JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

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JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

समासशब्दस्य अर्थः – “समासशब्दस्य अर्थः संक्षिप्तीकरणमिति अस्ति।” (समास शब्द का अर्थ संक्षेप करना है।)

समासस्य परिभाषा – समसनं समासः अथवा अनेकपदानाम् एक पदीभवनं समासः। अर्थात् यदा अनेकपदानि मिलित्वा एक पदं जायन्ते तदा सः समासः इति कथ्यते। (संयुक्त करने को समास कहते हैं अथवा अनेक पदों का मिलकर एक पद होना समास है। अर्थात् जब अनेक पदों को मिलकर एक पद बना दिया जाता है तब वह समास कहा जाता है।)

पूर्वोत्तरविभक्तिलोपः – सीतायाः पतिः = सीतापतिः। अस्मिन् विग्रहे सीतायाः इत्यत्र षष्ठीविभक्तिः पति इत्यत्र प्रथमा विभक्तिश्च श्रूयेते। समासे कृते अनयोः द्वयोरपि विभक्त्योः लोपो भवति। तत्पश्चात् सीतापति इति समस्तशब्दात् पुनरपि प्रथमाविभक्तिः क्रियते इत्येव सर्वत्र अवगन्तव्यम्। (सीतायाः पतिः = सीतापतिः। इस विग्रह में ‘सीतायाः’ पद में षष्ठी और ‘पतिः’ इसमें प्रथमा विभक्ति सनी जाती है। समास करने पर इन दोनों विभक्तियों का लोप होता है। इसके बाद ‘सीतापति’ इस समस्त शब्द से फिर प्रथमा विभक्ति की जाती है। इसी प्रकार सभी जगह समझना चाहिए।)
समासयुक्तः समस्तपदं कथ्यते (समासयुक्त शब्द समस्तपद कहा जाता है।) यथा – सीतापतिः।

समस्तशब्दस्य अर्थ बोधितुं यद् वाक्यम् उच्यते तद्वाक्यं विग्रहः इति कथ्यते। (समस्त शब्द का अर्थ जानने के लिए जो वाक्य कहा जाता है वह वाक्य ‘विग्रह’ कहा जाता है।) यथा रमायाः पतिः इति वाक्यं ‘रमापतिः’ शब्दस्य विग्रहः अस्ति ।

समास के होने पर अर्थ में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है। जो अर्थ ‘सीता के पति’ (सीतायाः पतिः) इस विग्रह वाक्य का है वही अर्थ ‘सीतापतिः’ इस समस्त शब्द का है।

समास का पहला पद ‘पूर्वपद’ तथा दूसरा पद ‘उत्तरपद’ कहलाता है। जब दो या दो से अधिक पदों का मेल करके और बीच की कारक सम्बन्धी विभक्ति को हटाकर एक नवीन पद बनाया जाता है तो उसे समास करना कहते हैं। यथा रामम् आश्रितः = रामाश्रितः।

जब समासयुक्त पद में कारक सम्बन्धी चिह्नों अर्थात् विभक्तियों का निर्देश कर दिया जाता है तो उसे समास का विग्रह करना कहा जाता है। समास के शब्दों में कभी पूर्व पद (पहला शब्द) प्रधान रहता है और कभी उत्तरपद (बाद का शब्द) या अन्य पद प्रधान रहता है।

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समासस्यभेदा: – संस्कृतभाषायां समासस्य मुख्यरूपेण चत्वारः भेदा सन्ति। समासे प्रायशः द्वे पदे भवतः – पूर्वपदम् उत्तरपदं च। पदस्य अर्थः पदार्थः भवति। यस्य पदार्थस्य प्रधानता भवति तदनुरूपेण एव समासस्य संज्ञा अपि भवति। यथा प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानः अव्ययीभावः भवति उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः च भवति। तत्पुरुषस्य भेदः कर्मधारयः भवति। कर्मधारयस्य भेदः द्विगुः भवति। प्रायेण अन्यपदार्थप्रधान: बहुव्रीहिः भवति उभयपदार्थ प्रधानः द्वन्द्वः च भवति। एव समासस्य सामान्यरूपेण षड्भेदाः भवन्ति।

(संस्कृत भाषा में समास के मुख्य रूप से चार भेद हैं। समास में प्रायः दो पद होते हैं-पूर्वपद और उत्तरपद। पद का अर्थ ‘पदार्थ’ होता है। जिस पदार्थ की प्रधानता होती है, उसी के अनुरूप ही समास की संज्ञा भी होती है। जैसे साधारण नियम के अनुसार पूर्व पदार्थ प्रधान अव्ययीभाव होता है और उत्तरपदार्थ प्रधान तत्पुरुष होता है। तत्पुरुष का भेद ‘कर्मधारय’ होता है। कर्मधारय का भेद ‘द्विगु’ होता है। प्रायः अन्य पदार्थ प्रधान बहुव्रीहि होता है और उभय पदार्थ प्रधान ‘द्वन्द्व’ होता है। इस प्रकार सामान्य रूप से समास के छ: भेद होते हैं।

1. अव्ययीभाव समासः

अव्ययीभावस्य परिभाषा -यदा विभक्ति इत्यादिषु अर्थेषु वर्तमानम् अव्ययं पदं सुबन्तेन सह नित्यं समस्यते असौ. अव्ययीभाव समासो भवति। अथवा इदमत्र अवगन्तव्यम् –

1. अस्य समास्य प्रथमशब्दः अव्ययं द्वितीयश्च संज्ञाशब्दो भवति।
2. अव्ययशब्दार्थस्य अर्था पूर्व पदार्थस्य प्रधानता भवति।
3. समासस्य पद द्वयं मिलित्वा अव्ययं भवति।
4. अव्ययीभावसमासः नपुंसकलिङ्गस्य एकवचने भवति।

(जब विभक्ति इत्यादि अर्थों में उपस्थिति अव्यय पद सुबन्त के साथ मिलकर नित्य समास होता है, यही अव्ययीभाव समास होता है।

1. समास का प्रथम शब्द अव्यय और दूसरा संज्ञा शब्द होता है।
2. अव्यय पदार्थ अर्थात् पूर्वपदार्थ की प्रधानता होती है।
3. समास के दोनों पद मिलकर अव्यय होते हैं।
4. अव्ययीभाव समास नपुंसकलिंग के एकवचन में होता है। यथा –

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2. तत्पुरुष समासः

तत्पुरुषस्य परिभाषा: – उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः भवति।
तत्पुरुषसमासे प्रायेण उत्तरपदार्थस्य प्रधानता भवति। यथा – राज्ञः पुरुष = राजपुरुषः। अत्र उत्तरपदं पुरुषः अस्ति तस्य एव प्रधानता अस्ति। ‘राजपुरुषम् आनय’ इति उक्ते सति पुरुषः एव आनीयते न तु राजा। तत्पुरुषसमासे पूर्वपदे या विभक्तिः भवति प्रायेण तस्याः नाम्ना एव समासस्य अपि नाम भवति। (तत्पुरुष समास में प्रायः उत्तरपदार्थ की प्रधानता होती है। यथा-राजः पुरुष = राजपुरुषः। यहाँ पर उत्तर पद पुरुष है उसी की प्रधानता है। राजपुरुषम् आनय यदि यह कहा जाय तो पुरुष को ही लाया जाय न कि ‘राजा’ तत्पुरुष समास के पूर्वपद में जो विभक्ति होती है। प्रायः उसी के नाम से ही समास का नाम भी होता है।) यथा –

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अर्थात् जिस समास में उत्तर पद (बाद में आने वाले वाले पद) की प्रधानता होती है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। द्वितीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक छह विभक्तियों के आधार पर समास के छह भेद माने गये हैं।
तत्पुरुष समास के प्रमुख तीन भेद हैं –

(क) व्यधिकरण तत्पुरुष – इसके 6 भेद होते हैं –
1. द्वितीया, 2. तृतीया, 3. चतुर्थी, 4. पंचमी, 5. षष्ठी, 6. सप्तमी।

(ख) समानाधिकरण-इसके दो भेद होते हैं –

1. कर्मधारय, 2. द्विगु।

(ग) अन्य भेद-इसके चार भेद होते हैं –
1. अलुक् समास, 2. नब् समास, 3. उपपद् समास, 4. प्रादि समास।

उदाहरणानि –
(i) द्वितीया तत्पुरुष – जिसमें प्रथम पद द्वितीया विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो। जैसे –

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(ii) तृतीया तत्पुरुष-जिसमें प्रथम पद तृतीया विभक्ति एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो। जैसे –

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(iii) चतुर्थी तत्पुरुष-जिसमें प्रथम पद चतुर्थी विभक्ति का हो। जैसे –

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(iv) पञ्चमी तत्पुरुष-जिसमें प्रथम पद पञ्चमी विभक्ति का हो। जैसे –

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(v) षष्ठी तत्पुरुष – जिस समास में प्रथम पद षष्ठी विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो, तो वह षष्ठी तत्पुरुष कहलाता है। जैसे –

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(vi) सप्तमी तत्पुरुष – जहाँ प्रथम पद सप्तमी विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो, उसे सप्तमी तत्पुरुष कहते हैं। जैसे –

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3. कर्मधारयः

कर्मधारयस्य परिभाषा – तत्पुरुषः समानाधिकरण कर्मधारयः।
यदा तत्पुरुषसमासस्य द्वयोः पदयोः एकविभक्तिः अर्थात् समानविभक्तिः भवति तदा सः समानाधिकरणः तत्पुरुषसमासः कथ्यते। अयमेव समासः कर्मधारयः इति नाम्ना ज्ञायते। अस्मिन् समासे साधारणतया पूर्वपदं विशेषणम् उत्तरपदञ्च विशेष्यं भवति। (जब तत्पुरुष समास के दोनों पदों में एक विभक्ति अर्थात् समान विभक्ति होती है तब वह समानाधिकरण तत्पुरुष समास कहा जाता है। यह ही समास कर्मधारय नाम से जाना जाता है। इस समास में साधारणतया पूर्वपद विशेषण तथा उत्तर पद विशेष्य होता है।)

यथा – नीलम् कमलम् = नीलकमलम्

1. अस्मिन् उदाहरणे नीलम् कमलम् इति द्वयोः पादयोः समानविभक्तिः अर्थात् प्रथमा विभक्तिः अस्ति।
2. अत्र नीलम् इति पदं विशेषणम् कमलम् इति पदञ्च विशेष्यम्। अत एव अयं कर्मधारयः समासः अस्ति।

1. इस उदाहरण में ‘नील कमलम्’ इन दोनों पदों में समान विभक्ति अर्थात् प्रथमा विभक्ति है।
2. यहाँ ‘नीलम्’ यह विशेषण पद और कमलम्’ यह विशेष्य पद है। इसीलिए यह कर्मधारय समास है।
अस्य उदाहरणानि अधोलिखितानि सन्ति – (इसके उदाहरण अधोलिखित हैं-)

(i) विशेषण-विशेष्यकर्मधारयः

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(ii) उपमानोपमेय कर्मधारयः

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(iii) उपमानोत्तरपदकर्मधारयः

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(iv) अवधारणापूर्वपदकर्मधारयः

विशेषणं विशेष्येण समस्यते। अत्र अवधारणार्थं द्योतयितुं विग्रवाक्ये विशेषणात् परम् एव शब्दः प्रयुज्यते। (विशेषण को विशेष्य से परे होने पर। यहाँ अवधारणा के अर्थ में विग्रह वाक्य में विशेषण के बाद एवं शब्द रखते हैं।) यथा –

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4. द्विगुसमासः

द्विगुसमासस्य परिभाषा – ‘संख्यापूर्वो द्विगु’

‘संख्यापूर्वो द्विगु’ इति पाणिनीयसूत्रानुसारं यदा कर्मधारयसमासस्य पूर्वपदं संख्यावाची उत्तरपदञ्च संज्ञावाची भवति तदा सः ‘द्विगुसमासः’ कथ्यते।
1. अयं समासः प्रायः समूहार्थे भवति।
2. समस्तपदं सामान्यतया नपुंसकलिङ्गस्य एकवचने अथवा स्त्रीलिङ्गस्य एकवचने भवति।
3. अस्य विग्रहे षष्ठीविभक्तेः प्रयोगः क्रियते।
(‘संख्यापूर्वो द्विगु’ इस पाणिनीय सूत्र के असार जब कर्मधारय समास का पूर्वपद संख्यावाची और उत्तर पद संज्ञावाची होता है तब वह द्विगु समास कहा जाता है।
1. यह समास समूह अर्थ में होता है।
2. समस्त पद सामान्यतया नपुंसकलिंग एकवचन में अथवा स्त्रीलिंग एकवचन में होता है।
3. इसके विग्रह में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।

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5. बहुव्रीहि समासः

बहुव्रीहिसमासस्य परिभाषा-‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहि’

‘यस्मिन् समासे यदा अन्यपदार्थस्य प्रधानता भवति तदा सः बहुव्रीहिसमासः कथ्यते। अर्थात् अस्मिन् समासे न तु पूर्वपदार्थस्य प्रधानता भवति न हि उत्तरपदार्थस्य प्रत्युत द्वौ अपि पदार्थो मिलित्वा अन्यपदार्थस्य बोधं कारयतः। समस्तपदस्य प्रयोगः अन्यपदार्थस्य विशेषरूपेण भवति। (जिस समास में जब अन्य पदार्थ की प्रधानता होती है तब वह बहुव्रीहि समास कहा जाता है। अर्थात् जिस समास में न तो पूर्व पदार्थ की प्रधानता होती है न ही उत्तर पदार्थ की प्रधानता है अपितु दोनों पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का बोध कराते हैं। समस्त पद का प्रयोग अन्य पदार्थ के विशेषण रूप में होता है। यथा-पीतम् अम्बरं. यस्य सः = पीताम्बरः (विष्णुः)

यहाँ ‘पीतम्’ तथा ‘अम्बरम्’ इन दोनों पदों में अर्थ की प्रधानता नहीं है अर्थात् ‘पीलावस्त्र’ इस अर्थ का ग्रहण नहीं होता है, अपितु दोनों पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का अर्थात् ‘विष्णु’ का बोध कराते हैं। अर्थात् ‘पीताम्बरः’ यह समस्तपदार्थ “विष्णु’ है। इसलिए यहाँ बहुव्रीहि समास है। इसके अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं –

(i) समानाधिकार-बहतीहिः यदा समासस्य पर्वोत्तरपदयोः समानविभक्तिः (प्रथमा विभक्तिः) भवति तदा सः समानाधिकरणबहुव्रीहिः भवति। (जब समास के पूर्व पद और उत्तर पद में समान विभक्ति (प्रथमा विभक्ति) होती है तब वह समानाधिकरण बहुव्रीहि होता है।) यथा –

विग्रहः समस्त पदम्

1. प्राप्तम् उदकं यं सः = प्राप्तोदकः (ग्राम:) [जिसको जल प्राप्त हो गया है ऐसा (गाँव)]
2. हताः शत्रवः येन सः = हतशत्रुः (राजा) [मार दिये हैं शत्रु जिसने, वह (राजा)]
3. दत्तं भोजनं यस्मै सः = दत्तभोजन (भिक्षुकः) दिया गया है भोजन जिसे, वह (भिक्षुक)]
4. पतितं पण यस्मात् सः = पतितपर्णः (वृक्षः) [गिर गये हैं पत्ते जिससे, वह (वृक्ष)]
5. दश आननानि यस्य सः = दशाननः (रावण:) [दस हैं मुख जिसके, वह (रावण)।
6. वीराः पुरुषाः यस्मिन् (ग्राम) सः = वीरपुरुषः (ग्रामः) (वीर पुरुष है जिसमें, वह (गाँव)]
7. चत्वारि मुखानि यस्य सः = चतुर्मुखः (ब्रह्मा) [चार मुख हैं जिसके, वह (ब्रह्मा)]

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(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहिः – यदा समासस्य पूर्वोत्तरपदयोः भिन्न-विभक्ति भवतः तदा सः व्यधिकरणबहुव्रीहिः भवति। (जब समास के पूर्व पद और उत्तर पद में अलग-अलग विभक्तियाँ होती हैं तब वह व्याधिकरण बहुव्रीहि होता है।) यथा –

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(iii) तुल्ययोगे बहुव्रीहिः – अत्र सहशब्दस्य तृतीयान्तपदेन सह समासो भवति।
(यहाँ सह शब्द का तृतीयान्त पद के साथ समास होता है।) यथा –

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(iv) उपमानवाचकबहुव्रीहिः – (उपमानवाचक बहुव्रीहि)। यथा –

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6. द्वन्द्वसमासः

द्वन्द्वः समासस्य परिभाषा – ‘चार्थे द्वन्द्वः’
द्वन्द्वसमासे परस्परं साकांक्षयोः पदयोः मध्ये ‘च’ आगच्छति, अतएव द्वन्द्वसमासः उभयपदार्थप्रधानः भवति। यथा-धर्मः च अर्थ: च-धर्मायौँ। अत्र पूर्वपदं धर्म: उत्तरपदम् अर्थ: अनयोः द्वयोः अपि प्रधानता अस्ति । द्वन्द्वसमासे समस्तपदं प्रायशः द्विवचने भवति। [द्वन्द्व समास में परस्पर आकांक्षायुक्त दो पदों के मध्य में ‘च’ आता है, इसलिए द्वन्द्व समास उभय पदार्थ प्रधान होता है। जैसे….धर्मः च अर्थ: च = धर्मार्थौ । यहाँ पूर्व पद धर्मः और उत्तर पद अर्थः इन दोनों की ही प्रधानता है। द्वन्द्व समास में समस्त पद प्रायः द्विवचन में होता है।]

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समाहार (समूहः) अर्थे द्वन्द्वसमासस्य प्रायेण नपुंसकलिङ्ग एकवचने प्रयोगः भवति। यथा –

पाणी च पादौ च एषां समाहारः – पाणिपादम् (हाथ और पैर का समूह)
शिरश्च ग्रीवा च अनयोः समाहारः – शिरोग्रीवम् (सिर और गर्दन का समूह)
रथिकाश्च अश्वारोहाश्च एषां समाहारः – रथिकाश्वरोहम् (रथकार और घुड़सवार का समूह)
वाक् च त्वक् च अनयोः समाहारः – वाक्त्वचम् (वाणी और त्वचा का समूह)
छत्रं च उपानह च अनयोः समाहारः – छत्रोपानहम् (छतरी और जूतों का समूह)

अन्य उदाहरणानि –

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अब समस्त पदों का समास विग्रह भी समझें –

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अभ्यास 1

वस्तुनिष्ठ प्रश्नाः

प्रश्न 1.
अव्ययीभाव समासस्य अस्ति-(अव्ययीभाव समास का उदाहरण है-)
(अ) पीताम्बरः
(ब) नीलकमलम्
(स) यथाशक्ति
(द) त्रिलोकी
उत्तरम् :
(स) यथाशक्ति

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प्रश्न 2.
बहुव्रीहि समासस्य उदाहरणम् अस्ति-(बहुव्रीहि समास का उदाहरण है-)
(अ) महापुरुषः
(ब) चतुर्युगम्
(स) उपकृष्णम्
(द) प्राप्तोदकः
उत्तरम् :
(द) प्राप्तोदकः

प्रश्न 3.
चन्द्रशेखरः इति पदे समासः अस्ति-(चन्द्रशेखरः इस पद में समास है.)
(अ) बहुव्रीहि
(ब) कर्मधारय
(स) अव्ययीभावः
(द) द्विगुः
उत्तरम् :
(अ) बहुव्रीहि

प्रश्न 4.
कर्मधारय समासस्य उदाहरणम् अस्ति-(कर्मधारय समास का उदाहरण है-)
(अ) पीताम्बरम्
(ब) पीताम्बरः
(स) निक्षिकम्
(द) पञ्चपात्रम्
उत्तरम् :
(अ) पीताम्बरम्

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प्रश्न 5.
द्विगु समासस्य उदाहरणम् अस्ति-(द्विगु समास का उदाहरण है-)
(अ) दशाननः
(ब) दशपात्रम्
(स) अनुरथम्
(द) महापुरुषः
उत्तरम् :
(ब) दशपात्रम्

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नाः

निम्नलिखित पदानां समास विग्रहः कर्त्तव्यः (निम्नलिखित पदों का समास-विग्रह करें-)

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लघूत्तरात्मक प्रश्नाः

निम्नलिखित पदानां समासविग्रहं कृत्वा समासस्य नामापि लेख्यः
(निम्नलिखित पदों का समास विग्रह करके समास नाम भी लिखो-)

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प्रश्न: 1.
निम्नलिखित विग्रह वाक्यानां समासः करणीयः –
(निम्नलिखित विग्रह वाक्यों का समास करें…)

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प्रश्न: 2.
‘क’ खण्ड ‘ख’ खण्डेन सह योजयत् – (क खण्ड को ख खण्ड के साथ जोड़िये) –

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अभ्यास 2

निम्नलिखितयोः सामासिक पदयोः संस्कृते समासविग्रहं कृत्वा समास्य नाम लिखत –

1. (i) यथाशक्ति (ii) पञ्चपात्रम्।
उत्तरम् :
(i) शक्तिम् अनतिक्रम्यः = अव्ययीभाव समास। (शक्ति के अनुसार)
(ii) पञ्चानां पात्राणां समाहारः = द्विगु समास। (पाँच पात्रों का समूह)।

2. (i) घनश्यामः (ii) निर्धनः।
उत्तरम् :
(i) घन इव श्यामः = कर्मधारय समास। (मेघ के समान श्यामल-कृष्ण)
(ii) निर्गतं धनं यस्मात् = बहुव्रीहि समास। (नष्ट हो गया है धन जिससे)

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3. (i) चतुर्युगम् (ii) सहरि।
उत्तरम् :
(i) चतुर्णाम् युगानां समाहारः = द्विगु समास। (चार युगों का समूह)
(ii) हरेः सादृश्यम् = अव्ययीभाव समास। (हरि के सदृश)

4. (i) महामुनिः (ii) शान्तिप्रियः।
उत्तरम् :
(i) महांश्चासौ मुनिः = कर्मधारय समास। (महान् मुनि)
(ii) शान्तिः प्रिया यस्य सः = बहुव्रीहि समास। (शान्ति है प्रिय जिसको)

5. (i) पञ्चवटी (ii) निर्मक्षिकम्।
उत्तरम् :
(i) पञ्चानां वटानां समाहारः = द्विगु समास। (पाँच वटों को समूह)
(ii) मक्षिकाणाम् अभावः = अव्ययीभाव समास। (मक्खियों से रहित)

6. (i) शताब्दी (ii) प्रत्येकम्।
उत्तरम् :
(i) शतानाम् अब्दानां समाहारः = द्विगु समास। (सौ वर्षों का समूह)
(ii) एकम् एकं प्रति = अव्ययीभाव समास। (हर एक)

7. (i) महर्षिः (ii) निर्लज्जः
उत्तरम् :
(i) महांश्च असौ ऋषिः = कर्मधारय समास। (महान् ऋषि)
(ii) निर्गता लज्जा यस्मात् सः = बहुव्रीहि समास। (निकल गई है लज्जा जिससे)

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8. (i) द्वियमुनम् (ii) प्रतिदिनम्।
उत्तरम् :
(i) द्वयोः यमुनयोः समाहारः = द्विगु समास। (दो यमुनाओं का समूह)
(ii) दिनं दिन प्रति = अव्ययीभाव समास। (हर दिन)

9. (i) मुखचन्द्रः (ii) यशोधनः।
उत्तरम् :
(i) चन्द्रः इव मुखम् = कर्मधारय समास। (चन्द्रमा के समान मुख)
(ii) यशः एव धनं यस्य सः = बहुव्रीहि समास। (यश ही है धन जिसका)

10. (i) भूतबलि (ii) रघुकुलजन्मा।
उत्तरम् :
(i) भूतेभ्यः बलि = चतुर्थी तत्पुरुषः समास। (भूतों के लिए बलि)
(ii) रघुकुले जन्म यस्य सः = बहुव्रीहिः समास। (रघुकुल में हुआ है जन्म जिसका वह रामचन्द्र)

अभ्यास 3

निम्नलिखित समस्तपदानि कृत्वा समासनामोल्लेखं क्रियताम् –

1. (i) विविधाः प्रयोगाः (विविध प्रयोग।)
(ii) मनुष्येषु देवः यः सः (मनुष्यों में देव है, जो वह (राजा)।
उत्तर :
(i) विविध प्रयोगाः, कर्मधारय समास
(ii) मनुष्य देवः, बहुव्रीहि समास।।

2. (i) महान् च असौ राष्ट्रः (महान् राष्ट्र।)
(ii) ऊढ़ः रथः येन सः (वहन किया है रथ जिसने, वह (घोड़ा))।
उत्तर :
(i) महाराष्ट्रः, कर्मधारय समास
(ii) ऊढरथः, बहुव्रीहि समास।

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3. (i) त्रयाणां लोकानां समाहारः (तीन लोकों का समूह।)
(ii) कामम् अनतिक्रम्य इति (जितनी इच्छा हो उतना।)
उत्तर :
(i) त्रिलोक, द्विगु समास
(ii) यथाकामम्, अव्ययीभाव समास।

4. (i) अष्टानाम् अध्यायानां समाहारः (आठ अध्यायों का समूह।)
(ii) रूपस्य योग्यम् (रूप के योग्य।)
उत्तर :
(i) अष्टाध्यायी, द्विगु समास
(ii) अनुरूपम्, अव्ययीभाव समास।

5. (i) दश आननानि यस्य सः (रावण:) (दस हैं मुख जिसके, वह (रावण))।
(ii) महान् अर्णवः (महान् समुद्र।)
उत्तर :
(i) दशाननः, बहुव्रीहि समास
(ii) महार्णवः, कर्मधारय समास।

6. (i) पञ्चानां गवां समाहारः (पाँच गायों या बैलों का समूह)।
(ii) जनानाम् अभावः (सुनसान ।)
उत्तर :
(i) पञ्चगवम्, द्विगु समास
(ii) निर्जनम्, अव्ययीभाव समास।

7. (i) पुरुषः व्याघ्रः इव (शूरः) (पुरुष व्याघ्र के समान बहादुर।)
(ii) चन्द्रः इव मुखं यस्य सः (चन्द्रमा के समान है मुख जिसका।)
उत्तर :
(i) पुरुषव्याघ्रः, कर्मधारय समास
(ii) चन्द्रमुखः, बहुव्रीहि समास।

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8. (i) पञ्चानां गंगानां समाहारः (पाँच गंगाओं का समूह।)
(ii) गुरोः समीपम् (गुरु के समीप।)
उत्तर :
(i) पञ्चगंगम्, द्विगु समास
(ii) उपगुरु, अव्ययीभाव समास।

9. (i) चतुरः चौरः (चतुर चोर।)
(ii) दीघौं बाहु यस्य सः (दीर्घ हैं बाहु जिसकी।)
उत्तर :
(i) चतुर चौरः, कर्मधारय समास
(ii) दीर्घबाहुः, बहुव्रीहि समास।

10. (i) क्षणं क्षणं प्रति (प्रत्येक क्षण।)
(ii) त्रयाणां भुवनानां समाहारः (तीन भवनों का समूह।)
उत्तर :
(i) प्रतिक्षणम्, अव्ययीभाव समास
(ii) त्रिभुवनम्, द्विगु समास।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

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JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

1. भू(होना) धातु (वर्तमान काल) परस्मैपदी

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2. हस् (हँसना) धातु परस्मैपदी

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3. पठ्(पढ़ना) धातु परस्मैपदी

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4. नम् (झुकना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 4

5. गम् (गच्छ) (जाना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 5

6. अस् (होना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 6

7. इष् (इच्छ) (इच्छा करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 7

8. प्रच्छ (पृच्छ्) (पूछना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 8

9. हन् (मारना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 9

10. नृत् (नाचना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 10

11. कृ (कर) (करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 11

12. चिन्त् (चिन्तय) (सोचना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 12

13. क्रुध् (क्रुध्य्) (क्रोध करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 13

14. नश् (नश्य) (नष्ट होना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 14

15. ज्ञा (जान्) (जानना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 15

16. भक्ष (भक्षय) (खाना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 16

आत्मनेपदी धातुएँ – 

1. सेव (सेवा करना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 18

2. लभ् (पाना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 19

3. रुच (रोच्) (चमकना और रुचना, अच्छा लगना)
धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 20

4. मुद् (मोद्) (प्रसन्न होना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 21

उभयपदी धातुएँ

1. याच् (याचना करना, माँगना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 22

2. याच् (याचना करना, माँगना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 23

3. नी (नय) (ले जाना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 24

4. नी (नय) (ले जाना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 25

5. ह (हर) (हरण करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 26

6. हृ (ह) (हरण करना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 27

7. भज् (सेवा करना,भजन करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 28

8. भज् (सेवा करना, भजन करना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 29

9. पच् (पकाना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 30

10. पच् (पकाना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 31

अन्य महत्त्वपूर्ण धातुएँ

1. वद् (बोलना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 32

2. रक्ष (रक्षा करना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 33

3. दृश् (पश्य) (देखना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 34

4. स्था (तिष्ठ) (ठहरना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 35

5. वस् (रहना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 36

6. जि (जय) (जीतना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 37

7. तृ (तर) (तैरना) धातु परस्मैपदी लोट् लकार (आज्ञार्थक)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 38

8. चर् (चलना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 39

9. दा (देना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 40

10. यच्छ (देना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 41

11. खाद् (खाना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 42

12. चुर् (चोरय्) (चोरी करना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 43

13. कथ् (कथय)(कहना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 44

14. शक् (सकना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 45

15. लिख (लिखना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 46

16. जीव् (जीना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 47

17. पत् (गिरना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 48

18. क्रीड् (खेलना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 49

19. त्यज् (छोड़ना) परस्मैपदी धातुलट् लकार (वर्तमान काल)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 50

20. तुद् (दुःख देना) परस्मैपदी लोट् लकार (आज्ञार्थक)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 51

21. शुभ् (शोभ) (शोभित होना) आत्मनेपद

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 52

22. भाष् (बोलना) आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 53

अभ्यास

प्रश्न: 1.
तिङ्न्त पद किसे कहते हैं?
उत्तरम् :
धातुओं के अन्त में तिङ् प्रत्यय जोड़े जाते हैं अतः तिङ् जुड़ने के कारण ही इन्हें (धातुओं को) ‘तिङ्न्त पद’ कहा जाता है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न: 2.
तिङ् प्रत्यय कितने होते हैं? उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तरम् :
तिङ् प्रत्यय कुल 18 हैं। 9 का प्रयोग परस्मैपदी धातुओं में तथा शेष 9 का प्रयोग आत्मनेपदी धातुओं में होता है। तिप्, तस्, झ्,ि सिप्, थस्, थ्, मिप्, वस्, मस् का प्रयोग परस्मैपदी में तथा त, आताम्, झ, थास्, आथाम्, ध्वम्, इट, वहि, महिङ् का प्रयोग आत्मनेपदी में किया जाता है।

प्रश्न: 3.
धातु और क्रिया-पद का अन्तर समझाइए।
उत्तरम् :
प्रत्यय जुड़ने से पूर्व क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं, प्रत्यय जुड़ने के बाद ही धातु ‘क्रिया-पद’ बनती है, जो कि कार्य का होना दर्शाती है। बिना प्रत्यय के ‘धातु का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न: 4.
धातुओं के गण से आप क्या समझते हैं? सभी गणों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तरम् :
संस्कृत में 10 गण (धातुओं के विभाग) होते हैं। प्रत्येक धातु किसी एक गण के अन्तर्गत आती है। गण इस प्रकार हैं-

  1. भ्वादिगण
  2. अदादिगण
  3. जुहोत्यादिगण
  4. दिवादिगण
  5. स्वादिगण
  6. तुदादिगण
  7. रुधादिगण
  8. तनादिगण
  9. यादिगण
  10. चुरादिगण।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न: 5.
क्रिया के मुख्य भेद कितने हैं?
उत्तरम् :
संस्कृत में क्रिया के मुख्य रूप से तीन भेद हैं –

  1. परस्मैपद
  2. आत्मनेपद
  3. उभयपद ।

प्रश्न: 6.
धातुओं के गणों के विभाजन का क्या आधार है?
उत्तरम् :
संस्कृत में प्रत्येक गण की धातुओं के रूप प्रायः एक समान चलते हैं। प्रत्येक गण का नाम उसमें आने वाली सबसे पहली धातु के आधार पर रखा गया है। ये गण दस हैं।

प्रश्न: 7.
दसों धातु-गणों के विकरण प्रत्यय तथा उनसे क्रिया-पद-निर्माण की प्रक्रिया को संक्षेप में लिखिए।
उत्तरम् :

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 54

प्रश्न: 8.
लकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तरम् :
संस्कृत में लकार 10 होते हैं –

  1. लट् लकार (वर्तमान काल)
  2. लोट् लकार (आज्ञार्थक)
  3. लृट् लकार (भविष्यत् काल)
  4. लङ् लकार (अनद्यतन भूत)
  5. विधिलिङ् लकार (प्रेरणार्थक या ‘चाहिए’ के अर्थ में)
  6. लिट् लकार (अनद्यतन परोक्ष भूत)
  7. लुट् लकार (अनद्यतन भविष्यत्)
  8. आशीर्लिङ् (आशीर्वाद) यह लिङ्लकार का ही भेद है।
  9. लुङ् लकार (सामान्य भूत)
  10. लुङ् लकार (हेतुहेतुमद् भूत या भविष्यत्)
  11. लोट्लकार।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न: 9.
परस्मैपदी धातुओं के पाँचों लकारों के संक्षिप्त धातु रूप लिखिए।
उत्तरम् :
परस्मैपदी धातुओं के संक्षिप्त धातु रूप

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 55

प्रश्न: 10.
आत्मनेपदी धातुओं के पाँचों लकारों के संक्षिप्त धातु-रूप लिखिए –
उत्तरम् :
आत्मनेपदी धातुओं के संक्षिप्त धातु-रूप

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 56

प्रश्न: 11.
निम्नलिखित-धातुओं के सभी पुरुषों और वचनों में निर्देशानुसार रूप लिखिए – (1) ‘दृश्’ धातु-लट् अथवा लृट् लकार (2) ‘सेव्’ धातु-लोट् अथवा लङ् लकार (3) ‘लभ्’ धातु-लट् अथवा लोट् लकार (4) ‘नी’ धातु-परस्मैपदी विधिलिङ् अथवा लङ् लकार (5) ‘अस्’ धातु- लट् अथवा लृट् लकार (6) आशक्’ धातु-लोट् अथवा विधिलिङ् लकार (7) ‘इष्’ धातु-विधिलिङ् अथवा लृट् लकार (8) ‘प्रच्छ’ धातु-लोट् अथवा लङ् लकार (9) ‘कृ’ धातु-लट् अथवा लोट् लकार (10) ‘चिन्त्’ धातु-आत्मेनपद में लोट् अथवा विधिलिङ् लकार।
उत्तरम् :
धातु रूपों को देखकर विद्यार्थी स्वयं हल करें।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न: 12.
उचितधातुरूपैः वाक्यानि पूरयत –
(उचित धातु रूपों से वाक्यों को पूर्ण कीजिए-)

  1. सः भोजनं …………… (पच्-लुट् लकारे)
  2. विद्यार्थी ज्ञानं ……… (लभ-लट्लकारे, आत्मनेपदी)
  3. अहं शीघ्रं परिणाम …………….. (ज्ञा-लट्लकारे)
  4. सेवकाः स्वामिने …………… (नम्-लट् लकारे)
  5. श्याम मोहनः च जलं …………… (पा-लट्लकारे)
  6. श्वः मम मित्रं ………….. (गम्-लुटलकारे)
  7. शिक्षक: विद्यालये किं ………….. (कृ-लुट्लकारे)
  8. तौ पुस्तकान् ……………. (पठ्-लुट्लकारे)
  9. आवां संस्कृतम् …………… (वद्-लङ्लकारे)
  10. यूयं पुस्तकानि …………… (नी-लुट्लकारे)
  11. छात्रा: नित्यम् ईश्वरं …………. (भज-विधिलिङ् लकारे)
  12. शिष्यः गुरून् …………….. (सेव-लोट्लकारे)
  13. वेदाः चत्वारः …………… (अस्-लट्लकारे)
  14. श्वः भौमवासरः …………… (भू लट्लकारे)
  15. त्वं पुस्तकं …………… (पठ्-लोट्लकारे)
  16. स: संगीतमाध्यमेन निर्माणम् …………… (कृ-लङ्लकारे)
  17. सर्वे भद्राणि ……………. (दृश्-लोट्लकारे)
  18. मन्द-मन्दम् पवनः मधुरं संगीतं …………… (जन् लट्लकारे)
  19. सुरेशः पिपासया पीडितः …………… (अस्-लङ् लकारे)
  20. आयुष्मान् ……………… (भू-लोट्लकारे)
  21. शिक्षक: छात्राय …………. (क्रुध्-लट्लकारे)
  22. रीना शीघ्रम् उन्नतिं ………….. (कृ-लट्लकारे)
  23. तौ गुरुम् ……………… (सेव्-लट्लकारे)
  24. वयं विद्यालयं …………….. (गम्- लुट्लकारे)

उत्तरम् :

  1. पक्ष्यति
  2. लभते
  3. जानामि
  4. नमन्ति
  5. पास्यतः
  6. गमिष्यति
  7. करोति
  8. पठिष्यतः
  9. अवदाव
  10. नेष्यथ
  11. भजेयुः
  12. सेवताम्
  13. सन्ति
  14. भविष्यति
  15. पठ
  16. अकरोत्
  17. पश्यन्तु
  18. जनयति
  19. आसीत्
  20. भव
  21. क्रुध्यति
  22. करोति
  23. सेवेते
  24. गमिष्यामः

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न: 13.
उचितधातुरूपैः वाक्यानि पूरयत-(उचित धातुरूपों से वाक्यों को पूर्ण कीजिए)

  1. रमा सीता च श्वः तत्र ………….. (गम्)
  2. वयं श्वः फलानि …………… (भक्ष्)
  3. सः प्रात: व्यायाम ……….. (कृ)
  4. मह्यम् आम्रफलं …………… (रुच्)
  5. त्वं मम मित्रम् …………… (अस्)
  6. ह्यः अहं विद्यालयम् ………….. (गम्)
  7. मोहनः सदा प्रात: पञ्चवादने ………….. (उत्तिष्ठ)
  8. अहं गुरून् ……………. (नम्)
  9. सीता ह्यः मातुः पत्रम् …………….. (लभ्)
  10. भारते कोऽपि शिक्षाविहीनः न ……………. (अस्)

उत्तरम् :

  1. गमिष्यतः
  2. भक्षयिष्यामः
  3. करोति
  4. रोचते
  5. असि
  6. अगच्छम्
  7. उत्तिष्ठति
  8. नमामि
  9. अलभत
  10. स्यात्।

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 Food Security in India

JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 Food Security in India

→ Meaning of Food Security

  • Food is as essential for living as air is for breathing.
  • Food security means availability, accessibility and affordability of food to all people at all times.
  • Food security depends on the Public Distribution System and government vigilance ana action at times when this security is threatened.
  • Food security is ensured in a country only if: (i) enough food is available for all the persons (ii) All persons have the capacity to buy food of acceptable quality and (iii) These is no barrier on access to food.

→ Why Food security

  • The poorest section of the society might be food insecure most of the times while persons above the poverty line might also be food insecure when the country faces a national disaster.
  • The most devastating famine that occurred in Independent India was the ’Famine of Bengal’ in 1943.
  • Nothing like the Bengal Famine has happened in India again but there are places like Ralahandi and Kashipur in Odisha where famine-like conditions have been eyisting for many years.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 Food Security in India

→ Who are Food Insecure

  • The worst-affected groups suffering from food and nutrition insecurity in Inuia are landless people, traditional artisans, providers of traditional servicer, petty self -employed workers and beggars.
  • The people affected by natural disasters who have to migrate to other areas in search of work are also among the most food-insecure people.
  • The food-insecure people are disproportionately large in the states of Uttar Pradesh (eastern mid southeastern parts), Bihar, Jharkhand, Odisha, West Bengal, Chattisgarh, parts of Madhya Pradesh and Maharashtra.
  • The attainment of food security involves eliminating current hunger and reducing the risks of future hunger.
  • There are two aspects of hunger: (i) Chronic, hunger, (ii) Seasoned hunger.
  • After independence Indian policy makers adopted all measures to achieve self-sufficiency in food grains
  • India adopted a new strategy in agriclture which resulted in the Green Revolstion

→ Feed Security in India

  • The Government has designed a food- security system. This system has two components: (a) Buffer Stock, (b) Public Distribution System.
  • The Food Corporation of India purchaser wheat and rice from the farmers in stetaf where there is surplus production, and stores it in warehouses. It is known as Buffer Stock.
  • The food procured by the Food Corporation of India (FCI) is distributed through government regulated ration shops among the poorer sections of the society. This is called the Public Distribution System.
  • The introduction of Rationing in India dates back to the 1940s against the backdrop of the Bengal Famine.
  • In the wake of the high incidence of poverty levels, three important food intervention programmes were introduced: (i) Public Distribution System, (ii) Integrated Child Development Services, (iii) Food for Work Programme.

→ Current Status of Public Distribution System

  • In the beginning, the coverage of PDS was universal with no discrimination between the poor and non-poor.
  • Over the years, the policy related to PDS has been revised to make it more efficient and targetted.
  • In 1992, a Revamped Public Distribution System (RPDS) was started in 1700 blocks of the country to provide the benefits of PDS in remote and backward areas.
  • In 1997, a Targetted Public Distribution System (TPDS) was introduced to target the poor in all areas’, with a lower issue price for foodgrains for them compared to the price paid by non-poor people.
  • Further in year 2000, two special Schemes—Antyodaya Anna Yojana (AAY) and Annapurna Scheme (APS) were launched.
  • In 2014, the stock of wheat and rice with FCI was 65.3 million tonnes which was much more than the minimum buffer aorms.
  • The rising minimum support prices have raised the cost of procuring food grains by the government.
  • PDS dealers are sometimes found resorting to malpractices like diverting the grains to open market to get better margin, selling poor quality grains at ration shops, irregular opening of the shops, etc.

→ Role of Cooperatives in food security

  • The role played by cooperatives in food security of India is important especially in the southern and western parts of the country.
  • The cooperative societies set up shops to sell low—priced goods to poor people.
  • In Delhi, Mother Dairy is making good progress in providing milk and vegetables to the consumers at controlled rates decided by government of Delhi.
  • Amul is another success story of cooperatives in milk and milk products from Gujarat. It has brought about the white revolution in the country.
  • In Maharashtra, Academy of Development Science (ADS) has facilitated a network of NGOs for setting up grain banks in different regions.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 Food Security in India

→ Food Security: Food security means availability, accessibility and affordability of food to all people at all times.

→ Availability of Food: It means food production within the country, food in ports and the previous years’ stock stored in government granaries.

→ Accessibility of food: It means food is within reach of every person

→ Availability of Food: It means food production within the country, food in ports and the previous years’ stock stored in government granaries.

→ Accessibility of food: It means food is within reach of every person

→ Calamity: An event causing great and often sudden damage or distress, e.g. flood, drought, famine, etc.

→ Drought A prolonged period of abnormally low rainfall, leading to a shortage of water.

→ Famine: It is a situation in which large number of people have little or no food and many of them die.

→ Malnutrition is a condition that results from eating a diet in which certain nutrients are lacking or in wrong proportions.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 Food Security in India

→ Buffer stock: It is the stock of food grains (wheat and rice) procured by government (through FCI) from surplus producing states for distribution (through PDS) to deficit states and the poorest section of society.

→ Food Corporation of India (FCI) lt is an organization created and run by the Government of India. Its function is to maintain sufficient buffer stock in the country and affect price stabilisation.

→ Minimum Support Price (MSP): Tt is declared by the government every year before the sowing season to provide incentives to the farmers for raising the production of these crops.

→ Public Distribution System (PDS) The system of distribution of food procured by the FCI among the poorer section of society is called the public distribution system (PDS).

→ Ration Shops: Ration shops keep stock of food grains, sugar and kerosene oil to be sold to people at a price lower than the market price.

→ Subsidy: Subsidy is a payment that a government makes to a producer to supplement the market price of commodity.

JAC Class 9 Social Science Notes

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge 

JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Introduction

  • Poverty is one of the most difficult challenges faced by independent India.
  • Poverty trends in India and the world are illustrated through the concept of the poverty line.
  • The poor could be landless labourers in villages or people living in overcrowded slums in cities. They could be daily wage workers at construction sites or child workers in roadside eateries. They could also be beggars with children in tatters.
  • Every fourth person in India is poor. This means roughly 270 million (Or 27 Crore) people in India live in poverty (2011-12).
  • India is the largest single country of the poor in the world.
  • Mahatma Gandhi always insisted that India would be truly independent only when the poorest of its people become free from human suffering.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Poverty as seen by social scientists

  • Social scientists analyse poverty from many aspects besides levels of income and consumption. These aspects are: (i) Poor level of literacy (ii) lack of general resistance due to malnutrition, (iii) Lack of faccess to healthcare, (iv) Lack of job opportunities (v) Lack of access to safe drinking water, sanitation, etc.

→ Indicators for poverty

  • The most commonly used indicators for poverty analysis are social exclusion and vulnerability.

→ Social exclusion

  • Social exclusion means living in a poor surrounding with poor people, excluded from enjoying social equality with better-off people in better surroundings.
  • In India, caste system is based on social exclusion. People belonging to certain castes were prevented from enjoying equal opportunities. This caused more poverty than that caused by lower income.

→ Vulnerability

  • Vulnerability to poverty is a measure, which describes the greater probability of certain communities of becoming or remaining poor in the coming time, e.g. members of a backward caste or individual like widow or a physically handicapped person.
  • Vulnerability is determined by various options available to different communities in terms of assets, education, job, health, etc and analyses their ability to face various risks like natural disasters.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Poverty line

  • Poverty line is an imaginary line used by any country to determine its poverty. It varies from time to time, place to place and country to country.
  • The most common method of determining poverty is income or consumption levels.
  • A person is considered poor if his or her income or consumption level falls belong a given minimum level necessary to fulfil their basic needs.
  • In India, the present formula for food requirement while estimating the poverty line is based on the desired calorie requirement.
  • The calorie needs vary depending on age, sex and the type of work that a person does.
  • The accepted average of calorie requirement in India is 2400 calories per person per day in rural areas and 2100 calories per person per day in urban areas.
  • The poverty line is estimated periodically (normally every five years) by conducting sample surveys. These surveys are carried out by the National Sample Survey Organisation (NSSO).

→ Poverty Estimates

  • There is decline in poverty ratios in India from about 45% in 1993-94 to 37.2% in 2004-05.
  • The percentage of people living under poverty line declined in the earlier two decades (1973-1993). The number of poor declined from 407 million in 2004-05 to 270 million in 2011-12.

→ Vulnerable Groups

  • The proportion of people below poverty line is also not same for all social groups and economic categories in India.
  • Social groups which are most vulnerable to poverty are scheduled caste and scheduled tribe households.
  • The most vulnerable economic groups are the rural agricultural labourer households and the urban casual labourer households.
  • There is also inequality of incomes within a family.
  • In poor families all suffer but women, elderly people and female infants suffer more than others.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Inter-state Disparities

  • The proportion of poor people is not the same in every state.
  • In 2011-12 estimates, all India Head Count Ratio (HCR) was 21.9%.
  • The states like Madhya Pradesh. Assam, Uttar Pradesh, Bihar and Odisha had a higher poverty level than the all-India average.
  • Bihar and Odisha continue to be the two poorest states with poverty ratios of 33.7% and 32.6% respectively.
  • Along with rural poverty, urban poverty is also high in Odisha, Madhya Pradesh, Bihar and Uttar Pradesh.
  • Punjab and Haryana have succeeded in reducing poverty with the help of high agricultural growth rates.
  • Kerala has focussed more on human resource development.
  • In West Bengal, land reform measures have helped in reducing poverty.
  • In Andhra Pradesh and Tamil Nadu public distribution of foodgrains could have been responsible for the improvement.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Global Poverty Scenario

  • Although, extreme economic poverty has reduced in the world from 36% in 1990 to 10% in 2015 (as per the World Bank), still there are vast regional differences.
  • Poverty declined substantially in China and South East Asian countries as a result of economic growth and massive investments in human resource development.
  • In the countries of South Asia the decline in poverty levels has not been as rapid.
  • Poverty has also resurfaced in some of the former socialist countries like Russia where officially it was non-existent earlier.
  • One historical reason for the widespread poverty in India is the low level of economic development under the British colonial administration.
  • The failure at both the fronts : promotion of economic growth and population control has perpetuated the cycle of poverty in India.
  • With the extension of irrigation and the Green Revolution, many job opportunities were created in the agricultural sector.
  • The industries did provide some jobs but these were not enough to absorb all the job seekers.
  • The huge income inequalities has been another feature of high poverty rates.
  • The major cause of poverty in India has been lack of land resources.
  • In order to fulfil social obligations and observe religious ceremonies, people in India, including the very poor, spend a lot of money.
  • The high level of indebtedness is both the cause and effect of poverty.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Anti-Poverty Measures

  • Removal of poverty has been one of the major objectives of Indian development strategy.
  • The current anti-poverty strategy of the government is based on two measures: (i) promotion of economic growth, (ii) targetted anti-poverty programmes.
  • Since the eighties, India’s economic growth has been one of the fastest in the world.
  • There is a strong link between economic growth and poverty reduction
  • Economic growth increases opportunities and provides the resources needed to invest in human development. However, the poor may not be able to take direct advantage of the opportunities created by economic growth.
  • Growth in the agricultural sector is much below expectations.
  • Many schemes were formulated to reduce poverty directly and indirectly. Some of them are as mentioned below:
    • Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act, 2005 (MNREGA): Aims to provide 100 days of wage employment to every household to ensure livelihood security in rural areas.
    • Prime Minister Rozgar Yojana (PMRY), 1993: The aim of the programme is to create self-employment opportunities for educated unemployed youth in rural areas and small towns.
    • Rural Employment Generation Programme (REGP), 1995: The aim of the programme is to create self-employment opportunities in rural areas and small towns.
    • Swaranajayanti Gram Swarozgar Yojana, 1999 (SGSY): The programme aims at bringing the assisted poor families above the poverty line by organising them into self-help groups through a mix of bank credit and government subsidy.
    • Pardhanmantri Gramodaya Yojana (PMGY), 2000: Under this, additional central assistance is given to states for basic services such as primary health, primary education, rural shelter, rural drinking water and rural electrification.
    • Antyodya Anna Yojana (AAY), 2000: Under this scheme one crore of the poorest among the BPL families covered under the targetted public distribution system were identified.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ The Challenges Ahead

  • Poverty reduction is still a major challenge in India, due to the wide differences in poverty levels between various regions as well as rural and urban areas.
  • Certain social and economic groups are more vulnerable to poverty.
  • Poverty levels are expected to be lower in the next 10-15 years.
  • In addition to anti-Poverty measures governments should focus on the following to reduce poverty, (i) Higher economic growth (ii) Universal free elementary education (iii) Decrease in population growth (iv) Empowerment of women and the weaker sections.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Poverty: It is a situation where a person fails to satisfy minimum human needs concerning food, clothing, housing, education and health.

→ Caloric requirement: The quantity of food that is capable of producing the required amount of energy needed by a normal person to live and work. In urban areas, this is 2100 calories and in rural areas, it is 2400 calories per person, per day.

→ NSSO: National Sample Survey Organisation. It is the largest organisation in India conducting regular socio-economic surveys.

→ World Bank: It is an international organisation dedicated to providing finance, advice and research to developing nations to aid their economic advancement.

→ HCR: Head Count Ratio. It is the proportion of a population that lives below the poverty line.

→ South-Asia: Comprises of India, Pakistan, Sri Lanka, Nepal, Bangladesh and Bhutan.

→ Economic Growth: It is a term which defines an increase in real output of a country.

→ Sustainable development: It has been defined in many ways, but the most frequently quoted definition is from Our Common Future, also known as the Brundtland report: “Sustainable development is development that meets the needs of the present without compromising the ability of future generations to meet their own needs”.

→ Minimum Subsistence level of living: Is when a person’s bare necessities of food, shelter and clothing are taken care of.

→ Reasonable level of living: Is when these and more are taken care of and he can indulge in making certain selective lifestyle choices.

JAC Class 9 Social Science Notes

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 People as Resource

JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 People as Resource

→ Introduction

  • Population as an asset for the economy rather than liability.
  • Population becomes human capital when the investment is made in the form of education, training and medical care.
  • Working population of a country, their existing productive skills and abilities are known as ‘People as Resource’.
  • This productive nature of population helps to develop the Gross National Product (GNP) of a country through its abilities. So, it is also known as ‘Human Resource.
  • When the existing human resource is further developed by making it more educated and healthy, we call it human capital formation.
  • Investment in human capital (through eduction, training and medical care) yields a return in the same way as investment in physical capital.
  • Human capital is, in one way,superior to other resources, like land and physical capital.
  • In the case of Sakai, eduction added to the quality of his labour. This enhanced his total productivity in the form of salary and further added to the growth of the nation’s economy.
  • In the case of Vilas, there was no education or healthcare in the early part of his life. He spent his life selling fish like his mother: hence, he earns the same amount as an unskilled labourer.
  • Investment in human resources through education and medical care can give high rates of return in the future.
  • Educated parents invest more heavily on the education of their child.
  • Developed countries invest heavily on their people, especially in the field of education and health.

→ Economic Activities by Men and Women

  • Economic activities have been classified into three sectors: (i) Primary sector, (ii) Secondary sector, (iii) Tertiary sector.
  • Primary sector includes agriculture, forestry, animal husbandry, fishing, poultry farming, mining and quarrying.
  • Manufacturing is included in the secondary sector.
  • Trade, transport, communication, banking, health, tourism, services, insurance etc. come under tertiary sector.
  • Economic activities is of two types: (i) market activities (ii) non-market activities.
  • Market activities involve remuneration to the person who performs an activity for pay or profit, e.g. Production of goods or services including government services.
  • Non-market activities involve production for self-consumption.
  • The household work done by women is not included in the National Income.
  • Education helps individuals to make better use of the economic opportunities available before them.
  • Education and skill are the major determinants of the earning of any individual in the market.
  • Women are paid less as compared to men.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 People as Resource

→ Quality of population

  • The quality of population depends upon the literacy rate, health of a person indicated by life expectancy and skill formation acquired by the people of the country.
  • Education provides new aspirations and develops higher values of life and new horizons for individuals.
  • There is a provision made for providing universal access, retention and quality in elemen-tary education with special emphasis on girls.
  • Sarva Shiksha Abhiyan, Bridge courses, Back-to-school campaign, Mid-day meal scheme are such programmes which have been initiated to increase the enrolment in elementary education.

→ Health

  • The health of a person helps him to realise his potential and his ability to fight illness.
  • Our National Policy aims at improving the accessibility of healthcare, family welfare and nutritional service with special focus on the under-privileged segment of population.
  • During the last 50 years, India has built up a vast health care manpower and infrastructure base.

→ The results are:

  • Life expectancy has increased to over 68.3 years in the year 2014.
  • Infant Mortality Rate (IMR) has come down from 147 in the year 1951 to 34 in the year 2016.
  • Crude Birth rate (CBR) has dropped to 20.4 and Crude Death Rate (CDR) to 6.4 his the same duration of time.

→ Unemployment

  • Unemployment exists when people who are willing to work at the going wages cannot find jobs.
  • The work force includes all people from the age of 15 years to 59 years.
  • In the case of India, there is unemployment in both rural and urban areas.
  • In rural areas, there is seasonal and disguised unemployment; urban areas have mostly educated unemployment.
  • Seasonal unemployment happens when people are not able to find jobs during some months of the year, people dependent upon agriculture usually face such kind of problem,
  • When all the people appear to be employed, but the work requires less number of persons, the unemployment is disguised. For example, a small farmer’s entire family is working on his plot, although all may not be required to do so.
  • In urban areas, many young people with matriculation, graduation and post-graduation degrees are not able to find jobs.
  • Unemployment has a harmful impact on the overall growth of an economy.
  • Increase in unemployment is an indicator of a depressed economy. It also wastes the human resource ™hich could have been gainfully employed.
  • In case of India, statistically, the unemployment rate is low.
  • Agriculture is the most-labour absorbing sector of the economy but employment in this sector has declined because of disguised unemployment. The surplus people have moved to work in the secondary and tertiary sectors.
  • Small-scale manufacturing absorbs most of the labour in the secondary sector.
  • New employment opportunities are emerging in the tertiary sector in information technology

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 People as Resource

→ Resource: The collective wealth of a country or its means of producing wealth.

→ Gross National Product: The total value of goods produced and services provided by a country during one year, equal to the gross domestic product plus the net income from foreign investments.

→ Virtuous cycle: A condition in which a favourable circumstance or result gives rise to another that subsequently supports the first condition. Economic growth is one such cycle.

→ Vicious cycle: A condition in which an unfavourable circumstance or result gives rise to another that subsequently supports the first infavourable condition. A spiral of inflation is one such cycle.

→ Economic Activities: Those activities which are done for earning money are known as economic activities.

→ Non-economic Activities: Those activities which are done to meet the emotional and psychological requirements are called non-economic activities.

→ Literacy rate: This is the percentage of people above the age of 7 years with the ability to read and write with understanding.

→ National income: The national in income is the total amount of income accruing to a country from economic activities in a year’s time. It includes payments made to all resources, either in the form of wages, interest, rent and profits. The progress of a country can be determined by the growth of the national income of the country.

→ Infant Mortality Rate: Infant Mortality Rate is the number death of deaths of children under one year of age per 1000 live births.

→ Crude Birth Rate: Crude birth rate is the number of babies bom there for every 1,000 people during a particular period of time.

→ Death Rate: Death Rate is the number of people per 1,000 who die during a particular period of time.

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JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

धातु – क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। जैसे – पठ् (पढ़ना), गम् (जाना), हस् (हँसना), क्रीड् (खेलना) आदि। धातु दो प्रकार की होती हैं –
1. सकर्मक – जिन धातुओं के साथ अपना कर्म रहता है वे सकर्मक धातुएँ होती हैं, जैसे- पठ्, गम आदि।
2. अकर्मक – जिन धातुओं के साथ अपना कर्म नहीं रहता, वे अकर्मक धातुएँ होती हैं, जैसे- वृद्धि, नर्तन, निद्रा आदि।

पद – संस्कृत भाषा में तीन पद होते हैं –

  1. परस्मैपद – जिन क्रियाओं का फल कर्ता को प्राप्त न होकर किसी अन्य व्यक्ति को मिलता है वह परस्मैपद धातु कहलाती है।
  2. आत्मनेपद – जिन क्रियाओं का फल कर्ता स्वयं प्राप्त करता है वे आत्मनेपदी धातु होती हैं।।।
  3. उभयपद – जो धातुएँ परस्मैपद तथा आत्मनेपद दोनों में प्रयोग की जाती हैं उन्हें उभयपदी धातु कहते हैं। पाठ्यक्रम में निर्धारित धातु रूप इस प्रकार हैं –

परस्मैपद धातव –
(i) भू, पठ्, हस्, वच्, लिख्, अस्, हन्, पा, नृत्, आप्, शक्, कृ, ज्ञा, चिन्त् तथा इनकी समानार्थक धातुएँ।
(ii) आत्मनेपद- सेव, लभ्, रुच्, मुद्, याच्।
(ii) उभयपद – नी, हृ, भज, पच्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

गण-क्रिया को संस्कृत में ‘धातु’ कहते हैं। संस्कृत की समस्त धातुओं को 10 गणों में बाँटा गया है। इन गणों के नाम इनकी प्रथम धातु के आधार पर रखे गये हैं। गण तथा उनकी कुछ मुख्य धातुएँ इस प्रकार हैं –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 1

लकार: – 1. लट् लकार-वर्तमान काल में लट् लकार का प्रयोग होता है। जिस काल में क्रिया का प्रारम्भ होना तथा चालू रहना सूचित होता हो और क्रिया की समाप्ति न पाई जाये, उसे वर्तमान काल कहते हैं ; जैसे – ‘रामः पुस्तकं पठति’-राम पुस्तक पढ़ता है, यहाँ पर पठन क्रिया प्रचलित है तथा समाप्ति का बोध नहीं होता। अतः वर्तमान काल है। इसी प्रकार ‘सः लिखति’ (वह लिखता है), ‘ते गच्छन्ति’ (वे जाते हैं) आदि वाक्यों में भी वर्तमान काल समझना चाहिए।

2. लृट् लकार – लृट् लकार का प्रयोग भविष्यत् काल में होता है अर्थात् क्रिया का वह काल जिसमें क्रिया का प्रारम्भ होना तो न पाया जाये किन्तु उसका आगे होना पाया जाये, उसे भविष्यत् काल कहते हैं; जैसे –

‘स: वाराणसीं गमिष्यति’ (वह वाराणसी जायेगा)। इस वाक्य में गमन क्रिया का आगे होना पाया जाता है। अतः यह भविष्यत् काल है। इसके लिए लट् लकार का प्रयोग किया जाता है।

3. लङ् लकार – अनद्यतन भूतकाल में लङ् लकार का प्रयोग होता है। अनद्यतन भूत वह काल है जो आज का न हो, अर्थात् आज बारह बजे रात से पूर्व का काल अथवा आज प्रातः से पूर्व का समय; जैसे . देवदत्तः विद्यालयम् अगच्छत्। (देवदत्त विद्यालय गया।)

4. लोट् लकार – लोट् लकार का प्रयोग आज्ञा देने के अर्थ में होता है। अतः सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे ‘आज्ञा काल’ कहते हैं। यथा-‘देवदत्तः गृहं गच्छतु। (देवदत्त घर जाये)। यहाँ देवदत्त को घर जाने की आज्ञा दी गई है। अतः लोट् लकार का प्रयोग हुआ है।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

5. विधिलिङ् – इस लकार का प्रयोग विधि, निमन्त्रण, आमन्त्रण, अभीष्ट, सलाह और प्रार्थना आदि अर्थों में किया जाता है। सामान्यतः यह ‘चाहिए’ वाले वाक्य में प्रयुक्त होता है। जैसे – ‘देवदत्तः इदं कार्य कुर्यात्।’ (देवदत्त को यह कार्य करना चाहिए), ‘स: गृहं गच्छेत्’ (उसे घर जाना चाहिए)।

धातु-रूप 

1. भू(होना) धातु (वर्तमान काल) परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 2

2. गम् (गच्छ्) (जाना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 3

3. इष (इच्छ) (इच्छा करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 4

4. प्रच्छ (पृच्छ) (पूछना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 5

5. लिख (लिखना) परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 6

6. हन् (मारना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 7

7. भी (डरना) धातु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 8

8. दा (देना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 9

9. नृत् (नाचना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 10

10. जन् (पैदा होना) धातुः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 11

11. कृ (कर) (करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 12

12. की (द्रव्यविनिमये) धातु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 13

13. क्रीड् (खेलना) परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 14

14. चिन्त् (चिन्तय) (सोचना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 15

15. त्यज् (हानौ) धातुः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 16

16. सेव् (सेवा करना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 17

17. लभ् (पाना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 18

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित वाक्येषु सम्यक् विकल्प चिनुत् –
1. ‘भाष्’ धातोः लङ्लकारः उत्तम पुरुष, द्विवचने रूपं भवति –
(क) अभाषत
(ख) अभाषध्वम्
(ग) अभाषावहि
(घ) अभाषथाः
उत्तरम् :
(ग) अभाषावहि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

2. ‘वद्’ धातोः लङ्लकार उत्तमपुरुष एकवचने रूपं भवति –
(क) अवदम्
(ख) वदति
(ग) वदथः
(घ) वदिष्यथः।
उत्तरम् :
(क) अवदम्

3. इष् धातोः लट्लकारस्य उत्तमपुरुषस्यैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) इच्छसि
(ख) इच्छामः
(ग) एषिष्यामि
(घ) इच्छामि।
उत्तरम् :
(घ) इच्छामि।

4. प्रच्छ धातोः लुट्लकारस्य प्रथमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क) प्रक्ष्यन्ति
(ख) प्रक्ष्यसि
(ग) प्रक्ष्यतः
(घ) प्रक्ष्यामः
उत्तरम् :
(क) प्रक्ष्यन्ति

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

5. हन् धातोः लोट्लकारस्य मध्यमपुरुषस्यैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) हनतु
(ख) जहि
(ग) हत
(घ) हतम्
उत्तरम् :
(ख) जहि

6. भी धातोः लङलकारस्य प्रथमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क), अबिभेत्
(ख) अबिभेः
(ग) अबिभीत
(घ) अबिभयुः
उत्तरम् :
(घ) अबिभयुः

7. दा धातोः विधिलिङ्लकारे मध्यमपुरुषैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) दद्युः
(ख) दद्यात्
(ग) दद्याः
(घ) दद्याव
उत्तरम् :
(ग) दद्याः

8. नृत् धातोः लुट्लकारस्य उत्तमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क) नृत्यन्ति
(ख) नृत्यथ
(ग) नर्तिष्यामः
(घ) नृत्येमः
उत्तरम् :
(ग) नर्तिष्यामः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

9. जन् धातोः लङलकारस्य मध्यमपुरुषैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) जाये
(ख) जायै
(ग) अजाये
(घ) जायेम
उत्तरम् :
(ग) अजाये

10. क्री धातोः लट्लकारस्य उत्तमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क) क्रीणीमः
(ख) क्रेष्यामः।
(ग) क्रीणाम
(घ) अक्रीणीम
उत्तरम् :
(क) क्रीणीमः

11. चिन्त् धातोः विधिलिङलकारस्य उत्तमपुरुषस्यैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) चिन्तयेत्
(ख) चिन्तयेयम्
(ग) चिन्तयानि
(घ) चिन्तयेः
उत्तरम् :
(ख) चिन्तयेयम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

12. त्यज़ धातोः लट्लकारस्य मध्यमपुरुषस्य बहवचने रूपं भविष्यति –
(क) त्यजथ
(ख) त्यजत
(ग) त्यक्ष्यथ
(घ) त्यजेत
उत्तरम् :
(ग) त्यक्ष्यथ

प्रश्न 2.
निर्देशानुसारं धातुरूपं लिखित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-(निर्देशानुसार धातुरूप लिखकर रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए)
1. महान्तं विकार …………………. (कृ, लट् लकार)
2. अयं योगी परिव्राजकः ……………. (क्रीड्, लुट लकार)
3. त्वं मां खादितुम् ………………. (इच्छ, लृट् लकार)
4. जनाः मयि स्नानं ……………….. (कृ, लट् लकार)
उत्तराणि-
1. करिष्यति
2. क्रीडिष्यति
3. एषिष्यसि
4. करिष्यन्ति।

प्रश्न 3.
अधोलिखितेषु वाक्यानां रिक्तस्थानेषु निर्देशानुसारं धातु-रूपं लिखत –
(निम्नलिखित वाक्यों के रिक्तस्थानों में निर्देशानुसार धातुरूप लिखिए)
1. सिंहः एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा …………… । (चिन्त, लङ्लकार)
2. सिंहः सहसा शृगालस्य आह्वानम् ……………… (कृ, लङ् लकार)
4. अन्येऽपि पशवः भयभीताः ……………… (भू, लङ्लकार)
5. चञ्चलः नदी जलम्………….. (पृच्छ, लङ्लकार)
6. नापिताः अस्यां रूढौ सहभागिताम्…………….. (त्यज, लङ् लकार)
उत्तराणि :
1. अचिन्तयत्
2. अकरोत्
3. अभवन्
4. अपृच्छत्
5. अत्यजन्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न 4.
उचितधातुरूपैः वाक्यानि पूरयत –
(उचित धातु रूपों से वाक्यों को पूर्ण कीजिए-)
(i) विद्यार्थी ज्ञानं …………………………… (लभ-लट्लकारे, आत्मनेपदी)
(ii) श्वः मम मित्रं …………………………….. (गम्-लुटलकारे)
(iii) शिक्षकः विद्यालये किं …………. (कृ-लुट्लकारे)
(iv) शिष्यः गुरून् …………………….. (सेव्-लोट्लकारे)
(v) श्व: भौमवासरः ………. (भू लुट्लकारे)
(vi) सः संगीतमाध्यमेन निर्माणम् ………… (कृ-लङ्लकारे)
(vii) मन्द-मन्दम् पवनः मधुरं संगीतं ………….. (जन् लट्लकारे)
(viii) आयुष्मान् …………………… (भू-लोट्लकारे)
(ix) रीना शीघ्रम् उन्नति ……………….. (कृ-लट्लकारे)
(x) तौ गुरुम् ………………… (सेव्-लट्लकारे)
(xi) वयं विद्यालयं ………………. (गम्- लट्लकारे)
उत्तरम् :
(i) लभते
(ii) गमिष्यति
(iii) करोति
(iv) सेवताम्
(v) भविष्यति
(vi) अकरोत्
(vii) जनयति
(viii) भव
(ix) करोति
(x) सेवेते
(xi) गमिष्यामः

प्रश्न 5.
उचितधातुरूपैः वाक्यानि पूरयत – (उचित धातुरूपों से वाक्यों को पूर्ण कीजिए)
(i) रमा सीता च श्वः तत्र …………… (गम्)
(ii) सः प्रातः व्यायामं ……… (कृ)
(iii) ह्यः अहं विद्यालयम् …………….. (गम्)
(iv) सीता ह्यः मातुः पत्रम् …………… (लभ)
उत्तरम् :
(i) गमिष्यतः
(ii) करोति
(iii) अगच्छम्
(iv) अलभत।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न 6.
निर्देशानुसारं धातु-रूपं लिखत –
(निर्देशानुसार धातुरूप लिखिए-)
1. भू (लोट् लकार मध्यम पुरुष बहुवचन)
2. दृश् (लट् लकार मध्यम पुरुष एकवचन)
3. गम् (विधिलिङ् लकार उत्तम पुरुष द्विवचन)
4. चिन्त् (लट् लकार मध्यम पुरुष द्विवचन)
5. गम् (लट् लकार मध्यम पुरुष द्विवचन)
6. सेव् (लट् लकार मध्यम पुरुष बहुवचन)
7. कृ (विधिलिङ् लकार उत्तम पुरुष एकवचन)
8. जन् (लङ् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन)
9. क्रीड् (लोट् लकार मध्यम पुरुष द्विवचन)
10. लिख (लट् लकार उत्तम पुरुष एकवचन)
11. इष् (इच्छ्) (लुट् लकार मध्यम पुरुष बहुवचन)
उत्तराणि :
1. भवत
2. पश्यसि
3. गच्छेव
4. चिन्तयथः
5. गमिष्यथ:
6. सेवध्वे
7. कुर्याम्
8. अजायन्त
9. क्रीडतम्
10. लेखिष्यामि
11. एषिष्यथ।

प्रश्न 7.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) क्रीडति
(ii) करोमि
(iii) जनिष्ये
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 19

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न 8.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) भवथ
(ii) गच्छामः
(iii) इच्छसि
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 20

प्रश्न 9.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) पृच्छन्ति
(ii) अपृच्छत्
(iii) लिखन्ति
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 21

प्रश्न 10.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) लिखेम
(ii) हनिष्यामः
(iii) हन्याः
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 22

प्रश्न 11.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत
(i) बिभ्यन्ति
(ii) भेस्यथ
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 23

प्रश्न 12.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) ददति
(ii) अदत्ताम्
(iii) नर्तिस्यथः
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 24

प्रश्न 13.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) जायसे
(ii) कुरुथः
(iii) कुर्याम्
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 25

प्रश्न 14.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) क्रेष्यथ:
(ii) क्रीडानि
(iii) क्रीडेयम्
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 26

प्रश्न 15.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) चिन्तयिष्यथ:
(ii) त्यजताम्
(iii) सेवते
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 27

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.3

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.3

Page – 40

Question 1.
Find the remainder when x3 + 3x2 + 3x + 1 is divided by
(i) x + 1
(ii) x – \(\frac{1}{2}\)
(iii) x
(iv) x + π
(v) 5 + 2x
Answer:
(i) x + 1
Let p(x) = x3 + 3x2 + 3x + 1 be divided by x + 1
By remainder theorem, remainder = P(-1)
= (-1)3 + 3 (-1)2 + 3(-1) + 1
= -1 + 3 – 3 + 1
= 0
Therefore, the remainder is 0.

(ii) x – \(\frac{1}{2}\)
By remainder theorem,
Remainder = p(\(\frac{1}{2}\))
= (\(\frac{1}{2}\))3 + 3(\(\frac{1}{2}\))2 + 3(\(\frac{1}{2}\)) + 1
= \(\frac{1}{8}\) + \(\frac{3}{4}\) + \(\frac{3}{2}\) + 1
= \(\frac{27}{8}\)
Therefore, the remainder is \(\frac{27}{8}\).

(iii) x
By remainder theorem,
Remainder = p (0)
= 03 + 3(0)2 + 3(0) + 1
= 1
Therefore, the remainder is 1.

(iv) x + π
By remainder theorem,
Remainder = p (-π)
= (-π)3 + 3 (-π)2 + 3 (-π) + 1
= -π3 + 3π2 – 3π + 1
Therefore, the remainder is -π3 + 3π2 – 3π + 1.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.3

(v) 5 + 2x
By remainder theorem,
Remainder = p(\(– \frac{5}{2}\))
= \(\left(-\frac{5}{2}\right)^3+3\left(-\frac{5}{2}\right)^2+3\left(-\frac{5}{2}\right)+1\)
= \(\frac{-125+150-60+8}{8}\)
= \(– \frac{27}{8}\)
Therefore, the remainder is \(– \frac{27}{8}\).

Question 2.
Find the remainder when x3 – ax2 + 6x – a is divided by x – a.
Answer:
Lef f(x) = x3 – ax2 + 6x – a be divided by x – a
By remainder theorem,
Remainder = f(a)
= a3 – a(a)2 + 6(a) – a
= a3 – a3 + 6a – a
= 5a
Therefore, remainder obtained is 5a when x3 – ax2 + 6x – a is divided by x – a.

Question 3.
Check whether 7+3x is a factor of 3x3 + 7x.
Ans. Let f(x) = 3x2 + 7x be divided by 7 + 3x
As 7 + 3x = 0 gives
x = \(– \frac{7}{3}\)
By Remainder theorem,
Remainder = f(\(-\frac{7}{3}\))
= \(3\left(-\frac{7}{3}\right)^3+7\left(-\frac{7}{3}\right)\)
= \(-\frac{343}{9}-\frac{49}{3}\)
= \(\frac{-343-147}{9}\)
= \(-\frac{490}{9}\) ≠ 0
As remainder is not zero, so 7 + 3x is not a factor of 3x3 + 7x.

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 8 लौहतुला

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 8 लौहतुला Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 8 लौहतुला

JAC Class 9th Sanskrit लौहतुला Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक शब्द में उत्तर लिखिए-).
(क) वणिक् पुत्रस्य किम् नाम आसीत्? (व्यापारी के पुत्र का क्या नाम था?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः।

(ख) तुला कैः भक्षिता आसीत्?
(तराजू किनके द्वारा खा ली गई?)
उत्तरम् :
मूषकैः (चूहों द्वारा)।

(ग) तुला कीदृशी आसीत्? (तुला कैसी थी?)
उत्तरम् :
लौहघटिता। (लोहे की बनी हुई।)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

(घ) पुत्र केन हृतः इति जीर्णधनः वदति?
(पुत्र किसके द्वारा हरण कर लिया गया, जैसा जीर्णधन कहता है?)
उत्तरम् :
श्येनेन। (बाज के द्वारा)

(ङ) विवदमानौ तौ द्वावपि कुत्र गतौ? (विवाद करते हुए वे दोनों कहाँ गये?)
उत्तरम् :
राजकुलम्। (राजदरबार में।)

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) देशान्तरं गन्तमिच्छन वणिकपत्रः किं व्यचिन्तयत? (परदेश जाने के इच्छक वणिक पत्र ने क्या सोचा?)
उत्तरम् :
यस्मिन् देशे स्थाने वा स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः, तत्र विभवहीनो यदि वसति, सः पुरुषाधमः, एवं व्यचिन्तयत्।
(जिस देश अथवा स्थान पर अपने पराक्रम से भोग भोगे हैं, वहाँ निर्धन होकर जो रहता है, वह अधम पुरुष है, इस प्रकार सोचा।)

(ख) स्वतुला याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी किम् अकथयत्? (अपनी तराजू को माँगते हुए जीर्णधन से सेठ ने क्या कहा?)
उत्तरम् :
सोऽवदत्-“भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैर्भक्षिता” इति। (वह बोला-“अरे! वह नहीं है, तेरी तराजू को चूहे खा गये।”)

(ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं कया आच्छाद्य गृहमागतः? (जीर्णधन पर्वत की गुफा के द्वार को किससे ढंककर घर आया?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं बृहच्छिलयाच्छाद्य गृहमागतः। (जीर्णधन पर्वत की गुफा के द्वार को विशाल शिला से ढंककर घर आया।)

(घ) स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं किम् अवदत्? (स्नान के बाद पुत्र के विषय में पूछे गये वणिक् पुत्र ने सेठ से क्या कहा?)
उत्तरम् :
वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनम् उवाच-“नदीतटात् सः श्येनेन हृतः” इति। (वणिक् पुत्र ने सेठ से कहा-“नदी के किनारे से उसे बाज ने हरण कर लिया।”)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

(ङ) धर्माधिकारिणिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ कथं तोषितवन्तः? (धर्माधिकारियों ने जीर्णधन और सेठ को कैसे सन्तुष्ट किया?)
उत्तरम् :
धर्माधिकारिणिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ परस्परं सम्बोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन तोषितवन्तः।
(धर्माधिकारियों ने जीर्णधन और सेठ को आपस में समझाकर तराजू और बच्चा दिलवाकर सन्तुष्ट किया।)

3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(मोटे पदों के आधार पर प्रश्नों का निर्माण कीजिए-)
(क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्। (जीर्णधन धन क्षीण होने के कारण परदेश जाने की इच्छा करता हुआ सोचने लगा।)
उत्तरम् :
कः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् ? (कौन धन क्षीण होने के कारण परदेश जाने की इच्छा करता हुआ सोचने लगा?)

(ख) श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। (सेठ का बच्चा नहाने के साधन लेकर अतिथि के साथ गया।)
उत्तरम् :
श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय केन सह प्रस्थितः? (सेठ का बच्चा नहाने के .साधन लेकर किसके साथ गया?)

(ग) वणिक् गिरिगुहां बृहच्छिलया आच्छादितवान्।
उत्तरम् :
वणिक् गिरिगुहां कया आच्छादितवान् ?

(घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिश-प्रदानेन सन्तोषितौ। (सभासदों ने उन दोनों को आपस में समझाकर तराजू और बालक दिलवाकर सन्तुष्ट कर दिया।)
उत्तरम् :
सभ्यैः तौ परस्परं सम्बोध्य कथं सन्तोषितौ? (सभासदों ने उन दोनों को आपस में समझाकर कैसे सन्तुष्ट किया?)

4. अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपूर्णोऽन्वयः प्रदत्तः, पाठमाधृत्य तं पूरयत
(निम्नलिखित श्लोकों का अधुरा अन्वय दिया हआ है. पाठ के आधार पर उसे परा करो-)
(क) यत्र देशे अथवा स्थाने ………. भोगाः भुक्ताः ………. विभवहीनः यः ………… स पुरुषाधमः।
उत्तरम् :
यत्र देशेऽथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः तस्मिन् विभवहीनः यः वसेत् स पुरुषाधमः। (जिस देश या स्थान पर अपने पराक्रम से भोग भोगे गये हैं, उसमें निर्धन हुआ जो रहे वह अधम पुरुष है।)

(ख) राजन् ! यत्र लौहसहस्रस्य ………… मूषकाः ……… तत्र श्येनः ………… हरेत् अत्र संशयः न।।
उत्तरम् :
राजन्! यत्र लौहसहस्रस्य तुलां मूषका: खादन्ति तत्र श्येनः बालकं हरेत् अत्र संशयः न। (राजन! जहाँ हजार (तोला) लोहे की बनी तराजू को चूहे खा जाते हैं, वहाँ बाज बच्चे को ले जाये तो इसमें कोई संदेह नहीं।)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

5. तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुत यत्र-(उस पद को रेखांकित करो जहाँ-)
(क) ‘ल्यप् प्रत्यय: नास्ति। (‘ल्यप् प्रत्यय नहीं है।) विहस्य, लौहसहस्रस्य, सम्बोध्य, आदाय।
उत्तरम् :
लौहसहस्रस्य (षष्ठी विभक्तिः)।

(ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति। (जहाँ द्वितीया विभक्ति नहीं है।)
श्रेष्ठिनम्, स्नानोपकरणम्, सत्वरम्, कार्यकारणम्। उत्तरम् : सत्वरम् (अव्यय)।

(ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति। (जहाँ षष्ठी विभक्ति नहीं है।) पश्यतः, स्ववीर्यतः, श्रेष्ठिनः, सभ्यानाम्।
उत्तरम् :
स्ववीर्यतः (पंचमी)।

6. सन्धिना सन्धि-विच्छेदेन वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
(सन्धि अथवा सन्धि-विच्छेद से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-) सन्धिः सन्धि-विच्छेदः
(क) श्रेष्ठ्याह = …….. + आह।
(ख) ………. = द्वौ + अपि।
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + …………!
(घ) ………………… = यथा + इच्छया।
(ङ) स्नानोपकरणम् = …….. + उपकरणम्।
(च) …………….. = स्नान + अर्थम्।
उत्तरम् :
(क) श्रेष्ठ्याह = श्रेष्ठी + आह।
(ख) द्वावपि = द्वौ + अपि।
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + उपार्जिता।
(घ) यथेच्छया = यथा + इच्छया।
(ङ) स्नानोपकरणम् = स्नान + उपकरणम्।
(च) स्नानार्थम् = स्नान + अर्थम्।

7. (अ) समस्तपदं विग्रहं वा लिखत-(समास करके अथवा विग्रह करके लिखिए-)
विग्रहः – समस्तपदम्
(क) स्नानस्य उपकरणम् = ……………
(ख) …………. = गिरिगुहायाम्
(ग) धर्मस्य अधिकारी = ……………
(घ) ………….. = विभवहीनाः
उत्तरम् :
समस्तपदम् – विग्रहः।
(क) स्नानोपकरणम् = स्नानस्य उपकरणम्
(ख) गिरिगुहायाम् = गिरेः गुहायाम्
(ग) धर्माधिकारी = धर्मस्य अधिकारी
(घ) विभवहीनाः = विभवात् हीनः

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

(आ) यथापेक्षम अधोलिखितानां शब्दानां सहायतया ‘लौहतला’ इति कथायाः सारांशं संस्कृतभाषया लिखत –
(अपेक्षानुसार निम्नलिखित शब्दों की सहायता से ‘लौहतुला’ कहानी का सारांश संस्कृत में लिखिए-)
वणिकपुत्रः, लौहतुला, वृत्तान्तं, श्रेष्ठिनं, गतः, स्नानार्थम्, अयाचत्, ज्ञात्वा, प्रत्यागतः, प्रदानम्।
उत्तर :
पुरा जीर्णधननामकः वणिक्पुत्रः आसीत्। सः धनहीनः एकां लौहतुलां कस्यापि श्रेष्ठिनः गृहे न्यक्षिपत् देशान्तरं च अगच्छत्। देशान्तराद् आगत्य यदा सः श्रेष्ठिनं स्वकीयां तुलाम् अयाचत् तदा श्रेष्ठी अवदत्-‘सा तुला तु मूषकैः खादिता।’ जीर्णधनः सर्वं रहस्यं ज्ञात्वा अवदत्-“अहं स्नानार्थं गन्तुमिच्छामि अतः स्वपुत्रं मया सह प्रेषय।” श्रेष्ठी तम् प्रेषयत। सः तं बालकं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य शिलायाः च द्वारम् आच्छाद्य गृहं प्रत्यागतः।

श्रेष्ठी जीर्णधनमपृच्छत्-“क्व मे पुत्र: गतः?” सोऽवदत्-“श्येनेन अपहृतः।” श्रेष्ठी अवदत्-“श्येनः कथं बालकं हर्तु शक्नोति?” एवं विवदमानौ तौ राजकुलं प्राप्तौ। धर्माधिकारिणः तयोः वृत्तान्तं ध्यानेन श्रुत्वा परस्परं तौ संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ।

JAC Class 9th Sanskrit लौहतुला Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
वणिक्पुत्रस्य किं नाम आसीत् ? (व्यापारी के पुत्र का क्या नाम था?)
उत्तरम् :
वणिक्पुत्रस्य नाम जीर्णधनः आसीत्। (व्यापारी के पुत्र का नाम जीर्णधन था।)

प्रश्न: 2.
जीर्णधनः कस्मात् कारणात् देशान्तरं गन्तुमैच्छत् ? (जीर्णधन किस कारण से परदेश जाना चाहता था?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमैच्छत्। (जीर्णधन धन क्षीण होने के कारण परदेश जाना चाहता था।)

प्रश्न: 3.
जीर्णधनः लौहतुलां कुत्र निक्षिप्तवान्? (जीर्णधन ने लोहे की तराजू कहाँ धरोहर रखी?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः लौहतुलां श्रेष्ठिनः गृहे निक्षिप्तवान्। (जीर्णधन ने लोहे की तराजू सेठ के घर में धरोहर रखी।)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

प्रश्न: 4.
तुलां निक्षिप्य जीर्णधनः कुत्र अगच्छत्? (तराजू को धरोहर रखकर जीर्णधन कहाँ गया?)
उत्तरम् :
तुला निक्षिप्य जीणेधनः देशान्तरम् अगच्छत्। (तराजू को धरोहर रखकर जीर्णधन परदेश गया।)

प्रश्न: 5.
श्रेष्ठिनः कथनानुसारं तुला कैः भक्षिता? (सेठ के कहने के अनुसार तराजू किसने खा ली?)
उत्तरम :
श्रेष्ठिन: कथनानुसारं तुला मूषकैः भक्षिता। (सेठ के कहने के अनुसार तराजू चूहों ने खा ली।)

प्रश्न: 6.
स्वपुरं प्रत्यागत्य जीर्णधनः श्रेष्ठिनं किमुवाच? (अपने नगर में लौटकर जीर्णधन ने सेठ से क्या कहा?)
उत्तरम् :
स्वपुरं प्रत्यागत्य जीर्णधनः श्रेष्ठिनमकथयत्-“भोः श्रेष्ठिन्। दीयतां मे सा निक्षेपतुला।” (अपने नगर को लौटकर जीर्णधन ने सेठ से कहा-“अरे सेठजी ! मेरी वह धरोहर रखी तराजू दे दीजिए।”)

प्रश्नः 7.
कः पुरुषाधमः कथ्यते? (कौन अधम पुरुष कहलाता है?)
उत्तरम् :
यः विभवहीनः सन् स्ववीर्यतः भुक्ते स्थाने वसति सः पुरुषाधमः कथ्यते। (जो धनहीन होकर अपने पराक्रम से भोगे हुए स्थान पर रहता है वह अधम पुरुष कहलाता है।)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

प्रश्न: 8.
लौहघटिता तुला कैः उपार्जिता आसीत् ? (लोहे की बनी हुई तराजू किनकी कमाई हुई थी?)
उत्तरम् :
लौहघटिता तुला जीर्णधनस्य पूर्वपुरुषैः उपार्जिता आसीत्। (लोहे की बनी तराजू जीर्णधन के पुरखों की कमाई हुई थी।)

प्रश्न: 9.
जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रं कुत्र प्राक्षिपत्? (जीर्णधन ने सेठ के पुत्र को कहाँ रख छोड़ा?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रं गिरिगुहायां प्राक्षिपत्। (जीर्णधन ने सेठ के पुत्र को पर्वत की गुफा में रख छोड़ा।)

प्रश्न: 10.
स्नानोपकरणमादाय जीर्णधनेन सह कः अगच्छत? (स्नान की सामग्री लेकर जीर्णधन के साथ कौन गया?)
उत्तरम् :
स्नानोपकरणमादाय जीर्णधनेन सह श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः अगच्छत्। (स्नान की सामग्री लेकर जीर्णधन के साथ सेठ का पुत्र धनदेव गया।)

प्रश्न: 11.
जीर्णधन-श्रेष्ठिनौ विवदमानौ कुत्र गतौ? (जीर्णधन और सेठ झगड़ते हुए कहाँ गये?)
उत्तरम् :
जीर्णधन-श्रेष्ठिनौ विवदमानौ राजकुलं गतौ। (जीर्णधन और सेठ झगड़ते हुए राजदरबार में गये।)

प्रश्न: 12.
धर्माधिकारिभिः जीर्णधनः किमादिष्टः? (धर्माधिकारियों द्वारा जीर्णधन को क्या आदेश दिया गया?).
उत्तरम् :
धर्माधिकारिभिः जीर्णधन: आदिष्ट:-“भोः! समर्प्यतां श्रेष्ठिसुतः।” (धर्माधिकारियों द्वारा जीर्णधन को आदेश दिया गया-“अरे! सेठ का बेटा दे दो।”)

प्रश्न: 13.
सभ्यानामग्रे आदितः सम्पूर्णं वृत्तान्तं कः निवेदयामास? (सभासदों के आगे आरम्भ से सम्पूर्ण वृत्तान्त को किसने निवेदन किया?)
उत्तरम् :
सभ्यानामग्रे आदितः सम्पूर्णं वृत्तान्त जीर्णधनः निवेदयामास। (सभासदों के आगे आरम्भ से सम्पूर्ण वृत्तान्त जीर्णधन ने निवेदन किया।)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

प्रश्न: 14.
न्यायाधिकारिणां शङ्का निवारयितुं जीर्णधनः किम् उदतरत्? (न्यायाधिकारियों की शंका का निवारण करने के लिए जीर्णधन ने क्या उत्तर दिया?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः उदतरत्-“यत्र लौहतुलां मूषकाः खादन्ति, तत्र श्येनेन बालकस्य हरणे का शङ्का?” (जीर्णधन ने उत्तर दिया-“जहाँ लोहे की तराजू को चूहे खा जाते हैं, वहाँ बाज द्वारा बालक के हरण करने में क्या शंका?”)

प्रश्न: 15.
कः पुरुषाधमः? (अधमपुरुष कौन है?)
उत्तरम् :
यस्मिन् देशे स्थाने वा स्ववीर्यतः भोगान् भुक्त्वा स्थितः तस्मिन् स्थाने विभवहीनो यः वसेत् सः पुरुषाधमः। (जिस देश या स्थान पर अपने पराक्रम से भोग कर रह चुका हो, उस स्थान पर वैभवरहितं (निर्धन) होकर रहे, वह पुरु अधम है।)

प्रश्न: 16.
जीर्णधनानुसारं कीदृशोऽयं संसार:? (जीर्णधन के अनुसार यह संसार कैसा है?)
उत्तरम् :
जीर्णधनानुसारम् अयं संसार: नाशवान् यतः न किञ्चित् अत्र शाश्वतमस्ति। (जीर्णधन के अनुसार यह संसार नाशवान है, क्योंकि यहाँ कोई वस्तु शाश्वत नहीं है।)

प्रश्न: 17.
श्रेष्ठिनः पुत्रस्य किन्नाम आसीत्? (सेठ के बेटे का क्या नाम था?) उत्तरम् : श्रेष्ठिनः पुत्रस्य नाम धनदेवः आसीत्। (सेठ के बेटे का नाम धनदेव था।)

प्रश्न: 18.
स्नानं कृत्वा प्रत्यागतं जीर्णधनं श्रेष्ठिपुत्रं किमपृच्छत्? (स्नान कर लौटे जीर्णधन से सेठ ने क्या पूछा?)
उत्तरम् :
भो अभ्यागत ! कथ्यताम् कुत्र मे शिशुः यः त्वया सह नर्दी गतः? (अरे अतिथि! कहो मेरा बेटा जो तुम्हारे साथ नदी पर गया था, कहाँ है?)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

रेखांकित पदान्यधिकृत्य प्रश्न-निर्माणं कुरुत-(रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्ननिर्माण करो-)

प्रश्न: 1.
आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक् पुत्रः। (किसी कस्बे में जीर्णधन नाम का एक बनिया का बेटा रहता था।)
उत्तरम् :
कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने किन्नाम वणिकपुत्रः आसीत् ? (किसी कस्बे में किस नाम का बनिया का बेटा रहता था?)

प्रश्न: 2.
स च विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुम् इच्छति। (और वह वैभव नष्ट हो जाने के कारण परदेश जाना चाहता है।)
उत्तरम् :
सच कस्मात् देशान्तरं गन्तुम् इच्छति? (और वह किस कारण से परदेश जाना चाहता है?)

प्रश्न: 3.
तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्व पुरुषोपार्जिता तुला आसीत्। (और उसके घर लोहे से गढ़ी (बनी) हुई पुरखों द्वारा उपार्जित तराजू थी।)
उत्तरम् :
तस्य च गृहे लौहघटिता कैरुपार्जिता तुला आसीत् ? (और उसके घर में किनके द्वारा उपार्जित की गई तराजू थी?)

प्रश्न: 4.
तुला मूषकैः भक्षितम्। (तराजू चूहों ने खा ली।)
उत्तरम् :
तुला कैः भक्षितम्? (तराजू किसने खा ली?)

प्रश्नः 5.
तुला निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। (तराजू को रखकर परदेश चला गया।)
उत्तरम् :
तुलां निक्षेपभूतां कृत्वा कुत्र प्रस्थितः? (तराजू को रखकर कहाँ प्रस्थान कर गया?)

प्रश्न: 6.
स्वपुरम् आगत्य सः श्रेष्ठिनम् अवदतु। (अपने नगर आकर वह सेठजी से बोला।)
उत्तरम् :
स्वपुरम् आगत्य सः कम् अवदत् ? (अपने नगर आकर वह किससे बोला?)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

प्रश्नः 7.
स श्रेष्ठी स्वपुत्रम् अवदत्। (वह सेठ अपने पुत्र से बोला।)
उत्तरम् :
स श्रेष्ठी कम् अवदत् ? (वह सेठ किससे बोला?)

प्रश्न: 8.
धनदेवः स्नानोपकरणमादाय तेन सह प्रस्थितः। (धनदेव नहाने की सामग्री लेकर उसके साथ प्रस्थान कर गया।)
उत्तरम् :
धनदेवः किम् आदाय तेन सह प्रस्थितः? (धनदेव क्या लेकर उसके साथ प्रस्थान कर गया?)

प्रश्न: 9.
शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य गृहमागतः। (बच्चे को पर्वत की गुफा में डालकर घर आ गया।)
उत्तरम् :
शिशुं कुत्र प्रक्षिप्य गृहमागतः? (बच्चे को कहाँ डालकर घर आ गया?)

प्रश्नः 10.
द्वारं बृहत् शिलया आच्छादितवान्। (द्वार को विशाल शिला से ढंक दिया।)
उत्तरम् :
द्वारं कया आच्छादितवान् ? (दरवाजे को किससे ढंक दिया?)

प्रश्न: 11.
पुत्रः नदीतटात् श्येनेन अपहृतः। (पुत्र नदी के किनारे से बाज द्वारा हर लिया गया।)
उत्तरम् :
पुत्रः नदीतटात् केन अपहृतः? (बेटा नदी के किनारे से किसने हरण कर लिया?)

प्रश्न: 12.
पुत्रः नदीतटात् श्येनेन अपहृतः। (पुत्र नदी के किनारे से बाज ने हर लिया।)
उत्तरम् :
पुत्रः कुतः श्येनेन अपहृतः? (बेटा कहाँ से बाज ने हर लिया?)

प्रश्न: 13.
एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ। (इस प्रकार विचार करते हुए वे दोनों राजदरबार को गये।)
उत्तरम् :
एवं किं कुर्वाणौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ? (इस प्रकार क्या करते हुए वे दोनों राजदरबार को गये?)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

प्रश्न: 14.
तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण अवदत्। (वहाँ सेठ जोर से बोला।)
उत्तरम् :
तत्र श्रेष्ठी कथम् अवदत्? (वहाँ सेठ कैसे बोला?)

कथा-क्रम-संयोजनम्

अधोलिखितानि वाक्यानि पूर्वानुक्रमशः लिखित्वा कथा-क्रम-संयोजनं कुरुत –
(निम्नलिखित वाक्यों को पूर्वानुक्रम से लिखकर कथा-क्रम संयोजन कीजिये-)
1. जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रेण सह नर्दी स्नातुमगच्छत्, तत्र श्रेष्ठिपुत्रं गिरिगुहायामक्षिपत् ।
2. स आह-“नदीतटात् श्येनेन हृतः।”
3. “कुत्र मे पुत्रः?” इति श्रेष्ठिना पृष्टम्।
4. तौ राजकुलं गतौ, वृत्तान्तं च अकथयताम्।
5. न्यायाधिकारिणः सर्वं श्रुत्वा तुला-शिशु-प्रदानेन तौ सन्तोषितौ।
6. “सा तु मूषकैः खादिता” इति श्रेष्ठिनोक्तम्।
7. निर्धनः जीर्णधन: लौहतुलां श्रेष्ठिनो गृहे निक्षिप्य देशान्तरं प्रस्थितः।
8. पर्यटनात् प्रत्यागत्य सः तुलामयाचत्। .
उत्तरम् :
1. निर्धन: जीर्णधनः लौहतुलां श्रेष्ठिनो गृहे निक्षिप्य देशान्तरं प्रस्थितः।
2. पर्यटनात् प्रत्यागत्य सः तुलामयाचत्।
3. “सा तु मूषकैः खादिता” इति श्रेष्ठिनोक्तम्।
4. जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रेण सह नर्दी स्नातुमगच्छतु, तत्र श्रेष्ठिपुत्रं गिरिगुहायामक्षिपत्।
5. “कुत्र मे पुत्र:?” इति श्रेष्ठिना पृष्टम्।
6. स आह- “नदीतटात् श्येनेन हृतः।”
7. तौ राजकुलं गतौ, वृत्तान्तं च अकथयताम्।
8. न्यायाधिकारिणः सर्वं श्रुत्वा तुला-शिशु-प्रदानेन तौ सन्तोषितौ।

योग्यताविस्तारः

ग्रन्थ परिचय-महाकवि विष्णुशर्मा (200 ई. से 600 ई. के मध्य) ने राजा अमरशक्ति के पुत्रों को राजनीति में पारंगत करने के उद्देश्य से ‘पञ्चतन्त्रम्’ नामक सुप्रसिद्ध कथाग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ पाँच भागों में विभाजित है। इन्हीं भागों को ‘तन्त्र’ कहा गया है। पञ्चतन्त्र के पाँच तन्त्र (भाग) हैं-मित्रभेदः, मित्रसंप्राप्तिः, काकोलूकीयम्, लब्धप्रणाशः और अपरीक्षितकारकम्। इस ग्रन्थ में अत्यन्त सरल शब्दों में लघु कथाएँ दी गयी हैं। इनके माध्यम से ही लेखक ने नीति के गूढ़ तत्त्वों का प्रतिपादन किया है।

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

भावविस्तारः

‘लौहतुला’ नामक कथा में दी गयी शिक्षा के सन्दर्भ में इन सूक्तियों को भी देखा जाना चाहिए।

1. न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं न कश्चित् कस्यचिद् रिपुः। (न कोई किसी का मित्र है (और) न कोई किसी का शत्रु है। व्यवहार से ही मित्र और शत्रु बनते हैं।)

व्यवहारेण जायन्ते मित्राणि रिपवस्तथा।

2. आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। (स्वयं को प्रतिकूल लगने वाले (अच्छे न लगने वाले) आचरण दूसरों के साथ नहीं करने चाहिए)

भाषिकविस्तारः

1. तसिल् प्रत्यय-पञ्चमी विभक्ति के अर्थ में तसिल् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
यथा- ग्रामात् – ग्रामत: (ग्राम + तसिल).
आदेः – आदितः (आदि + तसिल)
यथा- छात्रः विद्यालयात् आगच्छति।
छात्रः विद्यालयतः आगच्छति।
इसी प्रकार – गृह + तसिल – गृहतः – गृहात्।
तन्त्र + तसिल – तन्त्रतः – तन्त्रात्।
प्रथम + तसिल – प्रथमतः – प्रथमात्।
आरम्भ + तसिल – आरम्भतः – आरम्भात्।

2. अभितः, परितः, उभयतः, सर्वतः, समया, निकषा, हा और प्रति के योग में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
यथा – गृहम् अभितः वृक्षाः सन्ति।
विद्यालयम् परितः द्रुमाः सन्ति।
ग्रामम् उभयतः नद्यौ प्रवहतः।
हा दुराचारिणम्।
क्रीडाक्षेत्रं निकषा तरणतालम् अस्ति।
बालकः विद्यालयम् प्रति गच्छति।
नगरम् समया औषधालयः विद्यते।
ग्रामम् सर्वतः गोचारणभूमिः अस्ति।

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योग्यताविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
विष्णुशर्मा का कार्य-काल क्या माना गया है?
उत्तर :
200 ई. से 600 ई. के मध्य तक।

प्रश्न 2.
विष्णुशर्मा का ‘अमरकथा-ग्रन्थ’ कौन-सा है?
उत्तर :
पञ्चतन्त्र।

प्रश्न 3.
‘पञ्चतन्त्र’ किसकी रचना है अथवा ‘पञ्चतन्त्र’ के लेखक कौन थे?
उत्तर :
पं. विष्णुशर्मा।

प्रश्न 4.
‘पञ्चतन्त्र’ किस प्रयोजन से लिखा गया था?
उत्तर :
‘पञ्चतन्त्र’ राजा अमरशक्ति के पुत्रों को राजनीति में पारंगत करने के उद्देश्य से लिखा गया था।

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प्रश्न 5.
‘पञ्चतन्त्र’ के कितने तन्त्र (भाग) है? नाम लिखिए।
उत्तर :
पञ्चतन्त्र के पाँच तन्त्र (भाग) हैं –

मित्रभेदः
मित्रसम्प्राप्तिः
काकोलूकीयम्
लब्धप्रणाशः
अपरीक्षित कारकम्।

प्रश्न 6.
लेखक का इस ग्रन्थ को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या रहा है?
उत्तर :
लेखक का इस ग्रन्थ को लिखने का मुख्य उद्देश्य नीति के गूढ़ तत्त्वों का प्रतिपादन करने का रहा है।

भावविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लौहतुला’ कथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
‘लौहतुला’ कथा से हमें शिक्षा मिलती है कि संसार में मनुष्य के मित्र और शत्रु व्यवहार से होते हैं तथा जो कार्य । अपने प्रतिकूल हो दूसरों के लिए उसका आचरण नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
निम्न सूक्तियों का हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
(क) न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचिद् रिपुः। ”
व्यवहारेण जायन्ते मित्राणि रिपवस्तथा।
अनुवाद – न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु है। शत्रु और मित्र तो व्यवहार से ही बनते हैं।

(ख) आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।
अनुवाद – अपने प्रतिकूल कार्य दूसरों के साथ नहीं करने चाहिए।

भाषिकविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. नी, प्रच्छ तथा दा धातुओं में ‘क्त’ प्रत्यय लगाकर शब्द-रचना कीजिए
उत्तर :
नी + क्त = नीतः, प्रच्छ् + क्त = पृष्टः, दा + क्त = दत्तः निम्न शब्दों में प्रकृति-प्रत्यय पृथक् कीजिए पृष्टवान्, दत्तवती, दानीयम्, नेतव्यम्, नयनम्, दाता, प्रष्टव्यम्, देयम्, नेता, दानम्।
उत्तर :
प्रच्छ् + क्तवतु = पृष्टवान् (पु.)
दा. + क्तवतु = दत्तवती (स्त्री.)
दा + अनीयर् = दानीयम् (नपुं.)
नी+ तव्यत् = नेतव्यम् (नपुं.)
नी + ल्युट् = नयनम् (नपुं)
दा + तृच् = दाता (पु.)
प्रच्छ् + तव्यत् = प्रष्टव्यम् (नपुं.)
दा + यत् = देयम् (नपुं.)
नी + तृच् = नेता (पु.)
दा + ल्युट् = दानम् (नपुं.)

3. निम्न शब्दों में तसिल्’ प्रत्यय लगाकर शब्द-रचना कीजिए
ग्राम, आदि, सर्व, परि, काल, तद्, यद्, किम्, प्रथम, आरम्भ ।
उत्तर :
ग्राम + तसिल = ग्रामतः
आदि + तसिल = आदितः
सर्व + तसिल = सर्वतः
परि + तसिल = परितः
काल + तसिल = कालतः
तद् + तसिल = ततः
यद् + तसिल = यतः
किम् + तसिल = कुतः
प्रथम + तसिल = प्रथमतः
आरम्भ+ तसिल = आरम्भतः

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4. अभि, परि, सर्व तथा उभय अव्ययों में तसिल् प्रत्यय लगाइये-
अभि + तसिल् = अभितः
परि + तसिल = परितः
सर्व + तसिल = सर्वतः ।
उभय + तसिल = उभयतः

5. निम्न शब्दों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-समया, निकषा, सर्वतः, परितः, उभयतः, हा, अभितः, प्रति।
उत्तर :
ग्रामं समयां विद्यालयः अस्ति। (गाँव के समीप विद्यालय है।)
विद्यालयं निकषा एव चिकित्सालयः अस्ति। (विद्यालय के समीप ही चिकित्सालय है।)
पुष्पं सर्वतः जलमस्ति। (फूल के सभी ओर पानी है।)
नगरं परितः परिखा अस्ति। (नगर के चारों ओर खाई है।)
कृष्णम् उभयतः गोपाः सन्ति। (कृष्ण के दोनों ओर ग्वाले हैं।)
हा दुर्जनम्। (दुर्जन होने का अफसोस है।)
भवनम् अभितः वृक्षाः सन्ति। (भवन के दोनों ओर वृक्ष हैं।)
त्वं नित्यमेव कूपं प्रति कथं गच्छसि? (तुम रोजाना ही कुएँ की ओर क्यों जाते हो?)

लौहतुला Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ नामक तन्त्र से संकलित है। सरल संस्कृत भाषा में नीति की शिक्षा देने वाले कथा-ग्रन्थों में ‘पञ्चतन्त्र’ का अत्यधिक महत्त्व है। इस ग्रन्थ में विष्णु शर्मा ने एक राजा के तीन मूर्ख पुत्रों को छह माह में राजनीति और व्यवहार में कुशल बनाने के लिए कहानियाँ कही हैं। यह ग्रन्थ पाँच तन्त्रों (भागों) में विभक्त है-(1) मित्रभेद (2) मित्रसम्प्राप्ति (3) काकोलूकीय (4) लब्धप्रणाश तथा (5) अपरीक्षित कारक। प्रत्येक तन्त्र में एक मुख्य कथा है तथा उसके भीतर अवान्तर कथाएँ हैं। कथाओं को परस्पर ऐसा था गया है कि एक कथा के अन्त में दूसरी कथा का सङ्केत हो जाता है। इसका स्वरूप गद्य-पद्यात्मक है। सामान्यतः कथा गद्य में और नैतिक शिक्षा पद्य में है जिनमें से अधिकांश श्लोक विभिन्न नीतिग्रन्थों से उद्धृत किये गये हैं।

पाठ का सारांश – किसी नगर में एक जीर्णधन नाम का व्यापारी रहता था। धन के अभाव में वह गरीब हो गया था। उसने सोचा, जहाँ व्यक्ति समृद्ध जीवन व्यतीत कर चुका हो वहाँ अभावपूर्ण जीवन व्यतीत नहीं करना चाहिए। उसके पास एक लोहे की तराजू थी। वह उसे एक सेठ के पास धरोहर के रूप में रखकर अन्य स्थानों पर भ्रमण करने के लिए निकल गया।

देशाटन से लौटकर जब जीर्णधन ने अपनी तराजू माँगी तो सेठ ने कह दिया – “तराजू तो नहीं है, उसे तो चूहे खा गये।” व्यापारी ने कहा-“कोई बात नहीं, अब तुम अपने पुत्र धनदेव को मेरे साथ स्नान की सामग्री लेकर भेज दो ताकि मैं स्नान कर अन्य दैनिक कार्य सम्पन्न कर सकूँ।” सेठ ने अपने पुत्र को उसके साथ नदी पर भेज दिया। वहाँ सौदागर ने उसे पर्वत की एक गुफा में छुपाकर शिला से ढंक दिया तथा सेठ के घर आ गया। सेठ ने पूछा-“मेरा बेटा कहाँ है?” जीर्णधन बोला-“तुम्हारे बेटे को बाज उठा ले गया।” सेठ ने कहा-“यह असम्भव है।”

दोनों झगड़ते-झगड़ते राजा के दरबार में पहुँच गये। राजा ने जीर्णधन से सेठ के पुत्र को लौटाने के लिए कहा। जीर्णधन ने कहा- “श्रीमन! जहाँ चहे लोहे की तराज को खा सकते हैं वहाँ यदि बाज बालक को उठा ले जाये तो है? न्यायाधिकारी के पूछने पर जीर्णधन व्यापारी ने सम्पूर्ण घटना बता दी। तब न्यायाधिकारी ने सम्पूर्ण घटना को सूक्ष्म दृष्टि से परखकर जीर्णधन व्यापारी को उसकी तराजू तथा सेठ को उसका बेटा वापस करवा दिया।

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1. आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः। स च विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् –
यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः।
तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः॥

शब्दार्थाः – आसीत् = अवर्तत (था), कस्मिंश्चिद = कुत्रचित् (किसी), अधिष्ठाने = स्थाने (स्थान पर), जीर्णधनो नाम = जीर्णधनाभिधः (जीर्णधन नाम का ), वणिकपुत्रः = व्यापारिसुतः (व्यापारी का पुत्र), स च = असौ च (और वह), विभवक्षयात् = धनाभावात्(धन के अभाव में/धन नष्ट हो जाने के कारण), देशान्तरम् = अन्यस्थानं (दूसरे स्थान पर), गन्तुमिच्छन् = प्रयातुकामः (जाने की इच्छा वाला), व्यचिन्तयत् = चिन्तितवान् (सोचने लगा), यत्र = यस्मिन् स्थाने (जिस स्थान पर), स्ववीर्यतः = स्वपराक्रमेण (अपने पराक्रम से), भोगाः = भोग्यानि वस्तूनि (भोगने योग्य वस्तुएँ), भुक्ताः = उपभुक्तानि (उपभोग किया गया), तस्मिन् देशे = तस्मिन् स्थाने (उस स्थान पर), विभवहीनः = धनरहित: (निर्धन होकर), यः = जो, वसेत् = निवसेत् (निवास करे), सः = असौ (वह), पुरुषाधमः = अधमः पुरुषः (नीच व्यक्ति है।)

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ मूलतः पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।

प्रसङ्ग – इस गद्यांश में व्यापारी पुत्र जीर्णधन निर्धन हुआ आत्मग्लानि का अनुभव करता हुआ उस स्थान पर ठहरना नहीं चाहता है, जहाँ उसने समृद्ध जीवन व्यतीत किया है।

अनुवाद – किसी स्थान पर जीर्णधन नाम का एक व्यापारी का पुत्र रहता था और वह धनाभाव के कारण दूसरे स्थान पर जाने का इच्छुक सोचने लगा- “जिस स्थान पर अपने पराक्रम से भोगने योग्य वस्तुओं का उपभोग किया है, उस स्थान पर निर्धन होकर जो निवास करे, वह अधम पुरुष होता है।”

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संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्या:’ ‘लौहतुला’ नामक पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं.विष्णुशर्मा रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ विष्णु शर्मा-रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ ‘मित्रभेद’ तन्त्र से संकलित है।)

प्रसङ्गः – गद्यांशेऽस्मिन् वणिक्पुत्रः जीर्णधनः निर्धनः सन् आत्मग्लानिमनुभवन् तस्मिन् स्थाने न स्थातुमिच्छति, यत्र तेन समद्धं जीवनं यापितम्। (इस गद्यांश में वणिक पुत्र जीर्णधन निर्धन हुआ आत्मग्लानि का अनुभव करता हुआ उस स्थान पर नदी रहना चाहता है जहाँ उसने समृद्ध जीवन व्यतीत किया था।

व्याख्या: – कुत्रचित् स्थाने जीर्णधनाभिधः व्यापारिसुतः अवर्तत। असौ च धनाभावात् अन्यस्थानं प्रयातुकामः चिन्तितवान्-“यस्मिन् स्थाने स्वपराक्रमेण भोग्यानि वस्तूनि उपभुक्तानि तस्मिन् स्थाने धनाभावग्रसितः सन् यो निवसेत्, असौ अधमः पुरुषः भवति।” (कहीं जीर्णधन नामक वणिक् पुत्र था। वह धनाभाव के कारण अन्य स्थान पर जाने का इच्छुक सोचने लगा- “जिस स्थान पर अपने पराक्रम से भोगने योग्य वस्तुओं का उपभोग किया उस स्थान पर धनाभाव-ग्रसित होकर नहीं रहना चाहिए। वह पुरुष अधम (नीच) होता है।)

अवबोधन कार्यम

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) वणिक पुत्रस्य किन्नाम आसीत् ? (वणिक पुत्र का क्या नाम था?)
(ख) जीर्णधन: देशान्तरं कस्मात् अगच्छत् ? (जीर्णधन परदेश क्यों गया?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मनुष्यः कुत्र न वसेत् ? (मनुष्य को कहाँ नहीं बसना चाहिए?)
(ख) जीर्णधनः किं विचिन्तयत्? (जीर्णधन ने क्या सोचा?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘तस्मिन् विभवहीनो न वसेत्’ अत्र तस्मिन् इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(तस्मिन् विभवहीनो न वसेत्’ यहाँ तस्मिन् सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘आसीत्’ इति क्रियापदं लट्लकारे वर्तमान काले वा लिखत ।
(‘आसीत्’ क्रियापद को लट्लकार वर्तमान काल में लिखिये।)
उत्तराणि :
(1) (क) जीर्णधनः ।
(ख) विभवक्षयात् (गरीब होने के कारण)।

(2) (क) यत्र भोगाः युक्ता तत्र विभवहीनो न वसेत्।
(जहाँ भोग भोगे हैं। वहाँ वैभवहीन होने पर नहीं रहना चाहिए।)
(ख) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्।
(जीर्णधन ने विभवहीन होने के कारण विदेश : जाने की सोची।)

(3) (क) स्थाने (स्थान पर)।
(ख) अस्ति (है)।

2. तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुला आसीत्। तां च कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। ततः सचिरं कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पनः स्वपरम आगत्य तं श्रेष्ठिनम अवदत-“भोः श्रेष्ठिन! दीय मे सा निक्षेपतुला।” सोऽवदत्-“भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैः भक्षिता” इति। जीर्णधनः अवदत्-“भोः श्रेष्ठिन्! नास्ति दोषस्ते, यदि मूषकैः भक्षिता। ईदृशः एव अयं संसारः। न किञ्चिदत्र शाश्वतमस्ति। परमहं नद्यां स्नानार्थं गमिष्यामि। तत् त्वम् आत्मीयं एनं शिशं. धनदेवनामानं मया सह स्नानोपकरणहस्तं प्रेषय” इति।

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शब्दार्थाः – तस्य च = अमुष्य च (और उसके) गृहे = सदने (घर में), लौहघटिता = अयोनिर्मिता (लोहे से बनी हुई), पूर्वपुरुषोपार्जिता = पूर्वजैरर्जिता, (पुरखों द्वारा कमाई हुई), तुला = तोलनयन्त्रम् (तराजू), आसीत् = अवर्तत (थी), तां च = और उसको, कस्यचित् = (किसी) श्रेष्ठिनो = महाजनस्य (सेठ के), गृहे = सदने (घर में), निक्षेपभूतां कृत्वा = न्यासः कृत्वा (धरोहर के रूप में रखकर), देशान्तरम् = अन्यं देशं (दूसरे स्थान पर), प्रस्थितः = प्रस्थानं कृतवान् (प्रस्थान कर गया) ततः = तदा (तब), सुचिरं कालम् = सुदीर्घकालपर्यन्तम् (बहुत लम्बे समय तक),

देशान्तरम् = अन्यत्र (दूसरे स्थानों पर), यथेच्छया = इच्छानुसारेण (इच्छा के अनुसार), भ्रान्त्वा = भ्रमणं कृत्वा, देशाटनं कृत्वा (घूमकर), पुनः = ततः (फिर), स्वपुरम् = स्वनगरम् (अपने नगर को), आगत्य = आगम्य/प्रत्यागम्य/प्राप्य (आकर), तम् = अमुम् (उस), श्रेष्ठिनम् = धनिकम् (सेठ से), अवदत् = अकथयत् (कहा), भोः! = रे! (अरे!), श्रेष्ठिन्! = धनिक! (सेठजी!), दीयताम् = देहि (दे दो), मे सा = मह्यम् असौ (मुझे वह), निक्षेपतुला = न्यासकृतं तोलनयन्त्रम्, (धरोहर रखी तराजू), सोऽवदत् = असौ अकथयत् (वह बोला/उसने कहा),

भोः! = रे! (अरे!), नास्ति सा = असौ (तुला) न वर्तते (वह तराजू नहीं है), त्वदीया = तव/भवदीया (तेरी/आपकी), तुला = तोलनयन्त्रम् (तराजू), मूषकैः = आखुभिः (चूहों द्वारा), भक्षिता – = खादिता (खा ली गई/खा ली), इति = एवं (इस प्रकार), जीर्णधनः अवदत् = अकथयत् (जीर्णधन बोला), भोः श्रेष्ठिन्! = हे धनिक ! (अरे सेठ जी!), नास्ति = न वर्तते (नहीं), दोषस्तेः = तव अपराधः (तेरा/तुम्हारा दोष), यदि मूषकैः = यदि आखुभिः (यदि चूहों द्वारा), भक्षिता = खादिता (खा ली गई), ईदृशः एव = एवमेव/एतादृश एव (ऐसा ही है), अयं संसारः = इदं जगत् (यह संसार),

न = (नहीं), किञ्चिदत्र = अत्र किमपि (यहाँ, इस संसार में कुछ भी), शाश्वतमस्ति = अविनश्वरम् वर्तते (अविनाशी है/सदा स्थायी रहने वाला है), परमहँ = परञ्च अहम् (लेकिन मैं), नद्याम् = सरिति (मैं नदी में), स्नानार्थम् = स्नातुं (नहाने के लिए), गमिष्यामि = यास्यामि (जाऊँगा), तत् = तदा (तो), त्वम् = भवान् (आप), आत्मीयम् = स्वकीयम् (अपने), एनम् = इमम् (इस), शिशुम् = बालकं (बालक को), धनदेवनामानम् = धनदेवाभिधम् (धनदेव नाम के), मया सह = मया सार्धम् (मेरे साथ), स्नानोपकरणहस्तम् = अभिषेकसामग्री हस्ते निधाय (नहाने की सामग्री हाथ में लेकर), प्रेषय = गमनाय आदिश (भेज दो)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्रम्’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहता है कि लोभ से घिरा मनुष्य झूठ बोलना आदि अनेक पाप करता है। सेठ तुला को लेने के लिए असंभव झूठ बोलता है।

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अनुवाद – उस जीर्णधन के घर में पुरखों द्वारा कमाई हुई एक लोहे की बनी हुई तराजू थी और वह उसे किसी धनवान् के घर में धरोहर के रूप में रखकर अन्य स्थान पर प्रस्थान कर गया (रवाना हो गया)। तब लम्बे समय तक इच्छानुसार घूमकर अपने नगर में लौटकर उस धनवान् से कहा-“अरे! सेठ जी, मेरी वह धरोहर रखी तराजू दो।” उसने कहा-“अरे! वह तराजू तो नहीं है। तुम्हारी तराजू को तो चूहे खा गये।” जीर्णधन बोला-“हे धनिक जी, यदि (उसे) चूहों ने खा लिया तो तुम्हारा (कोई) अपराध नहीं है, यह संसार ऐसा ही है। यहाँ कुछ भी अविनाशी नहीं है। परन्तु अब मैं नदी में नहाने के लिए जाऊँगा तो आप अपने इस धनदेव नाम के बालक (पुत्र) को नहाने की सामग्री हाथ में लेकर मेरे साथ भेज दो।”

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘लौहतुला’ नामक पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं. विष्णुशर्मा-रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्त्क ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ विष्णु शर्मा-रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के मित्रभेद तन्त्र से संकलित है।

प्रसंग: – प्रस्तुतगद्यांशे लेखकः कथयति यत् लोभाविष्टः जनः मिथ्याभाषणादीनि अनेकानि पापानि सम्पादयति। श्रेष्ठी तुलां गृहीतुम् असंभावनीयम् असत्यं वदति। (इस गद्यांश में लेखक कहता है कि लोभ में पड़ा व्यक्ति झूठ आदि बोलकर अनेक पाप करता है। सेठ तराजू को लेने के लिए असम्भव असत्य बोलता है।)

व्याख्या: – अमुष्य जीर्णधनस्य च सदने पूर्वजैः अर्जितम् एकम् अयोनिर्मितं तोलनयन्त्रम् अवर्तत। अमुं च कस्यचित् धनिकस्य सदने न्यासः कृत्वा सः (जीर्णधन:) अन्यदेशं (स्थान) प्रस्थानमकरोत्। तदा सुदीर्घसमयपर्यन्तम् अन्यदेशम्. इच्छानुसारेण भ्रमणं कृत्वा स्वनगरं प्रत्यागम्य (प्राप्य) अमुम् धनिकमवदत्-“रे धनिक! मह्यमसौ न्यासीकृतं तोलनयन्त्रं देहि।” सः अवदत्- “रे! असौ तुला न वर्तते। तव तोलनयन्त्रं तु आखुभिः खादितम्।” जीर्णधनः अवदत्-“हे धनिक ! मम तोलनयन्त्रं चेद् आखुभिः खादितं तर्हि तव अपराधः नास्ति। इदं जगत् एतादृशमेव अस्ति। इह किमपि अविनश्वरं न वर्तते। परञ्च अहं सरिति स्नातुं यास्यामि।

तदा भवान् स्वकीयम् इमम् धनदेवाभिधं बालकं अभिषेकसामग्री हस्ते निधाय मया सार्धं गमनायादिश।” (इस जीर्णधन के घर में पूर्वजों द्वारा प्राप्त की हुई एक लोहे से बनी हुई तराजू थी। इसको किसी धनवान के घर में धरोहर के रूप में रखकर वह जीर्णधन अन्य स्थान पर चला गया। जब लम्बे समय तक अन्य देश में भ्रमण कर अपने नगर को लौटा तो उस धनिक से कहा- “अरे धनिक ! मेरी वह धरोहर रखी हुई तराजू दे दो।” वह बोला-“अरे वह तराजू तो नहीं है। तुम्हारी तराजू को तो चूहे खा गये।” जीर्णधन बोला-“रे धनिक ! मेरी तराजू यदि चूहों ने खा ली तो तुम्हारा क्या अपराध। यह संसार ऐसा ही है, इसमें कुछ भी अविनाशी नही है।”)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) जीर्णधनस्य गृहे पूर्व पुरुषैः उपार्जिता का आसीत् ? (जीर्णधन के घर में पुरखों द्वारा अर्जित क्या थी?)
(ख) श्रेष्ठि-अनुसारं लोहतुला केन खादितम् ? (सेठ के अनुसार लोहे की तराजू किसने खा ली?)

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्णवाक्य में उत्तर दीजिये)
(क) जीर्णधनेन तुला कुत्र निक्षिप्ता? (जीर्णधन ने तराजू कहाँ रख दी?)
(ख) विभवहीनस्य जीर्णधनस्य गृहे किम् अवशिष्टमासीत्? (विभवहीन जीर्णधन के पास क्या शेष बचा था?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘आदीयताम्’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशात् लिखत। (‘आदीयताम्’ पद का विलोम पद गद्यांश से लिखिए।)
(ख) ‘खादिता’ इति पदस्य पर्यायवाचि पदं गद्यांशात् चिनुत। (‘खादिता’ पद का समानार्थी गद्यांश से चुनिए।)
उत्तराणि-
1.(क) लौहतुला (लोहे की तराजू)
(ख) मूषकैः (चूहों द्वारा)

2. (क) जीर्णधन तुलां कस्यचित श्रेष्ठिनः गृहे निक्षेप भूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थित। (जीर्णधन तुला को किसी सेठ के घर रखकर विदेश चला गया।)
(ख) विभवहीनस्य जीर्णधनस्य गृहे लौहघटिता पूर्व पुरुषोपार्जिता तुला एव अवशिष्टा। (विभवहीन जीर्णधन के घर में लोहे की बनी पुरखों द्वारा प्राप्त हुई. एक तराजू बची।)

3. (क) दीयताम् (दिया जाना चाहिए)।
(ख) भक्षिता (खा ली गई)।

3. स श्रेष्ठी स्वपुत्रम् अवदत्-“वत्स! पितृव्योऽयं तव, स्नानार्थं यास्यति, तद् अनेन साकं गच्छ” इति।
अथासौ श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः स्नानोपकरणमादाय प्रहृष्टमनाः तेन अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। तथानुष्ठिते स वणिक् स्नात्वा तं शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य, तद्द्वारं बृहत् शिलया आच्छाद्य सत्त्वरं गृहमागतः।।
सः श्रेष्ठी पृष्टवान्-“भोः अभ्यागत! कथ्यतां कुत्र में शिशः यः त्वया सह नदीं गतः”? इति।
स अवदत्-“तव पुत्रः नदीतटात् श्येनेन हृतः’ इति। श्रेष्ठी अवदत् – “मिथ्यावादिन्! किं क्वचित् श्येनो बालं हर्तुं शक्नोति? तत् समर्पय मे सुतम् अन्यथा राजकुले निवेदयिष्यामि।” इति।
सोऽकथयत्-“भोः सत्यवादिन्! यथा श्येनो बालं न नयति, तथा मूषका अपि लौहघटितां तुलां न भक्षयन्ति। तदर्पय में तुलाम्, यदि दारकेण प्रयोजनम्।” इति।

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

शब्दार्थाः – सः श्रेष्ठी = असौ धनिकः (वह सेठ), स्वपुत्रम् अवदत् = स्वकीयमात्मजमवदत् (अपने पुत्र से बोला)-“वत्स!, = पुत्रक! (बेटा!), पितृव्योऽयंः = पितुः भ्राताष्स (यह चाचा), तव = ते (तेरा), स्नानार्थम् = स्नातुम् (नहाने के लिए), यास्यति = गमिष्यति (जायेगा), तद् = ततः (तो), अनेन साकम् = एतेन सह (इसके साथ), गच्छ = याहि (जाना चाहिए/जाओ), अथासौ = ततः सः (इसके बाद वह), श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः = व्यापारिसुतः (बनिया का बेटा), स्नानोपकरणमादाय = अभिषेकसामग्री नीत्वा (नहाने का सामान लेकर), प्रहृष्टमनाः = प्रसन्नचित्तः (प्रसन्नचित्त हुआ), तेन = अमुना (उस), अभ्यागतेन सह = अतिथिना सार्धम् (अतिथि के साथ), प्रस्थितः = प्रस्थानमकरोत् (रवाना हो गया),

तथानुष्ठिते = एवं सम्पादिते कृते (ऐसा करने पर), स: वणिक् = असौ व्यापारी (वह व्यापारी), स्नात्वा = स्नानं कृत्वा (स्नान करके/नहा करके), तं शिशुम् = अमुं बालकम् (उस बालक को), गिरिगुहायाम् = पर्वतदाँ (पर्वत की गुफा में), प्रक्षिप्य = धृत्वा (रखकर), तद्वारम् = तस्याः द्वारम् (उसके दरवाजे को), बृहत् शिलाया आच्छाद्य = विशालप्रस्तरपट्टेनापिधाय (विशाल शिला से ढंककर), सत्वरम् = क्षिप्रम् (शीघ्र), गृहमागतः = सदनं प्राप्त:/आयातः (घर आ गया), सः = असौ (वह), श्रेष्ठी = धनिकः, (धनवान) पृष्टवान् = च अपृच्छत् (और पूछा गया),

भोः अभ्यागत! = हे अतिथे! (हे अतिथि जी!) कथ्यताम् = वदत/कथय (बोलो/कहो), कुत्र = कस्मिन् स्थाने (कहाँ है), मे शिशुः = मम बालकः (मेरा बच्चा), यः त्वया सह = यः भवता सार्धम् (जो आपके साथ), नदीम् = सरितम् (नदी पर), गतः = यातः (गया था), स अवदत् = असौ अवदत् (वह बोला), तव पुत्रः = ते सुतः (तुम्हारा पुत्र), नदीतटात् = सरितः तीरात् (नदी के किनारे से), श्येनेन = हिंसकप्रकृतिपक्षिविशेषः तेन (हिंसक पक्षी विशेष बाज के द्वारा), हतः = अपहृतः (अपहरण कर लिया गया है), श्रेष्ठी अवदत् = धनिकोऽवदत् (सेठ बोला), मिथ्यावादिन्! = असत्यवादिन्! (मिथ्यावादी/झूठा!) किम् = अपि (क्या),

क्वचित् = कुत्रचित् (कहीं), श्येनो = बाज, बालम् = शिशुम् (बालक को), हर्तुं शक्नोति = हरणाय क्षमः (अपहरण करने में समर्थ है), तत् = तर्हि (तो), समर्पय = देहि (दे दो/लौटा दो), मे = मम (मेरे), सुतम् = पुत्रम् (बेटे को), अन्यथा = नो चेत् (नहीं तो), राजकुले = राजगृहे/न्यायाधिकरणे (राजदरबार में), निवेदयिष्यामि = निवेदनं करिष्यामि (निवेदन कर दूंगा/शिकायत कर दूंगा), सोऽकथयत् = असौ अवदत् (वह बोला), भोः सत्यवादिन्! = हे सत्यवक्तः! (हे सत्यवादी जी!), यथा = येन-प्रकारेण (जिस प्रकार से),श्येनो = बाज, बालम् = शिशुम् (बच्चे को), न नयति = नापहरति (नहीं ले जाता है), तथा = तेनैव प्रकारेण (उसी प्रकार), मूषका अपि = आखवोऽपि (चूहें भी), लौहघटिताम् = अयोनिर्मिताम् (लोहे की बनी), तुलाम् = तोलनयन्त्रम् (तराजू को), न भक्षयन्ति = न खादन्ति (नहीं खाते हैं), तदर्पय मे मम तोलनयन्त्रम् (तो मेरी तराजू दे दो), यदि दारकेण – यदि पुत्रेण (यदि पुत्र से), प्रयोजनम् = अर्थम् (प्रयोजन है)।

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णुशर्मा-रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में जीर्णधन असत्यवादी सेठ की भर्त्सना करता हुआ उसे अपने तर्कों से परास्त करता है । अनुवाद-वह सेठ अपने पुत्र से बोला-“बेटा ! यह तेरा चाचा नहाने के लिए जायेगा, तो इसके साथ जाओ।”

इसके बाद वह सेठ का बेटा नहाने का सामान लेकर प्रसन्नचित्त हुआ उस अतिथि के साथ रवाना हो गया। ऐसा करने पर वह व्यापारी नहाकर के उस बालक को पर्वत की गुफा में रखकर, उसके दरवाजे को विशाल शिला से ढंककर शीघ्र घर आ गया और सेठ के द्वारा पूछा गया-“अरे अतिथि! कहो, मेरा बालक जो आपके साथ नदी पर गया था, कहाँ है?” वह बोला-“नदी के किनारे से वह हिंसक पक्षी विशेष बाज के द्वारा अपहरण कर लिया गया है।” सेठ बोला-“झूठा! क्या कहीं बाज बालक को अपहरण करने में समर्थ है? तो बेटे को दे दो नहीं तो राजदरबार में शिकायत कर दूंगा।” वह बोला-“हे सत्यवादी! जिस प्रकार से बाज बच्चे को नहीं ले जाता है उसी प्रकार चूहे भी लोहे की बनी तराजू नहीं खाते हैं। यदि पुत्र से प्रयोजन है, तो मेरी तराजू दे दो।”

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘लौहतुला’ नामक पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं. विष्णुशर्मा-रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ पं. विष्णु शर्मा द्वारा रचित पञ्चतन्त्र कथाग्रन्थ के मित्रभेद तन्त्र से संकलित है।)

प्रसंगः – प्रस्तुतगद्यांशे जीर्णधनः असत्यवादिनः श्रेष्ठिनः भर्त्सनां कुर्वन् स्वतर्केण तं परास्तं करोति। (प्रस्तुत गद्यांश में जीर्णधन झूठ बोलने वाले सेठ की भर्त्सना करते हुए अपने तर्क से उसे परास्त करता है।)

व्याख्या: – असौ धनिकः स्वकीयम् आत्मजम् अवदत्-“पुत्रक ! एषः ते पितुः भ्राता स्नातुं गमिष्यति, ततः एतेन सह गच्छेः।” ततः सः व्यापारिसुतः अभिषेकसामग्री नीत्वा प्रसन्नचित्तः अमुना अतिथिना सार्धं प्रस्थानम् अकरोत्। एवं सम्पादित कृते असौ अतिथि स्नानं कृत्वा अमुं बालकं पर्वतदयाँ धृत्वा तस्याः द्वारं विशाल प्रस्तरपट्टेन अपिधाय क्षिप्रं सदनम् आयातः। श्रेष्ठी च पृष्टवान्-“हे अतिथे! कथय, मम बालकः यः भवता सार्धं सरितं यातः कस्मिन् स्थाने (वर्तते)?” असौ अवदत्-“सरितः तीरात् असौ हिंसकखगेन श्येनेन अपहृतः।”

धनिकोऽवदत्- “हे असत्यवक्त: ! अपि कुत्रचित् हिंसकपक्षिविशेषः श्येनः शिशुं हरणाय क्षमः (भवति) तर्हि मम पुत्रं देहि नो चेत् न्यायाधिकरणे निवेदनं करिष्यामि।” सः अवदत्-“हे सत्यवक्तः! येन प्रकारेण हिंसकखगविशेषः श्येनः शिशुं नापहरति तेनैव प्रकारेण आखवोऽपि अयोनिर्मितं तोलनयन्त्रं न खादन्ति। यदि पुत्रेण प्रयोजनमस्ति, तर्हि देहि मम तोलनयन्त्रम्।” वह सेठ अपने बेटे से बोला-“बेटा ! ये तुम्हारे चाचा नहाने जायेंगे तो इनके साथ जाओ।”

तब वह व्यापारी का पुत्र नहाने का सामान लेकर प्रसन्नचित्त हुआ उस अतिथि के साथ प्रस्थान कर गया। ऐसा करने पर उस अतिथि ने स्नान करके उस बालक को पर्वत गुफा में रखकर उसके दरवाजे पर एक विशाल शिला ढककर शीघ्र घर आ गया। सेठ ने पूछा- हे अतिथि! कहो मेरा बालक जो तुम्हारे साथ नदी पर गया था, वह कहाँ है? वह (अतिथि) बोला “नदी के किनारे से वह हिंसक पक्षी बाज द्वारा अपहरण कर लिया गया।” धनवान् बोला- अरे असत्यवादी ! क्या कहीं हिंसक पक्षी बाज बालक का अपहरण कर सकता है? जिस प्रकार से हिंसक पक्षी विशेष बाज बच्चे को अपहरण नहीं कर सकता उसी प्रकार चूहे भी लोहे की बनी तराजू नहीं खाते हैं। यदि बेटे से प्रयोजन है तो मेरी तराजू दे दो।)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

अवबोधन कार्यम् –

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) श्रेष्ठि पुत्रस्य किं नाम आसीत्? (श्रेष्ठि पुत्र का क्या नाम था?)
(ख) जीर्णधनः धनदेवं कुत्र प्रक्षितवान् ? (जीर्णधन ने धनदेव को कहाँ छुपा दिया था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्णवाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) जीर्णधनः स्नानान्तरं किम् अकरोत् ? (जीर्णधन ने स्नान के बाद क्या किया?)
(ख) श्रेष्ठिगहमागत्य जीर्णधनः धनदेवस्य विषये किं कथितवान् (श्रेष्ठि के घर आकर जीर्णधन ने धनदेव के विषय में क्या कहा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘सत्यवादिन्’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत। (‘सत्यवादिन’ पद का विलोम गद्यांश से. चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘अतिथिः’ इति पदस्य पर्यायवाचिपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत। (‘अतिथि’ पद का समानार्थी पद गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
1.(क) धनदेवः,
(ख) गिरिगुहायाम् (पर्वत की गुफा में)।

2. (क) जीर्णधनः श्रेष्ठि पुत्रं गिरिगुहाया प्रक्षिप्य तद्वारं वृहत् शिलया आच्छाद्य सत्वरं गृहमागततः। (जीर्णधन सेठ के पुत्र को पर्वत गुफा में फेंककर उसका द्वार को बड़ी शिला से ढककर शीघ्र ही घर आ गया।)
(ख) श्रेष्ठिगृहमागत्य जीर्णधनः अवदत्-‘तव पुत्रः नदी तटात् थ्येनेन हतः। (सेठ के घर आकर जीर्णधन
बोला-‘तुम्हारा पुत्र नदी किनारे से बाज़ ने हरण कर लिया।’)

3. (क) मिथ्यावादिन् (झूठा)
(ख) अभ्यागतः (अतिथि)।

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

4. एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ। तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण अवदत्-“भोः! वञ्चितोऽहम्! वञ्चितोऽहम्! अब्रह्मण्यम! अनेन चौरेण मम शिशः अपहतः’ इति।
अथ धर्माधिकारिणः तम् अवदन् – “भोः! समर्म्यतां श्रेष्ठिसुतः”। सोऽवदत्-“किं करोमि? पश्यतो मे नदीतटात् श्येनेन शिशुः अपहृतः। इति। तच्छुत्वा ते अवदन्-भोः! भवता सत्यं नाभिहितम्-किं श्येनः शिशुं हर्तुं समर्थो भवति? सोऽअवदत्-भोः भोः! श्रूयतां मद्वचः
तुला लौहसहस्त्रस्य यत्र खादन्ति मूषकाः।
राजन्तत्र हरेच्छ्येनो बालकं, नात्र संशयः॥ ते अपृच्छन्-“कथमेतत्”।
ततः स श्रेष्ठी सभ्यानामग्रे आदितः सर्व वृत्तान्तं न्यवेदयत्। ततः, न्यायाधिकारिणः विहस्य, तौ द्वावपि सम्बोध्य तुला-शिशुप्रदानेन तोषितवन्तः।

शब्दार्थाः – एवम् = इत्थम् (इस प्रकार से), विवदमानौ = कलहं कुर्वन्तौ (झगड़ते हुए), तौ द्वावपि = अमू उभावपि (वे दोनों ही), राजकलम = न्यायाधिकरणम् (राजा के दरबार को), गतौ = प्राप्तौ (पहँच गये). श्रेष्ठी = धनिकः (सेठ), तारस्वरेण = उच्चस्वरेण (जोर से/ऊँची आवाज में), अवदत् = अकथयत् (बोला), भोः! = रे! (अरे!) वञ्चितोऽहम् वञ्चितोऽहम्! = छलितोऽहम् छलितोऽहम्, अब्रह्मण्यम्! = अन्यायरूपम्, अनुचितम् (बड़ा अन्याय या अनुचित हुआ), अनेन चौरेण = एतेन स्तेनेन (इस चोर के द्वारा), मम शिशुः = मे पुत्रः/बालकः (मेरा बेटा), अपहृतः = चोरित:/हृतः (चुरा लिया गया है), अथ = ततः (इसके बाद), धर्माधिकारिणः = न्यायाधिकारिणः (न्यायाधिकारी लोग),

तम् अवदन् = अमुम् अवदन् (उससे बोले), भोः! = रे! (अरे!), समर्प्यताम् = देहि (दे दो), श्रेष्ठिसुतः = धनिकपुत्रः (सेठ का बेटा), सोऽवदत् = सः अकथयत् (उसने कहा), किं करोमि = किं कुर्याम् (क्या करूँ), पश्यतो मे = मयि पश्यति (मेरे देखते-देखते), नदीतटात् = सरितः तीरात् (नदी के किनारे से), श्वान = हिंसकखगेन श्येनेन (बाज के द्वारा), शिशुः बालकः (बालक), अपहृतः = हृतः/नीतः (ले जाया गया), तच्छ्रुत्वा = तन्निशम्य (उसे सुनकर), ते = अमी (वे), अवदन् = तेऽकथयन् (बोले), भोः! = रे! (अरे!), भवता = त्वया (आपके द्वारा/ आपने), सत्यं नाभिहितम् = न ऋतमुक्तम् (सही नहीं कहा),

किं श्येनः = (क्या बाज), शिशुम् = बालकम् (बालक को), हर्तुम् = हरणाय (हरण करने के लिए), समर्थों भवति = सक्षमः जायते (समर्थ होता है), सोअवदत् = असावदत् (वह बोला)भो: भोः! = रे रे! (अरे अरे!), श्रूयतां मद्वचः = मम वचनानि आकर्णय (मेरी बात सुनो), लौहसहस्रस्य = दशशतलौहनिर्मितं (हजार (तोला) लोहे की बनी हुई) तुलाम् = तोलनयन्त्रम् (तराजू को), यत्र = यस्मिन् स्थाने (जहाँ), मूषकाः = आखवः (चूहे), खादन्ति = भक्षयन्ति (खा जाते हैं), राजन्तत्र = हे राजन् !

तस्मिन् स्थाने (हे राजन्! वहाँ, उस स्थान पर), श्येनः = बाज, बालकम् = शिशुम् (बच्चे को), हरेत् = नयेत् (ले जाये), नात्र संशयः = न अस्मिन् सन्देहः वर्तते (इसमें कोई शंका नहीं है), ते अपृच्छन् = अमी पृष्टवन्तः (उन्होंने पूछ), कथमेतत् = इदं केन प्रकारेण (यह कैसे), ततः = तदा (तब), स श्रेष्ठी = असौ धनिकः (उस सेठ ने), सभ्यानामग्रे = सभासदां समक्षे (सभासदों के आगे), आदितः = प्रारम्भतः (आरम्भ से), सर्वम् = सम्पूर्णम् (सारा), वृत्तान्तम् = घटितं (घटना को), न्यवेदयत् = कथितवान् (निवेदन कर दिया), ततः = तदा (तब), न्यायाधिकरणः = (न्यायाधीशः), विहस्य = स्मित्या (हँसकर), तौ द्वावपि = अमूभावपि (उन दोनों को), संबोध्य = बोधयित्वा (समझाकर), तुला = तोलनयन्त्रम् (तराजू), शिशु = बालक (बालक के), प्रदानेन = समर्पणेन (दिलाने से/दिलाकर), तोषितवन्तः = सन्तुष्टीकृतौ (सन्तुष्ट कर दिये गये)।

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेदः’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।

प्रसंग – इस गद्यांश में जीर्णधन न्यायालय में अपना सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाता है। न्यायाधिकारी लोग भी सूक्ष्म दृष्टि से गम्भीरतापूर्वक विचारकर न्याय करते हैं तथा तुला व शिशु-प्रदान से उन दोनों को सन्तुष्टि प्रदान करते हैं।

अनुवाद – इस प्रकार कलह करते हुए वे दोनों राजा के दरबार में पहुँचे। वहाँ सेठ ऊँची आवाज में बोला-“अरे! बड़ा अन्याय, बड़ा अनुचित हुआ। मेरा बेटा इस चोर द्वारा चुरा लिया गया है।” इसके बाद न्यायाधिकारी लोग उससे बोले-“अरे सेठ का बेटा दे दो।” उसने कहा-“क्या करूँ? मेरे देखते-देखते बाज द्वारा नदी के किनारे से उसे ले जाया गया अर्थात् मेरे देखते-देखते बाज उसे नदी किनारे से ले गया।” उसे सुनकर वे बोले-“अरे आपने सही नहीं कहा। क्या बाज बालक का हरण करने में समर्थ है?” वह (जीर्णधन) बोला-“अरे ! अरे! मेरी बात सुनो, हजार (तोला) लोहे की बनी हुई तराजू को जहाँ चूहे खा जाते हैं, हे राजन् ! वहाँ बाज बच्चे को ले जाये तो इसमें कोई सन्देह नहीं।” वे बोले-“यह कैसे?” उस सेठ ने सभासदों के सामने सारी घटना को निवेदन कर दिया। तब उन्होंने हँसकर उन दोनों को आपस में समझा-बुझाकर तराजू और बालक को दिलाकर सन्तुष्ट किया।

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य “शेमुष्या:’ ‘लौहतुला’ इति पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं. विष्णुशर्मा-रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रा सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के लौहतुला’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णु शर्म के पंचतन्त्र कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र से संकलित है।)

प्रसंग: – गद्यांशेऽस्मिन् जीर्णधनः न्यायालये सम्पूर्णवृत्तान्तं श्रावयति, न्यायाधिकारिणोऽपि सूक्ष्मदृष्ट्या गाम्भीर्येण विचार्य न्यायं कुर्वन्ति, तुला-शिशु-प्रदानेन च तौ सन्तुष्टिं प्रददति। (इस गद्यांश में जीर्णधन न्यायालय में सम्पूर्ण वृत्तान्त सुना देता है- न्यायाधीश भी सूक्ष्म दृष्टि से गम्भीरता के साथ विचार कर न्याय करता है। और तुला-शिशु प्रदान से दोनों को सन्तुष्ट कर देता है।)

व्याख्या: – इत्थं कलहं कुर्वन्तौ अम् उभावपि न्यायाधिकरणं प्राप्तौ। तस्मिन् स्थाने धनिकः उच्चस्वरेण अवदत्-“रे! अन्यायरूपमनुचितम् अभवत्, मे बालकः (पुत्रः) एतेन स्तेनेन हृतः (चोरितः)।” ततः न्यायाधिकारिणः अमुम् अवदन्-“रे! धनिकस्य पुत्रं देहि।” तेनोक्तम्-“किं कुर्याम्? मयि पश्यति हिंसकखगेन श्येनेन सरितः तीरात् बालकः नीतः।” तन्निशम्य

अमी न्यायाधिकारिणः अवदन्-“रे! त्वया न ऋतमुक्तं। किं श्येनः बालकस्य हरणाय सक्षमः भवति?” असौं अवदत् “रे ! रे! मम वचनानि आकर्णय-दशशतलौहनिर्मितं तोलनयन्त्रं यस्मिन् स्थाने आखवः भक्षयन्ति, तस्मिन् स्थाने श्येनः शिशु नयेत्, नास्मिन् सन्देहः वर्तते।” अमी न्यायाधिकारिणः अवदन्-“इदं केन प्रकारेण? “तदा असौ धनिकः सभासदां समक्षे प्रारम्भतः सम्पूर्णवृत्तान्तं कथितवान्। तदा अमीभिः हसित्वा अमूभावपि परस्परम् अन्योऽन्यं बोधयित्वा तोलनयन्त्रस्य बालकस्य च समर्पणेन सन्तुष्टीकृतौ। (इस प्रकार कलह करते हुए वे दोनों न्यायालय पहुँचे।

वहाँ धनिक ऊँचे स्वर में बोला- अरे बड़ा अन्याय हुआ, अनुचित हुआ। मेरा बेटा इस चोर ने हर लिया। तब न्यायाधीश उससे बोला- “अरे धनिक सेठ का बेटा दे दो।” उसने कहा- “क्या करूँ? मेरे देखते-देखते हिंसक पक्षी बाज नदी के किनारे से ले गया।” इस बात को सुनकर न्यायाधीश बोले- “अरे तूने सच नहीं बोला। क्या बाज बच्चे का हरण करने में समर्थ है?” वह बोला अजी, अजी, मेरी बात सुनो। हजार तोला लोहे की बनी तराजू जहाँ चूहे खा जायें वहाँ बाज बच्चे को ले जाये, इसमें कोई सन्देह नहीं है। वे न्यायाधीश बोले-‘यह किस तरह?’ तब उस धनिक ने सभासदों के समक्ष आरम्भ से सारा किस्सा सुना दिया। तब उन्होंने इस पर उन दोनों को आपस में एक दूसरे को समझाकर तराजू और बालक के समर्पण से सन्तुष्ट किया।) अवबोधन कार्यम्

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) श्रेष्ठि-जीर्णधनौ विवदमानौ कुत्र गतौ? (सेठ और जीर्णधन विवाद करते हुए कहाँ गये?) .
(ख) श्रेष्ठी राज-कुले कथम् अवदत्? (सेठ न्यायालय में कैसे बोला?) प्रश्न 2. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) श्रेष्ठी राजकुले किम् अवदत् ? (सेठ ने दरबार में क्या कहा?)
(ख) जीर्णधनः श्रेष्ठि पुत्रस्य विषये किम् अकथयत्? (जीर्णधन ने सेठ के पुत्र के विषय में क्या कहा?)

प्रश्न 3.
(क) ‘धर्माधिकारिणः तम् अवदत अत्र ‘तम्’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्? .
(‘धर्माधिकारिणः तम् अवदत’ यहाँ ‘तम्’ सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘कथितम्’ इति क्रियापदस्य स्थाने गद्यांशे प्रयुक्ते समानार्थी पदं चित्वा लिखत।
(‘कथितम्’ क्रियापद के स्थान पर गद्यांश में प्रयुक्त समानार्थी शब्द लिखिए।)
उत्तराणि :
1. (क) राजकुले (न्यायालय में )
(ख) तारस्वरेण (चीखकर)।

2. (क) श्रेष्ठी राजकुले अवदत्-भोः वञ्चितोऽहम् ! वञ्चितोऽहम्! अब्रह्मण्यम्। अनेन चोरेणमम शिशुः अपहतः।
(सेठ राजकुल में बोला-अरे मैं छला गया! छला गया! अनुचित हुआ! इस चोर ने मेरे बच्चे का अपहरण कर लिया।)
(ख) जीर्णधनः अवदत् – ‘तव पुत्रः नदीतटात् श्येनेन हृतः। (जीर्णधन बोला- ‘तुम्हारे बेटे को नदी किनारे से बाज हरण कर ले गया।)

3. (क) जीर्णधनम् (जीर्णधन से)
(ख) अभिहितम् (कहा)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम् Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

JAC Class 9th Sanskrit जटायोः शौर्यम् Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक शब्द में उत्तर लिखिए-)
(क) आयतलोचना का अस्ति? (विशाल नयनों वाली कौन है?)
उत्तरम् :
सीता। (जानकी।)

(ख) सा कं ददर्श? (उसने किसे देखा?)
उत्तरम् :
जटायुम्। (जटायु को।)

(ग) खगोत्तमः कीदृशीं गिरं ब्याजहारः? (पक्षिराज ने कैसी वाणी बोली?)
उत्तरम् :
शुभां गिरम्। (शुभवाणी।)

(घ) जटायुः काभ्यां रावणस्य मात्रे व्रणं चकार? (जटायु ने किनसे रावण के शरीर पर घाव कर दिए?)
उत्तरम् :
तीक्ष्णनखाभ्याम् (तीखे नाखूनों से)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

(ङ) अरिन्दमः खगाधिपः रावणस्य कति बाहून व्यपाहरत्? (शत्रुनाशक जटायु ने रावण की कितनी भुजाएँ काट दी?)
उत्तरम् :
दश (दश भुजाओं को।)

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) “जटायो! पश्य” इति का वदति? (‘जटायु ! देखो’ ऐसा कौन कहती है?)
उत्तरम् :
“जटायो! पश्य” इति सीता वदति। (‘जटायु! देखो’ ऐसा सीता कहती है।)

(ख) जटायुः रावणं किं कथयति? (जटायु रावण से क्या कहता है?)
उत्तरम् :
जटायुः रावणं कथयति-“परदाराभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तय, धीरः तत् न समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्।”
(जटायु रावण से कहता है-“पराई स्त्री के स्पर्श से नीच बनी मति को दूर कर दो (क्योंकि) धीर पुरुष वह आचरण नहीं करे जिससे दूसरे इसकी निन्दा करें।”)

(ग) क्रोधवशात् रावणः किं कर्तुम् उद्यतः अभवत्? (क्रोध के कारण से रावण क्या करने के लिए उद्यत हो गया?)
उत्तरम् :
क्रोधवशात् रावण: जटायुं हन्तुम् उद्यतः अभवत् । (क्रोध के कारण से रावण जटायु को मारने के लिए तैयार हो गया।)

(घ) पतगेश्वरः रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभञ्ज? (पक्षिराज ने रावण के कैसे धनुष को बाणसहित तोड़ दिया?)
उत्तरम् :
पतगेश्वरः रावणस्य मुक्तामणिविभूषितं सशरं चापं बभञ्ज। (पक्षिराज ने रावण के मोती-मणियों से सुशोभित बाणसहित धनुष को तोड़ दिया।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

(ङ) जटायुः केन वामबाहुं दंशति? (जटायु किससे बायीं भुजाओं को उखाड़ता या काटता है?)
उत्तरम् :
जटायुः तुण्डेन (चञ्चुना) वामबाहुं दंशति। (जटायु चोंच से बायीं भुजाओं को उखाड़ता है।)

3. (अ) उदाहरणमनुसृत्य णिनि-प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत –
(उदाहरण का अनुसरण करके णिनि-प्रत्यय का प्रयोग करके पदों की रचना करो-)
यथा – गुण + णिनि = गुणिन् (गुणी)
दान + णिनि = दानिन् (दानी)
(क) कवच + णिनि = ………..
(ख) शर + णिनि = ………..
(ग) कुशल + णिनि = ………..
(घ) धन + णिनि = ………..
(ङ) दण्ड + णिनि = ………..
उत्तरम् :
(क) कवचिन् (कवची)
(ख) शरिन् (शरी)
(ग) कुशलिन् (कुशली)
(घ) धनिन् (धनी)
(ङ) दण्डिन् (दण्डी)

(आ) रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलितरूपेण लिखितानि तानि पृथक्-पृथक् कृत्वा लिखत।
(रावण और जटायु के विशेषण सम्मिलित रूप से लिखे गये हैं, उन्हें अलग-अलग करके लिखिये।)
युवा, सशरः, वृद्धः, हताश्वः, महाबलः, पतगसत्तमः, भग्नधन्वा, महागृध्रः, खगाधिपः, क्रोधमूछितः, पतगेश्वरः, सरथः, कवची, शरी।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम् 1

4. ‘क’ स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः ‘ख’ स्तम्भे लिखिताः। तान् यथासमक्षं योजयत
(‘क’ स्तम्भ में लिखे हुए पदों के पर्यायवाची ‘ख’ स्तम्भ में लिखे गये हैं। उन्हें उचित पदं के सामने लिखिये-) ..
क – ख
कवची – अपतत्
आशु – पक्षिश्रेष्ठः
विरथः – पृथिव्याम्
पपात – कवचधारी
भुवि – शीघ्रम्
पतगसत्तमः – रथविहीनः
उत्तरम् :
क – ख
कवची – कवचधारी
आशु – शीघ्रम्
विरथः – रथविहीनः
पपात – अपतत्
भुवि – पृथिव्याम्
पतगसत्तमः – पक्षिश्रेष्ठः

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5. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि मञ्जूषायां दत्तेषु पदेषु चित्वा यथासमक्षं लिखत –
(निम्नलिखित पदों के विलोम पदों को मंजूषा में दिये हुए पदों में से चुनकर उचित पद के सामने लिखिए-
मन्दम्, पुण्यकर्मणा, हसन्ती, अनार्य, अनतिक्रम्य, देवेन्द्रेण, प्रशंसेत्, दक्षिणेन, युवा।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम् 2

6. (अ) अधोलिखितानि विशेषणपदानि प्रयुज्य संस्कृतवाक्यानि रचयत –
(निम्नलिखित विशेषण पदों का प्रयोग करके संस्कृत-वाक्यों की रचना कीजिए)
(क) शुभाम्…………
(ख) खगाधिपः…………
(ग) हतसारथिः ………
(घ) वामेन…………..
(ङ) कवची………..
उत्तरम् :
(क) सा शुभां वाणीम् अवदत्। (उस (स्त्री) ने शुभ वाणी (वचन) बोली।)
(ख) जटायुः खगाधिपः आसीत्। (जटायु पक्षियों का स्वामी था।)
(ग) हतसारथिः रावणः भूमौ अपतत्। (मरे हुए सारथी वाला रावण पृथ्वी पर गिर पड़ा।)
(घ) अहं वामेन हस्तेन लिखामि। (मैं बायें हाथ से लिखता हूँ।)
(ङ) कवची अपि रावणः जटायुं पराजेतुं समर्थः न अभवत्। (कवच धारण करने वाला भी रावण जटायु को हराने में समर्थ नहीं हुआ।) (आ) उदाहरणमनुसत्य समस्तपदं रचयत- (उदाहरण का अनुसरण करके समस्त पद की रचना कीजिये-)
यथा-त्रयाणां लोकानां समाहार:= त्रिलोकी
(i) पञ्चानां वटानां समाहारः = ………….
(ii) सप्तानां पदानां समाहारः = ………….
(iii) अष्टानां भुजानां समाहारः = …………..
(iv) चतुर्णा मुखानां समाहारः = …………
उत्तर :
(i) पञ्चवटी
(ii) सप्तपदी
(iii) अष्टभुजी
(iv) चतुर्मुखी।

JAC Class 9th Sanskrit जटायोः शौर्यम् Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
कीदृशी सीता गृधम् अपश्यत्? (कैसी सीता ने गिद्ध को देखा?)
उत्तरम् :
सुदु:खिता आयतलोचना च सीता गध्रम् अपश्यत्। (दुःखी और विशाल नेत्रों वाली सीता ने गिद्ध को देखा।)

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प्रश्नः 2.
सीता गृधं कुत्र अपश्यत्? (सीता ने गिद्ध को कहाँ पर देखा?)
उत्तरम् :
सीता गृधं वृक्षे स्थितम् अपश्यत्। (सीता ने गिद्ध को पेड़ पर बैठे देखा।)

प्रश्न: 3.
सीता जटायुं किम् अकथयत्? (सीता ने जटायु से क्या कहा?)
उत्तरम् :
सीता जटायुम् अकथयत्-“आर्य जटायो! पापकर्मणा अनेन राक्षसेन्द्रेण अनाथवत् ह्रियमाणां मां करुणं पश्य।” ”(सीता ने जटायु से कहा-“आर्य जटायु! इस पापी राक्षसराज के द्वारा अनाथ की तरह हरण की जाती हुई मुझ . करुणामयी को देखिये।)

प्रश्न: 4.
अवसुप्तः जटायुः किम् अशृणोत्? (उनींदे जटायु ने क्या सुना?)
उत्तरम् :
अवसुप्तः जटायुः सीतायाः करुणशब्दं अशृणोत्। (उनींदे जटायु ने सीता के करुण स्वर को सुना।)

प्रश्न: 5.
रावणं निरीक्ष्य जटायुः किम् अपश्यत्? (रावण को देखकर जटायु ने क्या देखा?)
उत्तरम् :
रावणं निरीक्ष्य जटायुः वैदेहीम् अपश्यत्। (रावण को देखकर जटायु ने सीता को देखा।)

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प्रश्न: 6.
जटायुः कीदृशः आसीत्? (जटायु कैसा था?)
उत्तरम् :
जटायुः खगोत्तमः, पर्वतशृङ्गाभः, तीक्ष्णतुण्डः च आसीत्।
(जटायु पक्षिश्रेष्ठ, पर्वतशिखर की कान्ति वाला और तेज चोंच वाला था।)

प्रश्न: 7.
धीरः किं न समाचरेत्? (धीर पुरुष को क्या आचरण नहीं करना चाहिए?)
उत्तरम् :
धीरः तत् न समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्। (धीर को वह (आचरण) नहीं करना चाहिए जिससे दूसरे इसकी निन्दा करें।)

प्रश्नः 8.
जटायुः रावणं किम् उपदिशति? (जटायु रावण को क्या उपदेश देता है?)
उत्तरम् :
जटायुः रावणं परदाराभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तयितुम् उपदिशति। (जटायु रावण को पराई स्त्री के स्पर्श से नीच बनी बुद्धि को त्यागने का उपदेश देता है।)

प्रश्न: 9.
‘जटायोः शौर्यम्’ पाठे रावणः कीदृशः वर्णितः? (‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ में रावण कैसा वर्णित है?)
उत्तरम् :
रावणः युवा, धन्वी, सरथः, कवची शरी च वर्णितः। (रावण जवान, धनुषधारी, रथयुक्त, कवचधारी और बाणधारी वर्णित है।)

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प्रश्न: 10.
जटायुः केन प्रकारेण रावणस्य गात्रे बहुधा व्रणान् अकरोत्?
(जटायु ने किस प्रकार से रावण के शरीर पर बहुत से घाव किये?)
उत्तरम् :
जटायुः तीक्ष्णनखाभ्यां रावणस्य गात्रे बहुधा व्रणान् अकरोत्।
(जटायु ने तीखे नाखूनों से रावण के शरीर पर अनेक घाव कर दिए।)

प्रश्न: 11.
भग्नधन्वा रावणः किम् अकरोत् ? (टूटे धनुष वाले रावण ने क्या किया?)
उत्तरम् :
भग्नधन्वा रावण: वैदेहीम् अङ्केन आदाय भुवि अपतत्। (टूटे धनुष वाला रावण सीता को गोद में लेकर धरती पर गिर पड़ा।)

प्रश्न: 12.
सीतायाः निवेदनं श्रुत्वा जटायु प्रथम किमकरोत्? (सीता के निवेदन को सुनकर जटायु ने पहले क्या किया?)
उत्तरम् :
सीतायाः निवेदनं श्रुत्वा जटायुः रावणमपश्यत। (सीता के निवेदन को सुनकर जटायु ने रावण को देखा।)

प्रश्न: 13.
रावणः कथं जटायुम् अहन् ? (रावण ने किस प्रकार जटायु को मारा?)
उत्तरम् :
रावण: वैदेहीं वामेनाङ्केन संपरिष्वज्य जटायुं तलेन अभिजघान। (रावण ने वैदेही को बायीं गोद में लेकर जटायु को थप्पड़ से मारा।)

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प्रश्न: 14.
कीदृशः जटायुः रावणम् अतिक्रमति? (कैसा जटायु रावण पर आक्रमण करता है।)
उत्तरम् :
खगाधिपः अरिन्दमः जटायुः रावणम् अतिक्रमति। (पक्षिराज शत्रु-विनाशक जटायु रावण पर आक्रमण करता है।)

प्रश्न: 15.
जटायुः कथं रावणस्य बाहून व्यपाहरत्? (जटायु ने कैसे रावण की भुजाओं को उखाड़ दिया?)
उत्तर :
जटायुः तुण्डेन रावणस्य दशान् अपि वामबाहून् व्यपाहरत्। (जटायु ने चोंच से रावण की दसों बायीं भुजाओं को उखाड़ दिया।)

प्रश्न: 16.
वृक्षरूढः जटायुः कीदृशीं वाणीम् अवदत्? (वृक्ष पर बैठा जटायु कैसी वाणी बोला?)
उत्तर :
वृक्षारूढ़ः जटायुः शुभां गिरम अवदत्। (वृक्ष पर बैठा जटायु शुभ वाणी बोला।)

प्रश्न: 17.
जटायुः रावणं कथम् अभिगृहीतयाम्? (जटायु ने रावण को कैसे ललकारा?) ।
उत्तर :
रावण! त्वं मे कुशली वैदेही आदाय न गमिष्यसि। (रावण तुम मेरे सकुशल रहते हुए जानकी को लेकर नहीं जाओगे।)

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प्रश्न: 18.
पाठेऽस्मिन् ‘पतगसत्तमः’ इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्? (इस पाठ में पतगसत्तमः किसके लिए प्रयोग हुआ है?)
उत्तर :
पाठेऽस्मिन् जटायवे पतगसत्तमः प्रयुक्तम्। (इस पाठ में पतगसत्तमः जटायु के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

प्रश्न: 19.
रावणस्य महद्धनुः महातेजां जटायुना कस्य बभञ्ज? (रावण का महान् धनुष महान तेजस्वी जटायु ने किससे से तोड़ा?)
उत्तर :
णस्य महद्धनः महातेजा जटायुना चरणाभ्यां बभञ्ज। (रावण का महान् धनुष जटायु ने चरणों से तोड़ दिया।)

रेखांकितपदान्याधुत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत-(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
गृधं ददर्शायतलोचना। (विशाल नेत्रों वाली ने गृध्र को देखा।)
उत्तर :
गृधं का ददर्श? (जटायु को किसने देखा?)

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प्रश्न: 2.
वनस्पतिगतं गृधं ददर्शायत लोचना। (विशाल नयनों वाली ने वृक्ष पर बैठे गृध्र को देखा।)
उत्तर :
कीदृशं गृधं ददर्शायत लोचना? (विशाल नेत्रों वाली ने कैसे गृध्र को देखा?)

प्रश्न: 3.
अनेन राक्षसेन्द्रेण हियमाणां माम् पश्य। (इस राक्षसराज द्वारा हरण की जाती हुई मुझे देखो।)
उत्तर :
अनेन राक्षसेन्द्रेण कीदृशी माम् पश्य? (इस राक्षसराज द्वारा कैसी मुझको देखे?)

प्रश्न: 4.
श्रीमान्व्याजहारः शुभां गिरिम्। (श्रीमान् ने सुन्दर वाणी बोली।)
उत्तर :
श्रीमान् कीदृशीम् गिरम् व्याजहार? (श्रीमान् ने कैसी वाणी बोली?)

प्रश्न: 5.
महाबलः चरणाभ्यां गात्रे व्रणान् चकार। (महान् बलवान् ने पैरों से शरीर में घाव कर दिये।)
उत्तर :
महाबलः कास्याम् गात्रे व्रणान् चकार? (महाबली ने किनसे शरीर में घाव कर दिए?)

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प्रश्नः 6.
मुक्तामणिविभूषितं सशरं चापं बभञ्ज। (मुक्ता-मणियों से विभूषित बाण समेत धनुष को तोड़ दिया।)
उत्तर :
कीदृशं चापं बभञ्ज? (कैसे धनुष को तोड़ा?)

प्रश्न: 7.
शब्दम् अवसुप्तः जटायुः शुश्रुवे। (उनींदे जटायु ने शब्द सुने।)
उत्तर :
कीदृशः जटायुः शब्दं शुश्रुवे? (कैसे जटायु ने शब्द सुना?)

प्रश्न: 8.
पुनः अतिशय प्रहारैः रावणः मूर्छितो भवति। (फिर बहुत से प्रहारों से रावण मूर्छित हो गया।)
उत्तर :
पुन: कैः रावणः मूच्छितोऽभवत् ? (फिर किनसे रावण मूर्छित हो गया?)
कथाक्रम-संयोजनम अधोलिखितानि वाक्यानि क्रमशः लिखित्वा कथाक्रम-संयोजनं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों को क्रमश: लिखकर कथन के क्रम में जोड़ो-)
1. भग्नधन्वा, विरथः, हताश्वः हतसारथिः च रावणः वैदेहीमङ्केनादाय भुवि पपात।
2. जटायुः च तुण्डेन रावणस्य दशानपि वामबाहून् व्यपाहरत्।
3. रावण: जटायुं तलेनाभिजघान।
4. जटायुः नखाभ्यां रावणस्य गात्रे व्रणान् चकार मुक्तामणिविभूषितं सशरं च चापं चरणाभ्यां बभञ्ज।
5. रावणः सीताम् अपहत्य रथेन लङ्कापुरौं नेतुमैच्छत्।
6. जटायुः रावणमभयित् परदाराभिमर्शनाच्चावारयत्।
7. सुसुप्तोऽसौ जटायुः वैदेहीं रावणं च अपश्यत्।
8. विलपन्ती दुःखिता सीता वनस्पतिगतं गृध्रमपश्यत्।
उत्तरम् :
1. रावणः सीताम् अपहत्य रथेन लङ्कापुरी नेतुमैच्छत्।
2. विलपन्ती दुःखिता सीता वनस्पतिगतं गृध्रमपश्यत्।
3. सुसुप्तोऽसौ जटायुः वैदेहीं रावणं च अपश्यत्।
4. जटायुः रावणमभर्त्सयत् परदाराभिमर्शनाच्चावारयत्।
5. जटायुः नखाभ्यां रावणस्य गात्रे व्रणान् चकार मुक्तामणिविभूषितं सशरं च चापं चरणाभ्यां बभञ्ज।
6. भग्नधन्वा, विरथः, हताश्वः हतसारथिः च रावणः वैदेहीमङ्केनादाय भुवि पपात।
7. रावणः जटायुं तलेनाभिजघान।
8. जटायुः तुण्डेन रावणस्य दशानपि वामबाहून् व्यपाहरत्।

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योग्यताविस्तारः

(क) कवि-परिचयं-महर्षि वाल्मीकि आदिकाव्य रामायण के रचयिता हैं। कहा जाता है कि वाल्मीकि का हृदय, एक व्याध द्वारा क्रीडारत क्रौञ्चयुगल (पक्षियों के जोड़े) में से एक के मार दिये जाने पर उसकी सहचरी के विलाप को सुनकर द्रवित हो गया तथा उनके मुख से शाप के रूप में जो वाणी निकली वह श्लोक के रूप में थी। वही श्लोक लौकिक संस्कृत
का आदिश्लोक माना जाता है

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्॥

(हे व्याध! तुम आने वाले वर्षों में कभी प्रतिष्ठा (सम्मान) को प्राप्त नहीं होगे क्योंकि (तुमने) क्रौञ्च पक्षी के जोड़े में से पत्नी-प्रेम से मोहित होने वाले एक क्रौञ्च नरपक्षी का वध कर दिया है।)

(ख) भाव-विस्तार

जटायु-सूर्य के सारथी अरुण के दो पुत्र थे-सम्पाती और जटायु। जटायु पञ्चवटी वन के पक्षियों का राजा था, जहाँ वह अपने पराक्रम एवं बुद्धिकौशल से शासन करता था। पञ्चवटी में रावण द्वारा अपहरण की गयी सीता के विलाप को सुनकर जटायु ने सीता की रक्षा के लिए रावण के साथ युद्ध किया और वीरगति पाई। इस प्रकार राज-धर्म की रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले जटायु को भारतीय संस्कृति का महान् नायक माना जाता है।

(ग) सीता-विषयक सूचना देते हुए जटायु ने राम से जो वचन कहे, वे इस प्रकार हैं –

यामोषधीमिवायुष्मन्नन्वेषसि महावने।
सा च देवी मम प्राणाः रावणेनोभयं हृतम्॥

(हे आयुष्मन् (राम!) जिस (सीता) को (तुम) महान् वन में औषधि के समान ढूँढ़ रहे हो, उस देवी (सीता) और मेरे (मुझ जटायु के) प्राणों, दोनों का रावण ने हरण किया है।)

भाषिकविस्तारः

(घ) वाक्य प्रयोग –
गिरम् – छात्रः मधुरां गिरम् उवाच। (छात्र मीठी वाणी बोला।)
पतगेश्वरः – पक्षिराजः जटायुः पतगेश्वरः अपि कथ्यते। (पक्षियों का राजा जटायु ‘पतगेश्वर’ भी कहलाता है।)
शरी – शरी रावण: निःशस्त्रेण जटायुना आक्रान्तः। (बाणधारी रावण पर शस्त्रहीन जटायु ने आक्रमण किया।)
विध्य – वीरः शत्रप्रहारान विधय अग्रे अगच्छत। (वीर शत्रुओं पर प्रहार करके आगे चला गया।)
व्रणान् – चिकित्सकः औषधेन व्रणान् विरोपितान् अकरोत्। (चिकित्सक ने औषधि से घावों को भर दिया।)
व्यपाहरत् – जटायुः रावणस्य बाहून व्यपाहरत्। (जटायु ने रावण की भुजाओं को उखाड़ दिया।)
आशु – स्वकार्यम् आशु सम्पादय। (अपने कार्य को शीघ्र पूरा करो।)

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(ङ) स्त्री प्रत्यय –
टाप् प्रत्यय – करुणा, दुखिता, शुभा, निम्ना, रक्षणीया।
ङीप् प्रत्यय – विलपन्ती, यशस्विनी, वैदेही, कमलपत्राक्षी।
ति प्रत्यय – युवतिः
पुल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग पद निर्माण में टाप्-ङीप्-ति प्रत्यय होते हैं। टाप् प्रत्यय का ‘आ’ तथा ङीप् प्रत्यय का ‘ई’ शेष रहता है।
यथा –
मूषक + टाप् = मूषिका
बालक + टाप् = बालिका
अश्व + टाप् = अश्वा
वत्स + टाप् = वत्सा
हसन् + ङीप = हसन्ती
विद्वस् + ङीप् = विदुषी
मानिन् + ङीप् = मानिनी
श्रीमत् + ङीप् = श्रीमती
युवन् + ङीप् = युवतिः

योग्यताविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर – 

प्रश्न: 1.
कः रामायणस्य रचयिता अस्ति? (रामायण का रचयिता कौन है?)
उत्तरम् :
आदिकवि: वाल्मीकि रामायणस्य रचयिता अस्ति। (आदिकवि वाल्मीकि रामायण के रचयिता हैं।)

प्रश्न: 2.
वाल्मीकिः निषादं किं शप्तवान् ? (वाल्मीकि ने व्याध को क्या शाप दिया?)
उत्तरम् :
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती: समाः, इति वाल्मीकिः तं शप्तवान्।
(अरे व्याध! तुम आने वाले वर्षों में कभी प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं होगे, ऐसा वाल्मीकि ने उसे शाप दिया।)

प्रश्न: 3.
जटायुः रामाय सीताविषयकवृत्तं कथमसूचयत्?
(जटायु ने राम को सीता विषयक समाचार कैसे सूचित किया?)
उत्तरम् :
हे राम! यां त्वं महावने वृक्षेषु अन्वेषसि सा देवी मम प्राणा: च, उभयं रावणेन हतम्। (हे राम ! जिसको तुम महावन में वृक्षों में ढूँढ़ रहे हो, उस देवी और मेरे प्राणों, दोनों का रावण ने हरण किया है।)

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भाषिक विस्तार –

प्रश्न 1.
निम्नपदानि आधृत्य वाक्यानि रचयत- (निम्न शब्दों को आधार मानकर वाक्य-रचना कीजिए-)
गिरम्, विधूय, आशु, तुण्डेन, व्रणान्। उत्तर :
गिरम् – सा मधुरां गिरम् उवाच। (उसने मधुर वाणी बोली।)
विधूय – वीरः शत्रुप्रहारान् विधूय अग्रे अगच्छत् । (वीर शत्रुओं पर प्रहार करके आगे चला गया।)
आशु – स्वकार्यम् आशु सम्पादय। (अपने कार्य को शीघ्र पूरा करो।)
तुण्डेन – काक: तुण्डेन आमिषं खादति। (कौवा चोंच से मांस खाता है।)
व्रणान् – व्रणान् औषधेन उपचारय। (औषधि से घावों का उपचार (इलाज) करो।)

प्रश्न 2.
निम्न शब्दों में टाप् प्रत्यय जोड़कर स्त्रीलिंग बनाइये मूषक, बालक, अश्व, मूर्ख, शुभ।
उत्तर :
मूषक + टाप् (आ) = मूषिका
बालक + टाप् (आ) = बालिका
अश्व + टाप् (आ) = अश्वा
मूर्ख + टाप् (आ) = मूर्खा
शुभ + टाप् (आ) = शुभा

प्रश्न 3.
निम्न शब्दों में ङीप् प्रत्यय लगाकर स्त्रीलिंग बनाइये –
लिखत्, राजन्, कामिन्, देव, मानुष
उत्तर :
लिखत् + ङीप् (ई) = लिखन्ती
राजन् + ङीप् (ई) = राज्ञी
कामिन् + ङीप् (ई) = कामिनी
देव + ङोप् (ई) = देवी
मानुष + डीप् (ई) = मानुषी

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

प्रश्न 4.
प्रकृति-प्रत्यय बताइये –
करुणा, विलपन्ती, दुःखिता, यशस्विनी, शुभा, वैदेही, रक्षणीया, युवति, मानिनी, वत्सा
उत्तर :
पद प्रकृति प्रत्यय
करुणा = करुण + टाप्
विलपन्ती = विलपत् + डींप्
दु:खिता = दुःखित् + टाप्
यशस्विनी = यशस्विन् + डींप्
शुभा = शुभ + टाप्
वैदेही = वैदेह + डींप्
रक्षणीया = रक्षणीय + टाप्
युवतिः = युवन् + ति
मानिनी = मानिन् + डींप्
वत्सा = वत्स + टाप्

जटायोः शौर्यम् Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ आदिकवि वाल्मीकि-प्रणीत ‘रामायणम्’ महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है। रामायण को संस्कृत का आदिकाव्य तथा उसके प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है। रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन का काव्यात्मक वर्णन है। यह सात काण्डों में विभक्त है। ये काण्ड हैं –

  1. बालकाण्ड।
  2. अयोध्याकाण्ड
  3. अरण्यकाण्ड
  4. किष्किन्धाकाण्ड
  5. सुन्दरकाण्ड
  6. युद्धकाण्ड तथा
  7. उत्तरकाण्ड।

पाठ का सारांश – इस पाठ में जटायु और रावण के युद्ध का वर्णन है। पञ्चवटी वन में जनक-नन्दिनी सीता का करुण विलाप सुनकर गिद्ध पक्षिराज जटायु उनकी रक्षा के लिए दौड़े। समीप आकर उन्होंने लंकापति रावण को परस्त्री स्पर्शरूप निन्दनीय दुष्कर्म से विरत होने के लिए कहा। रावण की हठी मनोवृत्ति को देखकर जटायु ने उस पर भयावह आक्रमण किया। महाबली जटायु ने अपने तीखे नाखूनों वाले पंजों से रावण के शरीर पर अनेक घाव कर दिये तथा पंजों से उसके विशाल धनुष को तोड़ दिया। टूटे हुए धनुष वाला और मारे गये घोड़ों और सारथी वाला रथहीन रावण मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा।

परन्तु कुछ ही क्षणों बाद वह क्रोधान्ध रावण जटायु पर टूट पड़ा और निहत्थे जटायु पर प्राणघातक प्रहार करने लगा। परन्तु पक्षियों में श्रेष्ठ जटायु अपना बचाव करते हुए चोंच और पंजों से प्रहार करते रहे! इस प्रकार से जटायु ने रावण के बायें भाग की दसों भुजाओं को क्षत-विक्षत कर दिया।

प्रस्तुत पाठ में एक ओर सीता के क्रन्दन से करुणरस की अजस्त्र धारा प्रवाहित हो रही है तो दूसरी ओर महाबली . पक्षिश्रेष्ठ जटायु के वीरतापूर्ण युद्ध से वीररस की सरिता प्रवाहित हो रही है।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

1. सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता ।
वनस्पतिगतं गृधं ददर्शायतलोचना॥

अन्वय-तदा सुदुःखिता करुणा वाचः विलपन्ती, आयतलोचना सा (सीता) वनस्पतिगतं गृधं (जटायु) ददर्श।

शब्दार्थाः – तदा = तदानीम् (तब/उस समय), सुदुःखिता = आपद्ग्रस्ता (अत्यन्त दु:खी ), करुणा वाचः = करुणार्द्रवाण्या। (करुणाजनक वाणी से), विलपन्ती = क्रन्दन्ती/रुदन्ती (विलाप करती हुई), आयतलोचना सा (सीता) = विशालनयना असौ सीता (विशाल नेत्रों वाली उस सीता ने), वनस्पतिगतम् = वृक्षे स्थितम् (वृक्ष पर बैठे हुए), गृधम् (जटायु) = (गिद्ध जटायु को), ददर्श = अपश्यत् (देखा)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में जनकनन्दिनी सीता की भयाक्रान्त दयनीय दशा का सजीव चित्रण किया गया है। लंकापति राक्षसराज रावण द्वारा अपहत सीता इधर-उधर देखती हुई अपनी रक्षार्थ विलाप करती है।

अनुवाद – उस समय अत्यन्त दुःखी, करुणाजनक वाणी से विलाप करती हुई, विशाल नेत्रों वाली उस (सीता) ने वृक्ष पर बैठे हुए गिद्ध (जटायु) को देखा।

संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। मूलत: यह पाठ आदिकवि वाल्मीकि-रचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् रावणेन अपहृतायाः सीतायाः भयाक्रान्तायाः दयनीयायाः च मार्मिकं चित्रणं महाकविना प्रस्तुतम्। (इस श्लोक में रावण द्वारा अपहरण की गई भयभीत और दयनीया सीता का मार्मिक चित्रण महाकवि द्वारा किया गया है।)

व्याख्या: – तदा अत्यन्त दु:खिता करुणापूर्ण विलापं कुर्वन्ती विशालनयना सीता वृक्षेस्थितं पक्षिराज जटायुम् अपश्यत्। (तब अत्यन्त दुखी करुणापूर्ण विलाप करती हुई विशाल नेत्रों वाली सीता ने वृक्ष पर बैठे पक्षीराज जटायु को देखा।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) सीता किं कुर्वन्ती गृध्रम् अपश्यत् ? (सीता ने क्या करती हुई ने गृध्र को देखा?)
(ख) गृध्रः कुत्र स्थितः आसीत् ? (गिद्ध कहाँ बैठा था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) सीता कुत्र स्थितं गृधं अपश्यत् ? (सीता ने कहाँ बैठे गृध्र को देखा?)
(ख) सीता कीदृशी आसीत् ? (सीता कैसी थी?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क), ‘वृक्ष’ शब्दस्य स्थाने श्लोके किम् पदं प्रयुक्तम्?
(‘वृक्ष’ शब्द के स्थान पर श्लोक में क्या शब्द प्रयोग किया है?)

(ख) ‘सा’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम् श्लोकेऽस्मिन्?
(‘इस श्लोक में ‘सा’ सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग किया गया है?).
उत्तराणि-
(1) (क) विलपन्ती (विलाप करती हुई)।
(ख) वनस्पतिगत (पेड़ पर बैठा)।

(2) (क) सीता वनस्पति गतं गृध्रम् अपश्यत्। (सीता ने पेड़ पर बैठे गिद्ध को देखा।)
(ख) सीता आयतलोचना दु:खिता विलपन्ती आसीत्। (सीता विशाल नेत्रों वाली दुखी और विलाप करती हुई थी।)

(3) (क) वनस्पति (वृक्ष)। (ख) सीता (सीता)।

2. जटायो पश्य मामार्य ह्रियमाणामनाथवत् ।
अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा ॥

अन्वय-आर्य ! जटायो! पापकर्मणा अनेन राक्षसेन्द्रेण अनाथवत् करुणं ह्रियमाणां मां (सीताम्) पश्य।

शब्दार्था: – आर्य! = हे श्रेष्ठ ! (उत्तम!)। जटायो! = हे पक्षिराज जटायो! (हे जटायु!)। पापकर्मणा = अघकर्मणा (पापकर्म करने वाले/पापाचारी)। अनेन = एतेन (इस)। राक्षसेन्द्रेण = दानवपतिना (राक्षसों के राजा (रावण) द्वारा)। करुणम् = करुणोपेताम् (करुणा से युक्त)। ह्रियमाणाम् = नीयमानाम् (अपहरण की जाती हुई)। माम् = मा (मुझको)। पश्य = ईक्षस्व (देखो)। हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – राक्षसराज रावण द्वारा अपहरण किये जाने पर जनक-नन्दिनी सीता करुण विलाप करती हुई अपनी सहायतार्थ खगश्रेष्ठ जटायु का आह्वान करते हुए कहती है।

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अनुवाद – हे आर्य! जटायु! पापकर्म करने वाले इस राक्षसों के राजा रावण द्वारा करुणा से युक्त, अपहरण की जाती हुई मुझ (सीता) को देखो।

संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितऽस्ति। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ मूलतः आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

सङ्कलितऽस्ति र यह श्लाक हमारी शभुषा पाठ्यपुस्तक

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् राक्षसराजरावणेनापहता सीता जनकनन्दिनी करुणं विलपति। सा स्व सहायतार्थं वृक्षस्थं जटायुम् आह्वयन्ती कथयति। (इस श्लोक में राक्षसराज रावण द्वारा अपहरण की गई सीता जनक नन्दिनी करुण विलाप करती है। वह अपनी सहायता के लिए वृक्ष पर स्थित जटायु को बुलाती हुई कहती है)।

व्याख्या: – हे आर्य! जटायेत्वम् अनेन पापिष्ठेन राक्षसानां राजा अपहृता करुणां माम् पीडितां पश्य। (हे आर्य जटायु! तुम इस पापी, राक्षसों के राजा द्वारा अपहृत करुणा से युक्त पीड़िता की ओर देखो।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) सीता आत्मानं किंवत् वदति? (सीता अपने को किस की तरह कहती है?)
(ख) सीता केन अपहता? (सीता का अपहरण किसने किया?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) सीता जटायु किं निवेदयत् ? (सीता ने जटायु से क्या निवेदन किया?)
(ख) सीता कीदृशेन राक्षसेन अपहृता? (सीता कैसे राक्षस ने हरण की?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘पुण्यः’ इति पदस्य विलोमपदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘पुण्य’ शब्द का विलोम पद श्लोक से चुनकर लिखिये।)
(ख) श्लोके ‘अनेन’ इति सर्वनामपदं कस्य संज्ञापदस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(श्लोक में ‘अनेन’ सर्वनाम पद किस संज्ञा पद के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) अनाथवत् (अनाथ की तरह)।
(ख) राक्षसेन्द्रेण (राक्षसराज द्वारा)।

(2) (क) सीता निवेदयत्-जटायो! अनाथवतु यां पापकर्मणा राक्षसेन्द्र ह्रियमाणां पश्य। (सीता ने नि
अनाथ की तरह मुझको पापी रावण द्वारा अपहरण की जाती हुई को देखो।)
सीता पापकर्मणा राक्षसेन्द्रेण अपहृता। (सीता पापी राक्षसराज द्वारा हरी गई।)

(3) (क) पाप।
(ख) रावणेन (रावणे के)।

3. तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे।
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः ॥

अन्वय-अथ अवसुप्तः तु जटायुः तं शब्दं शुश्रुवे। सः (जटायुः) रावणं निरीक्ष्य क्षिप्रं च वैदेहीं ददर्श।

शब्दार्था: – अथ = ततः (इसके बाद), अवसुप्तस्तु = सुसुप्तावस्थातु (सोती हुई अवस्था वाले तो), जटायुः = गृध्रराज: (जटायु ने), तम् = सीतायाः विलापस्य (उस सीता-विलाप के), शब्दं = स्वरम् (स्वर को), शुश्रुवे = अशृणोत् (सुना), सः = असौ जटायुः (उस जटायु ने), रावणं निरीक्ष्य = लंकापतिम् अवलोक्य (रावण को अच्छी प्रकार देखकर), च = और, क्षिप्रम् = शीघ्रम् (शीघ्र ही), वैदेहीं = विदेहनन्दिनीम् (सीता को), ददर्श = अपश्यत् (देखा)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में कवि कहता है कि सीता के करुण विलाप को सुनकर सोता हुआ गृद्धराज जटायु जागता है तथा सामने आकाश में रावण और सीता को देखता है।

अनुवाद – इसके बाद सोती हुई अवस्था वाले तो जटायु ने उस (सीता के विलाप) के स्वर को सुना। उस (जटायु) ने रावण को अच्छी प्रकार देखकर और शीघ्र ही विदेहनन्दिनी सीता को देखा।

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संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक (1489 संस्कृत प्रभा, कक्षा-1) के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ आदिकवि वाल्मीकि विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।) .

प्रसंग: – प्रस्तुत श्लोके कवि: वर्णयति यत् जनकनन्दिन्या करुणविलापं श्रुत्वा गृध्रराजः जटायुः जागृतवान् गगने च रावणं सीतां च पश्यति। (प्रस्तुत श्लोक में कवि वर्णन करता है कि जनकनन्दिनी के करुण विलाप को सुनकर गृध्रराज जटायु जाग गये और आकाश से रावण तथा सीता को देखा।)

व्याख्या-ततः सुसुप्त: गृध्रराजो जटायुः सीतायाः विलापस्य स्वनं अशृणोत्। असौ जटायुः लंकापतिमवलोक्य शीघ्रमेव च विदेहनन्दिनीम् अपश्यत्। (तब उनींदी अवस्था में गृध्रराज जटायु ने सीता के विलाप का स्वर सुना। उस जटायु ने लंकापति रावण को देखकर और फिर शीघ्र ही अपहरण की गई सीता को देखा।

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) सीतायाः विलापं कः अश्रृणोत्? (सीता के विलाप को किसने सुना?)
(ख) जटायुः तदा कस्यां स्थितौ आसीत् ? (जटायु तब किस स्थिति में था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) यदा सीता विलापं करोति स्म तदा जटायुः किं करोति स्म?
(जब सीता विलाप कर रही थी तब जटायु क्या कर रहा था?)
(ख) सीतायाः करुणं क्रन्दनं श्रुत्वा जटायुः किम् अपश्यत्?
(सीता के करुण क्रन्दन को सुनकर जटायु ने क्या किया?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) शीघ्रम्’ इति पदस्य पर्यायवाचि पदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘शीघ्रम्’ पद का पर्यायवाची पद श्लोक से चुनकर लिखिए।)
(ख) ददर्श सः अत्र ‘सः’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(‘ददर्श सः’ यहाँ ‘सः’ सर्वनाम पद किसके लिये प्रयुक्त किया गया है?)
उत्तराणि :
(1) (क) जटायुः।
(ख) सुसुप्त स्थितौ (सुसुप्तावस्था)।

(2) (क) यदा सीता विलपति स्म तदा जटायुः स्वपिति स्म। (जब सीता विलाप कर रही थी तो जटायु सो रहा था।)
(ख) सीताया क्रन्दनं श्रुत्वासौ रावणं निरीक्ष्य वैदेही सीताम् अपश्यत्। (सीता के क्रन्दन को सुनकर रावण को देखकर जटायु (उसने) ने सीता को देखा।)

(3) (क) क्षिप्रम् (जल्दी ही)।
(ख) जटायुः (जटायु के लिए)।

4. ततः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः ।
वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम् ॥

अन्वय – ततः खगोत्तमः श्रीमान् पर्वतशृङ्गाभः, तीक्ष्णतुण्ड: वनस्पतिगतः (एव) शुभां गिरं व्याजहार।

शब्दार्थाः – ततः = तदा (तब/इसके बाद), खगोत्तमः = पक्षिश्रेष्ठः (पक्षियों में श्रेष्ठ), श्रीमान् = शोभायुक्तः (सुन्दर), पर्वतशृङ्गाभः = गिरिशिखरकान्तः (पर्वत के शिखर के समान कान्ति वाले), तीक्ष्णतुण्डः = तीक्ष्णचञ्चुयुक्तः (तीखी चोंच वाले जटायु), वनस्पतिगतः = वृक्षे स्थितः (पेड़ पर बैठे हुए), एव = ही, शुभाम् = मंगलां (शुभ), गिरम् = वाणी (वचन), व्याजहार = प्रकाशितवान्/अकथयत् (व्यक्त की/बोले)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में गृध्रराज जटायु की शारीरिक विशेषताओं एवं क्षमताओं का चित्रण किया गया है।

अनुवाद – तब पक्षिराज शोभायुक्त, पर्वत के शिखर के समान कान्ति वाले, तीखी चोंच वाले (जटायु) वृक्ष पर बैठे हुए (ही) शुभ वचन बोले।

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संस्कत व्याख्याः

सन्दर्भः – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ मूलतः आदिकवि वाल्मीकि द्वारा विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् कवि वाल्मीकिः गृध्रराज जटायोः शारीरिक वैशिष्ट्यम् अन्याषां क्षमतानां च वर्णनं करोति। सः कथयति। (इस श्लोक में कवि वाल्मीकि गृध्रराज जटायु की शारीरिक विशेषताओं तथा अन्य क्षमताओं का वर्णन करता है। वह कहता है-)

व्याख्याः – पक्षिराजोऽयम् शोभासम्पन्नः, गिरि-शिखर इव कान्तिमय, सुतीक्ष्णचञ्चुः च वृक्षे विराजमानः अस्ति। (शोभायुक्त यह पक्षिराज (जटायु) पर्वत की चोटी की शोभा की तरह तीखी चोंच वाला वृक्ष पर विराज रहा है।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) पर्वतशृङ्गाभः कः उक्तः? (पर्वत शिखर के समान किसे कहा गया है?).
(ख) जटायुः कीदृशीं वाणीम् व्याजहार? (जटायु कैसी वाणी बोला?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) खगोत्तमः जटायुः कीदृशः आसीत् ? (खगराज जटायु कैसा था?)
(ख) जटायुः कुत्र स्थितः कीदृशी वाचामवदत् ? (जटायु ने कहाँ बैठे हुए कैसी वाणी बोली?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘अशुभाम्’ इति पदस्य विलोमपदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘अशुभाम्’ पद का विलोम पद श्लोक से लिखिए।)
(ख) ‘शुभां गिरम्’ इत्यनयोः किं विशेष्यपदम्?
(‘शुभां गिरम्’ इन शब्दों में विशेषण पद क्या है?)
उत्तराणि-
(1) (क) जटायुः।
(ख) शुभाम् (अच्छी)।

(2) (क) खगोत्तमः जटायुः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः आसीत्। (खगोत्तम जटायु पर्वतशिखर के समान व तीक्ष्ण चोंच वाला था।)
(ख) जटायुः वनस्पतौ स्थितः आसीत् । (जटायु पेड़ पर बैठा था।)

(3) (क) शुभाम् (शुभ)।
(ख) गिरम् (वाणी)।

5. निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात् ।।
न तत्समाचारेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत् ॥

अन्वय – परदार अभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तय (यतः) धीरः तत् (कर्म) न समाचरेत् यत् (कर्मणा) परः अस्य विगर्हयेत्।

शब्दार्था: – परदार = परस्त्री (परायी स्त्री के), अभिमर्शनात् = स्पर्शात् (स्पर्श से), नीचाम् = निम्नां (नीच बनी), मतिम् = बुद्धिम् (बुद्धि को), निवर्तय = अपसारय (दूर कर दो), (यतः = क्योंकि), धीरः = धैर्ययुक्तः (बुद्धिमान्, धैर्यशील व्यक्ति), तत् = वह कर्म/उस कर्म का), न समाचरेत् = नाचरेत् (आचरण न करे) , यत् = येन (जिस कर्म से), परः = अन्यः (दूसरे लोग), अस्य = एतस्य (इसकी), विगर्हयेत् = निन्द्यात् (निन्दा करें)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में गृध्रराज जटायु, रावण को नैतिक उपदेश देता है।

अनुवाद – पराई स्त्री के स्पर्श से नीच बनी बुद्धि को दूर कर (अर्थात् मन में उत्पन्न नीच विचारों को त्याग दो) (क्योंकि) बुद्धिमान् व्यक्ति उस कर्म का आचरण न करे, जिस कर्म से (लोग) इसकी निन्दा करें।

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संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – आलोच्योऽयम् श्लोकोऽस्माकम् इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकविः वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (आलोच्य यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ मूलतः आदिकवि वाल्मीकि द्वारा विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् गृध्रराजः जटायुः राक्षसराज रावणं नीतिं ब्रूते। (इस श्लोक में गृध्रराज जटायु राक्षसों के राजा रावण को नीति का उपदेश देता है।)

व्याख्या – रे मूर्ख! त्वं परदारं प्रपीडनात् विरम। तस्याः स्पर्शात् स्वकीयाम् अधर्मा बुद्धि निवर्तय अर्थात् त्वं मनसि : आगतान् निम्न विचारान् त्यज। यतो बुद्धिमन्तः जना तत् कर्म न आचरन्ति यस्मात् जनैः निन्दितो भवेत्। (अरे मूर्ख! तू पराई स्त्री को पीड़ित करने से रुक जा। उसको स्पर्श करने से अपनी नीच बुद्धि को लौटा लो अर्थात् तुम अपने मन में आये निम्न विचारों को त्याग दो। क्योंकि बुद्धिमान लोग उस कार्य का आचरण नहीं करते हैं, जो लोगों द्वारा निन्दित हो।

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) रावणस्य मतिः कीदृशी आसीत् ? (रावण की मति कैसी थी?)
(ख) निन्दनीयम् आचरणं केन न आचरणीयम् ? (निन्दनीय व्यवहार किसे नहीं करना चाहिए?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) जटायुः रावणं किम् अवदत् ? (जटायु ने रावण से क्या कहा?)
(ख) धीरः किं न आचरेत् ? (धीर पुरुष को क्या आचरण नहीं करना चाहिए?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-).
(क) ‘निन्देत्’ इति क्रियापदस्य समानार्थी पदं श्लोक चित्वा लिखत।
(‘निन्देत्’ क्रियापद का पर्याय श्लोक से लिखिए।)
(ख) ‘मतिं नीचां’ इत्यनयोः विशेषण पदं चिनुत।
(‘मति नीचां’ इनमें से विशेषण पद चुनिये।)
उत्तराणि :
(1) (क) नीचा (निम्न) ।
(ख) धीरेण (धीर पुरुष द्वारा)।

(2) (क) जटायुः अवदत्-“परदाराभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तय।”
(जटायु ने कहा-“पराई स्त्री को पीड़ित करने से हुई नीच मति को त्याग दो।”)
(ख) धीरः तत् न आचरेत् यत् परः विगहेंयेत्।
(धीर को वह आचरण नहीं करना चाहिए जिसकी दूसरा निन्दा करे।)

(3) (क) ‘विगर्हयेत्’ (निन्दा करें)।
(ख) नीचाम् इति विशेषण पदम्।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

6. वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।
न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि ॥

अन्वय-अहं वृद्धः, त्वं युवा, सरथः, कवची, शरी (च असि) (तथापि त्वं) मे वैदेहीम् आदाय कुशली न गमिष्यसि।

शब्दार्थाः – अहम् = मैं, वृद्धः = जरठः (बूढ़ा हो गया हूँ), त्वं च = भवान् च (और तुम), युवा = युवकः (जवान हो), धन्वी = धनुर्धारी (धनुर्धारी), सरथः = रथेन युक्तः (रथयुक्त), कवची = कवचधारी (कवच धारण करने वाले), शरी = बाणधारी, (बाण धारण करने वाले हो), तथापि = पुनरपि (फिर भी), त्वम् = भवान् (तुम), मे = मम (मेरे रहते/मेरे होते हुए), वैदेहीम् = विदेहनन्दिनी (सीता को), आदाय = नीत्वा (लेकर), कुशली = सकुशलं (कुशलपूर्वक), न गमिष्यसि = न यास्यसि (नहीं जा सकोगे)। हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – खगराज जटायु अपने को निहत्था तथा रावण को सशस्त्र एवं सरथ बताते हुए चुनौती देता है कि मेरे होते हुए तू सीता को कुशलतापूर्वक नहीं ले जा सकेगा।

अनुवाद – (अरे रावण!) मैं बूढ़ा हो गया हूँ और तू युवक है, (मैं निहत्था हूँ) और तू धनुषवाला, रथवाला, कवच वाला और बाणों वाला है। (फिर भी तू) मेरे होते हुए सीता को लेकर कुशलतापूर्वक नहीं जा सकेगा। संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (प्रस्तुत श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ आदि कवि वाल्मीकि-विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है। __ प्रसंग:-खगराजो जटायुः आत्मानं शस्त्रविहीनं रावणं च स शायकं, रथयुक्तं कवचावृतं सशरं च मनुते तथापि रावणम् आह्वयति यत् यावत् अहम् कुशली तावत् त्वं जनकनन्दिनी सीता अपहत्य न गन्तु शक्ष्यामि। (पक्षिराज जटायु अपने को शस्त्रहीन तथा रावण को धनुष-बाण युक्त, रथ युक्त, कवच से ढका हुआ तथा बाण युक्त मानता है फिर भी रावण को ललकारता है कि जब तक मैं हूँ तब तक तुम जनक पुत्री सीता का अपहरण कुशलता से नहीं कर सकोगे।)

व्याख्या: – रे रावण! अहं जीर्ण जातोऽस्मि त्वम् च यौवनारूढः। अहम् शस्त्रहीनोऽस्मि त्वं च धनुर्धारी, रथेन युक्तः, कवचधारी (वक्त्रयुक्त) बाणधारी च असि तथापि मपि जीविते त्वं जानकीम् अपहत्य न गन्तु राक्ष्यामि। (अरे रावण! मैं वृद्ध हो गया हूँ और तुम जवानी पर आरूढ़ हो। मैं शस्त्रहीन हूँ और तुम धनुष धारण करने वाले, रथ से युक्त, कवच धारण किए हुए हो, फिर भी मेरे जीते-जी तुम जानकी को अपहरण कर नहीं ले जा सकते।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कः आत्मानं वृद्धः इति कथयति? (स्वयं को वृद्ध कौन कहता है?)
(ख) धन्वी, सरथः, कवची शरी च कः आसीत् ? (धनुष, रथ, कवच और बाण वाला कौन था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) जटायुना रावणः कीदृशः वर्णितः? (जटायु द्वारा रावण का कैसा वर्णन किया गया है?)
(ख) जटायुः रावणं किम् उक्तवान्? (जटायु ने रावण से क्या कहा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) श्लोके सीतायै किं पदं प्रयुक्तम्? (श्लोक में सीता के लिए किस पद का प्रयोग किया गया है?)
(ख) ‘दत्वा’ इति पदस्य विलोमपदं श्लोकात् चित्वा लिखत। .
(‘दत्वा’ पद का विलोमार्थी पद श्लोक से लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) जटायुः।
(ख) रावणः।

(2) (क) रावणः धन्वी सरथः कवची शरी च जटायुना वर्णितः। (रावण धनुष, रथ, कवच और बाण से युक्त जटायु द्वारा वर्णित है।)
(ख) यद्यपि अहं वृद्धः त्वं च धन्वी सरथः कवची शरीति तथापि त्वं जानकी नीत्वा सकुशलं न गन्तु शक्नोषि। (यद्यपि मैं वृद्ध हूँ, तुम धनुष, कवच, वाण वाले हो फिर भी सीता को सरलता (कुशलता) से नहीं ले जा सकते।)

(3) (क) वैदेही (सीता)।
(ख) आदाय (लेकर)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

7. तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः।
चकार बहुधा गात्रे व्रणान्पतगसत्तमः॥

अन्वय-महाबलः पतगसत्तमः तीक्ष्णनखाभ्यां चरणाभ्यां तु तस्य गात्रे बहुधा व्रणान् चकार।

शब्दार्थाः – महाबलः = शक्तिपुञ्जः (महान् बलवान्), पतगसत्तमः = पक्षिशिरोमणिः (पक्षियों में शिरोमणि जटायु ने), तीक्ष्ण = तीखे, नखाभ्याम् = नखयुक्ताभ्याम् (नाखूनों वाले), चरणाभ्याम् = प्रपदाभ्याम् (पैरों से/पंजों से), तु = तो , तस्य = अमुष्य (उसके), गाने = शरीरे (शरीर पर), बहुधा = विविधान् (अनेक), व्रणान् = क्षतान्/स्फोटान् (घाव), चकार = अकरोत् (कर दिए)। . हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।
प्रसंग-कवि महर्षि वाल्मीकि ने इस श्लोक में महाबली जटायु की वीरता का चित्रण किया है।

अनुवाद – उस महान् बलवान् पक्षिशिरोमणि जटायु ने अपने तीखे नाखूनों वाले पंजों से तो उस (रावण) के शरीर पर अनेक घाव कर दिये। संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (आलोच्य श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के. ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ वाल्मीकि-विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

प्रसंग: – महाकविः वाल्मीकिः अस्मिन् श्लोके पक्षिराज जटायोः वीरतां साहसं च चित्रयति। (महाकवि वाल्मीकि इस श्लोक में पक्षिराज जटायु की वीरता और साहस का चित्रण करते हैं।)

व्याख्या: – असौ महान् शक्तिपुञ्जः पक्षिशिरोमणि: तीक्षण नखयुक्ताभ्याम् पादाभ्यम् तु तस्य रावणस्य शरीरे विविधान् क्षतान् अकरोत्। (उस महान् शक्तिशाली पक्षियों के शिरोमणि ने तीखे नाखूनों से युक्त पंजों से उस रावण के शरीर में अनेक घाव कर दिये।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) रावणस्य गात्रे कैः व्रणान् चकार जटायु:?
(रावण के शरीर में जटायु ने किनसे घाव कर दिए?)
(ख) जटायोः किमपि एक विशेषण अस्मात् श्लोकात् लिखत्।
(जटायु का कोई एक विशेषण इस श्लोक से लिखिए।)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-) …
(क) जटायोः चरणौ कीदृशौ आस्ताम्? (जटायु के पैर कैसे थे?)
(ख) जटायुः रावण कथं क्षतमकरोत?
(जटायु ने रावण को कैसे क्षत कर दिया?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘महाबलः’ इत्यस्य विशेषणस्य विशेष्यपदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘महाबलः’ इस विशेषण का विशेष्य पद श्लोक से लिखिए।)
(ख) ‘तस्य’ इति सर्वनामपदं कस्य संज्ञापदस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(‘तस्य’ सर्वनाम किस संज्ञा पद के स्थान पर प्रयोग किया गया है?)
उत्तराणि :
(1) (क) तीक्ष्ण नखैः (तीखे नाखूनों से)।
(ख) महाबलः (महा बलवान)।

(2) (क) जटायो: चरणौ तीक्ष्णनखौ आस्ताम्। (जटायु के पैर तीखे नाखूनों वाले थे।)
(ख) जटायुः रावणं तीक्ष्ण नखाभ्यां चरणाभ्यां बहुधा व्रणान् चकार। (जटायु ने रावण को तीखे नाखूनों वाले पैरों (पंजों) से अनेक घाव कर दिए।)

(3) (क) जटायुः।
(ख) रावणस्य (रावण का)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

8. तोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम् ।
चरणाभ्यां महातेजा बभजास्य महद्धनुः ॥

अन्वय-ततः महातेजा (जटायुः) अस्य (रावणस्य) मुक्तामणिविभूषितं सशरं चापं महद् धनुः चरणाभ्यां बभञ्ज।

शब्दार्थाः – ततः = तदा (तब), महातेजा = महान् तेजस्वी (अत्यधिक तेज वाले), जटायुः = जटायु ने, अस्य = एतस्य (इस (रावण) के), मुक्तामणिविभूषितम् = मुक्ताभिः मणिभिः सज्जितम् (मोतियों और रत्नों से विभूषित/सुशोभित/सजे. हुए), सशरम् = बाणधारिणं (बाण सहित), महद् धनुः = विशालचापम् (महान् धनुष को) बभञ्ज = भग्नं कृतवान् (तोड़ दिया)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – कवि महर्षि वाल्मीकि इस श्लोक में महाबली जटायु की वीरता का चित्रण करते हैं। – अनुवाद-तब महान् तेजस्वी (पक्षिशिरोमणि जटायु) ने इस रावण के मोतियों और रत्नों से विभूषित बाणों सहित महान धनुष को तोड़ दिया।

संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (प्रस्तुत श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ महाकवि वाल्मीकि-रचित रामायण के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

प्रसंग: – महर्षि वाल्मीकिः अस्मिन् श्लोके रावण-जटायोः युद्धं दर्शयन् महावीरस्य गृध्रराजस्य जटायोः वीरतां सामर्थ्य च . वर्णयति। (महर्षि वाल्मीकि इस श्लोक में रावण और जटायु का युद्ध दिखाते हुए महान वीर गृध्रराज जटायु की वीरता और सामर्थ्य का वर्णन करते हैं।)

व्याख्या: – तदा महान् पक्षिशिरोमणिः जटायुः एतस्य रावणस्य मुक्ताभि: मणिभिः विभूषितं शोभितं वा शरैः संयुक्त महत् शरासनं बाणधारिणं वा भग्नं कृतवान्। (तब महान् तथा पक्षियों में सर्वोपरि जटायु ने इस रावण के मुक्ता-मणियों से विरचित अर्थात् शोभित, बाणों से युक्त महान् अथवा बाणों को धारण किए धनुष को तोड़ दिया।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

अवबोधन कार्यम

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) रावणस्य चापः कीदृशः आसीत्? (रावण का धनुष कैसा था?)
(ख) जटायुः चापं कैः अभनक्? (जटायु ने चाप को किससे तोड़ा?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) रावणस्य चापं कीदशं वर्णितम? (रावण का चाप कैसा वर्णित है?)
(ख) महातेजा जटायुना रावणस्य महत् धनुः कथं बभञ्ज?
(महान तेजस्वी जटायु ने रावण के धनुष को कैसे तोड़ दिया?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘महद्धनुः’ इत्यस्मात् पदात् विशेषणपदं पृथक् कृत्वा लिखत।
(महद्धनुः’ इस पद से विशेषण पद अलग कर लिखिए।)
(ख) ‘ततोऽस्य’ अत्र अस्य इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(‘ततोऽस्य’ यहाँ ‘अस्य’ सर्वनाम पद किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) मुक्तामणिविभूषितम् (मोती-मणियों से विभूषित था)।
(ख) चरणाभ्याम् (पंजों से)।

(2) (क) रावणस्य चापं सशरं मुक्तामणिविभूषितम् आसीत्। (रावण का धनुष बाण सहित मोती आदि मणियों से सुसज्जित था।)
(ख) महातेजा जटायुना रावणस्य महद्धनुः चरणाभ्यां बभञ्ज। (महान् तेजवाले जटायु ने रावण का महान् धनुष पंजों से तोड़ दिया।)

(3) (क) महत् (महान) ।
(ख) रावणस्य (रावण का)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

9. स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
तलेनाभिजधानाशु जटायुं क्रोधमूर्छितः ॥

अन्वय-सः भग्नधन्वा हताश्वः हतसारथिः विरथः क्रोधामूच्छितः (रावण:) आशु तलेन जटायुम् अभिजघान।

शब्दार्थाः – सः = असौ (वह), रावणः = लङ्कापतिः रावणः (लंकापति रावण), भग्नधन्वा = खण्डितधनुः (जिसका धनुष टूट गया है/टूटे हुए धनुष वाला), विरथः = रथविहीनः (रथरहित), हताश्वः = हतहयः (मरे हुए घोड़ों वाला/जिसके घोड़े मर चुके हैं), हतसारथिः = हतरथचालकः (मरे हुए सारथी वाला/जिसका सारथी मर चुका है), कोपाविष्ट (क्रुद्ध हुआ), आशु = शीघ्रम् (तत्काल), जटायुम् = खगेन्द्रम् (पक्षीराज गृद्ध की), अभिजघान = आक्रान्तवान् (हमला किया), तलेन = चपेताम् (थप्पड़)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसङ्ग – प्रस्तुत श्लोक में आदिकवि वाल्मीकि ने रावण द्वारा जटायु पर आक्रमण का वर्णन है।

अनुवाद – टूटे हुए धनुष वाला, रथहीन, जिसके घोड़े मर चुके हैं तथा जिसका सारथी मर चुका है, (ऐसा) उस रावण पर क्रोधित पक्षिराज जटायु ने थप्पड़ देकर हमला किया।

संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात उदधतः। पाठोऽयं मलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ महर्षि वाल्मीकि विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

प्रसंग: – अस्मिन् श्लोके कवि वाल्मीकिना जटायोः उपरि रावणस्य आक्रमण: वर्णितः। (इस श्लोक में कवि वाल्मीकि ने जटायु पर रावण के आक्रमण का वर्णन किया है।)

व्याख्या: – असौ लङ्कापतिः रावणः खण्डितधनुः, हतहयः, रथविहीनः हतरथचालकः, क्रुद्धः सन् शीघ्रमेव तलाघातेन पक्षिराज जटायुम् आक्रान्तवान्। (लंकापति रावण जिसका धनुष टूट गया था, घोड़े मर गये थे, रथ के बिना हो गया था, जिसके य का चालक मर गया थे, ने क्रुद्ध होकर शीघ्र ही जटायु पर थप्पड़ से आक्रमण कर दिया।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क). ‘भग्नधन्वा इति कस्य विशेषणम् ? (‘भग्नधन्वा’ किसका विशेषण है?)
(ख) क्रोधमूञ्छितः कः आसीत् ? (क्रोध से मूच्छित कौन था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) रावणः कीदृशः अभवत् ? (रावण कैसा हो गया?)
(ख) रावण जटायुं कथं जघान? (रावण ने जटायु को कैसे मारा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम उत्तरत-(निर्देशानसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘शीघ्रम् तत्कालं वा’ इति पदस्य समानार्थी पदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘शीघ्रं तत्कालं वा’ पद का समानार्थी पद श्लोक से चुनकर लिखिए)
(ख) ‘स भग्नधन्वा’ अत्र ‘सः’ इति सर्वनामपदं कस्य संज्ञास्थाने प्रयुक्तम् ?
(‘स भग्नधन्वा’ यहाँ ‘सः’ सर्वनाम पद किस संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) रावणस्य (रावण का)।
(ख) रावणः (रावण)।

(2) (क) रावणः भग्नधन्वा, विरथः हताश्वो हतसारथिः च अभवत्।
(रावण टूटे धनुष वाला, बिना रथ, अश्वरहित, हत सारथी हो गया ।)
(ख) क्रोधमूछितः रावण जटायुं तलेनाभिजघान् (क्रोधित रावण ने थप्पड़ से जटायु पर हमला किया।)

(3) (क) आशु (तत्काल)।
(ख) रावणः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

10. जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः।
वामबाहून्दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः ॥

अन्वय-तदा तम् (वारम्) अतिक्रम्य अरिन्दमः खगाधिपः तुण्डेन अस्य वाम दश बाहून् व्यपाहरत्।

शब्दार्थ – तदा = तदानीम् (तब), तम् वारम् = तं तलाघातम् (उस थप्पड़ के वार को), अतिक्रम्य = उल्लङ्घ्य (बचाव करके),अरिन्दमः = शत्रुदमनः/शत्रुनाशकः (शत्रुओं का विनाश करने वाला),खगाधिपः = पक्षिराजः (खगराज/पक्षियों = मुखेन/चञ्चुना (चोच से), अस्य = एतस्य रावणस्य (इस रावण की), वाम = वामभागे स्थितान् (बायी), दश बाहून् = दशभुजाः (दसों भुजाओं को), व्यपाहरत् = व्यनश्यत् (उखाड़ दिया/नष्ट कर दिया)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसङ्ग – प्रस्तुत श्लोक में रावण से युद्ध के समय जटायु की वीरता का वर्णन किया गया है।

अनुवाद – तब उस (थप्पड़ के वार) को बचा करके शत्रुओं का विनाश करने वाले पक्षियों के राजा जटायु ने अपनी चोंच से इस (रावण की) बायीं ओर की दसों भुजाओं को उखाड़ दिया।

संस्कत व्याख्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकविः वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ वाल्मीकि रचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकिलत है।)

प्रसंग: – अत्र कवि रावणेन सह प्रवृत्ते समरे जटायोः वीरतायाः वर्णनमस्ति। (यहाँ कवि रावण के साथ होने वाले युद्ध में जटायु की वीरता का वर्णन करता है।)

व्याख्या – तदा असौ जटायुः तम् चपेटाम् उललङ्हय शत्रुनाशकः पक्षिराज: जटायुः स्वकीयेन तीक्ष्णेन चञ्चुना एतस्य रावणस्य वामभागे स्थितान् दशभुजाः व्यनश्यत्। (तब वह जटायु उस थप्पड़ के वार को बचाकर, शत्रुविनाशक खगराज जटायु ने अपनी तेज चोंच से इस रावण के वाम भाग में स्थित दस भुजाओं को विनष्ट कर दिया अर्थात् काट दिया।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) जटायु केन रावणम् आक्रान्तवत्? (जटायु ने किससे रावण पर आक्रमण किया?)
(ख) जटायुः रावणस्य कान् अदशत्? (जटायु ने रावण के किनको डसा?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) जटायुः रावणं कथम् आक्रान्तवत्? (जटायु ने रावण को कैसे आक्रमण किया?)
(ख) जटायुः रावणस्य कान् व्यपाहरत्? (जटायु ने रावण के किनको नष्ट कर दिया?)

प्रश्न 3. यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-) ।
(क) ‘चञ्चुना’ इति पदस्य स्थाने श्लोके किं समानार्थी पदं प्रयुक्तम्?
(‘चञ्चुना’ पद के स्थान पर श्लोक में क्या समानार्थी पद प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘बामवाहून्दश’ अत्र विशेषणपदं चिनुत। (‘बामबाहून्दश’ यहाँ विशेषण पद को चुनिये।)
उत्तराणि :
(1) (क) तुण्डेन (चोंच से)।
(ख) वामबाहून् (बायीं भुजाओं को)।

(2) (क) खगाधिपः जटायुः रावणम् तुण्डेन आक्रम्य वामवाहून् अदशत्। (खगेश जटायु ने रावण पर चोंच से आक्रमण कर बायीं भुजायें काट दी।)
(ख) जटायुः रावणस्य दशवामबाहून् तुण्डेन अदशत्। (जटायु ने रावण की दश भुजाओं को चोंच से काट दिया।)

(3) (क) तुण्डेन (चोंच से)।
(ख) वाम विशेषणपदम्।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

JAC Class 10 Hindi सूरदास के पद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर :
गोपियों के द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में व्यंग्य का भाव छिपा हुआ है। उद्धव मथुरा में श्रीकृष्ण के साथ ही रहते थे, पर फिर भी उनके हृदय में पूरी तरह से प्रेमहीनता थी। वे प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त थे। उनका मन किसी के प्रेम में डूबता नहीं था। श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी वे प्रेमभाव से वंचित थे।

प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर :
उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल की मटकी से की गई है। कमल का पत्ता पानी में डूबा रहता है, पर उस पर पानी की एक बूंद भी दाग नहीं लगा पाती। उस पर पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती। इसी तरह तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर एक बूंद भी नहीं ठहरती। उद्धव भी पूरी तरह से अनासक्त था। वह श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव को अनेक उदाहरणों के माध्यम से उलाहने दिए हैं। उन्होंने उसे बडभागी’ कहकर प्रेम से रहित माना है, जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम का अर्थ नहीं समझ पाया। उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग के संदेशों के कारण गोपियाँ वियोग में जलने लगी थीं। विरह के सागर में डूबती गोपियों को पहले आशा थी कि वे कभी-न-कभी तो श्रीकृष्ण से मिल जाएँगी, पर उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग-साधना के संदेश के बाद तो प्राण त्यागना ही शेष रह गया था।

गोपियों के अनुसार उद्धव का योग कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ था। वह उन्हें योगरूपी बीमारी देने वाला था। गोपियों ने जिन उदाहरणों के माध्यम से वाक्चातुरी का परिचय दिया है और उद्धव को उलाहने दिए हैं, वह उनके प्रेम का आंदोलन है। उनसे गोपियों के पक्ष की श्रेष्ठता और उद्धव के निर्गुण की हीनता का प्रतिपादन हुआ है।

प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर :
गोपियों को श्रीकृष्ण के वियोग की अग्नि जला रही थी। वे हर समय उन्हें याद करती थीं; तड़पती थीं, पर फिर भी उनके मन में हें उम्मीद थी कि श्रीकृष्ण जब मथुरा से वापस ब्रज-क्षेत्र में आएंगे, तब उन्हें उनका खोया हुआ प्रेम वापस मिल उनके सामने प्रकट कर सकेंगी। पर जब श्रीकृष्ण की जगह उद्धव योग-साधना का संदेश लेकर गोपियों के पास आया तो गोपियों की सहनशक्ति जवाब दे गई।

उन्होंने श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे जाने वाले ऐसे योग संदेश की कभी कल्पना नहीं की थी। इससे उनका विश्वास टूट गया था। विरह-अग्नि में जलता हुआ उनका हृदय योग के वचनों से दहक उठा। योग के संदेश ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया था। इसलिए उन्होंने उद्धव और श्रीकृष्ण को मनचाही जली-कटी सुनाई थी।

प्रश्न 5.
‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर :
श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम के कारण गोपियों ने अपना सुख-चैन खो दिया था। उन्होंने घर-बाहर का विरोध करते हुए अपनी मान-मर्यादा की परवाह भी नहीं की, जिस कारण उन्हें सबसे भला-बुरा भी सुनना पड़ा। पर अब श्रीकृष्ण ने ही उन्हें उद्धव के माध्यम से योग-साधना का संदेश भिजवाया, तब उन्हें ऐसा लगा कि कृष्ण के द्वारा उन्हें त्याग देने से उनकी पूरी मर्यादा नष्ट हो गई है। उनकी प्रतिष्ठा पूरी तरह से मिट ही गई है।

प्रश्न 6.
कृष्णा के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर :
गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम था। उन्हें सिवाय श्रीकृष्ण के कुछ और सूझता ही नहीं था। वे उनकी रूप माधुरी में इस प्रकार उलझी हुई थी, जिस प्रकार चींटी गुड़ पर आसक्त होती है। जब एक बार चींटी गुड़ से चिपट जाती है, तो फिर वहाँ से कभी छूट नहीं पाती। वे उसके लगाव में वहीं अपना जीवन त्याग देती हैं। गोपियों को ऐसा प्रतीत होता था कि उनका मन श्रीकृष्ण के साथ ही मथुरा चला गया है। वे हारिल पक्षी के तिनके के समान मन, वचन और कर्म से उनसे जुड़ी हुई थीं। उनकी प्रेम की अनन्यता ऐसी थी कि रात-दिन, सोते-जागते वे उन्हें ही याद करती रहती थीं।

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प्रश्न 7.
गोपियों ने उदधव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने की बात कही है, जिनके मन में चकरी हो; जो अस्थिर बुद्धि हो; जिनका मन चंचल हो। योग की शिक्षा उन्हें नहीं दी जानी चाहिए, जिनके मन प्रेम-भाव के कारण स्थिरता पा चुके हैं। ऐसे लोगों के लिए योग की शिक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर :
कोमल हृदय वाली गोपियाँ केवल श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानती हैं। उनको कृष्ण की भक्ति ही स्वीकार्य है। योग-साधना से उनका कोई संबंध नहीं है। इसलिए वे मानती हैं कि जो युवतियों के लिए योग का संदेश लेकर घूमते रहते है, वे बड़े अज्ञानी हैं। संभव है कि योग महासुख का भंडार हो, पर गोपियों के लिए वह बीमारी से अधिक कुछ नहीं है।

योग के संदेश विरह में जलने वालों को और अधिक जला देते हैं। योग-साधना मानसिक रोग के समान है, जिसे गोपियों ने न कभी पहले सुना था और न देखा था। कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ योग गोपियों के लिए नहीं बल्कि चंचल स्वभाव वालों के लिए उपयुक्त है। गोपियों को योग संदेश भिजवाना किसी भी अवस्था में बुद्धिमत्ता का कार्य नहीं है। प्रेम की रीति को छोड़कर योग-साधना का मार्ग अपनाना मूर्खता है।

प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर :
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म होना चाहिए कि वह किसी भी दशा में प्रजा को न सताए। वह प्रजा के सुख-चैन का ध्यान रखे।

प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण जब ब्रज-क्षेत्र में रहते थे, तब गोपियों को बहुत अधिक प्रेम करते थे। लेकिन गोपियों को प्रतीत होता है कि मथुरा जाकर राजा बन जाने के पश्चात उनका व्यवहार बदल गया है। उन्होंने उद्धव के माध्यम से योग-संदेश भिजवाकर अन्याय और अत्याचारपूर्ण कार्य किया है। वे अब उनको सुखी नहीं अपितु दुखी देखना चाहते हैं। वे राजनीति का पाठ पढ़ चुके हैं। वे अब चालें चलने लगे हैं। इसलिए गोपियाँ चाहती हैं कि वे उन्हें उनके हृदय वापस कर दें, जिन्हें मथुरा जाते समय वे चुराकर अपने साथ ले गए थे।

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प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
सूरदास के भ्रमरगीत में गोपियाँ श्रीकृष्ण की याद में केवल रोती-तड़पती ही नहीं बल्कि उद्धव को उसका अनुभव करवाने के लिए मुस्कुराती भी हैं। वे उद्धव और कृष्ण को कोसती हैं और उन पर व्यंग्य भी करती हैं। उद्धव को अपने निर्गुण ज्ञान पर बड़ा अभिमान था, पर गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर उसे परास्त कर दिया। वे तों, उलाहनों और व्यंग्यपूर्ण उक्तियों से कभी अपने हृदय की वेदना प्रकट करती हैं, कभी रोने लगती हैं। उनका वाक्चातुर्य अनूठा है, जिसमें निम्नलिखित विशेषताएँ प्रमुख हैं –

1. निर्भीकता – गोपियाँ अपनी बात कहने में पूर्ण रूप से निडर और निर्भीक हैं। किसी भी बात को कहने में वे झिझकती नहीं हैं। योग-साधना को ‘कड़वी ककड़ी’ और ‘व्याधि’ कहना उनकी निर्भीकता का परिचायक है –

सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।
सु तो व्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।

2. व्यंग्यात्मकता-वाणी में छिपा हुआ गोपियों का व्यंग्य बहुत प्रभावशाली है। उद्धव से मज़ाक करते हुए वे उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं, क्योंकि श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी वह उनके प्रेम से दूर ही रहा –

प्रीति-नदी मैं पाउँ बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।

व्यंग्य का सहारा लेकर वे श्रीकृष्ण को राजनीति शास्त्र का ज्ञाता कहती हैं –

इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।’
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।

3. स्पष्टता – गोपियों को अपनी बात साफ़-साफ़ शब्दों में कहनी आती है। यदि वे बात को घुमा-फिरा कर कहना जानती हैं, तो उन्हें साफ़-स्पष्ट रूप में कहना भी आता है –

अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।

वे साफ़ स्पष्ट शब्दों में स्वीकार करती हैं कि वे सोते-जागते केवल श्रीकृष्ण का नाम रटती रहती हैं –

जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।

पर वे क्या करें? वे अपने मुँह से अपने प्रेम का वर्णन नहीं करना चाहतीं। उनकी बात उनके हृदय में ही अनकही रह गई है।

मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।

4. भावुकता और सहृदयता-गोपियाँ भावुकता और सहृदयता से परिपूर्ण हैं, जो उनकी बातों से सहज ही प्रकट हो जाती हैं। जब उनकी भावुकता बढ़ जाती है, तब वे अपने हृदय की वेदना पर नियंत्रण नहीं रख सकती। उन्हें जिस पर सबसे अधिक विश्वास था; जिसके कारण उन्होंने सामाजिक और पारिवारिक मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की, जब वही उन्हें दुख देने के लिए तैयार था तब बेचारी गोपियाँ क्या कर सकती थीं –

अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही॥

सहृदयता के कारण ही वे श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार मानती हैं। वे स्वयं को मन-वचन-कर्म से श्रीकृष्ण का ही मानती हैं –

हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

वास्तव में गोपियाँ सहृदय और भावुक थीं, लेकिन समय और परिस्थितियों ने उन्हें चतुर और वाग्विदग्ध बना दिया। वाक्चातुर्य के आधार पर ही उन्होंने ज्ञानवान उद्धव को परास्त कर दिया था।

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प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
सूरदास के द्वारा रचित ‘भ्रमरगीत’ हिंदी-साहित्य का भावपूर्ण उलाहनों को प्रकट करने वाला काव्य है। यह काव्य मानव हृदय की सरस और मार्मिक अभिव्यक्ति है। इसमें प्रेम का सच्चा, भव्य और सात्विक पक्ष प्रस्तुत हुआ है। कवि ने कृष्ण और गोपियों के हृदय की गहराइयों को अनेक ढंगों से परखा है। संकलित पदों के आधार पर भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. गोपियों का एकनिष्ठ प्रेम – गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ गहरा प्रेम था। वे उन्हें पलभर भी भुला नहीं पातीं। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण ही उनके जीवन के आधार हैं, जिनके बिना वे पलभर जीवित नहीं रह सकतीं। वे उनके लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान थे, जो उन्हें जीने के लिए मानसिक सहारा देते थे –

हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

गोपियाँ सोते-जागते श्रीकृष्ण की ओर अपना ध्यान लगाए रहती थीं। उन्हें लगता था कि उनका हृदय उनके पास था ही नहीं। उसे श्रीकृष्ण चुराकर ले गए थे। इसलिए वे अपने मन को योग की तरफ़ नहीं लगा सकती थीं।।

2. वियोग श्रृंगार – गोपियाँ हर समय श्रीकृष्ण के वियोग में तड़पती रहती थीं। वे उनकी सुंदर छवि को अपने मन से दूर नहीं कर पाती थीं। श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे, पर गोपियाँ रात-दिन उन्हीं की यादों में डूबकर उन्हें रटती रहती थीं –

जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।

वे अपने हृदय की वियोग पीड़ा को अपने मन में छिपाकर रखना चाहती थीं। वे उसे दूसरों के सामने कहना भी नहीं चाहती थीं। उन्हें पूरा विश्वास था कि वे कभी-न-कभी अवश्य वापस आएँगे। श्रीकृष्ण के प्रेम के कारण उन्होंने अपने जीवन में मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की थी।

3. व्यंग्यात्मकता – गोपियाँ भले ही श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, पर उन्हें सदा यही लगता था कि श्रीकृष्ण ने उनसे चालाकी की है; उन्हें धोखा दिया है। वे मथुरा में रहकर उनसे चालाकियाँ कर रहे हैं; राजनीति के खेल से उन्हें मूर्ख बना रहे हैं। इसलिए व्यंग्य करते हुए वे कहती हैं –

हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।

उद्धव पर व्यंग्य करते हुए वे उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं, जो प्रेम के स्वरूप श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम से दूर रहा। उसने कभी प्रेम की नदी में अपने पैर तक डुबोने का प्रयत्न नहीं किया। वे श्रीकृष्ण को बड़ी बुद्धि वाला मानती हैं, जिन्होंने उन्हें योग का पाठ भिजवाया था।

4. स्पष्टवादिता – गोपियाँ बीच-बीच में अपनी स्पष्टवादिता से प्रभावित करती हैं। वे योग-साधना को ऐसी ‘व्याधि’ कहती हैं, जिसके बारे में कभी देखा या सुना न गया हो। उनके अनुसार योग केवल उनके लिए ही उपयोगी हो सकता था, जिनके मन में चकरी हो; जो अस्थिर और चंचल हों।

5. भावुकता – गोपियाँ स्वभाव से ही भावुक और सरल हृदय वाली थीं। उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रेम किया था और उसी प्रेम में डूबी रहना चाहती थीं। वे प्रेम में उसी प्रकार से मर-मिटना चाहती थीं, जिस प्रकार से चींटी गुड़ से चिपट जाती है और उससे अलग न होकर अपना जीवन गँवा देना चाहती है। भावुक होने के कारण वे योग के संदेश को सुनकर दुखी हो जाती हैं। अधिक भावुकता ही उनकी पीड़ा का बड़ा कारण बनती है।

6. सहज ज्ञान – गोपियाँ भले ही गाँव में रहती थीं, पर उन्हें अपने वातावरण और समाज का पूरा ज्ञान था। वे जानती थीं कि राजा के अपनी प्रजा के प्रति क्या कर्तव्य है और उसे क्या करना चाहिए

ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राजधरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए॥

7. संगीतात्मकता-सूरदास का भ्रमरगीत संगीतमय है। कवि ने विभिन्न राग-रागिनियों को ध्यान में रखकर भ्रमरगीत की रचना की है। उनमें गेयता है, जिस कारण सूरदास के भ्रमरगीत का साहित्य में बहुत ऊँचा स्थान है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर :
गोपियाँ श्रीकृष्ण से अपार प्रेम करती थीं। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण के बिना वे रह ही नहीं सकतीं। जब श्रीकृष्ण ने उद्धव के द्वारा उन्हें योग-साधना का उपदेश भिजवाया, तब गोपियों का विरही मन इसे सहन नहीं कर सका और उन्होंने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए थे।

यदि गोपियों की जगह हमें तर्क देने होते, तो हम उद्धव से पूछते कि श्रीकृष्ण ने उनसे प्रेम करके फिर उन्हें योग की शिक्षा देने का कपट क्यों किया? उन्होंने मथुरा में रहने वाली कुब्जा को निर्गुण ब्रह्म का संदेश क्यों नहीं दिया? प्रेम सदा दो पक्षों में होता है। यदि गोपियों ने प्रेम की पीडा झेली थी, तो श्रीकृष्ण ने उस पीडा का अनुभव क्यों नहीं किया? यदि पीडा का अनुभव किया था, तो वे स्वयं ही योग-साधना क्यों नहीं करने लगे?

यदि गोपियों के भाग्य में वियोग की पीड़ा लिखी थी, तो श्रीकृष्ण ने उनके भाग्य को बदलने के लिए उद्धव को वहाँ क्यों भेजा? किसी का भाग्य बदलने का अधिकार किसी के पास नहीं है। यदि श्रीकृष्ण ने गोपियों को योग-साधना का संदेश भिजवाया था, तो अन्य सभी ब्रजवासियों, यशोदा माता, नंद बाबा आदि को भी वैसा ही संदेश क्यों नहीं भिजवाया? वे सब भी तो श्रीकृष्ण से प्रेम करते थे।

प्रश्न 14.
उद्धव जानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर :
किसी भी मनुष्य के पास सबसे बड़ी शक्ति उसके मन की होती है; मन में उत्पन्न प्रेम के भाव और सत्य की होती है। गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। उन्होंने अपने प्रेम के लिए सभी प्रकार की मान-मर्यादाओं की परवाह करनी छोड़ दी थी। जब उन्हें उद्धव के दुवारा श्रीकृष्ण के योग-साधना का संदेश मिला, तो उन्हें अपने प्रेम पर ठेस लगने का अनुभव हुआ।

उन्हें वह झेलना पड़ा था, जिसकी उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की थी। उनके विश्वास को गहरा झटका लगा था, जिस कारण उनकी आहत भावनाएँ फूट पड़ी थीं। उद्धव चाहे ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; पर वे गोपियों के हृदय में छिपे प्रेम, विश्वास और आत्मिक बल का सामना नहीं कर पाए। गोपियों के वाक्चातुर्य के सामने वे किसी भी प्रकार टिक नहीं पाए।

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प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं ? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
गोपियों ने सोच-विचारकर ही कहा था कि अब हरि राजनीति पढ़ गए हैं। राजनीति मनुष्य को दोहरी चालें चलना सिखाती है। श्रीकृष्ण गोपियों से प्रेम करते थे और प्रेम सदा सीधी राह पर चलता है। जब वे मथुरा चले गए थे, तो उन्होंने उद्धव के माध्यम से गोपियों को योग का संदेश भिजवाया था। कृष्ण के इस दोहरे आचरण के कारण ही गोपियों को कहना पड़ा था कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं।

गोपियों का यह कथन आज की राजनीति में साफ़-साफ़ दिखाई देता है। नेता जनता से कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं। वे धर्म, अपराध, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में दोहरी चालें चलकर जनता को मूर्ख बनाते हैं और अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं। उनकी करनी-कथनी में सदा अंतर दिखाई देता है।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पदों की सबसे बड़ी विशेषता है गोपियों की वाग्विदग्धता’। आपने ऐसे और चरित्रों के बारे में पढ़ा या सुना होगा जिन्होंने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई; जैसे-बीरबल, तेनालीराम, गोपालभांड, मुल्ला नसीरुद्दीन आदि। अपने किसी मनपसंद चरित्र के कुछ किस्से संकलित कर एक एलबम तैयार करें।
उत्तर :
अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

प्रश्न 2.
सूर रचित अपने प्रिय पदों को लय एवं ताल के साथ गाएँ।
उत्तर :
अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

JAC Class 10 Hindi सूरदास के पद Important Questions and Answers

परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
‘श्रमरगीत’ से आपका क्या तात्यर्य है?
उत्तर :
‘भ्रमरगीत’ दो शब्दों-‘भ्रमर’ और ‘गीत’ के मेल से बना है। ‘भ्रमर’ छ: पैर वाला एक काला कीट होता है। इसे भंवरा भी कहते हैं। ‘गीत’ गाने का पर्याय है। इसलिए ‘भ्रमरगीत’ का शाब्दिक अर्थ है-भँवरे का गान, भ्रमर संबंधी गान या भ्रमर को लक्ष्य करके लिखा गया गान। श्रीकृष्ण ने उद्धव को मथुरा से निर्गुण ब्रह्म का ज्ञान देकर ब्रज-क्षेत्र में भेजा था ताकि वह विरह-वियोग की आग में झुलसती गोपियों को समझा सके कि श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम-भाव को भुलाकर योग-साधना में लीन होना ही उनके लिए उचित है।

गोपियों को उद्धव की बातें कड़वी लगी थीं। वे उसे बुरा-भला कहना चाहती थीं, पर मर्यादावश श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए उद्धव को वे ऐसा कह नहीं पातीं। संयोगवश एक भँवरा उड़ता हुआ वहाँ से गुजरा। गोपियों ने झट से भँवरे को आधार बनाकर अपने हृदय में व्याप्त क्रोध को सुनाना आरंभ कर दिया। उद्धव का रंग भी भँवरे के समान काला था। इस प्रकार भ्रमरगीत का अर्थ है-‘उद्धव को लक्ष्य करके लिखा गया गान’। कहीं-कहीं गोपियों ने श्रीकृष्ण को भी ‘भ्रमर’ कहा है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 2.
सूरदास के ‘भ्रमरगीत’ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘भ्रमरगीत’ का उद्देश्य है-‘ज्ञान और योग का खंडन करके निर्गुण भक्ति के स्थान पर सगुण भक्ति की प्रतिष्ठा करना।’ सूरदास ने उद्धव की पराजय दिखाकर ऐसा करने में सफलता प्राप्त की है।

प्रश्न 3.
भ्रमरगीत में प्रयुक्त सूरदास की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
सूरदास के भ्रमरगीत की भाषा ब्रज है। उन्होंने अत्यंत मार्मिक शब्दावली का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में लालित्य है। उन्होंने व्यंग्य-प्रधान शब्दों का सहजता और सुंदरता से प्रयोग किया है। उनकी उलाहने भरी भाषा और चुभते हुए शब्द बहुत अनुकूल प्रभाव उत्पन्न करते हैं। उनकी भाषा में व्यंजना शक्ति और प्रभाव-क्षमता के साथ माधुर्य और प्रसाद गुणों की अधिकता है। उनका शब्द-चयन सुंदर और भावानुकूल है।

प्रश्न 4.
भ्रमरगीत के आधार पर गोपियों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
सूरदास के भ्रमरगीत में गोपियाँ अत्यंत निर्भीक, स्वाभिमानी, वाक्पटु और हँसमुख हैं। उनमें नारी सुलभ लज्जा की अपेक्षा चंचलता की अधिकता है। वे उद्धव से बिना किसी संकोच के बातचीत ही नहीं करतीं बल्कि अपनी वाक्चातुरी का परिचय भी देती हैं। वे अपने प्रेम के लिए सामाजिक-पारिवारिक मर्यादाओं का विरोध करने में भी नहीं झिझकतीं।

पठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।
सुनत जोग लागत है ऐसी, ज्यौं करुई ककरी।
स तौ व्याधि हमकौं ले आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी॥

(क) श्रीकृष्ण गोपियों के लिए किस पक्षी की लकड़ी के समान हैं?
(i) कबूतर की
(ii) तीतर की
(iii) हारिल की
(iv) तोता की
उत्तर :
(iii) हारिल की।

(ख) गोपियाँ सोते-जागते किस नाम का जाप करती रहती हैं?
(i) कान्ह-कान्ह
(ii) नंद-नंद
(iii) राम-राम
(iv) पान्ह-पान्ह
उत्तर :
(i) कान्ह-कान्ह

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ग) योग का संदेश गोपियों को किसके समान लगता है?
(i) तीखी मूली
(ii) कड़वी ककड़ी
(iii) मीठी तोरई
(iv) कड़वा खीरा
उत्तर :
(ii) कड़वी ककड़ी

(घ) ‘सु तौ व्याधि हमकौं ले आए’-पंक्ति में व्याधि का क्या अर्थ है?
(i) बाधा
(ii) रोग
(iii) शिकारी
(iv) मरीज
उत्तर :
(ii) रोग

(ङ) योग संदेश को गोपियाँ कैसे लोगों के लिए उपयुक्त मानती है?
(i) जिनके मन शांत और गंभीर हैं।
(ii) जिनके मन चकरी की भाँति अस्थिर हैं।
(iii) जिनके पास वैभव है।
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
(ii) जिनके मन चकरी की भाँति अस्थिर हैं।

2. मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, विरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उत तें धार वही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।

(क) गोपियों के मन में किसके दर्शन की इच्छा अधूरी रह गई?
(i) श्रीकृष्ण की
(ii) यशोदा की
(iii) उद्धव की
(iv) सूरदास की
उत्तर :
(i) श्रीकृष्ण की

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ख) गोपियाँ किससे संदेश प्राप्त करती हैं?
(i) उद्धव से
(ii) सुदामा से
(iii) श्रीकृष्ण से
(iv) सूरदास से
उत्तर :
(i) उद्धव से

(ग) किसने प्रेम की मर्यादा का उल्लंघन किया है?
(i) गोपियों ने
(ii) श्रीकृष्ण ने
(iii) उद्धव ने
(iv) बलराम ने
उत्तर :
(ii) श्रीकृष्ण ने

(घ) उद्धव कृष्ण का कौन-सा संदेश लेकर आए थे?
(i) प्रेम-संदेश
(ii) अनुराग-संदेश
(iii) योग-संदेश
(iv) वैदिक संदेश
उत्तर :
(iii) योग-संदेश

(ङ) गोपियाँ तन-मन की व्यथा क्यों सहन कर रही थीं?
(i) उद्धव से मिलने की आस में
(ii) नंदबाबा से मिलने की आस में
(iii) बलराम से मिलने की आस में
(iv) श्रीकृष्ण से मिलने की आस में
उत्तर :
(iv) श्रीकृष्ण से मिलने की आस में

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

3. ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी में पाउँ! न बोर्यो, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी॥

(क) बड़भागी का संबोधन किसके लिए किया गया है?
(i) श्रीकृष्ण
(ii) प्रेमी
(iii) क्रोधी
(iv) उद्धव
उत्तर :
(i) श्रीकृष्ण

(ख) गोपियों ने अपनी तुलना किससे की है?
(i) कुमुदिनी के पत्तों से
(ii) बारिश की बूंदों से
(iii) नदी की लहरों से
(iv) गुड़ पर चिपकी चींटियों से
उत्तर :
(iv) गुड़ पर चिपकी चीटियों से

(ग) गोपियों द्वारा उद्धव की तुलना किससे की गई है?
(i) पानी में उगे कमल के पत्तों से
(ii) पानी में पड़ी रहने वाली तेल की गगरी से
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(i) और (ii) दोनों

(घ) उद्धव किनके संग रहकर भी उनके प्रेम से वंचित रहे?
(i) नंदबाबा के
(ii) माता-पिता के
(iii) श्रीकृष्ण के
(iv) सुदामा के
उत्तर :
(iii) श्रीकृष्ण के

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ङ) ‘अपराध रहत सनेह तगा तें’-पंक्ति में ‘तगा’ का क्या भाव निहित है?
(i) ताकना
(ii) धागा
(iii) दगा देना
(iv) बंधन
उत्तर :
(iv) बंधन

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) सूरदास के पद किस भाषा में रचित हैं?
(i) अवधी भाषा
(ii) ब्रजभाषा
(iii) भोजपुरी
(iv) मैथिली भाषा
उत्तर :
(ii) ब्रजभाषा

(ख) सूरदास किस रस के महान कवि हैं?
(i) करुण रस
(ii) संयोग शृंगार रस
(iii) वियोग शृंगार रस और वात्सल्य रस।
(iv) भयानक रस
उत्तर :
(iii) वियोग शृंगार रस और वात्सल्य रस

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ग) ‘अवधि आधार आस आवन की’ पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार है –
(i) रूपक अलंकार
(ii) अनुप्रास अलंकार
(iii) यमक अलंकार
(iv) श्लेष अलंकार
उत्तर :
(ii) अनुप्रास अलंकार

(घ) ‘मधुकर’ का संबोधन किसके लिए किया गया है?
(i) श्रीकृष्ण के लिए
(ii) सुदामा के लिए
(iii) उद्धव के लिए
(iv) बलराम के लिए
उत्तर :
(iv) बलराम के लिए

सिप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

पद :

1. ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

शब्दार्थ बड़भागी – भाग्यवान। अपरस – अलिप्त; नीरस, अछूता। तगा – धागा; डोरा; बंधन। पुरइनि पात – कमल का पत्ता। रस – जल। न दागी – दाग तक नहीं लगता। माहँ – में। प्रीति-नदी – प्रेम की नदी। पाउँ – पैर। बोरयौ – डुबोया परागी – मुग्ध होना। भोरी – भोली। गुर चाँटी ज्यौं पागी – जिस प्रकार चौंटी गुड़ में लिपटती है, उसी प्रकार हम भी कृष्ण के प्रेम में अनुरक्त हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पद कृष्ण-भक्ति के प्रमुख कवि सूरदास के द्वारा रचित ‘भ्रमर गीत’ से लिया गया है। इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित किया गया है। गोपियाँ सगुण प्रेमपथ के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट करती हैं और मानती हैं कि वे किसी भी प्रकार स्वयं को श्रीकृष्ण के प्रेम से दूर नहीं कर सकतीं।

व्याख्या – गोपियाँ उद्धव की प्रेमहीनता पर व्यंग्य करती हुई कहती हैं कि हे उद्धव! तुम सचमुच बड़े भाग्यशाली हो, क्योंकि तुम प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त हो; अनासक्त हो और तुम्हारा मन किसी के प्रेम में डूबता नहीं । तुम श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रेम बंधन से उसी तरह मुक्त हो, जैसे कमल का पत्ता सदा पानी में रहता है पर फिर भी उस पर जल का एक दाग भी नहीं लग पाता; उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती। तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती।

इसी प्रकार तुम भी श्रीकृष्ण के निकट रहते हुए भी उनसे प्रेम नहीं करते और उनके प्रभाव से सदा मुक्त बने रहते हो। तुमने आज तक कभी भी प्रेमरूपी नदी में अपना पैर नहीं डुबोया और तुम्हारी दृष्टि किसी के रूप को देखकर भी उसमें उलझी नहीं। पर हम तो भोली-भाली अबलाएँ हैं, जो अपने प्रियतम श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी के प्रेम में उसी प्रकार उलझ गई हैं जैसे चींटी गुड़ पर आसक्त हो उस पर चिपट जाती है और फिर कभी छूट नहीं पाती; वह वहीं प्राण त्याग देती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियों ने किसके प्रति अपनी अनन्यता प्रकट की है?
3. ‘अति बड़भागी’ में निहित व्यंग्य-भाव को स्पष्ट कीजिए।
4. उद्धव के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का बंधन क्यों नहीं था?
5. सूरदास ने किन दृष्टांतों से उद्धव की अनासक्ति को प्रकट किया है ?
6. पद में निहित गेयता का आधार स्पष्ट कीजिए।
7. ‘गुर चींटी ज्यौं पागी’ के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम को प्रतिपादित कीजिए।
8. अंतिम पंक्तियों में गोपियों ने स्वयं को ‘अबला’ और ‘भोरी’ क्यों कहा है ?
9. उद्धव के मन में अनुराग नहीं है, फिर भी गोपियाँ उन्हें बड़भागी क्यों कहती हैं ?
10. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
11. इस पद में परोक्ष रूप से उद्धव को क्या समझाया गया है?
12. उद्धव को बड़भागी किस लिए कहा गया है ?
13. गोपियों ने ऊधो को क्या कहा है?
14. ‘पुरइनि पात’ के माध्यम से कवि ने क्या कहा है?
उत्तर :
1. गोपियाँ उद्धव की प्रेमहीनता का मजाक उड़ाती हुए कहती हैं कि उसके हृदय में प्रेम की भावना का अभाव है। वह पूर्ण रूप से प्रेम के बंधन से मुक्त और अनासक्त है। उसने कभी प्रेम की नदी में अपना पैर नहीं डुबोया और उसकी आँखें श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को देखकर भी उनमें नहीं उलझीं। लेकिन हम गोपियाँ तो भोली-भाली थीं और श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी पर आसक्त हो गईं। अब हम किसी भी अवस्था में उस प्रेम-भाव से दूर नहीं हो सकतीं।

2. गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम-भाव को प्रकट किया है। उनकी अनन्यता श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी के प्रति है।

3. गोपियों के द्वारा प्रयुक्त ‘अति बड़भागी’ शब्द व्यंग्य के भाव को अपने भीतर छिपाए हुए है। मज़ाक में गोपियाँ उद्धव को बड़ा भाग्यशाली मानती हैं, क्योंकि वह श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रति प्रेम-भाव में नहीं बँधा।

4. उद्धव निर्गुण ब्रह्म के प्रति विश्वास रखता था। उसका ब्रह्म रूप आकार से परे था, इसलिए वह स्वयं को श्रीकृष्ण के साकार रूप के प्रति नहीं बाँध पाया। उसके हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का बंधन भाव नहीं था।

5. सूरदास ने उद्धव को अनासक्त और श्रीकृष्ण के प्रति भक्तिभाव से सर्वथा मुक्त माना है। सूरदास कहते हैं कि जिस प्रकार कमल का पत्ता सदा जल में रहता है, पर फिर भी उस पर जल की एक बूंद तक नहीं ठहर पाती; उसी प्रकार उद्धव श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रति भक्ति भावों से रहित था। तेल की किसी मटकी को जल के भीतर डुबोने पर उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती, उसी प्रकार उद्धव के हृदय पर श्रीकृष्ण की भक्ति थोड़ा-सा भी प्रभाव नहीं डाल सकी थी।

6. सूरदास के द्वारा रचित पद ‘राग मलार’ पर आधारित है। इसमें स्वर-मैत्री का सफल प्रयोग और ब्रज–भाषा की कोमलकांत शब्दावली गेयता के आधार बने हैं।

7. गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम भरा मन चाहकर भी कहीं और नहीं टिकता। वे पूरी तरह से अपने प्रियतम की रूप-माधुरी पर आसक्त थीं; उनके प्रेम में पगी हुई थीं। जिस प्रकार चींटी गुड़ पर आसक्त होकर उससे चिपट जाती है और फिर छूट नहीं पाती; वह वहीं अपने प्राण दे देती है। इसी तरह गोपियाँ भी श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम-भाव में डूबी रहना चाहती हैं और कभी उनसे दूर नहीं होना चाहतीं।

8. गोपियों ने स्वयं को ‘भोरी’ कहा है। वे छल-कपट और चतुराई से दूर थीं, इसलिए वे अपने प्रियतम की रूप-माधुरी पर शीघ्रता से आसक्त हो गईं। वे स्वयं को श्रीकृष्ण से किसी भी प्रकार से दूर करने में असमर्थ मानती थीं। वे चाहकर भी उन्हें प्राप्त नहीं कर सकतीं, इसलिए उन्होंने स्वयं को अबला कहा है।

9. श्रीकृष्ण के साथ रहकर भी उद्धव के मन में प्रेम-भाव नहीं है। इस कारण उसे विरह-भाव का अनुभव नहीं होता; उसे वियोग की पीड़ा नहीं उठानी पड़ती। इसलिए गोपियों ने उद्धव को बड़भागी कहा है।

10. उद्धव के व्यवहार की तुलना पानो पर तैरते कमल के पत्ते और जल में पड़ी तेल की मटकी से की गई है। दोनों पर जल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसी तरह उद्धव भी सब प्रकार से अनासक्त था।

11. इस पद में उद्धव को समझाया गया है कि वह ज्ञानवान है: नीतिवान है, प्रेम से विरक्त है, इसलिए उसका प्रेम-संदेश गोपियों के लिए निरर्थक है। श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न गोपियों पर उसके उपदेश का कोई असर नहीं होने वाला था।

12. उद्धव को बड़भागी व्यंग्य में कहा गया है, क्योंकि वह श्रीकृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम में नहीं डब पाया।

13. गोपियों ने उधव से कहा है कि वह अभागा है, क्योंकि वह श्रीकृष्ण के साथ रहकर भी उनके प्रेम से दूर रहा, गोपियाँ स्पष्ट कहती हैं कि वे कृष्ण के प्रति प्रेम-भाव से समर्पित हैं। वे किसी भी अवस्था में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम-भाव को नहीं त्याग सकती।

14. ‘पुरइनि पात’ के माध्यम कवि ने उन लोगों पर कटाक्ष किया है, जो संसार में रहकर भी प्रेम-मार्ग पर नहीं चल पाते; जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रति विरक्त बने रहते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
1. कवि ने पद में किस भाषा का प्रयोग किया है?
2. गोपियों की भाषा में किस भाव की अधिकता है ?
3. पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
4. गोपियों के प्रेम-भाव में निहित विशिष्टता को स्पष्ट कीजिए।
5. यह पद किस काव्य-विधा से संबंधित है?
6. इस पद में कौन-सा काव्य गुण प्रधान है?
7. ‘अति बड़भागी’ में कौन-सी शब्द-शक्ति निहित है?
8. भक्तिकाल के किस भाग से इस पद का संबंध है?
9. गोपियों का कथन किस भाव-मुद्रा से संबंधित है?
10. पद को संगीतात्मकता किस गुण ने प्रदान की है?
11. किन्हीं दो प्रयुक्त तद्भव शब्दों को लिखिए।
उत्तर
1. ब्रजभाषा।
2. व्यंग्य भाव।

3. अनुप्रास –
सनेह तगा तैं,
पुरइनि पात रहत,
ज्यौं जल।

उपमा –
गुर चाँटी ज्यौं पागी। रूपक
अपरस रहत सनेह तगा तें
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ।

उदाहरण –
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।

दृष्टांत –
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।

4. सूरदास के इस पद में गोपियों की निश्छल प्रेम-भावना की अभिव्यक्ति हुई है। वे कृष्ण के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। उनके प्रेम को ठेस लगाने वाला कोई भी विचार उन्हें क्रोधित कर देता है। क्रोध-प्रेरित व्यंग्य उनके प्रेम-भाव की विशिष्टता है।

5. नीति काव्य।
6. माधुर्य गुण।
7. लक्षणा शब्दशक्ति।
8. कृष्ण भक्ति काव्य।
9. वक्रोक्ति।
10. छंद प्रयोग और स्वर मैत्री के प्रयोग।
11. अपरस, सनेह।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

2. मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उत तें धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही॥

शब्दार्थ : माँझ – में। अधार – आधार; सहारा। आवन – आगमन; आने की। बिथा – व्यथा। सँदेसनि – संदेश। बिरहिनि – वियोग में जीने वाली। बिरह दही – विरह की आग में जल रही। हुती – थी। गुहारि – रक्षा के लिए पुकारना। जितहिं तें – जहाँ से। उत – उधर; वहाँ। धार – धारा; लहर। धीर – धैर्य। मरजादा – मर्यादा; प्रतिष्ठा। लही – नहीं रही; नहीं रखी।

प्रसंग – प्रस्तुत पद भक्त सूरदास के द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के भ्रमरगीत से लिया गया है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित है। श्रीकृष्ण के द्वारा ब्रज भेजे गए उद्धव ने गोपियों को ज्ञान का उपदेश दिया था, जिसे सुनकर वे हताश हो गई थीं। वे श्रीकृष्ण को ही अपना एकमात्र सहारा मानती थीं, पर उन्हीं के द्वारा भेजा हुआ हृदय-विदारक संदेश सुनकर वे पीड़ा और निराशा से भर उठीं। उन्होंने कातर स्वर में उद्धव के समक्ष अपनी व्यथा सुनाई थी।

व्याख्या – गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव! हमारे मन में छिपी बात तो मन में ही रह गई। हम सोचती थीं कि जब श्रीकृष्ण वापिस आएँगे, तब हम उन्हें विरह-वियोग में झेले सारे कष्टों की बातें सुनाएँगी। परंतु उन्होंने निराकार ब्रह्म को प्राप्त करने का संदेश भेज दिया है। उनके द्वारा त्याग दिए जाने पर अब हम अपनी असहनीय विरह-पीड़ा की कहानी किसे जाकर सुनाएँ? हमसे यह और अधिक कही भी नहीं जाती। अब तक हम उनके वापस लौटने की उम्मीद के सहारे अपने तन और मन से इस विरह-पीड़ा को सहती आ रही थीं।

अब इन योग के संदेशों को सुनकर हम विरहिनियाँ वियोग में जलने लगी हैं। विरह के सागर में डूबती हुई हम गोपियों को जहाँ से सहायता मिलने की आशा थी; जहाँ हम अपनी रक्षा के लिए पुकार लगाना चाहती थीं, अब उसी स्थान से योग संदेशरूपी जल की ऐसी प्रबल धारा बही है कि यह हमारे प्राण लेकर ही रुकेगी अर्थात श्रीकृष्ण ने हमें योग-साधना करने का संदेश भेजकर हमारे प्राण ले लेने का कार्य किया है। हे उद्धव! तुम्हीं बताओ कि अब हम धैर्य धारण कैसे करें? जिन श्रीकृष्ण के लिए हमने अपनी सभी मर्यादाओं को त्याग दिया था, उन्हीं श्रीकृष्ण के द्वारा हमें त्याग देने से हमारी संपूर्ण मर्यादा नष्ट हो गई है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियों की कौन-सी मन की बात मन में ही रह गई?
3. गोपियाँ अब किसके पास जाने का साहस नहीं कर सकतीं और क्यों?
4. गोपियाँ अब तक विरह-वियोग को किस आधार पर सहती आ रही थीं?
5. योग के संदेशों ने गोपियों के हृदय पर क्या प्रभाव डाला था?
6. गोपियाँ किससे गुहार लगाना चाहती थीं?
7. ‘धार बही’ में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
8. ‘मरजादा न लही’ से क्या तात्पर्य है?
9. गोपियाँ किसे अपनी मर्यादा समझती थीं?
10. गोपियों के लिए प्रिय और अप्रिय क्या है?
उत्तर :
1. गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। वे सोच भी नहीं सकती थीं कि उन्हें कभी उनके प्रेम से वंचित होना पड़ेगा। उद्धव द्वारा दिए जाने वाले निर्गुण भक्ति के ज्ञान ने उनके धैर्य को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। वे निराशा के भावों से भर उठी थीं और उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा था कि उनकी मर्यादा पूरी तरह से नष्ट हो गई है।

2. गोपियाँ अपने हृदय की पीड़ा श्रीकृष्ण को सुनाना चाहती थीं, लेकिन निर्गुण ज्ञान के संदेश को सुनकर वे कुछ न कर पाईं। उनके वियोग से उत्पन्न पीड़ा संबंधी बात उनके मन में ही रह गई।

3. गोपियाँ अब श्रीकृष्ण के पास जाकर अपनी वियोग से उत्पन्न पीड़ा को कहने का साहस नहीं कर सकती थीं। गोपियों को पहले विश्वास था कि जब कभी श्रीकृष्ण मिलेंगे, तब वे उन्हें अपनी पीड़ा सुनाएँगी। लेकिन अब श्रीकृष्ण ने स्वयं उद्धव द्वारा निर्गुण भक्ति का ज्ञान उन्हें संदेश रूप में भेज दिया था।

4. गोपियाँ अब तक विरह-वियोग को इस आधार पर सहती आ रही थीं कि वे श्रीकृष्ण से प्रेम करती है और श्रीकृष्ण भी उनसे उतना ही प्रेम करते हैं। परिस्थितियों के कारण उन्हें अलग होना पड़ा है। वे श्रीकृष्ण के प्रेम के आधार पर विरह-वियोग को सहती आ रही थीं।

5. योग के संदेशों ने गोपियों के हृदय को अपार दुख से भर दिया था। उन संदेशों ने उनके प्राण लेने का काम कर दिया था।

6. गोपियाँ उन श्रीकृष्ण से गुहार लगाना चाहती थीं, जिनके प्रेम के प्रति उन्हें अपार विश्वास था। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण ने उद्धव के माध्यम से निर्गुण ब्रह्म का संदेश भिजवाकर उनके प्रेम को धोखा दिया था।

7. ‘धार बही’ लाक्षणिक प्रयोग है। गोपियों को प्रतीत होता है कि निर्गुण भक्ति की धारा श्रीकृष्ण की ओर से बहकर उन तक पहुँचती है। उन्होंने ही उद्धव को उनके पास निर्गुण ज्ञान की धारा ले जाने के लिए भेजा है।

8. गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति अपने एकनिष्ठ प्रेम को ही अपनी मर्यादा मानती थीं। लेकिन जब स्वयं श्रीकृष्ण ने निर्गुण भक्ति का ज्ञान उन्हें भिजवा दिया, तो उनकी उस प्रेम संबंधी मर्यादा का कोई अर्थ ही नहीं रहा। ‘मरजादा न लही’ से तात्पर्य उनके प्रेम भाव के प्रति श्रीकृष्ण का वह संदेश था, जिसके कारण गोपियों ने अपने जीवन की सभी सामाजिक-धार्मिक मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की थी।

9. गोपियाँ अपने प्रति श्रीकृष्ण के प्रेम को ही अपनी मर्यादा समझती थीं।

10. गोपियों के लिए कृष्ण का प्रेम प्रिय और योग का संदेश अप्रिय है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
1. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है ?
2. प्रयुक्त भाषा-शैली का नाम लिखिए।
3. किन्हीं दो तद्भव शब्दों को छाँटकर लिखिए।
4. कौन-सा काव्य गुण प्रधान है?
5. कवि ने किस रस का प्रयोग किया है ?
6. किसने लयात्मकता की सृष्टि की है?
7. कवि ने किस प्रकार की शब्दावली का अधिक प्रयोग किया है?
8. किस शब्द में प्रतीकात्मकता विद्यमान है?
9. किस शब्द शक्ति ने गोपियों के स्वर को गहनता-गंभीरता प्रदान की है?
10. यह पद किस काल से संबंधित है?
11. पद में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
उत्तर :
1. ब्रजभाषा।
2. नीति काव्य/गीति-शैली।
3. विथा, माँझ।
4. माधुर्य गुण।
5. वियोग श्रृंगार रस।
6. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. कोमलकांत ब्रजभाषा के प्रयोग में तद्भव शब्दावली की अधिकता है।
8. ‘धार’ में प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
9. लाक्षणिकता के प्रयोग ने गोपियों के स्वर को गहनता-गंभीरता प्रदान की है।
10. हिंदी साहित्य के भक्तिकाल से।
11. अनुप्रास –
मन की मन ही माँझ,
सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही,
धीर धरहिं

रूपकातिशयोक्ति –
उत तँ धार बही

पुनरुक्ति प्रकाश –
सुनि-सुनि

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

3. हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दुद करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।
सु तो व्याधि हम को लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तो सूर’ तिनहिं ले सौंपी, जिनके मन चकरी॥

शब्दार्थ हरि – श्रीकृष्ण। हारिल की लकरी – एक पक्षी, जो अपने पंजों में सदा कोई-न-कोई लकड़ी का टुकड़ा या तिनका पकड़े रहता है। क्रम – कर्म। नंद-नंदन – श्रीकृष्ण। उर – हृदय। पकरी – पकड़ना। कान्ह – कृष्ण। जकरी – रटती रहती है। करुई – कड़वी। ककरी – ककड़ी। व्याधि – बीमारी, पीड़ा पहुँचाने वाली वस्तु। तिनहिं – उनको। मन चकरी – जिनका मन स्थिर नहीं होता।

प्रसंग – प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित सूरदास के पदों से लिया गया है। गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अपार प्रेम था। मथुरा आने के बाद श्रीकृष्ण ने अपने सखा उद्धव के निर्गुण ज्ञान पर सगुण भक्ति की विजय के लिए उन्हें गोपियों के पास भेजा था। गोपियों ने उद्धव के निर्गुण ज्ञान को अस्वीकार कर दिया और स्पष्ट किया कि उनका प्रेम केवल श्रीकृष्ण के लिए है। उनका प्रेम अस्थिर नहीं है।

व्याख्या – श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम की दृढ़ता को प्रकट करते हुए गोपियों ने उद्धव से कहा कि श्रीकृष्ण हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान बन गए हैं। जैसे हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में लकड़ी पकड़े रहता है, वैसे हम भी सदा श्रीकृष्ण का ध्यान करती हैं ! हमने मन, द के नंदन श्रीकृष्ण के रूप और उनकी स्मृति को कसकर पकड़ लिया है। अब कोई भी उसे हमसे छुड़ा नहीं सकता। हमारा मन जागते, सोते, स्वप्न या प्रत्यक्ष में सदा कृष्ण-कृष्ण की रट लगाए है; वह सदा उन्हीं का स्मरण करता है। हे उद्धव!

तुम्हारी योग की बातें सुनकर हमें ऐसा लगता है, मानो कड़वी ककड़ी खा ली हो! तुम्हारी योग की बातें हमें बिलकुल अरुचिकर लगती हैं। तुम हमारे लिए योगरूपी ऐसी बीमारी लेकर आए हो, जिसे हमने न तो कभी देखा, न सुना और न कभी भोगा है। हम तुम्हारी योगरूपी बीमारी से पूरी तरह अपरिचित हैं। तुम इस बीमारी को उन लोगों को दो, जिनके मन सदा चकई के समान चंचल रहते हैं। भाव है कि हमारा मन श्रीकृष्ण के प्रेम में दृढ और स्थिर है। जिनका मन चंचल है, वही योग की बातें स्वीकार कर सकते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियाँ कृष्ण को ‘हारिल की लकड़ी’ क्यों कहती हैं?
3. गोपियों ने श्रीकृष्ण को किस प्रकार अपने हृदय में धारण कर रखा था?
4. गोपियाँ कब-कब श्रीकृष्ण को रटती थीं?
अथवा गोपियों को रात-दिन किस बात की रट लगी रहती है? क्यों?
5. उद्धव की योग संबंधी बातें गोपियों को कैसी लगती थीं?
6. गोपियों की दृष्टि में ‘व्याधि’ क्या थीं?
7. गोपियों ने व्याधि को किसे देने की सलाह दी?
8. गोपियों के अनुसार योग संबंधी बातें कौन स्वीकार कर सकते हैं?
अथवा
गोपियों को योग कैसा लगता है और वस्तुतः उनकी आवश्यकता कैसे लोगों को है ?
9. गोपियों के लिए योग व्यर्थ क्यों था?
उत्तर :
1. गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति गहरा प्रेम-भाव है। उनका हृदय दृढ़ और स्थिर है। श्रीकृष्ण के प्रति चित्त-वृत्ति होने के कारण उन्हें योग का संदेश व्यर्थ लगता है।
2. गोपियों ने कृष्ण को हारिल पक्षी की लकड़ी के समान माना था। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में कोई-न-कोई लकड़ी का टुकड़ा या तिनका पकडे रहता है, उसी तरह गोपियों के हृदय ने भी श्रीकृष्ण को पकड लिया है।
3. गोपियों ने श्रीकृष्ण को हारिल पक्षी की लकड़ी के समान अपने हृदय धारण कर रखा था।
4. गोपियाँ श्रीकृष्ण को जागते, सोते, स्वप्न या प्रत्यक्ष में सदा रटती रहती थीं, क्योंकि वे उनसे प्रेम करती थीं और उन्हें पाना चाहती थीं।
5. उद्धव की योग संबंधी बातें गोपियों को कड़वी ककड़ी के समान लगती थीं।
6. गोपियों की दृष्टि में उद्धव के द्वारा बताई जाने वाली योग संबंधी बातें ही ‘व्याधि’ थीं।
7. गोपियों ने सलाह दी कि उद्धव योगरूपी व्याधि उन्हें दें, जिनका मन चकई के समान सदा चंचल रहता है।
8. गोपियों को योग रूपी ज्ञान व्यर्थ लगता था। उनके अनुसार योग-संबंधी बातें वही लोग स्वीकार कर सकते हैं, जिनका मन अस्थिर होता है। जिनका मन पहले ही श्रीकृष्ण के प्रेम में स्थिर हो चुका हो, उनके लिए योग व्यर्थ था।
9. गोपियों का मन श्रीकृष्ण की प्रेम-भक्ति में पूरी तरह से डूब गया था। वे स्वयं को मन, वचन और कर्म से श्रीकृष्ण का मानती थीं; इसलिए उनके लिए योग व्यर्थ था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. यह पद हिंदी साहित्य के किस काल से संबंधित है ?
2. पद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है ?
3. पद में किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
4. कौन-सा काव्य रस प्रधान है?
5. काव्य की कौन-सी शैली प्रयुक्त हुई है?
6. कवि ने किस राग पर गेयता का गुण आधारित किया है ?
7. किस शब्द-शक्ति ने कवि के कथन को गहन-गंभीरता प्रदान की है?
8. पद में प्रयुक्त किन्हीं दो तद्भव शब्दों को छाँटकर लिखिए।
9. पद में से ब्रजभाषा के पाँच शब्दों को चुनकर उनके सही रूप लिखिए।
10. पद में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. भक्तिकाल से।
2. ब्रजभाषा।
3. माधुर्य गुण।
4. वियोग शृंगार।
5. गीति शैली।
6. राग सारंग।
7. लाक्षणिकता ने।
8. जोग, करुई।
9. तद्भव तत्सम
बचन – वचन
जोग – योग
ककरी – ककड़ी
ब्याधि – व्याधि
निसि – निशि

10. रूपक –
हमारे हरि हारिल की लकरी।

अनुप्रास –
हमारे हरि हारिल,
जागत सोवत स्वप्न दिव

स-निसि,
करुई ककरी,
नंद-नंदन

उपमा –
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।

रूपकातिशयोक्ति –
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए।

स्वरमैत्री –
देखी सुनी न करी।

पुनरुक्तिप्रकाश –
कान्ह-कान्ह।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

4. हरि है राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपने मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यों अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तो यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।

शब्दार्थ : मधुकर – भँवरा, उद्धव के लिए गोपियों द्वारा प्रयुक्त संबोधन। हुते – थे। पठाए – भेजा। आगे के – पहले के। पर हित – दूसरों के कल्याण के लिए। डोलत धाए – घूमते-फिरते थे। फेर – फिर से। पाइहैं – पा लेंगी। अनीति – अन्याय।

प्रसंग – प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित ‘भ्रमर गीत’ प्रसंग से लिया गया है, जोकि हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित है। गोपियों ने उद्धव से निर्गुण-भक्ति संबंधी जिस ज्ञान को पाया था, उससे वे बहुत व्यथित हुईं। उन्होंने कृष्ण को कुटिल राजनीति का पोषक, अन्यायी और धोखेबाज़ सिद्ध करने का प्रयास किया है।

व्याख्या – गोपियाँ श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए योग संदेश को उनका अन्याय और अत्याचार मानते हुए कहती हैं कि हे सखी! अब तो श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है। वे राजनीति में पूरी तरह निपुण हो गए हैं। यह भँवरा हमसे जो बात कह रहा है, वह क्या तुम्हें समझ आई ? क्या तुम्हें कुछ समाचार प्राप्त हुआ? एक तो श्रीकृष्ण पहले ही बहुत चतुर-चालाक थे और अब गुरु ने उन्हें ग्रंथ भी पढ़ा दिए हैं। उनकी बुद्धि कितनी विशाल है, इसका अनुमान इसी बात से हो गया है कि वे युवतियों के लिए योग-साधना का संदेश भेज रहे हैं।

यह सिद्ध हो गया है कि वे बुद्धिमान नहीं हैं, क्योंकि कोई भी युवतियों के लिए योग-साधना को उचित नहीं मान सकता। हे उद्धव! पुराने ज़माने के सज्जन दूसरों का भला करने के लिए इधर-उधर भागते-फिरते थे, पर आजकल के सज्जन दूसरों को दुख देने और सताने के लिए ही यहाँ तक दौड़े चले आए हैं। हम केवल इतना ही चाहती हैं कि हमें हमारा मन मिल जाए, जिसे श्रीकृष्ण यहाँ से जाते समय चुपचाप चुराकर अपने साथ ले गए थे। पर उनसे ऐसे न्यायपूर्ण काम की आशा कैसे की जा सकती है!

वे तो दूसरों के द्वारा अपनाई जाने वाली रीतियों को छुड़ाने का प्रयत्न करते हैं। भाव यह है कि हम श्रीकृष्ण से प्रेम करने की रीति अपना रहे थे, पर वे चाहते हैं कि हम प्रेम की रीति को छोड़कर योग-साधना के मार्ग को अपना लें। यह अन्याय है। सच्चा राजधर्म उसी को माना जाता है, जिसमें प्रजाजन को कभी न सताया जाए। श्रीकृष्ण अपने स्वार्थ के लिए हमारे सारे सुख-चैन को छीनकर हमें दुखी करने की कोशिश कर रहे हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियों ने क्यों कहा कि श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है? अथवा गोपियाँ उद्धव से क्यों कहती हैं- “हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।”
3. गोपियों ने ‘जानी बुद्धि बड़ी’ से क्या कहना चाहा है ?
4. पुराने जमाने में सज्जन क्या करते थे?
5. गोपियों के अनुसार आजकल के सज्जन उनके पास क्या करने आए थे?
6. गोपियाँ क्या पाना चाहती थीं?
7. कृष्ण ब्रज से मथुरा जाते समय अपने साथ क्या ले गए थे?
8. कृष्ण के व्यवहार में गोपियों की अपेक्षा क्या अंतर था?
9. सच्चा राजधर्म किसे कहा गया है?
उत्तर :
1. गोपियाँ श्रीकृष्ण को राजनीति शास्त्र में निपुण एक स्वार्थी और धोखेबाज़ राजनीतिज्ञ सिद्ध करना चाहती थी, जो मथुरा जाते समय उनके मन को चुराकर अपने साथ ले गए थे। अब वे उनके प्रेमभाव को लेकर बदले में योग-साधना का पाठ पढ़ाना चाहते थे। वे कृष्ण को राजधर्म की शिक्षा देना चाहती थीं।

2. गोपियों के अनुसार श्रीकृष्ण राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, क्योंकि अब वे प्रेम के संबंध में राजनीति के क्षेत्र में अपनायी जाने वाली कुटिलता और छल-कपट से काम लेने लगे हैं। वे अपने स्वार्थ के लिए गोपियों का सुख-चैन छीनकर उन्हें दुखी करने का प्रयत्न कर रहे हैं।

3. गोपियों ने ‘जानी बुद्धि बड़ी’ में व्यंजना का प्रयोग किया है। श्रीकृष्ण की बुद्धि कितनी बड़ी थी- इसका अनुमान इसी बात से हो गया कि वे युवतियों के लिए योग-साधना करने का संदेश भेज रहे हैं। इससे तात्पर्य यह है कि बुद्धिमान श्रीकृष्ण ने अच्छा कार्य नहीं किया। कोई मूर्ख ही युवतियों के लिए योग-साधना को उचित मान सकता था, बुद्धिमान नहीं।

4. पुराने जमाने में लोग दूसरों का उपकार करने के लिए इधर-उधर भागते फिरते थे।

5. गोपियों के अनुसार आजकल के सज्जन दूसरों को दुख देने और सताने के लिए उन तक दौड़े चले आते हैं।

6. गोपियाँ केवल अपना-अपना मन वापस पाना चाहती थीं, जिन्हें श्रीकृष्ण चुराकर अपने साथ मथुरा ले गए थे।

7. श्रीकृष्ण ब्रज से मथुरा जाते समय अपने साथ गोपियों का मन चुराकर ले गए थे।

8. श्रीकृष्ण का व्यवहार गोपियों की अपेक्षा भिन्न था। गोपियाँ प्रेम की राह पर चलना चाहती थीं, परंतु कृष्ण चाहते थे कि गोपियाँ प्रेम की राह छोड़कर योग-साधना पर चलना आरंभ कर दें।

9. सच्चा राजधर्म प्रजा को सदा सुखी रखना कहा गया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
2. कवि ने किन शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है?
3. गोपियों के माध्यम से किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है ?
4. कवि ने किसकी सुंदर व्याख्या करने की चेष्टा की है?
5. किस काव्य गुण का प्रयोग किया गया है?
6. स्वरमैत्री का प्रयोग क्यों किया गया है?
7. किन्हीं दो तद्भव शब्दों को चुनकर लिखिए।
8. किस काव्य-शैली का प्रयोग किया गया है ?
9. किसी एक मुहावरे को चुनकर लिखिए।
10. पद से अलंकार चुनकर लिखिए।
उत्तर :
1. ब्रजभाषा का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
2. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग दिखाई देता है।
3. गोपियों ने व्यंजना का प्रयोग किया है। कृष्ण और उद्धव पर मार्मिक और चुभता हुआ व्यंग्य किया गया है।
4. कवि द्वारा नीति की सुंदर व्याख्या करने की सफल चेष्टा की गई है।
5. माधुर्य गुण का प्रयोग है।
6. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. जोग, धरम।
8. गीति शैली।
9. हृदय चुराना।

10. अनुप्रास –

  • हरि हैं
  • समाचार सब पाए।
  • गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
  • बढ़ी बुद्धि जानी जो।
  • क्यौँ अनीति करें आपुन।
  • जो प्रजा न जाहिं सताए।

वक्रोक्ति –

  • हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
  • बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
  • समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
  • ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।

सूरदास के पद Summary in Hindi

कवि-परिचय :

हिंदी में कृष्ण-काव्य की श्रेष्ठता का प्रमुख श्रेय महात्मा सूरदास को जाता है। वे साहित्याकाश के देदीप्यमान सूर्य थे, जिन्होंने भक्ति, काव्य और संगीत की त्रिवेणी बहाकर भक्तों, संगीतकारों और साधारणजन के मन को रससिक्त कर दिया था।

सूरदास का जन्म सन 1478 ई० की वैशाख पंचमी को वल्लभगढ़ के निकट सीही नामक गाँव में हुआ था। एक मान्यता के अनुसार इनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था। वे सारस्वत ब्राह्मण थे। इसके अतिरिक्त उनकी पारिवारिक स्थिति का कुछ और ज्ञान नहीं है। सूरदास नेत्रहीन थे परंतु यह अब तक निश्चित नहीं हो पाया कि वे जन्मांध थे अथवा बाद में अंधे हुए।

उनके काव्य में दृश्य जगत के सूक्ष्मातिसूक्ष्म दृश्यों का सजीव अंकन देखकर ऐसा नहीं लगता कि वे जन्मांध हों। चौरासी वैष्णवन की वार्ता के अनुसार वे संन्यासी वेष में मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर रहते थे। यहीं उनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई थी।

उन्होंने सूरदास को अपने संप्रदाय में दीक्षित कर उन्हें भागवत के आधार पर लीलापद रचने को कहा। गुरु आज्ञा से वे श्रीनाथ के मंदिर में कीर्तन और स्व-रचित पदों का गायन करने लगे। उन्होंने तैंतीस वर्ष की अवस्था में श्रीनाथ के मंदिर में कीर्तन करना आरंभ किया था और सन 1583 ई० तक मृत्युपर्यंत र नियमित रूप से यह कार्य करते रहे। उनका देहांत पारसौली में हुआ था। मान्यता है कि अपने 105 वर्ष के जीवन में उन्होंने लगभग सवा लाख पदों की रचना की। सूरदास ने भागवत के आधार पर कृष्णलीला संबंधी पदों की रचना की, जो बाद में संगृहीत होकर ‘सूरसागर’ कहलाने लगा। अब इसमें मात्र चार-पाँच हजार पद हैं।

इसके अतिरिक्त सूर-कृत लगभग चौबीस ग्रंथों का उल्लेख किया जाता है, पर उनकी प्रामाणिकता विवादास्पद है। उनके तीन ग्रंथ प्रसिद्ध हैं – ‘सूरसागर’, ‘सूर सारावली’ और ‘साहित्य लहरी’। ‘सूर सारावली’ एक प्रकार से सूरसागर की विषय-सूची सी है और ‘साहित्य लहरी’ में सूरसागर से लिए गए कूट पदों का संग्रह है। इस प्रकार ‘सूरसागर’ ही उनकी कीर्ति का आधार स्तंभ बन जाता है। इसमें भागवत की तरह बारह स्कंध हैं, पर यह भागवत का अनुवाद नहीं है और न ही इसमें भागवत जैसी वर्णनात्मकता है।

यह एक गेय मुक्तक काव्य है, जिसमें श्रीकृष्ण के संपूर्ण जीवन का चित्रण न करके उनकी लीलाओं का विस्तारपूर्वक फुटकर पदों में वर्णन किया है। सूरदास को ‘वात्सल्य’ और ‘शृंगार’ का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। इन्होंने मानव-जीवन की सहज-स्वाभाविक विशेषताओं को अति सुंदर ढंग से कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया। राधा और कृष्ण के प्रेम की प्रतिष्ठा करने में इन्होंने अपार सफलता प्राप्त की। इनकी कविता 3 में कोमलकांत ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है। इन्होंने गीति काव्य का सुंदर रूप प्रस्तुत किया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

पदों का सार :

सूरदास के द्वारा रचित ‘सूरसागर’ में संकलित ‘भ्रमरगीत’ से लिए गए चार पदों में गोपियों के विरह-भाव को प्रकट किया गया है। : ब्रजक्षेत्र से मथुरा जाने के बाद श्रीकृष्ण ने गोपियों को कभी कोई संदेश नहीं भेजा और न ही स्वयं वहाँ गए। जिस कारण गोपियों पीड़ा बढ़ गई थी। श्रीकृष्ण ने ज्ञान-मार्ग पर चलने वाले उद्धव को ब्रज भेजा ताकि वे गोपियों को संदेश देकर उनकी वियोग-पीड़ा को कुछ कम कर सकें, पर उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का उपदेश देकर गोपियों की पीड़ा को घटाने के स्थान पर बढ़ा दिया।

गोपियों को उद्धव के द्वारा दिया जाने वाला शुष्क निर्गुण संदेश बिलकुल भी पसंद नहीं आया। उन्होंने अन्योक्ति के द्वारा उद्धव पर व्यंग्य बाण छोड़े। उन्होंने उसके द्वारा ग्रहण किए गए निर्गुण-मार्ग को उचित नहीं माना। सूरदास ने इन भ्रमरगीतों के द्वारा निर्गुण भक्ति की पराजय और सगुण भक्ति की विजय दिखाने का सफल प्रयत्न किया है।

गोपियाँ मानती हैं कि उद्धव बड़े भाग्यशाली हैं, जिनके हृदय में कभी किसी के लिए प्रेम का भाव जागृत ही नहीं हुआ। वे तो श्रीकृष्ण के पास रहते हुए भी उनके प्रेम-बंधन में नहीं बँधे। जैसे कमल का पत्ता सदा पानी में रहता है, पर फिर भी उस पर जल की बूंद नहीं ठहर पाती तथा तेल की मटकी को जल के भीतर डुबोने पर भी उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती।

उद्धव ने प्रेम-नदी में कभी अपना पैर तक नहीं डुबोया, पर वे बेचारी भोली-भाली गोपियाँ श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य के प्रति रीझ गई थीं। वे उनके प्रेम में डूब चुकी हैं। उनके हृदय की सारी अभिलाषाएँ मन में ही रह गईं। वे मन ही मन वियोग की पीड़ा को झेलती रहीं। योग के संदेशों ने उन्हें और भी अधिक पीड़ित कर दिया है। श्रीकृष्ण का प्रेम उनके लिए हारिल की लकड़ी के समान है, जिसे वे कदापि नहीं छोड़ सकती।

उन्हें सोते-जागते केवल श्रीकृष्ण का ही ध्यान रहता है। योग-साधना का नाम ही उन्हें कड़वी ककड़ी-सा लगता है। वह उनके लिए किसी मानसिक बीमारी से कम नहीं है। गोपियाँ श्रीकृष्ण को ताना मारती हैं कि उन्होंने अब राजनीति पढ़ ली है। एक तो वे पहले ही बहुत चतुर थे और अब गुरु के ज्ञान को भी उन्होंने प्राप्त कर लिया है। गोपियाँ उद्धव को याद दिलाती हैं कि राजा को कभी भी अपनी प्रजा को नहीं सताना चाहिए: यही राजधर्म है।

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3

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Question 1.
In Fig, sides QP and RQ of ΔPQR are produced to points S and T respectively. If ∠SPR = 135° and ∠PQT = 110°, find ∠PRQ.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 1
Answer:
Given, ∠SPR = 135° and ∠PQT = 110°
∠SPR + ∠QPR = 180° (SQ is a straight line)
⇒ 135° + ∠QPR = 180°
⇒ ∠QPR = 45°
Also, ∠PQT +∠PQR = 180° (TR is a straight line)
⇒ 110° + ∠PQR= 180°
⇒ ∠PQR = 70°
Now, ∠PQR + ∠QPR + ∠PRQ = 180°
(Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ 70° + 45° + ∠PRQ = 180°
⇒ 115° + ∠PRQ = 180°
⇒ ∠PRQ = 65°

Question 2.
In Fig, ∠X = 62°, ∠XYZ = 54°. If YO and ZO are the bisectors of ∠XYZ and ∠XZY respectively of ΔXYZ, find ∠OZY and ∠YOZ.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 2
Answer:
Given ∠X = 62°, ∠XYZ = 54°
YO and ZO are the bisectors of ∠XYZ and ∠XZY respectively.
∠X + ∠XYZ + ∠XZY = 180° (Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ 62° + 54° + ∠XZY = 180°
⇒ 116° + ∠XZY = 180°
⇒ ∠XZY = 64°

Now, ∠OZY = \(\frac {1}{2}\) ∠XZY (ZO bisector.)
⇒ ∠OZY = 32°
also, ∠OYZ = \(\frac {1}{2}\) ∠XYZ (YO is the bisector.)
⇒ ∠OYZ = 27°
Now, ∠OZY + ∠OYZ + ∠YOZ = 180° (Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ 32° + 27° + ∠YOZ = 180°
⇒ 59° + ∠YOZ = 180°
⇒ ∠YOZ = 121°

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3

Question 3.
In, Fig , if AB || DE, ∠BAC = 35° and ∠CDE = 53° and ∠DCE.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 3
Answer:
Given, AB || DE, ∠BAC = 35° and ∠CDE = 53°
∠BAC = ∠CED (Alternate interior angles.)
∴ ∠CED = 35°
Now, ∠DCE + ∠CED + ∠CDE = 180° (Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ ∠DCE + 35° + 53° = 180°
⇒ ∠DCE + 88° = 180°
⇒ ∠DCE = 92°

Question 4.
In Fig, if lines PQ and RS intersect at point T, such that ∠PRT = 40°, ∠RPT = 95° and ∠TSQ = 75°, find ∠SQT.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 4
Answer:
Given, ∠PRT = 40°, ∠RPT = 95° and ∠TSQ = 75°
∠PRT + ∠RPT + ∠PTR = 180° (Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ 40° + 95° + ∠PTR = 180°
⇒ 135° + ∠PTR = 180°
⇒ ∠PTR = 45°
∠STQ = ∠PTR = 45° (Vertically opposite angles)
Now, ∠TSQ + ∠STQ + ∠SQT = 180° (Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ 75° + 45° + ∠SQT = 180°
⇒ 120° + ∠SQT = 180°
⇒ ∠SQT = 60°

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Question 5.
In Fig, if PQ || PS, PQ || SR, ∠SQR = 28° and ∠QRT = 65°, then find the values of x and y.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 5
Answer:
Given, PQ || PS, PQ || SR, ∠SQR = 28° and ∠QRT = 65°
x + ∠SQR = ∠QRT (Alternate angles as QR is transversal)
⇒ x + 28° = 65°
⇒ x = 37°
also, ∠QSR = x (Alternate angles)
⇒ ∠QSR = 37°
also, ∠QRS+∠QRT=180°(Linear pair)
⇒ ∠QRS + 65° = 180°
⇒ ∠QRS =115°
Now, ∠P + ∠Q+ ∠R + ∠S = 360°
(Sum of the angles in a quadrilateral)
⇒ 90° + 65° + 115° + ∠S = 360°
⇒ 270° + y + ∠QSR = 360°
⇒ 270° + y + 37° = 360°
⇒ 307° + y = 360°
⇒ y = 53°

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3

Question 6.
In Fig, the side QR of APQR is produced to a point S. If the bisectors of ∠PQR and ∠PRS meet at point T, then prove that ∠QTR = \(\frac{1}{2}\) ∠QPR.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 6
Answer:
Given: Bisectors of ∠PQR and ∠PRS meet at point T.
To prove: ∠QTR = \(\frac{1}{2}\) ∠QPR.
Proof: ∠TRS = ∠TQR + ∠QTR (Exterior angle of a triangle equals the sum of its interior opposite angles.)
⇒ ∠QTR = ∠TRS – ∠TQR …………(i) also,
∠SRP = ∠QPR + ∠PQR
∵ 2 ∠TRS = ∠QPR + 2 ∠TQR
⇒ ∠SRP = 2∠TRS and ∠PQR = 2∠TQR
⇒ ∠QPR = 2 ∠TRS – 2 ∠TQR
⇒ \(\frac{1}{2}\) QPR = ∠TRS – ∠TQR …………(ii)
Equating (i) and (ii)
∠QTR = \(\frac{1}{2}\) ∠QPR
∴ Hence, proved.