JAC Class 10 Hindi व्याकरण मुहावरे

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Vyakaran मुहावरे Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Vyakaran मुहावरे

मुहावरा – एक ऐसा वाक्यांश है, जो सामान्य अर्थ का बोध न करवाकर विशेष अर्थ का बोध करवात्म है। वाक्य में इसका प्रयोग क्रिया के समान होता है, जैसे – ‘आकाश – पाताल एक करना’।
इस वाक्यांश का सामान्य अर्थ है – ‘पृथ्वी और आकाश को मिलाना’ लेकिन ऐसा संभव नहीं है। अतः इसका लक्षणा शब्द – शक्ति से विशेष अर्थ होगा – ‘ बहुत परिश्रम करना’।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण मुहावरे

कुछ महत्वपूर्ण मुहावरे :

अंग – अंग ढीला होना (बहुत थकावट का अनुभव करना) – आठ घंटे लगातार परिश्रम करने के कारण उसका अंग – अंग ढीला हो गया।
अंग छूना (कसम खाना) – कैकेयी ने अंग छूकर कहा कि राम को वन भेजने में भरत का कोई दोष नहीं।
अंगूठा दिखाना (इनकार करना) – जब मैंने अपने मित्र से सहायता माँगी तो उसने अंगूठा दिखा दिया।
अक्ल का दुश्मन (मूर्ख) – उसे समझाने की कोशिश करना व्यर्थ है। वह तो अक्ल का दुश्मन है।
अंगारों पर पैर रखना (जान – बूझकर हानिकारक कार्य करना) – अपने माता – पिता की इकलौती संतान होने के कारण उसे अंगारों पर पैर नहीं रखने चाहिए।
अंगारे बरसना (कड़ी धूप पड़ना) – मई – जून की दोपहरी में अंगारे बरसते हैं।
अंड – वंड बकना (भला – बुरा कहना) – तुम उसकी अनुपस्थिति में अंड-वंड बक रहे हो। यदि उसे पता चल गया तो होश ठिकाने लगा देगा।
अंत बिगाड़ना (कार्य का अंतिम फल बिगाड़ देना) – अब तक तो तुमने ईमानदारी से काम किया है। भला अब रिश्वत लेकर अपना अंत क्यों बिगाड़ रहे हो?

अंधे को दीपक दिखाना (नासमझ को उपदेश देना) – भगवान कृष्ण दुर्योधन के धृष्टपूर्ण व्यवहार से समझ गए थे कि उसे उपदेश देना अंधे को दीपक दिखाना है।
अंधे की लकड़ी (एकमात्र सहारा) – मोहन अपने बूढ़े माता-पिता के लिए अंधे की लकड़ी है।
अँधेरे घर का उजाला (इकलौता बेटा) – सुरेश अपने माँ-बाप के अँधेरे घर का उजाला है।
अंत पाना (रहस्य पाना) – ईश्वर का अंत पाना संभव नहीं।
अगर – मगर करना (टालमटोल करना) – उसे मेरे एक हज़ार रुपए देने हैं।
जब भी माँगता हूँ अगर – मगर करने लगता है।
अपना उल्लू सीधा करना (अपना मतलब निकालना) – स्वार्थी मित्रों से बचकर रहना चाहिए। उन्हें तो अपना उल्लू सीधा करना आता है।
अपने पाँव पर आप कुल्हाड़ी मारना (अपनी हानि आप करना) – जो छात्र समय का सदुपयोग नहीं करते, वे अपने पाँव पर आप कुल्हाड़ी मारते हैं।
अपना – सा मुँह लेकर रह जाना (बहुत लज्जित होना) – जब सब के सामने उसकी चोरी की पोल खुली तो वह अपना – सा मुँह लेकर रह गया।
अपने मुँह मियाँ मिठू बनना (अपनी प्रशंसा आप करना) – अपने मुँह मियाँ मिठू बनना अच्छी आदत नहीं।
अपनी खिचड़ी अलग पकाना (सबसे अलग रहना) – मंथन न तो अपने सहपाठियों के साथ खेलता है और न ही उनसे बात करता है। वह हर काम में अपनी खिचड़ी अलग पकाता है।
अक्ल पर पत्थर पड़ना (बुद्धिभ्रष्ट होना) – विद्वान होते हुए भी रावण की अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे अन्यथा वह सीता का अपहरण न करता।
अरण्य – रोदन (व्यर्थ की पुकार अथवा बेअसर रोना – धोना) – अत्याचारी शासक के शासनकाल में ग़रीबों की पुकार अरण्य – रोदन होकर रह जाती है।
अक्ल के घोड़े दौड़ाना (समस्या का समाधान ढूँढ़ने के लिए सोच – विचार करना) – सभी अधिकारी इस विकट समस्या का हल ढूँढ़ने के लिए अपनी – अपनी अक्ल के घोड़े दौड़ा रहे हैं।
आँख का काँटा (खटकने वाला व्यक्ति) – मजदूरों का उग्र नेता उस मिल – मालिक की आँख का काँटा बन गया है।
आँखें खलना (होश आना. सावधान होना ज्ञान प्राप्त होना) – उस महात्मा के प्रवचन सनकर मेरी आँखें खल गईं।
आसमान टूट पड़ना (बहुत बड़ी मुसीबत आना) – मैं सच्चाई से विमुख नहीं हो सकता। भले ही मुझ पर आसमान टूट पड़े।
आस्तीन का साँप (कपटी मित्र) – टीना से सावधान रहना। वह तो आस्तीन का साँप है।
कंगाली में आटा गीला होना (मुसीबत में और मुसीबत आना) – इस निर्धन अवस्था में उसकी नौकरी छूट जाना कंगाली में आटा गीला होने के समान है।
ईंट से ईंट बजाना (नष्ट – भ्रष्ट करना) – हनुमान ने लंका की ईंट से ईंट बजा दी।
ईंट का जवाब पत्थर से देना (दृढ़ता से शत्रु का मुकाबला करना) – भारत शत्रु देश की ईंट का जवाब पत्थर से देना जानता है।
ईद का चाँद होना (बहुत देर के बाद मिलना) – भई, शादी के बाद तो तुम ईद का चाँद बन गए हो।
उंगली उठना (निंदित होना) – दुराचारी लोगों पर शीघ्र ही उंगली उठने लगती है।
उंगली उठाना (निंदा करना, हानि पहुँचाने की कोशिश करना) – बुरे व्यक्ति पर सब उंगली उठाते हैं। जब तक मैं जीवित हूँ, तुम्हारे ऊपर कोई उंगली नहीं उठा सकता।
उंगली पर नचाना (अपनी इच्छानुसार काम लेना) – कुछ अधिकारी कर्मचारियों को अपनी उंगली पर नचाते हैं।
उगल देना (भेद प्रकट कर देना) – पुलिस की कठोर मार पड़ने पर उस चोर ने सब कुछ उगल दिया।
उठ जाना (मर जाना, समाप्त हो जाना) – अल्प आयु में ही भारतेंदु जी इस संसार से उठ गए।
उड़ती चिड़िया पहचानना (दूसरे की असलियत जान लेना अथवा किसी के मन की बात जान लेना) – तुम उसे धोखा नहीं दे सकते। वह तो उड़ती चिड़िया पहचानता है।
उलटी गंगा बहाना (नियम के विरुद्ध काम करना) – गीतों के उस प्रकांड पंडित को कर्म – योग का उपदेश देना उलटी गंगा बहाना है।
उलटी सीधी सुनाना (बुरा – भला कहना) – जब मैंने उसे समझाया तो वह मुझे ही उलटी – सीधी सुनाने लगा।
एक आँख से देखना (एक समान समझना) – हमारे महाविद्यालय के प्राचार्य सभी छात्रों को एक आँख से देखते हैं।
एक लकड़ी से हाँकना (अच्छे – बुरे के साथ एक जैसा व्यवहार करना) – हमारे नगर के पुलिस अधिकारी सभी को
एक लकड़ी से हाँकते हैं। एड़ी – चोटी का जोर लगाना (पूरा प्रयत्न करना) – सम्राट अकबर ने एड़ी – चोटी का जोर लगा दिया पर वह राणा प्रताप को अपने अधीन न कर सका।
कंचन बरसना (बहुत लाभ होना अथवा धन प्राप्त होना) – जब से उन्होंने नई मिल खोली है, उनके यहाँ कंचन बरस रहा है।
कठपुतली होना (दूसरों के इशारों पर चलना) – भारत को कोई भी देश अपने धन – वैभव के बल पर कठपुतली नहीं बना सकता।
कफ़न सिर पर बाँधना (मरने की परवाह न करना) – सैनिक सिर पर कफ़न बाँधकर युद्ध – भूमि में प्रवेश करते हैं।
कमर कसना (तैयार होना) – देश से भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए समाज – सेवकों ने कमर कस ली है।
कमर टूटना (सहायक न रहना, निराशा आना) – महँगाई ने निर्धन लोगों की कमर तोड़ दी है।
कलेजा थामकर रह जाना (दुःख को बेबसी से सहन कर लेना) – अपने बेटे की मृत्यु का समाचार सुनकर माँ कलेजा थाम कर रह गई।
कलेजा मुँह को आना (अत्यधिक दुःखी होना) – अपने इकलौते बेटे की मृत्यु का समाचार सुनकर उसका कलेजा मुँह को आ गया।
कागजी घोड़े दौड़ाना (केवल लिखा – पढ़ी करना) – देश की उन्नति के लिए सरकार को कागजी घोड़े दौड़ाने की अपेक्षा लोगों को ठोस कार्य करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
कान कतरना (कान काटना) (बहुत चालाक होना) – उसको छोटा मत समझो, वह बड़ों – बड़ों के कान कतरता (काटता) है।
कान का कच्चा (जो हर एक के कहने में आए) – हमारे अधिकारी वैसे तो सज्जन हैं, पर कान के कच्चे हैं।
कान खड़े होना (आश्चर्य से सुनने के लिए उत्सुक होना) – नेता के मंच पर आते ही उनका भाषण सुनने के लिए सब के कान खड़े हो गए।
कान खोलना (सावधान करना) – आचार्य जी ने सुरेश के दोष बतला कर सब विद्यार्थियों के कान खोल दिए।
कान पर ज तक न रेंगना (कछ असर न होना) – मैंने उसे बहत समझाया कि यह मार्ग उचित नहीं, पर उसके कान पर जॅ न रेंगी।
गोबर गणेश (सीधा – सादा होना) – हमारा नौकर तो गोबर गणेश है। उसे इतना भी पता नहीं चलता कि घर में कौन आया था।
घड़ियाँ गिनना (उत्सुकता से प्रतीक्षा करना) – अयोध्यावासी श्री रामचंद्र जी के आने की घड़ियाँ गिनते रहते थे।
घर में गंगा बहना (घर में अथवा सहज में ही योग्य मिल जाना) – आपके पिता जी तो हिंदी – संस्कृत के विद्वान हैं। अतः आपके घर में ही गंगा बहती है।
घाट – घाट का पानी पीना (अनुभवी होना) – राजेश को चकमा देना सरल काम नहीं है। उसने घाट – घाट का पानी पी रखा है।
घड़ों पानी पड़ना (अत्यंत लज्जित होना) – चोरी का पता लगते ही उस पर घड़ों पानी पड़ गया।
घात में रहना (किसी को हानि पहुँचाने की ताक में रहना) – शत्रु से बचकर रहना चाहिए। वह हमेशा घात में रहता है।
घाव पर नमक छिड़कना (दुःखी को और दुःखी करना) – महँगाई के इस युग में निर्धन कर्मचारियों के भत्ते बंद करना घाव पर नमक छिड़कना है।
घाव हरा होना (भूला हुआ दुख ताज़ा होना) – मृत बेटे की स्मृति ने माँ का घाव हरा कर दिया।
घास खोदना (व्यर्थ में समय नष्ट करना, तुच्छ काम करना) – परिणाम देखकर तो यही पता चलता है कि वह पढ़ने की अपेक्षा सारा वर्ष घास खोदता रहा।
घी के दीये जलाना (बहुत प्रसन्न होना) – अपनी विजय का समाचार सुनकर भारतवासियों ने घी के दीये जलाए।
घोड़े बेचकर सोना (निश्चित होकर सोना) – अरे भई, आज नौ बजे से परीक्षा प्रारंभ हो रही है और तुम घोड़े बेचकर सो रहे हो।
घोड़े पर सवार होना (शीघ्रता में होना) – तुम जब भी आते हो घोड़े पर सवार होते हो। कभी तो बैठ जाया करो।
चकमा देना (धोखा देना) – चोर पुलिस को चकमा देकर भाग गया।
चंपत होना (भाग जाना) – माली को अपनी तरफ आते देखकर सब लड़के चंपत हो गए।
चलती गाड़ी में रोड़ा अटकाना (होते हुए काम में रुकावट डालना) – संस्था का कार्य ठीक प्रकार से चल रहा था कि किसी ने प्रधान के चुनाव का प्रश्न उठाकर चलती गाड़ी में रोड़ा अटका दिया।
चाँद पर थूकना (बड़े व्यक्ति का अपमान करने का प्रयत्न करने पर स्वयं की हानि उठाना) – गांधी जी की निंदा करना चाँद पर थूकने के समान है।
चाँदी का जूता मारना (रिश्वत देना) – सरकारी कार्यालयों में काम करवाने का सबसे अच्छा उपाय चाँदी का जूता मारना है।
चाँदी होना (बहुत धन प्राप्त होना) – इन दिनों सीमेंट एवं लोहे के व्यापारियों की चाँदी है।
चादर देखकर पैर पसारना (अपनी योग्यता के अनुसार खर्च करना) – चादर देखकर पाँव पसारने वाले लोग कभी आर्थिक संकट का सामना नहीं करते।
चार चाँद लगाना (सुंदरता या मान बढ़ाना) – गीता ने दशम कक्षा की परीक्षा में पंजाब भर में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपने विद्यालय को चार चाँद लगा दिए हैं।
चिकना घड़ा होना (जिस पर कुछ असर न हो) – विजय तो निर्लज्जता के कारण चिकना घड़ा बन गया है। उस पर किसी उपदेश का असर नहीं होता।
चिराग तले अँधेरा होना (गुण के साथ दोष, व्यवस्था करने वाले के पास ही उलटा काम होना) – दो चौकीदारों के होते हुए चोरी हो जाना चिराग तले अँधेरा
चूड़ियाँ पहनना (कायर बनना) – यदि तुम शत्रु का सामना नहीं कर सकते तो घर जाकर चूड़ियाँ पहन लो।
चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना (घबरा जाना) – जब सबने उसे पुलिस के हवाले करने का निर्णय किया तो उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।
चोली – दामन का साथ (गहरा संबंध) – नाटक और रंगमंच का चोली – दामन का साथ है।
छक्के छुड़ाना (बुरी तरह पराजित करना) – भारत – पाक युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए।
छक्के छूटना (घबरा जाना, हारकर निराश हो जाना) – शिवाजी के आकस्मिक आक्रमण से औरंगजेब के छक्के छूट गए।
छठी का दूध याद आना (बहुत घबरा जाना) – भारतीय वायु – सेना के आक्रमण ने पाकिस्तानियों को छठी का दूध याद दिला दिया।
छाती पर मूंग दलना (सामने ही ढिठाई करना) – सारा दिन माँ की छाती पर मूंग दलने की अपेक्षा अच्छा है कि कुछ काम करें।
छाती पर साँप लोटना (ईर्ष्या से जलना) – विदेश में भारत का मान बढ़ते देखकर शत्रु – देश की छाती पर साँप लोटने लगा।
जलती आग में घी डालना (क्रोध अथवा झगड़े को बढ़ाना) – मानसिंह ने सम्राट अकबर से राणा प्रताप के विषय में झूठी बातें कह कर जलती आग में घी डालने का काम किया।
दूध का दूध पानी का पानी (पूरा – पूरा न्याय करना) – न्यायाधीश ने अपने निर्णय में दूध का दूध पानी का पानी कर दिया।
दूर की हाँकना (गप्प मारना) – हमारे चाचा जी ऐसी दूर की हाँकते हैं कि सब हैरान हो जाते हैं।
दुम दबाकर भागना (डरकर भाग जाना) – चोर पुलिस को देखते ही दुम दबाकर भाग गया।
दौड़ – धूप करना (बहुत परिश्रम करना) – बड़ी दौड़ – धूप करने के बाद उसे यह नौकरी मिली है।
दो नावों पर पैर रखना (दो पक्षों में होना) – दो नावों पर पैर रखने वाले लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
दूध की मक्खी (बेज्जत करना) – तुम चिंता क्यों करते हो। यदि यह हमारी महफिल में आया तो मैं उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल दूंगा।
दो टूक बात करना (साफ़ – साफ़ बात करना) – अगर – मगर करने की अपेक्षा दो टूक बात करना अधिक अच्छा होता है।
धूप में बाल सफ़ेद न होना (अनुभवी होना) – देखो, मेरा कहना मान लो, मैंने धूप में बाल सफ़ेद नहीं किए।
नमक – मिर्च लगाना (बात को बढ़ा कर कहना) – बात कुछ भी नहीं थी लेकिन मीनाक्षी ने नमक – मिर्च लगा कर बताई।
नाक काटना (मान नष्ट होना) – बेटे के कुकर्मों ने पिता की नाक कटवा दी।
नाक पर मक्खी न बैठने देना (अपने पर जरा – सा भी दोष न आने देना) – वे सारा काम सुचारु ढंग से करते हैं इसलिए अपनी नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते।
नाक में दम करना (बहुत तंग करना) – छात्रों ने नए अध्यापक की नाक में दम कर रखा है।
नाम पर धब्बा लगना (बदनामी होना) – उसकी काली करतूत के कारण सारे परिवार के नाम पर धब्बा लग गया।
नाकों चने चबाना (बुरी तरह तंग करना) – शिवाजी ने अपने रण – कुशलता से औरंगजेब को नाकों चने चबवा दिए।
नानी याद आना (कष्ट का अनुभव होना) – पर्वत की चढ़ाई चढ़ते समय सबको नानी याद आ गई।
निन्यानवे के फेर में पड़ना (धन जमा करने की चिंता में रहना) – जो लोग निन्यानवे के फेर में पड़ जाते हैं, वे समाज – सेवा नहीं कर सकते।
नौ दो ग्यारह होना (भाग जाना) – चोर पुलिस को देखते ही नौ दो ग्यारह हो गया।
पगड़ी सँभालना (मान – मर्यादा की रक्षा के लिए तैयार हो जाना) – मनुष्य को हर कीमत पर अपनी पगड़ी सँभालनी चाहिए।
पैंतरा बदलना (विचार बदलना, स्थिर न रहना) – वह पैंतरा बदलना खूब जानता है। मेरे सामने कुछ कहता है आपके सामने कुछ।
पत्थर की लकीर होना (पक्की बात होना) – सरदार पटेल का कहना पत्थर की लकीर होता था।
पाँचों उंगलियाँ घी में होना (बहुत लाभ होना) – वस्तुओं के भाव चढ़ जाने से व्यापारियों की पाँचों उंगलियाँ घी में होती हैं।
पानी का बुलबुला होना (शीघ्र नष्ट हो जाने वाला) – मानव – जीवन पानी का बुलबुला है।
पाला पड़ना (वास्ता पड़ना) – पुलिस से किसी का पाला न पड़े।
पानी – पानी होना (बहुत लज्जित हो जाना) – अपना रहस्य प्रकट होते देखकर वह पानी – पानी हो गया।
पानी में आग लगाना (बहुत असंभव काम कर दिखाना) – उन महात्मा जी को क्रोध दिलाना पानी में आग लगाना है।
पापड़ बेलना (कई काम करना) – उसने बहुत पापड़ बेले हैं, पर उसे कहीं भी सफलता नहीं मिली।
पहाड़ टूट पड़ना (बहुत बड़ा संकट आना) – उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।
पीठ फेरना (विमुख होना) – उसकी बुरी आदतों से तंग आकर सबने उससे पीठ फेर ली है।
पेट में चूहे कूदना (बहुत भूख लगना) – सारा दिन कुछ न खाने के कारण मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं।
पेट में दाढ़ी होना (ऊपर से सीधा पर भीतर से चालाक होना) – उसे बच्चा मत समझो, उसके तो पेट में दाढ़ी है।
पेट काटना (कम खर्च कर ज़रूरत के लिए जोड़ना) – माँ – बाप पेट काटकर बच्चों को पढ़ाते हैं।
पौ बारह होना (भरपूर लाभ होना) – चाँदी के व्यापार में हमारे पौ बारह हो गए हैं।
फुलझड़ी छोड़ना (मज़ाक करना) – राकेश को फुलझड़ी छोड़ने की आदत है।
फूटी आँख न भाना (ज़रा – सा भी अच्छा न लगना) – दुष्ट एवं दुराचारी व्यक्ति मुझे फूटी आँख नहीं भाते।
फूंक – फूंक कर कदम रखना (बहुत सावधानी से काम करना) – फूंक – फूंक कर कदम रखने पर भी यहाँ बदनामी का खतरा बना रहता है।
बगुला भगत होना (ऊपर से अच्छा दिखाई देना पर हृदय से कपटी होना) – आज के युग में बगुला भगतों की कमी नहीं।
बगलें झाँकना (कुछ उत्तर न सूझने पर इधर – उधर देखना) – जब अध्यापक ने उससे प्रश्न पूछा तो वह बगलें झाँकने लगा।
बड़े घर की हवा खाना (जेल जाना) – यदि तुमने चोरी का धंधा न छोड़ा तो एक दिन बड़े घर की हवा खाओगे।
लहू के चूंट पीकर रह जाना (क्रोध को मन में दबा लेना) – द्रोपदी का अपने सामने अपमान होते देखकर पांडव लहू का चूंट पीकर रह गए।
लहू – पसीना एक करना (अत्यधिक परिश्रम करना) – मज़दूर लोग अपनी जीविका कमाने के लिए लहू – पसीना एक कर देते हैं।
लाल – पीला होना (गुस्से में आना) – अपने ऊपर झूठा आरोप लगते देखकर वह लाल – पीला हो गया।
में होना (अवसर अनुकूल होना) – चुनाव में लोहा गर्म देखकर जनता पार्टी ने चोट की और विजय प्राप्त की।
लोहा मानना (अधीनता स्वीकार करना, शक्ति मानना) – अकबर जैसा शक्तिशाली सम्राट भी राणा प्रताप का लोहा मानता था।
लोहा लेना (डटकर टक्कर लेना) – चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस से लोहा लिया और बहुमत से विजय प्राप्त की।
लकीर का फकीर होना (पुरानी परिपाटी पर चलना) – आधुनिक युग में भी कुछ लोग लकीर का फकीर बनकर रहते हैं।
लुटिया डुबोना (काम बिगाड़ देना) – उसके सामने रहस्य की बात प्रकट करके तुमने मेरी लुटिया डूबो दी।
लोहे के चने चबाना (बहुत कठिन काम करना) – एम० ए० की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करना लोहे के चने चबाना है।
विष उगलना (कड़वी तथा कठोर बात कहना) – दूसरों के लिए विष उगलना अच्छी आदत नहीं।
शेर के दाँत गिनना (साहस का काम करना) – भरत बचपन में ही शेर के दाँत गिनता था।
शैतान के कान कतरना (बहुत चालाक होना) – तुम उसे धोखा नहीं दे सकते, वह तो शैतान के कान कतरता है।
श्रीगणेश करना (कार्य आरंभ करना) – दीपावली के शुभ दिन उन्होंने अपनी नई मिल का श्रीगणेश किया।
सठिया जाना (बुद्धि ठीक न रहना, असंतुलित होना) – अब तो मुंशी जी सठिया गए हैं।
अतः उनसे सलाह लेना उचित नहीं। सात घाट का पानी पीना (बहुत अनुभवी तथा चालाक होना) – आप सब मिल कर भी कर्मचंद को धोखा नहीं दे सकते। उसने सात घाट का पानी पी रखा है।
सिर उठाना (विरोध में उठना) – डाकू शेरसिंह ने अपने साथियों को चेतावनी देते हुए कहा – यदि किसी ने सिर उठाया तो उसे कुचल दूंगा।
सिर धुनना (पछताना) – पहले मेहनत करते, अब असफल होने पर सिर धुनना व्यर्थ है।
सोने में सुगंध (गुण के साथ गुण मिलना) – नाटक में गीत – संगीत की योजना सोने में सुगंध के समान है।
सात – पाँच करना (चालाकी करना) – सीधी तरह बात करो। सात – पाँच करना ठीक नहीं।
स्वाहा करना (नष्ट कर देना) – नालायक बेटे ने पिता की सारी संपत्ति स्वाहा कर दी।
सूरज (सूर्य) को दीपक दिखाना (किसी महान व्यक्ति का परिचय देना) – महात्मा गांधी का परिचय देना सूरज को दीपक दिखाना है।
सिर पर सवार होना (बुरी तरह पीछे पड़ना) – नौकर अपना वेतन बढ़वाने के लिए अपने मालिक के सिर पर सवार रहता है।
हथियार डाल देना (पूरी तरह हार स्वीकार करना) – लाचार होकर पाक – सेना ने भारतीय सेना के आगे हथियार डाल दिए।
हवाई किले बनाना (झूठे मनोरथ करना) – परिश्रम के बिना हवाई किले बनाने से कोई व्यक्ति महान नहीं बन जाता।
हवा लगना (बुरा प्रभाव पड़ना) – लगता है उसे भी ज़माने की हवा लग गई है, जब देखो फ़ैशन की बात करता है।
हवा से बातें करना (बहुत तेज पड़ना) – शीघ्र ही हमारी कार हवा से बातें करने लगी।
हाथ धोकर पीछे पड़ना (बुरी तरह पीछे पड़ना) – बीमा कंपनी के एजेंट हाथ धोकर पीछे पड़ जाते हैं।
हाथ मलना (पछताना) – समय पर परिश्रम करने से सफलता मिलती है। बाद में हाथ मलना व्यर्थ है।
हाथ साफ़ करना (बहुत खाना, जैसे – तैसे धन प्राप्त करना, तलवार से काटना) – अच्छा पकवान देखकर रतन ने खूब हाथ साफ़ किया, महँगाई में व्यापारियों ने ग्राहकों पर हाथ साफ़ किए, भारतीय सैनिकों ने शत्रुओं पर खूब हाथ साफ़ किए।
हाथ उठाना (मारने को तैयार रहना) – जवान बेटे पर हाथ उठाने की बजाय उसे समझाना चाहिए।
हाथों के तोते उड़ जाना (बहुत व्याकुल तथा शोकग्रस्त होना) – पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके हाथों के तोते उड़ गए।
हक्का – पानी बंद करना (संबंध तोड़ लेना) – यदि तुम सीधे रास्ते पर न आए तो तुम्हारा हुक्का – पानी बंद कर दिया जाएगा।
हमीर हठ (दृढ़ निश्चयी, पक्का जिद्दी) – तुम उसे अपने पथ से विमुख नहीं कर सकते। उसकी हमीर हठ प्रसिद्ध है।
हाथ धो बैठना (किसी वस्तु से वंचित होना, गँवा बैठना) – जो लोग अपव्ययी होते हैं, शीघ्र ही धन से हाथ धो बैठते हैं।
हाथ – पैर मारना (कोशिश करना) – वह सफलता प्राप्त करने के लिए हाथ – पैर मार रहा है।
हाथ रंगना (खूब धन कमाना) – महँगाई में जमाखोर व्यापारी खूब हाथ रंगते हैं।
हाथ खींचना (सहायता बंद करना) – जहाँ तक हो सके निर्धनों की सहायता करो। उनसे हाथ खींचना अच्छी बात नहीं।
हाथ तंग होना (पैसे का अभाव होना) – अपनी बेटी की शादी धूमधाम से करने के बाद उनका हाथ कुछ तंग हो गया है।
हाथ – पाँव फूलना (डर से घबरा जाना) – पुलिस को अपने घर आया देखकर उसके हाथ-पाँव फूल गए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

JAC Class 9 Hindi कीचड़ का काव्य Textbook Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
रंग की शोभा ने क्या कर दिया ?
उत्तर :
रंग की शोभा उत्तर दिशा में जमी थी। उस दिशा में लाल रंग ने आज कमाल ही कर दिया था।

प्रश्न 2.
बादल किसकी तरह हो गए थे ?
उत्तर :
बादल धुनी हुई रूई की बत्ती के समान हो गए थे।

प्रश्न 3.
लोग किन-किन चीज़ों का वर्णन करते हैं ?
उत्तर :
लोग आकाश, पृथ्वी और जलाशयों का वर्णन करते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 4.
कीचड़ से क्या होता है ?
उत्तर :
कीचड़ से पैर, शरीर और वस्त्र गंदे हो जाते हैं। किसी को अपने ऊपर कीचड़ लगाना अच्छा नहीं लगता है।

प्रश्न 5.
कीचड़ जैसा रंग कौन पसंद करते हैं ?
उत्तर :
पुस्तकों के गत्तों पर, घरों की दीवारों पर, कीमती कपड़ों के लिए हम सब कीचड़ के जैसा रंग पसंद करते हैं। कला के जानकार भी मटमैला रंग पसंद करते हैं।

प्रश्न 6.
नदी के किनारे कीचड़ कब सुंदर दिखता है ?
उत्तर :
नदी के किनारे का कीचड़ तब सुंदर दिखाई देता है जब उसके सूखकर टुकड़े हो जाते हैं।

प्रश्न 7.
कीचड़ कहाँ सुंदर लगता है ?
उत्तर :
नदी किनारे मीलों तक जब समतल और चिकना कीचड़ एक-सा फैला हुआ होता है तब और खंभात में मही नदी के आगे दूर-दूर तक फैला हुआ तथा पहाड़ के पहाड़ डुबो लेने की शक्ति रखनेवाला कीचड़ सुंदर लगता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 8.
‘पंक’ और ‘पंकज’ शब्द में क्या अंतर है ?
उत्तर
‘पंक’ कीचड़ को कहते हैं। ‘पंकज’ का अर्थ कमल है। पंकज पंक + ज अर्थात् कीचड़ से उत्पन्न होने वाला। ‘पंक’ शब्द घृणास्पद है और पंकज मन को आनंदित कर देता है।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति क्यों नहीं होती ?
उत्तर :
कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति इसलिए नहीं होती क्योंकि कीचड़ में पैर डालना कोई पसंद नहीं करता। कीचड़ से शरीर गंदा हो जाता है। कीचड़ से वस्त्र मैले हो जाते हैं। अपने शरीर पर कीचड़ उड़े, यह किसी को पसंद नहीं है। सब कीचड़ से बचते हैं।

प्रश्न 2.
ज़मीन ठोस होने पर उसपर किनके पदचिह्न अंकित होते हैं ?
उत्तर :
जब कीचड़ ज़्यादा सूखकर ज़मीन को ठोस बना देती है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, पाड़े, बकरे, भेड़ आदि के पदचिह्न दिखाई देने लगते हैं। कई बार इसपर आपस में लड़ते हुए पाड़े के सींगों के चिह्न भी दिखाई देते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 3.
मनुष्य को क्या ज्ञान होता जिससे वह कीचड़ का तिरस्कार न करता ?
उत्तर :
मनुष्य को यदि इस बात का ज्ञान होता है कि हम धान भी कीचड़ में से ही पैदा करते हैं तो वह कभी भी कीचड़ का तिरस्कार नहीं करता। भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही उगती है।

प्रश्न 4.
पहाड़ लुप्त कर देनेवाली कीचड़ की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
खंभात के पास मही नदी के मुख से आगे जहाँ तक देखते हैं कीचड़ ही कीचड़ दिखाई देता है। यह कीचड़ इतना गहरा है कि इसमें हाथी तो क्या पहाड़ तक लुप्त हो सकते हैं।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
कीचड़ का रंग किन-किन लोगों को खुश करता है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि कीचड़ का रंग बहुत सुंदर होता है। लोग पुस्तकों के गत्तों पर, घरों की दीवारों पर अथवा शरीर के कीमती कपड़ों के लिए कीचड़ के जैसे रंग पसंद करते हैं। कला के जानकारों को भी भट्टी में पकाए मिट्टी के बरतनों के लिए यही रंग पसंद है। फोटो लेते समय भी यदि उसमें मटमैलापन आ जाए तो फोटो के जानकार प्रसन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
कीचड़ सूखकर किस प्रकार के दृश्य उपस्थित करता है ?
उत्तर :
नदी किनारे जब कीचड़ सूख कर टुकड़े हो जाते हैं तो उसपर पड़ने वाली दरारें बहुत सुंदर लगती हैं। ज्यादा गरमी में जब इन टुकड़ों पर दरारें पड़ती हैं और ये टेढ़े हो जाते हैं, तब ये सुखाए हुए खोपरे जैसे दिखाई देते हैं। नदी किनारे मीलों तक फैला हुआ समतल और चिकना कीचड़ बहुत आकर्षक दृश्य उपस्थित करता है। इस कीचड़ के कुछ सूख जाने पर इसपर बने हुए बगुले तथा अन्य पक्षियों के चलने के निशान भी देखने में अच्छे लगते हैं।

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प्रश्न 3.
सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य किन स्थानों पर दिखाई देता है ?
उत्तर :
नदी के किनारे जब कीचड़ के सूखकर टुकड़े हो जाते हैं तब सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य दिखाई देता है। यही कीचड़ के सूखे हुए टुकड़े अधिक गरमी के कारण टेढ़े होकर सूखे खोपरे जैसे दिखाई देते हैं। सूखे हुए कीचड़ पर चलनेवाले बगुले तथा अन्य पक्षियों के पद – चिह्न भी देखने में सुंदर लगते हैं। जब कीचड़ अधिक सूखकर ठोस हो जाता है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, भेड़ आदि के अंकित पद – चिह्नों की शोभा निराली ही होती है।

प्रश्न 4.
कवियों की धारणा को लेखक ने वृत्ति-शून्य क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवियों की धारणा को लेखक ने वृत्ति-शून्य इसलिए कहा है क्योंकि वे लेखक के इस तर्क को स्वीकार नहीं करेंगे कि जिस ‘पंक’ शब्द को सुनने मात्र से ही वे पंक से घृणा करने लगते हैं, उसी ‘पंक’ से उत्पन्न पंकज का नाम सुनने से उनका मन हर्षित होकर गाने क्यों लगता है ? उस ‘पंक’ से उनकी घृणा व्यर्थ है। हमारा अन्न भी कीचड़ से ही पैदा होता है। इसलिए कीचड़ का तिरस्कार करना उचित नहीं है। वे अपना तर्क देकर लेखक के तर्क को स्वीकार नहीं करेंगे।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
नदी किनारे अंकित पदचिह्न और सींगों के चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख
में लिखा हो ऐसा भास होता है।
उत्तर :
नदी के किनारे के सूखे कीचड़ में जवान भैंसे जब अपने सींगों को उस सूखे कीचड़ में धँसाकर आपस में मस्त होकर जूझते होंगे तो उनके परस्पर टकराने से उस सूखे कीचड़ पर जो चिह्न बनते हैं उनसे ऐसा प्रतीत होता है मानो भैंसों के परिवार के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कीचड़ पर एक लेख के रूप में लिख दिया गया है।

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प्रश्न 2.
आप वासुदेव की पूजा करते हैं इसलिए वसुदेव को तो नहीं पूजते, हीरे का भारी मूल्य देते हैं किंतु कोयले या पत्थर का नहीं देते और मोती को कंठ में बाँध कर फिरते हैं किंतु उसकी मातुश्री को गले में नहीं बाँधते !” कम-से-कम इस विषय पर कवियों के साथ तो चर्चा न करना ही उत्तम !
उत्तर :
लेखक जब कवियों को समझाना चाहता है कि कीचड़ का तिरस्कार करना उचित नहीं है तो यह सोचकर कवि उसे कहेंगे कि जब वासुदेव की पूजा करने पर वसुदेव को नहीं पूजा जाता, हीरे के लिए अधिक मूल्य देते हैं पर कोयले या पत्थर का अधिक मूल्य नहीं देते तथा मोती कंठ में पहनते हैं परंतु सीपी को तो गले में नहीं बाँधते हैं – वह उनसे कीचड़ की श्रेष्ठता के संबंध में कोई चर्चा न करना ही उचित मानता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखिए –
उत्तर :
JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य 1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों में कारकों को रेखांकित कर उनके नाम भी लिखिए-
उत्तर :

  1. कीचड़ का नाम लेते ही सब बिगड़ जाता है। – संबंध
  2. क्या कीचड़ का वर्णन कभी किसी ने किया है ? – संबंध
  3. हमारा अन्न कीचड़ से ही पैदा होता है। – करण
  4. पदचिह्न उस पर अंकित होते हैं। – अधिकरण
  5. आप वासुदेव की पूजा करते हैं। – संबंध

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों की बनावट को ध्यान से देखिए और इनका पाठ से भिन्न किसी नए प्रसंग में वाक्य प्रयोग कीजिए –
आकर्षक, यथार्थ, तटस्थता, कलाभिज्ञ, पदचिह्न, अंकित, तृप्ति, सनातन, लुप्त, जागृत, घृणास्पद, युक्ति शून्य, वृत्ति।
उत्तर :

  • आकर्षक – कन्याकुमारी में सूर्यास्त का दृश्य बहुत आकर्षक होता है।
  • यथार्थ – प्रेमचंद के साहित्य में ग्राम्य जीवन का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है।
  • तटस्थता – न्याय करते समय हमें तटस्थता की नीति अपनानी चाहिए।
  • कलाभिज्ञ – कलादीर्घा में अनेक कलाभिज्ञ एकत्र हुए।
  • पदचिह्न – हमें महापुरुषों के पदचिह्नों पर चलना चाहिए।
  • अंकित – सुभाषचंद बोस का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
  • तृप्ति – गंगा – स्नान से मुझे तृप्ति मिली।
  • सनातन – हमें अपनी सनातन परंपराओं का पालन करना चाहिए।
  • लुप्त – मेरे देखते-देखते ही सुबह का तारा लुप्त हो गया।
  • जागृत – जागृत अवस्था में स्वप्न देखना उचित नहीं है।
  • घृणास्पद – गंदगी का ढेर देखना ही घृणास्पद है।
  • युक्ति शून्य – जया के सभी तर्क युक्ति शून्य थे।
  • वृत्ति – पीयूष विनम्र वृत्ति का बालक है।

प्रश्न 4.
नीचे दी गई संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग करते हुए कोई अन्य वाक्य बनाइए –
(क) देखते-देखते वहाँ के बादल श्वेत पूनी जैसे हो गए।
उत्तर :
मेरे देखते-देखते ही गाड़ी चल पड़ी।

(ख) कीचड़ देखना हो तो सीधे खंभात पहुँचना चाहिए।
उत्तर :
सागर देखना हो तो सीधे कन्याकुमारी पहुँचना चाहिए।

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(ग) हमारा अन्न कीचड़ में से ही पैदा होता है
उत्तर :
कमल कीचड़ में से ही पैदा होता है।

प्रश्न 5.
न नहीं, मत का सही प्रयोग रिक्त स्थानों पर कीजिए-
(क) तुम घर ………. जाओ।
(ख) मोहन कल ………. आएगा।
(ग) उसे ………… जाने क्या हो गया है ?
(घ) डाँटो …………. प्यार से कहो।
(ङ) मैं वहाँ कभी ………… जाऊँगा।
(च) ………… वह बोला ……….. मैं।
उत्तर :
(क) तुम घर मत जाओ।
(ख) मोहन कल नहीं आएगा।
(ग) उसे न जाने क्या हो गया है ?
(घ) डाँटो मत प्यार से कहो।
(ङ) मैं वहाँ कभी नहीं जाऊँगा।
(च) न वह बोला न मैं।

योग्यता-विस्तार –

1. विद्यार्थी सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य देखें तथा अपने अनुभवों को लिखें।
2. कीचड़ में पैदा होनेवाली फसलों के नाम लिखिए।
3. भारत के मानचित्र में दिखाएँ कि धान की फसल प्रमुख रूप में किन-किन प्रांतों में उपजाई जाती है ?
4. क्या कीचड़ ‘गंदगी’ है ? इस विषय पर अपनी कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi कीचड़ का काव्य Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘कीचड़ का काव्य’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘कीचड़ का काव्य’ काका कालेलकर द्वारा रचित एक ललित निबंध है। इस निबंध में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता का वर्णन किया है। लेखक के विचार में हमें कीचड़ के गंदेपन पर नहीं बल्कि उसकी मानव तथा पशु-पक्षियों के जीवन में उपयोगिता पर ध्यान देना चाहिए। मनुष्य मटमैला रंग पसंद करता है तथा पशु-पक्षियों को कीचड़ में क्रीड़ा करना और उसपर चलना अच्छा लगता है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही उग पाती है। कमल जिसे पंकज कहते हैं ‘पंक’ कीचड़ में से ही उगता है। इस प्रकार लेखक ने कीचड़ को हेय न कह श्रद्धेय माना है।

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प्रश्न 2.
लेखक ने कीचड़ की महानता कैसे सिद्ध की है ?
उत्तर :
कीचड़ की महानता सिद्ध करने के लिए लेखक ने तीन उदाहरण दिए हैं। लेखक के अनुसार यदि मनुष्य यह अच्छी तरह से समझ ले कि धान जैसी फसल कीचड़ में ही पैदा होती है तो वह कीचड़ का तिरस्कार नहीं करेगा। दूसरे उदाहरण में, लेखक यह बताता है कि पंक से ही पंकज अर्थात कमल पैदा होता है, इसलिए पंक, कीचड़ से घृणा करना उचित नहीं है। इसी प्रकार से मल की मलिनता से परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि कमल में मल शब्द का प्रयोग होता है और कमल मन को आनंदित करता है।

प्रश्न 3.
आज लेखक को पूर्व और उत्तर दिशा में क्या अंतर दिखाई दे रहा है ?
उत्तर :
आज लेखक को पूर्व दिशा में विशेष आकर्षण दिखाई नहीं दे रहा था, क्योंकि बादलों के कारण पूर्व दिशा रंगहीन थी। दूसरी ओर उत्तर दिशा की लालिमा देखते ही बन रही थी। वहाँ बादलों ने अभी अपने पैर नहीं रखे थे, परंतु कितनी देर तक उत्तर दिशा लाल रंग में रँगी रहेगी। कुछ ही देर में वहाँ भी बादल छा गए।

प्रश्न 4.
कवि कीचड़ का वर्णन क्यों नहीं करते हैं? वे किन-किन चीज़ों की सुंदरता का वर्णन करते हैं ?
उत्तर :
कवि कीचड़ का वर्णन नहीं करते हैं, क्योंकि कीचड़ में पैर डालने से ही शरीर के साथ-साथ मन भी गंदा अनुभव करने लगता है और कपड़े गंदे हो जाते हैं, इसलिए सभी कीचड़ से दूर रहना पसंद करते हैं।
कवि प्रकृति का चित्रण करते हैं-धरती, आकाश, जलाशयों आदि की सुंदरता का वर्णन करते हैं। उन्हें आकाश का खुलापन, धरती की हरियाली और जलाशयों का कल-कल ध्वनि करता जल अधिक आकर्षित करता है। उन्हें चारों ओर रंग बिखेरनेवाली चीजें अधिक पसंद आती हैं। इसलिए वे लोग कीचड़ का वर्णन नहीं करते हैं।

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प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार कीचड़ में कैसा सौंदर्य है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार कीचड़ में भी सौंदर्य है। कीचड़ का रंग बहुत सुंदर है। लोग पुस्तकों के गत्तों पर और घरों की दीवारों पर कीचड़ जैसे ही रंग पसंद करते हैं। कलाकारों को भी कीचड़ के रंग पसंद आते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि कीचड़ में भी सौंदर्य होता है।

प्रश्न 6.
लेखक कीचड़ देखने के लिए कहाँ जाने के लिए कह रहा है ?
उत्तर :
लेखक कहता है कि यदि कीचड़ देखने की इच्छा हो तो गंगा के किनारे या सिंधु नदी के किनारे जाना चाहिए। वहाँ कीचड़ का विशाल रूप दिखाई देगा। यदि वहाँ कीचड़ देखने से भी तृप्ति न मिले तो उसका विराट रूप देखने के लिए खंभात जाना चाहिए। वहाँ महानदी के मुख से आगे जहाँ तक भी नज़र जाए कीचड़ – ही कीचड़ देखने को मिलेगा। वहाँ कीचड़ इतना गहरा है कि उसमें पहाड़ भी डूब जाएँ।

प्रश्न 7.
कीचड़ में कौन-सा फूल और अन्न पैदा होता है ?
उत्तर :
पूर्वी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही होती है। हमारा राष्ट्रीय फूल कमल जो अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, वह भी कीचड़ में पैदा होता है। पंक, कीचड़ में पैदा होने के कारण उसे पंकज भी कहा जाता है।

कीचड़ का काव्य Summary in Hindi

लेखक – परिचय :

जीवन-परिचय – महात्मा गांधी के जीवन से अत्यंत प्रभावित काका कालेलकर अनूठे व्यक्तित्व के स्वामी थे। आपका जन्म महाराष्ट्र के सतारा नगर में सन् 1885 ई० में हुआ था। यह मराठी भाषी थे पर इन्हें हिंदी से विशेष लगाव था। यह महात्मा गांधी के साथ राष्ट्रभाषा प्रचार कार्य में लंबे समय तक जुड़े रहे। उस समय हिंदी के लिए ही ‘राष्ट्रभाषा’ शब्द का प्रयोग होता था। यह अनेक वर्षों तक साहित्य अकादमी में गुजराती भाषा के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते रहे। अपने जीवनकाल में इन्होंने देश-विदेश में दूर-दूर तक भ्रमण किया। यह घुमक्कड़ स्वभाव के थे। इनका देहावसान सन् 1982 में हुआ।

रचनाएँ – काका कालेलकर ने अपने जीवनकाल में लगभग 30 पुस्तकों की रचना की थी, जिनमें से प्रमुख हैं – हिमालनो प्रवास, लोकमाता (यात्रा – विवरण), स्मरण यात्रा संस्मरण, धर्मोदय (आत्मचरित), जीवननो आनंद, अवारनवार (निबंध-संग्रह)। इनकी अधिकांश पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।

भाषा-शैली – काका कालेलकर मात्र घुमक्कड़ ही नहीं थे बल्कि अत्यंत उच्चकोटि के विद्वान और विचारक भी थे। उन्होंने स्वयं को केवल हिंदी के प्रचार तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि हिंदी – साहित्य को अपने लेखन से समृद्ध भी किया। यह घूमने-फिरने के शौकीन थे, इसलिए इन्होंने यात्रा – वृत्तांत के अंतर्गत हिंदी – साहित्य को देश-विदेश के लोगों का रहन-सहन, प्राकृतिक दृश्यों, स्वभावों, आदतों तथा विभिन्न समस्याओं से परिचित कराया। इनके द्वारा रचित निबंध विचारात्मक और विवरणात्मक शैली में हैं।

वर्णन में सजीवता का गुण लाने में इन्हें निपुणता प्राप्त है। तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात को प्रस्तुत करना इनकी लेखन शैली की विशिष्टता है। इनके चिंतन प्रधान निबंधों में भावात्मकता का पुट विद्यमान रहता है। अपनी सूक्ष्म दृष्टि से इन्होंने मानव मन में झाँकने की चेष्टा की है और किसी क्षेत्र के कण-कण को पहचानने का सफल प्रयत्न किया है। इनका लेखन कार्य अति प्रभावशाली है। सजीव और जीवंत भाषा – प्रयोग में यह सिद्धहस्त थे, इन्होंने तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग कर अपने विचारों को व्यक्त किया।

‘कीचड़ का काव्य’ निबंध में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता का काव्यमय भाषा – शैली में वर्णन किया है; जैसे- ” नदी के किनारे जब कीचड़ सूखकर उसके टुकड़े हो जाते हैं, तब वे कितने सुंदर दिखते हैं। ज्यादा गरमी से जब उन्हीं टुकड़ों में दरारें पड़ती हैं और वे टेढ़े हो जाते हैं, तब सुखाए हुए खोपरे जैसे दीख पड़ते हैं। ” इनके इन वर्णनों में चित्रात्मकता के भी दर्शन होते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

पाठ का सार :

‘कीचड़ का काव्य’ काका कालेलकर द्वारा रचित ललित निबंध है। इस पाठ में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए उसे श्रद्धेय बताया है। लेखक सूर्योदय का वर्णन करते हुए लिखता है कि आज सुबह पूर्व दिशा की अपेक्षा उत्तर दिशा में लालिमा थी जिसे कुछ ही देर बाद श्वेत कपास की पूनी जैसी रंगत के बादलों ने ढक दिया था। आकाश, पृथ्वी, जलाशयों का वर्णन तो सब करते हैं परंतु कीचड़ का वर्णन कोई नहीं करता है।

शायद इसलिए कि कीचड़ से स्वयं को गंदा करना किसी को भी अच्छा नहीं लगता है। लेखक को कीचड़ में भी सौंदर्य दिखाई देता है क्योंकि इसका रंग बहुत सुंदर है और लोग पुस्तकों के गत्ते पर घरों की दीवारों, कीमती कपड़ों आदि के लिए कीचड़ के जैसा रंग पसंद करते हैं। कलाकारों को भी यही रंग पसंद है पर कीचड़ का नाम लेते ही लोग नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं।

लेखक नदी के किनारे सूखे हुए कीचड़ के टुकड़ों को सुखाए हुए खोपरों जैसा देखता है। नदी के किनारे दूर तक समतल और चिकने कीचड़ पर बगुलों और अन्य पक्षियों के पद- चिह्न लेखक को इन्हीं पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। कीचड़ जब अधिक सूखकर ठोस ज़मीन बन जाता है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, भेड़ आदि के पद – चिह्न तथा अपने सींगों को कीचड़ से भरकर मल्ल युद्ध करनेवाले मदमस्त भैंसों के चिह्न इस दृश्य को और भी अधिक आकर्षक बना देते हैं के गंगा, सिंधु नदी के किनारे की कीचड़ से भी अधिक कीचड़ खंभात में माही नदी के मुख से आगे कीचड़ ही कीचड़ है जिसमें पहाड़ पहाड़ लुप्त हो सकते हैं।

हम लोग धान भी कीचड़ में पैदा करते हैं। कमल को पंकज भी कहते हैं जो कीचड़ से ही उत्पन्न होता है। मल से मलिनता का बोध होता है परंतु कमल में ‘मल’ शब्दांश के प्रयोग से कमल के समान मन खिल उठता है। लेखक कहता है कि यदि कवियों को ऐसे तर्क दें तो उन्हें नहीं समझाया जा सकता क्योंकि वे तो यही तर्क देंगे कि ‘वासुदेव की पूजा करते हैं परंतु वसुदेव की नहीं, हीरे कीमती होते हैं पर कोयला या पत्थर तो नहीं, मोती को गले में बाँधते हैं पर सीपी को तो नहीं।’ इसलिए वह कवियों से इस संबंध में कोई चर्चा नहीं करना चाहता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • पूर्व – पूर्व दिशा।
  • आकर्षक – मुग्ध करनेवाला, रोचक।
  • शोभा – सुंदरता।
  • उत्तर – उत्तर दिशा।
  • श्वेत – सफ़ेद।
  • पूनी – धुनी हुई रूई की बत्ती।
  • जलाशय – तालाब।
  • तटस्थता – बिना भेदभाव के।
  • कलाभिज्ञ – कला के जानकार।
  • वार्मटोन – मटमैला रंग।
  • विज्ञ – जानकार।
  • खोपरे – नारियल।
  • पद-चिहून – पैरों के निशान।
  • अंकित – चिह्नित।
  • कारवाँ – झुंड।
  • पाड़े – भैंस के नर बच्चे।
  • महिषकुल – भैंसों का परिवार।
  • कर्दम – कीचड़।
  • अल्पोक्ति – थोड़ा कहना।
  • लुप्त – गायब।
  • आहूलादकत्व – हर्ष का भाव।
  • युक्तिशून्य – तर्क से रहित।
  • वृत्ति – स्वभाव।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

JAC Class 9 Hindi वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
रामन भावुक प्रकृति-प्रेमी के अलावा और क्या थे ?
उत्तर :
रामन भावुक प्रकृति-प्रेमी के अतिरिक्त एक जिज्ञासु वैज्ञानिक भी थे।

प्रश्न 2.
समुद्र को देखकर रामन के मन में कौन-सी दो जिज्ञासाएँ उठीं ?
उत्तर :
समुद्र को देखकर रामन के मन में दो जिज्ञासाएँ उठीं कि समुद्र का रंग नीला क्यों होता है और समुद्र का रंग कोई दूसरा क्यों नहीं होता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 3.
रामन के पिता ने उनमें किन विषयों की सशक्त नींव डाली ?
उत्तर :
रामन के पिता ने उनमें गणित और भौतिकी विषयों की सशक्त नींव डाली थी।

प्रश्न 4.
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन क्या करना चाहते थे ?
उत्तर :
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन उनकी ध्वनियों के पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्यों की परतें खोलना चाहते थे।

प्रश्न 5.
सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन की क्या भावना थी ?
उत्तर :
रामन ने सरकारी नौकरी इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि वे मानते थे कि सरस्वती की साधना सरकारी नौकरी की सुख-सुविधाओं से अधिक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 6.
‘रामन प्रभाव’ की खोज के पीछे कौन-सा सवाल हिलोरें ले रहा था ?
उत्तर :
‘रामन प्रभाव’ की खोज के पीछे समुद्र के नीले रंग की वजह का सवाल हिलोरें ले रहा था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 7.
प्रकाश – तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने क्या बताया ?
उत्तर :
आइंस्टाइन के अनुसार प्रकाश – तरंगें प्रकाश के अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान हैं।

प्रश्न 8.
रामन की खोज ने किन अध्ययनों को सहज बनाया ?
उत्तर :
रामन की खोज ने पदार्थों की आण्विक और परमाण्विक संरचना के अध्ययनों को सहज बनाया।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
कॉलेज के दिनों में रामन की दिली इच्छा क्या थी ?
उत्तर :
चपन से ही वैज्ञानिक रहस्यों को सुलझाने में लगे रहते थे। अपने कॉलेज के दिनों में उन्होंने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना प्रारंभ कर दिया था। उन्हीं दिनों उनका एक शोध – आलेख ‘फिलॉसॉफिकल’ मैगज़ीन में प्रकाशित भी हुआ था। उनकी दिली इच्छा यह थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्य में लगा दें, किंतु उन दिनों इस कार्य को पूर्णकालिक व्यवसाय के रूप में अपनाने की कोई व्यवस्था नहीं थी।

प्रश्न 2.
वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन ने कौन-सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की ?
उत्तर :
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों पर किए जा रहे अपने शोधकार्यों में रामन ने वायलिन, चैलो, पियानो जैसे विदेशी वाद्यों के साथ ही वीणा, तानपूरा, मृदंगम् जैसे देशी वाद्यों पर भी काम किया था। उन्होंने वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर पश्चिमी देशों की इस भ्रांति को भी तोड़ने की कोशिश की थी कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्यों की तुलना में घटिया हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 3.
रामन के लिए नौकरी संबंधी कौन-सा निर्णय कठिन था ?
उत्तर :
रामन के लिए सरकारी नौकरी छोड़कर कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार करने का निर्णय लेना कठिन था। उन दिनों वे अत्यंत प्रतिष्ठित सरकारी पद पर थे। उन्हें अच्छा वेतन और अनेक सरकारी सुविधाएँ प्राप्त थीं। उन्हें नौकरी करते हुए भी दस साल हो चुके थे।

प्रश्न 4.
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन को समय-समय पर किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ?
उत्तर :
रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज पर सन् 1924 ई० में रॉयल सोसायटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। सन् 1929 ई० में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई। सन् 1930 ई० में उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार मिला। सन् 1954 ई० में इन्हें ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया। इन्हें रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक, फ़िलाडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक और सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार भी मिला था।

प्रश्न 5.
‘रामन को मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतीय चेतना को जागृत किया।’ ऐसा क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
रामन नोबेल पुरस्कार प्राप्त करनेवाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। उन्हें अन्य पदक और पुरस्कार तब मिले थे जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। उन्हें मिलनेवाले सम्मानों ने भारत को एक नया आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास दिया था। उनसे प्रेरणा प्राप्त कर अन्य भारतीय वैज्ञानिकों ने भी अलग-अलग क्षेत्रों में शोधकार्य प्रारंभ कर दिए थे। इस प्रकार उन्हें मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतीय चेतना को जागृत कर दिया था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
रामन के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
रामन कोलकाता में सरकारी नौकरी करते थे। इन दिनों भी उनकी वैज्ञानिक शोधकार्यों में रुचि बनी हुई थी। वे अपने कार्यालय से लौटते हुए बहू बाज़ार में स्थित डॉक्टर महेंद्र लाल द्वारा स्थापित ‘इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ की प्रयोगशाला में उपलब्ध उपकरणों की सहायता से अपना शोधकार्य करते थे। उनका यह कार्य वास्तव में आधुनिक हठयोग का उदाहरण था जिसमें एक साधक अपने कार्यालय में कठिन परिश्रम करने के बाद बहू बाज़ार की साधारण – सी प्रयोगशाला में काम चलाऊ उपकरणों की सहायता से और अपनी प्रबल इच्छा-शक्ति के बल पर भौतिक विज्ञान को समृद्ध बनाने का प्रयास करता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 2.
रामन की खोज ‘रामन प्रभाव’ क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रामन ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया था। इसी के परिणाम को ‘रामन प्रभाव’ कहा गया है। इसके अनुसार जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। इसका कारण यह होता है कि एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन जब तरल या ठोस रवे से गुज़रते हैं तो इनके अणुओं से टकराते हैं। इस कारण वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा जाते हैं। दोनों ही स्थितियों में प्रकाश के वर्ण अथवा रंग में बदलाव आता है। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंगनी रंग के प्रकाश में होती है। इसके बाद नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण आते हैं। एकवर्णीय प्रकाश-तरल या ठोस रवों से गुज़रते हुए जिस परिणाम में ऊर्जा खोता या पाता है, उसी हिसाब से उसका वर्ण परिवर्तित होता है।

प्रश्न 3.
‘रामन प्रभाव’ की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य संभव हो सके ?
उत्तर :
‘रामन प्रभाव’ की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी। इससे प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन ने जो कहा था उसका प्रायोगिक प्रमाण मिल गया क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन प्रकाश की किरण का तीव्रगामी सूक्ष्म कणों के प्रवाह के रूप में व्यवहार करती है। ‘रामन प्रभाव’ से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना के अध्ययन में सहायता मिलती है। इस तकनीक द्वारा एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सही जानकारी मिल जाती है। इससे पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण भी संभव हो गया है।

प्रश्न 4.
देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
रामन केवल व्यक्तिगत प्रयोगों एवं वैज्ञानिक शोध-पत्र लेखन तक ही सीमित नहीं थे। उन्हें अपने भारतीय होने पर गर्व था। उनमें निहित राष्ट्रीय चेतना ने उन्हें देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास की प्रेरणा दी। उन्हें स्मरण था कि किस प्रकार काम चलाऊ उपकरणों से वे बहू बाज़ार की प्रयोगशाला में वैज्ञानिक अनुसंधान में लगे रहते थे। इसलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध-संस्थान ‘रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के नाम से बंगलौर में स्थापित की। उन्होंने भौतिक शास्त्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए ‘इंडियन जनरल ऑफ़ फीज़िक्स’ निकाला तथा ‘करेंट साइंस’ नामक पत्रिका का संपादन किया। उन्होंने अनेक शोधार्थियों का मार्गदर्शन भी किया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 5.
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के जीवन से प्राप्त होनेवाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के जीवन से हमें यह संदेश मिलता है कि मनुष्य अपने जीवन में जो करना चाहता है वह उसे कर सकता है यदि उसमें उस कार्य को करने की लगन तथा इच्छा हो। रामन की शोधकार्य में इच्छा थी परंतु उन्हें एम० ए० करने के बाद वित्त विभाग में सरकारी नौकरी करनी पड़ी। इससे वे विचलित नहीं हुए बल्कि समय निकालकर सामान्य – सी प्रयोगशाला में अपने शोध करते रहे।

जब उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर की नौकरी मिली तो वे सरकारी सुख-सुविधाएँ छोड़कर प्रोफ़ेसर की कम सुविधाओं और वेतनवाली नौकरी करने लगे क्योंकि यहाँ पढ़ने-लिखने और शोधकार्य की सुविधा थी। उनकी इसी दूर – दृष्टि ने उन्हें विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक बना दिया। रामन के जीवन से हमें यह भी शिक्षा लेनी चाहिए कि हम अपने आस-पास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक दृष्टि से करें तो हम प्रकृति के अनेक रहस्यों का उद्घाटन रामन की तरह कर सकते हैं।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।
उत्तर :
रामन कोलकाता के सरकारी वित्त विभाग में अच्छे वेतन और सुख-सुविधाओं वाली नौकरी करते थे। उन्हीं दिनों कोलकाता विश्वविद्यालय में एक प्रोफ़ेसर की आवश्यकता थी। सुप्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी रामन की प्रतिभा तथा वैज्ञानिक रुचि से परिचित थे। उन्होंने रामन को विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार करने के लिए कहा। सुख-सुविधाओं और अच्छे वेतन की सरकारी नौकरी छोड़कर कम वेतन और कम सुविधाओं वाली विश्वविद्यालय की नौकरी स्वीकार करना रामन के लिए हिम्मत का काम था। उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर विश्वविद्यालय की नौकरी स्वीकार कर ली क्योंकि वे मानते थे कि सरस्वती की साधना करना सरकारी सुख-सुविधाओं को भोगने से कहीं अधिक श्रेष्ठ है। इस प्रकार वे अध्ययन, अध्यापन और शोधकार्य में लग गए।

प्रश्न 2.
हमारे पास ऐसी न जाने कितनी ही चीजें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं।
उत्तर :
रामन चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक दृष्टि से करे। हमारे आसपास प्रकृति में अनेक ऐसी चीजें हैं, जिन्हें यदि हम ध्यान से देखें तो वे हमें अपनी ओर आकर्षित करती हैं और हमसे कहती हैं कि हमारे रहस्य को उद्घाटित करो। कोई रामन जैसा शोधार्थी ही प्रकृति के अज्ञात रहस्यों से परदा उठा सकता है।

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प्रश्न 3.
यह अपने-आप में एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।
उत्तर :
प्राचीनकाल में योगी अनेक कठिन साधनाओं के द्वारा हठयोग का अभ्यास करते थे परंतु रामन ने अच्छे वेतन और सुख-सुविधाओं से युक्त सरकारी नौकरी होते हुए भी अपना वैज्ञानिक शोधकार्य करने के लिए अपने कार्यालय के समय के बाद बहू बाजार की इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में जाया करते थे। यहाँ रामन को पर्याप्त उपकरण भी उपलब्ध नहीं होते थे। फिर भी वे अपना शोधकार्य करते रहे। उनका यह कार्य आधुनिक हठयोग का ही उदाहरण है जिसमें एक साधन दफ्तर में कड़ी मेहनत करने के बाद बहू बाजार की सामान्य-सी प्रयोगशाला में अपनी इच्छा-शक्ति के बल पर भौतिक विज्ञान को समृद्ध कर रहा था।

(घ) उपयुक्त शब्द का चयन करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

प्रश्न :
इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, इंडियन एसोसिएशन फ़ार द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस, फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन, भौतिकी, रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट
1. रामन का पहला शोध – पत्र …………………….. में प्रकाशित हुआ था।
2. रामन की खोज …………………. के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
3. कोलकाता की मामूली सी प्रयोगशाला का नाम ……………… था।
4. रामन द्वारा स्थापित शोध संस्थान …………………….. नाम से जानी जाती है
5. पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए …………. का सहारा लिया जाता था।
उत्तर :
1. रामन का पहला शोध – पत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।
2. रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
3. कोलकाता की मामूली-सी प्रयोगशाला का नाम इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस था।
4. रामन द्वारा स्थापित शोध संस्थान रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट नाम से जानी जाती है।
5. पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
नीचे कुछ समानदर्शी शब्द दिए जा रहे हैं जिनका अपने वाक्य में इस प्रकार प्रयोग करें कि उनके अर्थ का अंतर स्पष्ट हो सके।
(क) प्रमाण, (ख) प्रणाम, (ग) धारणा, (घ) धारण, (ङ) पूर्ववर्ती, (च) परवर्ती, (छ) परिवर्तन, (ज) प्रवर्तन
उत्तर :
(क) प्रमाण – इस बात का क्या प्रमाण है कि आप चौदह वर्ष के हैं ?
(ख) प्रणाम – राजेश सुबह उठकर अपने माता – पिता को प्रणाम करता है।
(ग) धारणा – अध्यापिका की सुमन के संबंध में अच्छी धारणा नहीं है।
(घ) धारण – राजा ने सुंदर मुकुट धारण किया हुआ है
(ङ) पूर्ववर्ती – इंदिरा गांधी से पूर्ववर्ती भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे।
(च) परवर्ती – हुमायूँ से परवर्ती मुग़ल सम्राट अकबर था।
(छ) परिवर्तन – प्रकृति में प्रतिपल परिवर्तन होता रहता है।
(ज) प्रवर्तन – हिंदी साहित्य में छायावाद का प्रवर्तन जयशंकर प्रसाद ने किया था।

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प्रश्न 2.
रेखांकित शब्द के विलोम शब्द का प्रयोग करते हुए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
उत्तर :
(क) मोहन के पिता मन से सशक्त होते हुए भी तन से अशक्त हैं।
(ख) अस्पताल के अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी रूप से नौकरी दे दी गई है।
(ग) रामन ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया।
(घ) आज बाज़ार में देशी और विदेशी दोनों प्रकार के खिलौने उपलब्ध हैं।
(ङ) सागर की लहरों का आकर्षण उसके विनाशकारी रूप को देखने के बाद अपकर्षण में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 3.
नीचे दिए उदाहरण में रेखांकित अंश में शब्द-युग्म का प्रयोग हुआ है-
उदाहरण: चाऊतान को गाने-बजाने में आनंद आता है।
उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
सुख-सुविधा, अच्छा-खासा, प्रचार- प्रसार, आस-पास
उत्तर :
सुख-सुविधा – रामन ने सरस्वती की साधना के लिए सुख-सुविधा त्याग दी।
अच्छा-खासा – सुंदरम अच्छा-खासा कमाता है, फिर भी उधार माँगता रहता है।
प्रचार-प्रसार – किसी भी उत्पाद का प्रचार-प्रसार दूरदर्शन के माध्यम से शीघ्र हो जाता है।
आस-पास – मीनाक्षी और कुंदा का घर आस- पास है।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत पाठ में आए अनुस्वार और अनुनासिक शब्दों को निम्नलिखित तालिका में लिखिए –
उत्तर :
अनुस्वार – अनुनासिक
(क) अंदर – (क) ढूँढ़ते
(ख) अंक – (ख) ऊँचे
(ग) संस्था – (ग) भाँति
(घ) ढंग – (घ) पहुँचता
(ङ) संघर्ष – (ङ) जहाँ

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प्रश्न 5.
पाठ में निम्नलिखित विशिष्ट भाषा प्रयोग आए हैं। सामान्य शब्दों में इनका आशय स्पष्ट कीजिए –
घंटों खोए रहते, स्वाभाविक रुझान बनाए रखना, अच्छा-खासा काम किया, हिम्मत का काम था, सटीक जानकारी, काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए, कड़ी मेहनत के बाद खड़ा किया था, मोटी तनख्वाह
उत्तर :
बहुत देर तक सोचते रहते, अपनी पसंद बनाए रखना, बहुत काम किया, आसान काम नहीं था, पूरी और सही जानकारी, बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए, बहुत परिश्रम से बनाया था, बहुत अच्छा वेतन

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर मिलान कीजिए –

  1. नीला – कामचलाऊ
  2. पिता – रव
  3. तैनाती – भारतीय वाद्ययंत्र
  4. उपकरण – वैज्ञानिक रहस्य
  5. घटिया – समुद्र
  6. फोटॉन – नींव
  7. भेदन – कोलकाता

उत्तर :

  1. नीला – समुद्र
  2. पिता – नींव
  3. तैनाती – कोलकाता
  4. उपकरण – काम चलाऊ
  5. घटिया – भारतीय वाद्ययंत्र
  6. फोटॉन – रव
  7. भेदन – वैज्ञानिक रहस्य।

प्रश्न 7.
पाठ में आए रंगों की सूची बनाइए। इनके अतिरिक्त दस रंगों के नाम और लिखिए। पाठ में आए रंग – बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल।
उत्तर :
अन्य रंग – गुलाबी, काला, केसरिया, फ़िरोजी, गेहुँआ, सलेटी, बादामी, नसवारी, सफ़ेद, मेंहदी।

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प्रश्न 8.
नीचे दिए गए उदाहरण के अनुसार ‘ही’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए। उदाहरण: उनके ज्ञान की सशक्त नींव उनके पिता ने ही तैयार की थी।
उत्तर :

  1. रामन ने ही रामन-प्रभाव की खोज की थी।
  2. हनुमान ने ही लंका में जाकर सीता की खोज की थी।
  3. इंदु की पिटाई करनेवाली सगीता ही थी।
  4. भारत ने ही मोहाली में इंग्लैंड की क्रिकेट टीम को हराया था।
  5. राम ने ही रावण को बाण से मारा था।

योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
‘विज्ञान का मानव विकास में योगदान’ विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
भारत के किन-किन वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार मिला है ? पता लगाइए और लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
न्यूटन के आविष्कार के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों की सूची उनके कार्यों / योगदानों के साथ बनाइए।
प्रश्न 2.
भारत के मानचित्र में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली और कोलकाता की स्थिति दर्शाएँ।
प्रश्न 3.
उत्तर
पिछले बीस-पच्चीस वर्षों में उन वैज्ञानिक खोजों, उपकरणों की सूची बनाइए, जिसने मानव-जीवन बदल दिया है। विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज की प्रेरणा कैसे मिली ?
उत्तर :
रामन को प्रकृति से बहुत लगाव था। सन् 1921 ई० में समुद्री यात्रा कर रहे थे। वे जहाज़ के डेक पर खड़े होकर नीले सागर को घंटों देखते रहते थे। उन्हें सागर की नील वर्णीय आभा बहुत अच्छी लगती थी। वे सोचने लगे कि समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है ? कोई और रंग क्यों नहीं होता ? रामन अपने मन में उत्पन्न इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ने में लग गए और उन्होंने ‘रामन-प्रभाव’ की खोज कर ली।

प्रश्न 2.
रामन ने सरकारी नौकरी करते हुए भी शोधकार्य कैसे जारी रखा ?
उत्तर
रामन की हार्दिक इच्छा थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को समर्पित कर दें, किंतु उन दिनों शोधकार्य को एक व्यवसाय के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं हुई थी। इन दिनों सभी प्रतिभावान विद्यार्थी सरकारी नौकरी करना पसंद करते थे। रामन ने भी कोलकाता में सरकारी वित्त-विभाग में सहायक जनरल अकाउंटेंट की नौकरी कर ली। अपने कार्यालय के बाद वे बहू बाज़ार में डॉक्टर महेंद्र लाल द्वारा स्थापित इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में उपलब्ध सामान्य उपकरणों के माध्यम से अपना शोधकार्य करते थे।

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प्रश्न 3.
‘रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति मानी जाती है। उनके ‘रामन प्रभाव’ के कारण ही प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन के विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन से पहले के वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे, परंतु आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है। इन अति सूक्ष्म कणों की तुलना आइंस्टाइन ने बुलेट से करते हुए उन्हें फोटॉन नाम दिया था। रामन के प्रयोगों ने आइंस्टाइन की इस धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण दे दिया, क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन स्पष्ट रूप से यह प्रमाणित करता है कि प्रकाश की किरण तीव्रगामी सूक्ष्म कणों के रूप में व्यवहार करती है। रामन की इस खोज के कारण ही पदार्थों की आण्विक एवं परमाण्विक संरचना के अध्ययन के लिए रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा।

प्रश्न 4.
न्यूटन ने सेब को नीचे गिरते देख किस सिद्धांत की खोज की थी ?
उत्तर :
न्यूटन ने सेब को पेड़ से नीचे गिरते देखा तो उसे लगा कि पृथ्वी में ऐसी कोई शक्ति है जो सेब को नीचे की ओर खींच रही है। इसी रहस्य की खोज करते हुए उसने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सिद्धांत की खोज की थी।

प्रश्न 5.
रामन की शिक्षा पर किसका प्रभाव था ? उन्होंने अपनी शिक्षा कहाँ प्राप्त की ?
उत्तर :
रामन के पिता विशाखापत्तनम में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। पिता इन्हें बचपन से गणित और भौतिकी पढ़ाते थे। उन्हीं के कारण रामन की इन दो विषयों में दिलचस्पी बढ़ गई। उनके गणित और भौतिक से सशक्त ज्ञान की नींव उनके पिता ने तैयार की थी। रामन ने कॉलेज की पढ़ाई पहले ए०बी० एन० कॉलेज तिरुचिरापल्ली से और बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से की।

प्रश्न 6.
रामन ने विश्वविद्यालय की नौकरी करना क्यों स्वीकर किया ?
उत्तर :
रामन के जीवन की एक इच्छा थी कि वे आजीवन शोधकार्य करते रहे, परंतु उस समय सुयोग्य छात्रों को अच्छी सरकारी नौकरियाँ बहुत जल्दी मिल जाती थीं। इसीलिए उन्होंने सरकारी नौकरी कर ली। जब उन्हें विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्य करने का निमंत्रण मिला तो उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस नौकरी के पीछे उनका एक ही मकसद था कि वे विश्वविद्यालय में पढ़ाते हुए शोधकार्य भी कर सकते थे।

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प्रश्न 7.
रामन को भारतीय संस्कृति से कैसा लगाव था ? अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिलने के बाद भी रामन का स्वभाव कैसा रहा?
उत्तर :
रामन को सदा ही अपनी भारतीय संस्कृति से बहुत लगाव रहा। वे अपनी भारतीय पहचान को बनाए रखने के लिए दक्षिण भारतीय पहनावा पहनते थे। अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिलने के बाद भी रामन के स्वभाव में कोई अंतर नहीं आया था। उनका रहन-सहन साधारण था। वे एक आम दक्षिण भारतीय व्यक्ति के समान रहते थे। वे कट्टर शाकाहारी थे। उन्हें मदिरापान से सख्त परहेज़ था। उनमें किसी भी प्रकार का कोई अहंकार नहीं था।

प्रश्न 8.
एक दीपक से अन्य कई दीपक जल उठते हैं” से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
रामन को अपने आरंभिक दिनों में शोधकार्यों के लिए बहुत अधिक परेशानी उठानी पड़ी थी। इसलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना बंगलौर में की। उनकी बनाई इस प्रयोगशाला और शोध संस्थान में उनके शोध छात्रों ने काफ़ी अच्छा काम किया और कई छात्र बाद में उच्च पदों पर भी सुशोभित हुए। उनका जीवन एक दीपक के समान था जिसके प्रकाश की किरणों ने पूरे देश को आलोकित और प्रभावित किया।

प्रश्न 9.
रामन के अनुसार प्रकृति हमें क्या संदेश देती है और उसका रहस्यभेदन किस प्रकार किया जा सकता है ?
उत्तर :
रामन के अनुसार प्रकृति हमें यह संदेश देती है कि हम उसका निरीक्षण एक प्रकृति-प्रेमी के रूप में करें और उसमें हो रहे परिवर्तनों के सदस्यों को वैज्ञानिक धरातल पर ढूँढ़ने का प्रयास करें। प्रकृति का रहस्य- भेदन रामन के अनुसार निरंतर कार्य करते हुए किया जा सकता है। इसके लिए हमारे अंदर वैज्ञानिक सूझ-बूझ और जिज्ञासा की प्रवृत्ति होनी चाहिए।

वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय- धीरंजन मालवे का जन्म बिहार राज्य के नालंदा जिले के हुँवरावाँ नामक गाँव में 9 मार्च, सन् 1952 ई० को हुआ था। इन्होंने एम० एससी० (सांख्यिकी), एम०बी०ए० तथा एल०एल०बी० तक शिक्षा प्राप्त की है। इन्होंने आकाशवाणी तथा बी०बी०सी० लंदन में कार्य किया है। इन्होंने विज्ञान से संबंधित विभिन्न विषयों का प्रसारण भी किया है। वर्तमान में वे प्रसार भारती से संबंधित हैं।

रचनाएँ – इन्होंने रेडियो विज्ञान पत्रिका ‘ज्ञान-विज्ञान’ का संपादन तथा प्रसारण किया है। इनके द्वारा रचित पुस्तक ‘विश्व – विख्यात भारतीय वैज्ञानिक’ भारतीय वैज्ञानिकों का संक्षिप्त जीवन प्रस्तुत करती है। इन्होंने पर्यावरण से संबंधित एक पुस्तक भी लिखी है।

भाषा-शैली – धीरंजन मालवे ने अपनी रचनाओं में सीधी, सरल और प्रभावशाली भाषा का प्रयोग किया है। विषयानुरूप वैज्ञानिक शब्दावली का भी इन्होंने प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है। ‘वैज्ञानिक चेतना के वाहकः चंद्रशेखर वेंकट रामन’ पाठ में भी लेखक ने नीलवर्णीय आभा, असंख्य, समक्ष, जिज्ञासा, अतिशयोक्ति, समृद्ध, एकवर्णीय जैसे तत्सम शब्दों के साथ-साथ दौरान, इस्तेमाल, बावजूद, फ़ैसला, दौर जैसे उर्दू के तथा फिलॉसॉफ़िकल, वायलिन, पियानो, फोटॉन, इंफ्रारेड, स्पेक्ट्रोस्कोपी आदि अंग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग भी किया है। इनकी शैली वर्णन प्रधान तथा प्रवाहमयी है, जैसे- पेड़ से सेब गिरते हुए तो लोग सदियों से देखते आ रहे थे, मगर गिरने के पीछे छिपे रहस्य को न्यूटन से पहले और कोई समझ नहीं पाया था। ठीक उसी प्रकार विराट समुद्र की नील वर्णीय आभा को भी असंख्य लोग आदिकाल से देखते आ रहे थे, मगर इस आभा पर पड़े रहस्य के परदे को हटाने के लिए हमारे समक्ष उपस्थित हुए-सर चंद्रशेखर वेंकट रामन। इस प्रकार लेखक की भाषा-शैली सीधी, सरल एवं वैज्ञानिक शब्दावली से युक्त वर्णन प्रधान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

पाठ का सार :

‘वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन’ नामक पाठ में धीरंजन मालवे ने रामन के जीवन और शोधकार्य का संक्षिप्त एवं तथ्यात्मक विवरण प्रस्तुत किया है, जैसे पेड़ से गिरते सेब को देखकर न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोज निकाला था, उसी प्रकार से चंद्रशेखर वेंकट रामन ने विराट सागर की नील-वर्णीय आभा देखकर रामन प्रभाव की खोज की थी। सन् 1921 ई० में की गई समुद्री यात्रा ने उन्हें इस ओर प्रेरित किया था।

चंद्रशेखर वेंकट रामन का जन्म 7 नवंबर, सन् 1888 ई० को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था। इनके पिता विशाखापत्तनम में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। इनके पिता ने इन्हें बचपन से ही ये दोनों विषय पढ़ाए। इन्होंने ए०बी०एन० कॉलेज, तिरुचिरापल्ली और प्रेसीडेंसी कॉलेज चेन्नई में शिक्षा प्राप्त की थी। एम० ए० की परीक्षा उन्होंने अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की थी। कॉलेज के दिनों से ही इन्हें शोध कार्यों में रुचि थी। इनका पहला शोध आलेख फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।

इन्होंने कोलकाता में सरकारी वित्त विभाग में सहायक जनरल अकाउंटेंट के रूप में नौकरी कर ली। कार्यालय से समय मिलने पर वे बहू बाज़ार में स्थित डॉ० महेंद्र लाल सरकार द्वारा स्थापित इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में अपना शोधकार्य करते रहते थे। इन्हीं दिनों इनका रुझान वाद्य यंत्रों की ओर हुआ तथा वाद्य यंत्रों में कंपन के आधार पर शोध कार्य करते हुए अनेक शोध-पत्र प्रकाशित किए। इनके शोध कार्यों तथा प्रतिभा से प्रभावित होकर सुप्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी ने सन् 1917 में इन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद ग्रहण करने का प्रस्ताव दिया जो इन्होंने स्वीकार कर लिया। इनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।

रामन प्रभाव की खोज के लिए इन्होंने ठोस और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया तो इन्हें ज्ञात हुआ कि जब एक वर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल पदार्थ अथवा ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन होता है। इसका कारण यह है कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन तरल या ठोस रवे से गुज़रते हैं तो इनके अणुओं के टकराने से या तो वे ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा लेते हैं। दोनों ही दशाओं में प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन हो जाता है। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंगनी रंग के प्रकाश में होती है। इसके बाद नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण का नंबर आता है। लाल वर्णीय प्रकाश की ऊर्जा सबसे कम होती है।

रामन की इस खोज को भौतिकी के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि माना गया। इससे प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन द्वारा व्यक्त विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन से पहले के वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे परंतु आइंस्टाइन ने इसे सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान कहा और इनकी तुलना बुलेट से करते हुए इसे फोटॉन नाम दिया। रामन की इस खोज के बाद पदार्थों की आण्विक और परमाण्विक संरचना के अध्ययन के लिए रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। इससे पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना और अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण भी संभव हो गया।

रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज पर सन् 1924 ई० में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया था। सन् 1929 ई० में इन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई तथा इससे अगले वर्ष उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें रोम में मत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का हयूज़ पदक, फ़िलाडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक, सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार भी दिया गया था। सन् 1954 ई० में भारत सरकार ने इन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था।

रामन को भारतीय संस्कृति से सदा गहरा लगाव रहा है। वे सदा दक्षिण भारतीय पहनावा पहनते थे। वे शुद्ध शाकाहारी थे। वे मदिरा से सख्त परहेज़ करते थे। जब वे नोबल पुरस्कार प्राप्त करने स्टॉकहोम गए थे तो वहाँ उन्होंने अल्कोहल पर रामन प्रभाव का प्रदर्शन किया था। उन्होंने वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिए बंगलौर में ‘रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ नाम से एक उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना की थी। उन्होंने ‘इंडियन जनरल ऑफ फिजिक्स’ नामक शोध-पत्रिका का प्रकाशन किया था तथा सैकड़ों शोधार्थियों का मार्गदर्शन किया था। इन्होंने ‘करेंट साइंस’ नामक विज्ञान-पत्रिका का संपादन भी किया था। 21 नवंबर, सन् 1970 ई० को इनका देहांत हो गया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • नील-वर्णीय आभा – नीले रंग की चमक।
  • असंख्य – अनेक, जिनकी गिनती न की जा सके।
  • समक्ष – सामने।
  • निहारना – देखना।
  • जिज्ञासा – जानने की इच्छा।
  • विश्वविख्यात – विश्व में प्रसिद्ध।
  • अतिशयोक्ति – किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना।
  • सशक्त – मज़बूत।
  • कैरियर – व्यवसाय, पेशा।
  • दौरान – मध्य।
  • रुझान – झुकाव।
  • नितांत – बिल्कुल।
  • अभाव – कमी।
  • समृद्ध – उन्नत।
  • आकृष्ट – खिंचा हुआ, आकर्षित।
  • भ्रांति – संदेह।
  • सृजित – बनाया गया, रचा गया।
  • माहौल – वातावरण।
  • परिणति – परिणाम, फल।
  • वर्ण – रंग।
  • फोटॉन – प्रकाश का अंश।
  • एकवर्णीय – एक रंग का।
  • ऊर्जा – शक्ति, बल।
  • तीव्रगामी – तेज़ी से जाने वाली।
  • संश्लेषण – मिलान करना।
  • कृत्रिम – बनावटी।
  • अक्षुण्ण – दृढ़।
  • आहूलादित – आनंदित।

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.7

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.7 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.7

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Question 1.
Find the volume of the right circular cone with:
(i) radius 6 cm, height 7 cm
(ii) radius 3.5 cm, height 12 cm.
Answer:
(i) Radius (r) = 6 cm
Height (h) = 7 cm
∴ Volume e the cone = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 6^2 \times 7\)
= 264 cm3.

(ii) Radius (r) = 3.5 cm
Height (h) = 12 cm
∴ Volume of the cone = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 3.5 \times 3.5 \times 12\) cm3
= 154 cm3

Question 2.
Find the capacity in litres of a conical vessel with :
(i) radius 7 cm, slant height 25 cm
(ii) height 12 cm, slant height 13 cm.
Answer:
(i) Radius (r) = 7 cm
Slant height (l) = 25 cm
Let h be the height of the conical vessel.
h = \(\sqrt{l^{2} – r^{2}}\)
⇒ h = \(\sqrt{25^{2} – 7^{2}}\)
⇒ h = \(\sqrt{576}\)
⇒ h = 24 cm

Volume of the cone = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 7 \times 7 \times 24\) cm3
= 1232 cm3

Capacity of the vessel = = \(\frac{1232}{1000}\) litres
= 1.232 litres.

(ii) Height (l) = 12 cm
Slant height (h) = 13 cm
Let r be the radius of the conical vessel.
r = \(\sqrt{l^{2} – h^{2}}\)
⇒ r2 = \(\sqrt{13^{2} – 12^{2}}\)
⇒ r = \(\sqrt{25}\)
⇒ r = 5 cm

Volume of the cone = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 5 \times 5 \times 12\) cm3
= \(\frac{2200}{7}\) cm3

Capacity
= \(\frac{2200}{7 \times 1000} \text { litres }\)
= \(\frac{11}{35} \text { litres }\)

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Question 3.
The height of a cone is 15 cm. If its volume is 1570 cm3, find the radius of the base. (Use π = 3.14)
Answer:
Height of the cone (h) = 15 cm
Volume of the cone = 1570 cm3
Let the radius of base of a cone be r сm.

∴ Volume of the cone = 1570 cm3
⇒ \(\frac{1}{3}\)πr2h = 1570
⇒ \(\frac{1}{3}\) × 3.14 × r2 × 15 = 1570
⇒ 15.7 × r2 = 1570
⇒ r2 = \(\frac{1570}{3.14 × 5}\) = 100
⇒ r2 = 100
⇒ r = 10 cm

Question 4.
If the volume of a right circular cone of height 9 cm is 48π cm3, find the diameter of its base.
Answer:
Height (h) = 9 cm
Volume = 48π cm3
Let the radius of the base of the cone be r сm.

∴ Volume = 48π cm3
⇒ \(\frac{1}{3}\)πr2h = 48π
⇒ \(\frac{1}{3}\) × r2 × 9 = 48
⇒ 3r2 = 48
⇒ r2 = \(\frac{48}{3}\) = 16
⇒ r = 4 cm
∴ Diameter of the base of the cone = 2 × r = 2 × 4 cm
= 8 cm

Question 5.
A conical pit of top diameter 3.5 m is 12m deep. What is its capacity in kilolitres ?
Answer:
Diameter of the top of the conical pit (d) = 3.5 m
Radius (r) = \(\frac{3.5}{2}\) = 1.75 m
Depth of the pit (h) = 12 m

Volume = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times1.75 \times1.75 \times 12\) = 38.5 m3
∵ 1 m3 = 1 kilolitres
Capacity of the pit = 38.5 kilolitres.

Question 6.
The volume of a right circular cone is 9856 cm3. If the diameter of the base is 28 cm, find :
(i) height of the cone
(ii) slant height of the cone
(iii) curved surface area of the cone.
Answer:
(i) Diameter of the base of the cone (d) = 28 cm
Radius (r) = \(\frac{28}{2}\) cm = 14 cm
Let the height of the cone be h cm

The volume of the cone = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= 9856 cm3
⇒ \(\frac{1}{3}\)πr2h = 9856
⇒ \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 14 \times 14 \times h\) = 9856
⇒ h = \(\frac{9856 \times 3}{\frac{22}{7} \times 14 \times 14}\)
⇒ h = 48 cm

(ii) Radius (r) = 14 cm
Height (h) = 48 cm
Let l be the slant height of the cone.
l2 = h2 + r2
⇒ l2 = 482 + 142
⇒ l2 = 2304 + 196
⇒ l2 = 2500
⇒ l = \(\sqrt{2500}\)
⇒ l = 50 cm.

(iii) Radius (r) = 14 cm
Slant Height (l) = 50 cm

Curved surface area = πrl
= \(\frac{22}{7}\) × 14 × 50 cm2
= 2200 cm2.

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Question 7.
A right triangle ABC with sides 5 cm, 12 cm and 13 cm is revolved about the side 12 cm. Find the volume of the solid so obtained.
Answer:
On revolving the ΔABC alone the side 12 cm, a cone of the radius (r) 5 cm, height (h) 12 cm and slant height (l) 13 cm will be formed
Volume of the solid so obtained = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3}\) × π × 5 × 5 cm3 = 100 π cm3

Question 8.
If the triangle ABC in the Question 7 above is revolved about the side 5 cm, then find the volume of the solid so obtained. Find also the ratio of the volumes of the two solids obtained in Questions 7 and 8.
Answer:
On revolving the ΔABC alone the side 5 cm, a cone of the radius (r) 12 cm, height (h) 5 cm and slant height (l) 13 cm will be formed
Volume of the solid so obtained = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3}\) × π × 12 × 12 × 5 = 240π cm3

Ratio of the Volume = \(\frac{100π}{240π}\) = \(\frac{5}{12}\)
= 5 : 12

Question 9.
A heap of wheat is in the form of a cone whose diameter is 10.5 m and height is 3 m. Find its volume. The heap is to be covered by canvas to protect it from rain. Find the area of the canvas required.
Answer:
Diameter of the base of the conical heap (d) = 10.5 m
Radius (r) = \(\frac{10.5}{2}\) = 5.25 m
Height (h) of the cone = 3 m

Volume of the heap = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 5.25 \times 5.25 \times 3\) m3
= 86.625 m3

Also,
l2 = h2 + r2
⇒ l2 = 32 + (5.25)2
⇒ l2 = 9 + 27.5625
⇒ l2 = 36.5625
⇒ l = \(\sqrt{36.5625}\) = 6.05 cm.

Area of canvas = Curved surface area = πrl
= \(\frac{22}{7}\) × 5.25 × 6.05 m2
= 99.825 m2

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

प्रत्यय से तात्पर्य – जो शब्द किसी संज्ञा शब्द, सर्वनाम शब्द, विशेषण शब्द अथवा धातु (क्रिया) शब्द के बाद (पीछे) जुड़कर किसी विशेष अर्थ को व्यक्त करते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। ये प्रत्यय अपने मूल अर्थ में तो निरर्थक से प्रतीत होते हैं, किन्तु ये किसी शब्द के अन्त में जुड़कर शब्द-निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

परिभाषा – “वे शब्द, जिनको किसी शब्द या धातु के अन्त में जोड़ा जाता है, प्रत्यय कहलाते हैं।”
प्रतीयते विधीयते अनेन इति प्रत्ययः। अर्थात् जो शब्दांश शब्द या धातु के अन्त में लगकर उनके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं, प्रत्यय कहलाते हैं।
प्रत्यय तीन प्रकार के होते हैं –

  1. कृत् प्रत्यय
  2. तद्धित प्रत्यय
  3. स्त्री प्रत्यय।

कृत् प्रत्यय – मूल क्रिया (धातु) शब्द के अन्त में भिन्न-भिन्न अर्थों का बोध कराने वाले जिन प्रत्ययों को जोड़कर संज्ञा, विशेषण, अव्यय तथा कहीं-कहीं क्रिया पद का निर्माण किया जाता है; उन प्रत्ययों को “कृत् प्रत्यय” कहते हैं। कृत् प्रत्ययों में क्त्वा’, ‘ल्यप्’, ‘तुमुन्’, ‘क्त’, ‘क्तवतु’, ‘शत’, ‘शानच्’ आदि प्रत्यय आते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

तद्धित प्रत्यय – संज्ञा शब्द, सर्वनाम शब्द तथा विशेषण शब्द में जोड़े जाने वाले प्रत्यय तद्धित प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे ‘तरप्’, ‘तमप्’, ‘इनि’ आदि तद्धित प्रत्यय हैं।

स्त्री प्रत्यय – जो प्रत्यय विभिन्न शब्दों के अन्त में स्त्रीत्व का बोध कराने के लिए लगाये जाते हैं, उन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं, जैसे ‘टाप’, ‘ङीप’ आदि स्त्री प्रत्यय हैं।

1. कृत् प्रत्यय

(i) क्त्वा प्रत्यय – ‘क्त्वा’ प्रत्यय में से प्रथम वर्ण ‘क’ का लोप होकर केवल ‘त्वा’ शेष रहता है। पूर्वकालिक क्रिया को बनाने के लिए ‘कर’ या ‘करके’ अर्थ में उपसर्गरहित क्रिया शब्दों में ‘क्त्वा’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। इस प्रत्यय से बना हुआ शब्द अव्यय शब्द होता है। अतः उसके रूप नहीं चलते हैं, अर्थात् वह सभी विभक्तियों, सभी वचनों, सभी लिंगों तथा सभी पुरुषों में एक जैसा ही रहता है और उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे-‘वह पुस्तक पढ़कर खेलता है।’ इस वाक्य का संस्कृत में अनुवाद करने पर ‘स: पुस्तकं पठित्वा क्रीडति’ बना। इस वाक्य में दो क्रियाएँ हैं-प्रथम क्रिया ‘पढ़कर’ (पठित्वा) तथा दूसरी क्रिया ‘खेलता’ (क्रीडति) है।

दोनों क्रियाओं का कर्ता एक ही ‘वह’ (सः) है। यहाँ पठ् मूल क्रिया में ‘क्त्वा’ प्रत्यय जोड़ने पर ‘क्त्वा’ में ‘क’ का लोप करने पर ‘त्वा’ शेष रहा। ‘पठ् + त्वा’ धातु और प्रत्यय के मध्य ‘इ’ जोड़ने पर ‘पठित्वा’ पूर्वकालिक क्रिया का रूप बना, जिसका अर्थ-‘पढ़कर’ या ‘पढ़ करके’ हुआ। धातु और प्रत्यय के मध्य सब जगह ‘इ’ नहीं जुड़ता है। ‘इ’ केवल वहीं जुड़ता है. जहाँ क्रिया में ‘इ’ के जोड़े जाने की आवश्यकता होती है। यहाँ सन्धि के सभी नियम भी लगते हैं।

क्त्वा प्रत्ययान्त रूप

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 1

प्रकृति-प्रत्यय पृथक् करवाने पर मूलधातु + प्रत्यय करना होता है। जैसे- उषित्वा = वस् + क्त्वा न कि उस् + त्वा।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

(ii) ल्यप् प्रत्यय-‘ल्यप्’ प्रत्यय में ल् तथा प् का लोप हो जाने पर ‘य’ शेष रहता है। धातु से पूर्व कोई उपसर्ग हो तो वहाँ क्त्वा’ के स्थान पर ‘ल्यप् प्रत्यय प्रयुक्त होता है। यह ‘ल्यप् प्रत्यय भी ‘कर’ या ‘करके’ अर्थ में होता है। यह अव्यय शब्द होता है अतः रूप नहीं चलते हैं। जिन उपसर्गों के साथ ल्यप् वाले रूप अधिक प्रचलित हैं, उनके उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं।

ल्यप् प्रत्ययान्त रूप

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 2

(iii) तुमुन् प्रत्यय-‘तुमुन्’ प्रत्यय में से ‘मु’ के उ एवं अन्तिम अक्षर न् का लोप हो जाने पर ‘तुम्’ शेष रहता है। ‘तुमुन्’ प्रत्यय से बना रूप अव्यय होता है। अतः उसके रूप नहीं चलते हैं। प्रत्यय से बने कतिपय (कुछ) रूपों के उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं –

तुमुन् प्रत्ययान्त रूप (तुमुन् प्रत्यय से बने रूप)

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(iv) क्त एवं क्तवतु प्रत्यय – (i) किसी कार्य की समाप्ति का ज्ञान कराने के लिए अर्थात् भूतकाल के अर्थ में क्त और क्तवतु प्रत्यय होते हैं।
(ii) क्त प्रत्यय धातु से भाववाच्य या कर्मवाच्य में होता है और इसका ‘त’ शेष रहता है। क्तवतु प्रत्यय कर्तृवाच्य में होता है और उसका ‘तवत्’ शेष रहता है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

(iii) क्त और क्तवतु के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। क्त प्रत्यय के रूप पुंल्लिंग में राम के समान, स्त्रीलिंग में ‘अ’ लगाकर रमा के समान और नपुंसकलिंग में फल के समान चलते हैं। क्तवतु के रूप पुल्लिंग में भगवत् के समान, स्त्रीलिंग में ‘ई’ जुड़कर नदी के समान तथा नपुंसकलिंग में जगत् के समान चलते हैं।

क्त प्रत्यय के उदाहरण

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 4

क्तवतु प्रत्यय के उदाहरण

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(v) शतृ एवं शानच् प्रत्यय ‘शत’ प्रत्यय-वर्तमान काल में हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रहे’ अर्थ का बोध कराने के लिए ‘शतृ’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। ‘शतृ’ प्रत्यय सदैव परस्मैपदी धातुओं (क्रिया-शब्दों) से ही जुड़ते हैं। ‘शतृ’ के ‘श्’ और तृ के ‘ऋ’ का लोप होकर ‘अत्’ शेष रहता है। शतृ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं, यहाँ ‘शतृ प्रत्यय से बने कुछ क्रियापदों का संग्रह पुल्लिंग में दिया जा रहा है। छात्र इन्हें समझें और कण्ठाग्र कर लें।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 6

शानच् प्रत्यय – ‘शतृ’ प्रत्यय के ही समान ‘शानच्’ प्रत्यय वर्तमान काल में हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रही’, ‘रहे’ अर्थ का बोध कराने के लिए प्रयुक्त होता है। ‘शत’ प्रत्यय तो परस्मैपदी धातुओं (क्रिया-शब्दों) से ही जुड़ता है, किन्तु ‘शानच्’ प्रत्यय आत्मनेपदी धातुओं में ही जुड़ता है। शानच् प्रत्यय में से ‘श्’ और ‘च’ का लोप होकर ‘आन’ शेष रहता है। ‘आन’ के स्थान पर अधिकतर ‘मान’ हो जाता है। यहाँ ‘शानच्’ प्रत्यय से बने कुछ क्रियापदों का संग्रह पुल्लिंग में ही दिया जा रहा है। छात्र इन्हें समझें और कण्ठाग्र कर लें।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 7

(vi) अनीयर’ प्रत्यय – अनीयर’ प्रत्यय ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में प्रयुक्त होता है। ‘अनीयर’ प्रत्यय में से र् का लोप होने पर ‘अनीय’ शेष रहता है। अनीयर प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। यहाँ केवल पुल्लिंग के ही रूप दिये जा रहे हैं। छात्र इन्हें समझें और कण्ठाग्र कर लें।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 8

(vii) तव्यत् प्रत्यय – ‘तव्यत्’ प्रत्यय ‘अनीयर’ प्रत्यय के समान ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में ही प्रयुक्त होता है। ‘तव्यत्’ प्रत्यय में से ‘त्’ का लोप होने पर ‘तव्य’ शेष रहता है। ‘तव्यत्’ प्रत्ययान्त शब्दों के तीनों लिंगों में रूप क्रमशः राम, रमा तथा फल की तरह चलते हैं। यहाँ केवल पुल्लिंग के ही रूप दिये जा रहे हैं। छात्र इन्हें समझें और स्मरण कर लें।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 9

2. तद्धित प्रत्यय

(i) ‘तरप’ प्रत्यय-दो वस्तुओं में से एक को श्रेष्ठ (अच्छा) या निकृष्ट (खराब) बताने के लिए गुणवाचक विशेषण के शब्दों में ‘तरप्’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसमें से ‘तर’ शेष रहता है और इसके तीनों लिंगों में क्रमशः राम (पुं.) रमा (स्त्री) तथा पल (न.) के रूप चलते हैं।

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नोट – ‘तरप्’ प्रत्यय विशेषण शब्दों में लगता है। पुल्लिंग में इस प्रत्यय से बने शब्दों के रूप ‘राम’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘रमा’ के समान तथा नपुंसकलिंग में ‘फल’ के समान चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

(ii) ‘तमप्’ प्रत्यय-बहुतों में से एक को श्रेष्ठ (अच्छी) या निकृष्ट (खराब) बताने के लिए शब्द के साथ ‘तमप’ । प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसमें से ‘तम’ शेष रहता है। ‘तमप्’ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं।

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(iii) इनि प्रत्यय – 1. हिन्दी के ‘वाला’ अर्थ वाले शब्दों यथा-धन वाला, सुख वाला, गुण वाला आदि के लिए संस्कृत में शब्दों के साथ इनि’ प्रत्यय लगाते हैं। ‘इनि’ का ‘इन्’ शेष रहता है। जैसे – दण्ड + इनि – दण्ड + इन् = दण्डिन्।
त्याग + इनि – त्याग + इन् = त्यागिन्। इनि प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। इनके रूप पल्लिंग में ‘करिन्’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘ई’ जोड़कर नदी के समान और नपुंसकलिंग के रूप इनि से बने मूल रूप के समान ही रहते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

‘इनि’ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिङ्गों में (प्रथमा विभक्ति एकवचन) निम्नानुसार हैं –

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3. स्त्री प्रत्यय

(i) टाप् (आ) प्रत्यय – अजादि गण में अकारान्त शब्दों से यदि स्त्रीलिङ्ग बनाना हो तो टाप् प्रत्यय का प्रयोग करते हैं। ‘टाप्’ प्रत्यय का ‘आ’ शेष रहता है। इसमें पुल्लिङ्ग शब्द के अन्तिम ‘आ’ का लोप कर दिया जाता है। किन्तु कुछ शब्द इस प्रत्यय के अपवाद भी हैं, उनमें अक् को इक् होने के बाद टाप् प्रत्यय लगता है। ‘टाप्’ प्रत्यय में से ‘ट्’ और ‘य’ का लोप हो जाने पर ‘आ’ शेष रहता है।
जैसे – गायक-गायिका, बालक-बालिका आदि। शब्द

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(ii) ङीप् प्रत्यय – 1. ऋकारान्त तथा नकारान्त पुल्लिङ्ग शब्दों के साथ ङीप् प्रत्यय जोड़कर स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाते हैं। ‘ङीप्’ और ‘प्’ का लोप हो जाने ‘ई’ शेष रहता है।

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अभ्यास

प्रश्न: 1.
प्रत्यय की परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
परिभाषा – वे शब्द, जिनका किसी शब्द या धातु से विधान किया जाता है (अन्त में जोड़ा जाता है), प्रत्यय कहलाते हैं।

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प्रश्न: 2.
सुप् और तिङ्के अतिरिक्त प्रत्यय के कितने मुख्य भेद हैं ? लिखिए।
उत्तर :
सुप् और तिङ् प्रत्यय के अतिरिक्त प्रत्यय के 3 (तीन) मुख्य भेद हैं –
(i) कृत् प्रत्यय
(ii) तद्धित प्रत्यय
(iii) स्त्री प्रत्यय।

प्रश्न: 3.
किन्हीं चार कृत् प्रत्ययों का नाम निर्देश कीजिए।
उत्तर :
(i) क्त्वा
(ii) ल्यप्
(iii) शतृ
(iv) शानच्।

प्रश्न: 4.
‘के लिए’ का अर्थ व्यक्त करने हेतु धातु में कौन-सा प्रत्यय जोड़ा जाता है ?
उत्तर :
‘तुमुन्’ प्रत्यय।

प्रश्न: 5.
भूतकालिक प्रत्ययों के नाम बताइये।
उत्तर :
‘क्त’ तथा ‘क्तवतु’ प्रत्यय।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

प्रश्न: 6.
‘क्त्वा’ तथा ‘ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग कब करते हैं ?
उत्तर :
क्त्वा और ल्यप् दोनों ही पूर्वकालिक कृत् प्रत्यय हैं। जब दो क्रियाओं का कर्ता एक ही होता है तो जो क्रिया पूरी हो चुकी होती है, उसे बताने के लिए क्त्वा का प्रयोग करते हैं। क्त्वा’ का ‘त्व’ शेष रहता है। यह प्रत्यय ‘करके’ या ‘कर’ के अर्थ में प्रयोग होता है। लेकिन क्त्वा प्रत्यय वाली क्रिया के पूर्व कोई उपसर्ग लग जाता है तो क्त्वा के स्थान पर ‘ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न: 7.
‘तुमुन्’ प्रत्यय का प्रयोग किस विभक्ति के स्थान पर किया जाता है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘तुमुन्’ प्रत्यय का प्रयोग चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर किया जाता है। क्योंकि ‘तुमुन् प्रत्यय ‘के लिए’,’को’, ‘निमित्त’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इस प्रत्यय का तुम् शेष रहता है। ‘तुमुन्’ प्रत्ययान्त शब्द हेतुवाचक क्रिया के रूप में प्रयुक्त होते हैं। अत: वाक्य में इनके साथ एक मुख्य क्रिया अवश्य होती है जैसे मैं पढ़ना चाहता हूँ-अहं पठितुम् इच्छामि।

प्रश्न: 8.
‘चाहिए’ अर्थ का बोध कराने वाले प्रत्यय कौन-कौनसे हैं ?
उत्तर :
‘चाहिए’ अर्थ का बोध कराने वाले प्रत्यय ‘तव्यत्’ और ‘अनीयर्’ हैं।

प्रश्न: 9.
‘स्त्री प्रत्यय’ किसे कहते हैं ?
उत्तर :
पुल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए जिन प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें ‘स्त्री प्रत्यय’ कहते हैं।

प्रश्न: 10.
कृत् प्रत्यय एवं तद्धित प्रत्यय का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जिन प्रत्ययों का क्रिया से विधान होता है, कृत् प्रत्यय कहलाते हैं तथा जिन प्रत्ययों का विधान संज्ञा या विशेषण शब्दों के साथ होता है, तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

प्रश्न: 11.
निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय को अलग कीजिए –
अधीतः, जग्धवान्, गृहीत्वा, उपगम्य, पातुम्।
उत्तरम् :
अधि + इ + क्त; अद् + क्तवतु ग्रह + क्त्वा, उपगम् + ल्यप, सी + तुमुन्।

प्रश्न: 12.
निम्नलिखित में प्रकृति-प्रत्यय का मेल कीजिए –
मा कर्ता + ङीप्, एडक + टाप्, भाग् + इनि, बहु + तमप्, निम्न + तरप्, रक्षा तव्यत्, युध् + शानच्, वस् + शत, स्तु + क्तवतु।
उत्तरम् :
की, एडका, भागी, बहुतमः, निम्नतरः, रक्षितव्यः, युध्यमानः, वसन् स्तुतवान्।

प्रश्न: 13.
निम्नलिखित प्रत्ययान्त शब्दों को ‘कृत्’ ‘तद्धित’ और ‘स्त्री’ प्रत्ययान्त के रूप में अलग-अलग छाँटिये
कोकिला, हन्त्री, शूद्रता, पीत्वा, नीति, भूता, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः, भगवती, लघुता, शिशुत्वम्।
उत्तरम् :

  • कृत् – पीत्वा, नीति, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः।
  • तद्धित् – शूद्रता, लघुता, शिशुत्वम्।
  • स्त्री – कोकिला, हन्त्री, भूता, भगवती।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

प्रश्न: 14.
प्रत्येक धातु में कोई पाँच प्रत्यय जोड़कर उनका एक-एक उदाहरण लिखिए –
पठ्, नम्, पच्, दा, लभ्, दृश्, गम्, हस्, इष्, लभ्।
उत्तरम् :

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 15

प्रश्न: 15.
अधोलिखितवाक्येषु रेखांकितपदानां प्रकृति-प्रत्यय-विभाग प्रत्ययान्तपदं वा लिखत –
(निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों में प्रकृति-प्रत्यय अलग कीजिये अथवा प्रत्ययान्त शब्द लिखिए-)

  1. अहं शयनं परित्यज्य भ्रमणं गच्छामि।
  2. श्यामः पुस्तकं केतुं गमिष्यति।
  3. मया रामायणं श्रुतम्।
  4. फलं खादन् बालकः हसति।
  5. सुरेशः ग्राम गत्वा धावति।
  6. सर्वान् विचिन्त्य बू (वच्) + तव्यत्।
  7. मुकेशः भोजनं खाद + शतृ पुस्तकं पठति।
  8. सः गृहकार्यं कृ + क्त्वा क्रीडति।
  9. सीता ग्रामात् आ + गम् + ल्यप् नृत्यति।
  10. भारतः पठ् + तुमुन् इच्छति।

उत्तर :

  1. परि + त्यज् + ल्यप्
  2. क्री + तुमुन्
  3. श्रु + क्त
  4. खाद् + शतृ
  5. गम् + क्त्वा
  6. वक्तव्यम्
  7. खादन्
  8. कृत्वा
  9. आगत्य
  10. पठितुम्।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

प्रश्न: 16.
निर्देशम् अनुसृज्य उदाहरणानुसारं संयोज्य वाक्यसंयोजनं क्रियताम्।
(निर्देश का अनुसरण करके उदाहरणानुसार जोड़कर वाक्यों को जोडिए।)
(क) पूर्ववाक्ये ‘क्त्वा’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं संयोजयत –
(पहले वाक्य में ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए) महेशः खेलति। महेशः धावति।
उत्तरम् :
महेशः खेलित्वा धावति।

(ख) ‘तुमुन् प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा वाक्यसंयोजनं क्रियताम्-
(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए
रामः वनं गच्छति। रामः अश्वम् आरोहति।
उत्तरम् :
रामः वनं गन्तुम् अश्वम् आरोहति।

(ग) पूर्ववाक्ये शतृप्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत –
(पूर्व वाक्य में ‘शतृ’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-) छात्राः श्यामपट्ट स्पृशति। छात्रा: गृहं गच्छति।
उत्तरम् :
छात्राः श्यामपट्ट स्पृशन्तः गृहं गच्छन्ति।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

(घ) ‘तुमुन्’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत-
(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-) त्वं जलं पिबसि। त्वं कूपं गच्छसि।
उत्तरम् :
त्वं जलं पातुं कूपं गच्छसि।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

1. भवत् (आप-प्रथम पुरुष) पुल्लिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 1

(नोट-सर्वनाम शब्दों में सम्बोधन नहीं होता है।)
‘भवत्’ के साथ सदैव प्रथम पुरुष को क्रिया प्रयोग की जाती है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

2. भवत् (आप) नपुंसकलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 2

नोट – शेष सभी विभक्तियों में ‘भवत्’ के ये रूप पुल्लिंग भवत्’ के समान ही चलेंगे।

3. भवत् (आप) स्त्रीलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 3

नोट – भवत्-ई-भवती के सम्पूर्ण रूप ‘नदी’ (दीर्घ कारान्त स्त्रीलिंग) के समान चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

4. इदम् (यह) पुल्लिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 4

5. इदम् (यह) नपुंसकलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 5

नोट-शेष सभी विभक्तियों में ‘इदम्’ के ये रूप पुल्लिंग ‘इदम्’ के समान ही चलेंगे।

6. इदम् (यह) स्त्रीलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 6

7. युष्मद् (तुम) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 7

नोट-युष्मद्’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में समान होते

8. अस्मद् (मैं) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 8

नोट- अस्मद्’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में समान होते

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

9. सर्व (सब) पुल्लिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 9

10. सर्व (सब) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 10

11. सर्व (सब) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 11

नोट-शेष विभक्तियों के रूप पुल्लिंग ‘सर्व’ की तरह चलेंगे।

12. तत्/तद् (वह) पुल्लिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 12

नोट-प्रथमा विभक्ति एकवचन को छोड़कर सभी रूपों का आधार ‘त’ अक्षर है तथा ‘सर्व’ शब्द के समान रूप हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

13. तत् / तद् (वह) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 13

14. तत् / तद् (वह) नपुंसकलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 14

नोट – ‘तद्’ नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के ये सभी रूप ‘तद्’ पुल्लिंग के समान चलतेहै।

15. यत् (जो) पुंल्लिग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 15

नोट-इस ‘यत्’ शब्द का सभी लिंगों में, सभी विभक्तियों के रूप में ‘य’ आधार रहेगा तथा इसके ‘सर्व’ के समान ही रूप चलेंगे।

16. यत् (जो) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 16

17. यत् (जो) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 17

नोट-‘यत्’ नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के सम्पूर्ण रूप ‘यत्’ पुंल्लिंग के समान ही चलेंगे।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

18.किम् (कौन) पुंल्लिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 18

नोट-‘किम्’ शब्द के रूपों का मूल आधार सभी लिंगों एवं विभक्तियों में ‘क’ होता है तथा इसके रूप ‘सर्व’ शब्द के समान ही चलते हैं।

19. किम् (कौन) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 19

20.किम् (कौन) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 20

नोट – ‘किम्’ शब्द के नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के सभी रूप ‘किम्’ पुल्लिंग के समान ही चलते हैं।

21. ‘एतत्’ (यह) पुल्लिंग शब्द नोट-‘एतत्’ के सभी रूप ‘तत्’ शब्द में पूर्व में ‘ए’ जोड़कर ‘तत्’ के रूपों के समान ही चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 21

22. ‘एतत्’ (यह) शब्द स्त्रीलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 22

23. ‘एतत्’ (यह) शब्द नपुंसकलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 23

नोट-शेष सभी विभक्तियों में रूप पुल्लिंग ‘एतत्’ की भाँति ही चलेंगे।

अभ्यास

प्रश्न: 1.
कोष्ठके प्रदत्तं निर्देशानुसारम् उचितविभक्तिपदेन रिक्तस्थानानां पूर्ति कुरुत
(कोष्ठक में दिये निर्देशानुसार उचित विभक्ति पद से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)

  1. …………….. च एका दुहिता आसीत्।(तत्-स्त्रीलिंग षष्ठी)
  2. ……………….. विस्मयं गता।(तत्-स्त्रीलिंग प्रथमा)
  3. ………… मम श्वश्रूः सदैव मर्मघातिभिः कटुवचनैराक्षिपति माम्। (इदम्-स्त्रीलिंग प्रथम)
  4. ………………. काकिणी अपि न दत्ता। (यत्-पुल्लिंग तृतीया)
  5. तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता। (तत्-पुल्लिंग पंचमी)
  6. ………………. मरालैः सह विप्रयोगः। (यत्-पुंल्लिग षष्ठी)
  7. …………. अनुकूले स्थिते शक्रोऽपि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्। (इदम्-पुंल्लिंग सप्तमी)
  8. तत् ………….. अस्मात् मनोरथमभीष्टं साधयामि। (अस्मद्-प्रथमा)
  9. किन्तु ……….. सह केलिभिः कोऽपि न उपलभ्यमानः आसीत्। (तत्-पुंल्लिंग तृतीया)
  10. अयि चटकपोत ! ….. मित्रं भविष्यसि। (अस्मद्-षष्ठी)
  11. अपूर्वः इव ते हर्षो ब्रूहि ……. असि विस्मितः। (किम्-पुंल्लिंग तृतीया)
  12. …………… कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम्। (अस्मद्-षष्ठी)
  13. तां च …………. चित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। (किम्-पुल्लिंग षष्ठी)
  14. वत्स! पितृव्योऽयं ………….. । (युष्मद्-षष्ठी)
  15. …………… अस्मि तपोदत्तः। (अस्मद्-प्रथमा)
  16. गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो …………… करणीयः। (अस्मद्-तृतीया)
  17. ………….. शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे। (तत्-पुल्लिंग द्वितीया)
  18. वृद्धोऽहं …………. युवा धन्वी सरथः कवची शरी। (युष्मद्-प्रथमा)
  19. यतः ………………. स्थलमलापनोदिनी जलमलापहारिणश्च। (तत्-पुल्लिग प्रथमा)
  20. ……………. सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः। (इदम्-स्त्रीलिंग प्रथमा)

उत्तरम् :

  1. तस्याः
  2. सा
  3. इयम्
  4. येन
  5. तस्मात्
  6. येषाम्
  7. अस्मिन्
  8. अहम्
  9. तेन
  10. मम
  11. केन
  12. अस्माकं
  13. कस्य
  14. तव
  15. अहम्
  16. मया
  17. तम्
  18. त्वम्
  19. स:
  20. इयम्।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न: 2.
कोष्ठकात् उचितविभक्तियुक्तं पदं चित्वा वाक्यपूर्तिः क्रियताम्
(कोष्ठक से उचित विभक्ति युक्त पद को चुनकर वाक्य की पूर्ति कीजिए-)

  1. नाऽहं जाने ……………… कोऽस्ति भवान्। (यत्, याभ्याम्, याः)
  2. सिकता: जलप्रवाहे स्थास्यन्ति ………………. ? (किम्, कानि, काषु)
  3. त्वया …………… पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः। (आवाभ्याम्, अस्मत्, अहम्)
  4. प्रकृतिरेव ………………. विनाशकी सजाता। (तस्य, तयोः, तेषां)
  5. ………………. सर्वमिदानी चिन्तनीयं प्रतिभाति। (तत्, ते, तानि)
  6. भगवन् ! प्रष्टुमिच्छामि किम् ………………. मनः ? (इयं, अयं, इदम्)
  7. अशितस्यान्नस्य योऽणिष्ठः ……………… मनः। (तत्, तम्, तासाम्)
  8. बालिका ………………. निवारयन्ती। (तस्मै, ताभ्याम्, तम्)
  9. परं ………………. माता एकाकिनी वर्तते। (तव, तयोः, तेषु)
  10. …………………. अपि चायपेयस्य नास्ति। (इदम्, इदानीम्, अयम्)
  11. यत् ……………. अपि कथनीयं यां प्रत्येव कथय। (किम्, कौ, कानि)
  12. ………………. नृशंसाः । (मह्यम्, अस्मत्, वयम्)
  13. …………. इदानीं कुत्र गताः ? (ते, ताभ्याम्, तेभ्यः)
  14. कल्पतरुः ………….. उद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। (तव, तेभ्यः, तस्मै)
  15. विषाक्तं जलं नद्यां निपात्यते …………….. मत्स्यादीनां जलचराणां च नाशो जायते। (येन, याभ्यां, याषु)

उत्तरम् :

  1. यत्
  2. किम्
  3. अस्मत्
  4. तेषां
  5. तत्
  6. इदम्
  7. तत्
  8. तम्
  9. तव
  10. इदानीम्
  11. किम्
  12. वयम्
  13. ते
  14. तव
  15. येन।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

बहुविकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. प्लीस्टो सिन युग कब हुआ था
(A) 10 लाख वर्ष पूर्व
(B) 15 लाख वर्ष पूर्व
(C) 20 लाख वर्ष पूर्व
(D) 25 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(C) 20 लाख वर्ष पूर्व।

2. विश्व में कितने % पौधे विलोपन की कगार पर है
(A) 5%
(B) 6%
(C) 7%
(D) 8%.
उत्तर:
(D) 8%.

3. प्रोजैक्ट टाईगर कब शुरू किया गया
(A) 1970
(B) 1971
(C) 1972
(D) 1973.
उत्तर:
(D) 1973.

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

4. पृथ्वी शिखर कब हुआ-
(A) 1990
(B) 1991
(C) 1992
(D) 1993.
उत्तर:
(C) 1992.

5. महा विवधता केन्द्र किस क्षेत्र में है
(A) उष्ण कटिबन्धीय
(B) शीत-उष्ण कटिबन्धीय
(C) शीत
(D) शुष्क।
उत्तर:
(A) उष्ण कटिबन्धीय।

6. WWF (World Wide Fund) का मुख्यालय कहाँ है?
(A) न्यूयार्क
(B) लंदन
(C) पेरिस
(D) स्विटजरलैंड|
उत्तर:
(D) स्विटजरलैंड

7. WWF (World Wide Fund) की स्थापना कब की गई?
(A) 1950
(B) 1961
(C) 1954
(D) 1962.
उत्तर:
(D) 1962.

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मानव के लिये पौधे किस प्रकार महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
पौधे मनुष्य को कई प्रकार की फसलें, प्रोटीन देते हैं यह जनसंख्या के पोषण के लिये एक प्राकृतिक साधन हैं।

प्रश्न 2.
मानव के लिये जन्तुओं के महत्त्व का संक्षिप्त का वर्णन करो।
उत्तर:
मानव के आहार में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के पदार्थ मिलते हैं। इतिहास के प्रारम्भिक काल में मानव पशु पालन पर निर्भर था। असंख्य पशु प्राकृतिक वनस्पति खा कर मांस तथा डेयरी पदार्थ प्रदान करते हैं, जिससे मानव जनसंख्या का पोषण होता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 3.
जैव विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर:
जैविक विविधता का अस्तित्व तीन विभिन्न स्तरों पर निम्नलिखित हैं-

  1. प्रजातीय विविधता ( Species Diversity): जो आकृतिक शरीर क्रियात्मक तथा आनुवंशिक लक्षणों द्वारा प्रतिबिम्बित होती है।
  2. आनुवांशिक विविधता (Genetic Diversity ): जो प्रजाति के भीतर आनुवंशिक या अन्य परिवर्तनों से युक्त होती है।
  3. पारिस्थितिक तंत्र विविधता (Ecosystem Diversity): विविधता, जो विभिन्न जैव भौगोलिक क्षेत्रों जैसे- झील, मरुस्थल, तटीय क्षेत्र, ज्वारनदमुख आदि द्वारा प्रतिबिम्बित होती है । इस पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित रखना एक महान् चुनौती है।

प्रश्न 4.
जैविक विविधता का संरक्षण क्या है?
उत्तर:
जैविक विविधता का संरक्षण एक ऐसी योजना है जिसका लक्ष्य विकास की निरंतरता को बनाये रखना है। विभिन्न प्रजातियों को कायम रखने के लिये, विकसित करने तथा उनके जीवन कोष को बनाये रखना जो भविष्य में लाभदायक हो।

प्रश्न 5.
जैव विविधता क्या है?
उत्तर:
जैव विविधता दो शब्दों के मेल से बना है (Bio) बायो का अर्थ है जीव तथा (Diversity) का अर्थ है विविधता। साधारण शब्दों में, किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव विविधता कहते हैं।

प्रश्न 6.
जैव विविधता का इतिहास बताओ। किस कटिबन्ध में जैव विविधता अधिक है?
उत्तर;
आज जो जैव विविधता हम देखते हैं, वह 25 से 35 अरब वर्षों के विकास का परिणाम है। मानव जीवन के प्रारम्भ होने से पहले, पृथ्वी पर जैव विविधता किसी भी अन्य काल से अधिक थी। मानव के आने से जैव विविधता में तेज़ी से कमी आने लगी, क्योंकि किसी एक या अन्य प्रजाति का आवश्यकता से अधिक उपभोग होने के कारण, वह लुप्त होने लगी। अनुमान के अनुसार, संसार में कुल प्रजातियों की संख्या 20 लाख से 10 करोड़ तक, लेकिन एक करोड़ ही इसका सही अनुमान है। नयी प्रजातियों की खोज लगातार जारी है और उनमें से अधिकांश का वर्गीकरण भी नहीं हुआ है। (एक अनुमान के अनुसार दक्षिण अमेरिका की ताज़े पानी की लगभग 40 प्रतिशत मछलियों का वर्गीकरण नहीं हुआ।) उष्ण कटिबन्धीय वनों में जैव-विविधता की अधिकता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 7.
हॉट-स्पॉट ( Hot Spot ) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है उन्हें हॉट-स्पॉट कहते हैं। यहां प्रजातियों की संख्या अधिक होती है।

प्रश्न 8.
पारितन्त्र में प्रजातियों की भूमिका बताओ।
उत्तर:

  1. जीव व प्रजातियां ऊर्जा ग्रहण करती हैं।
  2. ये कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न करती हैं।
  3. ये जल व पोषण चक्र बनाने में सहायक हैं।
  4. वायुमण्डलीय गैसों को स्थिर करती है।

प्रश्न 9.
विदेशज प्रजातियों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वे प्रजातियां जो स्थानीय आवास की मूल प्रजातियाँ नहीं हैं, लेकिन उस ढंग से स्थापित की गई हैं, उन्हें विदेशज प्रजातियां कहते हैं।

प्रश्न 10.
प्रजाति का विलुप्त होना क्या है?
उत्तर:
प्रजाति का विलुप्त होने का तात्पर्य है कि उस प्रजाति का अन्तिम सदस्य भी मर चुका है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जैव विविधता के क्या कारण हैं?
उत्तर:
जैव विविधता का आधार अपक्षयण है। सौर ऊर्जा और जल ही अपक्षयण में विविधता और जैव विविधता का मुख्य कारण है। वे क्षेत्र जहां ऊर्जा व जल की उपलब्धता अधिक है, वहीं पर जैव विविधता भी व्यापक स्तर पर है

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 2.
जैव विविधता सतत् विकास का तन्त्र है? स्पष्ट करो।
उत्तर:
जैव विविधता सजीव सम्पदा है यह विकास के लाखों वर्षों के ऐतिहासिक घटनाओं का परिणाम है। प्रजातियों के दृष्टिकोण से और अकेले जीवधारी के दृष्टिकोण से जैव-विविधता सतत् विकास का तन्त्र है। पृथ्वी पर किसी प्रजाति की औसत अर्ध आयु 10 से 40 लाख वर्ष होने का अनुमान है। ऐसा भी माना जाता है कि लगभग 99 प्रतिशत प्रजातियाँ, जो कभी पृथ्वी पर रहती थीं, आज लुप्त हो चुकी हैं। पृथ्वी पर जैव विविधता एक जैसी नहीं है। जैव-विविधता उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में अधिक होती है। जैसे-जैसे हम ध्रुवीय प्रदेशों की तरफ बढ़ते हैं, प्रजातियों की विविधता तो कम होती जाती है, लेकिन जीवधारियों की संख्या अधिक होती जाती है।

प्रश्न 3.
पौधों और जीवों को संरक्षण के आधार पर विभिन्न प्रजातियों में बांटो
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण संरक्षण की अन्तर्राष्ट्रीय संस्था (IUCN) ने संकटापन्न पौधों व जीवों की प्रजातियों को उनके संरक्षण के उद्देश्य से तीन वर्गों में विभाजित किया है।
1. संकटापन्न प्रजातियाँ (Endangered species):
इसमें वे सभी प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिनके लुप्त हो जाने का खतरा है। अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN ) विश्व की सभी संकटापन्न प्रजातियों के बारे में (Red list) रेड लिस्ट नाम से सूचना प्रकाशित करता है।

2. कमज़ोर प्रजातियाँ (Vulnerable species):
इसमें वे प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें यदि संरक्षित नहीं किया गया या उनके विलुप्त होने में सहयोगी कारक यदि जारी रहे तो निकट भविष्य में उनके विलुप्त होने का खतरा है। इनकी संख्या अत्यधिक कम होने के कारण, इनका जीवित रहना सुनिश्चित नहीं है।

3. दुर्लभ प्रजातियाँ (Rare species):
संसार में इन प्रजातियों की संख्या बहुत कम है। ये प्रजातियाँ कुछ ही स्थानों पर सीमित हैं या बड़े क्षेत्र में बिखरी हुई हैं।

प्रश्न 4.
जैव विविधता की हानि के चार कारण बताओ।
उत्तर:

  1. प्राकृतिक आपदाएँ
  2. टनाशक
  3. विदेशज प्रजातियां
  4. अवैध शिकार।

प्रश्न 5
प्रजातियों के संरक्षण के दो पहलू बता ।
उत्तर:

  1. मानव को पर्यावरण मैत्री सम्बन्धी पद्धतियों का प्रयोग करना चाहिए।
  2. विकास के लिए सतत् पोषणीय गतिविधियाँ अपनाई जाएं।
  3. स्थानीय समुदायों की इसमें भागीदारी हो।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 6.
महाविविधता केन्द्र से क्या अभिप्राय है? विश्व के महत्त्वपूर्ण महाविविधता केन्द्र बताओ।
उत्तर:
जिन देशों में उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में अधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती है, उन्हें महाविविधता केन्द्र कहते हैं। विश्व में 12 ऐसे देश हैं – मेक्सिको, कोलम्बिया, इक्वेडार, पेरू, ब्राज़ील, ज़ायरे, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इण्डोनेशिया तथा ऑस्ट्रेलिया।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

प्रश्न 1.
जैविक विवधता के ह्रास से क्या अभिप्राय है? इसके क्या कारण हैं?
उत्तर:
जैविक विविधता का ह्रास (Loss of Biodiversity) जैविक विविधता का स्तर जैविक विविधता का अस्तित्व तीन विभिन्न स्तरों पर निम्नलिखित है:

  1. प्रजातीय विविधता जो आकृतिक, शरीर क्रियात्मक तथा आनुवंशिक लक्षणों द्वारा प्रतिबिंबित होती है।
  2. आनुवंशिक विविधता, जो प्रजाति के भीतर आनुवंशिक या अन्य परिवर्तनों से युक्त होती है तथा
  3. पारिस्थितिक तंत्र विविधता, जो विभिन्न जैव – भौगोलिक क्षेत्रों जैसे- झील, मरुस्थल, तटीय क्षेत्र, ज्वारनदमुख आदि द्वारा प्रतिबिंबित होती है। इन पारिस्थितिक तंत्रों को संरक्षित रखना एक महान् चुनौती है।

मानवीय प्रभाव:
मनुष्य ने पृथ्वी के जैविक स्टॉक के प्रकार और वितरण को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है। पृथ्वी के जैविक प्रतिरूप पर बढ़ता हुआ मानव प्रभाव, बढ़ती जनसंख्या और उनकी बढ़ती भोजन एवं स्थान की आवश्यकता का परिणाम है। संसाधनों के लिए मानव माँगों के कारण कुछ प्रजातियाँ समाप्त हो गईं तथा कुछ बची रहीं। आरंभिक मानव एक शिकारी तथा संग्रहणकर्त्ता था । हम उन्हें पुरातन कह सकते हैं, पर पारिस्थितिक दृष्टिकोण से वे पिछड़े हुए नहीं थे। उनकी जीवन शैली उस समय के ज्ञान एवं तकनीक के अनुसार प्रकृति के साथ सफल अनुकूलन था।

प्रजातियों का विलोपन:
भूवैज्ञानिक काल में (प्लीस्टोसीन, लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व) स्तनधारियों के लोप होने का प्रधान कारण जलवायविक अवनति के साथ आदि मानवों द्वारा ज़रूरत से अधिक पशुओं को मारना था । महाप्राणिजात विलोपन की यह घटना अभी समाप्त नहीं हुई है । आजकल यह पृथ्वी के समुद्री पर्यावरण तक पहुँच गई है। यह उस तकनीक का परिणाम है, जिसने मानव के प्रभाव को विश्व के महासागरों की गहराइयों तक पहुँचा दिया है । आधुनिक युग का विलोपन किसी एक पशु समूह जैसे महाप्राणिजात पर ही केंद्रित नहीं है, वरन् इसने विभिन्न प्रकार के पशुओं, विशेषकर पक्षियों, मछलियों तथा, सरीसृपों आदि को भी प्रभावित किया है। तकनीकी नवीनीकरण तथा सामाजिक-आर्थिक कारकों ने आधुनिक युग के इस विलोपन को और तेज़ किया है।

कृषि यंत्रीकरण तथा औद्योगीकरण का प्रभाव:
विलोपन की स्थिति में, पालतू पौधों एवं पशुओं पर आधारित एक नया भोजन स्रोत अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो गया खेती के यांत्रिकरण तथा औद्योगीकरण ने भारी मात्रा में अनाज के अधिशेष को बढ़ावा दिया है। लेकिन इस अधिशेष अनाज को पैदा करने के दौरान भूमि में मानवकृत परिवर्तनों की श्रृंखला ने प्राकृतिक समुदायों तथा मृदा के प्रतिरूपों में बाधाएँ उत्पन्न कर दी हैं। बदले में इन परिवर्तनों से निकटवर्ती तथा दूरस्थ दोनों समुदायों में गिरावट आई है। अलवणीय जल तंत्र विशेष रूप से महान् परिवर्तनों से गुजरे हैं। खेती ने समुद्री पर्यावरण के जीवों को भी प्रभावित किया है।

  • निम्नलिखित प्रभाव स्पष्ट हैं:
    1. औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के इस युग में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण अधिकाधिक भूमि पर से जंगलों को साफ करके उन्हें कृषि के अंतर्गत लाया गया है।
    2. अधिक क्षेत्रों में मृदा की जुताई अधिक फसलें पैदा करने के लिए की गई है।
    3. मकान, सड़कें, पार्क तथा अन्य क्रियाओं के लिए अधिकाधिक भूमि का उपयोग किया गया है।
    4. इससे संसाधनों का संचलन शहरों की ओर हुआ है।
    5. मृदा की हानि, पोषकों का संचलन और अविषालु पदार्थों द्वारा पर्यावरण का प्रदूषण वास्तव में ऊर्जा का अत्यधिक उपयोग तथा अबाधित उत्पादन के लक्षण हैं।
    6. मानव द्वारा प्रकृति का अनुचित उपयोग बिखरे हुए तथा अधूरे तंत्रों को जन्म देता है। इनका वायु, जल, मृदा तथा पृथ्वी के जैविक संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • नवीन समस्याएं:
    1. इस समय विश्व के 2 प्रतिशत ज्ञात पशु तथा 8 प्रतिशत ज्ञात पौधे विलोपन के कगार पर खड़े हैं। वास्तव में प्रत्येक औद्योगिक क्रिया जल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
    2. वर्षा अम्लीय हो गई है।
    3. सिंचाई, अपरदन तथा पीड़नाशी एवं उर्वरकों के प्रवाह से जुताई खेती एक समस्या बन गई है।
    4. परिवर्तित जल प्रवाह और अविषालु पदार्थों के अधिप्लावन से शहरी क्षेत्र एवं महामार्ग एक समस्या बन गए हैं।
    5. खनन क्रिया द्वारा खनन अपशिष्टों के अपवाह तथा जल प्रवाह पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण यह भी एक समस्या हो गई है।
    6. औद्योगिक तथा शहरी मल – व्यवस्था में खतरनाक पदार्थ होते हैं जिससे यूट्रोफिकेशन होता है। ये सभी अलवणीय जल तंत्रों की गुणवत्ता को कम कर देते हैं।

भविष्य:
गत लाखों वर्षों में जीवन एक अत्यधिक संघटित ढाँचे के रूप में उभर कर आया है। जीवन प्रतिस्कंदी है, पर इसे स्थान की आवश्यकता होती है। जब पौधों, पशुओं या मृदा के प्रतिरूप का कोई भाग, विनष्ट हो जाता है, तो जीवन के संपूर्ण ढाँचे का ह्रास होता है। वांछनीय दशा ऐसा विश्व है जहाँ प्रमुख संसाधनों की कमी होने के स्थान पर इनकी पुनः प्राप्ति हो तथा जहाँ प्रजातियों को लोप होने के जगह उनकी निरंतरता बनी रहे। भविष्य में जीवन के प्रतिरूपों की संवृद्धि के उद्देश्यों से किए जाने वाले ऐसे सांस्कृतिक समायोजन मानव के अपने हाथ में हैं। भविष्य में आने वाली पीढ़ी हमारे युग की बुद्धिमानी ( या इसकी कमी) का मूल्यांकन जैविक विविधता को बनाए रखने तथा इससे पृथ्वी पर जीवन की गुणवत्ता कायम रखने में हमारे प्रयासों की सफलता या असफलता के आधार पर करेगी।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 2.
जैव विविधता का विभिन्न स्तरों पर वर्णन करो।
उत्तर:
जैव-विविधता को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है

  1. आनुवंशिक विविधता (Genetic diversity)
  2. प्रजातीय विविधता ( Species diversity) तथा
  3. पारितन्त्रीय विविधता (Ecosystem diversity)।

1. आनुवंशिक जैव विविधता (Genetic biodiversity ):
जीवन निर्माण के लिए जीन (Gene) एक मूलभूत इकाई है। किसी प्रजाति में जीन की विविधता ही आनुवांशिक जैव-विविधता है। समान भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को प्रजाति कहते हैं। मानव आनुवंशिक रूप से ‘होमोसेपियन’ (Homosapiens) प्रजाति से सम्बन्धित है जिससे कद, रंग और अलग दिखावट जैसे शारीरिक लक्षणों में काफ़ी भिन्नता है। इसका कारण आनुवंशिक विविधता है विभिन्न प्रजातियों के विकास के फलने-फूलने के लिए आनुवंशिक विविधता अत्यधिक अनिवार्य है।

2. प्रजातीय विविधता ( Species diversity ):
यह प्रजातियों की अनेकरूपता को बताती है। यह किसी निर्धारित क्षेत्र में प्रजातियों की संख्या से सम्बन्धित है। प्रजातियों की विविधता, उनकी समृद्धि, प्रकार तथा बहुलता से आँकी जा सकती है। कुछ क्षेत्रों में प्रजातियों की संख्या अधिक होती है और कुछ में कम जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है, उन्हें विविधता के हॉट स्पॉट (Hot spots) कहते हैं।

3. पारितन्त्रीय विविधता (Ecosystem diversity ):
आपने पिछले अध्याय में पारितन्त्रों के प्रकारों में व्यापक भिन्नता और प्रत्येक प्रकार के पारितन्त्रों में होने वाली पारितन्त्रीय प्रक्रियाएं तथा आवास स्थानों की भिन्नता ही पारितन्त्रीय विविधता बनाते हैं। पारितन्त्रीय विविधता का परिसीमन करना मुश्किल और जटिल है, क्योंकि समुदायों (प्रजातियों का समूह) और पारितन्त्र की सीमाएं निश्चित नहीं हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो –
1. दसवीं पंचवर्षीय योजना कब समाप्त हुई ?
(A) 2005
(B) 2006
(C) 2007
(D) 2008.
उत्तर:
(C) 2007

2. भरमौर जन- जातीय क्षेत्र किस राज्य में स्थित है ?
(A) उत्तराखंड
(B) जम्मू कश्मीर
(C) हिमाचल प्रदेश
(D) उत्तर प्रदेश।
उत्तर:
(C) हिमाचल प्रदेश

3. किसी क्षेत्र का आर्थिक विकास किस तत्त्व पर निर्भर करता है ?
(A) धरातल
(B) जलवायु
(C) जनसंख्या
(D) संसाधन।
उत्तर:
(D) संसाधन।

4. पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम में क्षेत्र की ऊँचाई कितनी ऊँचाई से अधिक है ?
(A) 500 मीटर
(B) 600 मीटर
(C) 700 मीटर
(D) 800 मीटर
उत्तर:
(B) 600 मीटर

5. सूखा सम्भावी क्षेत्र कितने जिलों में पहचाने गए हैं ?
(A) 47
(B) 57
(C) 67
(D) 77.
उत्तर:
(C) 67

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6. भरमौर क्षेत्र की प्रमुख नदी है-
(A) चेनाब
(B) ब्यास
(C) सतलुज
(D) रावी।
उत्तर:
(D) रावी।

7. भरमौर क्षेत्र में कौन-सी जन-जाति निवास करती है ?
(A) भोरिया
(B) गद्दी
(C) मारिया
(D) भील।
उत्तर:
(B) गद्दी

8. भरमौर क्षेत्र में स्त्री साक्षरता है-
(A) 32%
(B) 35%
(C) 40%
(D) 42%.
उत्तर:
(D) 42%.

9. अवर कॉमन फ़्यूचर रिपोर्ट किसने प्रस्तुत की ?
(A) ब्रंटलैंड
(B) मीडोस
(C) एहरलिच
(D) राष्ट्र संघ।
उत्तर:
(A) ब्रंटलैंड

10. इन्दिरा गाँधी नहर किस बाँध से निकाली गई है ?
(A) भाखड़ा
(C) हरीके
(B) नंगल
(D) थीन।
उत्तर:
(C) हरीके

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत में सर्वप्रथम पंचवर्षीय योजना कब आरम्भ हुई ? इसकी अवधि क्या थी ?
उत्तर:
1951 में 1951-1956.

प्रश्न 2.
दसवीं पंचवर्षीय योजना कब समाप्त हुई है ?
उत्तर:
31.3.2007 को

प्रश्न 3.
नियोजन के दो उपागम बताओ।
उत्तर:
खण्डीय तथा प्रादेशिक

प्रश्न 4.
योजना अवकाश का क्या समय रहा ?
उत्तर:
1966-67, 1968-1969.

प्रश्न 5.
सूखा सम्भावी क्षेत्र में विकास के दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर:
रोज़गार उपलब्ध करना तथा सूखा कम करना।

प्रश्न 6.
सूखा सम्भावी क्षेत्र में सिंचित क्षेत्र कितने % हो ?
उत्तर:
30% से कम।

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प्रश्न 7.
पर्वतीय विकास क्षेत्र में दो पहाड़ी क्षेत्र बताओ।
उत्तर:
दार्जिलिंग तथा नीलगिरी।

प्रश्न 8.
भरमौर जन- जातीय खण्ड हिमाचल प्रदेश के किस जिले में स्थित है ?
उत्तर:
चम्बा ज़िला की दो तहसीले भरमौर तथा होली।

प्रश्न 9.
भरमौर क्षेत्र में स्थित दो पर्वत श्रेणियां बताओ।
उत्तर:
पीर पंजाल तथा धौलाधार।

प्रश्न 10.
भरमौर क्षेत्र की जनसंख्या तथा जनसंख्या घनत्व बताओ।
उत्तर:
जनसंख्या 32,246 तथा घनत्व 20 व्यक्ति प्रति वर्ग कि० मी०।

प्रश्न 11.
किस बाँध से इन्दिरा गाँधी नहर निकाली गई ?
उत्तर:
इन्दिरा गाँधी नहर हरीके पतन बाँध से निकाली गई है।

प्रश्न 12.
‘दी लिमिट टू ग्रोथ’ पुस्तक किसने लिखी ?
उत्तर:
1972 में मीडोस ने ‘दी लिमिट टू ग्रोथ’ नामक पुस्तक लिखी।

प्रश्न 13.
सूखा सम्भावी क्षेत्रों में लोगों के लिए चौथी पंचवर्षीय योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:
चौथी पंचवर्षीय योजना को सूखा सम्भावी क्षेत्रों में लागू करने का मुख्य उद्देश्य रोज़गार प्रदान करना था ।

प्रश्न 14.
भारत की किस पंचवर्षीय योजना में पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रमों को प्रारम्भ किया गया ?
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम भारत की पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-75 से 1977-78 तक) में प्रारम्भ किया गया ताकि मूल संसाधनों का विकास किया जा सके ।

प्रश्न 15.
भरमौर जनजातीय क्षेत्र किस राज्य में स्थित है ?
उत्तर:
हिमाचल प्रदेश में।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
नियोजन से क्या अभिप्राय है ? यह किस प्रकार एक क्रमिक प्रक्रिया है ?
उत्तर:
नियोजन, क्रियाओं के क्रम / अनुक्रम को विकसित करने की प्रक्रिया है, जिसे भविष्य की समस्याओं के समाधान के लिए बनाया जाता हैं। नियोजन के लिए चुनी गई समस्याएं बदलती रहती हैं पर यह मुख्य रूप में आर्थिक और सामाजिक ही होती है। नियोजन के प्रकार और स्तर के अनुसार नियोजन की अवधि में भी अन्तर होता है लेकिन सभी प्रकार के नियोजन में एक क्रमिक प्रक्रिया होती है, जिसकी कुछ अवस्थाओं के रूप में संकल्पना की जाती है।

प्रश्न 2.
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम कहां-कहां आरम्भ किए गए हैं ?
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रमों को पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में प्रारम्भ किया गया और इसके अन्तर्गत उत्तर प्रदेश के सारे पर्वतीय जिले (वर्तमान उत्तराखंड), मिकिर पहाड़ी और असम की उत्तरी कछार की पहाड़ियाँ, पश्चिम बंगाल की दार्जिलिंग ज़िला और तमिलनाडु के नीलगिरी आदि को मिलाकर कुल 15 जिले शामिल हैं। 1981 में ‘पिछड़े क्षेत्रों पर राष्ट्रीय समिति ने उस सभी पर्वतीय क्षेत्रों को पिछड़े पर्वतीय क्षेत्रों में शामिल करने की सिफारिश की जिनकी ऊँचाई 600 मीटर से अधिक है और जिनमें जन- जातीय उप-योजना लागू नहीं है।

प्रश्न 3.
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के क्या सुझाव दिए गए हैं ?
उत्तर:
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए बनी राष्ट्रीय समिति ने निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के लिए सुझाव दिए:
(1) सभी लोग लाभान्वित हों, केवल प्रभावशाली व्यक्ति ही नहीं;
(2) स्थानीय संसाधनों और प्रतिभाओं का विकास;
(3) जीविका निर्वाह अर्थव्यवस्था को निवेश-उन्मुखी बनाना;
(4) अंतः प्रादेशिक व्यापार में पिछड़े क्षेत्रों का शोषण न हो
(5) पिछड़े क्षेत्रों की बाज़ार व्यवस्था में सुधार करके श्रमिकों को लाभ पहुँचाना
(6) पारिस्थिकीय सन्तुलन बनाए रखना ।

प्रश्न 4.
पर्वतीय क्षेत्रों में किन पक्षों का विकास किया जाएगा ?
उत्तर:
पहाड़ी क्षेत्र के विकास की विस्तृत योजनाएँ इनके स्थलाकृतिक, पारिस्थिकीय, सामाजिक तथा आर्थिक दशाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई। ये कार्यक्रम पहाड़ी क्षेत्रों में बागवानी का विकास, रोपण कृषि, पशुपालन, मुर्गी पालन, वानिकी, लघु तथा ग्रामीण उद्योगों का विकास करने के लिए स्थानीय संसाधनों को उपयोग में लाने के उद्देश्य से बनाए गए।

प्रश्न 5.
सूखा सम्भावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम के उद्देश्य बताओ।
उत्तर:
इस कार्यक्रम की शुरुआत चौथी पंचवर्षीय योजना में हुई। इसका उद्देश्य सूखा सम्भावी क्षेत्रों में लोगों को रोज़गार उपलब्ध करवाना और सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था । पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में इसके कार्यक्षेत्र को और विस्तृत किया गया । प्रारम्भ में इस कार्यक्रम के अन्तर्गत ऐसे सिविल निर्माण कार्यों पर बल दिया गया जिनमें अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है । परन्तु बाद में इसमें सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों, वनीकरण, चरागाह विकास और आधारभूत ग्रामीण अवसंरचना जैसे विद्युत्, सड़कों, बाज़ार, ऋण सुविधाओं और सेवाओं पर जोर दिया।

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प्रश्न 6.
देश के किन भागों में सूखा सम्भावी क्षेत्र है ?
उत्तर:
1967 में योजना आयोग ने देश में 67 जिलों (पूर्ण या आंशिक) की पहचान सूखा सम्भावी जिलों के रूप में की। 1972 में सिंचाई आयोग ने 30 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र का मापदंड लेकर सूखा सम्भावी क्षेत्रों को परिसीमन किया । भारत में सूखा सम्भावी क्षेत्र मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र, आन्ध्र प्रदेश के रायलसीमा और तेलंगाना पठार, कर्नाटक पठार और तमिलनाडु की उच्च भूमि तथा आंतरिक भाग के शुष्क और अर्ध-शुष्क भागों में फैले हुए हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्र सिंचाई के प्रसार के कारण सूखे से बच जाते हैं।

प्रश्न 7.
इन्दिरा गाँधी नहर कब आरम्भ हुई ? यह नहर किन-किन राज्यों से गुज़रती है ?
उत्तर:
इन्दिरा गाँधी नहर –

  1. आरम्भ – इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना पर काम 31 मार्च, 1958 को प्रारम्भ हुआ था।
  2. निकास स्थान- पंजाब प्रान्त के फिरोज़पुर ज़िले में सतलुज तथा व्यास के संगम पर स्थित हरिके बैराज से यह निकाली गई है।
  3. जल ग्रहण क्षमता – यह अपने तल में 40 मीटर चौड़ी तथा 6.4 मीटर गहरी है। अपने शीर्ष पर इसकी प्रवाह क्षमता 18,500 क्यूसेक्स है। 1981 के एक प्रस्ताव के अनुसार रावी – व्यास के अतिरिक्त जल से राजस्थान को 8.6 मिलियन एकड़ फीट पानी का नियतन किया गया था जिसमें से 7.6 मिलियन एकड़ फीट पानी का उपयोग इन्दिरा गाँधी नहर द्वारा किया जायेगा।
  4. राज्यों में विस्तार – इन्दिरा गाँधी नहर 204 किलोमीटर तक एक फीडर है और 150 किलोमीटर पंजाब में तथा 19 किलोमीटर हरियाणा में बहती है जहाँ इसमें कोई निकास नहीं है।
  5. शीर्ष स्थान – मुख्य नहर का शीर्ष श्री गंगानगर के हनुमानगढ़ तहसील में मसीतावाली के निकट स्थित है । 445 किलोमीटर लम्बी नहर का अन्तिम भाग जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ के निकट स्थित है।
  6. कमाण्ड क्षेत्र – इस नहर का कमाण्ड क्षेत्र – बाड़मेर जिले के गदरा रोड तक विस्तृत है। इस परियोजना का निर्माण कार्य हो रहा है तथा इसे दो चरणों में किया जा रहा है। इस नहर में 11 अक्तूबर, 1967 को पानी छोड़ा गया था और 1 जनवरी, 1987 को यह अन्तिम छोर तक पहुँचाया जा सका है।

प्रश्न 8.
इन्दिरा गाँधी नहर कमाण्ड क्षेत्र से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़े हैं ?
उत्तर:
सिंचाई का पर्यावरण पर प्रभाव-
सिंचाई से इस क्षेत्र की कृषि भू-दृश्यावली में परिवर्तन साफ़ परिलक्षित होता है तथा कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
1. भू-जल स्तर में वृद्धि – प्रथम चरण के कमाण्ड क्षेत्र में भूमि – जल स्तर में 0.8 मीटर प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हो रही है जो चिन्ता का विषय है । भूमिगत जल विभाग के एक अनुमान के अनुसार घग्घर बेसिन क्षेत्र के लगभग 25 प्रतिशत भाग की दशा जल स्तर के ऊपर आ जाने से शोचनीय हो गई है। यदि इसे रोकने के उपाय न किए गए तो इस शताब्दी के अन्त तक लगभग 50 प्रतिशत भाग की दशा बिगड़ने की सम्भावना है।

2. मिट्टी में लवणता – मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक होने एवं जलाक्रातता के कारण कमाण्ड क्षेत्र के प्रथम चरण की मिट्टी में लवणता का प्रकोप बढ़ गया है।

3. मिट्टी की उर्वरता – इसके कारण मिट्टी की उर्वरता तथा कृषि उत्पादन पर कुप्रभाव पड़ा है। यह समस्या द्वितीय चरण कमाण्ड क्षेत्र में अधिक शोचनीय होने की आंशका है। क्योंकि कमाण्ड क्षेत्र के इस भाग में भूमि के कुछ ही मीटर नीचे कंकड़ के स्तर जो प्रवाह को अवरुद्ध कर जलाक्रांतता को प्रोत्साहन देते हैं।

प्रश्न 9.
इन्दिरा गाँधी नहर कमाण्ड क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ? इस क्षेत्र की स्थिति तथा विस्तार बताओ।
उत्तर:
इन्दिरा गाँधी नहर थार मरुस्थल के विकास के लिए बनाई गई नहर है। यह संसार के बहुत बड़े नहर तन्त्रों में से एक है। इस नहर का कमाण्ड क्षेत्र राजस्थान के थार मरुस्थल के उत्तर पश्चिमी भाग में श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर तथा चुरू जिलों में स्थित है। यह पाकिस्तान की सीमा रेखा के साथ लगभग 23,725 वर्ग कि० मी० क्षेत्र पर फैला हुआ है। यह क्षेत्र पाकिस्तान सीमा रेखा के समानान्तर लगभग 38 कि० मी० चौड़ाई में फैला हुआ है

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
खण्डीय नियोजन तथा प्रादेशिक नियोजन में अन्तर बताओ ।
उत्तर:
सामान्यतः नियोजन के दो उपागम होते हैं –
(1) खण्डीय (Sectoral) नियोजन और
(2) प्रादेशिक नियोजन।

1. खण्डीय नियोजन – खण्डीय नियोजन का अर्थ है – अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों, जैसे- कृषि, सिंचाई, विनिर्माण, ऊर्जा, निर्माण, परिवहन, संचार, सामाजिक अवसंरचना और सेवाओं के विकास के लिए कार्यक्रम बनाना तथा उनको लागू करना।

2. प्रादेशिक नियोजन – किसी भी देश में सभी क्षेत्रों में एक समान आर्थिक विकास नहीं हुआ है। कुछ क्षेत्र बहुत अधिक विकसित हैं तो कुछ पिछड़े हुए हैं। विकास का यह असमान प्रतिरूप (Pattern) सुनिश्चित करता है कि नियोजक एक स्थानिक परिप्रेक्ष्य अपनाएँ तथा विकास में प्रादेशिक असंतुलन कम करने के लिए योजना बनाएं। इस प्रकार के नियोजन को प्रादेशिक नियोजन कहा जाता है।

प्रश्न 2.
” भारत में नियोजन अभी तक केन्द्रीकृत ही है ।” स्पष्ट करते हुए इसके अधीन महत्त्वपूर्ण विषयों का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में नियोजन अभी तक केन्द्रीकृत ही है। राष्ट्रीय विकास परिषद् नियोजन की नीति तय करती है। इस परिषद् में केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल, योजना आयोग के सदस्य राज्यों के मुख्यमन्त्री तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्यमन्त्री / प्रशासक शामिल होते हैं । राष्ट्रीय महत्त्व के विषय. जैसे- रक्षा, संचार, रेलें आदि केन्द्रीय सरकार के अधीन होते हैं जबकि ग्रामीण विकास की महत्त्वपूर्ण सेवाएं, लघु उद्योग और सड़कों का विकास व परिवहन राज्य सरकार के नियन्त्रण में होते हैं। अधिकतर मामलों में योजना आयोग ही, कार्य-नीतियां, नीतियां और कार्यक्रम बनाता है तथा राज्यों को केवल उन्हें क्रियान्वित करने के लिए कहा जाता है।

प्रश्न 3.
‘लक्ष्य क्षेत्र’ (Target Area) तथा ‘लक्ष्य समूह’ (Target group) से क्या अभिप्राय है ? इन क्षेत्रों में कौन से कार्यक्रम सम्मिलित हैं ?
उत्तर:
आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असंतुलन प्रबल हो रहा था। क्षेत्रीय एवं सामाजिक विषमताओं की प्रबलता को काबू में रखने के क्रम में योजना आयोग ने ‘लक्ष्य क्षेत्र’ तथा ‘लक्ष्य समूह’ योजना उपागमों को प्रस्तुत किया है। लक्ष्य क्षेत्रों की ओर इंगित कार्यक्रमों के कुछ उदाहरणों में कमान नियन्त्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम हैं। इसके साथ ही लघु कृषक विकास संस्था, सीमान्त किसान विकास संस्था आदि कुछ लक्ष्य समूह कार्यक्रम के उदाहरण हैं। आठवीं पंचवर्षीय योजना में पर्वतीय क्षेत्रों तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों, जनजातीय एवं पिछड़े क्षेत्रों में अवसंरचना को विकसित करने के लिए विशिष्ट क्षेत्र योजना को तैयार किया गया।

प्रश्न 4.
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए कौन-से सुझाव आप देना चाहोगे जो इनके वासियों को आधारभूत सेवाएँ प्रदान करने में सहायक ?
उत्तर:
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए कुछ सुझाव –

  1. सभी लोग लाभान्वित हों, केवल प्रभावशाली व्यक्ति ही नहीं
  2. स्थानीय संसाधनों और प्रतिभाओं का विकास
  3. जीविका निर्वाह अर्थव्यवस्था का निवेश – उन्मुखी बनाना
  4. अंतः प्रादेशिक व्यापार में पिछड़े क्षेत्रों का शोषण न हो
  5. पिछड़े क्षेत्रों की बाज़ार व्यवस्था में सुधार करके श्रमिकों को लाभ पहुँचाना
  6. पारिस्थिकीय सन्तुलन बनाएं रखना।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत में नियोजन परिप्रेक्ष्य का अवलोकन करो।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में योजना आयोग ने निम्नलिखित पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई हैं-
1. प्रथम पंचवर्षीय योजना – प्रथम पंचवर्षीय योजना 1951 में आरम्भ हुई तथा यह 1951-52 से 1955-56 तक चली।
2. द्वितीय तथा तृतीय पंचवर्षीय योजना – द्वितीय तथा तृतीय पंचवर्षीय योजनाओं की समय अवधि क्रमशः 1956- 57 से 1960-61 और 1961-62 से 1965-66 तक रही।
3. योजना अवकाश – 1960 के दशक के मध्य में लगातार दो सूखों (1965-66 और 1966-67) और 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के कारण 1966-67 और 1968-69 में ‘ योजना अवकाश’ लेना पड़ा।
4. रोलिंग प्लान- इस अवधि में वार्षिक योजनाएँ लागू रहीं जिन्हें ‘रोलिंग प्लान’ भी कहा गया है।
5. चतुर्थ पंचवर्षीय योजना – चतुर्थ पंचवर्षीय योजना 1969-70 में आरम्भ हुई और 1973-74 तक चली। 6. पांचवीं पंचवर्षीय योजना- इसके बाद पाँचवीं पंचवर्षीय योजना आरम्भ 1974-75 में आरम्भ हुई परन्तु तत्कालीन सरकार ने इसे एक वर्ष पहले अर्थात् 1977-78 में ही समाप्त कर दिया।
7. छठी पंचवर्षीय योजना – छठी पंचवर्षीय योजना 1980 में लागू हुई।
8. सातवीं पंचवर्षीय योजना-सातवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि 1985 से 1990 के बीच रही। एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता और उदारीकरण की नीति की शुरुआत के कारण आठवीं पंचवर्षीय योजना देरी से आरम्भ हुई।
9. आठवीं पंचवर्षीय योजना- इस योजना ने 1992 से 1997 के बीच की अवधि तय की।
10. नौवीं पंचवर्षीय योजना- नौवीं पंचवर्षीय योजना 1997 से 2002 तक लागू रही।
11. दसवीं पंचवर्षीय योजना – दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002 में प्रारम्भ हुई और 31.3.2007 को समाप्त हुई । 12. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना – ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना का उपागम प्रपत्र ‘तीव्रता के साथ और अधिक सम्मिलित वृद्धि की ओर’ पर पहले से ही परिचर्चा चल रही है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

प्रश्न 2.
भरमौर क्षेत्र का भौतिक पर्यावरण बताओ।
उत्तर:
1. स्थिति तथा क्षेत्रफल – यह क्षेत्र 32° 11′ उत्तर से 32° 41′ उत्तर अक्षांशों तथा 76° 22′ पूर्व से 76° 53′ पूर्व देशान्तरों के बीच स्थित है। यह प्रदेश लगभग 1,818 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

2. धरातल – इसका अधिकतर भाग समुद्र तल से 1500 मीटर से 3700 मीटर की औसत ऊँचाई के बीच स्थित है। गद्दियों की आवास भूमि कहलाया जाने वाला यह क्षेत्र चारों दिशाओं में ऊँचे पर्वतों से घिरा हुआ है। इसके उत्तर में पीर पंजाल तथा दक्षिण में धौलाधार पर्वत श्रेणियाँ हैं। पूर्व में धौलाधार श्रेणी का फैलाव रोहतांग दर्रे के पास पीर पंजाल श्रेणी से मिलता है।

3. नदियाँ – इस क्षेत्र में रावी और इसकी सहायक नदियाँ बुधित और टुंडेन बहती हैं और गहरे महाखड्डों का निर्माण करती हैं। ये नदियाँ इस पहाड़ी प्रदेश को चार भूखण्डों, होली, खणी, कुगती और तुण्डाह में विभाजित करती हैं।

4. जलवायु – शरद् ऋतु में भरमौर में जमा देने वाली कड़ाके की सर्दी और बर्फ पड़ती है तथा जनवरी में यहाँ औसत मासिक तापमान 4° सेल्सियस और जुलाई में 26° सेल्सियस रहता है।

प्रश्न 3.
भरमौर समन्वित जनजातीय खण्ड के विकास का कार्यक्रम तथा उनके प्रभाव बताओ ।
उत्तर:
केस अध्ययन – भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम
1. सामाजिक जीवन – भरमौर जनजातीय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले की दो तहसीलें, भरमौर और होली शामिल हैं। यह 21 नवम्बर, 1975 से अधिसूचित जनजातीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ‘ गद्दी जनजातीय समुदाय का आवास है।’ इस समुदाय की हिमालय क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान है क्योंकि गद्दी लोग ऋतु प्रवास करते हैं तथा गद्दीयाली भाषा में बात करते हैं। भरमौर जनजातीय क्षेत्र में जलवायु कठोर है, आधारभूत संसाधन कम हैं और पर्यावरण भंगुर है।

इन कारकों ने इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया है। 2001 की जनगणना के अनुसार, भरमौर उपमण्डल की जनसंख्या 32,246 थी अर्थात् जनसंख्या घनत्व 20 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर। यह हिमाचल प्रदेश के आर्थिक और सामाजिक रूप से सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है । ऐतिहासिक तौर पर, गद्दी जनजाति ने भौगोलिक और आर्थिक अलगाव का अनुभव किया है और सामाजिक-आर्थिक विकास से वंचित रही है। इनका आर्थिक आधार मुख्य रूप से कृषि और इससे सम्बद्ध क्रियाएँ जैसे- भेड़ और बकरी पालन है।

2. विकास कार्यक्रम – भरमौर जनजातीय क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया 1970 के दशक में शुरू हुई जब गद्दी लोगों को अनुसूचित जनजातियों में शामिल किया गया। 1974 में पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत जनजातीय उप-योजना प्रारम्भ हुई और भरमौर को हिमाचल प्रदेश में पाँच में से समन्वित जनजातीय विकास परियोजना (आई० टी० डी० पी० ) का दर्जा मिला। इस क्षेत्र विकास योजना का उद्देश्य गद्दियों के जीवन स्तर में सुधार करना और भरमौर तथा हिमाचल प्रदेश के अन्य भागों के बीच में विकास के स्तर में अन्तर को कम करना है। इस योजना के अन्तर्गत परिवहन तथा संचार, कृषि और इससे सम्बन्धित क्रियाओं तथा सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं के विकास को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई।

3. उद्देश्य – इस क्षेत्र में जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान विद्यालयों, जन स्वास्थ्य सुविधाओं, पेयजल, सड़कों, संचार और विद्युत् के रूप में अवसंरचना विकास है। परन्तु होली और खणी क्षेत्रों में रावी नदी के साथ बसे गाँव अवसंरचना विकास के सबसे अधिक लाभान्वित हुए हैं। तुंदाह और कुगती क्षेत्रों के दूरदराज के गाँव अभी भी इस विकास की परिधि से बाहर हैं।

4. विकास कार्यक्रम से प्राप्त लाभ – जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना लागू होने से हुए सामाजिक लाभों में साक्षरता दर में तेज़ी से वृद्धि, लिंग अनुपात में सुधार और बाल विवाह में कमी शामिल है।

  • इस क्षेत्र में स्त्री साक्षरता दर 1971 में 1.88 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 42.83 प्रतिशत हो गई।
  • स्त्री और पुरुष साक्षरता दर में अन्तर अर्थात् साक्षरता में लिंग असमानता भी कम हुई है ।
  • गद्दियों की परम्परागत अर्थव्यवस्था जीवन निर्वाह कृषि व पशुचारण पर आधारित थी जिसमें खाद्यान्नों और पशुओं के उत्पादन पर बल दिया जाता था।

परन्तु 20वीं शताब्दी के अन्तिम तीन दशकों के दौरान, भरमौर क्षेत्र में दालों और अन्य नकदी फसलों की खेती में बढ़ोत्तरी हुई है। परन्तु यहाँ खेती अभी भी परम्परागत तकनीकों से की जाती है । (4) इस क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में पशुचारण के घटते महत्त्व को इस बात से आँका जा सकता है कि आज कुल पारिवारिक इकाइयों का दसवाँ भाग ही ऋतु प्रवास करता है । परन्तु गद्दी जनजाति आज भी बहुत गतिशील है क्योंकि इनकी एक बड़ी संख्या शरद् ऋतु में कृषि और मज़दूरी करके आजीविका कमाने के लिए कांगड़ा और आस-पास के क्षेत्रों में प्रवास करती है –
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास - 1

प्रश्न 4.
सतत् पोषणीय विकास पर एक निबन्ध लिखो।
उत्तर:
सतत् पोषणीय विकास (Sustainable Development ) – प्राकृतिक संसाधन ऐसी संपत्ति है, जिसके दोहरे उपयोग हैं। ये विकास के लिए कच्चा माल और ऊर्जा प्रदान करते हैं। ये पर्यावरण के अंग भी हैं, जो स्वास्थ्य और जीवनशक्ति पर भी प्रभाव डालते हैं। इसीलिए मानव जीवन और विकास के संसाधनों का बुद्धिमत्ता पूर्ण उपयोग अनिवार्य है। इसके लिए सतत् पोषणीय विकास की आवश्यकता है, जिसके महत्त्व को गांधी जी ने सन् 1908 से बताना शुरू कर दिया था।

सतत् पोषणीय विकास का तात्पर्य विकास की उस प्रक्रिया से है, जिसमें पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखा जाता है कि समाप्य संसाधनों का उपयोग इस तरह से किया जाए कि सभी प्रकार की संपदा ( पर्यावरणीय संपदा समेत ) के कुल भंडार कभी भी खाली नहीं होने पाएं। विकास के अनेक रूप, पर्यावरण के उन्हीं संसाधनों का ह्रास कर देते हैं, जिन पर वे आश्रित होते हैं। इससे वर्तमान आर्थिक विकास धीमा हो जाता है तथा भविष्य की संभावनाएं काफ़ी हद तक घट जाती हैं।

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अतः सतत् पोषणीय विकास में पारितंत्र के स्थायित्व को सदैव ध्यान में रखना पड़ता है । इसी बात को ध्यान में रखकर प्रकृति के संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय संघ ने सतत् पोषणीय विकास को इस प्रकार परिभाषित किया है पालन-पोषण करने वाले पारितंत्र की निर्वाह क्षमता के अनुसार जी यापन करते हुए मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार ही सतत् पोषणीय विकास है। इस प्रकार प्रश्न केवल जीवन की सतत् पोषणीयता का ही नहीं है, अपितु जीवन की अच्छी गुणवत्ता भी ज़रूरी है।

मानव और पर्यावरण अंतः क्रिया की प्रक्रियाएँ इस बात पर निर्भर करती हैं कि समाज में किस प्रकार की प्रौद्योगिकी विकसित की है और किस प्रकार की संस्थाओं का पोषण किया है। प्रौद्योगिकी और संस्थाओं ने मानव – पर्यावरण अंतःक्रिया को गति प्रदान की है तो इससे पैदा हुए संवेग ने प्रौद्योगिकी का स्तर ऊँचा उठाया है और अनेक संस्थाओं का निर्माण और रूपांतरण किया है। अतः विकास एक बहु-आयामी संकल्पना है और अर्थव्यवस्था समाज तथा पर्यावरण में सकारात्मक व अनुत्क्रमीय परिवर्तन का द्योतक है। विकास की संकल्पना गतिक है और इस संकल्पना का प्रादुर्भाव 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ है। द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत विकास की संकल्पना आर्थिक वृद्धि की पर्याय थी जिसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति उपभोग में समय के साथ बढ़ोतरी के रूप में मापा जाता है।

परंतु अधिक आर्थिक वृद्धि वाले देशों में भी असमान वितरण के कारण गरीबी का स्तर बहुत तेज़ी से बढ़ा। अतः 1970 के दशक में ‘पुनर्वितरण के साथ वृद्धि’ तथा ‘वृद्धि और समानता’ जैसे वाक्यांश विकास की परिभाषा में शामिल किए गए। पुनर्वितरण और समानता के प्रश्नों से निपटते हुए यह अनुभव हुआ कि विकास की संकल्पना को मात्र आर्थिक प्रक्षेत्र तक की सीमित नहीं रखा जा सकता । इसमें लोगों के कल्याण और रहने के स्तर, जन स्वास्थ्य, शिक्षा, समान अवसर और राजनीतिक तथा नागरिक अधिकारों से संबंधित मुद्दे भी सम्मिलित हैं। 1980 के दशक तक विकास एक बहु-आयामी संकल्पना के रूप में उभरा जिसमें समाज के सभी लोगों के लिए वृहद् स्तर पर सामाजिक एवं भौतिक कल्याण का समावेश है।

1960 के दशक के अंत में पश्चिमी दुनिया में पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर बढ़ती जागरूकता की सामान्य वृद्धि के कारण सतत् पोषणीय धारणा का विकास हुआ। इससे पर्यावरण पर औद्योगिक विकास के अनापेक्षित प्रभावों के विषय में लोगों की चिंता प्रकट होती थी। 1968 में प्रकाशित एहरलिच की पुस्तक ‘द पापुलेशन बम’ और 1972 में मीडोस और अन्य द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘द लिमिट टू ग्रोथ’ के प्रकाशन ने इस विषय पर लोगों और विशेषकर पर्यावरणविदों की चिंता और भी गहरी कर दी। इस घटनाक्रम के परिपेक्ष्य में विकास के एक नए माडल जिसे ‘सतत् पोषणीय विकास’ कहा जाता है, की शुरुआत हुई।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व पर्यावरण और विकास आयोग की स्थापना की जिसके प्रमुख नार्वे की प्रधानमंत्री गरो हरलेम ब्रंटलैंड थी। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘अवर कॉमन फ्यूचर’ (जिसे ब्रंटलैंड रिपोर्ट भी कहते हैं) 1987 में प्रस्तुत की। ने सतत् पोषणीय विकास की सीधी- सरल और वृहद् स्तर पर प्रयुक्त परिभाषा प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट के अनुसार सतत् पोषणीय विकास का अर्थ है – ‘ एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना।’
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प्रश्न 5.
इन्दिरा गांधी कमाण्ड क्षेत्र में क्या-क्या परिवर्तन हुए हैं ? विकास कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर:
कमाण्ड क्षेत्र में विकास (Development in Indira Gandhi Canal Command Area)

इन्दिरा गांधी नहर परियोजना से लाभ (Benefits from Indira Canal)
1. मरुस्थल के विस्तार पर रोक (To check the Advance of Deserts ) – इस क्षेत्र में वर्षा की कमी के कारण मरुस्थल का विस्तार अधिक है । यह मरुस्थल तीव्र गति से पड़ोसी प्रदेशों की ओर बढ़ रहा है। इस जल से वर्षा की कमी को दूर कर चरागाहों तथा वृक्षारोपण से मरुस्थल के विस्तार को रोका जाएगा।

2. पीने का जल (Drinking Water ) – इस क्षेत्र में जल स्तर बहुत नीचा है। विभिन्न योजनाओं द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में पीने का स्वच्छ जल प्रदान होगा। जैसे गन्थेली साहवा जल पूर्ति योजना, सीकर व झुंझुनू कस्बों तक पानी पहुंचाया
जाएगा।

3. यातायात साधनों का विकास (Means of Transport ) – रेतीली भूमि के कारण परिवहन साधन कम हैं। इस योजना से परिवहन विकास सम्भव है। परिवहन के साधनों एवं सार्वजनिक सुविधाओं का विकास करना जिसके अन्तर्गत सड़क निर्माण करना, अधिवासों को विपणन केन्द्रों से जोड़ना, नये विपणन केन्द्रों का विकास तथा पीने के पानी का प्रबन्ध करना आदि सम्मिलित हैं।

4. कृषि विकास (Agricultural Development ) – राजस्थान एक कृत्रिम मरुस्थल है। कई विद्वानों के अनुसार उपजाऊ मिट्टी में कृषि विकास सम्भव है । इस नहर द्वारा जल सिंचाई से गेहूं, कपास, जौ, गन्ना आदि फसलों का उत्पादन बढ़ाया जा सकेगा। एक अनुमान के अनुसार 400 करोड़ रुपये के खाद्यान्न उत्पन्न किए जा सकेंगे जिससे अकालों पर काबू पाया जा सकेगा। कृषि विकास के अन्तर्गत सर्वेक्षण एवं नियोजन, जल मार्गों का पक्का बनाना, भूमि को समतल करना तथा विघटित भूमि को समतल करके उसका पुनः उद्धार करना आदि सम्मिलित थे।

5. औद्योगिक विकास (Industrial Development ) – लगभग 1200 क्यूसेक जल औद्योगिक विकास के लिए प्रदान किया जाएगा जो कृषि पदार्थों पर आधारित उद्योगों में लगेंगे।

6. जल सिंचाई (Irrigation) – इस नहर की पूर्ति पर 1,394,000 हेक्टेयर भूमि में जल सिंचाई सम्भव हो सकेगी। कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम के क्रियान्वयन से सिंचाई के विस्तार, जल- उपयोग की क्षमता, कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि आदि में सहायता मिली है।

7. वनारोपण (Afforestation) – वनारोपण तथा चरागाह विकास जिसके अन्तर्गत नहरों एवं सड़कों के किनारे वृक्ष लगाना, अधिवासों के निकट खण्डों में वृक्षारोपण, बालुका- टीलों का स्थिरीकरण तथा कृषि योग्य बंजर भूमि पर चरागाहों का विकास करना सम्मिलित है।

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8. फसल – प्रारूप (Cropping Pattern) – पश्चिमी राजस्थान में मिट्टी में आर्द्रता की कमी कृषि विकास में सदैव अवरोध पैदा करती रही है। किसान केवल खरीफ में ही फसल पैदा कर सकता है। बहुत बड़ा कृषि योग्य भू-भाग बंजर अथवा परती भूमि के रूप में रह जाता है। सिंचाई के विस्तार से शुद्ध कृषि भूमि तथा कुल कृषि भूमि में वृद्धि हुई है। इससे पहले सूखा सहन करने वाली फसलों बाजरा, ज्वार, मूंग, मोठ तथा चना आदि बोयी जाती थीं।

वाणिज्यिक फसलों जैसे – कपास, मूंगफली, गेहूं तथा सरसों के क्षेत्रफल में तीव्रता से वृद्धि हुई है। गेहूं, कपास, सरसों की कृषि में वृद्धि हुई है। कृषि उत्पादन एवं प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में भी तीव्रता से वृद्धि हुई है। कपास, मूंगफली, चावल तथा गेहूँ की उत्पादकता उत्तरोत्तर बढ़ रही है। आधुनिक कृषि उपकरणों की आपूर्ति करना जिसमें उत्तम सुधरे बीजों की आपूर्ति, रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाओं की आपूर्ति करना तथा किसानों को प्रशिक्षण एवं विस्तार सेवाओं को उपलब्ध कराना आदि सम्मिलित हैं।

9. सम्पूर्ण विकास (Total Development ) – इस परियोजना को सम्पूर्ण विकास द्वारा इस रेगिस्तान को पुन: हरा-भरा बनाने का उद्देश्य है। इससे विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व में वृद्धि होगी । भूमि को समतल करके भूमि सुधार किया जाएगा। रोज़गार की सुविधा बढ़ेगी। इस निर्धन प्रदेश में सीमा सुरक्षा के उचित प्रबन्ध हो सकेंगे। इससे विभिन्न करों, उत्पादन व राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी। कई क्षेत्रों में जल से घास तथा चरागाहों का विकास करके पशु धन को बढ़ाया जा सकेगा। इस प्रकार यह परियोजना इस क्षेत्र में आर्थिक तथा सामाजिक क्रान्ति लाने का प्रयास है।

10. चरागाहों का विकास ( Development of Pastures ) – 3.66 लाख भूमि पर सिंचित चरागाहों को विकसित करके पशुचारण को लाभ देना है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें –
1. निम्नलिखित में से किस उद्योग में चूने का पत्थर कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है।
(A) एल्यूमीनियम
(B) सीमेंट
(C) चीनी
(D) पटसन।
उत्तर:
(B) सीमेंट

2. सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात यन्त्रों के इस्पात का विक्रय किस संस्था द्वारा होता है ?
(A) HAL
(B) SAIL
(D) MNCC
(C) TATA
उत्तर:
(B) SAIL

3. किस उद्योग में बॉक्साइट कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है ?
(A) एल्यूमीनियम
(B) सीमेंट
(C) पटसन
(D) इस्पात
उत्तर:
(A) एल्यूमीनियम

4. किस उद्योग में टेलीफोन व कंप्यूटर बनाए जाते हैं ?
(A) इस्पात
(B) एल्यूमीनियम
(C) इलैक्ट्रॉनिक्स
(D) सूचना प्रौद्योगिकी
उत्तर:
(D) सूचना प्रौद्योगिकी

5. निर्माण किस वर्ग की क्रिया है ?
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीयक
(C) तृतीयक
(D) चतुर्थक।
उत्तर:
(B) द्वितीयक

6. कौन – सा उद्योग कृषि आधारित उद्योग है ?
(A) लोहा-इस्पात
(B) सूती वस्त्र
(C) एल्यूमीनियम
(D) सीमेंट।
उत्तर:
(B) सूती वस्त्र

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7. पहली सूती वस्त्र मिल मुम्बई में कब लगाई गई ?
(A) 1834
(B) 1844
(C) 1854
(D) 1864.
उत्तर:
(C) 1854

8. अधिकतर पटसन मिलें किस बेसिन में स्थित हैं ?
(A) महानदी
(B) दामोदर
(C) हुगली
(D) कोसी।
उत्तर:
(C) हुगली

9. भारत में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति इस्पात खपत है
(A) 30 कि० ग्रा०
(B) 31 कि० ग्रा०
(C) 32 कि० ग्रा०
(D) 33 कि० ग्रा०
उत्तर:
(C) 32 कि० ग्रा०

10. भारत में एल्यूमीनियम का उत्पादन है।
(A) 50 करोड़ टन
(B) 60 करोड़ टन
(C) 70 करोड़ टन
(D) 80 करोड़ टन।
उत्तर:
(B) 60 करोड़ टन

11. किस नगर को भारत की इलैक्ट्रोनिक राजधानी कहते हैं ?
(A) मुम्बई
(B) कोलकाता
(C) बंगलौर
(D) पुणे।
उत्तर:
(C) बंगलौर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions )

प्रश्न 1.
जमशेदपुर में टाटा इस्पात केन्द्र कब स्थापित किया गया ?
उत्तर:
सन् 1907 में।

प्रश्न 2.
उद्योगों के स्वामित्व के आधार पर तीन वर्ग बताओ।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र, सहकारी क्षेत्र।

प्रश्न 3.
भारत में इस्पात का कुल उत्पादन बताओ।
उत्तर:
-311 लाख टन।

प्रश्न 4.
भारत में पहली आधुनिक सूती मिल कब व कहां लगाई गई ?
उत्तर:
1854 में मुम्बई में।

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प्रश्न 5.
भारत में चीनी मिलों की कुल संख्या कितनी है ?
उत्तर:
506.

प्रश्न 6.
भारत में चीनी का कुल उत्पादन बताओ।
उत्तर:
1.77 करोड़ टन।

प्रश्न 7.
भारत में इलेक्ट्रोनिक उद्योग का सबसे बड़ा केन्द्र बताओ।
उत्तर:
बंगलौर

प्रश्न 8.
गुजरात राज्य में एक प्रमुख उद्योग बताओ।
उत्तर:
पेट्रो रसायन।

प्रश्न 9.
छोटा नागपुर क्षेत्र में दो औद्योगिक केन्द्र बताओ।
उत्तर:
रांची, बोकारो।

प्रश्न 10.
हुगली औद्योगिक प्रदेश में मुख्य उद्योग कौन-सा है ?
उत्तर:
पटसन उद्योग।

प्रश्न 11.
उद्योगों के उत्पादों के उपयोग के आधार पर वर्गीकरण करो।
उत्तर:

  1. वस्तु आधारभूत उद्योग
  2. पूंजीगत वस्तु उद्योग
  3. मध्यवर्ती वस्तु उद्योग
  4. उपभोक्ता वस्तु उद्योग।

प्रश्न 12.
कच्चे माल के आधार पर चार प्रकार के उद्योग बताओ।
उत्तर:

  • कृषि आधारित
  • वन आधारित
  • खनिज आधारित
  • प्रसंस्कृत कच्चे माल पर आधारित उद्योग।

प्रश्न 13.
केलिको सूत्री वस्त्र मिल कहां स्थित है ?
उत्तर:
अहमदाबाद में।

प्रश्न 14.
सूती वस्त्र उद्योग की अवस्थिति किन कारकों पर निर्भर करती है ?
उत्तर:

  1.  कच्चे माल
  2. ईंधन
  3. रसायन
  4. मशीनें
  5. श्रमिक
  6. परिवहन
  7. बाज़ार।

प्रश्न 15.
सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केन्द्र पंचभुज प्रदेश बनाते हैं ? इसके पांच बिन्दु कौन-से हैं ?
उत्तर:
अहमदाबाद, मुम्बई, शोलापुर, नागपुर, इंदौर – उज्जैन।

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प्रश्न 16.
भारत के किस राज्य में सूती वस्त्र मिलें सर्वाधिक हैं ?
उत्तर:
तमिलनाडु में 439 मिलें।

प्रश्न 17.
भारत में लौह तथा अलौह उद्योगों का एक-एक उदाहरण दो।
उत्तर:
लौह उद्योग – लौह इस्पात
अलौह उद्योग – तांबा।

प्रश्न 18.
राऊरकेला लोह-इस्पात कारखाना किस देश के सहयोग से लगाया गया ?
उत्तर:
जर्मनी।

प्रश्न 19.
भिलाई लौह इस्पात कारखाना किस देश के सहयोग से लगाया गया ?
उत्तर:
“रूस

प्रश्न 20.
दुर्गापुर लौह इस्पात कारखाना किस देश के सहयोग से लगाया गया ?
उत्तर:
इंग्लैंड

प्रश्न 21.
शक्ति के उत्पादन पर आधारित एक उद्योग बताओ।
उत्तर:
एल्युमिनियम।

प्रश्न 22.
बाज़ार की निकटता पर आधारित एक उद्योग का नाम लिखिए।
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
विनिर्माण उद्योग से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कच्चे माल (Raw Material) को मशीनों की सहायता के रूप बदल कर अधिक उपयोगी तैयार माल प्राप्त करने की क्रिया को निर्माण उद्योग कहते हैं । यह मनुष्य का एक सहायक या गौण या द्वितीयक (Secondary) व्यवसाय है। इसलिए निर्माण उद्योग में जिस वस्तु का रूप बदल जाता है, वह वस्तु अधिक उपयोगी हो जाती है तथा निर्माण द्वारा उस पदार्थ की मूल्य वृद्धि हो जाती है जैसे लकड़ी से लुग्दी तथा काग़ज़ बनाया जाता है। कपास से धागा और कपड़ा बनाया जाता है। खनिज लोहे से इस्पात तथा कल-पुर्जे बनाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
भारी उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर:
भारी उद्योग ( Heavy Industry ):
खनिज पदार्थों का प्रयोग करने वाले आधारभूत उद्योगों को भारी उद्योग कहते हैं । इन उद्योगों में भारी पदार्थों का आधुनिक मिलों में निर्माण किया गया है। ये उद्योग किसी देश के औद्योगीकरण की आधारशिला हैं । लोहा – इस्पात उद्योग, मशीनरी, औज़ार तथा इंजीनियरिंग सामान बनाने के उद्योग भारी उद्योग के वर्ग में गिने जाते हैं।

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प्रश्न 3.
उद्योगों का वर्गीकरण किस विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है ?
उत्तर:
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है –
(i) उद्योगों के आकार तथा कार्यक्षमता के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) बड़े पैमाने के उद्योग
(ख) छोटे पैमाने के उद्योग।

(ii) औद्योगिक विकास के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) कुटीर उद्योग
(ख) आधुनिक शिल्प उद्योग।

(iii) स्वामित्व के आधार पर उद्योग दो-तीन प्रकार के होते हैं –
(क) सार्वजनिक उद्योग (जिनकी व्यवस्था सरकार स्वयं करती है),
(ख) निजी उद्योग
(ग) सहकारी उद्योग।

(iv) कच्चे माल के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) कृषि पर आधारित उद्योग
(ख) खनिजों पर आधारित उद्योग।

(v) वस्तुओं के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) हल्के उद्योग,
(ख) भारी उद्योग।

(vi) इसी प्रकार उद्योगों को अनेक विभिन्न वर्गों में रखा जाता है। जैसे हस्तकला उद्योग, ग्रामीण उद्योग, घरेलू उद्योग आदि।

प्रश्न 4.
भारत के पाँच लोहा तथा इस्पात केन्द्र वाले नगरों के नाम लिखो।
उत्तर:
लोहा – इस्पात नगर (Steel Towns) – भारत में निम्नलिखित नगरों में आधुनिक इस्पात कारखाने स्थित हैं। इन्हें लोहा-इस्पात नगर भी कहा जाता है।

  • जमशेदपुर (झारखण्ड)
  • बोकारो (झारखण्ड)
  • भिलाई (छत्तीसगढ़)
  • राऊरकेला (उड़ीसा)
  • भद्रावती (कर्नाटक)।

प्रश्न 5.
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में अपनाई गई औद्योगिक नीति के क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् सामाजिक तथा आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए औद्योगिक नीति अपनाई गई। इस नीति में आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए क्षेत्रों में उद्योग स्थापित किए गए ताकि प्रादेशिक असन्तुलन को कम किया जा सके।

औद्योगिक नीति के उद्देश्य इस प्रकार थे –

  • रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान करना।
  • उद्योगों में उच्च उत्पादकता प्राप्त करना।
  • प्रादेशिक असन्तुलन को दूर करना।
  • कृषि आधारित उद्योगों का विकास करना।
  • निर्यात प्रधान उद्योगों को बढ़ावा देना।

प्रश्न 6.
भारत में स्वामित्व के आधार पर कौन-कौन से प्रकार के उद्योग हैं?
उत्तर:
स्वामित्व के आधार पर भारत में तीन प्रकार के उद्योगों को मान्यता दी गई है –

  1. सार्वजनिक उद्योग (Public Sector ) – ऐसे उद्योगों का संचालन सरकार स्वयं करती है। इसके अन्तर्गत भारी तथा आधारभूत उद्योग हैं; जैसे भिलाई इस्पात केन्द्र, नंगल उर्वरक कारखाना आदि।
  2. निजी उद्योग (Private Sector ) – ऐसे उद्योग किसी निजी व्यक्ति के अधीन होते हैं, जैसे जमशेदपुर का इस्पात उद्योग
  3. सहकारी उद्योग (Co-operative Sector ) – जब कुछ व्यक्ति किसी सहकारी समिति द्वारा किसी उद्योग की स्थापना करते हैं, जैसे चीनी उद्योग।

प्रश्न 7.
भारत में सूती वस्त्र उद्योग के वितरण के पाँच लक्षण बताओ।
उत्तर:

  • भारत में सूती वस्त्र उद्योग व्यापक रूप से वितरित
  • इसका मुम्बई तथा अहमदाबाद में संकेन्द्रक है।
  • यह कृषि आधारित उद्योग है ।
  • कपड़े का उत्पादन मिल सैक्टर, पावरलूम तथा हथकरघों द्वारा होता है।
  • यह भारत का सबसे बड़ा उद्योग है।

प्रश्न 8.
भारत में कच्चे माल के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण करो
उत्तर:

  1. कृषि-आधारित उद्योग
  2. वन – आधारित उद्योग
  3. खनिज आधारित उद्योग
  4. असैम्बली उद्योग।

प्रश्न 9.
उद्योगों के समूहीकरण के लिए प्रयोग किए जाने वाले चार सूचकांक बताओ।
उत्तर:

  1. औद्योगिक इकाइयों की संख्या
  2. श्रमिकों की संख्या
  3. कुल उत्पादन
  4. कुल शक्ति का प्रयोग।

प्रश्न 10.
सूती वस्त्र उद्योग की क्या समस्याएं हैं ?
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे बड़ा संगठित उद्योग है परन्तु इस उद्योग की कई समस्याएं हैं –

  1. देश में लम्बे रेशे वाली कपास का उत्पादन कम है। यह कपास विदेशों से आयात करनी पड़ती है।
  2. सूती कपड़ा मिलों की मशीनरी पुरानी है जिससे उत्पादकता कम है तथा लागत अधिक है।
  3. मशीनरी के आधुनिकीकरण के लिए स्वचालित मशीनें लगाना आवश्यक है। इसके लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता है।
  4. देश में हथकरघा उद्योग से स्पर्धा है तथा विदेशी बाज़ार में चीन तथा जापान के तैयार वस्त्र से स्पर्धा तीव्र है ।

प्रश्न 11.
दिए गए चित्र का अध्ययन करो इसमें भारत के एक प्रमुख इस्पात संयन्त्र को दर्शाया गया है तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 10
(i) यह संयन्त्र किस राज्य में स्थित है ?
उत्तर:
उड़ीसा

(ii) इस संयन्त्र को लौह अयस्क कहां से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
किरुबुरु खान से।

(iii) इस संयन्त्र से विद्युत् तथा जल प्राप्ति के साधन बताओ।
उत्तर:
मन्दिरा बांध से जल, हीराकुड बांध से विद्युत्।

प्रश्न 12.
जल गुणवत्ता से क्या अभिप्राय है ? भारत में जल गुणवत्ता क्यों कम हो रही है ? कोई दो कारण बताओ।
उत्तर:
जल गुणवत्ता से तात्पर्य है जल की शुद्धता तथा अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल। भारत में जल गुणवत्ता कम होने के दो कारण हैं –
(i) उद्योगों तथा रासायनिक पदार्थों के अपशिष्ट पदार्थ जल प्रदूषित करते हैं। इससे जल मानव उपयोग के योग्य नहीं रहता।
(ii) विषैले पदार्थ झीलों, नदियों, जलाशयों में प्रवेश करते हैं तथा जल प्रदूषण के कारण जल गुणवत्ता कम करते हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 13.
भारत में 1991 के पश्चात् नई औद्योगिक नीति के अधीन आरम्भ किए गए तीन महत्त्वपूर्ण पग बताओ।
उत्तर:
इस नई औद्योगिक नीति के अधीन उत्पादकता तथा रोजगार बढ़ाने के लिए 1991 में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण की नीति अपनाई गई है –

  1. औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था को समाप्त किया गया है।
  2. औद्योगिक अवस्थिति कार्यक्रम का उदारीकरण किया गया है।
  3. आयात शुल्क को कम या समाप्त किया गया है।

प्रश्न 14.
वस्त्रोत्पादन उद्योग मुम्बई में अहमदाबाद की ओर क्यों बढ़े हैं ? उपयुक्त उदाहरण की सहायता से व्याख्या करो
उत्तर:
भारत में सूती वस्त्र उद्योग सबसे पहले मुम्बई में स्थापित किया गया। यहां पर्याप्त मात्रा में पूंजी उपलब्ध थी तथा विदेशों से मशीनरी मंगवाने की सुविधा प्राप्त थी, परन्तु यहां कच्चे माल की प्राप्ति भारत के कई राज्यों पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात से कपास मंगवा कर पूरी की जाती थी। कुछ समय के पश्चात् यहां श्रमिकों की मज़दूरी बढ़ने, मिलों के लिए पर्याप्त स्थान की कमी, हड़तालों आदि की समस्याओं के कारण यह उद्योग मुम्बई से हट कर अहमदाबाद की ओर बढ़ने लगा। अहमदाबाद में कपास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थी । पूंजी के पर्याप्त साधन थे। मिलों के लिए खुले स्थान उपलब्ध थे। मुम्बई में जो समस्याएं थीं वे समस्याएं अहमदाबाद में नहीं थीं। इसलिए अहमदाबाद शीघ्र ही ‘भारत का मानचेस्टर’ बन गया।

प्रश्न 15.
चीनी उद्योग उत्तरी भारत से दक्षिणी भारत की ओर स्थानान्तरित क्यों हो रहा है ?
उत्तर:
भारत में गन्ने की उपज के लिए आदर्श दशाएं दक्षिणी भारत में पाई जाती हैं, परन्तु गन्ने का अधिक उत्पादन उत्तरी मैदान में है, जहां उपजाऊ मिट्टी क्षेत्र है । परिणामस्वरूप चीनी की अधिकतर मिलें भी गन्ना उत्पादन क्षेत्र में हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार राज्य में देश की चीनी का 60% उत्पादन होता था, परन्तु अब यह उत्पादन दिनों दिन कम होता जा रहा है। चीनी उद्योग प्रायद्वीपीय भारत में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु राज्य में विकसित हो रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं

  1. दक्षिणी भारत में गन्ने के लिए उष्ण कटिबन्धीय जलवायु मिलती है
  2. दक्षिणी भारत में गन्ने का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक है
  3. दक्षिणी भारत में गन्ना अधिक मोटा होता है
  4. दक्षिणी भारत में गन्ने का पिड़ाई का समय अधिक होता है
  5. दक्षिणी भारत में अधिकांश मिलों में आधुनिक मशीनरी लगाई गई है जिससे उत्पादकता अधिक है।
  6. दक्षिणी भारत में चीनी के कारखाने सहकारी क्षेत्र में लगाए जा रहे हैं।

प्रश्न 16.
कोलकाता क्षेत्र तथा छोटा नागपुर क्षेत्रों में उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले पाँच कारकों के प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर:
कोलकाता क्षेत्र –
1. स्थिति – यह औद्योगिक क्षेत्र हुगली नदी के किनारे स्थित है। यहां कोलकाता बन्दरगाह से सीधे रूप से आयात-निर्यात की सुविधाएं प्राप्त हैं।
2. कच्चे माल – हुगली क्षेत्र में असम से चाय तथा पश्चिमी बंगाल से पटसन कच्चे माल के रूप में प्राप्त हैं।
3. शक्ति के साधन – यहां शक्ति के साधनों की कमी है। कोयला रानीगंज से प्राप्त होता है। खनिज तेल असम से प्राप्त होता है।
4. यातायात के साधन – यहां जल यातायात तथा रेल सड़क मार्गों की सुविधाएं हैं।
5. श्रमिक – यहां घनी जनसंख्या के कारण सस्ते, कुशल श्रमिक प्राप्त हैं।

छोटा नागपुर क्षेत्र –
1. यह औद्योगिक क्षेत्र दामोदर घाटी में छोटा नागपुर क्षेत्र में स्थित है। यहाँ कोलकाता से आयात-निर्यात की सुविधा है, परन्तु इस पर परिवहन व्यय अधिक है।
2. इस पठार पर कई खनिज पदार्थ कोयला, लोहा आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। इसे भारत का ‘रुहर’ भी कहते हैं।
3. यहां शक्ति के साधन अधिक प्राप्त हैं। झरिया से कोयला, D. V. C. से जल विद्युत् प्राप्त होती है।
4. यातायात के साधन अधिक उन्नत तथा पर्याप्त नहीं हैं।
5. यहां बिहार- उड़ीसा राज्यों से सस्ते श्रमिक प्राप्त हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए सभी आवश्यक दशाएं विद्यमान हैं। स्पष्ट करें।
उत्तर:
औद्योगिक विकास को आर्थिक विकास के स्तर को मापने के लिए मापदण्ड के रूप में उपयोग किया जाता है । भारत में औद्योगिक विकास के लिए सभी आवश्यक दशाएं विद्यमान हैं। विशाल और विविध प्राकृतिक संसाधनों के साथ इसकी विशाल जनसंख्या सस्ते श्रमिक सुलभ कराती हैं तथा निर्मित वस्तुओं की खपत के लिए विशाल बाज़ार भी प्रदान करती हैं । उद्योगों के लिए कच्चे माल, खनिज तथा शक्ति के साधन पर्याप्त हैं।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति से पहले भारतीय उद्योगों की क्या स्थिति थी ?
उत्तर:
यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व भारत औद्योगिक दृष्टि से विकसित देश था। भारतीय उद्योग कृषि के साथ एकीकृत थे तथा घरेलू उद्योग राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के अंग थे । भारतीय दस्तकार और कारीगर, कपड़ा बुनना, मिट्टी के बर्तन बनाना, बांस के उपकरण, आभूषण तथा धातुओं की वस्तुएँ बनाना जानते थे। वे लकड़ी और चमड़े की वस्तुएँ भी बनाते थे। भारत जलयान निर्माण के लिए भी प्रसिद्ध था।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रान्ति प्राप्ति के पश्चात् भारत के औद्योगिक इतिहास का नया अध्याय शुरू हुआ। उदाहरण देकर पुष्टि करो।
उत्तर:

  • भारत में औद्योगीकरण की शुरुआत सन् 1854 में मुख्यतः भारतीय पूंजी और उद्यम से मुम्बई (बम्बई) में सूती वस्त्र बनाने के कारखाने की स्थापना से हुई।
  • पहली जूट मिल 1855 में कोलकाता के निकट रिसर में स्काटिश पूंजी और प्रबन्ध से लगाई गई थी।
  • कोयले का खनन भी लगभग उसी समय शुरू हुआ।
  • इसके बाद कागज़ के कारखाने और रासायनिक उद्योग भी शुरू किये गये।
  • सन् 1875 में कुल्टी में कच्चा लोहा बनाने का कारखाना खोला गया।
  • 1907 में जमशेदपुर में टाटा लोहा और इस्पात कम्पनी की स्थापना के बाद भारत में औद्योगिक इतिहास का नया अध्याय शुरू हुआ।

प्रश्न 4.
उद्योगों का निर्मित वस्तुओं के आधार पर वर्गीकरण करें।
उत्तर:
उद्योगों का अन्य सामान्य वर्गीकरण, निर्मित वस्तुओं के स्वरूप के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार उद्योगों को सात वर्गों में रखा जाता है –

  • धातु उद्योग
  • यान्त्रिक इंजीनियरी उद्योग
  • बिजली इंजीनियरी उद्योग
  • रसायन और सम्बन्धित उद्योग
  • वस्त्र उद्योग
  • खाद्य उद्योग
  • बिजली उत्पादन उद्योग और
  • इलैक्ट्रोनिक तथा संचार उद्योग हैं।

प्रश्न 5.
उदारीकरण की नीति के प्रमुख उपाय बताओ।
उत्तर:
उदारीकरण की नीति के प्रमुख उपाय ये थे –

  • निवेश सम्बन्धी बाधाएं हटा दी गईं।
  • व्यापार को बन्धन मुक्त कर दिया गया।
  • कुछ क्षेत्रों में विदेशी प्रौद्योगिकी आयात करने की छूट दी गई।
  • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (विनियोग ) की अनुमति दी गई।
  • पूंजी बाजार में पहुंच की बाधाओं को हटा दिया गया।
  • औद्योगिक लाइसेंस पद्धति को सरल और नियन्त्रण मुक्त कर दिया गया।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के सुरक्षित क्षेत्रों को घटा दिया गया तथा
  • सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ चुने हुए उपक्रमों का विनिवेशीकरण किया गया अर्थात् इन्हें निजी कम्पनियों को बेच दिया गया।

प्रश्न 6.
ऐसे उद्योग, जिनके उत्पाद कच्चे माल की तुलना में काफ़ी कम वज़न के होते हैं, कच्चे माल के स्रोत के निकट लगाए जाते हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट करो।
उत्तर:
भारत में चीनी उद्योग, उत्तरी मैदानों या दक्षिणी राज्यों के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में ही लगाए जाते हैं। 100 किलो गन्ने से लगभग 12 किलो चीनी बनती है, शेष खोई रह जाती है। यदि गन्ने को लम्बी दूरियों तक ले जाना पड़े तो खोई के परिवहन की लागत, चीनी की उत्पादन लागत को बढ़ा देगी। इसी प्रकार लुग्दी उद्योग, तांबा प्रगलन और कच्चा लोहा (पिग आयरन) उद्योग अपने कच्चे माल द्वारा ही आकर्षित होते हैं। लोहा और इस्पात उद्योग में उपयोग में आने वाले लौह-अयस्क और कोयला, दोनों ही भारी वज़न खोने वाले और लगभग समान भार के होते हैं । अतः अनुकूलतम अवस्थिति इन दोनों के स्रोतों के मध्य होगी, जैसे कि जमशेदपुर में है।

प्रश्न 7.
“सूती वस्त्र तैयार करने वाले कारखानों का वितरण व्यापक है।” इस कथन की व्याख्या सूती वस्त्र उद्योग के विकेन्द्रीकरण के सन्दर्भ में करो।
उत्तर:
आरम्भ में सूती वस्त्र उद्योग मुम्बई नगर में केन्द्रित था। सूती वस्त्र उद्योग ने अपने विकास के दौरान काफ़ी उतार-चढ़ाव देखे हैं विशाल घरेलू बाजार, जल विद्युत् के विकास, कपास की प्राप्ति, कोयला क्षेत्रों से निकटता तथा कुशल श्रमिकों के कारण यह उद्योग सारे देश में फैल गया। इसे सूती वस्त्र उद्योग का विकेन्द्रीकरण कहते हैं। सबसे पहले यह उद्योग गुजरात राज्य में अच्छी कपास प्राप्त होने के कारण अहमदाबाद में स्थापित हुआ।

तमिलनाडु राज्य में जल विद्युत् की प्राप्ति के कारण चेन्नई, कोयम्बटूर, उद्योग के महत्त्वपूर्ण केन्द्र बने। कोलकाता में विशाल मांग क्षेत्र तथा रानीगंज कोयला क्षेत्र से निकटता के कारण यह उद्योग विकसित हुआ। उत्तर प्रदेश में कानपुर, मोदीनगर, मध्य प्रदेश में इन्दौर और ग्वालियर, राजस्थान में कोटा और जयपुर में आधुनिक मिलें स्थापित हुई हैं। यहाँ घनी जनसंख्या के कारण यह उद्योग उन्नत हुआ है। लम्बे रेशे वाली कपास पर उत्पादन के कारण इस उद्योग का विकास पंजाब तथा हरियाणा राज्य में हो रहा है।

प्रश्न 8.
प्रमुख औद्योगिक प्रदेशों के नाम लिखो।
उत्तर:
प्रमुख औद्योगिक प्रदेश –

  1. मुम्बई – पुणे प्रदेश
  2. हुगली प्रदेश
  3. बंगलौर – तमिलनाडु प्रदेश
  4. गुजरात प्रदेश
  5. छोटा नागपुर प्रदेश और
  6. विशाखापटनम – गुंटूर प्रदेश,
  7. गुड़गांव – दिल्ली-मेरठ प्रदेश
  8. कोल्लम – तिरुवनन्तपुरम् प्रदेश।

प्रश्न 9.
गौण औद्योगिक प्रदेश कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
गौण औद्योगिक प्रदेश –

  1. अम्बाला – अमृतसर
  2. सहारनपुर – मुजफ्फरनगर – बिजनौर
  3. इंदौर- देवास-उज्जैन
  4. जयपुर – अजमेर
  5. कोल्हापुर – दक्षिण कन्नड़
  6. उत्तरी मालाबार
  7. मध्य मालाबार
  8. आदिलाबाद – निजामाबाद
  9. इलाहाबाद – वाराणसी – मिर्जापुर
  10. भोजपुर – मुंगेर
  11. दुर्ग – रायपुर
  12. बिलासपुर – कोरबा और
  13. ब्रह्मपुत्र घाटी।

प्रश्न 10.
औद्योगिक ज़िलों के नाम लिखो।
उत्तर:
औद्योगिक ज़िले –

  1. कानपुर
  2. हैदराबाद
  3. आगरा
  4. नागपुर
  5. ग्वालियर
  6. भोपाल
  7. लखनऊ
  8. जलपाईगुड़ी
  9. कटक
  10. गोरखपुर
  11. अलीगढ़
  12. कोटा
  13. पूर्णिया
  14. जबलपुर और
  15. बरेली।

प्रश्न 11.
ज्ञान आधारित उद्योग पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
ज्ञान आधारित उद्योग (Knowledge based Industries ) – सूचना प्रौद्योगिकी के विकास का देश की अर्थव्यवस्था तथा लोगों की जीवन शैली पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। सूचना प्रौद्योगिकी में हुई क्रान्ति ने आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों के द्वार खोल दिए हैं। भारतीय साफ्टवेयर उद्योग अर्थव्यवस्था का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले क्षेत्र के रूप में उभरा है। इस उद्योग का कुल व्यापार सन् 2000-01 में 377.50 अरब रुपयों का हो गया है।

सूचना प्रौद्योगिकी साफ्टवेयर और सेवा उद्योग की भारत के सकल घरेलू उत्पाद में दो प्रतिशत की भागीदारी है। भारत का साफ्टवेयर का निर्यात सन् 2000-01 में 283.50 अरब रुपयों का हो गया। भारत के साफ्टवेयर उद्योग ने उत्कृष्ट कोटि के उत्पादन तैयार करने में उल्लेखनीय विशिष्टता प्राप्त कर ली है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम करने वाली अधिकतर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के भारत में या तो साफ्टवेयर विकास केन्द्र हैं या अनुसन्धान विकास केन्द्र हैं।

वितरण – इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के अन्तर्गत टेलीफोन, सैल्यूलर फोन, कम्प्यूटर, अन्तरिक्ष विज्ञान, मौसम विज्ञान के उपकरण, हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर आदि व्यापक रूप से तैयार किये जाते हैं। बंगलौर इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की राजधानी है। हैदराबाद, दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, कानपुर, लखनऊ तथा कोयम्बटूर आदि 18 केन्द्रों में प्रौद्योगिकी पार्क विकसित किए गए हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 12.
निम्नलिखित उद्योगों पर संक्षिप्त टिप्पणियां लिखें-
(i) पेट्रो रसायन उद्योग
(ii) पालिमर्स उद्योग
(iii) कृत्रिम रेशे उद्योग।
उत्तर:
(i) पेट्रो – रसायन उद्योग (Petrochemicals ):
इस उद्योग में विविध प्रकार के उत्पाद शामिल हैं। पेट्रोलियम परिष्करण उद्योग का विस्तार बड़ी तेज़ी से हुआ है। कच्चे (क्रूड) पेट्रोलियम से अनेक वस्तुएं प्राप्त की जाती हैं, जिनका अनेक नए उद्योगों में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। इन सभी को सम्मिलित रूप में पेट्रो- रसायन उद्योग कहा जाता है। मुम्बई पेट्रो-कैमिकल उद्योगों का केन्द्र है। विभिन्न कारखाने इन स्थानों पर लगाए गये हैं – औरैया (उत्तर प्रदेश), जामनगर, गांधार, हजीरा (गुजरात), नागोथाने, रत्नागिरी (महाराष्ट्र), हल्दिया (प० बंगाल) और विशाखापट्टनम (आन्ध्र प्रदेश )। रसायन एवं पेट्रो रसायन विभाग के प्रशासनिक नियन्त्रण में पेट्रो रसायन क्षेत्र के तीन संगठन कार्य कर रहे हैं।
(1) सार्वजनिक क्षेत्र का प्रतिष्ठावान इण्डियन पेट्रो-केमिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड का कार्य कर रहा है।
(2) दूसरा है पेट्रोफिल्स कोआपरेटिव लिमिटेड।
(3) तीसरा है- सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एण्ड टैक्नोलॉजी।

(ii) पालिमर्स (Polymers) – पालिमर्स का निर्माण एथलीन और प्रोपीलीन से होता है। ये पदार्थ कच्चे तेल के परिष्करण की प्रक्रिया के दौरान प्राप्त होते हैं। प्लास्टिक उद्योग में पालिमर्स को कच्चे माल के रूप में उपयोग करते हैं। पालिमर्स में पालिथिलीन व्यापक रूप में प्रयोग किया जाने वाला थर्मोप्लास्टिक है। प्लास्टिक को सबसे पहले चादरों, चूर्ण, रेजिन और गोलियों या गुटिकाओं में बदला जाता है। इसके बाद ही इसका उपयोग प्लास्टिक उत्पादों के निर्माण के लिए किया जाता है।

प्लास्टिक उत्पादों को उनकी मज़बूती, लचीलेपन, जल और रासायनिक प्रतिरोध और कम कीमत के कारण पसन्द किया जाता है। सन् 1961 में मफतलाल कम्पनी द्वारा स्थापित नेशनल आर्गेनिक केमिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने मुम्बई में पहला नैप्था आधारित रसायन उद्योग स्थापित किया था। मुम्बई, बरौनी, मैटूर, पिंपरी और रिसरा, प्लास्टिक पदार्थों के प्रमुख उत्पादक हैं। सन् 2000-01 में पालिमर्स का उत्पादन 34.41 लाख टन था। देश में लगभग 19,000 छोटे बड़े कारखाने हैं, जो लगभग 35 लाख टन वर्जित पालिमर्स का कच्चे माल के रूप में उपयोग करते हैं।

(iii) कृत्रिम रेशे (Synthetic fibres ) – कृत्रिम रेशे मज़बूत, टिकाऊ, प्रक्षालन योग्य तथा सिकुड़न प्रतिरोधी होते हैं। इसीलिए वस्त्र उत्पादन में इनका व्यापक उपयोग किया जाता है । ये वस्त्र गांवों और शहरों दोनों में ही समान रूप से लोकप्रिय हैं। नायलॉन और पालिएस्टर के धागे बनाने के कारखाने कोटा, पिंपरी, मुम्बई, मोदीनगर, पुणे, उज्जैन, नागपुर और उधना में लगाए गए हैं। एक्रिलिक स्टेपल रेशे कोटा और वडोदरा में बनाए जाते हैं। पोलीएस्टर स्टेपल रेशों के उत्पादन के लिए कारखाने ठाणे, गाजियाबाद, मनाली, कोटा और वडोदरा में लगाए गए हैं। कृत्रिम रेशों का उत्पादन 2000-01 में 15.67 लाख टन था।

प्रश्न 13.
हुगली औद्योगिक प्रदेश के विकास में सहायक किन्हीं तीन कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:

  1. हुगली नदी पर कोलकाता पत्तन के निकट स्थित होने के कारण यह क्षेत्र देश का अग्रणी औद्योगिक क्षेत्र बना।
  2. यह क्षेत्र जलमार्ग, सड़क मार्ग तथा रेलमार्ग द्वारा पृष्ठभूमि से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है
  3. चाय बागानों का इस क्षेत्र के विकास में योगदान है। असम और पश्चिमी बंगाल की उत्तरी पहाड़ियों में चाय के बागान विकसित हैं। पटसन की कृषि भी सहायक है।
  4. दामोदर घाटी के कोयला क्षेत्रों तथा छोटा नागपुर पठार के लौह-अयस्क के निक्षेप हुगली प्रदेश के निकट स्थित हैं।

प्रश्न 14.
भारत में चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में क्यों संकेन्द्रित हैं ? किन्हीं पांच कारणों से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु देश में गन्ना उत्पन्न करने वाले प्रमुख राज्य हैं। इन राज्यों में अधिकतर चीनी मिलें केन्द्रित हैं। इसके कारण हैं-

  • गन्ना एक भार ह्रास वाली फ़सल है। इसलिए चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में उगाई जाती हैं
  • गन्ने का प्रयोग काटने के तुरन्त पश्चात् ही कर लेना चाहिए वरना गन्ने में सुक्रोज़ की मात्रा घट जाती है।
  • गन्ने को काटने के पश्चात् 24 घण्टों के अन्दर ही पेरा जाना चाहिए तो अधिक चीनी की मात्रा प्राप्त होती है।
  • परिवहन लागत भी कम हो जाती है यदि दूरी कम हो।
  • चीनी मिलें उन क्षेत्रों में लगाई जाती हैं जहां गन्ने में सुक्रोज मात्रा अधिक हो।

प्रश्न 15.
‘गुजरात औद्योगिक प्रदेश’ की किन्हीं पांच विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुजरात औद्योगिक प्रदेश – यह प्रदेश भारत का तीसरा प्रमुख औद्योगिक प्रदेश हैं तथा देश के आन्तरिक भाग में स्थित है। इस प्रदेश के विकास के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. यह क्षेत्र कपास उत्पन्न करने वाले प्रदेश के बीच स्थित है
  2. यहां गंगा सतलुज के मैदान सूती कपड़ा के मांग क्षेत्र के निकट हैं
  3. यहां सस्ते मूल्य पर कुशल श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं।
  4. यहां मुम्बई तथा कांडला बन्दरगाहों से आयात-निर्यात की सुविधा है।
  5. खम्बात क्षेत्र में अंकलेश्वर में खनिज तेल की खोज ने कई पेट्रो रसायन उद्योगों को जन्म दिया है
  6. अधिकतर सूती वस्त्र उद्योग अहमदाबाद में है जिसे ‘भारत का मानचेस्टर’ भी कहते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

प्रश्न 1.
उद्योगों का स्थानीयकरण किन तत्त्वों पर निर्भर करता है ? उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर:
किसी स्थान पर उद्योगों की स्थापना के लिए कुछ भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक तत्त्वों का होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए कच्चा माल, शक्ति के साधन, श्रम, पूंजी और बाज़ार उद्योगों के महत्त्वपूर्ण निर्धारक हैं। इन्हें उद्योगों के आधारभूत कारक भी कहते हैं। ये सभी कारक मिल-जुल कर प्रभाव डालते हैं। प्रत्येक कारक का महत्त्व समय, स्थान और उद्योगों के अनुसार बदलता रहता है। इन अनुकूल तत्त्वों के कारण किसी स्थान पर अनेक उद्योग स्थापित हो जाते हैं। यह क्षेत्र स्थानीयकरण के कारकों को दो वर्गों में

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

एक औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Region) बन जाता है। उद्योगों के बांटा जाता है –
(i) भौगोलिक कारक
(ii) ग़ैर- भौगोलिक कारक।

भौगोलिक कारक (Geographical Factors)
1. कच्चे माल की निकटता (Nearness of Raw Material) – उद्योग कच्चे माल के स्रोत के निकट ही स्थापित किए जाते हैं। कच्चा माल उद्योगों की आत्मा है। उद्योग वहीं पर स्थापित किए जाते हैं, जहां कच्चा माल अधिक मात्रा में कम लागत पर आसानी से उपलब्ध हो सके। इसलिए लोहे और चीनी के कारखाने कच्चे माल की प्राप्ति- स्थान के निकट लगाए जाते हैं। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुएं जैसे डेयरी उद्योग भी उत्पादक केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं।

भारी कच्चे माल के उद्योग उन वस्तुओं के मिलने के स्थान के निकट ही लगाए जाते हैं। इस्पात उद्योग कोयला तथा लोहा खानों के निकट स्थित हैं। कागज की लुगदी के कारखाने तथा आरा मिलें कोणधारी वन प्रदेशों में स्थित हैं। उदाहरण – कच्चे माल की प्राप्ति के कारण ही चीनी उद्योग उत्तर प्रदेश में, पटसन उद्योग पश्चिमी बंगाल में, सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र में तथा लोहा इस्पात उद्योग झारखण्ड, उड़ीसा में लगे हुए हैं।

2. शक्ति के साधन (Power Resources ) – कोयला, पेट्रोलियम तथा जल-विद्युत् शक्ति के प्रमुख साधन हैं। भारी उद्योगों में शक्ति के साधनों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इसलिए अधिकतर उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां कोयले की खानें समीप हों या पेट्रोलियम अथवा जल-विद्युत् उपलब्ध हो। भारत में दामोदर घाटी, कोयले के कारण ही प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं।

खाद व रासायनिक उद्योग, एल्यूमीनियम उद्योग, कागज़ उद्योग, जल-विद्युत् शक्ति केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं, क्योंकि इनमें अधिक मात्रा में सस्ती बिजली की आवश्यकता होती है। उदाहरण – भारत में इस्पात उद्योग झरिया तथा रानीगंज की कोयला खानों के समीप स्थित हैं। पंजाब में भाखड़ा योजना से जल-विद्युत् प्राप्ति के कारण खाद का कारखाना नंगल में स्थित है। एल्यूमीनियम उद्योग एक ऊर्जा – गहन (Energy intensive) उद्योग है जो रेनूकूट में (उत्तर प्रदेश) विद्युत् शक्ति उपलब्धता के कारण स्थापित है।

3. यातायात के साधन (Means of Transport ) – उन स्थानों पर उद्योग लगाए जाते हैं जहां सस्ते, उत्तम, कुशल और शीघ्रगामी यातायात के साधन उपलब्ध हों। कच्चा माल, श्रमिक तथा मशीनों को कारखानों तक पहुंचाने के लिए सस्ते साधन चाहिएं। तैयार किए हुए माल को कम खर्च पर बाज़ार तक पहुंचाने के लिए उत्तम परिवहन साधन बहुत सहायक होते हैं। उदाहरण – जल यातायात सबसे सस्ता साधन है। इसलिए अधिक उद्योग कोलकाता, चेन्नई आदि बन्दरगाहों के स्थान पर हैं जो अपनी पृष्ठ भूमि (Hinterland) से रेल मार्ग तथा सड़क मार्गों द्वारा जुड़ी हुई हैं। दिल्ली परिवहन का एक केन्द्र बिन्दु है तथा उद्योग अधिक हैं।

4. कुशल श्रमिक (Skilled Labour ) – कुशल श्रमिक अधिक और अच्छा काम कर सकते हैं, जिससे उत्तम तथा सस्ता माल बनता है। किसी स्थान पर लम्बे समय से एक ही उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों के कारण औद्योगिक केन्द्र बन जाते हैं । आधुनिक मिल उद्योग में अधिक कार्य मशीनों द्वारा होता है, इसलिए कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है। कुछ उद्योगों में अत्यन्त कुशल तथा कुछ उद्योगों में अर्द्ध- कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। श्रम प्रधान उद्योग (Labour intensive) उद्योग कुशल तथा सस्ते श्रम क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं। उदाहरण – मेरठ और जालन्धर में खेलों का सामान बनाने, लुधियाना में हौज़री उद्योग तथा वाराणसी में जरी उद्योग, मुरादाबाद में पीतल के बर्तन बनाने तथा फिरोजाबाद में चूड़ी बनाने का उद्योग कुशल श्रमिकों के कारण ही हैं।

5. जल की पूर्ति (Water Supply) – कई उद्योगों में प्रयोग के लिए जल की विशाल राशि की आवश्यकता होती है; जैसे लोहा – इस्पात उद्योग, खाद्य संसाधन कागज़ उद्योग, रसायन तथा पटसन उद्योग, इसलिए ये उद्योग झीलों, नदियों तथा तालाबों के निकट लगाए जाते हैं। उदाहरण – जमशेदपुर में लोहा – इस्पात उद्योग खोरकाई तथा स्वर्ण रेखा नदियों के संगम पर स्थित हैं।

6. जलवायु (Climate ) – कुछ उद्योगों में जलवायु का मुख्य स्थान होता है। उत्तम जलवायु मनुष्य की कार्य- कुशलता पर भी प्रभाव डालती है। सूती कपड़े के उद्योग के लिए आर्द्र जलवायु अनुकूल होती है। इस जलवायु बार-बार नहीं टूटता। वायुयान उद्योग के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। उदाहरण – मुम्बई में सूती कपड़ा उद्योग आर्द्र जलवायु के कारण तथा बंगलौर में वायुयान उद्योग (Aircraft) शुष्क जलवायु के कारण स्थित हैं।

7. बाज़ार से निकटता (Nearness to Market ) – मांग क्षेत्रों का उद्योग के निकट होना आवश्यक है। इससे कम खर्च पर तैयार माल बाज़ारों में भेजा जाता है। माल की खपत जल्दी हो जाती है तथा लाभ प्राप्त होता है। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं के उद्योग जैसे डेयरी उद्योग, खाद्य उद्योग बड़े नगरों के निकट लगाए जाते हैं।

यहां अधिक जनसंख्या के कारण लोगों की माल खरीदने की शक्ति अधिक होती है। एशिया के देशों में अधिक जनसंख्या है, परन्तु निर्धन लोगों के कारण ऊँचे मूल्य वाली वस्तुओं की मांग कम है। यही कारण है कि विकासशील देशों में निर्माण उद्योगों की कमी है। छोटे-छोटे पुर्जे तैयार करने वाले उद्योग बड़े कारखानों के निकट लगाए जाते हैं, जहां इन पुर्जों का प्रयोग होता है।

8. सस्ती व समतल भूमि ( Cheap and Level Land ) – भारी उद्योगों के लिए समतल मैदानी भूमि की बहुत आवश्यकता होती है। इसी कारण से जमशेदपुर का इस्पात उद्योग दामोदर नदी घाटी के मैदानी क्षेत्र में स्थित है।

ग़ैर-भौगोलिक कारक (Non-Geographical Factors)
1. पूंजी की सुविधा (Capital) – उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां पूंजी पर्याप्त मात्रा में ठीक समय पर तथा उचित दर पर मिल सके। निर्माण उद्योग को बड़े पैमाने पर चलाने के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में पूंजी लगाने के कारण उद्योगों का विकास हुआ है। राजनीतिक स्थिरता और बिना डर के पूंजी विनियोग उद्योगों के विकास में सहायक है। उदाहरण – दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता आदि नगरों में बड़े-बड़े पूंजीपतियों और बैंकों की सुविधा के कारण ही औद्योगिक विकास हुआ है।

2. पूर्व आरम्भ (Early Start ) – जिस स्थान पर कोई उद्योग पहले से ही स्थापित हों, उसी स्थान पर उस उद्योग के अनेक कारखाने स्थापित हो जाते हैं । मुम्बई में सूती कपड़े के उद्योग तथा कोलकाता में जूट उद्योग इसी कारण से केन्द्रित हैं। किसी स्थान पर अचानक किसी ऐतिहासिक घटना के कारण सफल उद्योग स्थापित हो जाते हैं । अलीगढ़ में ताला उद्योग इसका उदाहरण है।

3. सरकारी नीति (Government Policy) – सरकार के संरक्षण में कई उद्योग विकास कर जाते हैं, जैसे देश में चीनी उद्योग सन् 1932 के पश्चात् संरक्षण से ही उन्नत हुआ है। सरकारी सहायता से कई उद्योगों को बहुत-सी सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। सरकार द्वारा लगाए टैक्सों से भी उद्योग पर प्रभाव पड़ता है। मथुरा में तेल शोधनशाला, कपूरथला में रेल कोच फैक्टरी तथा जगदीशपुर में उर्वरक कारखाना सरकारी नीति के अधीन लगाए गए हैं। भिलाई तथा राउरकेला इस्पात कारखाना जनजातीय विकास के कारण स्थित है।

4. अन्य कारक (Other Factors) – कई उद्योग सुविधाओं के कारण लग जाते हैं; जैसे बैंकिंग सुविधा बीमे की सुविधा, राजनीतिक स्थिरता, सुरक्षा आदि।

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प्रश्न 2.
भारतीय लोहे तथा इस्पात उद्योग का विवरण दो। भारत में लगाए गए नए कारखानों का वर्णन करो।
उत्तर:
वर्तमान युग को “इस्पात युग” (Steel Age) कहा जाता है। लोहा इस्पात उद्योगों से ही सभी मशीनें, परिवहन के साधन तथा इंजीनियरिंग का सामान तैयार किया जाता है। भारत में लोहा इस्पात उद्योग बहुत पुराना है। भारत में इस्पात उद्योग के लिए अनुकूल साधन मौजूद हैं। पर्याप्त मात्रा में उत्तम लोहा, कोयला, मैंगनीज़, चूने का पत्थर मिलता है। भारत में संसार का सबसे सस्ता इस्पात बनता है इस्पात – भारत में लोहा – इस्पात उद्योग में आधुनिक ढंग का पहला कारखाना सन् 1907 में साकची जमशेदपुर (बिहार) में जमशेद जी टाटा द्वारा लगाया गया जो अब झारखण्ड राज्य में है।
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निजी क्षेत्र के प्रमुख इस्पात केन्द्र-
I. जमशेदपुर में (TISCO) टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी।
स्थिति के भौगोलिक कारण (Geographical Factors for Location)
1. कच्चा लोहा – सिंहभूमि ज़िले में कच्चा लोहा निकट ही से प्राप्त हो जाता है। उड़ीसा की मयूरभंज खानों से 75 कि० मी० दूरी से कच्चा लोहा मिलता है।
2. कोयला – कोक कोयले (Coking Coal) के क्षेत्र झरिया तथा रानीगंज के निकट ही हैं।
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3. अन्य खनिज पदार्थ – चूने का पत्थर गंगपुर से, मैगनीज़ बिहार से तथा क्वार्टज़ मिट्टी कालीमती स्थान से आसानी से प्राप्त हो जाती है।
4. नदियों की सुविधा – रेत तथा जल कई नदियों से जैसे दामोदर, स्वर्ण रेखा, खोरकाई से प्राप्त हो जाते हैं 5. सस्ते व कुशल श्रमिक – बिहार, बंगाल राज्य के घनी जनसंख्या वाले प्रदेशों में सस्ते व कुशल श्रमिक आसानी से मिलते हैं।
6. बन्दरगाहों की सुविधा – कोलकाता बन्दरगाह निकट है तथा आयात व निर्यात की आसानी है।
7. यातायात के साधन – रेल, सड़क व जलमार्गों के यातायात के सुगम व सस्ते साधन प्राप्त हैं।
8. खपत – इस प्रदेश में अनेक उद्योगों के कारण लोहा-इस्पात की खपत भी अधिक है।
9. समतल भूमि – नदी घाटियों में समतल व सस्ती भूमि प्राप्त है, जहां कारखाने लगाए जा सकते हैं।
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II. बर्नपुर में इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (IISCO ) – पश्चिमी बंगाल में यह निजी क्षेत्र से इस्पात कारखाना स्थित है। यह कारखाना सन् 1972 से केन्द्र द्वारा नियन्त्रित है। यहां निम्नलिखित सुविधाएं प्राप्त हैं-
(1) रानीगंज तथा झरिया से 137 कि० मी० की दूरी पर कोयला प्राप्त होता है।
( 2 ) लोहा झारखण्ड में सिंहभूम क्षेत्र से।
(3) चूने का पत्थर उड़ीसा से, गंगपुर क्षेत्र से
(4) जल दामोदर नदी से प्राप्त हो जाता है।
(5) कोलकाता बन्दरगाह से आयात-निर्यात तथा व्यापार की सुविधाएं प्राप्त हैं।

III. विश्वेश्वरैया (Vishvesveraya) आयरन एण्ड स्टील लिमिटेड ( VISL) – यह कारखाना कर्नाटक राज्य में भद्रा नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित भद्रावती स्थान पर सन् 1923 में लगाया गया।

सुविधाएं (Factors ) –

  1. हैमेटाइट लोहा बाबा बूदन पहाड़ियों से
  2. लकड़ी का कोयला (Charcoal) कादूर के वनों से
  3. जल विद्युत् जोग जल प्रपात तथा शिव समुद्रम् प्रपात से।
  4. चूने का पत्थर भंडी गुड्डा से प्राप्त होता है।
  5. शिमोगा से मैंगनीज़ प्राप्त होता है।

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सार्वजनिक क्षेत्र से लोहा इस्पात केन्द्र – देश में इस्पात उद्योग में वृद्धि करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड (HSL) कम्पनी की स्थापना की गई। इसके अधीन विदेशी सहायता से चार इस्पात कारखाने लगाए गए हैं –

I. भिलाई – यह कारखाना छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में भिलाई स्थान पर रूस की सहायता से लगाया गया है।

  • यहां लोहा 97 कि० मी० दूरी से धाली – राजहारा पहाड़ी से प्राप्त होता है।
  • कोयला कोरबा तथा झरिया खानों से मिलता है।
  • मैंगनीज़ बालाघाट क्षेत्र से तथा चूने का पत्थर नंदिनी खानों से प्राप्त होता है।
  • तांदुला तालाब से जल प्राप्त होता है।
  • यह नगर कोलकाता – नागपुर रेलमार्ग पर स्थित है। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 25 लाख टन से बढ़ाकर 40 लाख टन किया जा रहा है।

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II. दुर्गापुर – यह इस्पात कारखाना पश्चिमी बंगाल में इंग्लैण्ड की सहायता से लगाया गया है।

  1. यहां लोहा सिंहभूम क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  2. कोयला रानीगंज क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  3. गंगपुर क्षेत्र में डोलोमाइट व चूने का पत्थर मिलता है।
  4. दामोदर नदी से जल तथा विद्युत् प्राप्त होती है।

इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 16 लाख टन से बढ़ाकर 24 लाख टन किया जा रहा है।

III. राऊरकेला – यह कारखाना उड़ीसा में जर्मनी की फ़र्म क्रुप एण्ड डीमग की सहायता से लगाया गया –

  1. यहां लोहा उड़ीसा के बोनाई क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  2. कोयला झरिया तथा रानीगंज से प्राप्त होता है।
  3. चूने का पत्थर पुरनापानी तथा मैंगनीज़ ब्राजमदा क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  4. हीराकुड बांध से जल तथा जल विद्युत् मिल जाती है।

इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 18 लाख टन से बढ़ा कर 28 लाख टन करने की योजना है।

IV. बोकारो – यह कारखाना झारखण्ड में बोकारो नामक स्थान पर रूस की सहायता से लगाया गया है।

  • इस केन्द्र की स्थिति कच्चे माल के स्रोतों के मध्य में है। यहां बोकारो, झरिया से कोयला, उड़ीसा के क्योंझर क्षेत्र से लोहा प्राप्त होता है।
  • जल विद्युत् हीराकुड तथा दामोदर योजना से।
  • जल बोकारो तथा दामोदर नदियों से।

इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 25 लाख टन से बढ़ा कर 40 लाख टन किया जा रहा है।
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सातवीं पंचवर्षीय योजना के नए कारखाने – सातवीं पंचवर्षीय योजना में तीन नए कारखाने लगाए जाने की योजना बनाई गई है।

  • आन्ध्र में विशाखापट्टनम।
  • तमिलनाडु में सेलम।
  • कर्नाटक में होस्पेट के निकट विजय नगर।

उत्पादन – देश में उत्पादन बढ़ जाने के कारण कुछ ही वर्षों में भारत संसार के प्रमुख इस्पात देशों में स्थान प्राप्त कर लेगा। 2009 में देश में तैयार इस्पात का उत्पादन 597 लाख टन था। यन्त्रों आदि के लिए स्पैशल इस्पात का उत्पादन 5 लाख टन था। भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत केवल 32 किलोग्राम है जबकि अमेरिका में 500 किलोग्राम है। भारत से प्रतिवर्ष 20 लाख टन लोहा तथा इस्पात विदेशों को निर्यात किया जाता है, जिसका मूल्य 2000 करोड़ ₹ है।

भविष्य – 24 जनवरी, 1973 को स्टील अथारिटी ऑफ इण्डिया (SAIL) की स्थापना की गई है। यह संगठन लोहा-इस्पात, उत्पादन व निर्यात का कार्य सम्भालेगा। विभिन्न कारखानों की क्षमता को बढ़ाकर उत्पादन 1000 लाख टन तक ले जाने का लक्ष्य है । देश में इस्पात बनाने के लिए छोटे-छोटे कारखाने (Mini Steel Plants) लगाकर उत्पादन बढ़ाया जाएगा।

प्रश्न 3.
भारत में सूती कपड़ा उद्योग का विवरण दो। यह उद्योग किन कारणों से मुम्बई तथा अहमदाबाद में केन्द्रित है ?
उत्तर:
सूती कपड़ा उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है। ढाका की मलमल दूर-दूर के देशों में प्रसिद्ध थी। यह उद्योग घरेलू उद्योग के रूप में उन्नत था, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने इस उद्योग को समाप्त करके भारत को इंग्लैण्ड से बने कपड़े की एक मण्डी बना दिया। भारत में पहली आधुनिक कपड़ा मिल सन् 1818 में कलकत्ता (कोलकाता) में स्थापित की गई।

महत्त्व (Importance ) –

  1. यह उद्योग भारत का सबसे बड़ा तथा प्राचीन उद्योग है।
  2. इसमें 10 लाख मज़दूर काम करते हैं। (3) सब उद्योगों में से अधिक पूंजी इसमें लगी हुई है।
  3. इस उद्योग के माल के निर्यात से 57000 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  4. इस उद्योग पर रंगाई, धुलाई, रासायनिक उद्योग निर्भर करते हैं। इस उद्योग में 50 लाख ₹ के रासायनिक पदार्थ प्रयोग होते हैं।

सूती कपड़ा उद्योग का स्थानीयकरण (Location) –
भारत में इस उद्योग की स्थापना के लिए निम्नलिखित अनुकूल सुविधाएं हैं-

  1. अधिक मात्रा में कपास।
  2. उचित मशीनें।
  3. मांग का अधिक होना।

उत्पादन (Production ) – देश में 2009 में 1824 कपड़ा मिलें थीं। इन कारखानों में 200 लाख तकले तथा 2 लाख करघे हैं। इन मिलों में लगभग 200 करोड़ किलोग्राम सूत तथा 3000 करोड़ मीटर कपड़ा तैयार किया जाता है।

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वितरण (Distribution ) – सूती कपड़े के कारखाने सभी प्रान्तों में हैं। लगभग 80 नगरों में सूती मिलें फैली हुई हैं। इन प्रदेशों में सूती कपड़ा उद्योग की उन्नति निम्नलिखित कारणों से है-
1. महाराष्ट्र – यह राज्य सूती कपड़ा उद्योग में सबसे आगे है। यहां 119 मिलें हैं। मुम्बई आरम्भ से ही सूती वस्त्र उद्योग का प्रमुख केन्द्र है । इसलिए इसे सूती वस्त्रों की राजधानी (Cotton-Polis of India) कहते है। मुम्बई के अतिरिक्त नागपुर, पुणे, शोलापुर, अमरावती प्रसिद्ध केन्द्र हैं ।

मुम्बई नगर में सूती कपड़ा उद्योग की उन्नति के निम्नलिखित कारण हैं-

  • पूर्व आरम्भ – भारत की सबसे पहली आधुनिक मिल मुम्बई में ही खोली गई।
  • पूंजी – मुम्बई के व्यापारियों ने कपड़ा मिलें खोलने में बहुत धन लगाया।
  • कपास – आस-पास के खानदेश तथा बरार प्रदेश की काली मिट्टी के क्षेत्र में उत्तम कपास मिल जाती है।
  • उत्तम बन्दरगाह – मुम्बई एक उत्तम बन्दरगाह है, जहां मशीनरी तथा कपास आयात करने तथा कपड़ा निर्यात करने की सुविधा है।
  • नम जलवायु – सागर से निकटता तथा नम जलवायु इस उद्योग के लिए आदर्श है।
  • सस्ते श्रमिक – घनी जनसंख्या के कारण सस्ते श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं।
  • जल विद्युत् – कारखानों के लिए सस्ती बिजली टाटा विद्युत् केन्द्र से प्राप्त होती है।
  • यातायात – मुम्बई रेलों व सड़कों द्वारा देश के भीतरी भागों से मिला हुआ है।
  • जल प्राप्ति – कपड़े की धुलाई, रंगाई के लिए पर्याप्त जल मिल जाता है।

2. गुजरात – गुजरात राज्य का इस उद्योग में दूसरा स्थान है। अहमदाबाद प्रमुख केन्द्र है, जहां 75 मिलें हैं। अहमदाबाद को भारत का मानचेस्टर (Manchester of India) कहते हैं। इसके अतिरिक्त सूरत, बड़ौदा, राजकोट प्रसिद्ध केन्द्र हैं। यहां सस्ती भूमि व उत्तम कपास के कारण उद्योग का विकास हुआ है।

3. तमिलनाडु – इस राज्य में पन- बिजली के विकास तथा लम्बे रेशे के कपास की प्राप्ति के कारण यह उद्योग बहुत उन्नत है। मुख्य केन्द्र मदुराई, कोयम्बटूर, सेलम, चेन्नई हैं।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 6
4. पश्चिमी बंगाल – इस राज्य में अधिकतर मिलें हुगली क्षेत्र में हैं। यहां रानीगंज से कोयला, समुद्री आर्द्र जलवायु, सस्ते मज़दूर व अधिक मांग के कारण यह उद्योग स्थित है ।
5. उत्तर प्रदेश – यहां अधिकतर (14) मिलें कानपुर में स्थित हैं। कानपुर को उत्तरी भारत का मानचेस्टर कहते हैं। यह कपास उत्पन्न करने वाला राज्य है। यहां घनी जनसंख्या के कारण सस्ते मज़दूर हैं व सस्ते कपड़े की मांग अधिक है। इसके अतिरिक्त आगरा, मोदीनगर, बरेली, वाराणसी, सहारनपुर प्रमुख केन्द्र हैं।
6. मध्य प्रदेश में इन्दौर, ग्वालियर, उज्जैन, भोपाल।
7. आन्ध्र प्रदेश में हैदराबाद तथा वारंगल।
8. कर्नाटक में मैसूर तथा बंगलौर।
9. पंजाब में अमृतसर, फगवाड़ा, अबोहर, लुधियाना।
(x) हरियाणा में भिवानी।
(xi) अन्य नगर देहली, पटना, कोटा, जयपुर, कोचीन।

प्रश्न 4.
भारत में चीनी उद्योग के महत्त्व, उत्पादन तथा प्रमुख केन्द्रों का वर्णन करो।
अथवा
भारत में चीनी उद्योग के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीनी उद्योग (Sugar Industry ) – चीनी उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है। सन् 1932 में सरकार ने विदेशों से आने वाली चीनी पर कर लगा दिया। इस प्रकार बाहर से आने वाली चीनी महंगी हो गई तथा देश में चीनी उद्योग का विकास शुरू हुआ।

महत्त्व – देश की अर्थव्यवस्था में चीनी उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

  • चीनी उद्योग भारत का दूसरा बड़ा उद्योग है जिसमें 1 अरब से अधिक पूंजी लगी हुई है।
  • देश की 506 मिलों में 4 लाख मज़दूर काम करते हैं।
  • इस उद्योग में देश के 2 करोड़ कृषकों को लाभ होता है।
  • भारत विश्व की 10% चीनी उत्पन्न करता है और चौथे स्थान पर है।
  • इस उद्योग के बचे-खुचे पदार्थों पर अल्कोहल, खाद, मोम, कागज़ उद्योग निर्भर करते हैं।

उत्पादन – यह उद्योग कृषि पर आधारित (Agro based) है। इसलिए यह उद्योग गन्ना उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में स्थित है। भारत में चीनी मिलों की संख्या 504 है जिनमें चीनी का उत्पादन लगभग 150 लाख टन है, जो विश्व में सबसे अधिक है। अधिकतर कारखाने उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्य में हैं।

उत्तरी भारत में सुविधाएं –

  • भारत का 50% गन्ना उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है।
  • अधिक जनसंख्या के कारण खपत अधिक है तथा सस्ते श्रमिक प्राप्त हैं।
  • सस्ती जल-विद्युत् तथा बिहार से कोयला मिल जाता है।
  • यातायात के उत्तम साधन हैं।

कठिनाइयां (Problems ) – भारत में चीनी उद्योग को कई कठिनाइयां हैं। भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम है। गन्ने में रस की मात्रा कम है। गन्ना प्राप्त न होने के कारण मिलें वर्ष में कुछ महीने बन्द रहती हैं। गन्ने की कीमतें ऊंची हैं। चीनी उद्योग के बचे-खुचे पदार्थों (By- Products) का ठीक उपयोग नहीं होता । इन कारणों से चीनी पर लागत अधिक है।

भविष्य (Future ) – चीनी उद्योग गन्ने की अनुकूल उपज दशाओं के कारण दक्षिणी भारत में बढ़ रहा है। दक्षिणी भारत में कोयम्बटूर में गन्ना अनुसन्धान केन्द्र है। यहां गन्ने में रस की मात्रा तथा प्रति एकड़ उत्पादन भी अधिक है। चीनी उद्योग का वितरण – भारत में चीनी उद्योग गन्ना उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में स्थित है। गन्ना एक भारी कच्चा माल है। इसलिए यह उद्योग कच्चे माल के स्रोत के समीप ही चलाया जाता है। भारत में 2/3 कारखाने उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्यों में हैं जो भारत की 60% चीनी उत्पन्न करते हैं ।

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1. उत्तर प्रदेश – भारत में उत्तर प्रदेश चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। गन्ना उत्पादन में भी यह प्रदेश प्रथम स्थान पर है। यहां चीनी मिलें दो क्षेत्रों में पाई जाती हैं-
(क) तराई क्षेत्र – गोरखपुर, बस्ती, सीतापुर, फैज़ाबाद
(ख) दोआब क्षेत्र – सहारनपुर, मेरठ, मुज़फ्फरनगर

उत्तरी भारत में सुविधाएं –

  • भारत का 50% गन्ना उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है।
  • अधिक जनसंख्या के कारण खपत अधिक है तथा सस्ते श्रमिक प्राप्त हैं।
  • सस्ती जल विद्युत् तथा बिहार से कोयला मिल जाता है।
  • यातायात के उत्तम साधन हैं।
  • जल के पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं।

2. महाराष्ट्र – महाराष्ट्र भारत का चीनी का दूसरा बड़ा उत्पादक राज्य है। प्रमुख केन्द्र कोल्हापुर, पुणे, शोलापुर हैं।
3. आन्ध्र प्रदेश – यहां गन्ने का अधिक उत्पादन होता है। प्रमुख मिलें विशाखापट्टनम, हैदराबाद, विजयवाड़ा, हास्पेट, पीठापुरम में हैं।
4. अन्य केन्द्र –

  • कर्नाटक में – बेलगांव, रामपुर, पाण्डुपुर।
    • बिहार में – चम्पारण, सारण, मुज़फ्फरपुर, दरभंगा, पटना।
      JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 8
  • तमिलनाडु में – कोयम्बटूर, तिरुचिरापल्ली, रामनाथपुरम।
  • पंजाब में – नवांशहर, भोगपुर, फगवाड़ा, धूरी, अमृतसर।
  • हरियाणा में – यमुनानगर, पानीपत, रोहतक।
  • राजस्थान में – चित्तौड़गढ़, उदयपुर।
  • गुजरात में – अहमदाबाद, भावनगर।
  • उड़ीसा में – गंजम

चीनी उद्योग की कठिनाइयां (Problems ) – भारत में चीनी उद्योग को कई कठिनाइयां हैं। भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम है। गन्ने में रस की मात्रा कम है। गन्ना प्राप्त न होने के कारण मिलें वर्ष में कुछ महीने बन्द रहती हैं। गन्ने की कीमतें ऊंची हैं। चीनी उद्योग के बचे-खुचे पदार्थों (By-Produces) का ठीक उपयोग नहीं होता। इन कारणों से चीनी पर लागत अधिक है।

भविष्य – पिछले कुछ वर्षों से चीनी उद्योग दक्षिणी भारत की ओर स्थानान्तरित कर रहा है। कोयम्बटूर में गन्ना खोज केन्द्र भी स्थापित किया गया है। दक्षिणी भारत में गन्ना अधिक मोटा होता है तथा इसमें रस की मात्रा अधिक होती है। दक्षिणी भारत में गन्ने की पिराई का समय भी अधिक होता है। गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज भी अधिक है। यहां
आधुनिक चीनी मिलें सहकारी क्षेत्र में लगाई गई हैं।

प्रश्न 5.
भारत में औद्योगिक समूहों के विकास का वर्णन करो। इनका वर्गीकरण करके अस्तित्व की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
भारत के विभिन्न प्रदेशों में उद्योगों के केन्द्रीयकरण के कारण कई औद्योगिक क्षेत्रों और समूहों का विकास हुआ है। ये औद्योगिक समूह यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे भारी समूह नहीं हैं। ये छोटे-छोटे समूह एक-दूसरे के पास स्थित हैं। इनमें काम करनें वाले श्रमिकों की औसत दैनिक संख्या के आधार पर इन्हें तीन वर्गों में बांटा जाता है-
(1) मुख्य औद्योगिक प्रदेश – यहां दैनिक श्रमिक संख्या 1 लाख 50 हज़ार / 1,50,000 से अधिक होती है।
(2) लघु औद्योगिक प्रदेश – यहां दैनिक श्रमिक संख्या 25 हज़ार से अधिक होती है।
(3) छोटे औद्योगिक प्रदेश – यहां दैनिक श्रमिक संख्या 25 हज़ार से कम होती है

भारत के विभिन्न प्रदेशों में निम्नलिखित 8 बड़े औद्योगिक प्रदेशों का विकास हुआ है –
1. हुगली औद्योगिक प्रदेश – यह प्रदेश भारत की प्रमुख औद्योगिक पेटी है । इस प्रदेश का विस्तार खुले समुद्र से 97 किलोमीटर अन्दर तक हुगली नदी के दोनों किनारों के साथ-साथ है। इस क्षेत्र के विकास के लिए निम्नलिखित सुविधाएं हैं-

  • हुगली नदी के किनारे कोलकाता बन्दरगाह द्वारा आयात-निर्यात की सुविधाएं प्राप्त हैं।
  • दामोदर घाटी क्षेत्र से कोयला तथा लोहे का प्राप्त होना।
  • यह क्षेत्र गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान की घनी जनसंख्या वाले पृष्ठ प्रदेश में रेलों तथा सड़कों द्वारा जुड़ा हुआ है।
  • आसाम में चाय, डेल्टा प्रदेश से पटसन की प्राप्ति ने इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास में सहायता की है।
  • कोलकाता एक व्यापारिक केन्द्र है। यहां बिहार तथा उड़ीसा राज्यों से सस्ते श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं ।

इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति भी अनुकूल है। यहां से विदेशों को कच्चे माल के निर्यात तथा मशीनरी व तैयार माल के आयात की सुविधा है। गंगा नदी पर फरक्का बांध के निर्माण तथा हल्दिया बन्दरगाह के बन जाने से महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त होंगे। इस क्षेत्र में लोहा, इस्पात, पटसन, कागज़, चमड़ा तथा अन्य कई उद्योगों का विकास हुआ है।

2. मुम्बई – पुणे औद्योगिक प्रदेश – यह देश का दूसरा प्रमुख औद्योगिक प्रदेश है। इसका विकास सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना के कारण हुआ है । यह प्रदेश मुम्बई, थाना, कल्याण तथा पुणे तक फैला हुआ है। इस प्रदेश के विकास के लिए निम्नलिखित तत्त्व सहायक रहे हैं-

  • मुम्बई बन्दरगाह से आयात-निर्यात की सुविधाएं।
  • मुम्बई तथा थाना के मध्य रेल मार्ग का निर्माण होना।
  • स्वेज नहर मार्ग के विकास के कारण विदेशों से अधिक सम्पर्क स्थापित होना।
    JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 8
  • पश्चिमी घाट से जल-विद्युत् का प्राप्त होना।
  • महाराष्ट्र और गुजरात के पृष्ठ प्रदेश से उत्तम कपास तथा सस्ते श्रमिकों का प्राप्त होना।
  • भोर घाट तथा थाल घाट मार्गों के खुलने से रेल तथा सड़क मार्गों द्वारा परिवहन साधनों से पृष्ठ प्रदेश के साथ सम्बन्ध स्थापित होना।
  • यहां सूती वस्त्र उद्योग, खनिज तेल शोधक उद्योग, रासायनिक उद्योग तथा इंजीनियरिंग उद्योगों का विकास हुआ है।

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3. अहमदाबाद बड़ौदा औद्योगिक प्रदेश – यह प्रदेश भारत का तीसरा प्रमुख औद्योगिक प्रदेश है तथा देश के आन्तरिक भाग में स्थित है। इस प्रदेश के विकास के निम्नलिखित कारण हैं –

  • यह क्षेत्र कपास उत्पन्न करने वाले प्रदेश के बीच स्थित है।
  • यहां गंगा सतलुज के मैदान सूती कपड़ा के मांग क्षेत्र के निकट हैं।
  • यहां सस्ते मूल्य पर कुशल श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं।
  • यहां मुम्बई तथा कांडला बन्दरगाहों से आयात-निर्यात की सुविधा है।
  • खम्बात क्षेत्र में अंकलेश्वर में खनिज तेल की खोज ने कई पेट्रो रसायन उद्योगों को जन्म दिया है।
  • अधिकतर सूती वस्त्र उद्योग अहमदाबाद में है जिसे ‘भारत का मानचेस्टर’ भी कहते हैं।

4. मदुराई, कोयम्बटूर, बंगलौर औद्योगिक प्रदेश – दक्षिणी भारत के इस प्रदेश में चेन्नई, कोयम्बटूर, मदुराई, बंगलौर तथा मैसूर में विभिन्न उद्योगों की स्थापना हुई है। यहां उद्योग के केन्द्रीयकरण के कई कारण हैं –

  • यहां मैटूर, पाइकारा, शिव समुद्रम आदि योजनाओं से सस्ती जल – विद्युत् प्राप्त होती है।
  • यहां सस्ते, कुशल श्रमिक प्राप्त हैं
  • घनी जनसंख्या के कारण मांग अधिक है।
  • जलवायु कई उद्योगों के अनुकूल है।
  • इस क्षेत्र में उत्तम कपास की प्राप्ति हो जाती है।

इसलिए कोयम्बटूर में सूती कपड़ा, कॉफी की मिलें, चमड़े के कारखाने तथा सीमेंट मिलों का विकास हुआ है। बंगलौर में हिन्दुस्तान वायुयान केन्द्र, मशीन टूल्स, टेलीफोन उद्योग तथा विद्युत् उपकरण उद्योग स्थापित हुए हैं। अन्य केन्द्रों में सूती कपड़ा, ऊनी कपड़ा, रेशमी वस्त्र, रासायनिक उद्योग, मोटर गाड़ियों के उद्योग तथा चमड़ा उद्योग मिलते हैं।

5. छोटा नागपुर पठार औद्योगिक प्रदेश – बिहार तथा पश्चिमी बंगाल राज्यों में इस क्षेत्र का विकास दामोदर घाटी हुआ है। यहां कई लोहा – इस्पात कारखाने जैसे जमशेदपुर, बोकारो, दुर्गापुर आदि स्थापित हो गए हैं। इसे भारत का रुहर प्रदेश भी कहते हैं। यहां औद्योगिक विकास के लिए कई सुविधाएं हैं-

  • झरिया तथा रानीगंज से कोयला प्राप्त होना।
  • बिहार, झारखण्ड तथा उड़ीसा से खनिज लोहे की प्राप्ति।
  • कोलकाता बन्दरगाह की सुविधाएं प्राप्त होना।
  • दामोदर घाटी योजना से जल विद्युत् तथा तापीय विद्युत् की सुविधा।
  • कई इंजीनियरिंग सामान बनाने के उद्योगों का रांची, चितरंजन, सिन्द्री आदि शहरों में स्थापित हो जाना।

6. दिल्ली तथा निकटवर्ती प्रदेश – स्वतन्त्रता के पश्चात् अनेक औद्योगिक गुच्छों का विकास हुआ है।

  • उत्तर प्रदेश में आगरा-मथुरा-मेरठ – सहारनपुर क्षेत्र
  • हरियाणा में फ़रीदाबाद – गुड़गांव – अम्बाला क्षेत्र
  • दिल्ली का निकटवर्ती क्षेत्र

इस प्रदेश के विकास में कई भौगोलिक तत्त्वों का योगदान है-

  • भाखड़ा नंगल योजना से जल विद्युत् प्राप्ति।
  • हरदुआगंज़ तथा फ़रीदाबाद से ताप विद्युत् प्राप्ति।
  • कृषि आधारित उद्योगों (चीनी तथा वस्त्र उद्योग) के लिए कच्चे माल की प्राप्ति।
  • मथुरा के तेल शोधन कारखाने से तेल प्राप्ति तथा पेट्रो- रासायनिक पदार्थों की प्राप्ति।
  • कृषि क्षेत्र के कारण अधिक मांग

प्रमुख केन्द्र – इस प्रदेश में शीशा, रसायन, कागज़, इलेक्ट्रॉनिक्स, साइकिल, वस्त्र तथा चीनी उद्योग स्थापित है।

  • आगरा में शीशा उद्योग
  • गुड़गांव में कार फैक्टरी तथा I.D. P. L. की इकाई।
  • फ़रीदाबाद में इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग
  • सहारनपुर तथा यमुनानगर में कागज़ उद्योग
  • मोदी नगर, सोनीपत, पानीपत, बल्लभगढ़ में वस्त्र उद्योग

7. विशाखापट्टनम:
गुंटूर प्रदेश – यह औद्योगिक प्रदेश विशाखापट्टनम ज़िले से लेकर दक्षिण में कुर्नूल और प्रकाशम ज़िलों तक विस्तृत है। इस प्रदेश का औद्योगिक विकास मुख्यतः विशाखापट्टनम और मछलीपटनम के पत्तनों और इनके पृष्ठ प्रदेश की समृद्ध कृषि तथा खनिजों के विशाल भंडार पर आश्रित है। गोदावरी द्रोणी के कोयला क्षेत्र इस प्रदेश को शक्ति और ऊर्जा प्रदान करते हैं। 1941 में विशाखापट्टनम में जलयान निर्माण उद्योग लगाया गया था।

पेट्रोलियम परिष्करणशाला आयातित कच्चे तेल पर आधारित है तथा इसने अनेक पेट्रो रसायन उद्योगों को जन्म दिया है। इस प्रदेश के प्रमुख उद्योग हैं – चीनी, वस्त्र, जूट, कागज़, उर्वरक, सीमेंट, एल्यूमीनियम और इंजीनियरी के हल्के सामान। गुंटूर जिले में एक सीसा – जस्ता प्रगलन संयंत्र भी चालू है। विशाखापट्टनम में स्थित लोहे और इस्पात का कारखाना बैलाडिला के लौह-अयस्क का उपयोग करता है। इस प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक केन्द्र ये हैं: विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा, विजयनगर, राजामुन्दरी, गुंटूर, एलुरू और कुर्नूल।

8. कोल्लम – तिरुवनन्तपुरम प्रदेश:
इस प्रदेश का विस्तार तिरुवनन्तपुरम, कोल्लम, अलप्पुजा, एर्णाकुलम और त्रिशुर जिलों में हैं। रोपण कृषि और जल विद्युत् ने इस प्रदेश को औद्योगिक आधार प्रदान किया है। यह प्रदेश देश की खनिज पट्टी से दूर है। अतः यहां मुख्य रूप से कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण से संबंधित और बाज़ारोन्मुख हल्के उद्योग ही विकसित हुए हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

इस प्रदेश के मुख्य उद्योग ये हैं – सूती वस्त्र, चीनी, रबड़, माचिस, कांच, रासायनिक उर्वरक और मछली आधारित उद्योग। इनके अलावा खाद्य प्रसंस्करण, कागज़, नारियल रेशे के उत्पाद, एल्यूमीनियम और सीमेंट उद्योग भी उल्लेखनीय हैं। कोच्चि में तेल परिष्करणशाला ने इस प्रदेश के उद्योगों में एक नया आयाम जोड़ दिया है । इस प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक केन्द्र ये हैं : कोल्लम्, तिरुवनन्तपुरम्, अलवाए, कोच्चि और अलप्पुजा।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें
1. झारखण्ड किस खनिज का भारत में सर्वाधिक उत्पादन है ?
(A) बॉक्साइट
(B) अभ्रक
(C) लौह खनिज
(D) तांबा।
उत्तर:
(C) लौह खनिज

2. मानोजाइट रेत में कौन-सा खनिज मिलता है ?
(A) तेल
(B) यूरेनियम
(C) थोरियम
(D) कोयला।
उत्तर:
(C) थोरियम

3. सबसे कठोर खनिज है
(A) हीरा
(B) ग्रेनाइट
(C) बसाल्ट
(D) गैब्रो।
उत्तर:
(A) हीरा

4. कौन-सी धातु लौह धातु है ?
(A) बॉक्साइट
(B) लौह खनिज
(C) अभ्रक
(D) कोयला।
उत्तर:
(B) लौह खनिज

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

5. हैमेटाइट लौह खनिज में लौह अंश है
(A) 20-30%
(B) 30-40%
(C) 40-50%
(D) 60-70%.
उत्तर:
(D) 60-70%.

6. तांबा की प्रसिद्ध खान है
(A) बस्तर
(B) खेतड़ी
(C) बेलौर
(D) झरिया।
उत्तर:
(B) खेतड़ी

7. लिग्नाइट कोयला कहां मिलता है ?
(A) झरिया
(B) नेवेली
(C) बोकारो
(D) रानीगंज।
उत्तर:
(B) नेवेली

8. भारत में सबसे बड़ा सौर ऊर्जा प्लांट कहां स्थित है ?
(A) नासिक
(B) माधोपुर
(C) कैगा
(D) चन्द्रपुर।
उत्तर:
(B) माधोपुर

9. निम्नलिखित में से कौन-सा अधात्विक खनिज है?
(A) लोहा
(B) चूना
(C) मैंगनीज़
(D) तांबा।
उत्तर:
(B) चूना

10. किरुबुरू लोहे की खान किस राज्य में स्थित है ?
(A) बिहार
(B) झारखण्ड
(C) उड़ीसा
(D) छत्तीसगढ़।
उत्तर:
(C) उड़ीसा

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

11. कर्नाटक में कौन-सी लोहे की खान स्थित है ?
(A) करीम नगर
(B) कुडप्पा
(C) कुद्रेमुख
(D) वैलाडिला।
उत्तर:
(C) कुद्रेमुख

12. हज़ारी बाग पठार किस खनिज के लिए प्रसिद्ध है ?
(A) लौह
(B) तांबा
(C) अभ्रक
(D) कोयला।
उत्तर:
(C) अभ्रक

13. भारत में सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र है
(A) झरिया
(B) रानीगंज
(C) नेवेली
(D) सिंगारेनी।
उत्तर:
(A) झरिया

14. कल्पक्कम परमाणु गृह किस राज्य में है ?
(A) केरल
(B) कर्नाटक
(C) तमिलनाडु
(D) आन्ध्र प्रदेश।
उत्तर:
(C) तमिलनाडु

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में निकाले गए खनिजों का 2006 में कितना मूल्य था?
उत्तर:
5.30 अरब रुपए।

प्रश्न 2.
भारत में कोयले के कुल भण्डार कितने हैं?
उत्तर:
21,390 करोड़ टन।

प्रश्न 3.
कोयला क्षेत्रों के दो समूह बताओ।
उत्तर:
गोंडवाना तथा टरशरी।।

प्रश्न 4.
बॉम्बे हाई कहां स्थित है ?
उत्तर:
मुम्बई से 176 कि० मी० दूर अरब सागर में।

प्रश्न 5.
भारत में खनिज तेल का उत्पार कितना है?
उत्तर:
3.24 करोड़ टन।

प्रश्न 6.
भारत में सबसे बड़ी तेल परिष्करणशाला कहां स्थित है?
उत्तर:
गुजरात राज्य में जाम नगर में (रिलायंस पेट्रोलियम लिमेटिड)।

प्रश्न 7.
भारत में लौह-अयस्क का कुल उत्पादन बताओ।
उत्तर:
7.5 करोड़ टन।

प्रश्न 8.
भारत में विद्युत् की उत्पादन क्षमता बताओ।
उत्तर:
101600 मेगावाट।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

प्रश्न 9.
भारत में पहला परमाणु शक्ति केन्द्र कहां लगाया गया?
उत्तर:
1969 में मुम्बई के निकट तारापुर।

प्रश्न 10.
अपारम्परिक ऊर्जा के दो स्त्रोत बताओ।
उत्तर:
बायोगैस, सौर ताप।

प्रश्न 11.
भारत में कितने खनिजों का उत्पादन होता है?
उत्तर:
68 खनिजों का।

प्रश्न 12.
भारत की तीन खनिज पेटियों के नाम लिखो।
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी पठार, दक्षिण-पश्चिमी पठार, उत्तर-पश्चिमी प्रदेश।

प्रश्न 13.
भारत में किस राज्य में कोयले का सर्वाधिक उत्पादन है?
उत्तर:
झारखण्ड में।

प्रश्न 14.
तालेचर में कोयले पर आधारित दो उद्योग बताओ।
उत्तर:
उर्वरक तथा ताप बिजली।

प्रश्न 15.
कोयले के दो प्रक्षालन केन्द्र बताओ।
उत्तर:
जामादोबा तथा लोदना।

प्रश्न 16.
भारत की किस नदी घाटी में गोंडवाना कोयला क्षेत्र है ?
उत्तर:
दामोदर घाटी।

प्रश्न 17.
सर्वप्रथम अपतटीय क्षेत्र में कहां तेल खोजा गया?
उत्तर:
गुजरात के अलियाबेट नामक द्वीप पर तथा मुम्बई हाई।

प्रश्न 18.
कावेरी द्रोणी के दो तेल क्षेत्र बताओ।
उत्तर:
नारीमनम तथा कोविलप्पल।

प्रश्न 19.
भारत में कच्चे तेल का सबसे बड़ा क्षेत्र बताओ।
उत्तर:
बॉम्बे हाई।

प्रश्न 20.
भारत में पहला बिजली घर कहां लगाया गया ?
उत्तर:
1897 में दार्जिलिंग में।

प्रश्न 21.
भारत में राष्ट्रीय ताप विद्युत् निगम के अधीन कितने बिजली घर हैं?
उत्तर:
13.

प्रश्न 22.
नहर कटिया से बारौनी तक तेल पाइप लाइन की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता बताओ।
उत्तर:
यह भारत में पहली तेल पाइप लाइन थी जो भारतीय तेल लिमेटिड (I.O.L.) द्वारा 1956 में निर्मित की गई।

प्रश्न 23.
भारत में एक प्रकार के लौह अयस्क का नाम लिखो।
उत्तर:
हेमेटाइट अथवा मेगनेटाइट।

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प्रश्न 24.
कोयले के दो प्रकार के नाम लिखो।
उत्तर:
बिटुमिनस तथा एन्थेसाइट।

प्रश्न 25.
मैंगनीज़ उत्पन्न करने वाले दो प्रमुख राज्यों के नाम लिखो।
उत्तर:
कर्नाटक, छत्तीसगढ़।

प्रश्न 26.
दो परमाणु शक्ति गृहों के नाम लिखो।
उत्तर:
तारापुर, कल्पक्कम।

प्रश्न 27.
एल्यूमिनियम किस अयस्क से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
बॉक्साइट।

प्रश्न 28.
कोयला उत्पादक करने वाले दो प्रमुख केन्द्रों/क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
झरिया रानीगंज।

प्रश्न 29.
अपारंपरिक ऊर्जा के दो महत्त्वपूर्ण स्रोत बताओ।
उत्तर:
सौर ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा।

प्रश्न 30.
असम राज्य के दो पेट्रोलियम उत्पादन क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
डिगबोई तथा नहर कटिया।

प्रश्न 31.
भारत में बॉक्साइट उत्पादन करने वाले दो मुख्य राज्य कौन-से हैं ?
उत्तर:
उड़ीसा तथा झारखंड।

प्रश्न 32.
अंकलेश्वर में किस खनिज पदार्थ का उत्पादन होता है ?
उत्तर:
खनिज तेल।

प्रश्न 33.
उड़ीसा राज्य के दो कोयला उत्पादक क्षेत्रों के नाम लिखो।
उत्तर:
तलचर, रामपुर।

प्रश्न 34.
भारत में डोलोमाइट के दो प्रमुख उत्पादक राज्य बताओ।
उत्तर:
गुजरात व राजस्थान।

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प्रश्न 35.
भारत में लौह अयस्क उत्पादन करने वाले दो मुख्य राज्य कौन-से हैं ?
उत्तर:
उड़ीसा, झारखण्ड।

प्रश्न 36.
कोलार क्षेत्र में किस धातु का उत्पादन होता है ?
उत्तर:
सोना।

प्रश्न 37.
भारत में कल्पक्कम तथा हीराकुड किस लिए प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर:
अणु शक्ति तथा जल विद्युत्।

प्रश्न 38.
खनिज की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
खनिज निश्चित रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्मों वाला प्राकृतिक पदार्थ है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
खनिजों की प्रमुख विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
खनिजों की कुछ निश्चित विशेषताएं होती हैं। यह क्षेत्र में असमान रूप से वितरित होते हैं। खनिजों की गुणवत्ता और मात्रा के बीच प्रतिलोमी सम्बन्ध पाया जाता है अर्थात् अधिक गुणवत्ता वाले खनिज, कम गुणवत्ता वाले खनिजों की तुलना में कम मात्रा में पाए जाते हैं। तीसरी प्रमुख विशेषता यह है कि ये सभी खनिज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं। भूगर्भिक दृष्टि से इन्हें बनने में लम्बा समय लगता है और आवश्यकता के समय इनका तुरन्त पुनर्भरण नहीं किया जा सकता। अतः इन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए और इनका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए क्योंकि इन्हें दोबारा उत्पन्न नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 2.
खनिज के अन्वेषण में संलग्न अधिकरण बताओ।
उत्तर:
खनिज के अन्वेषण में संलग्न अधिकरण-भारत में, खनिजों का व्यवस्थित सर्वेक्षण, पूर्वेक्षण (Prospecting) तथा अन्वेषण के कार्य भारतीय भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC), खनिज अन्वेषण निगम लि. (MECL), राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (NMDC), इंडियन ब्यूरो ऑफ माइन्स (IBM), भारत गोल्डमाइन्स लि० (BGML), राष्ट्रीय एल्यूमिनियम कं० लि. (NALU) और विभिन्न राज्यों के खद्यान एवं भू-विज्ञान विभाग करते हैं।

प्रश्न 3.
‘मुम्बई हाई’ और ‘सागर सम्राट्’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
खाड़ी कैम्बे के निकट अरब सागर में खनिज तेल के भण्डार प्राप्त हुए हैं। सागर तट से 120 कि० मी० दूर ‘मुम्बई हाई’ (Mumbai High) नामक तेल क्षेत्र में 19 फरवरी, 1974 को सागर सम्राट नामक जहाज द्वारा खुदाई से तेल प्राप्त हुआ है। भारत में यह पहला क्षेत्र है जिसका समुद्री क्षेत्र में विकास किया गया है। यह क्षेत्र भारत में सबसे अधिक तेल उत्पन्न करता है।

प्रश्न 4.
भारत के कितने क्षेत्र में तेलधारी (Oil Bearing) बेसिन हैं ? विभिन्न तेलधारी बेसिनों के नाम लिखो।
उत्तर:
भारत में लगभग 17 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर तेलधारी पर्त वाले 13 महत्त्वपूर्ण बेसिन हैं। इसमें 3 लाख 20 हज़ार वर्ग किलोमीटर का अवसादी तट क्षेत्र है जहां तेल मिलता है। कैम्बे बेसिन, ऊपरी असम तथा बॉम्बे हाई बेसिन में से तेल प्राप्त किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त कई क्षेत्र पेट्रोलियम उत्पादन के भावी क्षेत्र हैं, जैसे कावेरी-कृष्णा-गोदावरी बेसिन, राजस्थान, अण्डमान, शिवालिक पहाड़ियां, गंगा घाटी, कच्छ-सौराष्ट्र, केरल-कोंकण तट तथा महानदी बेसिन।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

प्रश्न 5.
भारत में खनिज तेल के उत्पादन, उपभोग तथा आयात का वर्णन करो।।
उत्तर:
देश में खनिज तेल का उत्पादन उपभोग को देखते हुए कम है। सन् 2005-06 में खनिज तेल का उत्पादन 329 लाख टन था। यह हमारी केवल 35% आवश्यकताओं की पूर्ति करता है जबकि उपभोग लगभग 750 लाख टन हो गया है। इस प्रकार गत वर्ष 500 लाख टन खनिज़ तेल तथा पेट्रोलियम पदार्थों का आयात किया गया। यह आयात लगभग 35 हज़ार करोड़ के मूल्य का था। इस वृद्धि का मुख्य कारण खपत में वृद्धि, मूल्यों में वृद्धि तथा रुपए के मूल्य का कम होना है।

प्रश्न 6.
देश में विभिन्न तेल शोधन शालाओं के नाम लिखो तथा भविष्य में स्थापित की जाने वाली तेल शोधन शालाओं के नाम बताओ।
उत्तर:
भारत में 12 तेल शोधन शालाएं हैं। इन तेल शोधन शालाओं की कुल क्षमता 500 लाख टन प्रतिवर्ष है। मुम्बई, कोयाली, ट्राम्बे, मथुरा, नूनमती, बोगाई गांव, बरौनी, हल्दिया, विशाखापट्टनम, चेन्नई तथा कोचीन प्रमुख तेल शोधन शालाएं हैं। भविष्य में तीन तेल शोधन शालाएं करनाल (हरियाणा) तथा मंगलौर (कर्नाटक) व भटिंडा (पंजाब) में स्थापित की जाएंगी।

प्रश्न 7.
भारत में खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ? हम उनका संरक्षण किस प्रकार कर सकते हैं ? दो बिन्दुओं में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
खनिजों के संरक्षण की आवश्यकता –

  1. खनन को परम्परागत विधियां बड़ी मात्रा में खनिजों को नष्ट कर देती हैं तथा कई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
  2. देश का आर्थिक विकास खनिजों के उपभोग पर निर्भर करता है।
  3. खनिज समाप्त होने वाले संसाधन हैं। एक बार निकाले जाने पर खनिज पुनः निर्माण नहीं होते। भावी पीढ़ियों द्वारा प्रयोग के लिए खनिज आवश्यक है।

खनिजों के संरक्षण की विधियां –

  1. स्क्रैप धातुओं का उपयोग करना जैसे तांबा, जिस्ता आदि।
  2. सामरिक तथा कम उपलब्धता वाले खनिजों के उपयोग को कम किया जाए।
  3. कम मात्रा में उपलब्ध धात्विक खनिजों के लिए पूरक वस्तुओं का उपयोग किया जाए।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में खनिजों के बड़े भण्डार क्यों पाए जाते हैं ? निम्नलिखित के उत्तर दें –
(क) उच्च कोटि की गुणवत्ता वाले कौन-से खनिज मिलते हैं ?
(ख) किन खनिजों की भारत में कमी है ?
(ग) ऊर्जा खनिजों की स्थिति के बारे में बताओ।
उत्तर:
खनिजों के पर्याप्त भण्डार-विशाल आकार तथा विविध प्रकार की भू-वैज्ञानिक संरचनाओं के कारण भारत में औद्योगिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण खनिजों के बहुत बड़े और उत्तम कोटि के भण्डार पाए जाते हैं।

(क) उच्च कोटि के भण्डार – उच्च कोटि के लौह-अयस्क के भण्डारों के अलावा भारत में अनेक प्रकार के उच्च कोटि की गुणवत्ता वाले निम्न खनिज पाए जाते हैं-मिश्रधातु खनिज जैसे मैंगनीज, क्रोमाइट और टिटैनियम के काफ़ी बड़े भण्डार, गालक खनिज जैसे चूने का पत्थर, डोलोमाइट, जिप्सम आदि, ऊष्मसह जैसे मैग्नेसाइट, क्यानाइट और सिलिमेनाइट।

(ख) कमी वाले खनिज भण्डार – लेकिन भारत में कुछ अलौह खनिजों जैसे-तांबा, सीसा, जस्ता, टिन, ग्रेफाइट, टंग्सटन और पारे की अपेक्षाकृत कमी है। बॉक्साइट और अभ्रक का पर्याप्त भण्डार हैं। भारत में रासायनिक उर्वरक उद्योगों में काम आने वाले खनिजों; जैसे गन्धक, पोटाश और शैल फास्फेट की भी कमी है।

(ग) ऊर्जा खनिज – बिटुमिनस कोयले के भारत में विशाल भण्डार हैं, लेकिन देश में कोकिंग कोयले और पेट्रोलियम का अभाव है। फिर भी परमाणु खनिजों; जैसे-यूरेनियम और थोरियम के सन्दर्भ में भारत की स्थिति काफ़ी सुदृढ़ है।

प्रश्न 2.
भारत में प्राकृतिक गैस के क्षेत्र बताओ तथा एच० बी० जे० पाइप लाइन का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में प्राकृतिक गैस का कुल उत्पादन 22000 करोड़ घन मीटर है। इस समय कैम्बे बेसिन, कावेरी तट, जैसलमेर तथा बॉम्बे हाई से प्राकृतिक गैस प्राप्त की जा रही है। भारत में गैस के परिवहन के लिए हज़ीरा विजयपुर जगदीशपुर (H.B.J.) पाइप लाइन बनाई गई है। यह पाइप लाइन 1700 किलोमीटर लम्बी है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

यह पाइप लाइन गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश राज्यों में से गुजरती है। इस गैस से विजयपुर, सवाई माधोपुर, जगदीशपुर, शाहजहांपुर, आमला तथा बबराला उर्वरक कारखाने बनाने की योजना है। भारत में Gas Authority of India LTD. (GAIL), Oil and National Gas Commission (ONGC), Indian Oil Corporation (IOC), Hindustan Petroleum Corporation (HPC) नामक संस्थाएं गैस की खोज तथा प्रबन्ध का कार्य कर रही हैं।

प्रश्न 3.
भारत में ‘लौह पट्टी’ (Iron Belt) में स्थित इस्पात कारखाने बताओ।
उत्तर:
हमारे देश में 2004-05 में लौह अयस्क के आरक्षित भण्डार लगभग 200 करोड़ टन थे। लौह अयस्क के कुल आरक्षित भण्डारों का लगभग 95 प्रतिशत भाग उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गोआ, आन्ध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में स्थित हैं।
(1) उड़ीसा में लौह अयस्क सुन्दरगढ़, मयूरभंज, झार स्थित पहाड़ी श्रृंखलाओं में पाया जाता है। यहां की महत्त्वपूर्ण खदानें गुरुमहिसानी, सुलाएपत, बादामपहाड़ (मयूरभन्ज), किरुबुरू (केन्दूझार) तथा बोनाई (सुन्दरगढ़) है।

(2) झारखण्ड की ऐसी ही पहाड़ी श्रृंखलाओं में कुछ सबसे पुरानी लौह अयस्क की खदानें हैं तथा अधिकतर लौह एवं इस्पात संयन्त्र इनके आसपास ही स्थित हैं। नोआमण्डी और गुआ जैसी अधिकतर महत्त्वपूर्ण खदानें पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम जिलों में स्थित हैं।

(3) यह पट्टी और आगे दुर्ग, दांतेवाड़ा और बैलाडीला तक विस्तृत हैं। डल्ली तथा दुर्ग में राजहरा की खदानें देश की लौह अयस्क की महत्त्वपूर्ण खदानें हैं।

(4) कर्नाटक में, लौह अयस्क के निक्षेप बेलारी जिले के सन्दूर-होस्पेट क्षेत्र में तथा चिकमंगलूर जिले की बाबा बुदन पहाड़ियों और कुद्रेमुख तथा शिमोगा, चित्रदुर्ग और तुमकुर जिलों के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं।

(5) महाराष्ट्र के चन्द्रपुर भण्डारा और रत्नागिरि जिले, आन्ध्र प्रदेश के करीम नगर, वारंगल, कुरूनूल, कडप्पा तथा अनन्तपुर ज़िले और

(6) तमिलनाडु राज्य के सेलम तथा नीलगिरी ज़िले लौह अयस्क खनन के अन्य प्रदेश हैं।

(7) गोआ भी लौह अयस्क के महत्त्वपूर्ण उत्पादक के रूप में उभरा है।

प्रश्न 4.
ऐसे कौन मूल्य आधारित कारक हैं जिनके चलते खनिजों का संरक्षण आवश्यक है ? खनिजों का संरक्षण हम किस प्रकार कर सकते हैं ?
उत्तर:
खनिजों के संरक्षण की आवश्यकता:

  • खनन की परम्परागत विधियां बड़ी मात्रा में खनिजों को नष्ट कर देती हैं तथा कई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
  • देश का आर्थिक विकास खनिजों के उपभोग पर निर्भर करता है।
  • खनिज समाप्त होने वाले संसाधन हैं। एक बार निकाले जाने पर खनिज पुनः निर्माण नहीं होते। भावी पीढ़ियों द्वारा प्रयोग के लिए खनिज आवश्यक है।

खनिजों का संरक्षण:

  • स्क्रैप धातुओं जैसे कि तांबा, जस्ता आदि का उपयोग करके।
  • सामरिक तथा कम उपलब्धता वाले खनिजों का उपयोग कम करके।
  • कम मात्रा में उपलब्ध धात्विक खनिजों के लिए पूरक वस्तुओं का उपयोग किया जाए।

प्रश्न 5.
लौह तथा अलौह खनिज में किन कारणों के आधार पर अन्तर स्पष्ट किया जा सकता है ?
उत्तर:

कारण अतर
लौह खनिज (Ferrous Minerals) अलौह खनिज (Non-ferrous Minerals)
प्रमुख धातु अंश जिन खनिज पदार्थों में लौह धातु का अंश पाया जाता है, उन्हें लौह खनिज कहते हैं। जिन खनिज पदार्थों में लौह धातु का अभाव होता है, उन्हें अलौह खनिज कहते हैं।
मुख्य खनिज लोहा, मैंगनीज़, क्रोमाइट, कोबाल्ट आदि लौह खनिज हैं। सोना, तांबा, सीसा, निकल आदि अलौह खनिज हैं।
उपयोग/प्रयोग उपयोगिता इन खनिजों को लोहा-इस्पात उद्योग में प्रयोग किया जाता है। इस लोहे को कड़ा करने के लिए कई धातुओं को मिलाया जाता है। अलौह खनिजों की अपनी-अपनी उपयोगिता उपयोगिता  होती है तथा कई कीमती धातुएं मिलती हैं।

प्रश्न 6.
लौह तथा अलौह खनिज में अन्तर स्पष्ट करो।

लौह खनिज (Ferrous Minerals) अलौह खनिज (Non-ferrous Minerals)
(1) जिन खनिज पदार्थों में लौह धातु का अंश पाया। जाता है, उन्हें लौह खनिज कहते हैं। (1) जिन खनिज पदार्थों में लौह धातु का अभाव होता है, उन्हें अलौह खनिज कहते हैं।
(2) लोहा, मैंगनीज़, क्रोमाइट, कोबाल्ट आदि लौह खनिज हैं। (2) सोना, तांबा, सीसा, निकल आदि अलौह खनिज हैं।
(3) इन खनिजों को लोहा-इस्पात उद्योग में प्रयोग किया जाता है। इस लोहे को कड़ा करने के लिए कई धातुओं को मिलाया जाता है। (3) अलौह खनिजों की अपनी-अपनी उपयोगिता होती है तथा कई कीमती धातुएं मिलती हैं।

प्रश्न 7.
धात्विक खनिज तथा अधात्विक खनिज में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

धात्विक खनिज (Metallic Minerals) अधात्विक खनिज (Non-metallic Minerals)
(1) धात्विक खनिज ऐसे खनिज पदार्थ हैं जिनको गलाने से विभिन्न धातुओं की प्राप्ति होती है। (1) अधात्विक खनिजों को गलाने से किसी धातु की प्राप्ति नहीं होती।
(2) लोहा, तांबा, बॉक्साइट, मैंगनीज़ धात्विक खनिज हैं। (2) कोयला, नमक, संगमरमर, पोटाश अधात्विक खनिज हैं।
(3) ये खनिज प्राय: तलछटी चट्टानों में पाए जाते हैं। (3) ये खनिज प्रायः आग्नेय चट्टानों में पाए जाते हैं।
(4) इन्हें पिघला कर प्रयोग नहीं किया जा सकता। हैं। (4) इन्हें दोबारा पिघला कर भी प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
चट्टान तथा खनिज अयस्क में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

चट्टान (Rock) खनिज अयस्क (Mineral Ore)
(1) पृथ्वी के भू-पटल का निर्माण करने वाले सभी प्राकृतिक तथा ठोस पदार्थों को चट्टान कहते हैं। (1) खनिज एक अजैव यौगिक है जो प्राकृतिक अवस्था में पाया जाता है।
(2) चट्टान कई प्रकार के खनिजों का समूह होते हैं। (2) खनिज अयस्क प्रायः एक प्रकार के खनिज से बने होते हैं, जैसे-लोहा।
(3) इनका कोई निश्चित रासायनिक संगठन नहीं होता। (3) इनका एक निश्चित रासायनिक संघटन होता है।
(4) चट्टानें मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं-आग्नेय, तलछटी, रूपान्तरित। (4) खनिज प्राय: 2000 प्रकार के पाए जाते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में लौह-अयस्क के उत्पादन तथा वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
लौह-अयस्क (Iron-ore):
महत्त्व (Importance) – “कोयला और लोहा किसी देश के औद्योगिक विकास की आधारशिला हैं।” (“Coal and iron are the twin pillars of modern industrialisation.”) यह धातु अत्यन्त सस्ती व टिकाऊ है। वर्तमान युग यन्त्रों
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन - 1
का युग है। सभी मशीनों व यन्त्रों के निर्माण का आधार लोहा है। लोहे से भारी मशीनें, रेल, मोटर, हवाई जहाज, पुल, डैम, खेतीबाड़ी आदि के यन्त्र बनाए जाते हैं। इसीलिए इस युग को ‘लौह-इस्पात का युग’ (Steel age) कहते हैं। लोहा हमारी आधुनिक सभ्यता का प्रतीक है। लोहे को औद्योगिक विकास की कुञ्जी भी कहा जाता है।

भारत में चार प्रकार का लोहा मिलता है –
1. मैगनेटाइट (Magnetite) – इस बढ़िया प्रकार के लोहे में 72% धातु अंश होते हैं। चुम्बकीय गुणों के कारण इसे मैगनेटाइट कहा जाता है।
2. हैमेटाइट (Hematite) – इस लाल रंग के लोहे में 60% से 70% तक धातु अंश होता है। यह रक्त की तरह लाल रंग का होता है।
3. लिमोनाइट (Limonite) – इस पीले रंग के लोहे में 40% से 60% तक लोहे का अंश होता है।
4. सिडेराइट (Siderite) – इस भूरे रंग के लोहे में धातु अंश 48% होता है। इस लोहे में अशुद्धियां अधिक होती हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

भारत संसार का 5% लोहा उत्पन्न करता है तथा आठवें स्थान पर है। भारतीय लोहे में कम अशुद्धियां हैं तथा इसमें 65% धातु का अंश होता है। देश में एक लम्बे समय के प्रयोग के लिए 2300 करोड़ टन लोहे के भण्डार हैं। इस प्रकार संसार के 20% भण्डार भारत में हैं। भारत में अधिकतर लोहा हैमेटाइट (Haematite) जाति का मिलता है जिसमें 60% से अधिक लोहा-अंश मिलता है। उत्पादन 2.2 करोड़ टन है।

लोहा क्षेत्रों का वितरण (Distribution) – झारखण्ड तथा उड़ीसा भारत का 75% लोहा उत्पन्न करता है। इसे भारत का लोहा क्षेत्र (Iron Ore belt of India) कहते हैं। इस क्षेत्र में भारत के मुख्य इस्पात कारखाने हैं।

विभिन्न राज्यों में उत्पादन निम्नलिखित है –
1. गोआ-गोआ राज्य भारत में लौह-अयस्क का सबसे बड़ा उत्पादक है। गोआ में लौह-अयस्क के नए भण्डारों के पता लगने से उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई है। यहाँ घटिया प्रकार का लोहा पाया जाता है। उत्तरी गोआ तथा दक्षिणी गोआ में प्रमुख खानें हैं। यहां से लोहा जापान को निर्यात किया जाता है।

2. झारखण्ड-यह भारत में 98 लाख टन लोहा उत्पन्न करता है। इस राज्य में कोल्हन जागीर (Kolhan Estate) में सिंहभूम क्षेत्र प्रमुख क्षेत्र है। प्रमुख खानें निम्नलिखित हैं –
(क) नोआ मण्डी
(ख) पन सिरा बुडु
(ग) वुडाबुरू। नोआ मण्डी खान एशिया में सबसे बड़ी लोहे की खान है। इस लोहे को जमशेदपुर व दुर्गापुर कारखानों में भेजा जाता है।

3. उड़ीसा-यह राज्य देश का 13% लोहा उत्पन्न करता है। इस राज्य के मयूरभंज, क्योंझर तथा बोनाई जिलों में प्रमुख खानें हैं।
(क) मयूरभंज में गुरमहासिनी, सुलेपत, बादाम पहाड़ खाने हैं।
(ख) क्योंझर में बगिया बुडु खान है।
(ग) बोनाई में किरिबुरू खान से प्राप्त लोहा जापान को निर्यात किया जाता है तथा रूरकेला इस्पात कारखाने में प्रयोग किया जाता है।

4. छत्तीसगढ़ – इस राज्य में धाली-राजहरा की पहाड़ियां लोहे के प्रसिद्ध क्षेत्र हैं। बस्तर क्षेत्र में बैलाडिला (Bailadila) तथा रावघाट (Rawghat) के नये क्षेत्रों में लोहे की खानें हैं। यहां से लोहा जापान को निर्यात किया जाता है तथा भिलाई कारखाने में प्रयोग होता है।

5. तमिलनाडु – इस राज्य में सेलम तथा मदुराई क्षेत्रों में लोहे की खानें हैं। इस लोहे को प्रयोग करने के लिए सेलम में एक इस्पात कारखाना लगाया जा रहा है।
6. कर्नाटक – इस राज्य में बाबा बूदन पहाड़ियों में केमनगुण्डी तथा चिकमंगलूर में कुद्रेमुख क्षेत्र प्रसिद्ध हैं। यह लोहा भद्रावती इस्पात कारखाने में प्रयोग होता है।
7. आन्ध्र प्रदेश – आन्ध्र प्रदेश में कुडप्पा तथा करनूल क्षेत्र।
8. महाराष्ट्र-महाराष्ट्र में चांदा तथा रत्नागिरी क्षेत्र में लौहारा तथा पीपल गांव खान क्षेत्र।
9. राजस्थान राजस्थान में धनौरा व धनचोली क्षेत्र।
10. हरियाणा-हरियाणा में महेन्द्रगढ़ क्षेत्र।
11. जम्मू-कश्मीर-जम्मू-कश्मीर में ऊधमपुर क्षेत्र।

व्यापार (Trade) – भारत लौह-अयस्क का प्रमुख निर्यातक देश है। भारत से लोहा मारमागांव, विशाखापट्टनम, पाराद्वीप तथा मंगलौर बन्दरगाहों से निर्यात किया जाता है। भारत से जापान, जर्मनी, इटली, कोरिया देशों को काफ़ी मात्रा में लोहा निर्यात किया जाता है। 2010-11 में लगभग 28366 करोड़ रुपये का लोहा (276 लाख टन) निर्यात किया गया।

प्रश्न 2.
भारत में मैंगनीज़ के उत्पादन तथा वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
मैंगनीज़ (Manganese) – मैंगनीज़ एक लौहपूरक धातु है। इसका उपयोग लोहा, इस्पात उद्योग तथा रासायनिक उद्योग में किया जाता है। इससे ब्लीचिंग पाऊडर, रंग-रोगन, चीनी मिट्टी के बर्तन, शुष्क बैटरियां, बिजली तथा शीशे के सामान तैयार किए जाते हैं। इस धातु का मुख्य उपयोग इस्पात बनाने में होता है। लोहे तथा मैंगनीज़ का धातु मेल किया जाता है. जिसे फैरो मैंगनीज़ (Ferro-Manganese) कहते हैं।

उत्पादन (Production) – भारत संसार का 30% मैंगनीज़ उत्पन्न करता है तथा तीसरे स्थान पर है। देश में 18 करोड़ टन मैंगनीज़ के भण्डार हैं। 2000-01 में भारत में मैंगनीज का उत्पादन 15.86 लाख टन था। यह उत्पादन विदेशी मांग के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है।
उत्पादन क्षेत्र – भारत में मैंगनीज़ निम्नलिखित चट्टानों में मिलता है –

  1. कर्नाटक प्रदेश में धारवाड़ चट्टानों में।
  2. छोटा नागपुर के पठार में लेटराइट चट्टानों में।
  3. छत्तीसगढ़ में प्राचीन आग्नेय चट्टानों में।
  4. मध्य प्रदेश में बालाघाट, छिंदवाड़ा तथा जबलपुर क्षेत्र।
  5. महाराष्ट्र में नागपुर तथा भण्डारा क्षेत्र।
  6. उड़ीसा में गंगपुर, कालाहांडी तथा कोरापुट व बोनाई क्षेत्र।
  7. कर्नाटक में बिलारी, शिमोगा, चितलदुर्ग क्षेत्र।
  8. आन्ध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम क्षेत्र।
  9. झारखण्ड में सिंहभूम का चायबासा क्षेत्र।
  10. राजस्थान में उदयपुर तथा बांसवाड़ा क्षेत्र।

विभिन्न राज्यों में उत्पादन इस प्रकार है –
व्यापार-देश के कुल उत्पादन का 30% मैंगनीज़ विदेशों को (ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी तथा जापान) निर्यात कर दिया जाता है। इसका मुख्य कारण देश में खपत कम होना है। देश में मैंगनीज़ साफ़ करने के 6 कारखाने हैं। देश में लोहा-इस्पात उद्योग में मांग बढ़ जाने से तथा विदेशी मुकाबले के कारण निर्यात प्रति वर्ष कम हो रहा है। विशाखापट्टनम देश से मैंगनीज़ निर्यात की सबसे बड़ी बन्दरगाह है। भारत लगभग 4 लाख टन मैंगनीज़ निर्यात करके 17 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा कमाता है।

प्रश्न 3.
भारत के कोयले के भण्डार, उत्पादन तथा वितरण का वर्णन करो। उत्तर
कोयला
(Coal) महत्त्व (Importance) – आधुनिक युग में कोयला शक्ति का प्रमुख साधन (Prime Source of Energy) है। कोयले को उद्योग की जननी (Mother of Industry) भी कहा गया है। कई उद्योगों के लिए कोयला एक कच्चे माल का पदार्थ है। कोयले से बचे-खुचे पदार्थ बैनज़ोल, कोलतार, मैथनोल आदि का प्रयोग कई रासायनिक उद्योगों में किया जाता है। रंग-रोगन, नकली रबड़, प्लास्टिक, रिबन, लैम्प आदि अनेक वस्तुएं कोयले से तैयार की जाती हैं। इस उपयोगिता के कारण कोयले को काला सोना भी कहा जाता है। कोयले को औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) का आधार माना जाता है। संसार के अधिकांश औद्योगिक प्रदेश कोयला क्षेत्रों के निकट स्थित हैं, किसी सीमा तक आधुनिक सभ्यता कोयले पर निर्भर करती है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

रचना तथा कोयले की किस्में (Formation and Types of Coal) – भूमि के नीचे दबी हुई वनस्पति एक लम्बे समय के पश्चात् कोयले में बदल जाती है। अधिक ताप व दबाव के कारण वनस्पति कार्बन में बदल जाती है।

कार्बन की मात्रा के अनुसार कोयले की निम्नलिखित किस्में हैं –

  1. पीट (Peat) – यह घटिया किस्म का भूरे रंग का कोयला है जिसमें 30% से कम कार्बन होता है। यह कोयला निर्माण की प्रथम अवस्था है। इसकी जलन क्षमता कम होने के कारण इसका प्रयोग कम होता है।
  2. लिगनाइट (Lignite) – इस कोयले में 45% से 60% तक कार्बन की मात्रा होती है। इसका प्रयोग ताप विद्युत् में किया जाता है। इसमें से धुआं बहुत निकलता है।
  3. बिटुमिनस (Bituminus) – इस मध्यम श्रेणी के कोयले में 50% से 70% तक कार्बन होता है। 70% तक कार्बन होता है। कोकिंग कोयला इस प्रकार का होता है। इसे धातु गलाने तथा जलयानों में प्रयोग किया जाता है।
  4. एंथेसाइट (Anthracite) – यह उत्तम प्रकार का कोयला होता है जिसमें 80% से 95% तक कार्बन होता है। इसमें धुएं की कमी होती है। इसका रंग काला होता है। इस कठोर कोयले के भण्डार कम मिलते हैं।

भारत में कोयले के भण्डार (Coal Reserves in India) – भू-सर्वेक्षण विभाग (Geological Survey of India) के अनुसार भारत में कोयले के भण्डार 19235 करोड़ टन से अधिक हैं। भण्डारों की दृष्टि से भारत का विश्व में सातवां स्थान है। भारत में 98% भण्डार गोंडवाना क्षेत्र में है जबकि टरशरी क्षेत्र में केवल 2% कोयला भण्डार है। ये कोयला भण्डार अधिक देर तक के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इनमें से कोकिंग कोयला केवल 200 करोड़ टन की मात्रा में है। इसलिए इस कोयले का संरक्षण आवश्यक है।

कोयले का उत्पादन (Production of Coal) – भारत में सबसे पहले कोयले का उत्पादन 1774 में पश्चिमी बंगाल में रानीगंज खान से आरम्भ हुआ। निरन्तर कोयले के उत्पादन में वृद्धि होती रही। स्वतन्त्रता के पश्चात् 30 वर्षों में कोयले के उत्पादन में 6 गुना वृद्धि हुई। भारत में कोयला चालक शक्ति का प्रमुख साधन है। कोयला सबसे महत्त्वपूर्ण शक्ति खनिज है। समस्त खनिजों के कुल मूल्य का 70% भाग कोयले से प्राप्त होता है।

इस व्यवसाय में 650 करोड़ रुपये की पूंजी लगी हुई है तथा 6 लाख से अधिक लोग काम करते हैं। भारत में कोयले की मांग के मुख्य क्षेत्र इस्पात उद्योग, शक्ति उत्पादन, रेलवे, घरेलू खपत तथा अन्य उद्योग हैं। सन् 1972 में भारत ने कोयले की खानों का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation) कर दिया है तथा कोल इण्डिया लिमिटेड (Coal India LTD.) नामक सरकारी संस्था स्थापित की है। इस समय देश में लगभग 800 कोयला खानों से 3500 लाख टन कोयला निकाला जाता है। भारत में कोयला प्राप्ति के दो प्रकार के क्षेत्र हैं –
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन - 2

1. गोंडवाना कोयला क्षेत्र (Gondwana Coal fields) – इस क्षेत्र में भारत का उच्चकोटि का 98% कोयला मिलता है।
2. टरशरी कोयला क्षेत्र (Tertiary Coal fields) – इस क्षेत्र में केवल 2% कोयला मिलता है। यह कोयला निम्न कोटि का है।

कोयले का वितरण (Distribution of Coal) –
1. गोंडवाना कोयला क्षेत्र (Gondwana Coal fields) –
(i) झारखण्ड-यह राज्य भारत का 50% कोयला उत्पन्न करता है। यहां दामोदर घाटी में झरिया, बोकारो, कर्णपुर, गिरिडीह तथा डालटनगंज प्रमुख खाने हैं। झरिया का कोयला क्षेत्र सबसे बड़ी खान है। यहां बढ़िया प्रकार का कोक कोयला (Coaking Coal) मिलता है जो इस प्रकार के इस्पात के उद्योग में जमशेदपुर, आसनसोल, दुर्गापुर तथा बोकारो के कारखानों में प्रयोग होता है।

(ii) छत्तीसगढ़-इस राज्य का कोयला उत्पादन में दूसरा स्थान है। यहां कई नदी घाटियों में कोयला खानें हैं। यहां सिंगरौली कोयला क्षेत्र तथा कोरबा क्षेत्र प्रसिद्ध हैं। यहां से ताप बिजली घरों तथा भिलाई इस्पात केन्द्र को कोयला भेजा
जाता है। इसके अतिरिक्त सुहागपुर, रामपुर, पत्थर खेड़ा, सोनहट अन्य प्रमुख कोयला खानें हैं।

(iii) पश्चिमी बंगाल-इस राज्य का कोयला उत्पादन में तीसरा स्थान है। यहां 1267 वर्ग कि० मी० में फैली हुई रानीगंज की प्राचीन तथा सबसे गहरी खान है। यहां उच्च कोटि के कोयला भण्डार हैं।

(iv) अन्य क्षेत्र (Other Areas) –

  • आन्ध्र प्रदेश में गोदावरी नदी घाटी में सिंगरौली, कोठगुडम तथा तन्दूर खानें हैं।
  • महाराष्ट्र में वार्धा घाटी में चन्द्रपुर तथा बल्लारपुर।
  • उड़ीसा में महानदी घाटी में तलेचर तथा रामपुर हिमगीर।

2. टरशरी कोयला क्षेत्र (Tertiary Coal fields) –

  • असम-असम में लिग्नाइट कोयला लखीमपुर तथा माकूम क्षेत्र में मिलता है।
  • मेघालय-मेघालय में गारो, खासी, जयंतिया पहाड़ियों में।
  • राजस्थान राजस्थान में बीकानेर जिले में पालना नामक क्षेत्र में लिग्नाइट कोयला मिलता था।
  • तमिलनाडु-यहां दक्षिणी अरकाट में नेवेली में लिग्नाइट कोयला खान है।
  • जम्मू-कश्मीर-यहां पुंछ, रियासी तथा ऊधमपुर में निम्न कोटि का कोयला मिलता है।

प्रश्न 4.
भारतीय खनिज तेल के उत्पादन, भण्डार तथा वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:

पेट्रोलियम (Petroleum)
महत्त्व (Importance) – प्राचीन काल में पेट्रोलियम का प्रयोग दवाइयों, प्रकाश व लेप आदि कार्यों के लिए किया जाता है। आधुनिक युग में खनिज तेल का व्यापारिक उपयोग सन् 1859 में शुरू हुआ जबकि संसार में खनिज तेल का पहला कुआं 22 मीटर गहरा U.S.A. में द्विसविलें नामक स्थान पर खोदा गया। आधुनिक युग में पेट्रोलियम शक्ति का सबसे बड़ा साधन है। इसे खनिज तेल (Mineral Oil) भी कहते हैं। इसका प्रयोग मोटर-गाड़ियों, वायुयान, जलयान, रेल इंजन, कृषि यन्त्रों में किया जाता है। इससे दैनिक प्रयोग की लगभग 5,000 वस्तुएं तैयार की जाती हैं। इससे स्नेहक, “रंग, दवाइयां, नकली रबड़ व प्लास्टिक, नाइलोन, खाद आदि पदार्थों का उत्पादन होता है।

तेल की उत्पत्ति (Formation of Petroleum) – पेट्रोलियम शब्द दो शब्दों के जोड़ से बना है (Petra = rock + oleum = oil) इसलिए इसे चट्टानी तेल भी कहते हैं। खनिज तेल कार्बन तथा हाइड्रोजन का मिश्रण है। पृथ्वी के नीचे दबी हुई समुद्री वनस्पति तथा जीव जन्तुओं से लाखों वर्षों के बाद अधिक ताप तथा दबाव के कारण खनिज तेल बन जाता है। खनिज तेल प्रायः रेत तथा चूने की परतदार चट्टानों में मिलता है।

भारत में खनिज तेल की खोज (Exploration of Oil in India):
भारत में सबसे पहला कुआं असम में नहोर पोंग नामक स्थान पर सन् 1857 में खोदा गया। यह कुआं 36 मीटर गहरा था। सन् 1893 में असम में डिगबोई तेल शोधनशाला स्थापित की गई। स्वतन्त्रता से पहले केवल असम राज्य से ही तेल प्राप्त होता था। सन् 1955 में तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग (Natural Gas Commission) की स्थापना हुई। इस आयोग द्वारा देश के भीतरी तटवर्ती क्षेत्रों में तेल की खोज का कार्य किया जाता है।

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तेल के भण्डार (Oil Reserves) – भारत में तेल के भण्डार टरशरी युग की तलछटी चट्टानों में मिलते हैं। भारत में 10 लाख वर्ग कि. मी. क्षेत्र में तेल मिलने की आशा है। एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग 17 अरब टन तेल के भण्डार हैं। ये भण्डार असम, बम्बई हाई तथा गुजरात में स्थित हैं। देश में तेल की बढ़ती खपत को देखते हुए हम कह सकते हैं कि ये भण्डार अधिक देर तक नहीं चलेंगे। इसलिए तेल के नये क्षेत्रों की खोज तथा संरक्षण आवश्यक है।

तेल का उत्पादन (Production of oil)-भारत में दिन-प्रतिदिन तेल की खपत बढ़ती जा रही है। साथ ही साथ तेल का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है ताकि देश की तेल की मांग पूरी की जा सके।
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भारत में मुख्य तेल क्षेत्र (Major oil fields in India)
1. असम-असम राज्य में उत्तर-पूर्वी भाग में लखीमपुर जिले में पाया जाता है। यह भारत का सबसे प्राचीन तेल क्षेत्र है। इस राज्य में निम्नलिखित तेल क्षेत्र महत्त्वपूर्ण हैं –

  • डिगबोई क्षेत्र (Digboi Oil Field) – यह असम प्रदेश में भारत का सबसे प्राचीन तथा अधिक तेल वाला क्षेत्र है। यहां सन् 1882 में तेल का उत्पादन आरम्भ हुआ। 21 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 3 तेलकूप हैं-डिगबोई, बापापुंग तथा हंसापुंग। इस क्षेत्र में भारत का 30% खनिज तेल प्राप्त होता है।
  • सुरमा घाटी (Surma Valley) – इस क्षेत्र में बदरपुर, मसीमपुर पथरिया नामक कूपों में घटिया किस्म का तेल थोड़ी मात्रा में पैदा किया जाता है।
  • नाहरकटिया क्षेत्र (Naharkatiya Oil Fields) असम में यह एक नवीन तेल क्षेत्र है जिसमें नहरकटिया, लकवा प्रमुख तेलकूप हैं।
  • हुगरीजन-मोरान तेल क्षेत्र (Hugrijan-Moran oil fields)
  • शिव सागर तेल क्षेत्र (Sibsagar oil fields)

2. गुजरात तेल क्षेत्र (Gujarat oil fields) – कैम्बे तथा कच्छ की खाड़ी के निकट अंकलेश्वर, लयुनेज, कलोल नामक स्थान पर तेल का उत्पादन आरम्भ हो गया है। इस क्षेत्र से प्रति वर्ष 30 लाख टन तेल प्राप्त होता है। इस राज्य में तेल क्षेत्र बड़ौदा, सूरत, मेहसना ज़िलों में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में मेहासना, ढोल्का, नवगाम, सानन्द आदि कई स्थानों पर तेल मिला है। यहां से तेल ट्राम्बे तथा कोयली के तेल शोधन कारखानों को भेजा जाता है।

3. अपतटीय तेल क्षेत्र (Off shore oil fields) – भारत के महाद्वीपीय निमग्न तट (Continental shelf) के 200 मीटर गहरे पानी में लगभग 4 लाख वर्ग कि० मी० क्षेत्र में तेल मिलने की सम्भावना है।

(i) बम्बई हाई क्षेत्र (Bombay High Fields) – खाड़ी कच्छ के कम गहरे समुद्री भाग (Off Shore region) में भी तेल मिल गया है। यहां बम्बई हाई क्षेत्र में 19 फरवरी, 1974 को ‘सागर सम्राट’ नामक जहाज़ द्वारा की गई खुदाई से Bombay High के क्षेत्र में तेल मिला है। इस क्षेत्र से 21 मई, 1976 से तेल निकलना आरम्भ हो गया। यहां से प्रतिवर्ष 150 लाख टन तेल निकालने का लक्ष्य है। यह क्षेत्र बम्बई (मुम्बई) से उत्तर-पश्चिमी में 176 कि० मी० दूरी पर स्थित है।

(ii) बसीन तेल क्षेत्र (Bassein Oil Field) बम्बई हाई के दक्षिण में स्थित इस क्षेत्र से तेल निकालना शुरू हो गया है।
प्रभावित क्षेत्र (Potential Areas) – देश के कई भागों में कुओं द्वारा खुदाई से तेल के भण्डारों का पता चला है। कावेरी घाटी तथा महानदी घाटी में तेल की खोज की गई है। कृष्णा-गोदावरी डेल्टा, असम-अराकान सीमा क्षेत्र में, अण्डमान-निकोबार द्वीप के समीपवर्ती तटीय क्षेत्र, खाड़ी कच्छ तथा खाड़ी खम्बात में तेल के सम्भावित क्षेत्र पाए गए हैं।
पाइप लाइनें (Pipe lines) – पाइप लाइनों द्वारा तेल क्षेत्रों से तेल शोधनशालाओं तक तेल भेजा जाता है। भारत में तेल पाइप लाइनों का निर्माण इस प्रकार किया गया है –

  • डिगबोई से बरौनी तक 1152 कि० मी० लम्बी पाइप लाइन।
  • लकवा-रुद्रसागर से बरौनी पाइप लाइन।
  • बरौनी से हल्दिया पाइप लाइन।
  • बरौनी से कानपुर, मथुरा, जालन्धर पाइप लाइन।
  • कोयली-मथुरा पाइप लाइन।
  • मुम्बई हाई से उरन तथा ट्राम्बे तक 210 कि० मी० पाइप लाइन।
  • हज़ीरा (गुजरात) विजयपुर-जगदीशपुर (उत्तर प्रदेश) (HBJ) पाइप लाइन।
  • कांडला से भटिंडा तक प्रस्ताविक तेल पाइप लाइन।

तेल शोधनशालाएं (Oil Refineries) – भारत में इस समय 18 तेल शोधनशालाएं हैं। इन कारखानों में तेल शोधन क्षमता लगभग 500 लाख टन है। डिगबोई, ट्राम्बे, विशाखापट्टनम, नूनमती, बरौनी, कोचीन, कोयली, चेन्नई, हल्दिया, बोंगई गांव तथा मथुरा में तेल शोधन कारखाने स्थित हैं। हरियाणा में करनाल तथा कर्नाटक में मंगलौर में तेल शोधनशालाएं स्थापित करने के प्रस्ताव हैं।
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H.P.C.L. तथा B.P.C.L. में परिष्करणशालाएं मुम्बई में हैं। तातीपाका (आंध्र प्रदेश) में ONGC की परिष्करण शाला है। देश में सबसे बड़ी परिष्करणशाला जामनगर में रिलायंस की निजी क्षेत्र की परिष्करणशाला है।

व्यापार (Trade) – भारत में खनिज तेल का उत्पादन मांग की तुलना में कम है। इसलिए हमें तेल आयात करना पड़ता है। तेल का आयात मुख्यतः सऊदी अरब, ईरान, इराक, बर्मा, रूस आदि देशों से किया जाता है। एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग 700 लाख टन तेल की खपत है। सन् 2000-2001 में विदेशों से 400 लाख टन तेल तथा सम्बन्धित पदार्थ आयात किए गए जिनका मूल्य 50000 करोड़ ₹ था। तेल की खपत को कम करने तथा आयात कम करने के लिए सरकार कई प्रयत्न कर रही है। नए क्षेत्रों में तेल का उत्पादन आरम्भ होने से भारत में तेल का उत्पादन पर्याप्त हो जाएगा।

प्रश्न 5.
भारत में खनिज पेटियों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
पठारों में तीन प्रमुख खनिज पेटियों की पहचान की जा सकती है –
1. उत्तर पूर्वी पठार-इस पट्टी में छोटा नागपुर का पठार, उड़ीसा का पठार और पूर्वी आंध्र प्रदेश का पठार शामिल हैं। धातु उद्योग में काम आने वाले विविध प्रकार के खनिजों के उत्तम कोटि के भण्डार इस पेटी में पाए जाते हैं। इनमें लौह-अयस्क, मैंगनीज़, अभ्रक, बॉक्साइट, चूने के पत्थर और डोलोमाइट के विशाल भण्डार हैं तथा ये व्यापक रूप में वितरित हैं। इस प्रदेश में तांबे, थोरियम, यूरेनियम, क्रोमियम, सिलिमेनाइट और फॉस्फेट के भण्डार भी हैं। इनके साथ ही दामोदर घाटी और छत्तीसगढ़ के कोयले के भण्डार भी हैं, जिन्होंने भारी उद्योगों के विकास में बहुत योगदान दिया है। समन्वित लोहा और इस्पात संयंत्र अधिकतर इसी पेटी में स्थित हैं। एल्यूमीनियम संयन्त्र भी यहीं स्थित हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

2. दक्षिण-पश्चिमी पठार – यह पेटी कर्नाटक के पठार और निकटवर्ती तमिलनाडु के पठार तक फैली है तथा धात्विक खनिजों से सम्पन्न है। यहां पाए जाने वाले धात्विक खनिज हैं-लौह-अयस्क, मैंगनीज़ और बॉक्साइट। कुछ अधात्विक खनिज भी यहां मिलते हैं। परन्तु यहां शक्ति के संसाधनों विशेष रूप से कोयले की कमी है। इसी कारण इस प्रदेश में भारी उद्योगों का विकास नहीं हो सका। इस देश की सोने की तीनों खानें इसी पेटी में स्थित हैं।

3. उत्तर – पश्चिमी प्रदेश-यह पेटी गुजरात में खंभात की खाड़ी से लेकर राजस्थान में अरावली की श्रेणियों तक फैली है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस इस पेटी के प्रमुख संसाधन हैं। अन्य खनिजों के भण्डार कम और बिखरे हुए हैं। लेकिन यह पेटी अनेक अलौह धातओं जैसे-तांबा, चांदी, सीसा और जस्ता के भण्डारों और उत्पादन के लिए विख्यात है।

4. अन्य क्षेत्र – खनिजों की इन पेटियों के बाहर, ऊपरी ब्रह्मपुत्र-घाटी उल्लेखनीय पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र है। केरल में भारी खनिज बालू के विशाल संकेंद्रण हैं। देश के अन्य भागों में भी खनिज पाए जाते हैं, लेकिन बिखरे हुए हैं और उनके भण्डार आर्थिक दृष्टि दोहन के योग्य नहीं हैं।

प्रश्न 6.
भारत में अणु शक्ति पर एक लेख लिखो।
उत्तर:
अणु शक्ति (Atomic Energy):
अणु शक्ति आधुनिक युग में एक नवीन साधन है। द्वितीय विश्व युद्ध में परमाणु-विस्फोट के पश्चात् इस साधन का विकास हुआ। इसके लिए कुछ परमाणु खनिज आवश्यक है। यूरेनियम, थोरियम, जिरकोन तथा मोनोजाइट जैसे विघट नाभिक (Radio Active) तत्त्वों का प्रयोग किया जाता है। अणु शक्ति में बहुत कम ईंधन से बहुत अधिक ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इसलिए यह एक सस्ता साधन है।

अणु खनिज (Atomic Minerals) – भारत में मोनोजाइट के विशाल भण्डार केरल तट पर मिलते हैं। जिरकोन केरल तथा तमिलनाडु तट पर पाई जाती है। यूरेनियम के खनिज भण्डार बिहार तथा राजस्थान में पाए जाते हैं। भारत में बिहार राज्य में थोरियम के भण्डार विश्व में सबसे अधिक हैं। इस प्रकार भारत में अणु-खनिज पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। भारत में अणु-शक्ति-भारत में 10 अगस्त, 1948 को अणु-शक्ति आयोग की स्थापना की गई।

इस आयोग के प्रथम अध्यक्ष डॉ० एच० जे० भाभा थे। भारत में पहली अणु भट्टी (Atomic Reactor) ‘अप्सरा’ मुम्बई के निकट ट्राम्बे में लगाई गई। 18 मई, 1974 को भारत में पहला अणु-विस्फोट राजस्थान में पोखरण नामक स्थान पर किया गया। भारत में अणु-शक्ति का प्रयोग विकास कार्यों के लिए ही किया जाता है। भारत में कई स्थानों पर भारी पानी (Heavy water) के यन्त्र लगाए गए तथा अनुसंधान केन्द्र बनाए गए हैं।

भारत के परमाणु विद्युत् गृह –

  • तारापुर अणु शक्ति गृह-भारत में पहली परमाणु भट्टी मुम्बई के निकट तारापुर में कनाड़ा के सहयोग से लगाई गई। इसमें 200-200 MW के दो रिएक्टर हैं।
  • राणा प्रताप सागर विद्युत् गृह-भारत में दूसरा परमाणु विद्युत् गृह राजस्थान में कोटा के निकट राणा प्रताप सागर में लगाया गया है।
  • कल्पक्कम अणु शक्ति गृह-तमिलनाडु में कल्पक्कम में दो रिएक्टर 235-235 MW शक्ति के लगाए गए हैं।
  • नरौरा अणु शक्ति गृह-यह शक्ति गृह उत्तर प्रदेश में बुलन्दशहर के निकट नरौरा स्थान पर लगाया जा रहा है।
  • काकरापाडा अणु शक्ति गृह-यह शक्ति गृह गुजरात में काकरापाडा नामक स्थान पर लगाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त कर्नाटक में कैगा (Kaiga) तथा राजस्थान में कोटा के निकट रावत भाटा (Rawat Bhata) में दो अणु शक्ति गृह लगाने का प्रस्ताव है।

प्रश्न 7.
भारत में अपरम्परागत ऊर्जा के साधनों पर नोट लिखो।
उत्तर:
ऊर्जा के परम्परागत साधन समाप्य साधन हैं, इसलिए औद्योगिक विकास के लिए अपरम्परागत संसाधनों का विकास आवश्यक है। इनमें सौर ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, बायोगैस तथा पवन ऊर्जा महत्त्वपूर्ण हैं।
1. पवन ऊजो (Wind Energy) – इस साधन का प्रयोग पानी निकालने, जल सिंचाई तथा विद्युत् उत्पादन के लिए किया जाता है। पवन ऊर्जा से 2000 MW विद्युत् उत्पन्न की जा सकती है। गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र तथा उड़ीसा राज्यों में तेज़ पवनों के कारण सुविधाएं हैं। भारत में पहली पवन चक्की (Wind Mill) 1986 में माँडवी (गुजरात में) स्थापित की गई।

2. ज्वारीय ऊर्जा (Tidal Energy) – इस संसाधन से उच्च ज्वार की लहरों को उत्पन्न किया जाता है। खाड़ी कच्छ में 900 MW विद्युत् उत्पादन का एक प्लांट लगाया गया है।
3. भूतापीय ऊर्जा (Geo Thermal Energy) – भारत में हिमाचल प्रदेश में मणीकरण में गर्म पानी के स्रोतों से भूतापीय ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।
4. जैव ऊर्जा (Bio Energy) – खेती से बचे-खुचे पदार्थों का प्रयोग करके विद्युत् उत्पन्न की जाती है।
5. सौर ऊर्जा (Solar Energy) – यह एक सस्ता साधन है। सौर-कुकरों का प्रयोग खाना पकाने, पानी गर्म करने, फ़सलें सुखाने आदि के लिए किया जाता है। सौर ऊर्जा भविष्य का संसाधन है।
6. ऊर्जा ग्राम (Urja Gram) – ग्रामों में गोबर गैस प्लांट विद्युत् उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

भारत में अपरम्परागत ऊर्जा विकास

  • पवन ऊर्जा – 900 MW
  • बायोगैस – 83 ,,
  • सौर ऊर्जा – 28 ,,
  • कूड़ा-कर्कट ऊर्जा – 93 ,,
  • सौर कुकर – 4 लाख

प्रश्न 8.
हिमाचल प्रदेश में शक्ति के साधनों के विकास का वर्णन करो।
उत्तर:
हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत् शक्ति का प्रमुख साधन है। यहां पांच नदियां जल विद्युत् उत्पादन में अधिक क्षमता पूर्ण है-चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज तथा यमुना। ये नदियां इस राज्य से निकलती हैं। इन नदियों की उत्पादित जल विद्युत् क्षमता 20744 मेगावाट है। परन्तु इसमें से केवल 6 हजार मेगावाट ही प्रयोग की जाती है। यहां कई महत्त्वपूर्ण जल विद्युत् परियोजनाएं है।

  1. नाथपा-झाखड़ी परियोजना-सतलुज नदी पर
  2. कोल डैम परियोजना-सतलुज नदी पर
  3. घानवी जल विद्युत् परियोजना-घानवी नदी पर
  4. संजय विद्युत् परियोजना-भावा नदी पर
  5. रोंगटोंग परियोजना-रौंगटौंग नदी पर
  6. आन्ध्र योजना-आन्ध्र नदी पर
  7. गज योजना
  8. बिनवा योजना
  9. बनेर योजना
  10. बास्पा योजना
  11. खौली योजना
  12. चमेरा योजना रावी नदी पर
  13. लारजी योजना ब्यास नदी पर
  14. पार्वती योजना
  15. कड़छम योजना

मानचित्र कौशल (Map Skills)
प्रश्न-भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित अंकित करो।
(1) सर्वाधिक कोयला उत्पादक राज्य
(2) भारत का सबसे बड़ा तेल क्षेत्र
(3) भारत का सबसे प्राचीन तेल क्षेत्र।
(4) भारत में सबसे बड़ी तेल शोधन शाला
(5) भारत में सर्वाधिक लोहा उत्पादक राज्य
(6) राजस्थान में एक तांबा क्षेत्र
(7) अंकलेश्वर तेल क्षेत्र।
(8) एक लिग्नाइट क्षेत्र
(9) कुद्रेमुख लोह खनिज क्षेत्र
(10) भटिण्डा तेल शोधनशाला।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन - 5

 

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Rachana पत्र लेखन-औपचारिक पत्र Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Rachana पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

जिन लोगों के साथ औपचारिक संबंध होते हैं उन्हें औपचारिक पत्र लिखे जाते हैं। इन पत्रों में व्यक्तिगत और आत्मीय विचार प्रकट नहीं किए जाते। इनमें अपनेपन का भाव पूरी तरह गायब रहता है। इनमें अपने विचारों को भली-भाँति सोच-विचारकर प्रकट किया जाता है। प्रायः औपचारिक पत्र सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों के अधिकारियों, निजी संस्थानों, पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों, अध्यापकों, प्रधानाचार्यों, व्यापारियों आदि को लिखे जाते हैं। औपचारिक पत्रों की रूप-रेखा प्रायः निम्नलिखित आधारों पर निर्धारित की जाती है –

1. प्रेषक का पता
2. दिनांक
3. प्राप्तकर्ता का पद नाम तथा पता
4. विषय का संक्षिप्त उल्लेख
5. संबोधन
6. विषय-वस्तु
7. समापन शिष्टता
8. प्रेषक के हस्ताक्षर
9. प्रेषित का पद / नाम / पता

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

(क) कार्यालयी पत्र

1. भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की ओर से महाराष्ट्र सरकार को नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए पत्र लिखिए।
उत्तर :
रजत शर्मा
सचिव, भारत सरकार
शिक्षा मंत्रालय
दिनांक : 12 मार्च, 20 ….
सेवा में
सचिव
शिक्षा विभाग
महाराष्ट्र राज्य
मुंबई
विषय – नई शिक्षा नीति लागू करना

महोदय
मुझे आपको यह सूचित करने का निर्देश दिया गया है कि भारत सरकार के निश्चयानुसार शिक्षा सत्र 20… से संपूर्ण देश में नई शिक्षा नीति को लागू कर दिया जाए। महाराष्ट्र में भी इस नीति को क्रियान्वित किया जाए तथा इस योजना को लागू करने के लिए किए गए प्रयासों से मंत्रालय को भी परिचित कराया जाए।
आपका विश्वासपात्र
ह० रजत शर्मा
(रजत शर्मा)
सचिव, शिक्षा मंत्रालय।

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

2. उपायुक्त, सिरसा की ओर से मुख्य सचिव हरियाणा सरकार को एक पत्र लिखकर बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए अनुरोध करें।
उत्तर :
बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा
दिनांक 16 अगस्त, 20….
सेवा में
मुख्य सचिव
हरियाणा राज्य
चंडीगढ़
विषय – बाढ़ पीड़ितों की सहायता हेतु पत्र
महोदय
1. मैं आपको सूचित करता हूँ कि इन दिनों हुई भयंकर वर्षा के परिणामस्वरूप सिरसा के आसपास के गाँवों में भीषण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। खड़ी फसलें नष्ट हो गई हैं तथा जन-धन और संपत्ति की भी बहुत हानि हुई है। मैंने अन्य जिला अधिकारियों के साथ स्थिति का निरीक्षण भी किया है।

2. जिला – स्तर पर बाढ़ पीड़ितों की यथासंभव सहायता की जा रही है, जो अपर्याप्त है। आपसे प्रार्थना है कि बाढ़ पीड़ितों को राज्य सरकार की ओर से विशेष आर्थिक सहायता प्रदान की जाए, जिससे वे अपने टूटे-फूटे मकान बना सकें तथा नष्ट हुई फ़सल के स्थान पर अगली फ़सल की तैयारी कर सकें।

3. बाढ़ के कारण बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ गया है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी इन बीमारियों पर नियंत्रण करने में पूर्णरूप से सक्षम नहीं हैं। अतः विशेष चिकित्सकों के दल को भी भेजने का प्रबंध करें।
भवदीय
बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा

3. भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय की ओर से हिमाचल प्रदेश सरकार के उद्योग सचिव को राज्य में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
भारत सरकार
उद्योग मंत्रालय
नई दिल्ली
22 सितंबर, 20….
श्री पी० एस० यादव
सचिव, उद्योग विभाग, हिमाचल प्रदेश
विषय – उद्योग धंधों को प्रोत्साहित करने हेतु पत्र
प्रिय श्री यादव जी
विगत दिनों हिमाचल प्रदेश के कुछ उद्योगपतियों ने इस मंत्रालय को राज्य में उद्योग-धंधों की दयनीय स्थिति से अवगत कराया। मुझे बहुत दुख हुआ कि उद्योग-धंधों की उपेक्षा के कारण जहाँ हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति को आघात पहुँचा है, वहीं देश की प्रगति भी अवरुद्ध हो रही है। इस संबंध में आप व्यक्तिगत रूप से रुचि लें तथा प्रदेश में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाएँ। इस संदर्भ में विस्तृत योजनाएँ आपको अलग से भेजी जा रही हैं।
इन योजनाओं को लागू करने में यदि आपको कोई कठिनाई हो तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
शुभकामनाओं सहित,
आपकी सद्भावी
पूनम शर्मा
शिमला

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

4. शारदा विद्या मंदिर, लखनऊ के प्राचार्य की ओर से महर्षि दयानंद विद्यालय के प्राचार्य को वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्य अतिथि पद को स्वीकार करने हेतु एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
शारदा विद्या मंदिर
लखनऊ
18 अक्तूबर, 20….
सेवा में
डॉ० नरेश चंद्र मिश्र
प्राचार्य
महर्षि दयानंद विद्यालय
लखनऊ
विषय – मुख्य अतिथि पद के निमंत्रण हेतु पत्र
प्रिय डॉ० मिश्र जी
हमारे विद्यालय का वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह 18 जनवरी, 20…. को आयोजित करने का निश्चय किया गया है। इसमें मुख्य अतिथि पद को सुशोभित करने हेतु आपसे निवेदन है कि आप अपने अति व्यस्त समय में से कुछ अमूल्य क्षण प्रदान कर हमें अनुगृहीत करें। इस समारोह में विद्यार्थियों को शैक्षणिक तथा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में श्रेष्ठता प्रदर्शित करने के लिए पुरस्कृत किया जाएगा। यदि आप इस विषय में अपनी सुविधानुसार मुझे समय दे सकें तो मैं आपका विशेष रूप से आभारी होऊँगा।
शुभकामनाओं सहित
शुभाकांक्षी
डॉ० के० के० मेनन

5. अपने क्षेत्र में मलेरिया फैलने की संभावना को देखते हुए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।
उत्तर :
14 / 131, सुभाष नगर
सेलम
तिथि : 17 मई, 20 ….
स्वास्थ्य अधिकारी
नगर-निगम
सेलम
विषय – मलेरिया की रोकथाम हेतु पत्र।
आदरणीय महोदय
इस पत्र के द्वारा मैं अपने क्षेत्र ‘सुभाष नगर’ की सफ़ाई व्यवस्था की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ। आप जानते हैं कि यह क्षेत्र पर्याप्त ढलान पर बसा हुआ है। बरसात में यहाँ स्थान-स्थान पर पानी रुक जाता है। यही नहीं सड़कों के दोनों ओर गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। सफ़ाई कर्मचारी कोई ध्यान नहीं देते। परिणामस्वरूप यहाँ मक्खियों और मच्छरों का जमघट बना रहता है। रुका हुआ पानी मच्छरों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि करता है। अतः इस तरफ़ ध्यान न दिया गया तो इस क्षेत्र में मलेरिया फैलने की पूरी संभावना है। अतः आपसे प्रार्थना है कि इस क्षेत्र की तुरंत सफ़ाई करवाने का आदेश दें और मलेरिया की रोकथाम के लिए समुचित व्यवस्था करें। यही नहीं यहाँ के निवासियों को आवश्यक दवाइयाँ भी मुफ़्त उपलब्ध करवाई जाएँ।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान देंगे और उचित प्रबंध द्वारा इस क्षेत्र के निवासियों को मलेरिया के प्रकोप से बचा लेंगे।
भवदीय
अनुराग छाबड़ा

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

6. अपने नगर के जलापूर्ति अधिकारी को पर्याप्त और नियमित रूप से पानी न मिलने की शिकायत करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर :
512, शास्त्री नगर
रोहतक
तिथि : 14 मार्च, 20….
जलापूर्ति अधिकारी
नगरपालिका
रोहतक
विषय – पेयजल की कठिनाई हेतु शिकायती पत्र।
मान्यवर
बड़े खेद की बात है कि पिछले एक मास से ‘शास्त्री नगर’ क्षेत्र में पेयजल की कठिनाई का अनुभव किया जा रहा है। नगरपालिका की ओर से पेयजल की सप्लाई बहुत कम होती जा रही है। कभी-कभी तो पूरा-पूरा दिन पानी नलों में नहीं आता। मकानों की पहली दूसरी मंज़िल तक तो पानी चढ़ता ही नहीं। आप पानी की आवश्यकता के विषय में जानते हैं।
पानी की कमी के कारण यहाँ के लोगों का जीवन कष्टमय बन गया है। आप से प्रार्थना है कि इस क्षेत्र में पेय जल की समस्या का समाधान करें।
आशा है कि आप इस विषय पर ध्यान देंगे और शीघ्र ही उचित कार्यवाही करेंगे।
भवदीय,
राम सिंह चौटाला

7. अपने मोहल्ले में वर्षा के कारण उत्पन्न हुए जल भराव की समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए नगरपालिका अधिकारी को पत्र लिखिए।
उत्तर :
4/307, जगाधरी गेट
अंबाला
दिनांक : 18 सितंबर, 20….
स्वास्थ्य अधिकारी
नगरपालिका
अंबाला
विषय – जलभराव की समस्या हेतु शिकायती पत्र।
महोदय
निवेदन यह है कि मैं जगाधरी गेट का निवासी हूँ। यह क्षेत्र सफ़ाई की दृष्टि से पूरी तरह उपेक्षित है। वर्षा के दिनों में तो इसकी और बुरी हालत हो जाती है। इन दिनों प्रायः सभी गलियों में वर्षा का जल भरा हुआ है। नगरपालिका इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही। इस जल भराव के कारण आवागमन में ही कठिनाई नहीं होती बल्कि बीमारी फैलने का भी खतरा है।
आपसे नम्र निवेदन है कि आप स्वयं एक बार आकर इस जल भराव को देखें। तभी आप हमारी कठिनाई को समझ पाएँगे। कृपया इस क्षेत्र से जल निकास का शीघ्र प्रबंध करें।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की तरफ़ ध्यान देंगे।
भवदीय,
महेश बजाज

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

8. चुनाव के दिनों में कार्यकर्ता घर, विद्यालयों और मार्गदर्शक आदि पर बेतहाशा पोस्टर लगा जाते हैं। इससे लोगों को होने वाली असुविधा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए ‘दैनिक लोक वाणी’ समाचार-पत्र के ‘जनमत’ कॉलम के लिए पत्र लिखिए।
उत्तर :
480, नई बस्ती
चंबा
दिनांक : 22 जनवरी, 20….
संपादक
दैनिक लोकवाणी
चेन्नई
विषय – जगह-जगह राजनीतिक पोस्टर लगाने हेतु शिकायती पत्र |
आदरणीय महोदय
मैं आपके लोकप्रिय पत्र के ‘जनमत कॉलम’ के लिए एक पत्र लिख रहा हूँ। इसे प्रकाशित करने की कृपा करें। आप जानते हैं कि चुनाव के दिनों में कार्यकर्ता बिना सोचे-समझे, विद्यालयों, घरों तथा मार्गदर्शन चित्रों आदि पर अत्यधिक पोस्टर लगा जाते हैं। घर अथवा विद्यालय कोई राजनीतिक संस्थाएँ नहीं। उन पर लगे पोस्टरों से यह भ्रम हो जाता है कि घर तथा विद्यालय भी किसी राजनीतिक दल से संबद्ध है। इन पोस्टरों से मार्गदर्शन चित्र इस तरह ढक जाते हैं कि अजनबी को रास्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलता। इन पोस्टरों को लगाने वालों की भीड़ के कारण आम लोगों को तथा छात्रों को असुविधा होती है। अतः मैं सरकार तथा राजनीतिक दलों का ध्यान इस तरफ़ दिलाना चाहता हूँ।
आशा है कि आप लोगों की सुविधा का ध्यान रखते हुए मेरे इस पत्र को प्रकाशित करने का आदेश देंगे।
भवदीय
मोहन मेहता

(ख) आवेदन-पत्र

9. कॉलेज प्रबंधक को प्राध्यापक की नौकरी के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर :
83, नौरोजी नगर
दिल्ली
12 दिसंबर 20….
प्रबंधक
गायत्री कॉलेज
नई दिल्ली
विषय – प्राध्यापक की नौकरी हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर महोदय
दिनांक 10 दिसंबर, 20…. के दैनिक ‘हिंदुस्तान’ से ज्ञात हुआ है कि आपके यहाँ हिंदी विषय के तीन प्राध्यापकों के स्थान रिक्त हैं। प्राध्यापक के पद की नियुक्ति के लिए आपने जो शैक्षणिक योग्यताएँ माँगी हैं, मैं उसके लिए अपने आपको पूर्ण समर्थ समझता हूँ। अतः मैं आपकी सेवा में यह प्रार्थना-पत्र भेज रहा हूँ। मेरी शैक्षणिक योग्यता तथा अनुभव का विवरण इस प्रकार है –
1. मैंने 2005 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम० ए० प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। सन 2006 में मैंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण की है।
2. मैंने एक वर्ष तक डी० ए० वी० कॉलेज, चंडीगढ़ में अस्थायी रूप से रिक्त प्राध्यापक के पद पर भी कार्य किया है।
3. स्कूल तथा कॉलेज जीवन में मेरी क्रिकेट तथा बैडमिंटन में विशेष रुचि रही है।
4. मैंने भाषण तथा वाद-विवाद प्रतियोगिता में भी अनेक बार प्रथम स्थान प्राप्त किया है। आवश्यक प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ भेज रहा हूँ। मुझे पूर्ण आशा है कि आप मेरे प्रार्थना-पत्र पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और मुझे अपनी ख्याति प्राप्त संस्था में काम करने का अवसर प्रदान करेंगे।
धन्यवाद सहित
भवदीय
जगमोहन सहगल
संलग्न : प्रमाण पत्रों की प्रतिलिपियाँ

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

10. दिल्ली नगर निगम के अध्यक्ष को एक आवेदन-पत्र लिखिए, जिसमें लिपिक के पद के लिए आवेदन किया गया हो।
उत्तर :
4 / 19, अशोक नगर
नई दिल्ली
15 दिसंबर, 20….
अध्यक्ष
नगर-निगम
दिल्ली
विषय – लिपिक के पद हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर महोदय
निवेदन है कि मुझे विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि आपके कार्यालय में एक क्लर्क की आवश्यकता है। मैं इस रिक्ति के लिए अपनी सेवाएँ प्रस्तुत करता हूँ। मेरी योग्यताएँ इस प्रकार हैं –
(i) बी० ए० द्वितीय श्रेणी
(ii) टाइप का पूर्ण ज्ञान-गति 50 शब्द प्रति मिनट
(iii) अनुभव – एक वर्ष
(iv) आयु – 24वें वर्ष में प्रवेश
मुझे अंग्रेज़ी एवं हिंदी का अच्छा ज्ञान है। पंजाबी भाषा पर भी अधिकार है।
आशा है कि आप मेरी योग्यता को देखते हुए अपने अधीन काम करने का अवसर प्रदान करेंगे। मैं सच्चाई एवं ईमानदारी के साथ काम करने का आश्वासन दिलाता हूँ।
योग्यता एवं अनुभव संबंधी प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूँ।
धन्यवाद सहित
भवदीय
सुखदेव गोयल
संलग्न : उपर्युक्त

11. ‘जनसंख्या विभाग’ को घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने वाले ऐसे सर्वेक्षकों की आवश्यकता है, जो हिंदी और अंग्रेजी में भली-भाँति बात कर सकते हों और सूचनाओं को सही-सही दर्ज कर सकते हों। इसके साथ ही आवेदकों में विनम्रतापूर्वक बात करने की योग्यता होनी चाहिए। इस काम में अपनी रुचि प्रदर्शित करते हुए जनसंख्या विभाग के सचिव को आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर :
7, रामलीला मार्ग
हमीरपुर
दिनांक : 14 दिसंबर, 20….
प्रशासनिक अधिकारी
जनसंख्या विभाग
कोयंबटूर
विषय – सर्वेक्षक की नौकरी हेतु आवेदन-पत्र।
आदरणीय महोदय
मुझे आज के दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ है कि आपको घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने के लिए सर्वेक्षकों की आवश्यकता है। मैं आपके कार्यालय द्वारा निर्धारित योग्यताओं को पूर्ण करता हूँ।
मैंने इसी वर्ष (20…) बारहवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की है। कुछ समय तक मैंने स्थानीय कार्यालय में कार्य भी किया है। मैं हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा समझने तथा इन दोनों भाषाओं में वार्तालाप करने में दक्ष हूँ।
मैं अपनी सेवाएँ प्रदान करना चाहता हूँ। आशा है कि आप मुझे अवसर प्रदान करेंगे। आवश्यक प्रमाण-पत्र मैं भेंटवार्ता के अवसर पर साथ लेकर आऊँगा।
भवदीय
महेश महाजन

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

12. ‘प्रचंड भारत’ दैनिक समाचार-पत्र को खेल- विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। पद के लिए खेलों का ज्ञान और रुचि के साथ-साथ हिंदी भाषा में अच्छी गति से लिखने का अभ्यास अनिवार्य है। इस पद के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर :
14, पश्चिम विहार,
कोटा
दिनांक : 15 सितंबर, 20….
संपादक
दैनिक ‘प्रचंड भारत’
कोटा
विषय – खेल संवाददाता के पद हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर महोदय
आपके लोकप्रिय समाचार पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ कि आपको खेल विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। इस पद के लिए मैं अपनी सेवाएँ अर्पित करना चाहता हूँ।
मेरी योग्यताओं का विवरण इस प्रकार है –
शैक्षिक योग्यता बी० ए० प्रथम श्रेणी – 2000, पत्रकारिता में डिप्लोमा – 2001
विद्यालय की क्रिकेट टीम का कप्तान – अवधि 2 वर्ष
मुझे खेलों की सामग्री का पर्याप्त अनुभव है। मुझे हिंदी भाषा का अच्छा ज्ञान है। विद्यालय तथा महाविद्यालय की पत्रिका में मेरे लेख भी प्रकाशित होते रहे हैं।
आवश्यक प्रमाण-पत्र इस आवेदन पत्र के साथ संलग्न हैं।
आशा है कि आप मुझे सेवा का अवसर प्रदान करेंगे।
आपका आज्ञाकारी
प्रतीक राय

(ग) व्यावसायिक पत्र

13. रिक्तियों के लिए समाचार-पत्र में विज्ञापन के प्रकाशन हेतु पत्र लिखिए।
उत्तर :
मल्होत्रा बुक डिपो
रेलवे रोड
जालंधर।
29 सितंबर 20….
विज्ञापन व्यवस्थापक
दैनिक ट्रिब्यून
चंडीगढ़
विषय – विज्ञापन प्रकाशन हेतु पत्र।
प्रिय महोदय
इस पत्र के साथ एक विज्ञापन का प्रारूप भेज रहा हूँ जिसे कृपया 7 अक्टूबर तथा 14 अक्टूबर के अंकों में प्रकाशित कर दें। आपका बिल प्राप्त होते ही उसका भुगतान कर दिया जाएगा।
विज्ञापन का प्रारूप
आवश्यकता है एक ऐसे अनुभवी सेल्स मैनेजर की जो स्वतंत्र रूप से प्रतिष्ठान के बिक्री काउंटर को सँभाल सके। वेतन ₹1500-2000 तथा निःशुल्क आवास की व्यवस्था। बहुत योग्य तथा अनुभवी अभ्यार्थी को योग्यतानुसार उच्च वेतन भी दिया जा सकता है। निम्नलिखित पते पर 15 नवंबर, 20…. तक लिखें या मिलें –
मल्होत्रा बुक डिपो,
रेलवे रोड, जालंधर शहर।
धन्यवाद,
आपका विश्वासी
एस० के० सिक्का
प्रबंधक।
संलग्न : विज्ञापन

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

14. गलत माल मिलने की शिकायत करते हुए सामान बेचने वाले प्रतिष्ठान ‘क्रीड़ा विहार’ को एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
केंद्रीय विद्यालय
बेंगलुरु
दिनांक : 18 जुलाई, 20 ….
व्यवस्थापक
‘क्रीड़ा विहार’
जालंधर
विषय – गलत माल की प्राप्ति हेतु शिकायती पत्र।
महोदय
हमने दिनांक : 17-1-20…. को सामान की सूची भेजी थी। उस सूची का क्रमांक नं० 713 है। हमने दो दर्जन क्रिकेट के गेंद, 6 बल्ले तथा 12 रैकेट मँगवाए थे, लेकिन आपने सारा माल गलत भेजा है। लगता है कि यह सामान किसी दूसरी जगह पर जाना था लेकिन आपके कर्मचारी ने भूल से ऐसा कर दिया है।
कृपया आप अपना माल वापस मँगवा लें और हमारे सूची के अनुसार हमारा माल शीघ्र भिजवा दें। अतिरिक्त व्यय भार आपको वहन करना होगा।
भवदीय
विकास खन्ना
(प्राचार्य)

15. आपको दिल्ली के किसी पुस्तक-विक्रेता से कुछ पुस्तकें मँगवानी हैं। वी० पी० पी० द्वारा मँगवाने के लिए पत्र लिखिए।
उत्तर :
5/714, तिलक नगर
कटक
17 नवंबर, 20….
प्रबंधक
मल्होत्रा बुक डिपो
गुलाब भवन
6, बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग
नई दिल्ली – 110002
विषय – पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।
महोदय
निम्नलिखित पुस्तकें स्थानीय पुस्तक-विक्रेता से नहीं मिल रहीं, अतः ये पुस्तकें वी० पी० पी० द्वारा शीघ्र भेजने का कष्ट करें। यदि अग्रिम भेजने की आवश्यकता हो तो सूचित करें। पुस्तकों पर उचित कमीशन काटना न भूलें। पुस्तकें नवीन पाठ्यक्रम के अनुसार होनी चाहिए।

1. हिंदी गाइड (कक्षा दस) …… एक प्रति
2. इंग्लिश गाइड (कक्षा दस) …… एक प्रति
3. नागरिक शास्त्र के सिद्धांत (कक्षा दस) …… एक प्रति
4. भूगोल (कक्षा दस) ….. एक प्रति
5. विज्ञान (कक्षा दस) …… एक प्रति
भवदीय
निशा सिंह

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(घ) प्रार्थना-पत्र

16. अपने प्रधानाचार्य को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए, जिसमें कई महीने से अंग्रेज़ी की पढ़ाई न होने के कारण उत्पन्न कठिनाई का वर्णन किया गया हो।
उत्तर :
प्रधानाचार्य
केंद्रीय विद्यालय
पुड्डुचेरी
विषय-अंग्रेज़ी की पढ़ाई न हो पाने हेतु शिकायती पत्र।
मान्यवर महोदय
आप भली-भाँति जानते हैं कि हमारे अंग्रेज़ी के अध्यापक श्री ज्ञानचंद जी पिछले तीन सप्ताह से बीमार हैं। अभी भी उनके स्वास्थ्य में विशेष सुधार नहीं हो रहा। डॉक्टर का कहना है कि अभी श्री ज्ञानचंद जी को स्वस्थ होने में कम-से-कम दो सप्ताह और लगेंगे। पिछले तीन सप्ताह से हमारी अंग्रेज़ी की पढ़ाई ठीक ढंग से नहीं हो रही। आपने जो प्रबंध किया है, वह संतोषजनक नहीं है। उधर परीक्षा सिर पर आ रही हैं। अभी पाठ्यक्रम भी समाप्त नहीं हुआ है। पुनरावृत्ति के लिए भी समय नहीं बचेगा। अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप हमारी अंग्रेज़ी की पढ़ाई का उचित एवं संतोषजनक प्रबंध करें। यदि कुछ कालांश बढ़ा दिए जाएँ तो और भी अच्छा रहेगा।
आशा है कि हमारी कठिनाई को शीघ्र ही दूर करने का प्रयास करेंगे।
आपका आज्ञाकारी
नवनीत (दस ‘क’)

17. अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक को छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
प्रधानाध्यापक
केंद्रीय विद्यालय
आगरा
विषय – अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र।
मान्यवर महोदय
निवेदन है कि मेरी बड़ी बहन की शादी 11 नवंबर, 20…. को दिल्ली में होनी तय हुई है। हमारे परिवार के सभी सदस्य वहाँ पहुँच चुके हैं। मैं और मेरी छोटी बहन 9 नवंबर को रात की गाड़ी से दिल्ली जाएँगे। कृपया मुझे दस और ग्यारह नवंबर का अवकाश प्रदान करें।
आपका आज्ञाकारी
महेश चंद्र भुजबल
कक्षा : दस ‘ग’
तिथि: 9 नवंबर, 20 ….

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18. अपने प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए, जिसमें पुस्तकालय के लिए नई पुस्तकों और बाल-पत्रिकाओं को मँगाने की प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
प्रधानाचार्य
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
जम्मू
विषय – पुस्तकालय में पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।
मान्यवर महोदय
गत सप्ताह आपने प्रार्थना सभा में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए विद्यालय के पुस्तकालय की उपयोगिता पर प्रकाश डाला था। आपने छात्रों को पुस्तकालय से अच्छी-अच्छी पुस्तकें निकलवाकर उनका अध्ययन करने की भी प्रेरणा दी थी। लेकिन पुस्तकालय में छात्रों ने जिन पुस्तकों तथा बाल – पत्रिकाओं की माँग की, वे प्रायः विद्यालय में उपलब्ध नहीं हैं।
आपसे नम्र निवेदन है कि कुछ नई पुस्तकें तथा बालोपयोगी पत्रिकाओं को मँगवाने की व्यवस्था करें। पुस्तकों तथा पत्रिकाओं के अध्ययन से जहाँ छात्र वर्ग के ज्ञान में वृद्धि होती है, वहाँ उनका पर्याप्त मनोरंजन भी होता है।
आशा है कि आप हमारी प्रार्थना पर शीघ्र ध्यान देंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
मनोज कुमार
तिथि : 7.11.20….

19. विद्यालय के प्राचार्य को संध्याकालीन खेलों के उत्तम प्रबंध के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
प्राचार्य
नवयुग विद्यालय
वर्धमान
विषय – संध्याकालीन खेलों के उत्तम प्रबंध हेतु पत्र।
मान्यवर महोदय
निवेदन यह है कि आप ने प्रात:कालीन सभा में खेलों के महत्त्व पर प्रकाश डाला था। हम विद्यालय परिसर में संध्या के समय खेलना चाहते हैं, परंतु हमारे विद्यालय के परिसर का खेल का मैदान साफ़ नहीं है तथा हमें खेल की उचित सामग्री भी प्राप्त नहीं होती।
आपसे अनुरोध है कि खेल के मैदान को साफ़ करवाने की तथा खेलों की सामग्री दिलवाने की कृपा करें।
धन्यवाद
भवदीय
देबाशीष डे
तथा कक्षा दस के अन्य विद्यार्थी
दिनांक : 24 अप्रैल, 20….

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20. अध्यक्ष परिवहन निगम को अपने गाँव तक बस सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
अध्यक्ष
परिवहन निगम
दिल्ली
विषय – बस सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु पत्र |
आदरणीय महोदय
मैं गाँव ‘सोनपुरा’ का एक निवासी हूँ। वह गाँव दिल्ली से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है। खेद की बात है कि परिवहन निगम की ओर से इस गाँव तक कोई बस सेवा उपलब्ध नहीं है। यहाँ के किसानों को नगर से कृषि के लिए आवश्यक सामान लाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। छात्र – छात्राओं को अपने-अपने विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में पहुँचने के लिए भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अतः आपसे प्रार्थना है कि इस गाँव तक बस सेवा उपलब्ध करवाने की कृपा करें।
आशा है कि हमारी प्रार्थना पर शीघ्र ध्यान दिया जाएगा।
धन्यवाद सहित
भवदीय
रमेश ‘बाल रत्न’
निवासी ‘सोनपुरा गाँव’
तिथि : 18 मार्च, 20….

21. अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए, जिसमें खेलों की आवश्यक तैयारी तथा खेल का सामान उपलब्ध करवाने की प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
प्रधानाध्यापक
केंद्रीय विद्यालय
पणजी
विषय – खेलों की तैयारी के संबंध में पत्र
मान्यवर महोदय
आपने एक छात्र-सभा में भाषण देते हुए इस बात पर बल दिया था कि छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ खेलों का महत्त्व भी समझना चाहिए। खेल शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। खेद की बात यह है कि आप खेलों की आवश्यकता तो खूब समझते हैं पर खेल सामग्री के अभाव की ओर कभी आपका ध्यान नहीं गया। खेलों के अनेक लाभ हैं। ये स्वास्थ्य के लिए बड़ी उपयोगी हैं। ये अनुशासन, समयपालन, सहयोग तथा सद्भावना का भी पाठ पढ़ाते हैं। अतः आपसे नम्र निवेदन है कि आप खेलों का सामान उपलब्ध करवाने की कृपा करें। इससे छात्रों में खेलों के प्रति रुचि बढ़ेगी। वे अपनी खेल प्रतिभा का विकास कर सकेंगे।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना पर उचित ध्यान देंगे और आवश्यक आदेश जारी करेंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
रजत शर्मा
कक्षा : दस ‘ब’
दिनांक : 17 अप्रैल, 20….

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22. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को छात्रवृत्ति के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
प्रधानाचार्य
राजकीय उच्च विद्यालय
भोपाल
विषय – छात्रवृत्ति हेतु पत्र।
महोदय
सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की दसवीं कक्षा का एक छात्र हूँ। मैं प्रथम श्रेणी से आपके विद्यालय में पढ़ रहा हूँ। मैंने परीक्षा में सदैव अच्छे अंक प्राप्त किए हैं। खेलकूद तथा विद्यालय के अन्य कार्यक्रमों में भी मेरी रुचि है। मुझे पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। अपने सहपाठियों के प्रति मेरा व्यवहार हमेशा शिष्टतापूर्ण रहा है। अध्यापक वर्ग भी मेरे आचार-व्यवहार से संतुष्ट हैं।

हमारे घर की आर्थिक स्थिति अचानक खराब हो गई है जिससे मेरी पढ़ाई में बाधा उपस्थित हो गई है। मेरे पिताजी मेरी पढ़ाई का व्यय- भार सँभालने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं। अतः आपसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि मुझे छात्रवृत्ति प्रदान करने की कृपा करें। मैं जीवन भर आपका आभारी रहूँगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि कठोर परिश्रम द्वारा मैं बोर्ड की परीक्षा में विशेष योग्यता प्राप्त करने वाले छात्राओं की सूची में उच्च स्थान प्राप्त कर विद्यालय की शोभा बढ़ाऊँगा।
धन्यवाद सहित।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
अखिलेश
कक्षा : दस ‘ग’
दिनांक : 7 नवंबर, 20….

23. अपने विद्यालय की प्रधानाचार्या को बीमारी के कारण अवकाश प्रदान करने हेतु प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
प्रधानाचार्या
डी० ए० वी० उच्च विद्यालय
जबलपुर
विषय – बीमारी के कारण अवकाश हेतु पत्र
महोदय
सविनय निवेदन है कि मुझे कल रात को अकस्मात ज्वर हो गया था और अभी तक नहीं उतरा है। डॉक्टर साहब ने मुझे पूर्ण विश्राम करने की सलाह दी है। इस कारण मैं कल और परसों दो दिन स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकती। अतः कृपा करके मुझे दो दिन की छुट्टी देकर कृतार्थ करें
आपका अति धन्यवाद होगा।
आपकी आज्ञाकारी शिष्या
रेखा
कक्षा : दसवीं ‘ए’
दिनांक : 19 अप्रैल 20….

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24. दूरदर्शन निदेशालय को पत्र लिखकर अनुरोध कीजिए कि किशोरों के लिए देशभक्ति की प्रेरणा देने वाले अधिकाधिक कार्यक्रमों को प्रसारित करने की ओर ध्यान दिया जाय।
उत्तर :
पवन कुमार अरोड़ा
28, नेशनल पार्क
नई दिल्ली- 110024
दिनांक – 19 सितंबर, 20……..
सेवा में
निदेशक
दूरदर्शन निदेशालय
नई दिल्ली-110001
महोदय,
आप के केंद्र से बालकों, युवाओं तथा अन्य वर्ग के लोगों के लिए अनेक मनोरंजक तथा ज्ञान वर्धक कार्यक्रम प्रसारित होते हैं, जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं परन्तु किशोरों के लिए कोई भी विशेष कार्यक्रम प्रसारित नहीं होता।
आपसे अनुरोध है कि किशोरों के लिए देशभक्ति की प्रेरणा देने वाले तथा उनके ज्ञान में वृद्धि करने वाले कार्यक्रमों को भी अधिकाधिक प्रसारित करने की कृपा करें, जिस से किशोर देश के प्रति सद्भाव रखते हुए देश के सभ्य एवं देशभक्त नागरिक बन सकें।
धन्यवाद,
भवदीय,
पवन कुमार अरोड़ा

25. आपके नाम से प्रेषित एक हजार रु. के मनीआर्डर की प्राप्ति न होने का शिकायत पत्र अधीक्षक, पोस्ट ऑफिस को लिखिए।
उत्तर :
515/3 – आदर्श नगर,
दिल्ली
दिनांक 25 मार्च, 20……..
सेवा में
अधीक्षक,
पोस्ट ऑफिस,
दिल्ली – 6
प्रिय महोदय,
निवेदन यह है कि मैंने 19 फरवरी, 20……. को रसीद संख्या 9102 द्वारा डाकघर, आदर्श नगर से अपने भाई श्री चैतन्य नारायण, 720/9 अंबाला शहर को एक हज़ार रुपए का मनीऑर्डर उस के जन्मदिन पर कुछ उपहार खरीदने के लिए भेजा था। वह मनीऑर्डर, आज एक महीने से भी अधिक समय बीत जाने पर भी उसे नहीं मिला है।
आप से अनुरोध है कि इस संबंध में उचित जाँच-पड़ताल करवाने की कृपा करें तथा मनीऑर्डर उचित स्थान पर पहुँचाने अथवा मुझे वापस दिलवाने का कष्ट करें।
किए गए मनीऑर्डर की रसीद की फोटो प्रतिलिपि संलग्न है।
धन्यवाद,
भवदीय,
श्याम नारायण

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26. नेशनल बुक ट्रस्ट के प्रबंधक को पत्र लिखकर हिंदी में प्रकाशित नवीनतम बाल साहित्य की पुस्तकें भेजने हेतु अनुरोध कीजिए।
उत्तर :
प्राचार्य,
बाल भारती उच्च विद्यालय
नागपुर,
दिनांक : 25 जुलाई, 20………
प्रति
प्रबंधक
नेशनल बुक ट्रस्ट
नई दिल्ली,
महोदय,
हमारे विद्यालय के बाल – पुस्तकालय के लिए ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित नवीनतम बाल साहित्य की पुस्तकों का एक सैट भेजने की कृपा करें। पुस्तकों का बिल साथ में भेजें, जिस का भुगतान बैंक के चैक द्वारा कर दिया जाएगा।
धन्यवाद,
भवदीय,
राज शंकर पुरोहित
प्राचार्य

27. रेल द्वारा बुक कराकर भेजा गया घरेलू सामान आपके निवास के निकटस्थ स्टेशन तक नहीं पहुँचा है। इसकी शिकायत करते हुए रेल प्रबंधक को एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
कृष्ण मुरारी पांडेय
48, संगम मार्ग
इलाहाबाद,
दिनांक : 29 सितंबर, 20……….
सेवा में
प्रबंधक
उत्तर रेलवे मंडल कार्यालय
इलाहाबाद।
महोदय,
निवेदन यह है कि मैंने दिल्ली से अपना घरेलू सामान इलाहाबाद के लिए दिनांक 30 अगस्त, 20…. को रसीद संख्या एन. आर. डी – 55129 से बुक कराया था, जो अब तक यहाँ नहीं पहुँचा है। इस संबंध में इलाहाबाद के पार्सल कार्यालय से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। अतः आप से अनुरोध है कि इस संबंध में समुचित कार्यवाही करते हुए मुझे सामान दिलवाया जाए।
धन्यवाद,
भवदीय,
कृष्ण मुरारी पांडेय

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

28. आए दिन बस चालकों की असावधानी के कारण हो रही दुर्घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए किसी समाचार-पत्र के संपादक को एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
संपादक
दैनिक हिंदुस्तान
नई दिल्ली।
महोदय,
आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से मैं संबंधित अधिकारियों तथा संस्थाओं के संचालकों का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि दिन-प्रतिदिन बस चालकों की असावधानियों से जो दुर्घटनाएँ होती हैं, उनसे कितने ही परिवार उजड़ जाते हैं। बस चालकों की असावधानी को रोकने के लिए केवल प्रशिक्षित चालकों को ही बस चलाने के लिए दी जाए तथा वे किसी नशीले पदार्थ का सेवन कर बस न चलाएँ। इन चालकों को बस चलाने का प्रमाण-पत्र इनकी अच्छी प्रकार से परीक्षा करने के बाद ही दिया जाना चाहिए। इन्हें सीमा में रहकर ही बस चलाने के निर्देश देने चाहिए तथा समय-समय पर इनकी डॉक्टरी जाँच भी आवश्यक होनी चाहिए।
आशा है कि इस संबंध में अवश्य ही उचित कार्यवाही की जाएगी।
भवदीय
अजय कुमार चुघ
28, नेशनल मार्ग, नई दिल्ली
दिनांक : 22 मार्च, 20…..

29. विद्यालय के गेट पर मध्यावकाश के समय ठेले पर रेहड़ी वालों द्वारा जंक फूड बेचे जाने की शिकायत करते को पत्र लिखकर उन्हें रोकने का अनुरोध कीजिए।
उत्तर :
सेवा में,
प्रधानाचार्य
केंद्रीय विद्यालय
शिलांग
मान्यवर महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि विद्यालय में जब मध्यावकाश होता है तो विद्यालय के मुख्य द्वार के पास कुछ ठेले और रेहड़ी वाले स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सस्ते जंक फूड बेचने के लिए आ जाते हैं। विद्यार्थी अनजाने में ही उनसे ऐसी वस्तुएँ खरीद कर खाते हैं, जो बाद में उनके स्वास्थ्य को हानि पहुँचाती हैं।
आप से अनुरोध है कि ऐसे ठेले और रेहड़ी वालों को विद्यालय के मुख्य द्वार के पास नहीं आने दिया जाए तथा विद्यार्थियों को भी इनसे खरीद कर खाने से मना किया जाए।
धन्यवाद।
भवदीय,
आर०एस० संगमा
प्रधान- अध्यापक शिक्षक संघ शिलांग
दिनांक 24 मार्च, 20….