JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions )

प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. कौन – सा परिवर्तन तेज़ गति से होता है?
(A) दरार
(B) वलन
(C) भूकम्प
(D) भूमण्डलीय तापन
उत्तर:
(C) भूकम्प।

2. किस आपदा का सम्बन्ध मानवीय क्रियाओं से है?
(A) भूकम्प
(B) ज्वालामुखी
(C) पर्यावरण प्रदूषण
(D) टारनेडो
उत्तर:
(C) पर्यावरण प्रदूषण।

3. पहला भू- शिखर सम्मेलन कब हुआ ?
(A) 1974
(B) 1984 में
(C) 1994 में
(D) 1998 में।
उत्तर:
(C) 1994 में।

4. पहला भू- शिखर सम्मेलन कहां हुआ था?
(A) रियो डी जनेरो
(B) टोकियो
(C) न्यूयार्क
(D) लन्दन।
उत्तर:
(A) रियो डी जनेरो।

5. सुनामी त्रासदी कब हुई?
(A) 2001 में
(B) 2002 में
(C) 2003 में
(D) 2004 में।
उत्तर:
(D) 2004 में।

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6. भू-स्खलन किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायु मण्डलीय
(B) भौमिक
(C) जलीय
(D) जैविक
उत्तर:
(B) भौमिक।

7. भारतीय प्लेट प्रतिवर्ष किस दर से खिसक रही है?
(A) 1 सें० मी०
(B) 2 सें० मी०
(C) 3 सें० मी०
(D) 4 सें० मी०
उत्तर:
(A) 1 सें० मी।

8. दक्षिणी भारत में भ्रंश रेखा का विकास कहां हुआ है?
(A) कोयना के निकट
(B) लातूर के निकट
(C) अहमदाबाद के निकट
(D) भोपाल के निकट
उत्तर:
(B) लातूर के निकट।

9. भूकम्प से समुद्र में उठने वाली लहरों को क्या कहते हैं?
(A) लहरें
(B) दरार
(C) सुनामी
(D) ज्वार।
उत्तर:
(C) सुनामी

10. तूफ़ान महोर्मि का मुख्य कारण है
(A) सुनामी
(B) ज्वार
(C) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात
(D) मानसून।
उत्तर:
(C) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात।

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11. भारत में कितना क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है?
(A) 1 करोड़ हेक्टेयर
(B) 2 करोड़ हेक्टेयर
(C) 3 करोड़ हेक्टेयर
(D) 4 करोड़ हेक्टेयर
उत्तर:
(D) 4 करोड़ हेक्टेयर।

12. भारत के कुल क्षेत्र का कितने % भाग सूखाग्रस्त रहता है?
(A) 9%
(B) 12 %
(C) 19%
(D) 25 %.
उत्तर:
(C) 19 %.

13. भारत में आपदा प्रबन्धन नियम कब बनाया गया?
(A) 2001 में
(B) 2002 में
(C) 2005 में
(D) 2006 में।
उत्तर:
(C) 2005 में।

14. भूकम्प किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायुमण्डलीय
(B) भौमिकी
(C) जलीय
(D) जीव – मण्डलीय।
उत्तर:
(B) भौमिकी .

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Quesrtion)

प्रश्न 1.
भारत में प्रभाव डालने वाले प्राकृतिक आपदाओं के नाम लिखो।
उत्तर:
बाढ़ें, सूखा, भूकम्प तथा भू-स्खलन।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक आपदाओं का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
आकस्मिक भूगर्भिक हलचलें।

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प्रश्न 3.
वर्तमान समय में भारत में आये विनाशकारी भूचाल का नाम लिखो।
उत्तर:
भुज, गुजरात – 26 जनवरी, 2001.

प्रश्न 4.
भू विभिन्न भूकम्पीय तरंगों के नाम लिखो।
उत्तर:

प्रश्न 5.
भूकम्प मापक यन्त्र को क्या कहते हैं?
उत्तर:
सिज़्मोग्राफ।

प्रश्न 6.
भूकम्प की तीव्रता किस पैमाने पर मापी जाती है?
उत्तर:
रिक्टर पैमाने पर।

प्रश्न 7.
लाटूर भूकम्प (महाराष्ट्र ) का क्या कारण था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट का उत्तर की ओर खिसकना।

प्रश्न 8.
भूकम्प किस सिद्धान्त से सम्बन्धित है?
उत्तर:
प्लेट टेक्टानिक।

प्रश्न 9.
रिक्टर पैमाने पर कितने विभाग होते हैं?
उत्तर:
1-9 तक।

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प्रश्न 10.
कोएना भूकम्प का क्या कारण था?
उत्तर:
कोयना जलाशय में अत्यधिक जलदाब।

प्रश्न 11.
सूखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
वर्षा की कमी के कारण खाद्यान्नों की कमी होना।

प्रश्न 12.
भारत में सूखे का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
अनिश्चित वर्षा।

प्रश्न 13.
भारत में कितना क्षेत्रफल भाग बाढ़ों तथा सूखे से प्रभावित है?
उत्तर:
सूखे से 10% भाग तथा बाढ़ों से 12% भाग।

प्रश्न 14.
भारत में बाढ़ों का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
भारी मानसून वर्षा तथा चक्रवात।

प्रश्न 15.
दक्षिणी प्रायद्वीप में बाढ़ें कम हैं। क्यों?
उत्तर:
मौसमी नदियों के कारण।

प्रश्न 16.
भू-स्खलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कोई जलभृत भाग किसी ढलान से अचानक नीचे गिरते हैं।

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प्रश्न 17.
तीन प्रदेशों के नाम लिखो जो चक्रवातों से प्रभावित हैं।
उत्तर:
उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु

प्रश्न 18.
भूकम्प के आने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
विवर्तनिक हलचलें।

प्रश्न 19.
भारत में अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र के एक जिले का नाम लिखिए।
उत्तर:
बीकानेर

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Quesrtion)

प्रमुख प्राकृतिक आपदाएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाएं वे भूगर्भिक हलचलें हैं जो अचानक ही भू-तल पर परिवर्तन लाकर जन और धन व सम्पत्ति की हानि करती हैं। सूखा, बाढ़ें, चक्रवात, भू-स्खलन, भूकम्प विभिन्न प्रकार की मुख्य प्राकृतिक आपदाएं हैं।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जन-धन की हानि का वर्णन करो।
उत्तर:
विश्व में प्रतिवर्ष प्राकृतिक आपदाओं से एक लाख व्यक्तियों की जानें जाती हैं तथा 20,000 करोड़ रुपये की सम्पत्ति की हानि होती है। यह मानवीय विकास के लिए एक रुकावट है। U.NO. के अनुसार 1990-99 के दशक को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा का दशक घोषित किया गया प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त विश्व के प्रमुख 10 देशों में से भारत एक देश है। प्रति वर्ष 6 करोड़ लोग इनसे प्रभावित होते हैं। विश्व की 50% प्राकृतिक आपदाएं भारत में अनुभव की जाती हैं। फिर भी भारत में इन आपदाओं से सुरक्षा के लिए एक व्यापक प्रबन्ध किया गया है जिसमें भूकम्पीय स्टेशन, चक्रवात, बाढ़ें, राडार, जल प्रवाह के बारे में सूचनाएं प्राप्त की जाती हैं तथा सुरक्षा के प्रबन्ध किए जाते हैं।

प्रश्न 3.
भू-स्खलन से क्या अभिप्राय है? इनके प्रभाव बताओ।
उत्तर- भू-स्खलन (Landslides ):
भूमि के किसी भाग के अचानक फिसल कर पहाड़ी से नीचे गिर जाने की क्रिया को भू-स्खलन कहते हैं। कई बार भूमिगत जल चट्टानों में भर कर उनका भार बढ़ा देता है। यह जल भृत चट्टानें ढलान के साथ नीचे फिसल जाती हैं। इनके कई प्रकार होते हैं।

  1. सलम्प (Slumps ): जब चट्टानें थोड़ी दूरी से गिरती हैं।
  2. राक सलाइड (Rockslide ): जब चट्टानें अधिक दूरी से अधिक भार में गिरती हैं।
  3. राक फाल (Rockfall): जब किसी भृत से चट्टानें टूट कर गिरती हैं।

कारण (Causes):

  1. जब वर्षा का जल या पिघलती हिम एक सनेहक (Lubricant ) के रूप में कार्य करता है।
  2. तीव्र ढलान के कारण।
  3. भूकम्प के कारण।
  4. किसी सहारे के हट जाने पर।
  5. भ्रंशन या खदानों के कारण।
  6. ज्वालामुखी विस्फोट के कारण।

प्रभाव (Effects):

  1. भवन, सड़कें, पुल आदि का नष्ट होना।
  2. चट्टानों के नीचे दबकर लोगों की मृत्यु हो जाना।

सड़क मार्गों का अवरुद्ध हो जाना।

  1. नदियों के मार्ग अवरुद्ध होने से बाढ़ें आना।
  2. 1957 में कश्मीर में भू-स्खलन से राष्ट्रीय मार्ग बन्द हो गया था।
  3. गत वर्षों में टेहरी गढ़वाल में बादल फटने से भू-स्खलन हुआ।

प्रश्न 4.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों पर नोट लिखो।
उत्तर:
चक्रवात (Cyclones) :
भारत में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात खाड़ी बंगाल तथा अरब सागर में उत्पन्न होते हैं। चक्रवात पवनों का एक भँवर होता है जो मूसलाधार वर्षा प्रदान करता है। ये प्रायः अक्तूबर-नवम्बर के महीनों में चलते हैं। इनकी दिशा परिवर्तनशील होती है। ये प्रायः पश्चिम की ओर तथा उत्तर-पश्चिम, उत्तर पूर्व की ओर चलते हैं। इनका प्रभाव तमिलनाडु आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा के तटों पर होता है।

प्रभाव (Effects):

  1. ये चक्रवात मूसलाधार वर्षा, तेज़ पवनें तथा घने मेघ लाते हैं। औसत रूप से 50 सें०मी० वर्षा एक दिन में होती है।
  2. ये चक्रवात जन-धन हानि व्यापक रूप से करते हैं।
  3. खाड़ी बंगाल में निम्न वायु दाब केन्द्र बनने से ये चक्रवात उत्पन्न होते हैं।
  4. ये चक्रवात एक दिन में पूर्वी तट से गुज़र कर प्रायद्वीप को पार करके पश्चिमी तट पर पहुँच जाते हैं।
  5. गोदावरी, कृष्णा, कावेरी डेल्टाओं में भारी हानि होती है।
  6. सुन्दरवन डेल्टा तथा बंगला देश में भी भारी हानि होती है।

प्रश्न 5.
(i) प्राकृतिक आपदायें किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर आन्तरिक हलचलों द्वारा अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। इनसे मानव पर हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। इन्हें प्राकृतिक आपदायें कहते हैं।

(ii) कुछ सामान्य आपदाओं के नाम बताएं।
उत्तर;
सामान्य आपदाएं इस प्रकार हैं- ज्वालामुखी विस्फोट, भूकम्प, सागरकम्प, सूखा, बाढ़, चक्रवात, मृदा अपरदन, अपवाहन, पंकप्रवाह, हिमधाव।

(iii) संकट किसे कहते हैं ?
उत्तर;
अंग्रेज़ी भाषा में प्राकृतिक आपदाओं को प्राकृतिक संकट भी कहा जाता है। फ्रैंच भाषा में डेस (Des) का अर्थ बुरा (bad) तथा (Aster) का अर्थ सितारे (Stars) से है। मानवीय जीवन और अर्थव्यवस्था को भारी हानि पहुँचाने वाली प्राकृतिक आपदाओं को संकट और महाविपत्ति कहते हैं।

(iv) भूकम्प का परिमाण क्या होता है?
उत्तर:
भूकम्प की शक्ति को रिक्टर पैमाने पर मापा जाता है, जिसे परिमाण कहते हैं । यह भूकम्प द्वारा विकसित भूकम्पीय उर्जा की माप होती है।

(v) भूकम्प की तीव्रता किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूकम्प द्वारा होने वाली हानि की माप को तीव्रता कहते हैं।

(vi) भारत के अधिक तथा अत्यधिक भूकम्पीय खतरे वाले क्षेत्रों के नाम बताएं पूर्वी भारत,
उत्तर:
भूकम्प की दृष्टि से भारत के अत्यधिक खतरे वाले क्षेत्रों के नाम हैं- हिमालय पर्वत, उत्तर- कच्छ रत्नागिरी के आस-पास का पश्चिमी तटीय तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह। अधिक खतरे वाले क्षेत्र हैं- गंगा का मैदान, पश्चिमी राजस्थान।

(vii) चक्रवात की उत्पत्ति के लिए आधारभूत आवश्यकताएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
-जब कमज़ोर रूप से विकसित कम दबाव क्षेत्र के चारों ओर तापमान की क्षैतिज प्रवणता बहुत अधिक होती है तब उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात बन सकता है। चक्रवात उष्मा का इंजन है तथा इसे सागरीय तल से उष्मा मिलती है।

(viii) चक्रवात की गति और सामान्य अवधि कितनी होती है?
उत्तर:
चक्रवात की गति 150 km तथा अवधि एक सप्ताह तक होती है।

(ix) भारत के बाढ़ प्रवण क्षेत्रों के नाम बताएं।
उत्तर:

  1. गंगा बेसिन, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल
  2. असाम में ब्रह्मपुत्र घाटी
  3. उड़ीसा प्रदेश।

(x) भू-स्खलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
आधार शैलों का भारी मात्रा में तेज़ी से खिसकना भू-स्खलन कहलाता है। तीव्र पर्वतीय ढलानों पर भूकम्प के कारण अचानक शैलें खिसक जाती हैं।

(xi) आपदा प्रबन्धन किसे कहते हैं?
उत्तर:
आपदाओं से सुरक्षा के उपाय, तैयारी तथा प्रभाव को कम करने की क्रिया को आपदा प्रबन्धन कहते हैं। इसमें राहत कार्यों की व्यवस्था भी शामिल की जाती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 6.
भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में आए भू-स्खलन से निपटने के लिए आप कौन-से सुझाव देंगे?
उत्तर:

  1. अधिक भू-स्खलन सम्भावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बाँध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा प्रतिबंधित करने चाहिए।
  2. इस क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिए तथा बड़ी विकास परियोजनाओं पर नियन्त्रण होना चाहिए।
  3. स्थानान्तरी कृषि वाली उत्तर पूर्वी राज्यों (क्षेत्रों) में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर खेती करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
सूखे से बचाव के उपाय के कोई तीन कारण लिखें, जिनको हम अपनाकर सूखे के प्रभाव से बच सकते हैं?
उत्तर:

  1. सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भूमिगत जल, वर्षा जल तथा धरातलीय जल को नष्ट होने से बचना चाहिए।
  2. जल सिंचाई की लघु परियोजनाओं पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए।
  3. नहरों को पक्का करके पानी को नष्ट होने से बचाना चाहिए।

प्रश्न 8.
उत्तराखण्ड में आई प्राकृतिक आपदा का वर्णन करो।
उत्तर:
जून, 2013 में उत्तराखण्ड में हुई भारी वर्षा तथा बाढ़ के कारण अत्यन्त तबाही हुई। इसके कारण चल रही चाल धाम यात्रा को रोकना पड़ा 15-16 जून को अलकनंदा तथा मंदाकनी नदियों में बाढ़ के कारण नदियों ने अपने मार्ग बदल लिए। केदारनाथ धाम मन्दिर में झुके हज़ारों व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो गए। बहुत से लोगों का विचार है कि बादलों के फटने से यह आपदा आई। भूस्खलन के कारण सड़क मार्ग बन्द हो गए। वायु सेना ने आपदा में फंसे लोगों की बचाया। सन् 2014 में केदारनाथ यात्रा का मार्ग खोल दिया गया है।

प्रश्न 9.
सुभेद्यता किसे कहते हैं?
उत्तर:
सुभेद्यता किसी व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या क्षेत्र में नुकसान पहुँचाने का भय है, जिससे वह व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या क्षेत्र प्रभावित होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन करते हुए इसके कारणों तथा प्रभाव का उल्लेख करो।
उत्तर:
सूखा (Drought): सूखा एक प्राकृतिक विपदा है। जब किसी विस्तृत क्षेत्र में खाद्यान्नों का अभाव हो जाता है तो उसे सूखा कहते हैं (Drought is defined as widespread and extreme scarcity of food.) इसके प्रभाव से जनसंख्या का अधिकांश भाग भुखमरी का शिकार हो जाता है । भारत तथा संसार के कई भागों में सूखा भयानक रूप में पड़ता रहा है जिससे लाखों लोग मृत्यु का शिकार हो जाते थे आधुनिक समय में सन् 1943 में बंगाल के अकाल से 15 लाख व्यक्ति भुखमरी से मर गए। आजकल यातायात के तीव्र साधनों द्वारा शीघ्र ही सहायता पहुंच जाने के कारण सूखा तथा अकाल पहले जैसे नहीं रहे।

इतिहास (History): भारत एक विशाल देश है जिसका क्षेत्रफल लगभग 33 करोड़ हेक्टेयर है तथा औसत वार्षिक वर्षा 117 सें०मी० तक है। अधिकतर वर्षा ग्रीष्मकाल में होती है। भारत की कृषि तथा अर्थव्यवस्था मानसून पवनों पर निर्भर करती है। मानसून वर्षा बहुत अनिश्चित तथा अनियमित है। वर्षा की परिवर्तिता (Variablity) के कारण भारत के किसी-न-किसी भाग में सूखे की हालत बनी ही रहती है। औसत रूप से भारत में प्रत्येक पांच वर्षों में एक वर्ष सूखे का होता है।

(On an average, one year in every five years is a drought year.) भारत में 1966, 1968, 1973, 1979 में भयंकर सूखा पड़ा। 1984-85 से 1987-88 तक निरन्तर तीन वर्ष सूखा पड़ने से भारत में खाद्यान्न के उत्पादन में कमी रही। 1987-88 के सूखे का प्रभाव 15 राज्यों तथा 6 संघ राज्यों पर पड़ा। इसके प्रभाव से 267 ज़िलों तथा 3 लाख गांवों में 28 करोड़ लोग तथा 17 करोड़ पशु प्रभाव ग्रस्त हुए। पिछले 100 वर्षों के इतिहास में भारत में सन् 1877, 1899, 1918, 1972 तथा 1987 के वर्षों में भयानक सूखा पड़ा।

प्रभावित क्षेत्र लाख वर्ग कि०मी०:

वर्ष प्रभावित क्षेत्र लाख वर्ग कि०मी० देश के क्षेत्रफल का $\%$ भाग
1877 20 61
1899 19 63
1918 22 70
1972 14 44
1987 16 50

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ 1

भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्र (Drought Areas in India) – सामान्य स्थिति में भारत के 16% क्षेत्र तथा 12% जनसंख्या पर सूखे का प्रभाव पड़ता है। सूखे का अधिक प्रभाव उन क्षेत्रों पर पड़ता है जहां वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक (Co-efficient of Variability of Rainfall) 20% से अधिक है । निम्नलिखित क्षेत्र प्रायः सूखाग्रस्त रहते हैं-

क्षेत्र राज्य क्षेत्रफल वार्षिक वर्षा
1. मरुस्थलीय तथा अर्द्ध-मरुस्थलीय प्रदेश राजस्थान, हरियाणा (दक्षिण-पश्चिमी) 60 लाख 10 सें॰मी०
2. पश्चिमी घाट के पूर्व में स्थित प्रदेश मध्य प्रदेश, गुजरात 37 , 15 सें॰मी०
3. अन्य क्षेत्र मध्यवर्ती महाराष्ट्र कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण तमिलनाडु, कच्छ, बिहार, कालाहांडी (उड़ीसा), रायलसीमा (आन्ध्र प्रदेश) 10, 20 सें॰मी०

भारत में सामान्यतः सूखे की स्थिति निम्नलिखित क्षेत्रों में होती है।

  1. जब वार्षिक वर्षा 100 सें०मी० से कम हो।
  2. वर्षा की परिवर्तिता 75% से अधिक हो।
  3. जहां कुल क्षेत्रफल के 30% से कम भाग में जल सिंचाई प्राप्त हो।
  4. जहां 20% से अधिक वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक हो तो सामान्य सूखा पड़ता है।
  5. जहां 40% से अधिक वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक हो वहां स्थायी रूप से सूखा रहता है।

सूखे के कारण (Causes of Droughts ):
1. मानसून पवनों का कमज़ोर पड़ना (Weak Monsoons ):
भारत में अधिकतर कृषि क्षेत्र वर्षा पर निर्भर (Rainfed) है। ग्रीष्मकालीन मानसून पवनों के कमज़ोर पड़ने से सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मानसून पवनें जब निश्चित समय से देर से आरम्भ होती हैं तो फ़सलें नष्ट हो जाती हैं। सन् 1987 में मानसून पवनें सारे देश में 1 जुलाई की अपेक्षा 27 जुलाई को आरम्भ हुईं तथा देश के 35 जलवायु खण्डों में 25 में सामान्य से कम वर्षा हुई। इस से अधिकतर क्षेत्रों में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

2. वार्षिक वर्षा का कम होना (Low Rainfall):
भारत के 12% क्षेत्रफल में वार्षिक वर्षा 60 सें०मी० से कम है। इन क्षेत्रों में सूखे की स्थिति बनी रहती है। एक अनुमान है कि भारत का 1/3 कृषि क्षेत्र वर्षा की कमी के कारण सूखाग्रस्त रहता है।

3. सिंचाई साधनों का कम होना (Inadequate means of Irrigation):
सिंचाई साधनों की कमी के कारण भी कई प्रदेशों में कृषि को नियमित जल न मिलने से सूखा पड़ता है।

4. पारिस्थितिक असन्तुलन (Ecological Imbalance):
औद्योगिक विकास, बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई से पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ता जा रहा है। इससे वर्षा अनियमित, अनिश्चित तथा संदिग्ध होती जा रही है।

5. वर्षा की परिवर्तिता (Variability of Rainfall):
कई प्रदेशों में वर्षा बहुत संदिग्ध है। विशेषकर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा की अधिक परिवर्तिता सूखे का कारण बनती है। उदाहरण के लिए हिसार नगर में अगस्त मास की औसत वर्षा 12.37 सें०मी० है। परन्तु सन् 1925 में इस मास में यहां केवल 2.03 सें०मी०, सन् 1926 से 56.36 सें०मी० वर्षा हुई। प्रायः जहां वर्षा का परिवर्तिता का गुणांक 40% से अधिक है वहां सदा सूखे की स्थिति रहती है।

6. मौसमी वर्षा (Seasonal Rainfall): शीत ऋतु के शुष्क होने के कारण भी सूखे की स्थिति बन जाती है।

7. नदियों का अभाव (Absence of Rivers ): कई प्रदेशों में नदियों के अभाव से भी सूखे में वृद्धि होती है।

8. लम्बी शुष्क ऋतु तथा उच्च तापमान (Long dry Speeds):
कई बार लम्बे समय तक शुष्क मौसम चलता रहता है। साथ-ही-साथ उच्च तापमान के कारण वाष्पीकरण भी अधिक हो जाता है जिससे सूखा भयंकर रूप धारण कर लेता है।

सूखे के प्रभाव (Effects of Drought ):

  1. कृषि (Agriculture): सूखे के कारण अधिकांश भागों में फसलों की बुआई देर से आरम्भ होती है। कई विशाल क्षेत्रों में बुआई बिल्कुल नहीं होती। इससे कृषि उत्पादन कम हो जाता है। 1987 में निर्धारित लक्ष्य में खाद्यान्नों का उत्पादन 60 लाख टन कम था।
  2. कृषि मज़दूर (Agricultural Labour ): ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी बढ़ जाती है। छोटे किसानों तथा कृषि मज़दूरों को कोई काम नहीं मिलता। भूमि मज़दूर भुखमरी का शिकार हो जाते हैं।
  3. खरीफ की फसल (Kharif Crop ): खरीफ की फसल जून – जुलाई में बोई जाती है। सूखे की हालत में इस फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे खाद्यान्न, तिलहन, दालों का उत्पादन कम हो जाता है।
  4. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (Effect on Economy ): सूखे की स्थिति में कीमतें बढ़ जाती हैं तथा अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  5. पशुओं का चारा (Fodder for Cattle ): सूखे के कारण चारे की कमी होती है तथा हज़ारों पशु भुखमरी का शिकार हो जाते हैं।
  6. पानी की कमी (Shortage of Water ): पीने के पानी की कमी हो जाती है । जल सिंचाई तथा जल विद्युत् उत्पादन के लिए पानी की कमी हो जाती है। कई क्षेत्रों में भूमिगत जल स्तर नीचा हो जाता है।

सूखे से बचाव के उपाय (Measures to Control Drought): सरकार तथा जनता ने सूखे से बचाव के लिए निम्न उपाय किए हैं।

  1. सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भूमिगत जल, वर्षा जल तथा धरातलीय जल को नष्ट होने से बचाया जा रहा है।
  2. फसलों के हेर-फेर की विधि द्वारा ऐसी फसलों की कृषि की जाती है जो सूखे को सहार सकें शुष्क कृषि पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
  3. जल सिंचाई की लघु योजनाओं पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
  4. नहरों को पक्का करके पानी को नष्ट होने से बचाया जा रहा है।
  5. शुष्क भागों में, ट्रिकल (Trickle) जल सिंचाई विधि का प्रयोग किया जा रहा है।
  6. सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पीने का पानी तथा पशुओं के लिए चारे का उचित प्रबन्ध किया जा रहा है।

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प्रश्न 2.
भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन करो। बाढ़ों के कारणों का उल्लेख करते हुए इनसे होने वाली क्षति का वर्णन करो। बाढ़ नियन्त्रण के उपाए बताओ।
उत्तर:
बाढ़ समस्या (Flood Problem):
सूखे की भान्ति बाढ़ भी एक प्राकृतिक विपदा है क्षेत्रों से धन-जन की हानि होती है। कई बार प्रत्येक वर्ष भारत के किसी-न-किसी भाग में बाढ़ों द्वारा विस्तृत एक भाग में भयानक सूखे की स्थिति है तो दूसरे भाग में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इससे समस्या अधिक गम्भीर हो जाती है। भारत में बाढ़ें एक मौसमी समस्या है जब मानसून की अनियमित वर्षा से नदियों में बाढ़ आ जाती है। जब नदी के किनारों के ऊपर से पानी बह कर समीपवर्ती क्षेत्रों में दूर-दूर तक फैल जाता है तो इसे बाढ़ का नाम दिया जाता है।

भारत ‘नदियों का देश’ है जहां अनेक छोटी-बड़ी नदियां बहती हैं। ये नदियां वर्षा ऋतु में भरपूर बहती हैं, परन्तु शुष्क ऋतु में इनमें बहुत कम जल होता है। निरन्तर भारी वर्षा के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। वर्षा की तीव्रता तथा वर्षाकाल की अवधि अधिक होने से बाढ़ों को सहायता मिलती है। मानसून के पूर्व आरम्भ या देर तक समाप्त होने से
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बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। ब्रह्मपुत्र नदी में मई-जून के मास में बाढ़ें साधारण बात है। उत्तरी भारत की नदियों में वर्षा ऋतु में बढ़ें आती हैं। नर्मदा नदी में अचानक बाढ़ें (flash floods ) आती हैं। तटीय भागों में चक्रवातों के कारण मई तथा अक्तूबर मास में भयानक बाढ़ें आती हैं। सन् 1990 में मई मास में आन्ध्र प्रदेश में खाड़ी बंगाल के चक्रवात से भारी क्षति हुई जिसमें लगभग 1000 व्यक्ति मर गए।

बाढ़ग्रस्त क्षेत्र (Flood Affected Areas):
भारत में मैदानी भाग तथा नदी घाटियों में अधिक बाढ़ें आती हैं। देश का लगभग 1/8 भाग बाढ़ों से प्रभावित रहता है। 60 प्रतिशत बाढ़ें अधिक वर्षा के कारण उत्पन्न होती हैं। असम, बिहार, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल राज्य स्थायी रूप से बाढ़ग्रस्त रहते हैं। इन प्रदेशों में अधिक वर्षा तथा बड़ी-बड़ी नदियों के कारण बाढ़ समस्या गम्भीर है। एक अनुमान के अनुसार देश में 78 लाख हेक्टेयर भूमि पर प्रति वर्ष बाढ़ें आती हैं। नदी घाटियों के अनुसार बाढ़ क्षेत्रों को निम्नलिखित वर्गों में बांटा जाता है।

1. हिमालय क्षेत्र की नदियां (The Rivers of the Himalayas):
इस भाग में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र दो प्रमुख नदियां हैं जिनमें प्रत्येक वर्ष बाढ़ें आती हैं। गंगा घाटी में यमुना, घाघरा, गंडक तथा कोसी जैसी सहायक नदियां शामिल हैं। इन नदियों में जल की मात्रा अधिक होती है। इनकी ढलान तीव्र होती है तथा इन नदियों के मार्ग में परिवर्तन होता रहता है। उत्तर प्रदेश तथा बिहार के विस्तृत क्षेत्रों में बाढ़ों से भारी क्षति पहुंचती है। देश में बाढ़ों से कुल क्षति का 33% भाग उत्तर प्रदेश में तथा 27% भाग बिहार में होता है। कोसी नदी को बाढ़ों के कारण “शोक की नदी” (River of Sorrow) कहा जाता है।

ब्रह्मपुत्र नदी असम, मेघालय तथा बंगलादेश में बाढ़ों से हानि पहुंचाती है। ब्रह्मपुत्र घाटी भारत में सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। यहां अधिक वर्षा तथा रेत व मिट्टी के जमाव से बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। भूकम्प के आने के कारण नदियां अपना मार्ग बदल लेती हैं तथा बाढ़ समस्या अधिक गम्भीर हो जाती हैं। दामोदर घाटी में दामोदर नदी के कारण भयंकर बाढ़ें आती रही हैं । इस नदी को ‘बंगाल का शोक’ भी कहा जाता था परन्तु दामोदर घाटी योजना के पूरा होने के बाद बाढ़ समस्या कम हो गई है।

2. उत्तर-पश्चिमी भारत (North-Western India):
इस भाग में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश शामिल हैं। यहां जेहलम, चिनाब, सतलुज, ब्यास तथा रावी नदियों के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। बरसाती नदियों में भी बाढ़ें आती हैं।

3. मध्य भारत (Central India ):
इस भाग में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश तथा उड़ीसा शामिल हैं। यहां ताप्ती, नर्मदा तथा चम्बल नदियों में कभी-कभी बाढ़ें आती हैं। यहां अधिक वर्षा के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं।

4. प्रायद्वीपीय क्षेत्र (Peninsular Region ):
इस क्षेत्र में महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के कारण बाढ़ें आती हैं। कई बार ज्वार-भाटा के कारण डेल्टाई क्षेत्रों में रेत और मिट्टी के जमाव से भी बाढ़ें आती हैं।

बाढ़ों के कारण (Causes of Floods): भारत एक उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी देश है। यहां मानसूनी वर्षा के अधिक होने से बाढ़ की समस्या गम्भीर हो जाती है। बाढ़ें निम्नलिखित कारणों से आती हैं।

  1. भारी वर्षा (Heavy Rainfall): किसी भाग में एक दिन में निरन्तर वर्षा की मात्रा 15 सें० मी० से अधिक होने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  2. चक्रवात (Cyclones): भारत के पूर्वी तट पर खाड़ी बंगाल के तीव्र गति के चक्रवातों से भयानक बाढ़ें आती हैं। जैसे – मई, 1990 में आन्ध्र प्रदेश में चक्रवातों द्वारा निरन्तर वर्षा से नदी क्षेत्रों में बाढ़ उत्पन्न होने से भारी हानि हुई।
  3. वनों की कटाई (Deforestation ): नदियों के ऊपरी भागों में वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से अचानक बाढ़ें उत्पन्न हो जाती हैं। शिवालिक की पहाड़ियों, असम, मेघालय तथा छोटा नागपुर के पठार में वृक्षों की कटाई के कारण बाढ़ की समस्या गम्भीर है।
  4. नदी तल का ऊंचा उठना (Rising of the River Bed ): रेत तथा बजरी जमाव से नदी तल ऊंचा उठ जाता है जिससे समीपवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ का जल फैल जाता है।
  5. अपर्याप्त जल प्रवाह (Inadequate Drainage ): कई निम्न क्षेत्रों में जल प्रवाह प्रबन्ध न होने से बाढ़ें उत्पन्न हो जाती हैं।

बाढ़ों से क्षति (Damage due to Floods)”:
बाढ़ों से कृषि क्षेत्र में फसलों की हानि होती है। मकानों, संचार साधनों तथा रेलों, सड़कों को क्षति पहुंचती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई बीमारियां फैल जाती हैं। देश में लगभग 2 करोड़ हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त क्षेत्र है जिसमें से 25 लाख हेक्टेयर भूमि में फसलें नष्ट हो जाती हैं। प्रति वर्ष औसत रूप से करोड़ जनसंख्या पर बाढ़ से क्षति का प्रभाव पड़ता है। लगभग 30 हज़ार पशुओं की हानि होती है। एक अनुमान है कि औसत रूप से प्रति वर्ष 505 व्यक्तियों की बाढ़ के कारण मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार देश में लगभग ₹1500 करोड़े की आर्थिक क्षति पहुंचती है। सन् 1990 में देश में कुल क्षति ₹ 41.25 करोड़ की थी तथा 50 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त 162 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए। ₹28 करोड़ की फसलें नष्ट हुईं। 862 जानें गईं तथा 1,22,498 पशु मारे गये।

बाढ़ों की रोकथाम (Flood Control):
भारत में प्राचीन समय से बाढ़ों की रोकथाम के लिए उपाय किए जाते हैं। प्रायः नदियों के साथ-साथ तटबंध बनाकर बाढ़ नियन्त्रण किया जाता था। सन् 1954 में राष्ट्रीय बाढ़ नियन्त्रण योजना शुरू की गई। इस योजना के अधीन बाढ़ नियन्त्रण के लिए कई उपाय किए गए।

  1. नदियों के जल सम्बन्धी आंकड़े इकट्ठे किए गए।
  2. नदियों के साथ तटबन्ध बनाये गये। देश में लगभग 15,467 कि० मि० लम्बे तटबन्धों का निर्माण किया गया।
  3. निम्न क्षेत्रों में लगभग 30,199 कि० मी० लम्बी जल प्रवाह नलिकायें बनाई गई हैं।
  4. 762 नगरों तथा 4,700 गांवों को बाढ़ों से सुरक्षित किया गया है।
  5. कई नदियों पर जलाशय बन कर बाढ़ों पर नियन्त्रण किया गया है; जैसे- दामोदर घाटी बहुमुखी योजना तथा भाखड़ा नंगल योजना ।
  6. देश में बाढ़ों का पूर्व अनुमान लगाने के लिए (Flood Forecasting) 157 केन्द्र स्थापित किए गए हैं।
  7. नदियों के ऊपरी भागों में वन रोपण किया गया है।
  8. सातवीं पंचवर्षीय योजना के अन्त तक 2710 करोड़ बाढ़ नियन्त्रण पर व्यय किए गए जबकि आठवीं पंचवर्षीय योजना पर ₹9470 करोड़ के व्यय का अनुमान है।
  9. केरल तट पर सागरीय प्रभाव से बचाव के लिए 42 कि० मी० लम्बी समुद्री दीवारों का निर्माण किया गया तथा कर्नाटक तट पर 73 कि० मी० लम्बी समुद्री दीवारें बनाई गईं।
  10. देश में बाढ़ के पूर्व निर्माण संगठन (Flood Fore-casting Organisation) की स्थापना की गई है। इसके अधीन 157 केन्द्र स्थापित किए गए हैं जिनकी संख्या इस शताब्दी के अन्त तक 300 हो जाएगी।
  11. महानदी घाटी में हीराकुड बांध, दामोदर घाटी में कई बांध, सतलुज नदी पर भाखड़ा डैम, ब्यास नदी पर पौंग डैम तथा ताप्ती नदी पर डकई बांध बनाकर बाढ़ों की रोकथाम की गई है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 3.
भूकम्प की परिभाषा दो भारत में भूकम्प क्षेत्रों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
भूकम्प (Earthquake ):
पृथ्वी के किसी भाग के अचानक हिलने को भूकम्प कहते हैं। इस हलचल से भूपृष्ठ पर झटके (Tremors) अनुभव किए जाते हैं। भूकम्पीय तरंगें सभी दिशाओं में लहरों की भान्ति आगे बढ़ती हैं। ये तरंगें उद्गम (Focus ) से आरम्भ होती हैं। ये तरंगें तीन प्रकार की होती हैं – P- Waves, S- Waves, L-Waves.

भूकम्प के कारण (Causes of Earthquake ):
भूकम्प के सामान्य कारण ज्वालामुखी विस्फोट, भू-हलचलें, चट्टानों का लचीलापन तथा स्थानीय कारण है। आधुनिक युग में भूकम्पों को टेकटानिक प्लेटों से सम्बन्धित किया गया है। भारत में सामान्य रूप से भारतीय प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट आपस में टकराती हैं। ये एक दूसरे के नीचे धँसने का यत्न करती हैं। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में इनका सम्बन्ध वलन व भ्रंशन क्रिया से है। दक्षिणी भारत एक स्थिर भूखण्ड है तथा भूकम्प बहुत कम होते हैं। भूकम्पों की तीव्रता रिक्टर पैमाने से मापी जाती है जिसका मापक 1 से 9 तक होता है। अधिक तीव्र भूकम्प भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में अनुभव किए जाते हैं।
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1. हिमालयाई क्षेत्र (Himalayan Zone ):
इस क्षेत्र में क्रियाशील भूकम्प जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में आते हैं जिनसे बहुत हानि होती है। यह भूकम्प भारतीय प्लेट तथा यूरेशियम प्लेट के आपसी टकराव के कारण उत्पन्न होते हैं। भारतीय प्लेट प्रति वर्ष 5 सें० मी० की गति से उत्तर तथा उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रही है। यहां 1905 में कांगड़ा में, 1828 में कश्मीर में, 1936 में क्वेटा में तथा 1950 में असम में भयानक भूकम्प अनुभव किए गए।

2. सिन्धु-गंगा प्रदेश (Indo-Gangetion Zone ):
इस क्षेत्र में सामान्य तीव्रता के भूकम्प अनुभव किए जाते हैं। इनकी तीव्रता 6 से 6.5 तक होती है। परन्तु इन सघन बसे क्षेत्रों में बहुत हानि होती है।

3. प्रायद्वीपीय क्षेत्र (Peninsular Zone):
यह एक स्थिर क्षेत्र है परन्तु फिर भी यहां भूकम्प अनुभव किए जाते हैं। 1967 में कोयना, 1993 में लातूर, 2001 में भुज के भूकम्प बहुत विनाशकारी थे। कोयना भूकम्प कोयला डैम के जलाशय में जल के अत्यधिक दबाव के कारण आया। परन्तु वर्तमान भूकम्प भारतीय प्लेट की उतर की ओर गति के कारण आए हैं।

4. अन्य भूकम्पीय क्षेत्र (Other Sesonic Zones)

  1. बिहार – नेपाल क्षेत्र
  2. उत्तर-पश्चिमी हिमालय
  3. गुजरात क्षेत्र
  4. कोयना क्षेत्र।

भारत के प्रमुख विनाशकारी भूकम्प

केन्द्र तीव्रता वर्ष
कच्छ 8.0 1819
कच्छ 7.5 1869
मेघालय 8.7 1865
बंगाल 8.5 1885
असम 8.0 1897
कांगड़ा 8.0 1905
असम 8.7 1950
कोयना 6.3 1967
हिमाचल प्रदेश 7.5 1973
लातूर 6.0 1993
भुज 8.0 2001

भूकम्प के परिणाम:
केवल बसे हुए क्षेत्रों के आने वला भूकम्प ही आपदा या संकट बनता है। भूकम्प का प्रभाव सदैव विध्वंसक होता है। भूकम्प के कारण प्राकृतिक पर्यावरण में कई तरह से परिवर्तन हो जाते हैं। भूकम्पीय तरंगों से धरातल में दरारें पड़ जाती हैं जिनसे कभी-कभी पानी के फव्वारे छूटने लगते हैं। इसके साथ बड़ी भारी मात्रा में रेत बाहर आ जाता है तथा इससे रेत के बांध बन जाते हैं। क्षेत्र के अपवाह तन्त्र में उल्लेखनीय परिवर्तन भी देखे जा सकते हैं। नदियों के मार्ग बदल जाने से बाढ़ आ जाती है।

पहाड़ी क्षेत्रों में भू-स्खलन हो जाते हैं तथा इनके साथ भारी मात्रा में चट्टानी मलबा नीचे आ जाता है। इससे बृहतक्षरण होता है। हिमानियाँ फट जाती हैं तथा इनके हिमधाव सुदूर स्थित स्थानों पर बिखर जाते हैं। नए जल प्रपातों और सरिताओं की उत्पत्ति भी हो जाती है। भूकम्पीय आपदाओं से मनुष्य निर्मित भवन बच नहीं पाते हैं। सड़कें, रेलमार्ग, पुल और टेलीफोन की लाइनें टूट जाती हैं। गगनचुम्बी भवनों और सघन जनसंख्या वाले कस्बों और नगरों पर भूकम्पों का सबसे बुरा असर होता है।

सुनामी लहरें (Tsunami Tidal Waves):
समुद्री तली पर भूकम्प उत्पन्न होने से 30 मीटर तक ऊंची ज्वारीय लहरें (सुनामी) उत्पन्न होती है। 26 दिसम्बर, 2004 को हिन्द महासागर में इण्डोनेशिया के निकट उत्पन्न भूकम्प के कारण भयंकर सुनामी लहरें उत्पन्न हुईं। इनका प्रभाव इण्डोनेशिया, थाइलैण्ड, म्यानमार, भारत तथा श्रीलंका के तटों पर अनुभव किया गया। इन भयंकर लहरों के कारण इन क्षेत्रों में लगभग 2 लाख लोगों की जानें गईं तथा करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति की हानि हुई है।

यह पृथ्वी के इतिहास में सबसे भयंकर प्राकृतिक आपदा थी भूकम्प के प्रभाव को कम करना भूकम्प के प्रभाव को कम करने का सबसे अच्छा तरीका हैं । इसकी निरन्तर खोज-खबर रखना तथा लोगों को इसके आने की सम्भावना की सूचना देना इससे आशंकित क्षेत्रों से लोगों को हटाया जा सकता है। भूकम्प से अत्यधिक खतरे वाले क्षेत्र में भूकम्प रोधी भवन बनाने की आवश्यकता है। भूकम्प की आशंका वाले क्षेत्रों में लोगों को भूकम्प रोधी भवन और मकान बनाने की सलाह दी जा सकती है।

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प्रश्न 4.
चक्रवात किसे कहते हैं? चक्रवातों द्वारा क्षति का वर्णन करो।
उत्तर:
चक्रवात (Cyclones):
600 कि०मी० या इससे अधिक व्यास वाले चक्रवात, पृथ्वी के वायुमण्डलीय तूफानों में सबसे अधिक विनाशक और भयंकर होते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप संसार में चक्रवातों द्वारा सबसे अधिक दुष्प्रभावित क्षेत्र हैं। संसार में आने वाले चक्रवातों में से 6 प्रतिशत यही आते हैं।
उत्पत्ति: जब कमज़ोर रूप से विकसित कम दबाव के क्षेत्र के चारों ओर तापमान की क्षैतिज प्रवणता बहुत अधिक होती है, तब उष्ण कटिबंधीय चक्रवात बन सकता है। चक्रवात ऊष्मा का इंजिन है तथा इसे सागरीय तल से ऊष्मा मिलती है। संघनन के बाद मुक्त ऊष्मा, चक्रवात के लिए गतिज ऊर्जा (Kinetic energy) में बदल जाती है।

चक्रवात की उत्पत्ति की निम्नलिखित अवस्थाएं हैं।

  1. महासागरीय तल का तापमान 26° से अधिक।
  2. बन्द समदाब रेखाओं का आविर्भाव।
  3. निम्न वायुदाब, 1,000 मि。बा० से कम होना।
  4. चक्रीय गति के क्षेत्रफल, प्रारम्भ में इनके अर्धव्यास 30 से 50 कि०मी० फिर क्रमश: 100-200 कि०मी० और 1,000 कि०मी० तक भी बढ़ जाते हैं।
  5. ऊर्ध्वाधर रूप में पवन की गति का प्रारम्भ में 6 कि०मी० की ऊंचाई तक बढ़ना तथा इसके बाद और भी ऊंचा उठाना।

ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात की संरचना:

  1. ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में बहुत अधिक दाब प्रवणता (14-17 मि०बा० / 100 कि०मी०) होती है। कुछ चक्रवातों में यह इससे भी अधिक ऊंची अर्थात् 60 मि० बा० / 100 कि०मी० होती है।
  2. पवन पट्टी केन्द्र से 10 से 150 कि०मी० या कभी – कभी इससे भी अधिक दूरी में फैली होती है। धरातल पर पवन का चक्रवातीय परिसंचरण होता है। तथा ऊंचाई पर यह प्रति चक्रवातीय बन जाता है।
  3. ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की क्रोड कोष्ण होती है। चक्रवात का केन्द्र सामान्यतः मेघ विहीन होता है। इसे चक्रवात की आंख कहते हैं। चक्रवात की आंख बहुत ऊंचाई तक फैले ऊर्ध्वाधर बादलों से घिरी होती है।
  4. ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात से सामान्यतः 50 सें०मी० से अधिक वर्षा होती है। कभी-कभी वर्षा 100 सें०मी० से भी अधिक हो जाती है।
  5. चक्रवात अपने पूरे तन्त्र के साथ लगभग 20 कि०मी० प्रति घंटा औसत गति से आगे बढ़ता है। जैसे-जैसे चक्रवात स्थल पर बढ़ता जाता है, समुद्री जल के अभाव में इसकी ऊर्जा घटती जाती है। इससे चक्रवात समाप्त हो जाता है। चक्रवात की जीवन अवधि 5 से 7 दिनों की होती है।

चक्रवातों द्वारा क्षति:
प्रभंजन की गति वाली पवनों, प्रभंजन की लहरों तथा मूसलाधार वर्षा से उत्पन्न बाढ़ों के कारण ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। अधिकतर तूफ़ान अत्यन्त तेज़ पवनों और तूफ़ानी लहरों के द्वारा भारी क्षति पहुंचाते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में ढाल पर अत्यन्त तीव्रता से बहने वाला वर्षा जल अपने सामने आने वाली हर वस्तु को अपनी चपेट में लेकर भारी नुकसान करता है। तूफ़ानी लहरों की तीव्रता, पवन की गति, दाब प्रवणता, समुद्र की तली की स्थलाकृतियों तथा तटरेखा की बनावट पर निर्भर करती है। अनेक क्षेत्रों में चक्रवातों की चेतावनी व्यवस्था के बावजूद, ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात धन-जन को अपार क्षति पहुंचाते हैं।

क्षेत्र: अरब सागर की तुलना में बंगाल की खाड़ी में तूफ़ानों की संख्या कहीं अधिक है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में अधिकतर तूफान अक्तूबर और नवम्बर के महीनों में आते हैं। मानसून ऋतु का प्रारंभिक भाग भी बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में ऊष्ण कटिबंधीय तूफ़ानों की उत्पत्ति के अनुकूल है। मानसून ऋतु में अधिकतर चक्रवात 10° उ० तथा 15° उ० अक्षांशों के मध्य ही उत्पन्न होते हैं। जून में बंगाल की खाड़ी के लगभग सभी तूफ़ान 92° पू० देशांतर के पश्चिम में 16° उ० और 21° उ० अक्षांश के मध्य जन्म लेते हैं। जुलाई में खाड़ी के तूफ़ानों का जन्म 18° 3० अक्षांश के उत्तर में तथा 90° पू० देशान्तर के पश्चिम में होता है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि जुलाई के सभी तूफ़ान पश्चिमी पथ का अनुसरण करते हैं। ये सामान्यत: 20° उ० तथा 25° उ० अक्षांशों के मध्य तक ही सीमित रहते हैं तथा हिमालय की गिरिपद पहाड़ियों की ओर अपेक्षाकृत बहुत कम मुड़ते हैं।

क्षति का प्रभाव कम करना:
अधिकतर चक्रवातीय क्षति, तेज़ पवनों, मूसलाधार वर्षा और समुद्र में उठने वाली ऊँची तूफ़ानी, ज्वारीय लहरों के द्वारा होती है। पवनों की तुलना में चक्रवातीय वर्षा के कारण आई बाढ़ अधिक विनाशकारी होती है। आज चक्रवातों की चेतावनी व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार होने से तथा पर्याप्त और सामयिक कार्यवाही से चक्रवात से मरने वालों की संख्या में कमी आई है। अन्य उपाय जैसे : चक्रवातों के आने के समय सुरक्षा के लिए आय स्थलों के तटबंधों, बांधों, जलाशयों के निर्माण से और तट पर वन रोपण से भी बहुत सहायता मिलती है। फ़सलों और गो- पशुओं बी से भी लोगों को क्षति पूर्ति में काफ़ी मदद मिलती है। उपग्रहों से प्राप्त चित्रों के द्वारा चक्रवात के पथ के बारे में चेतावनी देना अब सम्भव हो गया है। कम्प्यूटर द्वारा बनाए गए मॉडलों की सहायता से चक्रवात की पवनों की दिशा और तीव्रता तथा इसके पथ की दिशा की काफ़ी हद तक सही भविष्यवाणी की जा सकती है।

प्रश्न 5.
आपदा प्रबन्धन पर एक लेख लिखें।
उत्तर:
आपदा प्रबन्धन ( Disaster Management ):
आपदा प्रबन्धन में निवारक और संरक्षी उपाय, तैयारी तथा मानवों पर आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए राहत कार्यों की व्यवस्था तथा आपदा प्रवण क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक पक्ष शामिल किए जाते हैं। आपदा प्रबन्ध की सम्पूर्ण प्रक्रिया को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है। प्रभाव चरण, पुनर्वास और पुनर्निर्माण चरण तथा समन्वित दीर्घकालीन विकास और तैयारी चरण। प्रभाव चरण के तीन अंग हैं।

  1. आपदा की भविष्यवाणी करना,
  2. आपदा के प्रेरक कारकों की बारीकी से खोजबीन, तथा
  3. आपदा आने के बाद प्रबन्धन के कार्य जलग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा का अध्ययन करके बाढ़ की भविष्यवाणी की जा सकती है।

उपग्रहों के द्वारा चक्रवातों के मार्ग, गति आदि की खोज-खबर ली जा सकती है। इस प्रकार प्राप्त सूचनाओं के आधार पर पूर्व चेतावनी तथा लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के प्रयत्न शुरू किए जा सकते हैं। आपदा के लिए ज़िम्मेदार कारकों की बारीकी से की गई खोजबीन लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने, भोजन, वस्त्र और पेय जल की आपूर्ति के लिए कार्यदल नियुक्त किए जा सकते हैं। आपदाएँ मृत्यु और विनाश के चिह्न छोड़ जाती हैं। प्रभावित लोगों को चिकित्सा सुविधा और अन्य विभिन्न प्रकार की सहायता की ज़रूरत होती है। दीर्घकालीन विकास के चरण के अन्तर्गत विविध प्रकार के निवारक और सुरक्षापायों की योजना बना लेनी चाहिए। संसार के लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए यूनेस्को ने 1990-2000 के दौरान प्राकृतिक आपदा राहत दशक मनाया था। संसार के अन्य देशों के साथ भारत ने भी दशक के दौरान अक्तूबर में विश्व आपदा राहत दिवस मनाया था। इस अवसर पर भूकंप, बाढ़ और चक्रवात प्रवण क्षेत्रों के लोगों के लिए भारत सरकार ने जो करणीय और अकरणीय कर्म प्रचारित किए थे, वे बहुत उपयोगी हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 6.
सुनामी से क्या अभिप्राय हैं? इसकी उत्पत्ति कैसे होती है? 26 दिसम्बर, 2004 को हुए सुनामी संकट के प्रभाव बताओ।
उत्तर:
सुनामी (Tsunami ):
सुनामी एक जापानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘तटीय तरंगें’, ‘Tsu’ शुद्ध का अर्थ है-तट तथा ‘Nami’ शब्द का अर्थ है ‘तरंगें ‘। इसे प्रायः ज्वारीय लहरें (Tidal waves) या भूकम्पीय तरंगें (Seismic waves) भी कहा जाता है।
सुनामी अचानक ही ऊंचा उठने वाली विनाशकारी तरंगें हैं। इससे गहरे जल में हलचल होती है। इसकी ऊंचाई प्रायः 10 मीटर तक होती है। सुनामी उस दशा में उत्पन्न होती है जब सागरीय तली में भूकम्पीय क्रिया के कारण हल चल होती है तथा महासागर में सतह के जल का लम्बरूप में विस्थापन होता है। हिन्द महासागर में सुनामी तरंगें बहुत कम अनुभव की गई हैं। अधिकतर सुनामी प्रशान्त महासागर में घटित होती हैं।

सुनामी की उत्पत्ति (Origin of Tsunami ):
पृथ्वी आंतरिक दृष्टि से एक क्रियाशील ग्रह है। अधिकतर भूकम्प विवर्तनिक प्लेटों (Tectomic plates) की सीमाओं पर उत्पन्न होते हैं। सुनामी अधिकतर प्रविष्ठन क्षेत्र (Subduction zone) के भूकम्प के कारण उत्पन्न होती है। यह एक ऐसा क्षेत्र हैं दो प्लेटें एक दूसरे में विलीन (converge) होती हैं। भारी पदार्थों से बनी प्लेट हल्की प्लेट के नीचे खिसक जाती है। समुद्र अधस्तल का विस्तारण होता है। यह क्रिया एक कम गहरे भूकम्प को जन्म देती है।
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26 दिसम्बर, 2004 की सुनामी आपदा (Tsunami Disaster of 26th December, 2004 ):
प्रात: 7.58 बजे के समय पर, काले रविवार (Black Sunday) को 26 दिसम्बर, 2004 को क्रिस्मस से एक दिन बाद सुनामी त्रासदी घटी यह विशाल, विनाशकारी सुनामी लहर हिन्द महासागर के तटीय प्रदेशों से टकराई। इस लहर के कारण इण्डोनेशिया से लेकर भारत तक के देशों में 3 लाख व्यक्ति इस त्रासदी का शिकार हो गए। महासागरी तली पर उत्पन्न एक भूकम्प उत्पन्न हुआ जिसका अधिकेंदर सुमात्रा (इण्डोनेशिया) ने 257 कि०मी० दक्षिण पूर्व में था। यह भूकम्प रिक्टर पैमाने पर 8.9 शक्ति का था।

इन लहरों के ऊंचे उठने से जल की एक ऊंची दीवार उत्पन्न हो गई। आधुनिक युग के इतिहास में यह एक महान् त्रासदी के रूप में अंकित की जाएगी। सन् 1900 के पश्चात् यह चौथा बड़ा भूकम्प था। इस भूकम्प के कारण उत्पन्न सुनामी लहरों से हीरोशिमा बम्ब की तुलना में लाखों गुणा अधिक ऊर्जा का विस्फोट हुआ। इसलिए इसे भूकम्प प्रेरित प्रलयकारी लहर भी कहा जाता है। यह भारतीय तथा बर्मा की प्लेटों के मिलन स्थान पर घटी जहां लगभग 1000 कि०मी० प्लेट सीमा खिसक गई।
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इसके प्रभाव से सागर तल 10 मीटर ऊंचा उठ गया तथा ऊपरी जल हज़ारों घन मीटर की मात्रा में विस्थापित हो गया । इसकी गति लगभग 700 कि०मी० प्रति घण्टा थी । इसे अपने उद्गम स्थान से भारतीय तट तक पहुंचने में दो घण्टे का समय लगा। इस त्रासदी ने तटीय प्रदेशों के इतिहास तथा भूगोल को बदल कर रख दिया है।

सुनामी त्रासदी के प्रभाव (Effects of Tsunami Disaster ):
हिन्द महासागर के तटीय देशों इण्डोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, म्यांमार, भारत, श्रीलंका तथा मालदीव में विनाशकारी प्रभाव पड़े। भारत में सब से अधिक प्रभावित तमिलनाडु, पांडिचेरी, आन्ध्र प्रदेश, केरल राज्य थे अण्डमान तथा निकोबार द्वीप में इस लहर का सब से अधिक प्रभाव पड़ा। इण्डोनेशिया में लगभग 1 लाख व्यक्ति, थाइलैंड में 10,000 व्यक्ति, श्रीलंका में 30,000 व्यक्ति तथा भारत में 15,000 व्यक्ति इस प्रलय के शिकार हुए।

भारत में सब से अधिक क्षति तमिलनाडु के नागापट्टनम जिले में हुई जहां जल नगर में 1.5 कि०मी० अन्दर तक घुस गया। संचार, परिवहन साधन तथा विद्युत् सप्लाई में विघ्न पड़ा बहुत से श्रद्धालु वेलान कन्नी (Velan Kanni) के पुलिन (Beach) पर सागर जल में वह गए। विनाशकारी तट लौटती लहरें हज़ारों लोगों को वहा कर ले गईं। मैरीन पुलिन (एशिया के सब से बड़े पुलिन) पर 3 कि०मी० लम्बे क्षेत्र में सैंकड़ों लोग सागर की लपेट में आ गए। यहां लाखों रुपयों के चल-अंचल संसाधनों की बर्बादी हुई।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ 5
कल्पाक्कम अणु शक्ति घर में जल प्रवेश करने से अणु शक्ति के रीएक्टरों को बन्द करना पड़ा। मामलापुरम के विश्व प्रसिद्ध मन्दिर को तूफ़ानी लहरों से बहुत क्षति हुई।

सब से अधिक मौतें अण्डमान-निकोबार द्वीप पर हुईं। ग्रेट निकोबार के दक्षिणी द्वीप पर जो कि भूकम्प के अधिकेन्द्र से केवल 150 कि०मी० दूर था, सब से अधिक प्रभाव पड़ा। निकोबार द्वीप पर भारतीय नौ सेना का एक अड्डा नष्ट हो गया। ऐसा लगता है कि इन द्वीपों का बहुत-सा क्षेत्र समुद्र ने निगल लिया है। इस प्रकार सुनामी लहरों ने इन द्वीप समूहों के भूगोल को बदल दिया तथा यहां पुनः मानचित्रण करना पड़ेगा। इस देश के आपदाओं के शब्द कोश में एक नया शद्ध सुनामी आपदा जुड़ गया है। अमेरिकन वैज्ञानिकों के अनुसार इस कारण पृथ्वी अपनी धुरी से डगमगा गई और उसका परिभ्रमण तेज़ हो गया जिससे दिन हमेशा के लिए एक सैकिंड कम हो गया। सुनामी लहरें सचमुच प्रकृति का कहर हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

Jharkhand Board Class 12 History एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 171

प्रश्न 1.
मैकेन्जी और उनके देशज सूचनादाताओं को चित्रकार ने किस प्रकार चित्रित किया है? उनके तथा उनके सूचनादाताओं के विषय में दर्शकों पर किस प्रकार के विचार डालने का प्रयास किया गया है?
उत्तर:
दिए गए चित्र में कॉलिन मैकेन्जी तथा उनके सहायकों को दर्शाया गया है। यह चित्र, चित्रकार थॉमस हिकी द्वारा बनाए गए तैलचित्र का किसी अज्ञात चित्रकार द्वारा बनाया गया प्रतिरूप है। इस चित्र में मैकेन्जी को ब्रिटिश पहनावे में दिखाया गया है। मैकेन्जी के बायीं ओर दूरबीन थामे उनका चपरासी स्निाजी और दायीं ओर उनके ब्राह्मण सहायक हैं। ब्राह्मण सहायकों में एक जैन पंडित तथा दूसरा तेलुगू ब्राह्मण है। इस चित्र द्वारा दर्शकों पर यह प्रभाव डालने की कोशिश की गई है कि मैकेन्जी एक अभियन्ता, सर्वेक्षक तथा मानचित्रकार था। स्थानीय लोगों के साथ उसका यह चित्र यह दर्शाता है कि उसने भारतीय इतिहास से सम्बन्धित तथ्यों का सर्वेक्षण करने की कोशिश की है।

पृष्ठ संख्या 173

प्रश्न 2.
आपके विचार में विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय व्यापार को प्रोत्साहित करने के इच्छुक क्यों थे? उनके द्वारा किए गए विनिमयों से किन समूहों को लाभ पहुँचा होगा?
उत्तर:
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय निम्नलिखित कारणों से व्यापार को प्रोत्साहित करना चाहते थे-
(1) व्यापार से प्राप्त राजस्व राज्य की समृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देता था।
(2) राजा अपनी सेना के लिए अच्छी नस्ल के शक्तिशाली घोड़े प्राप्त करना चाहता था।
(3) राजा अपने राज्य में घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चन्दन, मोती तथा अन्य वस्तुओं का आयात बढ़ाना चाहता था । उपर्युक्त विनिमयों से राज्य, शासक वर्ग, व्यापारी वर्ग, शिल्पी वर्ग, विदेशी व्यापारी वर्ग, समृद्ध जनता आदि को लाभ पहुँचा होगा।

पृष्ठ संख्या 176

प्रश्न 3.
नक्शे (चित्र 7.4) पर बने तीन अंचलों को पहचानिए। मध्य भाग को ध्यान से देखिए क्या आप नदियों से जुड़ती हुई नहरों को देख सकते हैं? आप कितनी किलेबन्द दीवारों को देख सकते हैं? क्या धार्मिक केन्द्र किलेबन्द था?
उत्तर:
उपर्युक्त पृष्ठ पर बने विजयनगर के रेखाचित्र को देखने पर निम्नलिखित तीन अंचल दिखाई देते हैं –
(i) दक्षिण में किलेबन्द केन्द्रीय शाही भाग तथा शाही केन्द्र
(ii) हम्पी तथा पवित्र केन्द्र
(iii) उत्तर-पूर्व में स्थित अनेगंदी
यहाँ नदियाँ तथा उनसे जुड़ी नहरें तथा जलाशय देखे जा सकते हैं। किलेबन्द दीवारें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। धार्मिक केन्द्र किलेबन्द है।

पृष्ठ संख्या 176

प्रश्न 4.
क्या आप आज किसी शहर में ये अभिलक्षण देख सकते हैं? आपके विचार में पेस ने उद्यानों तथा जल स्त्रोतों को विशेष उल्लेख के लिए क्यों चुना?
उत्तर:
प्राचीन वास्तुकला के ऐसे अभिलक्षण नवीन शहरों में नहीं दिखाई देते, परन्तु प्राचीन शहरों में आज भी ऐसे अभिलक्षण शेष हैं नवीन शहरों के स्थापत्य में भी बाग-बगीचों, जलाशयों, पार्कों आदि का पूरा ध्यान रखा जाता है। पेस आजकल की पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित विजयनगर में मौजूद उद्यानों तथा जलस्रोतों को देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ इसलिए उसने उद्यानों तथा जलस्रोतों का उल्लेख विशेष रूप से किया।

पृष्ठ संख्या 178

प्रश्न 5.
इन दो (चित्र 7.6 तथा 7.7) प्रवेश द्वारों के बीच समानताओं तथा विभिन्नताओं का वर्णन कीजिए आपके विचार में विजयनगर के शासकों ने इण्डो-इस्लामी स्थापत्य के तत्त्वों को क्यों अपनाया?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 178 पर दिए गए चित्र संख्या 76 तथा 77 के प्रवेश द्वारों पर ऊंचे शिखर बनाए गए हैं। परन्तु चित्र 77 में शिखर आयताकार है तथा 7.6 में शिखर गोलाकार है। चूँकि तत्कालीन समय में धीरे-धीरे इण्डो-इस्लामिक स्थापत्यकला का विकास हो रहा था; अतः विजयनगर के शासकों द्वारा भी इस स्थापत्य- कला का प्रयोग मन्दिरों में किया गया।

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पृष्ठ संख्या 179

प्रश्न 6.
आपके विचार में ये टुकड़े मूलतः किस प्रकार के बर्तनों का हिस्सा थे?
उत्तर:
चीनी मिट्टी से बने बर्तनों के ये टुकड़े सम्भवतः इस्लामी पच्चीकारी से बने मर्तबानों और अन्य घड़े जैसे बर्तनों का हिस्सा थे।

पृष्ठ संख्या 179

प्रश्न 7.
क्या इस मस्जिद में इण्डो-इस्लामी स्थापत्य के चारित्रिक तत्त्व विद्यमान हैं?
उत्तर:
चित्र को देखकर यह प्रतीत होता है कि इस मस्जिद में इण्डो-इस्लामिक तत्त्व विद्यमान हैं।

पृष्ठ संख्या 180

प्रश्न 8.
क्या आप इन चित्रों (चित्र 7.11 तथा 7.12 ) के विषयों को पहचान सकते हैं?
उत्तर:
इन चित्रों से सम्बन्धित विषय-वस्तु सम्भवतः इस प्रकार है –
(1) मोड़े को चारा खिलाना
(2) ऊँचे चबूतरे पर बैठे योगी के सामने नतमस्तक भक्त
(3) घोड़े की लगाम खींचता हुआ सेवक
(4) मृर्गों का शिकार करते हुए शिकारी
(5) पशुओं को हाँकता हुआ व्यक्ति
(6) एक योगी संत प्रवचन देता हुआ इत्यादि।

पृष्ठ संख्या 181

प्रश्न 9.
चित्र 7.13 तथा 7.15 की तुलना कीजिए तथा उन अभिलक्षणों की सूची बनाइए जो दोनों में हैं, और साथ ही उनकी भी जो इनमें से केवल एक में ही देखे जा सकते हैं। चित्र 7.14 में बनी मेहराब की तुलना चित्र 7.6 में बनी मेहराब से कीजिए कमल महल में नौ मीनारें थीं-बीच में एक ऊँची तथा आठ उसकी भुजाओं के साथ-साथ छायाचित्र तथा खड़े रेखाचित्र में आप कितनी कितनी मीनारें देख पाते हैं? यदि आप कमल महल का फिर से नामकरण करते तो इसे क्या कहते ?
उत्तर:
चित्र 7.13 तथा 7.15 में समान तत्त्व इस प्रकार हैं –
(1) दोनों में समान रूप के मेहराब दिखाई देते हैं।
(2) दोनों में एक समान सीढ़ियाँ दिखाई देती हैं।
(3) दोनों में प्रथम तल की आकृति एकसमान दिखाई देती है।

असमानता चित्र 7.13 में छह मीनारें दिखाई देती हैं। चित्र 7.15 में पाँच मीनारें स्पष्ट दिखाई देती हैं। चित्र सं. 7.14 में बनी मेहराब की तुलना 7.14 चित्र संख्या में मेहराब का सूक्ष्म चित्रण किया गया है, जिससे यह अधिक सुन्दर तथा कलात्मक प्रतीत होता है। चित्र 76 में बनी मेहराब में कलात्मक कार्य स्पष्ट नहीं है। यदि मैं फिर से इस भवन का नामकरण करता तो मैं इतने उत्कृष्ट और सुन्दर भवन के निर्माता के नाम पर इसका नाम कृष्ण महल रखता।

पृष्ठ संख्या 182

प्रश्न 10.
चित्र 7.16 (क) तथा 7.16 (ख) की तुलना चित्र 7.17 से कीजिए प्रत्येक में दिखाई देने वाले अभिलक्षणों की सूची बनाइए क्या आपको लगता है कि ये वास्तव में हाथियों के अस्तबल थे?
उत्तर:
दोनों चित्रों में तुलना के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं –
(1) चित्र 7.16 (क) में अस्तबल का सम्पूर्ण क्षेत्र दिखाया गया है।
(2) चित्र 7.16 (ख) में वास्तविक कक्ष अथवा
खाली स्थान का रेखाचित्र बनाया गया है। इन चित्रों में विशालकाय दरवाजों तथा तत्कालीन समय युद्ध में हाथियों की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भवन हाथी- खाना यानी कि हाथियों का अस्तबल रहा हो।

पृष्ठ संख्या 183

प्रश्न 11.
क्या आप नृत्य के दृश्यांशों को पहचान सकती हैं? आपके विचार में हाथियों और घोड़ों को पटलों पर क्यों चित्रित किया गया था?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्न पाठ्यपुस्तक के चित्र 7.18 से सम्बन्धित है। यहाँ नृत्य के प्रमुख दृश्य इस प्रकार हैं –
(1) नृत्य करते विभिन्न पुरुष
(2) नृत्य करती विभिन्न महिलाएँ
(3) नृत्य-संगीत में विभिन्न वाद्य यन्त्रों का प्रयोग जैसे मृदंग, ढोल, तुरही आदि। इस चित्र में हाथियों तथा घोड़ों को पृथक् पृथक् पटलों पर इसलिए दिखाया गया है क्योंकि यहाँ पाँचों खानों को अलग-अलग दिखाया गया है।

पृष्ठ संख्या 183 चर्चा कीजिए

प्रश्न 12.
नायकों ने विजयनगर के शासकों की भवन निर्माण परम्पराओं को जारी क्यों रखा?
उत्तर:
विजयनगर शहर पर आक्रमण के पश्चात् विजयनगर की कई संरचनाएँ विनष्ट हो गई थीं, परन्तु नायकों ने महलनुमा संरचनाओं के निर्माण की परम्परा को जारी रखा। इनमें से कई भवन आज भी मौजूद हैं। विजयनगर राज्य के सेना प्रमुख नायक कहलाते थे। वे भी राजाओं की भाँति साधन-सम्पन्न, समृद्ध तथा शक्तिशाली थे।

उन्होंने भी अपनी शक्ति प्रतिष्ठा तथा गौरव का प्रदर्शन करने के लिए अनेक भव्य भवनों का निर्माण करवाया और विजयनगर के शासकों की भवन निर्माण परम्परा को जारी रखा। वे दुर्गों तथा मन्दिरों आदि का निर्माण कर जनसाधारण की लोकप्रियता को प्राप्त करने के लिए भी लालायित रहते थे इसलिए उन्होंने अनेक दुर्गों तथा मन्दिरों का निर्माण करवाया। मदुराई के नायकों द्वारा बनवाया गया एक गोपुरम उल्लेखनीय है।

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पृष्ठ संख्या 185

प्रश्न 13.
नक्शे में दिए गए स्केल का प्रयोग कर मुख्य गोपुरम् से केन्द्रीय देवालय की दूरी नापिए जलाशय से देवालय तक जाने के लिए सबसे आसान मार्ग कौनसा रहा होगा?
उत्तर:
(1) पूर्वी प्रवेश द्वार अथवा गोपुरम् से मुख्य देवालय की दूरी लगभग 450 मीटर है।
(2) जलाशय से देवालय तक जाने का सबसे आसान मार्ग देवालय का उत्तर-पश्चिमी द्वार है।

पृष्ठ संख्या 186

प्रश्न 14.
स्तम्भ पर आप जो देख रहे हैं, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर-स्तम्भ को देखने पर इसके दो भाग क्रमश: दायें और बायें भाग दिखाई दे रहे हैं। बायें भाग पर अलंकृत मयूर, हाथ में फरसा लिए हुए एक व्यक्ति, ढोल बजाते हुए तथा नृत्य करते हुए मनुष्य दिखाई दे रहे हैं। दायें भाग पर अलंकृत जानवर सिंह आकृति एवं देवाकृति तथा हाथी की आकृति दिखाई दे रही हैं दायें भाग में अधिक जटिल उत्कीर्णन है।

पृष्ठ संख्या 187

प्रश्न 15.
क्या आपको लगता है कि वास्तव में इस प्रकार के रथ बनाए जाते होंगे ?
उत्तर:
चित्र संख्या 7.24 में विट्ठल मन्दिर में रथ के आकार का एक मन्दिर दर्शाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है। कि वास्तव में इस प्रकार के रथ नहीं बनाए जाते थे।

पृष्ठ संख्या 188 चर्चा कीजिए

प्रश्न 16.
आनुष्ठानिक स्थापत्य की पूर्ववर्ती परम्पराओं को विजयनगर के शासकों ने कैसे और क्यों अपनाया तथा रूपान्तरित किया?
उत्तर:
विजयनगर के शासकों ने पूर्वकालिक परम्पराओं को अपनाया और उनमें नवीनता का समावेश किया और उन्हें रूपान्तरित किया। गोपुरम और मण्डप – अब राजकीय प्रतिकृति मूर्तियाँ मन्दिरों में प्रदर्शित की जाने लगीं और राजा की मन्दिरों की यात्राओं को महत्त्वपूर्ण राजकीय अवसर माना जाने लगा जिन पर साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण नायक भी उनके साथ जाते थे अब विशाल गोपुरम का निर्माण किया जाने लगा। गोपुरम अथवा राजकीय प्रवेश द्वार केन्द्रीय देवालयों की मीनारों को बना प्रतीत कराते थे और लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत देते थे। अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे सम्मिलित हैं। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देवस्थलों के चारों ओर बने थे।

विरुपाक्ष मन्दिर इस मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने सिंहासनारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे सूक्ष्मता से उत्कीर्णित स्तम्भों से सजाया गया था। पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय भी कृष्णदेव राय को ही दिया जाता है। इन परिवर्धनों के परिणामस्वरूप केन्द्रीय देवालय पूरे परिसर के एक छोटे भाग तक सीमित रह गया था। मन्दिर के सभागारों का प्रयोग मन्दिर के सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। इनमें से कुछ ऐसे थे जिनमें देवताओं की मूर्तियाँ, संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं अन्य सभागारों का प्रयोग देवी-देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनन्द मनाने और कुछ अन्य का प्रयोग देवी-देवताओं को झूला झुलाने के लिए होता था।

विट्ठल मन्दिर यहाँ के प्रमुख देवता विठ्ठल थे जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं इस देवता की पूजा को कर्नाटक में शुरू करना उन माध्यमों का प्रतीक है जिनसे एक सामाजिक संस्कृति के निर्माण के लिए विजयनगर के शासकों ने अलग-अलग परम्पराओं को आत्मसात किया अन्य मन्दिरों की भाँति, इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है। रथ गलियाँ- मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तम्भ वाले मण्डप थे जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।

पृष्ठ संख्या 189

प्रश्न 17.
अंग्रेजी वर्णमाला का कौनसा अक्षर प्रयोग नहीं किया गया था? मानचित्र में दिए गए पैमाने का प्रयोग करते हुए किसी एक छोटे वर्ग की लम्बाई नापिए उत्तर – यहाँ अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर ‘I’ का प्रयोग नहीं किया गया है। मानचित्र में दिए गए पैमाने का प्रयोग करते हुए वर्ग ‘M’ की लम्बाई 4 किमी. प्राप्त होती है।

पृष्ठ संख्या 189

प्रश्न 18.
इस मानचित्र में कौनसा पैमाना प्रयोग किया गया है ?
उत्तर:
इस मानचित्र में वर्ग पैमाने का प्रयोग किया गया है।

पृष्ठ संख्या 190

प्रश्न 19.
किसी एक मन्दिर को पहचानिए दीवारों, एक केन्द्रीय देवालय तथा मन्दिर तक जाने वाले रास्तों के अवशेषों को खोजिए। मानचित्र पर उन वर्गों को नाम दीजिए जिनमें मन्दिर का नक्शा स्थित है।
उत्तर:
(1) वर्ग H में एक केन्द्रीय मन्दिर स्थित है।
(2) दीवारों, केन्द्रीय देवालय तथा मन्दिर तक जाने वाले मार्ग हेतु चित्र 730 को देखने पर रास्तों के अवशेष परिलक्षित होते हैं।
(3) वर्ग CHJ में एक केन्द्रीय मन्दिर का नक्शा स्थित है।

पृष्ठ संख्या 190

प्रश्न 20.
गोपुरम्, सभागारों, स्तम्भावलियों तथा केन्द्रीय देवालय को पहचानिए बाहरी प्रवेश द्वार से केन्द्रीय देवलय तक पहुँचने के लिए आप किन भागों से होकर गुजरेंगे?
उत्तर:
यह प्रश्न पाठ्यपुस्तक के चित्र 7.30 से सम्बन्धित है। इसमें केंद्रीय देवालय का भाग (A) से, गोपुरम् (H) से तथा (J) (I) (C) से सभागारों को दर्शाया गया है। बाहरी मार्गों से केन्द्रीय देवालय तक पहुँचने हेतु निम्न मार्गों का प्रयोग किया जाएगा.– (H) मार्ग जो उत्तर की ओर बना है। (F) मार्ग जो पूर्व की ओर स्थित है (E) मार्ग पश्चिम की ओर, तथा (G) मार्ग गोपुरम् के सामने है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 100-150 शब्दों में दीजिए –

प्रश्न 1.
पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन में कौन-सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है? आपके अनुसार यह पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रही?
अथवा
हम्पी की खोज की कहानी पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हम्पी की खोज कैसे हुई? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन की पद्धतियाँ –
(1) हम्पी के भग्नावशेष 1800 ई. में एक अभियन्ता तथा पुराविद् कर्नल कॉलिन मैकेन्जी द्वारा प्रकाश में लाए गए थे। कर्नल मैकेन्जी ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कार्यरत थे। उन्होंने इस स्थान का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया। उनकी प्रारम्भिक जानकारियाँ विरुपाक्ष मन्दिर तथा पंपादेवी के पूजास्थल के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थीं।

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(2) कालान्तर में 1856 ई. से छायाचित्रकारों ने यहाँ के भवनों के चित्र संकलित करने शुरू किये जिससे शोधकर्ता उनका अध्ययन करने में सफल हुए।

(3) 1836 ई. से ही अभिलेखकत्ताओं ने यहाँ और हम्पी के अन्य मन्दिरों से अनेक दर्जन अभिलेखों का संग्रह करना शुरू कर दिया था।

(4) इतिहासकारों ने इन स्रोतों का विदेशी यात्रियों के वृत्तान्तों तथा तेलुगु, कन्नड़, तमिल तथा संस्कृत में लिखे गए साहित्य से मिलान किया ताकि विजयनगर शहर और साम्राज्य के इतिहास का पुनर्निर्माण किया जा सके।

(5) हमारे अनुसार ये पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों के द्वारा प्रदान की गई जानकारी की पर्याप्त सीमा तक पूरक सिद्ध हुई।

प्रश्न 2.
विजयनगर की जल आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
अथवा
विजयनगर कालीन सिंचाई व्यवस्था की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
(1) विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुंड से होती थी। यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है। आस-पास का भूदृश्य रमणीय ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है जो शहर को चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन पहाड़ियों से कई जल- धाराएँ आकर नदी में मिलती हैं।

(2) हौजों का निर्माण लगभग सभी जल धाराओं के साथ-साथ बाँध बना कर भिन्न-भिन्न आकारों के हौज बनाए गए थे। चूंकि यह प्रायद्वीप के सबसे शुष्कं क्षेत्रों में से एक था, इसलिए पानी के संचयन और इसे शहर तक ले जाने के लिए व्यापक प्रबन्ध करना आवश्यक था। यहाँ के सबसे महत्त्वपूर्ण जलाशय कमलपुरम का निर्माण पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में हुआ था। इस हौज के पानी से न केवल आस-पास के खेतों को सींचा जाता था बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से ‘राजकीय केन्द्र’ तक भी ले
जाया जाता था।

(3) हिरिया नहर – हिरिया नहर यहाँ की सबसे महत्त्वपूर्ण जल सम्बन्धी संरचना थी। इस नहर में तुंगभद्रा नदी पर बने बांध से पानी लाया जाता था और इसे ‘धार्मिक केन्द्र’ से ‘शहरी केन्द्र’ को अलग करने वाली पाटी की सिंचाई करने में प्रयुक्त किया जाता था।

(4) अन्य जल के स्रोत सामान्य नगर निवासियों के लिए कुएँ, वर्षा के पानी वाले जलाशय तथा मन्दिरों के जलाशय जल के स्रोतों का कार्य करते थे।

प्रश्न 3.
शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के आपके विचार में क्या फायदे और नुकसान थे?
उत्तर:
शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के फायदे –
(1) इससे शत्रु सेना को खाद्य सामग्री से वंचित करके उसे समर्पण के लिए बाध्य किया जा सकता था।
(2) शत्रु सेना खाद्य सामग्री को क्षति नहीं पहुँचा सकती थी।
(3) कई बार शत्रु की घेराबन्दी कई महीनों और कभी-कभी वर्षों तक जारी रहती थी ऐसी संकटपूर्ण परिस्थितियों से निपटने के लिए शासकों द्वारा किलेबन्द क्षेत्रों के अन्दर ही विशाल अन्नागारों का निर्माण करवाया जाता था।
(4) विजयनगर के शासकों ने किलेबन्द क्षेत्र में पानी पहुँचाने की उत्तम व्यवस्था की थी। इससे खेतों की सिंचाई भली प्रकार से की जा सकती थी। था।
(5) किलेबन्द कृषि क्षेत्र जंगली जानवरों से सुरक्षित शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के नुकसान –
(1) यह व्यवस्था बहुत महँगी थी तथा इसकी देखभाल के लिए बड़ी संख्या में कर्मचारियों की आवश्यकता पड़ती थी।
(2) इस व्यवस्था में किसानों को अनेक कठिनाइयों एवं असुविधाओं का सामना करना पड़ता था। शत्रु सेना द्वारा घेरावन्दी होने पर किसानों के लिए बीज, उर्वरक, यन्त्र आदि की व्यवस्था करना अत्यन्त कठिन हो जाता था।

प्रश्न 4.
आपके विचार में महानवमी डिब्बा से सम्बद्ध अनुष्ठानों का क्या महत्त्व था?
अथवा
महानवमी के डिब्बा के अवसर पर आयोजित किन्हीं दो उत्सवों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
महानवमी डिब्बा’ विजयनगर शहर के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक पर स्थित एक विशालकाय मंच है। इसका आधार लगभग 11,000 वर्ग फीट तथा ऊँचाई 40 फीट है। साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णन से परिपूर्ण है। ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान सम्भवतः महानवमी से सम्बद्ध थे, जो उत्तरी भारत में दशहरा, बंगाल में दुर्गा पूजा तथा प्रायद्वीपीय भारत में नवरात्रि अथवा महानवमी के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे। इस अवसर पर विजयनगर के शासक अपनी प्रतिष्ठा, शक्ति तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे। इस अवसर पर निम्नलिखित अनुष्ठान आयोजित किए जाते थे-

  • मूर्ति की पूजा
  • राज्य के अश्व की पूजा
  • भैंसों तथा अन्य जानवरों की बलि।

इस अवसर के प्रमुख आकर्षक थे-
(1) नृत्य
(2) कुश्ती की प्रतिस्पर्द्धा
(3) साज लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा
(4) प्रमुख नायकों एवं अधीनस्थ राजाओं द्वारा सम्राट और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इन उत्सवों के गहन सांकेतिक अर्थ थे त्यौहार के अन्तिम दिन राजा अपनी और अपने नायकों की सेना का खुले मैदान में आयोजित भव्य समारोहों में निरीक्षण करता था। इस अवसर पर नायक राजा के लिए बड़ी मात्रा में भेंट तथा निश्चित कर भी लाते थे।

प्रश्न 5.
चित्र 7.33 विरुपाक्ष मन्दिर के एक अन्य
स्तम्भ का रेखाचित्र है। क्या आप कोई पुष्प विषयक रूपांकन देखते हैं? किन जानवरों को दिखाया गया है? आपके विचार में उन्हें क्यों चित्रित किया गया है? मानव आकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) रेखाचित्र में अनेक फूलदार पेड़-पौधों तथा पशु-पक्षियों का चित्रण किया गया है पशु-पक्षियों में मोर, बत्तख, घोड़ा आदि सम्मिलित हैं। उस समय मन्दिर विभिन्न प्रकार की धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र होते थे। पेड़-पौधों तथा पशु-पक्षियों का चित्रण सम्भवत: प्रवेशद्वार को सुन्दर और आकर्षक बनाने तथा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु किया गया था। इससे मन्दिर का निर्माण करने वाले शासकों की प्रकृति के प्रति रुचि, कलानुराग तथा धार्मिक निष्ठा का बोध होता है।

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(2) विभिन्न पशु-पक्षी, देवी-देवताओं के साथ वाहन के रूप में भी जुड़े हुए थे। इसलिए उन्हें देवी-देवताओं का वाहन मान कर पूजा जाता था।

(3) रेखाचित्र में मानव आकृतियों का भी चित्रण किया गया है। मानव आकृतियों में देवी देवता तथा संत पुरुष सम्मिलित हैं। स्तम्भ के ऊपरी भाग में एक स्त्री बैठी हुई है जिसके हाथ में फूल हैं। एक देवता के सिर पर घंटी, ताज तथा गले में मालाएँ हैं। वह अनेक प्रकार के आभूषण धारण किए हुए है। उसके एक हाथ में गदा है। एक योद्धा को शिवलिंग की पूजा करते हुए दिखाया गया हैं, इसके हाथ में धनुष है तथा वह नृत्य की मुद्रा में शिव को चल चढ़ा रहा है। निम्नलिखित पर लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250- 300 शब्दों में)-

प्रश्न 6.
‘शाही केन्द्र’ शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, क्या वे उस भाग का सही वर्णन करते हैं?
उत्तर:
शाही केन्द्र:
‘शाही केन्द्र’ अथवा ‘राजकीय केन्द्र’ बस्ती के दक्षिण- पश्चिमी भाग में स्थित था।
(1) बड़ी संरचनाएँ – शाही केन्द्र’ की लगभग तीसा संरचनाओं की पहचान महलों के रूप में की गई है। ये अपेक्षाकृत बड़ी संरचनाएँ हैं जो आनुष्ठानिक कार्यों से सम्बन्धित नहीं होती थीं। इन इमारतों तथा मन्दिरों के बीच एक अन्तर यह था कि मन्दिर पूर्ण रूप से राजगिरी से बने हुए थे जबकि अन्य इमारतें नष्ट की हुई वस्तुओं से बनाई गई थीं।

(2) राजा का भवन – राजकीय केन्द्र की कुछ अधिक विशिष्ट संरचनाओं के नाम भवनों के आकार तथा उनके कार्यों के आधार पर रखे गए हैं। ‘राजा का भवन’ नामक संरचना इस क्षेत्र में सबसे विशाल है, परन्तु इसके राजकीय आवास होने का कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिला है। इसके दो सबसे प्रभावशाली मंच हैं, जिन्हें प्राय: सभा मंडप’ तथा ‘महानवमी डिब्बा’ कहा जाता है। सम्पूर्ण क्षेत्र ऊँची दोहरी दीवारों से घिरा है और इनके बीच में एक गली है।

(3) सभा मंडप सभा मंडप एक ऊँचा मंच है जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तम्भों के लिए छिद्र बने हुए हैं। इसमें इन स्तम्भों पर टिकी दूसरी मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी।

(4) महानवमी डिब्बा महानवमी डिब्बा विजयनगर शहर के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक पर स्थित एक विशालकाय मंच है। इसका आधार लगभग 11,000 वर्ग फीट तथा ऊँचाई 40 फीट है। प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णनों से परिपूर्ण है।

(5) ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान थे उत्तर भारत का दशहरा, बंगाल में दुर्गापूजन तथा प्रायद्वीपीय भारत के नवरात्रि या महानवमी।

(6) इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठान- इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठान निम्नलिखित थे-
(1) मूर्ति की पूजा
(2) राज्य के अश्व की पूजा तथा
(3) भैंसों और अन्य जानवरों की बलि।
(7) प्रमुख आकर्षण – इस अवसर के प्रमुख आकर्षण थे –
(1) नृत्य
(2) कुश्ती प्रतिस्पर्द्धा
(3) साज लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा
(4) प्रमुख नायकों और अधीनस्थ राजाओं द्वारा राजा और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इन उत्सवों के गहन प्रतीकात्मक अर्थ थे। विद्वानों की मान्यता है कि ‘महानवमी डिब्बा’ के चारों -ओर का स्थान सशस्त्र व्यक्तियों, स्त्रियों तथा बड़ी संख्या में जानवरों की शोभायात्रा के लिए पर्याप्त नहीं था राजकीय केन्द्र में स्थित अनेक और संरचनाओं की भाँति यह भी एक पहेली बना हुआ है।

(8) ‘शाही केन्द्र’ शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, वे उस भाग का सही वर्णन करते ‘शाही केन्द्र’ प्राय: राजमहलों, किलों, राजदरबारों और राजनीतिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र होता है। परन्तु इस केन्द्र में 60 से भी अधिक मन्दिर सम्मिलित थे।

प्रश्न 7.
कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने वाले शासकों के विषय में क्या बताता है?
उत्तर:
कमल महल का स्थापत्य:
‘कमल महल’ (लोटस महल) विजयनगर राज्य के ‘राजकीय केन्द्र’ के सबसे सुन्दर भवनों में से एक है। इसे यह नाम उन्नीसवीं शताब्दी के अंग्रेज यात्रियों ने दिया था। इतिहासकार इस सम्बन्ध में निश्चित नहीं हैं कि यह भवन किस कार्य के लिए बना था फिर भी प्रसिद्ध पुराविद् कर्नल मैकेन्जी के द्वारा बनाए गए मानचित्र से यह सुझाव मिलता है कि यह परिषदीय सदन था, जहाँ राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था। ‘कमल महल’ के भग्नावशेषों से ज्ञात होता है कि यह महल अत्यन्त भव्य था और इसका स्थापत्य उच्चकोटि का था। हाथियों का अस्तबल कमल महल के निकट हाथियों का अस्तबल है।

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इसमें एक ही पंक्ति में अनेक कमरे बने हुए हैं। इस अस्तबल में बड़ी संख्या में हाथी रखे जाते थे। विजयनगर के शासक पराक्रमी और महत्त्वाकांक्षी थे। उस समय युद्धों में हाथियों का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता था। अतः विजयनगर के शासक हाथियों की उपयोगिता को देखते हुए हाथियों के अस्तबल बनवाते थे तथा उनकी देख-रेख पर विपुल धन खर्च करते थे। हाथियों के अस्तबल का स्थापत्य भी उच्चकोटि का था।

कमल महल और ‘हाथियों के अस्तबल’ को देखने से ज्ञात होता है कि इन इमारतों की स्थापत्यकला में इंडो- इस्लामिक शैली का प्रयोग किया गया है। विजयनगर के शासक कला-प्रेमी थे तथा उनकी स्थापत्य कला में गहरी रुचि थी। वे प्रजावत्सल शासक थे तथा उन्होंने विशाल महलों और सेना के काम में आने वाले भवनों का निर्माण करवाया। वे इनके निर्माण पर प्रचुर धन खर्च करते थे। इससे पता चलता है कि विजयनगर के शासकों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ थी तथा वे जन-कल्याण के कार्यों, सामारिक भवनों और राजमहलों के निर्माण में रुचि लेते थे। इन इमारतों को देखने से विजयनगर के शासकों की शक्ति, प्रतिष्ठा, कलाप्रियता, स्तवा तथा अधिराज्य के बारे में जानकारी मिलती है।

प्रश्न 8.
स्थापत्य में कौन-कौनसी परम्पराओं ने विजयनगर के वास्तुविदों को प्रेरित किया? उन्होंने इन परम्पराओं में किस प्रकार बदलाव किए?
अथवा
विजयनगर की स्थापत्य कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
स्थापत्य की परम्पराएँ विजयनगर के शासकों ने स्थापत्य की प्रचलित परम्पराओं को अपनाया। उन्होंने उन परम्पराओं में नवीनता का समावेश किया और उन्हें विकसित किया।
स्थापत्य में नवीन तत्त्वों का समावेश- विजयनगर के शासकों ने मन्दिर स्थापत्य में निम्नलिखित तत्वों का समावेश करवाया
(1) गोपुरम – विजयनगर में विशाल स्तर पर संरचनाएँ बनाई गई जो राजकीय सत्ता की प्रतीक थीं। इनका सबसे अच्छा उदाहरण रायगोपुरम अथवा राजकीय प्रवेशद्वार थे। इनके सामने केन्द्रीय देवालयों की मीनारें बहुत ही छोटी जान पड़ती थीं ये लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत दे देते थे।

(2) मंडप तथा गलियारे अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे सम्मिलित हैं। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देव स्थलों के चारों ओर बने थे।

(3) विरुपाक्ष मन्दिर विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ था। मुख्य मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने सिंहासनारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे ऐसे स्तम्भों से सजाया गया था जो बारीकी से उत्कीर्णित थे। पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय भी कृष्णदेव राय को ही दिया जाता है।

(4) मन्दिर के सभागारों का प्रयोग सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। कुछ सभागारों में देवताओं की मूर्तियाँ संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं। अन्य सभागारों का प्रयोग देवी-देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनन्द मनाने के लिए होता था।

(5) विठ्ठल मन्दिर – विठ्ठल मन्दिर विजयनगर राज्य का एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर था यहाँ के प्रमुख देवता विठ्ठल थे, जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं अन्य मन्दिरों की भाँति इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है।

(6) हजार राम मन्दिर – विजयनगर साम्राज्य के अत्यन्त भव्य एवं विशाल मन्दिरों में हजार राम मन्दिर की गिनती की जाती है। इसकी दीवारों पर उत्कीर्ण हाथी और घोड़ों की मूर्तियाँ अत्यन्तु सुन्दर और कलात्मक हैं।

(7) रथ गलियाँ मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तम्भ वाले मंडप थे, जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।

(8) किलेबन्दियाँ शहर की किलेबन्दी की गई तथा सड़कें बनाई गई। किलेबन्दी द्वारा खेतों को भी घेरा गया। दुर्ग में प्रवेश के लिए प्रवेशद्वार थे। कला इतिहासकार इस शैली को ‘इंडो-इस्लामिक’ कहते हैं क्योंकि इसका विकास विभिन्न क्षेत्रों की स्थानीय स्थापत्य की परम्पराओं के साथ सम्पर्क से हुआ।

(9) सड़कें सड़कें सामान्यतः पहाड़ी भू-भाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थीं।

(10) हौज, जलाशय और नहर विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति का स्त्रोत तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुण्ड है। नदी के आस-पास का भूदृश्य सुन्दर ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है। लगभग सभी जलधाराओं के साथ-साथ बाँध बनाकर अलग-अलग आकारों के हौज बनाए गए। इन महत्वपूर्ण होजों में कमलपुरम जलाशय’ उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 9.
अध्याय के विभिन्न विवरणों से आप विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन की क्या छवि पाते हैं?
उत्तर:
विजयनगर के सामान्य लोगों का जीवन अध्याय के विभिन्न विवरणों से विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन के बारे में निम्नलिखित जानकारी मिलती
(1) आवासीय मुहल्ला यहाँ मुसलमानों का एक आवासीय मुहल्ला भी था। यहाँ स्थित मकबरों तथा मस्जिदों के विशिष्ट नमूने भी हैं। फिर भी उनकी स्थापत्य कला हम्पी में मिले मन्दिरों के मण्डपों की स्थापत्य कला से मिलती- जुलती है।

(2) सामान्य लोगों के आवास सोलहवीं शताब्दी |के पुर्तगाली यात्री बरबोसा ने सामान्य लोगों के आवास के बारे में लिखा है कि, “लोगों के अन्य आवास छप्पर के हैं, पर फिर भी सुदृद हैं, और व्यवसाय के आधार पर कई 7 खुले स्थानों वाली गलियों में व्यवस्थित हैं।”

(3) पूजा स्थल और छोटे मन्दिर क्षेत्र सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि इस सम्पूर्ण क्षेत्र में अनेक पूजा स्थल और छोटे मन्दिर थे जो विविध प्रकार के सम्प्रदायों से सम्बन्धित थे। ये पूजा स्थल और छोटे मन्दिर सम्भवत: विभिन्न समुदायों द्वारा संरक्षित थे।

(4) सामान्य लोगों के पानी के स्रोत सर्वेक्षणों से यह भी पता चलता है कि कुएं, वर्षा के पानी वाले जलाशय और मन्दिरों के जलाशय सम्भवतः सामान्य नगर निवासियों के लिए पानी के स्रोत का कार्य करते थे।

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(5) कृषि विजयनगर राज्य के लोगों का जीवन- निर्वाह करने का प्रमुख साधन कृषि था। यहाँ अनेक प्रकार के खाद्यानों, फलों तथा सब्जियों की खेती की जाती थी। नहरों, जलाशयों आदि से खेतों की सिंचाई की जाती थी। विजयनगर में कृषि क्षेत्रों को भी किलेबन्दी द्वारा घेरा गया था। इससे कृषक आक्रमणकारियों के आक्रमणों के भय से मुक्त होकर कृषि कार्य में संलग्न रहते थे। यहाँ गेहूँ, चावल, मकई, दाल, काले चना, जौ, सेम, मूंग, अंगूर, सन्तरे, नींबू, अनार, आम आदि की खेती की जाती थी।

(6) खान-पान यहाँ के सामान्य लोग शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों थे। ये लोग गेहूं, जौ, चावल, दूध, दही, साग-सब्जी के अतिरिक्त मांस आदि का भी सेवन करते थे। नूनिज के अनुसार यहाँ के बाजारों में मांस बड़ी मात्रा में बिकता था। ब्राह्मण मांस नहीं खाते थे। सामान्य वर्ग के पुरुष धोती, कमीज, कुर्ता, टोपी अथवा पगड़ी पहनते थे तथा कन्धे पर एक दुपट्टा डालते थे। सामान्य वर्ग की स्वियों धोती और चोली पहनती थीं।

एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर JAC Class 12 History Notes

→ विजयनगर की स्थापना- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना चौदहवीं शताब्दी में की चरमोत्कर्ष पर यह उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था। 1565 में विजयनगर पर आक्रमण कर इसे खूब लूटा गया और बाद में यह उजड़ गया।

→ हम्पी की खोज- 1800 ई. में कर्नल कालिन मैकेन्जी नामक एक अभियन्ता तथा पुराविद ने हम्पी के भग्नावशेषों की खोज की मैकेन्जी ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कार्यरत थे। उन्होंने इस स्थान का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया। 1836 से ही अभिलेखकर्त्ताओं ने यहाँ और हम्पी के अन्य मन्दिरों से कई दर्जन अभिलेखों को एकत्रित करना शुरू कर दिया था।

→ राय, नायक तथा सुल्तान – विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों हरिहर तथा बुक्का द्वारा 1336 ई. में की गई थी। अपनी उत्तरी सीमाओं पर विजयनगर के शासकों ने दक्कन के सुल्तानों तथा उड़ीसा के गजपति शासक से संघर्ष किया। विजयनगर के शासक अपने आपको राय कहते थे।

→ शासक और व्यापारी-चौदहवीं से सोलहवीं सदी तक के काल में युद्धकला शक्तिशाली अश्वसेना पर आधारित होती थी, इसलिए प्रतिस्पद्ध राज्यों के लिए अरब तथा मध्य एशिया से घोड़ों का आयात बहुत महत्त्वपूर्ण था। यह व्यापार प्रारम्भ में अरब व्यापारियों द्वारा नियन्त्रित था। व्यापारियों के स्थानीय समूह भी इन विनिमयों में भाग लेते थे। 1498 में | पुर्तगाली भी व्यापारिक और सैनिक केन्द्र स्थापित करने का प्रयास करने लगे। तत्कालीन राजनीति में पुर्तगाली भी एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरे। विजयनगर मसालों, वस्त्रों, रत्नों के अपने बाजारों के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ की समृद्ध जनता रत्नों, आभूषणों आदि महंगी विदेशी वस्तुओं की माँग करती थी।

→ विजयनगर के शासक विजयनगर साम्राज्य का पहला राजवंश ‘संगम’ कहलाता था इस राजवंश ने 1485 तक शासन किया। सुलुवों ने संगम राजवंश को उखाड़ फेंका। ये सैनिक कमांडर थे। इन्होंने 1503 ई. तक शासन किया। इसके बाद तुलुव राजवंश की स्थापना हुई। कृष्णदेव राय तुलुव वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।

→ कृष्णदेव राय – कृष्णदेव राय के शासन की प्रमुख विशेषता विजयनगर साम्राज्य का विस्तार तथा सुदृढ़ीकरण था। उसने 1512 तक तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच के क्षेत्र रायचूर दोआब पर अधिकार कर लिया। उसने उड़ीसा के शासकों को पराजित किया और बीजापुर के सुल्तान को बुरी तरह पराजित किया। उसने अनेक भव्य मन्दिर बनवाये तथा मन्दिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ा। उसने नगलपुरम नामक उपनगर की स्थापना की।

→ अराविदु राजवंश – 1542 तक विजयनगर साम्राज्य में अराविदु राजवंश की सत्ता की स्थापना हुई। यह राजवंश सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक सत्तारूढ़ बना रहा।

→ राक्षसी – तांगड़ी (तालीकोटा) का युद्ध – 1565 ई. में राक्षसी तांगड़ी (तालीकोटा) के युद्ध में बीजापुर, गोलकुण्डा, अहमदनगर की संयुक्त सेनाओं ने विजयनगर की सेनाओं को बुरी तरह पराजित किया। विजयी सेनाओं ने विजयनगर पर धावा बोलकर उसे खूब लूटा। कुछ ही वर्षों में यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया।

→ राय तथा नायक – विजयनगर साम्राज्य में शक्ति का प्रयोग करने वालों में सेना प्रमुख होते थे, जो सामान्यतः किलों पर नियन्त्रण रखते थे तथा उनके पास सशस्त्र सैनिक होते थे ये ‘नायक’ कहलाते थे। कई नायकों ने विजयनगर के शासकों की प्रभुसत्ता के आगे समर्पण किया था, परन्तु ये अवसर पाकर विद्रोह कर देते थे तथा इन्हें सैनिक कार्यवाही के द्वारा ही अधीनता में लाया जाता था।

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→ अमर नायक प्रणाली- अमर नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी। अमर नायक सैनिक कमांडर थे जिन्हें राय (शासक) द्वारा प्रशासन के लिए राज्य क्षेत्र दिए जाते थे वे किसानों, शिल्पकर्मियों तथा व्यापारियों से भू-राजस्व तथा अन्य कर वसूल करते थे। वे राजस्व का कुछ भाग व्यक्तिगत उपयोग तथा घोड़ों और हाथियों के निर्धारित दल के रख-रखाव के लिए अपने पास रख लेते थे। अमर नायक राजा को वर्ष में एक बार भेंट भेजा करते थे और राजकीय दरबार में उपहारों के साथ स्वयं उपस्थित हुआ करते थे। राजा कभी-कभी उन्हें ‘एक 5 से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित कर उन पर अपना नियन्त्रण रखता था, परन्तु सत्रहवीं शताब्दी में इनमें से कई नायकों ने अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिए।

→ विजयनगर जल सम्पदा विजयनगर की भौगोलिक स्थिति के विषय में सबसे चौकाने वाला तथ्य तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुंड है। यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है। आस-पास का भू-दृश्य सुन्दर ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है। यहाँ लगभग सभी धाराओं के साथ-साथ बाँध बनाकर अलग-अलग आकारों के हौज बनाए गए थे।

इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण हौजों में एक का निर्माण पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में हुआ जिसे आज ‘कमलपुरम जलाशय’ कहा जाता है। सबसे महत्त्वपूर्ण जल सम्बन्धी संरचनाओं में एक हिरिया नहर को आज भी देखा जा सकता है। इस नहर में तुंगभद्रा पर बने बाँध से पानी लाया जाता था और इसे ‘धार्मिक केन्द्र’ से ‘शहरी केन्द्र’ को अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में प्रयोग किया जाता था।

→ किलेबन्दियाँ तथा सड़कें विजयनगर की एक विशाल किलेबन्दी थी जिसे दीवारों से घेरा गया था। पन्द्रहवीं शताब्दी में फारस के शासक द्वारा कालीकट ( कोजीकोड) भेजे गए दूत अब्दुररज्जाक ने दुर्गों की सात पंक्तियों का उल्लेख किया है। इनसे न केवल शहर को बल्कि कृषि में प्रयुक्त आस-पास के क्षेत्र तथा जंगलों को भी घेरा गया था। सबसे बाहरी दीवार शहर के चारों ओर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ती थी। गारे या जोड़ने के लिए किसी भी वस्तु का निर्माण में कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया था।

इस किलेबन्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इससे खेतों को भी घेरा गया था अब्दुररज्जाक के अनुसार “पहली, दूसरी और तीसरी दीवारों के बीच जुते हुए खेत, बगीचे तथा आवास हैं।” दूसरी किलेबन्दी नगरीय केन्द्र के आन्तरिक भाग के चारों ओर बनी हुई थी। तीसरी किलेबन्दी से शासकीय केन्द्र को घेरा गया था जिसमें महत्त्वपूर्ण इमारतों के प्रत्येक समूह को ऊँची दीवारों से घेरा गया था।

→ सुरक्षित प्रवेश द्वार दुर्ग में प्रवेश के लिए अच्छी तरह सुरक्षित प्रवेश द्वार थे, जो शहर को मुख्य सड़कों से जोड़ते थे प्रवेश द्वार विशिष्ट स्थापत्य के नमूने थे प्रवेश द्वार पर बनी मेहराब और साथ ही द्वार के ऊपर बनी गुम्बद तुर्की सुल्तानों द्वारा प्रवर्तित स्थापत्य के प्रमुख तत्त्व माने जाते हैं। कला इतिहासकार इस शैली को इंडो- इस्लामिक ( हिन्द-इस्लामी ) कहते हैं, क्योंकि इसका विकास विभिन्न क्षेत्रों की स्थानीय स्थापत्य की परम्पराओं के साथ सम्पर्क से हुआ।

→ सड़कें – सड़कें सामान्यतः पहाड़ी भू-भाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थीं। सबसे महत्त्वपूर्ण सड़कों में से कई मन्दिर के प्रवेश द्वारों से आगे बढ़ी हुई थीं और इनके दोनों ओर बाजार थे।

→ शहरी केन्द्र – पुरातत्वविदों ने कुछ स्थानों में परिष्कृत चीनी मिट्टी पाई है और उनका यह सुझाव है कि सम्भव है कि इन स्थानों में धनी व्यापारी रहते होंगे। यह मुस्लिम रिहायशी मुहल्ला भी था। यहाँ स्थित मकबरों तथा मस्जिदों के विशिष्ट कार्य हैं। फिर भी उनका स्थापत्य हम्पी में मिले मन्दिरों के मण्डपों के स्थापत्य से मिलता-जुलता है। क्षेत्र सर्वेक्षण संकेत करते हैं कि इस सम्पूर्ण क्षेत्र में बहुत से पूजा स्थल और छोटे मन्दिर थे, जो विभिन्न प्रकार के सम्प्रदायों के प्रचलन की ओर संकेत करते हैं। कुएँ, बरसात के पानी वाले जलाशय और मन्दिरों के जलाशय सम्भवतः सामान्य नगर-निवासियों के पानी के स्रोत का कार्य करते थे।

→ राजकीय केन्द्र-राजकीय केन्द्र बस्ती के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित था। इस केन्द्र में 60 से भी अधिक मन्दिर सम्मिलित थे। लगभग 30 संरचनाओं की पहचान महलों के रूप में की गई है। ये अपेक्षाकृत बड़ी संरचनाएँ हैं जो आनुष्ठानिक कार्यों से सम्बन्धित नहीं थीं।

→ महानवमी डिब्बा – ‘राजा का भवन’ नामक संरचना, अन्तः क्षेत्र में सबसे विशाल है। इसके दो सबसे प्रभावशाली मंच हैं, जिन्हें सामान्यतः ‘सभामंडप’ तथा ‘महानवमी डिब्बा’ कहा जाता है। सभामंडप एक ऊँचा मंच है। जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तम्भों के लिए छेद बने हुए हैं। इसमें दूसरी मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी।

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शहर के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक पर स्थित ‘महानवमी डिब्बा’ एक विशालकाय मंच है जो लगभग 11,000 वर्ग फीट के आधार से 40 फीट की ऊंचाई तक जाता है। साक्ष्यों से पता चलता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान सम्भवतः सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में मनाए जाने वाले दस दिन के हिन्दू त्यौहार; जैसे- दशहरा, दुर्गापूजा, नवरात्रि या महानवमी आदि के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे । इस अवसर पर विजयनगर के शासक अपनी शक्ति प्रभाव तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे।

→ लोटस (कमल) महल – राजकीय केन्द्र के सबसे सुन्दर भवनों में लोटस (कमल) महल है। इसका यह नामकरण उन्नीसवीं शताब्दी के अंग्रेज यात्रियों ने किया था। मैकेन्जी के अनुसार यह भवन परिषदीय सदन था, जहाँ राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था।

→ राजकीय केन्द्र में मन्दिर – यद्यपि अधिकांश मन्दिर धार्मिक केन्द्र में स्थित थे, परन्तु राजकीय केन्द्र में भी कई मन्दिर स्थित थे। इनमें ‘हजारराम मन्दिर’ अत्यन्त भव्य एवं दर्शनीय है। सम्भवतः इसका प्रयोग केवल राजा और उनके परिवार द्वारा किया जाता था। इसकी दीवारों पर बनाई गई पटल मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। इनमें मन्दिर की आन्तरिक दीवारों पर उत्कीर्णित रामायण से लिए गए कुछ दृश्यांश सम्मिलित हैं।

→ धार्मिक केन्द्र तुंगभद्रा नदी के तट से लगा विजयनगर शहर का उत्तरी भाग पहाड़ी है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ये पहाड़ियाँ रामायण में उल्लिखित बाली और सुग्रीव के वानर राज्य की रक्षा करती थीं। कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार स्थानीय मातृदेवी पम्पा देवी ने इन पहाड़ियों में विरुपाक्ष नामक देवता से विवाह के लिए तप किया था। विरुपाक्ष राज्य के संरक्षक देवता थे तथा शिव का एक रूप माने जाते थे।

→ धार्मिक केन्द्र में मन्दिर निर्माण धार्मिक क्षेत्र में मन्दिर निर्माण का एक लम्बा इतिहास रहा है। सामान्यतः शासक अपने आपको ईश्वर से जोड़ने के लिए मन्दिर निर्माण को प्रोत्साहन देते थे। मन्दिर शिक्षा के केन्द्रों के रूप में भी कार्य करते थे । मन्दिर महत्त्वपूर्ण धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक केन्द्रों के रूप में विकसित हुए ।

→ विजयनगर के स्थान का चयन- यह सम्भव है कि विजयनगर के स्थान का चयन वहाँ विरुपाक्ष तथा पम्पा देवी के मन्दिरों के अस्तित्व से प्रेरित था । विजयनगर के शासक भगवान् विरुपाक्ष की ओर से शासन करने का दावा करते थे। सभी राजकीय आदेशों पर प्रायः कन्नड़ लिपि में श्री विरुपाक्ष’ शब्द अंकित होता था। शासक देवताओं से अपने घनिष्ठ सम्बन्धों के प्रतीक के रूप में ‘हिन्दू सूरतराणा’ विरुद का प्रयोग करते थे। इसका शाब्दिक अर्थ हैं – ‘हिन्दू सुल्तान’

→ ‘गोपुरम’ और ‘मण्डप’ – राय गोपुरम अथवा राजकीय प्रवेशद्वार राजकीय सत्ता की प्रतीक संरचनाएँ थीं। ये प्रायः केन्द्रीय देवालयों की मीनारों को बौना प्रतीत कराते थे और लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत देते थे। ये सम्भवतः शासकों की शक्ति की याद भी दिलाते थे जो इतनी ऊँची मीनारों के निर्माण के लिए आवश्यक साधन, तकनीक तथा कौशल जुटाने में सक्षम थे। अन्य विशिष्ट संरचनाओं में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे उल्लेखनीय थे। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देवालयों के चारों ओर बने थे।

→ विरुपाक्ष मन्दिर – विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ था। मुख्य मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे बारीकी से उत्कीर्णित स्तम्भों से सजाया गया था। कृष्णदेव राय को ही पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। मन्दिर के सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। इनमें से कुछ ऐसे थे जिनमें देवताओं की मूर्तियाँ संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं।

→ विट्ठल मन्दिर – यहाँ के प्रमुख देवता विट्ठल थे, जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं। अन्य मन्दिरों की भाँति इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है। मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इसके दोनों ओर स्तम्भ वाले मण्डप थे, जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

→ महलों, मन्दिरों तथा बाजारों का अंकन 1986 में हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व के स्थल के रूप में मान्यता मिली, इसके बाद 1980 के दशक के आरम्भ में विविध प्रकार के अभिलेखन प्रयोग से व्यापक तथा गहन सर्वेक्षणों के माध्यम से, विजयनगर से मिले भौतिक अवशेषों के सूक्ष्मता से प्रलेखन की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना का शुभारम्भ किया गया। लगभग 20 वर्षों के काल में सम्पूर्ण विश्व के दर्जनों विद्वानों ने इस जानकारी को इकट्ठा और संरक्षित करने का कार्य किया। इन सर्वेक्षणों से हजारों संरचनाओं के अंशों—छोटे देवस्थानों और आवासों से लेकर विशाल मन्दिरों तक को पुनः उजागर किया गया।

उनका प्रलेखन भी किया गया। जॉन एम. फ्रिट्ज, जार्ज मिशेल तथा एम.एस. नागराज ने लिखा है कि, “विजयनगर के स्मारकों के उसके अध्ययन में हमें नष्ट हो चुकी लकड़ी की वस्तुओं-स्तम्भ, टेक (ब्रेकेट), धरन, भीतरी छत, लटकते हुए छज्जों के अन्दरुनी भाग तथा मीनारों की एक पूरी श्रेणी की कल्पना करनी पड़ती है, जो प्लास्टर से सजाए और सम्भवतः चटकीले रंगों से चित्रित थे।” यद्यपि लकड़ी की संरचनाएँ अब नहीं हैं और केवल पत्थर की संरचनाएँ अस्तित्व में हैं। यात्रियों द्वारा छोड़े गए विवरण तत्कालीन गतिशील जीवन के कुछ आयामों को पुनर्निर्मित करने में सहायक हुए हैं।

→ पेस द्वारा कृष्णदेव राय का वर्णन पेस ने कृष्णदेव राय का वर्णन करते हुए लिखा है कि, “मझला कद, गोरा रंग और अच्छी काठी, कुछ मोटा, राजा के चेहरे पर चेचक के दाग हैं।”

कालरेखा 1

महत्त्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन

लगभग 1200-1300 ईसवी दिल्ली सल्तनत की स्थापना (1206)
लगभग 1300-1400 ईसवी विजयनगर साम्राज्य की स्थापना (1336); बहमनी राज्य की स्थापना (1347); जौनपुर, कश्मीर और मदुरई में सल्तनतें
लगभाग 1400-1500 ईसवी उड़ीसा के गजपति राज्य की स्थापना (1435); गुजरात और मालबा की सल्तनतों की स्थापना; अहमदाबाद, बीजापुर तथा बरार सल्तनतों का उदय (1490)
लगभग 1500-1600 ईसवी पुर्तगालियों द्वारा गोवा पर विजय (1510); बहमनी राज्य का विनाश; गोलकुंडा की सल्थनत का उदय (1518); बाबर द्वारा मुगल साप्राज्य की स्थापना (1526)

 

कालरेखा 2

विज्ययगगर की खोज व संरक्षण की मुखय घटनाएँ

1800 कॉलिन मैकेन्जी द्वारा विजयनगर की यात्रा
1856 अलेक्जैंडर ग्रनिलो द्वारा हम्पी के पुरातात्विक अवशेषों के पहले विस्तृत चित्र लेना
1876 पुरास्थल की मन्दिर की दीवारों के अभिलेखों का जे.एफ. फ्लीट द्वारा प्रलेखन आरम्भ
1902 जॉन मार्शल के अधीन संरक्षण कार्य आरम्भ
1986 हम्पी को यूनेस्को द्वारा ‘विश्व पुरातत्व स्थल’ घोषित किया जाना

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Vyakaran रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Vyakaran रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 1.
वाक्य किसे कहते हैं?
उत्तर :
एक विचार को पूर्णता से प्रकट करने वाले सार्थक शब्द-समूह को वाक्य कहते हैं।
जैसे – अशोक पुस्तक पढ़ता है। राम दिल्ली गया। एक वाक्य में कम-से-कम दो शब्द-कर्ता और क्रिया अवश्य होने चाहिए लेकिन वार्तालाप की स्थिति में कभी एक शब्द भी पूरे वाक्य का काम कर जाता है।
जैसे – आप कहाँ गए थे?
दिल्ली!
बीमार कौन है ?
माता जी।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण 1

प्रश्न 2.
रचना के आधार पर वाक्य कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
रचना के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के सरल वाक्य, संयुक्त वाक्य और मिश्र वाक्य होते हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 3.
सरल वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सरल वाक्य स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होने वाला उपवाक्य है। इसमें एक उद्देश्य, एक विधेय और एक ही समापिका क्रिया होती है। इसमें कर्ता, कर्म, पूरक, क्रिया और क्रिया-विशेषण में से कुछ घटकों का प्रयोग होता है। जैसे –

  • नकुल हँसता है।
  • रजत रुचि का छोटा भाई है।
  • आप क्या लेंगे?
  • बालक खेलता है।
  • राधा धीरे-धीरे चल रही है।
  • परिश्रम करने वाले विद्यार्थी सदा सफल रहते हैं।

प्रश्न 4.
संयुक्त वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य स्वतंत्र रूप में समुच्चय बोधक अथवा योजक द्वारा जुड़े हुए हों, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं। जैसे-अशोक पुस्तक पढ़ता है, परंतु शीला नहीं पढ़ती।

  • आशीष पुस्तक पढ़ता है और शीला लेख लिख रही है।
  • आप चाय पीएँगे या आप के लिए ठंडा लाऊँ ।
  • हम लोग घूमने गए और वहाँ चार दिन रहे।
  • चुपचाप बैठो या यहाँ से चले जाओ।
  • सत्य बोलो परंतु कटु सत्य मत बोलो।
  • मोहन बीमार है अतः आने में असमर्थ है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 5.
मिश्र वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, उसे मिश्र वाक्य कहा जाता है। मिश्र वाक्य में उपवाक्य परस्पर व्याधिकरण योजकों जैसे कि, यदि, अगर, तो, तथापि, यद्यपि, इसलिए आदि से जुड़े होते हैं। जैसे-खाने-पीने का मतलब है कि मनुष्य स्वस्थ बने।
खाने-पीने का मतलब है-स्वतंत्र या प्रधान उपवाक्य।
कि-समुच्चयबोधक या योजक।
मनुष्य स्वस्थ बने-आश्रित उपवाक्य।
जब बाघ और शिकारी घात लगाकर निकलते हैं तब उनकी शक्ल देखने लायक होती है।
जो अपने वचन का पालन नहीं करता, वह विश्वास खो बैठता है।
रुचि ने कहा कि वह चंडीगढ़ जा रही है।
जहाँ-जहाँ हम गए, हमारा सत्कार हुआ।
मैं आपके पास आ रहा हूँ, जिससे कुछ योजना बन सके।

मिश्र वाक्य में आने वाले आश्रित वाक्य तीन प्रकार के होते हैं –

संज्ञा उपवाक्य – मुख्य अथवा प्रधान उपवाक्य की किसी संज्ञा या संज्ञा पदबंध के बदले आने वाला उपवाक्य संज्ञा उपवाक्य कहलाता है। जैसे-राकेश बोला कि मैं लखनऊ जा रहा हूँ। यहाँ ‘मैं लखनऊ जा रहा हूँ’ उपवाक्य, प्रधान वाक्य ‘राकेश बोला’ क्रिया के कर्म के रूप में प्रयुक्त हुआ है। अतः यह संज्ञा उपवाक्य है।
मेरे जीवन का मूल उद्देश्य है कि मैं विद्या प्राप्त करूँ।
संज्ञा वाक्य के आरंभ में ‘कि’ योजक का प्रयोग होता है।

विशेषण उपवाक्य – मुख्य या प्रधान उपवाक्य के किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताने वाला उपवाक्य विशेषण उपवाक्य कहलाता है।

मैंने एक भिखारी देखा जो बहुत भूखा-प्यासा था।
जो व्यक्ति सच्चरित्र होता है, उसे सभी चाहते हैं।

क्रिया – विशेषण उपवाक्य – मुख्य अथवा प्रधान उपवाक्य की क्रिया के संबंध में किसी प्रकार की सूचना देने वाला उपवाक्य क्रिया-विशेषण उपवाक्य कहा जाता है। क्रिया-विशेषण उपवाक्य पाँच प्रकार के होते हैं –

(i) कालवाची उपवाक्य –
ज्योंही मैं स्टेशन पहुंचा, त्योंही गाड़ी ने सीटी बजाई।
जब पानी बरस रहा था, तब मैं घर के भीतर था।

(ii) स्थानवाची उपवाक्य –
जहाँ तुम पढ़ते थे वहीं मैं पढ़ता था।
जिधर तुम जा रहे हो, उधर आगे रास्ता बंद है।

(iii) रीतिवाची उपवाक्य –
मैंने वैसे ही किया है जैसे आपने बताया था।
वह उसी प्रकार खेलता है जैसा उसके कोच सिखाते हैं।

(iv) परिमाणवाची उपवाक्य –
जैसे-जैसे आमदनी बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे महँगाई बढ़ती जाती है।
तुम जितना पढ़ोगे उतना ही तुम्हारा लाभ होगा।

(v) परिमाणवाची (कार्य-कारिणी) उपवाक्य –
वह जाएगा ज़रूर क्योंकि उसका साक्षात्कार है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 6.
कोष्ठक में दिए गए निर्देशों के अनुसार वाक्यों में उचित परिवर्तन कीजिए –
(क) रमा को पुस्तक खरीदनी थी, इसलिए बाज़ार गई। (सरल वाक्य)
(ख) कल फूलपुर में मेला है और हम वहाँ जाएँगे। (सरल वाक्य)
(ग) झाड़ियों के पीछे छिपकर बैठी बिल्ली कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी। (संयुक्त वाक्य)
(घ) आओ अंदर बैठकर देर तक बातें करें। (संयुक्त वाक्य)
(ङ) सुबह पहली बस पकड़ो और शाम तक लौट आओ। (सरल वाक्य)
(च) मैंने उस व्यक्ति को देखा जो पीड़ा से कराह रहा था। (सरल वाक्य)
(छ) उसने नौकरी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखा। (मिश्र वाक्य)
(ज) दिन-रात मेहनत करने वालों को सोच-समझकर खर्च करना चाहिए। (मिश्र वाक्य)
(झ) मैंने उस बच्चे को देखा जो स्कूटर चला रहा था। (सरल वाक्य)
(ब) वहाँ एक गाँव था। वह गाँव बहुत बड़ा था। वह गाँव चारों ओर जंगल से घिरा था। उस गाँव में आदिवासियों के परिवार रहते थे। (सरल वाक्य)
(ट) मज़दूर खूब मेहनत करता है परंतु उसे उसका लाभ नहीं मिलता। (सरल वाक्य)
(ठ) मैंने एक दुबले-पतले व्यक्ति को भीख माँगते देखा। (मिश्र वाक्य)
(ड) जो व्यक्ति परिश्रम करते हैं, उन्हें अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता। (सरल वाक्य)
(ढ) मेरा विचार है कि आज घूमने चलें। (सरल वाक्य)
(ण) मैंने उसे पढ़ाकर नौकरी दिलाई। (संयुक्त वाक्य)
(त) वह फल खरीदने के लिए बाजार गया। (मिश्र वाक्य)
(थ) तुम बस रुकने के स्थान पर चले जाओ। (मिश्र वाक्य)
(द) शशि गा रही है और नाच रही है। (सरल वाक्य)
(ध) अध्यापक अपने शिष्यों को अच्छा बनाना चाहता है। (मिश्र वाक्य)
(न) बालिकाएँ गा रही हैं और नाच रही हैं। (सरल वाक्य)
उत्तर :
(क) रमा पुस्तकें खरीदने के लिए बाज़ार गई।
(ख) कल हम फूलपुर के मेले में जाएँगे।
(ग) बिल्ली झाड़ियों के पीछे छिपकर बैठ गई और कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी।
(घ) आओ अंदर बैठे और देर तक बातें करें।
(ङ) सुबह पहली बस पकड़कर शाम तक लौट आओ।
(च) मैंने पीड़ा से कराहते उस व्यक्ति को देखा।
(छ) उसने प्रार्थना-पत्र लिखा जो नौकरी के लिए था।
(ज) जो दिन-रात मेहनत करते हैं, उन्हें सोच-समझकर खर्च करना चाहिए।
(झ) मैंने स्कूटर चला रहे बच्चे को देखा।
(अ) चारों ओर जंगल से घिरे उस बहुत बड़े गाँव में आदिवासियों के परिवार रहते थे।
(ट) मजदूर को खूब मेहनत करने पर भी उसका लाभ नहीं मिलता।
(ठ) मैंने एक व्यक्ति को भीख माँगते देखा जो दुबला-पतला था।
(ड) परिश्रमी व्यक्तियों को अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता।
या
परिश्रम करने वाले व्यक्तियों को अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता।
(ढ) मेरे विचार में आज घूमने चलें; या मेरा विचार घूमने के लिए चलने का है।
(ण) मैंने उसे पढ़ाया और नौकरी दिलवाई।
(त) वह बाजार गया क्योंकि उसे फल खरीदने थे।
(थ) तुम उस स्थान पर चले जाओ जहाँ बस रुकती है।
(द) शशि नाच-गा रही है।
(ध) अध्यापक चाहते हैं कि उसके शिष्य अच्छे बनें।
(न) बालिकाएँ नाच-गा रही हैं।

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प्रश्न 7.
वाक्य रूपांतरण किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सरल वाक्य को संयुक्त एवं मिश्र बनाना, संयुक्त को सरल एवं मिश्र बनाना रूपांतरण कहलाता है। जैसे –
(i) सरल से मिश्र और संयुक्त वाक्य बनाना –
सरल – बारिश में बच्चे भीग रहे हैं। मिश्र-क्योंकि बारिश हो रही है, इसलिए बच्चे उसमें भीग रहे हैं।
संयुक्त – बारिश हो रही है और बच्चे उसमें भीग रहे हैं।

(ii) मिश्र से सरल वाक्य बनाना –
मिश्र – जब तक मोहन घर पहुँचा तब तक उसके पिता चल चुके थे।
सरल – मोहन के घर पहुँचने से पूर्व उसके पिता चल चुके थे।

(ii) मिश्र से सरल और संयुक्त वाक्य बनाना
मिश्र – मैंने एक आदमी देखा जो बहुत बीमार था।
सरल – मैंने एक बहुत बीमार आदमी देखा।
संयुक्त – मैंने एक आदमी देखा और वह बहुत बीमार था।

(iv) संयुक्त से सरल और मिश्र वाक्य बनाना
संयुक्त – मोहन बहुत खिलाड़ी है लेकिन फेल कभी नहीं होता।
सरल – मोहन बहुत खिलाड़ी होने पर भी फेल कभी नहीं होता।
मिश्र – यद्यपि मोहन बहुत खिलाड़ी है तथापि फेल कभी नहीं होता।

(v) सरल वाक्यों से एक मिश्र वाक्य बनाना –
सरल – पुस्तक में एक कठिन प्रश्न था। कक्षा में उस प्रश्न को कोई भी हल नहीं कर सका। मैंने उस प्रश्न को हल कर दिया।
मिश्र – पुस्तक के जिस कठिन प्रश्न को कक्षा में कोई भी हल नहीं कर सका मैंने उसे हल कर दिया है।

(vi) सरल वाक्यों से संयुक्त और मिश्र वाक्य बनाना –
सरल वाक्य – इस वर्ष हमारे विद्यालय में बहुत-से वक्ता पधारे। कुछ वक्ता धर्म पर बोले। कुछ वक्ता साहित्य पर बोले। कुछ वक्ता वैज्ञानिक विषयों पर बोले।
संयुक्त वाक्य में रूपांतरण – इस वर्ष हमारे विद्यालय में पधारने वाले बहुत-से वक्ताओं में से कुछ धर्म पर, कुछ साहित्य पर और कुछ वैज्ञानिक विषयों पर बोले।
मिश्र वाक्य में रूपांतरण – इस वर्ष हमारे विद्यालय में जो बहुत-से वक्ता पधारे उनमें से कुछ धर्म पर, कुछ साहित्य पर और कुछ वैज्ञानिक विषयों पर बोले।

(vii) वाच्य की दृष्टि से रूपांतरण-राम नहीं खाता। = राम से नहीं खाया जाता।

(viii) सकर्मक से अकर्मक में रूपांतरण-मोहन पेड़ काट रहा है। = मोहन से पेड़ कट रहा है।

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प्रश्न 8.
कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार बदलिए –
1. बालिकाएँ नाच रही हैं और गा रही हैं। (सरल वाक्य में)
2. अध्यापक अपने शिष्यों को अच्छा बनाना चाहता है। (मिश्र वाक्य में)
3. मैंने एक बहुत मोटा व्यक्ति देखा। (मिश्र वाक्य में)
4. मैं बाज़ार जाऊँगा और कपड़े खरीदूंगा। (सरल वाक्य में)
5. आप खूब परिश्रम करते हैं और अच्छे अंक प्राप्त करते हैं। (सरल वाक्य में)
6. मेरा निर्णय आज मौन रहने का है। (मिश्र वाक्य में)
7. शाहनी ने दुपट्टे से सिर ढका। हवेली को अंतिम बार देखा। (सरल वाक्य में)
8. शाहनी ने हिचकियों को रोका और रूंधे गले से कहा। (सरल वाक्य में)
9. चातक थोड़ी देर चुप रहकर बोला। (संयुक्त वाक्य में)
10. मैंने गौरा को देखा और उसे पालने का निश्चय किया। (सरल वाक्य में)
11. मैंने एक व्यक्ति देखा। वह बहुत ग़रीब था। (मिश्र वाक्य में)
12. बच्चा भूखा था। वह रोने लगा। माँ ने उसे गोद में ले लिया। (मिश्र वाक्य में)
13. मोहन कल यहाँ आया। उसने राम से बात की। वह चला गया। (संयुक्त वाक्य में)
14. मैंने एक व्यक्ति देखा। वह बहुत दुबला-पतला था। (मिश्र वाक्य में)
15. सड़क पार करता हुआ एक व्यक्ति बस से टकराकर मर गया। (मिश्र वाक्य में)
16. यही वह बच्चा है, जिसे बैल ने मारा था। (सरल वाक्य में)
17. रमेश जा रहा था। लता हँस रही थी। (मिश्र वाक्य में)
उत्तर :
1. बालिकाएँ नाच और गा रही हैं।
2. अध्यापक चाहता है कि उसके शिष्य अच्छे बनें।
3. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत मोटा था।
4. मैं बाज़ार जाकर कपड़े खरीदूंगा।
5. आप खूब परिश्रम कर अच्छे अंक प्राप्त करते हैं।
6. मेरा निर्णय है कि मैं आज मौन रहूँ।
7. शाहनी ने दुपट्टे से सिर ढककर हवेली को अंतिम बार देखा।
8. शाहनी ने हिचकियों को रोक कर रुंधे गले से कहा।
9. चातक थोड़ी देर चुप रहा और बोला।
10. मैंने गौरा को देखकर, उसे पालने का निश्चय कर लिया।
11. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत ग़रीब था।
12. क्योंकि बच्चा भूख से रो रहा था, इसलिए माँ ने उसे गोद में ले लिया।
13. मोहन ने कल यहाँ आकर राम से बात की और चला गया।
14. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत दुबला-पतला था।
15. जो व्यक्ति सड़क पार कर रहा था, वह बस से टकराकर मर गया।
16. इस बच्चे को बैल ने मारा था।
17. रमेश गा रहा था तो लता हँस रही थी।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 9.
नीचे लिखे वाक्यों का निर्देशानुसार रूपांतरण कीजिए –

  1. जापान में चाय पीने की एक विधि है जिसे ‘चा-नो-यू’ कहते हैं। (सरल वाक्य में)
  2. तताँरा को देखते ही वामीरो फूट-फूट कर रोने लगी। (मिश्र वाक्य में)
  3. तताँरा की व्याकुल आँखें वामीरो को ढूँढ़ने में व्यस्त थीं। (संयुक्त वाक्य में)

उत्तर :

  1. जापान में चाय पीने की एक विधि को ‘चा-नो-यू’ कहते हैं।
  2. जैसे ही वामीरो ने तताँरा को देखा वैसे ही वह फूट-फूट कर रोने लगी।
  3. तताँरा की आँखें व्याकुल थीं और वे वामीरो को ढूंढने में व्यस्त थीं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

JAC Class 9 Hindi कैदी और कोकिला Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी ?
उत्तर :
आधी रात के गहरे अँधेरे में कोयल की कूक सुनकर कवि जानना चाहता था कि वह क्यों कूक रही है ? उसे क्या कष्ट है ? वह किसका संदेश देना चाहती है ? कवि स्वयं तो कारावास की पीड़ा झेलने के कारण आधी रात तक जागने के लिए विवश था, पर वह जानना चाहता था कि कोयल के लिए ऐसी कौन-सी विवशता है ?

प्रश्न 2.
कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई ?
उत्तर :
कवि ने कोकिल के बोलने का कारण यह बताया कि वह किसी पीड़ा के बोझ से दबी हुई है, जिसे वह अपने भीतर सहेजकर नहीं रख सकती। उसने गुलामी व अत्याचार की आग की भयंकर लपटों को देखा है या उसे भी सारा देश एक कारागार के रूप में दिखाई देने लगा है।

प्रश्न 3.
किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई और क्यों ?
उत्तर :
कवि ने अंग्रेज़ी शासन की तुलना तम अर्थात अंधकार के प्रभाव से की है। अंधकार निराशा का प्रतीक है; दुखों का आधार है। अंग्रेजी शासन ने भारतवासियों के हृदय में निराशा का अंधकार भर दिया था। देशभक्तों को दुखों के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया था।

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प्रश्न 4.
कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
पराधीन भारत की जेलों में अंग्रेज़ी शासन ने भयंकर यंत्रणाओं का प्रबंध किया था, ताकि देशभक्त उनसे भयभीत हो जाएँ तथा अपने उद्देश्य से पीछे हट जाएँ। जेलों में कैदियों की छाती पर बैलों की तरह फीता लगाकर चूना आदि पिसवाया जाता था; पेट से बाँधकर हल जुतवाया जाता था; कोल्हू चलवाकर तेल निकलवाया जाता था; ईंटों और पत्थरों की गिट्टियाँ तुड़वाई जाती थीं; उन्हें भूखा-प्यासा रखा जाता था; उनके हँसने- रोने पर भी रोक थी। वे अपने हृदय के भावों को प्रकट नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मृदुल वैभव की रखवाली-सी, कोकिल बोलो तो!
(ख) हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कुँआ।
उत्तर :
(क) कवि कोयल से जानना चाहता है कि वह रात के अंधकार में अचानक क्यों कूक पड़ी। वह तो प्रकृति के कोमल सौंदर्य रूपी वैभव की रक्षा करती है। उसे अचानक क्या हो गया कि आधी रात को ऊँचे स्वर में कूक उठी।
(ख) कवि ने अंग्रेजी शासनकाल में जेलों में ढाए जाने वाले अत्याचारों का उल्लेख करते हुए कहा है कि उसे पेट पर फीता बाँधकर पशुओं की तरह कोल्हू चलाना पड़ता है, पर ऐसा करके भी वह अंग्रेज सरकार की अकड़ को तोड़ता है।

प्रश्न 6.
अर्ध रात्रि में कोयल की चीख से कवि को क्या अंदेशा है ?
उत्तर :
अर्ध रात्रि में कोयल की चीख से कवि को अंदेशा है कि या तो वह पागल हो गई है या उसने जंगल की आग की विनाशकारी ज्वालाओं को देख लिया है।

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प्रश्न 7.
कवि को कोयल से ईर्ष्या क्यों हो रही है ?
उत्तर :
कवि को कोयल से ईर्ष्या हो रही है, क्योंकि कवि के अनुसार कोयल को हरे-भरे पेड़ों पर रहने का अवसर मिलता है, जबकि वह दस फुट की अँधेरी कोठरी में रह रहा है। वह सारे आकाश में उड़ने के लिए स्वतंत्र है, जबकि कवि के पास काल कोठरी का सीमित स्थान है। कोयल का कूकना मधुर गीत कहलाता है, जबकि कवि का रोना भी गुनाह माना जाता है।

प्रश्न 8.
कवि के स्मृति – पटल पर कोयल के गीतों की कौन-सी मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं, जिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है ?
उत्तर :
कवि के स्मृति – पटल पर कोयल के गीतों की अनेक मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं। वह हर रोज़ सुबह-सवेरे कूककर लोगों को नींद से जगाती थी; उन्हें कर्मक्षेत्र की ओर प्रवृत्त करती थी। सुबह-सवेरे जब घास के तिनकों पर सूर्य की किरणें टकराती थीं, तो ओस की बूँदें जगमगा उठती थीं; तब विंध्य पर्वत के झरनों और पर्वतों पर उसकी कूक के मधुर गीत बिखर जाते थे।

प्रश्न 9.
हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयासरत देशभक्तों को हथकड़ियों में जकड़ दिया गया था, जो उनके लिए गहने के समान थे। वे उन्हें सदा याद करबाती थीं कि जिस प्रकार वे बँधे हुए हैं, उसी प्रकार सारा देश गुलामी के बंधनों में जकड़ा हुआ है। इससे उनके मन में देश भक्ति का भाव बढ़ता था। उन्हें हथकड़ियाँ अपना गहना लगती थीं, वही उनका श्रृंगार थीं।

प्रश्न 10.
‘काली तू … ऐ आली!’ – इन पंक्तियों में ‘काली’ शब्द की आवृत्ति से उत्पन्न चमत्कार का विवेचन कीजिए।
उत्तर :
कवि ने अपनी पंक्तियों में ‘काली’ विशेषण का प्रयोग अति सुंदर ढंग से चमत्कार उत्पन्न करने के लिए किया है। कोयल का रंग काला है, तो रात भी काली है। रात के कालेपन में निराशा और पीड़ा का भाव भी छिपा हुआ है। अंग्रेज़ी शासन की काली करतूत के कारण ही देशभक्तों को चोर-लुटेरों के साथ काली काल कोठरियों में बंद किया गया था। सारे देश को उन्होंने अपने काले कार्यों से ही गुलाम बना रखा था।

अंग्रेजी राज्य की काली वैचारिक लहरें और उनकी काली कल्पनाएँ हमारे देश के लिए भयावह थीं। कवि की काल कोठरी भी काली थी; उसकी टोपी काली थी और ओढ़ा जाने वाला कंबल भी काला था। उसको बाँधी गई लोहे की जंजीरें भी काली थीं। पहरे के लिए अंग्रेज़ों के द्वारा नियुक्त पहरेदार भी सर्पिणी के समान काली प्रवृत्ति से युक्त थे, जो दिन-रात गालियाँ देते रहते थे। कवि ने ‘काली’ शब्द से चमत्कार की सृष्टि करने में पूर्ण सफलता पाने के साथ-साथ अपने परिवेश को चित्रात्मकता के गुण से प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है।

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प्रश्न 11.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं ?
(ख) तेरे गीत कहावें वाह, रोना भी है मुझे गुनाह !
देख विषमता तेरी-मेरी, बजा रही तिस पर रणभेरी!
उत्तर :
(क) काली कोयल अँधेरी काली रात में कूक उठी। कवि जानना चाहता है कि उसने किस जंगल में लगी आग की लपटों को देख लिया? सारा देश अंग्रेजों के द्वारा दी जाने वाली गुलामी रूपी आग में झुलस ही रहा है। क्या उसका प्रभाव जंगल के प्राणियों पर भी कपड़ा है या सारा देश ही कारावास बन चुका है ? प्रश्न-शैली का प्रयोग कवि के कथन को प्रभावात्मकता देने में सफल हुआ है। तत्सम शब्दों का प्रयोग सहज है। अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है। प्रतीक योजना विद्यमान है।

(ख) कवि कोयल से कहता है कि जब वह गाती है, तो उसकी प्रशंसा की जाती है; पर जेल में उसका रोना भी गुनाह माना जाता है। दोनों की स्थिति में बड़ा अंतर है। इस पर भी देश की स्वतंत्रता के लिए बजाई जाने वाली रणभेरी रूपी प्रयत्न निरंतर चल रहे हैं। अंग्रेज़ी शासन स्वतंत्रता सेनानियों को कष्ट दे रहा है, पर वह उन्हें अपनी राह में आगे बढ़ने से रोक नहीं पा रहा। खड़ी बोली के प्रयोग में तत्सम शब्दावली के प्रयोग के साथ उर्दू शब्दों का प्रयोग भी अति सहज है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। अनुप्रास और पदमैत्री का स्वाभाविक प्रयोग है। अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता – सरसता दी है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 12.
कवि जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना भी सुनता होगा, लेकिन उसने कोकिला की ही बात क्यों की है ?
उत्तर :
कवि ने निश्चित रूप से जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना सुना होगा, पर वे दिन के उजाले में चहकते होंगे। वे आधी रात के अंधकार में नहीं चहके होंगे। कोकिला रात को तब कुहकी थी, जब कवि अपनी पीड़ा की गहराई को अनुभव कर रहा था। उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि उसकी तरह कोयल भी स्वयं को देश रूपी कारागार में अनुभव कर रही है। कोयल बाहर रो रही थी और कवि कारागार के भीतर। इसलिए एक-सी स्थिति को अनुभव करने के कारण कवि ने कोकिला की ही बात की थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

प्रश्न 13.
आपके विचार से स्वतंत्रता सेनानियों और अपराधियों के साथ एक-सा व्यवहार क्यों किया जाता होगा ?
उत्तर :
ब्रिटिश शासन के अंतर्गत स्वतंत्रता सेनानियों को अपराधी माना जाता था और उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाता था, जैसा चोर- डाकुओं व बटमारों से किया जाता था। चोर, डाकू और बटमारों के द्वारा गिने-चुने लोगों की ही धन-संपत्ति छीनी जाती है पर स्वतंत्रता सेनानी तो अंग्रेज़ सरकार को ही निर्मूल कर देना चाहते थे।

पाठेतर सक्रियता –

पराधीन भारत की कौन-कौन सी जेलें मशहूर थीं, उनमें स्वतंत्रता सेनानियों को किस-किस तरह की यातनाएँ दी जाती थीं ? इस बारे में जानकारी प्राप्त कर जेलों की सूची एवं स्वतंत्रता सेनानियों के नामों को राष्ट्रीय पर्व पर भित्ति पत्रिका के रूप में प्रदर्शित करें।
स्वतंत्र भारत की जेलों में अपराधियों को सुधारकर हृदय परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता है। पता लगाइए कि इस दिशा में कौन-कौन से कार्यक्रम चल रहे हैं ?
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

JAC Class 9 Hindi कैदी और कोकिला Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कविता के आधार पर कवि की चरित्रगत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
कवि माखनलाल चतुर्वेदी देशभक्त थे, जिन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर देश की परतंत्रता को समाप्त करने के लिए जी-जान से प्रयत्न किया था। अंग्रेज़ी शासन द्वारा उन्हें कारागार में चोर, डाकुओं और बटमारों के साथ बंद किए जाने पर भी वे हताश नहीं हुए थे। वे संवेदनशील थे। कोकिल के रात के समय कूकने पर उनकी संवेदना उससे भी जुड़ गई थी। वे कल्पनाशील थे। अंग्रेजी सरकार के द्वारा दिए जाने वाले कष्ट उन्हें तोड़ नहीं पाए थे। वे वचन के पक्के थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए एक बार मन में ठान लेने पर वे इस मार्ग से पीछे नहीं हटे थे।

प्रश्न 2.
कारागार में कवि की कैसी दशा थी ?
उत्तर :
स्वतंत्रता सेनानी होने के बाद भी कारागार में कवि को डाकू, चोर व ठगों के साथ बंद किया गया था। उसे पेट भर भोजन भी नहीं दिया जाता था। रात-दिन उस पर कड़ा पहरा रहता था। उसे हथकड़ियों में जकड़कर रखा गया था। इसके अतिरिक्त उसे कोल्हू चलाना पड़ता था तथा हथौड़े से ईंट-पत्थर भी तोड़ने पड़ते थे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

प्रश्न 3.
बंदी जीवन में भी कवि निरुत्साहित क्यों नहीं था ?
उत्तर :
बंदी जीवन में अनेक कष्टों को सहन करते हुए भी कवि निरुत्साहित नहीं था। उसका मन देश को स्वतंत्र करवाने के लिए बिगुल बजा रहा था। वह गाँधी जी के देश की स्वतंत्रता हेतु लिए गए व्रत में अपने प्राणों को पूर्ण रूप से समर्पित कर उसमें अपना पूरा सहयोग देना चाहता था।

प्रश्न 4.
‘कैदी और कोकिला’ कविता का संदेश / उद्देश्य/मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कैदी और कोकिला’ कविता के माध्यम से कवि ने तत्कालीन ब्रिटिश शासकों द्वारा किया है। स्वतंत्रता आंदोलन करने वाले देशभक्तों पर किए जाने वाले अत्याचारों का वर्णन किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि स्वतंत्रता सेनानी जेल में बंद होने पर भी अपना साहस नहीं खोते थे तथा महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए अहिंसापूर्ण स्वतंत्रता संग्राम में सहर्ष अपना पूरा योगदान देने के लिए तत्पर रहते थे।

प्रश्न 5.
कवि ने रात के अँधेरे में किसे संबोधित किया है और क्यों ?
उत्तर :
कवि अंग्रेजी शासन में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों के कारण जेल में बंद है। जेल के सभी कैदी सो गए हैं; केवल कवि जाग रहा है। कवि ने रात के समय में कोयल की उपस्थिति अनुभव की। उसने बात करने के उद्देश्य से कोयल को संबोधित किया था। कवि कोयल से पूछता है कि वह इतनी रात को क्यों जाग रही है ? उसे नींद क्यों नहीं आ रही है ?

प्रश्न 6.
कोयल से क्या जानना चाहता है ?
उत्तर :
कवि कोयल से यह जानना चाहता है कि वह आधी रात को क्यों जाग रही है ? वह किस पीड़ा से परेशान होकर कूकी है ? क्या उसे नींद नहीं आ रही या वह पागल है या उसे जंगल में लगी आग की लपटें दिखाई दी हैं ? वह क्यों इतनी बेचैन है ?

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प्रश्न 7.
कवि ने ‘दावानल की ज्वालाएँ’ किसे कहा है ?
उत्तर :
कवि के समय में हमारा देश गुलाम था। देश को आज़ाद करवाने के प्रयत्न किए जा रहे थे, जिससे भारतीयों को भयंकर और दुखदायी कष्टों का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए कवि के लिए परतंत्रता ही ‘दावानल की ज्वालाएँ’ थीं।

प्रश्न 8.
कवि किन कष्टों के कारण रात भर जागता रहता था और कोयल से वह क्या जानना चाहता था ?
उत्तर :
अंग्रेज़ी सरकार ने कवि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद किया था। जेल में अंग्रेज़ अधिकारी कैदियों को तरह- तरह के कष्ट देते थे। कैदियों को पेट भर खाना नहीं मिलता था। कवि वहाँ के कष्टों से परेशान रात भर जागता रहता था। कवि ने कोयल से उसके आधी रात के समय कूकने का कारण जानने की इच्छा व्यक्त की। वह उससे उसके कष्टों के विषय में जानना चाहता था, जिससे परेशान होकर वह रात के समय जाग रही थी।

प्रश्न 9.
कवि को कारागार में दंड रूप में कौन-कौन से शारीरिक परिश्रम के काम करने पड़ते थे ?
उत्तर :
कवि देश की स्वतंत्रता के प्रयत्नों के कारण जेल में बंद था। जेल में कैदियों को कई तरह से शारीरिक कष्ट दिए जाते थे। ये कष्ट उनसे काम करवाकर दिए जाते थे। कवि को जेल में तेल निकालने के लिए पशुओं की तरह कोल्हू चलाना पड़ता था; हथौड़ों से ईंट-पत्थर की गिट्टियाँ तोड़ना, पेट की सहायता से हल जोतना, बैलों की तरह छाती से फीता लगाकर चूना आदि पीसने का काम करना पड़ता था।

प्रश्न 10.
रात के समय कोकिला किस कारण आई थी ?
उत्तर :
कवि ने कोकिला को स्वतंत्रता से प्यार करने वाले पक्षी के रूप में चित्रित किया है। कवि के अनुसार वह भी देश को गुलामी में बँधे देखकर रो रही थी। जो लोग देश आज़ाद करवाने का प्रयत्न कर रहे थे, उन्हें ब्रिटिश अधिकारी कष्ट दे रहे थे। कोयल आधी रात को कारागार में बंद स्वतंत्रता सेनानियों के कष्टों में सहभागी बनने और उनके कष्टों पर मरहम लगाने के लिए आई थी। वह उनके साथ मिलकर रोना चाहती थी।

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प्रश्न 11.
कवि ने अपने आस-पास के वातावरण में किन-किन काली वस्तुओं की गणना की है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार ब्रिटिश शासन में चारों ओर गुलामी का अंधकार फैला हुआ था, जहाँ सभी ओर काला – ही – काला दिखाई देता था। कवि ने अपने आस-पास के वातावरण में कोयल को काला माना है; रात काली है, अंग्रेज़ी शासन काला है, लहर काली है, कवि की कल्पना काली है, काल-कोठरी काली है, उसकी टोपी काली है, कंबल काला है और उसको बाँधने वाली जंजीरें भी काली हैं।

प्रश्न 12.
कोयल की कूक ‘चमकीला गीत’ क्यों है ?
उत्तर :
आधी रात में कवि को कोयल के कूकने की आवाज सुनाई देती है। कवि अपना दुख कोयल के साथ बाँटना चाहता था। कवि में कोयल की कूक आशा व उत्साह का भाव और स्वर प्रदान करती थी, जिस कारण वह अपनी निराशा से मुक्ति पाता था। वह उसे प्रेरणा प्रदान करती थी। कवि को कोकिला का स्वर देशभक्ति में डूबा हुआ-सा प्रतीत होता था। इसलिए कवि को लग रहा था कि वह अपने ‘चमकीले गीत’ से उसमें कष्टों को सहने का उत्साह भरने आई है।

प्रश्न 13.
कवि ने अपनी और कोकिला की अवस्थाओं में किस प्रकार तुलना की है ?
उत्तर :
कवि ने अपनी और कोकिला की अवस्था में बहुत अंतर माना है। कोकिला को रहने के लिए पेड़ की हरी-भरी शाखाएँ मिली हैं, जबकि कवि दस फुट की काली कोठरी में रहता है। कोकिल खुले आसमान में विचरण करती है और वह काली कोठरी में बंद है, जहाँ सब कुछ काला ही काला है। कोकिल कूकती है, तो सबको अच्छा लगता है, उसमें जीवन का रंग दिखाई देता है। परंतु कवि रोता है, तो उसमें दुख दिखाई देता है और उसका रोना गुनाह माना जाता है।

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प्रश्न 14.
कवि ने किसके व्रत का पालन करने का निश्चय किया था और कैसे ?
उत्तर :
कवि ने महात्मा गांधी के द्वारा देश की आज़ादी हेतु लिए गए व्रत का पालन करने का निश्चय किया था। कवि कारागार में बंद था, परंतु उसका हृदय देश की आज़ादी के लिए कुछ करने के लिए मचल रहा था। वह वहाँ बंद रहकर भी अपनी रचना के माध्यम से आज़ादी की रणभेरी बजाना चाहता था। वह लोगों को जागृत करना चाहता था कि वें महात्मा गाँधी के आज़ादी के स्वप्न को पूरा करने में सहयोग दें।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. क्या गाती हो ?
क्यों रह-रह जाती हो ?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो ?
संदेशा किसका है ?
कोकिल बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन, या तम का प्रभाव गहरा है ?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?

शब्दार्थ : कोकिल – कोयल। बटमारों – रास्ते में यात्रियों को लूट लेने वाले। तम – अंधकार। हिमकर – चंद्रमा। कालिमामयी – काली। आली – सखी।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से लिया गया है, जिसके रचयिता श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण ब्रिटिश सरकार ने कवि को जेल की कोठरी में बंद कर दिया था। आधी रात के समय किसी कोयल के कूकने की आवाज़ को सुनकर कवि को ऐसा अहसास हुआ कि कोयल भी पूरे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है, इसलिए वह आधी रात में चीख उठी है।

व्याख्या – कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे काली कोयल ! तुम क्या गाती हो ? कुछ कूक कर फिर चुप हो जाती हो। तुम अपनी बात एक साथ क्यों नहीं कह पाती ? क्यों रह रह जाती हो ? अरी कोयल ! बताओ कि तुम अपने साथ किसका संदेश लाई हो ? तुम किसकी बात सुनाना चाहती हो ? मैं तो कारागार की इन ऊँची-ऊँची काली दीवारों के घेरे में बंद हूँ; जहाँ डाकू, चोर और राह चलते लोगों को ठगने वाले ठगों का डेरा है। अपराधियों के बीच मैं भी बंद हूँ। कारागार के अधिकारी जीने के लिए आवश्यक खाना नहीं देते; पेट भूख के कारण खाली रहता है। ये न हमें जीने देते हैं और न मरने देते हैं। हम तड़पकर रह जाते हैं। हमारे ऊपर दिन- रात कड़ा पहरा रहता है। यह अंग्रेज़ी शासन की व्यवस्था है या अंधकार का गहरा प्रभाव है – कुछ समझ में नहीं आता। आकाश में कुछ समय पहले चंद्रमा दिखाई दिया था, पर वह भी निराश कर चला गया। बस, सब तरफ़ रात का गहरा अंधकार छाया हुआ है। इस अँधेरी – काली रात में हे सखी रूपी कोयल ! तू क्यों जाग रही है ? ज़रा बता कि तुझे किस कारण नींद नहीं आई ?

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने रात के अँधेरे में किसे संबोधित किया है और क्यों ?
(ख) कवि को कारागार में किसके साथ बंद किया गया था ?
(ग) कवि ने अंग्रेज़ी शासन की तुलना किससे की है ?
(घ) कवि को जेल में क्यों बंद किया गया था ? कोयल की कूक का कवि पर क्या प्रभाव पड़ा था ?
(ङ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने रात में कोयल की उपस्थिति अनुभव की थी और उसे संबोधित किया था। कारागार में शेष सब सो रहे थे; केवल कवि जाग रहा था और कोयल भी रात के अँधेरे में कूक रही थी।
(ख) कवि को कारागार में डाकुओं, चोरों और राह चलते लोगों को लूटने वाले लुटेरों के साथ बंद किया गया था।
(ग) कवि ने अंग्रेज़ी शासन की तुलना गहरे अँधेरे से की है।
(घ) ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आंदोलनों में लिप्त होने के कारण कवि को जेल की कोठरी में बंद कर दिया गया था। आधी रात के समय किसी कोयल के कूकने की आवाज़ को सुनकर कवि को ऐसा अहसास हुआ कि कोयल भी पूरे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है, इसलिए वह आधी रात में चीख उठी है।
(ङ) कवि ने अंग्रेज़ों के कारागार में अत्याचारों और अपमान को झेला था। उसे चोर – लुटेरों के साथ बंद किया गया था। दिन-रात उस पर कड़ा पहरा रहता था। भूख-प्यास के कारण कवि न तो जी पाता था और न ही मर पाता था। वह निराशा के भावों से भर गया था। कवि ने खड़ी बोली का प्रयोग किया है, जिसमें तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता – सरसता से प्रकट किया है। अनुप्रास और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों के स्वाभाविक प्रयोग ने काव्य-सौंदर्य में वृद्धि की है। गेयता का गुण विद्यमान है। करुण रस है।

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2. क्यों हूक पड़ी ?
वेदना बोझ वाली – सी;
कोकिल बोलो तो!
क्या लूटा ?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!
क्या हुई बावली ?
अर्धरात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं ?
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : हूक – चीख। वेदना – पीड़ा। मृदुल – कोमल। बावली – पागल। अद्धर्धात्रि – आधी रात। दावानल – जंगल की आग।

प्रसंग : प्रस्तुत प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसे श्री माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा है। अंग्रेज़ी सरकार ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण कवि को कारागार में बंद कर दिया था। कवि वहाँ के कष्टों से परेशान रात-भर जागता रहता था। कवि ने आधी रात के समय कूकने वाली कोयल को संबोधित करते हुए उसके कष्टों के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की थी।

व्याख्या – कवि पूछता है कि अरी कोयल ! तू अचानक क्यों कूक पड़ी? क्या कोई पीड़ा का भाव तुझे बोझ तले दबा रहा है ? तू बता तो सही कि वह क्या है ? तेरा क्या लूट गया है और तुझे किसने लूट लिया है ? तू आधी रात को भी जाग रही है। किसी कोमल वैभव की रक्षा करने वाली जैसी कोयल ! तुम बताओ तो सही। क्या तुम पागल हो गई हो, जो आधी रात के समय इस प्रकार ज़ोर से चीखी थी ? तुझे जंगल में लगी किस आग की लपटें दिखाई दी थीं? बताओ तो सही। भाव यह है कि अंग्रेज़ी शासन की गुलामी की आग की लपटें देशवासियों को जला रही थीं, पर जंगलं में ऐसी कौन-सी लपटें प्रकट हो गई थीं जिनसे परेशान होकर कोयल को आधी रात के समय कूकना पड़ा था।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि कोयल से क्या जानना चाहता है ?
(ख) कवि ने कोयल के लिए किस विशेषण का प्रयोग किया है ?
(ग) कवि ने ‘दावानल की ज्वालाएँ’ किसे माना है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि किन कष्टों में कहाँ रातभर जागता रहता था और कोयल से वह क्या जानना चाहता था ?
(च) कवि ने कोयल की कूक’ को ‘हूक’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
(क) कवि कोयल से जानना चाहता है कि वह आधी रात के समय किस पीड़ा से परेशान होकर कूकी थी ? क्या वह पागल है या उसे जंगल में लगी आग की लपटें दिखाई दी थीं?
(ख) कवि ने कोयल के लिए ‘मृदुल वैभव की रखवाली-सी’ विशेषण का प्रयोग किया है।
(ग) कवि ने भयंकर और दुखदायी संकटों को ‘दावानल की ज्वालाएँ’ माना है। हमारा देश उस समय अंग्रेजी शासन का गुलाम था, इसलिए हमारे लिए परतंत्रता ही ‘दावानल की ज्वालाएँ’ थीं। कवि नहीं जानता कि आधी रात के समय कूकने वाली कोयल के लिए ‘दावानल की ज्वालाएँ’ क्या थीं।
(घ) स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने के कारण विदेशी सरकार द्वारा कवि को कारागार में बंद कर दिया गया था। वह परेशान था और उसे आधी रात के समय कूकने वाली कोयल भी परेशान प्रतीत हुई थी। मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि किसी दुख से पीड़ित व्यक्ति को अन्य प्राणी भी उसी दुख से पीड़ित प्रतीत होने लगता है। कवि ने उपमा और अनुप्रास अलंकारों का सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है। लयात्मकता का प्रयोग किया गया है। तत्सम शब्दावली की अधिकता है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द-शक्ति और बेचैनी का भाव प्रस्तुत हुआ है।
(ङ) अंग्रेज़ी सरकार ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण कवि को कारागार में बंद कर दिया था। कवि वहाँ के कष्टों से परेशान रातभर जागता रहता था। आधी रात के समय कूकने वाली कोयल को संबोधित करते हुए कवि ने उसके कष्टों के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की थी।
(च) कवि स्वयं अंग्रेज़ी शासन के व्यवहार से परेशान था। उसे कोयल की कूक भी परेशानी से भरी हुई प्रतीत होती है। इसलिए कवि ने उसे हूक कहा है।

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3. क्या ? – देख न सकती जंजीरों का गहना ?
हथकड़ियाँ क्यों ? यह ब्रिटिश राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ ? – जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर कूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गजब ढा रही आली ?
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो !
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : मोट खींचना – चरस खींचना (जेल में बैल की तरह छाती से फीता लगाकर चूना आदि पीसना )। गिट्टी – ईंट-पत्थर के टुकड़े। जूआ वह लकड़ी जो पाट को घुमाने का काम करती है; हल चलाने वाले बैलों के गले पर रखी जाने वाली लकड़ी। आली – सखी।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। कवि ने कैदियों को कारागार में दिए जाने वाले तरह-तरह के कष्टों की ओर संकेत किया है।

व्याख्या : कवि कोकिल को संबोधित करता हुआ कहता है कि क्या तुम अंग्रेज़ी शासकों के द्वारा जेल में मुझे पहनाए हुए जंजीररूपी गहनों को नहीं देखती ? ये हथकड़ियाँ नहीं हैं, बल्कि ये ब्रिटिश राज के द्वारा पहनाए गए गहने हैं। जब हम कोल्हू चलाते हैं; तेल निकालते हैं, तो उसके घूमने से उत्पन्न ‘चर्रक चूँ’ की आवाज़ ही जीवन की तान है। उससे हमें जीवन जीने का उत्साह मिलता है। हम ईंट-पत्थरों को हथौड़ों से तोड़ते हैं। हमारी अँगुलियों पर उनके द्वारा चोटों के रूप में गीत लिखे गए हैं। मैं जेल में बैलों की तरह छाती से फीता लगाकर चूना आदि पीसता हूँ। मैं इससे परेशान नहीं होता, बल्कि मुझे तो इससे संतोष होता है कि ऐसा कर मैं अंग्रेज़ राज की अकड़ का कुआँ खाली कर रहा हूँ।

दिन के समय काम करते हुए मुझे दुख देने वाली और आँखों में आँसू लाने वाली करुणा का भाव क्यों जगे ? मैं नहीं चाहता कि अंग्रेज़ी-राज के पहरेदार मेरी पीड़ा को देखें पर कोयल रूपी मेरी सखि ! हृदय में छिपा पीड़ा का भाव रात के अँधेरे में गज़ब ढा रहा है। मैं दुख की अधिकता से फूट रहा हूँ, आँसू बहा रहा हूँ। अरी कोयल ! तुम बताओ कि अँधेरे को भेद कर इस शांत समय में तुम क्यों रो रही हो ? पता नहीं, तुम चुपचाप इस प्रकार मधुर विद्रोह के बीज क्यों बो रही हो ? अरी कोयल ! तुम कुछ तो बोलो और बताओ कि रात के अँधेरे में क्यों कूक रही हो ?

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने किसे गहने कहा है ?
(ख) कवि को कारागार में दंड रूप में कौन-कौन से शारीरिक परिश्रम के काम करने पड़ते थे ?
(ग) कवि दिन के समय अपनी पीड़ा के भावों को क्यों नहीं प्रकट करना चाहता ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि ने कारागार में किन कष्टों की ओर संकेत किया है ?
(च) कवि के अनुसार ब्रिटिश अकड़ का कुआँ किस प्रकार खाली हुआ ?
(छ) रात के समय कोकिल किस कारण से आई थी ?
(ज) ‘मोट’ और ‘जूआ’ क्या है ?
(झ) कवि ने कोकिल के कूकने को ‘रो रही क्यों हो’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
(क) कवि ने ब्रिटिश सरकार द्वारा पहनाई गई लोहे की हथकड़ियों को गहने है।
(ख) कवि को कारागार में तेल निकालने के लिए पशुओं की तरह कोल्हू चलाना पड़ता था; हथौड़ों से ईंट-पत्थर की गिट्टियाँ बनानी पड़ती थी। इसके अतिरिक्त उसे पेट की सहायता से हल जोतने, बैलों की तरह छाती से फीता लगाकर चूना पीसने आदि का काम करना पड़ता था।
(ग) कवि नहीं चाहता था कि कारागार की कठिनाइयों से व्यथित उसके मन की दशा कारागार के पहरेदार जानें। इसलिए वह दिन के समय अपनी पीड़ा के भावों को प्रकट नहीं करना चाहता था।
(घ) कवि ने कारागार में स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाने वाली यातनाओं का सजीव चित्रण किया है, जिससे उनकी क्रूरता का परिचय मिलता है। चित्रात्मकता के गुण ने कवि के कथन में छिपी पीड़ा को वाणी प्रदान की है। रूपक और अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। करुण रस विद्यमान है। तद्भव और सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया गया है, जिससे कथन को सरलता और स्वाभाविकता प्राप्त हुई है। अभिधा शब्द – शक्ति का प्रयोग है।
(ङ) कवि ने कारागार में कैदियों को दिए जाने वाले तरह-तरह के कष्टों की ओर संकेत किया है।
(च) स्वाधीनता प्राप्त करने के लिए देशभक्तों ने ब्रिटिश सरकार के द्वारा दी जाने वाली यंत्रणाओं को चुपचाप झेला था, जिससे उन्होंने ब्रिटिश अकड़ का कुआँ खाली किया था।
(छ) रात के समय कोकिल स्वतंत्रता सेनानियों के कष्टों में सहभागी बनने और उनके कष्टों पर मरहम लगाने के लिए आई थी। वह उनके साथ मिलकर रोना चाहती थी।
(ज) ‘मोट’ कुएँ से पानी निकालने के लिए चमड़े का बना डोल है और ‘जूआ’ लकड़ी का मोटा लट्ठा है, जो बैलों के कंधे पर रखा जाता है। उसमें हल बाँधकर खेत जोता जाता है।
(झ) कवि ने कोकिल के कूकने को ‘रो रही हो क्यों’ इसलिए कहा है क्योंकि मधुर स्वर में कूकने वाली कोकिल उनके विद्रोही स्वर को प्रेरणा दे रही थी; अंग्रेज़ी शासन के प्रति उनके आक्रोश को बढ़ा रही थी। कवि के अनुसार कोयल की ब्रिटिश अत्यचारों और अनाचार में त्रस्त है। इसलिए कवि को उसका स्वर रोने जैसा प्रतीत होता है।

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4. काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह – श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
इस काले संकट – सागर पर
मरने की, मदमाती !
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती !
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : रजनी – रात। शृंखला – जंजीर। हुंकृति – हुँकार। ब्याली – सर्पिनी। आली – सखी।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता
श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने कारागार के वातावरण का चित्रण किया है

व्याख्या : कवि कहता है कि हे कोकिल ! तू काले रंग की है और यह रात भी काली और अँधेरी है। अंग्रेज़ी शासन द्वारा किए जाने वाले अत्याचारपूर्ण कार्य भी काले हैं। मेरे मन में उत्पन्न होने वाली कल्पनाएँ भी काली हैं तथा सारे वातावरण में भी निराशा भरी हुई है। मैं जिस काल कोठरी में बंद हूँ, वह काली है। मेरी टोपी काली है और कंबल भी काला है। जिन लोहे की जंजीरों से मैं बँधा हुआ वे भी काली हैं।

कारागार के पहरेदार सर्पिनी जैसी हुँकारें भरते रहते हैं। हे कोयल रूपी सखी! वे पहरेदार इस पर भी गालियाँ देते रहते हैं; कड़वा और भद्दा बोलते हैं। देश के परतंत्रता रूपी इस काले संकट – सागर पर मरकर इसे आजाद करवाने की मदमाती इच्छा जागृत होती है। हे कोयल ! तुम बताओ कि इस अँधेरी रात में अपने चमकीले गीतों को क्यों तैरा रही हो ? सब दिशाओं में कूक – कूक कर क्यों फैला रही हो ? अरी कोयल ! तुम कुछ तो बोलो।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने अपने आस-पास की किन-किन काली वस्तुओं की गणना की है ?
(ख) पहरेदारों की हुँकार कवि को कैसी प्रतीत होती है ?
(ग) ‘काला संकट – सागर’ क्या है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि ने किस वातावरण का चित्रण किया है ?
(च) ‘काली’ विशेषण किन-किन अर्थों को स्पष्ट करता है ?
(छ) कोयल की कूक ‘चमकीला गीत’ क्यों है ?
उत्तर :
(क) कवि के अनुसार कोयल काली है; रात काली है; अंग्रेज़ी शासन काला है, लहर काली है, कवि की कल्पना काली है; काल कोठरी काली है, उसकी टोपी काली है, कंबल काला है और उसको बाँधने वाली जंज़ीरे भी काली हैं।
(ख) पहरेदारों की हुँकार, कवि को सर्पिणी जैसी विषैली प्रतीत होती है।
(ग) देश पर विदेशी शासन ‘काला संकट – सागर’ है, जिसमें सारे देशवासी निरंतर डूब रहे हैं।
(घ) कवि ने कारागार में तरह-तरह के कष्ट उठाए थे। उसे प्रतीत होता था कि वह पीड़ा के अँधेरे में डूबा हुआ है, जिसके चारों तरफ़ गहरा कालापन छाया हुआ है। दृश्य बिंब योजना है, जिससे निराशा का भाव टपकता है। अनुप्रास, रूपक और पदमैत्री का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। अभिधा शब्द का प्रयोग कथन की सरलता – सरसता का आधार बना है। प्रसाद गुण तथा करुण रस विद्यमान है। तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित रूप प्रकट किया गया है।
(ङ) कवि ने कारागार के वातावरण का चित्रण किया है।
(च) कवि ने ‘काली’ विशेषण का साभिप्राय प्रयोग किया है, जो निम्नलिखित अर्थों को प्रकट करता है –
(1) काला रंग – कोकिल, रात, टोपी, कंबल, लोहे की जंज़ीर।
(2) भयानकता – काली लहर, काली कल्पना, काली काल – कोठरी।
(3) अन्याय / क्रूरता – शासन की करनी, संकट – सागर।
(छ) कोकिल की कूक कवि को आशा व उत्साह का भाव और स्वर प्रदान करती थी, जिस कारण वह अपनी निराशा से मुक्ति पाता था। वह उसे प्रेरणा प्रदान करती थी। कवि को कोकिल का स्वर देशभक्ति में डूबा हुआ प्रतीत होता था, इसलिए उसने उसे ‘चमकीला गीत’ कहा है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

5. तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी!
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : नसीब – भाग्य, प्राप्त होना। नभ – आकाश। गुनाह – अपराध। विषमता – कठिनाई। हुंकृति – हुँकार। कृति – रचना। मोहन – मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात महात्मा गांधी। आसव – रस। कोकिल – कोयल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। कवि कारागार की पीड़ा से पीड़ित है। वह चाहकर भी अपने सुख-दुख को प्रकट नहीं कर पाता।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे कोकिल, तुम्हें तो रहने के लिए पेड़ों की हरी-भरी शाखाएँ मिली हैं, पर मुझे यहाँ कारागार की काली कोठरी प्राप्त हुई है; जिसमें मैं बंद रहता हूँ। तुम सारे आकाश में उड़ती-फिरती हो; संचरण करती हो, पर मेरा संसार इस दस फुट की जेल की कोठरी तक सीमित रह गया है। जब तू कूकती है, तो लोग उसे मधुर गीत कहते हैं; जब मैं दुख में भरकर रोता हूँ, तो उसे भी गुनाह माना जाता है।

ज़रा तू अपनी और मेरी विषमता को देख। कितना बड़ा अंतर है हम दोनों में ! पर इस अवस्था में भी मैं निरुत्साहित नहीं हूँ। मेरा मन देश की आज़ादी के लिए रणभेरी बजा रहा है। मैं अपने मन में उत्पन्न होने वाली हुँकार पर अपनी रचना से और क्या प्रदान करूँ। अरी कोकिल ! मुझे बताओ कि मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात महात्मा गांधी ने देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जो व्रत लिया है, उसे मैं किसके प्राणों में रस रूप में भर दूँ। अरी कोकिल! तुम बोलो तो सही।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने अपनी और कोकिल की अवस्थाओं में किस प्रकार तुलना की है ?
(ख) कवि का हृदय क्या कर रहा है ?
(ग) कवि ने किसके व्रत का पालन करने का निश्चय किया था ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि किस पीड़ा से पीड़ित है ?
(च) ‘नभ-भर का संचार’ से क्या आशय है ?
(छ) कवि के लिए ‘दस फुट का संसार’ क्या है ?
(ज) ‘मोहन का व्रत’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
(क) कवि कहता है कि कोकिल को रहने के लिए हरी-भरी शाखाएँ प्राप्त हुईं, तो उसे काली कोठरी मिली। कोकिल का संचरण सारे आकाश में होता है, तो कवि का संसार दस फुट की कोठरी है। कोकिल का कूकना गीत कहलाता है, तो कवि का रोना भी गुनाह है।
(ख) कवि का हृदय देश की आज़ादी का आह्वान करते हुए रणभेरी बजा रहा है।
(ग) कवि ने महात्मा गांधी द्वारा लिए गए आज़ादी के व्रत का पालन करने का निश्चय किया है।
(घ) कवि ने देश की आज़ादी के लिए उसी रास्ते को अपनाने का निश्चय किया था, जो महात्मा गांधी ने निर्धारित किया था। पंक्तियों में कवि ने सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया है। लयात्मकता की सृष्टि हुई है। अभिधात्मकता ने कवि के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। पदमैत्री और अनुप्रास का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण विद्यमान है।
(ङ) कवि कारागार में बंद होने की पीड़ा से पीड़ित है। वह चाहकर भी अपना दुःख-सुख व्यक्त नहीं कर पाता।
(च) ‘नभ- भर का संचार’ से कवि का तात्पर्य स्वतंत्रता से है; खुले आकाश में विहार करने से है।
(छ) छोटी-सी काल कोठरी कवि के लिए ‘दस फुट का संसार’ है।
(ज) ‘मोहन का व्रत ‘ महात्मा गाँधी (मोहनदास करमचंद गाँधी ) के द्वारा स्वतंत्रता के लिए निरंतर अहिंसात्मक संघर्ष करते रहना है।

कैदी और कोकिला Summary in Hindi

कवि-परिचय :

गांधीवादी विचारधारा से गहरे प्रभावित श्री माखनलाल चतुर्वेदी देश की स्वतंत्रता से पूर्व युवा वर्ग में संघर्ष और बलिदान की भावना भरने में समर्थ कवि और प्रखर पत्रकार थे। इनका जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले के बाबई गाँव में सन् 1889 ई० में हुआ। इनका बचपन आर्थिक अभावों में बीता था। जीवन के संघर्षों ने इनकी पत्नी को टी०बी० का शिकार बना दिया था। इन्हें केवल 16 वर्ष की अवस्था में ही शिक्षक बनना पड़ा था। बाद में इन्होंने अध्यापन का कार्य छोड़कर ‘प्रभा’ नामक पत्रिका का संपादन सँभाल लिया। इन्होंने ‘कर्मवीर’ और ‘प्रताप’ पत्रिकाओं का भी संपादन किया था। ‘कर्मवीर’ में राष्ट्रीय भावनाएँ भरी रहती थीं। इनका देहांत सन् 1968 में हुआ। श्री चतुर्वेदी की प्रमुख रचनाएँ हैं – हिम किरीटनी, साहित्य देवता, हिम तरंगिनी, वेणु लो गूँजे धरा, माता, युग चरण, मरण, ज्वार, बिजुली काजर आँज रही आदि। इनकी संपूर्ण रचनाएँ माखनलाल चतुर्वेदी ग्रंथावली के खंडों में संकलित हैं।

इनकी रचनाओं में ब्रिटिश राज्य के प्रति विद्रोह का भाव मुखरित हुआ है। भले ही इनका जीवन छायावादी युग में विकसित हुआ, पर इनका काव्य छायावाद से अलग रहा। इनके काव्य में राष्ट्रीय और सांस्कृतिक भावों की प्रमुखता है। इनमें स्वतंत्रता की चेतना के साथ देश के लिए त्याग और बलिदान की भावना प्रमुख है। इसलिए इन्हें ‘एक भारतीय आत्मा’ भी कहा जाता है। ‘पुष्प की अभिलाषा’ नामक कविता के माध्यम से इन्होंने राष्ट्र के प्रति त्याग और बलिदान की भावना को अभिव्यक्त किया है –

मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक।

श्री चतुर्वेदी स्वाधीनता आंदोलन के दौरान अनेक बार जेल गए थे। उन्होंने प्रेम, भक्ति-भाव और प्रकृति-संबंधी काव्य की रचना भी की थी। वे कष्टों को जीवन में आने वाला आवश्यक हिस्सा मानते थे। वे नवयुवकों को संकटों से जूझने की प्रेरणा देते थे और इसे ही सच्चा सौंदर्य मानते थे। वे नवयुवकों को मातृभूमि की पूजा के लिए स्वयं को अर्पित करने के लिए प्रेरित करते थे।

इन्होंने अपने काव्य की रचना खड़ी बोली में की। ये कविता में शिल्प की अपेक्षा भावों को महत्व देते थे। इन्होंने परंपरागत छंद योजना की थी। इन्होंने कविता में उर्दू और फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग करने के साथ-साथ तत्सम शब्दावली का भी पर्याप्त प्रयोग किया था, पर फिर भी इन्हें बोलचाल के सामान्य शब्दों के प्रति विशेष मोह था जिस कारण इनकी भाषा जनसामान्य में प्रचलित हुई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

कविता का सार :

कवि ने यह कविता ब्रिटिश उपनिवेशवाद के शोषण- तंत्र का विश्लेषण करने हेतु लिखी थी। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ ब्रितानी शासन ने क्रूरता का व्यवहार करते हुए उन्हें दमन चक्र में पीस डालने का प्रयत्न किया था। उन्हें तरह-तरह की यातनाएँ दी थीं। कवि ने जेल में एकांकी और उदास जीवन व्यतीत करते हुए कोकिल (कोयल) से अपने हृदय की पीड़ा और असंतोष का भाव व्यक्त किया था।

कोकिल जब आधी रात में कूकती थी, तो कवि को प्रतीत होता था कि वह भी सारे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है और मधुर गीत गाने के स्थान पर मुक्ति के लिए चीखने लगी है। कवि कोकिल से पूछता है कि वह बार-बार क्यों कूकती है ? वह किसका संदेश लाई है? देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों को डाकू, चोरों व बटमारों के लिए बनाई जेलों में बंदकर अंग्रेजों ने उन पर तरह-तरह के

अत्याचार ढाए हैं। क्या कोकिल भी स्वयं को कैदी अनुभव करती है? अंग्रेजों ने देशभक्तों को हथकड़ियों में जकड़ दिया था। उनसे बलपूर्वक मज़दूरों का कार्य लिया जाता था। कोयल काले रंग की थी, तो विदेशी शासन भी काला था। कवि की काल-कोठरी काली थी; टोपी काली थी; कंबल काला था और पहरेदारों की हुँकार भी नागों के समान काली थी। कवि का संसार बस दस फुट की कोठरी ही था, जहाँ उसका रोना भी गुनाह था। जेल में बस कष्ट-ही-कष्ट थे, पर फिर भी गांधीजी के आह्वान पर देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न तो करना ही था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

JAC Class 9 Hindi यमराज की दिशा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई ?
उत्तर :
कवि की माँ ने उसे समझाया था कि कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोना नहीं चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा यमराज की है और यमराज को क्रोधित करना उचित नहीं। दक्षिण दिशा के प्रति वह सदा सचेत रहा और वह कभी भी उस दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया, इसलिए उसे दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई।

प्रश्न 2.
कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था ?
उत्तर :
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था क्योंकि वह उस छोर को नहीं पा सकता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 3.
कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गई है ?
उत्तर
पहले लोग मानते थे कि मौत के देवता यमराज की दिशा दक्षिण है पर अब तो हर दिशा ही मौत की दिशा है। मौत तो सर्वव्यापक है। सभी तरफ फैलते विध्वंस, नाश, हिंसा, मृत्यु आदि के चिह्नों को साफ-स्पष्ट देखा जा सकता था। यमराज के आलीशान महल सभी दिशाओं में हैं और सभी महलों में यमराज विद्यमान है, इसलिए आज हर दिशा दक्षिण दिशा हो गई है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
उत्तर :
धरती पर प्रत्येक दिशा मौत के चिह्नों से युक्त है। कोई भी तो ऐसा स्थान नहीं बचा जहाँ मानव-मानव आपस में उलझते न हों, लड़ते- झगड़ते न हों। हर तरफ घृणा और हिंसा का राज्य फैला है। मौत का देवता यमराज अपने आलीशान महलों में हर दिशा में दहकती आँखों सहित एक साथ विराजमान है। सर्वत्र मौत का ही राज है

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग-दर्शन देती है। आप की माँ भी समय-समय पर आप को सीख देती होंगी –
(क) वह आपको क्या सीख देती हैं ?
(ख) क्या उसकी हर सीख आप को उचित जान पड़ती है ? यदि हाँ, तो क्यों और नहीं तो क्यों नहीं ?
उत्तर :
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा प्राप्त कर उसे मार्ग-निर्देश नहीं देती थी बल्कि सभी की माँ ऐसा ही करती है। हर माँ अपने बच्चों की सलामती चाहती है, उन के स्वस्थ जीवन की कामना करती है। वह कदापि नहीं चाहती कि उस के बच्चों पर किसी प्रकार का कभी कोई कष्ट आए। वह उन कष्टों को अपने ऊपर ले लेना चाहती है। उसने जो संस्कार अपने पूर्वजों से पाया था उसे अपने बच्चों को देती है।

(क) मेरी माँ भी मुझे सदा तरह-तरह की सीख देती है। ईश्वर के प्रति श्रद्धा-विश्वास करना, अपने से बड़ों का कहना मानना, उन का आदर करना, समय का पालन करना, साफ-स्वच्छ रहना, अच्छा खाना, पढ़ाई करना, दूसरों की सहायता करना, खेलना-कूदना, देश-भक्ति, मीठा बोलना, लड़ाई-झगड़े से बचना, बुराइयों से दूर रहना आदि न जाने कितनी बातों के बारे में वह सीख देती रहती है।

(ख) मुझे अपनी माँ की हर सीख उचित जान पड़ती है। उसके पास जीवन का अनुभव है। वह उसी अनुभव की सीख ही तो मुझे देती है। माँ से बढ़ कर मेरा हितैषी कौन हो सकता है? मुझे उस ने जन्म दिया है, मेरा पालन-पोषण किया है। वह मेरी सहारा है। वह मेरे जीवन को सँवारना चाहती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 6.
कभी-कभी उचित – अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर :
ईश्वर सर्वव्यापक है पर वह भी दिखाई नहीं देता। उसे अपने भावों – विचारों से समझा जा सकता है। कभी-कभी उचित – अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक होता है। ऐसा करने से मन को दृढ़ता प्राप्त होती है, दिशा निर्देश मिलता है और हम मानसिक सहारा प्राप्त करते हैं। मानव के चंचल मन पर नियंत्रण पाने का रास्ता मिलता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मनुष्य को प्रत्येक कार्य स्वयं करना होता है, पर मन की शक्ति कोई सहारा तो अवश्य पाना चाहती है। वह सहारा ही ईश्वर है जिसे दिशा देने के लिए ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है।

JAC Class 9 Hindi यमराज की दिशा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘यमराज की दिशा’ कविता के भाषा-शिल्प पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
कविता में भाव सीधे होकर भी गंभीर हैं तथा भाषा आसान होकर गहरी है। कवि ने खड़ी बोली का प्रयोग किया है जिसमें तत्सम, तद्भव शब्दावली के प्रयोग के साथ-साथ सरल उर्दू के शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। मुक्त छंद का प्रयोग करने में कवि को निपुणता प्राप्त है। अभिधा के प्रयोग ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। प्रसाद गुण सर्वत्र विद्यमान है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, स्मरण अलंकारों के सहज प्रयोग ने कथन को सरसता प्रदान की है।

प्रश्न 2.
कवि ने अपनी माँ के परमात्मा के प्रति आस्था और विश्वास को किस प्रकार प्रकट किया है ?
उत्तर :
कवि की माँ को परमात्मा में आस्था और विश्वास था। वह अपना सुख-दुःख सभी कुछ परमात्मा से बाँटती थी। वह ऐसा दिखाती थी कि वह ईश्वर को जानती है, उनसे बात करती है, प्रत्येक कार्य में उनसे सलाह लेती है और उनकी सलाह के अनुसार कार्य करती है। ईश्वर पर विश्वास करती हुई वह जिंदगी जीने और दुःख सहने के रास्ते ढूँढ़ लेती थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 3.
क्या कवि अपनी माँ की बात मानता था ? कैसे ?
उत्तर :
कवि ने छोटेपन से ही अपनी माँ को सभी प्रकार की समस्याओं से लड़ते हुए देखा था। उसके लिए माँ की बात सत्य थी। उसकी माँ जो कहती थी उसे वह मान लेता था। बचपन में उसकी माँ ने उसे दक्षिण दिशा में पैर करके सोने को मना किया था, क्योंकि यह दिशा यमराज देवता की है। वह यमराज का अनादर करके उन्हें क्रोधित करना नहीं चाहती थी। कवि उनकी बात मानकर कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया।

प्रश्न 4.
कवि ने ऐसा क्यों कहा है कि आज प्रत्येक दिशा दक्षिण दिशा है ?
उत्तर :
कवि को उसकी माँ ने बताया था कि दक्षिण दिशा यमराज की है, वह मौत का देवता है। इस दिशा में पैर करके सोना ठीक नहीं है परंतु कवि के अनुसार वर्तमान समय सभी दिशाएँ दक्षिण दिशा हो गई हैं। इसका कारण यह है कि आज सभी दिशाओं में मौत बसती है। चारों ओर विध्वंस, हिंसा, मार-काट, दंगे-फसाद हो रहे हैं। सारे संसार में मौत किसी-न-किसी रूप में तांडव कर रही है। मनुष्य-मनुष्य को मार रहा है इसलिए कवि को आज सभी दिशाएँ दक्षिण ही लगती हैं। आज चारों ओर मृत्यु का देवता अपने आलीशान महल में विराजमान है।

प्रश्न 5.
क्या आपकी माँ आपको सीख देती है ? यदि हाँ, तो उस सीख के विषय में लिखिए।
उत्तर :
संसार में सभी माएँ अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देती हैं। मेरी माँ ने भी मुझे अच्छी शिक्षा दी है। मुझे उनकी हर बात उचित लगती है क्योंकि उनके पास अपने जीवन का अनुभव होता है। वे मेरी शुभचिंतक भी हैं, वे मुझे तरह-तरह की सीख देती है, जैसे- ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास करना, अपने से बड़ों का सम्मान करना और कहना मानना, समय पर सभी काम करना, दूसरों की मदद करना, सभी प्रकार की बुराइयों से बचकर रहना, एक अच्छा इंसान बनकर देश की सेवा करना आदि।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 6.
‘यमराज की दिशा’ का मूल भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘यमराज की दिशा’ कविता के कवि चंद्रकांत देवताले हैं। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए चेतावनी- भरे स्वर में कहा है कि वर्तमान में मानव कहीं भी सुरक्षित नहीं है। जीवन-विरोधी ताकतें संसार में चारों ओर फैल रही हैं। कवि की माँ के अनुसार मृत्यु की दिशा दक्षिण थी। वे उसका सम्मान करने के लिए कहती थी। परंतु आज सभी दिशाएँ यमराज का घर बन चुकी हैं। विश्व के प्रत्येक कोने में हिंसा, विध्वंस तथा नाश और मौत का साम्राज्य है, इसलिए आज सभी दिशाएँ दक्षिण दिशा बन चुकी हैं।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बरदाश्त करने के
रास्ते खोज लेती है

शब्दार्थ : ईश्वर भगवान। जताती प्रकट करती। बरदाश्त – सहन।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से अवतरित है, जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ की सहनशक्ति और समझ के साथ-साथ उसकी आस्तिकता के भाव को प्रकट किया है। वह जीवन की प्रत्येक विपरीत स्थिति को आसानी से अपने आपको अनुकूल बना लेती थी।

व्याख्या : कवि कहता है कि यह कहना तो कठिन है कि उसकी माँ की कभी ईश्वर से भेंट हुई थी या नहीं, पर वह सदा ऐसा प्रकट करती थी जैसे वह ईश्वर को जानती थी और उसकी उससे बातचीत होती रहती थी। माँ के जीवन में जो-जो कष्ट आते थे वह ईश्वर को बताती थी, उस की सलाह लेती थी और सलाहों के अनुसार ही कार्य करती थी। वह जिंदगी जीने और दुख सहने के रास्ते ढूंढ़ लेती थी। ईश्वर पर विश्वास करती हुई वह सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर लेती थी।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
(क) माँ क्या जताया करती थी ?
(ख) माँ ईश्वर से क्या प्राप्त किया करती थी ?
(ग) माँ दुख सहन करने के रास्ते किस प्रकार खोज लेती थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) माँ जताया करती थी कि वह ईश्वर को जानती थी और उसकी उससे प्रायः बातचीत होती रहती थी।
(ख) माँ ईश्वर से सलाह प्राप्त किया करती थी कि किस प्रकार वह जीवन में आए कष्टों का निवारण कर सके और अपने परिवार को सुख-भरा जीवन दे सके।
(ग) माँ ईश्वर की सलाह पर जीवन में आए तरह-तरह के दुख सहने के रास्ते खोज लेती थी।
(घ) कवि ने अपनी माँ के परमात्मा के प्रति आस्था और विश्वास को प्रकट करते हुए माना है कि वह परिवार के सुखों के लिए सदा प्रयत्न करती थी और उसमें कष्टों को सहने की अपार क्षमता थी। सामान्य बोल-चाल के शब्दों का सहज प्रयोग किया गया है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। ‘मुलाकात’, ‘सलाह’, ‘बरदाशत’, ‘खोज’ जैसे सामान्य उर्दू शब्दों का प्रयोग कथन को स्वाभाविकता प्रदान करता है। अतुकांत छंद का प्रयोग है। स्मरण अलंकार विद्यमान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

2. माँ ने एक बार मुझे कहा था –
दक्षिण की तरफ़ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है।
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था –
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में

शब्दार्थ : क्रुद्ध – कुपित, नाराज।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ के विचारों और भावों को प्रकट किया है और कहा है कि वह यमराज को कभी क्रोधित नहीं करना चाहती थी।

व्याख्या – कवि पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहता है कि एक बार उसकी माँ ने उससे कहा था कि दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके कभी मत सोना, क्योंकि दक्षिण दिशा मौत के देवता यमराज की है। मौत के देवता को क्रोधित करना अकलमंदी नहीं है। तब कवि आयु में छोटा था। उसने अपनी माँ से यमराज के घर का पता पूछा था तो उसने कहा था कि वह जहाँ भी है, उसके दक्षिण में ही यमराज रहता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य- सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) कवि की माँ ने कवि को क्या कभी न करने को कहा था ?
(ख) माँ ने किसे बुद्धिमानी की बात नहीं माना था ?
(ग) कवि ने अपनी माँ से क्या जानने की इच्छा की थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की माँ ने उसे कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके न सोने की बात कही थी।
(ख) माँ ने मौत के देवता यमराज को नाराज करना बुद्धिमानी की बात नहीं मानी थी।
(ग) कवि ने अपनी माँ से जानना चाहा था कि मौत के देवता यमराज का घर कहाँ है।
(घ) कवि की माँ ने समझाया था कि दक्षिण दिशा यमराज की है। उस तरफ कभी भी पैर करके नहीं सोना चाहिए। तत्सम और तद्भव शब्दावली के सहज – समन्वित प्रयोग द्वारा कवि ने अपनी बात सरलता – सरसता से प्रकट की है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण का प्रयोग है। अतुकांत छंद है। कथोपकथन शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

3. माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फ़ायदा ज़रूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता

शब्दार्थ : समझाइश – समझाने। फ़ायदा – लाभ। छोर – किनारा।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ की सीख को जीवन भर माना था और कभी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया था।

व्याख्या : कवि कहता है कि माँ के द्वारा समझा देने के बाद वह कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोया था। इससे और कोई लाभ हुआ हो या नहीं पर इतना अवश्य हुआ कि उसे कभी भी दक्षिण दिशा को पहचानने में दिक्कत नहीं हुई। कवि कहता है कि वह दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक घूमा है और उसे दक्षिण दिशा में लाँघ लेना संभव नहीं था। यदि ऐसा होता तो वह उस छोर पर पहुँच कर यमराज का घर देख लेने में सफल हो जाता, पर ऐसा हो नहीं सका।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(क) माँ के समझाने के बाद कवि ने क्या काम कभी नहीं किया ?
(ख) कवि को किस बात को करने में कभी कठिनाई नहीं हुई ?
(ग) कवि यमराज का घर देखने में सफल क्यों नहीं हुआ ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) माँ के समझाने के बाद कवि कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोया।
(ख) कवि को कभी भी दक्षिण दिशा को ढूँढ़ने में कठिनाई नहीं हुई।
(ग) कवि कभी यमराज का घर देखने में सफल नहीं हुआ, क्योंकि वह दक्षिण दिशा के पार कभी पहुँच ही नहीं पाया।
(घ) कवि ने माँ के समझाने के बाद कभी भी दक्षिण में पैर करके सोने का साहस तो नहीं किया, पर यमराज के घर के विषय में जानने की जिज्ञासा अवश्य की जिसे वह कभी ढूँढ़ नहीं पाया। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास अलंकारों का सहज प्रयोग किया गया है। तत्सम और तद्भव शब्दों के साथ उर्दू के सरल शब्दों का समन्वित प्रयोग है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द – शक्ति ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। अतुकांत छंद है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

4. पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
माँ अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी वह नहीं रही
जो माँ जानती थी।

शब्दार्थ दहकती – जलती।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि का मानना है कि चाहे यमराज की दिशा दक्षिण है पर आज तो उसका साम्राज्य तो सारी दिशाओं में हो गया है। आज सभी दिशाओं में विध्वंस, हिंसा और मौत का तांडव हो रहा है। मौत तो सर्वत्र अपना राज्य जमा चुकी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि आज तो जिधर भी पैर करके सोओ वही दिशा दक्षिण हो जाती है। हर दिशा में मौत बसती है। हर दिशा में यमराज का आलीशान महल है और अपने हर महल से यह अपनी दहकती आँखों के साथ विराजते हैं। कवि की माँ अब जीवित नहीं है। वह यमराज की जिस दिशा के बारे में जानती थी वह भी अब यमराज की नहीं रही। यमराज की दिशाएँ तो सभी हैं। वह तो सारे विश्व में हर तरफ है, वह तो सर्वव्यापक हो गया है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
(क) कवि के लिए हर दिशा दक्षिण क्यों हो जाती है ?
(ख) यमराज की दिशा अब कौन-सी है ?
(ग) कवि की माँ कहाँ गई ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) विध्वंस, हिंसा, मार-काट, दंगे-फसाद आदि के कारण सारे संसार में मौत का तांडव हो रहा है। मनुष्य मनुष्य को मार रहा है, इसलिए कवि के लिए केवल दक्षिण दिशा ही यमराज की दिशा नहीं रही बल्कि हर दिशा ही दक्षिण दिशा हो गई है।
(ख) कवि के अनुसार सभी दिशाएँ ही अब यमराज की दिशाएँ हैं।
(ग) कवि की माँ यमराज के घर जा चुकी है।
(घ) कवि का मानना है कि अब यमराज केवल दक्षिण दिशा में नहीं रहता है। इस संसार में व्याप्त हिंसा ने उसके आलीशान महल भी सभी दिशाओं में बनवा दिए हैं, जिनमें यमराज अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं। कवि की भाषा में लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है जिसने कथन को गहनता – गंभीरता प्रदान की है। प्रसाद गुण और अतुकांत छंद का प्रयोग है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग किया गया है।

यमराज की दिशा Summary in Hindi

कवि-परिचय :

निम्न मध्य वर्ग के जीवन की नस-नस से परिचित कवि श्री चंद्रकांत देवताले प्रयोगधर्मी कविता के जाने-माने हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म सन् 1936 में गाँव जौलखेड़ा, जिला बैतूल, मध्यप्रदेश में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने उच्च शिक्षा इंदौर से प्राप्त की थी। इन्होंने हिंदी विषय में अपनी पीएच० डी० की उपाधि सागर विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। इन्होंने जीविकोपार्जन के लिए अध्यापन-कार्य को चुना था। साठोत्तरी हिंदी कविता के क्षेत्र को इन्होंने विशिष्ट योगदान दिया।

श्री देवताले के द्वारा रचित प्रमुख रचनाएँ हैं – हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बेंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि। इनके द्वारा रचित कविताएँ अति मार्मिक और सामयिक हैं जिनका सीधा संबंध आम आदमी और युग से है। इनकी कविताओं का अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं में और अनेक विदेशी भाषाओं में हुआ है। कवि को अपने लेखन कार्य के लिए ‘माखन लाल चतुर्वेदी पुरस्कार’, ‘मध्य प्रदेश का शासन का शिखर सम्मान’ आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

श्री देवताले की कविता का सीधा संबंध गाँवों, कस्बों और निम्नमध्य वर्ग के जीवन से है। उसमें मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। कवि को व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार, बेईमानी आदि के प्रति गहरा आक्रोश है। मानवीय संवेदनाओं से भी कवि का हृदय भरा हुआ है। वह असहाय और निर्धन वर्ग के प्रति विशेष प्रेम के भावों को अपने हृदय में संजोए हुए है।

उसकी वाणी में लुकाव – छिपाव नहीं है। वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहता है। कवि की भाषा खड़ी बोली है। सरल-सरस और भावपूर्ण भाषा में उसने अपनी बात को कहने का गुण प्राप्त किया है। उसकी भाषा में पारदर्शिता है। तत्सम और तद्भव शब्दावली को समन्वित प्रयोग के साथ-साथ उर्दू शब्दावली का प्रयोग भी सहज रूप से करने की क्षमता कवि ने दिखाई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

कविता का सार :

कवि ने अपनी कविता में सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए चेतावनी भरे स्वर में कहा है कि इस युग में मानव कहीं भी सुरक्षित नहीं है। इसका जीवन चारों ओर से संकट में घिरा हुआ है। जन-विरोधी ताकतें निरंतर फैलती जा रही हैं। कवि अपनी माँ को याद करते हुए कहता है कि वह ईश्वरीय भक्ति-भाव और आस्था के सहारे जीवन-शक्ति प्राप्त कर लेती थी। उसमें दुखों को सहन करने की अपार शक्ति थी।

वह मानती थी कि दक्षिण दिशा मृत्यु के देवता की है, इसलिए उस तरफ पैर करके कभी नहीं सोना चाहिए। यमराज को नाराज करना बुद्धिमत्ता नहीं है। कवि इसके बाद कभी भी दक्षिण दिशा में पाँव करके नहीं सोया, पर कवि मानता है कि अब तो सभी दिशाओं में यमराज हैं। आलीशान महल है और वे हर दिशा में अपनी दहकती आँखों के साथ विराजते हैं। अब तो हर दिशा में हिंसा, विध्वंस, नाश और मौत के चिह्न फैले हुए हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

JAC Class 9 Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द-चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभर कर आती हैं ?
उत्तर :
इस पाठ के आधार पर हम कह सकते हैं कि प्रेमचंद एक सीधे-सादे व्यक्ति थे। वे धोती-कुरता पहनते थे। वे सिर पर मोटे कपड़े की टोपी और पैरों में केनवस का साधारण जूता पहनते थे। अपनी वेशभूषा पर वे विशेष ध्यान नहीं देते थे। उनके फटे जूते से उनकी अँगुली बाहर निकली होने पर भी उन्हें संकोच या लज्जा नहीं आती थी। उनके चेहरे पर सदा बेपरवाही तथा विश्वास का भाव रहता था। वे जीवन-संघर्षों से नहीं घबराते थे। वे निरंतर कार्य करते रहते थे।

प्रश्न 2.
सही उत्तर के सामने (✓) का निशान लगाइए –
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुस्कान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो ?
उत्तर :
(क) ✗
(ख) ✓
(ग) ✗
(घ) ✗

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 3.
नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए –
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो ?
उत्तर :
(क) लेखक यह कहना चाहता है कि जूता टोपी से महँगा होता है, इसलिए एक सामान्य व्यक्ति के लिए जूता खरीदना आसान नहीं होता। एक जूते की कीमत में अनेक टोपियाँ खरीदी जा सकती हैं। टोपी तो नई पहनी जा सकती है पर जूता नया नहीं लिया जा सकता।
(ख) लेखक कहता है कि आज के युग में सभी अपनी कमियों, कमजोरियों तथा बुराइयों को छिपाकर रखते हैं इसलिए सभी परदे के महत्व को स्वीकार करते हैं परंतु प्रेमचंद किसी प्रकार के दिखावे में विश्वास नहीं रखते थे, इसलिए परदे का महत्व नहीं समझते थे। आज के आडंबर- प्रिय लोग बाहरी तड़क-भड़क में विश्वास करते हैं इसलिए परदे की प्रथा पर न्योछावर हो रहे हैं।
(ग) प्रेमचंद की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। वे जिसे पसंद नहीं करते थे उसकी खुलकर आलोचना करते थे। इसलिए लेखक ने लिखा है कि जिसे प्रेमचंद घृणा करते थे, उसकी ओर हाथ की नहीं पैर की अंगुली से संकेत करते थे।

प्रश्न 4.
पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी ? लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजह हो सकती है ?
उत्तर :
प्रेमचंद के बारे में लेखक का विचार इसलिए बदल गया, क्योंकि उसे लगा कि प्रेमचंद एक सीधे-साधे व्यक्ति थे। वे अपनी वेशभूषा के बारे में अधिक ध्यान नहीं देते थे। वे एक सामान्य व्यक्ति के समान उपलब्ध साधनों के अनुसार ही वेशभूषा धारण करते थे। उन्हें दिखावे में विश्वास नहीं था। वे जैसे हैं वैसे ही दिखाई देना चाहते थे

प्रश्न 5.
आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं ?
उत्तर :
इस व्यंग्य को पढ़कर मुझे लेखक की निम्नलिखित बातें आकर्षित करती हैं –
1. लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व का शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है- ‘सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं।’
2. लेखक ने प्रेमचंद के जूते का पूरा विवरण दिया है। जूता केनवस का है। इसके बंध उन्होंने बेतरतीब बाँधे हैं। बंध के सिरे की लोहे की पतरी निकल गई है। जूते के छेदों में बंध डालने में परेशानी होती है। दाहिने पाँव का जूता ठीक है, परंतु बाएँ जूते के आगे बड़ा-सा छेद है, जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
3. लेखक ने प्रचलित अंग्रेजी शब्दों का सहज रूप से प्रयोग किया है, जैसे- ‘रेडी प्लीज़’, ‘क्लिक’, ‘थैंक्यू’, ‘ट्रेजडी, फोटो।
4. गोदान, पूस की रात, कुंभनदास आदि के उदाहरण।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 6.
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा ?
उत्तर :
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग जीवन में आनेवाले संघर्षों, मुसीबतों, कठिनाइयों, समस्याओं, परेशानियों आदि के लिए किया गया है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 7.
प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर :
अपनी मनपसंद पोशाक पहनना सबकी निजी पसंद होती है। कोई कुछ भी पहने इस पर किसी को कुछ कहने का अधिकार तो नहीं है परंतु पोशाक की विचित्रता पर हँसा तो जा ही सकता है। मेरे पड़ोसी लगभग साठ वर्ष के हैं; व्यापारी हैं और वर्षों से यहीं रह रहे हैं। उनकी लाल पैंट पर भड़कीली हरी कमीज़ और सिर पर पीली टोपी सहसा सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। पता नहीं उनके पास इस तरह की रंग-बिरंगी पोशाकें कितनी हैं पर जब-जब वे बाहर निकलते हैं, सड़क पर चलती-फिरती होली के रंगों की बहार लगते हैं। जो उन्हें पहली बार देखता है वह तो बस उनकी ओर देखते ही रह जाता है, पर इसका कोई असर उनकी सेहत पर नहीं पड़ता।

प्रश्न 8.
आपकी दृष्टि में वेशभूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है ?
उत्तर :
आजकल लोग अपनी वेशभूषा के प्रति बहुत जागरूक हो गए हैं। वे अवसर के अनुकूल वेशभूषा का चयन करते हैं। विद्यालयों में निश्चित वेशभूषा पहनकर जाना होता है। घरों में तथा विभिन्न त्योहारों, शादियों, सभाओं, समारोहों आदि के अवसर पर हम अपनी पसंद की वेशभूषा धारण कर सकते हैं। लड़के अधिकतर पैंट-शर्ट अथवा जींस तथा टी-शर्ट पहनना पसंद करते हैं। वे अच्छे जूते पहनते हैं। लड़कियाँ भी सलवार-सूट के साथ मैचिंग दुपट्टा और सैंडिल अथवा टॉप- जींस अथवा साड़ी पहनती हैं। सबको अपने व्यक्तित्व को निखारने वाले रंगों के वस्त्र पहनने अच्छे लगते हैं। आज वेशभूषा से ही किसी व्यक्ति के स्वभाव, स्तर आदि का ज्ञान हो जाता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी वेशभूषा के प्रति बहुत सजग हो गया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 9.
पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :

  • न्योछावर होना – माँ अपने बेटे की वीरता पर न्योछावर हो रही थी।
  • ठाठ से रहना – अनिल दस लाख रुपए की लॉटरी निकलते ही ठाठ से रहने लग गया है।
  • चक्कर काटना – शौकत से अपना कर्जा वसूलने के लिए पठान बार-बार उसके घर के चक्कर काट रहा है।
  • ठोकर मारना – सीमा ने ठोकर मारकर रोशनी को गिरा दिया।
  • भरा-भरा – शेर सिंह का चेहरा उसकी घनी मूँछों के कारण भरा-भरा लगता है।

प्रश्न 10.
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
उत्तर :
मोटे, चिपकी, घनी, फटा, तीखा।

JAC Class 9 Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पठित पाठ के आधार पर प्रेमचंद के व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
इस पाठ में प्रेमचंद को एक साधारण व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। उनके सिर पर मोटे कपड़े की टोपी है। वे कुरता-धोती पहनते हैं। उनकी कनपटी चिपकी हुई तथा गालों की हड्डियाँ उभरी हुई हैं। उनकी घनी मूँछें उनके चेहरे को भरा-भरा बना देती हैं। वे केनवस के जूते पहनते हैं। उन्हें जूतों के फटे होने की भी चिंता नहीं रहती है। उनके चेहरे पर सदा बेपरवाही और विश्वास का भाव रहता है। उन्हें अपनी इस सामान्य वेशभूषा पर लज्जा अथवा संकोच नहीं होता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 2.
लेखक के विचार में फ़ोटो कैसे खिंचवानी चाहिए ?
उत्तर :
लेखक का विचार है कि फ़ोटो खिंचवाने के लिए ठीक वेशभूषा पहननी चाहिए। यदि अपने पास अच्छे वस्त्र और जूते न हों तो किसी से माँग लेने चाहिए, क्योंकि लोग तो वर दिखाई देने के लिए कोट और बारात निकालने के लिए मोटर तक माँग लेते हैं कुछ लोग तो इत्र लगाकर फोटो खिंचवाते हैं कि शायद फोटो में सुगंध आ जाए।

प्रश्न 3.
लेखक के विचार में प्रेमचंद का जूता कैसे फटा होगा ?
उत्तर
लेखक का विचार है कि प्रेमचंद का जूता परिस्थितियों से समझौता न कर सकने के कारण फट गया होगा। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि वे नया जूता ख़रीद सकते। वे अपने फटे जूते को तब तक पहने रखना चाहते थे जब तक कि वह पूरी तरह फट न जाए।

प्रश्न 4.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के माध्यम से लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी का वर्णन करते हुए लेखकों की दयनीय आर्थिक स्थिति पर कटाक्ष किया है। प्रेमचंद युग-प्रवर्तक कथाकार एवं उपन्यास सम्राट कहे जाते हैं, परंतु उन्हें फटे जूते पहनकर अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा। वे इतने सहज थे कि उन्हें अपनी फटेहाली पर लज्जा या संकोच नहीं होता था। वे बेपरवाह तथा दृढ़ विश्वासी थे। इसके विपरीत आज का समाज प्रदर्शन-प्रधान हो गया है। प्रेमचंद की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था।

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प्रश्न 5.
लेखक का साहित्यिक पुरखे से क्या अभिप्राय है और वह उसे क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
लेखक का साहित्यिक पुरखे से अभिप्राय मुंशी प्रेमचंद से है क्योंकि वे लेखक से पहले के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, कथाकार, निबंधकार और युग प्रवर्तक साहित्यकार थे। लेखक उन्हें यह समझाना चाहता है कि उनका जूता फटा हुआ था जिसमें से अँगुली बाहर दिखाई दे रही थी। वह उसी फटे जूते को पहनकर फोटो खिंचाने चले गए। उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए था। फोटो खिंचाते समय धोती को थोड़ा नीचे खींच लेते तो अँगुली ढँक सकती थी।

प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार मुंशी प्रेमचंद का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर :
मुंशी प्रेमचंद बहुत ही सीधे स्वभाव के व्यक्ति थे। वे अपने में मस्त रहते थे। उन्हें अपने पहनावे की कोई चिंता नहीं रहती थी। उन्हें फटा जूता पहनने में भी कोई लज्जा या संकोच नहीं था। वह अपनी ग़रीबी छिपाने के लिए कोई प्रबंध नहीं करते थे। उनके चेहरे पर बेपरवाही और विश्वास दिखाई देता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 7.
लोग क्या- क्या माँगकर अपनी आर्थिक स्थिति छिपाते हुए कार्य पूरे करते हैं ?
उत्तर :
लेखक कहता है कि प्रेमचंद जी को फोटो खिंचवाने के लिए जूते माँग लेने चाहिए थे। लोग तो बहुत कुछ माँगकर अपने जीवन के बड़े- से- बड़ा काम पूरे करते हैं। कोट माँगकर वर दिखाई करते हैं। मोटर माँग कर बारात निकालते हैं। कई बार फोटो अच्छी आए, इसलिए बीवी तक माँग ली जाती है। इस तरह लोग अपने जीवन की कमी को छिपाकर बड़े-से-बड़ा काम पूरा कर लेते हैं।

प्रश्न 8.
लेखक को आज क्या बात चुभ रही है और क्यों ?
उत्तर :
फोटो में प्रेमचंद का जूता फटा हुआ है। यह देखकर लेखक को उसके जीवन की दयनीय स्थिति बहुत चुभ रही थी। इसका कारण यह था कि मुंशी प्रेमचंद महान कथाकार, उपन्यास सम्राट, युग प्रवर्तक लेखक आदि थे परंतु विडंबना यह थी कि ऐसे महान साहित्यकार ने संपूर्ण जीवन संघर्षमय व्यतीत किया है।

प्रश्न 9.
लेखक और मुंशी प्रेमचंद के जूते में क्या समानता और अंतर था ?
उत्तर :
लेखक और मुंशी प्रेमचंद दोनों के जूते फटे हुए थे। उनके संघर्षमय जीवन की कथा का वर्णन कर रहे थे। एक साहित्यकार दूसरों के जीवन की प्रेरणा बनता है परंतु स्वयं जीवन की कठिनाइयों से जूझता रहता है। दोनों के फटे जूते में अंतर यह था कि मुंशी प्रेमचंद का जूता सामने से फटा हुआ था, जिससे पैर की अंगुली बाहर निकल रही थी जबकि लेखक का जूता नीचे से घिसने के कारण उसका तला फट गया था, जिससे उसकी अँगुली ढकी रहती थी परंतु पंजा नीचे से घिसता रहता था।

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प्रश्न 10.
प्रेमचंद तथा गोदान के पात्र होरी की क्या कमज़ोरी थी ?
उत्तर :
दोनों सामाजिक तथा सांस्कृतिक मर्यादाओं में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। अपनी नैतिकता बिल्कुल भी नहीं छोड़ते। अपना संपूर्ण जीवन गरीबी में व्यतीत करते हैं, परंतु दोनों की कमज़ोरी के दायरे भिन्न थे। होरी की कमज़ोरी एक बंधन बन गई जिससे वह लड़ता हुआ अंत में मर जाता है जबकि प्रेमचंद के लिए उसकी कमज़ोरी बंधन नहीं बन पाती, बल्कि ताकत बन जाती है इसलिए वे आजादी भरा जीवन व्यतीत करते थे। यह सब उन्हें अच्छा लगता था।

प्रश्न 11.
प्रेमचंद ने यह क्यों कहा कि मैं चलता रहा ? मगर तुम चलोगे कैसे?
उत्तर :
प्रेमचंद ने ऐसा इसलिए कहा है कि वे अपने जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयों से लड़ते हुए आगे बढ़ते रहे। उन्होंने कभी भी तंगहाली को छिपाने का प्रयास नहीं किया है। वे जिस हाल में रहे, सदा सहज भाव से निरंतर आगे ही बढ़ते रहे परंतु उसकी मुसकान दूसरे लोगों को कह रही है कि दिखावा – पसंद जीवन व्यतीत करने वाले लोग समझौता करते रहते हैं। अपनी तंगहाली को छिपाकर दुनिया में अपनी शान बढ़ाना चाहते हैं परंतु एक दिन सब कुछ सामने आने पर वे लोग जीवन में आगे बढ़ना भूल जाएँगे। वे चल भी नहीं पाएँगे।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. मैं चेहरे की तरफ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अँगुली बाहर दिख रही है ? क्या तुम्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है ? ज़रा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है ? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अँगुली ढक सकती है ? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है !

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक ने ‘साहित्यिक पुरखे’ किसे कहा है ?
2. लेखक किस लज्जा की बात करता है ?
3. लेखक के अनुसार अँगुली कैसे ढक सकती थी ?
4. लेखक क्यों कहता है कि मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है ?
उत्तर :
1. लेखक ने मुंशी प्रेमचंद को साहित्यिक पुरखे कहा है।
2. लेखक देखता है कि प्रेमचंद का जूता फट गया जिससे उनकी अँगुली बाहर दिख रही है। इस पर उन्हें लज्जा आनी चाहिए थी, मगर उनके चेहरे पर लज्जा, संकोच या झेंप नजर नहीं है
3. लेखक के अनुसार यदि प्रेमचंद अपनी धोती थोड़ा नीचे खींच लेते तो उनकी जूते से बाहर दिख रही अँगुली ढक सकती थी।
4. लेखक देखता है कि प्रेमचंद का जूता फट गया है और उनकी अँगुली दिख रही है। उन्हें इस बात का ज़रा भी अहसास नहीं। उनके चेहरे पर लज्जा, संकोच या झेंप का कोई निशान नहीं। इसलिए लेखक उन्हें कहता है कि मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है।

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2. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है। जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. जूते उस जमाने में कितने रुपये के मिलते होंगे ?
2. लेखक क्यों कहता है कि एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं ?
3. लेखक को कौन-सी विडंबना चुभ रही है और क्यों ?
उत्तर :
1. जूते उस जमाने में पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे।
2. जूते हमेशा टोपियों से कीमती रहे हैं। एक जोड़ी जूते की कीमत में पच्चीसों टोपियाँ आ सकती हैं। इसलिए लेखक कहता है कि एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
3. लेखक जब प्रेमचंद का फटा जूता देखता है तो उसे यह विडंबना लगती है। उसे लगता है कि प्रेमचंद भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। इसलिए वह फटा जूता पहने हुए है। लेखक की यही विडंबना चुभ रही है।

3. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा ज़मीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं !

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कौन और कैसे लहूलुहान हो जाता है ?
2. ‘हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।’ आशय स्पष्ट कीजिए।
3. लेखक का जूता कैसा है ?
4. गद्यांश किस शैली का है ? अपना विचार लिखिए।
उत्तर :
1. लेखक के जूते का तला घिस गया है, जिस कारण उसका अँगूठा ज़मीन से घिसता है और कभी-कभी पैनी मिट्टी से रगड़ खाकर लहुलूहान
हो जाता है।
2. यहाँ परदे से आशय दिखावे की प्रवृत्ति से है। अंदर से इनसान चाहे कितना भी कमज़ोर या गरीब हो, वह बाहर से स्वयं को बलशाली और अमीर दिखाना चाहता है।
3. लेखक का जूता फटा हुआ है।
4. यह गद्यांश व्यंग्यात्मक शैली का है। इसमें लेखक ने प्रेमचंद और खुद के फटे जूते के बहाने समाज में व्याप्त दिखावे और आत्म-प्रदर्शन की प्रवृत्ति पर कड़ा प्रहार किया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

4. तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमज़ोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही ‘नेम-धरम’ वाली कमज़ोरी ? ‘नेम-धरम’ उसकी भी जंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुस्करा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति भी !

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
1. होरी की क्या कमज़ोरी थी ?
2. होरी को उसकी कमज़ोरी कैसे ले डूबी ?
3. प्रेमचंद के लिए ‘नेम-धरम’ क्या और क्यों था ?
4. ‘नेम धरम’ उसकी भी जंज़ीर थी। आशय स्पष्ट कीजिए।
5. होरी कौन था जिसका उल्लेख किया गया है ?
उत्तर :
1. ‘नेम – धरम’ होरी की कमज़ोरी थी।
2. सामाजिक मर्यादाओं के बंधनों में बँधे रहने के कारण होरी को सारा जीवन ग़रीबी में व्यतीत करते हुए बिताना पड़ा और अंत में अभावों से लड़ता हुआ मर गया।
3. प्रेमचंद के लिए अपने नैतिक मूल्यों का पालन करना तथा सामाजिक मर्यादाओं के अनुसार जीवन-यापन करना बंधन न होकर मुक्ति थी। यह सब उन्हें अच्छा लगता था।
4. वह सामाजिक एवं सांस्कृतिक मर्यादाओं के बंधनों में बँधकर जीवन व्यतीत करता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

5. होरी मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ का नायक था जिसका दीन-हीन जीवन प्रेमचंद से मिलता-जुलता था। तुम मुझ पर या हम सभी पर हँस रहे हो, उन पर जो अँगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं। तुम कह रहे हो – मैंने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अँगुली बाहर निकल आई, पर पाँव बचा रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अँगुली को ढाँकने की चिंता में तलुवे का नाश कर रहे हो। तुम चलोगे कैसे?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. प्रेमचंद किन पर और क्यों हँस रहे हैं ?
2. ‘टीले को बरकाकर बाजू से निकलने से क्या तात्पर्य है ?
3. प्रेमचंद ने यह क्यों कहा कि मैं चलता रहा ?
4. प्रेमचंद को यह चिंता क्यों है कि तुम चलोगे कैसे?
5. लेखक के भाव किस प्रकार के हैं ?
उत्तर :
1. प्रेमचंद उन सब पर हँस रहे हैं जो अपनी कमजोरियाँ छिपाते हैं तथा दिखावा करते हैं। इस प्रकार ये लोग अपना ही नुकसान करते हैं। ये लोग अँगुली ढाँकने की चिंता में अपना तलुआ घिसा देते हैं।
2. इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि आज समाज में हम लोग समस्याओं को अनदेखा करते हैं। उनका कोई हल नहीं निकालते हैं। हम समझौतावादी बनकर उनसे बच निकलते हैं।
3. प्रेमचंद ने यह इसलिए कहा है कि वे समस्याओं से जूझते रहे हैं तथा जमाने को ठोकरें मारकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे हैं। उन्होंने कभी किसी प्रकार का दिखावा नहीं किया। वे जिस हाल में रहे, सदा सहज भाव से निरंतर आगे ही बढ़ते रहे।
4. प्रेमचंद को यह चिंता इसलिए है कि आजकल लोग आडंबर अधिक करते हैं। अपनी प्रदर्शनप्रियता के कारण वे जीवन में संघर्ष करने के स्थान पर निरंतर समझौते करते चलते हैं। इस कारण वे अपने लक्ष्य तक भी नहीं पहुँच पाते।
5. लेखक के भाव व्यंग्य से भरे हैं जिनमें पीड़ा के भाव छिपे हुए हैं।

प्रेमचंद के फटे जूते Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन परिचय – हिंदी के सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त सन् 1922 ई० को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई थी। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आपने कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य किया परंतु बार-बार स्थानांतरणों से तंग आकर अध्यापन कार्य छोड़ स्वतंत्र लेखन कार्य करने का निर्णय किया।

परसाई जी जबलपुर में बस गए और वहीं से कई वर्षों तक ‘वसुधा’ नामक पत्रिका निकालते रहे। आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें यह पत्रिका बंद करनी पड़ी। परसाई जी की रचनाएँ प्रमुख पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। सन् 1984 ई० में ‘साहित्य अकादमी’ ने इन्हें इनकी पुस्तक ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए पुरस्कृत किया था। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने इन्हें इक्कीस हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया, जिसे वहाँ के मुख्यमंत्री ने स्वयं इनके घर जबलपुर आकर दिया। इन्हें बीस हजार रुपए के ‘चकल्लस पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। परसाई जी प्रगतिशील लेखक संघ के प्रधान भी रहे।

हिंदी व्यंग्य लेखन को सम्मानित स्थान दिलाने में परसाई जी का महत्वपूर्ण योगदान है। सन् 1995 ई० में इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – परसाई जी का व्यंग्य हिंदी साहित्य में अनूठा है। सुप्रसिद्ध पत्रिका ‘सारिका’ में इनका स्तंभ ‘तुलसीदास चंदन घिसे’ अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था। इन सामाजिक विकृतियों को इन्होंने सदा ही अपने पैने व्यंग्य का विषय बनाया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है –

कहानियाँ – ‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’, ‘दो नाकवाले लोग’, ‘माटी कहे कुम्हार से’।

उपन्यास – ‘रानी नागफनी की कहानी’ तथा ‘तट की खोज’।

निबंध संग्रह – ‘ तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेइमानी की परत’, ‘पगडंडियों का जमाना’, ‘सदाचार का ताबीज़’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘निठल्ले की डायरी’।

भाषा-शैली – परसाई जी की भाषा अत्यंत व्यावहारिक तथा सहज है किंतु इनके व्यंग्य – बाण बहुत तीखे हैं। ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ लेख में लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी तथा एक लेखक की फटेहाली का यथार्थ अंकन किया है। लेखक ने उपहास, आग्रह, आनुपातिक, प्रवर्तक जैसे तत्सम शब्दों के साथ-साथ फ़ोटो, केनवस, पोशाक, अहसास, क्लिक, ट्रेजडी, बरकरार जैसे विदेशी तथा पन्हैया, पतरी जैसे देशज शब्दों का प्रयोग भी किया है। हौसले पस्त होना, चक्कर काटना आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा में पैनापन आ गया है।

लेखक की शैली व्यंग्यात्मक है, जिसमें कहीं-कहीं चित्रात्मकता के भी दर्शन हो जाते हैं, जैसे प्रेमचंद के व्यक्तित्व का यह शब्द – चित्र उनके रूप को स्पष्ट कर देता है – ‘सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं।’ इस प्रकार इनकी भाषा सामान्य बोलचाल की भाषा होते हुए भी किसी भी स्थिति पर कटाक्ष करने में सक्षम है –

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

पाठ का सार :

हरिशंकर परसाई ने ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में प्रेमचंद की सादगी का वर्णन करते हुए समाज में व्याप्त दिखावे की प्रवृत्ति कर कटाक्ष किया है। लेखक प्रेमचंद और उनकी पत्नी का फोटो देखकर सोचता है कि यदि प्रेमचंद की फोटो खिंचाने की पोशाक सिर पर मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती, केनवस के जूते और बाएँ जूते के बड़े से छेद में से बाहर निकलती हुई अँगुली है तो, उनकी आम पहनने की पोशाक कैसी होगी ?

लेखक को हैरानी होती है कि क्या प्रेमचंद को फोटो खिंचवाते समय यह पता नहीं था कि उनका जूता फटा हुआ है जिसमें से अँगुली बाहर दिखाई दे रही है ? उन्हें इस पर न लज्जा आई, न संकोच हुआ। वे यदि धोती को जरा नीचे खींच लेते तो अँगुली ढक सकती थी। फोटो खिंचवाते समय इनके चेहरे पर बेपरवाही और बहुत विश्वास दिखाई देता है। इनके चेहरे पर एक अधूरी मुस्कान है जो किसी का उपहास करती प्रतीत होती है।

लेखक सोचता है कि यह कैसा आदमी है जो फटे हुए जूते पहनकर फोटो खिंचवा रहा है और किसी पर हँस भी रहा है। इसे ठीक जूते पहनकर फोटो खिंचवानी चाहिए थी। लगता है कि पत्नी के आग्रह पर जैसा वह था, वैसे ही फोटो खिंचवाने चल पड़ा होगा। उसे इस बात का दुख है कि इस आदमी के पास फोटो खिंचवाने के लिए भी अच्छा जूता न था। उसे लगता है कि प्रेमचंद फोटो का महत्व नहीं समझते, नहीं तो किसी से जूते माँगकर ही फोटो खिंचवाते। लोग माँगे के कोट से वर दिखाई देते हैं और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। प्रेमचंद के समय में टोपी आठ आने में और जूते पाँच रुपए में मिल जाते होंगे।

अब तो एक जूते की कीमत में पच्चीसों टोपियाँ आ जाती हैं। प्रेमचंद जैसे कथाकार, उपन्यास सम्राट्, युग प्रवर्तक को फोटो में फटे जूते पहने देखकर लेखक बहुत दुखी है। लेखक का अपना जूता भी कोई खास अच्छा नहीं है। वह ऊपर से अच्छा है परंतु उसके अँगूठे के नीचे का तला घिस गया है। प्रेमचंद के जूते से अँगुली बाहर निकली हुई थी परंतु लेखक का पंजा नीचे से घिस रहा है। उसे अपनी अँगुली ढके होने का लाभ यह है कि उसके जूते के फटे हुए तले का किसी को पता नहीं चलता, क्योंकि वह परदे में है।

प्रेमचंद फटा जूता ठाठ से पहनते हैं पर लेखक को ऐसा करने में संकोच का अनुभव होता है। वह आजीवन ऐसा फोटो नहीं खिंचवाएगा। प्रेमचंद की मुसकान उसे चुभती हुई लगती है। वह सोचता है कि इस मुसकान का अर्थ यह तो नहीं है कि होरी का गोदान हो गया अथवा पूस की रात में नीलगाय हल्कू का खेत चर गईं या डॉक्टर के न आने से सुजान भगत का लड़का मर गया। उसे लगता है कि जब माधो औरत के कफ़न के चंदे से शराब पी गया था तो यह उस समय की मुसकान है।

लेखक फिर से प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर सोचता है कि शायद बनिए के तगादे से बचने के लिए मील- दो-मील का चक्कर लगाकर घर लौटने के कारण इनके जूते फट गए थे। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी जाने-आने में घिस गया होगा तो उन्हें कहना पड़ा- ‘आवत जात पन्हैया घिस गई बिसर गयो हरि नाम।’

जूता तो चलने से घिसता या फटता नहीं, तो तुम्हारा जूता कैसे फटा ? लेखक को लगता है कि प्रेमचंद किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे होंगे जिससे उनका जूता फट गया होगा। वे उस सख्त चीज़ को ठोकर मारे बिना भी निकल सकते थे, जैसे नदियाँ पहाड़ फोड़ने के स्थान पर रास्ता बदलकर घूम कर चली जाती हैं। प्रेमचंद समझौतावादी नहीं थे। इसलिए उनके पाँव की अँगुली उस ओर संकेत करती हुई लगती है कि जो घृणित है, उसकी ओर हाथ की नहीं पाँव की अँगुली से तुम इशारा करते हो।

वास्तव में तुम उन सब पर हँसते हो जो अँगुली छिपाते हैं और तलुआ घिसते हैं, जो समझौतावादी हैं। प्रेमचंद ने तो अँगुली जूते को फाड़कर बाहर निकाल ली पर पाँव तो बचा लिया था, परंतु जो तलुवे घिस रहे हैं उनका तो पाँव ही घिस जाएगा। वे चलेंगे कैसे ? लेखक प्रेमचंद के फटे जूते और अँगुली के इशारे को समझ रहा है और उनकी व्यंग्य-भरी मुसकान का अर्थ भी जानता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • चित्र – फोटो
  • उपहास – मजाक उड़ाना
  • ट्रेजडी – दुखद घटना
  • महसूस – अनुभव
  • कुर्बान – न्योछावर
  • पन्हयया – जूती
  • उपजत – पैदा होना
  • मुक्ति – आजादी
  • बंद – फीते
  • आग्रह – अनुरोध
  • क्लेश – दुख, कष्ट
  • विडंबना – हँसी उड़ाना
  • तगादे – तकाज़े
  • बिसर – भूल
  • नेम – नियम
  • बरकरार – सुरक्षित

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

JAC Class 9 Hindi मेघ आए Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बादलों के आने पर प्रकृति में जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखिए।
उत्तर :
बादलों के आने पर प्रकृति प्रसन्नता से भरकर जिस प्रकार नाच उठती है उससे अनेक गतिशील क्रियाएँ प्रकट होती हैं। हवा नाचती- गाती आगे-आगे चली। पेड़ झुककर गरदन उचकाए झाँकने लगे। धूल रूपी आँधी घाघरा उठाकर भाग चली। नदी बाँकी चितवन उठा कर ठिठकी और उसका घूँघट सरका। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की। लता किवाड़ की ओर से अकुलाई और बोली। तालाब हर्षाया और परात-भर कर पानी लाया। बादल क्षितिज रूपी अटारी तक आए और बिजली कौंधी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित किसके प्रतीक हैं ?
धूल, पेड़, नदी, लता, ताल।
उत्तर :

  1. धूल – गाँव की घाघरा उठाकर भागने वाली छोटी लड़कियों का।
  2. पेड़ – गाँव के जाने-अनजाने आदमियों का।
  3. नदी – गाँव की युवतियों का।
  4. लता – विरहिनी प्रियतमा का।
  5. ताल – घर का कोई सदस्य या पुराना वफादार नौकर।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

प्रश्न 3.
लता ने बादल रूपी मेहमान को किस तरह देखा और क्यों ?
उत्तर :
लता ने विरहिनी, प्रियतमा, नायिका या पत्नी के रूप में बादल रूपी प्रियतम की ओर लाज-भरी आँखों से देखा था, जिसमें उलाहना भरा हुआ था कि वे बहुत दिनों बाद आए। गाँव में प्रियतमा का अपने प्रियतम से सबके सामने खुले रूप में मिलने का रिवाज प्रायः नहीं होता।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की।
(ख) बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
उत्तर :
(क) धरती मानो बादलों से कह रही हो कि क्षमा करो। अभी तक यह समझ रहे थे कि आकाश में उमड़-घुमड़ कर आए बादल बरसेंगे नहीं, पर अब यह भ्रम टूट गया है। इससे यह ध्वनि भी उत्पन्न होती है कि तुम्हारे कभी न आने का जो भ्रम बना हुआ था, वह अब टूट गया है।
(ख) नदी अपने प्रवाह को थोड़ा रोककर ठिठक कर खड़ी हो गई। नदी रूपी गाँव की नदी रूपी युवती ने अपने मुँह पर घूँघट सरका लिया और तिरछी नज़रों से सजे-सँवरे बादलों की ओर देखने लगी।

प्रश्न 5.
मेघरूपी मेहमान के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए ?
उत्तर:
मेघ रूपी मेहमान के आने से सारे वातावरण में तरह-तरह के परिवर्तन हुए। मेघ के आगमन पर बयार नाचने-गाने लगी अर्थात् हवा चलनी आरंभ हो गई। पेड़ मेघों को देखने के लिए गरदन ऊपर उठाकर झाँकने लगे। नदी भी एक पल के लिए रुककर मुख पर घूँघट डालकर तिरछी नजरों से मेघों को देखने की चेष्टा करने लगी। लता तो किवाड़ की आड़ में छिपकर मेघों को देर से आने का उपालंभ देने लगी। ताल खुशी से भरकर मेघों के स्वागत में अपना जल अर्पित करने को तैयार हो गए।

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प्रश्न 6.
मेघों के लिए बन-ठन के, सँवर के आने की बात क्यों कही गई है ?
उत्तर:
दामाद की तरह मेघ गाँव में लंबे समय के बाद लौटा था। वह सज-सँवर कर, बन-ठन कर लौटा था, क्योंकि वह गाँव के सभी अपनों- परायों पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालना चाहता था।

प्रश्न 7.
कविता में आए मानवीकरण तथा रूपक अलंकार के उदाहरण खोज कर लिखिए।
उत्तर :
(क) जिन अंशों में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है, वे निम्नलिखित हैं –

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली
पेड़ झुक झाँकने लगे, गरदन उचकाए
धूल भागी घाघरा उठाए
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’-
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।

(ख) जिन अंशों में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है, वे निम्नलिखित हैं –

गाती बयार
बाँकी चितवन
बूढ़े पीपल
अकुलाई लता
क्षितिज अटारी

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प्रश्न 8.
कविता में जिन रीति-रिवाजों का मार्मिक चित्रण हुआ है, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नगर में रहने वाला विशिष्ट अतिथि (दामाद) जब गाँव पहुँचा तो उसका सबने मिलजुल कर स्वागत किया। गाँव से बाहर लगे बूढ़े बरगद ने आगे बढ़कर उसका अभिनंदन किया, उससे प्रेम-भरी बातचीत की। ताल द्वारे उसके पाँव धोने के लिए परात में पानी लाया गया। प्रियतमा एकदम उसके सामने नहीं आई, बल्कि किवाड़ के पीछे छिपी रही और उसने मंद स्वर में देर से आने का उलाहना दिया।

प्रश्न 9.
कविता में कवि ने आकाश में बादल और गाँव में मेहमान के (दामाद) आने का जो रोचक वर्णन किया है, उसे लिखिए।
उत्तर :
कवि ने आकाश में बादल और गाँव में दामाद आने का जो रूपक प्रकट किया है वह अति स्वाभाविक और प्रभावशाली है। नगर में रहने वाला कोई युवक जब दामाद के रूप में गाँव में जाता है तो वह सज-सँवर कर, बन-ठन कर जाता है। बादल भी वैसे ही बड़े बन-ठन कर गाँव पहुँचे। बादलों के आगे-आगे तो गति से बहती हवा चलती है और घरों की खिड़कियाँ दरवाजे स्वयं खुलने लगते हैं। दामाद के गाँव में पहुँचते ही छोटे-छोटे बच्चे उन्हें पहचान कर नाचते-कूदते उससे आगे-आगे भागते हुए उनके आगमन की पूर्व सूचना देने लगते हैं। गली-मोहल्ले के लोग खिड़कियों-दरवाजों से उत्सुकतापूर्वक उसकी झलक पाने की चेष्टा करने लगते हैं।

बादल आने पर पेड़ तेज़ हवा में झूमने लगते हैं, झुकने लगते हैं। आँधी चलने लगती है। दामाद के आने से गाँव के लोग झुककर गर्दन उचका कर उसे देखने का प्रयत्न करते हैं। छोटी-छोटी लकड़ियाँ प्रसन्नता की अधिकता के कारण अपने कपड़े समेट घर की ओर दौड़ पड़ती हैं। युवा नारियाँ बाँकी चितवन से घूँघट सरकाकर उधर देखने लगती हैं। जैसे ही बादल गाँव में पहुँचता है वैसे ही पीपल का बूढ़ा पेड़ उसे आशीर्वाद देते और स्वागत करते हुए उससे कहता है कि पूरे एक वर्ष बाद गाँव में आए हो। दामाद से भी घर के बड़े-बूढ़े देर से आने की प्रेम-भरी शिकायत करते हैं और उसका स्वागत करते हैं।

बादल आने पर आँगन में लगी बेल ओट में सरक जाती है तो दामाद के आने से लाज-भरी प्रियतमा अकुलाकर दरवाजों की ओट में हो जाती है। घर का कोई सदस्य दामाद के पैर धोने के लिए परात में पानी भर लाता है। आकाश में छाए बादल बरसकर अपने आगमन का उद्देश्य पूरा कर देते हैं, तो मिलन की घड़ी में दामाद और प्रियतमा की आँखें भी रिमझिम बरसने लगती हैं।

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प्रश्न 10.
काव्य-सौंदर्य लिखिए –
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
उत्तर :
नगर की ओर से बादल बहुत बन-ठन कर दामाद की तरह गाँव में पधारे और उनके पधारने से सब प्रसन्नता से भर उठे। कवि ने रूपक के प्रयोग से अति सुंदर चित्र – योजना की है। अनुप्रास अलंकार, मानवीकरण और उत्प्रेक्षा का प्रयोग अति स्वाभाविक रूप से प्रकट हुआ है। तद्भव और देशज शब्दावली के प्रयोग ने कथन को सहजता प्रदान की है। प्रसाद गुण विद्यमान है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 11.
वर्षा के आने पर अपने आस-पास के वातावरण में हुए परिवर्तन को ध्यान से देखकर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
आकाश में छाए बादलों को देख लोग प्रसन्नता से खिल उठते हैं। ठंडी हवा बहने के कारण वातावरण की गर्मी कम हो जाती है। छोटे-बच्चे वर्षा के स्वागत में नाचने-गाने लगते हैं। घरों की छतों पर औरतें धूप में सूखने के लिए डाले कपड़े इकट्ठा करने लगती हैं। जैसे ही बूँदें गिरती हैं मिट्टी की सौंधी-सौंधी गंध वातावरण में फैल जाती है। छोटे-छोटे बच्चे बारिश में नहाने के लिए आँगन में आ जाते हैं।

वर्षा तेज़ होते ही गलियाँ पानी से भरने लगती हैं और कुछ ही मिनटों बाद वे बरसाती नालों की तरह भर-भरकर बहने लगती हैं। उस बहते पानी में कई घरों से, वे सामान भी बह कर गली में तैरने लगते हैं। जो समयाभाव के कारण संभलने से रह गए होते थे। वर्षा की बौछारों से सारे पेड़-पौधे नहा जाते हैं। महीनों से उन पर जमी धूल-मिट्टी बह जाती है और वे हरे-भरे रूप को पाकर साफ़-स्वच्छ हो जाते हैं। सारे खेत अपनी हरियाली से मोहक लगने लगते हैं। गर्मी से झुलसे पशुओं पर भी संतोष के भाव दिखाई देते हैं।

प्रश्न 12.
कवि ने पीपल को ही बड़ा बुजुर्ग क्यों कहा है ? पता लगाइए।
उत्तर :
पीपल के पेड़ की आयु काफी लंबी होती है, वे प्रायः गाँव की सीमा पर ही दूर से आने वालों को अपनी छाया से सुख प्रदान करते हैं। सघन छाया और फैलाव के कारण वे पशु-पक्षियों तथा यात्रियों को ही सुख – आराम नहीं देते, बल्कि अपनी लंबी आयु और उपयोगिता के कारण लोगों के हृदय में पवित्रता और सम्मान के प्रतीक भी माने जाते हैं। लोग उसके सामने श्रद्धा से झुकते हैं, उसकी पूजा करते हैं। कवि ने पीपल को इसीलिए बड़ा बुजुर्ग कहा है।

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प्रश्न 13.
कविता में मेघ को ‘पाहुन’ के रूप में चित्रित किया गया है। हमारे यहाँ अतिथि (दामाद) को विशेष महत्व प्राप्त है लेकिन आज इस परंपरा में परिवर्तन आया है। आपको इसके क्या कारण नज़र आते हैं, लिखिए।
उत्तर
दामाद को आज भी भारतीय परिवारों में वैसा ही विशेष सम्मान प्राप्त है जैसा पहले था, पर अब सम्मान का स्वरूप बदल गया है। लोगों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन आ गया है। अब दामाद मेहमान-सा प्रतीत नहीं होता बल्कि वह परिवार का बेटा ही लगता है जिसके आगमन पर किसी आडंबर की आवश्यकता अनुभव नहीं होती। अपने-अपने काम में अतिव्यस्तता भी इस परंपरा में परिवर्तन का एक कारण हो सकता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 14.
कविता में आए मुहावरों को छाँटकर अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर :

  1. बन-ठन के – सज-सँवर कर-अरे, सुबह-सवेरे बन-ठन कर कहाँ की तैयारी है? क्या तुम्हें स्कूल नहीं जाना ?
  2. झुक-झाँक करना ताक-झाँक करना – पड़ोसियों के घर इस तरह झुक-झाँक करना तुम्हें शोभा नहीं देता।
  3. सुध लेना – याद करना- अरे मोहन, कभी गाँव में बूढ़े माँ-बाप की सुध लेने चले जाया करो।
  4. गाँठ खुलना- भेद खुलना- रिश्वत तो गुप्ता जी वर्षों से ले रहे थे पर गाँठ अब खुली है
  5. बाँध टूटना – हौसला चूक जाना-वर्षों से बेचारी अपने एकमात्र पुत्र की गंभीर बीमारी को किसी प्रकार झेल रही थी पर उसकी मौत ने तो बाँध तोड़ दिया और वह फूट-फूट कर रो पड़ी।

प्रश्न 15.
कविता में प्रयुक्त आंचलिक शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर :
बन-ठन के सँवर के’, ‘पाहुन’, ‘घाघरा’, ‘बाँकी चितवन’, ‘ठिठकी’, ‘घूँघट सरके’, ‘जुहार’, ‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’, ‘हरसाया’, ‘अटारी’, ‘ढरके’।

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प्रश्न 16.
मेघ आए कविता की भाषा सरल और सहज है-उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने आंचलिक भाषा में सजी-सँवरी कविता को मुख्य रूप से खड़ी बोली में रचा है जिसमें ग्रामीण परिवेश अति सुंदर ढंग से प्रकट हुआ है। भाषा अति सरल, सरस और सहज है। गतिशील बिंब योजना तो मन को मोह लेने वाली है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे आँखों के सामने मेघ रूपी दामाद गाँव में पधार गया हो जिस कारण हर प्राणी क्रियाशील हो उठा है। प्रतीकात्मकता का सहज-स्वाभाविक रूप अति सार्थक और सटीक है। बूढ़ा पीपल, धूल, अकुलाई लता, नदी, ताल आदि में प्रतीकात्मकता है। चित्रात्मकता का रूप तो अद्भुत है –
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।

कवि ने संवादात्मकता का प्रयोग करते हुए नाटकीयता की सृष्टि करने में सफलता प्राप्त की है –
(क) बरस बाद सुधि लीन्हीं –
(ख) क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की।

कवि की भाषा में मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है जिसने कथन को गतिशीलता प्रदान की है, जैसे-
(क) मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
(ख) पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए
(ग) बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
(घ) क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की
(ङ) बाँध टूटा झर-झर मिलन

कवि ने ब्रजभाषा के शब्दों का प्रयोग कर भावों को स्वाभाविकता प्रदान की है। तद्भव तथा देशज शब्दों के साथ-साथ तत्सम शब्दावली का प्रयोग सहजता से हुआ है, जैसे-क्षितिज, दामिनी, क्षमा, अश्रु, मेघ आदि।

JAC Class 9 Hindi मेघ आए Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
शहरी पाहुन के आगमन पर गाँव में उमंग-उल्लास के रूप को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
जब शहरी पाहुन सज-संवर कर गाँव में आता है तो चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छा जाता है। उसके आगमन की खबर तेजी से फैल जाती है। गली-गली में दरवाज़े और खिड़कियाँ उसे उत्सुकतावश देखने के लिए खुल जाते हैं। लोग गरदन उचकाकर उसे देखने लगते हैं और गाँव की नारियाँ शरमाकर घूँघट सरकाकर तिरछी दृष्टि से उसे देखती हैं। प्रिया भी अपने पाहुन को घर आया देख प्रसन्न हो जाती है, परंतु दरवाज़े की ओट में छिपकर वह पाहुन को उपालंभ भी देती है। किंतु उसके हृदय के सारे भ्रम दूर हो जाते हैं। अतिथि और प्रियतमा का मिलन हो जाता है और उनके नेत्रों से प्रसन्नता के आँसू छलक पड़ते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

प्रश्न 2.
बादलों की तुलना किसके साथ की गई है और कैसे ?
उत्तर :
कवि ने बादलों की तुलना शहरी मेहमान के साथ की गई है। जिस प्रकार शहरी मेहमान बन-सँवर कर आते हैं उसी प्रकार बादल भी बन-सँवर आए हैं और सारे आकाश में फैल गए हैं। गाँव के लोग बादलों को देखने के लिए अपने खिड़की-दरवाज़े उसी प्रकार खोल रहे हैं, जिस प्रकार शहरी मेहमान को देखने की उत्सुकता में लोग अपने घरों के खिड़की-दरवाज़े खोलते हैं।

प्रश्न 3.
‘मिलन के अश्रु ढलके’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
मिलन के अश्रु ढलके से कवि का अभिप्राय है कि धरती रूपी नायिका को यह भ्रम था कि बादल नहीं आएँगे। परंतु जब बादल रूपी मेहमान बन-सँवर कर आता है तब धरती रूपी नायिका का भ्रम दूर हो जाता है। धरती और मेघ का मिलन देखकर बादल ज़ोर-ज़ोर से बरसने लगते हैं अर्थात् नायिका और नायक के मिलन पर आँखों से खुशी के आँसू बहने लगते हैं।

प्रश्न 4.
बादलों के मेहमान बनकर आने पर उनका स्वागत किस प्रकार होता है ?
उत्तर :
गाँव में बादल एक साल बाद मेहमान की भाँति बन-सँवर कर आए हैं। उन्हें देखकर सारा गाँव खुशी से नाच उठता है। सभी अपने- अपने ढंग से बादल रूपी मेहमान के स्वागत की तैयारी में लग जाते हैं। गाँव के सबसे बूढ़े पेड़ पीपल ने बादलों का स्वागत झुककर वंदना करते हुए किया।जब घर में मेहमान आते हैं उनका स्वागत घर के बड़े लोग करते हैं। तालाब में लहरें उठने लगती हैं और वह भी अपने जल से मेहमान के चरण धोने के लिए तत्पर है। मेहमान की नायिका उसे यह ताना देती है कि वह एक साल बाद आया है। उसने तो उसके आने की उम्मीद छोड़ दी थी, अर्थात् धरती भी मेघों से मिलने को बेचैन थी और वह अपनी बेचैनी किसी को दिखाती नहीं है। इसलिए, वह आड़ में छिपकर अपने मेहमान का स्वागत करती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

प्रश्न 5.
बादल कहाँ तक फैल गए हैं उनके सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर
बादल आकर क्षितिज तक फैल गए हैं। उनमें से बिजली चमक रही है। बिजली की चमक देखकर ऐसा लगता है, मानो बादल रूपी मेहमान क्षितिज रूपी अटारी पर आने से नायिका रूपी बिजली का तन-मन आभा से युक्त हो गया है।

प्रश्न 6.
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
प्रस्तुत अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मेघों के आने से प्राकृतिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का कवि ने बड़ा सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार से प्राकृतिक उपादानों को नया रूप प्रदान किया है। कवि ने मेघों को पाहुन का रूप देकर तथा प्राकृतिक उपादानों से मानवीय क्रियाएँ आरोपित कर चित्रात्मकता की सृष्टि की है। शब्द – योजना बड़ी सजीव तथा मनमोहक है। भाषा सरलता और सरसता से परिपूर्ण है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

शब्दार्थ : बन-ठन के – सज-सँवर कर। बयार – हवा। पाहुन – मेहमान। मेघ – बादल।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश ‘क्षितिज’ में संकलित ‘मेघ आए’ कविता से अवतरित है। इसके रचयिता ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ हैं। इस कविता में कवि ने मेघ के आने की तुलना गाँव में आने वाले शहरी मेहमान से की है। जिस प्रकार मेहमान के आने पर गाँव में प्रसन्नता का वातावरण होता उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती की प्रसन्नता का वर्णन है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि आज बादल आज गाँव में आने वाले शहरी मेहमान की भाँति सज-सँवर कर आए हैं। वर्षा के आगमन की प्रसन्नता में हवा चलने लगी है अर्थात् मेहमान के आने की खबर सारे गाँव में फैल गई है। लोग बादलों को देखने के लिए उसी प्रकार अपने दरवाज़े- खिड़कियाँ खोल रहे हैं, जिस प्रकार गाँव के लोग शहर के मेहमान की झलक पाने के लिए उतावले होते हैं। कवि ने यहाँ मेघों और शहरी मेहमान की तुलना करके बड़ा सुंदर दृश्य उपस्थित किया है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) गाँव में कौन आया है ?
(ख) मेघ किस प्रकार से आते हैं ?
(ग) गाँव में बादलों का कैसा स्वागत होता है ?
(घ) हवा बादलों का स्वागत कैसे करती है ?
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) गाँव में मेघ रूपी मेहमान आया है।
(ख) बादल बहुत बन-सँवर कर आते हैं। वे आकाश में चारों ओर छा गए हैं। आकाश पूरी तरह से बादलों से ढक गया है। (ग) गाँव में बादलों का स्वागत एक मेहमान की तरह होता है। उनके आने की खबर सारे गाँव में फैल जाती है। लोग बादलों को मेहमान की तरह अपने खिड़की-दरवाजे खोलकर देखने लग जाते हैं।
(घ) हवा बादलों को उड़ाकर आगे-आगे ले जाती है। यह ऐसा लगता है, जैसे हवा बादलों के आगे-आगे खुशी से नाचती हुई चल रही है।
(ङ) कवि ने मेघों के आने का सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश व उपमा अलंकार की सुंदर घटा बिखरी है। मेघों का पाहुन की भाँति बन-सँवर कर आना मानवीकरण अलंकार की सृष्टि करता है। चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। प्रकृति के आलंबन और मानवीकरण रूप का वर्णन है। भाषा सरल, सरस तथा प्रवाहमयी है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

2. पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

शब्दार्थ : उचकाए – उठाकर। बाँकी चितवन – तिरछी दृष्टि। ठिठकी – ठहर कर। मेघ – बादल।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ से अवतरित है। इसमें कवि प्रकृति के मनमोहक रूप का वर्णन करता है। कवि ने मेघों को गाँव में आने वाले पाहुन के रूप में माना है तथा प्राकृतिक उपादानों के परिवर्तनशील सौंदर्य को चित्रित किया है

व्याख्या : कवि मेघों के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि मेघ गाँव में आने वाले पाहुन की भाँति बन-सँवर कर आ गए हैं। मेघों के रूप-सौंदर्य को देखने के लिए पेड़ गर्दन उचकाकर झाँकने लगे हैं। कवि प्राकृतिक उपादानों का मानवीकरण करते हुए कह रहा है कि मेघों के आने पर आँधी चलने लगी है। धूल शरमाकर अपना घाघरा उठाकर भाग खड़ी हुई है, नदी अपने प्रवाह को रोककर ठिठक कर खड़ी हो गई है। नदी ने अपने मुख पर घूँघट सरका लिया है और वह तिरछी नार से सजे-सँवरे मेघों को देख रही है। यहाँ कवि ने वर्णन किया है कि जब गाँव में कोई शहरी मेहमान आता है तो गाँव के वातावरण में जो परिवर्तन होते हैं, ठीक वैसे ही परिवर्तन प्रकृति में दिखाई दे रहे हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) पेड़ों में क्या परिवर्तन हुआ है ?
(ख) पेड़ झुककर क्या देखने लगे ?
(ग) नदी को कवि ने कैसे चित्रित किया है ?
(घ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) पेड़ गरदन उचकाए अर्थात् शाखाएँ दाएँ-बाएँ हिलाकर मेघों को देखने लगे हैं।
(ख) तो हवा के चलने से पेड़ झुक रहे हैं जो कवि को ऐसा लगता है मानो पेड़ बादलों का रूप-सौंदर्य देखने के लिए झुक रहे हैं। वे बादलों का स्वागत और अभिनंदन कर रहे हैं।
(ग) नदी को कवि ने एक ऐसी नायिका के रूप में चित्रित किया है जो मेहमान को देखने आई है और घूँघट खिसकाकर, नारी सुलभ लज्जा तथा जिज्ञासा के कारण तिरछी दृष्टि से बादल रूपी मेहमान को देख रही है।
(घ) मेघों के आने पर प्राकृतिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का कवि ने बड़ा सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार की अनुपम छटा बिखेरी है। कवि ने मेघों को पाहुन का रूप देकर तथा प्राकृतिक उपादानों से मानवीय क्रियाएँ करवाकर चित्रात्मकता की सृष्टि की है। शब्द योजना बड़ी सजीव तथा मनमोहक है। भाषा सरलता तथा सरसता से परिपूर्ण है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

3. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
“बरस बाद सुधि लीन्हीं’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

शब्दार्थ : जुहार – आदर के साथ झुककर किया गया नमस्कार। बरस वर्ष। सुधि – याद। लीन्हीं ली। अकुलाई व्याकुल। ओट – आड़। किवार – किवाड़, दरवाजा। हरसाया – हर्ष से भरा। ताल तालाब। मेघ – बादल।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ से अवतरित है। इसमें कवि ने मेघों के आने पर धरती पर उभरे प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा मनमोहक वर्णन किया है। कवि ने मेघों को पाहुन मानकर धरती के प्राकृतिक उपादानों को उनका स्वागत करते हुए चित्रित किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि जिस प्रकार मेहमान के घर आने पर गाँव में बड़े जोर-शोर से उसका स्वागत किया जाता है उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती पर भी उनका भव्य स्वागत हो रहा है। बूढ़े पीपल के वृक्ष ने आगे बढ़कर मेघ को झुककर नमस्कार किया। विरह के कारण व्याकुल लता ने किवाड़ की आड़ में छिपकर मेघ रूपी पाहुन को उलाहना दिया कि एक बरस के बाद तुम्हें हमारी याद आई अर्थात् एक वर्ष की प्रतीक्षा के बाद तुम आए हो।

हर्ष से भरा हुआ तालाब भी मेघ के स्वागत के लिए पानी से परात भरकर ले आया है। धरती पर मेघों का स्वागत उसी प्रकार हुआ जिस प्रकार गाँव में पाहुन का स्वागत होता है। गाँव के लोग उसे नमस्कार करते हैं। नायिका उसे देर से आने का उपालंभ देती है। परिवार का कोई सदस्य उसके चरण धोने के लिए परात में पानी लाता है। ठीक उसी प्रकार की क्रियाएँ मेघों के आने पर हुई हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) बूढ़े पीपल ने ही सबसे पहले जुहार क्यों की ?
(ख) बूढ़े पीपल ने बादलों का स्वागत कैसे किया ?
(ग) लता ने बादलों को क्या कहा ?
(घ) बादलों के आने पर ताल की क्या स्थिति है ?
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) गाँव में प्रवेश करने से पहले मेघों को सबसे पहले पीपल का पेड़ ही मिला था। युगों से गाँव में सबसे पहले बुजुर्गों द्वारा पाहुन के स्वागत की परंपरा रही है।
(ख) बूढ़ा पीपल बादलों को झुककर नमस्कार करता है।
(ग) बादलों के विरह में व्याकुल लता के किवाड़ की आड़ में छिपकर उन्हें उलाहना देते हुए कहा कि एक वर्ष के बाद तुम्हें हमारी याद आई है।
(घ) बादलों के आने की प्रसन्नता में तालाब उनका स्वागत करते हुए पानी से परात को भरकर ले आता है।
(ङ) कवि ने मेघों के आने पर प्राकृतिक वातावरण में उत्पन्न परिवर्तनों का बड़ा सजीव अंकन किया है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार का सुंदर वर्णन है। चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। लता द्वारा किवाड़ की आड़ से मेघ से बात करने में उपालंभ का भाव प्रकट हुआ है। शब्द-योजना सटीक एवं सजीव है। भाषा सरल, सरस तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है। प्रतीकात्मकता का सुंदर प्रयोग है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

4. क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

शब्दार्थ : क्षितिज – जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए प्रतीत होते हैं। वह स्थान। गहराई – बादल छा गए। दामिनी – बिजली। दमकी भरम – भ्रम, भुलावा। अश्रु आँसू। ढरके गिरे।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ में से अवतरित है। इसमें कवि ने मेघों के आने पर धरती पर उत्पन्न प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा मनोरम चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि अब मेघ क्षितिज रूपी अटारी पर पहुँच गए हैं। मेघों के आ जाने पर बिजली चमक उठी है अर्थात मेहमान को देखकर नायिका का तन-मन आभा से भर उठा है। धरती रूपी नायिका मानो मेघों से कह रही है कि क्षमा कर दो। अभी तक हम समझ रहे थे कि मेघ नहीं बरसेंगे, पर अब यह भ्रम टूट गया है। मेघों और धरती के बीच की रुकावट समाप्त हो गई। मेघ झर-झर कर बरसने लगे। धरती और मेघों का मिलन हो गया है। इसी प्रकार अतिथि और नायिका का भी मिलन हो गया है। उनकी आँखों में खुशी के आँसू आ गए। आज मेघ भी अतिथि की भाँति बन-सँवर कर आकाश में छा गए हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) बादल कहाँ तक फैल गए हैं ?
(ख) बादलों के आने पर क्षितिज के सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
(ग) क्या भ्रम था जो अब दूर हो गया है ?
(घ) ‘मिलन के अश्रु ढलके’ से क्या तात्पर्य है ?
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) बादल क्षितिज रूपी अटारी तक फैल गए थे।
(ख) बादल क्षितिज तक फैल गए हैं और बिजली चमक रही है जो ऐसा लगता है मानो बादल रूपी मेहमान के क्षितिज रूपी अटारी पर आने से नायिका रूपी बिजली का तन-मन आभा से युक्त हो गया है।
(ग) धरती को यह भ्रम था कि बादल नहीं बरसेंगे, किंतु अब उनके बरसने से धरती का यह भ्रम दूर हो गया है।
(घ) मेघों और धरती के बीच की बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं तो मेघ झर-झर कर बरसने लग जाते हैं। धरती और मेघों के मिलन के यह प्रेमाश्रु हैं।
(ङ) कवि ने मेघों और धरती के मिलन का बड़ा सुंदर वर्णन किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक तथा मानवीकरण का सहज और सुंदर प्रयोग सराहनीय है। लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है। तद्भव शब्दावली की अधिकता है। चित्रात्मकता ने सुंदर अभिव्यक्ति में सहायता दी है

मेघ आए Summary in Hindi

कवि-परिचय :

आधुनिक हिंदी कविता में श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की अपनी अलग ही पहचान है। इन्होंने कवि होने के साथ-साथ पत्रकारिता को अपना कर्मक्षेत्र बनाया था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन् 1927 में हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने जीवनयापन के लिए अनेक कष्ट उठाए थे। ये कुछ समय के लिए आकाशवाणी से भी संबद्ध रहे थे। संपादक के रूप में उनकी प्रतिभा ‘दिनमान’ और बाल – पत्रिका ‘पराग’ में उभरी थी। सन् 1983 ई० में इनका निधन हो गया था।

सक्सेना जी ने कविता के साथ-साथ गद्य के क्षेत्र में भी गति दिखाई है। उनकी प्रसिद्ध काव्य- कृतियाँ काठ की घंटियाँ, एक सूनी नाव, बाँस का पुल, गर्म हवाएँ, जंगल का दर्द, कुआनो नदी, खूँटियों पर टंगे लोग हैं। इन्हें ‘दिनमान’ में ‘चरचे और चरखे’ के लिए प्रसिद्धि मिली थी। इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

सक्सेना जी की कविता में जीवनाभूति के विविध रंग दृष्टिगोचर होते हैं। उन्होंने ग्रामीण संवेदना के साथ शहरी मध्यवर्गीय जीवन में व्याप्त सुख-दुःख का बड़ा सफल उद्घाटन किया है। मानव मन की गुत्थियों के उलझाव को व्यक्त करने में भी इनकी कविता सफल रही है। आशा और विजय का संदेश इनकी कविताओं की अन्य उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। उनके काव्य की विविधता यह प्रमाणित करती है कि उनमें लोकोन्मुखता है।

इसलिए वे लोकजीवन को अपने लोकगीतों में प्रस्तुत करते रहे। गाँव में व्याप्त दरिद्रता का भी उन्होंने यथार्थ और मार्मिक चित्र अंकित किया है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि उन्होंने बच्चों से लेकर प्रबुद्ध जनों तक के लिए साहित्य की रचना की। उन्होंने काव्य में सत्य की गहरी चोट है। उनकी कविताएँ भीतर तक कुरेदती हैं। उनकी कविता में अंधेरा और अकेलापन भी रोशनी की तरफ चलने का संकेत देता है –

अंधेरे को सूँघकर मैंने देखा है उसमें सूरज की गंध आती है।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता में क्रांति का स्वर भी है। वे शोषित-दलित वर्ग के लिए ‘धूल’ के माध्यम से चेतावनी देते हैं जिससे उसे अपनी शक्ति का एहसास हो। कवि ने लीक पर चलने वाले अर्थात् परंपरावादियों का विरोध किया है। कवि ने अपना रास्ता अपनी ही कुदाली से बनाने की प्रेरणा दी है। बनी बनाई लकीर पर चलना कमजोरी का प्रतीक है। संघर्ष द्वारा बनाया गया रास्ता ही जीवनोपयोगी होता है। नए पथ पर नए जीवन मूल्यों का निर्माण करने के लिए प्रकृति की स्वच्छंदता, अल्हड़ता, जीवनधर्म तथा रचनात्मक शक्ति का सहारा लेना चाहिए। वे कहते हैं –

लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं।

इनकी भाषा सहज, सरल, व्यावहारिक, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। इन्होंने अलंकृत अथवा असाधारण भाषा का प्रयोग नहीं किया है। वे अपनी बात सीधी-सादी भाषा में कह देते हैं। इन्होंने मुख्य रूप से मुक्तक रचनाएँ लिखी हैं। नए अप्रस्तुतों और बिंबों की रचना उनके काव्य की विशेषता है। चित्रात्मकता इनके काव्य की अन्य विशेषता है,। विषय-वस्तु की दृष्टि से इनके काव्य में जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर किया गया है। प्रेम-प्रसंगों के साथ ही कवि ने समसामयिक जीवन की विसंगतियों का भी यथार्थ अंकन किया है। इस कारण ये शिल्प-विधान की अपेक्षा विषय-वस्तु को अधिक महत्व देते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

कविता का सार :

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ‘मेघ आए’ प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त कविता है। इसमें कवि ने मेघों की तुलना गाँव में सज-संवरकर आने वाले दामाद के साथ की है। जिस प्रकार दामाद के आने पर गाँव में प्रसन्नता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती के प्राकृतिक उपादान उमंग में झूम उठते हैं। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करते हुए उमंग, उत्साह तथा उपालंभ आदि भावों को बड़े सजीव ढंग से चित्रमयता के साथ वर्णित किया है। मेघ रूपी बादलों के आगे-आगे हवा नाचते-गाते हुए बढ़ती है।

गली-मुहल्ले की खिड़कियाँ एक-एक कर खुलने लगती हैं ताकि बने-ठने मेघों को देख सकें। पेड़ झुक-झुक कर गरदन उचकाकर उसे देखने लगे तो धूल शर्माते हुए घाघरा उठा कर आँधी के साथ भाग चली। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया। गाँव का तालाब पानी-भरी परात लेकर प्रसन्नता से भर उठा। जब मेघ बरसने लगे तो धरती और बादलों का आपसी मिलन हो गया।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran अनुस्वार एवं अनुनासिक Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran अनुस्वार एवं अनुनासिक

अनुस्वार, अनुनासिक –

हिंदी में अनुस्वार और अनुनासिक का प्रायः प्रयोग किया जाता है।
अनुस्वार का उच्चारण इ इ, ण्, च, म् के समान होता है। जैसे – कंघी (कड्घी), गंजा (गज्जा), घंटी (घण्टी), संत (सल), पंप (पम्प) अनुस्वार के साथ मिलती-जुलती एक ध्वनि अनुनासिक भी है, जिसका रूप ‘ज’ है। इन दोनों में भेद केवल यह है कि जनस्वार की ध्वनि कठोर होती है और अनुनासिक की कोमल। अनुस्वार का उच्चारण नाक से होता है और अनुनासिक का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से होता है। जैसे-हँस और हंस। हँस का अर्थ है-हँसना और हंस का अर्थ है-एक प्रकार का पक्षी।

हिंदी मानक लिपि में बिंदु –

(क) पंचमाक्षों (ङ, उ, ण, न, म) का जब अपने वर्ग के वर्णों के साथ संयोग होता है तब उनके स्थान पर अनुस्वार (-लिखा जाता है । जैसे –

  • दन्त = दंत
  • चज्वल = चंचल
  • ठण्डा = ठंडा
  • कड्यी = कंघी
  • पम्प = पंप
  • कन्द्रा = कंधा

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

(ख) य, र, ल, व, श, ष, स, ह के साथ अनुस्वार ही लगता है। जैसे -संयोग, संरक्षण, संसार, संशय, शंका, लंपट, बंदना, संबाद. हुंकार, हंता, रंक, रंज, लंका आदि।
(ग) यदि वर्ण के ऊपर मात्रा लगी हो, तो अनुनासिक (-) का उच्चारण होने पर भी अनुस्वार की बिंदी ही लगेरी। जैंसे-मैं, हैं, बेंमल्ला, सौंफ आदि।
अनुस्वार के प्रयोग संबंधी अन्य उदाहरण –

पुराना रूप – मानक रूप

  • चन्दन – चंदन
  • प्रशान्त – प्रशांत
  • किन्तु – किंतु
  • हिन्दी – हिंदी
  • अन्त – अंत
  • पण्डा – पंडा
  • इन्द्र – इंद्र
  • प्रबन्ध – प्रबंध
  • अन्तर – अंतर
  • सम्बन्धी – संबंधी
  • निरन्तर – निरंतर
  • हिन्दू – हिंदू
  • चिह्न – चिह्न
  • गन्दा – गंदा
  • क्रन्दन – क्रंदन
  • सन्ध्या – संध्या
  • सुन्दर – सुंदर
  • दन्त – दंत
  • अन्तर – अंतर
  • केन्द्र – कैंद्र
  • निन्दनीय – निंदनीय
  • आरम्भ – आरंभ
  • आनन्द – आनंद
  • ठण्डक – एंडक
  • अभिनन्दन – अभिनंद्न
  • सम्भावना – संभावन
  • इप्टरनेशनल – इंटरनेशनल
  • सम्पादक मण्डल – संपादक मंडल
  • प्रेमचन्द – प्रेमचंद
  • सन्दिग्ध – संदिन्ध
  • सन्देह – संदेह
  • अन्दर – अंदर
  • तुरन्त – तुरंत
  • इन्तज़ार – इंतजार
  • सम्भव – संभव
  • सन्देहास्पद – संदेहास्पद्
  • शान्ति – शांति
  • स्वतन्त्र – स्वतंत्र
  • गणतन्त्र – गणतंत्र
  • अम्बाला – अंबाला
  • चण्डीगढ़ – चंडीगढ़
  • मुम्बई – मुंबई
  • हिन्दुस्तान – हिंदुस्तान
  • गान्धी – गांधी
  • सन्दीपन – संदीपन
  • क्रान्ति – क्रांति
  • श्रद्धार्जलि – श्रद्धाजाल
  • दुर्गन्ध – दुर्गंध
  • सन्धि – संधि
  • सन्तोष – संतोष
  • अम्बर – अंबर
  • अझ्ग – अंग
  • कुन्तल – कुंतल
  • अम्भोज – अंभोज
  • निशान्त – निशांत
  • उत्कण्ठा – उत्कंठा
  • पउ्चबाण – पंचबाण
  • लम्बोदर – लंबोदर
  • चन्द्रमा – चंद्रमा
  • कालिन्दी – कालिंदी
  • दन्तच्छद – दंतच्छद
  • नरेन्द्र – नरेंद्र
  • इन्दिरा – इंदिरा
  • सन्तान – संतान
  • वसुन्धरा – वसुंधरा
  • बन्दर – बंदर
  • देहान्त – देहांत
  • कुन्दन – कुंदन
  • किंवदन्ती – किंवर्दंती
  • दम्पति – दंपति
  • पन्द्रह – पंद्रह
  • सम्पत्ति – संपत्ति
  • अनन्त – अनंत
  • इन्द्रियां – इंद्रियाँ
  • पाण्डव – पांडव
  • छन्द – छंद
  • तम्बू – तंबू
  • मन्दिर – मंदिर
  • क्रान्ति – क्रांति
  • अनुकम्पा – अनुकंपा
  • दयानन्द – द्यानंद
  • कवीन्द्र – कवींद्र
  • सम्पदाय – संप्रदाय
  • सम्भावित – संभावित
  • पीताम्बर – पीतांबर
  • परमानन्द – परमानंद्
  • मन्दाकिनी – मंदाकिनी

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

अनुनासिकता के अशुद्ध प्रयोग संबंधी कुछ शुद्ध उदाहरण –

अशुद्ध – शुद्ध

  • आंगन – आँगन
  • उंगली – उँगली
  • कांटा – काँटा
  • पांव – पाँव
  • चांद – चाँद
  • गांव – गाँव
  • बहुएं – बहुएँ
  • अशुद्ध – शुद्ध
  • खांसी – खाँसी
  • टांक – टाँक
  • फंसा – फँसा
  • संभल – सँभल
  • सांप – साँप
  • नदियां – नदियाँ

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

आगत ध्वनियाँ :

अर्धचंद्राकार –

आजकल अंग्रेज़ी भाषा के प्रभाव से हिंदी में ‘आ’ आगत ध्वनि का प्रयोग किया जाने लगा है। जो ‘आ’ और ‘ओ’ के बीच की ध्वनि है। जैसे –

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 1

यदि हिंदी में ‘ऑ’ आगत ध्वनि का प्रयोग न किया जाए तब शब्दों की अभिव्यक्ति में दोष उत्पन्न होने की पूरी संभावना हो सकती है। जैसे –

  • हाल – हालचाल
  • बाल – शरीर के बाल
  • काल – समय
  • काफ़ी – पर्याप्त
  • डाल – डालना
  • हॉल – एक बड़ा कमरा
  • बॉल – गेंद
  • कॉल – बुलाना
  • कॉफ़ी – एक पेय
  • डॉल – गुड़िया

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

JAC Class 9 Hindi सवैये Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ?
उत्तर :
ब्रजभूमि के प्रति कवि का अगाध प्रेम है। वह हर जन्म में ब्रजक्षेत्र में ही रहना चाहता है। वह इस जन्म में तो ब्रजभूमि से जुड़ा ही हुआ है और चाहता है कि उसे अगले जन्मों में चाहे कोई भी जीवन मिले वह बार-बार ब्रज में ही आए। यदि वह मनुष्य का जीवन प्राप्त करे तो वह ब्रजक्षेत्र के गोकुल गाँव के ग्वालों में रहे। यदि वह पशु की योनि प्राप्त करते तो नंद बाबा की गऊओं के साथ मिलकर चरनेवाली गाय बने। यदि वह निर्जीव पत्थर भी बने तो उस गोवर्धन पर्वत पर ही स्थान पाए जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र के अभिमान को भंग करने के लिए उठा लिया था। यदि वह पक्षी के रूप में जन्म ले तो वह यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर ही बसेरा करे।

प्रश्न 2.
कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं ?
उत्तर :
कवि ब्रज के वन, बाग और तालाबों को निहारना चाहता है ताकि वह श्रीकृष्ण की प्रिय भूमि और लीला – स्थली के प्रति अपने हृदय की अनन्यता को प्रकट कर सके। उसे ब्रज के कण-कण में श्रीकृष्ण समाए हुए प्रतीत होते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 3.
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है ?
उत्तर :
लकड़ी के एक डंडे को हाथ में धारण कर और शरीर पर काला कंबल ओढ़कर ग्वाले श्रीकृष्ण के साथ गौएँ चराने जाया करते थे। कवि के हृदय में उस ‘लकुटी’ और ‘कामरिया’ के प्रति अनन्य समर्पण भाव है जिस कारण वह उन पर सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है।

प्रश्न 4.
सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सखी ने गोपी से श्रीकृष्ण जैसी वेशभूषा और रूप धारण करने का आग्रह किया है। सिर पर मोर पंख, गले में गुंज माला, तन पर पीतांबर और हाथ में लाठी लेकर ग्वालों के साथ घूमने के लिए कहा है। ऐसा करके वे श्रीकृष्ण की स्मृतियों को ताजा बनाए रखना चाहती हैं।

प्रश्न 5.
आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर :
रसखान के हृदय में श्रीकृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति अगाध प्रेम है। उसे ब्रजक्षेत्र के कण-कण में श्रीकृष्ण की छवि झलकती हुई दिखाई देती है। वह सदा उस छवि को अपनी आँखों के सामने ही पाना चाहता है। मानसिक छवियाँ ऐसा अहसास कराती हैं मानो वास्तविकता ही सामने विद्यमान हो। इसलिए कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी सान्निध्य प्राप्त करना चाहता है।

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प्रश्न 6.
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने-आप को क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर :
गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुरली की धुन और उनकी आकर्षक मुसकान के अचूक प्रभाव से स्वयं को नियंत्रित रखने में विवश पाती हैं।

प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
(ख) माइ री वा सुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर :
(क) रसखान ब्रजक्षेत्र की काँटोंभरी करील की झाड़ियों को सुंदर महलों से श्रेष्ठ मानते हैं और उन्हें ही पाना चाहते हैं ताकि श्रीकृष्ण के क्षेत्र के प्रति अपने प्रेम और निष्ठा को प्रकट कर सकें।
(ख) गोपियाँ श्रीकृष्ण के मुख की मंद-मंद मुसकान पर इतनी मुग्ध हो चुकी हैं कि वे अपने मन की अवस्था को नियंत्रण में रख ही नहीं सकतीं। उन्हें प्रतीत होता है कि उनकी मुसकान उनसे सँभाली नहीं जाएगी।

प्रश्न 8.
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
अनुप्रास अलंकार

प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।
उत्तर :
गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण की बाँसुरी के प्रति सौत भावना है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि श्रीकृष्ण उनकी अपेक्षा बाँसुरी को अधिक प्रेम करते हैं इसलिए वह सदा उनके होंठों पर टिकी रहती है। गोपियाँ श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु को अपनाना चाहती हैं पर अपनी सौत रूपी बाँसुरी को होंठों पर नहीं रखना चाहतीं। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है। ब्रजभाषा की कोमल कांत शब्दावली की सुंदर योजना की गई है। गोपियों का हठ-भाव अति आकर्षक है। प्रसाद गुण तथा अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 10.
प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।

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प्रश्न 11.
रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्श वाचन कीजिए। साथ ही किन्हीं दो सवैयों को कंठस्थ कीजिए।
उत्तर :
अध्यापक/अध्यापिका के सहायता से विद्यार्थी इन्हें स्वयं करें।

पाठेतर सक्रियता –

सूरदास द्वारा रचिंत कृष्ण के रूप-सौदर्य संबंधी पदों को पढ़िए।
उत्तर :
छात्र इसे स्वयं करें।

यह भी जानें –

सवैया छंद – यह एक वर्णिक छंद है जिसमें 22 से 26 वर्ण होते हैं। यह ब्रजभाषा का बहुप्रचलित छंद रहा है।
आठ सिद्धियाँ – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व – ये आठ अलौकिक शक्तियाँ आठ सिद्धियाँ कहलाती हैं।
नव (नौ) निधियाँ – पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व- ये कुबेर की नौ निधियाँ कहलाती हैं।

JAC Class 9 Hindi सवैये Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रसखान के काव्य की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
रसखान की कविता का लक्ष्य श्रीकृष्ण एवं गोपियों की प्रेम-लीलाओं का वर्णन करना रहा है। यत्र-तत्र उन्होंने श्रीकृष्ण के बाल रूप का भी मनोहारी चित्रण किया है –
धूर भरे अति सोभित स्यामजू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेल खात फिरै अँगना पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी।
रसखान ने श्रीकृष्ण तथा ब्रज के प्रति अपनी अगाध निष्ठा का भी परिचय दिया है –
मानुस हौं तो वही रसखानि, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।

प्रश्न 2.
रसखान की काव्य- भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
रसखान की भाषा ब्रजभाषा है। ब्रजभाषा अपनी पूरी मधुरता के साथ इनके काव्य में प्रयुक्त हुई है। अलंकारों और लोकोक्तियों के प्रयोग ने भाषा को सजीव बना दिया है। रसखान जाति से मुसलमान होते हुए भी हिंदी के परम अनुरागी थे। उनके हिंदी प्रेम एवं सफल काव्य पर मुग्ध होकर ठीक ही कहा गया है, “रसखान की भक्ति में प्रेम, श्रृंगार और सौंदर्य की त्रिवेणी का प्रवाह सतत बना रहा और उनकी भाषा का मधुर, सरल, सरस और स्वाभाविक प्रकार पाठकों को अपने साथ बहाने में सफल रहा।’

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प्रश्न 3.
कवि मनुष्य के रूप में कहाँ जन्म लेना चाहता है और क्यों ?
उत्तर :
कवि श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। उन्होंने श्रीकृष्ण और उनकी भूमि के प्रति समर्पण भाव व्यक्त करते हुए कहा है कि वे अगले जन्म मनुष्य के रूप में जीवन पाकर ब्रज क्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच रहना चाहते हैं क्योंकि श्रीकृष्ण उनके साथ रहे थे और ग्वालों को उनकी निकटता प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

प्रश्न 4.
कवि तीनों लोकों का राज्य क्यों त्याग देने को तैयार है ?
उत्तर :
कवि तीनों लोकों का राज्य उस लाठी और कंबल के बदले में त्याग देने को तैयार है जो ब्रज क्षेत्र के ग्वाले गऊओं को चराते समय श्रीकृष्ण धारण किया करते थे। वह ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वह उन्हें परम सुख की प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण व ब्रजक्षेत्र से जोड़े रखता है।

प्रश्न 5.
गोपी कैसा शृंगार करना चाहती है ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण की भक्ति के वशीभूत होकर श्रीकृष्ण का स्वांग भरने को तैयार हो जाती है। गोपी श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु से अपना श्रृंगार करना चाहती है। वह श्रीकृष्ण का मोर पंख का मुकुट अपने सिर पर धारण करना चाहती है और गले में गुंजों की माला पहनना चाहती है। वह श्रीकृष्ण की तरह पीले वस्त्र पहनकर तथा हाथों में लाठी लेकर ग्वालों के साथ गाय चराने वन-वन भी फिरने के लिए तैयार है।

प्रश्न 6.
गोपी अपने होंठों पर मुरली क्यों नहीं रखना चाहती ?
उत्तर :
गोपी अपने होंठों की श्रृंगार करते समय श्रीकृष्ण की मुरली अपने होंठों पर इसलिए नहीं रखना चाहती क्योंकि वह मुरली को अपनी सौत मानती है। मुरली सदा श्रीकृष्ण के होंठों पर लगी रहती थी। इसी सौतिया डाह के कारण वह मुरली को अपना शत्रु मानती है और उसे अपने होंठों पर नहीं लगाना चाहती है।

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प्रश्न 7.
गोपी श्रीकृष्ण द्वारा बजाई बाँसुरी की तान को क्यों सुनना नहीं चाहती ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण द्वारा बजाई बाँसुरी की तान इसलिए नहीं सुनना चाहती क्योंकि उसकी बाँसुरी की तान में जादू-सा प्रभाव है। वह इसे सुनकर अपनी सुध-बुध खोकर श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे चल देती है परंतु आज वह अपने पर नियंत्रण रखना चाहती है। इसलिए कानों में अँगुली डालकर बैठी है, जिससे उसे बाँसुरी की तान न सुनाई दे।

प्रश्न 8.
गोपी स्वयं को किस कारण विवश अनुभव करती है ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान का प्रभाव अचूक है। जिसके कारण गोपियाँ अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख पाती हैं और विवश होकर श्रीकृष्ण के पास चली जाती हैं। वे स्वयं को सँभाल नहीं पाती हैं। कवि ने श्रीकृष्ण के भक्ति – प्रेम में डूबी गोपी की विवशता का वर्णन किया है कि वह श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबकर अपनी सुध-बुध खो बैठती है।

प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
उत्तर :
कवि रसखान ने श्रीकृष्ण और ब्रजक्षेत्र के प्रति अपने प्रेम-भाव को वाणी प्रदान करते हुए सभी प्रकार का सुख त्याग देने की बात की है। वह ब्रज क्षेत्र में उगी करील की कँटीली झाड़ियों पर करोड़ों सोने के महल न्योछावर करने को तैयार हैं। उन्हें केवल ब्रज क्षेत्र में किसी भी रूप में स्थान चाहिए। इसमें ब्रजभाषा का सरस प्रयोग सराहनीय है। तद्भव शब्दों का अधिकता से प्रयोग है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द – शक्ति और शांत रस का प्रयोग किया गया है। सवैया छंद विद्यमान है।

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प्रश्न 10.
कवि रसखान की भक्ति-पद्धति का परिचय दीजिए।
उत्तर :
रसखान की भक्ति अनेक पद्धतियों और सिद्धांतों का संयोग है। इन्होंने किसी भी बात की परवाह न करते हुए कृष्ण-भक्ति में स्वयं को डुबो दिया। इन्हें अपने भक्ति – क्षेत्र में जो अच्छा लगा, इन्होंने उसे अपना लिया। रसखान पर सगुण और निर्गुण दोनों का प्रभाव है। उन्होंने संतों के समान अपने आराध्य के गुणों का बखान किया है। इन्होंने दैन्यभाव को प्रकट किया है। इनकी भक्ति में समर्पण – भाव है। इनके काव्य में अनुभूति की गहनता है।

प्रश्न 11.
कवि रसखान किस चीज को पाने के लिए जीवन के सभी सुखों को त्याग देना चाहते थे ?
उत्तर :
कवि रसखान हर अवस्था में ब्रज क्षेत्र और अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहते थे। उनके लिए परम सुख की प्राप्ति ब्रज क्षेत्र से जुड़ा रहना है। वे ब्रज- क्षेत्र में उसी करील की झाड़ियों पर करोड़ों महलों को न्योछावर करने से भी पीछे नहीं हटते। ब्रज क्षेत्र में रहनेवाले सूरज को पाने के लिए वे तीनों लोकों का राज्य भी त्यागने को तत्पर रहते हैं।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन ॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं कालिंदी कूल कदंब की डारन ॥

शब्दार्थ : मानुष – मनुष्य। हौं – मैं। बसौं – रहना, बसना। ग्वारन – ग्वाले। कहा बस $-$ बस में न होना। नित $-$ सदा, नित्य। धेनु – गाय। मँझारन – बीच में। पाहन – पत्थर, चट्टान। गिरि – पर्वत। पुरंदर – इंद्र। खग – पक्षी। कालिंदी – यमुना नदी। कूल – किनारा। डारन – डालियाँ।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित पाठ सवैये से लिया गया है जिसके रचयिता श्रीकृष्ण भक्त रसखान हैं। कवि कामना करता है कि अगले जन्म में वह चाहे किसी रूप में धरती पर वापिस आए पर वह ब्रज क्षेत्र में ही स्थान प्राप्त करे।

व्याख्या : रसखान कहते हैं कि यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य का जीवन प्राप्त करूँ तो मेरी इच्छा है कि मैं ब्रज क्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच रहूँ। यदि मैं पशु बनूँ और मेरी इच्छा पूर्ण हो तो मैं नंद बाबा की गऊओं में गाय बनकर सदा चरूँ। यदि मैं पत्थर बनूँ तो उसी गोवर्धन पर्वत पर स्थान प्राप्त करूँ जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र का अभिमान तोड़ने के लिए छत्र के समान धारण कर लिया था। यदि मैं पक्षी बनूँ तो यमुना के किनारे कदंब की डालियों पर ही बसेरा करूँ। भाव है कि कवि किसी भी अवस्था में ब्रजक्षेत्र को त्यागना नहीं चाहता, वह वहीं रहना चाहता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि मनुष्य रूप में कहाँ और क्यों जीवन पाना चाहता है ?
(ख) निर्जीव रूप में भी कवि जगह क्यों पाना चाहता है ?
(ग) कवि यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर पक्षी बनकर क्यों रहना चाहता है ?
(घ) सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि अगले जन्म में कौन-सा पशु बनना चाहता है ?
(च) कवि गोकुल में किनके साथ रहना चाहता है ?
(छ) कवि किसके पशु चराने की कामना करता है ?
उत्तर :
(क) कवि अगले जन्म में मनुष्य के रूप में जीवन पाकर ब्रज क्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच रहना चाहता है क्योंकि श्रीकृष्ण उनके साथ रहे थे और ग्वालों को उनकी निकटता प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
(ख) कवि पत्थर बनकर निर्जीव रूप में गोवर्धन पर्वत पर जगह पाना चाहता है जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र के अभिमान को चूर करने के लिए अपनी अंगुली पर उठा लिया था।
(ग) कवि यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर पक्षी बनकर रहना चाहता है ताकि वह उन स्थलों को देख सके जहाँ श्रीकृष्ण विहार करते थे।
(घ) रसखान प्रत्येक स्थिति में श्रीकृष्ण की लीला – स्थली पर ही रहना चाहता है जिससे उसके प्रति अपनी अनन्यता प्रकट कर सके। कवि ने ब्रजभाषा की कोमल कांत शब्दावली का सहज प्रयोग किया है। सवैया छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तद्भव शब्दावली का अधिक प्रयोग है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द – शक्ति और शांत रस विद्यमान है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है।
(ङ) कवि अगले जन्म में नंद बाबा की गायों में एक गाय बनना चाहता है जिससे वह श्रीकृष्ण की निकटता प्राप्त कर सके।
(च) कवि गोकुल में ग्वालों के साथ रहना चाहता है। वह श्रीकृष्ण के बाल सखा के रूप में ब्रजभूमि पर निवास करना चाहता है।
(छ) कवि नंद बाबा के पशु चराने की कामना करता है।

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2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ-चराइ बिसारौं,
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।

शब्दार्थ : या – इस। लकुटी – लकड़ी, लाठी। कामरिया – कंबल। तिहूँ – तीनों । तजि – छोड़; त्याग। आठहुँ सिद्धि – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इंशित्व और वाशित्व नामक आठ अलौकिक शक्तियाँ। नवौ निधि – पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व नामक कुबेर की नौ निधियाँ। गाइ – गाय। बिसारौं – भुला दूँ। तड़ाग – तालाब। निहारौं – देख़ँ। कोटिक – करोड़ों। कलधौत – सोने-चाँदी के महल। करील – कँटीली झाड़ियाँ। वारौौ – न्योछावर करूँ।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित पाठ ‘सवैये’ से लिया गया है जिसके रचयिता रसखान हैं। कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को प्रकट किया है। वे हर अवस्था में ब्रज क्षेत्र और अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहते हैं।

व्याख्या : रसखान कहते हैं कि मैं ब्रज क्षेत्र में श्रीकृष्ण के ग्वालों की गऊओं को चराने के लिए प्रयुक्त इस लाठी और उनके द्वारा ओढ़े जाने वाले काले कंबल के बदले तीनों लोकों का राज्य त्याग दूँ। मैं नंद बाबा की गऊओं को चराने के बदले आठों सिद्धियाँ और नौ निधियों के सुख भी भुला दूँ। मैं ब्रज क्षेत्र के वनों, बागों और तालाबों को अपनी आँखों से कब निहार पाऊँगा ? मैं ब्रज क्षेत्र में उगी करील की कँटीली झाड़ियों पर करोड़ों महल को न्योछावर कर दूँ। भाव है कि रसखान ब्रज क्षेत्र के लिए जीवन के सभी सुखों को त्याग देना चाहते हैं। उनके लिए परम सुख की प्राप्ति ब्रज क्षेत्र से जुड़ा रहना है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि तीनों लोकों का राज्य किसके बदले त्याग देने को तैयार है ?
(ख) कवि अपनी आँखों से क्या निहारना चाहता है ?
(ग) ब्रज की कँटीली करील झाड़ियों पर कवि क्या न्योछावर कर देना चाहता है ?
(घ) प्रस्तुत सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि ने किन आठ सिद्धियों की बात की है ?
(च) नौ निधियों के नाम लिखिए।
(छ) कवि ने किसके प्रति अपना प्रेम व्यक्त किया है ?
उत्तर :
(क) कवि तीनों लोकों का राज्य उस लाठी और काले कंबल के बदले त्याग देने को तैयार है जो श्रीकृष्ण ब्रज के ग्वाले की गऊओं को चराते समय धारण किया करते थे।
(ख) कवि अपनी आँखों से ब्रज के वन, बाग और तालाबों को निहारना चाहता है।
(ग) ब्रज-क्षेत्र की कँटीली झाड़ियाँ भी कवि के लिए इतनी मूल्यवान हैं कि वह उनके बदले करोड़ों महलों को उन पर न्योछावर कर देना चाहता है।
(घ) रसखान ने सवैया में श्रीकृष्ण और ब्रज क्षेत्र के प्रति अपने मन के प्रेम-भाव को वाणी प्रदान करते हुए अपने सब प्रकार के सुख त्याग देने और उस आनंद को पाने की इच्छा प्रकट की है। ब्रजभाषा का सरस प्रयोग सराहनीय है। तद्भव शब्दों का अधिकता से प्रयोग किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द-शक्ति और शांत रस का प्रयोग किया गया है। सवैया छंद विद्यमान है।
(ङ) कवि ने जिन आठ सिद्धियों की बात की है, वे हैं – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इंशित्व, वशित्वा।
(च) नौ निधियों के नाम हैं- महापद्म, पद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील, खर्व।
(छ) कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को प्रकट किया है। वे हर अवस्था में ब्रजक्षेत्र और अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहते हैं।

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3. मोरपखा सिर ऊपर राखिहाँ गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सो तेरे कहें सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥

शब्दार्थ : मोरपखा – मोरपंख। गुंज – घुंघची। गरें – गले। पहिरौंगी – पहनूँगी। पितंबर – पीत (पीला) वस्त्र। लकुटी – लाठी। ग्वारनि – ग्वालिन। स्वाँग – रूप धरना, नकल करना। अधरा – होंठ।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया भक्तिकाल के कवि रसखान द्वारा रचित है। इस सवैये में रसखान जी ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के निश्छल तथा निस्स्वार्थ प्रेम का चित्रण किया है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के लिए कोई भी रूप धारण करने को तैयार हैं।

गोपियाँ श्रीकृष्ण की भक्ति के वशीभूत होकर श्रीकृष्ण का स्वाँग भरने को तैयार हो जाती हैं। रसखान जी वर्णन करते हैं कि गोपिका कहती हैं- मैं श्रीकृष्ण के सिर पर रखा हुआ मोरपंख अपने सिर पर धारण कर लूँगी। श्रीकृष्ण के गले में शोभा पानेवाली गुंजों की माला को अपने गले में पहन लूँगी। पीत वस्त्र ओढ़कर तथा श्रीकृष्ण की तरह लाठी हाथ में लेकर, गायों के पीछे ग्वालों के साथ-साथ घूमा करूँगी। रसखान जी कहते हैं कि गोपिका अपनी सखी से कहती है कि वे श्रीकृष्ण मेरे मन को प्रिय हैं तुम्हारी कसम ! मैं उनके लिए सब प्रकार के रूप धर लूँगी। परंतु श्रीकृष्ण के होंठों पर लगी रहनेवाली इस मुरली को मैं अपने होंठों पर कभी भी नहीं रखूँगी। यहाँ गोपी की सौतिया डाह चित्रित हुई है जो श्रीकृष्ण के लिए सब कुछ कर सकती है पर मुरली को अपना दुश्मन मानते हुए उसे अपने होंठों पर नहीं लगा सकती।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) गोपी कैसा शृंगार करना चाहती है ?
(ख) गोपी कैसा स्वांग धारण करना चाहती है ?
(ग) गोपी मुरली को अपने होंठों पर क्यों नहीं रखना चाहती है ?
(घ) इस पद का भाव तथा काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ङ) किसके प्रेम को किसके प्रति प्रकट किया गया है ?
(च) अपने होंठों पर बाँसुरी कौन, क्यों नहीं रखना चाहता है ?
(छ) मुरलीधर कौन है ?
(ज) ‘मोरपखा’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) गोपी श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु से शृंगार करना चाहती है। वह अपने सिर पर उनका मोरपंख का मुकुट धारण करना चाहती है तथा गले में गुंजों की माला पहनना चाहती है। वह पीले वस्त्र पहनकर तथा हाथों में लाठी लेकर ग्वालों के साथ गाय चराने वन-वन भी फिरने के लिए तैयार है।
(ख) वह श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए उनके कहे अनुसार सब प्रकार का स्वांग धारण करने के लिए तैयार है।
(ग) श्रीकृष्ण के होंठों से लगे रहनेवाली मुरली को गोपी अपने होंठों से इसलिए नहीं लगाना चाहती क्योंकि वह मुरली को अपनी सौत मानती है जो सदा श्रीकृष्ण के होंठों से लगी रहती है। इसी सौतिया डाह के कारण वह मुरली को अपनी शत्रु मानती है और उसे अपने होंठों पर नहीं लगाना चाहती।
(घ) गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति निश्छल प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। गोपियों का श्रीकृष्ण का स्वांग भरना पर मुरली को होंठों से न लगाना उनकी सौतिया डाह को चित्रित करता है। अनुप्रास और यमक अलंकार की छटा दर्शनीय है। ब्रजभाषा है। सवैया छंद है। माधुर्य गुण है। संगीतात्मकता विद्यमान है। श्रृंगार रस है। भक्ति रस का सुंदर परिपाक है। भाषा सरस तथा प्रवाहमयी है।
(ङ) इस सवैये में रसखान जी ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के निश्छल तथा निःस्वार्थ प्रेम का चित्रण किया है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के लिए कोई भी रूप धारण करने को तैयार हैं।

(च) गोपी अपने होंठों पर बाँसुरी नहीं रखना चाहती। वह बाँसुरी को अपनी सौत मानती है। उसे लगता है कि श्रीकृष्ण बाँसुरी को अधिक प्रेम करते हैं और गोपी के प्रति उनके हृदय में प्रेम का भाव नहीं है। गोपी को उन्होंने बाँसुरी के कारण भुला-सा दिया है।
(छ) मुरलीधर श्रीकृष्ण हैं जो यमुना किनारे कदंब की छाया में मग्न होकर मुरली बजाते थे।
(ज) मोरपखा मोर के पंखों से बना मुकुट है जिसे श्रीकृष्ण अपने सिर पर धारण करते हैं।

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4. काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै ॥
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै ॥

शब्दार्थ : काननि – कानों में। मुरली – बाँसुरी। मंद – धीमी। अटा – अटारी, अट्टालिका, कोठा। टेरि – आवाज़ लगाना, पुकारना। सिगरे – सारे। वा – उस।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित पाठ ‘सवैये’ से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता कृष्ण-भक्त कवि रसखान हैं। श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान का प्रभाव अचूक है। गोपियाँ स्वयं को इनके सामने विवश पाती हैं। वे स्वयं को सँभाल नहीं पातीं।

व्याख्या : रसखान कहते हैं कि कोई गोपी श्रीकृष्ण की बाँसुरी की मोहक तान के जादुई प्रभाव को प्रकट करते हुए कहती है कि हे सखी! जब श्रीकृष्ण बाँसुरी की मधुर धुन को धीमे-धीमे स्वर में बजाएँगे तब मैं अपने कानों को अँगुली से बंद कर लूँगी ताकि बाँसुरी की मधुर तान मुझ पर अपना जादुई प्रभाव न डाल सके। फिर चाहे वह रस की खान रूपी कृष्ण अट्टालिका पर चढ़कर मोहनी तान बजाते रहे तो भी कोई बात नहीं, वह चाहे गोधन नामक लोकगीत गाते रहें पर मुझ पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हे ब्रज के सभी लोगो ! मैं पुकार – पुकारकर कह रही हूँ कि तब कोई हमें कितना भी समझाए पर मैं समझ नहीं पाऊँगी, मैं अपने आपको सँभाल नहीं पाऊँगी। हे री माँ, उनके मुख की मुसकान हमसे नहीं सँभाली जाती; नहीं सँभाली जाती; नहीं सँभाली जाती। भाव है कि गोपियाँ तो मानो श्रीकृष्ण की मधुर मुसकान पर अपने-आप को खो चुकी हैं। उनका हृदय अब उनके बस में नहीं है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) किसका प्रभाव गोपी पर अचूक है ?
(ख) गोपी श्रीकृष्ण के द्वारा बजाई बाँसुरी की तान को क्यों नहीं सुनना चाहती ?
(ग) गोपी को किनकी कोई परवाह नहीं ?
(घ) गोपी अपने-आपको किस कारण विवश अनुभव करती है ?
(ङ) कृष्ण अपनी किन विशेषताओं के कारण गोपियों को प्रिय लगते हैं ?
(च) ‘गोधन’ से क्या तात्पर्य है ?
(छ) ‘माई री ‘ का प्रयोग क्यों किया गया है ?
(ज) ‘न जैहै, न जैहै’ की आवृत्ति क्या प्रदर्शित करती है ?
(झ) सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान का प्रभाव अचूक है। गोपियाँ स्वयं को इनके सामने विवश पाती हैं। वे स्वयं को सँभाल नहीं पातीं।
(ख) गोपी श्रीकृष्ण की बाँसुरी के जादुई प्रभाव से बचने के लिए बाँसुरी की धुन नहीं सुनना चाहती।
(ग) गोपी को कोई परवाह नहीं है कि कोई इसके बारे में क्या कहेगा।
(घ) श्रीकृष्ण की मधुर मुसकान और उनकी बाँसुरी की तान के कारण गोपी अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख पाती और वह स्वयं को विवश अनुभव करती है।
(ङ) कृष्ण अपनी निम्नलिखित विशेषताओं के कारण गोपियों को प्रिय लगते हैं –
(क) मोहक रूप छटा (ख) बाँसुरी वादन (ग) लोक-गीतों का मधुर स्वर में गायन (घ) मधुर मुसकान।
(च) ‘गोधन’ एक लोकगीत है जिसे ग्वाले अपनी गायों को चराते समय गाते हैं।
(छ) ‘माई री ‘ का प्रयोग सामान्य रूप से आश्चर्य, दुःख, पीड़ा आदि भावों को अभिव्यक्त करने के लिए किया गया है। लड़कियाँ और औरतें प्रायः इस उद्गारात्मक शब्द का प्रयोग करती हैं।
(ज) ‘न जैहै, न जैहै’ की आवृत्ति गोपी के द्वारा की जानेवाली ज़िद और उन्माद की स्थिति को प्रदर्शित करती है।
(झ) श्रीकृष्ण के द्वारा बजाई जानेवाली बाँसुरी की मोहक तान और उनके मुख पर आई मुसकान ने गोपियों को विवश कर दिया है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उनका हृदय अब उनके बस में नहीं है। ब्रजभाषा की कोमल-कांत शब्दावली ने कवि के कथन को सरसता प्रदान की है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द – शक्ति ने सरलता से भावों को प्रकट किया है। चाक्षुक बिंब योजना की गई है। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। सवैया छंद है।

सवैये Summary in Hindi

कवि-परिचय :

रसखान कृष्ण-भक्ति काव्य के सुप्रसिद्ध कवि हैं जिनका जन्म सन् 1548 ई० में राजवंश से संबंधित दिल्ली के एक समृद्ध पठान परिवार में हुआ था। इनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था। श्रीकृष्ण की भक्ति के कारण भक्तजन इन्हें ‘रसखान’ कहने लगे थे। इनकी भक्ति भावना के कारण गोस्वामी विट्ठलनाथ ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया था और तब ये ब्रजभूमि में जा बसे थे। ये जीवनभर वहीं रहे थे और सन् 1628 ई० के लगभग इनका देहावसान हो गया था। रसखान रीतिकालीन कवि थे। ये प्रेमी स्वभाव के थे। वैष्णवों के सत्संग और उपदेशों के कारण इनका प्रेम लौकिक से अलौकिक हो गया था। ये श्रीकृष्ण और उनकी लीलाभूमि ब्रज की प्राकृतिक सुंदरता पर मुग्ध थे। ॐ रसखान के द्वारा दो रचनाएँ प्राप्त हुई हैं – ‘सुजान रसखान’ और ‘प्रेम वाटिका’। ‘रसखान रचनावली’ के नाम से उनकी रचनाओं का संग्रह मिलता है।

रसखान की कविता में भक्ति की प्रधानता है। इन्हें श्रीकृष्ण से संबंधित प्रत्येक वस्तु प्रिय थी। उनका रूप-सौंदर्य, वेशभूषा, बाँसुरी और बाल क्रीड़ाएँ इनकी कविता का आधार हैं। ये ब्रजक्षेत्र, यमुना तट, वन-बाग, पशु-पक्षी, नदी-पर्वत आदि के प्रति गहरे प्रेम का भाव रखते थे। इन्हें श्रीकृष्ण के बिना संसार में कुछ भी प्रिय नहीं था। इनके प्रेम में गहनता और तन्मयता की अधिकता है जिस कारण वे प्रत्येक पाठक को गहरा प्रभावित करते हैं। इनकी भक्ति में प्रेम, श्रृंगार और सुंदरता का सहज समन्वित रूप दिखाई देता है। इनके प्रेम में निश्छल प्रेम और करुण हृदय के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इन्होंने श्रीकृष्ण के बाल रूप के सुंदर – सहज सवैये लिखे हैं।

रसखान की भाषा उनके भावों के समान ही अति कोमल है जिसमें ज़रा सा भी बनावटीपन नहीं है। ये अपनी मधुर, सरस और प्रवाहमयी भाषा के लिए प्रसिद्ध हैं। इनके काव्य में शब्द इतने सरल और मोहक रूप में प्रयुक्त किए गए हैं कि वे झरने के प्रवाह के समान निरंतर पाठक को रस में सराबोर आगे बढ़ जाते हैं। उन्होंने अलंकारों का अनावश्यक बोझ अपनी कविता पर नहीं डाला। मुहावरों का स्वाभाविक ॐ प्रयोग विशेष सुंदरता प्रदान करने में समर्थ सिद्ध हुआ है। इन्होंने कविता की रचना के लिए परंपरागत पद शैलियों का अनुसरण नहीं किया। मुक्तक छंद शैली का प्रयोग इन्हें प्रिय है। कोमल-कांत ब्रजभाषा में रचित रसखान की कविता स्वाभाविकता के गुण से परिपूर्ण है। इन्हें दोहा, कवित्त और सवैया छंदों पर पूरा अधिकार है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

सवैयों का सार :

कृष्ण भक्त रसखान श्रीकृष्ण और कृष्ण-भूमि के प्रति समर्पण का भाव व्यक्त करते हुए कहते हैं कि यदि मैं मनुष्य रूप में जन्म लूँ तो मैं ब्रजक्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच जन्म लूँ। यदि मैं पशु रूप में पैदा होऊँ तो मैं नंद बाबा की गऊओं के झुंड में चरनेवाली गाय बनूँ। यदि मैं पत्थर बनूँ तो गोवर्धन पर्वत पर जगह पाऊँ जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए उठाया था। यदि मैं पक्षी का जीवन प्राप्त करूँ तो यमुना किनारे कदंब की डालियों पर ही बसेरा करूँ।

श्रीकृष्ण के काले कंबल और गऊओं को चराने के लिए प्रयुक्त लाठी के बदले मैं तीनों लोकों का राज्य त्याग दूँ। आठों सिद्धियाँ और नौ निधियाँ, नंद बाबा की गऊओं को चराने में भुला दूँ। मैं अपनी आँखों से ब्रज के वन और बाग निहारता रहूँ और करोड़ों महलों को ब्रज की काँटेदार झाड़ियों पर न्योछावर कर दूँ।

श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति में गोपियाँ स्वयं उनकी वेशभूषा में रहने की इच्छा करती हैं। सिर पर मोरपंख, गले में गुंज माल और पीले वस्त्र पहन वे ग्वालों के साथ घूमने की इच्छा करती हैं। वे वही सब कुछ करना चाहती हैं जो श्रीकृष्ण को प्रिय है पर वे बाँसुरी को अपने होंठों पर रखना पसंद नहीं करतीं। गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान के अचूक प्रभाव से स्वयं को विवश मानती हैं और स्वयं को सँभाल नहीं पातीं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

JAC Class 9 Hindi दुःख का अधिकार Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है ?
उत्तर :
किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें पता चलता है कि उस व्यक्ति का समाज में क्या स्तर है और वह किस वर्ग से संबंधित है।

प्रश्न 2.
खरबूजे बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था ?
उत्तर :
खरबूज़े बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे इसलिए नहीं खरीद रहा था, क्योंकि उसके जवान बेटे को मरे हुए एक ही दिन हुआ था और वह सूतक में ही खरबूजे बेचने आ गई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

प्रश्न 3.
उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा ?
उत्तर :
उस स्त्री को रोते देखकर लेखक के मन में व्यथा-सी उठी, परंतु अभिजात वर्ग के होने के कारण वह उसके पास बैठकर उसके रोने का कारण न जान सका।

प्रश्न 4.
उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था ?
उत्तर :
उस स्त्री का लड़का सुबह मुँह – अँधेरे बेलों में से पके खरबूज़े चुन रहा था। तभी गीली मेड़ की ठंडक में विश्राम करते हुए साँप पर उसका पैर पड़ गया। साँप ने उसे डँस लिया, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 5.
बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता ?
उत्तर :
बुढ़िया का बेटा मर गया था, जिसके कारण लोगों को लगा कि अब बुढ़िया उधार नहीं चुका सकेगी। इसलिए कोई भी बुढ़िया को उधार नहीं देता।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है ?
उत्तर :
मनुष्य के जीवन में पोशाक का बहुत महत्व है। पोशाक को देखकर पता चलता है कि अमुक व्यक्ति उच्च वर्ग का है अथवा निम्न वर्ग का। पोशाक मनुष्य का समाज में स्तर निर्धारित करती है। पोशाक से ही मनुष्य की आर्थिक व सामाजिक स्थिति का ज्ञान होता है।

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प्रश्न 2.
पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है ?
उत्तर :
पोशाक हमारे लिए तब बंधन और अड़चन बन जाती है, जब हम अपने स्तर से नीचे के लोगों की भावनाओं को समझना चाहते हैं। उस समय हमें लगता है कि हम समाज के भय से उनके साथ बैठकर उनका दुख-दर्द नहीं जान सकते। इस प्रकार पोशाक दो विभिन्न वर्गों में व्यवधान बनकर खड़ी हो जाती है।

प्रश्न 3.
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया ?
उत्तर :
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया, क्योंकि उसकी पोशाक उसे फुटपाथ पर रोती हुई निम्न वर्ग की स्त्री के पास बैठने से रोक रही थी। लेखक के मन में उस स्त्री को रोते देखकर दुख तो हो रहा था, परंतु अपनी उच्च वर्ग की पोशाक के कारण वह फुटपाथ पर बैठकर उस स्त्री के रोने का कारण नहीं पूछ पा रहा था।

प्रश्न 4.
भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था ?
उत्तर :
भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन में तरकारी आदि की खेती करके परिवार का पालन-पोषण करता था। इन दिनों उसने खरबूज़े बोये हुए थे, जिन्हें टोकरी में डालकर वह स्वयं अथवा उसकी माँ बाज़ार में बेचा करते थे

प्रश्न 5.
लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी ?
उत्तर :
लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने इसलिए चल पड़ी क्योंकि उसके पास जो जमा-पूँजी तथा गहने आदि थे, वह सब उसके मृत लड़के के क्रिया-कर्म में खर्च हो गए थे। उसके पोता-पोती भूख से तड़प रहे थे तथा बहू बुखार से तप रही थी। उसे कहीं से उधार मिलने की आशा नहीं थी। खाने-पीने और बहू के लिए दवा का प्रबंध करने के लिए पैसों की ज़रूरत थी, जिन्हें वह खरबूज़े बेचकर प्राप्त कर सकती थी।

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प्रश्न 6.
बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई ?
उत्तर :
रोती हुई बुढ़िया को देखकर लेखक को अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुखी संभ्रांत महिला की याद आ गई, जो अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी तथा उसे पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद पुत्र-वियोग से मूर्छा आ जाती थी। दो-दो डॉक्टर हरदम उसकी सेवा के लिए उसके सिरहाने बैठे रहते थे, जबकि इस बुढ़िया को अगले दिन ही बाज़ार में खरबूज़े बेचने आना पड़ा। लेखक इस तुलना के फलस्वरूप अत्यंत व्यथित हो गया।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचने वाली स्त्री को घृणा की दृष्टि से देखकर कह रहे थे कि जवान लड़के को मरे पूरा दिन भी नहीं हुआ और यह बेशर्म दुकान लगाकर बैठी है। दूसरा व्यक्ति उस स्त्री की नीयत खोटी बता रहा था, तो तीसरा उसे संबंधों से बढ़कर रोटी को महत्व देने वाली बता रहा था। पंसारी लाला उसे दूसरों का धर्म – ईमान खराब करने वाली कह रहा था, जो सूतक का ध्यान रखे बिना ही खरबूज़े बेचने बैठ गई है। इस तरह सभी अपने-अपने ढंग से उसे प्रताड़ित कर रहे थे।

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प्रश्न 2.
पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला ?
उत्तर :
आस-पास की दुकानों से पता करने पर लेखक को ज्ञात हुआ कि इस बुढ़िया का तेईस वर्ष का जवान बेटा था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती भी हैं। उसका पुत्र शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन में फल तरकारियाँ आदि बोकर परिवार का पालन-पोषण करता था। बाज़ार में फुटपाथ पर बैठकर वह अथवा उसकी माँ खरबूजे बेचा करते थे। परसों वह सुबह मुँह-अँधेरे बेलों से पके खरबूजे चुन रहा था कि उसका पैर मेड़ पर ठंडक में विश्राम कर रहे साँप पर पड़ गया। साँप ने उसे डॅस लिया था। बाद में ओझा से इलाज करवाने व नाग देवता की पूजा करने पर भी वह मर गया।

प्रश्न 3.
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?
उत्तर :
वृद्धा के बेटे को साँप ने काट लिया था, जिसके कारण वह अचेत हो गया। लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने ओझा को बुलाया। उसने झाड़-फूँक करने के बाद नाग देवता की पूजा भी की। पूजा का प्रबंध करने के लिए घर में जो कुछ आटा और अनाज था, वह उसने दक्षिणा में दे दिया। ओझा प्रयत्न करता रहा, किंतु वह अपने प्रयास में सफल न हुआ। अंत में सर्प के विष से उसके लड़के का सारा शरीर काला पड़ गया और वह चल बसा। वृद्धा के सभी प्रयास विफल हो गए थे।

प्रश्न 4.
लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा कैसे लगाया ?
उत्तर :
बुढ़िया के दुख का अंदाजा लगाने के लिए लेखक अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुखी संभ्रांत महिला के बारे में सोचने लगा। वह माता अपने पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ नहीं सकी थी। उसे बार-बार मूर्छा आ जाती थी। दो-दो डॉक्टर उसकी सेवा में हरदम उसके सिरहाने बैठे रहते थे। मूर्छा न आने की अवस्था में उसकी आँखों से आँसू बहते रहते थे। लेखक को लगा कि यह बुढ़िया भी इसी प्रकार से पुत्र की मृत्यु से दुखी होकर रो रही है, परंतु आर्थिक मजबूरी के कारण पुत्र की मृत्यु के अगले ही दिन खरबूजे बेचने आ बैठी है।

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प्रश्न 5.
इस पाठ का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पाठ का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ पूरी तरह से उचित है। लेखक ने बताया है कि दुख सभी को दुखी करता है, चाहे वह अमीर हो या गरीब। लेखक के पंड़ोस की संभ्रांत महिला पुत्र-शोक से दुखी होकर अढ़ाई महीने तक पलंग से ही उठ नहीं पाई थी। वह रोती रहती थी या उसे मूर्छा पड़ जाती थी। उसका इलाज करने के लिए दो-दो डॉक्टर थे। सारा शहर उसके पुत्र की मृत्यु से दुखी था। इसके विपरीत गरीब बुढ़िया अपने पुत्र की मृत्यु के अगले दिन ही बाजार में खरबूज़े बेचने के लिए मजबूर थी और चाह कर भी उसके मरने का मातम नहीं मना सकती थी, क्योंकि उसे अपने भूखे पोते-पोती का पेट भरना था और बीमार बहू के लिए दवा लानी थी। इस प्रकार वह इतनी अभागी थी कि उसे मृत पुत्र का दुख मनाने का भी अधिकार नहीं थी।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिरजाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
उत्तर :
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि मनुष्य की पहचान उसकी पोशाक से होती है। पहनी हुई पोशाक से ही पता चलता है कि व्यक्ति उच्च श्रेणी का है अथवा नहीं। पोशाक ही उस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति का ज्ञान करवाती है। इसलिए जिस प्रकार कटी हुई पतंग एकदम से ज़मीन पर नहीं गिरती, उसी प्रकार से उच्च वर्ग की पोशाक पहने वाला व्यक्ति भी सरलता से निम्न वर्ग के व्यक्ति के पास बैठने का प्रयास नहीं करता। उसकी अभिजात्य वर्ग की पोशाक उसे फटेहाल व्यक्ति के पास बैठने से रोकती है। उसे यही चिंता रहती है कि फटेहाल व्यक्ति के पास उसे बैठा देखकर दुनिया क्या कहेगी ?

प्रश्न 2.
इनके लिए बेटा-बेटी, खसम – लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है ?
उत्तर :
इस पंक्ति में लेखक उस व्यक्ति की विचारधारा को व्यक्त करता है, जो पुत्र की मृत्यु के अगले ही दिन खरबूज़े बेचने आई बुढ़िया के संबंध में यह वाक्य कहता है। उस व्यक्ति के विचार में इन नीच लोगों को किसी के मरने का दुख नहीं होता। ये किसी भी संबंध को नहीं मानते। इनके लिए पुत्र-पुत्री, पति-पत्नी तथा धर्म – ईमान का कोई महत्व नहीं होता। ये लोग केवल रोटी के लिए ही जीते हैं। इनका सबकुछ रोटी का टुकड़ा ही है। इसलिए यह बुढ़िया बेटे के मरने के एक दिन बाद ही खरबूज़े बेचने आ गई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

प्रश्न 3.
शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक उन अभावग्रस्त अभागे लोगों की दशा का वर्णन कर रहा है, जिनके पास अपने किसी सगे व्यक्ति की मृत्यु पर शोक मनाने का समय भी नहीं है। वे निरंतर अपना पेट भरने की चिंता में लगे रहते हैं। उनकी अभावग्रस्त जिंदगी उन्हें अपने किसी संबंधी के मर जाने पर उसका दुख मनाने का अधिकार भी नहीं देती, जबकि हर किसी को दुखी होने का तो अधिकार है ही।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नांकित शब्द-समूहों को पढ़ो और समझो –
(i) कड्या, पतङ्ग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध।
(i) कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंध।
(iii) अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न।
(iv) संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।
(v) अँधेरा, बाँट, मुँह, ईंट, महिला, में, मैं।
ध्यान दो कि झ ञ, ण, न् और म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ आपने ऊपर देखीं इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरीके से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा; जैसे-अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य, र, ल, व और ऊष्म श, ष, स, ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है; जैसे- संशय, संरचना में ‘न्, संवाद में ‘म्’ और संहार में ‘ङ्’।
(.) यह चिह्न है अनुस्वार का और (.) यह चिह्न है अनुनासिक का। इन्हें क्रमश: बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहते हैं। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है। अनुनासिक का स्वर के साथ।
उत्तर :
विद्यार्थी इसे ध्यान से पढ़ कर याद रखें।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए –
ईमान, बदन, अंदाज़ा, बेचैनी, गम, दर्जा, ज़मीन, जमाना, बरकत।
उत्तर :

  • ईमान – धर्म।
  • बदन – शरीर अंदाज़ा अनुमान।
  • बेचैनी – व्याकुलता।
  • गम – दुख।
  • दर्ज़ा – वर्ग।
  • ज़मीन – धरती।
  • ज़माना – युग।
  • बरकत – लाभ।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए-
उदाहरण: बेटा-बेटी
उत्तर :
खसम – लुगाई, पोता-पोती, झाड़ना-फूँकना, दान-दक्षिणा, छन्नी- ककना, चूनी भूसी, दुअन्नी – चवन्नी।

प्रश्न 4.
पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए –
बंद दरवाज़े खोल देना, निर्वाह करना, भूख से बिलबिलाना, कोई चारा न होना, शोक से द्रवित हो जाना।
उत्तर :

  1. बंद दरवाज़े खोल देना – कुछ भी करने की आज़ादी। अच्छी पोशाक पहनने वाले को कहीं भी आने-जाने से रोका नहीं जाता, उसके लिए सभी रास्ते खुले होते हैं।
  2. निर्वाह करना – गुज़ारा करना। बुढ़िया और उसके परिवार का निर्वाह खरबूज़े आदि बेचकर होता था।
  3. भूख से बिलबिलाना – भूख के कारण तड़पना घर में खाने-पीने की सामग्री न होने के कारण बुढ़िया के पोते-पोतियाँ भूख से बिलबिला रहे थे।
  4. कोई चारा न होना- कोई उपाय न होना। बुढ़िया के पास इसके अतिरिक्त कोई और चारा नहीं था कि वह बाज़ार में खरबूजे बेचने जाती।
  5. शोक से द्रवित हो जाना – दुख देखकर करुणा से पिघल जाना। लेखक खरबूज़े बेचने वाली बुढ़िया के शोक से द्रवित था। किसी के दुख को देखकर स्वयं भी दुखी होने का भाव इस वाक्यांश से व्यक्त होता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द-समूहों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
(i) छन्नी- ककना, अढ़ाई – मास, पास-पड़ोस, दुअन्नी चवन्नी, मुँह-अंधेरे, झाड़ना – फूँकना
(ii) फफक-फफककर, बिलख-बिलखकर, तड़प-तड़पकर, लिपट लिपटकर।
उत्तर :
(i) छन्नी- ककना – राम ने अपनी बेटी की शादी के लिए घर का छन्नी- ककना तक बेच दिया।
अढ़ाई – मास – हमारी वार्षिक परीक्षाएँ अढ़ाई – मास बाद शुरू होनी हैं।
पास-पड़ोस – रीना के पास-पड़ोस में कोई परचून की दुकान नहीं है।
दुअन्नी – चवन्नी – आजकल दुअन्नी – चवन्नी में चाय नहीं मिलती, इसके लिए पाँच रुपए देने पड़ते हैं।
मुँह – अंधेरे- विनोद और शारदा प्रतिदिन सुबह मुँह – अंधेरे ही घूमने जाते हैं।
झाड़ना-फूँकना – गीता डॉक्टर से इलाज करने की बजाय ओझा से झाड़ना – फूँकना करवाने में अधिक विश्वास रखती है।

(ii) फफक-फफककर – अपने पिताजी की मृत्यु का समाचार सुनते ही विशाल फफक-फफककर रोने लगा।
बिलख-बिलखकर – अध्यापक की डाँट पड़ते ही सुमन बिलख-बिलखकर रो पड़ी।
तड़प-तड़पकर – कार से टक्कर लगते ही सुखबीर ने तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया।
लिपट लिपटकर – साबिरा अपने पति की लाश से लिपट लिपटकर रोने लगी।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए-
(क) 1. लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
2. उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा।
3. चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
(ख) 1. अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।
2. भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।
उत्तर :
(क) 1. राजेश विद्यालय से आते ही पेट दर्द से तड़फड़ाने लगा।
2. सलमा के लिए तो बाज़ार से मिठाई लानी ही होगी।
3. चाहे उसका घर-बार ही क्यों न बिक जाए, लेकिन उसे बेटी की शादी तो करनी ही है।
4. माँ-बाप की प्रसन्नता के लिए उसे विवाह करना ही होगा।

(ख) 1. जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा।
2. जो जैसा होता है, वैसा ही करता है।
3. सुरेश जो एक बार यहाँ आया तो फिर नहीं गया।
4. रश्मि जो एक दफे नाराज़ हुई तो फिर खुश न हुई।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
‘व्यक्ति की पहचान उसकी पोशाक से होती है।’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए। यदि आपने भगवाना की माँ जैसी किसी दुखिया को देखा है तो उसकी कहानी लिखिए। पता कीजिए कि कौन-से साँप विषैले होते हैं ? उनके चित्र एकत्र कीजिए और भित्ति पत्रिका में लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi दुःख का अधिकार Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘दुःख का अधिकार’ कहानी का मूल भाव क्या है ?
उत्तर :
‘दुःख का अधिकार’ कहानी में लेखक ने समाज में फैले अंधविश्वासों, जातिभेद, वर्गभेद आदि पर कटाक्ष किया है। लेखक के अनुसार किसी अपने के मरने का दुख सबको समान रूप से होता है; परंतु उच्च वर्ग जहाँ इस शोक को अपनी सुविधा के अनुसार कई दिनों तक मना सकता है, वहीं निम्न वर्ग के अभागे लोगों के पास अपने पुत्र की मृत्यु तक का शोक मनाने के लिए समय नहीं होता क्योंकि उन्हें पेट की आग रोटी कमाने के लिए विवश कर देती है। इस कहानी में लेखक के पड़ोस की संभ्रांत महिला पुत्र शोक में अढ़ाई महीने तक बिस्तर से नहीं उठ सकी थी, जबकि भगवाना की मृत्यु के एक दिन बाद ही उसकी माँ को परिवार के लिए रोटी जुटाने हेतु खरबूजे बेचने बाज़ार में आना पड़ा।

प्रश्न 2.
पड़ोस की दुकानों पर बैठे अथवा बाज़ार में खड़े लोगों को भगवाना की माँ से घृणा क्यों थी ?
उत्तर :
पड़ोस की दुकानों पर बैठे अथवा बाज़ार में खड़े लोगों को भगवाना की माँ से इसलिए घृणा हो रही थी क्योंकि कल ही उसका पुत्र भगवाना साँप के काटने से मरा था और आज वह बाज़ार में खरबूज़े बेचने आ गई थी। उन्हें लगता था कि उसे सूतक के दिनों में घर में रहना चाहिए था। जिन लोगों को उसके पुत्र के मरने का पता नहीं है, वे यदि उससे खरबूज़े खरीदेंगे तो उनका ईमान-धर्म नष्ट हो जाएगा। वे उसे बेहया मानते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

प्रश्न 3.
परचून की दुकान पर बैठे लाला ने भगवाना की माँ के संबंध में क्या कहा ?
उत्तर :
परचून की दुकान पर बैठे लाला ने पुत्र की मृत्यु के अगले दिन भगवाना की माँ को खरबूज़े बेचते हुए देखकर कहा कि इन लोगों को किसी के मरने – जीने की कोई चिंता नहीं होती है, फिर भी इन्हें दूसरों के धर्म-ईमान का तो ध्यान रखना चाहिए। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है। इस बीच छूत – छात का पूरा ध्यान रखा जाता है, परंतु यह तो यहाँ बाज़ार में खरबूज़े बेचने आ गई है। यहाँ हज़ारों लोग आते-जाते हैं। इनमें से किसी को क्या पता कि इसके घर सूतक है। यदि किसी ने इससे खरबूज़े लेकर खा लिए, तो उसका धर्म-ईमान ही नष्ट हो जाएगा। इन लोगों ने तो अँधेर मचा रखा है।

प्रश्न 4.
पोशाकें मनुष्य को कैसे बाँटती हैं और उसके लिए बंद दरवाजे कैसे खोलती हैं ?
उत्तर :
पोशाक मनुष्य के स्तर को प्रकट करती है। यदि कोई मनुष्य अच्छी, महँगी और चमकदार पोशाक पहनता है तो उसे सभ्य, उच्च वर्गीय और अमीर समझा जाता है। जब कोई व्यक्ति साधारण या फटे-पुराने वस्त्र पहनता है, तो उसे गरीब अथवा निम्न वर्ग का माना जाता है। इस तरह पोशाक के आधार पर मनुष्य के स्तर और आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाकर उसे वर्गों में बाँटा जाता है।

पोशाक मनुष्य के लिए बंद दरवाजे खोलने का काम करती है। जब कोई मनुष्य साधारण कपड़े पहनकर किसी बड़े व्यक्ति से मिलने जाता है, तो चौकीदार उसे बाहर से ही भगा देता है। यदि कोई महँगे, अच्छे और शानदार कपड़े पहनकर बड़े आदमी से मिलने जाता है, तो चौकीदार भागकर उसकी गाड़ी का दरवाजा खोलता है और आने वाले व्यक्ति को सलाम करता है। इस प्रकार पोशाक व्यक्ति के लिए बंद दरवाज़े खोलने का काम करती है।

प्रश्न 5.
लेखक की पोशाक बुढ़िया से उसका दुख का कारण जानने में कैसे रुकावट बन गई ?
उत्तर :
लेखक उच्च वर्ग से संबंध रखता था और उसने अच्छी पोशाक पहन रखी थी। लेकिन उसकी अच्छी पोशाक फुटपाथ पर फटेहाल रोती हुई बुढ़िया के पास बैठकर रोने का कारण जानने में रुकावट पैदा कर रही थी। वह अपनी पोशाक के कारण यह साहस नहीं कर पा रहा था कि वह बुढ़िया के पास बैठकर उसके दुख को बाँट सके। वह यही सोच रहा था कि उसे फटेहाल बुढ़िया के पास बैठा देखकर लोग क्या कहेंगे।

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प्रश्न 6.
जिंदा आदमी और मुर्दा आदमी की परिस्थितियों में क्या अंतर है ?
उत्तर :
जिंदा आदमी और मुर्दा आदमी की परिस्थितियों में बहुत अंतर है। एक निर्धन जिंदा आदमी बिना कुछ खाए-पिए रह सकता है; फटे- पुराने कपड़े पहनकर अपना तन ढक सकता है। वह अपना जीवन किसी भी तरह गुज़ार सकता है, परन्तु मुर्दा आदमी को बिना कफ़न के विदा नहीं किया जा सकता। समाज और बिरादरी के डर से उसके लिए हमें नए कपड़े लाने पड़ते हैं। मुर्दे को नंगा विदा करना हमारे धर्म के भी विरुद्ध माना जाता है। इसलिए जिंदा और मुर्दा आदमी की परिस्थिति में अंतर है।

प्रश्न 7.
भगवाना की माँ को अपने हाथों के छन्नी- ककना क्यों बेचने पड़े ?
उत्तर :
भगवाना के इलाज में घर की जमा-पूँजी समाप्त हो गई थी, लेकिन वह फिर भी नहीं बचा। अब उसके मरने पर उसे नंगा तो विदा नहीं किया जा सकता था। उसके लिए कपड़े की दुकान से नया कपड़ा लाना था। इसलिए भगवाना की माँ ने अपने हाथ के मामूली से गहने छन्नी- ककना बेच दिए ताकि उसके बेटे का क्रिया-क्रम धर्मानुसार हो सके।

प्रश्न 8.
पुत्र के मरने के बाद बुढ़िया जिस साहस से खरबूजे बेचने आई थी, वह बाज़ार में आकर क्यों टूट गया ?
उत्तर :
जवान बेटे के मरने के अगले दिन बुढ़िया बाज़ार में खरबूज़े बेचने के लिए आ गई थी। अब उसके घर में कमाने वाला कोई नहीं था। जवान बहू और पोते को पालने के लिए पैसों की आवश्यकता थी, इसलिए वह साहस करके बाज़ार में खरबूज़े बेचने के लिए आ गई। परंतु बाज़ार में लोगों की चुभती आँखों और जली-कटी बातों ने उसका साहस तोड़ दिया। वह एक ओर बैठकर मुँह छिपाकर रोने लगी।

प्रश्न 9.
लेखक ने दुख मनाने के लिए सहूलियत की बात क्यों की ?
उत्तर :
समाज में रहने वाले छोटे-बड़े सभी व्यक्तियों को दुख मनाने की सहूलियत होनी चाहिए। दुख को प्रकट करने का अवसर मिलने पर दुखी व्यक्ति का मन हल्का हो जाता है; उस पर दुख का भार कम हो जाता है। जिस प्रकार रोने से मन हल्का हो जाता है, उसी प्रकार मृत्यु पर शोक मनाने से दुख कम हो जाता है। इसलिए लेखक ने दुख मनाने के लिए सहूलियत की बात की है।

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प्रश्न 10.
क्या दुखी होने का अधिकार सबके लिए समान है ?
उत्तर :
गरीब व्यक्ति परिवार के पालन-पोषण के लिए अपने परिवार की किसी जवान मौत के दुख को धकेलकर काम के लिए चला जाता है; उसके पास दुख मनाने का समय नहीं होता। वहीं दूसरी ओर अमीर व्यक्ति के पास समाज, रिश्तेदार आदि सभी एकत्रित होकर उसका दुख कम करने में लगे रहते हैं। उसके पास दुख मनाने का समय भी होता है और धन भी। इसलिए सबके लिए दुखी होने का अधिकार समान नहीं है।

प्रश्न 11.
बुढ़िया के पुत्र भगवाना की मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर :
भगवाना बुढ़िया का इकलौता पुत्र था। एक दिन सुबह मुँह – अँधेरे वह खेत से खरबूज़े तोड़ रहा था। मध्यम रोशनी होने के कारण कुछ चीजें स्पष्ट दिखाई नहीं दे रही थीं। वहीं पास में खेत की गीली मेड़ की तरावट में एक साँप विश्राम कर रहा था। खरबूज़े तोड़ते-तोड़ते अचानक भगवाना का पैर साँप के ऊपर जा पड़ा और साँप ने उसे काट लिया। इस प्रकार साँप के काटने से भगवाना की मृत्यु हुई।

प्रश्न 12.
बुढ़िया बाज़ार में खरबूज़े बेचने के लिए क्यों आई थी ?
उत्तर :
अपने परिवार की दयनीय स्थिति को देखते हुए बुढ़िया खरबूज़े बेचने बाज़ार में आई थी। पहले यह कार्य उसका पुत्र करता था। अब उनके पास कोई अन्य उपाय नहीं था। पुत्र के निधन के बाद बुढ़िया को उधार देने वाला भी कोई नहीं था। घर में बच्चे भूख से और भगवाना की पत्नी बुखार से तड़प रही थी। इन सभी विकट स्थितियों का ध्यान करते हुए बुढ़िया बाज़ार में खरबूज़े बेचने आई थी।

प्रश्न 13.
पोशाकें मनुष्य को किस प्रकार बाँटती हैं ?
उत्तर
पोशाकें मनुष्य को विभिन्न श्रेणियों में बाँटती हैं। यह मानव को स्थिति के अनुसार न चलाकर पोशाक के आधार पर अन्य लोगों से अलग करती है। पोशाक ही अमीर-गरीब का भेद स्पष्ट करती है। फटेहाली गरीबी का परिचायक बन जाती है, जबकि सुंदर व रंग-बिरंगे कपड़े अमीर तथा उच्चवर्गीय लोगों के परिचायक बन जाते हैं। आज समाज में पोशाकें इसी प्रकार मनुष्य को बाँटने का काम कर रही हैं।

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प्रश्न 14.
पाठ में लेखक ने ‘जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है’ कहकर समाज पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर :
पाठ में लेखक ने ‘जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है’ कहकर समाज की उस परंपरा एवं रूढ़िवादिता पर व्यंग्य किया है, जिसमें जीवित व्यक्ति को चाहे जीवन भर तन ढँकने के लिए कोई कपड़ा न मिला हो, लेकिन मरने के बाद उसे नया कपड़ा कफ़न के रूप में अवश्य दिया जाता है। लेखक जानना चाहता है कि समाज को जिंदा व्यक्ति से अधिक मरे व्यक्ति की चिंता क्यों है?

प्रश्न 15.
लेखक को फुटपाथ पर बैठने से कौन और क्यों रोक रहा था ?
उत्तर :
लेखक को फुटपाथ पर बैठने से उसकी पोशाक रोक रही थी, क्योंकि उसने उच्चवर्ग की कीमती पोशाक पहन रखी थी। यह पोशाक लेखक को फुटपाथ पर रुकने तक की इज़ाजत नहीं दे रही थी, बैठने की बात तो दूर की थी। लेखक की पोशाक फुटपाथ पर बैठे लोगों तथा उसके बीच के फासले को स्पष्ट कर रही थी। इसी कारण लेखक फुटपाथ पर नहीं बैठा।

दुःख का अधिकार Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय – आधुनिक युग के सुप्रसिद्ध कथाकार यशपाल का जन्म 3 दिसंबर, सन् 1903 को फिरोज़पुर छावनी में हुआ था। इनके पिता का नाम हीरालाल तथा माता का नाम प्रेम देवी था। इनके पूर्वज कांगड़ा जिले के निवासी थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई थी। बाद में यशपाल फिरोज़पुर आकर पढ़ने लगे और यहीं से इन्होंने सन् 1921 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इन्होंने अपना प्रारंभिक जीवन आर्य समाज के प्रचारक के रूप में प्रारंभ किया तथा इनका मासिक वेतन आठ रुपए था।

सन् 1922 में इन्होंने नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। यहीं इनकी भेंट सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह तथा सुखदेव से हुई। इसके बाद यशपाल क्रांतिकारियों के विभिन्न दलों से जुड़ गए। लाहौर और रोहतक में इन्होंने बम बनाने का कार्य भी किया था। 7 अगस्त, 1936 को बरेली जेल में इनका विवाह प्रकाशवती से संपन्न हुआ। इन्होंने सात बार विदेश यात्राएँ भी की थीं। इन्हें अनेक उपाधियों और पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया। 26 दिसंबर सन् 1976 को इनका देहावसान हुआ।

रचनाएँ – यशपाल ने साहित्य रचना कॉलेज जीवन से ही प्रारंभ कर दी थी। इन्होंने उपन्यास, कहानी, निबंध, नाटक, यात्रा – विवरण, संस्मरण आदि गद्य की समस्त विधाओं में साहित्यिक रचनाएँ की हैं। इनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
उपन्यास – दादा कामरेड, देशद्रोही, दिव्या, पार्टी कामरेड, मनुष्य के रूप, अमिता, झूठा सच, बारह घंटे, अप्सरा का श्राप, क्यों फँसे, मेरी तेरी उसकी बात आदि।
नाटक – नशे – नशे की बात, रूप की परख, गुडबाई दर्देदिल।
यात्रा विवरण – लोहे की दीवार के दोनों ओर, राहबीती, स्वर्गोद्यान बिना साँप।
आत्मकथा – सिंहावलोकन।
निबंध – चक्कर क्लब, न्याय का संघर्ष, मार्क्सवाद, रामराज्य की कथा, जग का मुजरा।
संपादन – विप्लव।
कहानी-संग्रह – पिंजरे की उड़ान, वो दुनिया, तर्क का तूफान, ज्ञानदान, अभिशप्त, भस्मावृत चिनगारी, फूलों का कुरता, धर्मयुद्ध, उत्तराधिकारी, चित्र का शीर्षक, तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूँ, उत्तमी की माँ, ओ भैरवी, सच बोलने की भूल आदि।

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पाठ का सार :

‘दुःख का अधिकार’ कहानी के लेखक यशपाल हैं। इस कहानी में लेखक ने बताया है कि हमारे देश में कुछ ऐसे अभागे लोग भी हैं, जिन्हें दुख मनाने का भी अधिकार नहीं है। समाज में हमारी पोशाक देखकर हमारा स्तर निर्धारित किया जाता है। ऊँची और अच्छी पोशाक वाले निम्न व मामूली पोशाक वालों के साथ संबंध नहीं बना सकते। जैसे कटी हुई पतंग एकदम ज़मीन पर नहीं गिरती है, वैसे ही अच्छी पोशाक वाले मामूली अथवा गंदी पोशाक पहनने वालों की तरफ नहीं झुकते हैं। बाज़ार में फुटपाथ पर कुछ खरबूज़े टोकरी में और कुछ ज़मीन पर रखकर एक अधेड़ उम्र की औरत कपड़े से मुँह छिपाए सिर घुटनों पर रखकर रो रही थी। वह खरबूज़े बेचने के लिए लाई थी, परंतु उन्हें कोई खरीद नहीं रहा था। आस-पास की दुकानों पर बैठे लोग घृणा से उस स्त्री के संबंध में बातें कर रहे थे। लेखक उस स्त्री से उसके रोने का कारण जानना चाहता था, परंतु अपनी पोशाक का लिहाज़ कर वह फुटपाथ पर उसके साथ न बैठ सका।

वहीं एक आदमी कह रहा था कि क्या ज़माना आ गया है! जवान लड़के को मरे एक दिन भी नहीं हुआ कि यह बेहया दुकान लगाकर बैठी है। दूसरा कह रहा था कि जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी बरकत देता है। तीसरे का कहना था कि इन लोगों के लिए संबंध कुछ नहीं रोटी ही सबकुछ हैं। परचून की दुकान पर बैठे लाला ने कहा कि इन लोगों को दूसरे के धर्म-ईमान की भी चिंता नहीं है। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और यह आज ही खरबूजे बेचने आ गई है। आस-पास के दुकानदारों से पता करने पर लेखक को ज्ञात हुआ कि उस अधेड़ स्त्री का तेईस वर्ष का बेटा था। घर में बहू और पोता-पोती भी हैं।

लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन में तरकारियाँ बोता था, जिससे परिवार का पालन-पोषण होता था। वह परसों सुबह मुँह- अँधेरे बेलों से खरबूजे चुन रहा था कि उसका पैर साँप पर पड़ गया और साँप ने उसे डँस लिया। ओझा से इलाज करवाने तथा नाग देवता की पूजा करने के बाद भी अधेड़ स्त्री के पुत्र भगवाना का शरीर काला पड़ गया और वह मर गया। उसका क्रिया-कर्म करने में इनकी सारी जमा-पूँजी समाप्त हो गई। बच्चे भूख से बिलख रहे थे; बहू को बुखार हो गया था; बुढ़िया को कोई उधार देने वाला भी नहीं था।

वह रोते- बिलखते बाज़ार में खरबूज़े बेचने आ गई थी। कल जिसका बेटा चल बसा, मज़बूरी में उसे आज बाजार में खरबूजे बेचने पड़ रहे हैं। लेखक को याद आया कि पिछले साल उसके पड़ोस में एक स्त्री अपने पुत्र की मृत्यु के शोक में अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। पुत्र-वियोग में बार-बार उसे मूर्छा आ जाती थी। दो-दो डॉक्टर उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे। सारा शहर उसके पुत्र-शोक से दुखी था। आज इस बुढ़िया के पास शोक मनाने की सुविधा भी नहीं है और उसे यह अधिकार भी नहीं है कि वह दुखी हो सके। यह सब सोचते हुए लेखक चला जा रहा था, राह चलते ठोकरें खाता हुआ।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

  • पोशाक – पहनावा।
  • दर्ज़ा – स्तर, हैसियत।
  • अनुभूति – अनुभव, तजुर्बा।
  • अड़चन – रुकावट, बाधा।
  • डलिया – टोकरी।
  • अधेड़ – ढलती अवस्था।
  • घृणा – नफ़रत।
  • व्यथा – दुख।
  • उपाय – तरीका।
  • बेहया – बेशर्म, निर्लज्ज।
  • नीयत – इरादा, मन में रहने वाला भाव, मंशा।
  • बरकत – लाभ।
  • खसम – पति।
  • लुगाई – पत्नी।
  • परचून की दुकान – पंसारी की दुकान।
  • सूतक – घर में पैदा होने वाले बच्चे अथवा घर में किसी के मरने पर परिवार वालों को लगने वाला अशौच। इस दशा में कुछ निश्चित दिनों तक छूत का ध्यान रखते हैं।
  • कछियारी – खेतों में तरकारी आदि की खेती करना।
  • निर्वाह – गुज़ारा।
  • तरावर – ठंडक।
  • दफे – बार।
  • छन्नी-ककना – मामूली गहने।
  • संभ्रांत – सम्मानित, प्रतिष्ठित, उच्च वर्ग की।
  • द्रवित – दया से पसीजना।
  • गम – दुख।
  • शोक – दुख।
  • सहूलियत – सुविधा।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran शब्द और पद Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran शब्द और पद

शब्द भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है। शब्द को व्याकरण के नियमों के अनुसार किसी वाक्य में प्रयोग करने पर वह पद बन जाता है। एक से अधिक पद जुड़कर एक ही व्याकरणिक इकाई का काम करने पर पदबंध कहलाते हैं।

शब्द का वर्गीकरण इस प्रकार है –

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद 1

प्रश्न 1.
शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर :
शब्द वर्णों के मेल से बनाई गई भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है। जैसे – राम, रावण, मारना।

प्रश्न 2.
शब्द का प्रत्यक्ष रूप किसे कहते हैं ?
उत्तर :
भाषा में जब शब्द कर्ता में बिना परसर्ग के आता है तो वह अपने मूल रूप में आता है। इसे शब्द का प्रत्यक्ष रूप कहते हैं। जैसे – वह, लड़का, मैं।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

प्रश्न 3.
कोशीय शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस शब्द का अर्थ शब्दकोश से प्राप्त हो जाए, उसे कोशीय शब्द कहते हैं। जैसे- मनुष्य, घोड़ा।

प्रश्न 4.
व्याकरणिक शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर :
व्याकरणिक शब्द उस शब्द को कहते हैं, जो व्याकरणिक कार्य करता है। जैसे-‘मुझसे आजकल विद्यालय नहीं जाया जाता।’ इस वाक्य में ‘जाता’ शब्द व्याकरणिक शब्द है।

प्रश्न 5.
पद किसे कहते हैं ?
अथवा
शब्द वाक्य में प्रयुक्त होने पर क्या कहलाता है ?
उत्तर :
जब किसी शब्द को व्याकरण के नियमों के अनुसार किसी वाक्य में प्रयोग किया जाता है तब वह पद बन जाता है। जैसे- राम, रावण, मारा शब्द है। इनमें विभक्तियों, परसर्ग, प्रत्यय आदि को जोड़कर पद बन जाता है। जैसे- श्रीराम ने रावण को मारा।

प्रश्न 6.
पद के कितने और कौन-कौन से भेद हैं ?
उत्तर :
पद के पाँच भेद संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और अव्यय हैं।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

प्रश्न 7.
शब्द और पद में क्या अंतर है ?
उत्तर :
शब्द भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है और वाक्य के बाहर रहता है, परंतु जब शब्द वाक्य के अंग के रूप में प्रयोग किया जाता है तो इसे पद कहते हैं। जैसे- ‘लड़का, मैदान, खेलना’ शब्द हैं। इन शब्दों से यह वाक्य बनाने पर – ‘लड़के मैदान में खेलते हैं।’- ये पद बन जाते हैं।

प्रश्न 8.
पदबंध किसे कहते हैं ?
उत्तर :
पदबंध का शाब्दिक अर्थ है – पदों में बँधा हुआ। जब एक से अधिक पद मिलकर एक इकाई के रूप में व्याकरणिक कार्य करते हैं तो वे पदबंध कहलाते हैं। जैसे चिड़िया सोने के पिंजरे में बंद है। इस वाक्य में सोने का पिंजरा पदबंध है। पदबंध वाक्यांश मात्र होते हैं, काव्य नहीं। पदबंध में एक से अधिक पदों का योग होता है और ये पद आपस में जुड़े होते हैं। शब्द के सभी भेद स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 9.
शब्द और शब्दावली वर्गीकरण निम्नलिखित दृष्टियों से किया जा सकता है –
उत्तर :
(क) अर्थ की दृष्टि से वर्गीकरण –
अर्थ की दृष्टि से निम्नलिखित चार भेद किए जाते हैं –
(i) एकार्थी – जिन शब्दों का प्रयोग केवल एक अर्थ में ही होता है, उन्हें एकार्थी शब्द कहते हैं। जैसे –
पुस्तक, पेड़, घर, घोड़ा, पत्थर आदि।
(ii) अनेकार्थी – जो शब्द एक से अधिक अर्थ बताने में समर्थ हैं, उन्हें अनेकार्थी शब्द कहते हैं। इन शब्दों का प्रयोग जिस संदर्भ में किया जाएगा, ये उसी के अनुसार अर्थ देंगे। जैसे –
काल – समय, मृत्यु।
अर्क – सूर्य, आक का पौधा।
(iii) पर्यायवाची या समानार्थी – जिन शब्दों के अर्थों में समानता हो, उन्हें पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहते हैं
जैसे – कमल – जलज, नीरज, अंबुज, सरोज।
आदमी – नर, मनुष्य, मानव।
(iv) विपरीतार्थी – विपरीत अर्थ प्रकट करने वाले शब्दों को विपरीतार्थी अथवा विलोम शब्द कहते हैं। जैसे –
आशा-निराशा हँसना – रोना

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

(ख) उत्पत्ति की दृष्टि से वर्गीकरण –
इतिहास की दृष्टि से शब्दों के पाँच भेद हैं –
(i) तत्सम – तत्सम शब्द का अर्थ है – तत् (उसके) + सम (समान) अर्थात उसके समान जो शब्द संस्कृत के मूल रूपों के समान ही हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तत्सम कहते हैं। इनका प्रयोग हिंदी में भी उसी रूप में किया जाता है, जिस रूप में संस्कृत में किया जाता है। जैसे- नेत्र, जल, पवन, सूर्य, आत्मा, माता, भवन, नयन, आशा, सर्प, पुत्र, हास, कार्य, यदि आदि।

(ii) तद्भव – तद्भव शब्द का अर्थ है तत् ( उससे) + भव ( पैदा हुआ) जो शब्द संस्कृत के मूल रूपों से बिगड़ कर हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तद्भव कहते हैं, जैसे- दुध से दुग्ध, घोटक से घोड़ा, आम्र से आम, अंधे से अंधा, कर्म से काम, माता से माँ, सर्प से साँप, सप्त से सात, रत्न से रतन, भक्त से भगत।

(iii) देशज – देशज का अर्थ होता है देश + ज अर्थात देश में जन्मा। लोकभाषाओं से आए हुए शब्द देशज कहलाते हैं। कदाचित ये शब्द बोलचाल से बने हैं। जैसे – पेड़, खिड़की, अटकल, तेंदुआ, लोटा, डिबिया, जूता, खोट, फुनगी आदि।

(iv) विदेशज – जो शब्द विदेशी भाषाओं से लिए गए हैं, उन्हें विदेशज कहते हैं।
अंग्रेज़ी – डॉक्टर, नर्स, स्टेशन, प्लेटफ़ॉर्म, पेंसिल, बटन, फ़ीस, मोटर, कॉलेज, ट्रेन, ट्रक, कार, बस, स्कूटर, फ्रीज़ आदि।
फ़ारसी – दुकान, ईमान, ज़हर, किशमिश, उम्मीद, फ़र्श, जहाज़, कागज़, ज़मींदार, बीमार, सब्ज़ी, दीवार आदि।
अरबी – कीमत, फ़ैसला, कायदा, तरफ़, नहर, कसरत, नशा, वकील, वज़न, कानून, तकदीर, खराब, कत्ल, फौज़ नज़र, खत आदि।
तुर्की – तगमा, तोप, लाश, चाकू, उर्दू, कैंची, बेग़म, गलीचा, बावर्ची, बहादुर, चम्मच, कैंची, कुली, कुरता आदि।
पुर्तगाली – तंबाकू, पेड़ा, गिरिजा, कमीज़, तौलिया, बालटी, मेज़, कमरा, अलमारी, संतरा, साबुन, चाबी, आलपीन, कप्तान आदि।
फ्रांसीसी – कारतूस, कूपन, अंग्रेज़।

(v) संकर – दो भाषाओं के शब्दों के मिश्रण से बने शब्द संकर शब्द कहलाते हैं।
यथा – जाँचकर्ता – जाँच (हिंदी) कर्ता (संस्कृत)
सज़ाप्राप्त – सज़ा (फ़ारसी) प्राप्त (संस्कृत)
रेलगाड़ी – रेल (अंग्रेज़ी) गाड़ी (हिंदी)
उद्गम के आधार पर शब्दों की एक और कोटि हिंदी शब्दावली में पाई जाती है जिसे अनुकरणात्मक या ध्वन्यात्मक कहते हैं।
यथा – हिनहिनाना, चहचहाना, खड़खड़ाना, भिनभिनाना आदि।

(ग) रचना की दृष्टि से वर्गीकरण –
प्रयोग के आधार पर शब्दों के भेद तीन प्रकार के होते हैं –

(i) मूल अथवा रूढ़ शब्द – जो शब्द किसी अन्य शब्द के संयोग से नहीं बनते हैं और अपने आप में पूर्ण होते हैं उन्हें रूढ़ अथवा मूल शब्द कहते हैं। ये शब्द किसी विशेष अर्थ के लिए रूढ़ या प्रसिद्ध हो जाते हैं। इनके खंड या टुकड़े नहीं किए जा सकते।
जैसे – घड़ा, घोड़ा, काला, जल, कमल, कपड़ा, घास, दिन, घर, किताब, मुँह।

(ii) यौगिक – दो शब्दों के संयोग से जो सार्थक शब्द बनते हैं, उन्हें यौगिक कहते हैं। दूसरे शब्दों में यौगिक शब्द वे शब्द होते हैं जिनमें रूढ़ शब्द के अतिरिक्त प्रत्यय, उपसर्ग या एक अन्य रूढ़ शब्द अवश्य होता है अर्थात ये दो अंशों को जोड़ने से बनते हैं, जिनमें एक शब्द आवश्यक रूप से रूढ़ होता है। जैसे – नमकीन – इसमें नमक रूढ़ तथा ईन प्रत्यय है।
जैसे – गतिमान, विचारवान, पाठशाला, विद्यालय, प्रधानमंत्री, गाड़ीवान, पानवाला, घुड़सवार, बैलगाड़ी, स्नानघर, अनपढ़, बदचलन।

(iii) योगरूढ़ – दो शब्दों के योग से बनने पर भी किसी एक निश्चित अर्थ में रूढ़ हो जाने वाले शब्द योगरूढ़ कहलाते हैं।
जैसे – चारपाई, तिपाई, जलज (जल + ज = कमल), दशानन (दस + आनन = रावण), जलद (जल + द = बादल), जलधि (जल + धि समुद्र)।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

(घ) रूपांतरण की दृष्टि से शब्दों के भेद –

(i) विकारी शब्द – जिन शब्दों के रूप में विकार (परिवर्तन) उत्पन्न हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया – ये चार प्रकार के शब्द विकारी कहलाते हैं। इनमें लिंग, वचन एवं कारक आदि के कारण विकारी उत्पन्न हो जाता है।

(ii) अविकारी शब्द – जिन शब्दों के रूप में विकार (परिवर्तन) उत्पन्न नहीं होता और जो अपने मूल में बने रहते हैं, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं।

अविकारी शब्द को अव्यय भी कहा जाता है। क्रिया-विशेषण, समुच्चयबोधक, संबंधसूचक तथा विस्मयादिबोधक – ये चार प्रकार के शब्द अविकारी कहलाते हैं। क्रिया-विशेषण इधर समुच्चयबोधक और संबंधसूचक के ऊपर विस्मयादिबोधक ओह।

(ङ) प्रयोग की दृष्टि से –
प्रयोग के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण निम्नलिखित दो वर्गों में किया जाता है –
(i) सामान्य शब्द – आम जन-जीवन में प्रयोग होने वाले शब्द सामान्य शब्द कहलाते हैं; जैसे- दाल, भात, खाट, लोटा, सुबह, हाथ, पाँव, घर, मैदान।

(ii) पारिभाषिक शब्द – जो शब्द ज्ञान – विज्ञान अथवा विभिन्न व्यवसायों में विशेष अर्थों में प्रयोग किए जाते हैं, पारिभाषिक शब्द कहलाते हैं।
इन्हें तकनीकी शब्द भी कहते हैं, जैसे- संज्ञा, सर्वनाम, रसायन, समाजशास्त्र, अधीक्षक।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

प्रश्न 10.
शब्द पद कब बन जाता है ? उदाहरण देकर तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर :
शब्द को जब व्याकरण के नियमों के अनुसार वाक्य में प्रयोग करते हैं तब वह पद बन जाता है, जैसे- राम, रावण, मारा शब्द हैं। इनसे बना वाक्य – राम ने रावण को मारा- पद है।