JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 विधायिका 

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 विधायिका Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 विधायिका

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में कौनसा कथन असत्य है?
(क) भारत में लोकसभा और विधानसभाएँ प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होती हैं।
(ख) भारत में संसद प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित है।
(ग) भारत में लोकसभा के पास कार्यपालिका को हटाने की शक्ति है।
(घ) विधायिका जन – प्रतिनिधियों का जनता के प्रति उत्तरदायित्व सुनिश्चित करती है।
उत्तर:
(ख) भारत में संसद प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित है।

2. निम्नलिखित में किस प्रान्त में द्विसदनात्मक विधानमण्डल नहीं है।
(क) राजस्थान
(ख) बिहार
(ग) महाराष्ट्र
(घ) उत्तरप्रदेश
उत्तर:
(क) राजस्थान

3. राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल है।
(क) 5 वर्ष
(ख) 4 वर्ष
(ग) 6 वर्ष
(घ) 8 वर्ष
उत्तर:
(ग) 6 वर्ष

4. राज्यसभा के 12 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है।
(क) प्रधानमंत्री द्वारा
(ख) सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा
(ग) उपराष्ट्रपति द्वारा
(घ) राष्ट्रपति द्वारा
उत्तर:
(घ) राष्ट्रपति द्वारा

5. निम्नलिखित में से कौनसी शक्ति ऐसी हैं जो लोकसभा के पास है, लेकिन विधानसभा के पास नहीं हैं।
(क) सामान्य विधेयकों को पारित करने की शक्ति
(ख) संवैधानिक विधेयकों के पारित करने की शक्ति
(ग) धन विधेयक प्रस्तुत किये जाने की शक्ति
(घ) राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने की शक्ति।
उत्तर:
(ग) धन विधेयक प्रस्तुत किये जाने की शक्ति

6. निम्नलिखित में ऐसी कौनसी शक्ति है जो राज्यसभा के पास तो है, लेकिन लोकसभा के पास नहीं।
(क) राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रहित में संघीय सूची या समवर्ती सूची में हस्तांतरित करने की शक्ति
(ख) धन विधेयक प्रस्तुत करने की शक्ति
(ग) संविधान संशोधन की शक्ति
(घ) सामान्य विधेयक पारित करने की शक्ति।
उत्तर:
(क) राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रहित में संघीय सूची या समवर्ती सूची में हस्तांतरित करने की शक्ति

7. संसद द्वारा कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाने का सबसे सशक्त हथियार है।
(क) वित्तीय नियंत्रण
(ख) बहस और वाद-विवाद
(ग) स्थगन प्रस्ताव
(घ) अविश्वास प्रस्ताव
उत्तर:
(घ) अविश्वास प्रस्ताव

8. वर्तमान में लोकसभा के कुल निर्वाचन क्षेत्र हैं।
(क) 550
(ख) 500
(ग) 530
(घ) 543
उत्तर:
(घ) 543

9. लोकसभा की सदस्य होने के लिए निम्नतम आयु सीमा है।
(क) 18 वर्ष
(ख) 21 वर्ष
(ग) 1 वर्ष
(घ) 6 माह
उत्तर:
(ग) 1 वर्ष

10. संसद के दो अधिवेशनों के बीच अधिकतम समयान्तर होता है।
(क) 3 मास
(ख) 5 मास
(ग) 25 वर्ष
(घ) 35 वर्ष
उत्तर:
(घ) 35 वर्ष

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. हमारी राष्ट्रीय विधायिका का नाम ………………… है।
उत्तर:
संसद

2. ……………….. हमारी संसद का स्थायी सदन है।
उत्तर:
राज्य सभा

3. संसद द्वारा कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाने का सबसे सशक्त हथियार …………………. है।
उत्तर:
अविश्वास प्रस्ताव

4. सदन का ……………… विधायिका की कार्यवाही के मामले में सर्वोच्च अधिकारी होता है।
उत्तर:
अध्यक्ष

5. राज्य सभा के ……………… सदस्यों को वर्ष के लिए निर्वाचित किया जाता है।
उत्तर:
6.

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये-

1. विधायिका प्रतिनिधिक लोकतंत्र का आधार है।
उत्तर:
सत्य

2. भारत के राजस्थान राज्य की विधायिका द्विसदनात्मक है।
उत्तर:
असत्य

3. भारत के उत्तरप्रदेश राज्य की विधायिका एकसदनीय है।
उत्तर:
असत्य

4. राज्य विधान सभा के निर्वाचित सदस्य राज्य सभा के सदस्यों को चुनते हैं।
उत्तर:
सत्य

5. निर्वाचित सदस्यों के अतिरिक्त लोकसभा में 12 मनोनीत सदस्य होते हैं।
उत्तर:
असत्य

6. सदन का अध्यक्ष दलबदल से संबंधित विवादों पर अंतिम निर्णय लेता है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये।

1. फेडरल एसेंबली और फेडरल कौंसिल (क) भारतीय संसद के दोनों सदन
2. लोकसभा और राज्य सभा (ख) लोकसभा संजीव पास बुक्स
3. सीनेट (ग) सदन का अध्यक्ष
4. धन विधेयक प्रस्तुत करना (घ) अमेरिका का द्वितीय सदन
5. विधायिका की कार्यवाही के मामले में सर्वोच्च अधिकारी (च) जर्मनी की विधायिका के दोनों सदन

उत्तर:

1. फेडरल एसेंबली और फेडरल कौंसिल (च) जर्मनी की विधायिका के दोनों सदन
2. लोकसभा और राज्य सभा (क) भारतीय संसद के दोनों सदन
3. सीनेट (घ) अमेरिका का द्वितीय सदन
4. धन विधेयक प्रस्तुत करना (ख) लोकसभा संजीव पास बुक्स
5. विधायिका की कार्यवाही के मामले में सर्वोच्च अधिकारी (ग) सदन का अध्यक्ष


अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका किसे कहते हैं?
(क) भारतीय संसद के दोनों सदन
(घ) अमेरिका का द्वितीय सदन
(ख) लोकसभा
(ग) सदन का अध्यक्ष
उत्तर:
जब कभी विधायिका में दो सदन होते हैं, तो उसे द्वि- सदनात्मक व्यवस्थापिका कहते हैं?

प्रश्न 2.
भारतीय संसद के दोनों सदनों के नाम लिखिये।
उत्तर:
भारतीय संसद के दोनों सदनों के नाम ये हैं।

  1. लोकसभा और
  2. राज्य सभा।

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प्रश्न 3.
भारत के कितने राज्यों में द्विसदनात्मक विधायिका है? उनके नाम लिखिये।
उत्तर:
भारत के 6 राज्यों में द्विसदनात्मक विधायिका है। ये राज्य हैं।

  1. बिहार
  2. आंध्रप्रदेश
  3. कर्नाटक
  4. महाराष्ट्र,
  5. उत्तरप्रदेश और
  6. तेलंगाना।

प्रश्न 4.
द्विसदनात्मक विधायिका के कोई दो लाभ लिखिये।
उत्तर;

  1. दूसरा सदन समाज के सभी वर्गों तथा देश के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करता है।
  2. संसद के प्रत्येक निर्णय पर दूसरे सदन में पुनर्विचार हो जाता है।

प्रश्न 5.
राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन किस विधि से होता है?
उत्तर:
राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष विधि से राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों के निर्वाचन मण्डल द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 6.
राज्यसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व का आधार क्या है?
उत्तर:
राज्यसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व का आधार प्रत्येक राज्य की जनसंख्या है अर्थात् ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों को ज्यादा और कम जनसंख्या वाले राज्यों को कम प्रतिनिधित्व प्राप्त हो।

प्रश्न 7.
संविधान की किस सूची में प्रत्येक राज्य से राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या निर्धारित कर दी गई है?
उत्तर:
संविधान की चौथी अनुसूची में राज्यसभा में प्रत्येक राज्य से निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या निर्धारित कर दी गई है।

प्रश्न 8.
राज्यसभा में राष्ट्रपति किन और कितने सदस्यों को मनोनीत करता है?
उत्तर:
राज्यसभा में राष्ट्रपति साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त 12 व्यक्तियों को मनोनीत करता है।

प्रश्न 9.
दल-बदल क्या है?
उत्तर:
यदि कोई सदस्य अपने दल के नेतृत्व के आदेश के बावजूद सदन में उपस्थित न हो या दल के निर्देशों के विपरीत सदन में मतदान करे तो उसे दल-बदल कहते हैं।

प्रश्न 10.
संसद के किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संसद के दो प्रमुख कार्य ये हैं।

  1. विधि निर्माण
  2. कार्यपालिका पर नियंत्रण तथा उसका उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना।

प्रश्न 11.
संसदीय समितियों को ‘लघु विधायिका’ क्यों कहते हैं?
उत्तर:
संसदीय समितियों में सभी संसदीय दलों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है। इसी कारण इन समितियों को ‘लघु विधायिका’ भी कहते हैं।

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प्रश्न 12.
संसदीय लोकतंत्र किस स्थिति में ‘मंत्रिमण्डल की तानाशाही’ में बदल सकता है?
उत्तर:
जब बहुमत की ताकत पाकर कार्यपालिका अपनी शक्तियों का मनमाना प्रयोग करने लगे तो ऐसी स्थिति में संसदीय लोकतंत्र मंत्रिमण्डल की तानाशाही में बदल सकता है।

प्रश्न 13.
सरकारी विधेयक किसे कहते हैं?
उत्तर:
मंत्री द्वारा प्रस्तुत विधेयक को सरकारी विधेयक कहते हैं।

प्रश्न 14.
निजी विधेयक किसे कहते हैं?
उत्तर:
मंत्री के अतिरिक्त किसी और सदस्य द्वारा प्रस्तुत विधेयक को निजी विधेयक कहते हैं।

प्रश्न 15.
संसदीय विशेषाधिकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
संसद में सांसदों को प्रभावी और निर्भीक रूप से काम करने की शक्ति और स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए जो विशेष अधिकार प्रदान किये जाते हैं, उन्हें संसदीय विशेषाधिकार कहते हैं।

प्रश्न 16.
विधायिका द्वारा कार्यपालिका पर नियंत्रण के कोई दो तरीके लिखिये।
उत्तर:
अविश्वास प्रस्ताव , वित्तीय नियंत्रण

प्रश्न 17.
द्वितीय सदन के विरुद्ध कोई दो तर्क दीजिये।
उत्तर:

  1. द्वितीय सदन के कारण प्राय: विधि निर्माण में देरी होती है।
  2. द्वितीय सदन से देश के धन की बर्बादी होती है।

प्रश्न 18.
द्विसदनीय विधायिका में दूसरा सदन किस प्रकार स्थायी बनता है?
उत्तर:

  1. द्वितीय सदन कार्यपालिका या राज्य के प्रमुख द्वारा भंग नहीं किया जा सकता, जबकि प्रथम (निम्न ) सदन भंग किया जा सकता है।
  2. द्वितीय सदन के सभी सदस्य प्रायः एक साथ ही एक बार में निर्वाचित नहीं होते। जैसे कि भारत में राज्य सभा के 1/3 सदस्य ही प्रति दो वर्ष बाद निर्वाचित किये जाते हैं।

प्रश्न 19.
किन परिस्थितियों में संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जा सकता है?
उत्तर:

  1. दोनों सदनों के विवादों को हल करने के लिए।
  2. किसी विधेयक को एक सदन पारित कर दे और दूसरा अस्वीकृत कर दे।

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प्रश्न 20.
विधायिका के अध्यक्ष पद के कोई दो कार्य बताइये।
उत्तर:

  1. अध्यक्ष सदन की सभाओं की अध्यक्षता करता है तथा नियमानुसार इसके कार्य को संचालित करता है।
  2. वह सदन में अनुशासन बनाए रखता है तथा संवैधानिक तरीके से वाद-विवाद तथा विचार-विमर्श को जारी रखता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थगन प्रस्ताव क्या है?
उत्तर:
स्थगन प्रस्ताव-सामान्यतः सदन के कार्यकलाप उस दिन के निर्धारित एजेण्डा (कार्य-सूची) के अनुसार ही जारी रहते हैं, लेकिन कभी-कभी किसी विशेष अचानक होने वाली राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय घटना-दुर्घटना के कारण सदन का कोई सदस्य सदन से यह प्रार्थना करता है कि निर्धारित कार्यक्रम को रोककर उस विशेष घटना पर विचार- विमर्श करे । इस प्रस्ताव को स्थगन प्रस्ताव कहते हैं। यदि इस प्रस्ताव को सदन के अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो उस विषय पर सदन में विचार-विमर्श प्रारम्भ कर देता है।

प्रश्न 2.
प्रश्न काल क्या है?
उत्तर:
प्रश्न काल-प्रश्न काल संसद के दोनों सदनों की दैनिक प्रक्रिया में एक बहुमत महत्वपूर्ण अवधि है । इस अवधि के दौरान सदन के सदस्य को प्रश्न पूछने का अधिकार होता है और जिसका उत्तर उस प्रश्न से संबंधित मंत्री को देना पड़ता है। प्राय: प्रश्न सरकार की आलोचना करने तथा सरकार के विरुद्ध जनमत निर्माण करने तथा सरकार पर विपक्ष के नियंत्रण हेतु किये जाते हैं। इसमें मंत्री को शक्ति के दुरुपयोग के विरुद्ध चेतावनी दी जाती है

प्रश्न 3.
अविश्वास प्रस्ताव का क्या आशय है?
उत्तर:
अविश्वास प्रस्ताव:
अविश्वास प्रस्ताव लोकसदन द्वारा कार्यपालिका के विरुद्ध प्रस्तुत किया जाता है। इसका आशय है कि लोकसभा में मंत्रिमंडल के प्रति विश्वास नहीं रहा है। यदि लोकसभा किसी मंत्री या पूरी मंत्रिपरिषद् के प्रति साधारण बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित कर देती है तो मंत्रिपरिषद को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है। लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान करवाना है।

प्रश्न 4.
क्या भारतीय संसद संवैधानिक संप्रभु है?
उत्तर:
भारत की संसद संवैधानिक दृष्टि से संप्रभु नहीं है। इसके विधान निर्माण पर निम्न सीमाएँ हैं।

  1. भारतीय संसद सभी विषयों पर विधि निर्माण नहीं कर सकती। यह प्राय: संघ सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर ही विधि निर्माण कर सकती है और राज्य सूची के विषयों पर केवल विशेष परिस्थितियों में ही विधि बना सकती है।
  2. संसद संविधान के विरोध में विधि का निर्माण नहीं कर सकती तथा मूल अधिकारों के उल्लंघन में विधि निर्माण नहीं कर सकती। यदि संसद ऐसी विधि बनाती है तो न्यायालय उसे असंवैधानिक बताकर रद्द कर सकता है।

प्रश्न 5.
संसद (विधायिका) की क्या आवश्यकता है?
अथवा
संसद की उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसद (विधायिका) की आवश्यकता ( उपयोगिता )

  1. संसद ( विधायिका) जनता द्वारा निर्वाचित होती है और जनता की प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है।
  2. यह कानून निर्माण का महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।
  3. यह जनप्रतिनिधियों का जनता के प्रति उत्तरदायित्व सुनिश्चित करती है। यह मंत्रिमंडल पर नियंत्रण रखती
  4. यह वाद-विवाद का सबसे लोकतांत्रिक खुला मंच है।
  5. यह प्रतिनिधिक लोकतंत्र का आधार है।

प्रश्न 6.
” संसद कार्यपालिका को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकती है।” लेकिन इसके लिए किन विशेष शर्तों का पूरा होना आवश्यक है?
उत्तर:
संसद कार्यपालिका को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकती है, लेकिन इसके लिए निम्न शर्तों का पूरा होना आवश्यक है।

  1. संसद के सदन के पास पर्याप्त समय हो।
  2. संसद के सदस्य बहस में रुचि रखते हों तथा वे उसमें प्रभावशाली ढंग से भाग लें।
  3. सरकार तथा विपक्ष में आपस में समझौता करने की इच्छा हो।

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प्रश्न 7.
संसदीय समितियों की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर:
संसदीय समितियों की आवश्यकता के प्रमुख कारण ये हैं।

  1. चूँकि संसद केवल अधिवेशन के दौरान ही बैठती है, इसलिए इसके पास अत्यन्त सीमित समय होता है।
  2. किसी कानून को बनाने के लिए उससे जुड़े विषय का गहन अध्ययन करना पड़ता है। इसके लिए उस पर ज्यादा ध्यान और समय देने की आवश्यकता होती है।
  3. संसद को निधि निर्माण के अतिरिक्त अन्य बहुत से महत्वपूर्ण कार्य करने होते हैं।

सीमित समय के कारण संसद इन सब कार्यों को भली-भाँति नहीं कर पाती है। इस समस्या को दूर करने के लिए वह विधेयकों पर विचार करने व गहन अध्ययन करने के लिए उन्हें संसदीय समितियों को भेज देती है। अत: संसद के सीमित समय और कार्य की अधिकता के कारण संसदीय समितियों की आवश्यकता पड़ी।

प्रश्न 8.
दल-बदल से क्या तात्पर्य है? दल-बदल को रोकने के लिए क्या उपाय किए गए हैं?
उत्तर:
दल-बदल का अर्थ एक विधायक या सांसद का अपने दल के चुनाव चिह्न पर चुने जाने के बाद उसे छोड़कर किसी दूसरे राजनीतिक दल में चले जाना या निर्दलीय बन जाना दल-बदल कहलाता है।दल-बदल रोकने के उपाय:

  1. यदि संसद या विधायक किसी राजनीतिक दल से चुने जाने के पश्चात् अपने दल की सदस्यता से स्वेच्छापूर्वक त्याग-पत्र दे देता है, तो उसकी सदन की सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  2. यदि वह सदस्य अपने दल के निर्देशों के विपरीत सदन में मतदान करता है या मतदान में भाग लेता है, तो उसी सदस्यता खत्म कर दी जाएगी।
  3. दल-बदल पर अन्तिम निर्णय करने का अधिकार स्पीकर या उपसभापति का होता है।

प्रश्न 9.
राज्यसभा के सदस्य की योग्यताएँ (अर्हताएँ) क्या हैं?
उत्तर:
राज्यसभा के सदस्य की अर्हताएँ – एक व्यक्ति जो राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित या नियुक्त होना चाहता है, उसमें निम्नलिखित अर्हताएँ होनी चाहिए-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसने 30 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।
  3. वह संघ या राज्य सरकार के किसी लाभ के पद पर आसीन न हो।
  4. वह दिवालिया तथा चित्त – विकृत न हो।
  5. वह न्यायालय द्वारा इस पद के अयोग्य नहीं ठहराया गया हो।
  6. वह जिस राज्य का राज्य सभा सदस्य बनना चाहता है, उस राज्य का निवासी हो।

प्रश्न 10.
लोकसभा के सदस्य की अर्हताएँ क्या हैं?
उत्तर:
लोकसभा के सदस्य की अर्हताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसने 25 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।
  3. ह संघ या राज्य सरकार में किसी लाभ के पद पर आसीन न हो।
  4. वह दिवालिया और चित्त – विकृत न हो।
  5. वह संसद द्वारा निर्धारित अन्य योग्यताओं को पूरा करता हो।

प्रश्न 11.
राज्य सभा के सभापित तथा लोकसभा के अध्यक्ष के मध्य क्या अन्तर हैं? तुलना कीजिए।
उत्तर:
लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं।

  1. लोकसभा का अध्यक्ष स्वयं लोकसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित होता है जबकि राज्यसभा का सभापति संसद के दोनों सदनों द्वारा निर्वाचित होता है।
  2. अध्यक्ष लोकसभा का सदस्य होता है जबकि सभापति राज्य सभा का सदस्य नहीं होता है।
  3. दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष करता है, न कि राज्यसभा का सभापति।
  4. धन विधेयक है या नहीं, इसका निर्णय लोकसभा अध्यक्ष करता है, न कि राज्यसभा का सभापति।
  5. लोकसभा अपने अध्यक्ष को पदच्युत कर सकती है, लेकिन राज्यसभा अपने सभापति को पदच्युत नहीं कर सकती।

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प्रश्न 12.
संसद स्वयं को कैसे नियंत्रित करती है?
उत्तर:
संसद स्वयं को नियंत्रित करती है। संसद स्वयं को निम्न प्रकार नियंत्रित करती है।
1. अध्यक्ष के द्वारा नियंत्रण:
स्वयं संविधान में संसद की कार्यवाही को सुचारु ढंग से चलाने के लिए प्रावधान बनाए गए हैं। सदन का अध्यक्ष इन प्रावधानों के अनुसार संसद की कार्यवाही को नियंत्रित करता है क्योंकि वह विधायिका की कार्यवाही के मामले में सर्वोच्च अधिकारी होता है।

2. दलबदल निरोधक कानून द्वारा नियंत्रण:
दलबदल कानून का उल्लंघन करने पर सदन का अध्यक्ष उसकी सदन की सदस्यता समाप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त, ऐसे दलबदलू को किसी भी राजनैतिक पद (जैसे– मंत्री ) के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।

प्रश्न 13.
संसदीय समितियाँ क्या करती हैं?
उत्तर:
संसदीय समितियाँ निम्न कार्य करती हैं।

  1. संसदीय समितियाँ उसके पास संसद द्वारा भेजे गये विधेयक पर गहन अध्ययन तथा विचार-विमर्श कर अपने निष्कर्ष के साथ उसे पुनः सदन में भेजती हैं। इस प्रकार वे कानून निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  2. संसदीय समितियाँ कानून निर्माण के अतिरिक्त सदन के दैनिक कार्यों में भी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं; जैसे – मंत्रालयों की अनुदान मांगों का अध्ययन, विभिन्न विभागों द्वारा किये गये खर्चों की जाँच, भ्रष्टाचार के मामलों की पड़ताल आदि।

प्रश्न 14.
कानून बनाने का निर्णय लेने से पहले मंत्रिमंडल किन-किन बातों पर विचार करता है?
उत्तर:
मंत्रिमण्डल को विधेयक बनाने से पहले उसके सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना पड़ता है।

  1. कानून को लागू करने के लिए जरूरी संसाधनों को कहाँ से जुटाया जायेगा?
  2. विधेयक का कितना समर्थन और विरोध होगा?
  3. प्रस्तावित कानून से सत्तारूढ़ दल की चुनावी संभावनाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
  4. प्रस्तावित विधेयक पर गठबंधन के घटक दलों का समर्थन प्राप्त होगा या नहीं? कानून बनाने का निर्णय लेने से पहले मंत्रिमण्डल इन सभी बातों पर विचार करता है।

प्रश्न 15.
संसद के चार गैर-विधायी कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  1. संसद मंत्रिमण्डल पर नियन्त्रण करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है। मंत्रिमण्डल को तब तक अपने पद पर बने रहने का अधिकार है जब तक उसे संसद का बहुमत प्राप्त होता रहता है।
  2. संसद राष्ट्र की नीतियों को निर्धारित करती है।
  3. संसद उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है तथा राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेती है।
  4. संसद यदि चाहे तो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा हटा सकती है।

प्रश्न 16.
भारतीय संसद की कोई चार विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
भारतीय संसद की विशेषताएँ – भारतीय संसद की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  • भारतीय संसद द्वि-सदनात्मक है। इसके दो सदन हैं
    1. लोकसभा (निम्न सदन)
    2. राज्यसभा ( उच्च सदन)।
  • भारत में संसद देश में कानून बनाने वाली सर्वोच्च संस्था है।
  • इसके दोनों सदनों की शक्तियाँ समान नहीं हैं।
  • लोकसभा का गठन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है जबकि राज्य सभा का गठन अप्रत्यक्ष रूप से राज्य – विधानसभाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है।

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प्रश्न 17.
भारत में कुल कितने संघ राज्य क्षेत्र हैं? इनके नाम लिखिये।
उत्तर:
भारत में कुल 9 संघ राज्य क्षेत्र हैं। ये हैं।

  1. अण्डमान निकोबार द्वीप समूह
  2. चंडीगढ़
  3. दादरा और नगर हवेली
  4. दमन और दीव
  5. लक्षदीप
  6. नई दिल्ली
  7. पांडिचेरी
  8. जम्मू-कश्मीर
  9. लद्दाख।

प्रश्न 18.
विधायिका से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विधायका से आशय सरकार के तीन अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में विधायिका एक महत्वपूर्ण अंग है। संसदीय सरकार के सभी अंगों में विधायिका सर्वाधिक प्रतिनिध्यात्मक है। विधायिका का मुख्य काम कानून का निर्माण करना है। लेकिन कानून के अतिरिक्त यह मंत्रिमण्डल पर नियंत्रण का भी कार्य करती है। यह वाद-विवाद का सबसे लोकतांत्रिक और खुला मंच है। यह सभी लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रियाओं का केन्द्र है।

प्रश्न 19.
विधायिका के चार कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  1. विधायिका का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कानून निर्माण करना है।
  2. विधायिका राज्य के वित्त पर नियंत्रण करती है तथा बजट पारित करती है।
  3. सभी लोकतांत्रिक राज्यों में संविधान में संशोधन करने का अधिकार विधायिका के पास है।
  4. विधायिका कार्यपालिका पर नियंत्रण का कार्य करती है।

प्रश्न 20.
द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका के दो गुण (लाभ) बताइये।
उत्तर:
द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका के गुण (लाभ): द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका के दो प्रमुख लाभ ये हैं:

1. समाज के सभी वर्गों और क्षेत्रों को समुचित प्रतिनिधित्व:
विविधताओं से परिपूर्ण बड़े देश प्रायः द्विसदनात्मक राष्ट्रीय विधायिका चाहते हैं ताकि वे अपने समाज के सभी वर्गों और देश के सभी क्षेत्रों को समुचित प्रतिनिधित्व दे सकें ।

2. पुनर्विचार संभव;
संसद के प्रत्येक निर्णय पर दूसरे सदन में पुनर्विचार हो जाता है। एक सदन द्वारा लिया गया प्रत्येक निर्णय दूसरे सदन को भेजा जाता है। यदि एक सदन जल्दबाजी में कोई निर्णय ले लेता है तो दूसरे सदन में उस पर पुनर्विचार हो जाता है।

प्रश्न 21.
द्वितीय सदन में प्रतिनिधित्व के कौन-से दो सिद्धान्त हैं?
उत्तर:
द्वितीय सदन में प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त – द्वितीय सदन में प्रतिनिधित्व के दो प्रमुख सिद्धान्त हैं। ये निम्नलिखित हैं।

1. समान प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त;
देश के सभी क्षेत्रों (राज्यों) के असमान आकार और जनसंख्या के बावजूद द्वितीय सदन में प्रत्येक क्षेत्र को समान प्रतिनिधित्व दिया जाता है; जैसा कि अमेरिका और स्विट्जरलैण्ड में है।

2. असमान प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त;
देश के विभिन्न क्षेत्रों (राज्यों) को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाये अर्थात् अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों को कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों से अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाये; जैसा कि भारत में है।

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प्रश्न 22.
राज्य सभा की रचना की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
संविधान के अनुसार राज्य सभा के सदस्यों की संख्या अधिक-से-अधिक 250 हो सकती है, जिनमें से 238 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले होंगे, 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जा सकते हैं, जिन्हें समाज सेवा, कला तथा विज्ञान, शिक्षा आदि के क्षेत्र में विशेष ख्याति प्राप्त हो चुकी है। राज्य सभा में विभिन्न राज्यों की जनसंख्या के आधार पर संविधान द्वारा निर्धारित सदस्यों का निर्वाचन उस राज्य की विधायिका के द्वारा किया जाता हैं।

प्रश्न 23.
भारत में राज्यसभा के लिए अमेरिका की समान प्रतिनिधित्व प्रणाली का प्रयोग क्यों नहीं किया गया है?
उत्तर:
यदि भारत में राज्यसभा के लिए अमेरिका की समान प्रतिनिधित्व प्रणाली का प्रयोग किया जाता तो 19.98 करोड़ जनसंख्या वाले उत्तरप्रदेश राज्य को 6.10 लाख जनसंख्या वाले सिक्किम राज्य के बराबर ही प्रतिनिधित्व मिलता। संविधान निर्माताओं ने इस विसंगति से बचने के लिए प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने का निर्णय लिया। इस आधार पर उत्तरप्रदेश को 31 सीटें तथा सिक्किम को राज्यसभा की एक सीट दी गयी है।

प्रश्न 24.
संघीय व्यवस्था में द्वितीय सदन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
संघीय व्यवस्था में द्वितीय सदन की आवश्यकता:
संघीय व्यवस्था में दूसरे सदन का होना आवश्यक है। संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व दूसरे सदन में ही दिया जा सकता है। अत: समाज के सभी वर्गों और देश के सभी क्षेत्रों को समुचित प्रतिनिधित्व देने के लिए संघीय व्यवस्था में दूसरे सदन की आवश्यकता होती है।

द्वितीय सदन की भूमिका:
द्वितीय सदन राज्यों (संघ की इकाइयों) का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था होती है। इसका उद्देश्य राज्यों के हितों का संरक्षण करना है। इसलिए, राज्य के हितों को प्रभावित करने वाला प्रत्येक मुद्दा इसकी सहमति व स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। उदाहरण के लिए भारत में यदि केन्द्र सरकार राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रहित में संघीय सूची या समवर्ती सूची में हस्तांतरित करना चाहे, तो उसमें राज्य सभा की स्वीकृति आवश्यक है।

  • द्वितीय सदन के लाभ
    1. द्वितीय सदन कानून निर्माण में जल्दबाजी को रोकता है।
    2. यह संघ की एकता और सहयोग की भावना को दृढ़ करता हैं।
    3. यह प्रथम सदन की निरंकुशता पर अंकुश लगाता है।
  • द्वितीय सदन की हानियाँ
    1. द्वितीय सदन व्यर्थ है। यह देश के धन का दुरुपयोग है।
    2. यह सदन कानून निर्माण के कार्य में अनावश्यक गतिरोध पैदा करता है।
    3. संघात्मक सरकार में भी जब दूसरे सदन के सदस्य राजनीतिक दलों के आधार पर चुने जाते हैं तो उनकी निष्ठा उस राज्य की तुलना में उस दल विशेष के प्रति अधिक हो जाती है। फलतः दल की निष्ठा में राज्य हित तिरोहित हो जाता है।

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प्रश्न 25.
उन परिस्थितियों को बताइये जब भारतीय संसद उन विषयों पर भी कानून बना सकती है जो राज्य सूची में शामिल हैं।
उत्तर:
राज्य सूची के विषयों पर संसद सामान्य स्थितियों पर तो कानून नहीं बना सकती, क्योंकि इस सूची के विषयों पर कानून निर्माण का अधिकार केवल राज्यों के विधानमण्डलों को दिया गया है। लेकिन निम्नलिखित दो परिस्थितियों में संसद भी राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना सकती है।

  1. उस अवस्था में जब राज्य सूची का कोई विषय राष्ट्रीय महत्व का बन जाता है तब राज्य सभा यदि 2 / 23 के बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित करती है कि राज्य सूची का अमुक विषय राष्ट्रीय महत्व का बन गया है तो इस विषय पर संसद को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
  2. राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के पश्चात् भी राज्य सूची के विषय पर केन्द्र को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 26.
लोकसभा तथा राज्यसभा की विशेष शक्तियों का उल्लेख कीजिये।
अथवा
लोकसभा और राज्यसभा की उन विशेष शक्तियों का उल्लेख कीजिए जो एक सदन के पास हैं और दूसरे सदन के पास नहीं हैं।
उत्तर:
लोकसभा की विशेष शक्तियाँ: लोकसभा को निम्नलिखित ऐसी विशिष्ट शक्तियाँ प्राप्त हैं, जो राज्य सभा को प्राप्त नहीं हैं।

  1. धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं और वही उसे संशोधित या अस्वीकृत कर सकती है।
  2. मंत्रिपरिषद केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है, राज्यसभा के प्रति नहीं। राज्य सभा सरकार की आलोचना तो कर सकती है, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा उसे हटा नहीं सकती। इस प्रकार सरकार को हटाने और वित्त पर नियंत्रण रखने की शक्ति केवल लोकसभा के ही पास है।

राज्यसभा की विशेष शक्तियाँ।

  1. यदि केन्द्र सरकार राज्य सूची के किसी विषय को, राष्ट्रहित में, संघीय सूची या समवर्ती सूची में हस्तांतरित करना चाहे, तो उसमें राज्य सभा की स्वीकृति आवश्यक है। यदि राज्य सभा अपने 2/3 बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित कर देती है, तो वह विषय राष्ट्रीय महत्व का बन जाता है और उस पर संसद को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
  2. राज्य सभा ही 2/3 बहुमत से एक प्रस्ताव पारित करके संघ सरकार को नई अखिल भारतीय सेवा निर्मित करने का अधिकार प्रदान कर सकती है।

प्रश्न 27.
भारत में संसदीय समितियाँ क्या करती हैं?
उत्तर:
(अ) स्थायी संसदीय समितियों के कार्य: विभिन्न विधायी कार्यों के लिए भारत में स्थायी संसदीय समितियों का गठन किया गया है। ये समितियाँ केवल कानून बनाने में ही नहीं, वरन् सदन के दैनिक कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यथा-
1. विधायी कार्य:
चूंकि संसद के पास कम समय होता है, इसलिए उस पर गहन अध्ययन हेतु वह स्वयं विचार करने से पूर्व संसद की संबंधित स्थायी समिति को भेज देती है। भारत में विभिन्न विभागों से संबंधित 20 स्थायी समितियाँ हैं जो उनसे संबंधित विधेयकों पर विचार करती हैं। ये समितियाँ संसद द्वारा विधेयक पर गहन अध्ययन व विचार-विमर्श कर अपनी सिफारिशें करती हैं। इन सिफारिशों को सदन में भेज दिया जाता है। इन समितियों में सभी संसदीय दलों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है। इन समितियों के सुझावों को सामान्यतः संसद स्वीकार कर लेती है।

2. दैनिक कार्य:
संसदीय समितियाँ विधायी कार्य के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण दैनिक कार्य भी करती हैं, जैसे—विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान माँगों का अध्ययन, विभिन्न विभागों के द्वारा किये गए खर्चों की जाँच, भ्रष्टाचार के मामलों की पड़ताल आदि।
(ब) संयुक्त संसदीय समितियों के कार्य – स्थायी संसदीय समितियों के अतिरिक्त देश में संयुक्त संसदीय समितियों का गठन किसी विधेयक पर संयुक्त चर्चा अथवा वित्तीय अनियमितताओं की जाँच के लिए किया जा सकता है।

प्रश्न 28.
लोकसभा की शक्तियों का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
लोकसभा की शक्तियाँ लोकसभा की प्रमुख शक्तियाँ निम्नलिखित हैं-

  • विधि निर्माण सम्बन्धी कार्य: लोकसभा संघ सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाती है। यह धन विधेयकों और सामान्य विधेयकों को प्रस्तुत और पारित करती है तथा संविधान संशोधन विधेयकों को प्रस्तुत तथा पर है।
  • वित्तीय कार्य लोकसभा कर: प्रस्तावों, बजट तथा वार्षिक वित्तीय वक्तव्यों को स्वीकृति देती है।
  • कार्यपालिका पर नियंत्रण का कार्य: लोकसभा प्रश्न पूछकर, पूरक प्रश्न पूछकर, प्रस्ताव लाकर और अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से कार्यपालिका को नियंत्रित करती है। अन्य कार्य;
    1. लोकसभा आपातकाल की घोषणा को स्वीकृति देती है।
    2. यह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है तथा उनके विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाकर उन्हें पदच्युत करने में भाग लेती है।
    3. यह महाभियोग के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटा सकती है।
    4. यह समिति और आयोगों का गठन करती है और उनके प्रतिवेदनों पर विचार करती है।

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प्रश्न 29.
राज्यसभा की शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राज्यसभा की शक्तियाँ राज्यसभा की प्रमुख शक्तियाँ निम्नलिखित हैं।
1. विधायी व संवैधानिक संशोधन की शक्तियाँ:
राज्यसभा सामान्य विधेयकों को प्रस्तुत तथा पारित करती है। लेकिन यह धन विधेयकों को न तो प्रस्तावित कर सकती है और न पारित करती है, बल्कि उस पर विचार कर संशोधन प्रस्तावित ही कर सकती है। यह संवैधानिक संशोधन को भी प्रस्तावित तथा पारित करती है।

2. कार्यपालिका नियंत्रण सम्बन्धी शक्ति:
राज्यसभा प्रश्न पूछकर तथा संकल्प एवं प्रस्ताव प्रस्तुत करके कार्यपालिका पर नियंत्रण करती है; लेकिन उसके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकती। इस प्रकार यह कार्यपालिका को अपदस्थ नहीं कर सकती।

3. विशेष अधिकार:
यह राज्य सूची के किसी विषय पर संघ सरकार को कानून बनाने का अधिकार दे सकती है। इसी प्रकार कोई नई अखिल भारतीय सेवा प्रारम्भ करने की भी अनुमति दे सकती है।

4. अन्य अधिकार:
यह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भागीदारी करती है तथा उन्हें और सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया में भागादारी करती है। उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही लाया जा सकता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संसद के गठन एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।.
उत्तर:
भारतीय संसद का गठन भारत की संसद द्विसदनात्मक संघीय व्यवस्थापिका है। इसके दो सदन हैं।

  1. लोकसभा और
  2. राज्यसभा। लोकसभा निम्न सदन है और राज्य सभा उच्च सदन है।

(अ) राज्य सभा का गठन: राज्य सभा की रचना का वर्णन अग्र प्रकार किया गया है।
(i) राज्यों का प्रतिनिधि सदन: राज्य सभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है।

(ii) अप्रत्यक्ष निर्वाचन: इसका निर्वाचन अप्रत्यक्ष विधि से होता है। किसी राज्य के लोग राज्य की विधानसभा के सदस्यों को चुनते हैं। फिर राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य, राज्यसभा के सदस्यों को चुनते हैं।

(iii) प्रतिनिधित्व का आधार: राज्यसभा में देश के विभिन्न क्षेत्रों (राज्यों) को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया गया है। इस प्रकार राज्य सभा में ज्यादा जनसंख्या वाले क्षेत्रों को ज्यादा प्रतिनिधित्व और कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों को कम प्रतिनिधित्व प्राप्त हुआ है। जनसंख्या के अनुपात के आधार पर संविधान की चौथी अनुसूची में प्रत्येक राज्य से निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या निर्धारित कर दी गई है।

(iv) प्रतिनिधित्व की पद्धति: राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से चुने जाने वाले सदस्यों को वहाँ की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य एक संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा चुनते हैं।
इस प्रकार राज्य सभा की अधिकतम संख्या संविधान द्वारा 250 निश्चित की गई है। इनमें से 238 सदस्य राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से चुनकर आते हैं तथा 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं जो साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष योग्यता रखते हों।

(v) स्थायी सदन: राज्य सभा एक स्थायी सदन है। इसे किसी भी स्थिति में भंग नहीं किया जा सकता। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। उन्हें दुबारा निर्वाचित किया जा सकता है। इसके सभी सदस्य अपना कार्यकाल एक साथ पूरा नहीं करते। प्रत्येक दो वर्ष पर इसके एक-तिहाई सदस्य अपना कार्यकाल पूरा करते हैं और इन एक-तिहाई सीटों के लिए चुनाव होते हैं। इस तरह राज्य सभा कभी भी पूरी तरह भंग नहीं होती।

(vi) सभापति तथा उपसभापति: भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापित होता है। वह राज्यसभा का सदस्य नहीं होता, लेकिन उसकी बैठकों की अध्यक्षता करता है। उपसभापति राज्य सभा के सदस्यों में से ही राज्य सभा के सदस्यों द्वारा चुना जाता है। सभापति की अनुपस्थिति में उपसभापति राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है।

(ब) लोकसभा का गठन।

  1. प्रत्यक्ष निर्वाचन: लोकसभा के लिए जनता सीधे सदस्यों को चुनती है। इसे प्रत्यक्ष निर्वाचन कहते हैं।
  2. निर्वाचन क्षेत्र: लोकसभा के लिए पूरे देश को लगभग समान जनसंख्या वाले निर्वाचन क्षेत्रों में बांट दिया जाता है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है। इस समय लोकसभा के 543 निर्वाचन क्षेत्र हैं।
  3. निर्वाचन विधि: लोकसभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के मत का मूल्य समान होता है।
  4. कार्यकाल: लोकसभा के सदस्यों को 5 वर्ष के लिए चुना जाता है। लेकिन यदि कोई दल या दलों का गठबंधन सरकार न बना सके अथवा प्रधानमंत्री को लोकसभा भंग कर नए चुनाव कराने की सलाह दे, तो लोकसभा को 5 वर्ष पहले ही भंग किया जा सकता है।
  5. अध्यक्ष: लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा के सदस्यों में से ही उनके द्वारा चुना जाता है। वह लोकसभा की कार्यवाहियों को संचालित करता है।

संसद की शक्तियाँ व कार्य: संसद की प्रमुख शक्तियाँ व कार्य निम्नलिखित हैं।
1. विधायी कार्य व शक्तियाँ:
संसद पूरे देश या देश के किसी भाग के लिए कानून बनाती है। यह कानून बनाने वाली सर्वोच्च संस्था है। कानून निर्माण की सर्वोच्च संस्था होने के बावजूद संसद व्यवहार में कानूनों की केवल स्वीकृति देने मात्र का काम करती है। क्योंकि विधेयक को तैयार करना, उसे संसद में प्रस्तुत करना तथा संसद से उसे स्वीकृत कराने की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल की है। मंत्रिमंडल संसद में बहुमत के आधार पर उसे स्वीकृत करा लेती है।

2. कार्यपालिका पर नियंत्रण तथा उसका उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना:
संसद का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य कार्यपालिका को उसके अधिकार क्षेत्र में, सीमित रखने तथा जनता के प्रति उसका उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना है। इसके लिए संसद सदस्य मंत्रिमंडल के सदस्यों से प्रश्न पूछकर, पूरक प्रश्न पूछकर, स्थगन और काम रोको प्रस्ताव व असहयोग प्रस्ताव के माध्यम से कार्यपालिका को नियंत्रित करते हैं।

3. वित्तीय कार्य:
लोकतंत्र में संसद कराधान तथा सरकार द्वारा धन के प्रयोग पर नियंत्रण लगाती है। यदि भारत सरकार कोई नया कर प्रस्ताव लाए तो उसे संसद की स्वीकृति लेनी पड़ती है। संसद की वित्तीय शक्तियाँ उसे सरकार के कार्यों के लिए धन उपलब्ध कराने का अधिकार देती हैं। सरकार को अपने द्वारा खर्च किये गए धन का हिसाब तथा प्रस्तावित आय का विवरण संसद को देना पड़ता है। संसद यह भी सुनिश्चित करती है कि सरकार न तो गलत खर्च करे और न ही ज्यादा खर्च करे। संसद यह सब बजट और वार्षिक वित्तीय वक्तव्य के माध्यम से करती है।

4. प्रतिनिधित्व-संसद देश के विभिन्न क्षेत्रीय, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक समूहों के अलग-अलग विचारों का प्रतिनिधित्व करती है।

5. बहस का मंच:
संसद में सदस्यों के विचार-विमर्श करने की शक्ति पर कोई अंकुश नहीं है। सदस्यों को किसी भी विषय पर निर्भीकता से बोलने की स्वतंत्रता है। इससे संसद राष्ट्र के समक्ष आने वाले किसी एक या हर मुद्दे का विश्लेषण कर पाती है। इस प्रकार संसद देश में वाद-विवाद का सर्वोच्च मंच है।

6. संवैधानिक कार्य-संसद के पास संविधान में संशोधन की शक्ति है। संसद के दोनों सदनों को संवैधानिक शक्तियाँ समान हैं। प्रत्येक संविधान संशोधन का संसद के दोनों सदनों द्वारा 2/3 बहुमत से पारित होना जरूरी है। लेकिन संसद, संसद के मूल ढांचे में संशोधन नहीं कर सकती।

7. निर्वाचन सम्बन्धी कार्य-संसद चुनाव सम्बन्धी कुछ कार्य भी करती है। यह भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है। लोकसभा अपने सभापति और उपसभापति तथा राज्य सभा अपने उपसभापति के निर्वाचन का भी कार्य करती है।

8. न्यायिक कार्य: भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को पद से हटाने के प्रस्तावों पर विचार करने के कार्य संसद के न्यायिक कार्य के अन्तर्गत आते हैं।

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प्रश्न 2.
कोई विधेयक कानून बनने के लिए किन अवस्थाओं से गुजरता है? उनका वर्णन कीजिये । विधेयक से कानून बनने की विभिन्न अवस्थाएँ
उत्तर:
संसद का प्रमुख कार्य अपनी जनता के लिए कानून बनाना है। कानून बनाने के लिए एक निश्चित प्रक्रिया अपनायी जाती है। इस प्रक्रिया में किसी विधेयक को कई अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। ये अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं।
1. विधेयक का प्रस्तुतीकरण तथा उसका प्रथम वाचन:
प्रस्तावित कानून के प्रारूप को विधेयक कहते हैं। विधेयक जिस मंत्रालय से सम्बद्ध होता है, वही मंत्रालय उसका प्रारूप बनाता है। यदि विधेयक धन विधेयक नहीं है, तो उसे संसद के किसी भी सदन – लोकसभा या राज्य सभा में कोई भी सदस्य इस विधेयक को पेश कर सकता है। जिस विषय का विधेयक हो उस विषय से जुड़ा मंत्री ही प्राय: विधेयक पेश करता है। इसे सरकारी विधेयक कहते हैं और यदि मंत्री के अतिरिक्त कोई अन्य सांसद विधेयक प्रस्तुत करता है, तो इसे निजी विधेयक कहते हैं।

धन विधेयक को केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। लोकसभा में पारित होने के बाद उसे राज्य सभा में भेज दिया जाता है। यदि विधेयक सकारी होता है तो उसे प्रस्तावित करने की सूचना मंत्री सात दिन पहले सदन को देता है और यदि विधेयक गैर-सरकारी होता है तो उसकी सूचना वह सदन को एक माह पहले देता है। प्रस्तावित विधेयक की एक प्रति सदन के सचिवालय को भेजी जाती है। सदन का अध्यक्ष विधेयक को निश्चित तिथि को सदन की कार्यवाही सूची में शामिल कर लेता है। निश्चित तिथि को प्रस्तावक सदस्य अपने स्थान पर खड़ा होकर विधेयक के शीर्षक को पढ़ता है तथा उसके मुख्य प्रावधानों पर प्रकाश डालता है तथा उसकी आवश्यकता बतलाता है। सदन में विधेयक प्रस्तावित होने के बाद उसे सरकारी गजट में छाप दिया जाता है।

(2) द्वितीय वाचन – विधेयक के प्रस्तावित और गजट में प्रकाशित होने के बाद निश्चित तिथि को विधेयक का द्वितीय वाचन प्रारम्भ होता है । प्रस्तावक इस अवस्था में निम्न प्रस्तावों में से कोई एक प्रस्ताव रखता है।

  1. सदन विधेयक पर शीघ्र विचार करे।
  2. विधेयक को प्रवर समिति को सौंप दिया जाये।
  3. विधेयक दोनों सदनों की संयुक्त समिति को सौंप दिया जाये।
  4. जनमत प्राप्त करने के लिए विधेयक को प्रसारित कर दिया जाये।

विधेयकों को अधिकतर प्रवर समिति के पास ही भेज दिया जाता है। इस समय विधेयक के गुण-दोषों पर ही सामान्य रूप से प्रकाश डाला जाता है। इस पर विस्तार से वाद-विवाद नहीं होता।

3. समिति स्तर:
समिति में विधेयक पर धारावार विचार किया जाता है। समिति के प्रत्येक सदस्य को विधेयक की धाराओं, उपधाराओं पर विचार प्रकट करने तथा उसमें आवश्यक संशोधन का प्रस्ताव रखने का अधिकार होता है। समिति यह आवश्यक समझे तो विशेषज्ञों से इसके विषय में राय ले सकती है। इसके बाद समिति अपनी रिपोर्ट तैयार करती है।

4. सदन समिति की रिपोर्ट को स्वीकार या अस्वीकार करता है:
समिति की रिपोर्ट तैयार होने के बाद उसे सदन के सदस्यों में बाँट दिया जाता है तथा उस पर विचार करने की तिथि निश्चित की जाती है। उस तिथि पर विधेयक पर पूरी तरह से विचार-विमर्श किया जाता है तथा सदस्यों को भी इस समय संशोधन प्रस्ताव रखने का अधिकार होता है। वाद-विवाद के पश्चात् विधेयक के प्रत्येक खण्ड तथा संशोधन पर मतदान होता है । संशोधन यदि बहुमत से स्वीकार हो जाते हैं तो वे विधेयक के अंग बन जाते हैं और उसके अनुसार विधेयक पास हो जाता है।

5. तृतीय वाचन:
रिपोर्ट स्तर के बाद विधेयक के तृतीय वाचन की तिथि निश्चित की जाती है । इस अवस्था में विधेयक की भाषा, व्याकरण तथा शब्दों के विषय में विचार किया जाता है । फिर सम्पूर्ण विधेयक पर मतदान कराकर उसे पारित कर दिया जाता है। सदन का अध्यक्ष इसे प्रमाणित करता है और उसे दूसरे सदन में भेज दिया जाता है।

6. विधेयक पर दूसरे सदन में विचार- विधेयक पर दूसरे सदन में भी इसी प्रकार विचार किया जाता है अर्थात् दूसरे सदन में भी विधेयक उपर्युक्त सभी स्तरों से गुजरता है। यदि दूसरा सदन विधेयक को पास कर देता है तो उसे राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता हैं। यदि दूसरा सदन विधेयक में कुछ ऐसे संशोधन सुझाता है जो पहले सदन को स्वीकार नहीं हैं या विधेयक को पारित ही नहीं करता तो इस गतिरोध को तोड़ने के लिए दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है और फिर बहुमत के आधार पर विधेयक के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता है जो प्रायः लोकसभा के पक्ष में रहता है।

संविधान संशोधन विधेयक के सम्बन्ध में संयुक्त अधिवेशन का कोई प्रावधान नहीं है। अतः यदि दूसरा सदन इसे पारित नहीं करता है तो विधेयक समाप्त हो जाता है। धन विधेयक के सम्बन्ध में राज्य सभा को कोई विशेषाधिकार नहीं है, वह केवल उसे 14 दिन तक ही रोके रख सकती है। यदि 14 दिन तक वह उसे पारित नहीं करती है तो विधेयक पारित माना जायेगा और राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जायेगा।

7. राष्ट्रपति की स्वीकृति:
राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर विधेयक कानून बन जाता है। राष्ट्रपति असहमत होने पर किसी विधेयक को एक बार पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा सकता है, परन्तु यदि संसद उसे दुबारा पारित कर राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेज देती है तो राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है।

प्रश्न 3.
भारतीय संसद कार्यपालिका को कैसे नियंत्रित करती है? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
संसद द्वारा कार्यपालिका को नियंत्रित करना: संसद अनेक विधियों का प्रयोग कर कार्यपालिका को नियंत्रित करती है। वह अनेक स्तरों पर कार्यपालिका की जवाबदेही को सुनिश्चित करने का काम करती है। यह काम नीति-निर्माण, कानून या नीति को लागू करने तथा कानून या नीति के लागू होने के बाद वाली अवस्था आदि किसी भी स्तर पर किया जा सकता है। संसद यह कार्य निम्नलिखित तरीकों से करती है।
1. बहस और वाद-विवाद:
कानून निर्माण करने की प्रक्रिया में संसद के सदस्यों को कार्यपालिका के द्वारा बनायी गयी नीतियों और उसके क्रियान्वयन के तरीकों पर बहस करने का अवसर मिलता है। विधेयकों पर परिचर्चा के अतिरिक्त, सदन में सामान्य वाद-विवाद के दौरान भी विधायिका को कार्यपालिका पर नियंत्रण करने का अवसर मिल जाता है। ऐसे कुछ अवसर निम्नलिखित हैं-

(i) प्रश्नकाल: संसद के अधिवेशन के समय प्रतिदिन प्रश्नकाल आता है जिसमें मंत्रियों को सदस्यों के तीखे प्रश्नों का जवाब देना पड़ता है। प्रश्नकाल सरकार की कार्यपालिका और प्रशासकीय एजेंसियों पर निगरानी रखने का सबसे प्रभावी तरीका है। ज्यादातर प्रश्न लोकहित के विषयों, जैसे – मूल्य वृद्धि, अनाज की उपलब्धता, समाज के कमजोर वर्गों के विरुद्ध अत्याचार, दंगे, कालाबाजारी आदि पर सरकार से सूचनाएँ मांगने के लिए होते हैं । इसमें सदस्यों को सरकार की आलोचना करने और अपने निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं को समझाने का अवसर मिलता है। इसमें कई बार सदन से बहिर्गमन की घटनाएँ भी होती रहती हैं।

(ii) शून्यकाल: इसमें सदस्य किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे को उठा सकते हैं, पर मंत्री उसका उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं हैं।

(iii) आधे घंटे की चर्चा और स्थगन प्रस्ताव: लोकहित के मामले में आधे घंटे की चर्चा और स्थगन प्रस्ताव आदि का भी विधान है। ये सभी कदम सरकार से रियायत प्राप्त करने के राजनीतिक तरीके हैं और इससे कार्यपालिका का उत्तरदायित्व सुनिश्चित होता है।

2. कानूनों की स्वीकृति या अस्वीकृति:
कानूनों में मंजूरी देने या नामंजूर करने का अधिकार भी संसद के पास होता है। इस अधिकार के द्वारा भी संसद कार्यपालिका को नियंत्रित करती है। कोई भी विधेयक संसद की स्वीकृति के बाद ही कानून बन पाता है। यद्यपि संसद में सरकार का बहुमत होने के कारण संसदीय स्वीकृति प्राप्त करना कठिन नहीं होता; लेकिन इस सहमति के लिए शासक दल या गठबंधन के विभिन्न सदस्यों अथवा सरकार और विपक्ष के बीच गंभीर मोल- तोल और समझौते होते हैं। यदि लोकसभा में सरकार का बहुमत है लेकिन राज्यसभा में नहीं हो, तो संसद के दोनों सदनों से स्वीकृति लेने के लिए सरकार को काफी रियायतें देनी पड़ती हैं। राज्यसभा ने अनेक विधेयकों, जैसे लोकपाल विधेयक, आतंकवाद निरोधक विधेयक (2000) को, राज्यसभा ने अस्वीकृत कर दिया था।

3. वित्तीय नियंत्रण:
सरकार के कार्यक्रमों को लागू करने के लिए वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था बजट के द्वारा की जाती है। संसदीय स्वीकृति के लिए बजट बनाना और उसे पेश करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। इस जिम्मेदारी के कारण विधायिका को कार्यपालिका के खजाने पर नियंत्रण करने का अवसर मिल जाता है। सरकार के लिए संसाधन स्वीकृत करने से विधायिका मना कर सकती है। धन स्वीकृत करने से पहले लोकसभा भारत के नियंत्रक – महालेखा परीक्षक और संसद की लोक लेखा समिति की रिपोर्ट के आधार पर धन के दुरुपयोग के मामलों की जाँच कर सकती है। लेकिन संसदीय नियंत्रण का उद्देश्य सरकारी धन के सदुपयोग को सुनिश्चित करने के साथ- साथ विधायिका द्वारा सरकार की नीतियों पर भी नियंत्रण करना है।

4. अविश्वास प्रस्ताव:
संसद द्वारा कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाने का सबसे सशक्त हथियार अविश्वास प्रस्ताव है। लेकिन जब तक सरकार को अपने दल या सहयोगी दलों का बहुमत प्राप्त हो तब तक सरकार को हटाने की सदन की यह शक्ति वास्तविक कम और काल्पनिक ज्यादा होती है। लेकिन सन् 1989 के बाद से अपने प्रति सदन के अविश्वास के कारण अनेक सरकारों को त्यागपत्र देना पड़ा। इनमें से प्रत्येक सरकार ने लोकसभा का विश्वास खोया क्योंकि वह अपने गठबंधन के सहयोगी दलों का समर्थन बनाए न रख सकी। इस प्रकार अनेक तरीकों से संसद कार्यपालिका को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकती है और एक उत्तरदायी सरकार का होना सुनिश्चित कर सकती है।

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