JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 कार्यपालिका

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 कार्यपालिका Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 कार्यपालिका

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. अध्यक्षात्मक कार्यपालिका का अर्थ होता है।
(क) संसद द्वारा निर्वाचित कार्यपालिका।
(ख) ऐसी कार्यपालिका जो संसद को बहुमत के समर्थन पर निर्भर हो।
(ग) जहाँ संसद हो वहाँ कार्यपालिका का होना।
(घ) देश तथा सरकार के अध्यक्ष का जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होना तथा संसद के प्रति जवाबदेह नहीं होना।
उत्तर:
(घ) देश तथा सरकार के अध्यक्ष का जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होना तथा संसद के प्रति जवाबदेह नहीं होना।

2. भारतीय पुलिस सेवा निम्न में से किसके अन्तर्गत आती है।
(क) अखिल भारतीय सेवाएँ
(ख) केन्द्रीय सेवाएँ
(ग) प्रान्तीय सेवाएँ
(घ) स्थानीय स्वशासन की सेवाएँ।
उत्तर:
(क) अखिल भारतीय सेवाएँ

3. संसदात्मक सरकार में निम्न में से कौनसी विशेषता नहीं पायी जाती है।
(क) सरकार के प्रमुख को प्रायः प्रधानमन्त्री कहते हैं।
(ख) सरकार का प्रमुख विधायिका में बहुमत दल या गठबन्धन का नेता होता है।
(ग) सरकार का प्रमुख ही देश या राष्ट्र का प्रमुख होता है।
(घ) सरकार का प्रमुख विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है।
उत्तर:
(ग) सरकार का प्रमुख ही देश या राष्ट्र का प्रमुख होता है।

4. संसदात्मक सरकार की विशेषता है-
(क) देश का प्रमुख ही सरकार का प्रमुख होता है।
(ख) सरकार का प्रमुख विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है।
(ग) सरकार का प्रमुख विधायिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होता।
(घ) सरकार का प्रमुख प्रायः प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुना जाता है।
उत्तर:
(ख) सरकार का प्रमुख विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है।

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5. अध्यक्षात्मक सरकार में निम्न में से कौनसी विशेषता नहीं पायी जाती।
(क) राष्ट्रपति देश का प्रमुख तथा सरकार का प्रमुख दोनों होता है।
(ख) राष्ट्रपति का चुनाव प्रायः प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा किया जाता है।
(ग) राष्ट्रपति विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होता।
(घ) राष्ट्रपति विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है।
उत्तर:
(घ) राष्ट्रपति विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है।

6. संसदात्मक व्यवस्था को निम्न में से किस देश में अपनाया गया है।
(क) भारत
(ग) ब्राजील
(ख) अमेरिका
(घ) लैटिन अमेरिका के अन्य देश।
उत्तर:
(क) भारत

7. भारत में मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों की अधिकतम संख्या हो सकती है।
(क) लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 20 प्रतिशत तक।
(ख) लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत तक।
(ग) संसद (लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों) की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत तक।
(घ) संसद की कुल सदस्य संख्या के
उत्तर:
(ख) लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत तक।

8. मन्त्रिपरिषद् तभी अस्तित्व में आती है, 20 प्रतिशत तक।
(क) प्रधानमन्त्री अपने पद से त्याग पत्र दे देता है।
(ख) प्रधानमन्त्री की मृत्यु हो जाती है।
(ग) प्रधानमन्त्री अपने पद की शपथ ले लेता है।
(घ) राष्ट्रपति त्याग-पत्र दे देता है।
उत्तर:
(ग) प्रधानमन्त्री अपने पद की शपथ ले लेता है।

9. राज्य में राज्यपाल की नियुक्ति की जाती है।
(क) केन्द्रीय सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा
(ख) सर्वोच्च न्यायालय की सलाह पर प्रधानमन्त्री द्वारा
(ग) संघीय लोक सेवा आयोग द्वारा
(घ) राज्य सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा।
उत्तर:
(क) केन्द्रीय सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा

10. निम्न में से कौनसी विशेषता भारतीय नौकरशाही की नहीं है।
(क) भारतीय नौकरशाही राजनीतिक रूप से तटस्थ है।
(ख) भारतीय नौकरशाही राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध है।
(ग) इसके सदस्यों का चयन बिना किसी भेदभाव के योग्यता के आधार पर किया जाता है।
(घ) इसका चयन संघ लोक सेवा आयोग या राज्यों के लोक सेवा आयोग करते हैं।
उत्तर:
(ख) भारतीय नौकरशाही राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध है।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. सरकार का वह अंग जो विधायिका द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करता है और प्रशासन का काम करता कहलाता है। ………….. कहलाता है।
उत्तर:
कार्यपालिका

2. सरकार के प्रधान और उनके मंत्रियों को ………………… कार्यपालिका कहते हैं।
उत्तर:
राजनीतिक

3. जो लोग रोज-रोज के प्रशासन के लिए उत्तरदायी होते हैं, उन्हें …………………. कार्यपालिका कहते हैं।
उत्तर:
स्थायी

4. भारतीय संविधान में राष्ट्रीय और प्रान्तीय दोनों ही स्तरों पर ………………….. कार्यपालिका की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है।
उत्तर:
संसदीय

5. भारत का राष्ट्रपति सरकार का ……………….. प्रधान है।
उत्तर:
औपचारिक

6. भारत में प्रधानमंत्री सरकार का ……………….. प्रधान है।
उत्तर:
वास्तविक

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निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये

1. भारत के संविधान में औपचारिक रूप से संघ की कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति को दी गई हैं।
उत्तर:
सत्य

2. राष्ट्रपति को किसी भी विधेयक को एक निश्चित समय सीमा के अन्दर पुनर्विचार के लिए लौटाना होता है।
उत्तर:
असत्य

3. उपराष्ट्रपति लोकसभा का पदेन अध्यक्ष होता है।
उत्तर:
असत्य

4. संघीय मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या राज्य सभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती।
उत्तर:
असत्य

5. मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. उपराष्ट्रपति (क) लोकसभा
2. भारत का निम्न सदन (ख) राष्ट्रपति
3. भारत का उच्च सदन (ग) स्थायी कार्यपालिका
4. संघीय कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान (घ) राष्ट्रपति का विवेकाधिकार
5. नौकरशाही (च) राज्य सभा का पदेन सभापति
6. पॉकेट वीटो (छ) राज्यसभा

उत्तर:

1. उपराष्ट्रपति (च) राज्य सभा का पदेन सभापति
2. भारत का निम्न सदन (क) लोकसभा
3. भारत का उच्च सदन (छ) राज्यसभा
4. संघीय कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान (ख) राष्ट्रपति
5. नौकरशाही (ग) स्थायी कार्यपालिका
6. पॉकेट वीटो (घ) राष्ट्रपति का विवेकाधिकार

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक कार्यपालिका से क्या आशय है?
उत्तर:
राजनीतिक कार्यपालिका सरकार के प्रधान और उनके मन्त्रियों को राजनीतिक कार्यपालिका कहते हैं । यह सरकार की सभी नीतियों के लिए उत्तरदायी होती है।

प्रश्न 2.
स्थायी कार्यपालिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
स्थायी कार्यपालिका जो लोग रोज-रोज के प्रशासन के लिए उत्तरदायी होते हैं, उन्हें स्थायी कार्यपालिका कहते हैं।

प्रश्न 3.
कार्यपालिका कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
मोटे रूप से कार्यपालिका तीन प्रकार की होती है।

  1. संसदीय कार्यपालिका,
  2. अध्यक्षात्मक कार्यपालिका और
  3. अर्द्ध- अध्यक्षात्मक कार्यपालिका।

प्रश्न 4.
सरकार और राज्य के प्रधान की दृष्टि से अध्यक्षात्मक व्यवस्था को स्पष्ट कीजिए। इसे अपनाने वाले किन्हीं दो देशों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
अध्यक्षात्मक व्यवस्था में राज्य और सरकार का प्रधान कौन होता है? इसे अपनाने वाले किन्हीं दो देशों के नाम लिखो।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति राज्य और सरकार दोनों का ही प्रधान होता है। ऐसी व्यवस्था अमेरिका तथा ब्राजील में पाई जाती है।

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प्रश्न 5.
संसदीय शासन व्यवस्था में राज्य और सरकार का अध्यक्ष कौन होता है?
अथवा
सरकार और राज्य के अध्यक्ष की स्थिति की दृष्टि से संसदीय शासन व्यवस्था को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसदीय व्यवस्था में एक राष्ट्रपति या राजा होता है जो राज्य का प्रधान होता है और प्रधानमन्त्री सरकार का प्रधान होता है।

प्रश्न 6.
संसदीय कार्यपालिका वाले किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत, ब्रिटेन।

प्रश्न 7.
भारत की संसदीय कार्यपालिका की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. राष्ट्रपति नाममात्र का अध्यक्ष।
  2. सामूहिक उत्तरदायित्व।

प्रश्न 8.
अध्यक्षात्मक कार्यपालिका की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. राष्ट्रपति देश (राज्य) तथा सरकार का अध्यक्ष।
  2. राष्ट्रपति विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं।

प्रश्न 9.
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कौन करते हैं?
उत्तर:
भारत में राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य और राज्य विधानसभाओं व संघ- शासित क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य करते हैं।

प्रश्न 10.
उपराष्ट्रपति का चुनाव कौन करते हैं? इसकी निर्वाचन विधि क्या है?
उत्तर:
उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य समानुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली से करते हैं।

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प्रश्न 11.
उपराष्ट्रपति के दो कार्य बताइए।
उत्तर:

  1. उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष होता है। अतः वह राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करता है।
  2. राष्ट्रपति का पद किसी कारण से रिक्त होने पर उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति का काम करता है।

प्रश्न 12.
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति किसके द्वारा और किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
जिस नेता को लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है, राष्ट्रपति उसे प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है।

प्रश्न 13.
प्रधानमन्त्री तथा अन्य मन्त्रियों के लिए किस योग्यता का होना अनिवार्य है?
उत्तर:
प्रधानमन्त्री और सभी मन्त्रियों के लिए संसद का सदस्य होना अनिवार्य है।

प्रश्न 14.
मन्त्रिमण्डल के सामूहिक उत्तरदायित्व से क्या आशय है?
उत्तर:
मन्त्रिमण्डल के सामूहिक उत्तरदायित्व से यह आशय है कि यदि किसी एक मन्त्री के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाए तो सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल को त्याग-पत्र देना पड़ता हैं।

प्रश्न 15.
भारतीय संविधान में राज्यपाल पद की क्या व्यवस्था की गई है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में राज्यपाल को राज्य की कार्यपालिका का अध्यक्ष बनाया गया है।

प्रश्न 16.
राज्यपाल की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 17.
मुख्यमंत्री की नियुक्ति कैसे की जाती है?
उत्तर:
राज्य की विधानसभा में बहुमत दल वाले नेता को राज्यपाल मुख्यमंत्री नियुक्त करता है।

प्रश्न 18.
वर्तमान में भारतीय नौकरशाही में कौन-कौनसी सेवाएँ सम्मिलित हैं?
उत्तर:
वर्तमान में भारतीय नौकरशाही में अखिल भारतीय सेवाएँ, केन्द्रीय सेवाएँ तथा प्रान्तीय सेवाएँ सम्मिलित

प्रश्न 19.
भारत में सिविल सेवा के सदस्यों की भर्ती की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. इनकी भर्ती संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्यों के लोक सेवा आयोगों द्वारा की जाती है।
  2. भर्ती दक्षता और योग्यता के आधार पर की जाती है।

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प्रश्न 20.
कार्यपालिका के प्रमुख कार्य क्या हैं?
उत्तर:
कार्यपालिका के कार्य:

  1. कार्यपालिका विधायिका द्वारा स्वीकृत नीतियों और कानूनों को लागू करती
  2. कार्यपालिका प्रायः नीति निर्माण में भी भाग लेती है।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संसदात्मक शासन व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर;
संसदात्मक शासन व्यवस्था-संसदात्मक शासन व्यवस्था में प्रायः प्रधानमन्त्री सरकार का प्रधान होता है तथा राजा या राष्ट्रपति देश या राज्य का प्रधान होता है। वह कार्यपालिका का औपचारिक या नाममात्र का प्रधान होता है। कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल के पास होती है। प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल अपने कार्यों के लिए संसद या विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है।

प्रश्न 2.
अध्यक्षात्मक सरकार से क्या आशय है?
उत्तर;
अध्यक्षात्मक सरकार अध्यक्षात्मक सरकार वह सरकार होती है जिसका देश का प्रमुख और शासन का प्रमुख एक ही व्यक्ति राष्ट्रपति होता है। उसका चुनाव एक निश्चित अवधि के लिए प्रायः प्रत्यक्ष मतदान से होता है तथा वह संसद या विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होता है। अमेरिका तथा ब्राजील में अध्यक्षात्मक सरकारें हैं।

प्रश्न 3.
अर्द्ध- अध्यक्षात्मक सरकार से क्या आशय है?
उत्तर:
अर्द्ध- अध्यक्षात्मक सरकार वह सरकार जिसमें संसदात्मक तथा अध्यक्षात्मक दोनों की विशेषताएँ पायी जाती हैं, उसे अर्द्ध-अध्यक्षात्मक सरकार कहते हैं। प्रायः इसमें राष्ट्रपति देश का प्रधान होता है और प्रधानमन्त्री सरकार का प्रमुख होता है। प्रधानमन्त्री और उसका मन्त्रिमण्डल विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है लेकिन राष्ट्रपति नाम मात्र का अध्यक्ष नहीं होता। उसे दैनिक कार्यों के सम्पादन में महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। फ्रांस, रूस और श्रीलंका में ऐसी ही व्यवस्था है।

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान निर्माता कैसी सरकार चाहते थे?
उत्तर:
भारतीय संविधान के निर्माता एक ऐसी सरकार सुनिश्चित करना चाहते थे जो जनता की अपेक्षाओं के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी हो; जिसमें एक शक्तिशाली कार्यपालिका तो हो, लेकिन साथ-साथ उसमें व्यक्ति-पूजा पर पर्याप्त अंकुश लगे।

प्रश्न 5.
संविधान में संसदीय कार्यपालिका की व्यवस्था को क्यों स्वीकार किया गया है?
उत्तर:
संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत कार्यपालिका को जन-प्रतिनिधियों के द्वारा प्रभावपूर्ण तरीके से नियन्त्रित किया जा सकता है। इसमें ऐसी अनेक प्रक्रियाएँ हैं जो यह सुनिश्चित करती हैं कि कार्यपालिका, विधायिका या जनता के प्रतिनिधियों के प्रति उत्तरदायी होगी और उनसे नियन्त्रित भी। इसलिए, संविधान में राष्ट्रीय और प्रान्तीय दोनों ही स्तरों पर संसदीय कार्यपालिका की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है।

प्रश्न 6.
भारत में वास्तविक कार्यपालिका कौन है?
उत्तर:
भारत में संसदीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली है। इसमें केन्द्र स्तर पर प्रधानमंत्री तथा मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका हैं और राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है।

प्रश्न 7.
भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन कैसे होता है?
उत्तर:
अप्रत्यक्ष निर्वाचन भारत के राष्ट्रपति का चुनाव जनता के द्वारा सीधा न होकर अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्वाचक मण्डल द्वारा होता है। निर्वाचक मण्डल राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में

  1. संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य,
  2. राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य तथा
  3. संघीय क्षेत्र की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। निर्वाचन विधि – राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधि व एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 8.
भारत के राष्ट्रपति की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत का राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रमुख है और संविधान के अनुसार शासन की सारी शक्तियाँ उसे प्रदान की गई हैं। लेकिन राष्ट्रपति सरकार का औपचारिक प्रधान हैं और उसकी समस्त कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद् करते हैं। वे ही वास्तविक कार्यकारी हैं। अधिकतर मामलों में राष्ट्रपति को मन्त्रिपरिषद् की सलाह माननी पड़ती है, वह अपने विवेक से सामान्य स्थितियों में कोई कार्य नहीं करता।

प्रश्न 9.
राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है? उसकी स्थिति बताइए।
उत्तर:
राज्यपाल की नियुक्ति- भारत के प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होता है, जो केन्द्रीय सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त किया जाता है। उसकी नियुक्ति 5 वर्ष के लिए की जाती है। वह राज्य का वैधानिक प्रधान तथा केन्द्र सरकार का प्रतिनिधि दोनों होता है। इस कारण उसे राष्ट्रपति की तुलना में कहीं अधिक विवेकाधीन शक्तियाँ प्राप्त हैं।

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प्रश्न 10.
” नौकरशाही राजनीतिक रूप से तटस्थ हो ।” इस कथन का क्या आशय है?
उत्तर:
‘नौकरशाही राजनीतिक रूप से तटस्थ हो’, इसका आशय यह है कि नौकरशाही नीतियों पर विचार करते समय किसी राजनीतिक दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करेगी। चुनाव में पिछली सरकार के हार जाने और नये दल की सरकार बनने की स्थिति में नौकरशाही की जिम्मेदारी है कि वह नई सरकार को अपनी नीति बनाने और उसे लागू करने में मदद करे।

प्रश्न 11.
भारत के राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का क्या तरीका है?
अथवा
राष्ट्रपति पर महाभियोग कैसे लगाया जाता है?

उत्तर:
संविधान के उल्लंघन के आधार पर राष्ट्रपति को संसद महाभियोग का प्रस्ताव पारित कर समय से पूर्व भी पदच्युत कर सकती है। महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी भी सद

  1. लोक सेवक स्थायी सेवक हैं। वे अपने कार्य में दक्ष हैं। वे ही वास्तव में प्रशासन का संचालन करते हैं । अपनी विशेषज्ञता तथा योग्यता के आधार पर ही वे प्रशासन में कुशलता लाते हैं, जिसे मन्त्रीगण नहीं ला सकते।
  2. नौकरशाही नियमित चुनावों से प्रभावित नहीं होती है क्योंकि लोक-सेवक अपनी रिटायरमेंट की आयु तक अपने पद पर बने रहते हैं। इस प्रकार वे प्रशासन में स्थायित्व तथा निरन्तरता लाते हैं।

प्रश्न 13.
मन्त्रीगण और लोक सेवकों के मध्य सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मन्त्रीगण और लोक सेवकों के मध्य सम्बन्धों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. एक सरकारी विभाग में मन्त्री प्रभारी होता है लेकिन इसे यथार्थ में लोक सेवकों द्वारा संचालित किया जाता
  2. मन्त्रियों द्वारा प्रशासन की नीति निर्धारित की जाती है लेकिन इसे क्रियान्वित लोक सेवक करते हैं।
  3. लोक सेवकों द्वारा मन्त्रियों को वे समस्त सम्भावित सलाह, तथ्य तथा आँकड़े प्रदान किये जाते हैं जिनके आधार पर वे नीति का निर्माण करते हैं।
  4. विधायिका में मन्त्रियों द्वारा प्रश्नों के दिये जाने वाले सभी जवाब लोक सेवकों द्वारा ही तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 14.
राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनावों में निर्वाचक कौन होते हैं?
उत्तर:

  1. राष्ट्रपति राज्य विधानसभाओं, संघ क्षेत्र की विधानसभाओं तथा संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाता है।
  2. उपराष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा निर्वाचित किया जाता है।

प्रश्न 15.
राष्ट्रपति के पद की अर्हताएँ (योग्यताएँ ) क्या हैं?
उत्तर:
भारत के राष्ट्रपति के पद की अर्हताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. वह भारत का नागरिक हो
  2. उसकी न्यूनतम आयु 35 वर्ष की हो।
  3. वह केन्द्र तथा राज्य सरकार में किसी लाभ के पद पर न हो।
  4. वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।
  5. वह पागल अथवा दिवालिया न हो।

प्रश्न 16.
मन्त्रिपरिषद् प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में कार्य करती है। कोई चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
मन्त्रिपरिषद् प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में कार्य करती है। इसके समर्थन में निम्नलिखित चार तथ्य दिये गये .

  1. मन्त्रिपरिषद् के सदस्य प्रधानमन्त्री की सलाह पर नियुक्त किये जाते हैं।
  2. प्रधानमन्त्री का त्यागपत्र सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् का त्यागपत्र होता है।
  3. प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल की बैठकें बुलाता है तथा उनकी अध्यक्षता करता
  4. प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति और मन्त्रिमण्डल के बीच की कड़ी है।

प्रश्न 17.
अखिल भारतीय सेवाओं से क्या आशय है? अखिल भारतीय सेवाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
अखिल भारतीय सेवा का अर्थ अखिल भारतीय सेवाएँ वे सेवाएँ हैं जिनके सदस्य केन्द्र तथा प्रान्तों में मुख्य पदों को धारण करते हैं, राज्यों में भी सभी उत्तरदायी पदों पर अखिल भारतीय सेवाएँ कार्यरत होती हैं तथा प्रान्तीय सेवाएँ इनके अधीन कार्य करती हैं। अखिल भारतीय सेवाएँ ये हैं।

  1. भारतीय प्रशासनिक सेवाएँ।
  2. भारतीय पुलिस सेवाएँ।

प्रश्न 18.
कार्यपालिका कितने प्रकार की होती है? कुछ देशों की कार्यपालिका की प्रकृति पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्यपालिका के प्रकार- विभिन्न देशों की लोकतान्त्रिक कार्यपालिकाओं की प्रकृति के आधार पर कार्यपालिका के तीन प्रकार बताये जा सकते हैं। यथा
1. अध्यक्षात्मक कार्यपालिका:
अध्यक्षात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति राज्य और सरकार दोनों का ही प्रधान होता है। इस व्यवस्था में सिद्धान्त और व्यवहार दोनों में राष्ट्रपति का पद बहुत शक्तिशाली होता है। राष्ट्रपति का चुनाव प्रायः प्रत्यक्ष मतदान से होता है तथा वह विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होता है। अमेरिका, ब्राजील और लैटिन अमेरिका के अनेक देशों में ऐसी व्यवस्था पायी जाती है।

2. संसदीय कार्यपालिका:
संसदीय व्यवस्था में प्रधानमन्त्री सरकार का प्रधान होता है और राष्ट्रपति या राजा देश का औपचारिक या नाम मात्र का प्रधान होता है। इस व्यवस्था में वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल के पास होती है। भारत, जर्मनी, इटली, जापान, इंग्लैण्ड और पुर्तगाल आदि देशों में यह व्यवस्था है।

3. अर्द्ध- अध्यक्षात्मक कार्यपालिका:
अर्द्ध- अध्यक्षात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री दोनों होते हैं लेकिन इसमें राष्ट्रपति को दैनिक कार्यों के सम्पादन में महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्राप्त हो सकती हैं। इस व्यवस्था में राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री दोनों एक ही दल के हो सकते हैं और अलग-अलग दलों के भी हो सकते हैं। फ्रांस, रूस और श्रीलंका में ऐसी ही व्यवस्था है।

प्रश्न 19.
संसदात्मक शासन प्रणाली की किन्हीं चार विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसदात्मक शासन प्रणाली की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1. राज्य या देश का प्रधान नाम मात्र का प्रधान होता है। संसदात्मक शासन प्रणाली में राज्य के प्रधान को संविधान द्वारा जो शक्तियाँ दी गई होती हैं, उन्हें वह स्वयं अपने विवेक से प्रयुक्त नहीं कर सकता, यद्यपि समस्त प्रशासनिक कार्य उसी के नाम से चलता है। वह अपनी शक्तियों को केवल मन्त्रिमण्डल की सलाह पर ही प्रयुक्त कर सकता है। इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि मन्त्रिमण्डल के पास वास्तविक कार्यकारी शक्तियाँ हैं और राज्य के प्रधान के पास नाम मात्र की या औपचारिक शक्तियाँ हैं।

2. कार्यपालिका और विधायिका के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध: संसदात्मक शासन व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है क्योंकि कार्यपालिका के सदस्य संसद ( विधायिका) के सदस्य होते हैं, उसकी कार्यवाहियों में भाग लेते हैं तथा जिस सदन के वे सदस्य हैं, उसमें वे मतदान में भी भाग लेते हैं।

3. मन्त्रिमण्डल विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है। संसदात्मक शासन व्यवस्था में मन्त्रिमण्डल संसद के प्रति उत्तरदायी होती है। संसद सदस्यों द्वारा जो प्रश्न पूछे जाते हैं, मन्त्रिमण्डल को उनके उत्तर देने होते हैं। विधायिका सदस्य मन्त्रिमण्डल की नीतियों तथा कार्यों की आलोचना कर सकते हैं तथा विधायिका सरकार की अनियमितताओं की जाँच के लिए जाँच आयोग बिठा सकती है। विधायिका अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर मंत्रिमंडल को अपदस्थ भी कर सकती है।

4. सामूहिक उत्तरदायित्व: संसदात्मक शासन व्यवस्था में मन्त्रिपरिषद् निम्न सदन के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है अर्थात् जब सरकार निम्न सदन का विश्वास खो देती है तो उसे त्यागपत्र देना पड़ता है। इसकी भावना यह है कि यदि एक मन्त्री के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाए तो सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् को त्यागपत्र देना पड़ता है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 कार्यपालिका

प्रश्न 20.
“ भारत में बिना प्रधानमन्त्री के मन्त्रिपरिषद् का कोई अस्तित्व नहीं है ।” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘प्रधानमंत्री सरकार की केन्द्रीय धुरी है।’ इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में बिना प्रधानमन्त्री के मन्त्रिपरिषद् का कोई अस्तित्व नहीं है क्योंकि यहाँ संसदात्मक शासन प्रणाली अपनी गई है जहाँ प्रधानमन्त्री सरकार की केन्द्रीय धुरी का काम करता है। इसे निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. मन्त्रिपरिषद् तभी अस्तित्व में आती है जब प्रधानमन्त्री अपने पद की शपथ ग्रहण कर लेता है क्योंकि प्रधानमन्त्री की सलाह से ही राष्ट्रपति अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है।
  2. धानमन्त्री की मृत्यु या त्याग-पत्र से पूरी मन्त्रिपरिषद् ही भंग हो जाती है जबकि किसी मन्त्री की मृत्यु, हटाए जाने या त्याग-पत्र के कारण मन्त्रिपरिषद् में केवल एक स्थान खाली होता है।
  3. प्रधानमन्त्री एक तरफ मन्त्रिपरिषद् तथा दूसरी ओर राष्ट्रपति और संसद के बीच एक सेतु का काम करता है। प्रधानमन्त्री का यह संवैधानिक दायित्व भी है कि वह सभी संघीय मामलों के प्रशासन और प्रस्तावित कानूनों के बारे में राष्ट्रपति को सूचित करे।
  4. प्रधानमन्त्री सरकार के सभी महत्त्वपूर्ण निर्णयों में सम्मिलित होता है और सरकार की नीतियों के बारे में निर्णय लेता है। वह मन्त्रिमण्डल की बैठकें आयोजित करता है तथा उनका सभापतित्व करता है तथा निर्णयों में प्रभावी भूमिका निभाता है।

प्रश्न 21.
क्या राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति में अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है?
उत्तर:
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति में राष्ट्रपति का विवेक – सामान्यतः राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल या गठबन्धन के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। वह अन्य किसी व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त नहीं कर सकता। इसका अभिप्राय यह है कि राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति में अपना स्वविवेक का प्रयोग नहीं कर सकता और उसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल गठबन्धन के नेता को ही प्रधानमन्त्री बनने के लिए आमन्त्रित करना पड़ता है। चाहे वह उसे पसन्द करता हो या नहीं।

लेकिन कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में प्रधानमन्त्री की नियुक्ति में राष्ट्रपति अपने विवेक को काम में ले सकता है। ये परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. जब लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल अपना नेता चुनने में असमर्थ हो तो राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करते हुए ऐसे व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त कर सकता है, जिसे उसके मत में, लोकसभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त है।
  2. जब लोकसभा में कोई एक दल स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता है और अनेक दल मिलकर एक गठबन्धन सरकार का निर्माण करना चाहते हैं, ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री के चुनने में अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है।
  3. जब किसी कारण से अचानक प्रधानमन्त्री की मृत्यु हो जाने से प्रधानमन्त्री का पद रिक्त हो जाता है, तो राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करते हुए प्रधानमन्त्री की नियुक्ति कर सकता है। जैसे कि राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने श्रीमती इन्दिरा गाँधी के हत्या के तुरन्त बाद राजीव गाँधी को प्रधानमन्त्री पद पर नियुक्त किया।

प्रश्न 22.
अब तक के कुल प्रधानमंत्रियों के नाम व उनका कार्यकाल एक तालिका द्वारा दर्शाइए भारत के प्रधानमंत्री।
उत्तर:
Table-1

प्रश्न 23.
“गठबन्धन सरकार की स्थिति में प्रधानमन्त्री की शक्तियों पर अंकुश लगा है।” कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गठबन्धन सरकारों में प्रधानमन्त्री की शक्तियों की सीमाएँ; जब भी किसी एक राजनैतिक दल को लोकसभा में बहुमत मिला, तब प्रधानमन्त्री की शक्तियाँ निर्विवाद रहीं, लेकिन जब राजनैतिक दलों के गठबन्धन की सरकारें बनीं, प्रधानमन्त्री व मन्त्रिमण्डल की शक्तियों पर अनेक सीमाएँ लगी हैं। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. गठबन्धन सरकारों की स्थिति में राष्ट्रपति के विशेषाधिकारों की भूमिका बढ़ी है।
  2. गठबन्धन सरकारों में गठबन्धन की राजनीति के कारण राजनीतिक सहयोगियों से परामर्श की प्रवृत्ति बढ़ी है। जिससे प्रधानमन्त्री की सत्ता में कुछ सेंध लगी है।
  3. गठबन्धन सरकारों की स्थिति में प्रधानमन्त्री के अनेक विशेषाधिकारों, जैसे- मन्त्रियों का चयन और उनके पद-स्तर तथा मन्त्रालयों के चयन आदि पर भी अंकुश लगा है।
  4. गठबन्धन सरकारों की स्थिति में प्रधानमन्त्री सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को भी अकेले तय नहीं कर सकता । सहयोगी दलों के बीच काफी बातचीत और समझौते के बाद ही नीतियाँ बन पाती हैं।

उपर्युक्त कारणों से स्पष्ट है कि गठबन्धन सरकारों की स्थिति में प्रधानमन्त्री को एक नेता से अधिक एक मध्यस्थ की भूमिका निभानी पड़ती है।

प्रश्न 24.
भारत के उपराष्ट्रपति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत का उपराष्ट्रपति: संविधान के अनुच्छेद 63 में यह प्रावधान किया गया है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। अर्हताएँ उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी की प्रमुख अर्हताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसने 35 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।
  3. वह राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।
  4. वह संघ तथा प्रान्तों की सरकारों के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो।
  5. वह दिवालिया तथा पागल न हो।

निर्वाचन: उपराष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचन मण्डल करेगा जिसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य होंगे। उसका चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व तथा एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा गुप्त मतदान विधि से होगा।

कार्यकाल: उपराष्ट्रपति का चुनाव 5 वर्ष की अवधि के लिए किया जाता है। इससे पहले वह त्याग-पत्र दे सकता है। वह महाभियोग के द्वारा भी समय से पूर्व पद से हटाया जा सकता है। महाभियोग का प्रस्ताव पहले राज्यसभा में लाया जायेगा। यदि राज्यसभा में वह 2/3 बहुमत से पारित हो जाता है तो फिर दूसरे सदन में जायेगा यदि लोकसभा में भी वह 2/3 से अनुमोदन हो जाता है तो उसी दिन से उपराष्ट्रपति का पद खाली समझा जायेगा। शक्तियाँ तथा कार्य:

  1. उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है।
  2. जब किसी कारण से राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है तो उपराष्ट्रपति तब तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है, जब तक कि नया राष्ट्रपति शपथ नहीं ले लेता।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 कार्यपालिका

प्रश्न 25.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की किन्हीं चार विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएँ अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. राज्य का प्रमुख ही सरकार का प्रमुख होता है। अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति ही राज्य या देश का प्रमुख होता है और वही सरकार का प्रमुख होता है। वही सरकार का वास्तविक शासक होता है तथा उसी के नाम से सरकार के सभी कार्य किये जाते हैं।
  2. प्रत्यक्ष निर्वाचन: अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में सरकार के प्रमुख राष्ट्रपति का चुनाव प्रायः जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान से होता है।
  3. कार्यपालिका का सर्वेसर्वा: अध्यक्षात्मक सरकार में सरकार का प्रमुख राष्ट्रपति कार्यपालिका में सर्वेसर्वा होता है। वह किसी भी व्यक्ति भी अपने मन्त्रिमण्डल में ले सकता है।
  4. विधायिका के प्रति अनुत्तरदायी: अध्यक्षात्मक सरकार में राष्ट्रपति या कार्यपालिका विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होती।

निबन्धात्मक प्रश्न।

प्रश्न 1.
भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों और स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत के राष्ट्रपति की औपचारिक कार्यपालिका के प्रधान की स्थिति: भारत के संविधान में औपचारिक रूप से संघ की समस्त कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति को दी गई हैं। पर व्यवहार में प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में बनी मन्त्रिपरिषद् के माध्यम से राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग करता

संविधान के अनुच्छेद 74(1) के अनुसार, ” राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी जिसका प्रधान, प्रधानमन्त्री होगा। राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करेगा । परन्तु राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् से ऐसी सलाह पर पुनर्विचार करने को कह सकता है और राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार ही कार्य करेगा।”

इस अनुच्छेद में जिस शब्द ‘ सलाह के अनुसार ही’ का प्रयोग किया गया है। उसका अभिप्राय है कि राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् की सलाह को मानने के लिए बाध्य है। वह मन्त्रिपरिषद् को अपनी सलाह पर एक बार पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है, लेकिन उसे मन्त्रिपरिषद् के द्वारा पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह को मानना ही पड़ेगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि राष्ट्रपति सरकार का औपचारिक प्रधान है।

राष्ट्रपति की औपचारिक शक्तियाँ
राष्ट्रपति सरकार का एक औपचारिक प्रधान है। उसे औपचारिक रूप से बहुत-सी कार्यकारी, विधायी, न्यायिक और आपातकालीन शक्तियाँ प्राप्त हैं। राष्ट्रपति वास्तव में इन शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिपरिषद् की सलाह पर ही करता है और अधिकतर मामलों में राष्ट्रपति को मन्त्रिपरिषद् की सलाह माननी पड़ती है। ये शक्तियाँ निम्नलिखित हैं।

1. कार्यपालिका शक्तियाँ: राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल या गठबन्धन के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है तथा उसकी सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है तथा उनमें विभागों का वितरण करता है। वह राज्यों के राज्यपाल, भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारत के महान्यायवादी, संघीय लोक सेवा आयोग के प्रधान व अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है। वह· भारत की जल, थल तथा वायु तीनों सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है तथा वही तीनों सेनाओं के सेनापतियों की नियुक्ति करता है। वह अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में देश का प्रतिनिधित्व करता है। दूसरे देशों के साथ युद्ध की घोषणा करता है तथा शान्ति के लिए सन्धि करता है। वह दूसरे देशों के लिए अपने देशों के राजदूतों की नियुक्ति करता है तथा अन्य देशों से आए हुए राजदूतों के प्रमाण-पत्र स्वीकार करता है।

2. वैधानिक शक्तियाँ: राष्ट्रपति राज्यसभा के 12 सदस्यों को मनोनीत करता है। वह लोकसभा में दो आंग्ल- भारतीयों को मनोनीत कर सकता है। वह संसद के दोनों सदनों का अधिवेशन बुलाता है तथा उसे स्थगित करता है। वह लोकसभा को उसकी संवैधानिक अवधि पूरी होने से पहले भंग कर सकता है। वह संसद द्वारा पारित किये गये विधेयकों पर हस्ताक्षर करता है तभी वह विधेयक कानून का रूप लेते हैं। वह साधारण विधेयकों को अपने कुछ सुझावों के साथ संसद के पास फिर से विचार करने के लिए भेज सकता है। यदि संसद उस विधेयक को उसके सुझावों सहित या सुझावों के बिना दुबारा पास कर देती है तो राष्ट्रपति को उस विधेयक पर स्वीकृति देनी ही पड़ती है।

3. वित्तीय शक्तियाँ: राष्ट्रपति प्रतिवर्ष आगामी वर्ष के बजट को वित्त मन्त्री द्वारा सदन में प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से ही धन सम्बन्धी माँगें संसद में रखी जा सकती हैं। भारत की आकस्मिक निधि राष्ट्रपति के नियन्त्रण में होती है। वह किसी भी आकस्मिक खर्चे के लिए संसद की स्वीकृति से पूर्व ही इस निधि से धन देता है।

4. न्यायिक शक्तियाँ: राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। वह राज्यों के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। उसे किसी भी कानूनी विषय पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श लेने का अधिकार है। वह न्यायालयों द्वारा दिए गए मृत्यु – दण्ड या किसी अन्य दण्ड को कम कर सकता है या क्षमादान दे सकता है। उपर्युक्त वर्णित राष्ट्रपति की सभी शक्तियाँ औपचारिक कार्यपालिका शक्तियाँ हैं जो उसे एक औपचारिक कार्यपालिका प्रधान बनाती हैं। इनका प्रयोग वह मन्त्रिमण्डल की सलाह के अनुसार ही करता है।

राष्ट्रपति की वास्तविक शक्तियाँ
या
राष्ट्रपति के विशेषाधिकार

राष्ट्रपति की औपचारिक शक्तियों के अतिरिक्त उसकी कुछ स्वयं विवेक की शक्तियाँ या विशेषाधिकार भी प्राप्त हैं। जो उसे एक औपचारिक प्रधान की स्थिति से ऊपर उठाती हैं। यथा
1. सूचना प्राप्त करने का अधिकार:
संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति को सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों और मन्त्रिपरिषद् की कार्यवाही के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है। प्रधानमन्त्री का यह कर्त्तव्य है कि वह राष्ट्रपति द्वारा माँगी गई सभी सूचनाएँ उसे दे। राष्ट्रपति प्रायः प्रधानमन्त्री को पत्र लिखता है और देश की समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त करता है।

2. पुनर्विचार के आग्रह का अधिकार:
राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल की सलाह को लौटा सकता है और उसे अपने निर्णय पर पुनर्विचार के लिए कह सकता है। ऐसा करने में राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करता है। जब राष्ट्रपति को ऐसा लगता है कि सलाह में कुछ गलती है या कानूनी रूप से कुछ कमियाँ हैं या फैसला देश के हित में नहीं है, तो वह मन्त्रिपरिषद् से अपने निर्णय पर पुनर्विचार के लिए कह सकता है। यद्यपि मन्त्रिपरिषद् पुनर्विचार के बाद भी उसे वही सलाह दुबारा दे सकती है और तब राष्ट्रपति उसे मानने के लिए बाध्य भी होगा, तथापि राष्ट्रपति के द्वारा पुनर्विचार का आग्रह अपने आप में काफी मायने रखता है। इसके माध्यम से राष्ट्रपति अपने विवेक के आधार पर अपनी शक्ति का प्रयोग करता है।

3. निषेधाधिकार की शक्ति:
राष्ट्रपति के पास निषेधाधिकार ( वीटो ) की शक्ति होती है जिससे वह संसद द्वारा पारित विधेयकों (धन विधेयकों को छोड़कर) पर स्वीकृति देने में विलम्ब कर सकता है या स्वीकृति देने से मना कर सकता है। संसद द्वारा पारित प्रत्येक विधेयक को कानून बनने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति उसे संसद को लौटा सकता है और उसे उस पर पुनर्विचार के लिए कह सकता है। वीटो की यह शक्ति सीमित है क्योंकि संसद यदि उसी विधेयक को दुबारा पारित करके राष्ट्रपति के पास भेजे तो राष्ट्रपति को उस पर अपनी स्वीकृति देनी पड़ेगी।

लेकिन संविधान में राष्ट्रपति के लिए ऐसी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की है जिसके अन्दर ही उस विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाना पड़े। इसका अर्थ यह हुआ कि राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को बिना किसी समय-सीमा के अपने पास लम्बित रख सकता है। इससे राष्ट्रपति को अनौपचारिक रूप से, अपने वीटो को प्रभावी ढंग से प्रयोग करने का अवसर मिल जाता है। इसे कई बार ‘पाकेट वीटो’ भी कहा जाता है।

4. राजनीतिक परिस्थितियों से प्राप्त विवेकाधिकार:
यदि चुनाव के बाद किसी भी नेता को लोकसभा में बहुमत प्राप्त न हो और यदि गठबन्धन बनाने के प्रयासों के बाद भी दो या तीन नेता यह दावा करें कि उन्हें लोकसभा में बहुमत प्राप्त है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को अपने विवेक से यह निर्णय करना होता है कि वह किसे प्रधानमन्त्री नियुक्त करे । इसी प्रकार जब सरकार स्थायी न हो और गठबन्धन सरकार सत्ता में हो तब भी राष्ट्रपति के विवेकसम्मत हस्तक्षेप की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि सामान्य परिस्थितियों में राष्ट्रपति की औपचारिक प्रधान की भूमिका रहती है, लेकिन जब किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तब राष्ट्रपति पर निर्णय लेने और देश की सरकार को चलाने के लिए प्रधानमन्त्री को नियुक्त करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी होती है।

प्रश्न 2.
भारत के प्रधानमन्त्री की शक्तियों, कार्यों तथा स्थिति का विवेचन कीजि।
उत्तर:
भारत का प्रधानमन्त्री
भारत में संविधान द्वारा समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति को प्रदान की गई हैं, लेकिन वह नाम मात्र का कार्यपालिका प्रधान है और व्यवहार में समस्त कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रिमण्डल ही करता है। इस प्रकार प्रधानमन्त्री सरकार का प्रमुख है। वह भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में एक शक्तिशाली स्थिति प्राप्त किए हुए है।

प्रधानमन्त्री की नियुक्ति: भारत का राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत दल या गठबन्धन के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। यदि वह नियुक्ति के समय संसद का सदस्य नहीं है तो छः माह के भीतर उसे संसद के किसी भी सदन का निर्वाचित सदस्य बनना आवश्यक है, अन्यथा छ: माह बाद उसे त्याग-पत्र देना होगा।

पदावधि: प्रधानमन्त्री की कोई निश्चित समयावधि नहीं है। वह अपने पद पर तब तक बना रहेगा जब तक कि लोकसभा का उसमें विश्वास है। लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव पारित करके उसे कभी भी अपदस्थ कर सकती है।

प्रधानमन्त्री की शक्तियाँ और कार्य: प्रधानमन्त्री की प्रमुख शक्तियाँ व कार्य अग्रलिखित हैं।
1. मन्त्रिमण्डल का गठन करना: प्रधानमन्त्री अपने पद की शपथ लेने के बाद सबसे पहले अपने मन्त्रिमण्डल के गठन का कार्य करता है। राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सलाह पर मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति को सलाह देने से पूर्व वह यह तय करता है कि उसकी मन्त्रिपरिषद् में कौन लोग मन्त्री होंगे। प्रधानमन्त्री ही विभिन्न मन्त्रियों में पद स्तर और मन्त्रालयों का आबण्टन करता है।

वह मन्त्रियों को उनकी वरिष्ठता और राजनीतिक महत्त्व के अनुसार मन्त्रिमण्डल का मन्त्री, राज्यमन्त्री या उपमन्त्री पद पर पदस्थ करता है। संविधान के 91वें संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा मन्त्रिमण्डल के गठन में उनकी संख्या के सम्बन्ध में प्रधानमन्त्री पर यह सीमा लगा दी गयी है कि मन्त्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।

2. मन्त्रियों को पद: मुक्त करना मन्त्रीगण प्रधानमन्त्री के विश्वासपर्यन्त ही अपने पद पर बने रह सकते हैं। यदि किसी कारण से प्रधानमन्त्री का किसी मन्त्री से विश्वास हट जाता है, चाहे उसका कारण उसकी अकार्यकुशलता हो या राजनीतिक मतभेद हो, तो वह उस मन्त्री से त्याग-पत्र माँग सकता है। यदि वह प्रधानमन्त्री की सलाह के अनुसार त्याग-पत्र नहीं देता है तो प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति को उस मन्त्री को बर्खास्त करने की सिफारिश कर सकता है। वह अपने मन्त्रिमण्डल में कभी भी फेर-बदल कर सकता है। इस प्रकार प्रधानमन्त्री की इच्छा के विरुद्ध कोई भी मन्त्री मन्त्री नहीं रह सकता।

3. मन्त्रियों के मध्य सामञ्जस्य स्थापित करना: प्रधानमंत्री सभी मन्त्रियों के विभागों की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखता है और उनके विभाग के सम्बन्ध में मन्त्रियों को सलाह देता है तथा उनमें परस्पर सामञ्जस्य स्थापित करता है। वह किसी भी मुद्दे पर मन्त्रियों को सलाह दे सकता है तथा आगे के विचार-विमर्श हेतु उस मुद्दे को मन्त्रिमण्डल के समक्ष भी ला सकता है।

4. मन्त्रिमण्डल की बैठक की अध्यक्षता करना: प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल की बैठक बुलाता है, उसके एजेण्डा को निर्धारित करता है तथा बैठक का स्थान, समय तथा दिनांक निर्धारित करता है । वह मन्त्रिमण्डल की बैठक की अध्यक्षता करता है। मन्त्रिमण्डल की बैठक में प्रधानमन्त्री के दृष्टिकोण को महत्त्व दिया जाता है।

5. प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद और राष्ट्रपति के बीच कड़ी का कार्य करता है। प्रधानमन्त्री का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह सभी संघीय मामलों के प्रशासन और प्रस्तावित कानूनों के बारे में राष्ट्रपति को सूचित करे । इस प्रकार वह राष्ट्रपति को प्रशासनिक नीतियों और कानूनों के बारे में सूचित करके मन्त्रिमण्डल और राष्ट्रपति के बीच कड़ी का कार्य करता है। कोई अन्य मन्त्री राष्ट्रपति से प्रत्यक्षतः इस सम्बन्ध में नहीं मिल सकता । मन्त्रीगण केवल प्रधानमन्त्री के माध्यम से ही राष्ट्रपति से मिल सकते हैं तथा संवाद कर सकते हैं।

6. संसद का नेता: प्रधानमन्त्री लोकसभा में बहुमत दल/गठबन्धन का नेता होता है और व्यवहार में लोकसभा में ही संसद की सभी शक्तियाँ निहित हैं। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से प्रधानमन्त्री संसद का नेतृत्व करता है। संसद में सरकार के महत्त्वपूर्ण निर्णयों की घोषणा प्रधानमन्त्री द्वारा ही की जाती है। प्रधानमन्त्री ही प्राय: संसद के सत्रों की तिथियाँ निर्धारित करता है और कौनसा विधेयक संसद में प्रस्तावित किया जायेगा, यह भी निर्धारित करता है। सभी महत्त्वपूर्ण और गम्भीर समस्याओं के दिशा-निर्देश के लिए संसद प्रधानमन्त्री की तरफ ही देखती है। इस प्रकार वह संसद का नेतृत्व भी करता है।

7. सरकार का मुख्य प्रवक्ता: प्रधानमन्त्री सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों और समस्याओं पर सरकार का मुख्य प्रवक्ता होता है। विधायिका, राष्ट्रपति और जनता के समक्ष वह सरकार का प्रतिनिधित्व करता है और सरकार की ओर से वक्तव्य देता है।

8. राष्ट्र का नेता: जब कभी राष्ट्र संकट में होता है तो समूचा राष्ट्र दिशा-निर्देश हेतु प्रधानमन्त्री की ओर देखता है तथा जनता में उसकी अपील अपना महत्त्व रखती है। व्यवहार में वह अन्तर्राष्ट्रीय जगत में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है तथा विदेशी राज्यों के साथ वही सन्धि तथा समझौते करता है।

प्रधानमन्त्री की स्थिति: प्रधानमन्त्री का पद बहुत शक्तिशाली तथा महत्त्वपूर्ण है। वह एक वास्तविक कार्यपालक तथा सरकार का प्रमुख है। वह सरकार की केन्द्रीय धुरी है जिसके चारों ओर सरकार की मशीनरी घूमती है। वह मन्त्रिपरिषद का निर्माणकर्त्ता तथा संहारकर्त्ता दोनों हैं। वह लोकसभा, संसद और राष्ट्र का नेता है। उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई विधेयक पारित नहीं होता है और बिना उसकी सलाह के राष्ट्रपति कोई नियुक्ति नहीं करता है। भारत में अन्य कोई पद प्रधानमन्त्री जितना महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली नहीं है।

कोई भी व्यक्ति उसकी इच्छा के विरुद्ध मन्त्रिमण्डल में नहीं रह सकता। वह राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने की तथा नये चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता। यथा लेकिन प्रधानमन्त्री की शक्तियाँ और उनका प्रयोग तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

  • जब भी किसी एक राजनैतिक दल को लोकसभा में बहुमत मिला, तब प्रधानमन्त्री और मन्त्रिमण्डल की उक्त शक्तियाँ निर्विवाद रहीं और प्रधानमन्त्री का पद शक्तिशाली व महत्त्वपूर्ण व प्रभावी बना रहा।
  • लेकिन जब राजनीतिक दलों के गठबन्धन की सरकारें बनीं तब प्रधानमन्त्री का पद इतना अधिक शक्तिशाली नहीं रहा है। गठबन्धन सरकारों में प्रधानमन्त्री को एक नेता से अधिक एक मध्यस्थ की भूमिका निभानी पड़ती है। गठबन्धन सरकारों में प्रधानमन्त्री की स्थिति एक दलीय सरकारों के प्रधानमन्त्रियों की तुलना में कमजोर हुई है। इसके प्रमुख कारण ये हैं।
    1. गठबन्धन की स्थिति में प्रधानमन्त्री के चयन में राष्ट्रपति के विशेषाधिकारों की भूमिका बढ़ी है।
    2. इस स्थिति में राजनीतिक सहयोगी दलों से परामर्श की प्रवृत्ति बढ़ी है, जिससे प्रधानमन्त्री की सत्ता में सेंध लगी है।
    3. इसमें प्रधानमन्त्री के अनेक विशेषाधिकारों, जैसे—मन्त्रियों का चयन, उनके पद स्तर और मन्त्रालय के चयन आदि में भी कुछ अंकुश लगा है।
    4. इसमें विभिन्न विचारधारा वाले राजनीतिक सहयोगी दलों से काफी बातचीत और समझौते के बाद ही नीतियाँ बन पाती हैं।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 कार्यपालिका

प्रश्न 3.
सिविल सेवाएँ क्या हैं? भारत में सिविल सेवाओं की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सिविल सेवाओं से आशय: भारत में संविधान के अनुसार समस्त कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित हैं तथा राष्ट्रपति इनका प्रयोग मन्त्रिपरिषद् की सलाह से करता है। इस प्रकार व्यवहार में कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिपरिषद् करती है। मन्त्रिपरिषद्, जिसे राजनीतिक कार्यपालिका कहा जाता है, नीतियों का निर्माण करती है और सरकार के विभागों के ऊपर नियन्त्रण करती है। लेकिन इन नीतियों का क्रियान्वयन स्थायी कार्यपालिका, जिसे सिविल सेवाएँ, कहा जाता है, द्वारा किया जाता है। स्थायी कार्यपालिका ही रोज-रोज के प्रशासन का संचालन करती है।

प्रशासन के प्रत्येक विभाग का एक स्थायी लोक सेवक प्रमुख होता है, जिसके अधीन काफी बड़ी संख्या में स्थायी सिविल सेवक कार्य करते हैं। वास्तव में ये ही स्थायी सिविल सेवक मिलकर कानूनों को लागू करते हैं, मन्त्रियों द्वारा बनायी गयी नीतियों को क्रियान्वित करते हैं और प्रशासन चलाते हैं। ये स्थायी सिविल सेवक ही जो वास्तव में प्रशासन का संचालन करते हैं, लोक सेवक कहलाते हैं। वे योग्यता के आधार पर नियुक्त होते हैं तथा अपने पद पर एक निश्चित आयु पर सेवामुक्त होने की अवधि तक स्थायी रूप से बने रहते हैं।

भारत में सिविल सेवाओं की प्रमुख विशेषताएँ: भारत में सिविल सेवाओं की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1. निश्चित अवधि: भारत में लोक सेवक स्थायी आधार पर अपना पद ग्रहण करते हैं। वे स्थायी कार्यपालिका कहलाते हैं तथा अपने पद पर तब तक बने रहते हैं जब तक कि उसे एक निश्चित आयु पर पदमुक्त नहीं कर दिया जाता। इससे पहले वे केवल चार्जशीट तथा जाँच के आधार पर दोषी पाये जाने पर ही पदमुक्त हो सकते हैं।

2. योग्यता के आधार पर नियुक्ति: लोक सेवक योग्यता के आधार पर नियुक्त किये जाते हैं, न कि निर्वाचन के आधार पर। सभी पदों के लिए एक योग्यता निर्धारित की गई है और खुली भर्ती प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, जिसके आधार पर योग्य तथा वाँछित प्रत्याशियों को नियुक्ति दी जाती है। इस प्रकार लोक सेवकों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर की जाती है। संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्यों के लोक सेवा आयोग ऐसी प्रतियोगिताओं के माध्यम से नियुक्ति करते हैं।

3. पदों और कर्त्तव्यों का तर्कसंगत वितरण: नौकरशाही में सभी पदों के साथ दायित्व और कार्य सम्बद्ध हैं। प्रत्येक पदाधिकारी का यह दायित्व होता है कि वह उस पद से जुड़े दायित्वों और कार्यों को पूरा करे। इस तर्कसंगत विभाजन के कारण समस्त प्रशासन का कार्य सुचारु रूप से चलता रहता है।

4. कानून के अनुसार अपने कर्त्तव्यों का पालन: लोक सेवक का यह मुख्य कार्य होता है कि वह अपने विभाग में राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा निर्धारित कानूनों को लागू करे तथा नीतियों को क्रियान्वित करे। लेकिन उन्हें कानून तथा नियमों के अनुसार कार्य करना पड़ता है। वे निरंकुशतापूर्ण ढंग से कार्य नहीं कर सकते। उन्हें अपनी कार्यप्रणाली में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होता है। इस प्रक्रिया को अपनाने के कारण अनेक बार कार्य पूरा करने में देरी भी हो जाती है।

5. राजनीतिक तटस्थता: नौकरशाही से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह राजनीतिक रूप से तटस्थ हो। इसका अर्थ यह है कि नौकरशाही नीतियों पर विचार करते समय किसी राजनैतिक दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करेगी । प्रजातन्त्र में यह सम्भव है कि कोई पार्टी चुनाव में हार जाए और नई सरकार पिछली सरकार की नीतियों की जगह नई नीतियाँ अपनाना चाहे। ऐसी स्थिति में प्रशासनिक मशीनरी की जिम्मेदारी है कि वह नई सरकार को अपनी नीति बनाने और उसे लागू करने में मदद करे।

6. आरक्षण की व्यवस्था: यद्यपि भारत में सिविल सेवा या नौकरशाही के सदस्यों को बिना किसी भेदभाव के दक्षता और योग्यता के आधार पर चयनित किया जाता है; तथापि संविधान यह भी सुनिश्चित करता है कि पिछड़े वर्गों को भी समाज के सभी वर्गों के साथ-साथ सरकारी नौकरशाही का हिस्सा बनने का मौका मिले। इस उद्देश्य के लिए संविधान दलित और आदिवासियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करता है। बाद में अन्य पिछड़े वर्गों तथा महिलाओं को भी आरक्षण दिया गया है। इन प्रावधानों से यह सुनिश्चित होता है कि नौकरशाही में सभी समूहों का प्रतिनिधित्व होगा तथा सामाजिक असमानताएँ सिविल सेवाओं में भर्ती के मार्ग में रोड़ा नहीं बनेंगी।

7. पदसोपानीय व्यवस्था: भारत में सिविल सेवाओं का समूचा ढाँचा पदसोपानीय सिद्धान्त पर आधारित है। इसके तहत सिविल सेवक अनेक स्तरों में विभाजित किये गये हैं। एक निम्न स्तर के पदाधिकारी को उच्च स्तर के पदाधिकारी के अधीन काम करना होता है तथा वह अपने कार्य के लिए उसके प्रति उत्तरदायी होता है। उच्च स्तर का पदाधिकारी अपनी अधीन कर्मचारियों के कार्यों का पर्यवेक्षण करता है

8. जटिल स्वरूप: वर्तमान में भारतीय नौकरशाही का स्वरूप बहुत जटिल हो गया है। इसमें अखिल भारतीय सेवाएँ, केन्द्रीय सेवाएँ, प्रान्तीय सेवाएँ, स्थानीय सरकार के कर्मचारी और लोक उपक्रमों के तकनीकी तथा प्रबन्धकीय अधिकारी सम्मिलित हैं।

प्रश्न 4.
भारत में सिविल सेवाओं के ढाँचे की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में सिविल सेवाओं की संरचना आज भारत में भारतीय नौकरशाही का स्वरूप बहुत जटिल हो गया है। इसमें अखिल भारतीय सेवाएँ, केन्द्रीय सेवाएँ, प्रान्तीय सेवाओं के अतिरिक्त स्थानीय सरकार के कर्मचारी और लोक उपक्रमों के तकनीकी तथा प्रबन्धकीय अधिकारी भी सम्मिलित हैं। संवैधानिक दृष्टि से भारत में सिविल सेवाओं को मोटे रूप से तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है, ये हैं
(अ) अखिल भारतीय सेवाएँ,
(ब) केन्द्रीय सेवाएँ और
(स) प्रान्तीय सेवाएँ। यथा

(अ) अखिल भारतीय सेवाएँ:
अखिल भारतीय सेवाएँ भारतीय संघवाद की एक अनोखी विशेषता है। अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्य केन्द्र तथा राज्यों दोनों में अपनी सेवाएँ देते हैं। ये अधिकारी प्रान्तीय स्तर पर शीर्षस्थ पदों पर नियुक्त होते हैं। किसी एक अखिल भारतीय सेवा के पदाधिकारी की नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग द्वारा योग्यता औरं दक्षता के आधार पर की जाती है। जब उसे किसी एक राज्य से सम्बद्ध कर दिया जाता है, वहाँ वह उस राज्य सरकार की देखरेख में कार्य करता है। ये अधिकारी केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं और वे केन्द्र सरकार की सेवा में वापस जा सकते हैं तथा केवल केन्द्र सरकार ही उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही कर सकती है। इस प्रकार वे राज्यों में शीर्ष पदों पर रहते हुए भी केन्द्रीय सरकार की देखरेख और नियन्त्रण में रहते हैं।

वर्तमान में भारत में निम्नलिखित अखिल भारतीय सेवाएँ हैं

  1. भारतीय प्रशासनिक सेवा
  2. भारतीय पुलिस सेवा
  3. भारतीय वन (Forest) सेवा (भारतीय वन सेवा 1963 में जोड़ी गई थी।)

(ब) केन्द्रीय सेवाएँ:
केन्द्रीय सेवाएँ केवल संघ सरकार के विभागों से सम्बद्ध होती हैं। केन्द्रीय सेवाओं के पदाधिकारी केवल केन्द्रीय सरकार के अधीन कार्य करते हैं। केन्द्रीय सेवाएँ 24 प्रकार की हैं जो कि भिन्न-भिन्न विभागों से सम्बन्धित है। इनमें प्रमुख हैं

  1. भारतीय विदेश सेवा,
  2. भारतीय राजस्व सेवा,
  3. भारतीय पोस्टल सेवा,
  4. भारतीय ऑडिट एण्ड एकाउण्ट सेवाएँ,
  5. भारतीय कस्टम तथा एक्साइज सेवा,
  6. केन्द्रीय इंजीनियरिंग सेवा आदि। केन्द्रीय सेवाओं की भर्ती भी अखिल भारतीय सेवाओं के साथ ही संघ लोक सेवा आयोग द्वारा की जाती है।

(स) प्रान्तीय सेवाएँ:
प्रत्येक प्रान्त की सरकार प्रशासन के संचालन के लिए स्वयं के आफीसर नियुक्त करती है। वे राज्य लोक सेवा आयोगों के माध्यम से नियुक्त किये जाते हैं। उनके वेतन, भत्ते तथा सेवा की शर्तें आदि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। वे केवल राज्य सरकार के अधीन कार्य करते हैं। प्रमुख प्रान्तीय सेवाएँ ये हैं।

  1. प्रान्तीय सिविल सेवा,
  2. प्रान्तीय पुलिस सेवा,
  3. प्रान्तीय न्यायिक सेवा,
  4. प्रान्तीय शिक्षा सेवा,
  5. प्रान्तीय स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सेवा,
  6. प्रान्तीय इंजीनियरिंग सेवा,
  7. प्रान्तीय राजस्व सेवा आदि।

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