JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 1 सत्ता की साझेदारी

JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 1 सत्ता की साझेदारी

पाठ सारांश

→ लोकतांत्रिक व्यवस्था

  • लोकतान्त्रिक व्यवस्था में समस्त शक्ति किसी एक अंग तक सीमित नहीं होती। विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के मध्य पूरी समझ के साथ सत्ता को विकेन्द्रित कर देना लोकतान्त्रिक कामकाज के लिए अति आवश्यक है।

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→  बेल्जियम और श्रीलंका

  • बेल्जियम यूरोप महाद्वीप का एक छोटा-सा देश है। हमारे देश के हरियाणा राज्य से भी छोटे क्षेत्रफल वाले इस देश के समाज की जातीय बुनावट बहुत जटिल है।
  • बेल्जियम की आबादी का 59 प्रतिशत हिस्सा फ्लेमिश क्षेत्र में रहता है तथा डच बोलता है, 40 प्रतिशत लोग वेलोनिया क्षेत्र में रहते हैं तथा फ्रेंच बोलते हैं जबकि शेष एक प्रतिशत लोग जर्मन बोलते हैं।
  • डेनमार्क की राजधानी ब्रूसेल्स में रहने वाले लोगों में 80 प्रतिशत लोग फ्रेंच तथा 20 प्रतिशत लोग डच बोलते हैं।
  • बेल्जियम में अल्पसंख्यक फ्रेंच बोलने वाले लोग तुलनात्मक रूप से अधिक समृद्ध एवं ताकतवर रहे हैं।
  • फ्रेंच और डच भाषी लोगों के बीच 1950 व 1960 के दशक में तनाव उत्पन्न होने लगा, जिसका सर्वाधिक असर ब्रूसेल्स में दिखाई दिया।
  • श्रीलंका एक द्वीपीय देश है जो भारत के तमिलनाडु राज्य के दक्षिणी तट से कुछ किमी दूर स्थित है।
  • दक्षिण एशिया के अन्य देशों की तरह श्रीलंका की जनसंख्या में भी कई जातीय समूह के लोग हैं। इस देश का सबसे प्रमुख जातीय समूह सिंहलियों का है।
  • श्रीलंका की कुल जनसंख्या में 74 प्रतिशत सिंहली, 18 प्रतिशत तमिल तथा 7 प्रतिशत ईसाई हैं।
  • सन् 1948 ई. में श्रीलंका एक स्वतन्त्र राष्ट्र बना। सन् 1956 में एक कानून बनाया गया जिसके तहत तमिल के स्थान पर सिंहली को एकमात्र राजभाषा घोषित किया गया, जिसका श्रीलंकाई तमिलों ने विरोध किया।
  • श्रीलंका में तमिलों की लगातार अनदेखी के चलते तमिल व सिंहली समुदायों के सम्बन्ध बिगड़ते चले गये और यह टकराव गृहयुद्ध में बदल गया। इस गृहयुद्ध का समापन सन् 2009 में हुआ।

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→  बेल्जियम की समझदारी

  • बेल्जियम के नेताओं ने क्षेत्रीय अन्तरों एवं सांस्कृतिक विविधता को स्वीकार कर 1970 व 1993 के बीच संविधान में संशोधन किए ताकि कोई भी देशवासी अपने को पराया न समझे तथा सभी मिलजुल कर रह सकें।
  • बेल्जियम के नेताओं ने विभिन्न समुदाय एवं क्षेत्रों की भावनाओं का आदर करते हुए दोनों पक्षों को सत्ता में साझेदारी प्रदान की जबकि श्रीलंका में इसके विपरीत रास्ता अपनाया गया।

→  सत्ता की साझेदारी जरूरी

  • सत्ता के बँटवारे से विभिन्न सामाजिक समूहों के मध्य टकराव की समस्या कम हो जाती है।
  • सत्ता का बँटवारा लोकतान्त्रिक परम्पराओं के लिए भी उचित है।
  • एक अच्छे लोकतान्त्रिक शासन में समाज के विभिन्न समूहों एवं उनके विचारों को उचित सम्मान दिया जाता है तथा सार्वजनिक नीति तय करने में सभी की बातें सम्मिलित होती हैं।

→  सत्ता की साझेदारी के रूप

  • आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्था में शासन के विभिन्न अंग; जैसे-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता का बँटवारा रहता है। यह व्यवस्था ‘नियन्त्रण और सन्तुलन की व्यवस्था’ कहलाती है।
  • सत्ता का बँटवारा सरकार के मध्य भी देश, प्रान्त या क्षेत्रीय स्तर पर हो सकता है।
  • सत्ता का बँटवारा विभिन्न सामाजिक समूहों, भाषायी व धार्मिक समूहों के मध्य भी हो सकता है। इस व्यवस्था का एक अच्छा उदाहरण बेल्जियम में ‘सामुदायिक सरकार’ है।
  • सत्ता के बँटवारे का एक रूप हम विभिन्न प्रकार के दबाव समूह एवं आन्दोलनों द्वारा शासन को प्रभावित एवं नियन्त्रित करने के तरीके में भी देख सकते हैं।
  • लोकतन्त्र में व्यापारी, उद्योगपति, किसान एवं औद्योगिक मजदूर जैसे कई संगठित हित-समूह भी सक्रिय रहते हैं।

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→  प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. जातीय या एथनीक: यह साझा संस्कृति पर आधारित सामाजिक विभाजन है। किसी भी जातीय समूह के सभी सदस्य मानते हैं कि उनकी उत्पत्ति समान पूर्वजों से हुई है तथा इसी कारण उनकी शारीरिक बनावट एवं संस्कृति एक जैसी है। यह आवश्यक नहीं है कि ऐसे समूह के सदस्य किसी एक धर्म के मानने वाले हों अथवा उनकी राष्ट्रीयता एक हो।

2. सत्ता की साझेदारी: एक ऐसी व्यवस्था, जिसमें समाज के सभी महत्वपूर्ण वर्गों को देश के शासन-संचालन में स्थायी साझेदारी प्राप्त होती है।

3. बहुसंख्यकवाद: यह मान्यता है कि अगर कोई समुदाय बहुसंख्यक है तो वह अपने मनचाहे ढंग से देश का शासन कर सकता है और इसके लिए वह अल्पसंख्यक समुदाय की जरूरत या इच्छाओं की अवहेलना कर सकता है।

4. गृहयुद्ध: किसी देश में सरकार विरोधी समूहों की हिंसक लड़ाई ऐसा रूप ले ले कि वह युद्ध-सा लगे तो उसे गृहयुद्ध कहते हैं।

5. युक्तिपरक: लाभ-हानि का सावधानीपूर्वक हिसाब लगाकर किया गया फैसला/पूरी तरह नैतिकता पर आधारित फैसला प्रायः इसके विपरीत होता है।

6. सामुदायिक सरकार: सामुदायिक सरकार में विभिन्न सामाजिक समूहों को अपने समुदाय से सम्बन्धित मसलों को सुलझाने के लिए सत्ता दी जाती है। ये समूह बिना किसी समुदाय को नीचा दिखाए आम जनता के लाभ के लिए मिलकर कार्य करते हैं।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ

पाठ सारांश

  • वस्तुओं एवं सेवाओं को आपूर्ति स्थानों से माँग स्थानों तक ले जाने हेतु परिवहन की आवश्यकता होती है।
  • उत्पाद को परिवहन द्वारा उपभोक्ताओं तक पहुँचाने वाले व्यक्तियों को व्यापारी कहा जाता है।
  • परिवहन को स्थल, जल एवं वायु परिवहन में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व, राष्ट्र व स्थानीय व्यापार हेतु पूर्व अपेक्षित साधनों में सघन व सक्षम परिवहन का जाल एवं संचार के साधन आवश्यक हैं।
  • भारत विश्व के सर्वाधिक सड़क जाल वाले देशों में से एक है। भारत में सड़कों की सक्षमता के आधार पर इन्हें छ: वर्गों-स्वर्णिम चतुर्भुज महा राजमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग, जिला मार्ग, अन्य सड़कें एवं सीमांत सड़कों में विभाजित किया गया है।
  • स्वर्णिम चतुर्भुज महा राजमार्ग का प्रमुख उद्देश्य भारत के मेगासिटी के बीच की दूरी तथा परिवहन को कम करना है।
  • सन् 1960 में बनाया गया सीमा सड़क संगठन देश के सीमांत क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण एवं उनकी देख-रेख करता है।
  • भारत में रेल परिवहन वस्तुओं एवं यात्रियों के परिवहन का एक प्रमुख साधन है।
  • भारतीय रेलवे देश की अर्थव्यवस्था, उद्योगों एवं कृषि के तीव्र गति से विकास के लिए उत्तरदायी है।
  • भारतीय रेल देश की सबसे बड़ी-सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था है। यह भारत को एकता के सूत्र में पिरोती है।
  • भारत में रेल परिवहन के वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में भू-आकृतिक, आर्थिक एवं प्रशासकीय कारक आदि प्रमुख हैं।
  • विशाल समतल भूमि, समान जनसंख्या घनत्व, सम्पन्न कृषि एवं प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों के कारण भारत के उत्तरी मैदान में रेल परिवहन का सर्वाधिक विकास हुआ है।
  • पाइपलाइनें आधुनिक परिवहन का साधन हैं। इनसे कच्चा माल, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस आदि का सस्ता एवं द्रुतगामी परिवहन होता है।
  • वर्तमान समय में प्रमुख तेल व गैस क्षेत्रों से शोधनशालाओं, माँग क्षेत्रों व कुछ उद्योगों एवं विद्युतगृहों तक पाइपलाइनों का जाल बिछाया जाता है।
  • जल परिवहन, परिवहन का सबसे सस्ता साधन है। यह मार्ग निर्माण एवं रख-रखाव आदि के झंझटों से मुक्त, भारी सामानों के लिए सर्वाधिक सरक्षित परिवहन है।
  • भारत में अंत:स्थलीय नौ संचालन जलमार्ग की लम्बाई 14,500 किमी है।
  • जल परिवहन को दो भागों में बाँटा गया है-आन्तरिक जल मार्ग एवं समुद्री जल मार्ग। आन्तरिक जल परिवहन के प्रमुख माध्यम नदियाँ एवं नहरी मार्ग हैं।
  • भारत की समुद्री तट रेखा 7,516.6 किमी. लम्बी है।
  • भारत में 12 प्रमुख एवं 200 मध्यम व छोटे बन्दरगाह हैं। ये देश का 95 प्रतिशत विदेशी व्यापार संचालित करते हैं।
  • भारत के प्रमुख बन्दरगाहों में कांडला. मुम्बई, मार्मागाओ, न्यू मैंगलोर तृतीकोरन, विशाखापट्टनम, पाराद्वीप, हल्दिया आदि हैं।

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  • कांडला एक ज्वारीय पत्तन है जिसे दीनदयाल पत्तन के नाम से भी जाना जाता है।
  • कोच्चि पत्तन एक लैगून के मुहाने पर स्थित एक प्राकृतिक पत्तन है।
  • चेन्नई भारत का प्राचीनतम कृत्रिम पत्तन है जबकि कोलकाता एक अंत: स्थलीय नदीय पत्तन है।
  • वायु परिवहन तीव्रगामी, आरामदायक एवं प्रतिष्ठित परिवहन का साधन है। इसके द्वारा अति दुर्गम स्थानों व लम्बे समुद्री रास्तों को सुगमता से पार किया जा सकता है।
  • भारत में वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण एन 1953 में किया गया था। भारत में वायु परिवहन की सेवाएँ एयर इण्डिया, पल हंस हेलीकॉप्टर्स लिमिटेड तथा निजी एयर लाइनों द्वारा प्रदान की जाती है।
  • देश के प्रमुख संचार के साधनों में दूरदर्शन, रेडियो, समाचारपत्र समूह, प्रेस, सिनेमा एवं निजी दूरसंचार प्रमुख हैं।
  • भारत का डाक संचार तंत्र विश्व का वृहत्तम संचार तंत्र है।
  • बड़े शहरों एवं नगरों में डाक संचार में शीघ्रता हेतु छ: डाक मार्गों का निर्माण किया गया है। इन्हें राजधानी मार्ग. मेट्रो चैनल, ग्रीन चैनल, व्यापार चैनल, भारी चैनल एवं दस्तावेज चैनल के नाम से जाना जाता है।
  • हमारे देश में सर्वाधिक समाचार पत्र हिन्दी भाषा में प्रकाशित होते हैं।
  • विश्व में भारत ही सबसे अधिक फिल्में बनाता है। भारत में भारतीय व विदेशी सभी प्रकार की फिल्मों को प्रमाणित करने का अधिकार केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को है।
  • राज्यों एवं देशों में व्यक्तियों के मध्य वस्तुओं के आदान-प्रदान को व्यापार कहते हैं।
  • दो या दो से अधिक देशों के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्री, हवाई व स्थलीय मार्गों द्वारा होता है। भारत में निर्यात होने वाली वस्तुओं में कृषि उत्पाद, खनिज व अयस्क, रत्न व जवाहरात, रसायन व सम्बन्धित उत्पाद. इंजीनियरिंग सामान व पेट्रोलियम उत्पाद आदि हैं।
  • भारत में आयातित वस्तुओं में पेट्रोलियम व पेट्रोलियम उत्पाद, मोती व बहुमूल्य रत्न, अकार्बनिक रसायन, कोयला, कोक, मशीनरी आदि प्रमुख हैं।
  • भारत में विदेशी पर्यटकों के आगमन में वृद्धि होने से देश को पर्याप्त विदेशी मुद्रा की प्राप्ति हुई है।
  • भारत में विदेशी पर्यटकों के लिए राजस्थान, गोवा, जम्मू और कश्मीर व दक्षिण भारत में मन्दिरों के नगर प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
  • भारत में विदेशी पर्यटक, विरासत पर्यटन, पारि-पर्यटन, रोमांचकारी पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन, चिकित्सा पर्यटन एवं व्यापारिक पर्यटन आदि के लिए आते हैं।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. परिवहन: यात्रियों एवं वस्तुओं का एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन, परिवहन कहलाता है।

2. व्यापारी: जो व्यक्ति उत्पाद को परिवहन द्वारा उपभोक्ताओं तक पहुँचाते हैं, उन्हें व्यापारी कहते हैं।

3. संचार के साधन: वे साधन जो समाचारों व सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने में सहायक होते हैं, संचार के साधन कहलाते हैं।

4. पत्तन: बन्दरगाह का वह भाग जहाँ सामान जलयानों पर लादा व उतारा जाता है।

5. स्वर्णिम चतुर्भुज महा राजमार्ग: यह सड़कों का जाल है, जिसके द्वारा दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई व कोलकाता को आपस में जोड़ा गया है।

6. राष्ट्रीय राजमार्ग: वे महत्वपूर्ण सड़कें जो विभिन्न राज्यों की राजधानियों, प्रमुख औद्योगिक नगरों, बन्दरगाहों व दूरस्थ भागों को परस्पर जोड़ती हैं, राष्ट्रीय राजमार्ग कहलाती हैं, जैसे-ग्रांड ट्रंक रोड।

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7. राज्य राजमार्ग: राज्यों की राजधानियों को जिला मुख्यालयों से जोड़ने वाली सड़कें राज्य राजमार्ग कहलाती हैं।

8. जिला मार्ग: विभिन्न प्रशासनिक केन्द्रों को जिला मुख्यालय से जोड़ने वाली सड़कें जिला मार्ग कहलाती हैं।

9. सीमांत सड़कें: देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में बनायी गयी सामरिक महत्व की सड़कें सीमांत सड़कें कहलाती हैं।

10. मेगा सिटी: सामान्यतया ऐसे नगर जिनकी जनसंख्या दस लाख व्यक्ति से अधिक होती है, महानगर या मेगासिटी कहलाते हैं।

11. सड़क घनत्व: प्रति वर्ग किमी. क्षेत्र में सड़कों की औसत लम्बाई को सड़क घनत्व कहते हैं।

12. पाइपलाइन परिवहन: परिवहन का वह नवीनतम साधन जिसमें खनिज तेल और प्राकृतिक गैस को पाइपलाइनों के द्वारा उत्पादक क्षेत्रों से शोधनशालाओं एवं वहाँ से उपभोक्ता केन्द्रों तक पहुँचाया जाता है, पाइपलाइन परिवहन कहा जाता है।

13. ज्वारीय पत्तन: छिछले तट पर स्थित वह पत्तन जहाँ जलयान ज्वार के आने के साथ-साथ पहँचते हैं तथा जाने के लिए ज्वार के उतरने की प्रतीक्षा करते हैं अर्थात् ज्वार के आने व उतरने पर ही जलयानों का आना-जाना संभव होता है। ऐसे पत्तन ज्वारीय पत्तन कहलाते हैं। उदाहरण-कांडला, कोलकाता।

14. व्यापार सन्तुलन: एक देश के आयात व निर्यात के बीच के अन्तर को व्यापार सन्तुलन कहते हैं।

15. असंतुलित व्यापार: निर्यात की अपेक्षा अधिक आयात होना असंतुलित व्यापार कहलाता है।

16. अनुकूल व्यापार सन्तुलन: यदि किसी देश के निर्यात मूल्य, आयात मूल्य से अधिक हों तो उसे अनुकूल व्यापार सन्तुलन कहते हैं।

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17. पर्यटन: एक-दूसरे की संस्कृति को समझने व देखने, रमणीक स्थलों एवं प्राकृतिक मनोहारी भूदृश्यों की सैर को पर्यटन कहा जाता है।

18. आयात: जब एक देश दूसरे देश में बने पदार्थों को अपने देश में उपयोग हेतु मँगाता है, तो उसे आयात कहते हैं।

19. निर्यात: जब एक देश अपने यहाँ निर्मित उत्पादों को दूसरे देशों में विक्रय हेतु भेजता है, तो उसे निर्यात कहते हैं।

20. जनसंचार साधन: ये संचार के साधन हैं जिनके माध्यम से एक व्यक्ति अनेक व्यक्तियों के साथ, एक ही समय में विचारों का आदान-प्रदान करता है।

21. बारहमासी सड़कें: पक्की सड़कें, सीमेंट, कंकरीट व तारकोल द्वारा निर्मित सड़कें।

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JAC Class 10 Social Science Solutions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

JAC Board Class 10th Social Science Solutions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

JAC Class 10th Economics मुद्रा और साख Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और समस्याएँ खड़ी कर सकता है। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“ऋण कभी-कभी कर्जदारों को ऐसी परिस्थिति में धकेल देता है जहाँ से निकलना काफी कष्टदायक होता है।” कथन की उदाहरणों सहित पुष्टि कीजिए।
अथवा
अनौपचारिक ऋण के स्रोतों के कर्जदारों पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों का वर्णन कीजिए।
अथवा
किन्हीं तीन परिस्थितियों की जाँच कीजिए जिनमें ऋण, कर्जदार को ऋण-जाल में फंसा देता है?
उत्तर:
अधिक जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार की समस्याओं को हल करने के स्थान पर उन्हें और अधिक बढ़ा देता है। इस तथ्य को निम्नलिखित उदाहरणों के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
1. यदि व्यक्ति ने साहूकार, महाजन अथवा किसी गाँव के ब्याजखोर व्यक्ति से ऋण लिया है, तो इसके लिए उसने ऋण लेने से पूर्व किसी वस्तु, भूमि, भवन, पशु, आभूषण आदि को ऋणाधार के रूप में ऋणदाता के पास अवश्य रखा होगा, जिसकी कीमत ऋण में दी गयी राशि व ब्याज़ से कहीं अधिक होती है।

यह गिरवी रखी गयी सम्पत्ति एक निश्चित समय की गारण्टी होती है, जब तक कि ऋणी व्यक्ति ऋण अदा नहीं कर देता। निर्धारित समय-सीमा समाप्त होने के बाद ऋणदाता बंध क सम्पत्ति को बेचने का अधिकार रखता है। जिससे कि एक ओर तो ऋणी को आर्थिक क्षति होती है, वहीं दूसरी ओर उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी गिरती है।

2. कभी-कभी ऋणी को ऋण अदा करने के लिए अपनी फसल को भी कम कीमतों पर बेचकर भारी हानि उठानी पड़ती है।

3. ऋण अदा न कर पाने पर यदि ऋणदाता न्यायालय चला जाता है तो मुकदमों आदि पर कर्जदार को भारी व्यय करना पड़ता है।

4. यदि ऋणी को कर्ज अदा करने के लिए बार-बार ऋण लेना पड़े तो वह स्वतः ही ऋण-जाल में फंसता चला जाता है, जिससे जीवन भर बाहर निकलना उसके लिए मुश्किल हो जाता है।

JAC Class 10 Social Science Solutions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 2.
मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस प्रकार सुलझाती है? अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाइए।
अथवा
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग में छुपी समस्या को उजागर कीजिए।
उत्तर
वस्तु विनिमय प्रणाली में जहाँ मुद्रा का उपयोग किये बिना वस्तुओं का सीधे ही विनिमय अर्थात् आदान-प्रदान किया जाता है वहाँ आवश्यकताओं का दोहरा संयोग होना एक आवश्यक विशेषता होती है। इसके विपरीत ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ मुद्रा का उपयोग होता है, वहाँ मुद्रा विनिमय प्रक्रिया में एक मध्यस्थ की भूमिका में कार्य करती है तथा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को समाप्त कर देती है।

उदाहरण:
सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि दोहरे संयोग की समस्या क्या है। माना एक किसान सरसों के बदले गुड़ लेना चाहता है, सबसे पहले सरसों विक्रेता किसान को ऐसे दुकानदार को ढूँढ़ना होगा जो न केवल गुड़ बेचना चाहता है बल्कि वह उसके बंदले सरसों भी खरीदना चाहता हो अर्थात् दोनों पक्ष एक-दूसरे से वस्तुएँ खरीदने-बेचने पर सहमति रखते हों। इसे ही
आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहा जाता है।

अर्थात् एक व्यक्ति जो वस्तु बेचने की इच्छा रखता है, वही वस्तु दसरा व्यक्ति खरीदने की इच्छा रखता हो। वस्तु विनिमय प्रणाली के अन्तर्गत जहाँ मुद्रा का उपयोग किए बिना वस्तुओं का विनिमय होता है वहाँ आवश्यकताओं का दोहरा संयोग होना अनिवार्य विशिष्टता है परन्तु साथ ही दोहरे संयोगों का मिलना एक महत्त्वपूर्ण समस्या भी है। मुद्रा द्वारा इस समस्या का समाधान हो जाता है।

मुद्रा महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका का निर्वाह करके आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को समाप्त कर देती है। अतः अब सरसों विक्रेता किसान के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह ऐसे गुड़ विक्रेता दुकानदार को तलाश करे जो न केवल उसकी सरसों खरीदे अपितु साथ-साथ वह उसको गुड़ भी बेचे। अब किसान किसी भी क्रेता को मुद्रा के बदले सरसों बेच सकता है और सरसों के बेचने से प्राप्त मुद्रा से बाजार से अपनी जरूरत के अनुसार कोई भी वस्तु या सेवा खरीद सकता है।

प्रश्न 3.
अतिरिक्त मुद्रा वाले और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक किस तरह मध्यस्थता करते हैं?
उत्तर:
अतिरिक्त मुद्रा वाले और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक निम्न प्रकार से मध्यस्थता करते हैं
1. बैंक अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों से मुद्रा प्राप्त करके उनका खाता खोलता है तथा जमाओं पर ब्याज भी प्रदान करता है। लोगों को आवश्यकतानुसार इसमें से धन निकालने की सुविधा भी उपलब्ध होती है।

2.बैंक इस जमाराशि को अन्य जरूरतमंद लोगों के लिए ऋण देने में प्रयोग करते हैं। बैंक नकद के रूप में लोगों की जमाओं का एक छोटा हिस्सा ही अपने पास रखते हैं। इसे किसी एक दिन में जमाकर्ताओं द्वारा नकद निकालने की सम्भावना को देखते हुए रखा जाता है। बैंक जमाराशि के अधिकांश भाग का जरूरतमंद लोगों को ऋण देने में प्रयोग करते हैं। इस प्रकार बैंक अतिरिक्त मुद्रा वाले लोग एवं जरूरतमंद लोगों के बीच मध्यस्थता करते हैं।

प्रश्न 4.
10 रुपये के नोट को देखिए। इसके ऊपर क्या लिखा है ? क्या आप इस कथन की व्याख्या कर सकते
उत्तर:
यदि हम 10 रुपये के नोट को देखें तो उसके ऊपर यह स्पष्ट लिखा होता हैभारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रत्याभूत मैं धारक को 10 रुपये अदा करने का वचन देता हूँ। इस कथन का तात्पर्य यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक को भारत में केन्द्रीय सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करने का अधिकार है। इस पर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं।

करेंसी केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रत्याभूत है अर्थात् भारतीय कानून भुगतान के माध्यम के रूप में 10 रुपये के प्रयोग को वैध बनाता है जिसे भारत में लेन-देन के व्यवस्थापनों में इन्कार नहीं किया जा सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक 10 रुपये के नोट के धारक को प्रत्येक परिस्थिति में 10 रुपये देने का . वायदा करता है। इससे लोगों में विश्वसनीयता पैदा होती है।

प्रश्न 5.
हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की क्यों जरूरत है ?
अथवा
आर्थिक विकास में ऋण के औपचारिक स्रोतों के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऋण के औपचारिक स्रोतों के अन्तर्गत बैंकों व सहकारी समितियों से लिए गए ऋण आते हैं। हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को निम्नलिखित कारणों से बढ़ाने की जरूरत है

  1. ऋणदाताओं की तुलना में अधिकांश अनौपचारिक ऋणदाता; जैसे-साहूकार, व्यापारी आदि ऋणों पर अधिक ऊँची ब्याज माँगते हैं।
  2. अनौपचारिक ऋणदाता अपना ऋण वसूलने करने के लिए प्रत्येक अनुचित साधन अपना सकते हैं। इन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है।
  3. अनौपचारिक क्षेत्र में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देखरेख करने वाली कोई संस्था नहीं है जबकि औपचारिक क्षेत्र में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्यप्रणाली पर नजर रखी जाती है।
  4. वे लोग जो ऋण लेकर अपना कोई उद्यम शुरू करना चाहते हैं, वे अनौपचारिक स्रोतों से ऋण लेने की अधिक लागत के कारण ऐसा नहीं कर पाते हैं।
  5. ऋण के औपचारिक स्रोतों से लोग साहूकार, व्यापारी, भूस्वामी आदि से बच सकते हैं जो लोगों को सदैव अपने चंगुल में फंसाने का अवसर ढूँढ़ते रहते हैं।
  6. इन सब कारणों को देखते हुए भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की जरूरत है।

प्रश्न 6.
गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठनों के पीछे मूल विचार क्या हैं? अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए।
अथवा
“‘स्वयं सहायता समूह’ कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या से उबारने में सहायता करते हैं।” कथन की परख कीजिए।
उत्तर:
गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठन के पीछे मूल विचार यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों विशेषकर महिलाओं को छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करना और उनकी बचत पूँजी को एकत्रित करना है। स्वयं सहायता समूह के अन्तर्गत 15-20 लोग एक समूह बना लेते हैं। वे नियमित रूप से मिलते हैं एवं अपनी बचतों को इकट्ठा करते हैं। यह बचत धीरे-धीरे बढ़ती चली जाती हैं। ये समूह अपने सदस्यों को ऋण देकर उनकी जरूरतों को पूरा करते हैं। इस ऋण की जरूरत से लोग अपना छोटा-मोटा रोजगार प्रारम्भ कर सकते हैं।

बचत व ऋण गतिविधियों सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण निर्णय समूह के सदस्यों द्वारा स्वयं लिये जाते हैं। समूह दिए जाने वाले ऋण, उसका लक्ष्य, उसकी रकम ब्याज दर एवं वापस लौटाने की अवधि आदि के बारे में निर्णय करता है। ऋणाधार के बिना बैंक भी स्वयं सहायता समूहों को ऋण देने को तैयार हो जाते हैं। इस पर स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों को उचित ब्याज दर पर ऋण प्रदान करके उन्हें स्वावलम्बी बनाने में योगदान देते हैं। इसके अतिरिक्त समूह की बैठकों के माध्यम से वह विभिन्न प्रकार के सामाजिक विषयों; जैसे-स्वास्थ्य, पोषण, घरेलू हिंसा आदि विषयों पर चर्चा कर पाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Solutions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 7.
क्या कारण है कि बैंक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते?
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से बैंक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते हैं

  1. बैंक उन लोगों को ऋण देना नहीं चाहते हैं जिनके पास समर्थक ऋणाधार नहीं होते हैं।
  2. कुछ लोग अपनी नौकरी के विषय में बैंकों को ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराते हैं।
  3. कुंछ लोग बैंकों को अपना वेतन सम्बन्धी अभिलेख उपलब्ध नहीं कराते हैं।
  4. जिन कर्जदारों ने अपने पुराने कर्ज का भुगतान नहीं किया है, बैंक उन्हें पुनः कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते हैं।

प्रश्न 8.
भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नजर रखता है? यह जरूरी क्यों है?
अथवा.
भारतीय रिजर्व बैंक के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ऋणों के औपचारिक स्रोतों के निरीक्षण की आवश्यकता का कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर निम्नलिखित प्रकार से नजर रखता है

  1. भारतीय रिजर्व बैंक इस बात का ध्यान रखता है कि बैंक अपनी जमाओं का एक न्यूनतम नकद हिस्सा अपने पास रख रहे हैं या नहीं।
  2. भारतीय रिजर्व बैंक यह भी नजर रखता है कि बैंक न केवल लाभ कमाने वाले व्यवसायियों एवं व्यापारियों को ही ऋण उपलब्ध नहीं करा रहे बल्कि छोटे किसानों, छोटे उद्योगों, छोटे कर्जदारों आदि को भी ऋण प्रदान कर रहे हैं।
  3. समय-समय पर, बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को यह जानकारी देनी पड़ती है कि वे कितना व किनको ऋण दे रहे हैं और उनकी ब्याज की दरें क्या हैं।

प्रश्न 9.
विकास में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
“सस्ता और सामर्थ्य के अनुकूल कर्ज देश के विकास के लिए अति आवश्यक है।” इस कथन का आकलन कीजिए।
अथवा
ऋण का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
किसी भी देश के विकास में ऋण की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। व्यक्ति और राष्ट्र दोनों को विभिन्न आर्थिक क्रियाओं के लिए ऋणों की आवश्यकता होती है। ऋण उद्योगों के स्वामियों को उत्पादन के कार्यशील खर्चों एवं समय पर उत्पादन पूरा करने में सहायता प्रदान करता है। इससे उनकी आय में वृद्धि होती है। अनेक लोग विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं; जैसे कृषि, व्यवसाय, लघु उद्योगों की स्थापना अथवा वस्तुओं का व्यापार आदि करने के लिए ऋण लेते हैं। इस प्रकार सस्ता और सामर्थ्य के अनुकूल ऋण किसी भी देश के विकास में अति लाभदायक सिद्ध होता है।

प्रश्न 10.
मानव को एक छोटा व्यवसाय करने के लिए ऋण की जरूरत है। मानव किस आधार पर यह निश्चित करेगा कि उसे यह ऋण बैंक से लेना चाहिए या साहूकार से ? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मानव निम्नलिखित आधार पर निश्चित करेगा कि उसे ऋण बैंक से लेना चाहिए या साहूकार से
1. ब्याज की दर: मानव यह देखेगा कि बैंक अथवा साहूकार में से किसके ऋणों पर कितनी ब्याज दर है जिसकी ब्याज दर कम होगी, मानव उससे ही ऋण लेगा।

2. ऋण की शर्ते: मानव यह देखेगा कि बैंक या साहूकार में से किसकी ऋण की शर्ते सरल हैं अथवा कठोर, कागजी कार्यवाही अधिक तो नहीं है एवं ऋण की अदायगी की किश्तें आसान हैं या नहीं। प्रायः साहूकार की तुलना में बैंकों की ऋण की शर्ते सरल, कागजी कार्यवाही कम एवं ऋण अदायगी संरल है। इसके अतिरिक्त बैंकों की ब्याज दरें भी कम हैं। इन सब बातों को देखते हुए मानव अपना व्यवसाय करने के लिए साहूकार की अपेक्षा बैंक से ऋण लेना अधिक पसंद करेगा।

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प्रश्न 11.
भारत में 80 प्रतिशत छोटे किसान हैं, जिन्हें खेती करने के लिए ऋण की जरूरत होती है।
(क) बैंक छोटे किसानों को ऋण देने से क्यों हिचकिचा सकते हैं?
(ख) वे दूसरे स्रोत कौन-से हैं, जिनसे छोटे किसान कर्ज ले सकते हैं?
(ग) उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि किस तरह ऋण की शर्ते छोटे किसानों के प्रतिकूल हो सकती हैं।
(घ) सुझाव दीजिए कि किस तरह छोटे किसानों को सस्ता ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है।
उत्तर:
(क) बैंक छोटे किसानों को ऋण देने में इसलिए हिचकिचाते हैं क्योंकि उनके पास बैंक ऋण के लिए ऋणों के विरुद्ध गारंटी के रूप में समर्थक ऋणाधार और उचित कागजातों का अभाव होता है। इसके अतिरिक्त किसान फसल की अनिश्चितता के कारण ऋणों का समय पर भुगतान नहीं कर पाते हैं।

(ख) साहूकार, भू-स्वामी, व्यापारी, मित्र, रिश्तेदार, स्वयं सहायता समूह अथवा सहकारी समिति आदि से छोटे किसान कर्ज ले सकते हैं।

(ग) ऋण की शर्ते निम्न प्रकार से छोटे किसानों के लिए प्रतिकूल हो सकती हैं उदाहरणस्वरूप, यदि कोई व्यक्ति अनौपचारिक स्रोतों अर्थात् साहूकार आदि से अपनी जमीन गिरवी रखकर ऊँची ब्याज दर पर ऋण लेता है तथा फसल खराब हो जाने पर समय पर ऋण का भुगतान नहीं कर पाता है तो इस स्थिति में साहूकार उसकी जमीन को बेचकर ऋण की राशि का भुगतान प्राप्त कर सकता है अथवा किसान को ही अपनी जमीन का एक टुकड़ा बेचना पड़ सकता है। इस तरह किसान की स्थिति पहले से अधिक बदतर हो जाती है।

(घ) स्वयं सहायता समूह, सहकारी समितियों एवं बैंकों द्वारा छोटे किसानों को सस्ता ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है। क्योंकि इनसे प्राप्त होने वाला ऋण अन्य स्रोतों की तुलना में कम ब्याज दर पर प्राप्त होता है जिसकी आसानी से एक लम्बे समय पश्चात् अदायगी की जा सकती है।

प्रश्न 12.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(क) ……….. परिवारों की ऋण की अधिकांश जरूरतें अनौपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं।
(ख) ………… ऋण की लागत ऋण का बोझ बढ़ाती है।
(ग) ………… केन्द्रीय सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करता है।
(घ) बैंक ………… पर देने वाले ब्याज से ऋण पर अधिक ब्याज लेते हैं।
वह सम्पत्ति है जिसका मालिक कर्जदार होता है जिसे वह ऋण लेने के लिए गारण्टी के रूप में इस्तेमाल करता है, जब तक ऋण चुकता नहीं हो जाता।
उत्तर:
(क) ग्रामीण
(ख) ची ब्याज दर
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक
(घ) जमाओं
(ङ) समर्थक ऋणाधार

प्रश्न 13.
सही उत्तर का चयन करें
(क) स्वयं सहायता समूह में बचत और ऋण सम्बन्धित अधिकतर निर्णय लिए जाते हैं
(i) बैंक द्वारा
(ii) सदस्यों द्वारा
(iii) गैर सरकारी संस्था द्वारा
उत्तर:
(ii) सदस्यों द्वारा।

(ख) ऋण के औपचारिक स्रोतों में शामिल नहीं है
(i) बैंक
(ii) सहकारी समिति
(iii) नियोक्ता
उत्तर:
(iii) नियोक्ता।

अतिरिक्त परियोजना/कार्यकलाप

नीचे दी गई तालिका शहरी क्षेत्रों के विभिन्न लोगों के व्यवसाय दिखाती है। इन लोगों को किन उद्देश्यों के लिए ऋण की जरूरत हो सकती है? रिक्त स्तम्भों को भरें।
उत्तर:

व्यवसाय ऋण लेने का कारण
(i) निर्माण मजदूर निर्माण के लिए आवश्यक औजारों व घरेलू आवश्यकताओं के लिए।
(ii) कम्प्यूटर शिक्षित स्नातक छात्र कम्प्यूटर प्रशिक्षण केन्द्र खोलने के लिए।
(iii) सरकारी सेवा में नियोजित व्यक्ति घर अथवा प्लाट खरीदने के लिए।
(iv) दिल्ली में प्रवासी मजदूर झुग्गी-झोंपड़ी को खरीदने अथवा किराये पर लेने के लिए।
(v) घरेलू नौकरानी दैनिक घरेलू आवश्यकताओं एवं आकस्मिक बीमारी के लिए।
(vi) छोटा व्यापारी व्यापार के विस्तार के लिए।
(vii) ऑटो रिक्शा चालक एक नई टैक्सी खरीदने के लिए।
(viii) बन्द फैक्ट्री का मजदूर दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए।

आगे लोगों को दो वर्गों में विभाजित कीजिए, जिन्हें आप सोचते हैं कि बैंक से कर्ज मिल सकता है और जिन्हें कर्ज मिलने की आशा नहीं है। आपने वर्गीकरण के लिए किन कारकों का उपयोग किया?

बैंक से कर्ज मिल सकता है बैंक से कर्ज नहीं मिल सकता
(ii) कम्प्यूटर शिक्षित स्नातक छात्र (i) निर्माण मजदूर
(iii) सरकारी सेवा में नियोजित व्यक्ति (iv) दिल्ली में प्रवासी मजदूर
(v) छोटा व्यापारी (vi) घरेलू नौकरानी
(vii) ऑटो रिक्शा चालक (viii) बन्द फैक्ट्री का मजदूर।

हमने वर्गीकरण के लिए इन कारकों का उपयोग किया:
1. उचित कागजात,
2. समर्थक ऋणाधार प्रदान करने की क्षमता।

पाठगत एवं क्रियाकलाप आधारित प्रश्न

आओ इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 42)

प्रश्न 1.
मुद्रा के प्रयोग से वस्तुओं के विनिमय में सहूलियत कैसे आती है?
उत्तर: वस्तु विनिमय प्रणाली में जहाँ वस्तुएँ मुद्रा के प्रयोग के बिना सीधे आदान-प्रदान की जाती हैं, वहाँ आवश्यकताओं का दोहरा संयोग एक आवश्यक शर्त होती है। मुद्रा के प्रयोग से आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की जरूरत एवं वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ समाप्त हो गयी हैं। इस तरह मुद्रा के प्रयोग से वस्तुओं के विनिमय में सहूलियत आती है।

उदाहरण:
माना एक चावल विक्रेता चावल के बदले जूते खरीदना चाहता है। वस्तु-विनिमय प्रणाली में उसके लिए ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ना मुश्किल होगा जो उससे चावल लेकर बदले में जूते दे दे। किन्तु मुद्रा के प्रयोग ने इस कठिनाई को हल कर दिया है। अब चावल विक्रेता चावल बेचकर मुद्रा अर्जित करेगा तथा उस मुद्रा से जूते खरीद लेगा।

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प्रश्न 2.
क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण सोच सकते हैं, जहाँ वस्तुओं तथा सेवाओं का विनिमय या मजदूरी की अदायगी वस्तु विनिमय के जरिए हो रही है ?
उत्तर:
हाँ, हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्यतः वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय या मजदूरी की अदायगी वस्तु विनिमय के जरिए हो रही है। ग्रामीण क्षेत्र में अनाजों क. विनिमय मुद्रा के प्रयोग के बिना सीधे किया जाता है। इसी प्रकार खेतिहर मजदूरों को मजदूरी भुगतान सामान्यत: नकद में न किया जाकर वस्तुओं के रूप में किया जाता है। यह वस्तु गेहूँ, चावल, बाजरा अथवा कोई वस्तु हो सकती है।

(पृष्ठ संख्या 43)

प्रश्न 1.
एम. सलीम भुगतान के लिए 20,000 रु. नकद निकालना चाहते हैं। इसके लिए वह चेक कैसे लिखेंगे ?
उत्तर:
सर्वप्रथम एम. सलीम चेक में दिए गए स्थान पर सम्बन्धित तारीख लिखेंगे। वह बैंक को स्वयं भुगतान का आदेश देंगे। वह चेक में छपे शब्द रुपये के आगे ‘बीस हजार रुपये मात्र’ भी लिखेंगे और दिये गये बॉक्स में राशि और खाता संख्या क्रमश: 20,000/- भरेंगे। एम. सलीम को चेक पर दोनों तरफ अर्थात् आगे तथा पीछे हस्ताक्षर करने पड़ेंगे तत्पश्चात् उस चेक को लेकर बैंक के राशि निकासी काउंटर पर जमा कराकर कैशियर से राशि प्राप्त करेंगे।
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प्रश्न 2.
सही उत्तर पर निशान लगाएँ
(अ) सलीम और प्रेम के बीच लेन-देन के बाद
(क) सलीम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है।
(ख) सलीम के बैंक खाते में शेष घट जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है।
(ग) सलीम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष घट जाता है।
उत्तर:
(ख) सलीम के बैंक खाते में शेष घट जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है।

प्रश्न 3.
माँग जमा को मुद्रा क्यों समझा जाता है ?
उत्तर:
माँग जमा करने पर चेक या मुद्रा निकालने वाली पर्ची के माध्यम से भुगतान योग्य होता है। इसलिए माँग जमा को मुद्रा समझा जाता है।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या 44)

प्रश्न 1.
अगर सभी जमाकर्ता एक ही समय में अपनी धन राशि की माँग करने बैंक पहुँच जाएँ तो क्या होगा?
उत्तर:
अगर सभी जमाकर्ता एक ही समय में अपनी धनराशि की माँग करने बैंक पहुँच जाएँ तो बैंक जमाकर्ताओं को धनराशि नहीं दे पायेंगे। इसका कारण यह है कि बैंक पहले ही अपने पास जमाओं का अधिकांश भाग ऋण देने में उपयोग कर चुका होगा।

प्रश्न 4.
मेघा के आवास ऋण के निम्नलिखित विवरणों की पूर्ति करें
उत्तर:

ऋण राशि (रुपये में) 5,00,000
ऋण अवधि 10 वर्ष
आवश्यक कागजात नौकरी व वेतन सम्बन्धी रिकार्ड
ब्याज दर 12 प्रतिशत वार्षिक
अदायगी का स्वरूप मासिक किश्त
समर्थक ऋणाधार नये घर के समस्त कागजात

आओ इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 45)

प्रश्न 1.
उधारदाता उधार देते समय समर्थक ऋणाधार की माँग क्यों करता है ?
अथवा
‘समर्थक ऋणाधार’ का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उधारदाता उधार देते समय ऋण के विरुद्ध सुरक्षा के रूप में समर्थक ऋणाधार की माँग करता है क्योंकि यदि कर्जदार उधार लौटा नहीं पाता है तो उधारदाता को भुगतान प्राप्ति के लिए समर्थक ऋणाधार बेचने का अधिकार होता है।

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प्रश्न 2.
हमारे देश की एक बहुत बड़ी आबादी निर्धन है। क्या यह उनके कर्ज लेने की क्षमता को प्रभावित करती है ?
उत्तर:
हाँ, हमारे देश की एक बहुत बड़ी आबादी निर्धन है। यह उनके कर्ज लेने की क्षमता को प्रभावित करती है क्योंकि कर्ज लेने के लिए लोगों को गारंटी के रूप में समर्थक ऋणाधार देना पड़ता है। निर्धन लोगों के पास इन संपत्तियों का अभाव होता है जो ऋण लेने की उनकी क्षमता को प्रभावित करती है।

प्रश्न 3.
कोष्ठक में दिए गए सही विकल्पों का चयन कर रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
ऋण लेते समय कर्जदार आसान ऋण शर्तों को देखता है। इसका अर्थ है ……. (निम्न/उच्च) ब्याज दर, …… (आसान/कठिन) अदायगी की शर्ते,..” (कम/अधिक) समर्थक ऋणाधार एवं आवश्यक कागजात।
उत्तर:
निम्न, आसान, कम।

आओ इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 47)

प्रश्न 1.
सोनपुर में ऋण के विभिन्न स्रोतों की सूची बनाइए।
उत्तर:
सोनपुर में ऋण के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हैं

  1. भू-स्वामी
  2. महाजन
  3. कृषि व्यापारी
  4. कृषि सहकारी समिति
  5. बैंक।

प्रश्न 2.
ऊपर दिये अनुच्छेदों में ऋण के विभिन्न प्रयोगों वाली पंक्तियों को रेखांकित कीजिये।
उत्तर:
ऊपर दिये अनुच्छेदों में ऋण के विभिन्न प्रयोगों वाली पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं

  1. श्यामल का कहना है कि उसे अपनी 1.5 एकड़ जमीन को जोतने के लिए हर मौसम में उधार लेने की जरूरत पड़ती है।
  2. अरुण सोनपुर के उन लोगों में से है जिसे खेती के लिए बैंक से ऋण मिला है।
  3. साल में कई महीने रमा के पास कोई काम नहीं होता है उसे अपने रोजमर्रा के (दैनिक) खर्चों के लिए कर्ज लेना पड़ता है। अचानक बीमार पड़ने पर या परिवार में किसी समारोह में खर्च करने के लिए उसे कर्ज लेना पड़ता है।

प्रश्न 3.
सोनपुर के छोटे किसान, मध्यम किसान और भूमिहीन कृषि मजदूर के लिए ऋण की शर्तों की तुलना कीजिये।

छोटे किसान मध्यम किसान भूमिहीन कृषि मजदूर
1. ऋण प्राप्ति की ब्याज दर 36% से 60% वार्षिक है। ब्याज दर 8.5 वर्षिक है। ब्याज दर 60% प्रतिवर्ष है।
2. समर्थक ऋणाधार एवं कागजातों की कोई आवश्यकता नहीं होती है। समर्थक ऋणाधार व कागजातों की आवश्यकता होती है। समर्थक ॠणाधार व कागजातों की आवश्यकता नहीं होती है।
3. छोटे किसान द्वारा लिया गया ऋण फसल कटने पर चुकाना होता है। ऋण को अगले तीन वर्षों में कभी भी चुकाया जा सकता है। भूमिहीन कृषि मजदूर भू-स्वामी के यहाँ काम करके ऋण का भुगतान करता है।
4. छोटे किसान को ब्याज दर के अतिरिक्त व्यापारी को फसल बेचने का वायदा करना पड़ता है। मध्यम किसान को कोई वायदा नहीं करना पड़ता है। भूमि हीन कृषि मजदूर को अन्य किसी प्रकार का कोई वायदा नहीं करना पड़ता है।

प्रश्न 4.
श्यामल की तुलना में अरुण को खेती से ज्यादा आय क्यों होगी?
उत्तर:
श्यामल की तुलना में अरुण को खेती से ज्यादा आय होगी जिसके निम्नलिखित कारण हैं

  1. अरुण के पास 7 एकड़ भूमि है जबकि श्यामल के पास 1.5 एकड़ भूमि है।
  2. अरुण ने 8.5 प्रतिशत वार्षिक दर से बैंक ऋण लिया है जबकि श्यामल ने गाँव के महाजन से 60 प्रतिशत वार्षिक दर से एवं कृषि व्यापारी से 36 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर से ऋण लिया है।
  3. अरुण अपनी फसल को अपनी इच्छानुसार कीमत पर किसी को व कभी भी बेच सकता है जबकि श्यामल को वायदे के अनुसार व्यापारी को फसल बेचनी पड़ती है।

प्रश्न 5.
क्या सोनपुर के सभी लोगों को सस्ती ब्याज दर पर कर्ज मिल सकता है? किन लोगों को मिल सकता है?
उत्तर:
नहीं, सोनपुर के सभी लोगों को सस्ती ब्याज दर पर कर्ज नहीं मिल सकता है क्योंकि सस्ती ब्याज दर पर बैंक से कर्ज लेने के लिए समर्थक ऋणाधार की आवश्यकता पड़ती है। जो हर किसी के पास नहीं होती है। जो लोग बैंक की समर्थक ऋणाधार व आवश्यक कागजात सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं उन्हें ही सस्ती ब्याज दरों पर बैंक से ऋण मिल सकता है।

प्रश्न 6.
सही उत्तर पर निशान लगाइए
(क) समय के साथ रमा का ऋण
(i) बढ़ जायेगा
(ii) समान रहेगा
(iii) घट जायेगा।
उत्तर:
(i) बढ़ जायेगा।

(ख) अरुण सोनपुर के उन लोगों में से है जो बैंक से उधार लेते हैं क्योंकि
(i) गाँव में अन्य लोग साहूकारों से कर्ज लेना चाहते हैं।
(ii) बैंक समर्थक ऋणाधार की माँग करते हैं जो हर किसी के पास नहीं होता।
(iii) बैंक ऋण पर ब्याज दरें उतनी ही हैं जितना कि व्यापारी लेते हैं।
उत्तर:
(ii) बैंक समर्थक ऋणाधार की माँग करते हैं जो हर किसी के पास नहीं होती है।

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प्रश्न 7.
कुछ लोगों से बातचीत कीजिये, जिनसे आपको अपने क्षेत्र में ऋण प्रबंधों के बारे में कोई जानकारी मिले। अपनी बातचीत को रिकार्ड कीजिए। विभिन्न लोगों की ऋण की शर्तों में विभिन्नता को लिखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी इस प्रश्न को अपने शिक्षक की सहायता से हल करें।

(पृष्ठ संख्या 50)

प्रश्न 1.
ऋण के औपचारिक व अनौपचारिक स्रोतों में क्या अन्तर है ?
अथवा
औपचारिक एवं अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण में कोई दो अन्तर बताइए।
अथवा
औपचारिक ऋण क्षेत्रक और अनौपचारिक ऋण क्षेत्रक में किन्हीं तीन अन्तरों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ऋण के औपचारिक व अनौपचारिक स्रोतों में निम्नलिखित अन्तर हैं

औपचारिक स्रोत अनौपचारिक स्रोत
1. इसके अन्तर्गत ऋण के वे स्रोत सम्मिलित होते हैं जो सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं। 1. इसके अन्तर्गत वे छोटी और छुटपुट इकाइयाँ सम्मिलित होती हैं जो प्रायः सरकार के नियन्त्रण से बाहर होती हैं।
2. इन्हें सरकारी नियमों व विनियमों का पालन करना पड़ता है। 2. यद्यपि इनके लिए भी सरकारी नियम और विनियम होते हैं परन्तु उनका पालन नहीं किया जाता।
3. ऋण के औपचारिक स्रोतों में बैंक व सहकारी समितियाँ हैं। 3. ॠण के अनौपचारिक स्रोतों में साहूकार, व्यापारी, नियोक्ता, भूस्वामी, रिश्तेदार एवं मित्र आदि होते हैं।
4. भारतीय रिजर्व बैंक ऋण के औपचारिक स्रोतों के कामकाज पर नजर रखता है। 4. अनौपचारिक स्रोत में ऐसी कोई संस्था नहीं है जो ऋणदाताओं की ऋण क्रियाओं का निरीक्षण करती है।
5. ऋण के औपचारिक स्रोतों का उद्देश्य लाभ कमाने के साथ-साथ सामाजिक लाभ भी होता है। 5. ऋण के अनौपचारिक स्रोतों का उद्देश्य लाभ कमाना होता है ।
6. इन स्रोतों से ऋण कम ब्याज दर पर उपलब्ध हो जाता है। 6. इन स्रोतों से ऋण महँगी ब्याज दर पर उपलब्ध होता है।
7. ऋण के औपचारिक स्रोत ऋण लेने वाले के संमक्ष कोई अनुचित शर्त नहीं लगाते हैं। 7. ऋण के अनौपचारिक स्रोत ऋण लेने वाले के समक्ष ऊँची ब्याज दरों के अतिरिक्त कई कठोर शर्तें लगाते हैं।

प्रश्न 2.
सभी लोगों के लिए यथोचित दरों पर ऋण क्यों उपलब्ध होना चाहिए ?
अथवा
देश के विकास के लिए सस्ता और सामर्थ्य के अनुकूल कर्ज आवश्यक क्यों है? किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हमारी दिन-प्रतिदिन की क्रियाओं में व्यापक लेन-देन किसी-न-किसी रूप में ऋण द्वारा ही होता है। ऋण किसानों को अपनी फसल उगाने में मदद करता है। यह उद्यमियों के लिए व्यावसायिक इकाइयों की स्थापना, समय पर उत्पादन को पूरा करने एवं उत्पादन के कार्यशील खर्चों को पूरा करने में सहायक होता है। इससे उनकी आय में वृद्धि होती है। ऋण देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

ऋण के अधिक ब्याज दर पर मिलने से ऋणी की अधिकांश आय ऋण के ब्याज-भुगतान में ही व्यय हो जाती है। ऋणी के पास अपने लिए बहुत कम आय बचती है। कई बार अत्यधिक ऊँची ब्याज दरों के कारण ऋणी जीवन भर ऋण के बोझ से दबा रहता है और विकास में पिछड़ जाता है। इन सब कारणों से सभी लोगों के लिए यथोचित दरों पर ऋण उपलब्ध होना चाहिए।

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प्रश्न 3.
क्या भारतीय रिजर्व बैंक के जैसा कोई निरीक्षक होना चाहिए जो अनौपचारिक ऋणदाताओं की गतिविधियों पर नजर रखे ? उसका काम मुश्किल क्यों होगा?
उत्तर:
हाँ, भारतीय रिजर्व बैंक के जैसा कोई निरीक्षक होना चाहिए जो अनौपचारिक ऋणदाताओं की गतिविधियों पर नजर रखे। उसका काम मुश्किल होगा क्योंकि अनौपचारिक ऋणदाता सरकार या किसी भी अन्य मान्यता प्राप्त संस्थाओं द्वारा पंजीकृत नहीं होते हैं। वे छोटे तथा फैले हुए होते हैं तथा उनका कर्जदारों के साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध होता है। ऐसे अनौपचारिक ऋणदाताओं की जानकारी प्राप्त करना एवं उन पर कार्यवाही करना कठिन होगा।

प्रश्न 4.
आपकी समझ में गरीब परिवारों की तुलना में अमीर परिवारों के औपचारिक ऋणों का हिस्सा अधिक क्यों होता है ?
उत्तर:
गरीब परिवारों की तुलना में अमीर परिवारों के औपचारिक ऋणों का हिस्सा अधिक होता है क्योंकि वे गरीब परिवारों से अधिक शिक्षित होते हैं एवं वे जानते हैं कि बैंक कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त अमीर परिवारों के पास बैंक से प्राप्त होने वाले ऋण के बदले बैंक में गिरवी रखने हेतु समर्थक ऋणाधार व आवश्यक कागजात होते हैं, जबकि गरीब परिवारों के पास इनका अभाव होता है।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

पाठ सारांश

  • कच्ची सामग्री को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहा जाता है। द्वितीयक आर्थिक क्रियाकलापों में कार्यरत व्यक्ति कच्चे पदार्थ को परिष्कृत वस्तुओं में परिवर्तित करते हैं।
  • किसी भी देश की आर्थिक उन्नति का मापन उसके विनिर्माण उद्योगों के विकास से किया जाता है। विनिर्माण उद्योग कृषि के आधुनिकीकरण के साथ-साथ द्वितीयक एवं तृतीयक सेवाओं में रोजगार उपलब्ध कराकर कृषि पर निर्भरता को कम करते हैं।
  • कृषि एवं उद्योग एक-दूसरे से पृथक्-पृथक् न होकर वरन् एक-दूसरे के सम्पूरक हैं।
  • पिछले दो दशकों से विनिर्माण उद्योग का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 17 प्रतिशत का योगदान है।
  • वैश्वीकरण के दौर में हमारे देश के उद्योगों को अधिक प्रतिस्पर्धी एवं सक्षम बनाने की आवश्यकता है।
  • विनिर्माण क्षेत्र का विकास करने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा परिषद् की स्थापना की। किसी भी उद्योग की स्थापना कच्चे माल, पूँजी, श्रम, शक्ति के संसाधन एवं बाजार आदि की उपलब्धता से प्रभावित होती है।
  • नगरीय केन्द्रों द्वारा प्रदत्त सुविधाओं से लाभान्वित कई बार अनेक उद्योग नगरों के आस-पास ही केन्द्रित हो जाते हैं, जिसे समूहन बचत के नाम से जाना जाता है। न्यूनतम उत्पादन लागत द्वारा किसी उद्योग की अवस्थिति का निर्धारण किया जाता है। कच्चे माल के स्रोतों के आधार पर उद्योगों को दो भागों अर्थात् कृषि एवं खनिज आधारित में बाँटा जा सकता है।
  • आधारभूत उद्योगों की श्रेणी में लोहा इस्पात, ताँबा प्रगलन एवं ऐल्यूमिनियम प्रगलन उद्योग आदि आते हैं।
  • एक करोड़ रुपये से अधिक निवेश वाले उद्योग वृहत उद्योग की श्रेणी में आते हैं।
  • राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाए जाने वाले उद्योगों को संयुक्त उद्योगों की श्रेणी में रखा जाता है।
  • कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित उद्योगों में सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, रेशम, पटसन, चीनी एवं वनस्पति तेल आदि प्रमुख हैं।
  • वस्त्र उद्योग का औद्योगिक उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान होने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में विशेष महत्व है।
  • सूती वस्त्र उद्योग का सर्वाधिक केन्द्रीयकरण महाराष्ट्र, गुजरात एवं तमिलनाडु राज्यों में देखने को मिलता है।
  • भारत जापान को सूत का निर्यात करता है जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस, फ्रांस, पूर्वी यूरोपीय देश, नेपाल सिंगापुर, श्रीलंका और अफ्रीका भारत में बने सूती वस्त्र के अन्य आयातक देश हैं।
  • भारत पटसन एवं पटसन निर्मित सामान का सबसे बड़ा उत्पादक तथा बांग्लादेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
  • भारत का अधिकांश पटसन (जूट) उद्योग पश्चिम बंगाल में हुगली नदी तट पर 98 किमी. लम्बी एवं 3 किमी चौड़ी एक सँकरी पट्टी में केन्द्रित है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, घाना, सऊदी अरब, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया पटसन के प्रमुख खरीददार देश है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

  • भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में द्वितीय स्थान है, लेकिन गुड़ व खांडसारी के उत्पादन में प्रथम स्थान है।
  • अधिकांश चीनी मिलें उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश राज्यों में स्थित हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में 60 प्रतिशत चीनी मिलें हैं।
  • खनिज एवं धातुओं को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करने वाले उद्योगों को खनिज आधारित उद्योग कहा जाता है।
  • लौह-इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है। इस उद्योग की स्थापना मुख्यतया कच्चे माल की प्राप्ति स्थानों पर ही होती है।
  • वर्ष 2019 में भारत का विश्व में कच्चा इस्पात उत्पादकों में दूसरा एवं स्पंज लौह उत्पादन में प्रथम स्थान था।
  • वर्ष 2019 में भारत में प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति इस्पात खपत केवल 74.3 किलोग्राम थी जबकि इसी समय विश्व में प्रतिव्यक्ति औसत खपत 229.3 किलोग्राम थी।
  • चीन विश्व में इस्पात का सबसे बड़ा उत्पादक तथा सर्वाधिक खपत वाला देश है।
  • ऐल्यूमिनियम प्रगलन भारत में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है। यहाँ ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर  प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु राज्यों में ऐल्यूमिनियम प्रगलन संयंत्र स्थापित किए गए हैं।
  • ऐल्यूमिनियम प्रगलन संयंत्रों में बॉक्साइट का कच्चे पदार्थ के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • भारत में रसायन उद्योग की सकल घरेलू उत्पाद में भागीदारी लगभग 3 प्रतिशत है।
  • भारत में कार्बनिक एवं अकार्बनिक दोनों प्रकार के रसायन निर्मित किये जा रहे हैं।
  • उर्वरक उद्योग नाइट्रोजनी उर्वरक (विशेषतः यूरिया), फास्फेटिक उर्वरक (डी.ए.पी.) और अमोनियम फास्फेट तथा मिश्रित उर्वरक के उत्पादन क्षेत्रों के आस-पास केन्द्रित हैं।
  • भारत में होने वाले कुल उर्वरक उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत उत्पादन गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा केरल राज्यों में होता है।
  • भारत का पहल सीमेंट उद्योग सन् 1904 में चेन्नई में स्थापित किया गया था।
  • भारत में मोटरगाड़ी उद्योग का विकास दिल्ली, गुड़गाँव, मुम्बई, पुणे, चेन्नई, लखनऊ, कोलकाता, हैदराबाद, इंदौर, बंगलुरु एवं जमशेदपुर के आस-पास स्थित क्षेत्रों में हुआ है। बेंगलूरू को भारत की इलैक्ट्रॉनिक राजधानी’ के रूप में जाना जाता है।
  • भारत के इलेक्ट्रॉनिक सामान के प्रमुख उत्पादक केन्द्रों में मुम्बई, दिल्ली, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, कोलकाता एवं लखनऊ आदि हैं।
  • उद्योगों से चार प्रकार का प्रदूषण होता है-वायु, जल, भूमि तथा ध्वनि।
  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के अपशिष्ट व परमाणु शक्ति उत्पादक कारखानों से कैंसर, जन्मजात विकार एवं अकाल प्रसव जैसी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
  • भारत में राष्ट्रीय ताप विद्युत कॉरपोरेशन विद्युत प्रदान करने वाला प्रमुख निगम है। यह निगम प्राकृतिक पर्यावरण एवं संसाधन जैसे-खनिज तेल, जल, गैस एवं ईंधन संरक्षण नीति का प्रबल समर्थक है तथा इन्हें ध्यान में रखकर ही विद्युत संयंत्रों की स्थापना करता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. उद्योग: मानव तकनीक द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का रूप बदलकर उन्हें अधिक उपयोगी बनाने की क्रिया को उद्योग कहते हैं।

2. विनिर्माण: कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहा जाता है।

3. विनिर्माण उद्योग: प्राथमिक उत्पादों का मशीनों की सहायता से रूप बदलकर इनसे अधिक उपयोगी तैयार माल प्राप्त करने की क्रिया को विनिर्माण उद्योग कहा जाता है।

4. समूहन बचत: नगरीय केन्द्रों द्वारा दी गयी सुविधाओं के कारण बहुत-से उद्योग नगर केन्द्रों के समीप ही केन्द्रित हो जाते हैं। इनको समूहन बचत कहा जाता है।

5. कृषि आधारित उद्योग: वे उद्योग जिन्हें अपना कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है, कृषि आधारित उद्योग कहलाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

6. खनिज आधारित उद्योग: वे उद्योग जिन्हें अपना कच्चा माल खनिजों से प्राप्त होता है, खनिज आधारित उद्योग कहलाते

7. आधारभूत उद्योग: वे उद्योग जिनके उत्पादन अथवा कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर रहते हैं, आधारभूत उद्योग कहलाते हैं।

8. उपभोक्ता उद्योग: वे उद्योग जो मुख्यतालोगों के उपयोग की वस्तुएँ बनाते हैं, उपभोक्ता उद्योग कहलाते हैं।

9. वृहत उद्योग: वे उद्योग जिनमें निवेशित राशि एक करोड़ रुपये से अधिक है, वृहत उद्योग कहलाते हैं।

10. लघु उद्योग: वे उद्योग जिनमें निवेशित राशि एक करोड़ रुपये से कम है, लघु उद्योग कहलाते हैं।

11. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग: वे उद्योग जिनका स्वामित्व एवं प्रबंधन केन्द्र अथवा राज्य सरकार के किसी संगठन के पास होता है, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं।

12. निजी क्षेत्र के उद्योग: वे उद्योग जिनका स्वामित्व व प्रबन्धन कुछ व्यक्तियों, फर्म अथवा कम्पनी के पास होता है, निजी क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं।

13. संयुक्त उद्योग: वे उद्योग जो राज्य सरकार एवं निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाये जाते हैं, संयुक्त उद्योग कहलाते हैं।

14. सहकारी उद्योग: वे उद्योग जिनका स्वामित्व एवं प्रबन्धन कच्चे माल के उत्पादकों, श्रमिकों अथवा दोनों के हाथों में होता है तथा उद्योग को चलाने के लिए सहकारी संस्था का गठन किया जाता है; सहकारी उद्योग कहलाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

15. भारी उद्योग: वे उद्योग जो भारी कच्चे माल का प्रयोग कर भारी तैयार माल का निर्माण करते हैं, भारी उद्योग कहलाते हैं।

16. हल्के उद्योग: वे उद्योग जो कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं, हल्के उद्योग कहलाते हैं।

17. प्रगलक: अयस्क से धातु अलग करने के लिए प्रयोग की गयी गलन भट्टियों को प्रगलक कहते हैं।

18. सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क-वे संस्थान जो सॉफ्टवेयर विशेषताओं को एकल विंडो सेवा एवं उच्च आँकड़े संचार की सुविधा प्रदान करते हैं, सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क कहलाते हैं।

19. पर्याबरण निम्नीकरण: पर्यावरण की गुणवत्ता में कमी आ जाना, पर्यावरण निम्नीकरण कहलाता है।

20. औद्योगिकी अपशिष्ट-उद्योगों से निकलने वाला कचरा अथवा बचे पदार्थ, औद्योगिक अपशिष्ट कहलाता है।

21. ग्रामीण कृषि पृष्ठ प्रदेश-वह क्षेत्र जिससे किसी उद्योग को कृषि से कच्चा माल प्राप्त होता है, ग्रामीण कृषि पृष्ठ प्रदेश कहलाता है।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन

पाठ सारांश

  • पृथ्वी की ऊपरी परत ‘भूपर्पटी’ विभिन्न प्रकार के खनिजों के योग से बनी चट्टानों से निर्मित है।
  • पृथ्वी के गर्भ में पाये जाने वाले खनिजों का विभिन्न विधियों से शोधन करके धातुएँ प्राप्त की जाती हैं।
  • मानव के लिए उपयोग में आने वाली लगभग समस्त वस्तुएँ खनिजों से प्राप्त होती हैं।
  • भोजन में भी हम खनिजों का उपयोग करते हैं, जैसे-आयरन आदि।
  • फ्लूराइड जो दाँतों को गलने से बचाता है, फ्लूओराइट नामक खनिज से प्राप्त होता है। टूथब्रश व पेस्ट की ट्यूब पेट्रोलियम से प्राप्त प्लास्टिक की बनी होती है।
  • भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है। इसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना होती है।
  • भूगर्भ में खनिज अनेक रूपों में पाये जाते हैं। वर्तमान में लगभग 2,000 से अधिक खनिजों की पहचान हो चुकी है।
  • खनिजों का वर्गीकरण उनके विभिन्न रंग, कठोरता, चमक, घनत्व, विभिन्न क्रिस्टल आदि के आधार पर किया जाता है।
  • खनिजों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
    1. धात्विक खनिज,
    2. अधात्विक खनिज,
    3. ऊर्जा खनिज।
  • खनिज सामान्यतया अयस्कों में पाये जाते हैं। किसी भी खनिज में अन्य तत्वों के मिश्रण अथवा संचयन हेतु ‘अयस्क’ शब्द का प्रयोग किया जाता है।
  • आग्नेय व कायान्तरित चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में पाये जाते हैं। मुख्य धात्विक खनिज जैसे जस्ता, ताँबा, जिंक, सीसा आदि शिराओं व जमावों के रूप में प्राप्त होते हैं। कोयला जैसे खनिज अवसादी चट्टानों में पाये जाते हैं।
  • सोना, चाँदी, टिन तथा प्लेटिनम जल द्वारा घर्षित नहीं होने वाले खनिज हैं।
  • महासागरों में मिलने वाले प्रमुख खनिजों में नमक, मैग्नीशियम, ब्रोमाइन, मैंगनीज आदि आते हैं।
  • भारत में खनिज असमान रूप से वितरित हैं। भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी एवं पूर्वी पार्यों पर गुजरात व असम की तलहटी चट्टानों में अधिकांश खनिज तेल के निक्षेप पाये जाते हैं।
  • उत्तरी भारत का विशाल जलोढ़ मैदान आर्थिक महत्व के खनिजों से लगभग विहीन है।
  • लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के तीन-चौथाई भाग का योगदान करते हैं।
  • लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है, जो किसी भी देश के विकास की रीढ़ होता है। भारत में उच्च किस्म का लौह अयस्क मैग्नेटाइट पाया जाता है। इसमें 70 प्रतिशत लोहांश पाया जाता है।
  • भारत की प्रमुख लौह अयस्क की पेटियों में,
    1. ओडिशा-झारखण्ड पेटी,
    2. दुर्ग-बस्तर-चन्द्रपुर पेटी,
    3. महाराष्ट्र गोआ पेटी,
    4. बेलारी-चित्रदुर्ग, चिक्कमंगलूरु-तुमकूरू पेटी आदि प्रमुख हैं।
  • मैंगनीज़ का उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ व पेंट आदि बनाने में किया जाता है। मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा मैंगनीज़ उत्पादक राज्य है। वर्ष 2016-17 में यहाँ देश के 27 प्रतिशत मैंगनीज का उत्पादन हुआ।
  • बालाघाट (मध्य प्रदेश), सिंहभूमि (झारखण्ड) एवं खेतड़ी (राजस्थान) प्रमुख ताँबा उत्पादक क्षेत्र हैं। ताँबे का उपयोग बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रोनिक्स एवं रसायन उद्योग में किया जाता है।
  • भारत में बॉक्साइट के जमाव मुख्य रूप में अमरकंटक पठार, मैकाल की पहाड़ियों एवं बिलासपुर-कटनी के पठारी क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
  • ओडिशा भारत का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है, जहाँ वर्ष 2016-17 में देश के 49 प्रतिशत बॉक्साइट का उत्पादन हुआ। यहाँ के प्रमुख बॉक्साइट निक्षेपों में कोरापुट जिले के पंचपतमाली निक्षेप हैं।
  • अभ्रक के निक्षेप छोटा नागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारों पर पाये जाते हैं। बिहार-झारखण्ड की कोडरमा-गया-हजारीबाग पेटी इसके उत्पादन में अग्रणी है। इनके अतिरिक्त अभ्रक राजस्थान (अजमेर के आस-पास) व आन्ध्र प्रदेश (नेल्लोर अभ्रक पेटी) से भी प्राप्त होता है।
  • चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट एवं मैगनीशियम कार्बोनेट से निर्मित चट्टानों में पाया जाता है। यह खनिज सीमेन्ट उद्योग में काम आता है। राजस्थान सर्वाधिक चूना पत्थर उत्पादक राज्य है।
  • खनिज एक मूल्यवान सम्पत्ति हैं। यह सीमित एवं अनवीकरण योग्य हैं। अतः इनका संरक्षण किया जाना आवश्यक है।
  • ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों; जैसे-कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम, थोरियम आदि से किया जाता है।
  • ऊर्जा प्राप्ति के परम्परागत साधनों में लकड़ी, कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, जल व तापीय विद्युत आदि हैं।
  • ऊर्जा प्राप्ति के गैर-परम्परागत साधनों में सौर, पवन, ज्वारीय, भूतापीय, बायोगैस एवं परमाणु-ऊर्जा सम्मिलित किये जाते हैं।
  • भारत में कोयला पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। कोयले का निर्माण वनस्पति पदार्थों के लाखों वर्ष तक संपीडन से हुआ है।
  • भारत में कोयला गोंडवाना एवं टरशियरी काल की चट्टानों में प्राप्त होता है।
  • कोयले की प्रमुख किस्मों में ऐन्थेसाइट, बिटुमिनस, लिग्नाइट एवं पीट हैं। ऐन्थेसाइट सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला होता है।
  • गोंडवाना कोयला का क्षेत्र, दामोदर घाटी, झरिया व बोकारो में स्थित है। टरशियरी कोयला क्षेत्रों में मेघालय, असम, ‘नागालैण्ड व अरुणाचल प्रदेश आदि हैं। गोदावरी, महानदी, सोन, वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाये जाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन

  • भारत में खनिज तेल टरशियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति व भ्रंश ट्रेप में पाया जाता है।
  • मुम्बई हाई, गुजरात तथा असम भारत के प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र हैं।
  • भारत के प्रमुख खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र मुम्बई हाई (महाराष्ट्र), अंकलेश्वर (गुजरात) एवं डिगबोई, नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन (असम) आदि हैं।
  • प्राकृतिक गैस एक महत्वपूर्ण स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है जो खनिज तेल के साथ अथवा अलग पायी जाती है। कृष्णा-गोदावरी  नदी बेसिन में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार खोजे गये हैं।
  • मुम्बई हाई तथा बसीन को पश्चिमी एवं उत्तरी भारत के उर्वरक, विद्युत तथा अन्य औद्योगिक क्षेत्रों से जोड़ने वाली हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर (HVJ) गैस पाइपलाइन की लम्बाई 1700 किमी है।
  • सीएनजी (संपीडित प्राकृतिक गैस) का उपयोग गाड़ियों में तरल ईंधन के रूप में किया जा रहा है।
  • भारत में विद्युत मुख्यत: दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है:
    1. प्रवाही जल से एवं
    2. कोयला, पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस से।
  • यूरेनियम व थोरियम आदि परमाणु खनिजों का उपयोग परमाणु या आणविक ऊर्जा प्राप्ति के लिए किया जाता है।
  • भारत के उष्ण कटिबंधीय देश होने के कारण यहाँ सौर-ऊर्जा के विकास की विपुल सम्भावनाएँ हैं।
  • भारत के तमिलनाडु राज्य में नागरकोइल से मुदरई तक पवन ऊर्जा फार्म की विशालतम पेटी अवस्थित है। नागरकोइल व जैसलमेर को देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग हेतु जाना जाता है।
  • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं एवं मानवजनित अपशिष्टों के उपयोग से घरेलू उपयोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है।
  • महासागरीय तरंगों का उपयोग भी विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है। भारत में खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपलब्ध हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. खनिज: खनिज प्राकृतिक रूप से उत्पन्न ऐसा तत्व है जिसकी अपनी भौतिक विशेषताएँ होती हैं तथा जिसकी बनावट को रासायनिक गुणों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।

2. अयस्क: जिन कच्ची धातुओं से खनिज प्राप्त किये जाते हैं, उन्हें अयस्क कहते हैं।

3. खनन: भूगर्भ से खनिजों को बाहर निकालने की आर्थिक प्रक्रिया को खनन कहते हैं।

4. संसाधन: मानव की आवश्यकता की पूर्ति में सहायक जैविक व अजैविक पदार्थों को संसाधन कहते हैं।

5. खनिज तेल: भूगर्भ से द्रव रूप में प्राप्त हाइड्रोकार्बन का एक मिश्रण, जिसे सामान्यतया पेट्रोलियम कहा जाता है अर्थात् बिना साफ किये गए तेल को खनिज तेल अथवा कच्चा तेल कहते हैं।

6. ऊर्जा खनिज: जिन खनिजों से ऊर्जा की प्राप्ति होती है, उन्हें ऊर्जा खनिज कहते हैं, जैसे- यूरेनियम, कोयला, थोरियम, खनिज तेल आदि।

7. लौह खनिज: ऐसे खनिज जिनमें लौह धातु के अंश होते हैं, लौह खनिज कहलाते हैं, जैसे-निकिल, मैंगनीज़, टंगस्टन आदि।

8. ऊर्जा संसाधन: वे जैविक एवं अजैविक पदार्थ जिनके उपयोग से शक्ति प्राप्त होती है, ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं।

9. अलौह खनिज: जिन खनिजों में लोहे के अंश नहीं होते हैं, उन्हें अलौह खनिज कहते हैं, जैसे-ताँबा अयस्क, टिन, सोना, चाँदी आदि।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन

10. धात्विक खनिज: वे खनिज जिनसे धातु प्राप्त होती है, धात्विक खनिज कहलाते हैं, जैसे-लौह अयस्क, ताँबा, मैंगनीज़ आदि।

11. अधात्विक खनिज: वे खनिज जिनमें धातु नहीं होती है, अधात्विक खनिज कहलाते हैं, जैसे-चूना पत्थर; डोलोमाइट, अभ्रक आदि।

12. ऐन्थेसाइट: यह सर्वोत्तम प्रकार का कोयला होता है। इसमें कार्बन की मात्रा 80 से 95 प्रतिशत तक होती है।

13. बिटुमिनस: यह मध्यम किस्म का कोयला होता है। इसमें कार्बन की मात्रा 50 से 80 प्रतिशत तक होती है।

14. लिग्नाइट: यह निम्न किस्म का कोयला होता है। इसमें कार्बन की मात्रा 30 से 35 प्रतिशत होती है। यह जलने पर धुआँ देता है।

15. पीट: यह कोयले का प्रारम्भिक रूप है। इसमें कार्बन का अंश 40 प्रतिशत से कम होता है।

16. बॉक्साइट: एक अयस्क जिससे ऐल्युमिनियम धातु प्राप्त होती है।

17. प्लेसर निक्षेप: पहाड़ियों के आधार अथवा घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में पाये जाने वाले खनिज प्लेसर निक्षेप कहलाते हैं।

18. मैग्नेटाइट: यह सर्वोत्तम किस्म का लौह अयस्क होता है। इसमें लौह की मात्रा 70 प्रतिशत तक मिलती है।”

19. हेमेटाइट: यह लौह अयस्क की एक किस्म है जिसमें धातु अंश 50 से 60 प्रतिशत तक होता है।

20. परम्परागत ऊर्जा संसाधन: परम्परागत ऊर्जा संसाधनों से तात्पर्य उन संसाधनों से है जिनका उपयोग प्राचीनकाल से मनुष्य करता आ रहा है तथा जो सीमित व समाप्त (जल-विद्युत को छोड़कर) हैं।

21. गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधन-गैर: परम्परागत ऊर्जा संसाधनों से अभिप्राय ऐसे ऊर्जा संसाधनों से है जो आधुनिक वैज्ञानिक युग की देन हैं, जैसे-सौर-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, अणुशक्ति व बायोगैस आदि।

22. बायोगैस: धरातल पर जैविक पदार्थों के अवसाद से प्राप्त गैस बायोगैस कहलाती है।

23. सी. एन. जी.: वाहनों को चलाने में प्रयुक्त होने वाली प्राकृतिक गैस सी. एन. जी. (काम्प्रेस्ड नेचुरल गैस) कहलाती है।

24. फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी: यह सौर-ऊर्जा के उपयोग की एक विधि है। इस विधि में सौर-ऊर्जा को विद्युत में परिवर्तित करके उपयोग किया जाता है।

25. भूतापीय ऊर्जा: पृथ्वी के उच्च भूगर्भीय ताप से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं।

26. ज्वारीय ऊर्जा: समुद्री ज्वार व तरंगों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा ज्वारीय ऊर्जा कहलाती है।

27. पवन ऊर्जा: पवन चक्कियों के माध्यम से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं।

28. सतत् पोषणीय विकास: विनाशरहित विकास।

29. रैट होल खनन: जोवाई तथा चेरापूँजी क्षेत्र में कोयले का खनन जनजातीय परिवारों के सदस्यों द्वारा एक लम्बी संकीर्ण सुरंग के रूप में किया जाता है, जिसे रैट होल खनन कहते हैं।

30. कर्दम: तरल अवस्था में खनिज का परिवर्तन कर्दम कहलाता है।

31. जल विद्युत: जल से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा जल विद्युत कहलाती है।

32. ताप विद्युत: कोयला, खनिज तेल व प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को ताप-विद्युत कहते हैं।

33. परमाणु-ऊर्जा: परमाणु खनिजों के उपयोग से प्राप्त ऊर्जा परमाणु ऊर्जा कहलाती है।
34. सौर-ऊर्जा: सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा (ताप) को सौर ऊर्जा कहते हैं।

35. शिराएँ: चट्टानों में पाए जाने वाली छोटी दरारों, जोड, भ्रंश व विदर जिनमें खनिजों का निर्माण होता है, शिराएँ कहलाती हैं।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 4 कृषि 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 4 कृष

पाठ सारांश

  • भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में लगी हुई है।
  • कृषि के माध्यम से ही खाद्यान्न एवं उद्योगों के लिए कच्चा माल उत्पादित किया जाता है।
  • वर्तमान समय में भारत के विभिन्न भागों में कई प्रकार के कृषि तंत्र अपनाए गए हैं जिनमें प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि, गहन जीविका कृषि एवं वाणिज्यिक कृषि आदि प्रमुख हैं।।
  • प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि, परम्परागत तकनीकों (जैसे-लकड़ी के हल, डाओं (duo) तथा खुदाई करने वाली छड़ी आदि) पर आधारित श्रम प्रधान कृषि पद्धति है। इसें ‘कर्तन दहन कृषि’ भी कहते हैं।
  • कर्तन दहन कृषि (स्थानान्तरित कृषि) जंगलों में निवास करने वाले आदिवासी एवं पिछड़ी जातियों द्वारा की जाती है। इसमें वनों को जलाकर भूमि साफ करके, दो-तीन वर्षों तक कृषि की जाती है और जब मिट्टी की उर्वराशक्ति समाप्त हो जाती है तो उस भूमि को छोड़कर यही प्रक्रिया दूसरे क्षेत्रों में अपनाई जाती है।
  • देश के विभिन्न भागों में कर्तन दहन कृषि को विभिन्न नामों से जाना जाता है। उत्तरी-पूर्वी राज्यों-असम, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड आदि में इसे ‘झूम’ कहा जाता है। जबकि मणिपुर में इसे ‘पलामू’ तथा छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले व अंडमान निकोबार द्वीप समूह में ‘दीपा’ कहा जाता है।
  • गहन जीविका कृषि एक श्रम गहन खेती है जो भूमि पर जनसंख्या के अधिक दबाव वाले क्षेत्रों में की जाती है।
  • रोपण कृषि वाणिज्यिक कृषि का एक प्रकार है। इस कृषि में एक ही फसल की प्रधानता होती है।
  • भारत की रोपण फसलों में चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला आदि प्रमुख हैं। हमारे देश में तीन शस्य ऋतुएँ हैं- रबी, खरीफ एवं जायद रबी फसलों को शीत ऋतु में अक्टूबर से दिसम्बर के मध्य बोया जाता है व ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है। मुख्य रबी फसलों में गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों आदि हैं।
  • विभिन्न क्षेत्रों में खरीफ फसलें मानसून के आगमन के समय बोई जाती हैं व सितम्बर-अक्टूबर में काट ली जाती हैं।
  • खरीफ की प्रमुख फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूंग, कपास, उड़द, जूट, मूंगफली, सोयाबीन आदि हैं।
  • असम, पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा (ओडिशा) में चावल की तीन फसलें-ऑस, अमन व बोरो बोई जाती हैं।
  • जायद में तरबूज, खरबूजा, खीरा, सब्जियाँ एवं चारे की फसलों की कृषि की जाती है। भारत में पैदा की जाने वाली प्रमुख फसलों में चावल, गेहूँ, मोटे अनाज, दालें, चाय, गन्ना, तिलहन, जूट आदि हैं।
  • हमारे देश में अधिकतर लोगों का खाद्यान्न चावल है।
  • भारत चीन के पश्चात् विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। चावल की कृषि के लिए उच्च तापमान (25°C से अधिक) एवं अधिक वर्षा (100 सेमी. से अधिक) की आवश्यकता होती है। भारत के उत्तरी-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों एवं डेल्टाई प्रदेशों में चावल उत्पादित किया जाता है।
  • गेहूँ, चावल के पश्चात् भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है।
  • गेहूँ उत्पादन के प्रमुख क्षेत्रों में उत्तर-पश्चिम में गंगा-सतलुज का मैदान एवं दक्कन का काली मिट्टी वाला प्रदेश है।
  • भारत में उगाए जाने वाले प्रमुख मोटे अनाजों में ज्वार, बाजरा एवं रागी आदि हैं।
  • ज्वार, क्षेत्रफल तथा उत्पादन के हिसाब से हमारे देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा मध्य प्रदेश प्रमुख ज्वार उत्पादक राज्य हैं।
  • बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य राजस्थान है, अन्य उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा आदि हैं।
  • महाराष्ट्र ज्वार का तथा कर्नाटक रागी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
  • भारत में मक्का खाद्यान्न एवं चारा दोनों रूपों में प्रयोग होने वाली फसल है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्यों में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि हैं।
  • सम्पूर्ण विश्व में भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता देश है। भारत में उत्पादित की जाने वाली दलहनी फसलों में अरहर, उड़द, मूंग, मसूर, मटर, चना आदि प्रमुख हैं।
  • भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश एवं कर्नाटक में दालें अधिक उत्पादित की जाती हैं।
  • गन्ना एक उष्ण व उपोष्ण कटिबंधीय फसल है जो अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में बोयी जाती है।
  • ब्राजील के पश्चात् भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत के प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगांना, बिहार, पंजाब, हरियाणा आदि हैं।
  • भारत विश्व का सबसे बड़ा तिलहन उत्पादक देश है। यहाँ मूंगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरंडी, बिनौला. अलसी, सूरजमुखी आदि तिलहन फसलें उगायी जाती हैं।
  • चाय एक प्रमुख पेय पदार्थ की फसल है। भारत में प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्रों में असम, प. बंगाल में दार्जिलिंग व – जलपाईगुड़ी जिलों की पहाड़ियाँ, तमिलनाडु, केरल आदि हैं। भारत विश्व का अग्रणी चाय उत्पादक एवं निर्यातक देश है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 4 कृषि 

  • भारतीय कॉफी अपनी गुणवत्ता के लिए सम्पूर्ण विश्व में जानी जाती है। यहाँ पैदा होने वाली अरेबिका किस्म की कॉफी प्रारम्भ में यमन से लायी गयी थी।
  • भारत में कॉफी की कृषि नीलगिरि की पहाड़ियों के आसपास कर्नाटक, तमिलनाडु एवं केरल में होती है। विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक फल एवं सब्जियों का उत्पादन भारत में होता है।
  • भारत में रबर केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह व मेघालय में गारो पहाड़ियों में उत्पादित किया जाता है।
  • कपास, जूट, सन तथा प्राकृतिक रेशम हमारे देश में उगायी जाने वाली प्रमुख रेशेदार फसलें हैं।
  • रेशम के कीड़ों के पालन को. ‘रेशम उत्पादन’ (सेरीकल्चर) कहते हैं।
  • भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा प्रमुख कपास उत्पादक देश है। भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, .मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि हैं।
  • जूट को सुनहरा रेशा कहा जाता है। भारत में यह पश्चिमी बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा व मेघालय आदि राज्यों में अधिक उत्पादित होता है।
  • स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषि क्षेत्र में संस्थागत सुधार करने के लिए कृषि जोतों की चकबंदी व सहकारिता को प्राथमिकता दी गयी तथा जमींदारी प्रथा को समाप्त किया गया।
  • भारत सरकार ने 1960 और 1970 के दशकों में अनेक कृषि सुधारों की शुरुआत की। इन सुधारों में पैकेज टैक्नोलॉजी पर आधारित हरित क्रांति और श्वेत क्रांति (ऑपरेशन फ्लड) प्रमुख थे।
  • भारत में कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु हरित-क्रान्ति का प्रारम्भ किया गया है।
  • भारत सरकार ने किसानों के लाभ हेतु ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ (KCC) तथा व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना (PAIS) भी शुरू की गई है।
  • भारत की बढ़ती जनसंख्या के साथ घटता कृषि उत्पादन चिन्ता का एक प्रमुख विषय है।
  • वर्ष 1990 के पश्चात् वैश्वीकरण के अन्तर्गत भारतीय कृषकों को अनेक नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • वर्तमान में दोराहे पर खड़ी भारतीय कृषि को सक्षम तथा लाभदायक बनाने के लिए सीमांत तथा छोटे किसानों की स्थिति सुधारने का प्रयास करना होगा।
  • भारत के किसानों को शस्यावर्तन को अपनाते हुए खाद्यान्न फसलों की जगह नकदी फसलों को उगाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 4 कृषि 

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. कृषि: भूमि की जुताई कर फसल उत्पन्न करने और पशुपालन कला को कृषि कहा जाता है।

2. प्रारम्भिक जीविका निर्वाह कृषि: भूमि के छोटे टुकड़े पर आदिम कृषि औजारों द्वारा परिवार अथवा समुदाय श्रम के सहयोग से की जाने वाली कृषि।

3. कर्तन दहन प्रणाली कृषि: इस प्रकार की कृषि में वनों को जलाकर भूमि साफ करके उस पर दो-तीन वर्षों तक कृषि की जाती है और जब मिट्टी की उर्वरा-शक्ति समाप्त हो जाती है तो उस भूमि को छोड़ यही प्रक्रिया दूसरे क्षेत्रों में अपनायी जाती है। इसे स्थानान्तरी कृषि के नाम से भी जाना जाता है।

4. झूम अथवा झमिंग कृषि: भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में की जाने वाली कर्तन दहन कृषि को झूम अथवा झमिंग कहते हैं।

5. गहन जीविका कृषि: श्रम प्रधान खेती जिसमें अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में रासायनिक खादों एवं सिंचाई का प्रयोग किया जाता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 4 कृषि 

6. वाणिज्यिक कृषि: एक प्रकार की विकसित कृषि जिसमें अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।

7. रोपण कृषि: बड़े पैमाने पर की जाने वाली एक फसली कृषि जिसमें अत्यधिक पूँजी व श्रम का प्रयोग होता है। इससे प्राप्त सम्पूर्ण उत्पादन उद्योगों में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है।

8. शस्य प्रारूप: विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न कृषि फसलें उगाना शस्य प्रारूप कहलाता है।

9. रबी फसलें: ऐसी फसलें जिनको अक्टूबर से दिसम्बर माह तक बोया जाता है तथा अप्रैल से जून तक काटा जाता है, रबी फसलें कहलाती हैं; जैसे-गेहूँ, जौ आदि।

10. खरीफ फसलें: ऐसी फसलें जो मानसून के आगमन पर बोयी जाती हैं तथा सितम्बर-अक्टूबर में काट ली जाती हैं, खरीफ फसलें कहलाती हैं; जैसे-ज्वार, बाजरा आदि।

11. जायद फसलें: रबी एवं खरीफ फसलों के मध्य ग्रीष्म ऋतु में बोयी जाने वाली फसल को जायद कहा जाता है।

12. मोटे अनाज: ज्वार, बाजरा व रागी को मोटे अनाज कहा जाता है।

13. फसलों का आवर्तन: किसी कृषि भूमि पर कुछ वर्षों के अन्तराल से फसलों को बदल-बदलकर बोने की पद्धति फसलों का आवर्तन अथवा फसल-चक्र कहलाता है।

14. रेशम उत्पादन: रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों का पालन रेशम उत्पादन कहलाता है।

15. सुनहरा रेशा: जूट को सुनहरा रेशा कहा जाता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 4 कृषि 

16. बागवानी: सब्जी, फल एवं फूलों की गहन कृषि बागवानी कहलाती है।

17. भूदान: भूमि का दान करना।

18. ग्रामदान: गाँव का दान करना।

19. सार्वजनिक वितरण प्रणाली: जनता को उचित मूल्य पर जीवन उपयोगी वस्तुएँ उपलब्ध कराना।

20. समर्थन मूल्य: सरकार द्वारा निश्चित किसी फसल के उचित मूल्य को समर्थन मूल्य कहा जाता है। इसके अन्तर्गत किसान अपने उत्पाद को खुले बाजार में अथवा सरकारी एजेन्सियों को समर्थित मूल्य पर बेच सकते हैं।

21. वैश्वीकरण: एक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ समन्वय करना वैश्वीकरण कहलाता है।

22. कार्बनिक कृषि: कारखानों में निर्मित रसायनों जैसे उर्वरकों व कीटनाशकों के बिना की जाने वाली कृषि को कार्बनिक कृषि कहा जाता है।

23. हरित क्रान्ति: सिंचित व असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली फसलों को आधुनिक कृषि पद्धति से उगाकर कृषि उपजों का यथासम्भव अधिक उत्पादन प्राप्त करना हरित-क्रान्ति कहलाता है। इस क्रान्ति से गेहूँ के उत्पादन में वृद्धि हुई है।

24. श्वेत क्रान्ति: दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हेतु चलाया गया कार्यक्रम ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से भी जाना जाता है।

25. रक्तहीन क्रान्ति: विनोबा भावे द्वारा संचालित किया गया भूदान-ग्रामदान आन्दोलन ‘रक्तहीन क्रान्ति’ कहलाता है।

26. जलभृत: जिन शैलों में होकर भूमिगत जल प्रवाहित होता है उसे जलभृत अथवा जलभरा कहते हैं।

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JAC Class 10 Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

JAC Board Class 10th Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

JAC Class 10th Economics भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कोष्ठक में दिए गए सही विकल्प का प्रयोग कर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) सेवा क्षेत्रक में रोजगार में उत्पादन के समान अनुपात में वृद्धि ……..। (हुई है/नहीं हुई है)
(ख) ……. क्षेत्रक के श्रमिक वस्तुओं का उत्पादन नहीं करते हैं। (तृतीयक/कृषि)
(ग) ……. क्षेत्रक के अधिकांश श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्राप्त होती है। (संगठित/असंगठित)
(घ) भारत में ……. अनुपात में श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में काम कर रहे हैं। (बड़े/छोटे)
(ङ) कपास एक ……. उत्पाद है और कपड़ा एक …… उत्पाद है। (प्राकृतिक/विनिर्मित)
(च) प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ …… हैं। (स्वतन्त्र/परस्पर निर्भर)
उत्तर:
(क) नहीं हुई है,
(ख) तृतीयक,
(ग) संगठित,
(घ) बड़े,
(ङ) प्राकृतिक, विनिर्मित,
(च) परस्पर निर्भर।

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प्रश्न 2.
सही उत्तर का चयन करें
(अ) सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक …………के आधार पर विभाजित हैं।
(क) रोजगार की शर्तों
(ख) आर्थिक गतिविधि के स्वभाव
(ग) उद्यमों के स्वामित्व
(घ) उद्यम में नियोजित श्रमिकों की संख्या
उत्तर:
(ग) उद्यमों के स्वामित्व

(ब) एक वस्तु का अधिकांशतः प्राकृतिक प्रक्रिया से उत्पादन ……. क्षेत्रक की गतिविधि है।
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) सूचना प्रौद्योगिकी
उत्तर:
(क) प्राथमिक

(स) किसी वर्ष में उत्पादित ……… के मूल्य के कुल योगफल को स. घ. उ. कहते हैं।
(क) सभी वस्तुओं और सेवाओं ……
(ख) सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं
(ग) सभी मध्यवर्ती वस्तुओं और सेवाओं
(घ) सभी मध्यवर्ती एवं अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं
उत्तर:
(ख) सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं

(द) स. घ. उ. के पदों में वर्ष 2013 – 14 में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी ……… प्रतिशत है।
(क) 20 से 30
(ख) 30 से 40
(ग) 50 से 60
(घ) 60 से 70
उत्तर:
(घ) 60 से 70

प्रश्न 3.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए

कृषि क्षेत्रक की समस्याएँ कुछ सम्भावित उपाय।
1. असिंचित भूमि (अ) कृषि-आधारित मिलों की स्थापना
2. फसलों का कम मूल्य (ब) सहकारी विपणन समितियाँ
3. कर्ज भार (स) सरकार द्वारा खाद्यान्नों की वसूली
4. मंदी काल में रोजगार का अभाव (द) सरकार द्वारा नहरों का निर्माण
5. कटाई के तुरन्त बाद स्थानीय व्यापारियों को अपना अनाज बेचने की विवशता (य) कम ब्याज पर बैंकों द्वारा साख उपलब्ध कराना

उत्तर:

कृषि क्षेत्रक की समस्याएँ कुछ सम्भावित उपाय।
1. असिंचित भूमि (द) सरकार द्वारा नहरों का निर्माण
2. फसलों का कम मूल्य (स) सरकार द्वारा खाद्यान्नों की वसूली
3. कर्ज भार (य) कम ब्याज पर बैंकों द्वारा साख उपलब्ध कराना
4. मंदी काल में रोजगार का अभाव (अ) कृषि-आधारित मिलों की स्थापना
5. कटाई के तुरन्त बाद स्थानीय व्यापारियों को अपना अनाज बेचने की विवशता (ब) सहकारी विपणन समितियाँ

प्रश्न 4.
विषम की पहचान करें और बताइए क्यों?
(क) पर्यटन-निर्देशक, धोबी, दर्जी, कुम्हार
(ख) शिक्षक, डॉक्टर, सब्जी विक्रेता, वकील
(ग) डाकिया, मोची, सैनिक, पुलिस कांस्टेबल
(घ) एम. टी. एन. एल., भारतीय रेल, एयर इण्डिया, जेट एयरवेज, ऑल इण्डिया रेडियो।
उत्तर:
(क) पर्यटन निर्देशक क्योंकि यह तृतीयक क्षेत्रक का है।
(ख) सब्जी विक्रेता क्योंकि इसे नियमित रोजगार प्राप्त नहीं होता है।
(ग) मोची क्योंकि यह असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत आता है।
(घ) जेट एयरवेज क्योंकि यह निजी क्षेत्रक का उपक्रम है जबकि अन्य राजकीय क्षेत्र के उपक्रम हैं।

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प्रश्न 5.
एक शोध छात्र ने सूरत शहर में काम करने वाले लोगों से मिलकर निम्न आँकड़े जुटाए

कार्य स्थान रोजगार की प्रकृति श्रमिकों का प्रतिशत
1. सरकार द्वारा पंजीकृत कार्यालयों और कारखानों में संगठित 15
2. औपचारिक अधिकार-पत्र सहित बाजारों में अपनी दुकान, कार्यालय और क्लीनिक 15
3. सड़कों पर काम करते लोग, निर्माण श्रमिक, घरेलू श्रमिक 20
4. छोटी कार्यशालाओं में काम करते लोग, जो प्रायः सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं हैं

तालिका को पूरा कीजिए। इस शहर में असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों की प्रतिशतता क्या है?
उत्तर:

कार्य स्थान रोजगार की प्रकृति श्रमिकों का प्रतिशत
सरकार द्वारा पंजीकृत कार्यालयों और कारखानों में संगठित 15
औपचारिक अधिकार-पत्र सहित बाजारों में अपनी दुकान, कार्यालय और क्लीनिक असंगठित 15
सड़कों पर काम करते लोग, निर्माण श्रमिक, घरेलू श्रमिक असंगठित 20
छोटी कार्यशालाओं में काम करते लोग, जो प्रायः सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं हैं। असंगठित 50

सूरत शहर में असंगठित क्षेत्रक में 85% श्रमिक कार्यरत हैं।

प्रश्न 6.
क्या आप मानते हैं कि आर्थिक गतिविधियों की प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में विभाजन की उपयोगिता है? व्याख्या कीजिए कि कैसे?
उत्तर:
1. हाँ, हम मानते हैं कि आर्थिक गतिविधियों की प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में विभाजन की उपयोगिता है। क्षेत्रों पर आधारित अर्थव्यवस्था का वर्गीकरण यह प्रदर्शित करता है कि आर्थिक क्रियाएँ तीन प्रकार की होती हैं। प्राथमिक क्षेत्रक के अन्तर्गत वे गतिविधियाँ सम्मिलित होती हैं जो प्राकृतिक संसाधनों के प्रत्यक्ष उपयोग पर आधारित होती हैं; जैसे: कृषि, डेयरी, मत्स्य, वनारोपण आदि।

2. द्वितीयक क्षेत्रक के अन्तर्गत वे गतिविधियाँ सम्मिलित होती हैं जिसमें प्राकृतिक या प्राथमिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है; जैसे-कपास से कपड़ों का निर्माण।

3. तृतीयक क्षेत्रक के अन्तर्गत वे गतिविधियों सम्मिलित होती हैं जो प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मदद करती हैं; जैसे-परिवहन, बीमा, बैंकिंग आदि। यह वर्गीकरण अत्यधिक उपयोगी है क्योंकि इसके द्वारा हमें विकास के साथ-साथ व्यावसायिक स्थिति के बारे में भी ज्ञान प्राप्त होता है। इसके द्वारा हमें निम्नलिखित जानकारी प्राप्त होती है।

  1. आर्थिक क्रियाओं का स्पष्ट विभाजन,
  2. सकल घरेलू उत्पादन में विभिन्न क्षेत्रकों का योगदान,
  3. विभिन्न क्षेत्रकों में कार्यरत श्रमिकों की संख्या,
  4. विभिन्न क्षेत्रकों में उपलब्ध रोजगार का वितरण,
  5. विभिन्न क्षेत्रकों का राष्ट्रीय आय में योगदान।

प्रश्न 7.
इस अध्याय में आए प्रत्येक क्षेत्रक को रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) पर ही क्यों केन्द्रित करना चाहिए? क्या अन्य वाद पदों का परीक्षण किया जा सकता है? चर्चा करें।
उत्तर:
इस अध्याय में आर्थिक गतिविधियों को विभिन्न क्षेत्रकों में बाँटा गया है; जैसे-प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक, संगठित व असंगठित क्षेत्रक तथा निजी व सार्वजनिक क्षेत्रक। रोजगार बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह गरीबी जैसी अनेक आर्थिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। वहीं दूसरी तरफ सकल घरेलू उत्पाद राष्ट्रीय आय में प्रत्येक क्षेत्र के योगदान को ज्ञात करने में मदद करता है।

हमें अपनी वर्तमान तथा भविष्य की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए प्रत्येक क्षेत्रक को  रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) पर केन्द्रित होना चाहिए क्योंकि सकल घरेलू उत्पाद एवं प्रतिव्यक्ति आय कम होने पर अर्थव्यवस्था का विकास नहीं हो सकता है। अर्थव्यवस्था का विकास न होने की स्थिति में रोजगारों में वृद्धि नहीं होगी। बेरोजगारी व अल्प रोजगार की भयावह समस्या उत्पन्न होगी जो देश के लिए अनेक समस्याओं की जड़ होगी।

प्रश्न 8.
जीविका के लिए काम करने वाले अपने आस-पास के वयस्कों के सभी कार्यों की लम्बी सूची बनाइए। उन्हें आप किस तरीके से वर्गीकृत कर सकते हैं? अपने चयन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मेरे आस-पास रहने वाले लोग विभिन्न प्रकार के कार्य करते हैं। इनकी सूची निम्नलिखित है

  1. कृषि कार्य, पशुपालन, लकड़ी काटना, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन, वनों से कन्द-मूल-फल संग्रह करना आदि।
  2. विभिन्न वस्त्र मिलों में कार्य करना, कपड़ा बुनना, चीनी, गुड़ व खाण्डसारी उद्योग में काम करना, फर्नीचर उद्योग में काम करना। रेलवे, जहाजरानी एवं इंजीनियरिंग उद्योग में काम करना आदि।
  3. विभिन्न व्यवसायों में कार्यरत लोग, जैसे-अध्यापक, डॉक्टर, वकील, क्लर्क, सिपाही, टेलीफोन ऑपरेटर, बैंकिंग व बीमा कम्पनियों में कार्यरत लोग, व्यावसायिक परिवहन व संचार सेवाओं में काम करना।
  4. दैनिक मजदूरी पर कार्य करने वाले लोग।
  5. घरेलू नौकर।

उपरोक्त कार्यों में संलग्न लोगों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है

  1. प्राथमिक क्षेत्रक में कार्य करने वाले लोग
  2. द्वितीयक क्षेत्रक में कार्य करने वाले लोग
  3. तृतीयक क्षेत्रक में कार्य करने वाले लोग।
  4. में संगठित क्षेत्रक में कार्य करने वाले लोग तथा असंगठित क्षेत्रक में कार्य करने वाले लोग।

प्रश्न 9.
तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों से कैसे भिन्न है? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
अथवा
“तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ, प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता करती हैं।” इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
तृतीयक क्षेत्रक किस प्रकार प्राथमिक और द्वितीय क्षेत्रों के विकास में सहायता करता है? कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तृतीयक क्षेत्रक परिवहन, संचार, बीमा, बैंकिंग, भण्डारण व व्यापार आदि से सम्बन्धित सेवाएँ प्रदान करता है। तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं। तृतीयक क्षेत्रक अन्य दो क्षेत्रकों से भिन्न है। इसका कारण है कि अन्य दो क्षेत्रक (प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्रक) वस्तुएँ उत्पादित करते हैं जबकि यह क्षेत्रक अपने आप कोई वस्तु उत्पादित नहीं करता है बल्कि इस क्षेत्रक में सम्मिलित क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में माध्यम होती हैं अर्थात् ये प्राथमिक क्रियाएँ उत्पादन प्रक्रिया में मदद करती हैं।

उदाहरण के लिए प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं को थोक एवं खुदरा विक्रेताओं को बेचने के लिए ट्रैक्टर, ट्रकों एवं रेलगाड़ी द्वारा परिवहन करने की जरूरत पड़ती है। इन वस्तुओं को कभी-कभी गोदाम या शीतगृह में भण्डारण की भी आवश्यकता होती है। हमें उत्पादन एवं व्यापार में सुविधा के लिए कई लोगों से टेलीफोन से भी बातें करनी होती हैं या पत्राचार करना पड़ता है एवं कभी-कभी बैंक से पैसा भी उधार लेना पड़ता है। इस प्रकार परिवहन, भण्डारण, संचार एवं बैंकिंग प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में सहायक होते हैं। अतः स्पष्ट है कि तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ, प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता करती हैं।

JAC Class 10 Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

प्रश्न 10.
प्रच्छन्न बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं? शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों से उदाहरण देकर व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रच्छन्न बेरोजगारी या छिपी हुई बेरोजगारी के अन्तर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं परन्तु वास्तव में बेरोजगार होते हैं। इस व्यवस्था में लोग आवश्यकता से अधिक संख्या में लगे होते हैं। यदि उन्हें इस व्यवस्था से हटाकर किसी अन्य व्यवस्था में स्थानान्तरित कर दिया जाए तो भी उत्पादन प्रभावित नहीं हो, तो यह स्थिति प्रच्छन्न बेरोजगारी की स्थिति कही जायेगी।
इस प्रकार प्रच्छन्न बेरोजगारी से आशय किसी विशेष आर्थिक क्रिया में उत्पादन हेतु आवश्यकता से अधिक मात्रा में श्रमिकों के लगे होने से है।

1. शहरी क्षेत्रों के उदाहरण:
प्रच्छन्न बेरोजगारी शहरी क्षेत्रों में प्रायः छोटी फुटकर दुकानों एवं छोटे व्यवसायों में लगे परिवारों की स्थिति से भी मापी जाती है। एक शहरी क्षेत्र की एक दुकान में जिसमें केवल दो लोगों की आवश्यकता है, यदि मालिक व 3 नौकर कार्य करते हैं। इसमें 2 नौकर प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार हैं क्योंकि इनकी दुकान में आवश्यकता ही नहीं है।

2. ग्रामीण क्षेत्रों के उदाहरण:
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रच्छन्न बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पायी जाती है। उदाहरण के लिए, किसी किसान के पास 3 हेक्टेयर का एक छोटा-सा खेत है जिसमें कार्य करने के लिए दो लोग पर्याप्त हैं परन्तु उस किसान के परिवार के सभी सात सदस्य इस खेत में लगे रहते हैं। यदि इस कार्य से 5 लोगों को हटा लिया जाए तो कृषि उत्पादन में कोई कमी नहीं आएगी। इस तरह 5 लोग प्रच्छन्न बेरोजगार की श्रेणी में आएंगे क्योंकि उनकी खेत में आवश्यकता ही नहीं है।

प्रश्न 11.
खुली बेरोजगारी और प्रच्छन्नं बेरोजगारी के बीच विभेद कीजिए।
उत्तर:
खली बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच निम्नलिखित विभेद (अन्तर) हैं

खुली बेरोजगारी प्रच्छन्न बेरोजगारी
1. इसके अन्तर्गत एक श्रमिक काम करने के लिए तैयार होता है, परन्तु उसे काम नहीं मिलता। 1. इसके अन्तर्गत श्रमिक काम करता है परन्तु यदि उसे इस काम से हटा दिया जाए तो उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् कोई कमी नहीं आती है।
2. यह स्थाई प्रकृति की होती है। 2. यह अस्थाई प्रकृति की होती है।
3. इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः देश के औद्योगिक 3. इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पाई जाती क्षेत्रों में पायी जाती है।
4. यह बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन खेतिहर 4. यह बेरोजगारी शहरी क्षेत्रों में छोटी-छोटी दुकानों एवं मजदूरों में भी पाई जाती है। छोटे व्यवसायों में लगे परिवारों में भी पाई जाती है।

प्रश्न 12.
“भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है।” क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर:
नहीं, मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है। वास्तव में वर्ष 1973-74 और 2013-14 के बीच चालीस वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। वर्ष 2013-14 में भारत में प्राथमिक क्षेत्रक को प्रतिस्थापित करते हुए सी. क्षेत्रक सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्रक के रूप में उभरा है। तृतीयक क्षेत्रक का योगदान निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट

1. भारत सरकार की नई आर्थिक नीति से देश में तृतीयक क्षेत्रक का तेजी से विस्तार हुआ है। देश में आधारभूत सुविधाओं का विस्तार हो रहा है, शिक्षा, आवास एवं स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि हुई है, बैंकिंग, परिवहन व संचार के विस्तार पर बल दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त अनेक नवीन सेवाएँ; जैसे-इंटरनेट कैफे, ए. टी. एम. बूथ, कॉल सेन्टर, सॉफ्टवेयर कम्पनी आदि में कार्यरत लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

2. सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान लगातार बढ़ रहा है। अब तृतीयक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक की बजाय भारत में सर्वाधिक उत्पादक क्षेत्रक बन गया है। सन् 1973-74 में सकल घरेलू उत्पाद में तृतीयक क्षेत्रक का हिस्सा लगभग 48 प्रतिशत था जो 2013-14 में बढ़कर लगभग 67 प्रतिशत हो गया है। यद्यपि 1973-74 से 2013-14 के मध्य के 40 वर्षों में तीनों क्षेत्रों के उत्पादन में वृद्धि हुई परन्तु तृतीयक क्षेत्रक में यह वृद्धि सर्वाधिक रही है।

3. रोजगार में तृतीयक क्षेत्रक का प्रतिशत भी तीव्र गति से बढ़ा है। सन् 1977-78 में इसका योगदान 18 प्रतिशत था जो सन् 2017-18 में बढ़कर 31 प्रतिशत हो गया। यद्यपि रोजगार की दृष्टि से तृतीयक क्षेत्रक का प्रतिशत योगदान बहुत अधिक नहीं है, परन्तु इसमें वृद्धि दर्ज की गयी है।

4. तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं; जैसे-परिवहन, भण्डारण, संचार, बैंक सेवाएँ एवं व्यापार तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियों के उदाहरण हैं। ये गतिविधियाँ वस्तुओं के स्थान पर सेवाओं का सृजन करती हैं। अतः कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

प्रश्न 13.
“भारत में सेवा क्षेत्रक दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करता है।”ये लोग कौन हैं?
उत्तर:
भारत में सेवा क्षेत्रक को दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करते हैं। ये लोग हैं-
1. प्रथम वर्ग में वे लोग आते हैं जिनकी सेवाएँ प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता करती हैं। यह सहायता प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों ही क्षेत्रकों को प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिए-परिवहन, भण्डारण, संचार, बैंकिंग, व्यापार आदि क्षेत्रकों में नियोजित लोग।

2. दूसरे वर्ग में कुछ ऐसे सेवा प्रदाता आते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करते। उदाहरण के लिए-अध्यापक, डॉक्टर, वकील, धोबी, मोची, नाई आदि। वर्तमान में सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नवीन सेवाएँ; जैसे-इन्टरनेट कैफे, ए. टी. एम. बूथ, कॉलसेन्टर, सॉफ्टवेयर कम्पनी आदि भी महत्त्वपूर्ण हो गई हैं, जो इसी वर्ग में सम्मिलित

प्रश्न 14.
“असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है।” क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर:
हाँ, मैं इस विचार से सहमत हूँ कि असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं:

  1. इस क्षेत्रक में श्रमिकों के संरक्षण के लिए बनाये गये सरकारी नियमों एवं विनियमों का पालन नहीं होता है।
  2. असंगठित क्षेत्रक में बहुत कम वेतन/मजदूरी दी जाती है और वह भी नियमित रूप से नहीं दी जाती है।
  3. इस क्षेत्रक में मजदूर सामान्यतः अशिक्षित, अनभिज्ञ व असंगठित होते हैं, इसलिए वे नियोक्ता से मोल-भाव कर अच्छी मजदूरी सुनिश्चित करने की स्थिति में नहीं होते हैं।
  4. इस क्षेत्रक में अतिरिक्त समय में काम तो लिया जाता है परन्तु अतिरिक्त वेतन नहीं दिया जाता है।
  5. इस क्षेत्रक में सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है।
  6. इस क्षेत्रक में रोजगार सुरक्षा भी नहीं होती है। नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों को बिना किसी कारण काम से हटाया जा सकता है।
  7. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कुछ मौसमों में जब काम नहीं होता है, तो कुछ लोगों को काम से छुट्टी दे दी जाती है। बहुत से लोग नियोक्ता की पसन्द पर निर्भर होते हैं।

प्रश्न 15.
अर्थव्यवस्था में गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर संगठित एवं असंगठित क्षेत्रकों में वर्गीकृत की जाती हैं
1. संगठित क्षेत्रक:
संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य-स्थान आते हैं, जहाँ रोजगार की अवधि नियत होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है। ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं एवं उन्हें राजकीय नियमों व विनियमों का अनुपालन करना होता है। इन नियमों व विनियमों का अनेक विधियों; जैसे-कारखाना अधिनियम की निश्चित न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम आदि में उल्लेख किया गया है।

यह क्षेत्रक संगठित क्षेत्रक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसकी कुछ औपचारिक प्रक्रिया एवं क्रियाविधि होती है। इस क्षेत्रक के अन्तर्गत रोजगार सुरक्षित होता है, काम के घण्टे निश्चित होते हैं, अतिरिक्त कार्य के लिए अतिरिक्त वेतन मिलता है। कर्मचारियों को कार्य के दौरान एवं सेवानिवृति के पश्चात् भी अनेक सुविधाएँ मिलती हैं।

2. असंगठित क्षेत्रक:
असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत वे छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयाँ सम्मिलित होती हैं जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं। यद्यपि इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं परन्तु उनका पालन नहीं होता है। ये अनियमित एवं कम वेतन वाले रोजगार होते हैं। इनमें सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी आदि का कोई प्रावधान नहीं होता है और न ही रोजगार की सुरक्षा। श्रमिकों को बिना किसी कारण काम से हटाया जा सकता है।

प्रश्न 16.
संगठित एवं असंगठित क्षेत्रकों में विद्यमान रोजगार परिस्थितियों की तुलना करें।
उत्तर:
संगठित एवं असंगठित क्षेत्रकों में विद्यमान रोजगार परिस्थितियों की तुलना निम्नलिखित प्रकार से है

संगठित क्षेत्रक की रोजगार परिस्थितियाँ असंगठित क्षेत्रक की रोजगार परिस्थितियाँ
1. इस क्षेत्रक के उद्योगों एवं प्रतिष्ठानों को सरकार द्वारा 1. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत दुकानों व प्रतिष्ठानों को सरकार पंजीकृत कराना अवश्यक होता है। से पंजीकृत कराना अनिवार्य नहीं है।
2. यह क्षेत्रक सरकारी नियमों व उपनियमों के अधीन कार्य करता है। ये नियम व विनियम सभी नियोक्ताओं कर्मचारियों व श्रमिकों पर समान रूप से लागू होते हैं। 2. इस क्षेत्रक के नियम व विनियम तो होते हैं परन्तु उनका , अनुपालन नहीं किया जाता है।
3. इस क्षेत्रक में काम करने की अवधि व काम के घण्टे नहीं होते हैं। 3. इस क्षेत्रक में काम करने की अवधि व घण्टे निश्चित निश्चित होते हैं।
4. इस क्षेत्रक में कार्य करने वाले कर्मचारियों, श्रमिकों को मासिक वेतन प्राप्त होता है। 4. इस क्षेत्रक में काम करने वाले कर्मचारी/श्रमिक दैनिक मजदूरी प्राप्त करते हैं।
5. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारी मासिक वेतन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के भत्ते, समर्पित अवकाश का भुगतान, प्रोविडेंट फंड, वार्षिक वेतन वृद्धि आदि सुविधाएँ प्रा: करते हैं। 5. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत श्रमिकों को दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त कोई अन्य भत्ता नहीं मिलता है।
6. इस क्षेत्रक के न्तर्गत कर्मचारियों/ श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्राप्त होती है। 6. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कार्यरत कर्मचारियों/ श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है।
7. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों/श्रमिकों को नियोक्ता द्वारा एक नियुक्ति पत्र दिया जाता है जिसमें काम की सभी शर्ते एवं दशाएँ वर्णित होती हैं। 7. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों/श्रमिकों को कोई औपचारिक नियुक्ति पत्र नहीं दिया जाता है।
8. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों को कार्यस्थल पर स्वच्छ पानी, स्वास्थ्य एवं कार्य का सुरक्षित वातावरण आदि सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। 8. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों को इस प्रकार की सुविधाओं का लगभग अभाव देखने को मिलता है।
9. इस क्षेत्रक में श्रम संघ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः श्रमिकों का शोषण नहीं होता है। 9. इस क्षेत्रक में श्रम संघों के अभाव के कारण श्रमिकों का अत्यधिक शोषण होता है।

प्रश्न 17.
मनरेगा (महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) 2005 (MNREGA, 2005) के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को काम का अधिकार’ क्यों कहा गया है?
उत्तर:
भारत की केन्द्र सरकार ने वर्ष 2005 में भारत के चयनित 200 जिलों (अब 625 जिलों) के ग्रामीण क्षेत्रों में ‘काम का अधिकार’ लागू करने के लिए एक कानून बनाया है। इस कानून को महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम, 2005 कहते हैं। इस कानून को बनाने का उद्देश्य उन लोगों को जो कार्य करने योग्य हैं तथाः जिन्हें कार्य की आवश्यकता है, सरकार द्वारा एक वर्ष में 100 दिनों का रोजगार का आश्वासन देना है।

यदि सरकार इस उद्देश्य की प्राप्ति में असफल रहती है तो वह लोगों को बेरोजगार भत्ता देगी। अतः इसे ‘काम का अधिकार’ अधिनियम भी कहते हैं। इस कानून को वर्तमान में देश के समस्त जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में लागू कर दिया गया है तथा इसका नाम बदलकर महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) कर दिया गया है। इस अधिनियम के अन्तर्गत इस तरह के कार्यों को वरीयता दी गयी है जिनमें भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।

JAC Class 10 Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

प्रश्न 18.
अपने क्षेत्र से उदाहरण लेकर सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कार्यों की तुलना तथा वैषम्य कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कार्यों की तुलना तथा वैषम्य निम्नांकित प्रकार से है

सार्वजनिक क्षेत्रक निजी क्षेत्रक
1. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत अधिकांश परिसम्पत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध कराती है; जैसे-डाकघर, भारतीय रेलवे आकाशवाणी, इण्डियन एयरलाइन्स आदि। 1. इस क्षेत्रक में परिसम्पत्तियों पर स्वामित्व एवं सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी एकल व्यक्ति या कम्पनी के हाथों में होती है; जैसे-मित्तल पब्लिकेशन्स, टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड आदि।
2. सार्वजनिक क्षेत्रक का उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण में करना होता है। 2. निजी क्षेत्रक की गतिविधियों का उद्देश्य लाभ अर्जित वृद्धि करना होता है।
3. इस क्षेत्रक में उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी समस्त निर्णय सरकार द्वारा निर्धारित नीति के तहत लिये जाते हैं। 3. इस क्षेत्रक में उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी निर्णय निजी स्वामियों अथवा प्रबन्धकों द्वारा लिए जाते हैं।
4. सरकार समाज के लिए आवश्यक सार्वजनिक परियोजनाओं में बहुत अधिक राशि का व्यय करती है। जैसे-सड़क पुल, नहर, बन्दरगाह आदि का निर्माण करना। 4. निजी क्षेत्रक अपने लाभ के उद्देश्य के कारण बहुत अधिक राशि व्यय करने वाली परियोजनाओं में निवेश नहीं करता
5. कई प्रकार की गतिविधियों को पूरा करना सरकार का प्राथमिक दायित्व होता है; जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, विद्युत आदि। इसलिए सरकार बड़ी संख्या में विद्यालय,महाविद्यालय, अस्पताल, विद्युत परियोजनाएँ आदि चलाती है। 5. निजी क्षेत्रक का ऐसा किसी प्रका। कोई दायित्व नहीं होता है। यदि वह ऐसी सेवाएँ प्रदान करता है तो इसके लिए वह राशि वसूलता है। उदाहरण के लिए, हमारे क्षेत्र में निजी पब्लिक स्कूल, सरकारी स्कूल की तुलना में बहुत अधिक फीस लेते हैं।

वैषम्य:
1. कुछ गतिविधियाँ ऐसी हैं, जिन्हें सरकारी समर्थन की जरूरत पड़ती है; जैसे-उत्पादन-मूल्य पर बिजली की बिक्री से बहुत से उद्योगों में वस्तुओं की उत्पादन लागत में वृद्धि हो सकती है। जिससे अनेक इकाइयाँ बंद हो सकती हैं। यहाँ सरकार लागत का कुछ अंश वहन कर सकती है।
2. इसी प्रकार, भारत सरकार किसानों से उचित मूल्य पर गेहूँ और चावल खरीदकर गोदामों में भण्डारण कर, राशन-दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को कम मूल्य पर बेचती है।

प्रश्न 19.
अपने क्षेत्र से एक-एक उदाहरण देकर निम्न तालिका को पूरा कीजिए और चर्चा कीजिए।

सुव्यवस्थित प्रबंध वाले संगठन कुव्यवस्थित प्रबंध वाले संगठन
सार्वजनिक क्षेत्रक
निजी क्षेत्रक

उत्तर:

सुव्यवस्थित प्रबंध वाले संगठन कुव्यवस्थित प्रबंध वाले संगठन
निजी क्षेत्रक पंजाब नेशनल बैंक, भरतपुर राज स्थान राज्य पथ परिवहन निगम आगार-भरतपुर
सार्वजनिक क्षेत्रक सेण्ट सोफिया विद्यालय, मथुरा साहिल मिष्ठान भण्डार, मथुरा

नोट विद्यार्थी अपने क्षेत्र का उदाहरण ले सकते हैं।

प्रश्न 20.
सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियों के कुछ उदाहरण दीजिए और व्याख्या कीजिए कि सरकार द्वारा इन गतिविधियों का कार्यान्वयन क्यों किया जाता है ?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियों के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  1. भारतीय रेलवे
  2. डाकघर
  3. भारत संचार निगम लिमिटेड
  4. भारतीय जीवन बीमा निगम
  5. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान
  6. प्रसार भारती,
  7. भारतीय खाद्य निगम।

ऐसी अनेक वस्तुएँ व सेवाएँ होती हैं जिनकी समाज में सभी सदस्यों को आवश्यकता होती है। सरकार के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह उनकी उचित कीमतों पर आपूर्ति बनाये रखे। निजी क्षेत्रक लाभ प्रेरणा से निर्देशित होता है। अतः वह इन सेवाओं की उचित कीमत पर आपूर्ति नहीं कर पाता है।

इसके अतिरिक्त उन क्षेत्रों में विशाल निवेश की जरूरत होती है जो निजी क्षेत्रक की क्षमता से बाहर होता है। ऐसे प्रमुख क्षेत्रों में सड़क, पुल, रेलवे, बाँध आदि का निर्माण है। इन पर किये जाने वाले भारी व्यय को सरकार स्वयं वहन करती है एवं जनसामान्य के लिए इन सुविधाओं को सुनिश्चित करती है। इन सब कारणों से सरकार द्वारा इन गतिविधियों का कार्यान्वयन किया जाता है।

प्रश्न 21.
व्याख्या कीजिए कि किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक कैसे योगदान करता है?
उत्तर:
किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक निम्नलिखित प्रकार से योगदान करता है

  1. देश के सुदृढ़ औद्योगिक आधार के निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्रक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है,
  2. सार्वजनिक क्षेत्रक के विस्तार से रोजगार के अवसरों में पर्याप्त वृद्धि होती है,
  3. सार्वजनिक क्षेत्रक अधिक पूँजी निवेश द्वारा पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि करने में सहायक है,
  4. सार्वजनिक क्षेत्रक विकास के लिए वित्तीय संसाधन जुटाता है,
  5. यह क्षेत्रक सस्ती दर पर आसानी से वस्तुओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करता है,
  6. यह सन्तुलित प्रादेशिक विकास को प्रोत्साहित करता है,
  7. यह आधारभूत संरचनाओं के निर्माण एवं विस्तार द्वारा तीव्र आर्थिक विकास को प्रेरित करता है,
  8. यह अर्थव्यवस्था पर निजी एकाधिकार को नियन्त्रित करता है,
  9. यह लघु व कुटीर स्तरीय उद्योगों को प्रोत्साहित करता है,
  10. यह आय व सम्पत्ति की समानता लाता है,
  11. देश के कुछ सार्वजनिक उद्यम विदेशी आयातों पर हमारी निर्भरता को कम करने में सहायक रहे हैं।

प्रश्न 22.
असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को निम्नलिखित मुद्दों पर संरक्षण की आवश्यकता है-मजदूरी, सुरक्षा और स्वास्थ्य। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निःसन्देह असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को मजदूरी, सुरक्षा व स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर संरक्षण की आवश्यकता है।

1. मजदूरी:
असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों को बहुत कम मजदूरी दी जाती है। उनका प्रायः शोषण किया जाता है। उन्हें दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त कोई भत्ता नहीं दिया जाता है। न ही उनको वार्षिक वेतन वृद्धि दी जाती है। इसके समाधान हेतु राज्य व केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के समान मजदूरी दी जानी चाहिए एवं मजदूरी के अतिरिक्त उन्हें अन्य भत्ते; जैसेपरिवहन, शिक्षा, चिकित्सा एवं आवास भी दिये जाने चाहिए। उनकी मजदूरी में वार्षिक वेतन वृद्धि भी की जानी चाहिए।

2. सुरक्षा:
असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों को रोजगार की सुरक्षा नहीं होती है, उन्हें अकारण किसी भी समय काम छोड़ने के लिए कहा जा सकता है। इस क्षेत्रक में श्रमिक सामान्यतः ईंट, खदान, पटाखे जैसे अति जोखिम भरे उद्योगों में काम करते हैं इसलिए उन्हें सुरक्षा की अति आवश्यकता होती है। सभी श्रमिकों को रोजगार की सुरक्षा होनी चाहिए। कोई भी नियोक्ता उन्हें मनमाने रूप से नौकरी से बाहर न कर सके।

नौकरी से निकालने की प्रक्रिया नियमानुसार होनी चाहिए तथा श्रमिकों को इसके लिए उचित क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए। कारखानों के अन्दर काम करते समय अथवा काम पर आते और काम समाप्त करके घर लौटते समय होने वाली किसी भी दुर्घटना के लिए उन्हें क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए जैसा कि राज्य एवं केन्द्र सरकार करती है।

3. स्वास्थ्य:
असंगठित क्षेत्रक के श्रमिक कम मजदूरी की प्राप्ति के कारण पौष्टिक भोजन नहीं ले पाते हैं परिणामस्वरूप उनकी स्वास्थ्य स्थिति बहुत कमजोर होती है। अतः उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है। इस हेतु सभी श्रमिकों व कर्मचारियों को सेवाकाल के दौरान एवं सेवानिवृत्ति के पश्चात् स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए; जैसे-शिक्षकों, डॉक्टरों, लिपिकों आदि की सेवा सुविधाएँ, चिकित्सा सुविधाएँ आदि।

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प्रश्न 23.
अहमदाबाद में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि नगर के 15,00,000 श्रमिकों में से 11,00,000 श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में काम करते थे। वर्ष 1997-98 में नगर की कुल आय 600 करोड़ थी। इसमें से 320 करोड़ रुपये संगठित क्षेत्रक से प्राप्त होती थी। इस आँकड़े को तालिका में प्रदर्शित कीजिए। नगर में और अधिक रोजगार सृजन के लिए किन तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए।
उत्तर:
तालिका: 1997-98 में अहमदाबाद में संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में आय एवं रोजगार

अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक श्रमिकों की संख्या आय (करोड़ रुपये में)
संगठित 4,00,000 320
असंगठित 11,00,000 280
कुल 15,00,000 600

उपरोक्त तालिका से प्रदर्शित होता है कि अधिकांश श्रमिक (11,00,000) असंगठित क्षेत्रक में कार्य करते हैं, जिनके द्वारा अर्जित आय केवल 280 करोड़ रुपये है। जबकि 4,00,000 श्रमिक संगठित क्षेत्रक में कार्य करते हैं, जिनके द्वारा 320 करोड़ रुपये आय के रूप में प्राप्त किये जाते हैं जो कि असंगठित क्षेत्रक की आय से अधिक है। नगर में और अधिक रोजगार सृजन के लिए निम्नलिखित तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए:

  1. सरकार द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों के अतिरिक्त कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए,
  2. सरकार को कम ब्याज दरों के साथ-साथ आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराना चाहिए जिससे लोग अपना व्यवसाय प्रारम्भ कर सकें,
  3. उत्पादन के क्षेत्र में पूँजी गहन तकनीकों के स्थान पर श्रम गहन तकनीकों को अपनाया जाना चाहिए इससे निश्चय ही रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न होंगे,
  4. प्रत्येक क्षेत्र में निर्माण को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। सड़क, पुल, सम्पर्क मार्ग, विद्यालय भवन, आवासीय बस्तियों के निर्माण, व्यावसायिक भवनों के निर्माण एवं अस्पताल निर्माण आदि. पर निवेश किया जाना चाहिए,
  5. तृतीयक क्षेत्रक का पर्याप्त मात्रा में विकास किया जाना चाहिए। बैंक, बीमा, डाकघर, परिवहन, संचार, स्वास्थ्य, चिकित्सा, शैक्षणिक सेवाएँ एवं सार्वजनिक पार्क, बाजार व मनोरंजन केन्द्र आदि की पर्याप्त मात्रा में स्थापना की जानी चाहिए।

प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका में तीन क्षेत्रकों का सकल घरेलू उत्पाद (स. घ. उ.) रुपए (करोड़) में दिया गया

वर्ष प्राथमिक द्वितीयक तृतीयक
2000 52,000 48,500 1,33,500
2013 8,00,500. 10,74,000 38,68,000

(क) वर्ष 2000 एवं 2013 के लिए स. घ. उ. में तीनों क्षेत्रकों की हिस्सेदारी की गणना कीजिए।
(ख) इन आँकड़ों को अध्याय में दिए आलेख-2 के समान एक दण्ड-आलेख के रूप में प्रदर्शित कीजिए।
(ग) दण्ड-आलेख से हम क्या निष्कर्ष प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
(क) अग्र तालिका वर्ष 2000 एवं 2013 के लिए स. घ. उ. में तीनों की हिस्सेदारी को दर्शाती है

वर्ष जी. डी. पी. में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी (प्रतिशत में) जी. डी. पी में द्वितीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी (प्रतिशत में)
2000 22.22 20.73
2013 13.94 18.70
  1. वर्ष 2000 में क्षेत्रकों की स. घ. उ. में हिस्सेदारी
    तीनों क्षेत्रकों की स. घ. उ. में कुल हिस्सेदारी = (52,000 + 48,500 + 1,33,500)
    = 2,34,000

प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \(\frac{52,000}{2,34,000}\) × 100
= 22.22%

द्वितीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \(\frac{48,500}{2,34,000} \) × 100
= 20.73%

ततीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \(\frac{1,33,500}{2,34,000}\) × 100
= 57.05%

2. वर्ष 2013 में क्षेत्रकों की स. घ. उ. में हिस्सेदारी
तीनों क्षेत्रकों की स. घ. उ. में कुल हिस्सेदारी = (8,00,500 + 10,74,000 + 38,68,000)
= रु. 57,42,500 करोड़
प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \( \frac{8,00,500}{57,42,500}\) × 100
= 13.94%

द्वितीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \(\frac{10,74,900}{57,42,500}\) × 100
= 18.70%

तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \(\frac{38,68,000}{57,42,500}\) × 100
= 67.36%

(ख) दण्ड आरेख द्वारा प्रदर्शन
JAC Class 10 Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 1

(ग) दण्ड आरेख से हम निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैं.
1. सन् 2000 में स. घ. उ. में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान सबसे अधिक था, प्राथमिक क्षेत्रक का दूसरा स्थान था जबकि द्वितीयक क्षेत्रक का योगदान सबसे कम था।

2. सन् 2013 में स्थितियों में परिवर्तन हुआ। इस वर्ष स. घ. उ. में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान सर्वाधिक था, द्वितीय स्थान द्वितीयक क्षेत्रक का था जबकि प्राथमिक क्षेत्रक का योगदान सबसे कम था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि स. घ. उ. में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी बहुत कम व द्वितीयक क्षेत्रक की कम हुई है जबकि इसमें तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है।

पाठगत एवं क्रियाकलाप आधारित प्रश्न

आओ-जन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 21)

प्रश्न 1.
विभिन्न क्षेत्रकों की परस्पर-निर्भरता दिखाते हुए तालिका 2.1 को भरें।
उत्तर:
तालिका 2.1 आर्थिक गतिविधियों के उदाहरण

उदाहरण यह क्या प्रदर्शित करता है?
1. कल्पना करें कि यदि किसान किसी चीनी मिल को गन्ना बेचने से इंकार कर दे, तो क्या होगा। मिल बंद हो जायेगी। 1. यह द्वितीयक या औद्योगिक क्षेत्रक का उदाहरण है, जो प्राथमिक क्षेत्रक पर निर्भर है।
2. कल्पना करें कि यदि कम्पनियाँ भारतीय बाज़ार से कपास नहीं खरीदतीं और अन्य देशों से कपास आयात करने का निर्णय करती हैं, तो कपास की खेती का क्या होगा ? भारत में कपास है। की खेती कम लाभकारी रह जाएगी और यदि किसान शीघ्रता से अन्य फसलों की ओर उन्मुख नहीं होते हैं, तो वे दिवालिया भी हो सकते हैं तथा कपास की कीमत गिर जायेग 2. यह क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्रक का उदाहरण है। यह क्षेत्र पूर्ण रूप से द्वितीयक क्षेत्रक पर निर्भरता को प्रदर्शित करता है।
3. किसान ट्रैक्टर, पम्पसेट, बिजली, कीटनाशक और उर्वरक जैसी अनेक वस्तुएँ खरीदते हैं। कल्पना करें कि यदि उर्वरकों और पम्पसेटों की कीमत बढ़ जाती है, तो क्या होगा ? खेती पर लागत बढ़ जायेगी और किसानों का लाभ कम हो जायेगा। 3. यह प्राथमिक क्षेत्रक की द्वितीयक क्षेत्रक पर निर्भरता को दर्शाता है।
4. औद्योगिक और सेवा क्षेत्रक में काम करने वाले लोगों को भोजन की आवश्यकता होती है। कल्पना करें कि यदि ट्रांसपोर्टरों ने हड़ताल कर दी है और ग्रामीण क्षेत्रों से सब्जियाँ, दूध इत्यादि ले जाने से इंकार कर दिया, तो क्या होगा ? शहरी क्षेत्रों में भोजन की कमी हो जाएगी और किसान अपने उत्पाद बेचने में असमर्थ हो जायेंगे। 4. यह सभी क्षेत्रकों की एक-दूसरे पर निर्भरता को दर्शाता है।

प्रश्न 2.
पुस्तक में वर्णित उदाहरणों से भिन्न उदाहरणों के आधार पर प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों के अंतर की व्याख्या करें।
उत्तर:
पुस्तक में वर्णित उदाहरणों से भिन्न उदाहरणों के आधार पर प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में निम्नलिखित अन्तर हैं

1. प्राथमिक क्षेत्रक:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। उदाहरण: गेहूँ की खेती, मछली पालन, वनोपज इकट्ठा करना, खानों से खनिजों का उत्खनन, लकड़ी काटना, पशुपालन आदि।

2. द्वितीयक क्षेत्रक:
इस क्षेत्रक के अन्तर्गत वे क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं जिनमें प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण: फर्नीचर उद्योग, कागज निर्माण उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, लोहा व इस्पात उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग आदि।

3. तृतीयक क्षेत्रक:
इसके अन्तर्गत वे क्रियाएँ आती हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मदद करती हैं। इसे सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं। उदाहरण: अध्यापक, डॉक्टर, वकील, रेलवे, दूरसंचार व दुकानदार, व्यापार शिक्षा, स्वास्थ्य आदि।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित व्यवसायों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में विभाजित करें:
दर्जी, पुजारी, कुम्हार, टोकरी बुनकर, कूरियर पहुँचाने वाला, मधुमक्खी पालक, फूल की खेती करने वाला, दियासलाई कारखाना में श्रमिक, अंतरिक्ष यात्री, दूध विक्रेता, महाजन,
कॉल सेंटर का कर्मचारी, मछुआरा, माली।
उत्तर:
व्यवसायों की इस सूची को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रकों में निम्नलिखित रूप से विभाजित किया जा सकता है

  1. प्राथमिक क्षेत्रक फूलों की खेती करने वाला, मछुआरा, माली, मधुमक्खी पालक।
  2. द्वितीयक क्षेत्रक: दियासलाई कारखाना में श्रमिक, कुम्हार, टोकरी बुनकर, दर्जी।
  3. तृतीयक क्षेत्रक: दूध विक्रेता, पुजारी, कूरियर पहुँचाने वाला, महाजन, अंतरिक्ष यात्री, कॉल सेंटर का कर्मचारी।

JAC Class 10 Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

प्रश्न 4.
विद्यालय में छात्रों को प्रायः प्राथमिक और द्वितीयक अथवा वरिष्ठ और कनिष्ठ वर्गों में विभाजित किया जाता है। इस विभाजन की कसौटी क्या है ? क्या आप मानते हैं कि यह विभाजन उपयुक्त है? चर्चा करें।
उत्तर:
विद्यालय में छात्रों को प्रायः प्राथमिक और द्वितीयक अथवा वरिष्ठ और कनिष्ठ वर्गों में विभाजित किया जाता है। इस विभाजन की कसौटी उनके शैक्षिक स्तर, आयु वर्ग, मानसिक विकास आदि के स्तर पर निर्भर है। कक्षा एक से सातवीं तक के बच्चों को कनिष्ठ तथा आठवीं कक्षा से बारहवीं कक्षा के बच्चों को वरिष्ठ कहा जाता है। हाँ, मैं यह मानता हूँ कि यह एक उपयुक्त वर्गीकरण है क्योंकि वरिष्ठ तथा कनिष्ठ विद्यार्थियों का शैक्षिक स्तर, आयुवर्ग एवं मानसिक विकास का स्तर भिन्न-भिन्न होता है।

(पृष्ठ संख्या 23)

प्रश्न 1.
विकसित देशों का इतिहास क्षेत्रकों में हुए परिवर्तन के सम्बन्ध में क्या संकेत करता है ?
उत्तर:
अधिकांश विकसित देशों के इतिहास के माध्यम से यह संकेत मिलता है कि विकास की प्राथमिक अवस्थाओं में प्राथमिक क्षेत्रक ही आर्थिक सक्रियता का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक रहा है। जैसे-जैसे कृषि की विधियों में परिवर्तन हुआ, कृषि क्षेत्रक पहले की अपेक्षा अधिक अनाज उत्पादित करने लगा। धीरे धीरे यह क्षेत्रक समृद्ध होने लगा। प्रारम्भ में अधिकांश लोग इसी क्षेत्रक में कार्यरत थे। धीरे-धीरे विनिर्माण की नई विधियाँ आईं तो कारखानों की स्थापना और विस्तार होने लगा।

अधिकांश लोग अब कारखानों में काम करने लगे लोग कारखानों में सस्ती दरों पर उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करने लगे। इस प्रकार धीरेधीरे कुल उत्पादन एवं रोजगार की दृष्टि से द्वितीयक क्षेत्रक का महत्त्व बढ़ गया। विगत 100 वर्षों में विकसित देशों में द्वितीयक क्षेत्रक से तृतीयक क्षेत्रक की ओर पुनः बदलाव हुआ है। अब सेवा क्षेत्रक कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है। अधिकांश श्रमजीवी लोग सेवा क्षेत्रक में ही नियोजित हैं। विकसित देशों में यही सामान्य लक्षण देखा गया है।

प्रश्न 2.
अव्यवस्थित वाक्यांश से स. घ. उ. की गणना हेतु महत्त्वपूर्ण पहलुओं को व्यवस्थित एवं सही करें। उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की गणना करने के लिए हम उनकी संख्याओं को जोड़ देते हैं। हम विगत पाँच वर्षों में उत्पादित सभी वस्तुओं की गणना करते हैं। चूँकि हमें किसी चीज़ को छोड़ना नहीं चाहिए इसलिए हम इन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का योगफल प्राप्त करते हैं।
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्यांश का व्यवस्थित एवं सही क्रम निम्न प्रकार से होगा

  1. उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की गणना करने के लिए हम उनकी संख्याओं को जोड़ देते हैं।
  2. चूँकि हमें किसी चीज को छोड़ना नहीं चाहिए इसलिए हम इन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का योगफल प्राप्त करते
  3. हम विगत पाँच वर्षों में उत्पादित सभी वस्तुओं की गणना करते हैं।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या 24)

आरेख का अवलोकन करते हुए निम्नलिखित का उत्तर दें आलेख-प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक द्वारा स. घ. उ.
JAC Class 10 Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 2

प्रश्न 1. 1
973 – 74 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक कौन था?
उत्तर:
सन् 1973 – 74 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक था।

प्रश्न 2.
2013 – 14 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक कौन था?
उत्तर:
सन् 2013 – 14 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक तृतीयक क्षेत्रक था।

प्रश्न 3.
क्या आप बता सकते हैं कि चालीस वर्षों में किस क्षेत्रक में सबसे अधिक संवृद्धि हुई ?
उत्तर:
पिछले चालीस वर्षों में तृतीयक क्षेत्रक में सबसे अधिक संवृद्धि हुई।

प्रश्न 4.
2013 – 14 में भारत का जी.डी.पी. क्या है?
उत्तर:
सन् 2013 – 14 में भारत का जी.डी.पी. 5,70,000 करोड़ रुपये है।

प्रश्न 5.
सन् 1973 – 74 और 2013 – 14 के बीच तुलना क्या प्रदर्शित करती है? इससे आप क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं? विचार करें।
उत्तर:
सन् 1973 – 74 और 2013 – 14 के बीच तुलना यह प्रदर्शित करती है कि भारत में तीनों क्षेत्रकों में उत्पादन बढ़ा है परन्तु तीनों क्षेत्रकों में से सबसे अधिक उत्पादन तृतीयक क्षेत्रक में ही बढ़ा है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भारत में तृतीयक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक से आगे तीव्र गति से बढ़ते हुए सबसे बड़े क्षेत्रक के रूप में उभर रहा है।

(पृष्ठ संख्या 27)

प्रश्न 1.
आरेख 2 और 3 में दिए गए आँकड़ों का प्रयोग कर सारणी की पूर्ति करें और नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर दें
तालिका 2.2. : स. घ. उ. और रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी

1973-74 1977-78 2013-14 2017-18
स. घ. उ. में हिस्सेदारी
रोजगार में हिस्सेदारी

40 वर्षों में प्राथमिक क्षेत्रक में आप क्या परिवर्तन देखते हैं?
उत्तर:
तालिका 2.2 स. घ. उ. और रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी

1973-74 1977-78 2013-14 2017-18
स. घ. उ. में हिस्सेदारी 40% 13%
रोजगार में हिस्सेदारी 71% 44%

मैंने 40 वर्षों में प्राथमिक क्षेत्रक में निम्नलिखित परिवर्तन देखे हैं:

  1. इस अवधि में स.घ.उ. में प्राथमिक क्षेत्रक का हिस्सा 40% से घटकर 13% हो गया है। इसका अर्थ है कि द्वितीयक क्षेत्रक व तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी बढ़ी है।
  2. रोजगार के क्षेत्र में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी घट गई है। यह 71% से घटकर 44% तक आ गया है। इसका अर्थ है कि द्वितीयक क्षेत्रक एवं तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी बढ़ गई है।

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प्रश्न 2.
सही उत्तर का चयन करेंअल्प बेरोजगारी तब होती है जब लोग
(अ) काम करना नहीं चाहते हैं।
(ब) सुस्त ढंग से काम कर रहे हैं।
(स) अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।
(द) उनके काम के लिए भुगतान नहीं किया जाता है।
उत्तर:
(स) अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।

प्रश्न 3.
विकसित देशों में देखे गए लक्षण की भारत में हुए परिवर्तनों से तुलना करें और वैषम्य बताएँ। भारत में क्षेत्रकों के बीच किस प्रकार के परिवर्तन वांछित थे, जो नहीं हुए ?
उत्तर:
भारत में विकासात्मक परिवर्तनों की विकसित देशों के साथ तुल एवं विषमता अग्रलिखित सारणी से अधिक स्पष्ट हो सकती है
तुलना

विकसित देश भारत
1. विकसित देशों में विकास की प्रारम्भिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक उत्पादन एवं रोजगार दोनों दृष्टि से आर्थिक क्रिया का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक था। 1. भारत में विकास की प्राथमिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक कुल उत्पादन एवं रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक था।
2. अर्थव्यवस्था में विकास के साथ-साथ धीरे-धीरे द्वितीयक क्षेत्रक कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है। 2. भारत में द्वितीयक क्षेत्रक अभी तक न तो उत्पादन और न ही रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक हुआ है।
3. देश में विकास के उच्चतर स्तरों पर विकसित देशों में स. घ. उ. और रोजगार में तृतीयक क्षेत्रक (सेवा क्षेत्रक) की हिस्सेदारी सबसे अधिक होती है। 3. भारत में स. घ. उ. में तृतीयक क्षेत्र (सेवा क्षेत्रक) की हिस्सेदारी बढ़ी है, जो अन्य दोनों क्षेत्रकों से अधिक है परन्तु रोजगार की दृष्टि से अभी भी सर्वाधिक कार्यशील व्यक्ति प्राथमिक क्षेत्रक में ही नियोजित हैं।

वैषम्य:
1. यह वांछित था कि अर्थव्यवस्था के विकास के साथ द्वितीयक क्षेत्रक, प्राथमिक क्षेत्रक को प्रतिस्थापित कर स. घ. उ. की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक बन जायेगा परन्तु ऐसा भारत में नहीं हुआ है। यहाँ तृतीयक क्षेत्रक, द्वितीयक क्षेत्रक से आगे बढ़ गया।

2. यह भी वांछित था कि विकास के साथ-साथ रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी कम होगी तथा द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रकों की हिस्सेदारी बढ़कर क्रमशः सर्वाधिक हो जाएगी परन्तु भारत में ऐसा भी नहीं हुआ। आज भी प्राथमिक क्षेत्रक सबसे बड़ा नियोक्ता है। द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रक में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है।

प्रश्न 4.
हमें अल्प बेरोजगारी के सम्बन्ध में क्यों विचार करना चाहिए?
उत्तर:
अल्प बेरोजगारी वह स्थिति है जब लोग नियोजित दिखाई देते हैं परन्तु वास्तव में अल्प बेरोजगार होते हैं। इस स्थिति में आवश्यकता से अधिक लोग एक ही काम में लगे रहते हैं। यदि उन लोगों को उस काम से हटा दिया जाये तो उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस स्थिति को छुपी हुई अथवा प्रच्छन्न जगारी भी कहते हैं। भारत में अपेक्षा थी कि भारत में तीनों ही क्षेत्रकों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और धीरे-धीरे बेरोजगारी समाप्त हो जाएगी परन्तु ऐसा नहीं हो सका। आशानुरूप द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक का न तो विकास हुआ और न ही रोजगार के समुचित अवसर सृजित हो सके हैं।

यह एक गम्भीर चिन्ता का विषय है कि भारत में लाखों लोग अल्प बेरोजगार हैं। यह स्थिति सामान्यतः कृषि क्षेत्र में पायी जाती है। इसके अतिरिक्त अल्प बेरोजगारी दूसरे क्षेत्रकों में भी हो सकती है; जैसे-शहरों में सेवा क्षेत्रक में कार्यरत अनियमित श्रमिक। यदि ये लोग अन्य किसी स्थान पर काम कर रहे होते तो उनके द्वारा अर्जित आय से उनकी कुल पारिवारिक आय में वृद्धि होती। इस प्रकार कहा जा सकता है कि हमें अल्प बेरोजगारी के सम्बन्ध में विचार करना चाहिए क्योंकि यह जनसंख्या की आय अर्जित करने की क्षमता कम करती है जिससे निम्न जीवन स्तर एवं निर्धनता जन्म लेती है।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या 28)

प्रश्न 1.
आपके विचार से आपके क्षेत्र में किस समूह के लोग बेरोजगार अथवा अल्प बेरोजगार हैं, क्या आप कुछ उपाय सुझा सकते हैं, जिन पर अमल किया जा सके?
उत्तर:

  • हमारे विचार से हमारे क्षेत्र में निम्न समूहों के लोग बेरोजगार अथवा अल्प बेरोजगार हैं
    1. खेतिहर श्रमिक परिवार,
    2. छोटे किसान परिवार,
    3. अनुसूचित जनजाति के लोग,
    4. अनुसूचित जाति के लोग,
    5. पिछड़ी जाति के लोग,
    6. पेंटर, बढ़ई, फेरीवाला, मरम्मत का कार्य करने वाले लोग, मकानों के निर्माण पर कार्य करने वाले लोग, सड़कों पर ठेला खींचने वाले लोग, कबाड़ उठाने वाले लोग, सिर पर. बोझा ढोने वाले लोग आदि जैसे अनियमित मजदूर।
  • इनके लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए जा सकते हैं
    1. रोजगार सृजन कार्यक्रमों को लागू किया जाना,
    2. सिंचाई के लिए नये बाँधों का निर्माण अथवा नहर खोदा जाना ताकि कृषि क्षेत्र में रोजगार के अनेक अवसर सृजित
    3. हो सकें,
    4. सरकार द्वारा अर्द्धग्रामीण क्षेत्रों में उन उद्योगों और सेवाओं को बढ़ावा देना जिनमें अधिक से अधिक लोग नियोजित हो सकें,
    5. बेरोजगारों व अल्प बेरोजगारों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना ताकि वे अपने छोटे-मोटे व्यवसाय प्रारम्भ कर सकें,
    6. सरकार को परिवहन और फसलों के भण्डारण पर अथवा ग्रामीण सड़कों के निर्माण पर निवेश करना चाहिए। इस कार्य से किसानों, परिवहन और व्यापार सेवाओं में लगे लोगों को भी रोजगार प्राप्त हो सकता है।

आओ इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 29)

प्रश्न 1.
आपके विचार से म. गाँ. रा. ग्रा. रो. गा. अ. को काम का अधिकार’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
म. गाँ. रा. ग्रा. रो. गा. अ. को ‘काम का अधिकार’ इसलिए कहा गया है क्योंकि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 प्रतिवर्ष ग्रामीण क्षेत्र के उन सभी लोगों को, जो काम करने में सक्षम हैं और जिन्हें काम की जरूरत है, को 100 दिनों का रोजगार सुनिश्चित कराता है। यदि किसी आवेदक को 15 दिन के भीतर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो वह दैनिक रोजगार भत्ता प्राप्त करने का अधिकारी होगा।

प्रश्न 2.
कल्पना कीजिए कि आप ग्राम के प्रधान हैं और इस हैसियत से कुछ ऐसे क्रियाकलापों का सुझाव दीजिए जिसे आप मानते हैं कि उससे लोगों की आय में वृद्धि होगी और उसे इस अधिनियम के अन्तर्गत शामिल किया जाना चाहिए। चर्चा करें।
उत्तर:
ग्राम प्रधान की हैसियत से मेरे अनुसार इस अधिनियम के अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाकलापों को सम्मिलित किया जाना चाहिए, जिससे कि लोगों की आय में वृद्धि होगी

  1. ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे कि कृषि श्रमिक वर्षभर रोजगार प्राप्त कर सकें। इसके अतिरिक्त बेहतर सड़कों से किसानों को अपने उत्पाद नजदीकी बाजार में ले जाने में सहायता मिलेगी,
  2. सिंचाई हेतु नये बाँधों, कुओं अथवा नहरों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे कि कृषि क्षेत्र में रोजगार का सृजन होगा,
  3. गाँव में ही उन उद्योगों व सेवाओं को बढ़ावा देना चाहिए जहाँ बहुत अधिक लोग नियोजित किये जा सकें तथा. इस कार्य हेतु उन्हें प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिए,
  4. ग्रामीणों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि वे खेती की आधुनिकतम विधियों को अपना सकें।

प्रश्न 3.
यदि किसानों को सिंचाई और विपणन सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती हैं तो रोजगार और आय में वृद्धि कैसे होगी?
उत्तर:
यदि किसानों को सिंचाई और विपणन सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं तो रोजगार और आय में निम्न प्रकार से वृद्धि होगी
1. सिंचाई सविधाएँ भारत में वर्षा की अपर्याप्तता व अनिश्चितता रहती है। अत: वर्षा की अपर्याप्तता वं अनिश्चितता वाले क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाएँ वर्ष में एक से अधिक फसल उत्पन्न करने में सहायक होंगी। कृषि भूमि पर . जितनी अधिक फसल उगायी जायेंगी रोजगार व आय में उतनी ही अधिक वृद्धि होगी। इस प्रकार सिंचाई कृषि उत्पादन, रोजगार एवं आय में वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है।

2. विपणन सुविधाएं विपणन सुविधाओं की सहायता से एक किसान फसल उगाकर उसे सरलता से बेच सकता है। इस क्रिया से न केवल किसान बल्कि अन्य लोगों के लिए भी रोजगार उत्पन्न होगा। फसल को बेचने के लिए परिवहन की भी आवश्यकता पड़ेगी, जिससे परिवहनकर्ता के लिए भी रोजगार उत्पन्न होगा। इसके अतिरिक्त फसल बाजार में पहुँचने पर इसका विक्रय होगा जिससे व्यापार के साथ-साथ रोजगार उत्पन्न होने से उनकी आय में भी वृद्धि होगी। – भण्डारण सुविधा से किसानों को अच्छी कीमत पर अपनी उपज बेचने का अवसर प्राप्त होगा।

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प्रश्न 4.
शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि कैसे की जा सकती है?
उत्तर:
शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि लघु व कुटीर उद्योगों का विकास करके, शिक्षा प्रणाली को रोजगारोन्मुखी बनाकर, व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष बल, ऋण, प्रशिक्षण व विपणन जैसी सुविधाएँ प्रदान कर, परिवहन व संचार के साधनों का विकास करके भी स्वरोजगार को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या 30)

प्रश्न 1.
क्या आप कान्ता और कमल के रोजगार की परिस्थितियों में अन्तर देखते हैं?
उत्तर:
हाँ, कान्ता और कमल के रोजगार की परिस्थितियों में अन्तर दिखाई देता है जो निम्नलिखित है

  1. कान्ता को केवल 8 घण्टे काम करना पड़ता है जबकि कमल को 12.30 घण्टे काम करना पड़ता है।
  2. कान्ता को नियमित रूप से प्रत्येक माह के अन्त में अपना वेतन मिल जाता है जबकि कमल को जिस दिन वह काम करता है उस दिन की ही मजदूरी मिलती है।
  3. कान्ता को वेतन के अतिरिक्त भविष्य निधि, चिकित्सकीय और अन्य भत्ते मिलते हैं जबकि कमल को मजदूरी के अतिरिक्त अन्य कोई भत्ता नहीं मिलता है।
  4. कान्ता को रविवार के दिन का सवेतन अवकाश मिलता है जबकि कमल को कोई छुट्टी या सवेतन अवकाश नहीं मिलता है।
  5. कान्ता को नौकरी प्रारम्भ करते समय एक नियुक्ति पत्र दिया गया था जबकि कमल को ऐसा कोई औपचारिक पत्र नहीं दिया गया।

आओ इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 31)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित उदाहरणों को देखें। इनमें से कौन असंगठित क्षेत्रक की गतिविधियाँ हैं?
1. विद्यालय में पढ़ाता एक शिक्षक
2. बाजार में अपनी पीठ पर सीमेन्ट की बोरी ढोता हआ एक श्रमिक
3. अपने खेत की सिंचाई करता एक किसान
4. एक ठेकेदार के अधीन काम करता एक दैनिक मजदूरी वाला श्रमिक
5. एक बड़े कारखाने में काम करने जाता एक कारखाना श्रमिक
6. अपने घर में काम करता एक करघा बुनकर।
उत्तर:
1. असंगठित क्षेत्रक की गतिविधियाँ इस प्रकार से हैं
2. बाजार में अपनी पीठ पर सीमेन्ट की बोरी ढोता हुआ श्रमिक।
3. अपने खेत की सिंचाई करता हुआ एक श्रमिक।
4. एक ठेकेदार के अधीन काम करता एक दैनिक मजदूरी वाला श्रमिक।
5. एक बड़े कारखाने में काम करने जाता एक कारखाना श्रमिक।
6. अपने घर में काम करता एक करघा बुनकर।

प्रश्न 2.
संगठित क्षेत्रक में नियमित काम करने वाले एक व्यक्ति और असंगठित क्षेत्रक में काम करने वाले किसी दूसरे व्यक्ति से बात करें। सभी पहलुओं पर उनकी कार्य-स्थितियों की तुलना करें।
उत्तर:
मैंने अपने पड़ौसी श्री रामविलास शर्मा से बात की; जो सरकारी स्कूल में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। यह एक संगठित क्षेत्र है। असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत दैनिक मज़दूरी पर भवन निर्माण के कार्य में कार्यरत श्रमिक श्री मोतीलाल वर्मा से भी बात की। इन दोनों से हुए वार्तालाप के आधार पर हम उनकी कार्य-स्थितियों की तुलना निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं

रामविलास शर्मा की कार्य-स्थितियाँ मोतीलाल वर्मा की कार्य-स्थितियाँ
1. इनके काम के घंटे निश्चित हैं तथा यदि वह अन्य कार्य करते हैं तो उसका उन्हें अतिरिक्त भुगतान किया जाता है। 1. इनके काम के घंटे निश्चित नहीं हैं। यदि वह अधिक घण्टे कार्य करते हैं तो उसका उन्हें अतिरिक्त भुगतान नहीं किया जाता है।
2. रामविलास शर्मा को माह के अंतिम कार्य दिवस को मासिक वेतन मिल जाता है। 2. मोतीलाल वर्मा को दैनिक मजदूरी प्राप्त होती है। जिस दिन वह काम पर नहीं जाता है, उस दिन के लिए उसे कोई भुगतान नहीं मिलता है।
3. इन्हें मासिक वेतन के अतिरिक्त भविष्य निधि चिकित्सा भत्ता, छुट्टी का भुगतान, पेंशन एवं अन्य भत्ते आदि मिलते हैं। 3. इन्हें मज़दूरी के अतिरिक्त किसी प्रकार का भत्ता नहीं मिलता है।
4. इन्हें रविवार के दिन सवेतन अवकाश मिलता है। 4. इन्हें कोई छुट्टी या सवेतन अवकाश नहीं मिलता है।
5. इन्हें नौकरी आरम्भ करते समय एक नियुक्ति पत्र दिया गया था। 5. इन्हें नियोक्ता द्वारा ऐसा कोई औपचारिक पत्र नहीं दिया गया।

प्रश्न 3.
असंगठित और संगठित क्षेत्रक के बीच आप विभेद कैसे करेंगे ? अपने शब्दों में व्याख्या करें।
अथवा
असंगठित एवं संगठित क्षेत्रक में अन्तर स्पष्ट करें।
अथवा
संगठित और असंगठित क्षेत्र की सेवा शर्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
असंगठित और संगठित क्षेत्रक के बीच निम्नलिखित भेद हैं

अंतर का आधार असंगठित क्षेत्रक संगठित क्षेत्रक
1. अर्थ असंगठित क्षेत्रक से आशय उन छोटी-मोटी और बिखरी इकाइयों से है, जो अधिकांशत: राजकीय नियन्त्रण से बाहर होती हैं। संगठित क्षेत्रक से तात्पर्य उस उद्यम या कार्य के स्थान से है, जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है।
2. नियम और विनियम इस क्षेत्रंक के नियम और विनियम होते है लेकिन उनका पालन नहीं किया जाता। इस क्षेत्रक में सरकारी नियमों व विनियमों व पालन करना होता है।
3. रोजगार की शर्ते इस क्षेत्रंक के नियम और विनियम होते है लेकिन उनका पालन नहीं किया जाता। वेतन श्रमिक दैनिक मजदूरी प्राप्त करते हैं।
4. कार्य की प्रकृति रोजगार की शर्ते अनियमित होती हैं। रोजगार की शर्ते नियमित होती हैं।
5. वेतन इसमें कार्य अनियमित होता है एवं श्रमिक को बिना किसी कारण किसी भी समय काम छोड़ने को कहा जा सकता है। इसमें कार्य नियमित होता है एवं श्रमिक को बिना किसी कारण काम से नहीं निकाला जा सकता है।
6. कार्य अवधि श्रमिक दैनिक मजदूरी प्राप्त करते है। कर्मचारी व श्रमिक नियमित रूप से मासिक वेतन प्राप्त करते हैं।
7. अन्य परिलाभ यहाँ काम के घंटे निश्चित नहीं होते हैं। साथ ही काम के अतिरिक्त घंटों के लिए भगतान की कोई व्यवस्था नहीं है। लोग निश्चित घंटे ही काम करते हैं। यदि वे अधिक घंटे काम करते हैं तो इसके लिए नियोक्ता द्वारा अतिरिक्त भुगतान किया जाता है।
8. कार्य स्थितियाँ दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त अन्य किसी लाभ का कोई प्रावधान नहीं है। वेतन के अतिरिक्त कर्मचारी अन्य लाभ भी प्राप्त करते हैं; जैसे-भविष्य निधि, ‘चिकित्सकीय भत्ते, छुट्टी का भुगतान, पेंशन आदि।

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प्रश्न 4.
संगठित एवं असंगठित क्षेत्रक में भारत के सभी श्रमिकों की अनुमानित संख्या नीचे दी गई सारणी में दी गई है। सारणी को सावधानी से पढ़ें। विलुप्त आँकड़ों की पूर्ति करें और प्रश्नों का उत्तर दें।
सारणी-विभिन्न क्षेत्रकों में श्रमिकों को संख्या (दस लाख में)

क्षेत्रक संगठित असंगठित कुल
प्राथमिक 1 232
द्वितीयक 41 74 115
तृतीयक 40 88 172
कुल 82
कुल प्रतिशत में 100%

1. असंगठित क्षेत्रक में कृषि में लोगों का प्रतिशत क्या है?
2. क्या आप सहमत हैं कि कृषि असंगठित क्षेत्रक की गतिविधि है? क्यों?
3. यदि हम सम्पूर्ण देश पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि भारत में ……… % श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में हैं। भारत में लगभग ……… % श्रमिकों को ही संगठित क्षेत्रक में रोज़गार उपलब्ध है।
उत्तर:
सारणी में विलुप्त आँकड़ों की पूर्ति

क्षेत्रक संगठित असंगठित कुल
प्राथमिक 1 231 232
द्वितीयक 41 74 115
तृतीयक 40 88 128
कुल 82 393 475
कुल प्रतिशत में 17.26% 82.74% 100%

1. असंगठित क्षेत्रक में कृषि में लगे लोगों का प्रतिशत = \(\frac{231}{393}\) × 100 = 58.78% है।

2. हाँ, मैं सहमत हूँ कि कृषि असंगठित क्षेत्रक की गतिविधि है क्योंकि कृषि कार्य में लगे हुए किसानों या भूमिहीन कृषकों अथवा श्रमिकों के काम के घण्टे सुनिश्चित नहीं हैं। उन्हें रोज़गार की सुरक्षा प्राप्त नहीं है। उन्हें निश्चित मजदूरी अथवा वेतन नहीं मिलता है। इसके अतिरिक्त उनकी आय निम्न व अनियमित है।

3. यदि हम सम्पूर्ण देश पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि भारत में 82.74% श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में हैं। भारत में लगभग 17.26% श्रमिकों को ही संगठित क्षेत्रक में रोज़गार उपलब्ध है।

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JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 1 विकास 

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→ विकास की धारणा

  • विकास अथवा प्रगति की धारणा प्राचीन काल से ही हमारे साथ है।
  • प्रत्येक व्यक्ति की अपनी आकांक्षाएँ व इच्छाएँ होती हैं कि वह क्या करना चाहता है और अपना जीवन कैसे जीना चाहता है।
  • विभिन्न श्रेणी के व्यक्तियों के विकास के लक्ष्य भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे एक भूमिहीन ग्रामीण मजदूर विकास के लक्ष्य के अन्तर्गत अपने लिए काम करने के अधिक दिन एवं पर्याप्त मजदूरी चाहता है, स्थानीय विद्यालय उनके बच्चों को उत्तम शिक्षा प्रदान करे, कोई सामाजिक भेदभाव न हो एवं गाँव में उनका समुदाय चुनाव लड़कर नेता बन सके आदि मानकर
    चलता है।

→ आय व लक्ष्य

  • लोगों के लिए विकास के लक्ष्यों की भिन्नता के कारण एक के लिए जो विकास है वह दूसरे के लिए विकास न हो। यहाँ तक कि वह दूसरे के लिए विनाशकारी भी हो सकता है।
  • विभिन्न लोगों की इच्छाएँ एवं आकांक्षाएँ अलग-अलग होती हैं। वे ऐसी चीजें चाहते हैं जो उनके लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हों अर्थात् वे चीजें जो उनकी इच्छाओं तथा आकांक्षाओं को पूरा कर सकें। इन इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति ही विकास के लक्ष्य हैं। ये लक्ष्य दो प्रकार के हैं आर्थिक लक्ष्य एवं गैर-आर्थिक लक्ष्य ।

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→ राष्ट्रीय विकास

  • लोग विकास के लिए मिले-जुले लक्ष्यों को देखते हैं जो बेहतर आय के साथ-साथ जीवन में अन्य महत्त्वपूर्ण चीजों के बारे में भी होते हैं।
  • विश्व के विभिन्न देशों की तुलना करने का प्रमुख आधार उनकी आय होती है।
  • राष्ट्रीय आय विकास का एक महत्त्वपूर्ण मापदण्ड है जिन देशों की राष्ट्रीय आय अधिक होती है उन्हें कम आय वाले देशों से अधिक विकसित समझा जाता है। यह बात इस मान्यता पर आधारित है कि अधिक आय का अर्थ मानवीय आवश्यकताओं की सभी वस्तुओं का उपलब्ध होना है।
  • दोनों देशों की तुलना करने के लिए राष्ट्रीय आय एक उपयुक्त माप नहीं है क्योंकि विभिन्न देशों में जनसंख्या अलग-अलग होती है। अतः इससे हमें यह ज्ञात नहीं होता है कि औसत व्यक्ति क्या कमा सकता है।
  • दो देशों के मध्य तुलना करने के लिए प्रतिव्यक्ति आय को एक अच्छा आधार माना जाता है। औसत आय को प्रतिव्यक्ति आय भी कहा जाता है। देश की कुल आय में कुल जनसंख्या से भाग देकर प्रतिव्यक्ति आय ज्ञात कर ली जाती है।
  • विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसारं देशों के विकास के आधार पर वर्गीकरण करते समय प्रतिव्यक्ति आय मापदण्ड का प्रयोग किया गया है।
  • सन् 2017 में जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय US डॉलर 12.056 प्रतिवर्ष या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध देश कहा गया है तथा जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय US डॉलर 995 प्रतिवर्ष या उससे कम है, ऐसे देशों को निम्न आय वाला देश कहा गया है । इस दृष्टि से भारत मध्य आय वर्ग वाले देशों की श्रेणी में आता है क्योंकि सन् 2017 में भारत की प्रतिव्यक्ति आय ‘US डॉलर 1820 प्रतिवर्ष थी।

→ आय व अन्य मापदण्ड

  • दो या दो से अधिक देशों अथवा राज्यों के मध्य प्रतिव्यक्ति आय के अतिरिक्त तुलना के अन्य प्रमुख आधारों में शिशु-मृत्यु दर, साक्षरता दर, निवल उपस्थिति अनुपात, मानव विकास सूचकांक एवं उपलब्ध सुविधाएँ शामिल हैं।
  • यह जरूरी नहीं है कि जेब में रखा रुपया वे सब वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीद सके, जिनकी आपको एक अच्छा जीवन जीने के लिए जरूरत हो सकती है।
  • जीवन में अनेक महत्त्वपूर्ण चीजों के लिए सबसे अच्छा तथा सस्ता तरीका इन चीजों व सेवाओं को सामूहिक रूप से उपलब्ध कराना है।
  • स्वास्थ्य तथा शिक्षा की मौलिक सुविधाओं के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने के कारण केरल में शिशु मृत्यु दर कम है।
  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू. एन. डी. पी.) द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट विभिन्न देशों की तुलना लोगों के । शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति एवं प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर करती है।
  • विकास की धारणीयता तुलनात्मक स्तर पर ज्ञान का नया क्षेत्र है जिसमें वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, दार्शनिक तथा अन्य सामाजिक वैज्ञानिक संयुक्त रूप से कार्य कर रहे हैं।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. विकास: विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने के साथ-साथ निर्धनता, असमानता, अशिक्षा एवं बीमारी में कमी भी हो अर्थात् लोगों के आर्थिक स्तर में सुधार हो एवं उनका जीवन स्तर ऊँचा हो।

2. राष्ट्रीय विकास: किसी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक विकास।

3. बहुराष्ट्रीय कम्पनी: ये वे कम्पनियाँ हैं जिनका एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथवा स्वामित्व होता है।

4. आर्थिक विकास: आर्थिक विकास एक सतत् प्रक्रिया है जिसके द्वारा राष्ट्रीय आय एवं प्रतिव्यक्ति आय में दीर्घकालीन और निरन्तर वृद्धि होती है।

5. औसत आय: किसी देश की राष्ट्रीय आय को उसकी कुल जनसंख्या से भाग देने से प्राप्त राशि होती है। इसे प्रति व्यक्ति आय भी कहते हैं।

6. अर्थव्यवस्था: उन विभिन्न प्रणालियों और संगठनों का समूह जो लोगों को आजीविका प्रदान करते हैं।

7. मानव विकास: यह लोगों की इच्छाओं और उनके जीवन-स्तर में वृद्धि लाने की एक प्रक्रिया है ताकि वे एक उद्देश्यपूर्ण एवं सक्रिय जीवन जी सकें।

8. विश्व बैंक: सन् 1944 में स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय बैंक। इस बैंक का उद्देश्य निर्धन, साधनहीन एवं विकासशील देशों को वित्त व तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना है।

9. राष्ट्रीय आय: किसी समयावधि में एक अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं में कुल प्रवाह का मौद्रिक मूल्य।

10. विकसित देश: उच्चतम प्रतिव्यक्ति आय एवं उच्च जीवन स्तर की विशेषता वाले देश।

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11. निम्न आय वाला देश: वे देश जिनकी प्रतिव्यक्ति आय US डॉलर 995 प्रतिवर्ष या उससे कम है, निम्न आय वाले . देश कहलाते हैं।

12. शिशु मृत्यु दर: किसी वर्ष में पैदा हुए 1000 जीवित बच्चों में से एक वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्चों का अनुपात।

13. साक्षरता दर: 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में साक्षर जनसंख्या का अनुपात।

14. निवल उपस्थिति अनुपात: किसी आयु विशेष के विद्यालय जाने वाले कुल बच्चों का उस आयु वर्ग के कुल बच्चों के मध्य अनुपात।

15. यू. एन. डी. पी.: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, जो विश्व के विभिन्न देशों की विभिन्न दशाओं का अध्ययन कर उनकी मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित करता है।

16. मानव विकास रिपोर्ट: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा विभिन्न देशों के शिक्षा, स्वास्थ्य व आय आदि की दशा … के आधार पर प्रकाशित किया जाने वाला वार्षिक प्रतिवेदन।

17. एच. डी. आई.: मानव विकास सूचकांक। यह विश्व के देशों में विकास स्तर को समझने व तुलना करने में सहायक होता है।

18. विकास की धारणीयता: विकास का जो स्तर हमने प्राप्त किया है, वह भावी पीढ़ी के लिए भी बना रहे। .

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 3 जल संसाधन 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 3 जल संसाधन

पाठ सारांश

  • हमारे धरातल के लगभग तीन-चौथाई भाग पर जल का विस्तार पाया जाता है। जिसमें प्रयोग में लाने योग्य अलवणीय जल का अनुपात बहुत कम है।
  • सतही अपवाह एवं भौमजल स्रोत से हमें अलवणीय जल की प्राप्ति होती है।
  • हमें प्राप्त होने वाले अलवणीय जल का लगातार नवीनीकरण एवं पुनर्भरण जलीय-चक्र द्वारा होता रहता है।
  • जल एक चक्रीय संसाधन है। यदि इसका उचित तरीके से उपयोग किया जाए तो इसकी कमी नहीं होगी।
  • जल के नवीकरण-योग्य संसाधन होने के बावजूद आज विश्व के अनेक देशों व क्षेत्रों में जल की कमी दिखाई देती है।
  • भारत में तीव्र गति से उद्योगों की बढ़ती संख्या के कारण अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
  • वर्तमान समय में भारत में कुल विद्युत का लगभग 22 प्रतिशत भाग जल-विद्युत से प्राप्त किया जाता है।
  • यह एक चिंता का विषय है कि लोगों की आवश्यकता के लिए प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध होने के बावजूद यह घरेलू व औद्योगिक अपशिष्टों, रसायनों, कीटनाशकों एवं कृति में प्रयुक्त किए जाने वाले उर्वरकों द्वारा प्रदूषित है। ऐसा जल मानव उपयोग के लिए खतरनाक है।
  • हमारे देश में प्राचीनकाल से ही सिंचाई के लिए पत्थरः मलबे से बाँध निर्माण, जलाशय अथवा झीलों के तटबन्ध व नहरों जैसी उत्कृष्ट जलीय कृतियाँ बनायी गयी हैं।
  • हमारे देश में चन्द्रगुप्त मौर्य के.शासनकाल में बड़े पैमाने पर बाँध, झील व सिंचाई क्षेत्रों का निर्माण करवाया गया।
  • 11वीं सदी में बनवाई गई भोपाल झील अपने समय की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक थी।
  • परम्परागत बाँध, नदियों तथा वर्षा जल को एकत्रित करने के पश्चात् उसे खेतों की सिंचाई हेतु उपलब्ध करवाते थे।
  • वर्तमान में बाँधों का उद्देश्य न केवल सिंचाई अपितु विद्युत उत्पादन, घरेलू व औद्योगिक उपयोग, जल आपूर्ति, बाढ़ नियन्त्रण, मनोरंजन, आंतरिक नौचालन तथा मछली पालन इत्यादि भी है।
  • बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं में भाखड़ा नांगल व हीराकुड परियोजना आदि प्रमुख हैं। पं. जवाहरलाल नेहरू गर्व से बाँधों को ‘आधुनिक भारत के मन्दिर’ कहते थे।
  • बहुउद्देशीय परियोजनाएँ एवं बड़े-बड़े बाँध नये सामाजिक आन्दोलनों, जैसे-नर्मदा बचाओ आन्दोलन एवं टिहरी बाँध आन्दोलन के कारण भी बन गये हैं। इन परियोजनाओं का विरोध मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों के अपने स्थान से बड़े पैमाने पर विस्थापन के कारण है।
  • नर्मदा बचाओ आन्दोलन एक गैर सरकारी संगठन (NGO) है। यह गुजरात में नर्मदा नदी. पर सरदार सरोवर बाँध के विरोध में जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लामबंद करता है।
  • जल संरक्षण हेतु भारत के पहाड़ी व पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों ने ‘गुल’ अथवा ‘कुल’ (पश्चिमी हिमालय) जैसी वाहिकाएँ, नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए निर्मित की हैं।
  • राजस्थान में पीने का जल एकत्रित करने के लिए ‘छत वर्षाजल संग्रहण’ एक प्रचलित तकनीक है।
  • शुष्क व अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र में खेतों में वर्षा जल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाये जाते हैं। राजस्थान के जैसलमेर जिले में ‘खादीन’ (खडीन) व अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़’ इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
  • मेघालय राज्य में नदियों व झरनों के जल को बाँस से बने पाइप द्वारा एकत्रित करके सिंचाई की जाती है। यह लगभग 200 वर्ष पुरानी विधि है जो आज भी प्रचलित है।
  • तमिलनाडु भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ सम्पूर्ण राज्य में प्रत्येक घर में छत वर्षाजल संरक्षण ढाँचों का निर्माण अनिवार्य कर दिया गया है। इसका उल्लंघन करने पर कानूनी कार्यवाही का भी प्रावधान है।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. अलवणीय जल: नमकरहित अर्थात् मीठे जल को अलवणीय जल कहा जाता है।

2. भौमजल स्रोत: धरातल के नीचे चट्टानों की दरारों व छिद्रों में अवस्थित जल, भौमजल कहलाता है।

3. सतही अपवाह: धरातल पर स्थित विभिन्न जलस्रोत-नदियाँ, झीलें, नहरें, या, विभिन्न जलाशय सतही अपवाह कहलाते

4. भूजल पुनर्भरण: वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरने वाला पानी कई माध्यमों से मिट्टी में समाहित होकर भूमिगत जल स्तर तक पहुँचता है और भूजल स्तर की मात्रा में वृद्धि करता है। इसे ही हम भूजल पुनर्भरण कहते हैं।

5. जलीय चक्र: जल समुद्र, झील, तालाब, खेतों आदि से वाष्प बनकर उड़ता रहता है। जल-वाष्प हवा में संघनित होकर बादलों में बदल जाती है। यह संघनित जल-वाष्प पुनः वर्षा के रूप में धरती पर आ जाती है। धरती से जल पुनः सागरों आदि में पहुँचता है तथा पुनः जल का वाष्पीकरण होकर यही प्रक्रिया चलती रहती है। इस प्रकार जल एक चक्र के रूप में गतिशील रहता है। इसे ही जलीय चक्र कहते हैं।

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6. जलभृत: जिन शैलों में होकर भूमिगत जल प्रवाहित होता है, उन्हें जलभृत (जलभरा) कहते हैं।

7. जल दुर्लभता: माँग की तुलना में जल की कमी को जल-दुर्लभता कहते हैं।

8. जल-संरक्षण: जल संरक्षण से आशय है जल का बचाव करना, जल को व्यर्थ नहीं बहाना, जल का दुरुपयोग नहीं करना और जल को जरूरत के समय के लिए बचाकर खना।

9. जल-प्रबन्धन: लगातार बढ़ती जनसंख्या के लिए पेयजल एवं कृषि फसलों की सिंचाई हेतु जल की भविष्य में आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए किये जाने वाले प्रयास जल-प्रबंधन कहलाते हैं।

10. पनिहारिन: सिर पर मटकों को रखकर जल लाने वाली महिलाएँ पनिहारिन कहलाती हैं।

11. अतिशोषण: अत्यधिक मात्रा में जल निकालने को अभिशोषण कहते हैं।

12. अपशिष्ट: उद्योगों से अपसारित होने वाले कूड़े-करकट को अपशिष्ट कहते हैं।

13. निम्नीकृत-संसाधनों की गुणवत्ता में कमी लाने को निम्नीकृत कहते हैं।

14. जलीय कृतियाँ-वे बाँध, जलाशय, झीलें, नहरें, कुएँ, बावड़ी आदि जिनमें वर्षा जल संग्रहीत किया जाता है, जलीय कृतियाँ कहलाती हैं।

15.. परिपाटी-परम्परा को ही परिपाटी कहते हैं।

16. जल-संसाधन-धरातल के ऊपर एवं भूगर्भ के आन्तरिक भागों में पाये जाने वाले समस्त जल-भण्डारों को जल संसाधन कहते हैं।

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17. बहुउद्देशीय नदी परियोजना-एक नदी घाटी परियोजना जो एक साथ कई उद्देश्यों; जैसे-सिंचाई, बाढ़-नियन्त्रण, जल व मृदा का संरक्षण, जल विद्युत, जल परिवहन, पर्यटन का विकास, मत्स्य पालन, कृषि एवं औद्योगिक विकास आदि की पूर्ति करती है, बहुउद्देशीय नदी परियोजना कहलाती है, जैसे-भाखड़ा- नांगल परियोजना, चम्बल घाटी परियोजना . आदि।

18. टाँका-वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए बनाया गया भूमिगत टैंक या कुऔं, टाँका कहलाता है।

19. सिंचाई-वर्षा की कमी या अभाव होने पर फसलों को कृत्रिम रूप से जल पिलाना सिंचाई कहलाता है।

20. जल-विद्युत-जल की गतिशील शक्ति का उपयोग कर तैयार की गई विद्युत को जल-विद्युत कहते हैं।

21. बाँस ड्रिप सिंचाई-बाँस की पाइप द्वारा बूंद-बूंद करके पेड़-पौधों की सिंचाई करना बाँस ड्रिप सिंचाई कहलाता है।

22. पालर पानी (Palar Pani)-पश्चिमी राजस्थान में वर्षा जल को पालर पानी भी कहां जाता है।

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23. वर्षा-जल संग्रहण-वर्षा द्वारा भूमिगत जल की क्षमता में वृद्धि करने की तकनीक वर्षा-जल संग्रहण कहलाती है। इसमें वर्षा-जल को रोकने एवं एकत्रित करने के लिए विशेष ढाँचों जैसे-कुएँ, गड्ढे, बाँध आदि का निर्माण किया जाता है। इससे न केवल जल का संग्रहण होता है बल्कि जल भूमिगत होने की अनुकूल परिस्थितियाँ प्राप्त होती हैं।

24. मृदा-पृथ्वी की ऊपरी सतह जो चट्टानों एवं ह्यूमस से बनती है, मृदा कहलाती है।

25. वन-वृक्षों से भरा हुआ विस्तृत क्षेत्र वन कहलाता है।

26. बाँध-बहते हुए जल को रोकने के लिए खड़ी की गई एक बाधा जो आमतौर पर जलाशय, झील अथवा जलभरण बनाती है; बाँध कहलाती है।

27. बाढ़-किसी विस्तृत भू-भाग का लगातार कई दिनों तक अस्थायी रूप से जलमग्न रहना बाढ़ कहलाता है।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन

पाठ सारांश

  • हमारा धरातल अत्यधिक जैव विविधताओं से भरा हुआ है।
  • धरातल पर मानव एवं अन्य जीव-जन्तु एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका वनों की होती है क्योंकि ये प्राथमिक उत्पादक हैं जिन पर अन्य सभी जीव निर्भर करते हैं।
  • हमारे देश में समस्त विश्व की जैव उपजातियों की 8 प्रतिशत संख्या (लगभग 16 लाख) पायी जाती है। जैव विविधता की दृष्टि से भारत विश्व के सबसे समृद्ध देशों में से एक है।
  • अनुमानतः भारत में 10 प्रतिशत वन्य वनस्पतियों एवं 20 प्रतिशत स्तनधारियों के लुप्त होने का खतरा बना हुआ है।
  • हमारे देश में वनों के अन्तर्गत लगभग 807276 वर्ग किमी. क्षेत्रफल है। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.56% भाग है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (IUCN) ने पौधों और प्राणियों की जातियों को सामान्य जातियाँ, संकटग्रस्त जातियाँ, सुभेद्य जातियाँ, दुर्लभ जातियाँ, स्थानिक जातियाँ एवं लुप्त जातियाँ आदि श्रेणियों में विभाजित किया है।
  • भारत में वन विनाश उपनिवेश काल में रेलवे लाइनों का विस्तार, कृषि, व्यवसाय, वाणिज्य, वानिकी एवं खनन क्रियाओं में वृद्धि से हुआ है।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी वन संसाधनों के सिकुड़ने में कृषि का फैलाव एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है।
  • वन सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 1951 और 1980 के बीच लगभग 26,200 वर्ग किमी वन क्षेत्र को कृषि भूमि में बदला गया।
  • जनजाति क्षेत्रों में स्थानान्तरी (झूमिंग) कृषि से बहुत अधिक वनों का विनाश हुआ है।
  • भारत में नदी घाटी परियोजनाओं के निर्माण ने भी वन विनाश को प्रोत्साहित किया है। सन् 1952 से नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 5,000 वर्ग किमी से भी अधिक वन क्षेत्रों को नष्ट करना पड़ा है तथा यह प्रक्रिया अभी भी रुकी नहीं है।
  • अरुणाचल प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश में मिलने वाला हिमालय यव (चीड़ की प्रकार का एक सदाबहार वृक्ष) औषधि पौधा है जो संकट के कगार पर है।
  • भारत में जैव-विविधता को कम करने वाले प्रमुख कारकों में वन्य जीवों के आवासों का विनाश, जंगली जानवरों का शिकार करना, पर्यावरण प्रदूषण एवं वनों में आग लगना आदि है।
  • भारत में वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु भारतीय वन्य जीवन (रक्षण) अधिनियम, 1972 को लागू किया गया है, जिसमें वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु अनेक प्रावधान हैं।
  • बाघों के संरक्षण हेतु प्रोजेक्ट टाइगर चलाया जा रहा है जो विश्व की प्रमुख वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है।
  • वन्य जीव अधिनियम 1980 व 1986 के अंतर्गत सैकड़ों तितलियों, पतंगों, भंगों तथा एक ड्रैगनफ्लाई को भी संरक्षित जातियों में सम्मिलित किया है।
  • राजकीय स्तर पर वनों को आरक्षित-वन, रक्षित-वन एवं अवर्गीकृत-वन में विभाजित किया गया है।
  • हिमालय क्षेत्र का प्रसिद्ध चिपको आन्दोलन कई क्षेत्रों में वनों की कटाई को रोकने में सफल रहा है।
  • भारत में संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रमों की औपचारिक शुरुआत 1988 में ओडिशा राज्य द्वारा संयुक्त वन प्रबंधन का पहला प्रस्ताव पास करने के साथ हुई थी।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. जैव-विविधता: पेड़-पौधों एवं प्राणि-जगत में जो विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ मिलती हैं, जैव-विविधता कहलाती हैं। दूसरे शब्दों में, जैव-विविधता वनस्पति व प्राणियों में पाए जाने वाले जातीय विभेद को प्रकट करती है।

2. वनस्पतिजात (Flora): वनस्पतिजात से तात्पर्य किसी विशेष क्षेत्र या समय के पादपों से है।

3. प्राणिजात: सभी प्रकार के पशु-पक्षी, जीवाणु, सूक्ष्म-जीवाणु व मनुष्य मिलकर प्राणिजात कहलाते हैं।

4. सामान्य जातियाँ: वन और वन्य-जीवों की ऐसी प्रजातियाँ जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती है, जैसे-चीड़, साल, पशु, कृंतक (रोडेंट्स)।

5. संकटग्रस्त जातियाँ: ऐसी जातियाँ जिनके लुप्त होने का खतरा है, जैसे-काला हिरण, गैंडा, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, शेर की पूँछ वाला बंदर, मणिपुरी हिरण।

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6. सुभेद्य जातियाँ: ये वे प्रजातियाँ हैं, जिनकी संख्या लगातार घट रही हैं और जो शीघ्र ही संकटग्रस्त होने की स्थिति में हैं। उदाहरण-नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा की डॉल्फिन आदि।

7. दुर्लभ जातियाँ-जीव: जन्तु व वनस्पति की वे प्रजातियाँ जिनकी संख्या बहुत कम रह गई है, दुर्लभ प्रजातियाँ कहलाती हैं।

8. स्थानिक जातियाँ: प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पायी जाने वाली प्रजातियाँ स्थानिक – प्रजातियाँ कहलाती हैं, जैसे-अंडमानी चील, निकोबारी कबूतर, अरुणाचली मिथुन व अंडमानी जंगली सुअर आदि।

9. लुप्त जातियाँ: ये वे जातियाँ हैं जिनके रहने के आवासों में खोज करने पर वे अनुपस्थित पाई गई हैं, जैसे-एशियाई चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख आदि।

10. वन-वह बड़ा भू: भाग जो वृक्षों और झाड़ियों से ढका होता है।

11. पारिस्थितिकी तन्त्र: मानव और दूसरे जीवधारी मिलकर एक जटिल तंत्र का निर्माण करते हैं, उसे पारिस्थितिकी तन्त्र कहा जाता है।

12. आरक्षित वन: ये वे वन हैं जो इमारती लकड़ी अथवा वन उत्पादों को प्राप्त करने के लिए स्थायी रूप से सुरक्षित कर लिए गए हैं और इनमें पशुओं को चराने तथा खेती करने की अनुमति नहीं दी जाती।

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13. रक्षित वन: ये वे वन हैं जिनमें पशुओं को चराने व खेती करने की अनुमति कुछ विशिष्ट प्रतिबन्धों के साथ प्रदान की जाती है।

14. अवर्गीकृत वन: अन्य सभी प्रकार के वन व बंजर भूमि जो सरकार, व्यक्तियों एवं समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, अवर्गीकृत वन कहलाते हैं। इनमें लकड़ी काटने व पशुओं को चराने पर सरकार की ओर से कोई रोक नहीं होती है।

15. सामुदायिक वनीकरण: यह वन सुरक्षा हेतु लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा संचालित एक विशिष्ट कार्यक्रम

16. राष्ट्रीय उद्यान: ऐसे रक्षित क्षेत्र जहाँ वन्य प्राणियों सहित प्राकृतिक वनस्पति और प्राकृतिक सुन्दरता को एक साथ सुरक्षित रखा जाता है। ऐसे स्थानों की सुरक्षा को उच्च स्तर प्रदान किया जाता है। इसकी सीमा में पशुचारण प्रतिबन्धि .त होता है। इसकी सीमा में किसी भी व्यक्ति को भूमि का अधिकार नहीं मिलता है।

17. वन्य जीव पशु विहार: ये वे रक्षित क्षेत्र हैं जहाँ कम सुरक्षा का प्रावधान है। इसमें वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए अन्य गतिविधियों की अनुमति होती है। इसमें किसी भी अच्छे कार्य के लिए भूमि का उपयोग हो सकता है।

18. प्रोजेक्ट टाइगर: देश में बाघों की संख्या में तेजी से गिरावट को देखकर बाघों के संरक्षण के लिए सन् 1973 से संचालित विशेष बाघ परियोजना।

19. स्थानांतरी कृषि: यह कृषि का सबसे आदिम रूप है। कृषि की इस पद्धति में वन के एक छोटे टुकड़े के पेड़ और झाड़ियों को काटकर उसे साफ कर दिया जाता है। इस प्रकार से कटी हुई वनस्पति को जला दिया जाता है और उससे प्राप्त हुई राख को मिट्टी में मिला दिया जाता है। इस भूमि पर कुछ वर्षों तक कृषि की जाती है। भूमि की उर्वरता समाप्त हो जाने पर किसी दूसरी जगह पर यही क्रिया पुनः दुहरायी जाती है। इसे ‘स्लैश और बर्न कृषि’ भी कहा जाता है। पूर्वोत्तर भारत में इसे झूमिंग (Jhuming) कृषि के नाम से जाना जाता है।

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JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

→ मुद्रित का महत्व्

  • मुद्रित अर्थात् छपी हुई सामग्री के बिना विश्व की कल्पना करना हमारे लिए मुश्किल है।
  • छपाई अर्थात् मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई।
  • लगभग 594 ई. से चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर किताबों को छापा जाने लगा था।
  • एक लम्बे समय तक चीनी राजतन्त्र मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक रहा है।
  • जापान में सर्वप्रथम चीनी बौद्ध प्रचारक 768-770 ई. के आस-पास छपाई की तकनीक को लाये थे।
  • 868 ई. में छपी ‘डायमंड सूत्र’ जापान की सबसे प्राचीन पुस्तक है।
  • 13वीं सदी के मध्य में, ‘त्रिपीटका कोरियाना’ वुडब्लॉक्स मुद्रण के रूप में बौद्ध ग्रंथों का कोरियाई संग्रह है जिसे लगभग 80,000 वुडब्लॉक्स पर उकेरा गया। 2007 में इन ग्रंथों को यूनेस्को ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में दर्ज किया गया।
  • 1753 ई. में एदो (टोक्यो) में जन्मे कितागावा उतामारो ने उकियो (तैरती दुनिया के चित्र) नामक एक नयी चित्रशैली को जन्म दिया।

→ यूरोप में मुद्रण:

  • 11वीं शताब्दी में रेशम मार्ग से चीनी कागज यूरोप पहुँचा।
  • 1295 ई. में मार्कोपोलो (महान खोजी यात्री) चीन में लम्बे समय तक रहने के बाद अपने साथ वहाँ से वुडब्लॉक वाली छपाई की तकनीक लेकर इटली वापस आया।
  • पुस्तकों की माँग बढ़ने के साथ-साथ यूरोप के पुस्तक विक्रेता समस्त विश्व में इनका निर्यात करने लगे।
  • गुटेनबर्ग ने जैतून प्रेस का आविष्कार किया। यही जैतून प्रेस ही प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल या आदर्श बना।
  • गुटेनबर्ग ने अपनी जैतून प्रेस से सर्वप्रथम बाईबिल छापी। इनके द्वारा निर्मित प्रेस को मुवेबल टाइप प्रिंटिंग मशीन के नाम से जाना गया।
  • 1450-1550 ई. के मध्य यूरोप के अधिकांश देशों में छापेखाने लग गए थे।
  • छापेखाने के आविष्कार से एक नये पाठक वर्ग का जन्म हुआ।
  • पुस्तकों तक पहुँच आसान हो जाने से पढ़ने की एक नयी संस्कृति का विकास हुआ।

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→  धार्मिक विवाद व मुद्रण

  • छापेखाने के आविष्कार से लोगों के विचारों के आदान-प्रदान का रास्ता खुला। अब लोग शासन के विचारों से असहमति व्यक्त करते हुए अपने विचारों को छापकर जनता में प्रचारित कर सकते थे।
  • प्रसिद्ध धर्म सुधारक मार्टिन लूथर किंग ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना की तथा पिच्चानवेस्थापनाओं का लेखन किया।
  • लूथर ने मुद्रण के विषय में कहा, “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा।”

→  मुद्रण और प्रतिरोध

  • मुद्रित साहित्य के बल पर कम शिक्षित लोग धर्म की भिन्न-भिन्न व्याख्याओं से परिचित हुए।
  • 17वीं व 18वीं शताब्दी के दौरान यूरोप में साक्षरता में तेजी से वृद्धि हुई।
  • यूरोप में विभिन्न सम्प्रदायों के चर्चों ने गाँवों में विद्यालयों की स्थापना की तथा उनमें किसानों व कारीगरों को शिक्षा प्रदान की जाने लगी। 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में यूरोप में पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जिनमें समसामयिक घटनाओं की सूचना के साथ-साथ मनोरंजन भी होता था।
  • 18वीं शताब्दी के मध्य तक लोगों को यह विश्वास हो चुका था कि पुस्तकों के माध्यम से प्रगति संभव है। किताबें ही निरंकुशवाद व आतंकी राजसत्ता से मुक्ति दिला सकती हैं। • 18वीं शताब्दी में फ्रांसीसी उपन्यासकार लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए ने घोषणा की, “छापाखाना प्रगति का सबसे ताकतवर औजार है, इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा।”

→  मुद्रण संस्कृति और फ्रांसीसी क्रांति

  • कई इतिहासकारों का मत है कि फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण मुद्रण संस्कृति ने ही किया था।
  • 1780 ई. के दशक तक राजशाही और उसकी नैतिकता का मखौल उड़ाने वाले साहित्य का बहुत अधिक लेखन हो चुका था।
  • 19वीं सदी के अन्त में यूरोप में प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता ने पाठ्य-पुस्तकों के प्रकाशन को बढ़ावा दिया।
  • फ्रांस में मात्र बाल पुस्तकें छापने के लिए एक प्रेस अथवा मुद्रणालय स्थापित किया गया।
  • 19वीं शताब्दी में उपन्यास छपने शुरू हुए तो महिलाएँ उनकी अहम पाठक मानी गईं।
  • जेन ऑस्टिन, ब्रॉण्ट बहनें व जॉर्ज इलियट आदि प्रसिद्ध अग्रणी लेखिकाएँ थीं।

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→  तकनीकी परिष्कार व मुद्रण

  • 18वीं शताब्दी के आखिर तक प्रेस धातु से बनने लगे थे।
  • 17वीं सदी से ही किराए पर पुस्तकें देने वाले पुस्तकालय अस्तित्व में आ चुके थे।
  • 19वीं शताब्दी के मध्य तक न्यूयॉर्क के रिचर्ड एम. हो. ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस का निर्माण किया।
  • 19वीं सदी में ही पत्रिकाओं ने उपन्यासों को धारावाहिक के रूप में छापकर लिखने की एक विशेष शैली को जन्म दिया।

→  भारत का मुद्रण संसार

  • भारत में प्राचीन काल से ही संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियों की प्राचीन एवं समृद्ध परम्परा थी।
  • पाण्डुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनायी जाती थीं।
  • भारत में सर्वप्रथम प्रिंटिंग प्रेस गोवा में पुर्तगाली धर्म प्रचारकों के साथ आया था।
  • कैथोलिक पुजारियों ने सर्वप्रथम 1579 ई. में कोचीन में प्रथम तमिल पुस्तक तथा 1713 ई. में मलयालम पुस्तक छापी।
  • ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 17वीं शताब्दी के अंत तक छापेखाने का आयात करना प्रारम्भ कर दिया।
  • जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 ई. में ‘बंगाल गजट’ नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • 19वीं सदी में भारत में अलग-अलग समूह औपनिवेशिक समाज में हो रहे परिवर्तनों से जूझते हुए धर्म की अपने-अपने अनुसार व्याख्या प्रस्तुत कर रहे थे।

→  धार्मिक सुधार पर मुद्रण का प्रभाव

  • 16वीं शताब्दी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘तुलसीदास कृत रामचरितमानस’ का प्रथम मुद्रित संस्करण 1810 ई. में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ।
  • 1870 ई. के दशक तक पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक व राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी करते हुए कैरिकेचर व कार्टून प्रकाशित होने लगे।
  • भारत में महिलाओं की जिन्दगी व उनकी भावनाओं पर भी सामग्री का प्रकाशन होना प्रारम्भ हुआ।
  • हिन्दी भाषा में छपाई की शुरुआत 1870 ई. के दशक में हुई।

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→  महिलाएँ और मुद्रण तथा जनता

  • 20वीं शताब्दी के आरम्भ में महिलाओं के लिए मुद्रित तथा कभी-कभी उनके द्वारा सम्पादित पत्रिकाएँ लोकप्रिय हो गयीं।
  • 19वीं सदी में भारत में निर्धन वर्ग भी बाजार से पुस्तकें खरीदने की स्थिति में आ गया था।
  • 20वीं शताब्दी में भारत में सार्वजनिक पुस्तकालय खुलने लगे जिससे किताबों तक लोगों की पहुँच में वृद्धि हुई।
  • 1820 ई. के दशक में कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय ने प्रेस की स्वतन्त्रता को नियन्त्रित करने वाले कुछ कानून पास किए तथा कम्पनी ने ब्रिटिश शासन का उत्सव मनाने वाले अखबारों के प्रकाशन को प्रोत्साहन देना प्रारम्भ किया।
  • 1857 ई. की क्रान्ति के पश्चात् प्रेस की स्वतन्त्रता के प्रति रवैया बदल गया तथा नाराज अंग्रेजों ने देसी प्रेस को बन्द करने की माँग की।
  • 1878 ई. में आयरिश प्रेस कानून की तरह वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट भारत में लागू किया गया।

→  महत्त्वपूर्ण तिथियां व घटनाएं

तिथि चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तखी पर कागज को रगड़कर किताबें छपना प्रारम्भ हुआ।
1. सन् 594 ई. इस अवधि के दौरान चीनी बौद्ध प्रचारक छपाई की तकनीक लेकर जापान गये।
2. सन् 768-770 ई. जापान की सबसे पुरानी पुस्तक ‘डायमण्ड सूत्र’ का प्रकाशन। इस पुस्तक में पाठ के साथ-साथ काष्ठ पर चित्र खुदे थे।
3. सन् 868 ई. मार्कोपोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में कई वर्ष खोज करने के पश्चात् इटली वापस लौटा।
4. सन् 1295 ई. स्ट्रॉसबर्ग के योहान गुटेनबर्ग ने जैतून प्रेस का आविष्कार किया। इस मशीन के द्वारा उन्होंने सर्वप्रथम बाईबिल पुस्तक छापी। इस मशीन को मूवेबल टाइप प्रिटिंग प्रेस भी कहा जाता था।
5. सन् 1448 ई. रोमन चर्च द्वारा प्रतिबन्ध्रित पुस्तकों की सूची रखना प्रारम्भ हुआ।
6. सन् 1558 ई. कैथोलिक पुजारियों ने कोचीन में प्रथम तमिल पुस्तक का प्रकाशन किया।
7. सन् 1579 ई. कैथोलिक पुजारियों ने प्रथम मलयालम पुस्तक का प्रकाशन किया।
8. सन् 1713 ई. एदो में कितागावा उतामारो का जंन्म। इन्होंने उकियो (तैरती दुनिया के चित्र) नामक एक नयी चित्र शैली को जन्म दिया।
9. सन् 1753 ई. 1780 ई. के दशक तक राजशाही व उसकी नैंतिकता का मजाक उड़ाने वाले साहित्य का पर्याप्त लेखन हो चुका था।
10. सन् 1780 ई. जेम्स ऑगस्टस हिक्की द्वारा बंगाल गजट, नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन किया गया।
11. सन् 1810 ई. तुलसीदास कृत रामचरितमानस का पहला मुद्रित संस्करण कलकत्ता से प्रकाशित।
12. सन् 1821 ई. राजा राममोहन राय द्वारा संवाद कौमुदी का प्रकाशन।
13. सन् 1857 ई. भारत में प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम।
14. सन् 1867 ई. देवबन्द मिशनरी की स्थापना जिसने मुसलमान पाठकों को रोजमर्रा का जीवन जीने का तरीका एवं सिद्धान्त बताने वाले विभिन्न फतवे जारी किये।
15. सन् 1878 ई. भारत में आयरिश प्रेस कानून की तर्ज पर वर्नाक्यूलर एक्ट लागू किया गया।
16. सन् 1907 ई. ब्रिटिश सरकार द्वारा पंजाब के क्रान्तिकारियों को कालापानी भेजा गया।
17. सन् 1908 ई. पंजाब के क्रान्तिकारियों को कालापानी भेजने का अपने पत्र ‘केसरी’ में विरोध करने पर बाल गंगाधर तिलक को अंग्रेजी सरकार द्वारा कैद कर लिया गया।
18. सन् 1919 ई. रॉलेट एक्ट के अधीन कार्यरत षड्यन्त्र समिति ने विभिन्न समाचार-पत्रों के विरुद्ध जुर्माना आदि कार्यवाहियों को और अधिक कठोर बना दिया।
19. सन् 1920 ई. इ दशक में हॉलैण्ड-इंग्लैण्ड में लोकप्रिय पुस्तकों की एक सस्ती भृंखला-शिलिंग श्रृंखला के तहत छापी गई।
20. सन् 1930 ई. आर्थिक मन्दी के कारण प्रकाशकों में पुस्तकों की बिक्री गिरने का भय व्याप्त।
21. सन् 1938 ई. कानपुर के मिल मजदर काशीबाबा ने छोटे-बडे सवाल लिखकर और छापकर जातीय तथा वर्गीय शोषण के मध्य का रिश्ता समझाने का त्रयास किया।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. खुशनवीसी: सुलेखन। सुन्दर एवं कलात्मक लेखन कला को खुशनवीसी (सुलेखन) कहा जाता है।

2. वेलम: चर्मपत्र अथवा जानवरों के चमड़े से बनी लेखन की सतह को वेलम कहा जाता है।

3. गाथा गीत: लोकगीत का ऐतिहासिक आख्यान जिसे गाया या सुनाया जाता है।

4. कम्पोजीटर: छपाई के लिए इबारत कम्पोज करने वाला व्यक्ति कम्पोजीटर कहलाता है।

5. गैली: वह धात्विक फ्रेम जिसमें टाइप बिछाकर इबारत बनायी जाती थी।

6. शराबघर: वह स्थान जहाँ व्यक्ति शराब पीने, कुछ खाने व मित्रों से मिलने व विचार-विमर्श के लिए आते थे।

7. प्लाटेन: लेटर प्रेस छपाई में प्लाटेन एक बोर्ड होता है जिसे कागज के पीछे दबाकर टाइप की छाप प्राप्त की जाती थी। पहले यह बोर्ड काठ का होता था, बाद में यह इस्पात का बनने लगा।

8. प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार: 16वीं शताब्दी में यूरोप में रोमन कैथोलिक चर्च में सुधार का आन्दोलन। इस आन्दोलन से कैथोलिक ईसाई मत के विरोध में कई धाराएँ निकलीं। मार्टिन लूथर किंग प्रोटेस्टेंट सुधारकों में से एक थे।

9. धर्म विरोधी: इन्सान अथवा विचार जो चर्च की मान्यताओं से असहमत हों। मध्य काल में चर्च विधर्मियों अथवा धर्म द्रोह के प्रति कठोर था। उसे लगता था कि लोगों की आस्था, उनके विश्वास पर मात्र उसका अधिकार है जहाँ उसकी बात ही अन्तिम है।

10. इन्कवीजीशन: इसे धर्म अदालत भी कहते हैं। विधर्मियों की पहचान करने एवं दण्ड देने वाली रोमन कैथोलिक संस्था।

11. पंचांग: सूर्य व चन्द्रमा की गति, ज्वार-भाटा के समय और लोगों के दैनिक जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ देने वाला वार्षिक प्रकाशन पंचांग कहलाता है।

12. सम्प्रदाय: किसी धर्म का एक उपसमूह सम्प्रदाय कहलाता है।

13. चेयबुक (गुटका): पॉकेट बुक के आकार की पुस्तकों के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द। सामान्यतया इन्हें फेरीवाले बेचते थे। ये गुटका सोलहवीं सदी की मुद्रण क्रान्ति के समय से बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ।

14. उलेमा: इस्लामी कानून व शरियत के विद्वान।

15. निरंकुशवाद: शासन संचालन की एक ऐसी व्यवस्था जिसमें किसी एक व्यक्ति को सम्पूर्ण शक्ति प्राप्त हो तथा उस पर न संवैधानिक पाबन्दी लगी हो और न ही कानूनी पाबन्दी।

16. फतवा: अनिश्चय अथवा असमंजस की स्थिति में इस्लामी कानून को जानने वाले विद्वान, सामान्यतया मुफ्ती के द्वारा की जाने वाली वैधानिक घोषणा।

17. बिब्लियोथीक ब्ल्यू: फ्रांस में छपने वाली सस्तो मूल्य को छोटी पुस्तकें। इनकी छपाई घटिया कागज पर होती थी तथा ये पुस्तकें नीली जिल्द में बँधी होतीगीं।

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