JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा एतदाधारित प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया यथानिर्देशं लिखत।
(निम्न गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में दीजिए।)

1. सरदार भगतसिंहः क्रान्तिकारिणां यूनां नेतृत्वं स्वातन्त्र्य सङ्गरे कृतवान्। सोऽभूत् च आदर्शभूतो भारतीयः युवा-वर्गस्य। न केवलं भगतसिंहः स्वतन्त्रतासंग्रामे संलग्नः आसीत्, तस्य समग्र परिवारः स्वतन्त्रतायुद्धे प्रवृत्तः आसीत्। सरदार भगतसिंहस्य जन्म-समये तस्य जनकः सरदार किशनसिंहो योऽभूत् स्वतन्त्रता सैनिकः सः कारागारे गौराङ्गैः निपातितः। स्वतन्त्रता सैनिकोऽस्य पितृव्यः सरदार अजीत सिंहः निर्वासितश्चासीत्। 1907 ई० वर्षे सितम्बरमासे, लॉयलपुर मण्डले बङ्गाख्ये ग्रामे सरदार भगतसिंहस्य जन्म बभूव। प्राथमिकी शिक्षा चास्य ग्रामे एव अभूत्। उच्चाध्ययनायायं लाहौर नगरं गतवान्। अध्ययन समकालमेव भगतसिंहोऽपि क्रान्तिकारिणां संसर्गे समागतः देशभक्ति-भावनया सोऽध्ययनं मध्ये विहाय दिल्ली-नगरं प्रत्यागच्छत्। तत्राय ‘दैनिक अर्जुन’ इत्याख्ये समाचार पत्रे संवाददातृ रूपेण कार्यमकरोत।

(सरदार भगतसिंह ने स्वाधीनता संग्राम में क्रान्तिकारी जवानों का नेतृत्व किया था। वह भारतीय युवावर्ग का आदर्श हो गया था। न केवल भगतसिंह स्वतन्त्रता संग्राम में संलग्न था, उसका सारा परिवार स्वतन्त्रतायुद्ध में लगा हुआ था। सरदार भगतसिंह के जन्म के समय उसके पिता सरदार किशनसिंह जो स्वतन्त्रता सैनिक हो गये थे, वे अंग्रेजों ने जेल में डाल दिये। स्वतन्त्रता सेनानी इनके चाचा सरदार अजीत सिंह को निर्वासित कर दिया था।

1907 ई. वर्ष में सितम्बर माह में लायलपुर मण्डल में बड़ा नाम के गाँव में भगतसिंह का जन्म हुआ। और इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। ये उच्च अध्ययन के लिए लाहौर नगर को गये। अध्ययन के समय ही भगतसिंह भी क्रान्तिकारियों के स पर्क में आए। देशभक्ति की भावना से (प्रेरित होकर) वह अध्ययन बीच में छोड़कर दिल्ली नगर लौट आये। वहाँ पर ‘दैनिक अर्जुन’ इस नाम के समाचार-पत्र में संवाददाता के रूप में कार्य किया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए) –
(i) सरदार भगतसिंहः स्वातन्त्र्यसङ्गरे केषां नेतृत्वं कृतवान्?
(सरदार भगतसिंह ने स्वतन्त्रता-संग्राम में किनका नेतृत्व किया?
उत्तरम् :
क्रान्तिकारिणां यूनाम् (क्रान्तिकारी जवानों का।)

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(ii) भगतसिंहस्य जनकस्य किं नाम आसीत्?
(भगतसिंह के पिता का क्या नाम था?)
उत्तरम् :
सरदार किशनसिंहः।

(iii) भगतसिंहेन कस्मिन् समाचारपत्रे संवाददातरूपेण कार्यमकरोत्?
(भगतसिंह ने किस अखबार में संवाददाता के रूप में काम किया?)
उत्तरम् :
‘दैनिक अर्जुन’ इत्याख्ये। (‘दैनिक अर्जुन’ नाम के।)

(iv) भगतसिंहस्य प्राथमिकी शिक्षा कुत्र अभूत ?
(भगतसिंह की प्रारम्भिक शिक्षा कहाँ हुई?)
उत्तरम् :
बङ्गाख्ये ग्रामे। (बंगा नाम के गाँव में।)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) सरदार भगतसिंहस्य पितृव्यस्य किं नाम आसीत्?
(सरदार भगतसिंह के चाचा का नाम क्या था?)
उत्तरम् :
सरदार भगतसिंहस्य पितृव्यस्य नाम सरदार अजीत सिंहः आसीत्।
(सरदार भगतसिंह के चाचा का नाम सरदार अजीतसिंह था।)

(ii) भगतसिंहः उच्चाध्ययनाय कुत्र गतवान्?
(भगतसिंह उच्च शिक्षा के लिए कहाँ गया?)
उत्तरम् :
भगतसिंहः उच्चाध्ययनाय लाहौर नगरं गतवान्।
(भगतसिंह उच्च शिक्षा के लिये लाहौर गया।)

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(iii) भगतसिंहः कदा क्रान्तिकारिणां संसर्गे समागतः?
(भगतसिंह कब क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आया?)
उत्तरम् :
भगतसिंहः अध्ययन समकालमेव क्रान्तिकारिणां संसर्गे समागतः।
(भगतसिंह अध्ययन के समय ही क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आया।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
क्रान्तिवीरः सरदार भगतसिंहः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
सरदार भगतसिंहः स्वातन्त्र्य-सैनिकोऽभवतः तस्य सम्पूर्ण परिवारः एक स्वातन्त्र्य सङ्गरे प्रवृत्तोऽभव स्वातन्त्र्य सैनिकः किशन सिंह गौराङ्गैः कारागारे निपातित पितृव्यश्च निर्वासितः बङ्गा ग्रामे जातः असौ ग्रामे एव प्राथमिकी शिक्षा प्राप्य उच्च शिक्षार्थ लाहौरम् अगच्छत्। अध्ययनकाले एव अयं क्रान्तिवीरः अभवत् दैनिक अर्जुनस्य च सम्वाददातारूपेण कार्यमकरोत्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशं प्रश्नान्
उत्तरत :
(निर्देशानुसार प्रश्नों के उत्तर दीजिए-)
(i) ‘सोऽभूच्चादर्शभूतो……।’ वाक्ये कर्तृपदं किमस्ति?
(अ) सः
(ब) अभूत
(स) च
(द) आदर्शभूतो।
उत्तरम् :
(अ) सः

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(ii) ‘प्राथिमिकी शिक्षा’ अत्र विशेषणपदं किम् अस्ति?
(अ) प्राथमिकी
(ब) शिक्षा
(स) पूर्णा
(द) ग्रामे।
उत्तरम् :
(अ) प्राथमिकी

(iii) ‘तस्य समग्रः परिवारः स्वातन्त्र्य-युद्धे प्रवृत्तः आसीत्।’ अत्र ‘तस्य’ सर्वनाम-स्थाने संज्ञापदं लिखत।
(अ) सरदार भगतसिंहस्य
(ब) सरदार किशनसिंहस्य
(स) सरदार अजयसिंहस्य
(द) सरदार अजीत सिंहस्य।
उत्तरम् :
(अ) सरदार भगतसिंहस्य

(iv) ‘परतन्त्रता’ इत्यस्य पदस्य विलोमपदमनुच्छेदात् चित्वा लिखत –
(अ) स्वतन्त्रता
(ब) स्वाधीनता
(स) पराधीनता
(द) स्वातन्त्र्यम्।
उत्तरम् :
(अ) स्वतन्त्रता

2. संस्कृत भाषायाः वैज्ञानिकतां विचार्य एव सङ्गणक-विशेषज्ञाः कथयन्ति यत् संस्कृतम् एव सङ्गणकस्य कृते सर्वोत्तमाभाषा विद्यते। अस्याः वाङ्मयं वेदैः पुराणैः नीति शास्त्रैः चिकित्सा शास्त्रादिभिश्च समृद्धमस्ति। कालिदास सदृशानां विश्वकवीनां काव्य सौन्दर्यम् अनुपमम्। चाणक्य रचितम् अर्थशास्त्रम् जगति प्रसिद्धमस्ति। गणितशास्त्रे शून्यस्य प्रतिपादनं सर्वप्रथमं भास्कराचार्यः सिद्धान्त शिरोमणी अकरोत्। चिकित्साशास्त्रे चरक सुश्रुतयोः योगदानं विश्व प्रसिद्धम्। भारत सर्वकारस्य विभिन्नेषु विभागेषु संस्कृतस्य सूक्तयः ध्येयवाक्यरूपेण स्वीकृताः सन्ति। भारतसर्वकारस्य राजचिहने प्रयुक्तां सूक्तिं- ‘सत्यमेव जयते’ सर्वे जानन्ति। एवमेव राष्ट्रिय शैक्षिकानुसन्धान प्रशिक्षण परिषदः ध्येय वाक्यं ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ वर्तते।

(संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता पर विचार करके ही कम्प्यूटर के विशेषज्ञों ने कहा है कि संस्कृत ही कम्प्यूटर के लिए सबसे उत्तम भाषा है। इसका साहित्य वेदों, पुराणों, नीतिशास्त्रों और चिकित्सा आदि शास्त्रों से समृद्ध है। कालिदास जैसे विश्वकवियों का काव्य सौन्दर्य अतुलनीय है। चाणक्य द्वारा रचा गया अर्थशास्त्र संसार में प्रसिद्ध है। गणित शास्त्र में शून्य का प्रतिपादन सर्वप्रथम भास्कराचार्य ने सिद्धान्त शिरोमणि में किया। चिकित्सा शास्त्र में चरक और सुश्रुत का योगदान संसार में प्रसिद्ध है। भारत सरकार के विभिन्न विभागों में संस्कृत की सूक्तियाँ ध्येय वाक्य के रूप में स्वीकार की गई हैं। भारत सरकार के राजचिहन में प्रयोग की गई सूक्ति-“सत्यमेव जयते’ को सभी जानते हैं। इसी प्रकार राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसन्धान प्रशिक्षण परिषद का ध्येयवाक्य है – “विद्ययाऽमृतमश्नुते’ (विद्या से अमृत प्राप्त होता है।) (संस्कृत में ही है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) अर्थशास्त्र केन रचितम्? (अर्थशास्त्र की रचना किसने की?)
उत्तरम् :
चाणक्येन (चाणक्य के द्वारा)।

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(ii) शन्यस्य प्रतिपादनं सर्वप्रथम भास्कराचार्यः का अकरोत?
(शून्य का प्रतिपादन सबसे पहले भास्कराचार्य ने कहाँ किया?)
उत्तरम् :
सिद्धान्तशिरोमणौ (सिद्धान्त शिरोमणि में)।

(iii) कस्य कृते संस्कृतमेव सर्वोत्तमा भाषा विद्यते?
(किसके लिए संस्कृत ही सबसे उत्तम भाषा है?)
उत्तरम् :
सङ्गणकस्य कृते (कंप्यूटर के लिए)।

(iv) चिकित्सा शास्त्रे कयोः योगदानं विश्वप्रसिद्धम्?
(चिकित्सा शास्त्र में किनका योगदान विश्व-विख्यात है?)
उत्तरम् :
चरकसुश्रुतयोः (चरक और सुश्रुत का)।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत –
(पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) भारत सर्वकारस्य राजचिह्न किम् अस्ति?
(भारत सरकार का राजचिह्न क्या है?)
उत्तरम् :
‘सत्यमेव जयते’ इति भारत सर्वकारस्य राज-चिह्नम्।
(‘सत्य की विजय होती है’ यह भारत सरकार का राज चिह्न है।)

(ii) ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ कस्य ध्येयवाक्यम्?
(‘विद्या से अमृत प्राप्त होता है’ यह किसका ध्येयवाक्य है?)
उत्तरम् :
‘राष्ट्रिय शैक्षिकानुसन्धान प्रशिक्षण परिषदः ध्येयवाक्यं ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ वर्तते।
(राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसन्धान प्रशिक्षण परिषद का ध्येय वाक्य ‘विद्या से अमृत प्राप्त होता है।’)

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(ii) केषां कवीनां काव्य सौन्दर्यम् अनुपमम्?
(किन कवियों का काव्य सौन्दर्य अनुपम है?)
उत्तरम् :
कालिदास सदृशानां विश्वकवीनां काव्य सौन्दर्यमम् अनुपमम्।
(कालिदास जैसे विश्व-कवियों का काव्य- सौन्दर्य अनुपम है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत –
(इस अनुच्छेद का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
संस्कृत भाषायाः महत्वम्/संस्कृत भाषायाः महनीयता।
(संस्कृत भाषा का महत्त्व)।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
सङ्गणकाय संस्कृतभाषा एव सरलतमा। अस्य वाङ्मयं वेदादिषु सर्व शास्त्रेषु समृद्धमस्ति। संस्कृत भाषया काव्यशास्त्र-काव्य-अर्थशास्त्र, विज्ञान, गणितादिषु सर्वेषु विषयेषु विद्वद्भिः प्रभूतं लिखितम्। कालिदास-चाणक्य भास्कर-चरके-सुश्रुतादयः संस्कृतस्यैव स्तम्भाः अभवन् । अस्याः भाषायाः ध्येयवाक्यरूपेण अनेका सूक्तयः अनेकत्र ध्येयवाक्यरूपेण स्वीकृताः सन्ति। ‘सत्यमेव जयते’ ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ इत्यादीनि वाक्यानि विश्वं विश्रुतानि सन्ति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशं प्रश्नान् उत्तरत – (निर्देशानुसार प्रश्नों के उत्तर दीजिए-)
(i) ‘सङ्गणकविशेषज्ञाः कथयन्ति’ अत्र कर्तृपदमस्ति
(अ) सङ्गणकः
(ब) विशेषज्ञाः
(स) सङ्गणकविशेषज्ञाः
(द) कथयन्ति
उत्तरम् :
(स) सङ्गणकविशेषज्ञाः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘सर्वोत्तमा भाषा विद्यते’ अत्र विशेषणपदमस्ति –
(अ) सर्व
(ब) उत्तमा
(स) विद्यते
(द) सर्वोत्तमा
उत्तरम् :
(द) सर्वोत्तमा

(iii) ‘सूक्तयः स्वीकृताः सन्ति’ इत्यत्र संज्ञापदम् अस्ति –
(अ) सूक्तयः
(ब) स्वीकृताः
(स) सन्ति
(द) कश्चिन्न
उत्तरम् :
(अ) सूक्तयः

(iv) ‘अविचार्य’ इत्यस्य विलोमपद अनुच्छेदात् चित्वा लिखत्।
(अ) विचार्य
(ब) अनुपमम्
(स) स्वीकृत
(द) अश्नुते
उत्तरम् :
(अ) विचार्य

3. विवेकानन्दस्य जन्म कालिकाता नगरे अभवत्। तस्य पिता विश्वनाथ दत्तः माता च भुवनेश्वरी देवी आस्ताम्। तस्य प्रथमं नाम नरेन्द्रः आसीत्। नरेन्द्र बाल्याद् एव क्रीडापटुः, दयालुः, विचारशीलः च आसीत्। ‘ईश्वरः अस्ति न वा इति शङ्का आसीत्। शास्त्राणाम् अध्ययनेन बहूनां साधूनां च समीपं गत्वा अपि शङ्का परिहारः न अभवत्। अन्ते च श्री रामकृष्ण परमहंसस्य सकाशात् तस्य सन्देह-परिहारः अभवत्। परमहंसस्य दिव्य प्रभावेण आकृष्टः सः तस्य शिष्यः अभवत्। सः विश्वधर्म सम्मेलने भागं ग्रहीतुम् अमेरिका देशस्य शिकागो नगरंगतवान्। तत्र विविधदेशीयान् जनानुद्दिश्य हिन्दु-धर्म-विषये भाषणं कृतवान्। सः भारतीयान् ‘उत्तिष्ठ जाग्रत, दीनदेवो भव, दरिद्र देवोभव’-इति संबोधितवान्। अमूल्याः तस्योपदेशाः।

(विवेकानन्द का जन्म कालिकाता नगर में हुआ। उनके पिता विश्वनाथ दत्त तथा माता भुवनेश्वरी देवी थे। उनका पहला (बचपन का) नाम नरेन्द्र था। नरेन्द्र बचपन से ही खेलने में चतुर, दयालु और विचारशील था। ‘ईश्वर है अथवा नहीं’ यह उसकी शंका थी। शास्त्रों के अध्ययन से और बहुत से साधुओं के पास जाकर भी शङ्का का निराक श्रीरामकृष्ण परमहंस के पास से उनके सन्देह का समाधान हुआ। परमहंस के दिव्य प्रभाव से आकर्षित हुआ वह उसका शिष्य हो गया। वह विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने अमेरिका देश के शिकागो नगर को गया। वहाँ विभिन्न देशों के लोगों को लक्ष्य करके हिन्दू धर्म के विषय में भाषण किया। उन्होंने भारतीयों से उठो, जागो, दीनों के देवता, दरिद्रों के देवता हो, ऐसा संबोधित किया। उनके उपदेश अमूल्य हैं।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) विवेकानन्दस्य जन्म कुत्र अभवत्?
(विवेकानन्द का जन्म कहाँ हुआ था?)
उत्तरम् :
कालिकातानगरे ।

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(ii) विवेकानन्दस्य प्रथमं नाम किम् आसीत्?
(विवेकानन्द का पहला नाम क्या था?)
उत्तरम् :
नरेन्द्रः ।

(iii) नरेन्द्रः कस्य प्रभावेण आकृष्टः अभवत्?
(नरेन्द्र किसके प्रभाव से आकर्षित हुआ?)
उत्तरम् :
श्रीरामकृष्ण परमहंसस्य।

(iv) विश्वधर्म सम्मेलनः कुत्र आयोजितः?
(विश्वधर्म सम्मेलन कहाँ आयोजित हुआ?)
उत्तरम् :
अमेरिकादेशस्य शिकागोनगरे।
(अमेरिका देश के शिकागो नगर में।)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-) ।
(i) नरेन्द्रः’बाल्यकाले कीदृशः आसीत्?
(नरेन्द्र बचपन में कैसा था?)
उत्तरम् :
नरेन्द्रः बाल्यकाले क्रीडापटुः, दयालुः विचारशीलः च आसीत्।
(नरेन्द्र बचपन में खेलने में चतुर, दयालु और विचारशील था।)

(ii) नरेन्द्रस्य ईश्वरविषयक शङ्कायाः परिहारः कुत्र अभवत् ?
(नरेन्द्र की ईश्वर सम्बन्धी शंका का समाधान कहाँ हुआ?)
उत्तरम् :
नरेन्द्रस्य ईश्वरविषयक शङ्काया परिहारः श्रीरामकृष्ण परमहंसस्य सकाशात् अभवत्।
(नरेन्द्र की ईश्वर सम्बन्धी शंका का निराकरण श्री रामकृष्ण परमहंस के पास से हुआ।)

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(iii) विवेकानन्दः शिकागो सम्मेलने के विषयम् आश्रित्य भाषणं कृतवान्?
(विवेकानन्द ने शिकागो सम्मेलन में किस विषय के आधार पर भाषण दिया?)
उत्तरम् :
विवेकानन्दः हिन्दुधर्म-विषयम् आश्रित्य भाषणं कृतवान्।
(विवेकानन्द ने हिन्दूधर्म के विषय का आश्रय लेकर भाषण दिया।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
विवेकानन्दः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
कालिकाता नगरे जातस्य भुवनेश्वरी देवी विश्वनाथयो रात्मजस्य प्रथमं नाम नरेन्द्रः आसीत्। सः बाल्याद् एव क्रीडादिषु कार्येषु पटुः विचारशीलः जिज्ञासुः च आसीत्। सः शस्त्रामध्येता ईश्वर चिन्तकः सत्यान्वेषक: चाभवत्। शंका निवारणत्वात् असौ रामकृष्ण परमहंसस्य शिष्योऽभवत्। सः विश्वधर्म सम्मेलने अमेरिका देशे भारतस्य धर्म तत्वम् प्रकाशितवान्। हिन्दूधर्मः विश्वविश्रुतः कृतः तस्योपदेश आसीत्- उत्तिष्ठ जाग्रत दरिद्रदेवोभव।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशं प्रश्नान् उत्तरत –
(निर्देशानुसार प्रश्नों के उत्तर दीजिए-)
(i) ‘ईश्वरः अस्ति नास्ति वा’ अत्र ‘अस्ति’ क्रियापदस्य कर्ता अस्ति –
(अ) ईश्वर
(ब) अस्ति
(स) नास्ति
(द) वा
उत्तरम् :
(अ) ईश्वर

(ii) ‘उपदेशाः’ इत्यस्य विशेष्य पदस्य विशेषण पदं अस्ति –
(अ) अमूल्याः
(ब) तस्य
(स) उपदेशाः
(द) विशेष्याः
उत्तरम् :
(अ) अमूल्याः

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(iii) ‘अमूल्याः तस्पोपदेशाः’ वाक्ये ‘तस्य’ सर्वनाम पद प्रयुक्तम् –
(अ) रामकृष्ण परमहंसस्य
(ब) स्वामी विवेकानन्दस्य
(स) विश्वनाथ दत्तस्य
(द) भुवनेश्वरी देव्या
उत्तरम् :
(ब) स्वामी विवेकानन्दस्य

(iv) ‘दरिद्रदेवो भव’ अत्र ‘दरिद्र’ पदस्य पर्याय पद अस्ति
(अ) दरिद्रः
(ब) निर्धन
(स) संपन्नः
(द) धनिकः
उत्तरम् :
(ब) निर्धन

4. एकदा द्रोणाचार्यः कौरवान् पाण्डवान् च पाठमेकम् अपाठयत्। ‘सत्यं वद धर्म चर।’ अग्रिमे दिने सर्वे शिष्याः पाठं कण्ठस्थी कृत्य गुरुम् अश्रावयन्। किन्तु युधिष्ठिरः तूष्णीम् एव अतिष्ठत्। आचार्येण पृष्टः सः प्रत्युवाच-‘मया पाठः न स्मृतः’ उत्तरं श्रुत्वा सर्वेऽपि सहपाठिनः अहसन्। गुरुः च रुष्टः अभवत्। पञ्चमे दिवसे युधिष्ठिरः गुरवे न्यवेदयत् यन्मया सम्पूर्णः पाठः स्मृतः। गुरु अपृच्छत्- “लघीयान आसीत् एषः पाठः। किमर्थं चिरात् स्मृतः?” सः अवदत्- “हे गुरो? वचसा तु पाठैः स्मृतः आसीत्, परं प्रमादेन हास्येन वा अनेकवारम् असत्यम् अवदम्। ह्यः प्रभृति मया असत्य वचनं न भाषितम्। अधुना दृढतया वक्तुं शक्नोमि, यत् मया भवता पठितः पाठः स्मृतः।” इदं श्रुत्वा प्रीतः दोण: अवदत्-त्वं धन्योऽसि यः पाठं व्यवहारे आनीतवान्। त्वया एव पाठस्य अर्थः ज्ञातः बोधितः च?” वस्तुतः प्रयोगं विना ज्ञानं तु भारम् एव भवति।

(एक दिन द्रोणाचार्य ने कौरव और पाण्डवों को एक पाठ पढ़ाया। ‘सत्य बोलो। धर्म का आचरण करो।’ अगले दिन सभी शिष्यों ने पाठ को कण्ठस्थ कर गुरुजी को सुना दिया। किन्तु युधिष्ठिर चुप ही रहा । आचार्य के पूछे जाने पर वह
‘मैंने पाठ याद नहीं किया।’ उत्तर को सुनकर सभी सहपाठी हँस पड़े और गुरु नाराज हो गये। पाँचवें दिन युधिष्ठिर ने गुरुजी से निवेदन किया कि मैंने सम्पूर्ण पाठ याद कर लिया है। गुरु जी ने पूछा- यह पाठ तो छोटा-सा था, इतनी देर से किसलिए याद हुआ? वह बोला- गुरुजी! वाणी से तो पाठ याद हो गया था परन्तु लापरवाही अथवा हँसी-मजाक में अनेक बार झूठ बोला । कल से मैंने असत्य वचन नहीं बोला है । अब मैं दृढ़ता के साथ कह सकता हूँ कि मैंने आपके द्वारा पढ़ाया हुआ पाठ याद कर लिया। यह सुनकर प्रसन्न हुए गुरुजी बोले- “तुम धन्य हो, जिसने पाठ को व्यवहार में लाया। तुमने ही पाठ का अर्थ जाना है और समझा है ।” वास्तव में प्रयोग (व्यवहार) के बिना विद्या (ज्ञान) भार है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कौरवपांडवानां गुरुः कः आसीत्?
(कौरव पांडवों का गुरु कौन था?)
उत्तरम् :
द्रोणाचार्यः (द्रोणाचार्य।)

(ii) पाठः केन न स्मृतः ?
(पाठ किसने याद नहीं किया?)
उत्तरम् :
युधिष्ठिरेण (युधिष्ठिर ने।)

(ii) प्रयोगं विना ज्ञानं कीदृशम् ?
(प्रयोग के बिना ज्ञान कैसा होता है?)
उत्तरम् :
भारम् (भार)।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) युधिष्ठिरेण कः पाठः न स्मृतः ?
(युधिष्ठिर ने कौन-सा पाठ याद नहीं किया?)
उत्तरम् :
सत्यं वद धर्मं चर (सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो।)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) कीदृशं ज्ञानं भारम्?
(कैसा ज्ञान भार होता है?)
उत्तरम् :
प्रयोगं विना ज्ञानं भारम् (व्यवहार के बिना ज्ञान भार है।)

(ii) प्रीतः द्रोणः युधिष्ठिरं किम् अवदत्?
(प्रसन्न द्रोण ने युधिष्ठिर से क्या कहा?)
उत्तरम् :
प्रीतः द्रोणः युधिष्ठिरम् अवदत् यत् त्वं धन्योऽसि यः पाठं व्यवहारे आनीतवान् त्वया एव पाठस्य अर्थः ज्ञान: बोधि तश्च।” (प्रसन्न द्रोण ने युधिष्ठिर से कहा-तुम धन्य हो जो पाठ को व्यवहार में लाये। तुमने ही पाठ को जाना और समझा है।)

(ii) सहपाठिन: कस्मात् अहसन्?
(सहपाठी किसलिए हँसे?)
उत्तरम् :
‘मया पाठं न स्मृतः’ इति युधिष्ठिरस्य उत्तरं श्रुत्वा सहपाठिनः अहसन्।
(‘मैंने पाठ याद नहीं किया’ युधिष्ठिर के इस उत्तर को सुनकर सहपाठी हँस पड़े।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
ज्ञानं भारं प्रयोगं विना। (प्रयोग के बिना ज्ञान भार है।)

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
द्रोणाचार्यः शिष्यान् पाठमपाठयत् ‘सत्यं वद धर्मं चर’। सर्वे पाठं कण्ठस्थी कृत्य अश्रावयन् परञ्च युधिष्ठिर ना
श्रवयत्, ‘न मया स्मृत।’ पञ्चमे दिवसे न श्रावयत् गुरौ पृष्ठे सोऽवदत्- हे गुरो! वचनातु मया स्मृतः परञ्च अनेक
वारं असत्यम् अवदम्। ह्योऽहं नासत्यमपदम् अतः इदानीं सुदृढोऽस्मि। उत्तरं श्रुत्वा क्रुद्धो गुरुः प्रसन्नोऽभवत्। – धन्योऽसि। पाठं व्यवहारम् आनीय एव स्मृतः मतः। यतः प्रयोगं विना तु ज्ञानं भारम् एव।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘अपाठयत्’ क्रियापदस्य कर्ता अनुच्छेदे अस्ति –
(अ) द्रोणाचार्यः
(ब) युधिष्ठिरः
(स) दुर्योधनः
(द) अर्जुनः
उत्तरम् :
(अ) द्रोणाचार्यः

(ii) ‘प्रीतः द्रोणः’ इत्यनयोः विशेष्य पदमस्ति –
(अ) प्रीतः
(ब) द्रोणः
(स) युधिष्ठिरः
(द) अर्जुनः
उत्तरम् :
(ब) द्रोणः

(iii) मया पाठ: न स्मृतः’ वाक्ये मया सर्वनाम पदं प्रयुक्तम्
(अ) द्रोणाचार्याय
(ब) अर्जुनाय
(स) युधिष्ठिराय
(द) भीमाय
उत्तरम् :
(स) युधिष्ठिराय

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘त्वं धन्योऽसि’ अत्र ‘तत्वं’ पदस्य विलोम पदमस्ति
(अ) त्वम्
(ब) धन्यः
(स) वयं
(द) अन्यत्
उत्तरम् :
(स) वयं

5. कस्मिंश्चिद् वने कोऽपि काकः निवसति स्म। वर्षायाः अभावे वने कुत्रापि जलं नासीत्। नद्यः तडागाः च जलविहीनाः आसन्। एकदाः काकः अति पिपासितः आसीत्। सः इतस्त: अपश्यत् परञ्च न कुत्रापि जलाशयः दृष्टः। सः जलस्य अन्वेषणे इतस्ततः अभ्रमत्। यावत् असौ पिपासितः काकः ग्रामे गच्छति तावत् दूरे एकं घटम् अपश्यत्। काकः घटस्य समीपम् अगच्छत्। घटस्य उपरि अतिष्ठत्। सोऽपश्यत् यत् घटे जलम् अत्यल्पम् आसीत् अतः दूरम् आसीत।

सः चञ्च्वा जलं न पातुम् अशक्नोत्। किञ्चिद दूरे प्रस्तर खण्डान् दृष्ट्वा सः उपायम् अचिन्तयत्। स एकैकम् प्रस्तर खण्ड स्व चञ्च्वा आनयत् तानि प्रस्तरखण्डानि घटे न्यक्षिपत्। यथायथा पाषाण खण्डानि जले न्यमज्जन् तथा-तथा एव जलस्तरः उपरि आगच्छत्। उपर्यागतं जलमवलोक्य काकः अति प्रसन्नः जातः। सः जलम् पीतवान् मुक्तगगने च उड्डीयत। उड्डीयमानः काकोऽचिन्तयत्- उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

(किसी जंगल में कोई कौआ रहता था। वर्षा के अभाव में वन में कहीं पानी नहीं था। नदी-तालाब जलविहीन थे। एक दिन वह कौवा बहुत प्यासा था। उसने इधर-उधर देखा परन्तु कहीं भी जलाशय दिखाई नहीं पड़ा। वह जल की खोज में इधर-उधर घूमने लगा। जैसे ही वह प्यासा कौआ गाँव को गया वैसे ही दूर पर एक घड़े को देखा। कौआ घड़े के पास गया, घड़े के ऊपर बैठा। उसने देखा कि घड़े में जल बहुत थोड़ा था, अत: दूर था। वह चोंच से पानी नहीं पी सका।

कुछ दूरी पर पत्थर के टुकड़ों (कंकड़ों) को देखकर उसने उपाय सोचा। वह एक-एक कंकड़ चोंच में लाया, उन कंकड़ों को घड़े में डाल दिया। जैसे-जैसे कंकड़ पानी में डूबे वैसे-वैसे ही जलस्तर ऊपर आ गया। ऊपर आये हुए पानी को देखकर कौआ बहुत प्रसन्न हुआ। उसने पानी पिया और मुक्त गगन में उड़ गया। उड़ते हुए कौवे ने सोचा- उद्यम (परिश्रम) से ही कार्य सिद्ध होते हैं, न कि मनोरथ से।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) नद्यः तडागाः कीदृशाः आसन्? (नदी-तालाब कैसे थे?)
(ii) कांक घटे कानि न्यक्षिपत्? (कौआ ने घड़े में क्या डाले?)
(iii) घटे कियत् जलम् आसीत? (घड़े में कितना पानी था?)
(iv) कार्याणि केन सिद्ध्यन्ति? (कार्य किससे सिद्ध होते हैं?)
उत्तरम् :
(i) जलविहीनाः
(ii) प्रस्तरखण्डानि
(iii) अत्यल्पम्
(iv) उद्यमेन।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) उड्डीयमानः काकः किम् अचिन्तयत्? (उड़ते हुए कौए ने क्या सोचा?)
(ii) उपर्यागतं जलमवलोक्य काकः कीदृशः अभवत्? (ऊपर आये पानी को देखकर कौआ कैसा हो गया?)
(iii) काकः किम् उपायम् अचिन्तयत्? (कौआ ने क्या उपाय सोचा?)
उत्तरम् :
(i) सोऽचिन्तयत् यत् उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
(उसने सोचा-उद्यम (परिश्रम) से ही कार्य सिद्ध होते हैं, न कि मनोरथ से।)
(ii) काकः प्रसन्नः अभवत्। (कौआ प्रसन्न हो गया।)
(iii) काकः चञ्च्वा एकैकं प्रस्तर खण्डम् आनीय घटे न्यक्षिपत्।
(कौआ ने चोंच से एक-एक कंकड़ लाकर घड़े में डाला।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि/पिपासितः काकः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
वर्षायाः अभावे शुष्केषु जलाशयेषु एकः काकः जलस्यान्वेषणे सर्वत्र अभ्रभात्। ग्रामे एक घटं दृष्टवान्। घटेऽत्यल्पं जलम् आसीत्। अतः चञ्च्वा जलं न पातुम् शक्नोत्। किंचिद्रात् प्रस्तरखण्डान् आनीय घटे न्यक्षिपत्। जलम् उपरि आगच्छत्। काक जलं पीत्वा अति प्रसन्नः सन् आकाशे विचरन्नवदत्- उद्यमेन हि सिद्यन्ति कार्याणि न च मनोरथैः।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘जलं नासीत्’ अनयोः कर्तृपदम् अस्ति
(अ) जलम्
(ब) न
(स) आसीत्
(द) जलविहीनाः
उत्तरम् :
(अ) जलम्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘काकः अति पिपासितः आसीत्’ अत्र काकस्य विशेषण पदम् अस्ति
(अ) काकः
(ब) अति
(स) पिपासितः
(द) अस्ति ।
उत्तरम् :
(स) पिपासितः

(iii) ‘सोऽपश्यत्’ अत्र ‘सः’ इति सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम् –
(अ) घटः
(ब) जलम्
(स) काकः
(द) प्रस्तर खण्डम्
उत्तरम् :
(स) काकः

(iv) ‘तृषितः’ इति पदस्य पर्यायवाचि पदं गद्यांशे प्रयुक्तम् –
(अ) पिपासितः
(ब) जलविहीनः
(स) अत्यल्पम्
(द) इतस्ततः
उत्तरम् :
(अ) पिपासितः

6. एकस्य भिक्षुकस्य भिक्षापात्रे अञ्जलि परिमिताः तण्डुलाः आसन्। सः अवदत् – ‘भगवन्। दयां कुरु। कथम् अनेन उदरपूर्तिः भविष्यति?” तदैव अन्यः भिक्षुकः तत्र आगच्छति वदति च, ‘भिक्षां देहि!’ क्रुद्धः प्रथमः भिक्षुकः अगर्जत्- ‘रे भिक्षुक! भिक्षुकम् एव भिक्षां याचते? तव लज्जा नास्ति?” द्वितीयः भिक्षुकः उक्तवान्- “तव भिक्षा पात्रे अञ्जलि परिमिताः तण्डुलाः, मम तु पात्रं रिक्तम्। दयां कुरु। अर्धं देहि।” प्रथमः भिक्षुकः तत् न स्वीकृतवान्।

द्वितीयः भिक्षुकः पुनः अवदत्, “भो कृपणः मा भव। केवलम् एकं तण्डुलं देहि।” प्रथमः भिक्षुकः तस्मै एकमेव तण्डुलं ददाति। द्वितीये भिक्षुके गते सति प्रथमः भिक्षुकः भिक्षापात्रे तण्डुलाकारं स्वर्णकणं पश्यति। आश्चर्यचकितः शिरः ताडयन् सः पश्चात्तापम् अकरोत्-धिक माम, धिङ् मम मूर्खताम्।”

(एक भिक्षुक के भिक्षापात्र में अञ्जलि भर चावल थे। वह बोला-भगवान् दया करो। इससे कैसे पेट भरेगा? तभी दूसरा भिक्षुक वहाँ आ जाता है और कहता है- ‘भिक्षा दो।’ क्रुद्ध होकर पहला भिखारी गरजा- अरे भिखारी! भिखारी से ही भीख माँगता है? तुझे शर्म नहीं आती (तेरे शर्म नहीं है)। दूसरा भिक्षुक बोला- “तेरे भिक्षा पात्र में अंजलि भर चावल तो हैं, मेरा पात्र तो खाली (ही) है।

दया करो। आधा दे दो। पहले भिक्षुक ने यह स्वीकार नहीं किया। दूसरा भिक्षुक फिर बोला- “अरे कंजूस मत हो। केवल एक चावल दे दे।” पहला भिक्षुक उसे एक ही चावल देता है। दूसरे भिक्षुक के चले जाने पर पहला भिक्षुक भिक्षापात्र में चावल के आकार का सोने का कण देखता है । आश्चर्यचकित हुआ सिर पीटता हुआ वह पश्चात्ताप करने लगा- धिक्कार है मुझे, मेरी मूर्खता को धिक्कार है।”)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) भिक्षुकस्य भिक्षापात्रे कियत्परिमिता तण्डुलं आसन्? (भिक्षुक के भिक्षापात्र में कितने चावल थे?)
(ii) द्वितीयो भिक्षुकः कं भिक्षाम् अयाचत? (दूसरे भिखारी ने किससे भीख माँगी?)
(iii) द्वितीया भिक्षकः प्रथमं कति तण्डलानि अयाचत? (दसरे भिक्षक ने पहले से कितने चावल माँगे?)
(iv) द्वितीये भिक्षुके गते सति प्रथमः भिक्षुकः स्वभिक्षापात्रे किम् अपश्यत्?
(दूसरे भिक्षुक के चले जाने पर पहले भिक्षुक ने अपने भिक्षापात्र में क्या देखा?)
उत्तरम् :
(i) अञ्जलि परिमिताः
(ii) प्रथमं भिक्षुकम्
(iii) एक तण्डुलम्
(iv) स्वर्णकणम्।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) प्रथमः भिक्षुकः भगवन्तं किम् अयाचत? (पहले भिखारी ने भगवान से क्या माँगा?)
(ii) प्रथमः भिक्षुकः किम् अगर्जत? (पहला भिक्षुक क्या गरजा?)
(iii) द्वितीयः भिक्षुकः प्रथमं कति तण्डुलानि अयाचत? (दूसरे भिखारी ने पहले से कितने चावल माँगे?)
उत्तरम् :
(i) सोऽयाचत, भगवन् दयां कुरु। कथम् अनेन उदरपूर्तिः भविष्यति?
(उसने याचना की- भगवन् ! दया करो। इससे पेट पूर्ति कैसे होगी?)
(ii) प्रथमः भिक्षुकः अगर्जत्- रे भिक्षुक! भिक्षुकमेव भिक्षां याचते। तव लज्जा नास्ति?
(पहले भिक्षुक ने गर्जना की- अरे भिक्षुक! भिक्षुक से ही भिक्षा माँगता है। तेरे कोई शर्म नहीं है?)
(iii) द्वितीय भिक्षुकः प्रथम भिक्षुकं एकमेव तण्डुलम् अयाचत् ।
(दूसरे भिखारी ने पहले भिखारी से. एक ही चावल माँगा।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत – (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
उदारतायाः फलम् (उदारता का फल)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
एकस्य भिक्षुकस्य भिक्षापात्रे अञ्जलि मात्र तण्डुला आसन्। द्वितीय भिक्षुकः तम् अय द्वितीयोवदत् तव पात्रेषु अञ्जलिपूर्ण तण्डुलाः सन्ति मम पात्रे तु एकमपिनास्ति अत्र एकमेव तण्डुलम् यच्छ। प्रथम एकमेव तण्डुलम् अयच्छत् द्वितीये भिक्षुके गते सति प्रथमः स्व पात्रम् अपश्यत् यत् तत्र एक तण्डुलाकारं स्वर्णकण आसीत्। साश्चर्यमसौ पश्चात्तापम् करोत्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘भविष्यति’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति
(अ) अञ्जलि
(ब) उदरपूर्तिः
(स) भिक्षा
(द) कथम्
उत्तरम् :
(ब) उदरपूर्तिः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘क्रुद्धः प्रथमः भिक्षुकः अगर्जत्’ अत्र विशेष्यपदमस्ति
(अ) प्रथमः
(ब) क्रुद्धः
(स) भिक्षुकः
(द) अगर्जत्
उत्तरम् :
(स) भिक्षुकः

(iii) “धिक् मम मूर्खताम्’ अत्र ‘मय’ इति सर्वनाम पद कस्मै प्रयुक्तम् –
(अ) प्रथम भिक्षुकाय
(ब) द्वितीय भिक्षुकाय
(स) तण्डुलेभ्यः
(द) याचाय
उत्तरम् :
(अ) प्रथम भिक्षुकाय

(iv) ‘दयां कुरु’ अत्र ‘दयां’ पदस्य विलोमपदमस्ति –
(अ) दयाम्
(ब) अदयां
(स) भिक्षां
(द) देहि
उत्तरम् :
(ब) अदयां

7. परेषां प्राणिनामुपकारः परोपकारोऽस्ति। परस्य हित सम्पादनं मनसा वाचा कर्मणा च अन्येषां हितानुष्ठानमेव परोपकार शब्देन गृह्यते। संसारे परोपकारः एव सः गुणो विद्यते, येन मनुष्येषु सुखस्य प्रतिष्ठा वर्तते। परोपकारेण हृदयं पवित्र सरलं, सरसं, सदयं च भवति। सत्पुरुषा कदापि स्वार्थपराः न भवन्ति। ते परेषां दुःखं स्वीयं दुःखं मत्वा तन्नाशाय यतन्ते। सज्जनाः परोपकारेण एव प्रसन्नाः भवन्ति। परोपकार-भावनैव दधीचिः देवानां हिताय स्वकीयानि अस्थीनि ददौ। महाराजशिविः कपोत रक्षणार्थ स्वमांसं श्येनाय प्रादात्। अस्माकं शास्त्रेषु परोपकारस्य महत्ता वर्णिता। प्रकृतिरपि परोपकारस्यै शिक्षा ददाति। अतः सर्वेरपि सर्वदा परोपकारः करणीयः।

(दूसरे प्राणियों का उपकार परोपकार है। दूसरे का हित-सम्पादन और मन-वाणी और कर्म से दूसरों का हितकार्य ही परोपकार शब्द से ग्रहण किया जाता है । संसार में परोपकार ही वह गुण है जिससे मनुष्यों में सुख की प्रतिष्ठा होती है। परोपकार से हृदय पवित्र, सरल, सरस और दयालु होता है। सज्जन कभी स्वार्थ के लिए तत्पर नहीं होते। वे दूसरों के दुख को अपना दुःख मानकर उसको दूर करने का प्रयत्न करते हैं। सज्जन परोपकार से ही प्रसन्न होते हैं। परोपकार भावना से ही दधीचि ने देवताओं के हित के लिए अपनी हड्डियों को दे दिया। महाराज शिवि ने कबूतर की रक्षा के लिए अपना मांस बाज के लिए दे दिया। हमारे शास्त्रों में परोपकार की महिमा वर्णित है। प्रकृति भी परोपकार की शिक्षा देती है। अतः सभी को हमेशा परोपकार करना चाहिए।) प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)

(i) के स्वार्थतत्पराः न भवन्ति ? (कौन स्वार्थ तत्पर नहीं होते?)
(ii) देवानां हिताय स्वकीयानि अस्थीनि कः ददौ? (देवताओं के हित के लिए अपनी हड्डियाँ किसने दे दी? )
(iii) मनुष्येषु परोपकारेण किं भवति? (मनुष्यों में परोपकार से क्या होता है?)
(iv) महाराजशिविः कपोत रक्षणार्थं स्वमांसं कस्मै प्रादात्?
(महाराज शिवि ने कबूतर की रक्षार्थ अपना मांस किसको दिया?)
उत्तरम् :
(i) सत्पुरुषाः
(ii) दधीचिः
(iii) सुखस्य प्रतिष्ठा
(iv) श्येनाय।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) परोपकारः कः अस्ति? (परोपकार क्या है?)
(ii) महाराज शिविः परोपकाराय किम् अकरोत?
(महाराज शिवि ने परोपकार में क्या किया?)
(iii) प्रकृति किं शिक्षते? (प्रकृति किसकी शिक्षा देती है?)
उत्तरम् :
(i) परेषां प्राणिनाम् उपकारः परोपकारः अस्ति।
(दूसरे प्राणियों का उपकार परोपकार है।)
(ii) महाराज शिवि परोपकाराय कपोतरक्षणार्थं श्येनाय स्वमांसं ददौ।
(महाराज शिवि ने परोपकार के लिए बाज को अपना मांस दे दिया।)
(ii) प्रकृति परोपकारस्य एव शिक्षां ददाति।
(प्रकृति परोपकार की ही शिक्षा देती है।)

प्रश्न 3.
अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
(इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
परोपकारस्य महत्वम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
मनसा वचसा कर्मणा च परेषां हित सम्पादनमेव परोपकारः इति कथ्यते। अनेनैव संसारे मनुष्य प्रतिष्ठति। दयादयः गुणाः भवन्ति। सञ्जनाः स्वार्थं परित्यज्यासि परेषां दुःखं स्वकीय मन्यते। ते परोपकारेणैव प्रसीदन्ति न तु स्वार्थ सिद्धि पूर्णेन। महर्षि दधीचिः महाराजाशिविस्य इत्यादय परोपकारस्य निदर्शनानि सन्ति। प्रकृति अपि परोपकारमेवशिक्षति। तस्या प्रत्येकम् अङ्गमेव परोपकारे निरतः अस्ति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘प्रकृतिरपि परोपकारस्यैव शिक्षा ………’ अत्र कर्तृ पदमस्ति
(अ) सत्पुरुषाः
(ब) परोपकारिणः
(स) प्रकृतिः
(स) सज्जनाः
उत्तरम् :
(स) प्रकृतिः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘अपरमित सुखस्य प्रतिष्ठा वर्तते’ अत्र विशेष्य पदमस्ति
(अ) सुखस्य
(ब) प्रतिष्ठा
(स) वर्तते
(द) मनुष्येषु
उत्तरम् :
(अ) सुखस्य

(iii) ‘ते परेषां दुःखं …….’ अत्र ‘ते’ सर्वनाम पदस्य स्थाने संज्ञा पदं भवेत
(अ) सत्पुरुषा
(ब) वृक्षाः
(स) प्रकृतेः अंगानि
(द) दुर्जनाः
उत्तरम् :
(अ) सत्पुरुषा

(iv) ‘कठिन’ इति पदस्य विलोम पदं भवति
(अ) सरसम्
(ब) सदयम्
(स) सरलम्
(द) पवित्रम्
उत्तरम् :
(स) सरलम्

8. मेवाडराज्यं बहूनां शूराणां जन्मभूमिः। तस्य राजा राणाप्रतापः सिंहासनम् आरूढ़वान्। हस्तच्युतानां भागानां प्रति प्राप्तिः कथमिति विचिन्त्य सः पुर प्रमुखाणां सभामायोजितवान्। तत्र सः प्रतिज्ञां कृतवान्- ‘चित्तौड़स्थानं यावत् न प्रति प्राप्स्यामि तावत् सुवर्ण पात्रे भोजनं न करिष्यामि। राजप्रासादे वासं न करिष्यामि। मृदुतल्ये शयनम् अपि न करिष्यामि’ इति। तदा पुर प्रमुखाः अवदन् वयम् अपि सुख-साधनानि त्यक्ष्याम। देशाय यथा शक्ति धनं दास्यामः। अस्मत्पुत्रान् सैन्यं प्रति प्रेषयिष्यामः इति। तदनन्तरं ग्राम प्रमुखाः अवदन्- वयं धान्यागारं धान्येन परिपूरयिष्यामः। ग्रामे आयुधानि सज्जीकरिष्यामः। युवकान् युद्धकलां बोधयिष्यामः। अद्यैव कार्यारम्भः करिष्यामः।

(मेवाड़ राज्य बहुत से वीरों की जन्मभूमि है। उसका राजा राणा प्रताप सिंहासन पर आरूढ़ हुआ, हाथ से निकले हुए भागों की वापिस प्राप्ति कैसे हो ? यह सोचकर उसनें नगर प्रमुखों की सभा आयोजित की। वहाँ उसने प्रतिज्ञा की- चित्तौड़ स्थान को जब तक वापिस प्राप्त नहीं कर लूँगा तब तक सोने की थाली में भोजन नहीं करूंगा। राजमहल में निवास नहीं करूँगा। कोमल गद्दों पर शयन भी नहीं करूंगा। तब पुर-प्रमुखों ने कहा- हम भी सुख-साधनों को त्यागेंगे। देश के लिए यथा शक्ति धन देंगे। अपने पुत्रों को सेना में भेजेंगे। इसके बाद ग्राम प्रमुखों ने कहा- हम धान्यागारों को धान से भरपूर कर देंगे। गाँव में हथियार तैयार करेंगे। जवानों को युद्ध कला का ज्ञान करायेंगे। आज ही कार्य आरंभ करेंगे।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) राणा प्रतापः कस्य राज्यस्य राजा आनीत? (राणा प्रताप किस राज्य के राजा थे?)
(ii) ‘सुवर्ण पात्रे भोजनं न करिष्यामिक प्रतिज्ञां कृतवान् ।
(‘सोने की थाली में भोजन नहीं करना’ यह प्रतिज्ञा किसने की?)
(iii) मेवाड़ राज्यं केषां जन्मभूमिः? (मेवाड़ राज्य किनकी जन्मभूमि है?)
(iv) धान्यागारं के पूरयिष्यन्ति? (धान्यागार को कौन भरेंगे?)
उत्तरम् :
(i) मेवाड़राज्यस्य
(ii) महाराणा प्रतापः
(iii) शूराणाम्
(iv) ग्रामप्रमुखाः ।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) मेवाड़ राज्यं केषां जन्मभूमिः?
(मेवाड़ राज किनकी जन्मभूमि है?)
(ii) कः पुरप्रमुखाणां सभाम् आयोजितवान् ?
(पुर प्रमुखों की सभा किसने आयोजित की?)
(iii) महाराणा किं विचिन्त्य पुरप्रमुखानां सभाम् आयोजितवान् ? ।
(महाराणा ने क्या सोचकर पुर-प्रमुखों की सभा आयोजित की?) ।
उत्तरम् :
(i) मेवाडराज्यं शूराणां जन्मभूमिः।
(मेवाड़ राज्य शूरवीरों की जन्मभूमि है।)
(ii) महाराणाप्रतापः पुरप्रमुखानां सभामायोजितवान्।
(महाराणा प्रताप ने पुरप्रमुखों की सभा का आयोजन किया।)
(iii) हस्तच्युताना भागाना प्रतिप्राप्ति कथ भवेत् इति विचिन्त्य प्रतापः पुर प्रमुखाना सभामायोजितवान्।

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
महाराणा प्रतापः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीक
उत्तरम् :
मेवाड़ राज्ये बहवः शूराः अभवन्। प्रतापादयोऽनेके सिंहासनम् आरूढ़वन्तः। सभायां प्रतापः प्रतिज्ञातवान् चित्तौड राज्यमेव प्राप्य स्वर्णपात्रे भोजनं न करिष्यामि। प्रासादे न निवत्स्यामि मृदुतल्पे न शयिष्ये पुर प्रमुखाः अपि सुखसाधनानि अत्यजन। धन-पुत्र-धान्य-आयुधादीन प्रदाय प्रतिज्ञात वन्त युद्धाय च तत्पराः आसन्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘तत्र सः प्रतिज्ञां कृतवान्’ इत्यस्मिन् वाक्ये क्रिया पदमस्ति
(अ) कृतवान्
(ब) तत्र
(स) सः
(द) प्रतिज्ञाम्
उत्तरम् :
(अ) कृतवान्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘मृदुतल्पे’ इत्यनयोः विशेषण पदमस्ति
(अ) तल्पे
(ब) मृदु
(स) प्रसाद
(द) स्वपात्राणि
उत्तरम् :
(ब) मृदु

(iii) ‘तदा पुर प्रमुखाः अवदन’ अस्मिन् वाक्ये संज्ञापदमस्ति
(अ) तदा
(ब) अवदन्
(स) वदन्
(द) पुरप्रमुखाः
उत्तरम् :
(द) पुरप्रमुखाः

(iv) ‘वयं धान्यागारं धान्येन पूरयिष्यामः’ अत्र ‘धान्येन’ पदस्य पर्याय पदमस्ति
(अ) अन्नेन
(ब) धान्यागारम्
(स) धान्यम्
(द) पूरयिष्यामः
उत्तरम् :
(अ) अन्नेन

9. शाक्यवंशीयः शुद्धोदनः नाम कश्चिद् राजा आसीत्। कपिलवस्तु नाम तस्य राजधानी आसीत्। अस्य एव राज्ञः सुपुत्रः सिद्धार्थः आसीत्। सः बाल्यकालाद् एव अति करुणापरः आसीत्। तस्य मनः क्रीडायाम् आखेटे वा नारमत। एवं स्वपुत्रस्य राजभोगं प्रति वैराग्यं दृष्ट्वा शुद्धोदनः चिन्तितः अभवत्। सः सिद्धार्थस्य यौवनारम्भे एव विवाहम् अकरोत्। तस्य पत्नी यशोधरा सुन्दरी साध्वी च आसीत्। शीघ्रमेव तयोः राहुल: नाम पुत्रः अंजायत।

एकदा सिद्धार्थः भ्रमणाय नगरात् बहिः अगच्छत्। तत्र सः एकं वृद्धम् एकं रोगार्तम्, एकं मृत पुरुषम् एकं च संन्यासिनम् अपश्यत्। एतान् दृष्ट्वा तस्य मनसि वैराग्यम् उत्पन्नम् अभवत्। ततः सः स्वधर्मपत्नीम् अबोधं सुतं राहुलं राज्यं च त्यक्त्वा गृहात् निरगच्छत्। सः कठिनं तपः अकरोत्। तपसः प्रभावात् सः बुद्धः अभवत्। अहिंसा पालनं तस्य प्रमुखा शिक्षा आसीत्। सः जनानां कल्याणाय बौद्ध-धर्मस्य प्रचारम् अकरोत्।

(शाक्यवंश का शुद्धोदन नाम का कोई राजा था। कपिलवस्तु नाम की उसकी राजधानी थी। इसी राजा का सुपुत्र सिद्धार्थ था। वह बचपन से ही अत्यन्त दयालु था। उसका मन खेल और मृगया में नहीं लगता था। इस प्रकार अपने बेटे को राजभोग के प्रति वैराग्य देखकर शुद्धोदन चिन्तित हुआ। उसने सिद्धार्थ का यौवन के आरम्भ में ही विवाह कर दिया। उसकी पत्नी यशोधरा सुन्दर और साध्वी थी। शीघ्र ही उन दोनों के राहुल नाम का पुत्र हुआ। एक दिन सिद्धार्थ भ्रमण के लिए नगर से बाहर गया। वहाँ उसने एक बुड्ढे, एक रोग से पीड़ित, एक मरे हुए पुरुष को और एक संन्यासी को देखा। इनको देखकर उसके मन में वैराग्य पैदा हो गया। तब वह अपनी पत्नी, अबोध पुत्र राहुल और राज्य को त्याग कर घर से निकल गया। उसने कठोर तप किया। तप के प्रभाव से वह बुद्ध हो गया। अहिंसा-पालन इसकी प्रमुख शिक्षा थी। उसने लोगों के कल्याण के लिए बौद्ध धर्म का प्रचार किया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) शाक्यवंशीय नृपस्य किम्, नाम आसीत्?
(शाक्यवंशीय राजा का क्या नाम था?)
(ii) शुद्धोदनस्य किं नाम राजधानी आसीत्?
(शुद्धोदन की राजधानी का क्या नाम था?)
(iii) शुद्धोदनस्य आत्मजः काः आसीत?
(शुद्धोदन का पुत्र कौन था?)
(iv) सिद्धार्थः बाल्यकालात् कीदृशः आसीत्?
(सिद्धार्थ बचपन में कैसा था?)
उत्तरम् :
(i) शुद्धोदनः
(ii) कपिलवस्तु
(iii) सिद्धार्थः
(iv) करुणापरः।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) सिद्धार्थः किमर्थं बौद्ध धर्मस्य प्रचारमकरोत् ? (सिद्धार्थ ने बौद्ध धर्म का प्रचार किसलिए किया?)
(ii) नगरात् बहिः मार्गे सिद्धार्थः किमपश्यत्? (नगर से बाहर मार्ग में सिद्धार्थ ने क्या देखा?)
(iii) बुद्धस्य प्रमुखा शिक्षा का आसीत्? (बुद्ध की प्रमुख शिक्षा क्या थी?)
उत्तरम् :
(i) सः जनानां कल्याणाय बौद्धधर्मस्यप्रचारमकरोत् ? (उन्होंने लोक-कल्याण हेतु बौद्ध धर्म का प्रचार किया।)
(ii) नगरात् बहिः सिद्धार्थः एकं वृद्धं, एकं मृतं, एकं रोगार्तम् एकं संन्यासिन चापश्यत् ।
(नगर के बाहर सिद्धार्थ ने एक बुड्ढे, एक मृत, एक बीमार और एक संन्यासी को देखा।)
(ii) अहिंसापालने तस्य प्रमुखा शिक्षा आसीत्। (अहिंसा का पालन करना उसकी प्रमुख शिक्षा थी।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
बुद्धस्य वैराग्यम् (बुद्ध का वैराग्य)।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
कपिलवस्तु राज्यस्य शासकस्य शुद्धोदनस्य पुत्रस्य नाम सिद्धार्थः आसीत्। सः बाल्यादेव करुणापरः क्रीडाखेटादिभ्यो विरक्तः आसीत्। वैराग्यं दृष्ट्वा नृपः तस्य विवाहमकरोत्। पुत्रः राहुलोऽपि अजायत। सिद्धार्थः भ्रमणाय वनमगच्छत् तत्रैकदा एकं वृद्ध, रोगार्तम् मृतम् संन्यासिनं च अपश्यत्। एतान् दृष्ट्वा वैराग्योऽजायत, गृहस्थं त्यक्त्वा गृहात् निरगच्छत् तपसासौ बोध प्राप्तवान् बौद्धधर्मं च संस्थाप्य प्रचारमकरोत।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘अरमत्’ क्रियायाः कर्तृपदमनुच्छेदे प्रयुक्तमस्ति
(अ) शुद्धोदनः
(ब) सिद्धार्थः
(स) कपिलवस्तु
(द) यशोधरायाः
उत्तरम् :
(ब) सिद्धार्थः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘तस्य प्रमुख शिक्षा आसीत्’ अत्र विशेषण पदमस्ति
(अ) तस्य
(ब) प्रमुख
(स) शिक्षा
(द) आसीत्
उत्तरम् :
(ब) प्रमुख

(iii) ‘तस्य मनः’ अत्र ‘तस्य’ इति सर्वनाम पदं प्रयुक्तम् –
(अ) सिद्धार्थाय
(ब) शुद्धोदनाय
(स) यशोधरायै
(द) वैराग्याय
उत्तरम् :
(स) यशोधरायै

(iv) ‘वैराग्यम् उत्पन्नम् अभवत्’ अत्र ‘उत्पन्नम्’ पदस्य विलोमपदम् अस्ति
(अ) वैराग्यम्
(ब) उत्पन्नम्
(स) नष्टम्
(द) न किञ्चित्
उत्तरम् :
(अ) वैराग्यम्

10. नगरस्य समीपे एकस्मिन् वने एकः सिंहः निवसति स्म। एकदा तस्य गुहायाम् एकः मूषकः प्राविशत्। सः सिंहस्य शरीरस्योपरि इतस्तततोऽधावत्। कुपितः सिंहः तं मूषकं करे गृह्णाति स्म। भीतः मूषकः सिंहाय मोक्तु न्यवेदयत् अवदत च भो मृगराज! मां मा मारय, कदाचिदहं भवतः सहायतां करिष्यामि। सिंहः अहसत् अवदत् च-“लघुमूषक त्वं मम कथं सहायतां करिष्यसि? अस्तु, इदानीन्तु त्वां मोचयामि।” इत्युक्त्वा सिंहः मूषकम् अमुञ्चत्। एकदा कोऽपि व्याधः जालं प्रसारयति, सिंहः जाले पतित: बहिरागमनाय प्रयत्नं अकरोत्। तस्य गर्जनं श्रुत्वा मूषकः विलात् बहिरागत्य दन्तैः च जालं अकर्तयत् बन्धनमुक्तः सिंह: ‘मित्रं तु लघु अपि वरम्’ इति ब्रुवन् वने निर्गतः।

(नगर के समीप एक वन में एक शेर रहता था। एक दिन उसकी गुफा में एक चहा घुस गया। वह सिंह के शरीर पर इधर-उधर दौड़ने लगा। नाराज हुए उस शेर ने चूहे को पकड़ लिया। डरे हुए चूहे ने सिंह छोड़ने के लिए निवेदन किया और बोला- हे मृगराज! मुझे मत मारो, कभी मैं आपकी सहायता करूँगा। सिंह हँसा और बोला- छोटा-सा चूहा तू मेरी क्या सहायता करेगा? खैर, अब तो तुम्हें छोड़ देता हूँ, ऐसा कहकर सिंह ने चूहे को छोड़ दिया। एक दिन किसी बधिक ने जाल ।। सिंह जाल में पड़ा हुआ बाहर आने का प्रयत्न करने लगा। उसकी गर्जना को सुनकर चूहे ने बिल से बाहर आकर दाँतों से जाल काट दिया। बन्धन से मुक्त शेर ‘मित्र तो छोटा-सा भी श्रेष्ठ होता है’ कहता हुआ वन में निकल गया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए) –
(i) नगरस्य समीपे कः निवसति स्म? (नगर के समीप कौन रहता था?)
(ii) सिंहस्य गुहायां कः प्राविशत्? (सिंह की गुफा में कौन घुस गया?)
(ii) मूषकः सिंहाय कस्मै निवेदयति? (चूहा सिंह को किसलिए निवेदन करता है?)
(iv) सिंहः कुत्र बद्धः? (सिंह कहाँ बँध गया?) ।
उत्तरम् :
(i) सिंहः
(ii) मूषकः
(iii) मोक्तुम्
(iv) जाले/पाशे।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) मूषकः सिंहस्योपरि किं कृतवान् ? (चूहे ने शेर के ऊपर क्या किया?)
(ii) भीत: मूषकः कथं निवेदयति? (डरा हुआ चूहा कैसे निवेदन करता है?)
(iii) सिंह: मषकं कथम उपहसति? (सिंह चहा पर कैसे उपहास करता है?)
उत्तरम् :
(i) मूषकः सिंहस्योपरि इतस्ततः धावति। (सिंह के ऊपर चूहा इधर-उधर दौड़ता है।)
(ii) हे मृगराज! मां मा मारय। कदाचिद् अहं भवतः सहायतां करिष्यामि।
(हे मृगराज! मुझे मत मारो। कदाचित् मैं आपकी सहायता करूँगा।)
(ii) लघुमूषकः त्वम्, मम कथं सहायतां करिष्यति? अस्तु इदानीं तु त्वां मोचयामि। ।
(तुम छोटे से चूहे, मेरी कैसे सहायता करोगे? खैर अब तो तुम्हें मैं छोड़ देता हूँ।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
मित्रं तु लघु अपि वरम्। (मित्र तो छोटा-सा ही अच्छा।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
सिंहस्य गुहायाम् एकदा एक मूषकः प्राविशत्। मूषकः तस्योपरि अधावत्, स तम् गृह्णाति स्म हन्तुं चेच्छति।
मूषको न्यवेदयतः मां मा मारय, अहं कदाचित् ते सहायतां करिष्यामि। सिंहः उपहस्य तं त्यजति। एकदा मूषकः सिंहस्य गर्जनाम् अश्रृणोत्। सः तत्र अगच्छत् व्याधस्य पाशे पतितं तं सिंह मोचयति। सिंहोऽवदत्-“मित्र तु लघु अपि वरम्।”

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘सः सिंहस्योपरि धावति’ अत्र अनयोः क्रियापदम् अस्ति
(अ) व्याधः
(ब) धावतिः
(स) सिंहः
(द) जालः
उत्तरम् :
(ब) धावतिः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘भीतः मूषकः’ अत्र भीत: कस्य पदस्य विशेषम्
(अ) मूषकस्य
(ब) सिंहस्य
(स) व्याधस्य
(द) जालस्य
उत्तरम् :
(अ) मूषकस्य

(iii) ‘बद्ध सिंहः’ अत्र संज्ञापदमस्ति
(अ) व्याधः
(ब) मृगराज
(स) सिंहः
(द) न कश्चिद्
उत्तरम् :
(स) सिंहः

(iv) ‘दूरे’ इति पदस्य अनुच्छेदे विलोम पदमस्ति
(अ) समीपे
(ब) करे
(स) जाले
(द) वने
उत्तरम् :
(अ) समीपे

11. कालिदासः मेघदूतं रचितवान। मेघदूते मानसून विज्ञानस्य अद्भुतं वर्णनम् अस्ति। मानसून-समय: आषाढ़मासात् आरभते। श्याममेघान् दृष्ट्वा सर्वे जनाः प्रसन्ना भवन्ति। मयूराः नृत्यन्ति। मानसून मेघाः सर्वेषा जीवानां कष्टम् अपहरन्ति। मेघानां जलं वनस्पतिभ्यः, पशु-पक्षिभ्यः किं वा सर्वेभ्यः प्राणिभ्यः जीवनं प्रयच्छति। मेघजलैः भूमेः उर्वराशक्तिः वा ति। क्षेत्राणां सिञ्चनं भवति। गगने यदा कदा इन्द्रधनुः अपि दृश्यते। वायुः शीतलः भवति। शुष्क भूमौ वर्षायाः बिन्दवः पतन्ति। भूमेः सुगन्धितं वाष्पं निर्गच्छति। कदम्ब पुष्पाणि विकसन्ति। तेषु भ्रमरा गुञ्जन्ति। हरिणाः प्रसन्ना सन्तः इतस्ततः धावन्ति।

चातका जलबिन्दून गगने एव पिवन्ति। बलाकाः पंक्तिं बद्ध्वा आकाशे उड्डीयन्ते। मेघदूते मेघः विरहि यक्ष सन्देशं नेतुं प्रार्थते। अत्र कालिदासः वायुमार्गस्य ज्ञानवर्धकं वर्णनं करोति। (कालिदास ने मेघदूत की रचना की। मेघदूत में मानसून विज्ञान का अद्भुत वर्णन है। मानसून का समय आषाढ़ माह से आरम्भ होता है। काले मेघों को देखकर सभी लोग प्रसन्न होते हैं। मोर नाचते हैं। मानसून के मेघ सभी जीवों के कष्ट का हरण करते हैं। मेघों का जल वनस्पतियों, पशु-पक्षियों अधिक तो क्या सभी प्राणियों को जीवन प्रदान करते हैं। मेघ के जल से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।

खेतों की सिंचाई होती है। आकाश में जब कभी इन्द्रधनुष भी दिखाई देता है। वायु शीतल होती है। सूखी धरती पर वर्षा की बूंदें पड़ती हैं । भूमि से सुगन्धित भाप निकलती है। कदम्ब के फूल खिलते हैं। उन पर भौरे गूंजते हैं। हिरन प्रसन्न हुए इधर-उधर दौड़ते हैं। पपीहे जल बिन्दुओं को आकाश में ही पीते हैं। बगुले कतार बनाकर आकाश में उड़ते हैं। मेघदूत में मेघ से विरही यक्ष सन्देश ले. जाने के लिए प्रार्थना करता है। यहाँ कालिदास वायुमार्ग का ज्ञान-वर्धक वर्णन करता है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) मेघानां जलं प्राणिभ्यः किं प्रयच्छति? (बादलों का जल प्राणियों को क्या देता है?)
(ii) भ्रमराः कुत्र गुञ्जन्ति? (भौरे कहाँ गूंजते हैं?)
(iii) मेघ जलैः किं वर्धते? (बादल-जल से क्या बढ़ता है?)
(iv) वर्षाकाले वायु कीदृशी भवति ? (वर्षाकाल में हवा कैसी होती है?)
उत्तरम् :
(i) जीवनम्
(ii) कदम्ब पुष्पेषु
(ii) भूमेः उर्वरा शक्तिः
(iv) शीतलः।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) मेघदूतं कः रचितवान्? (मेघदूत को किसने रचा?)
(ii) मानसनमेघाः केषां कष्टम् अपहरन्ति? (मानसून के बादल किनके कष्ट को हरण करते हैं?)
(iii) मेघदूते कस्य वर्णनम् अस्ति? (मेघदूत में किसका वर्णन है?)
उत्तरम् :
(i) मेघदूतं कालिदासः रचितवान्। (मेघदूत की रचना कालिदास ने की।)
(iii) मानसून मेघाः सर्वेषां जीवानां कष्टम् अपहरन्ति। (मानसून के बादल सब जीवों के कष्ट का हरण करते हैं।)
(iii) मेघदूते मानसून विज्ञानस्य अद्भुतं वर्णनम् अस्ति। (मेघदूत में मानसून विज्ञान का अनोखा वर्णन है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
कालिदासस्य मेघदूतकाव्यम्। (कालिदास का मेघदूत काव्य।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
कालिदासस्य मेघदूत काव्ये मानसून विज्ञानस्य अद्भुतम् वर्णनम् अस्ति। पृथिव्या शोभा वर्धते। मेघैः प्रदत्तेन जलेन . मनुष्या, पशवः, खगाः, वृक्षाः, पादपा च प्रसन्नाः भवन्ति। इन्द्रधनुः शोभते गगने वायुः शीतलः भवति। भूमेः
सुगन्धिः प्रसराति हरिणाः बालकाः च प्रसन्ना सन्तः इतस्ततः भ्रम्यन्ति धावन्ति च आनन्देन। मेघदूतम् वायुमार्गस्य
ज्ञानं वर्धयति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘धावन्ति’ इति क्रियापदस्य कर्ता अस्ति –
(अ) भ्रमराः
(ब) मेघाः
(स) हरिणाः
(द) चातकाः
उत्तरम् :
(स) हरिणाः

(ii) ‘ज्ञानवर्धकम्’ इति कस्य विशेषणम्?
(अ) मानसून विज्ञानस्य
(ब) वायु मार्गस्य
(स) प्रकृति चित्रणस्य
(द) विरहि यक्षस्य।
उत्तरम् :
(ब) वायु मार्गस्य

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iii) ‘तेषु भ्रमरा गुञ्जन्ति’ यहाँ तेषु सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(अ) कदम्ब पुष्पेषु
(ब) श्याम मेघेषु
(स) क्षेत्रेषु
(द) गगने
उत्तरम् :
(अ) कदम्ब पुष्पेषु

(iv) ‘उर्वरा शक्तिः वर्धते’ अत्र ‘उर्वरा’ पदस्य विलोमपदमस्ति
(अ) उर्वरा
(ब) शक्तिः
(स) अनुर्वरा
(द) भूमेः
उत्तरम् :
(स) अनुर्वरा

12. सुबुद्धिः दुर्बुद्धिश्च द्वौ धनिको आस्ताम्। सुबुद्धेः विशालं भवनम् आसीत्। तस्य अनेके उद्योगाः चलन्ति स्म। अत एव सः सर्वदा प्रसन्नचित्तः ईश्वरं स्मरन् आनन्दे निमग्नः भवति स्थ। दुर्बुद्धि तावत् लोभी आसीत्। अधिकाधिकं धन-संग्रहं कर्तुम् इच्छति स्म। सर्वदा असन्तुष्टः, क्रुद्धः दुःखी च भवति स्म। एकदा दुर्बुद्धिः कार्यवशात् सुबुद्धेः गृहम् अगच्छत्। आनन्द-मग्नं तं दृष्ट्वा अपृच्छत्- “भवतः आनन्दरूप शान्तिः च किं रहस्य?” सुबुद्धिः उवाच-“मित्र! मम चत्वारः अंगरक्षकाः सन्ति। प्रथमः सत्यं यत् माम् अपराधात् सदा रक्षति। द्वितीयः स्नेहः, अहं सर्वान् कर्मचारिणः पुत्रवत् मन्ये। तृतीयः न्यायः, यः माम् अन्यायात् रक्षति। चतुर्थः त्यागः मां दानाय प्रेरयति। अतः एतेषां सहायतया अहं सर्वदा, आनन्देन जीवामि लोकहितं च करोमि इति।” दुर्बुद्धि श्रद्धया तस्य चरणयोऽपतत्।

(सुबुद्धि और दुर्बुद्धि नाम के दो धनवान थे। सुबुद्धि का विशाल भवन था। उसके अनेक उद्योग चलते थे। अतः एक वह हमेशा प्रसन्न रहता था और ईश्वर का स्मरण करता हुआ आनन्द में डूबा रहता था। दुर्बुद्धि तो लोभी था। अधिक से अधिक धन संग्रह करना चाहता था। हमेशा असन्तुष्ट, क्रुद्ध और दुखी रहता था। एक दिन दुर्बुद्धि काम से सुबुद्धि के घर गया। उसको आनन्दमग्न देखकर पूछा- आपके आनन्द और शान्ति का क्या रहस्य है? सुबुद्धि ने कहा- “मित्र! मेरे चार अंगरक्षक हैं- पहला सत्य जो मेरी अपराध से सदैव रक्षा करता है। दूसरा स्नेह, मैं सभी कर्मचारियों से पुत्र की तरह व्यवहार करता हूँ। तीसरा न्याय जो मेरी अन्याय से रक्षा करता है। चौथा त्याग मुझे दान के लिए प्रेरित करता है। अतः इनकी सहायता से मैं सदैव आनन्द में जीता हूँ और लोक-कल्याण करता हूँ।” दुर्बुद्धि श्रद्धा से उसके चरणों में गिर गया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) सुबुद्धेः कति अङ्गरक्षकाः आसन्? (सुबुद्धि के कितने अंगरक्षक थे?)
(ii) सबद्धिः सर्वदा कस्मिन निमग्नः भवति स्म? (सबद्धि सदा किसमें डूबा रहता था?)
(iii) दुर्बुद्धिः किमर्थं सुबुद्धेः गृहम् आगच्छत? (दुर्बुद्धि किसलिए सुबुद्धि के घर आया?)
(iv) द्वितीयस्य अंगरक्षकस्य किम् नाम आसीत्? (दूसरे अंगरक्षक का क्या नाम था?)
उत्तरम् :
(i) चत्वारः
(ii) आनन्दे
(iii) कार्यवशात्
(iv) स्नेह।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) दुर्बुद्धिः सर्वदा कस्य संग्रहं कर्तुम् इच्छति स्म?
(दुर्बुद्धि सदा क्या संग्रह करना चाहता था?)
(ii) सुबुद्धिः सर्वान् कर्मचारिणः कथं मन्यते स्म?
(सुबुद्धि सभी कर्मचारियों को कैसे मानता था?)
(iii) सुबुद्धेः चत्वारः रक्षकाः के सन्ति ?
(सुबुद्धि के चार रक्षक कौन हैं?)
उत्तरम् :
(i) दुर्बुद्धि सर्वदा अधिकाधिकं धन-संग्रहं कर्तुम् इच्छति स्म।
(दुर्बुद्धि सदा अधिक धन-संग्रह करना चा
(ii) सुबुद्धिः सर्वान् कर्मचारिणः पुत्रवत् मन्यते स्म।
(सुबुद्धि सब कर्मचारियों को पुत्रवत् मानता था।)
(iii) सत्यं, स्नेहः, न्यायः त्यागः च एते चत्वारः अंगरक्षकाः।
(सत्य, स्नेह, न्याय और त्याग ये चार अंगरक्षक हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
सुबुद्धिदेव जयते।
(सुबुद्धि की ही विजय होती है।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
सुबुद्धि दुर्बुद्धिश्च द्वौ धनिकौ आस्ताम् सुबुद्धि सुखी आसीत्, दुर्बुद्धिश्च लोभी दुःखी आसीत्। अति धन संचिते अपि सः असन्तुष्टः क्रुद्ध, दुखी आसीत, एकदा दुर्बुद्धिः सुबुद्धि तस्य आनन्दस्य कारणमपृच्छत्। सुबुद्धिः उवाच मित्र! मम सत्य-स्नेह-न्याय-त्यागाः इति चत्वारः सेवकाः सन्ति ये माम् अन्यायात् पक्षपातात्, उपराधात् रक्षन्ति त्यागः दानाय प्रेरयति। अतोऽहम् आनन्दितः अस्मि। दुर्बुद्धिः श्रद्धया तस्य चरणयोपपत्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘चलन्ति स्म’ क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति –
(अ) उद्योगाः
(ब) अङ्गरक्षकाः
(स) कर्मचारिणः
(द) सहायतया
उत्तरम् :
(अ) उद्योगाः

(ii) ‘सर्वान्’ इति विशेषणपदस्य विशेष्यमस्ति –
(अ) अङ्गरक्षकाः
(ब) कर्मचारिणः
(स) अन्यायाः
(द) सहायकाः
उत्तरम् :
(ब) कर्मचारिणः

(iii) ‘एतेषां सहायतया’ इत्यत्र एतेषां सर्वनाम पदं केभ्यः प्रयुक्तम् –
(अ) कर्मचारिणाम्
(ब) अङ्गरक्षकाणाम्
(स) उद्योगानाम्
(द) अन्यायानाम्
उत्तरम् :
(ब) अङ्गरक्षकाणाम्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘मां दानाय प्रेरयति’ अत्र ‘दानाय’ पदस्य विलोमपदमस्ति –
(अ) माम्
(ब) दानाय
(स) सञ्चायः
(द) त्यागः
उत्तरम् :
(स) सञ्चायः

13. एकदा एकः वैदेशिकः प्रथम राष्ट्रपतेः श्री राजेन्द्र प्रसादस्य गृहं प्राप्तवान्। राष्ट्रपतेः परिचारकः तम् आतिथ्यगृहे प्रतीक्षितुम् अकथयत् तम् असूचयत् च यद् राष्ट्रपति महोदयः सम्प्रति पूजां कुर्वन्ति। सः अतिथिः ज्ञातुम् ऐच्छत् यद् राष्ट्रपतिः कथं करोति पूजाम्? सङ्कोचं कुर्वन् अपि सः अन्तः पूजागृह प्रविष्टः राष्ट्रपतेः समक्षं विद्यमानं मृत् पिण्डम् अवलोक्य सः अवन्दत श्रद्धया च तत्र उपविशत्। ‘पूजां परिसमाप्य राष्ट्रपति महोदयः पूजागृहे स्थिते तम् दृष्ट्वा प्रसन्नः अभवत्। ससम्मानं तय् अन्तः अनयत्। आगन्तुकस्य ललाटे विद्यमानं भावं दृष्ट्वा श्री राजेन्द्र महोदयः तस्य कौतूहल विज्ञाय तस्मै सम्बोधयत् एतद् मृत्पिण्ड भारतस्य भूम्याः प्रतीकम् अस्ति। एतेन मृत्पिण्डेन. एव भारतीया महती अन्नात्मिकां सम्पदां प्राप्नुवन्नि। अत एव वयं मृत्तिकायाः कणेषु ईश्वरस्य दर्शनपि कुर्मः। अस्माकं विचारे तु मानवेषु पशु-पक्षिषु, पाषाणेषु, वृक्षादिषु किंवा अचेतनेषु अपि ईश्वरस्य सत्ता अस्ति।

(एक दिन एक विदेशी प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद के घर पर पहुँच गया। राष्ट्रपति के सेवक ने उसको अतिथि गृह में प्रतीक्षा करने के लिए कह दिया और उसे सूचित कर दिया कि राष्ट्रपति महोदय अभी पूजा कर रहे हैं। वह अतिथि यह जानना चाहता था कि राष्ट्रपति पूजा कैसे करते हैं? संकोच करते हुए भी वह पूजागृह में प्रवेश हो गया। राष्ट्रपति के समक्ष विद्यमान मिट्टी के ढेले को देखकर उसने वन्दना की और श्रद्धापूर्वक बैठ गया। पूजा को समाप्त करके राष्ट्रपति माहेदय ने पूजागृह में बैठे उसको देखकर प्रसन्न हुए। सम्मानपूर्वक उसे अन्दर ले गये। आगन्तुक के ललाट पर विद्यमान भाव को देखकर श्री राजेन्द्र महोदय ने उसके कुतूहल को जानकर उसे संबोधित किया कि यह मिट्टी का ढेल भारत की भूमि का प्रतीक है। इस मिट्टी के ढेले से ही भारतीय बहत-सी अन्नात्म सम्पदा प्राप्त करते हैं। अतएव हम मिट्टी के कणों में भी ईश्वर के विचार से तो मानव, पशु, पक्षी, पत्थर, वृक्षादि और तो क्या अचेतनों में भी ईश्वर की सत्ता है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कः श्री राजेन्द्र प्रसादस्य गृहं प्राप्तवान् ?
(श्री राजेन्द्र प्रसाद के घर कौन पहुँच गया?)
(ii) भारत भूम्याः प्रतीक किम् अस्ति?
(भारतभूमि का प्रतीक क्या है?)
(ii) कस्याः कणेषु वयम् ईश्वर दर्शनं कुर्मः?
(किसके कणों में हम ईश्वर के दर्शन करते हैं?)
(iv) किं कुर्वन् आगन्तुकः पूजागृहं प्रविष्ट:?
(क्या करता हुआ आगन्तुक पूजागृह में घुस गया?)
उत्तरम् :
(i) वैदेशिक :
(i) मृत्पिण्डम्
(iii) मृत्तिकायाः
(iv) सङ्कोचम्।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) राष्ट्रपति महोदयः आगन्तुकं कुत्र दृष्ट्वा प्रसन्नः?
(राष्ट्रपति महोदय आगन्तुक को कहाँ देखकर प्रसन्न हुए?)
(ii) राजेन्द्र प्रसाद महोदयः आगन्तुकस्य कौतूहलं विज्ञाय तस्मै किं सम्बोधयत?
(राजेन्द्र प्रसाद जी ने आगन्तुक के कुतूहल को जानकर उसको क्या संबोधित किया?)
(iii) अतिथि महोदयः किं ज्ञातुम् ऐच्छत्? (अतिथि महोदय क्या जानना चाहते थे?)
उत्तरम् :
(i) तं पूजागृहे स्थितं दृष्ट्वा राष्ट्रपति महोदयः प्रसन्नः अभवत् ?
(उसे पूजागृह में बैठा देखकर राष्ट्रपति महोदय प्रसन्न हो गये।)
(ii) एतत्मृतपिण्डं भारतस्य भूम्याः प्रतीकम् अस्ति, एतेन भारतीया अन्न सम्पदां प्राप्नुवन्ति अतः वयं मृत्कणेषु ईश्वरस्य दर्शनं कुर्मः। (यह मिट्टी का पिण्ड भारतभूमि का प्रतीक है। इससे भारतीय अन्न सम्पदा को प्राप्त करते हैं। अतः हम मिट्टी के कणों में ईश्वर के दर्शन करते हैं।
(iii) अतिथि महोदयः ज्ञातुमैच्छत् यत् राष्ट्रपति महोदयः कथं करोति पूजाम्?
(अतिथि महोदय जानना चाहते थे कि राष्ट्रपति महोदय कैसे पूजा करते हैं?)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
ईश्वरः सर्वव्यापकः। (ईश्वर सर्वव्यापक है।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
एक: वैदेशिकः राष्ट्रपतेः डॉ. राजेन्द्र प्रसादस्य गृहम् आगच्छत्। तदा सः पूजां करोति स्म। परिचायक प्रतीक्षितुं न्यवेदयतः परञ्च सः तस्य पूजा विधि दृष्टुम् इच्छति स्म अतः पूजा गृहं प्रविष्ट, पूजाविधौ सम्पन्ने आगतः राष्ट्रपतिम् अपृच्छत् महोदय! किमिदं मृत्पिण्डम् त्वं पूजयसि? मित्र! एष भारत भूम्याः प्रतीकमस्ति। एषा भारतीया मृदा एव भारतीयेभ्यः अन्नादिकं प्रदाय उदरं पूरयति पालयति च। वयं भारतस्य सर्वेषु वस्तुषु ईश्वरस्य सत्तां पश्यामः। अतः ईश्वरः सर्वव्यापकः।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘प्राप्नुवन्ति’ अस्याः क्रियापदस्य कर्तृपदम् अस्ति –
(अ) अन्नात्मिकां
(ब) सम्पदाम्
(स) भारतीयाः
(द) महती
उत्तरम् :
(स) भारतीयाः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘भावम्’ इति विशेष्यस्य अत्र विशेषण पदम् अस्ति –
(अ) आगन्तुकस्य
(ब) ललाटे
(स) विद्यमानम्
(द) भावम्
उत्तरम् :
(स) विद्यमानम्

(iii) ‘मृत्पिण्डं दृष्ट्वा सोऽवन्दत’ अत्र सः इति सर्वनाम पदं प्रयुक्तम्
(अ) राजेन्द्र प्रसादः
(ब) परिचायकः
(स) आगन्तुकः
(द) वैदेशिक:
उत्तरम् :
(द) वैदेशिक:

(iv) ‘तं दृष्ट्वा प्रसन्नः अभवत् अत्र ‘प्रसन्न’ शब्दस्य विलोमपदम् अस्ति
(अ) अप्रसन्नः
(ब) दृष्ट्वा
(स) प्रसन्नः
(द) अभवत्।
उत्तरम् :
(अ) अप्रसन्नः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

14. षट् कारणानि श्रियं विनाशयन्ति। प्रथमं कारणम् अस्ति असत्यम्। यः नरः असत्यं वदति तस्य कोऽपि जन: विश्वासं न करोति। निष्ठुरता अस्ति द्वितीयं कारणम्। उक्तं च – सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।’ तृतीयं कारणं अस्ति कृतघ्नता। जीवने अनेके जनाः अस्मान् उपकुर्वन्ति। प्रायः जनाः उपकारिण विस्मरन्ति, प्रत्युपकारं न कुर्वन्ति। एतादृशः स्वभावः कृतघ्नता इति उच्यते। आलस्यम् अपरः महान् दोषः, ‘आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।’ अहंकारः मनुष्या मतिं नाशयति। अहङ्कारी मनुष्यः सर्वदा आत्मप्रसंशाम् एव करोति। न कदापि कस्यचित् उपकारं करोति व्यसनानि अपि श्रियं हरन्ति। ये मद्यपानं कुर्वन्ति तेषाम् आत्मबलं, बुद्धिबलं, शारीरिक बलं च नश्यति। अतः बुद्धिमान् एतान् दोषान् सर्वथा त्यजेत्।

(छ: कारण लक्ष्मी के विनाशक होते हैं। पहला कारण है असत्य। जो मनुष्य झूठ बोलता है उसका कोई विश्वास नहीं करता। निष्ठुरता दूसरा कारण है। कहा भी गया है- सत्य बोलना चाहिए (परन्तु) प्रिय या मधुर सत्य ही बोलना चाहिए। अप्रिय (कटु) सत्य भी नहीं बोलना चाहिए। तीसरा कारण है- कृतघ्नता। जीवन में अनेक लोग हमारा उपकार करते हैं। प्रायः लोग उपकारी को भूल जाते हैं, उसके बदले में उसका उपकार नहीं करते हैं। इस प्रकार का स्वभाव कृतघ्नता कहलाता है। आलस्य एक अन्य महान् दोष है। आलस्य मनुष्यों का शरीर में ही स्थित महान् शत्रु हैं। अहंकार (घमंड) मनुष्य की मति को नष्ट करता है। अहंकारी मनुष्य हमेशा आत्मप्रशंसा ही करता है। कभी किसी का उपकार नहीं करता है। दुर्व्यसन भी लक्ष्मी का हरण करते हैं, जो लोग मद्यपान करते हैं उनका आत्म-बल, बुद्धिबल और शारीरिक बल नष्ट हो जाता है। अतः बुद्धिमान को ये दोष हमेशा त्याग देने चाहिए।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कति कारणानि श्रियं विनाशयन्ति ?
(कितने कारण लक्ष्मी का विनाश करते हैं?)
(ii) लक्ष्मी विनाशस्य किं प्रथम कारणम्?
(लक्ष्मी विनाश का पहला कारण क्या है?)
(iii) कीदृशं सत्यं ब्रूयात् ?
(कैसा सत्य बोलना चाहिए?)
(iv) मनुष्याणां कः शरीरस्थो रिपुः?
(मनुष्यों के शरीर में स्थित शत्रु कौन है?)
उत्तरम् :
(i) षड्
(ii) असत्यम्
(iii) प्रियम्
(iv) आलस्यम्।

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) असत्य वादनेन का हानिः?
(असत्य बोलने से क्या हानि है?)
(ii) कीदृशाः जनाः कृतघ्नाः भवन्ति?
(कैसे मनुष्य कृतघ्न होते हैं?)
(iii) मद्यपानं किं किं हरति?
(मद्यपान क्या-क्या हरण करता है?)
उत्तरम् :
(i) यः असत्यं वदति तस्य कोऽपि विश्वासं न करोति।।
(जो झूठ बोलता है उस पर कोई विश्वास नहीं करता है।)
(ii) यो जनाः उपकारिणं विस्मरन्ति प्रत्युपकारं न कुर्वन्ति ते कृतघ्नाः भवन्ति।
(जो लोग उपकारी को भूल जाते हैं तथा बदले में उपकार नहीं करते, वे कृतघ्न होते हैं।)
(ii) मद्यपानं मानवस्य आत्मबलं, बुद्धिबलं शारीरिकं बलं च हरति।
(मद्यपान मानव के आत्मबल, बुद्धिबल और शारीरिक बल को हर लेता है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
षड्दोषान् वर्जयेत्। (छः दोषों को त्यागना चाहिए।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
षट् कारणानि श्रियं विनाशयन्ति असत्यात् न तस्मिन् कोऽपि विश्वसिति निष्ठुरता प्रियताम्, कृतघ्नता प्रत्युपकारं
विस्मारयति, आलस्यं मानवस्य महान् शत्रुः अहंकारश्च मानवस्य मतिं नाशयति आत्मश्लाघां करोति परहितम् अकृत्वा व्यसनेषु पतित्वा आत्मबलं, बुद्धिबलं शारीरिक शक्ति च नश्यति। त्याज्याः एते दोषाः।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘…..प्रत्युपकारं न कुर्वन्ति’ अत्र ‘कुर्वन्ति’ क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति –
(अ) अहंकारिणः जनाः
(ब) व्यसनिनः
(स) कृतघ्नजनाः
(द) अलसाः जना।
उत्तरम् :
(स) कृतघ्नजनाः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘प्रथमं कारणम्’ इत्यनयोः विशेषणपदमस्ति –
(अ) प्रथमम्
(ब) कारणम्
(स) अस्ति
(द) असत्यम्
उत्तरम् :
(अ) प्रथमम्

(iii) ‘तस्य कोऽपिजनः विश्वासं न करोति’ अत्र ‘तस्य’ सर्वनाम पदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) असत्य वादिनः नरस्य
(ब) कृतघ्नस्य
(स) निष्ठुरस्य
(द) अलसस्य।
उत्तरम् :
(अ) असत्य वादिनः नरस्य

(iv) ‘अहङ्कारः मनुष्यस्य मतिं नाशयति’ ‘मतिं’ शब्दस्य पर्यायपदमस्ति
(अ) अहङ्कारः
(ब) मनुष्यस्य
(स) मतिम्
(द) बुद्धिं
उत्तरम् :
(द) बुद्धिं

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

15. अस्माकं देशस्य उत्तरस्यां दिशि पर्वतराजः हिमालयः अस्ति। अस्य पर्वतस्य श्रृंखला विस्तृता वर्तते। सः ‘पर्वतराज’ इति कथ्यते। संसारस्य उच्चतमः पर्वतः अस्ति। अयं सर्वदा हिमाच्छादितः भवति। सः भारतदेशस्य मुकुटमिव रक्षकः च अस्ति। अनेकाः नद्यः इतः एव निःसरन्ति। नदीषु पवित्रतमा गङ्गा अपि हिमालयात् एव प्रभवति। अनेकानि तीर्थस्थलानि हिमालय क्षेत्रे वर्तन्ते। वस्तुतः हिमालयः तपोभूमिः अस्ति। पुरा अनेके जनाः तत्र तपः कृतवन्तः।

अत्रत्यं वातावरणं मनोहरं शान्तं चित्ताकर्षकं च भवति। हिमालयस्य विविधाः वनस्पतयः ओषधिनिर्माणे उपर सन्ति। तत्र दुर्लभ रत्नानि मिलन्ति बहुमूल्यं काष्ठं च तत्र प्राप्यते। हिमालय क्षेत्रे बहूनि मन्दिराणि सन्ति। प्रतिवर्ष भक्ताः श्रद्धालयः, पर्यटनशीलाः जनाश्च मन्दिरेषु अर्चनां कुर्वन्ति, स्वास्थ्यलाभमपि प्राप्नुवन्ति। अस्य हिमालयस्य महत्वम् आध्यात्मिक-दृष्ट्या, पर्यावरण-दृष्ट्या भारतस्य रक्षा-दृष्ट्या च अपि वर्तते। अतः अयं पर्वतराजः हिमालयः अस्माकं गौरवम् अस्ति।

(हमारे देश की उत्तर दिशा में पर्वतराज हिमालय है। इस पर्वत की श्रृंखला विस्तृत है। वह ‘पर्वतराज’ कहलाता है। संसार का सबसे ऊँचा पर्वत है। यह हमेशा बर्फ से ढका रहता है। वह भारतदेश के मुकुट की तरह और रक्षक है। अनेक नंदियाँ इसी से निकलती हैं। नदियों में पावनतम गंगा भी हिमालय से ही निकलती है। हिमालय के क्षेत्र में अनेक तीर्थस्थल हैं। वास्तव में हिमालय तपोभूमि है। पहले अनेक लोग यहाँ तप किया करते थे।

यहाँ का वातावरण मनोहर, शान्त और चित्ताकर्षक है। हिमालय की विविध वनस्पतियाँ ओषधि बनाने में उपयोगी हैं। वहाँ दुर्लभ रत्न भी मिलते हैं। बहुमूल्य लकड़ी भी वहाँ प्राप्त होती है। हिमालय के क्षेत्र में बहुत से मन्दिर हैं। प्रतिवर्ष भक्त, श्रद्धालु और पर्यटनशील लोग मन्दिरों में अर्चना करते हैं, स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त करते हैं। इस हिमालय का महत्व आध्यात्मिक, पर्यावरण और भारत की रक्षा की दृष्टि से भी है। अतः यह पर्वतराज हिमालय हमारा गौरव है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) अस्माकं देशस्य उत्तरस्यां दिशि किं नाम पर्वतः अस्ति ?
(हमारे देश की उत्तर दिशा में किस नाम का पर्वत है?)
(ii) हिमालय पर्वत श्रृंखला कीदृशी अस्ति?
(हिमालय पर्वत श्रृंखला कैसी है?)
(iii) भारतदेशस्य मुकुटमिव रक्षकः च कः ?
(भारत देश का मुकुट की तरह और रक्षक कौन है?
(iv) हिमालय कस्य भूमिः ?
(हिमालय किसकी भूमि है ?)
उत्तरम् :
(i) हिमालयः नाम
(ii) विस्तृता
(iii) हिमालयः
(iv) तपोभूमिः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) काभि दृष्टिभिः हिमालयस्य महत्वम् अस्ति ?
(किन दृष्टियों से हिमालय का महत्व है?)
(ii) जनाः मन्दिरेषु किं कुर्वन्ति ?
(लोग मन्दिरों में क्या करते हैं?)
(ii) हिमालयस्य वातावरणं कीदृश अस्ति?
(हिमालय का वातावरण कैसा है?)
उत्तरम् :
(i) आध्यात्मिक-पर्यावरण-रक्षा दृष्टिभिः हिमालयः महत्वपूर्णः अस्ति।
(अध्यात्म, पर्यावरण-रक्षा की दृष्टि से हिमालय महत्वपूर्ण है।)
(ii) मन्दिरेषु अर्चनां कुर्वन्ति स्वास्थ्य लाभं च प्राप्नुवन्ति ।
(मंदिरों में पूजा करते हैं और स्वास्थ्य- लाभ प्राप्त करते हैं।)
(iii) हिमालयस्य वातावरणं मनोहरं, शान्तं, चित्ताकर्षकं च अस्ति।
(हिमालय का वातावरण मनोहर, शांत और चित्ताकर्षक है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
पर्वतराज हिमालयः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
भारतस्य उत्तरस्यां दिशि हिमालयः अस्ति विस्तारात् पर्वतराजः, हिमाच्छादनात् हिमालय सर्वोच्चत्वात् भारतस्य
मुकुटमिव अस्य नद्यः पावनं जलं, वनानि औषधानि यच्छन्ति तीर्थानि पावनं कुर्वति। अनेकेषु देवालयेषुजनाः
स्वइष्टानाम् अर्चनां कुर्वन्ति। स्वास्थ्य एव आध्यात्मिक लाभेन सह भारत रक्षकोऽपि। भारत गौरवस्य प्रतीतोऽयम्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘तीर्थानि पावनं कुर्वति’ वाक्ये क्रियापदमस्ति –
(अ) तीर्थानि
(ब) पावन
(स) कुर्वति
(द) पवित्र
उत्तरम् :
(स) कुर्वति

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘श्रृंखला विस्तृता वर्तते’ अत्र विशेषण पदमस्ति?
(अ) श्रृंखला
(ब) विस्तृता
(स) वर्तते
(द) अस्य
उत्तरम् :
(ब) विस्तृता

(iii) ‘अस्य पर्वतस्य’ इत्यत्र ‘अस्य’ सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्
(अ) हिमालयस्य
(ब) आडावलस्य
(स) ऋष्यमूकस्य
(द) चित्रकूटस्य
उत्तरम् :
(अ) हिमालयस्य

(iv) ‘उद्भवति’ पदस्य पर्यायवाचिपदम् अनुच्छेदे अस्ति
(अ) प्रभवति
(ब) प्राप्यते
(स) प्राप्नुवन्ति
(द) वर्तते
उत्तरम् :
(अ) प्रभवति

16.लालबहादुर शास्त्रि-महोदयस्य नाम को न जानाति? भारतस्य द्वितीयः प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री उत्तरप्रदेशस्य वाराणसी जनपदे जन्म प्राप्तवान्। 1904 तमे ईसवीये वर्षे अक्टूबर मासस्य 2 दिनांक तस्य जन्म अभवत्। तस्य जनकस्य नाम शारदा प्रसादः मातुश्च नाम रामदुलारी आसीत्। बाल्यावस्थायामेव तस्य पितुः देहावसान जातम्। सः वाराणसीस्थे हरिश्चन्द्र विद्यालये, शिक्षा प्राप्तवान्। उच्च शिक्षा तु सः काशी विद्यापीठे गृहीतवान्। महात्मागान्धी महोदयस्य नेतृत्वे सञ्चालिते स्वतन्त्रता आन्दोलने सोऽपि प्रविष्टवान्। वर्षद्वयात्मकं कारावासम् अपि प्राप्तवान्। गुणैः जनतायाः श्रद्धाभाजनम् अभूत्। स्वतन्त्रभारते विविधानि पदानि अलङ्कुर्वन् असौ भारतस्य द्वितीयः प्रधानमन्त्री अभवत्। 1966 तमे ईसवीये वर्षे जनवरीमासस्य। 11 तमे दिनाङ्के तस्य देहावसानं जातम्।

(लालबहादुर शास्त्री महोदय का नाम कौन नहीं जानता। भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री ने उत्तरप्रदेश के वाराणसी जनपद में जन्म लिया। उनका जन्म 2 अक्टूबर सन् 1904 ईसवी वर्ष में हुआ। उनके पिताजी का नाम शारदाप्रसाद और माँ का नाम रामदुलारी था। बचपन में ही उनके पिताजी का देहावसान हो गया। उन्होंने वाराणसी स्थित हरिश्चन्द्र विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। उच्च शिक्षा उन्होंने काशी विद्यापीठ में ग्रहण की। महात्मा गांधी महोदय के नेतृत्व में संचालित स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी वे प्रविष्ट हुए। दो वर्ष का कारावास भी प्राप्त किया। गुणों से जनता के श्रद्धा-पात्र हो गये। स्वतन्त्र भारत में विविध पदों को अलंकृत करते हुए भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री हुए। 11 जनवरी सन् 1966 ईस्वी वर्ष में उका देहावसान हो गया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) भारतस्य द्वितीयः प्रधानमंत्री कः आसीत?
(भारत का द्वितीय प्रधानमंत्री कौन था?)
(ii) लालबहादुर शास्त्रिणः जन्म कदा अभवत्?
(लालबहादुर शास्त्री का जन्म कब हुआ?
(iii) लालबहादुर शास्त्रिणः पितुः नाम किमासीत्?
(लालबहादुर शास्त्री के पिताजी का नाम क्या था?)
(iv) शास्त्रिमहाभागः कस्मिन् जनपदे अजायता?
(शास्त्री जी किस जनपद में पैदा हुए?)
उत्तरम् :
(i) लालबहादुर शास्त्री
(ii) 2 अक्टूबर 1904
(iii) शारदा प्रसादः
(iv) वाराणसी जनपदे।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) लालबहादुर शास्त्रि महाभागः कदा दिवंगतः?
(लाल बहादुर शास्त्री कब दिवंगत हुए?)
(ii) शास्त्रि महाभागः कियत् कालं कारावासे अतिष्ठत्?
(शास्त्री जी कितने दिन कारावास में रहे?)
(iii) शास्त्रि महोदयस्य उच्चशिक्षा कुत्र अभवत्?
(शास्त्री जी की उच्च शिक्षा कहाँ हुई?)
उत्तरम् :
(i) 1966 तमे ईसवीये वर्षे जनवरी मासस्य एकादश दिवसे दिवंगतः।
(ii) सः वर्षद्वयात्मकं कारावासम् प्राप्तवान्।
(iii) शास्त्रि महाभागस्य उच्चशिक्षा काशी विद्यापीठे अभवत्।

प्रश्न 3.
अस्य अनच्छेदस्य उपयक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
लालबहादुर शास्त्री महाभागः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
भारतस्य द्वितीय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री वाराणसी जनपदे 1904 तमे अक्टूबर मासे द्वितीये दिवसे जन्म लेभे। रामदुलारी शारदा प्रसादयोऽयं सुतः तत्रैव विद्यालयी शिक्षा प्राप्य उच्च शिक्षामसौ काशी विद्यापीठ प्राप्तवान्। स्वातन्त्र्य संग्रामे प्रविश्य सोऽपि वर्षद्वयात्मकं कारावासं प्राप्तवान्। गुणैः जनतायाः श्रद्धाभाजनमभवत्। स्वतन्त्र भारते विविधानि पदानि प्राप्यासौ प्रधनमन्त्री पदमलंकृतवान्। 11-1-1960 तमे देहावसानं जातम्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘अभूत्’ इति क्रियापदस्य कर्ता अनुच्छेदानुसारमस्ति
(अ) शारदाप्रसादः
(ब) रामदुलारी
(स) लालबहादुर शास्त्री
(द) श्रद्धाभाजनम्
उत्तरम् :
(स) लालबहादुर शास्त्री

(ii) ‘उच्चशिक्षा’ इत्यनयो विशेषण पदमस्ति
(अ) उच्च
(ब) शिक्षा
(स) काशी
(द) विद्यापीठ
उत्तरम् :
(अ) उच्च

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iii) ‘तस्य जन्म अभवत्’ तस्य सर्वनाम पदस्य स्थाने संज्ञापदं भवेत
(अ) शारदा प्रसादस्य
(ब) रामदुलार्याः
(स) लाल बहादुर शास्त्रिण
(द) भारतस्य
उत्तरम् :
(स) लाल बहादुर शास्त्रिण

(iv) ‘अलभत’ इति क्रियापदस्य पर्यायवाचिपदं अनुच्छेदे अस्ति –
(अ) प्राप्तवान्
(ब) अभवत्
(स) गृहीतवान्
(द) अभूत
उत्तरम् :
(अ) प्राप्तवान्

17. गौः भारतीय-संस्कृतेः प्रधानः पशुः अस्ति। वेदेषु-शास्त्रेषु इतिहासे लोकमान्यतायां च सर्वत्र अस्याः विषये श्रद्धापूर्ण वर्णनं प्राप्यते। भारते गौः माता इव पूज्या भवति। यथा माता स्व-दुग्धेन शिशून् पालयति तथैव गौ अपि दुग्ध धृतादिदानेन अस्माकं शरीरं बुद्धिं च पोषयति। भारतवासिनः जनाः आदरेण श्रद्धया चं गोपालनं कुर्वन्ति। गौः अस्माकं कृते बहु उपयोगिनी अस्ति। सा अस्माकं कृते दुग्धं ददाति। तेन दुग्धेन दधि तक्रं मिष्ठान्नं घृतमादि निर्माय तस्य सेवनेन च वयं स्वस्थाः पुष्टाः भवामः। गावः अस्माकं क्षेत्राणि कर्षन्तिं। येन कृषिकार्यं प्रचलति। तस्य गोमयस्य इन्धनरूपेण प्रयोगः भवति। गोमयस्य, गोमूत्रस्य च उपयोगः औषधिनिर्माणे, सुगन्धवर्तिका निर्माणे, कीटनाशक द्रव्य निर्माणे इत्यादिषु कर्मसु भवति। एवं प्रकारेण गावः मानवानां सर्वदैव उपकारं कुर्वन्ति।

(गाय भारतीय संस्कृति का प्रधान पशु है। वेदों, शास्त्रों, इतिहास और लोकमान्यता में सब जगह इसके विषय में श्रद्धापूर्ण वर्णन प्राप्त होता है। भारत में गाय माता की तरह पूजी जाती है। जैसे माता अपने दूध से शिशुओं को पालती है उसी प्रकार गाय भी दूध-घी आदि देकर हमारे शरीर और बुद्धि का पोषण करती है। भारतवासी लोग आदर और श्रद्धा से गोपालन करते हैं। गाय हमारे लिए बहुत उपयोगी होती है। वह हमारे लिये दूध देती है। उस दूध से दही, छाछ, मिठाई, घी आदि बनाकर उसके सेवन से हम स्वस्थ और पुष्ट होते हैं। गायें (बैल) हमारे खेतों को जोतते हैं जिससे कृषिकार्य चलता है। उसके गोबर का ईंधन के रूप में प्रयोग होता है। गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग औषधि निर्माण, अगरबत्ती निर्माण, कीटनाशक निर्माण आदि कार्यों में होता है। इस प्रकार से गायें मानवों का सदैव उपकार करती हैं।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) भारतीय संस्कृतेः प्रधानपशुः कः?
(भारतीय संस्कृति का प्रधानपशु कौन है?)
(ii) भारतं गौः केषु पूज्यते?
(भारत में गौ किसकी तरह पूजी जाती है?)
(iii) गौः अस्माकं कृते किं ददाति?
(गाय हमारे लिए क्या देती है?)
(iv) गावः सर्वत्र कीदृशं वर्णनम् प्राप्यते?
(गाय का सब जगह कैसा वर्णन मिलता है?)
उत्तरम् :
(i) गौः
(ii) मातेव
(iii) दुग्धम्
(iv) श्रद्धापूर्णम्।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) गोमयस्य गोमूत्रस्य च प्रयोगः कुत्र भवति?
(गोबर और गोमूत्र का प्रयोग कहाँ होता है?)
(ii) धेनोः गोमस्य केन रूपेण प्रयोगः भवति?
(गाय के गोबर का किस रूप में प्रयोग होता है?)
(iii) गौः अस्मान् कथं पोषयति? (गाय हमारा पोषण कैसे करती है?)
उत्तरम् :
(i) औषधि निर्माण, सुगन्धवर्तिका निर्माणे, कीटनाशक द्रव्य निर्माणे इत्यादिषु गोमयस्य गोमूत्रस्य च प्रयोगः भवति।
(औषधि-निर्माण, अगरबत्ती निर्माण, कीटनाशक द्रव्य निर्माण इत्यादि में गोमय और गौमूत्र का प्रयोग होता है।)
(i) धेनो गोमयम् इन्धनरूपेण प्रयुज्यते।
(गाय के गोबर का ईंधन के रूप में प्रयोग होता है।)
(iii) यथा माता शिशून स्वदुग्धेन पालयति तथैव गौः दुग्धघृतादि दानेन अस्माकं शरीरं बुद्धिं च पोषयति।
(जैसे माता अपने दूध से बालक को पालती है, उसी प्रकार गाय दूध, घी देकर हमारे शरीर व बुद्धि का पोषण करती है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
गावः महत्वम् (गाय का महत्व)।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
गौः भारतीय संस्कृतेः प्रधानः पशु। संस्कृत साहित्ये गौः मातेव पूज्या प्रतिष्ठापिता। सा मातेव दुग्धादिभिः पौष्टिक पदार्थैः शिशून् बालान् च पालयति। तस्या दुग्धेन दधि, तक्र, घृतं, नवनीतादयः प्राप्यन्ते। तस्य सेवनेन मानवः हृष्ट-पुष्टश्च भवति। तस्य पञ्चगव्योऽपि औषधिरूपेण हितकरः। गोमयः इंधन रूपेण प्रयुज्यते। धेनो पञ्चगव्यं . पवित्रं, कीटनाशकं, रोगावरोधक पावनं च भवति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘घृतस्य सेवनेन कः लाभः भवति?’ अत्र भवति क्रियापदस्य कर्ता अस्ति –
(अ) घृतस्य
(ब) सेवनेन
(स) कः
(द) लाभ:
उत्तरम् :
(द) लाभ:

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(ii) ‘पूज्या गौः’ अत्र विशेषणपदमस्ति
(अ) पूज्याः
(ब) गौःर्जा
(स) धेनुः
(द) पूज्याः गौ
उत्तरम् :
(अ) पूज्याः

(iii) ‘सा अस्माकं कृते दुग्धं ददाति’ अत्र ‘सा’ इति सर्वनाम पदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) माता
(ब) गौः
(स) महिषी
(द) अजा
उत्तरम् :
(ब) गौः

(iv) ‘धेनुः’ इति पदस्य स्थाने गद्यांशे किं पदं प्रयुक्तम्?
(अ) गौः
(ब) पशु
(स) माता
(द) गो
उत्तरम् :
(ब) पशु

18. अद्य औद्योगिक विकासात् नगराणां विकासात् च जायते पर्यावरण प्रदूषितम्। अतः अद्य नागरिकाणां कर्त्तव्यमस्ति यद् वयं पर्यावरण संरक्षणार्थ प्रयत्नं कुर्मः तत्कृते वयं स्वच्छतां च धारयामः। महात्मागांधि महोदयस्यापि स्वच्छतोपरि विशेषः आग्रहे आसीत्। साम्प्रतमपि सर्वकारेण ‘स्वच्छ भारताभियानम्’ प्रचालितम्। तस्योद्देश्यमपि पर्यावरणस्य संरक्षण अस्ति। एवमेव नदीतडागवापीनां जलस्य स्वच्छतायाः प्रेरणा वयं ‘नमामि गड़े’ इति अभियानेन ग्रहीतुं शक्नुमः। वयम् अस्मिन् अभियाने सहभागितां च कृत्वा भारतस्य नवस्वरूपं प्रकटीकर्तुं शक्नुमः। एतस्य कृते वयं अवकरस्य समुचितं निस्तारणं कुर्मः। जनान् शौचालय निर्माणाय प्रेरणाय। जलाशयेषु स्वच्छतामाचरामः सार्वजनिक स्थानेषु प्रदूषणं न कुर्मः। प्रदूषणकराणां पदार्थानां प्रयोगं न कुर्मः। जनजागरणे सहायतां कुर्मः।

(आज औद्योगिक और नगरों के विकास से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। अतः आज नागरिकों का कर्त्तव्य है कि हम पर्यावरण-संरक्षण का प्रयत्न करें। उसके लिए हम सफाई रखें। महात्मा गांधी का भी स्वच्छता के ऊपर बहुत आग्रह था। अब भी सरकार द्वारा ‘स्वच्छ भारत’ अभियान चलाया गया है। उसका उद्देश्य भी पर्यावरण का संरक्षण ही है। इसी प्रकार नदी, तालाव, बावड़ियों के जल की स्वच्छता की प्रेरणा हम ‘नमामि गंगे’ अभियान से ले सकते हैं और हम इस अभियान में सहभागिता करके भारत का नया स्वरूप प्रकट कर सकते हैं। इसके लिए हम कूड़े का उचित निस्तारण करें, लोगों को शौचालय निर्माण के लिए प्रेरित करें। जलाशयों में स्वच्छता रखें, सार्वजनिक स्थानों पर प्रदूषण न करें। प्रदूषण करने वाले पदार्थों का प्रयोग न करें। जनजागरण में सहायता करें।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) पर्यावरणस्य संरक्षणार्थं वयं किं धारयामः?
(पर्यावरण के संरक्षण के लिए हम क्या धारण करें?)
(ii) सर्वकारेण किम् अभियान सञ्चालितम् ?
(सरकार द्वारा क्या अभियान चलाया जा रहा है?)
(ii) स्वच्छभारत अभियानस्य किमुद्देश्यम्?
(स्वच्छ भारत अभियान का क्या उद्देश्य है?)
(iv) स्वच्छतायाः प्रेरणा के ग्रहीतुं शक्यते?
(स्वच्छता की प्रेरणा किससे ली जा सकती है?)
उत्तरम् :
(i) स्वच्छताम्
(ii) स्वच्छभारताभियानम्
(ii) पर्यावरणसंरक्षणम्
(iv) ‘नमामि गङ्गे’ इति अभियानात्।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) पर्यावरण प्रदूषणं कस्मात् जायते?
(पर्यावरण प्रदूषण किससे पैदा होता है?)
(ii) नागरिकाणां किं कर्त्तव्यम् अस्ति?
(नागरिकों का क्या कर्त्तव्य है?)
(iii) महात्मागान्धिनः अपि कस्योपरि विशेष आग्रहः आसीत्?
(महात्मा गाँधी का किस पर विशेष आग्रह था?)
उत्तरम् :
(i) औद्योगिक विकासात् नगराणां च विकासात् पर्यावरण प्रदूषणं जायते।
(औद्योगिक विकास से और नगरों के विकास से पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न होता है।)
(ii) नागरिकाणां कर्त्तव्यम् अस्ति पर्यावरण संरक्षणार्थं प्रयत्न कुर्वन्तु ।
(पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयत्न करना नागरिकों का कर्तव्य है।)
(iii) महात्मागान्धिन स्वच्छतायाः उपरि विशेष आग्रह आसीत्।
(महात्मा गांधी का स्वच्छता के ऊपर विशेष आग्रह था।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
पर्यावरण संरक्षणम्।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
औद्योगिक विकासेन सदैवं पर्यावरण प्रदूषणं वर्धते। पर्यावरण रक्षणं नागरिकानां कर्त्तव्यम् अस्ति। पर्यावरण संरक्षण उद्देश्येन एव स्वच्छता, अभियानमपि सर्वकारेण सञ्चालितम् अस्ति। जलाशयानां जल-संरक्षणम् अपि नमामि गंगेन अभियानेन प्रवर्तते। एतस्य कृते अवकरस्य निस्तारणं करणीयम्। शौचालयानां निर्माण करणीयम्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘प्रयोग न कुर्मः’ अत्र ‘कुर्मः’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदम् अस्ति –
(अ) प्रदूषणकराणाम्
(ब) पदार्थानाम्
(स) वयम्
(द) प्रयोगम्
उत्तरम् :
(स) वयम्

(ii) ‘स्वच्छभारतम्’ इत्यनयो विशेषणपदम् अस्ति –
(अ) स्वच्छ
(ब) भारतम्
(स) साम्प्रतम्
(द) सर्वकारेण
उत्तरम् :
(अ) स्वच्छ

(iii) ‘तस्योद्देश्यमपि’ अत्र ‘तस्य’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) नमामि गङ्गे
(ब) स्वच्छ भारताभियानम्
(स) शौचालय निर्माणम्
(द) अवकर निस्तारणम्।
उत्तरम् :
(ब) स्वच्छ भारताभियानम्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘अधुना’ इति पदस्य पर्यायवाचिपदं गद्यांशेऽस्ति –
(अ) अद्य
(ब) साम्प्रतम्
(स) आग्रहे
(द) अभियाने
उत्तरम् :
(ब) साम्प्रतम्

19. हृद्यया मनोरमया च रीत्या राज्यधर्मस्य लोकव्यवहारस्य च शिक्षार्थमेव पञ्चतन्त्रं प्रवृत्तम्। विष्णु शर्मणा संस्कृत भाषया लिखिताः पञ्चतन्त्र कथा: जगतः सर्वाधिक भाषासु अनूदिताः सन्ति। विष्णुशर्मा अमरशक्ति नामकस्य नृपस्य त्रीन् पुत्रान् षड्भिः मासै: राजनीतिं शिक्षायितुम् ग्रन्थमिमं रचितवान्। षष्ठ शताब्द्यां लिखितोऽयं ग्रन्थः अतीव लोकप्रियः वर्तते। अस्य कथा: नीतिं शिक्षयन्त्यः मनोरञ्जनमपि कुर्वन्ति पाठकानाम्। पञ्चतन्त्राणां नामानि मित्रभेदः मित्रसम्प्राप्तिः, काकोलूकीयः लब्धप्रणाशः, अपरिक्षित कारकञ्चं सन्ति। पञ्चतन्त्रस्य कथासु पशुपक्ष्यादीनि एव पात्राणि सन्ति तथापि तेषां माध्यमेन सर्वसाधरणोपयोगिनः व्यवहार-ज्ञानस्य मनोहररीत्या अत्र वर्णनं कृतम्।

(हार्दिक और मन को अच्छी लगने वाली रीति से राजधर्म और लोक-व्यवहार की शिक्षा के लिए पंचतन्त्र प्रवृत्त हुआ। विष्णु शर्मा द्वारा संस्कृत भाषा में लिखे गये पंचतन्त्र की कथायें संसार में सबसे अधिक भाषाओं में अनूदित हैं। विष्णु शर्मा ने अमरशक्ति नाम के राजा के तीन पुत्रों को छ: महीने में राजनीति को सिखाने के लिए इस ग्रन्थ को रचा। छटी शताब्दी में लिखा गया यह ग्रन्थ अत्यन्त लोकप्रिय है। इसकी कथाएँ पाठकों की नीति सिखाती हुई मनोरञ्जन भी करती हैं। पंचतन्त्रों के नाम हैं- मित्र भेद, मित्र सम्प्राप्ति, काकोलूकीय, लब्ध प्रणाश तथा अपरीक्षित कारक। पंचतन्त्र की कथाओं में पशु-पक्षी आदि ही पात्र हैं। फिर भी उनके माध्यम से सर्व-साधारण के उपयोगी व्यावहारिक ज्ञान का मनोहर रीति से यहाँ वर्णन किया गया है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति ग्रन्थं केन रचितम्?
(पंचतन्त्र ग्रंथ की रचना किसने की?)
(ii) विष्णुशर्मा कस्य नृपस्य पुत्रान् पाठितवान्?
(विष्णु शर्मा ने किस राजा के पुत्रों को पढ़ाया?)
(iii) पञ्चतन्त्रम् कति तन्त्राणि सन्ति?
(पंचतन्त्र में कितने तन्त्र हैं?)
(iv) अमरशक्तिः नृपस्य कति पुत्रा आसन्?
(अमर शक्ति राजा के कितने पुत्र थे?)
उत्तरम् :
(i) विष्णुशर्माणा
(ii) अमरशक्तेः
(iii) पञ्च
(iv) त्रयः।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) पञ्चतन्त्राणाम् नामानि लिखत।
(पाँच तन्त्रों के नाम लिखिए।)
(ii) पञ्चतन्त्राणाम् ख्यातिः किं प्रमाणम्?
(पंचतन्त्र की ख्याति का क्या प्रमाण है?)
(ii) पञ्चतन्त्रं कदा लिखितम?
(पंचतंत्र कब लिखा गया?)
उत्तरम् :
(i) मित्रभेदः, मित्र सम्प्राप्तिः, काकोलूकीयः, लब्धप्रणाशः अपरीक्षित कारकञ्चेति पञ्चतन्त्राणां नामानि।
(मित्र सम्प्राप्ति, काकोलूकीयः, लब्ध प्रणाशः और अपरीक्षित कारक ये पाँच तंत्रों के नाम हैं।)
(ii) जगतः सर्वाधिक भाषासु अनूदितः इति अस्य ख्यातिः प्रमाणम्।।
(संसार की अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ, यह इसकी ख्याति का प्रमाण है।)
(iii) पञ्चतन्त्रं नामग्रन्थं षष्ठ शताब्दयां रचितम्।
(पञ्चतन्त्र नामक ग्रंथ छठवीं शताब्दी में रचा गया।)

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
पञ्चतन्त्रम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
पं. विष्णु शर्मणः संस्कृत भाषया लिखितम् पञ्चतन्त्र-नाम ग्रन्थं बालानां कृते लिखितम्। अस्य कथाः सर्वासु प्रमुखासु भाषासु अनूदिताः। आभिः कथाभिः षड्मासे एक राजनीतिज्ञाः कृताः। अस्य कथाः नीति, राजनीति कूटनीतिं च शिक्षन्ति। अस्य पञ्चतन्त्राणि सन्ति-मित्रभेदः, मित्रसम्प्राप्तिः, काकोलूकीयः लब्ध प्रणाश: अपरीक्षित कारकञ्च। अस्य कथानां पात्राणि प्रायः जन्तवः एव।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘अनूदिताः सन्ति’ सन्ति क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति
(अ) तन्त्राणि
(ब) कथाः
(स) पात्राणि
(द) भाषासु
उत्तरम् :
(ब) कथाः

(ii) ‘ग्रन्थः अतीव लोकप्रियः वर्तते’ एतेषु पदेषु विशेषणपदम् अस्ति –
(अ) ग्रन्थः
(ब) अतीव
(स) लोकप्रिय
(द) वर्तते
उत्तरम् :
(स) लोकप्रिय

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iii) ‘अस्य कथाः’ अत्र ‘अस्य’ इति सर्वनामपदं कस्य संज्ञायाः स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) विष्णु शर्मणः
(ब) पञ्चतन्त्रस्य
(स) मित्रभेदस्य
(द) काकोलूकीयस्य
उत्तरम् :
(ब) पञ्चतन्त्रस्य

(iv) ‘संसारस्य’ इति पदस्य अनुच्छेद पर्यायवाचि पदम् अस्ति
(अ) लोक व्यवहारस्य
(ब) जगत:
(स) लोकप्रियः
(द) व्यवहारज्ञानं
उत्तरम् :
ब) जगत:

20. एतद्विज्ञानस्य युगमस्ति। मानव जीवनस्य प्रत्येकस्मिन् क्षेत्रे विज्ञानमस्माकं महदुपकारं करोति। शिक्षाया क्षेत्रे विज्ञानेन महती उन्नतिकृता। मुद्रण यन्त्रेण पुस्तकानि मुद्रितानि भवन्ति। समाचारपत्राणि च प्रकाश्यन्ते। दूरदर्शनमपि शिक्षायाः प्रभावोत्पादकं साधनस्ति। सूचनायाः क्षेत्रे तु अनेन क्रान्तिकारीणि परिवर्तनानि कृतानि। अनेन मनोरञ्जनेन सह देशविदेशानां वृत्तमपि ज्ञायते। सङ्गणकयन्त्रम् आकाशवाणी चापि एवस्मिन् कार्ये सहाय्यौ भवतः। विज्ञानेन अस्माकं यात्रा सुकराभवत्। शकटात् आरभ्य राकेटयानपर्यन्तं सर्वमेव विज्ञानेन एव प्रदत्तम्। भूभागे वयं वाष्पयानादिभिः विविधैः यानैः यथेच्छं भ्रमामः वायुयानेन आकाशे खगवत् विचरामः जलयानेन च जलचरैरिव प्रगाढे सागरे संतरामः। इदानीं तु चन्द्रलोकस्यापि यात्रा अन्तरिक्ष यानेन सम्भवति।

(यह विज्ञान का युग है। मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान हमारा महान् उपकार करता है। शिक्षा के क्षेत्र में विज्ञान ने महान उन्नति की है। छापेखाने से अनेकों पुस्तकें छपी हैं और समाचार-पत्र प्रकाशित किये जाते हैं। दूरदर्शन भी शिक्षा का प्रभावी साधन है। सूचना के क्षेत्र में इसने क्रान्तिकारी परिवर्तन किये हैं। इससे मनोरञ्जन के साथ-साथ देश-विदेश के समाचार भी जाने जाते हैं। कम्प्यूटर और आकाशवाणी भी इस विषय में सहायक हुई है। विज्ञान से हमारी यात्रा सरल हो गई है। बैलगाड़ी से लेकर राकेट तक सब कुछ विज्ञान द्वारा ही दिया गया है । धरती के भाग को हम रेलगाड़ी आदि विविध वाहनों से इच्छानुसार भ्रमण करते हैं। वायुयान से आकाश में पक्षी की तरह विचरण करते हैं तथा जलयान से जलचरों की तरह गहरे सागर में तैरते हैं। अब तो चन्द्रलोक की यात्रा भी अन्तरिक्ष यान से सम्भव है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कस्य युगमेतत्?
(यह किसका युग है?)
(ii) शिक्षायाः प्रभावोत्पादकं साधनं किमस्ति?
(शिक्षा का प्रभावोत्पादक साधन क्या है?)
(iii) सूचनायाः क्षेत्र केन क्रान्तिकारीणि परिवर्तनानि कृतानि?
(सूचना के क्षेत्र में किसने क्रान्तिकारी परिवर्तन किये हैं?)
(iv) दूरदर्शनेन मनोरञ्जन सह किमन्यत् ज्ञायते?
(दूरदर्शन से मनोरंजन के साथ और क्या जाना जाता है?)
उत्तरम् :
(i) विज्ञानस्य
(ii) दूरदर्शनम्
(iii) दूरदर्शनेन
(iv) देशविदेशानां वृत्तम्।

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) विज्ञानेन मानवस्य यात्रा कीदृशी जाता?
(विज्ञान से मानव की यात्रा कैसी हो गई?)
(ii) वृत्तज्ञाने दूरदर्शनस्य के सहायकाः भवन्ति?
(समाचार जानने में दूरदर्शन के सहायक कौन होते हैं?)
(iii) दूरदर्शनम् सूचनायाः क्षेत्रे किं कृतम्?
(दूरदर्शन ने सूचना के क्षेत्र में क्या किया?)
उत्तरम् :
(1) विज्ञानेन मानवस्य यात्रा सुकरा अभवत्।
(विज्ञान से मानव की यात्रा सरल हो गई है।)
(ii) सङ्गणक-आकाशवाणी चापि अस्मिन् वृत्तज्ञाने सहाय्यौ भवतः।
(कंप्यूटर और आकाशवाणी भी समाचार जानने में सहायक होते हैं।)
(iii) सूचनायाः क्षेत्रे तु दूरदर्शनेन क्रान्तिकारीणि परिवर्तनानि कृतानि।
(सूचना के क्षेत्र में तो दूरदर्शन ने क्रांतिकारी परिवर्तन किया है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
विज्ञानस्य महत्वम् (विज्ञान का महत्व)।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
अस्मिन् युगे विज्ञानस्य महती आवश्यकता वर्तते। शिक्षायाः क्षेत्रे मुद्रण, समाचार पत्राणि, दूरदर्शनं च प्रभावोत्पादकानि च साधनानि सन्ति। सूचना-मनोरञ्जनादिषु कार्येषु, सङ्गणकयन्त्रम् आकाशवाणी च सहाय्यौ भवतः। वाष्पयान, – वायुयान, जलयानादिभि वयं स्थले जले आकाशे च स्वैरं विचरामः। चन्द्रलोकस्यापि यात्रा सम्भवति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘सागरे सन्तरामः’ अत्र ‘सन्तरामः’ क्रियाया कर्ता अस्ति –
(अ) वयम्
(ब) वायुयानैः
(स) जलयानैः
(द) चन्द्रयानैः
उत्तरम् :
(अ) वयम्

(ii) ‘महदुपकारकम्’ इत्यनयोः पदयोः विशेषण पदं अस्ति
(अ) महत्
(ब) उपकारकम्
(स) विज्ञानम्
(द) अस्माकम्
उत्तरम् :
(अ) महत्

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(iii) ‘अनेन क्रान्तिकारीणि …..।’ अत्र ‘अनेन’ इति सर्वनाम पदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) विज्ञानेन
(ब) दूरदर्शनेन
(स) आकाशवाण्या
(द) मुद्रणेन
उत्तरम् :
(ब) दूरदर्शनेन

(iv) ‘जले आकाशे च स्वैरं विचरामः” अत्र आकाशे पदस्य पर्यायपदमस्ति
(अ) जले
(ब) नभे
(स) आकाशे
(द) स्वैरं
उत्तरम् :
(ब) नभे

21. एकस्मिन् राज्ये एकः नृपः शासनं करोति स्म। तस्य अङ्गरक्षकः एकः वानरः आसीत्। वानरः स्वामिभक्तः आसीत्। नृपोऽपि तस्मिन् वानरे प्रभूतं विश्वासं करोति स्म। किन्तु वानरः मूर्खः आसीत्। एकदा नृपः सुप्तः आसीत्। वानरः तं व्यजनं करोति स्म। तस्मिन् समये नृपस्य वक्षस्थले एका मक्षिका अतिष्ठत। वानरः वारं-वारं तां मक्षिकाम् अपसारयितुं प्रायतत। परन्तु सा मक्षिका पुनः नृपस्य ग्रीवायाम् उपविशति स्म। मक्षिका दृष्ट्वा वानरः कुपितः अभवत्। मूर्ख वानरः मक्षिकायाः उपरि प्रहारम् अकरोत्। मक्षिका तु ततः उड्डीयते स्म। परञ्च खड्गप्रहारेण नृपस्य ग्रीवाम् अच्छिनत्। तेन नृपस्य मृत्युः अभवत्। अतः मूर्खस्य मित्रता घातिका भवति।

(एक राज्य में एक राजा शासन करता था। उसका अंगरक्षक एक बन्दर था। वानर स्वामिभक्त था। राजा भी उस बन्दर पर बहुत विश्वास करता था। किन्तु वानर मूर्ख था। एक दिन राजा सोया हुआ था। वानर उसे पंखा झुला रहा था। अर्थात् हवा कर रहा था। उसी समय राजा के वक्षस्थल पर एक मक्खी आ बैठी। वानर ने बार-बार उस मक्खी को हटाने (उड़ाने) का प्रयत्न किया। परन्तु वह मक्खी पुनः राजा की गर्दन पर बैठ गई। मक्खी को देखकर वानर नाराज हुआ। मूर्ख वानर ने मक्खी पर प्रहार किया। मक्खी तो वहाँ से उड़ गई परन्तु तलवार के प्रहार से राजा की गर्दन कट गई। उससे राजा की मृत्यु हो गई। अतः मूर्ख की मित्रता घातक होती है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) नृपस्य अपरक्षकः कः आसीत्?
(राजा का अंगरक्षक कौन था?)
(ii) वानरः कीदशः आसीत् ?
(वानर कैसा था?)
(iii) नृपः कस्मिन् विश्वसिति स्म?
(राजा किस पर विश्वास करता था?)
(iv) एकदा सप्ते नपे वानरः किं करोति स्म?
(एक दिन राजा के सो जाने पर बन्दर क्या कर रहा था?)
उत्तरम् :
(i) वानरः
(ii) स्वामिभक्तः
(iii) वानरे
(iv) व्यजनं करोति

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) नृपस्य मृत्यु कथम् अभवत्? (राजा की मौत कैसे हो गई?)
(ii) मर्खस्य मित्रता कीदशी भवति? (मर्ख की मित्रता कैसी होती है?)
(iii) वानरः कुपितः कथमभवत्? (वानर नाराज क्यों हो गया?)
उत्तरम् :
(i) मक्षिका नृपस्य ग्रीवायाम् अतिष्ठत। वानरः ते अपसारयितुमैच्छत अतः खड्गेन प्रहारम् अकरोत् नृपः च हतः।
(मक्खी राजा की गर्दन पर बैठी। बन्दर ने उसे हटाने की इच्छा से तलवार से प्रहार किया और राजा मर गया।)
(ii) मूर्खस्य मित्रता घातिका भवति। (मूर्ख की मित्रता घातक होती है।)
(iii) ग्रीवायाम् उपविष्टां मक्षिका दृष्ट्वा वानरः कुपितः अभवत।
(गर्दन पर बैठी मक्खी को देखकर बंदर क्रोधित हो गया ।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
मूर्खस्य मित्रता घातिका।
(मूर्ख की मित्रता घातक है।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
कस्यचित् शासकस्य अङ्गरक्षकः वानरः आसीत्। स्वामिभक्त गुणात् सः नृपस्य विश्वासपात्रम् आसीत्, परञ्च सः मूर्खः आसीत्। एकदा नृपः शेते स्म। एका मक्षिका तस्य वक्षे उड्डीयते स्म। वानरः ताम् अपासरत् परञ्च न अपासरत्। सः क्रुद्ध सन् खड्गेन तस्योपरि प्रहारमकरोत् । तेन नृपः हतः ‘मूर्खस्य मैत्री घातिका भवति।’

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘नृपः शासनं करोति’ अत्रं ‘करोति’ क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति
(अ) वानरः
(ब) नृपः
(स) अङ्गरक्षकः
(द) मक्षिका
उत्तरम् :
(ब) नृपः

(ii) ‘क्रुद्धः वानरः’ अत्र विशेषणपदम् अस्ति –
(अ) क्रुद्धः वानरः
(ब) क्रुद्धः
(स) मर्कटः
(द) वानरः
उत्तरम् :
(द) वानरः

(iii) ‘वानरः तं व्यजनं करोति स्म’ अत्र ‘तम्’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) वानरम्
(ब) नृपम्
(स) मक्षिकाम्
(द) ग्रीवाम्
उत्तरम् :
(ब) नृपम्

(iv) ‘जागृतः’ इति पदस्य विलोमपदं अनुच्छेद अस्ति –
(अ) कुपितः
(ब) घातिका
(स) सुप्तः
(द) स्थिता
उत्तरम् :
(स) सुप्तः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

22. जिवायाः माधुर्यं स्वर्ग प्रापयति, जिह्वायाः कटुता नरके पातयति। एक एव शब्दः जीवनं विभूषयेत्, अन्यः एकः शब्दः जीवनं नाशयेत। एकदा द्वयोः धनिनोः मध्ये विवादः उत्पन्नः जातः। तौ न्यायालयं गतौ। एक धनिकः अचिन्तयत् अहं लक्ष्यं रुप्यकाणि न्यायाधीशाय यच्छामि इति। सः स्यूते लक्ष रुप्यकाणि स्थापयित्वा न्यायाधीशस्य गृहम् गतवान्। न्यायाधीशः तस्य मन्तव्यं ज्ञात्वा क्रुद्धः अभवत्। धनिकः अवदत्-भोः मत् सदृशाः लक्षरुप्यकाणां दातारः दुर्लभा एव।” न्यायाधीशः अवदत् – “लक्षरुप्यकाणां दातारः कदाचित् अन्येऽपि भवेयुः परन्तु लक्ष रुप्यकाणां निराकारः मत्सदृशाः अन्ये विरला एवं अतः कृपया गच्छतु। न्याय स्थानं मलिनं मा कुरु। लज्जितः धनिकः धनस्यूत गृहीत्वा ततः निर्गतः।

(जिह्वा की मधुरता स्वर्ग प्राप्त करा देती है (तो) जिह्वा की कटुता नरक में गिरा सकती है। एक ही शब्द जीवन को विभूषित कर दे (तो) अन्य एक शब्द जीवन को नष्ट कर दे। एक बार दो धनवानों में विवाद हो गया। दोनों न्यायालय में गये। एक धनिक सोचता था- मैं लाख रुपये न्यायाधीश को दे देता हूँ। वह थैले में लाख रुपये रखकर न्यायाधीश के घर गया। न्यायाधीश उसके मन्तव्य को जानकर नाराज हो गया। धनिक बोला- अरे! मेरे समान लाख रुपयों के दाता दुर्लभ ही हैं। न्यायाधीश ने कहा- “लाख रुपयों के दाता कदाचिद् अन्य भी हों परन्तु लाख रुपयों को त्यागने वाले मेरे जैसे अन्य विरले ही होते हैं। अत: कृपया (यहाँ से) चले जाओ। न्याय के स्थान को मलिन (अपवित्र) मत करो।” शर्मिन्दा हुआ धनिक धन का थैला लेकर वहाँ से निकल गया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) धनिकः धनम् आदाय कस्य गृहं गतवान्?
(धनिक धन लेकर किसके घर गया।)
(ii) कस्याः कटुता नरके पातयति?
(किसका कड़वापन नरक में गिरा देता है?)
(ii) केषां निराकारः विरला एव?
(किसके मना करने वाले विरले ही होते हैं?)
(iv) एक एव शब्दः किं विभूषयेत?
(एक ही शब्द क्या विभूषित कर दे?)
उत्तरम् :
(i) न्यायाधीशस्य
(ii) जिह्वायाः
(iii) लक्षरुप्याकाणाम्
(iv) जीवनम्।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) कः न्याय स्थानं मलिनं कर्तुम् इच्छति स्म?
(कौन न्याय स्थान को मलिन करना चाहता था?)
(i) न्यायाधीशः किमर्थं क्रुद्धः अभवत्?
(न्यायाधीश क्यों नाराज हुआ?)
(iii) जिहवाया माधय॑स्य कटतायाः च का परिणतिः?
(जिहवा की मधुरता और कट्ता का क्या परिणाम होता है?)
उत्तरम् :
(i) धनिकः एक लक्षम् उत्कोचं दत्त्वा न्यायस्थानं मलिनं कर्तुम् इच्छति स्म।
(धनी एक लाख रुपये रिश्वत देकर न्यायस्थान को मलिन करना चाहता था।)
(ii) न्यायाधीशः धनिकस्य उत्कोच दानस्य मन्तव्यं ज्ञात्वा क्रुद्धेऽभवत्।
(न्यायाधीश धनी के धन दाव के मन्तव्य को जानकर क्रोधित हुआ।)
(iii) जिह्वायाः माधुर्यं स्वर्गं प्रापयति, कटुता च नरके पातयति।
(जिह्वा की मधुरता स्वर्ग प्राप्त कराती है और कटुता नरक।)

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
जिह्वायाः माधुर्यं स्वर्गं प्रापयति, कटुता च नरके पातयति।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
मनुष्यः मधुरैः वचनैः स्वर्ग कटुभि च नरकं प्राप्नोति। विवदमानौ धनिनौ न्यायालयं गतौ। तयोः एकः धनेन प्रभावितं कर्तुम् ऐच्छत्। अतः स्यूते लक्ष रुप्यकम् अनयत् परन्तु न्यायाधीशः तं श्रुत्वा क्रुद्धोऽभवत् लक्ष रुप्यकाणां च निराकरणम् अकरोत्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘कुरु’ क्रियापदस्य कर्तृपदम् अस्ति –
(अ) न्यायाधीशः,
(ब) प्रथमः धनिकः
(स) द्वितीय धनिकः
(द) त्वम्
उत्तरम् :
(द) त्वम्

(ii) ‘लज्जितः’ इति पदं कस्य विशेषणम्?
(अ) प्रथमः धनिकः
(ब) द्वितीयः धनिकः
(स) न्यायाधीशः
(द) अन्यः
उत्तरम् :
(अ) प्रथमः धनिकः

(iii) ‘तौ न्यायालयं गतौ’ इति वाक्ये ‘तौ’ इति पदं काभ्याम् प्रयुक्तम्?
(अ) धनिकाय
(ब) द्वितीय धनिकाय
(स) धनिकाभ्याम्
(द) न्यायाधीशाय
उत्तरम् :
(स) धनिकाभ्याम्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘अतः कृपया गच्छतु’ अत्र गच्छतु पदस्य विलोमपदं लिखत्। –
(अ) अत्रः
(ब) कृपयाः
(स) आगच्छतु
(द) गम्यताम्
उत्तरम् :
(स) आगच्छतु

23. भारते गुरु-शिष्य-परम्परा प्राचीना वर्तते। गुरोः सन्निधौ अनेके महापुरुषा अभवन्। अस्यां परम्परायाम् एक: प्रमुखः वर्तते समर्थ गुरु रामदास शिववीरयोः। यथा विवेकानन्दः परमहंसस्य आशीर्वादेन स्व जिज्ञासायाः समाधान प्राप्य देशस्य प्रतिष्ठा पुनः स्थापितवान तथैव शिवाजी महाराजः गुरोः सान्निध्ये मार्गदर्शनं प्राप्य स्वराज्यस्य स्थापनां कृतवान्। एतादृशानि अनेकानि उदाहरणानि भारते वर्तन्ते। वयमपि एतानि उदाहरणानि अनुसृत्य जीवने गुरोः महत्वं स्वीकृत्य स्वशिक्षकानां सम्मानं कुर्मः। गुरुं प्रति सम्मान प्रकटयितुं भारते गुरुपूर्णिमोत्सवः शिक्षक दिवसस्य च आयोजनं भवति। यथा विवेकानन्दः विश्वपटले भारतस्य श्रेष्ठतां स्वाचरणेन कृत्यैः ज्ञानेन च स्थापितवान्। सः भारतीय ज्ञानं संस्कृतिं च श्रेष्ठतमां मन्यते स्म। तथैव अनेके महापुरुषाः सन्ति ये विभिन्न प्रकारेण देशस्य गौरवं वर्धितवन्तः।

(भारत में गुरु-शिष्य परम्परा प्राचीन है। गुरु के सान्निध्य में अनेक महापुरुष हो गये, इस परम्परा में एक प्रमुख है समर्थ गुरु रामदास शिवाजी का। जैसे विवेकानन्द ने परमहंस के आशीर्वाद से अपनी जिज्ञासा का समाधान प्राप्त कर देश की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित किया उसी प्रकार शिवाजी महाराज ने गुरु के सान्निध्य में मार्गदर्शन प्राप्त कर स्वराज्य की स्थापना की। इस प्रकार के अनेक उदाहरण भारत में हैं। हम भी इन उदाहरणों का अनुसरण करके जीवन में गुरु के महत्व को स्वीकार कर अपने शिक्षकों का सम्मान करें। गुरु के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारत में गुरुपूर्णिमा उत्सव और शिक्षक दिवस का आयोजन होता है। जिस प्रकार विवेकानन्द ने विश्वपटल पर भारत की श्रेष्ठता अपने आचरण, कृत्यों और ज्ञान से स्थापित की। वह भारतीय ज्ञान और संस्कृति को श्रेष्ठतम मानते थे। उसी प्रकार अनेक महापुरुष हैं, जिन्होंने विभिन्न प्रकार से देश के गौरव को बढ़ाया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) गुरो सन्निधौ जनाः के अभवन्? (गुरु के सान्निध्य में लोग क्या हो गये?)
(ii) शिववीरस्य गुरोः किन्नाम आसीत्? (शिवाजी के गुरु का क्या नाम था?)
(iii) विवेकानन्दः कस्य शिष्यः आसीत्? (विवेकानंद किसके शिष्य थे?)
(iv) भारतीय संस्कृति कः श्रेष्ठतमा मन्यते स्म? (भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठतम किसने माना?)
उत्तरम् :
(i) महापुरुषाः
(ii) समर्थगुरु रामदास
(ii) रामकृष्ण परमहंसस्य
(iv) विवेकानन्द।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) विवेकानन्दः किं स्थापितवान्?
(विवेकानन्द ने क्या स्थापित किया?)
(ii) गुरु-शिष्य सम्मान प्रकटयितुं के महोत्सवाः आयोज्यन्ते?
(गुरु-शिष्य सम्मान प्रकट करने के लिए कौन से महोत्सव आयोजित किए जाते हैं?)
(ii) शिवाजी: गुरोः सान्निध्ये मार्गदर्शन प्राप्य किम् अकरोत?
(शिवाजी ने गुरु के सान्निध्य में मार्गदर्शन पाकर क्या किया?)
उत्तरम :
(i) देशस्य प्रतिष्ठा पुनः स्थापितवान्। (देश की प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की।)
(ii) गुरु-शिष्य सम्मान प्रकटयितुं गुरुपूर्णिमा च शिक्षक दिवसयोः आयोजनं क्रियते।
(गुरु-शिष्य सम्मान प्रकट करने के लिए गुरुपूर्णिमा और शिक्षक दिवस का आयोजन किया जाता है।)
(iii) स्वराज्यस्य स्थापनाम् अकरोत्। (स्वराज की स्थापना की।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
गुरु-शिष्य परम्परा/गुरोः महत्वम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
भारते गुरु-शिष्य परम्परा प्राचीना अस्ति। अनेके गुरु-शिष्याः अभवन्। ये भारतस्य नाम-प्रतिष्ठाम् अकुर्वन्
यथा – समर्थ गुरु रामदासः परमहंसश्च स्वाशीर्वादेन शिवराजं विवेकानन्दं च शिखरमगमयगताम्। एकानि अनेकानि उदाहरणानि सन्ति गुरुपूर्णिमादिषु अनेकेषु पर्वसु एवः परंपरा शिष्यैः वर्ध्यते। अस्माभिः अपि प्रवर्धनीया।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘कृतवान्’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति
(अ) समर्थ गुरु रामदासः
(ब) रामकृष्ण परमहंस
(स) शिवाजी
(द) अहम्
उत्तरम् :
(स) शिवाजी

(ii) ‘परम्परा प्राचीना वर्तते’ एतेषु पदेषु विशेषणम् अस्ति
(अ) परम्परा
(ब) प्राचीना
(स) वर्तते
(द) भारते
उत्तरम् :
(ब) प्राचीना

(iii) ‘ज्ञातुमिच्छायाः’ इति पदस्य स्थाने अनुच्छेदे पदं प्रयुक्तम् –
(अ) सन्निधौ
(ब) परम्परा
(स) जिज्ञासायाः
(द) अनुसृत्य
उत्तरम् :
(स) जिज्ञासायाः

(iv) ‘नवीना’ इति पदस्य विलोमपदम् अस्ति –
(अ) परम्परा
(ब) प्रमुखा
(स) प्राचीना
(द) भारतीया
उत्तरम् :
(अ) परम्परा

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

24. अद्य स्वस्थं स्वच्छं पर्यावरणस्य आवश्यकता वर्तते। पर्यावरणस्य रक्षा धर्मसम्मतमेव अस्ति। इति अस्माकं ऋषयः प्रतिपादितवन्तः। आवश्यकं वर्तते यद् वयं स्वजीवनं सन्तुलितं कुर्मः। प्रकृतेः संसाधनानां संरक्षणं कुर्मः। अपशिष्ट पदार्थानामवकरस्य वा निक्षेपण सावधानेन कुर्मः। अद्य प्रदूषणाद् निवारणार्थ सर्वकारेण महान्तः प्रयासाः क्रियन्ते। तेषु प्रयासेषु वयमपि सहभागिने: भवाम। अधिकाधिक वृक्षारोपणं तेषां संरक्षणंचं कुर्मः। प्राकृतिक जलस्रोतानां सुरक्षां कुर्मः। अनेन एव सौरोर्जायाः वायूर्जायाः च उपयोगं कुर्मः। सर्वत्र स्वच्छता च पालयामः। जीवमात्रस्य संरक्षणं कुर्मः। नदीतडागवापीना च स्वच्छतां स्थापयामः। ध्वनि विस्तारकयंत्राणां उपयोगं अवरोधयामः। पर्यावरणस्य महत्वमावश्यकतां च संस्मृत्य सर्वे वयं तस्य संरक्षणाय प्रयत्नं करिष्यामः। तर्हि विश्वः सुखी-सम्पन्नश्च भविष्यति। तदैव अस्माकं ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।’ कामना सफला भविष्यति।

(आज स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण की आवश्यकता है। पर्यावरण की रक्षा धर्मसम्मत है। ऐसा हमारे ऋषियों ने प्रतिपादन किया है। आवश्यक है कि हम अपना जीवन सन्तुलित करें। प्रकृति के संसाधनों का संरक्षण करें। उच्छिष्ट पदार्थों अथवा कूड़े-करकट को सावधानी से फेंकें (डालें)। आज प्रदूषण के निवारण के लिए सरकार ने महान प्रयास किए हैं। उन प्रयासों में हम सभी सहयोगी हों। अधिकाधिक वृक्षों का आरोपण तथा संरक्षण करें। प्राकृतिक जलस्रोतों की सुरक्षा करें। इससे इस प्रकार सौर ऊर्जा और वायु ऊर्जा का उपयोग करें। सर्वत्र स्वच्छता का पालन करें। जीवमात्र का संरक्षण करें। नदी-तालाब और वावड़ियों में सफाई स्थापित करें। ध्वनि विस्तारक यन्त्रों का प्रयोग रोकें। पर्यावरण का महत्व और आवश्यकता के महत्व को याद कर हम सभी उसकी सुरक्षा के लिए प्रयत्न करेंगे तो विश्व सुखी और समृद्ध होगा। तभी हमारा ‘सभी सुखी हों और नीरोग हों।’ की कामना सफल होगी।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) अद्य कीदृशस्य पर्यावरणस्य आवश्यकता वर्तते?
(आज कैसे पर्यावरण की आवश्यकता है?)
(ii) ‘पर्यावरणस्य रक्षा धर्मसम्मतमेक’ इति के प्रतिपादयन्ति।’
(‘पर्यावरण की रक्षा धर्मसम्मत ही है’ यह किसने प्रतिपादित किया है?)
(iii) कस्य ऊर्जायाः प्रयोगः कर्तव्यः?
(किस ऊर्जा का प्रयोग करना चाहिए?)
(iv) वयं स्वजीवनं कीदृशं कुर्मः?
(हम अ जीवन कैसा करें?)
उत्तरम् :
(i) स्वस्थं-स्वच्छं
(ii) ऋषयः
(iii) सौरोर्जायाः वायूर्जायाः च
(iv) सन्तुलितम्।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) अद्य कस्य आवश्यकता वर्तते?
(आज किसकी आवश्यकता है?)
(ii) जीवनस्य आवश्यकं किं वर्तते?
(जीवन के लिए आवश्यक क्या है?)
(ii) पर्यावरण-प्रदूषण-निवारणाय मानवेन किं करणीयम्? एकं कार्यं लिखत।
(पर्यावरण प्रदूषण निवारण के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए? एक कार्य लिखिये।)
उत्तरम् :
(i) अद्य स्वस्थं-स्वच्छं पर्यावरणस्य आवश्यकता वर्तते।
(आज स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण की आवश्यकता है।)
(ii) आवश्यकं वर्तते यद् वयं स्व-जीवनं सन्तुलितं कुर्मः।
(आवश्यकता है कि हम अपने जीवन को संतुलित करें।)
(iii) अधिकाधिक वृक्षारोपण तेषां संरक्षणं च मानवेन करणीयम्।
(अधिकाधिक वृक्षारोपण, उनका संरक्षण मनुष्यों को करना चाहिए।)

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
पर्यावरणम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
पर्यावरण रक्षणं धर्मसम्मतम्। प्रकृते रक्षणं अपशिष्टस्य अपसारणं वृक्षारोपणं च करणीयाः कार्याः। जल-स्वच्छता पर्यावरण संरक्षणम् अस्माभि अवश्यमेव करणीयम्। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया इति इच्छा स्वस्थ पर्यावरणेन एक सम्भाव्या अस्ति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) वयम् सहभागिनः भवामः प्रयासेषु। अत्र ‘भवामः’ क्रियापदस्य कर्तृपदम् अस्ति
(अ) वयम्
(ब) सहभागिनः
(स) भवामः
(द) प्रयासेषु।
उत्तरम् :
(अ) वयम्

(ii) ‘स्वच्छ पर्यावरणम्’ अत्र किं पदं विशेष्यम्
(अ) स्वच्छ
(ब) पर्यावरणम्
(स) स्वच्छपर्यावरणम्
(द) अन्यत्
उत्तरम् :
(ब) पर्यावरणम्

(iii) ‘सर्वे भवन्त सखिनः’ अत्र ‘सर्वे’ कस्य पदस्य सर्वनामपदम वर्तते –
(अ) भवन्तु
(ब) सुखिन्
(स) प्राणिनाम्
(द) वृक्षानाम्
उत्तरम् :
(स) प्राणिनाम्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘दुःखिनः’ इति पदस्य अनुच्छेदात् विलोम पदं लिखत
(अ) सन्तुलितं
(ब) सुखिनः
(स) सहभागिनः
(द) सम्पन्ना
उत्तरम् :
(ब) सुखिनः

25. अस्त्युज्जयिन्यां माधवो नाम विप्रः। एकदा तस्य भार्या स्वबालापत्यस्य रक्षार्थं तमवस्थाप्य स्नातुं गता। अथ ब्राह्मणो राज्ञा श्राद्धार्थे निमन्त्रितः। ब्राह्मणस्तु सहजदारिद्रयात् अचिन्तयत्-यदि सरवरं न गच्छामि तदान्यः कश्चित् श्राद्धार्थं वृतो भवेत्। परन्तु बालकस्य अत्र रक्षको नास्ति। तत् किं करोमि? भवतु चिरकाल पालितम् इयं पुत्रविशेष नकुलं बाल रक्षायां व्यवस्थाप्य गच्छामि। तथा कृत्वा सः गतः। ततः तेन नकुलेन बालसमीपम् उपसर्पन कृष्ण सर्पो दृष्टः। स तं व्यापाद्य खण्डशः कृतवान्। अत्रान्तरे ब्राह्मणोऽपि श्राद्धं कृत्वा गृहमुपावृतः ब्राह्मणं दृष्ट्वा नकुलो रक्त विलिप्त मुखपादः तच्चरणयोः अलुठत्। विप्रस्तथाविधं तं दृष्ट्वा बालकोऽनेन खादित इति अवधार्य कोपात् नकुलं व्यापादितवान्। अनन्तरं यावत उपसृत्यापत्यं पश्यति तावत् बालकः सर्पश्च व्यापादितः तिष्ठति। ततः तमोपकारकं नकुलं मृतं निरीक्ष्य आत्मानं मुषितं मन्यमानः ब्राह्मण परम विषादमगमत्।

(उज्जयिनी में एक माधव नाम का ब्राह्मण था। एक दिन इसकी पत्नी अपने छोटे बच्चे की रक्षा के लिए उसे रखकर स्नान करने चली गई। इसके बाद ब्राह्मण राजा द्वारा श्राद्ध के लिए निमन्त्रित कर लिया गया। ब्राह्मण स्वाभाविक रूप से दरिद्री होने के कारण सोचने लगा- यदि मैं जल्दी नहीं जाता हूँ तो दूसरा कोई श्राद्ध को ले जायेगा। परन्तु यहाँ बालक का कोई रक्षक नहीं है। तो क्या करूँ । खैर बहुत समय से पाले हुए इस. विशेष नेवला को बच्चे की रक्षा के लिए रखकर जाता हूँ। ऐसा ही करके वह गया। तब उस नेवले ने बालक के समीप रेंगता हुआ एक काला साँप देखा।

उस (नेवले) ने उसको मार कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया। इसके बाद ब्राह्मण भी श्राद्ध करके घर आ गया। ब्राह्मण को देखकर खून से लथपथ मुख वाला नेवला उसके पैरों में लोटने लगा। ब्राह्मण ने इस प्रकार के उसको देखकर ‘बालक को इसने खा लिया है।’ ऐसा समझकर क्रोध के कारण नेवले को मार दिया। इसके पश्चात् जब पास जाकर बालक को देखता है तो बालक अच्छी तरह तथा सर्प मरा हुआ पड़ा है। तब उस उपकार करने वाले नेवले को मरा हुआ देखकर अपने को ठगा मानता हुआ ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ।

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) उज्जयिन्यां किन्नाम विप्रः अस्ति?
(उज्जयिनी में किस नाम का विप्र है?)
(ii) एकदा तस्य भार्या कुत्र अगच्छत्?
(एक दिन उसकी पत्नी कहाँ गई?)
(iii) ‘नकुल रक्षायां व्यवस्थाप्य माधवः कुत्र अगच्छत्?
(नेवले को रक्षा व्यवस्था में छोड़कर माधव कहाँ गया?)
(iv) नकुलेन बालकस्य समीपे किं दृष्टम्?
(नेवले ने बच्चे के पास क्या देखा?)
उत्तरम् :
(i) माधवः
(ii) स्नातुम्
(iii) श्राद्धाय
(iv) कृष्णसर्पम्।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) “राज्ञः निमन्त्रणं प्राप्य किम् अचिन्तयत्?
(राजा के निमन्त्रण को पाकर ब्राह्मण ने क्या सोचा?)
(ii) माधवः बालकस्य रक्षायां के व्यवस्थापयत्?
(माधव ने बालक की रक्षा-व्यवस्था में किसको रखा?)
(iii) उपसर्पन कृष्णसर्पम् दृष्ट्वा नकुलः किमकरोत्?
(रेंगते साँप को देखकर नेवले ने क्या किया?)
उत्तरम् :
(i) यदि सत्वरं न गच्छामि तदन्यः कश्चित् श्राद्धाय व्रतो भवेत्।
(यदि जल्दी नहीं जाता हूँ, तो कोई और श्राद्ध को ले जाएगा।)
(ii) माधवः बालकस्य रक्षायां नकुलं व्यवस्थापयत्।
(माधव ने बालक की रक्षा में नकुल की व्यवस्था की।)
(iii) नकुलेन कृष्ण सर्पः व्यापाद्य खण्डशः कृतः।
(नेवले ने काले साँप को मारकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
अविवेकं परमापदा/सहसा विदधीत न क्रियाम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
विप्रस्य भार्या नकुलं पुत्रस्य रक्षार्थं नियुज्य जलाशये स्नातुम् अगच्छत् तदैव सः राज्ञा निमन्त्रितः श्राद्धाय अगच्छत्। सः नकुलं बालके रक्षितुं नियुज्य अगच्छत्। तदैव एकः सर्पः तत्रागतः। नकुलेन सर्पः हतः द्वारे च अगच्छत्। भार्या नकुलम् अपश्यत् बालकस्य हन्तारं च ज्ञात्वा तम् अहनत्। बालकस्य समीपे गते सा अपश्यत् यत् तम नकुलेन हतः एक: सर्पः आसीत्। सा सर्वम् अजानत् यत् तेन अज्ञानात् नकुलः हतः। बालकः तत्र सुरक्षितः आसीत्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘ब्राह्मणः परम विषादम् अगमत्’ अत्र ‘अगमत्’ क्रियायाः कर्तपदम् अस्ति –
(अ) बालकः
(ब) नकुलः
(स) सर्पः
(द) ब्राह्मण (माधव:)
उत्तरम् :
(अ) बालकः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) तमुपकारकम् नकुलम् अयं किं विशेषण पदम्?
(अ) माधवम्
(ब) सर्पम्
(स) नकुलम्
(द) भार्याम्
उत्तरम् :
(स) नकुलम्

(iii) ‘तथा कृत्वा सः गत:’ अत्र ‘सः’ इति सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(अ) माधवाय
(ब) बालाय
(स) नकुलाय
(द) सर्पाय
उत्तरम् :
(अ) माधवाय

(iv) ‘पुत्रस्य’ इति पदस्य पर्यायपदमस्ति –
(अ) आत्मजस्य
(ब) अपत्यस्य
(स) बालस्य
(द) बालकस्य
उत्तरम् :
(ब) अपत्यस्य

26. देशाटनं मानवायं अतिहितकरम्। देशाटनस्य बहवः गुणाः भवन्ति। नानादेशजलवायु प्रभावेण अस्माकं स्वास्थ्य लाभः भवति। देशान्तर कला कौशल-ज्ञानेन वयं स्वदेशमपि कला कौशल सम्पन्नं कुर्मः अधिकोन्नतस्य देशस्य नागरिकाः प्रायः पर्यटनप्रिया भवन्ति। ब्रिटिश शासनकाले शासकाः भारतीयानाम् देशाटनरुविं नोत्साहयन्ति स्म। भारतीयाश्च प्रेरणां बिना न किमपि कुर्वन्ति इति सर्वविदितम्। परमधुना न वयं परतन्त्राः, अतः शासकानामेतत् कर्तव्यमापद्यते यत्रे भारतीयानां देशाटनं प्रति अभिरुचिं प्रोत्साहयेयुः। अधुना बहवः भारतीयाश्छात्रा अमरीका इङ्गलैण्ड, रूस प्रभृति देशेषु विविध कला कौशल ज्ञानार्जनाय गताः सन्ति। स्वदेशमागत्य ते स्वोपार्जितज्ञानेन स्वदेशामवश्यमेव उन्नमयिष्यन्ति इति जानीमः।

(देशाटन मनुष्य के लिए अति हितकर होता है। देशाटन के बहुत से गुण होते हैं। विविध देशों की जलवायु के प्रभाव से हमें स्वास्थ्य लाभ हो गया है। दूसरे देशों के कला-कौशल के ज्ञान से हम अपने देश को भी कला-कौशल से सम्पन्न करते हैं। अधिक उन्नत देश के नागरिक प्रायः पर्यटन प्रिय होते हैं। अंग्रेजी शासन काल में शासकों ने भारतीयों की देशाटन रुचि को उत्साहित नहीं किया और भारतीय बिना प्रेरणा के कुछ नहीं करते हैं, यह सर्वविदित है। लेकिन अब हम परतन्त्र नहीं हैं। अतः शासकों का यह कर्तव्य हो जाता है कि वे भारतीयों की देशाटन के प्रति अभिरुचि को प्रोत्साहित करें। आजकल बहुत से भारतीय छात्र अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस आदि देशों में विविध कला-कौशल ज्ञानार्जन के लिए गये हुए हैं। अपने देश में आकर वे अपने उपार्जित ज्ञान से अपने देश को अवश्य उन्नत करेंगे, ऐसा हम जानते हैं।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कस्य बहवः गुणाः भवन्ति?
(किसके बहुत से गुण होते हैं?)
(ii) अधिकोन्नतस्य देशस्य नागरिकाः कीदृशाः भवन्ति?
(अधिक उन्नत देश के नगारिक कैसे होते हैं?)
(ii) भारतीयाः कां विना न किमपि कुर्वन्ति?
(भारतीय किसके बिना कुछ नहीं कर सकते?)
(iv) कदा शासकाः भारतीयानां देशाटन रुचिं नोत्साहन्ति स्म?
(कब शासक भारतीयों की देशाटन की रुचि को उत्साहित नहीं करते थे?)
उत्तरम् :
(i) देशाटनस्य
(ii) पर्यटनप्रियाः
(iii) प्रेरणाम्
(iv) ब्रिटिशशासनकाले।

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) अस्माकं स्वास्थ्य लाभ: केन भवति?
(हमारा स्वास्थय लाभ किससे होता है?)
(ii) देशान्तरकला कौशल ज्ञाननेन वयं कि कुर्मः?
(दूसरे देश के कला-कौशल के ज्ञान से हम क्या करें?)
(iii) अद्य शासकानां किं कर्त्तव्यम् आपद्यते?
(आज शासकों का क्या कर्त्तव्य आ पड़ा है?)
उत्तरम् :
(i) नानादेश जलवायु प्रभावेण अस्माकं लाभो भवति।
(अनेक देश की जलवायु के प्रभाव से हमको लाभ होता है।)
(ii) वयं स्वदेशमपि कला-कौशल सम्पन्नं कुर्मः।
(हम अपने देश को भी कला-कौशल से संपन्न करें।)
(iii) यत्रे भारतीयानां देशाटनं प्रत्यभि रुचिं प्रोत्साहयेयुः।
(यहाँ भारतीयों की देशाटन के प्रति रुचि को प्रोत्साहित करें।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
देशाटनस्य महत्वम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
देशाटनेन मनुष्यः स्वास्थ्य लाभ, ज्ञान लाभं, व्यवहार, कलाकौशलं च प्राप्य स्वदेशं च वर्धयति। यदा वयं परतन्त्राः आसन् तदा देशाटनाय रुचिः नासीत् परञ्च इदानीं तु वयं स्वाधीना स्मः अतएव अनेके भारतीयाः छात्रा अध्येतुम् अन्य देशान् गच्छन्ति तथा ज्ञान, कला, संस्कृति च ज्ञात्वा स्वदेशं संवर्धयन्ति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘नागरिकाः प्रायः पर्यटनप्रियाः भवन्ति’ अत्र ‘भवन्ति’ क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति –
(अ). नागरिकाः
(ब) प्रायः
(स) पर्यटन
(द) प्रियाः
उत्तरम् :
(अ). नागरिकाः

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(ii) ‘अनेक’ जनाः अत्र विशेषणपदमस्ति –
(अ) बहवः
(ब) प्रायः
(स) जनाः
(द) विना।
उत्तरम् :
(स) जनाः

(iii) ‘ते अध्येतुम् गच्छन्ति’ अत्र ‘ते’ सर्वनामपदस्य संज्ञापद भवति –
(अ) तेन
(ब) अध्येतुम्
(स) गच्छन्ति
(द) छात्रा
उत्तरम् :
(द) छात्रा

(iv) ‘स्वतन्त्रता’ इति पदस्य विलोमार्थक पदम् अस्ति –
(अ) परतन्त्राः
(ब) देशान्तरम्
(स) शासकाः
(द) भारतीयाः
उत्तरम् :
(अ) परतन्त्राः

27. आतङ्कवादः आधुनिक विश्वस्य गुरुतमा समस्या अस्ति। संसारस्य प्रत्येकं देशः आतङ्कवादेन येन केन प्रकारेण पीडितः अस्ति। आतङ्कवादः विनाशस्य सा लीला या विश्वं ग्रसितुं तत्परा अस्ति। आतङ्कवादेन विश्वस्य अनेकानि क्षेत्राणि रक्तविलिप्तानि सन्ति। अनेन अनेके निर्दोषाः जनाः प्राणान् अत्यजन्। महिलाः विधवाः जाताः। बालाश्च अनाथाः अभवन्। सर्वशक्तिमान् अमेरिकादेशोऽपि अनेन सन्तप्तः अस्ति। भारतदेशस्तु आतङ्कवादेन्य अनेकैः वर्षेः पीड़ितः वर्तते। आतलवादस्य राक्षसस्य विनाशाय मिलित्वा एव प्रयत्नाः समाधेयां: अन्यथा एषा समस्या सुरसा मुखम् इव प्रतिदिनं वृद्धिं पास्यति।

(आतङ्कवाद आधुनिक विश्व की सबसे बड़ी समस्या है। संसार का प्रत्येक देश आतङ्कवाद से जिस किसी भी प्रकार से पीड़ित है। आतङ्कवाद विनाश की वह लीला है जो संसार को ग्रसित करने के लिए तत्पर है। आतङ्कवाद से संसार के अनेक क्षेत्र रक्त से लथपथ हैं। इससे अनेक निर्दोष लोगों ने प्राणों को त्याग दिया। महिलाएं विधवा हो गई । बच्चे अनाथ हो गये। सर्वशक्तिमान अमेरिका देश भी इससे सन्तप्त है। भारत देश तो आतङ्कवाद से अनेकों वर्षों से पीड़ित है। आतवाद में तो वे ही लोग सम्मिलित हैं जो स्वार्थपूर्ति करना चाहते हैं और संसार में अशान्त वातावरण देखना चाहते हैं। शान्तिप्रिय देशों द्वारा आतङ्कवाद के असुर के विनाश करने के लिए मिलकर प्रयत्न करना चाहिए, अन्यथा यह समस्या सुरसा के मुख की तरह से प्रतिदिन बढ़ती जायेगी।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) आधुनिक विश्वस्य गुरुतमा समस्या का?
(आधुनिक विश्व की सबसे बड़ी समस्या क्या है?)
(i) आतङ्कवादस्य प्रमुख कारणं किम् उक्तम्?
(आतंकवाद का प्रमुख कारण क्या कहा गया है?)
(iii) आतङ्कवादः किमिव प्रतिदिनं बुद्धिं यास्यति?
(आतंकवाद किसकी तरह प्रतिदिन वृद्धि को प्राप्त होगा?)
(iv) अनुच्छेदे कः देशः सर्वशक्तिमान् इति उक्तः?
(अनुच्छेद में किस देश को सर्वशक्तिमान् कहा गया है?)
उत्तरम् :
(i) आतङ्कवादः
(ii) स्वार्थः
(iii) सुरसामुखमिव
(iv) अमेरिकादेशः।

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) आतङ्कवादः कीदृशी लीला अस्ति?
(आतङ्कवाद कैसी लीला है?)
(ii) शान्तिप्रियैः देशैः आतङ्कवादस्य समस्या समाधानुं किं कर्त्तव्यम्?
(शान्तिप्रिय देशों को आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए क्या करना चाहिए?)
(iii) आतङ्कवादे के जनाः सम्मिलिताः भवन्ति?
(आतंकवाद में कौन लोग सम्मिलित होते हैं?)
उत्तरम् :
(i) आतङ्कवादः विनाशस्य लीला या विश्वं ग्रसितुं तत्परा अस्ति।
(ii) सर्वेः मिलित्वा एव प्रयत्नाः समाधेयाः।
(iii) आतङ्कवादे तु एव जनाः सम्मिलिताः, ये स्वार्थपूर्ति कर्तुम् इच्छन्ति, संसारे च अशान्तेः वातावरणं द्रष्टुम् इच्छन्ति।

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
आतङ्कवादः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
आतङ्कवादेन प्रत्येकं देशः पीडितः। आतङ्कवादः विनाश लीलां कुर्वन् रक्तविलिप्तानि करोति। निर्दोष जनाः निष्प्राणाः भवन्ति। समर्थैः देशैः एषा समस्या समाधेया। एषः सुरसा-मुखमेव प्रतिदिनं वर्धते एव।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘ये स्वार्थपूर्तिम् इच्छन्ति’ अत्र ‘इच्छन्ति’ क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति –
(अ) अनेके
(ब) ये
(स) निर्दोषाः
(द) अनाथाः
उत्तरम् :
(ब) ये

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(ii) विश्वस्य गुरुतरा समस्या अस्ति। अत्र ‘गुरुतमा’ इति पदं कस्य पदस्य विशेषणम्?
(अ) विश्वस्य
(ब) समस्यायाः
(स) अस्ति
(द) गुरु
उत्तरम् :
(ब) समस्यायाः

(ii) ‘अनेन सन्तप्तः अस्ति’ अत्र अनेन सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम् –
(अ) विनाशेन
(ब) आतङ्वादेन
(स) समस्यया
(द) पीडिता
उत्तरम् :
(स) समस्यया

(iv) ‘लघुतमा’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशेऽस्ति –
(अ) गुरुतमा
(ब) समस्या
(स) तत्परा
(द) अन्यथा
उत्तरम् :
(अ) गुरुतमा

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28. दीपावली अस्माकं राष्ट्रियोत्सवः वर्तते। अस्मिन् उत्सवे सर्वेजनाः परस्परं भेदभावं विस्मृत्य आनन्दमग्नाः भवन्ति। त्रेतायुगे कैकेय्याः वरयाचनात् अयोध्यायाः राज्ञा दशरथेन रामाय चतुर्दशानां वर्षाणां वनवासः प्रदत्तः। श्रीरामः अस्मिन्नेव दिवसे सीतालक्ष्मणाभ्यां सह अयोध्या प्रत्यावर्तितवान्। तान् स्वागतं व्याहतम् अयोध्यावासिनः नगरे सर्वत्र दीपा प्रज्वलितवन्तः। तदा आरभ्य अधावधि प्रतिवर्ष कार्तिक मासे अमावस्यायां तिथौ भारते दीपावली महोत्सवः महता उत्साहेन आयोजितः भवति। दीपावल्या जनाः गृहाणि परिष्कर्वन्ति। अस्मिन्नवसरे ते स्वमित्रेभ्यः बन्धुभ्यश्च उपहारान् यच्छन्ति, परस्परम् अभिनन्दन्ति च। बालकेभ्यः मिष्ठान्नं यच्छन्ति । सर्वेजनाः लक्ष्मी-गणेशयोः पूजनं कुर्वन्ति। पितरः स्व सन्ततिभ्य स्फोटकानि ददति। अस्मिन् महोत्सवे सर्वे सर्वेभ्यः सुखाय समृखये च शुभेच्छाः प्रकटयन्ति।

(दीपावली हमारा राष्ट्रीय उत्सव है। इस उत्सव में सभी लोग आपस में भेदभाव भूलकर आननदमग्न हो जाते हैं। त्रेतायुग में कैकेई के वर माँगने के कारण अयोध्या के राजा दशरथ ने राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास दिया। श्रीराम इसी दिन सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापिस लौटे थे। उनका स्वागत करने के लिए अयोध्यावासियों ने सब जगह दीप जलाये। तभी से लेकर आज तक प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में अमावस्या को भारत में दीपावली महोत्सव महान् उत्साह के साथ आयोजित होता है। दीपावली पर लोग घरों की सफाई करते हैं। इस अवसर पर वे अपने मित्रों और भाई-बन्धुओं के लिए उपहार प्रदान करते हैं और परस्पर अभिनन्दन करते हैं। बालकों के लिए मिठाइयाँ दी जाती हैं। सभी लोग लक्ष्मी-गणेश का पूजन करते हैं। माता-पिता अपनी सन्तान को पटाखे देते हैं। इस महोत्सव पर सभी सबके लिए सुख और समृद्धि के लिए शुभेच्छाएँ प्रकट करते हैं।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कस्याः वरयाचनात् दशरथेन रामाय वनवास प्रदत्तः?
(किसके वर माँगने के कारण दशरथ ने राम के लिए वनवास प्रदान किया।)
(ii) श्रीरामः काभ्यां सह अयोध्यां प्रत्यावर्तितवान्?
(श्रीराम किनके साथ अयोध्या लौटे?)
(iii) कदा जनाः गृहाणि परिष्कुर्वन्ति?
(कब लोग घरों की सफाई करते हैं?)
(iv) पितरः स्वसन्ततिभ्यः कानि ददति?
(माता-पितादि अपनी सन्तान को क्या देते हैं ?)
उत्तरम् :
(i) कैकेय्याः
(ii) सीतालक्ष्मणाभ्याम्
(ii) दीपावल्याम्
(iv) स्फोटकानि।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) सर्वेजनाः किं विस्मृत्य आनन्दमग्नाः भवन्ति?
(सब लोग क्या भूलकर आनन्दमग्न हो जाते हैं? )
(ii) दशरथेन रामाय कति वर्षाणां वनवासः प्रदत्तः।
(दशरथ ने राम को कितने वर्ष का वनवास दिया?)
(iii) भारते कदा दीपावली महोत्सवः आयोजितः भवति?
(भारत में कब दीपावली का त्योहार आयोजित होता है?)
उत्तरम् :
(i) सर्वेजनाः परस्परं भेदभावं विस्मृत्य आनन्दमग्नाः भवन्ति।
(सब लोग परस्पर भेदभाव को भूलकर आनन्दमग्न होते हैं।)
(ii) दशरथेन रामाय चतुर्दशानां वर्षाणां वनवासः प्रदत्तः।
(दशरथ ने राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास दिया।)
(iii) भारते प्रतिवर्ष कार्तिक मासे अमावस्यायां तिथौ दीपावली महोत्सवः आयोजितः भवति।
(भारत में प्रतिवर्ष कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि को दीपावली महोत्सव आयोजित होता है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
दीपावली-महोत्सवः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
दीपावली उत्सवे सर्वेजनाः उच्चनीचयोः भेद-भावं त्यक्त्वा महता उत्साहने महोत्सव आयोजयन्ति। पितुः दशरथस्या देशेन वनं गतः रामः यदा अयोध्याम्आगच्छत् तदा सर्वे अयोध्यावासिनः दीपान् प्रज्वाल्य स्वागतंमकुर्वन्। ततः अस्मिन् अवसरे जनाः गृहाणि परिष्कुर्वन्ति, सज्जयन्ति, उपहारान् यच्छन्ति, अभिनन्दन्ति, बालकेभ्यः मिष्ठान्नं वितरन्ति ‘सर्वे सर्वेभ्यः वर्धापनं वितरन्ति।

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प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘मिष्ठान्नं यच्छन्ति’ अत्र किं क्रियापदम् –
(अ) मिष्ठान्नम्
(ब) यच्छन्ति
(स) पूजनं कुर्वन्ति
(द) स्फोटकानि ददति
उत्तरम् :
(ब) यच्छन्ति

(ii) ‘राष्ट्रीयोत्सवः’ इत्यत्र किं विशेषण पदम् –
(अ) राष्ट्रीयः
(ब) उत्सवः
(स) दीपावली
(द) महोत्सवः
उत्तरम् :
अ) राष्ट्रीयः

(iii) ‘अस्मिन् अवसरे’ अत्र अस्मिन्’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम् –
(अ) उत्सवे
(ब) त्रेतायुगे
(स) दीपावल्याम्
(द) महोत्सवम्
उत्तरम् :
(स) दीपावल्याम्

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(iv) ‘स्मृत्वा’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशेऽस्ति –
(अ) विस्मृत्वा
(ब) स्मृत्वा
(स) विस्मृत्य
(द) व्याहृत्य
उत्तरम् :
(स) विस्मृत्य

29. तस्य परिवारस्य आर्थिक स्थितिः समीचीना नासीत्। सः न्यूनातिन्यून समये अधिकाधिकपुस्तकानाम् अध्ययनं करोति स्म। 11 वर्षात्मके वयसि सः कुमारसम्भवम् रघुवंशादि साहित्यिक ग्रन्थानां व्याख्या कर्तुं समर्थः अभवत्। कक्षायां प्रथम स्थानं लब्धवान्। अस्मात् कारणात् शासनेन तस्मै छात्रवृत्तिः प्रदत्ता। सः स्व-अपेक्षया अपि अधिकम् अभावग्रस्तं जीवनं यः छात्र जीवति स्म तस्य सहाय्यं करोति स्म।।

एकदा सः मातरम् उक्तवान्-अम्बगृहस्य सर्वाणि कार्याणि त्वमेकाकीरोषि, कोऽपि सेवकः नास्ति। अतः अद्य आरभ्य अहमेव भोजनं पक्ष्यामि। माता पुत्रस्य निश्चयं दृष्ट्वा आह्लादिता अभवत्। भोजन पाकात् अतिरिच्य सः गृहनिर्मितं वस्त्र धृत्वा अपि धनस्य सञ्चय करोति स्म। सञ्चितं धनम् अपरेषां सहाय्यार्थं व्ययं करोति स्म। अयम् ईश्वरचन्द्रः विद्यासागर अग्रे महान् त्यागी सेवाभावी श्रमनिष्ठः च अभवत्।।

(उस परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। वे थोड़े से थोड़े समय में अधिक से अधिक पुस्तकों का अध्ययन करते थे। ग्यारह वर्ष की उम्र में वे कुमारसंभव, रघुवंश आदि साहित्यिक ग्रन्थों की व्याख्या करने के लिए समर्थ हो गये थे। कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया, इस कारण से सरकार ने उनके लिए छात्रवृत्ति प्रदान की। वे अपनी अपेक्षाकृत अधिक अभावग्रस्त जीवन जो छात्र जी रहे थे, उनकी सहायता करते थे।

एक दिन वे’माँ से बोले- माँ घर के सारे काम तुम अकेली ही करती हो, कोई नौकर नहीं है। अतः आज से लेकर मैं ही भोजन पकाऊँगा। माता पुत्र के निश्चय को देखकर आह्लादित हुई। भोजन पकाने के अलावा वह घर में बने हुए वस्त्र पहनकर भी धन संचय करते थे। संचित धन का दूसरों की सहायता के लिए व्यय करते थे। ये ईश्वरचन्द्र विद्यासागर आगे चलकर महान त्यागी, सेवाभावी और परिश्रमी हुए।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) विद्यासागरः कक्षायां किं स्थान प्राप्तवान्?
(विद्यासागर ने कक्षा में कौन-सा स्थान प्राप्त किया?)
(ii) विद्यासागराय केन छात्रवृत्तिः प्रदत्ता?
(विद्यासागर को किसने छात्रवृत्ति दी?)
(iii) विद्यासागरस्य निर्णयं श्रुत्वा माता किमन्वभवत्?
(विद्यासागर के निर्णय को सुनकर माता ने कैसा अनुभव.किया?)
(iv) विद्यासागरः कीदृक् वस्त्राणि धारयति स्म?
(विद्यासागर कैसे वस्त्र पहनते थे?)
उत्तरम् :
(i) प्रथमम्
(ii) शासनेन
(iii) आह्लादम्
(iv) गृहनिर्मितानि।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) विद्यासागरः कथम् अध्ययनं करोति स्म?
(विद्यासागर कैसे अध्ययन करता था?)
(ii) एकादश वर्षदेशीयोऽसौ किं कर्तुं समर्थेऽभवत्?
(ग्यारह वर्ष की उम्र में वह क्या करने में समर्थ हो गया?)
(iii) विद्यासागरः स्वः अर्जितं धनं कथं व्ययते स्म?
(विद्यासागर अर्जित धन को कैसे खर्च करता था?)
उत्तरम् :
(i) सः न्यूनातिन्यून समये अधिकाधिक पुस्तकानाम् अध्ययनं करोति स्म।
(वह कम से कम समय में अधिकाधिक पुस्तकों का अध्ययन करता था।)
(ii) एकादश वयसि सः कुमारसम्भवम् रघुवंशादि साहित्यिक ग्रन्थानां व्याख्यां कर्तुं समर्थः अभवत्। (ग्यारह
वर्ष की उम्र में उसने कुमारसंभव, रघुवंश आदि साहित्यिक ग्रंथों की व्याख्या करने में समर्थ हो गया।)
(iii) सः अर्जितं धनं स्व अपेक्षया अपि अधिकं अभावग्रस्तं जीवनं य छात्रः जीवति स्म तस्य सहाय्यं करोति स्म।’
(वह अर्जित धन को अपनी अपेक्षा अधिक अभावग्रस्त जीवन वाले जो छात्र थे, उनकी सहायता करते थे।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
ईश्वरचन्द्र विद्यासागरस्य महनीयता।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
ईश्वर चन्द्र विद्यासागरः बाल्यकाले निर्धनः आसीत्। अल्पकाले एव प्रभूतं साहित्यं पठति स्म। एकादशवर्षे कुमार सम्भवस्य टीका सम्पादितवान्। सः छात्रवृत्ति प्राप्तवान् परन्तु अन्येषामपि सहाय्यं करोति स्म। माता नाधिकपीडिता भवेत् अतः भोजनं स्वयमेव पचति स्म। गृहनिर्मितं वस्त्रं धारयति स्म। सञ्चितं धनं अन्येभ्यः निर्धनेभ्य एव ददाति स्म।।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘भोजनं पक्ष्यामि’ अत्र ‘पक्ष्यामि’ क्रियापदस्य कर्ता अस्ति
(अ) माता
(ब) श्रमनिष्ठ
(स) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर (अहम)
(द) शिष्य
उत्तरम् :
(स) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर (अहम)

(ii) ‘अभावग्रस्तं जीवनम्’ इत्यत्र विशेषण पदमस्ति –
(अ) जीवनम्
(ब) अभावग्रस्तम्
(स) अभाव
(द) ग्रस्तम्
उत्तरम् :
(ब) अभावग्रस्तम्

(iii) ‘तस्य परिवारस्य’ अत्र ‘तस्य’ इति सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(अ) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
(ब) सेवाभावी
(स) कर्मनिष्ठ
(द) परिवारस्य
उत्तरम् :
(अ) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘माता’ इति पदस्य विलोम पदं अस्ति –
(अ) जननी
(ब) पिता
(स) अम्बा
(द) भगिनी
उत्तरम् :
(ब) पिता

30. भारतीय संविधानस्य निर्माणं 1949 ईसवीये वर्षे नवम्बर मासस्य 26 दिनाङ्के सम्पन्नमभवत्। 1950 ईसवीये वर्षे जनवरी मासस्य 26 दिनांके देशेन स्वीकृतम्। संविधान सभायाः अध्यक्षः डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, प्रारूपाध्यक्षः डॉ. भीमराव अम्बेडकरश्चासीत्। अस्माकं संविधानं विश्वस्य विशालं संविधानमस्ति। लिखिते अस्मिन् संविधाने 395 अनुच्छेदाः 10 अनुसूच्यश्च सन्ति। अस्माकं संविधानं सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्नं पंथनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणराज्यस्य स्वरूपं देशस्य कृते प्रददाति। अत्रत्यं लोकतन्त्र संसदीय व्यवस्थानुरूपं कार्यं करोति यत्र नागरिकाणां मूलाधिकाराः कर्त्तव्याणि च लिखितानि सन्ति। अस्माकं संविधानम् न्यायिक-पुनरवलोकनस्य अधिकारमपि अस्मभ्यं प्रददाति। समये-समये आवश्यकताम् अनुभूय अस्मिन् संविधाने परिवर्तनम् संशोधनं च भवति। इदानं संशोधनानि जातानि।

(भारतीय संविधान का निर्माण सन् 1949 ई. वर्ष में नवम्बर माह की 26 तारीख को सम्पन्न हुआ। सन् 1950 ई. वर्ष में 26 जनवरी को देश ने इसे स्वीकार किया। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और प्रारूपाध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर थे। हमारा संविधान विश्व का विशाल संविधान है। इस लिखित संविधान में 395 अनुच्छेद और 10 अनुसूचियाँ हैं। हमारा संविधान सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न (सम्प्रभुतासम्पन्न) सम्प्रदाय-निरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणराज्य का स्वरूप देश के लिए प्रदान करता है।

यहाँ का लोकतन्त्र संसदीय व्यवस्था के अनुरूप कार्य करता है। जहाँ पर नागरिकों के मूल अधिकार और कर्त्तव्य लिखे हुए हैं। हमारा संविधान न्यायिक पुनरावलोकन का भी हमें अधिकार प्रदान करता है। समय-समय पर आवश्यकता का अनुभव करके इस संविधान में परिवर्तन और संशोधन भी होते हैं। अभी तक 80 संशोधन हो चुके हैं।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) भारतीय संविधानस्य निर्माणं कदा सम्पन्नं अभवत्?
(भारतीय संविधान का निर्माण कब सम्पन्न हुआ?)
(ii) भारतीय संविधान राष्ट्रिण कदा स्वीकृतम्?
(भारतीय संविधान राष्ट्र ने कब स्वीकार किया?)
(iii) संविधान सभायाः अध्यक्षः कः आसीत्?
(संविधान सभा का अध्यक्ष कौन था?)
(iv) संविधान सभायां डॉ. भीमराव अम्बेडकरस्य किं पदम् आसीत्?
(संविधान सभा में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का क्या पद था ?)
उत्तरम् :
(i) 26 नवम्बर 1949 ई. तमे
(ii) 26 जनवरी 1950 ई. वर्षे
(iii) डॉ. राजेन्द्र प्रसादः
(iv) प्रारूपाध्यक्षः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) अस्माकं लिखिते संविधाने कति अनुच्छेदाः अनुसूचयश्च सन्ति?
(हमारे लिखित संविधान में कितने अनुच्छेद और अनुसूचियाँ हैं?)
(ii) अस्माकं संविधानं देशस्य कृते कीदृशं स्वरूपं प्रददाति?
(हमारा संविधान देश के लिए कैसा स्वरूप प्रदान करता है?)
(iii) अत्रत्यं लोकतन्त्रं कथं कार्यं करोति? (यहाँ का लोकतन्त्र कैसे काम करता है?)
उत्तरम् :
(i) अस्माकं लिखिते संविधाने 395 अनुच्छेदाः 10 अनुसूच्यः च सन्ति।
(हमारे लिखित संविधान में 395 अनुच्छेद और 10 अनुसूची हैं।)
(ii) अस्माकं संविधानं सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्नं पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्यस्य स्वरूपं देशस्य कते प्रददाति।
(हमारा संविधान संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक-गणराज्य का स्वरूप देश के लिए प्रदान करता है।)
(iii) अत्रत्यं लोकतन्त्रं संसदीय व्यवस्थानुरूपं कार्यं करोति।
(यहाँ का लोकतंत्र संसदीय व्यवस्था के अनुरूप कार्य करता है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
अस्माकं संविधानम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
भारतीय संविधानस्य निर्माणं 26-11-1949 तमे स्वीकृतिश्च 26-1-1950 दिनाङ्के अभवत्। लिखितेऽस्मिन् संविधाने अनुच्छेदाः 395 अनुसूच्यश्च 10 सन्ति। विश्वस्य विशालं संविधानं सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नं पंथनिरपेक्षं लोकतान्त्रिक गणराज्यस्य स्वरूपाय देशाय प्रददाति। अत्र नागरिकाणां मूलाधिकाराः कर्त्तव्यानि च सन्ति। एषः न्यायिक पुनरावलोकनस्य अधिकारं ददाति परिवर्तनीय संशोधनीय परिवर्धनीय च अस्ति।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘अधिकारमपि अस्मभ्यं ददाति’ अत्र ‘ददाति’ क्रियायाः कर्तामस्ति –
(अ) अधिकारम्
(ब) अस्मभ्यं
(स) संविधानम्
(द) देश:
उत्तरम् :
(स) संविधानम्

(ii) ‘सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नम्’ अत्र विशेषणपदमस्ति –
(अ) सम्पूर्णम्
(ब) प्रभुत्वसम्पन्नम्
(स) संविधानम्
(द) देशः
उत्तरम् :
(अ) सम्पूर्णम्

(iii) ‘अस्माकं संविधानम् अत्र ‘अस्माकम्’ इति सर्वनामपदस्य स्थानने संज्ञा पदं भविष्यति –
(अ) भारतीयानाम्
(ब) सांसदानाम्
(स) अधिकारिणाम्
(द) संविधान सभा-सदस्याणाम्
उत्तरम् :
(अ) भारतीयानाम्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘संसारस्य’ इति पदस्य स्थाने किं पर्याय पदं प्रयुक्तम्?
(अ) जगतः
(ब) विश्वस्य
(स) संविधानस्य
(द) मासस्य
उत्तरम् :
(ब) विश्वस्य

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

1. अकारान्त पुल्लिंग’बालक’ शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 1

नोट – इसी प्रकार ह्रस्व ‘अ’ पर समाप्त होने वाले पुँल्लिंग संज्ञा शब्द- मोहन, शिव, नृप (राजा), राम, सुत (बेटा), गज (हाथी), पुत्र, कृष्ण, जनक (पिता), पाठ, ग्राम, विद्यालय, अश्व (घोड़ा), ईश्वर (ईश या स्वामी), बुद्ध, मेघ (बादल), नर (मनुष्य), युवक (जवान), जन (मनुष्य), पुरुष, वृक्ष, सूर्य, चन्द्र (चन्द्रमा), सज्जन, विप्र (ब्राह्मण), क्षत्रिय, दुर्जन (दुष्ट पुरुष), प्राज्ञ (विद्वान्), लोक (संसार), उपाध्याय (गुरु), वृद्ध (बूढ़ा), शिष्य, प्रश्न, सिंह (शेर), वेद, क्रोश (कोस), धर्म ,सागर (समुद्र), कृषक (किसान), छत्र (विद्यार्थी), मानव, भ्रमर, सेवक, समीर (हवा), सरोवर और यज्ञ आदि के रूप चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

विशेष – जिस शब्द में र, ऋ अथवा ष् होता है, उसके तृतीया एकवचन के तथा षष्ठी बहुवचन के रूप में ‘न्’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जैसे-‘राम’ शब्द में ‘र’ है। अत: तृतीया एकवचन में रामेण और षष्ठी बहुवचन में ‘रामाणाम्’ रूप बने हैं, किन्तु ‘बालक’ शब्द में र, ऋ अथवा ष् न होने से ‘बालकेन’ व ‘बालकानाम्’ रूप बनते हैं।

2. इकारान्त पुल्लिंग’कवि’ शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 2

नोट – इस प्रकार ह्रस्व ‘इ’ पर समाप्त होने वाले सभी पुल्लिंग संज्ञा शब्द-हरि (विष्णु या किसी पुरुष का नाम), बह्नि (आग), यति, (संन्यासी), नृपति (राजा), भूपति (राजा), गणपति (गणेश), प्रजापति (ब्रह्मा), रवि (सूर्य), कपि (बन्दर), अग्नि (आग), मुनि, जलधि (समुद्र), ऋषि, गिरि (पहाड़), विधि (ब्रह्मा), मरीचि (किरण), सेनापति, धनपति (सेठ), विद्यापति (विद्वान्), असि (तलवार), शिवि (शिवि नाम का राजा), ययाति (ययाति नाम का राजा) और अरि (शत्रु) आदि के रूप चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

विशेष – जिन शब्दों में र, ऋ अथवा ष् होता है, उनमें तृतीया एकवचन में व षष्ठी बहुवचन में ‘न्’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जैसे-हरि शब्द (रि में र होने के कारण)तृतीया एकवचन में हरिणा’ होगा तथा षष्ठी बहुवचन में ‘हरीणाम्’ होगा किन्तु ‘कवि’ में र्, ऋ अथवा ए नहीं होने के कारण ‘कविना’ तथा कवीनाम्’ ही हुए हैं।

3. उकारान्त पुल्लिंग ‘गुरु’ शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 3

नोट – इसी प्रकार भानु, साधु, शिशु, इन्दु, रिपु, शत्रु, शम्भु, विष्णु आदि शब्दों के रूप चलते हैं।

4. उकारान्त पुंल्लिग ‘साधु’ शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 4

नोट – इसी प्रकार गुरु, भानु, तरु, बन्धु (भाई), रिपु (शत्रु), शिशु, वायु, प्रभु, विधु, ऋतु, सिन्धु, बिन्दु, बहु, इक्षु, शत्रु आदि उकारान्त शब्दों के रूप भी चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

5. ऋकारान्त पुंल्लिंग ‘पितृ’ (पिता) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 5

नोट – इसी प्रकार ह्रस्व (छोटी) ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य पुल्लिग शब्दों-भ्रातृ (भाई) और जामात (जमाई, दामाद) आदि के रूप चलेंगे।

6. विद्वस्’ (विद्वान्) शब्द पुंल्लिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 6

7. नकारान्त राजन् (राजा) शब्द पुंल्लिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 7

8. नकारान्त आत्मन् (आत्मा) शब्द पुँल्लिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 8

नोट- इसी प्रकार अध्वन् (मार्ग), मूर्धन् (सिर), अश्मन् (पत्थर) आदि शब्दों के रूप आत्मन् की भाँति ही चलेंगे।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

9. तकारान्त पुंल्लिंग ‘गच्छत्’ (जाता हुआ) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 9

10. आकारान्त स्त्रीलिंग ‘रमा’ शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 10

नोट – इसी प्रकार दीर्घ (बड़े) ‘आ’ से अन्त होने वाले अन्य स्त्रीलिंग शब्दों-बाला (लड़की), लता, कन्या (लड़की), रक्षा, कथा (कहानी), क्रीडा (खेल), पाठशाला (विद्यालय), शीला, लीला, सीता, गीता, विमला, प्रमिला, प्रभा, विभा, सुधा (अमृत), चेष्टा (यल), विद्या, कक्षा, व्यथा (कष्ट) और बालिका (लड़की) आदि के रूप चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

विशेष – जिन शब्दों में र, ऋ अथवा ष् वर्ण (अक्षर) होता है, उनमें षष्ठी बहुवचन में ‘न्’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जैसे- रमा शब्द में ‘र’ है। अतः षष्ठी बहुवचन में ‘रमाणाम्’ रूप बनेगा किन्तु लता शब्द में र, ऋ अथवा ष् वर्ण (अक्षर) नहीं है। अतः षष्ठी बहुवचन में लतानाम् रूप ही होगा।

11. इकारान्त स्त्रीलिंग’मति’ (बुद्धि शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 11

नोट – इसी प्रकार ह्रस्व (छेटी) ‘इ’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दों-प्रकृति (स्वभाव),शक्ति (सामर्थ्य), तिथि, भीति (भय), गति (दशा), कृति (रचना), वृत्ति (पेशा), बुद्धि, सिद्धि, सृष्टि (उत्पत्ति), श्रुति (वेद), स्मृति (यादगार), भूमि (पृथ्वी), प्रीति (प्रेम), भक्ति और सूक्ति (सुभाषित) आदि के रूप चलते हैं।

12. ईकारान्त स्त्रीलिंग ‘नदी’ शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 12

नोट – इसी प्रकार दीर्घ (बड़ी) ‘ई’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दो-देवी, भगवती, सरस्वती, श्रीमती, कुमारी (अविवाहिता), गौरी (पार्वती), मही (पृथ्वी), पुत्री (बेटी), पत्नी, राज्ञी (रानी), सखी (सहेली), दासी (सेविका), रजनी (रात्रि), महिषी (रानी, भैंस), सती, वाणी, नगरी, पुरी, जानकी और पार्वती आदि शब्दों के रूप चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

13. मातृ (माता) ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 13

इसी प्रकार ह्रस्व (छोटी) ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य सभी स्त्रीलिंग शब्दों-दुहितु (पुत्री) और यातृ (देवरानी) आदि के रूप चलेंगे।

नोट – ‘मातृ’ शब्द के द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के ‘मातृः’ इस रूप को छोड़कर शेष सभी रूप ‘पितृ’ शब्द के समान ही चलते हैं।

14. अकारान्त नपुंसकलिंग’फल'(फल-परिणाम) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 14

नोट – इस ‘फल’ शब्द के ‘तृतीया विभक्ति’ के एकवचन से लेकर ‘सम्बोधन विभक्ति’ के एकवचन तक के ये 16 (सोलह) रूप ‘बालक’ शब्द के रूपों के समान ही चलते हैं।

इसी प्रकार पुस्तक, कमल, नगर (शहर), पुर (शहर), गृह (घर), पुष्प (फूल), पत्र (पत्ता, चिट्ठी), हृदय, सुख, दुःख, जल (पानी), ज्ञान (जानकारी), गमन (जाना) आदि अकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप चलेंगे। जिन शब्दों में र, ऋ अथवा ए होगा उनके प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में तथा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के रूपों में “नि’ के स्थान पर ‘णि’ हो जायेगा। जैसे-गृहम्, गृहे, गृहाणि (प्रथमा में) तथा गृहम् गृहे, गृहाणि (द्वितीया में) इसी प्रकार षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में भी ‘गृहाणाम् रूप बनेगा। इसी प्रकार ‘सम्बोधन’ विभक्ति के बहुवचन में भी ‘हे गृहाणि’ रूप ही बनेगा।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

15. उकारान्त नपुंसकलिंग’मधु’ (शहद) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 15

अन्य उपयोगी शब्द-रूप :

1. अकारान्त पुल्लिंग ‘राम’ शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 16

नोट – ये सभी रूप ‘बालक’ शब्द के समान ही हैं।

2. दातृ (देने वाला) ऋकारान्त पुल्लिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 17

नोट – इसी प्रकार ह्रस्व ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य पुल्लिंग शब्दों-कर्तृ (करने वाला), नेतृ (ले जाने वाला), वक्तृ (बोलने वाला), नप्त (नाती), सवितृ (सूर्य), श्रोतृ (सुनने वाला), भर्तृ (स्वामी), निर्मातृ (बनाने वाला), धातृ (ब्रह्मा), भोक्तृ (खाने वाला) और हर्तृ (चुराने वाला) आदि के रूप चलेंगे।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

3. उकारान्त स्त्रीलिंग’धेनु’ (गाय) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 18

नोट – इस प्रकार ह्रस्व ‘उ’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दों-तनु (शरीर), रेणु (धूल), रज्जु (रस्सी), कामधेनु, चञ्चु (चोंच) और हनु (ठोड़ी) आदि के रूप चलते हैं।

विशेष – धेनु शब्द के चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी और सप्तमी विभक्ति के एकवचन के दो-दो रूप बनते हैं। इनमें से प्रथम रूप नदी शब्द के समान बनता है तथा द्वितीय रूप भानु शब्द के समान बनता है। इन दो रूपों में से किसी भी एक रूप को प्रयोग में लाया जा सकता है।

4. इकारान्त नपुंसकलिंग’दधि’ (दही) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 19

नोट – इसी प्रकार ‘अस्थि’ (हड्डी) के सभी रूप चलेंगे।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

5. इकारान्त नपुंसकलिंग वारि’ (जल) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 20

6. तकारान्त पुल्लिंग’वदत्'(बोलता हुआ)
शतृ प्रत्यान्त शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 21

नोट – ये सम्पूर्ण रूप ‘गच्छत्’ तकारान्त पुल्लिग के समान है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

7. तकारान्त पुल्लिंग भगवत् (भगवान्) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 22

नोट – क्तवतु (कृदन्त) प्रत्यय, मतुप् (तद्धित) प्रत्ययान्त शब्दों के रूप इसी के समान चलेंगे। शतृ प्रत्ययान्त पठत् के प्रथमा एकवचन में आन् के स्थान पर अन् लगेगा। शेष रूप इस ‘भगवत्’ के समान ही चलेंगे।

8. नपुंसकलिंग पयस्’ (दूध, जल) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 23

नोट -इसी प्रकार ‘मनस् (मन) के सम्पूर्ण रूप चलेंगे।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

9. इकारान्त पुल्लिंग’हरि'(विष्णु) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 24

नोट – ये सभी रूप ‘कवि’ शब्द के समान ही हैं।

10. इकारान्त पुल्लिंग ‘पति’ (स्वामी) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् 25

नोट – ‘पति’ शब्द का जब किसी शब्द के साथ समास होता है जैसे-भूपति, नृपति आदि, तो इसके रूप ‘पति’ की तरह न चलकर ‘कवि’ की तरह चलते हैं।

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अभ्यास 

1. कोष्ठके प्रदत्तं निर्देशानुसारम् उचित विभक्तिपदेन रिक्तस्थानानि पूर्तिं कुरुत –
(कोष्ठक में दिये निर्देशानुसार उचित विभक्ति पद से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)

  1. ……………… पत्रं पतति। (वृक्ष-पञ्चमी)
  2. ……………….. हरीशः विनम्रः।(छात्र-सप्तमी)
  3. भो ……………… पत्रं पठ। (महेश-सम्बोधन)
  4. ………………. किं हसन्ति ? (भवान्-प्रथम)
  5. …………….. शनैः शनैः लिखति (केशव-प्रथमा)
  6. गोपालः जलेन ………………. प्रक्षालयति। (मुख-द्वितीया)
  7. सेवकः स्कन्धेन ……. वहति। (भार-द्वितीया)
  8. सः …………….. कोमलः। (स्वभाव-तृतीया)
  9. कोऽर्थः ………………. यो न विद्वान् न धार्मिकः। (पुत्र-तृतीया)
  10. भक्तः …………….. हरिं भजति। (मुक्ति-चतुर्थी)
  11. ………………. क्रीडनकं रोचते। (शिशु-चतुर्थी)
  12. …………….. ‘ज्ञानं गुरुतरम्। (धन-पंचमी)
  13. ……………. गङ्गा प्रभवति। (हिमालय-पंचमी)
  14. ………………. हेतोः वाराणस्यां तिष्ठति। (अध्ययन-षष्ठी)
  15. ………………. ओदनं पचति ।(स्थाली-सप्तमी)

उत्तरम् :

  1. वृक्षात्
  2. छात्रेषु
  3. महेश!
  4. भवन्तः
  5. केशवः
  6. मुखं
  7. भारं
  8. स्वभावेन
  9. पुत्रेण
  10. मुक्तये
  11. शिशवे
  12. धनात्
  13. हिमालयात्
  14. अध्ययनस्य
  15. स्थाल्याम्।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

2. कोष्ठकात् उचितविभक्तियुक्तं पदं चित्वा वाक्यपूर्तिः क्रियताम् –
(कोष्ठक से उचित विभक्तियुक्त पद को चुनकर वाक्य-पूर्ति कीजिए-)

  1. ………………. पुरोहितः गलथयत्। (शुद्धोदनाय, शुद्धोदनस्य, शुद्धोदने)
  2. मम ……………….. स्वां दुहितरं यच्छ। (पिता, पित्रा, पित्रे)
  3. शान्तनुः ………………….. वरम् अयच्छत्। (भीष्माय, भीष्मे, भीष्मात्)
  4. अयि ………………. मम मित्रं भविष्यति।। (चटकपोत!, चटकपोतं, चटकपोतैः)
  5. अस्मिन् ……………. प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति। (जगत्, जगता, जगति)
  6. कस्मिंश्चिद् ………………. एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। (ग्रामेन, ग्रामे, ग्रामस्य)
  7. सा ……………….. बहिः आगन्तव्यम्। (ग्रामात्, ग्रामे, ग्रामान्)
  8. लुब्धया ……………… लोभस्य फलं प्राप्तम्। (बालिका, बालिकया, बालिकायाः)
  9. इन्दुः …………….. प्रकाशं लभते। (भानुना, भानोः, भानवे)
  10. ………………. गङ्गा सर्वश्रेष्ठा। (नद्याम्, नद्याः नदीषु)
  11. भो भगवन्! ………………. दयस्व। (मयि, माम्, अहं)
  12. ……………… सर्वत्र पूज्यते। (विद्वान्, विद्वांसः विद्वांसौ)
  13. रविः प्रतिदिनं …………….. नमति। (ईश्वराय, ईश्वरे, ईश्वरम्)
  14. सः …………… पश्यति। (राजानम्, राज्ञाम्, राज्ञा)
  15. रामः ………………. पटुतरः। (मोहनेन, मोहनस्य, मोहनात्)

उत्तरम् :

  1. शुद्धोदनस्य
  2. पित्रे
  3. भीष्माय
  4. चटकपोत !
  5. जगति
  6. ग्रामे
  7. ग्रामात्
  8. बालिकया
  9. भानुना
  10. नदीषु
  11. मयि
  12. विद्वान्
  13. ईश्वरम्
  14. राजानम्
  15. मोहनात्।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्

3. समुचितं विभक्तिप्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
(उचित विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)

  1. …………… कुत्र गच्छति ? (भवत्)
  2. ……………. मोदकं रोचते। (बालक)
  3. ………………. अभितः वनं अस्ति। (ग्राम)
  4. कर्णः ………………. सह नगरं गच्छति। (पिता)
  5. …………….. उद्भवति। (हिमालय)
  6. …………….. कक्षायां बालकाः पठन्ति। (इदम्)
  7. सः …………….. अधितिष्ठति। (आसन)
  8. मुनिः …………….. लोकं जयति। (सत्य)
  9. नृपः ………………. क्रुध्यति। (दुर्जन)
  10. बालक: …………….. बिभेति। (चोर)

उत्तरम् :

  1. भवान्
  2. बालकाय
  3. ग्रामम्
  4. पित्रा
  5. हिमालयात्
  6. अस्याम्
  7. आसनम्
  8. सत्येन
  9. दुर्जनेभ्यः
  10. चोरात्।

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.6

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.6 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Exercise 1.6

Question 1.
Find:
(i) \(64^{\frac{1}{2}}\)
(ii) \(32^{\frac{1}{5}}\)
(iii) \(125^{\frac{1}{3}}\)
Answer:
(i) \(64^{\frac{1}{2}}=\left(2^6\right)^{\frac{1}{2}}=2^{6 \times \frac{1}{2}}=2^3=8\)
(ii) \(32^{\frac{1}{5}}=\left(2^5\right)^{\frac{1}{5}}=2^{5 \times \frac{1}{5}}=2\)
(iii) \(125^{\frac{1}{3}}=\left(5^3\right)^{\frac{1}{3}}=5^{3 \times \frac{1}{3}}=5\)

Question 2.
Find:
(i) \(9^{\frac{3}{2}}\)
(ii) \(32^{\frac{2}{5}}\)
(iii) \(16^{\frac{3}{4}}\)
(iv) \(125^{\frac{-1}{3}}\)
Answer:
(i) \(9^{\frac{3}{2}}=\left(3^2\right)^{\frac{3}{2}}=3^3=27\)
(ii) \(32^{\frac{2}{5}}=\left(2^5\right)^{\frac{2}{5}}=2^2=4\)
(iii) \(16^{\frac{3}{4}}=\left(2^4\right)^{\frac{3}{4}}=2^3=8\)
(iv) \(125^{\frac{-1}{3}}=\frac{1}{(125)^{\frac{1}{3}}}=\frac{1}{\left(5^3\right)^{\frac{1}{3}}}=\frac{1}{5}\)

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.6

Question 3.
(i) \(2^{\frac{2}{3}} \cdot 2^{\frac{1}{5}}\)
(ii) \(\left(\frac{1}{3^3}\right)^7\)
(iii) \(\frac{11^{\frac{1}{2}}}{11^{\frac{1}{4}}}\)
(iv) \(7^{\frac{1}{2}} \cdot 8^{\frac{1}{2}}\)
Answer:
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.6 - 1

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.5

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.5 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.5

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Question 1.
A matchbox measures 4 cm × 2.5 cm × 1.5 cm. What will be the volume of a packet containing 12 such boxes?
Ans. Dimension of matchbox = 4 cm × 2.5 cm × 1.5 cm
l = 4 cm, b = 2.5 cm and h = 1.5 cm
Volume of one matchbox
= (l × b × h) = (4 × 2.5 × 1.5) cm3 = 15 cm3
Volume of a packet containing 12 such boxes = (12 × 15) cm3= 180 cm3

Question 2.
A cuboidal water tank is 6 m long, 5 m wide and 4.5 m deep. How many litres of water can it hold? (1 m3 = 10001)
Answer:
Dimensions of water tank = 6 m × 5 m × 4.5 m
l = 6 m , b = 5 m and h = 4.5 m
Therefore, Volume of the tank
= lbh m3 = (6 × 5 × 4.5) m3 =135 m3
Therefore , the tank can hold = 135 × 1000 litres
[Since, 1 m3 = 1000 litres]
= 135000 litres of water.

Question 3.
A cuboidal vessel is 10 m long and 8 m wide. How high must it be made to hold 380 cubic metres of a liquid?
Answer:
Length = 10 m
Breadth = 8 m and
Volume = 380 m3
Volume of cuboid = Length × Breadth × Height
⇒ Height = \(\frac{Volume of cuboid}{(Length × Breadth)}\)
= \(\frac{380}{10 × 8}\) m = 4.75 m

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.5

Question 4.
Find the cost of digging a cuboidal pit 8 m long, 6 m broad and 3 m deep at the rate of ₹ 30 per m3.
Answer:
l = 8 m, b = 6 m and h = 3 m
Volume of the pit = lbh m3 = (8 × 6 × 3) m3 = 144 m3
Rate of digging = ₹ 30 per m3
Total cost of digging the pit = ₹ (144 × 30) = ₹ 4320

Question 5.
The capacity of a cuboidal tank is 50000 litres of water. Find the breadth of the tank, if its length and depth are respec-tively 2.5 m and 10 m.
Answer:
Length = 2.5 m,
depth = 10 m and
volume = 50000 litres
1 m3 = 1000 litres
, ,
∴ 50000 litres = \(\frac{50000}{1000}\) m3 = 50 m3

Breadth = \(\frac{Volume of cuboid }{(Length × Depth)}\)
= \(\frac{50}{(2.5 × 10)}\) = 2 m

Question 6.
A village, having a population of 4000, requires 150 litres of water per head per day. It has a tank measuring 20 m × 15 m × 6 m. For how many days will the water of this tank last?
Answer:
Dimensions of tank = 20 m × 15m × 6m
l = 20 m , b = 15 m and h = 6 m
Capacity of the tank = l × b × h = (20 × 15 × 6) m3
= 1800 m3

Water requirement per person per day =150 litres
Water required for 4000 person per day = (4000 × 150) litres
= \(\frac{(4000 × 150)}{1000}\) = 600 m3

Number of days the water will last = Capacity of tank + Total water required per day
= \(\frac{1800}{600}\) = 3
The water will last for 3 days.

Question 7.
A godown measures 40 m × 25 m × 15 m. Find the maximum number of wooden crates each measuring 1.5 m × 1.25 m × 0.5 m that can be stored in the godown.
Answer:
Dimensions of godown = 40 m × 25 m × 15 m
Volume of the godown = (40 × 25 × 15) m3 = 15000 m3
Dimensions of crates = 1.5 m × 1.25 m × 0.5 m

Volume of 1 crate = (1.5 × 1.25 × 0.5) m3 = 0.9375 m3

Number of crates that can be stored = \(\frac{Volume of the godown}{Volume of 1 crate}\)
= \(\frac{15000}{0.9375}\) = 16000

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.5

Question 8.
A solid cube of side 12 cm is cut into eight cubes of equal volume. What will be the side of the new cube? Also, find the ratio between their surface areas.
Answer:
Edge of the cube = 12 cm.
Volume of the cube
= (edge)3 cm3 = (12 × 12 × 12) cm3 = 1728 cm3

Number of smaller cubes = 8
Volume of the 1 smaller cubes = \(\frac{1728}{8}\) cm3 = 216 cm3
Let side of the smaller cube = a cm
∴ a3 =216
⇒ a = 6 cm
Surface area of the cube = 6 (side)2
Ratio of their surface area = \(\frac{(6×12×12)}{(6×6×6)}\)
= \(\frac{4}{1}\) = 4 : 1

Question 9.
A river 3 m deep and 40 m wide is flowing at the rate of 2 km per hour. How much water will fall into the sea in a minute?
Answer:
Depth of river (h) = 3 m
Width of river (b) = 40 m
Rate of flow of water (l) = 2 km per hour
= \(\frac{2000}{60}\) m per minute
= \(\frac{100}{3}\) m per minute

Volume of water flowing into the sea in a minute = lbh m3 = (\(\frac{100}{3}\) × 40 × 3) m 3
= 4000 m3

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् कारक प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

कारकस्य परिभाषा – ‘क्रियाजनकत्वं कारकम्’ अथवा ‘क्रियां करोति निर्वर्तयति इति कारकम्।’ अर्थात् यः क्रियां सम्पादयति अथवा यस्य क्रियया सह साक्षात् परम्परया वा सम्बन्धो भवति सः ‘कारकम्’ इति कथ्यते। [क्रिया को जो करता है अथवा क्रिया के साथ जिसका सीधा अथवा परम्परा से सम्बन्ध होता है, वह ‘कारक’ कहा जाता है।
क्रिया के साथ कारकों का साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध कैसे होता है? यह समझने के लिए यहाँ एक वाक्य प्रस्तुत किया जा रहा है। जैसे –
“हे मनुष्याः ! नरदेवस्य पुत्रः जयदेवः स्वहस्तेन कोषात् निर्धनेभ्यः ग्रामे धनं ददाति।” (हे मनुष्यो! नरदेव का पुत्र । जयदेव अपने हाथ से खजाने से निर्धनों के लिए गाँव में धन (को) देता है।)
यहाँ क्रिया के साथ कारकों का सम्बन्ध इस प्रकार प्रश्नोत्तर से जानना चाहिए –

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम् 1

इस प्रकार यहाँ ‘जयदेव’ इस कर्ता कारक का तो क्रिया से साक्षात् सम्बन्ध है और अन्य कारकों का परम्परा से सम्बन्ध है इसलिए ये सभी कारक कहे जाते हैं। किन्तु इसी वाक्य में ‘हे मनुष्या:!’ और ‘नरदेवस्य’ इन दो पदों का ददाति क्रिया के साथ साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध नहीं है इसलिए ये दो पद कारक नहीं हैं। ‘सम्बन्ध’ कारक तो नहीं होता है, परन्तु उसमें षष्ठी विभक्ति होती है। अतः कारक एवं विभक्ति में गहरा सम्बन्ध होते हुए भी ये अलग-अलग हैं।

‘कारकाणां संख्या’-इत्थं ‘कारकाणां संख्या’ षड् भवति। यथोक्तम् –

कर्ता कर्म च करणं च सम्प्रदानं तथैव च।
अपादानाधिकरणमित्याहुः कारकाणिषट्।।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

(इस प्रकार ‘कारकों की संख्या’ छः होती है। जैसा कि कहा है-कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण-ये छ: कारक कहे गये हैं।)

ध्यातव्यः – संस्कृत में प्रथमा से सप्तमी तक सात विभक्तियाँ होती हैं। ये सात विभक्तियाँ ही कारक का रूप धारण करती हैं। सम्बोधन विभक्ति को प्रथमा विभक्ति के ही अन्तर्गत गिना जाता है। क्रिया से सीधा सम्बन्ध रखने वाले शब्दों को ही कारक माना गया है। षष्ठी विभक्ति का क्रिया से सीधा सम्बन्ध नहीं होता है, अत: ‘सम्बन्ध’ कारक को कारक नहीं माना गया है। इस प्रकार संस्कृत में कारक छः ही होते हैं तथा विभक्तियाँ सात होती हैं। कारकों में प्रयुक्त विभक्तियों तथा उनके चिह्नों का विवरण इस प्रकार है –

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम् 2

विभक्ति प्रयोग

विभक्ति – ‘अपदं न प्रयुञ्जीत’ अर्थात् शब्दों को बिना प्रत्यय के प्रयुक्त नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि बिना प्रत्यय के शब्द ‘अपद’ होते हैं अर्थात् पद नहीं होते। इसलिए शब्दों में ‘सु’ और जस् आदि 21 प्रत्यय लगते हैं, इन्हीं प्रत्ययों के आधार पर शब्दों के सात विभक्तियों में 21 रूप बनते हैं। इन प्रत्ययों को सुप् प्रत्यय कहते हैं। सम्बोधन विभक्ति के तीन रूप प्रथमा विभक्ति के प्रत्ययों से बनते हैं।

1. कर्ता कारक

कता कतारमा प्रथमा विभक्ति – (कर्ताकारकस्य प्रयोगः) (अर्थात् कर्ता कारक का प्रयोग प्र-विभक्ति का है)
कर्ताकारकस्य परिभाषा –

1. “स्वतंत्रः कता” अर्थात् यः क्रियायाः करणे वतन्त्रः भवति सः कर्ता इति कथ्यते। (‘स्वतंत्रः कर्ता’ अर्थात् जो क्रिया के करने में स्वतन्त्र होता है, वह कर्ता कहा जाता है।)

2. क्रियासम्पादकः कर्ता कर्तरि च प्रथमा विभक्तिः भवति। यथा-रामः पठति। (क्रिया का सम्पादन करने वाला कर्ता होता है और कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है, जैसे- राम पढ़ता है।)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

प्रयोगा: – (i) कर्तरि प्रथमा-कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे-राम: गृहं गच्छति।
स्वतन्त्रः कर्ता – अर्थात् क्रिया को स्वतन्त्रता से करने वाले को कर्ता कहते हैं। कर्ता का चिह्न ‘ने’ है; वाक्य में कहीं यह चिह्न दिखाई देता है और कहीं इसका लोप हो जाता है। जैसे-‘रमेश ने किताब खरीदी’, इस वाक्य में ‘ने’ चिह्न दिखाई दे रहा है, ‘सुरेश आम खाता है’ इस वाक्य में कर्ता के चिह्न ‘ने’ का लोप है।
संस्कृत में कर्ता के तीन पुरुष, तीन वचन और तीन लिङ्ग होते हैं। यथा (जैसे) –

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम् 3

प्रथम पुरुष के सर्वनाम रूपों की भाँति ही राम, लता, फल, नदी आदि के रूप तीनों वचनों में प्रयोग में लाये जाते हैं। कर्ता के तीन लिङ्ग-पुंल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग तथा नपुंसकलिङ्ग होते हैं। वाक्य में सामान्य रूप से कर्ता कारक को प्रथमा विभक्ति द्वारा व्यक्त करते हैं।

वाक्य में कर्ता की स्थिति के अनुसार संस्कृत में वाक्य तीन प्रकार के होते हैं –
(i) कर्तृवाच्य (ii) कर्मवाच्य (iii) भाववाच्य।

(i) कर्तृवाच्यः – जब वाक्य में कर्ता की प्रधानता होती है, तो कर्ता में सदैव प्रथमा विभक्ति ही होती है। जैसे-मोहनः पठति। (मोहन पढ़ता है।)
(ii) कर्मवाच्यः – वाक्य में कर्म की प्रधानता होने पर कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है और कर्ता में तृतीया। जैसे-रामेण ग्रन्थः पठ्यते। (राम के द्वारा ग्रन्थ पढ़ा जाता है।)
(iii) भाववाच्यः – वाक्य में भाव (क्रियातत्त्व) की प्रधानता होती है और कर्म नहीं होता है। कर्ता में सदैव तृतीया विभक्ति और क्रिया (आत्मनेपदी) प्रथम पुरुष एकवचन की प्रयुक्त होती है। जैसे-कमलेन गम्यते। (कमल के द्वारा जाया जाता है।)
कर्तृवाच्य वाक्य में कर्ता के अनुसार ही क्रिया का प्रयोग किया जाता है अर्थात् कर्ता जिस पुरुष और वचन का होता है, क्रिया भी उसी पुरुष व वचन की होती है। जैसे –
कर्ता के रूप में प्रयुक्त ‘सर्वनाम शब्द’

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम् 4

क्रिया के रूप में प्रयुक्त क्रिया शब्द’-पठ् (पढ़ना) (लट् लकार (वर्तमान काल)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम् 5

उपर्युक्त 9 कर्ता शब्दों को 9 क्रिया शब्दों के साथ क्रमानुसार मिलाने पर ये 9 वाक्य इस प्रकार बनेंगे –

1. सः पठति। (वह पढ़ता है।)
2. तौ पठतः। (वे दोनों पढ़ते हैं।)
3. ते पठन्ति। (वे सब पढ़ते हैं।)
4. त्वं पठसि। (तुम पढ़ते हो।)
5. युवां पठथः। (तुम दोनों पढ़ते हो।)
6. यूयं पठथ। (तुम सब पढ़ते हो।)
7. अहं पठामि। (मैं पढ़ता हूँ।
8. आवां पठावः। (हम दोनों पढ़ते हैं।)
9. वयं पठामः। (हम सब पढ़ते हैं।)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

नोट: – छात्र कर्ता तथा क्रिया के पुरुष एवं वचन को मिलाकर वाक्य बनायें। वर्तमान काल के समान ही अन्य सभी कालों में भी कर्ता एवं क्रिया के पुरुष एवं वचन को मिलाकर इसी प्रकार 9-9 वाक्य बनेंगे।

2. कर्मकारक

कर्म कारक की परिभाषा – “कर्तुरीप्सिततमं कर्म”-कर्ता की अत्यन्त इच्छा जिस काम को करने में हो, अर्थात् कर्ता बहुत अधिक चाहता है, उसे कर्म कारक कहते हैं, जैसे-मोहनः चित्रं पश्यति। (मोहन चित्र देखता है) यहाँ ‘चित्रम्’ कर्म कारक है, क्योंकि कर्ता – ‘मोहन’ के द्वारा इसको देखना चाहा जा रहा है।
(i) कर्मणि द्वितीया – कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे-सा पुस्तकं पठति। यहाँ ‘पुस्तकम्’ की कर्म संज्ञा है, अतः ‘पुस्तकम्’ में द्वितीया विभक्ति हुई है।

(ii) तथायुक्तं अनीप्सितम् – कर्ता जिसे प्राप्त करने की प्रबल इच्छा रखता है, उसे ईप्सितम् कहते हैं और जिसकी इच्छा नहीं रखता उसे अनीप्सित कहते हैं। अनीप्सित पदार्थ पर क्रिया का फल पड़ने पर उसकी कर्म संज्ञा होती है। जैसे-‘दिनेशः विद्यालयं गच्छन्, बालकं पश्यति’ (‘दिनेश विद्यालय को जाता हुआ, बालक को देखता है’) इस वाक्य में ‘बालक अनीप्सित पदार्थ है, फिर भी ‘विद्यालयं’ की तरह प्रयुक्त होने से उसमें कर्म कारक का प्रयोग हुआ है।

3. करण कारक

करणकारकस्य परिभाषा-‘साधकतमं करणम्’ (करण कारक की परिभाषा)-अर्थात् क्रियायाः सिद्धौ यत् सर्वाधिक सहायकं भवति तस्य कारकस्य करणसंज्ञा भवति। (क्रिया की सिद्धि में जो सर्वाधिक सहायक होता है, उस कारक की करण संज्ञा (नाम) होती है।)
यथा (जैसे) –

1. मोहनः कलमेन लिखति। (मोहन कलम से लिखता है) (यहाँ क्रिया ‘लिखति’ में सर्वाधिक सहायक ‘कलम’ है, अतः ‘कलमेन’ में तृतीया हुई।)
2. रमेश: जलेन मुखं प्रक्षालयति। (रमेश जल से मुख को धोता है) (यहाँ ‘प्रक्षालयति’ क्रिया की सिद्धि में सर्वाधिक सहायक जल है, अतः ‘जलेन’ में तृतीया हुई।)
3. रामः दुग्धेन रोटिकां खादति। (राम दूध से रोटी को खाता है) (यहाँ ‘खादति’ क्रिया की सिद्धि में सर्वाधिक सहायक ‘दुग्ध’ है, अतः ‘दुग्धेन’ में तृतीया हुई।)
4. सुरेन्द्रः पादाभ्यां चलति। (सुरेन्द्र पैरों से चलता है) (यहाँ ‘चलति’ क्रिया की सिद्धि में सर्वाधिक सहायक ‘पादौ’ है। अतः ‘पादाभ्यां’ में तृतीया हुई।)

(i) ‘कर्तृकरणयोस्तृतीया’ अर्थात् अनभिहिते कर्तरिकरणे च तृतीया विभक्ति भवति। (अर्थात् कर्मवाच्य अथवा भाववाच्य वाक्य के अनुक्त कर्ता और करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है।)
जैसे-रामेण बाणेन बाली हतः। (राम ने बाण से बाली को मारा।)
(यहाँ ‘हतः’ कर्मवाच्य में क्त प्रत्यय हुआ है। अतः कर्ता राम अनुक्त है अर्थात् कर्मवाच्य वाक्य का कर्ता है तथा बाण करण कारक है। अतः कर्ता राम तथा करण बाण दोनों शब्दों में तृतीया विभक्ति हुई।)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

(ii) कर्मवाच्य भाववाच्यस्य वा अनुक्त कर्तरि अपि तृतीया विभक्तिः भवति । (कर्मवाच्य अथवा भाववाच्य के अनुक्त कर्ता में भी तृतीया विभक्ति होती है।)
जैसे – (1) रामेण लेखः लिख्यते (कर्मवाच्ये)(राम के द्वारा लेख लिखा जाता है) (कर्मवाच्य वाक्य में)
(यहाँ कर्मवाच्य वाक्य में ‘राम’ अनुक्त कर्ता है, अतः ‘रामेण’ में तृतीया विभक्ति हुई।)
(2) मया जलं पीयते। (कर्मवाच्ये)(कर्मवाच्य वाक्य में)
(यहाँ कर्मवाच्य वाक्य में ‘अहम्’ अनुक्त कर्मवाच्य वाक्य का कर्ता है, अतः ‘मया’ में तृतीया विभक्ति हुई।)
(3) तेन हस्यते। (भाववाच्ये) (भाववाच्य वाक्य में)
(यहाँ भाववाच्य वाक्य में ‘सः’ अनुक्त अर्थात् भाववाच्य वाक्य का कर्ता है, अतः ‘तेन’ में तृतीया विभक्ति हुई।)
(4) बालकेन शय्यते। (भाववाच्ये) (भावचाच्य वाक्य में)
(यहाँ भाववाच्य वाक्य में ‘बालक’ अनुक्त अर्थात् भाववाच्य वाक्य का कर्ता है, अतः ‘बालकेन’ में तृतीया विभक्ति हुई है।)

4. सम्प्रदान कारक

सम्प्रदान कारक की परिभाषा-जिसको सम्यक् (भली-भाँति) प्रकार से दान दिया जाये अथवा जिसको कोई वस्तु दी जाये, उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है, ‘कर्मणा यमभिप्रैति सः सम्प्रदानम्’ अर्थात् जिसको कोई वस्तु दी जाती है, वह सम्प्रदान कारक कहलाता है और सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति का ही प्रयोग होता है।
(i) ‘सम्प्रदाने चतुर्थी’ अर्थात् सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है। जिसे कुछ दिया जाता है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे –

  1. नृपः ब्राह्मणाय धेनुं ददाति। (राजा ब्राह्मण को गाय देता है।)
  2. धनिकः याचकाय वस्त्रं यच्छति। (धनिक याचक को वस्त्र देता है।)
  3. वानराय फलानि देहि। (बन्दर को फल दो।)
  4. बालकेभ्यः पुस्तकं ददाति। (बालकों के लिए पुस्तकें देता है।)
  5. धनिकः विप्राय गौः ददाति। (धनिक ब्राह्मण के लिए गाय देता है।)

यहाँ ऊपर दिये हुए पाँचों वाक्यों के मोटे छपे शब्दों में सम्प्रदान कारक है; क्योंकि इन्हीं को कर्ता ने क्रमशः धेनु, वस्त्र, फल, पुस्तक तथा गौ देकर प्रसन्न किया है।
क्रिया यमभिप्रैति सोऽपि सम्प्रदानम्-अर्थात् केवल दान देना ही नहीं (देने की क्रिया). अपितु कर्म के द्वारा जो अभिप्रेत हो, उसे सम्प्रदान कारक कहा जाता है अर्थात किसी क्रिया विशेष द्वारा भी जो कर्ता को अभिप्रेत इच्छित हो, सम्प्रदान कारक कहा जाता है। तात्पर्य यह हुआ कि किसी वस्तु को देकर प्रसन्न करने पर सम्बन्धित प्राणी में सम्प्रदान कारक होता है, साथ ही किसी भी क्रिया द्वारा इच्छित प्राणी को सन्तुष्ट अथवा प्रसन्न किया जाता है तो उस सन्तुष्ट होने वाले प्राणी में सम्प्रदान कारक होता है। जैसे –
(1) सा बालकाय नृत्यति। (वह बालक के लिए नाचती है।)
(2) कमला कृष्णाय जलम् आनयति। (कमला कृष्ण के लिए जल लाती है।)

यहाँ पर कर्ता ‘सा’ नृत्य-क्रिया द्वारा अपने बालक को प्रसन्न करना चाहती है। अर्थात् वह अपना नृत्य बालक को देना (प्राप्त कराना) चाहती है अतः बालक में सम्प्रदान कारक है अत: चतुर्थी विभक्ति हुई है। इसी प्रकार द्वितीय वाक्य में कमला जल लाने की क्रिया कृष्ण की सन्तुष्टि (प्रसन्नता) के लिए कर रही है; अतः उसमें भी क्रिया द्वारा अभिप्रेत (इच्छित) कृष्ण में सम्प्रदान कारक है अतः चतुर्थी विभक्ति हुई है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

5. अपादान कारक

(1) (क) धुवमपावेऽपादानम् – अर्थात् अपाये सति यद् ध्रुवं तस्य अपादान संज्ञा भवति। (अर्थात् किसी वस्तु या व्यक्ति के अलग होने में जो कारक स्थिर होता है अर्थात् जिससे वस्तु अलग होती है, उसकी अपादान संज्ञा होती है अर्थात् उस शब्द को अपादान कारक कहा जाता है।

(ख) अपादाने पञ्चमी-अपादाने पञ्चमी विभक्तिः भवति। (अर्थात् अपादान कारक में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
(i) वृक्षात् पत्रं पतति। (वृक्ष से पत्ता गिरता है।)
(ii) नृपः ग्रामाद् आगच्छति। (राजा गाँव से आता है।)
(iii) बालकः गृहात् आगच्छति। (बालक घर से आता है।)
(iv) अहं विद्यालयात् आगच्छामि (मैं विद्यालय से आता हूँ।)

ऊपर कहे गये चारों उदाहरणों में क्रमशः वृक्ष, ग्राम, गृह और विद्यालय स्थिर कारक हैं और इनसे क्रमशः पत्रं, नृपः, बालकः और अहं अलग हो रहे हैं अतः वृक्ष, ग्राम, गृह और विद्यालय की अपादान कारक संज्ञा (नाम) होने से इनमें पञ्चमी विभक्ति आई है।

6. सम्बन्ध कारक

संस्कृत में ‘सम्बन्ध’ कारक को कारक नहीं माना गया है, जबकि हिन्दी में ‘सम्बन्ध’ कारक को कारक स्वीकारा गया है। इसका कारण यह है कि सम्बन्ध कारक में कर्ता (संज्ञा) का क्रिया के साथ सम्बन्ध व्यक्त नहीं होता, अपितु संज्ञा अथवा सर्वनाम के साथ केवल सम्बन्ध ही प्रकट होता है। संस्कृत में कारक उसे ही कहा जाता है जिसका क्रिया से सीधा सम्बन्ध होता है।
संज्ञा अथवा सर्वनामों का यह सम्बन्ध मुख्य रूप से चार प्रकार का है –
(अ) स्वाभाविक सम्बन्ध; जैसे – बालकस्य क्रीडनम् (बालक का खेलना)
(ब) जन्य-जनक भाव सम्बन्ध; – जैसे – मातुः तनया (माता की पुत्री)
(स) अवयवावयवि भाव सम्बन्ध; – जैसे शरीरस्य अङ्गानि (शरीर के अंग)
(द) स्थान्यदेश भाव सम्बन्धः, जैसे – नगरस्य आपणम् (नगर का बाजार)

हिन्दी में सम्बन्धवाचक शब्दों के साथ ‘रा’, ‘री’, ‘रे’ तथा ‘का’, ‘की’, ‘के’ शब्दांश जुड़े होते हैं। संस्कृत में इस सम्बन्ध को वाक्य में षष्ठी विभक्ति द्वारा व्यक्त किया जाता है। जैसे –

  1. रामस्य पिता श्री दशरथः आसीत्। (राम के पिता श्री दशरथ थे।)
  2. सीता रामस्य पत्नी आसीत्। (सीता राम की पत्नी थी।)
  3. द्रौपदी अर्जुनस्य भार्या आसीत्। (द्रौपदी अर्जुन की पत्नी थी।)
  4. विद्या सर्वस्य धनम् अस्ति। (विद्या सबका धन है।)
  5. गोः पादः अस्वस्थः अस्ति। (गाय का पैर अस्वस्थ है।)
  6. मृत्तिकायाः शकुन्तः अस्माकम् अस्ति। (मिट्टी का पक्षी हमारा है।)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

7. अधिकरण कारक

‘आधारोऽधिकरणम्’ अर्थात् जिस वस्तु अथवा स्थान पर कार्य किया जाता है, उस आधार में अधिकरण कारक होता है। इसके चिह्न ‘में’ या ‘पर’ हैं।
ध्यान रखे जाने योग्य है कि अधिकरण क्रिया का साक्षात् आधार नहीं होता है, वह तो कर्त्ता और कर्म का आधार होता है। क्रिया कर्ता अथवा कर्म में रहती है। अधिकरण तीन प्रकार का होता है –
(i) उपश्लेषमूलक आधार
(ii) वैषयिक आधार
(iii) अभिव्यापक आधार।

उपश्लेष मूलक आधार का अर्थ है-संयोगादि सम्बन्ध। जैसे-मोहनः आसन्दिकायाम् आस्ते। मोहन कुर्सी पर बैठा है, यहाँ कर्ता मोहन है, उसमें बैठने की क्रिया है। मोहन का आधार है कुर्सी, उसके साथ मोहन का संयोग सम्बन्ध है। अतः कुर्सी औपश्लेषिक आधार है। इसी प्रकार ‘यतिः वने वसति’ में ‘वन’ उपश्लेषमूलक आधार है।

विषयता सम्बन्ध से सम्पन्न होने वाला आधार वैषयिक आधार कहलाता है। उदाहरण के लिए ‘देवदत्तस्य’ मोक्षे इच्छा अस्ति’। इस वाक्य में कर्ता देवदत्त है, उसकी मोक्ष में इच्छा है; अर्थात् उसकी इच्छा का विषय मोक्ष है; अतः यह वैषयिक आधार है।
जिस आधार पर कोई वस्तु समस्त अवयवों में लीन होकर रहती है, वह आधार अभिव्यापक आधार कहलाता है।

जैसे-सर्वस्मिन् आत्मा अस्ति। आत्मा समस्त प्राणियों में रहती है; अतः ‘सर्व’ शब्द में अभिव्यापक आधार है। अतः ‘सर्व’ शब्द में सप्तमी विभक्ति हुई है।
वाक्य में अधिकरण कारक को सप्तमी विभक्ति द्वारा व्यक्त किया जाता है, जैसे –

  1. ग्रामेषु जनाः निवसन्ति। (गाँवों में लोग रहते हैं।)
  2. छात्राः विद्यालये पठन्ति। (छात्र विद्यालय में पढ़ते हैं।)
  3. सिंहः वने वसति। (सिंह वन में रहता है।)
  4. सिंहाः वनेषु गर्जन्ति। (शेर वन में गरजते (दहाड़ते) हैं।)
  5. गङ्गायां जलं वर्तते। (गंगा में जल है।)
  6. शिक्षकः पाठशालायां पाठयति। (शिक्षक पाठशाला में पढ़ाता है।)
  7. आकाशे तारामण्डलमस्ति। (आकाश में तारामण्डल है।)
  8. भवनेषु जनाः वसन्ति। (भवनों में लोग बसते हैं।)

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8. सम्बोधन कारक

  1. जिसको पुकारा जाता है, उसमें सम्बोधन कारक होता है। सम्बोधन कारक में प्रायः प्रथमा विभक्ति होती है।
  2. सम्बोधन के चिह्न हे ! भो ! अरे ! आदि हैं। कभी ये छिपे भी होते हैं।
  3. सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति के रूपों में कुछ शब्दों के एकवचन के रूप में कुछ परिवर्तन भी हो जाता है। जैसे-सीते! त्वं कुत्र असि? (हे सीता! तुम कहाँ हो?)

अन्य उदाहरण –

1. रे सोहन ! त्वं किम् अपश्यः? (अरे सोहन! तुमने क्या देखा था?)
2. भो छात्राः! यूयं विद्यालयं गच्छत। (हे छात्रो! तुम सब विद्यालय जाओ।)

उपपद विभक्ति

संस्कृत में कारकों के अतिरिक्त किसी विशेष अर्थ को व्यक्त करने के लिए अथवा किसी ‘पद’ विशेष के साथ विभक्ति विशेष को लगाये जाने का नियम भी है। नियम के अनुसार प्रयुक्त होने वाली विशेष विभक्ति को ही ‘उपपद विभक्ति’ के नाम से जाना जाता है।

प्रथमा विभक्ति

सूत्र – प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा।
प्रातिपदिकार्थमात्रे, लिङ्गमात्रे, परिमाणमात्रे, वचनमात्रे प्रथमा विभक्तिर्भवति। (प्रातिपदिक का अर्थ बतलाने में, लिङ्ग का ज्ञान कराने में, परिमाण का बोध कराने में और वचन की जानकारी कराने में प्रथमा विभक्ति आती है।
(i) प्रातिपदिकार्थ में – किसी पद (शब्द) के उच्चारण करने पर जिस अर्थ की निश्चित जानकारी होती है उसे प्रातिपदिकार्थ कहते हैं। अर्थात् जाति और व्यक्ति की प्रतीति जिससे होती है उसे प्रातिपदिकार्थ कहते हैं। उदाहरणार्थ-कृष्णः, श्रीः, ज्ञानम् आदि पद प्रातिपदिकार्थ रूप में प्रयुक्त हुए हैं, अतः इनमें प्रथमा विभक्ति है।

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(ii) लिंग मात्र में – किसी पद में लिंग बतलाने के लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग करते हैं। जैसे-तटः, तटी, तटम्। यहाँ ये तीनों पद (शब्द) क्रमशः पुंल्लिग, स्त्रीलिंग एवं नपुंसकलिंग का ज्ञान करा रहे हैं। अत: इन तीनों में प्रथमा विभक्ति है।

(iii) परिमाण मात्र में – नाप या भार का बोध कराने के लिए भी प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे-द्रोणः (एक तोलने का बाँट), आढकम् (एक तोल विशेष) आदि में प्रथमा विभक्ति है।

(iv) वचन मात्र में – एकवचन, द्विवचन और बहुवचन का ज्ञान कराने हेतु भी प्रथमा विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे-एक: द्वौ, बहवः, क्रमशः एकवचन, द्विवचन तथा बहुवचन में हैं तथा प्रथमा विभक्ति में हैं।
उदाहरण

  1. सभी लोग क्या देखते हैं? सर्वे जनाः किं पश्यन्ति?
  2. प्रयाग एक तीर्थ-स्थान है। प्रयागः एकं तीर्थस्थानम् अस्ति।
  3. अर्जुन एक महान् धनुर्धर था। अर्जुनः एकः महान् धनुर्धरः आसीत्।
  4. मोहन वाराणसी गया। मोहन: वाराणसीम् अगच्छत् ।
  5. जो दौड़ता है वह गिरता है। यः धावति सः पतति।
  6. वह लड़की पढ़ती है। सा बालिका पठति।
  7. आप लोग कहाँ जायेंगे? भवन्तः कुत्र गमिष्यन्ति?
  8. वे सब वहाँ नहीं जायेंगे। ते सर्वे तत्र न गमिष्यन्ति।
  9. छात्र पढ़ते हैं। छात्राः पठन्ति।
  10. वह पुरुष कौन है? सः पुरुषः कः अस्ति?
  11. कौन बालक दौड़ता है? कः बालकः धावति?

(v) अभिधेयमात्रे प्रथमा – अभिधेय का अर्थ है नाम। केवल नाम व्यक्त करना हो तो उसमें प्रथमा विभक्ति लगती है। जैसे-रामः, कृष्णः, गजः देवः। यहाँ ये चारों पद (शब्द) नाम हैं अतः इनमें प्रथमा विभक्ति लगी है।

(vi) अव्यययोगे प्रथमा – अव्यय शब्दों के योग में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे-कृष्णः इति सखा अस्ति। (‘कृष्ण’ यह (नामवाला) मित्र है)

(vii) सम्बोधने प्रथमा – सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे-हे कृष्ण! यहाँ ‘इति’ अव्यय शब्द से पूर्व वाले ‘कृष्णः’ पद (शब्द) में ‘इति’ अव्यय शब्द के योग के कारण प्रथमा विभक्ति लगी है। यहाँ ‘हे कृष्ण!’ में सम्बोधन विभक्ति (प्रथमा विभक्ति) है।

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(vii) प्रयोजके कर्तरि प्रथमा – प्रयोजक कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे-पिता पुत्रं मेघं दर्शयति। यहाँ प्रयोजक कर्ता ‘पिता’ पद (शब्द) में प्रथमा विभक्ति है।

(ix) उक्ते कर्मणि प्रथमा – कर्मवाच्य के वाक्य में कर्म कारक में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे-मया कृष्णः दृश्यते। (मेरे द्वारा कृष्ण को देखा जा रहा है) यहाँ कर्म कारक ‘कृष्ण:’ पद (शब्द) में प्रथमा विभक्ति लगी है।

द्वितीया विभक्तिः (कर्मकारकस्य प्रयोगः)

कर्मकारकस्य परिभाषा (कर्म कारक की परिभाषा)-“कर्तुरीप्सिततमं कर्म” अर्थात् कर्ता क्रियया यं सर्वाधिकम् इच्छति तस्य कर्म संज्ञा भवति। (कर्ता की अत्यन्त इच्छा जिस काम को करने में हो, अर्थात् कर्ता जिसे बहुत अधिक चाहता है, उसे कर्म कारक कहते हैं।) जैसे-मोहनः चित्रं पश्यति। (मोहन चित्र को देखता है)
यहाँ ‘चित्रम् कर्म कारक है, क्योंकि कर्ता ‘मोहन’ के द्वारा इसका देखना चाहा जा रहा है। अतः ‘चित्रम्’ में द्वितीया विभक्ति है।

1. कर्मणि द्वितीया – कर्मणि द्वितीया विभक्तिः भवति। (कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है।) जैसे-सा (वह पुस्तक पढ़ती है) यहाँ ‘पुस्तक’ शब्द ‘पठति’ क्रिया का कर्म है, अत: ‘पुस्तकम्’ में द्वितीया विभक्ति हुई है। अन्य उदाहरण (i) रामः ग्रामं गच्छति। (राम गाँव को जाता है) यहाँ ‘गच्छति’ क्रिया का कर्म ‘ग्रामम्’ है, अतः ‘ग्रामम्’ में द्वितीया विभक्ति हुई।
(ii) बालकाः वेदं पठन्ति। (बालक वेद को पढ़ते हैं) यहाँ ‘पठन्ति’ क्रिया का कर्म ‘वेद’ है, अत: वेदम्’ में द्वितीया विभक्ति हुई।
(iii) वयं नाटकं द्रक्ष्यामः। (हम सब नाटक को देखेंगे) यहाँ ‘द्रक्ष्यामः’ क्रिया का कर्म ‘नाटक’ है, अतः ‘नाटकम्’ में द्वितीया विभक्ति हुई।
(iv) साधुः तपस्याम् अकरोत्। (साधु ने तपस्या की) यहाँ ‘तपस्याम्’ शब्द ‘अकरोत्’ क्रिया का कर्म है, अतः ‘तपस्याम्’ में द्वितीया विभक्ति हुई।
(v) सन्दीपः सत्यं वदेत् । (संदीप को सत्य बोलना चाहिए) यहाँ ‘वदेत्’ क्रिया का कर्म ‘सत्यं’ है। अतः द्वितीया विभक्ति हुई।

2. तथायुक्तं अनीप्सितम् – कर्ता जिसे प्राप्त करने की प्रबल इच्छा रखता है, उसे ईप्सिततम कहते हैं और जिसकी इच्छा नहीं रखता उसे अनीप्सित कहते हैं। अनीप्सित (अनिच्छित) पदार्थ पर क्रिया का फल पड़ने पर उसकी कर्म संज्ञा होती है। जैसे-‘दिनेशः विद्यालयं गच्छन, बालकं पश्यति’ (दिनेश विद्यालय जाते हए, बालक को देखता है) इस वाक्य में ‘बालकं’ अनीप्सित (अनिच्छित) पदार्थ है, फिर भी ‘विद्यालयं’ की तरह प्रयुक्त होने से उसमें कर्म कारक का प्रयोग हुआ है।

‘अकथितं च’ सूत्र से निम्न सोलह धातुओं तथा इन अर्थों की अन्य धातुओं के होने पर इनके साथ दो कर्म होते हैं, अतः दोनों में द्वितीया विभक्ति ही लगायी जाती है। जैसे – (1) दुह् (दुहना), (2) याच् अथवा भिक्ष (माँगना), (3) पच् (पकाना), (4) दण्ड् (दण्ड देना), (5) रुध् (रोकना), (6) प्रच्छ (पूछना), (7) चि (चुनना), (8) ब्रू अथवा भाष् (बोलना), (9) शास् (बताना), (10) जि (जीतना), (11) मथ् (मथना), (12) मुष् अथवा चुर् (चुराना), (13) नी (ले जाना), (14) हृ (हरण करना), (15) कृष् (खींचना), (16) वह (ढोना या ले जाना)। ये सोलह द्विकर्मक (दो कर्मों वाली) क्रियाएँ हैं। इनके उदाहरण निम्नवत् हैं –

  1. कृषकः अजां दुग्धं दोग्धि। (किसान बकरी का दूध दुहता है।)
  2. सेवकः नृपं क्षमा याचते भिक्षते वा। (सेवक राजा से क्षमा माँगता है।)
  3. पाचकः तण्डुलान् ओदनं पचति। (रसोईया चावलों से भात पकाता है।)
  4. नृपः दुर्जनं शतं दण्डयति। (राजा दुर्जन पर सौ रुपये दण्ड लगाता है।)
  5. कृष्णः ब्रजं गां रुणद्धि। (कृष्ण ब्रज में गाय को रोकता है।)
  6. शिष्यः गुरुं धर्मं पृच्छति। (शिष्य गुरु से धर्म को पूछता है।)
  7. मालाकारः लतां पुष्पाणि चिनोति। (माली लता से फूलों को चुनता है।)
  8. शिक्षकः छात्रं धर्मं ब्रूते भाषते वा। (शिक्षक छात्र से धर्म कहता है।)
  9. जनकः पुत्रं धर्म शास्ति। (पिता पुत्र को धर्म बताता है।)
  10. मोहनः रामं शतं जयति। (मोहन राम से सौ रुपये जीतता है।)
  11. हरिः सागरं सुधां मनाति। (हरि समुद्र से अमृत मथता है।)
  12. रामः देवदत्तं शतं मुष्णाति चोरयति वा। (राम देवदत्त के सौ रुपये चुराता है।)
  13. कृषक: ग्रामम् अजां नयति। (किसान गाँव में बकरी ले जाता है।)
  14. नराः वसुधां रत्नानि कर्षन्ति। (लोग जमीन से रन खोदते हैं। निकालते हैं)
  15. कृषक: भारं ग्रामं कर्षति। (किसान बोझा गाँव ले जाता है।)
  16. कृषक: भारं ग्रामं वहति। (किसान भार को गाँव ले जाता है।)

नोट – यहाँ ऊपर दिये गये 16 वाक्यों में स्थूल पदों में (शब्दों में) कर्म कारक होने के कारण द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त

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द्वितीया उपपद विभक्ति

(1) ‘अधिशीङ्स्थासां कर्म’ – इस सूत्र के अनुसार अधि उपसर्ग पूर्वक शीङ् (सोना), स्था (ठहरना) एवं आस् (बैठना) धातु के आधार की कर्म संज्ञा होती है। अर्थात् सप्तमी विभक्ति के अर्थ में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे-हरिः बैकुण्ठम् अधिशेते। (हरि बैकुण्ठ में सोते हैं।) यहाँ बैकुण्ठ में सप्तमी विभक्ति न होकर उक्त अधि उपसर्ग के प्रयोग के कारण द्वितीया विभक्ति हुई है। नृपः सिंहासनम् अधिनिष्ठति (राजा सिंहासन पर बैठता है। सः बलासनम् अध्यास्ते वह कुर्सी पर बैठता है।)

2. उभयतः (दोनों ओर), सर्वत: (सभी ओर या चारों ओर), धिक् (धिक्कार है), उपर्युपरि (उपरि + उपरि = ऊपर-ऊपर), अध्यधि (अधि + अधि = अन्दर-अन्दर) और अधोऽधः (अध: + अधः = नीचे-नीचे) इन शब्दों का योग होने ‘ पर द्वितीया विभक्ति ही होती है।
जैसे –
(1) कृष्णम् उभयतः गोपाः सन्ति। (कृष्ण के दोनों ओर ग्वाले हैं।) (2) ग्रामं सर्वत: जलम् अस्ति। (गाँव के सब ओर जल है।) (3) दुर्जनं धिक्। (दुर्जन को धिक्कार है।) (4) हरिः लोकम् उपर्युपरि अस्ति। (हरि संसार के ऊपर-ऊपर हैं।) (5) हरिः लोकम् अध्यधि वर्तते। (हरि संसार के अन्दर-अन्दर हैं।) (6) पाताल: लोकम् अधोऽधः वर्तते। (पाताल संसार के नीचे-नीचे है।)

3. अभितः परितः समया निकषा हा प्रतियोगेऽपि-इस वार्तिक के अनुसार अभितः (दोनों ओर), परितः (चारों ओर), समया (समीप में), निकषा (समीप में), हा (अफसोस) तथा प्रति (ओर) का योग होने पर भी द्वितीया विभक्ति होती है।
जैसे –

  1. प्रयागम् अभितः नद्यौ स्तः। (प्रयाग के दोनों ओर नदियाँ हैं।)
  2. ग्रामं समया विद्यालयोऽस्ति। (गाँव के समीप में विद्यालय है।)
  3. ग्रामं परितः जलम् अस्ति। (गाँव के चारों ओर जल है।)
  4. विद्यालयः ग्रामं निकषा अस्ति। (विद्यालय गाँव के समीप है।)
  5. हा शठम्। (शठ के प्रति अफसोस है।)
  6. बालकः विद्यालयं प्रति गच्छति। (बालक विद्यालय की ओर जाता है।)

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4. गत्यर्थक अर्थात् गति (चलना, हिलना, जाना) अर्थ वाली क्रियाओं के साथ द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे –
(i) रामः ग्रामं गच्छति (राम गाँव को जाता है।
(ii) सिंहः वनं विचरति। (सिंह वन में विचरण करता हैं।)
(iii) सः स्मृति गच्छति (वह स्मृति को प्राप्त करता है।)
(iv) स परं विषादम् अगच्छत्। (वह परम विषाद को प्राप्त हुआ।)

5. अन्तराऽन्तरेण युक्ते-अर्थात् अन्तरा (बीच या मध्य में), अन्तरेण (बिना) और (विना) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे –
(i) त्वां मां च अन्तरा रामोऽस्ति। (तुम्हारे और मेरे मध्य में राम है।)
(ii) रामम् अन्तरेण न गतिः। (राम के बिना कल्याण नहीं।)
(iii) ज्ञानं विना न सुखम्। (ज्ञान के बिना सुख नहीं।)

6. ‘कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे’ अर्थात् अत्यन्त संयोग हो और कालवाची अथवा मार्गवाची शब्दों का प्रयोग हो तो कालवाची अथवा मार्गवाची शब्दों में द्वितीया विभक्ति आती है। जैसे –
(i) राम: मासम् अधीते पठति वा। (राम महीने भर पढ़ता है।)
(ii) इयं नदी क्रोशं कुटिला अस्ति। (यह नदी कोस भर तक टेढ़ी है।)
(iii) स: क्रोशं पुस्तकं पठति अधीते वा। (वह कोस भर तक पुस्तक पढ़ता है।)
(iv) सः दश दिनानि लिखति। (वह दस दिनों तक लिखता है)।

7. ‘उपान्वध्यावसः’ अर्थात् वस् धातु से पहले उप, अनु, अधि और आ उपसर्गों में से कोई भी उपसर्ग लगा हो, तो वस् धातु के आधार की कर्म संज्ञा हो जाती है अर्थात् सप्तमी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति ही लगती है। जैसे-(i) हरिः
उम् उपवसति। (ii) हरिः बैकुण्ठम् अनुवसति। (iii) हरिः बैकुण्ठम् अधिवसति। (iv) हरिः बैकुण्ठम् आवसति। अर्थात् हरि बैकुण्ठ में निवास करता है। यह इन चारों संस्कृत के वाक्यों का हिन्दी-अनुवाद है।

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8. ‘अभुक्तर्थस्य न’ अर्थात् जब उपसर्गपूर्वक वस् धातु का अर्थ उपवास करना (भूखा रहना) होता है, तब उसके आधार की कर्म संज्ञा नहीं होती तथा द्वितीया विभक्ति नहीं आती है। बल्कि सप्तमी विभक्ति हो जाती है। जैसे-रामः वने उपवसति। राम वन में उपवास करता (भूखा रहता) है । अनु (ओरं या पीछे) के योग में द्वितीया विभक्ति आती है। जैसे-नृपः चौरम् अनुधावति। (राजा चोर के पीछे दौड़ता है।)

9. अनुर्लक्षणो – अनु का लक्षण-अर्थ व्यक्त होने पर ‘अन’ के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे लक्ष्मणः रामम अनुगच्छति (लक्ष्मण राम के पीछे जाता है।), यज्ञम् अनुप्रावर्षत् (यज्ञ के पश्चात् वर्षा हुई।)

10. एनपा द्वितीया-एनप प्रत्ययान्त शब्द की जिससे निकटता प्रतीत होती है उसमें द्वितीया या षष्ठी होती है। जैसे-नगरं नगरस्य वा दक्षिणेन (नगर के दक्षिण की ओर)
नोट – यहाँ 1 से 10 तक के नियमों के वाक्यों में स्थूल पदों (शब्दों) में द्वितीया विभक्ति हुई है।

तृतीया विभक्ति

‘कर्तृकरणयोस्तृतीया’ अर्थात् उक्त कर्तृवाच्य वाक्य के करण कारक में तथा कर्मवाच्य अथवा भाववाच्य वाक्य के कर्ता कारक में तृतीया विभक्ति आती है। जैसे –
(1) रामः कलमेन लिखति। (राम कलम से लिखता है।) (यहाँ कर्तृवाच्य वाक्य के करण कारक ‘कलम’ में तृतीया विभक्ति है।
यहाँ कलम लिखने की क्रिया में सहायक है। अत: कलम करण कारक हुआ और इसी कारण ‘कलम’ में तृतीया विभक्ति आयी है।

(2) मया पुस्तकं पठ्यते। (मेरे द्वारा पुस्तक पढ़ी जाती है।)
यह कर्मवाच्य का वाक्य है, अतः कर्ता ‘मया’ में तृतीया विभक्ति आयी है।

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(3) शीलया सुप्यते। (शीला के द्वारा सोया जाता है।)
यह भाववाच्य का वाक्य है, अतः कर्ता ‘शीलया’ में तृतीया विभक्ति आयी है।

(4) ममतया भोजनं पच्यते। (ममता के द्वारा भोजन पकाया जाता है।)
यह कर्मवाच्य का वाक्य है। अतः कर्ता ‘ममतया’ में तृतीया विभक्ति आयी है।

तृतीया उपपद विभक्ति

1. ‘प्रकृत्यादिभिः उपसंख्यानम्’-अर्थात् प्रकृति, प्रायः, गोत्र आदि शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे –

  1. रामः प्रकृत्या दयालुः। (राम प्रकृति से दयालु है।)
  2. सोमदत्तः प्रायेण याज्ञिकोऽस्ति। (सोमदत्त प्रायः याज्ञिक है।)
  3. सः गोत्रेण गार्योऽस्ति। (वह गोत्र से गार्य है।)
  4. सः सुखेन जीवति। (वह सुख से जीता है।)
  5. सः दुःखेन याति। (वह दुःख से जाता है।)
  6. सिंहः स्वभावेन मनस्वी भवति। (सिंह स्वभाव से मनस्वी होता है।)

2. ‘सहयुक्त प्रधाने’ – अर्थात् सह (साथ), साकं (साथ), समं (साथ) और सार्धं (साथ) के योग में अप्रधान (कर्ता का साथ देने वाले) में तृतीया विभक्ति आती है। जैसे –
सीता रामेण सह गच्छति। (सीता राम के साथ जाती है।)

यहाँ प्रधान कर्ता सीता है और राम अप्रधान है, अतः सह (साथ) का योग होने के कारण ‘राम’ में तृतीया विभक्ति हुई है। जैसे –
पिता पुत्रेण साकं गच्छति। (पिता पुत्र के साथ जाता है।)

3. येनाङ्ग विकारः – शरीर के जिस अंग में विकार हो उस विकार युक्त अंग में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे –

  1. रामः पादेन खञ्जः। (राम पैर से लँगड़ा है।)
  2. मोहनः कर्णाभ्यां बधिरः। (मोहन कानों से बहरा है।)
  3. सः शिरसा खल्वाटः। (वह सिर से गंजा है।)
  4. कर्णेन बधिरः। (कान से बहरा है।)
  5. पादेन खञ्जः। (पैर से लँगड़ा है।)
  6. हस्तेन लुञ्जर। (हाथ से लूला है।)

4. ऊन (कम), हीन (रहित), अलम् (बस या मना के अर्थ में) तथा किम् आदि न्यूनतावाचक और निषेधवाचक शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे –

  1. अलं विवादेन। (विवाद बन्द करो।)
  2. विद्यया हीनः जनः पशुः। (विद्या से हीन मनुष्य पशु है।)
  3. एकेन ऊनः। (एक कम)।
  4. कलहेन किम्। (कलह करना व्यर्थ है।)

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5. तुल्य, सम और सदृश शब्दों के योग में विकल्प से तृतीया और षष्ठी विभक्तियाँ होती हैं। तुल्य, सदृश और सम तीनों शब्दों का अर्थ ‘समान’ है। जैसे –

  1. कृष्णेन/कृष्णस्य वा तुल्यः। (कृष्ण के समान)।
  2. सत्येन/सत्यस्य वा समः। (सत्य के समान)।
  3. रामेण/रामस्य वा सदृशः। (राम के समान)।

6. ‘इत्थं भूतलक्षणे’ अर्थात् जिस लक्षण या चिह्न विशेष से किसी वस्तु या व्यक्ति का बोध होता है, उसमें तृतीया विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे –

  1. जटाभिः तापसः प्रतीयते। (जटाओं से तपस्वी प्रतीत होता है।)
  2. दण्डेन यतिः ज्ञायते। (दण्ड से यति मालूम होता है।)
  3. स्वरेण रामभद्रम् अनुहरति। (स्वर से राम के समान है।)

7. कार्य, अर्थ, प्रयोजन, गुण तथा उपयोगिता को प्रकट करने वाले अन्य पदों के योग में भी उपयोग में आने वाली वस्तु में इसी नियम से तृतीया विभक्ति होती है। जैसे –

1. धनेन किं प्रयोजनम्? (धन से क्या प्रयोजन?)
2. कोऽर्थः पुत्रेण जातेन? (पुत्र के उत्पन्न होने से क्या अर्थ?)
3. मूर्खेण पुत्रेण किम्? (मूर्ख पुत्र से क्या लाभ?)

8. ‘अपवर्गे तृतीया’- अर्थात् फलप्राप्ति या कार्यसिद्धि का बोध कराने के लिए समयवाची तथा मार्गवाची शब्दों में अत्यन्त संयोग होने पर तृतीया विभक्ति होती है। यहाँ अपवर्ग का अर्थ फल की प्राप्ति है। जैसे –

मासेन शास्त्रम् अधीतवान्। (महीने भर में शास्त्र पढ़ लिया।)
क्रोशेन पुस्तकं पठितवान्। (कोस भर में पुस्तक पढ़ ली।)
सप्तभिः दिनैः रचितवान्। (सात दिनों में रच लिया।)

9. पृथग्विनानाभिस्तृतीयान्यतरस्याम्।
अर्थात् पृथक्, विना, नाना शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति, द्वितीया विभक्ति और पञ्चमी विभक्ति होती है; जैसे-दशरथः रामेण/रामात्/रामं वा विना/पृथक्/नाना प्राणान् अत्यजत्।

10. हेतौ-हेतु अर्थात् कारण वाचक शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे –
(i) रमेशः अध्ययनेन नगरे वसति। (रमेश अध्ययन हेतु नगर में रहता है।)
(ii) विद्यया यशः भवति। (विद्या के द्वारा/के कारण यश होता है।)

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11. किम्, अपि, प्रयोजनं, अर्थः, लाभः आदि के योग में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे –
(i) धनेन किं भवति? (धन से क्या होता है?)
(ii) सद्व्यवहारेण अपि यशः भवति। (सद्व्यवहार से भी यश होता है।)
(iii) अत्र मोदकैः प्रयोजनं न अस्ति। (यहाँ लड्डुओं से प्रयोजन नहीं है।)
(iv) अधार्मिकः पुत्रेण कः अर्थः? (अधार्मिक पुत्र से क्या लाभ है?)
(v) अन्धस्य दीपेन कः लाभः? (अन्धे के लिए दीपक से क्या लाभ है?)

12. सुख, दुःख, प्रकृति, प्राय: के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
(i) सज्जनाः सुखेन जीवन्ति। (सज्जन सुख से जीते हैं।)
(ii) अस्मिन् संसारे सर्वेः दुःखेन जीवनं यापयन्ति। (इस संसार में सब दुःख से जीवन बिताते हैं।)
(iii) कोमल: प्रकृत्या/स्वभावेन साधुः भवति। (कोमल प्रकृति/स्वभाव से साधु होता है।)
(iv) स प्रायेण यज्ञं करोति। (वह प्रायः यज्ञ करता है।)

नोट – यहाँ 1 से 12 तक के नियमों के वाक्यों में स्थूल पदों (शब्दों) में तृतीया विभक्ति हुई है।

चतुर्थी विभक्ति

1. सम्प्रदाने चतुर्थी – अर्थात् सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है। जिसे कुछ दिया जाता है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे –

(i) नृपः ब्राह्मणाय धेनुं ददाति। (राजा ब्राह्मण को गाय देता है।)
(ii) धनिकः याचकाय वस्त्रं यच्छति। (धनिक याचक को वस्त्र देता है।)

चतुर्थी उपपद विभक्ति

1. ‘रुच्यर्थानां प्रीयमाणः’ अर्थात् रुच (अच्छा लगना) अर्थ वाली धातुओं (क्रियाओं) के साथ चतुर्थी विभक्ति होती स्तु अच्छी लगती है, उस व्यक्ति में चतुर्थी विभक्ति आती है और जो वस्तु अच्छी लगती है, उसमें प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे –

  1. बालकाय मोदकं रोचते। (बालक को लड्डू अच्छा लगता है।)
  2. हरये भक्तिः रोचते। (हरि को भक्ति अच्छी लगती है।)
  3. मह्यं त्वं रोचसे। (मुझको तुम अच्छे लगते हो।)
  4. तस्मै अहं रोचे। (उसको मैं अच्छा लगता हूँ।)

इस प्रकार के वाक्यों में प्रथमा विभक्ति वाला पद कर्ता कारक माना जाता है, अतः क्रिया प्रथमा विभक्ति वाले पद के पुरुष के अनुसार होती है।
रुच् धातु (क्रिया) के समान अर्थ वाली ‘स्वद्’ (अच्छा लगना) धातु भी है। अत: स्वद् धातु के साथ भी प्रसन्न होने वाले में चतुर्थी विभक्ति आती है। जैसे –

  1. बालकाय मोदकं स्वदते। (बालक को लड्डू अच्छा लगता है।)
  2. गोपालाय दुग्धं स्वदते। (गोपाल को दूध अच्छा लगता है।)
  3. रामाय मोहन: स्वदते। (राम को मोहन अच्छा लगता है।)
  4. सीतायै रामः स्वदते। (सीता को राम अच्छा लगता है।)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

2. ‘क्रुधदुहेासूयार्थानां यं प्रति कोपः’ अर्थात् ‘ क्रुध् (क्रोध करना), द्रुह् (द्रोह करना), ईर्घ्य (ईर्ष्या करना) और असूय (जलन करना) धातुओं के योग में तथा इन धातुओं के समान अर्थ वाली अन्य धातुओं के योग में जिसके ऊपर क्रोध आदि किया जाता है, उसकी सम्प्रदान संज्ञा होने से उसमें चतुर्थी विभक्ति आती है। जैसे –

  1. स्वामी सेवकाय क्रुध्यति कुप्यति वा। (स्वामी सेवक पर क्रोध करता है।)
  2. दुर्जनः सज्जनाय द्रुह्यति। (दुर्जन सज्जन से द्रोह करता है।)
  3. राक्षसः हरये ईर्ध्यति। (राक्षस हरि से ईर्ष्या करता है।)
  4. दुर्योधनः युधिष्ठिराय असूयति। (दुर्योधन युधिष्ठिर से जलन करता है।)

किन्तु अभि, अधि और सम् उपसर्गपूर्वक क्रुध्, द्रुह् धातु के साथ द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे –

1. राक्षसः रामम् अभिक्रुध्यति। (राक्षस राम पर क्रोध करता है।)
2. पिता पुत्रं संक्रुध्यति। (पिता पुत्रं पर क्रोध करता है।)

3. ‘नमः स्वस्तिस्वाहास्वधाऽलंवषड्योगाच्च’ अर्थात् नमः (नमस्कार), स्वस्ति (कल्याण), स्वाहा (अग्नि में आहुति), स्वधा (पितरों के लिए अन्नादि का दान), अलं (पर्याप्त, समर्थ) और वषट् (आहुति) के साथ चतुर्थी विभक्ति का ही प्रयोग होता है। जैसे –

  1. श्रीगणेशाय नमः। (श्री गणेश जी के लिए नमस्कार।)
  2. रामाय स्वस्ति। (राम का कल्याण हो।)
  3. अग्नये स्वाहा। (अग्नि के लिए आहुति।)
  4. पितृभ्यः स्वधा। (पितरों के लिए हवि का दान)
  5. हरिः दैत्येभ्यः अलम्। (हरि दैत्यों के लिए पर्याप्त हैं।)
  6. इन्द्राय वषट्। (इन्द्र के लिए हवि का दान।)

विशेष – यहाँ ‘अलम्’ का अर्थ पर्याप्त या समर्थ है, अतः चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त हुई है। यदि ‘अलम्’ का प्रयोग मना (निषेध) के अर्थ में होगा, तो वहाँ तृतीया विभक्ति ही होगी।

4. ‘स्पृहेरीप्सितः’ अर्थात् स्पृह (स्पृहा करना) धातु के योग में चाही जाने वाली वस्तु की सम्प्रदान कारक संज्ञा हो जाती है और उसमें चतुर्थी विभक्ति आती है। जैसे –
बालकः पुष्येभ्यः स्पृह्यति। (बालक पुष्यों की स्पृहा करता है।)

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5. ‘तादर्थ्य चतुर्थी’ अर्थात् जिस प्रयोजन के लिए कोई कार्य किया जाता है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे –

भक्तः मुक्तये हरिं भजति। (भक्त मुक्ति के लिए हरि को भजता है।)
शिशुः दुग्धाय क्रन्दति। (बालक दूध के लिए चीखता है।)

6. हितयोगे च’ (वार्तिक) अर्थात् हित और सुख शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति आती है। जैसे –

विप्राय हितं भूयात्। (ब्राह्मण का हित हो।)
बालकाय सुखं भूयात्। (बालक का सुख हो।)

7. प्रत्याभ्यां श्रुतः पूर्वस्य कर्ता-प्रति या आ उपसर्गपूर्वक श्रु (प्रतिज्ञा करना) धातु के योग में जिससे प्रतिज्ञा की जाती है, उसमें सम्प्रदान कारक होता है। जैसे –

विप्राय गां प्रतिशृणोति। (विप्र से गाय की प्रतिज्ञा करता है।)
याचकाय वस्त्रम् आशृणोति। (याचक से वस्त्र देने की प्रतिज्ञा करता है।)

8. धारेरुत्तमर्णः – धृ (ऋण लेना) धातु के योग में ऋण देने वाले में (साहूकार) चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे –

(i) गणेशः सोमदत्ताय शतं धारयति। (गणेश सोमदत्त से 100 रुपये ऋण/उधार लेता है।)
(ii) जनाः कोषाय धनं धारयन्ति। (लोग खजाने से धन उधार/ऋण लेते हैं।)

9. चतुर्थी विधाने तादर्थ्य उपसंख्यानम्-तादर्थ्य अर्थात् जिस कार्य के लिए कारणवाची शब्द का प्रयोग किया जाता है, उस कारणवाची शब्द में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे –

(i) मोक्षाय हरिं भजति। (मोक्ष के लिए हरि को भजता है।)
(ii) धनाय श्रमं करोति। (धन के लिए श्रम करता है।)

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10. कथ् (कहना), ख्या (बोलना), ‘नि’ उपसर्गपूर्वक विद्-निवेदय् (निवेदन करना) उपदिश् (उपदेश देना), सम्पद् (होना), कल्प् (होना), भू (होना) आदि धातुओं तथा ‘सुख’ एवं ‘हित’ आदि शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
जैसे –

  1. पिता पुत्राय कथयति। (पिता पुत्र से कहता है।)
  2. शिक्षकः बालकेभ्यः ख्याति। (शिक्षक बालकों से कहता है।)
  3. भक्ताः ईश्वराय निवेदयन्ति। (भक्त ईश्वर से निवेदन करते हैं।)
  4. आचार्यः शिष्येभ्यः उपदिशति। (आचार्य शिष्यों को उपदेश देता है।)
  5. भक्तिः मोक्षाय सम्पद्यते। (भक्ति मोक्ष के लिए होती है।)
  6. विद्या सुखाय कल्पते। (विद्या सुख के लिए होती है।)
  7. पुस्तकं ज्ञानाय अस्ति। (पुस्तक ज्ञान के लिए है।)
  8. सर्वेभ्यः भूतेभ्यः सुखं भवेत्। (सभी जीवों का सुख हो।)
  9. मानवाय हितं भवेत्। (मानव का हित हो।)
  10. शिक्षकः छात्रस्य कथयति। (शिक्षक छात्र से कहता है।)
  11. शिष्यः गुरवे निवेदयति। (शिष्य गुरु से निवेदन करता है।)

नोट – यहाँ 1 से 10 तक नियमों के वाक्यों में स्थूल पदों (शब्दों) में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त हुई है।

पञ्चमी विभक्ति –

(ख) ‘अपादाने पञ्चमी’ अर्थात् अपादाने पञ्चमी विभक्तिः भवति। अपादान कारक में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे – (i) वृक्षात् पत्रं पतति। (वृक्ष से पत्ता गिरता है।)
(ii) नृपः ग्रामाद् आगच्छति। (राजा गाँव से आता है।)

उपर्युक्त दोनों उदाहरणों में क्रमशः ‘वृक्ष’ और ‘ग्राम स्थिर कारक हैं और इनसे क्रमशः ‘पत्र’ और ‘नृपः’ अलग हो रहे हैं। अतः ‘वृक्ष’ और ‘ग्राम’ की अपादान संज्ञा होने से इनमें पञ्चमी विभक्ति आयी है।

पञ्चमी उपपद विभक्ति

1. भीत्रार्थानां भयहेतुः – अर्थात् भयार्थानां रक्षार्थानां च धातूनां प्रयोगे भयस्य यद् हेतुः अस्ति तस्य अपादान संज्ञा भवति अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति। (अर्थात् भय अर्थ की और रक्षा अर्थ की धातुओं के साथ, जिससे भय हो अथवा रक्षा हो, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पञ्चमी विभक्ति आती है। जैसे –
(i) बालकः सिंहात् बिभेति। (बालक शेर से डरता है।) (‘भी’ धातोः प्रयोगे पंचमी विभक्तिः)
(ii) नृपः दुष्टात् रक्षति/त्रायते। (राजा दुष्ट से रक्षा करता है।) (‘रक्ष्’ धातोः प्रयोगे पंचमी विभक्तिः)

अन्य उदाहरण –

(i) बालकः चौराद् बिभेति। (बालक चोर से डरता है।)
(ii) नृपः चौरात् त्रायते। (राजा चोर से रक्षा करता है।)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

2. आख्यातोपयोगे – अर्थात् यस्मात् नियमपूर्वक विद्या गृह्यते तस्य शिक्षकादिजनस्य अपादानसंज्ञा भवति अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति। (अर्थात् जिससे नियमपूर्वक विद्या ग्रहण की जाती है उस शिक्षक आदि की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति होती है।) यथा –
(i) शिष्यः उपाध्यायात् अधीते। (शिष्य उपाध्याय से पढ़ता है।) (‘अधि + इ’ धातोः प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः) अध्ययन करना अर्थ की धातु क्रिया के प्रयोग में पंचमी विभक्ति)
(ii) छात्रः शिक्षकात् पठति। (छात्र शिक्षक से पढ़ता है।) (‘पठ्’ धातोः प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः।) पढ़ना अर्थ की धातु क्रिया के प्रयोग में पंचमी विभक्ति)

3. जुगुप्साविरामप्रमादार्थानामुपसंख्यानम् – अर्थात् जुगुप्सा-विराम-प्रमादार्थकधातूनां प्रयोगे यस्मात् घृणादि क्रियते तस्य अपादानसंज्ञा भवति अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति। (जुगुप्सा (घृणा करना), विराम (रुकना) और प्रमाद धानी करना) अर्थ वाली धातुओं (क्रियाओं) के प्रयोग में जिससे घृणा आदि की जाती है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) जैसे –
(i) महेशः पापात् जुगुप्सते। (महेश पाप से घृणा करता है।)
(‘जुगुप्स्’ धातोः प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः।) (घृणा करना अर्थ की धातु (क्रिया) के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)

(ii) कुलदीपः अधर्मात् विरमति। (कुलदीप अधर्म से रुकता है।)
(‘विरम्’ धातोः प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः) (रुकना अर्थ की धातु (क्रिया) के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)

(ii) मोहनः अध्ययनात् प्रमाद्यति। (मोहन पढ़ने से प्रमाद करता है।)
(‘प्रमद्’ धातोः प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः) (असावधानी करना अर्थ की धातु (क्रिया) के प्रयोग में पंचमी विभक्ति)

अन्य उदाहरण –
(i) रामः पापात् जुगुप्सते। (राम पाप से घृणा करता है।)
(ii) कृष्णः पापात् विरमति। (कृष्ण पाप (करने) से रुकता है।)
(iii) नास्तिकः धर्मात् प्रमाद्यति। (नास्तिक धर्म से प्रमाद करता है।)

4. भुवः प्रभवः अर्थात् भूधातोः यः कर्ता, तस्य यद् उत्पत्तिस्थानम्, तस्य अपादानसंज्ञा भवति अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति। (अर्थात् भू (होना) धातु के कर्ता का जो उद्गम स्थान होता है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे –

(i) गंगा हिमालयात् प्रभवति। . (गंगा हिमालय से निकलती है।)
(‘प्रभव्’ धातोः प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः।) (निकलना अर्थ की धातु (क्रिया) के प्रयोग में पंचमी विभक्ति)

(ii) कश्मीरात् वितस्तानदी प्रभवति। (कश्मीर से वितस्ता नदी निकलती है।)
(‘प्रभव’ धातोः योगे पञ्चमी विभक्तिः) (निकलना अर्थ की “न (क्रिया) के योग में पंचमी विभक्ति)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

5. जनिकर्तुः प्रकृतिः – अर्थात् जन् धातोः यः कर्ता, तस्य या प्रकृतिः (कारणम् = हेतुः) तस्य अपादानसंज्ञा भवति अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति। (‘जन्’ (उत्पन्न होना) धातु का जो कर्ता है, उसके हेतु (कारण) की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) जैसे –

(i) गोमयात् वृश्चिक: जायते। (गाय के गोबर से बिच्छू उत्पन्न होता है।)
(‘जन्’ धातोः प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः) (उत्पन्न होना अर्थ की धातु (क्रिया) के प्रयोग में पंचमी विभक्ति)

(ii) कामात् क्रोधः जायते। (काम से क्रोध उत्पन्न होता है।)
(‘जन् ‘ धातोः प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः) (उत्पन्न होना अर्थ की धातु (क्रिया) के प्रयोग में पंचमी विभक्ति)

अन्य उदाहरण –
(i) प्रजापतेः लोक: जायते। (ब्रह्मा से संसार उत्पन्न होता है।)
(ii) मुखाद् अग्निः अजायत। (मुख से अग्नि उत्पन्न हुई।)

उपर्युक्त दोनों वाक्यों में ‘जन्’ धातु के कर्ता क्रमश: ‘लोक’ और ‘अग्नि’ हैं और इनके हेतु क्रमश: ‘प्रजापति’ और ‘मुख’ हैं। अतः ये अपादान कारक हुए, जिससे इनमें पञ्चमी विभक्ति आयी है।

6. दर्शनमिच्छति – अर्थात यदा कर्ता, यस्मात अदर्शनम इच्छति, तदा तस्य कारकस्य अपादानसंज्ञा भवति अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति। (जब कर्ता जिससे अदर्शन (छिपना) चाहता है, तब उस कारक की अपादान संज्ञा होती है और अपादान कारक में पञ्चमी विभक्ति होती है।) जैसे –

(i) बालकः मातुः निलीयते। (बालक माता से छिपता है।)
(ii) महेशः जनकात् निलीयते। (महेश पिता से छिपता है।)

7. वारणार्थानामीप्सितः – अर्थात् वारणार्थानां धातूनां प्रयोगे यः ईप्सितः अर्थः भवति तस्य कारकस्य अपादानसंज्ञा भवति अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति। वारण (हटाना) अर्थ की धातु के योग में अत्यन्त इष्ट (प्रिय) वस्तु की अपादान संज्ञा होती है और उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे –
कृषक: यवेभ्यः गां वारयति। (किसान जौ से गाय को हटाता है।)
(‘वृ’ धातोः प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः।) (हटाना अर्थ की धातु (क्रिया) के प्रयोग में पंचमी-विभक्ति) यहाँ इष्ट वस्तु यव (जौ) है, अत: इष्ट कारक यव (जौ) की अपादान कारक संज्ञा होने से पञ्चमी विभक्ति आयी है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

8. पञ्चमी विभक्तेः-अर्थात् यदा द्वयोः पदार्थयोः कस्यचित् एकस्य पदार्थस्य विशेषता प्रदर्श्यते तदा विशेषणशब्दैः सह ईयसुन् अथवा तरप् प्रत्ययस्य प्रयोगः क्रियते यस्मात् च विशेषता प्रदर्श्यते तस्मिन् पञ्चमी विभक्तेः प्रयोगः भवति। (जब दो पदार्थों में से किसी एक पदार्थ की विशेषता प्रकट की जाती है, तब विशेषण शब्दों के साथ ‘ईयसुन्’ अथवा ‘तरप्’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है और जिससे विशेषता प्रकट की जाती है उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है। यथा –

(i) रामः श्यामात् पटुतरः अस्ति। (राम श्याम से अधिक चतुर है।)
(‘तरप्’ प्रत्ययप्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः) (‘तरप्’ प्रत्यय के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)
(ii) माता भूमेः गुरुतरा अस्ति। (माता भूमि से बढ़कर है।)
(‘तरप’ प्रत्ययप्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः।) (‘तरप’ प्रत्यय के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)
(iii) जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात् अपि गरीयसी। (जननी और जन्म-भूमि स्वर्ग से भी महान् हैं।)
(‘ईयसुन्’ प्रत्यय प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः।) (ईयसुन्’ प्रत्यय के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)

9. अधोलिखितशब्दानां योगे पञ्चमी विभक्तिः भवति। (निम्नलिखित शब्दों के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति होती है-)जैसे
(i) ऋते (बिना) शब्दस्य प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः (‘बिना’ अर्थ वाले ‘ऋते’ शब्द के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)
ज्ञानात् ऋते मुक्तिः न भवति। (ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती है।)
(ii) प्रभृति शब्दस्य प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः (‘से लेकर’ अर्थ वाले शब्द के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)
स: बाल्यकालात् प्रभृति अद्यावधिः अत्रैव पठति। (वह बचपन से लेकर अब तक यहाँ ही पढ़ता है।)
(iii) बहिः (बाहर) शब्दस्य प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः (‘बाहर’ अर्थ वाले ‘बहिः’ शब्द के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)
छात्राः विद्यालयात् बहिः गच्छन्ति। (छात्र विद्यालय से बाहर जाते हैं।)
(iv) पूर्वम् (पहले) शब्दस्य प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः (‘पहले’ अर्थ वाले ‘पूर्वम्’ शब्द के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)
विद्यालयगमनात् पूर्व गृहकार्यं कुरु। (विद्यालय जाने से पहले गृहकार्य को करो।)
(v) प्राक् (पूर्व) शब्दस्य प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः (‘पूर्व’ अर्थ वाले ‘पूर्वम्’ शब्द के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)
ग्रामात् प्राक् आश्रमः अस्ति। (गाँव से पहले आश्रम है।)
(vi) अन्य (दसरा) शब्दस्य प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः (‘दसरा’ अर्थ वाले ‘अन्य’ शब्द के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)
रामात् अन्यः अयं कः अस्ति? (राम के अतिरिक्त यह दूसरा कौन है?)
(vii) अनन्तरम् शब्दस्य प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः (‘बाद’ के अर्थ वाले शब्द के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)
यशवन्तः पठनात् अनन्तरं क्रीडाक्षेत्रं गच्छति। (यशवन्त पढ़ने के बाद खेल के मैदान को जाता है।)
(viii) पृथक् शब्दस्य प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः (‘अलग’ के अर्थ वाले शब्द के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)
नगरात् पृथक् आश्रमः अस्ति। (नगर से अलग आश्रम है।)
(ix) परम् (बाद) शब्दस्य प्रयोगे पञ्चमी विभक्तिः (‘बाद’ के अर्थ में ‘परम्’ शब्द के प्रयोग में पञ्चमी विभक्ति)
रामात् परं श्यामः अस्ति। (राम के बाद श्याम है।)

नोट – यहाँ 1 से 9 तक के नियमों के वाक्यों में स्थूल पदों (शब्दों) में पञ्चमी विभक्ति प्रयुक्त हुई है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

6. सम्बन्धकारकस्य प्रयोगः (षष्ठी विभक्तिः)

1. षष्ठी शेषे – अर्थात् सम्बन्धे षष्ठी विभक्तिः भवति। (सम्बन्ध कारक में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) जैसे –
रमेशः संस्कृतस्य पुस्तकं पठति। (रमेश संस्कृत की पुस्तक पढ़ता है।) (‘सम्बन्धे’ षष्ठी विभक्तिः)(सम्बन्ध कारक में षष्ठी विभक्ति)

षष्ठी उपपद विभक्ति

1. यतश्च निर्धारणम् – अर्थात् यदा बहूषु कस्यचित् एकस्य जातिगुणक्रियाभिः विशेषता प्रदर्श्यते तदा विशेषणशब्दैः सह इष्ठन अथवा तमप प्रत्ययस्य प्रयोगः क्रियते यस्मात् च विशेषता प्रदर्शयते तस्मिन षष्ठी विभक्तेः अथवा सप्तम प्रयोगः भवति। (जब बहुत में से किसी एक की जाति, गुण क्रिया के द्वारा विशेषता प्रकट की जाती है, तब विशेषण शब्दों के साथ ‘इष्ठन्’ अथवा ‘तमप्’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है और जिससे विशेषता प्रकट की जाती है, उसमें षष्ठी विभक्ति अथवा सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) जैसे –

कवीनां कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति। (कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है।)
(‘इष्ठन्’ प्रत्ययस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः ।) (‘श्रेष्ठ’ अर्थ वाले ‘इष्ठन्’ प्रत्यय के प्रयोग में सप्तमी विभक्ति)
कविषु कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति। (कवियों में कालिदास श्रेष्ठ हैं।)
(‘इष्ठन्’ प्रत्ययस्य प्रयोगे सप्तमी विभक्तिः।) (‘श्रेष्ठ’ अर्थ वाले ‘इष्ठन्’ प्रत्यय के प्रयोग में सप्तमी विभक्ति)
छात्राणां सुरेशः पटुतमः अस्ति। (छात्रों में सुरेश सबसे चतुर है।)
(‘तमप्’ प्रत्ययस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः।) (‘सबसे अधिक’ अर्थ में ‘तमप्’ प्रत्यय.के प्रयोग में सप्तमी विभक्ति)
छात्रेषु सुरेशः पटुतमः अस्ति। (छात्रों में सुरेश सबसे चतुर है।)।
(‘तमप्’ प्रत्ययस्य प्रयोगे सप्तमी विभक्तिः।) (‘सबसे अधिक’ अर्थ में तमप्’ प्रत्यय के प्रयोग में सप्तमी विभक्ति)

2. अधोलिखितशब्दानां योगे षष्ठी विभक्तिः भवति। (निम्नलिखित शब्दों के योग में षष्ठी विभक्ति होती है।) जैसे –

(i) अधः (नीचे) शब्दस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः – (‘नीचे’ अर्थ वाले ‘अधः शब्द के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति)
वृक्षस्य अधः बालकः शेते। (वृक्ष के नीचे बालक सोता है।)
(ii) उपरि (ऊपर) शब्दस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः – (‘ऊपर’ अर्थ वाले ‘उपरि’ शब्द के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति)
भवनस्य उपरि खगाः सन्ति। (भवन के ऊपर पक्षी हैं।)
(iii) पुरः (सामने) शब्दस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः – (‘सामने’ अर्थ वाले ‘पुरः’ शब्द के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति)
विद्यालयस्य पुरः मन्दिरम् अस्ति। (विद्यालय के सामने मन्दिर है।)
(iv) समक्षम् (सामने) शब्दस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः – (‘सामने’ अर्थ वाले ‘समक्षम्’ शब्द के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति)
अध्यापकस्य समक्षं शिष्यः अस्ति। (अध्यापक के सामने शिष्य है।)
(v) समीपम् (समीप) शब्दस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः – (‘समीप’ अर्थ वाले ‘समीपम्’ शब्द के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति)
नगरस्य समीपं ग्रामः अस्ति। (नगर के समीप गाँव है।)
(vi) मध्ये (बीच में) शब्दस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः – (‘बीच में’ अर्थ वाले ‘मध्ये’ शब्द के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति)
पशूनां मध्ये ग्वालः अस्ति। (पशुओं के बीच में ग्वाला है।)
(vii) कृते (लिए) शब्दस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः – (‘लिए’ अर्थ वाले ‘कृते’ शब्द के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति)
बालकस्य कृते दुग्धम् आनय। (बालक के लिए दूध लाओ।)
(viii) अन्तः (अन्दर) शब्दस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः – (‘अन्दर’ अर्थ वाले ‘अन्तः’ शब्द के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति)
गृहस्य अन्त: माता विद्यते। (घर के अन्दर माता है।)
(ix) अन्तिकम् (समीप में) शब्दस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः – (‘विभक्ति में’ अर्थ-वाले ‘अन्तिकम्’ शब्द के प्रयोग में
षष्ठी-विभक्ति)
एवम् आलोच्य सः पितुः अन्तिकम् आगच्छत्। (इस प्रकार से सोच-विचारकर वह पिता के पास आया।)
(x) अन्ते (अन्त में) शब्दस्य प्रयोगे षष्ठी विभक्तिः – (‘अन्त में अर्थ वाले (अन्ते) शब्द के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति) – सः कार्यस्य अन्ते अत्र आगच्छति। (वह कार्य के अन्त में यहाँ आता है।)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

3. तुल्यार्थैरतुलोपमाभ्यां तृतीयान्यतरस्याम् – अर्थात् तुल्यवाचिशब्दानां योगे षष्ठी अथवा तृतीया विभक्तिः भवति। (तुलनावाची शब्दों के योग में षष्ठी अथवा तृतीया विभक्ति होती है।)
यथा –
(i) सुरेशः महेशस्य तुल्यः अस्ति। (सुरेश महेश के समान है।) (तुल्यार्थे षष्ठी विभक्तिः।)
(ii) सुरेशः महेशेन तुल्यः अस्ति । (सुरेश महेश के समान है।) (तुल्यार्थे तृतीया विभक्तिः।)
(iii) सीता गीतायाः तुल्या विद्यते। (सीता गीता के समान है।) (तुल्यार्थे षष्ठी विभक्तिः।)
(iv) सीता गीतया तुल्या विद्यते। (सीता गीता के समान है।) (तुल्यार्थे तृतीया विभक्तिः।)

नोट – यहाँ 1 से 3 तक के नियमों के वाक्यों में स्थूल पदों (शब्दों) में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त हुई है।

सप्तमी विभक्ति

1. आधारोऽधिकरणम् – अर्थात् क्रियायाः सिद्धौ यः आधारः भवति तस्य अधिकरणसंज्ञा भवति अधिकरणे च सप्तमी विभक्तिः भवति। (क्रिया की सिद्धि में जो आधार होता है, उसकी अधिकरण संज्ञा होती है और अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है।) यथा –

(i) नृपः सिंहासने तिष्ठति। (राजा सिंहासन पर बैठता है।) (सिंहासने सप्तमी) (‘सिंहासन’ में सप्तमी है)
(ii) वयं ग्रामे निवसामः। (हम गाँव में रहते हैं।) (ग्रामे सप्तमी) (‘ग्राम’ में सप्तमी है)
(iii) तिलेषु तैलं विद्यते। (तिलों में तेल होता है।) (तिलेषु सप्तमी) (‘तिलों’ में सप्तमी है)

सप्तमी उपपद विभक्ति

1. यस्मिन् स्नेहः क्रियते तस्मिन् सप्तमी विभक्तिः भवति। (जिसमें स्नेह किया जाता है उसमें सप्तमी विभक्ति होती है।) जैसे –
पिता पुत्रे स्निह्यति। (पिता पुत्र पर स्नेह करता है।)
(स्निह् धातोः योगे सप्तमी विभक्तिः।) (स्निह धातु के योग में-सप्तमी विभक्ति)

2. संलग्नार्थकशब्दानां चतुरार्थकशब्दानां च योगे सप्तमी विभक्तिः भवति। (संलग्नार्थक और चतुरार्थक शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) जैसे –
(i) बलदेवः स्वकार्ये संलग्नः अस्ति। (बलदेव अपने कार्य में संलग्न है।)
(‘संलग्नार्थे’ सप्तमी विभक्तिः।) (‘संलग्न’ अर्थ में सप्तमी-विभक्ति)
(ii) जयदेवः संस्कृते चतुरः अस्ति। (जयदेव संस्कृत में चतुर है।)
(‘चतुरार्थे’ सप्तमी विभक्तिः।)(‘चतुर’ अर्थ में सप्तमी विभक्ति)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

3. अधोलिखितशब्दानां योगे सप्तमी विभक्तिः भवति। (निम्नलिखित शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति होती है।) जैसे –
(i) ‘श्रद्धा’ शब्दस्य प्रयोगे सप्तमी विभक्तिः (‘श्रद्धा’ शब्द के प्रयोग में सप्तमी विभक्ति)
बालकस्य पितरि श्रद्धा अस्ति। (बालक की पिता पर श्रद्धा है।)
(ii) ‘विश्वासः’ शब्दस्य प्रयोगे सप्तमी (‘विश्वास’ शब्द के प्रयोग में सप्तमी विभक्ति)
महेशस्य स्वमित्रे विश्वासः अस्ति। (महेश का अपने मित्र पर विश्वास है।)

4. यस्य च भावेन भावलक्षणम्-अर्थात् यदा एकक्रियायाः अनन्तरम् अपरा क्रिया भवति तदा पूर्वक्रियायां तस्याश्च कर्तरि सप्तमी विभक्तिः भवति (जब एक क्रिया के बाद दूसरी क्रिया होती है तब पूर्व क्रिया में और उसके कर्ता में सप्तमी विभक्ति होती है।) जैसे –
(i) रामे वनं गते दशरथः प्राणान् अत्यजत्। (राम के वन जाने पर दशरथ ने प्राण त्याग दिये।)
एकक्रियायाः अनन्तरम् अपरायाः क्रियायाः प्रयोगे सप्तमी विभक्तिः। (एक क्रिया के बाद दूसरी क्रिया के प्रयोग में सप्तमी विभक्ति) सूर्ये अस्तं गते

(ii) सर्वे बालकाः गृहम् अगच्छन्। (सूर्य के अस्त होने पर सभी बालक घरों को चले गये।)
(एकक्रियायाः अनन्तरम् अपरायाः क्रियायाः प्रयोगे सप्तमी विभक्तिः। (एक क्रिया के बाद दूसरी क्रिया के प्रयोग में सप्तमी विभक्ति)
नोट – यहाँ सभी स्थूल पदों (शब्दों) में सप्तमी विभक्ति प्रयुक्त हुई है।

अभ्यास

प्रश्न: 1.
कारक किसे कहते हैं?
उत्तर :
“साक्षात् क्रियान्वयित्वं कारकत्वम्” अर्थात् क्रिया से साक्षात् (सीधे) सम्बन्ध रखने वाले विभक्तियुक्त पद को ‘कारक’ कहते हैं।

प्रश्न: 2.
कारक कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर :
संस्कृत में कारक छः हैं –

  • कर्ता
  • कर्म
  • करण
  • सम्प्रदान
  • अपादान
  • अधिकरण।

प्रश्न: 3.
कारक और विभक्ति में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर :
संस्कृत में प्रथमा से सप्तमी पर्यन्त सात विभक्तियाँ हैं। ये सात विभक्तियाँ ही कारक का रूप धारण करती हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

प्रश्न: 4.
स्थूल शब्दों के कारक नाम बताइए –
(i) तौ कन्दुकेन क्रीडतः।
उत्तर :
करण कारक।

(ii) रामः श्यामं पश्यति।
उत्तर :
कर्म कारक

(iii) मोहनेन ग्रन्थः पठ्यते।
उत्तर :
कर्ता कारक

(iv) यज्ञदत्तः देवदत्तं शतं जयति।
उत्तर :
कर्म कारक

(v) विप्राय गां ददाति।
उत्तर :
सम्प्रदान कारक

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

(vi) रमेशः विद्यालयात् स्वगृहं याति।
उत्तर :
अपादान कारक।

प्रश्न: 5.
कारकों को किन-किन विभक्तियों द्वारा व्यक्त किया जाता है?
उत्तर :
JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम् 6

प्रश्न: 6.
सम्बन्ध और सम्बोधन कारक क्यों नहीं हैं?
उत्तर :
क्रिया से साक्षात् सम्बन्ध रखने वाले विभक्तियुक्त पदों को कारक कहते हैं। अतः “सम्बन्ध’ एवं ‘संबोधन’ कारक का क्रिया से सीधा सम्बन्ध नहीं होने के कारण इन्हें कारक नहीं माना जाता है। ‘सम्बोधन’ में प्रथमा विभक्ति के शब्दों का ही प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न: 7.
किन्हीं दो कारकों को परिभाषित कीजिए और उनका एक-एक उदाहरण देकर वाक्य से उनकी पुष्टि कीजिए –
कर्ता, कर्म, करण, अपादान, अधिकरण
उत्तर :
साधकतमं करणम् – अर्थात् क्रिया की सिद्धि में अत्यन्त सहायक वस्तु अथवा साधन को करण कारक कहते हैं। उदाहरण
(i) रजक: दण्डेन कुक्कुरं ताडयति। (धोबी डण्डे से कुत्ते को मारता है।)
यहाँ क्रिया ताडयति की सिद्धि में अत्यन्त सहायक वस्तु डण्डा है। अतः ‘दण्डेन’ करण कारक में तृतीया विभक्ति का प्रयोग हुआ है।
(ii) ध्रुवमपायेऽपादानम् – अर्थात् जिस पुरुष, स्थान या वस्तु से अलगाव (पृथकत्व) होता है, उसे ‘अपादान’ कहते हैं।

उदाहरण – (i) बालकः गृहात् गच्छति। (बालक घर से जाता है।) यहाँ बालक ‘गृह’ से अलग हो रहा है। अतः ‘गृह’ में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग हुआ है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

प्रश्न: 8.
विभक्ति किसे कहते हैं?
उत्तर :
सभी शब्दों के अन्त में ‘सुप’ आदि 21 प्रत्यय लगते हैं जो शब्द को एकवचन, द्विवचन तथा बहुवचन के रूप में व्यक्त कर सात कारकों में बाँट देते हैं। इन्हीं ‘सुप’ आदि प्रत्ययों से बने शब्दरूप को विभक्ति कहते हैं।

प्रश्न: 9.
विभक्ति के कितने भेद हैं ? नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर :
संस्कृत में सात विभक्तियाँ होती हैं – प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी, सप्तमी।
कुछ लोग सम्बोधन की गणना भी विभक्ति में करते हुए आठ विभक्तियाँ मानते हैं, किन्तु सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति के ही शब्दों का प्रयोग होता है, अत: उसे विभक्ति नहीं माना जाता है। सम्बोधन का चिह्न-हे, ओ, अरे (!) होता है।

प्रश्न: 10.
कारक विभक्ति को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
संस्कृत में प्रथमा से सप्तमी तक सात विभक्तियाँ होती हैं। ये सात विभक्तियाँ ही कारक का रूप धारण करती हैं। सम्बोधन को प्रथमा विभक्ति के अन्तर्गत ही गिना जाता है। क्रिया से सीधा सम्बन्ध रखने वाले शब्दों को ही कारक माना जाता है। षष्ठी विभक्ति का क्रिया से सीधा सम्बन्ध नहीं होता, अतः सम्बन्ध को कारक नहीं माना गया है। इस प्रकार संस्कृत में कारक छः ही होते हैं तथा विभक्तियाँ सात होती हैं-प्रथमा-कर्ता, द्वितीया-कर्म, तृतीया-करण, चतुर्थी-सम्प्रदान, पञ्चमी-अपादान, सप्तमी-अधिकरण।

प्रश्न: 11.
उपपद विभक्ति की परिभाषा दीजिए और एक उदाहरण से उसकी पुष्टि कीजिए।
उत्तर :
सामान्यतः विभक्तियों का सम्बन्ध क्रिया से होता है, परन्तु कुछ अव्ययों के योग में विशेष विभक्ति का प्रयोग किया जाता है, इन्हीं विशिष्ट विभक्तियों को उपपद विभक्ति कहते हैं। जैसे-त्वं पित्रा सह कुत्र गच्छसि? (तुम पिता के साथ कहाँ जाते हो?) सह (साथ) के योग में तृतीया विभक्ति होती है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

प्रश्न: 12.
स्थूल शब्दों में नियम-निर्देशपूर्वक विभक्ति बताइए।
(i) गोपालः धेनुं दुग्धं दोग्धि।
उत्तर :
द्विकर्मक धातु के योग में द्वितीया।

(ii) हरिः बैकुण्ठम् अधिशेते।
उत्तर :
अधि’ उपसर्गपूर्वक ‘शीङ्’ धातु के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।

(iii) विद्यालयं परितः वृक्षाः सन्ति।
उत्तर :
परितः (चारों ओर) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।

(iv) क्रोशं कुटिला नदी।
उत्तर :
‘गति’ अर्थ में द्वितीया विभक्ति होती है।

(v) रामेण सुप्यते।
उत्तर :
कर्म वाच्य के कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है।

(vi) गिरधरः पादेन खञ्जः।
उत्तर :
विकृत अंग में तृतीया विभक्ति होती है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

(vii) धर्मेण हीनः पशुभिः समानः।।
उत्तर :
‘हीन’ के योग में तृतीया विभक्ति होती है।

(viii) सुशील: प्रकृत्या साधुः अस्ति।
उत्तर :
प्रकृति/स्वभाव के योग में तृतीया विभक्ति होती है।

(ix) मोक्षाय हरि भजति।
उत्तर :
वैषयिक सम्प्रदान के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।

(x) गोमयाद् वृश्चिकः जायते।
उत्तर :
‘जन्’ धातु एवं इसका अर्थ रखने वाली ‘उद्भव’ धातु के योग में पंचमी विभक्ति होती है।

(xi) गङ्गा हिमालयात् प्रभवति ।
उत्तर :
‘उद्गम’ जन्’ धातु के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है।

(xii) अल्पस्य हेतोर्बहुहातुमिच्छन्
उत्तर :
‘हेतु’ के योग में षष्ठी विभक्ति होती है।

(xii) तिलेषु तैलम्।
उत्तर :
‘आधार’ में सप्तमी विभक्ति होती है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

(xiv) गोषु कृष्णा बहुक्षीरा।
उत्तर :
यत्श्च निर्धारणम्’ के अनुसार सप्तमी विभक्ति होती है।

प्रश्न: 13.
समुचितविभक्तिपदेन वार्तालापं पूरयत – (उचित विभक्ति पदों से वार्तालाप को पूर्ण कीजिए-)
मोहन: – त्वं कस्मिन् विद्यालये पठसि?
हरीशः – अहं नवोदयविद्यालये पठामि।
मोहन: – तव विद्यालयः कीदृशः अस्ति?
हरीश: – मे ………… (i) (विद्यालय) परितः वनानि सन्ति।
मोहन: – त्वं विद्यालयं कदा गच्छसि?
हरीश: – अहं विद्यालयं दशवादने गच्छामि।
मोहन: – तव मित्र महेशः तु खञ्जः अस्ति।
हरीश: – आम् सः ……….. (ii) (दण्ड) चलति।
मोहन: – हरीश! तव माता प्रातः काले कुत्र गच्छति ?
हरीश: – मम माता प्रात:काले ………….. (ii) (भ्रमण) गच्छति।
मोहन: – अतिशोभनम् ………….. (iv) (स्वास्थ्यलाभ) मा प्रमदितव्यम्।
सहसा शिक्षकः कक्षे प्रवेशं करोति वदति च अलम् …………. (v) (वार्तालाप)।
उत्तरम् :
(i) विद्यालयं
(ii) दण्डेन
(iii) भ्रमणाय
(iv) स्वास्थ्यलाभात्
(v) वार्तालापेण।

प्रश्न: 14.
कोष्ठकें प्रदत्तशब्दानां समुचितविभक्तिपदैः अधोलिखितं वार्तालापं पूरयत।
(कोष्ठक में दिये गये शब्दों की उचित विभक्ति पदों से निम्नलिखित वार्तालाप को पूर्ण कीजिए।) कमला-महेश! किं त्वमपि (i) …………….(विद्यालय) प्रति गच्छसि?
महेश: – आम् (ii) ……………..(युष्मद्) सह कः गच्छति? कमला-मम कक्षायाः सहपाठिनः आगच्छन्ति।
महेशः – शिक्षकः अपि अधुना गच्छति।
छात्रा: – (iii) ………….(शिक्षक) नमः।
शिक्षकः – नमस्ते। प्रसन्नाः भवन्तु। (iv) ……………(ग्राम) बहिः क्रीडास्थलं गच्छन्ति भवन्तः?
छात्रा: – (v) ………(विद्यालय) पुरतः क्रीडास्थले वयं क्रीडामः।।
उत्तरम् :
(i) विद्यालयं
(ii) त्वया
(iii) शिक्षकाय
(iv) ग्रामात्
(v) विद्यालयस्य।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

प्रश्न: 15.
कोष्ठकगतपदेषु उचितविभक्ति प्रयुज्य वाक्यानि पूरयत –
(कोष्ठक में दिये पदों में उचित विभक्ति प्रयुक्त कर वाक्यों को पूर्ण कीजिए)
(क) पुरा (i) …………….(हस्तिनापुर) शान्तनुः नाम नृपतिः अभवत्।
देवव्रतः (ii) ………………(शान्तनु) गंगायाः च पुत्रः आसीत्।
एकदा शान्तुनः (iii) ……………(यमुना) तीरे सत्यवतीम् अपश्यत्।
यदा देवव्रतः इदं सर्व (iv) …………….(वृत्तान्त) अवागच्छत् स धीवरस्य गृहम् अगच्छत्।
धीवरः सत्यवत्याः विवाहं (v) ………….(नृपति) सह अकरोत्।
उत्तरम् :
(i) हस्तिनापुरे
(ii) शान्तनोः
(iii) यमुनाया:
(iv) वृत्तान्तम्
(v) नृपतिना।

(ख) तत्र (i) ………….. (ग्राम) निकषा एकः देवालयः अस्ति। देवालये बहवः जनाः आगच्छन्ति परं कोऽपि
(ii) ……… (पुत्र) हीनः नास्ति।
(iii) ………… (देवालय) बहिः एक सरोवरः अस्ति। सरोवरे विकसितानि कमलानि
(iv) ……….. (दर्शक) रोचन्ते।
(v) ……….. (सरोवर) तटे एकः उद्यानम् अपि अस्ति।
उत्तरम् :
(i) ग्रामं
(ii) पुत्रैः
(iii) देवालयात्
(iv) दर्शकेभ्यः
(v) सरोवरस्य।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सिकतासेतुः

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सिकतासेतुः Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सिकतासेतुः

JAC Class 9th Sanskrit सिकतासेतुः Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक शब्द में उत्तर लिखिए-)
(क) कः बाल्ये विद्यां न अधीतवान? (बचपन में कौन विद्या नहीं पढ़ पाया?)
उत्तरम् :
तपोदत्तः (तपोदत्त)

(ख) तपोदत्तः कया विद्याम् अवाप्तुं प्रवृत्तः अस्ति? (तपोदत्त किससे विद्या प्राप्त करने में लगा है?)
उत्तरम् :
तपश्चर्यया (तपस्या)।

(ग) मकरालये कः शिलाभिः सेतुं बबन्ध? (सागर पर शिलाओं से किसने पुल बाँधा?)
उत्तरम् :
रामः (राम ने)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

(घ) मार्गभ्रान्तः सन्ध्यां कुत्र उपैति? (राह भटका साँझ को कहाँ पहुँचता है?)
उत्तरम् :
गृहम् (घर)।

(ङ) पुरुषः सिकताभिः किं करोति? (पुरुष बालू से क्या करता है?)
उत्तरम् :
सेतु निर्माणम् (पुल का निर्माण)।

2. अधोलिखितानां प्रश्नानां उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) अनधीतः तपोदत्तः कैः गर्हितोऽभवत्? (बिना पढ़ा तपोदत्त किनके द्वारा निन्दित हुआ?)
उत्तरम् :
अनधीतः तपोदत्तः सर्वैः कुटुम्बिभिः, मित्रैः ज्ञातिजनैः च गर्हितोऽभवत्। (बिना पढ़ा तपोदत्त सभी कुटुम्बियों, मित्रों और जाति के लोगों द्वारा निन्दित हुआ।)

(ख) तपोदत्तः केन प्रकारेण विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत् ? (तपोदत्त किस प्रकार से विद्या प्राप्त करने के लिए प्रवृत्त हुआ?)
उत्तरम् :
तपोदत्तः तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत्। (तपोदत्त तप से विद्या प्राप्त करने के लिए प्रवृत्त हुआ।)

(ग) तपोदत्तः पुरुषस्य कां चेष्टां दृष्ट्वा अहसत्? (तपोदत्त पुरुष की किस चेष्टा को देखकर हँसा?)
उत्तरम् :
तपोदत्तः पुरुषस्य सिकताभिः सेतुनिर्माणप्रयासं दृष्ट्वा अहसत्। (तपोदत्त पुरुष के बालू से पुल बनाने के प्रयास को देखकर हँसा।)

(घ) तपोमात्रेण विद्यां प्राप्तुं तस्य प्रयासः कीदृशः कथितः? (तप मात्र से विद्या प्राप्त करने का उसका प्रयास कैसा कहा गया?)
उत्तरम् :
तपोमात्रेण विद्यां प्राप्तुं तस्य प्रयास: सिकताभिः सेतुनिर्माणप्रयास इव कथितः। (तप मात्र से विद्या प्राप्त करने का उसका प्रयास बालू से पुल बनाने के प्रयास की तरह कहा गया।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

(ङ) अन्ते तपोदत्तः विद्याग्रहणाय कुत्र गतः? (अन्त में तपोदत्त विद्या ग्रहण करने के लिए कहाँ गया?)
उत्तरम् :
अन्ते तपोदत्तः विद्याग्रहणाय गुरुकुलं गतः। (अन्त में तपोदत्त विद्या ग्रहण करने गुरुकुल गया।)

3. भिन्नवर्गीयं पदं चिनुत-(भिन्न वर्ग के शब्द को चुनिए)
यथा-अधिरोदुम्, गन्तुम्, सेतुम्, निर्मातुम्
उत्तरम् :
सेतुम्

(क) निः श्वस्य, चिन्तय, विमृश्य, उपेत्य
उत्तरम् :
चिन्तय

(ख) विश्वसिमि, पश्यामि, करिष्यामि, अभिलषामि उत्तरम् : करिष्यामि
(ग) तपोभिः, दुर्बुद्धिः, सिकताभिः, कुटुम्बिभिः उत्तरम् : दुर्बुद्धिः

4. (क) रेखाङ्कितानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि? (रेखांकित सर्वनाम पद किसके लिए प्रयोग किये गये हैं ?)
(i) अलमलं तव श्रमेण।
(ii) न अहं सोपानमागैरट्टमधिरोढुं विश्वसिमि।
(iii) चिन्तितं भवता न वा।
(iv) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीयः।
(v) भवद्भिः उन्मीलितं मे नयनयुगलम्।
उत्तरम् :
(i) पुरुषाय (इन्द्राय)
(ii) पुरुषाय (इन्द्राय)
(iii) पुरुषाय (इन्द्राय)
(iv) तपोदत्ताय
(v) तपोदत्ताय।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

(ख) अधोलिखितानि कथनानि कः कं प्रति कथयति? (नीचे लिखे कथनों को कौन किससे कहता है?)
कथनानि –
(i) हा विधे! किमिदं मया कृतम्?
(ii) भो महाशय! किमिदं विधीयते?
(iii) भोस्तपस्विन् ! कथं माम् उपरिणत्सि?
(iv) सिकता: जलप्रवाहे स्थास्यन्ति किम्?
(v) नाहं जाने कोऽस्ति भवान् ?
उत्तरम् :
JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः 2

पुरुषम् स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत- (मोटे छपे पदों को आधार मानकर प्रश्न बनाओ-)

(क) तपोदत्तः तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत्। (तपोदत्त तप से विद्या प्राप्त करने में प्रवृत्त हुआ।)
उत्तरम् :
तपोदत्तः कया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत् ? (तपोदत्त किससे विद्या प्राप्त करने में प्रवृत्त हुआ?)

(ख) तपोदत्तः कुटुम्बिभिः, मित्रैः गर्हितोऽभवत्। (तपोदत्त कुटुम्बियों, मित्रों से निन्दित हुआ।)
उत्तरम् :
कः कुटुम्बिभिः, मित्रैः गर्हितोऽभवत् ? (कौन कुटुम्बियों, मित्रों से निन्दित हुआ?)

(ग) पुरुषः नद्यां सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते। (पुरुष नदी में बालू से पुल बनाने का प्रयत्न करता है।)
उत्तरम् :
पुरुषः कुत्र सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते? (पुरुष कहाँ बालू से पुल बनाने का प्रयत्न करता है?)

(घ) तपोदत्तः अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषति। (तपोदत्त अक्षरज्ञान के बिना ही विद्वत्ता प्राप्त करना चाहता है।)
उत्तरम् :
तपोदत्तः किं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषति ? (तपोदत्त किसके बिना ही विद्वत्ता प्राप्त करना चाहता है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

(ङ) तपोदत्तः विद्याध्ययनाय गुरुकुलम् अगच्छत्। (तपोदत्तः विद्याध्ययन के लिए गुरुकुल गया।)
उत्तरम् :
तपोदत्तः किमर्थं गुरुकुलम् अगच्छत् ? (तपोदत्त किसलिए गुरुकुल गया?)

(च) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासः करणीयः। (गुरुगृह जाकर ही विद्याभ्यास करना चाहिए।)
उत्तरम् :
कुत्र गत्वा विद्याभ्यास: करणीयः? (कहाँ जाकर विद्याभ्यास करना चाहिए?)

6. (अ) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितविग्रहपदानां समस्तपदानि लिखत –
(उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित विग्रहपदों के समासयुक्त पद लिखिए-)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः 3

(आ) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं कुरुत।
(उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह कीजिए)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः 4

7. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकात् पदम् आदाय नूतनं वाक्यद्वयं रचयत –
(उदाहरण के अनुसार कोष्ठक से पद लेकर दो नये वाक्य बनाइये-)
JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः 5
उत्तरम् :
(क) (i) अलं भयेन।
(ii) अलं कोलाहलेन।

(ख) (i) माम् अनु गृहं गच्छति।
(ii) माम् अनु पर्वतं गच्छति।।

(ग) (i) परिश्रमं विनैव लक्ष्य प्राप्तुम् अभिलषसि।
(ii) अभ्यासं विनैव विद्यां प्राप्तुम् अभिलषसि।

(घ) (i) मासं यावत् नगरे वसति।
(ii) वर्षं यावत् गुरुकुलम् आवसति।

JAC Class 9th Sanskrit सिकतासेतुः Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
तपोदत्तः कस्मिन् कार्ये रतः प्रविशति? (तपोदत्त किस कार्य में लीन प्रवेश करता है?)
उत्तरम् :
तपोदत्तः तपस्यारतः प्रविशति। (तपोदत्त तपस्या में लीन प्रवेश करता है)

प्रश्न: 2.
अत्र कः स्वपरिचयं ददाति? (यहाँ कौन अपना परिचय देता है?)
उत्तरम् :
अत्र तपोदत्तः स्वपरिचयं ददाति। (यहाँ तपोदत्त अपना परिचय देता है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

प्रश्न: 3.
बाल्ये पितृचरणैः क्लेश्यमानः कः विद्यां न अधीतवान्?
(बचपन में पिताजी द्वारा संतप्त हुआ कौन विद्या नहीं पढ़ा?).
उत्तरम् :
बाल्ये पितृचरणैः क्लेश्यमानः तपोदत्तः विद्यां न अधीतवान्।
(बचपन में पिताजी द्वारा सन्तप्त हुआ तपोदत्त विद्या नहीं पढ़ा।)

प्रश्न: 4.
विद्याहीन: नरः सभायां किमिव न शोभते?
(विद्याहीन मनुष्य सभा में किस प्रकार शोभा नहीं देता?)
उत्तरम् :
विद्याहीन: नरः निर्मणिभोगीव सभायां न शोभते।
(विद्याहीन मनुष्य सभा में मणिहीन साँप की तरह शोभा नहीं देता।)

प्रश्न: 5.
तपोदत्तः कस्मात् कारणात् सर्वैः गर्हितोऽभवत् ?
(तपोदत्त किसलिए सबसे निन्दित हुआ?)
उत्तरम् :
तपोदत्तः अशिक्षितत्वात् सर्वैः गर्हितोऽभवत्।
(तपोदत्त अशिक्षित होने के कारण सभी से निन्दित हुआ।)

प्रश्नः 6.
कीदृशः जनः न शोभत? (कैसा मनुष्य शोभा नहीं देता?)
उत्तरम् :
परिधानैः अलंकारैः च भूषितोऽपि अनधीतः जनः न शोभते।।
(वस्त्रों और अलंकारों से सुसज्जित होते हुए भी अनपढ़ मनुष्य शोभा नहीं देता।)

प्रश्न: 7.
ऊर्ध्वं निःश्वस्य तपोदत्तः किम् अकरोत् ?
(ऊपर को साँस छोड़कर तपोदत्त ने क्या किया?)
उत्तरम् :
ऊर्ध्वं निःश्वस्य तपोदत्तः पश्चात्तापम् अकरोत्।
(ऊपर को लम्बी साँस छोड़कर तपोदत्त ने पश्चात्ताप किया।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

प्रश्न: 8.
कः भ्रान्तो न मन्यते?
(कौन भटका हुआ नहीं माना जाता?)
उत्तरम् :
दिवसे भ्रान्तः यः सन्ध्यां यावद् गृहम् उपैति, सः भ्रान्तो न मन्यते।
(दिन का भटका जो सन्ध्या तक घर आ जाये, वह भटका हुआ नहीं माना जाता।)

प्रश्न: 9.
तपोदत्तः कथं विद्यां प्राप्तुम् इच्छति?
(तपोदत्त किस प्रकार विद्या प्राप्त करना चाहता है?)
उत्तरम् :
तपोदत्तः तपश्चर्यया विद्यां प्राप्तुमिच्छति।
(तपोदत्त तपस्या के द्वारा विद्या प्राप्त करना चाहता है।)

प्रश्न: 10.
नद्यास्तटे तपोदत्तः किं पश्यति?
(नदी के किनारे तपोदत्त क्या देखता है?)
उत्तरम् :
तपोदत्तः नद्यास्तटे पुरुषमेकं सिकताभिः सेतुनिर्माणप्रयासं कुर्वन्तं पश्यति।
(तपोदत्त नदी के किनारे एक व्यक्ति को बालू से पुल बनाने का प्रयास करते हुए देखता है।)

प्रश्न: 11.
पुरुषस्य सिकतासेतुः कः इव?
(पुरुष का बालू का पुल किसकी तरह है?)
उत्तरम् :
पुरुषस्य सिकतासेतुः तपोदत्तस्य लिप्यक्षरज्ञानं विना तपोभिः विद्याप्राप्तिरिव।
(पुरुष का बालू का पुल तपोदत्त के बिना लिपि, अक्षर-ज्ञान के तपस्या से विद्या-प्राप्ति की तरह है।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

प्रश्न: 12.
भगवत्याः शारदाया: का अवमानना आसीत्? (भगवती सरस्वती की अवमानना क्या थी?)
उत्तरम् :
अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलाषा भगवत्याः शारदायाः अवमानना आसीत्।
(अक्षर-ज्ञान के बिना ही विद्वत्ता-प्राप्ति की इच्छा देवी सरस्वती की अवमानना थी।)

प्रश्न: 13.
लक्ष्यं केन प्राप्यते? (लक्ष्य किससे प्राप्त किया जाता है?)
उत्तरम् :
लक्ष्यं पुरुषार्थेण प्राप्यते। (लक्ष्य परिश्रम से प्राप्त किया जाता है।)

प्रश्न: 14.
तपोदत्तस्य पुरुषेण किं हितं कृतम्? (तपोदत्त का पुरुष ने क्या हित किया?)
उत्तरम् :
पुरुषेण तपोदत्तस्य नेत्रयुगलम् उन्मीलितम्। (पुरुष ने तपोदत्त के नेत्र खोल दिए।)

प्रश्न: 15.
‘सिकता सेतुः’ इति नाट्यांशः कस्मात् ग्रन्थात् संकलितः?
(‘सिकतासेतुः’ नाट्यांश किस ग्रन्थ से संकलित है?)
उत्तरम् :
‘सिकतासेतुः इति नाट्यांश कथासरित्सागरात् संकलितः।
(‘सिकतासेतु’ नाट्यांश कथासरित्सागर से संकलित है।)

प्रश्न: 16.
‘कथासरित्सागरः’ केन विरचितः? (कथासरित्सागर किसने रचा?)
उत्तरम् :
‘कथासरित्सागर: सोमदेवेन विरचितः।
(कथा सरित्सागर सोमदेव द्वारा रचा गया है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

प्रश्न: 17.
कोऽसौ पुरुषवेषधारी यः सिकताभिः सेतु निर्माणाय यतते?
(पुरुष वेषधारी वह व्यक्ति कौन है, जो बालू से पुल बनाना चाहता है?)
उत्तरम् :
पुरुष वेषधारी देवराजः इन्द्रः। (पुरुषवेषधारी देवराज इन्द्र है।)

प्रश्न: 18.
तपोदत्तः कैः गर्हितोऽभवत् ? (तपोदत्त किनके द्वारा निन्दित हुआ? )
उत्तरम् :
तपोदत्तः सर्वैः कुटुम्बिभिः, मित्रैः जातिजनैः च गर्हितोऽभवत्।
(तपोदत्त सभी कुटुम्बियों, मित्रों और जाति वालों से निन्दित हुआ।)

प्रश्न: 19.
निर्मणिभोगीव सभायां कः न शोभते? (मणि रहित साँप की तरह सभा में कौन शोभा नहीं देता?)
उत्तरम :
य: न अधीतवान विद्या सः निर्मणिभोगीव न शोभते।
(जिसने विद्या नहीं पढ़ी वह बिना मणि के साँप की तरह शोभा नहीं देता।)

प्रश्न: 20.
जलोच्छलध्वनिं श्रुत्वा तपोदत्तः किम चिन्तयत्?
(पानी उछलने की ध्वनि सुनकर तपोदत्त ने क्या सोचा?)
उत्तरम् :
तपोदत्तोऽचिन्तयत यत् कोऽपि महामत्स्यो मकरो वा भवेत्। (तपोदत्त ने सोचा कि कोई बड़ी मछली अथवा मगरमच्छ होगा।)

स्थूलाक्षरपदान्यधिकृत्य प्रश्न-निर्माणं कुरुत-(मोटे अक्षर वाले शब्दों के आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
ततः प्रविशति तपस्यारतः तपोदत्तः। (तब तपस्या में तल्लीन तपोदत्त प्रवेश करता है।)
उत्तरम् :
ततः कीदृशः तपोदत्तः प्रविशति? (तब कैसा तपोदत्त प्रवेश करता है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

प्रश्न: 2.
अशिक्षित: नरः निर्मणिभोगीव न शोभते। (अशिक्षित मनुष्य मणि रहित साँप की तरह शोभा नहीं देता।)
उत्तरम् :
अशिक्षित: नरः कः इव न शोभते? (अशिक्षित मनुष्य किसकी तरह शोभा नहीं देता?)

प्रश्न: 3.
‘सिकतासेतुः’ इति पाठः कथासरित्सागरात् संकलितः। (‘सिकतासेतुः’ पाठ कथासरित्सागर से संकलित है।)
उत्तरम् :
सिकतासेतुः इति पाठः कुतः संकलितः? (‘सिकतासेतुः’ पाठ कहाँ से संकलित है?)

प्रश्न: 4.
पुरुषमेकं सिकताभिः सेतुनिर्माणं कुर्वाणमपश्यत्। (बालू से सेतु निर्माण करते हुए एक पुरुष को देखा।)
उत्तरम् :
पुरुषमेकं कानिः सेतुनिर्माणं कुर्वाणमपश्यत्? (एक पुरुष को किसे सेतु निर्माण करते देखा?)

प्रश्न: 5.
नास्त्यभावो जगति मूर्खाणाम्। (संसार में मूों की कमी नहीं है।)
उत्तरम् :
जगाति केषाम् अभावः नास्ति? (संसार में किसका अभाव नहीं है?)

प्रश्न: 6.
रामः बवन्ध सेतुं शिलाभिर्मकरालये? (राम ने शिलाओं से सागर पर पुल बनाया?)
उत्तरम् :
रामः शिलाभिः कुत्र सेतुं बबन्ध? (राम ने शिलाओं से सेतु कहाँ बनाया?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

प्रश्न: 7.
प्रयत्नेन सर्वं सिद्धं भवति। (प्रयत्न से सब सिद्ध होता है।)
उत्तरम् :
केन सर्वं सिद्धं भवति? (किससे सब सिद्ध होता है?)

प्रश्न: 8.
नाक्षरज्ञानं विना वैदुष्यम्। (अक्षरज्ञान के बिना विद्वत्ता नहीं।)
उत्तरम् :
किं विना न वैदुष्यम् ? (किसके बिना विद्वत्ता नहीं।)

प्रश्न: 9.
इयं भगवत्याः शारदायाः अवमानना। (यह भगवती सरस्वती का अपमान है।)
उत्तरम् :
इयं कस्याः अवमानना? (यह किसका अपमान है?)

प्रश्न: 10.
पुरुषाथैरेव लक्ष्यं प्राप्यते। (पुरुषार्थ से ही लक्ष्य प्राप्त होता है।)
उत्तरम् :
कैः लक्ष्यं प्राप्यते? (किनके द्वारा लक्ष्य प्राप्त किया जाता है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

कथाक्रम-संयोजनम्।

अधोलिखितानि वाक्यानि क्रमशः लिखित्वा कथा-क्रम-संयोजनं कुरुत।
(निम्नलिखित वाक्यों को क्रमशः लिखकर कथा-क्रम-संयोजन कीजिये।)

1. सः एक पुरुषं सिकताभिः सेतुनिर्माणप्रयासं कुर्वन्तं दृष्ट्वाऽहसत्।
2. उन्मीलितनयनः तपोदत्तः विद्याऽध्ययनाय गुरुकुलं गतः।।
3. सोऽचिन्तयत्-अक्षरज्ञानं विना विद्याप्राप्तेः इच्छा तु देव्याः शारदायाः अपमानम्।
4. पुरुषः आह-यदा लिप्यक्षरज्ञानं विना तपोभिरेव विद्या प्राप्या तदा सिकतासेतुरपि सम्भवति।
5. तपोदत्तः बाल्ये पितचरणैः क्लेश्यमानः अपि विद्यां नाऽधीतवान्।
6. किं सिकता जलप्रवाहे स्थास्यति?
7. स आह-‘रे मूर्ख! सिकताभिः सेतुं निर्मातुमिच्छसि?
8. सः तपसा विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत्।
उत्तरम् :
1. तपोदत्तः बाल्ये पितृचरणैः क्लेश्यमानः अपि विद्यां नाऽधीतवान्।
2. सः तपसा विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत्।
3. सः एक पुरुषं सिकताभिः सेतुनिर्माणप्रयासं कुर्वन्तं दृष्ट्वाऽहसत्।
4. स आह-रे मूर्ख! सिकताभिः सेतुं निर्मातुमिच्छसि?’
5. किं सिकता जलप्रवाहे स्थास्यति?
6. पुरुषः आह-यदा लिप्यक्षरज्ञानं विना तपोभिरेव विद्या प्राप्या तदा सिकतासेतुरपि सम्भवति।
7. सोऽचिन्तयत्-अक्षरज्ञानं विना विद्याप्राप्तेः इच्छा तु देव्याः शारदायाः अपमानम्।
8. उन्मीलितनयन: तपोदत्तः विद्याऽध्ययनाय गुरुकुलं गतः।

योग्यताविस्तारः

(क) कवि-परिचय – ‘कथासरित्सागर’ के रचयिता कश्मीर निवासी श्री सोमदेव भट्ट हैं। ये कश्मीर के राजा श्री अनन्तदेव के सभापण्डित थे। कवि ने रानी सूर्यमती के मनोविनोद के लिए ‘कथासरित्सागर’ नामक ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का मूल आधार महाकवि गुणाढ्य की ‘बृहत्कथा’ (प्राकृत ग्रन्थ) है।

(ख) ग्रन्थ परिचय – ‘कथासरित्सागर’ अनेक कथाओं का महासमुद्र है। इस ग्रन्थ में अठारह लम्बक हैं। मूलकथा की पुष्टि के लिए अनेक उपकथाएँ वर्णित की गई हैं। प्रस्तुत कथा रत्नप्रभा नामक लम्बक से सङ्कलित की गई है। ज्ञान-प्राप्ति केवल तपस्या से नहीं, बल्कि गुरु के समीप जाकर अध्ययनादि कार्यों के करने से होती है। यही इस कथा का सार है।

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(ग) पर्यायवाचिन: शब्दाः –

  • इदानीम् – अधुना, साम्प्रतम्, सम्प्रति।
  • जलम् – वारि, उदकम्, सलिलम्।
  • नदी – सरित्, तटिनी, तरङ्गिणी।
  • पुरुषार्थः – उद्योगः, उद्यमः, परिश्रमः।

(घ) विलोमशब्दाः –

  • दुर्बुद्धिः – सुबुद्धिः
  • गर्हितः – प्रशसितः
  • प्रवृत्तः – निवृत्तः
  • अभ्यास: – अनभ्यासः
  • सत्यम् – असत्यम्

(ङ) आत्मगतम् – नाटकों में प्रयुक्त यह एक पारिभाषिक शब्द है। जब नट या अभिनेता रंगमञ्च पर अपने कथन को दूसरों को सुनाना नहीं चाहता, मन में ही सोचता है तब उसके कथन को ‘आत्मगतम्’ कहा जाता है।

(च) प्रकाशम् – जब नट या अभिनेता के संवाद रंगमञ्च पर दर्शकों के सामने प्रकट किये जाते हैं, तब उन संवादों को ‘प्रकाशम्’ शब्द से सूचित किया जाता है।

(छ) अतिरामता – राम से आगे बढ़ जाने की स्थिति को ‘अतिरामता’ कहा गया है-रामम् अतिक्रान्तः = अतिरामः, तस्य भावः = अतिरामता। राम ने शिलाओं से समुद्र में सेतु का निर्माण किया था। विप्र-रूपधारी इन्द्र को सिकता-कणों से सेतु बनाते देख तपोदत्त उनका उपहास करते हुए कहता है कि तुम राम से आगे बढ़ जाना चाहते हो।

निम्नलिखित कहावतों को पाठ में आये हुए संस्कृत वाक्यांशों में पहचानिये –
(i) सुबह का भटका शाम को घर लौट आये तो भटका हुआ नहीं माना जाता है।
(ii) मेरी आँखें खुल गईं।

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(ज) आञ्जनेयम् – अञ्जना के पुत्र होने के कारण हनुमान् को आञ्जनेय कहा जाता है। हनुमान् उछलकर कहीं भी जाने में समर्थ थे। इसलिए इन्द्र के यह कहने पर कि मैं सीढ़ी से जाने में विश्वास नहीं करता हूँ, अपितु उछलकर ही जाने में समर्थ हूँ, तपोदत्त फिर से उपहास करते हुए कहता है कि पहले आपने पुल-निर्माण में राम को लाँघ लिया और अब उछलने में हनुमान् को भी लाँघने की इच्छा कर रहे हैं।

(झ) अक्षरज्ञानस्य माहात्म्यम् –

(i) विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।
(ii) किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या।
(iii) यः पठति लिखति पश्यति परिपृच्छति पण्डितानुपाश्रयते।
तस्य दिवाकरकिरणैः नलिनीदलमिव विकास्यते बुद्धिः।।

योग्यताविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कथासरित्सागर के रचयिता का नाम लिखिए।
उत्तर :
श्री सोमदेव भट्ट।

प्रश्न 2.
श्री सोमदेव किसके शासनकाल में रहे?
उत्तर :
वह कश्मीर के राजा अनन्तदेव के शासनकाल में रहे।

प्रश्न 3.
कथासरित्सागर के लिखने का क्या प्रयोजन था?
उत्तर :
रानी सूर्यमती के मनोविनोदार्थ इसकी रचना की गई।

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प्रश्न 4.
कथासरित्सागर किस मूल ग्रन्थ पर आधारित है?
उत्तर :
कथासरित्सागर गुणाढ्य रचित प्राकृत ग्रन्थ ‘बृहत्कथा’ पर आधारित है।

प्रश्न 5.
कथासरित्सागर में कितने लम्बक हैं?
उत्तर :
अठारह।

प्रश्न 6.
नाटकों में आत्मगतम्’ से क्या प्रयोजन है?
उत्तर :
जब नट या अभिनेता मञ्च पर अपने कथन को किसी अन्य को नहीं सुनाना चाहता है तथा स्वयं सोचता है तो उसे आत्मगतम् या स्वगतम् कहते हैं।

प्रश्न 7.
नाटक में ‘प्रकाशम्’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
जब कोई संवाद दर्शकों के सामने खुले में बोला जाये। इसका प्रयोग प्रायः स्वगतम् या आत्मगतम् के संवाद के पश्चात् होता है।

प्रश्न 8.
‘अतिरामता’ पद का क्या अर्थ है?
उत्तर :
राम से आगे (बढ़कर) निकलना।

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प्रश्न 9.
निम्न कहावतों को ‘सिंकतासेतुः पाठ में ढूँढ़कर संस्कृत में लिखो।
(i) सुबह का भूला साँझ को घर लौट आये तो भूला नहीं कहलाता।
(ii) मेरी आँखें खुल गईं।
उत्तर :
(i) दिवसे मार्गभ्रान्तः सन्ध्यां यावद् यदि गृहमुपैति तदपि वरम्। नाऽसौ भ्रान्तो मन्यते।
(ii) उन्मीलितं मे नयनयुगलम्।

प्रश्न 10.
हनुमान जी को आञ्जनेय क्यों कहते हैं?
उत्तर :
अञ्जना का पुत्र होने के कारण हनुमान जी को आञ्जनेय कहा जाता है।

प्रश्न 11.
किं धनं सर्वप्रधानम्? (कौन-सा धन सबसे बढ़कर है?)
उत्तर :
विद्याधनं सर्वप्रधानम्। (विद्या धन सबसे बढ़कर है।)

प्रश्न 12.
किमिव सर्वं साधयति विद्या? (विद्या किसकी तरह सब कुछ साधती है?)
उत्तर :
विद्या कल्पलतेव सर्वं साधयति। (विद्या कल्पलता की तरह सब कुछ साधती है।)

प्रश्न 13.
दिवाकरकिरणैः नलिनीदलमिव कस्य बुद्धिः विकास्यते? (सूर्य की किरणों से कमलिनी की तरह किसकी बुद्धि विकसित हो जाती है?)
उत्तर :
यः पठति, पश्यति, लिखति, परिपृच्छति पण्डितानुपाश्रयते च तस्य बुद्धिः दिवाकरकिरणैः नलिनीदलमिव विकास्यते।
(जो पढ़ता है, देखता है, लिखता है, प्रश्न करता है तथा विद्वानों के समीप रहता है उसकी बुद्धि सूर्य की किरणों से कमलिनी की तरह विकसित होती है।)

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प्रश्न 14.
निम्न शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची लिखिए –
अधुना, वारि, सरित् तथा परिश्रमः।
उत्तर :

  • अधुना – इदानीम्, साम्प्रतम्, सम्प्रति।
  • वारि – उदकम्, तोयम्, सलिलम्।
  • सरित् – नदी, तटिनी, तरङ्गिणी।
  • परिश्रमः – उद्योगः, उद्यमः, पुरुषार्थः।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम अर्थ वाले शब्द लिखिए –
सुबुद्धिः, गर्हितः, प्रवृत्तिः, सत्यम्, अभावः, विद्या, मित्रैः, विद्वान्।
उत्तर :
शब्दः – विलोम

  • सुबुद्धिः – दुर्बुद्धिः
  • गर्हितः – प्रशंसितः
  • प्रवृत्तिः – निवृत्तिः
  • सत्यम् – असत्यम्
  • अभावः – भाव:
  • विद्या – अविद्या
  • मित्रैः – अमित्रः
  • विद्वान् – मूढः

प्रश्न 16.
निम्नलिखित धातुओं से ‘तुमुन्’ प्रत्यय लगाकर पद-रचना कीजिए –
कृ, गम्, आ + रु
उत्तर :

  • कृ + तुमुन् = कर्तुम्
  • गम् + तुमुन् = गन्तुम्
  • आ + रुह् + तुमुन् = आरोदुम्

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

प्रश्न 17.
निम्न पदों में प्रकृति-प्रत्यय बताइए –
अवाप्तुम्, निर्मातुम्, दृष्ट्वा, कुर्वाणः, समुत्प्लुत्य, करणीयः, विमृश्य।
उत्तर :
JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः 1

सिकतासेतुः Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – प्रस्तुत नाट्यांश सोमदेवरचित ‘कथासरित्सागर’ कथाग्रन्थ के सप्तम लम्बक (अध्याय) पर आधारित है। (‘कथासरित्सागर’) गुणाढ्य कृत प्राकृत कथाग्रन्थ बृहत्कथा का विशालतम संस्कृत संस्करण है। इसमें 18 लम्बक (अध्याय) तथा 24000 श्लोक हैं। इसकी रचना कश्मीरी कवि सोमदेव ने राजा अनन्त देव की पत्नी सूर्यमती के । मनोरञ्जन के लिए की थी। कथा रोचक होते हुए शिक्षाप्रद है।

पाठ का सारांश – तपोदत्त नाम का बालक तपोबल से विद्या पाने के लिए प्रयत्नशील था। एक दिन उसके समुचित मार्गदर्शन हेतु स्वयं देवराज इन्द्र वेष बदलकर आये। इन्द्र उसे शिक्षा देने के प्रयोजन से पास बहती गंगा में सेतु-निर्माणार्थ अंजलि भर-भरकर बालू डालने लगे। उन्हें ऐसा करते हुए देखकर तपोदत्त उनका उपहास करने लगा और बोला-“अरे! गंगा के प्रवाहित जल में व्यर्थ ही बालू से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहे हो।”

इन्द्र बोला-“जब पढ़ने, सुनने और अक्षरज्ञान एवं अभ्यास के बिना तुम विद्या प्राप्त कर सकते हो तो बालू से गंगा पर पुल बनाना भी सम्भव है।” तपोदत्त इन्द्र के अभिप्राय को और उसमें छिपी सीख को तुरन्त समझ गया। उसने तपस्या का मार्ग छोड़कर गुरुजनों के मार्गदर्शन में विद्याध्ययन किया, उचित अभ्यास किया, इसको सम्भव करने के लिए तथा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वह गुरुकुल चला गया। कार्य परिश्रम से ही सिद्ध होते हैं, मनोरथ से नहीं।

[मूलपाठः,शब्दार्थाः,सप्रसंग हिन्दी-अनुवादः,सप्रसंग संस्कृत-व्याख्याःअवबोधनकार्यमच]

1. (ततः प्रविशति तपस्यारतः तपोदत्तः)
तपोदत्तः – अहमस्मि तपोदत्तः। बाल्ये पितृचरणैः क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाऽधीतवानस्मि। तस्मात् सर्वैः कुटुम्बिभिः मित्रैः ज्ञातिजनैश्च गर्हितोऽभवम्। (ऊर्ध्वं नि:श्वस्य) हा विधे! किम् इदं मया कृतम्? कीदृशी दुर्बुद्धि आसीत् तदा। एतदपि न चिन्तितं यत्

परिधानैरलङ्कारभूषितोऽपि न शोभते।
नरो निर्मणिभोगीव सभायां यदि वा गृहे।।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

शब्दार्था: – ततः = तदा (तब), प्रविशति = (तपोदत्त) प्रवेशं करोति (प्रवेश करता है), तपस्यारतः तपोदत्तः = तपसि लीनः तपोदत्तः (तप में लीन हुआ तपोदत्त), अहमस्मि तपोदत्तः = अहं तपोदत्तः अस्मि (मैं तपोदत्त हूँ), बाल्ये – शैशवे/बाल्यकाले (बचपन में), पितृचरणैः = तातपादैः (पूज्य पिताजी द्वारा), क्लेश्यमानोऽपि = सन्ताप्यमानोऽपि (सन्ताप/पीड़ा दिया जाता हुआ भी), विद्यां नाऽधीतवानस्मि = विद्याध्ययनं न कृतवान् (मैंने विद्याध्ययन नहीं किया), तस्मात् = तत्कारणात् (इसलिए/ इस कारण से), सर्वैः = अखिलैः (सभी),

कुटुम्बिभिः = परिवारजनैः (परिवारीजनों/कुटुम्बियों द्वारा), मित्रैः = सुहृद्भिः (मित्रों द्वारा),ज्ञातिजनैश्च = बन्धुबान्धवैश्च (और भाई-बन्धुओं/जाति-बिरादरी द्वारा),गर्हितोऽभवम् = निन्दितोऽजाये (निन्दित हो गया हूँ), ऊर्ध्वम् = आकाशे (ऊपर की ओर), निःश्वस्य = दीर्घ नि:श्वस्य (लम्बी श्वास छोड़कर), हा विधे! = हा दैव! (अरे भाग्य! खेद है), किम् इदं मया कृतम् = किमेतद् अहं कृतवान् (मैंने यह क्या कर दिया), कीदृशी = कथंविधा (कैसी), दुर्बुद्धिः = दुर्मतिः (बुरी बुद्धि), आसीत् = अवर्तत (थी), तदा = तस्मिन् काले (तब), एतदपि = इदमपि (यह भी),

न चिन्तितम् = न विचारितम् (नहीं सोचा), यत् = (कि), परिधानैः = वस्त्रैः (वस्त्रों से), अलङ्कारैः = आभूषणैः (आभूषणों से), भूषितोऽपि = सुसज्जितोऽपि (सुसज्जित हुआ भी), न शोभते = शोभमानः न भवति (सुशोभित नहीं होता है)। नरः = (अशिक्षितः) मानवः (अनपढ़ मनुष्य), निर्मणि = मणिहीनः (मणिरहित), भोगीव = सर्प .. इव (साँप की तरह/समान), सभायाम् = जनसम्म (सभा में), यदि वा = अथवा (या), गृहे = सदने (घर में),

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेवरचित । – ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में बाल्यकाल में अशिक्षित तपोदत्त की वेदनामयी मन:स्थिति का वर्णन किया गया है। – अनुवाद-(तब तप में लीन हुआ तपोदत्त प्रवेश करता है।) मैं तपोदत्त हूँ। बचपन में पिताजी द्वारा पीड़ा दिये जाने पर भी मैंने विद्याध्ययन नहीं किया। इस कारण से परिवारीजनों द्वारा, मित्रों द्वारा और भाई-बन्धुओं द्वारा निन्दित हो गया। (ऊपर की ओर लम्बी श्वास छोड़कर) अरे भाग्य! खेद है, मैंने यह क्या कर दिया, तब कैसी बुरी बुद्धि हो गयी थी। यह भी नहीं सोचा कि (अनपढ़) मनुष्य मणिहीन सर्प की भाँति सभा में या घर में वस्त्रों (और) आभूषणों से सुसज्जित होता हुआ भी सुशोभित नहीं होता। संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतनाट्यांश: अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं सोमदेवरचितस्य ‘कथासरित्सागरस्य’ सप्तमलम्बकात् संकलितो अस्ति। (प्रस्तुत नाटक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतु’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेव-रचित ‘कथा सरित्सागर’ के सप्तम लंबक से संकलित है।)

प्रसङ्गः – नाट्यांशेऽस्मिन् बाल्येऽशिक्षितस्य तपोदत्तस्य वेदनामय्याः मन:स्थिते: वर्णनं कृतम् अस्ति। (इस नाट्यांश में बचपन में अशिक्षित तपोदत्त की वेदनामयी मन:स्थिति का वर्णन किया गया है।)

व्याख्याः – (तदा तपसि लीनः तपोदत्तः प्रवेशं करोति।) अहं तपोदत्तः अस्मि। शैशवे तातपादैः सन्ताप्यमानोऽपि विद्याध्ययनं न कृतवान्। तत्कारणात् अखिलैः परिवारजनैः, सुहृद्भिः बन्धुबान्धवैश्च निन्दितोऽजाये। (आकाशे दीर्घ श्वासं निश्वस्य) हा दैव! किमेतद् अहं कृतवान्। तस्मिन् काले कथंविधा दुर्मतिः अभवत्। इदमपि न विचारितं यत् (अशिक्षितः) मानवः मणिहीनसर्प इव जनसम्म गृहे वा वस्त्रैः आभूषणैः (च) सुसज्जितोऽपि शोभमानः न भवति।

(तब तप में तल्लीन तपोदत्त प्रवेश करता है। मैं तपोदत्त हूँ। बचपन में पिताजी द्वारा कष्ट दिया जाता हुआ नहीं पढ़ा। इसके कारण सभी परिवार के लोगों, मित्रों और भाई-बन्धुओं की निन्दा का पात्र बना । (आकाश में लम्बी साँस लेकर) हे भगवान् मैंने यह क्या किया? उस समय मेरी कैसी दुर्बुद्धि हो गई। यह भी नहीं विचार किया कि अनपढ़ आदमी मणिहीन सर्प की तरह जनसमूह में अथवा घर में वस्त्राभूषणो से सुसज्जित होते हुए भी सुशोभित नहीं होता।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

अवबोधन कार्यम् –

1. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) अशिक्षितो मनुष्यः सभायां कथं न शोभते? (अशिक्षित मनुष्य सभा में कैसे शोभा नहीं देता?)
(ख) तपोदत्तः कैः गर्हितोऽभवतो? (तपोदत्त किसके द्वारा निन्दित हुआ?)

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) तपोदत्तः केन कारणेन गर्हितोऽभवत् ? (तपोदत्त किसके कारण निन्दित हुआ?)
(ख) सभायां कः न शोभते? (सभा में कौन शोभा नहीं देता?)

3. यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देश के अनुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘सर्व’ इति पदस्य स्थाने गद्यांशे किं समानार्थी पदं प्रयुक्तम् ? (‘सर्व’ पद के स्थान पर गद्यांश में किस समानार्थी पद का प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘सुबुद्धि’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशात् अन्विष्य लिखत। (‘सुबुद्धि’ पद का विलोमार्थक पद गद्यांश
से ढूँढ़कर लिखिए।)
उत्तराणि :
1.(क) निर्मणिभोगीव (विना मणि के साँप),
(ख) मित्रैः (मित्रों द्वारा).

2. (क) बाल्यकाले विद्यां न अधीतवान् अतः सर्वेः गर्हितोऽभवत्। (बचपन में विद्या नहीं पढ़ी, अत: सबके द्वारा निन्दित हुआ।) परिधानैः अलङ्कारैः च भूषितोऽपि विद्याविहीनः सभायां न शोभते। (वस्त्राभूषणों से भूषित हुआ भी विद्याहीन व्यक्ति सभा में शोभित नहीं होता।)

3. (क) भोगी (सर्प),
(ख) दुर्बुद्धि (बुरी बुद्धिवाला)

2. (किञ्चिद् विमृश्य)
भवतु, किम् एतेन? दिवसे मार्गभ्रान्तः सन्ध्यां यावद् यदि गृहमुपैति तदपि वरम्। नाऽसौ भ्रान्तो मन्यते। अतोऽहम् इदानीं तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्मि।
(जलोच्छलनध्वनिः श्रूयते)
अये कुतोऽयं कल्लोलोच्छलनध्वनि: ? महामत्स्यो मकरो वा भवेत्। पश्यामि तावत्।
(पुरुषमेकं सिकताभिः सेतुनिर्माण-प्रयासं कुर्वाणं दृष्ट्वा सहासम्)
हन्त! नास्त्यभावो जगति मूर्खाणाम्! तीव्रप्रवाहायां नद्यां मूढोऽयं सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयत!
(साट्टहासं पार्श्वमुपेत्य)
भो महाशय! किमिदं विधीयते! अलमलं तव श्रमेण। पश्य,
रामो बबन्ध यं सेतुं शिलाभिर्मकरालये।
विदधद् बालुकाभिस्तं यासि त्वमतिरामताम् ।।2।।
चिन्तय तावत्। सिकताभिः क्वचित्सेतुः कर्तुं युज्यते?

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

शब्दार्थाः – किञ्चिद् विमृश्य = किमपि विचार्य (कुछ विचार कर), भवतु = अस्तु (खैर/अच्छा), किम् एतेन = किमनेन (इससे क्या प्रयोजन), दिवसे = दिने (दिन में), मार्गभ्रान्तः = पथभ्रष्टः (राह से भटका हुआ), संध्यां यावद् = सायंकालपर्यन्तम् (सायंकाल तक/साँझ तक), यदि गृहमुपैति = यदि सदनं प्राप्नोति (यदि घर पहुँच जाता है), तदपि = (तब भी), वरम् = श्रेष्ठः (अच्छा है), नाऽसौ = न सः (नहीं वह), भ्रान्तोः = भ्रमितः (भटका हुआ), मन्यते = ज्ञायते (माना जाता है), अतोऽहम् = अयम् अहम् (यह मैं), इदानीम् = अधुना (अब), तपश्चर्यया = तपसा (तपस्या से),

विद्यामवाप्तुम् = विद्यार्जनाय (विद्या-प्राप्ति के लिए), प्रवृत्तोऽस्मि = निरतोऽस्मि (प्रवृत्त हूँ/लंग गया हूँ), जलोच्छलनध्वनिः = जलोट वंगमनशब्दः (पानी उछलने की आवाज), श्रूयते = आकर्ण्यते (सुनाई देती है), अये = अरे (ओह), कुतोऽयम् = कस्मात् स्थानात् आयाति (कहाँ से आ रही है यह) एषः, कल्लोल = तरङ्गानाम् (लहरों के), उच्छलन = ऊर्ध्वगतेः (उछलने की), ध्वनिः = शब्दः (आवाज), महामत्स्योः = विशालमीनः (बड़ी मछली),

मकरो वा = नक्रः वा (अथवा मगरमच्छ), भवेत् = स्यात् (होना चाहिए), पश्यामि = ईक्षे (देखता हूँ), तावत् = तर्हि (तो), पुरुषमेकम् = एक मानवं (एक मनुष्य को), सिकताभिः = बालुकाभिः (बालू से), सेतु = धरणम् (पुल) निर्माण = सृष्टे: (बनाने का), प्रयासम् = प्रयत्नम् (प्रयास), कुर्वाणम् = कुर्वन्तम् (करते हुए को), दृष्ट्वा = अवलोक्य (देखकर), सहासम् = हासपूर्वकम् (हँसते हुए), हन्त = हा (खेद है), नास्त्यभावो = न वर्तते राहित्यम (कभी नहीं है), जगति = संसारे (संसार में), मूर्खाणाम् = बालिशानाम् (अज्ञानियों/ मूल् की), तीव्र = गतिमानायां (तेज), प्रवाहायाम् = प्रवाहमानायाम् (बहती हुई),

नद्याम् = सरति (नदी में), मूढोऽयं = एषः विवेकहीनः (यह मूर्ख), सिकताभिः = बालुकाभिः (बालू से), सेतुम् = धरणम् (पुल), निर्मातुम् = स्रष्टुम् (बनाने का), प्रयतते = प्रयासं करोति (प्रयास करता है), साट्टहासम् = अट्टहासपूर्वकम् (अट्टहास करते हुए/जोर से हँसते हुए), पार्श्वम् = कक्षे (बगल में), उपेत्य = समीपं गत्वा (पास जाकर), भो महाशय! = हे महोदय! (हे महाशय जी!), किमि इदम् = किं एतत् (क्या यह), विधीपते = सम्पाद्यते (किया जा रहा है),

अलमलम् = पर्याप्तम् (बस, बस), तव = ते (तुम्हारे), श्रमेण = परिश्रमेण (मेहनत) अर्थात् बस, बस परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है, पश्य = अवलोकय (देखो), मकरालये = सागरे (समुद्र में), रामः = भगवान् रामः (श्रीराम ने), यं सेतुम् = यं धरणम् (जिस पुल को), शिलाभिः = प्रस्तरैः (शिलाओं से), बबन्ध = निर्मितवान् (बनाया था), त्वम् = भवान् (आप), बालुकाभिः = सिकताभिः (बालू से), विदधत् = निर्माणं कुर्वन् (बनाते हुए), त्वं तु = भवान् तु (आप तो), अतिरामताम् = रामादप्यग्रे, रामादपि श्रेष्ठतरः (राम से भी आगे या बढ़कर), यासि = गच्छसि, (जा रहे हो), तावत् = तर्हि (तो), चिन्तय = विचारय (सोचो), सिकताभिः = बालुकाभिः (बालू से), क्वचित् = कुत्रचित् (कहीं), सेतुम् = धरणम् (पुल), कर्तुम् = निमार्तुम् (बनाना), युज्यते = उचितम् अस्ति (उचित है)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेवकृत ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में तप से विद्या पाने के लिए निश्चय किया हुआ तपोदत्त एक मनुष्य को रेत से नदी पर पुल बनाते हुए देखता है और उसे मूर्ख कहता है।

अनुवाद – (कुछ विचार करके)
खैर, इससे क्या प्रयोजन? दिन में राह भटका हुआ यदि सायंकाल तक घर पहुँच जाता है तो भी वह श्रेष्ठ है, उसे भटका (भूला) हुआ नहीं माना जाता है। यह मैं (तपोदत्त) अब तपस्या से विद्याध्ययन के लिए प्रवृत्त हूँ।
(पानी उछलने की आवाज सुनाई देती है)

अरे! यह लहरों के उछलने की आवाज कहाँ से आ रही है? कोई बड़ी मछली अथवा मगरमच्छ होना चाहिए। तो (तब तक) देखता हूँ।
(एक मनुष्य को बालू से पुल बनाने का प्रयास करते हुए देखकर हँसते हुए ।)
खेद है, संसार में मूों की कमी नहीं है। यह मूर्ख तेज प्रवाह वाली नदी में बालू से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा है। (जोर से हँसते हुए बगल में पास जाकर)
हे महाशय! यह क्या किया जा रहा है! बस, बस, परिश्रम मत करो। देखो, भगवान राम ने जिस पुल को समुद्र पर शिलाओं से बनाया था, (उसे) आप बालू से बनाते हुए राम से भी आगे जा रहे हैं, तो सोचिए बालू से कहीं पुल बनाना उचित है?

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्या:”सिकतासेतुः’ नामक पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं सोमदेवकृतस्य ‘कथासरित्सागरस्य’ सप्तमलम्बकात् संकलितो अस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठयपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ पाठ से . उद्धृत है। यह पाठ सोमदेवकृत ‘कथासरित्सागर’ के सातवें लम्बक से संकलित है।)

प्रसंग: – नाट्यांशेऽस्मिन् तपश्चर्यया विद्यार्जनाय कृतसङ्कल्पः तपोदत्तः मनुष्यमेकं बालुकाभिः नद्यां धरणनिर्माणं कुर्वन्तं पश्यति तं च मूर्ख वदति। (इस नाट्यांश में तपस्या से विद्यार्जन के लिए दृढ़संकल्पित तपोदत्त ने एक मनुष्य को बालू से नदी पर पुल बनाता हुआ देखता है और उसे मूर्ख कहता है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

व्याख्या – (किमपि विचार्य)
अस्तु, किमनेन? दिने पथभ्रष्ट: सायंकालपर्यन्तं यदि सदनं प्राप्नोति, तदा अपि श्रेष्ठः, सः भ्रमितः न ज्ञायते। अयम् अहम् अधुना तपसा विद्याध्ययनाय निरतः अस्मि।
(जलोर्ध्वगमनशब्दः आकर्ण्यते)
अरे! एषः तरङ्गाणां ऊर्ध्वगमनस्य शब्दः कस्मात् स्थानात् आयाति, विशालमीन: नक्रः वा स्यात्। तर्हि ईक्षे। (मानवमेकं बालुकाभिः धरणस्य सृष्टेः प्रयत्नं कुर्वन्तम् अवलोक्य हासपूर्वकम्)
हा, संसारे न बालिशानामभावः वर्तते। एषः विवेकहीन: प्रवाहमानायां सरति बालुकाभिः धरणं स्रष्टुं प्रयासं करोति।
(अट्टहासपूर्वकं कक्षे समीपं गत्वा) हे महोदय ! किमेतत्सम्पाद्यते? पर्याप्तं ते श्रमेण।’
अवलोकय, सागरे भगवान् रामः यं धरणं प्रस्तरैः निर्मितवान्, (तत्) भवान् सिकताभिः निर्माणं कुर्वन् रामादपि अग्रे गच्छति तर्हि विचारय! कुत्रचिद् बालुकाभिः धरणस्य निर्माणम् उचितम्?

(कुछ विचार कर) खैर, इससे क्या, दिन में भूला हुआ यदि सायंकाल घर आ जाये तो भी अच्छा है, उसे भटका हुआ नहीं मानते हैं। यह मैं अब तप से विद्याध्ययन के लिए संलग्न हूँ। (पानी उछलने की आवाज सुनाई पड़ती है।) अरे ! यह लहरों का उछलने का शब्द कहाँ से आ रहा है? कोई बड़ी मछली या मगरमच्छ होगा। तो देखता हूँ। (एक व्यक्ति को बालू से पुल बनाने का प्रयत्न करते हुए को देखकर हँसते हुए) अरे संसार में मूों की कमी नहीं। यह विवेकहीन बहती हुई नदी में बालू से पुल बनाने का प्रयास कर रहा है। (अट्टाहासपूर्वक बगल में जाकर) महोदय यह क्या कर रहे हो? बस परिश्रम खो, सागर में भगवान राम ने जिस पुल को बनाया था, वह पत्थरो से बनाया था तो आप तो बालू से पुल निर्माण करते हुए राम से भी आगे निकल गये, तो विचार करो, कहीं बालू से पुल का निर्माण उचित है?)

अवबोधन कार्यम्

1. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
क) तपोदत्तः केन विद्यां प्राप्तं प्रवृत्तोऽस्ति? (तपोदत्त किससे विद्या प्राप्त करने के लिए प्रवृत्त है?)
(ख) पुरुषः काभिः सेतुनिर्माण-प्रयासं करोति? (पुरुष किससे पुल के निर्माण का प्रयत्न करता है?)

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिये)
(क) सिकताभिः सेतु निर्माणं कुर्वाणं दृष्ट्वा तपोदत्तः किं कथयति? (बालू से सेतु निर्माण करते हुए व्यक्ति
को देखकर तपोदत्त क्या कहता है?)
(ख) कः जनः भ्रान्तो न मन्यते? (कौन व्यक्ति भूला नहीं माना जाता?)

3. यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देश के अनुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘महामत्स्यः ‘ इति पदात् विशेषणपदं पृथक् कृत्वा लिखत। (पद से विशेषण पद पृथक करके लिखिये।)
(ख) ‘रजाभिः’ इति पदस्य पर्यायं गद्यांशात चित्वा लिखत। (‘रजोभिः’ पद का समानार्थी पद गद्यांश से चुनकर लिखिये।)
उत्तराणि :
1.(क) तपश्चर्यया (तपस्या से)
(ख) सिकताभिः (बालू से)

2. (क) हन्ता! नास्त्यभावो जगति मूर्खाणाम्। तीव्र प्रवाहायां नद्यां मूढोऽयं सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते।
(खेद है! संसार में मूल् की कमी नहीं है। तेज प्रवाह वाली नदी में बालू से पुल बनाने का प्रयत्न करता
(ख) दिवसे मार्ग-भ्रान्तः सन्ध्यां यावत् यदि गृहम् उपैति तदपि वरम् नासौ भ्रान्तौ मन्यते।
(दिन का भूला शाम को घर पहुँच जाये तो भी अच्छा। वह भूला हुआ नहीं माना जाता।)

3. (क) महान् (महान)। (ख) सिकताभिः (बालू से)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

3. पुरुषः – भोस्तपस्विम्! कथं माम् अवरोधं करोषि। प्रयत्नेन किं न सिद्ध भवति? कावश्यकता शिलानाम्? सिकताभिरेव सेतुं करिष्यामि स्वसंकल्पदृढतया।
तपोदत्तः – आश्चर्यम् किम् सिकताभिरेव सेतुं करिष्यसि? सिकता जलप्रवाहे स्थास्यन्ति किम्? भवता चिन्तितं न वा?
पुरुषः – (सोत्प्रासम्) चिन्तितं चिन्तितम्। सम्यक् चिन्तितम्। नाहं सोपानसहायतया अधि रोढुं विश्वसिमि। समुत्प्लुत्यैव गन्तुं क्षमोऽस्मि।
तपोदत्तः – (सव्यङ्ग्यम्)
साधु साधु! आञ्जनेयमप्यतिक्रामसि!
पुरुषः – (सविमर्शम्)
कोऽत्र सन्देहः? किञ्च,
विना लिप्यक्षरज्ञानं तपोभिरेव केवलम्।
यदि विद्या वशे स्युस्ते, सेतुरेष तथा ममा।3।।

शब्दार्थाः – भोस्तपस्विन्! = हे तापस! (अरे तपस्वी!), कथम् = केन कारणेन (क्यों), माम् = मा (मुझको), अवरोधं करोसि = उपरुणात्सि (रोक रहे हो), प्रयत्नेन = प्रयासेन (प्रयास से), किं न = (क्या नहीं), सिद्धं भवति = सिट । यति (सिद्ध होता है), कावश्यकता = महत्त्वम् (जरूरत है), शिलानाम् = प्रस्तराणाम् (शिलाओं की), सिकताभिरेव = बालुकाभिरेव (बाल से ही), सेतम = धरणम् (पुल), करिष्यामि = निर्मास्ये (निर्माण करूँगा), सङ्कल्पदढतया = दृढसङ्कल्पेन (दृढ़ संकल्प से), आश्चर्यम् = विस्मयः (अचम्भे की बात है),

किंम् सिकताभिरेव = बालुकाभिरेव (बालू से ही), सेतुं = धरणम् (पुल), करिष्यसि = निर्मास्यसे (बनाओगे), सिकताः = बालुका: (बालू), जलप्रवाहे = सलिलधारायाम् (पानी के बहाव में), स्थास्यन्ति = स्थिताः भविष्यन्ति (ठहरेगी), किम् = अपि (क्या), भवता = त्वया (तेरे/आपके द्वारा), चिन्तितं न वा = विचारितं न वा (सोचा गया है कि नहीं), सोत्प्रासम् = उपहासपूर्वकम् (उपहासपूर्वक), चिन्तितं चिन्तितम् = अनेकशः विचारितं (बार-बार विचार किया है), सम्यक चिन्तितम् = सम्यगरूपेण विचारितम् (भली-भाँति सोचा है), नाहम् = नहीं मैं,

सोपानसहायतया = पद्धति सरणिभि सहायतया (सीढ़ियों की सहायता से), अधि रोदुम् = उपरि गन्तुम् (ऊपर चढ़ने के लिए), विश्वसिमि = विश्वासं करोमि (विश्वास करता), समुत्प्लुत्यैव = सम्यग् उपरि प्लुत्वा एव (भली-भाँति छलाँग मारकर ही), गन्तुम् = यातुम् (जाने में), क्षमोऽस्मि = समर्थोऽस्मि (समर्थ हूँ), सव्यङ्ग्यम् = व्यङ्ग्येन सहितम् (व्यङ्ग्य के साथ), साधु साधु = उत्तमः (अच्छा-अच्छा/बहुत अच्छा), आञ्जनेयम् = हनुमन्तम् (हनुमान जी को), अतिक्रामसि = उल्लङ्घयसि (लाँघ गये/आगे निकल गये), सविमर्शम् = विचारसहितम् (सोच-विचार कर),

कोऽत्र सन्देहः = का अत्र शङ्का वर्तते (इसमें क्या सन्देह है), किञ्च = (और क्या), विना = अन्तरेण (बिना), लिप्यक्षरज्ञानम् = लिपिज्ञानं वर्णज्ञानं च विना (लिपि के और अक्षरों के ज्ञान के बिना), केवलम् = मात्र (केवल), तपोभिः = तपश्चर्याभिः (तपस्या से) यदि विद्या वशे स्युः = यदि विद्या अधिगृह्यते (यदि विद्या पर अधिकार हो जाये), मम एषः सेतुः तथा = इदं मे धरणम् एवमेव (यह मेरा पुल भी वैसा ही है)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेवरचित ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में पुरुषवेष वाला इन्द्र नदी में बालू का पुल बनाने का निष्फल प्रयत्न कर तपोदत्त को परिश्रम, लिपि, अक्षरज्ञान तथा अभ्यास की ओर अनुप्रेरित करता है।

अनुवाद – पुरुष-अरे तपस्वी! (तू) मुझे रोकता है? प्रयत्न से क्या नहीं सिद्ध होता है? शिलाओं की क्या जरूरत है? दृढ़ संकल्प के साथ बालू से ही पुल बाँधूंगा।

तपोदत्त – अचम्भा है! बालू से ही पुल बनाओगे (क्या)? बालू जल के प्रवाह में ठहर जायेगी क्या? आपने (यह कभी) सोचा है या नहीं?

पुरुष – (उपहास के साथ) सोचा है, सोचा है। अच्छी तरह सोचा है। मैं सीढ़ियों के मार्ग से अट्टालिका पर चढ़ने में विश्वास नहीं रखता। उछलकर (छलाँग मारकर) ही जाने में समर्थ हूँ।

तपोदत्त-(व्यंग्यसहित) बहुत अच्छा, बहुत अच्छा! तुम तो हनुमान् जी से भी बढ़कर निकले। पुरुष-(सोच-विचार कर) – इसमें क्या सन्देह है? और क्या बिना लिपि और अक्षर-ज्ञान के केवल तपस्या से यदि विद्या तेरे वश में हो जाये तो मेरा यह पुल भी वैसा ही है।

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्या:’ ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं सोमदेवरचितस्य कथासरित्सागरस्य सप्तमलम्बकात् संकलितो अस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ पाठ से उद्धृत है । यह पाठ ‘सौमदेवरचित’ कथासारित्सागर’ के सातवें लम्बक से लिया गया है।)

प्रसंग: – नाटयांशेऽस्मिन परुषवेषः इन्द्रः नद्यां सिकतासेतनिर्माणस्य निष्फलप्रयत्न कत्वा तपोदत्तं परिश्रमं. लिपिज्ञानम, अक्षरज्ञानं तेषाम् अभ्यासं च प्रति अनुप्रेरयति। (इस नाट्यांश में पुरुष वेष में इन्द्र नदी में बालू से सेतु निर्माण का निष्फल प्रयास करके तपोदत्त को परिश्रम, लिपिज्ञान, अक्षर ज्ञान और उनके अभ्यास के प्रति प्रेरित करता है।

व्याख्या – पुरुष:-हे तापस! कस्मात् कारणात् माम् अवरोधयसि? प्रयासेन किं न सिध्यति? प्रस्तराणां किं महत्त्वम्? दृढसङ्कल्पेन बालुकाभिरेव धरणं निर्मास्ये। (पुरुष-हे तपस्वी, किसलिए मुझे मना कर रहे हो? प्रयास से किया सिद्ध नहीं होता। पत्थरों का क्या महत्व। दृढ़ संकल्प से बालू से भी पुल बनाया जा सकता है।)

तपोदत्तः – कुतूहलम्, बालुकाभिरेव धरणं निर्मास्यसे? अपि बालुकाः सलिलधारायां स्थिराः भविष्यन्ति? अपि त्वया विचारितं न वा? (तपोदत्त-आश्चर्य, बालू से पुल बनाओगे? क्या बालू पानी के प्रवाह में ठहर जायेगी? क्या तुमने यह सोचा भी है या नहीं।)

पुरुष – (उपहासपर्वकम) अनेकशः विचारितम। सम्यगरूपेण विचारितम। अहं पद्धतिसरणिभिः अटटालिकायाः उपरि गन्तुं विश्वासं न करोमि। सम्यग उपरि प्लुत्वा एव यातुं समर्थोऽस्मि। ((उपहासपूर्वक) अनेक बार विचार किया है। अच्छी तरह विचार किया हैं। मैं सीढ़ियों से छत पर चढ़ने में विश्वास नहीं करता। अच्छी तरह ऊपर उछलकर ही जाने में समर्थ करता हा

तपोदत्तः – (व्यङ्ग्येन सहितम्) उत्तमः, त्वं तु हनुमन्तमपि उल्लङ्घयसि। (व्यङ्ग्य के साथ) (बहुत अच्छा तुम तो हनुमान जी को भी लाँघ गये।)

पुरुषः – (विचारसहितम्) का अत्र शङ्का वर्तते? किञ्च लिपिज्ञानं वर्णज्ञानं च अन्तरेण मात्र तपश्चर्याभिः यदि विद्या अधिंगृह्यते तदा इदं मे धरणम् एवमेव। (सोचकर) (इसमें क्या सन्देह? जब लिपिज्ञान और अक्षर ज्ञान के बिना मात्र तप से ही यदि विद्या ग्रहण की जा सकती है तो मेरा यह पुल भी इसी प्रकार से है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

अवबोधन कार्यम् –

एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) परुषः केन मार्गेण न गन्तम इच्छति? (परुष किस मार्ग से नहीं जाना चाहता?)
(ख) तपोदत्तः पुरुषं सव्यङ्ग्यं किं कथयति? (पुरुष से तपोदत्त व्यंग्यपूर्वक क्या कहता है?)

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) तपोदत्ते अवरुद्धे पुरुषः तं किम् उत्तरति? (तपोदत्त के रोकने पर पुरुष उसे क्या उत्तर देता है?)
(ख) पुरुषः सोत्प्रासम् तपोदत्तं किं कथयति? (पुरुष उपहासपूर्वक तपोदत्त से क्या कहता है?)

3. यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘भवता चिन्तितं न वा’ इति वाक्यात् क्रियापदं पृथक् कृत्वा लिखत।
(भवता चिन्तितं न वा’ इस वाक्य से क्रियापद अलग कर लिखिए।)
‘बालुकाभिः’ इति पदस्य- पर्यायवाचिपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘बालुकाभिः’ पद का पर्यायवाचि पद गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
1. (क) सोपानमार्गेण (सीढ़ियों से)।
(ख) आञ्जनेयमपि अतिक्रामसि (हनुमान से भी बढ़कर हो)।

2. (क) भोः तपस्विन् ! कथं माम् अवरोधं करोषि? प्रयत्नेन किं न सिद्धं भवति ?
(ख) चिन्तितम्! नाहं सोपान-सहायतया अधिरोढुं विश्वसिमि। समुत्प्लत्येव गन्तुं क्षमोऽस्म्।ि (सोचा! मैं सीढ़ियों की सहायता से नहीं चढ़ना चाहता। छलाँग मार कर जाने की क्षमता रखता हूँ।)

3. (क) चिन्तितम् (सोचा गया)।
(ख) सिकताभिः (बालू से)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

4. तपोदत्तः – (सवैलक्ष्यम् आत्मगतम्)
अये! मामेवोद्दिश्य भद्रपुरुषोऽयम् अधिक्षिपति! नूनं सत्यमत्र पश्यामि। अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषामि! तदियं भगवत्याः शारदाया अवमानना। गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीयः। पुरुषार्थैरेव लक्ष्यं प्राप्यते। (प्रकाशम्)
भो नरोत्तम! नाऽहं जाने यत् कोऽस्ति भवान्। परन्तु भवद्भिः उन्मीलितं मे नयनयुगलम्। तपोमात्रेण विद्यामवाप्तुं प्रयतमानः अहमपि सिकताभिरेव सेतुनिर्माणप्रयासं करोमि। तदिदानी विद्याध्ययनाय गुरुकुलमेव गच्छामि।
(सप्रणामं गच्छति)

शब्दार्थाः – संवैलक्ष्यम् = सलज्जम् (लज्जापूर्वक), आत्मगतम् = स्वगतम् (अपने आप से), अये! = अरे! (ओह!), मामेवोद्दिश्य = मामेव लक्ष्यीकृत्य (मुझे ही लक्ष्य बनाकर), भद्रपुरुसोऽयम्ः = एषः सज्जनः (यह भलामानुष), अधिक्षिपति = आक्षिपति (आक्षेप कर रहा है), नूनम् = निश्चयमेव (निश्चित रूप से), सत्यमत्र = अस्मिन् वचने ऋतं (इस बात में सत्य को), पश्यामि = ईक्षे (देख रहा हूँ), अक्षरज्ञानं विनैव = वर्णज्ञानमन्तरेण (वर्ण ज्ञान के बिना),

वैदुष्यमवाप्तुम् = पाण्डित्यम् प्राप्तुम् (विद्वत्ता प्राप्ति को), अभिलषामि = इच्छामि (चाहता हूँ), तदियम् = तदेषा (तो यह), भगवत्याः = देव्याः (देवी), शारदायाः = सरस्वत्याः (सरस्वती का), अवमानना = अपमानम् (अपमान है), गुरुगृहम् = गुरोरावासं/ आश्रमं (गुरु के घर पर), गत्वैव = प्राप्यैव (जाकर के ही), विद्याभ्यासः = विद्याध्ययनम् (विद्या का अभ्यास), मया = अहम् (मेरे द्वारा/मैं), करणीयः = कुर्याम् (करना चाहिए),

पुरुषार्थैरेव = परिश्रमेण एव/उद्यमेनैव (परिश्रम से ही) लक्ष्यम् = उद्देश्यम् (उद्देश्य), प्राप्यते = लभ्यते (पाया जाता है), प्रकाशम् = सार्वजनिकरूपेण (सबके सामने), भो नरोत्तम! = हे मानवश्रेष्ठ! (हे मनुष्यों में श्रेष्ठ!), अहं न जाने = नाऽहं जानामि (मैं नहीं जानता), यत् कोऽस्ति भवान् = यत् त्वं कोऽसि (कि आप/तुम कौन हो), परन्तु = परञ्च (लेकिन), भवद्भिः = युष्माभिः (आप द्वारा/आपने), उन्मीलितम् = उद्घाटितम् (खोल दिया),

मे = मम (मेरे), नयनयुगलम् = नेत्रयुगलम् (आँखों को), तपोमात्रेण = केवलं तपसा (केवल तपस्या से), विद्यामवाप्तुम् = ज्ञानं लब्धुम् (ज्ञान प्राप्त करने के लिए), प्रयतमानः = प्रयासं कुर्वन् (प्रयास करता हुआ), अहमपि = मैं भी.सिकताभिरेव = बालकाभिरेव (बाल से ही), सेतनिर्माणप्रयासम = धरणसष्टिप्रयत्नम (पल बनाने का प्रयास). करोमि = करता हूँ, तदिदानीम् = तर्हि अधुना (तो अब), विद्याध्ययनाय = विद्यार्जनाय (विद्या प्राप्ति के लिए), गुरुकुलमेव = गुरोः आश्रमम् एव (गुरु के आश्रम को ही), गच्छामि = प्रस्थानं करोमि (प्रस्थान करता हूँ), सप्रणामम् = अभिवादनेन सहितम् (प्रणाम करके), गच्छति = याति (जाता है/प्रस्थान करता है)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेवकृत … ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में तपोदत्त के लिए अपने निरर्थक प्रयास का ज्ञान हो जाता है। अतः वह पुरुष वेषधारी इन्द्र के व्यंग्य को समझकर अध्ययन के प्रति अनुप्रेरित होकर गुरुकुल को प्रस्थान कर जाता है।

अनुवाद – (लज्जापूर्वक अपने आपसे)
अरे! यह भलामानुष तो मुझे ही लक्ष्य करके आक्षेप कर रहा है। निश्चित रूप से यहाँ मैं सत्य देख रहा हूँ (अर्थात् इसकी बात सच है) अक्षर-ज्ञान के बिना ही (मैं) विद्वत्ता प्राप्त करना चाहता हूँ, तो यह भगवती (देवी) सरस्वती का अपमान ही है। मुझे गुरु के घर जाकर विद्या का अभ्यास करना चाहिए। परिश्रम से ही लक्ष्य प्राप्त किया जाता है।
(सबके समक्ष)
हे पुरुषों में श्रेष्ठ! मैं नहीं जानता कि आप कौन हैं परन्तु आपने मेरी आँखें खोल दी। तप मात्र से ही विद्या प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करता हुआ मैं भी बालू से ही पुल बनाने का प्रयास कर रहा हूँ। तो अब विद्याध्ययन (पढ़ाई) हेतु गुरुकुल को ही जाता हूँ।
(प्रणाम सहित जाता है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठाद् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं सोमदेवकृतस्य कथासरित्सागरस्य सप्तमलम्बकात् संकलितोऽस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेव-कृत ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लंबक से संकलित है।)

प्रसंगः – नाट्यांशेऽस्मिन् तपोदत्ताय स्वकीयस्य निरर्थकप्रयासस्य ज्ञानं भवति। अतोऽसौ पुरुषरूपिणः इन्द्रस्य व्यङ्ग्यम् अवगम्य अध्ययन प्रति अनुप्रेरित: भूत्वा गुरुकुलं च गच्छति। (इस नाट्यांश में तपोदत्त के अपने निरर्थक प्रयास का ज्ञान होता है। अतः वह पुरुषरूपी इन्द्र के व्यङ्ग्य को समझकर अध्ययन के प्रति अनुप्रेरित होकर गुरुकुल को जाता है।

व्याख्याः – तपोदत्तः (सलज्जम् स्वगतम्) अरे मामेव लक्ष्यीकृत्य एषः सज्जनः आक्षिपति। निश्चितमेव अस्मिन् वचने यथार्थम् ईक्षे। वर्णज्ञानमन्तरेण पाण्डित्यं लब्धुम् इच्छामि। तदिदं देव्याः सरस्वत्याः अपमानम् अस्ति। गुरोः आवासम् एव प्राप्य अहं विद्याध्ययनं कुर्याम्। उद्यमेन एव उद्देश्यं लभ्यते। (सार्वजनिकरूपेण) हे मानवश्रेष्ठ! अहं न जानामि यत्त्वम् कोऽसि? परञ्च युष्माभिः मम नेत्रयुगलम् उद्घाटितम्। केवलं तपसा ज्ञानं लब्धुं प्रयासं कुर्वन् अहमपि बालुकाभिरेव धरणसृष्टिप्रयत्न करोमि। तर्हि अधुना विद्यार्जनाय अहं गुरोः आश्रमं प्रति प्रस्थानं करोमि।

इति अभिवादनेन सह याति। ((तपोदत्त लज्जा के साथ स्वयं से) (अरे मुझे ही निशाना बनाकर यह सज्जन आक्षेप कर रहा है। निश्चित ही इसके कथन में सच दिख रहा है। वर्णज्ञान के बिना विद्वत्ता प्राप्त करना चाहता हूँ। तो यह तो देवी सरस्वती का अपमान है। गुरु के आश्रम में ही पहुँचकर मुझे विद्याध्ययन करना चाहिए। परिश्रम से ही लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। (खुले में) हे मानव श्रेष्ठ ! मैं जानता हूँ कि तुम कोई भी हो? परन्तु तुमने मेरी आँखें खोल दी। केवल तप से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हुए मैं भी बालू से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा हूँ। तो आज ही विद्या प्राप्त करने के लिए मैं आश्रम की ओर प्रस्थान करता हूँ। ऐसा कहकर अभिवादन के साथ जाता है।)

अवबोधन कार्यम् –

1. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) पुरुषस्य आक्षेपे तपोदत्तः किं पश्यति? (पुरुष के आक्षेप में तपोदत्त क्या देखता है?)
(ख) कैः लक्ष्यं प्राप्यते? (लक्ष्य किनसे प्राप्त किया जाता है?)

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) भगवत्याः शारदायाः अवमानना का? (भगवती शारदा का अपमान क्या है? )
(ख) पुरुषस्य आक्षेपं श्रुत्वा तपोदत्तः किं निर्णयति? (पुरुष के आक्षेप को सुनकर तपोदत्त क्या निर्णय लेता है?)

3. यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘निमीलितम्’ इति पदस्य पर्यायं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(ख) ‘करणीयः’ इति पदे प्रत्यय लिखत। (करणीयः पद में प्रत्यय लिखिए।) .
उत्तराणि :
1.(क) सत्यम्।
(ख) पुरुषार्थेः (परिश्रम से)।
(क) अक्षरज्ञानं विना वैदुष्यं प्राप्तुं प्रयास:तु भगवत्याः शारदयाः अवमानना। (अक्षरज्ञान के बिना विद्वत्ता प्राप्त करने का प्रयास भगवती सरस्वती की. अवमानना है।)

(ख). ‘नूनं सत्यम् अत्र पश्यामि । अक्षरज्ञानं विना एव वैदुष्यं प्राप्तुम् इच्छामि तदियं भगवत्याः सरस्वती अवमाननाः। गुरु गहं गत्वा विद्याभ्यासः मया करणीयः। पुरुषाथैरेव लक्ष्यं प्राप्यते। (निश्चित सत्य देख रहा हूँ। अक्षरज्ञान के बिना ही विद्वत्ता प्राप्त करना चाहता हूँ तो यह भगवती सरस्वती का अपमान है। गुरु-घर जाकर विद्या का अभ्यास मुझे करना चाहिए। पुरुषार्थ से ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है।)

3. (क) उन्मीलितम् (उधारे हुए)
(ख) अनीयर् प्रत्यय।

पाठ-परिचय – प्रस्तुत नाट्यांश सोमदेवरचित ‘कथासरित्सागर’ कथाग्रन्थ के सप्तम लम्बक (अध्याय) पर आधारित है। (‘कथासरित्सागर’) गुणाढ्य कृत प्राकृत कथाग्रन्थ बृहत्कथा का विशालतम संस्कृत संस्करण है। इसमें 18 लम्बक (अध्याय) तथा 24000 श्लोक हैं। इसकी रचना कश्मीरी कवि सोमदेव ने राजा अनन्त देव की पत्नी सूर्यमती के । मनोरञ्जन के लिए की थी। कथा रोचक होते हुए शिक्षाप्रद है।

पाठ का सारांश – तपोदत्त नाम का बालक तपोबल से विद्या पाने के लिए प्रयत्नशील था। एक दिन उसके समुचित मार्गदर्शन हेतु स्वयं देवराज इन्द्र वेष बदलकर आये। इन्द्र उसे शिक्षा देने के प्रयोजन से पास बहती गंगा में सेतु-निर्माणार्थ अंजलि भर-भरकर बालू डालने लगे। उन्हें ऐसा करते हुए देखकर तपोदत्त उनका उपहास करने लगा और बोला-“अरे! गंगा के प्रवाहित जल में व्यर्थ ही बालू से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहे हो।”

इन्द्र बोला-“जब पढ़ने, सुनने और अक्षरज्ञान एवं अभ्यास के बिना तुम विद्या प्राप्त कर सकते हो तो बालू से गंगा पर पुल बनाना भी सम्भव है।” तपोदत्त इन्द्र के अभिप्राय को और उसमें छिपी सीख को तुरन्त समझ गया। उसने तपस्या का मार्ग छोड़कर गुरुजनों के मार्गदर्शन में विद्याध्ययन किया, उचित अभ्यास किया, इसको सम्भव करने के लिए तथा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वह गुरुकुल चला गया। कार्य परिश्रम से ही सिद्ध होते हैं, मनोरथ से नहीं।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

[मूलपाठः,शब्दार्थाः,सप्रसंग हिन्दी-अनुवादः,सप्रसंग संस्कृत-व्याख्याःअवबोधनकार्यमच]

1. (ततः प्रविशति तपस्यारतः तपोदत्तः)
तपोदत्तः – अहमस्मि तपोदत्तः। बाल्ये पितृचरणैः क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाऽधीतवानस्मि। तस्मात् सर्वैः कुटुम्बिभिः मित्रैः ज्ञातिजनैश्च गर्हितोऽभवम्। (ऊर्ध्वं नि:श्वस्य) हा विधे! किम् इदं मया कृतम्? कीदृशी दुर्बुद्धि आसीत् तदा। एतदपि न चिन्तितं यत्

परिधानैरलङ्कारभूषितोऽपि न शोभते।
नरो निर्मणिभोगीव सभायां यदि वा गृहे।।

शब्दार्था: – ततः = तदा (तब), प्रविशति = (तपोदत्त) प्रवेशं करोति (प्रवेश करता है), तपस्यारतः तपोदत्तः = तपसि लीनः तपोदत्तः (तप में लीन हुआ तपोदत्त), अहमस्मि तपोदत्तः = अहं तपोदत्तः अस्मि (मैं तपोदत्त हूँ), बाल्ये – शैशवे/बाल्यकाले (बचपन में), पितृचरणैः = तातपादैः (पूज्य पिताजी द्वारा), क्लेश्यमानोऽपि = सन्ताप्यमानोऽपि (सन्ताप/पीड़ा दिया जाता हुआ भी), विद्यां नाऽधीतवानस्मि = विद्याध्ययनं न कृतवान् (मैंने विद्याध्ययन नहीं किया), तस्मात् = तत्कारणात् (इसलिए/ इस कारण से), सर्वैः = अखिलैः (सभी),

कुटुम्बिभिः = परिवारजनैः (परिवारीजनों/कुटुम्बियों द्वारा), मित्रैः = सुहृद्भिः (मित्रों द्वारा),ज्ञातिजनैश्च = बन्धुबान्धवैश्च (और भाई-बन्धुओं/जाति-बिरादरी द्वारा),गर्हितोऽभवम् = निन्दितोऽजाये (निन्दित हो गया हूँ), ऊर्ध्वम् = आकाशे (ऊपर की ओर), निःश्वस्य = दीर्घ नि:श्वस्य (लम्बी श्वास छोड़कर), हा विधे! = हा दैव! (अरे भाग्य! खेद है), किम् इदं मया कृतम् = किमेतद् अहं कृतवान् (मैंने यह क्या कर दिया), कीदृशी = कथंविधा (कैसी), दुर्बुद्धिः = दुर्मतिः (बुरी बुद्धि), आसीत् = अवर्तत (थी), तदा = तस्मिन् काले (तब), एतदपि = इदमपि (यह भी),

न चिन्तितम् = न विचारितम् (नहीं सोचा), यत् = (कि), परिधानैः = वस्त्रैः (वस्त्रों से), अलङ्कारैः = आभूषणैः (आभूषणों से), भूषितोऽपि = सुसज्जितोऽपि (सुसज्जित हुआ भी), न शोभते = शोभमानः न भवति (सुशोभित नहीं होता है)। नरः = (अशिक्षितः) मानवः (अनपढ़ मनुष्य), निर्मणि = मणिहीनः (मणिरहित), भोगीव = सर्प .. इव (साँप की तरह/समान), सभायाम् = जनसम्म (सभा में), यदि वा = अथवा (या), गृहे = सदने (घर में),

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेवरचित । – ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में बाल्यकाल में अशिक्षित तपोदत्त की वेदनामयी मन:स्थिति का वर्णन किया गया है। – अनुवाद-(तब तप में लीन हुआ तपोदत्त प्रवेश करता है।) मैं तपोदत्त हूँ। बचपन में पिताजी द्वारा पीड़ा दिये जाने पर भी मैंने विद्याध्ययन नहीं किया। इस कारण से परिवारीजनों द्वारा, मित्रों द्वारा और भाई-बन्धुओं द्वारा निन्दित हो गया। (ऊपर की ओर लम्बी श्वास छोड़कर) अरे भाग्य! खेद है, मैंने यह क्या कर दिया, तब कैसी बुरी बुद्धि हो गयी थी। यह भी नहीं सोचा कि (अनपढ़) मनुष्य मणिहीन सर्प की भाँति सभा में या घर में वस्त्रों (और) आभूषणों से सुसज्जित होता हुआ भी सुशोभित नहीं होता। संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतनाट्यांश: अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं सोमदेवरचितस्य ‘कथासरित्सागरस्य’ सप्तमलम्बकात् संकलितो अस्ति। (प्रस्तुत नाटक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतु’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेव-रचित ‘कथा सरित्सागर’ के सप्तम लंबक से संकलित है।)

प्रसङ्गः – नाट्यांशेऽस्मिन् बाल्येऽशिक्षितस्य तपोदत्तस्य वेदनामय्याः मन:स्थिते: वर्णनं कृतम् अस्ति। (इस नाट्यांश में बचपन में अशिक्षित तपोदत्त की वेदनामयी मन:स्थिति का वर्णन किया गया है।)

व्याख्याः – (तदा तपसि लीनः तपोदत्तः प्रवेशं करोति।) अहं तपोदत्तः अस्मि। शैशवे तातपादैः सन्ताप्यमानोऽपि विद्याध्ययनं न कृतवान्। तत्कारणात् अखिलैः परिवारजनैः, सुहृद्भिः बन्धुबान्धवैश्च निन्दितोऽजाये। (आकाशे दीर्घ श्वासं निश्वस्य) हा दैव! किमेतद् अहं कृतवान्। तस्मिन् काले कथंविधा दुर्मतिः अभवत्। इदमपि न विचारितं यत् (अशिक्षितः) मानवः मणिहीनसर्प इव जनसम्म गृहे वा वस्त्रैः आभूषणैः (च) सुसज्जितोऽपि शोभमानः न भवति।

(तब तप में तल्लीन तपोदत्त प्रवेश करता है। मैं तपोदत्त हूँ। बचपन में पिताजी द्वारा कष्ट दिया जाता हुआ नहीं पढ़ा। इसके कारण सभी परिवार के लोगों, मित्रों और भाई-बन्धुओं की निन्दा का पात्र बना । (आकाश में लम्बी साँस लेकर) हे भगवान् मैंने यह क्या किया? उस समय मेरी कैसी दुर्बुद्धि हो गई। यह भी नहीं विचार किया कि अनपढ़ आदमी मणिहीन सर्प की तरह जनसमूह में अथवा घर में वस्त्राभूषणो से सुसज्जित होते हुए भी सुशोभित नहीं होता।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

अवबोधन कार्यम् –

1. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) अशिक्षितो मनुष्यः सभायां कथं न शोभते? (अशिक्षित मनुष्य सभा में कैसे शोभा नहीं देता?)
(ख) तपोदत्तः कैः गर्हितोऽभवतो? (तपोदत्त किसके द्वारा निन्दित हुआ?)

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) तपोदत्तः केन कारणेन गर्हितोऽभवत् ? (तपोदत्त किसके कारण निन्दित हुआ?)
(ख) सभायां कः न शोभते? (सभा में कौन शोभा नहीं देता?)

3. यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देश के अनुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘सर्व’ इति पदस्य स्थाने गद्यांशे किं समानार्थी पदं प्रयुक्तम् ? (‘सर्व’ पद के स्थान पर गद्यांश में किस समानार्थी पद का प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘सुबुद्धि’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशात् अन्विष्य लिखत। (‘सुबुद्धि’ पद का विलोमार्थक पद गद्यांश
से ढूँढ़कर लिखिए।)
उत्तराणि :
1.(क) निर्मणिभोगीव (विना मणि के साँप),
(ख) मित्रैः (मित्रों द्वारा).

2. (क) बाल्यकाले विद्यां न अधीतवान् अतः सर्वेः गर्हितोऽभवत्। (बचपन में विद्या नहीं पढ़ी, अत: सबके द्वारा निन्दित हुआ।) परिधानैः अलङ्कारैः च भूषितोऽपि विद्याविहीनः सभायां न शोभते। (वस्त्राभूषणों से भूषित हुआ भी विद्याहीन व्यक्ति सभा में शोभित नहीं होता।)

3. (क) भोगी (सर्प),
(ख) दुर्बुद्धि (बुरी बुद्धिवाला)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

2. (किञ्चिद् विमृश्य)
भवतु, किम् एतेन? दिवसे मार्गभ्रान्तः सन्ध्यां यावद् यदि गृहमुपैति तदपि वरम्। नाऽसौ भ्रान्तो मन्यते। अतोऽहम् इदानीं तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्मि।
(जलोच्छलनध्वनिः श्रूयते)
अये कुतोऽयं कल्लोलोच्छलनध्वनि: ? महामत्स्यो मकरो वा भवेत्। पश्यामि तावत्।
(पुरुषमेकं सिकताभिः सेतुनिर्माण-प्रयासं कुर्वाणं दृष्ट्वा सहासम्)
हन्त! नास्त्यभावो जगति मूर्खाणाम्! तीव्रप्रवाहायां नद्यां मूढोऽयं सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयत!
(साट्टहासं पार्श्वमुपेत्य)
भो महाशय! किमिदं विधीयते! अलमलं तव श्रमेण। पश्य,
रामो बबन्ध यं सेतुं शिलाभिर्मकरालये।
विदधद् बालुकाभिस्तं यासि त्वमतिरामताम् ।।2।।
चिन्तय तावत्। सिकताभिः क्वचित्सेतुः कर्तुं युज्यते?

शब्दार्थाः – किञ्चिद् विमृश्य = किमपि विचार्य (कुछ विचार कर), भवतु = अस्तु (खैर/अच्छा), किम् एतेन = किमनेन (इससे क्या प्रयोजन), दिवसे = दिने (दिन में), मार्गभ्रान्तः = पथभ्रष्टः (राह से भटका हुआ), संध्यां यावद् = सायंकालपर्यन्तम् (सायंकाल तक/साँझ तक), यदि गृहमुपैति = यदि सदनं प्राप्नोति (यदि घर पहुँच जाता है), तदपि = (तब भी), वरम् = श्रेष्ठः (अच्छा है), नाऽसौ = न सः (नहीं वह), भ्रान्तोः = भ्रमितः (भटका हुआ), मन्यते = ज्ञायते (माना जाता है), अतोऽहम् = अयम् अहम् (यह मैं), इदानीम् = अधुना (अब), तपश्चर्यया = तपसा (तपस्या से),

विद्यामवाप्तुम् = विद्यार्जनाय (विद्या-प्राप्ति के लिए), प्रवृत्तोऽस्मि = निरतोऽस्मि (प्रवृत्त हूँ/लंग गया हूँ), जलोच्छलनध्वनिः = जलोट वंगमनशब्दः (पानी उछलने की आवाज), श्रूयते = आकर्ण्यते (सुनाई देती है), अये = अरे (ओह), कुतोऽयम् = कस्मात् स्थानात् आयाति (कहाँ से आ रही है यह) एषः, कल्लोल = तरङ्गानाम् (लहरों के), उच्छलन = ऊर्ध्वगतेः (उछलने की), ध्वनिः = शब्दः (आवाज), महामत्स्योः = विशालमीनः (बड़ी मछली),

मकरो वा = नक्रः वा (अथवा मगरमच्छ), भवेत् = स्यात् (होना चाहिए), पश्यामि = ईक्षे (देखता हूँ), तावत् = तर्हि (तो), पुरुषमेकम् = एक मानवं (एक मनुष्य को), सिकताभिः = बालुकाभिः (बालू से), सेतु = धरणम् (पुल) निर्माण = सृष्टे: (बनाने का), प्रयासम् = प्रयत्नम् (प्रयास), कुर्वाणम् = कुर्वन्तम् (करते हुए को), दृष्ट्वा = अवलोक्य (देखकर), सहासम् = हासपूर्वकम् (हँसते हुए), हन्त = हा (खेद है), नास्त्यभावो = न वर्तते राहित्यम (कभी नहीं है), जगति = संसारे (संसार में), मूर्खाणाम् = बालिशानाम् (अज्ञानियों/ मूल् की), तीव्र = गतिमानायां (तेज), प्रवाहायाम् = प्रवाहमानायाम् (बहती हुई),

नद्याम् = सरति (नदी में), मूढोऽयं = एषः विवेकहीनः (यह मूर्ख), सिकताभिः = बालुकाभिः (बालू से), सेतुम् = धरणम् (पुल), निर्मातुम् = स्रष्टुम् (बनाने का), प्रयतते = प्रयासं करोति (प्रयास करता है), साट्टहासम् = अट्टहासपूर्वकम् (अट्टहास करते हुए/जोर से हँसते हुए), पार्श्वम् = कक्षे (बगल में), उपेत्य = समीपं गत्वा (पास जाकर), भो महाशय! = हे महोदय! (हे महाशय जी!), किमि इदम् = किं एतत् (क्या यह), विधीपते = सम्पाद्यते (किया जा रहा है),

अलमलम् = पर्याप्तम् (बस, बस), तव = ते (तुम्हारे), श्रमेण = परिश्रमेण (मेहनत) अर्थात् बस, बस परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है, पश्य = अवलोकय (देखो), मकरालये = सागरे (समुद्र में), रामः = भगवान् रामः (श्रीराम ने), यं सेतुम् = यं धरणम् (जिस पुल को), शिलाभिः = प्रस्तरैः (शिलाओं से), बबन्ध = निर्मितवान् (बनाया था), त्वम् = भवान् (आप), बालुकाभिः = सिकताभिः (बालू से), विदधत् = निर्माणं कुर्वन् (बनाते हुए), त्वं तु = भवान् तु (आप तो), अतिरामताम् = रामादप्यग्रे, रामादपि श्रेष्ठतरः (राम से भी आगे या बढ़कर), यासि = गच्छसि, (जा रहे हो), तावत् = तर्हि (तो), चिन्तय = विचारय (सोचो), सिकताभिः = बालुकाभिः (बालू से), क्वचित् = कुत्रचित् (कहीं), सेतुम् = धरणम् (पुल), कर्तुम् = निमार्तुम् (बनाना), युज्यते = उचितम् अस्ति (उचित है)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेवकृत ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में तप से विद्या पाने के लिए निश्चय किया हुआ तपोदत्त एक मनुष्य को रेत से नदी पर पुल बनाते हुए देखता है और उसे मूर्ख कहता है।

अनुवाद – (कुछ विचार करके)
खैर, इससे क्या प्रयोजन? दिन में राह भटका हुआ यदि सायंकाल तक घर पहुँच जाता है तो भी वह श्रेष्ठ है, उसे भटका (भूला) हुआ नहीं माना जाता है। यह मैं (तपोदत्त) अब तपस्या से विद्याध्ययन के लिए प्रवृत्त हूँ।
(पानी उछलने की आवाज सुनाई देती है)

अरे! यह लहरों के उछलने की आवाज कहाँ से आ रही है? कोई बड़ी मछली अथवा मगरमच्छ होना चाहिए। तो (तब तक) देखता हूँ।
(एक मनुष्य को बालू से पुल बनाने का प्रयास करते हुए देखकर हँसते हुए ।)
खेद है, संसार में मूों की कमी नहीं है। यह मूर्ख तेज प्रवाह वाली नदी में बालू से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा है। (जोर से हँसते हुए बगल में पास जाकर)
हे महाशय! यह क्या किया जा रहा है! बस, बस, परिश्रम मत करो। देखो, भगवान राम ने जिस पुल को समुद्र पर शिलाओं से बनाया था, (उसे) आप बालू से बनाते हुए राम से भी आगे जा रहे हैं, तो सोचिए बालू से कहीं पुल बनाना उचित है?

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्या:”सिकतासेतुः’ नामक पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं सोमदेवकृतस्य ‘कथासरित्सागरस्य’ सप्तमलम्बकात् संकलितो अस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठयपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ पाठ से . उद्धृत है। यह पाठ सोमदेवकृत ‘कथासरित्सागर’ के सातवें लम्बक से संकलित है।)

प्रसंग: – नाट्यांशेऽस्मिन् तपश्चर्यया विद्यार्जनाय कृतसङ्कल्पः तपोदत्तः मनुष्यमेकं बालुकाभिः नद्यां धरणनिर्माणं कुर्वन्तं पश्यति तं च मूर्ख वदति। (इस नाट्यांश में तपस्या से विद्यार्जन के लिए दृढ़संकल्पित तपोदत्त ने एक मनुष्य को बालू से नदी पर पुल बनाता हुआ देखता है और उसे मूर्ख कहता है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

व्याख्या – (किमपि विचार्य)
अस्तु, किमनेन? दिने पथभ्रष्ट: सायंकालपर्यन्तं यदि सदनं प्राप्नोति, तदा अपि श्रेष्ठः, सः भ्रमितः न ज्ञायते। अयम् अहम् अधुना तपसा विद्याध्ययनाय निरतः अस्मि।
(जलोर्ध्वगमनशब्दः आकर्ण्यते)
अरे! एषः तरङ्गाणां ऊर्ध्वगमनस्य शब्दः कस्मात् स्थानात् आयाति, विशालमीन: नक्रः वा स्यात्। तर्हि ईक्षे। (मानवमेकं बालुकाभिः धरणस्य सृष्टेः प्रयत्नं कुर्वन्तम् अवलोक्य हासपूर्वकम्)
हा, संसारे न बालिशानामभावः वर्तते। एषः विवेकहीन: प्रवाहमानायां सरति बालुकाभिः धरणं स्रष्टुं प्रयासं करोति।
(अट्टहासपूर्वकं कक्षे समीपं गत्वा) हे महोदय ! किमेतत्सम्पाद्यते? पर्याप्तं ते श्रमेण।’
अवलोकय, सागरे भगवान् रामः यं धरणं प्रस्तरैः निर्मितवान्, (तत्) भवान् सिकताभिः निर्माणं कुर्वन् रामादपि अग्रे गच्छति तर्हि विचारय! कुत्रचिद् बालुकाभिः धरणस्य निर्माणम् उचितम्?

(कुछ विचार कर) खैर, इससे क्या, दिन में भूला हुआ यदि सायंकाल घर आ जाये तो भी अच्छा है, उसे भटका हुआ नहीं मानते हैं। यह मैं अब तप से विद्याध्ययन के लिए संलग्न हूँ। (पानी उछलने की आवाज सुनाई पड़ती है।) अरे ! यह लहरों का उछलने का शब्द कहाँ से आ रहा है? कोई बड़ी मछली या मगरमच्छ होगा। तो देखता हूँ। (एक व्यक्ति को बालू से पुल बनाने का प्रयत्न करते हुए को देखकर हँसते हुए) अरे संसार में मूों की कमी नहीं। यह विवेकहीन बहती हुई नदी में बालू से पुल बनाने का प्रयास कर रहा है। (अट्टाहासपूर्वक बगल में जाकर) महोदय यह क्या कर रहे हो? बस परिश्रम खो, सागर में भगवान राम ने जिस पुल को बनाया था, वह पत्थरो से बनाया था तो आप तो बालू से पुल निर्माण करते हुए राम से भी आगे निकल गये, तो विचार करो, कहीं बालू से पुल का निर्माण उचित है?)

अवबोधन कार्यम्

1. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
क) तपोदत्तः केन विद्यां प्राप्तं प्रवृत्तोऽस्ति? (तपोदत्त किससे विद्या प्राप्त करने के लिए प्रवृत्त है?)
(ख) पुरुषः काभिः सेतुनिर्माण-प्रयासं करोति? (पुरुष किससे पुल के निर्माण का प्रयत्न करता है?)

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिये)
(क) सिकताभिः सेतु निर्माणं कुर्वाणं दृष्ट्वा तपोदत्तः किं कथयति? (बालू से सेतु निर्माण करते हुए व्यक्ति
को देखकर तपोदत्त क्या कहता है?)
(ख) कः जनः भ्रान्तो न मन्यते? (कौन व्यक्ति भूला नहीं माना जाता?)

3. यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देश के अनुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘महामत्स्यः ‘ इति पदात् विशेषणपदं पृथक् कृत्वा लिखत। (पद से विशेषण पद पृथक करके लिखिये।)
(ख) ‘रजाभिः’ इति पदस्य पर्यायं गद्यांशात चित्वा लिखत। (‘रजोभिः’ पद का समानार्थी पद गद्यांश से चुनकर लिखिये।)
उत्तराणि-
1.(क) तपश्चर्यया (तपस्या से)
(ख) सिकताभिः (बालू से)

2. (क) हन्ता! नास्त्यभावो जगति मूर्खाणाम्। तीव्र प्रवाहायां नद्यां मूढोऽयं सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते।
(खेद है! संसार में मूल् की कमी नहीं है। तेज प्रवाह वाली नदी में बालू से पुल बनाने का प्रयत्न करता
(ख) दिवसे मार्ग-भ्रान्तः सन्ध्यां यावत् यदि गृहम् उपैति तदपि वरम् नासौ भ्रान्तौ मन्यते।
(दिन का भूला शाम को घर पहुँच जाये तो भी अच्छा। वह भूला हुआ नहीं माना जाता।)

3. (क) महान् (महान)। (ख) सिकताभिः (बालू से)।

3. पुरुषः – भोस्तपस्विम्! कथं माम् अवरोधं करोषि। प्रयत्नेन किं न सिद्ध भवति? कावश्यकता शिलानाम्? सिकताभिरेव सेतुं करिष्यामि स्वसंकल्पदृढतया।
तपोदत्तः – आश्चर्यम् किम् सिकताभिरेव सेतुं करिष्यसि? सिकता जलप्रवाहे स्थास्यन्ति किम्? भवता चिन्तितं न वा?
पुरुषः – (सोत्प्रासम्) चिन्तितं चिन्तितम्। सम्यक् चिन्तितम्। नाहं सोपानसहायतया अधि रोढुं विश्वसिमि। समुत्प्लुत्यैव गन्तुं क्षमोऽस्मि।
तपोदत्तः – (सव्यङ्ग्यम्)
साधु साधु! आञ्जनेयमप्यतिक्रामसि!
पुरुषः – (सविमर्शम्)
कोऽत्र सन्देहः? किञ्च,
विना लिप्यक्षरज्ञानं तपोभिरेव केवलम्।
यदि विद्या वशे स्युस्ते, सेतुरेष तथा ममा।3।।

शब्दार्थाः – भोस्तपस्विन्! = हे तापस! (अरे तपस्वी!), कथम् = केन कारणेन (क्यों), माम् = मा (मुझको), अवरोधं करोसि = उपरुणात्सि (रोक रहे हो), प्रयत्नेन = प्रयासेन (प्रयास से), किं न = (क्या नहीं), सिद्धं भवति = सिट । यति (सिद्ध होता है), कावश्यकता = महत्त्वम् (जरूरत है), शिलानाम् = प्रस्तराणाम् (शिलाओं की), सिकताभिरेव = बालुकाभिरेव (बाल से ही), सेतम = धरणम् (पुल), करिष्यामि = निर्मास्ये (निर्माण करूँगा), सङ्कल्पदढतया = दृढसङ्कल्पेन (दृढ़ संकल्प से), आश्चर्यम् = विस्मयः (अचम्भे की बात है),

किंम् सिकताभिरेव = बालुकाभिरेव (बालू से ही), सेतुं = धरणम् (पुल), करिष्यसि = निर्मास्यसे (बनाओगे), सिकताः = बालुका: (बालू), जलप्रवाहे = सलिलधारायाम् (पानी के बहाव में), स्थास्यन्ति = स्थिताः भविष्यन्ति (ठहरेगी), किम् = अपि (क्या), भवता = त्वया (तेरे/आपके द्वारा), चिन्तितं न वा = विचारितं न वा (सोचा गया है कि नहीं), सोत्प्रासम् = उपहासपूर्वकम् (उपहासपूर्वक), चिन्तितं चिन्तितम् = अनेकशः विचारितं (बार-बार विचार किया है), सम्यक चिन्तितम् = सम्यगरूपेण विचारितम् (भली-भाँति सोचा है), नाहम् = नहीं मैं,

सोपानसहायतया = पद्धति सरणिभि सहायतया (सीढ़ियों की सहायता से), अधि रोदुम् = उपरि गन्तुम् (ऊपर चढ़ने के लिए), विश्वसिमि = विश्वासं करोमि (विश्वास करता), समुत्प्लुत्यैव = सम्यग् उपरि प्लुत्वा एव (भली-भाँति छलाँग मारकर ही), गन्तुम् = यातुम् (जाने में), क्षमोऽस्मि = समर्थोऽस्मि (समर्थ हूँ), सव्यङ्ग्यम् = व्यङ्ग्येन सहितम् (व्यङ्ग्य के साथ), साधु साधु = उत्तमः (अच्छा-अच्छा/बहुत अच्छा), आञ्जनेयम् = हनुमन्तम् (हनुमान जी को), अतिक्रामसि = उल्लङ्घयसि (लाँघ गये/आगे निकल गये), सविमर्शम् = विचारसहितम् (सोच-विचार कर),

कोऽत्र सन्देहः = का अत्र शङ्का वर्तते (इसमें क्या सन्देह है), किञ्च = (और क्या), विना = अन्तरेण (बिना), लिप्यक्षरज्ञानम् = लिपिज्ञानं वर्णज्ञानं च विना (लिपि के और अक्षरों के ज्ञान के बिना), केवलम् = मात्र (केवल), तपोभिः = तपश्चर्याभिः (तपस्या से) यदि विद्या वशे स्युः = यदि विद्या अधिगृह्यते (यदि विद्या पर अधिकार हो जाये), मम एषः सेतुः तथा = इदं मे धरणम् एवमेव (यह मेरा पुल भी वैसा ही है)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेवरचित ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में पुरुषवेष वाला इन्द्र नदी में बालू का पुल बनाने का निष्फल प्रयत्न कर तपोदत्त को परिश्रम, लिपि, अक्षरज्ञान तथा अभ्यास की ओर अनुप्रेरित करता है।

अनुवाद – पुरुष-अरे तपस्वी! (तू) मुझे रोकता है? प्रयत्न से क्या नहीं सिद्ध होता है? शिलाओं की क्या जरूरत है? दृढ़ संकल्प के साथ बालू से ही पुल बाँधूंगा।

तपोदत्त – अचम्भा है! बालू से ही पुल बनाओगे (क्या)? बालू जल के प्रवाह में ठहर जायेगी क्या? आपने (यह कभी) सोचा है या नहीं?

पुरुष – (उपहास के साथ) सोचा है, सोचा है। अच्छी तरह सोचा है। मैं सीढ़ियों के मार्ग से अट्टालिका पर चढ़ने में विश्वास नहीं रखता। उछलकर (छलाँग मारकर) ही जाने में समर्थ हूँ।

तपोदत्त-(व्यंग्यसहित) बहुत अच्छा, बहुत अच्छा! तुम तो हनुमान् जी से भी बढ़कर निकले। पुरुष-(सोच-विचार कर) – इसमें क्या सन्देह है? और क्या बिना लिपि और अक्षर-ज्ञान के केवल तपस्या से यदि विद्या तेरे वश में हो जाये तो मेरा यह पुल भी वैसा ही है।

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्या:’ ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं सोमदेवरचितस्य कथासरित्सागरस्य सप्तमलम्बकात् संकलितो अस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ पाठ से उद्धृत है । यह पाठ ‘सौमदेवरचित’ कथासारित्सागर’ के सातवें लम्बक से लिया गया है।)

प्रसंग: – नाटयांशेऽस्मिन परुषवेषः इन्द्रः नद्यां सिकतासेतनिर्माणस्य निष्फलप्रयत्न कत्वा तपोदत्तं परिश्रमं. लिपिज्ञानम, अक्षरज्ञानं तेषाम् अभ्यासं च प्रति अनुप्रेरयति। (इस नाट्यांश में पुरुष वेष में इन्द्र नदी में बालू से सेतु निर्माण का निष्फल प्रयास करके तपोदत्त को परिश्रम, लिपिज्ञान, अक्षर ज्ञान और उनके अभ्यास के प्रति प्रेरित करता है।

व्याख्या – पुरुष:-हे तापस! कस्मात् कारणात् माम् अवरोधयसि? प्रयासेन किं न सिध्यति? प्रस्तराणां किं महत्त्वम्? दृढसङ्कल्पेन बालुकाभिरेव धरणं निर्मास्ये। (पुरुष-हे तपस्वी, किसलिए मुझे मना कर रहे हो? प्रयास से किया सिद्ध नहीं होता। पत्थरों का क्या महत्व। दृढ़ संकल्प से बालू से भी पुल बनाया जा सकता है।)

तपोदत्तः – कुतूहलम्, बालुकाभिरेव धरणं निर्मास्यसे? अपि बालुकाः सलिलधारायां स्थिराः भविष्यन्ति? अपि त्वया विचारितं न वा? (तपोदत्त-आश्चर्य, बालू से पुल बनाओगे? क्या बालू पानी के प्रवाह में ठहर जायेगी? क्या तुमने यह सोचा भी है या नहीं।)

पुरुष – (उपहासपर्वकम) अनेकशः विचारितम। सम्यगरूपेण विचारितम। अहं पद्धतिसरणिभिः अटटालिकायाः उपरि गन्तुं विश्वासं न करोमि। सम्यग उपरि प्लुत्वा एव यातुं समर्थोऽस्मि। ((उपहासपूर्वक) अनेक बार विचार किया है। अच्छी तरह विचार किया हैं। मैं सीढ़ियों से छत पर चढ़ने में विश्वास नहीं करता। अच्छी तरह ऊपर उछलकर ही जाने में समर्थ करता हा

तपोदत्तः – (व्यङ्ग्येन सहितम्) उत्तमः, त्वं तु हनुमन्तमपि उल्लङ्घयसि। (व्यङ्ग्य के साथ) (बहुत अच्छा तुम तो हनुमान जी को भी लाँघ गये।)

पुरुषः – (विचारसहितम्) का अत्र शङ्का वर्तते? किञ्च लिपिज्ञानं वर्णज्ञानं च अन्तरेण मात्र तपश्चर्याभिः यदि विद्या अधिंगृह्यते तदा इदं मे धरणम् एवमेव। (सोचकर) (इसमें क्या सन्देह? जब लिपिज्ञान और अक्षर ज्ञान के बिना मात्र तप से ही यदि विद्या ग्रहण की जा सकती है तो मेरा यह पुल भी इसी प्रकार से है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

अवबोधन कार्यम् –

एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) परुषः केन मार्गेण न गन्तम इच्छति? (परुष किस मार्ग से नहीं जाना चाहता?)
(ख) तपोदत्तः पुरुषं सव्यङ्ग्यं किं कथयति? (पुरुष से तपोदत्त व्यंग्यपूर्वक क्या कहता है?)

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) तपोदत्ते अवरुद्धे पुरुषः तं किम् उत्तरति? (तपोदत्त के रोकने पर पुरुष उसे क्या उत्तर देता है?)
(ख) पुरुषः सोत्प्रासम् तपोदत्तं किं कथयति? (पुरुष उपहासपूर्वक तपोदत्त से क्या कहता है?)

3. यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘भवता चिन्तितं न वा’ इति वाक्यात् क्रियापदं पृथक् कृत्वा लिखत।
(भवता चिन्तितं न वा’ इस वाक्य से क्रियापद अलग कर लिखिए।)
‘बालुकाभिः’ इति पदस्य- पर्यायवाचिपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘बालुकाभिः’ पद का पर्यायवाचि पद गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
1. (क) सोपानमार्गेण (सीढ़ियों से)।
(ख) आञ्जनेयमपि अतिक्रामसि (हनुमान से भी बढ़कर हो)।

2. (क) भोः तपस्विन् ! कथं माम् अवरोधं करोषि? प्रयत्नेन किं न सिद्धं भवति ?
(ख) चिन्तितम्! नाहं सोपान-सहायतया अधिरोढुं विश्वसिमि। समुत्प्लत्येव गन्तुं क्षमोऽस्म्।ि (सोचा! मैं सीढ़ियों की सहायता से नहीं चढ़ना चाहता। छलाँग मार कर जाने की क्षमता रखता हूँ।)

3. (क) चिन्तितम् (सोचा गया)।
(ख) सिकताभिः (बालू से)।

4. तपोदत्तः – (सवैलक्ष्यम् आत्मगतम्)
अये! मामेवोद्दिश्य भद्रपुरुषोऽयम् अधिक्षिपति! नूनं सत्यमत्र पश्यामि। अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषामि! तदियं भगवत्याः शारदाया अवमानना। गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीयः। पुरुषार्थैरेव लक्ष्यं प्राप्यते। (प्रकाशम्)
भो नरोत्तम! नाऽहं जाने यत् कोऽस्ति भवान्। परन्तु भवद्भिः उन्मीलितं मे नयनयुगलम्। तपोमात्रेण विद्यामवाप्तुं प्रयतमानः अहमपि सिकताभिरेव सेतुनिर्माणप्रयासं करोमि। तदिदानी विद्याध्ययनाय गुरुकुलमेव गच्छामि।
(सप्रणामं गच्छति)

शब्दार्थाः – संवैलक्ष्यम् = सलज्जम् (लज्जापूर्वक), आत्मगतम् = स्वगतम् (अपने आप से), अये! = अरे! (ओह!), मामेवोद्दिश्य = मामेव लक्ष्यीकृत्य (मुझे ही लक्ष्य बनाकर), भद्रपुरुसोऽयम्ः = एषः सज्जनः (यह भलामानुष), अधिक्षिपति = आक्षिपति (आक्षेप कर रहा है), नूनम् = निश्चयमेव (निश्चित रूप से), सत्यमत्र = अस्मिन् वचने ऋतं (इस बात में सत्य को), पश्यामि = ईक्षे (देख रहा हूँ), अक्षरज्ञानं विनैव = वर्णज्ञानमन्तरेण (वर्ण ज्ञान के बिना),

वैदुष्यमवाप्तुम् = पाण्डित्यम् प्राप्तुम् (विद्वत्ता प्राप्ति को), अभिलषामि = इच्छामि (चाहता हूँ), तदियम् = तदेषा (तो यह), भगवत्याः = देव्याः (देवी), शारदायाः = सरस्वत्याः (सरस्वती का), अवमानना = अपमानम् (अपमान है), गुरुगृहम् = गुरोरावासं/ आश्रमं (गुरु के घर पर), गत्वैव = प्राप्यैव (जाकर के ही), विद्याभ्यासः = विद्याध्ययनम् (विद्या का अभ्यास), मया = अहम् (मेरे द्वारा/मैं), करणीयः = कुर्याम् (करना चाहिए),

पुरुषार्थैरेव = परिश्रमेण एव/उद्यमेनैव (परिश्रम से ही) लक्ष्यम् = उद्देश्यम् (उद्देश्य), प्राप्यते = लभ्यते (पाया जाता है), प्रकाशम् = सार्वजनिकरूपेण (सबके सामने), भो नरोत्तम! = हे मानवश्रेष्ठ! (हे मनुष्यों में श्रेष्ठ!), अहं न जाने = नाऽहं जानामि (मैं नहीं जानता), यत् कोऽस्ति भवान् = यत् त्वं कोऽसि (कि आप/तुम कौन हो), परन्तु = परञ्च (लेकिन), भवद्भिः = युष्माभिः (आप द्वारा/आपने), उन्मीलितम् = उद्घाटितम् (खोल दिया),

मे = मम (मेरे), नयनयुगलम् = नेत्रयुगलम् (आँखों को), तपोमात्रेण = केवलं तपसा (केवल तपस्या से), विद्यामवाप्तुम् = ज्ञानं लब्धुम् (ज्ञान प्राप्त करने के लिए), प्रयतमानः = प्रयासं कुर्वन् (प्रयास करता हुआ), अहमपि = मैं भी.सिकताभिरेव = बालकाभिरेव (बाल से ही), सेतनिर्माणप्रयासम = धरणसष्टिप्रयत्नम (पल बनाने का प्रयास). करोमि = करता हूँ, तदिदानीम् = तर्हि अधुना (तो अब), विद्याध्ययनाय = विद्यार्जनाय (विद्या प्राप्ति के लिए), गुरुकुलमेव = गुरोः आश्रमम् एव (गुरु के आश्रम को ही), गच्छामि = प्रस्थानं करोमि (प्रस्थान करता हूँ), सप्रणामम् = अभिवादनेन सहितम् (प्रणाम करके), गच्छति = याति (जाता है/प्रस्थान करता है)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेवकृत … ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में तपोदत्त के लिए अपने निरर्थक प्रयास का ज्ञान हो जाता है। अतः वह पुरुष वेषधारी इन्द्र के व्यंग्य को समझकर अध्ययन के प्रति अनुप्रेरित होकर गुरुकुल को प्रस्थान कर जाता है।

अनुवाद – (लज्जापूर्वक अपने आपसे)
अरे! यह भलामानुष तो मुझे ही लक्ष्य करके आक्षेप कर रहा है। निश्चित रूप से यहाँ मैं सत्य देख रहा हूँ (अर्थात् इसकी बात सच है) अक्षर-ज्ञान के बिना ही (मैं) विद्वत्ता प्राप्त करना चाहता हूँ, तो यह भगवती (देवी) सरस्वती का अपमान ही है। मुझे गुरु के घर जाकर विद्या का अभ्यास करना चाहिए। परिश्रम से ही लक्ष्य प्राप्त किया जाता है।
(सबके समक्ष)
हे पुरुषों में श्रेष्ठ! मैं नहीं जानता कि आप कौन हैं परन्तु आपने मेरी आँखें खोल दी। तप मात्र से ही विद्या प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करता हुआ मैं भी बालू से ही पुल बनाने का प्रयास कर रहा हूँ। तो अब विद्याध्ययन (पढ़ाई) हेतु गुरुकुल को ही जाता हूँ।
(प्रणाम सहित जाता है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठाद् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं सोमदेवकृतस्य कथासरित्सागरस्य सप्तमलम्बकात् संकलितोऽस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सिकतासेतुः’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ सोमदेव-कृत ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लंबक से संकलित है।)

प्रसंगः – नाट्यांशेऽस्मिन् तपोदत्ताय स्वकीयस्य निरर्थकप्रयासस्य ज्ञानं भवति। अतोऽसौ पुरुषरूपिणः इन्द्रस्य व्यङ्ग्यम् अवगम्य अध्ययन प्रति अनुप्रेरित: भूत्वा गुरुकुलं च गच्छति। (इस नाट्यांश में तपोदत्त के अपने निरर्थक प्रयास का ज्ञान होता है। अतः वह पुरुषरूपी इन्द्र के व्यङ्ग्य को समझकर अध्ययन के प्रति अनुप्रेरित होकर गुरुकुल को जाता है।

व्याख्याः – तपोदत्तः (सलज्जम् स्वगतम्) अरे मामेव लक्ष्यीकृत्य एषः सज्जनः आक्षिपति। निश्चितमेव अस्मिन् वचने यथार्थम् ईक्षे। वर्णज्ञानमन्तरेण पाण्डित्यं लब्धुम् इच्छामि। तदिदं देव्याः सरस्वत्याः अपमानम् अस्ति। गुरोः आवासम् एव प्राप्य अहं विद्याध्ययनं कुर्याम्। उद्यमेन एव उद्देश्यं लभ्यते। (सार्वजनिकरूपेण) हे मानवश्रेष्ठ! अहं न जानामि यत्त्वम् कोऽसि? परञ्च युष्माभिः मम नेत्रयुगलम् उद्घाटितम्। केवलं तपसा ज्ञानं लब्धुं प्रयासं कुर्वन् अहमपि बालुकाभिरेव धरणसृष्टिप्रयत्न करोमि। तर्हि अधुना विद्यार्जनाय अहं गुरोः आश्रमं प्रति प्रस्थानं करोमि।

इति अभिवादनेन सह याति। ((तपोदत्त लज्जा के साथ स्वयं से) (अरे मुझे ही निशाना बनाकर यह सज्जन आक्षेप कर रहा है। निश्चित ही इसके कथन में सच दिख रहा है। वर्णज्ञान के बिना विद्वत्ता प्राप्त करना चाहता हूँ। तो यह तो देवी सरस्वती का अपमान है। गुरु के आश्रम में ही पहुँचकर मुझे विद्याध्ययन करना चाहिए। परिश्रम से ही लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। (खुले में) हे मानव श्रेष्ठ ! मैं जानता हूँ कि तुम कोई भी हो? परन्तु तुमने मेरी आँखें खोल दी। केवल तप से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हुए मैं भी बालू से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा हूँ। तो आज ही विद्या प्राप्त करने के लिए मैं आश्रम की ओर प्रस्थान करता हूँ। ऐसा कहकर अभिवादन के साथ जाता है।)

अवबोधन कार्यम् –

1. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) पुरुषस्य आक्षेपे तपोदत्तः किं पश्यति? (पुरुष के आक्षेप में तपोदत्त क्या देखता है?)
(ख) कैः लक्ष्यं प्राप्यते? (लक्ष्य किनसे प्राप्त किया जाता है?)

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) भगवत्याः शारदायाः अवमानना का? (भगवती शारदा का अपमान क्या है? )
(ख) पुरुषस्य आक्षेपं श्रुत्वा तपोदत्तः किं निर्णयति? (पुरुष के आक्षेप को सुनकर तपोदत्त क्या निर्णय लेता है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 9 सिकतासेतुः

3. यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘निमीलितम्’ इति पदस्य पर्यायं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(ख) ‘करणीयः’ इति पदे प्रत्यय लिखत। (करणीयः पद में प्रत्यय लिखिए।) .
उत्तराणि :
1.(क) सत्यम्।
(ख) पुरुषार्थेः (परिश्रम से)।
(क) अक्षरज्ञानं विना वैदुष्यं प्राप्तुं प्रयास:तु भगवत्याः शारदयाः अवमानना। (अक्षरज्ञान के बिना विद्वत्ता प्राप्त करने का प्रयास भगवती सरस्वती की. अवमानना है।)

(ख). ‘नूनं सत्यम् अत्र पश्यामि । अक्षरज्ञानं विना एव वैदुष्यं प्राप्तुम् इच्छामि तदियं भगवत्याः सरस्वती अवमाननाः। गुरु गहं गत्वा विद्याभ्यासः मया करणीयः। पुरुषाथैरेव लक्ष्यं प्राप्यते। (निश्चित सत्य देख रहा हूँ। अक्षरज्ञान के बिना ही विद्वत्ता प्राप्त करना चाहता हूँ तो यह भगवती सरस्वती का अपमान है। गुरु-घर जाकर विद्या का अभ्यास मुझे करना चाहिए। पुरुषार्थ से ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है।)

3. (क) उन्मीलितम् (उधारे हुए)
(ख) अनीयर् प्रत्यय।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् संख्याज्ञानम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

संख्या-ज्ञान – इस संसार में सभी लोगों के लिए संख्या (अंकों) का ज्ञान परम आवश्यक है क्योंकि संख्या के ज्ञान के बिना हमारे जीवन में आदान-प्रदान का कोई भी कार्य सम्भव नहीं हो सकता है। अतः हम यहाँ संख्याओं (अंकों) का ज्ञान प्राप्त करेंगे।

1. संख्यावाची शब्द

दस से अधिक की संख्या संस्कृत में लिखने के लिए एक, दो, तीन आदि का संस्कृत शब्द दश, विंशति, त्रिंशत्, चत्वारिंशत्, पञ्चाशत् आदि से पहले रख दिया जाता है। जैसे छियालीस-छ: की संस्कृत ‘षंट’ पहले लिखेंगे, उसके बाद चालीस की संस्कृत ‘चत्वारिंशत्’ लिखेंगे और मिलकर शब्द बनेगा ‘षट्चत्वारिंशत्’। इसी प्रकार से अन्य शब्दों को भी बनाया जा सकता है।

ध्यातव्य – 1.संस्कृत में संख्या उल्टे क्रम से लिखना शुरू करते हैं जैसे-88 को लिखना है तो पहले इकाई के अंक 8 की संस्कृत ‘अष्ट’ लिखेंगे और बाद में 80 की संस्कृत ‘अशीतिः’, लिखेंगे, मिलाकर एक शब्द बनेगा ‘अष्टाशीतिः’। इसी प्रकार से 75 (पिचहत्तर) को लिखते समय पहले इकाई अंक पाँच को संस्कृत में लिखकर पुनः 70 को संस्कृत में लिखेंगे तो शब्द सामने आयेगा ‘पंचसप्ततिः’।
विद्यार्थी ध्यान रखें संख्या को पहले ऊपर बताये अनुसार बदलें अर्थात् इकाई अंक को पहले तथा दहाई अंक को बाद में लिखें। जैसे –
(i) 88 = उल्टा क्रम – आठ अस्सी = अष्ट + अशीतिः = अष्टाशीतिः।
(ii) 75 = उल्टा क्रम – पाँच सत्तर = पंच + सप्ततिः = पंचसप्ततिः।
(iii) 67 % = उल्टा क्रम – सात साठ = सप्त + षष्टिः = सप्तषष्टिः।
(iv) 31 = उल्टा क्रम – एक तीस = एकः + त्रिंशत् = एकत्रिंशत्।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

संस्कृत में संख्यावाचक शब्द 1 से 100 तक इस प्रकार हैं –

1. एकः (पु.), एका (स्त्री.), एकम् (नपुं.)
2. द्वौ (पु.), द्वे (स्त्री.), द्वे (नपुं.)
3. त्रयः (पु.), तिस्रः (स्त्री.), त्रीणि (नपुं.)
4. चत्वारः (पु.), चतस्त्रः (स्त्री.), चत्वारि (नपुं.)
5. पञ्च
6. षट्
7. सप्त
8. अष्ट/अष्टौ
9. नव
10. दश
11. एकादश
12. द्वादश
13. त्रयोदश
14. चतुर्दश
15. पञ्चदश
16. षोडश
17. सप्तदश
18. अष्टादश
19. नवदश/एकोनविंशतिः
20. विंशतिः
21. एकविंशतिः
22. द्वाविंशतिः
23. त्रयोविंशतिः
24. चतुर्विंशतिः
25. पञ्चविंशतिः
26. षड्विंशतिः
27. सप्तविंशतिः
28. अष्टाविंशतिः
29. नवविंशतिः/एकोनत्रिंशत्
30. त्रिंशत्
31. एकत्रिंशत्
32. द्वात्रिंशत्
33. त्रयस्त्रिंशत्
34. चतुस्त्रिंशत्
35. पञ्चत्रिंशत्
36. षट्त्रिंशत्
37. सप्तत्रिंशत्
38. अष्टत्रिंशत्
39. नवत्रिंशत/एकोनचत्वारिंशत्
40. चत्वारिंशत्
41. एकचत्वारिंशत्
42. द्विचत्वारिंशत्/द्वाचत्वारिंशत्
43. त्रिचत्वारिंशत्/त्रयश्चत्वारिंशत्
44. चतुश्चत्वारिंशत्
45. पञ्चचत्वारिंशत्
46. षट्चत्वारिंशत्
47. सप्तचत्वारिंशत्
48. अष्टचत्वारिंशत्/अष्टाचत्वारंशत्
49. नवचत्वारिंशत्/एकोनपञ्चाशत्
50 पञ्चाशत्
51. एकपञ्चाशत्
52. द्विपञ्चाशत्/द्वापञ्चाशत्
53. त्रिपञ्चाशत्/त्रयः पञ्चाशत्
54. चतुः पञ्चाशत्
55. पञ्चपञ्चाशत्
56. षट्पञ्चाशत्
57. सप्तपञ्चाशत्
58. अष्टपञ्चाशत्/अष्टापञ्चाशत्
59. नवपञ्चाशत्/एकोनषष्टिः
60. षष्टिः
61.एकषष्टिः
62. द्विषष्टिः/द्वाषष्टिः
63. त्रिषष्टिः/त्रयः षष्टिः
64. चतुःषष्टिः
65. पञ्चषष्टिः
66. षट्षष्टिः
67. सप्तषष्टिः
68. अष्टषष्टि:/अष्टाषष्टिः
69. नवषष्टिः/एकोनसप्ततिः
70. सप्ततिः
71.एकसप्ततिः
72. द्विसप्ततिः/द्वासप्ततिः
73. त्रिसप्ततिः/त्रयः सप्ततिः
74. चतुः सप्ततिः
75. पंचसप्ततिः.
76. षट्सप्ततिः
77. सप्तसप्ततिः
78. अष्टसप्ततिः/अष्टासप्ततिः
79. नवसप्तति:/एकोनाशीतिः
80. अशीतिः
81. एकाशीतिः
82. द्वयशीतिः
83. त्र्यशीतिः
84. चतुरशीतिः
85. पञ्चाशीतिः
86. षडाशीतिः
87. सप्ताशीतिः
88. अष्टाशीतिः
89. नवाशीति:/एकोननवतिः
90. नवतिः
91. एकनवतिः
92. द्विनवतिः/द्वानवतिः
93. त्रिनवतिः/त्रयोनवतिः
94. चतुर्नवतिः
95. पञ्चनवतिः
96. षष्णवतिः
97. सप्तनवृतिः
98. अष्टनवतिः/अष्टानवतिः
99. नवनवतिः/एकोनशतम्
100. शतम्

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हिन्दी अर्थ सहित संख्यावाची शब्द

पूर्व में संख्यावाची शब्दों का अर्थ उनके सामने अंकों में लिखा है। यहाँ कुछ पारिभाषिक संस्कृत शब्दों का हिन्दी अर्थ विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखते हुए दिया जा रहा है –

  1. शतम् – सौ
  2. सहस्रम् – हजार
  3. अयुतम् – दस हजार
  4. लक्षम् – लाख
  5. प्रयुतम्/नियुतम् – दस लाख
  6. कोटि: – करोड़
  7. दशकोटि: – दस करोड़
  8. अर्बुदम् – अरब
  9. दशार्बुदम् – दस अरब
  10. खर्वम् – खरब
  11. दशखर्वम् – दस खरब
  12. नीलम् – नील
  13. दशनीलम् – दस नील
  14. पद्मम् – पद्म
  15. दशपद्मम् – दस पद्म
  16. शंखम् – शंख
  17. दशशंखम् – दस शंख
  18. महाशंखम् – महाशंख

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संख्यावाची शब्द रूप

1. ‘एकः’ [एक के अर्थ में]
नोट – ‘एक’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में केवल एकवचन में ही चलते हैं। इसके रूप ‘सर्व’ (सब) शब्द के एकवचन के समान तीनों लिंगों में बनते हैं। संख्यावाची शब्दों में सम्बोधन विभक्ति नहीं होती है।

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2. ‘द्वि’ शब्द [दो के अर्थ में]

नोट – ‘द्वि’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में केवल द्विवचन में ही चलते हैं। इसके स्त्रीलिंग के एवं नपुंसकलिंग के सभी रूप एक जैसे चलते हैं।

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3. त्रि’ शब्द [तीन के अर्थ में]

नोट – 3 से 18 तक की संख्याओं के रूप केवल बहुवचन में ही चलते हैं। ‘त्रि’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में होते हैं।

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4. ‘चतुर्’ शब्द [चार के अर्थ में]

नोट – ‘चतुर्’ शब्द के रूप भी तीनों लिंगों में केवल बहुवचन में ही चलते हैं।

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5. पञ्चन् [पाँच], 6. षट् [छः], 7. सप्तन् [सात]

नोट – पंचम् से अष्टादशन् तक के समस्त संख्यावाची शब्दों का प्रयोग नित्य बहुवचन में होता है, इनके रूप तीनों लिंगों में समान रहते हैं।

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8. अष्टन् [आठ], 9. नवन् [नौ], 10. दशन् [दस]

नोट – ये सभी रूप केवल बहुवचन में चलते हैं। ये सभी तीनों लिंगों में एक समान चलते हैं।

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नोट – एकादशन् (11) से अष्टादशन् (18) तक के रूप दशन् (10) के रूपों की तरह ही बनते हैं। एकोनविंशति (19) से नवनवति (99) तक के सभी शब्दों के रूप स्त्रीलिंग एकवचन में ही बनते हैं। इन इकारान्त शब्दों के रूप ‘मति’ इकरान्त स्त्रीलिंग एकवचन की तरह तथा इन तकारान्त शब्दों त्रिंशत् (30) चत्वारिंशत् (40) एवं पञ्चाशत् (50) के रूप ‘सरित्’ तकरान्त स्त्रीलिंग,एकवचन की तरह बनते हैं।
ये निम्न प्रकार से हैं –

नित्य एकवचनान्त

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नोट – (i) चत्वारिंशत् तथा पंचाशत् के रूप ‘त्रिंशत्’ के समान ही चलेंगे। सप्तति, अशीति और नवति के रूप ‘विंशति’ के समान ही चलेंगे।

(ii) शतम् सहस्रम्, अयुतम्, लक्षम् इत्यादि शब्द नित्य एकवचनान्त ही प्रयुक्त होते हैं।
उपर्युक्त संख्यावाची शब्दों के रूप नपुंसकलिंग में होते हैं तथा सातों विभक्तियों में ‘फल’ शब्द के एकवचन की तरह ही चलते हैं।

(iii) कोटि तथा दशकोटि शब्द के रूप स्त्रीलिंग में ‘मति’ शब्द के समान बनेंगे। जैसे –
‘शत’ सहस्र’, ‘लक्ष’, ‘कोटि’ और ‘दशकोटि संख्यावाची शब्द

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संख्या जानने के लिए ‘कति’ (कितने) शब्द से प्रश्न बनाया जाता है। अतः विद्यार्थियों की सुविधा के लिए ‘कति’ शब्द के रूप दिये जा रहे हैं।

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विभक्ति – कति (कितने)

  • प्रथमा – कति
  • द्वितीया – कति
  • तृतीया – कतिभिः
  • चतुर्थी – कतिभ्यः
  • पंचमी – कतिभ्यः
  • षष्ठी – कतीनाम्
  • सप्तमी – कतिषु

(i) ‘कति’ के रूप तीनों लिंगों में एक समान चलते हैं।
(ii) कति शब्द के रूप नित्य बहुवचनान्त बनते हैं।

क्रमवाचक शब्द (प्रथम से शतम् तक)

क्रमवाची शब्द तीनों लिंगों में इस प्रकार प्रयुक्त होते हैं –

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शतम् (100) स ऊपर क सख्यावाचक शब्द

शतम् (100) से ऊपर के संख्यावाचक शब्द बनाना

नियम – (i) ‘शत’ (100) आदि संख्यावाचक शब्दों के साथ लघु (छोटी) संख्या के मिलाने के लिए लघु (छोटी) संख्या के साथ ‘अधिक’ या ‘उत्तर’ शब्द वृहत्तर (बड़ी) संख्या के पहले लगा दिया जाता है। यथा- ‘एक सौ तेरह’; यहाँ लघु संख्या तेरह है, इसकी संस्कृत है-‘त्रयोदश’। इसके आगे अधिक लगाकर इसके बाद वृहत्तर (बड़ी) संख्या ‘शतम्’ लगाने से ‘एक सौ तेरह’ की संस्कृत हुई- “त्रयोदशाधिकशतम्”।

(ii) शत् (100) सहस्र (1000) इत्यादि संख्याओं के साथ यदि उनका आधा (50. 500 आदि) हो तो सार्द्ध (आधा सहित), चौथाई साथ हो (25, 250 आदि) तो ‘सपादम्’ (चौथाई साथ) और चौथाई ‘कम हो तो’ पादोन (चौथाई कम) शब्द का उनके साथ प्रयोग किया जाता है। यथा-450 ‘सार्द्ध-शत-चतुष्टयम्’ (आधे सहित सौ चार) इसी प्रकार 125 को ‘सपादशतम्’ (चौथाई सहित सौ) लिखते हैं। 1750 को ‘पादोनसहस्रद्वयम्’ (चौथाई कम दो हजार) लिखा जायेगा।

विशेष – शत, सहस्र इत्यादि के पहले द्वि, त्रि आदि के आने पर, समाहार द्विगु हो जाने से वे विशेषण नहीं रहते, क्योंकि समाहार द्विगु हो जाने पर वे विशेष्य पद हो जाते हैं। यथा-द्विशती (200), त्रिशती (300) आदि।

(iii) अवयव दिखाने के लिए द्वय, त्रय, चतुष्टय, पञ्चक, षट्क, सप्तक, अष्टक इत्यादि ‘क’ प्रत्ययान्त एकवचनान्त नपुंसकलिंग शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

(iv) संख्यावाचक शब्दों के प्रयोग करने में यदि संशय हो तो संख्यावाचक शब्द के साथ ‘संख्यक’ शब्द लगाकर अकारान्त पद की तरह रूप चलाकर सरलता से अनुवाद किया जा सकता है।

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ध्यातव्य – संस्कृत में संख्या को उल्टे क्रम से लिखना शुरू करते हैं जैसे-101 में, पहले एक को फिर सौ को लिखेंगे। बीच में ज्यादा का शब्द ‘अधिक’ लिखेंगे। याद करें हमारे पुराने बुजुर्ग लोग कैसे गिनती बताते थे। 130 को = तीस ज्यादा सौ, 19 को = एक कम बीस, 540 को = चालीस ज्यादा पाँच सौ, यही तरीका संस्कृत का है। जैसे –

  1. 101 = उल्टाक्रम = एक अधिक सौ = एक + अधिकशतम् = एकाधिकशतम्।
  2. 140 = उल्टाक्रम = चालीस अधिक सौ = चत्वारिंशत् + अधिकशतम् = चत्वारिंशदधिकशतम्।
  3. 165 = उल्टाक्रम = पाँच साठ अधिक सौ = पंच षष्टि + अधिक शतम् = पंचषष्ट्यिधिकशतम्।
  4. 300 = तीन सौ = त्रिशतम्।
  5. 1965 = उल्टाक्रम = पाँच साठ अधिक एक कम बीस सौ = पंचषष्टि + अधिक + एकोनविंशतिशतम् = पंचषष्ट्य धिकैकोनविंशतिशतम्
  6. 2000 = दो हजार = द्विसहस्रम्

उपर्युक्त नियम के अनुसार 100 (शतम्) से ऊपर के संख्यावाचक शब्द –

101. एकाधिकशतम्
102. यधिकशतम्
103. व्यधिकशतम्
104. चतुरधिकशतम्
105. पञ्चाधिकशतम्
106. षडधिकशतम्
107. सप्ताधिकशतम्
108. अष्टाधिकशतम्
109. नवाधिकशतम्
110. दशाधिकशतम्
111. एकादशाधिकशतम्
112. द्वादशाधिकशतम्
113. त्रयोदशाधिकशतम्
114. चतुर्दशाधिकशतम्
115. पञ्चदशाधिकशतम्
116. षोडशाधिकशतम्
117. सप्तदशाधिकशतम्
118. अष्टादशाधिकशतम्
119. नवदशाधिकशतम्
120. विंशत्यधिकशतम्
121. एकविंशत्यधिकशतम्
122. द्वारिंशत्यधिकशतम्
123. त्र्योविंशत्यधिकशतम्
124. चतुर्विंशत्यधिकशतम्
125. पञ्चविंशत्यधिकशतम्
126. षड्विंशत्यधिकशतम्
127. सप्तविंशत्यधिकशतम्
128. अष्टाविंशत्यधिक शतम्
129. नवविंशत्यधिकशतम्
130. त्रिंशदधिकशतम्
131. एकत्रिंशदधिकशतम्
132. द्वात्रिंशदधिकशतम्
133. त्रयस्त्रिंशदधिकशतम्
134. चतुस्त्रिंशदधिकशतम्
135. पञ्चत्रिंशदधिकशतम्
136. षट्त्रिंशदधिकशतम्
137. सप्तत्रिंशदधिकशतम्
138. अष्टत्रिंशदधिकशतम्
139. नवत्रिंशदधिकशतम्
140. चत्वारिंशदधिकशतम्
141. एकचत्वारिंशदधिकशतम्
142. द्विचत्वारिंशदधिकशतम्
143. त्रिचत्वारिंशदधिकशतम्
144. चतुश्चत्वारिंशदधिकशतम्
145 पञ्चचत्वारिंशदधिकशतम्
146. षट्चत्वारिंशदधिकशतम्
147. नत्वारिंशदधिकशतम्
148. अष्टचत्वारिंशदधिकशतम्
149. नवचत्वारिंशदधिकशतम्
150. पञ्चाशदधिकशतम्
151. एकपञ्चाशदधिकशतम्
152. द्विपञ्चाशदधिकशतम्
153. त्रिपञ्चाशदधिकशतम्
154. चतुःपञ्चाशदधिकशतम्
155. पञ्चपञ्चाशदधिकशतम्
156. षट्पञ्चाशदधिकशतम्
157. सप्तपञ्चाशदधिकशतम्
158. अष्टपञ्चाशदधिकशतम्
159. नवपञ्चाशदधिकशतम्
160. षष्ट्यधिकशतम्
161. एकषष्ट्यधिकशतम्
162. द्विषष्ट्यधिकशतम्
163. त्रिषष्ट्यधिकशतम्
164. चतुःषष्ट्यधिकशतम्
165. पञ्चषष्ट्यधिकशतम्
166. षट्षष्ट्यधिकशतम्
167. सप्तषधिकशतम्
168. अष्टप-धिकशतम्
169. नवषष्ट्यधिकशतम्
170. सप्तत्यधिकशतम्
171. एकसप्तत्यधिकशतम्
172. द्विसप्तन्यधिकशतम्
173. त्रिसप्तत्यधिकशतम्
174. चतुःसप्तलाधिकशतम्
175. पञ्चसप्तत्यधिकशतम्
176. षष्टसप्तत्यधिकशतम्
177. सप्तसप्तत्यधिकशतम्
178. अष्टसप्तत्यधिकशतम्
179. नवसप्तत्यधिकशतम्
180. अशीत्यधिकशतम्
181. एकाशीत्यधिकशतम्
182. द्वयशीत्यधिकशतम्
183. त्र्यशीत्यधिक शतम्
184. चतुरशीत्यधिकशतम्
185. पञ्चाशीत्यधिकशतम्
186. षडशीत्यधिकशतम्
187. सप्ताशीत्यधिकशतम्
188. अष्टाशीत्यधिकशतम्
189. नवाशीत्यधिकशतम्
190. नवत्यधिकशतम्
191. एकनवत्यधिकशतम्
192. द्विनवत्यधिकशत्
193. त्रिनवत्यधिकशतम्
194. चतुर्नवत्यधिकशतम्
195. पञ्चनवत्यधिकशतम्
196. षण्णवत्यधिकशतम्
197. सप्तनवत्यधिकशतम्
198. अष्टनवत्यधिकशतम्
199. नवनवत्यधिकशतम्।
200. द्विशती द्विशतम्/द्विशतकम् शतद्वयम्। इसी प्रकार
201. (एकाधिकद्विशती) आदि संख्याएँ लिखी जायेंगी।

उपर्युक्त नियम के अनुसार के ऊपर संख्यावाचक शब्द –

201. एकाधिकद्विशतम्।
301. एकाधिकत्रिशतम्।
401. एकाधिकचतुःशतम्/एकोत्तरचतु:शतम्/एकाधिकं चतु:शतम्/एकोत्तरं चतु:शतम्।
500. पञ्चशतम्/शतपञ्चकम्/पञ्चशतकम्।
501 एकाधिकपञ्चशतम्/एकोत्तरपञ्चशतम्/एकाधिकं पञ्चशतम्/एकोत्तरं पञ्चशतम्।
502. द्वयधिकपञ्चशतम्/द्वयुत्तरपञ्चशतम्/द्वयधिकं पञ्चशतम्/द्वयुत्तरं पञ्चशतम्।
503 त्र्यधिकपञ्चशतम्/व्युत्तरपञ्चशतम्/त्र्यधिकं पञ्चशतम्/युत्तरं पञ्चशतम्।
504 चतुरधिकपञ्चशतम्/चतुरुत्तरपञ्चशतम्/चतुरधिकं पञ्चशतम्/चतुरुत्तरं पञ्चशतम्।
505 पञ्चाधिकपञ्चशतम्/पञ्चोत्तरपञ्चशतम्/पञ्चाधिकं पञ्चशतम्/पञ्चोत्तरं पञ्चशतम्।
506 षडधिकपञ्चशतम्/षडुत्तरपञ्चशतम्/षडधिकं पञ्चशतम्/षडुत्तरं पञ्चशतम्।
507 सप्ताधिकपञ्चशतम्/सप्तोत्तरपञ्चशतम्/सप्ताधिकं पञ्चशतम्/सप्तोत्तरं पञ्चशतम्।
508 अष्टाधिकपञ्चशतम्/अष्टोत्तरपञ्चशतम्/अष्टाधिकं पञ्चशतम्/अष्टोत्तरं पञ्चशतम्।
509 नवाधिकपञ्चशतम्/नवोत्तरपञ्चशतम्/नवाधिकं पञ्चशतम्/नवोत्तरं पञ्चशतम्।
510 दशाधिकपञ्चशतम्/दशोत्तरपञ्चशतम्/दशाधिकं पञ्चशतम्/दशोत्तरं पञ्चशतम्।
517 सप्तदशाधिकपञ्चशतम्/सप्तदशोत्तरपञ्चशतम्।
सप्तदशाधिकं पञ्चशतम्/सप्तदशोत्तरं पञ्चशतम्।
600 षट्शतम्/शतषट्कम्/षट्शतकम्।
625 पञ्चविंशत्यधिकषट्शतम्/पञ्चविंशत्यधिक षट्शतम्/
पञ्चविंशत्युत्तरषट्शतम्/पञ्चविंशत्युत्तरं षट्शतम्।
637 सप्तत्रिंशदधिकषट्शतम्, सप्तत्रिंशदधिकं षट्शतम्/
सप्तत्रिंशदुत्तरषट्शतम्, सप्तत्रिंशदधिक षट्शतम्।
646 षट्चत्वारिंशदधिकषट्शतम् षट्चत्वारिशदधिकं षट्शतम्/
षट्चत्वारिंशदुत्तरषट्शतम्/षट्चत्वारिंशदुत्तरं षट्शतम्।
655 पञ्चपञ्चाशदधिकषट्शत ‘चपञ्चाशदुत्तरं षट्शतम्/
पञ्चपञ्चाशदुत्तरषट्शतम्/पञ्चपञ्चाशदुत्तरं षट्शतम्।
666 षट्षष्ट्यधिकषट्शतम्/षट्पष्ट्यधिकं षट्शतम्/
षषष्ट्युत्तरषट्शतम् षट्पट्युत्तरं षट्शतम्।
673 त्रिसप्तत्यधिकषट्शतम्/त्रिसप्तत्यधिक षट्शतम्/
त्रिसप्तत्युत्तरषट्शतम्/त्रिसप्तत्युत्तरं षट्शतम्।
684 चतुरशीत्यधिकषट्शतम्/चतुरशीत्यधिकं षट्शतम्/
चतुरशीत्युत्तरषट्शतम्/चतुरशीत्युत्तरं घट्शतम्।।
695 पञ्चनवत्यधिकषट्शतम्/पञ्चनवत्यधिक षट्शतम्/
पञ्चनवत्युत्तरषट्शतम्/पञ्चनवत्युत्तरं षट्शतम्।
700 सप्तशतम्/शतसप्तकम्/सप्तशतकम्।
704 चतुरधिकसप्तशतम्/चतुरुत्तरसप्तशतम्/चतुरधिकं सप्तशतम्/चतुरुत्तरं सप्तशतम्।
795 पञ्चनवत्यधिकसप्तशतम्/पञ्चनवत्युत्तरसप्तशतम्/
पञ्चनवत्यधिकं सप्तशतम्/पञ्चनवत्युत्तरं सप्तशतम्।
800 अष्टशतम्/शताष्टकम्/अष्टशतकम्।
805 पञ्चाधिकाष्टशतम्/पञ्चोत्तराष्टशतम्/पञ्चाधिकमष्टशतम्/पञ्चोत्तरमष्टशतम्।
900 नवशतम्/शतनवकम्/नवशतकम्।
1000 सहस्रम् (एक हज़ार)।
1324 चतुविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्/चतुविंशत्यधिकत्रिशताधिकसहस्रम् (तेरह सौ चौबीस/एक हजार तीन सौ चौबीस)।
1325 पञ्चविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्/पञ्चविंशत्यधिकत्रिशताधिकसहस्रम्
(तेरह सौ पच्चीस/एक हजार तीन सौ पच्चीस)।
1928 अष्टाविंशत्यधिकैकोनविंशतिशतम्/अष्टाविंशत्यधिकनवशताधिकसहस्रम्
(उन्नीस सौ अट्ठाइस/एक हजार नौ सौ अट्ठाईस)।
1939 एकोनचत्वारिंशदधिकैकोनविंशतिशतम्/एकोनचत्वारिंशदधिकनवशताधिकसहस्रम्
(उन्नीस सौ उन्तालीस/एक हजार नौ सौ उन्तालीस)।
10,000 अयुतम् (दस हजार)।
59637 सप्तत्रिंशदधिकषट्शताधिकनवसहस्राधिकपञ्चायुतम् (उनसठ हजार, छ: सौ सैंतीस)।

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अभ्यास

1. कोष्ठकात् उचितविभक्तियुक्तं पदं चित्वा वाक्यपूर्तिः क्रियताम्।
(कोष्ठक से उचित विभक्ति युक्त पद (शब्द) को चुनकर वाक्य की पूर्ति कीजिए-)

  1. अहं प्रतिदिनं प्रात:काले ………………. वादने उतिष्ठामि। (पञ्चभिः, पञ्च, पञ्चसु)।
  2. तस्याः ……………… दुहिता आसीत्। (एकः, एका, एकम्)
  3. काकः कक्षाभ्यन्तरात् …………. मञ्जूषाः निस्सार्य तां प्रत्यवदत्। (तिस्त्रः, त्रयः, त्रीणि)
  4. …………………. वेदाः सन्ति। (चतुरः, चत्वारि, चत्वारः)
  5. यथेच्छं गृहाण मञ्जूषाम् ………….. । (एका, एकः, एकाम्)
  6. …………….. वर्षदेशीया बालिका सोमप्रभा। (पञ्च, पञ्चमम्, पञ्चानाम्)
  7. ‘जटायोः शौर्यम्’ नामकस्य पाठस्य क्रमः ………………. वर्तते। (दश, दशर्मा, दशमः)
  8. पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः, आकाशश्च …………… तत्त्वानि। (पञ्च, पञ्चभिः, पञ्चसु)
  9. ……………. ग्रहाः सन्ति। (नव, नवानाम्, नवमी)
  10. ……………. पस्तकानि (चत्वारः, चतस्रः, चत्वारि)
  11. ईश्वरः ……………… लोकेषु विद्यमानमस्ति। (त्रिषु, त्रिभ्यः, त्रीन्)
  12. रामः लक्ष्मणश्च ………………. भ्रातरौ आस्ताम् । (द्वौ, द्वयोः, द्वाभ्याम्)
  13. ………….. पदातयः। (षट्सु, षड्भिः, षट)
  14. योगस्य ………………. अंगानि सन्ति। (अष्ट, अप्टाभिः, अष्टानाम्)
  15. ………… पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् । (अष्टादश, अष्टादशानाम्, अष्टदशाभिः)

उत्तरम् :

  1. पञ्च
  2. एका
  3. त्रिम्रः
  4. चत्वारः
  5. एकाम्
  6. पञ्च
  7. दशमः
  8. पञ्च
  9. नव
  10. चत्वारि
  11. त्रिषु
  12. द्वौ
  13. षट्
  14. अष्ट
  15. अष्टादश।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

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JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

सन्धिशब्दय व्युत्पत्तिः – सम् उपसर्गपूर्वकात् डुधाञ् (धा) धातोः ‘उपसर्गे धोः किः’ इति सूत्रेण ‘किः’ प्रत्यये कृते सन्धिरिति शब्दो निष्पद्यते। (सम् उपसर्गपूर्वक डुधाञ् (धा) धातु से “उपसर्गे धोः किः” इस सूत्र से ‘किः’ प्रत्यय करने पर ‘सन्धि’ यह शब्द बनता है।)

सन्धिशब्दस्य परिभाषा – ‘वर्णसन्धानं सन्धिः’ अर्थात् द्वयोः वर्णयोः परस्परं यत् सन्धानं मेलनं वा भवति तत्सन्धिरिति कथ्यते। (‘वर्णसन्धानं सन्धिः’ अर्थात् दो वर्णों का परस्पर जो सन्धान या मेल होता है वह सन्धि कहा जाता है।)

पाणिनीयपरिभाषा – ‘परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्णानाम् अत्यन्तनिकटता संहिता इति कथ्यते। यथा-सुधी + उपास्यः इत्यत्र ईकार-उकारवर्णयोः अत्यन्तनिकटता अस्ति। एतादृशी वर्णनिकटता एव संस्कृतव्याकरणे संहिता इति कथ्यते। संहितायाः विषये एव सन्धिकार्ये सति ‘सुध्युपास्यः’ इति शब्दसिद्धिर्जायते। (‘परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्णों की अत्यधिक निकटता संहिता कही जाती है। जैसे- ‘सुधी+उपास्यः’ यहाँ पर ‘ईकार’ तथा ‘उकार’ वर्गों की अत्यधिक निकटता है। इस प्रकार की वर्णों की निकटता ही संस्कृत व्याकरण में संहिता कही जाती है। संहिता के विषय में ही सन्धि कार्य होने पर ‘सुध्युपास्य’ इस शब्द की सिद्धि होती है।)

सन्धिभेदाः – संस्कृतव्याकरणे सन्धेः त्रयो भेदाः सन्ति। ते इत्थं सन्ति (1) अचसन्धिः (स्वरसन्धिः)। (2) हलसन्धिः (व्यंजनसन्धिः)। (3) विसर्गसन्धिः। नोट-यहाँ व्यंजन संधि एवं विसर्ग सन्धि का ज्ञान अपेक्षित है। अतः इन्हें यहाँ विस्तार से समझाया गया है।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

हल्सन्धिः (व्यंजन सन्धिः)

परिभाषा – यदा व्यञ्जनात् परे व्यञ्जनम् अथवा स्वरः आयाति तदा हल्सन्धिः भवति। (जब व्यञ्जन से परे (आगे) व्यञ्जन अथवा स्वर आता है तब हल् सन्धि (व्यञ्जन सन्धि) होती है।)

अर्थात् – व्यञ्जन का किसी व्यञ्जन या स्वर के साथ मेल होने पर जो परिवर्तन (विकार) होता है उसे हल् सन्धि कहते हैं। हल् सन्धि का दूसरा नाम व्यञ्जन सन्धि भी है।

1. श्चुत्व सन्धिः- सूत्र- “स्तोः श्चुना श्चुः”। अर्थः – सकारतवर्गयोः शकारचवर्गाभ्यां योगे शकारचवर्गों स्तः।

व्याख्या – यदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येते वर्णाः श् च् छ् ज् झ् ञ् इत्येतेषां वर्णानाम् पूर्वम् पश्चात् वा आयान्ति तदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येतेषां वर्णानां स्थाने क्रमशः श् च् छ् ज् झ् ञ् इत्येते वर्णाः भवन्ति। यथा- (श्चुत्व सन्धि – “स्तोः श्चुना श्चुः” यदि ‘स्’ या ‘त्’ वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) से पहले या बाद में ‘श्’ या ‘च’ वर्ग (च्, छ, ज, झ, ञ्) हो तो ‘स्’ का ‘श्’ और त वर्ग का चवर्ग अर्थात ‘त् का च’, ‘थ् का छ्’, ‘द् का ज्’, ‘ध् का झ्’, ‘न’ का ज्’ हो जाता है जैसे- सत् + चरितम् में ‘सत्’ के अन्त में ‘त’ है और ‘चरितम’ के आदि में च है, इन ‘त’ तथा ‘च’ दोनों वर्गों की सन्धि होने पर ‘त’ जो कि त का प्रथम अक्षर (वर्ण) है, के स्थान पर चवर्ग का प्रथम वर्ण अर्थात् ‘च’ हो जाएगा। इस प्रकार सत् + चरितम् की सन्धि हो पर ‘सच्चरितम्’ रूप होगा।)

उदाहरण –

सत् + चित् = सच्चित्
रामस् + चिनोति = रामश्चिनोति
हरिस् + शेते. = हरिश्शेते
शाङ्गिन् + जय = शाङ्गिञ्जय
रामस् + च = रामश्च।
कस् + चित् = कश्चित्
उद् + ज्वलः = उज्ज्वल:

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

2. ष्टुत्व सन्धिः – सूत्र – ष्टुना ष्टुः। अर्थः – स्तोः ष्टुना योगे ष्टुः स्यात्।
व्याख्या – यदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येते वर्णाः ष् ट् ठ् ड् ढ् ण् इत्येतेषां वर्णानाम् पूर्वं पश्चाद् वा आयान्ति तदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येतेषां वर्णानां स्थाने क्रमशः ष् ट् ठ् ड् ढ् ण् इत्येते वर्णाः भवन्ति। यथा –
अर्थात् ‘स्’ तथा तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के पहले या बाद में ‘ष’ या टवर्ग (ट्, ठ्, ड्, द, ण) में से कोई वर्ण हो तो ‘स्’ को ‘ए’ तथा तवर्ग को क्रमशः टवर्ग त् का ट्, थ् का ठ्, द् का ड्, ध् का द, न् का ण हो जाता है। जैसे- इष् + त: में ‘इष्’ का अन्तिम वर्ण ‘ए’ है और उसके परे ‘तः’ है। अतः सन्धि कार्य होने पर तवर्ग टवर्ग में बदल जाएगा। अर्थात् ‘त:’ के स्थान पर ‘ट:’ होने पर इष् + तः = इष्टः रूप होगा।

उदाहरण –

तत् + टीका = तट्टीका
रामस् + षष्ठः रामष्षष्ठी:
रामस् + टीकते = रामष्टीकते
पेष् + ता = पेष्टा
चक्रिन् + ढौकसे = चक्रिण्ढौकसे
उद् + डयनम् = उड्डयनम्
राष् + त्रम् = राष्ट्रम्
इष् + तः = इष्टः

3. जश्त्व सन्धिः -सूत्र – झलां जशोऽन्ते। अर्थः- पदान्ते झलां जशः स्युः। (“झलां जशोऽन्ते” अर्थात् पद के अन्त में ‘झूल’ ‘जश्’ हो जाता है।)
व्याख्या – पदान्ते झल् प्रत्याहारान्तर्गतवर्णानां (वर्गस्य 1, 2, 3, 4 वर्णानां श् ष स ह वर्णानां च) स्थाने जश्प्रत्याहारस्य (ज् ब् ग् ड् द्) वर्णाः भवन्ति। यथा
(पद के अन्त में ‘झल्’ प्रत्याहार के अन्तर्गत आने वाले वर्णों (झ्, भ, ध्, द, ध्, ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, त्, थ्, च्, ट्, त्, क्, प, श, ष, स, ह) के स्थान पर ‘जश्’ प्रत्याहार, (ज, ब, ग, ड्, द्) के वर्ण हो जाते हैं।)
इस संधि के दो भाग हैं – प्रथम भाग व द्वितीय भाग। प्रथम भाग पद के अन्त में होने वाली जश्त्व सन्धि है और द्वितीय भाग पद के मध्य में होने वाली जश्त्व सन्धि है।)

प्रथम भाग – जब पद (सुबन्त और तिङन्त अर्थात् शब्दरूप, धातु रूप-युक्त शब्द) के अन्त में होने वाले किसी भी वर्ग के प्रथम वर्ण अर्थात् क्, च्, ट्, त्, प् में से किसी भी एक वर्ग के ठीक बाद कोई भी घोष वर्ण अर्थात् ङ्, ञ, ण, न्, म्, य, र, ल, व् और ह को छोड़कर कोई भी व्यञ्जन अथवा स्वर वर्ण आता है तो पूर्वोक्त प्रथम वर्ण (क्, च्, ट्, त् और प्) अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण (‘क्’ के स्थान पर ‘ग्’, ‘च’ के स्थान पर ‘ज्’, ‘ट्’ के स्थान पर ‘ड्’, ‘त्’ के स्थान पर ‘द्’ . तथा ‘प्’ के स्थान पर ‘ब’ में बदल जाते हैं।) जैसे –

वाक् + ईशः = वागीशः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ग्’ होने पर)
जगत + ईश = जगदीशः (यहाँ ‘त्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘द्’ होने पर)
षट् + आननः = षडाननः (यहाँ ‘ट्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ड्’ होने पर)
दिक् + अम्बरः = दिगम्बरः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ग ‘ग्’ होने पर)
अच् + अन्तः अजन्तः (यहाँ ‘च’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ज्’ होने पर)
अन्तः सुबन्तः (यहाँ ‘प्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ब्’ होने पर)
षट् + दर्शनम् = षड्दर्शनम् (यहाँ ‘ट्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ड्’ होने पर)
दिक् + गजः = दिग्गजः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ग’ होने पर)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

अन्य उदाहरणानि :

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 1

4. चवं सन्धिः – सूत्र-खरि च। अर्थः – खरि परे झलां चरः स्युः। (“खरि च” अर्थ- खर् परे हो तो झलों के स्थान में चर आदेश हो।)।
व्याख्या – खरि (वर्गस्य 1, 2, श् ष् स्) परे झलां (वर्गस्य 1, 2, 3, 4 श् ष् स् ह) स्थाने चर् (क् च् ट् त् प् श् स्) प्रत्याहारस्य वर्णाः भवन्ति। यथा –
खरि (वर्ग के क्, ख्, च्, छ्, ट्, ठ्, त्, थ्, प, फ्, श्, ष, स्) परे हों तो झल् (वर्ग के क्, ख, ग, घ, च्, छ, ज, झ्, ट्, ठ्, ड्, द, त्, थ्, द्, ध्, प, फ, ब्, भ्, श, ष, स्, ह्) के स्थान पर चर् (क्, च्, ट्, त्, प् श् स्) प्रत्याहार के वर्ण होते हैं। जैसे –
सद् + कारः = सत्कारः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
विपद् + कालः = विपत्कालः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
सम्पद् + समयः = सम्पत्समयः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
ककुभ् + प्रान्तः = ककुप्प्रान्तः (यहाँ ‘भ्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘प्’ होने पर)
उद् + पन्नः = उत्पन्नः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

5. अनुस्वार-सन्धिः – सूत्र – मोऽनुस्वारः अर्थः – मान्तस्य पदस्यानुस्वारः स्याद् हलि। (‘मोऽनुस्वारः’ अर्थ मान्त पद के स्थान में अनुस्वार आदेश हो हल् परे होने पर।)
व्याख्या – पदान्तस्य मकारस्य स्थाने अनुस्वारः आदेशो भवति हलि (व्यञ्जने) परे। यथा –
(पदान्त मकार के स्थान पर अनुस्वार आदेश होता है हल् (व्यञ्जन) परे होने पर। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 2

ध्यातव्य – यदि शब्द के अन्त में ‘म्’ आये और उसके पश्चात् कोई हल् (व्यञ्जन) वर्ण आये तो ‘म्’ का अनुस्वार (-) हो जाता है। पदान्त ‘म्’ के पश्चात् कोई स्वर वर्ण आये तो ‘म्’ को अनुस्वार नहीं होता। जैसे: –
अहम् + अपि = अहमपि (यहाँ पर अहम् के स्थान पर अहं नहीं होगा।)

विसर्गसन्धिः

यदा विसर्गस्य स्थाने किमपि परिवर्तनं भवति तदा सः विसर्गसन्धिः इति कथ्यते। (जब विसर्ग के स्थान पर कोई भी परिवर्तन होता है तब उसे विसर्ग सन्धि कहा जाता है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

1. विसर्गस्य लोपः

1.1 आतोऽशि विसर्गस्य लोपः – आकारात् परस्य विसर्गस्य अशि (स्वरे मृदुव्यञ्जने च) परे लोपो भवति। उदाहरणानि- आकार से परे विसर्ग का अशि (स्वर और मृदु व्यञ्जन में) परे होने का लोप हो जाता है। (अर्थात् विसर्ग से पहले ‘आ’ हो और उसके (विसर्ग के) पश्चात् कोई भी स्वर हो या वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य व र ‘ल ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 3

1.2 “अतोऽनत्यचि विसर्ग लोपः” – अकारात् परस्य विसर्गस्य अकारं वर्जयित्वा स्वरे परे लोपो भवति।
उदाहरणानि –
(विसर्ग से पहले अकार हो और उसके बाद ‘अ’ से भिन्न कोई स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 8

1.3 “एतत्तदोः सुलोपोऽकोरनञ्समासे हलि” अककारयोः एतत्तदोः यः ‘सुः’ (स-विसर्गः) तस्य लोपः स्याद् हलि न तु नसमासे। (ककार रहित एतद् और तद् शब्द का जो ‘सु’ (प्रथमा विभक्ति का एकवचन) (स – विसर्गः) उसका लोप हो हल् परे होने पर परन्तु नबसमास में न हो।)

अयं भावः – नसमासं विहाय ‘एषः’ ‘सः’ इत्यनयो पदयोः विसर्गस्य अकारं विहाय यत्किञ्चवर्णे परे लोपो भवति। उदाहरणानि- (भाव यह है – नबसमास को छोड़कर ‘एषः”सः’ इन पदों में विसर्ग के अकार को छोड़कर अर्थात् ‘सः’ ‘एषः’ के पश्चात् ‘अ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर या व्यञ्जन हो, वहाँ विसर्ग का लोप होता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 4

1.4 ‘रो रि” रेफस्य रेफे परे लोप: स्यात्।
अयं भावः – स्वरात्परस्य विसर्गस्य रेफे परे लोपो भवति। लोपे कृते पूर्वस्वरः दीर्घश्च भवति। उदाहरणानि- (भाव यह है – विसर्ग से बने ‘र’ के पश्चात् यदि ‘र’ आये तो पूर्व के ‘र’ का लोप हो जाता है तथा लोप होने वाले ‘र’ से पूर्व के अ, ई, उ का दीर्घ हो जाता है जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 5

2. उत्वसन्धिः – अतो रोरप्लुतादप्लुते।
अर्थः – अप्लुतादतः परस्य रोरुः स्यादप्लुतेऽति। (अप्लुत अकार से परे ‘रु’ के स्थान में उकार हो अप्लुत अकार परे होने पर।)
व्याख्या- हस्वात् अकारात् उत्तरस्य रोः (रेफस्य स्थाने) उकारादेशो भवति ह्रस्वे अकारे परे। (हस्व अकार से पर (बाद में) रोः (रेफ के स्थान पर) का उकार आदेश होता है ह्रस्व अकार परे होने पर।)
विशेषः – अः + अ इति स्थिते विसर्गस्य स्थाने ओकारस्य मात्रा भवति, अन्तिमस्य अकारस्य च स्थाने अवग्रहः (s) भवति। अर्थात् उत्सवसन्धेः अनन्तरं गुणसन्धिः पररूपसन्धिः च भवतः। यथा –
(अः + अ इस स्थिति में विसर्ग के स्थान पर ओकार की मात्रा होती है और अन्तिम अकार के स्थान पर (s) अवग्रह होता है। अर्थात् उत्व सन्धि के बाद गुणसन्धि और पररूप सन्धि होती हैं। जैसे-)

कः + अपि . = कोऽपि।
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्
रामः + अयम् = रामोऽयम्
शिवः + अर्चः = शिवोऽर्थ्य:
सः + अपि = सोऽपि
छात्रः + अयम् = छात्रोऽयम्
नृपः + अस्ति = नृपोऽस्ति

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

अन्य उदाहरणानि

कुतः + अत्र = कुतोऽत्र
नामधेयः + असि = नामधेयोऽसि
भीतः + अस्मि = भीतोऽस्मि
कोऽत्र कुमारः + अयम् = कुमारोऽयम्
अस्य = कोऽस्य भणितः असि = भणितोऽसि
कः + अभूत् = कोऽभूत्
पथिकः + अपि = पथिकोऽपि
इतः + अपि = इतोऽपि
एकल: + अपि = एकलोऽपि
प्रवेशितः + अयं = प्रवेशितोऽयं
विलक्षणः + अयम् = विलक्षणोऽयम्
प्रस्तुतः + अयं = प्रस्तुतोऽयं
वाक्यांशः + अपि = वाक्यांशोऽपि
मुक्तः + अथवा = मुक्तोऽथवा
शिखरस्थः + अपि = शिखरस्थोऽपि
विवेकः + अस्ति विवेकोऽस्ति
धन्यः + असि = धन्योऽसि
शुष्कः + अपि = शुष्कोऽपि कोऽपि
अरयः + अपि = अरण्योऽपि शासकः
रहितः + अपि = रहितोऽपि
एकः + अपि = एकोऽपि
श्रेयः + अन्यत् = श्रेयोऽन्यत्
संग्रहः + अस्ति संग्रहोऽस्ति
प्रस्तुतः + अयं = प्रस्तुतोऽयं”
कः + अयम् = कोऽयम्
प्राप्तः + अहं = प्राप्तोऽहं
सः + अपि = सोऽपि

उत्वसन्धिः – हशि च।

अर्थः – अप्लुतादतः परस्य रोरुः स्याद्धशि। (अर्थ – हश् (ह य व र ल ब म ङ ण न झ भ घ ढ ध ज ब ग ड द) परे रहने पर भी अप्लुत अकार से परे ‘रु’ के स्थान में उकार हो।)

व्याख्या – ह्रस्वात् अकारात् उत्तरस्य रोः (रेफस्य स्थाने) उकारादेशो भवति हशि (वर्गस्य 3, 4, 5, ह य् व् र ल्)
(ह्रस्व अकार से बाद का रोः (रेफ के स्थान पर) उकार आदेश होता है हशि (वर्ग का 3, 4, 5, ह य व् र ल्) परे होने पर भी।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

विशेषः – अः + हश् (वर्गस्य 3, 4, 5, ह य व र ल) इति स्थिते विसर्गस्य स्थाने ओकारस्य मात्रा भवति। अर्थात् उत्वसन्धेः अनन्तरं गुणसन्धिः भवति। यथा – (अः + हश् (वर्ग का 3, 4, 5, वर्ण या ह् य् व् र् ल्) इस स्थिति में विसर्ग के स्थान पर ओकार की मात्रा होती है। अर्थात्, उत्व सन्धि के बाद गुण सन्धि होती है। जैसे-)

शिवः + वन्द्यः = शिवो वन्द्यः
रामः + हसति = रामो हसति
बालः + याति = बालो याति
बुधः + लिखति = बुधो लिखति
बालः + रौति = बालो रौति
नमः + नमः = नमो नमः
रामः + जयति = रामो जयति
क्षीणः + भवति = क्षीणो भवति
मनः + हरः = मनोहरः
यशः + दा = यशोदा

3. रुत्व सन्धिः – “इचोऽशि विसर्गस्य रेफः” – इचः (अ, आ इत्येतौ वर्जयित्वा स्वरात्) परस्य विसर्गस्य अशि (स्वरे मृदु-व्यञ्जने च) परे रेफादेशो भवति। उदाहरणानि –
(अ आ इन दोनों वर्जित स्वर से) पर विसर्ग हो (स्वर और मृदु व्यञ्जन में) परे रेफ आदेश होता है। अर्थात्
(यदि प्रथम पद के विसर्ग से पूर्व ‘अ’ अथवा ‘आ’ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तथा विसर्ग के बाद कोई स्वर, वर्गों का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ण या य व र ल ह में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग को ‘र’ हो जाता है।)
जैसे – हरिः + अयम् = हरिरयम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 6

अव्ययसम्बन्धिनः – ऋकारान्तशब्दस्य सम्बोधनसम्बन्धिनश्च विसर्गस्य अकारात् आकारात् च परस्यापि रेफादेशो भवति। उदाहरणानि- (ऋकारान्त और सम्बोधन सम्बन्धी शब्दों के विसर्ग का अकार और अकार से परे का भी.रेफ आदेश होता है।) उदाहरण –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 7

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. सत्वसन्धिः – विसर्जनीयस्य सः
अर्थः – खरि परे विसर्जनीयस्य सः स्यात्। (“विसर्जनीयस्य सः’ विसर्ग के स्थान में सकार आदेश हो ‘खर्’ परे होने पर। ‘खर्’ = ख फ छ ठ थ च ट त क प श ष स)

व्याख्या – विसर्गस्य स्थाने सकारो भवति खरि (वर्गस्य 1, 2, श् ष् स्) परे। यथा- (विसर्ग के स्थान पर सकार होता है खर (वर्ग के 1, 2, श, ष, स्) परे होने पर।)

अर्थात् विसर्ग के परे (क ख च छ ट ठ त थ प फ श ष स) इनमें से कोई वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है। जैसे- ‘नमः + ते’ यहाँ विसर्ग से परे ‘त’ वर्ण है जो खर् प्रत्याहार के अन्तर्गत है अतः विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ होकर ‘नम स + ते = ‘नमस्ते’ सिद्ध होता है। उदाहरण –

विष्णुः + त्राता = विष्णुस्त्राता
रामः + च = रामश्च
धनुः + टङ्कार = धनुष्टङ्कारः
निः + छलः = निश्छलः
विसर्गसन्धिः – वा शरि

अर्थः – शरि विसर्गस्य विसर्गो वा स्यात्।

व्याख्या – विसर्गस्य स्थाने विकल्पेन विसर्गादेशो भवति शरिश (श् ‘स्) परे। यथा –

हरिः + शेते – हरिः शेते/हरिश्शेते
निः + सन्देहः = निःसन्देह/निस्सन्देह
नृपः + षष्ठः = नृपः षष्ठः/नृपष्षष्ठ

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

अन्य उदाहरणानि –

पुनः + च = पुनश्च (विसर्ग का श् होकर)
व्याकुलः + चलितः = व्याकुलश्चलितः (विसर्ग का श् होकर)
कपोताः + तत्रोपविष्टाः = कपोतास्तत्रोपविष्टाः (विसर्ग का स् होकर)
अवलम्बिताः + तं = अवलम्बितास्त (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
प्रतीकारः + चिन्त्यताम् = प्रतीकारश्चिन्त्यताम् (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
ततः + तेषु ततस्तेषु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
भ्रान्ताः + सन्ति भ्रान्तास्सन्ति (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
चिन्तकैः च = चिन्तकैश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
हिमाद्रेः + चैव = हिमाद्रेश्चैव (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
धन्याः + तु = धन्यास्तु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
जन्मभूमिः + च = जन्मभूमिश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
भवतः + सर्वदा = भवतस्सर्वदा (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
शिक्षणीयाः + तु = शिक्षणीयास्तु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
देवगुरोः + तपोवने = देवगुरोस्तपोवने (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
क्रः + तस्य = क्रस्तस्य (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
धीरनायकः + च = धीरनायकश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
मातुः + च = मातुश्च (विसर्ग का ‘श’ होकर)
मधुर + च = मधुरश्च (विसर्ग का ‘श’ होकर)
शब्दाः + सन्ति = शब्दास्सन्ति (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
मनः + तोषः = मनस्तोषः (विसर्ग का ‘स्’ होकर)

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित प्रश्नानाम् उचित विकल्पं चित्वा लिखत –
1. “हिमादेश्च’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदो भविष्यति –
(अ) हिमाद्रिः + च
(ब) हिमाद्रे + च
(स) हिमाद्रेः + च
(द) हिमाद्रेश + च
उत्तरम् :
(अ) हिमाद्रिः + च

2. ‘धन्यास्तु’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) धन्याः + तु
(ब) धन्या + अस्तु
(स) धन्य + अस्तु
(द) धन्य + आस्तु
उत्तरम् :
(अ) धन्याः + तु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

3. ‘जन्मभूमिश्च’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) जन्मभूमि + श्च
(ब) जन्मभूमिः + च
(स) जन्मभू + मिश्च
(द) जन्म + भूमिश्च।
उत्तरम् :
(ब) जन्मभूमिः + च

4. ‘भवतस्सर्वदा’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) भवतस + सर्वदा
(ब) भवतस् + सर्वदा
(स) भवतः + सर्वदा
(द) भवत् + सर्वदा
उत्तरम् :
(स) भवतः + सर्वदा

5. ‘गत एव’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) गतः + एव
(ब) गत + एव
(स) गते + एव
(द) गतम् + एव
उत्तरम् :
(अ) गतः + एव

6. अभूमिः + इयम् इत्यनयोः पदयोः सन्धिः अस्ति।
(अ) अभूमिरियम्
(ब) अभूमीयम्
(स) अभूमि इयम्
(द) अभूमिसियम्।
उत्तरम् :
(अ) अभूमिरियम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

7. ‘अतः एव’ इति पदयोः सन्धि भवति –
(अ) अतदेव
(ब) अत एव
(स) अतैव
(द) अतसेव।
उत्तरम् :
(ब) अत एव

8. कः + अयम् पदयोः सन्धि अस्ति –
(अ) कअयम
(ब) करयम्
(स) कसमयम्
(द) कोऽयम्
उत्तरम् :
(द) कोऽयम्

9. ‘एषः + उपदेशः’ इत्यत्र सन्धिः स्यात् –
(अ) एषोपदेशः
(ब) एषउपदेश
(स) एषरूपदेशः
(द) एषसुपदेश
उत्तरम् :
(ब) एषउपदेश

10. ‘काकः + न’ इत्यनयोः सन्धिः भवति
(अ) काकन
(ब) काकरन
(स) काको न
(द) काकसन
उत्तरम् :
(स) काको न

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 2.
प्रकोष्ठात् चितं विकल्पं चित्वा रिक्त स्थान पुरयत –
1. ‘मातुराम …………………. केसरम्। (मातुः + आमद/मातु + आमद)
2. तस्य ‘पितुः + नाम’ ……………… ठाकुरसी ढाका आसीत्। (पितुरनाम्/पितुनमि)
3. ‘शुष्कोऽपि नित्यं सरसः ‘स देश’ ………… (सः + देश/सो. + देश:)
4. ‘गृहीत इव’ ……………………. केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत्। (गृहीतः + इव/गृहीतो इव)
5. ‘को नु’ खल्वेष ………….. निषिध्यते। (क + उनु/कः + नु)
उत्तरम् :
1. मातुः + आमर्द,
2. पितुर्नाम,
3. स: + देश,
4. गृहीतः + इव,
5. कः + नु।

प्रश्न 3.
अधोलिखित पदेष सन्धिं/सन्धि विच्छेदं वा कुरुत सन्धि-नाम अपि लिखत (निम्न पदों में सन्धि/संधि-विच्छेद कीजिए और सन्धि का नाम भी लिखिए-)
1. दिग्गजाः चत्वारः भवन्ति।
उत्तरम् :
दिक् + गजाः (हल – जश्त्व)

2. सत् + चरित्रः जनः पूज्यते।
उत्तरम् :
सच्चरित्रः (हल् – श्चुत्व)

3. चलदनिशम्
उत्तरम् :
चलत् + अनिशम् (हल्-जश्त्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. स्यान्नैव
उत्तरम् :
स्यात् + न + एव (हल् – अनुनासिक)

5. प्राकृतिरेव
उत्तरम् :
प्रकृतिः + एव (विसर्ग रुत्व)

6. अस्मात् + नगरात्
उत्तरम् :
अस्मान्नगरात् (हल् – अनुनासिक)

7. आकृतिः + न
उत्तरम् :
आकृतिर्न (विसर्ग सन्धि रुत्व)

8. ततस्तया
उत्तरम् :
ततः + तया (विसर्ग सत्व)

9. मनोहरः
उत्तरम् :
मनः + हरः (विसर्ग सन्धि, उत्व विधान)

10. यशोदा
उत्तरम् :
यशः + दा (विसर्ग सन्धि, उत्व विधान)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

11. वागीशः
उत्तरम् :
वाक् + ईशः (जश्त्व विधान)

12. नमस्ते
उत्तरम् :
नमः + ते (विसर्गे, सत्व विधान)

13. कथं तच्छत्रुः ?
उत्तरम् :
तत् + शत्रुः (हल् – छत्व)

14. कोलोऽयं विद्यते तव भारती।
उत्तरम् :
कोषः + अयम् (विसर्ग-पूर्वरूप)

15. पदच्छेदं कृत्वा पठेत्।
उत्तरम् :
पद + छेदम् (हल् – तुक् आगम)

16. जगत् + ईशः सर्वान् रक्षति।
उत्तरम् :
जगदीशः (हल् – जश्त्व)

प्रश्न 4.
स्थूलपदेषु सन्धिच्छेदं सन्धिं वा कृत्वा उत्तरं पुस्तिकायां लिखत –
(मोटे शब्दों में सन्धि-विच्छेद या सन्धि करके उत्तरपुस्तिका में लिखिए)
1. (i) मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।
(ii) जय जगदीश हरे !
(ii) नीरोगः जनः सुखी भवति।
(iv) षट् + आनन: गणेशः।
उत्तरम् :
(i) मृगाः + चरन्ति
(ii) जगत् + ईश
(ii) निर् + रोगः
(iv) षडाननः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

2. (i) पश्य एतच्चित्रम्।
(i) तच्छ्लोकं श्रुत्वा राजा प्रसन्नोऽभवत्।
(iii) एतच्छ्रुत्वा जनाः तत्र आगताः।
(iv) सूतः उवाच।
उत्तरम् :
(i) एतत् + चित्रम्।
(i) तत् + श्लोकम्।
(iii) एतत् + श्रुत्वा
(iv) सूत उवाच

3. (ii) पापिनाञ्च विनाशः भवति।
(ii) उद् + शिष्टम् उपसार्येत्।
(iii) एतत् + शोभनं चित्रम्।
(iv) अत्र अजाश्चरन्ति।
उत्तरम् :
(i) पापिनाम् + च।
(i) उच्छिष्टम्
(iii) एतच्छोभनम्।
(iv) अजाः + चरन्ति।

4. (i) श्रीमच्छरच्चन्द्रः।
(ii) चञ्चलः एष बालकः।
(iii) त्वं धन्योऽसि।
(iv) द्वयोः + अपि
उत्तरम् :
(i) श्रीमत् + शरत् + चन्द्रः
(ii) चम् + चलः।
(iii) धन्यः + असि
(iv) द्वयोरपि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 5.
स्थूलपदेषु सन्धिच्छेदं अथवा सन्धि कृत्वा उत्तरपुस्तिकायां लिखत –
(मोटे शब्दों में सन्धि-विच्छेद या सन्धि करके उत्तर पुस्तिका में लिखिए)
1. (i) कपिः इतस्ततः भ्रमति।
(ii) केचन जनाः विद्याम् इच्छन्ति, केचन धनम् + च।
(iii) तच्छ्लोकं श्रुत्वा कः प्रसन्नः न भविष्यति ?
(iv) एतच्छ्रुत्वा जनाः ततो गताः।
उत्तरम् :
(i) इतः + ततः
(ii) धनञ्च
(iii) तत्+श्लोकम्
(iv) एतत् + श्रुत्वा

2. (i) रामः + च लक्ष्मणश्च वनं गतौ।
(ii) सन्तोषः एव सत् + निधानम्।
(iii) मेघः + गर्जति।
(iv) कामात् क्रोधोऽभिजायते।
उत्तरम् :
(i) रामश्च
(ii) सन्निधानम्
(iii) मेघो गर्जति
(iv) क्रोधः + अभिजायते

3. (i) अनिच्छन् + अपि वार्ष्णेय ! बलादिव नियोजितः।
(ii) तत् + श्रुत्वा यूथपतिः सगद्गदम् उक्तवान्।
(iii) अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारति।
(iv) मन्ये वायोः + इव सुदुष्करम्।
उत्तरम् :
(i) अनिच्छन्नपि
(ii) तच्छ्रुत्वा
(iii) कोशः + अयम्
(iv) वायोरेव

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) दहन्निव प्रचण्डज्वालः अग्निः प्रचलति।
(ii) पापिनाम् + च सदा दुःखम्।
(iii) सर्वदा विद्यमानोऽस्य कार्यकलापं पश्यामि।
(iv) पश्य एतच्चित्रम्।
उत्तरम् :
(i) दहन् + इव
(ii) पापिनाञ्च
(iii) विद्यमानः + अस्य
(iv) एतत् + चित्रम्

5. (i) सा एव कीर्ति धनं च प्राप्नोति।
(ii) जय जगदीश हरे।
(iii) वने मृगाः + चरन्ति।
(iv) तच्छ्रुत्वा तेषु एकः बालकः उवाच – ‘अपि भोः।’
उत्तरम् :
(i) धनञ्च
(ii) जगत् + ईशः
(iii) मृगाश्चरन्ति
(iv) तत् + श्रुत्वा

6. (i) अपि इदं श्रेयः + करम्।
(ii) कोऽनर्थफल मानः।
(iii) कस्मिन् + चित् नगरे चन्द्रो नाम भूपतिः अवसत्।
(iv) पाण्डवास्त्वं च राष्ट्र च सदा संरक्ष्यमेव हि।
उत्तरम् :
(i) श्रेयस्करम्
(ii) कः + अनर्थफलः
(iii) कस्मिंश्चित्
(iv) पाण्डवाः + तम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

7. (i) मृण्मयं भाजनं, तेन तम् आशु ताडयन्ति स्म।
(ii) न कुर्यात् + अहितं कर्म।
(iii) राजा सुधीभ्यः धनं मानम् + च यच्छति।
(iv) पापिनाम् + च सदा दुःखम्।
उत्तरम् :
(i) मृद् + मयम्
(i) कुर्यादहितम्
(iii) मानञ्च।
(iv) पापिनाञ्च

प्रश्न 6.
अधोलिखित पदेषु सन्धिं / सन्धि-विच्छेदं कृत्वा सन्धि-नाम अपि लिखत।
(निम्न पदों में सन्धि/सन्धि विच्छेद कीजिए और सन्धि का नाम भी लिखिए।)
1. (i) अधोमुखी
(i) मुहुर्मुहुः
(iii) अत एव
उत्तरम् :
(i) अधः + मुखी (विसर्ग-उत्व)
(ii) मुहुः + मुहुः (विसर्ग-रुत्व)
(iii) अतः + एवः (विसर्ग-लोप)

2. (i) केतकच्छदत्वम्
(ii) कश्चित्
(iii) उत्खाता
उत्तरम् :
(i) केतक + छदत्वम् (तुकागम)
(ii) कः + चित् (विसर्ग श्चुत्व)
(iii) उद् + खाता (हल् – चव)

3. (i) कान्तिः + गात्राणाम्
(ii) वयोरूप
(iii) व्यायामो हि
उत्तरम् :
(i) कान्तिर्गात्राणाम् (विसर्ग-रुत्व)
(ii) वयः + रूप (विसर्ग)
(iii) व्यायामः + हि (विसर्ग-उत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) वायुर्यदा
(ii) एकः + तावत्
(iii) तावद्विभज्य
उत्तरम् :
(i) वायुः + यदा (विसर्ग-रुत्व)
(ii) एकस्तावत (विसर्ग सत्व)
(iii) तावत् + विभज्य (हल्-जश्त्व)

5. (i) महतोभयात्
(ii) यन्मानुषात्
(iii) पुनः + आयान्तम्
उत्तरम् :
(i) महतः + भयात् (विसर्ग-उत्व)
(ii) यत् + मानुषात् (हल्-अनु)
(iii) पुनरायान्तम् (विसर्ग रुत्व)

6. (i) हसन्नाह
(ii) बुद्धिर्बलवती
(iii) पुनरपि
उत्तरम् :
(i) हसन् + आह (हल् – द्वित्व)
(ii) बुद्धिः+बलवती (विसर्ग-रुत्व)
(iii) पुनः + अपि (विसर्ग-रुत्व)

7. (i) मनस्तु
(ii) क्रोधो हि
(iii) अश्वः + चेत्
उत्तरम् :
(i) मनः + तु (विसर्ग-रुत्व)
(ii) क्रोधः + हि (विसर्ग-उत्व)
(iii) अश्वश्चेत् (विसर्ग-सत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 7.
स्थूलपदेषु सन्धिं
सन्धि विच्छेदंवा कृत्वा उत्तर पुस्तिकायां लिखत – (मोटे अक्षर वाले पदों में सन्धि अथवा सन्धि-विच्छेद करके उत्तर पुस्तिका में लिखिए।)
1. (i) कस्मिन्नपि कर्मणि वा
(ii) अथ राजानं मुनिरुवाच
(iii) उपचारेण स्वस्थो जातः।
(iv) अस्मद् + जन आदिष्यते।
उत्तरम् :
(i) कस्मिन् + अपि (हल्)
(ii) मुनिः + उवाच (विसर्ग)
(iii) स्वस्थः + जातः (विसर्ग-उत्व)
(iv) अस्मज्जन (हल् – श्चुत्व)

2. (i) वराको जनः क्षन्तव्योऽयम्।
(ii) एष एव ते निश्चयः ?
(iii) किं पुनः + असन्तम्।।
(iv) रिक्तोऽसि यज्जलद।
उत्तरम् :
(i) वराकः + जनः (विसर्ग-उत्व)
(ii) एषः + एव (विसर्ग लोप)
(iii) पुनरसन्तम् (विसर्ग रुत्व)
(iv) यत् + जलद (हल् – श्चुत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

3. (i) चौरः + एव उच्चे क्रोशितुमारभत।
(ii) पुनस्तौ घटनायाः विषये वक्तुमादिष्टौ।
(iii) यदुक्तं तद् वर्णयामि।
(iv) कश्चिज्जनः केनापि हतः।
उत्तरम् :
(i) चौर एव (विसर्ग लोप)
(ii) पुनः + तौ (विसर्ग)
(iii) यत् + उक्त (हल)
(iv) कश्चित् + जनः (हल्-श्चुत्व)

4. (i) एक एव खगोमानी।
(ii) सरः + त्वयि सङ्कोचमञ्चति
(iii) तरोरस्य पुष्टिः।
उत्तरम् :
(i) खगः + मानी (विसर्ग-उत्व)
(ii) सरस्त्वयि (विसर्ग-सत्व)
(iii) तरोः + अस्य (विसर्ग)

5. (i) श्वोवा कथं नु भवितेति। .
(ii) रात्रौ जानुर्दिवाभानुः।
(iii) प्र + छादनं दोषमुत्पादयति।
(iv) परैर्न परिभूयते।
उत्तरम् :
(i) श्वः + वा (विसर्ग-उत्व)
(ii) जानुः + दिवा (विसर्ग रुत्व)
(iii) प्रच्छादनम् (तुकागम्)
(iv) परैः + न (विसर्ग-रुत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 8.
रेखाङ्कितपदेषु सन्धिविच्छेदं सन्धिं वा कृत्वा उत्तरं उत्तरपुस्तिकायां लिखत – (रेखांकित पदों में सन्धि विच्छेद अथवा सन्धि कर उत्तर उत्तरपुस्तिका में लिखिए-)
1. (i) ब्रह्ममयि जय वागीश्वरी
(ii) बाला: + अत्र
(iii) मतिरास्ताम् नः तव पद कमले
(iv) साधुः + भव
उत्तरम् :
(i) वाक् + ईश्वरी
(ii) बाला अत्र
(iii) मतिः + आस्ताम्
(iv) साधुर्भव

2. (i) लताः + एधन्ते
(ii) पुन: + च
(iii) नानादिक् + देशात्
(iv) मनीषा
उत्तरम् :
(i) लता एधन्ते
(ii) पुनश्च
(iii) नानादिग्देशात्
(iv) मनस् + ईषा

3. (i) अद्य प्रातरेव अनिष्ट दर्शनं जातम्
(ii) तस्मिन्नेव काले
(iii) कुतोऽत्र निर्जने वने तण्डुलकणान्
(iv) पुनः + अपि
उत्तरम् :
(i) प्रातः + एव
(ii) तस्मिन् + एव
(iii) कुतः + अत्र
(iv) पुनरपि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) पतञ्जलि
(ii) धन्याः + तु
(iii) वाग् + मूलम्
(iv) भीतोऽस्मि
उत्तरम् :
(i) पतत् + अञ्जलि
(ii) धन्यास्तु
(iii) वाङ्मूलम्/वाग्मूलम्
(iv) भीतः + अस्मि

5. (i) एतत् + मुरारि
(ii) हरिम् वन्दे
(iii) ताः + गच्छन्ति
(iv) कः + अत्र
उत्तरम् :
(i) एतन्मुरारि/एतमुरारि
(ii) हरिम् वन्दे
(iii) ता गच्छन्ति
(iv) कोऽत्र

6. (i) विभ्रत् + न
(ii) व्याकुलश्चलितः
(iii) जगदीश्वरान्
(iv) ततः + तेषु
उत्तरम् :
(i) विभ्रन्न।
(ii) व्याकुलः + चलितः
(iii) जगत् + ईश्वरान्
(iv) ततस्तेषु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 9.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कृत्वा सन्धेः नामापि लिखत।
(निम्नलिखित पदों में सन्धि अथवा सन्धि विच्छेद करके सन्धि का नाम भी लिखिए।)
1. (i) भूमिरस्ति
(ii) वृद्धाः यान्ति
(iii) सवैरेकचित्तीयभूय
उत्तरम् :
(i) भूमिः + अस्ति (सत्व विसर्ग)
(ii) वृद्ध यान्ति (विसर्ग लोप)
(iii) सर्वैः + एकचित्तीयभूय (रुत्व विसर्ग)

2. (i) बालाः + हसन्ति
(ii) भ्रान्तासन्ति
(iii) दिक् + अम्बरः
उत्तरम् :
(i) बाला हसन्ति (विसर्ग लोपः)
(ii) भ्रान्तः + सन्ति (सत्व विसर्ग)
(iii) दिगम्बरः (जश्त्व सन्धि)

3. (i) भणितो + असि
(ii) उज्ज्वलः
(ii) विपत्काल:
उत्तरम् :
(i) भणितः + असि (उत्व विसर्ग)
(ii) उद् + ज्वलः (श्चुत्व सन्धिः)
(iii) विपद् + कालः (चर्व सन्धिः)

4. (i) बालः + याति
(ii) कः + अपि
(iii) नमः + ते
उत्तरम् :
(i) बालो याति (उत्व सन्धिः)
(ii) कोऽपि (उत्व सन्धिः)
(iii) नमस्ते (सत्व सन्धिः)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

5. (i) सत्यं वद
(ii) कालादेव
(iii) सद् + काल:
उत्तरम् :
(i) सत्यम् + वद् (अनुस्वार सन्धिः)
(ii) कालांत् + एव (जश्त्व सन्धिः)
(iii) सत्कारः (चर्व सन्धिः)

6. (i) दिक् + गजः
(ii) गृहं गच्छति
उत्तरम् :
(i) दिग्गजः (जश्त्व सन्धिः)
(ii) कं + पते (परसवर्ण)
(iii) गृहम् + गच्छति (मोऽनुस्वार)।

7. (i) रामः + आगच्छति
(ii) चित्तकैः + च
(iii) दुखं प्राप्नोति
उत्तरम् :
(i) राम आगच्छति (विसर्ग लोप)
(ii) चित्तकैश्च (सत्व विसर्ग)
(iii) दुखम् प्राप्नोति (मोऽनुस्वार)

8. (i) सच्चित्
(ii) इष्टः
(iii) जगत् + ईशः
उत्तरम् :
(i) सत् + चित् (श्चुत्व सन्धिः)
(ii) इष् + त्: (ष्टुत्व सन्धिः)
(iii) जगदीशः (जश्त्व सन्धिः)

प्रश्न 10.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं व कृत्वा सन्धेः नामापि लिखत (निम्नलिखित पदों में सन्धि अथवा सन्धि-विच्छेद कर सन्धि का नाम भी लिखिए-)
1. (i) सम्पद् + समयः
(ii) त्वं पठसि
(iii) सत् + उपदेश
उत्तरम् :
(i) सम्पत्समयः (चर्व सन्धिः)
(ii) त्वम् + पठसि (मोऽनुस्वार)
(iii) सदुपदेश (जश्त्व सन्धिः)

2. (i) एकल: + अपि
(ii) चित्तकैः + च
(iii) कृषेः + भयम्
उत्तरम् :
(i) एकलोऽपि (उत्व विसर्ग)
(ii) चित्तकैश्च (सत्व विसर्ग)
(iii) कृषेर्भयम् (रुत्व विसर्ग)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

3. (i) अजन्तः
(ii) विपद् + काल
(iii) सुबन्त
उत्तरम् :
(i) अच + अन्त (जश्त्व सन्धिः)
(ii) विपत्काल (चर्व सन्धिः)
(iii) सुप् + अन्त (जश्त्व)

4. (i) अरयोऽपि
(ii) भवतः + सर्वद
(iii) वाक् + ईशः
उत्तरम् :
(i) अरयः + अपि (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) भवतस्सर्वदा (सत्व विसर्ग)
(iii) वागीश (जश्त्व सन्धिः)

5. (i) कोऽभूत्
(ii) विलक्षण: + अयम्
(iii) अहम् + धावामि
उत्तरम् :
(i) कः + अभूत (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) विलक्षणोऽयम् (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(iii) अहं धावामि (मोऽनुस्वार)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

6. (i) शुष्कोऽपि
(ii) जन्मभूमिश्चः
(iii) देवैः + अनिशं
उत्तरम् :
(i) शुष्कः अपि (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) जन्मभूमिः + च (सत्व विसर्ग सन्धिः)
(iii) देवैरनिशं (रुत्व विसर्ग सन्धिः)

7. (i) कृष्ण एति
(ii) मनः + तोषः
(iii) प्रागेव
उत्तरम् :
(i) कृष्णः एति (विसर्ग लोप)
(ii) मन स्तोषः (सत्व विसर्ग)
(iii) प्राक् + एव (जश्त्व)

8. (i) भूमिः + इयम्
(ii) बाल: + इच्छति
(iii) कस्तस्य
उत्तरम् :
(i) भूमिरियम् (रुत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) बाल इच्छति (विसर्ग लोप)
(iii) कः + तस्य (सत्व विसर्ग सन्धिः)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 पर्यावरणम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 पर्यावरणम् Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 पर्यावरणम्

JAC Class 9th Sanskrit पर्यावरणम् Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत- (एक शब्द में उत्तर लखिए-)
(क) मानवः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति? (मनुष्य कहाँ सुरक्षित है?)
उत्तरम् :
पर्यावरणकुक्षौ (पर्यावरण की कोख में)।

(ख) सुरक्षितं पर्यावरणं कुत्र उपलभ्यते? (सुरक्षित पर्यावरण कहाँ प्राप्त होता था?)
उत्तरम् :
वने। (वन में)।

(ग) आर्षवचनं किमस्ति? (प्रामाणिक वचन क्या है?)
उत्तरम् :
धर्मो रक्षति रक्षितः। (रक्षित ही धर्म की रक्षा करता है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

(घ) पर्यावरणमपि कस्य अङ्गम् इति? (पर्यावरण भी किसका अंग है?)
उत्तरम् :
धर्मस्य (धर्म का)।

(ङ) लोकरक्षा कया संभवति? (लोक रक्षा किससे हो सकती है?)
उत्तरम् :
पर्यावरणेन। (पर्यावरण से।)

(च) प्रकृति केषां संरक्षणाय यतते? (प्रकृति किनके संरक्षण का यत्न करती है?)
उत्तरम् :
समेषां प्राणीनाम्। (सभी प्राणियों की।)

2. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत – (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि कानि सन्ति? (प्रकृति के प्रमुख तत्त्व क्या हैं?).
उत्तरम् :
पृथिवी, जलं, तेजः, वायुः आकाशश्च प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि सन्ति। (पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश प्रकृति के प्रमुख तत्त्व हैं।)

(ख) स्वार्थान्धः मानवः किं करोति? (स्वार्थ में अन्धा मानव क्या करता है?)
उत्तरम् :
स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणं नाशयति। (स्वार्थ में अन्धा हुआ मानव पर्यावरण को नष्ट करता है।)

(ग) पर्यावरणे विकृते जाते किं भवति? (पर्यावरण के विकृत होने पर क्या होता है?)
उत्तरम् :
पर्यावरणे विकृते जाते विविधाः रोगाः भीषणसमस्याश्च जायन्ते। (पर्यावरण के विकृत होने पर विविध रोग तथा भीषण समस्याएँ पैदा हो जाते है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

(घ) अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा कथं करणीया? (हमें पर्यावरण की रक्षा कैसे करनी चाहिए?)
उत्तरम् :
प्रकृतेः तत्त्वानि संरक्ष्य अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा करणीया। (हमें प्रकृति के तत्त्वों की रक्षा करके पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए।)

(ङ) लोकरक्षा कथं सम्भवति? (लोकरक्षा कैसे सम्भव होती है?)
उत्तरम् :
लोकरक्षा प्रकृतिरक्षयैव सम्भवति। (लोक-रक्षा प्रकृति-रक्षा से ही सम्भव है।)

(च) परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं किं किं ददाति? (शुद्ध पर्यावरण हमें क्या-क्या देता है)
उत्तरम् :
परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिकजीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसंकल्पं माङ्गलिकसामग्री च प्रददाति।
(शुद्ध पर्यावरण हमारे लिए सांसारिक जीवनसुख, अच्छे विचार, सत्यसंकल्प और मांगलिक सामग्री प्रदान करता है।)

3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत- (मोटे छपे पदों को आधार मानकर प्रश्न-रचना कीजिए-)
(क) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते। (वन-वृक्ष बिना सोचे काट दिये जाते हैं।)
उत्तरम् :
के निर्विवेकं छिद्यन्ते? (विवेकरहित होकर क्या काट दिये जाते हैं?)

(ख) वृक्षकर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते। (वृक्ष काटने से शुद्ध वायु नहीं मिलती।)
उत्तरम् :
कस्मात् (केषां) कर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते? (क्या काटने से शुद्ध वायु प्राप्त नहीं होती?)

(ग) प्रकृतिः जीवनसुखं प्रददाति। (प्रकृति जीवन-सुख देती है।)
उत्तरम् :
प्रकृतिः किं प्रददाति? (प्रकृति क्या देती है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

(घ) अजातशिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति। (अजन्मा बालक माँ के गर्भ में सुरक्षित रहता है।)
उत्तरम् :
अजातशिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति? (अजन्मा बालक कहाँ सुरक्षित रहता है?)

(ङ) पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम् अस्ति। (पर्यावरणरक्षण धर्म का अंग है।)
उत्तरम् :
पर्यावरणरक्षणं कस्य अङ्गम् अस्ति? (पर्यावरणरक्षण किसका अङ्ग है?)

4. उदाहरणमनुसृत्य पदरचनां कुरुत – (उदाहरण का अनुसरण करके पद-रचना कीजिए-)
(क) यथा-जले चरन्ति इति

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम् 1

(ख) यथा-न पेयम् इति

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम् 2

5. उदाहरणमनुसृत्य पदनिर्माणं कुरुत – (उदाहरण के अनुसार पद-निर्माण कीजिए-)
यथा – वि + कृ + क्तिन् = विकृतिः
उत्तराणि :
(क) प्र + गम् + क्तिन् = प्रगतिः
(ख) दृश् + क्तिन् + ……….. = दृष्टिः
(ग) गम् + क्तिन् + ……….. =  गतिः
(घ) मन् क्तिन् + ……… = मतिः
(ङ) शम् + क्तिन् + ………. = शान्तिः
(च) भी + क्तिन् + ………… = भीतिः
(छ) जन् + क्तिन् + ………. = गतिः
(ज) भज् + तिन् + ……….. = भक्तिः
(झ) नी + क्तिन् + ………… = नीतिः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

6. निर्देशानुसारं परिवर्तयत-(निर्देश के अनुसार परिवर्तित कीजिए-)
यथा-स्वार्थान्धो मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयति। (बहुवचने)
स्वार्थान्धाः मानवाः अद्य पर्यावरणं नाशयन्ति।

(क) सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलं कुतः? (बहुवचने) (सन्तप्त मानव का कल्याण कहाँ से है?)
उत्तरम् :
सन्तप्तानां मानवानां मङ्गलं कुतः? (सन्तप्त मानवों का कल्याण कहाँ से है?)

(ख) मानवाः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षिताः भवन्ति। (एकवचने) (मनुष्य पर्यावरण के गर्भ में सुरक्षित हैं।)
उत्तरम् :
मानवः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितः भवति। (मनुष्य पर्यावरण के गर्भ में सुरक्षित है।)

(ग) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते। (एकवचने) (वनवृक्ष विवेकहीन होकर काटे जाते हैं।)
उत्तरम् :
वनवृक्षः निर्विवेक छिद्यते। (वनवृक्ष विवेकहीन होकर काटा जाता है।)

(घ) गिरिनिर्झरा: निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। (द्विवचने) (पहाड़ी झरने निर्मल जल प्रदान करते हैं।)
उत्तरम् :
गिरिनिर्झरौ निर्मलं जलं प्रयच्छतः। (दो पहाड़ी झरने निर्मल जल प्रदान करते हैं।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

(ङ) सरित् निर्मलं जलं प्रयच्छति। (बहुवचने) (नदी निर्मल जल प्रदान करती है।)
उत्तरम् :
सरितः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। (नदियाँ निर्मल जल प्रदान करती हैं।) पर्यावरणरक्षणाय भवन्तः किं करिष्यन्ति इति विषये पञ्चवाक्यानि लिखत। (पर्यावरण की सुरक्षा हेतु आप क्या करेंगे, इस विषय पर पाँच वाक्य लिखिए।). यथा-अहं विषाक्तम् अवकरं नदीषु न पातयिष्यामि। (मैं जहरीले कूड़े को नदियों में नहीं डालूँगा।)
उत्तरम् :
(क) वयं वक्षारोपणं करिष्यामः। (हम पेड लगायेंगे)
(ख) वयं प्रकृति रक्षिष्यामः। (हम प्रकृति की रक्षा करेंगे।)
(ग) वयं वृक्षान् न कर्तयिष्यामः। (हम वृक्षों को नहीं काटेंगे।)
(घ) वयं वन्यपशून् न व्यापादयिष्यामः। (हम वन्यपशुओं को नहीं मारेंगे।)
(ङ) वयं वापीकूपतडागानां निर्माणं करिष्यामः। (हम बावड़ियों, कुओं और तालाबों का निर्माण करेंगे।)

8. (क) उदाहरणमनुसृत्य उपसर्गान् पृथक् कृत्वा लिखत – (उदाहरण के अनुसार उपसर्गों को अलग करके लिखिए-)
यथा-संरक्षणाय = सम्
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(ख) उदाहरणमनुसत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं लिखत –
(उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित समस्त पदों के विग्रह लिखिये-)
यथा – तेजोवायुः = तेजः वायुः च
गिरिनिर्झराः = गिरयः निर्झरा: च
(i) पत्रपुष्पे = …………..
(ii) लतावृक्षौ = ……………
(iii) पशुपक्षी = ………….
(iv) कीटपतङ्गौ = …………
उत्तराणि :
(i) पत्रं पुष्पं च
(ii) लता वृक्षः च
(iii) पशुः पक्षी च
(iv) कीट: पतङ्गः च

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परियोजनाकार्यम्

(क) विद्यालयप्राङ्गणे स्थितस्य उद्यानस्य वृक्षाः पादपाश्च कथं सुरक्षिताः स्युः तदर्थं प्रयत्नः करणीयः इति सप्तवाक्येषु लिखत- (विद्यालय प्रांगण में स्थित बाग के पेड़-पौधे कैसे सुरक्षित हों, इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए, इस पर सात वाक्य लिखिए-)
उत्तरम् :
(i) वृक्षान् परितः सुरक्षा-कवचं स्थापनीयम्। (वृक्षों के चारों ओर सुरक्षा कवच (बाड़) लगाना चाहिए।)
(ii) अस्माभिः ते क्षतात् रक्षणीयाः। (हमें उनकी क्षति से रक्षा करनी चाहिए।)
(iii) वृक्षाणां, पादपानां लतानां च पुष्पाणि-पत्राणि न त्रोटनीयानि। (वृक्षों, पौधों और लताओं के फूल-पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए।)
(iv) यथासमयं ते जलेन सिंचनीयाः। (यथासमय उन्हें जल से सींचना चाहिए।)
(v) यथाकालं जीर्णानि पत्राणि शाखाः च कर्तनीयानि। (यथासमय पुराने पत्ते और शाखाएँ काट देनी चाहिए।)
(vi) वर्षाकाले वृक्षारोपणमपि करणीयम्। (वर्षाकाल में वृक्षारोपण भी करना चाहिए।)
(vii) वयं वृक्षाणां पादपानां च रक्षणार्थम् अन्यान् छात्रान् अपि प्रेरयेम।
(हमें वृक्षों और पौधों की रक्षा के लिए अन्य छात्रों को भी प्रेरित करना चाहिए।)

(ख) अभिभावकस्य शिक्षकस्य वा सहयोगेन एकस्य वृक्षस्य आरोपणं करणीयम्, यदि स्थानम् अस्ति तर्हि विद्यालय प्राङ्गणे, नास्ति चेत् स्वस्मिन् प्रतिवेशे गृहे वा कृतं सर्वं दैनन्दिन्यां लिखित्वा शिक्षकं दर्शय।
(अभिभावक अथवा शिक्षक के सहयोग से एक वृक्ष लगाइये, यदि स्थान है तो विद्यालय प्राङ्गण में, नहीं है तो अपने पड़ोस में या घर में) किए हुए को सबको डायरी में लिखकर शिक्षक को दिखाइये।
उत्तरम् :
छात्र स्वयं करें।

JAC Class 9th Sanskrit पर्यावरणम् Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
प्रकृतिः केषां संरक्षणाय प्रयतते? (प्रकृति किनके संरक्षण का प्रयत्न करती है?)
उत्तरम् :
प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय प्रयतते। (प्रकृति सभी प्राणियों के संरक्षण का प्रयत्न करती है।):

प्रश्न: 2.
प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि मिलित्वा किं रचयन्ति? (प्रकृति के प्रमुख तत्त्व मिलकर किसकी रचना करते हैं?)
उत्तरम् :
प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। (प्रकृति के प्रमुख तत्त्व मिलकर हमारे पर्यावरण की रचना करते हैं।)

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प्रश्न: 3.
मानवः किमिव पर्यावरणकुक्षौ वसति? (मानव किसकी तरह पर्यावरण के गर्भ में रहता है?)
उत्तरम् :
यथा अजातः शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ। (जैसे अजन्मा बालक माँ के गर्भ में सुरक्षित रहता है वैसे ही मानव पर्यावरण के गर्भ में।)

प्रश्न: 4.
मानवमङ्गलं कथम् असम्भवम् अस्ति? (मानव का कल्याण क्यों असम्भव है?)
उत्तरम् :
जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्याचक्र: उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलम् असम्भवम् अस्ति।
(बाढ़, अग्निभय, भूकम्प, तूफान, उल्कापात आदि से पीड़ित मानव का कल्याण असम्भव है।)

प्रश्न: 5.
विहगाः कलकूजितैः किं ददति? (पक्षी कलरव से क्या देते हैं?)
उत्तरम् :
विहगा: कलकजितैः श्रोतरसायनं ददति। (पक्षी कलरव से कर्णामत (कानों में अमत घोल) देते हैं।)

प्रश्न: 6.
प्राचीनकाले ऋषयः कुत्र निवसन्ति स्म? (प्राचीनकाल में ऋषि कहाँ रहते थे?)
उत्तरम् :
प्राचीनकाले ऋषयः वने निवसन्ति स्म। (प्राचीनकाल में ऋषि वन में रहते थे।)

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प्रश्न: 7.
ऋषयः वने किमर्थं निवसन्ति स्म? (ऋषिजन वन में क्यों रहते थे?)
उत्तरम् :
यतः वने एव सरक्षितं पर्यावरणं प्राप्नोति स्म।
(क्योंकि वन में ही सरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था।)

प्रश्नः 8.
नद्यः गिरिनिर्झराश्च किं प्रयच्छन्ति? (नदियाँ और पहाड़ी झरने क्या देते हैं ?)
उत्तरम् :
नद्यः गिरिनिर्झराः च मानवाय अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।
(नदियाँ और पहाड़ी झरने मानव के लिए अमृत के स्वाद वाला स्वच्छ जल प्रदान करते हैं।)

प्रश्न: 9.
वृक्षाः लताश्च कानि अधिकं यच्छन्ति? (पेड़ और लताएँ क्या अधिक देते हैं?)
उत्तरम् :
वृक्षाः लताश्च फलानि, पुष्पाणि ईंधनकाष्ठानि च अधिकं यच्छन्ति।
(वृक्ष और लताएँ फल, फूल और ईंधन की लकड़ी अधिक देते हैं।)

प्रश्न: 10.
कीदृशः मानवः पर्यावरणं नाशयति?
(कैसा मानव पर्यावरण को नष्ट कर देता है?)
उत्तरम् :
स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणं नाशयति।
(स्वार्थ में अन्धा हुआ मानव पर्यावरण को नष्ट कर देता है।)

प्रश्न: 11.
वनेषु छिन्नेषु किं भवति?
(जंगलों के नष्ट होने पर क्या होता है?)
उत्तरम् :
वनेषु छिन्नेषु अवृष्टिः भवति। (जंगलों के नष्ट होने पर वर्षा नहीं होती है।)

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प्रश्न: 12.
वनवृक्षाणां कर्तनेन किं भवति? (वनवृक्षों के काटने से क्या होता है?)
उत्तरम् :
वनवृक्षाणां कर्तनेन अवृष्टिः भवति, शरणरहिताः वनपशवः ग्रामेषु उपद्रवं कुर्वन्ति। (वनवृक्षों के काटने से वर्षा नहीं होती है, शरणरहित जंगली पशु गाँवों में उपद्रव करते हैं।)

प्रश्न: 13.
विविधाः रोगाः कथं जायन्ते? (अनेक प्रकार के रोग कैसे पैदा होते हैं?)
उत्तरम् :
पर्यावरणे विकृतिम् उपगते विविधाः रोगाः जायन्ते। (पर्यावरण के विकृत होने पर अनेक प्रकार के रोग पैदा होते हैं।)

प्रश्न: 14.
आर्षवचनं किम्? (ऋषियों का वचन (कथन) क्या है?)
उत्तरम् :
‘धर्मोरक्षति रक्षितः’ इत्यार्षवचनम्। (सुरक्षित धर्म रक्षा करता है, यह ऋषियों का कथन है।)

रेखांकित पदान्याश्रित्य प्रश्न निर्माणं कुरुत-(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्नों का निर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
प्रकृतिः समेषां प्राणिनां रक्षणाय यतते। (प्रकृति सभी प्राणियों की रक्षा के लिए प्रयत्न करती है।)
उत्तरम् :
प्रकृति केषां रक्षणाय यतते? (प्रकृति किनकी रक्षा के लिए प्रयत्न करती है?)

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प्रश्न: 2.
इयं सुखसाधनैः तर्पयति। (यह सुख-साधनों से पुष्ट करती है।)
उत्तरम् :
इयं कैः तर्पयति? (यह किससे तृप्त करती है?)

प्रश्न: 3.
अजातः शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति। (अजन्मा बच्चा माँ के गर्भ में सुरक्षित रहता है।)
उत्तरम् :
अजातशिशु कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति? (अजन्मा शिशु कहाँ सुरक्षित रहता है?)

प्रश्न: 4.
परिष्कृतं पर्यावरणम् मांगलिक सामग्री प्रददाति। (शुद्ध पर्यावरण मांगलिक सामग्री देता है।)
उत्तरम् :
परिष्कृत पर्यावरणम् किं प्रददाति ? (शुद्ध पर्यावरण क्या देता है?)

प्रश्नः 5.
प्रकृति-प्रकोपैः आतङ्कितो जनः किमपि कर्तुं न प्रभवति? (प्रकृति के प्रकोप से आतङ्कित मनुष्य कुछ नहीं कर सकता?)
उत्तरम् :
कैः आतङ्कितः जनः किमपि कर्तुं न प्रभवति? (किनसे आतंकित मानव कुछ नहीं कर सकता?)

प्रश्न: 6.
अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया। (हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए।)
उत्तरम् :
अस्माभि का रक्षणीया? (हमें किसकी रक्षा करनी चाहिए?)

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प्रश्नः 7.
सरितः अमृतस्वाद जलं प्रयच्छन्ति। (नदियाँ अमृत के समान स्वादिष्ट जल प्रदान करती हैं।)
उत्तरम् :
सरितः कीदृशं जलं प्रयच्छन्ति? (नदियाँ कैसा जल प्रदान करती हैं?)

प्रश्न: 8.
स्वल्पलाभाय जनाः बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति। (थोड़े से लाभ के लिए लोग बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर देते हैं।) .
उत्तरम् :
जनाः कस्मै बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति ? (लोग किसलिए बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर देते हैं?)

प्रश्न: 9.
यन्त्राणां विषाक्तं जलं नद्यां पतति। (यंत्रों का जहरीला जल नदी में गिरता है।) उत्तरम-केषां विषाक्तं जलं नद्यां पतति? (किनका जहरीला जल नदी में गिरता है?)

प्रश्न: 10.
नदीजलमपि अपेयं जायते। (नदी का जल भी अपेय हो जाता है।)
उत्तरम् :
नदीजलमपि कीदृशं भवति? (नदी का जल कैसा हो जाता है?)

कथाक्रम-संयोजनम्।

अधोलिखितानि वाक्यानि क्रमशः लिखित्वा कथाक्रम-संयोजनं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों को क्रम से लिखकर कथाक्रम-संयोजन कीजिए-)

1. प्रकृतिः अस्मभ्यं निर्मलं जलं, शुद्धवायुं, फलानि, पुष्पाणि, काष्ठानि भोज्यानि च ददाति।
2. अतः नदीजलमपेयं वायुः च प्रदूषितः जातः, अवृष्टिः भवति, वनाभावे पशवः ग्रामेषु उपद्रवं विदधति।
3. यतः स्थलचराः पृथिव्याः जलचराः च जलस्य मलापनोदनं कुर्वन्ति।
4. अस्माभिः वापीकूपतडागादिनिर्माणं करणीयं जन्तवश्च रक्षणीयाः।
5. अतः प्रकृतिरस्माभिः रक्षणीया यतः तेनैव पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति।
6. स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणमद्य नाशयति वृक्षान् कर्तयति च।
7. पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः आकाशश्च एतानि पञ्चतत्त्वानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति ।
8. प्रकृतिरक्षयैव सम्भवति लोकरक्षेति न संशयः। ..
उत्तरम् :
1. पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः आकाशश्च एतानि पञ्चतत्त्वानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति।
2. अतः प्रकृतिरस्माभिः रक्षणीया यतः तेनैव पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति।
3. प्रकृतिः अस्मभ्यं निर्मलं जलं, शुद्धवायुं, फलानि, पुष्पाणि, काष्ठानि भोज्यानि च ददाति ।
4. स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणमद्य नाशयति वृक्षान् कर्तयति च।
5. अत: नदीजलमपेयं वायुः च प्रदूषितः जातः, अवृष्टिः भवति, वनाभावे पशवः ग्रामेषु उपद्रवं विदधति।
6. अस्माभिः वापीकूपतडागादिनिर्माणं करणीयं जन्तवश्च रक्षणीयाः।
7. यतः स्थलचराः पृथिव्याः जलचराः च जलस्य मलापनोदनं कुर्वन्ति।
8. प्रकृतिरक्षयैव सम्भवति लोकरक्षेति न संशयः।

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योग्यताविस्तारः

(क) निम्नलिखित शब्दयुग्मों के भेद देखने योग्य हैं –
सङ्कल्पः – सत्सङ्कल्पः
आचारः – सदाचारः
जनः – सज्जनः
सङ्गतिः – सत्सङ्गतिः
मतिः – सन्मतिः

(ख) आर्षवचन-ऋषि के द्वारा कहा गया वचन (कथन) ‘आर्षवचन’ कहलाता है।
(ग) पञ्चतत्त्व-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। इन पाँच तत्त्वों से ही यह शरीर बनता है।

योग्यता-विस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर

निम्न प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में एक वाक्य में लिखिए –

प्रश्न 1.
निम्न शब्दों में ‘च्चि’ प्रत्यय जोड़कर सार्थक शब्द बनाइये –
स्व, ऊर, प्रमाण, अङ्ग, संघ।
उत्तर :
स्व + च्चि + कृ + ल्यप् = स्वीकृत्य (स्वीकार करके)
ऊर + च्चि + कृ + ल्यप् = ऊरीकृत्य (कहकर)
प्रमाण + च्वि प्रमाणीकृतः (प्रमाणित किया हुआ).
अङ्ग + च्चि + कृ + ल्यप् = अङ्गीकृत्य (स्वीकार करके)
संघ + च्वि + भू + क्त = संघीभूतः (इकट्ठे हुए)

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प्रश्न 2.
निम्न शब्दों से पूर्व सद्’ लगाकर पद-रचना कीजिए सङ्कल्पः, सङ्गतिः आचरणम्, मतिः, जनः।
उत्तर :
सद् + सङ्कल्पः = सत्सङ्कल्पः,
सद् + संगतिः = सत्संगतिः, सद् + आचरणम् = सदाचरणम्,
सद् + मतिः = सन्मतिः, सद् + जनः = सज्जनः।

प्रश्न 3.
आर्षवचन किसे कहते हैं?
उत्तर :
ऋषि के द्वारा कहा गया वचन (कथन) ‘आर्षवचन’ कहलाता है।

प्रश्न 4.
मानव शरीर किन पञ्चतत्त्वों से मिलकर बना है?
उत्तर :
मानव शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश, इन पाँच तत्त्वों से मिलकर बना है।
समानान्तर श्लोक व सूक्तियाँ। पर्यावरण से सम्बन्धित निम्न उक्तियाँ एवं श्लोक पढ़ने योग्य तथा याद करने योग्य हैं
चान्य ह-

हमारी संस्कृति में वृक्ष वन्दनीय हैं, इसलिए वृक्षों को काटना, उखाड़ना वर्जित है।

दशकूपसमा वापी दशवापीसमो ह्रदः।
दशहदसमः पुत्रो दशपुत्रसमो द्रुमः॥
(मत्स्य पुराणम्)

अर्थात् दस कुओं के समान एक बावड़ी है, दस बावड़ियों के समान एक तालाब है। दस तालाबों के समान एक पुत्र – है। दस पुत्रों के समान एक वृक्ष होता है।
तुलसी का पौधा भारतीय संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण अङ्ग है। न केवल धार्मिक अपितु चिकित्सा की दृष्टि से भी यह रक्षा करने योग्य है। इसीलिए घर के आँगन में इसके रोपण का महत्त्व है। पुराण और वैद्यक ग्रन्थों के अनुसार तुलसी का पौधा वायु-प्रदूषण को दूर करता है। कहा गया है –

‘तुलसी’ कानने चैव गृहे यस्यावतिष्ठते।
तद्गृहं तीर्थमित्याहुः नायान्ति यमकिङ्कराः॥
तुलसीगन्धमादाय यत्र गच्छति मारुतः।
दिशो दश पुनात्याशु भूतग्रामांश्चतुर्विधान्॥ (पद्मोत्तरखण्डम्)

अर्थात् ‘तुलसी’ (का पौधा) जंगल में और जिसके घर में भी रहता है, उस घर को तीर्थ कहते हैं, (वहाँ) यमराज के दूत नहीं आते हैं। जहाँ वायु ‘तुलसी’ (के पौधे) की गन्ध को लेकर जाती है, शीघ्र ही दसों दिशाओं, प्राणियों
और गाँवों को चारों तरफ पवित्र करती है।।
तुलसी का रस तीव्रज्वर को नष्ट करता है। कहा गया है-

पीतो मरीचिचूर्णेन तुलसीपत्रजो रसः।
द्रोणपुष्परसोप्येवं निहन्ति विषम ज्वरम्॥ (शाळ्धर)

अर्थात् कालीमिर्च के चूर्ण के साथ ‘तुलसी के पत्ते के रस का पिया जाना, इसी प्रकार ‘द्रोण पुष्प’ का रस भी विषम ज्वर को नष्ट करता है।।

वृक्षारोपण का महत्त्व –

तारयेद् वृक्षरोपी तु तस्माद् वृक्षान् प्ररोपयेत्।
तस्य पुत्रा भवन्त्येव पादपा नात्र संशयः॥

अर्थात् वृक्ष को लगाने वाला तो (वृक्ष के लगाने से) वर जाता है (मुक्ति पा जाता है।) इसलिए वृक्षों को उगाना (लगाना) चाहिए। इसमें सन्देह नहीं कि वृक्ष ही उस वृक्ष लगाने वाले) के पुत्र होते हैं।।

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समानान्तर श्लोक व सूक्तियों पर प्रश्नोत्तर

प्रश्नाः 1.
एकः वृक्षः कति कूपैः समः भवति?
(एक वृक्ष कितने कुओं के समान होता है?)
उत्तरम् :
एकः वृक्षः दशसहस्रकूपसमः भवति।
(एक वृक्ष दस हजार कुओं के बराबर होता है।)

प्रश्नाः 2.
यस्मिन् गृहे तुलसीपादपः भवति, तद्गृहं किमिव भवति?
(जिस घर में तुलसी का पौधा हो, वह घर किसकी तरह होता है?)
उत्तरम् :
यस्मिन् गृहे तुलसीपादपः भवति, तद्गृहं तीर्थवत् भवति।
(जिस घर में तुलसी का पौधा हो, वह घर तीर्थ के समान होता है।)

प्रश्नाः 3.
यमकिङ्कराः कुत्र नायान्ति?
(यम के दूत कहाँ नहीं आते?)
उत्तरम् :
यस्मिन् गृहे तुलसीपादपः भवति, तत्र यमकिङ्कराः नायान्ति।
(जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहाँ यमदूत नहीं आते।)

प्रश्नाः 4.
तुलसीगन्धः किं करोति? (तुलसी की गन्ध क्या करती है?)
उत्तरम् :
तुलसीगन्धः दशदिशः पुनाति।
(तुलसी की गन्ध दसों दिशाओं को पवित्र कर देती है।)

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प्रश्नाः 5.
शार्ङ्गधरानुसारेण तुलसीदलस्य किमुपयोगः?
(शाङ्गधर के अनुसार तुलसीदल का क्या उपयोग है?)
उत्तरम् :
मरीचिचूर्णेन सह पीत: तुलसीपत्रजः रस: विषम ज्वरं निहन्ति।
(कालीमिर्च के चूर्ण के साथ पिया हुआ तुलसी के पत्ते का रस विषम ज्वर को नष्ट करता है।)

पर्यावरणम् Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – पर्यावरण-प्रदूषण विश्व की भयङ्कर एवं ज्वलन्त समस्या है। प्रस्तुत पाठ्यांश पर्यावरण को ध्यान में रखकर लिखा गया एक लघु निबन्ध है। वर्तमान युग में प्रदूषित वातावरण मानव-जीवन के लिए भयङ्कर अभिशाप बन गया है। नदियों का जल कलुषित हो रहा है, वन वृक्ष-विहीन हो रहे हैं, मिट्टी का कटाव बढ़ने से बाढ़ की समस्या बढ़ती जा रही है। कल-कारखानों और वाहनों के धुएँ से वायु विषैली हो रही है। वन्य-प्राणियों की जातियाँ भी दिन पर दिन नष्ट हो रही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार वृक्षों एवं वनस्पतियों के अभाव में मनुष्यों के लिए जीवित रहना असम्भव प्रतीत होता है।

पत्र, पुष्प, फल, काष्ठ, छाया एवं औषधि प्रदान करने वाले पादपों एवं वृक्षों की उपयोगिता वर्तमान समय में पूर्वापेक्षया अधिक है। ऐसी परिस्थिति में हमारा कर्तव्य है कि हम पर्यावरण के संरक्षणार्थ उपाय करें। वृक्षारोपण, नदी-जल की स्वच्छता, ऊर्जा के संरक्षण, वापी, कूप, तड़ाग, उद्यान आदि के निर्माण और उनको स्वच्छ रखने में प्रयत्नशील हों, ताकि जीवन सुखमय एवं उपद्रवरहित हो सके।

मूलपाठः,शब्दार्याः,सप्रसंगहिन्दी अनुवादः,सप्रसंगसंस्कृत-व्यारव्याःअवबोधनकार्यम् च

1. प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते। इयं सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः, सुखसाधनैः च तर्पयति। पृथिवी, जलम्, तेजः, वायुः, आकाशः च अस्याः प्रमुखानि तत्त्वानि। तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्। यथा अजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ। परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति। प्रकृतिकोपैः आतङ्कितो जनः किं कर्तुं प्रभवति? जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्याचक्रैः, उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य क्व मङ्गलम्?

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

शब्दार्थाः – प्रकृतिः = सृष्टेः पञ्चतत्त्वानि (प्रकृति), समेषाम् = सर्वेषाम् (सभी), प्राणिनाम्= जीवानां/सत्त्वानाम् (जीवधारियों की), संरक्षणाय = सम्यक् रक्षितुम् (भली-भाँति रक्षा करने के लिए), यतते = प्रयत्न/प्रयासं करोति (प्रयत्न करती है), इयम् = एषा प्रकृतिः (यह प्रकृति), सर्वान् = समेषान् (सभी को), पुष्णाति = पोषणं करोति (पोषण करती है/पुष्ट करती है), विविधैः = अनेकैः (अनेक), प्रकारैः = विधैः (प्रकार से), सुखसाधनैः = सुखस्योपकरणैः/सुखोपायैः (सुख के साधनों से), तर्पयति = तृप्तं करोति, तोषयति (तृप्त करती है), च = और, पृथिवी = भूमिः (पृथ्वी),

जलम् = तोयम् (जल), तेजः = तेजोः (तेज/अग्नि), वायुः = पवनः (वायु/हवा), आकाशः = अम्बर:/शून्यः (आकाश), च = और, अस्याः (प्रकृतेः) = एतस्याः (प्रकृतेः) (इस प्रकृति के), प्रमुखानि = मुख्यानि (मुख्य), तत्त्वानि = मूलभूतानि (तत्त्व), तान्येव = अमून्येव (वे ही तत्त्व), मिलित्वा = संघीभूतानि (मिलकर), पृथक्तया = पृथक्-पृथक् रूपेण/एकैकम् (अलग-अलग), वा = अथवा (या), अस्माकम् = अस्माकं प्राणिनाम् (हम प्राणियों का), पर्यावरणम् = वातावरणम् (वातावरण), रचयन्ति = सृजन्ति (बनाते हैं), आवियते = आवृणोति (घेरे रहता है), परितः = समन्तात् (चारों ओर से), समन्तात् = सर्वतः (सभी ओर से), लोकः अनेन = संसारः एतेन (संसार इससे), इति = एवं (इस प्रकार से),

पर्यावरणम् = वातावरणं (वातावरण है), यथा = येन प्रकारेण (जैसे/जिस प्रकार), अजातश्शिशुः = अनुत्पन्नः जातकः (अजन्मा शिशु/जिसका जन्म नहीं हुआ हो), मातृगर्भे = मातुः कुक्षौ (माँ के गर्भ में), सुरक्षितः = सम्यक् रक्षितः (सुरक्षित), तिष्ठति = विद्यते/स्थिरायति (ठहरता है), तथैव = तेनैव प्रकारेण (उसी प्रकार/वैसे ही), मानवः = मनुष्यः (मनुष्य), पर्यावरणकुक्षौ = वातावरणस्य गर्भे (पर्यावरण के गर्भ में), परिष्कृतम् = परिमार्जितम्/शुद्धीकृतम् (शुद्ध किया हुआ), प्रदूषणरहितम् = दोषरहितम् (प्रदूषण रहित), च पर्यावरणम् = च वातावरणम् (और वातावरण), अस्मभ्यम् = नः (हमारे लिए), सांसारिकम् = संसारविषयक/जगत्सम्बन्धिनम् (संसार सम्बन्धी), जीवनसुखम् = जीवितस्यानन्दम् (जीवन का सुख या आनन्द),

सद्विचारम् = उत्तमचिन्तनम् (अच्छे विचार), सत्यसङ्कल्पम् = ऋतस्य संकल्पम् (सत्य का संकल्प), माङ्गलिकसामग्री च = कल्याणकारकवस्तूनि च (और मांगलिक सामग्री), प्रददाति = प्रयच्छति/प्रदानं करोति (प्रदान करता है। देता है), प्रकृतिकोपैः = प्रकृतेः कोपैः/क्रोधैः (प्रकृति के कोपों से/नाराजी से), आतङ्कितोः = भयभीतः (डरा हुआ), जनः = मानवः (व्यक्ति), किं कर्तुं प्रभवति = किं विधातुं समर्थ:/शक्नोति (क्या कर सकता है), जलप्लावनैः = जलौघैः (बाढ़ से), अग्निभयैः = अनलप्रसारस्य प्रज्ज्वलनस्य भीतिभिः (आग लगने के डर से), भूकम्पैः = धराविचलनैः (धरती हिलने से/भूकम्पों से), वात्याचक्रः = वायुचक्रैः (आँधी/बवंडर से), उल्कापातादिभिः = तारकपतनादिभिः (उल्का गिरने आदि से), सन्तप्तस्य = सन्तापयुतस्य/पीडितस्य (तपे हुए पीड़ित), मानवस्य = मनुष्यमात्रस्य (मानव का), क्व = कुतः (कहाँ), मङ्गलम् = कल्याणं सम्भवति (भला कल्याण कैसे सम्भव है)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठ से लिया गया है। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक पर्यावरण का अर्थ, महत्त्व तथा प्रदूषित पर्यावरण के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहता है-

अनुवाद – प्रकृति सभी जीवधारियों की भली-भाँति रक्षा करने के लिए प्रयत्न करती है। यह सभी का पोषण करती है तथा अनेक प्रकार के सुख के साधनों से तृप्त करती है। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इस प्रकृति के प्रमुख तत्त्व हैं। वे ही तत्त्व मिलकर अथवा अलग – अलग हम प्राणियों के पर्यावरण को बनाते हैं। जिससे चारों और या सभी ओर से यह लोक घिरा हुआ है, वह पर्यावरण है। जैसे अजन्मा शिशु माँ के गर्भ में सुरक्षित ठहरता (रहता) है वैसे ही मनुष्य पर्यावरण के गर्भ में (सुरक्षित) रहता है।

शुद्ध और प्रदूषण रहित वातावरण हमारे लिए संसार सम्बन्धी जीवन का सुख या आनन्द, अच्छे विचार, सत्य संकल्प और मांगलिक सामग्री प्रदान करता है। प्रकृति के कोप से भयभीत (डरा हुआ) व्यक्ति क्या कर सकता है? बाढ़ों से, आग लगने के डर से, धरती हिलने से, आँधी-तूफान से तथा उल्कापात आदि से सन्तप्त हुए मानक का कल्याण कहाँ सम्भव है?

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। (यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘पर्यावरणम्’ पाठ से उद्धृत है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

प्रसङ्गः – गद्यांशेऽस्मिन् लेखक: पर्यावरणस्य अर्थ, महत्त्वं प्रदूषितपर्यावरणस्य च मानवजीवने प्रभावं वर्णयन् कथयति
(इस गद्यांश में लेखक पर्यावरण का अर्थ, महत्व तथा प्रदूषित पर्यावरण का मानव-जीवन पर प्रभाव वर्णन करते हुए कहता है।)

व्याख्या: – प्रकृतिः सर्वान् जीवान् सम्यग् रक्षितुं प्रयासं करोति। एषा प्रकृतिः समेषां पोषणं करोति अनेकविधैः सुखोपायैः च तृप्तं करोति। भूमिः, तोयं, तेजः, पवनः आकाशः च एतस्याः प्रकृते: मुख्यानि तत्त्वानि सन्ति। अमूनि एव संघीभूतानि पृथक्-पृथक् रूपेण वा अस्माकं प्राणिनां वातावरणं सृजन्ति। आवृणोति समन्तात् सर्वतः च संसारं यत् तत् पर्यावरणम्। येन प्रकारेण अनुत्पन्न: जातक: मातुः कुक्षौ सम्यग् रक्षितः विद्यते स्थिरः वा भवति तेनैव प्रकारेण मनुष्यः वातावरणस्य गर्भे तिष्ठति। परिमार्जितं दोषरहितं च वातावरणं नः जगत्सम्बन्धिनं जीवनस्य आनन्दम्, उत्तम-चिन्तनम्, ऋतस्य संकल्पम्, कल्याणकारकाणिः वस्तूनि च प्रयच्छति।

प्रकृतेः कोपात् भयभीत: मानवः किं विधातुं समर्थः? जलौघैः, प्रज्ज्वलनस्य भीतिभिः, धराविचलनैः, वायुचक्रैः तारकपतनादिभिः सन्तापयुक्तस्य पीडितस्य मनुष्यमात्रस्य कल्याणं कुतः सम्भवति? (प्रकृति सभी प्राणियों की भलीभाँति रक्षा करने का प्रयास करती है। यह प्रकृति सभी का पोषण करती है और अनेक सुख के उपायों से सन्तुष्ट करती है। भूमि, जल, तेज (अग्नि) वायु और आकाश (रिक्त स्थान) इस प्रकृति के प्रमुख अंग हैं। ये ही इकट्ठे होकर अथवा अलग-अलग रूप में हमारे प्राणियों का वातावरण सृजित करते हैं अर्थात् बनाते हैं। जो सभी ओर से संसार को आवृत करता है अर्थात् ढकता है वह पर्यावरण है।

जिस प्रकार से अजन्मा अर्थात् जन्म से पूर्व प्राणी माँ के गर्भ में सुरक्षित रहता है अथवा स्थिर रहता है, इसी प्रकार मनुष्य वातावरण के गर्भ में रहता है। शुद्धीकृत और दोष रहित वातावरण हमें संसार सम्बन्धी जीवन का आनन्द, श्रेष्ठ चिन्तन, सत्य-संकल्प और कल्याणकारी वस्तुएँ प्रदान करता है। प्रकृति के कोप (नाराजी) से भयभीत मानव क्या करने से समर्थ है। बाढ़ों से, आग लगने के भय, भूकम्पों, आँधी-तूफानों, उल्कापातों (तारे टूटने) से समाप्त हुआ मानव मात्र का कल्याण कहाँ सम्भव है।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) प्राणिनां संरक्षणाय का यतते? (प्राणियों के संरक्षण के लिए कौन यत्न करती है?)
(ख) प्रकृत्याः कति तत्वानि? (प्रकृति के कितने तत्व हैं?)

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति? (क्या मिलकर हमारा पर्यावरण बनाते हैं ?)
(ख) किमिदं पर्यावरणम् ? (यह पर्यावरण क्या है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘इयं सर्वान् पुष्णाति’ वाक्ये इयं सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(इयं सर्वान् पुष्णाति’ वाक्ये इयं सर्वनाम पद किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?)
(ख) ‘रचयन्ति’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत्।
(‘रचयन्ति’ क्रियापद का कर्तृपद गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) प्रकृतिः।
(ख) पञ्च (पाँच)।

(2) (क) पृथिवी, जलं, तेजः, वायुः आकाशः च प्रकृत्याः पञ्चतत्वानि मिलित्वा पृथक्तया वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति।
(पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये प्रकृति के पाँच तत्व मिलकर या पृथक्-पृथक् पर्यावरण की रचना करते हैं।)
(ख) आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्। (चारों ओर से यह संसार जिनसे ढका हुआ है वह पर्यावरण है।)

(3) (क) प्रकृतिः।
(ख) प्रकृत्याः तत्वानि (प्रकृति के तत्व)।

2. अत एव अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया। तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति। प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म। यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म। तत्र विविधा विहगाः कलकूजिश्रोत्ररसायनं ददति।
सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। वृक्षा लताश्च फलानि पुष्पाणि इन्धनकाष्ठानि च बाहुल्येन समुपहरन्ति। शीतलमन्दसुगन्धवनपवना औषधकल्पं प्राणवायु वितरन्ति।

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शब्दार्था: – अत एव = अतः (इसलिए), अस्माभिः = अस्माभिः मानवैः (हम मनुष्यों द्वारा), प्रकृतिः = प्रकृति, रक्षणीया = रक्षितव्या (रक्षा करने योग्य है/रक्षा की जानी चाहिए), तेन च = अमुना प्रकृतिरक्षणेन च (और इस प्रकृति-संरक्षण से), पर्यावरणम् = वातावरणम् (पर्यावरण), रक्षितम् = सुरक्षितं (सुरक्षित), भविष्यति = (हो जायेगा), प्राचीनकाले = पुरा/ अतीतकाले (पुराने समय में), लोकमङ्गलाशसिनः = समाजकल्याणकामाः (जनता के कल्याण को चाहने वाले), ऋषयो = मन्त्रद्रष्टारः (ऋषिजन), वने = अरण्ये/कानने (वन में),

निवसन्ति स्म = निवासम् अकुर्वन् (निवास करते थे), यतो हि = क्योंकि, वने = अरण्ये (जंगल में), सुरक्षितम् = संरक्षितम् (भली-भाँति रक्षा किया हुआ), पर्यावरणम् = वातावरणम् (पर्यावरण), उपलभ्यते स्म = प्राप्यते स्म (प्राप्त किया जाता था), तत्र = वहाँ। विविधाः = अनेकविधाः (अनेक प्रकार के), विहगाः = खगाः (पक्षी), कलकूजितै = कलरवैः कूजितैः (कलरव से), श्रोत्ररसायनम् = कर्णामृतम् (कानों को अच्छ लगने वाला रसायन), ददति = यच्छन्ति (देते हैं), सरितोः = नद्यः (नदियाँ),

गिरिनिर्झराश्च = पर्वतीयाः जलप्रपाताश्च (और पर्वतीय झरने), अमृतस्वादुः = सुधावत् स्वादिष्टम् (अमृत के समान स्वादिष्ट),निर्मलम् = विमलं/स्वच्छं (स्वच्छ), जलम् = तोयम् (जल को), प्रयच्छन्ति = ददति (देते हैं), वृक्षाः = तरवः (पेड़), लताश्च = वल्लर्यश्च (और बेलें), फलानि = स्वादूनि फलानि (स्वादिष्ट फल), पुष्पाणि = कुसमानि/सुमनानि (फूल), इन्धनकाष्ठानि च = ज्वलनदारुश्च (जलाने की लकड़ी), बाहुल्येन = प्रभूतायां मात्रायाम् (बहुत अधिक मात्रा में), समुपहरन्ति = सम्यग्रूपेण उपहारस्वरूपं यच्छन्ति (भली-भाँति भेंट स्वरूप प्रदान करते हैं),

शीतलमन्दसुगन्धवनपवनाः = शीतलाः, मन्दाः सुरभिताः च अरण्यस्य वायवः (ठंडी-ठंडी, मन्द-मन्द चलने वाली और सुगन्धित वन की वायु), औषधकल्पम् = औषधिसदृशम् (औषधि के समान), प्राणवायुः = श्वसनाय पवनम् (साँस लेने के लिए प्राणवायु), वितरन्ति = वितरणं कुर्वन्ति (वितरण करती हैं)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठ से लिया गया है।
प्रसंग – इस गद्यांश में लेखक प्राचीनकाल की स्थिति को प्रस्तुत कर मानव के लिए वनों अथवा प्रकृति के योगदान का वर्णन करता है क्योंकि प्रकृति ही हमारे लिए दैनिक प्रयोग की वस्तुएँ प्रदान करती है।

अनुवाद-इसलिए हम मनुष्यों को प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। उस (प्रकृति-रक्षण) से पर्यावरण सुरक्षित होगा। प्राचीनकाल में (पुराने समय में) जनता के कल्याण को चाहने वाले ऋषिजन वन में निवास करते थे। क्योंकि जंगल में ही भली-भाँति रक्षा किया हुआ पर्यावरण प्राप्त किया जाता था। अनेक प्रकार के पक्षी कलरव व कूजन से वहाँ अमृत के समान कानों को अच्छा लगने वाला रसायन प्रदान करते हैं।

नदियाँ और पर्वतीय झरने अमृत के समान स्वादिष्ट स्वच्छ जल देते हैं। पेड़ और बेलें फल, फूल और ईंधन की लकड़ी बहुत अधिक मात्रा में भली-भाँति भेंट स्वरूप प्रदान करते हैं। वन का शीतल, मन्द और सुगन्धित पवन (साँस लेने के लिए) प्राणवायु वितरित करता है।

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘पर्यावरणम्’ पाठ से उद्धृत है।)

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प्रसङ्गः – अस्मिन् गद्यांशे लेखकः प्राचीनकालस्य स्थितिं प्रस्तुत्य मानवाय वनानां प्रकृतेः वा योगदानं वर्णयति यतः प्रकृतिः एव अस्मभ्यं सर्वाणि दैनिकप्रयोगस्य वस्तूनि प्रददाति। (इस गद्यपांश में लेखक प्राचीन काल की स्थिति प्रस्तुत करके मानव के लिए वनों अथवा प्रकृति के योगदान का वर्णन करता है क्योंकि प्रकृति ही हमें सभी दैनिक प्रयोग की वस्तुएँ प्रदान करती है।)

व्याख्या – अतः प्राकृतिकतत्त्वानि अस्माभिः मानवैः सुरक्षितव्यानि सन्ति। अमुना प्रकृतिरक्षणेन च वातावरणं सुरक्षितं भविष्यति। अतीतेकाले समाजकल्याणकामाः मन्त्रद्रष्टारः ऋषयः अरण्ये एव निवासम् अकुर्वन्। यतः अरण्ये एव संरक्षितं शुद्धं वातावरणं प्राप्यते स्म। अनेकविधाः खगाः कलरवै: कूजितैश्च तस्मिन् स्थाने कर्णामृतं यच्छन्ति। नद्यः पर्वतीयाः जलप्रपाताः च सुधावत् स्वादिष्टं स्वच्छं तोयं ददति। तरवः वल्लर्यः च फलानि कुसुमानि ज्वलन दारुः च प्रभूतायां मात्रायां सम्यग्रूपेण उपहारस्वरूपं यच्छन्ति। शीतलाः, मन्दाः सुरभिताः च अरण्यस्य वायवः ओषधिसदृशं श्वसनाय पवनम् यच्छन्ति।

(अतः प्रकृतिक तत्वों की हम मनुष्यों द्वारा सुरक्षा की जानी चाहिए। इस प्रकृति की सुरक्षा से वातावरण सुरक्षित होगा। प्राचीन काल में समाज कल्याण की भावना रखने के इच्छुक मन्त्र दृष्टा ऋषियों ने वन में ही निवास किया था। क्योंकि वन में ही सुरक्षित शुद्ध वातावरण प्राप्त किया जाता है। अनेक प्रकार के पक्षी कलरवों और कूजने से जहाँ कानों के लिए अमृत प्रदान करते है। नदियाँ, पर्वत, और झरने अमृत के समान स्वादिष्ट जल प्रदान करते हैं। पेड़ और बेले फल, फूल और जलाने की लकड़ी पर्याप्त मात्रा में अच्छी तरह उपहार के रूप में (बिना मूल्य के) देती है। शीतल, मन्द और सुगन्धित वन की हवा औषधि के समान साँस लेने के लिए हवा देती हैं।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) अस्माभिः का रक्षणीया? (हमें किसकी रक्षा करनी चाहिए?)
(ख) ऋषयः कुत्र निवसन्ति स्म? (ऋषि लोग कहाँ रहते थे?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) ऋषयः वने कस्मात् निवसन्ति स्म? (ऋषि वन में क्यों रहते थे?)
(ख) प्राणवायुं के वितरन्ति? (प्राणवायु का वितरण कौन करते हैं?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘औषधकल्पं प्राणवायुम्’ अत्र विशेषणपदं किम्?
(‘औषधकल्पं प्राणवायुम्’ यहाँ विशेषण पद क्या है?)
(ख) “वितरन्ति’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘वितरन्ति’ क्रियापद का कर्तृपद गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) प्रकृतिः।
(ख) वने।

(2) (क) यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म। (क्योंकि वन में सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था।)
(ख) शीतलमन्द सुगन्धपवनाः औषध कल्पं प्राणवायुं वितरन्ति। (शीतल-मन्द-सुगन्धित पवन औषध के समान प्राणवायु का वितरण करती है।)

(3) (क) औषधकल्पम् (औषधि के समान)।
(ख) पवनाः (हवायें)।

3. परन्तु स्वार्थान्धो मानवः तदेव पर्यावरणम् अद्य नाशयति। स्वल्पलाभाय जना बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति। जनाः यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति। तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो भवति। नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते। मानवाः व्यापारवर्धनाय वनवृक्षान् निर्विवेकं छिन्दन्ति। तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति। शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जायते। एवं हि स्वार्थान्धमानवैः विकृतिम् उपगता प्रकृतिः एव सर्वेषां विनाशकी भवति। विकृतिमुपगते पर्यावरणे विविधाः रोगाः भीषणसमस्याश्च सम्भवन्ति। तत्सर्वमिदानी चिन्तनीयं प्रतिभाति।

शब्दार्थाः – परन्तु = परञ्च (लेकिन), स्वार्थान्धोः = स्वार्थेन दृष्टिहीनः (मतलब में अन्धा हुआ), मानवः तदेव = मनुष्यः तत् एव (मनुष्य उसी), पर्यावरणम् अद्य = वातावरणम् अधुना (पर्यावरण को आज), नाशयति = विनष्टं करोति (नष्ट कर रहा है), स्वल्पलाभाय = अत्यल्पमात्रायां हिताय (बहुत थोड़ी मात्रा में लाभ के लिए), जनाः = लोकाः/मनुष्याः (मनुष्य), बहुमूल्यानि = महार्हाणि (अत्यधिक कीमती), वस्तूनि = उपकरणानि (चीजों को), नाशयन्ति = नष्टं कुर्वन्ति (नष्ट कर देते हैं),

जनाः = लोग, यन्त्रागाराणाम् = यन्त्रालयानां/कलालयानाम् (कारखानों का), विषाक्तं जलम् = विषयुक्त/सविषं वारि (जहरीला जल), नद्याम् = सरिति (नदी में), निपातयन्ति = क्षिप्यन्ति (डाल दिए जाते हैं), तेन = जिससे, मत्स्यादीनाम् = मीनादीनाम् (मछली आदि का), जलचराणाम् = जल-जन्तूनाम् (जल में रहने वाले जीवों का), च = ओर, क्षणेनैव = क्षणमात्रेण एव (एक क्षण में ही), नाशो भवति = विनाशः जायते (नाश हो जाता है), नदीजलमपि = अपि (नदी का जल भी), तत्सर्वथा = पूर्णरूपेण (पूरी तरह), अपेयम् = पातुम् अयोग्यम् (न पीने योग्य), जायते = भवति (हो जाता है), मानवाः = मनुष्य,

व्यापारवर्धनाय = वाणिज्यवृद्ध्यर्थम् (व्यापार वृद्धि के लिए/व्यापार बढ़ाने के लिए), वनवृक्षान्ः = अरण्यस्य तरवः (जंगल के पेड़), निर्विवेकम् = विवेकं विस्मृत्य (विवेकरहित होकर/बिना विचारे), छिन्दन्ति = उच्छेद्यन्ति (काट दिये जाते हैं), तस्मात् = तस्मात (जिसकी वजह से), अवृष्टिः = अनावृष्टिः (वर्षा का न होना), प्रवर्धते = वृद्धि याति (बढ़ता है), वनपशवश्च = वनवासिनः पशवः च (और जगली पशु), शरणरहिताः अशरणाः (बिना शरण के),

ग्रामेषु = वासेषु/वस्तिषु (गाँवों में), उपद्रवम् = विघ्नं/विप्लवं (उपद्रव), विदधति = कुर्वन्ति (करते हैं), शुद्धवायुरपि = स्वच्छः पवनः अपि (स्वच्छ हवा भी), वृक्षकर्तनात् = वृक्षाणाम् उच्छेदनात् (पेड़ों के काटने से), सङ्कटापन्नो जायतेः = आपद्ग्रस्तः भूतः (संकट में पड़ जाती है/आपत्तिग्रस्त हो जाती है), एवम् हि = अनेन प्रकारेण एव (इस प्रकार से ही), स्वार्थान्धमानवैः = स्वार्थेन अन्धीभूतैः मनुष्यैः (मतलब में अन्धे हुए मनुष्यों द्वारा), विकृतिम् = विकारं (विकार को), उपगता = प्राप्ता (प्राप्त हुई), प्रकृतिः एव = प्रकृतिव (प्रकृति ही), सर्वेषाम् = अमीषाम् (उनकी),

विनाशकी = विनाशिका (विनाश करने वाली), भवति = सञ्जात (हो गई), विकृतिमुपगते = विकारे प्राप्ते (विकृत होने पर), पर्यावरणे = वातावरणे (पर्यावरण के), विविधाः = अनेके (अनेक), रोगाः = पीडाः/कायक्लेशाः (बीमारियाँ), भीषणसमस्याश्च = भयंकर समस्याः च (और भयंकर समस्याएँ), सम्भवन्ति = भवन्ति/प्रादुर्भवन्ति (पैदा हो जाती हैं), तत्सर्वम् = अदः सर्वम् (वह सभी), इदानीम् = अधुना (अब), चिन्तनीयम् = चिन्तायाः विषयः (चिन्ता का विषय), प्रतिभाति = ज्ञायते (लगता है)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ-यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठ से लिया गया है। – प्रसंग-इस गद्यांश में लेखक मानव की स्वार्थपरता को प्रस्तुत करके प्रदूषण के दुष्परिणाम का वर्णन करते हुए विकृत प्रकृति के विषय में कहता है।

अनुवाद – लेकिन मतलब में अन्धा हुआ मनुष्य आज उसी पर्यावरण को नष्ट कर रहा है। बहुत थोड़े लाभ के लिए मनुष्य अत्यधिक कीमती चीजों को नष्ट कर देते हैं। कारखानों का जहरीला पानी नदी में डाल (फेंक) दिया जाता है जिससे जल में रहने वाले मछली आदि जीवों का एक क्षण में ही नाश हो जाता है। नदी का जल भी पूरी तरह से न पीने योग्य हो जाता है।

जंगल के पेड़ बिना बिचारे (अविवेकपूर्ण) व्यापार बढ़ाने के लिए काट दिये जाते हैं। जिसकी वजह से वर्षा का न होना बढ़ता है। शरणहीन जंगली पशु गाँवों में उपद्रव करते हैं। स्वच्छ वायु भी वृक्षों के काटने से आपत्तिग्रस्त हो जाती है। इस प्रकार मतलब में अन्धे हुए मनुष्यों द्वारा विकृति को प्राप्त हुई यह प्रकृति उनकी विनाशिका (विनाश करने वाली) हो गई है। पर्यावरण के विकृत हो जाने पर विविध रोग, विकार और भयंकर समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। अब यह सब चिन्ता का विषय ज्ञात होता है।

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भः – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। (यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘पर्यावरणम्’ पाठ से उद्धृत है।

प्रसंग: – गद्यांशेऽस्मिन् लेखकः मानवस्य स्वार्थपरतां प्रस्तूय प्रदूषणस. दुष्परिणामं वर्णयन् विकृतप्रकृतिविषये कथयति। (इस गद्यांश में लेखक मनुष्य की स्वार्थपरता को प्रस्तुत करके प्रदूषण के दुष्परिणाम का वर्णन करता हुआ विकृत प्रकृति के विषय में कहता है।)

व्याख्या: – परञ्च स्वार्थेन दृष्टिहीनः मनुष्यः तदेव वातावरणं (प्रकृतेः सन्तुलनं) विनष्टं करोति। अल्पमात्राय स्वहिताय मनुष्याः महार्हाणि वस्तूनि नष्टं कुर्वन्ति। कलालयानां सविषं वारि सरिति क्षिप्यते यस्मात् कारणात् मीनादीनां जलजन्तूनां क्षणमात्रेणैव विनाशो भवति। सरितः वारि अपि पूर्णरूपेण पातुमयोग्यम् भवति। अरण्यतरवः विवेकं विस्मृत्य वाणिज्यवृद्धये उच्छेद्यन्ते यस्मात् अनावृष्टिः वृद्धिं याति, अशरणाः वनवासिनः पशवः वस्तिषु विघ्नं विप्लवं वा कुर्वन्ति। स्वच्छः पवनोऽपि वृक्षाणाम् उच्छेदनात् आपद्ग्रस्तो भूतः। अनेन प्रकारेण स्वार्थेऽन्धीभूतैः जनैर्विकारमुपगता प्रकृतिरेव अमीषां विनाशिका अभवत्।

वातावरणे विकारे प्राप्ते अनेके कायक्लेशाः भयङ्करसमस्याः च प्रादुर्भवन्ति। सर्वमदः अधुना चिन्तायाः विषयः ज्ञायते। (परन्तु स्वार्थ से अन्धा हुआ मनुष्य उसी वातावरण (प्राकृतिक सन्तुलन) को नष्ट करता है। थोड़े से अपने मतलब के लिए मनुष्य मूल्यवान् वस्तुओं को नष्ट कर देते हैं? कारखानों का जहरीला पानी नदियों में डाला जाता है, जिसके कारण मछली आदि जल के जीवों का क्षण मात्र में विनाश हो जाता है। नदियों में पानी भी पूरी तरह से पीने के अयोग्य हो जाता है।

जंगल के पेड़ विवेक को भूलकर अर्थात् बिना विचारे व्यापार बढ़ाने के लिए काट दिये जाते हैं, जिससे वर्षा नहीं होती है। शरण के अभाव में जंगली पशु बस्तियों में विघ्न या उपद्रव करते हैं। स्वच्छ हवा भी वृक्षों के काटने से आपद् ग्रस्त हो जाती है। इस प्रकार से स्वार्थ में अन्धे हुए लोगों के द्वारा विकार को प्राप्त हुई प्रकृति ही इनकी विनाशक हो गई। वातावरण में विकार (दोष) होने पर अनेक शारीरिक कष्ट और भयंकर समस्यायें पैदा हो जाती हैं। यह सब चिन्ता का विषय हो जाता है।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कीदृशः मानवः पर्यावरणं नाशयति? (कैसा मानव पर्यावरण का नाश करता है?)
(ख) विकृतिम् उपगता प्रकृतिः कीदृशी भवति? (विकृत हुई प्रकृति कैसी हो जाती है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) विकृतिमुपगते पर्यावरणे किं भवति? (पर्यावरण विकृत होने पर क्या होता है?)
(ख) जलचराणां नाशः कथं भवति? (जलचरों का नाश कैसे होता है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘अमृतमयम्’ इति पदस्य विलोमार्थकं पदं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘अमृतमयम्’ पद का विलोम गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते’ अत्र ‘तस्मात्’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम् ?
(तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते’ यहाँ ‘तस्मात्’ सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) स्वार्थान्धः (स्वार्थ में अन्धा)।
(ख) विनाशकी (विनाशकारी)।

(2) (क) विकृतिम् उपगते पर्यावरणे विविधारोगाः भीषण समस्याः च सम्भवन्ति। (पर्यावरण के विकृत हो जाने पर विविध रोग तथा भीषण समस्या सम्भव होती हैं।)
(ख) यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेन एव नाशः भवन्ति। (कारखानों के विषैले जल कोनदियों में गिराने से उससे मछली आदि जलचर क्षणभर में नष्ट (मर) जाते हैं।)

(3) (क) विषाक्तम् (जहरीला)।
(ख) वृक्षकर्तनात्/वृक्षच्छेदनात् (वृक्ष काटने से)।

4. धर्मो रक्षति रक्षितः इत्यार्षवचनम्। पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः। अत एव वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धेः स्रोतो रूपेण अङ्गीकृतम्। कुक्कुर-सूकर-सर्प-नकुलादि स्थलचराः, मत्स्य-कच्छप-मकरप्रभृतयः जलचराश्च अपि रक्षणीयाः, यतः ते स्थलमलानाम अपनोदिनः जलमलानाम् अपहारिणश्च। प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति इत्यत्र नास्ति संशयः।

शब्दार्थाः – धर्मः = शास्त्रोक्तः निर्देशः (शास्त्रों द्वारा निर्दिष्ट कर्त्तव्य), रक्षति = रक्षां करोति (रक्षा करता है), रक्षितः । = सुरक्षितः (रक्षा किया हुआ/सुरक्षित), इत्यार्षवचनम् = इति आर्षवचनम् = इति ऋषीणां प्रामाणिक वाक्यम् (यह ऋषियों … द्वारा कहा हुआ प्रामाणिक वचन है), पर्यावरणरक्षणमपि = पर्यावरणस्य संरक्षा अपि (पर्यावरण की रक्षा करना भी), धर्मस्यैवाङमस्ति = धर्मस्य एव भागम् अस्ति (धर्म का ही एक अंग है), इति = एवं (इस प्रकार),

ऋषयः = मन्त्रद्रष्टारः (मन्त्रद्रष्टा ऋषियों ने), प्रतिपादितवन्तः = प्रतिष्ठापितवन्तः (प्रतिपादित किया है), अत एव = अस्मात् कारणाद् एव (इसीलिए), वापीकूपतडागादिनिर्माणम् = ससोपानलघुजलाशयानां, कूपानां सरोवराणां च निर्माणकार्यम् (सीढ़ियों समेत छोटे जलाशय/बावड़ी, कुआँ, तालाब आदि का निर्माण-कार्य), देवायतनम् = देवालयःमन्दिरम् (देवालय/मन्दिर), विश्रामगृह = विश्रान्तिस्थलम् (विश्रामघर), आदि = आदीनाम् (आदि का), स्थापनञ्च = निर्माणं च (स्थापित करना या बनाना),

धर्मसिद्धेः = धर्मस्य साधनरूपेण (धर्म की सिद्धि के), स्रोतोरूपेणः = आगमस्थलरूपेण (स्रोत के रूप में), अङ्गीकृतम् = स्वीकृतम् (स्वीकार किये गये), कुक्कुरः = सारमेयः (कुत्ता), सूकरः = वराहः (सूअर), सर्पः = अहिः (साँप), नकुलः = (नेवला), आदि = आदयः (आदि), स्थलचराः = धरायां चरन्तः (थलचर), मत्स्यः = मीनः (मछली), कच्छपः = कूर्मः (कछुआ), मकरः = ग्राहः (मगरमच्छ), प्रभृतयः = आदयः (आदि), जलचराश्च असि = जल-जन्तवः च अपि (और जल के जीव भी), रक्षणीयाः = रक्षितव्याः (रक्षा करने योग्य हैं/रक्षा की जानी चाहिए), यतः ते = यतोऽमी (क्योंकि वे),

स्थलमलानाम् अपनो दिनः = भूमिमलानाम् अपसारिणः (धरती की गन्दगी को दूर करने वाले), जलमलापनाम् अपहारिणश्च = उदकमलापसारिणः च (और पानी की गन्दगी को दूर करने वाले होते हैं), प्रकृतिरक्षया = प्रकृति रक्षणेन एव प्रकृति की रक्षा करने से ही), लोकरक्षा = लोकानां सुरक्षा (लोगों की सुरक्षा), सम्भवति = शक्या भवति (सम्भव होती है), इत्यत्र = यहाँ इसमें। न संशयः = न सन्देहः (सन्देह नहीं)। हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठ से लिया गया है।

प्रसंग – इस गद्यांश में लेखक पर्यावरण-रक्षण को धर्म के अंग के रूप में ही वर्णन करते हुए थलचरों और जलचरों के रक्षण को भी धर्म के ही रूप में प्रतिपादित करता है।

अनुवाद – रक्षा किया हुआ धर्म (लोक की) रक्षा करता है, यह ऋषियों का प्रामाणिक वचन है। पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही एक अंग है। ऐसा मन्त्रद्रष्टा ऋषियों ने प्रतिपादित किया है। इसलिए बावड़ी, कुआँ, तालाब आदि का निर्माण, देवालय (मन्दिर) विश्राम घर आदि को स्थापित करना या बनाना धर्म की सिद्धि के स्रोत के रूप में स्वीकार किये गये हैं। कुत्ता, सूअर, साँप, नेवला आदि थलचर, मछली, कछुआ, मगरमच्छ आदि जल के जीव भी रक्षा करने योग्य हैं। . क्योंकि वे धरती की गन्दगी को दूर करने वाले और पानी की गन्दगी को दूर करने वाले होते हैं। धरती की रक्षा करने से ही लोगों की रक्षा सम्भव है, इसमें सन्देह नहीं।

संस्कत-व्याख्याः

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। (यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘पर्यावरणम्’ पाठ से उद्धृत है।)

प्रसंग:-गद्यांशेऽस्मिन् लेखकः पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गरूपेण वर्णयन् थलचराणां जलचराणां च रक्षणमपि धर्मस्यैव अङ्गरूपेण प्रतिपादयति। (इस गद्यांश में लेखक पर्यावरण संरक्षण को धर्म का अंग बताते हुए थलचर और जलचरों के संरक्षण को भी धर्म का अंग प्रतिपादित करता है।)

व्याख्या: – सुरक्षितः धर्म: लोकान् रक्षति, इति ऋषीणां प्रामाणिकं वचनम्। पर्यावरणस्य रक्षा अपि धर्मस्य एव अङ्गम् अस्ति। इति मन्त्रद्रष्टारः ऋषिजनाः प्रतिष्ठापितवन्तः। तस्मात् एव कारणात् ससोपानलघुजलाशयानां, कूपानां सरोवराणां च निर्माणकार्य, देवालयानां, विश्रामस्थालानाम् इत्यादीनां निर्माणं धर्मसाधनस्य आगमस्थलरूपेण अङ्गीकृतम्। सारमेयशूकर सर्पनकुलादयः धरायामचरन्तः मीन-कूर्म-ग्राह-आदयः जलजन्तवश्चापि रक्षितव्याः यतोऽमी भूमिमलापसारिण: उदकमला पसारिणश्च (सन्ति)। भूमेः रक्षणेन एव लोकानां सुरक्षा शक्या भवति इति, नात्र सन्देहः।

(‘सुरक्षित धर्म लोकों की रक्षा करता है, यह ऋषियों का प्रमाणित वचन है। पर्यावरण की रक्षा करना भी एक धर्म का ही अंग है। ऐसा मन्त्रदृष्टा ऋषिजनों ने प्रतिपादित किया है। इसी कारण से बावड़ी, कुआँ और तालाबों का निर्माण-कार्य देवालयों (मन्दिरों), धर्मशाला आदि का निर्माण धर्म की सिद्धि के स्रोत स्वीकार किये गये हैं। कत्ता, शकर, साँप, नेवला आदि धरती पर विचरण करते हुए, मछली, कछुआ, मगरमच्छ आदि जल-जन्तु आदि की भी रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि ये भूमि के मल (गंदगी) को हटाकर गंदगी को दूर करने वाले होते है। भूमि के संरक्षण से ही लोगों की सुरक्षा सम्भव हो सकती है, इसमें कोई सन्देह नहीं।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ इति कीदृशं वचनम्? (‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ यह कैसा वचन है?) .
(ख) धर्मस्यैक अंगं किं प्रोक्तम् ? (धर्म का एक अंग क्या कहा गया है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) धर्मसिद्धेः स्रोतोरूपेण किं स्वीकृतम् ? (धर्म-स्रोत के रूप में किसे स्वीकार किया गया है?)
(ख) प्रकृति रक्षया किं सम्भवति? (प्रकृति की रक्षा से क्या सम्भव है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-).
(क) ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ इत्येन पदेषु किं क्रियापदम्?
(‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ इनमें से क्रिया पद क्या है?)
(ख) ‘जलचराश्चापि रक्षणीया’ वाक्ये किं पदं अव्ययपदम्?
(‘जलचराश्चापि रक्षणीया’ वाक्य में कौनसा पद अव्यय है?)
उत्तराणि
(1) (क) आर्षवचनम् (ऋषि प्रयुक्त)।
(ख) पर्यावरणरक्षणम् (पर्यावरण का संरक्षण)।

(2) (क) वापी-कूप-तडागादि निर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनाञ्च धर्मसिद्धेः स्रोतोरूपेण अङ्गीकृतम्।
(बाबड़ी, कुआ, तालाब आदि का निर्माण, मन्दिर, धर्मशाला आदि की स्थापना धर्म-सिद्धि के स्रोत के रूप में स्वीकार किये गये हैं।)
(ख) प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति। (प्रकृति की रक्षा से ही लोकरक्षा सम्भव है।)

(3) (क) रक्षति (रक्षा करता है)।
(ख) अपि (भी)।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् संख्याज्ञानम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

संख्या-ज्ञान – इस संसार में सभी लोगों के लिए संख्या (अंकों) का ज्ञान परम आवश्यक है क्योंकि संख्या के ज्ञान के बिना हमारे जीवन में आदान-प्रदान का कोई भी कार्य सम्भव नहीं हो सकता है। अतः हम यहाँ 100 से आगे की संख्याओं (अंकों) का ज्ञान प्राप्त करेंगे।

हिन्दी अर्थ सहित संख्यावाची शब्द :

यहाँ कुछ पारिभाषिक संस्कृत शब्दों का हिन्दी अर्थ विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखते हुए दिया जा रहा है –

(i) शतम् – सौ
(ii) सहस्रम् – हजार
(iii) अयुतम् – दस हजार
(iv) लक्षम् – लाख
(v) प्रयुतम्/नियुतम् – दस लाख
(vi) कोटि: – करोड़
(vii) दशकोटि: – दस करोड़
(viii) अर्बुदम् – अरब
(ix) दशार्बुदम् – दस अरब
(x) खर्वम् – खरब
(xi) दशखर्वम् – दस खरब
(xii) नीलम् – नील
(xiii) दशनीलम् – दस नील
(xiv) पद्मम् – पद्म
(xv) दशपद्मम् – दस पद्म
(xvi) शंखम् – शंख
(xvii) दशशंखम्-दस शंख
(xviii) महाशंखम्-महाशंख

शतम् (100) से ऊपर के संख्यावाचक शब्द बनाना

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

नियम – (i) ‘शत’ (100) आदि संख्यावाचक शब्दों के साथ लघु (छोटी) संख्या के मिलाने के लिए लघु (छोटी) संख्या के साथ ‘अधिक’ या ‘उत्तर’ शब्द वृहत्तर (बड़ी) संख्या के पहले लगा दिया जाता है। यथा-‘एक सौ तेरह’; यहाँ लघु संख्या तेरह है, इसकी संस्कृत है-‘त्रयोदश’। इसके आगे अधिक लगाकर इसके बाद वृहत्तर (बड़ी) संख्या ‘शतम्’ लगाने से ‘एक सौ तेरह’ की संस्कृत हुई- “त्रयोदशाधिकशतम्”।

(ii) शत् (100) सहस्र (1000) इत्यादि संख्याओं के साथ यदि उनका आधा (50, 500 आदि) हो तो सार्धं (आधा सहित), चौथाई साथ हो (25, 250 आदि) तो ‘सपादम्’ (चौथाई साथ) और चौथाई ‘कम हो तो’ पादोन (चौथाई कम) शब्द का उनके साथ प्रयोग किया जाता है। यथा-450 ‘सार्द्ध-शत-चतुष्टयम्” (आधे सहित सौ चार) इसी प्रकार 125 को ‘सपादशतम्’ (चौथाई सहित सौ) लिखते हैं। 1750 को ‘पादोनसहस्रद्वयम्’ (चौथाई कम दो हजार) लिखा जायेगा।

विशेष-शत, सहस्र इत्यादि के पहले द्वि, त्रि आदि के आने पर, समाहार द्विगु हो जाने से वे विशेषण नहीं रहते, क्योंकि समाहार द्विगु हो जाने पर वे विशेष्य पद हो जाते हैं। यथा-द्विशती (200), त्रिशती (300) आदि।

(iii) अवयव दिखाने के लिए द्वय, त्रय, चतुष्टय, पञ्चक, षट्क, सप्तक, अष्टक इत्यादि ‘क’ प्रत्ययान्त एकवचनान्त नपुंसकलिंग शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

(iv) संख्यावाचक शब्दों के प्रयोग करने में यदि संशय हो तो संख्यावाचक शब्द के साथ ‘संख्यक’ शब्द लगाकर अकारान्त पद की तरह रूप चलाकर सरलता से अनुवाद किया जा सकता है।

ध्यातव्य – संस्कृत में संख्या को उल्टे क्रम से लिखना शुरू करते हैं जैसे-101 में, पहले एक को फिर सौ को लिखेंगे। बीच में ज्यादा का शब्द ‘अधिक’ लिखेंगे। याद करें हमारे पुराने बुजुर्ग लोग कैसे गिनती बताते थे। 130 को = तीस ज्यादा सौ, 19 को = एक कम बीस, 540 को = चालीस ज्यादा पाँच सौ, यही तरीका संस्कृत का है। जैसे –

1. 101 = उल्टाक्रम = एक अधिक सौ = एक + अधिकशतम् = एकाधिकशतम्।
2. 140 = उल्टाक्रम = चालीस अधिक सौ = चत्वारिंशत् + अधिकशतम् = चत्वारिंशदधिकशतम्।
3. 165 = उल्टाक्रम = पाँच साठ अधिक सौ = पंच षष्टि + अधिक शतम् = पंचषष्ट्यिधिकशतम्।
4. 300 = तीन सौ = त्रिशतम्।
5. 1965 = उल्टाक्रम = पाँच साठ अधिक एक कम बीस सौ = पंचषष्टि + अधिक + एकोनविंशतिशतम् = पंचषष्ट्य धिकैकोनविंशतिशतम्
6. 2000 = दो हजार = द्विसहस्रम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

उपर्युक्त नियम के अनुसार 100 (शतम्) से ऊपर के संख्यावाचक शब्द –

101. एकाधिकशतम्
102. यधिकशतम्
103. त्र्यधिकशतम्
104. चतुरधिकशतम्
105. पञ्चाधिकशतम्
106. षडधिकशतम्
107. सप्ताधिकशतम्
108. अष्टाधिकशतम्
109. नवाधिकशतम्
110. दशाधिकशतम्
111. एकादशाधिकशतम्
112. द्वादशाधिकशतम्
113. त्रयोदशाधिकशतम्
114. चतुर्दशाधिकशतम्
115. पञ्चदशाधिकशतम्
116. षोडशाधिकशतम्
117. सप्तदशाधिकशतम्
118. अष्टादशाधिकशतम्
119. नवदशाधिकशतम्
120. विंशत्यधिकशतम्
121. एकविंशत्यधिकशतम्
122. द्वारिंशत्यधिकशतम्
123. ज्योविंशत्यधिकशतम्
124. चतुर्विंशत्यधिकशतम्
125. पञ्चविंशत्यधिकशतम्
126. षड्विंशत्यधिकशतम्
127. सप्तविंशत्यधिकशतम्
128. अष्टाविंशत्यधिक शतम्
129. नवविंशत्यधिकशतम्
130. त्रिंशदधिकशतम्
131. एकत्रिंशदधिकशतम्
132. द्वात्रिंशदधिकशतम्।
133. त्रयस्त्रिंशदधिकशतम्
134. चतुत्रिंशदधिकशतम्
135. पञ्चत्रिंशदधिकशतम्
136. षट्त्रिंशदधिकशतम्
137. सप्तत्रिंशदधिकशतम्
138. अष्टत्रिंशदधिकशतम्
139. नवत्रिंशदधिकशतम्
140. चत्वारिंशदधिकशतम्
141. एकचत्वारिंशदधिकशतम्
142. द्विचत्वारिंशदधिकशतम्
143. त्रिचत्वारिंशदधिकशतम्
144. चतुश्चत्वारिंशदधिकशतम्
145. पञ्चचत्वारिंशदधिकशतम्
146. षट्चत्वारिंशदधिकशतम्
147. सप्तचत्वारिंशदधिकशतम
148. अष्टचत्वारिंशदधिकशतम्
149. नवचत्वारिंशदधिकशंतम्
150. पञ्चाशदधिकशतम्
151. एकपञ्चाशदधिकशतम्
152. द्विपञ्चाशदधिकशतम्
153. त्रिपञ्चाशदधिकशतम्
154. चतुःपञ्चाशदधिकशतम्
155. पञ्चपञ्चाशदधिकशतम्
156. षट्पञ्चाशदधिकशतम्
157. सप्तपञ्चाशदधिकशतम्
158. अष्टपञ्चाशदधिकशतम्
159. नवपञ्चाशदधिकशतम्
160. षष्ट्यधिकशतम्
161. एकषष्ट्यधिकशतम्
162. द्विषष्ट्यधिकशतम्
163. त्रिषष्ट्यधिकशतम्
164. चतुःषष्ट्यधिकशतम्
165. पञ्चषष्ट्यधिकशतम्
166. षट्षष्ट्यधिकशतम्
167. सप्तषधिकशतम्
168. अष्टषष्ट्यधिकशतम्
169. नवषष्ट्यधिकशतम्
170. सप्तत्यधिकशतम्
171. एकसप्तत्यधिकशतम्
172. द्विसप्तत्यधिकशतम्
173. त्रिसप्तत्यधिकशतम्
174. चतुःसप्तत्यधिकशतम्
175. पञ्चसप्तत्यधिकशतम्
176. षष्टसप्तत्यधिकशतम्
177. सप्तसप्तत्यधिकशतम्
178. अष्टसप्तत्यधिकशतम्
179. नवसप्तत्यधिकशतम्
180. अशीत्यधिकशतम्।
181. एकाशीत्यधिकशतम्
182. द्वयशीत्यधिकशतम्
183. व्यशीत्यधिक शतम्
184. चतुरशीत्यधिकशतम्
185. पञ्चाशीत्यधिकशतम्
186. षडशीत्यधिकशतम्
187. सप्ताशीत्यधिकशतम्
188. अष्टाशीत्यधिकशतम्
189. नवाशीत्यधिकशतम्
190. नवत्यधिकशतम्
191. एकनवत्यधिकशतम्
192. द्विनवत्यधिकशत्
193. त्रिनवत्यधिकशतम्
194. चतुर्नवत्यधिकशतम्
195. पञ्चनवत्यधिकशतम्
196. षण्णवत्यधिकशतम्
197. सप्तनवत्यधिकशतम्
198. अष्टनवत्यधिकशतम्
199. नवनवत्यधिकशतम्
200. द्विशती द्विशतम्/द्विशतकम् शतद्वयम् इसी प्रकार
201 (एकाधिकद्विशती) आदि संख्याएँ लिखी जायेंगी। उपर्युक्त नियम के अनुसार
200 के ऊपर संख्यावाचक शब्द
201 एकाधिकद्विशतम्।
301 एकाधिकत्रिशतम्।
401 एकाधिकचतुःशतम्/एकोत्तरचतुःशतम्/एकाधिकं चतुःशतम्/एकोत्तरं चतुःशतम्।
500 पञ्चशतम्/शतपञ्चकम्/पञ्चशतकम्।
501 एकाधिकपञ्चशतम्/एकोत्तरपञ्चशतम्/एकाधिकं पञ्चशतम्/एकोत्तरं पञ्चशतम्।
502 यधिकपञ्चशतम्/द्वयुत्तरपञ्चशतम्/यधिकं पञ्चशतम्/द्युत्तरं पञ्चशतम्।
503 व्यधिकपञ्चशतम्/व्युत्तरपञ्चशतम्/त्र्यधिकं पञ्चशतम्/युत्तरं पञ्चशतम्।
504 चतुरधिकपञ्चशतम्/चतुरुत्तरपञ्चशतम्/चतुरधिकं पञ्चशतम्/चतुरुत्तरं पञ्चशतम्।
505 पञ्चाधिकपञ्चशतम्/पञ्चोत्तरपञ्चशतम्/पञ्चाधिकं पञ्चशतम्/पञ्चोत्तरं पञ्चशतम्।
506 षडधिकपञ्चशतम्/षडुत्तरपञ्चशतम्/षडधिकं पञ्चशतम्/षडुत्तरं पञ्चशतम्।
507 सप्ताधिकपञ्चशतम्/सप्तोत्तरपञ्चशतम्/सप्ताधिकं पञ्चशतम्/सप्तोत्तरं पञ्चशतम्।
508 अष्टाधिकपञ्चशतम्/अष्टोत्तरपञ्चशतम्/अष्टाधिकं पञ्चशतम्/अष्टोत्तरं पञ्चशतम्।
509 नवाधिकपञ्चशतम्/नवोत्तरपञ्चशतम्/नवाधिकं पञ्चशतम्/नवोत्तरं पञ्चशतम्।
510 दशाधिकपञ्चशतम्/दशोत्तरपञ्चशतम्/दशाधिकं पञ्चशतम्/दशोत्तरं पञ्चशतम्।
517 सप्तदशाधिकपञ्चशतम्/सप्तदशोत्तरपञ्चशतम्।सप्तदशाधिकं पञ्चशतम्/सप्तदशोत्तरं पञ्चशतम्।
600 षट्शतम्/शतषट्कम्/षट्शतकम्।
625 पञ्चविंशत्यधिकषट्शतम्/पञ्चविंशत्यधिकं षट्शतम्/पञ्चविंशत्युत्तरषट्शतम्/पञ्चविंशत्युत्तरं षट्शतम्।
637 सप्तत्रिंशदधिकषट्शतम्, सप्तत्रिंशदधिकं षट्शतम्/सप्तत्रिंशदुत्तरषट्शतम्, सप्तत्रिंशदधिकं षट्शतम्।
646 षट्चत्वारिंशदधिकषट्शतम् षट्चत्वारिशदधिकं षट्शतम्/षट्चत्वारिंशदुत्तरषट्शतम्/षट्चत्वारिंशदुत्तरं षट्शतम्।
655 पञ्चपञ्चाशदधिकषट्शतम्/पञ्चपञ्चाशदुत्तरं षट्शतम्/पञ्चपञ्चाशदुत्तरषट्शतम्/पञ्चपञ्चाशदुत्तरं षट्शतम्।
666 षट्षष्ट्यधिकषट्शतम्/षट्षष्ट्यधिकं षट्शतम्/षट्षष्ट्युत्तरषट्शतम् षट्षष्ट्युत्तरं षट्शतम्।
673 त्रिसप्तत्यधिकषट्शतम्/त्रिसप्तत्यधिकं षट्शतम्/त्रिसप्तत्युत्तरषट्शतम्/त्रिसप्तत्युत्तरं षट्शतम्।
684 चतुरशीत्यधिकषट्शतम्/चतुरशीत्यधिक षट्शतम्/चतुरशीत्युत्तरषट्शतम्/चतुरशीत्युत्तरं षट्शतम्।
695 पञ्चनवत्यधिकषट्शतम्/पञ्चनवत्यधिक षट्शतम्/पञ्चनवत्युत्तरषट्शतम्/पञ्चनवत्युत्तरं षट्शतम्।
700 सप्तशतम्/शतसप्तकम्/सप्तशतकम्।
704 चतुरधिकसप्तशतम्/चतुरुत्तरसप्तशतम्/चतुरधिकं सप्तशतम्/चतुरुत्तरं सप्तशतम्।
795 पञ्चनवत्यधिकसप्तशतम्/पञ्चनवत्युत्तरसप्तशतम्/पञ्चनवत्यधिकं सप्तशतम्/पञ्चनवत्युत्तरं सप्तशतम्।
800 अष्टशतम्/शताष्टकम्/अष्टशतकम्।
805 पञ्चाधिकाष्टशतम्/पञ्चोत्तराष्टशतम्/पञ्चाधिकमष्टशतम्/पञ्चोत्तरमष्टशतम्।
900 नवशतम्/शतनवकम्/नवशतकम्।
1000 सहस्रम् (एक हजार)।
1324 चतुविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्/चतुविंशत्यधिकत्रिशताधिकसहस्रम् (तेरह सौ चौबीस/एक हजार तीन सौ चौबीस)।
1325 पञ्चविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्/पञ्चविंशत्यधिकत्रिशताधिकसहस्रम् (तेरह सौ पच्चीस/एक हजार तीन सौ पच्चीस)।
1928 अष्टाविंशत्यधिकैकोनविंशतिशतम्/अष्टाविंशत्यधिकनवशताधिकसहस्रम् (उन्नीस सौ अट्ठाइस/एक हजार नौ सौ अट्ठाईस)।
1939 एकोनचत्वारिंशदधिकैकोनविंशतिशतम्/एकोनचत्वारिंशदधिकनवशताधिकसहस्रम् (उन्नीस सौ उन्तालीस/एक हजार नौ सौ उन्तालीस)।
10,000 अयुतम् (दस हजार)।
59637 सप्तत्रिंशदधिकषट्शताधिकनवसहस्राधिकपञ्चायुतम् (उनसठ हजार, छ: सौ सैंतीस)।
(i) शतम् सहस्रम्, अयुतम्, लक्षम् इत्यादि शब्द नित्य एकवचनान्त ही प्रयुक्त होते हैं।
(ii) कोटि तथा दशकोटि शब्द के रूप स्त्रीलिंग में ‘मति’ शब्द के समान बनेंगे। जैसे –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

‘शत’ ‘सहस्र’, ‘लक्ष’, ‘कोटि’ और ‘दशकोटि संख्यावाची शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम् 1

संख्या जानने के लिए ‘कति’ (कितने) शब्द से प्रश्न बनाया जाता है। अतः विद्यार्थियों की सुविधा के लिए ‘कति’ शब्द के रूप दिये जा रहे हैं।

विभक्ति – कति (कितने)

प्रथमा – कति
द्वितीया – कति
तृतीया – कतिभिः
चतुर्थी – कतिभ्यः
पंचमी – कतिभ्यः
षष्ठी – कतीनाम्
सप्तमी – कतिषु

नोट – (i) ‘कति’ के रूप तीनों लिंगों में एक समान चलते हैं।
(ii) कति शब्द के रूप नित्य बहुवचनान्त बनते हैं।

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित प्रश्नानां उत्तरस्य उचित विकल्प चित्वा लिखत –
(i) ‘2021’ इत्यस्य संस्कृतभाषायां रूप भवति
(क) एकविंशत्यधिकैकशतम्
(ख) एकविंशतिद्विशतम्
(ग) एकविंशतिशतम्
(घ) एकविंशत्यधिकद्विशतम्
उत्तरम् :
(ख) एकविंशतिद्विशतम्

(ii) लता समीपे ……………… (110) रूप्यकाणि सन्ति।
(क) दशीनशतम्
(ख) एकादशशतम्
(ग) दशाधिकशतानि
(घ) दशशतम्
उत्तरम् :
(ग) दशाधिकशतानि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

(iii) अस्माकं ग्रामे …………….. (3000) जनाः सन्ति ।
(क) त्रिसहस्र
(ख) त्रिसहस्राणि
(ग) त्रिसहस्रनं
(घ) त्रिसहस्रस्य
उत्तरम् :
(ख) त्रिसहस्राणि

(iv) विद्यालये …………….. (500) छात्राः सन्ति।
(क) पञ्चदशशतम्
(ख) पञ्चाशत्
(ग) पञ्चाधिकशतं
(घ) पञ्चशतम्
उत्तरम् :
(घ) पञ्चशतम्

(v) सीता तस्मै ……………… (175) रूप्यकाणि ददाति।
(क) पञ्चसप्तत्यधिकशतानि
(ख) पञ्चदशशतानि
(ग) पञ्चसप्ततिशतानि
(घ) पञ्चसप्तदशशतानि
उत्तरम् :
(क) पञ्चसप्तत्यधिकशतानि

प्रश्न 2.
निम्नलिखित अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 103,
(ख) 180
उत्तरम् :
(क) व्यधिकशतम्,
(ख) अशीत्यधिकैकशतम्।

प्रश्न 3.
निम्नलिखितौ अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 117
(ख) 180
उत्तरम् :
(क) सप्तदशाधिकैकशतम्,
(ख) अशीत्यधिकैकशतम्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

प्रश्न 4.
निम्नलिखितौ अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 401
(ख) 183
उत्तरम् :
(क) एकाधिकचतुः शतम्,
(ख) त्र्यशीत्यधिकैकशतम्।

प्रश्न 5.
निम्नलिखितौ अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 115
(ख) 231
उत्तरम् :
(क) पञ्चदशाधिकशतम्,
(ख) एकत्रिंशदधिकद्विशतम्।

प्रश्न 6.
अधोलिखितसंख्याः संस्कृतभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
188 – अष्टाशीत्यधिकशतम्।
159 – एकोनषट्यधिकशतम्।
300 – त्रिशतम्।
1965 – पञ्चषष्ट्यधिकैकोनविंशतिशतम्।
2000 – द्विसहस्रम्।
101 – एकाधिकशतम्।
140 – चत्वारिंशदधिकशतम्।
165 – पञ्चषष्ट्यधिकशतम्।
177 – सप्तसप्तत्यधिकशतम्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

प्रश्न 7.
अधोलिखित संख्याशब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
एकपञ्चाशदधिकशतम् – 151
एकाधिकद्विशतम् – 201
एकत्रिंशदधिकत्रिशतम् – 331
पञ्चचत्वारिंशदधिकचतुः शतम् – 445
दशाधिकपञ्चशतम् – 510

प्रश्न 8.
अधोलिखितसंख्याशब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
पञ्चविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्
1325 चतुःशतम् एकसप्तत्यधिकशतम्
171 नवाधिकशतम्
109 द्विशतम्
सप्तदशाधिकपञ्चशतम्
517 त्रिसप्तत्यधिकषट्शतम्

प्रश्न 9.
अधोलिखित संख्याशब्दान् संस्कृत भाषायां लिखत।
उत्तरम् :
620 – विंशत्यधिकषट्शतम्
751 – एकपञ्चाशदधिकसप्तशतम्
1021 – एकविंशत्यधिकसहस्रम्
1513 – त्रयोदशाधिकपञ्चदशशतम्
1966 – षट्पष्ट्यधिकैकोनविंशतिशतम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

प्रश्न 10.
अधोलिखित संख्याशब्दान् संस्कृत भाषायां लिखत।
उत्तरम् :
2000 – द्विसहस्रम्
2020 – विंशत्यधिकद्विसहस्त्रम्
5200 – द्विशताधिकपञ्चसहस्त्रम्
10000 – दशसहस्रम्
1500000 – पञ्चदशलक्षम्

प्रश्न 11.
निम्नलिखितसंख्याः संस्कृतभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
111 – एकादशाधिकशतम्
125 – पञ्चविंशत्यधिकशतम्
131 – एकत्रिंशदधिकशतम्
501 – एकाधिकपञ्चशतम्
650 – पञ्चाशदधिकष्टशतम्

प्रश्न 12.
अधोलिखित संख्या शब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
पञ्चसप्तत्यधिकसप्तशतम् – 775
चत्वरिंशदधिकाष्टशतम् – 840
त्रिंशदधिकनवशतम् – 930
पञ्चषष्ट्यधिकनवशतम् – 965
एकाधिकसहस्रम् – 1001
अष्टाधिकसहस्रम् – 1008

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

प्रश्न 13.
अधोलिखित संख्या शब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
शताधिकसहस्रम् – 1100
एकादशाधिकैकादशशतम् – 1111
पंचविंशदधिकचतुर्दशशतम् – 1425
पंचाशित्यधिकपञ्चदशशतम् – 1585
चतुरशित्यधिकाष्टादशशतम् – 1884
एकोनद्विसहस्रम् – 1999

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions रचना पत्र-लेखनम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

आवश्यक निर्देश – कक्षा IX की परीक्षा में संस्कृत के प्रश्न-पत्र में संस्कृत भाषा में सरल प्रार्थना-पत्र लिखने को कहा जाता है। यहाँ संस्कृत में कुछ प्रार्थना-पत्र दिये जा रहे हैं।

लेखन-विधि – जिन्हें हिन्दी में पत्र-लिखने का अभ्यास है, उन्हें संस्कृत में पत्र लिखने में विशेष असुविधा नहीं होगी। पत्र लिखते समय निम्न बिन्दुओं पर विशेष ध्यान दें –
1. पत्र में सरल भाषा और छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
2. जिस उद्देश्य से आप पत्र लिख रहे हैं, उसका स्पष्ट उल्लेख करें।
3. आवेदन-पत्र में बायीं ओर सम्मानसूचक शब्दों के साथ अधिकारी (प्रधानाचार्य आदि) का पद-नाम लिखें। इसमें सम्बोधन कारक का प्रयोग करना चाहिए। सम्मान व्यक्त करने के लिए आप बहुवचन का भी प्रयोग कर सकते हैं। इसके नीचे अधिकारी के कार्यालय (विद्यालय आदि) का पता लिखें।
4. अगली पंक्ति में पुनः महोदयाः/श्रीमन्तः/श्रीमत्यः आदि लिखकर अधिकारी को सम्बोधित करें। उसकी अगली पंक्ति में अपना निवेदन लिखना प्रारम्भ करें।
5. अन्त में बायीं ओर आवेदन का दिनांक लिखें। दाहिनी ओर अपना नाम व पता निम्नवत् लिखें –

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम् 1

6. निमन्त्रण आदि से सम्बन्धित व्यावहारिक पत्रों में पहले ऊपर दाहिनी ओर प्रेषण-स्थान का नाम ‘त:’ लगाकर … (जयपुरतः, भरतपुरतः आदि) लिखें।
7. आजकल निमन्त्रण-पत्र प्रायः छपवाये जाते हैं, जिनमें प्राप्तकर्ता का नाम-पता बाद में आप लिखें।
8. पत्र की समाप्ति के बाद बायीं ओर दिनांक तथा दाहिनी ओर ‘भवताम् अनुचरः’, ‘निवेदकः’, ‘विनीतः’ आदि लिखकर नाम लिखें। उसके नीचे बायीं ओर प्राप्तकर्ता का नाम तथा पता लिखें।
9. जहाँ संख्या की आवश्यकता हो वहाँ शब्दों (एकः, द्वौ आदि) की अपेक्षा अंकों (1, 2 आदि) का प्रयोग करें। हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले अंक मूलत: संस्कृत के ही हैं, अतः इनका प्रयोग निःसंकोच कर सकते हैं। उदाहरणार्थ-आपको . लिखना है-‘दो दिन का अवकाश।’ इसे संस्कृत में अनेक प्रकार से लिख सकते हैं; जैसे –
(क) दिनद्वयावधिकः अवकाशः
(ग) दिनद्वयात्मकः अवकाशः
(ख) 2 दिनावधिः अवकाशः
(घ) 2 दिनात्मकः अवकाशः

10. साधारण-पत्रों में हिन्दी में प्रचलित विधि का ही अनुकरण करें। प्रारम्भ में दाहिने कोने पर अपने स्थान (ग्राम, नगर आदि) का नाम तथा उसके नीचे दिनांक लिखें। उचित सम्बोधन तथा अभिवादन के साथ पत्र प्रारम्भ करें। अन्त में पत्र को समाप्त करते हुए, पुनः दाहिने कोने पर अपना नाम तथा पूरा पता लिख दें।

विशेष – प्रार्थना-पत्र संकेताधारित होंगे। संकेताधारित प्रार्थना-पत्रों को निम्न चार प्रकार से लिखा जा सकता है। सांकेतिक शब्द तथा सांकेतिक पंक्तियाँ सहायतार्थ होती हैं न कि पूर्ण विषयवस्तु। अतः विद्यार्थी इस बात का विशेष ध्यान रखें।

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

1. प्रार्थना-पत्र को इस प्रकार से पूछा जा सकता है –
प्रश्न : स्वकीयं मनोजं मत्वा रा.उ. मा. वि. अलवरस्य प्रधानाचार्यमहोदयं शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रं अधोलिखित शब्दानाम् अवलम्बनं कृत्वा लिखत-(स्वयं को मनोज मानकर रा.उ.मा. वि. अलवर के प्रधानाचार्य महोदय को शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र निम्नलिखित शब्दों की सहायता लेकर लिखिए-)

[संकेतसूची/मञ्जूषा – प्रधानाचार्यमहोदयाः, भवतां, नम्रनिवेदनमस्ति, कृषकपुत्रः, आर्थिकदशा, शिक्षणशुल्कम् एवम् अन्यानि, प्रदातुं शक्नोमि, प्रदातव्या, चरणचञ्चरीकः, मनोजकुमारः।]

शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्।

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदया:
रा. उ. मा. वि.
अलवरम्।
विषय: – शिक्षण-शुल्क-मुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
भवतां चरणकमलेषु सविनयं नम्रनिवेदनमस्ति यदहमेक: ग्रामीण: कृषकपुत्रः अस्मि। मम आर्थिकदशा न अस्ति ईदृशी यदहं विद्यालयस्य शिक्षणशुल्कम् एवम् अन्यानि प्रदेयानि शुल्कानि प्रदातुं शक्नोमि। अतः कृपया शुल्कमुक्तिम् प्रदाय अनुगृह्णन्तु माम् भवन्तः।

भवताम् चरणचञ्चरीकः
मनोजकुमारः
कक्षा IX

दिनांक : 11-7-20_ _

हिन्दी-अनुवाद

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
रा. उ. मा. वि.
अलवर।

विषय – शिक्षण-शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
आपके चरण-कमलों में सविनय नम्र निवेदन है कि मैं ग्रामीण किसान का पुत्र हूँ। मेरी आर्थिक दशा ऐसी नहीं है कि मैं विद्यालय का शिक्षण शुल्क एवं अन्य दिये जाने योग्य शुल्क देने में समर्थ हो सकूँ। अतः कृपा करके शुल्क से मुक्ति प्रदान कर अनुगृहीत करें।

आपके चरणों का सेवक
मनोज कुमार
कक्षा IX

दिनांक : 11-7-20_ _

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

2. ऊपर लिखे प्रार्थना-पत्र को इस प्रकार से भी पूछा जा सकता है –
प्रश्नः स्वकीयं मनोजं मत्वा रा.उ.मा.वि. अलवरस्य प्रधानाचार्यमहोदयम् अधोलिखितानां सङ्केतानाम् आधारेण प्रार्थना-पत्रं लिखत-(स्वयं को मनोज मानकर रा. उ. मा. वि. अलवर के प्रधानाचार्य महोदय को निम्नलिखित सङ्केतों के आधार पर प्रार्थना-पत्र लिखिए-)
ध्यातव्य-(प्रार्थना-पत्र संख्या 2 में प्रार्थना-पत्र लिखने का कारण अर्थात् प्रार्थना-पत्र किसलिए लिखना है, वह हेतु नहीं बताया गया है। अत: छात्रों को सांकेतिक पंक्तियों से प्रार्थना-पत्र के हेतु का चुनाव स्वयं करना है तथा उसी विषय पर प्रार्थना-पत्र लिखना है।)

सेवायाम्
श्रीमन्तः ………..
रा. उ. मा. वि.
अलवरम्
महोदयाः,
भवतां …………. नम्रनिवेदनमस्ति ……………. कृषकपुत्रः ……………. आर्थिकदशा …………… शिक्षणशुल्कम् एवम् अन्यानि प्रदेयानि.. प्रदातुं शक्नोमि. शुल्कमुक्तिम् स्वीकृत्य अगृह्णन्तु माम् भवन्तः।

चरणचञ्चरीकः
………….
कक्षा IX

दिनांक: ………….

नोट – उपर्युक्त सङ्केत पंक्तियों को पढ़कर पता चलता है कि प्रार्थना-पत्र शुल्क-मुक्ति के लिए लिखना है।
उत्तरम् :
प्रार्थना-पत्र संख्या 1 के उत्तर की तरह लिखें।

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

3. ऊपर लिखे प्रार्थना-पत्र को इस प्रकार से भी पूछा जा सकता है –
प्रश्नः स्वकीयं मनोज मत्वा रा. उ. मा. वि. अलवरस्य प्रधानाचार्यमहोदयम् अधोलिखितानां शब्दसंकेतानाम् अवलम्बनं कृत्वा प्रार्थना-पत्रं लिखत-(स्वयं को मनोज मानकर रा. उ. मा. वि. अलवर के प्रधानाचार्य महोदय को निम्नलिखित शब्द संकेतों की सहायता लेकर प्रार्थना-पत्र लिखिए-)

[सङ्केतसूची-भवतां, निवेदनमस्ति, कृषकपुत्रः आर्थिकदशा, प्रदातुं, प्रदातव्या।]

श्रीमन्तः ………….
महोदयाः,
…………….. चरणकमलेषु …………….. अहम् एकः ग्रामीण: ……………… न अस्ति ईदशी यदहं.. .”प्रदेयानि शुल्कानि ……………….. शुल्कमुक्तिः ………………

भवताम् …………….
मनोज कुमारः
कक्षा IX

दिनांकः ……….

नोट – इस प्रार्थना-पत्र में भी प्रार्थना-पत्र का हेतु (विषय) नहीं दिया गया है। अतः छात्रों को स्वयं संकेत पंक्तियों को पढ़कर पता लगाना है कि प्रार्थना-पत्र किस विषय पर लिखना है।
अत: सांकेतिक पंक्तियाँ पढ़कर पता चलता है कि प्रार्थना-पत्र शुल्क-मुक्ति के लिए लिखना है।
उत्तरम् :
प्रार्थना-पत्र संख्या 1 के उत्तर की तरह लिखें ।

4. ऊपर लिखे प्रार्थना-पत्र को इस प्रकार भी पूछा जा सकता है –
प्रश्न: – शुल्कमुक्तिप्रदानार्थं प्रधानाचार्य प्रति प्रार्थना-पत्रं सङ्केतसूच्याः उचितपदैः पूरयत-(शुल्कमुक्ति के लिए प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र सङ्केत सूची के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए-)
[संकेत सूची/मञ्जूषा-कृषकपुत्रः, प्रदातुं शक्नोमि, भवतां, मनोजकुमारः, नम्रनिवेदनमस्ति, प्रदाय, आर्थिकदशाः चरणचञ्चरीकः, शिक्षणशुल्कम् एवम् अन्यानि, प्रधानाचार्यमहोदया:।]

सेवायाम्,
श्रीमन्त: …………
रा. उ. मा. वि.
अलवरम्।

महोदया:,
………………. चरण कमलेषु सविनयं ………….. यदहमेकः ग्रामीण: …………. अस्मि। मम ………. नास्तीदृशी यदहं विद्यालयस्य …………… प्रदेयानि शुल्कानि ……………. । अत: कृपया शुल्कमुक्तिम् …………….. अनुगृह्णन्तु मां भवन्तः।

भवताम् ………….
…………….
कक्षा IX

दिनांक: ……….
उत्तरम् :
प्रार्थना-पत्र संख्या 1 के उत्तर की तरह लिखें।
नोट – चौथे प्रकार के प्रार्थना-पत्र-लेखन को इस पासबुक में लिखा गया है। लेकिन विद्यार्थी उपर्युक्त प्रार्थना-पत्र-लेखन के तरीकों को भी ध्यान में रखें एवं प्रार्थना-पत्रों को भली-भाँति स्मरण करें ताकि प्रश्नानुसार उत्तर दिया जा सके।
प्रार्थना – पत्र में रिक्त स्थान होंगे जिन्हें मञ्जूषा (तालिका) में दिए गए शब्दों से भरकर पूर्ण करना होगा। परीक्षा का यही पूर्ण प्रार्थना-पत्र का उत्तर होगा। अतः यहाँ कुछ प्रार्थना-पत्रों को प्रस्तुत किया जा रहा है।

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 1.
अस्वस्थतायाः कारणात् दिवसत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(बीमारी के कारण तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से.पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
…………………… प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. उ. मा. वि. ……………………
भरतपुरम्।

विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं ………………. यत् अद्य अहंशीतज्वरेण ……………… अस्मात् कारणात ……………. यावत् विद्यालये ………….. न शक्नोमि। अतः …………… यत् दि. 11-5-20_ _ तः 13-5-20_ _ पर्यन्त दिनत्रयस्य अवकाशं …………… मामनुगृहीष्यन्ति …………….।

भवदाज्ञाकारी …………
सुदर्शनः
कक्षा 9 (जी)

दिनांक 11-5-20_ _

[संकेत सूची/मजपा-निवेदयामि, भवन्तः, श्रीमन्तः, स्वीकृत्य, विद्यालयः, प्रार्थये, दिनत्रयस्य, शिष्यः, पीडितोऽस्मि, । उपस्थातुम्।]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. उ. मा. वि.,
भरतपुरम्।

विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदयामि यत् अद्य अहं शीतज्वरेण पीडितोऽस्मि। अस्मात् कारणात् अहं दिनत्रयं यावत् विद्यालये उपस्थातुं न शक्नोमि। अतः प्रार्थये यत् दि. 11-5-20_ _तः 13-5-20_ _ पर्यन्त दिनत्रयस्य अवकाशं स्वीकृत्य मामनुगृहीष्यन्ति भवन्तः।
दिनांक : 11-5-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
सुदर्शनः
कक्षा 9 (जी)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,

राज. उ. माध्य. विद्यालय,
भरतपुर।

विषय – तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि आज मैं शीतज्वर से पीड़ित हैं। इस कारण से मैं तीन दिन तक विद्यालय में उपस्थित नहीं हो सकता हूँ। इसलिए प्रार्थना करता हूँ कि दिनांक 11-5-20_ _ से 13-5-20_ _ तक तीन दिन का अवकाश स्वीकृत कर आप मुझ पर अनुग्रह करेंगे।
दिनांक : 11-5-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
सुदर्शन
कक्षा 9 (जी)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न 2.
शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः शब्दैः पूरयत।
(शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालयः,
भरतपुरम्।

विषयः – शिक्षणशुल्कमुक्तये प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं प्रार्थये यदहं श्रीमतां विद्यालये ……………….. छत्रोत्रोऽस्मि। मम …………… आर्थिकस्थितिः शोचनीयाऽस्ति। मम पिता …………. प्रतिदिवसं कार्ये केवलं पञ्चाशद् रूप्यकाणाम् …………….. भवति। तेन …………… पालन-पोषणञ्च कथमपि भवितुं न शक्नोति। अतः अहं …………… शिक्षणशुल्क… असमर्थोऽस्मि। गतवर्षे मम शिक्षणशुल्क-मुक्तिः ………….. । अष्टमकक्षायाः ……………. अहं प्रथमश्रेण्याम् उत्तीर्णोऽभवम्।
अतः पुनः निवेदनमस्ति यत् भवन्तः अध्ययने मम रुचिम् अवलोक्य मह्यं शिक्षणशुल्कात् मुक्ति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति।

दिनांक : 11-8-20_ _

………. शिष्यः।
सुरेशचन्द्रः
कक्षा 9 (स)

[संकेत सूची/मञ्जूषा – आसीत्, भक्दाज्ञाकारी, विद्यालयस्य, पितुः, अर्जनमेव, नवमकक्षायाः, वृद्धोऽस्ति, परिवारस्य, परीक्षायाम, प्रदातुम्।]
उत्तरम् :

शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्;
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालयः,
भरतपुरम्।

विषयः – शिक्षणशुल्कमुक्तये प्रार्थनापत्रम्।

महोदयाः,
संविनयं प्रार्थये यदहं श्रीमतां विद्यालये नवमकक्षायाः छात्रोऽस्मि। मम पितुः आर्थिकस्थितिः शोचनीयाऽस्ति। मम पिता वद्धोऽस्ति, प्रतिदिवसं केवलं पञ्चाशद रूप्यकाणाम अर्जनमेव भवति। तेन परिवारस्य पालन-पोषणञ्च शक्नोति। अतः अहं विद्यालयस्य शिक्षणशुल्कं प्रदातुम् असमर्थोऽस्मि। गतवर्षे मम शिक्षणशुल्क-मुक्तिः स्वीकृता आसीत्। अष्टम-कक्षायाः परीक्षायाम् अहं प्रथमश्रेण्याम् उत्तीर्णोऽभवम्।
अतः पुनः निवेदनमस्ति यत् भवन्तः अध्ययने मम रुचिम् अवलोक्य मह्यं शिक्षणशुल्कात् मुक्ति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति।

दिनांक : 11-8-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
सुरेशचन्द्रः
कक्षा 9 (स)

हिन्दी-अनुवाद
शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालय,
भरतपुर।

विषय – शिक्षण-शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं श्रीमानजी के विद्यालय में नौवीं कक्षा का छात्र हूँ। मेरे पिता की आर्थिक स्थिति शोचनीय है। कार्य में केवल पचास रुपये कमा पाते हैं। उससे परिवार का पालन-पोषण किसी प्रकार भी नहीं हो सकता है। इसलिए मैं विद्यालय का शिक्षण शुल्क देने में असमर्थ हूँ। गतवर्ष मेरी शिक्षण-शुल्क-मुक्ति स्वीकार हुई थी। आठवीं कक्षा की परीक्षा में मैं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था।
इसलिए पुनः निवेदन है कि आप अध्ययन में मेरी रुचि को देखकर मुझे शिक्षण-शुल्क से मुक्ति प्रदान कर अनुगृहीत करेंगे।

दिनांकः 11-8–20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
सुरेशचन्द्र
कक्षा 9 (स)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 3.
ज्येष्ठभ्रातुः विवाहकारणात् दिनद्वयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(बड़े भाई के विवाह के कारण से दो दिन के अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्त: प्रधानाचार्यमहोदया:
राजकीयः उच्चः ……………… विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषयः – दिनद्वयस्य …………. प्रार्थना-पत्रम्।

……………..
सविनयं निवेदनम् …………. यत् मम ज्येष्ठभ्रातुः ……….. 16-5-20_ _ दिनाङ्के. …………..। एतत् कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न………………।
अत: …………. यत् 16-5-20_ _ दिनाङ्कतः 17-5-20_ _ दिनाङ्कपर्यन्तं …………… अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति ……….।

सधन्यवादम्।
दिनाङ्कः 16-5-20_ _

भवदीयः शिष्यः
भारतः शर्मा
(कक्षा-9)

[संकेत सूची/मञ्जूषा-दिनद्वयस्य, श्रीमन्तः, निवेदनमस्ति, निश्चितः, शक्नोमि, माध्यमिकः, महोदयाः, पाणिग्रहणसंस्कारः, अस्ति, अवकाशार्थम्।]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदया:,
राजकीयः उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषयः – दिनद्वयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदया:,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम ज्येष्ठभ्रातुः पाणिग्रहणसंस्कारः 16-5-20_ _ दिनाङ्के निश्चितः। एतत् कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न शक्नोमि।
अतः निवेदनमस्ति यत् 16-5-20_ _ दिनाङ्कतः 17-5-20_ _ दिनाङ्कपर्यन्तं दिनद्वयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।
सधन्यवादम्।
दिनाङ्कः 16-5-20_ _

भवदीयः शिष्यः
भारत: शर्मा
(कक्षा-9)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।

विषय – दो दिन के अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरे बड़े भाई की शादी दिनांक 16-5-20_ _ को निश्चित हुई है। इस कारण से दो दिन तक मैं अपनी कक्षा में उपस्थित नहीं हो सकता हूँ।
अतः निवेदन है कि दिनांक 16-5-20_ _ से 17-5-20_ _ तक दो दिन का अवकाश स्वीकृत कर श्रीमान् मुझ पर अनुग्रह करेंगे।
सधन्यवाद।
दिनांक 16-5-20_

आपका शिष्य
भारत शर्मा
(कक्षा-9)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 4.
चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(चरित्र-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
………………
श्रीमन्तः …………
राजकीयः उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
जयपुरम्।

विषयः – चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं ………… अस्ति यत् अहं आंग्ल ………… वाद-विवाद …………. भागं ग्रहीतुम् इच्छामि। एतत् …………. चरित्र-प्रमाण ………….. आवश्यकता………………
अतः प्रार्थना अस्ति यत् मह्यं चरित्र-प्रमाण-पत्रं ……. अनुग्रहीष्यन्ति …………….. ।

सधन्यवादम्।
दिनांक: 7-9-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
अनूपः
(नवम् कक्षा)

[संकेत सूची/मञ्जूषा-प्रदाय, भाषया, पत्रस्य, भवन्तः, प्रधानाचार्य महोदयाः, निवेदनम्, सेवायाम्, कारणात्, वर्तते, । प्रतियोगितायाम्।]

चरित्र-प्रमाण-पत्राय प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीयः उच्च-माध्यमिक-विद्यालयः,
जयपुरम्।

विषयः – चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना–पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् अहम् आंग्लभाषया वाद-विवादप्रतियोगितायां भागं ग्रहीतुम् इच्छामि। एतत् कारणात् चरित्र-प्रमाण-पत्रस्य आवश्यकता वर्तते।
अतः प्रार्थना अस्ति यत् मह्यं चरित्र-प्रमाण-पत्रं प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः। सधन्यवादम्।

दिनांक : 7-9-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
अनूपः
(नवम् कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
चरित्र-प्रमाण-पत्र के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जयपुर।

विषय – चरित्र-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं अंग्रेजी भाषा की वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता हूँ। इस कारण से चरित्र-प्रमाण-पत्र की आवश्यकता है।
अतः प्रार्थना है कि आप चरित्र-प्रमाण-पत्र देकर मुझे अनुग्रहीत करेंगे।

दिनांक : 7-9-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
अनूप
(कक्षा नवमी)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 5.
मातुः सेवार्थं दिनत्रयस्य अवकाशाय प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(माता की सेवा के लिए तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
………….
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
………………. उच्च माध्यमिक-विद्यालयः,
अजयमेरुः।

विषयः – दिनत्रयस्य ……. प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
………….. निवेदनम् अस्ति यत् …………… गतदिवसात् शीतज्वरेण ………… अस्ति। एतस्मात् कारणात् अहं विद्यालयं …………….. न शक्नोमि। अतः कृपया 7-7-20_ _ दिनांकतः 9-7-20_ _दिनांक ………… दिनत्रयस्य अवकाशं……………. अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।
सधन्यवादम्।
दिनांकः 7-7-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्य
रमनः
(नवम् कक्षा)

[संकेतसूची/मजूषा-मम, माम् पर्यन्तम्, माता, अवकाशार्थम्, राजकीय, आगन्तुम, पीडिता, स्वीकृत्य, सविनयम्, सेवायाम्।]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः
प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
अजयमेरुः।

विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम माता गतदिवसात् शीतज्वरेण पीडिता अस्ति। एतस्मात् कारणात् अहं विद्यालयम् आगन्तुं न शक्नोमि। अतः कृपया 7-7-20_ _ दिनांकत: 9-7-20_ _ दिनांकपर्यन्तं दिनत्रयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।
सधन्यवादम्।
दिनांक: 7-7-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
रमनः
(नवम् कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
अजमेर।

विषय – तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र ।

महोदय,

सविनय निवेदन है कि मेरी माताजी कल से बुखार से पीड़ित हैं। इस कारण मैं विद्यालय नहीं आ सकता हूँ। कृपया
दिनांक 7-7-20_ _ से दिनांक 9-7-20_ _ तक तीन दिन का अवकाश स्वीकृत कर आप मुझे अनुगृहीत करेंगे।
सधन्यवाद।

दिनांक 7-7-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
रमन
(कक्षा नवमी)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 6.
स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः चितपदैः पूरयत।
(स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
…………….।

विषयः – ………… प्रमाण-पत्रं प्राप्तं प्रार्थना-पत्रम।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम पिता अत्र ……………. अस्ति। …………… तस्य स्थानान्तरणं ……………. अभवत्। मम ………………… मम पित्रा सह भरतपुरम् गमिष्यति। अहम् अस्मात् ………………. अष्टमकक्षाम् उत्तीर्णवान्, नवमकक्षायाम् अहं भरतपुरे ………………..। अतः मह्यं स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं…………….. अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः इति।

सधन्यवादम्।
दिनांक 6 – 4 – 20_ _

…………….. शिष्यः
रामकुमारः
(नवम् कक्षा)

[सकत सची/मञ्जूषा-स्थानान्तरणम्, लिपिकः, पठिष्यामि, अधुना, दौसानगरम, भरतपुरम, परिवारः,प्रदाय, विद्यालयात, भवदाज्ञाकारी]

उत्तरम् :

स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्राय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
दौसानगरम्।

विषय – स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम पिता अत्र लिपिकः अस्ति। अधुना तस्य स्थानान्तरणं भरतपुरम् अभवत्। मम परिवारः मम पित्रा सह भरतपुरं गमिष्यति। अहम् अस्मात् विद्यालयात् अष्टमकक्षाम् उत्तीर्णवान्, नवमकक्षायाम् अहं भरतपुरे पठिष्यामि। अतः मह्यं स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः इति ।
सधन्यवादम्।
दिनांक 6-4-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
रामकुमारः
(नवम् कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
दौसानगर।

विषय – स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरे पिताजी यहाँ लिपिक हैं। अब उनका स्थानान्तरण भरतपुर हो गया है। मेरा परिवार मेरे पिताजी के साथ भरतपुर जाएगा। मैंने इस विद्यालय से कक्षा आठ उत्तीर्ण की है, कक्षा नवमीं में मैं भरतपुर में पढूंगा। अतः आप स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र देकर मुझे अनुगृहीत करेंगे।
सधन्यवाद।
दिनांक 6-4-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
रामकुमार
(कक्षा नवमी)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 7.
क्रीडायाः सम्यंग व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(खेलकूद की उचित व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः …………….. महोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः
जोधपुरम्।

विषयः – ………… सम्यग् व्यवस्था प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यदस्माकं………….”क्रीडायाः व्यवस्था भद्रतरा न……………….। अध्ययनेन समम् एव क्रीडनमपि…………… रोचते। अतः क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थां…………..”अस्मान् अनुग्रहणन्तु ……………..।

सधन्यवादम्।
दिनांक : 15-8-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
हरीशः
(नवम् कक्षा)

[संकेत सूची/मञ्जूषा-श्रीमन्तः, अस्मभ्यम्, प्रधानाचार्यमहोदयाः, विद्यालये, विधाय, वर्तते, क्रीडायाः।]
उत्तरम् :

क्रीडाव्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक-विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषयः – क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यदस्माकं विद्यालये क्रीडायाः व्यवस्था भद्रतरा न वर्तते। अध्ययनेन समम् एव क्रीडनमपि अस्मभ्यं रोचते। अतः क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थां विधाय अस्मान् अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः। .

सधन्यवादम्।
दिनांक 15-8-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
हरीशः
(नवम् कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
खेलकूद-व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।

विषय – खेलकूद की उचित व्यवस्था हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि हमारे विद्यालय में खेल की व्यवस्था ठीक नहीं है। अध्ययन के साथ ही खेलना भी हमको अच्छा लगता है। अतः खेल की समुचित व्यवस्था कराकर आदरणीय आप हमारे ऊपर अनुग्रह करें।

सधन्यवाद।
दिनांक 15-8-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
हरीश
(कक्षा नवमी)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 8.
विद्यालये स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(विद्यालय में स्वच्छता की व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
…………
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. सी. सै. विद्यालयः, श्रीकरनपुरम्।

विषयः – विद्यालये………. व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदयामो यद् …………. विद्यालये सम्प्रति अस्वच्छताया: ………… वर्तते। अस्मिन् ………….. छात्राः शिक्षकाश्च रोगग्रस्ता: जायन्ते। ………………… अस्माकं मनांसि न ……………….. । अतः कृपया स्वच्छतायाः समुचित व्यवस्थायै प्रेरयन्तु अत्रभवन्तः।

दिनांक: 10-8-20_ _

भवताम् आज्ञानुवर्तिनः
समस्तः ………..
……………..

[संकेत सूची/मञ्जूषा-छात्रवृन्दः, कर्मकरान्, अध्ययने, वातावरणे, रमन्ते, साम्राज्यम, सेवायाम्, अस्माकम्, स्वच्छतायाः]
उत्तरम् :

स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. सी. सै. विद्यालयः, श्रीकरनपुरम्।

विषयः – विद्यालये स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदयामो यद् अस्माकं विद्यालये सम्प्रति अस्वच्छतायाः साम्राज्यं वर्तते। अस्मिन् वातावरणे छत्राः शिक्षकाश्च रोगग्रस्ता जायन्ते। अध्ययने अस्माकं मनांसि न रमन्ते। अतः कृपया स्वच्छतायाः समुचित व्यवस्थायै कर्मकरान् प्रेरयन्तु अत्रभवन्तः।
दिनांकः 10-8-20_ _

भवताम् आज्ञानुवर्तिनः
समस्तः छात्रवृन्दः
कक्षा नवम्

हिन्दी-अनुवाद
स्वच्छता-व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राज. सीनि. सै. विद्यालय, श्रीकरनपुर।

विषय – विद्यालय में स्वच्छता-व्यवस्था हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
विनम्रतापूर्वक निवेदन करते हैं कि हमारे विद्यालय में इस समय अस्वच्छता का साम्राज्य है। इस वातावरण में छात्र और शिक्षक रोगग्रस्त हो जाते हैं। अध्ययन में हमारा मन नहीं लगता है। अतः कृपया स्वच्छता की समुचित व्यवस्था हेतु श्रीमान् जी कर्मचारियों को प्रेरित करें।

दिनांक 10-8-20_ _

आपके आज्ञाकारी
समस्त छात्रगण
कक्षा नवमी

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 9.
शैक्षिक-शिविरस्य आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(शैक्षिक शिविर के आयोजन के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीयः उच्चमाध्यमिक ……………..,
बीकानेरम्।

विषयः – शैक्षिक ………’आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनय …………….. यद् अस्मविद्यालये ……….. पूर्णसन्तोषकरी वर्तते। तथापि ……….. तृप्ति न एति। अतःप्रार्थयामो ………….. यद् अस्मत्-कृते 15 दिनात्मकम् एकं शैक्षिक-शिविरम् अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः।

दिनांक 16-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणः…………
नवमीकक्षास्थाः छात्राः

[संकेत सूची/मज्जूषा-निवेद्यते, वयम्, शिक्षण व्यवस्था, विद्यालयः, शिविरस्य, शिष्याः, अस्माकं, आयोज्य, ज्ञान-पिपासा।]
उत्तरम् :

शैक्षिक शिविर आयोजनार्थ प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः
राजकीय-उच्च-माध्यमिक-विद्यालयः,
बीकानेरम्

विषयः – शैक्षिक-शिविरस्य आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यद् अस्मविद्यालये शिक्षण-व्यवस्था पूर्णसन्तोषकरी वर्तते। तथापि अस्माकं ज्ञान-पिपासा तृप्ति न एति। अतः प्रार्थयामो वयं यद् अस्मत्-कृते 15 दिनात्मकम् एकं शैक्षिक-शिविरम् आयोज्य अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः।

दिनांकः 11-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणः शिष्याः
नवमी कक्षास्थाः छात्राः

हिन्दी-अनुवाद
शैक्षिक शिविर-आयोजन के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
बीकानेर।

विषय – शैक्षिक शिविर के आयोजन हेतु प्रार्थना-पत्र ।

महोदय,
विनम्रतापूर्वक निवेदन है कि हमारे विद्यालय में शिक्षण व्यवस्था पूर्ण सन्तोषजनक है। फिर भी हमारी ज्ञान-पिपासा तृप्त नहीं हो पाती है। अतः हम सभी प्रार्थना करते हैं कि हमारे लिए 15 दिन का एक शैक्षिक शिविर श्रीमान् आप आयोजित कर अनुगृहीत करें।
दिनांक: 16-7-20_ _

आपके आज्ञाकारी शिष्य
कक्षा 9 के छात्र

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 10.
नगरपालिकाप्रशासकाय प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पुरयत।
(नगरपालिका प्रशासक के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

दिनाङ्कः 11-9-20_ _

प्रेषक:,
प्रह्लाद चावला, …………….
सुभाषवसतिः, झालावाड़म्।
प्राप्तकर्ता –
श्रीमन्तः ………………. प्रशासकमहोदयाः,
नगरपालिका, झालावाड़म्।

विषयः – सुभाषवसत्याः स्वच्छता ………….।

महोदयाः,
निवेदनमस्ति यद् अस्माकं ‘सुभाषवसतिः’ नाम्नि…………….. स्वच्छताकार्यं नैव क्रियते। अनेन”……………”यत्र-तत्र अस्वच्छवस्तूनाम् अनियतप्रसरणं…………..। अनेन विविध…………”प्रसारस्य आशंका अस्ति।
अतएव प्रार्थ्यते स्वच्छताकार्ये ………………… कर्मकरान् स्वच्छतासम्पादनार्थम् आदिशतु। ……………. भवान् समुचितां व्यवस्था करिष्यति।

…………….
(प्रह्लाद चावला)
…………….

[संकेत सूची/मञ्जूषा – पार्षदः, पार्षदः नगरपालिका, कारणेन, उपनगरे, सम्पादनार्थम्, भवति, रोगाणाम्, निवेदक:, नियुक्तान, आशासे]
उत्तरम् :

स्वच्छतासम्पादनाय प्रार्थना-पत्रम्

दिनांक : 11-9-20_ _.

प्रेषकः,
प्रहलाद चावला, पार्षदः,
सुभाषवसतिः, झालावाड़म्।,
प्राप्तकर्ता
श्रीमन्तः नगरपालिकाप्रशासकमहोदयाः,
नगरपालिका, झालावाड़म्।

विषयः – सुभाषवसत्याः स्वच्छता-सम्पादनार्थम्।

महोदयाः,
निवेदनमस्ति यद् अस्माकं ‘सुभाषवसति:’ नाम्नि उपनगरे स्वच्छताकार्यं नैव क्रियते। अनेन कारणेन यत्र-तत्र अस्वच्छवस्तुनाम अनियतप्रसरणं भवति। अनेन विविध रोगाणां प्रसारस्य आशंका अस्ति।
अतएव प्रार्थ्यते स्वच्छताकार्ये नियुक्तान् कर्मकरान् स्वच्छतासम्पादनार्थम् आदिशतु। आशासे, भवान् समुचितां व्यवस्थां करिष्यति।

निवेदकः
(प्रह्लाद चावला)
पार्षदः

हिन्दी-अनुवाद
स्वच्छता-सम्पादन के लिए प्रार्थना-पत्र

दिनाङ्कः 11-9-20

प्रेषक –
प्रहलाद चावला, पार्षद,
सुभाष कॉलोनी, झालावाड़।
प्राप्तकर्ता –
श्रीमान् नगरपालिका प्रशासक महोदय,
नगरपालिका, झालावाड़।

विषय – सुभाष बस्ती में सफाई कराने के क्रम में।

महोदय,
निवेदन है कि हमारी सुभाष बस्ती नाम की कॉलोनी में सफाई का कार्य नहीं किया जाता है। इस कारण से इधर-उधर गन्दी वस्तुओं का फैलाव होता है जिससे विभिन्न रोगों के फैलने की आशंका है।
इसलिए प्रार्थना है कि सफाई कार्य में नियुक्त कर्मचारियों को सफाई करने के लिए आदेश दें। आशा है आप उचित व्यवस्था करेंगे।

निवेदक
(प्रहलाद चावला)
पार्षद

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 11.
अध्ययने परिश्रमं हेतु अनुजाय पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(अध्ययन में परिश्रम हेतु छोटे भाई के लिए पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

दौसातः
दिनांक : 9-10-20_ _

प्रिय अशोकः।
……………
अत्र कुशलं तत्रास्तु।
आवयोः माता ……………. सूचयति यत् तव मनः………… पूर्ववत् न रमते। प्रायेण ………… एव संलग्नः तिष्ठसि त्वम्। इदं तु महत् ………………… अस्ति। अयं ते ……………… निर्माणकालः, अतः कथञ्चिदपि …………… लक्ष्यात् न विरन्तव्यम्। अध्ययनमेव तव ………………. उन्नतं करिष्यति।

चि. अशोकः उपाध्यायः
……………. (अजयमेरु:)

………………………….
पद्माकरः उपाध्यायः

[संकेत सूची/मजूषा – शुभेच्छुः, जीवनम्, अशोभनम्, अध्ययने, जीवनस्य, क्रीडने, चिरंजीव, स्वपत्रेण, आत्मनः, किशनगढ़ः]
उत्तरम् :

अध्ययने परिश्रमार्थं अनुजाय पत्रम्

दौसातः
दिनांकः 9-10-20_ _

प्रिय अशोक!
चिरंजीव।
अत्र कुशलं तत्रास्तु।
आवयोः माता स्वपत्रेण सूचयति यत् तव मनः अध्ययने पूर्ववत् न रमते । प्रायेण क्रीडने एव संलग्नः तिष्ठसि त्वम्। इदं तु महत् अशोभनम् अस्ति। अयं ते जीवनस्य निर्माणकालः, अतः कथञ्चिदपि आत्मनः लक्ष्यात् न विरन्तव्यम्। अध ययनमेव तव जीवनम् उन्नतं करिष्यति।

चि. अशोकः उपाध्यायः
किशनगढ़ः (अजयमेरुः)

शुभेच्छुः
पद्माकरः उपाध्यायः

हिन्दी-अनुवाद
अध्ययन में परिश्रम के लिए छोटे भाई के लिए पत्र

दौसा
दिनांक : 9-10-20_ _

प्रिय अशोक,
चिरंजीवी
बनो।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।
हमारी (दोनों की) माताजी अपने पत्र में सूचित करती हैं कि तुम्हारा मन अध्ययन में पूर्व की भाँति नहीं लग रहा है। तुम प्रायः खेलने में ही संलग्न रहते हो। यह तो बहुत बुरी बात है। यह तुम्हारे जीवन के बनाने का समय है, अतः किसी भी प्रकार अपने लक्ष्य से नहीं भटकना है। अध्ययन ही तुम्हारे जीवन को उन्नत करेगा।
चि. अशोक उपाध्याय
किशनगढ़ (अजमेर)

शुभेच्छु
पद्माकर उपाध्याय

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 12.
सदाचारपालनाय अनुजं प्रति पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(सदाचार का पालन करने के लिए छोटे भाई के प्रति पत्र को मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

ब्यावरतः (अजयमेरुतः)
दिनांकः 3-9-20_ _

प्रिय अनुज !
चिरंजीव।
अत्र ……………. तत्रास्तु।
तव एकेन मित्रेण……………… यत् स्वशिक्षकैः सह तव ………….. शिष्टः न अस्ति। ……………… अपि त्वम् असाधुः संवृत्तः………………। इदं ………………. सदाचारस्तु …………… मूलमन्त्रोऽस्ति। कथितं च ……………. परमो धर्मः इति। आशासे यत् त्वं मम …………….. अनुसरिष्यसि।

………….
राजेन्द्रनाथः

चि. सुरेन्द्रनाथः, कक्षा 9 (स)
राजकीय, सी., सै., स्कूल, बाड़मेरः।

[संकेत सूची/मजूषा-सूचितम्, असि, कुशलम्, परामर्शम, नौचितम्, जीवनस्य, सहपाठिषु, व्यवहारः, आचारः, तवाग्रजः]
उत्तरम् :

सदाचारपालनार्थ अनुजाय पत्रम्

ब्यावरतः (अजयमेरुतः)
दिनांक: 3-9-20_ _

प्रिय अनुज !
चिरंजीव।
अत्र कुशलं तत्रास्तु।

तव एकेन मित्रेण सूचितं यत् स्वशिक्षकैः सह तव व्यवहारः शिष्टः न अस्ति। सहपाठिषु अपि त्वम् असाधुः संवृत्तः असि। इदं नोचितम्। सदाचारस्तु जीवनस्य मूलमन्त्रोऽस्ति। कथितं च ‘आचारः परमो धर्मः’ इति। आशासे यत् त्वं मम परामर्शम् अनुसरिष्यसि।

तवाग्रजः
राजेन्द्रनाथ:

चि. सुरेन्द्रनाथः, कक्षा 9 (स)
राजकीय, सी., सै., स्कूल, बाड़मेरः।

हिन्दी-अनुवाद
सदाचार का पालन करने हेतु छोटे भाई को पत्र

ब्यावर (अजमेर)
दिनांक: 3-9-20_ _

प्रिय अनुज,
चिरंजीवी बनो।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।
तुम्हारे एक मित्र ने सूचित किया है कि अपने शिक्षकों के साथ तुम्हारा व्यवहार शोभनीय नहीं है। सहपाठियों के प्रति भी तुम बुरे बने हुए हो। यह ठीक नहीं है। सदाचार तो जीवन का मूल मन्त्र है और ‘ ही परम धर्म’ कहा गया है। आशा करता हूँ कि तुम मेरे परामर्श का अनुसरण करोगे।

चि. सुरेन्द्रनाथ कक्षा 9 (स)
रा., सी., सै., स्कूल, बाड़मेर।

तुम्हारा बड़ा भाई
राजेन्द्रनाथ

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 13.
मित्रं प्रति वर्धापनपत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(मित्र के प्रति बधाई पत्र को मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

……………
दिनांक: 17-10-20_ _

प्रिय सुहन्महेन्द्रनाथ !
सप्रेम हरिस्मरणम्।
अत्र…………….तत्रास्तु।
तव स्नेह-पत्रं मया ………… अधिगतम्। तव उत्साहवर्धकैः …………….. अहम् अनुगृहीतोऽस्मि। त्वादृशानां …………. प्रेरणैव मम ……………. कारणम्। स्वाध्याये ……………. एकचित्ततया संलग्नोऽहं ……………… श्रेष्ठ ……….. प्रति आश्वस्तोऽस्मि। तव प्रगतिम् …………….. च कामयन्।

प्रतिष्ठायाम्,
श्रीमहेन्द्रनाथः,
माउण्ट आबू।

तव मित्रम्
जगन्नाथः

[संकेतसूची/मञ्जूषा-पुनरपि, अनामयम्, सिरोहीतः, स्वाध्याये, वचनैः, अद्यैव, कुशलम्, मित्राणाम्, सफलतायाः]

मित्रं प्रति वर्धापनपत्रम्

सिरोहीतः
दिनांक: 17-10-20_

उत्तरम् :
प्रिय सुहृन्महेन्द्रनाथ!
सप्रेम हरिस्मरणम्।
अत्र कुशलं तत्रास्तु।
तव स्नेह-पत्रं मया अद्यैव अधिगतम्। तव उत्साहवर्धकैः वचनैः अहम् अनुगृहीतोऽस्मि। त्वादृशानां मित्राणां प्रेरणैव मम सफलतायाः कारणम्। स्वाध्याये एकचित्ततया संलग्नोऽहं पुनरपि श्रेष्ठां सफलता प्रति आश्वस्तोऽस्मि। तव प्रगतिम् अनामयं च कामयन्।

प्रतिष्ठायाम्
श्री महेन्द्रनाथः,
माउण्ट आबू।

तव मित्रम्
जगन्नाथः

हिन्दी-अनुवाद
मित्र को बधाई का पत्र

सिरोही
दिनांक: 17-10-20_ _

प्रिय मित्र महेन्द्रनाथ !
सप्रेम हरिस्मरण।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।
तुम्हारा स्नेहपूर्ण पत्र मुझे आज ही प्राप्त हुआ। तुम्हारे उत्साह बढ़ाने वाले वचनों से मैं अनुगृहीत हूँ। तुम जैसे मित्रों की प्रेरणा ही मेरी सफलता का कारण है “माध्याय में एकचित्त होकर मैं पुनः भी श्रेष्ठ सफलता के प्रति आश्वस्त हूँ। तुम्हारी प्रगति और स्वास्थ्य की कामना करता हुआ।
प्रतिष्ठा में,
श्री महेन्द्रनाथ,
माउण्ट आबू।

तुम्हारा मित्र
जगन्नाथ

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 14.
मित्रं प्रति वर्धापनपत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः पूरयत।
(मित्र के बधाई पत्र को मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए)।

नीमस्य थाना …………
दिनांक: 4-7-20_ _

अभिन्नहृदय सुहृद्वर्य।
…………. नमस्कारः!

अत्र सर्वं कुशलम्।
……………. तव कुशल-पत्रं प्राप्तम्। त्वं प्रथम-श्रेण्या ……….. उत्तीर्णां कृत्वा स्वजनपदे प्रथम ………. अधिगतवान् इति ……………. विषयः। तव ……….. सर्वथा साधुवादार्हः। स्वपितृभ्यां मम ……………. निवेदय।

तव स्निग्धं …….
हेनरी

श्री डेविड विल्सन,
आर. के. कॉलोनी, भीलवाड़ा।

[संकेतसूची/मञ्जूषा-मित्रम्, स्थानम्, सीकरतः, प्रणामम्, प्रयासः, परीक्षाम, हर्षस्य, सप्रेम, अद्यैव, प्रतिष्ठायाम्।]
उत्तरम् :

मित्रं प्रति वर्धापनपत्रम्

नीमस्य थाना (सीकरतः)
दिनांक: 4-7-20_ _

अभिन्नहृदय सुहद्वर्य।
सप्रेम नमस्कारः !
अत्र सर्वं कुशलम्।
अद्यैव तव कुशल-पत्रं प्राप्तम्। त्वं प्रथम-श्रेण्यां परीक्षाम् उत्तीर्णां कृत्वा स्वजनपदे प्रथमं स्थानम् अधिगतवान् इति हर्षस्य विषयः। तव प्रयासः सर्वथा साधुवादाहः। स्वपितृभ्यां मम प्रणामं निवेदय।

प्रतिष्ठायाम्,
श्री डेविड विल्सन,
आर. के. कालोनी, भीलवाड़ा।

तव स्निग्धं मित्रम्
हेनरी

हिन्दी-अनुवाद
मित्र को बधाई का पत्र

नीम का थाना (सीकर)
दिनांक:4-7-20_ _

अभिन्न-हृदय मित्रवर !
सप्रेम नमस्ते।
यहाँ सब कुशल है।
आज ही तुम्हारा कुशलपत्र प्राप्त हुआ। तुमने प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण करके अपने जनपद (जिला) में प्रथम स्थान प्राप्त किया, यह हर्ष की बात है। तुम्हारा प्रयास पूर्णरूप से साधुवाद (शाबाशी) दिये जाने योग्य है। अपने माता-पिता के लिए मेरा प्रणाम निवेदन करना।

प्रतिष्ठा में,
श्री डेविड विल्सन,
आर. के. कॉलोनी, भीलवाड़ा।

तुम्हारा प्रिय मित्र
हेनरी

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 15.
मित्रं प्रति अभिनन्दनपत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः पूरयत।
(मित्र के प्रति अभिनन्दन पत्र को मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
अभिन्नहदय सुहृद्वर्य!
……………… नमस्कारः।

जयपुरतः
दिनांक: 1-1-20_ _

अत्र कुशलं तत्राऽस्तु।
…………. तव अभिनन्दनपत्रं प्राप्तम्। अहमपि ………. मंगलमयी कामना ……………. इदं नववर्ष ……….. भूयातं। स्वपितृभ्या ………… निवेदय।
……………
श्री रमेशचन्द्रः पाराशरः,
रणजीत नगर कॉलोनी, भरतपुरम्।

प्रेषकः
तव स्निग्धं मित्रम्
मनोज:

[संकेतसूची/मञ्जूषा-सप्रेम, तुभ्यं, मम, अभिनन्दनपत्रं, अद्यैव, नववर्षस्य, मंगलमयं, सुखदं, सौभाग्यकरं, प्रत्यर्पिता, । करोमि, तुभ्यं, च, मम, प्रणाम्, प्रतिष्ठायाम्, भूयात्, मनोजः]
मित्राय नववर्षस्य अभिनन्दनपत्रम्
उत्तरम् :

जयपुरतः
दिनांकः 1-1-20_ _

अभिन्नहृदय सुहृद्वर्य!
सप्रेम नमस्कारः।

अत्र कुशलं तत्राऽस्तु।
अद्यैव तव अभिनन्दनपत्रं प्राप्तम्। अहमपि तुभ्यं नववर्षस्य मम मंगलमयी कामनां प्रत्यर्पितां करोमि। इदं नववर्ष . तुभ्यं मंगलमयं, सुखदं सौभाग्यकरं च भूयात्। स्वपितृभ्यां मम प्रणामं निवेदय।

प्रेषकः
तव स्निग्धं मित्रम्
मनोजः

प्रतिष्ठायाम्,
श्री रमेशचन्द्रः पाराशरः,
रणजीत नगर कॉलोनी, भरतपुरम्।

हिन्दी-अनुवाद
मित्र के लिए नववर्ष का अभिनन्दन-पत्र

जयपुर
दिनांक : 1-1-20_ _

अभिन्न-हृदय मित्रवर!
सप्रेम नमस्ते।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।

आज ही तुम्हारा अभिनन्दन पत्र प्राप्त हुआ। मैं भी तुम्हारे लिए नववर्ष की मेरी मंगलमयी कामना प्रेषित कर रहा हूँ। यह नववर्ष तुम्हारे लिए मंगलमय, सुख देने वाला और सौभाग्यदायक होवे। अपने माता-पिता के लिए मेरा प्रणाम निवेदन करना।

प्रतिष्ठा में,
श्री रमेशचन्द्र पाराशर,
रणजीत नगर कॉलोनी, भरतपुर।

प्रेषक
तुम्हारा प्रिय मित्र
मनोज

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 16.
अग्रज प्रति वर्धापनपत्रम् मञ्जूषायां प्रदत्तपददैः पूरयत।
(बड़े भाई को बधाई का पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

रतनगढ़तः
दिनांक : 27-3-20_ _

……………..
सम्मान्य बन्धुवर्य!
सादरं वन्दे।
अत्र कुशलं तत्रास्तु।

प्राप्तं भवतः ………………. अद्यैव। ह्य::……………. अस्माकं परीक्षा-फलं……………….. । भवतः आशीर्वादात इयं ………………… मया प्रथमश्रेण्याम् उत्तीर्णा। अंक-पत्रे प्राप्ते सति सविस्तारं ………….।

…………..
रामेश्वरदासः

[संकेतसूची/मजूषा-कृपापत्रम्, परिषदा, घोषितम्, लेखिष्यामि, भवतः अनुजः, सेवायाम्, परीक्षा]
उत्तरम् :

अग्रज प्रति वर्धापनपत्रम्

रतनगढ़तः
दिनांक 27-3-20_ _

सेवायाम्,
सम्मान्य बन्धुवर्य!
सादरं वन्दे।
अत्र कुशलं तत्रास्तु!
प्राप्तं भवतः कृपापत्रम् अद्यैव। ह्यः परिषदा अस्माकं परीक्षाफलं घोषितम्। भवतः आशीर्वादात् इयं परीक्षा मया प्रथमश्रेण्या उत्तीर्णा। अंक-पत्रे प्राप्ते सति सविस्तारं लेखिष्यामि।

भवतः अनुजः
रामेश्वरदासः

हिन्दी-अनुवाद
बड़े भाई को बधाई का पत्र

रतनगढ़
दिनांक : 27-3-20_ _

सेवा में,
मान्य बन्धुवर!
सादर नमस्ते।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।

आज ही आपका कृपापत्र प्राप्त हुआ। कल परिषद् ने हमारा परीक्षाफल घोषित किया है। आपके आशीर्वाद से यह परीक्षा मैंने प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर ली है। अंक-सूची प्राप्त होने पर विस्तारपूर्वक लिखेंगा।

आपका छोटा भाई
रामेश्वर दास

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 17.
मित्रं प्रति अभिनन्दनपत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः पूरयत।
(मित्र को अभिनन्दन पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
अभिन्नहृदय सुहृद्वर्य!
………………. नमस्कारः।
अत्र कुशलं तत्राऽस्तु।

रामगढ़ः (अलवरतः)
दिनांक: 7-7-20_ _

अहम् अद्य अति ….. अनुभवामि। इदं मम ………. अभिनन्दनपत्रम् अस्ति। अयं पर्वः ………. सौभाग्यदायकः, समृद्धिकरः मंगलकारकःच ……………। स्वपितृभ्यां…………निवेदय।
प्रतिष्ठायाम्
श्री राधाकृष्णः श्रोत्रियः,
आदर्शनगर कॉलोनी, जयपुरम्।

प्रेषक:
तव स्निग्धं …………
…………….. वशिष्ठः

[संकेतसूची/मञ्जूषा-मधुरमोहनः, सप्रेम, प्रसन्नतां, दीपमालिका, भूयात्, पर्वः तुभ्यं, मम प्रणामं, मित्रम्]
उत्तरम् :

मित्राय दीपमालिका अभिनन्दनपत्रम्

रामगढ़ः (अलवरतः)
दिनांक: 7-7-20_ _

अभिन्नहृदय सुहृद्वर्य!
सप्रेम नमस्कारः।
अत्र कुशलं तत्राऽस्तु।
अहम् अद्य अति प्रसन्नताम् अनुभवामि। इदं मम दीपमालिका अभिनन्दनपत्रम् अस्ति। अयं पर्वः तुभ्यं सौभाग्यदायकः, समृद्धिकरः मंगलकारकः च भूयात्। स्वपितृभ्यां मम प्रणामं निवेदय।

प्रतिष्ठायाम्,
श्री राधाकृष्णः श्रोत्रियः,
आदर्शनगर कालोनी, जयपुरम्।

प्रेषकः
तव स्निग्ध मित्रम्
मधुरमोहनः वशिष्ठः

हिन्दी-अनुवाद
मित्र के लिए दीपमालिका अभिनन्दन पत्र

अभिन्न-हृदय मित्रवर!
सप्रेम नमस्ते।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।

मैं आज अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। यह मेरा दीपमालिका अभिनन्दनपत्र है। यह उत्सव तुम्हारे लिए सौभाग्य देने वाला, समृद्धि कराने वाला और मंगलकारी होवे। अपने माता-पिता के लिए मेरा प्रणाम निवेदन करना।

प्रतिष्ठा में,
श्री राधाकृष्ण श्रोत्रिय,
आदर्श नगर कॉलोनी, जयपुर।

प्रेषक
तुम्हारा प्रिय मित्र
मधुरमोहन वशिष्ठ

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 18.
प्रधानाध्यापिकां प्रति अवकाशहेतोः प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः पूरयत।
(प्रधानाध्यापिका को अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमत्यः प्रधानाध्यापिकामहोदयाः,
…………….”माध्यमिकविद्यालयः,
जोधपुरम्।
महोदयाः,
सविनय ………….. मम ज्येष्ठभगिन्या: …………. दिनद्वयं पश्चात् …………….. । एतत्कारणात् दिनद्वयं ……………… अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न ……………..
अतः निवेदनमस्ति यत् दिनांक 16-7-20_ _ तः 17-7-20_ _ पर्यन्तं …………… अवकाशं ……………… माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमत्यः।

सधन्यवादम्।
दिनांक : 14-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-नवमी (अ)

[संकेतसूची/मञ्जूषा-दिनद्वयस्य, भविष्यति, पाणिग्रहणसंस्कारः, शक्नोमि, निवेदनमस्ति, यावद, राजकीयः बालिका, स्वीकृत्य]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमत्यः प्रधानाध्यापिकामहोदयाः,
राजकीयः बालिका माध्यमिकविद्यालयः,
जोधपुरम्।
महोदयाः,
सविनयं निवेदनमस्ति यत् मम ज्येष्ठभगिन्याः पाणिग्रहणसंस्कारः दिनद्वयं पश्चात् भविष्यति। एतत्कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न शक्नोमि।
अतः निवेदनमस्ति यत् दिनांक 16-7-20_ _ तः 17-7-20_ _ पर्यन्तं दिनद्वयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमत्यः।

सधन्यवादम्।
दिनांक : 14-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-नवमी (अ)

हिन्दी अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमती प्रधानाध्यापिका महोदया,
राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।
महोदया,
सविनय निवेदन है कि मेरी बड़ी बहिन का विवाह-संस्कार दो दिन बाद होगा। इस कारण दो दिन तक मैं अपनी कक्षा में उपस्थित होने में असमर्थ हूँ।
इसलिए निवेदन है कि दिनांक 16-7-20_ _ से 17-7-20_ _ तक दो दिनों का अवकाश स्वीकृत करके श्रीमती मुझे अनुगृहीत करेंगी।

सधन्यवाद
दिनांक : 14-7-20_ _ ।

आपकी आज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-9 (अ)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न 19.
भवान् दिवाकरः नवम कक्षायाः छात्रः। आदर्श माध्यमिक विद्यालये पठन्ति। आधारकार्ड प्राप्तुं अध्ययन प्रमाण-पत्रस्य आवश्यकता वर्तते। अतः प्रधानाध्यापकाय अध्ययन-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना पत्रम् लिखत।
(आप दिवाकर नौवीं कक्षा के छात्र हैं। आदर्श माध्यमिक विद्यालय में पढ़ते हैं। आधार कार्ड प्राप्त करने के लिए अध्ययन-प्रमाण-पत्र की आवश्यकता है। अतः प्रधानाध्यापक से अध्ययन प्रमाणपत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।)
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदया:
आदर्श माध्यमिक विद्यालयः
…………….।

विषयः – अध्ययन-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यद् अहं ई-मित्रात्……………प्राप्तुम् इच्छामि। तस्य हेतोः विद्यालयस्य……………प्रमाण-पत्रम् अपेक्षते। अहं……………कक्षायाः छात्रः अस्मि। अत:………….निरन्तराध्ययनस्य………….प्रदाय………..माम्………. ।

…………..
दिनांक : 6.3.20_ _

भवताम्………….शिष्यः
दिवाकरः
(नवमी कक्षा)

[सङ्केत-सूची/मञ्जूषा-आधारकार्डम्, आज्ञाकारी, धौलपुरम्, अध्ययन, नवम अनुगृह्णन्तु, मह्यम्, सधन्यवादम्, श्रीमन्तः प्रमाण-पत्रम्]
उत्तरम् :
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदयाः,
धौलपुरम्।

विषय – अध्ययन-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम् ।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यद् अहम् ई-मित्रात् आधारकार्ड प्राप्तुम् इच्छामि। तस्य हेतोः विद्यालयस्य अध्ययन-प्रमाण पत्रम् अपेक्षते। अहं नवम कक्षायाः छात्रः अस्मि। अत: मह्यम् निरन्तराध्ययनस्य प्रमाण-पत्रम् प्रदाय अनुगृह्णन्तु माम् श्रीमन्तः।

सधन्यवादम्
दिनाङ्कः 6.3.20 –

भवताम् आज्ञाकारी शिष्यः
दिवाकर
(नवमी कक्षा)

हिन्दी अनुवाद

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाध्यापक महोदय,
धौलपुर

विषय-अध्ययन प्रमाण-पत्र प्राप्ति हेतु प्रार्थना-पत्र

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं ई-मित्र से आधार कार्ड प्राप्त करना चाहता हूँ। इसके लिए विद्यालय से अध्ययन प्रमाण-पत्र की अपेक्षा है। मैं नौवीं कक्षा का छात्र हूँ। अतः अध्ययनरत होने का प्रमाण-पत्र देकर श्रीमान मुझे अनुग्रहीत करें।

धन्यवाद सहित
दिनांक : 06-03-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
दिवाकर
(कक्षा नौ)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 20.
यूयं राजकीय-माध्यमिक विद्यालय लखनपुरस्य नवम्-कक्षायाः छात्राः। स्वकीयं प्रधानाध्यापकं प्रति एकं प्रार्थना पत्रं शैक्षणिक भ्रमणार्थम् अनुमति हेतुः लिखत। (तुम राजकीय माध्यमिक विद्यालय लखनपुर के नौवीं कक्षा के छात्र है। अपने प्रधानाध्यापक के लिए एक प्रार्थना-पत्र शैक्षणिक भ्रमण की अनुमति के लिए लिखिए।)
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापकाः महोदया:
राजकीयः माध्यमिकः विद्यालयः
लखनपुरम्

विषय – शैक्षिक भ्रमणस्य अनुमत्यर्थं प्रार्थना पत्रम्।

महोदयाः,
सविनय………..यद् अस्माकं………शिक्षणस्तु………..प्रवर्तते। वयं सर्वे…………स्मः। तथापि अस्माकं……….तृप्तिः न भवति। अतः निवेदयामः………यद् एतत् तृप्तये सप्ताहात्मकम् एकं……………आयोजानीयम् कक्षायाः सर्वे………. एवमेव इच्छन्ति। वयमास्वस्थाः स्मः यत्………..प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्त।

दिनाङ्क : 18.11.20_ _

भवदाज्ञाकारिणः………
नवम-कक्षास्थाः

[मञ्जूषा – छात्राः, वयम्, शिष्या, अनुमति, शैक्षिक-भ्रमणम्, सन्तुष्टाः, निवेदनम्, विद्यालये, सम्यक्, ज्ञान-पिपासायाः।]
उत्तरम् :
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदयाः,
राजकीयः माध्यमिक: विद्यालयः
लखनपुरम्।

विषय – शैक्षणिक भ्रमणस्य अनुमत्यर्थं प्रार्थना पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयम् निवेदनम् यद् अस्माकं विद्यालये शिक्षणस्तु सम्यक् प्रवर्तते। वयं सर्वे सन्तुष्टाः स्मः। तथापि अस्माकं ज्ञान पिपासायाः तृप्तिः न भवति। अतः निवेदयामः वयं यद् एतत् तृप्तये सप्ताहात्मकम् एकं शैक्षिक-भ्रमणम् आयोजनीयम्।
कक्षायाः सर्वे छात्रा: एवमेव इच्छन्ति। वयम् आस्वस्थाः स्मः यतु अनुमति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः।

दिनांक : 18.12.20

भवदाज्ञाकारिण: शिष्याः
नवम-कक्षास्थाः

हिन्दी अनुवाद

सेवा में
श्रीमान् प्रधानाध्यापक महोदय
राजकीय माध्यमिक विद्यालय,
लखनपुर।

विषय – शैक्षणिक भ्रमण की अनुमति हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि हमारे विद्यालय में शिक्षण तो अच्छी तरह चल रहा है। फिर भी हमारे ज्ञान की प्यास तृप्ति को प्राप्त नहीं हो रही है। अत: हम निवेदन करते हैं कि इस तृप्ति के लिए एक. सप्ताह का एक शैक्षणिक-भ्रमण आयोजित किया जाय। कक्षा के सभी छात्र ऐसा ही चाहते हैं। हमें विश्वास है कि आप अनुमति देकर हमें अनुग्रहीत करेंगे।

दिनांक : 18.11.20_ _

आपके आज्ञाकारी शिष्य
कक्षा नौ