JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Jharkhand Board Class 12 Political Science लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
गरीब जनता पर सचमुच भारी मुसीबत आई होगी। आखिर गरीबी हटाओ के वादे का हुआ क्या? उत्तर – श्रीमती गांधी ने 1971 के आम चुनावों में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था लेकिन इस नारे के बावजूद भी 1971-72 के बाद के वर्षों में भी देश की सामाजिक-आर्थिक दशा में सुधार नहीं हुआ और यह नारा खोखला साबित हुआ। इसी अवधि में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कई गुना बढ़ोतरी हुई। इससे विभिन्न चीजों की कीमतों में तेजी आई। इस तीव्र मूल्य वृद्धि से लोगों को भारी कठिनाई हुई । बांग्लादेश के संकट से भी भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा था। लगभग 80 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गये थे । इसके बाद पाकिस्तान से युद्ध भी करना पड़ा। फलतः गरीबी हटाओ कार्यक्रम के लिए दिये जाने वाले अनुदान में कटौती कर दी गई और यह नारा पूर्णतः असफल साबित हुआ।

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प्रश्न 2.
क्या ‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’ और ‘प्रतिबद्ध नौकरशाही’ का मतलब यह है कि न्यायाधीश और सरकारी अधिकारी शासक दल के प्रति निष्ठावान हो?
उत्तर:
प्रतिबद्ध नौकरशाही के अन्तर्गत नौकरशाही किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के सिद्धान्तों से बंधी हुई होती है और उस दल के निर्देशन में कार्य करती है। प्रतिबद्ध नौकरशाही निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र होकर कार्य नहीं करती; बल्कि इसका कार्य किसी दल विशेष की योजनाओं को बिना किसी प्रश्न उठाए आँखें मूंद कर लागू करना होता है। जहाँ तक प्रतिबद्ध न्यायपालिका का सवाल है यह ऐसी न्यायपालिका होती है, जो एक दल विशेष या सरकार विशेष के प्रति वफादार हो तथा सरकार के निर्देशों के अनुसार चले। इस प्रकार ऐसी व्यवस्था में न्यायपालिका व व्यवस्थापिका की स्वतन्त्रता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है और प्रशासन निरंकुश हो जाता है अर्थात् कानून बनाने एवं फैसला या निर्णय देने की शक्ति केवल एक ही संस्था या दल के पास आ जाती है। इस प्रकार की व्यवस्था प्रायः साम्यवादी देशों में पायी जाती है।

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प्रश्न 3.
यह तो सेना से सरकार के खिलाफ बगावत करने को कहने जैसा जान पड़ता है। क्या यह बात लोकतांत्रिक है?
उत्तर:
नहीं, यह बात लोकतंत्र के खिलाफ है।

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प्रश्न 4.
क्या राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल की सिफारिश के बगैर आपातकाल की घोषणा करनी चाहिए थी? कितनी अजीब बात है!
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352, 356 तथा 360 में राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का उल्लेख किया गया है। भारत में 1975 में अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की गई जिसमें मन्त्रिमण्डल से सलाह करके आपातकालीन स्थिति की घोषणा का प्रावधान है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बिना मंत्रिमण्डल की सलाह के राष्ट्रपति को आपातकाल की घोषणा करने की सलाह दी थी, मन्त्रिमण्डल की बैठक उसके बाद हुई। इस प्रकार तत्कालीन परिस्थितियों में चाहें कुछ भी हुआ हो लेकिन वर्तमान में आपातकाल के प्रावधानों में सुधार कर लिया गया है। अंब आंतरिक आपातकाल सिर्फ सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में ही लगाया जा सकता है। इसके लिए भी आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिपरिषद् को राष्ट्रपति को लिखित में देनी होगी।

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प्रश्न 5.
अरे ! सर्वोच्च न्यायालय ने भी साथ छोड़ दिया! उन दिनों सबको क्या हो गया था?
उत्तर:
आपातकाल के दौरान नागरिकों की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिये गये तथा मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गये। लेकिन अनेक उच्च न्यायालयों ने फैसला दिया कि आपातकाल की घोषणा के बावजूद अदालत किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गई ऐसी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर सकती है जिसमें उसने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी हो। 1976 के अप्रेल माह में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने उच्च न्यायालयों के फैसले को उलट दिया और सरकार की दलील मान ली। इसका आशय यह था कि सरकार आपातकाल के दौरान नागरिकों से जीवन और आजादी का अधिकार वापस ले सकती है। इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के सर्वाधिक विवादास्पद फैसलों में से एक माना गया। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से नागरिकों के लिए अदालत के दरवाजे बंद हो गए अर्थात् इस काल में सर्वोच्च न्यायालय ने भी जनता का साथ छोड़ दिया था।

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प्रश्न 6.
जिन चंद लोगों ने प्रतिरोध किया, उनकी बात छोड़ दें- बाकियों के बारे में सोचें कि उन्होंने क्या किया ! क्या कर रहे थे बड़े-बड़े अधिकारी, बुद्धिजीवी, सामाजिक-धार्मिक नेता और नागरिक …………..?
उत्तर:
आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे। जिन्होंने विरोध किया उनको जेल में डाल दिया गया, कई नेताओं और बुद्धिजीवियों को नजरबंद कर दिया गया। सरकार के विरोध में कोई भी स्वर उठाता उसको जेल में यातनाएँ दी जातीं। कुछ नेता जो गिरफ्तारी से बच गए वे भूमिगत होकर सरकार के खिलाफ मुहिम जारी रखी। कुछ ने आपातकाल के विरोध में अपनी पदवी लौटा दी। अधिकारी सरकार के प्रति वफादार बने रहे और ऐसा न करने पर उनका निलंबन कर दिया जाता था।

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प्रश्न 7.
अगर उत्तर और दक्षिण के राज्यों में मतदाताओं ने इतने अलग ढर्रे पर मतदान किया, तो हम कैसे कहें कि 1977 के चुनावों का जनादेश क्या था?
उत्तर:
1977 के चुनावों में आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हारी। कांग्रेस को लोकसभा की मात्र 154 सीटें मिलीं। उसे 35 प्रतिशत से भी कम वोट प्राप्त हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों . को 330 सीटें प्राप्त हुईं। लेकिन तत्कालीन चुनावी नतीजों पर प्रकाश डालें तो यह एहसास होता है कि कांग्रेस देश में हर जगह चुनाव नहीं हारी थी । महाराष्ट्र, गुजरात और उड़ीसा में उसने कई सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखा था और दक्षिण भारत के राज्यों में तो उसकी स्थिति काफी मजबूत थी। इसका मुख्य कारण यह था कि दक्षिण के राज्यों में आपातकाल के दौरान ज्यादतियाँ नहीं हुई थीं। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि चुनावों का जनादेश आपातकाल की ज्यादतियों व उसके दुरुपयोग के विरुद्ध था।

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प्रश्न 8.
मैं समझ गया! आपातकाल एक तरह से तानाशाही निरोधक टीका था। इसमें दर्द हुआ और बुखार भी आया, लेकिन अन्ततः हमारे लोकतन्त्र के भीतर क्षमता बढ़ी।
उत्तर:
आपातकाल से सबक – आपातकाल के प्रमुख सबक निम्नलिखित हैं-

  1. आपातकाल का प्रथम सबक तो यही है कि भारत से लोकतन्त्र को विदा कर पाना बहुत कठिन है।
  2. दूसरे आपातकाल से संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों के कुछ अर्थगत उलझाव भी प्रकट हुए, जिन्हें बाद में सुधार लिया गया। अब आंतरिक आपातकाल सिर्फ सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में लगाया जा सकता है। इसके लिए यह भी जरूरी है कि आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिपरिषद् राष्ट्रपति को लिखित में दे।
  3. तीसरे आपातकाल से हर कोई नागरिक अधिकारों के प्रति ज्यादा सचेत हुआ। आपातकाल की समाप्ति के बाद अदालतों ने व्यक्ति के नागरिक अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाई।

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प्रश्न 1.
बताएँ कि आपातकाल के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत-
(क) आपातकाल की घोषणा 1975 में इंदिरा गाँधी ने की।
(ख) आपातकाल में सभी मौलिक अधिकार निष्क्रिय हो गए।
(ग) बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति के मद्देनजर आपातकाल की घोषणा की गई थी।
(घ) आपातकाल के दौरान विपक्ष के अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
(ङ) सी. पी. आई. ने आपातकाल की घोषणा का समर्थन किया।
उत्तर:
(क) गलत,
(ख) सही,
(ग) गलत,
(घ) सही,
(ङ) सही।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा आपातकाल की घोषणा के संदर्भ में मेल नहीं खाता है-
(क) ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान
(ख) 1974 की रेल – हड़ताल
(ग) नक्सलवादी आंदोलन
(घ) इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला
(ङ) शाह आयोग की रिपोर्ट के निष्कर्ष
उत्तर:
(ग) नक्सलवादी आंदोलन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में मेल बैठाएँ-

(क) संपूर्ण क्रांति (i) इंदिरा गाँधी
(ख) गरीबी हटाओ (ii) जयप्रकाश नारायण
(ग) छात्र आंदोलन (iii) बिहार आंदोलन
(घ) रेल हड़ताल (iv) जॉर्ज फर्नांडिस

उत्तर:

(क) संपूर्ण क्रांति (ii) जयप्रकाश नारायण
(ख) गरीबी हटाओ (i) इंदिरा गाँधी
(ग) छात्र आंदोलन (iii) बिहार आंदोलन
(घ) रेल हड़ताल (iv) जॉर्ज फर्नांडिस

प्रश्न 4.
किन कारणों से 1980 के मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े?
उत्तर:
1977 के चुनावों में जनता पार्टी को जनता ने स्पष्ट बहुमत प्रदान किया लेकिन जनता पार्टी के नेताओं में प्रधानमंत्री के पद को लेकर मतभेद हो गया। आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ दिनों के लिए ही एकजुट रख सका। जनता पार्टी के पास किसी एक दिशा, नेतृत्व अथवा साझे कार्यक्रम का अभाव था। केवल 18 महीने में ही मोरारजी देसाई ने लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया जिसके कारण मोरारजी देसाई को त्यागपत्र देना पड़ा। मोरारजी देसाई के बाद चरणसिंह कांग्रेस पार्टी के समर्थन से प्रधानमंत्री बने लेकिन चार महीने बाद कांग्रेस पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया। अतः जनता पार्टी की सरकार में पारस्परिक तालमेल का अभाव, सत्ता की भूख तथा राजनैतिक अस्थिरता के कारण 1980 में मध्यावधि चुनाव करवाए गए।

प्रश्न 5.
जनता पार्टी ने 1977 में शाह आयोग को नियुक्त किया था। इस आयोग की नियुक्ति क्यों की गई थी? इसके क्या निष्कर्ष थे?
उत्तर:
शाह आयोग का गठन ” 25 जून, 1975 के दिन घोषित आपातकाल के दौरान की गई कार्यवाही तथा सत्ता के दुरुपयोग, अतिचार और कदाचार के विभिन्न आरोपों के विविध पहलुओं” की जाँच के लिए किया गया था । आयोग ने विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों की जांच की और हजारों गवाहों के बयान दर्ज किए। शाह आयोग ने अपनी जाँच के दौरान पाया कि इस अवधि में बहुत सारी ‘अति’ हुई। भारत सरकार ने आयोग द्वारा प्रस्तुत दो अंतरिम रिपोर्टों और तीसरी तथा अंतिम रिपोर्ट की सिफारिशी पर्यवेक्षणों और निष्कर्षों को स्वीकार किया ।

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प्रश्न 6.
1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके क्या कारण बताए थे?
उत्तर:
1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके निम्नलिखित कारण बताये थे-

  1. सरकार ने कहा कि विपक्षी दलों द्वारा लोकतन्त्र को रोकने की कोशिश की जा रही है तथा सरकार को उचित ढंग से कार्य नहीं करने दिया जा रहा है। आन्दोलनों के कारण हिंसक घटनाएँ हो रही हैं तथा हमारी सेना तथा पुलिस को बगावत के लिए उकसाया जा रहा है। (ii) सरकार ने कहा कि विघटनकारी ताकतों का खुला खेल जारी है और साम्प्रदायिक उन्माद को हवा दी जा रही है, जिससे हमारी एकता पर खतरा मँडरा रहा है।
  2. षड्यंत्रकारी शक्तियाँ सरकार के प्रगतिशील कामों में अड़ंगे लगा रही हैं और उसे गैर-संवैधानिक साधनों के बूते सत्ता से बेदखल करना चाहती हैं।

प्रश्न 7.
1977 के चुनावों के बाद पहली दफा केन्द्र में विपक्षी दल की सरकार बनी। ऐसा किन कारणों से संभव हुआ?
उत्तर:
1977 के चुनावों के बाद केन्द्र में पहली बार विपक्षी दल की सरकार बनने के पीछे अनेक कारण जिम्मेदार रहे, इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. बड़ी विपक्षी पार्टियों का एकजुट होना: आपातकाल लागू होने से आहत विपक्षी नेताओं ने आपातकाल के बाद हुए चुनाव के पहले एकजुट होकर ‘जनता पार्टी’ नामक एक नया दल बनाया। कांग्रेस विरोधी मतों के बिखराव को रोका।
  2. जगजीवनराम द्वारा त्याग-पत्र देना: चुनाव से पहले जगजीवनराम ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया तथा कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं ने जगजीवनराम के नेतृत्व में एक नयी पार्टी – ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ बनायी तथा बाद में यह पार्टी जनता पार्टी में शामिल हो गई ।
  3. आपातकाल की ज्यादतियाँ: आपातकाल के दौरान जनता पर अनेक ज्यादतियाँ की गईं। जैसे – संजय गाँधी के नेतृत्व में अनिवार्य नसबंदी कार्यक्रम चलाया गया; प्रेस तथा समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी गई; हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया, आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हो गई। इन सब कारणों से जनता कांग्रेस से नाराज थी और उसने कांग्रेस के विरोध में मतदान किया।
  4. जनता पार्टी का प्रचार: जनता पार्टी ने 1977 के चुनावों को आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया तथा इस पार्टी ने चुनाव प्रचार में शासन के अलोकतांत्रिक चरित्र और आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों को मुद्दा बनाया।

प्रश्न 8.
हमारी राजव्यवस्था के निम्नलिखित पक्ष पर आपातकाल का क्या असर हुआ?
1. नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर
2. कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंध
3. जनसंचार माध्यमों के कामकाज
4. पुलिस और नौकरशाही की कार्यवाहियाँ ।
उत्तर:

  1. आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों को निलम्बित कर दिया गया तथा श्रीमती गाँधी द्वारा ‘मीसा कानून’ लागू किया गया जिसके अन्तर्गत किसी भी नागरिक को बिना कारण बताए कानूनी हिरासत में लिया जा सकता था।
  2. आपातकाल में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका एक-दूसरे के सहयोगी हो गये, क्योंकि सरकार ने सम्पूर्ण न्यायपालिका को सरकार के प्रति वफादार रहने के लिए कहा तथा आपातकाल के दौरान कुछ हद तक न्यायपालिका सरकार के प्रति वफादार भी रही। इस प्रकार आपातकाल के दौरान न्यायपालिका कार्यपालिका के आदेशों का पालन करने वाली संस्था बन गई थी।
  3. आपातकाल के दौरान जनसंचार पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, कोई भी समाचार पत्र सरकार के खिलाफ कोई भी खबर नहीं छाप सकता था तथा जो भी खबर अखबार द्वारा छापी जाती थी उसे
  4. पहले सरकार से स्वीकृति प्राप्त करनी पड़ती थी।
  5. आपातकाल के दौरान पुलिस और नौकरशाही, सरकार के प्रति वफादार बनी रही, यदि किसी पुलिस अधिकारी या नौकरशाही ने सरकार के आदेशों को मानने से मना किया तो उसे या तो निलम्बित कर दिया गया या गिरफ्तार कर लिया गया। इस काल में पुलिस की ज्यादतियाँ बढ़ गई थीं तथा नौकरशाही अनुशासन के नाम पर तानाशाह हो गयी थी। रिश्वतखोरी बढ़ गयी थी।

प्रश्न 9.
भारत की दलीय प्रणाली पर आपातकाल का किस तरह असर हुआ? अपने उत्तर की पुष्टि उदाहरणों से करें।
उत्तर:
आपातकाल का भारतीय दलीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा क्योंकि अधिकांश विरोधी दलों को किसी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों की इजाजत नहीं थी। आजादी के समय से लेकर 1975 तक भारत में वैसे भी कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व रहा तथा संगठित विरोधी दल उभर नहीं पाया, वहीं आपातकाल के दौरान विरोधी दलों की स्थिति और भी खराब हुई। आपातकाल के बाद सरकार ने जनवरी, 1977 में चुनाव कराने का फैसला लिया। सभी बड़े विपक्षी दलों ने मिलकर एक नयी पार्टी – ‘ जनता पार्टी’ का गठन कर चुनाव लड़ा और सफलता पायी और सरकार बनाई। इस प्रकार कुछ समय के लिए ऐसा लगा कि राष्ट्रीय स्तर पर भारत की राजनैतिक प्रणाली द्वि-दलीय हो जायेगी। लेकिन 18 माह में ही जनता पार्टी का यह कुनबा बिखर गया और पुनः दलीय प्रणाली उसी रूप में आ गई।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें-
1977 के चुनावों के दौरान भारतीय लोकतंत्र, दो- दलीय व्यवस्था के जितना नजदीक आ गया था उतना पहले कभी नहीं आया। बहरहाल अगले कुछ सालों में मामला पूरी तरह बदल गया। हारने के तुरंत बाद कांग्रेस दो टुकड़ों में बँट गई: “जनता पार्टी में भी बड़ी अफरा-तफरी मची” “डेविड बटलर, अशोक लाहिड़ी और प्रणव रॉय। – पार्थ चटर्जी
(क) किन वजहों से 1977 में भारत की राजनीति दो- दलीय प्रणाली के समान जान पड़ रही थी?
(ख) 1977 में दो से ज्यादा पार्टियाँ अस्तित्व में थीं। इसके बावजूद लेखकगण इस दौर को दो- दलीय प्रणाली के नजदीक क्यों बता रहे हैं?
(ग) कांग्रेस और जनता पार्टी में किन कारणों से टूट पैदा हुई ?
उत्तर:
(क) 1977 में भारत की राजनीति दो- दलीय प्रणाली इसलिए जान पड़ती थी; क्योंकि उस समय केवल दो ही दल सत्ता के मैदान में थे, जिसमें सत्ताधारी दल कांग्रेस एवं मुख्य विपक्षी दल जनता पार्टी।

(ख) लेखकगण इस दौर को दो- दलीय प्रणाली के नजदीक इसलिए बता रहे हैं; क्योंकि कांग्रेस कई टुकड़ों. में बँट गई और जनता पार्टी में भी फूट हो गई परंतु फिर भी इन दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता संयुक्त नेतृत्व और साझे कार्यक्रम और नीतियों की बात करने लगे। इन दोनों गुटों की नीतियाँ एक जैसी थीं। दोनों में बहुत कम अंतर था । वामपंथी मोर्चे में सी. पी. एम., सी. पी. आई., फारवर्ड ब्लॉक, रिपब्लिकन पार्टी की नीति एवं कार्यक्रमों को इनसे अलग माना जा सकता है।

(ग) 1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार के कारण नेताओं में निराशा पैदा हुई और इस निराशा के कारण फूट पैदा हुई, क्योंकि अधिकांश कांग्रेसी नेता श्रीमती गाँधी के चमत्कारिक नेतृत्व के महापाश से बाहर निकल चुके थे, दूसरी ओर जनता पार्टी में नेतृत्व और विचारधारा को लेकर फूट पैदा हो गई थी। प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारों में आपसी होड़ मच गई।

लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट JAC Class 12 Political Science Notes

→ आपातकाल की पृष्ठभूमि:
1967 के चुनावों के बाद भारतीय राजनीति में व्यापक बदलाव आया। श्रीमती इंदिरा गाँधी एक कद्दावर नेता के रूप में उभरीं और उनकी लोकप्रियता चरम सीमा पर पहुँच गई। इस काल में दलगत प्रतिस्पर्द्धा कहीं ज्यादा तीखी और ध्रुवीकृत हो गई तथा न्यायपालिका और सरकार के सम्बन्धों में तनाव आए। इस काल में कांग्रेस के विपक्ष में जो दल थे उन्हें लग रहा था कि सरकारी प्राधिकार को निजी प्राधिकार मानकर प्रयोग किया जा रहा है और राजनीति हद से ज्यादा व्यक्तिगत होती जा रही है। कांग्रेस की टूट से इंदिरा गांधी और उनके विरोधियों के बीच मतभेद गहरे हो गये थे।

→ आर्थिक संदर्भ:
1971 में ‘गरीबी हटाओ’ का जो नारा दिया गया वह पूर्णतया खोखला साबित हुआ। बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ा। लगभग 80 लाख शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गये। युद्ध के बाद अमरीका ने भारत की सहायता बन्द कर दी। इस अवधि में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कई गुना वृद्धि हुई जिससे भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वस्तुओं की कीमतों में जबरदस्त इजाफा हुआ।

→ गुजरात और बिहार में आंदोलन: गुजरात और बिहार में कांग्रेसी सरकार थी। इन राज्यों में हुए आन्दोलनों का प्रदेश की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा।

→ गुजरात में आंदोलन के कारण: 1974 में तेल की कीमतों व आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के विरुद्ध छात्रों ने आन्दोलन किया। इस आन्दोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी शामिल हो गईं और इस आन्दोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया। ऐसे में गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। विपक्षी दलों ने राज्य की विधानसभा के लिए दुबारा चुनाव कराने की मांग की। कांग्रेस (ओ) के प्रमुख नेता मोरारजी देसाई ने कहा कि अगर राज्य में नए सिरे से चुनाव नहीं करवाए गए तो मैं भूख हड़ताल पर बैठ जाऊँगा। मोरारजी अपने कांग्रेस के दिनों में इंदिरा गांधी के मुख्य विरोधी रहे थे। विपक्षी दलों द्वारा समर्थित छात्र आंदोलन के गहरे दबाव में 1975 के जून में विधानसभा के चुनाव हुए। कांग्रेस इस चुनाव में हार गयी।

→ बिहार में आंदोलन के कारण:
1974 के मार्च माह में बिहार में इन्हीं मांगों को लेकर छात्रों द्वारा आन्दोलन छेड़ा गया। आंदोलन के क्रम में उन्होंने जयप्रकाश नारायण (जेपी) को बुलावा भेजा। जेपी तब सक्रिय राजनीति छोड़ चुके थे और सामाजिक कार्यों में लगे हुए थे। जेपी ने छात्रों का निमंत्रण इस शर्त पर स्वीकार किया कि आंदोलन अहिंसक रहेगा और अपने को सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रखेगा। इस प्रकार छात्र आंदोलन ने एक राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया और उसके भीतर राष्ट्रव्यापी अपील आई। बिहार के इस आन्दोलन में हर क्षेत्र के लोग जुड़ने लगे। जयप्रकाश नारायण ने बिहार की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की माँग की। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दायरे में समग्र क्रान्ति का आह्वान किया ताकि उन्हीं के शब्दों में सच्चे लोकतन्त्र की स्थापना की जा सके।

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→ आन्दोलन का प्रभाव:
बिहार के इस आन्दोलन का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ना शुरू हुआ। जयप्रकाश नारायण चाहते थे कि यह आंदोलन देश के दूसरे हिस्सों में भी फैले। इस आंदोलन के साथ-साथ रेलवे कर्मचारियों ने भी राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया, जिससे देश का सम्पूर्ण कामकाज ठप होने का खतरा उत्पन्न हो गया। विशेषज्ञों एवं विद्वानों का मानना था कि ये आन्दोलन राज्य सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व के खिलाफ चलाए गए। इंदिरा गांधी का मानना था कि ये आन्दोलन उनके प्रति व्यक्तिगत विरोध से प्रेरित थे।

→ न्यायपालिका से संघर्ष:

  • न्यायपालिका के साथ इस दौर में सरकार और शासक दल के गहरे मतभेद पैदा हुए। इस क्रम में तीन संवैधानिक मामले उठे क्या संसद मौलिक अधिकारों में कटौती कर सकती है? सर्वोच्च न्यायालय का जवाब था कि संसद ऐसा नहीं कर सकती।
  • दूसरा यह कि क्या संसद संविधान में संशोधन करके सम्पत्ति के अधिकार में काट-छाँट कर सकती है? इस मसले पर भी सर्वोच्च न्यायालय का यही कहना था कि सरकार संविधान में इस तरह संशोधन नहीं कर सकती कि अधिकारों की कटौती हो जाए।
  • तीसरा, संसद ने यह कहते हुए संविधान में संशोधन किया कि वह नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को प्रभावकारी बनाने के लिए मौलिक अधिकारों में कमी कर सकती है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को भी निरस्त कर दिया। इससे सरकार और न्यायपालिका के मध्य संघर्ष उत्पन्न हो गया।

1973 में सरकार ने तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी करके न्यायमूर्ति ए. एन. रे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया। यह निर्णय राजनीतिक रूप से विवादास्पद बना रहा क्योंकि सरकार ने जिन तीन न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी इस मामले में की थी उन्होंने सरकार के इस कदम के विरुद्ध फैसला दिया।

आपातकाल की घोषणा:
12 जून, 1975 के दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने एक फैसला सुनाया। इस फैसले में उन्होंने लोकसभा के लिए इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया। जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में विपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे के लिए दबाव डाला। इन दलों ने 25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल प्रदर्शन किया। जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग करते हुए राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा की। जयप्रकाश नारायण ने सेना, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों का आह्वान किया कि वे सरकार के अनैतिक और अवैधानिक आदेशों का पालन न करें। सरकार ने इन घटनाओं के मद्देनजर जवाब में 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी। श्रीमती गाँधी की सरकार ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लागू करने की सिफारिश की और राष्ट्रपति ने तुरन्त आपातकाल की उद्घोषणा कर दी।

→  परिणाम:

  • सरकार के इस फैसले से विरोध- आंदोलन एक बार रुक गया। हड़तालों पर रोक लगा दी गई अनेक विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। सरकार ने निवारक नजरबंदी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया।
  • आपातकाल की मुखालफत और प्रतिरोध की कई घटनाएँ घटीं। पहली लहर में जो राजनीतिक कार्यकर्ता गिरफ्तारी से रह गए थे वे ‘भूमिगत’ हो गए और सरकार के खिलाफ मुहिम चलायी। इंडियन एक्सप्रेस और स्टेट्समैन जैसे अखबारों ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया।
  • इंदिरा गांधी के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि में संविधान में संशोधन हुआ। इस संशोधन के द्वारा प्रावधान किया गया कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के निर्वाचन को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • आपातकाल के दौरान ही संविधान का 42वां संशोधन पारित हुआ इस संशोधन के माध्यम से संविधान के अनेक हिस्सों में बदलाव किए गए। 42वें संशोधन के माध्यम से हुए अनेक बदलावों में एक था- देश की विधायिका के कार्यकाल को 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 साल करना।

→ आपातकाल के संदर्भ में विवाद;
सरकार का तर्क था कि भारत में लोकतन्त्र है और इसके अनुकूल विपक्षी दलों को चाहिए कि वे निर्वाचित शासक दल को अपनी नीतियों के अनुसार शासन चलाने दें। देश में लगातार गैर-संसदीय राजनीति का सहारा नहीं लिया जा सकता। इससे अस्थिरता पैदा होती है। इंदिरा गांधी ने शाह आयोग को चिट्ठी में लिखा कि षड्यंत्रकारी ताकतें सरकार के प्रगतिशील कार्यक्रमों में अड़ंगे लगा रही थीं और मुझे गैर-संवैधानिक साधनों के बूते सत्ता से बेदखल करना चाहती थीं। आपातकाल के आलोचकों का तर्क था कि आजादी के आंदोलन से लेकर लगातार भारत में जन-आंदोलन का एक सिलसिला रहा है।

जयप्रकाश नारायण सहित विपक्ष के नेताओं का विचार था कि लोकतन्त्र में लोगों को सार्वजनिक तौर पर सरकार के विरोध का अधिकार होना चाहिए। लोकतान्त्रिक कार्यप्रणाली को ठप करके आपातकाल लागू करने जैसे अतिचारी कदम उठाने की जरूरत कतई नहीं थी। दरअसल खतरा देश की एकता और अखंडता को नहीं, बल्कि शासक दल और स्वयं प्रधानमंत्री को था । आलोचक कहते हैं कि देश को बचाने के लिए बनाए गए संवैधानिक प्रावधान का दुरुपयोग इंदिरा गांधी ने निजी ताकतों को बचाने के लिए किया ।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

→ आपातकाल के दौरान क्या-क्या हुआ?:
आपातकाल को सही ठहराते हुए सरकार ने कहा कि इसके जरिए वो कानून व्यवस्था को बहाल करना चाहती थी, कार्यकुशलता बढ़ाना चाहती थी और गरीबों के हित के कार्यक्रम लागू करना चाहती थी । इस उद्देश्य से सरकार ने एक बीससूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की और इसे लागू करने का अपना दृढ़ संकल्प दोहराया। आपातकाल की घोषणा के बाद, शुरुआती महीनों में मध्यवर्ग इस बात से खुश था कि विरोध- आंदोलन समाप्त हो गया और सरकारी कर्मचारियों पर अनुशासन लागू हुआ। आपातकाल के दौरान कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई थी। प्रेस पर कई तरह की पाबंदी लगाई गई। इसके अलावा कुछ और गंभीर आरोप लगे थे जो किसी आधिकारिक पद पर नहीं थे, लेकिन सरकारी ताकतों का इन लोगों ने इस्तेमाल किया था। आपातकाल का बुरा असर आम लोगों को भी भुगतना पड़ा। इसके दौरान पुलिस हिरासत में मौत और यातना की घटनाएँ भी सामने आईं। गरीब लोगों को मनमाने तरीके से एक जगह से उजाड़कर दूसरी जगह बसाने की घटनाएँ भी हुईं। जनसंख्या नियंत्रण के बहाने लोगों को अनिवार्य रूप से नसबंदी के लिए मजबूर किया गया।

→ आपातकाल से सबक:

  • आपातकाल से एकबारगी भारतीय लोकतन्त्र की ताकत और कमजोरियाँ उजागर हुईं। यद्यपि पर्यवेक्षक मानते हैं कि आपातकाल के दौरान भारत लोकतान्त्रिक नहीं रह गया था, लेकिन यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि थोड़े दिनों के अंदर कामकाज फिर से लोकतान्त्रिक ढर्रे पर लौट आया। इस तरह आपातकाल का एक सबक तो यही है कि भारत से लोकतन्त्र विदा कर पाना बहुत कठिन है।
  • आपातकाल से संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों के कुछ अर्थगत उलझाव भी प्रकट हुए, जिन्हें बाद में सुधार लिया गया। अब ‘अंदरूनी’ आपातकाल सिर्फ सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में लगाया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को लिखित में दे।
  • आपातकाल से हर कोई नागरिक अधिकारों के प्रति ज्यादा संचेत हुआ। आपातकाल की समाप्ति के बाद अदालतों ने व्यक्ति के नागरिक अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाई। आपातकाल के बाद की राजनीति – उत्तर भारत में आपातकाल का असर ज्यादा दिखाई दिया। यहाँ विपक्षी दलों ने लोकतन्त्र बचावों के बारे पर चुनाव लड़ा। जनादेश निर्णायक तौर पर आपातकाल के विरुद्ध था। जिन सरकारों को जनता ने लोकतन्त्र विरोधी माना उन्हें मतदान के रूप में उसने भारी दण्ड दिया।

→ लोकसभा चुनाव, 1977:
1977 के चुनावों में आपातकाल का असर व्यापक रूप से दिखाई दिया। इन चुनावों में जनादेश कांग्रेस के विरुद्ध था। कांग्रेस को लोकसभा में मात्र 154 सीटें मिलीं। उसे 35 प्रतिशत से भी कम वोट प्राप्त हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें मिलीं। खुद जनता पार्टी अकेले 295 सीटों पर जीती और उसे स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ। कांग्रेस बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में एक भी सीट न पा सकी।

→ जनता सरकार:
1977 के चुनावों के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी लेकिन इस पार्टी में तालमेल का अभाव था। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, लेकिन पार्टी के भीतर खींचतान जारी रही। आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ समय तक ही एक रख सका। जनता पार्टी बिखर गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार ने 18 माह में अपना समर्थन खो दिया। इसके बाद चरण सिंह की सरकार भी केवल 4 माह तक ही चल पायी। 1980 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त की।

→ विरासत:

  • 1969 से पहले तक कांग्रेस विविध विचारधाराओं के नेताओं व कार्यकर्ताओं को एक साथ लेकर चलती थी। अपने बदले हुए स्वभाव में कांग्रेस ने स्वयं को विशेष विचारधारा से जोड़ा। उसने अपने को देश की एकमात्र समाजवादी और गरीबों की हिमायती पार्टी बताना शुरू किया।
  • अप्रत्यक्ष रूप से 1977 के बाद पिछड़े वर्गों की भलाई का मुद्दा भारतीय राजनीति पर हावी होना शुरू हुआ। 1977 के चुनाव परिणामों पर पिछड़ी जातियों के कदम पर असर पड़ा, खासकर उत्तर भारत में।
  •  इस दौर में एक और महत्त्वपूर्ण मामला संसदीय लोकतन्त्र में जन- आंदोलन की भूमिका और उसकी सीमा को लेकर उठा स्पष्ट ही इस दौर में संस्था आधारित लोकतन्त्र में तनाव नजर आया। इस तनाव का एक कारण यह भी कहा जा सकता है कि हमारी दलीय प्रणाली जनता की आकांक्षाओं को अभिव्यक्त कर पाने में सक्षम साबित नहीं हुई।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

Jharkhand Board Class 12 Political Science कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना InText Questions and Answers

पृष्ठ 83

प्रश्न 1.
फ्रांस और कनाडा में ऐसी सूरत कायम हो, तो वहाँ कोई भी लोकतंत्र के असफल होने अथवा देश के टूटने की बात नहीं कहता। हम ही आखिर लगातार इतने शक में क्यों पड़े रहते हैं?
उत्तर:
फ्रांस में लोकतंत्र 1792 में स्थापित हुआ जबकि कनाडा एक संवैधानिक राजतंत्र है, जिसमें सम्राट राज्य का प्रमुख होता है। कनाडा एक संवैधानिक राजतंत्र 1867 में बना। भारत 1947 में आजाद हुआ और उसी समय भारत में लोकतंत्र कायम हुआ। भारत में नया नया लोकतंत्र कायम हुआ था इसलिए इतनी विविधताओं वाले देश में लोकतंत्र के असफल होने या देश के टूटने का शक लगातार लगा रहता है।

पृष्ठ 86

प्रश्न 2.
इन्दिरा गाँधी के लिए स्थितियाँ सचमुच कठिन रही होंगी-पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्र में आखिर वे अकेली महिला थीं। ऊँचे पदों पर अपने देश में ज्यादा महिलाएँ क्यों नहीं हैं?
उत्तर:
श्रीमती इन्दिरा गाँधी भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री बनीं लेकिन प्रारम्भिक काल में उनको सिण्डीकेट और प्रभावशाली वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं द्वारा अनेक चुनौतियाँ मिलीं, लेकिन पारिवारिक राजनीतिक विरासत और पर्याप्त राजनीतिक अनुभव के कारण उनको एक सामान्य महिला की अपेक्षा कम कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन भारत में ज्यादातर महिलाओं के समक्ष अनेक ऐसी चुनौतियाँ एवं समस्याएँ हैं जिनके कारण वे ऊँचे पदों पर नहीं आ पातीं। इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. भारतीय समाज पुरुष-प्रधान है। अधिकांश कानून पुरुषों द्वारा बनाए गए और महिलाओं को समाज में गैर- बराबरी का दर्जा दिया गया।
  2. लड़कों की तुलना में उनके जन्म और पालन-पोषण में नकारात्मक भेद-भाव किया जाता था।
  3. सती-प्रथा, बहुपत्नी विवाह, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, कन्या वध या भ्रूण हत्या, विधवा विवाह की मनाही, अशिक्षा आदि ने नारियों को समाज में पछाड़े रखा।
  4. भारत में पुरुषों की संकीर्ण मानसिकता के कारण वे महिलाओं को सरकारी नौकरियाँ विशेषकर ऊँचे पदों पर नहीं देखना चाहते।
  5. शिक्षा के प्रचार- प्रसार, नारी जागृति तथा नारी सशक्तीकरण के कारण अब धीरे-धीरे देश के उच्च पदों पर महिलाएँ कार्य कर रही हैं, लेकिन अभी भी उनकी संख्या काफी कम है।

पृष्ठ 89

प्रश्न 3.
क्या आज गैर-कांग्रेसवाद प्रासंगिक है? क्या मौजूदा पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा के खिलाफ ऐसा ही तरीका अपनाया जा सकता है?
उत्तर:
गैर कांग्रेसवाद के जनक डॉ. राममनोहर लोहिया थे और गैर-कांग्रेसवाद आज भी उतना प्रासंगिक है जितना 1960 के दशक में था। बंगाल में वाममोर्चा के खिलाफ ऐसा तरीका अपनाया जा सकता है क्योंकि बंगाल में वाममोर्चा का एकाधिकार है जिसके कारण समाज में कुछ अलगाववादी तत्त्व सक्रिय हो गए हैं। इन सबको खत्म करने का ये तरीका कारगर हो सकता है।

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पृष्ठ 90

प्रश्न 4.
त्रिशंकु विधानसभा और गठबन्धन सरकार की इन बातों में नया क्या है? ऐसी बातें तो हम आए दिन सुनते रहते हैं।
उत्तर:
भारत में 1967 के चुनावों से गठबन्धन की राजनीति सामने आयी। त्रिशंकु विधानसभा और गठबंधन सरकार की घटना उन दिनों नई थी क्योंकि पहली बार चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था, इसलिए अनेक गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल बनाया और गैर-कांग्रेसी सरकारों को समर्थन दिया। इसी कारण इन सरकारों को संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया। लेकिन वर्तमान समय में भारतीय दलीय व्यवस्था का स्वरूप बदल गया है। बहुदलीय व्यवस्था होने के कारण केन्द्र और राज्यों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाता और त्रिशंकु विधान सभा या संसद का निर्माण हो रहा है। इसलिए आज गठबन्धन सरकार या त्रिशंकुं संसद आम बात हो गई है।

पृष्ठ 92

प्रश्न 5.
इसका मतलब यह है कि राज्य स्तर के नेता पहले के समय में भी ‘किंगमेकर’ थे और इसमें कोई नयी बात नहीं है। मैं तो सोचती थी कि ऐसा केवल 1990 के दशक में हुआ।
उत्तर:
पार्टी के ऐसे ताकतवर नेता जिनका पार्टी संगठन पर पूर्ण नियन्त्रण होता है उन्हें ‘किंगमेकर’ कहा जाता है प्रधानमन्त्री हो या मुख्यमन्त्री, इनकी नियुक्ति में इनकी विशेष भूमिका होती है। भारत में राज्य स्तर पर किंगमेकर्स की शुरुआत केवल 1990 के दशक में नहीं बल्कि इससे पहले भी इस प्रकार की स्थिति पायी जाती थी। भारत में पहले कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को अनौपचारिक तौर पर सिंडिकेट के नाम से इंगित किया जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियन्त्रण था। मद्रास प्रान्त के कामराज, मुम्बई सिटी के एस.के. पाटिल, मैसूर के एस. निजलिंगप्पा, आन्ध्र प्रदेश के एन. संजीव रेड्डी और पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष इस संगठन में शामिल थे। लाल बहादुर शास्त्री एवं श्रीमती इन्दिरा गाँधी, दोनों ही सिंडिकेट की सहायता से प्रधानमन्त्री पद पर आरूढ़ हुए।

पृष्ठ 96

प्रश्न 6.
गरीबी हटाओ का नारा तो अब से लगभग चालीस साल पहले दिया गया था। क्या यह नारा महज एक चुनावी छलावा था?
उत्तर:
गरीबी हटाओ का नारा श्रीमती गाँधी ने तत्कालीन समय व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दिया। उन्होंने विपक्षी गठबन्धन द्वारा दिये गये इन्दिरा हटाओ नारे के विपरीत लोगों के सामने एक सकारात्मक कार्यक्रम रखा और इसे अपने मशहूर नारे ‘गरीबी हटाओ’ के जरिए एक शक्ल प्रदान की। इन्दिरा गाँधी ने सार्वजनिक क्षेत्र की संवृद्धि, ग्रामीण भू-स्वामित्व और शहरी सम्पदा के परिसीमन, आय और अवसरों की असमानता की समाप्ति तथा प्रिवीपर्स की समाप्ति पर अपने चुनाव अभियान में जोर दिया।

गरीबी हटाओ के नारे से श्रीमती गाँधी ने वंचित तबकों खासकर भूमिहीन किसान, दलित और आदिवासियों, अल्पसंख्यक महिलाओं और बेरोजगार नौजवानों के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने की कोशिश की। लेकिन 1971 के भारत-पाक युद्ध और विश्व स्तर पर पैदा हुए तेल संकट के कारण गरीबी हटाओ का नारा कमजोर पड़ गया। 1971 में इन्दिरा गाँधी द्वारा दिया गया यह नारा महज पाँच साल के अन्दर ही असफल हो गया और 1977 में इन्दिरा गांधी को ऐतिहासिक पराजय का सामना करना पड़ा। इस प्रकार यह नारा महज एक चुनावी छलावा साबित हुआ।

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पृष्ठ 99

प्रश्न 7.
यह तो कुछ ऐसा ही है कि कोई मकान की बुनियाद और छत बदल दे फिर भी कहे कि मकान वही है। पुरानी और नयी कांग्रेस में कौनसी चीज समान थी?
उत्तर:
1969 में कांग्रेस के विभाजन तथा कामराज योजना के तहत कांग्रेस पार्टी की पुनर्स्थापना करने का प्रयास किया। श्रीमती इन्दिरा गाँधी और उनके साथ अन्य युवा नेताओं ने कांग्रेस पार्टी को नया स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया। यह पार्टी पूर्णतः अपने सर्वोच्च नेता की लोकप्रियता पर आश्रित थी। पुरानी कांग्रेस की तुलना में इसका सांगठनिक ढाँचा कमजोर था। अब इस पार्टी के भीतर कई गुट नहीं थे। अर्थात् अब यह कांग्रेस विभिन्न मतों और हितों को एक साथ लेकर चलने वाली पार्टी नहीं थी। इस प्रकार इन्दिरा कांग्रेस के बारे में यह कहा जा सकता है कि इसकी बुनियाद और छत बदल दी गई थी, लेकिन नाम वही था। पुरानी और नई कांग्रेस में एक बात समान थी कि दोनों को ही लोकप्रियता में समान स्थान प्राप्त था। पार्टी के सर्वोच्च नेता पर आश्रितता की नीति में भी कोई परिवर्तन नहीं आया तथा कांग्रेस की मूल विचारधारा में भी कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया।

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प्रश्न 1.
1967 के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही हैं:
(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई।
(ख) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।
(ग) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबन्धन सरकार बनाई।
(घ) कांग्रेस केन्द्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का मेल करें:

(क) सिंडिकेट (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ख) दल-बदल (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(ग) नारा (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।
(घ) गैर-कांग्रेसवाद (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह।

उत्तर:

(क) सिंडिकेट (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह।
(ख) दल-बदल (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ग) नारा (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(घ) गैर-कांग्रेसवाद (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित नारे से किन नेताओं का सम्बन्ध है?
(क) जय जवान, जय किसान
(ख) इन्दिरा हटाओ
(ग) गरीबी हटाओ।
उत्तर:
(क) लालबहादुर शास्त्री
(ख) विपक्षी गठबंधन
(ग) श्रीमती इन्दिरा गाँधी।

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प्रश्न 4.
1971 के ‘ग्रैंड अलायंस’ के बारे में कौनसा कथन ठीक है?
(क) इसका गठन गैर- कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।
(ख) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था।
(ग) इसका गठन सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने एकजुट होकर किया था।
उत्तर:
(क) इसका गठन गैर- कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।

प्रश्न 5.
किसी राजनीतिक दल को अपने अंदरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए? यहाँ कुछ समाधान दिए गए हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके सामने उसके फायदों और घाटों को लिखिए।
(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना।
(ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना।
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना।
उत्तर:
(क) लाभ – पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने से पार्टी में एकता और अनुशासन की भावना का विकास होगा। हानि – इससे एक व्यक्ति की तानाशाही या निरंकुशता स्थापित होने का खतरा बढ़ जाता है।

(ख) लाभ – मतभेदों को दूर करने के लिए बहुमत की राय जानने से यह लाभ होगा कि इससे अधिकांश की राय का पता चलेगा तथा पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बढ़ेगा। हानि – बहुमत की राय मानने से अल्पसंख्यकों की उचित बात की अवहेलना की सम्भावना बनी रहेगी। (ग) लाभ – पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए गुप्त मतदान की प्रक्रिया अपनाने से प्रत्येक सदस्य अपनी बात स्वतन्त्रतापूर्वक रख सकेगा। यह पद्धति अधिक लोकतांत्रिक तथा निष्पक्ष है। हानि – गुप्त मतदान में क्रॉस वोटिंग का खतरा बना रहता है।

(घ) लाभ – पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की सलाह का विशेष लाभ होगा, क्योंकि वरिष्ठ नेताओं के पास अनुभव होता है तथा सभी सदस्य उनका आदर करते हैं। हानि – वरिष्ठ एवं अनुभवी व्यक्ति नये विचारों एवं मूल्यों को अपनाने से कतराते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे / किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए:
(क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव।
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट।
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और साम्प्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद।
उत्तर:
(कं) इसको कांग्रेस की हार के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कांग्रेस के पास अनेक वरिष्ठ और करिश्माई नेता थे

(ख) यह कांग्रेस पार्टी की हार का सबसे बड़ा कारण था क्योंकि कांग्रेस दो गुटों में बँटती जा रही थी युवा तुर्क और सिंडिकेट युवा तुर्क (चन्द्रशेखर, चरणजीत यादव, मोहन धारिया, कृष्णकान्त एवं आर. के. सिन्हा) तथा सिंडिकेट (कामराज, एस. के पाटिल, अतुल्य घोष एवं निजलिंगप्पा) के बीच आपसी फूट के कारण कांग्रेस पार्टी को 1967 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा।

(ग) 1967 में पंजाब में अकाली दल, तमिलनाडु में डी. एम. के. जैसे दल अनेक राज्यों में क्षेत्रीय, जातीय और साम्प्रदायिक दलों के रूप में उभरे जिससे कांग्रेस प्रभाव व विस्तार क्षेत्र में कमी आयी तथा कई राज्यों में उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा।

(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच पूर्णरूप से एकजुटता नहीं थी लेकिन जिन-जिन प्रान्तों में ऐसा हुआ वहाँ वामपंथियों अथवा गैर-कांग्रेसी दलों को लाभ मिला।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद के कारण बहुत जल्दी ही आन्तरिक फूट कालान्तर में सभी के सामने आ गई और लोग यह मानने लगे कि 1967 के चुनाव में कांग्रेस की हार के कई कारणों में से यह कारण भी एक महत्त्वपूर्ण था।

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प्रश्न 7.
1970 के दशक में इन्दिरा गाँधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी?
उत्तर:
1970 के दशक में श्रीमती गाँधी की लोकप्रियता के कारण – 1970 के दशक में श्रीमती गाँधी की लोकप्रियता के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
1. करिश्मावादी नेता:
इन्दिरा गाँधी कांग्रेस पार्टी की करिश्मावादी नेता थीं। वह भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री की पुत्री थीं और उन्होंने स्वयं को गाँधी-नेहरू परिवार का वास्तविक राजनीतिक उत्तराधिकारी बताया। वह देश की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री होने के कारण महिला मतदाताओं में अधिक लोकप्रिय हुईं।

2. प्रगतिशील कार्यक्रमों की घोषणा:
इन्दिरा गाँधी द्वारा 20 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना, प्रिवीपर्स को समाप्त करना, श्री वी.वी. गिरि जैसे मजदूर नेता को दल के घोषित प्रत्याशी के विरुद्ध चुनाव जिता कर लाना आदि ने उनकी लोकप्रियता को बढ़ाया ।

3. कुशल एवं साहसिक चुनावी रणनीति:
इंदिरा गाँधी ने एक साधारण से सत्ता संघर्ष को विचारधारात्मक संघर्ष में बदल दिया । उन्होंने अपनी वामपंथी नीतियों की घोषणा कर जनता को यह दर्शाने में सफलता पाई कि कांग्रेस का सिंडीकेट धड़ा इन नीतियों के मार्ग में बाधाएँ डाल रहा है। चुनावों में श्रीमती गाँधी को इसका लाभ मिला।

4. भूमि सुधार कानूनों का क्रियान्वयन:
श्रीमती गाँधी ने भूमि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन के लिए जबरदस्त अभियान चलाया तथा उन्होंने भू-परिसीमन के कुछ और कानून भी बनाए। जिसका प्रभाव चुनाव में उनके पक्ष में गया।

प्रश्न 8.
1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के सन्दर्भ में सिंडिकेट का क्या अर्थ है? सिंडिकेट ने कांग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर:
सिंडिकेट का अर्थ- कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को एक अनौपचारिक रूप से सिंडिकेट के नाम से पुकारा जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर अधिकार एवं नियन्त्रण था। सिंडिकेट के अगुआ के. कामराज थे। इसमें विभिन्न प्रान्तों के ताकतवर नेता जैसे बम्बई सिटी (अब मुम्बई) के एस. के. पाटिल, मैसूर ( अब कर्नाटक) के एस. निजलिंगप्पा, आन्ध्र प्रदेश के एन. संजीव रेड्डी और पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष शामिल थे। भूमिका – इन्दिरा गाँधी के पहले मन्त्रिमण्डल में इस समूह की निर्णायक भूमिका रही।

इसने तब नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन में भी अहम भूमिका निभायी थी। कांग्रेस का विभाजन होने के बाद सिंडिकेट के नेता कांग्रेसी कांग्रेस (ओ) में ही रहे । चूँकि इन्दिरा गाँधी की कांग्रेस (आर) ही लोकप्रियता की कसौटी पर सफल रही, इसलिए ये ताकतवर नेता 1971 के बाद प्रभावहीन हो गए।

प्रश्न 9.
कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई? कांग्रेस के 1969 के विभाजन के लिए उत्तरदायी किन्हीं पाँच कारकों का परीक्षण कीजिए।
अथवा
1969 में कांग्रेस में विभाजन के क्या कारण थे?
उत्तर:
1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन या टूट के कारण 1969 में कांग्रेस के विभाजन एवं टूट के निम्नलिखित कारण थे:

  1. दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधाराओं के समर्थकों के मध्य कलह: 1967 के चौथे आम चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद कांग्रेस के कुछ नेता दक्षिणपंथी विचारधारा वालों के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहते थे और कुछ वामपंथी विचारधारा वाले दलों के साथ। कांग्रेस के नेताओं की यह कलह उसके विभाजन का मुख्य कारण बनी।
  2. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन को लेकर मतभेद: 1969 में राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस द्वारा समर्थित उम्मीदवार एन. संजीव रेड्डी को श्रीमती गाँधी व उनके समर्थकों ने मत न देकर एक स्वतन्त्र उम्मीदवार वी. वी. गिरि को समर्थन दिया। जिससे चुनाव में वी.वी. गिरि जीत गये। यह घटना कांग्रेस पार्टी के विभाजन का प्रमुख कारण बनी।
  3. युवा तुर्क एवं सिंडिकेट के बीच कलह: 1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन का एक कारण युवा तुर्क (चन्द्रशेखर, चरणजीत यादव, मोहन धारिया, कृष्णकान्त एवं आर. के. सिन्हा) तथा सिंडिकेट (कामराज, एस. के. पाटिल, अतुल्य घोष एवं निजलिंगप्पा ) के बीच होने वाली कलह भी रही।
  4. वित्त विभाग, मोरारजी देसाई से वापस लेना: श्रीमती गाँधी की मोरारजी देसाई से वित्त विभाग को वापस लेने तथा बैंक राष्ट्रीयकरण के प्रस्ताव को मन्त्रिमण्डल में सर्वसम्मति से पारित कर देने की कार्यवाही ने भी कांग्रेस विभाजन को मुखरित किया।
  5. सिंडीकेट द्वारा श्रीमती गाँधी को पद से हटाने का प्रयास: 1969 में कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार के चुनाव हार जाने के बाद सिंडीकेट ने प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी को पद से हटाने का प्रयास किया परन्तु वे इसमें सफल न हो सके। उपर्युक्त घटनाओं के कारण कांग्रेस में आन्तरिक कलह इस कदर बढ़ गया कि नवम्बर, 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
इन्दिरा गाँधी ने कांग्रेस को अत्यन्त केन्द्रीकृत और अलोकतान्त्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरुआती दशकों में एक संघीय, लोकतान्त्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी। नयी और लोकलुभावन राजनीति ने राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार की नीतियाँ भी बनानी थीं- 1970 के दशक के शुरुआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई।
(क) लेखक के अनुसार नेहरू और इन्दिरा गाँधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अन्तर था?
(ख) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस ‘मर गई’?
(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर किस तरह पड़ा?
उत्तर:
(क) जवाहर लाल नेहरू की तुलना में उनकी पुत्री और तीसरी प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने कांग्रेस पार्टी को बहुत ज्यादा केन्द्रीकृत और अलोकतान्त्रिक पार्टी संगठन के रूप में बदल दिया। नेहरू के काल में यह पार्टी संघीय लोकतान्त्रिक और विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले कांग्रेसी नेता और यहाँ तक कि विरोधियों को साथ लेकर चलने वाले एक मंच के रूप में कार्य करती थी।

(ख) लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि सत्तर के दशक में कांग्रेस की सर्वोच्च नेता श्रीमती इन्दिरा गाँधी एक अधिनायकवादी नेता थीं। उन्होंने मनमाने ढंग से मन्त्रिमण्डल और दल का गठन किया तथा पार्टी में विचार-विमर्श प्रायः मर गया।

(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलाव के कारण दूसरी पार्टियों में परस्पर एकता बढ़ी। वे जनता पार्टी के रूप में लोगों के सामने आये। 1977 के चुनावों में विरोधी दलों ने कांग्रेस का सफाया कर दिया।

कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना JAC Class 12 Political Science Notes

→ पण्डित नेहरू के शासन काल में देश के सभी भागों में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व बना रहा तथा कोई भी राजनीतिक पार्टी कांग्रेसी वर्चस्व को चुनौती देने में सक्षम नहीं थी। लेकिन नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस नेतृत्व के लिए अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न होने लगीं।

→ राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती:
राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती मई, 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद उत्पन्न हुई जिसे लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमन्त्री बनने के साथ ही हल कर लिया गया। शास्त्री 1964 1966 तक प्रधानमंत्री रहे। 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर के बाद शास्त्रीजी के निधन के उपरान्त फिर राजनीतिक उत्तराधिकार का मामला उठा। लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इन्दिरा गाँधी को देश की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री और तीसरा प्रधानमन्त्री बनने का अवसर मिला । उन्होंने अपने प्रतियोगी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोरारजी देसाई को पराजित किया। इन्दिरा गाँधी 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक प्रधानमन्त्री पद पर रहीं। 1984 में उनकी हत्या कर दी गई।

→ चौथा आम चुनाव 1967:
भारतीय चुनावी राजनीति के इतिहास में 1967 के वर्ष को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। 1952 के बाद से पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का जो दबदबा कायम था वह 1967 के चुनावों में समाप्त हो गया।

→ चुनावों का सन्दर्भ:
1960 के दशक में अनेक कारणों से देश गम्भीर आर्थिक संकट में था। आर्थिक स्थिति की विकटता के कारण कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई, खाद्यान्न की कमी तथा बढ़ती बेरोजगारी से लोगों की स्थिति बदतर हो गई और लोग सरकार के विरोध में उतर आये। कांग्रेस सरकार इसे भाँप नहीं सकी। मार्क्सवादी समाजवादी दल से अलग हुए मार्क्सवादी-लेनिनवादी गुट ने सशस्त्र कृषक विद्रोह का नेतृत्व किया तथा किसानों को संगठित किया। तीसरे, इस काल में गम्भीर साम्प्रदायिक दंगे भी हुए।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

→ गैर-कांग्रेसवाद:
कांग्रेस विरोधी वोटों को चुनाव में बंटने से रोकने के लिए सभी विरोधी दलों ने एकजुट होकर सभी राज्यों में एक कांग्रेस विरोधी मोर्चा बनाया जिसे राममनोहर लोहिया ने ‘गैर-कांग्रेसवाद’ का नारा दिया।

चुनाव का जनादेश तथा गठबन्धन सरकारें: व्यापक जन- असन्तोष और राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के इस माहौल में 1967 के चौथे आम चुनाव हुए। इन चुनावों को कांग्रेस को जैसे-तैसे लोकसभा में तो बहुमत मिल गया लेकिन उसकी सीटों की संख्या में भारी गिरावट आयी। सात राज्यों में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। 2 अन्य राज्यों में भी दल-बदल के कारण कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी। मद्रास में डी.एम. के. ने सरकार बनायी तथा अन्य 8 राज्यों में गठबन्धन की सरकारें बनीं।

→ दल – बदल: 1967 से देश में राजनीति दल-बदल और ‘ आया राम-गया राम’ की राजनीति शुरू हुई, जिसकी वजह से भारतीय लोकतन्त्र को अस्थायी रूप से गहरा आघात लगा। कांग्रेस सिंडिकेट और इंडिकेट या पुरानी कांग्रेस और नई कांग्रेस के नाम से विभाजित हो गयी।

→ कांग्रेस में विभाजन:
1969 में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया, जिसके कई कारण थे, जैसे- दक्षिणपंथी एवं वामपंथी विषय पर कलह, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के विषय में मतभेद, युवा तुर्क एवं सिंडीकेट के बीच कलह तथा मोरारजी से वित्त विभाग वापस लेना इत्यादि।

→ इंदिरा बनाम सिंडिकेट:
इंदिरा गाँधी को असली चुनौती विपक्ष से नहीं अपितु अपनी पार्टी के भीतर से मिली। उन्हें सिंडिकेट से निपटना पड़ा। ‘सिंडिकेट’ कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियंत्रण था। इसके अगुवा मद्रास प्रांत के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके के. कामराज थे। ‘सिंडिकेट’ ने इंदिरा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नेताओं को उम्मीद थी कि इंदिरा गाँधी उनकी सलाहों पर अमल करेंगी लेकिन इसके विपरीत इंदिरा गाँधी ने सरकार और पार्टी के भीतर खुद का मुकाम बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे और बड़ी सावधानी से उन्होंने सिंडिकेट को हाशिए पर ला खड़ा किया।

इस तरह इंदिरा गाँधी ने दो चुनौतियों का सामना किया। उन्हें ‘सिंडिकेट’ के प्रभाव से स्वतंत्र अपना मुकाम बनाया और 1967 के चुनावों में कांग्रेस ने जो जमीन खोयी थी उसे हासिल किया। 1967 में कांग्रेस कार्यसमिति ने दस सूत्री कार्यक्रम अपनाया। इस कार्यक्रम में बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण, आम बीमा के राष्ट्रीयकरण, शहरी संपदा और आय के परिसीमन, खाद्यान्न का सरकारी वितरण, भूमि सुधार तथा ग्रामीण गरीबों को आवासीय भूखंड देने के प्रावधान शामिल थे।

→ राष्ट्रपति पद का चुनाव, 1969:
सिंडिकेट और इंदिरा गाँधी के बीच की गुटबाजी 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनाव के समय सामने आ गई। तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण राष्ट्रपति का पद खाली था। इंदिरा गाँधी की असहमति के बावजूद सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष को कांग्रेस पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया। इंदिरा गाँधी ने ऐसे समय में तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि को बढ़ावा दिया कि वे राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भरें।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

→ 1971 का चुनाव और कांग्रेस का पुनर्स्थापन:
1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद यद्यपि इन्दिरा गाँधी की सरकार अल्पमत में आ गयी थी, लेकिन वह डी. एम. के. तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन से टिकी रही। अब श्रीमती गाँधी की सरकार ने भूमि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन, भू-परिसीमन के कानून, बैंक राष्ट्रीयकरण तथा प्रिवी पर्स की समाप्ति आदि के द्वारा अपना समाजवादी रंग पेश किया तथा 1970 में लोकसभा भंग कर 1971 में चुनाव कराएं। 1971 के चुनावों में श्रीमती इन्दिरा गाँधी को ऐतिहासिक जीत प्राप्त हुई। श्रीमती इन्दिरा गाँधी की जीत के कई कारण थे, जैसे- श्रीमती गाँधी का चमत्कारिक नेतृत्व, समाजवादी नीतियाँ, कांग्रेसी दल पर श्रीमती गाँधी की पकड़, श्रीमती गाँधी के पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण तथा गरीबी हटाओ का नारा। 1971 के चुनावों में जहाँ श्रीमती गाँधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया, वहीं उनके विरोधियों ने इन्दिरा हटाओ का नारा दिया, जिसे मतदाताओं ने पसन्द नहीं किया तथा श्रीमती गाँधी के पक्ष में मतदान किया।

→ कांग्रेस की पुनर्स्थापना:
1971 के लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में एक बड़ा राजनीतिक और सैन्य संकट उठ खड़ा हुआ। 1971 के चुनावों के बाद पूर्वी पाकिस्तान के मुद्दे को लेकर युद्ध छिड़ गया। इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश बना। इन घटनाओं से इन्दिरा गाँधी की लोकप्रियता में चार चाँद लग गए। विपक्ष के नेताओं तक ने उसके राज्य कौशल की प्रशंसा की। 1972 के राज्य विधानसभा के चुनावों में उनकी पार्टी को व्यापक सफलता मिली। उन्हें गरीबों, वंचितों के रक्षक और एक मजबूत राष्ट्रवादी नेता के रूप में देखा गया। पार्टी के अन्दर अथवा बाहर उसके विरोध की कोई गुंजाइश न बची। कांग्रेस को लोकसभा चुनावों के साथ-साथ राज्य स्तर के चुनावों में भी भारी सफलता प्राप्त हुई।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Rachana लघुकथा-लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Rachana लघुकथा-लेखन

किसी घटना के संक्षिप्त रोचक वर्णन को लघुकथा कहते हैं। कहानी या कथा लिखना एक कला है। लघुकथा में कम-से-कम शब्दों में ही बात को इस प्रकार प्रस्तुत करना होता है कि वह पाठक के मन को चिंतन के लिए उद्वेलित कर दे। अपनी कल्पना और वर्णन – शक्ति के द्वारा लेखक कहानी के कथानक, पात्र या वातावरण को प्रभावशाली बना देता है। लेखक पाठक के लिए अपनी कल्पना और विचारों को नैतिक संदेश प्रदान करने के लिए एक कहानी के रूप में डालने की कोशिश करता है। विद्यार्थियों को पहले दी गई रूपरेखा के आधार, चित्र देखकर अथवा कहानी के संकेत पढ़कर कहानी लिखने का अभ्यास करना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

कहानी के कुछ प्रमुख तत्व :

  • कथावस्तु
  • संवाद
  • देशकाल और वातावरण
  • भाषा-शैली
  • चरित्र-चित्रण
  • उद्देश्य

कथावस्तु – कथावस्तु से तात्पर्य कहानी में वर्णित घटनाओं और कार्य – व्यापार से है।
संवाद – कहानी के पात्रों द्वारा आपस में किए गए वार्तालाप को संवाद कहते हैं। कहानी के संवाद लिखते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि संवाद पात्र के अनुकूल हों।
देशकाल और वातावरण – कहानी में वर्णित घटना का संबंध जिस परिस्थिति अथवा वातावरण से है, उसे एक कहानी का देशकाल अथवा परिवेश कहा जाता है।
भाषा-शैली – कथाकार अपनी भाषा शैली के द्वारा कहानी के पात्रों को जीवंत और प्रभावशाली बनाता है। भाषा शैली कहानी का प्राण तत्व होती है।
चरित्र-चित्रण – कहानी के पात्रों के हाव-भाव तथा कार्य-व्यापार उनके चरित्र का निर्माण करते हैं।
उद्देश्य – कहानी का अभिप्राय ही कहानी का उद्देश्य है। पाठक कहानी के अभिप्राय को समझे बिना कहानी को सही ढंग से आत्मसात नहीं कर सकता।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

कहानी लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  • परिचय कहानी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। कहानी लिखते समय मुख्य चरित्र और एक घटना का उल्लेख के साथ परिचय लिखना चाहिए।
  • परिचय के उपरांत कहानी की स्थिति के बारे में लिखना चाहिए।
  • दी गई रूपरेखा अथवा संकेतों के आधार पर ही कहानी का विस्तार करें।
  • कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार दें।
  • कहानी की भाषा सरल होनी चाहिए, जिससे पाठकों को आसानी से समझ आ जाए।
  • कहानी रोचक और स्वाभाविक हो। घटनाओं का पारस्परिक संबंध हो और कहानी से कोई-न-कोई उपदेश मिलता हो।
  • कहानी का शीर्षक उपयुक्त एवं आकर्षक होना चाहिए।
  • कहानी का आरंभ आकर्षक होना चाहिए और अंत सहज ढंग से होना चाहिए।

संकेत बिंदुओं के आधार पर लघुकथा लेखन के कुछ उदाहरण –

1. एक बालक का अपने मित्रों के साथ बगीचे में जाना… चोरी से फल तोड़कर खाना… माली का बगीचे में आना… बच्चों का भाग जाना… एक बालक का पकड़े जाना… माली द्वारा उसे डाँटना… बालक का रोना.. माली की बात को आत्मसात करना… भविष्य में प्रतिष्ठित व्यक्ति बनना।

शीर्षक – सीख

एक दिन कुछ बालक विद्यालय से लौट रहे थे कि रास्ते में एक बगीचे में अमरूद से लदे पेड़ देखकर सभी बच्चे उसमें घुस गए। माली को वहाँ न पाकर बच्चे पेड़ पर चढ़ गए और अमरूद तोड़कर खाने लगे। एक बच्चा नीचे खड़ा बड़े बच्चों से गुहार लगा रहा था कि वे उसे भी थोड़े अमरूद तोड़ कर दे दें। पेड़ पर चढ़े एक बच्चे ने एक अमरूद उसकी ओर उछाल दिया।

अमरूद पाकर बालक बड़ा प्रसन्न हुआ और अमरूद खाने लगा। इतने में ही बालक ने ज़ोर से शोर मचाया, माली आ गया भागो…..। बच्चे पेड़ से उतरकर भागने लगे। वह छोटा बालक अमरूद खाने में लगा हुआ था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था तभी माली ने आकर उसे धर दबोचा। माली उस बालक को पहचान गया। उससे बोला, तुम्हें बगीचे में चोरी करते हुए लज्जा नहीं आती? एक तो तुम्हारे पिता नहीं हैं ऊपर से तुम इन बच्चों के साथ गंदी आदतें सीख रहे हो।

बालक यह सुनकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। बालक को रोता देखकर माली ने समझाया, “तुम्हारी माता भविष्य के सुनहरे सपने देखती हैं। तुम्हें तो अच्छी तरह पढ़ना चाहिए ताकि तुम बड़े होकर अपनी माँ का हाथ बँटा सको।’

बालक समझ गया उसने माली की बात गाँठ बाँध ली। इसके बाद वह बालक कभी उस बगीचे में नज़र नहीं आया। आगे चलकर यही बालक हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के रूप में विख्यात हुए।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

2. अध्यापक का शिष्यों के साथ घूमने जाना …… अच्छी संगति के महत्व को समझाना ……. एक गुलाब का पौधा देखना …… ढेला उठाकर सूँघना …… शिष्य का ढेला सूँघना ……. अध्यापक का शिष्यों को समझाना ……. गुलाब की पंखुड़ियाँ गिरना ……. पंखुड़ियों की संगति से मिट्टी से गुलाब की महक आना ……… जैसी संगति वैसे ही गुण-दोष।

शीर्षक – संगति का असर

एक अध्यापक अपने शिष्यों के साथ घूमने जा रहे थे। रास्ते में वे अपने शिष्यों के अच्छी संगति का महत्व समझा रहे थे। लेकिन शिष्य इसे समझ नहीं पा रहे थे। तभी अध्यापक ने फूलों से लदा एक गुलाब का पौधा देखा। उन्होंने एक शिष्य को उस पौधे के नीचे से तत्काल एक मिट्टी का ढेला उठाकर ले आने को कहा। जब शिष्य ढेला उठा लाया तो अध्यापक ने उससे उस ढेले को सूँघने को कहा।

शिष्य ने ढेला सूँघा और बोला, “गुरु जी इसमें से तो गुलाब की बड़ी खुशबू आ रही है।”

अध्यापक बोले, “बच्चो ! जानते हो इस मिट्टी में यह मनमोहक महक कैसे आई? दर सअसल इस मिट्टी पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ, टूट-टूटकर गिरती हैं, तो मिट्टी में भी गुलाब की महक आने लगी है। जिस प्रकार गुलाब की पंखुड़ियों की संगति के कारण इस मिट्टी में से गुलाब की महक आने लगी उसी प्रकार जो व्यक्ति जैसी संगति में रहता है उसमें वैसे ही गुण-दोष आ जाते हैं।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

3. व्यापारी का ऊँटों का व्यापार करना ……… उनके बच्चे खरीदकर बेचना ……… जंगल के पास चरने को भेजना ……… ऊँट का बच्चा शैतान होना ……… उसके गले में घंटी बाँधना ……… शेर ऊँटों को शिकार करने के लिए देखना ……… मौके की तलाश करना ……… ऊँटों का खतरा होना …….. चल पड़ना ………. बच्चे का झुंड से अलग जाना ……… शेर के द्वारा मारे जाना।

शीर्षक – मूर्खता का परिणाम

रेगिस्तान के किनारे स्थित एक गाँव में एक व्यापारी रहता था। वह ऊँटों का व्यापार करता था। वह ऊँटों के बच्चों को खरीदकर उन्हें शक्तिशाली बनाकर बेच देता था। इससे वह ढेर सारा धन कमाता था।
व्यापारी ऊँटों को पास के जंगल में घास चरने के लिए भेज देता था जिससे उनके चारे का खर्च बचता था। उनमें से एक ऊँट का बच्चा बहुत शैतान था। वह प्राय: समूह से दूर चलता था और इस कारण पीछे रह जाता था। बड़े ऊँट हरदम उसे समझाते थे, परंतु वह नहीं सुनता था। इसलिए उन सबने उसकी परवाह करना छोड़ दिया।
व्यापारी को उस छोटे ऊँट से बहुत प्रेम था। इसलिए उसने उसके गले में घंटी बाँध रखी थी। जब भी वह सिर हिलाता तो उसकी घंटी बजती थी जिससे उसकी चाल एवं स्थिति का पता चल जाता था।
एक बार उस स्थान से एक शोर गुजरा जहाँ ऊँट चर रहे थे। उसे ऊँट की घंटी के द्वारा उनके होने का पता चल गया था। उसने फ़सल में से झाँककर देखा तो उसे ज्ञात हुआ कि ऊँट का एक बड़ा समूह है लेकिन वह ऊँटों पर हमला नहीं कर सकता था क्योंकि समूह में ऊँट उससे बलशाली थे। इस कारण वह मौके की तलाश में वहाँ छुपकर खड़ा हो गया। समूह के एक बड़े ऊँट को खतरे का आभास हो गया। ऊँटों ने एक मंडली बनाकर जंगल से बाहर निकलना आरंभ कर दिया। शेर ने मौके की तलाश में उनका पीछा करना शुरू कर दिया। बड़े

ऊँट ने विशेषकर छोटे ऊँट को सावधान किया था। कहीं वह कोई परेशानी न खड़ी कर दे। पर छोटे ऊँट ने ध्यान नहीं दिया और वह लापरवाही से चलता रहा। छोटा ऊँट अपनी मस्ती में अन्य ऊँटों से पीछे रह गया। जब शेर ने उसको देखा तो वह उस पर झपट पड़ा। छोटा ऊँट अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागा, पर वह अपने आप को उस शेर से नहीं बचा पाया। उसका अंत बुरा हुआ क्योंकि उसने अपने बड़ों की आज्ञा का पालन नहीं किया था।

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4. एक धनी सेठ के बेटे का आज्ञाकारी तथा होनहार होना… उसका बुरी संगत में पड़ना …….. उनके साथ उसका कक्षा छोड़कर भागना …….. उसे सिगरेट की लत लगना ……. उसके पिता का उसे सिगरेट पीते देखना पर कुछ न कहना …….. आदित्य को पश्चाताप होना …….. पिता से क्षमा माँगना ……. बुरी संगति को छोड़ना …….

संगति का प्रभाव

बनारस के पास एक छोटे-से नगर में सेठ श्याम दास रहते थे। उनका इकलौता था पुत्र था, जो बहुत ही होनहार था उसका नाम आदित्य था। विद्यालय के सभी शिक्षक आदित्य को बहुत पसंद किया करते थे क्योंकि वह आज्ञाकारी होने के साथ-साथ पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था। उसकी कक्षा में कुछ ऐसे बच्चे भी पढ़ते थे जिनकी आदत खराब थी। न मालूम कैसे धीरे-धीरे आदित्य की मित्रता उन बच्चों के साथ हो गई। अब वह भी उन बच्चों की भाँति विद्यालय से भागने लगा। उसे कक्षा छोड़कर जाना अच्छा लगने लगा। वह पहले की भाँति विद्यालय तो आता, लेकिन बीच में ही विद्यालय से बाहर निकलकर उन मित्रों के साथ सिनेमा देखता, बाज़ार घूमता और जुआ खेलता। उसे सिगरेट पीने की लत भी लग गई थी। सेठ श्याम दास इन सब बातों से बेखबर थे। वे नहीं जानते थे कि उनका प्रिय पुत्र किस प्रकार बुरी संगति में पड़ गया है।

एक दिन किसी कार्यवश वे बाज़ार निकले, तो उन्होंने देखा कि आदित्य कुछ बच्चों के साथ पेड़ के नीचे बैठकर सिगरेट पी रहा है। पहले तो उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ किंतु पास जाकर देखा, तो समझ गए कि आदित्य अब बुरी संगति में पड़ चुका है। अपने पिता को सामने खड़ा देखकर आदित्य झेंप गया। उसे कुछ जवाब देते नहीं बन पड़ा। बिना कुछ कहे वह अपने पिता के साथ हो लिया। रास्ते भर पिता-पुत्र में कोई बातचीत नहीं हुई। वह समझ चुका था कि उसने अपने पिता को बहुत कष्ट पहुँचाया है। घर आकर उसने अपने पिता से क्षमा माँगी और उन गलत दोस्तों का साथ छोड़ देने का प्रण लिया। उसे समझ आ गया था कि बुरे लोगों के साथ रहकर कुछ भला नहीं हो सकता।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

5. सेठ काशीराम के पास अपार दौलत होना ……… पर मन की शांति नहीं ……… एक दिन आश्रम में जाना ……… संत द्वारा प्रश्न पूछना …….. सेठ द्वारा अपनी परेशानी को बताना ……….. दोनों का आश्रम के चक्कर लगाना ………… सेठ द्वारा सुंदर वृक्ष को छूना ….. काँटा चुभना …….. सेठ का चिल्लाना ……… संत द्वारा समझाया जाना ……. ईर्ष्या, क्रोध, लोभ का त्याग करना ……… शांति का प्राप्त होना ……….

शीर्षक-शांति की प्राप्ति

सेठ काशीराम के पास अपार धन-दौलत थी। उन्हें हर तरह का आराम था लेकिन उनके मन को शांति नहीं मिल पाती थी। हर पल उन्हें कोई-न-कोई चिंता परेशान किए रहती थी। एक दिन वे कहीं जा रहे थे तो रास्ते में उनकी नज़र एक आश्रम पर पड़ी। वहाँ उन्हें किसी साधु के प्रवचनों की आवाज़ सुनाई दी। उस आवाज़ से प्रभावित होकर काशीराम आश्रम के अंदर गए और बैठ गए।

प्रवचन समाप्त होने पर सभी अपने-अपने घर को चले गए। लेकिन सेठ वहीं बैठे रहे। उन्हें देखकर संत बोले, ” कहो, तुम्हारे मन में क्या निराशा है, जो तुम्हें परेशान कर रही है।”
इस पर काशीराम बोले, “बाबा, मेरे जीवन में शांति नहीं है।”

यह सुनकर संत बोले, ” घबराओ नहीं, तुम्हारे मन की सारी अशांति अभी दूर हो जाएगी। तुम आँखें बंद करके ध्यान की मुद्रा में बैठो।’ संत की बात सुनकर ज्यों ही काशीराम ध्यान की मुद्रा में बैठे त्यों ही उनके मन में इधर-उधर की बातें घूमने लगीं और उनका ध्यान उचट गया। संत ने यह देखकर सेठ से कहा, ‘चलो, आश्रम का एक चक्कर लगाते हैं।’

इसके बाद वे आश्रम में घूमने लगे। काशीराम ने एक सुंदर वृक्ष देखा तथा उसे हाथ से छुआ। हाथ लगाते ही उनके हाथ में एक काँटा चुभ गया और सेठ बुरी तरह चिल्लाने लगे। यह देखकर संत वापस अपनी कुटिया में आए। कटे हुए हिस्से पर लेप लगाया। कुछ देर बाद वे सेठ से बोले, “तुम्हारे हाथ में ज़रा-सा काँटा चुभा तो तुम बेहाल हो गए। सोचो कि जब तुम्हारे अंदर ईर्ष्या, क्रोध व लोभ जैसे बड़े-बड़े काँटे छिपे हैं, तो तुम्हारा मन भला शांत कैसे हो सकता है?”

संत की बात से सेठ काशीराम को अपनी गलती का अहसास हो गया। वे संतुष्ट होकर वहाँ से चले गए। उसके बाद सेठ काशीराम ने कभी भी ईर्ष्या नहीं की, क्रोध भी त्याग दिया।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार

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JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran शब्द विचार

परिभाषा-श्रुतिसम अर्थात सुनने में समान। जो शब्द पढ़ने और सुनने में लगभग एक समान लमते है, परंतु अर्थ की दृष्टि से भिन्नत पाई जाती हैं, वे श्रुतिसम-भिन्नर्थक शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों में स्वर, मात्रा अथवा व्यंजन में थोड़-सी भिन्नता पाई जाती हैं। ये बोलने में लगभग एक जैसे लगते हैं, परंतु उनके अर्थ में भिन्नता अवश्य होती है। यही शब्द ‘ ग्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द’ होते हैं।
जैसे – घन और धन दोनों के उच्चारण में कोई खास भिन्नता महसूस नहीं होती परंतु अर्थ में भिन्नता है।

घन = बादल
धन = रुपया-पैसा या संपत्ति

हिंदी भाषा में ऐसे बहुत से शब्द हैं, जिनमें से कुछ की सूची नीचे दी जा रही है :

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार 1

पमासनाही पालन

जिन शब्दों के अर्थ में समानता होती है, उन्हें पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहते हैं। यद्यपि पर्यायवाची शब्दों के अर्थ में समानता तो होती है, परंतु प्रत्येक शब्द की अपनी विशेषता होती है। भावगत भिन्नता पाई जाती है। इनके प्रयोग में हमें सावधानी बरतनी होती है।

  • अच्छा – सुष्ठु, शुभ, श्रेष्ठ, शोभन, सुंदर
  • अनुरूप – अनुकूल, संगत, अनुसार
  • अनुपम – अद्भुत, अद्वितीय, अनोखा, अपूर्व, निराला, अनूठा
  • अधम – पतित, भ्रष्ट, नीच, निकृष्ट, खल, पामर, दुर्जन
  • अपमान – अनादर, उपेक्षा, तिरस्कार, निरादर
  • अंकुश – रोक, दबाव, प्रतिबंध
  • अमृत – सुधा, पीयूष, अमिय, सोम
  • अरिन – हुताशन, वहनि, अनल, पावक, आग, दहन, ज्वाला
  • अलि – भ्रमर, भौरा, मधुकर, मधुप, मिलिंद
  • असुर – राक्षस, दैत्य, दानव, दनुज, निशाचर
  • ईश्वर – ईश, परमात्मा, परमेश्वर, प्रभु, भगवान, जगदीश
  • उषा – प्रभात, सवेरा, अरुणोदय, निशांत
  • उन्नति – उदय, वृद्धि, विकास, उत्कर्ष, उत्थान, अभ्युदय, प्रगति, उन्नयन
  • अंकुर – कोंपल, अँखुआ, कलिका
  • अँधेरा – तम, तिमिर, अंधकार, अँधियारा
  • आँसू – अश्रु, नयनजल, नेत्रनीर
  • अहंकार – अभिमान, गर्व, घमंड, मद, दर्प
  • आनंद – मोद, प्रमोद, हर्ष, आमोद, प्रसन्नता, उल्लास
  • आँख – नेत्र, चक्षु, नयन, लोचन, अक्षि
  • आकाश – व्योम, गगन, अंबर, नभ, आसमान, अनंत
  • अतिधि – अभ्यागत, मेहमान, आगंतुक, पाहुन
  • अश्व – घोड़ा, हय, बाजी, घोटक, तुरंग
  • आभूषण – अलंकार, भूषण, गहना
  • इनाम – पुरस्कार, पारितोषिक, प्रीतिकर, आनंदकर
  • इच्छा – अभिलाषा, चाह, मनोरथ, कामना, आकांक्षा, लालसा
  • इंद्र – देवेंद्र, सुरेंद्र, सुरपति, पुरंदर, देवराज, शचीपति
  • उद्देश्य – अभिग्राय, आशय, लक्ष्य, ध्येय, इष्ट, तात्पर्य
  • उपकार – हित, भलाई, नेकी, भला
  • कपड़ा – वस्त्र, अंबर, चीर, पट, वसन, परिधान
  • किरण – रश्मि, अंशु, मरीची, मयूख, कर
  • केश – बाल, अलक, कच, कुंतल
  • कोयल – पिक, कोकिल, श्यामा, कलकंठी, कोकिला, वसंतदूत
  • कृपा – अनुग्रह, मेहरबानी, दया, अनुकंपा
  • कमल – अरविंद, जलज, नलिन, पंकज, सरोज, राजीव, नीरज, अंबुज
  • कान – कर्ण, श्रोत्र, श्रवण
  • किनारा – तट, तीर, कूल, पुलिन
  • कृष्ण – वासुदेव, गोपाल, गिरधर, केशव
  • क्रोध – गुस्सा, रोष, कोप, आमर्ष
  • खल – अधम, कुटिल, दुष्ट, शठ
  • खून – रक्त, लहू, शोणित
  • गणेश – गणपति, भालचंद्र, लंबोदर, गजानन, विनायक
  • गंगा – भागीरथी, देवनदी, सुरसरी, मंदाकिनी, नदीश्वरी
  • गौ – गाय, सुरभि, धेनु, गऊ, दुधा
  • गोद – अंक, क्रोड, उत्सर्ग
  • गुफा – गुहा, विवर, कंदरा
  • जल – वारि, नीर, पानी, पय, तोय, सलिल, अंबु, उदक
  • जंगल – विपिन, कानन, वन, अरण्य
  • घर – गृह, सदन, निकेतन, भवन, आवास, आलय, धाम, गेह
  • चंद्रमा – शशि, विधु, चंद्र, राकेश, इंदु, चाँद, सोम, सुधाकर
  • चतुर – दक्ष, प्रवीण, निपुण, कुशल, योग्य, होशियार
  • चाँदनी – ज्योत्स्ना, चंद्रिका, कौमुदी, चंद्रमरीची
  • झंडा – ध्वज, पताका, निशान, केतु
  • तलवार – खड्ग, कृपाण, असि, शमशीर, करवाल
  • तरंग – लहर, उर्मि, वीचि, हिलोर
  • जीभ – जिह्वा, रसना, रसज्ञा, रसा
  • दूध – दुग्ध, पय, गोरस, क्षीर
  • तालाब – सर, सरोवर, तड़ाग, जलाशय, ताल, पोखर
  • तारा – नक्षत्र, तारक, नखत
  • तीर – बाण, शर, सायक, इषु, नाराच, शिलिमुख
  • दास – भृत्य, नौकर, सेवक, अनुचर, परिचारक
  • दिवस – दिन, वार, वासर, दिव, अहर
  • देवता – सुर, अमर, देव, अजर
  • दुर्गा – भवानी, देवी, कालिका, अंबा, चंडिका
  • दुख – पीड़ा, कष्ट, व्यथा, विषाद, यातना, वेदना
  • धनुष – धनु, कोदंड, चाप, कमान, शरासन, पिनाक, कार्मुक
  • धन – द्रव्य, अर्थ, वित्त, संपत्ति, लक्ष्मी
  • नदी – सरिता, तरंगिणी, सरित, नद, तटिनी
  • दंत – दाँत, दशन, रद, द्विज, दंश
  • नमस्कार – नमः, प्रणाम, अभिवादन, नमस्ते
  • नरक – दुर्गति, संघात, यमपुर, यमलोक, यमालय
  • पर्वत – गिरी, पहाड़, शैल, नग, अचल, महीधर
  • पुत्र – सुत, बेटा, लड़का, पूत, तनय
  • पुत्री – सुता, बेटी, लड़की, नंदिनी, तनया
  • नारी – स्त्री, कामिनी, महिला, अबला, वनिता, भामिनी, ललना
  • नागर – नगरी, पत्तन, पुर, पुरी
  • निशा – यामिनी, रात, रात्रि, रजनी, शर्वरी
  • निर्मल – शुद्ध, स्वच्छ, विमल, पवित्र
  • नौका – नाव, तरिणी, जलयान, बेड़ा, पतंग, तरी
  • पंडित – विद्वान, प्राज्ञ, बुद्धिमान, धीमान, धीर, सुधी
  • पवन – हवा, वायु, समीर, बयार, मारूत, अनिल
  • पक्षी – खग, नभचर, विहग, पंछी, विहंग, पतंग
  • पत्नी – वधु, गृहिणी, स्त्री, प्राणप्रिया, अर्धांगिनी, भार्या
  • पति – स्वामी, नाथ, वर, कांत, प्राणनाथ, आर्य, ईश
  • पत्ता – पात, दल, पत्र, पल्लव
  • पराग – पुष्पराज, कुसुमरज, पुष्पधूलि
  • पत्थर – पाषाण, वज्र, पाहन, उपल, शिला
  • पुष्प – कुसुम, सुमन, फूल, मंजरी, प्रसून
  • पृथ्वी – भू, भूमि, धरणी, धरती, वसुधा, धरा
  • भयानक – डरावना, भयजनक, विकट, गंभीर
  • भिक्षा – भीख, याचना, माँगना, खैरात
  • प्रकाश – उजाला, ज्योति, प्रभा, विभा, आलोक
  • प्रतीक – चिहन, प्रतिमा, निशान, प्रतिभूति
  • बाग – बगीचा, वाटिका, उपवन, उद्यान, आराम
  • बिजली – विद्युत, तड़ित, दामिनी, चंचला, चपला
  • बंदर – कपि, वानर, शाखामृग, हरि
  • मदिरा – शराब, सुरा, मद्य, वारुणी
  • मित्र – सखा, सहचर, साथी, मीत, दोस्त
  • माता – जननी, माँ, मात, मैया, अंबा
  • मुख – मुँह, मुखड़ा, आनन, वदन
  • भूख – क्षुधा, बुभुक्षा, अन्नलिप्सा, आहारेच्छा
  • मछली – अंडज, मीन, मत्स्य, शफरी
  • मृत्यु – निधन, देहांत, अंत, मौत
  • मनुष्य – मनुज, नर, आदमी, मानव, पुरुष
  • मेघ – जलद, बादल, नीरद, घन, वारिद
  • मोर – मयूर, शिखी, शिखंडी, कलापी
  • मूर्ख – अज, अबोध, गंवार, मूढ़
  • मल्लाह – नाविक, माँझी, खेवट, कर्णधार, केवट
  • यत्न – उद्यम, प्रयास, उद्योग, प्रयत्त, पुरुषार्थ
  • लक्ष्मी – इंदिरा, कमला, रमा, हरिप्रिया, श्री
  • वन – विपिन, जंगल, कानन, अटवी, अरण्य
  • यौवन – जवानी, युवावस्था, जीवन, शिरोमणि, तरुणाई
  • युवक – जवान, युवा, तरुण
  • युद्ध – समर, लड़ाई, रण, संग्राम
  • राजा – नृप, भूपति, भूप, नरेश, सम्राट, नरेंद्र, नरपति
  • रण – संग्राम, सम, युद्ध, लड़ाई
  • शत्रु – रिपु, दुश्मन, विपक्षी, अरि, वैरी
  • शरीर – देह, काया, कलेवर, तन, वपु, अंग, गात
  • शिव – शंकर, महादेव, रुद्र, भूतनाथ, नीलकंठ, पिनाकी
  • वृक्ष – तरु, पादप, विटप, द्रुम
  • वर्ष – अब्द, साल, बरस, संवत्
  • शोभा – छवि, दीप्ति, कांति, सुषमा, आभा, छटा
  • समुद्र – सागर, उदधि, रत्नाकर, जलधि, सिंधु
  • सरस्वती – शारदा, भारती, गिरा, वाणी
  • सेना – सैन्य, दल, कटक, वाहिनी
  • सिंह – शेर, केसरी, मृंगंद्र, वनराज, मृगराज
  • स्वर्ण – कंचन, कनक, कुंदन, सोना
  • हाथ – कर, पाणि, हस्त
  • हिरन – कुरंग, मृग, सारंग, कृष्णसार
  • सूर्य – रवि, प्रभाकर, भास्कर, दिवाकर, आदित्य, सविता, दिनकर
  • सर्प – भुजंग, नाग, विषधर, व्याल
  • संसार – दुनिया, जगत्, विश्व, जग, भवन, लोक
  • संतान – संतति, अपत्य, प्रजा, प्रसूति, औलाद
  • हंस – मराल, कलहंस, मानसौकस
  • हनुमान – महावीर, पवनसुत, मारूत, कपीश, बजरंगबली, आंजनेय
  • हाथी – गज, कुंजर, गयंद, हस्ती, मतंग, करी

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार

विलोम शब्द

किसी शब्द के उलटे अर्थ को व्यक्त करने वाले शब्द को विलोम शब्द कहते है। भाषा में भावों-विचारों की स्पष्टता के लिए विलोम शब्द महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

शब्द – विलोम

  • अंतरंग – बहिरंग
  • अक्षत – विक्षत
  • अस्तित्व – अनस्तित्व
  • अवर – प्रवर
  • अति – अल्प
  • अर्थ – अनर्थ
  • अथ – इति
  • अंत – आरंभ
  • अंधकार – प्रकाश
  • आमिष – निरामिष
  • हिंसा – अहिंसा
  • इच्छा – अनिच्छा
  • ईश – अनीश
  • उद्यम – आलस्य
  • उचित – अनुचित
  • उपेक्षा – अपेक्षा
  • उत्कर्ष – अपकर्ष
  • अल्पज्ञ – सर्वज्ञ
  • आज्ञा – अवज्ञा
  • आदि – अंत
  • आस्तिक – नास्तिक
  • आय – व्यय
  • आदर – निरादर
  • आयात – निर्यात
  • आरोह – अवरोह
  • आगत – अनागत
  • आर्य – अनार्य
  • आंतरिक – बाह्य
  • अन्याय – न्याय
  • अनुज – अग्रज
  • अनुराग – विराग
  • अभिमान – नम्रता
  • अज्ञ – प्राज्ञ
  • उपकार – अपकार
  • अवनति – उन्नति
  • अनुकूल – प्रतिकूल
  • अपेक्षा – उपेक्षा
  • अनिवार्य – ऐच्छिक
  • अमृत – विष
  • उन्नति – अवनति
  • उन्नयन – पलायन
  • आना – जाना
  • उर्वरा – ऊसर
  • आस्था – अनास्था
  • उतार – चढ़ाव
  • उत्थान – पतन
  • उदार – कृपण
  • आकाश – पाताल
  • कुरूप – सुरूप
  • खल – सज्जन
  • खरा – खोटा
  • गुण – अवगुण
  • लौकिक – अलौकिक
  • लोक – परलोक
  • लेन – देन
  • प्राचीन – नवीन
  • वादी – प्रतिवादी
  • आरंभ – अंत
  • आदान – प्रदान
  • उत्कृष्ट – निकृष्ट
  • उत्तीर्ण – अनुत्तीर्ण
  • उपस्थित – अनुपस्थित
  • उत्तर – प्रश्न
  • उत्तम – अधम
  • उपयुक्त – अनुपयुक्त
  • एक – अनेक
  • आलस्य – स्फूर्ति
  • आचार – अनाचार
  • आशा – निराशा
  • एकता – अनेकता
  • ऐच्छिक – आवश्यक
  • कृतज्ञ – कृतघ्न
  • क्रय – विक्रय
  • कायर – साहसी
  • धर्म – अधर्म
  • ज्येष्ठ – कनिष्ठ
  • जल – स्थल
  • उदय – अस्त
  • कीर्ति – अपकीर्ति
  • कोमल – कठोर
  • जीवित – मृत
  • जन्म – मृत्यु
  • जय – पराजय
  • जीत – हार
  • ऊपर – नीचे
  • कर्कश – मधुर
  • कनिष्ठ – ज्येष्ठ
  • कुमति – सुमति
  • कठिन – सरल
  • कपटी – निष्कपट
  • सम – विषम
  • चतुर – मूर्ख
  • काला – सफ़ेद
  • कृत्रिम – स्वाभाविक
  • उष्ण – शीत
  • गुप्त – प्रकट
  • ऋण – उत्रण
  • घटिया – बढ़िया
  • ठौर – कुठौर
  • चर – अचर
  • चेतन – जड़
  • चल – अचल
  • चंचल – स्थिर
  • उधार – नकद
  • उजाला – अँधेरा
  • उपयोगी – अनुपयोगी
  • उत्पत्ति – विनाश
  • दु:शील – सुशील
  • दुर्बल – बलवान
  • दोष – गुण
  • दायाँ – बायाँ
  • शिक्षित – अशिक्षित
  • शकुन – अपशकुन
  • वीर – कायर
  • शयन – जागरण
  • नया – पुराना
  • बुढ़ापा – यौवन
  • जटिल – सरल
  • झूठ – सच
  • दुर्जन – सज्जन
  • डर – निडर
  • डरपोक – निर्भीक
  • निकट – दूर
  • तृष्णा – संतोष
  • त्यागी – स्वार्थी
  • दानी – कृपण
  • दिन – रात
  • दयालु – निर्दयी
  • दुर्गंध – सुगंध
  • देश – विदेश
  • देव – दानव
  • धीर – अधीर
  • धनवान – निर्धन
  • स्वर्ग – नरक
  • सुरूप – कुरूप
  • सामान्य – विशेष
  • भला – बुरा
  • भारी – हलका
  • नेकी – बदी
  • विधवा – सधवा
  • विरोध – समर्थन
  • विरोधी – समर्थक
  • शांत – अशांत
  • नश्वर – अनश्वर
  • गहरा – छिछला
  • नास्तिक – आस्तिक
  • नत – उन्नत
  • नूतन – पुरातन
  • निद्रा – जागरण
  • निर्गुण – सगुण
  • रात्रि – प्रातः
  • स्वदेश – विदेश
  • स्तुति – निंदा
  • शीत – उष्ण
  • निर्यात – आयात
  • निश्चय – अनिश्चय
  • निंदा – स्तुति
  • सुख – दु:ख
  • साकार – निराकार
  • सामान्य – असामान्य
  • सदुपयोग – दुरुपयोग
  • निंदनीय – प्रशंसनीय
  • निगलना – उगलना
  • पाप – पुण्य
  • प्रत्यक्ष – परोक्ष
  • पंडित – मूर्ख
  • पराधीन – स्वाधीन
  • शुष्क – आर्द्र
  • शाप – वरदान
  • सुगंध – दुर्गध
  • सार्थक – निर्थक
  • सरल – जटिल
  • सुगम – दुर्गम
  • सकाम – निष्काम
  • स्वार्थ – परमार्थ
  • सभ्य – असभ्य
  • योगी – भोगी
  • विक्रय – क्रय
  • विद्वान – मूर्ख
  • शुद्ध – अशुद्ध
  • शुभ – अशुभ
  • शांति – अशांति
  • परतंत्र – स्वतंत्र
  • पूर्व – पश्चिम
  • पूर्ण – अपूर्ण
  • पवित्र – अपवित्र
  • सबल – निर्बल
  • प्रीति – वैर
  • परिश्रम – आलस्य
  • पक्षपात – निष्पक्ष
  • प्रसन्न – अप्रसन्न
  • पक्ष – विपक्ष
  • प्रश्न – उत्तर
  • पुरस्कार – तिरस्कार
  • बुराई – भलाई
  • बाहर – अंदर
  • सदाचार – दुराचार
  • विजय – पराजय
  • वृष्टि – अनावृष्टि
  • सुपुत्र – कुपुत्र
  • सुबोध – दुर्बोध
  • भयभीत – निर्भय
  • रुग्ण – स्वस्थ
  • स्थूल – सूक्ष्म
  • रक्षक – भक्षक
  • हर्ष – विषाद
  • प्रीति – दोष
  • सौम्य – भीषण
  • सुयोग – कुयोग
  • मधुर – कटु
  • मान – अपमान
  • राग – दूवेष
  • लघुता – गुरुता
  • लाभ – हानि
  • हार – जीत
  • स्वाधीन – पराधीन
  • स्थिर – चंचल
  • सधवा – विधवा
  • सरस – नीरस
  • सौभाग्य – दुर्भाग्य
  • योग्य – अयोग्य
  • राजा – रंक
  • मित्र – शत्रु
  • मानव – दानव
  • मृदु – कठोर
  • मूक – वाचाल
  • संधि – विग्रह
  • मलिन – निर्मल
  • मिथ्या – सत्य
  • मुख्य – गौण
  • यश – अपयश
  • सफल – असफल
  • संयोग – वियोग
  • सुलभ – दुर्लभ
  • ज्ञान – अज्ञान
  • ज्ञानी – मूर्ख
  • क्षमा – दंड
  • क्षय – अक्षय
  • संकल्प – विकल्प
  • सुर – असुर
  • सुरक्षित – असुरक्षित
  • आत्मीय – अनात्मीय

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल 

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. उस तत्त्व की पहचान करें जो जलीय चक्र का भाग नहीं है।
(A) वाष्पीकरण
(B) वर्षण
(C) जलयोजन
(D) संघनन।
उत्तर:
(C) जलयोजन।

2. महाद्वीपीय ढाल की औसत गहराई निम्नलिखित के बीच होती है
(A) 2-20 मीटर
(B) 20-200 मीटर
(C) 200–2,000 मीटर
(D) 2,000-20,000 मीटर।
उत्तर:
(C) 200-2,000 मीटर।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

3. निम्नलिखित में से कौन-सी उच्चावच महासागरों में मिलने वाली लघु आकृति नहीं है?
(A) समुद्री टीला
(B) महासागरीय गंभीर
(C) प्रवाल द्वीप
(D) निमग्न द्वीप।
उत्तर:
(B) महासागरीय गंभीर।

4. निम्न में से कौन-सा सबसे छोटा महासागर है?
(A) हिन्द महासागर
(B) अन्ध महासागर
(C) आर्कटिक महासागर
(D) प्रशान्त महासागर।
उत्तर:
(C) आर्कटिक महासागर।

5. लवणता को प्रति समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम) की मात्रा से व्यक्त किया जाता है
(A) 10 ग्राम
(B) 100 ग्राम
(C) 1,000 ग्राम
(D) 10,000 ग्राम।
उत्तर:
(C) 1,000 ग्राम।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दोप्रश्न
प्रश्न 1.
पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी को अक्सर जल ग्रह अथवा नीला ग्रह कहा जाता है, क्योंकि इसके धरातल पर जल का बाहुल्य है। पृथ्वी के धरातल का 71 प्रतिशत भाग जल से आच्छादित है। उत्तरी गोलार्द्ध के कुल क्षेत्रफल के 60.7 प्रतिशत भाग पर और दक्षिणी गोलार्द्ध के 80.9 प्रतिशत भाग पर जल है। यदि हम पृथ्वी के केवल जलीय धरातल को ध्यान में रखें तो इसका 43 प्रतिशत उत्तरी गोलार्द्ध में तथा 57 प्रतिशत दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 2.
महाद्वीपीय सीमान्त क्या होता है?
उत्तर:
महाद्वीपीय शेल्फ को महाद्वीपीय सीमान्त कहते हैं जहां महाद्वीप समाप्त होते हैं तथा महासागर आरम्भ होते हैं।

प्रश्न 3.
विभिन्न महासागरों के सबसे गहरे गर्तों की सूची बनाइए।
उत्तर:
संसार में सबसे गहरा गर्त कैरियाना गर्त (प्रशान्त महासागर) है। जो 11022 मीटर गहरा है। अन्ध महासागर में प्यरटो रिको गर्त तथा हिन्द महासागर में सण्डा गर्त है। प्रशान्त महासागर में क्यूराईल गर्त, बोनिन गर्त, जापान गर्त, अटाकामा गर्त तथा मिण्डानो गर्त प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 4.
ताप प्रवणता क्या है?
उत्तर:
महासागरों में वह सीमा क्षेत्र जहां तापमान में तीव्र गिरावट आती है ताप प्रवणता कहलाता है।

प्रश्न 5.
जल चक्र की व्याख्या करो।
उत्तर:
महासागरों से जल वाष्पित होकर वायुमण्डल द्वारा उठा लिया जाता है। संघनित होकर यह जल भू-पृष्ठ पर वर्षा, ओले, हिम आदि के रूप में लौट आता है। वर्षण का कुछ भाग पेड़-पौधों तथा भूमि को भिगोने के पश्चात् भू-पृष्ठ पर बहकर नदी-नालों में चला जाता है। यह जल ही है, जो कभी अपरदन भी करता है और जिसका बाढ़ उत्पन्न करने में मुख्य योगदान है। वर्षण का वह भाग, 169 जो भूमि द्वारा सोख लिया जाता है, उसका कुछ अंश पौधों के वर्धन में और कुछ वाष्पन में उपयोग कर लिया जाता है।

कुछ जल पृथ्वी के गहरे क्षेत्रों में चला जाता है, और झरनों के रूप में बाहर आता है तथा शुष्क मौसम में नदीनालों को संपोषित रखता है। नदियां अंततः समुद्र से मिलती हैं, और इस प्रकार जल फिर वहीं पहुंच जाता है, जहाँ से जल-चक्र आरम्भ हुआ था। कभी न समाप्त होने वाले परिसंचरण के कारण ही इस प्रक्रिया को जलचक्र कहते हैं। जल चक्र की गणितीय अभिव्यक्ति निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है: वर्षण = जलप्रवाह + वाष्पनवाष्पोत्सर्जन।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 6.
समुद्र से नीचे जाने पर आप ताप की किन पर्तों का सामना करेंगे? गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है?
उत्तर:
बढ़ती हुई गहराई के साथ तापमान में कमी आती है। महासागर के सतहीय एवं गहरी परतों वाले जल के बीच विभाजक क्षेत्र है। यह विभाजक रेखा समुद्री तल से करीब 100 से 400 मीटर नीचे प्रारम्भ होती है एवं कई सौ मीटर नीचे तक विस्तृत (थर्मोक्लाइन) होती है। विभाजक रेखा के इस क्षेत्र में जहां तापमान में तीव्र कमी आती है, उसे ताप प्रवणता कहा जाता है। जल के कुल आयतन का लगभग 90 प्रतिशत गहरे महासागर में ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) के नीचे पाया जाता है। इस क्षेत्र में तापमान 0 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है। मध्य एवं निम्न अक्षांशों के महासागरों के तापमान की बनावट को सतह से तल की स्थित तीन स्तरीय प्रणाली के द्वारा समझाया जा सकता है।

  1. पहली परत यह गर्म महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत होती है एवं इसका तापमान 20 डिग्री से० से 25 डिग्री से० के बीच होता है तथा इसकी मोटाई लगभग 500 मीटर होती है। कटिबन्धीय क्षेत्रों में यह परत पूरे वर्ष उपस्थित होती है, परन्तु मध्य अक्षांशों में केवल गर्मी में विकसित होती है।
  2. दूसरी परत को ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) परत कहा जाता है, जो कि पहली परत के नीचे उपस्थित होती है एवं गहराई के बढ़ने के साथ इसके तापमान में तीव्र गिरावट आती है। थर्मोक्लाइन की मोटाई 500 से 1,000 मीटर तक होती है।
  3. तीसरी परत बहुत अधिक ठण्डी होती है तथा गहरे समुद्री तल तक विस्तृत होती है। आर्कटिक एवं अटार्कटिक वृत्तों में, ऊपरी सतह के जल का तापमान लगभग 0 डिग्री से० होता है, इसीलिए गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है। यहां ठण्डे पानी की एक ही परत उपस्थित होती है जो कि ऊपरी सतह से लेकर महासागर के गहरे तल तक विस्तृत होती है।

प्रश्न 7.
समुद्री जल की लवणता क्या है?
उत्तर:
समुद्र जल में पाए जाने वाले समस्त लवणों का योग समुद्र की लवणता कहलाता है। महासागरीय लवणता उस अनुपात को कहते हैं जो घुले हुए लवणों की मात्रा तथा समुद्र जल की मात्रा में होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1.
जलीय चक्र के विभिन्न तत्त्व किस प्रकार अन्तर सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
महासागरों से जल वाष्पित होकर वायुमण्डल द्वारा उठा लिया जाता है। संघनित होकर यह जल भू-पृष्ठ पर वर्षा, ओले, हिम आदि के रूप में लौट आता है। वर्षण का कुछ भाग पेड़-पौधों तथा भूमि को भिगोने के पश्चात् भू-पृष्ठ पर बहकर नदी-नालों में चला जाता है। यह जल ही है, जो कभी अपरदन भी करता है और जिसका बाढ़ उत्पन्न करने में मुख्य योगदान है। वर्षण का वह भाग, जो भूमि द्वारा सोख लिया जाता है, उसका कुछ अंश पौधों के वर्धन में और कुछ वाष्पन में उपयोग कर लिया जाता है।

कुछ जल पृथ्वी के गहरे क्षेत्रों में चला जाता है, और झरनों के रूप में बाहर आता है तथा शुष्क मौसम में नदीनालों को संपोषित रखता है। नदियां अंततः समुद्र में मिलती हैं, और इस प्रकार जल फिर वहीं पहुंच जाता है, जहां से जल-चक्र आरम्भ हुआ था। कभी न समाप्त होने वाले परिसंचरण के कारण ही इस प्रक्रिया को जलचक्र कहते हैं। जल चक्र की गणितीय अभिव्यक्ति निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है : वर्षण = जलप्रवाह + वाष्पनवाष्पोत्सर्जन।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 2.
महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
सागरीय जल ताप का एक उत्तम संचालक है। इसी कारण जल, स्थल की अपेक्षा देर से गर्म होता है तथा देर से ठण्डा होता है। सागरीय जल का तापमान सभी स्थानों पर एक समान नहीं होता। सागरीय जल के तापमान का वितरण निम्नलिखित घटकों पर निर्भर करता है
1. भूमध्य रेखा से दूरी:
सागरीय जल की ऊपरी सतह का तापमान अक्षांश के साथ हटता रहता है। भूमध्य रेखा पर यह तापमान 26°C के लगभग रहता है। 40° अक्षांश पर सागरीय जल का तापमान 14°C पाया जाता है तथा 60° अक्षांश पर 1°C। शून्य डिग्री सेल्सियस समताप रेखा ध्रुवीय क्षेत्रों के गिर्द वृत्त बनाती है।

2. प्रचलित पवनें:
स्थायी पवनें समुद्र जल की ऊपरी परत को हटाती रहती हैं तथा नीचे से ठण्डा जल आ जाता है। इस उत्स्रवण (Up welling of water) की क्रिया से तापमान कम हो जाता है। इसके विपरीत समुद्र से स्थल की
ओर आने वाली पवनें गर्म जल इकट्ठा करके तापमान को बढ़ा देती हैं।

3. महासागरीय धाराएं:
महासागरीय धाराएं तापमान में समानता लाने का प्रयत्न करती हैं। गर्म धाराएं ठण्डे प्रदेशों में तापमान को बढ़ा देती हैं। उष्ण गल्फस्ट्रीम के कारण ही पश्चिमी यूरोप में तापमान 5°C से अधिक रहता है। इसके विपरीत ठण्डी धाराएं तापमान को ओर भी कम कर देती हैं, ठण्डी लेब्रेडोर धारा के कारण न्यूफाऊण्डलैण्ड के निकट तापमान 2°C से कम होता है।

4. लवण मे भिन्नता:
अधिक लवण वाले जल का तापमान ऊंचा होता है क्योंकि वह अधिक गर्मी ग्रहण कर सकता है।

5. स्थल खण्डों की स्थिति:
उष्ण कटिबन्ध में स्थल के घिरे हुए सागरों का तापमान अधिक होता है परन्तु शीत कटिबन्ध में कम होता है।

6. समुद्र की गहराई:
समुद्र की गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान कम होता है। ऊपरी सतह से लेकर 1800 मीटर की गहराई तक सागरीय जल का तापमान 15°C से घटकर 2°C रह जाता है। 1800 से 4000 मीटर की गहराई तक यह तापमान 2°C से घटकर 1.6°C रह जाता है।

7. अंतः समुद्री रोधिकाएं (Submarine Ridges):
कम गहरे भागों में पानी के नीचे रोधिकाएं तापमान में अन्तर डालती हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

महासागरीय जल  JAC Class 11 Geography Notes

→ जल तथा स्थल वितरण (Distribution of Land and Water): पृथ्वी के धरातल का तीन चौथाई। भाग (70.8%) जल से ढका हुआ है। जबकि एक चौथाई भाग (29.2%) स्थल से घिरा है।

→ प्रमुख महासागर (Oceans): प्रशान्त महासागर, अन्ध महासागर, हिन्द महासागर तथा आर्कटिक महासागर प्रमुख महासागर हैं। प्रशान्त महासागर सबसे बड़ा महासागर है।

→ सागरीय धरातल (Ocean floor): सागरीय धरातल को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

  • महाद्वीपीय मग्न तट
  • महाद्वीपीय ढाल
  • महासागरीय मैदान
  • महासागरीय गर्त।

→ महाद्वीपीय मग्न तट (Continental shelf):यह महाद्वीपों के चारों ओर कम गहरा तथा मंद ढलान वाला जलमग्न भाग है। इसकी रचना नदियों, लहरों द्वारा तलछट के निक्षेप से या समुद्र तल के ऊपर उठने से या  स्थल भाग के नीचे धंसने से होती है। (600 मीटर गहराई)

→ महाद्वीपीय ढाल (Continental slope): यह महाद्वीपीय मग्न तट से नीचे की ओर तीव्र ढलान है। इसकी गहराई 3660 मीटर तक है।

→ महासागरीय मैदान (Deep Sea plain): समुद्र में चौड़े तथा समतल क्षेत्र को महासागरीय मैदान कहते हैं। जो 3000 से 6000 मीटर गहरा है।

→ महासागरीय गर्त (Ocean deep): महासागरों में सबसे गहरा स्थान मैरियाना गर्त (11033 मीटर) है। महासागरों में ‘V’ आकार की घाटियां (समुद्री कैनियन) पाई जाती हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. कोपेन के A प्रकार की जलवायु के लिए निम्न में से कौन-सी दशा अर्हक है?
(A) सभी महीनों में उच्च वर्षा
(B) सबसे ठण्डे महीने का औसत मासिक तापमान हिमांक बिन्दु से अधिक
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक
(D) सभी महीनों का औसत तापमान 10° सेल्सियस के नीचे।
उत्तर:
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक।

2. जलवायु के वर्गीकरण से सम्बन्धित कोपेन की पद्धति को व्यक्त किया जा सकता है
(A) अनुप्रयुक्त
(B) व्यवस्थित
(C) जननिक
(D) आनुभाविक।
उत्तर:
(D) आनुभाविक।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

3. भारतीय प्रायद्वीप के अधिकतर भागों को कोपेन की पद्धति के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा
(A) “AF”
(B) “BSh”
(C) “Cfb”
(D) “Am”
उत्तर:
(D) “Am”

4. निम्नलिखित में से कौन-सा साल विश्व का सबसे गर्म साल माना जाता है-जाएगा?
(A) 1990
(B) 1998
(C) 1885
(D) 1950
उत्तर:
(B) 1998

5. नीचे लिखे गए चार जलवायु के समूहों में से कौन आई दशाओं को प्रदर्शित करता है?
(A) A-B-C-E
(B) A-C-D-E
(C) B-C-D-E
(D) A-C-D-F
उत्तर:
(D) A-C-D-F

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

6. विश्व में उपोष्ण मरुस्थलीय जलवायु किन अक्षांशों के बीच पाई जाती है?
(A) 5°-20°
(B) 15°-30°
(C) 15°-35°
(D) 30°-40°
उत्तर:
(B)15°-30°.

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जलवायु के वर्गीकरण के लिए कोपेन के द्वारा किन दो जलवायविक चरों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
कोपेन ने वनस्पति के वितरण और जलवायु के बीच एक घनिष्ठ संबंध की पहचान की। उन्होंने वर्षा एवं तापमान के मध्यमान वार्षिक एवं मध्यमान मासिक आंकड़ों का प्रयोग किया।

प्रश्न 2.
वर्गीकरण की जननिक प्रणाली आनुभविक प्रणाली से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
जननिक वर्गीकरण जलवायु को उनके कारणों के आधार पर संगठित करने का प्रयास हैं। परन्तु, आनुभविक वर्गीकरण प्रेक्षित किए गए विशेष रूप से तापमान एवं वर्षण से सम्बन्धित आंकड़ों पर आधारित होता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

प्रश्न 3.
किस प्रकार की जलवायुओं में तापांतर बहुत कम होता है?
उत्तर:

  1. उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु (Af)
  2. समुद्री पश्चिमी तटीय जलवायु (cfb)

प्रश्न 4.
सौर कलंकों में वृद्धि होने पर किस प्रकार की जलवायविक दशाएं प्रचलित होगी?
उत्तर:
सौर कलंकों की संख्या बढ़ने से मौसम ठंडा और आर्द्र हो जाता है और तूफ़ानों की संख्या बढ़ जाती है।

प्रश्न 5.
A एवं B प्रकार को जलवायुओं की जलवायविक दशाओं की तुलना करें।
उत्तर:
A प्रकार की जलवायु:
यह जलवायु उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु है, जो मकर रेखा और कर्क रेखा के बीच पाई जाती है। यहाँ वार्षिक तापांतर बहुत कम होता है। तापमान समान रूप से ऊँचा रहता है (30°C) मानसून क्षेत्रों में सीत ऋतु, शुष्क होती है।

B प्रकार की जलवायु:
यह शुष्क जलवायु है जहां न्यून वर्षा होती है। यह जलवायु 15° -60° उत्तर व दक्षिणी अक्षांशों के मध्य मिलती है। यहां उत्तरती पवनों के कारण वर्षा कम होती है। महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में भी वर्षा कम होती है इसमें स्टैपी तथा अर्द्ध मरुस्थली जलवायु मिलती हैं। ग्रीष्म काल में तापमान ऊँचे रहते हैं।

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प्रश्न 6.
C तथा A प्रकार के जलवायु में आप किस प्रकार की वनस्पति पाएंगे?
उत्तर:
A प्रकार की जलवायु में उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित वन पाए जाते हैं। मानसून क्षेत्रों में पर्णपाती वन तथा घास के मैदान पाए जाते हैं।
C प्रकार की जलवायु में शीतोष्ण कटिबन्धीय बन पाए जाते हैं। शुष्क क्षेत्रों में लम्बी जड़ों वाले मोटे पत्तों वाले वृक्ष पाए जाते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Question)

प्रश्न-ग्रीन हाउस गैसों से आप क्या समझते हैं?
प्रश्न 1.
ग्रीन हाउस गैसों की सूची तैयार करो।
उत्तर:

ग्रीन हाउस प्रभाव

भू-पृष्ठ से वायुमंडल के अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होने की संकल्पना को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं, जिसे सामान्यतः सूर्यातप (लघु तरंगें) वायुमंडली प्रभाव भी कहते हैं। स्पष्टतया वायुमंडल का प्रभाव एक शीशे की भान्ति काम करता है, जो आने वाली सौर ऊर्जा की लघु तरंगों को अपने से होकर गुज़रने देता है, लेकिन बाहर जाने वाले पार्थिव विकिरण की दीर्घ तरंगों को रोकता कांच है। इस प्रकार यह भू-पृष्ठीय तापमान को उस तापमान से कांच ऊँचा रखता है, जो इस प्रक्रिया के अभाव में होता है। आप स्वयं एक ग्रीन हाउस का निर्माण कर सकते हैं।

खिड़कियां बन्द करके अपनी कार को दो घंटे के लिए धूप में खड़ी कर पृथ्वी दीजिए। अब कार के अंदर के तापमान का अनुभव कीजिए। यह बाहर के तापमान से अधिक होगा। शीत ऋतु में, ग्रीन लघु तरंगों दीर्घ तरंगों के रूप का अवशोषण में ऊष्मा विकिरण हाउस में कांच की छत की पारदर्शिता का उपयोग लघु तरंगों को ट्रैप करके टमाटर उगाने के लिए किया जा सकता है।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन 1

विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन JAC Class 11 Geography Notes

→ जलवायु (Climate): किसी स्थान पर एक लम्बे समय की वायुमण्डलीय दशाओं (35 वर्ष के कुल योग। को जलवायु कहते हैं। यह एक लम्बे समय का औसत मौसम होता है।

→ जलवायु के तत्त्व (Elements of Climate): जलवायु के निम्नलिखित तत्त्व हैं

  • अक्षांश
  • समुद्र तल से ऊंचाई
  • जल व स्थल का वितरण
  • वायु दाब
  • प्रचलित पवनें
  • सागरीय धाराएं
  • पर्वतीय अवरोध।

→ जलवायु वर्गीकरण (Classification of Climate): यह जलवायु का एक क्रमबद्ध वर्णन है जिससे। सुगम रूप से विश्लेषण किया जा सके।

→ विभिन्न वर्गीकरण (Different Classification): जलवायु वर्गीकरण का प्रथम प्रयास यूनानी विद्वानों द्वारा किया गया। उन्होंने तापमान के आधार पर पृथ्वी को तीन भागों में बांटा है।

  • उष्ण कटिबन्ध
  • शीतोष्ण कटिबन्ध
  • शीत कटिबन्ध।

विभिन्न वर्गीकरण विभिन्न विद्वानों-कोपन, थार्नवेट तथा टिवार्था द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. मानव के लिए वायुमण्डल का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(A) जलवाष्प
(B) धूलकण
(C) नाइट्रोजन
(D) ऑक्सीजन।
उत्तर:
(D) ऑक्सीजन।

2. निम्नलिखित में से वह प्रक्रिया कौन-सी है जिसके द्वारा जल द्रव से गैस में बदल जाता है?
(A) संघनन
(B) वाष्पीकरण
(C) वाष्पोत्सर्जन
(D) अवक्षेपण।
उत्तर:
(B) वाष्पीकरण।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

3. निम्नलिखित में से कौन-सा वायु की उस दशा को दर्शाता है जिसमें नमी उसकी पूरी क्षमता के अनुरूप होती है?
(A) सापेक्ष आर्द्रता
(B) निरपेक्ष आर्द्रता
(C) विशिष्ट आर्द्रता
(D) संतृप्त हवा।
उत्तर:
(D) संतृप्त हवा।

4. निम्नलिखित प्रकार के बादलों में से आकाश में सबसे ऊंचा बादल कौन-सा है?
(A) पक्षाभ
(B) मेघवर्षी
(C) स्तरी
(D) कपासी।
उत्तर:
(A) पक्षाभ।

5. भारत में अधिकतर वर्षा कौन-सी होती है?
(A) पर्वतीय वर्षा
(B) चक्रवातीय वर्षा
(C) पर्वतीय वर्षा
(D) वाताग्रीय वर्षा।
उत्तर:
(B) पर्वतीय वर्षा।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिएप्रश्न
प्रश्न 1.
वर्षण के तीन प्रकारों के नाम लिखो।
उत्तर:
किसी क्षेत्र पर वायु मण्डल से गिरने वाली समस्त जल राशि को वर्षण कहा जाता है। वर्षण मुख्य रूप से तरल व ठोस रूप में पाई जाती है। इसके विभिन्न रूप हैं:

  1. वर्षा
  2. हिम वर्षा
  3. ओलावृष्टि
  4. ओस प्रश्न

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

प्रश्न 2.
सापेक्ष आर्द्रता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity):
किसी तापमान पर वायु में कुल जितनी नमी समा सकती है उसका जितना प्रतिशत अंश उस वायु में मौजूद हो, उसे सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं। ग्रहण करने की क्षमता दूसरे शब्दों में यह वायु की निरपेक्ष नमी तथा उसकी वाष्प धारण करने की क्षमता में प्रतिशत अनुपात है।
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प्रश्न 3.
ऊंचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा तेजी से क्यों घटती है?
उत्तर:
ऊंचाई के साथ जब हवा ऊपर उठती है तो वह फैलती है तथा तापमान गिर जाता है। आर्द्रता संघनित हो जाती है तथा वर्षा के रूप में गिरती है। इस प्रकार ऊंचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है।

प्रश्न 4.
बादल कैसे बनते हैं? बादलों का वर्गीकरण करो।
उत्तर:
वायु में धूलि कणों पर लदे जल बिन्दुओं के समूह को बादल कहते हैं। जल कण बादलों के रूप में तैरते रहते हैं। ऊंचाई के अनुसार मेघ तीन प्रकार के होते हैं

  1. उच्च स्तरीय मेघ-जो 10000 मीटर तक ऊंचे होते हैं। जैसे पक्षाभ, कपासी मेघ।
  2. मध्यम,स्तरीय मेघ-3000-6000 मीटर तक ऊंचे जैसे कपासी शिखर मेघ।
  3. निम्न स्तरीय मेघ-3000 मीटर से कम ऊंचे जैसे वर्षा मेघ।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :
प्रश्न 1.
विश्व के वर्षण वितरण के प्रमुख लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संसार में वर्षा का वितरण समान नहीं है। भूपृष्ठ पर होने वाली कुछ वर्षा का 19 प्रतिशत महाद्वीपों पर तथा 81 प्रतिशत महासागरों पर प्राप्त होता है। संसार की औसत वार्षिक वर्षा 975 मिलीमीटर है।

  1. अधिक वर्षा वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का औसत 200 सेंटीमीटर है। भूमध्यरेखीय क्षेत्र तथा मानसूनी प्रदेशों के तटीय भागों में अधिक वर्षा होती है।
  2. सामान्य वर्षा वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में 100 से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है। यह क्षेत्र उष्ण कटिबन्ध में स्थित हैं तथा मध्यवर्ती पर्वतों पर मिलते हैं।
  3. कम वर्षा वाले क्षेत्र-महाद्वीपों के मध्यवर्ती भाग तथा शीतोष्ण कटिबन्ध के पूर्वी तटों पर 25 से 100 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
  4. वर्षा विहीन प्रदेश-गर्म मरुस्थल, ध्रुवीय प्रदेश तथा वृष्टि छाया प्रदेशों में 25 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है।

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प्रश्न 2.
संघनन कैसे होता है? संघनन के विभिन्न रूप क्या हैं? ओस और तुषार बनने की प्रक्रिया बताओ।
उत्तर:
संघनन (Condensation):
जिस क्रिया द्वारा वायु के जल-वाष्प जल के रूप में बदल जाएं, उसे संघनन कहते हैं। जल-कणों के वाष्प का गैस से तरल अवस्था में बदलने की क्रिया को संघनन कहते हैं। (“Change of water-vapour into water is called condensation.”) वायु का तापमान कम होने से उस वायु की वाष्प धारण करने की शक्ति कम हो जाती है। कई बार तापमान इतना कम हो जाता है कि वायु जल-वाष्प को सहार नहीं सकती और जल-वाष्प तरल रूप में वर्षा के रूप में गिरता है। इस क्रिया के उत्पन्न होने के कई कारण हैं

  1. जब वायु लगातार ऊपर उठ कर ठण्डी हो जाए।
  2. जब नमी से लदी वायु किसी पर्वत के सहारे ऊंची उठ कर ठण्डी हो जाए।
  3. जब गर्म तथा ठण्डी वायु-राशियां आपस में मिलती हैं।

संघनन के परिणाम कई रूपों में प्रकट होते हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं
1. कोहरा (Fog):
वायु में अनेक प्रकार के जल-कण मिट्टी व रेत के कणों पर तैरते रहते हैं। कोहरा एक प्रकार का बादल है जो धरातल के निकट वायु में धूल के कणों पर लटके हुए जल-बिन्दुओं से बनता है। (“Fog is condensed vapour hanging in the air.”) ठण्डे धरातल या ठण्डी वायु के सम्पर्क से नमी से भरी हुई वायु जल्दी ठण्डी हो जाती है। वायु में उड़ते रहने वाले धूलि-कणों पर जल-वाष्प का कुछ भाग जल-बिन्दुओं के रूप में जमा हो जाता है जिससे वातावरण धुंधला हो जाता है तथा 200 मीटर से अधिक दूरी की वस्तु दिखाई नहीं देती और वायुयानों की उड़ानें स्थगित करनी पड़ती हैं।

यह प्राय: साफ़ तथा शान्त मौसम में, शीत ऋतु की लम्बी रातों के कारण बनता है जबकि धरातल पूरी तरह ठण्डा हो जाता है। इसे भूमि का कोहरा (Ground Fog) भी कहते हैं। नदियों, झीलों व समुद्रों के समीप के प्रदेशों में भी कोहरा मिलता है। औद्योगिक नगरों में धुएं के साथ उड़ी हुई राख पर जल-बिन्दु टिकने से कोहरा छाया रहता है। ऐसी धुएं मिली धुंध को Smog कहते हैं। न्यूफाउंडलैण्ड (Newfound-land) के तट पर खाड़ी की गर्म धारा तथा लैब्रेडोर की ठण्डी धारा मिलने के कारण कोहरा छाया रहता है।

2. धुन्ध (Mist):
हल्के कोहरे को धुन्ध कहते हैं। (“A thin fog is called Mist.) कोहरे तथा धुन्ध में कोई विशेष अन्तर नहीं होता क्योंकि दोनों एक जैसी दशाओं में बनते हैं। कोहरे की अपेक्षा धुन्ध में संघनता कम होती है तथा दो कि० मी० तक की दूरी पर भी वस्तुएं दिखाई पड़ जाती हैं। कोहरे में शुष्कता अधिक होती है, परन्तु धुन्ध में नमी अधिक होती है। जल की बूंदें बड़े आकार की होती हैं। शीत ऋतु में शीतोष्ण कटिबन्ध में धुन्ध एक साधारणसी बात है। सूर्य निकलने या तेज़ हवाओं के कारण धुन्ध जल्दी समाप्त हो जाती है।

3. मेघ (Clouds):
वायु के ठण्डे होने से या संघनन के कारण बादल बनते हैं। मुक्त वायु में धूलि-कणों पर लदे जल-बिन्दुओं के समूह को मेघ कहते हैं। वायु के ठण्डा होने से जल-वाष्प जल-कणों का रूप धारण कर लेते हैं। छोटे-छोटे कण आपस में मिल कर बड़े कणों की रचना करते हैं। ये इतने भारी नहीं होते कि वर्षा के रूप में नीचे गिरें। ये जल-कण वायु में तैरते रहते हैं तथा धूल के वाष्प-ग्राही कणों पर द्रव के रूप में जम जाते हैं। इन कणों के पुँज को मेघ कहते हैं। ज्योंही ये कण बड़ा रूप धारण कर लेते हैं तथा वायु से भारी हो जाते हैं तो वर्षा के रूप में पृथ्वी पर आ जाते हैं। मेघ 12,000 मीटर तक की ऊँचाई तक मिलते हैं क्योंकि इससे ऊपर जल-वाष्प नहीं होते।

बादलों के प्रकार (Types of Clouds)-ऊँचाई के अनुसार मेघ तीन प्रकार के होते हैं

  1. उच्च स्तरीय मेघ (High Clouds)-6,000 से 10,000 मीटर तक ऊँचे, जैसे-पक्षाभ, स्तरी तथा कपासी मेघ।
  2. मध्यम स्तरीय मेघ (Medium Clouds)-3,000 से 6,000 मीटर तक ऊँचे, जैसे-मध्य कपासी शिखर मेघ।
  3. निम्न स्तरीय मेघ (Low Clouds)-3,000 मीटर तक ऊंचे मेघ जिनमें स्तरीय कपासी मेघ, वर्षा स्तरी मेघ, कपासी मेघ, कपासी वर्षा मेघ शामिल हैं।

4. ओले (Hail Stones):
जब संघनन की क्रिया 0°C या 32°F से कम तापमान पर होती है तो जल-वाष्प हिम कणों में बदल जाते हैं। कई बार तूफान (Thunder Storm) के कारण होने वाली वर्षा में ये हिम-कण ठोस ओलों के रूप में गिरते हैं। नीचे से ऊपर जाने वाली धाराएं जल-कणों को बार-बार हिमकणों के सम्पर्क में लाती हैं तथा उनका आकार बड़ा हो जाता है। धाराओं के वेग के कम होने से ये नीचे गिरने लगते हैं।

5. हिम (Snow):
जब संघनन हिमांक (Freezing point = 32°F) से कम तापमान पर होता है तो जल-कण हिम में बदल जाते हैं और हिमपात (Snowfall) होता है। ठंडी तथा कम नमी वाली वायु द्वारा ही हिमपात होता है। अत्यन्त ठण्डे प्रदेशों में, ऊँचे पर्वतीय भागों में तथा टुण्ड्रा प्रदेश की समस्त वर्षा हिमपात के रूप में होती है।

6. ओस (Dew):
पृथ्वी तल तथा कई वस्तुओं पर संघनित जल की छोटी-छोटी बूंदों को ओस कहते हैं। यह भूतल पर पेड़-पौधों, घास, टीन या स्लेट पर टिकी होती है। रात को धरातल विकिरण (Rapid radiation) के कारण बहुत ठण्डा हो जाता है। ठण्डे धरातल के सम्पर्क में आने वाली वायु जल्दी ही संतृप्त हो जाती है।

जब इसका तापमान ओसांक से भी कम हो जाता है, तब संघनन होता है और कुछ जल–वाष्प जल-बूंदों के रूप में कई वस्तुओं पर बैठ जाता है। ओस के निर्माण के लिए ओसांक 0°C तापमान से ऊपर होना चाहिए। पंजाब में जनवरी में साफ आसमान के कारण रात को अधिक ओस पड़ती है। ओस बनने के लिए अनुकूल ये हैं

  1. लम्बी रातें (Long Nights)
  2. स्वच्छ व निर्मल आकाश (Clear Sky)
  3. शान्त वायुमण्डल का होना (Calm Atmosphere)
  4. वनस्पति का होना (Presence of Vegetation)
  5. उच्च सापेक्ष आर्द्रता (High Relative Humidity)

7. पाला (Frost):
जब संघनन की क्रिया हिमांक 0°C (32°F) से कम तापमान पर हो तो जलवाष्प ओस की बूंदों के रूप में नहीं गिरता. अपितु छोटे-छोटे सफेद हिम कणों के रूप में पृथ्वी तल पर परत के रूप में फैल जाता है। इसे पाला कहते हैं। इस प्रकार धरातल पर अधिक विस्तार में हिम कणों के जमाव को पाला कहते हैं।

शीत ऋतु में रात को घास, पेड़-पौधों, भूतल तथा जल की सतह पर हिम की परत के रूप में पाला जम जाता है। पर्वतीय घाटियों में वायु बहाव (Air Drainage) के कारण रात को पाला जम जाता है। मध्य अक्षांशों में शीत ऋतु में पाला साधारणसी बात है। पंजाब में कई बार जनवरी मास में पाला पड़ता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

वायुमंडल में जल JAC Class 11 Geography Notes

→ आर्द्रता (Humidity): वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं। वायुमण्डल के कुल भार का 2% भाग जलवाष्प के रूप में मौजूद है। यह जलवाष्प महासागरों, समुद्रों, झीलों, नदियों आदि के जल से वाष्पीकरण द्वारा प्राप्त होता है।

→ ओसांक (Dew Point): संतृप्त वायु के ठण्डे होने से जल-वाष्प जल के रूप में बदल जाता है। जिस तापमान पर किसी वायु का जलवाष्प जल रूप में बदलना शुरू हो जाता है उस तापमान को ओसांक कहते हैं। संघनन (Condensation)-जिस क्रिया द्वारा वायु के जलवाष्प जल के रूप में बदल जाएं, उसे संघनन कहते हैं।

→ संघनन के रूप (Forms of Condensation)

  • पाला तथा हिम।
  • ओस, कोहरा, धुंध।
  • बादल।

→ निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity): किसी समय किसी तापमान पर वायु में जितनी नमी मौजूद हो उसे वायु की निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं।

→ सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity): किसी तापमान पर वायु में कुल जितनी नमी समा सकती है उसका प्रतिशत अंश उस वायु में मौजूद हो, उसे सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं। किसी ताप पर विद्यमान वाष्प की मात्रा उसी ताप पर वायु का वाष्प ग्रहण करने की क्षमता। दूसरे शब्दों में यह वायु की निरपेक्ष नमी तथा उसकी वाष्प धारण करने की क्षमता में प्रतिशत अनुपात है।

→ वृष्टि (Precipitation): किसी क्षेत्र पर वायुमण्डल से गिरने वाली समस्त जल राशि को वृष्टि कहा जाता है। वृष्टि मुख्य रूप से तरल व ठोस रूप में पाई जाती है। इसके विभिन्न रूप हैं!

  • वर्षा
  • हिम वर्षा
  • ओला वृष्टि
  • ओस
  • पाला
  • सहिम वृष्टि।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

→ वर्षा (Rainfall): वायु में आर्द्रता ही वर्षा का आधार है। वर्षा होने का मुख्य कारण संतृप्त वायु का ठण्डा होना है। वर्षा की क्रिया कई पदों में होती है

  • संघनन।
  • बादलों का बनना।
  • मेघ से जल कणों का बनना। इस प्रकार जल कणों का पृथ्वी पर गिरना वर्षा कहलाता है।

→ वर्षा के प्रकार (Types of Rainfall):

  • संवहनीय वर्षा-संवाहिक धाराओं के कारण संवहनीय वर्षा होती है।
  • पर्वतीय वर्षा- इस प्रकार की वर्षा किसी पर्वत के सहारे उठती हुई नम पवनों के कारण होती है। सम्मुख। ढलान पर अधिक वर्षा होती है, विमुख ढाल पर कम वर्षा होती है तथा यह वर्षा छाया प्रदेश होता है।
  • चक्रवातीय वर्षा- यह वर्षा गर्म तथा शीत वायु राशियों के मिलने से चक्रवातों के कारण होती है।

→ वर्षा का वितरण (Distribution of Rainfall): वर्षा के वितरण को प्रभावित करने वाले तत्त्व

  • अक्षांश
  • समुद्र से दूरी
  • प्रचलित पवनें
  • महासागरीय धाराएं
  • ऊँचाई
  • पर्वतों की दिशा।

→ विश्व में वर्षा का वितरण

  1. भू-मध्य रेखीय प्रदेश भारी वर्षा वाले क्षेत्र
  2. व्यापारिक पवन पेटियां पूर्वी तटीय भागों पर वर्षा
  3. उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश – कम वर्षा वाले क्षेत्र (मरुस्थल)
  4. भूमध्य सागरीय प्रदेश – शीतकालीन वर्षा क्षेत्र
  5. ध्रुवीय क्षेत्र – इस प्रदेश में हिमपात होता है।।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

JAC Class 9 Hindi एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
अग्रिम दल का नेतृत्व कौन कर रहा था ?
उत्तर :
अग्रिम दल का नेतृत्व उपनेता प्रेमचंद कर रहा था।

प्रश्न 4.
लेखिका को सागरमाथा नाम क्यों अच्छा लगा ?
उत्तर :
लेखिका ने नेपालियों को एवरेस्ट को सागरमाथा नाम से पुकारते हुए सुना, तो उसे भी यह नाम अच्छा लगा।

प्रश्न 2.
लेखिका को ध्वज जैसा क्या लगा ?
उत्तर :
लेखिका को एवरेस्ट की चोटी पर बर्फ का एक बड़ा फूल लहराते हुए ध्वज जैसा लगा।

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प्रश्न 3.
हिमस्खलन से कितने लोगों की मृत्यु हुई और कितने घायल हुए ?
उत्तर :
हिमस्खलन से किसी की मृत्यु नहीं हुई, पर नौ पुरुष सदस्य घायल हुए थे।

प्रश्न 5.
मृत्यु के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने क्या कहा ?
उत्तर :
मृत्यु के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने कहा था कि ऐसे साहसपूर्ण अभियानों में होने वाली मृत्यु को सहज रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
रसोई सहायक की मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर :
अनुकूल जलवायु न होने के कारण रसोई सहायक की मृत्यु हुई थी।

प्रश्न 7.
कैंप – चार कहाँ और कब लगाया गया ?
उत्तर:
कैंप- चार साउथ कोल में 29 अप्रैल, सन् 1984 को सात हजार नौ सौ मीटर की ऊँचाई पर लगाया गया था।

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प्रश्न 8.
लेखिका ने शेरपा कुली को अपना परिचय किस तरह दिया ?
उत्तर :
लेखिका ने कहा कि वह बिलकुल नौसिखिया है और एवरेस्ट उसका पहला अभियान है।

प्रश्न 9.
लेखिका की सफलता पर कर्नल खुल्लर ने उसे किन शब्दों में बधाई दी ?
उत्तर :
कर्नल खुल्लर ने कहा कि उसकी इस अनूठी उपलब्धि के लिए वे उसके माता-पिता को बधाई देना चाहते हैं। देश को उस पर गर्व है और वह अब एक ऐसे संसार में वापस जाएगी, जो एकदम भिन्न होगा।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
नज़दीक से एवरेस्ट को देखकर लेखिका को कैसा लगा ?
उत्तर :
जब लेखिका ने सर्वप्रथम एवरेस्ट को देखा, तो उसे उसकी चोटी पर दिखाई देने वाला एक भारी बर्फ़ का बड़ा फूल जैसे उसकी चोटी पर लहराते हुए ध्वज की तरह लगा। यह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास एक सौ पचास किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक तेज़ गति से चलने वाली हवा से बनता है। बर्फ़ का यह ध्वज दस किलोमीटर या इससे भी अधिक लंबा हो सकता है। वह एवरेस्ट की इस सुंदरता के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित हुई।

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प्रश्न 2.
डॉ० मीनू मेहता ने क्या जानकारियाँ दीं ?
उत्तर :
डॉ० मीनू मेहता ने उन्हें अभियान में सहायता देने वाली बातें बताईं। उन्होंने उन्हें एलुमिनियम की सीढ़ियों से अस्थाई पुल बनाना, रस्सियों का उपयोग करना तथा बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना सिखाया। उन्होंने उन्हें उनके अग्रिम दल के द्वारा किए गए तकनीकी कार्यों की भी जानकारी दी।

प्रश्न 4.
तेनजिंग ने लेखिका की तारीफ़ में क्या कहा ?
उत्तर :
लेखिका ने जब अपने बारे में यह कहा कि वह बिल्कुल नौसिखिया है और यह उसका पहला अभियान है, तो तेनजिंग ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा कि वह एक पर्वतीय लड़की है। वह पहले प्रयास में अवश्य शिखर पर पहुँच जाएगी।

प्रश्न 5.
लेखिका को किनके साथ चढ़ाई करनी थी ?
उत्तर :
लेखिका को अंगदोरजी, ल्हाटू, की, जय और मीनू के साथ चढ़ाई करनी थी। की, जय और मीनू उससे बहुत पीछे रह गए थे जबकि वह साउथ कोल कैंप पहुँच गई थी। बाद में वे भी आ गए। अगले दिन सुबह 6.20 पर वह अंगदोरजी के साथ चढ़ाई के लिए निकल पड़ी, जबकि अन्य कोई भी व्यक्ति उस समय उनके साथ चलने के लिए तैयार नहीं था।

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प्रश्न 6.
लोपसांग ने तंबू का रास्ता कैसे साफ़ किया ?
उत्तर :
एक बहुत बड़ा बर्फ़ का पिंड ल्होत्से के ग्लेशियर से टूटकर लेखिका के तंबू पर गिर गया था और लेखिका चारों तरफ़ से बर्फ़ की कब्र में दब गई थी। उस समय लोपसांग ने अपनी स्विस छुरी से तंबू का रास्ता साफ़ किया। फिर लेखिका के पास से बड़े-बड़े हिमपिंडों को हटाने के बाद उसने जमी हुई बर्फ़ की खुदाई करके लेखिका को बर्फ़ की कब्र से बाहर निकाला।

प्रश्न 7.
साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी कैसे शुरू की ?
उत्तर :
लेखिका ने साउथ कोल कैंप पहुँचकर अगले दिन की अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। इसके लिए उसने खाने-पीने का सामान, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन के सिलिंडर एकत्र किए। बाद में वह पीछे रह गए अपने साथियों की सहायता करने के लिए नीचे चली गई।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
उपनेता प्रेमचंद ने किन स्थितियों से अवगत कराया ?
उत्तर :
एवरेस्ट पर जानेवाले दल के उपनेता प्रेमचंद थे। वे एक अनुभवी पर्वतारोही थे। उपनेता प्रेमचंद ने उन्हें हिमपात से बचने के लिए समझाया, क्योंकि उनका कैंप हिमपात के क्षेत्र में पड़ता था। प्रेमचंद ने उन्हें रस्सियों से पुल बनाने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा, क्योंकि उनके द्वारा बनाया गया पुल हिमपात से कभी भी टूट सकता था। उन्होंने उन्हें ग्लेशियर से भी सावधान रहने के लिए कहा। साथ ही हिमपात से बनी दरारों से भी सावधान रहने की चेतावनी दी।

प्रश्न 2.
हिमपात किस तरह होता है और उससे क्या-क्या परिवर्तन आते हैं ?
उत्तर :
आकाश से बर्फ के गिरने को हिमपात कहते हैं। हिमपात में आकाश से बर्फ के खंड बेढंगे तरीके से जमीन पर गिरते हैं। इससे ग्लेशियर बहने लगते हैं और उनके बहने से अकसर बर्फ में हलचल हो जाती है। इससे बर्फ की बड़ी-बड़ी चट्टानें तुरंत गिर जाती हैं और खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ग्लेशियर के बहने से धरातल पर दरारें पड़ जाती हैं। यही दरारें कभी-कभी बर्फ के गहरे और चौड़े सुराखों में बदल जाती हैं, जिनमें धँसने से लोगों की मौत भी हो जाती है।

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प्रश्न 3.
लेखिका के तंबू में गिरे बर्फ़ पिंड का वर्णन किस तरह किया गया है ?
उत्तर :
लेखिका के तंबू पर जब बर्फ़ का पिंड गिरा, तब वह गहरी नींद में सो रही थी। जब पिंड का एक हिस्सा उसके सिर के पिछले हिस्से से टकराया, तो उसकी नींद खुल गई। उस समय रात के साढ़े बारह बजे का समय था। उसी समय एक ज़ोर का धमाका हुआ और कोई ठंडी व बहुत भारी वस्तु उसके शरीर को कुचलती चली गई। उसे साँस लेने में भी कठिनाई होने लगी। बर्फ़ का एक लंबा पिंड उनके कैंप के ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर गिरा था। वह एक विशाल हिमपुंज बन गया था। वह एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण आवाज़ के साथ सीधी ढलान से उनके कैंप पर गिरा था।

प्रश्न 4.
‘की’ लेखिका को देखकर हक्का-बक्का क्यों रह गया ?
उत्तर :
लेखिका जब साउथ कोल कैंप पहुँची, तो अगले दिन की चढ़ाई की तैयारी में व्यस्त हो गई। जब उसकी सारी तैयारी पूरी हो गई तो उसने देखा कि की, जय और मीनू अभी तक नहीं आए हैं। दोपहर बाद उसने अपने इन साथियों की सहायता करने का निश्चय किया। वह एक थरमस में जूस और दूसरे में गरम चाय लेकर नीचे चल पड़ी। रास्ते में उसे मीनू और जय मिले। जय ने उससे चाय लेकर पी और उसे अधिक नीचे जाने से रोका। परंतु लेखिका जय की बात अनसुनी करके नीचे की ओर उतरने लगी। थोड़ा और नीचे उतरने पर उसे की मिला। वह उसे देखकर हक्का-बक्का रह गया कि वह कहाँ से आ गई ? उसने उसे इतना जोखिम उठाने के लिए टोका। लेखिका ने उसे समझाया कि वह भी एक पर्वतारोही है और अपने साथियों की सहायता करना वह अपना फ़र्ज समझती है। की हँसा और जूस पीकर उसके साथ ऊपर चल पड़ा।

प्रश्न 5.
एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए कुल कितने कैंप बनाए गए ? उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर :
एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए शिखर कैंप और बेस कैंप के अतिरिक्त चार कैंप लगाए गए थे। कैंप – एक तक इन्होंने सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास किया। कैंप-दो पर दल सोलह मई को प्रातः आठ बजे पहुँचा था। कैंप – तीन 15-16 मई को बुद्ध पूर्णिमा के दिन ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर नाइलॉन के बने सुंदर रंगीन तंबुओं से लगाया गया था। इसे ग्लेशियर से टूटकर आए हिमखंड ने गिरा दिया था। कैंप-चार साउथ कोल में सात हजार नौ सौ मीटर की ऊँचाई पर लगाया गया था। यह कैंप सुरक्षा और आराम की दृष्टि से अच्छा कैंप था।

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प्रश्न 6.
चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर :
चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी पर तेज़ हवाएँ चल रही थीं। इन तेज़ हवाओं के कारण भुरभुरी बर्फ़ के कण वातावरण में चारों ओर उड़ रहे थे। इससे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वहाँ आगे की चढ़ाई शेष नहीं थी। एकदम सीधी ढलान नीचे जा रही थी। चोटी पर इतनी भी जगह नहीं थी कि वहाँ एक साथ दो व्यक्ति खड़े हो सकते। चोटी के चारों ओर हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान थी। उन्होंने वहाँ की बर्फ़ की खुदाई करके अपने लिए खड़े रहने का सुरक्षित स्थान बनाया।

प्रश्न 7.
सम्मिलित अभियान में सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय बचेंद्री के किस कार्य से मिलता है ?
उत्तर :
जब बचेंद्री साउथ कोल कैंप पहुँची, तो उसने अगले दिन की चढ़ाई की पूरी तैयारी कर ली। की, जय और मीनू के साथ उसने अगले दिन की चढ़ाई करनी थी, परंतु वे अभी तक वहाँ पहुँचे नहीं थे। इससे वह चिंतित हो उठी और एक थरमस में जूस व दूसरे में गरम चाय लेकर वह उन्हें ढूँढने नीचे की ओर चल पड़ी। कैंप से बाहर आते ही उसकी मीनू से मुलाकात हो गयी। आगे जाने पर जेनेवा स्पर की चोटी पर उसे जय मिला। उसने चाय पीकर उसे धन्यवाद दिया तथा नीचे जाने से रोका। परंतु वह कुछ नीचे गई, तो उसे की मिल गया। वह उसे वहाँ देखकर हैरान रह गया तथा जूस पीकर उसके साथ ऊपर की ओर चल पड़ा। बचेंद्री के इस कार्य से उसकी सहयोग और सहायता की भावना का परिचय मिलता है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।
उत्तर :
इस पंक्ति में लेखिका स्पष्ट करना चाहती है कि एवरेस्ट की चोटी पर जाने का अभियान बहुत खतरनाक होता है। तेज हवाओं, हिमपात, बर्फ़ की चट्टानों के खिसकने आदि का कुछ पता नहीं चलता। इन प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते हुए यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाए तो उसे भी सहज रूप से स्वीकार कर लेना चाहिए, क्योंकि ऐसे महान अभियानों में यह भी संभव है।

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प्रश्न 2.
सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र ख्याल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रयास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।
उत्तर :
हिमपात और ग्लेशियर के बहने से बड़ी-बड़ी बर्फ की चट्टानों के गिरने की बात सुनने के बाद लेखिका को यह सुनना और भी भयभीत करने वाला लग रहा था कि इन बड़ी-बड़ी बर्फ़ की चट्टानों के गिरने से कई बार धरातल पर दरारें पड़ जाती हैं। ये दरारें बहुत गहरी और चौड़ी बर्फ से ढकी हुई गुफाओं में बदल जाती हैं, जिनमें धँसकर मनुष्य का जीवित रहना संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त उसे यह जानकारी और भी अधिक भयानक लगी कि इनके सारे अभियान में यह हिमपात लगभग एक दर्जन पर्वतारोहियों और कुलियों को प्रतिदिन प्रभावित करता रहेगा। उन्हें इसका सामना करना पड़ेगा।

प्रश्न 3.
बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।
उत्तर :
जब लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची, तो बहुत रोमांचित हो उठी। वह प्रथम भारतीय महिला थी, जो यहाँ पहुँची थी। इस पल की प्रसन्नता को अपने आराध्य और माता-पिता के आशीर्वादों का फल मानते हुए उसने झुके हुए ही अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर लाल कपड़े में लपेटी और उनकी सहज भाव से संक्षिप्त पूजा करने के बाद उन्हें बर्फ में दबा दिया। अपनी सफलता के इन पलों में उसे अपने माता-पिता की याद भी आ गई, जिनके आशीर्वाद से वह इस सफलता तक पहुँची थी।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
इस पाठ में प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों की व्याख्या पाठ का संदर्भ देकर कीजिए –
उत्तर :
निहारा है, धसकना, खिसकना, सागरमाथा, जायज़ा लेना, नौसिखिया।
निहारा है – लेखिका ने नमचे बाज़ार में पहुँचकर ही सबसे पहले एवरेस्ट को देखा था। वह उसे देखते ही उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो गई थी। इसलिए लेखिका ने इसे मात्र ‘देखा’ न कहकर ‘निहारा ‘ कहती है।
धसकना – ग्लेशियर के पिघलने से धरती धसक जाती थी।
खिसकना – हिमपात से बर्फ़ की चट्टानें खिसक जाती थीं।
सागरमाथा – नेपालियों ने एवरेस्ट का नाम सागरमाथा रखा हुआ था, जो लेखिका को भी अच्छा लगा क्योंकि एवरेस्ट की चोटी से चारों ओर हिम का सागर-सा लहराता दिखाई देता है जिसमें चोटी उस सागर के माथे के समान चमकती रहती है।
जायज़ा लेना – पर्वतारोहियों से पहले अग्रिम दल मार्ग का जायजा लेता था।
नौसिखिया – जब तेनजिंग ने लेखिका से उसका परिचय पूछा तो अपना परिचय देते हुए उसने स्वयं को पर्वतारोहण के क्षेत्र में नौसिखिया बताया। यहाँ नौसिखिया का अर्थ नया-नया सीखने वाला अथवा अनाड़ी का भाव व्यक्त करता है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में उचित विराम चिह्नों का प्रयोग कीजिए –
उत्तर :
(i) उन्होंने कहा तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए –
(ii) क्या तुम भयभीत थीं
(iii) तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री
उत्तर :
(i) उन्होंने कहा, “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।”
(ii) “क्या तुम भयभीत थीं ?”
(iii) “तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री ?”

प्रश्न 3.
नीचे दिए उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्य में प्रयोग कीजिए –
उदाहरण: हमारे पास एक वॉकी-टॉकी था।
टेढ़ी-मेढ़ी, हक्का-बक्का, गहरे-चौड़े, इधर-उधर, आस-पास, लंबे-चौड़े
उत्तर :
टेढ़ी-मेढ़ी : विंध्याचल में सड़कें टेड़ी-मेढ़ी हैं।
हक्का-बक्का : सुरेश को अचानक आया देखकर राजेश हक्का-बक्का रह गया।
गहरे-चौड़े : भूकंप से चमोली की धरती में गहरे-चौड़े खड्डे बन गए।
इधर-उधर : कृष्णन सदा इधर-उधर की हाँकता रहता है, मतलब की बात नहीं करता।
आस-पास : समीना के घर के आस-पास बहुत हरियाली है।
लंबे-चौड़े : नेता वायदे तो लंबे-चौड़े करते हैं, परंतु पूरा एक भी नहीं करते।

प्रश्न 4.
उदाहरण के अनुसार विलोम शब्द बनाइए –
उदाहरण: अनुकूल – प्रतिकूल।
नियमित, विख्यात, आरोही, निश्चित, सुंदर
उत्तर :
नियमित अनियमित, विख्यात कुख्यात, आरोही अवरोही, निश्चित – अनिश्चित, सुंदर – कुरूप।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों में उपयुक्त उपसर्ग लगाइए – जैसे : पुत्र- सुपुत्र।
वास, व्यवस्थित, कूल, गति, रोहण, रक्षित
उत्तर :
वास – निवास, निवास, व्यवस्थित अव्यवस्थित, कूल अनुकूल, गति प्रगति, रोहण आरोहण, रक्षित सुरक्षित

प्रश्न 6.
निम्नलिखित क्रिया-विशेषणों का उचित प्रयोग करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
अगले दिन, कम समय में, कुछ देर बाद, सुबह तक
(i) मैं ……………. यह कार्य कर लूँगा।
(ii) बादल घिरने के ………….. ही वर्षा हो गई।
(iii) उसने बहुत …………… इतनी तरक्की कर ली।
(iv) नाइकेसा को …………… गाँव जाना था।
उत्तर
(i) मैं सुबह तक यह कार्य कर लूँगा।
(ii) बादल घिरने के कुछ देर बाद ही वर्षा हो गई।
(iii) उसने बहुत कम समय में इतनी तरक्की कर ली।
(iv) नाङकेसा को अगले दिन गाँव जाना था।

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
इस पाठ में आए दस अंग्रेज़ी शब्दों का चयन कर उनका अर्थ लिखिए।
उत्तर :

  • बेस कैंप = आधार शिविर
  • ग्लेशियर = हिमनदी
  • एक्सप्रेस = शीघ्रगामी, तेज़
  • फोटो = छायाचित्र
  • प्लूम = पिच्छक
  • साउथ = दक्षिण
  • कुकिंग गैस = खाना पकाने वाली गैस
  • रेगुलेटर = नियंत्रक
  • सिलिंडर = बेलन
  • जूस = रस

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प्रश्न 2.
पर्वतारोहण से संबंधित दस चीज़ों के नाम लिखिए।
उत्तर :
फावड़ा, रस्सी, ऑक्सीजन, वॉकी-टॉकी, एल्युमिनियम की सीढ़ियाँ, छुरी, थरमस, कुकिंग गैस, जूस, खाना।

प्रश्न 3.
तेनजिंग शेरपा की पहली चढ़ाई के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 4.
इस पर्वत का नाम ‘एवरेस्ट’ क्यों पड़ा ? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
आगे बढ़ती भारतीय महिलाओं की पुस्तक पढ़कर उनसे संबंधित चित्रों का संग्रह कीजिए एवं संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करके लिखिए –
(क) पी० टी० उषा
(ख) आरती साहा
(ग) किरन बेदी
प्रश्न 2.
रामधारी सिंह दिनकर का लेख – ‘हिम्मत और जिंदगी’ पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
प्रश्न 3.
‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ – इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के आधार पर बचेंद्री के चरित्र की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बचेंद्री के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) साहसी – बचेंद्री एक साहसिक महिला हैं। एवरेस्ट अभियान में आने वाली कठिनाइयों को जानते हुए भी वे एवरेस्ट अभियान पर जाने के लिए तैयार हो जाती हैं। वे एवरेस्ट के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित थीं और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहती थीं।

(ii) सहृदय – बचेंद्री दूसरों के सुख-दुख में सहायता देने वाली महिला हैं। वे अपने साथियों से पहले ही साउथ कोल कैंप पहुँच गई थीं। जब उनके साथी की, जय और मीनू बहुत देर तक वहाँ न आए तो उनकी सहायता करने का निश्चय करके एक थरमस में जूस और दूसरे में गरम चाय लेकर नीचे की ओर चल पड़ी। कैंप के बाहर ही उनकी भेंट मीनू से हो गई। जय उसे जेनेवा स्पर चोटी पर मिला। उसने चाय पी और बचेंद्री को और नीचे जाने से रोका। पर वे नीचे गईं जहाँ उसे देखकर की हैरान रह गया। उसने जूस पीकर प्यास बुझाई। इस प्रकार बचेंद्री ने अपने साथियों की मदद की।

(iii) स्पष्टवादी – बचेंद्री जो मन में सोचती हैं, स्पष्ट कह देती हैं। तेनजिंग को अपना परिचय देते हुए उसने स्पष्ट कह दिया था कि वे पर्वतारोहण के क्षेत्र में नौसिखिया हैं और एवरेस्ट उसका प्रथम अभियान है। तेनजिंग ने उसका उत्साह बढ़ाते हुए कहा था कि वह एक पक्की पहाड़ी लड़की है। वह पहले ही प्रयास में एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच जाएगी।

(iv) आस्थावान – बचेंद्री एक आस्तिक महिला हैं। वे एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर घुटनों के बल बैठकर एवरेस्ट की चोटी का चुंबन करती हैं और फिर अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर एक लाल कपड़े में लपेटकर पूजा करने के बाद उन्हें वहीं गाड़ देती हैं। यह सब उनके अपने आराध्य के प्रति आस्था को व्यक्त करता है। इस अवसर पर वे अपने माता-पिता को भी स्मरण करती हैं।

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प्रश्न 2.
पैरिच पहुँचने पर लेखिका के दल को क्या समाचार मिला ?
उत्तर :
पैरिच पहुँचने पर लेखिका के दल को हिमस्खलन होने का समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जाने वाले अभियान दल के रास्ते के बाईं ओर सीधी पहाड़ी धँस गई थी। ल्होत्से की ओर बहुत बड़ी बर्फ़ की चट्टान नीचे खिसक आई थी। इस प्रकार के हिमस्खलन से सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई थी और चार घायल हो गए थे।

प्रश्न 3.
पर्वतारोहियों के अग्रिम दल के उपनेता प्रेमचंद ने पर्वतारोहियों को किस बात से अवगत करवाया ?
उत्तर :
उपनेता प्रेमचंद ने पर्वतारोहियों के सदस्यों को उनकी पहली बाधा खुंभु हिमपात की स्थिति से अवगत करवाया। उनके दल ने कैंप एक के लिए; जो हिमपात के ऊपर बना था; रास्ता साफ कर दिया था। प्रेमचंद ने बताया कि उन लोगों को पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ता चिह्नित करना है। उन्होंने यह भी बताया कि हिमपात के कारण मौसम में अनियमित और अनिश्चित बदलाव होने के कारण सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि उन्हें बर्फ़ में रास्ता खोलने का काम दोबारा शुरू करना पड़े।

प्रश्न 4.
हिमपात और ग्लेशियर क्या हैं ? ग्लेशियर के बहने से क्या होता है ?
उत्तर :
आकाश से बर्फ़ की वर्षा को हिमपात कहते हैं। ग्लेशियर हिमनदी को कहते हैं। नदी का पानी बर्फ बन जाता है, जो गर्मी पाकर पिघलने लगता है। ग्लेशियर के बहने से जमी हुई बर्फ पिघलने लगती है। इससे बर्फ़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें टूटकर पहाड़ से नीचे गिर जाती हैं। इनके नीचे गिरने से जो कुछ भी इनके नीचे होता है, वह दब जाता है।

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प्रश्न 5.
लेखिका के लिए कौन-सा ख्याल डरावना था ?
उत्तर :
लेखिका और अन्य सदस्यों को बताया गया था कि ग्लेशियर के बहने से अकसर बर्फ़ में हलचल हो जाती है और बर्फ़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें गिरने लगती हैं। अधिक खतरनाक स्थिति होने पर धरातल पर दरार पड़ने लगती है। इस दरार के गहरे होने पर चौड़ी बर्फ़ की गुफा बन जाती है। यदि इसमें कोई व्यक्ति धँस जाता है, तो उसकी मृत्यु भी हो सकती है। यह ख्याल लेखिका को बहुत डरावना लग रहा था।

प्रश्न 6.
हिमपिंड के ग्लेशियर से टूटकर गिर जाने पर क्या हुआ और लेखिका को आश्चर्य क्यों हुआ ?
उत्तर :
15-16 मई, सन् 1984 को लेखिका अपने साथियों के साथ कैंप में सो रही थी। रात को लगभग 12:30 बजे ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर एक हिमपिंड लेखिका के कैंप के ऊपर ऐसे आ गिरा, जैसे एक्सप्रेस रेलगाड़ी तेज गति से भीषण गर्जना करते हुए आती है। हिमपिंड के गिरने से कैंप तहस-नहस हो गया था। हिमपिंड के गिरने से उनका कैंप पूरी तरह से नष्ट हो गया था; कैंप में सोए हुए प्रत्येक व्यक्ति को चोट भी लगी थी, परंतु किसी की भी इतनी बड़ी दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई थी। उसी बात पर लेखिका को आश्चर्य हो रहा था।

प्रश्न 7.
अंगदोरजी कैसे चढ़ाई करने वाले थे और उनकी स्थिति कैसी हो जाती थी ?
उत्तर :
अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के चढ़ाई करने वाले थे। इस कारण से उनके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वे ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहते थे। अपनी इस स्थिति के कारण उन्हें या तो उसी दिन चोटी पर चढ़कर साउथ कोल वापस आना था या फिर ऊपर जाने का अपना निश्चय छोड़ देना था।

प्रश्न 8.
साउथ कोल से बाहर निकलते समय का वातावरण कैसा था ?
उत्तर :
जब लेखिका और अंगदोरजी साउथ कोल से बाहर निकले, तो दिन चढ़ गया था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी। ठंड बहुत अधिक थी। जमी हुई बर्फ़ की सीधी तथा ढलान वाली चट्टानें बहुत अधिक सख्त और भुरभुरी थीं। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे शीशे की चादरें बिछी हुई हों।

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प्रश्न 9.
लेखिका कितने बजे एवरेस्ट पर पहुँची और उसने वहाँ क्या किया ?
उत्तर :
अंगदोरजी तथा सहायक ल्हाटू के साथ लेखिका 23 मई, सन् 1984 के दिन दोपहर एक बजकर सात मिनट पर एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची थी। वह वहाँ पहुँचने वाली पहली भारतीय महिला थी। वहाँ पहुँचकर उसने बर्फ़ को अपने माथे पर लगाकर ‘सागरमाथे’ के ताज का चुंबन लिया। उन्होंने दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर छोटी-सी पूजा की और उन्हें लाल कपड़े में लपेटकर बर्फ में दबा दिया। उसने उस आनंद के क्षण में अपने माता-पिता को याद किया।

प्रश्न 10.
नमचे बाज़ार के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नमचे बाज़ार शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आस-पास के गाँवों के होते हैं। इसी स्थान से लेखिका ने पहली बार एवरेस्ट को निहारा था। यह नेपालियों में ‘सागरमाथा’ के नाम से प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों की ‘सागरमाथा’ के प्रति अत्यंत श्रद्धा है।

प्रश्न 11.
प्लूम किसे कहते हैं? यह कैसे बनता है ?
उत्तर :
कूल बर्फ के एक बड़े तथा भारी फूल को प्लूम कहते हैं। यह पर्वत की चोटी पर लहरता हुआ इस प्रकार दिखाई देता है, जैसे कोई ध्वज हो। यह बर्फ का पर्वत शिखर की ऊपरी सतह के आस-पास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक गति से हवा चलने के क्योंकि सूखी बर्फ़ तेज हवा के कारण पर्वत के शिखर पर उड़ती रहती है। बर्फ का यह ध्वज दस किलोमीटर या इससे भी अधिक लंबा हो सकता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

प्रश्न 12.
‘बेस कैंप’ पहुँचने से पहले लेखिका और उसके दल को कौन-सी सूचना मिली।
उत्तर :
बेस कैंप पहुँचने से पहले लेखिका और उसके दल को रसोई सहायक की मृत्यु की सूचना मिली, जो जलवायु अनुकूल न होने के कारण मृत्यु का ग्रास बन गया था। यह समाचार लेखिका और उसके दल को हिलाकर रख देने वाला था। लेखिका और उसका दल निश्चित रूप से किसी आशाजनक स्थिति में नहीं चल रहे थे।

प्रश्न 13.
लेखिका किसे देख भौचक्की रह गई और देर तक निहारती रही ? ‘एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
बेस कैंप पहुँचकर लेखिका ने दूसरे दिन एवरेस्ट पर्वत तथा उसकी अन्य श्रेणियों को देखा। यह दृश्य इतना सुंदर और मन को भा जाने वाला था कि लेखिका आश्चर्यचकित होकर खड़ी रह गई। वह पर्वत श्रेणी को ही निहारती रही कि किस प्रकार एवरेस्ट ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरा हुई है। साथ-ही-साथ लेखिका टेढ़ी-मेढ़ी बर्फ़ीली नदी को भी निहार रही थी, जिसे देखकर उसे सुखद आनंद का अनुभव हो रहा था।

प्रश्न 14.
लेखिका और उसके दल के लिए तीसरा दिन क्या करने के लिए निश्चित था ?
उत्तर :
लेखिका और उसके साथियों के लिए तीसरा दिन हिमपात से कैंप एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए निश्चित था। लेखिका और उसकी साथी पर्वतारोही रीता गोंबू साथ-साथ चढ़ रहे थे। इन दोनों के पास एक ही वॉकी-टॉकी था। इसी वॉकी-टॉकी के माध्यम से चढ़ाई की प्रत्येक जानकारी लेखिका और उसकी साथी बेस कैंप तक पहुँचा रही थी। जब लेखिका और उसकी साथी रीता गोंबू कैंप पहुँचे, तो कर्नल खुल्लर बहुत प्रसन्न हुए; कैंप एक में पहुँचने वाली केवल ये दो ही महिलाएँ थीं।

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प्रश्न 15.
अप्रैल मास में तेनजिंग से हुई मुलाकात से लेखिका का मनोबल कैसे बढ़ा ?
उत्तर :
अप्रैल मास में लेखिका बेस कैंप में थी। इसी कैंप में तेनज़िंग अपनी सबसे छोटी पुत्री डेकी के साथ लेखिका और उसके साथियों से मिलने आए थे। तेनजिंग इस बात पर विशेष जोर दे रहे थे कि दल के प्रत्येक सदस्य तथा प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। जब लेखिका की परिचय देने की बारी आई, तो लेखिका ने कहा कि वह बिलकुल ही नौसिखिया है और एवरेस्ट उसका पहला अभियान है। तब तेनजिंग ने लेखिका के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा, “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।” तेनजिंग के इन शब्दों से लेखिका का मनोबल अत्यंत ऊँचा उठ गया।

प्रश्न 16.
साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की चढ़ाई की तैयारी के लिए क्या-क्या किया ? वह चिंतित क्यों थी ?
उत्तर :
लेखिका जैसे ही साउथ कोल कैंप पहुँची, वह अगले दिन की अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी में जुट गई। उसने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। लेखिका चिंतित थी, क्योंकि उसके साथी जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। लेखिका को अगले दिन इन्हीं लोगों के साथ चढ़ाई करनी थी। लेखिका के साथी इसलिए धीरे आ रहे थे, क्योंकि वे बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।

प्रश्न 17.
साउथ कोल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
साउथ कोल पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर स्थानों में से एक है। इसी कारण यह प्रसिद्ध है। साउथ कोल लेखिका और उसके दल के लिए एक बेस कैंप था। अन्य कैंप की अपेक्षा यहाँ अधिक सुरक्षा और आराम उपलब्ध था।

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प्रश्न 18.
लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर कब पहुँची ?
उत्तर :
लेखिका 23 मई 1984 के दिन दोपहर एक बजकर सात मिनट पर एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। वह एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला थी। वहाँ पहुँचकर लेखिका ने अपने अदम्य साहस और अथाह परिश्रम का परिचय दिया था।

एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Summary in Hindi

लेखिका – परिचय :

जीवन-परिचय – एवरेस्ट विजेता बचेंद्री पाल का जन्म उत्तराखंड के चमोली जिले के बंपा गाँव में 24 मई, सन् 1954 ई० को हुआ था। इनकी माता का नाम हंसादेई नेगी और पिता का नाम किशन सिंह पाल है। ये अपने माता-पिता की तीसरी संतान हैं। आर्थिक कठिनाई के कारण इनके पिता ने इन्हें आठवीं कक्षा तक पढ़ाया। बाद में इन्होंने सिलाई-कढ़ाई करके खर्चा जुटाया और दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। बचेंद्री के प्राचार्य ने इनके पिता को इन्हें आगे पढ़ाने के लिए समझाया। अनेक विषम परिस्थितियों से जूझते हुए इन्होंने एम० ए० (संस्कृत) और बी० एड० तक की शिक्षा प्राप्त की। बचेंद्री पाल को पहाड़ों पर चढ़ने का बचपन से ही शौक था। इन्हें पाँच-छह मील पहाड़ की चढ़ाई चढ़ कर और उतरकर विद्यालय जाना पड़ता था। जब इंडियन माउंटेन फाउंडेशन ने एवरेस्ट अभियान पर जाने के लिए महिलाओं की खोज की, तो वे इस दल में शामिल हो गईं। ट्रेनिंग करते हुए इन्होंने सात हजार पाँच सौ मीटर ऊँची मान चोटी पर सफलापूर्वक चढ़ाई की थी। कई महीने अभ्यास करने के बाद में ये एवरेस्ट विजय पर गईं और 23 मई, 1984 ई० को एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला बन गईं।

रचनाएँ – बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट विजय की अपनी रोमांचक पर्वतारोहण – यात्रा का संपूर्ण विवरण स्वयं लिखा है

भाषा-शैली – लेखिका ने अपनी एवरेस्ट विजय का विवरण अत्यंत ही सहज तथा बोलचाल की भाषा में लिखा है। इसमें यथास्थान तत्सम प्रधान शब्दों की अधिकता है; जैसे- दुर्गम, शिखर, हिमपात, अवसाद, प्रवास, आरोही, उपस्कर, शंकु आदि। इनके साथ ही विदेशी शब्दों का प्रयोग भी सहज भाव से किया गया है; जैसे- बेस कैंप, किलोमीटर, खराब, जोखिम, नाइलॉन, सख्त, ऑक्सीजन, सिलिडंर आदि। लेखिका की शैली अत्यंत रोचक तथा प्रवाहमयी है। कहीं-कहीं इनकी शैली चित्रात्मक भी हो गई है; जैसे- ‘यह क्या हो गया था ? एक लंबा बर्फ़ का पिंड हमारे कैंप के ठीक ऊपर से होते हुए ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बन गया था। हिमखंडों, बर्फ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ़ के इस विशाल पुंज ने एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए कैंप को तहस-नहस कर दिया।’ लेखिका की भाषा – शैली की सहजता पाठक को सहज ही एवरेस्ट यात्रा का आनंद प्रदान करती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

पाठ का सार :

बचेंद्री पाल द्वारा रचित ‘एवरेस्ट विजय’ में उनकी अपनी रोमांचक पर्वतारोहण-यात्रा का संपूर्ण विवरण है, जिसमें से कुछ अंश ‘एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें लेखिका के एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर तिरंगा झंडा लहराने का वर्णन किया गया है।

लेखिका एवरेस्ट अभियान दल के साथ 7 मार्च, सन् 1984 ई० को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से रवाना हो गई। एक अग्रिम दल इनसे पहले ही जा चुका था, जिससे इनके ‘बेस कैंप’ पहुँचने से पहले ही बर्फ़ गिरने से रुके हुए कठिन मार्गों को साफ़ किया जा सके। शेरपालैंड के नमचे बाज़ार से उसने सर्वप्रथम एवरेस्ट को देखा। नेपाली इसे सागरमाथा कहकर पुकारते हैं। एवरेस्ट पर उसे एक भारी बर्फ का बड़ा फूल, जिसे अंग्रेज़ी में प्लूम कहते हैं, दिखाई दिया। यह एवरेस्ट के शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी तेज़ गति से हवा के चलने से बनता था। यह दस किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता था। शिखर पर जाने वालों को इन तूफ़ानों को झेलना पड़ता था। लेखिका इस विवरण से भयभीत नहीं हुई। वह एवरेस्ट के प्रति विचित्र प्रकार से आकर्षित थी तथा इसके लिए सब प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार थी। जब इनका दल 26 मार्च को पैरिच पहुँचा, तो इन्हें बर्फ़ के खिसकने से हुई शेरपा कुली की मृत्यु का समाचार मिला।

हिमपात के समय बर्फ़ के खंड बेतरतीब से गिरते हैं और ग्लेशियर के बहने से बड़ी-बड़ी चट्टानें फ़ौरन गिर जाती हैं। ऐसे में धरातल पर दरार पड़ जाने से खतरनाक स्थिति बन जाती है। हमें बताया गया कि यह हिमपात सारे प्रवास के दौरान हमारे साथ रहेगा। दूसरे दिन वे अपना अधिकांश सामान हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए और डॉ० मीनू मेहता से उन्होंने एलुमिनियम की सीढ़ियों से अस्थाई पुल बनाना, रस्सियों का उपयोग, बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सी बाँधना आदि सीखा।

तीसरे दिन रीता गोबू के साथ लेखिका ने हिमपात से कैंप तक सामान ढोकर चढ़ाई की। बेस कैंप को सूचना देने के लिए उनके पास वॉकी-टॉकी थी, जिससे उन्होंने कर्नल खुल्लर को अपने कैंप पर पहुँचने की सूचना दी। अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा 29 अप्रैल को साउथ कोल पहुँच गए, जहाँ उन्होंने सात हज़ार नौ सौ मीटर पर चौथा कैंप लगाया।

जब अप्रैल में लेखिका बेस कैंप में थी, तो तेनजिंग अपनी सबसे छोटी पुत्री डेकी के साथ उसके पास आए थे तथा उन्होंने दल के प्रत्येक सदस्य के साथ बात की थी। लेखिका ने जब स्वयं को पर्वतारोहण में नौसिखिया बताया, तो उन्होंने लेखिका के कंधे पर अपना हाथ रख कर कहा कि वह एक पर्वतीय लड़की है। इसलिए पहले ही प्रयास में एवरेस्ट के शिखर पर पहुँच जाएगी।

15-16 मई, सन् 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन वह ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए तंबू के कैंप तीन में थी। लेखिका के साथ लोपसांग और तशारिंग तथा अन्य लोग दूसरे तंबुओं में थे। लेखिका गहरी नींद में सोई हुई थी कि अचानक रात में साढ़े बारह बजे के लगभग उसके सिर के पिछले हिस्से में एक सख्त चीज़ आकर टकराई, जिससे उसकी नींद खुल गई। तभी एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। उसे ऐसा लगा, जैसे कोई ठंडी और भारी वस्तु उसे कुचलती हुई जा रही है। उसे साँस लेने में कठिनाई होने लगी।

यह एक लंबा बर्फ़ का पिंड था, जो उनके कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर आ गिरा था। उससे प्रत्येक व्यक्ति को चोट लगी थी। आश्चर्य इस बात का था कि इस दुर्घटना में मौत किसी की नहीं हुई थी। लोपसांग की छुरी की मदद से तंबू का रास्ता साफ़ किया गया। उन्होंने ही लेखिका को बर्फ़ की कब्र से खींच कर बाहर निकाला था। सुबह तक सुरक्षा दल वहाँ पहुँच गया और 16 मई को सुबह आठ बजे सभी कैंप-दो में पहुँच गए। कर्नल खुल्लर ने सुरक्षा दल के इस कार्य को बहुत साहसिक बताया था। उन्होंने लेखिका से पूछा कि क्या वह इस हादसे से भयभीत है और वापस जाना चाहती है? इस पर लेखिका ने कहा कि वह भयभीत तो है, पर वापस नहीं जाएगी।

साउथ कोल कैंप पहुँचते ही लेखिका ने अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। उसने भोजन, कुकिंग गैस तथा ऑक्सीजन के सिलेंडर एकत्र कर लिए। जय और मीनू पीछे रह गए थे। लेखिका उनके लिए एक थरमस में जूस और दूसरे में गर्म चाय लेकर बर्फीली हवाओं का सामना करते हुए नीचे चल पड़ी। पहले उसकी मुलाकात मीनू से और फिर जय से हुई। अंत में थोड़ा नीचे उतरने पर उसे की मिला। उसने लेखिका के इस प्रकार आने पर आश्चर्य व्यक्त किया और जूस पीकर उसके साथ चल पड़ा। थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा भी उनसे मिलने नीचे आ गए। बाद में सभी साउथ कोल कैंप में आ गए।

अगले दिन सुबह चार बजे उठकर लेखिका ने बर्फ़ पिघलाकर चाय बनाई और बिस्कुट चॉकलेट का नाश्ता कर लगभग साढ़े पाँच बजे तंबू से बाहर निकल आई। अंगदोरजी तुरंत चढ़ाई शुरू करना चाहते थे। एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और लौटना बहुत कठिन और मेहनत का कार्य था। अन्य कोई उनके साथ चलने के लिए तैयार नहीं था। सुबह 6:20 पर लेखिका और अंगदोरजी साउथ कोल से निकल पड़े और दो घंटे से भी कम समय में शिखर कैंप पर पहुँच गए। उसे लगा कि वे दोपहर के एक बजे तक चोटी पर पहुँच जाएँगे।

ल्हाटू उनके पीछे आ रहा था। जब वे दक्षिणी शिखर के नीचे आराम कर रहे थे, तो ल्हाटू भी वहाँ पहुँच गया। चाय पीकर उन्होंने फिर चढ़ाई शुरू कर दी। वे नायलॉन की रस्सी के सहारे आगे बढ़ रहे थे। दक्षिण शिखर पर हवा की गति बढ़ गई थी, जिस कारण वहाँ भुरभुरी बर्फ के कण चारों ओर उड़ रहे थे। इस कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। तभी उसने देखा कि आगे चढ़ाई नहीं है, केवल ढलान ही एकदम सीधे नीचे चली गई है।

यह 23 मई, सन् 1984 का दिन था। दोपहर का एक बजकर सात मिनट का समय था। लेखिका इस समय एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। वह भारत की प्रथम महिला थी, जो इस प्रकार एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची थी। वहाँ एक साथ दो व्यक्ति खड़े नहीं हो सकते थे। चारों ओर हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान थी। उन्होंने बर्फ़ खोदकर स्वयं को ढंग से खड़ा रहने लायक बनाया। फिर घुटनों के बल बैठकर बर्फ़ से अपने माथे को लगाकर सागरमाथे के ताज का चुंबन लिया।

वहीं उसने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर लाल कपड़े में लपेटकर उनकी पूजा कर वहीं बर्फ में दबा दिया। तभी उसे अपने माता-पिता की भी याद आ गई। उसने अंगदोरजी को नमस्कार किया। उन्होंने ही उसे यहाँ तक पहुँचने की प्रेरणा दी थी। लेखिका ने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट पर चढ़ने की बधाई दी, तो उन्होंने भी लेखिका को गले से लगाकर कहा कि तुमने अच्छी चढ़ाई की।

कुछ देर बाद वहाँ सोनम पुलजर आ गए और उन्होंने फ़ोटो खींची। ल्हाटू ने एवरेस्ट पर चारों के होने की सूचना दल के नेता को दे दी थी। कर्नल खुल्लर इस सफलता से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने लेखिका से कहा कि तुम्हारी इस उपलब्धि के लिए मैं तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा। देश को तुम पर गर्व है। अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो पहले से एकदम भिन्न होगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • शिखर – चोटी, पहाड़ की चोटी।
  • अभियान – चढ़ाई।
  • अग्रिम – पेशगी, अगाऊ।
  • दुर्गम – कठिन।
  • प्लूम – पिच्छक।
  • हिमपात – बर्फ़ का गिरना।
  • अवसाद – उदासी।
  • ग्लेशियर – बर्फ़ की नदी।
  • अव्यवस्थित – बेतरतीब।
  • प्रवास – यात्रा में रहना।
  • हिम-विदर – बर्फ़ में पड़ी हुई दरार।
  • आरोहियों – ऊपर चढ़ने वाले।
  • विख्यात – प्रसिद्ध।
  • अभियांत्रिकी – तकनीकी।
  • नौसिखिया – अनाड़ी, नया-नया सीखने वाला।
  • श्रमसाध्य – परिश्रम से होने वाला।
  • आरोहण – ऊपर की ओर चढ़ना।
  • शंकु – नोक।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

JAC Class 9 Hindi ल्हासा की ओर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
थोड्ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों ?
उत्तर :
उन्हें रहने के लिए उचित स्थान इसलिए नहीं मिला था क्योंकि वे वहाँ शाम के समय पहुँचे थे। इस समय वहाँ के लोग छड् पीकर अपने होश-हवास गँवा बैठते हैं। उन्हें अच्छे-बुरे की पहचान नहीं रहती है। उनकी मनोवृत्ति भी बदल जाती है। इसलिए उनके भद्रवेश में होने पर भी उन्हें उचित स्थान नहीं मिल सका था।

प्रश्न 2.
उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था ?
उत्तर :
उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न होने के कारण वहाँ लोग पिस्तौल, बंदूक लिए फिरते थे। डकैत यात्रियों को मारकर उनका सामान लूट लेंते थे। इस प्रकार यात्रियों में सदा अपनी जान-माल का भय बना रहता था कि न मालूम कब उन्हें लूट लिया जाए अथवा जान से मार दिया जाएगा।

प्रश्न 3.
लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया ?
उत्तर :
लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से इस कारण पिछड़ गया था क्योंकि उसका घोड़ा धीरे-धीरे चल रहा था। जब वह घोड़े को जोर देने लगता तो उसका घोड़ा और अधिक सुस्त हो जाता था। जहाँ दो रास्ते फूट रहे थे वहाँ से वह बाएँ रास्ते पर मील-डेढ़ मील चला गया तो उसे पता चला कि वह गलत रास्ते पर जा रहा है। लड्कोर रास्ता तो दाहिनेवाला था। वहाँ से लौटकर उसने सही रास्ता पकड़ा। इस प्रकार वह साथियों से पिछडता गया।

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प्रश्न 4.
लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया ?
उत्तर :
दूसरी बार लेखक ने सुमति को यजमानों के पास जाने से इसलिए नहीं रोका क्योंकि वहाँ एक मंदिर में उसे बुद्धवचन की एक सौ तीन पोथियाँ मिल गई थीं। इनमें से एक-एक पोथी पंद्रह-पंद्रह सेर से कम नहीं थी। वह इन पोथियों के पठन-पाठन में लीन हो गया था।

प्रश्न 5.
अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
उत्तर :
अपनी यात्रा के दौरान लेखक को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसे दुर्गम मार्ग की कठिन चढ़ाई चढ़नी पड़ी। मार्ग में मामूली स्थानों पर रुकना पड़ा। डाकुओं-लुटेरों से बचने के लिए भिखमंगों के समान टोपी उतारकर और जीभ निकालकर उनसे दया की भीख माँगते हुए पैसा माँगा। लेखक का घोड़ा बहुत सुस्त था जिस कारण वह अपने साथियों से पिछड़ गया था और लड्कोर जाते हुए गलत रास्ते पर चला गया था। लेखक को सुमति के क्रोध का शिकार भी बनना पड़ा था। भारवाहक न मिलने पर लेखक को अपना सामान अपने कंधे पर लादकर ही यात्रा करनी पड़ी। खाने-पीने को जो मिला उसी में गुजारा करना पड़ा।

प्रश्न 6.
प्रस्तुत यात्रा- वृत्तांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था ?
उत्तर :
उस समय का तिब्बती समाज अंधविश्वासों से जकड़ा हुआ था। लोग बौद्ध संन्यासियों के द्वारा दिए गए गंडे-तावीज़ों को अपनी रक्षा का आधार मानते थे। समाज में कानून-व्यवस्था अत्यंत दयनीय स्थिति में थी। लोग बंदूक, पिस्तौल आदि लेकर खुलेआम घूमते थे। मार्ग में चोर – लुटेरों का डर रहता था। डकैत यात्रियों को मारकर लूटते थे। पुलिस गवाहों के अभाव में कुछ नहीं कर पाती थी। जान जाने के डर से कोई किसी के विरुद्ध गवाही नहीं देता था। वहाँ जाति-पाति, छुआछूत का भेदभाव नहीं था। स्त्रियाँ परदा नहीं करती थीं। अपरिचितों को भी घर के भीतर आने की मनाही नहीं थी। यात्रियों को आवास तथा खाने-पीने की सुविधा दी जाती थी। ये लोग छङ् नामक मादक पेय का पान करते थे।

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प्रश्न 7.
“मैं अब पुस्तकों के भीतर था।” नीचे दिए गए वाक्यों में से कौन-सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है –
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
(ख) लेखक पुस्तकों की शैल्फ़ के भीतर चला गया।
(ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
(घ) पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।
उत्तर :
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?
उत्तर :
सुमति इस क्षेत्र के लोगों से अच्छी प्रकार से परिचित हैं। वहाँ के लोग भी सुमति का आदर करते हैं। सुमति अपने यजमानों के लिए बोधगया के वस्त्रों के गंडे लेकर आते हैं। वे व्यवहार कुशल, मृदुभाषी, अच्छे सहयात्री एवं ‘क्षणे रूष्ठा क्षणे तुष्ठा’ स्वभाव के व्यक्ति हैं। लेखक लड्कोर का मार्ग भूल जाता है तो देर से पहुँचने पर सुमति लेखक पर क्रोधित हो जाते हैं, परंतु समझाने पर शांत हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
” हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था।” उक्त कथन के अनुसार हमारे आचार – व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं। आपकी समझ से यह उचित है अथवा अनुचित, विचार व्यक्त करें।
उत्तर :
हमारी समझ से यह उचित नहीं है कि किसी की वेशभूषा के आधार पर ही उस व्यक्ति के संबंध में कोई धारणा बना ली जाए। सीधी- साधी और स्वच्छ वेशभूषावाला व्यक्ति भी अच्छा एवं संस्कारी हो सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि बहुत अधिक कीमती तथा आडंबरपूर्ण वेशभूषा धारणा करके ही व्यक्ति श्रेष्ठ बन जाता है। महात्मा गांधी सामान्य – सी वेशभूषा धारण करते हुए भी देश को अहिंसात्मक आंदोलनों द्वारा स्वतंत्र करा गए। लाल बहादुर शास्त्री जैसा छोटा-सा व्यक्ति अपनी सादगी तथा सामान्य सी वेशभूषा से भारत का प्रधानमंत्री बन गया। इसलिए किसी भी वेशभूषा के आधार पर हमें आचार-व्यवहार के तरीके तय नहीं करने चाहिए।

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प्रश्न 10.
यात्रा-वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक दशा का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की दशा आपके राज्य/शहर से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर :
तिब्बत की ओर जानेवाला मार्ग अत्यंत दुर्गम है। वहाँ के डाँड़े सबसे अधिक खतरे के स्थान हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित डाँड़ा थोड्ला पार करना बहुत ही कठिन है। इनके दोनों ओर दूर-दूर तक कोई गाँव नहीं होता है। यहाँ एक ओर हिमालय पर्वत की बरफ़ से ढकी हजारों चोटियाँ तो दूसरी ओर बरफ और हरियाली से रहित नंगे पर्वत हैं। कहीं-कहीं कम बरफ़ से ढकी पर्वत की चोटियाँ भी हैं। यात्रा पैदल अथवा घोड़ों पर की जाती है। मैं दिल्ली में रहता हूँ। यहाँ की भौगोलिक दशा तिब्बत से बिलकुल भिन्न है।

यहाँ अनेक बहुमंजिला भवन, साफ़-सुथरी बड़ी-बड़ी सड़कें, छोटी-छोटी पहाड़ियाँ, मेट्रो रेल, हवाई अड्डा, अंतर्राज्यीय बस अड्डा, रेलवे स्टेशन आदि हैं। यात्रा के लिए कारें, बसें, स्कूटर, मोटर साइकिल, ताँगे, रिक्शा आदि पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं। यहाँ सरदियों में ठंड और गरमियों में गरमी रहती है। यमुना यहाँ की मुख्य नदी है। देश की राजधानी होने के कारण यहाँ सदा कोई-न-कोई कार्यक्रम होता रहता है। दिल्ली की सीमाएँ उत्तर दा कोई-न-कोई व प्रदेश और हरियाणा से लगती हैं।

प्रश्न 11.
आपने भी किसी स्थान की यात्रा अवश्य की होगी। यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को लिखकर प्रस्तुत करें।
उत्तर :
गत वर्ष गरमियों की छुट्टियों में हमारे विद्यालय की ओर से विद्यार्थियों का एक दल शिमला भ्रमण के लिए भेजने की योजना बनी थी। मैंने भी अपना नाम उसके लिए लिखवा दिया। मैंने पहले कभी कोई पर्वतीय स्थान नहीं देखा था इसलिए स्वाभाविक था कि मैं इस यात्रा के लिए बहुत उत्सुक था। 20 मई को विद्यार्थियों का हमारा यह दल शिमला के लिए रवाना हुआ। श्री रामसिंह जी हमारे पी० टी० आई० थे और वे हमारे साथ संरक्षक के रूप में गए थे।

रात्रि के साढ़े दस बजे हम दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए। गाड़ी ग्यारह बजे चलनी थी। हमने द्वितीय श्रेणी के शयनयान में अपने पूर्व निर्धारित स्थान ले लिए। भयंकर गरमी पड़ रही थी। शरीर पसीने से तर-बतर था। साधारण कमीज़ – पैंट भी पहनना मुश्किल हो रहा था। मेरे एक दो साथियों ने तो कमीज़े उतार कर कंधे पर डाल ली थीं। ग्यारह बजे गाड़ी चल दी। हम अपने- अपने स्थान पर सो गए।

प्रातः साढ़े छह बजे गाड़ी कालका स्टेशन पर रुकी। यहाँ से हमें गाड़ी बदलनी थी। शिमला के लिए गाड़ी प्लेटफार्म पर लगी हुई थी। छह डब्बों की नन्ही-सी गाड़ी खिलौने जैसी लग रही थी। खिलौना – गाड़ी के डब्बे छोटे-छोटे थे और रेलवे लाइन ‘नैरो गॉज’ थी। हमें गाड़ी में मुश्किल से स्थान मिला। हज़ारों भ्रमणार्थी शिमला जा रहे थे। गाड़ी ठीक साढ़े सात बजे चल पड़ी। गाड़ी की गति पर्याप्त धीमी थी और वह पर्वत की पीठ पर मानो रेंगते हुए चढ़ रही थी। खिड़की से बाहर का दृश्य आनंदमयी था।

दूर तक घाटियों में फैली हरियाली दिखाई पड़ती थी। देवदार, चीड़ और कैल के वृक्ष प्रहरियों की तरह सिर ऊँचा किए पहाड़ियों पर स्थान-स्थान पर खड़े थे। गाड़ी कभी विशेष प्रकार से बने मेहराबदार पुलों पर से गुज़रती तो कभी छोटी-बड़ी सुरंगों में से गुज़रती। बड़ौग स्टेशन पर गाड़ी साढ़े दस बजे पहुँची। स्टेशन छोटा-सा था परंतु बहुत सुंदर फूलों से सजा था। यहाँ पर हमने जलपान किया। बड़ौग की सुरंग सबसे लंबी थी।

जब गाड़ी सुरंग से गुज़रती तो गाड़ी में हलका अँधेरा-सा छा जाता। विभिन्न डब्बों से सीटियाँ बजाने और नारे लगाने की आवाज़ें आने लगतीं। हमने भी मिलकर गाने गाने शुरू कर दिए। हवा में हलकी ठंडक अनुभव होने लगी। हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि मई के अंत में भी लोग स्वेटर पहने हुए थे।

हमारी गाड़ी एक बजे दोपहर को शिमला पहुँच गई। प्लेटफार्म पर लाल रंग की पोशाक पहने कुली लंबी लाइन में बैठे थे। गाड़ी के पहुँचते ही उनमें हलचल प्रारंभ हो गई। देखते-ही-देखते वे गाड़ी पर टूट पड़े। यात्रियों के नीचे उतरने से पहले ही कुली गाड़ी में घुस गए और उन्होंने यात्रियों के सामान पर कब्ज़ा कर लिया। भाव-ताव के पश्चात बहुत से कुली पीठ पर सामान लेकर चल पड़े। हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि कुली सिर की अपेक्षा पीठ पर सामान ढो रहे थे।

हमारे ठहरने की व्यवस्था कॉली – बॉरी की धर्मशाला में थी। माँ दुर्गा के प्राचीन मंदिर के साथ यात्रियों के रुकने के लिए कमरे बने हैं। बड़ी संख्या में बंगाली यात्री वहाँ ठहरे थे। कुछ देर विश्राम करने के पश्चात हमने भोजन किया। सायंकाल को हम लोग तैयार होकर मॉल रोड की सैर के लिए चले। मॉल रोड पर बहुत भीड़ थी। एक सिरे पर लाला लाजपत राय का बुत उँगली उठाकर मानो भ्रमणार्थियों को सचेत कर रहा था जो रिज के दूसरी ओर गांधी जी छड़ी थापे, मुसकराते हुए खड़े थे।

दौलत सिंह पार्क में हिमाचल के निर्माता यशवंत सिंह परमार की मूर्ति थी तो उसके सामने इंदिरा गांधी जी का बुत था। रिज पर हज़ारों लोग इकट्ठे थे। कुछ बच्चे घुड़सवारी कर रहे थे। छाया चित्र लेनेवाले कैमरे के साथ व्यस्त थे। रिज पर मेले का सा दृश्य था। मॉल रोड पर हमें आयु, हर वेश-भूषा एवं हर प्रांत का व्यक्ति दिखाई पड़ा। ऐसा लगता था कि लघु भारत यहाँ आ बसा है।

दूसरे दिन हम हिमाचल पर्यटन विभाग की बसों में बैठकर कुफ़री, वाइल्ड फ़्लावर हॉल, क्रिंग नैनी और नालदेरा की यात्रा के लिए गए। नालदेरा का गोल्फ़ का मैदान बहुत सुंदर है। कुफ़री में हमने यॉक पर बैठकर फोटो खिंचवाए और रेस्तराँ में जलपान किया। वाइल्ड फ़्लावर हॉल में फूलों का मेला-सा लगा था। चारों ओर रंग-बिरंगे फूलों पर तितलियों के झुंड मँडरा रहे थे। तीसरे दिन हम जाखू पर्वत पर पिकनिक के लिए गए। शिमला शहर के मध्य में स्थित यह चोटी सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। रिज से लगभग पंद्रह सौ फुट की ऊँचाई पर स्थित इस चोटी पर हनुमान जी का भव्य मंदिर है। पूरे रास्ते में बंदरों के झुंड मिले। हमने उन्हें चने खिलाए। चौथे दिन प्रातः नौ बजे हम वापस चल पड़े।

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प्रश्न 12.
यात्रा-वृत्तांत गद्य साहित्य की एक विधा है। आपकी इस पाठ्य-पुस्तक में कौन-सी विधाएँ हैं? प्रस्तुत विधा उनसे किन मायनों में अलग है ?
उत्तर :
हमारी पाठ्य-पुस्तक में गद्य साहित्य की कहानी, निबंध, डायरी, रिपोर्ताज, व्यंग्य-लेख, संस्मरण और यात्रा-वृत्तांत विधाओं की रचनाएँ प्राप्त होती हैं। यात्रा-वृत्तांत इन सब विधाओं से इस प्रकार अलग है कि इसमें यात्रा करनेवाले व्यक्ति के अपने अनुभवों के अतिरिक्त उस यात्रा-स्थल की भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक स्थिति का भी ज्ञान हो जाता है। इसमें कहानी जैसी रोचकता के साथ-साथ संस्मरण जैसा आँखों देखा हाल भी प्राप्त हो जाता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 13.
किसी भी बात को अनेक प्रकार से कहा जा सकता है, जैसे –
सुबह होने से पहले हम गाँव में थे।
पौ फटने वाली थी कि हम गाँव में थे।
तारों की छाँव रहते-रहते हम गाँव पहुँच गए।
नीचे दिए गए वाक्य को अलग-अलग तरीके से लिखिए-
‘जान नहीं पड़ता था, कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।”
उत्तर :
(क) पता नहीं लगता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।
(ख) घोड़े के आगे या पीछे जाने का पता नहीं लगता है।
(ग) घोड़े के अपने स्थान से आगे जाने या पीछे हटने का पता नहीं लगता था।

प्रश्न 14.
ऐसे शब्द जो किसी ‘अंचल’ यानी प्रदेश विशेष में प्रयुक्त होते हैं उन्हें आंचलिक शब्द कहा जाता है। प्रस्तुत पाठ में से आंचलिक शब्द ढूँढकर लिखिए।
उत्तर :
चोडी, खोटी, छङ्, डाँड़ा, कुची-कुची, कंडे, थुकपा, भरिया, कन्जुर।

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प्रश्न 15.
पाठ में कागज, अक्षर, मैदान के आगे क्रमशः मोटे, अच्छे और विशाल शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों से विशेषता उभरकर आती है। पाठ में से कुछ ऐसे ही और शब्द छाँटिए जो किसी की विशेषता बता रहे हों।
उत्तर :
भद्र (यात्री), गरीब (झोंपड़े), परित्यक्त (चीनी किले), विकट (डाँड़ा थोड्ला), अच्छी (जगह), टोटीदार ( बरतन)।

पाठेतर सक्रियता –

यह यात्रा राहुल जी ने 1930 में की थी। आज के समय यदि तिब्बत की यात्रा की जाए तो राहुल जी की यात्रा से कैसे भिन्न होगी ?
उत्तर :
आधुनिक युग में यात्रा के अनेक साधन उपलब्ध हैं, जैसे- कार, बस, जीप, हेलीकॉप्टर, हवाई जहाज आदि। इसलिए आज के समय यदि तिब्बत की यात्रा की जाए तो यह यात्रा बहुत सुखद होगी तथा यात्री को तिब्बत के प्राकृतिक सौंदर्य का संपूर्ण आनंद प्राप्त होगा।

क्या आपके किसी परिचित को घुमक्कड़ी/यायावरी का शौक है? उसके इस शौक का उसकी पढ़ाई/काम आदि पर क्या प्रभाव पड़ता होगा, लिखें।
अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
उत्तर :
आम दिनों में समुद्र किनारे के इलाके बेहद खूबसूरत लगते हैं। समुद्र लाखों लोगों को भोजन देता है और लाखों उससे जुड़े दूसरे कारोबारों में लगे हैं। दिसंबर 2004 को सूनामी या समुद्री भूकंप से उठनेवाली तूफानी लहरों के प्रकोप ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि कुदरत की यह देन सबसे बड़े विनाश का कारण बन सकती है।

प्रकृति कब अपने ही ताने-बाने को उलटकर रख देगी, कहना मुश्किल है। हम उसके बदलते मिजाज को उसका कोप कह लें या कुछ और मगर यह अबूझ पहेली अकसर हमारे विश्वासों के चीथड़े कर देती है और हमें यह अहसास करा जाती है कि हम एक कदम आगे नहीं, चार कदम पीछे हैं। एशिया के एक बड़े हिस्से में आनेवाले उस भूकंप ने कई द्वीपों को इधर-उधर खिसकाकर एशिया का नक्शा ही बदल डाला।

प्रकृति ने पहले भी अपनी ही दी हुई कई अद्भुत चीजें इन्सान से वापस ले ली हैं जिसकी कसक अभी तक है। दुःख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है। वह हमारे जीवन में ग्रहण लाता है, ताकि हम पूरे प्रकाश की अहमियत जान सकें और रोशनी को बचाए रखने के लिए जतन करें। इस जतन से सभ्यता और संस्कृति का निर्माण होता है। सुनामी के कारण

दक्षिण भारत और विश्व के अन्य देशों में जो पीड़ा हम देख रहे हैं, हमारे जीवन में जोश, उत्साह और शक्ति भर देते हैं। 13 वर्षीय मेघना और अरुण दो दिन अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जंतुओं से मुकाबला करते हुए किनारे आ लगे। इंडोनेशिया की रिजा पडोसी के दो बच्चों को पीठ पर लादकर पानी के बीच तैर रही थी कि एक विशालकाय साँप ने उसे किनारे का रास्ता दिखाया।

मछुआरे की बेटी मैगी ने रविवार को समुद्र का भयंकर शोर सुना उसकी शरारत को समझा, तुरंत अपना बेड़ा उठाया और अपने परिजनों को उसपर बिठा उतर आई समुद्र में, 41 लोगों को लेकर। महज 18 साल की यह जलपरी चल पड़ी पगलाए सागर से दो-दो हाथ करने। दस मीटर से ज्यादा ऊँची सूनामी लहरें जो कोई बाधा, रुकावट मानने को तैयार नहीं थीं, इस लड़की के बुलंद इरादों के सामने बौनी ही साबित हुई।

जिस प्रकृति ने हमारे सामने भारी तबाही मचाई है, उसी ने हमें ऐसी ताकत और सूझ दे रखी है कि हम फिर से खड़े होते हैं और चुनौतियों से लड़ने का एक रास्ता ढूँढ़ निकालते हैं। इस त्रासदी से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए जिस तरह पूरी दुनिया एकजुट हुई है, वह इस बात का सबूत है कि मानवता हार नहीं मानती।
(क) कौन-सी आपदा को सूनामी कहते हैं ?
(ख) ‘दुःख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है’-आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) मैगी, मेघना और अरुण ने सूनामी जैसी आपदा का सामना किस प्रकार किया?
(घ) प्रस्तुत गद्यांश में दृढ़ निश्चय’ और ‘महत्व’ के लिए किन शब्दों का प्रयोग हुआ है ?
(ङ) इस गद्यांश के लिए एक शीर्षक ‘नाराज समुद्र’ हो सकता है। आप कोई अन्य शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) समुद्री भूकंप से उठनेवाली तूफ़ानी लहरों के प्रकोप को सूनामी कहते हैं।
(ख) इस कथन का आशय यह है कि दुख सहन करने के बाद मनुष्य में हिम्मत आ जाती है और वह विपत्तियों का सामना करते हुए जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता रहता है।
(ग) मैगी ने अपने 41 परिजनों को बेड़े में बैठाकर दस मीटर से ज्यादा ऊँची सूनामी लहरों का मुकाबला करते हुए बचाया। मेघना और अरुण दो दिनों तक अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जंतुओं से मुकाबला करते हुए किनारे पर आ लगे थे।
(घ) ‘दृढ़ निश्चय’ के लिए ‘बुलंद इरादों’ तथा ‘महत्व’ के लिए ‘अहमियत’ शब्दों का प्रयोग किया गया है।
(ङ) इस गद्यांश के लिए अन्य शीर्षक ‘साहस की विजय’ हो सकता है।

JAC Class 9 Hindi ल्हासा की ओर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
नेपाल से तिब्बत जाने वाले मुख्य मार्ग की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नेपाल से तिब्बत जानेवाला रास्ता व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था। इस रास्ते से नेपाल और हिंदुस्तान की चीजें तिब्बत जाया करती थीं। इस रास्ते पर जगह-जगह फ़ौजी चौकियाँ और किले बने हुए थे। इनमें चीनी सेना रहती थी। अब बहुत-से फ़ौजी मकान गिर चुके हैं और किले में कुछ किसानों ने अपने बसेरे बना लिए हैं।

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प्रश्न 2.
शेकर की खेती के मुखिया कौन थे ? वहाँ लेखक को क्या मिला ?
उत्तर :
शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु नम्से थे। वे बहुत भद्रपुरुष थे। वे लेखक से अत्यंत प्रेमपूर्वक मिले थे। यहाँ एक अच्छा मंदिर था। जहाँ लेखक को कन्जुर की एक सौ तीन हस्तलिखित पोथियाँ रखी हुई थीं। एक-एक पोथी पंद्रह-पंद्रह सेर की थी तथा बड़े मोटे कागज़ पर अच्छे अक्षरों में लिखी हुई थीं। वह इन पोथियों को पढ़ने में लीन हो गया।

प्रश्न 3.
‘ल्हासा की ओर’ यात्रा-वृत्तांत का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘ल्हासा की ओर’ यात्रा-वृत्तांत के माध्यम से लेखक ने तिब्बत-यात्रा की कठिनाइयों का वर्णन करते हुए वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य, सामाजिक जीवन तथा प्रशासनिक व्यवस्था से पाठकों को परिचित कराया है। तिब्बत के स्थानीय लोगों के यात्रियों के प्रति सहज व्यवहार से पाठकों को यात्रा करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 4.
ल्हासा की सामाजिक स्थिति कैसी है ?
उत्तर :
ल्हासा की सामाजिक स्थिति अन्य समाजों से अच्छी है। यहाँ जाति-पाति और छुआछूत का भेदभाव नहीं है। यहाँ की औरतें परदा नहीं करती हैं। घर में निम्न श्रेणी के भिखमंगों के अतिरिक्त किसी को भी किसी भी घर में आने की मनाही नहीं है। अपरिचित लोग भी घर के अंदर तक जा सकते हैं। वे लोग जल्दी से दूसरों पर विश्वास कर लेते हैं।

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प्रश्न 5.
ल्हासा की चाय की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
वहाँ चाय मक्खन और सोडा नमक डालकर बनाई जाती है। आप वहाँ किसी से भी कहकर चाय बनवा सकते हैं। उसके लिए चाय, मक्खन और सोडा – नमक देना पड़ता है। वे लोग चाय चोड़ी में कूटकर उसे दूधवाली चाय के रंग की बनाकर मिट्टी के टोंटीदार बरतन में रखकर आपको दे देंगे। यदि आप चूल्हे से दूर बैठे हैं और आपको डर है कि वे सारा मक्खन आपकी चाय में नहीं डालेंगी तो आप स्वयं जाकर चोड़ी में चाय मथकर ला सकते हैं। चाय का रंग तैयार हो जाने पर, उसमें नमक- मक्खन, डालने की जरूरत होती है।

प्रश्न 6.
डाँड़ा थोङ्ला क्या है ? यह डाकुओं के लिए सबसे अच्छी जगह क्यों है ?
उत्तर :
तिब्बत में डाँड़ा पहाड़ की ऊँची जमीन को कहते हैं। थोङ्ला तिब्बत की सीमा पर स्थित एक स्थान का नाम है। डाँड़े तिब्बत में सबसे खतरनाक जगह है, सोलह-सत्रह फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ मीलों तक कोई गाँव दिखाई नहीं देता है। इसे बहुत सँभलकर पार करना पड़ता है।

इस स्थान पर मीलों तक आदमी दिखाई नहीं पड़ता है इसलिए वह जगह डाकुओं के लिए अच्छी है। ऐसे निर्जन स्थानों पर डाकुओं का यात्रियों को लूटना आसान है। यहाँ पर पुलिस भी नहीं आती है। यहाँ डकैत पहले आदमी को मारता है फिर देखता है कि उसके पास कुछ है या नहीं। इसलिए यह स्थान डाकुओं के लिए उपयुक्त है। वहाँ किसी के आने का डर नहीं है।

प्रश्न 7.
तिब्बत की पुलिस के संबंध में लेखक के क्या विचार थे ?
उत्तर :
तिब्बत की पुलिस निर्जन पहाड़ों में जाने को तैयार नहीं है। उनकी खुफिया पुलिस इन जगहों के लिए पैसा खर्च करने के लिए तैयार नहीं है। यहाँ पर हथियार रखने संबंधी कोई कानून नहीं है, इसलिए सभी के बंदूक, पिस्तौल आदि हैं। पुलिस किसी भी अपराधी को पकड़ना भी चाहे तो उसे गवाही के लिए कोई आदमी नहीं मिलता है। यदि गाँव में खून हो जाए तो वहाँ खूनी को सज़ा मिल सकती है।

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प्रश्न 8.
लेखक ने सुमति को यजमानों के पास जाने से कैसे रोका ?
उत्तर :
सुमति तिरी – समाधि-गिरि के आस-पास गाँवों में जाना चाहता था। वहाँ उसके यजमान थे। वह यजमानों को गंडे देकर दक्षिणा प्राप्त करना चाहता था। परंतु लेखक ने उसे अपने यजमानों के पास जाने के लिए मना कर दिया क्योंकि सुमति एक बार यजमानों के पास चला गया तो वह सप्ताह – भर भी वापिस नहीं आएगा। इससे लेखक की यात्रा बाधित होगी। इसलिए लेखक ने सुमति को यजमानों के पास न जाने से होनेवाली हानि के बदले में ल्हासा पहुँचकर रुपए देने की बात कहकर, सुमति को जाने से रोका।

प्रश्न 9.
तिब्बत में जमीन की स्थिति कैसी है? वहाँ खेती कैसे होती है?
उत्तर :
तिब्बत की ज़मीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का बहुत बड़ा हिस्सा बौद्ध मठों के हाथ में है। अपनी-अपनी जागीर पर जागीरदार, कुछ पर स्वयं खेती करते हैं तथा कुछ पर मजदूरों से करवाते हैं। वहाँ मजदूर बेगार पर मिल जाते हैं। खेती का प्रबंध देखने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो सभी प्रबंध देखता है, वह जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता है। इस प्रकार तिब्बत में खेती का प्रबंध बौद्ध भिक्षुओं के हाथ में है।.

प्रश्न 10.
‘ल्हासा की ओर’ किस प्रकार की विधा है ? लेखक इस पाठ के माध्यम से क्या बताना चाहता है?
उत्तर :
‘ल्हासा की ओर’ राहुल सांकृत्यायन द्वारा रचित एक श्रेष्ठ यात्रा-वृत्तांत है। इसमें लेखक ने अपनी तिब्बत-यात्रा का वर्णन किया है। अपनी इस यात्रा के माध्यम से लेखक ने बताना चाहा है कि तिब्बत में यात्रियों की सुविधाओं के साथ-साथ बहुत-सी कठिनाइयों का भी सामना करना पडता है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. यह व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए जगह-जगह फ़ौजी चौकियाँ और किले बने हुए हैं, जिनमें कभी चीनी पलटन रहा करती थी। आजकल बहुत-से फ़ौजी मकान गिर चुके हैं। दुर्ग के किसी भाग में, जहाँ किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है, वहाँ घर कुछ आबाद दिखाई पड़ते हैं। ऐसे ही परित्यक्त एक चीनी किला था। हम वहाँ चाय पीने के लिए ठहरे। तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत-सी तकलीफ़ें भी हैं और कुछ आराम की बातें भी। वहाँ जाति-पाति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं। बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को लोग चोरी के डर से घर के भीतर नहीं आने देते, नहीं तो बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) चीनी पलटन कहाँ रहती थी ?
(ख) किले के कुछ भागों में किसने अपना बसेरा बना लिया है ?
(ग) लेखक चाय पीने हेतु कहाँ रुका ?
(घ) जाति-पाति – छुआछूत का भेदभाव कहाँ नहीं है ?
(ङ) तिब्बत में लोग अपने घरों में किन्हें नहीं आने देते थे और क्यों ?
उत्तर :
(क) चीनी पलटन जगह-जगह बनी फ़ौजी चौकियों और किलों में रहती थी।
(ख) किले के कुछ भागों में किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है।
(ग) लेखक चाय पीने के लिए एक चीनी किले में रुका।
(घ) तिब्बत में जाति-पाति – छुआछूत का भेदभाव नहीं है।
(ङ) तिब्बत में लोग बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को चोरी के भय से घरों के भीतर नहीं आने देते, नहीं तो बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं।

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2. अब हमें सबसे विकट डाँड़ा थोङ्ला पार करना था। डाँड़े तिब्बत में सबसे खतरे की जगहें हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उसकी दोनों तरफ़ मीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं होते। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता। डाकुओं के लिए यही सबसे अच्छी जगह है। तिब्बत में गाँव में आकर खून हो जाए, तब तो खूनी को सजा भी मिल सकती हैं, लेकिन इन निर्जन स्थानों में मरे हुए आदमियों के लिए कोई परवाह नहीं करता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) डाँड़ा थोङ्ला कैसी जगह है ?
(ख) डाँड़ा थोङ्ला में बहुत दूर-दूर तक आदमी क्यों नहीं दिखाई देते ?
(ग) डाँड़ा थोङ्ला किसके लिए सबसे अच्छी जगह है और क्यों ?
(घ) तिब्बत को निर्जन स्थानों पर किनकी परवाह नहीं होती ?
उत्तर :
(क) तिब्बत में डाँड़ा थोङ्ला सबसे खतरे की जगह है। उसकी ऊँचाई सोलह-सत्रह हज़ार फुट है।
(ख) डाँड़ा थोङ्ला की ऊँचाई अधिक होने के कारण तथा नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी दिखाई नहीं देते।
(ग) डाँड़ा थोङ्ला डाकुओं के लिए सबसे अच्छी जगह है क्योंकि यहाँ दूर-दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता।
(घ) तिब्बत को निर्जन स्थानों पर मरे हुए आदमियों की परवाह नहीं होती।

3. सर्वोच्च स्थान पर डाँड़े के देवता का स्थान था, जो पत्थरों के ढेर, जानवरों की सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों से सजाया गया .. था। अब हमें बराबर उतराई पर चलना था। चढ़ाई तो कुछ दूर थोड़ी मुश्किल थी, लेकिन उतराई बिलकुल नहीं। शायद दो-एक और सवार साथी हमारे साथ चल रहे थे। मेरा घोड़ा कुछ धीमे चलने लगा। मैंने समझा कि चढ़ाई की थकावट के कारण ऐसा कर रहा है, और उसे मारना नहीं चाहता था। धीरे-धीरे वह बहुत पिछड़ गया, और मैं दोन्क्विकस्तो की तरह अपने घोड़े पर झूमता हुआ चला जा रहा था।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) डाँड़े के देवता का स्थान किनसे सजाया गया था ?
(ख) प्रस्तुत गद्यांश का लेखक कौन हैं? यह किस शैली में रचित है ?
(ग) घोड़े को धीरे चलता देखकर लेखक ने क्या समझा ?
(घ) लेखक किसके समान घोड़े पर झूम रहा था ?
उत्तर :
(क) डाँड़े के देवता का स्थान पत्थरों के ढेर, जानवरों की सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों से सजाया गया था।
(ख) प्रस्तुत गद्यांश के लेखक राहुल सांकृत्यायन हैं। यह आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है।
(ग) घोड़े को धीरे चलता देखकर लेखक ने समझा कि घोड़ा चढ़ाई की थकावट के कारण ऐसा कर रहा है।
(घ) लेखक दोन्निक्वक्स्तो के समान घोड़े पर झूमता हुआ चला जा रहा था।

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4. आसपास के गाँव में भी सुमति के कितने ही यजमान थे, कपड़े की पतली-पतली चिरी बत्तियों के गंडे खतम नहीं हो सकते थे, क्योंकि बोधगया से लाए कपड़े के खतम हो जाने पर किसी कपड़े से बोधगया का गंडा बना लेते थे। वह अपने यजमानों के पास जाना चाहते थे। मैंने सोचा, यह तो हफ़्ता-भर उधर ही लगा देंगे। मैंने उनसे कहा कि जिस गाँव में ठहरना हो, उसमें भले ही गंडे बाँट दो, मगर आसपास के गाँवों में मत जाओ, इसके लिए मैं तुम्हें ल्हासा पहुँचकर रुपए दे दूँगा। सुमति ने स्वीकार किया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) लेखक किस स्थान के आस-पास के गाँवों की बात कर रहा है ? वहाँ की क्या विशेषता है ?
(ख) यजमान किसे कहते हैं ? सुमति उन्हें गंडे क्यों देते हैं ?
(ग) सुमति यजमानों के पास क्यों जाना चाहते हैं ? लेखक उन्हें क्यों नहीं जाने देना चाहते ?
(घ) लेखक ने सुमति को गाँवों में न जाने के लिए कैसे मनाया ?
(ङ) सुमति ने पैसा कहाँ लेना स्वीकार कर लिया था ?
उत्तर :
(क) लेखक तिड्री के आस-पास के गाँवों की बात कर रहा है। पहाड़ों से घिरे हुए तिड्री के मैदान टापू जैसे दिखाई देते थे। मैदान में एक छोटी-सी पहाड़ी थी। इस पहाड़ी को तिड्री – समाधि – गिरि कहा जाता है।
(ख) यजमान वह व्यक्ति होता है जो किसी ब्राह्मण अथवा धर्मगुरु से कोई धार्मिक कार्य करवाता है। सुमति अपने यजमानों को गंडे इसलिए देते हैं क्योंकि उनके यजमानों को यह विश्वास है कि इन गंडों को बोधगया से लाए गए कपड़े से बनाया गया है। यह गंडे उनकी रक्षा करेंगे। यजमान गंडों के बदले सुमति को दक्षिणा देते हैं।
(ग) सुमति यजमानों के पास इसलिए जाना चाहते हैं कि वे अपने यजमानों को गंडे दे सकें तथा उनसे दक्षिणा प्राप्त कर सकें। लेखक उन्हें वहाँ इसलिए नहीं जाने देना चाहता क्योंकि इस प्रकार उनकी यात्रा में बाधा आ जाएगी। सुमति वहाँ हफ़्ता – भर लगा सकते हैं।
(घ) लेखक ने सुमति को अन्य गाँवों में न जाने के लिए यह कहकर मना लिया कि जिस गाँव में ठहरना हो वहाँ के यजमानों को गंडे बाँट दो परंतु आसपास के अन्य गाँवों में मत जाओ। इससे होनेवाली हानि के बदले लेखक उसे ल्हासा पहुँचकर रुपए दे देगा।
(ङ) सुमति ने ल्हासा में पैसे लेना स्वीकार कर लिया था।

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5. तिब्बत की ज़मीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का बहुत ज्यादा हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है। अपनी- अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती खुद भी करता है जिसके लिए मज़दूर बेग़ार में मिल जाते हैं। खेती का इंतज़ाम दिखाने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है जो जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) तिब्बत में ज़मीन की स्थिति कैसी है ?
(ख) तिब्बत में जागीरदार खेती कैसे और किनसे कराते हैं ?
(ग) तिब्बत में खेती का प्रबंध देखनेवाले भिक्षुओं की क्या स्थिति है ?
(घ) ‘बेगार’ से क्या आशय है ?
(ङ) दो विदेशी शब्द चुनकर लिखिए।
उत्तर :
(क) तिब्बत की ज़मीन अनेक छोटी-बड़ी जागीरों में बँटी हुई है। इनमें से अधिकतर जागीरों पर मठों का अधिकार है। वे ही इसका प्रबंध करते हैं।
(ख) तिब्बत में जागीरदार कुछ खेती स्वयं भी करते हैं और कुछ बेगार में मिलनेवाले मज़दूरों से कराते हैं।
(ग) तिब्बत में खेती का प्रबंध देखनेवाले मठों के भिक्षुओं को वहाँ काम करनेवाले एक राजा के रूप में सम्मान देते थे। उनके लिए वे उनके अन्नदाता थे।
(घ) ‘बेगार’ उन व्यक्तियों को कहते हैं जो बिना कोई निश्चित पारिश्रमिक लिए काम करते हैं।
(ङ) जागीर, इंतज़ाम।

ल्हासा की ओर Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन – राहुल सांकृत्यायन आधुनिक हिंदी – साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म उत्तर- प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाँव में सन् 1893 ई० में हुआ था। इनका मूल नाम केदारनाथ पांडेय था। शुरू से इनके स्वभाव में घुमक्कड़ी प्रवृत्ति विद्यमान थी। इसी कारण बाद में वे साधु बन गए और नाम पड़ा दामोदर। इन्होंने आरंभिक शिक्षा रानी की सराय गाँव में ग्रहण की थी। इन्होंने मिडिल की परीक्षा निज़ामाबाद के मिडिल स्कूल से पास की और संस्कृत सीखने काशी आ गए।

ये स्वभाव से ही घुमक्कड़ थे। इन्होंने संपूर्ण भारत की और लगभग एक तिहाई विश्व के महत्त्वपूर्ण देशों की यात्रा की। श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल, ईरान, चीन, जापान, मंचूरिया, इंग्लैंड, सोवियत संघ आदि देशों की यात्राओं ने इनके जीवन-दर्शन और दिशा को निर्मित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अत्यंत कठिन परिस्थितियों में एक से अधिक बार तिब्बत की यात्रा करके वे दुर्लभ प्राचीन भारतीय ग्रंथों की प्रतियाँ खोजकर लाए। अनेक वर्षों तक वे रूस में भारतीय दर्शन के अध्यापक रहे। सन् 1930 में इन्होंने श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म ग्रहण किया, तब इनका नाम राहुल सांकृत्यायन हुआ। सन् 1963 ई० में इनका निधन हो गया।

रचनाएँ – राहुल जी सही अर्थों में महापंडित थे। उन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य की अधिकांश विधाओं को समृद्ध किया है। इनके द्वारा रचित पुस्तकों की संख्या लगभग 150 है। मेरी जीवन-यात्रा (छह भाग), दर्शन – दिग्दर्शन, बाइसवीं सदी, जय यौधेय, बोल्गा से गंगा, भागो नहीं दुनिया को बदलो, दिमागी गुलामी, घुमक्कड़ शास्त्र आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। इन्होंने आदि हिंदी की कहानियाँ, दक्खिनी हिंदी काव्य – धारा और हिंदी काव्य – धारा प्रस्तुत कर हिंदी साहित्य की लुप्तप्राय सामग्री का उद्धार किया। वे बौद्ध धर्म के विख्यात विद्वान और व्याख्याता थे। इन्होंने बौद्ध-धर्म के अनेक ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद किया जिसमें मज्झिम निकाय, दीर्घनिकाय और विनय पिटक प्रमुख हैं।

भाषा-शैली – राहुल सांकृत्यायन आलोचक, भाषाशास्त्री, समाज – चिंतक, इतिहास – वेत्ता और गद्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, जापानी, रूसी एवं सिंहली भाषाओं पर अधिकार था। इनमें विषय एवं भाव के अनुरूप भाषा प्रयोग की अद्भुत क्षमता थी। ‘ल्हासा की ओर’ यात्रा – वृत्तांत में लेखक ने सहज, सरल भाषा तथा रोचक शैली में अपनी तिब्बत – यात्रा का वर्णन किया है। लेखक ने बोलचाल के पलटन, आबाद, बरतन, तकलीफ़, फ़ौजी आदि शब्दों के अतिरिक्त परित्यक्त, भद्र, मनोवृत्ति, श्वेत, शिखर आदि तत्सम प्रधान तथा खोटी, चोङी, डाँडा, थुक्पा, कन्जुर आदि देशज शब्दों का भी प्रयोग किया है। शैली में चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है, जैसे- ” आप दो बजे सूरज की ओर मुँह करके चल रहे हैं, ललाट धूप से जल रहा है और पीछे का कंधा बरफ़ हो रहा है। ”

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

पाठ का सार :

‘ल्हासा की ओर’ राहुल सांकृत्यायन द्वारा रचित यात्रा – वृत्तांत है जिसमें उन्होंने ने अपनी तिब्बत यात्रा का वर्णन किया है। लेखक नेपाल से तिब्बत जाने वाले मुख्य मार्ग से ल्हासा जा रहे हैं। फरी – कलिड्याङ् मार्ग के प्रारंभ होने से पहले भारत का व्यापार नेपाल और तिब्बत से इसी मार्ग से होता था। चीनी पलटन उस मार्ग पर बनी हुई चौकियों और किलों में रहती थी। अब फ़ौजी मकान गिर गए हैं तथा किलों में किसानों ने अपने घर बना लिए हैं। ऐसे ही किसी किले में लेखक चाय पीने के लिए रुकता है।

तिब्बत में यात्रियों को सुविधाएँ भी हैं और कुछ कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है। वहाँ छुआछूत, परदा प्रथा, जातिगत भेद आदि कुछ भी नहीं है। यात्री घर के अंदर तक जाकर बहुओं अथवा सास को चाय पकाने के लिए कह सकते हैं। वह चाय बनाकर मिट्टी के टोटीदार बरतन में लाकर दे देगी। जब वे उस किले से चलने लगे तो एक व्यक्ति ने इनसे राहदारी माँगी। इन्होंने दो चिटें उसे दे दीं। उसी दिन वे थोड्ला के पहले के अंतिम गाँव में पहुँच गए थे। यहाँ भी लेखक के साथ चल रहे बौद्ध भिक्षु सुमति के जान-पहचान के लोग रहते थे। इसलिए उन्हें ठहरने के लिए अच्छी जगह मिल गई थी।

अब लेखक और उसके साथी को बहुत मुश्किल डाँड़ा थोड्ला पार करना था। तिब्बत में डाँड़े अत्यंत खतरनाक स्थान माने जाते हैं। सोलह- सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ दूर-दूर तक कोई गाँव नहीं होता है। डाकुओं के लिए यह बहुत सुरक्षित जगह है। इन निर्जन स्थानों पर यदि किसी का खून भी कर दिया जाए तो कोई चिंता नहीं करता है। डाकू भी पहले आदमी को मार देते हैं और बाद में उसका माल लूटते हैं। लेखक और उसका साथी ऐसे किसी व्यक्ति को देखकर भिखमंगों की तरह उनसे ‘दया करके एक पैसा दे दो’ कहकर भीख माँगने लगते थे।

वहाँ पहाड़ की ऊँची चढ़ाई देखकर लेखक ने सुमति को लड्कोर तक दो घोड़ों का प्रबंध करने के लिए कहा। अगले दिन वे घोड़ों पर सवार होकर ऊपर की ओर चलने लगे। डाँडे से पहले उन्होंने एक स्थान पर चाय पी और दोपहर के समय डाँड़े के ऊपर जा पहुँचे। इनके दक्षिण की तरफ पूर्व से पश्चिम तक हिमालय की बरफ़ से ढकी हज़ारों चोटियाँ थीं तथा दूसरी ओर हरियाली और बरफ से रहित बिलकुल नंगे पहाड़ थे।

चढ़ाई कुछ कठिन थी परंतु उतराई सहज थी। लेखक अपने घोड़े पर झूमता हुआ गलत रास्ते पर चला गया। रास्ते में किसी से पूछकर लौटकर सही रास्ते पर आया। जब वह देर से पहुँचा तो सुमति लेखक पर गुस्सा होने लगा। लेखक ने सारा दोष अपने सुस्त घोड़े को दिया। सुमति शीघ्र ही शांत हो गया। लङ्कोर में इन्हें ठहरने के लिए अच्छा स्थान मिल गया। यहाँ के यजमानों ने उन्हें चाय-सत्तू और गरमा-गरम थुक्पा खाने को दिया।

इसके बाद वे तिड्री के पहाड़ों से घिरे हुए टापू जैसे विशाल मैदान में पहुँच गए। वहीं एक छोटी-सी पहाड़ी है, जिसे तिड्री-समाधि-गिरि कहते हैं। यहाँ के गाँवों में सुमति के अनेक यजमान थे। सुमति कपड़ों की पतली-पतली चिरी हुई बत्तियों के गंडे यजमानों को बाँटते थे। लेखक ने सुमति को आस-पास के गाँवों में जाने से मना कर दिया और ल्हासा पहुँचकर उसे रुपये देने की बात कही।

सुमति ने स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन वे वहाँ से चल पड़े। सुमति के परिचित यजमान तिड्री में भी थे परंतु वे शंकर विहार की ओर चलने लगे। वहाँ के भिक्षु नम्से बहुत भद्र पुरुष थे। वहाँ के मंदिर में कन्जुर मुद्धवचन की हस्तलिखित एक सौ तीन, पोथियाँ थीं। एक-एक पोथी पंद्रह- चंद्रह सेर से कम नहीं थी। सुमति आस-पास के यजमानों से मिलने चला गया और लेखक पोथियाँ पढ़ने लगा। अंत में भिक्षु नमसे से विदा लेकर वे अपना-अपना सामान पीठ पर लादकर चल पड़े।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • पलटन – सेना, फ़ौज
  • आबाद – बसा हुआ, जहाँ लोग रहते हों
  • अपरिचित – अनजान
  • भद्र – सभ्य
  • डाँड़ा – ऊँची ज़मीन
  • दोन्क्विक्स्तो – स्पेन के उपन्यासकार सावतज के उपन्यास ‘डॉन क्विकजोर’ का नायक
  • दुर्ग – किला।
  • परित्यक्त – छोड़ा हुआ
  • राहदारी – रास्ते का कर
  • विकट – भयंकर, कठिन
  • परवाह – चिंता
  • कंडे – उपले, थोपा हुआ सूखा गोबर
  • गंडे – तावीज़े

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

JAC Class 9 Hindi ग्राम श्री Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
गाँव हरियाली से भरा हुआ है। वह बहुमूल्य रत्न पन्ना के समान है, जिसके कण-कण में हरियाली बसी हुई है। वह शांत है, स्निग्ध है और इसलिए कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ कहा है।

प्रश्न 2.
कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है ?
उत्तर :
कविता में शीत ऋतु के अंत और वसंत के मौसम का वर्णन है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

प्रश्न 3.
गाँव को ‘मरकत डिब्बे-सा खुला’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
गाँव के खेत हरी-भरी लहलहाती फसलों से भरे हुए हैं। पेड़-पौधों पर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। तरह-तरह के फलों, सब्जियों और अनाज के पेड़-पौधे अपनी हरी-भरी सुंदरता से सबके हृदय को आकृष्ट करते हैं। गाँव में हरियाली की अधिकता के कारण ही उसे ‘मरकत डिब्बे-सा खुला’ कहा है।

प्रश्न 4.
अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ?
उत्तर :
कवि को अरहर और सनई के खेत सोने की करधनियों के समान शोभाशाली दिखाई देते हैं।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
(ख) हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए
उत्तर :
(क) गंगा किनारे दूर-दूर तक फैली रेत धूप में सतरंगी आभा प्रकट करती है। जब गंगा की लहरे रेत को गीलाकर पीछे हट जाती हैं, तो उन लहरियों के निशान सूखी रेत पर साँपों के समान दिखाई देते हैं।
(ख) शीत ऋतु के जाने और वसंत के आगमन पर धूप में तेजी आने लगती है। वातावरण में गरमी बढ़ने लगती है। सरदी से भयभीत-सी वनस्पतियाँ भी सुख का अनुभव करने लगती हैं। ऐसा लगता है, जैसे सरदी की धूप को पाकर हँसमुख हरियाली भी सुस्ताने लगती है; उसे हल्की-हल्की नींद-सी आने लगती है।

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प्रश्न 6.
निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार हैं ?
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक
उत्तर :
इन पंक्तियों में पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार हैं।

प्रश्न 7.
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत के किस भूभाग पर स्थित है?
उत्तर :
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत में गंगा नदी के किनारे के किसी भूभाग पर स्थित है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
‘ग्राम श्री’ भारतीय गाँवों में सर्वत्र फैली प्राकृतिक शोभा की सुंदर झाँकी है। वसंत के आगमन पर पेड़-पौधों का हरा-भरा रूप सबके मन को मोह लेता है। लहलहाती फसलें जहाँ पेट भरने का आधार बनती हैं, वहीं मन और आँखों को तृप्ति भी प्रदान करती हैं। यह कविता कल्पना के आधार पर नहीं है, बल्कि यथार्थ का चित्रण करती है। सूर्य की उजली धूप में खेतों की मखमली शोभा और अधिक निखर जाती है। नीले आकाश के नीचे हवा में हिलती हुई फसलें ऐसी प्रतीत होती हैं, जैसे वे यौवन को पाकर मस्ती में झूमने लगी हों।

सरसों के पीले-पीले फूलों की बहार, अरहर और सनई की स्वर्णिम किंकिणियाँ और अलसी की नीली कलियाँ हरी-भरी धरती पर अनूठी प्रतीत होती हैं। मटर के खेतों में रंग-बिरंगे फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ हर पल मँडराती रहती हैं। आम के पेड़ बौर से लद जाते हैं; कोयलें कूकने लगती हैं; कटहल महक उठते हैं; जामुन फूल उठते हैं; अमरूदों पर लाल-लाल चित्तियाँ पड़ जाती हैं तथा तरह-तरह की सब्ज़ियाँ अपनी शोभा बिखेरने लगती हैं। गंगा के किनारे तरबूजों की खेती लहलहाती है, तो जलीय पक्षी अपनी मस्ती में क्रीड़ा करते दिखाई देते हैं।

कवि ने प्राकृतिक रंगों को अति स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत करने में सफलता पाई है। खड़ी बोली में रचित कविता में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। छंद-बद्ध कविता में लयात्मकता की सृष्टि हुई है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कथन को सरलता और स्पष्टता दी है। निश्चित रूप से भाव और भाषा की दृष्टि से ‘ग्राम श्री’ श्रेष्ठ कविता है, जिसमें चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। यह प्रकृति का चित्रण करने वाला रंग-बिरंगा चित्र है।

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प्रश्न 9.
आप जहाँ रहते हैं उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौंदर्य का कविता या गद्य में वर्णित कीजिए।
उत्तर :
जिस क्षेत्र में मैं रहता हूँ, वह भारत का ‘धान का कटोरा’ नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ धान की श्रेष्ठ किस्में उत्पन्न होती हैं, जो केवल भारत में ही नहीं खाई जातीं बल्कि विश्व के अधिकांश देशों को भी निर्यात की जाती हैं। वर्षा ऋतु का इस फसल के लिए बहुत बड़ा योगदान है। जुलाई-अगस्त महीनों में मानसून अपने पूरे रंग में आ जाता है। कई बार तो अचानक आकाश में बादल उमड़ते हैं और भरभूर वर्षा करते हैं। बच्चों को बारिश में भीगते हुए अपने-अपने स्कूलों में जाने-आने का विशेष आनंद आता है। गाँव के जो स्कूल कच्चे हैं वहाँ छुट्टी कर दी जाती है और बच्चे गलियों में नहाते हैं, भीगते हैं, खेलते हैं। कुछ किसान खेतों की ओर चल देते हैं, तो कुछ चौपाल में बैठ कर परस्पर मनोजन करते हैं। औरतें मिल जुलकर एक साथ घर के काम निपटाती हैं, लोकगीत गाती हैं। गलियों में पानी भर-भर कर बहता है। कहीं-कहीं तो ने छोटी नहर सी प्रतीत होती हैं। भैंसों को पानी में भीगना पसंद है, पर गायें सिर छिपाने की जगह ढूँढ़कर आराम से जुगाली करती हैं।

JAC Class 9 Hindi ग्राम श्री Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कविता के आधार पर गंगा किनारे की चित्रात्मक छवि का अंकन कीजिए।
उत्तर :
कवि ने बनारस और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की थी, जहाँ उसने गंगा नदी की शोभा को निकटता से निहारा था। वहाँ की छवियाँ उसके मन में रची-बसी थीं। वसंत ऋतु आने पर पेड़-पौधों व फसलों पर ही बहार नहीं आती बल्कि जीव-जंतु भी अपने भीतर परिवर्तन को अनुभव करते हैं। गंगा की धाराएँ हर पल तटों को नहलाती हुई आगे बढ़ती हैं और उनके आगे बढ़ने से साँपों जैसे निशान रेत पर छूट जाते हैं। धूप में सूखी रेत तरह-तरह के रंगों में चमकती है। दूर-दूर से बहकर आए घास-पात और तिनके तटों की रेत पर बिखर जाते हैं। किसान नदी तट पर तरबूज उगाते हैं। बगुले अपने पंजों रूपी कंघी से अपनी कलगी सँवारते हैं। सुरखाब पानी पर तैरते हैं और पुलिया पर मगरौठी सोई रहती है।

प्रश्न 2.
‘ग्राम श्री’ कविता में कवि ने मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने कविता में जड़ व चेतन तत्वों पर मानवीय भावों संबंधी और क्रियाओं के आरोप से उन्हें मनुष्य की तरह व्यवहार करते दिखाया है। प्रस्तुत कविता में सर्वत्र मानवीकरण अलंकार दिखाई देता है। बगुलों का अपने पैरों के पंजों रूपी कंघी से अपने पंखों को संवारते दिखाया गया है। इसी प्रकार अन्य स्थानों पर प्रकृति के विभिन्न रूपों को मानव के समान क्रियाकलाप करते दिखाया है।

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प्रश्न 3.
धरती का तल श्यामल क्यों प्रतीत हो रहा था ?
उत्तर :
सारा गाँव प्राकृतिक सुषमा से ओत-प्रोत था। खेतों में दूर तक हरियाली ही हरियाली थी। रात की ओस के बाद जब सुबह-सवेरे सूर्य की किरणें उस पर पड़ती थी, तब प्रकृति ऐसे लगती थी जैसे चाँदी की चादर ओढ़े हुए हो। फसलें अपने गहरे हरे रंग से सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। इसी कारण धरती का तल श्यामल प्रतीत हो रहा था।

प्रश्न 4.
वसंत ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वसंत ऋतु में प्रकृति में निरंतर परिवर्तन होता है। कभी धूप निकलती है, तो कभी मंद-मंद हवाएँ चलने लगती हैं। धूप के निकलने पर आस-पास के पर्वत, घास, पेड़-पौधे और उन पर खिले हुए फूल बहुत सुंदर दिखाई देते हैं। चारों ओर हरियाली छा जाती है। भीनी-भीनी गंध सारे वातावरण में फैल जाती है। हरी-भरी धरती पर अलसी के पौधों की नीली-नीली कलियाँ भी झाँकने लगती हैं।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली।
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्याम भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!

शब्दार्थ : तलक – तक। रवि – सूर्य। तन – शरीर। हरित – हरे-भरे। रुधिर — रक्त। श्याम – गहरा हरा कुछ-कुछ श्याम रंग का। भू – धरती। नभ – आकाश। चिर – लंबे समय से। नील – नीला। फलक.- पर्दा, आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से लिया गया है, जिसके रचयिता सुप्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने हरे-हरे खेतों और प्रकृति की सुंदरता का मनोरम चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि खेतों में दूर तक हरी-भरी फसलों की मखमली शोभा फैली है। सुबह-सवेरे जब सूर्य की किरणें प्रकट होती हैं तो ऐसा लगता है कि उन पर चाँदी जैसी उजली जाली-सी लिपट गई हो। फसलों के हरे-भरे तन पर धूप की चमक ऐसी प्रतीत होती है, जैसे उनमें विद्यमान उनका हरा रक्त निरंतर प्रवाहित हो रहा हो। फसलें गहरे हरे रंग की हैं, जिनके कारण धरती का तल श्यामल प्रतीत हो रहा है। सदा की तरह साफ़-स्वच्छ नीला आकाश उस पर झुका हुआ-सा दिखाई दे रहा है। भाव है कि हरी-भरी फसलों से भरी धरती पर झुका हुआ नीला आकाश अद्भुत दिखाई दे रहा है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) खेतों में दूर तक फैली हरियाली कैसी दिखाई देती है ?
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में क्या झलकता प्रतीत होता है ?
(ग) साफ़-स्वच्छ नीला आकाश किस पर झुका हुआ है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) खेतों में दूर तक फैली हरियाली मखमल के समान कोमल दिखाई देती है।
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में उनकी हरी रक्त- रूपी शक्ति झलकती दिखाई देती है। इससे पौधे के स्वस्थ रूप की झलक मिलती है।
(ग) साफ़-स्वच्छ नीला आकाश हरी-भरी फसलों से भरी धरती पर झुका हुआ है।
(घ) प्रकृति चित्रण से संबंधित इस अवतरण में कवि ने गाँव की शोभा का वर्णन करते हुए हरे-भरे खेतों का सजीव चित्रण किया है। नीले आकाश और हरी फसलों के द्वारा अद्भुत रंग योजना की सृष्टि की गई है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश और रूपक अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है।

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2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली !
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !

शब्दार्थ : वसुधा – धरती। सनई – सन, जिसकी छाल के रेशे से रस्सी बनाई जाती है। किंकिणियाँ – करधनी । तैलाक्त – तेल से युक्त। तीसी – अलसी नामक तेलहन।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इन पंक्तियों में कवि ने वसंत ऋतु के आगमन पर खेतों में दिखाई देने वाले अद्भुत परिवर्तन का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि गेहूँ- जौ की फसलों पर बालियाँ लग गई हैं, इसलिए सारी धरती रोमांचित – सी प्रतीत होती है। अरहर और सनई पर सुनहरे रंग की बालियाँ लग गई हैं, जो करधनी के समान शोभादायक प्रतीत होती हैं। सारे खेत में तेल की भीनी-भीनी गंध फैली हुई है। पीली-पीली सरसों सब तरफ़ फैली हुई है। कवि आश्चर्य में भरकर कहता है कि ज़रा देखो तो ! हरी-भरी धरती पर अलसी के पौधों की नीली- नीली कलियाँ भी झाँकने लगी हैं। भाव है कि हरे-भरे खेतों में नीले, पीले व सुनहरे रंग अलग से ही अपनी सुंदरता दिखाने लगे हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि के अनुसार पृथ्वी क्या देखकर रोमांचित है ?
(ख) सोने जैसी करधनियाँ किनकी हैं ?
(ग) नीली कलियों की शोभा कवि को कहाँ दिखाई दी थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि के अनुसार गेहूँ और जौ की बालियों को देखकर पृथ्वी रोमांचित है।
(ख) सोने की करधनियाँ अरहर और सनई के पौधों की हैं।
(ग) कवि को अलसी के पौधों की नीली कलियों की शोभा हरी-भरी धरती पर दिखाई दी थी।
(घ) कवि ने वसंत ऋतु के समय खेतों की हरियाली के साथ-साथ विभिन्न पौधों पर तरह-तरह की रंग – योजना का सजीव चित्रण किया है। ‘लो’ शब्द ने नाटकीयता और हैरानी के भाव को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। गतिशील बिंब योजना है। दृश्य बिंब ने कवि के कथन को चित्रात्मकता का गुण प्रदान किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज सुंदर चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दाब्ली की अधिकता है।

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3. रंग-रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटक
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती हैं रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर
फूले गिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !

शब्दार्थ : रिलमिल – मिल-जुलकर। छीमियाँ – फलियाँ। वृंत – डंठल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने हरे-भरे खेतों में मटर की बेलों पर लटकी फलियों और फूलों पर उड़ती रंग-बिरंगी तितलियों की शोभा का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि मटर की बेलें तरह-तरह के रंगों के फूलों से मिलकर हँसती-मुस्कुराती खड़ी हैं। उनकी हरी-भरी फलियाँ अपने भीतर बीजों की लड़ियों को छिपाकर मखमल की पेटियों की तरह लटकी हुई हैं। बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर रंग- बिरंगी तितलियाँ मँडरा रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि फूलों पर फूल गिर रहे हों; डंठलों पर जैसे डंठल ही उड़-उड़कर घूम रहे हों।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने मटरों की सुंदरता का वर्णन कैसे किया है ?
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में क्या छिपाया है ?
(ग) ‘फूलों पर फूल गिरते हुए’ किसके लिए कहा गया है ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने मटरों को रंग-बिरंगे फूलों से लदी बेलों पर लटकते हुए प्रकट किया है, जो अति सुंदर हैं। मटरों की फलियाँ मखमली पेटियों
के समान कोमल हैं।
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में मटर के बीजों की लड़ियों को छिपाया है।
(ग) रंग-बिरंगी तितलियाँ मटर की बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर मँडरा रही हैं। कवि ने कल्पना करते हुए कहा है कि मानों रंग-बिरंगे फूल ही रंग-बिरंगे फूलों पर गिर रहे हों।
(घ) कवि ने मटर के खेतों में प्रकृति की अनूठी छटा का सुंदर चित्रण किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का सहज-स्वाभाविक चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। गतिशील बिंब योजना अति स्वाभाविक रूप से की गई है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद युग विद्यमान है। शांत रस है। चाक्षुक बिंब ने दृश्य को सुंदर ढंग से प्रकट किया है।

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4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली !

शब्दार्थ : रजत – चाँदी। स्वर्ण – सोना। मंजरियाँ – बौर। आम्र – आम। तरु – पेड़। दल – पत्ते। डाली – शाखा। कोकिला – कोयल। मुकुलित – अधखिला। दाड़िम – अनार।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत ऋतु के आगमन के साथ प्रकृति में आए परिवर्तन का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि आम के पेड़ों की शाखाएँ सोने-चाँदी के रंगों से युक्त बौर से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पुराने पत्ते पेड़ों से गिर रहे हैं, ताकि उनका स्थान नए पत्ते ले सकें। कोयल मस्ती से भर उठी है। कटहल पेड़ों पर चिपके-लटके महकने लगे हैं। अधखिले जामुन के पेड़ शोभा देने लगे हैं और जंगल में झरबेरी मस्ती में झूमने लगी है। पेड़ों पर आडू, नींबू और अनार झूमने लगे हैं; खेतों में आलू, गोभी, बैंगन और मूली तैयार हो गई हैं। भाव है कि सारी प्रकृति तरह-तरह के पेड़-पौधों की शोभा से भर उठी है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने आम के पेड़ों की शोभा कैसे प्रकट की है ?
(ख) किन-किन पेड़ों के पत्ते झड़ने लगे थे ?
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को किसने प्रकट किया था ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) आम के पेड़ सरदी जाते ही चाँदी और सोने जैसे रंग के बौर से लद गए हैं। कोयल उन पर मस्ती में भरकर कूकने लगी है।
(ख) ढाक और पीपल के पत्ते झड़ने लगे थे, ताकि उनकी जगह नए और सुंदर पत्ते ले सकें।
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को झरबेरी ने प्रकट किया था।
(घ) कवि ने प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का सुंदर सजीव वर्णन किया है। तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है, पर वे सभी शब्द अति सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं। अनुप्रास, मानवीकरण और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण और शांत रस है। गणन शैली का प्रयोग है। लयात्मकता की सृष्टि स्वरमैत्री के कारण हुई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धानिया,
लौकी औं सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली !

शब्दार्थ : चित्तियाँ – धब्बे। सुनहले – सोने के रंग के। अँवली – छोटा आँवला। तरु – पेड़।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत ऋतु में तरह-तरह के फलों और सब्ज़ियों की विशेषताओं का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि अमरूद पककर पीले और मीठे हो गए हैं। उन पर छोटे-छोटे लाल धब्बे पड़ गए हैं, जिनसे उनकी सुंदरता बढ़ गई है। सुनहरे बेर पककर तैयार हो गए हैं और छोटे आँवलों से पेड़ों की शाखाएँ जड़ी गई हैं। खेतों में हरी-भरी पालक लहलहाने लगी है, तो धनिए की सुगंध महकने लगी है। लौकी और सेम की बेलें दूर-दूर तक फैल गई हैं और फल गई हैं। लाल रंग के मखमली टमाटरों से पौधे लद गए हैं। हरी मिर्चों से पौधे भर गए हैं, जिस कारण पौधे हरी-भरी थैली के समान दिखाई देने लगे हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) पके हुए अमरूद कैसे दिखाई देते हैं ?
(ख) बेर और आँवले कैसे हो गए हैं ?
(ग) खेतों में सब्ज़ियों पर कैसी-कैसी बहार है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) पके हुए अमरूद पीले रंग के हो गए हैं, जिन पर लाल-लाल चित्तियाँ हैं। वे बहुत मीठे हैं।
(ख) बेर और आँवले शोभा दे रहे हैं। बेर पककर सुनहले हो गए हैं और आँवलों से पेड़ों की डालियाँ पूरी तरह जड़ी जा चुकी हैं।
(ग) खेतों में पालक लहलहा रही है; धनिया महक रहा है; लौकी और सेम की बेलें दूर तक फैली हुई हैं। लाल-लाल मखमली टमाटरों और हरी-भरी मिर्चों पर तो मानो बहार आई हुई है।
(घ) कवि ने खेतों में उगने वाली सब्ज़ियों और फलों की शोभा का सुंदर और सहज वर्णन किया है। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। ‘लहलह’, ‘महमह’ में लयात्मकता है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण, चित्रात्मकता और दृश्य बिंब सहज सुंदर हैं।

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6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली भी कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!

शब्दार्थ : बालू – रेत। सरपत – घास-पात, तिनके। तट – किनारा। सुरखाब – चक्रवाक पक्षी। पुलिन – नदी का किनारा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने गंगा किनारे की रेत और वहाँ पर पक्षियों की क्रीड़ाओं का अति स्वाभाविक चित्रण किया है।

व्याख्या :कवि कहता है कि गंगा के किनारे पर सात रंगों में जगमगाती रेत पर नदी की लहरों से साँपों जैसे सुंदर लहरिया निशान बने हुए हैं। वहाँ फैली घास-पात और तिनके अति सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है। सफ़ेद बगुलों में से कई अपने पंजे रूपी उँगलियों से कलगी सँवार रहे हैं, तो चक्रवाक पक्षी जल पर तैर रहे हैं। नदी के तट पर मगरौठी सोई रहती है। भाव यह है कि गंगा – किनारे का दृश्य अति मोहक है। प्रकृति ने अपने सभी रंग वहाँ बिखेर दिए हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि द्वारा गंगा किनारे का अंकित चित्र स्पष्ट कीजिए।
(ख) बगुले गंगा किनारे क्या कर रहे हैं ?
(ग) मगरौठी क्या कर रही है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) गंगा किनारे रंग-बिरंगी रेत दूर-दूर तक फैली हुई है, जिस पर लहरों के बहाव से साँप जैसे चिह्न अंकित हैं। घास-पात और तिनके न जाने कहाँ-कहाँ से बहकर वहाँ इकट्ठे हो गए हैं, जो सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है।।
(ख) बगुले गंगा के तट पर अपने पंजे रूपी कँघी से अपनी कलगी सँवार रहे हैं।
(ग) मगरौठी नदी के तट पर आराम से सो रही है।
(घ) कवि ने गंगा तट पर प्राकृतिक दृश्य का अति सुंदर और स्वाभाविक चित्रण किया है। रेत पर साँप – सी लहरियाँ, तरबूजों की खेती और पक्षियों की क्रियाएँ अति सहज रूप से प्रस्तुत हुई हैं। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। अभिधात्मकता और प्रसादात्मकता ने कवि के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। चित्रात्मकता का गुण और चाक्षुक बिंब विद्यमान है।

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7. हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !

शब्दार्थ : हिम-आतप – सरदी की धूप। अंधियाली – अँधेरे। निशि – रात। तारक – तारे। स्वप्नों – सपनों। मरकत — पन्ना नामक रत्न। आच्छादन – छाया। निरुपम – जिसे किसी की उपमा न दी जा सके। स्निग्ध – कोमल। निज – अपनी। हरता – आकर्षित करना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत के आगमन पर ग्रामीण आँचल में बिखरी प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि प्रसन्नता से भरी हँसमुख हरियाली सरदी की धूप में सुख से अलसाई सो रही है। ओस से भीगी अँधेरी रात में आकाश में टिमटिमाते तारे भी मानो स्वप्न में खोए हुए हैं। सारा गाँव हरियाली से इस प्रकार भरा हुआ है, जैसे वह हरा-भरा बहुमूल्य पन्ना रत्न हो जिस पर नीलम ज़ैसा नीला आकाश छाया हुआ है। शीत ऋतु की समाप्ति पर सारा गाँव अनुपम प्रतीत हो रहा है। वह कोमल, अति सुंदर और शांत है; जो अपनी अपार शोभा से हर मानव के हृदय को आकर्षित करता है। भाव यह है कि शीत ऋतु की समाप्ति और वसंत के आगमन पर गाँव की शोभा अवर्णनीय व अद्भुत है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई क्यों कहा है?
(ख) ‘भीगी अँधियाली’ क्या है ?
(ग) कवि ने गाँव को ‘मरकत डिब्बे – सा’ क्यों माना है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) वसंत आगमन पर सरदियों की ठिठुरन कम हो जाती है। धूप में थोड़ी तेज़ी बढ़ने लगती है। दिन-रात सरदी से ठिठुरती खेतों की हरियाली भी मानो गरमी पाकर अलसाने लगी थी। इसलिए कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई – सी माना है।
(ख) ओस का पड़ना सरदियों का आवश्यक और स्वाभाविक गुण है। रात के अँधकार में ओस चुपचाप पेड़-पौधों तथा सारी प्रकृति को नहला देती है, इसलिए कवि ने उसे भीगी अँधियाली कहा है।
(ग) सारा गाँव हरी-भरी वनस्पतियों से भरा हुआ है। हरियाली तो उसके कण-कण में सिमटी हुई है, इसलिए कवि ने उसे ‘मरकत का डिब्बे – सा’ माना है।
(घ) कवि ने गाँव के कण-कण की शोभा का आधार प्रकृति को माना है। वसंत के आगमन पर प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, महक जाता है; कवि ने तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया है। उपमा, मानवीकरण, अनुप्रास तथा पदमैत्री का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। प्रसादगुण और अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।

ग्राम श्री Summary in Hindi

कवि-परिचय :

छायावादी काव्यधारा के कवि सुमित्रानंदन पंत कोमल भावों और सौंदर्य के कवि माने जाते हैं। इनका जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में सन् 1900 में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई थी। बाद में इन्होंने बनारस और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की थी, पर देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी के आह्वान पर इन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था। इनका देहांत 28 दिसंबर, सन् 1977 में हुआ था।

पंत जी ने साहित्य को काव्य के अतिरिक्त आलोचक, कहानी, आत्मकथा आदि गद्य विधाओं की रचनाएँ दी हैं। इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं – वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, उत्तरा, कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा, लोकायतन आदि। सन 1961 में इन्हें पद्मभूषण की उपाधि दी गई थी। इन्हें ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा ‘चिदंबरा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया था। इन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

पंत द्वारा प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति चित्रण को विशेष महत्व दिया गया। इन्होंने प्रकृति को नारी रूप में चित्रित किया था। ये प्रगतिवादी कविता से प्रभावित होकर रूढ़ियों को समाज से मिटा देने के लिए तैयार थे। इनके प्रारंभिक काव्य में जो कोकिला मीठे गीत गाती थी, वही बाद में क्रांति के लिए उकसाने लगी थी –

गा कोकिल बरसा पावक कण
नष्ट भ्रष्ट हों जीर्ण पुरातन।

महर्षि अरविंद से भेंट करने के पश्चात ये अध्यात्मवादी हो गए। इनकी कविता में चिंतन की प्रधानता हो गई थी। ये सत्य पर विश्वास रखते हुए भौतिक समृद्धि की आवश्यकता को स्वीकार करते थे। लोकायतन लोक संस्कृति का महाकाव्य है।
वास्तव में पंत एक महान कवि थे, जिन्होंने प्रारंभिक सौंदर्य भावना के युग से आज के चेतना प्रधान युग तक की महान यात्रा की। वे भाषा का प्रयोग करने में अति निपुण थे। उन जैसा शब्द चयन की क्षमता से युक्त कवि बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

कविता का सार :

सुमित्रानंदन पंत द्वारा चौथे दशक में लिखी गई यह कविता प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि का मनोरम वर्णन करने में सक्षम है। खेतों में दूर तक लहलहाती फसलें, फल-फूलों से लदी पेड़-पौधों की डालियाँ और गंगा की रेत कवि को गहराई से प्रभावित करती है। कवि को दूर-दूर तक खेतों में फैली हुई हरियाली मखमल के समान कोमल प्रतीत होती है, जिस पर सूर्य की किरणें चाँदी की जाली के समान बिखरी हुई हैं। हरी-भरी धरती पर नीले आकाश का पर्दा-सा फैला हुआ है। गेहूँ की बालियाँ, अरहर और सनई की सोने जैसी किंकिणियाँ शोभा देने वाली हैं।

मटर और छीमियों पर रंग-बिरंगी सुंदर तितलियाँ मँडराती फिरती हैं। आम की डालियाँ चाँदी-सोने की मंजरियों से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पेड़ों से पत्ते झड़ने लगे हैं। कोयल मस्ती में डूबकर कूक रही है। कटहल, जामुन, झरबेरी, आडू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन और मूली अपना रंग-रूप बिखेरने लगे हैं। पीले-पीले अमरूदों पर लाल-लाल चित्तियाँ पड़ गई हैं। पीले-पीले बेर पक गए हैं। पेड़ों पर आँवले झूल रहे हैं।

पालक, धनिया, लौकी, सेम, टमाटर, मिर्च आदि सब ऋतु परिवर्तन के साथ अपनी-अपनी शोभा को लेकर प्रकट हो गए हैं। गंगा नदी के किनारे रेत पर पानी के बहाव से सतरंगी साँप से अंकित हो गए हैं। नदी के तट पर तरबूजों की खेती की गई है। किनारों पर बगुले अपने पैरों की उँगलियों रूपी कंघी से अपने पंख सँवारते शोभा देते हैं। जल में तैरती सुरखाब और पुल पर सोई मगरौठी सुंदर लगती है। सरदियों की धूप फैल गई है।

हरियाली अलसाई-सी प्रतीत हो रही है। सारा गाँव पन्ना का खुला डिब्बा-सा प्रतीत होता है, जिस पर साफ़-स्वच्छ आकाश रूपी नीलम फैला हुआ है। शीत ऋतु बीत जाने के बाद प्राकृतिक शोभा सभी के हृदय को अपने बस में कर रही है। सर्वत्र सुंदरता बिखरी हुई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं

JAC Class 9 Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
सर्दियों की धुंध-भरी सड़क पर छोटे-छोटे बच्चों को काम पर जाते देखना दुखदायी है। उनकी आयु अभी काम पर जाने की नहीं बल्कि खेलने-कूदने और विद्यालय जाने की है। यदि वे अभी से बड़ों वाला कार्य करने को विवश कर दिए गए हैं तो उनके बचपन का क्या हुआ ?

प्रश्न 2.
कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?’ कवि की दृष्टि में किसी बात का विवरण न देते हुए उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए ?
उत्तर :
छोटे बच्चों को काम पर भेजने का कार्य उनके माता-पिता, अभिभावक और जीवन की विवशताएँ हैं इसलिए समाज से प्रश्न किया जाना चाहिए कि ‘बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं ?’ यदि बच्चों ने काम पर जाना आरंभ कर दिया तो उनका बचपन कहाँ गया ? उनके जीवन के लिए शिक्षा – प्राप्ति का समय कहाँ गया ? उनकी खेल-कूद कहाँ गई ? वे बच्चे तो अपना बचपन खोकर जल्दी ही बड़े हो गए।

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प्रश्न 3. :
सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?
उत्तर :
बच्चे सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से वंचित हैं। उनके माँ-बाप गरीब हैं। उनके पास पेट भरने के लिए रोटी नहीं है तो उनके पास उनके लिए खेल-खिलौने कहाँ से आ सकते हैं? इसलिए उनके बच्चे खेलते नहीं, बल्कि काम करने के लिए जाते हैं।

प्रश्न 4.
दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रही है/ देख रहा है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर :
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में प्राप्त किए जाने वाले सुखों तक ही सीमित है। उसे दूसरों के बच्चों के स्कूल जाने या न जाने से कोई मतलब नहीं है। वे सब स्वार्थी हैं। घरों – दुकानों उद्योगों में छोटे-छोटे बच्चे कम वेतन पर काम करते हैं। वे खेतों में काम करते हैं; कूड़ा बीनते हैं; भीख माँगते हैं पर पढ़ते नहीं हैं। माँ – बाप भी खुश हैं कि वे कुछ तो कमाकर लाते हैं। उनसे खाना तो नहीं माँगते। उन सब की उदासीनता के अपने-अपने कारण हैं, पर सबसे बड़ा कारण तो ग़रीबी है।

प्रश्न 5.
आपने अपने शहर में बच्चों को कब-कब और कहाँ-कहाँ काम करते हुए देखा है ?
उत्तर :
हमने अपने शहर में बच्चों को दुकानों में काम देखा है; घर-बाहर की सफ़ाई करते देखा है; कूड़ा बीनते और बोझ ढोते देखा है। उन्हें घरों में नौकर के रूप में देखा है; ढाबों पर खाना पकाते-परोसते देखा है।

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प्रश्न 6.
बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है ?
उत्तर :
बच्चों का काम पर जाना एक भयानक प्रश्न है, यह एक हादसे के समान है। यदि वे अभी से काम पर जाने लगेंगे तो वे स्कूल जा सकेंगे; खेल-कूद नहीं सकेंगे। उनका बचपन अधूरा रह जाएगा। वे अनपढ़ रह जाएँगे और जीवन में उचित मार्ग प्राप्त नहीं कर सकेंगे। बचपन में ही बिगड़े हुए लोगों की संगत पाकर बिगड़ जाएँगे। उनकी बुद्धि का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो सकेगा।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 7.
काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने-आपको रखकर देखिए। आपको जो महसूस होता है उसे लिखिए।
उत्तर :
यदि मैं अपने-आपको काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर रखूं तो मेरा रोम-रोम काँप उठता है। मुझे अपने तन पर मैले-कुचैले कपड़े, पाँव में टूटी हुई चप्पल, मैला-गंदा शरीर और उलझे हुए बाल अनुभव कर स्वयं से ऐसा एहसास होता है जो सुखद नहीं है। मेरा पेट खाली हो और मन में नौकरी देने वाले मालिक की गालियाँ गरज रही हों तो मेरे मन में पीड़ा का उठना स्वाभाविक ही है। कोहरे या कीचड़ से भरी सड़क पर अकेले पैदल ही काम करने के लिए आगे बढ़ना निश्चित रूप से बहुत भयानक है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 8.
आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए ? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए ?
उत्तर :
मेरे विचार में बच्चों को काम पर नहीं भेजा जाना चाहिए। उन्हें पढ़ने-लिखने का पूरा मौका मिलना चाहिए ताकि वे शिक्षा प्राप्त कर अपने जीवन को सँवार सकें। उन्हें खेलने-कूदने का उचित अवसर मिलना चाहिए ताकि वे तन-मन से स्वस्थ बन सकें। उन्हें अपने माता-पिता, सगे-संबंधियों और पास-पड़ोस से पूरा प्रेम मिलना चाहिए। ऐसा होने से ही उन के व्यक्तित्व का समुचित विकास हो सकेगा।

यह भी जानें –

संविधान के अनुच्छेद 24 में कारखानों आदि में बालक/बालिकाओं के नियोजन के प्रतिषेध का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार ‘चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।’

JAC Class 9 Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने कविता में किस सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत किया है ? कवि क्या चाहता है ?
उत्तर :
हमारे समाज में व्याप्त निर्धनता ही बच्चों को स्कूल जाने से रोकने की प्रमुख अवरोधक है। आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के लोग अपने साथ छोटे-छोटे बच्चों को भी सहायता के लिए लगा लेते हैं। उनके द्वारा कमाए गए थोड़े से पैसे भी उनके जीवन का आधार बनने लगते हैं। वे उन्हें इसी लालच में पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजते।

वे बच्चों को उचित दिशा नहीं दिलाते। जिन स्थानों पर छोटे-छोटे बच्चे काम करते हैं वहाँ के लोग भी कम पैसों से अधिक काम करवाने की स्वार्थ सिद्धि में आत्मिक प्रसन्नता प्राप्त कर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित नहीं करते। कवि ने इसी सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत करते हुए इसे भयानक माना है और चाहा कि बच्चे शिक्षा प्राप्त करें; खेलें कूदें और अपने बचपन से दूर न हों।

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प्रश्न 2.
कवि ने किसे भयानक माना है और इस बात को किस रूप में प्रकट करना चाहता है ?
उत्तर :
कवि ने छोटे-छोटे बच्चों का पढ़ाई-लिखाई और खेल-कूद छोड़कर, परिवार की आर्थिक मजबूरी के कारण मेहनत-मज़दूरी के लिए जाना बहुत भयानक माना है। कवि बाल मज़दूरी की बात समाज के समक्ष एक विकराल प्रश्न के रूप में उपस्थित करना चाहता है। वह समाज से पूछना चाहता है कि छोटे बच्चों से इस प्रकार उनका बचपन क्यों छीन लिया गया है ?

प्रश्न 3.
कवि समाज से क्या जानना चाहता है ?
उत्तर :
कवि छोटे-छोटे बच्चों को काम पर जाते देखकर, समाज से यह जानना चाहता है कि इन बच्चों का बचपन कहाँ खो गया है। क्या इनकी गेंदें आकाश में खो गई हैं? क्या इनकी पुस्तकों को दीमकों ने खा लिया है? यदि नहीं, तो ये बच्चे अन्य बच्चों की तरह खेलते क्यों नहीं हैं, पढ़ते क्यों नहीं हैं? इन पर कैसी मजबूरी आ गई है जिसके कारण यह काम पर जाने लग गए हैं?

प्रश्न 4.
कवि के अनुसार दुनिया किसके बिना अधूरी है ? कैसे ?
उत्तर :
कवि के अनुसार दुनिया स्वच्छंद और स्वाभाविक बचपन के बिना अधूरी है। बच्चों का बचपन तभी खिल सकता है जब बच्चे खेल के मैदान और स्कूलों में विद्या – प्राप्ति के लिए दिखाई दें। इस दुनिया का अस्तित्व बच्चों की खिलखिलाहट, भोलेपन तथा स्वाभाविक जीवन से है। यदि बच्चों का बचपन ही उनके पास नहीं है, तो दुनिया बेजान है, अधूरी है।

प्रश्न 5.
‘हैं सभी चीजें हस्वमामूल’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
‘हैं सभी चीजें हस्वमामूल’ से अभिप्राय यह है कि छोटे बच्चों के लिए खेलों और मनोरंजन के लिए आवश्यक सभी सामग्रियाँ अभी भी वैसी हैं जैसी पहले थीं। उनमें कोई कमी नहीं हुई है। अभी भी उनके लिए विद्यालय है; मैदान है; घरों के आँगन हैं पर उनमें विवशता के मारे बच्चे नहीं हैं अर्थात् बच्चे वहाँ जाने की अपेक्षा काम पर जाने के लिए विवश हैं।

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प्रश्न 6.
यदि आपके घर में ऐसा कोई बच्चा कार्य कर रहा है तो आप उसके लिए क्या करना चाहेंगे ?
उत्तर :
यदि हमारे घर ऐसा कोई बच्चा कार्य कर रहा है तो उसकी देखभाल भी अपने बच्चों के समान करेंगे। उसकी पढ़ाई के लिए प्रबंध करेंगे। उससे वही काम करवाए जाएँगे जो उसके उम्र के अनुसार सही होंगे। उसे खेलने-कूदने का उचित अवसर देंगे। उसके बचपन को पूरा ध्यान रखेंगे, जिससे वह अपना बचपन पूरी तरह जी सके और अपना व्यक्तित्व निखार सके।

प्रश्न 7.
‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कविता का मूल भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कवि राजेश जोशी की रचना है। इसमें कवि ने समाज की सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत किया है। आज के भौतिकवादी युग में मानव मानव से दूर तो हुआ ही है, पर साथ ही उसने बच्चों के बचपन को भी छीन लिया है। घर की आर्थिक स्थिति ने बच्चों को खेल-कूद और शिक्षा से दूर कर दिया है। सर्दियों के कोहरे में बच्चे स्कूल और खेलने का मैदान छोड़कर काम के लिए जा रहे हैं जो आज के समाज के लिए सबसे भयानक बात है।

बच्चों के खेल-खिलौने, पुस्तकें नष्ट हो गई हैं क्या ? तभी तो बच्चे काम के लिए जा रहे हैं। यदि वास्तव में ऐसा ही है तो दुनिया अधूरी हो जाएगी। दुनिया का अस्तित्व बच्चों के स्वाभाविक बचपन है। बच्चों का काम पर जाना बहुत भयानक बात है, इसे रोकना चाहिए। कवि कविता के माध्यम से दुनिया के सामने बाल मजदूरी के विकट विषय को रखना चाहता है तथा उनके लिए कुछ करने के लिए दूसरों को प्रेरित करना चाहता है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. कोहरे से ढकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह-सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?

शब्दार्थ : कोहरा – धुंध। विवरण- वर्णन, विस्तार। सवाल – प्रश्न।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से लिया गया है, जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। कवि को छोटे-छोटे बच्चों का खेल – कूद और पढ़ाई छोड़कर काम पर जाना बहुत बुरा लगता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि सर्दियों में धुंध से ढकी सड़क पर सुबह-सुबह छोटे-छोटे बच्चे मेहनत-मज़दूरी करने जा रहे हैं। बच्चों का पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद को छोड़कर काम करने के लिए जाना हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है। इसे बढ़ा-चढ़ाकर लिखना और विवरण की तरह लिखना बहुत भयानक है। इसे इस प्रकार नहीं लिखा जाना चाहिए बल्कि इसे प्रश्न के रूप में लिखा जाना चाहिए कि बच्चे अपनी छोटी-सी आयु में काम करने के लिए क्यों जा रहे हैं ? भाव है कि उन्हें काम पर नहीं जाना चाहिए, बल्कि उन्हें भी अन्य बच्चों की तरह ही भोला-भाला जीवन जीना चाहिए।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) बच्चे किस समय कहाँ जा रहे हैं ?
(ख) कवि ने किसे भयानक माना है ?
(ग) कवि इस बात को किस रूप में प्रकट करना चाहता है ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) बच्चे सर्दियों की सुबह-सवेरे धुंध में काम करने जा रहे हैं, ताकि वे अपना और अपनों का पेट भर सकें; घर का खर्च चला सकें।
(ख) कवि ने बच्चों के द्वारा विवशतावश पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद छोड़कर काम करने के लिए जाना बहुत भयानक माना है।
(ग) कवि इस बात को समाज के समक्ष प्रश्न के रूप में उपस्थित करना चाहता है और उससे पूछना चाहता है कि बच्चों से इस प्रकार उनका बचपन क्यों छीन लिया गया है ?
(घ) कवि को बच्चों के बचपन नष्ट होने और छोटी आयु में उन पर काम-काज का बोझ लादने से बहुत पीड़ा है। वह इसे भयानक मानता है। इससे बच्चे बचपन का अर्थ ही नहीं समझ पाएँगे। चित्रात्मकता के गुण से युक्त खड़ी बोली में रचित अवतरण में तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है। अनुप्रास और प्रश्न अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण विद्यमान है। अतुकांत छंद का प्रयोग है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं

2. क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग-बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?

शब्दार्थ : अंतरिक्ष – आकाश। भूकंप – आकाश। भूकंप – भूचाल। मदरसों- विद्यालयों। एकाएक – अचानक।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से अवतरित है जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। अपने माता-पिता की सहायता करने के लिए बच्चे पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद छोड़कर नौकरी करने लगे हैं। उनका बचपन खो गया है। कवि ने इसीलिए समाज से प्रश्न किया है।

व्याख्या : कवि जानना चाहता है कि बच्चों की सारी गेंदें क्या आकाश में खो गई हैं? क्या उनकी रंग-बिरंगी पुस्तकों को दीमकों ने खा लिया है या उनके सारे खिलौने बड़े-बड़े काले पहाड़ों के नीचे दबकर नष्ट हो गए हैं ? बच्चे अब खेलते क्यों नहीं ? वे पढ़ते क्यों नहीं ? क्या उनके विद्या – प्राप्ति के स्थान अर्थात विद्यालय किसी भयंकर भूकंप के कारण ढह गए हैं ? क्या खेलने के लिए सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन अचानक ही समाप्त हो गए हैं ? यदि वास्तव में ऐसा ही है तो इस दुनिया में बाकी बचा ही क्या है ? यह दुनिया बच्चों के कारण ही है। यदि बच्चों का बचपन उनके पास नहीं तो दुनिया किसलिए है ? इसका कोई औचित्य शेष नहीं रहा।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में बच्चों के लिए क्या करना आवश्यक है ?
(ख) बच्चों की प्रिय वस्तुओं के बारे में कवि क्या जानना चाहता है ?
(ग) एकाएक क्या नष्ट हो गया प्रतीत होता है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में बच्चों के लिए खेलना-कूदना और पढ़ना आवश्यक है।
(ख) कवि बच्चों की प्रिय वस्तुओं के बारे में जानना चाहता है कि वे सब कहाँ नष्ट हो गई हैं। बच्चों की गेंदें, रंग-बिरंगी पुस्तकें, खिलौने आदि कहाँ गए, जिनसे खेल – कूदकर बच्चे प्रसन्न होते थे, उनका बचपन उनके पास रहता था।
(ग) विद्यालयों की इमारतें, मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन एकाएक नष्ट हो गए प्रतीत होते हैं
(घ) कवि को बच्चों के बचपन नष्ट हो जाने पर गहरी पीड़ा है। वह जानना चाहता है कि उनके खेलने की सामग्री कहाँ गई। अतुकांत छंद का प्रयोग है। सामान्य बोल-चाल की शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है। उर्दू की शब्दावली का सहजता से प्रयोग सराहनीय है। प्रश्न अलंकार के प्रयोग ने कवि के विस्मय को जागृत किया है।

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3. कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीजें हस्बमामूल
पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे-छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।

शब्दार्थ : अगर – यदि। हस्बमामूल – चीजें, यथावत्, वस्तुएँ वैसी ही हैं जैसी होनी चाहिए।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। कवि को बच्चों का नौकरी पर जाना बहुत दुखदायी प्रतीत होता है क्योंकि उनका समय खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने का है न कि मेहनत-मज़दूरी करने का।

व्याख्या : कवि कहता है कि यदि बच्चों की गेंदें, रंग-बिरंगी पुस्तकें, खिलौने, विद्यालय, मैदान, बाग़-बगीचे और घरों के आँगन एकाएक समाप्त हो गए हैं तो यह बहुत भयानक है, क्योंकि इस कारण बच्चे खेलने और पढ़ने से वंचित हैं। उससे भयानक बात यह है कि ये सारी वस्तुएँ ज्यों की त्यों हैं। इनमें से कुछ भी नष्ट नहीं है, हुआ है पर दुनिया के हजारों छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। वे अपनी भूख मिटाने और अपने माता-पिता के बोझ को कम करने के लिए काम पर सड़कों से गुज़रते हुए जा रहे हैं। उनका बचपन तो न जाने कहाँ पीछे छूट गया है ? यह बहुत भयानक बात है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में अधिक भयानक क्या है ?
(ख) ‘हैं सभी चीजें हस्बमामूल’ का भावार्थ क्या है ?
(ग) छोटे-छोटे बच्चे कहाँ जा रहे हैं और क्यों ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में भयानक यह है कि छोटे-छोटे बच्चों की गेंदें, खिलौने, रंग-बिरंगी पुस्तकें आदि सब पहले की तरह हैं, पर उन सबको छोड़कर उन्हें काम करने के लिए जाना पड़ रहा है। वे असमय ही अपना बचपन खो बैठे हैं।
(ख) ‘ हैं सभी चीज़ें हस्बमामूल’ का भावार्थ है कि छोटे बच्चों के लिए खेलों और मनोरंजन के लिए आवश्यक सारी सामग्रियाँ अभी भी वैसी हैं जैसे पहले थीं। उनमें कोई कमी नहीं हुई है। अभी उनके लिए विद्यालय हैं; मैदान हैं; घरों के आँगन हैं पर उनमें विवशता के मारे बच्चे नहीं हैं।
(ग) छोटे-छोटे बच्चे काम करने के लिए जा रहे हैं, ताकि वे अपनी भूख मिटाने के लिए खाना प्राप्त कर सकें; अपने माता-पिता की सहायता कर सकें।
(घ) कवि ने छोटे बच्चों के द्वारा काम पर जाने पर दुख प्रकट किया है और माना है कि उन्हें खेल-कूद और पढ़ने-लिखने के कार्य में समय लगाना चाहिए। तद्भव शब्दावली के साथ विदेशी शब्दावली का प्रयोग किया है। अतुकांत छंद का प्रयोग हुआ है। पुनरुक्ति – प्रकाश का प्रयोग स्वाभाविक है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति ने काव्य को सरलता – सरसता प्रदान की है।

बच्चे काम पर जा रहे हैं Summary in Hindi

कवि-परिचय :

आधुनिक युग की पीड़ा और आपाधापी से उत्पन्न परेशानी को वाणी प्रदान करने में सक्षम कवि राजेश जोशी का जन्म सन् 1946 में मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ था। अध्यापन कार्य के अलावा इन्होंने पत्रकारिता भी की। इन्होंने रूसी और जर्मन भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त किया था जिनका सदुपयोग इन्होंने साहित्यिक रचनाओं के सृजन में किया था।

श्री राजेश जोशी ने काव्य-लेखन के अतिरिक्त कहानियाँ, नाटक, लेख, टिप्पणियाँ भी लिखी हैं। इन्होंने कुछ नाट्य रूपांतर भी किए हैं तथा कुछ लघु फ़िल्मों के लिए पटकथाएँ भी लिखी हैं। इन्होंने संस्कृत में लिखित भर्तृहरि के काव्य की अनुरचना ‘भूमि का कल्पतरु यह भी’ नाम से की है। मायकोवस्की की कविता का अनुवाद ‘पतलून पहिना बादल’ नाम से किया है। इनके द्वारा भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, रूसी और जर्मन भाषाओं में अनूदित साहित्य भी हिंदी साहित्य को दिया गया है।

श्री राजेश जोशी के प्रमुख काव्य संग्रह हैं – एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी और दो पंक्तियों के बीच साहित्य अकादमी के द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। कवि की कविता में समाज-चित्रण पर विशेष बल दिया गया है। इसमें मानव के प्रति गहरी निष्ठा का भाव और जीवन के प्रति आस्था का स्वर विद्यमान है। मानवता की रक्षा के सद्प्रयास और निरंतर संघर्ष के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है। कवि को विश्व के नष्ट होने का खतरा जितना अधिक प्रतीत होता है, उतना ही अधिक वे जीवन की संभावनाओं की खोज के लिए बेचैन दिखाई देता है। कवि की भाषा में सहजता है, गति है, सरलता और सरसता है। उसमें स्थानीय बोली की पुट है। सीधे-सादे शब्दों में गहरे भावों को वहन करने की क्षमता विद्यमान है।

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कविता का सार :

आज के भौतिकतावादी युग में मानव मानव से दूर तो हुआ ही है, पर साथ ही उसने बच्चों के बचपन को भी छीन लिया है। सामाजिक और आर्थिक विषमताओं ने बच्चों को खेल-कूद और शिक्षा से दूर कर दिया है। सर्दियों की कोहरे से भरी सड़क पर ‘बच्चे सुबह-सवेरे काम पर जा रहे हैं’ जो समय की सबसे भयानक बात है। कवि जानना चाहता है कि क्या बच्चों की खेलने की सारी गेंदें अंतरिक्ष में खो गई हैं या दीमकों ने उनकी रंग-बिरंगी किताबों को खा लिया है? क्या उनके सारे खिलौने नष्ट हो गए हैं? क्या सारे विद्यालय, बाग-बगीचे और घरों के आँगन अचानक समाप्त हो गए हैं? यदि बच्चों से उनके बचपन में ही काम लिया जाने लगा तो यह विश्व के लिए बहुत खतरनाक है।