Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 7 संघवाद Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 7 संघवाद
Jharkhand Board Class 11 Political Science संघवाद InText Questions and Answers
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प्रश्न 1.
एक संघीय व्यवस्था में केन्द्रीय सरकार की शक्तियाँ कौन तय करता है?
उत्तर:
संघीय व्यवस्था में एक लिखित संविधान होता है। यह संविधान सर्वोच्च होता है तथा दोनों सरकारों की शक्तियों का स्रोत भी। इस प्रकार एक संघीय व्यवस्था में संविधान केन्द्रीय सरकार की शक्तियाँ तय करता है।
प्रश्न 2.
संघात्मक व्यवस्था में केन्द्र सरकार और राज्यों में टकराव का समाधान कैसे होता है?
उत्तर:
संघात्मक व्यवस्था में केन्द्र सरकार और राज्यों में टकराव का समाधान स्वतंत्र न्यायपालिका न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के माध्यम से करती है।
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प्रश्न 3.
क्या आप समझते हैं कि अवशिष्ट शक्तियों का अलग से उल्लेख करना जरूरी है? क्यों?
उत्तर:
नहीं, अवशिष्ट शक्तियों का अलग से उल्लेख करना आवश्यक नहीं है। क्योंकि अवशिष्ट शक्तियों से आशय यह है कि भविष्य में इन शक्तियों या विषयों के अलावा अन्य कोई विषय उभरें, जो इस समय तक नहीं उभर पाये हैं, वे विषय अवशिष्ट हैं; इसलिए इनका उल्लेख नहीं किया जा सकता । अवशिष्ट शक्तियों के सम्बन्ध में केवल यह उल्लेख करना आवश्यक होता है कि इन पर केन्द्र सरकार का अधिकार है या प्रान्तों की सरकार का।
प्रश्न 4.
बहुत-से राज्य शक्ति विभाजन से असंतुष्ट क्यों रहते हैं?
उत्तर:
शक्ति विभाजन से भिन्न-भिन्न राज्य भिन्न-भिन्न कारणों से असंतुष्ट रहते हैं, उनके असंतुष्ट रहने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
- अधिक और महत्त्वपूर्ण अधिकार प्राप्ति हेतु: भारत में समय-समय पर अनेक राज्यों, जैसे – तमिलनाडु, पंजाब, पश्चिम बंगाल आदि ने शक्ति विभाजन में केन्द्र की तुलना में राज्यों को कम शक्तियाँ मिलने के कारण अपने असंतोष को व्यक्त करते हुए शक्ति-विभाजन को राज्यों के पक्ष में बदलने तथा राज्यों को ज्यादा तथा महत्त्वपूर्ण अधिकार दिये जाने की मांग की।
- वित्तीय स्वायत्तता हेतु: शक्ति विभाजन से राज्यों के पास स्वतंत्र आय के साधन कम हैं और संसाधनों पर उनका अधिक नियंत्रण नहीं है। इस कारण अनेक राज्य शक्ति विभाजन से असंतुष्ट हैं। तमिलनाडु और पंजाब ने इसी असंतोष को व्यक्त करते हुए ज्यादा वित्तीय अधिकारों या वित्तीय स्वायत्तता की मांग की।
- प्रशासकीय शक्तियों के प्रति असंतोष: अनेक राज्य प्रशासन के क्षेत्र में केन्द्र को अधिक नियंत्रणकारी शक्तियों को प्रदान करने के कारण असंतुष्ट हैं। वे राज्य प्रशासनिक – तंत्र पर केन्द्रीय नियंत्रण से नाराज रहते हैं।
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प्रश्न 5.
इस दृष्टिकोण के पक्ष में दो तर्क दें कि हमारा संविधान एकात्मकता की ओर झुका हुआ है।
उत्तर:
हमारा संविधान एकात्मकता की ओर झुका हुआ है क्योंकि।
- किसी राज्य के अस्तित्व और उसकी भौगोलिक सीमाओं के स्थायित्व पर संसद का नियंत्रण है। अनुच्छेद 3 के अनुसार संसद ‘किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या दो से अधिक राज्यों को मिलाकर एक नये राज्य का निर्माण कर सकती है। वह किसी राज्य की सीमाओं या नाम में परिवर्तन कर सकती है।
- संविधान में केन्द्र को अत्यन्त शक्तिशाली बनाने वाले कुछ आपातकालीन प्रावधान हैं जो लागू होने पर हमारी . संघीय व्यवस्था को एक अत्यधिक केन्द्रीकृत व्यवस्था में बदल देते हैं। आपातकाल में संसद को यह शक्ति भी प्राप्त हो जाती है कि वह उन विषयों पर कानून बना सके जो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
प्रश्न 6.
क्या आप मानते हैं कि।
(क) शक्तिशाली केन्द्र राज्यों को कमजोर करता है?
(ख) शक्तिशाली राज्यों से केन्द्र कमजोर होता है?
उत्तर:
(क) शक्तिशाली केन्द्र राज्यों को कमजोर करता है। शक्तिशाली केन्द्र राज्यों के कार्यक्षेत्र में अनावश्यक हस्तक्षेप कर राज्यों को कमजोर करता है। मुख्य रूप से जब केन्द्र में एक दल की सरकार हो और राज्य में दूसरे दल की तो केन्द्र अधिक शक्तिशाली होने पर विपक्षी दल की सरकार को गिराने के लिए उसके कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप करता है या उसके विकास हेतु आवश्यक वित्तीय व प्रशासनिक सहयोग देने में आनाकानी करता रहता है। ऐसी स्थिति में राज्य और कमजोर हो जाते हैं।
इससे केन्द्र-राज्यों के बीच संघर्ष और विवादों का जन्म होता है। 1960 के दशक में भारत में अनेक राज्यों की सरकारों ने केन्द्र की कांग्रेस सरकार द्वारा किये गए अवांछनीय हस्तक्षेपों का विरोध किया तथा संघीय व्यवस्था के अंदर स्वायत्तता की अवधारणा को लेकर विवाद छिड़ गया।
(ख) शक्तिशाली राज्यों से केन्द्र कमजोर होता है: यदि संघीय व्यवस्था में राज्य शक्तिशाली होंगे तो उनके पारस्परिक झगड़ों को निपटाने में केन्द्र अपने आपको असमर्थ पायेगा और ऐसी स्थिति में केन्द्र की स्थिति अत्यन्त निर्बल हो जायेगी। हो सकता है, ऐसी स्थिति में संघीय व्यवस्था का ही पतन हो जाए।
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प्रश्न 7.
भारत के राज्यों की सूची बनाएँ और पता करें कि प्रत्येक राज्य का गठन किस वर्ष किया गया?
उत्तर:
वर्तमान में भारत में 28 राज्य तथा 9 केन्द्र प्रशासित क्षेत्र हैं। ये राज्य निम्नलिखित हैं।: हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तरांचल, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखण्ड, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, पश्चिमी बंगाल, ड़ीसा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल। 9 केन्द्र प्रशासित क्षेत्र ये हैं।
- दमन और दीव
- दादरा और नगर हवेली
- चंडीगढ़
- पांडिचेरी
- लक्षद्वीप
- अंडमान निकोबार द्वीप समूह
- दिल्ली
- जम्मू-कश्मीर
- लद्दाख।
1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा भारत के समस्त राज्यों को पुनर्गठित कर दो श्रेणियों में विभाजित किय: राज्य और संघ राज्य क्षेत्र। 1956 में प्रमुख 14 राज्य थे। ये थे: आंध्रप्रदेश, असम, बिहार, महाराष्ट्र (बम्बई), केरल, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु (मद्रास), कर्नाटक (मैसूर), उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, पश्चिमी बंगाल, जम्मू और कश्मीर। इसके बाद 14 नये राज्यों का (14) गठन निम्नलिखित वर्षों में हुआ:
- 1960 में बम्बई राज्य को विभाजित कर महाराष्ट्र और (15) गुजरात राज्य बनाए गए।
- सन् 1961 में (16) हिमाचल प्रदेश का गठन किया गया।
- सन् 1962 में (17) नागालैंड (18) मणिपुर राज्यों का गठन किया गया।
- सन् 1963 में (19) त्रिपुरा का गठन किया गया तथा (20) गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
- सन् 1966 में पंजाब राज्य का विभाजन कर (21) हरियाणा का गठन किया गया।
- सन् 1971 में (22) मेघालय का तथा (23) मिजोरम राज्य का गठन किया गया।
- सन् 1975 में (24) सिक्किम तथा (25) अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा दिया गया।
- सन् 2000 में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार राज्यों से विभाजित कर क्रमश: (26) उत्तरांचल, (27) छत्तीसगढ़ और (28) झारखण्ड राज्यों का गठन किया गया है।
- 2014 में आंध्रप्रदेश राज्य को विभाजित कर दो राज्य बनाए गए:
- आंध्र
- तेलंगाना इस प्रकार तेलंगाना 29वां राज्य बना।
- 2019 में जम्मू-कश्मीर राज्य को विभाजित कर उसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों:
- जम्मू-कश्मीर तथा
- लद्दाख में परिवर्तित कर दिया गया। इस प्रकार केन्द्र प्रशासित राज्य 7 से बढ़कर 9 हो गए हैं तथा राज्यों की संख्या घटकर पुनः 28 हो गई है।
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प्रश्न 8.
राज्य और अधिक स्वायत्तता की मांग क्यों करते हैं?
उत्तर:
राज्य और अधिक स्वायत्तता की मांग निम्नलिखित कारणों से करते है।
- शक्ति विभाजन को राज्यों के पक्ष में बदलने तथा राज्यों को ज्यादा तथा महत्त्वपूर्ण अधिकार दिये जाने के लिए राज्य स्वायत्तता की मांग करते हैं।
- राज्य आय के स्वतंत्र साधनों तथा संसाधनों पर नियंत्रण करने के लिए वित्तीय स्वायत्तता की मांग करते हैं।
- विभिन्न राज्य प्रशासनिक तंत्र पर केन्द्रीय नियंत्रण से नाराज रहते हैं। इस नियंत्रण से मुक्ति पाने के लिए भी . राज्य अधिक स्वायत्तता की मांग करते हैं।
- कुछ राज्यों की स्वायत्तता की मांग सांस्कृतिक और भाषायी मुद्दों से भी जुड़ी हो सकती है। जैसे- तमिलनाडु ने हिन्दी के वर्चस्व के विरोध में अधिक स्वायत्तता की मांग की।
Jharkhand Board Class 11 Political Science संघवाद Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
नीचे कुछ घटनाओं की सूची दी गई है। इनमें से किसको आप संघवाद की कार्य-प्रणाली के रूप में चिह्नित करेंगे और क्यों?
(क) केन्द्र सरकार ने मंगलवार को जीएनएलएफ के नेतृत्व वाले दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल को छठी अनुसूची में वर्णित दर्जा देने की घोषणा की। इससे पश्चिम बंगाल के इस पर्वतीय जिले के शासकीय निकाय को ज्यादा स्वायत्तता प्राप्त होगी। दो दिन के गहन विचार-विमर्श के बाद नई दिल्ली में केन्द्र सरकार पश्चिम बंगाल सरकार और सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाले गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जी एन एल एफ) के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
(ख) वर्षा प्रभावित प्रदेशों के लिए सरकार कार्य-योजना लायेगी। केन्द्र सरकार ने वर्षा प्रभावित प्रदेशों से पुनर्निर्माण की विस्तृत योजना भेजने को कहा है ताकि वह अतिरिक्त राहत प्रदान करने की उनकी माँग पर फौरन कार्रवाई कर सक ।
(ग) दिल्ली के लिए नये आयुक्त। देश की राजधानी दिल्ली में नए नगरपालिका आयुक्त को बहाल किया जायेगा। इस बात की पुष्टि करते हुए एमसीडी के वर्तमान आयुक्त राकेश मेहता ने कहा कि उन्हें अपने तबादले के आदेश मिल गए हैं और संभावना है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अशोक कुमार उनकी जगह संभालेंगे। अशोक कुमार अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिव की हैसियत से काम कर रहे हैं। 1975 के बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री मेहता पिछले साढ़े तीन साल से आयुक्त की हैसियत से काम कर रहे हैं।
(घ) मणिपुर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा। राज्यसभा ने बुधवार को मणिपुर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान करने वाला विधेयक पारित किया। मानव संसाधन विकास मंत्री ने वायदा किया है कि अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों में भी ऐसी संस्थाओं का निर्माण होगा।
(ङ) केन्द्र ने धन दिया। केन्द्र सरकार ने अपनी ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत अरुणाचल प्रदेश के 553 लाख रुपये दिये हैं। इस धन की पहली किस्त के रूप में अरुणाचल प्रदेश को 466 लाख रुपये दिए गए हैं।
(च) हम बिहारियों को बतायेंगे कि मुंबई में कैसे रहना है। – करीब 100 शिवसैनिकों ने मुंबई के जे. जे. अस्पताल में उठा-पटंक करके रोजमर्रा के काम-धंधे में बाधा पहुँचाई, नारे लगाए और धमकी दी कि गैर – मराठियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की गई तो इस मामले को वे स्वयं ही निपटायेंगे।
(छ) सरकार को भंग करने की मांग। कांग्रेस विधायक दल ने प्रदेश के राज्यपाल को हाल में सौंपे एक ज्ञापन में सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक एलायंस ऑफ नागालैंड (डीएएन) की सरकार को तथाकथित वित्तीय अनियमितता और सार्वजनिक धन के गबन के आरोप में भंग करने की माँग की है।
(ज) एनडीए सरकार ने नक्सलियों से हथियार रखने को कहा। विपक्षी दल राजद और उसके सहयोगी कांग्रेस तथा सीपीआई (एम) के वॉकआउट के बीच बिहार सरकार ने आज नक्सलियों से अपील की कि वे हिंसा का रास्ता छोड़ दें। बिहार को विकास के नए युग में ले जाने के लिए बेरोजगारी को जड़ से खत्म करने के अपने वादे को भी सरकार ने दोहराया।
उत्तर:
( क ) केन्द्र सरकार ने मंगलवार को जीएनएलएफके नेतृत्व वाले दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल को छठी अनुसूची में वर्णित दर्जा देने की घोषणा की। यह घटना संघवाद की कार्यप्रणाली के रूप में चिह्नित की जा सकती है क्योंकि इसमें केन्द्र सरकार, राज्य सरकार (पश्चिम बंगाल सरकार) तथा सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाली गोरखा लिबरेशन फ्रंट तीनों शामिल हुए।
(ख) वर्षा प्रभावित प्रदेशों के लिए सरकार कार्य-योजना लायेगी। यह घटना अथवा प्रक्रिया भी संघवाद की कार्यप्रणाली के रूप में चिह्नित की जायेगी क्योंकि इसमें केन्द्र सरकार और वर्षा प्रभावित क्षेत्र सम्मिलित हैं।
(ग) दिल्ली के नये आयुक्त। यह तबादले का आदेश भी केन्द्र सरकार और राज्यों से संबंधित है। भारत में संघात्मक शासन प्रणाली में अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की नियुक्ति केन्द्र सरकार करती है, वे राज्यों में प्रमुख पदों पर अपनी सेवाएँ देते हैं, लेकिन उनका तबादला केन्द्र सरकार एक राज्य से दूसरे राज्य में कर सकती है।
(घ) मणिपुर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा इस घटना के सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि संघवाद में केन्द्र और राज्यों के बीच शक्ति का विभाजन रहता है। अतः केन्द्रीय विश्वविद्यालय केन्द्र सरकार के अधीन होगा। है (ङ) केन्द्र ने धन दिया। इस घटना में केन्द्र ने राज्य सरकार ( अरुणाचल सरकार ) को धन मुहैया कराया अतः यह संघवाद की कार्यप्रणाली के अन्तर्गत आता है।
(च) हम बिहारियों को बताएँगे कि मुंबई में कैसे रहना है। यह कार्यवाही संघवाद की कार्यप्रणाली के अनुरूप नहीं है क्योंकि कोई राज्य भारतीय नागरिक को किसी प्रदेश में रहने से नहीं रोक सकता।
(छ) सरकार को भंग करने की मांग। इस घटना को भी संघवाद की कार्यप्रणाली के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि संघवाद की कार्यप्रणाली में जब किसी राज्य में शासन भ्रष्टाचार में लिप्त हो तो संघ (केन्द्र) राज्य में राज्यपाल की सिफारिश पर राष्ट्रपति शासन लगा सकता है।
(ज) एनडीए सरकार ने नक्सलियों से हथियार रखने को कहा। इस घटना में बिहार की राज्य सरकार के द्वारा नक्सलियों के विरुद्ध किये जाने वाले कार्य को दर्शाया गया है। इसे संघवाद की कार्यप्रणाली के रूप में चिह्नित किया जा सकता है।
प्रश्न 2.
बताएँ कि निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही होगा और क्यों?
(क) संघवाद से इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि विभिन्न क्षेत्रों के लोग मेल-जोल से रहेंगे और उन्हें इस बात का भय नहीं रहेगा कि एक की संस्कृति दूसरे पर लाद दी जाएगी।
(ख) अलग-अलग किस्म के संसाधनों वाले दो क्षेत्रों के बीच आर्थिक लेन-देन को संघीय प्रणाली से बाधा पहुँचेगी।
(ग) संघीय प्रणाली इस बात को सुनिश्चित करती है कि जो केन्द्र में सत्तासीन हैं, उनकी शक्तियाँ सीमित रहें।
उत्तर:
उपर्युक्त तीनों कथनों में (ग) बिन्दु का यह कथन सही है कि ” संघीय प्रणाली इस बात को सुनिश्चित करती है कि जो केन्द्र में सत्तासीन हैं, उनकी शक्तियाँ सीमित रहें ।” क्योंकि संघवाद में संविधान द्वारा शक्तियों को केन्द्र और राज्यों की सरकारों के बीच विभाजन कर दिया जाता है और दोनों के विधायी, वित्तीय तथा प्रशासनिक कार्यक्षेत्र निश्चित कर दिये जाते हैं और यदि केन्द्र सरकार इस विभाजन का उल्लंघन कर राज्यों के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करती है तो राज्य सरकारें न्यायपालिका में वाद दायर कर इस हस्तक्षेप को रुकवा सकती हैं।
प्रश्न 3.
बेल्जियम के संविधान के कुछ प्रारंभिक अनुच्छेद नीचे लिखे गये हैं। इसके आधार पर बताएँ कि बेल्जियम में संघवाद को किस रूप में साकार किया गया है। भारत के संविधान के लिए ऐसा ही अनुच्छेद लिखने का प्रयास करके देखें
शीर्षक-I: संघीय बेल्जियम, इसके घटक और इसका क्षेत्र-
अनुच्छेद-1: बेल्जियम एक संघीय राज्य है। जो समुदायों और क्षेत्रों से बना है।
अनुच्छेद-2 : बेल्जियम तीन समुदायों से बना है फ्रैंच समुदाय, फ्लेमिश समुदाय और जर्मन समुदाय।
अनुच्छेद-3 : बेल्जियम तीन क्षेत्रों को मिलाकर बना है। वैलून क्षेत्र, फ्लेमिश क्षेत्र और ब्रूसेल्स क्षेत्र।
अनुच्छेद-4 बेल्जियम में 4 भाषायी क्षेत्र हैं। फ्रेंच भाषी क्षेत्र, डच भाषी क्षेत्र, ब्रूसेल्स की राजधानी का द्विभाषी क्षेत्र तथा जर्मन – भाषी क्षेत्र। राज्य का प्रत्येक ‘कम्यून’ इन भाषायी क्षेत्रों में से किसी एक का हिस्सा है।
अनुच्छेद-5: वैलून क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले प्रान्त हैं। वैलून ब्रार्बेट, हेनॉल्ट, लेग, लक्जमबर्ग और नामूर। फ्लेमिश क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल प्रान्त हैं। एंटीवर्प, फ्लेमिश ब्रार्बेट, वेस्ट फ्लैंडर्स, ईस्ट फ्लैंडर्स और लिंबर्ग।
उत्तर:
बेल्जियम के संघवाद को फ्रैंच, फ्लेमिश और जर्मन समुदायों तथा वैलून, फ्लेमिश और ब्रूसेल्स क्षेत्रों से बना एक संघीय राज्य है। प्रत्येक क्षेत्र अनेक राज्यों में विभाजित है और प्रत्येक राज्य अनेक कम्यूनों से बना है तथा राज्य का प्रत्येक कम्यून फ्रेंच, डच, जर्मन भाषायी क्षेत्रों में से किसी एक का हिस्सा है।
भारत के संघवाद के लिए ऐसा ही एक अनुच्छेद इस प्रकार लिखने का प्रयास इस प्रकार है।
अनुच्छेद-1 : भारत राज्यों का एक संघ होगा। राज्य और उनके राज्य क्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
अनुच्छेद-2 : भारत एक ऐसे समाज के लिए प्रेरित है जो जातिभेद से रहित हो लेकिन सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए सीटें मुख्यतः सामान्य वर्ग, अनुसूचित जनजाति वर्ग और अनुसूचित जाति वर्ग में बँटी हैं।
अनुच्छेद-3 : भारत में 28 राज्य तथा 9 संघ शासित क्षेत्र हैं। राज्य तथा संघ शासित क्षेत्र वे हैं जो संविधान की अनुसूची (1) में दिए गए हैं।
अनुच्छेद-4 : भारतीय संविधान में राज्यों का मुख्य आधार भाषायी क्षेत्र है लेकिन कुछ राज्य प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से भी निर्मित हुए हैं। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को राजभाषा के रूप में संवैधानिक मान्यता प्राप्त है।
प्रश्न 4.
कल्पना करें कि आपको संघवाद के संबंध में प्रावधान लिखने हैं। लगभग 300 शब्दों का एक लेख लिखें जिसमें निम्नलिखित बिन्दुओं पर आपके सुझाव हों।
(क) केन्द्र और प्रदेशों के बीच शक्तियों का बँटवारा।
(ख) वित्त संसाधनों का वितरण।
(ग) राज्यपालों की नियुक्ति।
उत्तर:
भारतीय संविधान में संघवाद – भारतीय संघवाद में केन्द्र और राज्यों के बीच संबंध सहयोग पर आधारित किया गया है। इस प्रकार इसमें विविधता को मान्यता देते हुए संविधान की एकता पर बल दिया गया है । इसी दृष्टि से यह कहा गया है कि ‘भारत राज्यों का संघ (यूनियन) होगा।’ भारतीय संविधान में संघवाद के प्रमुख प्रावधानों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
(क) केन्द्र और प्रदेशों के बीच शक्तियों का बँटवारा:
भारत के संविधान में दो तरह की सरकारों की बात मानी गई है – एक, सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए जिसे संघीय सरकार या केन्द्रीय सरकार कहा गया है। और दूसरी, प्रत्येक प्रान्तीय इकाई या राज्य के लिए जिसे राज्य सरकार कहा गया है। प्रत्येक संघीय व्यवस्था की तरह भारत में भी केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। इन शक्तियों को तीन सूचियों में विभाजित या परिगणित कर दिया गया है। ये सूचियाँ हैं। संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। मूलतः संघ सूची में 97 विषय दिये गये हैं, राज्य सूची में 66 तथा समवर्ती सूची में 47 विषय दिये गये हैं।
संघ सूची के विषयों के सम्बन्ध में कहा गया है कि इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्र सरकार का होगा। राज्य सूची के विषयों पर राज्यों की सरकारों को कानून बनाने का अधिकार दिया गया है तथा समवर्ती सूची के विषयों पर दोनों सरकारें कानून बना सकेंगी, लेकिन यदि एक ही समय में एक ही विषय पर दोनों सरकारों ने परस्पर विरोधी कानून बनाए हैं तो ऐसी दशा में केन्द्र सरकार का कानून ही मान्य रहेगा। इन तीनों सूचियों के अतिरिक्त विषयों को ‘अवशिष्ट विषय’ कहा गया है जिन पर कानून निर्माण का अधिकार केन्द्र की सरकार को सौंपा गया है। शक्ति विभाजन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि संविधान ने आर्थिक और वित्तीय शक्तियाँ केन्द्रीय सरकार के हाथ में सौंपी हैं। राज्यों के उत्तरदायित्व बहुत अधिक हैं पर आय के साधन कम।
शक्ति विभाजन में निम्नलिखित प्रावधान एक सशक्त केन्द्रीय सरकार की स्थापना करते हैं-
- अवशिष्ट शक्तियाँ केन्द्र सरकार को प्रदान की गई हैं।
- आय के प्रमुख साधनों पर केन्द्र का नियंत्रण रखा गया है तथा राज्य अनुदानों और वित्तीय सहयाता के लिए केन्द्र पर आश्रित हैं।
- राष्ट्रीय हित में संसद राज्य सूची के विषय के सम्बन्ध में भी कानून बना सकती है। (अनुच्छेद 249)
- आपातकाल की स्थिति में भी संसद राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
- संघ की कार्यपालिका को किसी राज्य को निर्देश देने की शक्ति दी गई है।
भारत के विभाजन के कारण संविधान सभा को राष्ट्रीय एकता और विकास की चिंताओं ने एक सशक्त केन्द्रीय सरकार बनाने की प्रेरणा दी।
(ख) वित्त संसाधनों का वितरण: भारतीय संविधान में केन्द्र तथा राज्यों के मध्य वित्तीय संसाधनों का वितरण इस प्रकार किया गया है। संघ तथा राज्यों के मध्य कर निर्धारण की शक्ति का पूर्ण विभाजन कर दिया गया है। करों से प्राप्त आय का बँटवारा होता है।
(अ) संघ सरकार के प्रमुख राजस्व स्रोत हैं। निगम कर, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, कृषि भूमि को छोड़कर अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क, निवेश ऋण, रेलें, रिजर्व बैंक, शेयर बाजार आदि।
(ब) राज्यों के राजस्व स्रोत हैं- प्रति व्यक्ति कर, कृषि भूमि पर कर, सम्पदा शुल्क, भूमि और भवनों पर कर, पशुओं तथा नौकाओं पर कर, बिजली के उपयोग तथा बिक्री पर कर, वाहनों पर चुंगी कर, केन्द्र सरकार से प्राप्त अनुदान तथा सहायता आदि।
(स) संघ द्वारा आरोपित, संगृहीत और विनियोजित शुल्क हैं बिल, विनिमयों, प्रोमिसरी नोटों, हुंडियों, चैकों आदि पर मुद्रांक शुल्क, मादक द्रव्य पर कर, शौक – शृंगार की चीजों पर कर तथा उत्पादन शुल्क।
(द) संघ द्वारा आरोपित, संगृहीत किन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर हैं। कृषि भूमि के अतिरिक्त अन्य सम्पत्ति के उत्तराधिकार पर कर, कृषि भूमि के अतिरिक्त अन्य सम्पत्ति शुल्क, समुद्र, वायु, रेल द्वारा ले जाने वाले ‘माल तथा यात्रियों पर सीमान्त कर, रेलभाड़ों तथा वस्तु भाड़ों पर कर, शेयर बाजार तथा सट्टा बाजार पर आदान-प्रदान पर मुद्रांक शुल्क के अतिरिक्त कर, समाचार पत्रों के क्रय-विक्रय तथा उसमें प्रकाशित किए गए विज्ञापनों पर और अन्य अन्तर्राज्यीय व्यापार तथा वाणिज्य से माल के क्रय-विक्रय पर कर।
वित्तीय साधनों के उपर्युक्त वितरण व्यवस्था से स्पष्ट होता है कि आय के प्रमुख संसाधनों पर केन्द्र सरकार का नियंत्रण है। राज्य अनुदानों और वित्तीय सहायता के लिए केन्द्र पर आश्रित है । नियोजन के कारण आर्थिक फैसले लेने की ताकत केन्द्र सरकार के हाथ में सिमटती गयी है। आर्थिक संसाधनों का यह वितरण असंतुलित माना जाता है और केन्द्र सरकार पर प्रायः यह आरोप लगाया जाता है कि वह विरोधी दलों द्वारा शासित राज्यों के प्रति अनुदान और ऋण देने में भेदभावपूर्ण रवैया अपनाती है।
(ग) राज्यपालों की नियुक्ति:
राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति यह नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के परामर्श से करता है। अतः प्रधानमंत्री ऐसे व्यक्ति को राज्यपाल बनाना चाहेंगे जो उसका विश्वासपात्र हो क्योंकि ऐसे व्यक्ति द्वारा आवश्यकता पड़ने पर राज्य पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। राज्यपाल राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकता है। इस प्रकार राज्यपाल के फैसलों को प्रायः राज्य सरकार के कार्यों में केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है। जब केन्द्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें होती हैं तब राज्यपाल की भूमिका और भी विवादग्रस्त हो जाती है। अतः राष्ट्रपति द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति निष्पक्ष होकर की जानी चाहिए ।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में कौन-सा प्रांत के गठन का आधार होना चाहिए और क्यों?
(क) सामान्य भाषा
(ख) सामान्य आर्थिक हित
(ग) सामान्य क्षेत्र
(घ) प्रशासनिक सुविधा।
उत्तर:
प्रांत के गठन के उपर्युक्त में से दो आधार:
(क) सामान्य भाषा (घ) प्रशासनिक सुविधा रहे हैं। लेकिन वर्तमान काल में सामान्य भाषा के आधार पर प्रान्तों का गठन उचित माना जाता है क्योंकि समाज में अनेक विविधताएँ होती हैं और आपसी विश्वास से संघवाद का कामकाज आसानी से चलाने का प्रयास किया जाता है। यही कारण है कि भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषायी आधार पर किया गया है। कोई एक भाषायी समुदाय पूरे संघ पर हावी न हो जाए इस कारण इकाई क्षेत्रों की अपनी भाषा सामुदायिक पहचान बनी रहती है और वे इकाई अपनी पहचान होते हुए भी संघ की एकता में विश्वास रखती हैं।
प्रश्न 6.
उत्तर भारत के प्रदेशों:
राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश तथा बिहार के अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यदि इन सभी प्रान्तों को मिलाकर एक प्रदेश बना दिया जाए तो क्या ऐसा करना संघवाद के विचार से संगत होगा? तर्क दीजिए।
उत्तर:
उत्तर भारत के प्रदेशों राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं भाषायी आधार पर यदि इन सभी प्रान्तों को मिलाकर एक प्रदेश बना दिया जाये तो ऐसा करना संघवाद के विचार से असंगत होगा क्योंकि इससे प्रथम तो प्रशासनिक असुविधा पैदा होगी। दूसरे, संघवाद में लोगों की दो निष्ठाएँ होती हैं, प्रथम राष्ट्रीय निष्ठा और दूसरी क्षेत्रीय निष्ठा संघवाद में लोगों की दोनों निष्ठाओं को बनाए रखने का प्रयास किया जाता है। लेकिन
यदि उपर्युक्त राज्यों को मिलाकर एक राज्य (प्रदेश) बना दिया जायेगा तो इससे क्षेत्रीय निष्ठाएँ आहत होंगी जो अन्ततः राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक होंगी।
प्रश्न 7.
भारतीय संविधान की ऐसी चार विशेषताओं का उल्लेख करें जिनमें प्रादेशिक सरकार की अपेक्षा केन्द्रीय सरकार को ज्यादा शक्ति प्रदान की गई है।
उत्तर:
भारतीय संविधान एक संघात्मक शासन व्यवस्था की स्थापना करता है जिसमें दो प्रकार की सरकारों की बात कही गयी है।
- सम्पूर्ण भारत के लिए एक संघीय या केन्द्रीय सरकार और
- प्रत्येक प्रान्त के लिए एक राज्य सरकार ये दोनों ही संवैधानिक सरकारें हैं जिनके स्पष्ट कार्यक्षेत्र हैं।
लेकिन भारतीय संविधान की संघात्मक शासन व्यवस्था में प्रादेशिक सरकार की अपेक्षा केन्द्रीय सरकार को अधिक शक्ति प्रदान की गई है। केन्द्रीय सरकार को अधिक शक्ति प्रदान करने वाली चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1. राज्य के अस्तित्व और उसकी भौगोलिक सीमाओं के स्थायित्व पर संसद का नियंत्रण: संविधान के अनुच्छेद-3 के अनुसार संसद ” किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को मिलाकर नये राज्य का निर्माण कर सकती है।” वह किसी राज्य की सीमाओं या नाम में परिवर्तन कर सकती है, लेकिन इस शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए संविधान पहले प्रभावित राज्य के विधानमण्डल को विचार व्यक्त करने का अवसर देता है।
इससे स्पष्ट होता है कि राज्य के अस्तित्व और उसकी भौगोलिक सीमाओं के स्थायित्व पर संसद का नियंत्रण है।
2. आपातकालीन प्रावधान: संविधान में केन्द्र को अत्यधिक शक्तिशाली बनाने वाले कुछ आपातकालीन प्रावधान भी दिये गये हैं। आपातकाल में संसद को यह शक्ति प्राप्त हो जाती है कि वह राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।
3. केन्द्र को प्रदत्त प्रभावी वित्तीय शक्ति: केन्द्र सरकार को अत्यन्त प्रभावी वित्तीय शक्ति प्राप्त है। आय के प्रमुख संसाधनों पर केन्द्र सरकार का नियंत्रण है। केन्द्र के पास आय के अनेक संसाधन हैं और राज्य अनुदानों तथा वित्तीय सहायता के लिए केन्द्र पर आश्रित है। स्वतंत्रता के बाद भारत की आर्थिक प्रगति के लिए नियोजन का प्रयोग किया गया। केन्द्र नीति आयोग की नियुक्ति करता है जो राज्यों के संसाधन प्रबन्ध की निगरानी करता है।
4. राज्यपाल: राज्यपाल राज्य का प्रमुख होता है जिसकी नियुक्ति केन्द्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राज्यपाल प्रायः केन्द्र के अभिकर्ता के रूप में कार्य करता है। राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकार को हटाने और विधानसभा को भंग करने का प्रतिवेदन राष्ट्रपति को भेज सके। इससे केन्द्र सरकार को राज्यों के कार्यों में हस्तक्षेप का अवसर मिल जाता है। इसके अतिरिक्त सामान्य परिस्थिति में भी राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रख सकता है।
प्रश्न 8.
बहुत-से प्रदेश राज्यपाल की भूमिका को लेकर नाखुश क्यों हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुसार राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख है। उसकी स्थिति उसी प्रकार की है जैसी केन्द्र में राष्ट्रपति की है। लेकिन राज्यपाल की नियुक्ति प्रधानमंत्री तथा मंत्रिपरिषद के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति समय से पूर्व उसे पद से हटा सकता है तथा अन्य राज्यों में उसका स्थानान्तरण कर सकता है। इस प्रकार राज्यपाल अपने कार्यों के लिए राष्ट्रपति अर्थात् केन्द्र सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है। इस उत्तरदायित्व के कारण राज्यपालों को दोहरी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। एक तरफ उसे राज्य के संवैधानिक अध्यक्ष की भूमिका निभानी होती है तो दूसरी तरफ उसे केन्द्र सरकार के अभिकर्ता के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह करना होता है।
1960 के दशक तक तो भारत में केन्द्र तथा राज्यों में एक ही दल कांग्रेस की सरकारें रहीं। इसलिए राज्यपाल की केन्द्र के अभिकर्ता की भूमिका मुखरित नहीं हुई। लेकिन 1960 के दशक के बाद के काल में अनेक राज्यों में विरोधी दलों की सरकारें बनीं; वहाँ राज्यपाल की केन्द्र के अभिकर्ता की भूमिका सामने आई तथा राज्यपाल विवादों के घेरे में आए। अनेक राज्य राज्यपालों की निम्नलिखित भूमिकाओं को लेकर नाखुश रहे
राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने के प्रश्न पर नाखुश – राज्यपालों से संबंधित विवाद का मुख्य प्रश्न यह रहा कि राज्यपाल को किन परिस्थितियों में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करनी चाहिए। कुछ राज्य सरकारों का यह मत रहा है कि कई बार ऐसा होता है कि राज्यों की संवैधानिक मशीनरी विफल नहीं हुई होती तो भी राज्यपाल केन्द्र के इशारों पर राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर देते हैं। यथा
- उत्तरप्रदेश में 21 फरवरी, 1998 को तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भण्डारी ने कल्याणसिंह सरकार को गिराकर राज्यपाल के पद की गरिमा को ठोस पहुँचायी।
- 2 फरवरी, 2005 को गोवा में हुए नाटकीय घटनाक्रम में तत्कालीन राज्यपाल एम. सी. जमीर ने विधानसभा में विश्वासमत हासिल करने के बावजूद भाजपा की मनोहर पारीक सरकार को बर्खास्त कर दिया। यह संवैधानिक पद का दुरुपयोग है।
- बिहार में तत्कालीन राज्यपाल बूटासिंह ने भी विवादास्पद आचरण के तहत सन् 2005 में विधानसभा भंग कर दी। सर्वोच्च न्यायालय ने विधानसभा भंग किये जाने को अनुचित ठहराया। इन्हीं कारणों से बहुत से प्रदेश राज्यपाल की भूमिका को लेकर नाख़ुश रहते हैं क्योंकि राज्यपाल केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में राज्य के संवैधानिक प्रमुख की भूमिका का निष्पक्ष ढंग से निर्वाह नहीं करते हैं।
प्रश्न 9.
यदि शासन संविधान के प्रावधानों के अनुकूल नहीं चल रहा, तो ऐसे प्रदेश में राष्ट्रपति – शासन लगाया जा सकता है। बताएँ कि निम्नलिखित में से कौन-सी स्थिति किसी देश में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिहाज से संगत है और कौन-सी नहीं। संक्षेप में कारण भी दें।
(क) राज्य की विधानसभा के मुख्य विपक्षी दल के दो सदस्यों को अपराधियों ने मार दिया है और विपक्षी दल प्रदेश की सरकार को भंग करने की माँग कर रहा है।
(ख) फिरौती वसूलने के लिए छोटे बच्चों के अपहरण की घटनाएँ बढ़ रही हैं। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में इजाफा हो रहा है।
(ग) प्रदेश में हुए हाल के विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला है। भय है कि एक दल दूसरे दल के कुछ विधायकों को धन देकर अपने पक्ष में उनका समर्थन हासिल कर लेगा।
(घ) केन्द्र और प्रदेश में अलग-अलग दलों का शासन है और दोनों एक-दूसरे के कट्टर शत्रु हैं।
(ङ) साम्प्रदायिक दंगे में 2000 से ज्यादा लोग मारे गये हैं।
(च) दो प्रदेशों के बीच चल रहे विवाद में एक प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इनकार कर दिया है।
उत्तर:
(क) राज्य की विधानसभा के मुख्य विपक्षी दल के दो सदस्यों को अपराधियों ने मार दिया है और विपक्षी दल प्रदेश की सरकार को भंग करने की मांग कर रहा है। यह स्थिति राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का उचित कारण नहीं है। सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुरूप कार्य कर रही है। अपराधियों को दण्ड देने की प्रक्रिया सामान्य कानून की एक प्रक्रिया है।
(ख) फिरौती वसूलने के लिए छोटे बच्चों के अपहरण की घटनाओं का बढ़ना तथा महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में वृद्धि होने की घटनाएँ यह सिद्ध नहीं करती हैं कि शासन संविधान के प्रावधानों के अनुकूल नहीं है। इस स्थिति में भी राज्यपाल को राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करना उचित नहीं है।
(ग) प्रदेश में हुए हाल के विधानसभा चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला है। यह है कि एक दल दूसरे दल के विधायकों को धन देकर अपने पक्ष में उनका समर्थन हासिल कर लेगा।
इस स्थिति में बिना किसी ठोस सबूत के केवल आशंका के आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश नहीं की जा सकती।
(घ) केन्द्र और प्रदेश में एक-दूसरे के कट्टर शत्रु दलों का अलग-अलग शासन होना भी राष्ट्रपति शासन लगाने का उचित कारण नहीं है। केन्द्र और राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें हो सकती हैं।
(ङ) साम्प्रदायिक दंगों में 2000 से अधिक लोगों का मारा जाना; शासन की असफलता को सिद्ध करता है। इस स्थिति में राज्यपाल राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है।
(च) दो प्रदेशों के बीच चल रहे जल विवाद में एक प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इनकार कर दिया है। इस स्थिति में उस राज्य में जिसने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इनकार कर दिया है, राजयपाल राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है, क्योंकि राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुकूल नहीं चल रहा है।
प्रश्न 10.
ज्यादा स्वायत्तता की चाह में प्रदेशों ने क्या माँगें उठाई हैं?
उत्तर:
संविधान ने केन्द्र को राज्यों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली बनाया है और अनेक कारणों से समय-समय पर राज्यों ने ज्यादा शक्ति और स्वायत्तता की निम्नलिखित मांगें उठायी हैं।
- अधिक शक्ति तथा अधिकार हेतु स्वायत्तता की मांग: अधिक शक्ति और स्वायत्तता के लिए कभी-कभी राज्यों ने यह मांग उठायी है कि शक्ति विभाजन, जो केन्द्र के पक्ष में है, उसे राज्यों के पक्ष में बदला जाए तथा राज्यों को ज्यादा तथा महत्त्वपूर्ण अधिकार दिए जाएँ। समय-समय पर अनेक राज्यों (तमिलनाडु, पंजाब, पश्चिम बंगाल) ने इस प्रकार की स्वायत्तता की मांग की।
- वित्तीय स्वायत्तता की मांग: ज्यादा स्वायत्तता की चाह में प्रदेशों ने एक अन्य मांग यह उठायी है. कि राज्यों के पास आय के स्वतन्त्र साधन होने चाहिए और संसाधनों पर उनका ज्यादा नियंत्रण होना चाहिए इसे वित्तीय स्वायत्तता की मांग भी कह सकते हैं। तमिलनाडु और पंजाब की स्वायत्तता की माँगों में भी ज्यादा वित्तीय अधिकार हासिल करने की मंशा छुपी हुई है।
- प्रशासकीय स्वायत्तता की मांग: स्वायत्तता की मांग का तीसरा पहलू प्रशासकीय शक्तियों से संबंधित है। विभिन्न राज्य प्रशासनिक तंत्र पर केन्द्रीय नियंत्रण से नाराज रहते हैं।
- सांस्कृतिक एवं भाषायी मुद्दों से जुड़ी स्वायत्ता की मांग-कुछ राज्यों की स्वायत्तता की मांग सांस्कृतिक और भाषायी मुद्दों से भी जुड़ी हुई रही है। तमिलनाडु में हिन्दी के वर्चस्व के विरोध और पंजाब में पंजाबी भाषा और संस्कृति के प्रोत्साहन की मांग इसके कुछ उदाहरण हैं। कुछ राज्य ऐसा महसूस करते रहे हैं कि हिंदी भाषी क्षेत्रों का अन्य क्षेत्रों पर वर्चस्व है। इसीलिए 1960 के दशक में कुछ राज्यों में हिंदी को लागू करने के विरोध में आंदोलन भी हुए।
प्रश्न 11.
क्या कुछ प्रदेशों के शासन के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिए? क्या इससे दूसरे प्रदेशों में नाराजगी पैदा होती है? क्या इन प्रावधानों के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकता मजबूत करने में मदद मिलती है?
उत्तर:
भारतीय संघवाद की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि इसमें अनेक राज्यों के साथ थोड़ा अलग व्यवहार किया जाता है। शक्ति के बँटवारे की योजना के तहत संविधान प्रदत्त शक्तियाँ सभी राज्यों को समान रूप से प्राप्त हैं। लेकिन कुछ राज्यों के लिए उनकी विशिष्ट सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के प्रावधानों की व्यवस्था करता है। अनुरूप संविधान कुछ विशेष ऐसे अधिकतर प्रावधान पूर्वोत्तर के राज्यों (असम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम आदि) के लिए हैं।
ऐसे ही कुछ विशिष्ट प्रावधान पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल तथा अन्य राज्यों जैसे तेलगूदेशम, गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र और सिक्किम के लिए हैं। इन राज्यों के विशिष्ट इतिहास और संस्कृति वाली जनसंख्या को अपनी संस्कृति और इतिहास को बनाए रखने के लिए ऐसे प्रावधान होने चाहिए। इस दृष्टिकोण के तहत भारतीय संविधान में इन राज्यों को कुछ विशिष्ट प्रावधान प्रदान किये गये हैं।
विशिष्ट प्रावधानों का विरोध: संघात्मक शासन व्यवस्था में जब भी कुछ राज्यों के लिए ऐसे विशिष्ट प्रावधानों की व्यवस्था संविधान में की जाती है, तो उसका कुछ विरोध भी होता है क्योंकि विरोध करने वाले लोगों की मान्यता होती है कि संघीय व्यवस्था में शक्तियों का औपचारिक और समान विभाजन संघ की सभी इकाइयों पर समान रूप से लागू होना चाहिए। इस दृष्टि से इनका विरोध किया जाता है। दूसरे, इस बात की भी शंका होती है कि ऐसे विशिष्ट प्रावधानों से उन क्षेत्रों में अलगाववादी प्रवृत्तियाँ मुखर हो सकती हैं।
विशिष्ट प्रावधान और विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकता: इन विशिष्ट प्रावधानों के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकता मजबूत करने में भी मदद मिलती है। क्योंकि इन प्रावधानों के कारण इन क्षेत्रों के निवासियों का यह भय दूर हो जाता है कि अन्य क्षेत्रों के लोग उनकी संस्कृति व इतिहास को नष्ट-भ्रष्ट कर देंगे। इससे इन क्षेत्रों के लोगों में संघीय व्यवस्था के प्रति विश्वास पैदा होता है और संघीय व्यवस्था की सफलता राष्ट्र की एकता तथा विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकता की गारंटी देती है।
संघवाद JAC Class 11 Political Science Notes
→ संघवाद क्या है;
शासन के सिद्धान्त के रूप में संघवाद विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न स्वरूप ग्रहण करता है। संघीय राज्य का प्रारंभ अमेरिका से हुआ लेकिन वह भारतीय संघवाद से भिन्न है। संघवाद की कुछ मूल अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं।
- संघवाद एक संस्थागत प्रणाली है जो दो प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाओं को समाहित करती है। इसमें एक प्रान्तीय स्तर की होती है और दूसरी केन्द्रीय स्तर की । प्रत्येक सरकार अपने क्षेत्र में स्वायत्त होती है।
- इस प्रकार के लोगों की दोहरी पहचान और निष्ठाएँ होती हैं। वे अपने क्षेत्र के भी होते हैं और राष्ट्र के भी। जैसे हममें से कोई राजस्थानी या मराठी होने के साथ-साथ भारतीय भी होता है।
- प्रत्येक स्तर की राजनीतिक व्यवस्था की कुछ विशिष्ट शक्तियाँ और उत्तरदायित्व होते हैं और वहां की अलग सरकार भी होती है।
- दोहरे शासन की विस्तृत रूपरेखा प्राय: एक लिखित संविधान में मौजूद होती है। यह संविधान सर्वोच्च होता है और दोनों सरकारों की शक्तियों का स्रोत भी। राष्ट्रीय महत्त्व के विषय केन्द्रीय सरकार के पास होते हैं और क्षेत्रीय महत्त्व के विषय प्रान्तों की सरकार के पास होते हैं।
- केन्द्र और राज्यों के मध्य किसी टकराव को रोकने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था होती है जो संघर्षों का समाधान करती है; शक्ति के बंटवारे के कानूनी विवादों का हल करती है।
इस प्रकार संघवाद वह शासन व्यवस्था है जिसमें संविधान द्वारा शक्तियों को केन्द्र और प्रान्तों की सरकारों में विभाजित कर दिया जाता है। इसमें प्रायः दोहरी नागरिकता पायी जाती है; संविधान सर्वोच्च होता है, न्यायपालिका स्वतंत्र तथा सर्वोच्च होती है।
→ भारतीय संविधान में संघवाद: भारत के संविधान में संघ के लिए ‘यूनियन’ शब्द का प्रयोग किया गया है कि ‘भारत राज्यों का संघ (यूनियन) होगा और राज्य और उनके राज्य क्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
→ दोहरी शासन व्यवस्था:
भारत के संविधान में दो तरह की सरकारों की बात मानी गई है।
- संघीय (केन्द्रीय) सरकार और
- राज्य ( प्रान्तीय) सरकार।
ये दोनों ही संवैधानिक सरकारें हैं शक्ति विभाजन संविधान इस बात की स्पष्ट व्यवस्था करता है कि कौन-कौनसी शक्तियाँ केवल केन्द्र सरकार को प्राप्त होंगी और कौन-कौनसी केवल राज्यों को। संविधान द्वारा संघ सूची में विनिर्दिष्ट विषयों को केन्द्रीय सरकार को सौंपा गया है और राज्य सूची में विनिर्दिष्ट विषयों को राज्य सरकारों को सौंपा गया है। संघ सूची के विषयों पर सिर्फ केन्द्रीय विधायिका ही कानून बना सकती है और राज्य सूची के विषयों पर राज्य विधायिका ही कानून बना सकती है।
इसके अतिरिक्त कुछ विषय समवर्ती सूची में दिये गये हैं। इन पर केन्द्र और प्रान्त दोनों की विधायिकाएँ कानून बना सकती हैं। लेकिन यदि एक ही समय में समवर्ती सूची के एक ही विषय पर दोनों सरकारें अलग-अलग परस्पर विरोधी कानून बनाती हैं तो ऐसी स्थिति में संघीय विधायिका का कानून मान्य होगा और प्रान्तीय विधायिका का कानून रद्द हो जायेगा। इन तीनों सूचियों के अतिरिक्त अवशिष्ट विषय केन्द्र सरकार को दिये गये हैं।
→ स्वतंत्र व सर्वोच्च न्यायपालिका: यदि कभी यह विवाद हो जाए कि कौन-सी शक्तियाँ केन्द्र के पास हैं और कौन-सी राज्यों के पास, तो इसका निर्णय न्यायपालिका संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार करेगी।
→ विविधता के साथ एकता: भारतीय संविधान द्वारा अंगीकृत संघीय व्यवस्था का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त यह है कि केन्द्र और राज्यों के बीच संबंध सहयोग पर आधारित होगा।
→ सशक्त केन्द्रीय सरकार और संघवाद:
देश की एकता को बनाए रखने तथा विकास की चिन्ताओं ने संविधान निर्माताओं को एक सशक्त केन्द्रीय सरकार बनाने की प्रेरणा दी। निम्नलिखित संवैधानिक प्रावधान सशक्त केन्द्रीय सरकार की स्थापना करते हैं।
- किसी राज्य के अस्तित्व और उसकी भौगोलिक सीमाओं के स्थायित्व पर संसद का नियंत्रण है।
- आपातकालीन प्रावधान हमारी संघीय व्यवस्था को एक अत्यधिक केन्द्रीकृत व्यवस्था में बदल देते हैं।
- केन्द्र सरकार के पास अत्यन्त प्रभावी वित्तीय शक्तियाँ व उत्तरदायित्व हैं। यथा – आय के प्रमुख संसाधनों पर केन्द्र सरकार का नियंत्रण; राज्यों की केंन्द्र पर वित्तीय आश्रितता, नीति आयोग तथा केन्द्र सरकार के विशेषाधिकार आदि।
- राज्यपाल का केन्द्र के अभिकर्ता के रूप में कार्य करना।
- राज्यसभा की अनुमति से केन्द्र सरकार राज्य सूची के विषय पर भी कानून बना सकती है।
- केन्द्र सरकार राज्यों की सरकारों को निर्देश दे सकती है। [अनु. 257 (1)]
- इकहरी प्रशासकीय व्यवस्था तथा अखिल भारतीय सेवाएँ।
- देश के किसी क्षेत्र में सैनिक शासन लागू होगा।
→ भारतीय संघीय व्यवस्था में तनाव
संविधान ने केन्द्र को बहुत अधिक शक्तियाँ प्रदान की हैं। इसलिए समय-समय पर राज्यों ने ज्यादा शक्ति और स्वयत्तता देने की मांग उठायी है। इससे केन्द्र और राज्यों के बीच संघर्ष व विवादों का जन्म हुआ। केन्द्र और राज्य अथवा विभिन्न राज्यों के आपसी कानूनी विवादों का समाधान यद्यपि न्यायपालिका करती है, लेकिन स्वायत्तता की मांग एक राजनीतिक मसला है जो बातचीत द्वारा ही सुलझाया जा सकता है।
→ केन्द्र-राज्य सम्बन्ध: भारतीय संघवाद पर राजनीतिक प्रक्रिया की परिवर्तनशील प्रकृति का काफी प्रभाव पड़ा है। यथा
- 1950 तथा 1960 के दशक में केन्द्र और राज्यों में कांग्रेस दल का वर्चस्व था। अंतः इस काल में नए राज्यों के गठन की मांग के अलावा केन्द्र और राज्यों के बीच सम्बन्ध शांतिपूर्ण और सामान्य रहे।
- 1960 के दशक में अनेक राज्यों में विरोधी दल सत्ता में आए। इससे राज्यों को और ज्यादा शक्ति और स्वायत्तता देने की मांग भी बलवती हुई।
- 1990 के दशक से गठबंधन राजनीति का युग आया । राज्यों में विभिन्न राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल सत्तारूढ़ हुए। इससे राज्यों का राजनीतिक कद बढ़ा, विविधता का आदर हुआ और स्वायत्तता का मसला राजनैतिक रूप से गर्म हुआ है।
→ स्वायत्तता की मांग: समय-समय पर अनेक राज्यों और राजनीतिक दलों ने राज्यों को केन्द्र के मुकाबले ज्यादा स्वायत्तता देने की मांग उठायी है। लेकिन उनके स्वायत्तता के अलग-अलग अर्थ रहे हैं।
- राज्यों को ज्यादा और महत्त्वपूर्ण अधिकार दिये जाएँ।
- राज्यों के पास वित्तीय स्वायत्तता हो।
- राज्य प्रशासकीय दृष्टि से केन्द्र के नियंत्रण में नहीं हों।
- सांस्कृतिक और भाषायी मुद्दों से जुड़ी स्वायत्तता, जैसे— तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध, पंजाब में पंजाबी भाषा व संस्कृति को प्रोत्साहन आदि।
→ राज्यपाल की भूमिका तथा राष्ट्रपति शासन:
राज्यपाल की भूमिका केन्द्र और राज्यों के बीच हमेशा ही विवाद का विषय रही है।
- राज्यपाल की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा होती है। वह केन्द्र के अभिकर्ता के रूप में कार्य करता है। जब केन्द्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें होती हैं तब राज्यपाल की भूमिका विवादास्पद हो जाती है। 1998 में ‘सरकारिया आयोग’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि राज्यपाल की नियुक्ति निष्पक्ष होकर की जानी चाहिए।
- राज्यपालों की शक्ति और भूमिका को विवादास्पद बनाने वाला संविधान का 356वां अनुच्छेद भी रहा है इसके द्वारा राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। केन्द्र ने अनेक अवसरों पर इसका प्रयोग राज्य सरकारों को बर्खास्त करने के लिए किया था उसने विरोधी दलों के गठबंधन को सत्तारूढ़ होने से रोका।
→ नवीन राज्यों की मांग: हमारी संघीय व्यवस्था में नवीन राज्यों के गठन की माँग को लेकर भी तनाव रहा है।
- सबसे पहले भाषायी आधार पर राज्यों के गठन की मांग उठी। फलतः 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की गई और भाषा के आधार पर 1956 में राज्यों का पुनर्गठन हुआ। लेकिन बाद में भी राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया जारी रही। 1960 में मुजरात और महाराष्ट्र का, 1966 में पंजाब और हरियाणा का गठन हुआ। बाद में मेघालय, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश का जन्म हुआ।
- सन् 2000 के दशक में प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से बिहार, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश को विभाजित कर तीन नए राज्य क्रमश: झारखंड, उत्तरांचल और छत्तीसगढ़ बनाए गए तथा सन् 2014 में आंध्रप्रदेश का विभाजन कर आंध्रप्रदेश तथा तेलंगाना राज्य बनाए गए।
- कुछ क्षेत्र और भाषायी समूह अभी भी अलग राज्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं जिनमें विदर्भ (महाराष्ट्र ) है।
→ अन्तर्राज्यीय विवाद:
संघीय व्यवस्था में दो या दो से अधिक राज्यों में आपसी विवाद के भी अनेक उदाहरण मिलते हैं। कानूनी विवादों को तो न्यायपालिका हल कर देती है, लेकिन राजनीतिक विवादों के हल के लिए परस्पर विचार-विमर्श और विश्वास की आवश्यकता होती है।
- सीमा विवाद: एक राज्य प्रायः पड़ौसी राज्यों के भू-भाग पर अपना दावा पेश करता है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच ‘बेलगाम’, मणिपुर और नागालैंड के बीच सीमा विवाद, पंजाब और हरियाणा के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों तथा चंडीगढ़ को लेकर विवाद चले आ रहे हैं।
- नदी जल विवाद: कावेरी नदी जल विवाद (तमिलनाडु व कर्नाटक के बीच), नर्मदा जल विवाद (गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बीच) ऐसे ही विवाद हैं।
→ विशिष्ट प्रावधान:
भारतीय संघवाद की सबसे नायाब विशेषता यह है कि इसमें अनेक राज्यों के साथ थोड़ा अलग व्यवहार किया जाता है । यथा
प्रत्येक राज्य का आकार और जनसंख्या भिन्न-भिन्न होने के कारण उन्हें राज्य सभा में असमान प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है। जहाँ छोटे-से-छोटे राज्य को भी न्यूनतम प्रतिनिधित्व अवश्य प्रदान किया गया है, वहीं बड़े राज्यों को ज्यादा प्रतिनिधित्व देना भी सुनिश्चित किया गया है।
शक्ति के बंटवारे की योजना के तहत संविधान प्रदत्त शक्तियाँ सभी राज्यों को समान रूप से प्राप्त हैं। लेकिन कुछ राज्यों के लिए उनकी विशिष्ट सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के अनुरूप संविधान कुछ विशेष अधिकारों की व्यवस्था करता है। ये राज्य है। असम, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र सिक्किम आदि। उसेजम्मू और कश्मीर अनुच्छेद 370 के द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य को विशिष्ट स्थिति प्रदान की गयी थी।
→ जम्मू और कश्मीर
→ अनुच्छेद 370 के द्वारा जम्म्-कश्मीर राज्य को विशिष्ट स्थिति प्रदान की गयी थी।
अनुच्छेद 370 के अनुसार संघीय सूची और समवर्ती सूची के किसी विषय पर संसद द्वारा कानून बनाने और -कश्मीर में लागू करने के लिए इस राज्य की सहमति आवश्यक थी। यह स्थिति अन्य राज्यों से भिन्न थी।
→ जम्मू-कश्मीर में राज्य सरकार की सहमति के बिना ‘आन्तरिक अशान्ति’ के आधार पर आपातकाल लागू नहीं किया जा सकता था न वहाँ वित्तीय आपातकाल लागू किया जा सकता था और न ही वहाँ राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व लागू होते थे तथा भारतीय संविधान के संशोधन भी राज्य सरकार की सहमति से ही वहाँ लागू हो सकते थे । 2019 में जम्मू-कश्मीर राज्य की इस विशिष्ट स्थिति को समाप्त कर दिया गया। अनुच्छेद 370 तथा 35 – A को संसद •ने संविधान संशोधन कर हटा दिया है तथा जम्मू-कश्मीर राज्य को दो भागों में विभाजित कर दिया गया है तथा दोनों भागों को केन्द्र प्रशासित क्षेत्र बना दिया गया है।