद्धि का तालमेल

संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्ति है – ‘उद्यमेन हि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथः’ अर्थात परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है, मात्र इच्छा करने से नहीं। सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम ही एकमात्र मंत्र है। ‘श्रमेव जयते’ का सूत्र इसी भाव की ओर संकेत करता है। परिश्रम के बिना हरी-भरी खेती सूखकर झाड़ बन जाती है जबकि परिश्रम से बंजर भूमि को भी शस्य – श्यामला बनाया जा सकता है।

असाध्य कार्य भी परिश्रम के बल पर संपन्न किए जा सकते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति कितने ही प्रतिभाशाली हों, किंतु उन्हें लक्ष्य में सफलता तभी मिलती है जब वे अपनी बुद्धि और प्रतिभा को परिश्रम की सान पर तेज़ करते हैं। न जाने कितनी संभावनाओं के बीज पानी, मिट्टी, सिंचाई और जुताई के अभाव में मिट्टी बन जाते हैं, जबकि ठीक संपोषण प्राप्त करके कई बीज सोना भी बन जाते हैं। कई बार प्रतिभा के अभाव में परिश्रम ही अपना रंग दिखलाता है। प्रसिद्ध उक्ति है कि निरंतर घिसाव से पत्थर पर भी चिह्न पड़ जाते हैं।

जड़मति व्यक्ति परिश्रम द्वारा ज्ञान उपलब्ध कर लेता है। जहाँ परिश्रम तथा प्रतिभा दोनों एकत्र हो जाते हैं वहाँ किसी अद्भुत कृति का सृजन होता है। शेक्सपीयर ने महानता को दो श्रेणियों में विभक्त किया है – जन्मजात महानता तथा अर्जित महानता। यह अर्जित महानता परिश्रम के बल पर ही अर्जित की जाती है। अतः जिन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है, उन्हें अपने श्रम-बल का भरोसा रखकर कर्म में जुटना चाहिए। सफलता अवश्य ही उनकी चेरी बन कर उपस्थित होगी।

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72. मधुर वाणी

संकेत बिंदु – श्रेष्ठ वाणी की उपयोगिता, कटुता और कर्कश वाणी, चरित्र की स्पष्टता, विनम्रता और मधुरवाणी

वाणी ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है। वाणी के द्वारा ही मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान दूसरे व्यक्तियों से करता है। वाणी का मनुष्य के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। सुमधुर वाणी के प्रयोग से लोगों के साथ आत्मीय संबंध बन जाते हैं, जो व्यक्ति कर्कश वाणी का प्रयोग करते हैं, उनसे लोगों में कटुता की भावना व्याप्त हो जाती है। जो लोग अपनी वाणी का मधुरता से प्रयोग करते हैं, उनकी सभी लोग प्रशंसा करते हैं।

सभी लोग उनसे संबंध बनाने के इच्छुक रहते हैं। वाणी मनुष्य के चरित्र को भी स्पष्ट करने में सहायक होती है। जो व्यक्ति विनम्र और मधुर वाणी से लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उसके बारे में लोग यही समझते हैं कि इनमें सद्भावना विद्यमान है। मधुर वाणी मित्रों की संख्या में वृद्धि करती है। कोमल और मधुर वाणी से शत्रु के मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है।

वह भी अपनी द्वेष और ईर्ष्या की भावना को विस्तृत करके मधुर संबंध बनाने का इच्छुक हो जाता है। यदि कोई अच्छी बात भी कठोर और कर्कश वाणी में कही जाए तो लोगों पर उसकी प्रतिक्रिया विपरीत होती है। लोग यही समझते हैं कि यह व्यक्ति अहंकारी है। इसलिए वाणी मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है तथा उसे उसका सदुपयोग करना चाहिए।

73. दहेज प्रथा : एक अभिशाप

संकेत बिंदु – दहेज का अर्थ, कन्या की श्रेष्ठता दहेज के आवरण में, खुलेआम बोली

दहेज का अर्थ है, विवाह के समय दी जाने वाली वस्तुएं। हमारे समाज में विवाह के साथ लड़की को माता-पिता का घर छोड़कर पति के घर जाना होता है। इस अवसर पर अपना स्नेह प्रदर्शित करने के लिए कन्या के पक्ष के लोग लड़की, लड़कों के संबंधियों को यथाशक्ति भेंट दिया करते हैं। यह प्रथा कब शुरू हुई, कहा नहीं जा सकता। लगता है कि यह प्रथा अत्यंत प्राचीन है। दहेज प्रथा जो आरंभ में स्वेच्छा और स्नेह से भेंट देने तक सीमित रही होगी धीरे-धीरे विकट रूप धारण करने लगी है।

वर पक्ष के लोग विवाह से पहले दहेज में ली जाने वाली धनराशि तथा अन्य वस्तुओं का निश्चय करने लगे हैं। आधुनिक युग में कन्या की श्रेष्ठता शील-सौंदर्य से नहीं, बल्कि दहेज में आंकी जाने लगी। कन्या की कुरूपता और कुसंस्कार दहेज के आवरण में आच्छादित हो गए। खुलेआम वर की बोली- बोली जाने लगी। दहेज में प्रायः राशि से परिवारों का मूल्यांकन होने लगा। इस प्रकार दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या बन गई है।

दहेज प्रथा समाप्त करने के लिए स्वयं युवकों को आगे आना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपने माता-पिता तथा संबंधियों को स्पष्ट शब्दों में कह दें – शादी होगी तो बिना दहेज के होगी। इन युवकों को चाहिए कि वे उस संबंधी का डटकर विरोध करें जो नवविवाहिता को शारीरिक या मानसिक कष्ट देता है। दहेज प्रथा की विकटता को कम करने में नारी का आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र होना भी बहुत हद तक सहायक होता है।

अपने पैरों पर खड़ी युवती को दूसरे लोग अनाप-शनाप नहीं कह सकते। इसके अतिरिक्त चूंकि वह चौबीस घंटे घर पर बंद नहीं रहेगी, सास और ननदों की छींटा – कशी से काफ़ी बची रहेगी। बहू के नाराज़ हो जाने से एक अच्छी खासी आय हाथ से निकल जाने का भय भी उनका मुख बंद किए रखेगा।

दहेज-प्रथा हमारे समाज का कोढ़ है। यह प्रथा साबित करती है कि हमें अपने को सभ्य मनुष्य कहलाने का कोई अधिकार नहीं है। जिस समाज में दुल्हिनों को प्यार की जगह यातनाएं दी जाती हैं, वह समाज निश्चित रूप से सभ्यों का नहीं नितांत असभ्यों का समाज है। अब समय आ गया है कि इस कुरीति को समूल उखाड़ फेंकेंगे।

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74. सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है

संकेत बिंदु – सामाजिक जीवन, मित्र की आवश्यकता, मित्र का चुनाव, सच्चा मित्र।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अभाव में उसका जीवन – निर्वाह संभव नहीं। सामाजिकों के साथ हमारे संबंध अनेक प्रकार के हैं। कुछ हमारे संबंधी हैं, कुछ परिचित तथा कुछ मित्र होते हैं। मित्रों में भी कुछ विशेष प्रिय होते हैं। जीवन में यदि सच्चा मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमें बहुत बड़ी निधि मिल गई है। सच्चा मित्र हमारा मार्ग प्रशस्त करता है। वह दिन-प्रतिदिन हमें उन्नति की ओर ले जाता है। उसके सद्व्यवहार से हमारे जीवन में निर्मलता का प्रसार होता है।

दुख के दिनों में वह हमारे लिए विशेष सहायक होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तो वह हम में उत्साह भरता है। वह हमें कुमार्ग से हटा कर सुमार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है। सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया। सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता।

वह मित्र की सहायता करना अपना कर्तव्य समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है, अतः ठीक ही कहा गया है “सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है। ”

75. साँच को आँच नहीं

संकेत बिंदु – सत्य मार्ग के लिए दृढ़ संकल्प, सत्यमार्ग कठिन, सत्य के लिए त्याग, महापुरुषों से प्रेरणा।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब तक वह समाज से संपर्क स्थापित नहीं करता तब तक उसके जीवन की गाड़ी नहीं चल सकती। कई बार मनुष्य अपने जीवन की गाड़ी को सुचारु रूप से चलाने के लिए असत्य का सहारा लेता है। असत्य का मार्ग उसे एक के बाद एक झूठ बोलने के लिए मज़बूर कर देता है और वह ऐसी झूठ की दलदल में फँस जाता है जहाँ उसके जीवन की गाड़ी डगमगा जाती है। इसलिए मनुष्य को सत्य मार्ग पर चलने के लिए दृढ़ रहना चाहिए। सत्य से मनुष्य के जीवन में उन्नति धीरे-धीरे होती है।

इस कछुआ चाल से मनुष्य का धैर्य टूटने लगता है, परंतु उसे अपने विश्वास को बनाए रखते हुए सत्य का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए। यह ठीक है कि सत्य के मार्ग पर चलना कठिन होता है, परंतु कठिनाई किस काम में नहीं आती है ? आग में तप कर ही सोना कुंदन बनता है। इसी प्रकार सत्य के मार्ग पर चलकर मनुष्य सफलता के उस शिखर को प्राप्त कर लेता है जिस पर पहुँचना प्रत्येक मनुष्य के वश में नहीं होता है। इसे वही मनुष्य प्राप्त कर सकता है जिसमें साहस और सच का ताप होता है।

मानव को इस मार्ग पर चलने के लिए बहुत त्याग करने पड़ते हैं। कई बार मनुष्य का सामना झूठ के प्रलोभन से हो जाता है। जिसमें समाज, सगे-संबंधी सभी को अपना स्वार्थ और लाभ दिखाई देता है, परंतु सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति उसमें फँसता नहीं है। वह सभी लोगों के स्वार्थ और लाभ को अनदेखा कर देता है जिससे सभी उसके दुश्मन बन जाते हैं। उसे स्वयं को सही सिद्ध करने के लिए सभी का त्याग करना पड़ता है।

जब सबके सामने झूठ की सच्चाई आती है तो उन लोगों को अपने किए पर पछतावा होता है क्योंकि झूठ के पैर नहीं होते। वह जिस मार्ग से अंदर आता है उसी मार्ग से सच से डरकर भाग जाता है। जिन महापुरुषों ने सच का दामन पकड़ा वे आज मरकर भी अमर हैं। उनके जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं जैसे – महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, राजा हरिश्चंद्र इत्यादि। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन को सफल बनाने के लिए सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए क्योंकि साँच को आँच नहीं है।

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76. जंक फूड

संकेत बिंदु – जंक फूड क्या होता है?, युवा पीढ़ी और जंक फूड, जंक फूड खाने के दुष्परिणाम

बर्गर, पिज़्ज़ा, नूडल्स, फ्रेंच फ्राइस, कोल्ड ड्रिंक आदि ये सब अल्पाहार जंक फूड कहलाते हैं। आधुनिक समय में हर वर्ग के लोग जंक फूड के दीवाने दिखाई देते हैं। आज की युवा पीढ़ी फल व हरी सब्ज़ियों का सेवन न कर जंक फूड को ही अपना पर्याप्त आहार समझने लगी है। समय के अभाव, सुविधाजनक व स्वादिष्ट होने के कारण युवा वर्ग जंक फूड की ओर अधिक आकर्षित रहता है। जबकि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

इस फूड में पौष्टिक तत्वों की कमी होने के कारण युवा वर्ग व बच्चे मोटापा, शुगर, हृदय रोग व उच्च रक्तचाप आदि बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। जंक फूड खाने में तो स्वादिष्ट होता है किंतु इसमें पोषक तत्वों की कमी होती है। तैलीय होने के कारण इसे पचने में काफ़ी समय लगता है। पोषक तत्वों की कमी के कारण पेट तथा अन्य पाचन अंगों में खिंचाव रहता है। कब्ज़ व गैस की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जंक फ़ूड का नियमित प्रयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जीवन को भरपूर जीने व स्वस्थ रहने के लिए जंक फूड से बचना चाहिए।

77. महानगरीय भीड़भाड़ और मेट्रो

संकेत बिंदु – यातायात और भीड़भाड़, प्रदूषण की समस्या, मेट्रो रेल की भूमिका, मेट्रो के लाभ

भारत दुनिया में सड़कों का दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क वाला देश है। वाणिज्यिक वाहनों में वृद्धि के कारण उच्च श्रेणी के सड़क परिवहन नेटवर्क प्रदान करना भारत सरकार के लिए एक चुनौती है। निजी वाहनों की संख्या में वृद्धि हुई है और भारत के लगभग सभी बड़े शहरों में सड़कों पर भीड़ बढ़ गई है। यह सड़कों पर यातायात, वाहन प्रदूषण से निपटने के लिए दिन-प्रतिदिन का दर्द और दर्द का दिन है, जो इन दिनों लोगों के लिए एक बड़ा मानसिक और शारीरिक तनाव का कारण बनता है।

औसतन एक व्यक्ति अपने दिन में लगभग 30 मिनट से लेकर 2 घंटे तक ड्राइविंग करता है। इस समय का अधिकांश समय ट्रैफिक जाम में बीतता है। भारतीय शहरों में अभी भी खराब सार्वजनिक परिवहन है और अधिकांश लोगों को निजी परिवहन पर निर्भर रहना पड़ता है। वाहनों की संख्या में वृद्धि के साथ, इन ऑटोमोबाइल से प्रदूषण में भारी वृद्धि हो रही है। वाहन में ईंधन का दहन विभिन्न गैसों जैसे सल्फर ऑक्साइड कॉर्बन मोनो ऑक्साइड नाइट्रोजन ऑक्साइड सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर आदि का उत्सर्जन करता है।

ये गैसें पर्यावरण तथा स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती हैं और लंबे समय तक प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग, एसिड वर्षा, पर्यावरण प्रणाली में असंतुलन आदि पैदा करके पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। मेट्रो रेल आधुनिक जन परिवहन प्रणाली है जो शायद भविष्य में दिल्ली को इस भीषण समस्या से निपटने में मदद दे सके। मेट्रो रेल इन्हीं परेशानियों से निजात पाने का एक सकारात्मक कदम है। जापान, कोरिया, हांगकांग, सिंगापुर, जर्मनी एवं फ्रांस की तर्ज पर दिल्ली में इसे अपनाया गया। मेट्रो रेल की योजना विभिन्न चरणों से संपन्न होगी।

कई चरण तो पूरे हो भी गए हैं ओर सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं। इसकी व्यवस्था अत्याधुनिक तकनीक से संचालित होती है। इसके कोच वातानुकूलित हैं। टिकट प्रणाली भी स्वचालित है। ट्रेन की क्षमता के अनुसार ही टिकट उपलब्ध होता है। स्टेशनों पर एस्केलेटर की सुविधा उपलब्ध है। मेट्रो लाइन को बस रूट के सामानांतर ही बनाया गया है, जिससे यात्रियों को मेट्रो से उतरने के बाद कोई दूसरा साधन प्राप्त करने में कठिनाई न हो।

मेट्रो रेल के दरवाज़े स्वचालित हैं। हर आने वाले स्टेशनों की जानकारी दी जाती रहती है। वातानुकूलित डब्बों में धूल-मिट्टी से बचकर लोग सुरक्षित यात्रा कर रहे हैं। ट्रैफिक जाम का कोई चक्कर नहीं है। दिल्ली के लिए एक नायाब तोहफा है – दिल्ली मेट्रो रेल। दिल्ली की समस्याओं के संदर्भ और दिल्ली मेट्रो रेल की संभावनाओं में कहा जा सकता है कि निःस्संदेह यह यहाँ के जीवन को काफी सहज कर देगी। यहाँ की यातायात प्रणाली के लिए एक वरदान सिद्ध होगी।

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78. कारज धीरे होत हैं, काहे होत अधीर

संकेत बिंदु – धैर्य और इच्छा, शांत मन की उपयोगिता, प्रतीक्षा और उचित फल की प्राप्ति

जिसके पास धैर्य है, वह जो इच्छा करता है उसे अवश्य प्राप्त कर लेता है। प्रकृति हमें धीरज धारण करने की सीख देती है। धैर्य जीवन की लक्ष्य- प्राप्ति का द्वार खोलता है। जो लोग ‘जल्दी करो, जल्दी करो’ की रट लगाते हैं, वे वास्तव में ‘अधीर मन, गति कम’ लोकोक्ति को चरितार्थ करते हैं। सफलता और सम्मान उन्हीं को प्राप्त होता है, जो धैर्यपूर्वक काम में लगे रहते हैं। शांत मन से किसी कार्य को करने में निश्चित रूप से कम समय लगता है। बचपन के बाद जवानी धीरे-धीरे आती है। संसार के सभी कार्य धीरे-धीरे संपन्न होते हैं। यदि कोई रोगी डॉक्टर से दवाई लेने के तुरंत पश्चात पूर्णतया स्वस्थ होने की कामना करता है, तो यह उसकी नितांत मूर्खता है। वृक्ष को कितना भी पानी दो, परंतु फल प्राप्ति तो समय पर ही होगी। संसार के सभी महत्त्वपूर्ण विकास कार्य धीरे-धीरे अपने समय पर ही होते हैं। अतः हमें अधीर होने की बजाय धैर्यपूर्वक अपने कार्य में संलग्न होना चाहिए।

79. ग्लोबल वार्मिंग और जन-जीवन

संकेत बिंदु – ग्लोबल वार्मिंग का अभिप्राय, ग्लोबल वार्मिंग के कारण, ग्लोबल वार्मिंग से हानियाँ, बचाव के उपाय

पृथ्वी के सतह पर औसतन तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) कहलाता है। ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानव प्रेरक कारकों के कारण होता है। औद्योगीकरण में ग्रीनहाउस गैसों का अनियंत्रित उत्सर्जन तथा जीवाश्म ईंधन का जलना ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। ग्रीनहाउस गैस वायुमंडल में सूर्य की गरमी को वापस जाने से रोकता है। यह एक प्रकार के प्रभाव है जिसे “ग्रीनहाउस गैस प्रभाव” के नाम से जाना जाता है। इसके फलस्वरूप पृथ्वी के सतह पर तापमान बढ़ रहा है।

पृथ्वी के बढ़ते तापमान के फलस्वरूप पर्यावरण प्रभावित होता है अतः इस पर ध्यान देना आवश्यक है। पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के मात्रा में वृद्धि के कारण पृथ्वी के सतह पर निरंतर तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग है। ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के सभी देशों के लिए एक बड़ी समस्या है, जिसका समाधान सकारात्मक शुरूआत के साथ करना चाहिए। पृथ्वी का बढ़ता तापमान विभिन्न खतरों को जन्म देता है, साथ ही इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व के लिए संकट पैदा करता है।

यह क्रमिक और स्थायी रूप से पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन उत्पन्न करता है तथा इससे प्रकृति का संतुलन प्रभावित होता है। पृथ्वी के सतह पर औसतन तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग कहलाता है। ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानव प्रेरक कारकों के कारण होता है। औद्योगीकरण में ग्रीनहाउस गैसों का अनियंत्रित उत्सर्जन तथा जीवाश्म ईंधन का जलना ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है।

ग्रीनहाउस गैस वायुमंडल में सूर्य की गरमी को वापस जाने से रोकता है। यह एक प्रकार का प्रभाव है जिसे “ग्रीनहाउस गैस प्रभाव” के नाम से जाना जाता है। इसके फलस्वरूप पृथ्वी के सतह पर तापमान बढ़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के कारण, पृथ्वी से वायुमंडल में जल वाष्पीकरण अधिक होता है जिससे बादल में ग्रीन हाउस गैस का निर्माण होता है जो पुनः ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है।

जीवाश्म ईंधन का जलना, उर्वरक का उपयोग, अन्य गैसों में वृद्धि जैसे- ट्रोपोस्फेरिक ओजोन, और नाइट्रस ऑक्साइड भी ग्योबल वार्मिंग के कारक हैं। तकनीकी आधुनिकीकरण, प्रदूषण विस्फोट, औद्योगिक विस्तार की बढ़ते माँग, जंगलों की अंधाधुंध कटाई तथा शहरीकरण ग्लोबल वार्मिंग वृद्धि में प्रमुख रूप से सहायक हैं। हम जंगल की कटाई तथा आधुनिक तकनीक के उपयोग से प्राकृतिक प्रक्रियाओं को विक्षुब्ध कर रहे हैं। जैसे वैश्विक कार्बन चक्र, ओजोन की परत में छिद्र बनना तथा रंगों का पृथ्वी पर आगमन जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हो रही है।

जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण तथा विनाशकारी प्रोद्यौगिकियों का कम उपयोग भी एक अच्छी पहल है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से जीवन पर खतरा बढ़ता जा रहा है। हमें सदैव के लिए पर्यावरण-विरोधी आदतों का त्याग करना चाहिए। हमें पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाना चाहिए, बिजली का उपयोग कम करना चाहिए, लकड़ी को जलाना बंद करना चाहिए आदि।

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80. विद्यालयों की ज़िम्मेदारी बेहतर नागरिक – बोध

संकेत बिंदु – व्यक्तित्व निर्माण में विद्यालय का स्थान, राष्ट्र और समाज के प्रति उत्तरदायित्व, नागरिक अधिकारों – कर्तव्यों का बोध

विद्यालय हमें सिखाते हैं कि घर, परिवार, समाज, संस्थाओं और लोक में रहते हुए कर्तव्यों का निर्वहन कैसे करें। हमारा योगदान क्या और कैसे हो। पाठ्यक्रमों, परीक्षाओं, उपाधियों से परे व्यक्ति को एक श्रेष्ठ राष्ट्रभक्त और समर्पित व्यक्ति बनाने का दायित्व विद्यालय का ही है। लोकमंगल और राष्ट्रकल्याण के भाव को जगाते ऐसे विद्यालय समाज के गौरव होते हैं। समाज उनकी ओर अनेक आकांक्षाओं से निहारता है। उनसे ज्ञान की चमक बिखेरने की अपेक्षा करता है।

बदलते दौर में विद्यालय की भूमिका लगातार चुनौतीपूर्ण बन रही है। सामाजिक रचना के साथ वैश्विक स्तर पर होने वाले परिवर्तनों का असर गहरा है। इन परिवर्तनों के बीच में ही विद्यालय को स्वयं को ढालना होगा, बदलना होगा। आज की शिक्षा निःसंदेह संस्कार – केंद्रित नहीं रही। प्रतियोगिता की दुनिया में सभी मानदंड बिखर गए। शिक्षा चारित्रिक निर्माण का माध्यम थी, महज रोजगार हासिल करने का अटपटा-सा उपकरण बनकर रह गई। विद्यालय व्यक्तित्व को तराशे और संस्कारित करे, यह उम्मीद की जाती है। हमारे सामाजिक शब्दकोश में यह व्यक्तित्व विकास जैसे शब्द नहीं थे।

विद्यालय दायित्वों से भरा हुआ है। विद्यालय अपने दायित्वों का निर्वाह करने में थोड़ी भी चूक करते हैं तो केवल छात्र का भविष्य ही नहीं बल्कि राष्ट्र के भविष्य के सामने भी एक प्रश्न चिह्न खड़ा हो जाता। इसलिए आवश्यक है कि जीवन की सुरक्षा जिस प्रकार करते हैं वैसे ही अपने दायित्वों का निर्वाह भी करें। वर्तमान में प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक को जिन दायित्वों का निर्वहन करना है, उनमें सीमा सुरक्षा, आंतरिक, सुरक्षा, देश की धरोहरों की सुरक्षा, स्वच्छता का ध्यान, साक्षरता का प्रचार-प्रसार आदि उल्लेखनीय हैं।

सभी चुनौतियाँ राष्ट्रवासियों की उम्मीदों एवं आशाओं से जुड़ी हैं। एकता, समता के साथ व्यवहार एवं जीवन शैली वर्ग शुचिता ही सही समाधान हो सकता है। हर नागरिक को परिवार व समाज से पहले अपने राष्ट्र के बारे में सोचना चाहिए। किसी भी देश का नाम उसके नागरिकों के अच्छा या बुरा होने से ऊँचा होता है। भारतीय संस्कृति में विद्यालय की महिमा और विराटता व्यापक है।

81. सोशल मीडिया और किशोर

संकेत बिंदु – सोशल मीडिया – तात्पर्य और विभिन्न प्रकार, किशोरों के आकर्षण-बिंदु, वर्तमान समय में सोशल मीडिया का प्रचलन और प्रभाव

सोशल मीडिया आज हमारे जीवन में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। सोशल मीडिया एक बहुत ही सशक्त माध्यम है और इसका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है। सोशल मीडिया के बिना हमारे जीवन की कल्पना करना मुश्किल है, परंतु इसके अत्यधिक उपयोग के वजह से हमें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है। सोशल मीडिया देश – विदेश में हो रही किसी भी घटनाओं को लोगों तक तुरंत पहुँचाने का काम करता है। सोशल मीडिया का प्रयोग कंप्यूटर, मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप आदि किसी भी साधन का उपयोग करके किया जा सकता है।

व्हाट्सएप्प, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि सोशल मीडिया के प्रमुख प्लेटफार्म हैं। इसके जरिए किसी भी खबर को पलभर में पूरे देश व विदेश में फैलाया जा सकता है। हम इस सच्चाई को अनदेखा नहीं कर सकते कि सोशल मीडिया आज हमारे जीवन में मौजूद सबसे बड़े घटकों में से एक है। इसके माध्यम से हम किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा दुनिया के किसी भी कोने में बसे अपने प्रियजनों से बात कर सकते हैं।

सोशल मीडिया एक आकर्षक तत्व है और आज यह हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है। युवा हमारे देश का भविष्य हैं, वे देश की अर्थव्यवस्था को बना या बिगाड़ सकते हैं, वहीं सोशल नेटवर्किंग साइटों पर उनका सबसे अधिक सक्रिय रहना, उन पर अत्यधिक प्रभाव डाल रहा है। जो कुछ भी हमें जानना होता है उसे बस हम एक क्लिक करके उसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

इन दिनों सोशल नेटवर्किंग साइटों से जुड़े रहना सबको पसंद है। कुछ लोगों का मानना है कि यदि आप डिजिटल रूप में उपस्थित नहीं हैं, तो आपका कोई अस्तित्व नहीं है। सोशल नेटवर्किंग साइटों पर उपस्थिति का बढ़ता दबाव और प्रभावशाली प्रोफ़ाइल, युवाओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रही है। सोशल नेटवर्क के सकारात्मक प्रभाव हैं लेकिन बाकी सभी चीज़ों की तरह इसकी भी कुछ बुराइयाँ हैं। इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं- यह परीक्षा में नकल करने में मदद करता है। छात्रों के शैक्षणिक श्रेणी और प्रदर्शन को खराब करता है।

निजता का अभाव उपयोगकर्ता हैकिंग, आइडेंटिटी की चोरी, फिशिंग अपराध इत्यादि जैसे साइबर अपराधों का शिकार हो सकता है। दुनिया भर में लाखों लोग हैं जो सोशल मीडिया का उपयोग प्रतिदिन करते हैं। इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं का एक मिश्रित उल्लेख दिया गया है। इसमें बहुत सारी ऐसी चीजें हैं जो हमें सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण हैं, तो कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो हमें नुकसान पहुँचा सकती है।

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82. यात्राएँ – अनुभव के नए क्षितिज

संकेत बिंदु – यात्रा – क्या, क्यों, कैसे?, यात्राओं से अनुभवों की व्यापकता, यात्राओं का सभ्यता के विकास में योगदान

यात्राएँ कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं। यात्रा का अनुभव व्यक्ति के जीवन में गति भी लाता है। कहा भी गया है कि ठहराव का अर्थ मृत्यु है। इसलिए मनुष्य की जीवतंता का प्रमाण उसकी गतिशीलता एवं निरंतरता ही हैं जो जीवन में नया उत्साह जगाती है। प्राकृतिक और भौगोलिक विभिन्नताओं तथा विविधताओं से भरे क्षेत्र में भ्रमण करके उनके ऐतिहासिक व दार्शनिक स्थलों को देखने- निहारने तथा वहाँ बसने वाली जनता के रहन-सहन व संस्कृति को करीब से जानने को ही यात्रा कहा जाता है। कई उद्देश्यों को लेकर यात्राएं की जाती हैं।

कुछ यात्राएँ धार्मिक तो कुछ सामाजिक महत्व की होती हैं। यात्रा करने के कई लाभ भी हैं। कुछ लोग यात्रा मनोरंजन के लिए करते हैं तो कुछ स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि के लिए करते हैं। जिज्ञासु अथवा ज्ञानपिपासु लोग एक- दूसरे स्थानों की यात्राओं में अधिक रुचि रखते हैं। पहाड़ों, सागरीय तटों तथा प्रकृति के मनोरम स्थलों पर घूमना सभी को आनंदित करता है। पर्यटन के लिहाज़ से हमारा देश समृद्ध हैं। देश दुनिया से बड़ी संख्या में लोग यहाँ आते हैं तथा देश – करते हैं।

प्रकृति के विभिन्न और विविध स्वरूपों को जानने का एक तरीका यात्रा है। कहीं हरी-भरी वादियाँ तो कही बर्फ से ढके पर्वतों के मनोरम दृश्य का नज़ारा तथा पहाड़ों से मिले रोमांच से उनके साहस में भी वृद्धि होती है। रंग-बिरंगी वेश-भूषा, रहन-सहन, रीति-रिवाजों, उत्सव-त्योहारों, भाषा – बोलियों, सभ्यताओं, संस्कृतियों तथा जानकारियों का आदान-प्रदान करने में पर्यटन का महत्वपूर्ण योगदान है।

यात्रा करने से हमें कई प्रकार के अनुभव प्राप्त होते हैं। साथ ही ज्ञान में वृद्धि भी होती हैं। यात्रा के दौरान विभिन्न देशों की सभ्यता तथा संस्कृति के लोगों का मिलन होता है। लोगों के रहन-सहन तथा भाषा संवाद से बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है। वैसे भी इनसान हमेशा कुछ-न-कुछ जानने के लिए उत्सुक रहता है। कई बार व्यक्ति विभिन्न लोगों तथा भिन्न-भिन्न स्थानों की यात्रा करके ही अनेक सद्गुणों को सीखता है। मानवता का असली स्वरूप उन्हें इस तरह के यात्राओं में ही महसूस करने का अवसर मिलता है।

यात्रा समय के सदुपयोग का सर्वोतम तरीका है। जब तक कोई व्यक्ति अपनी नीरस शारीरिक एवं मानसिक दिनचर्या को तोड़ता नहीं है, उसे संतुष्टि नहीं मिल पाती है। यात्रा से हम दिनचर्या की इस नीरसता को भंग कर सकते हैं। एक नई जगह पर व्यक्ति कुछ जानने के लिए उत्सुक एवं ज्ञान अर्जित करने के लिए व्यस्त हो जाता है। रोमांचित एवं आश्चर्यचकित करने वाले स्थल उसके उत्साह को जागृत रखते हैं। यात्रा के समय हम भिन्न-भिन्न लोगों से मिलते हैं। मनोविज्ञान में रुचि रखने वाले व्यक्तियों को दूसरों को समझने का अनुभव एवं दृष्टि प्राप्त होती है। मनुष्य के स्वभाव को समझ पाना सर्वोतम शिक्षा है। यात्रा का शौक रखना बहुत लाभदायक है इससे हम व्यस्त रहते हैं तथा शिक्षा प्राप्त होती है। हमारे शरीर एवं मन को नई ऊर्जा प्रदान होती है।

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83. जब हम चार रनों से पिछड़ रहे थे

संकेत बिंदु – खिलाड़ियों की मनोदशा, दर्शकों की मनोदशा, प्रयास और परिणाम

जब हम चार रनों से पिछड़ रहे थे- हमारे विद्यालय की क्रिकेट टीम का डी०ए०वी० पंचकुला विद्यालय की टीम से विक्रम स्टेडियम में मैच चल रहा था। अंतिम ओवर था। दोनों टीमें अच्छा प्रदर्शन कर रही थीं। मैच रोमांचक मोड़ पर पहुँच चुका था। जीतने के लिए केवल छह रनों की आवश्यकता थी। दोनों टीमों के कप्तान जीत प्राप्त करने के लिए अपनी-अपनी टीम को प्रोत्साहित कर रहे थे। तभी डी०ए०वी० विद्यालय की टीम ने दो रन और बना लिए। हम चार रनों से पिछड़ रहे थे।

अंतिम दो गेंदों में हार-जीत का फैसला निश्चित था। मेरे दिमाग में अपने कोच की बातें गूंजने लगीं – खेलो, जी भरकर खेलो। यह समय फिर नहीं आएगा। दर्शकों की नज़रें भी हमारे खेल पर टिकी हुई थीं। तभी अचानक सामने से आती गेंद जैसे ही मेरे बल्ले से टकराई, उछल कर दर्शकों के मध्य जा गिरी। सारा स्टेडियम दर्शकों के शोर और तालियों से गूँज उठा। अंतिम गेंद के साथ ही हम मैच जीत चुके थे। मेरे आत्मविश्वास ने हमें विजयी बना दिया।

84. देश पर पड़ता विदेशी प्रभाव

संकेत बिंदु – हमारा देश और संस्कृति, विदेशी प्रभाव, परिणाम और सुझाव

देश पर पड़ता विदेशी प्रभाव – हमारा भारत देश अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन व समृद्ध संस्कृति है। अनेकता में एकता ही इसकी मूल पहचान है। अध्यात्म, सहिष्णुता, अहिंसा, धर्मनिरपेक्षता, परोपकार, मानव-सेवा आदि भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ हैं। किंतु आज की युवा पीढ़ी पर विदेशी संस्कृति का प्रभाव अधिक है। पाश्चात्य सभ्यता की चमक-दमक व स्वच्छंद आचरण युवा पीढ़ी को अपनी ओर अधिक आकर्षित करता है।

आज की पीढ़ी अपने संस्कारों, रीति-रिवाजों व नैतिक मूल्यों को भुलाकर विदेशी रंग में रँगती जा रही है जिस कारण भारतीय युवाओं का चारित्रिक पतन होता दिखाई दे रहा है। जबकि विदेशी लोगों का रुझान भारतीय संस्कृति की ओर देखा जा सकता है। कई विदेशी लोग भारतीय संस्कृति से इतने अधिक प्रभावित हैं कि वे अपने देश को छोड़कर सदा के लिए यहीं बस जाते हैं। विदेशी प्रभाव के कारण ही हमारे देश में संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है। अपनी संस्कृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने बच्चों तथा युवा पीढ़ी को कहानियों, चित्रों व कलाकृतियों के माध्यम से इसकी विशेषताओं से समय-समय पर अवगत करवाना होगा तथा भारतीय संस्कृति की उपयोगिता से परिचित कराना होगा।

JAC Class 10 Hindi रचना अनुच्छेद लेखन

85. मित्रता

संकेत बिंदु – आवश्यकता, कौन हो सकता है मित्र, लाभ

मित्रता – मित्रता और सच्चा मित्र जीवन में किसी वरदान से कम नहीं है। जब किसी के मन में अपनेपन और सौहार्द्र का भाव हो तो उसे मित्रता कहते हैं। मित्रता के अभाव में जीवन सूना और दुखमय हो जाता है। मित्र का होना जीवन में खुशी, उमंग और आत्मविश्वास का संचार करता है। हर वर्ग के मनुष्य के लिए मित्रता आवश्यक है। विद्यालय जाकर सबसे पहले बच्चा भी मित्र बनाने का प्रयास करता है। सच्चे मित्र पर आँखें मूँदकर विश्वास किया जा सकता है। वह एक भाई और एक शिक्षक के समान होता है।

जहाँ वह बुरे समय में सहारा बनकर सही राह दिखाता है, वहीं बुराई से सावधान भी करता है। वह मानो एक वैद्य के समान हमारी परेशानियों का इलाज भी करता है। कुछ लोग अल्पकालिक परिचय को मित्रता का नाम दे डालते हैं। उनके धोखा खाने की संभावना अधिक होती है। वहीं कुछ लालची और स्वार्थी लोगों से मित्रता करना भी हानिकारक हो सकता है। सच्ची मित्रता प्रत्येक दृष्टि से आदर्शपरक होती है। चरित्रवान आदर्श व्यक्ति से मित्रता करना सौभाग्य की बात होती है।
सदाचारी और बुद्धिमान,
मित्र हों ऐसे विद्वान।

86. लड़का-लड़की एक समान

संकेत बिंदु – ईश्वर की देन, भेदभाव के कारण, दृष्टिकोण कैसे बदलें

मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी कहा जाता है। वह जिस समाज में कार्य करता है। उस समाज में दो जाति के मनुष्य रहते हैं- लड़का और लड़की। पुराने ज़माने में लड़की को शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी नहीं भेजते थे। देश की आज़ादी के बाद लड़कियाँ हर क्षेत्र में कार्य करने लगी हैं आज के युग में सभी लड़कियाँ लड़कों के बराबरी में चलने लगी हैं। लड़कियाँ घर, समाज और देश का नाम रोशन कर रही हैं। कई भारतीय महिलाओं ने अपने देश का नाम ऊँचा किया है।

लड़कियों को किसी भी रूप में लड़कों से कमज़ोर नहीं समझा जा सकता, क्योंकि लड़कियों के बिना मनुष्य जीवन आगे नहीं बढ़ सकता। अगर परिवार चलाने के लिए लड़का ज़रूरी है, तो परिवार को आगे बढ़ाने के लिए लड़की भी ज़रूरी है। लड़कियों को उनकी सोच और उनके सपने सामने रखने का अधिकार मिलना चाहिए। उन्हें उनकी जिंदगी उनके हिसाब से जीने देना चाहिए। लड़कियों को लड़के जितनी समानता देने की शुरुआत घर से ही करनी चाहिए। उन्हें घर के हर निर्णय में भागीदारी दी जानी चाहिए।

उन्हें लोगों की संकुचित सोच से लड़ने के लिए तैयार करना चाहिए और उन्हें ऐसे पथ पर अग्रसर करना चाहिए कि वो लोगों की सोच को बदल सकें और लड़का-लड़की का भेदभाव खत्म कर सके। आज के इस युग में लड़का और लड़की में कोई अंतर नहीं है। लड़कियों की कर्मशीलता ही उनके सक्षम होने का सबूत है। आज कल सरकार की तरफ से लड़कियों के लिए काफी नई और सुविधाजनक योजनाओं का एलान किया जा रहा है।

लड़कियों के जन्म से लेकर पढ़ाई, नौकरी, बीमा, कारोबार, सरकारी सुविध आदि क्षेत्र में सरकार की तरफ से काफी मदद भी प्रदान की जा रही है, ताकि लड़कियाँ समाज में कभी किसी से पीछे न छूट जाएँ। भारत सरकार ने लड़कियों को लड़कों के बराबर कार्य करने का मौका दिया है। सरकार ने लड़कियों को हर क्षेत्र में सहायता करके उनका हौंसला बढ़ाया है। लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र से लेकर हर क्षेत्र में सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं। गरीब घर की लड़कियों के लिए मुफ्त शिक्षा और किताबों का प्रबंध किया है। आज के आधुनिक युग में लड़का-लड़की में कोई अंतर नहीं है। यदि आज भी कोई ऐसी धारणा रखता है कि लड़की कुछ नहीं कर सकती, तो वह बिलकुल गलत सोच रहा है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

JAC Class 9 Hindi एक कुत्ता और एक मैना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया?
उत्तर :
गुरुदेव का स्वास्थ्य ठीक नहीं था तथा शांतिनिकेतन में छुट्टियाँ भी चल रही थीं। इसलिए गुरुदेव ने शांतिनिकेतन छोड़कर कुछ दिन श्रीनिकेतन में रहने का मन बनाया। यह स्थान शांतिनिकेतन से दो मील दूर था। वे यहाँ कुछ समय एकांत में व्यतीत करना चाहते थे।

प्रश्न 2.
मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जब गुरुदेव शांतिनिकेतन से श्रीनिकेतन रहने के लिए चले गए तो उनका कुत्ता दो मील की यात्रा करके तथा बिना किसी के राह दिखाए उनसे मिलने चला आया था। जब गुरुदेव ने उस पर अपना हाथ फेरा हो वह आँखें बंद करके आनंद के सागर में डूब गया था। जब गुरुदेव का चिताभस्म आश्रम में लाया गया तो यही कुत्ता आश्रम के द्वार से ‘उत्तरायण’ तक चिताभस्म के कलश के साथ गया और कुछ देर तक चुपचाप कलश के पास बैठा रहा। इसी प्रकार से एक लंगड़ी मैना बिना किसी भय के गुरुदेव के पास फुदकती रहती थी। इससे स्पष्ट है कि मूक प्राणी भी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

प्रश्न 3.
गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया ?
उत्तर :
जब लेखक ने गुरुदेव की इस बात पर विचार किया कि मैना में भी करुण भाव हो सकता है तो उसे लगा कि सचमुच ही उसके मुख पर एक करुण भाव था। उसने सोचा, वह शायद मैना का विधुर पति था जो स्वयंवर-सभा के युद्ध में घायल होकर पराजित हो गया था अथवा मैना पति की विधवा पत्नी थी जो बिडाल के आक्रमण में पति को खोकर स्वयं थोड़ी-सी चोट खाकर लंगड़ी होकर एकांत में रह रही थी। उसकी यही दशा गुरुदेव को कविता लिखने के लिए प्रेरित कर गई होगी। यह सब सोचकर ही लेखक गुरुदेव द्वारा मैना पर रचित कविता का मर्म समझ सका।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य – साहित्य की उत्कृष्ट किया है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ, कहाँ झलकती हैं ? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. लेखक कब सपरिवार गुरुदेव से मिलने श्रीनिकेतन जाता है तो उस समय के वर्णन में कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली के दर्शन होते हैं, जैसे-“गुरुदेव बाहर एक कुर्सी पर चुपचाप बैठे अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यान विस्मित नयनों से देख रहे थे। हम लोगों को देखकर मुस्कराए, बच्चों से जरा छेड़-छाड़ की, कुशल – प्रश्न पूछे और फिर चुप हो गए। ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया और उनके पैरों के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा। वह आँखें मूँदकर अपने रोम-रोम से उस स्नेह – रस का अनुभव करने लगा। ”

2. लेखक हिंदी मुहावरों का बाँग्ला में अनुवाद कर जब गुरुदेव से बात किया करता था तो वे मन ही मन मुसकराते थे और जब लेखक कभी किसी अतिथि को साथ ले जाते थे, तो वे हँसकर पूछा करते थे ‘दर्शनार्थी लेकर आए हो क्या ?”

3. गुरुदेव सुबह अपने बगीचे में टहलने के लिए निकला करते थे। लेखक एक दिन उनके साथ था। उनके साथ एक और पुराने अध्यापक थे। गुरुदेव एक – एक फूल – पत्ते को ध्यान से देखते हुए अपने बगीचे में टहल रहे थे और अध्यापक महाशय से बातें करते जा रहे थे। लेखक चुपचाप सुनता जा रहा था। गुरुदेव ने बातचीत के सिलसिले में एक बार कहा, “अच्छा साहब, आश्रम के कौए क्या हो गए ? उनकी आवाज़ सुनाई ही नहीं देती ?” न तो अध्यापक महाशय को यह खबर थी और न लेखक को ही। बाद में लेखक लक्ष्य किया कि सचमुच कई दिनों से आश्रम में कौए नहीं दीख रहे हैं। लेखक ने तब तक कौओं को सर्वव्यापक पक्षी ही समझ रखा था। अचानक उस दिन मालूम हुआ कि ये भले आदमी भी कभी-कभी प्रयास को चले जाते थे या चले जाने को बाध्य होते थे।

4. लेखक के घर की दीवार में बने छेद में रहने वाले मैना का जोड़ा जब घर के लोगों को देखता तो चहक – चहक कर कुछ कहता। लेखक को पक्षियों की भाषा तो समझ में नहीं आती थी पर निश्चित विश्वास था कि उनमें कुछ इस तरह की बातें हो जाया करती होंगी –
पत्नी – ये लोग यहाँ कैसे आ गए जी ?
पति – उँह बेचारे आ गए हैं, तो रह जाने दो। क्या कर लेंगे !
पत्नी – लेकिन फिर भी इनको इतना तो ख्याल होना चाहिए कि यह हमारा प्राइवेट घर है।
पति – आदमी जो हैं, इतनी अकल कहाँ ?
पत्नी – जाने भी दो
पति – और क्या !

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प्रश्न 5.
आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता। पशु-पक्षियों में अपने हित अनहित को पहचानने की एक अनुपम शक्ति होती है। अपने शुभेच्छु को देखकर उनका रोम-रोम स्नेह – रस का अनुभव करते लगता है तथा चेहरे से परितृप्ति झलकने लगती है। उस मूक प्राणी में कवि ने आत्मनिवेदन, दैन्य, करुणा और सहज बोध का जो भाव अपनी रहस्य- भेदिनी दृष्टि से देखा, वह मनुष्यों के भीतर भी दृष्टिगोचर नहीं होता।

मनुष्य ज्ञान संपन्न एवं अनुभूति प्रवण जीव है। किंतु विनय, दया, उदारता की जननी करुणा का दर्शन उसके भीतर भी नहीं होता, जिसका साक्षात्कार गुरुदेव ने उस मूक कुत्ते के भीतर किया तो उनके कर-स्पर्श से पुलकित हो परम तृप्ति का अनुभव करता था। इस प्रकार वह मूक प्राणी कुत्ता मानवों से भी कहीं अधिक संवेदनशील चित्रित किया गया है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 6.
पशु-पक्षियों से प्रेम इस पाठ की मूल संवेदना है। अपने अनुभव के आधार पर ऐसे किसी प्रसंग से जुड़ी रोचक घटना को कलात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर :
एक बार मैं स्कूल से घर आ रहा था। रास्ते में मुझे एक पिल्ला मिला। मुझे देखते ही वह मेरे पैरों से लिपट गया। वह बहुत प्यारा था। मैंने उसे प्यार से सहलाया और खाने के लिए बिस्कुट दिए। वह मेरे पीछे-पीछे मेरे घर आ गया। मेरी माँ ने देखा, तो उसे भी बड़ा प्यारा लगा। मैंने उसे पालने का निश्चय किया। मुझे तो ऐसा लगा जैसे मुझे कोई अनुपम साथी मिल गया हो। मैंने उसका नाम शेरू रखा।

वह सफ़ेद रंग का झबरेला सा बहुत प्यारा सा पिल्ला था। वह आज मेरे परिवार का सदस्य बन गया है। वह घर की रखवाली भी करता है और मेरे साथ खेलता भी है। जब भी मैं उसे आवाज लगाता हूँ, वह दौड़कर मेरे पास आता है। वह मेरे स्कूल से आने का इंतजार करता है। जैसे ही मुझे देखता है, अपनी पूँछ हिलाकर ‘कूँ कूँ’ की आवाज़ निकालकर मेरे पैरों पर लोटने लगता है।

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भाषा अध्ययन –

प्रश्न 7.
गुरुदेव जरा मुस्कुरा दिए।
मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ।
ऊपर दिए गए वाक्यों में एक वाक्य में अकर्मक क्रिया है और दूसरे में सकर्मक है। इस पाठ को ध्यान से पढ़कर सकर्मक और अकर्मक क्रिया वाले चार-चार वाक्य छाँटिए।
उत्तर :
(क) अकर्मक क्रिया के वाक्य :
1. मैं चुपचाप सुनता जा रहा था।
2. देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है।
3. रोज फुदकती है।
4. क्या कर लेंगे।

(ख) सकर्मक क्रिया के वाक्य :
1. शायद मौज में आकर ही उन्होंने यह निर्णय किया हो।
2. मैं मय बाल-बच्चों के एक दिन श्रीनिकेतन जा पहुँचा।
3. मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ।
4. कुछ और पहले की घटना याद आ रही है।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में कर्म के आधार पर क्रिया-भेद बताइए –
(क) मीना कहानी सुनाती है।
(ख) अभिनव सो रहा है।
(ग) गाय घास खाती है।
(घ) मोहन ने भाई को गेंद दी।
(ङ) लड़कियाँ रोने लगीं।
उत्तर :
(क) सकर्मक क्रिया
(ख) अकर्मक क्रिया
(ग) सकर्मक क्रिया
(घ) सकर्मक क्रिया
(ङ) अकर्मक क्रिया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

प्रश्न 9.
नीचे पाठ में से शब्द-युग्मों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं। जैसे-
उत्तर :
समय-असमय, अवस्था – अनावस्था
इन शब्दों में ‘अ’ उपसर्ग लगाकर नया शब्द बनाया गया है।
पाठ में से कुछ शब्द चुनिए और उनमें ‘अ’ एवं ‘अन्’ उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनाइए।
उत्तर :

  • निर्णय – अनिर्णय
  • कारण – अकारण
  • प्रचलित – अप्रचलित
  • सहज – असहज
  • देखा – अनदेखा
  • अंग – अनंग
  • कहा – अनकहा
  • अधिक – अनधिक।

JAC Class 9 Hindi एक कुत्ता और एक मैना Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
गुरुदेव मैना के मनोभावों को कैसे जान सके ?
उत्तर
गुरुदेव की संवेदनशील दृष्टि एक-एक वस्तु और पशु-पक्षी सब पर रहती है। यहाँ तक कि आश्रम में कौवे न रहने पर भी उन्हें यह पता चल जाता था कि वे प्रवास पर गए हैं। इसी प्रकार जब लेखक गुरुदेव के पास उपस्थित था तो उनके सामने एक लंगड़ी मैना फुदक रही थी। गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु का इतना ध्यान रहता था कि अपने समूह से बिछुड़ी हुई मैना के फुदकने में उसके अंदर में छिपे करुण-भाव का ज्ञान हो गया और उन्होंने उसकी चर्चा की।

इसके पूर्व द्विवेदी जी यही जानते थे कि मैना में करुणा का भाव नहीं होता है। वह दूसरों पर कृपा ही किया करती है किंतु गुरुदेव की बात से उन्हें ज्ञात हुआ कि मैना में भी करुणा होती है। द्विवेदी जी और गुरुदेव दोनों के विचार मैना के विषय में भिन्न थे क्योंकि कवि होने के नाते उसमें संवेदनशील अधिक थी, अतएव वह मैना के मनोभाव को अधिक निकट से जान सके थे।

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प्रश्न 2.
‘एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
यह निबंध भावात्मक निबंध है। इस निबंध में एक कुत्ता और एक मैना के सहज-सरल जीवन की तरलता एवं करुण भावना पर प्रकाश डाला गया है। इस निबंध में एक कुत्ते की सहज गहरी स्वामिभक्ति तथा एक मैना की करुणाजनक कहानी की ओर संकेत किया है। कवींद्र रवींद्र ने कुत्ते की अनुपम ममता तथा मूक, किंतु गहरे स्नेह की चर्चा करते हुए कुत्ते के सहज स्नेह की अमिट रेखा खींचने का प्रयास किया गया है। उसी प्रकार से लेखक ने कवींद्र के विस्तृत जीवन-दर्शन पर प्रकाश डालते हुए, एक मैना के करुण -कलित जीवन की चिंता कर, उसके संबंध में कवींद्र को लिखी एक कविता के भाव-सौंदर्य को दिखाया है। लेखक ने इस संबंध में अपनी सबल शैली में एक कुत्ता और एक मैना के सरल और करुणामयी जीवन का सजीव चित्र खींचा है।

प्रश्न 3.
कुत्ते से संबंधित कविता का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कुत्ते से संबंधित कविता में कवींद्र ने लिखा था कि प्रतिदिन यह कुत्ता उनके आसन के पास चुपचाप तब तक बैठा रहता है जब तक वे इसे अपने हाथों से स्पर्श नहीं करते। उनके हाथों का स्पर्श पाकर वह आनंदित हो उठता है। यह मूक प्राणी अपने हाव-भाव से अपना आत्मनिवेदन, दीनता, प्रेम, करुणा आदि सब कुछ व्यक्त कर देता है। वे इस मूक प्राणी की करुणा दृष्टि में उस विशाल मानव-सत्य को देखते हैं, जो मनुष्य में नहीं है।

प्रश्न 4.
लेखक ने सपरिवार कहाँ जाने का निश्चय किया और क्यों ?
उत्तर :
लेखक ने कुछ दिनों के लिए सपरिवार रवींद्रनाथ टैगोर के पास जाने का निश्चय किया। रवींद्रनाथ टैगोर कुछ दिनों के लिए शांति निकेतन छोड़कर श्रीनिकेतन रहने चले गए थे। शांति निकेतन में छुट्टियाँ चल रही थीं, इसलिए सभी लोग वहाँ से बाहर चले गए थे। उस समय टैगोर कुछ अस्वस्थ थे, इसलिए लेखक ने सपरिवार रवींद्रनाथ टैगोर के दर्शन के लिए जाने का निश्चय किया।

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प्रश्न 5.
गुरुदेव जी ने लेखक का ‘दर्शन’ शब्द क्यों पकड़ लिया था ?
उत्तर :
आरंभ में लेखक बाँग्ला भाषा में बात करते समय हिंदी मुहावरों के अनुवाद का प्रयोग करता था। जब कोई अतिथि उनसे मिलने आता था तो कहा करता था, ‘एक भद्र लोक आपनार दर्शनेर जन्य ऐसे छेन’। यह बात बाँग्ला की अपेक्षा हिंदी में अधिक प्रचलित थी। लेखक की बात सुनकर गुरुदेव मुस्करा देते थे क्योंकि लेखक की यह भाषा अधिक पुस्तकीय थी। इसी से गुरुदेव ने ‘दर्शन’ शब्द पकड़ लिया।

प्रश्न 6.
किस प्रसंग से पता चलता है कि गुरुदेव की पैनी दृष्टि अणु-अणु में पहुँचने वाली थी ?
उत्तर :
जब लेखक शांति निकेतन में नया आया था, उस समय वह गुरुदेव से ज्यादा खुला हुआ नहीं था। एक दिन गुरुदेव बगीचे में टहल रहे थे, लेखक उनके साथ थे, वे एक-एक फूल-पत्ते को ध्यान में देख रहे थे। अचानक गुरुदेव ने कहा कि आश्रम से कौए कहाँ गए, उनकी आवाज सुनाई नहीं पड़ती ? उससे पहले किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं आया था, परंतु गुरुदेव के निरीक्षण – निपुण नयन उनको भी देख सके थे। इस तरह उनकी पैनी दृष्टि अणु-अणु में पहुँचने वाली थी।

प्रश्न 7.
गुरुदेव ने किसे यूथभ्रष्ट कहा और क्यों ?
उत्तर :
गुरुदेव ने मैना को यूथभ्रष्ट कहा है। यूथभ्रष्ट से अभिप्राय है, जो अपने सजातीय जीवों के समूह से निकाली अथवा निकल गई हो। ऐसा उन्होंने इसलिए कहा है क्योंकि मैना लँगड़ी थी। वह एक टाँग पर फुदकती थी। उसके आस-पास अन्य मैनाएँ उछल-कूद करती थीं, दाना चुगती थी परंतु लँगड़ी मैना को उनसे कोई मतलब नहीं था। वह अकेली दाना चुगती और इधर-उधर घूमती रहती थी।

प्रश्न 8.
लेखक के अनुसार मैना कैसा पक्षी है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार मैना अनुकंपा ही दिखाया करती है, उसे करुणा से कोई मतलब नहीं हैं। उन्होंने यह समझा था कि मैना नाच-गान और आनंद – नृत्य में समय बिताने वाला सुख – लोलुप पक्षी है परंतु गुरुदेव से बात करने के बाद लेखक को भी मैना करुणा भाव दिखाने वाला पक्षी लगा। उन्होंने देखा और समझा कि विषाद की वीथियाँ उस मैना को आँखों में तरंगें मारती हैं।

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प्रश्न 9.
मैना से संबंधित कविता का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
मैना से संबंधित कविता में गुरुदेव ने लिखा था कि मैना अपने दल से अलग होकर पता नहीं किस अपराध की सजा भोग रही है, जबकि कुछ ही दूरी पर अन्य मैनाएँ घास पर उछल-कूद करती हुई आनंद मना रही हैं। लँगड़ी मैना चुपचाप अपना आहार चुगती है। वह अपने अकेलेपन का दोष किसी को नहीं देती है। उसकी चाल में कोई अभिमान नहीं है और न ही उसकी आँखों में कोई आग दिखाई देती है। वह अपने अकेलेपन में मस्त होकर जीवन व्यतीत कर रही है।

प्रश्न 10.
लेखक कवींद्र की सोच-शक्ति पर हैरान क्यों ?
उत्तर :
लेखक कवींद्र की पक्षियों के प्रति संवेदन-शक्ति को देखकर हैरान है। उन्होंने मैना की व्यथा को व्यक्त करने के लिए कविता की रचना की थी। लेखक मैना की व्यथा को समझ नहीं सका था, जबकि कवींद्र कवि ने मैना के दर्द, अकेलेपन को समझ लिया है। मैना की मूक वाणी को आवाज़ देने के लिए एक कविता की रचना कर दी।

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प्रश्न 11.
मैना के जाने के बाद वातावरण कैसा हो गया था ?
उत्तर :
एक दिन मैना वहाँ से उड़ गई। सायंकाल के समय गुरुदेव ने उसे देखा नहीं था। जब वह अकेले कोने में जाया करती थी, उस समय अंधकार में झींगुर झनकारता था, हवा में बाँस के पत्ते आपस में झरझराते थे। पेड़ों को आवाज़ देता हुआ मध्य संध्या तारा भी दिखाई देता परंतु अब वहाँ मैना नहीं दिखाई देती। उसके जाने के बाद वातावरण वही था, परंतु अब वहाँ उदासी अधिक व्याप्त थी।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. उन दिनों छुट्टियाँ थीं। आश्रम के अधिकांश लोग बाहर चले गए थे। एक दिन हमने सपरिवार उनके ‘दर्शन’ की ठानी। ‘दर्शन’ को मैं जो यहाँ विशेष रूप से दर्शनीय बनाकर लिख रहा हूँ, उसका कारण यह है कि गुरुदेव के पास जब कभी मैं जाता था तो प्रायः वे यह कहकर मुस्करा देते थे कि ‘ दर्शनार्थी हैं क्या ?’

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक ने सपरिवार किसके दर्शन की ठानी ?
2. लेखक ‘दर्शन’ को क्यों विशेष बना रहे हैं ?
3. लेखक किस आश्रम में गए ?
4. ‘उन दिनों’ से लेखक का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
1. लेखक ने सपरिवार रवींद्रनाथ ठाकुर के दर्शन का निश्चय किया।
2. लेखक ‘दर्शन’ को इसलिए विशेष बना रहे हैं क्योंकि उनके जाने पर गुरुदेव ‘ दर्शनार्थी हैं क्या’ कहकर मुसकरा देते थे।
3. लेखक गुरुदेव के आश्रम में गए।
4. ‘उन दिनों’ से लेखक का तात्पर्य उन दिनों से है जब लेखक आश्रम में गुरुदेव रवींद्रनाथ से मिलने गए।

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2. मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ तब मेरे सामने श्रीनिकेतन के तितल्ले पर की वह घटना प्रत्यक्ष-सी हो जाती है। वह आँख मूँदकर अपरिसीम आनंद, वह ‘मूक हृदय का प्राणपत्र आत्मनिवेदन’ मूर्तिमान हो जाता है। उस दिन मेरे लिए वह एक छोटी-सी घटना थी, आज वह विश्व की अनेक महिमाशाली घटनाओं की श्रेणी में बैठ गई है। एक आश्चर्य की बात और इस प्रसंग में उल्लेख की जा सकती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. यह गद्यांश किस पाठ का है ?
2. लेखक के सामने किसका आत्मनिवेदन मूर्तिमान हो जाता है ?
3. कविता पढ़ते हुए लेखक के सामने कौन-सी घटना प्रत्यक्ष हो जाती है ?
4. ‘आज वह विश्व की अनेक घटनाओं की श्रेणी में है’ – यहाँ लेखक किस घटना की ओर संकेत करता है ?
उत्तर
1. यह गद्यांश ‘एक कुत्ता और मैना’ पाठ का है। यह आत्म – कथानक शैली में लिखा गया है
2. लेखक के सामने आँख मूँदकर अपरिमित आनंद, वह ‘मूक हृदय का प्राणपत्र आत्मनिवेदन’ मूर्तिमान हो जाता है।
3. कविता पढ़ते हुए लेखक के सामने श्रीनिकेतन के तितल्ले पर ही घटना प्रत्यक्ष – सी हो जाती है।
4. इस वाक्य में लेखक श्रीनिकेतन के तितल्ले पर की घटित घटना की ओर संकेत करता है।

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3. एक दूसरी बार मैं सबेरे गुरुदेव के पास उपस्थित था। उस समय एक लंगड़ी मैना फुदक रही थी। गुरुदेव ने कहा, “देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है। रोज़ फुदकती है, ठीक यहीं आकर। मुझे इसकी चाल में एक करुण भाव दिखाई देता है।” गुरुदेव ने अगर कह न दिया होता तो मुझे उसका करुण भाव एकदम नहीं दीखता। मेरा अनुमान था कि मैना करुण भाव दिखाने वाला पक्षी है ही नहीं। वह दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाया करती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लंगड़ी मैना कब फुदक रही थी ?
2. ‘यूथभ्रष्ट’ किसे कहा गया है ?
3. लेखक को अचानक क्या दिखाई दिया ?
4. लेखक का ‘मैना’ पक्षी के प्रति क्या अनुमान था ?
उत्तर :
1. जब लेखक सबेरे गुरुदेव के पास उपस्थित थे। उस समय लंगड़ी मैना फुदक रही थी।
2. मैना को ‘यूथभ्रष्ट’ कहा गया है।
3. लेखक को मैना की चाल में करुण भाव दिखाई देता है।
4. लेखक का ‘मैना’ पक्षी के प्रति अनुमान यह था कि मैना करुण भाव दिखाने वाला पक्षी है ही नहीं। वह दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

4. उस मैना को क्या हो गया है, यही सोचता हूँ। क्यों वह दल से अलग होकर अकेली रहती है ? पहले दिन देखा था सेमर के पेड़ के नीचे मेरे बगीचे में। जान पड़ा जैसे एक पैर से लंगड़ा रही हो। इसके बाद उसे रोज़ सबेरे देखता हूँ- संगीहीन होकर कीड़ों का शिकार करती फिरती है। चढ़ जाती है बरामदें में। नाच-नाच कर चहलकदमी किया करती है, मुझसे ज़रा भी नहीं डरती।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक ने यह कथन किस आधार पर लिखा है ?
2. मैना को क्या हो गया था ? वह दल से अलग क्यों रहती है ?
3. मैना क्या करती रहती है ?
4. मैना का लंगड़ी होना कैसे ज्ञात हुआ ?
5. मैना किस प्रकार चहलकदमी किया करती थी ?
उत्तर
1. लेखक ने यह कथन मैना को लक्ष्य करके लिखी गई गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कविता के आधार पर लिखा है।
2. मैना लंगड़ी हो गई है। उसका सहयोगी बिड़ाल के आक्रमण में मारा गया था। इसी दुख से दुखी होने के कारण वह दल में न रहकर अकेली रहती है।
3. मैना कीड़ों का शिकार करती है। वह बरामदे में चढ़ जाती है और नाच-नाचकर चहलकदमी करती रहती है।
4. लेखक ने उसे सेमर के पेड़ के नीचे एक पैर से लंगड़ाते हुए देखकर समझ लिया था कि वह लंगड़ी है।
5. मैना नाच नाचकर चहल कदमी किया करती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

5. जब मैं इस कविता को पढ़ता हूँ तो उस मैना की करुण मूर्ति अत्यंत साफ़ होकर सामने आ जाती है। कैसे मैंने उसे देखकर भी नहीं देखा और किस प्रकार कवि की आँखें उस बेचारी के मर्मस्थल तक पहुँच गईं, सोचता हूँ तो हैरान हो जाता हूँ। एक दिन वह मैना उड़ गई। सायंकाल कवि ने उसे नहीं देखा। जब वह अकेले जाया करती है उस डाल के कोने में, जब झींगुर अंधकार में झनकारता रहता है, जब हवा में बाँस के पत्ते झरझराते रहते हैं, पेड़ों की फाँक में पुकारा करता है नींद तोड़ने वाला संध्यातारा ! कितना करुण है उसका गायब हो जाना!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक किस कविता की बात कर रहा है ? यह कविता किसने और क्यों लिखी थी ?
2. लेखक हैरान क्यों है ?
3. इस कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
4. मैना के जाने के बाद के वातावरण का वर्णन कीजिए।
5. लेखक को कविता में किस भाव की प्रमुखता दिखाई देती है ?
उत्तर :
1. कवि मैना पर लिखी हुई कविता की बात कर रहा है। यह कविता गुरुदेव रवींद्रनाथ ने लंगड़ी मैना को देखकर उसकी व्यथा को व्यक्त करने के लिए लिखी थी।
2. कवि इस बात से हैरान है कि मैना को देखकर उसके मन में कुछ नहीं हुआ था जबकि गुरुदेव रवींद्रनाथ ने उस मैना के मन के दर्द को समझ लिया और उस पर कविता लिख दी।
3. मैना अपने दल से अलग होकर न मालूम किस अपराध का दंड भोग रही हैं। अन्य मैनाएँ आनंद मना रही है परंतु यह लंगड़ी मैना चुपचाप अपना आहार चुगती रहती है। वह अपने इस अकेलेपन का किसी पर दोष नहीं लगाती है। अपने में मस्त रहती है।
4. मैना के चले जाने के बाद भी अंधकार में झींगुर झनकारता है और हवा में बाँस के पत्ते झरझराते रहते हैं। पेड़ों के बीच में से सांध्यतारा भी दिखाई देता है परंतु मैना नहीं दिखाई देती। उसके जाने के बाद सारा वातावरण उदास दिखाई देता है।
5. लेखक को कविता में करुण-भाव की प्रमुखता दिखाई देती है।

एक कुत्ता और एक मैना Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन परिचय – आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 में बलिया जिले के आरत दूबे का छपरा नामक गाँव में हुआ था। संस्कृत महाविद्यालय काशी से शास्त्री की परीक्षा पास करने के पश्चात् इन्होंने ज्योतिष विषय में सन् 1930 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की। सन् 1930 में शांति निकेतन में इन्हें हिंदी अध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। सन् 1950 में इन्हें काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का अध्यक्ष बनाया गया। इस पद पर दस वर्ष तक रहने के पश्चात् सन् 1960 में इन्हें पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का अध्यक्ष बनाया गया। यहाँ से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् ये भारत सरकार की हिंदी विषयक अनेक योजनाओं से जुड़े रहे। लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें डी० लिट० और भारत सरकार ने पद्म भूषण की उपाधि से अलंकृत किया था। सन् 1979 में इनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने विभिन्न विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

समीक्षात्मक ग्रंथ – ‘सूर साहित्य’, ‘हिंदी साहित्य की भूमिका’, ‘मध्यकालीन धर्म साधना’, ‘सूर और उनका काव्य’, ‘नाथ-संप्रदाय’, ‘कबीर’, ‘मेघदूत’, ‘एक पुरानी कहानी’, ‘हिंदी साहित्य का आदिकाल’ तथा ‘लालित्य मीमांसा’।
उपन्यास – ‘वाणभट्ट की आत्मकथा’ तथा ‘चारु चंद्रलेख’।
निबंध – संग्रह – ‘ अशोक के फूल’, ‘विचार प्रवाह’, ‘विचार और वितर्क’ तथा ‘कल्पलता’।

भाषा शैली – भाषा विधान की दृष्टि से इनका तत्सम शब्दों के प्रति विशेष लगाव है। संस्कृत भाषा के साथ-साथ, संस्कृत साहित्य की गहरी छाप इनकी रचनाओं में मिलती है। इनका आदर्श दुरूहता नहीं है और न ही पांडित्य प्रदर्शन को इन्होंने अपने साहित्य में कहीं भी स्थान दिया है। सुबोध, सरल, स्वच्छ और सार्थक शब्दावली का प्रयोग इनकी रचनाओं में सर्वत्र प्राप्त होता है। वे सरल वाक्यों में ही अपनी बात कहते हैं।

संस्कृत शब्दों के साथ उर्दू के बोलचाल के शब्दों का प्रयोग भी इन्होंने किया है। इनकी शैली विचारात्मक, भावनात्मक, आत्मकथात्मक तथा व्यंग्यात्मक होती है। ‘एक कुत्ता और मैना’ पाठ में भी लेखक ने क्षीणवपु, प्रगल्भ, परितृप्ति, स्तब्ध, ईषत्, मर्मस्थल, अस्तगामी जैसे तत्सम शब्दों के साथ-साथ मौज, मालूम, परवा, मुखातिब, लापरवाही, प्राइवेट, अकल, चहलकदमी जैसे विदेशी शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया है।

इससे इनकी भाषा में प्रवाहमयता बनी रहती है। इस पाठ में लेखक ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया है, जैसे- ‘जब मैं इस कविता को पढ़ता हूँ तो उस मैना की करुणा मूर्ति अत्यंत साफ होकर सामने आ जाती है। कैसे मैंने उसे देखकर भी नहीं देखा।’ लेखक की भाषा-शैली कुछ स्थलों पर काव्यमय भी हो गई है, जैसे- ‘जब झींगुर अंधकार में झनकारता रहता है, जब हवा में बाँस के पत्ते झरझराते रहते हैं, पेड़ों की फाँक से पुकारा करता है नींद तोड़ने वाला संध्यतारा ! ‘ इस प्रकार इस पाठ में लेखक ने भावानुकूल भाषा का प्रयोग करते हुए अत्यंत रोचक शैली में गुरुदेव रवींद्रनाथ से संबंधित अपनी स्मृतियों को प्रस्तुत किया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

पाठ का सार :

एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ में हजारीप्रसाद द्विवेदी ने गुरुदेव रवींद्रनाथ से संबंधित अपनी स्मृतियों को आत्मकथात्मक शैली में प्रस्तुत किया है।
लेखक सपरिवार गुरुदेव के दर्शनार्थ उनके आश्रम में पहुँचा करते थे। गुरुदेव के प्रति लेखक की बड़ी श्रद्धा थी। गुरुदेव कुछ दिनों के लिए शांति निकेतन छोड़कर श्री निकेतन में रहने लगे थे। एक दिन लेखक सपरिवार कवींद्र के दर्शन के लिए वहाँ पहुँच गए। गुरुदेव ने बच्चों के साथ छेड़-छाड़ की, कुशल प्रश्न पूछे, फिर मूक हो गए। उसी समय एक कुत्ता वहाँ आ गया। वह अपनी पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेर दिया।

वह मूक प्राणी उस स्नेह रस के अनुभव से आनंदित हो गया। किसी भी मनुष्य की सहायता के बिना वह कुत्ता दो मील की यात्रा करके वहाँ आ पहुँचा था। अपने स्नेहदाता के वियोग से विह्वल हो वहाँ आने की तकलीफ उसने उठाई थी। उस मूक कुत्ते के संबंध में कवींद्र रवींद्र ने ‘आरोग्य’ में एक कविता लिखी थी। उस वाक्यहीन प्राणी के नीरव लोचनों के अंदर ‘भावों का भवन’ समाया हुआ था।

कवि ने उस प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर विशाल मानव-सत्य का सौंदर्य देखा और दिखाया। वह कुत्ता गुरुदेव की मृत्यु होने पर उनके चिता भस्म के साथ ‘उत्तरायण’ तक जाने को भी तैयार हो गया। उस मूक प्राणी का हृदय भी अनुपम स्नेह का अजस्र स्रोत था। उस मूक पशु की अक्षुण्ण ममता ने कवींद्र की मानस – वीणा को झंकृत कर दिया और वहाँ से मनोहर कविता का मोहक नाद सुनाई दिया।

दूसरी बार की बात है; बगीचे में गुरुदेव फल-फूल, पत्ते पत्तों को ध्यान से देखते हुए टहल रहे थे। एक अध्यापक महोदय भी उनके साथ थे। बीच में गुरुदेव ने पूछा कि आश्रम से कौए कहाँ गए, उनकी आवाज़ क्यों नहीं सुनाई पड़ती ? सर्वव्यापक पक्षी समझते हुए किसी ने भी कौओं की ओर ध्यान नहीं दिया था। अतः कोई भी कौओं के अभाव को समझ न सका था। परंतु गुरुदेव के निरीक्षण-निपुण नयन उनको भी देख सके थे। उनकी पैनी दृष्टि अणु-अणु में पहुँचने वाली थी।

एक दिन लेखक गुरुदेव के निकट बैठे थे। उस समय एक लंगड़ी मैना फुदक रही थी। उसे देखकर रवि बाबू ने कहा कि मुझे उसकी चाल में करुण भाव दिखाई देता है। परंतु लेखक मैना को करुण भाव दिखाने वाला पक्षी न समझ सके थे। उनके दृष्टिकोण में वह अनुकंपा ही दिखाया करती है, न कि करुणा। उन्होंने यह समझा था कि मैना नाच-गान और आनंद-नृत्य में समय बिताने वाला सूख-लोलुच पक्षी है। अब गुरुदेव की बात उनके मन में बैठ गई। उन्होंने देखा और समझा कि विवाद की वीथियाँ उस मैना की आँखों में तरंगें मारती हैं।

शायद इसी मैना को सामने देखकर ही कवींद्र के मन की मैना बोली थी जो एक कविता के रूप में बाहर आई थी। कविता पढ़ने पर लेखक के सामने मैना की मूर्ति साफ़ हो गई। लेखक को अचंभा हुआ, साथ-ही-साथ खेद भी कि मैना को देखने पर भी उन्होंने नहीं देखा, परंतु कवि की सूक्ष्म दृष्टि मैना के मर्मस्थल तक पहुँच गई। कवि की आँखें कहाँ नहीं पहुँचती ? एक दिन वह मैना उड़ गई, न जाने कहाँ ? उसका गायब होना भी अत्यंत करुणाजनक था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • अन्यत्र – दूसरी ओर
  • क्षीणवपु – कमज़ोर शरीर
  • असमय – बेवक्त
  • भीत – डरा
  • ध्यान स्तिमित – ध्यान में लोन
  • अहैतुक – निःस्वार्थ, बिना किसी मतलब के
  • मर्मभेदी – हुदय को भेदने वाली
  • अपरिसीमा – असीमित
  • सर्वव्यापक – सब जगह रहनेवाला
  • यूथभ्रष्ट – झुंड या समूह से निकला या निकाला गया
  • अंबार – ढेर
  • मुखातिब – संबोधित होकर
  • परास्त – पराजित, हार
  • ईशत् – कुछ, थोड़ी
  • अविचार – बुरा विचार
  • मर्मस्थल – हृदय
  • तै पाया – निश्चित किया
  • दर्शनार्थी – दर्शन करनेवाला
  • प्रगल्भ – चतुर, होशियार, उत्साही, निर्लज्ज, बहुत बोलनेवाले
  • अस्तगामी – अस्त होते हुए, ड्रबते हुए
  • परितृप्ति – पूरा संतोष
  • प्राणपण – जान की बाज़ी
  • तितल्ला – तीसरी मंज़िल
  • कलश – घड़ा
  • प्रवास – दूसरी जगह जाना, यात्रा
  • अनुकंपा – दया
  • मुखरित – ध्वनि से गूँजन
  • आहत – घायल
  • बिड़ाल – बिलाव
  • निर्वासन – देश निकाला
  • अभियोग – आरोप

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

JAC Class 9 Hindi मेरे बचपन के दिन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
“मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।”
इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि –
(क) उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी ?
(ख) लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं ?
उत्तर :
(क) जब लेखिका का जन्म हुआ, उन दिनों किसी परिवार में लड़की का जन्म लेना अच्छा नहीं माना जाता था। लोग लड़की के जन्म को परिवार के लिए बोझ मानते थे। इसलिए कुछ लोग तो लड़की के पैदा होते ही उसका गला दबाकर उसे मार देते थे। लड़की को जन्म देने वाली माँ को भी बुरा-भला कहा जाता था तथा उसकी भी ठीक से देखभाल नहीं की जाती थी।

(ख) आजकल लड़की और लड़के में कोई अंतर नहीं किया जाता है। लड़की के जन्म पर भी लड़की को जन्म देने वाली माँ की अच्छी प्रकार से देखभाल की जाती है। कुछ परंपरावादी परिवारों में अभी भी लड़की का जन्म अच्छा नहीं माना जाता है। वे लोग लड़की के पैदा होते ही उसे मार देते हैं। कुछ लोग गर्भ में लड़की का पता चलते ही गर्भपात करा देते हैं। अभी भी लड़की के जन्म को सहज रूप से नहीं लिया जाता। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

प्रश्न 2.
लेखिका उर्दू – फ़ारसी क्यों नहीं सीख पाई ?
उत्तर :
लेखिका के बाबा उर्दू-फारसी जानते थे। वे लेखिका को भी उर्दू-फारसी की विदुषी बनाना चाहते थे। उन्हें उर्दू-फारसी पढ़ाने के लिए एक मौलवी साहब को नियुक्त किया गया। जब मौलवी साहब लेखिका को पढ़ाने के लिए आए तो वह चारपाई के नीचे जा छिपी। वह मौलवी साहब से पढ़ने नहीं आई। इस प्रकार लेखिका उर्दू – फ़ारसी नहीं सीख पाई थी।

प्रश्न 3.
लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?
उत्तर :
लेखिका की माँ हिंदी पढ़ी-लिखी थी। वह पूजा-पाठ बहुत अधिक करती थी। माँ ने लेखिका को पंचतंत्र पढ़ना सिखाया था। माँ संस्कृत भी जानती थी। माँ को गीता पढ़ने में विशेष रुचि थी। माँ लिखती भी थी। वह मीरा के पद गाती थी। प्रभाती के रूप में वह ‘जागिए कृपानिधान पंछी बन बोले’ पद गाती थी। कुल मिलाकर वह एक धार्मिक महिला थी।

प्रश्न 4.
जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है ?
उत्तर :
लेखिका ने जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को अत्यंत मधुर बताया है। वे उनके लड़के को राखी बाँधती थीं तथा उनकी पत्नी को ताई कहती थीं। नवाब के बच्चे इनकी माता जी को चचीजान कहते थे। वे आपस में मिल-जुलकर सभी त्योहार मनाते थे। दोनों परिवारों के बच्चों के जन्मदिन एक-दूसरे के घर मनाए जाते थे। आज का वातावरण इतना अधिक विषाक्त हो गया है कि सभी अपने-अपने संप्रदाय के संकुचित दायरों तक सीमित हो गए हैं। इसलिए लेखिका को अपने बचपन के दिनों में जवारा के नवाब के साथ अपने परिवार के आत्मिक संबंध स्वप्न जैसे लगते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
जेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थी। जेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होतीं होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती ?
उत्तर :
जेबुन्निसा के स्थान पर यदि मैं होती तो मैं चाहती कि महादेवी मेरे साथ अच्छा व्यवहार करे। वह मुझे अपनी प्रिय सखी माने और अपनी लिखी हुई कविता सबसे पहले मुझे सुनाए। वह मुझे अपने साथ कवि-सम्मेलनों में भी ले जाए। हम आपस में अपने सुख- दुख बाँटते रहें।

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प्रश्न 6.
महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला था। अनुमान लगाइए कि आपको कोई इस तरह का पुरस्कार मिला हो और उसे देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे करेंगी ?
उत्तर :
यदि मुझे इस तरह का कोई पुरस्कार मिला होता और वह पुरस्कार मुझे देशहित में किसी को देना पड़ता तो मेरा मन प्रसन्नता से भर उठता। मुझे गर्व होता कि मेरी छोटी-सी भेंट देश के किसी कार्य में काम आएगी।

प्रश्न 7.
लेखिका ने छात्रावास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।
उत्तर :
लेखिका के छात्रावास में हिंदू, मुसलमान, ईसाई सभी धर्मों की लड़कियाँ रहती थीं। इनमें मराठी, हिंदी, उर्दू, अवधी, बुंदेली आदि अनेक भाषाएँ बोलने वाली लड़कियाँ थीं। इस प्रकार से धर्म और भाषा का भेद होते हुए भी उनकी पढ़ाई में कोई कठिनाई नहीं आती थी। सब हिंदी में पढ़ती थीं। उन्हें उर्दू भी पढ़ाई जाती थी परंतु आपस में वे अपनी ही भाषा में बातचीत करती थीं। सबमें परस्पर बहुत प्रेम-भाव था।

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प्रश्न 8.
महादेवी जी के इस संस्मरण को पढ़ते हुए आपको भी अपने बचपन की स्मृति मानस पटल पर उभरकर आई होगी, उसे संस्मरण शैली में लिखिए।
उत्तर :
मैं तब दस वर्ष की थी जब माता जी के साथ सेलम से चेन्नई जा रही थी। पिता जी गाड़ी में बैठाकर चले गए थे। गाड़ी में बहुत भीड़ थी। गर्मी का मौसम था। ठसाठस लोग भरे हुए थे। मुझे बहुत प्यास लग रही थी। मैंने माँ से पानी माँगा तो उन्हें याद आया कि पानी लाना तो वे भूल गई हैं। मैं प्यास से रोने लगी। आस-पास भी किसी के पास पानी नहीं था। एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो माँ पानी लेने स्टेशन पर उतर गईं। इसी बीच गाड़ी चल पड़ी। माँ अभी तक लौट कर नहीं आई थीं। मैं ज़ोर-ज़ोर से माँ, माँ कहकर रो रही थी। आस-पास वाले मुझे चुप करा रहे थे। मैं और भी अधिक जोर से रोने लगी कि अचानक पीछे से आकर माँ ने मुझे कहा, ‘रोती क्यों है, ले पानी पी।’ माँ दूसरे डिब्बे में चढ़ गई थी और डिब्बे आपस में जुड़े थे इसलिए वह मेरे तक आ पहुँची थी। यदि माँ न आती तो ? यह सोचकर ही मैं सिहर उठती हूँ।

प्रश्न 9.
महादेवी ने कवि सम्मेलनों में कविता पाठ के लिए अपना नाम बुलाए जाने से पहले होने वाली बेचैनी का जिक्र किया है। अपने विद्यालय में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते समय आपने जो बेचैनी अनुभव की होगी, उस पर डायरी का एक पृष्ठ लिखिए।
उत्तर :
कल मेरे विद्यालय में गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन किया जाना है। मुझे इसमें अपनी कक्षा की ओर से भाषण देना है। मेरा दिल काँप रहा है। पता नहीं मुझे, क्या हो रहा है? मैंने भाषण लिख लिया है; बोलने का अभ्यास भी किया है पर मुझे डर लग रहा है। यदि मैं इसे भूल गया तो सब मेरा मजाक बनाएँगे। सारे विद्यालय के सामने इस प्रकार बोलने का यह मेरा पहला अवसर होगा।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 10.
पाठ से निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द ढूंढकर लिखिए –
विद्वान, अनंत, निरपराधी, दंड, शांति।
उत्तर :

  • विद्वान मूर्ख।
  • अनंत अंत।
  • निरपराधी – अपराधी।
  • दंड – पुरस्कार।
  • शांति – अशांति।

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प्रश्न 11.
निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग / प्रत्यय अलग कीजिए और मूल शब्द बताइए-
उत्तर :
JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन 1

प्रश्न 12.
निम्नलिखित उपसर्ग-प्रत्ययों की सहायता से दो-दो शब्द लिखिए –
उपसर्ग – अनू, अ, सत्, स्व, दुर्
प्रत्यय – दार, हार, वाला, अनीय
उत्तर :
उपसर्ग : अन् – अनपढ़, अनमोल।
अ – अगाध, अचेत।
सत् सज्जन, सत्कार।
स्व – स्वभाव, स्वराज्य।
दुर् – दुर्गम, दुर्दशा।

प्रत्यय : दार – समझदार, चमकदार।
हार – होनहार, समाहार।
वाला – घरवाला, दूधवाला।
अनीय – माननीय, पूजनीय।

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प्रश्न 13.
सामासिक पद छाँटकर विग्रह कीजिए –
उत्तर :

  • पूजा-पाठ – पूजा और पाठ
  • परमधाम – परम है जो धाम
  • दुर्गा- पूजा – दुर्गा की पूजा
  • कुल- देवी – कुल की देवी
  • चारपाई – चार हैं पाँव जिसके
  • कृपानिधान – कृपा का निधान
  • कवि-सम्मेलन – कवियों का सम्मेलन
  • मनमोहन – जो मन को मोहित करे।

यह भी जानें –

स्त्री दर्पण – इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली यह पत्रिका श्रीमती रामेश्वरी नेहरू के संपादन में सन् 1909 से 1924 तक लगातार प्रकाशित होती रही। स्त्रियों में व्याप्त अशिक्षा और कुरीतियों के प्रति जागृति पैदा करना उसका मुख्य उद्देश्य था।

JAC Class 9 Hindi मेरे बचपन के दिन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका के जन्म की कथा क्या है ?
उत्तर :
लेखिका का जन्म जिस परिवार में हुआ था, उस परिवार में कई पीढ़ियों से कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी। इनके परिवार में प्रायः दो सौ वर्षों तक किसी लड़की ने जन्म नहीं लिया था। ऐसा भी सुना जाता था कि पहले लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था। लेखिका के परिवार की कुल देवी दुर्गा थीं। इसके बाबा ने दुर्गा की बहुत पूजा की थी। परिणामस्वरूप परिवार में लेखिका का जन्म हुआ। लेखिका के जन्म पर उसका बहुत स्वागत किया गया था तथा उसे वह सब कुछ सहन नहीं करना पड़ा था, जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता था।

प्रश्न 2.
सुभद्रा कुमारी के साथ लेखिका का परिचय कैसे हुआ और वे कैसे साथ रहती थीं ?
उत्तर :
लेखिका का सुभद्रा कुमारी के साथ परिचय तब हुआ, जब उसे क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज की कक्षा पाँच में दाखिल कराया गया। वहाँ के छात्रावास के जिस कमरे में लेखिका को स्थान मिला, उस कमरे में सुभद्रा कुमारी पहले से रहती थीं और वे कक्षा सात में पढ़ती धीं। सुभद्रा जी कविताएँ लिखती थीं तथा लेखिका भी कविताएँ लिखती थी। लेखिका की कविताओं की चर्चा सारे छात्रावास में सुभद्रा जी ने की थी। इस प्रकार दोनों में मित्रता हो गई। जब अन्य लड़कियाँ खेलती थीं तब ये दोनों कॉलेज के किसी वृक्ष की डाल पर बैठकर कविताएँ लिखती थीं और ‘स्त्री दर्पण’ में प्रकाशनार्थ भेजती थीं। इनकी कविताएँ छप भी जाती थीं। ये कवि-सम्मेलनों में भी जाती थीं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

प्रश्न 3.
आनंद भवन में बापू के आने पर लेखिका ने क्या किया ?
उत्तर :
जब बापू आनंद भवन में आए तो लोग उनके दर्शनार्थ वहाँ जाने लगे। वे उन्हें देश के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के रूप में कुछ राशि भी देते थे। लेखिका भी अपने जेब खर्च में से कुछ बचाकर उन्हें देने गई तथा कवि सम्मेलन में पुरस्कार स्वरूप प्राप्त चाँदी का कटोरा भी उन्हें दिखाने के लिए साथ ले गई। बापू ने उससे वह कटोरा माँग लिया और लेखिका ने वह कटोरा उन्हें दे दिया। उसे कटोरा देने पर यह दुख हुआ कि कटोरा लेकर भी बापू ने उससे वह कविता सुनाने के लिए नहीं कहा, जिस पर उसे यह पुरस्कार मिला था। फिर भी वह प्रसन्न थी कि उसने पुरस्कार में मिला कटोरा बापू को दे दिया।

प्रश्न 4.
लेखिका ने सांप्रदायिक सद्भाव का क्या उदाहरण प्रस्तुत किया है ?
उत्तर :
लेखिका का परिवार उसके बचपन में जहाँ रहता था, वहाँ जवारा के नवाब भी रहते थे। उनकी पत्नी को ये लोग ताई साहिबा कहते थे तथा नवाब साहब के बच्चे लेखिका की माता जी को चचीजान कहते थे। दोनों परिवारों के बच्चों के जन्म-दिन एक-दूसरे के घरों में मनाए जाते थे। लेखिका नवाब के पुत्र को राखी बाँधती थी। तीज-त्योहार दोनों परिवार मिलकर मनाते थे। लेखिका के छोटे भाई के जन्म पर ताई साहिबा बच्चे के लिए कपड़े आदि लाई और बच्चे का नाम अपनी तरफ़ से मनमोहन रखा, जो सदा यही रहा। इस प्रकार, दोनों परिवार अलग-अलग धर्मों को मानने वाले होते हुए भी बहुत निकट थे। यह निकटता सांप्रदायिक सद्भाव का सुंदर उदाहरण है।

प्रश्न 5.
सुभद्रा के जाने के बाद लेखिका के कमरे की साथिन कौन थी और कैसी थी ?
उत्तर :
सुभद्रा के छात्रावास छोड़ने के बाद लेखिका के कमरे की साथिन एक मराठी लड़की जेबुन्निसा थी। वह कोल्हापुर से आई थी। जेबुन लेखिका के साथ घुल-मिल गई थी। वह लेखिका का बहुत सारा काम कर देती थी जिससे लेखिका को कविता लिखने का बहुत-सा समय मिल जाता था। जेबुन मराठी मिश्रित हिंदी भाषा बोलती थी। उसका पहनावा भी मराठी था।

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प्रश्न 6.
लेखिका के समय का वातावरण कैसा था ?
उत्तर :
लेखिका के समय सांप्रदायिकता नहीं थी। विद्यालय में भी अलग-अलग स्थान से आई लड़कियाँ आपस में मिल-जुलकर रहती थीं। सभी प्रार्थना में और मेस में इकट्ठा काम करती थीं; उनमें कोई विवाद नहीं होता था। हिंदू-मुसलमान सब मिल-जुलकर रहते थे। तीज-त्योहार मिल-जुलकर मनाते थे। आपस में विश्वास और प्रेम का भाव था।

प्रश्न 7.
आज की स्थिति देखकर लेखिका को क्या लगता है ?
उत्तर :
पहले और आज के वातावरण में बहुत अंतर आ गया है। पहले लोगों में सांप्रदायिकता की अपेक्षा मिल-जुलकर रहने की भावना थी परंतु आज स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग एक-दूसरे के प्रति अपना विश्वास खो बैठे हैं। उनके मन में एक-दूसरे के प्रति घृणा ने जन्म से लिया है। लेखिका वर्तमान समय में भी हिंदू-मुसलमान की एकता और मेल-जोल की भावना देखना चाहती, जो संभव नहीं लगता है। उन्हें पहले का समय एक सपना लगता है, जो अब खो गया है। यदि आज भी लोग सँभल जाएँ और एक हो जाएँ तो भारत की स्थिति बदल सकती है।

प्रश्न 8.
लेखिका को किस विद्यालय में प्रवेश दिलाया गया और वहाँ उसकी क्या दशा थी ?
उत्तर :
लेखिका के पिता उन्हें विदुषी बनाना चाहते थे। इसलिए उनकी पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया गया। बचपन में उन्हें घर पर ही शिक्षा दी गई। बाद में उन्हें मिशन स्कूल में दाखिल करवाया गया। वहाँ का वातावरण लेखिका को पसंद नहीं आया। इसलिए उसने वहाँ जाना बंद कर दिया। उनके पिता ने उन्हें क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में पाँचवीं कक्षा में भर्ती करवाया। वहाँ का वातावरण लेखिका को बहुत अच्छा लगा। वहाँ हिंदू और ईसाई लड़कियाँ थीं। सबके लिए इकट्ठा भोजन बनता था। लेखिका का वहाँ मन लग गया था।

प्रश्न 9.
लेखिका की लेखन प्रतिभा को किसने पहचाना और उसे कैसे प्रोत्साहन दिया ?
उत्तर :
छात्रावास में लेखिका की साथिन सातवीं कक्षा की छात्रा सुभद्रा कुमारी चौहान थीं। उन्होंने लेखिका को छिप-छिप कर लिखते देखा। एक दिन उन्होंने उसकी एक कविता पूरे छात्रावास में दिखाई। सबको बता दिया कि यह कविता भी लिखती है। सुभद्रा कुमारी चौहान स्वयं भी कविता लिखती थीं। खाली समय में दोनों कविता लिखतीं और ( स्त्री दर्पण) पत्रिका में छपने के लिए भेज देती थीं। वे दोनों कवि-सम्मेलनों में भी भाग लेने लगीं। लेखिका को प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था। इस प्रकार लेखिका की लेखन कला को प्रोत्साहन मिला। इसका श्रेय सुभद्रा कुमारी चौहान को जाता है।

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प्रश्न 10.
लेखिका को किस बात का दुःख था और क्यों ?
उत्तर :
उन दिनों सत्याग्रह आंदोलन जोरों पर चल रहा था। जब बापू आनंद भवन आए तभी सभी ने अपने पास से पैसे इकट्ठे करके उन्हें दिए। लेखिका को एक कविता सम्मेलन में नक्काशीदार चाँदी का कटोरा मिला था। वह कटोरा लेकर बापू के पास गई। बापू के आग्रह पर उसने वह कटोरा बापू जी को दे दिया। उसे बापू को कटोरा देने का दुःख नहीं था। उसे दुःख इस बात का था कि बापू ने उससे यह भी नहीं पूछा कि किस कविता पर उसे यह पुरस्कार मिला था। उन्होंने उसकी कविता भी नहीं सुनी। यदि बापू उसकी कविता सुन लेते तो वह प्रसन्न हो जाती।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. बाबा कहते थे, इसको हम विदुषी बनाएँगे। मेरे संबंध में उनका विचार बहुत ऊँचा रहा। इसलिए ‘पंचतंत्र’ भी पढ़ा मैंने, संस्कृत भी पढ़ी। ये अवश्य चाहते थे कि मैं उर्दू-फारसी सीख लूँ, लेकिन वह मेरे वश की नहीं थी। मैंने जब एक दिन मौलवी साहब को देखा तो बस, दूसरे दिन मैं चारपाई के नीचे जा छिपी। तब पंडित जी आए संस्कृत पढ़ाने। माँ थोड़ी संस्कृत जानती थीं। गीता में उन्हें विशेष रुचि थी। पूजा-पाठ के समय मैं भी बैठ जाती थी और संस्कृत सुनती थी। उसके उपरांत उन्होंने मिशन स्कूल में रख दिया मुझको। मिशन स्कूल में वातावरण दूसरा था, प्रार्थना दूसरी थी। मेरा मन नहीं लगा।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. ‘बाबा’ किसे विदुषी बनाना चाहते थे ?
2. लेखिका चारपाई के नीचे क्यों छिप गई थी ?
3. गीता में विशेष रुचि किन्हें थी ?
4. मिशन स्कूल का वातावरण था-
5. लेखिका का मिशन स्कूल में मन क्यों नहीं लगा ?
उत्तर :
1. बाबा महादेवी वर्मा को विदुषी बनाना चाहते थे। महादेवी जी के संबंध में उनके विचार ऊँचे थे। वे चाहते थे कि महादेवी जी उर्दू-फारसी भी सीखें।
2. उर्दू-फारसी पढ़ना लेखिका के वश की नहीं थी। उर्दू-फारसी पढ़ने के डर से लेखिका चारपाई के नीचे जाकर छिप गई थी।
3. गीता में लेखिका को विशेष रुचि थी। पूजा-पाठ के समय वह बैठ जाती थी और संस्कृत सुनती थी।
4. मिशन स्कूल का वातावरण आस्थामय था।
5. मिशन स्कूल का वातावरण लेखिका को पसंद नहीं था, इसलिए उसका मन वहाँ नहीं लगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

2. उसी बीच आनंद भवन में बापू आए। हम लोग तब अपने जेब खर्च में से हमेशा एक-एक, दो-दो आने देश के लिए बचाते थे और जब बापू आते थे तो वह पैसा उन्हें दे देते थे। उस दिन जब बापू के पास मैं गई तो अपना कटोरा भी लेती गई। मैंने निकालकर बापू को दिखाया। मैंने कहा, ‘कविता सुनाने पर मुझको यह कटोरा मिला है।’ कहने लगे, ‘अच्छा, दिखा तो मुझको।’ मैंने कटोरा उनकी ओर बढ़ा दिया तो उसे हाथ में लेकर बोले, ‘तू देती है इसे ?’ अब मैं क्या कहती ? मैंने दे दिया और लौट आई। दुख यह हुआ कि कटोरा लेकर कहते, कविता क्या है ?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. जब बापू आनंद भवन आते थे तो सब क्या करते थे ?
2. लेखिका को उपहार में क्या और क्यों मिला ?
3. लेखिका से कटोरा किसने ले लिया ?
4. लेखिका को किस बात का दुख हुआ ?
5. यह गद्यांश किस पाठ का है ? इसकी लेखिका कौन है ?
उत्तर
1. जब बापू आनंद भवन में आते थे तो सब जेब खर्च में बचाए हुए पैसे उन्हें देते थे।
2. कविता सुनाने पर लेखिका को उपहार में एक कटोरा मिला।
3. महात्मा गांधी ने लेखिका से कटोरा ले लिया।
4. गांधी जी ने लेखिका से उपहार में मिला कटोरा ले लिया और कविता के विषय में भी कुछ नहीं पूछा। इस बात से लेखिका दुखी हुई।
5. यह गद्यांश ‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ का है। इसकी लेखिका महादेवी वर्मा जी हैं।

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3. उस समय यह देखा मैंने कि सांप्रदायिकता नहीं थी। जो अवध की लड़कियाँ थीं, वे आपस में अवधी बोलती थीं; बुंदेलखंड की आती थीं, वे बुंदेली में बोलती थीं। कोई अंतर नहीं आता था और हम पढ़ते हिंदी थे। उर्दू भी हमको पढ़ाई जाती थी, परंतु आपस में हम अपनी भाषा में ही बोलती थीं। यह बहुत बड़ी बात थी। हम एक मेस में खाते थे, एक प्रार्थना में खड़े होते थे; कोई विवाद नहीं होता था।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. उन दिनों छात्रावास का वातावरण कैसा था ?
2. छात्रावास में रहने वाली लड़कियाँ कौन-कौन सी भाषाएँ बोलती थीं ?
3. इन छात्राओं के अध्ययन-अध्यापन का माध्यम क्या था ? इनके विद्यालय में अन्य कौन-सी भाषा पढ़ाई जाती थी ?
4. छात्राओं का परस्पर व्यवहार कैसा था ?
5. लड़कियाँ आपस में कौन-सी भाषा बोलती थीं ?
उत्तर :
1. उन दिनों छात्रावास का वातावरण सांप्रदायिक सद्भाव से युक्त था। हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि विभिन्न धर्म-संप्रदाय को मानने वाली लड़कियाँ आपस में मिल-जुलकर रहती थीं। उनमें कोई भेदभाव नहीं था।
2. छात्रावास में रहने वाली अवध की लड़कियाँ अवधी, बुंदेलखंड की रहने वाली बुंदेली, महाराष्ट्र की मराठी भाषा बोलती थीं। भाषा की विविधता का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।
3. इन छात्राओं के अध्ययन-अध्यापन का माध्यम हिंदी था। इन्हें उर्दू भी पढ़ाई जाती थी। इन्हें हिंदी माध्यम से पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं होती थी।
4. छात्राओं का परस्पर व्यवहार बहुत ही स्नेहपूर्ण तथा मित्रता का था। वे एक ही मेस में मिल-जुलकर खाना खाती थीं। वे प्रार्थना सभा में एक साथ खड़ी होती थीं। उनमें आपस में कोई मतभेद नहीं था। वे सदा एक-दूसरे की सहायता करने के लिए तैयार रहती थीं।
5. लड़कियाँ आपस में अपनी भाषा बोलती थीं।

4. राखी के दिन बहनें राखी बाँध जाएँ तब तक भाई को निराहार रहना चाहिए। बार-बार कहलाती थीं- ‘ भाई भूखा बैठा है राखी बंधवाने के लिए।’ फिर हम लोग जाते थे। हमको लहरिए या कुछ मिलते थे। इसी तरह मुहर्रम में हरे कपड़े उनके बनते थे तो हमारे भी बनते थे। फिर एक हमारा छोटा भाई हुआ वहाँ, तो ताई साहिबा ने पिताजी से कहा, ‘देवर साहब से कहो, वो मेरा नेग ठीक करके रखें। मैं शाम को आऊँगी। ‘ वे कपड़े-पड़े लेकर आईं। हमारी माँ को वे दुलहन कहती थीं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. राखी बाँधने का क्या नियम था ?
2. राखी और मुहर्रम पर इन्हें क्या उपहार मिलते थे ?
3. लेखिका के छोटे भाई के जन्म पर ताई साहिबा ने क्या किया ?
4. लेखिका की माँ को ताई साहिबा क्या कहती थीं ? लेखिका के पिता को उन्होंने क्या संदेश भेजा ?
5. ‘निराहार’ का संधि-विच्छेद कीजिए।
उत्तर :
1. राखी बँधवाने का यह नियम था कि राखी के दिन जब तक बहनें भाई को राखी न बाँध जाएँ तब तक भाई को कुछ भी नहीं खाना चाहिए। उसे भूखा रहना चाहिए।
2. राखी पर लहरिए और मुहर्रम पर हरे कपड़े उपहार में मिलते थे।
3. लेखिका के छोटे भाई के जन्म पर ताई साहिबा ने इन्हें कपड़े आदि दिए और कहा कि नए बच्चे को छह महीने तक चाची – ताई के कपड़े पहनाए जाते हैं।
4. लेखिका की माँ को ताई साहिबा दुलहन कहती थीं। लेखिका के पिता को उन्होंने कहा कि देवर साहब से कहो कि वे उनका नेग तैयार करके रखें।
5. निर् + आहार।

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5. वही प्रोफ़ेसर मनमोहन वर्मा आगे चलकर जम्मू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे, गोरखपुर यूनिवर्सिटी के भी रहे। कहने का तात्पर्य यह है कि मेरे छोटे भाई का नाम वही चला जो ताई साहिबा ने दिया। उनके यहाँ भी हिंदी चलती थी, उर्दू भी चलती थी। यों, अपने घर में वे अवधी बोलते थे। वातावरण ऐसा था उस समय कि हम लोग बहुत निकट थे। आज की स्थिति देखकर लगता है, जैसे वह सपना ही था। आज वह सपना खो गया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. मनमोहन वर्मा और लेखिका का क्या संबंध था ? उनका नाम किसने रखा था ?
2. ताई साहिबा का परिचय दीजिए।
3. लेखिका के समय का वातावरण कैसा था ?
4. लेखिका का कौन-सा सपना खो गया है ?
5. ताई साहिबा के घर कौन-सी भाषा बोली जाती थी ?
उत्तर :
1. मनमोहन वर्मा लेखिका के छोटे भाई थे। उनका नाम उनके पड़ोस में रहने वाली मुसलमान बेगम साहिबा ने रखा था, जिन्हें वे ताई साहिबा कहते थे।
2. ताई साहिबा लेखिका के पड़ोस में रहने वाले जवारा के नवाब की पत्नी थीं। वे मुसलमान होते हुए भी लेखिका के परिवार से घुल-मिल गई थीं और लेखिका के पिता को अपना देवर मानती थीं।
3. लेखिका के समय देश का सांप्रदायिक वातावरण अत्यंत सहज तथा मेलजोल से परिपूर्ण था। हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते थे। तीज-त्योहार मिलकर मनाते थे। आपस में विश्वास और प्रेम का भाव रहता था।
4. लेखिका वर्तमान समय में भी हिंदू-मुसलमान की एकता तथा मेलजोल की भावना का सपना देखती है, परंतु इन दिनों के सांप्रदायिक भेदभावों को देखकर उसे लगता है कि उसका सपना खो गया है।
5. ताई साहिबा के घर उर्दू और हिंदी बोली जाती है। वे अपने घर में अवधी बोलते थे।

मेरे बचपन के दिन Summary in Hindi

लेखिका-परिचय :

जीवन परिचय – श्रीमती महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य में आधुनिक युग की मीरा के नाम से विख्यात हैं। इसका कारण यह है कि मीरा की तरह महादेवी जी ने अपनी विरह-वेदना को कला के रूप में वाणी दी है। महादेवी जी का जन्म सन् 1907 में उत्तर प्रदेश के फरुर्खाबाद नामक नगर में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। माता के प्रभाव ने इनके हृदय में भक्ति – भावना के अंकुर को जन्म दिया।

शैशवावस्था में ही इनका विवाह हो गया था। आस्थामय जीवन की साधिका होने के कारण ये शीघ्र ही विवाह बंधन से मुक्त हो गईं। सन् 1933 में इन्होंने प्रयाग में संस्कृत विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रयाग महिला विद्यापीठ के आचार्य पद के उत्तरदायित्व को निभाते हुए वे साहित्य – साधना में लीन रहीं। सन् 1987 ई० में इनका निधन हो गया। इन्हें साहित्य अकादमी एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया था।

काव्य – महादेवी जी ने पद्य एवं गद्य दोनों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। कविता में अनुभूति तत्व की प्रधानता है तो गद्य में चिंतन की। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत तथा दीपशिखा। गद्य – श्रृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, क्षणदा।

भाषा-शैली – महादेवी वर्मा मूलरूप से कवयित्री हैं। इनकी भाषा-शैली अत्यंत सरल, भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा सहज है। ‘मेरे बचपन के दिन’ लेखिका की बचपन की स्मृतियों को प्रस्तुत करनेवाला आलेख है। इसमें लेखिका ने सहज-सरल भाषा का प्रयोग किया है जिसमें कहीं- कहीं तत्सम शब्दों का प्रयोग भी दिखाई देता है, जैसे- स्मृति, विचित्र, आकर्षण, रुचि, विद्यापीठ आदि। विदेशी शब्द दर्जा, नक्काशीदार, उस्तानी, तुकबंदी, डेस्क, कंपाउंड आदि का भी कहीं-कहीं प्रयोग किया गया है। इस प्रकार के शब्द प्रयोग से भाषा में प्रवाहमयता आ गई है।

लेखिका की शैली आत्मकथात्मक है जिसमें लेखिका का व्यक्तित्व तथा स्वभाव उभर आता है। जैसे लेखिका लिखती है-” बाबा चाहते थे कि मैं उर्दू – फ़ारसी सीख लूँ, लेकिन वह मेरे वश की नहीं थी। मैंने जब एक दिन मौलवी साहब को देखा तो बस, दूसरे दिन मैं चारपाई के नीचे जा छिपी।” बीच-बीच में संवादात्मकता से पाठ में रोचकता आ गई है। इस प्रकार लेखिका की भाषा-शैली रोचक, स्पष्ट, प्रभावपूर्ण तथा भावानुरूप है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

पाठ का सार :

‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ में महादेवी वर्मा ने अपने बचपन की स्मृतियों को प्रस्तुत किया है। लेखिका का मानना है कि बचपन की स्मृतियाँ विचित्र आकर्षण से युक्त होती हैं। लेखिका अपने परिवार में लगभग दो सौ वर्ष बाद पैदा होने वाली लड़की थी। इसलिए उसके जन्म पर सबको बहुत प्रसन्नता हुई। लेखिका के बाबा दुर्गा के भक्त थे तथा फ़ारसी और उर्दू जानते थे। इनकी माता जबलपुर की थीं तथा हिंदी पढ़ी- लिखी थीं।

वे पूजा-पाठ बहुत करती थीं। माता जी ने इन्हें पंचतंत्र पढ़ना सिखाया था। बाबा इन्हें विदुषी बनाना चाहते थे। बाबा इन्हें उर्दू- फ़ारसी पढ़ाना चाहते थे परंतु इन्हें संस्कृत पढ़ने में रुचि थी। इन्हें पहले मिशन स्कूल में भेजा गया परंतु इनका वहाँ मन नहीं लगा तो इन्हें क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में कक्षा पाँच में दाखिल कराया गया। यहाँ का वातावरण बहुत अच्छा था। छात्रावास के हर कमरे में चार छात्राएँ रहती थीं। इनके कमरे में सुभद्रा कुमारी थीं। वे लेखिका से दो कक्षाएँ आगे कक्षा सात में थीं।

वे कविता लिखती थीं और लेखिका ने भी कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। लेखिका की माता जी मीरा के पद गाती थीं जिन्हें सुनकर वह भी ब्रजभाषा में कविता लिखने लग गई थी परंतु यहाँ आकर सुभद्रा कुमारी को देखकर वह भी खड़ी बोली में कविता लिखने लगी। जब पहली बार सुभद्रा कुमारी ने लेखिका से पूछा कि क्या वह कविता लिखती है तब लेखिका ने डरकर ‘नहीं’ में उत्तर दिया था। जब सुभद्रा कुमारी ने उसकी किताबों की तलाशी ली तो उसमें से कविता लिखा हुआ कागज निकल पड़ा जिसे वे सारे छात्रावास में दिखा आईं कि महादेवी कविता लिखती है। इसके बाद दोनों में मित्रता हो गई।

क्रास्थवेट कॉलेज में एक पेड़ की डाल बहुत नीची थी। जब अन्य लड़कियाँ खेलती थीं तब ये दोनों पेड़ की डाल पर बैठकर तुकबंदी करती थीं। इनकी कविताएँ ‘स्त्री- दर्पण’ नामक पत्रिका में छप जाती थीं। वे कवि-सम्मेलनों में भी जाने लगीं। लेखिका 1917 में यहाँ आई थी। इन दिनों गांधी जी का सत्याग्रह आरंभ हो गया था तथा आनंद भवन स्वतंत्रता के संघर्ष का केंद्र बन गया था। इन दिनों होने वाले कवि सम्मेलनों की अध्यक्षता हरिऔध, श्रीधर पाठक, रत्नाकर आदि करते थे। लेखिका को प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था। इन्हें सौ के लगभग पदक मिले थे। एक बार इन्हें पुरस्कार में चाँदी का कटोरा मिला, जिसे इन्होंने सुभद्रा को दिखाया तो उसने कहा कि एक दिन खीर बनाकर इस कटोरे में मुझे खिलाना।

जब आनंद भवन में बापू आए तो अपने जेब खर्च में से बचाई राशि उन्हें देने के लिए लेखिका वहाँ गई और उन्हें पुरस्कार में मिला चाँदी का कटोरा भी दिखाया। गांधी जी ने उसे कहा कि यह कटोरा मुझे दे दो। लेखिका ने वह उन्हें दे दिया और लौटकर सुभद्रा से कहा कि चाँदी का कटोरा तो गांधी जी ने ले लिया। सुभद्रा ने कहा कि और जाओ दिखाने पर खीर तो तुम्हें बनानी ही होगी, चाहे पीतल की कटोरी में ही खिलाओ। लेखिका को यह प्रसन्नता थी कि पुरस्कार में मिला कटोरा उसने गांधी जी को दिया था।

सुभद्रा जी के जाने के बाद लेखिका के साथ एक मराठी लड़की जेबुन्निसा रहने लगी। वह कोल्हापुर की रहने वाली थी। वह लेखिका के बहुत से काम भी कर देती थी। जेबुन्निसा मराठी शब्दों से मिली-जुली हिंदी बोलती थी। लेखिका ने भी उससे कुछ मराठी शब्द सीखे। उनकी अध्यापिका जेबुन के ‘इकडे तिकड़े’ जैसे मराठी शब्द सुनकर उसे टोकती कि ‘वाह! देसी कौवा, मराठी बोली !’ इस पर जेबुन कहती ‘यह मराठी कौवा मराठी बोलता है।’ जेबुन की वेशभूषा भी मराठी महिलाओं जैसे थी। वहाँ कोई सांप्रदायिक भेदभाव नहीं था। अवध की लड़कियाँ अवधी, बुंदेलखंड की बुंदेली बोलती थीं। यहाँ हिंदी, उर्दू आदि सब कुछ पढ़ाया जाता था परंतु आपस में बातचीत वे अपनी ही भाषा में करती थीं।

लेखिका जब विद्यापीठ आई तब तक उसका बचपन का क्रम ही चलता रहा। बचपन में वे जहाँ रहती थीं, वहीं जवारा के नवाब भी रहते थे। उनकी नवाबी समाप्त हो गई थी। उनकी पत्नी इन्हें कहती थी कि वे इन्हें ताई कहें। बच्चे उन्हें ‘ताई साहिब’ कहते थे। उनके बच्चे इनकी माता जी को चचीजान कहते थे। इनके जन्मदिन नवाब साहब के घर और नवाब साहब के बच्चों के इनके घर मनाए जाते थे।

उनके एक लड़का था जिसे ये राखी बांधती थीं। जब लेखिका का छोटा भाई हुआ तो वे उसके लिए कपड़े आदि लाई और उसका नाम मनमोहन रखा। वही आगे चलकर प्रोफेसर मनमोहन वर्मा जम्मू विश्वविद्यालय और गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बने। उनके घर में हिंदी, उर्दू, अवधी आदि भाषाओं का प्रयोग होता था। उस वातावरण में दोनों परिवार एक-दूसरे के बहुत निकट थे। लेखिका को लगता है कि यदि आज भी ऐसा ही वातावरण बन जाता तो भारत की कथा ही कुछ और होती।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • स्मृतियाँ – यादें
  • खातिर – सेवा, सत्कार
  • दर्जा – कक्षा
  • उपरांत – बाद
  • इकड़े-तिकड़े – इधर-उधर
  • निराहार – भूखा, बिना खाए-पिए
  • वाइस चांसलर – कुलपति
  • परमधाम – स्वर्ग
  • विदुषी – विद्वान स्त्री
  • प्रतिष्ठित – सम्मानित
  • नक्काशीदार – चित्रकारी से युक्त
  • लोकर-लोकर – शीघ्र-शीघ्र
  • लहरिए – रंगीन साड़ी

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

JAC Class 9 Hindi दो बैलों की कथा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
काँजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी ?
उत्तर :
काँजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी इसलिए ली जाती होगी जिससे यह पता चल सके कि वहाँ कैद किए गए सभी पशु वहाँ उपस्थित हैं। उनमें से कोई भाग अथवा मर तो नहीं गया है।

प्रश्न 2.
छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेम क्यों उमड़ आया ?
उत्तर :
छोटी बच्ची की माँ मर चुकी थी। सौतेली माँ उसे मारती रहती थी। बैल दिनभर जोते जाते थे और उन्हें डंडे भी मारे जाते थे। उन्हें खाने को सूखा भूसा दिया जाता था। बैलों की इस दुर्दशा पर छोटी बच्ची को दया आ गई थी। उसे लगा कि बैलों के साथ भी उसके समान सौतेला व्यवहार हो रहा है। इसलिए उसके मन में बैलों के प्रति प्रेम उमड़ आया था। वह रात को उन्हें एक-एक रोटी खिला आती थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

प्रश्न 3.
कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति-विषयक मूल्य उभरकर आए हैं ?
उत्तर :
इस कहानी के माध्यम से लेखक ने किसानों और पशुओं के भावात्मक संबंधों का वर्णन किया है। हीरा और मोती नामक बैल अपने स्वामी झूरी से बहुत स्नेह करते हैं तथा जी-जान से उसके काम करते हैं परंतु झूरी के साले गया के घर जाना उन्हें अच्छा नहीं लगता। यहाँ तक कि वहाँ जाकर चारा भी नहीं खाते और रात होने पर रस्सी तुड़ाकर वापस झूरी के घर आ जाते हैं। उन्हें फिर गया के घर आना पडता है तो इसे ही अपनी नियति मानकर कहते हैं कि बैल का जन्म लिया है तो मार से कहाँ तक बचना ? वे अपनी जाति के धर्म को निभाते हैं तथा बदले में मनुष्यों को नहीं मारते। काँजीहौस में मित्रता निभाते हैं तथा मिलकर साँड़ का मुकाबला करते हैं। दढ़ियल द्वारा खरीदे जाने के बाद अपने घर का रास्ता पहचानकर झूरी के घर आ जाते हैं और अपनी स्वामी भक्ति का परिचय देते हैं।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद ने गधे की किन स्वभावगत विशेषताओं के आधार पर उसके प्रति रूढ़ अर्थ ‘मूर्ख’ का प्रयोग न कर किस नए अर्थ की ओर संकेत किया है ?
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद ने गधे को सीधा, सहनशील, अक्रोधी, सुख – दुःख में समभाव से रहनेवाला प्राणी बताते हुए उसे ऋषियों- मुनियों के सद्गुणों से युक्त बताया है। वे उसे एक सीधा-साधा पशु बताते हैं, जिसके चेहरे पर कभी भी असंतोष की छाया तक नहीं दिखाई देती है और रूखा-सूखा खाकर भी संतुष्ट रहता है।

प्रश्न 5.
किन घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी ?
उत्तर :
बहुत दिनों से साथ रहते-रहते हीरा और मोती में गहरी दोस्ती हो गई थी। दोनों मूक-भाषा में एक-दूसरे के मन की बात समझ लेते थे। आपस में सींग मिलाकर, एक-दूसरे को चाट अथवा सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते थे। दोनों एक साथ नाँद में मुँह डालते। यदि एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता था। हल या गाड़ी में जोत दिए जाने पर दोनों का यह प्रयास रहता था कि अधिक बोझ उसकी गरदन पर रहे। गया के घर से दोनों मिलकर भागे थे। गया के घर दोनों ही भूखे रहे थे। साँड़ को दोनों ने मिलकर भगा दिया था। मटर के खेत में मोती जब कीचड़ में धँस गया तो हीरा स्वयं ही रखवालों के पास आ गया था जिससे दोनों को एक साथ सजा मिले। काँजीहौस में मोती हीरा के बँधे होने के कारण बाड़े की दीवार टूट जाने पर भी नहीं भागा था। इन सब घटनाओं से हीरा और मोती की गहरी दोस्ती का पता चलता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

प्रश्न 6.
‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो। ‘ हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक ने हीरा के इस कथन के माध्यम से इस ओर संकेत किया है कि हमारे समाज में स्त्री को सदा प्रताड़ित किया जाता है। उसे पुरुष की दासी के रूप में चित्रित किया जाता है, जिसे सब प्रकार से मारने-पीटने का अधिकार पुरुष के पास होता है। उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता है। उसे पुरुष की इच्छानुसार अपना जीवन व्यतीत करना होता है। स्त्री को सदा पुरुष पर आश्रित रहना पड़ता है।

प्रश्न 7.
किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को कहानी में किस तरह व्यक्त किया गया है ?
उत्तर :
इस कहानी में किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को अत्यंत भावात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है। झूरी को अपने बैलों हीरा और मोती से बहुत लगाव है। वह उन्हें अच्छा भोजन देता है। जब वे गया के घर से भागकर आते हैं तो उन्हें दौड़कर गले लगा लेता है। गया के घर जाते हुए बैलों को भी झूरी से बिछुड़ने का दुख है। वे समझते हैं कि उन्हें बेच दिया गया है। वे और अधिक मेहनत करके झूरी के पास ही रहना चाहते हैं। गया के घर की छोटी बच्ची के हाथ से एक-एक रोटी खाकर उन्हें उस बच्ची से स्नेह हो जाता है और बच्ची पर अत्याचार करनेवाली उसकी सौतेली माँ को मोती मारना चाहता है। अंत में जब हीरा और मोती कॉंजीहौस से दढ़ियल के साथ घर पहुँचते हैं, तो झूरी उन्हें गले लगा लेता है और झूरी की पत्नी भी उन दोनों के माथे चूम लेती है।

प्रश्न 8.
‘इतना तो हो गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगे।’ मोती के इस कथन के आलोक में उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
इस कथन से स्पष्ट होता है कि मोती में परोपकार की भावना है। वह काँजीहौस के बाड़े की कच्ची दीवार तोड़ देता है जिससे नौ-दस जानवर निकलकर भाग जाते हैं। गधों को तो वह स्वयं धकेलकर बाहर निकालता है। मोती सच्चा मित्र भी है। हीरा की रस्सी वह तोड़ नहीं सका था इसलिए वह स्वयं बाड़े से भागकर नहीं गया बल्कि हीरा के पास ही बैठा रहा और सुबह होने पर उसे भी चौकीदार ने मोटी रस्सी से बाँध दिया और खूब मारा। मोती बहादुर भी है। अपने बल पर वह सींग मार-मारकर बाड़े की कच्ची दीवार तोड़ देता है जिससे बाड़े में कैद जानवर बाहर भाग जाते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

प्रश्न 9.
आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करनेवाला मनुष्य वंचित है।
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि पशु भी परस्पर मूक भाषा में एक-दूसरे से वार्तालाप कर लेते हैं तथा एक-दूसरे के मन की बात समझ लेते हैं। उनकी इस प्रकार से एक-दूसरे की मन की बात को जानने की जो शक्ति है वह केवल उन्हीं में है। मनुष्य, जोकि स्वयं को समस्त प्राणियों में श्रेष्ठ समझता है, उसमें भी ऐसी शक्ति नहीं है। यह विशेषता केवल पशुओं में ही होती है।

(ख) उस एक रोटी से उनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया।
उत्तर :
गया के घर आने के बाद हीरा-मोती को केवल सूखा चारा खाने को मिलता था। उन्हें सारा दिन खेतों में जोता जाता था तथा उनकी डंडों से पिटाई होती थी। उन्हें प्रेम करनेवाला कोई नहीं था। छोटी बच्ची रात के समय उन्हें एक-एक रोटी खिला देती थी। इस एक रोटी को खाकर ही वे संतुष्ट हो जाते थे। क्योंकि इस एक रोटी के माध्यम से वह बच्ची उन्हें अपना स्नेह दे देती थी जिनसे उनका स्नेह के लिए भूखा हृदय संतुष्ट हो जाता था।

प्रश्न 10.
गया ने हीरा – मोती को दोनों बार सूखा भूसा खाने के लिए दिया क्योंकि –
(क) गया पराये बैलों पर अधिक खर्च नहीं करना चाहता था।
(ख) गरीबी के कारण खली आदि खरीदना उसके बस की बात न थी।
(ग) वह हीरा – मोती के व्यवहार से बहुत दुखी था।
(घ) उसे खली आदि सामग्री की जानकारी न थी।
उत्तर :
(ग) वह हीरा – मोती के व्यवहार से बहुत दुखी था।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 11.
हीरा और मोती ने शोषण के खिलाफ़ आवाज़ उठाई लेकिन उसके लिए प्रताड़ना भी सही। हीरा-मोती की प्रतिक्रिया पर तर्क सहित अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर :
हीरा-मोती झूरी के घर आराम से रह रहे थे। वे पूरी मेहनत से झूरी के सब काम करते थे तथा जो मिलता था खा लेते थे। उन्होंने झूरी को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था। जब उन्हें झूरी का साला गया ले जाने लगा तो उन्हें लगा कि उसे झूरी ने गया के हाथों बेच दिया है। उन्हें गया के साथ जाना पसंद नहीं आया। गया ने उन्हें डंडों से मारा, खाने के लिए सूखा चारा दिया। वे इसे अपना अपमान समझकर रस्सी तुड़ाकर झूरी के पास लौट आए। उन्हें फिर गया के पास जाना पड़ा।

वहाँ उन पर फिर अत्याचार हुए। इस बार छोटी बच्ची ने उन्हें आज़ाद कराया। वे अपने घर जा रहे थे कि साँड़ से हुए झगड़े में वे रास्ता भटक गए। मटर खाने के चक्कर में उन्हें काँजीहौस में बंद होना पड़ा। वहाँ दीवार तोड़ने के आरोप में इन पर डंडे बरसाए गए और अंत में एक दढ़ियल के हाथों बिक गए। जब वह दढ़ियल इन्हें ले जा रहा था तो इन्हें अपना घर दिखाई दिया तो वे भागकर वहाँ आ गए और दढ़ियल को मोती ने सींग चलाकर भगा दिया। इस प्रकार अपनी आज़ादी तथा अपनी घर वापसी के लिए किए गए हीरा-मोती के प्रयत्न सार्थक सिद्ध हुए। उन्होंने अनेक मुसीबतें उठाकर भी अपना अधिकार प्राप्त कर लिया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

प्रश्न 12.
क्या आपको लगता है कि यह कहानी आज़ादी की लड़ाई की ओर संकेत करती है ?
उत्तर :
इस कहानी में लेखक ने हीरा – मोती को दूसरे की परतंत्रता से स्वयं को मुक्त करने के लिए संघर्ष करते हुए दिखाया है। हीरा-मोती अपने बल से गया के स्थान से रस्सी तुड़ाकर अपने घर आ जाते हैं। दूसरी बार अनेक मुसीबतें सहन करते हुए भी गया के खेतों में काम नहीं करते और छोटी बच्ची के सहयोग से आज़ाद हो जाते हैं। अंत में काँजीहौस से अन्य जानवरों को आज़ाद कराते हैं तथा स्वयं दंड पाकर भी दढ़ियल के चंगुल से छूटकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार यह कहानी भारत की आज़ादी की लड़ाई की ओर भी संकेत करती है कि किस प्रकार भारतवासियों ने अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए अंत में आज़ादी प्राप्त की है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 13.
बस इतना ही काफ़ी है।
फिर मैं भी ज़ोर लगाता हूँ।
‘ही’, ‘भी’ वाक्य में किसी बात पर जोर देने का काम कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को निपात कहते हैं। कहानी में से पाँच ऐसे वाक्य छाँटिए जिसमें निपात का प्रयोग हुआ हो।
उत्तर :
(क) एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया।
(ख) कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है।
(ग) बैल कभी-कभी मारता भी है।
(घ) न दादा, पीछे से तुम भी उन्हीं की-सी कहोगे
(ङ) ब्याही हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है।

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‘प्रश्न 14.
रचना के आधार पर वाक्य भेद बताइए तथा उपवाक्य छाँटकर उसके भी भेद लिखिए-
(क) दीवार का गिरना था कि अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे।
(ख) सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर, आया।
(ग) हीरा ने कहा – गया के घर से नाहक भागे।
(घ) मैं बेचूँगा, तो बिकेंगे।
(ङ) अगर वह मुझे पकड़ता तो मैं बे-मारे ना छोड़ता।
उत्तर :
(क) मिश्र वाक्य –
उपवाक्य – अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे।
भेद – संज्ञा उपवाक्य।
(ख) संयुक्त वाक्य –
उपवाक्य – जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा कठोर।
भेद – विशेषण उपवाक्य।
(ग) मिश्र वाक्य –
उपवाक्य – गया के घर से नाहक भागे।
भेद – संज्ञा उपवाक्य।
(घ) मिश्र वाक्य –
उपवाक्य – तो बिकेंगे।
भेद – क्रिया-विशेषण उपवाक्य।
(ङ) मिश्र वाक्य –
उपवाक्य – तो मैं बे-मारे न छोड़ता।
भेद – क्रिया-विशेषण उपवाक्य।

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प्रश्न 15.
कहानी में जगह-जगह मुहावरों का प्रयोग हुआ है। कोई पाँच मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
(क) गम खाना-मोहन अपने मित्र सोहन की चार बातें सुनकर भी गम खा गया क्योंकि वह उससे लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहता था।
(ख) ईंट का जवाब पत्थर से- भारतीय सेना ने शत्रु सेना के आक्रमण का जवाब ईंट का जवाब पत्थर से देकर शत्रु सेना को पराजित कर दिया।
(ग) दाँतों पसीना आना-गणित का प्रश्न-पत्र इतना कठिन था कि इसे हल करते हुए परीक्षार्थियों को दाँतों पसीना आ गया।
(घ) बगलें झाँकना- साहूकार को देखते ही हलकू बगलें झाँकने लगा।
(ङ) नौ-दो ग्यारह होना-पुलिस को देखते ही चोर नौ-दो ग्यारह हो गए।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न :
पशु-पक्षियों से संबंधित अन्य रचनाएँ ढूँढ़कर पढ़िए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi दो बैलों की कथा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक ने गधे का छोटा भाई किसे और क्यों कहा है ?
उत्तर :
लेखक ने गधे का छोटा भाई बैल को कहा है। बैल को गधे का छोटा भाई इसलिए कहा है क्योंकि वह गधे से कम बेवकूफ़ है। वह अपना असंतोष प्रकट करने के लिए कभी-कभी मारता भी है और अपनी ज़िद्द पर अड़ जाने के कारण अड़ियल बैल कहलाने लगता है। बैल को बछिया का ताऊ भी कहते हैं।

प्रश्न 2.
गया जब हीरा-मोती को झूरी के घर से लेकर चला तो हीरा-मोती ने क्या सोचा ?
उत्तर :
गया जब हीरा-मोती को झूरी के घर से लेकर चला तो उन्हें लगा कि झूरी ने उन्हें गया के हाथों बेच दिया है। वे सोच रहे थे कि झूरी ने उन्हें निकाल दिया है। वे मन लगाकर उसकी सेवा करते थे। वे और भी अधिक मेहनत करने के लिए तैयार हैं। वे झूरी की सेवा करते हुए मर जाना ही अच्छा समझते हैं उन्होंने झूरी से कभी दाने-चारे की भी शिकायत नहीं की थी। उन्हें गया जैसे जालिम के हाथों अपना बेचा जाना अच्छा नहीं लगा था।

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प्रश्न 3.
झूरी जब प्रातः काल सोकर उठा तो उसने क्या देखा ? उसकी तथा गाँववालों की प्रतिक्रिया क्या थी ?
उत्तर :
झूरी ने देखा कि गया द्वारा ले जाए गए दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। उनके गले में आधी-आधी फुंदेदार रस्सी लटक रही थी और उनके पाँव कीचड़ से सने हुए थे। दोनों की आँखों में विद्रोह और स्नेह झलक रहा था। झूरी ने दौड़कर उन्हें गले से लगा लिया। घर और गाँव के लड़कों ने तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत किया। बच्चों ने इन दोनों वीर – पशुओं का अभिनंदन करना चाहा क्योंकि ये दोनों इतनी दूर से अकेले अपने घर आ गए थे। उन्हें लगता था कि ये बैल नहीं किसी जन्म के इनसान हैं। झूरी की पत्नी को इनका गया के घर से भाग आना अच्छा नहीं लगा था।

प्रश्न 4.
गया ने जब बैलों को हल में जोता तो बैलों पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर :
गया ने जब बैलों को हल में जोता तो बैलों ने काम करने से मना कर दिया। वे दोनों अड़ियल बन गए। गया उन्हें मारत मारते थक गया, परंतु दोनों बैलों ने पाँव न उठाए। गया ने हीरा की नाक पर खूब डंडे मारे तो मोती गुस्से में भरकर हल लेकर भागा तो हल, रस्सी, जुआ, जोत सब टूट गए। गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ बँधी होने के कारण दोनों को पकड़ लिया गया था।

प्रश्न 5.
हीरा – मोती ने स्वयं को साँड़ से कैसे बचाया ?
उत्तर :
साँड़ को देखकर पहले तो हीरा – मोती घबरा गए थे फिर उन्होंने यह सोचा कि दोनों उस पर एक साथ चोट करें। एक आगे से दूसरा पीछे से उसपर चोट करेगा। जैसे ही साँड़ हीरा पर झपटा मोती ने उस पर पीछे से वार किया। साँड़ उसकी तरफ़ दौड़ा तो हीरा ने उस पर आक्रमण कर दिया। साँड़ झल्लाकर हीरा का अंत कर देने के लिए चला तो मोती ने बगल से आकर उसके पेट में सींग भोंक दिया तो दूसरी ओर से हीरा ने उसे सींग चुभो दिया। घायल होकर साँड़ भागा तथा इनका पीछा करने पर साँड़ बेदम होकर गिर पड़ा।

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प्रश्न 6.
काँजीहौस के अंदर के दृश्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
काँजीहौस के अंदर कई भैंसें, कई बकरियाँ, कई घोड़े और कई गधे बंद थे। हीरा और मोती को भी यहीं बंद कर दिया गया। यहाँ बंद जानवरों के सामने चारा नहीं था। सभी ज़मीन पर मुरदों के समान पड़े थे। कई तो इतने अधिक कमज़ोर हो गए थे कि उनसे खड़ा भी नहीं हुआ जाता था। हीरा-मोती सारा दिन फाटक की ओर देखते रहे कि कोई चारा लेकर आएगा, पर कोई भी न आया तो दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी ही चाटकर गुज़ारा किया।

प्रश्न 7.
दढ़ियल आदमी के बंधन से हीरा-मोती कैसे आज़ाद हुए ?
उत्तर :
काँजीहौस से एक दढ़ियल आदमी ने हीरा – मोती को खरीद लिया और उन्हें अपने साथ ले चला। उस आदमी की भयानक मुद्रा से ही हीरा – मोती ने समझ लिया था कि वह आदमी उन पर छुरी चलाकर उन्हें मार डालेगा। वे उसके साथ काँपते हुए जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें गाय-बैलों का एक झुंड चरता हुआ नज़र आया। सहसा उन्हें लगा कि यह तो उनकी जानी पहचानी राह है। दोनों दौड़कर अपने स्थान पर आ गए। वह दढ़ियल भी उनके पीछे भागकर आया और उन पर अपना अधिकार जमाने लगा। झूरी ने दोनों बैलों को गले लगा लिया और उस दढ़ियल को कहा कि ये उसके बैल हैं। दढ़ियल ने जब ज़बरदस्ती बैलों को पकड़कर ले जाना चाहा तो मोती ने सींग चलाया। दढ़ियल पीछे हटा। मोती ने फिर पीछा किया तो दढ़ियल भाग गया। इस प्रकार वे दढ़ियल के बंधन से आज़ाद हुए।

प्रश्न 8.
‘दो बैलों की कथा’ कहानी में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘दो बैलों की कथा’ कहानी में प्रेमचंद ने स्पष्ट किया है कि किस प्रकार पशु और मानव में परस्पर प्रेम होता है तथा पशु अपने मालिक के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। हीरा-मोती का झूरी से प्रेम यही सिद्ध करता है। इसी प्रकार से गया के घर में छोटी बच्ची से रोटी प्राप्त कर वे उसके प्रति भी सद्भाव से भर उठते हैं। पशुओं को भी स्वतंत्रता प्रिय है, इसलिए वे गया के घर के बंधनों को तोड़कर, साँड़ से लड़कर, काँजीहौस के बाड़े की दीवार को तोड़कर तथा दढ़ियल के बंधन से भाग निकलते हैं। इस प्रकार इस कहानी का मूल संदेश पशु और मानव के भावात्मक संबंधों को उजागर करते हुए स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देना है।

प्रश्न 9.
झूरी कौन था ? उसका हीरा-मोती के साथ क्या संबंध था ?
उत्तर :
झूरी एक किसान था। उसे पशुओं से बहुत प्रेम था। हीरा – मोती उसके दो बैल थे। वह उन्हें जान से ज़्यादा प्यार करता था। दोनों बैल बहुत ही सुंदर और तंदरुस्त थे। उन दोनों का भी अपने मालिक झूरी से बहुत प्यार और लगाव था। झूरी बड़े ही चाव और प्यार से उनकी देखभाल करता था।

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प्रश्न 10.
मजदूर ने झूरी की किस आज्ञा का और क्यों उल्लंघन किया ?
उत्तर :
गया जब झूरी के दोनों बैलों को हाँककर अपने घर ले गया, तो बैल वहाँ नहीं रुके। दोनों रस्सी तोड़कर भाग आए। गाँववालों तथा बच्चों ने तालियाँ बजाकर उनका स्वागत किया। झूरी की पत्नी को हीरा मोती का वापिस आना तनिक भी अच्छा नहीं लगा। उसने मज़दूर से बैलों को सूखा भूसा देने को कहा। जब झूरी ने भूसा खली डालने को कहा तो मज़दूर ने मालकिन की आज्ञा का हवाला देकर झूरी की आज्ञा की अवज्ञा कर दी।

प्रश्न 11.
दूसरी बार गया बैलों को कैसे लेकर जाता है ? घर में वह उनके साथ क्या करता है ?
उत्तर :
दूसरी बार गया हीरा – मोती को बैलगाड़ी में जोतकर ले जाता है। दोनों बैल रास्ते में सड़क की खाई में बैलगाड़ी को गिराना चाहते हैं, लेकिन गया किसी तरह गाड़ी को गिरने से बचा लेता है। घर ले जाकर वह दोनों बैलों को मोटी रस्सी से बाँध देता है। उन्हें खाने के लिए सूखा भूसा देता है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को परले दरजे का बेवकूफ़ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं। गधा सचमुच बेवकूफ़ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) जानवरों में किसे सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है ?
(ख) हम किसी आदमी को गधा कब कहते हैं ?
(ग) किस बात का निश्चय नहीं किया जा सकता ?
उत्तर :
(क) जानवरों में गधे को सबसे ज़्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है।
(ख) हम किसी आदमी को गधा तब कहते हैं जब हम उसे परले दरजे का बेवकूफ़ कहना चाहते हैं।
(ग) इस बात का निश्चय नहीं किया जा सकता कि गधा सचमुच बेवकूफ़ है, या उसके सीधेपन और उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दी है।

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2. उसके चेहरे पर एक स्थायी विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है। सुख-दुःख, हानि-लाभ किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं, वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं; पर आदमी उसे बेवकूफ़ कहता है। सद्गुणों का इतना अनादर कहीं नहीं देखा। कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है। देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में क्या दुर्दशा हो रही है ? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता ? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जी तोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) गधे के चेहरे पर कौन-सा भाव स्थायी रूप से छाया रहता है और किन परिस्थितियों में भी नहीं बदलता ?
(ख) गधे में किनके गुण पहुँच गए हैं ? गधे के सद्गुणों का अनादार कैसे होता है ?
(ग) ‘सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है” – क्यों ?
उत्तर :
(क) गधे के चेहरे पर एक निषाद् का भाव स्थायी रूप से छाया रहता है। यह भाव सुख-दुःख, हानि-लाभ किसी भी दशा में नहीं बदलता।
(ख) गधे में ऋषियों-मुनियों के गुण पराकाष्ठा तक पहुँच गए हैं पर आदमी तब भी उसे बेवकूफ कहकर उसके सद्गुणों का अनादर करता है।
(ग) सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं क्योंकि सीधे-सादे भारतवासियों की अफ्रीका में दुर्दशा हो रही है, अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता। वे शराब नहीं पीते, जरूरत के लिए पैसे बचाकर रखते हैं, जीतोड़ मेहनत करते हैं, शांतिप्रिय हैं फिर भी बदनाम हैं।

3. लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह है ‘बैल’। जिस अर्थ में हम गधे का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में ‘बछिया के ताऊ’ का भी प्रयोग करते हैं। कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफ़ों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे, मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) गधे का छोटा भाई किसे कहा गया है ?
(ख) गधे के मिलते-जुलते अर्थ में हम किस शब्द का प्रयोग करते हैं ?
(ग) “लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह है ‘बैल’। ” – तात्पर्य समझाइए।
(घ) लेखक के अनुसार कुछ लोग बैल को क्या कहेंगे ?
उत्तर :
(क) गधे का छोटा भाई बैल को कहा गया है।
ख) गधे के मिलते-जुलते अर्थ में हम ‘बछिया के ताऊ’ शब्द का प्रयोग करते हैं।
(ग) इसका तात्पर्य है कि बैल भी लगभग गधे के समान ही सीधा होता है, इसीलिए उसे गधे का छोटा भाई कहते हैं। बैल सीधा होने पर भी कभी – कभी अड़ियल हो जाता है, इसलिए उसे गधे से कम गधा कहा जाता है।
(घ) लेखक के अनुसार कुछ लोग बैल को बेवकूफ़ों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे।

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4. दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक- भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एक, दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करनेवाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे – विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होते ही धौल धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हलकी-सी रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) दोनों बैल आपस में विचार-विनिमय कैसे करते थे ?
(ख) मनुष्य किससे वंचित है ?
(ग) दोनों बैल आपस में दोस्ती की घनिष्ठता दिखाने के लिए क्या करते थे ?
(घ) बैलों द्वारा आपस में दोस्ती की घनिष्ठता दिखाने का क्या कारण था ?
उत्तर :
(क) दोनों बैल आपस में मूक भाषा में विचार-विनिमय करते थे।
(ख) दोनों बैलों में कोई ऐसी गुप्तशक्ति थी जिससे वे दोनों बिना बोले ही एक-दूसरे की बात समझ जाते थे। ऐसी शक्ति से मनुष्य वंचित है।
(ग) आपस में दोस्ती की घनिष्ठता दिखाने के लिए दोनों बैल एक-दूसरे को चाटने, सूँघते थे तथा कभी-कभी सींग भी मिलाते थे।
(घ) दोनों बैल दोस्ती की घनिष्ठता इसलिए दिखाते थे क्योंकि इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हलकी-सी रहती है, जिस पर ज़्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। ऐसा करके वे विनोद व आत्मीयता के भाव को प्रकट करते हैं।

5. अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती, तो झूरी से पूछते – तुम हम गरीबों को क्यों निकाल – तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो ? हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। अगर इतनी मेहनत से काम नहीं चलता था तो और काम ले लेते। हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने – चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलाया, वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस ज़ालिम के हाथ क्यों बेच दिया ?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) हीरा-मोती किसे ज़ालिम कह रहे हैं और क्यों ?
(ख) हीरा – मोती क्यों परेशान हैं ?
(ग) हीरा – मोती का अपने स्वामी के प्रति क्या भाव है ?
(घ) हीरा – मोती किसी दूसरे के साथ क्यों नहीं जाना चाहते ?
(ङ) दो विदेशी शब्द चुनकर लिखिए।
उत्तर :
(क) हीरा – मोती गया को ज़ालिम कह रहे हैं क्योंकि वे अपने मालिक झूरी का घर छोड़कर नहीं जाना चाहते थे। जब वे रास्ते में अड़कर खड़े हो जाते हैं तो गया उन्हें मार-पीटकर घसीटकर ले जाता है।
(ख) हीरा – मोती इस बात से परेशान हैं कि उनके मालिक ने उन्हें किसी दूसरे के हाथ बेच दिया है जबकि उनका कोई दोष भी नहीं था। वे जी-जान से अपने मालिक का कार्य करते थे।
(ग) हीरा – मोती को अपने स्वामी से बहुत स्नेह है। वे पूरी मेहनत से उसके लिए कार्य करते थे तथा जो भी दाना – चारा मिलता था, उसे ही बिना किसी शिकायत के खा लेते थे।
(घ) उन्हें अपने स्वामी से बहुत स्नेह है। वे अपने स्वामी के अतिरिक्त अन्य कहीं नहीं जाना चाहते। यहाँ के वातावरण तथा खान-पान से भी वे संतुष्ट हैं। गया के मारने-पीटने से भी वे उसके साथ नहीं जाना चाहते तथा स्वामी के पास ही रहना चाहते हैं।
(ङ) कबूल, ज़ालिम।

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6. दोनों ने अपनी मूक- भाषा में सलाह की, एक-दूसरे को कनखियों से देखा और लेट गए। जब गाँव में सोता पड़ गया, तो दोनों ने जोर मारकर पहे तुड़ा डाले और घर की तरफ़ चले। पगहे बहुत मज़बूत थे। अनुमान न हो सकता था कि कोई बैल उन्हें तोड़ सकेगा; पर इन दोनों में इस समय दूनी शक्ति आ गई थी। एक-एक झटके में रस्सियाँ टूट गईं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) दोनों ने क्या सलाह की और क्यों ?
(ख) ‘सोता पड़ गया’ और ‘पगहे तुड़ा डाले’ से क्या तात्पर्य है ?
(ग) दोनों कहाँ आ गए थे और क्यों ?
(घ) उन दोनों में ‘दूनी शक्ति’ कैसे आ गई थी ?
(ङ) बैलों ने कितने झटकों में अपनी रस्सियाँ तोड़ दी थीं ?
उत्तर :
(क) दोनों बैलों ने झूरी के साले गया के घर से भागने की सलाह की क्योंकि उन्हें यहाँ आना अच्छा नहीं लगा था। दिन-भर के भूखे होने पर भी उन्होंने कुछ नहीं खाया था। यहाँ सभी कुछ उन्हें बेगाना लग रहा था।
(ख) ‘सोता पड़ गया’ से तात्पर्य यह है कि रात हो गई थी। गाँव के सभी लोग सो गए थे। चारों ओर एकांत था। ‘पगहे तुड़ा डाले’ से तात्पर्य यह है कि जिन रस्सियों से बैलों को खूँटों से बाँधा गया था, उन्होंने उन रस्सियों को तोड़ दिया था।
(ग) दोनों बैलों को झूरी का साला गया अपने गाँव ले आया था। वह उन्हें अपने खेतों में जोतना चाहता था।
(घ) उन दोनों बैलों ने गया के घर आकर कुछ भी नहीं खाया था। जब उन्होंने वहाँ से भाग जाने का निश्चय कर लिया तो इसी निश्चय के उत्साह के कारण कि ‘वे यहाँ से निकलकर अपने पुराने घर जा सकते हैं बहुत मज़बूत रस्सियों को भी उन्होंने तोड़ डाला था। उनमें दुगुनी शक्ति इस विचार से आ गई थी कि वे यहाँ से आज़ाद होकर अपने घर जा सकेंगे।’
(ङ) बैलों ने एक-एक झटके में अपने रस्सियाँ तोड़ दी थीं।

7. ‘मुझे मारेगा, तो मैं भी एक-दो को गिरा दूँगा।’
‘नहीं। हमारी जाति का यह धर्म नहीं है।’
मोती दिल में ऐंठकर रह गया। गया आ पहुँचा और दोनों को पकड़कर ले चला। कुशल हुई कि उसने इस वक्त मारपीट न की, नहीं तो मोती भी पलट पड़ता। उसके तेवर देखकर गया और उसके सहायक समझ गए कि इस वक्त जाना ही मसलहत है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) यह किसने और क्यों कहा कि हमारी जाति का यह धर्म नहीं है ? इस जाति का क्या धर्म है ?
(ख) मोती दिल ही दिल में ऐंठकर क्यों रह गया ?
(ग) गया ने बैलों को क्यों नहीं मारा ?
(घ) बैलों ने क्या अपराध किया था ?
(ङ) किस बैल के मन में बदला लेने के विद्रोही भाग उग्र थे ?
उत्तर :
(क) यह कथन हीरा ने मोती को उस समय कहा जब वह गया और उसके सहायकों को मारने की बात कहता है। इस जाति का धर्म परिश्रम करना है। ये मनुष्य जाति के लिए अत्यंत उपयोगी पशु हैं। ये खेत जोतते हैं तथा गाड़ियों को खींचते हैं।
(ख) मोती गया और उसके सहायकों को सबक सिखाना चाहता था कि बैलों को मारने से बैल भी क्रोधित होकर उन्हें मार सकते हैं। हीरा के मना करने पर वह ऐसा नहीं कर सका। इसलिए उसकी इच्छा मन में ही रह गई तथा उसे दिल ही दिल में ऐंठकर रह जाना पड़ा।
(ग) गया ने बैलों को इसलिए नहीं मारा क्योंकि वह बैलों की क्रोध – से भरी हुई मुद्रा को देखकर समझ गया था कि यदि उसने बैलों को मारा तो वे भी बदले में उस पर आक्रमण कर सकते हैं।
(घ) गया ने बैलों को हल में जोता था, पर इन दोनों बैलों ने खेत नहीं जोता था। गया ने इन्हें डंडों से खूब मारा तथा हीरा की नाक पर भी डंडे मारे। इस पर मोती को क्रोध आ गया और वह हल लेकर भागा। इस प्रकार भागने से हल, रस्सी, जुआ, जोत आदि सब टूट गए थे।
(ङ) मोती के हृदय में बदला लेने के उग्र भाव थे।

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8. मोती ने आँखों में आँसू लाकर कहा- तुम मुझे स्वार्थी समझते हो, हीरा ? हम और तुम इतने दिनों एक साथ रहे हैं। आज तुम विपत्ति में पड़ गए, तो मैं तुम्हें छोड़कर अलग हो जाऊँ।
हीरा ने कहा – बहुत मार पड़ेगी। लोग समझ जाएँगे, यह तुम्हारी शरारत है।
मोती गर्व से बोला – जिस अपराध के लिए तुम्हारे गले में बंधन पड़ा, उसके लिए अगर मुझ पर मार पड़े, तो क्या चिंता। इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) मोती स्वयं को स्वार्थी समझने की बात क्यों कह रहा है ?
(ख) मोती की शरारत क्या है ?
(ग) हीरा ने क्या अपराध किया था और क्यों ?
(घ) कौन आशीर्वाद देंगे और क्यों ?
(ङ) गर्व का भाव किसके स्वर से प्रकट हो रहा था ?
उत्तर :
(क) काँजीहौस के चौकीदार ने हीरा को बाड़े की कच्ची दीवार तोड़ने की कोशिश करने के अपराध में मोटी रस्सी से बाँध दिया था। मोती ने दीवार को अपने बल से गिरा दिया। दीवार के गिरते ही कई जानवर भाग गए। मोती हीरा की रस्सी नहीं तोड़ पाया तो हीरा ने मोती को वहाँ से भाग जाने के लिए कहा। मोती हीरा के बिना वहाँ से नहीं जाना चाहता। इसलिए वह हीरा को कहता है कि क्या उसने उसे इतना स्वार्थी समझ लिया है।
(ख) मोती ने काँजीहौस की कच्ची दीवार को सींग अड़ाकर गिरा दिया था। दीवार के गिरते ही काँजीहौस में बंद जानवर भाग गए थे। काँजी हौस से दीवार तोड़कर जानवरों को भगाने की शरारत मोती की ही समझी जाएगी क्योंकि हीरा मोटी रस्सी से बँधा हुआ था तथा अन्य जानवर ऐसी शरारत नहीं कर सकते थे।
(ग) हीरा भूख से व्याकुल हो गया था। जब रात को भी उसे खाने को कुछ नहीं मिला तो हीरा के दिल में विद्रोह की ज्वाला दहक उठी। उसने काँजीहौस से निकलने के लिए बाड़े की कच्ची दीवार को अपने नुकीले सींगों से तोड़ने का प्रयास किया। दीवार की मिट्टी गिरने लगी थी। तभी काँजीहौस का चौकीदार आ गया और हीरा के इस काम को देखकर उसने हीरा को कई डंडे मारे और उसे मोटी-सी रस्सी से बाँध दिया। हीरा ने यह अपराध अपनी आज़ादी के लिए किया था।
(घ) जो जानवर काँजीहौस के बाड़े से निकलकर भाग गए हैं वे आशीर्वाद देंगे क्योंकि काँजीहौस में उन्हें खाने-पीने के लिए कुछ नहीं मिलता था। वे भूख-प्यास के कारण अधमरे हो गए थे। बाहर निकलकर वे आज़ादी से खा-पी सकते थे।
(ङ) मोती के स्वर से गर्व का भाव प्रकट हो रहा था।

दो बैलों की कथा Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन – प्रेमचंद हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कथाकार हैं। इस महान कथा – शिल्पी का जन्म वाराणसी जिले के लमही ग्राम में 31 जुलाई, सन् 1880 ई० को हुआ था। इनका मूल नाम धनपत राय था। इनके पिता का नाम मुंशी अजायब राय था। जब प्रेमचंद आठ वर्ष के थे तब इनकी माता का देहांत हो गया था और इसके आठ वर्ष बाद इनके पिता चल बसे थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई और मैट्रिक के बाद अध्यापन का कार्य करने लगे। शिक्षा- विभाग में अध्यापन का कार्य करते हुए इनकी पदोन्नति स्कूल इंस्पेक्टर के पद तक हुई थी। गांधी जी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर इन्होंने सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया और पूरी तरह लेखन कार्य के प्रति समर्पित हो गए। इन्होंने कुछ फ़िल्मों की पटकथाएँ भी लिखीं, लेकिन फ़िल्मी नगरी इन्हें ज़्यादा दिनों तक रास नहीं आई और वापस बनारस लौट आए। इन्होंने ‘हंस’, ‘मर्यादा’, ‘जागरण’ और ‘माधुरी’ नामक पत्रिकाओं का संपादन किया था। इनका देहावसान 8 अक्तूबर, सन् 1936 ई० को हुआ।

रचनाएँ – साहित्यिक जगत में उन्होंने नवाब राय से पदार्पण किया था। ये पहले उर्दू में लिखा करते थे। सन 1907 में प्रकाशित इनकी ‘सोजे – वतन’ नामक पुस्तक को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। बाद में इन्होंने प्रेमचंद नाम से हिंदी में लिखना आरंभ कर दिया। इन्होंने अनेक उपन्यास, तीन सौ से अधिक कहानियाँ, नाटक और निबंध लिखे हैं। इनके प्रसिद्ध उपन्यास – निर्मला, प्रतिज्ञा, वरदान, रंगभूमि, कर्मभूमि, सेवासदन, प्रेमाश्रम, गबन और गोदान हैं। इनका कहानी – साहित्य का रचनाकाल सन् 1907 से 1936 तक है। उर्दू में इनकी पहली कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’ थी। हिंदी में इनका पहला कहानी संग्रह ‘सप्त- सरोज’ था। इसके पश्चात् इनके जो अन्य कहानी-संग्रह प्रकाशित हुए, उनमें नवनिधि, प्रेम-पूर्णिमा, प्रेम-पचीसी, प्रेम- द्वादसी, प्रेम-तीर्थ, प्रेम – चतुर्थी, प्रेम-प्रसून, प्रेम-प्रतिमा, प्रेरणा, समाधि, प्रेम – पंचमी आदि प्रसिद्ध हैं। इनकी समस्त कहानियाँ ‘मानसरोवर’ के आठ भागों में संकलित हैं।

भाषा-शैली – प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में सहज, सरल तथा प्रचलित लोकभाषा के साहित्यिक रूप का प्रयोग किया है। ‘दो बैलों की कथा’ कहानी की भाषा अत्यंत सरल, सहज, स्वाभाविक तथा मुहावरेदार है। इसमें उर्दू, तत्सम तद्भव तथा देशज शब्दों का लेखक ने खुलकर प्रयोग किया है, जिससे भाषा की संप्रेषणीयता में वृद्धि हुई है। उर्दू के दरजे, खुश, बदनाम, जवाब, मिसाल, शिकायत, ताकीद, बेदम आदि शब्दों के साथ – साथ निरापद, सहिष्णुता, दुर्दशा, वंचित, आक्षेप, विद्रोह आदि तत्सम तथा बधिया, ताऊ, छप्पा, नाँद, पगहे, जुआ, जोत, रगेदा आदि देशज शब्दों का सटीक प्रयोग किया है। लेखक ने ईंट का जवाब पत्थर से देना, नौ-दो ग्यारह होना, जान से हाथ धोना, बगले झाँकना आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा में निखार उत्पन्न कर दिया है। कहानी वर्णनात्मक तथा संवादात्मक शैली में लिखी गई है। संवादों से कहानी की रोचकता में वृद्धि हुई है। संवाद सहज, संक्षिप्त, प्रसंगानुकूल तथा भावपूर्ण हैं, जैसे-
मोती ने कहा – ‘ हमारा घर नगीच आ गया। ‘
हीरा बोला – ‘ भगवान की दया है।’
‘मैं तो अब घर भागता हूँ।’
‘यह जाने देगा ?’
‘इसे मैं मार गिराता हूँ। ‘
‘नहीं – नहीं दौड़कर थान पर चलो वहाँ से हम आगे न जाएँगे।’
इस प्रकार लेखक ने सहज एवं भावपूर्ण भाषा – शैली का प्रयोग किया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

पाठ का सार :

प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘दो बैलों की कथा’ में मनुष्य के पशु-प्रेम तथा पशुओं का अपने स्वामी के प्रति लगाव का सजीव चित्रण किया गया है। लेखक ने मूक पशुओं की एक-दूसरे के प्रति सद्भावनाओं तथा स्वतंत्रता के लिए उनके संघर्ष का भी स्वाभाविक वर्णन किया है।

लेखक का मानना है कि जानवरों में गधा सबसे अधिक बुद्धिहीन समझा जाता है, इसलिए जब हम किसी व्यक्ति को बहुत अधिक बेवकूफ़ कहना चाहते हैं तो उसे गधा कहकर संबोधित करते हैं। गधे का चेहरा सदा उदास दिखाई देता है। गाय और कुत्ता भी अवसर आने पर खतरनाक हो जाते हैं। गधे को कभी भी किसी अन्य रूप में नहीं देखा जाता। गधे का यही सीधापन अफ्रीका में दुर्दशा झेल रहे भारतवासियों में भी है। बैल को लेखक ने गधे से कम बेवकूफ़ माना है क्योंकि वह कभी-कभी अड़ियल बन जाता है और मारने भी लगता है।

झूरी के पास हीरा और मोती नामक दो बैल थे। दोनों बैल बहुत सुंदर और तंदरुस्त थे। वे आपस में मूक-भाषा में बातचीत करते रहते थे। झूरी उनकी प्यार से देखभाल करता था। इन बैलों को भी झूरी से बहुत स्नेह था। एक बार झूरी का साला उन दोनों बैलों को अपने गाँव ले गया। वे उसके साथ नहीं जाना चाहते थे इसलिए उन्होंने रास्ते में इधर-उधर भागने की कोशिश भी की थी परंतु झूरी का साला उन्हें किसी प्रकार से हाँककर अपने घर तक ले आया था। उसने इन्हें बाँधकर रखा और सूखा चारा खाने के लिए दिया।

रात को दोनों रस्सी तोड़कर सुबह होने तक अपने ठिकाने पर वापस आ गए। झूरी ने जब उन्हें सुबह अपने स्थान पर खड़े देखा तो इन्हें अपने गले लगा लिया। आस-पास अन्य लोग भी वहाँ एकत्र हो गए तथा तालियाँ बजा-बजाकर उन बैलों का स्वागत करने लगे। झूरी की पत्नी को यह अच्छा नहीं लगा और उसने मज़दूर को इन्हें सूखा भूसा खाने के लिए देने को कहा। झूरी ने भूसे में खली डालने के लिए कहा तो मज़दूर ने मालकिन की आज्ञा सुना दी।

अगले दिन झूरी का साला फिर आकर हीरा और मोती को ले जाता है। वह इस बार इन दोनों बैलों को बैलगाड़ी में जोतकर ले जाता है। रास्ते में हीरा गाड़ी को सड़क की खाई में गिराना चाहता है। परंतु हीरा सँभाल लेता है। घर पहुँचकर वह दोनों को मोटी रस्सियों से बाँधता है और उन्हें सूखा भूसा ही खाने को देता है। वह अपने बैलों को खली, चूनी आदि सब कुछ देता है। वह हीरा और मोती से खूब काम लेता है। गया की लड़की को इन पर दया आती है। वह चोरी-छुपे उन्हें एक-एक रोटी खिला देती है। एक रात ये दोनों रस्सी चबाकर भागने की सोच रहे होते हैं तो गया की लड़की इन्हें खोलकर भगा देती है और चिल्लाने लगती है कि फूफावाले बैल भागे जा रहे हैं। गया गाँव के अन्य लोगों के साथ इन्हें पकड़ने की कोशिश करता है परंतु ये दोनों भाग जाते हैं।

भागते-भागते दोनों बैल रास्ता भूल जाते हैं। उन्हें भूख लगती है तो मटर के खेत से मटर चरने लगते हैं। पेट भर जाने पर आनंद मनाने लगते हैं। तभी एक साँड़ इनकी तरफ आता है। दोनों मिलकर साँड़ का मुकाबला करते हैं और उसे मारकर भगा देते हैं। थककर वे खाने के लिए मटर के खेत में घुस जाते हैं। तभी दो आदमी लाठियाँ लेकर दोनों को घेर लेते हैं। हीरा निकल जाता है पर मोती फँस जाता है। मोती को फँसा देखकर हीरा भी रुक जाता है। दोनों को पकड़कर काँजीहौस में बंद कर दिया जाता है।

वहाँ उन्हें खाने के लिए कुछ नहीं मिलता। वहाँ अन्य जानवर गधे, भैंसें, बकरियाँ, घोड़े आदि भी बंद थे। हीरा-मोती कोशिश करके काँजीहौस की दीवार को तोड़ देते हैं। सभी जानवर भाग जाते हैं परंतु गधे नहीं भागते तो मोती दोनों गधों को सींगों से मार-मारकर बाड़े से बाहर निकाल देता है। वे दोनों इसलिए नहीं भाग पाते क्योंकि हीरा की रस्सी नहीं टूट सकी थी।

सुबह होने पर काँजीहौस के चौकीदार आदि मोती की खूब मरम्मत करते हैं और उसे मोटी रस्सी से बाँध देते हैं। एक सप्ताह तक उन्हें पानी के अतिरिक्त कुछ खाने के लिए नहीं दिया गया। एक दिन एक दढ़ियल व्यक्ति ने इन्हें नीलामी में खरीद लिया और अपने साथ ले चला। रास्ते में वह उन्हें डंडे मारता जा रहा था। अचानक उन्हें लगा कि यह तो उनका परिचित रास्ता है। यहीं से झूरी के घर से गया उन्हें ले गया था। वे तेज गति से चलने लगे। उन्हें अपना गाँव, खेत, कुआँ दिखाई देने लगे।

दोनों मस्त बछड़ों की तरह कूदते हुए अपने घर की ओर दौड़ने लगे तथा अपने निश्चित स्थान पर आकर खड़े हो गए। दढ़ियल भी उनके पीछे आकर खड़ा हो गया और बैलों की रस्सियाँ पकड़कर बोला ये बैल मैं मवेशीखाने से खरीदकर लाया हूँ। झूरी ने कहा कि ये उसके बैल हैं। दढ़ियल जबरदस्ती बैलों को पकड़कर ले जाने लगा तो मोती ने सींग चलाया। दढ़ियल पीछे हटा। मोती ने उसका पीछा किया तो दढ़ियल भाग गया। गाँव के लोगों ने भी झूरी का साथ दिया। दोनों को खूब खली, भूसा, चोकर और दाना खाने के लिए दिया गया। झूरी उन्हें सहला रहा था. और झूरी की पत्नी ने आकर दोनों के माथे चूम लिए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • परले दरजे का बेवकूफ़ – एकदम मूर्ख
  • सहिष्णुता – सहनशीलता
  • विषाद – उदासी, खेद, दुख
  • उपयुक्त – उचित
  • कुसमय – बुरा समय
  • गम खाना – सहन करना
  • पछाई – पश्चिम प्रदेश का, पालतू पशुओं की एक नस्ल
  • वंचित – रहित, विमुख
  • नाँद – पशुओं के लिए चारा डालनेवाला बरतन अथवा स्थान
  • कबूल – स्वीकार
  • बेगाने – पराए
  • सोता पड़ना – सबका सो जाना
  • चरनी – वह नाँद जिसमें पशुओं को चारा खिलाया जाता है
  • प्रतिवाद – विरोध, खंडन
  • मजूर – मादूर
  • टिटकार – टिक-टिक की आवाज़
  • व्यथा – पीड़ा, दुख
  • मसलहत – सही, उचित
  • आत्मीयता – अपनापन
  • नौ-दो-ग्यारह होना – भाग जाना
  • मल्लयुद्ध – कुश्ती
  • साबिका – वास्ता
  • प्रतिद्वंद्वी – शत्रु, विरोधी
  • ठठरियाँ – हड्डियाँ, अस्थि-पिंजर
  • हार – चरागाह
  • नगीच – नादीक
  • शूर – बहादुर
  • निरापद – सुरक्षित, जिससे कोई आपत्ति न हो
  • कुलेल – उछल-कूद करना, क्रीड़ा करना
  • परा का ठठा – चरम-सीमा
  • दुर्दशा – बुरी दशा
  • जी तोड़कर काम करना – बहुत मेहनत से काम करना गण्य – सम्मान के योग्य
  • डील – शरीर का विस्तार, कद
  • विग्रह – अलग होना, कलह, झगड़ा, लड़ाई
  • पगहिया – पशुओं को बाँधने की रस्सी
  • ज्ञालिम – क्रूर, कठोर
  • कनखियों – तिरछी नारों से
  • पगहे तुड़ाना – रस्सियाँ तोड़ना
  • गराँव – फुँदेदार रस्सी जो बैल के गले में बाँधी जाती है
  • आक्षेप – आरोप, लांछन
  • कड़ी ताकीद – पक्का आदेश
  • आहत – चोट खाया हुआ, घायल
  • तेवर – क्रोध भरी दृष्टि
  • वास – निवास
  • आरजू – इच्छा
  • तजुरबा – अनुभव
  • रगेदा – भागना, खदेड़ना
  • काँजीहैस – लावारिस पशुओं का बंदी-गृह
  • खेड़ – पशुओं का झुंड
  • अंतर्जान – मन का ज्ञान
  • थान – पशुओं को बाँधने का स्थान
  • अखितयार – अधिकार
  • उछाह – उत्साह

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Rachana पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Rachana पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र

1. अपने मित्र अथवा अपनी सखी को अपने जन्म-दिवस पर बधाई – पत्र लिखिए –
उत्तर :
56-एल, मॉडल टाउन
कोच्ची
31 मार्च, 20….
प्रिय सखी नलिनी
सस्नेह नमस्कार !
आज ही तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ है। यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई कि तुम 4 अप्रैल को अपना 17वाँ जन्म – दिवस मना रही हो। इस अवसर पर तुमने मुझे भी आमंत्रित किया है इसके लिए अतीव धन्यवाद।
प्रिय सखी, मैं इस शुभावसर पर अवश्य पहुँचती, लेकिन कुछ कारणों से उपस्थित होना संभव नहीं। मैं अपनी शुभकामनाएँ भेज रही हूँ। ईश्वर से प्रार्थना है कि वे तुम्हें चिरायु प्रदान करें। तुम्हारा भावी जीवन स्वर्णिम आभा से मंडित हो। अगले वर्ष अवश्य आऊँगी। मैं अपनी ओर से एक छोटी-सी भेंट भेज रही हूँ, आशा है कि तुम्हें पसंद आएगी। इस शुभावसर पर अपने माता-पिता को मेरी ओर से हार्दिक बधाई अवश्य देना।
तुम्हारी प्रिय सखी
मधु

2. आपके मित्र को छात्रवृत्ति प्राप्त हुई है। उसे बधाई पत्र लिखिए।
उत्तर :
512, चौक घंटाघर
भुवनेश्वर
19 जून, 20….
प्रिय मित्र सुमन
सस्नेह नमस्कार !
दिल्ली बोर्ड की दशम कक्षा की परिणाम सूची में तुम्हारा नाम छात्रवृत्ति प्राप्त छात्रों की सूची में देखकर मुझे अतीव प्रसन्नता हुई। प्रिय मित्र, मुझे तुमसे यही आशा थी। तुमने परिश्रम भी तो बहुत किया था। तुमने सिद्ध कर दिया कि परिश्रम की बड़ी महिमा है। 85 प्रतिशत अंक प्राप्त करना कोई खाला जी का घर नहीं। अपनी इस शानदार सफलता पर मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करें। अपने माता-पिता को भी मेरी ओर से बधाई देना। ग्रीष्मावकाश में तुम्हारे पास आऊँगा। मिठाई तैयार रखना।
आपका अपना
विवेक शर्मा

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र

3. आपकी बड़ी बहन को चिकित्सा महाविद्यालय में प्रवेश प्राप्त हो गया है। इस सफलता के लिए बधाई – पत्र लगभग 80-100 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
परीक्षा भवन
देहरादून
06-07-20XX
आदरणीय दीदी
सादर प्रणाम
आशा है आप सकुशल होंगी। में भी यहाँ कुशलता से हूँ अभी-अभी माँ का पत्र मिला। पत्र से पता चला कि आपका ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट, दिल्ली में दाखिला हो गया है। मेरी ओर से आपको बहुत – बहुत बधाई।
ऑल इंडिया में प्रवेश पाकर आपने सचमुच बड़ा मोर्चा मार लिया है। आपकी मेहनत रंग ले आई है। आप हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। भगवान आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करे। मैं चाहती थी कि स्वयं दिल्ली आकर आपको बधाई दूँ, परंतु मेरी परीक्षाएँ सिर पर हैं। परीक्षा समाप्त होते ही आपसे आकर मिलूँगी। आपसे परीक्षा में सफलता का मूलमंत्र भी लूँगी।
घर में चाचा जी एवं चाची जी को मेरा प्रणाम दीजिएगा। नन्हे को मेरा स्नेह। शेष मिलने पर। मिलने की शुभेच्छा के साथ- आपकी प्रिय बहन
क. ख. ग.

4. अपने मित्र को एक पत्र लिखकर उसे ग्रीष्मावकाश का कार्यक्रम बताइए।
अथवा
ग्रीष्मावकाश के अवसर पर भ्रमणार्थ अपने मित्र को निमंत्रण पत्र लिखिए।
उत्तर :
37/9, रेलवे रोड
हैदराबाद
15 मई, 20….
प्रिय मित्र दिनेश
सस्नेह नमस्कार !
आशा है आप सब कुशल होंगे। आपके पत्र से ज्ञात हुआ है कि आपका विद्यालय ग्रीष्मावकाश के लिए बंद हो चुका है। हमारी परीक्षाएँ 28 मई को समाप्त हो रही हैं। इसके पश्चात विद्यालय 15 जुलाई तक बंद रहेगा। इस बार हम पिता जी के साथ शिमला जा रहे हैं। लगभग 20 दिन तक हम शिमला में रहेंगे। वहाँ मेरे मामा जी भी रहते हैं। अतः वहाँ रहने में हमें पूरी सुविधा रहेगी। शिमला के आस-पास सभी दर्शनीय स्थान देखने का निर्णय किया है। मेरे मामाजी के बड़े सुपुत्र वहाँ हिंदी के अध्यापक हैं। उनकी सहायता एवं मार्ग-दर्शन से मैं अपने हिंदी के स्तर को बढ़ा सकूँगा।

प्रिय मित्र, यदि आप भी हमारे साथ चलें तो यात्रा का आनंद आ जाएगा। आप किसी प्रकार का संकोच न करें। मेरे माता-पिताजी भी आपको मेरे साथ देखकर बहुत प्रसन्न होंगे। आप शीघ्र ही अपना कार्यक्रम सूचित करना। हमारा विचार जून के प्रथम सप्ताह में जाने का है। शिमला से लौटने के बाद दिल्ली तथा आगरा जाने का भी विचार है। दिल्ली में अनेक दर्शनीय स्थान हैं। आगरा का ताजमहल तो मेरे आकर्षण का केंद्र है, क्योंकि मुझे अभी तक इस सुंदर भवन को देखने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ। आशा है कि इस बार यह जिज्ञासा भी शांत हो जाएगी। आप अपना कार्यक्रम शीघ्र ही सूचित करना।
अपने माता-पिता को मेरी ओर से सादर नमस्कार कहना।
आपका मित्र
विजय नायडू

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5. अपने मित्र को उसके पिता के स्वर्गवास होने पर संवेदना – पत्र लिखिए।
उत्तर :
4587/15, दरियागंज
दिल्ली
21 जनवरी, 20….
प्रिय मित्र
कल्पना भी न की गई थी कि 19 जनवरी का दिन हम सबके लिए इतना दुखद होगा। आपके पिता के निधन का समाचार पाकर बड़ा शोक हुआ। हाय ! यह विधाता का कितना निर्दय प्रहार हुआ है। आपके पिता की असामयिक मृत्यु से हमारे घर में शोक का वातावरण छा गया। सबकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। मेरे पिताजी ने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा, “मैंने अपना निकटतम मित्र तथा सहयोगी खो दिया है।
प्रिय मित्र ! गत मास जब मैं आपसे मिलने आया था तो उस समय आपके पिताजी कितने स्वस्थ थे। विधि का विधान भी बड़ा विचित्र है। उनका साधु व्यक्तित्व अब भी आँखों के सामने घूम रहा है। उनकी सज्जनता और परोपकार – भावना से सभी प्रभावित थे। उनके निधन से आपके परिवार को ही हानि नहीं पहुँची अपितु सारे नगर को हानि हुई है। उनकी शिक्षा में भी अत्यंत रुचि थी। उन्हीं की प्रेरणा से आप प्रत्येक परीक्षा में शानदार सफलता प्राप्त करते रहे हैं –
प्रिय मित्र ! काल के आगे सब असहाय और विवश हैं। उसकी शक्ति से कोई नहीं बच सकता। उसके आगे सबने मस्तक झुकाया है। धैर्य धारण करने के अतिरिक्त दूसरा उपचार नहीं है। हम सब आपके इस अपार दुख में सम्मिलित होकर संवेदना प्रकट करते हैं। आप धैर्य से काम लीजिए। अपने छोटे भाइयों को सांत्वना दो। माताजी को भी इस समय आपके सहारे की आवश्यकता है। मित्र ! निश्चय ही आप पर भारी ज़िम्मेदारी आ पड़ी है। ईश्वर से मेरी नम्र प्रार्थना है कि वे आपको इस अपार दुख को सहन करने की शक्ति दें और स्वर्गीय आत्मा को शांति प्रदान करें।
आपके दुख में दुखी
रवि वर्मा

6. आपके मित्र के पिता के सीमा पर शहीद हो जाने का समाचार प्राप्त होने पर अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हुए मित्र को संवेदना पत्र लिखिए।
उत्तर :
4587/15, दरियागंज
दिल्ली
21 जनवरी, 20….
प्रिय मित्र
कल्पना भी न की गई थी कि 19 जनवरी का दिन हम सबके लिए इतना दुखद होगा। आपके पिता के निधन का समाचार पाकर बड़ा शोक हुआ हाय ! यह विधाता का कितना निर्दय प्रहार हुआ है। आपके पिता की असामयिक मृत्यु से हमारे घर में शोक का वातावरण छा गया। सबकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। मेरे पिताजी ने आपके शहीद पिता की मृत्यु पर उद्गार व्यक्त करते हुए कहा, “मैंने अपना निकटतम मित्र तथा सहयोगी खो दिया है।” प्रिय मित्र ! गत मास जब मैं आपसे मिलने आया था तो उस समय आपके पिताजी कितने स्वस्थ थे।

उनसे देशभक्ति का सबक सीखा था। विधि का विधान भी बड़ा विचित्र है उनका पौरुष व्यक्तित्व अब भी आँखों के सामने घूम रहा है। उनकी वीरता, सज्जनता और परोपकार – भावना से सभी प्रभावित थे। उनके निधन से आपके परिवार को ही हानि नहीं पहुँची अपितु सारे नगर, देश को हानि हुई है। उनकी शिक्षा में भी अत्यंत रुचि थी। उन्हीं की प्रेरणा से आप प्रत्येक परीक्षा में शानदार सफलता प्राप्त करते रहे हैं।

प्रिय मित्र ! काल के आगे सब असहाय और विवश हैं। उसकी शक्ति से कोई नहीं बच सकता। उसके आगे सबसे मस्तक झुकाया है। धैर्य धारण करने के अतिरिक्त दूसरा उपचार नहीं है। हम सब आपके इस अपार दुख में सम्मिलित होकर संवेदना प्रकट करते हैं। आप धैर्य से काम लीजिए। अपने छोटे भाइयों को सांत्वना दो। माताजी को भी इस समय आपके सहारे की आवश्यकता है। मित्र ! निश्चय ही आप पर भारी जिम्मेदारी आ पड़ी है। ईश्वर से मेरी नम्र प्रार्थना है कि वे आपको इस अपार दुख को सहन करने की शक्ति दें और स्वर्गीय आत्मा को शांति प्रदान करें।
आपके दुख रवि वर्मा
रवि वर्मा

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र

7. छात्रावास में रहने वाले अपने छोटे भाई को एक पत्र 80-100 शब्दों में लिखकर प्रातः काल नियमित रूप से योग एवं प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए प्रेरित कीजिए।
उत्तर :
परीक्षा भवन
नई दिल्ली
दिनांक : 16 अक्टूबर, 20XX
प्रिय अनुज
सस्नेह।
कैसे हो? तुम्हारे स्कूल से तुम्हारा अर्धवार्षिक परीक्षा परिणाम अभी प्राप्त हुआ। तुमने हमेशा की तरह इस बार भी प्रत्येक विषय में श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। शाबाश! आगे भी ऐसे ही बने रहना। उज्ज्वल भविष्य के लिए ऐसे परीक्षा परिणामों की बहुत आवश्यकता होती है किंतु अच्छे अंक पाने की होड़ में अपने स्वास्थ्य को दाँव पर नहीं लगाना चाहिए। मुझे पता है कि तुम दिन-रात आजकल अपनी बोर्ड परीक्षा की तैयारी में व्यस्त रहते हो, पर तुम्हें यह भी स्मरण रहना चाहिए कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। तुम प्रातःकाल तो जल्दी उठ ही जाते हो। तुम उस समय योग और प्राणायाम के लिए कुछ समय अवश्य निकाला करो। योग और प्राणायाम के द्वारा तन और मन दोनों ही चुस्त और स्वस्थ रहते हैं। ये कम समय में अधिक लाभ देंगे तथा तुम्हें परीक्षा की तैयारी करते समय भी अधिक सक्रिय रखेंगे। आशा तुम मेरी इस सलाह को ज़रूर मानकर योग और प्राणायाम को अपनी दिनचर्या बनाओगे।
माता जी व पिता जी की ओर से तुम्हें ढेर सारा प्यार।
तुम्हारा भाई
हितेज़

8. अपने पिता जी को पत्र लिखिए जिसमें अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण होने की सूचना देते हुए खर्च के लिए रुपये मँगवाओ।
उत्तर :
परीक्षा भवन
क० ख० ग०
5 मई, 20….
पूज्य पिताजी
सादर प्रणाम।
आपको यह जानकर हर्ष होगा कि हमारा परीक्षा परिणाम निकल आया है। मैं 580 अंक लेकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गया हूँ। अपनी कक्षा में मेरा दूसरा स्थान है। मुझे स्वयं इस बात का दुःख है कि मैं प्रथम स्थान प्राप्त न कर सका। इसका कारण यह है कि मैं दिसंबर मांस में बीमार हो गया था और लगभग 20-25 दिन विद्यालय न जा सका। यदि मैं बीमार न हुआ होता तो संभव था कि छात्रवृत्ति प्राप्त करता। अब मैं सातवीं कक्षा में अधिक अंक प्राप्त करने का प्रयत्न करूँगा।
अब मुझे सातवीं कक्षा की नई पुस्तकें आदि खरीदनी हैं। कुछ मित्र मेरी इस सफलता पर पार्टी भी माँग रहे हैं। अतः आप मुझे 2500 रुपये यथाशीघ्र भेजने की कृपा करें।
आपका आज्ञाकारी पुत्र,
राघव।

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र

9. अपने छोटे भाई को कुसंगति की हानियाँ बताकर अच्छे लड़कों की संगति में रहने की प्रेरणा देते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर :
720, सेक्टर 27 – सी.
कुरुक्षेत्र।
20 फ़रवरी, 20….
प्रिय जगदीश,
प्रसन्न रहो।
हमें पूर्ण विश्वास है कि तुम सदा मेहनत करते हो और मिडिल परीक्षा में कोई अच्छा स्थान लेकर उत्तीर्ण होगे। तुम्हारी नियमितता और अनुशासन- पालन को देखकर हमें यह विश्वास हो गया है कि तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है, लेकिन एक बात का ध्यान अवश्य रखना कि कहीं कुसंगति में फँसकर अपने को दूषित न कर लेना। यदि तुम बुरे लड़कों के जाल से न बचोगे तो तुम्हारा भविष्य अंधकारमय बन जाएगा और तुम अपने रास्ते से भटक जाओगे। तुम्हें जीवन-भर कष्ट उठाने पड़ेंगे और तुम अपने उद्देश्य में सफल न हो सकोगे।

कुसंगति छात्र का सबसे बड़ा शत्रु है। दुराचारी बच्चे होनहार बच्चों को भी भ्रष्ट कर देते हैं। प्रारंभ में बुरे बच्चों की संगति बड़ी मनोरम लगा करती है, लेकिन यह भविष्य को धूमिल कर देती है। दूसरी ओर अच्छे बच्चों की संगति करने से चरित्र ऊँचा होता है, कई अच्छे गुण आते हैं। अच्छे बालक की सभी प्रशंसा करते हैं।
आशा है कि तुम कुसंगति के पास तक नहीं फटकोगे, फिर भी तुम्हें सचेत कर देना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। माताजी और पिताजी का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, किसी वस्तु की ज़रूरत हो तो लिखना।
तुम्हारा बड़ा भाई,
भुवन मोहन

10. अपनी माता जी को बीमारी की अवस्था पर चिंता व्यक्त करते हुए अपने पिताजी को एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
7/454, माधोपुरी
राँची
10 नवंबर, 20….
श्रद्धेय पिताजी
सादर चरण-स्पर्श !
मैंने पहले पत्र में भी आपको माँ के बढ़ते हुए रोग की सूचना दी थी और आपके परामर्श के अनुसार डॉ० भंडारी को भी दिखाया लेकिन अभी तक कुछ स्वास्थ्य लाभ नहीं हुआ। माँ के निरंतर बढ़ते हुए रोग ने हमें बहुत चिंतित कर दिया है। वे बहुत दुर्बल हो गई हैं। आप कृपया शीघ्र पहुँचने का प्रयत्न करें। संभव हो तो दूरभाष पर बात करें।
आपका प्रिय पुत्र
चैतन्य पुरी

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र

11. अपने छोटे भाई के जन्म-दिवस पर आमंत्रित करते हुए मित्र को पत्र लिखिए।
उत्तर :
परीक्षा भवन
25 मार्च, 20….
प्रिय मित्र विकास
सप्रेम नमस्कार !
आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मेरे अनुज दीपक का जन्मदिवस 12 अप्रैल, 20… को सायं पाँच बजे घर के आँगन में मनाया जाएगा। इस शुभावसर की शोभा बढ़ाने के लिए कुछ प्रसिद्ध गायक भी सम्मिलित होंगे। आपसे निवेदन है कि आप भी इस अवसर पर पधारें और अनुज दीपक को आशीर्वाद देने की कृपा करें।
अपने माता-पिता को मेरी ओर से प्रणाम कहें।
आपका मित्र
मानस

12. अपने मित्र / सहेली को एक पत्र लिखकर बताइए कि आपके स्कूल में 15 अगस्त का दिन कैसे मनाया गया।
उत्तर :
48 – A, आदर्श नगर,
गुरदासपुर।
18 अगस्त, 20….
प्रिय सखी दीपा,
सप्रेम नमस्ते।
बहुत दिनों से तुम्हारा पत्र नहीं मिला। क्या कारण है ? मैं तुम्हें दो पत्र डाल चुकी हूँ पर उत्तर एक का भी नहीं मिला। कोई नाराज़गी तो नहीं। अगर ऐसी-वैसी कोई बात हो तो क्षमा कर देना।
हाँ, इस बार हमारे स्कूल में 15 अगस्त का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इसकी थोड़ी-सी झलक मैं पत्र द्वारा तुम्हें दिखा रही हूँ। 15 अगस्त मनाने की तैयारियाँ एक महीना पहले ही शुरू कर दी गई थीं। स्कूल में सफ़ेदी कर दी गई थी। लड़कियों को सामूहिक नृत्य की ट्रेनिंग देना कई दिन पहले ही शुरू कर दी गई थी। हमें ‘हमारे अमर शहीद’ एकांकी नाटक की रिहर्सल भी कई बार करवाई गई।

निश्चित दिन को ठीक सुबह सात बजे 15 अगस्त का समारोह शुरू हो गया। सबसे पहले तिरंगा झंडा फहराने की रस्म क्षेत्र के जाने-माने समाज सेवक चौधरी रामलाल जी ने अदा की। इसके बाद स्कूल की छात्राओं ने रंगारंग कार्यक्रम पेश करने शुरू कर दिए। गिद्धा नाच ने सबका मन मोह लिया। इसके बाद देश-प्रेम के गीत गाए गए। मैंने भी एक गीत गाया था। मैंने सामूहिक गायन में भी भाग लिया।

इसके बाद एकांकी ‘हमारे अमर शहीद’ का मंचन हुआ। इसके हर सीन पर तालियाँ बजती थीं। समारोह के अंत में मुख्य अतिथि और हमारी बड़ी बहन जी ने भाषण दिए, जिसमें देश-भक्ति की प्रेरणा थी।
15 अगस्त का यह समारोह मुझे हमेशा याद रहेगा, क्योंकि मुझे इसमें दो खूबसूरत इनाम मिले हैं। पूज्य माताजी और भाभी जी को प्रणाम। रिंकू और गुड्डी को प्यार देना। इस बार पत्र का उत्तर ज़रूर देना।
तुम्हारी अनन्य सखी,
वर्तिका

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13. परीक्षा में असफल होने पर बहन को सांत्वना पत्र लिखिए।
उत्तर :
519, राम कुटीर,
रामनगर, दिल्ली।
5 जुलाई, 20….
प्रिय बहन सिया,
प्रसन्न रहो।
पिता जी का अभी-अभी पत्र आया है। तुम्हारे असफल होने का समाचार मिला। मुझे तो पहले ही तुम्हारे पास होने की आशा नहीं थी। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। जिन परिस्थितियों में तुमने परीक्षा दी, इसमें असफल रहना स्वाभाविक ही था। पहले माताजी बीमार हुईं, फिर तुम स्वयं बुखार में फँस गई। जिस कष्ट को सहन करके तुमने परीक्षा दी वह मुझ से छिपा नहीं है। इस पर तुम्हें रंचमात्र भी खेद नहीं करना चाहिए। तुम अपने मन से यह बात निकाल दो कि हम तुम्हारे असफल होने पर नाराज़ हैं। हाँ, अब अगले वर्ष की परीक्षा के लिए तैयार हो जाओ। किसी पुस्तक की आवश्यकता हो तो लिखो। डटकर पढ़ाई करो। माताजी एवं पिताजी को प्रणाम।
तुम्हारा प्यारा भाई,
वरुण

14. अपने मित्र को एक पत्र लिखिए जिसमें दहेज की कुप्रथा के बारे में विवेचना हो।
उत्तर :
डी० ए० वी० उच्च विद्यालय,
कोलकाता।
1 मार्च, 20….
प्रिय मित्र सुशील,
सप्रेम नमस्ते।
आपका पत्र मिला, तदर्थ धन्यवाद। बहन रमा की मँगनी के विषय में आपने मुझसे परामर्श माँगा है। दहेज के संबंध में मेरी सम्मति माँगी है। इसके लिए कुछ शब्द प्रस्तुत हैं।
मैं मनु के इस उपदेश का प्रचारक हूँ कि जिस घर में नारियों की पूजा होती है, उस घर में देवता निवास करते हैं। आज इस आदर्श पर पोछा फिर गया है। जिस गृहस्थ के घर में कन्या पैदा होती है, वह समझता है कि मुझ पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है। मेरी सम्मति में इन सब बुरी भावनाओं का मूल कारण केवल मात्र दहेज-प्रथा है।
आज की प्रचलित दहेज-प्रथा ने कई सुंदर देवियों को पतित होने पर विवश किया है। कइयों ने अपने माता-पिता को कष्ट में देखकर आत्महत्याएँ की हैं।
क्या आपको अंबाला की प्रेमलता की आत्महत्या की घटना स्मरण नहीं ? माता-पिता की इज़्ज़त की रक्षा के लिए उसने अपने प्राणों की बलि दे दी। इसी कारण समाज सुधारकों की आँखें खुलीं। समाज सुधारकों ने इस कुप्रथा का अंत करने का बीड़ा उठाया।
मेरी अपनी सम्मति में कन्यादान ही महान् दान है। जिस व्यक्ति ने अपने हृदय का टुकड़ा दे दिया उसका यह दान तथा त्याग क्या कम है ? आज के नवयुवकों की बढ़ती हुई दहेज की लालसा मुझे सर्वथा पसंद नहीं है। वरों की इस प्रकार से बढ़ती हुई कीमतें समाज के भविष्य के लिए महान संकट बन रही हैं।

मेरी सम्मति में आप रमा बहन के लिए एक ऐसा वर ढूँढ़ें जो हर प्रकार से योग्य हो, स्वस्थ, समुचित रोज़गार वाला और शिक्षित हो। धनी-मानी और लालची लोगों की ओर एक बार भी नज़र न डालें। समय आ रहा है जबकि स्वतंत्र भारत के कर्णधार कानूनन दहेज प्रथा को बंद कर देंगे।
इस संबंध में बहुत सोचने और घबराने की आवश्यकता नहीं है।
आपका अभिन्न हृदय
मनोहर लाल

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15. अपने छोटे भाई को पत्र लिखिए जिसमें प्रातः भ्रमण के लाभ बताए गए हों।
उत्तर :
208, कृष्ण नगर,
इंदौर
15 अप्रैल, 20….
प्रिय सुरेश,
प्रसन्न रहो।
कुछ दिनों से तुम्हारा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ। तुम्हारे स्वास्थ्य की बहुत चिंता है। व्यक्ति का स्वास्थ्य उसकी पूँजी होती है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा निवास करती है। गत वर्ष के टाइफाइड का प्रभाव अब तक भी तुम्हारे ऊपर बना हुआ है। मेरा एक ही सुझाव है कि तुम प्रातः भ्रमण अवश्य किया करो। यह स्वास्थ्य सुधार के लिए अनिवार्य है। इससे मनुष्य को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।

प्रातः भ्रमण से शरीर चुस्त रहता है। कोई बीमारी पास नहीं फटकती। प्रातः बस्ती से बाहर की वायु बहुत ही शुद्ध होती है। इसके सेवन से स्वच्छ रक्त का संचार होता है। मन खिल उठता है, मांसपेशियाँ बलवान् बनती हैं। स्मरण शक्ति बढ़ती है। प्रातःकाल खेतों की हरियाली से आँखें ताज़ा हो जाती हैं।

मुझे आशा है कि तुम मेरे आदेश का पालन करोगे। नित्य प्रातः उठकर सैर के लिए जाया करोगे। अधिक क्या कहूँ। तुम्हारे स्वास्थ्य का रहस्य प्रातः भ्रमण में छिपा है। पूज्य माताजी को प्रणाम। अणु-शुक को प्यार।
तुम्हारा अग्रज,
प्रमोद कुमार

16. अपनी छोटी बहन को सादा जीवन बिताने के लिए पत्र लिखिए।
उत्तर :
केंद्रीय उच्च विद्यालय,
झाँसी।
2 नवंबर, 20….
प्रिय बहन मधु,
प्यार भरी नमस्ते।
कल पूज्य माताजी का पत्र मिला। घर का हाल-चाल ज्ञात हुआ। यह पढ़कर मुझे दुःख भी हुआ और हैरानी भी कि तुम फ़ैशनपरस्ती की ओर बढ़ रही हो। फ़ैशन विद्यार्थी का सबसे बड़ा शत्रु है।
बहन, तुम समझदार हो। सादगी, सरलता और सद्विचार उन्नति की सीढ़ियाँ हैं। फ़ैशन हमारी संस्कृति और सभ्यता के प्रतिकूल है। प्रगति की दौड़ में फ़ैशनपरस्त व्यक्ति हमेशा ही पिछड़ जाता है।
सादी वेश-भूषा व्यक्ति को ऊँचा उठाती है। सादापन मनुष्य का आंतरिक शृंगार है। अच्छे कुल की लड़कियाँ सादा खान-पान और सादा रहन- सहन कभी नहीं त्यागतीं। फ़ैशन की तितलियाँ बनना उन्हें शोभा नहीं देता। तड़क-भड़क व्यक्ति के आचरण को ले डूबती है। अत: इसे दूर से ही नमस्कार दो। गांधीजी कहा करते थे कि लड़के-लड़कियों में सादगी होना बहुत ज़रूरी है।
फिर तुम एक भारतीय लड़की हो। तुम्हें सीता, सावित्री, द्रौपदी, अनुसूइया आदि के समान आदर्श बनना है। कीलर या मारग्रेट नहीं बनना है। मुझे विश्वास है कि तुम मेरी इस छोटी-सी परंतु महत्त्वपूर्ण शिक्षा के अनुसार आचरण करोगी। इसी में हमारे परिवार का मंगल है।
तुम्हारा भाई,
रवि शंकर
कक्षा : सातवीं ‘ए’

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17. छात्रावासीय जीवन पर टिप्पणी करते हुए अपने बड़े भाई के नाम एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
512, टैगोर भवन
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
इलाहाबाद
दिनांक : 20 जुलाई, 20 ….
पूज्य भाई साहब
नमस्कार !
आशा है कि आप सब सकुशल हैं। मुझे यहाँ प्रवेश मिल गया है तथा टैगोर भवन छात्रावास में कमरा भी मिल गया है। यहाँ के सभी साथी बहुत ही मिलनसार तथा हँसमुख हैं। हमारे छात्रावास में खेलों तथा मनोरंजन के साधनों में दूरदर्शन, कंप्यूटर आदि उपलब्ध हैं। यहाँ के भोजनालय में भोजन अत्यंत पौष्टिक तथा स्वास्थ्यवर्धक प्राप्त होता है। स्नानागार आदि भी स्वच्छ तथा हवादार हैं। कमरे में पंखा लगा हुआ है तथा कमरे के बाहर छज्जे में से प्राकृतिक दृश्य बहुत सुंदर दिखाई देते हैं।
आप माताजी एवं पिताजी को समझा दें कि मैं यहाँ पर सुखपूर्वक हूँ तथा मन लगाकर पढ़ रहा हूँ। समय पर खा-पी लेता हूँ तथा व्यायाम भी करता हूँ। उन्हें नमस्कार कहें तथा रुचि को स्नेह दें।
आपका अनुज
तरुण कुमार

18. आपका छोटा भाई अनुराग परीक्षा में नकल करते हुए पकड़ा गया। उसे भविष्य में ऐसा न करने की सलाह देते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर :
परीक्षा भवन
नई दिल्ली
दिनांक : 20-05-20XX
प्रिय अनुराग
शुभाशीष
आशा है कि तुम सकुशल होंगे। मैं भी यहाँ कुशलतापूर्वक हूँ और अपने कामकाज में व्यस्त हूँ।
कल ही मुझे यह पता चला कि तुम विज्ञान की परीक्षा में नकल करते पकड़े गए और इसके लिए प्रधानाचार्य ने तुम्हें दंडित किया है। तुम्हारा विज्ञान का पेपर भी रद्द कर दिया गया है और तुम्हें दोबारा परीक्षा देने के लिए कहा गया है। भाई, तुमने ऐसा क्यों किया ? तुम्हारी इस हरकत से माता-पिता को कितना दुख हुआ है। मेरे द्वारा बार-बार समझाने पर भी तुमने अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान नहीं दिया। सारा समय मित्रों के साथ बाहर घूमने और दूरदर्शन देखने में बिताने का यही नतीजा होता है। यदि हमारा कहा मानकर प्रतिदिन केवल एक-दो घंटे पढ़ाई की होती, तो आज यह दुख न झेलना पड़ता। अब भी समय है, सँभल जाओ और पढ़ाई में अपना मन लगाओ।
आशा है कि तुम मेरी सलाह पर ध्यान दोगे और भविष्य में कभी यह गलती नहीं दोहराओगे।
तुम्हारा भाई
क. ख. ग

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19. जन्म – दिवस पर प्राप्त भेंट के लिए धन्यवाद – पत्र लिखिए।
उत्तर :
712, जनता नगर
कोयंबटूर
24 दिसंबर, 20….
पूज्य चाचा जी
सादर प्रणाम !
आपने मेरे जन्म-दिवस पर मुझे अपनी शुभ कामनाओं के साथ-साथ जो घड़ी भेजी है, उसके लिए मैं आपका हार्दिक धन्यवाद करती हूँ। मेरी पहली घड़ी पुरानी हो जाने के कारण न तो ठीक तरह से चलती थी और न ही ठीक समय की सूचना देती थी। अतः मैं नई घड़ी की आवश्यकता अनुभव कर रही थी। घड़ी देखने में भी अत्यन्त आकर्षक है। ठीक समय देने में तो इसका जवाब नहीं।
चाचाजी, मुझे तोहफ़े तो और भी मिले हैं पर आपकी घड़ी की बराबरी कोई नहीं कर सकता। आपकी यह प्रिय भेंट चिरस्मरणीय है।
इस भेंट के लिए मैं एक बार फिर आपका धन्यवाद करती हूँ।
चाचीजी को सादर प्रणाम। विमल और कमल को मेरी ओर से सस्नेह नमस्कार।
आपकी आज्ञाकारी
लक्ष्मी मेनन

20. छोटे भाई को पत्र लिखो और उसे समय का महत्व बताइए।
उत्तर :
16, रूप नगर
अवंतिपुर
25 मई, 20….
प्रिय अनुज
चिरंजीव रहो !
कल ही पिताजी का पत्र प्राप्त हुआ है। उसमें उन्होंने तुम्हारे विषय में यह शिकायत की है कि तुम समय के महत्त्व को नहीं समझते। अपना अधिकांश समय खेल-कूद में तथा मित्रों से व्यर्थ के वार्तालाप में नष्ट कर देते हो। नरेश ! तुम्हारे लिए यह उचित नहीं। समय ईश्वर का दिया हुआ अमूल्य धन है। इसका ठीक ढंग से व्यय करना हमारा कर्तव्य है। समय की अपेक्षा करने वाला कभी महान नहीं बन सकता।

शीघ्र ही तुम्हारा स्कूल ग्रीष्मावकाश के लिए बंद हो रहा है। तुमने अपने भ्रमण के लिए जो योजना बनाई है, वह ठीक है। कुछ दिन शिमला में रहने से तुम्हारा मन तथा शरीर दोनों स्वस्थ बन जाएँगे। वहाँ भी तुम अध्ययन का क्रम जारी रखना। ज्ञान की वृद्धि के लिए पाठ्यक्रम के अतिरिक्त भी कुछ उपयोगी पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए लेकिन दृष्टि परीक्षा पर ही केंद्रित रहे।

प्रत्येक क्षण का सदुपयोग एक पीढ़ी के समान है जो हमें निरंतर उत्थान तथा प्रगति की ओर ले जाता है। संसार इस बात का साक्षी है कि जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं, उन्होंने अपने जीवन के किसी भी क्षण को व्यर्थ नहीं जाने दिया। इसीलिए वे आज इतिहास के पृष्ठों में अमर हो गए हैं। पंत जी ने भी अपने जीवन को सुंदर रूप में देखने के लिए भगवान से कामना करते हुए कहा है- यह पल-पल का लघु जीवन, सुंदर, सुखकर, शुचितर हो।

प्रिय अनुज ! याद रखो। समय संसार का सबसे बड़ा शासक है। बड़े-बड़े नक्षत्र भी उसके संकेत पर चलते हैं। हमारी सफलता-असफलता समय के सदुपयोग अथवा दुरुपयोग पर ही निर्भर करती है। समय का मूल्य समझना, जीवन का मूल्य समझना है। हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो समय के दुरुपयोग में ही जीवन का आनंद ढूँढ़ते हैं। ऐसे लोग प्रायः व्यर्थ की बातचीत में, ताश खेलने में, चल-चित्र देखने में तथा आलस्यमय जीवन व्यतीत करने में ही अपना समय नष्ट करते रहते हैं। हमारे जीवन में मनोरंजन का भी महत्त्व है. पर मेहनत का पसीना बहाने के बाद। मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना भूल ही नहीं बल्कि बहुत बड़ी मूर्खता है।
इस प्रकार समय के सदुपयोग में ही जीवन की सार्थकता है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम समय का मूल्य समझोगे और उसके सदुपयोग द्वारा अपने जीवन को सफल बनाओगे।
मेरी ओर से माता-पिता को प्रणाम।
तुम्हारा हितैषी
रवींद्र वर्मा

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र

21. किसी मुद्दे पर आपका अपने मित्र से मतभेद हो गया है। उसे 80-100 शब्दों में पत्र लिखकर अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए बताइए कि यह मित्रता आपके लिए क्या महत्व रखती है।
उत्तर :
55, जनकपुरी
नई दिल्ली
दिनांक : 25 फरवरी 2020
प्रिय मित्र सुरेश
सप्रेम नमस्कार।
मैं यहाँ अपने परिवार के साथ सकुशल हूँ कि तुम भी अपने परिवारजन के साथ कुशलतापूर्वक होंगे। सर्वप्रथम मैं दिल से तुम्हें चुनाव में विजयी होने के लिए बधाई देता हूं। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में तुम आम आदमी पार्टी के टिकट पर लड़ रहे थे और तुम चाहते हो कि चुनाव प्रचार में मैं तुम्हारा साथ दूँ। परंतु मैं उस पार्टी की विचारधारा से सहमत नहीं था और मैंने तुम्हारे साथ प्रचार न करने का निर्णय लिया था और इस कारण तुम मुझसे नाराज़ हो गए। तुम इस बात से भलीभाँति परिचित हो कि लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को स्वेच्छा से पार्टी या नेता का चुनाव या समर्थन करने का अधिकार है और मैंने भी उसी अधिकार का प्रयोग किया। मुझे आशा है कि तुम मेरी बात समझोगे और अपनी नाराजगी दूर करोगे। हमारी मित्रता बहुत घनिष्ठ है जिसमें मतभेद हो सकते हैं नाराजगी नहीं। मुझे आशा है कि तुम पत्र पढ़कर शीघ्र ही उत्तर होगे। तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा में।
तुम्हारा मित्र
क. ख. ग.

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22. सार्वजनिक स्थलों पर बढ़ते हुए धूम्रपान तथा उसके कारण संभावित रोगों की ओर संकेत करते हुए किसी दैनिक समाचार पत्र के संपादक को 80-100 शब्दों में पत्र लिखिए।
उत्तर :
परीक्षा भवन
नई दिल्ली
दिनांक: 29 मार्च 2020
सेवा में
संपादक में
नव भारत टाइम्स
बहादुर शाह ज़फर रोड
नई दिल्ली
विषय – सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान का प्रभाव
महोदय
मैं दिल्ली के चाँदनी चौक का निवासी, आपका ध्यान सार्वजनिक स्थलों पर बढ़ते धूम्रपान व उसके कारण संभावित रोगों की ओर दिलाना चाहता हूँ। प्रतिदिन मैं इस समस्या को देखता, महसूस करता और सहता हूँ।
धूम्रपान से होने वाली घातक बीमारी से हम सभी अवगत हैं। धूम्रपान करने से कैंसर सहित और भी कई घातक बीमारियाँ होती है। यह न सिर्फ धूम्रपान करने वालो को रोगग्रस्त करता है अपितु जो धूम्रपान के इर्द-गिर्द रहते हैं उन्हें भी अपनी चपेट में ले लेता है। इस समस्या के समाधान हेतु राज्य सरकार तथा केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र को धूम्रपान मुक्त बनाने के लिए कानून की व्यवस्था की थी। परंतु कुछ लोग इस कानून का पालन नहीं कर रहे हैं जिससे सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान न करने वाले लोग भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।
आशा है आप इस पत्र को प्रकाशित कर सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करवाने में मदद करेंगे ताकि इस पर कठोर कानून बने व लागू हो।
शुभ कामनाओं सहित
धन्यवाद
भवदीय
क ख ग

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

(क) बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. धरातल पर वायुदाब 1000 मिलीबार है। धरातल से 1 कि० मी० की ऊंचाई पर वायुदाब क्या होगा?
(A) 700 मिलीबार
(B) 900 मिलीबार
(C) 1,100 मिलीबार
(D) 1,300 मिलीबार।
उत्तर:
(B) 900 मिलीबार।

2. अन्तःउष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र प्रायः कहां होता है?
(A) भूमध्य रेखा के निकट
(B) कर्क रेखा के निकट
(C) मकर रेखा के निकट
(D) आर्कटिक वृत्त के निकट।
उत्तर:
(A) भूमध्य रेखा के निकट।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

3. उत्तरी गोलार्द्ध में निम्न वायुदाब के चारों तरफ पवनों की दिशा क्या होगी?
(A) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के अनुरूप
(B) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत
(C) समदाब रेखाओं के समकोण पर
(D) समदाब रेखाओं के समानान्तर।
उत्तर:
(B) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत।

4. किस वातान के आने पर मेघों का क्रम पक्षाभ मेघ से स्तरी मेघ होता है?
(A) अधिविष्ट वाताग्र
(B) शीत वाताग्र
(C) उष्ण वाताग्र
(D) अचर वाताग्र।
उत्तर:
(C) उष्ण वाताग्र।

5. वायुराशियों के निर्माण के उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित में से कौन-से हैं?
(A) भूमध्यरेखीय वन
(B) साइबेरिया का मैदानी भाग
(C) हिमालय पर्वत
(D) दक्खन पठार।
उत्तर:
(B) साइबेरिया का मैदानी भाग।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

6. समुद्र तल पर वायु दाब कितना पाया जाता है?
(A) 1010 मिलीबार
(B) 1011 मिलीबार
(C) 1013 मिलीबार
(D) 1012 मिलीबार।
उत्तर:
(C) 1013 मिलीबार।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिएप्रश्न
1. पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताओ।
उत्तर:
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले बल-वायुमण्डलीय दाब में भिन्नता के कारण वायु गतिमान होती है। इस क्षैतिज गतिज वायु को पवन कहते हैं। पवनें उच्च दाब से कम दाब की तरफ प्रवाहित होती हैं। भूतल पर धरातलीय विषमताओं के कारण घर्षण पैदा होता है, जो पवनों की गति को प्रभावित करता है। इसके साथ पृथ्वी का घूर्णन भी पवनों के वेग को प्रभावित करता है। पृथ्वी के घूर्णन द्वारा लगने वाले बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। अतः पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज पवनें तीन संयुक्त प्रभावों का परिणाम हैं।

  1. दाब प्रवणता प्रभाव,
  2. घर्षण बल,
  3. तथा कोरिऑलिस बल।

इसके अतिरिक्त, गुरुत्वाकर्षण बल पवनों को नीचे प्रवाहित करता है।
1. दाब-प्रवणता बल:
वायुमण्डलीय दाब भिन्नता एक बल उत्पन्न करता है। दूरी के सन्दर्भ में दाब परिवर्तन की दर दाब प्रवणता है। जहाँ समदाब रेखाएँ पास-पास हों, वहाँ दाब प्रवणता अधिक व समदाब रेखाओं के दूर-दूर होने से दाब प्रवणता कम होती है।

2. घर्षण बल:
यह पवनों की गति को प्रभावित करता है। धरातल पर घर्षण सर्वाधिक होता है और इसका प्रभाव प्रायः धरातल से 1 से 3 कि०मी० ऊँचाई तक होता है। समुद्र सतह पर घर्षण न्यूनतम होता है।
3. कोरिऑलिस बल
पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन पवनों की दिशा को प्रभावित करता है। सन् 1844 में फ्रांसिसी वैज्ञानिक ने इसका विवरण प्रस्तुत किया और इसी पर इस बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। इसके प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिने तरफ व दक्षिण गोलार्द्ध में बाईं तरफ विक्षेपित (deflect) हो जाती हैं। जब पवनों का वेग अधिक होता है, तब विक्षेपण भी अधिक होता है। कोरिऑलिस बल अक्षांशों के कोण के सीधा समानुपात में बढ़ता है। यह ध्रुवों पर सर्वाधिक और भूमध्यरेखा पर अनुपस्थित है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

प्रश्न 2.
उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) से क्या अभिप्राय है? हेडले कोष्ठ तथा फैरल कोष्ठ में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
ऊष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र-उच्च सूर्यातप व निम्न वायुदाब होने से अन्तः- उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) पर वायु संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है। उष्णकटिबन्धों से आने वाली पवनें इस निम्न दाब क्षेत्र में अभिसरण करती हैं। अभिसरित वायु संवहन कोष्ठों के साथ ऊपर उठती हैं। यह क्षोभमण्डल के ऊपर 14 किमी० की ऊँचाई तक ऊपर चढ़ती हैं और फिर ध्रुवों की तरफ प्रवाहित होती हैं। इसके परिणामस्वरूप लगभग 30° उत्तर व 30° दक्षिण अक्षांश पर वायु एकत्रित हो जाती है। इस एकत्रित वायु का अवतलन होता है और यह उपोष्ण उच्चदाब बनाता है।

अवतलन का एक कारण यह है कि जब वायु 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांश पर पहुंचती है तो यह ठंडी हो जाती है। धरातल के निकट वायु का अपसरण होता है और यह भूमध्यरेखा की ओर पूर्वी पवनों के रूप में बहती है। भूमध्यरेखा के दोनों तरफ से प्रवाहित होने वाली पूर्वी पवनें अन्तर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (ITCZ) पर मिलती हैं। पृथ्वी की सतह से ऊपर की दिशा में होने वाले परिसंचरण और इसके विपरीत दिशा में होने वाले परिसंचरण को कोष्ठ (Cell) कहते हैं। उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र में ऐसे कोष्ठ को हेडले कोष्ठ (Hadley cell) कहा जाता है।

मध्य अक्षांशीय वायु परिसंचरण में ध्रुवों से प्रवाहित होती ठण्डी पवनों का अवतलन होता है और उपोष्ण उच्चदाब कटिबन्धीय क्षेत्रों से आती गर्म हवा ऊपर उठती है। धरातल पर ये पवनें पछुआ पवनों के नाम से जानी जाती हैं और यह कोष्ठ फैरल कोष्ठ के नाम से जाने जाते हैं। ध्रुवीय अक्षांशों पर ठण्डी सघन वायु का ध्रुवों पर अवतलन होता है और मध्य अक्षांशों की ओर ध्रुवीय पवनों के रूप में प्रवाहित होती हैं। इस कोष्ठ को ध्रुवीय कोष्ठ कहा जाता है। ये तीन कोष्ठ वायमण्डल के सामान्य परिसंचरण का प्रारूप निर्धारित करते हैं। तापीय ऊर्जा का निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों में स्थानान्तर सामान्य परिसंचरण को बनाये रखता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

प्रश्न 3.
भूविक्षेपी पवनें क्या हैं?
उत्तर-पृथ्वी की सतह से 2-3 कि०मी० की ऊँचाई पर ऊपरी वायुमण्डल में पवनें धरातलीय घर्षण के प्रभाव से मुक्त होती हैं और दाब प्रवणता तथा कोरिऑलिस बल | से नियन्त्रित होतो हैं । जब समदाब रेखाएँ सीधी हों और घर्षण का प्रभाव न हो, तो दाब प्रवणता बल कोरिऑलिस बल से सन्तुलित हो जाता है और फलस्वरूप पवनें समदाब रेखाओं के समानान्तर बहती हैं। ये पवनें भूविक्षेपी (Geostrophic) पवनों के नाम से जानी जाती हैं।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ 1

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न 1.
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताएं।
उत्तर:
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले बल-वायुमण्डलीय दाब में भिन्नता के कारण वायु गतिमान होती है। इस क्षैतिज गतिज वायु को पवन कहते हैं। पवनें उच्च दाब से कम दाब की तरफ प्रवाहित होती हैं। भूतल पर धरातलीय विषमताओं के कारण घर्षण पैदा होता है, जो पवनों की गति को प्रभावित करता है। इसके साथ पृथ्वी का घूर्णन भी पवनों के वेग को प्रभावित करता है। पृथ्वी के घूर्णन द्वारा लगने वाले बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। अतः पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज पवनें तीन संयुक्त प्रभावों का परिणाम हैं

  1. दाब प्रवणता प्रभाव,
  2. घर्षण बल,
  3. तथा कोरिऑलिस बल।

इसके अतिरिक्त, गुरुत्वाकर्षण बल पवनों को नीचे प्रवाहित करता है।
1. दाब-प्रवणता बल:
वायुमण्डलीय दाब भिन्नता एक बल उत्पन्न करता है। दूरी के सन्दर्भ में दाब परिवर्तन की दर दाब प्रवणता है। जहां समदाब रेखाएं पास-पास हों, वहां दाब प्रवणता अधिक व समदाब रेखाओं के दूर-दूर होने से दाब प्रवणता कम होती है।

2. घर्षण बल:
यह पवनों की गति को प्रभावित करता है। धरातल पर घर्षण सर्वाधिक होता है और इसका प्रभाव प्रायः धरातल से 1 से 3 कि०मी० ऊंचाई तक होता है। समुद्र सतह पर घर्षण न्यूनतम होता है।

3. कोरिऑलिस बल:
पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन पवनों की दिशा को प्रभावित करता है। सन् 1844 में फ्रांसिसी वैज्ञानिक ने इसका विवरण प्रस्तुत किया और इसी पर इस बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। इसके प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिने तरफ व दक्षिण गोलार्द्ध में बाईं तरफ विक्षेपित (deflect) हो जाती हैं। जब पवनों का वेग अधिक होता है, तब विक्षेपण भी अधिक होता है। कोरिऑलिस बल अक्षांशों के कोण के सीधा समानुपात में बढ़ता है। यह ध्रुवों पर सर्वाधिक और भूमध्य रेखा पर अनुपस्थित है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

प्रश्न 2.
पृथ्वी पर वायु मण्डलीय सामान्य परिसंचरण का वर्णन करो। 30° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायु दाब के कारण बताओ।।
उत्तर:
वायु दबाव की नक्षत्रीय बांट-पृथ्वी पर वायु दबाव की बांट सरल तथा लगातार नहीं है। कई कारणों से बाधाएं तथा विभिन्नताएं उत्पन्न हो जाती हैं। “धरातल पर पूर्व-पश्चिम दिशा में अक्षांशों के समानान्तर लगभग एक ही चौड़ाई के बराबर क्षेत्रों को वायु दबाव की पेटियां (Pressure Belts) कहा जाता है।” धरातल पर वायु दाब की कुल 7 पेटियां हैं। धरातल पर उच्च वायु दबाव (High Pressure) की चार पेटियां तीन निम्न वायु दबाव (Low Pressure) पेटियों को अलग-अलग करती हैं

1. भूमध्य रेखीय निम्न वायु दबाव पेटी (Equatorial Low Pressure Belt):
यह कम वायु दबाव पेटी भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° उत्तर तथा 5° दक्षिण अक्षांश तक फैली हुई है। इस खण्ड में सारा वर्ष अधिक गर्मी के कारण हवा गर्म होकर संवाहिक धाराओं (Convectional Currents) के रूप में ऊपर उठती रहती है। इस प्रकार वायु दबाव कम हो जाता है। एक शान्त मण्डल (Belt of Calms) स्थापित हो जाता है जिसे डोल ड्रमस् (Dol Drums) भी कहते हैं।

2. उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायु दबाव पेटियां (Sub-tropical High Pressure Belts):
कर्क रेखा तथा मकर रेखा के निकट 30°_35° अक्षांशों के बीच दो उच्च वायु दबाव पेटियां पाई जाती हैं। इस प्रकार यहां भूमध्य रेखा से आने वाली पवनें नीचे उतरती हैं, इन नीचे उतरती हुई पवनों (Descending Winds) के कारण उच्च दबाव (High Pressure) स्थापित हो जाता है तथा एक शान्त मण्डल बन जाता है। इन्हें अश्व अक्षांश (Horse Latitudes) भी कहते हैं।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ 2

3. उप-ध्रुवीय कम वायु दबाव पेटियां (Sub-polar Low Pressure Belts):
यह कम दबाव की पेटियां 60° से 65° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के बीच स्थित हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इन्हें Arctic Low तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में इन्हें Antarctic Low कहते हैं। स्थिति के कारण इन्हें शीतोष्ण निम्न वायु दबाव (Temperate Low) भी कहते हैं। इस कम वायु दबाव के कई कारण हैं

(i) दैनिक गति (Rotation): पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ध्रुवों को वायु भूमध्य रेखा की ओर खिसक जाती है। ध्रुवों पर अधिक सर्दी के कारण कम दबाव उच्च दबाव में बदल जाता है तथा ध्रुवों से कुछ दूरी पर 60° के निकट कम वायु दबाव हो जाता है।

(ii) चक्रवात (Cyclones): ध्रुवों से आने वाली वायु पृथ्वी के तल के साथ रगड़ खा कर बहुत बड़े चक्रवातों का रूप धारण कर लेती है। यह चक्रवात भी कम वायु भार के केन्द्र (Low pressure cells) बन जाते हैं।

(iii) समुद्री धाराएं (Ocean Currents): गर्म समुद्री धाराओं के कारण कम वायु दाब होता है।

(iv) वायुमण्डल की मोटाई भी बहुत कम होती है।

4. ध्रुवीय उच्च दबाव पेटियां (Polar High Pressure Belts): उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव पर लगातार अधिक सर्दी तथा स्थायी बर्फ के कारण उच्च वायु भार होता है। दक्षिणी ध्रुव पर Antarctic महाद्वीप के कारण अधिक दबाव होता है, परन्तु उत्तरी ध्रुव पर Arctic महासागर होने के कारण इतना अधिक दबाव नहीं होता।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति केवल समुद्रों पर ही क्यों होती है? उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के किस भाग में मूसलाधार वर्षा तथा उच्च वेग की पवनें चलती हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Tropical Cyclones)
1. स्थिति (Location):
ये चक्रवात भूमध्य रेखा के दोनों ओर उष्ण कटिबन्ध में चलते हैं इसलिए इन्हें उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहा जाता है। इनका क्षेत्र व्यापारिक पवनों की पेटी में 5°—20° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों के मध्य होता है।

2. उत्पत्ति (Origin):
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों का विकास तापीय (Thermal) है।

  • इनकी निम्नलिखित मुख्य विशेषताओं से इनकी उत्पत्ति का पता चलता है
    1. ये ग्रीष्म काल में पाए जाते हैं।
    2. ये पूर्व से पश्चिम दिशा में चलते हैं।
    3. इनका क्षेत्र 5°- 20° अक्षांश तक है।
    4. इनका विस्तार सामान्य महासागरों पर होता है।
  • उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर इनकी उत्पत्ति अग्रलिखित अवस्थाओं में होती है
    1. शान्त वायु (Calm Air)
    2. संतृप्त वायु मण्डल (Saturated Atmosphere)
    3. उच्च ताप (Abundant Heat)
    4. संवहनीय धाराएं (Convection Currents)

कुछ विद्वानों के अनुसार दो विभिन्न प्रकार की वायु राशियों के मिलने से एक गर्त (Depression) का निर्माण होता है। ये वायु राशियां एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। ये चक्रवात भूमध्य रेखीय अभिसरण क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं। वायु मण्डलीय आर्द्रता की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) इनके विकास में सहायक होती हैं। स्थानीय संवहनीय धाराओं के कारण इनका विकास होता है। अभिसरण क्षेत्र के उत्तर-दक्षिण खिसकने से पूर्वी पवनों की व्यवस्था एक चक्रीय रूप धारण करके उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात बन जाती है। पृथ्वी की परिभ्रमण (Rotation) के कारण वायु समूह बिखर जाते हैं तथा चक्रीय अवस्था में गोलाकार हो जाते हैं।
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3. आकार तथा विस्तार (Shape and Size): ये चक्रवात आकार एवं विस्तार में छोटे होते हैं। इनका व्यास लगभग 100 कि०मी० होता है। ये अण्डाकार (ellipitcal) होते हैं। पूर्णतया विकसित चक्रवात का व्यास 1000 कि०मी० तक होता है।

4. गति (Speed): इन चक्रवातों की गति सागरों पर अधिक होती है। स्थल भागों पर प्राकृतिक बाधाओं तथा घर्षण के कारण इनकी गति कम होती है। कहीं-कहीं इनकी गति 150 कि०मी० प्रति घण्टा होती है। यह चक्रवात महासागरों तथा तटों का बहुत प्रलयकारी होते हैं।

5. मार्ग तथा प्रवाह (Track and Movement): ये चक्रवात व्यापारिक पवनों के साथ-साथ पूर्व पश्चिम दिशा में चलते हैं। ये चक्रवात नमी के समाप्त हो जाने पर स्थल के भीतर नहीं पहुंच पाते वरन् तट के निकट ही समाप्त हो जाते हैं। इन चक्रवातों का मार्ग एक वक्राकार होता है। यह मार्ग इस प्रकार है

  1. यह चक्रवात 5° से 15° अक्षांश के मध्य व्यापारिक पवनों के साथ पश्चिम की ओर चलते हैं।
  2. 15° से 30° के मध्य इनका पथ अनिश्चित होता है।
  3. 30 अक्षांश पार करने का इनका पथ पूर्व की ओर होता है।

6. रचना तथा मौसम (Structure and Weather):
इन चक्रवातों के केन्द्र में निम्न वायु दबाव होता है। इस केन्द्र को आंधी की आंख (Eye of Cyclone) कहते हैं। इसकी समभार रेखाएं अण्डाकार होती हैं। दाब प्रवणता तीव्र होने के कारण तेज़ गति से पवनें चलती हैं। इन चक्रवातों के साथ कोई प्रति चक्रवात नहीं होता। केन्द्रीय भाग में संतृप्त मूसलाधार वर्षा करती है। चक्रवात के विभिन्न भागों में मौसम इस प्रकार होता है।

  1. चक्रवात के आगम से पूर्व वायु अशांत हो जाती है तथा पक्षाभ (Cirrus Clouds) छाए रहते हैं।
  2. सूर्य व चन्द्रमा के चारों ओर प्रवाह मण्डल (Halo) उत्पन्न हो जाता है।
  3. चक्रवात के निकट आने पर तीव्र आंधी व गर्ज के साथ भारी वर्षा होती है।

वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ JAC Class 11 Geography Notes

→ वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric Pressure): वायुमण्डल पृथ्वी के धरातल पर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण टिका है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु में भार होता है। वायु में भी एक घनफुट में 1.2 औंस भार होता है। इस भार के कारण पृथ्वी के धरातल पर दबाव पड़ता है। वायुमण्डलीय दाब का अर्थ है किसी भी स्थान पर वहां की हवा की उच्चतम सीमा के स्तम्भ का भार।

→ वायुमण्डलीय दाब को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Pressure): वायुमण्डलीय दाब निम्नलिखित तत्त्वों के कारण स्थान-स्थान पर तथा समय-समय पर बदलता रहता है। वे तत्त्व हैं

  • तापमान
  • ऊंचाई
  • जल वाष्प
  • दैनिक गति।

→ वायु दाब का मापक (Measurement of Pressure): वायुदाब को मापने वाले यन्त्र को बैरोमीटर कहते हैं।

→ मापने की इकाइयां (Units of Measurement): वायुमण्डलीय दाब को मापने के लिये तीन इकाइयों का प्रयोग होता है

  • इंच
  • सेंटीमीटर
  • मिलीबार।

→ समदाब रेखाएं (Isobars): Iso शब्द का अर्थ है-सभान और Bar का अर्थ है-दाब। इसलिये Isobars का अर्थ है-समदाब रेखाएं। धरातल पर समान वायु दबाव वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाओं को समदाब | रेखाएं कहते हैं।

→ दाब प्रवणता (Pressure Gradient): समदाब रेखाओं के अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं। यह दो समदाब रेखाओं पर समकोण बनाती हुई होती है। यह दाब प्रवणता वायु दिशा तथा वायु वेग को प्रदर्शित । करती है। वायुदाब

→ पेटियों का वितरण (Distribution of Pressure Belts): “धरातल पर पूर्व-पश्चिम दिशा में । अक्षांशों के समानान्तर लगभग एक ही चौड़ाई के बराबर क्षेत्रों को वायु दबाव की पेटियां कहा जाता है।” पृथ्वी के धरातल पर कुल सात वायु दबाव पेटियां हैं। चार उच्च दबाव की तथा तीन निम्न दबाव पेटियां हैं

  • भूमध्य रेखीय निम्न वायु दाब पेटी-5° उत्तर तथा 5° दक्षिण अक्षांश के मध्य।
  • उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायु दाब पेटी-30°- 35° अक्षांशों के मध्य।
  • उप-ध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटियां- 60° – 65° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के मध्य।
  • ध्रुवीय उच्च दाब पेटियां-उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव के आस-पास।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो

1. किस क्रिया द्वारा प्राकृतिक साधनों को बहुमूल्य पदार्थों में बदला जाता है?
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीयक
(C) तृतीयक
(D) चतुर्थक।
उत्तर:
(B) द्वितीयक

2. विनिर्माण में किस तत्त्व का प्रयोग नहीं होता?
(A) शक्ति
(B) मशीनरी
(C) विशेषीकरण
(D) आदिमकालीन औज़ार।
उत्तर:
(D) आदिमकालीन औज़ार।

3. किस उद्योग का विश्व स्तरीय बाजार है? .
(A) शस्त्र निर्माण
(B) एल्यूमीनियम
(C) तेलों के बीज़
(D) घरेलू उद्योग।
उत्तर:
(A) शस्त्र निर्माण

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

4. कौन-सा उद्योग कच्चे माल के निकट लगाए जाते हैं ?
(A) डेयरी
(B) सूती वस्त्र
(C) हस्तकला
(D) वायुयान।
उत्तर:
(A) डेयरी

5. एल्यूमिनियम उद्योग किस कारक के निकट लगाया जाता है?
(A) बाज़ार
(B) कच्चे माल
(C) कुशलश्रम
(D) ऊर्जा।
उत्तर:
(D) ऊर्जा।

6. कृत्रिम रेशों का उद्योग किस प्रकार का उद्योग है?
(A) जीव आधारित
(B) रासायनिक
(C) खनिज आधारित
(D) कृषि आधारित।
उत्तर:
(B) रासायनिक

7. TIsco किस क्षेत्र का उद्योग है?
(A) सार्वजनिक
(B) निजी
(C) संयुक्त
(D) बहुराष्ट्रीय।
उत्तर:
(B) निजी

8. रुहर औद्योगिक प्रदेश किस देश में है?
(A) इंग्लैण्ड
(B) जर्मनी
(C) फ्रांस
(D) यू० एस० ए०।
उत्तर:
(B) जर्मनी

9. सिलीकॉन घाटी किस नगर के निकट स्थित है?
(A) न्यूयार्क
(B) मांट्रियाल
(C) सेन फ्रांससिस्को
(D) बोस्टन।
उत्तर:
(C) सेन फ्रांससिस्को

10. किस केन्द्र को संयुक्त राज्य का ‘जंग का कटोरा’ कहते हैं ?
(A) पिट्टसबर्ग
(B) शिकागो
(C) गैरी
(D) बुफ़ैलो।
उत्तर:
(A) पिट्टसबर्ग

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक क्रियाकलाप क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के लिए।

प्रश्न 2.
निर्माण उद्योग की सबसे छोटी इकाई क्या है?
उत्तर:
कुटीर उद्योग।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

प्रश्न 3.
सिलिकन घाटी कहां स्थित है ?
उत्तर:
कैलिफोर्निया (संयुक्त राज्य में)।

प्रश्न 4.
विनिर्माण उद्योग का एक उदाहरण दो।
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग।

प्रश्न 5.
बडे पैमाने के उद्योगों का एक उदाहरण दो।
उत्तर:
लोहा-इस्पात।

प्रश्न 6.
किस उद्योग को आधारभूत उद्योग कहते हैं?
उत्तर:
लोहा-इस्पात।

प्रश्न 7.
कृषि-आधारित उद्योग का उदाहरण दो।
उत्तर:
चीनी उद्योग।

प्रश्न 8.
प्लास्टिक उद्योग किस वर्ग का उद्योग है?
उत्तर:
पेट्रो रसायन।

प्रश्न 9.
सार्वजनिक क्षेत्र का एक उद्योग बताओ।
उत्तर:
बोकारो इस्पात कारखाना।

प्रश्न 10.
भारत के किस नगर में हीरे की कटाई का कार्य होता है?
उत्तर:
सूरत में।

प्रश्न 11.
संयुक्त राज्य में सबसे बड़ा लोहा-इस्पात क्षेत्र बताओ।
उत्तर:
महान् झीलों का क्षेत्र।

प्रश्न 12.
किस क्रिया से आदेशानुसार सामान तैयार किया जाता था?
उत्तर:
शिल्प (Craft)।

प्रश्न 13.
यन्त्रीकरण की विकसित अवस्था क्या है?
उत्तर:
स्वचालित क्रिया।

प्रश्न 14.
विश्व के कितने प्रतिशत भाग पर विनिर्माण उद्योग है?
उत्तर:
10% भाग पर।

प्रश्न 15.
उद्योगों का स्थानीकरण कहां होना चाहिए?
उत्तर:
उस स्थान पर जहां उत्पादन लागत कम हो।

प्रश्न 16.
सन्तुलित विकास कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर:
प्रादेशिक नीतियों द्वारा।

प्रश्न 17.
कृषि आधारित उद्योगों के उदाहरण दो।
उत्तर:
भोजन तैयार करना, शक्कर, अचार तथा फूलों के रस।

प्रश्न 18.
वनों पर आधारित दो उद्योग बताओ।
उत्तर:
कागज़ तथा लाख।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

प्रश्न 19.
धुएं की चिमनी वाले उद्योग बताओ।
उत्तर:
धातु पिघलाने वाले उद्योग।

प्रश्न 20.
जर्मनी का सबसे महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र बताओ।
उत्तर:
रुहर।

प्रश्न 21.
उस उद्योग का प्रकार बताइए जिसे निम्नलिखित विशेषताएं प्राप्त है? एकत्रित करके, बड़े पैमाने पर उत्पादन तकनीक, उन्नत प्रौद्योगिकी, कई कच्चे मालों का प्रयोग तथा विशाल ऊर्जा का प्रयोग।
उत्तर:
बड़े पैमाने के विनिर्माण उद्योग।

प्रश्न 22.
अफ्रीका का एक खनिज क्षेत्र बताइए जहां घनी जनसंख्या है।
उत्तर:
कटंगा-जम्बिया तांबा क्षेत्र।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
द्वितीयक क्रियाकलापों में कौन-सी क्रियाएं सहायक होती हैं ?
उत्तर:
द्वितीय क्रियाकलापों द्वारा प्राकृतिक कच्चे माल का रूप बदल कर उसे मूल्यवान बनाया जाता है। इसमें निम्नलिखित क्रियाएं सहायक हैं

  1. विनिर्माण
  2. प्रसंस्करण
  3. निर्माण।

प्रश्न 2.
विनिर्माण में कौन-सी प्रक्रियाएं सम्मिलित होती हैं?
उत्तर:

  1. आधुनिक शक्ति का उपयोग
  2. मशीनरी का उपयोग
  3. विशिष्ट श्रमिक
  4. बड़े पैमाने पर उत्पादन
  5. मानक वस्तुओं का उत्पादन।

प्रश्न 3.
द्वितीयक क्रियाकलापों को द्वितीयक क्यों कहते हैं?
उत्तर:
प्राथमिक क्रियाकलाप कच्चे माल का प्रयोग करते हैं। द्वितीयक क्रियाकलाप व निर्माण उद्योग इन वस्तुओं का प्रयोग करके इनका रूप तथा मूल्य बदलते हैं। इसलिए इन्हें द्वितीयक क्रियाकलाप कहते हैं। प्रश्न 4. आधारभूत उद्योगों तथा उपभोग वस्तु निर्माण उद्योगों के दो-दो उदाहरण दें। उत्तर-लोहा-इस्पात, तांबा. उद्योग आधारभूत उद्योग हैं जब कि चाय, साबुन, उपभोग वस्तु निर्माण उद्योग है।

प्रश्न 5.
लोहा-इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
लोहा-इस्पात उद्योग अन्य सभी उद्योगों को आधार प्रदान करता है। इसलिए इसे आधारभूत उद्योग कहा जाता है। लोहा कठोरता, प्रबलता तथा सस्ता होने के कारण अन्य धातुओं की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण है। इससे मशीनें, परिवहन साधन, कृषि उपकरण, सैनिक अस्त्र-शस्त्र आदि बनाए जाते हैं, वर्तमान युग को ‘इस्पात युग’ भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
संयुक्त राज्य अमेरिका में पेट्रो-रसायन कम्पलैक्स अधिकतर तटीय क्षेत्र में क्यों है?
उत्तर:
अधिकतर पैट्रो रसायन कम्पलैक्सों की स्थिति तटीय है क्योंकि खनिज तेल लैटिन अमेरिका तथा पश्चिम एशिया से आयात किया जाता है।

प्रश्न 7.
स्वचालित यन्त्रीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब यन्त्रीकरण में (मानव के बिना) मशीनों का प्रयोग किया जाता है तो इसे स्वचालित यन्त्रीकरण कहते हैं। यह यन्त्रीकरण की विकसित अवस्था है। इससे कम्प्यूटर नियन्त्रण प्रणाली (CAD) प्रयोग की जाती है।

प्रश्न 8.
प्रौद्योगिक ध्रुव से क्या अभिप्रायः है?
उत्तर:
विज्ञान पार्क, विज्ञान नगर तथा अन्य उच्च तकनीकी औद्योगिक कम्पलैक्स को प्रौद्योगिक ध्रुव कहते हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

प्रश्न 9.
बाजार से क्या अभिप्रायः है?
उत्तर:
बाजार से तात्पर्य उसे क्षेत्र में तैयार वस्तुओं की मांग हो एवं वहां के निवासियों में खरीदने की शक्ति, (क्रय शक्ति) हो।

प्रश्न 10.
किन कारकों के कारण उद्योगों में श्रम पर निर्भरता को कम कर दिया है
उत्तर:

  1. यन्त्रीकरण में बढ़ती स्थिति
  2. स्वचालित यन्त्रीकरण
  3. औद्योगिक प्रक्रिया का लचीलापन।

प्रश्न 11.
लघु पैमाने के उद्योगों में किन तत्त्वों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:

  1. स्थानीय कच्चे माल
  2. साधारण शक्ति से चलने वाले यन्त्र
  3. अर्द्ध-कुशल श्रमिक।

प्रश्न 12.
कच्चे माल पर आधारित उद्योगों का वर्णन करो।
उत्तर:
उद्योगों के लिए कच्चा माल सरलता से उपलब्ध होना चाहिए। भारी कच्चे माल पर आधारित उद्योग हैं इस्पात, चीनी, सीमेंट उद्योग। डेयरी उत्पादन दुग्ध-आपूर्ति स्रोतों के निकट लगाए जाते हैं ताकि ये नष्ट न हों।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘द्वितीयक क्रियाकलापों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य बढ़ जाता है।’ दो उदाहरण देकर स्पष्ट करो।
उत्तर:
द्वितीयक क्रियाकलापों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य बढ़ जाता है। प्रकृति में पाए जाने वाले कच्चे माल का रूप बदलकर यह उसे मूल्यवान बना देती है। खेतों, वनों, खदानों एवं समुद्रों से प्राप्त पदार्थों के विषय में भी यह बात सत्य है। इस प्रकार द्वितीयक क्रियाएं विनिर्माण, प्रसंस्करण और निर्माण (अवसंरचना) उद्योग से सम्बन्धित हैं।
उदाहरण:
(1) कपास का सीमित उपयोग है परन्तु तन्तु में परिवर्तित होने के बाद यह और अधिक मूल्यवान हो जाता है और इसका उपयोग वस्त्र बनाने में किया जा सकता है।
(2) खदानों से प्राप्त लौह-अयस्क का हम प्रत्यक्ष उपयोग नहीं कर सकते, परन्तु अयस्क से इस्पात बनाने के बाद यह मूल्यवान हो जाता है, और इसका उपयोग कई प्रकार की मशीनें एवं औजार बनाने में होता है।

प्रश्न 2.
आधुनिक निर्माण की क्या विशेषताएं हैं ?
उत्तर:
आधुनिक निर्माण की विशेषताएं हैं –

  1. एक जटिल प्रौद्योगिकी यन्त्र
  2. अत्यधिक विशिष्टीकरण एवं श्रम विभाजन के द्वारा कम प्रयास एवं अल्प लागत से अधिक माल का उत्पादन करना।
  3. अधिक पूंजी
  4. बड़े संगठन एवं
  5. प्रशासकीय अधिकारी-वर्ग।

प्रश्न 3.
कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित दैनिक जीवन के उपयोग की वस्तुएं बताओ।
उत्तर:
इस उद्योग में दैनिक जीवन के उपयोग में आने वाली वस्तुओं जैसे खाद्य पदार्थ, कपड़ा, चटाइयां, बर्तन, औज़ार, फर्नीचर, जूते एवं लघु मूर्तियां उत्पादित की जाती हैं। इसके अतिरिक्त पत्थर एवं मिट्टी के बर्तन एवं ईंट, चमड़े से कई प्रकार का सामान बनाया जाता है। सुनार सोना, चांदी एवं तांबे से आभूषण बनाता है। कुछ शिल्प की वस्तुएं बांस एवं स्थानीय वन से प्राप्त लकड़ी से बनाई जाती है।.

प्रश्न 4.
बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए किन कारकों की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए विशाल बाज़ार, विभिन्न प्रकार का कच्चा माल, शक्ति के साधन, कुशल श्रमिक, विकसित प्रौद्योगिकी, अधिक उत्पादन एवं अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 5.
परम्परागत बड़े पैमाने वाले औद्योगिक प्रदेशों की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
परम्परागत बड़े पैमाने वाले औद्योगिक प्रदेश –
यह भारी उद्योग के क्षेत्र होते हैं जिसमें कोयला खदानों के समीप स्थित धातु पिघलाने वाले उद्योग, भारी इंजीनियरिंग, रसायन निर्माण, वस्त्र उत्पादन इत्यादि का कार्य किया जाता है। इन्हें धुएं की चिमनी वाला उद्योग भी कहते हैं। परम्परागत औद्योगिक प्रदेशों के निम्न पहचान बिन्दु हैं।

  1. निर्माण उद्योगों में रोजगार का अनुपात ऊंचा होता है।
  2. उच्च गृह घनत्व जिसमें हर घटिया प्रकार के होते हैं एवं सेवाएं अपर्याप्त होती हैं।
  3. वातावरण अनाकर्षक होता है जिसमें गन्दगी के ढेर व प्रदूषण होता है।
  4. बेरोज़गारी की समस्या, उत्प्रवास, विश्वव्यापी मांग कम होने से कारखाने बन्द होने के कारण परित्यक्त भूमि का क्षेत्र।

प्रश्न 6.
यूरोप का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक संकुल कौन-सा है तथा क्यों?
उत्तर:
यूरोप में सबसे महत्त्वपूर्ण औद्योगिक संकुल राइन नदी घाटी क्षेत्र है। यह संकुल स्विट्ज़रलैण्ड से लेकर जर्मन संघीय गणराज्य तक विस्तृत है। यहां पर कोयला क्षेत्र स्थित है। यहां रेलमार्गों, नदियों तथा नहरों के जलमार्गों . द्वारा यातायात सुविधाएं हैं। यहां श्रम के साथ-साथ स्थानीय मांग भी है। यहां जल विद्युत् विकास की सुविधा भी है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

प्रश्न 7.
कच्चे माल के निकट कौन-से उद्योग लगाए जाते हैं? उदाहरण दो।
उत्तर:
कच्चा माल निर्माण उद्योगों का आधार है। जिन उद्योगों का निर्माण के पश्चात् भार कम हो जाता है, वे. उद्योग कच्चे माल के निकट लगाए जाते हैं, जैसे गन्ने से चीनी बनाना। जिन उद्योगों में भारी कच्चे माल प्रयोग किए जाते हैं, वे उद्योग कच्चे माल के निकट लगाए जाते हैं, जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग।

प्रश्न 8.
उद्योगों की स्थापना के लिए किस प्रकार के श्रम की आवश्यकता होती है? उदाहरण दें।
उत्तर:
उद्योगों के विकास के लिए सस्ते कुशल तथा प्रचुर श्रम की आवश्यकता होती है। जगाधरी तथा मुरादाबाद . में पीतल के बर्तन बनाने का उद्योग, फिरोजाबाद में शीशे का उद्योग तथा जापान में खिलौने बनाने का उद्योग कुशल श्रमिकों के कारण है। ..

प्रश्न 9.
विकासशील देशों में निर्माण उद्योगों की कमी क्यों है?
उत्तर:
निर्माण उद्योगों के लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है। इन उद्योगों के लिए मांग क्षेत्र तथा बाजार का होना भी ज़रूरी है। परन्तु विकासशील देशों में पूंजी की कमी है तथा लोगों की क्रय शक्ति कम है। इसलिए मांग भी कम है। इसीलिए विकासशील देशों में भारी उद्योगों की कमी है।

प्रश्न 10.
प्रौद्योगिक ध्रुव से क्या अभिप्राय है? .
उत्तर;
प्रौद्योगिक ध्रुव-इन उच्च-प्रौद्योगिकी क्रिया-कलापों के अवस्थितिक प्रभाव विकसित औद्योगिक देशों में पहले ही देखने को मिल रहे हैं। सर्वाधिक ध्यान देने योग्य घटना नवीन प्रौद्योगिकी संकुलों या प्रौद्योगिक ध्रुव का उद्भव होना है। एक प्रौद्योगिक ध्रुव एक संकेन्द्रित क्षेत्र के भीतर अभिनव प्रौद्योगिकी व उद्योगों से सम्बन्धित उत्पादन के लिए नियोजित विकास है। प्रौद्योगिक ध्रुव में विज्ञान अथा प्रौद्योगिकी-पार्क, विज्ञान नगर (साइंस-सिटी) तथा दूसरी उच्च तकनीक औद्योगिक संकुल सम्मिलित किये जाते हैं।

प्रश्न 11.
गृह उद्योग क्या हैं ?
उत्तर:
कुटीर उद्योगों को गृह उद्योग कहते हैं। यह निर्माण की सबसे छोटी इकाई है। परिवार के सभी सदस्य मिलकर दैनिक जीवन के उपभोग की वस्तुएं तैयार करते हैं। इन वस्तुओं का वे स्वयं उपभोग करते हैं या इसे स्थानीय बाजार में विक्रय कर देते हैं। इनमें कम पूँजी लगी होती है। इन उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं का व्यापारिक महत्त्व कम होता है। इस उद्योग में खाद्य पदार्थ, कपड़ा, बर्तन, औज़ार, जूते आदि शामिल होते हैं। मिट्टी के बर्तन, चमड़े का सामान,
आभूषण बनाना, बांस से शिल्प वस्तुएं भी तैयार की जाती हैं।

अन्तर स्पष्ट करने वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक क्षेत्र में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

व्यक्तिगत क्षेत्र (Private Sector) सार्वजनिक क्षेत्र (Public Sector)
1. जब किसी उद्योग की सारी पूंजी, लाभ, हानि तथा सम्पत्ति एक ही व्यक्ति की होती है तो उसे व्यक्तिगत क्षेत्र कहते हैं। 1. जब किसी उद्योग की पूंजी और सम्पत्ति के अधिकार जनता तथा समुदाय के हाथ में होते हैं तो उसे सार्वजनिक क्षेत्र कहा जाता है।
2. भारत में कई पूंजीपतियों द्वारा चलाए गए उद्योग जैसे टाटा लोहा इस्पात कारखाना व्यक्तिगत क्षेत्र में गिने जाते हैं। 2. सरकारी भवन, स्कूल, उद्योग इसी क्षेत्र में गिने जाते  हैं जैसे भिलाई इस्पात कारखाना।
3. व्यक्तिगत क्षेत्र के उद्योग जापान, संयुक्त राज्य देशों में प्रचलित हैं, जहां कड़ा मुकाबला होता है। 3. सार्वजनिक क्षेत्र समाजवादी देशों में जैसे भारत, रूस में प्रचलित है।
4. इसमें अधिकतर छोटे पैमाने के उद्योग गिने जाते हैं। 4. इसमें प्रायः भारी उद्योग गिने जाते हैं।

प्रश्न 2.
बड़े तथा लघु पैमाने के उद्योगों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

बड़े पैमाने के उद्योग (Large Scale Industries) लघु पैमाने के उद्योग (Small Scale Industries)
1. इन उद्योगों में ऊर्जा चालित मशीनों से उत्पादन होता हैं। 1. इन उद्योगों में छोटी-छोटी मशीनें लगाई जाती हैं।
2. इसमें बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश किया जाता है। 2. इनमें कम पूंजी निवेश के उद्योग लगाए जाते हैं।
3. ये उद्योग विकसित देशों के विकास का आधार होते हैं। 3. ये उद्योग विकासशील देशों में रोजगार उपलब्ध करवाते हैं।

प्रश्न 3.
भारी उद्योग तथा कृषि उद्योगों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

कृषि उद्योग (Agro-Industries) भारी उद्योग  (Heavy Industries)
1. वे प्रायः प्राथमिक उद्योग होते हैं। 1. ये प्रायः आधारभूत उद्योग होते हैं।
2. ये उद्योग कृषि पदार्थों पर आधारित होते हैं। 2. इन उद्योगों में शक्ति-चलित मशीनों का अधिक प्रयोग होता है।
3. इनसे कृषि पदार्थों का रूप बदलकर अधिक उपयोगी पदार्थ जैसे कपास से कपड़े बनाए जाते हैं। 3. इन उद्योगों में बड़े पैमाने पर विषय यन्त्र तथा मशीनें – बनाई जाती हैं।
4. ये श्रम-प्रधान उद्योग होते हैं। 4. ये पूंजी प्रधान उद्योग होते हैं।
5. इसमें प्रायः छोटे तथा मध्यम वर्ग के उद्योग लगाये जाते हैं। 5. इसमें प्राय: बड़े पैमाने के उद्योग लगाये जाते हैं।
6. पटसन उद्योग, चीनी उद्योग, वस्त्र उद्योग कृषि उद्योग हैं। 6. लोहा-इस्पात, वायुयान, जलयान उद्योग भारी उद्योग हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
विभिन्न आधारों पर उद्योगों का वर्गीकरण करो।
उत्तर:
उद्योगों को आकार, उत्पादन, कच्चे माल तथा स्वामित्व के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटा जाता है।

1. आकार के आधार पर वर्गीकरण-किसी उद्योग के आकार का निश्चय उसमें लगाई गई पूँजी की मात्रा, कार्यरत लोगों की संख्या, उत्पादन की मात्रा आदि के आधार पर किया जाता है। तदानुसार उद्योगों का वर्गीकरण कुटीर उद्योग, लघु पैमाने के उद्योग तथा बड़े पैमाने के उद्योग में किया जा सकता है।

(क) कुटीर उद्योग-कुटीर या गृह उद्योग विनिर्माण की सबसे छोटी इकाइयाँ हैं। इसके हस्तकार या शिल्पकार अपने परिवार के सदस्यों की सहायता से, स्थानीय कच्चे माल तथा साधारण उपकरणों का उपयोग करके अपने घरों में ही वस्तुओं का निर्माण करते हैं। उत्पादन की दक्षता एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती है। इनमें उत्पादन छोटे पैमाने पर होता है। औजार तथा उपकरण साधारण होते हैं। उत्पादित वस्तुओं को सामान्यतः स्थानीय बाज़ार में बेचा जाता है। इस प्रकार कुम्हार, बढ़ई, बुनकर, लुहार आदि गृह उद्योग क्षेत्र में ही वस्तुएँ बनाते हैं।

(ख) छोटे पैमाने के उद्योग-इनमें आधुनिक ऊर्जा से चलने वाली मशीनों तथा श्रमिकों की भी सहायता ली जाती है। ये उद्योग कच्चा माल बाहर से भी मंगाते हैं यदि ये स्थानीय बाज़ार में उपलब्ध नहीं है। ये कुटीर उद्योगों की तुलना में आकार में बड़े होते हैं। इन उद्योगों द्वारा उत्पादित माल को व्यापारियों के माध्यम से स्थानीय बाजारों है। छोटे पैमाने के उद्योग विशेष रूप से विकासशील देशों की घनी जनसंख्या को रोज़गार उपलब्ध कराने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उदाहरण-कुछ देशों जैसे भारत तथा चीन में, कपड़े, खिलौने, फर्नीचर, खाद्य-तेल तथा चमड़े के सामान आदि का उत्पादन छोटे पैमाने के उद्योगों में किया जा रहा है।

(ग) बड़े पैमाने के उद्योग-इनमें भारी उद्योग तथा पूँजी-प्रधान उद्योग सम्मिलित किए जाते हैं, जो भारी मशीनों का प्रयोग करते हैं, बड़ी संख्या में श्रमिकों को लगाते हैं तथा काफ़ी बड़े बाज़ार के लिए सामानों का उत्पादन करते हैं। इन उद्योगों में उत्पाद की गुणवत्ता तथा विशिष्टीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इन उद्योगों में बहुत बड़े संसाधन-आधार की आवश्यकता पड़ती है। अत: कच्चा माल दर-दर स्थित विभिन्न स्थानों से मँगाया जाता है। वस्तओं का उत्पादन भी बडे पैमाने पर करते हैं तथा उत्पाद दूर-दूर बाजारों में भेजा जाता है। इस प्रकार इन उद्योगों को, अनेक सुविधाओं जैसे सड़क, रेल तथा ऊर्जा आपूर्ति की आवश्यकता पड़ती है।

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उदाहरण:
लोहा एवं इस्पात-उद्योग, पेट्रो-रसायन उद्योग, वस्त्र निर्माण उद्योग तथा मोटर कार निर्माण उद्योग आदि इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। संयुक्त राज्य, इंग्लैंड तथा यूरोप में से उद्योग उच्च तकनीकी क्षेत्रों में स्थित हैं।

2. आकार तथा उत्पादों की प्रकृति-कुछ भूगोलवेत्ता विनिर्माण उद्योग का विभाजन इनमें कार्य के आकार तथा उत्पादों की प्रकृति दोनों को मिलाकर ही करते हैं।

इस प्रकार, उद्योगों के दो वर्ग होते हैं –
(i) भारी उद्योग बड़े पैमाने के उद्योग हैं। इनके कच्चे माल व तैयार माल दोनों ही भारी होते हैं। अतः इन्हें कच्चे माल के स्रोत के निकट ही स्थापित किया जाता है।
उदाहरण:
जैसे लौह-इस्पात उद्योग

(ii) हल्के उद्योग सामान्यतः छोटे पैमाने के उद्योग हैं। ये हल्के तथा संहत वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इन उद्योगों के लिए बाज़ार की निकटता सबसे महत्त्वपूर्ण कारक होता है।
उदाहरण:
इलेक्ट्रोनिक उद्योग इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।

3. उत्पादन के आधार पर वर्गीकरण –
(क) आधारभूत उद्योग-कुछ उद्योग ऐसे होते हैं जिनके उत्पादों का प्रयोग अन्य प्रकार के उत्पादन प्राप्त करने के. लिए किया जाता है। इन्हें आधारभूत उद्योग कहा जाता है। लोहा-इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है क्योंकि इसमें उत्पादित इस्पात का उपयोग अन्य उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। कुछ आधारभूत उद्योगों में मशीनें बनायी जाती हैं, जो अन्य उत्पादों को बनाने के लिये प्रयोग की जाती हैं।

(ख) वस्तु निर्माण उद्योग-कुछ उद्योग उन उत्पादों का निर्माण करते हैं, जिन्हें सीधे उपभोग के लिए प्रयोग किया जाता है, जैसे चाय, डबल रोटी, साबुन तथा टेलीविज़न । इन्हें उपभोक्ता वस्तु निर्माण उद्योग कहते हैं।

4. कच्चे माल के आधार पर वर्गीकरण-उद्योगों का वर्गीकरण उनके द्वारा प्रयुक्त कच्चे माल के आधार पर किया जा सकता है। इस प्रकार इन्हें कृषि आधारित उद्योग, वन आधारित उद्योग, धातु उद्योग तथा रासायनिक उद्योग के रूप में भी विभाजित किया जा सकता है।
(क) कृषि पर आधारित उद्योग-इनमें कृषि से प्राप्त उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं। सूती वस्त्र, चाय, चीनी एवं वनस्पति तेल उद्योग इसके उदाहरण हैं।

(ख) वन आधारित उद्योग-जिन उद्योगों में वनों से प्राप्त उत्पादों का कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है उन्हें वन आधारित उद्योग कहते हैं जैसे कागज़ एवं फर्नीचर उद्योग।

(ग) खनिज आधारित उद्योग-जिन उद्योगों में खनिज पदार्थों का उपयोग कच्चे माल के रूप में होता है, उन्हें खनिज आधारित उद्योग कहते हैं। धातुओं पर आधारित उद्योग को धातु उद्योग कहते हैं। इन्हें पुनः लौह धात्विक उद्योगों एवं अलौह धातु उद्योगों में बाँटते हैं। ऐसी धातुओं पर आधारित उद्योग जिनमें लौहांश होता है, लौह धातु उद्योग कहलाते हैं, जैसे लोहा-इस्पात उद्योग। दूसरी ओर ऐसी धातुओं पर आधारित उद्योग जिनमें लौहांश नहीं होता है, उन्हें अलौह-धातु उद्योग कहते हैं, जैसे तांबा तथा एल्यूमीनियम।

(घ) रासायनिक पदार्थों पर आधारित उद्योग-रासायनिक पदार्थों पर आधारित उद्योगों को रासायनिक उद्योग की संज्ञा दी जाती है, जैसे पेट्रो-रसायन, प्लास्टिक, कृत्रिम रेशे तथा औषधि निर्माण उद्योग आदि। कुछ रसायन उद्योगों में प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं, जैसे खनिज-तेल, नमक, गंधक, पोटाश तथा वनस्पति उत्पाद आदि। कुछ रासायनिक उद्योगों में अन्य उद्योगों के उत्पादों का प्रयोग किया जाता है।

5. स्वामित्व के आधार पर वर्गीकरण उद्योगों को स्वामित्व तथा प्रबंधन के आधार पर सरकारी या सार्वजनिक, निजी और संयुक्त क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। जब किसी उद्योग का स्वामित्व तथा प्रबंधन राज्य सरकार के हाथ में हो तो इसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग की संज्ञा दी जाती है। राज्य या सरकारें ही ऐसी इकाइयों की स्थापना तथा संचालन करती हैं।

किसी एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के समूह (निगम) के स्वामित्व तथा प्रबंधन में संचालित उद्योग निजी क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं जब एक व्यक्ति अपनी पूँजी लगाकर उद्योग स्थापित करता है, वह उस उद्योग का प्रबंधन निजी उद्योगपति के रूप में करता है। कभी-कभी कुछ व्यक्ति मिलकर सांझेदारी के आधार पर उद्योग स्थापित करते हैं। वे भी निजी उद्योग हैं। ऐसे उद्योगों में पूँजी तथा काम के हिस्से का समझौता पहले ही कर लिया जाता है।

उद्योगों की स्थापना निगमों द्वारा की जाती है। निगम कई व्यक्तियों अथवा संगठनों द्वारा बनाया हुआ ऐसा संघ होता है, जो पूर्व निर्धारित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की पूर्ति हेतु कार्य करता है। निगम जनता में शेयर बेचकर पूँजी जुटाता है। बड़े बहुराष्ट्रीय निगमों, जैसे पेप्सी हिन्दुस्तान लीवर तथा जनेरल इलेक्ट्रिक ने भूमंडलीय स्तर पर अनेक देशों में अपने उद्योग स्थापित किए हैं।

प्रश्न 2.
उद्योगों का स्थानीयकरण किन तत्त्वों पर निर्भर करता है ? उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर:
किसी स्थान पर उद्योगों की स्थापना के लिए कुछ भौगोलिक, सामाजिक तथा आर्थिक तत्त्वों का होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए कच्चा माल, शक्ति के साधन, श्रम, पूंजी और बाज़ार उद्योगों के महत्त्वपूर्ण निर्धारक हैं। इन्हें उद्योगों के आधारभूत कारक भी कहते हैं। ये सभी कारक मिल-जुल कर प्रभाव डालते हैं। प्रत्येक कारक का महत्त्व समय, स्थान और उद्योगों के अनुसार बदलता रहता है। इन अनुकूल तत्त्वों के कारण किसी स्थान पर अनेक उद्योग स्थापित हो जाते हैं। यह क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Region) बन जाता है।

उद्योगों के स्थानीयकरण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –
1. कच्चे माल की निकटता (Nearness of Raw Material) उद्योग कच्चे माल के स्रोत के निकट ही स्थापित कच्चा माल उद्योगों की आत्मा है। उद्योग वहीं पर स्थापित किए जाते हैं, जहाँ कच्चा माल अधिक मात्रा में कम लागत पर, आसानी से उपलब्ध हो सके। इसलिए लोहे और चीनी के कारखाने कच्चे माल की प्राप्ति-स्थान के निकट लगाए जाते हैं। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुएं जैसे डेयरी उद्योग भी उत्पादक केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं। भारी कच्चे माल के उद्योग उन वस्तुओं के मिलने के स्थान के निकट ही लगाए जाते हैं। इस्पात उद्योग कोयला तथा लोहा खानों के निकट स्थित हैं। कागज़ की लुगदी के कारखाने तथा आरा मिलें कोणधारी वन प्रदेशों में स्थित हैं। जापान तथा ब्रिटेन में सूती वस्त्र उद्योग के लिए हल्के कच्चे माल कपास आदि आयात कर लिए जाते हैं।
उदाहरण:
कच्चे माल की प्राप्ति के कारण ही चीनी उद्योग उत्तर प्रदेश में, पटसन उद्योग पश्चिमी बंगाल में तथा सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र में लगे हुए हैं।

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2. शक्ति के साधन (Power Resources)-कोयला, पेट्रोलियम तथा जल-विद्युत् प्रमुख साधन हैं। भारी उद्योगों में शक्ति के साधनों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इसलिए अधिकतर उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहाँ कोयले की खाने समीप हों या पेट्रोलियम अथवा जल-विद्युत् उपलब्ध हो। भारत में दामोदर घाटी, जर्मनी में रूहर घाटी कोयले के कारण ही प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है। खाद व रासायनिक उद्योग, एल्यूमीनियम उद्योग, कागज़ उद्योग, जल विद्युत् शक्ति केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं, क्योंकि इनमें अधिक मात्रा में सस्ती बिजली की आवश्यकता होती है।
उदाहरण:
भारत के इस्पात उद्योग झरिया तथा रानीगंज की कोयला खानों के समीप स्थित हैं। पंजाब में भाखडा योजना से जल-विद्युत् प्राप्ति के कारण खाद का कारखाना नंगल में स्थित है। इसी कारण रूस में डोनबास औद्योगिक क्षेत्र, यू० एस० ए० में झील क्षेत्र, कोयला खानों के निकट ही स्थित हैं।

3. यातायात के साधन (Means of Transport):
उन स्थानों पर उद्योग लगाए जाते हैं, जहाँ सस्ते, उत्तम, कुशल और शीघ्रगामी यातायात के साधन उपलब्ध हों। कच्चा माल, श्रमिक तथा मशीनों को कारखानों तक पहुँचाने के लिए सस्ते साधन चाहिए। तैयार किए हुए माल को कम खर्च पर बाज़ार तक पहुंचाने के लिए उत्तम परिवहन साधन बहुत सहायक होते हैं।
उदाहरण:
जल यातायात सबसे सस्ता साधन है। इसलिए अधिक उद्योग कोलकाता, चेन्नई आदि बन्दरगाहों के स्थान पर हैं। संसार के दो बड़े औद्योगिक क्षेत्र यूरोप तथा यू० एस० ए० उत्तरी अन्धमहासागरीय मार्ग के सिरों पर स्थित हैं।

4. जलवायु (Climate):
कुछ उद्योगों में जलवायु का मुख्य स्थान होता है। उत्तम जलवायु मनुष्य की कार्य-कुशलता पर भी प्रभाव डालती है। सूती कपड़े के उद्योग के लिए आर्द्र जलवायु अनुकूल होती है। इस जलवायु में धागा बार-बार नहीं टता। वाययान उद्योग के लिए शुष्क जलवाय की आवश्यकता होती है।
उदाहरण:
मुम्बई में सूती कपड़ा उद्योग आर्द्र जलवायु के कारण तथा बंगलौर में वायुयान उद्योग (Aircraft) शुष्क जलवायु के कारण स्थित है। कैलीफोर्निया में हालीवुड में चलचित्र उद्योग के विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि वहां बाह्य शूटिंग के लिए अधिकतर मेघरहित आकाश मिलता है।

5. पूंजी की सुविधा (Capital):
उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां पूंजी पर्याप्त मात्रा में ठीक समय पर तथा उचित दर पर मिल सके। निर्माण उद्योग को बड़े पैमाने पर चलाने के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में पूंजी लगाने के कारण उद्योगों का विकास हुआ है। राजनीतिक स्थिरता और बिना डर के पूंजी विनियोग उद्योगों के विकास में सहायक हैं।
उदाहरण:
दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता आदि नगरों में बड़े-बड़े पूंजीपतियों और बैंकों की सुविधा के कारण ही औद्योगिक विकास हुआ है।

6. कुशल श्रमिक (Skilled Labour):
कुशल श्रमिक अधिक और अच्छा काम कर सकते हैं जिससे उत्तम तथा सस्ता माल बनता है। किसी स्थान पर लम्बे समय से एक ही उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों के कारण औद्योगिक केन्द्र बन जाते हैं । आधुनिक मिल उद्योग में अधिक कार्य मशीनों द्वारा होता है, इसलिए कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है। लंकाशायर में सूती कपड़ा उद्योग कुशल श्रमिकों के कारण ही उन्नत हुआ है। कुछ उद्योगों में अत्यन्त कुशल तथा कुछ उद्योगों में अर्द्ध-कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। स्विट्ज़रलैंड के लोग घड़ियां, जापान के लोग विद्युत् यन्त्र तथा ब्रिटेन के लोग विशेष वस्त्र निर्माण में प्रवीण होते हैं।
उदाहरण:
मेरठ और जालन्धर में खेलों का सामान बनाने, लुधियाना में हौजरी उद्योग तथा वाराणसी में जरी उद्योग कुशल श्रमिकों के कारण ही हैं।

7. सस्ती व समतल भूमि (Cheap and Level Land):
भारी उद्योगों के लिए समतल भूमि आवश्यक होती है। इसी कारण जमशेदपुर का इस्पात उद्योग दामोदर नदी घाटी के मैदानी क्षेत्र में स्थित है।

8. सरकारी नीति (Government Policy):
सरकार के संरक्षण में कई उद्योग विकास कर जाते हैं, जैसे देश में चीनी उद्योग सन् 1932 के पश्चात् सरकारी संरक्षण से ही उन्नत हुआ है। सरकारी सहायता से कई उद्योगों को बहुत-सी सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। सरकार द्वारा लगाए टैक्सों से भी उद्योग पर प्रभाव पड़ता है।

9. सस्ते श्रमिक (Cheap Labour):
सस्ते श्रमिक उद्योगों के लिए आवश्यक हैं ताकि कम लागत पर उत्पादन हो सके। इसलिए अधिकतर उद्योग घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों के निकट लगाए जाते हैं।

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10. बाजार से निकटता (Nearness to Market):
मांग क्षेत्रों का उद्योग के निकट होना आवश्यक है। इससे कम तैयार माल बाजारों में भेजा जाता है। माल की खपत जल्दी हो जाती है तथा लाभ प्राप्त होता है। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं के उद्योग जैसे डेयरी उद्योग, खाद्य पदार्थ उद्योग बड़े नगरों के निकट लगाए जाते हैं। यहाँ अधिक जनसंख्या के कारण लोगों की माल खरीदने की शक्ति अधिक होती है। एशिया के देशों में अधिक जनसंख्या है, परन्तु निर्धन लोगों के कारण ऊँचे मूल्य वाली वस्तुओं की मांग कम है। यही कारण है कि विकासशील देशों में निर्माण उद्योगों की कमी है। छोटे-छोटे पुर्जे तैयार करने वाले उद्योग बड़े कारखानों के निकट लगाए जाते हैं जहाँ इन पुों का प्रयोग होता है। वायुयान उद्योग तथा शस्त्र उद्योग का विश्व बाज़ार है।

11. पूर्व आरम्भ (Early Start):
जिस स्थान पर कोई उद्योग पहले से ही स्थापित हो, उसी स्थान पर उस उद्योग के अनेक कारखाने स्थापित हो जाते हैं। मुम्बई में सूती कपड़े के उद्योग तथा कोलकाता में जूट उद्योग इसी कारण से केन्द्रित हैं। किसी स्थान पर अचानक किसी ऐतिहासिक घटना के कारण सफल उद्योग स्थापित हो जाते हैं। जल पूर्ति के लिए कई उद्योग नदियों या झीलों के तटों पर लगाए जाते हैं।

प्रश्न 3.
संसार के विभिन्न देशों में लोहा-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण तथा विकास का वर्णन करो।
उत्तर:
लोहा-इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry):
लोहा-इस्पात उद्योग आधुनिक औद्योगिक युग की आधारशिला है। लोहा कठोरता, प्रबलता तथा सस्ता होने के कारण अन्य धातुओं की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण है। इससे अनेक प्रकार की मशीनें, परिवहन के साधन, कृषि यन्त्र, ऊँचे-ऊँचे भवन, सैनिक अस्त्र-शस्त्र, टेंक, रॉकेट तथा दैनिक प्रयोग की अनेक वस्तुएं तैयार की जाती हैं। लोहा-इस्पात का उत्पादन ही किसी देश के आर्थिक विकास का मापदण्ड है। आधुनिक सभ्यता लोहा-इस्पात पर निर्भर करती है, इसीलिए वर्तमान युग को “इस्पात युग” (Steel Age) कहते हैं।

लोहा-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के तत्त्व (Locational factors) –
लोहा-इस्पात उद्योग निम्नलिखित दशाओं पर निर्भर करता है –
1. कच्चा माल (Raw-Material):
यह उद्योग लोहे तथा कोयले की खानों के निकट लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त मैंगनीज़, चूने के पत्थर, पानी तथा रद्दी लोहा (Scrap Iron) आदि कच्चे माल भी निकट ही प्राप्त हौं।

2. कोक कोयला (Coking Coal):
लोहा-इस्पात उद्योग की भट्टियों में लोहा साफ करने के लिए ईंधन के रूप में कोक कोयला प्राप्त हो। कई बार लकड़ी का कोयला भी प्रयोग किया जाता है।

3. सस्ती भूमि (Cheap Land):
इस उद्योग से कोक भट्टियों, गोदामों, इमारतों आदि के बनाने के लिए सस्ती तथा पर्याप्त भूमि चाहिए ताकि कारखानों का विस्तार भी किया जा सके।

4. बाज़ार की निकटता-इस उद्योग से बनी मशीनें तथा यन्त्र भारी होते हैं इसलिए यह उद्योग मांग क्षेत्रों के निकट
लगाए जाते हैं।

5. पूँजी-इस उद्योग को आधुनिक स्तर पर लगाने के लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है। इसलिए उन्नत देशों की सहायता से विकासशील देशों में इस्पात कारखाने लगाए जाते हैं।

6. इस उद्योग के लिए परिवहन के सस्ते साधन, कुशल श्रमिक, सुरक्षित स्थान तथा तकनीकी ज्ञान की सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

विश्व उत्पादन (World Production):
संसार में लोहा-इस्पात उद्योग का वितरण असमान है। केवल छ: देश संसार का 60% लोहा-इस्पात उत्पन्न करते हैं। पिछले 50 वर्षों में इस्पात का उत्पादन 6 गुना बढ़ गया है।

मुख्य उत्पादक देश
(Main Countries)

1. रूस-रूस संसार में लोहे के उत्पादन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
मुख्य क्षेत्र –
(क) यूक्रेन क्षेत्र-यह रूस का सबसे बड़ा प्राचीन तथा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। किवाइरोग यहां का प्रसिद्ध केन्द्र है।
(ख) यूराल क्षेत्र-यहां मैगनीटोगोर्क (Magnito- gorsk) तथा स्वर्डलोवस्क (Sverdlovsk) चिलियाबिन्सक प्रसिद्ध केन्द्र है।
(ग) मास्को क्षेत्र-इस क्षेत्र में मास्को, तुला, गोर्की में इस्पात के कई कारखाने हैं।
(घ) अन्य क्षेत्र (Other Centres) इसके अतिरिक्त पूर्व में स्टालनिसक वालादिवास्टक, ताशकन्द, सैंट पीट्सबर्ग तथा रोसटोव प्रमुख केन्द्र हैं।

2. संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.):
यह देश लोहा-इस्पात के उत्पादन में संसार में दूसरे स्थान पर है।
मुख्य क्षेत्र –
(1) पिट्सबर्ग-यंगस्टाऊन क्षेत्र (जंग का प्रदेश)।
(2) महान् झीलों के क्षेत्र।
(क) सुपीरियर झील के किनारे डयूलथ केन्द्र।
(ख) मिशीगन झील के किनारे शिकागो तथा गैरी।
(ग) इरी झील के किनारे डेट्राइट, इरी, क्लीवलैंड तथा बफैलो।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ - 1
(3) बर्मिंघम-अलबामा क्षेत्र।
(4) मध्य अटलांटिक तट क्षेत्र पर स्पेरोज पोइण्ट, बीथिलहेम तथा मोरिसविले केन्द्र हैं।
(5) पश्चिमी राज्यों में प्यूएबेलो, टेकोमा, सानफ्रांसिस्को, लॉसएंजेल्स और फोण्टाना प्रसिद्ध केन्द्र हैं।

3. जापान (Japan):
जापान संसार का 15% लोहा-इस्पात उत्पन्न करता है तथा संसार में तीसरे स्थान पर है।
मुख्य क्षेत्र –
(1) मोजी नागासाकी क्षेत्र जहां यावाता प्रसिद्ध केन्द्र है।
(2) दक्षिण हांशू में कामैशी क्षेत्र।
(3) होकेडो द्वीप में मुरोरान केन्द्र।
(4) कोबे-ओसाका क्षेत्र।
(5) टोकियो याकोहामा क्षेत्र।

4. पश्चिमी जर्मनी (West Germany):
लोहा-इस्पात उद्योग में संसार में इस देश का चौथा स्थान है। अधिकतर उद्योग रूहर घाटी (Ruhr Valley) में स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त सार क्षेत्र तथा दक्षिण में भी इस्पात केन्द्र हैं। मुख्य-केन्द्र-ऐसेन (Essen), बोखम (Bochum), डार्टमण्ड (Dortmund), डुसेलडोर्फ (Dusseldorf) तथा सोलिजन (Solingen) प्रसिद्ध केन्द्र हैं।

5. ग्रेट ब्रिटेन (Great Britain):
लोहा-इस्पात उद्योग का विकास संसार में सबसे पहले ग्रेट ब्रिटेन में हुआ। मुख्य-केन्द्र-लोहा-इस्पात उद्योग के मुख्य केन्द्र तटों पर स्थित हैं –

  • दक्षिण वेल्ज में कार्डिफ तथा स्वांसी।
  • उत्तर-पूर्वी तट पर न्यू कासिल, मिडिल्सबरो तथा डालिंगटन।
  • यार्कशायर क्षेत्र में शैफील्ड जो चाकू-छुरियों (Cutlery) आदि के लिए संसार भर में प्रसिद्ध है।
  • मिडलैंड क्षेत्र में बर्मिंघम जिसे अधिक कारखानों के कारण काला प्रदेश (Black Country) भी कहते हैं।
  • स्कॉटलैंड क्षेत्र में कलाईड घाटी में ग्लास्गो।
  • लंकाशायर में फोर्डिघम।

6. चीन-पिछले तीस सालों में चीन ने इस्पात निर्माण में बहुत तेजी से विकास किया है।
मुख्य क्षेत्र –
(क) मंचूरिया में अन्शान तथा मुकडेन।
(ख) यंगसी घाटी में वुहान, शंघाई।
(ग)शान्सी में बीजिंग, टिटसिन, तियानशान।
(घ) वेण्टन, सिंगटाओ, चिनलिंग चेन तथा होपे अन्य प्रसिद्ध केन्द्र हैं।

8. भारत (India):
भारत में लोहा-इस्पात उद्योग बहुत पुराना है। भारत में इस्पात उद्योग के लिए अनुकूल साधन मौजूद हैं। पर्याप्त मात्रा में उत्तम लोहा, कोयला, मैंगनीज़ और चूने का पत्थर मिलता है। भारत में संसार का सबसे सस्ता इस्पात बनता है। भारत में लोहा-इस्पात उद्योग में आधुनिक ढंग का कारखाना सन् 1907 में जमशेदपुर (बिहार) में जमशेद जी टाटा द्वारा लगाया गया। दामोदर घाटी में कोयले के विशाल क्षेत्र झरिया, रानीगंज, बोकारो में तथा लोहा सिंहभूमि, मयूरभंज क्योंझर, बोनाई क्षेत्र में मिलता है। इन सुविधाओं के कारण आसनसोल, भद्रावती, दुर्गापुर, भिलाई, बोकारो, राउरकेला में इस्पात के कारखाने हैं। विशाखापट्टनम, हास्पेट, सेलम में नए इस्पात के कारखाने लगाए जा रहे हैं। देश के कई भागों में इस्पात बनाने के छोटे छोटे कारखाने लगाकर उत्पादन बढ़ाया जा रहा है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

प्रश्न 4.
सिलिकन घाटी पर एक नोट लिखो।
उत्तर:
सिलिकन घाटी-एक प्रौद्योगिक संनगर सिलिकन घाटी का विकास फ्रेडरिक टरमान के कार्यों का प्रतिफल है। वे एक प्रोफेसर थे और बाद में वे कैलिफोर्निया के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (सांता क्लारा काउंटी के उत्तरी पश्चिमी भाग में पालो आल्टो नगर स्थित) के उपाध्यक्ष बने। वर्ष 1930 में टरमान ने अपने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के छात्रों को उसी क्षेत्र में रहकर अपने कारखाने स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया। ऐसी पहली कम्पनी विलियम हयूलिट और डेविड पैकर्ड द्वारा विश्वविद्यालय परिसर के निकट एक गेराज में स्थापित की गई थी। आज यह विश्व की एक सबसे बड़ी इलेक्ट्रॉनिक फर्म है।1950 के दशक के अन्त में टरमान ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय को ऐसी नवीन उच्च तकनीकी फर्मों के लिए एक विशेष औद्योगिक पार्क विकसित करने के लिए राजी किया।

इसने अभिनव विचारों और महत्त्वपूर्ण विशिष्टीकृत कार्यशक्ति (लोग) तथा उत्पादन सम्बन्धी सेवाएं विकसित करने के लिए एक हाट हाउस (संस्थान) का निर्माण किया। इसमें उच्च तकनीकी इलेक्ट्रॉनिक्स का सतत् समूहन जारी है तथा इसने दूसरे उच्च तकनीकी उद्योगों को भी आकर्षित किया है। उदाहरणार्थ संयुक्त राज्य अमेरिका में जैव प्रौद्योगिकी में कार्यरत सम्पूर्ण रोज़गार का एक तिहाई भाग कैलिफोर्निया में अवस्थित है। इसमें से 90 प्रतिशत से अधिक से अधिक सैन फ्रांसिस्को खाड़ी क्षेत्र में स्थित हैं। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय को आभारी कम्पनियों द्वारा बहुत बड़ी मात्रा में दान राशि प्राप्त हो रही है जो प्रतिवर्ष करोड़ों डॉलर होती है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो

1. इनमें से मानव की प्राथमिक क्रिया कौन-सी नहीं है ?
(A) मत्स्यन
(B) वानिकी
(C) शिकार करना
(D) उद्योग।
उत्तर:
(D) उद्योग।

2. इनमें से मानव की प्राचीनतम क्रिया कौन-सी है?
(A) मत्स्य न
(B) एकत्रीकरण
(C) कृषि
(D) उद्योग।
उत्तर:
(B) एकत्रीकरण

3. एकत्रीकरण की क्रिया किस प्रदेश में है?
(A) अमेज़न बेसिन
(B) गंगा बेसिन
(C) हवांग-हो बेसिन
(D) नील बेसिन।
उत्तर:
(A) अमेज़न बेसिन

4. सिनकोना वृक्ष की छाल से प्राप्त होती है
(A) रबड़
(B) टैनिन
(C) कुनीन
(D) गम।
उत्तर:
(C) कुनीन

5. कौन-सी जनजाति मौसमी पशुचारण की प्रथा करता है?
(A) पिग्मी
(B) रेड इण्डियन
(C) बकरवाल
(D) मसाई।
उत्तर:
(C) बकरवाल

6. गहन निर्वाह कृषि की मुख्य फ़सल कौन-सी है?
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) मक्का
(D) कपास।
उत्तर:
(A) चावल

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

7. विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि में कौन-सी मुख्य फ़सल है?
(A) गेहूँ
(B) चावल
(C) मक्का
(D) पटसन।
उत्तर:
(A) गेहूँ

8. फ़ैजण्डा खेतों पर किस फ़सल की कृषि होती है?
(A) चाय
(B) कहवा
(D) गन्ना।
(C) कोको
उत्तर:
(B) कहवा

9. केलों की रोपण कृषि किस प्रदेश में है ?
(A) अफ्रीका
(B) पश्चिमी द्वीप समूह
(C) ब्राज़ील
(D) जापान।
उत्तर:
(B) पश्चिमी द्वीप समूह

10. डेनमार्क किस कृषि के लिए प्रसिद्ध है?
(A) मिश्रित कृषि
(B) पशुपालन
(C) डेयरी उद्योग
(D) अनाज कृषि।
उत्तर:
(C) डेयरी उद्योग

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
‘आर्थिक क्रियाओं’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानव के वे क्रियाकलाप, जिनसे आय प्राप्त होती है।

प्रश्न 2.
कोई चार प्राथमिक क्रियाओं के नाम लिखो।
उत्तर:
आखेट, मत्स्यन, वानिकी, कृषि।।

प्रश्न 3.
आदिम कालीन मानव के दो क्रियाकलाप बताओ।
उत्तर:
आखेट तथा एकत्रीकरण ।

प्रश्न 4.
भारत में शिकार पर क्यों प्रतिबन्ध लगाया गया है?
उत्तर:
जंगली जीवों के संरक्षण के लिए।

प्रश्न 5.
चिकल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह ज़ोपोरा वृक्ष के दूध से बनता है।

प्रश्न 6.
उस वृक्ष का नाम लिखें जिसकी छाल से कनीन बनती है।
उत्तर:
सिनकोना।

प्रश्न 7.
व्यापारिक उद्देश्य के लिए एकत्रीकरण द्वारा प्राप्त तीन वस्तुओं के नाम लिखो। .
उत्तर:
कुनीन, रबड़, बलाटा, गम।

प्रश्न 8.
पशुधन पालन का आरम्भ क्यों हुआ?
उत्तर:
केवल आखेट से जीवन का भरण पोषण न होने के कारण पशुधन पालन आरम्भ हुआ।

प्रश्न 9.
सहारा क्षेत्र तथा एशिया के मरुस्थल में कौन-से पशु पाले जाते हैं ?
उत्तर:
भेड़ें, बकरियां, ऊंट।

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प्रश्न 10.
पर्वतीय क्षेत्र तथा टुण्ड्रा प्रदेश में कौन-से जीव पाले जाते हैं?
उत्तर:
तिब्बत में याक, एण्डीज़ में लामा, टुण्ड्रा में रेण्डियर।

प्रश्न 11.
कौन-से जाति समूह हिमालय पर्वत में मौसमी स्थानान्तरण करते हैं?
उत्तर:
गुज्जर, बकरवाल, गद्दी, भोटिया।

प्रश्न 12.
किस प्रकार के क्षेत्र में गहन निर्वाहक कृषि की जाती है?
उत्तर:
मानसून प्रदेश के सघन बसे प्रदेशों में।

प्रश्न 13.
रोपण कृषि का आरम्भ किसने किया?
उत्तर:
यूरोपियन लोगों ने अपनी कालोनियों में रोपण कृषि आरम्भ की।

प्रश्न 14.
वे तीन युग बताओ जिनमें सभ्यता खनिजों पर आधारित थी?
उत्तर:
तांबा युग, कांसा युग, लौह युग।

प्रश्न 15.
उस देश का नाम बताइए जहां व्यावहारिक रूप से हर किसान सहकारी समिति का सदस्य है।
उत्तर:
डेनमार्क जिसे सहकारिता का देश कहते हैं।

प्रश्न 16.
मानव की सबसे पुरानी दो आर्थिक क्रियाएं लिखो।
उत्तर:
आखेट तथा मत्स्यन।

प्रश्न 17.
सोवियत संघ में सामूहिक कृषि को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
कोल खहोज़।

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प्रश्न 18.
भूमध्य सागरीय कषि के एक उत्पादन का नाम लिखिए।
उत्तर:
अंगूर।

प्रश्न 19.
भारत व श्रीलंका में चाय बागानों का विकास सर्वप्रथम किस देश ने किया था ?
उत्तर:
ब्रिटेन।

प्रश्न 20.
प्राथमिक व्यवसाय में लगे हुए श्रमिक किस रंग (कलर) वाले श्रमिक कहलाते हैं ?
उत्तर:
लाल कलर श्रमिक।

प्रश्न 21.
रेडियर कहां पाला जाता है ?
उत्तर:
टुंड्रा (Tundra) प्रदेश में।

प्रश्न 22.
रोपन कृषि किन प्रदेशों में की जाती है ?
उत्तर:
पश्चिमी द्वीप समूह, भारत, श्रीलंका।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक क्रियाकलाप क्या है? इनके विभिन्न वर्ग बताओ।
उत्तर:
मनुष्य अपने जीवन यापन के लिए कुछ क्रियाकलाप अपनाता है। मानवीय क्रियाकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है, आर्थिक क्रियाकलाप कहलाते हैं। इसे मुख्यतः चार वर्गों में बांटा जाता है –

  1. प्राथमिक
  2. द्वितीयक
  3. तृतीयक
  4. चतुर्थक।

प्रश्न 2.
आदिम कालीन मानव के जीवन निर्वाह के दो साधन बताओ।
उत्तर:
आदिम कालीन मानव अपने जीवन निर्वाह के लिए पूर्णतः पर्यावरण पर निर्भर था। पर्यावरण से दो प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध थे

  1. पशुओं का आखेट करके।
  2. खाने योग्य जंगली पौधे एवं कन्द मूल एकत्रित करके।

प्रश्न 3.
उन तीन प्रदेशों के नाम लिखो जहां वर्तमान समय में भोजन संग्रह (एकत्रीकरण) प्रचलित है।
उत्तर:
भोजन संग्रह (एकत्रीकरण) विश्व के इन प्रदेशों में किया जाता है –

  1. उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली।
  2. निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, उष्णकटिबन्धीय अफ्रीका।
  3. ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आन्तरिक प्रदेश।

प्रश्न 4.
चलवासी पशुचारण से क्या अभिप्राय है? इससे मूल आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे होती है?
उत्तर:
चलवासी पशुचारण एक प्राचीन जीवन निर्वाह व्यवसाय रहा है। पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, शरण, औजार एवं यातायात के लिए पशुओं पर निर्भर रहते थे। वे अपने पालतू पशुओं के साथ पानी एवं चरागाहों की उपलब्धता की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक फिरते रहते थे। ये पशु इन्हें कपड़े, शरण, औज़ार तथा यातायात की मूल आवश्यकताएं प्रदान करते थे।

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प्रश्न 5.
चलवासी पशुचारकों की संख्या अब घट रही है। क्यों ? दो कारण दो।
उत्तर:
विश्व में लगभग 10 मिलियन पशु चारक हैं जो चलवासी हैं। इनकी संख्या दिन प्रतिदिन दो कारणों से घट रही है।

  1. राजनीतिक सीमाओं का अधिरोपण
  2. कई देशों द्वारा नई बस्तियों की योजना बनाना।

प्रश्न 6.
वाणिज्य पशुधन पालन से क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
वाणिज्य पशुधन पालन एक बड़े पैमाने पर अधिक व्यवस्थित पशुपालन व्यवसाय है। इसमें भेड़, बकरी, गाय, बैल, घोड़े पाले जाते हैं जो मानव को मांस, खालें एवं ऊन प्रदान करते हैं।
विशेषताएं:

  1. यह एक पूंजी प्रधान क्रिया है तथा वैज्ञानिक ढंगों पर व्यवस्थित क्रिया है।
  2. पशुपालन विशाल क्षेत्र पर रैंचों पर होता है।
  3. इसमें मुख्य ध्यान पशुओं के प्रजनन, जननिक सुधार, बीमारियों पर नियन्त्रण तथा स्वास्थ्य पर दिया जाता है।
  4. उत्पादित वस्तुओं को विश्व बाजारों में निर्यात किया जाता है।

प्रश्न 7.
महत्त्वपूर्ण रोपण कृषि के अधीन फ़सलों के नाम लिखो।
उत्तर:
महत्त्वपूर्ण रोपण फ़सलें निम्नलिखित हैं चाय, कहवा तथा कोको; रबड़, कपास, नारियल, गन्ना, केले तथा अनानास।

प्रश्न 8.
‘बुश-फैलो’ कृषि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थानान्तरी कृषि को बुश-फैलो कृषि कहते हैं। वन क्षेत्रों को काटकर या जलाकर भूमि का एक टुकड़ा कृषि के लिए साफ़ किया जाता है। इसे कर्तन एवं दहन कृषि (‘Slash and Burn’) या Bush fallow कृषि कहते हैं।

प्रश्न 9.
झूमिंग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में स्थानान्तरी कृषि को झूमिंग (Jhumming) कहते हैं। असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, नागालैंड में आदिकालीन निर्वाह कृषि की जाती है, वृक्षों को काटकर, जलाकर, कृषि के लिए एक टुकड़ा साफ किया जाता है। कुछ वर्षों के पश्चात् जब खेतों की उर्वरता कम हो जाती है तो नए टुकड़े पर कृषि आरम्भ की जाती है। इससे खेतों का हेर-फेर होता है।

प्रश्न 10.
डेयरी फार्मिंग का विकास नगरीकरण के कारण हुआ है। सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
डेयरी उद्योग मांग क्षेत्रों के समीप लगाया जाता है। यह उद्योग अधिकतर नगरों, औद्योगिक तथा व्यापारिक क्षेत्रों के निकट लगाया जाता है। इसका औद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण से गहरा सम्बन्ध है। नगरों में जनसंख्या की वृद्धि के कारण दुग्ध पदार्थों की मांग अधिक होती है। इसीलिए यूरोप के औद्योगिक क्षेत्रों के निकट तथा महानगरों के निकट डेयरी उद्योग का विकास हुआ है।

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प्रश्न 11.
धान की गहन जीविकोपार्जी कृषि के क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व अधिक क्यों है?
उत्तर:
धान की कृषि मानसून क्षेत्रों में की जाती है। कृषि के सभी कार्य मानवीय हाथों से किए जाते हैं। इसलिए सस्ते तथा अधिक श्रम की आवश्यकता होती है। श्रम की अधिक मांग के कारण इन क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व उच्च रहता है।

प्रश्न 12.
विस्तृत भूमि अधिकांशतः मशीनों की सहायता से क्यों की जाती है?
उत्तर:
बड़ी-बड़ी जोतों पर मशीनों की सहायता से, बड़े पैमाने पर कृषि की जाती है। इन क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व कम है। भूमि एवं मनुष्य अनुपात अधिक है। श्रम महंगा है तथा कम उपलब्ध है। इसलिए कृषि कार्यों में बड़े पैमाने पर कृषि यन्त्रों का प्रयोग होता है।

प्रश्न 13.
खनन को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करो।
उत्तर:
खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक-खनन कार्य की लाभप्रदता दो बातों पर निर्भर करती है –

  1. भौतिक कारकों में खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था को सम्मिलित करते हैं।
  2. आर्थिक कारकों जिसमें खनिज की मांग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूंजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय आता है।

प्रश्न 14.
धरातलीय एवं भूमिगत खनन में अन्तर. स्पष्ट करो।
उत्तर:
खनन की विधियां उपस्थिति की अवस्था एवं अयस्क की प्रकृति के आधार पर खनन के दो प्रकार हैं धरातलीय एवं भूमिगत खनन।

धरातलीय खनन (Open cast Mining):
धरातलीय खनन को विवृत खनन.भी कहा जाता है। यह खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका है, क्योंकि इस विधि में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत निम्न कम होता है एवं उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है।

भूमिगत खनन (Underground Mining):
जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब भूमिगत अथवा कूपकी खनन विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में लंबवत् कूपक गहराई तक स्थित हैं, जहां से भूमिगत गैलरियां खनिजों तक पहुंचने के लिए फैली हैं। इन मार्गों से होकर खनिजों का निष्कर्षण एवं परिवहन धरातल तक किया जाता है। खदान में कार्य करने वाले श्रमिकों तथा निकाले जाने वाले खनिजों के सुरक्षित और प्रभावी आवागमन हेतु इसमें विशेष प्रकार की लिफ्ट बोधक (बरमा), माल ढोने की गाड़ियां तथा वायु संचार प्रणाली की आवश्यकता होती है। खनन का यह तरीका जोखिम भरा है क्योंकि जहरीली गैसें, आग एवं बाढ़ के कारण कई बार दुर्घटनाएं होने का भय रहता है। भारत की कोयला खदानों में आग लगने एवं बाढ़ आने की कई दुर्घटनाएँ हुई हैं।

प्रश्न 15.
विकसित देश खनन कार्य से पीछे क्यों हट रहे हैं?
उत्तर:
विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश उत्पादन की खनन, प्रसंस्करण एवं शोधन कार्य से पीछे हट रहे हैं क्योंकि इसमें श्रमिक लागत अधिक आने लगी है। जबकि विकासशील देश अपने विशाल श्रमिक शक्ति के बल पर अपने देशवासियों के ऊंचे रहन-सहन को बनाए रखने के लिए खनन कार्य को महत्त्व दे रहे हैं। अफ्रीका के कई देश, दक्षिण अमेरिका के कुछ देश एवं एशिया में आय के साधनों का पचास प्रतिशत तक खनन कार्य से प्राप्त होता है।

प्रश्न 16.
ऋतु प्रवास क्या होता है ?
उत्तर:
जब ग्रीष्म ऋतु में चरवाहे पहाड़ी ढलानों पर चले जाते हैं परन्तु शीत ऋतु में मैदानी भागों में प्रवास करते हैं।

प्रश्न 17.
प्राथमिक क्रियाएँ क्या हैं ?
उत्तर:
प्र.यमिक क्रियाकलाप-इस क्रियाकलाप में मुख्य उत्पाद पर्यावरण से सीधे रूप से प्राप्त किए जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्राथमिक क्रियाकलापों से क्या अभिप्राय है? ये किस प्रकार पर्यावरण पर निर्भर हैं ? उदाहरण दें।
उत्तर:
प्राथमिक क्रियाकलाप (Primary Activities)-प्राथमिक क्रियाकलाप वे क्रियाएं हैं जिसमें मुख्य उत्पाद पर्यावरण से सीधे-रूप से प्राप्त किए जाते हैं। इस प्रकार ये क्रियाएं प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर हैं क्योंकि ये पृथ्वी के संसाधनों जैसे भूमि, जल, वनस्पति, भवन निर्माण सामग्री एवं खनिजों का उपयोग करती है।

उदाहरण:
इन क्रियाकलापों में आखेट; भोजन संग्रह, पशुचारण, मत्स्यन, वानिकी, कृषि एवं खनन।

प्रश्न 2.
‘आदिमकालीन समाज जंगली पशुओं पर निर्भर था।’ उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर:
(i) आदिमकालीन समाज जंगली पशुओं पर निर्भर था। अतिशीत एवं अत्यधिक गर्म प्रदेशों के रहने वाले लोग आखेट द्वारा जीवन-यापन करते थे। प्राचीन-काल के आखेटक पत्थर या लकड़ी के बने औज़ार एवं तीर इत्यादि का प्रयोग करते थे, जिससे मारे जाने वाले पशुओं की संख्या सीमित रहती थी।

(ii) तकनीकी विकास के कारण यद्यपि मत्स्य-ग्रहण आधुनिकीकरण से युक्त हो गया है, तथापि तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग अब भी मछली पकड़ने का कार्य करते हैं। अवैध शिकार के कारण जीवों की कई जातियां या तो लुप्त हो गई हैं या संकटापन्न हैं।

प्रश्न 3.
आदिमकालीन निर्वाह कृषि (स्थानान्तरी कृषि) से क्या अभिप्रायः है? इसके विभिन्न प्रकार बताओ।
उत्तर:
स्थानान्तरी कृषि (आदिमकालीन निर्वाह कृषि) (Shifting Agriculture) यह कृषि का बहुत प्राचीन ढंग है। यह कृषि उष्ण कटिबन्धीय वन प्रदेशों में आदिवासियों का मुख्य धन्धा है।

वनों को काट कर तथा:
झाड़ियों को जला कर भूमि को साफ कर लिया जाता है। वर्षा काल के पश्चात् उसमें फ़सलें बोई जाती हैं। जब दो तीन फ़सलों के पश्चात् उस भूमि का उपजाऊपन नष्ट हो जाता है, तो उस क्षेत्र को छोड़कर दूसरी भूमि में कृषि की जाती है। यहां खेत बिखरे-बिखरे होते हैं, यह कृषि छोटे पैमाने पर होती है तथा स्थानीय मांग को ही पूरा कर पाती है। यह कृषि प्राकृतिक दशाओं के अनुकूल होने के कारण ही होती है। इसमें खाद, उत्तम बीजों या यन्त्रों का कोई प्रयोग नहीं होता। इस प्रकार की कृषि में खेतों का हेरफेर होता है। इस कृषि पर लागत कम होती है। संसार में इस कृषि के क्षेत्रों का विस्तार कम होता जा रहा है। क्योंकि उपज कम होने तथा मृदा उर्वरता घटने की समस्याएं हैं।

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प्रदेश तथा फ़सलें-प्रायः
इस कृषि में मोटे अनाजों की कृषि होती है जैसे चावल, मक्की, शकरकन्द, ज्वार आदि। भारत में अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड तथा मिज़ोरम प्रदेश में झूमिंग (Jhumming) नामक कृषि की जाती है। मध्य अमेरिका में उसे मिलपा (Milpa), मलेशिया तथा इन्डोनेशिया में लदांग (Ladang) कहते हैं।

प्रश्न 4.
गहन निर्वाह कृषि से क्या अभिप्राय है? इसके दो मुख्य प्रकार बताओ। (H.B. 2013)
उत्तर:
गहन निर्वाह कृषि (Intensive Subsistance Farming) गहन निर्वाह कृषि मानसून प्रदेशों में घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है। इसमें छोटे-छोटे खेतों पर प्रचुर मात्रा में श्रम लगाकर, उच्च उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त करके वर्ष में कई फ़सलें प्राप्त की जाती हैं।

गहन निर्वाह कृषि के प्रकार-गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं –
(i) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि-इसमें चावल प्रमुख फसल होती है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में कृषक का सम्पूर्ण परिवार लगा रहता है। भूमि का गहन उपयोग होता है एवं यन्त्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है। उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर का खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है। इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, परन्तु प्रति कृषक उत्पादन कम है।

(ii) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि-मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच, जलवायु, मृदा तथा अन्य भौगोलिक कारकों की भिन्नता के कारण धान की फ़सल उगाना प्रायः सम्भव नहीं है। उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में गेहं, सोयाबीन, जौ एवं सरघम बोया जाता है। भारत में सिंध-गंगा के मैदान के पश्चिमी भाग में गेहूं एवं दक्षिणी व पश्चिमी शुष्क प्रदेश में ज्वार-बाजरा प्रमुख रूप से उगाया जाता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखें
(i) उद्यान कृषि
(ii) बाज़ार के लिए सब्जी खेती
(ii) ट्रक कृषि
(iv) पुष्प कृषि
(v) फल उद्यान।।
उत्तर:
(i) उद्यान कृषि (Horticulture) – उद्यान कृषि व्यापारिक कृषि का एक सघन रूप है। इसमें मुख्यतः। सब्जियां, फल और फूलों का उत्पादन होता है। इस कृषि का विकास संसार के औद्योगिक तथा नगरीय क्षेत्रों के पास होता है। यह कृषि छोटे पैमाने पर की जाती है। परन्तु इसमें उच्च स्तर का विशेषीकरण होता है। भूमि पर सघन कृषि होती है। सिंचाई तथा खाद का प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिक ढंग, उत्तम बीज तथा कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। उत्पादों को बाजार में तुरन्त बिक्री करने के लिए यातायात की अच्छी सुविधाएं होती हैं। इस प्रकार प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक होती है।

(ii) बाज़ार के लिए सब्जी खेती (Market Gardening) – बड़े-बड़े नगरों की सीमाओं पर सब्जियों की कृषि की जाती है।
(ii) ट्रक कृषि (Truck Farming) – नगरों से दूर, अनुकूल जलवायु तथा मिट्टी के कारण कई प्रदेशों में सब्जियों या फलों की कृषि की जाती है।
(iv) पुष्प कृषि (Flower Culture) – इस कृषि द्वारा विकसित प्रदेशों में फूलों की मांग को पूरा किया जाता है।
(v) फल उद्यान (Fruit Culture) – उपयुक्त जलवायु के कारण कई क्षेत्रों में विशेष प्रकार के फलों की कृषि की जाती है।

प्रश्न 6.
खाद्यान्न की बड़े पैमाने पर की जाने वाली यान्त्रिक कृषि में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है, परन्तु प्रति व्यक्ति उत्पादन ऊंचा होता है। क्यों?
उत्तर:
(1) खाद्यान्न की बड़े पैमाने पर कृषि शीत-उष्ण घास के मैदानों में की जाती है। इसे विस्तृत कृषि कहते हैं। यह कृषि बड़े-बड़े फ़ार्मों पर मुख्यतः यान्त्रिक कृषि होती है। इसमें ट्रैक्टर, कम्बाईन, हारवेस्टर आदि मशीनों द्वारा सभी कार्य किए जाते हैं। एक मशीन प्रायः 50 से 100 मानवीय श्रमिकों का कार्य कर सकती है। इसलिए उपज पर उत्पादन खर्च कम होता है। परन्तु प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है।

(2) इन क्षेत्रों में औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 क्विटल होता है। जबकि यूरोप में खाद्यान्न की सघन कृषि द्वारा नीदरलैण्ड, बेल्जियम आदि देशों में प्रति हेक्टेयर उत्पादन 50 क्विटल से अधिक होता है।

(3) यह कृषि कम जनसंख्या वाले प्रदेशों में होती है, जैसे कनाडा, अर्जेन्टाइना, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में कम जनसंख्या वाले क्षेत्र गेहूं उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र हैं। यहां प्रति व्यक्ति उत्पादन बहुत अधिक है क्योंकि श्रमिकों की संख्या कम होती है।

(4) यहां काफ़ी मात्रा में गेहूं निर्यात के लिए बच जाता है। इसलिए इन प्रदेशों को संसार का अन्न भण्डार (Granaries of the world) कहा जाता है।

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प्रश्न 7.
सामूहिक कृषि तथा सहकारी कृषि में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

सहकारी कृषि: सामूहिक कृषि:
(i) जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य सम्पन्न करे उसे सहकारी |कृषि कहते हैं।

इसमें व्यक्तिगत फार्म अक्षुण्ण रहते हुए सहकारी रूप में कृषि की जाती है।

(i) इस प्रकार की कृषि का आधारभूत सिद्धान्त अह। होता है कि इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सम्पूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है। कृषि का यह प्रकार पूर्व सोवियत संघ में प्रारम्भ हुआ था जहां कृषि की दशा सुधारने एवं उत्पादन में वृद्धि व आत्मनिर्भरता प्राप्ति के लिए सामूहिक कृषि प्रारम्भ की गई। इस प्रकार की सामूहिक कृषि को सोवियत संघ में कोलखहोज़ का नाम दिया गया।
(ii) सहकारी संस्था कृषकों को सभी रूप में सहायता करती है। यह सहायता कृषि कार्य में आने वाली सभी चीजों की खरीद करने, कृषि उत्पाद को | उचित मूल्य पर बेचने एवं सस्ती दरों पर प्रसंस्कृत साधनों को जुटाने के लिए होती है। (ii) सभी कृषक अपने संसाधन जैसे भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं। ये अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमि का छोटा-सा भाग अपने अधिकार में भी रखते हैं। सरकार उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करती है एवं उत्पादन को सरकार ही निर्धारित मूल्य पर खरीदती है। लक्ष्य से अधिक उत्पन्न होने वाला

भाग सभी सदस्यों को वितरित कर दिया जाता है या बाजार | में बेच दिया जाता है।

(iii) सहकारी आन्दोलन एक शताब्दी पूर्व प्रारम्भ हुआ था एवं पश्चिमी यूरोप के डेनमार्क, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली में यह सफलतापूर्वक चला। सबसे अधिक सफलता इसे डेनमार्क में मिली जहां प्रत्येक कृषक इसका सदस्य है। (iii) उत्पादन एवं भाड़े पर ली गई मशीनों पर कृषकों को कर चुकाना पड़ता है। सभी सदस्यों को उनके द्वारा किए गए कार्य की प्रकृति के आधार पर भुगतान किया जाता है। असाधारण कार्य करने वाले सदस्य को नकद या । माल के रूप में पुरस्कृत किया जाता है। पूर्व सोवियत संघ की समाजवादी सरकार ने इसे प्रारम्भ किया जिसे अन्य समाजवादी देशों ने भी अपनाया। सोवियत संघ के विघटन के बाद इस प्रकार की कृषि में भी संशोधन किया गया है।

प्रश्न 8.
संसार की रोपण कृषि की किन्हीं छः फसलों के नाम बताइए। रोपण कृषि की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोपण फसलें

  1. चाय .
  2. कॉफी
  3. कोको
  4. कपास
  5. गन्ना
  6. केला

रोपण कृषि की विशेषताएं:

  1. रोपण कृषि में कृषि खेत को बागान कहा जाता है।
  2. इसमें अधिक पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है।
  3. इस कृषि में उच्च प्रबन्ध एवं तकनीकी नितांत आवश्यक है।
  4. इसमें वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है।
  5. यह एक फसली कृषि है जिसका निर्यात किया जाता है।
  6. इस फसल की उपज के लिए सस्ते श्रमिक आवश्यक हैं।
  7. इसके लिए यातायात विकसित होता है, जिसके द्वारा बागान एवं बाज़ार सुचारु रूप से जुड़े रहते हैं क्योंकि यह व्यावहारिक कृषि है।

प्रश्न 9.
निर्वाह कृषि किसे कहते हैं ? इस प्रकार की कृषि के दो वर्गों के नाम बताइए। एक वर्ग की तीन तीन मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
निर्वाह कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि से है जिसके सम्पूर्ण अथवा अधिकतर उत्पादों का उपयोग स्वयं कृषक परिवार करता है। कृषि उत्पादों का कम भाग निर्यात होता है।
निर्वाह कृषि को दो वर्गों में बांटा जा सकता है –
(i) आदिकालीन निर्वाह कृषि
(ii) गहन निर्वाह कृषि मुख्य विशेषताएं

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

(i) आदिकालीन निर्वाह कृषि

  1. इस कृषि को कर्तन एवं दहन कृषि (Slash and Burn) भी कहते हैं।
  2. इसका चलन उष्ण कटिबंधीय वन क्षेत्रों में है। जहां विभिन्न जनजातियां इस प्रकार की खेती अफ्रीका और दक्षिण पूर्वी एशिया में करती हैं।
  3. वन जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार की जाती है। (4) खेत बहुत छोटे-छोटे होते हैं। प्रति एकड़ उपज बहुत कम है।
  4. खेती पुराने औजारों जैसे-लकड़ी, कुदाल, फावड़े आदि से की जाती है।
  5. कुछ समय पश्चात् जब मिट्टी का उपजाऊपन कम हो जाता है तब कृषक पुराने खेत छोड़ कर नए. क्षेत्र में वन लाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करता है।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट करो
(क) जीविका कृषि तथा व्यापारिक कृषि।
(ख) गहन कृषि तथा विस्तृत कृषि।
उत्तर:
(क) जीविका कृषि (Subsistance Agriculture):
इस कृषि-प्रणाली द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है। इस कृषि का मुख्य उद्देश्य भूमि के उत्पादन से अधिक-से-अधिक जनसंख्या का भरण-पोषण किया जा सके। इसे निर्वाहक कृषि भी कहते हैं। स्थानान्तरी कृषि, स्थानबद्ध कृषि तथा गहन कृषि जीविका कृषि कहलाती है। इस कृषि द्वारा बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग को पूरा किया जाता है।

प्रदेश (Areas):
यह कृषि एशिया के मानसूनी प्रदेशों में होती है। चीन, जापान, कोरिया, भारत, बंगला देश, बर्मा (म्यनमार), इण्डोनेशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया में गहन जीविका कृषि होती है। भारत में जीविका कृषि मध्य प्रदेश, बुन्देलखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा दक्षिणी बिहार के पिछड़े हुए भागों में होती है।

विशेषताएं (Characteristics):
इस कृषि में आई प्रदेशों में चावल की फसल प्रमुख होती है, परन्तु कम वर्षा या सिंचित क्षेत्रों में मोटे अनाज, गेहूं, दालें, सोयाबीन, तिलहन उत्पन्न की जाती है।

  1. खेत छोटे आकार के होते हैं।
  2. साधारण यन्त्र प्रयोग करके मानव श्रम पर अधिक जोर दिया जाता है।
  3. खेतों से अधिक उत्पादन प्राप्त करने तथा मिट्टी का उपजाऊपन कायम रखने के लिए हर प्रकार की खाद, रासायनिक उर्वरक का प्रयोग किया जाता है।
  4. भूमि का पूरा उपयोग करने के लिए साल में दो, तीन या चार-चार फसलें भी प्राप्त की जाती हैं। शुष्क ऋतु में अन्य खाद्य फसलों की भी कृषि की जाती है।
  5. भूमि के चप्पे-चप्पे पर कृषि की जाती है। पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं। अधिकतर कार्य मानव-श्रम द्वारा किए जाते हैं।
  6. चरागाहों के भूमि प्राप्त न होने के कारण पशुपालन कम होता है।

व्यापारिक कृषि (Commercial Agriculture):
इस कृषि में व्यापार के उद्देश्य से फ़सलों की कृषि की जाती है। यह जीविका कृषि से इस प्रकार भिन्न है कि इस कृषि द्वारा संसार के दूसरे देशों को कृषि पदार्थ निर्यात किए जाते हैं। अनुकूल भौगोलिक. दशाओं में एक ही मुख्य फ़सल के उत्पादन पर जोर दिया जाता है ताकि व्यापार के लिए अधिक-से-अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके।

प्रदेश (Areas):
व्यापारिक कृषि में कई प्रकार से कृषि पदार्थ बिक्री के लिए प्राप्त किए जाते हैं –

  1. इस प्रकार की कृषि शीत-उष्ण घास के मैदानों में अधिक है जहां गेहूं की कृषि बड़े पैमाने पर की जाती है।
  2. उष्ण कटिबन्ध में रोपण कृषि द्वारा चाय, गन्ना, कहवा आदि फ़सलों की कृषि की जाती है।
  3. यूरोप में मिश्रित कृषि द्वारा कृषि तथा पशुपालन पर जोर दिया जाता है।
  4. उद्यान कृषि तथा डेयरी फार्मिंग भी व्यापारिक कृषि का ही एक अंग है।

विशेषताएं (Characteristics):

  1. यह आधुनिक कृषि की एक प्रकार है।
  2. इसमें उत्पादन मुख्यतः बिक्री के लिए किया जाता है।
  3. यह कृषि केवल उन्नत देशों में ही होती है।
  4. यह बड़े पैमाने पर की जाती है।
  5. इस कृषि में फ़सलों तथा पशुओं के विशेषीकरण पर ध्यान दिया जाता है।
  6. इसमें रासायनिक खाद, उत्तम बीज, मशीनों तथा जल-सिंचाई साधनों का प्रयोग किया जाता है।
  7. यह कृषि क्षेत्र यातायात के उत्तम साधनों द्वारा मांग क्षेत्रों से.जुड़े होते हैं।
  8. इस कृषि पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का बहुत प्रभाव पड़ता है।

(ख) गहन कृषि (Intensive Agriculture):
थोड़ी भूमि से अधिक उपज प्राप्त करने के ढंग को गहन कृषि कहते हैं। इस उद्देश्य के लिए प्रति इकाई भूमि पर अधिक मात्रा में श्रम और पूंजी लगाई जाती है। अधिक जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि कम होती है। इस सीमित भूमि से अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त करके स्थानीय खपत की पूर्ति की जाती है।

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प्रदेश (Areas):
यह कृषि प्राय: मानसून देशों में की जाती है। जापान, चीन, बंगला देश, भारत, फिलपाइन्स, हिन्द, चीन के देशों में गहन कृषि की जाती है। इन देशों में जनसंख्या घनत्व अधिक है। कृषि योग्य भूमि सीमित है। इन देशों में अधिक वर्षा वाले भागों में धान प्रधान गहन कृषि की जाती है। इस कृषि में एक वर्ष में, एक खेत से, धान की तीन चार फ़सलें उत्पन्न की जाती हैं। कम वर्षा वाले, कम उपजाऊ क्षेत्रों में अन्य फ़सलों के हेर-फेर के साथ धान की कृषि की जाती है।

विशेषताएं (Characteristics) –

  1. यह प्राचीन देशों की कषि प्रणाली है।
  2. खेतों का आकार बहुत छोटा होता है।
  3. कृषि में मानव श्रम अधिक मात्रा में लगाया जाता है। मशीनों का प्रयोग कम होता है।
  4. चरागाहों की कमी के कारण पशुचारण का कम विकास होता है।
  5. खाद, उत्तम बीज, कीटनाशक दवाइयां, सिंचाई के साधन तथा फ़सलों का हेर-फेर का प्रयोग किया जाता है।
  6. इस कृषि में खाद्यान्नों की अधिक कृषि की जाती है।
  7. इससे प्रति हेक्टेयर उपज काफ़ी अधिक होती है; परन्तु प्रति व्यक्ति उपज कम रहती है।
  8. यह कृषि स्थानीय खपत को पूरा करने के उद्देश्य से की जाती है ताकि घनी जनसंख्या वाले देश आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सकें।
  9. इस कृषि में खेतों पर ही भारवाहक पशु पाले जाते हैं तथा मछली पकड़ने का धन्धा भी किया जाता है।
  10. भूमि कटाव रोकने के उपाय किए जाते हैं, मिट्टी का उपजाऊपन कायम रखा जाता है, पर्वतीय ढलानों पर सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं।
  11. किसान लोग कई सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी इस प्रकार की कृषि करने के कारण बहुत कुशल होते हैं।

विस्तृत कृषि (Extensive Agriculture):
कम जनसंख्या वाले प्रदेशों में कृषि योग्य भूमि अधिक होने के कारण बड़े-बड़े फार्मों पर होने वाली कृषि को विस्तृत कृषि कहते हैं। कृषि यन्त्रों के अधिक प्रयोग के कारण इसे यान्त्रिक कृषि भी कहते हैं। इस कृषि में एक ही फ़सल के उत्पादन पर जोर दिया जाता है ताकि उपज को निर्यात किया जा सके। इसलिए इसका दूसरा नाम व्यापारिक कृषि भी है। यह कृषि मुख्यत: नए देशों में की जाती है। इसमें अधिक-से-अधिक क्षेत्र में कृषि करके अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह एक आधुनिक कृषि प्रणाली है जिसका विकास औद्योगिक क्षेत्रों में खाद्यान्नों की मांग बढ़ने के कारण हुआ है।

प्रदेश (Areas):
यह कृषि मध्य अक्षांशों में शीत-उष्ण कटिबन्धीय घास के मैदानों में की जाती है। रूस में स्टैप प्रदेश उत्तरी अमेरिका में प्रेयरीज़, अर्जेन्टाइना में पम्पास के मैदानों तथा ऑस्ट्रेलिया में डाऊनज़ क्षेत्र में गेहूं की खेती बड़े पैमाने पर होती है। इन प्रदेशों में प्राचीन काल में चलवासी चरवाहे घूमा करते थे। भूमि का मूल्य बढ़ जाने के कारण विस्तृत खेती के क्षेत्र धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं।

विशेषताएं (Characteristics):

  1. यह कृषि समतल भूमि वाले क्षेत्रों पर की जाती है जहां खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है।
  2. कृषि यन्त्रों का अधिक प्रयोग किया जाता है। जैसे ट्रैक्टर, हारवैस्टर, कम्बाईन, धैशर आदि।
  3. खाद्यान्नों को सुरक्षित रखने के लिए बड़े-बड़े गोदाम या ऐलीवेटरज़ बनाए जाते हैं। इस कृषि में प्रति हेक्टेयर उपज कम होती है, परन्तु कम जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति उपज अधिक होती है।
  4. यह कृषि व्यापारिक दृष्टिकोण से की जाती है ताकि खाद्यान्नों को मांग क्षेत्रों को निर्यात किया जा सके।
  5. इसमें श्रमिकों का उपयोग कम किया जाता है।
  6. इस कृषि में कम वर्षा के कारण जल सिंचाई के साधन प्रयोग किए जाते हैं।
  7. इस कृषि में रासायनिक खाद का अधिक प्रयोग किया जाता है ताकि कुल उत्पादन में अधिक वृद्धि हो सके।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भोजन संग्रहण से क्या अभिप्राय है? इसकी मुख्य विशेषताएं तथा क्षेत्र बताओ। इन कार्यकलाप से एकत्र होने वाले उत्पाद लिखो। भोजन संग्रहण का विश्व में क्या भविष्य है ?
उत्तर:
भोजन संग्रहण मानव का प्राचीनतम कार्यकलाप है। मानव खाने योग्य पौधों एवं कन्दमूल पर निर्वाह करता था।

विशेषताएं:

  1. यह कठोर जलवायुविक दशाओं में किया जाता है।
  2. इसे अधिकतर आदिमकालीन समाज के लोग करते हैं जो भोजन, वस्त्र एवं शरण की आवश्यकता की पूर्ति हेतु पशुओं और वनस्पति का संग्रह करते हैं।
  3. इस कार्य के लिए बहुत कम पूंजी एवं निम्न स्तरीय तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है।
  4. इसमें भोजन अधिशेष भी नहीं रहता है एवं प्रति व्यक्ति उत्पादकता भी कम होती है।

क्षेत्र-भोजन संग्रह विश्व के दो भागों में किया जाता है –

  1. उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली आते हैं।
  2. निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, उष्णकटिबन्धीय अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आन्तरिक प्रदेश आता है।

उत्पाद-आधुनिक समय में भोजन संग्रह के कार्य का कुछ भागों में व्यापारीकरण भी हो गया है।

  1. ये लोग कीमती पौधों की पत्तियां, छाल एवं औषधीय पौधों को सामान्य रूप से संशोधित कर बाजार में बेचने का कार्य भी करते हैं।
  2. पौधे के विभिन्न भागों का ये उपयोग करते हैं। उदाहरण के तौर पर छाल का उपयोग कुनैन, चमड़ा तैयार करना एवं कार्क के लिए;
  3. पत्तियों का उपयोग, पेय पदार्थ, दवाइयां एवं कांतिवर्द्धक वस्तुएं बनाने के लिए; रेशे को कपड़ा बनाने; दृढ़फल को भोजन एवं तेल के लिए
  4. पेड़ के तने का उपयोग रबड़, बलाटा, गोंद व राल बनाने के लिए करते हैं।
  5. संग्रहण का भविष्य-विश्व स्तर पर संग्रहण का अधिक महत्त्व नहीं है। इन क्रियाओं के द्वारा प्राप्त उत्पाद विश्व बाज़ार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते। कई प्रकार की अच्छी किस्म एवं कम दाम वाले कृत्रिम उत्पादों ने कई उत्पादों का स्थान ले लिया है।
    JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ - 1

प्रश्न 2.
विचरणशील पशुपालन की मुख्य विशेषताओं तथा क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर:
पशुपालन (Pastoralism):
सभ्यता के विकास में पशुओं का पालन एक महत्त्वपूर्ण कार्य था। विभिन्न जलवायु में रहने वाले लोगों ने अपने प्रदेशों के जानवरों को चुना तथा पशुपालन के लिए अपनाया जैसे घास के मैदानों में पशु तथा घोड़े; टुण्ड्रा प्रदेश में भेड़ें तथा रेडियर, ऊष्ण मरुस्थलों में ऊंट; एण्डीज़ तथा हिमालय के ऊंचे पर्वतों पर
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ - 2
लामा तथा याक। ये पशु दूध, मांस, ऊन तथा खालों के प्रमुख साधन थे। आज भी शीतोष्ण तथा ऊष्ण घास के मैदानों में विचरणशील पशुचारण प्रचलित है।

विचरणशील पशुचारण (Pastoral Nomadism):
यह पशुओं पर निर्वाहक क्रिया है। ये लोग स्थायी तौर पर नहीं रहते। उन्हें खानाबदोश कहते हैं। प्रत्येक जाति का एक निश्चित क्षेत्र होता है। पशु प्रकृति वनस्पति पर निर्भर करते हैं। जिन घास के मैदानों में अधिक वर्षा तथा लम्बी घास होती है वहां पशु पाले जाते हैं। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भेड़ें पाली जाती हैं। ऊंची-नीची ढलानों पर भेड़ें पाली जाती हैं। 6 प्रकार के पशु मुख्य रूप से पाले जाते हैं, भेड़ें, बकरियां, ऊंट, पशु, घोड़े तथा गधे।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

क्षेत्र (Areas):
पशुपालन के 7 बड़े क्षेत्र हैं-उच्च अक्षांशीय ध्रुवीय क्षेत्र, स्टैप, दक्षिणी-पश्चिमी एशिया पर्वतीय क्षेत्र, सहारा, अरब मरुस्थल, उप-सहारा सवाना, एण्डीज़ तथा एशिया के उच्च पठार।

  1. सबसे बड़ा क्षेत्र सहारा के मंगोलिया तक 13000 कि० मी० लम्बा है।
  2. एशियाई टुण्ड्रा के दक्षिणी भाग में ।
  3. दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका। ये प्रदेश अधिक गर्म, अति शुष्क, अति टण्टे हैं ! आजकल 15 से 20 मिलियन लोम विचरालाल पशचारण में लगे हैं।

प्रश्न 3.
संसार के विभिन्न प्रदेशों में वाणिज्यिक पश पालन का वर्णन करो।
उत्तर:
व्यापारिक पशु पालन (Commercial Grazing)-संसार में विभिन्न घास के मैदानों में बड़े पैमाने पर, वैज्ञानिक ढंगों द्वारा, चारे की फसलों की सहायता से पशु पालन होता है। इसे व्यापारिक पशु पालन कहते हैं। शीत उष्ण घास के मैदानों में विचरणशील पशु चारण का स्थान व्यापारिक पशु पालन ने ले लिया है। इन प्रदेशों में 20 सें. मी. वर्षा के कारण घास के मैदान मिलते हैं। ये मैदान सभी महाद्वीपों में बिखरे हुए हैं।

निम्नलिखित शीत उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में व्यापारिक पशु पालन का विकास हुआ है –

1. उत्तरी अमेरिका का प्रेयरी क्षेत्र (Prairies):
संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में शीत-उष्ण घास के मैदानों को प्रेयरी के मैदान कहते हैं। इस प्रदेश में थोड़ी वर्षा के कारण घास अधिक होती है। सैंकड़ों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विशाल चरागाहों पर रैंच (Ranch) बनाए गए हैं। यहां उत्तम नस्ल की जरसी तथा फ्रिजीयन गाय पाली जाती हैं। इस विशाल मैदान पर मिश्रित खेती के रूप में पशु पालन होता है। यहां गोश्त के लिए पशु तथा ऊन के लिए भेड़ें पाली जाती हैं। ऐडवर्ड पठार तथा मैक्सिको पठार में भेड़ें चराई जाती हैं। मांस प्रदान करने वाले पशु अधिकतर मक्का क्षेत्र (Corn belt) में मिलते हैं। यहां पशुओं को मोटा-ताजा बनाने के लिए मक्की की फसल प्रयोग की जाती है। इसलिए DET GICT “In U.S.A., corn goes to the market on hoofs.”

2. पम्पास क्षेत्र:
दक्षिणी अमेरिका में अर्जेन्टाइना, ब्राज़ील तथा युरुगए देशों में शीत-उष्ण घास के मैदानों में व्यापारिक पशु पालन होता है। अर्जेन्टाइना में पम्पास क्षेत्र पैटागोनिया तथा टेराडेल फ्यूगो क्षेत्र में पशु तथा भेड़ें चराई जाती हैं। यहां समशीत जलवायु, 50 सें० मी० से 100 सें० मी० वर्षा, एल्फा-एल्फा (Alafa-Alafa) घास तथा विशाल चरागाहों की सुविधाएं प्राप्त हैं। बड़े-बड़े रैंच (Ranch) बनाकर चारों तरफ तारों की बाड़ लगाई जाती है। अधिकतर पशु मांस के लिए पाले जाते हैं। दक्षिणी भाग में पहाड़ी ढलानों पर ऊन के लिए भेड़ें पाली जाती हैं।

3. ऑस्ट्रेलिया:
ऑस्ट्रेलिया संसार का महत्त्वपूर्ण व्यापारिक पशु पालन क्षेत्र है। यहां शीत-उष्ण घास के मैदानों को डाऊन्स (Downs) कहते हैं। यहां पशु पालन के प्रमुख क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी भाग तथा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में हैं। यहां ऊन तथा मांस के लिए भेड़ें पाली जाती हैं। न्यू साऊथ वेल्ज़, विक्टोरिया तथा दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया राज्यों में पशु पालन के लिए अनुकूल दशाएं प्राप्त हैं। यहां विशाल घास के मैदान उपलब्ध हैं। सारा वर्ष सम-शीत जलवायु के कारण पशु खुले क्षेत्रों तथा बड़े-बड़े फार्मों पर रखे जा सकते हैं। आर्टिजियन कुओं द्वारा जल प्राप्त हो जाता है। ऑस्ट्रेलिया संसार में ऊन का सबसे बड़ा उत्पादक एवं निर्यातक देश है। परन्तु इन प्रदेशों में शुष्क जलवायु के कारण पानी की कमी की समस्या है। जंगली कुत्ते तथा चूहे भी पशु पालन में बहुत बड़ी रुकावट हैं।

4. न्यूजीलैण्ड:
इस देश का आर्थिक विकास पशु पालन पर आधारित है। यहां प्रति व्यक्ति पशुओं का घनत्व संसार में सबसे अधिक है। यहां पर्याप्त वर्षा, सम-शीत उष्ण जलवायु, विशाल पर्वतीय ढलानों पर सारा साल उपलब्ध विशाल चरागाहें, उत्तम नस्ल के पशु, चारे की फसलों का प्राप्त होना आदि अनुकूल दशाओं के कारण व्यापारिक पशु पालन का विकास हुआ है। यह देश उत्तम भेड़ों के मांस (Mutton) के लिए प्रसिद्ध है। उत्तरी टापू तथा दक्षिणी टापू में भेड़ों के अतिरिक्त दूध देने वाले पशु भी पाले जाते हैं। यहां से मांस, ऊन, मक्खन, पनीर भी निर्यात किया जाता है।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ - 3

5. दक्षिणी अफ्रीका:
दक्षिणी अफ्रीका के पठार पर मिलने वाले घास के मैदान को वैल्ड (Veld) कहते हैं। यहां औसत वार्षिक वर्षा 75 सें० मी० के लगभग है। समुद्र के प्रभाव के कारण सामान्य तापमान मिलते हैं। दक्षिणी अफ्रीका में अधिकतर भेड़ें तथा अंगोरा बकरियां मांस एवं ऊन के लिए पाली जाती हैं। यहां दूध के लिए स्थानीय नस्ल के पशु पाले जाते हैं। यहां आदिवासी लोग पशु चारण का काम करते हैं। परन्तु श्वेत जातियों के सम्पर्क के कारण ही व्यापारिक पशु पालन का विकास सम्भव हुआ है।

प्रश्न 4.
रोपण कृषि से क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएं, क्षेत्र तथा फ़सलों का वर्णन करो।
उत्तर:
रोपण कृषि (Plantation Farming):
यह एक विशेष प्रकार की व्यापारिक कृषि है। इसमें किसी एक नकदी की फ़सल की बड़े पैमाने पर कृषि की जाती है। यह कृषि बड़े-बड़े आकार से खेतों या बाग़ान पर की जाती है इसलिए इसे बाग़ाती कृषि भी कहते हैं। रोपण कृषि की मुख्य फ़सलें रबड़, चाय, कहवा, कोको, गन्ना, नारियल, केला आदि हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रदेश (Areas):
रोपण कृषि के मुख्य क्षेत्र उष्ण कटिबन्ध में मिलते हैं –

  1. पश्चिमी द्वीपसमूह, क्यूबा, जमैका आदि।
  2. पश्चिमी अफ्रीका में गिनी तट।
  3. एशिया में भारत, श्रीलंका, मलेशिया तथा इण्डोनेशिया।

विशेषताएं (Characteristics)

  1. यह कृषि बड़े-बड़े आकार के फ़ार्मों पर की जाती है। इन बागानों का आकार 40 हेक्टेयर से 60,000 हेक्टेयर तक होता है।
  2. इसमें केवल एक फ़सल पर बिक्री के लिए कृषि पर जोर दिया जाता है। इसका अधिकतर भाग निर्यात कर दिया जाता है।
  3. इस कृषि में वैज्ञानिक विधियों, मशीनों, उर्वरक, अधिक पूंजी का प्रयोग होता है ताकि प्रति हेक्टेयर उपज को बढ़ाया जा सके, उत्तम कोटि का अधिक मात्रा में उत्पादन हो।
  4. इन बागानों पर बड़ी संख्या में कुशल श्रमिक काम करते हैं। ये श्रमिक स्थानीय होते हैं। कुछ प्रदेशों में दास श्रमिकों या नीग्रो लोग भी काम करते हैं। श्रीलंका के चाय के बागान तथा मलेशिया में रबड़ के बागान पर भारत के तमिल लोग काम करते हैं।
  5. इन बागानों पर अधिकतर पूंजी, प्रबन्ध व संगठन यूरोपियन लोगों के हाथ में है।
  6. रोपण कृषि के प्रमुख क्षेत्र समुद्र के किनारे स्थित हैं जहां सड़कों, रेलों, नदियों तथा बन्दरगाहों की यातायात की सुविधाएं प्राप्त हैं।
  7. रोपण कृषि के बाग़ान विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में अधिक भूमि प्राप्त होने के कारण लगाए जाते हैं।
  8. रोपण कृषि में वार्षिक फ़सलों की बजाय चिरस्थायी वृक्षों या झाड़ी वाली फ़सलों की कृषि की जाती है।

क्षेत्र –

  1. अधिकतर रोपण कृषि ब्रिटिश लोगों द्वारा स्थापित की गई। मलेशिया में रबड़, भारत और श्रीलंका में चाय के बागान हैं।
  2. फ्रांसीसी लोगों ने पश्चिमी अफ्रीका में कोको तथा कहवा के बाग़ लगाए।
  3. ब्रिटिश लोगों के पश्चिमी द्वीप समूह में गन्ने व केले के बाग़ लगाए।
  4. स्पेनिश तथा अमरीकी लोगों ने नारियल तथा गन्ने के बाग़ान फिलीपाइन्ज़ में लगाए।

प्रश्न 5.
मिश्रित कृषि तथा डेयरी फार्मिंग में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर
मिश्रित कृषि
(Mixed Agriculture)
जब फ़सलों की कृषि के साथ-साथ पशु पालन आदि सहायक धन्धे भी अपनाए जाते हैं तो उसे मिश्रित कृषि कहते हैं। इस कृषि में दो प्रकार की फ़सलें उत्पन्न की जाती हैं-खाद्यान्न तथा चारे की फ़सलें। संयुक्त राज्य अमेरिका में मक्का पट्टी (Corn Belt) में मांस प्राप्त करने के लिए पशुओं को मक्का खिलाया जाता है।

प्रदेश (Areas):
यह कृषि समस्त यूरोप में, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भाग में, पम्पास, दक्षिणी अफ्रीका, दक्षिण पूर्वी ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड में अपनाई जाती है।

विशेषताएं (Characteristics):

  1. इस कृषि में खाद्यान्नों को चारे की फ़सलों के साथ हेर-फेर के साथ उगाते हैं।
  2. कृषि के लिए वैज्ञानिक ढंग प्रयोग किए जाते हैं।
  3. इस कृषि में यन्त्रों, मकानों, गोदामों, खाद तथा श्रमिकों आदि पर बहुत अधिक धन व्यय किया जाता है।
  4. इस कृषि में किसानों की आय के कई साधन बन जाते हैं। बाजार में गिरावट आने से हानि से रक्षा होती है। श्रमिकों को पूरा वर्ष नियमित रूप से काम मिलता रहता है।

डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming):
दूध तथा दूध से बने पदार्थ जैसे मक्खन, पनीर, जमाया हुआ दूध, पाऊडर दूध आदि प्राप्त करने के लिए दुधारू पशुओं को पालने के धन्धे को डेयरी फार्मिंग कहते हैं।

आवश्यक भौगोलिक दशाएं (Geographical Conditions):
डेयरी उद्योग के विकास के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएं अनुकूल होती हैं –

  1. जलवायु-डेयरी उद्योग के लिए सम-शीत-उष्ण जलवायु अनुकूल रहती है।
  2. चरागाहों का होना-दुधारू पशुओं के लिए विशाल प्राकृतिक चरागाहों की आवश्यकता होती है।
  3. मांग क्षेत्रों से समीपता-दूध के शीघ्र खराब होने के कारण डेयरी उद्योग अधिकतर नगरों, औद्योगिक तथा व्यापारिक क्षेत्रों के निकट लगाया जाता है।
  4. निपुण श्रमिक-पशुओं की नस्ल सुधार, दूध दोहने के यन्त्रों का प्रयोग, अनुसन्धान तथा वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग के लिए निपुण श्रमिक चाहिए।
  5. पूंजी-पशुओं के लिए शैड बनाना, डॉक्टरी सहायता देना, चारे की फ़सल उगाने, गोदाम बनाने तथा मशीनों के निर्माण के लिए काफ़ी पूंजी की आवश्यकता होती है।

प्रमुख क्षेत्र (Areas):
संसार के बड़े-बड़े डेयरी क्षेत्र सम-शीत-उष्ण कटिबन्ध में स्थित देशों में हैं।

  1. उत्तर-पश्चिमी यूरोप में इंग्लैण्ड, आयरलैंड, बैल्जियम, डेनमार्क, नीदरलैण्ड, स्विट्ज़रलैण्ड, फ्रांस आदि देशों में डेयरी उद्योग बहुत उन्नत है।
  2. उत्तर-पूर्वी अमेरिकन क्षेत्रों में अन्धमहासागर से लेकर महान् झीलों तक यू० एस० ए० तथा कनाडा में डेयरी उद्योग मिलता है।
  3. ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी भाग न्यूज़ीलैण्ड में।
  4. दक्षिणी अफ्रीका में।
  5. पम्पास घास के मैदानों में।
  6. एशिया में जापान तथा भारत में

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ - 4

विशेषताएं (Characteristics):

  1.  इस कृषि में खाद्यान्नों को चारे की फ़सलों के साथ हेर-फेर के साथ उगाते हैं।
  2. कृषि के लिए वैज्ञानिकादंग प्रयोग किए जाते हैं।
  3. इस कृषि में यन्त्रों, मकानों, गोदामों, खाद तथा श्रमिकों आदि पर बहुत अधिक धन व्यय किया जाता है।
  4. इस कृषि में किसानों की आय के कई साधन बन जाते हैं। बाजार में गिरावट आने से हानि से रक्षा होती है। श्रमिकों को पूरा वर्ष नियमित रूप से काम मिलता रहता है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming):
दूध तथा दूध से बने पदार्थ जैसे मक्खन, पनीर, जमाया हुआ दूध, पाऊडर दूध आदि प्राप्त करने के लिए दुधारू पशुओं को पालने के धन्धे को डेयरी फार्मिंग कहते हैं।

आवश्यक भौगोलिक दशाएं (Geographical Conditions):
डेयरी उद्योग के विकास के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएं अनुकूल होती हैं –

  1. जलवायु-डेयरी उद्योग के लिए सम-शीत-उष्ण जलवायु अनुकूल रहती है।
  2. चरागाहों का होना-दुधारू पशुओं के लिए विशाल प्राकृतिक चरागाहों की आवश्यकता होती है।
  3. मांग क्षेत्रों से समीपता-दूध के शीघ्र खराब होने के कारण डेयरी उद्योग अधिकतर नगरों, औद्योगिक तथा व्यापारिक क्षेत्रों के निकट लगाया जाता है।
  4. निपुण श्रमिक-पशुओं की नस्ल सुधार, दूध दोहने के यन्त्रों का प्रयोग, अनुसन्धान तथा वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग के लिए निपुण श्रमिक चाहिए।
  5. पूंजी-पशुओं के लिए शैड बनाना, डॉक्टरी सहायता देना, चारे की फ़सल उगाने, गोदाम बनाने तथा मशीनों के निर्माण के लिए काफ़ी पूंजी की आवश्यकता होती है।

प्रमुख क्षेत्र (Areas):
संसार के बड़े-बड़े डेयरी क्षेत्र सम-शीत-उष्ण कटिबन्ध में स्थित देशों में हैं।

  1. उत्तर-पश्चिमी यूरोप में इंग्लैण्ड, आयरलैंड, बैल्जियम, डेनमार्क, नीदरलैण्ड, स्विट्ज़रलैण्ड, फ्रांस आदि देशों में डेयरी उद्योग बहुत उन्नत है।
  2. उत्तर-पूर्वी अमेरिकन क्षेत्रों में अन्धमहासागर से लेकर महान् झीलों तक यू० एस० ए० तथा कनाडा में डेयरी उद्योग मिलता है।
  3. ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी भाग न्यूज़ीलैण्ड में।
  4. दक्षिणी अफ्रीका में।
  5. पम्पास घास के मैदानों में।
  6. एशिया में जापान तथा भारत में
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JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो

1. विकास का अर्थ है
(A) गुणात्मक परिवर्तन
(B) ऋणात्मक परिवर्तन
(C) गुणों में कमी
(D) साधारण परिवर्तन।
उत्तर:
(A) गुणात्मक परिवर्तन

2. आरम्भिक काल में विकास के माप का क्या मापदण्ड था ?
(A) औद्योगिक विकास
(B) कृषि विकास
(C) आर्थिक विकास
(D) जनसंख्या वृद्धि।
उत्तर:
(C) आर्थिक विकास

3. मानवीय विकास का कौन-सा अंग नहीं है ?
(A) अवसर
(B) स्वतन्त्रता
(C) स्वास्थ्य
(D) लोगों की संख्या।
उत्तर:
(D) लोगों की संख्या।

4. मानव विकास सूचकांक का प्रतिपादन कब किया गया ?
(A) 1980
(B) 1985
(C) 1990
(D) 1995.
उत्तर:
(C) 1990

5. मानव विकास का कौन-सा मूल बिन्दु नहीं है ?
(A) संसाधनों तक पहुंच
(B) उत्तम स्वास्थ्य
(C) शिक्षा
(D) उद्योग।
उत्तर:
(D) उद्योग।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

6. समता की राह में कौन-सी बाधा नहीं है ?
(A) लिंग
(B) प्रजाति
(C) जाति
(D) स्वतन्त्रता।
उत्तर:
(D) स्वतन्त्रता।

7. कितने देशों का उच्च विकास सूचकांक है ?
(A) 37
(B) 47
(C) 57
(D) 67
उत्तर:
(C) 57

8. कितने देशों में निम्न सूचकांक है ?
(A) 12
(B) 22
(C) 32
(D) 42.
उत्तर:
(C) 32

9. उच्च विकास सूचकांक का स्कोर क्या है ?
(A) 0.6 से ऊपर
(B) 0.7 से ऊपर
(C) 0.8 से ऊपर
(D) 0.9 से ऊपर।
उत्तर:
(C) 0.8 से ऊपर

10. भारत का सन् 2003 के अनुसार विश्व में मानव सूचकांक के आधार पर स्थान है
(A) 107
(B) 117
(C) 126
(D) 137
उत्तर:
(C) 126

11. कौन-सा देश मानव विकास सूचकांक में विश्व में पहले स्थान पर है ?
(A) कनाडा
(B) नार्वे
(C) आइसलैंड
(D) ऑस्ट्रेलिया।
उत्तर:
(D) ऑस्ट्रेलिया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
समाज के किस वर्ग से मानव विकास की अवधारणा सम्बन्धित है ?
उत्तर:
राष्ट्रों तथा समुदायों से।

प्रश्न 2.
दक्षिण पूर्वी एशिया के दो अर्थशास्त्रियों के नाम लिखो जिन्होंने मानवीय विकास की अवधारणा प्रस्तुत की ?
उत्तर:
डॉ० महबूब-उल-हक तथा प्रो० अमर्त्य सेन।

प्रश्न 3.
किसने मानव सूचकांक का विचार प्रस्तुत किया ?
उत्तर:
पाकिस्तान के अर्थशास्त्री डॉ० महबूब-उल-हक ने 1990 में।

प्रश्न 4.
धनात्मक वृद्धि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जब धनात्मक रूप से गणों में वद्धि होती है। यह वर्तमान दशाओं में वद्धि से होती है।

प्रश्न 5.
विकास का क्या मापदण्ड था ?
उत्तर:
आर्थिक वृद्धि।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

प्रश्न 6.
मानव विकास के चार स्तम्भों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. समता
  2. सतत् पोषणीयता
  3. उत्पादकता
  4. सशक्तिकरण।

प्रश्न 7.
भारत के किस वर्ग के लोगों के बच्चे विद्यालयों से विरत होते हैं ?
उत्तर:
सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग।

प्रश्न 8.
सशक्तिकरण के दो आवश्यक तत्त्व बताओ।
उत्तर:
सुशासन तथा लोकोन्मुखी नीतियां।

प्रश्न 9.
संसाधनों की पहुंच का मापदण्ड बताओ।
उत्तर:
क्रय शक्ति एवं मानव ज्ञान शक्ति।

प्रश्न 10.
ILO को विस्तृत करो।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour or Organisation)।

प्रश्न 11.
UNDP को विस्तत करो।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme)।

प्रश्न 12.
GNH को विस्तृत करो।
उत्तर:
सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता (Gross National Happiness)।

प्रश्न 13.
किस देश ने सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता की अवधारणा प्रस्तुत की ?
उत्तर;
भूटान।

प्रश्न 14.
कितने देशों में उच्च मानवीय विकास सूचकांक है ?
उत्तर:

प्रश्न 15.
भारत का विश्व में सन् 2005 के अनुसार मानव विकास सूचकांक में कौन-सा स्थान है ?
उत्तर:
126.

प्रश्न 16.
सन् 2018 की मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट में भारत का क्या स्थान है ?
उत्तर:
130 वां।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
विकास से क्या अभिप्राय है ? इसके तीन मूल बिन्दु बताओ।
उत्तर:
विकास का अर्थ है गुणात्मक परिवर्तन। इसके तीन मूल बिन्दु हैं –
(1) लोगों के जीवन की गुणवत्ता
(2) अवसरों तक पहुंच
(3) लोगों की स्वतन्त्रता।

प्रश्न 2.
डॉ० हक द्वारा प्रस्तुत मानव विकास अवधारणा का वर्णन करो।
उत्तर:
डॉ० महबूब-उल-हक के अनुसार मानव विकास लोगों के उत्तम जीवन के विकल्पों में वृद्धि करता है तथा उनके जीवन में सुधार लाता है। सभी प्रकार के विकास का केन्द्र बिन्दु मानव है। इनके विकल्प स्थिर नहीं हैं बल्कि परिवर्तनशील हैं। विकास का मूल उद्देश्य सभी दशाओं को उत्पन्न करना है जिसमें लोग सार्थक जीवन व्यतीत कर सकते हैं। लोग स्वस्थ हों, अपने विवेक और बुद्धि का विकास कर सके तथा अपने उद्देश्य को पूरा करने में स्वतन्त्र हों।

प्रश्न 3.
एक सार्थक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ बताओ।
उत्तर:
सार्थक जीवन की प्रमुख विशेषताएं हैं –

  1. दीर्घ तथा स्वस्थ जीवन
  2. ज्ञान में वृद्धि
  3. एक सार्थक जीवन के पर्याप्त साधन।
  4. संसाधनों तक पहुंच।

प्रश्न 4.
कुछ लोगों में आधारभूत विकल्पों को तय करने की क्षमता और स्वतन्त्रता नहीं होती। क्यों ?
उत्तर:
कुछ लोगों में क्षमता तथा स्वतन्त्रता नहीं होती कि वह अपने विकल्प तय कर सकें क्योंकि

  1. उनमें ज्ञान प्राप्त करने की अक्षमता
  2. भौतिक निर्धनता
  3. सामाजिक भेदभाव
  4. संस्थाओं की अक्षमता।

उदाहरण:
एक अशिक्षित बच्चा डॉक्टर बनने का विकल्प नहीं चुन सकता। एक निर्धन बीमारी के लिए चिकित्सा उपचार नहीं चुन सकता क्योंकि उसके संसाधन कम होते हैं।

प्रश्न 5.
प्रो० अमर्त्य सेन के अनुसार मानव विकास की अवधारणा क्या है ?
उत्तर:
अमर्त्य सेन ने विकास का मुख्य ध्येय स्वतन्त्रता में वृद्धि के रूप में देखा। स्वतन्त्रता में वृद्धि ही विकास लाने वाला सर्वाधिक प्रभावशाली माध्यम है। इनका कार्य स्वतन्त्रता की वृद्धि में सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं तथा प्रक्रियाओं की भूमिका का अन्वेषण करता है।

प्रश्न 6.
वृद्धि और विकास में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
वृद्धि और विकास दोनों समय के संदर्भ में परिवर्तन को प्रकट करते हैं। वृद्धि मात्रात्मक तथा मूल्य निरपेक्ष है। यह धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों हैं। इसमें वृद्धि तथा ह्रास दोनों हो सकते हैं। विकास का अर्थ गुणात्मक परिवर्तन है। यह मूल्य सापेक्ष होता है। विकास का अर्थ है वर्तमान दशाओं में वृद्धि का होना। विकास का अर्थ है सकारात्मक वृद्धि।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

प्रश्न 7.
सार्थक जीवन की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
सार्थक जीवन केवल दीर्घ नहीं होता। जीवन का कोई उद्देश्य होना आवश्यक है।

  1. लोग स्वस्थ हो।
  2. लोग अपने विवेक और बुद्धि का विकास कर सके।
  3. वे समाज में प्रतिभागिता करें।
  4. अपने उद्देश्य की पूर्ति में स्वतन्त्र हों।

प्रश्न 8.
समता से क्या अभिप्राय है ? इसकी आपूर्ति में क्या रुकावटें हैं ?
उत्तर:
समता का अर्थ है सबको समान अवसर उपलब्ध कराना। यह अवसर समान हों। परन्तु इसके मार्ग में कई अवरोध हैं। जैसे

  1. लिंग
  2. प्रजाति
  3. आय
  4. जाति।

प्रश्न 9.
सतत पोषणीयता का अर्थ क्या है ? इसके लिए किन-किन साधनों का उपयोग आवश्यक है ?
उत्तर:
सतत पोषणीयता का अर्थ है अवसरों में निरन्तरता रखना। प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर प्राप्त हों। इसके लिए निम्न संसाधनों का उपयोग आवश्यक है –

  1. पर्यावरणीय संसाधन
  2. वित्तीय संसाधन
  3. मानव संसाधन।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उत्पादकता से क्या अभिप्राय है ? इसमें किस प्रकार वृद्धि की जा सकती है ?
उत्तर:
उत्पादकता का अर्थ है मानव श्रम सेवाओं या सामग्री द्वारा उत्पादन करना अथवा मानव कार्य के सन्दर्भ में उत्पादन क्षमता को बढ़ाना। इसमें वृद्धि करने के उपाय हैं –

  1. लोगों में क्षमताओं का निर्माण करना
  2. लोगों के ज्ञान में वृद्धि करना
  3. बेहतर चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करके
  4. कार्यक्षमता बेहतर करके।

प्रश्न 2.
सशक्तिकरण से क्या अभिप्राय है ? लोगों को कैसे सशक्त किया जा सकता है ?
उत्तर:
सशक्तिकरण का अर्थ है-अपने विकल्प चुनने के लिए शक्ति प्राप्त करना। ऐसी शक्ति से स्वतन्त्रता और क्षमता बढ़ती है। लोगों को सशक्त करने के उपाय हैं –

  1. सुशासन
  2. लोकोन्मुखी नीतियां
  3. बढ़ती स्वतन्त्रता
  4. बढ़ती क्षमता।

प्रश्न 3.
मानव विकास के चार उपागम बताओ।
उत्तर:

  1. आय उपागम
  2. कल्याण उपागम
  3. आधारभूत आवश्यकता उपागम
  4. क्षमता उपागम।

प्रश्न 4.
Human Development Index (HDI) किन तत्त्वों द्वारा मापा जाता है ? इसका स्कोर क्या है ?
उत्तर:
HDI के मूल सूचक हैं –

  1. स्वास्थ्य
  2. शिक्षा
  3. संसाधनों तक पहुंच इसका स्कोर 0-1 तक है।

प्रश्न 5.
Human Development Index (HDI) सर्वाधिक विश्वसनीय माप नहीं है। क्यों ?
उत्तर:

  1. यह मानव ग़रीबी का सही मापक नहीं है।
  2. यह बिना आय वाला माप है।
  3. प्रौढ़ निरक्षरता तथा ग़रीबी सूचकांक मानव विकास का अधिक उद्घाटित करने वाला है।

प्रश्न 6.
सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता (GNH) से क्या अभिप्राय है ? इसके प्रमुख तत्त्व बताओ।
उत्तर:
भूटान विश्व में अकेला देश है जिसमें (GNH) की अवधारणा प्रस्तुत की जोकि विकास का मापक है। प्रसन्नता की कीमत पर भौतिक प्रगति नहीं होती। (GNH) हमें विकास के आध्यात्मिक, भौतिकता, गुणात्मक पक्षों के सोचने के लिए प्रोत्साहित करता है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

प्रश्न 7.
मानव विकास के मापन के तीन प्रमुख क्षेत्रों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानव विकास के मापन के क्षेत्र
1. स्वास्थ्य- यह सूचक जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) को दर्शाता है। विश्व की औसत जीवन प्रत्याशा 65 वर्ष है।
2. शिक्षा-प्रौढ़ साक्षरता दर पढ़ और लिख सकने वाले व वयस्कों की संख्या और विद्यालयों में नामांकित बच्चों की संख्या दर्शाती है।
3. संसाधनों तक पहुंच को क्रय शक्ति तथा प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में मापा जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
मानवीय विकास से क्या अभिप्राय है? इस विचारधारा को प्रष्ट करो। मानवीय विकास के निर्धारकों का वर्णन करो।
उत्तर:
मानवीय विकास (Human Development):
विकास एक प्रगतिशील विचारधारा है। यह किसी प्रदेश के संसाधनों के विकास के लिए अधिकतम शोषण की प्रक्रिया है। इसका मुख्य उद्देश्य किसी प्रदेश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। इस सन्दर्भ में भूगोल वेत्ता विकसित देशों तथा विकासशील देशों के शब्द प्रयोग करते हैं। मानव भूतल पर सर्वोत्तम प्राणी है। मानव ने भूतल पर अनेक परिवर्तन किए हैं। विज्ञान, शिक्षा तथा प्रौद्योगिकी में बहुत विकास हुआ है।

फिर भी सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक क्षेत्र में अन्तर-प्रादेशिक विभिन्नताएं पाई जाती हैं। विकास से अभिप्राय एक ऐसे वातावरण की रचना करना है जिसमें प्रत्येक शिशु को शिक्षा प्राप्त हो, कोई भी मानव स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित न हो, जहां प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमताओं को पूरा कर प्रयोग कर सके। मानवीय विकास के सूचक (Indicators of Human Development) विश्व बैंक प्रति वर्ष विश्व विकास करके प्रस्तुत करता है।

इसमें उत्पादन, खपत, मांग, ऊर्जा, वित्त, व्यापार, जनसंख्या वृद्धि, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के 177 देशों के आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं। यह रिपोर्ट कुछ सूचकों पर आधारित होती है। मानवीय विकास के तीन मूल घटक हैं –
(1) जीवन अवधि
(2) ज्ञान
(3) रहन-सहन का स्तर।

सन् 2018 में भारत का विश्व में मानवीय विकास में 130वां स्थान है जबकि नार्वे का पहला स्थान है। मानवीय विकास के प्रमुख सूचक निम्नलिखित हैं –
(1) जन्म पर जीवन अवधि
(2) साक्षरता
(3) प्रति व्यक्ति आय
(4) जनसंख्यात्मक विशेषताएं जैसे कि शिशु मृत्यु-दर, प्राकृतिक वृद्धि दर, आयु वर्ग आदि।

1.जन्म पर जीवन अवधि (Life expectancy at Birth):
जीवन अवधि से अभिप्राय है कि एक नवजात शिश के कितने वर्ष तक जीने की आशा है। यह विभिन्न देशों में विभिन्न है। विकसित तथा विकासशील देशों के लोगों की जीवन अवधि में अन्तर मिलते हैं। विश्व में औसत रूप से यह आयु 65 वर्ष है। उत्तरी अमेरिका में जीवन अवधि 77 वर्ष है जो कि सबसे अधिक है।

अफ्रीका में सबसे कम जीवन अवधि 54 वर्ष है। विकसित देशों में शिक्षा, पौष्टिक भोजन, चिकित्सा तथा रहन-सहन स्तर अधिक होने से जीवन अवधि अधिक है। भारत में यह 69 वर्ष हैं। विकासशील देशों में कम जीवन अवधि, बीमारियों, अशिक्षा, बेकारी तथा निर्धनता के कारण हैं। विकसित देशों में सीनीयर नागरिकों का प्रतिशत अधिक है जबकि विकासशील देशों में 65 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों की संख्या कम है।

2. साक्षरता (Literacy):
किसी देश के सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक विकास का साक्षरता एक विश्वसनीय तथा महत्त्वपूर्ण सूचक है। निर्धनता को दूर करने के लिए साक्षरता अनिवार्य है। साक्षरता जनसांख्यिकीय विशेषताओं जैसे जन्म-दर, मृत्यु-दर, व्यवसाय आदि पर प्रभाव डालती है। विकसित देशों में साक्षरता दर 90% से अधिक है जबकि विकासशील देशों में साक्षरता दर 60% से भी कम है। अधिकतर विकासशील देशों में स्त्रियों की साक्षरता दर कम है तथा समाज में स्त्रियों का स्थान निम्न है। स्त्रियों के लिए रोज़गार के अवसर भी कम हैं। भारत में स्त्रियों की साक्षरता दर 54% है जबकि पुरुषों की साक्षरता दर 75% है।

3. प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income):
किसी देश में प्रति व्यक्ति आय के मापदण्ड GDP तथा GNP मानवीय विकास के प्रमुख सूचक हैं। उच्च प्रति व्यक्ति आय के कारण देश में अधिक विकास होता है। विकसित देशों में श्रमिक विकासशील देशों के श्रमिकों की अपेक्षा अधिक कमाते हैं। यूरोप के कई देशों में GDP का मूल्य $2000 अधिक है जबकि एशिया तथा अफ्रीका के कई देशों में यह मूल्य $100 से भी कम है। विकासशील देशों में कम GDP मूल्य के कारण वस्तु-उत्पादन निम्न है तथा सेवाएं कम प्राप्त हैं।

4. जनसांख्यिकीय विशेषताएं (Demographic Characteristics):
किसी देश के जनसांख्यिकीय लक्षणों पर देश के आर्थिक विकास का विशेष प्रभाव पड़ता है। इसीलिए विकसित तथा विकासशील देशों की जनसंख्या में विशेष अन्तर पाए जाते हैं।
(क) शिशु मृत्यु दर विकासशील देशों में अधिक होती है। लोगों को भोजन तथा दवाइयों की प्राप्ति नहीं होती। कम साक्षरता दर भी एक कारण है।
(ख) जनसंख्या वृद्धि दर-जन्म-दर तथा मृत्यु-दर में अन्तर के कारण जनसंख्या वृद्धि दर भी विकासशील देशों में अधिक होती है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ता है। अफ्रीका के देशों में जन्म-दर 40 प्रति हजार से भी अधिक है। जबकि विकसित देशों में जन्म-दर 10 प्रति हज़ार से भी कम है।
(ग) आयु वर्ग (Age Group)-विकासशील देशों तथा विकसित देशों के आयु वर्गों में भी अन्तर मिलता है। विकासशील देशों में आश्रित वर्ग (बच्चों) का अनुपात अधिक होता है। परन्तु विकसित देशों में आश्रित वर्ग की जनसंख्या कम होती है। – इस प्रकार उपरोक्त कारकों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विश्व में मानवीय विकास असमान है।

इससे विभिन्न प्रकार के समाज तथा आर्थिकता का जन्म होता है, इसलिए दो प्रकार देश पाए जाते हैं –
(1) विकसित देश
(2) विकासशील देश।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

प्रश्न 2.
प्रवास से क्या अभिप्राय है ? इसके क्या कारण हैं ? इसके विभिन्न प्रकार बताओ।
उत्तर:
प्रवास (Migration):
जनसंख्या की गतिशीलता का एक महत्त्वपूर्ण घटक प्रवास है। यह जनसंख्या तथा संसाधनों में एक सन्तुलन स्थापित करने का प्रयत्न है। सामान्यतः प्रवास मानव को अपने निवास स्थान से किसी दूसरे स्थान पर जा कर निवास करने से होता है। प्रजननता (Fertility) तथा मृत्यु क्रम (Motality) की अपेक्षा जनसंख्या संरचना में प्रवास का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रवास स्थायी अथवा अस्थाई हो सकता है।

प्रवास की धाराएं (Streams of Migration):
प्रवास के निम्नलिखित प्रकार हैं –

  1. ग्रामों से नगर की ओर।
  2. नगर से ग्राम की ओर।
  3. ग्राम से ग्राम की ओर।
  4. नगर से नगर की ओर।

इसके अतिरिक्त प्रवास के सामान्य प्रकार अग्रलिखित हैं –
1. मौसमी प्रवास (Seasonal Migration):
अस्थायी प्रवास मौसमी होता है। गहन कृषि में श्रमिकों की आवश्यकता के लिए श्रमिक प्रवास कर जाते हैं। कई बार एक मौसम से अधिक समय के प्रवास स्थायी रूप धारण कर लेता है।

2. अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास (International IvMigration):
यह प्रवास अन्तर्राष्ट्रीय होता है। यह थोड़े समय में जनसंख्या संरचना में परिवर्तन कर देता है। पिछले दशकों में अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास में बहुत वृद्धि हुई है। युद्धों के कारण कई क्षेत्रों में शरणार्थी प्रवास कर रहे हैं। इस शताब्दी के शुरू में U.N.O. के अनुसार 12 करोड़ लोग विदेशों में बस गए हैं जिनमें 1.5 करोड़ शरणार्थी हैं।

3. आन्तरिक प्रवास (Internal Migration):
यह प्रवास व्यापक रूप से होता है। लाखों लोग ग्राम रोज़गार की तलाश में प्रवास करते हैं। यह आकर्षक कारक (Pull Factors) तथा प्रत्याकर्षक कारकों (Push factors) द्वारा होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता, बेरोजगारी, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के कारण लोग नगरों की ओर प्रवास करते हैं जहाँ उच्च वेतन. सस्ती भमि. रहन-सहन तथा विकास की उच्च सेवाएं प्राप्त होती हैं। नगरों में कई झुग्गी-झोंपड़ी क्षेत्र बन जाते हैं।

4. ग्रामीण प्रवास (Rural Niigatiers):
कई बार एक ग्रामीण क्षेत्र से दूसरे ग्रामीण क्षेत्र में प्रवास होता है जहां उन्नत कृषि होती है तथा नई तकनीकों के कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होता है।

प्रश्न 3.
विकसित तथा विकासशील देशों में विकास की तुलना करो।
उत्तर:

विकासशील देश (Developing Countries) विकसित देश (Developed Countries)
(1) इन देशों में प्रति व्यक्ति आय कम है तथा पूंजी की कमी है। (1) इन देशों में प्रति व्यक्ति आय अधिक है तथा पूंजी सुविधापूर्वक प्राप्त है।
(2) प्राथमिक उद्योग जैसे कृषि वानिकी, खान खोदना, मत्स्यन राष्ट्रीय आर्थिकता में प्रमुख हैं। (2) निर्माण उद्योग प्रमुख हैं।
(3) कृषि में लगभग 70% लोग कार्य करते हैं। (3) लगभग 10% जनसंख्या कृषि में लगी है।
(4) निर्वाह कृषि प्रचलित है जिसमें छोटे-छोटे खेत हैं तथा प्रति हेक्टेयर उपज कम है। (4) व्यापारिक कृछि प्रचलित है, खेतों का आकार बड़ा है तथा उपज अधिक है।
(5) लगभग 80% जनसंख्या ग्रामीण है। (5) 80% जनसंख्या नगरीय है।
(6) जन्म-दर तथा मृत्यु-दर उच्च है, जीवन प्रत्याशा अवधि कम है तथा जनसंख्या वृद्धि दर अधिक (6) जन्म-दर तथा मृत्यु-दर कम है, जीवन प्रत्याशा अवधि अधिक है तथा जनसंख्या वृद्धि दर कम
(7) असन्तुलित भोजन के कारण भुखमरी है। (7) सन्तुलित भोजन प्राप्त है।
(8) बीमारियों की अधिकता है तथा चिकित्सा सुविधाएं कम हैं। (8) उत्तम चिकित्सा सुविधाएं प्राप्त हैं।
(9) आवास की कमी तथा सफ़ाई की कमी के कारण सामाजिक हालत अच्छी नहीं है। (9) सामाजिक हालत अच्छी हैं क्योंकि सफ़ाई तथा आवास सुविधाएं हैं।
(10) शिक्षा की कमी है तथा वैज्ञानिक उन्नति कम है। (10) शिक्षा का अधिक प्रसार है तथा विज्ञान तथा तकनीकी ज्ञान अधिक है।
(11) स्त्रियों को समाज में उत्तम स्थान प्राप्त नहीं है। (11) स्त्रियों तथा पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त हैं।

प्रश्न 4.
मानव विकास के चार स्तम्भों के नाम लिखो। प्रत्येक का उदाहरण सहित वर्णन करें।
उत्तर:
मानव विकास के चार स्तम्भ
(Four Pillars of Human Development)
जिस प्रकार किसी इमारत को स्तम्भों का सहारा होता है उसी प्रकार मानव विकास का विचार भी
(1) समता
(2) सतत् पोषणीयता
(3) उत्पादकता और
(4) सशक्तिकरण की संकल्पनाओं पर आश्रित है।

1. समता (Equity):
समता का आशय प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुंच की व्यवस्था करना है। लोगों को उपलब्ध अवसर लिंग, प्रजाति, आय और भारत के सन्दर्भ में जाति के भेदभाव के विचार के बिना समान होने चाहिए।
उदाहरण:
भारत में स्त्रियाँ और सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों के व्यक्ति बड़ी संख्या में विद्यालय से विरत होते हैं।

2. सतत् पोषणीयता (Sustainability):
सतत् पोषणीय मानव विकास के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिले। समस्त पर्यावरणीय वित्तीय एवं मानव संसाधनों का उपयोग भविष्य को ध्यान में रख कर करना चाहिए। निर्वहन का अर्थ है अवसरों की उपलब्धता में निरन्तरता। इन संसाधनों में से किसी भी एक का दुरुपयोग भावी पीढ़ियों के लिए अवसरों को कम करेगा।
उदाहरण:
बालिकाओं का विद्यालय भेजा जाना एक अच्छा उदाहरण है।

3. उत्पादकता (Productivity):
यहाँ उत्पादकता का अर्थ मानव श्रम द्वारा अवसरों का उत्पादन अथवा मानव कार्य के सन्दर्भ में सेवा अथवा सामग्री का उत्पादन है। लोगों में क्षमताओं का निर्माण करके ऐसी उत्पादकता में निरन्तर वद्धि की जानी चाहिए। अंतत: जन-समदाय ही राष्ट्रों के वास्तविक धन होते हैं। इस प्रकार उनके ज्ञान को बढ़ाने के प्रयास अथवा उन्हें बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने में उनकी कार्यक्षमता बेहतर होगी।

4. सशक्तिकरण (Empowerment):
सशक्तिकरण का अर्थ है-अपने विकल्प चुनने के लिए शक्ति प्राप्त करना। ऐसी शक्ति बढ़ती हुई स्वतन्त्रता और क्षमता से आती है। लोगों को सशक्त करने के लिए सुशासन एवं लोकोन्मुखी नीतियों की आवश्यकता होती है। सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए समूहों के सशक्तिकरण का विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 5.
मानव विकास के विभिन्न उपागमों का वर्णन करो।
उत्तर:
मानव विकास के उपागम-मानवक विकास की समस्या को देखने के अनेक ढंग हैं।

कुछ महत्त्वपूर्ण उपागम हैं –
(क) आय उपागम
(ख) कल्याण उपागम
(ग) न्यूनतम आवश्यकता उपागम
(घ) क्षमता उपागम।
मानव विकास का मापन-मानव विकास सूचकांक (HDI) स्वास्थ्य, शिक्षा और संसाधनों तक पहुंच जैसे प्रमुख क्षेत्रों में निष्पादन के आधार पर देशों का क्रम तैयार करता है। यह क्रम 0 से 1 के बीच के स्कोर पर आधारित होता है जो एक देश, मानव विकास के महत्त्वपूर्ण सूचकों में अपने रिकार्ड से प्राप्त करता है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

मानव विकास के सूचक (Indicators):
(1) जन्म के समय जीवन-प्रत्याशा।
(2) प्रौढ़ साक्षरता दर और सकल नामांकन अनुपात ज्ञान तक पहुँच को प्रदर्शित करते हैं।
(3) संसाधनों तक पहुंच को क्रय शक्ति के सन्दर्भ में मापा जाता है।

इनमें से प्रत्येक आयाम को 1/3 भारिता दी जाती है। मानव विकास सूचकांक इन सभी आयामों को दिए गए भारों का कुल योग होता है। स्कोर, 1 के जितना निकट होता है मानव विकास का स्तर उतना ही अधिक होता है। इस प्रकार 0.983 का स्कोर अति उच्च स्तर का जबकि 0.268 मानव विकास का अत्यन्त निम्न स्तर का माना जाएगा।

मानव विकास के उपागम
(Approaches of Human Development):

(i) आय उपागम (Income Approach):
यह मानव विकास के सबसे पुराने उपागमों में से एक है। इसमें मानव विकास को आय के साथ जोड़ कर देखा जाता है। विचार यह है कि आय का स्तर किसी व्यक्ति द्वारा भोगी जा रही स्वतन्त्रता के स्तर को परिलक्षित करता है। आय का स्तर ऊँचा होने पर, मानव विकास का स्तर भी ऊंचा होगा।

(ii) कल्याण उपागम (Welfare Approach):
यह उपागम मानव को लाभार्थी अथवा सभी विकासात्मक गतिविधियों के लक्ष्य के रूप में देखता है। यह उपागम शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और सुख-साधनों पर उच्चतर सरकारी व्यय का तर्क देता है। लोग विकास में प्रतिभोगी नहीं हैं किन्तु वे केवल निष्क्रिय प्राप्तकर्ता हैं। सरकार कल्याण पर अधिकतम व्यय करके मानव विकास के स्तरों में वृद्धि करने के लिए जिम्मेदार है।

(iii) आधारभूत आवश्यकता उपागम (Basic Needs Approach):
इस उपागम को मूल रूप से अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने प्रस्तावित किया था। इसमें छ: न्यूनतम आवश्यकताओं जैसे-स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, जलापूर्ति, स्वच्छता और आवास की पहचान की गई थी। इसमें मानव विकल्पों के प्रश्न की उपेक्षा की गई है और पारिभाषित वर्गों की मूलभूत आवश्यकताओं की व्यवस्था पर जोर दिया गया है।

(iv) क्षमता उपागम (Capability Approach);
इस उपागम का सम्बन्ध प्रो० अमर्त्य सेन से है। संसाधनों तक पहुँच के क्षेत्रों में मानव क्षमताओं का निर्माण बढ़ते मानव विकास की कुंजी है।

प्रश्न 6.
मानव विकास सूचकांक का वितरण उच्च, मध्य तथा निम्न मूल्य के आधार पर करो।
उत्तर:
प्रदेश देश के आकार और प्रति व्यक्ति आय का मानव विकास से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। प्रायः मानव विकास में बड़े देशों की अपेक्षा छोटे देशों का कार्य बेहतर रहा है। इसी प्रकार मानव विकास में अपेक्षाकृत निर्धन राष्ट्रों का कोटि-क्रम धनी पड़ोसियों से ऊँचा रहा है।
उदाहरण:
अपेक्षाकृत छोटी अर्थव्यवस्थाएँ होते हुए भी श्रीलंका, ट्रिनिडाड और टोबैगो का मानव विकास सूचकांक भारत से ऊँचा है। इसी प्रकार कम प्रति व्यक्ति आय के बावजूद मानव विकास में केरल का प्रदर्शन पंजाब और गुजरात से कहीं बेहतर है।

वितरण (Distribution):
अर्जित मानव विकास स्कोर के आधार पर देशों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
मानव विकास : संवर्ग, मानदण्ड और देश-2005

मानव विकास
का स्तर
मानव विकास
सूचकांक का स्कोर
देशों की
संख्या
उच्च 0.8 से ऊपर 57
मध्यम 0.5 से 0.799 के बीच 88
निम्न 0.5 से नीचे 32

(क) उच्च मानव विकास सूचकांक मूल्य वाले देश-उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देश वे हैं जिनका स्कोर.0.8 से ऊपर है। मानव विकास प्रतिवेदन 2005 के अनुसार इस वर्ग में 57 देश सम्मिलित हैं।
सर्वाधिक उच्च मूल्य सूचकांक वाले 10 देश-2005

क्रम सं० देश
1 नार्वे
2 आइसलैंड
3 ऑस्ट्रेलिया
4 लक्ज़मबर्ग
5 कनाडा
6 स्वीडन
7 स्विट्ज़रलैंड
8 आयरलैण्ड
9 बेल्जियम
10 संयुक्त राष्ट्र।

कारण:

  1. शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता है।
  2. उच्च मानव विकास वाले देशों में सामाजिक खंड में बहुत निवेश हुआ है।
  3. यहां सुशासन है।

(ख) मध्यम मानव विकास सूचकांक मूल्य. वाले देश-मानव विकास में मध्यम स्तरों वाले देशों का वर्ग विशाल है। इस वर्ग में कुल 88 देश हैं।
कारण:

  1. इस वर्ग के अधिकतर देश विकासशील देश हैं।
  2. कुछ देश पूर्वकालीन उपनिवेश थे।
  3. अनेक देशों का विकास 1990 ई० में तत्कालीन सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् हुआ।
  4. इन देशों में लोकोन्मुखी नीतियां हैं तथा सामाजिक भेदभाव नहीं।
  5. इन देशों में सामाजिक विविधता अधिक है।
  6. अधिकतर देशों को राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक विद्रोह का सामना करना पड़ा है।

(ग) निम्न मानव विकास सूचकांक वाले देश-इस वर्ग में 32 देश हैं।
कारण:

  1. अधिकतर छोटे-छोटे देश हैं।
  2. इन देशों में राजनीतिक उपद्रव, गृहयुद्ध, सामाजिक स्थिरता, अकाल तथा बीमारियां होती रही हैं। इन देशों में . मानव विकास को बेहतर बनाने की आवश्यकता है।
  3. निम्न स्तर के लिए संस्कृति या धर्म या समुदाय को दोष देना ग़लत है।
  4. निम्न स्तर वाले देशों में सुरक्षा पर अधिक व्यय होता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. निम्नलिखित में से किस विद्वान् ने भूगोल शब्द का प्रयोग किया?
(A) हेरोडोटस
(B) गैलिलियो
(C) इरेटा स्थिनीज़
(D) अरस्तु।
उत्तर:
इरेटा स्थिनीज़।

2. निम्नलिखित में से किस लक्षण को भौतिक लक्षण कहा जा सकता है?
(A) बन्दरगाह
(B) मैदान
(C) सड़क
(D) जल, उघात।
उत्तर:
मैदान।

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3. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रश्न कार्य-कारण सम्बन्ध से जुड़ा हुआ है?
(A) क्यों
(B) क्या
(C) कहां
(D) कब।
उत्तर:
क्यों।

4. निम्नलिखित में से कौन-सा विषय कालिक संश्लेषण करता है?
(A) समाज शास्त्र
(B) नृ-विज्ञान
(C) इतिहास
(D) भूगोल।
उत्तर:
इतिहास।

Matching Statements

प्रश्न 1.
स्तम्भ I एवं II के अन्तर्गत लिखे गए विषयों को पढ़िए।

स्तम्भ I

(Column I)

प्राकृतिक/सामाजिक विज्ञान

स्तम्भ II

(Column II)

भूगोल की शाखाएँ

1. मौसम विज्ञान (A) जनसंख्या भूगोल
2. जनांकिकी (B) मृदा भूगोल
3. समाज शास्त्र (C) जलवायु विज्ञान
4. मृदा विज्ञान (D) सामाजिक भूगोल।

सही मेल को चिह्नांकित कीजिए:
(क) 1. (B), 2. (C), 3. (A), 4. (D)
(ख) 1. (D), 2. (B), 3. (C), 4. (A)
(ग) 1. (A), 2. (D), 3. (B), 4. (C)
(घ) 1. (C), 2. (A), 3. (D), 4. (B)
उत्तर:
1. (C), 2. (A), 3. (D), 4. (B).

(स्व) लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भूगोल क्षेत्रीय विभिन्नताओं का अध्ययन है। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भूगोल पृथ्वी का अध्ययन है। भूगोल पृथ्वी को मानव का निवास स्थान या घर मानकर अध्ययन करता है। भूगोल सभी सामाजिक तथा प्राकृतिक विज्ञानों से सूचना प्राप्त करके यह अध्ययन करता है। पृथ्वी पर भौतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण में भिन्नता दिखाई देती है। अतएव भूगोल को क्षेत्रीय-भिन्नताओं का अध्ययन मानना तार्किक है। भूगोल उन सभी तथ्यों का अध्ययन करता है जो क्षेत्रीय सन्दर्भ में भिन्न होते हैं।

भूगोल कार्य-कारण नियम (Cause and effect) द्वारा इन विभिन्नताओं के उत्पत्ति के कारणों का भी अध्ययन करता है। इस सम्बन्ध में रिचर्ड हार्टशोर्न के अनुसार, “भूगोल का उद्देश्य धरातल की प्रादेशिक/क्षेत्रीय भिन्नता का वर्णन एवं व्याख्या करना है।” अल्फ्रेड हैटनर के अनुसार, “भूगोल धरातल के विभिन्न भागों में कारणात्मक रूप से सम्बन्धित तथ्यों में भिन्नता का अध्ययन करता है।”

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प्रश्न 2.
आप विश्वविद्यालय जाते समय किन महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक लक्षणों का पर्यवेक्षण करते हैं? क्या वे सभी समान हैं अथवा असमान हैं। इन्हें भूगोल के अध्ययन में सम्मिलित करना चाहिए अथवा नहीं? क्यों?
उत्तर:
विश्व विद्यालय जाते समय हम सड़क, रेल, बाज़ार, सिनेमाघर आदि सांस्कृतिक लक्षण देखते हैं। ये सभी लक्षण असमान हैं। उन सभी लक्षणों को भूगोल के अध्ययन में शामिल करना चाहिए क्योंकि इनका सम्बन्ध भौतिक भूगोल से है।

प्रश्न 3.
एक टेनिस गेंद, क्रिकेट गेंद, सन्तरा व लौकी में से कौन सी वस्तु की आकृति पृथ्वी की आकृति से मिलती जुलती है।
उत्तर:
सन्तरे की आकृति पृथ्वी की आकृति से मिलती-जुलती है क्योंकि यह फल पृथ्वी के समान दोनों सिरों पर चपटा होता है।

प्रश्न 4.
वनमहोत्सव में वृक्षारोपण किस प्रकार पारिस्थैतिक सन्तुलन बनाए रखते हैं?
उत्तर:
वनों की कमी को वृक्षारोपण से पूरा किया जाता है। वृक्ष हमें ऑक्सीजन, नम जलवायु तथा शीतलता प्रदान करते हैं। वृक्ष वन्य प्राणियों के आवास स्थल होते हैं तथा पारिस्थितिक सन्तुलन बनाए रखते हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 5.
हाथी, हिरण, वन्य प्राणी किस मण्डल में निवास करते हैं?
उत्तर:
ये सभी जैव मण्डल में रहते हैं। परीक्षा शैली पर आधारित अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

भूगोल एक विषय के रूप में JAC Class 11 Geography Notes

→ भूगोल एक विज्ञान के रूप में: भूगोल एक क्षेत्रीय विज्ञान है। भूगोल दो शब्दों का सुमेल है-भू-पृथ्वी। + गोल-गोलाकार (Ge = earth, Grapho = description)

→ भूगोल में समग्रता (Synthesis of Geography): मैकिंडर ने भौतिक तथा मानवीय भूगोल के संश्लेषण का विचार प्रकट किया।

→ भूगोल एक स्वतन्त्र विषय: आधुनिक युग में भूगोल को एक विज्ञान का रूप दिया जाता है। यह क्षेत्रीय विज्ञान है जो प्राकृतिक तथा सामाजिक लक्षणों का अध्ययन है।

→ भूगोल के लक्ष्य तथा उद्देश्य: भूगोल किसी क्षेत्र को उसकी समग्रता के रूप में अध्ययन करता है। इस सम्बन्ध में दो विधियां-प्रादेशिक अध्ययन तथा क्रमबद्ध अध्ययन प्रयोग की जाती हैं।

→ अन्य विषयों से सम्बन्ध: भूगोल का सम्बन्ध भू-आकृति विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास आदि से है। भौतिक तथा मानवीय भूगोल दो मुख्य विषय हैं। इनके अन्तर्गत भू-विज्ञान, जलवायु विज्ञान, मृदा विज्ञान, सामाजिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, जनसंख्या भूगोल तथा राजनीतिक भूगोल के विषय हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो
1. वस्तुओं की गुणवत्ता किस कारक पर निर्भर नहीं
(A) परिवहन
(B) संचार
(C) व्यापार
(D) उत्पादन मात्रा।
उत्तर:
(D) उत्पादन मात्रा।

2. परिवहन किस को सहायक नहीं है ?
(A) सहकारिता
(B) एकता
(C) सुरक्षा
(D) आखेट।
उत्तर:
(D) आखेट।

3. कौन-सा साधन एक द्वार से दूसरे द्वार तक सेवा प्रदान करता है ?
(A) रेलें
(B) सड़कें
(C) वायुमार्ग
(D) पाईप लाइनें।
उत्तर:
(B) सड़कें

4. किस साधन द्वारा उच्च मूल्य वाली हल्की वस्तुओं का परिवहन होता है ?
(A) रेलें
(B) सड़कें
(C) वायुमार्ग
(D) जलमार्ग।
उत्तर:
(C) वायुमार्ग

5. कौन-सा परिवहन साधन भारी वस्तुएं अधिक मात्रा में ले जाने के लिए उपयुक्त है ?
(A) सड़कें
(B) रेलें
(C) वायुमार्ग
(D) पाइपलाइनें।
उत्तर:
(B) रेलें

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

6. प्रथम सार्वजनिक रेलमार्ग कब आरम्भ की गई ?
(A) 1815
(B) 1825
(C) 1830
(D) 1835.
उत्तर:
(B) 1825

7. किस वस्तु का पाइपलाइनों द्वारा परिवहन नहीं होता है ?
(A) खनिज तेल
(B) गैस
(C) जल
(D) कोयला।
उत्तर:
(D) कोयला।

8. कौन-सा साधन भारी सामान वाहक है ? .
(A) नाव
(B) वैगन
(C) ऊंट
(D) बारज।
उत्तर:
(D) बारज।

9. किस देश में अब भी मानव द्वारा गाड़ियां खींची जाती हैं
(A) कोरिया
(B) जापान
(C) चीन
(D) रूस।
उत्तर:
(C) चीन

10. किस प्रदेश में रेडियर बोझा ढोने वाला पशु है
(A) अफ्रीका
(B) ऑस्ट्रेलिया
(C) साइबेरिया
(D) दक्षिणी अमेरिका।
उत्तर:
(C) साइबेरिया

11. भारत में सबसे लम्बा राष्ट्रीय महामार्ग कौन-सा है ?
(A) NH 5
(B) NH6
(C) NH 7
(D) NH 8.
उत्तर:
(C) NH 7

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

12. मानक मापक की रेल की पटरी की चौड़ाई है
(A) 1.5 मीटर
(B) 1.44 मीटर
(C) 1 मीटर
(D) 0.75 मीटर।
उत्तर:
(C) 1 मीटर

13. ऑस्ट्रेलियन राष्ट्रीय रेलमार्ग इन स्थानों को जोड़ती है ?
(A) पर्थ से सिडनी।
(B) डारविन से मेलबोर्न
(C) ब्रिसबेन से एडीलेड
(D) सिडनी से कालगुर्ली।
उत्तर:
(A) पर्थ से सिडनी।

14. उस्पलाटा दर्रा कहां स्थित है ?
(A) एंडीज़ पर्वत
(B) राकी पर्वत
(C) आल्पस पर्वत
(D) हिमालय पर्वत।
उत्तर:
(A) एंडीज़ पर्वत

15. क्टांगा-जांबिया तांबा क्षेत्र में रेलमार्ग है ?
(A) तंजानिया
(B) बेग्रेएला
(C) ज़िम्बाब्बे
(D) ब्लू रेल।
उत्तर:
(B) बेग्रेएला

16. ट्रांस कनेडियन रेलमार्ग कब आरम्भ हुआ ?
(A) 1876
(B) 1886
(C) 1896
(D) 1898.
उत्तर:
(B) 1886

17. स्वेज नहर का निर्माण कब हुआ ?
(A) 1849
(B) 1859
(C) 1869
(D) 1879.
उत्तर:
(C) 1869

18. संसार में सब से लम्बा महामार्ग कौन-सा है ?
(A) पैन अमेरिकन
(B) ट्रांस कनेडियन
(C) ग्रांड ट्रंक
(D) ग्रेट दक्कन।
उत्तर:
(A) पैन अमेरिकन

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

19. संसार में सबसे लम्बा रेलमार्ग कौन-सा है ?
(A) यूनियन पैसिफ़िक
(B) कनेडियन नैशनल
(C) ट्रांस साइबेरियन
(D) ट्रांस एण्डियन।
उत्तर:
(C) ट्रांस साइबेरियन

20. स्वेज नहर किन सागरों को जोड़ती है ?
(A) भूमध्य सागर तथा रक्त सागर
(B) काला सागर तथा भूमध्य सागर
(C) उत्तरी सागर तथा बाल्टिक सागर
(D) बाल्टिक तथा श्वेत सागर।
उत्तर:
(A) भूमध्य सागर तथा रक्त सागर

21. पनामा नहर किन सागरों को जोड़ती है ?
(A) अन्ध महासागर तथा हिन्द महासागर
(B) प्रशान्त तथा हिन्द महासागर
(C) अन्ध महासागर तथा प्रशान्त महासागर
(D) भूमध्य सागर तथा रक्त सागर।
उत्तर:
(C) अन्ध महासागर तथा प्रशान्त महासागर

22. महामार्गों की चौड़ाई है
(A) 50 मीटर
(B) 60 मीटर
(C) 70 मीटर
(D) 80 मीटर।
उत्तर:
(D) 80 मीटर।

23. ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग के पूर्वी छोर पर स्थित स्टेशन है ?
(A) हनोई
(B) शंघाई
(C) टोक्यिो
(D) व्लाडी वास्टेक।
उत्तर:
(D) व्लाडी वास्टेक।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

24. ट्रांस कनेडियन रेलमार्ग के पश्चिमी छोर पर स्थित स्टेशन है ?
(A) मांट्रियाल
(B) सेन फ्रांसिस्को
(C) वेनकूवर
(D) सेंट जॉन।
उत्तर:
(C) वेनकूवर

25. ‘आर्य भट्ट’ कब अंतरिक्ष में छोड़ा गया ?
(A) 1980
(B) 1979
(C) 1981
(D) 1975.
उत्तर:
(D) 1975

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
उन तीन तत्त्वों के नाम लिखो जो एक स्थान पर इकट्ठे नहीं मिलते।
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधन, आर्थिक क्रियाएं तथा बाजार।

प्रश्न 2.
कौन-से तीन कारक उत्पादक केन्द्रों तथा खपत केन्द्रों को जोड़ते हैं ?
उत्तर:
परिवहन, संचार तथा व्यापार।

प्रश्न 3.
परिवहन ने किस प्रकार एक विशिष्ट रूप धारण किया है ?
उत्तर:
परिवहन योजक तथा वाहक उपलब्ध कराता है जिनके माध्यम से व्यापार सम्भव होता है।

प्रश्न 4.
परिवहन जाल क्या होता है ?
उत्तर:
अनेक स्थान जिन्हें परस्पर मार्गों की श्रेणियों द्वारा जोड़ दिए जाने पर जिस प्रारूप का निर्माण होता है, उसे परिवहन जाल कहते हैं।

प्रश्न 5.
विश्व में परिवहन के मुख्य साधन बताओ।
उत्तर:
स्थल, जल, वायु और पाईप-लाइन।

प्रश्न 6.
आरम्भिक दिनों में किन पशुओं को बोझा ढोने के लिए प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर:
खच्चर, घोड़े, ऊंट।

प्रश्न 7.
पहिए के आविष्कार से पूर्व कौन-से परिवहन साधन थे ?
उत्तर:
पालतू पशुओं द्वारा परिवहन का कार्य किया जाता था।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

प्रश्न 8.
सर्वप्रथम रेल कब और कहां आरम्भ हुई ?
उत्तर:
पहली सार्वजनिक रेलवे 1825 में सटॉक्टन तथा डार्लिंगटन के मध्य आरम्भ हुई।

प्रश्न 9.
सड़क परिवहन में किस आविष्कार के कारण क्रान्ति हुई ?
उत्तर:
अंतर्दहन इंजन।

प्रश्न 10.
उन तीन आर्थिक पक्षों के नाम बताओ जहां सड़कें महत्त्वपूर्ण हैं ?
उत्तर:
व्यापार, वाणिज्य, पर्यटन।

प्रश्न 11.
संसार में मोटर वाहन सड़कों की कुल लम्बाई बताओ।
उत्तर:
लगभग 15 मिलियन कि० मी०।।

प्रश्न 12.
नगरों में सड़कों पर ट्रैफिक शीर्ष बिन्दु पर कब होता है ?
उत्तर:
काम के समय से पहले तथा पश्चात्।

प्रश्न 13.
उत्तरी अमेरिका में महामार्गों का घनत्व क्या है ?
उत्तर:
0.65 कि० मी० प्रति वर्ग कि० मी०।

प्रश्न 14.
ट्रांस कनेडियन महामार्ग किन दो नगरों को जोड़ता है ?
उत्तर:
वेनकूवर तथा सेंट जॉन।

प्रश्न 15.
अलास्का महामार्ग किन दो नगरों को जोड़ता है ?
उत्तर:
एडमंटन तथा एनकोरेज।

प्रश्न 16.
डार्विन तथा मेलबोर्न को जोड़ने वाले महामार्ग का नाम लिखो।
उत्तर:
ट्रांस महाद्वीपीय स्टुअरट महामार्ग।

प्रश्न 17.
चीन तथा तिब्बत में बने नए महामार्ग द्वारा किन स्थानों को जोड़ा गया है ?
उत्तर:
चेंगटू तथा ल्हासा।

प्रश्न 18.
अफ्रीका के किन दो महानगरों को एक महाद्वीपीय महामार्ग जोड़ता है ?
उत्तर:
काहिरा तथा केपटाऊन।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

प्रश्न 19.
रेलमार्गों की विभिन्न गेजों की चौड़ाई कितनी है ?
उत्तर:
(1) बड़ी लाइन-1.5 मीटर से अधिक
(2) मानक लाइन-1.44 मीटर
(3) मीटर लाइन–1 मीटर।

प्रश्न 20.
किन देशों में कंप्यूटर रेलें लोकप्रिय हैं ?
उत्तर:
इंग्लैंड, संयुक्त राज्य, जापान तथा भारत में लाखों यात्री प्रतिदिन नगरों की ओर तथा वापिस यात्रा करते हैं।

प्रश्न 21.
किस देश में सर्वाधिक रेल घनत्व है ?
उत्तर:
बेल्जियम-1 कि० मी० प्रति 6.5 वर्ग कि० मी०।

प्रश्न 22.
यूरोप के किन तीन नगरों में भूमिगत रेलमार्ग हैं ?
उत्तर:
लन्दन, पेरिस, मास्को।

प्रश्न 23.
लन्दन तथा पेरिस को जोड़ने वाली सुरंग बताओ।
उत्तर:
यूरो चैनल सुरंग।

प्रश्न 24.
पश्चिम-पूर्व ऑस्ट्रेलियन द्वारा कौन-से दो नगर जोड़े गए हैं ?
उत्तर:
पर्थ तथा सिडनी।

प्रश्न 25.
दक्षिणी अमेरिका की एक पार महाद्वीपीय रेलमार्ग बताओ। यह किस दर्रे से गुजरती है ?
उत्तर:
ट्रांस एण्डियन रेलमार्ग जो वालप्रेसो तथा ब्यूनस आयर्स को जोड़ती है तथा उस्पलाटा ! (3900 मीटर) से गुज़रती है।

प्रश्न 26.
ब्लू ट्रेन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
एक रेलमार्ग जो दक्षिण अफ्रीका में केपटाऊन से प्रीटोरिया तक जाता है।

प्रश्न 27.
ऑस्टेलियन पार महाद्वीपीय रेलमार्ग पर स्थित दो खनन नगर बताओ।
उत्तर:
कालगुर्ली तथा ब्रोकन हिल।

प्रश्न 28.
आरियंट एक्सप्रेस रेलमार्ग किन स्थानों को जोड़ती है ?
उत्तर:
पेरिस तथा इस्तंबुल।।

प्रश्न 29.
प्रस्तावित ट्रांस एशियाटिक रेलमार्ग किन देशों को जोड़ेगी ?
उत्तर:
इरान, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, म्यानमार।

प्रश्न 30.
स्वेज नहर के दो छोरों पर स्थित पत्तन बताओ।
उत्तर:
पोर्ट सईद (उत्तर) तथा पोर्ट स्वेज़ (दक्षिण)।

प्रश्न 31.
स्वेज नहर पर स्थित तीन झीलें बताओ।
उत्तर:
तिमशा झील, ग्रेट बिटर झील, लिटल बिटर झील।

प्रश्न 32.
पनामा नहर के दो छोरों पर स्थित पत्तन बताओ।
उत्तर:
कोलोन अन्ध महासागर तथा पनामा प्रशान्त महासागर।

प्रश्न 33.
पनामा नहर की तीन द्वार प्रणालियां बताओ।
उत्तर:
गातुन, पेडरो मिकुएल, मीरा फ्लोरज़।

प्रश्न 34.
किस देश में राईन जलमार्ग बहता है ?
उत्तर:
जर्मनी तथा नीदरलैंड में (रोटरडम) से बेसिल (स्विट्ज़रलैंड) तक।

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प्रश्न 35.
कौन-सी नहर मास्को को काला सागर तक जोड़ती है ?
उत्तर:
बाल्गा-मास्को नहर तथा वाल्गा-डान नहर।

प्रश्न 36.
उत्तरी अमेरिका में एक आन्तरिक जलमार्ग बताओ।
उत्तर:
सेंट लारेंस नदी-महान् झीलें।

प्रश्न 37.
विश्व में कितनी वाणिज्यक एयर लाइनें हैं ?
उत्तर:
लगभग 250.

प्रश्न 38.
एशिया में एक प्रस्तावित पाइपलाइन बताओ।
उत्तर:
प्रस्तावित पाइपलाइन इरान-पाकिस्तान-भारत तेल गैस पाइपलाइन है।

प्रश्न 39.
इंटरनेट से कितने लोग विश्व से जुड़े हैं ?
उत्तर:
लगभग 1000 मिलियन।

प्रश्न 40.
APPLE का विस्तार करें।
उत्तर:
Asian Passenger Pay Load Experiment.

प्रश्न 41.
किस प्रकार का परिवहन भारी तथा बड़ी वस्तुओं के कम मूल्य पर अधिक दूरी के परिवहन के लिए उपयुक्त है?
उत्तर:
जल मार्ग।

प्रश्न 42.
निम्नलिखित में से किस जलमार्ग ने भारत तथा यूरोप के मध्य दूरी अत्यधिक कम की है –
(i) राईन जल मार्ग
(ii) आशा अन्तरीय मार्ग
(iii) स्वेज नहर
(iv) पनामा नहर।
उत्तर:
स्वेज नहर।

प्रश्न 43.
उस रेलवे लाईन जो एक महाद्वीप के आर-पार गुजरती है तथा इसके दोनों सिरों को जोड़ती है, को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग।

प्रश्न 44.
उस प्रसिद्ध पेट्रोलियम पाइप लाईन का नाम लिखो जो खाड़ी मैक्सिको के तेल कुओं को उत्तरी पूर्वी राज्यों (यू-एस-ए) से जोड़ती है?
उत्तर:
बिग इंच पाईप लाईन।

प्रश्न 45.
वैश्विक संचार तंत्र के किस ग्रन्थ ने क्रान्ति ला दी है ?
उत्तर:
विद्युतीय प्रौद्योगिकी।

प्रश्न 46.
स्वेज नहर किन दो सागरों को मिलाती है ?
उत्तर:
भूमध्य सागर तथा रक्त सागर।

प्रश्न 47.
वृहद् ट्रंक मार्ग किन दो क्षेत्रों को मिलाता है ?
उत्तर:
पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

प्रश्न 48.
बिंग इंच क्या है ?
उत्तर:
बिंग इंच एक तेल पाइप लाइन है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘विशाल उत्पादन और विनिमय की प्रणाली अत्यन्त जटिल है’ व्याख्या करें।
उत्तर:
प्रत्येक देश उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करता है जिसके लिए वहां आदर्श दशाएं उपलब्ध होती हैं। ऐसी वस्तुओं का व्यापार एवं विनिमय परिवहन और संचार पर निर्भर करता है। इसी प्रकार जीवन स्तर व जीवन की गुणवत्ता भी दक्ष परिवहन, संचार एवं व्यापार पर निर्भर है।

प्रश्न 2.
परिवहन के विभिन्न साधन बताओ। इनके द्वारा विभिन्न वस्तुओं का परिवहन बताओ।
उत्तर:
परिवहन व्यक्तियों और वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक वहन करने की सेवा को कहते हैं। इसमें मनुष्य, पशु तथा विभिन्न प्रकार की गाड़ियों का प्रयोग किया जाता है। ये परिवहन साधन स्थल, जल तथा वायु पर कार्य करते हैं।

  1. स्थल परिवहन-इनमें सड़कें तथा रेलें शामिल हैं।
  2. जल परिवहन-इनमें जहाज़ी मार्ग तथा जलमार्ग शामिल हैं।
  3. वायु परिवहन-ये उच्च मूल्य वस्तुओं का परिवहन करते हैं।
  4. पाइप लाइनें– इनके द्वारा पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा तरल पदार्थों का परिवहन होता है।

प्रश्न 3.
परिवहन साधन का महत्त्व किन कारकों पर निर्भर करता है ?
उत्तर:
परिवहन साधनों का महत्त्व निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है –

  1. परिवहन की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के प्रकार।
  2. परिवहन की लागत।
  3. उपलब्ध परिवहन साधन।

प्रश्न 4.
स्थल परिवहन तथा जल परिवहन साधनों में नए परिवर्तनों का वर्णन करें।
उत्तर:
पाइपलाइनें, राजमार्गों तथा तार मार्गों का प्रयोग स्थल परिवहन में होने लगा है। पाइपलाइनों द्वारा तरल पदार्थों-खनिज तेल, जल, अवतल और नाली मल का परिवहन होता है। रेलमार्ग, समुद्री पोत, बजरे, नौकाएं, मोटर, ट्रक बड़े मालवाहक हैं।

प्रश्न 5.
पक्की सड़कों तथा कच्ची सड़कों की उपयोगिता की तुलना करो।
उत्तर:
सड़कें दो प्रकार की हैं –
(i) कच्ची
(ii) पक्की।
(i) कच्ची सड़कें – ये सरल सड़कें हैं, जो सतह पर बनाई जाती हैं। ये सभी ऋतुओं में अधिक प्रभावशाली तथा वाहन योग्य नहीं हैं। वर्षा ऋतु में ये वहन योग्य नहीं होती।
(ii) पक्की सड़कें – ये ईंटों तथा पत्थरों से बनाई जाती हैं। ये ठोस होती हैं। परन्तु वर्षा ऋतु में तथा बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में इनको हानि पहुंचती है। इनके किनारों के साथ ऊंची दीवारें बना कर सुरक्षित किया जाता है।

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प्रश्न 6.
चीन में प्रमुख नगरों को जोड़ने वाले महामार्गों का वर्णन करो।
उत्तर:
चीन में महामार्ग प्रमुख नगरों को जोड़ते हुए देश में क्रिस-क्रॉस करते हैं।
उदाहरण:

  1. ये शांसो (वियतनाम सीमा के समीप)
  2. शंघाई (मध्य चीन)
  3. ग्वांगजाओ (दक्षिण) एवं बीजिंग उत्तर को परस्पर जोड़ते हैं। एक नवीन महामार्ग तिब्बती क्षेत्र में चेगडू को ल्हासा से जोड़ता है।

प्रश्न 7.
भारत के दो प्रमुख महामार्गों का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में अनेक महामार्ग पाए जाते हैं जो प्रमुख शहरों और नगरों को जोड़ते हैं।

  1. उदाहरणस्वरूप राष्ट्रीय महामार्ग संख्या 7 जो वाराणसी को कन्याकुमारी से जोड़ता है, देश का सबसे लम्बा राष्ट्रीय महामार्ग है।
  2. निर्माणाधीन स्वर्णिम चतुर्भुज (Golden Quadrilateral) अथवा द्रुतमार्गों के द्वारा प्रमुख महानगरों नयी दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, चेन्नई, कोलकाता तथा हैदराबाद को जोड़ने की योजना है।

प्रश्न 8.
सीमावर्ती सड़कों से क्या अभिप्राय है ? इनके क्या कार्य हैं ?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं के सहारे बनाई गई सड़कों को सीमावर्ती सड़कें कहा जाता है। ये सड़कें सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को प्रमुख नगरों से जोड़ने और प्रतिरक्षा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रायः सभी देशों में गाँवों एवं सैन्य शिविरों तक वस्तुओं को पहुँचाने के लिए ऐसी सड़कें पाई जाती हैं।

प्रश्न 9.
ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग को जोड़ने वाले योजक मार्ग बताओ।
उत्तर:
इस रेलमार्ग को दक्षिण से जोड़ने वाले योजक मार्ग भी हैं, जैसे ओडेसा (यूक्रेन), कैस्पियन तट पर बाकू, ताशकंद (उज़्बेकिस्तान), उलन बटोर (मंगोलिया) और रोनयांग (मक्देन) चीन में बीजिंग की ओर।।

प्रश्न 10.
जल मार्गों के लाभ बताओ।
उत्तर:
जल परिवहन के महत्त्वपूर्ण लाभों में से एक यह है कि इसमें मार्गों का निर्माण नहीं करना पड़ता। महासागर एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। इनमें विभिन्न आकार के जहाज़ चल सकते हैं। आवश्यकता केवल दोनों छोरों पर पत्तन सुविधाएं प्रदान करने की हैं। यह परिवहन बहुत सस्ता पड़ता है क्योंकि जल का घर्षण स्थल की अपेक्षा बहुत कम होता है। जल परिवहन की ऊर्जा लागत की अपेक्षाकृत कम होती है।

प्रश्न 11.
कई नदियों की नौगम्यता को किस प्रकार बढ़ाया गया है ?
उत्तर:

  1. नदी तल को गहरा करके
  2. नदी तल को स्थिर करके
  3. नदियों पर बांध बना कर इस जल प्रवाह को नियन्त्रित करके।

प्रश्न 12.
महान् झीलों तथा सेंटलारेंस समुद्री मार्ग का वर्णन करो।
उत्तर:
वृहद झीलें सेंटलारेंस समुद्री मार्ग-उत्तरी अमेरिका की वृहद् झीलें सुपीरियर, यूरन, इरी तथा ओंटारियो, सू नहर तथा वलैंड नहर के द्वारा जुड़े हुए हैं, तथा आन्तरिक जलमार्ग की सुविधा प्रदान करते हैं। सेंट लॉरेंस नदी की एश्चुअरी वृहद् झीलों के साथ उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भाग में विशिष्ट वाणिज्यिक जलमार्ग का निर्माण करती है।

प्रश्न 13.
दक्षिणी गोलार्द्ध में 10-35° अक्षांश के मध्य वायु सेवाएं सीमित क्यों हैं ?
उत्तर:

  1. विरल जनसंख्या के कारण
  2. सीमित स्थल खण्ड के कारण
  3. सीमित आर्थिक विकास के कारण।

प्रश्न 14.
अंतःस्थलीय जलमार्गों के विकास के लिए उत्तरदायी तीन कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नदियां, नहरें तथा झीलें महत्त्वपूर्ण अंत: स्थलीय जलमार्ग हैं। अंत:स्थलीय जलमार्गों का विकास निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है –

  1. जलधारा की चौड़ाई एवं गहराई-कई नदियों में नाव्यता बढ़ाने के लिए सुधार किए गए हैं।
  2. जल प्रवाह की निरंतरता-जल प्रवाह की निरंतरता को बनाए रखने के लिए बांधों तथा बराजों का निर्माण किया गया है।
  3. परिवहन प्रौद्योगिकी का प्रयोग नदी में पानी की एक निश्चित गहराई को बनाए रखने के लिए उसकी तलहटी से सिल्ट तथा बालू निकालकर सफ़ाई करना।

प्रश्न 15.
सड़क परिवहन सुविधाजनक क्यों होता है ?
उत्तर:
आधुनिक युग में सड़कें स्थल यातायात का मुख्य साधन हैं। छोटी दूरी के लिए सड़कें एक सस्ता परिवहन साधन है। सड़कों द्वारा तीव्र गति से परिवहन सम्भव है। सड़क परिवहन द्वारा उत्पादन वस्तुएं उपभोक्ता के द्वार तक पहँचाई जा सकती हैं। ऊँचे-नीचे प्रदेशों पर भी सड़क परिवहन सम्भव है। सड़कों द्वारा थोड़े में निर्मित माल बाजारों तक भेजा जा सकता है।

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प्रश्न 16.
ट्रांस-साइबेरियन रेलमार्ग के आर्थिक महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर:
टांस-साइबेरियन रेलमार्ग रूस के पर्वी भाग, साइबेरिया तथा यराल प्रदेश को जोड़ती है। इस रेल मार्ग से साइबेरिया के आर्थिक विकास में सहायता मिली है। इस रेलमार्ग द्वारा पूर्वी क्षेत्र को मशीनरी तथा लोहा भेजा जाता है। साइबेरिया से पश्चिम की ओर खाद्यान्न, लकड़ी तथा कोयला भेजा जाता है। इस रेलमार्ग के उत्तर तथा दक्षिण की ओर नदियों द्वारा माल ढोया जाता है। इस व्यापारिक मार्ग पर साइबेरिया के मुख्य नगर स्थित हैं। इस रेलमार्ग के विकास से साइबेरिया में जनसंख्या की घनत्व बढ़ी है।

प्रश्न 17.
परिवहन जाल को संक्षिप्त में परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अनेक स्थान जिन्हें परस्पर मार्गों की श्रेणियों द्वारा जोड़ दिए जाने पर जिस प्रारूप का निर्माण होता है उसे परिवहन जाल कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘परिवहन एक संगठित सेक उद्योग है’ व्याख्या करो।
उत्तर:

  1. परिवहन समाज की आधारभूत आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए रचा गया एक संगठित सेवा उद्योग है।
  2. इसके अन्तर्गत परिवहन मार्गों, लोगों और वस्तुओं के वहन हेतु गाड़ियों, मार्गों के रख-रखाव और लदान, उतराव तथा वितरण का निपटान करने के लिए संस्थाओं का समावेश किया जाता है।
  3. प्रत्येक देश ने प्रतिरक्षा उद्देश्यों के लिए विभिन्न प्रकार के परिवहन का विकास किया है।
  4. दक्ष संचार व्यवस्था से युक्त आश्वासित एवं तीव्रगामी परिवहन प्रकीर्ण लोगों के बीच सहयोग एवं एकता को प्रोन्नत करता है।

प्रश्न 2.
विभिन्न देशों में बोझा ढोने वाले पशुओं का वर्णन करो। उत्तर-बोझा ढोने वाले पशु

  1. घोड़ा (Horse) – घोड़ों का प्रयोग पश्चिमी देशों में भी भारवाही पशुओं के रूप में किया जाता है।
  2. कुत्ते एवं रेडियर (Dogs and Reindeer) – कुत्तों एव रेडियरों का प्रयोग उत्तरी अमेरिका, उत्तरी यूरोप और साइबेरिया के हिमाच्छादित मैदानों में स्लेज को खींचने के लिए किया जाता है।
  3. खच्चर (Mules) – पर्वतीय प्रदेशों में खच्चरों को वरीयता दी जाती है।
  4. ऊँट (Camel) – ऊँटों का प्रयोग मरुस्थलीय क्षेत्रों में कारवानों के संचालन में किया जाता है।
  5. बैल (Bullock) – भारत में बैलों का प्रयोग छकड़ों को खींचने में किया जाता है।

प्रश्न 3.
अफ्रीका महाद्वीप के प्रमुख रेलमार्गों का वर्णन करो। ये किन-किन खनन क्षेत्रों को जोड़ती हैं ?
उत्तर:
दूसरा विशालतम महाद्वीप होने के बावजूद अफ्रीका में केवल 40,000 कि०मी० लम्बे रेलमार्ग हैं जिनमें से सोने, हीरे के सान्द्रण और ताँबा-खनन क्रियाकलापों के कारण अकेले दक्षिण अफ्रीका में 18,000 कि०मी० लम्बे रेलमार्ग हैं।

महाद्वीप के प्रमुख रेलमार्ग हैं –

  1. बेंगुएला रेलमार्ग जो अंगोला से कटंगा-जांबिया ताँबे की पेटी से होकर जाता है;
  2. तंजानिया रेलमार्ग जांबिया ताम्र पेटी से तट पर स्थित दार-ए-सलाम तक;
  3. बोसवाना और जिंबाब्वे से होते हुए रेलमार्ग जो स्थलरुद्ध राज्यों को दक्षिण अफ्रीकी रेलतन्त्र से जोड़ता है; और
  4. दक्षिण अफ्रीका गणतन्त्र में केपटाउन से प्रेटोरिया तक ब्लू ट्रेन।

प्रश्न 4.
महामार्गों से क्या अभिप्राय है ? इनकी विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
महामार्ग (Highway) – महामार्ग दूरस्थ स्थानों को जोड़ने वाली पक्की सड़कें होती हैं जो कि अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार बनाए जाते हैं। इनका रख-रखाव केन्द्र एवं राज्य सरकारें करती हैं।

विशेषताएं:

  1. इनका निर्माण इस प्रकार से किया जाता है कि अबाधित रूप से यातायात का आवागमन हो सके।
  2. यातायात के अबाधित प्रवाह की सुविधा के लिए अलग-अलग यातायात लेन बनाए जाते हैं।
  3. ये पुलों, फ्लाईओवरों और दोहरे वाहन मार्गों से युक्त होते हैं।
  4. ये 80 मीटर चौड़ी सड़कें होती हैं।
  5. विकसित देशों में प्रत्येक नगर और पत्तन नगर महामार्गों द्वारा जुड़े हुए हैं।

प्रश्न 5.
राइन जलमार्ग का वर्णन करो।
उत्तर:
राइन जलमार्ग (Rhine Waterway):
राइन नदी जर्मनी और नीदरलैंड से होकर प्रवाहित होती है। नीदरलैण्ड में रोटरर्डम में अपने मुहाने से लेकर स्विटज़लैण्ड में बेसल तक यह 700 कि०मी० लम्बाई में नौकायन योग्य हैं। सामुद्रिक पोत कोलोन तक पहुँच सकते हैं। रूर नदी पूर्व से आकर राइन नदी में मिलती है। यह नदी एक सम्पन्न यला क्षेत्र से होकर प्रवाहित होती है तथा सम्पूर्ण नदी बेसिन विनिर्माण क्षेत्र की दृष्टि से अत्यधिक सम्पन्न है। इस प्रदेश में डसलडोर्क राइन नदी पर स्थित पत्तन है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

रूर के दक्षिण में फैली पट्टी से होकर भारी वस्तुओं का आवागमन होता है। यह जलमार्ग विश्व का अत्यधिक प्रयोग में लाया जाने वाला जलमार्ग है। प्रतिवर्ष 20,000 से अधिक समुद्री जलयान तथा लगभग 2 लाख आन्तरिक मालवाहक पोत वस्तुओं एवं सामग्रियों का आदान-प्रदान करते हैं। यह जलमार्ग स्विटरज़लैण्ड, जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम तथा नीदरलैण्ड के औद्योगिक क्षेत्रों को उत्तरी अटलांटिक समुद्री मार्ग से जोड़ता है।

प्रश्न 6.
पाइप लाइनों का विस्तृत उपभोग खनिज तेल और प्राकृतिक गैस जैसी सामग्रियों का परिवहन करने के लिए क्यों होता है ?
उत्तर:
पाइप लाइन-पाइप लाइनों का अधिक प्रयोग तरल तथा गैस पदार्थों, जैसे जल, खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस, के परिवहन के लिए किया जाता है, क्योंकि इसमें इनका प्रवाह सतत् बना रहता है। हम लोग पाइप लाइनों द्वारा जल तथा खनिज तेल की आपूर्ति के बारे में पहले से परिचित हैं। संसार के अनेक भागों में खाना-पकाने की गैस (एल०पी०जी०) की आपूर्ति पाइप लाइनों द्वारा ही की जाती है। पानी के साथ मिलाकर कोयले के चूर्ण का परिवहन भी पाइप लाइनों के द्वारा किया जा सकता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में तेल को उत्पादन क्षेत्रों से उपभोग क्षेत्रों तक ले जाने के लिए पाइप लाइनों का सघन जाल बिछा हुआ है।इनमें सबसे प्रसिद्ध पाइप लाइन ‘बिग इंच’ है, जो कि खाड़ी के तटीय कुओं से प्राप्त तेल को उत्तरी-पूर्वी भाग में पहुँचाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कुल प्रति टन किलोमीटर माल ढुलाई का 17 प्रतिशत पाइप लाइन द्वारा ही ढोया जाता है।

यूरोप, पश्चिमी एशिया, रूस और भारत में तेल कुओं को परिष्करणशालाओं एवं आन्तरिक बाज़ार से जोड़ने के लिए पाइप लाइनों का ही प्रयोग किया जाता है। एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्राकृतिक गैस पहुँचाने के लिए भी पाइप लाइन का अधिक प्रयोग होता है। पूर्वी यूरोपीय देशों में यूराल और वोल्गा के बीच के तेल कुओं को जोड़ने के लिए बनाई गई कामेकान नामक पाइप लाइन 4800 कि० मी० लम्बी है, जो संसार की एक सबसे लम्बी पाइप लाइन है।

प्रश्न 7.
यातायात के साधन किसी देश की जीवन रेखाएं क्यों कही जाती हैं ?
उत्तर:
यातायात के साधन राष्ट्ररूपी शरीर की धमनियां हैं। किसी भी देश की आर्थिक व सामाजिक उन्नति यातायात के साधनों के विकास पर निर्भर है। देश के प्राकृतिक साधनों का पूरा लाभ उठाने के लिए इन साधनों का विकास आवश्यक है। परिवहन साधन व्यापार तथा उद्योगों की आधारशिला हैं।

देश के दूर-दूर स्थित भागों को यातायात साधनों द्वारा मिलाकर एक राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का निर्माण होता है। इस प्रकार यातायात के साधन राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में सहायक होते हैं। विभिन्न प्रदेशों में मानव तथा पदार्थों की गतिशीलता यातायात के साधनों पर निर्भर करती है। जिस प्रकार शरीर में नाड़ियों द्वारा रक्त प्रवाह होता है उसी प्रकार किसी देश में सड़कों, रेलमार्गों, जलमार्गों आदि द्वारा व्यापारिक वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है। इसलिए यातायात के साधनों को देश की जीवन रेखाएं कहा जाता है।

प्रश्न 8.
“यातायात और संचार साधनों के आधुनिक विकास ने संसार को छोटा कर दिया है,” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यातायात और संचार साधनों के विकास से मानव ने समय और दूरी पर विजय प्राप्त कर ली है। तेज गति वाले परिवहन साधनों द्वारा दूरस्थ स्थानों को कम समय में पहुंचा जा सकता है। पृथ्वी पर दूर-दूर स्थित भू-भाग एक-दूसरे के निकट आ रहे हैं। आधुनिक साधनों विशेषकर वायुयानों के कारण परिवहन भूगोल में दूरी के तत्त्व में बहुत परिवर्तन हुए हैं। प्राचीन समय में यातायात के प्रमुख साधन स्थलमार्ग थे। ये साधन कठिन तथा धीमी गति वाले थे जिससे दूर-दूर स्थित देशों के साथ कोई सम्पर्क नहीं था।

जल-यातायात के विकास के कारण नये-नये क्षेत्रों की खोज की गई, नए समुद्री मार्गों का विकास हुआ तथा दूर-दूर के क्षेत्रों में आना-जाना तथा व्यापार सम्भव हो सका। स्टीम इंजन, तेल इंजन, प्रशीतन भण्डार वाले जलयानों के प्रयोग से जल यातायात अधिक सुविधाजनक हो गया है। वायुयान के आविष्कार से हज़ारों मील दूर स्थित स्थान बिल्कुल पड़ोस में मालूम दिखाई देते हैं और ऐसा लगता है विश्व अब सिकुड़ रहा है। इस प्रकार यातायात तथा संचार के आधुनिक साधनों ने विशाल संसार को इतना छोटा बना दिया है कि दूर से दूर स्थानों तक पहुंचने में मनुष्य को कुछ ही समय लगता है।

प्रश्न 9.
रेलमार्गों के विकास का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
स्थलीय परिवहन में रेलमार्ग एक महत्त्वपूर्ण साधन है। आधुनिक युग में किसी देश में आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक दृष्टि से रेलों का बड़ा महत्त्व है।
महत्त्व –

  1. रेलमार्ग किसी क्षेत्र के खनिज पदार्थों के विकास में सहायता करते हैं।
  2. रेलमार्ग औद्योगिक क्षेत्रों में कच्चे माल तथा तैयार माल के वितरण में सहायता करते हैं।
  3. रेलमार्ग व्यापार को उन्नत करते हैं।
  4. रेलमार्ग राजनीतिक एकता व स्थिरता लाने में योगदान देते हैं।
  5. रेलमार्ग संकट काल में सहायता कार्यों में महत्त्वपूर्ण हैं।
  6. कम जनसंख्या वाले प्रदेशों में रेलमार्ग जनसंख्या वृद्धि का आधार बनते हैं।
  7. लम्बी-लम्बी दूरियों को जोड़ने में रेलों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वास्तव में रेलमार्गों के विकास से मानव ने दूरी और समय पर विजय प्राप्त कर ली है।

प्रश्न 10.
‘परिवहन’ शब्द की परिभाषा दीजिए। उत्तरी अमेरिका के महामार्गों की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिभाषा-व्यक्तियों और वस्तुओं का एक स्थान से दूसरे स्थान तक वहन करने की सेवा को परिवहन कहते हैं जिसमें स्थल, जल तथा वायु परिवहन साधनों का प्रयोग होता है।
उत्तरी अमेरिका के महामार्गों की विशेषताएं –

  1. उत्तरी अमेरिका में महामार्गों का घनत्व उच्च है। यह 0.65 कि० मी० प्रति वर्ग कि०. मी० है। प्रत्येक स्थान महामार्ग से 20 कि० मी० की दूरी पर स्थित हैं।
  2. पश्चिमी प्रशान्त महासागरीय तट पर स्थित नगर पूर्व में अटलांटिक महासागरीय तट पर स्थित नगरों से भली भांति जुड़े हुए हैं।
  3. उत्तर में कनाडा के नगर दक्षिण में मैक्सिको के नगरों से जुड़े हैं। (उत्तर-दक्षिण परिवहन मार्गों द्वारा)
  4. पार कनाडियन महामार्ग, अलास्का महामार्ग तथा पान अमेरिका महामार्ग महत्त्वपूर्ण महामार्ग हैं।

प्रश्न 11.
विश्व का व्यस्ततम समुद्री जल मार्ग कौन-सा है ? इस मार्ग की चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्तर अटलांटिक समुद्री जलमार्ग विश्व का व्यस्ततम समुद्री मार्ग है जिस पर विश्व का लगभग \(\frac {1}{4}\) व्यापार होता है।

विशेषताएं –

  1. यह मार्ग विश्व के दो औद्योगिक प्रदेशों-उत्तर पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप को मिलाता है।
  2. इसे ‘वृहद् ट्रंक मार्ग’ (Big trunk route) कहा जाता है क्योंकि यह एक लम्बा मार्ग है।
  3. दोनों तटों पर पत्तनों और पोताश्रयों की उन्नत सुविधाएं उपलब्ध हैं। जैसे न्यूयार्क, लन्दन आदि।
  4. किसी भी अन्य मार्ग की अपेक्षा अधिक देशों और लोगों की सेवाएं प्रदान करना है।

अन्तर स्पष्ट करने वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पोताश्रय तथा पत्तन में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

पोताश्रय (Harbour) पत्तन (Port)
(1) पोताश्रय समुद्र में जहाजों के प्रवेश करने का प्राकृतिक स्थान होता है। (1) पत्तन समुद्री तट पर जहाज़ों के ठहरने के स्थान होते हैं।
(2) यहां जहाज़ लहरों तथा तूफ़ान से सुरक्षा प्राप्त  करते हैं। (2) यहां जहाज़ों पर सामान लादने-उतारने की सुविधाएं होती हैं।
(3) ज्वार नद मुख तथा कटे-फटे तट, खाड़ियां  प्राकृतिक पोताश्रय बनाते हैं, जैसे मुम्बई में। (3) यहां कई बस्तियों होती हैं जहां गोदामों की सुविधाएं होती हैं।
(4) जलतोड़ दीवारें बनाकर कृत्रिम पोताश्रय बनाये  जाते हैं। (4) पत्तन व्यापार के द्वार कहे जाते हैं। यहां स्थल तथा समुद्री भाग मिलते हैं।
(5) पोताश्रय में एक विशाल जल क्षेत्र में जहाजों के  आगमन की सुविधाएं होती हैं। (5) पत्तन प्रायः अपनी पृष्ठ-भूमि से रेलों व सड़कों द्वारा जुड़े होते हैं।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय महामार्ग तथा राज्य महामार्गों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

राष्ट्रीय महामार्ग राज्य महामार्ग
(1) यह महामार्ग देश के विभिन्न राज्यों की  राजधानियों को आपस में जोड़ते हैं। (1) यह महामार्ग किसी राज्य के मुख्य नगरों को आपस में जोड़ते हैं।
(2) इन महामार्गों की देखभाल केन्द्रीय सरकार करती है। (2) इन महामार्गों की देखभाल राज्य सरकार करती है।
(3) शेरशाह सूरी मार्ग एक राष्ट्रीय महामार्ग है। (3) अमृतसर-चण्डीगढ़ मार्ग एक राज्य मार्ग है।
राष्ट्रीय महामार्ग राज्य महामार्ग

प्रश्न 3.
परिवहन एवं संचार में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

परिवहन संचार
(1) सन्देश तथा विचारों के भेजने के माध्यमों को संचार दूसरे स्थान तक भेजने के साधनों को परिवहन साधन कहते हैं। (1) उपयोगी वस्तुओं व यात्रियों को एक स्थान से साधन कहते हैं।
(2) रेलें, सड़कें, जलमार्ग तथा वायुमार्ग परिवहन साधन हैं। (2) तार, टेलीफोन, रेडियो आदि संचार साधन हैं।

प्रश्न 4.
स्वेज़ एवं पनामा नहर मार्गों के आर्थिक महत्त्व की तुलनात्मक व्याख्या करो।
उत्तर:
स्वेज़ नहर तथा पनामा नहरों में कई प्रकार की समानताएं तथा विभिन्नताएं मिलती हैं –

स्वेज नहर (Suez. Canal) पनामा नहर (Panama Canal)
(1) स्थिति (Location) – यह मिस्र देश में स्थित है। (1) यह पनामा देश में स्थित है।
(2) अधिकार (Rights) इस नहर पर मिस्त्र देश काअधिकार है। (2) इस नहर पर संयुक्त राज्य का अधिकार है।
(3) देश (Countries) – इसके आसपास उन्नत देश (3) इसके आस-पास कम उन्नत देश हैं।
(4) यातायात (Traffic) – इस में एक तरफ़ा यातायात होता है। (4) इसमें दोनों तरफ से यातायात होता है।
(5) लम्बाई (Length) स्वेज नहर की लम्बाई अधिक (5) पनामा नहर की लम्बाई कम है।
(6) द्वार (Locks) – इस नहर में कोई द्वार प्रणाली नहीं है। (6) इस नहर में जहाज़ द्वार प्रणाली द्वारा ही आ-जा सकते हैं।
(7) धरातल (Relief) – इस नहर का धरातल समतल (7) इस नहर का धरातल पहाड़ी है।
(8) कर (Taxes) – इस नहर से गुजरने वाले जहाजों पर भारी कर लगते हैं। (8) इस नहर से गुजरने वाले जहाज़ों पर कम कर लगते हैं।
(9) यातायात (Traffic) – इस मार्ग पर अधिकयातायात हैं। (9) इस मार्ग पर कम यातायात हैं।
(10) महासागर (Oceans)-यह नहर रूम सागर तथा रक्त सागर को मिलाती है। (10) यह नहर प्रशान्त महासागर तथा अन्धमहासागर को मिलाती है।
(11) प्रयोग (Use)-इसका अधिकतर प्रयोग इंग्लैण्ड द्वारा होता है। (11) इसका अधिकतर प्रयोग अमेरिका से होता है।
(12) कोयला (Coal)-इस मार्ग पर कोयले के पर्याप्त साधन हैं। (12) इस मार्ग पर कोयले के कम साधन हैं।
(13) बन्दरगाह (Ports)-इस मार्ग पर अधिक बन्दरगाह हैं। (13) इस मार्ग पर कम बन्दरगाह हैं।

निबन्धामक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
संसार के प्रमुख समुद्री मार्गों का वर्णन करो। इन मार्गों की विशेषताएं, व्यापार तथा महत्त्व बताओ।
उत्तर:
यातायात के साधनों में समुद्री यातायात सबसे सस्ता तथा महत्त्वपूर्ण साधन है। संसार का अधिकतर व्यापार समुद्री मार्गों द्वारा होता है। जब बहुत से जहाज़ एक निश्चित मार्ग का अनुसरण करते हैं तो उसे समुद्री मार्ग (Ocean Route) कहते हैं। इन मार्गों द्वारा दूर-दूर के देशों से सम्पर्क बढ़े हैं तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुई है। संसार के प्रमुख समुद्री मार्ग (Chief Ocean Routes of the World) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मुख्यतः समुद्री मार्ग द्वारा ही होता है। स्थल भाग की अधिकता के कारण मुख्य समुद्री मार्ग मध्य अक्षांशों में स्थित है। संसार के मुख्य समुद्री मार्ग अग्रलिखित हैं –
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार - 1
(1) उत्तरी अन्ध महासागरीय मार्ग।
(2) स्वेज नहर मार्ग।
(3) पनामा नहर मार्ग।
(4) आशा अन्तरीप मार्ग।
(5) प्रशान्त महासागरीय मार्ग।
(6) दक्षिणी अन्ध महासागरीय मार्ग।

1. उत्तरी अन्ध महासागरीय मार्ग (North Atlantic Route)

(i) महत्त्व (Importance):
यह मार्ग 40°-50° उत्तर अक्षांशों में यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के बीच स्थित है। यह संसार का सबसे व्यस्त व्यापारिक मार्ग है। (This is the busiest route of the world.) संसार के 75% जलयान इस मार्ग पर चलते हैं। संसार के आधे से अधिक बन्दरगाह इस मार्ग पर स्थित हैं। इस मार्ग के सिरों या उत्तरी अमेरिका के उन्नत औद्योगिक प्रदेश हैं। इसलिए संसार का 25% व्यापार इसी मार्ग से होता है। इसे वृहद ट्रंक मार्ग (Big Trunk Route) भी कहते हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

(ii) सुविधाएं (Facilities):
यह मार्ग एक महान् वृत्त (Great Circle) है। इस पर कोयला व तेल की सुविधाएं हैं। संसार के गहरे, सुरक्षित बन्दरगाह हैं। यहां बड़े-बड़े शिपयार्ड (Ship Yards) स्थित हैं। परन्तु न्यूयार्क के निकट रेतीले तट, न्यूफाउण्डलैंड के निकट कोहरा (Fog) व हिमखण्ड (Icebergs) की कठिनाइयां हैं।

(iii) बन्दरगाह (Ports):
यूरोप की ओर लन्दन (London), लिवरपूल (Liverpool), ग्लासगो (Glasgow), ओसलो (Oslo), हैम्बर्ग (Hamburg), रोटरडम (Rottardam), लिस्बन (Lisbon) प्रमुख बन्दरगाह हैं। उत्तरी अमेरिका की ओर क्यूबैक (Qubec), मौंट्रियल (Montreal), हैलिफैक्स (Halifax), बोस्टन (Boston), फिलाडैलफिया (Philadelphia) तथा न्यूयार्क (Newyork) प्रमुख बन्दरगाह हैं।

(iv) व्यापार (Trade) पूर्व की ओर (East Bound):
पूर्व की ओर व्यापार अधिक है। कनाडा व संयुक्त राज्य से यूरोप को गेहूं, कपास, कागज़ की लुगदी, पेट्रोल, फल, माँस व डेयरी पदार्थ भेजे जाते हैं।
पश्चिम की ओर (West Bound) यूरोप से उत्तरी अमेरिका की दवाइयां, चाक, चीनी मिट्टी, पाईराइट व अखबारी कागज़ भेजा गया है।

2. स्वेज नहर मार्ग (Suez Canal Route)
(i) महत्त्व (Importance) – यह मार्ग रूम सागर तथा लाल सागर को जोड़ने वाली स्वेज नहर के कारण महत्त्वपूर्ण मार्ग है। यह संसार का दूसरा बड़ा मार्ग है। इसे सबसे अधिक लम्बा मार्ग होने के कारण ग्रांड ट्रंक मार्ग (Grand Trunk Route) कहते हैं। इस मार्ग पर संसार की घनी जनसंख्या वाले प्रदेश स्थित हैं।

(ii) सुविधाएं (Facilities) – इस मार्ग पर कोयला व तेल की सुविधाएं प्राप्त हैं। इस मार्ग के कारण यूरोप तथा एशिया में लगभग 8,000 किलोमीटर की दूरी कम हो गई है। इस नहर द्वारा इंग्लैण्ड के साम्राज्य व व्यापार को बहुत सुरक्षा प्राप्त थी। इसे ब्रिटिश साम्राज्य की जीवन रेखा कहा जाता है। (Suez Route has been called the Life Line of British Empire)।

(iii) बन्दरगाह. (Ports):
रूम सागर व लाल सागर को पार करने के पश्चात् इसकी तीन शाखाएं हो जाती हैं –
(1) अफ्रीका की ओर।
(2) ऑस्ट्रेलिया की ओर।
(3) एशिया की ओर।

पश्चिम की ओर – लन्दन, लिवरपूल, मोर्सेल्ज, लिस्बन, नेपल्स, सिकन्दरिया प्रमुख बन्दरगाह हैं। पूर्व की ओर-अदन (Aden), कराची (Karachi), मुम्बई (Mumbai), कोलकाता (Kolkata), चेन्नई (Chennai), कोलम्बो (Colombo), रंगून (Rangoon), सिंगापुर (Singapore), हांगकांग (Hongkong), शंघाई (Shanghai), याकोहामा (Yokohama), मैल्बोर्न (Melbourne), विलिंगटन (Wellington) प्रमुख बन्दरगाह हैं।

(iv) व्यापार (Trade) पूर्व की ओर (East Bound) – तैयार माल, मशीनें, दवाइयां, रसायन, परिवहन का समान भेजा जाता है। पश्चिम की ओर (West Bound) – पटसन, रेशम, चाय, ऊन, मांस, टिन, रबड़, गर्म मसाले, पेट्रोल, चीनी भेजी जाती है।

3. पनामा नहर मार्ग (Panama Canal Route)
(i) महत्त्व (Importance) – अन्ध महासागर तथा प्रशांत महासागर को मिलाने वाली पनामा नहर के 1914 में निर्माण होने से इस मार्ग का महत्त्व बढ़ गया है। इस मार्ग का विशेष महत्त्व संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड को है।
(ii) सुविधाएं (Facilities) – इस मार्ग के खुल जाने के कारण दक्षिणी अमेरिका के Cape Horn का चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं रही। इस प्रकार अमेरिका के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों के बीच 10,000 किलोमीटर दूरी कम हो गई।
(iii) बन्दरगाह (Ports) – पश्चिम की ओर (West Bound)-आकलैंड (Aukland), वालपरेसो (Valpraiso), लॉस ऐंजल्स (Los Angeles), सैन फ्रांसिस्को (San Francisco), वैनकूवर (Vancouver) तथा प्रिंस रूपर्ट (Prince Rupert) प्रमुख बन्दरगाह हैं। पूर्व की ओर (East Bound)-किंगस्टन (Kingston), हवाना (Havana), रियो-डी-जैनेरो (Rio-De-Janeiro), पनामा (Panama), न्यू ओरलियनज (New Orleans) प्रमुख बन्दरगाह हैं।

4. आशा अन्तरीप मार्ग (Cape of Good Hope Route)
(i) महत्त्व (Importance) – यह एक प्राचीन समुद्री मार्ग है। 1498 में वास्कोडिगामा (Vasco Degama) ने इस मार्ग की खोज की। स्वेज़ नहर के बन्द हो जाने के कारण इस मार्ग का महत्त्व बढ़ गया है। यह मार्ग दक्षिणी अफ्रीका,
ऑस्ट्रेलिया व न्यूज़ीलैंड के लिए महत्त्वपूर्ण है।
(ii) सुविधाएं (Facilities) – यह मार्ग एक महान् वृत्त वाला मार्ग है। इस मार्ग पर कोयला व तेल की सुविधाएं प्राप्त हैं। यह मार्ग स्वेज़ मार्ग की अपेक्षा सस्ता व ठण्डा है तथा बड़े-बड़े जहाज इस मार्ग पर गुज़र सकते हैं।
(iii) बन्दरगाह (Ports)-आशा अन्तरीप से पूर्व की ओर मार्ग के तीन भाग हैं –
(1) अफ्रीका के पूर्वी तट के साथ।
(2) एशिया की ओर।
(3) ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड की ओर।

पश्चिम की ओर (West Bound) – लन्दन, लिवरपूल, लिस्बन, लागोस, मानचेस्टर आदि यूरोप के बन्दरगाह हैं।
पूर्व की ओर (East Bound) – केपटाउन (Capetown), एलिजाबेथ (Elizabeth), डरबन (Durban), दार इस्लाम (Dar-e-Slam) एशिया व ऑस्ट्रेलिया के बन्दरगाह हैं।

(iv) व्यापार (Trade) –
पूर्व की ओर (East Bound) – तैयार माल, मशीनें, दवाइयां, मोटरें व कपड़ा भेजा जाता है।
पश्चिम की ओर (West Bound) – गेहूं, पटसन, चाय, चमड़ा, रबड़, डेयरी पदार्थ सोना, ऊन, कपास, तांबा, तम्बाकू आदि भेजा जाता है।

5. प्रशान्त महासागरीय मार्ग (Trans-Pacific Route)
(i) महत्त्व (Importance) – यह मार्ग एशिया तथा अमेरिका महाद्वीपों को मिलाता है। यह मार्ग कम महत्त्वपूर्ण है। इस मार्ग की लम्बाई बहुत अधिक है तथा इसके सिरों पर कम उन्नत प्रदेश हैं।
(ii) सविधाएँ (Facilities) – यह एक महान वत्त है। इस मार्ग पर हिमशिलाओं का अभाव है। इस मार्ग की कई शाखाएं होनोलुल (Honolulu) नामक स्थान पर मिलती हैं, जैसे –
(1) उत्तरी अमेरिका से जापान मार्ग।
(2) उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट से न्यूजीलैंड मार्ग।
(3) उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट से न्यूजीलैंड मार्ग।

(iii) बन्दरगाह (Ports) – पूर्व की ओर-याकोहामा, हांगकांग, शंघाई, मनीला, सिडनी व ऑकलैंड प्रमुख बन्दरगाह हैं। पश्चिम की ओर-वैंकूवर, प्रिंस रूपर्ट, सैन फ्रांसिस्को, लास एंजल्स प्रमुख बन्दरगाह हैं।
(iv) व्यापार (Trade) – एशिया की ओर लकड़ी, लुगदी, गेहूं, मशीनें, पेट्रोल, कागज़, फल तथा दवाइयां भेजी जाती हैं। उत्तरी अमेरिका की ओर-चीनी, पटसन, चाय, रेशम, तेल व खिलौने भेजे जाते हैं।

6. दक्षिणी अन्ध महासागरीय मार्ग (South Atlantic Route) –
(i) महत्त्व (Importance) – यह मार्ग दक्षिणी अमेरिका तथा यूरोप के देशों को मिलाता है।
(ii) सुविधाएं (Facilities) – ब्राजील के केप सन राक (Cape San Roque) से आगे इस मार्ग के दो भाग हो जाते हैं। एक यूरोप को तथा दूसरा उत्तरी अमेरिका की ओर। यहां दक्षिणी अफ्रीका से आने वाले मार्ग भी मिलते हैं।
(iii) बन्दरगाह (Ports) – उत्तर की ओर यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के प्रसिद्ध बन्दरगाह तथा दक्षिण की ओर ब्यूनस आयर्स (Buenos Aires), मोण्टी-विडियो (Monte-Video), रीयो-डी-जैनेरो (Rio-De-Janeiro), बहिया (Bahia), सैन्टाज़ (Santos) हैं।
(iv) व्यापार (Trade) – दक्षिण की ओर-कोयला, मशीनरी तथा तैयार माल भेजा जाता है। उत्तर की ओर- रबड़, कहवा, चीनी, मांस, शोरा व गेहूं भेजा जाता है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

प्रश्न 2.
स्वेज नहर के भौगोलिक, आर्थिक तथा सैनिक महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर:
स्वेज नहर (Suez Canal):
1. स्थिति (Location) – स्वेज नहर संसार की सबसे भूमध्य सागर बड़ी जहाज़ी नहर (Nevigation Canal) है । यह नहर मित्र (Egypt) में स्थित है। यह नहर स्वेज़ के स्थलडमरू मध्य (Suez Isthmus) को काट कर बनाई गई है।

2. इतिहास (History) – इस नहर का निर्माण एक फ्रांसीसी इन्जीनियर फर्डीनेण्ड डी लैसैप्स (Ferdinand De Lesseps)
मंचाला की देख-रेख में सन् 1859 ई० में शुरू हुआ। इस निर्माण में लगभग 10 वर्ष लगे। इस नहर को 17 नवम्बर, 1869 को चालू किया गया। इसके निर्माण काल में 1 जानें नष्ट हुईं। इस नहर के निर्माण पर 180 लाख पौंड खर्च हुए।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार - 2

इस नहर का निर्माण स्वेज नहर कम्पनी (Suez Canal काहिरा इस्माइलिया ! Company) द्वारा किया गया। इस कम्पनी के अधिकतर हिस्से तिमसा झील (Shares) फ्रांस तथा इंग्लैण्ड के थे। इसके प्रकार इस नहर पर ग्रेट बिटर इंग्लैण्ड तथा फ्रांस को अधिकार था। यह नहर 99 वर्षों के पट्टे पर दी गई थी। परन्तु मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर ने 26 जुलाई, लिटल बिटर 1956 को इस नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी। 1967 में मिस्र व इज़राइल में युद्ध हुआ तथा स्वेज़ नहर जहाज़ों के लिए बन्द हो गई। 1975 से स्वेज नहर पुनः खुल गई। -ताजे पानी की नहर पोर्ट स्वेज़

3. सागर तथा बन्दरगाह (Sea and Ports) – यह नहर 1+ रेलमार्ग रक्त सागर (Red Sea) तथा रूम सागर (Mediterranean Sea) स्वज का को मिलाती है। रूम सागर की ओर पोर्ट सईद (Port Said) तथा रक्त सागर की ओर पोर्ट स्वेज़ (Port Suez) के बन्दरगाह हैं। इस नहर की कुल लम्बाई 162 किलोमीटर, चौड़ाई, 60 से 65 मीटर तक तथा कम-से-कम गहराई 10 मीटर है। यह नहर पूरी लम्बाई में समुद्र तल पर बनी है।

इस नहर के मार्ग में नमकीन पानी की तीन झीलें हैं –
(1) लिटिल बिटर झील (Little Bitter Lake)।
(2) ग्रेट बिटर झील (Great Bitter Lake)।
(3) टिमशाह झील (Timshah Lake)।
इस नहर को पार करने में 12 घण्टे लग जाते हैं। जहाज़ औसत रूप से 14 किलोमीटर प्रति घण्टा की गति से चलते हैं। कम चौड़ाई के कारण एक साथ दो जहाज़ नहीं गुजर सकते हैं। इसलिए एक जहाज़ को झील में ठहरा लिया जाता है।

4. महत्त्व (Importance)

  • यह मार्ग संसार की घनी जनसंख्या वाले भाग के मध्य में से गुजरता है।
  • इस मार्ग पर बहुत अधिक देश स्थित हैं जिनके द्वारा विभिन्न वस्तुओं का व्यापार होता है।
  • इस मार्ग पर ईंधन के लिए कोयला व तेल मिल जाते हैं।
  • इस मार्ग पर छोटे-छोटे कई मार्ग मिल जाते हैं।
  • इस मार्ग पर कई उत्तम बन्दरगाहें स्थित हैं।
  • यह नहर तीन महाद्वीपों के केन्द्र पर स्थित है (It is located at the crossroads of three continents)। यहां यूरोप, अफ्रीका तथा एशिया महाद्वीप के लिए मार्ग निकलते हैं।
  • इस नहर द्वारा इंग्लैण्ड के साम्राज्य तथा व्यापार की रक्षा होती रही है। इसलिए इसे ब्रिटिश साम्राज्य की जीवन रेखा (Life Line of British Empire) भी कहते हैं।
  • इस नहर के खुल जाने से दक्षिणी अफ्रीका का चक्कर काटकर आने-जाने की आवश्यकता नहीं रही।

5. व्यापारिक महत्त्व (Commercial Importance) – इस नहर के बन जाने से यूरोप तथा एशिया व सुदूर पूर्व के बीच दूरी काफ़ी कम हो गई है। यह नहर हिन्द महासागर का (Gateway) द्वार है। कई देशों की दूरी की बचत इस प्रकार है –

स्थान से स्थान तक दूरी की बचत
(1) लन्दन खाड़ी फारस 8800 किलोमीटर
(2) लन्दन मुम्बई 8000 किलोमीटर
(3) लन्दन सिंगापुर 6000 किलोमीटर
(4) लन्दन मम्बासा 4800 किलोमीटर
(5) लन्दन जकार्ता 4700 किलोमीटर
(6) लन्दन सिडनी 1500 किलोमीटर
(7) न्यूयार्क मुम्बई 6000 किलोमीटर
(8) न्यूयार्क हांगकांग 4000 किलोमीटर

6. व्यापार (Trade):
इस नहर के कारण एशिया तथा यूरोप के बीच व्यापार अधिक हो गया है। नहर को चौड़ा व गहरा करने के कारण अब औसत रूप में 87 जहाज़ प्रतिदिन गुजर सकते हैं। 1976 में इस नहर से लगभग 20,000 जहाजों ने प्रवेश किया। इस मार्ग पर संसार का 25% व्यापार होता है। इसमें से अधिकतर जहाज़ ब्रिटेन को जाते हैं। 70% जहाज़ तेल वाहक जहाज़ (Oil Tankers) होते हैं। इस मार्ग से यूरोप को कच्चे माल (Raw Materials) जाते हैं तथा युरोप से तैयार माल व मशीनरी एशिया को भेजी जाती है। एशिया की ओर से कपास, पटसन, चाय, खांड, कहवा,’ , ऊन, मांग, डेयरी पदार्थ, रेशम, रबड़, चावल, तांबा, तम्बाकू, चमड़ा आदि पदार्थ यूरोप को भेजे जाते हैं। इस नहर द्वारा भारत का 60% निर्यात तथा 70% आयात व्यापार होता है। परन्तु अब यह व्यापार अन्तरीप मार्ग से होता है।

7. त्रुटियां (Drawbacks):
इस नहर में निम्नलिखित त्रुटियां भी हैं –
(1) यह नहर-कम चौड़ी व कम गहरी है। इसलिए बड़े-बड़े आधुनिक जहाज़ तथा बड़े-बड़े तेल वाहक जहाज़ (Oil Tankers) नहीं गुजर सकते हैं।
(2) यह पक्षीय यातायात होने के कारण नहर पार करने में समय अधिक लगता है।
(3) यह मार्ग बहुत महंगा है। जहाज़ों से बहुत अधिक चुंगी कर (Taxes) वसूल किया जाता है।
(4) दोनों ओर से मरुस्थल की रेत उड़-उड़ कर नहर में गिरती है। इसे साफ करने पर बहुत व्यय करना पड़ता है।

8. भविष्य (Future):
स्वेज़ नहर पर आधुनिक सुविधाएं प्रदान करने की योजना है। कई बार मिस्र-इजराइल झगड़े के कारण यह नहर बन्द रही है। परन्तु अब संसार का अधिकतर व्यापार आशा अन्तरीप मार्ग पर तेज़ जहाज़ों से होने लग पड़ा है। भविष्य में स्वेज नहर इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं होगी। (It will not be the same old romantic Suez Canal.)

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प्रश्न 3.
पनामा नहर के भौगोलिक, आर्थिक व राजनीतिक महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर:
पनामा नहर (Panama Canal):
1. स्थिति (Location):
यह नहर मध्य अमेरिका (Central America) के पनामा गणराज्य में स्थित है। यह नहर पनामा स्थल डमरू मध्य (Panama Isthmus) को काटकर बनाई गई है।

2. इतिहास (History):
स्वेज नहर की सफलता को देख कर पनामा नहर के निर्माण की योजना बनाई गई। 1882 ई० में फर्डिनेण्ड-डी-लैसैप्स ने इस नहर का निर्माण कार्य आरम्भ किया परन्तु पीले ज्वर तथा मलेरिया के कारण हजारों श्रमिक मर गए। अत: यह प्रयत्न असफल रहा। उसके पश्चात् सन् 1904 में संयुक्त राज्य (U.S.A.) सरकार ने इस नहर का निर्माण आरम्भ किया। यह नहर दस वर्ष में 15 अगस्त, 1914 को बन कर तैयार हुई। इसके निर्माण पर 772 करोड़ पौंड खर्च हुए। यह नहर संयुक्त राज्य के अधीन है। इस नहर के निर्माण में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। इसलिए नहर का सफलतापूर्वक निर्माण आधुनिक विज्ञान की बहुत बड़ी सफलता है। (“The construction of Panama Canal was a great feast of Engineering.”)

इस नहर का निर्माण दो खाड़ियों (Bays), एक कृत्रिम झील (Artificial Lake), एक प्राकृतिक झील (Natural Lake) तथा तीन द्वार प्रणालियों (Lock Systems) द्वारा किया गया है। इस नहर का तल समुद्र तल के समान नहीं है। इसका निर्माण कुलबेरा (Culbera) नामक पहाड़ी को काट कर किया गया है। गातुन (Gatun) नामक कृत्रिम झील बनाई. गई है। इस नहर में तीन स्थानों पर फाटक बनाए गए हैं।

(1) गातुन (Gatun) द्वार
(2) पैड्रो मिग्वल (Padromiguel) द्वार।
(3) मिरा फ्लोर्स (Miraflore) द्वारा।

इन द्वारों को खोलकर जल-स्तर समान किया जाता है। फिर जलयान ऊपर चढ़ाए या नीचे उतारे जाते हैं। यह दोहरी द्वार प्रणाली (Double Lock System) है। इसमें एक ही समय में दोनों ओर से यातायात सम्भव है। इस प्रकार जहाजों को इस नहर में 45 मीटर तक ऊपर चढ़ाना या नीचे उतारना पड़ता है, इस नहर को चार्जेस (Charges) नदी द्वारा जल-विद्युत् प्रदान की जाती है जिससे प्रकाश व जलयानों को खींचने की शक्ति मिलती है।

3. सागर तथा बन्दरगाह (Sea and Ports):
“यह नहर प्रशान्त महासागर (Pacific Ocean) तथा अन्ध महासागर Atlantic Ocean) को मिलाती है। इसे प्रशान्त महासागर का द्वार (Gateway of the Pacific) भी कहते हैं। प्रशान्त तट पर पनामा (Panama) तथा अन्धमहासागर तट पर कालोन (Colon) के बन्दरगाह हैं । यह नहर 81.6 किलोमीटर लम्बी, 12 मीटर गहरी तथा 90 से 300 मीटर चौड़ी है। इस नहर को पार करने में 8 घण्टे लगते हैं। इस नहर में से बड़े-बड़े जहाज़ नहीं गुज़र सकते।

4. महत्त्व (Importance):
(1) इस नहर के निर्माण में अन्ध महासागर तथा प्रशान्त महासागर के बीच दूरी कम हो गई है।” (Panama Canal has changed the element of distance in geography of transport.)” इससे पहले जहाज़ दक्षिणी अमेरिका के (सिरे) केप हार्न (Cape Horm) का चक्कर लगा कर जाते थे। इस नहर से सबसे अधिक लाभ संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) को हुआ है। इसके पश्चिमी व पूर्वी तट से ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिणी अमेरिका, जापान के बन्दरगाहों की दूरी कम हो गई है। इस नहर के द्वारा यूरोप को कोई विशेष लाभ नहीं है। कई देशों की दूरी की बचत इस प्रकार है –
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स्थान तक दूरी की बचत
(1) न्यूयार्क सान फ्रांसिस्को 13000 किलोमीटर
(2) न्यूयार्क सिडनी 6000 किलोमीटर
(3) न्यूयार्क हांगकांग 7000 किलोमीटर
(4) न्यूयार्क वालपरेसो 6000 किलोमीटर
(5) न्यूयार्क टोकियो 6000 किलोमीटर
(6) न्यूयार्क सिडनी 700 किलोमीटर

(2) इस नहर के कारण पश्चिमी द्वीप समूह (West Indies) का महत्त्व बढ़ गया।
(3) इस नहर के कारण संयुक्त राज्य संकट के समय एक ही नौसेना (Navy) से पश्चिमी व पूर्वी तट की रक्षा कर सकता है।

5. व्यापार (Trade):
इस नहर द्वारा व्यापार में बहुत वृद्धि हुई है। औसत रूप से प्रतिदिन 50 जहाज़ गुजरते हैं। प्रति वर्ष लगभग 15,0000 जहाज़ प्रवेश करते हैं। अन्ध महासागर से प्रशान्त महासागर की ओर अधिक व्यापार होता है। पूर्व की ओर से संयुक्त राज्य व यूरोप को शिल्पी वस्तुएं, खनिज पदार्थ, तेल, मशीनें, दवाइयां, सूती व ऊनी कपड़ा भेजा जाता है। पश्चिम की ओर से डेयरी पदार्थ, मांस, रेशम, रबड़, चाय, तम्बाकू, नारियल, शोरा, तांबा भेजा जाता है।

6. त्रुटियां (Drawbacks):
इस मार्ग में निम्नलिखित दोष हैं –
(1) इस नहर में बड़े-बड़े जहाज़ नहीं गुज़र सकते।
(2) द्वार प्रणाली के कारण काफ़ी असुविधा रहती है।
(3) इस मार्ग पर बन्दरगाह बहुत कम है।
(4) इस नहर के साथ के देश उन्नत नहीं हैं।

7. भविष्य (Future):
दक्षिणी अमेरिका के देश बड़ी तेज़ी से उन्नति कर रहे हैं। इनके विकास के कारण इस मार्ग पर व्यापार बढ़ेगा।

प्रश्न 4.
संसार के प्रमुख रेलमार्गों का वर्णन करो।
उत्तर:
संसार के प्रमुख रेलमार्ग-स्थल मार्गों में रेलमार्ग सबसे महत्त्वपूर्ण है। रेलमार्ग वास्तव में औद्योगिक क्रान्ति की देन है। रेलमार्गों की सबसे अधिक लम्बाई संयुक्त राज्य अमेरिका में है। संसार के कई भागों में अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्गों का विकास हुआ है। यह रेलमार्ग महाद्वीपों के दो विपरीत तटों को मिलाकर देश की एकता को मज़बूत करते हैं । विभिन्न आर्थिक क्रियाओं वाले दूर-दूर स्थित स्थानों को जोड़ते हैं। अधिकतम ऐसे रेलमार्ग विरल जनसंख्या वाले प्रदेशों में मिलते हैं। प्राय: उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र वनों में, गर्म मरुस्थलों तथा शीत प्रदेशों में ऐसे रेलमार्ग मिलते हैं। यह रेलमार्ग इन प्रदेशों के कच्चे माल को औद्योगिक क्षेत्रों तक पहुंचाते हैं।

1.ट्रांस साइबेरियन रेल-मार्ग:
यह रेल मार्ग 9332 कि० मी० लम्बा है तथा संसार में सबसे बड़ा रेलमार्ग है। यह रेलमार्ग साइबेरिया तथा यूराल प्रदेश के आर्थिक तथा औद्योगिक विकास का आधार है। यह एक अन्तर्महाद्वीपीय मार्ग है। यह रेलमार्ग पश्चिम में बाल्टिक सागर पर स्थित सेंट पीटरसवर्ग बन्दरगाह को पूर्व में प्रशान्त महासागर पर स्थित ब्लाडीवोस्टक बन्दरगाह से जोड़ता है। इस रेलमार्ग के मुख्य स्टेशन मास्को, रयाजान, कुईबिशेव, चेलिया बिन्सक, ओमस्क, नोवो सिबीरस्क, चीता, इकूटस्क तथा खाबारोवस्क हैं। इस रेलमार्ग द्वारा कोयला, तेल, लकड़ी, खनिज, कृषि उत्पादन, मशीनरी तथा औद्योगिक उत्पादों का आदान-प्रदान पूर्व से पश्चिम को होता है। इकूटस्क एक फ़र का व्यापारिक केन्द्र है।

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2. कैनेडियन पैसेफिक रेलमार्ग:
यह रेलमार्ग कनाडा के पूर्वी भाग में हैलीफैक्स से चलकर पश्चिम में वैन्कूवर तक पहुंचता है। यह रेलमार्ग दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में से गुजरता है। इस रेलमार्ग में लकड़ी, खनिज पदार्थ, गेहूं व लोहे का परिवहन होता है। इस मार्ग की लम्बाई 7050 कि० मी० है। इस मार्ग पर सेंटजॉन, मांट्रियल, ओटावा, विनीपेग आदि नगर स्थित हैं। यह रेलमार्ग क्यूबेक-मांट्रियल के औद्योगिक क्षेत्र को कोणधारी वनों तथा प्रेयरीज़ के गेहूं प्रदेश से जोड़ता है। इस प्रकार यह रेलमार्ग राजनैतिक तथा आर्थिक रूप से एकता स्थापित करता है। यह क्यूबैक-मांट्रियल प्रेयरी, कोणधारी वन क्षेत्र को जोड़ता है।

3. यूनियन पैसेफिक रेलमार्ग:
यह रेलमार्ग अटलांटिक तट से न्यूयार्क से लेकर शिकागो तथा सानफ्रांसिस्को तथा प्रशांत महासागर तट तक जाता है। शिकागो संसार भर में सबसे बड़ा रेल केन्द्र है।

4. केप-काहिरा रेल-मार्ग:
यह रेल-मार्ग अफ्रीका के दक्षिणी सिरे को उत्तरी सिरे से जोड़ता है। यह रेलमार्ग केपटाऊन से प्रारम्भ होकर काहिरा तक जाता है।

5. ट्रांस एण्डियन रेलमार्ग:
यह रेलमार्ग दक्षिणी अमेरिका में चिल्ली के वालप्रेसो नगर तथा अर्जेन्टीना के ब्यूनस आयर्स नगर को मिलाता है। यह रेलमार्ग एण्डीज पर्वतों को 3485 मीटर की ऊंचाई से पार करके उस्पलाटा दर्रे तथा सुरंगों से गुजरता है। यह पम्पास से कृषि तथा पशुपालन क्षेत्रों को चिल्ली के खनिज तथा फल उत्पादन क्षेत्र से जोड़ता है।

6. ऑस्ट्रेलियन अन्तर्महाद्वीपीय मार्ग-यह मार्ग पूर्व में सिडनी को पश्चिमी तट पर स्थित पर्थ नगर से मिलाता है। यह रेलमार्ग पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के मरुस्थल से गुजरता है।

7. यूरोप – इस महाद्वीप में 4,40,000 कि०मी० लम्बा रेलमार्ग है। बेल्जियम में सर्वाधिक रेल घनत्व है, जो 1 कि० मी० प्रति 6.5 वर्ग कि. मी. है। लन्दन, पेरिस, मिलान, बर्लिन, वारसा मुख्य स्टेशन हैं। चैनल टनल यूरो लन्दन तथा पेरिस को जोड़ता है। लन्दन, पेरिस, मॉस्को में भूमिगत रेल मार्ग है।

8. ओरियण्ट एक्सप्रेस रेलमार्ग पेरिस से इस्तंबुल तक है । प्रस्तावित पारीय-एशिया रेलमार्ग इस्तंबुल से बंकाक तक गुजर कर ईरान, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश तथा म्यानमार को मिलाएगी।

प्रश्न 5.
संसार के प्रमुख आन्तरिक जल-मार्गों का वर्णन करो।
उत्तर:
प्रमुख आन्तरिक जल-मार्ग
1. यूरोप –
(i) फ्रांस में सीन तथा रोन नदियां यातायात के लिए प्रयोग की जाती हैं।
(ii) पश्चिमी जर्मनी में राइन (Rhine) नदी सबसे महत्त्वपूर्ण जल-मार्ग है। यह नदी पश्चिमी जर्मनी के व्यापार की जीवन रेखा है। इस नदी द्वारा रूहर घाटी से खनिज पदार्थों का परिवहन किया जाता है।
(iii) यूरोप में कई अन्य नदियां डैन्यूब, वेसर, ऐल्ब, ओडर, विसचूला भी महत्त्वपूर्ण जल-मार्ग हैं।
(iv) रूस में वोल्गा, नीपर नदियां यातायात के साधन के रूप में प्रयोग की जाती हैं। वोल्गा नदी संसार में सबसे बड़ी जलप्रवाह प्रणाली है जो 11200 कि० मी० लम्बी है। वाल्गा-मास्को नहर तथा वाल्गा-डान महत्त्वपूर्ण नहरें हैं जो इसे काला सागर से जोड़ती हैं।

2. उत्तरी अमेरिका उत्तरी अमेरिका में महान् झीलें तथा मिसीसिपी नदी तथा सेंट-लारेंस जल-मार्ग महत्त्वपूर्ण हैं। ग्रेट-लेक सेंट लारेंस जल-मार्ग से जहाज़ 3760 कि० मी० अन्दर तक आ-जा सकते हैं।

3. एशिया-भारत में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियाँ, चीन में यांगसी नदी तथा बर्मा में इरावदी नदी महत्त्वपूर्ण भीतरी जल-मार्ग है।

4. दक्षिणी अमेरिका-दक्षिणी अमेरिका में अमेजन नदी में तट से 1600 कि०मी० अन्दर तक जहाज चलाए जा सकते हैं। परन्तु कम जनसंख्या तथा पिछड़ेपन के कारण इस घाटी में इस जल-मार्ग का महत्त्व कम है। दक्षिणी अमेरिका में पराना-पेरागुए जल-मार्ग भी महत्त्वपूर्ण है।

5. अफ्रीका- अफ्रीका में नील, नाईजर, कांगो तथा जैम्बजी नदियां जल प्रपातों के कारण अधिक उपयोगी नहीं हैं।

6. अन्य मार्ग-संसार में कई देशों में नहरें भी यातायात के साधन के रूप में प्रयोग की जाती हैं। पश्चिमी जर्मनी में कील नहर और राइन नहर, रूस में वोल्गा-वाल्टिक नहर, उत्तरी अमेरिका में हडसन- मोहाक नहर, इंग्लैण्ड में मानचेस्टर लिवरपूल नहर, भारत में बकिंघम नहर यातायात के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 6.
संसार में सड़क मार्गों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
सड़कों का विश्व वितरण-संसार में उन्नत देशों में सड़कों का जाल बिछा हुआ है। औद्योगिक देश कच्चे माल के लिए सड़कों पर निर्भर करते हैं। सड़क मार्गों का विस्तार रेल मार्गों से अधिक है।

1. उत्तरी अमेरिका – उत्तरी अमेरिका के विकसित देशों संयुक्त राज्य तथा कनाडा में सड़कों का जाल बिछा हुआ है। यहां मोटर गाड़ियों की संख्या अधिक है। उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तथा पूर्वी तट पर स्थित नगरों को महामार्गों द्वारा जोड़ा गया है। उत्तर में अलास्का को दक्षिणी चिल्ली तक जोड़ने वाले महामार्ग को पैन अमेरिकन (Pan American) मार्ग कहा जाता है। यह 24500 कि०मी० लम्बा है तथा विश्व में सबसे लम्बा मार्ग है। ट्रांस केनेडियन महामार्ग न्यूफाऊंडलैंड के सेंटजॉन नगर को बैंकूवर नगर से जोड़ता है। इस महाद्वीप में सर्वाधिक सड़क घनत्व है जो 0.65 कि० मी० प्रति वर्ग कि० मी० है।

2. एशिया – एशिया में प्राचीनकाल से ही स्थलमार्गों का महत्त्व रहा है। यात्रियों के काफिले इन महामार्गों पर चलते थे जिन्हें कारवाँ मार्ग कहते थे। चीन में बीजिंग नगर से शंघाई तक सड़क मार्ग हैं। चैंगड़ से एक महामार्ग लहासा तक है।

3. भारत – भारत में अधिकतर पक्की सड़कें दक्षिणी भारत में स्थित हैं। भारत में शेरशाह सूरी मार्ग या ग्रैंड ट्रंक मार्ग (G.T. Road) बड़े-बड़े नगरों को जोड़ती हैं। यह अमृतसर, दिल्ली तथा कोलकाता के बीच राष्ट्रीय मार्ग नं0 1 तथा नं0 2 के रूप में 1856 कि०मी० लम्बी है। भारत का सबसे बड़ा मार्ग राष्ट्रीय मार्ग नं0 7 है जो वाराणसी से कन्याकुमारी तक 2325 कि०मी० लम्बा है। भारत में स्वर्णिम चतुर्भुज मार्ग महानगरों नई दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता को जोड़ता है।

4. अन्य मार्ग-यूरोप में सड़कों का जाल बिछा है। प्रत्येक नगर एवं पत्तन महामार्गों द्वारा जुड़े हुए हैं। अफ्रीका में काहिरा से केपटाऊन मार्ग महत्त्वपूर्ण है। रूस में मास्को नगर कई सड़क मार्गों का केन्द्र है। ऑस्ट्रेलिया में स्टुआर्ट मार्ग पूर्वी, दक्षिणी, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया को मिलाता है।

प्रश्न 7.
वायु मार्गों का विकास किन तत्त्वों पर निर्भर करता है ?
उत्तर:
वायु मार्ग महान् वृत्तों के अनुसार बनाए जाते हैं ताकि कम दूरी हो। वायु-परिवहन के लिए अच्छा मौसम हो। धुन्ध, कोहरा, हिमपात और तूफ़ान आदि बाधाएं उत्पन्न कर देते हैं। हवाई अड्डों के लिए समतल भूमि प्राप्त हो। अधिक उन्नत देशों में लोगों के उच्च जीवन स्तर के कारण वाय मार्गों का विकास होता है। निर्धन देश इन साधनों पर अधिक खर्च नहीं कर सकते। आधुनिक युग में युद्ध तथा संकट के लिए वायु सेवा आवश्यक है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 परिवहन एवं संचार

वायु मार्गों के गुण-दोष
(Merits-Demerits of Airways)

संसार में वायु मार्गों का विकास प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् हुआ। आजकल इस का बहुत बड़ा महत्त्व है। यह एक तीव्रगामी साधन है। इसमें मार्गों के निर्माण पर कोई खर्च नहीं होता, केवल हवाई अड्डों का निर्माण करना पड़ता है। इससे पर्वतों, विशाल महासागरों व मरुस्थलों के पार पहुंचा जा सकता है, जहां दूसरे साधन नहीं पहुँच सकते। विभिन्न संस्कृतियों के बड़े-बड़े नगरों के वायु मार्गों द्वारा जुड़े होने से अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास होता है। परन्तु इस साधन पर व्यय बहुत होता है। इसका व्यापारिक महत्त्व भी अधिक नहीं है। वायुयानों द्वारा यात्रियों, डाक व शीघ्र खराब होने वाले पदार्थों का परिवहन होता है।

विश्व में नोडल बिन्दु (Nodal Point) – संयुक्त राज्य अमेरिका में संसार की 60% वायु सेवाएं उपलब्ध हैं। मुख्य नोडल बिन्दु है-न्यूयार्क, लन्दन, पेरिस, रोम, मास्कों, कराची, नई दिल्ली, मुम्बई, बैंकाक, सिंगापुर, टोकियो, सेन फ्रांसिस्को, लॉस एन्जलज, शिकागो।
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