JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् सन्धिकार्यम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

सन्धिशब्दय व्युत्पत्तिः – सम् उपसर्गपूर्वकात् डुधाञ् (धा) धातोः ‘उपसर्गे धोः किः’ इति सूत्रेण ‘किः’ प्रत्यये कृते सन्धिरिति शब्दो निष्पद्यते। (सम् उपसर्गपूर्वक डुधाञ् (धा) धातु से “उपसर्गे धोः किः” इस सूत्र से ‘किः’ प्रत्यय करने पर ‘सन्धि’ यह शब्द बनता है।)

सन्धिशब्दस्य परिभाषा – ‘वर्णसन्धानं सन्धिः’ अर्थात् द्वयोः वर्णयोः परस्परं यत् सन्धानं मेलनं वा भवति तत्सन्धिरिति कथ्यते। (‘वर्णसन्धानं सन्धिः’ अर्थात् दो वर्णों का परस्पर जो सन्धान या मेल होता है वह सन्धि कहा जाता है।)

पाणिनीयपरिभाषा – ‘परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्णानाम् अत्यन्तनिकटता संहिता इति कथ्यते। यथा-सुधी + उपास्यः इत्यत्र ईकार-उकारवर्णयोः अत्यन्तनिकटता अस्ति। एतादृशी वर्णनिकटता एव संस्कृतव्याकरणे संहिता इति कथ्यते। संहितायाः विषये एव सन्धिकार्ये सति ‘सुध्युपास्यः’ इति शब्दसिद्धिर्जायते। (‘परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्णों की अत्यधिक निकटता संहिता कही जाती है। जैसे- ‘सुधी+उपास्यः’ यहाँ पर ‘ईकार’ तथा ‘उकार’ वर्गों की अत्यधिक निकटता है। इस प्रकार की वर्णों की निकटता ही संस्कृत व्याकरण में संहिता कही जाती है। संहिता के विषय में ही सन्धि कार्य होने पर ‘सुध्युपास्य’ इस शब्द की सिद्धि होती है।)

सन्धिभेदाः – संस्कृतव्याकरणे सन्धेः त्रयो भेदाः सन्ति। ते इत्थं सन्ति (1) अचसन्धिः (स्वरसन्धिः)। (2) हलसन्धिः (व्यंजनसन्धिः)। (3) विसर्गसन्धिः। नोट-यहाँ व्यंजन संधि एवं विसर्ग सन्धि का ज्ञान अपेक्षित है। अतः इन्हें यहाँ विस्तार से समझाया गया है।

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हल्सन्धिः (व्यंजन सन्धिः)

परिभाषा – यदा व्यञ्जनात् परे व्यञ्जनम् अथवा स्वरः आयाति तदा हल्सन्धिः भवति। (जब व्यञ्जन से परे (आगे) व्यञ्जन अथवा स्वर आता है तब हल् सन्धि (व्यञ्जन सन्धि) होती है।)

अर्थात् – व्यञ्जन का किसी व्यञ्जन या स्वर के साथ मेल होने पर जो परिवर्तन (विकार) होता है उसे हल् सन्धि कहते हैं। हल् सन्धि का दूसरा नाम व्यञ्जन सन्धि भी है।

1. श्चुत्व सन्धिः- सूत्र- “स्तोः श्चुना श्चुः”। अर्थः – सकारतवर्गयोः शकारचवर्गाभ्यां योगे शकारचवर्गों स्तः।

व्याख्या – यदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येते वर्णाः श् च् छ् ज् झ् ञ् इत्येतेषां वर्णानाम् पूर्वम् पश्चात् वा आयान्ति तदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येतेषां वर्णानां स्थाने क्रमशः श् च् छ् ज् झ् ञ् इत्येते वर्णाः भवन्ति। यथा- (श्चुत्व सन्धि – “स्तोः श्चुना श्चुः” यदि ‘स्’ या ‘त्’ वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) से पहले या बाद में ‘श्’ या ‘च’ वर्ग (च्, छ, ज, झ, ञ्) हो तो ‘स्’ का ‘श्’ और त वर्ग का चवर्ग अर्थात ‘त् का च’, ‘थ् का छ्’, ‘द् का ज्’, ‘ध् का झ्’, ‘न’ का ज्’ हो जाता है जैसे- सत् + चरितम् में ‘सत्’ के अन्त में ‘त’ है और ‘चरितम’ के आदि में च है, इन ‘त’ तथा ‘च’ दोनों वर्गों की सन्धि होने पर ‘त’ जो कि त का प्रथम अक्षर (वर्ण) है, के स्थान पर चवर्ग का प्रथम वर्ण अर्थात् ‘च’ हो जाएगा। इस प्रकार सत् + चरितम् की सन्धि हो पर ‘सच्चरितम्’ रूप होगा।)

उदाहरण –

सत् + चित् = सच्चित्
रामस् + चिनोति = रामश्चिनोति
हरिस् + शेते. = हरिश्शेते
शाङ्गिन् + जय = शाङ्गिञ्जय
रामस् + च = रामश्च।
कस् + चित् = कश्चित्
उद् + ज्वलः = उज्ज्वल:

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2. ष्टुत्व सन्धिः – सूत्र – ष्टुना ष्टुः। अर्थः – स्तोः ष्टुना योगे ष्टुः स्यात्।
व्याख्या – यदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येते वर्णाः ष् ट् ठ् ड् ढ् ण् इत्येतेषां वर्णानाम् पूर्वं पश्चाद् वा आयान्ति तदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येतेषां वर्णानां स्थाने क्रमशः ष् ट् ठ् ड् ढ् ण् इत्येते वर्णाः भवन्ति। यथा –
अर्थात् ‘स्’ तथा तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के पहले या बाद में ‘ष’ या टवर्ग (ट्, ठ्, ड्, द, ण) में से कोई वर्ण हो तो ‘स्’ को ‘ए’ तथा तवर्ग को क्रमशः टवर्ग त् का ट्, थ् का ठ्, द् का ड्, ध् का द, न् का ण हो जाता है। जैसे- इष् + त: में ‘इष्’ का अन्तिम वर्ण ‘ए’ है और उसके परे ‘तः’ है। अतः सन्धि कार्य होने पर तवर्ग टवर्ग में बदल जाएगा। अर्थात् ‘त:’ के स्थान पर ‘ट:’ होने पर इष् + तः = इष्टः रूप होगा।

उदाहरण –

तत् + टीका = तट्टीका
रामस् + षष्ठः रामष्षष्ठी:
रामस् + टीकते = रामष्टीकते
पेष् + ता = पेष्टा
चक्रिन् + ढौकसे = चक्रिण्ढौकसे
उद् + डयनम् = उड्डयनम्
राष् + त्रम् = राष्ट्रम्
इष् + तः = इष्टः

3. जश्त्व सन्धिः -सूत्र – झलां जशोऽन्ते। अर्थः- पदान्ते झलां जशः स्युः। (“झलां जशोऽन्ते” अर्थात् पद के अन्त में ‘झूल’ ‘जश्’ हो जाता है।)
व्याख्या – पदान्ते झल् प्रत्याहारान्तर्गतवर्णानां (वर्गस्य 1, 2, 3, 4 वर्णानां श् ष स ह वर्णानां च) स्थाने जश्प्रत्याहारस्य (ज् ब् ग् ड् द्) वर्णाः भवन्ति। यथा
(पद के अन्त में ‘झल्’ प्रत्याहार के अन्तर्गत आने वाले वर्णों (झ्, भ, ध्, द, ध्, ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, त्, थ्, च्, ट्, त्, क्, प, श, ष, स, ह) के स्थान पर ‘जश्’ प्रत्याहार, (ज, ब, ग, ड्, द्) के वर्ण हो जाते हैं।)
इस संधि के दो भाग हैं – प्रथम भाग व द्वितीय भाग। प्रथम भाग पद के अन्त में होने वाली जश्त्व सन्धि है और द्वितीय भाग पद के मध्य में होने वाली जश्त्व सन्धि है।)

प्रथम भाग – जब पद (सुबन्त और तिङन्त अर्थात् शब्दरूप, धातु रूप-युक्त शब्द) के अन्त में होने वाले किसी भी वर्ग के प्रथम वर्ण अर्थात् क्, च्, ट्, त्, प् में से किसी भी एक वर्ग के ठीक बाद कोई भी घोष वर्ण अर्थात् ङ्, ञ, ण, न्, म्, य, र, ल, व् और ह को छोड़कर कोई भी व्यञ्जन अथवा स्वर वर्ण आता है तो पूर्वोक्त प्रथम वर्ण (क्, च्, ट्, त् और प्) अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण (‘क्’ के स्थान पर ‘ग्’, ‘च’ के स्थान पर ‘ज्’, ‘ट्’ के स्थान पर ‘ड्’, ‘त्’ के स्थान पर ‘द्’ . तथा ‘प्’ के स्थान पर ‘ब’ में बदल जाते हैं।) जैसे –

वाक् + ईशः = वागीशः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ग्’ होने पर)
जगत + ईश = जगदीशः (यहाँ ‘त्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘द्’ होने पर)
षट् + आननः = षडाननः (यहाँ ‘ट्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ड्’ होने पर)
दिक् + अम्बरः = दिगम्बरः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ग ‘ग्’ होने पर)
अच् + अन्तः अजन्तः (यहाँ ‘च’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ज्’ होने पर)
अन्तः सुबन्तः (यहाँ ‘प्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ब्’ होने पर)
षट् + दर्शनम् = षड्दर्शनम् (यहाँ ‘ट्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ड्’ होने पर)
दिक् + गजः = दिग्गजः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ग’ होने पर)

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अन्य उदाहरणानि :

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 1

4. चवं सन्धिः – सूत्र-खरि च। अर्थः – खरि परे झलां चरः स्युः। (“खरि च” अर्थ- खर् परे हो तो झलों के स्थान में चर आदेश हो।)।
व्याख्या – खरि (वर्गस्य 1, 2, श् ष् स्) परे झलां (वर्गस्य 1, 2, 3, 4 श् ष् स् ह) स्थाने चर् (क् च् ट् त् प् श् स्) प्रत्याहारस्य वर्णाः भवन्ति। यथा –
खरि (वर्ग के क्, ख्, च्, छ्, ट्, ठ्, त्, थ्, प, फ्, श्, ष, स्) परे हों तो झल् (वर्ग के क्, ख, ग, घ, च्, छ, ज, झ्, ट्, ठ्, ड्, द, त्, थ्, द्, ध्, प, फ, ब्, भ्, श, ष, स्, ह्) के स्थान पर चर् (क्, च्, ट्, त्, प् श् स्) प्रत्याहार के वर्ण होते हैं। जैसे –
सद् + कारः = सत्कारः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
विपद् + कालः = विपत्कालः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
सम्पद् + समयः = सम्पत्समयः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
ककुभ् + प्रान्तः = ककुप्प्रान्तः (यहाँ ‘भ्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘प्’ होने पर)
उद् + पन्नः = उत्पन्नः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)

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5. अनुस्वार-सन्धिः – सूत्र – मोऽनुस्वारः अर्थः – मान्तस्य पदस्यानुस्वारः स्याद् हलि। (‘मोऽनुस्वारः’ अर्थ मान्त पद के स्थान में अनुस्वार आदेश हो हल् परे होने पर।)
व्याख्या – पदान्तस्य मकारस्य स्थाने अनुस्वारः आदेशो भवति हलि (व्यञ्जने) परे। यथा –
(पदान्त मकार के स्थान पर अनुस्वार आदेश होता है हल् (व्यञ्जन) परे होने पर। जैसे-)

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ध्यातव्य – यदि शब्द के अन्त में ‘म्’ आये और उसके पश्चात् कोई हल् (व्यञ्जन) वर्ण आये तो ‘म्’ का अनुस्वार (-) हो जाता है। पदान्त ‘म्’ के पश्चात् कोई स्वर वर्ण आये तो ‘म्’ को अनुस्वार नहीं होता। जैसे: –
अहम् + अपि = अहमपि (यहाँ पर अहम् के स्थान पर अहं नहीं होगा।)

विसर्गसन्धिः

यदा विसर्गस्य स्थाने किमपि परिवर्तनं भवति तदा सः विसर्गसन्धिः इति कथ्यते। (जब विसर्ग के स्थान पर कोई भी परिवर्तन होता है तब उसे विसर्ग सन्धि कहा जाता है।)

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1. विसर्गस्य लोपः

1.1 आतोऽशि विसर्गस्य लोपः – आकारात् परस्य विसर्गस्य अशि (स्वरे मृदुव्यञ्जने च) परे लोपो भवति। उदाहरणानि- आकार से परे विसर्ग का अशि (स्वर और मृदु व्यञ्जन में) परे होने का लोप हो जाता है। (अर्थात् विसर्ग से पहले ‘आ’ हो और उसके (विसर्ग के) पश्चात् कोई भी स्वर हो या वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य व र ‘ल ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-)

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1.2 “अतोऽनत्यचि विसर्ग लोपः” – अकारात् परस्य विसर्गस्य अकारं वर्जयित्वा स्वरे परे लोपो भवति।
उदाहरणानि –
(विसर्ग से पहले अकार हो और उसके बाद ‘अ’ से भिन्न कोई स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-)

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1.3 “एतत्तदोः सुलोपोऽकोरनञ्समासे हलि” अककारयोः एतत्तदोः यः ‘सुः’ (स-विसर्गः) तस्य लोपः स्याद् हलि न तु नसमासे। (ककार रहित एतद् और तद् शब्द का जो ‘सु’ (प्रथमा विभक्ति का एकवचन) (स – विसर्गः) उसका लोप हो हल् परे होने पर परन्तु नबसमास में न हो।)

अयं भावः – नसमासं विहाय ‘एषः’ ‘सः’ इत्यनयो पदयोः विसर्गस्य अकारं विहाय यत्किञ्चवर्णे परे लोपो भवति। उदाहरणानि- (भाव यह है – नबसमास को छोड़कर ‘एषः”सः’ इन पदों में विसर्ग के अकार को छोड़कर अर्थात् ‘सः’ ‘एषः’ के पश्चात् ‘अ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर या व्यञ्जन हो, वहाँ विसर्ग का लोप होता है। जैसे-)

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1.4 ‘रो रि” रेफस्य रेफे परे लोप: स्यात्।
अयं भावः – स्वरात्परस्य विसर्गस्य रेफे परे लोपो भवति। लोपे कृते पूर्वस्वरः दीर्घश्च भवति। उदाहरणानि- (भाव यह है – विसर्ग से बने ‘र’ के पश्चात् यदि ‘र’ आये तो पूर्व के ‘र’ का लोप हो जाता है तथा लोप होने वाले ‘र’ से पूर्व के अ, ई, उ का दीर्घ हो जाता है जैसे-)

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2. उत्वसन्धिः – अतो रोरप्लुतादप्लुते।
अर्थः – अप्लुतादतः परस्य रोरुः स्यादप्लुतेऽति। (अप्लुत अकार से परे ‘रु’ के स्थान में उकार हो अप्लुत अकार परे होने पर।)
व्याख्या- हस्वात् अकारात् उत्तरस्य रोः (रेफस्य स्थाने) उकारादेशो भवति ह्रस्वे अकारे परे। (हस्व अकार से पर (बाद में) रोः (रेफ के स्थान पर) का उकार आदेश होता है ह्रस्व अकार परे होने पर।)
विशेषः – अः + अ इति स्थिते विसर्गस्य स्थाने ओकारस्य मात्रा भवति, अन्तिमस्य अकारस्य च स्थाने अवग्रहः (s) भवति। अर्थात् उत्सवसन्धेः अनन्तरं गुणसन्धिः पररूपसन्धिः च भवतः। यथा –
(अः + अ इस स्थिति में विसर्ग के स्थान पर ओकार की मात्रा होती है और अन्तिम अकार के स्थान पर (s) अवग्रह होता है। अर्थात् उत्व सन्धि के बाद गुणसन्धि और पररूप सन्धि होती हैं। जैसे-)

कः + अपि . = कोऽपि।
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्
रामः + अयम् = रामोऽयम्
शिवः + अर्चः = शिवोऽर्थ्य:
सः + अपि = सोऽपि
छात्रः + अयम् = छात्रोऽयम्
नृपः + अस्ति = नृपोऽस्ति

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

अन्य उदाहरणानि

कुतः + अत्र = कुतोऽत्र
नामधेयः + असि = नामधेयोऽसि
भीतः + अस्मि = भीतोऽस्मि
कोऽत्र कुमारः + अयम् = कुमारोऽयम्
अस्य = कोऽस्य भणितः असि = भणितोऽसि
कः + अभूत् = कोऽभूत्
पथिकः + अपि = पथिकोऽपि
इतः + अपि = इतोऽपि
एकल: + अपि = एकलोऽपि
प्रवेशितः + अयं = प्रवेशितोऽयं
विलक्षणः + अयम् = विलक्षणोऽयम्
प्रस्तुतः + अयं = प्रस्तुतोऽयं
वाक्यांशः + अपि = वाक्यांशोऽपि
मुक्तः + अथवा = मुक्तोऽथवा
शिखरस्थः + अपि = शिखरस्थोऽपि
विवेकः + अस्ति विवेकोऽस्ति
धन्यः + असि = धन्योऽसि
शुष्कः + अपि = शुष्कोऽपि कोऽपि
अरयः + अपि = अरण्योऽपि शासकः
रहितः + अपि = रहितोऽपि
एकः + अपि = एकोऽपि
श्रेयः + अन्यत् = श्रेयोऽन्यत्
संग्रहः + अस्ति संग्रहोऽस्ति
प्रस्तुतः + अयं = प्रस्तुतोऽयं”
कः + अयम् = कोऽयम्
प्राप्तः + अहं = प्राप्तोऽहं
सः + अपि = सोऽपि

उत्वसन्धिः – हशि च।

अर्थः – अप्लुतादतः परस्य रोरुः स्याद्धशि। (अर्थ – हश् (ह य व र ल ब म ङ ण न झ भ घ ढ ध ज ब ग ड द) परे रहने पर भी अप्लुत अकार से परे ‘रु’ के स्थान में उकार हो।)

व्याख्या – ह्रस्वात् अकारात् उत्तरस्य रोः (रेफस्य स्थाने) उकारादेशो भवति हशि (वर्गस्य 3, 4, 5, ह य् व् र ल्)
(ह्रस्व अकार से बाद का रोः (रेफ के स्थान पर) उकार आदेश होता है हशि (वर्ग का 3, 4, 5, ह य व् र ल्) परे होने पर भी।)

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विशेषः – अः + हश् (वर्गस्य 3, 4, 5, ह य व र ल) इति स्थिते विसर्गस्य स्थाने ओकारस्य मात्रा भवति। अर्थात् उत्वसन्धेः अनन्तरं गुणसन्धिः भवति। यथा – (अः + हश् (वर्ग का 3, 4, 5, वर्ण या ह् य् व् र् ल्) इस स्थिति में विसर्ग के स्थान पर ओकार की मात्रा होती है। अर्थात्, उत्व सन्धि के बाद गुण सन्धि होती है। जैसे-)

शिवः + वन्द्यः = शिवो वन्द्यः
रामः + हसति = रामो हसति
बालः + याति = बालो याति
बुधः + लिखति = बुधो लिखति
बालः + रौति = बालो रौति
नमः + नमः = नमो नमः
रामः + जयति = रामो जयति
क्षीणः + भवति = क्षीणो भवति
मनः + हरः = मनोहरः
यशः + दा = यशोदा

3. रुत्व सन्धिः – “इचोऽशि विसर्गस्य रेफः” – इचः (अ, आ इत्येतौ वर्जयित्वा स्वरात्) परस्य विसर्गस्य अशि (स्वरे मृदु-व्यञ्जने च) परे रेफादेशो भवति। उदाहरणानि –
(अ आ इन दोनों वर्जित स्वर से) पर विसर्ग हो (स्वर और मृदु व्यञ्जन में) परे रेफ आदेश होता है। अर्थात्
(यदि प्रथम पद के विसर्ग से पूर्व ‘अ’ अथवा ‘आ’ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तथा विसर्ग के बाद कोई स्वर, वर्गों का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ण या य व र ल ह में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग को ‘र’ हो जाता है।)
जैसे – हरिः + अयम् = हरिरयम्

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अव्ययसम्बन्धिनः – ऋकारान्तशब्दस्य सम्बोधनसम्बन्धिनश्च विसर्गस्य अकारात् आकारात् च परस्यापि रेफादेशो भवति। उदाहरणानि- (ऋकारान्त और सम्बोधन सम्बन्धी शब्दों के विसर्ग का अकार और अकार से परे का भी.रेफ आदेश होता है।) उदाहरण –

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4. सत्वसन्धिः – विसर्जनीयस्य सः
अर्थः – खरि परे विसर्जनीयस्य सः स्यात्। (“विसर्जनीयस्य सः’ विसर्ग के स्थान में सकार आदेश हो ‘खर्’ परे होने पर। ‘खर्’ = ख फ छ ठ थ च ट त क प श ष स)

व्याख्या – विसर्गस्य स्थाने सकारो भवति खरि (वर्गस्य 1, 2, श् ष् स्) परे। यथा- (विसर्ग के स्थान पर सकार होता है खर (वर्ग के 1, 2, श, ष, स्) परे होने पर।)

अर्थात् विसर्ग के परे (क ख च छ ट ठ त थ प फ श ष स) इनमें से कोई वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है। जैसे- ‘नमः + ते’ यहाँ विसर्ग से परे ‘त’ वर्ण है जो खर् प्रत्याहार के अन्तर्गत है अतः विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ होकर ‘नम स + ते = ‘नमस्ते’ सिद्ध होता है। उदाहरण –

विष्णुः + त्राता = विष्णुस्त्राता
रामः + च = रामश्च
धनुः + टङ्कार = धनुष्टङ्कारः
निः + छलः = निश्छलः
विसर्गसन्धिः – वा शरि

अर्थः – शरि विसर्गस्य विसर्गो वा स्यात्।

व्याख्या – विसर्गस्य स्थाने विकल्पेन विसर्गादेशो भवति शरिश (श् ‘स्) परे। यथा –

हरिः + शेते – हरिः शेते/हरिश्शेते
निः + सन्देहः = निःसन्देह/निस्सन्देह
नृपः + षष्ठः = नृपः षष्ठः/नृपष्षष्ठ

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अन्य उदाहरणानि –

पुनः + च = पुनश्च (विसर्ग का श् होकर)
व्याकुलः + चलितः = व्याकुलश्चलितः (विसर्ग का श् होकर)
कपोताः + तत्रोपविष्टाः = कपोतास्तत्रोपविष्टाः (विसर्ग का स् होकर)
अवलम्बिताः + तं = अवलम्बितास्त (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
प्रतीकारः + चिन्त्यताम् = प्रतीकारश्चिन्त्यताम् (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
ततः + तेषु ततस्तेषु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
भ्रान्ताः + सन्ति भ्रान्तास्सन्ति (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
चिन्तकैः च = चिन्तकैश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
हिमाद्रेः + चैव = हिमाद्रेश्चैव (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
धन्याः + तु = धन्यास्तु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
जन्मभूमिः + च = जन्मभूमिश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
भवतः + सर्वदा = भवतस्सर्वदा (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
शिक्षणीयाः + तु = शिक्षणीयास्तु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
देवगुरोः + तपोवने = देवगुरोस्तपोवने (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
क्रः + तस्य = क्रस्तस्य (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
धीरनायकः + च = धीरनायकश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
मातुः + च = मातुश्च (विसर्ग का ‘श’ होकर)
मधुर + च = मधुरश्च (विसर्ग का ‘श’ होकर)
शब्दाः + सन्ति = शब्दास्सन्ति (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
मनः + तोषः = मनस्तोषः (विसर्ग का ‘स्’ होकर)

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित प्रश्नानाम् उचित विकल्पं चित्वा लिखत –
1. “हिमादेश्च’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदो भविष्यति –
(अ) हिमाद्रिः + च
(ब) हिमाद्रे + च
(स) हिमाद्रेः + च
(द) हिमाद्रेश + च
उत्तरम् :
(अ) हिमाद्रिः + च

2. ‘धन्यास्तु’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) धन्याः + तु
(ब) धन्या + अस्तु
(स) धन्य + अस्तु
(द) धन्य + आस्तु
उत्तरम् :
(अ) धन्याः + तु

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3. ‘जन्मभूमिश्च’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) जन्मभूमि + श्च
(ब) जन्मभूमिः + च
(स) जन्मभू + मिश्च
(द) जन्म + भूमिश्च।
उत्तरम् :
(ब) जन्मभूमिः + च

4. ‘भवतस्सर्वदा’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) भवतस + सर्वदा
(ब) भवतस् + सर्वदा
(स) भवतः + सर्वदा
(द) भवत् + सर्वदा
उत्तरम् :
(स) भवतः + सर्वदा

5. ‘गत एव’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) गतः + एव
(ब) गत + एव
(स) गते + एव
(द) गतम् + एव
उत्तरम् :
(अ) गतः + एव

6. अभूमिः + इयम् इत्यनयोः पदयोः सन्धिः अस्ति।
(अ) अभूमिरियम्
(ब) अभूमीयम्
(स) अभूमि इयम्
(द) अभूमिसियम्।
उत्तरम् :
(अ) अभूमिरियम्

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7. ‘अतः एव’ इति पदयोः सन्धि भवति –
(अ) अतदेव
(ब) अत एव
(स) अतैव
(द) अतसेव।
उत्तरम् :
(ब) अत एव

8. कः + अयम् पदयोः सन्धि अस्ति –
(अ) कअयम
(ब) करयम्
(स) कसमयम्
(द) कोऽयम्
उत्तरम् :
(द) कोऽयम्

9. ‘एषः + उपदेशः’ इत्यत्र सन्धिः स्यात् –
(अ) एषोपदेशः
(ब) एषउपदेश
(स) एषरूपदेशः
(द) एषसुपदेश
उत्तरम् :
(ब) एषउपदेश

10. ‘काकः + न’ इत्यनयोः सन्धिः भवति
(अ) काकन
(ब) काकरन
(स) काको न
(द) काकसन
उत्तरम् :
(स) काको न

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प्रश्न 2.
प्रकोष्ठात् चितं विकल्पं चित्वा रिक्त स्थान पुरयत –
1. ‘मातुराम …………………. केसरम्। (मातुः + आमद/मातु + आमद)
2. तस्य ‘पितुः + नाम’ ……………… ठाकुरसी ढाका आसीत्। (पितुरनाम्/पितुनमि)
3. ‘शुष्कोऽपि नित्यं सरसः ‘स देश’ ………… (सः + देश/सो. + देश:)
4. ‘गृहीत इव’ ……………………. केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत्। (गृहीतः + इव/गृहीतो इव)
5. ‘को नु’ खल्वेष ………….. निषिध्यते। (क + उनु/कः + नु)
उत्तरम् :
1. मातुः + आमर्द,
2. पितुर्नाम,
3. स: + देश,
4. गृहीतः + इव,
5. कः + नु।

प्रश्न 3.
अधोलिखित पदेष सन्धिं/सन्धि विच्छेदं वा कुरुत सन्धि-नाम अपि लिखत (निम्न पदों में सन्धि/संधि-विच्छेद कीजिए और सन्धि का नाम भी लिखिए-)
1. दिग्गजाः चत्वारः भवन्ति।
उत्तरम् :
दिक् + गजाः (हल – जश्त्व)

2. सत् + चरित्रः जनः पूज्यते।
उत्तरम् :
सच्चरित्रः (हल् – श्चुत्व)

3. चलदनिशम्
उत्तरम् :
चलत् + अनिशम् (हल्-जश्त्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. स्यान्नैव
उत्तरम् :
स्यात् + न + एव (हल् – अनुनासिक)

5. प्राकृतिरेव
उत्तरम् :
प्रकृतिः + एव (विसर्ग रुत्व)

6. अस्मात् + नगरात्
उत्तरम् :
अस्मान्नगरात् (हल् – अनुनासिक)

7. आकृतिः + न
उत्तरम् :
आकृतिर्न (विसर्ग सन्धि रुत्व)

8. ततस्तया
उत्तरम् :
ततः + तया (विसर्ग सत्व)

9. मनोहरः
उत्तरम् :
मनः + हरः (विसर्ग सन्धि, उत्व विधान)

10. यशोदा
उत्तरम् :
यशः + दा (विसर्ग सन्धि, उत्व विधान)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

11. वागीशः
उत्तरम् :
वाक् + ईशः (जश्त्व विधान)

12. नमस्ते
उत्तरम् :
नमः + ते (विसर्गे, सत्व विधान)

13. कथं तच्छत्रुः ?
उत्तरम् :
तत् + शत्रुः (हल् – छत्व)

14. कोलोऽयं विद्यते तव भारती।
उत्तरम् :
कोषः + अयम् (विसर्ग-पूर्वरूप)

15. पदच्छेदं कृत्वा पठेत्।
उत्तरम् :
पद + छेदम् (हल् – तुक् आगम)

16. जगत् + ईशः सर्वान् रक्षति।
उत्तरम् :
जगदीशः (हल् – जश्त्व)

प्रश्न 4.
स्थूलपदेषु सन्धिच्छेदं सन्धिं वा कृत्वा उत्तरं पुस्तिकायां लिखत –
(मोटे शब्दों में सन्धि-विच्छेद या सन्धि करके उत्तरपुस्तिका में लिखिए)
1. (i) मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।
(ii) जय जगदीश हरे !
(ii) नीरोगः जनः सुखी भवति।
(iv) षट् + आनन: गणेशः।
उत्तरम् :
(i) मृगाः + चरन्ति
(ii) जगत् + ईश
(ii) निर् + रोगः
(iv) षडाननः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

2. (i) पश्य एतच्चित्रम्।
(i) तच्छ्लोकं श्रुत्वा राजा प्रसन्नोऽभवत्।
(iii) एतच्छ्रुत्वा जनाः तत्र आगताः।
(iv) सूतः उवाच।
उत्तरम् :
(i) एतत् + चित्रम्।
(i) तत् + श्लोकम्।
(iii) एतत् + श्रुत्वा
(iv) सूत उवाच

3. (ii) पापिनाञ्च विनाशः भवति।
(ii) उद् + शिष्टम् उपसार्येत्।
(iii) एतत् + शोभनं चित्रम्।
(iv) अत्र अजाश्चरन्ति।
उत्तरम् :
(i) पापिनाम् + च।
(i) उच्छिष्टम्
(iii) एतच्छोभनम्।
(iv) अजाः + चरन्ति।

4. (i) श्रीमच्छरच्चन्द्रः।
(ii) चञ्चलः एष बालकः।
(iii) त्वं धन्योऽसि।
(iv) द्वयोः + अपि
उत्तरम् :
(i) श्रीमत् + शरत् + चन्द्रः
(ii) चम् + चलः।
(iii) धन्यः + असि
(iv) द्वयोरपि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 5.
स्थूलपदेषु सन्धिच्छेदं अथवा सन्धि कृत्वा उत्तरपुस्तिकायां लिखत –
(मोटे शब्दों में सन्धि-विच्छेद या सन्धि करके उत्तर पुस्तिका में लिखिए)
1. (i) कपिः इतस्ततः भ्रमति।
(ii) केचन जनाः विद्याम् इच्छन्ति, केचन धनम् + च।
(iii) तच्छ्लोकं श्रुत्वा कः प्रसन्नः न भविष्यति ?
(iv) एतच्छ्रुत्वा जनाः ततो गताः।
उत्तरम् :
(i) इतः + ततः
(ii) धनञ्च
(iii) तत्+श्लोकम्
(iv) एतत् + श्रुत्वा

2. (i) रामः + च लक्ष्मणश्च वनं गतौ।
(ii) सन्तोषः एव सत् + निधानम्।
(iii) मेघः + गर्जति।
(iv) कामात् क्रोधोऽभिजायते।
उत्तरम् :
(i) रामश्च
(ii) सन्निधानम्
(iii) मेघो गर्जति
(iv) क्रोधः + अभिजायते

3. (i) अनिच्छन् + अपि वार्ष्णेय ! बलादिव नियोजितः।
(ii) तत् + श्रुत्वा यूथपतिः सगद्गदम् उक्तवान्।
(iii) अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारति।
(iv) मन्ये वायोः + इव सुदुष्करम्।
उत्तरम् :
(i) अनिच्छन्नपि
(ii) तच्छ्रुत्वा
(iii) कोशः + अयम्
(iv) वायोरेव

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) दहन्निव प्रचण्डज्वालः अग्निः प्रचलति।
(ii) पापिनाम् + च सदा दुःखम्।
(iii) सर्वदा विद्यमानोऽस्य कार्यकलापं पश्यामि।
(iv) पश्य एतच्चित्रम्।
उत्तरम् :
(i) दहन् + इव
(ii) पापिनाञ्च
(iii) विद्यमानः + अस्य
(iv) एतत् + चित्रम्

5. (i) सा एव कीर्ति धनं च प्राप्नोति।
(ii) जय जगदीश हरे।
(iii) वने मृगाः + चरन्ति।
(iv) तच्छ्रुत्वा तेषु एकः बालकः उवाच – ‘अपि भोः।’
उत्तरम् :
(i) धनञ्च
(ii) जगत् + ईशः
(iii) मृगाश्चरन्ति
(iv) तत् + श्रुत्वा

6. (i) अपि इदं श्रेयः + करम्।
(ii) कोऽनर्थफल मानः।
(iii) कस्मिन् + चित् नगरे चन्द्रो नाम भूपतिः अवसत्।
(iv) पाण्डवास्त्वं च राष्ट्र च सदा संरक्ष्यमेव हि।
उत्तरम् :
(i) श्रेयस्करम्
(ii) कः + अनर्थफलः
(iii) कस्मिंश्चित्
(iv) पाण्डवाः + तम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

7. (i) मृण्मयं भाजनं, तेन तम् आशु ताडयन्ति स्म।
(ii) न कुर्यात् + अहितं कर्म।
(iii) राजा सुधीभ्यः धनं मानम् + च यच्छति।
(iv) पापिनाम् + च सदा दुःखम्।
उत्तरम् :
(i) मृद् + मयम्
(i) कुर्यादहितम्
(iii) मानञ्च।
(iv) पापिनाञ्च

प्रश्न 6.
अधोलिखित पदेषु सन्धिं / सन्धि-विच्छेदं कृत्वा सन्धि-नाम अपि लिखत।
(निम्न पदों में सन्धि/सन्धि विच्छेद कीजिए और सन्धि का नाम भी लिखिए।)
1. (i) अधोमुखी
(i) मुहुर्मुहुः
(iii) अत एव
उत्तरम् :
(i) अधः + मुखी (विसर्ग-उत्व)
(ii) मुहुः + मुहुः (विसर्ग-रुत्व)
(iii) अतः + एवः (विसर्ग-लोप)

2. (i) केतकच्छदत्वम्
(ii) कश्चित्
(iii) उत्खाता
उत्तरम् :
(i) केतक + छदत्वम् (तुकागम)
(ii) कः + चित् (विसर्ग श्चुत्व)
(iii) उद् + खाता (हल् – चव)

3. (i) कान्तिः + गात्राणाम्
(ii) वयोरूप
(iii) व्यायामो हि
उत्तरम् :
(i) कान्तिर्गात्राणाम् (विसर्ग-रुत्व)
(ii) वयः + रूप (विसर्ग)
(iii) व्यायामः + हि (विसर्ग-उत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) वायुर्यदा
(ii) एकः + तावत्
(iii) तावद्विभज्य
उत्तरम् :
(i) वायुः + यदा (विसर्ग-रुत्व)
(ii) एकस्तावत (विसर्ग सत्व)
(iii) तावत् + विभज्य (हल्-जश्त्व)

5. (i) महतोभयात्
(ii) यन्मानुषात्
(iii) पुनः + आयान्तम्
उत्तरम् :
(i) महतः + भयात् (विसर्ग-उत्व)
(ii) यत् + मानुषात् (हल्-अनु)
(iii) पुनरायान्तम् (विसर्ग रुत्व)

6. (i) हसन्नाह
(ii) बुद्धिर्बलवती
(iii) पुनरपि
उत्तरम् :
(i) हसन् + आह (हल् – द्वित्व)
(ii) बुद्धिः+बलवती (विसर्ग-रुत्व)
(iii) पुनः + अपि (विसर्ग-रुत्व)

7. (i) मनस्तु
(ii) क्रोधो हि
(iii) अश्वः + चेत्
उत्तरम् :
(i) मनः + तु (विसर्ग-रुत्व)
(ii) क्रोधः + हि (विसर्ग-उत्व)
(iii) अश्वश्चेत् (विसर्ग-सत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 7.
स्थूलपदेषु सन्धिं
सन्धि विच्छेदंवा कृत्वा उत्तर पुस्तिकायां लिखत – (मोटे अक्षर वाले पदों में सन्धि अथवा सन्धि-विच्छेद करके उत्तर पुस्तिका में लिखिए।)
1. (i) कस्मिन्नपि कर्मणि वा
(ii) अथ राजानं मुनिरुवाच
(iii) उपचारेण स्वस्थो जातः।
(iv) अस्मद् + जन आदिष्यते।
उत्तरम् :
(i) कस्मिन् + अपि (हल्)
(ii) मुनिः + उवाच (विसर्ग)
(iii) स्वस्थः + जातः (विसर्ग-उत्व)
(iv) अस्मज्जन (हल् – श्चुत्व)

2. (i) वराको जनः क्षन्तव्योऽयम्।
(ii) एष एव ते निश्चयः ?
(iii) किं पुनः + असन्तम्।।
(iv) रिक्तोऽसि यज्जलद।
उत्तरम् :
(i) वराकः + जनः (विसर्ग-उत्व)
(ii) एषः + एव (विसर्ग लोप)
(iii) पुनरसन्तम् (विसर्ग रुत्व)
(iv) यत् + जलद (हल् – श्चुत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

3. (i) चौरः + एव उच्चे क्रोशितुमारभत।
(ii) पुनस्तौ घटनायाः विषये वक्तुमादिष्टौ।
(iii) यदुक्तं तद् वर्णयामि।
(iv) कश्चिज्जनः केनापि हतः।
उत्तरम् :
(i) चौर एव (विसर्ग लोप)
(ii) पुनः + तौ (विसर्ग)
(iii) यत् + उक्त (हल)
(iv) कश्चित् + जनः (हल्-श्चुत्व)

4. (i) एक एव खगोमानी।
(ii) सरः + त्वयि सङ्कोचमञ्चति
(iii) तरोरस्य पुष्टिः।
उत्तरम् :
(i) खगः + मानी (विसर्ग-उत्व)
(ii) सरस्त्वयि (विसर्ग-सत्व)
(iii) तरोः + अस्य (विसर्ग)

5. (i) श्वोवा कथं नु भवितेति। .
(ii) रात्रौ जानुर्दिवाभानुः।
(iii) प्र + छादनं दोषमुत्पादयति।
(iv) परैर्न परिभूयते।
उत्तरम् :
(i) श्वः + वा (विसर्ग-उत्व)
(ii) जानुः + दिवा (विसर्ग रुत्व)
(iii) प्रच्छादनम् (तुकागम्)
(iv) परैः + न (विसर्ग-रुत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 8.
रेखाङ्कितपदेषु सन्धिविच्छेदं सन्धिं वा कृत्वा उत्तरं उत्तरपुस्तिकायां लिखत – (रेखांकित पदों में सन्धि विच्छेद अथवा सन्धि कर उत्तर उत्तरपुस्तिका में लिखिए-)
1. (i) ब्रह्ममयि जय वागीश्वरी
(ii) बाला: + अत्र
(iii) मतिरास्ताम् नः तव पद कमले
(iv) साधुः + भव
उत्तरम् :
(i) वाक् + ईश्वरी
(ii) बाला अत्र
(iii) मतिः + आस्ताम्
(iv) साधुर्भव

2. (i) लताः + एधन्ते
(ii) पुन: + च
(iii) नानादिक् + देशात्
(iv) मनीषा
उत्तरम् :
(i) लता एधन्ते
(ii) पुनश्च
(iii) नानादिग्देशात्
(iv) मनस् + ईषा

3. (i) अद्य प्रातरेव अनिष्ट दर्शनं जातम्
(ii) तस्मिन्नेव काले
(iii) कुतोऽत्र निर्जने वने तण्डुलकणान्
(iv) पुनः + अपि
उत्तरम् :
(i) प्रातः + एव
(ii) तस्मिन् + एव
(iii) कुतः + अत्र
(iv) पुनरपि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) पतञ्जलि
(ii) धन्याः + तु
(iii) वाग् + मूलम्
(iv) भीतोऽस्मि
उत्तरम् :
(i) पतत् + अञ्जलि
(ii) धन्यास्तु
(iii) वाङ्मूलम्/वाग्मूलम्
(iv) भीतः + अस्मि

5. (i) एतत् + मुरारि
(ii) हरिम् वन्दे
(iii) ताः + गच्छन्ति
(iv) कः + अत्र
उत्तरम् :
(i) एतन्मुरारि/एतमुरारि
(ii) हरिम् वन्दे
(iii) ता गच्छन्ति
(iv) कोऽत्र

6. (i) विभ्रत् + न
(ii) व्याकुलश्चलितः
(iii) जगदीश्वरान्
(iv) ततः + तेषु
उत्तरम् :
(i) विभ्रन्न।
(ii) व्याकुलः + चलितः
(iii) जगत् + ईश्वरान्
(iv) ततस्तेषु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 9.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कृत्वा सन्धेः नामापि लिखत।
(निम्नलिखित पदों में सन्धि अथवा सन्धि विच्छेद करके सन्धि का नाम भी लिखिए।)
1. (i) भूमिरस्ति
(ii) वृद्धाः यान्ति
(iii) सवैरेकचित्तीयभूय
उत्तरम् :
(i) भूमिः + अस्ति (सत्व विसर्ग)
(ii) वृद्ध यान्ति (विसर्ग लोप)
(iii) सर्वैः + एकचित्तीयभूय (रुत्व विसर्ग)

2. (i) बालाः + हसन्ति
(ii) भ्रान्तासन्ति
(iii) दिक् + अम्बरः
उत्तरम् :
(i) बाला हसन्ति (विसर्ग लोपः)
(ii) भ्रान्तः + सन्ति (सत्व विसर्ग)
(iii) दिगम्बरः (जश्त्व सन्धि)

3. (i) भणितो + असि
(ii) उज्ज्वलः
(ii) विपत्काल:
उत्तरम् :
(i) भणितः + असि (उत्व विसर्ग)
(ii) उद् + ज्वलः (श्चुत्व सन्धिः)
(iii) विपद् + कालः (चर्व सन्धिः)

4. (i) बालः + याति
(ii) कः + अपि
(iii) नमः + ते
उत्तरम् :
(i) बालो याति (उत्व सन्धिः)
(ii) कोऽपि (उत्व सन्धिः)
(iii) नमस्ते (सत्व सन्धिः)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

5. (i) सत्यं वद
(ii) कालादेव
(iii) सद् + काल:
उत्तरम् :
(i) सत्यम् + वद् (अनुस्वार सन्धिः)
(ii) कालांत् + एव (जश्त्व सन्धिः)
(iii) सत्कारः (चर्व सन्धिः)

6. (i) दिक् + गजः
(ii) गृहं गच्छति
उत्तरम् :
(i) दिग्गजः (जश्त्व सन्धिः)
(ii) कं + पते (परसवर्ण)
(iii) गृहम् + गच्छति (मोऽनुस्वार)।

7. (i) रामः + आगच्छति
(ii) चित्तकैः + च
(iii) दुखं प्राप्नोति
उत्तरम् :
(i) राम आगच्छति (विसर्ग लोप)
(ii) चित्तकैश्च (सत्व विसर्ग)
(iii) दुखम् प्राप्नोति (मोऽनुस्वार)

8. (i) सच्चित्
(ii) इष्टः
(iii) जगत् + ईशः
उत्तरम् :
(i) सत् + चित् (श्चुत्व सन्धिः)
(ii) इष् + त्: (ष्टुत्व सन्धिः)
(iii) जगदीशः (जश्त्व सन्धिः)

प्रश्न 10.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं व कृत्वा सन्धेः नामापि लिखत (निम्नलिखित पदों में सन्धि अथवा सन्धि-विच्छेद कर सन्धि का नाम भी लिखिए-)
1. (i) सम्पद् + समयः
(ii) त्वं पठसि
(iii) सत् + उपदेश
उत्तरम् :
(i) सम्पत्समयः (चर्व सन्धिः)
(ii) त्वम् + पठसि (मोऽनुस्वार)
(iii) सदुपदेश (जश्त्व सन्धिः)

2. (i) एकल: + अपि
(ii) चित्तकैः + च
(iii) कृषेः + भयम्
उत्तरम् :
(i) एकलोऽपि (उत्व विसर्ग)
(ii) चित्तकैश्च (सत्व विसर्ग)
(iii) कृषेर्भयम् (रुत्व विसर्ग)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

3. (i) अजन्तः
(ii) विपद् + काल
(iii) सुबन्त
उत्तरम् :
(i) अच + अन्त (जश्त्व सन्धिः)
(ii) विपत्काल (चर्व सन्धिः)
(iii) सुप् + अन्त (जश्त्व)

4. (i) अरयोऽपि
(ii) भवतः + सर्वद
(iii) वाक् + ईशः
उत्तरम् :
(i) अरयः + अपि (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) भवतस्सर्वदा (सत्व विसर्ग)
(iii) वागीश (जश्त्व सन्धिः)

5. (i) कोऽभूत्
(ii) विलक्षण: + अयम्
(iii) अहम् + धावामि
उत्तरम् :
(i) कः + अभूत (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) विलक्षणोऽयम् (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(iii) अहं धावामि (मोऽनुस्वार)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

6. (i) शुष्कोऽपि
(ii) जन्मभूमिश्चः
(iii) देवैः + अनिशं
उत्तरम् :
(i) शुष्कः अपि (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) जन्मभूमिः + च (सत्व विसर्ग सन्धिः)
(iii) देवैरनिशं (रुत्व विसर्ग सन्धिः)

7. (i) कृष्ण एति
(ii) मनः + तोषः
(iii) प्रागेव
उत्तरम् :
(i) कृष्णः एति (विसर्ग लोप)
(ii) मन स्तोषः (सत्व विसर्ग)
(iii) प्राक् + एव (जश्त्व)

8. (i) भूमिः + इयम्
(ii) बाल: + इच्छति
(iii) कस्तस्य
उत्तरम् :
(i) भूमिरियम् (रुत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) बाल इच्छति (विसर्ग लोप)
(iii) कः + तस्य (सत्व विसर्ग सन्धिः)

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