JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

JAC Class 9 Hindi उपभोक्तावाद की संस्कृति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से अभिप्राय उत्पादों का भोगकर उनसे सुख प्राप्त करना है। इस प्रकार वर्तमान जीवन में आधुनिक उपभोगों का भोग करना ही आज सुख है।

प्रश्न 2.
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ?
उत्तर :
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को बहुत अधिक प्रभावित कर रही है। लोग प्रत्येक वस्तु विज्ञापनों से प्रभावित होकर खरीदते हैं। वे वस्तु के गुण-अवगुण का विचार किए बिना ही उस वस्तु के प्रचार से प्रभावित हो जाते हैं। वे बहुविज्ञापित वस्तु खरीदने में ही अपनी विशिष्टता अनुभव करते हैं।

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प्रश्न 3.
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है ?
उत्तर :
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि वे चाहते थे कि हम अपनी परंपराओं पर दृढ़ रहें तथा नवीन सांस्कृतिक मूल्यों को अच्छी प्रकार से जाँच-परखकर ही स्वीकार करें। हमें बिना सोचे-समझे किसी का भी अंधानुकरण नहीं करना चाहिए अन्यथा हमारा समाज पथभ्रष्ट हो जाएगा।

आशय स्पष्ट कीजिए –

(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
उत्तर :
उपभोग भोग को ही सुख मानने के कारण आज का मनुष्य अधिक-से-अधिक भौतिक सुख-सुविधाओं को जुटाने में लगा हुआ है। इस प्रकार आज के इस उपभोक्तावादी वातावरण में न चाहते हुए भी प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र भी बदल रहा है और न चाहने पर भी हम सभी उत्पाद को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हैं और उसके भोग को ही सुख मान बैठे हैं।

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(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हों।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि लोग प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। उनके कुछ कार्य तो इतनी अधिक मूर्खतापूर्ण हरकतों से युक्त होते हैं कि उन्हें देखकर ही हँसी आ जाती है। इससे उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि नहीं होती बल्कि उनका मजाक ही बन जाता है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी० वी० पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं। क्यों ?
उत्तर :
टी० वी० पर किसी भी वस्तु का विज्ञापन इतने आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि उस विज्ञापन को देखकर हम उस विज्ञापन से इतने अधिक प्रभावित हो जाते हैं कि आवश्यकता न होने पर भी हम उस वस्तु को खरीदने के लिए लालायित हो उठते हैं। विज्ञापन का प्रस्तुतीकरण हमें उस अनावश्यक वस्तु को खरीदने के लिए बाध्य कर देता है।

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प्रश्न 6.
आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन। तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर :
मेरे विचार में किसी भी वस्तु को खरीदने से पहले उसकी गुणवत्ता पर विचार करना चाहिए। इसके साथ ही उस वस्तु की उपयोगिता के संबंध में भी सोचना चाहिए। केवल विज्ञापन से प्रभावित होकर कुछ नहीं खरीदना चाहिए। क्योंकि विज्ञापन में तो उत्पादक अपनी वस्तु को इस प्रकार के लुभावने रूप में प्रस्तुत करता है कि उपभोक्ता उसकी चमक-दमक देखकर ही उसे खरीदने के लिए लालायित हो उठता है। वह उस वस्तु की उपयोगिता तथा गुणों पर विचार नहीं करता है। यदि वह वस्तु हमारे लिए उपयोगी नहीं है तथा उसकी गुणवत्ता से हम संतुष्ट नहीं हैं तो वह वस्तु हमें खरीदनी नहीं चाहिए।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
आज के इस उपभोक्तावादी युग में प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से होड़ लगाने में लगा हुआ है। वह अपनी छोटी गाड़ी के सुख से सुखी नहीं है बल्कि दूसरे की बड़ी गाड़ी देखकर दुखी होता रहता है। एक ने विवाह में जितना खर्च किया तथा शान दिखाई दूसरा उससे दुगुनी शान दिखाना चाहता है चाहे इसके लिए उसे ऋण ही क्यों न लेना पड़े। इस प्रकार आज के इस उपभोक्तावादी युग में दिखावे की संस्कृति पनप रही है।

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प्रश्न 8.
आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाज और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
कुछ दिन पहले मुझे श्री संतोष कुमार के पुत्र के मुंडन का निमंत्रण पत्र प्राप्त हुआ। यह निमंत्रण पत्र सुनहरे अक्षरों में छपा हुआ तथा बहुमूल्य मखमल के बने लिफ़ाफ़े में था। जब मैं आयोजन – स्थल पाँच सितारा क्लब में पहुँचा तो वहाँ की सजावट देखकर दंग रह गया। मुंडन से पूर्व शहनाई वादन, संगीत – नृत्य तथा अन्य कार्यक्रम होते रहे। बाद में भव्य पंडाल के नीचे मंत्रोच्चारण में मुंडन संस्कार हुआ।

बच्चे के ननिहाल वालों ने सोने हीरे के उपहारों के अतिरिक्त लाखों के अन्य उपहार दिए। अन्य लोगों ने छोटे साइकिल से लेकर बच्चे के वस्त्रों सहित अनेक उपहार दिए। इसके पश्चात भोजन की अनेक प्रकार की व्यवस्था थी। भारतीय से लेकर चाइनीज़ तक। मैं उपभोक्ता संस्कृति में पनपते दिखावे की प्रवृत्ति को देखता ही रह गया। मुंडन पर ही लाखों खर्च कर दिए गए, जबकि पहले किसी तीर्थ स्थान पर जाकर अथवा घर में ही पूजा करके परिवार जनों के बीच सादगी से मुंडन संस्कार संपन्न हो जाता था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 9.
धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
उत्तर :
इस वाक्य में बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रियाविशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रियाविशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रियाविशेषण कहलाता है।

(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए। उत्तर :
1. साबुन आपको दिनभर तरोताजा रखता है।
2. पेरिस से परफ्यूम मँगवाइए, इतना ही खर्च हो जाएगा।
3. विकास के विराट उद्देश्य पीछे हट रहे हैं।
4. अमेरिका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है
5. जैसे-जैसे दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति बढ़ेगी।

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(ख) धीरे-धीरे, ज़ोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज़्यादा, यहाँ, उधर, बाहर – इन क्रियाविशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
उत्तर :

  • धीरे-धीरे – धीरे-धीरे चलो, नहीं तो गिर जाओगे।
  • ज़ोर से – कल ज़ोर से बारिश हुई थी।
  • लगातार – सोहन लगातार तीन घंटे साइकिल चलाता रहा।
  • हमेशा – सुषमा हमेशा कक्षा में देर से आती है।
  • आजकल – आजकल महँगाई बढ़ गई है।
  • कम – लाला रामलाल कम तोलता है।
  • ज़्यादा – रमेश को ज्यादा बुखार नहीं था।
  • उधर – उधर बरफ़ पड़ रही है।
  • यहाँ – यहाँ सरदी अधिक नहीं है।
  • बाहर – तुम्हें कोई बाहर बुला रहा है।

(ग) नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रियाविशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए –

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति 1

पाठेतर सक्रियता – 

‘दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों पर बढ़ता प्रभाव’ विषय पर अध्यापक और विद्यार्थी के बीच हुए वार्तालाप को संवाद – शैली में लिखिए।
उत्तर :
अध्यापक – अच्छे स्वास्थ्य के लिए हरी सब्ज़ियाँ अवश्य खानी चाहिए। इनसे पेट ही नहीं भरता बल्कि विटामिन भी मिलते हैं।
अनुज – सर, मैगी खाने में क्या बुराई है ? उसमें भी तो कार्बोहाइड्रेट्स हैं।
अध्यापक – इससे शरीर को उतने लाभ नहीं मिलते जितने तुम्हें चाहिए। तुम्हें लंबा कद भी तो चाहिए।
अनुज – उसके लिए तो हार्लिक्स ले लेंगे। टी०वी० रोज़ यही तो कहता है कि लटकने से कद नहीं बढ़ेगा। बल्कि हार्लिक्स से कद बढ़ेगा।

इस पाठ के माध्यम से आपने उपभोक्ता संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अब आप अपने अध्यापक की सहायता से सामंती संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करें और नीचे दिए गए विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कक्षा में अपने विचार व्यक्त करें।
क्या उपभोक्ता संस्कृति सामंती संस्कृति का ही विकसित रूप है ?
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

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आप प्रतिदिन टी० वी० पर ढेरों विज्ञापन देखते – सुनते हैं और इनमें से कुछ आपकी ज़बान पर चढ़ जाते हैं। आप अपनी पसंद की किन्हीं दो वस्तुओं पर विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

यह भी जानें –

सांस्कृतिक अस्मिता – अस्मिता से तात्पर्य है पहचान। हम भारतीयों की अपनी एक सांस्कृतिक पहचान है। यह सांस्कृतिक पहचान भारत की विभिन्न संस्कृतियों के मेल-जोल से बनी है। इस मिली-जुली सांस्कृतिक पहचान को ही हम सांस्कृतिक अस्मिता कहते हैं।

सांस्कृतिक उपनिवेश – विजेता देश जिन देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करता है, वे देश उसके उपनिवेश कहलाते हैं। सामान्यतः विजेता देश की संस्कृति विजित देशों पर लादी जाती है, दूसरी तरफ़ हीनता ग्रंथिवश विजित देश विजेता देश की संस्कृति को अपनाने भी लगते हैं। लंबे समय तक विजेता देश की संस्कृति को अपनाए रखना सांस्कृतिक उपनिवेश बनना है।

बौद्धिक दासता – अन्य को श्रेष्ठ समझकर उसकी बौद्धिकता के प्रति बिना आलोचनात्मक दृष्टि अपनाए उसे स्वीकार कर लेना बौद्धिक दासता है।

छद्म आधुनिकता – आधुनिकता का सरोकार विचार और व्यवहार दोनों से है। तर्कशील, वैज्ञानिक और आलोचनात्मक दृष्टि के साथ नवीनता का स्वीकार आधुनिकता है। जब हम आधुकिता को वैचारिक आग्रह के साथ स्वीकार न कर उसे फ़ैशन के रूप में अपना लेते हैं तो वह छद्म आधुनिकता कहलाती है।

JAC Class 9 Hindi उपभोक्तावाद की संस्कृति Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ निबंध का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ निबंध में श्यामाचरण दुबे ने विज्ञापन की चकाचौंध में भ्रमित समाज का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। लेखक का विचार है कि आज हम विज्ञापनों से प्रभावित होकर वस्तुओं को खरीदने में लगे हैं, उन वस्तुओं की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देते हैं। समाज का उच्चवर्ग प्रदर्शनपूर्ण जीवनशैली अपना रहा है जिस कारण उच्च और निम्नवर्ग में दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं। इससे जो संपन्न नहीं हैं वे अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए गलत मार्ग अपना लेंगे। इससे समाज में सामाजिक अशांति और विषमता बढ़ेगी। इसलिए लेखक गांधी जी के द्वारा दिखाए गए स्वस्थ सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है जिससे हमारे समाज की नींव सुदृढ़ हो सके।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 2.
उपभोक्तावाद की संस्कृति के फैलाव का परिणाम क्या होगा ?
उत्तर :
उपभोक्तावाद की संस्कृति के फैलाव से आपस में दिखावे की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलेगा। जीवन बहुविज्ञापित वस्तुओं को खरीदने में लगा रहेगा। वस्तुओं की गुणवत्ता पर हमारा ध्यान नहीं रहेगा। इससे धन का अपव्यय होगा। डिब्बा बंद खाद्य-पदार्थों को खाने से हमारे स्वास्थ्य की हानि होगी। एक-दूसरे से अधिक दिखावा करने की होड़ से सामाजिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो जाएगा। व्यक्ति केंद्रिकता बढ़ेगी। स्वार्थ के लिए सब कुछ किया जाएगा। मर्यादाएँ टूटेंगी तथा नैतिक मानदंड ढीले पड़ जाएँगे। सर्वत्र भोग की प्रधानता हो जाएगी। इससे हमारी सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा नष्ट हो जाएगी।

प्रश्न 3.
उपभोक्तावाद क्या है? यह हमारी जीवन-शैली को कैसे प्रभावित कर रहा है ?
उत्तर :
उपभोक्तावाद से अभिप्राय यह है कि जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति उत्पादित की गई वस्तु के उपभोग से आनंद तथा सुख की प्राप्ति का अनुभव करने लगता है और व्यक्ति को जीवन में केवल भोग के द्वारा ही संतोष मिलता है। वह सदा भोग-विलास में डूबा रहता है। उपभोक्तावाद ने हमारी जीवन शैली को प्रभावित किया है। हम अधिक-से-अधिक उत्पादों का आनंद लेने में सुख अनुभव करने लगे हैं। इसके कारण चारों ओर उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। जिससे हम अधिक-से-अधिक उपभोग कर सकें। हमारी स्थिति ऐसी हो गई है कि हमारा जीवन उत्पाद को ही समर्पित हो गया है।

प्रश्न 4.
‘अमेरिका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी हो सकता है’। लेखक किस बात की संभावना व्यक्त कर रहा है ?
उत्तर :
लेखक इस बात की संभावना व्यक्त कर रहा है कि भारत में भी अमेरिका की तरह मरने से पहले ही अपनी कब्र के लिए स्थान और अनंत विश्राम का प्रबंध एक निश्चित कीमत पर कर सकते हैं। साथ में आपकी कब्र और भी कई सुविधाओं में उपलब्ध हो सकती है। लेखक यह इसलिए भी कह रहा है क्योंकि आज का युग दिखावे का युग है। हम लोगों की आदत भी दूसरों की आदतों का अनुसरण करना है।

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प्रश्न 5.
आज समाज में व्यक्ति की प्रतिष्ठा का मानदंड क्या है ?
उत्तर :
आज समाज में व्यक्ति की प्रतिष्ठा का चिह्न उसका मान, शान या सम्मान नहीं है। आज के समय में उसी व्यक्ति की समाज में प्रतिष्ठा होती है जिसके पास दिखावे का अधिक-से-अधिक सामान हो। जो एक रुपए का सामान सौ में खरीद सकता हो। जिसकी पसंद फैशन के अनुसार बदलती रहती है। यही आज के समाज में प्रतिष्ठा के चिह्न माने जाते हैं और सामान्य लोगों में सम्मान प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 6.
‘यह विशिष्ट जन का समाज है पर सामान्य जन भी इसे ललचाई आँखों से देखता है।’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर :
‘यह विशिष्ट जन का समाज है पर सामान्य जन भी इसे ललचाई आँखों से देखता है।’ लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है कि आज साधारण मानव भी उच्च लोगों की तरह दिखावे की संस्कृति में दौड़ पड़ा है। उसे भी पाँच सितारा होटलों में जाना अच्छा लगता है। विदेशी सामान का पिटारा उसे भी लुभाता है। वह भी उपभोक्तावादी संस्कृति से प्रभावित होकर नित नए उत्पादों का प्रयोग करने के लिए लालायित है। वह भी अपना जीवन सुख से व्यतीत करना चाहता है, इसलिए सामान्य व्यक्ति भी विशिष्ट जन के समाज को जीने के लिए ललचाई आँखों से देखते हैं।

प्रश्न 7.
सांस्कृतिक अस्मिता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
‘अस्मिता’ का शाब्दिक अर्थ है पहचान। सांस्कृतिक अस्मिता से अभिप्राय अपनी संस्कृति की पहचान। भारतवासियों की अपनी एक पहचान है। यह पहचान विभिन्न भारतीय संस्कृतियों के मेल-जोल से बनी है। इसी मिली-जुली संस्कृति का नाम सांस्कृतिक अस्मिता है। इस पर कभी भी दूसरे लोगों की दृष्टि ने क्षीण अवश्य किया है परंतु समाप्त नहीं किया है।

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प्रश्न 8.
हम बौद्धिक दासता के शिकार किस प्रकार हो रहे हैं ?
उत्तर :
बौद्धिक दासता से अभिप्राय यह है कि दूसरे व्यक्ति को अपने से बुद्धिमान समझकर उसके तर्क या आलोचना को ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लेना तथा बाद में उसी प्रकार का आचरण करना आरंभ कर देना है। हम लोग दूसरे देशों के उत्पादों का उपयोग, उनके कहे अनुसार कि यह बहुत अच्छा है, करने लग जाते हैं। इस स्थिति में हम अपनी बुद्धि का बिलकुल प्रयोग नहीं करते हैं।

प्रश्न 9.
हम पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश कैसे बन रहे हैं ?
उत्तर :
सांस्कृतिक उपनिवेश से अभिप्राय है कि किसी देश द्वारा अपनी संस्कृति को दूसरे देश पर लाद देना है। ऐसा उन देशों में पाया जाता है जो देश किसी अन्य देश के गुलाम रहे हों या उनकी संस्कृति से प्रभावित हों। भारत लगभग 200 सालों से अंग्रेज़ों का गुलाम रहा है इसलिए यहाँ के लोगों पर पश्चिम की संस्कृति का बहुत अधिक प्रभाव रहा है। देश के आज़ाद होने पर भी हम अपनी मानसिकता को नहीं बदल पाए हैं। आज भी हम पश्चिमी सभ्यता का दिखावा करते हुए अपने देश की संस्कृति को भूल रहे हैं। आधुनिकता की दौड़ में कहीं हम अन्य देशों से पिछड़ न जाएँ इसलिए पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश बन रहे हैं।

प्रश्न 10.
जीवन-स्तर के अंतर के बढ़ने से समाज की स्थिति कैसी हो गई ?
उत्तर :
जीवन-स्तर के अंतर के बढ़ने से समाज के वर्गों से दूरी बढ़ रही है जिससे चारों ओर आक्रोश और अशांति फैल रही है। वर्तमान समाज में जैसे-जैसे यह दिखावे की संस्कृति फैलेगी, वैसे-वैसे सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी। इसका कारण एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति का बढ़ना है। ईर्ष्या की भावना भी समाज में अशांति बन रही है।

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प्रश्न 11.
“स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है।” कैसे ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार आज मनुष्य का स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। मनुष्य समाज के सुख को न सोचकर केवल अपने ही सुख- सुविधाओं को जुटाने में लगा रहता है। वह समाज कल्याण के स्थान पर केवल अपने ही कल्याण के विषय में सोचने लगता है। उसे दूसरों से कोई भी मतलब नहीं रहता है वह केवल अपने अच्छे-बुरे के विषय में सोचता है उसकी इसी स्वार्थी सोच ने परमार्थ की भावना को समाप्त कर दिया है।

प्रश्न 12.
गांधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति के विषय में क्या कहा था ?
उत्तर :
गांधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति के विषय में कहा था कि हमें अन्य संस्कृतियों की अच्छी बातें ग्रहण करने में संकोच नहीं करना चाहिए तथा अपनी परंपराओं का भी हाथ नहीं छोड़ना चाहिए। उपभोक्ता संस्कृति को संपूर्ण रूप से जीवन में समाहित करने से हम अपने परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों को भूल जाएँगे। इसके लिए हमें खुले मन से किसी की बात सुननी चाहिए या उसके प्रभाव से प्रभावित होकर उसकी बात ग्रहण करनी चाहिए। यह सच हम लोगों की सोच पर निर्भर करता है, इसीलिए गाँधी जी ने इस उपभोक्ता संस्कृति के लिए पहले से ही सचेत कर दिया था।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। एक नई जीवन-शैली अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है। उसके साथ आ रहा है एक नया जीवन-दर्शन उपभोक्तावाद का दर्शन। उत्पादन बढ़ाने पर जोर है चारों ओर। यह उत्पादन आपके लिए है, आपके भोग के लिए है, आपके सुख के लिए है। ‘सुख’ की व्याख्या बदल गई है। उपभोग भोग ही सुख है। एक सूक्ष्म बदलाव आया है नयी स्थिति में। उत्पाद तो आपके लिए हैं, पर आप यह भूल जाते हैं कि जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कौन धीरे-धीरे अपना वर्चस्व स्थापित कर रही थी ?
(ख) जीवन-शैली के साथ किसका पदार्पण हो रहा है ?
(ग) समाज में क्या बढ़ाने की होड़ है ?
(घ) सुख की परिभाषा बदल गई है। कैसे ?
(ङ) उपभोक्तावादी दर्शन के परिणामस्वरूप मानव का क्या परिवर्तित हो रहा है ?
उत्तर :
(क) नवीन जीवन शैली धीर-धीरे अपना वर्चस्व स्थापित कर रही थी।
(ख) नवीन जीवन शैली के साथ उपभोक्तावादी दर्शन का पदार्पण हो रहा था।
(ग) समान में उत्पादन बढ़ाने की होड़ है।
(घ) सुख की परिभाषा बदल गई है। अब माना जाने लगा है कि उत्पादन का उपभोग ही सुख है।
(ङ) उपभोक्तावादी दर्शन के परिणामस्वरूप जाने-अनजाने मानव का चरित्र भी परिवर्तित हो रहा है और हम उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।

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2. कल भारत में भी यह संभव हो। अमरीका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है। प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं। चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हों। यह है एक छोटी-सी झलक उपभोक्तावादी समाज की। यह विशिष्ट जन का समाज है पर सामान्य जन भी इसे ललचाई निगाहों से देखते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) विशिष्ट जन का समाज कौन-सा है ?
(ख) जनसामान्य किसे ललचाई आँखों से देखता है और क्यों ?
(ग) भारत में क्या संभव है ?
उत्तर :
(क) विशिष्ट जन का समाज उपभोक्तावादी समाज है।
(ख) अमेरिका में आज जो हो रहा है, वह कल भारत में भी संभव है।
(ग) सामान्य जन विशिष्ट जन के समाज को ललचाई आँखों से देखता है क्योंकि वह उसे आकर्षक लगता है। वह समाज उपभोक्तावाद की झलक दिखलाता है।

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3. हम सांस्कृतिक अस्मिता की बात कितनी ही करें, परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है। कड़वा सच तो यह है कि हम बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं। पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश बन रहे हैं। हमारी नई संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है। हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं। प्रतिष्ठा की अंधी प्रतिस्पर्धा में जो अपना है उसे खोकर छद्म आधुनिकता की गिरफ़्त में आते जा रहे हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) लेखक के अनुसार भारतीय किस दासता को स्वीकार रहे हैं ?
(ख) भारतीय नवीन संस्कृति कैसी है ?
(ग) हम किसे गँवाकर छद्म आधुनिकता की ओर प्रवेश कर रहे हैं ?
(घ) उपभोक्तावादी दर्शन का क्या प्रभाव हुआ है ?
उत्तर :
(क) लेखक के अनुसार भारतीय बौद्धिक दासता को स्वीकार कर रहे हैं।
(ख) नवीन भारतीय संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है। हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं।
(ग) हम जो कुछ भी अपना है, उसे खोकर छद्म आधुनिकता की गिरफ्त में आते जा रहे हैं।
(घ) उपभोक्तावादी दर्शन से हमारी परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है साथ ही आस्थाओं का भी क्षरण हुआ है। हम बौद्धिक दास बनने के साथ-साथ पश्चिम का सांस्कृतिक उपनिवेश बनते जा रहे हैं।

4. जीवन-स्तर का यह बढ़ता अंतर आक्रोश और अशांति को जन्म दे रहा है। जैसे-जैसे दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी। हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का ह्रास तो हो ही रहा है, हम लक्ष्य-भ्रम से भी पीड़ित हैं। विकास के विराट उद्देश्य पीछे हट रहे हैं, हम झूठी तुष्टि के तात्कालिक लक्ष्यों का पीछा कर रहे हैं। मर्यादाएँ टूट रही हैं, नैतिक मानदंड ढीले पड़ रहे हैं। व्यक्ति-केंद्रिकता बढ़ रही है, स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। भोग की आकांक्षाएँ आसमान को छू रही हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) जीवन स्तर में उत्पन्न अंतर से क्या हानियाँ हैं ?
(ख) ‘लक्ष्य-भ्रम’ से क्या तात्पर्य है ? इससे क्या होगा ?
(ग) झूठी तुष्टि क्या है ? इसका क्या परिणाम होता है ?
(घ) व्यक्ति केंद्रिकता का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
(ङ) दो तत्सम शब्द चुनकर लिखिए।
उत्तर :
(क) जीवन-स्तर में बढ़नेवाले अंतर से चारों ओर आक्रोश और अशांति फैल रही है। वर्तमान जीवन स्तर दिखावे की होड़ में आगे दे बढ़ रहा है। इस कारण एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ईर्ष्या की भावना समाज में अशांति को बढ़ावा रही है।

(ख) ‘लक्ष्य-भ्रम’ का अर्थ अपने लक्ष्य को ठीक से न पहचानकर इधर-उधर भटकते रहना है। इस भ्रम के कारण मनुष्य अपने उद्देश्य से भटक गया है और केवल भोग-विलास को ही अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य मान रहा है। इस कारण समाज का नैतिक पतन हो रहा है।

(ग) झूठी तुष्टि से तात्पर्य क्षणिक सुख अथवा अस्थाई सुख की अनुभूति से है। मनुष्य जब झूठे सुख को सच्चा मान बैठता है तो उसे वास्तविक सुख अथवा आनंद का अनुभव कभी नहीं होता है। वह सदा भौतिक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने में और उन्हीं में सुख ढूँढ़ता रहता है।

(घ) जब मनुष्य समाज के सुख की न सोचकर केवल अपने ही सुख-सुविधाओं को जुटाने तथा उन सुख-सुविधाओं का उपभोग करने में लगा रहता है और समाज कल्याण के स्थान पर केवल अपना ही कल्याण सोचता रहता है तब मनुष्य आत्म- केंद्रित हो जाता है। अपने स्वार्थ में लिप्त रहने के कारण ही आज समाज में व्यक्ति केंद्रिकता बढ़ रही है।

(ङ) दो तत्सम शब्द हैं-मर्यादाएँ, आकांक्षाएँ।

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5. गांधी जी ने कहा था कि हम स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए अपने दरवाजे-खिड़की खुले रखें पर अपनी बुनियाद पर कायम रहें। उपभोक्ता संस्कृति हमारी सामाजिक नींव को ही हिला रही है। यह एक बड़ा खतरा है। भविष्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) गांधी जी ने क्या कहा था ?
(ख) उपभोक्ता संस्कृति से किसे और क्या खतरा है ?
(ग) भविष्य के लिए क्या चुनौती है ?
(घ) ‘दरवाज़े – खिड़की खुले रखने से क्या तात्पर्य है ?
(ङ) बुनियाद से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) गांधी जी ने कहा था कि हमें अन्य संस्कृतियों की अच्छी बातें ग्रहण करते हुए संकोच नहीं करना चाहिए तथा अपनी परंपराओं को भी नहीं छोड़ना चाहिए।
(ख) उपभोक्तावादी संस्कृति से हमारे सामाजिक जीवन को यह खतरा है कि हम अपने परंपरागत सांस्कृतिक जीवन मूल्यों को भूल जाएँगे।
(ग) उपभोक्तावादी संस्कृति से हम भोगवादी बन जाएँगे तथा भविष्य में अपनी परंपराओं को भूलकर अपनी सांस्कृतिक विरासत खो देंगे।
(घ) दरवाज़े-खिड़की खुले रखने से तात्पर्य यह है कि हमें खुले मन से किसी की बात सुननी चाहिए अथवा किसी प्रभाव से प्रभावित होकर उसे ग्रहण करना चाहिए।
(ङ) इन पंक्तियों में ‘बुनियाद’ का तात्पर्य हमारे जीवन-मूल्यों से है जिन पर टिककर हम जीवन में आगे बढ़ते आए हैं।

उपभोक्तावाद की संस्कृति Summary in Hindi

लेखक – परिचय :

जीवन – सुप्रसिद्ध समाज वैज्ञानिक श्यामाचरण दुबे का जन्म सन 1922 ई० में मध्य प्रदेश में हुआ था। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में पी एच०डी० की उपाधि प्राप्त की थी। इन्होंने देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया था। इनका अनेक संस्थानों से भी संबंध रहा है। सन् 1996 ई० में इनका निधन हो गया था।

रचनाएँ – डॉ॰ श्यामाचरण दुबे ने भारत की जनजातियों तथा ग्रामीण समाज का गहन अध्ययन किया है। इनसे संबंधित इनकी रचनाओं ने समाज का ध्यान इनकी समस्याओं की ओर आकर्षित किया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ – मानव और संस्कृति, परंपरा और इतिहास बोध, संस्कृति तथा शिक्षा, समाज और भविष्य, भारतीय ग्राम विकास का समाजशास्त्र, संक्रमण की पीड़ा और समय और संस्कृति हैं।

भाषा-शैली – डॉ० श्यामाचरण दुबे का अपने विषय और भाषा पर पूर्ण अधिकार है। ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ में लेखक ने विज्ञापन की चमक-दमक के पीछे भागते हुए लोगों को सावधान किया है कि इस प्रकार से अंधाधुंध विज्ञापनों से प्रभावित होकर कुछ खरीदना समाज में दिखाने की प्रवृत्तियों को बढ़ावा देगा तथा सर्वत्र सामाजिक अशांति और विषमता फैल जाएगी। लेखक ने मुख्य रूप से तत्सम प्रधान शब्दों का प्रयोग किया है, जैसे- उपभोक्ता, संस्कृति, समर्पित, चमत्कृत, प्रसाधन, परिधान, अवमूल्यन, अस्मिता, दिग्भ्रमित संसाधन, उपनिवेश आदि।

कहीं-कहीं लोक प्रचलित विदेशी शब्दों का प्रयोग भी प्राप्त होता है, जैसे- माहौल, टूथ पेस्ट, ब्रांड, माउथवाश, सिने स्टार्स, परफ्यूम, म्यूजिक सिस्टम आदि। लेखक ने अत्यंत रोचक एवं प्रभावपूर्ण शैली में अपनी बात कही है। कहीं-कहीं तो चुटीले कटाक्ष भी किए गए हैं, जैसे- ‘संगीत की समझ हो या नहीं, कीमती म्यूजिक सिस्टम ज़रूरी है। कोई बात नहीं यदि आप उसे ठीक तरह चला भी न सकें। कंप्यूटर काम के लिए तो खरीदे जाते हैं, महज़ दिखावे के लिए उन्हें खरीदनेवालों की संख्या भी कम नहीं है।’ इस प्रकार लेखक ने सहज एवं रोचक भाषा-शैली का प्रयोग किया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

पाठ का सार :

‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के लेखक डॉ० श्यामाचरण दुबे हैं। इस पाठ में लेखक ने विज्ञापनों की चमक-दमक से प्रभावित होकर खरीदारी करनेवालों को सचेत किया है कि इस प्रकार गुणों पर ध्यान न देकर बाहरी दिखावे से प्रभावित होकर कुछ खरीदने की प्रवृत्ति से समाज में दिखावे को बढ़ावा मिलेगा तथा सर्वत्र अशांति और विषमता फैल जाएगी। लेखक का मानना है कि आज चारों ओर बदलाव नज़र आ रहा है। जीवन जीने का नया ढंग अपनाया जा रहा है। सभी सुख प्राप्त करने के लिए उपभोग की वस्तुओं को खरीद रहे हैं। बाज़ार में विलासिता की सामग्रियों की खूब बिक्री हो रही है।

विज्ञापनों के द्वारा इन वस्तुओं का प्रचार हो रहा है, जैसे-टूथ-पेस्ट के ‘दाँतों को मोती जैसा चमकीला बनाता है’, ‘मुँह की दुर्गंध हटाता है’, ‘मसूड़े मज़बूत बनाता है’, ‘बबूल या नीम के गुणों से युक्त है’ आदि विज्ञापन उपभोक्ताओं को आकर्षित करते हैं। इसी प्रकार से टूथ ब्रश, माउथवाश तथा अन्य सौंदर्य प्रसाधनों के विज्ञापन भी देखे जा सकते हैं। साबुन, परफ्यूम, तेल, आफ़्टर शेव लोशन, कोलोन आदि अनेक सौंदर्य प्रसाधन की सामग्रियों के लुभावने विज्ञापन उपभोक्ता को इन्हें खरीदने के लिए आकर्षित करते रहते हैं। उच्च वर्ग की महिलाओं की ड्रेसिंग टेबल तीस-तीस हज़ार से भी अधिक मूल्य की सौंदर्य सामग्री से भरी रहती है।

इसी प्रकार से परिधान के क्षेत्र में जगह-जगह खुल रहे बुटीक महँगे और नवीनतम फ़ैशन के वस्त्र तैयार कर देते हैं। डिज़ाइनर घड़ियाँ लाख- डेढ़ लाख की मिलती हैं। घर में म्यूजिक सिस्टम और कंप्यूटर रखना फ़ैशन हो गया है। विवाह पाँच सितारा होटलों में होते हैं तो बीमारों के लिए पाँच सितारा अस्पताल भी हैं। पढ़ाई के लिए पाँच सितारा विद्यालय तो हैं ही शायद कॉलेज और विश्वविद्यालय भी पाँच सितारा बन जाएँगे।

अमेरिका और यूरोप में तो मरने से पहले ही अंतिम संस्कार का प्रबंध भी विशेष मूल्य पर हो जाता है। लेखक इस बात से चिंतित है कि भारत में उपभोक्ता संस्कृति का इतना विकास क्यों हो रहा है? उसे लगता है कि उपभोक्तावाद सामंती संस्कृति से ही उत्पन्न हुआ है। इससे हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को खोते जा रहे हैं। हम पश्चिम की नकल करते हुए बौद्धिक रूप से उनके गुलाम बन रहे हैं। हम आधुनिकता के झूठे मानदंड अपनाकर मान-सम्मान प्राप्त करने की अंधी होड़ में अपनी परंपरा को खोकर दिखावटी आधुनिकता के मोह बंधन में जकड़े जा रहे हैं।

परिणामस्वरूप दिशाहीन हो गए हैं और हमारा समाज भी भटक गया है। इससे हमारे सीमित संसाधन भी व्यर्थ ही नष्ट हो रहे हैं। लेखक का मानना है कि जीवन में उन्नति आलू के चिप्स खाने अथवा बहुविज्ञापित शीतल पेयों को पीने से नहीं हो सकती। पीजा, बर्गर को लेखक कूड़ा खाद्य मानता है। समाज में परस्पर प्रेमभाव समाप्त हो रहा है। जीवनस्तर में उन्नति होने से समाज के विभिन्न वर्गों में जो अंतर बढ़ रहा है उससे समाज में विषमता और अशांति फैल रही है। हमारी सांस्कृतिक पहचान में गिरावट आ रही है।

मर्यादाएँ समाप्त हो रही हैं तथा नैतिक पतन हो रहा है। स्वार्थ ने परमार्थ पर विजय प्राप्त कर ली है और भोग प्रधान हो गया है। गांधी जी ने कहा था कि हम सब ओर से स्वस्थ सांस्कृतिक मूल्य ग्रहण करें परंतु अपनी पहचान बनाए रखें। यह उपभोक्ता संस्कृति हमारी सामाजिक नींव को ही हिला रही है। इसलिए हमें इस बड़े खतरे से बचना होगा क्योंकि भविष्य में यह हमारे लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • उपभोक्ता – उपभोग करनेवाला
  • वर्चस्व – श्रेष्ठता, प्रधानता
  • माहौल – वातावरण
  • बहुविज्ञापित – बहुत अधिक प्रचारित
  • चमत्कृत – हैरान, चकित, विस्मित
  • परिधान – वस्त्र
  • हास्यास्पद – हँसी उत्पन्न करने वाला
  • सामंत – ज़मींदार, योद्धा
  • अवमूल्यन – गिरावट
  • क्षरण – क्षीण होना, धीरे-धीरे नष्ट होना
  • अनुकरण – नकल
  • प्रतिस्पर्धा – होड़, मुकाबला
  • गिरफ़्त – पकड़
  • सम्मोहन – मुग्ध करना
  • ह्रास – गिरावट
  • अपव्यय – फ़िजूलखर्ची
  • स्वार्थ – अपना भला
  • उपभोग – किसी वस्तु के व्यवहार का सुख या आनंद लेना, काम में लाना
  • सूक्ष्म – बहुत कम, बहुत छोटा दुर्गध – बदबू
  • सौंदर्य-प्रसाधन – सुंदरता बढ़ानेवाली वस्तुएँ
  • माह – महीना
  • हैसियत – आर्थिक योग्यता
  • विशिष्टजन – खास लोग
  • अस्मिता – अस्तित्व, पहचान
  • आस्था – श्रद्धा, विश्वास
  • उपनिवेश – एक देश के लोगों की दूसरे देश में आबादी
  • प्रतिमान – मानदंड
  • छद्म – नकली, बनावटी
  • दिग्भ्रमित – दिशाहीन, मार्ग से भटका हुआ
  • वशीकरण – वश में करना
  • तुष्टि – संतुष्टि
  • तात्कालिक – तुरंत का, उसी समय का
  • परमार्थ – दूसरे का भला, परोपकार

JAC Class 9 Hindi रचना संदेश लेखन

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JAC Board Class 9 Hindi Rachana संदेश लेखन

अपने मनोभावों और विचारों को प्रकट करने का सशक्त माध्यम संदेश – लेखन कहलाता है। इस माध्यम के द्वारा हम अपने प्रियजन, सहपाठियों, मित्रों, पारिवारिक सदस्यों या संबंधियों को किसी शुभ अवसर, त्योहार या फिर परीक्षा अथवा नौकरी में सफलता प्राप्त करने आदि अवसरों में अपने मन के भावों को संदेश लिखकर आत्मीयता से प्रकट करते हैं। इस प्रकार संदेश लेखन के माध्यम से शुभकामनाएँ भेजने के साथ-साथ निःसंदेह उनका मनोबल बढ़ाना होता है।

संदेश लेखन लिखते समय ध्यान देने योग्य प्रमुख बिंदु –

  • संदेश को बॉक्स के अंदर लिखना चाहिए।
  • संदेश लिखते समय शब्द, शब्द – सीमा 30 से 40 शब्द ही होनी चाहिए।
  • संदेश हृदयस्पर्शी तथा संक्षिप्त होने चाहिए।
  • बॉक्स के बाएँ शीर्ष में दिनांक और उसके नीचे स्थान अवश्य लिखें।
  • संदेश के आखिर में नीचे प्रेषक का नाम लिखना न भूलें।
  • संदेश लिखते समय केवल महत्वपूर्ण बातों का ही उल्लेख करें।
  • मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाली होती है।
  • संदेश लेखन में तुकबंदी वाली प्रभावशाली पंक्तियाँ भी लिखी जाती हैं।
  • संदेश दो प्रकार के अनौपचारिक व औपचारिक हो सकते हैं।

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संदेश लेखन के महत्वपूर्ण उदाहरण :

प्रश्न 1.
आप अमेरिका में रहते हैं और गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने भारतीय सहेली को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

26 जनवरी, 20XX
नवी मुंबई
प्रिय मान्यता।
भारत देश हमारा है यह हमको जान से प्यारा है दुनिया में सबसे न्यारा यह सबकी आँखों का तारा है मोती हैं इसके कण-कण में बूँद-बूँद में सागर है
प्रहरी बना हिमालय बैठ धरा सोने की गागर है।
इस गणतंत्र दिवस की आप और आपके परिवार को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। भारत देश ऐसे ही कामयाबी की बुलंदियों को छूता रहे। अपने राष्ट्र की समृद्धि और उन्नति में अपना योगदान देना हर भारतवासी का कर्तव्य है।
कविता

प्रश्न 2.
अपने मित्र को वसंत पंचमी के अवसर पर 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

10 फ़रवरी, 20Xx
नई दिल्ली
मित्रवर,
संदेश
गेंदा गमके महक बिखेरे। उपवन को आभास दिलाए।
बहे बयरिया मधुरम – मधुरम। प्यारी कोयल गीत जो गाए।
ऐसी बेला में उत्सव होता जब।
वाग्देवी भी तान लगाए।
आपको वसंत पंचमी के अवसर पर ढेर सारी बधाई और उम्मीद है कि आप हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी वार्षिक वसंतोत्सव में वाग्देवी की सेवा में सहभागिता देंगे।
आर्यन

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प्रश्न 3.
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने सहेली को 30 से 40 शब्दों में एक शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

15 अगस्त, 20XX
चेन्नई
प्रिय सहेली।
संदेश
स्वतंत्रता दिवस का पावन अवसर है, विजयी – विश्व का गान अमर है।
देश-हित सबसे पहले है, बाकी सबका राग अलग है।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ।
रोशनी

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर शिष्य द्वारा विज्ञान शिक्षक को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

28 फ़रवरी, 20XX
नई दिल्ली
आदरणीय गुरुदेव,
28 फ़रवरी, 1928 को सर सी०आर० रमन ने 1930 में अपनी खोज की घोषणा कर नोबल पुरस्कार प्राप्त किया था। जो विज्ञान विशिष्ट ज्ञान को जीवन के अनुभव के साथ जोड़कर शिक्षा देता है और उस शिक्षा से शिक्षार्थी का जीवन सार्थक बनता है, वही विषय विज्ञान कहलाता है। हर दिन आपके द्वारा पढ़ाए गए विज्ञान विषय से मेरी रुचि में अद्भुत परिवर्तन आया। आपके अनुभव ने मेरा और मुझ जैसे अनेक शिष्यों का मार्गदर्शन कर आदर्श विज्ञान शिक्षक की भूमिका का निर्वाह किया। आपका उद्देश्य सर्वदा विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति आकर्षित व प्रेरित करना रहा है। ऐसे विशिष्ट गुरु को मेरा शत-शत प्रणाम। विज्ञान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। अभिनव

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प्रश्न 5.
अपनी पूजनीया माता जी को जन्मदिवस की शुभकामनाएँ देते हुए 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

14 अप्रैल, 20XX
नई दिल्ली
खुद से पहले तुम मुझे खिलाती थी, रोने पर तुम भी बच्चा बन जाती थी,
खुद जाग जागकर मुझे सुलाती थी, शिक्षक बनकर तुम मुझे पढ़ाती थी,
कभी बहन कभी सहेली बन जाती थी।
आपने – अपने प्रेम, परम त्याग और आदर्शों से पूरे परिवार को प्रेम के धागे में बाँधे रखा। हमेशा अपने मश्दु अनुभवों से हमारा मार्गदर्शन किया। मैंने माँ के रूप में सच्ची सहेली और शिक्षिका पाया। आपके चरणों में शत-शत नमन। जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
अनन्या

प्रश्न 6.
अपने मित्र की नौकरी में पदोन्नति होने पर बधाई देते हुए शुभकामना संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

संदेश

8 जून, 20XX
नई दिल्ली
मित्रवर,
फूल बनके मुसकराना जिंदगी है
मुसकरा कर गम भुलाना भी जिंदगी है जीत कर खुश हो तो अच्छा है पर,
हार कर खुशियाँ मनाना भी जिंदगी है
आपने अपनी योग्यता और कुशलता का अद्भुत परिचय तो परीक्षा का अंतिम पड़ाव पारकर सभी का दिल जीत लिया था। आज फिर वह अवसर आ गया है कि आपको योग्यता और परिश्रम के बल पर पदोन्नति मिली है, आप इस पदोन्नति के सच्चे हकदार हैं। भविष्य में भी आप अपने सहकर्मियों के लिए एक आदर्श बने रहेंगे। आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जयंत शुक्ल

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प्रश्न 7.
विद्यालय की वार्षिक पत्रिका के प्रकाशन पर अध्यक्ष द्वारा विद्यार्थियों को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

5 अप्रैल, 20XX
कोलकाता
प्रिय विद्यार्थियो
सत्र 20XX – 20XX की वार्षिक पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है। उत्कृष्ट लेख, नाटक, प्रहसन, चुटकुले, निबंध आदि के प्रकाशन हेतु प्रवेश नियम विद्यार्थियों को विद्यालय के सूचना बोर्ड पर शर्तों के साथ सूचित कर दिया गया है। इस साहित्यिक पत्रिका में विद्यार्थियों का चहुमुखी साहित्यिक विकास होगा और आप कवि या लेखक के रूप में लेखन द्वारा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन करेंगे, मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।
अध्यक्ष
शिखर त्रिवेदी

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प्रश्न 8.
मोबाइल फोन को कम उपयोग करने के लिए विद्यार्थियों को 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

22 जुलाई, 20XX
नई दिल्ली
प्रिय विद्यार्थियो
खोजा बहुत ही उसको, नहीं मुलाकात हुई उससे।
घर-घर में खिलता था वह बचपन बिना मोबाइल जो।
जो करता दुरुपयोग इसका नर्वस सिस्टम होता खराब।
बीमारियों का आमंत्रण, डिप्रैशन, अनेक विकार।
स्मरण शक्ति का निश्चय होता है ह्रास।
रवि

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

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JAC Board Class 9 Hindi Rachana लघुकथा-लेखन

किसी घटना के संक्षिप्त रोचक वर्णन को लघुकथा कहते हैं। कहानी या कथा लिखना एक कला है। लघुकथा में कम-से-कम शब्दों में ही बात को इस प्रकार प्रस्तुत करना होता है कि वह पाठक के मन को चिंतन के लिए उद्वेलित कर दे। अपनी कल्पना और वर्णन – शक्ति के द्वारा लेखक कहानी के कथानक, पात्र या वातावरण को प्रभावशाली बना देता है। लेखक पाठक के लिए अपनी कल्पना और विचारों को नैतिक संदेश प्रदान करने के लिए एक कहानी के रूप में डालने की कोशिश करता है। विद्यार्थियों को पहले दी गई रूपरेखा के आधार, चित्र देखकर अथवा कहानी के संकेत पढ़कर कहानी लिखने का अभ्यास करना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

कहानी के कुछ प्रमुख तत्व :

  • कथावस्तु
  • संवाद
  • देशकाल और वातावरण
  • भाषा-शैली
  • चरित्र-चित्रण
  • उद्देश्य

कथावस्तु – कथावस्तु से तात्पर्य कहानी में वर्णित घटनाओं और कार्य – व्यापार से है।
संवाद – कहानी के पात्रों द्वारा आपस में किए गए वार्तालाप को संवाद कहते हैं। कहानी के संवाद लिखते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि संवाद पात्र के अनुकूल हों।
देशकाल और वातावरण – कहानी में वर्णित घटना का संबंध जिस परिस्थिति अथवा वातावरण से है, उसे एक कहानी का देशकाल अथवा परिवेश कहा जाता है।
भाषा-शैली – कथाकार अपनी भाषा शैली के द्वारा कहानी के पात्रों को जीवंत और प्रभावशाली बनाता है। भाषा शैली कहानी का प्राण तत्व होती है।
चरित्र-चित्रण – कहानी के पात्रों के हाव-भाव तथा कार्य-व्यापार उनके चरित्र का निर्माण करते हैं।
उद्देश्य – कहानी का अभिप्राय ही कहानी का उद्देश्य है। पाठक कहानी के अभिप्राय को समझे बिना कहानी को सही ढंग से आत्मसात नहीं कर सकता।

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कहानी लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  • परिचय कहानी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। कहानी लिखते समय मुख्य चरित्र और एक घटना का उल्लेख के साथ परिचय लिखना चाहिए।
  • परिचय के उपरांत कहानी की स्थिति के बारे में लिखना चाहिए।
  • दी गई रूपरेखा अथवा संकेतों के आधार पर ही कहानी का विस्तार करें।
  • कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार दें।
  • कहानी की भाषा सरल होनी चाहिए, जिससे पाठकों को आसानी से समझ आ जाए।
  • कहानी रोचक और स्वाभाविक हो। घटनाओं का पारस्परिक संबंध हो और कहानी से कोई-न-कोई उपदेश मिलता हो।
  • कहानी का शीर्षक उपयुक्त एवं आकर्षक होना चाहिए।
  • कहानी का आरंभ आकर्षक होना चाहिए और अंत सहज ढंग से होना चाहिए।

संकेत बिंदुओं के आधार पर लघुकथा लेखन के कुछ उदाहरण –

1. एक बालक का अपने मित्रों के साथ बगीचे में जाना… चोरी से फल तोड़कर खाना… माली का बगीचे में आना… बच्चों का भाग जाना… एक बालक का पकड़े जाना… माली द्वारा उसे डाँटना… बालक का रोना.. माली की बात को आत्मसात करना… भविष्य में प्रतिष्ठित व्यक्ति बनना।

शीर्षक – सीख

एक दिन कुछ बालक विद्यालय से लौट रहे थे कि रास्ते में एक बगीचे में अमरूद से लदे पेड़ देखकर सभी बच्चे उसमें घुस गए। माली को वहाँ न पाकर बच्चे पेड़ पर चढ़ गए और अमरूद तोड़कर खाने लगे। एक बच्चा नीचे खड़ा बड़े बच्चों से गुहार लगा रहा था कि वे उसे भी थोड़े अमरूद तोड़ कर दे दें। पेड़ पर चढ़े एक बच्चे ने एक अमरूद उसकी ओर उछाल दिया।

अमरूद पाकर बालक बड़ा प्रसन्न हुआ और अमरूद खाने लगा। इतने में ही बालक ने ज़ोर से शोर मचाया, माली आ गया भागो…..। बच्चे पेड़ से उतरकर भागने लगे। वह छोटा बालक अमरूद खाने में लगा हुआ था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था तभी माली ने आकर उसे धर दबोचा। माली उस बालक को पहचान गया। उससे बोला, तुम्हें बगीचे में चोरी करते हुए लज्जा नहीं आती? एक तो तुम्हारे पिता नहीं हैं ऊपर से तुम इन बच्चों के साथ गंदी आदतें सीख रहे हो।

बालक यह सुनकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। बालक को रोता देखकर माली ने समझाया, “तुम्हारी माता भविष्य के सुनहरे सपने देखती हैं। तुम्हें तो अच्छी तरह पढ़ना चाहिए ताकि तुम बड़े होकर अपनी माँ का हाथ बँटा सको।’

बालक समझ गया उसने माली की बात गाँठ बाँध ली। इसके बाद वह बालक कभी उस बगीचे में नज़र नहीं आया। आगे चलकर यही बालक हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के रूप में विख्यात हुए।

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2. अध्यापक का शिष्यों के साथ घूमने जाना …… अच्छी संगति के महत्व को समझाना ……. एक गुलाब का पौधा देखना …… ढेला उठाकर सूँघना …… शिष्य का ढेला सूँघना ……. अध्यापक का शिष्यों को समझाना ……. गुलाब की पंखुड़ियाँ गिरना ……. पंखुड़ियों की संगति से मिट्टी से गुलाब की महक आना ……… जैसी संगति वैसे ही गुण-दोष।

शीर्षक – संगति का असर

एक अध्यापक अपने शिष्यों के साथ घूमने जा रहे थे। रास्ते में वे अपने शिष्यों के अच्छी संगति का महत्व समझा रहे थे। लेकिन शिष्य इसे समझ नहीं पा रहे थे। तभी अध्यापक ने फूलों से लदा एक गुलाब का पौधा देखा। उन्होंने एक शिष्य को उस पौधे के नीचे से तत्काल एक मिट्टी का ढेला उठाकर ले आने को कहा। जब शिष्य ढेला उठा लाया तो अध्यापक ने उससे उस ढेले को सूँघने को कहा।

शिष्य ने ढेला सूँघा और बोला, “गुरु जी इसमें से तो गुलाब की बड़ी खुशबू आ रही है।”

अध्यापक बोले, “बच्चो ! जानते हो इस मिट्टी में यह मनमोहक महक कैसे आई? दर सअसल इस मिट्टी पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ, टूट-टूटकर गिरती हैं, तो मिट्टी में भी गुलाब की महक आने लगी है। जिस प्रकार गुलाब की पंखुड़ियों की संगति के कारण इस मिट्टी में से गुलाब की महक आने लगी उसी प्रकार जो व्यक्ति जैसी संगति में रहता है उसमें वैसे ही गुण-दोष आ जाते हैं।

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3. व्यापारी का ऊँटों का व्यापार करना ……… उनके बच्चे खरीदकर बेचना ……… जंगल के पास चरने को भेजना ……… ऊँट का बच्चा शैतान होना ……… उसके गले में घंटी बाँधना ……… शेर ऊँटों को शिकार करने के लिए देखना ……… मौके की तलाश करना ……… ऊँटों का खतरा होना …….. चल पड़ना ………. बच्चे का झुंड से अलग जाना ……… शेर के द्वारा मारे जाना।

शीर्षक – मूर्खता का परिणाम

रेगिस्तान के किनारे स्थित एक गाँव में एक व्यापारी रहता था। वह ऊँटों का व्यापार करता था। वह ऊँटों के बच्चों को खरीदकर उन्हें शक्तिशाली बनाकर बेच देता था। इससे वह ढेर सारा धन कमाता था।
व्यापारी ऊँटों को पास के जंगल में घास चरने के लिए भेज देता था जिससे उनके चारे का खर्च बचता था। उनमें से एक ऊँट का बच्चा बहुत शैतान था। वह प्राय: समूह से दूर चलता था और इस कारण पीछे रह जाता था। बड़े ऊँट हरदम उसे समझाते थे, परंतु वह नहीं सुनता था। इसलिए उन सबने उसकी परवाह करना छोड़ दिया।
व्यापारी को उस छोटे ऊँट से बहुत प्रेम था। इसलिए उसने उसके गले में घंटी बाँध रखी थी। जब भी वह सिर हिलाता तो उसकी घंटी बजती थी जिससे उसकी चाल एवं स्थिति का पता चल जाता था।
एक बार उस स्थान से एक शोर गुजरा जहाँ ऊँट चर रहे थे। उसे ऊँट की घंटी के द्वारा उनके होने का पता चल गया था। उसने फ़सल में से झाँककर देखा तो उसे ज्ञात हुआ कि ऊँट का एक बड़ा समूह है लेकिन वह ऊँटों पर हमला नहीं कर सकता था क्योंकि समूह में ऊँट उससे बलशाली थे। इस कारण वह मौके की तलाश में वहाँ छुपकर खड़ा हो गया। समूह के एक बड़े ऊँट को खतरे का आभास हो गया। ऊँटों ने एक मंडली बनाकर जंगल से बाहर निकलना आरंभ कर दिया। शेर ने मौके की तलाश में उनका पीछा करना शुरू कर दिया। बड़े

ऊँट ने विशेषकर छोटे ऊँट को सावधान किया था। कहीं वह कोई परेशानी न खड़ी कर दे। पर छोटे ऊँट ने ध्यान नहीं दिया और वह लापरवाही से चलता रहा। छोटा ऊँट अपनी मस्ती में अन्य ऊँटों से पीछे रह गया। जब शेर ने उसको देखा तो वह उस पर झपट पड़ा। छोटा ऊँट अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागा, पर वह अपने आप को उस शेर से नहीं बचा पाया। उसका अंत बुरा हुआ क्योंकि उसने अपने बड़ों की आज्ञा का पालन नहीं किया था।

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4. एक धनी सेठ के बेटे का आज्ञाकारी तथा होनहार होना… उसका बुरी संगत में पड़ना …….. उनके साथ उसका कक्षा छोड़कर भागना …….. उसे सिगरेट की लत लगना ……. उसके पिता का उसे सिगरेट पीते देखना पर कुछ न कहना …….. आदित्य को पश्चाताप होना …….. पिता से क्षमा माँगना ……. बुरी संगति को छोड़ना …….

संगति का प्रभाव

बनारस के पास एक छोटे-से नगर में सेठ श्याम दास रहते थे। उनका इकलौता था पुत्र था, जो बहुत ही होनहार था उसका नाम आदित्य था। विद्यालय के सभी शिक्षक आदित्य को बहुत पसंद किया करते थे क्योंकि वह आज्ञाकारी होने के साथ-साथ पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था। उसकी कक्षा में कुछ ऐसे बच्चे भी पढ़ते थे जिनकी आदत खराब थी। न मालूम कैसे धीरे-धीरे आदित्य की मित्रता उन बच्चों के साथ हो गई। अब वह भी उन बच्चों की भाँति विद्यालय से भागने लगा। उसे कक्षा छोड़कर जाना अच्छा लगने लगा। वह पहले की भाँति विद्यालय तो आता, लेकिन बीच में ही विद्यालय से बाहर निकलकर उन मित्रों के साथ सिनेमा देखता, बाज़ार घूमता और जुआ खेलता। उसे सिगरेट पीने की लत भी लग गई थी। सेठ श्याम दास इन सब बातों से बेखबर थे। वे नहीं जानते थे कि उनका प्रिय पुत्र किस प्रकार बुरी संगति में पड़ गया है।

एक दिन किसी कार्यवश वे बाज़ार निकले, तो उन्होंने देखा कि आदित्य कुछ बच्चों के साथ पेड़ के नीचे बैठकर सिगरेट पी रहा है। पहले तो उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ किंतु पास जाकर देखा, तो समझ गए कि आदित्य अब बुरी संगति में पड़ चुका है। अपने पिता को सामने खड़ा देखकर आदित्य झेंप गया। उसे कुछ जवाब देते नहीं बन पड़ा। बिना कुछ कहे वह अपने पिता के साथ हो लिया। रास्ते भर पिता-पुत्र में कोई बातचीत नहीं हुई। वह समझ चुका था कि उसने अपने पिता को बहुत कष्ट पहुँचाया है। घर आकर उसने अपने पिता से क्षमा माँगी और उन गलत दोस्तों का साथ छोड़ देने का प्रण लिया। उसे समझ आ गया था कि बुरे लोगों के साथ रहकर कुछ भला नहीं हो सकता।

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5. सेठ काशीराम के पास अपार दौलत होना ……… पर मन की शांति नहीं ……… एक दिन आश्रम में जाना ……… संत द्वारा प्रश्न पूछना …….. सेठ द्वारा अपनी परेशानी को बताना ……….. दोनों का आश्रम के चक्कर लगाना ………… सेठ द्वारा सुंदर वृक्ष को छूना ….. काँटा चुभना …….. सेठ का चिल्लाना ……… संत द्वारा समझाया जाना ……. ईर्ष्या, क्रोध, लोभ का त्याग करना ……… शांति का प्राप्त होना ……….

शीर्षक-शांति की प्राप्ति

सेठ काशीराम के पास अपार धन-दौलत थी। उन्हें हर तरह का आराम था लेकिन उनके मन को शांति नहीं मिल पाती थी। हर पल उन्हें कोई-न-कोई चिंता परेशान किए रहती थी। एक दिन वे कहीं जा रहे थे तो रास्ते में उनकी नज़र एक आश्रम पर पड़ी। वहाँ उन्हें किसी साधु के प्रवचनों की आवाज़ सुनाई दी। उस आवाज़ से प्रभावित होकर काशीराम आश्रम के अंदर गए और बैठ गए।

प्रवचन समाप्त होने पर सभी अपने-अपने घर को चले गए। लेकिन सेठ वहीं बैठे रहे। उन्हें देखकर संत बोले, ” कहो, तुम्हारे मन में क्या निराशा है, जो तुम्हें परेशान कर रही है।”
इस पर काशीराम बोले, “बाबा, मेरे जीवन में शांति नहीं है।”

यह सुनकर संत बोले, ” घबराओ नहीं, तुम्हारे मन की सारी अशांति अभी दूर हो जाएगी। तुम आँखें बंद करके ध्यान की मुद्रा में बैठो।’ संत की बात सुनकर ज्यों ही काशीराम ध्यान की मुद्रा में बैठे त्यों ही उनके मन में इधर-उधर की बातें घूमने लगीं और उनका ध्यान उचट गया। संत ने यह देखकर सेठ से कहा, ‘चलो, आश्रम का एक चक्कर लगाते हैं।’

इसके बाद वे आश्रम में घूमने लगे। काशीराम ने एक सुंदर वृक्ष देखा तथा उसे हाथ से छुआ। हाथ लगाते ही उनके हाथ में एक काँटा चुभ गया और सेठ बुरी तरह चिल्लाने लगे। यह देखकर संत वापस अपनी कुटिया में आए। कटे हुए हिस्से पर लेप लगाया। कुछ देर बाद वे सेठ से बोले, “तुम्हारे हाथ में ज़रा-सा काँटा चुभा तो तुम बेहाल हो गए। सोचो कि जब तुम्हारे अंदर ईर्ष्या, क्रोध व लोभ जैसे बड़े-बड़े काँटे छिपे हैं, तो तुम्हारा मन भला शांत कैसे हो सकता है?”

संत की बात से सेठ काशीराम को अपनी गलती का अहसास हो गया। वे संतुष्ट होकर वहाँ से चले गए। उसके बाद सेठ काशीराम ने कभी भी ईर्ष्या नहीं की, क्रोध भी त्याग दिया।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran शब्द विचार Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran शब्द विचार

परिभाषा-श्रुतिसम अर्थात सुनने में समान। जो शब्द पढ़ने और सुनने में लगभग एक समान लमते है, परंतु अर्थ की दृष्टि से भिन्नत पाई जाती हैं, वे श्रुतिसम-भिन्नर्थक शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों में स्वर, मात्रा अथवा व्यंजन में थोड़-सी भिन्नता पाई जाती हैं। ये बोलने में लगभग एक जैसे लगते हैं, परंतु उनके अर्थ में भिन्नता अवश्य होती है। यही शब्द ‘ ग्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द’ होते हैं।
जैसे – घन और धन दोनों के उच्चारण में कोई खास भिन्नता महसूस नहीं होती परंतु अर्थ में भिन्नता है।

घन = बादल
धन = रुपया-पैसा या संपत्ति

हिंदी भाषा में ऐसे बहुत से शब्द हैं, जिनमें से कुछ की सूची नीचे दी जा रही है :

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार 1

पमासनाही पालन

जिन शब्दों के अर्थ में समानता होती है, उन्हें पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहते हैं। यद्यपि पर्यायवाची शब्दों के अर्थ में समानता तो होती है, परंतु प्रत्येक शब्द की अपनी विशेषता होती है। भावगत भिन्नता पाई जाती है। इनके प्रयोग में हमें सावधानी बरतनी होती है।

  • अच्छा – सुष्ठु, शुभ, श्रेष्ठ, शोभन, सुंदर
  • अनुरूप – अनुकूल, संगत, अनुसार
  • अनुपम – अद्भुत, अद्वितीय, अनोखा, अपूर्व, निराला, अनूठा
  • अधम – पतित, भ्रष्ट, नीच, निकृष्ट, खल, पामर, दुर्जन
  • अपमान – अनादर, उपेक्षा, तिरस्कार, निरादर
  • अंकुश – रोक, दबाव, प्रतिबंध
  • अमृत – सुधा, पीयूष, अमिय, सोम
  • अरिन – हुताशन, वहनि, अनल, पावक, आग, दहन, ज्वाला
  • अलि – भ्रमर, भौरा, मधुकर, मधुप, मिलिंद
  • असुर – राक्षस, दैत्य, दानव, दनुज, निशाचर
  • ईश्वर – ईश, परमात्मा, परमेश्वर, प्रभु, भगवान, जगदीश
  • उषा – प्रभात, सवेरा, अरुणोदय, निशांत
  • उन्नति – उदय, वृद्धि, विकास, उत्कर्ष, उत्थान, अभ्युदय, प्रगति, उन्नयन
  • अंकुर – कोंपल, अँखुआ, कलिका
  • अँधेरा – तम, तिमिर, अंधकार, अँधियारा
  • आँसू – अश्रु, नयनजल, नेत्रनीर
  • अहंकार – अभिमान, गर्व, घमंड, मद, दर्प
  • आनंद – मोद, प्रमोद, हर्ष, आमोद, प्रसन्नता, उल्लास
  • आँख – नेत्र, चक्षु, नयन, लोचन, अक्षि
  • आकाश – व्योम, गगन, अंबर, नभ, आसमान, अनंत
  • अतिधि – अभ्यागत, मेहमान, आगंतुक, पाहुन
  • अश्व – घोड़ा, हय, बाजी, घोटक, तुरंग
  • आभूषण – अलंकार, भूषण, गहना
  • इनाम – पुरस्कार, पारितोषिक, प्रीतिकर, आनंदकर
  • इच्छा – अभिलाषा, चाह, मनोरथ, कामना, आकांक्षा, लालसा
  • इंद्र – देवेंद्र, सुरेंद्र, सुरपति, पुरंदर, देवराज, शचीपति
  • उद्देश्य – अभिग्राय, आशय, लक्ष्य, ध्येय, इष्ट, तात्पर्य
  • उपकार – हित, भलाई, नेकी, भला
  • कपड़ा – वस्त्र, अंबर, चीर, पट, वसन, परिधान
  • किरण – रश्मि, अंशु, मरीची, मयूख, कर
  • केश – बाल, अलक, कच, कुंतल
  • कोयल – पिक, कोकिल, श्यामा, कलकंठी, कोकिला, वसंतदूत
  • कृपा – अनुग्रह, मेहरबानी, दया, अनुकंपा
  • कमल – अरविंद, जलज, नलिन, पंकज, सरोज, राजीव, नीरज, अंबुज
  • कान – कर्ण, श्रोत्र, श्रवण
  • किनारा – तट, तीर, कूल, पुलिन
  • कृष्ण – वासुदेव, गोपाल, गिरधर, केशव
  • क्रोध – गुस्सा, रोष, कोप, आमर्ष
  • खल – अधम, कुटिल, दुष्ट, शठ
  • खून – रक्त, लहू, शोणित
  • गणेश – गणपति, भालचंद्र, लंबोदर, गजानन, विनायक
  • गंगा – भागीरथी, देवनदी, सुरसरी, मंदाकिनी, नदीश्वरी
  • गौ – गाय, सुरभि, धेनु, गऊ, दुधा
  • गोद – अंक, क्रोड, उत्सर्ग
  • गुफा – गुहा, विवर, कंदरा
  • जल – वारि, नीर, पानी, पय, तोय, सलिल, अंबु, उदक
  • जंगल – विपिन, कानन, वन, अरण्य
  • घर – गृह, सदन, निकेतन, भवन, आवास, आलय, धाम, गेह
  • चंद्रमा – शशि, विधु, चंद्र, राकेश, इंदु, चाँद, सोम, सुधाकर
  • चतुर – दक्ष, प्रवीण, निपुण, कुशल, योग्य, होशियार
  • चाँदनी – ज्योत्स्ना, चंद्रिका, कौमुदी, चंद्रमरीची
  • झंडा – ध्वज, पताका, निशान, केतु
  • तलवार – खड्ग, कृपाण, असि, शमशीर, करवाल
  • तरंग – लहर, उर्मि, वीचि, हिलोर
  • जीभ – जिह्वा, रसना, रसज्ञा, रसा
  • दूध – दुग्ध, पय, गोरस, क्षीर
  • तालाब – सर, सरोवर, तड़ाग, जलाशय, ताल, पोखर
  • तारा – नक्षत्र, तारक, नखत
  • तीर – बाण, शर, सायक, इषु, नाराच, शिलिमुख
  • दास – भृत्य, नौकर, सेवक, अनुचर, परिचारक
  • दिवस – दिन, वार, वासर, दिव, अहर
  • देवता – सुर, अमर, देव, अजर
  • दुर्गा – भवानी, देवी, कालिका, अंबा, चंडिका
  • दुख – पीड़ा, कष्ट, व्यथा, विषाद, यातना, वेदना
  • धनुष – धनु, कोदंड, चाप, कमान, शरासन, पिनाक, कार्मुक
  • धन – द्रव्य, अर्थ, वित्त, संपत्ति, लक्ष्मी
  • नदी – सरिता, तरंगिणी, सरित, नद, तटिनी
  • दंत – दाँत, दशन, रद, द्विज, दंश
  • नमस्कार – नमः, प्रणाम, अभिवादन, नमस्ते
  • नरक – दुर्गति, संघात, यमपुर, यमलोक, यमालय
  • पर्वत – गिरी, पहाड़, शैल, नग, अचल, महीधर
  • पुत्र – सुत, बेटा, लड़का, पूत, तनय
  • पुत्री – सुता, बेटी, लड़की, नंदिनी, तनया
  • नारी – स्त्री, कामिनी, महिला, अबला, वनिता, भामिनी, ललना
  • नागर – नगरी, पत्तन, पुर, पुरी
  • निशा – यामिनी, रात, रात्रि, रजनी, शर्वरी
  • निर्मल – शुद्ध, स्वच्छ, विमल, पवित्र
  • नौका – नाव, तरिणी, जलयान, बेड़ा, पतंग, तरी
  • पंडित – विद्वान, प्राज्ञ, बुद्धिमान, धीमान, धीर, सुधी
  • पवन – हवा, वायु, समीर, बयार, मारूत, अनिल
  • पक्षी – खग, नभचर, विहग, पंछी, विहंग, पतंग
  • पत्नी – वधु, गृहिणी, स्त्री, प्राणप्रिया, अर्धांगिनी, भार्या
  • पति – स्वामी, नाथ, वर, कांत, प्राणनाथ, आर्य, ईश
  • पत्ता – पात, दल, पत्र, पल्लव
  • पराग – पुष्पराज, कुसुमरज, पुष्पधूलि
  • पत्थर – पाषाण, वज्र, पाहन, उपल, शिला
  • पुष्प – कुसुम, सुमन, फूल, मंजरी, प्रसून
  • पृथ्वी – भू, भूमि, धरणी, धरती, वसुधा, धरा
  • भयानक – डरावना, भयजनक, विकट, गंभीर
  • भिक्षा – भीख, याचना, माँगना, खैरात
  • प्रकाश – उजाला, ज्योति, प्रभा, विभा, आलोक
  • प्रतीक – चिहन, प्रतिमा, निशान, प्रतिभूति
  • बाग – बगीचा, वाटिका, उपवन, उद्यान, आराम
  • बिजली – विद्युत, तड़ित, दामिनी, चंचला, चपला
  • बंदर – कपि, वानर, शाखामृग, हरि
  • मदिरा – शराब, सुरा, मद्य, वारुणी
  • मित्र – सखा, सहचर, साथी, मीत, दोस्त
  • माता – जननी, माँ, मात, मैया, अंबा
  • मुख – मुँह, मुखड़ा, आनन, वदन
  • भूख – क्षुधा, बुभुक्षा, अन्नलिप्सा, आहारेच्छा
  • मछली – अंडज, मीन, मत्स्य, शफरी
  • मृत्यु – निधन, देहांत, अंत, मौत
  • मनुष्य – मनुज, नर, आदमी, मानव, पुरुष
  • मेघ – जलद, बादल, नीरद, घन, वारिद
  • मोर – मयूर, शिखी, शिखंडी, कलापी
  • मूर्ख – अज, अबोध, गंवार, मूढ़
  • मल्लाह – नाविक, माँझी, खेवट, कर्णधार, केवट
  • यत्न – उद्यम, प्रयास, उद्योग, प्रयत्त, पुरुषार्थ
  • लक्ष्मी – इंदिरा, कमला, रमा, हरिप्रिया, श्री
  • वन – विपिन, जंगल, कानन, अटवी, अरण्य
  • यौवन – जवानी, युवावस्था, जीवन, शिरोमणि, तरुणाई
  • युवक – जवान, युवा, तरुण
  • युद्ध – समर, लड़ाई, रण, संग्राम
  • राजा – नृप, भूपति, भूप, नरेश, सम्राट, नरेंद्र, नरपति
  • रण – संग्राम, सम, युद्ध, लड़ाई
  • शत्रु – रिपु, दुश्मन, विपक्षी, अरि, वैरी
  • शरीर – देह, काया, कलेवर, तन, वपु, अंग, गात
  • शिव – शंकर, महादेव, रुद्र, भूतनाथ, नीलकंठ, पिनाकी
  • वृक्ष – तरु, पादप, विटप, द्रुम
  • वर्ष – अब्द, साल, बरस, संवत्
  • शोभा – छवि, दीप्ति, कांति, सुषमा, आभा, छटा
  • समुद्र – सागर, उदधि, रत्नाकर, जलधि, सिंधु
  • सरस्वती – शारदा, भारती, गिरा, वाणी
  • सेना – सैन्य, दल, कटक, वाहिनी
  • सिंह – शेर, केसरी, मृंगंद्र, वनराज, मृगराज
  • स्वर्ण – कंचन, कनक, कुंदन, सोना
  • हाथ – कर, पाणि, हस्त
  • हिरन – कुरंग, मृग, सारंग, कृष्णसार
  • सूर्य – रवि, प्रभाकर, भास्कर, दिवाकर, आदित्य, सविता, दिनकर
  • सर्प – भुजंग, नाग, विषधर, व्याल
  • संसार – दुनिया, जगत्, विश्व, जग, भवन, लोक
  • संतान – संतति, अपत्य, प्रजा, प्रसूति, औलाद
  • हंस – मराल, कलहंस, मानसौकस
  • हनुमान – महावीर, पवनसुत, मारूत, कपीश, बजरंगबली, आंजनेय
  • हाथी – गज, कुंजर, गयंद, हस्ती, मतंग, करी

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार

विलोम शब्द

किसी शब्द के उलटे अर्थ को व्यक्त करने वाले शब्द को विलोम शब्द कहते है। भाषा में भावों-विचारों की स्पष्टता के लिए विलोम शब्द महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

शब्द – विलोम

  • अंतरंग – बहिरंग
  • अक्षत – विक्षत
  • अस्तित्व – अनस्तित्व
  • अवर – प्रवर
  • अति – अल्प
  • अर्थ – अनर्थ
  • अथ – इति
  • अंत – आरंभ
  • अंधकार – प्रकाश
  • आमिष – निरामिष
  • हिंसा – अहिंसा
  • इच्छा – अनिच्छा
  • ईश – अनीश
  • उद्यम – आलस्य
  • उचित – अनुचित
  • उपेक्षा – अपेक्षा
  • उत्कर्ष – अपकर्ष
  • अल्पज्ञ – सर्वज्ञ
  • आज्ञा – अवज्ञा
  • आदि – अंत
  • आस्तिक – नास्तिक
  • आय – व्यय
  • आदर – निरादर
  • आयात – निर्यात
  • आरोह – अवरोह
  • आगत – अनागत
  • आर्य – अनार्य
  • आंतरिक – बाह्य
  • अन्याय – न्याय
  • अनुज – अग्रज
  • अनुराग – विराग
  • अभिमान – नम्रता
  • अज्ञ – प्राज्ञ
  • उपकार – अपकार
  • अवनति – उन्नति
  • अनुकूल – प्रतिकूल
  • अपेक्षा – उपेक्षा
  • अनिवार्य – ऐच्छिक
  • अमृत – विष
  • उन्नति – अवनति
  • उन्नयन – पलायन
  • आना – जाना
  • उर्वरा – ऊसर
  • आस्था – अनास्था
  • उतार – चढ़ाव
  • उत्थान – पतन
  • उदार – कृपण
  • आकाश – पाताल
  • कुरूप – सुरूप
  • खल – सज्जन
  • खरा – खोटा
  • गुण – अवगुण
  • लौकिक – अलौकिक
  • लोक – परलोक
  • लेन – देन
  • प्राचीन – नवीन
  • वादी – प्रतिवादी
  • आरंभ – अंत
  • आदान – प्रदान
  • उत्कृष्ट – निकृष्ट
  • उत्तीर्ण – अनुत्तीर्ण
  • उपस्थित – अनुपस्थित
  • उत्तर – प्रश्न
  • उत्तम – अधम
  • उपयुक्त – अनुपयुक्त
  • एक – अनेक
  • आलस्य – स्फूर्ति
  • आचार – अनाचार
  • आशा – निराशा
  • एकता – अनेकता
  • ऐच्छिक – आवश्यक
  • कृतज्ञ – कृतघ्न
  • क्रय – विक्रय
  • कायर – साहसी
  • धर्म – अधर्म
  • ज्येष्ठ – कनिष्ठ
  • जल – स्थल
  • उदय – अस्त
  • कीर्ति – अपकीर्ति
  • कोमल – कठोर
  • जीवित – मृत
  • जन्म – मृत्यु
  • जय – पराजय
  • जीत – हार
  • ऊपर – नीचे
  • कर्कश – मधुर
  • कनिष्ठ – ज्येष्ठ
  • कुमति – सुमति
  • कठिन – सरल
  • कपटी – निष्कपट
  • सम – विषम
  • चतुर – मूर्ख
  • काला – सफ़ेद
  • कृत्रिम – स्वाभाविक
  • उष्ण – शीत
  • गुप्त – प्रकट
  • ऋण – उत्रण
  • घटिया – बढ़िया
  • ठौर – कुठौर
  • चर – अचर
  • चेतन – जड़
  • चल – अचल
  • चंचल – स्थिर
  • उधार – नकद
  • उजाला – अँधेरा
  • उपयोगी – अनुपयोगी
  • उत्पत्ति – विनाश
  • दु:शील – सुशील
  • दुर्बल – बलवान
  • दोष – गुण
  • दायाँ – बायाँ
  • शिक्षित – अशिक्षित
  • शकुन – अपशकुन
  • वीर – कायर
  • शयन – जागरण
  • नया – पुराना
  • बुढ़ापा – यौवन
  • जटिल – सरल
  • झूठ – सच
  • दुर्जन – सज्जन
  • डर – निडर
  • डरपोक – निर्भीक
  • निकट – दूर
  • तृष्णा – संतोष
  • त्यागी – स्वार्थी
  • दानी – कृपण
  • दिन – रात
  • दयालु – निर्दयी
  • दुर्गंध – सुगंध
  • देश – विदेश
  • देव – दानव
  • धीर – अधीर
  • धनवान – निर्धन
  • स्वर्ग – नरक
  • सुरूप – कुरूप
  • सामान्य – विशेष
  • भला – बुरा
  • भारी – हलका
  • नेकी – बदी
  • विधवा – सधवा
  • विरोध – समर्थन
  • विरोधी – समर्थक
  • शांत – अशांत
  • नश्वर – अनश्वर
  • गहरा – छिछला
  • नास्तिक – आस्तिक
  • नत – उन्नत
  • नूतन – पुरातन
  • निद्रा – जागरण
  • निर्गुण – सगुण
  • रात्रि – प्रातः
  • स्वदेश – विदेश
  • स्तुति – निंदा
  • शीत – उष्ण
  • निर्यात – आयात
  • निश्चय – अनिश्चय
  • निंदा – स्तुति
  • सुख – दु:ख
  • साकार – निराकार
  • सामान्य – असामान्य
  • सदुपयोग – दुरुपयोग
  • निंदनीय – प्रशंसनीय
  • निगलना – उगलना
  • पाप – पुण्य
  • प्रत्यक्ष – परोक्ष
  • पंडित – मूर्ख
  • पराधीन – स्वाधीन
  • शुष्क – आर्द्र
  • शाप – वरदान
  • सुगंध – दुर्गध
  • सार्थक – निर्थक
  • सरल – जटिल
  • सुगम – दुर्गम
  • सकाम – निष्काम
  • स्वार्थ – परमार्थ
  • सभ्य – असभ्य
  • योगी – भोगी
  • विक्रय – क्रय
  • विद्वान – मूर्ख
  • शुद्ध – अशुद्ध
  • शुभ – अशुभ
  • शांति – अशांति
  • परतंत्र – स्वतंत्र
  • पूर्व – पश्चिम
  • पूर्ण – अपूर्ण
  • पवित्र – अपवित्र
  • सबल – निर्बल
  • प्रीति – वैर
  • परिश्रम – आलस्य
  • पक्षपात – निष्पक्ष
  • प्रसन्न – अप्रसन्न
  • पक्ष – विपक्ष
  • प्रश्न – उत्तर
  • पुरस्कार – तिरस्कार
  • बुराई – भलाई
  • बाहर – अंदर
  • सदाचार – दुराचार
  • विजय – पराजय
  • वृष्टि – अनावृष्टि
  • सुपुत्र – कुपुत्र
  • सुबोध – दुर्बोध
  • भयभीत – निर्भय
  • रुग्ण – स्वस्थ
  • स्थूल – सूक्ष्म
  • रक्षक – भक्षक
  • हर्ष – विषाद
  • प्रीति – दोष
  • सौम्य – भीषण
  • सुयोग – कुयोग
  • मधुर – कटु
  • मान – अपमान
  • राग – दूवेष
  • लघुता – गुरुता
  • लाभ – हानि
  • हार – जीत
  • स्वाधीन – पराधीन
  • स्थिर – चंचल
  • सधवा – विधवा
  • सरस – नीरस
  • सौभाग्य – दुर्भाग्य
  • योग्य – अयोग्य
  • राजा – रंक
  • मित्र – शत्रु
  • मानव – दानव
  • मृदु – कठोर
  • मूक – वाचाल
  • संधि – विग्रह
  • मलिन – निर्मल
  • मिथ्या – सत्य
  • मुख्य – गौण
  • यश – अपयश
  • सफल – असफल
  • संयोग – वियोग
  • सुलभ – दुर्लभ
  • ज्ञान – अज्ञान
  • ज्ञानी – मूर्ख
  • क्षमा – दंड
  • क्षय – अक्षय
  • संकल्प – विकल्प
  • सुर – असुर
  • सुरक्षित – असुरक्षित
  • आत्मीय – अनात्मीय

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

JAC Class 9 Hindi एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
अग्रिम दल का नेतृत्व कौन कर रहा था ?
उत्तर :
अग्रिम दल का नेतृत्व उपनेता प्रेमचंद कर रहा था।

प्रश्न 4.
लेखिका को सागरमाथा नाम क्यों अच्छा लगा ?
उत्तर :
लेखिका ने नेपालियों को एवरेस्ट को सागरमाथा नाम से पुकारते हुए सुना, तो उसे भी यह नाम अच्छा लगा।

प्रश्न 2.
लेखिका को ध्वज जैसा क्या लगा ?
उत्तर :
लेखिका को एवरेस्ट की चोटी पर बर्फ का एक बड़ा फूल लहराते हुए ध्वज जैसा लगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

प्रश्न 3.
हिमस्खलन से कितने लोगों की मृत्यु हुई और कितने घायल हुए ?
उत्तर :
हिमस्खलन से किसी की मृत्यु नहीं हुई, पर नौ पुरुष सदस्य घायल हुए थे।

प्रश्न 5.
मृत्यु के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने क्या कहा ?
उत्तर :
मृत्यु के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने कहा था कि ऐसे साहसपूर्ण अभियानों में होने वाली मृत्यु को सहज रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
रसोई सहायक की मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर :
अनुकूल जलवायु न होने के कारण रसोई सहायक की मृत्यु हुई थी।

प्रश्न 7.
कैंप – चार कहाँ और कब लगाया गया ?
उत्तर:
कैंप- चार साउथ कोल में 29 अप्रैल, सन् 1984 को सात हजार नौ सौ मीटर की ऊँचाई पर लगाया गया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

प्रश्न 8.
लेखिका ने शेरपा कुली को अपना परिचय किस तरह दिया ?
उत्तर :
लेखिका ने कहा कि वह बिलकुल नौसिखिया है और एवरेस्ट उसका पहला अभियान है।

प्रश्न 9.
लेखिका की सफलता पर कर्नल खुल्लर ने उसे किन शब्दों में बधाई दी ?
उत्तर :
कर्नल खुल्लर ने कहा कि उसकी इस अनूठी उपलब्धि के लिए वे उसके माता-पिता को बधाई देना चाहते हैं। देश को उस पर गर्व है और वह अब एक ऐसे संसार में वापस जाएगी, जो एकदम भिन्न होगा।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
नज़दीक से एवरेस्ट को देखकर लेखिका को कैसा लगा ?
उत्तर :
जब लेखिका ने सर्वप्रथम एवरेस्ट को देखा, तो उसे उसकी चोटी पर दिखाई देने वाला एक भारी बर्फ़ का बड़ा फूल जैसे उसकी चोटी पर लहराते हुए ध्वज की तरह लगा। यह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास एक सौ पचास किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक तेज़ गति से चलने वाली हवा से बनता है। बर्फ़ का यह ध्वज दस किलोमीटर या इससे भी अधिक लंबा हो सकता है। वह एवरेस्ट की इस सुंदरता के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित हुई।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

प्रश्न 2.
डॉ० मीनू मेहता ने क्या जानकारियाँ दीं ?
उत्तर :
डॉ० मीनू मेहता ने उन्हें अभियान में सहायता देने वाली बातें बताईं। उन्होंने उन्हें एलुमिनियम की सीढ़ियों से अस्थाई पुल बनाना, रस्सियों का उपयोग करना तथा बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना सिखाया। उन्होंने उन्हें उनके अग्रिम दल के द्वारा किए गए तकनीकी कार्यों की भी जानकारी दी।

प्रश्न 4.
तेनजिंग ने लेखिका की तारीफ़ में क्या कहा ?
उत्तर :
लेखिका ने जब अपने बारे में यह कहा कि वह बिल्कुल नौसिखिया है और यह उसका पहला अभियान है, तो तेनजिंग ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा कि वह एक पर्वतीय लड़की है। वह पहले प्रयास में अवश्य शिखर पर पहुँच जाएगी।

प्रश्न 5.
लेखिका को किनके साथ चढ़ाई करनी थी ?
उत्तर :
लेखिका को अंगदोरजी, ल्हाटू, की, जय और मीनू के साथ चढ़ाई करनी थी। की, जय और मीनू उससे बहुत पीछे रह गए थे जबकि वह साउथ कोल कैंप पहुँच गई थी। बाद में वे भी आ गए। अगले दिन सुबह 6.20 पर वह अंगदोरजी के साथ चढ़ाई के लिए निकल पड़ी, जबकि अन्य कोई भी व्यक्ति उस समय उनके साथ चलने के लिए तैयार नहीं था।

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प्रश्न 6.
लोपसांग ने तंबू का रास्ता कैसे साफ़ किया ?
उत्तर :
एक बहुत बड़ा बर्फ़ का पिंड ल्होत्से के ग्लेशियर से टूटकर लेखिका के तंबू पर गिर गया था और लेखिका चारों तरफ़ से बर्फ़ की कब्र में दब गई थी। उस समय लोपसांग ने अपनी स्विस छुरी से तंबू का रास्ता साफ़ किया। फिर लेखिका के पास से बड़े-बड़े हिमपिंडों को हटाने के बाद उसने जमी हुई बर्फ़ की खुदाई करके लेखिका को बर्फ़ की कब्र से बाहर निकाला।

प्रश्न 7.
साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी कैसे शुरू की ?
उत्तर :
लेखिका ने साउथ कोल कैंप पहुँचकर अगले दिन की अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। इसके लिए उसने खाने-पीने का सामान, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन के सिलिंडर एकत्र किए। बाद में वह पीछे रह गए अपने साथियों की सहायता करने के लिए नीचे चली गई।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
उपनेता प्रेमचंद ने किन स्थितियों से अवगत कराया ?
उत्तर :
एवरेस्ट पर जानेवाले दल के उपनेता प्रेमचंद थे। वे एक अनुभवी पर्वतारोही थे। उपनेता प्रेमचंद ने उन्हें हिमपात से बचने के लिए समझाया, क्योंकि उनका कैंप हिमपात के क्षेत्र में पड़ता था। प्रेमचंद ने उन्हें रस्सियों से पुल बनाने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा, क्योंकि उनके द्वारा बनाया गया पुल हिमपात से कभी भी टूट सकता था। उन्होंने उन्हें ग्लेशियर से भी सावधान रहने के लिए कहा। साथ ही हिमपात से बनी दरारों से भी सावधान रहने की चेतावनी दी।

प्रश्न 2.
हिमपात किस तरह होता है और उससे क्या-क्या परिवर्तन आते हैं ?
उत्तर :
आकाश से बर्फ के गिरने को हिमपात कहते हैं। हिमपात में आकाश से बर्फ के खंड बेढंगे तरीके से जमीन पर गिरते हैं। इससे ग्लेशियर बहने लगते हैं और उनके बहने से अकसर बर्फ में हलचल हो जाती है। इससे बर्फ की बड़ी-बड़ी चट्टानें तुरंत गिर जाती हैं और खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ग्लेशियर के बहने से धरातल पर दरारें पड़ जाती हैं। यही दरारें कभी-कभी बर्फ के गहरे और चौड़े सुराखों में बदल जाती हैं, जिनमें धँसने से लोगों की मौत भी हो जाती है।

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प्रश्न 3.
लेखिका के तंबू में गिरे बर्फ़ पिंड का वर्णन किस तरह किया गया है ?
उत्तर :
लेखिका के तंबू पर जब बर्फ़ का पिंड गिरा, तब वह गहरी नींद में सो रही थी। जब पिंड का एक हिस्सा उसके सिर के पिछले हिस्से से टकराया, तो उसकी नींद खुल गई। उस समय रात के साढ़े बारह बजे का समय था। उसी समय एक ज़ोर का धमाका हुआ और कोई ठंडी व बहुत भारी वस्तु उसके शरीर को कुचलती चली गई। उसे साँस लेने में भी कठिनाई होने लगी। बर्फ़ का एक लंबा पिंड उनके कैंप के ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर गिरा था। वह एक विशाल हिमपुंज बन गया था। वह एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण आवाज़ के साथ सीधी ढलान से उनके कैंप पर गिरा था।

प्रश्न 4.
‘की’ लेखिका को देखकर हक्का-बक्का क्यों रह गया ?
उत्तर :
लेखिका जब साउथ कोल कैंप पहुँची, तो अगले दिन की चढ़ाई की तैयारी में व्यस्त हो गई। जब उसकी सारी तैयारी पूरी हो गई तो उसने देखा कि की, जय और मीनू अभी तक नहीं आए हैं। दोपहर बाद उसने अपने इन साथियों की सहायता करने का निश्चय किया। वह एक थरमस में जूस और दूसरे में गरम चाय लेकर नीचे चल पड़ी। रास्ते में उसे मीनू और जय मिले। जय ने उससे चाय लेकर पी और उसे अधिक नीचे जाने से रोका। परंतु लेखिका जय की बात अनसुनी करके नीचे की ओर उतरने लगी। थोड़ा और नीचे उतरने पर उसे की मिला। वह उसे देखकर हक्का-बक्का रह गया कि वह कहाँ से आ गई ? उसने उसे इतना जोखिम उठाने के लिए टोका। लेखिका ने उसे समझाया कि वह भी एक पर्वतारोही है और अपने साथियों की सहायता करना वह अपना फ़र्ज समझती है। की हँसा और जूस पीकर उसके साथ ऊपर चल पड़ा।

प्रश्न 5.
एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए कुल कितने कैंप बनाए गए ? उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर :
एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए शिखर कैंप और बेस कैंप के अतिरिक्त चार कैंप लगाए गए थे। कैंप – एक तक इन्होंने सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास किया। कैंप-दो पर दल सोलह मई को प्रातः आठ बजे पहुँचा था। कैंप – तीन 15-16 मई को बुद्ध पूर्णिमा के दिन ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर नाइलॉन के बने सुंदर रंगीन तंबुओं से लगाया गया था। इसे ग्लेशियर से टूटकर आए हिमखंड ने गिरा दिया था। कैंप-चार साउथ कोल में सात हजार नौ सौ मीटर की ऊँचाई पर लगाया गया था। यह कैंप सुरक्षा और आराम की दृष्टि से अच्छा कैंप था।

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प्रश्न 6.
चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर :
चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी पर तेज़ हवाएँ चल रही थीं। इन तेज़ हवाओं के कारण भुरभुरी बर्फ़ के कण वातावरण में चारों ओर उड़ रहे थे। इससे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वहाँ आगे की चढ़ाई शेष नहीं थी। एकदम सीधी ढलान नीचे जा रही थी। चोटी पर इतनी भी जगह नहीं थी कि वहाँ एक साथ दो व्यक्ति खड़े हो सकते। चोटी के चारों ओर हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान थी। उन्होंने वहाँ की बर्फ़ की खुदाई करके अपने लिए खड़े रहने का सुरक्षित स्थान बनाया।

प्रश्न 7.
सम्मिलित अभियान में सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय बचेंद्री के किस कार्य से मिलता है ?
उत्तर :
जब बचेंद्री साउथ कोल कैंप पहुँची, तो उसने अगले दिन की चढ़ाई की पूरी तैयारी कर ली। की, जय और मीनू के साथ उसने अगले दिन की चढ़ाई करनी थी, परंतु वे अभी तक वहाँ पहुँचे नहीं थे। इससे वह चिंतित हो उठी और एक थरमस में जूस व दूसरे में गरम चाय लेकर वह उन्हें ढूँढने नीचे की ओर चल पड़ी। कैंप से बाहर आते ही उसकी मीनू से मुलाकात हो गयी। आगे जाने पर जेनेवा स्पर की चोटी पर उसे जय मिला। उसने चाय पीकर उसे धन्यवाद दिया तथा नीचे जाने से रोका। परंतु वह कुछ नीचे गई, तो उसे की मिल गया। वह उसे वहाँ देखकर हैरान रह गया तथा जूस पीकर उसके साथ ऊपर की ओर चल पड़ा। बचेंद्री के इस कार्य से उसकी सहयोग और सहायता की भावना का परिचय मिलता है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।
उत्तर :
इस पंक्ति में लेखिका स्पष्ट करना चाहती है कि एवरेस्ट की चोटी पर जाने का अभियान बहुत खतरनाक होता है। तेज हवाओं, हिमपात, बर्फ़ की चट्टानों के खिसकने आदि का कुछ पता नहीं चलता। इन प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते हुए यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाए तो उसे भी सहज रूप से स्वीकार कर लेना चाहिए, क्योंकि ऐसे महान अभियानों में यह भी संभव है।

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प्रश्न 2.
सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र ख्याल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रयास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।
उत्तर :
हिमपात और ग्लेशियर के बहने से बड़ी-बड़ी बर्फ की चट्टानों के गिरने की बात सुनने के बाद लेखिका को यह सुनना और भी भयभीत करने वाला लग रहा था कि इन बड़ी-बड़ी बर्फ़ की चट्टानों के गिरने से कई बार धरातल पर दरारें पड़ जाती हैं। ये दरारें बहुत गहरी और चौड़ी बर्फ से ढकी हुई गुफाओं में बदल जाती हैं, जिनमें धँसकर मनुष्य का जीवित रहना संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त उसे यह जानकारी और भी अधिक भयानक लगी कि इनके सारे अभियान में यह हिमपात लगभग एक दर्जन पर्वतारोहियों और कुलियों को प्रतिदिन प्रभावित करता रहेगा। उन्हें इसका सामना करना पड़ेगा।

प्रश्न 3.
बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।
उत्तर :
जब लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची, तो बहुत रोमांचित हो उठी। वह प्रथम भारतीय महिला थी, जो यहाँ पहुँची थी। इस पल की प्रसन्नता को अपने आराध्य और माता-पिता के आशीर्वादों का फल मानते हुए उसने झुके हुए ही अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर लाल कपड़े में लपेटी और उनकी सहज भाव से संक्षिप्त पूजा करने के बाद उन्हें बर्फ में दबा दिया। अपनी सफलता के इन पलों में उसे अपने माता-पिता की याद भी आ गई, जिनके आशीर्वाद से वह इस सफलता तक पहुँची थी।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
इस पाठ में प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों की व्याख्या पाठ का संदर्भ देकर कीजिए –
उत्तर :
निहारा है, धसकना, खिसकना, सागरमाथा, जायज़ा लेना, नौसिखिया।
निहारा है – लेखिका ने नमचे बाज़ार में पहुँचकर ही सबसे पहले एवरेस्ट को देखा था। वह उसे देखते ही उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो गई थी। इसलिए लेखिका ने इसे मात्र ‘देखा’ न कहकर ‘निहारा ‘ कहती है।
धसकना – ग्लेशियर के पिघलने से धरती धसक जाती थी।
खिसकना – हिमपात से बर्फ़ की चट्टानें खिसक जाती थीं।
सागरमाथा – नेपालियों ने एवरेस्ट का नाम सागरमाथा रखा हुआ था, जो लेखिका को भी अच्छा लगा क्योंकि एवरेस्ट की चोटी से चारों ओर हिम का सागर-सा लहराता दिखाई देता है जिसमें चोटी उस सागर के माथे के समान चमकती रहती है।
जायज़ा लेना – पर्वतारोहियों से पहले अग्रिम दल मार्ग का जायजा लेता था।
नौसिखिया – जब तेनजिंग ने लेखिका से उसका परिचय पूछा तो अपना परिचय देते हुए उसने स्वयं को पर्वतारोहण के क्षेत्र में नौसिखिया बताया। यहाँ नौसिखिया का अर्थ नया-नया सीखने वाला अथवा अनाड़ी का भाव व्यक्त करता है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में उचित विराम चिह्नों का प्रयोग कीजिए –
उत्तर :
(i) उन्होंने कहा तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए –
(ii) क्या तुम भयभीत थीं
(iii) तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री
उत्तर :
(i) उन्होंने कहा, “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।”
(ii) “क्या तुम भयभीत थीं ?”
(iii) “तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री ?”

प्रश्न 3.
नीचे दिए उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्य में प्रयोग कीजिए –
उदाहरण: हमारे पास एक वॉकी-टॉकी था।
टेढ़ी-मेढ़ी, हक्का-बक्का, गहरे-चौड़े, इधर-उधर, आस-पास, लंबे-चौड़े
उत्तर :
टेढ़ी-मेढ़ी : विंध्याचल में सड़कें टेड़ी-मेढ़ी हैं।
हक्का-बक्का : सुरेश को अचानक आया देखकर राजेश हक्का-बक्का रह गया।
गहरे-चौड़े : भूकंप से चमोली की धरती में गहरे-चौड़े खड्डे बन गए।
इधर-उधर : कृष्णन सदा इधर-उधर की हाँकता रहता है, मतलब की बात नहीं करता।
आस-पास : समीना के घर के आस-पास बहुत हरियाली है।
लंबे-चौड़े : नेता वायदे तो लंबे-चौड़े करते हैं, परंतु पूरा एक भी नहीं करते।

प्रश्न 4.
उदाहरण के अनुसार विलोम शब्द बनाइए –
उदाहरण: अनुकूल – प्रतिकूल।
नियमित, विख्यात, आरोही, निश्चित, सुंदर
उत्तर :
नियमित अनियमित, विख्यात कुख्यात, आरोही अवरोही, निश्चित – अनिश्चित, सुंदर – कुरूप।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों में उपयुक्त उपसर्ग लगाइए – जैसे : पुत्र- सुपुत्र।
वास, व्यवस्थित, कूल, गति, रोहण, रक्षित
उत्तर :
वास – निवास, निवास, व्यवस्थित अव्यवस्थित, कूल अनुकूल, गति प्रगति, रोहण आरोहण, रक्षित सुरक्षित

प्रश्न 6.
निम्नलिखित क्रिया-विशेषणों का उचित प्रयोग करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
अगले दिन, कम समय में, कुछ देर बाद, सुबह तक
(i) मैं ……………. यह कार्य कर लूँगा।
(ii) बादल घिरने के ………….. ही वर्षा हो गई।
(iii) उसने बहुत …………… इतनी तरक्की कर ली।
(iv) नाइकेसा को …………… गाँव जाना था।
उत्तर
(i) मैं सुबह तक यह कार्य कर लूँगा।
(ii) बादल घिरने के कुछ देर बाद ही वर्षा हो गई।
(iii) उसने बहुत कम समय में इतनी तरक्की कर ली।
(iv) नाङकेसा को अगले दिन गाँव जाना था।

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
इस पाठ में आए दस अंग्रेज़ी शब्दों का चयन कर उनका अर्थ लिखिए।
उत्तर :

  • बेस कैंप = आधार शिविर
  • ग्लेशियर = हिमनदी
  • एक्सप्रेस = शीघ्रगामी, तेज़
  • फोटो = छायाचित्र
  • प्लूम = पिच्छक
  • साउथ = दक्षिण
  • कुकिंग गैस = खाना पकाने वाली गैस
  • रेगुलेटर = नियंत्रक
  • सिलिंडर = बेलन
  • जूस = रस

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प्रश्न 2.
पर्वतारोहण से संबंधित दस चीज़ों के नाम लिखिए।
उत्तर :
फावड़ा, रस्सी, ऑक्सीजन, वॉकी-टॉकी, एल्युमिनियम की सीढ़ियाँ, छुरी, थरमस, कुकिंग गैस, जूस, खाना।

प्रश्न 3.
तेनजिंग शेरपा की पहली चढ़ाई के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 4.
इस पर्वत का नाम ‘एवरेस्ट’ क्यों पड़ा ? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
आगे बढ़ती भारतीय महिलाओं की पुस्तक पढ़कर उनसे संबंधित चित्रों का संग्रह कीजिए एवं संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करके लिखिए –
(क) पी० टी० उषा
(ख) आरती साहा
(ग) किरन बेदी
प्रश्न 2.
रामधारी सिंह दिनकर का लेख – ‘हिम्मत और जिंदगी’ पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
प्रश्न 3.
‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ – इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के आधार पर बचेंद्री के चरित्र की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बचेंद्री के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) साहसी – बचेंद्री एक साहसिक महिला हैं। एवरेस्ट अभियान में आने वाली कठिनाइयों को जानते हुए भी वे एवरेस्ट अभियान पर जाने के लिए तैयार हो जाती हैं। वे एवरेस्ट के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित थीं और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहती थीं।

(ii) सहृदय – बचेंद्री दूसरों के सुख-दुख में सहायता देने वाली महिला हैं। वे अपने साथियों से पहले ही साउथ कोल कैंप पहुँच गई थीं। जब उनके साथी की, जय और मीनू बहुत देर तक वहाँ न आए तो उनकी सहायता करने का निश्चय करके एक थरमस में जूस और दूसरे में गरम चाय लेकर नीचे की ओर चल पड़ी। कैंप के बाहर ही उनकी भेंट मीनू से हो गई। जय उसे जेनेवा स्पर चोटी पर मिला। उसने चाय पी और बचेंद्री को और नीचे जाने से रोका। पर वे नीचे गईं जहाँ उसे देखकर की हैरान रह गया। उसने जूस पीकर प्यास बुझाई। इस प्रकार बचेंद्री ने अपने साथियों की मदद की।

(iii) स्पष्टवादी – बचेंद्री जो मन में सोचती हैं, स्पष्ट कह देती हैं। तेनजिंग को अपना परिचय देते हुए उसने स्पष्ट कह दिया था कि वे पर्वतारोहण के क्षेत्र में नौसिखिया हैं और एवरेस्ट उसका प्रथम अभियान है। तेनजिंग ने उसका उत्साह बढ़ाते हुए कहा था कि वह एक पक्की पहाड़ी लड़की है। वह पहले ही प्रयास में एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच जाएगी।

(iv) आस्थावान – बचेंद्री एक आस्तिक महिला हैं। वे एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर घुटनों के बल बैठकर एवरेस्ट की चोटी का चुंबन करती हैं और फिर अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर एक लाल कपड़े में लपेटकर पूजा करने के बाद उन्हें वहीं गाड़ देती हैं। यह सब उनके अपने आराध्य के प्रति आस्था को व्यक्त करता है। इस अवसर पर वे अपने माता-पिता को भी स्मरण करती हैं।

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प्रश्न 2.
पैरिच पहुँचने पर लेखिका के दल को क्या समाचार मिला ?
उत्तर :
पैरिच पहुँचने पर लेखिका के दल को हिमस्खलन होने का समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जाने वाले अभियान दल के रास्ते के बाईं ओर सीधी पहाड़ी धँस गई थी। ल्होत्से की ओर बहुत बड़ी बर्फ़ की चट्टान नीचे खिसक आई थी। इस प्रकार के हिमस्खलन से सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई थी और चार घायल हो गए थे।

प्रश्न 3.
पर्वतारोहियों के अग्रिम दल के उपनेता प्रेमचंद ने पर्वतारोहियों को किस बात से अवगत करवाया ?
उत्तर :
उपनेता प्रेमचंद ने पर्वतारोहियों के सदस्यों को उनकी पहली बाधा खुंभु हिमपात की स्थिति से अवगत करवाया। उनके दल ने कैंप एक के लिए; जो हिमपात के ऊपर बना था; रास्ता साफ कर दिया था। प्रेमचंद ने बताया कि उन लोगों को पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ता चिह्नित करना है। उन्होंने यह भी बताया कि हिमपात के कारण मौसम में अनियमित और अनिश्चित बदलाव होने के कारण सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि उन्हें बर्फ़ में रास्ता खोलने का काम दोबारा शुरू करना पड़े।

प्रश्न 4.
हिमपात और ग्लेशियर क्या हैं ? ग्लेशियर के बहने से क्या होता है ?
उत्तर :
आकाश से बर्फ़ की वर्षा को हिमपात कहते हैं। ग्लेशियर हिमनदी को कहते हैं। नदी का पानी बर्फ बन जाता है, जो गर्मी पाकर पिघलने लगता है। ग्लेशियर के बहने से जमी हुई बर्फ पिघलने लगती है। इससे बर्फ़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें टूटकर पहाड़ से नीचे गिर जाती हैं। इनके नीचे गिरने से जो कुछ भी इनके नीचे होता है, वह दब जाता है।

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प्रश्न 5.
लेखिका के लिए कौन-सा ख्याल डरावना था ?
उत्तर :
लेखिका और अन्य सदस्यों को बताया गया था कि ग्लेशियर के बहने से अकसर बर्फ़ में हलचल हो जाती है और बर्फ़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें गिरने लगती हैं। अधिक खतरनाक स्थिति होने पर धरातल पर दरार पड़ने लगती है। इस दरार के गहरे होने पर चौड़ी बर्फ़ की गुफा बन जाती है। यदि इसमें कोई व्यक्ति धँस जाता है, तो उसकी मृत्यु भी हो सकती है। यह ख्याल लेखिका को बहुत डरावना लग रहा था।

प्रश्न 6.
हिमपिंड के ग्लेशियर से टूटकर गिर जाने पर क्या हुआ और लेखिका को आश्चर्य क्यों हुआ ?
उत्तर :
15-16 मई, सन् 1984 को लेखिका अपने साथियों के साथ कैंप में सो रही थी। रात को लगभग 12:30 बजे ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर एक हिमपिंड लेखिका के कैंप के ऊपर ऐसे आ गिरा, जैसे एक्सप्रेस रेलगाड़ी तेज गति से भीषण गर्जना करते हुए आती है। हिमपिंड के गिरने से कैंप तहस-नहस हो गया था। हिमपिंड के गिरने से उनका कैंप पूरी तरह से नष्ट हो गया था; कैंप में सोए हुए प्रत्येक व्यक्ति को चोट भी लगी थी, परंतु किसी की भी इतनी बड़ी दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई थी। उसी बात पर लेखिका को आश्चर्य हो रहा था।

प्रश्न 7.
अंगदोरजी कैसे चढ़ाई करने वाले थे और उनकी स्थिति कैसी हो जाती थी ?
उत्तर :
अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के चढ़ाई करने वाले थे। इस कारण से उनके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वे ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहते थे। अपनी इस स्थिति के कारण उन्हें या तो उसी दिन चोटी पर चढ़कर साउथ कोल वापस आना था या फिर ऊपर जाने का अपना निश्चय छोड़ देना था।

प्रश्न 8.
साउथ कोल से बाहर निकलते समय का वातावरण कैसा था ?
उत्तर :
जब लेखिका और अंगदोरजी साउथ कोल से बाहर निकले, तो दिन चढ़ गया था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी। ठंड बहुत अधिक थी। जमी हुई बर्फ़ की सीधी तथा ढलान वाली चट्टानें बहुत अधिक सख्त और भुरभुरी थीं। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे शीशे की चादरें बिछी हुई हों।

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प्रश्न 9.
लेखिका कितने बजे एवरेस्ट पर पहुँची और उसने वहाँ क्या किया ?
उत्तर :
अंगदोरजी तथा सहायक ल्हाटू के साथ लेखिका 23 मई, सन् 1984 के दिन दोपहर एक बजकर सात मिनट पर एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची थी। वह वहाँ पहुँचने वाली पहली भारतीय महिला थी। वहाँ पहुँचकर उसने बर्फ़ को अपने माथे पर लगाकर ‘सागरमाथे’ के ताज का चुंबन लिया। उन्होंने दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर छोटी-सी पूजा की और उन्हें लाल कपड़े में लपेटकर बर्फ में दबा दिया। उसने उस आनंद के क्षण में अपने माता-पिता को याद किया।

प्रश्न 10.
नमचे बाज़ार के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नमचे बाज़ार शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आस-पास के गाँवों के होते हैं। इसी स्थान से लेखिका ने पहली बार एवरेस्ट को निहारा था। यह नेपालियों में ‘सागरमाथा’ के नाम से प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों की ‘सागरमाथा’ के प्रति अत्यंत श्रद्धा है।

प्रश्न 11.
प्लूम किसे कहते हैं? यह कैसे बनता है ?
उत्तर :
कूल बर्फ के एक बड़े तथा भारी फूल को प्लूम कहते हैं। यह पर्वत की चोटी पर लहरता हुआ इस प्रकार दिखाई देता है, जैसे कोई ध्वज हो। यह बर्फ का पर्वत शिखर की ऊपरी सतह के आस-पास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक गति से हवा चलने के क्योंकि सूखी बर्फ़ तेज हवा के कारण पर्वत के शिखर पर उड़ती रहती है। बर्फ का यह ध्वज दस किलोमीटर या इससे भी अधिक लंबा हो सकता है।

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प्रश्न 12.
‘बेस कैंप’ पहुँचने से पहले लेखिका और उसके दल को कौन-सी सूचना मिली।
उत्तर :
बेस कैंप पहुँचने से पहले लेखिका और उसके दल को रसोई सहायक की मृत्यु की सूचना मिली, जो जलवायु अनुकूल न होने के कारण मृत्यु का ग्रास बन गया था। यह समाचार लेखिका और उसके दल को हिलाकर रख देने वाला था। लेखिका और उसका दल निश्चित रूप से किसी आशाजनक स्थिति में नहीं चल रहे थे।

प्रश्न 13.
लेखिका किसे देख भौचक्की रह गई और देर तक निहारती रही ? ‘एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
बेस कैंप पहुँचकर लेखिका ने दूसरे दिन एवरेस्ट पर्वत तथा उसकी अन्य श्रेणियों को देखा। यह दृश्य इतना सुंदर और मन को भा जाने वाला था कि लेखिका आश्चर्यचकित होकर खड़ी रह गई। वह पर्वत श्रेणी को ही निहारती रही कि किस प्रकार एवरेस्ट ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरा हुई है। साथ-ही-साथ लेखिका टेढ़ी-मेढ़ी बर्फ़ीली नदी को भी निहार रही थी, जिसे देखकर उसे सुखद आनंद का अनुभव हो रहा था।

प्रश्न 14.
लेखिका और उसके दल के लिए तीसरा दिन क्या करने के लिए निश्चित था ?
उत्तर :
लेखिका और उसके साथियों के लिए तीसरा दिन हिमपात से कैंप एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए निश्चित था। लेखिका और उसकी साथी पर्वतारोही रीता गोंबू साथ-साथ चढ़ रहे थे। इन दोनों के पास एक ही वॉकी-टॉकी था। इसी वॉकी-टॉकी के माध्यम से चढ़ाई की प्रत्येक जानकारी लेखिका और उसकी साथी बेस कैंप तक पहुँचा रही थी। जब लेखिका और उसकी साथी रीता गोंबू कैंप पहुँचे, तो कर्नल खुल्लर बहुत प्रसन्न हुए; कैंप एक में पहुँचने वाली केवल ये दो ही महिलाएँ थीं।

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प्रश्न 15.
अप्रैल मास में तेनजिंग से हुई मुलाकात से लेखिका का मनोबल कैसे बढ़ा ?
उत्तर :
अप्रैल मास में लेखिका बेस कैंप में थी। इसी कैंप में तेनज़िंग अपनी सबसे छोटी पुत्री डेकी के साथ लेखिका और उसके साथियों से मिलने आए थे। तेनजिंग इस बात पर विशेष जोर दे रहे थे कि दल के प्रत्येक सदस्य तथा प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। जब लेखिका की परिचय देने की बारी आई, तो लेखिका ने कहा कि वह बिलकुल ही नौसिखिया है और एवरेस्ट उसका पहला अभियान है। तब तेनजिंग ने लेखिका के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा, “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।” तेनजिंग के इन शब्दों से लेखिका का मनोबल अत्यंत ऊँचा उठ गया।

प्रश्न 16.
साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की चढ़ाई की तैयारी के लिए क्या-क्या किया ? वह चिंतित क्यों थी ?
उत्तर :
लेखिका जैसे ही साउथ कोल कैंप पहुँची, वह अगले दिन की अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी में जुट गई। उसने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। लेखिका चिंतित थी, क्योंकि उसके साथी जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। लेखिका को अगले दिन इन्हीं लोगों के साथ चढ़ाई करनी थी। लेखिका के साथी इसलिए धीरे आ रहे थे, क्योंकि वे बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।

प्रश्न 17.
साउथ कोल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
साउथ कोल पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर स्थानों में से एक है। इसी कारण यह प्रसिद्ध है। साउथ कोल लेखिका और उसके दल के लिए एक बेस कैंप था। अन्य कैंप की अपेक्षा यहाँ अधिक सुरक्षा और आराम उपलब्ध था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

प्रश्न 18.
लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर कब पहुँची ?
उत्तर :
लेखिका 23 मई 1984 के दिन दोपहर एक बजकर सात मिनट पर एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। वह एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला थी। वहाँ पहुँचकर लेखिका ने अपने अदम्य साहस और अथाह परिश्रम का परिचय दिया था।

एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Summary in Hindi

लेखिका – परिचय :

जीवन-परिचय – एवरेस्ट विजेता बचेंद्री पाल का जन्म उत्तराखंड के चमोली जिले के बंपा गाँव में 24 मई, सन् 1954 ई० को हुआ था। इनकी माता का नाम हंसादेई नेगी और पिता का नाम किशन सिंह पाल है। ये अपने माता-पिता की तीसरी संतान हैं। आर्थिक कठिनाई के कारण इनके पिता ने इन्हें आठवीं कक्षा तक पढ़ाया। बाद में इन्होंने सिलाई-कढ़ाई करके खर्चा जुटाया और दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। बचेंद्री के प्राचार्य ने इनके पिता को इन्हें आगे पढ़ाने के लिए समझाया। अनेक विषम परिस्थितियों से जूझते हुए इन्होंने एम० ए० (संस्कृत) और बी० एड० तक की शिक्षा प्राप्त की। बचेंद्री पाल को पहाड़ों पर चढ़ने का बचपन से ही शौक था। इन्हें पाँच-छह मील पहाड़ की चढ़ाई चढ़ कर और उतरकर विद्यालय जाना पड़ता था। जब इंडियन माउंटेन फाउंडेशन ने एवरेस्ट अभियान पर जाने के लिए महिलाओं की खोज की, तो वे इस दल में शामिल हो गईं। ट्रेनिंग करते हुए इन्होंने सात हजार पाँच सौ मीटर ऊँची मान चोटी पर सफलापूर्वक चढ़ाई की थी। कई महीने अभ्यास करने के बाद में ये एवरेस्ट विजय पर गईं और 23 मई, 1984 ई० को एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला बन गईं।

रचनाएँ – बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट विजय की अपनी रोमांचक पर्वतारोहण – यात्रा का संपूर्ण विवरण स्वयं लिखा है

भाषा-शैली – लेखिका ने अपनी एवरेस्ट विजय का विवरण अत्यंत ही सहज तथा बोलचाल की भाषा में लिखा है। इसमें यथास्थान तत्सम प्रधान शब्दों की अधिकता है; जैसे- दुर्गम, शिखर, हिमपात, अवसाद, प्रवास, आरोही, उपस्कर, शंकु आदि। इनके साथ ही विदेशी शब्दों का प्रयोग भी सहज भाव से किया गया है; जैसे- बेस कैंप, किलोमीटर, खराब, जोखिम, नाइलॉन, सख्त, ऑक्सीजन, सिलिडंर आदि। लेखिका की शैली अत्यंत रोचक तथा प्रवाहमयी है। कहीं-कहीं इनकी शैली चित्रात्मक भी हो गई है; जैसे- ‘यह क्या हो गया था ? एक लंबा बर्फ़ का पिंड हमारे कैंप के ठीक ऊपर से होते हुए ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बन गया था। हिमखंडों, बर्फ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ़ के इस विशाल पुंज ने एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए कैंप को तहस-नहस कर दिया।’ लेखिका की भाषा – शैली की सहजता पाठक को सहज ही एवरेस्ट यात्रा का आनंद प्रदान करती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

पाठ का सार :

बचेंद्री पाल द्वारा रचित ‘एवरेस्ट विजय’ में उनकी अपनी रोमांचक पर्वतारोहण-यात्रा का संपूर्ण विवरण है, जिसमें से कुछ अंश ‘एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें लेखिका के एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर तिरंगा झंडा लहराने का वर्णन किया गया है।

लेखिका एवरेस्ट अभियान दल के साथ 7 मार्च, सन् 1984 ई० को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से रवाना हो गई। एक अग्रिम दल इनसे पहले ही जा चुका था, जिससे इनके ‘बेस कैंप’ पहुँचने से पहले ही बर्फ़ गिरने से रुके हुए कठिन मार्गों को साफ़ किया जा सके। शेरपालैंड के नमचे बाज़ार से उसने सर्वप्रथम एवरेस्ट को देखा। नेपाली इसे सागरमाथा कहकर पुकारते हैं। एवरेस्ट पर उसे एक भारी बर्फ का बड़ा फूल, जिसे अंग्रेज़ी में प्लूम कहते हैं, दिखाई दिया। यह एवरेस्ट के शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी तेज़ गति से हवा के चलने से बनता था। यह दस किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता था। शिखर पर जाने वालों को इन तूफ़ानों को झेलना पड़ता था। लेखिका इस विवरण से भयभीत नहीं हुई। वह एवरेस्ट के प्रति विचित्र प्रकार से आकर्षित थी तथा इसके लिए सब प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार थी। जब इनका दल 26 मार्च को पैरिच पहुँचा, तो इन्हें बर्फ़ के खिसकने से हुई शेरपा कुली की मृत्यु का समाचार मिला।

हिमपात के समय बर्फ़ के खंड बेतरतीब से गिरते हैं और ग्लेशियर के बहने से बड़ी-बड़ी चट्टानें फ़ौरन गिर जाती हैं। ऐसे में धरातल पर दरार पड़ जाने से खतरनाक स्थिति बन जाती है। हमें बताया गया कि यह हिमपात सारे प्रवास के दौरान हमारे साथ रहेगा। दूसरे दिन वे अपना अधिकांश सामान हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए और डॉ० मीनू मेहता से उन्होंने एलुमिनियम की सीढ़ियों से अस्थाई पुल बनाना, रस्सियों का उपयोग, बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सी बाँधना आदि सीखा।

तीसरे दिन रीता गोबू के साथ लेखिका ने हिमपात से कैंप तक सामान ढोकर चढ़ाई की। बेस कैंप को सूचना देने के लिए उनके पास वॉकी-टॉकी थी, जिससे उन्होंने कर्नल खुल्लर को अपने कैंप पर पहुँचने की सूचना दी। अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा 29 अप्रैल को साउथ कोल पहुँच गए, जहाँ उन्होंने सात हज़ार नौ सौ मीटर पर चौथा कैंप लगाया।

जब अप्रैल में लेखिका बेस कैंप में थी, तो तेनजिंग अपनी सबसे छोटी पुत्री डेकी के साथ उसके पास आए थे तथा उन्होंने दल के प्रत्येक सदस्य के साथ बात की थी। लेखिका ने जब स्वयं को पर्वतारोहण में नौसिखिया बताया, तो उन्होंने लेखिका के कंधे पर अपना हाथ रख कर कहा कि वह एक पर्वतीय लड़की है। इसलिए पहले ही प्रयास में एवरेस्ट के शिखर पर पहुँच जाएगी।

15-16 मई, सन् 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन वह ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए तंबू के कैंप तीन में थी। लेखिका के साथ लोपसांग और तशारिंग तथा अन्य लोग दूसरे तंबुओं में थे। लेखिका गहरी नींद में सोई हुई थी कि अचानक रात में साढ़े बारह बजे के लगभग उसके सिर के पिछले हिस्से में एक सख्त चीज़ आकर टकराई, जिससे उसकी नींद खुल गई। तभी एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। उसे ऐसा लगा, जैसे कोई ठंडी और भारी वस्तु उसे कुचलती हुई जा रही है। उसे साँस लेने में कठिनाई होने लगी।

यह एक लंबा बर्फ़ का पिंड था, जो उनके कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर आ गिरा था। उससे प्रत्येक व्यक्ति को चोट लगी थी। आश्चर्य इस बात का था कि इस दुर्घटना में मौत किसी की नहीं हुई थी। लोपसांग की छुरी की मदद से तंबू का रास्ता साफ़ किया गया। उन्होंने ही लेखिका को बर्फ़ की कब्र से खींच कर बाहर निकाला था। सुबह तक सुरक्षा दल वहाँ पहुँच गया और 16 मई को सुबह आठ बजे सभी कैंप-दो में पहुँच गए। कर्नल खुल्लर ने सुरक्षा दल के इस कार्य को बहुत साहसिक बताया था। उन्होंने लेखिका से पूछा कि क्या वह इस हादसे से भयभीत है और वापस जाना चाहती है? इस पर लेखिका ने कहा कि वह भयभीत तो है, पर वापस नहीं जाएगी।

साउथ कोल कैंप पहुँचते ही लेखिका ने अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। उसने भोजन, कुकिंग गैस तथा ऑक्सीजन के सिलेंडर एकत्र कर लिए। जय और मीनू पीछे रह गए थे। लेखिका उनके लिए एक थरमस में जूस और दूसरे में गर्म चाय लेकर बर्फीली हवाओं का सामना करते हुए नीचे चल पड़ी। पहले उसकी मुलाकात मीनू से और फिर जय से हुई। अंत में थोड़ा नीचे उतरने पर उसे की मिला। उसने लेखिका के इस प्रकार आने पर आश्चर्य व्यक्त किया और जूस पीकर उसके साथ चल पड़ा। थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा भी उनसे मिलने नीचे आ गए। बाद में सभी साउथ कोल कैंप में आ गए।

अगले दिन सुबह चार बजे उठकर लेखिका ने बर्फ़ पिघलाकर चाय बनाई और बिस्कुट चॉकलेट का नाश्ता कर लगभग साढ़े पाँच बजे तंबू से बाहर निकल आई। अंगदोरजी तुरंत चढ़ाई शुरू करना चाहते थे। एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और लौटना बहुत कठिन और मेहनत का कार्य था। अन्य कोई उनके साथ चलने के लिए तैयार नहीं था। सुबह 6:20 पर लेखिका और अंगदोरजी साउथ कोल से निकल पड़े और दो घंटे से भी कम समय में शिखर कैंप पर पहुँच गए। उसे लगा कि वे दोपहर के एक बजे तक चोटी पर पहुँच जाएँगे।

ल्हाटू उनके पीछे आ रहा था। जब वे दक्षिणी शिखर के नीचे आराम कर रहे थे, तो ल्हाटू भी वहाँ पहुँच गया। चाय पीकर उन्होंने फिर चढ़ाई शुरू कर दी। वे नायलॉन की रस्सी के सहारे आगे बढ़ रहे थे। दक्षिण शिखर पर हवा की गति बढ़ गई थी, जिस कारण वहाँ भुरभुरी बर्फ के कण चारों ओर उड़ रहे थे। इस कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। तभी उसने देखा कि आगे चढ़ाई नहीं है, केवल ढलान ही एकदम सीधे नीचे चली गई है।

यह 23 मई, सन् 1984 का दिन था। दोपहर का एक बजकर सात मिनट का समय था। लेखिका इस समय एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। वह भारत की प्रथम महिला थी, जो इस प्रकार एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची थी। वहाँ एक साथ दो व्यक्ति खड़े नहीं हो सकते थे। चारों ओर हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान थी। उन्होंने बर्फ़ खोदकर स्वयं को ढंग से खड़ा रहने लायक बनाया। फिर घुटनों के बल बैठकर बर्फ़ से अपने माथे को लगाकर सागरमाथे के ताज का चुंबन लिया।

वहीं उसने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर लाल कपड़े में लपेटकर उनकी पूजा कर वहीं बर्फ में दबा दिया। तभी उसे अपने माता-पिता की भी याद आ गई। उसने अंगदोरजी को नमस्कार किया। उन्होंने ही उसे यहाँ तक पहुँचने की प्रेरणा दी थी। लेखिका ने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट पर चढ़ने की बधाई दी, तो उन्होंने भी लेखिका को गले से लगाकर कहा कि तुमने अच्छी चढ़ाई की।

कुछ देर बाद वहाँ सोनम पुलजर आ गए और उन्होंने फ़ोटो खींची। ल्हाटू ने एवरेस्ट पर चारों के होने की सूचना दल के नेता को दे दी थी। कर्नल खुल्लर इस सफलता से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने लेखिका से कहा कि तुम्हारी इस उपलब्धि के लिए मैं तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा। देश को तुम पर गर्व है। अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो पहले से एकदम भिन्न होगा।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

  • शिखर – चोटी, पहाड़ की चोटी।
  • अभियान – चढ़ाई।
  • अग्रिम – पेशगी, अगाऊ।
  • दुर्गम – कठिन।
  • प्लूम – पिच्छक।
  • हिमपात – बर्फ़ का गिरना।
  • अवसाद – उदासी।
  • ग्लेशियर – बर्फ़ की नदी।
  • अव्यवस्थित – बेतरतीब।
  • प्रवास – यात्रा में रहना।
  • हिम-विदर – बर्फ़ में पड़ी हुई दरार।
  • आरोहियों – ऊपर चढ़ने वाले।
  • विख्यात – प्रसिद्ध।
  • अभियांत्रिकी – तकनीकी।
  • नौसिखिया – अनाड़ी, नया-नया सीखने वाला।
  • श्रमसाध्य – परिश्रम से होने वाला।
  • आरोहण – ऊपर की ओर चढ़ना।
  • शंकु – नोक।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

JAC Class 9 Hindi ल्हासा की ओर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
थोड्ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों ?
उत्तर :
उन्हें रहने के लिए उचित स्थान इसलिए नहीं मिला था क्योंकि वे वहाँ शाम के समय पहुँचे थे। इस समय वहाँ के लोग छड् पीकर अपने होश-हवास गँवा बैठते हैं। उन्हें अच्छे-बुरे की पहचान नहीं रहती है। उनकी मनोवृत्ति भी बदल जाती है। इसलिए उनके भद्रवेश में होने पर भी उन्हें उचित स्थान नहीं मिल सका था।

प्रश्न 2.
उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था ?
उत्तर :
उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न होने के कारण वहाँ लोग पिस्तौल, बंदूक लिए फिरते थे। डकैत यात्रियों को मारकर उनका सामान लूट लेंते थे। इस प्रकार यात्रियों में सदा अपनी जान-माल का भय बना रहता था कि न मालूम कब उन्हें लूट लिया जाए अथवा जान से मार दिया जाएगा।

प्रश्न 3.
लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया ?
उत्तर :
लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से इस कारण पिछड़ गया था क्योंकि उसका घोड़ा धीरे-धीरे चल रहा था। जब वह घोड़े को जोर देने लगता तो उसका घोड़ा और अधिक सुस्त हो जाता था। जहाँ दो रास्ते फूट रहे थे वहाँ से वह बाएँ रास्ते पर मील-डेढ़ मील चला गया तो उसे पता चला कि वह गलत रास्ते पर जा रहा है। लड्कोर रास्ता तो दाहिनेवाला था। वहाँ से लौटकर उसने सही रास्ता पकड़ा। इस प्रकार वह साथियों से पिछडता गया।

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प्रश्न 4.
लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया ?
उत्तर :
दूसरी बार लेखक ने सुमति को यजमानों के पास जाने से इसलिए नहीं रोका क्योंकि वहाँ एक मंदिर में उसे बुद्धवचन की एक सौ तीन पोथियाँ मिल गई थीं। इनमें से एक-एक पोथी पंद्रह-पंद्रह सेर से कम नहीं थी। वह इन पोथियों के पठन-पाठन में लीन हो गया था।

प्रश्न 5.
अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
उत्तर :
अपनी यात्रा के दौरान लेखक को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसे दुर्गम मार्ग की कठिन चढ़ाई चढ़नी पड़ी। मार्ग में मामूली स्थानों पर रुकना पड़ा। डाकुओं-लुटेरों से बचने के लिए भिखमंगों के समान टोपी उतारकर और जीभ निकालकर उनसे दया की भीख माँगते हुए पैसा माँगा। लेखक का घोड़ा बहुत सुस्त था जिस कारण वह अपने साथियों से पिछड़ गया था और लड्कोर जाते हुए गलत रास्ते पर चला गया था। लेखक को सुमति के क्रोध का शिकार भी बनना पड़ा था। भारवाहक न मिलने पर लेखक को अपना सामान अपने कंधे पर लादकर ही यात्रा करनी पड़ी। खाने-पीने को जो मिला उसी में गुजारा करना पड़ा।

प्रश्न 6.
प्रस्तुत यात्रा- वृत्तांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था ?
उत्तर :
उस समय का तिब्बती समाज अंधविश्वासों से जकड़ा हुआ था। लोग बौद्ध संन्यासियों के द्वारा दिए गए गंडे-तावीज़ों को अपनी रक्षा का आधार मानते थे। समाज में कानून-व्यवस्था अत्यंत दयनीय स्थिति में थी। लोग बंदूक, पिस्तौल आदि लेकर खुलेआम घूमते थे। मार्ग में चोर – लुटेरों का डर रहता था। डकैत यात्रियों को मारकर लूटते थे। पुलिस गवाहों के अभाव में कुछ नहीं कर पाती थी। जान जाने के डर से कोई किसी के विरुद्ध गवाही नहीं देता था। वहाँ जाति-पाति, छुआछूत का भेदभाव नहीं था। स्त्रियाँ परदा नहीं करती थीं। अपरिचितों को भी घर के भीतर आने की मनाही नहीं थी। यात्रियों को आवास तथा खाने-पीने की सुविधा दी जाती थी। ये लोग छङ् नामक मादक पेय का पान करते थे।

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प्रश्न 7.
“मैं अब पुस्तकों के भीतर था।” नीचे दिए गए वाक्यों में से कौन-सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है –
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
(ख) लेखक पुस्तकों की शैल्फ़ के भीतर चला गया।
(ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
(घ) पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।
उत्तर :
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?
उत्तर :
सुमति इस क्षेत्र के लोगों से अच्छी प्रकार से परिचित हैं। वहाँ के लोग भी सुमति का आदर करते हैं। सुमति अपने यजमानों के लिए बोधगया के वस्त्रों के गंडे लेकर आते हैं। वे व्यवहार कुशल, मृदुभाषी, अच्छे सहयात्री एवं ‘क्षणे रूष्ठा क्षणे तुष्ठा’ स्वभाव के व्यक्ति हैं। लेखक लड्कोर का मार्ग भूल जाता है तो देर से पहुँचने पर सुमति लेखक पर क्रोधित हो जाते हैं, परंतु समझाने पर शांत हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
” हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था।” उक्त कथन के अनुसार हमारे आचार – व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं। आपकी समझ से यह उचित है अथवा अनुचित, विचार व्यक्त करें।
उत्तर :
हमारी समझ से यह उचित नहीं है कि किसी की वेशभूषा के आधार पर ही उस व्यक्ति के संबंध में कोई धारणा बना ली जाए। सीधी- साधी और स्वच्छ वेशभूषावाला व्यक्ति भी अच्छा एवं संस्कारी हो सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि बहुत अधिक कीमती तथा आडंबरपूर्ण वेशभूषा धारणा करके ही व्यक्ति श्रेष्ठ बन जाता है। महात्मा गांधी सामान्य – सी वेशभूषा धारण करते हुए भी देश को अहिंसात्मक आंदोलनों द्वारा स्वतंत्र करा गए। लाल बहादुर शास्त्री जैसा छोटा-सा व्यक्ति अपनी सादगी तथा सामान्य सी वेशभूषा से भारत का प्रधानमंत्री बन गया। इसलिए किसी भी वेशभूषा के आधार पर हमें आचार-व्यवहार के तरीके तय नहीं करने चाहिए।

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प्रश्न 10.
यात्रा-वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक दशा का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की दशा आपके राज्य/शहर से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर :
तिब्बत की ओर जानेवाला मार्ग अत्यंत दुर्गम है। वहाँ के डाँड़े सबसे अधिक खतरे के स्थान हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित डाँड़ा थोड्ला पार करना बहुत ही कठिन है। इनके दोनों ओर दूर-दूर तक कोई गाँव नहीं होता है। यहाँ एक ओर हिमालय पर्वत की बरफ़ से ढकी हजारों चोटियाँ तो दूसरी ओर बरफ और हरियाली से रहित नंगे पर्वत हैं। कहीं-कहीं कम बरफ़ से ढकी पर्वत की चोटियाँ भी हैं। यात्रा पैदल अथवा घोड़ों पर की जाती है। मैं दिल्ली में रहता हूँ। यहाँ की भौगोलिक दशा तिब्बत से बिलकुल भिन्न है।

यहाँ अनेक बहुमंजिला भवन, साफ़-सुथरी बड़ी-बड़ी सड़कें, छोटी-छोटी पहाड़ियाँ, मेट्रो रेल, हवाई अड्डा, अंतर्राज्यीय बस अड्डा, रेलवे स्टेशन आदि हैं। यात्रा के लिए कारें, बसें, स्कूटर, मोटर साइकिल, ताँगे, रिक्शा आदि पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं। यहाँ सरदियों में ठंड और गरमियों में गरमी रहती है। यमुना यहाँ की मुख्य नदी है। देश की राजधानी होने के कारण यहाँ सदा कोई-न-कोई कार्यक्रम होता रहता है। दिल्ली की सीमाएँ उत्तर दा कोई-न-कोई व प्रदेश और हरियाणा से लगती हैं।

प्रश्न 11.
आपने भी किसी स्थान की यात्रा अवश्य की होगी। यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को लिखकर प्रस्तुत करें।
उत्तर :
गत वर्ष गरमियों की छुट्टियों में हमारे विद्यालय की ओर से विद्यार्थियों का एक दल शिमला भ्रमण के लिए भेजने की योजना बनी थी। मैंने भी अपना नाम उसके लिए लिखवा दिया। मैंने पहले कभी कोई पर्वतीय स्थान नहीं देखा था इसलिए स्वाभाविक था कि मैं इस यात्रा के लिए बहुत उत्सुक था। 20 मई को विद्यार्थियों का हमारा यह दल शिमला के लिए रवाना हुआ। श्री रामसिंह जी हमारे पी० टी० आई० थे और वे हमारे साथ संरक्षक के रूप में गए थे।

रात्रि के साढ़े दस बजे हम दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए। गाड़ी ग्यारह बजे चलनी थी। हमने द्वितीय श्रेणी के शयनयान में अपने पूर्व निर्धारित स्थान ले लिए। भयंकर गरमी पड़ रही थी। शरीर पसीने से तर-बतर था। साधारण कमीज़ – पैंट भी पहनना मुश्किल हो रहा था। मेरे एक दो साथियों ने तो कमीज़े उतार कर कंधे पर डाल ली थीं। ग्यारह बजे गाड़ी चल दी। हम अपने- अपने स्थान पर सो गए।

प्रातः साढ़े छह बजे गाड़ी कालका स्टेशन पर रुकी। यहाँ से हमें गाड़ी बदलनी थी। शिमला के लिए गाड़ी प्लेटफार्म पर लगी हुई थी। छह डब्बों की नन्ही-सी गाड़ी खिलौने जैसी लग रही थी। खिलौना – गाड़ी के डब्बे छोटे-छोटे थे और रेलवे लाइन ‘नैरो गॉज’ थी। हमें गाड़ी में मुश्किल से स्थान मिला। हज़ारों भ्रमणार्थी शिमला जा रहे थे। गाड़ी ठीक साढ़े सात बजे चल पड़ी। गाड़ी की गति पर्याप्त धीमी थी और वह पर्वत की पीठ पर मानो रेंगते हुए चढ़ रही थी। खिड़की से बाहर का दृश्य आनंदमयी था।

दूर तक घाटियों में फैली हरियाली दिखाई पड़ती थी। देवदार, चीड़ और कैल के वृक्ष प्रहरियों की तरह सिर ऊँचा किए पहाड़ियों पर स्थान-स्थान पर खड़े थे। गाड़ी कभी विशेष प्रकार से बने मेहराबदार पुलों पर से गुज़रती तो कभी छोटी-बड़ी सुरंगों में से गुज़रती। बड़ौग स्टेशन पर गाड़ी साढ़े दस बजे पहुँची। स्टेशन छोटा-सा था परंतु बहुत सुंदर फूलों से सजा था। यहाँ पर हमने जलपान किया। बड़ौग की सुरंग सबसे लंबी थी।

जब गाड़ी सुरंग से गुज़रती तो गाड़ी में हलका अँधेरा-सा छा जाता। विभिन्न डब्बों से सीटियाँ बजाने और नारे लगाने की आवाज़ें आने लगतीं। हमने भी मिलकर गाने गाने शुरू कर दिए। हवा में हलकी ठंडक अनुभव होने लगी। हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि मई के अंत में भी लोग स्वेटर पहने हुए थे।

हमारी गाड़ी एक बजे दोपहर को शिमला पहुँच गई। प्लेटफार्म पर लाल रंग की पोशाक पहने कुली लंबी लाइन में बैठे थे। गाड़ी के पहुँचते ही उनमें हलचल प्रारंभ हो गई। देखते-ही-देखते वे गाड़ी पर टूट पड़े। यात्रियों के नीचे उतरने से पहले ही कुली गाड़ी में घुस गए और उन्होंने यात्रियों के सामान पर कब्ज़ा कर लिया। भाव-ताव के पश्चात बहुत से कुली पीठ पर सामान लेकर चल पड़े। हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि कुली सिर की अपेक्षा पीठ पर सामान ढो रहे थे।

हमारे ठहरने की व्यवस्था कॉली – बॉरी की धर्मशाला में थी। माँ दुर्गा के प्राचीन मंदिर के साथ यात्रियों के रुकने के लिए कमरे बने हैं। बड़ी संख्या में बंगाली यात्री वहाँ ठहरे थे। कुछ देर विश्राम करने के पश्चात हमने भोजन किया। सायंकाल को हम लोग तैयार होकर मॉल रोड की सैर के लिए चले। मॉल रोड पर बहुत भीड़ थी। एक सिरे पर लाला लाजपत राय का बुत उँगली उठाकर मानो भ्रमणार्थियों को सचेत कर रहा था जो रिज के दूसरी ओर गांधी जी छड़ी थापे, मुसकराते हुए खड़े थे।

दौलत सिंह पार्क में हिमाचल के निर्माता यशवंत सिंह परमार की मूर्ति थी तो उसके सामने इंदिरा गांधी जी का बुत था। रिज पर हज़ारों लोग इकट्ठे थे। कुछ बच्चे घुड़सवारी कर रहे थे। छाया चित्र लेनेवाले कैमरे के साथ व्यस्त थे। रिज पर मेले का सा दृश्य था। मॉल रोड पर हमें आयु, हर वेश-भूषा एवं हर प्रांत का व्यक्ति दिखाई पड़ा। ऐसा लगता था कि लघु भारत यहाँ आ बसा है।

दूसरे दिन हम हिमाचल पर्यटन विभाग की बसों में बैठकर कुफ़री, वाइल्ड फ़्लावर हॉल, क्रिंग नैनी और नालदेरा की यात्रा के लिए गए। नालदेरा का गोल्फ़ का मैदान बहुत सुंदर है। कुफ़री में हमने यॉक पर बैठकर फोटो खिंचवाए और रेस्तराँ में जलपान किया। वाइल्ड फ़्लावर हॉल में फूलों का मेला-सा लगा था। चारों ओर रंग-बिरंगे फूलों पर तितलियों के झुंड मँडरा रहे थे। तीसरे दिन हम जाखू पर्वत पर पिकनिक के लिए गए। शिमला शहर के मध्य में स्थित यह चोटी सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। रिज से लगभग पंद्रह सौ फुट की ऊँचाई पर स्थित इस चोटी पर हनुमान जी का भव्य मंदिर है। पूरे रास्ते में बंदरों के झुंड मिले। हमने उन्हें चने खिलाए। चौथे दिन प्रातः नौ बजे हम वापस चल पड़े।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

प्रश्न 12.
यात्रा-वृत्तांत गद्य साहित्य की एक विधा है। आपकी इस पाठ्य-पुस्तक में कौन-सी विधाएँ हैं? प्रस्तुत विधा उनसे किन मायनों में अलग है ?
उत्तर :
हमारी पाठ्य-पुस्तक में गद्य साहित्य की कहानी, निबंध, डायरी, रिपोर्ताज, व्यंग्य-लेख, संस्मरण और यात्रा-वृत्तांत विधाओं की रचनाएँ प्राप्त होती हैं। यात्रा-वृत्तांत इन सब विधाओं से इस प्रकार अलग है कि इसमें यात्रा करनेवाले व्यक्ति के अपने अनुभवों के अतिरिक्त उस यात्रा-स्थल की भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक स्थिति का भी ज्ञान हो जाता है। इसमें कहानी जैसी रोचकता के साथ-साथ संस्मरण जैसा आँखों देखा हाल भी प्राप्त हो जाता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 13.
किसी भी बात को अनेक प्रकार से कहा जा सकता है, जैसे –
सुबह होने से पहले हम गाँव में थे।
पौ फटने वाली थी कि हम गाँव में थे।
तारों की छाँव रहते-रहते हम गाँव पहुँच गए।
नीचे दिए गए वाक्य को अलग-अलग तरीके से लिखिए-
‘जान नहीं पड़ता था, कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।”
उत्तर :
(क) पता नहीं लगता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।
(ख) घोड़े के आगे या पीछे जाने का पता नहीं लगता है।
(ग) घोड़े के अपने स्थान से आगे जाने या पीछे हटने का पता नहीं लगता था।

प्रश्न 14.
ऐसे शब्द जो किसी ‘अंचल’ यानी प्रदेश विशेष में प्रयुक्त होते हैं उन्हें आंचलिक शब्द कहा जाता है। प्रस्तुत पाठ में से आंचलिक शब्द ढूँढकर लिखिए।
उत्तर :
चोडी, खोटी, छङ्, डाँड़ा, कुची-कुची, कंडे, थुकपा, भरिया, कन्जुर।

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प्रश्न 15.
पाठ में कागज, अक्षर, मैदान के आगे क्रमशः मोटे, अच्छे और विशाल शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों से विशेषता उभरकर आती है। पाठ में से कुछ ऐसे ही और शब्द छाँटिए जो किसी की विशेषता बता रहे हों।
उत्तर :
भद्र (यात्री), गरीब (झोंपड़े), परित्यक्त (चीनी किले), विकट (डाँड़ा थोड्ला), अच्छी (जगह), टोटीदार ( बरतन)।

पाठेतर सक्रियता –

यह यात्रा राहुल जी ने 1930 में की थी। आज के समय यदि तिब्बत की यात्रा की जाए तो राहुल जी की यात्रा से कैसे भिन्न होगी ?
उत्तर :
आधुनिक युग में यात्रा के अनेक साधन उपलब्ध हैं, जैसे- कार, बस, जीप, हेलीकॉप्टर, हवाई जहाज आदि। इसलिए आज के समय यदि तिब्बत की यात्रा की जाए तो यह यात्रा बहुत सुखद होगी तथा यात्री को तिब्बत के प्राकृतिक सौंदर्य का संपूर्ण आनंद प्राप्त होगा।

क्या आपके किसी परिचित को घुमक्कड़ी/यायावरी का शौक है? उसके इस शौक का उसकी पढ़ाई/काम आदि पर क्या प्रभाव पड़ता होगा, लिखें।
अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
उत्तर :
आम दिनों में समुद्र किनारे के इलाके बेहद खूबसूरत लगते हैं। समुद्र लाखों लोगों को भोजन देता है और लाखों उससे जुड़े दूसरे कारोबारों में लगे हैं। दिसंबर 2004 को सूनामी या समुद्री भूकंप से उठनेवाली तूफानी लहरों के प्रकोप ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि कुदरत की यह देन सबसे बड़े विनाश का कारण बन सकती है।

प्रकृति कब अपने ही ताने-बाने को उलटकर रख देगी, कहना मुश्किल है। हम उसके बदलते मिजाज को उसका कोप कह लें या कुछ और मगर यह अबूझ पहेली अकसर हमारे विश्वासों के चीथड़े कर देती है और हमें यह अहसास करा जाती है कि हम एक कदम आगे नहीं, चार कदम पीछे हैं। एशिया के एक बड़े हिस्से में आनेवाले उस भूकंप ने कई द्वीपों को इधर-उधर खिसकाकर एशिया का नक्शा ही बदल डाला।

प्रकृति ने पहले भी अपनी ही दी हुई कई अद्भुत चीजें इन्सान से वापस ले ली हैं जिसकी कसक अभी तक है। दुःख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है। वह हमारे जीवन में ग्रहण लाता है, ताकि हम पूरे प्रकाश की अहमियत जान सकें और रोशनी को बचाए रखने के लिए जतन करें। इस जतन से सभ्यता और संस्कृति का निर्माण होता है। सुनामी के कारण

दक्षिण भारत और विश्व के अन्य देशों में जो पीड़ा हम देख रहे हैं, हमारे जीवन में जोश, उत्साह और शक्ति भर देते हैं। 13 वर्षीय मेघना और अरुण दो दिन अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जंतुओं से मुकाबला करते हुए किनारे आ लगे। इंडोनेशिया की रिजा पडोसी के दो बच्चों को पीठ पर लादकर पानी के बीच तैर रही थी कि एक विशालकाय साँप ने उसे किनारे का रास्ता दिखाया।

मछुआरे की बेटी मैगी ने रविवार को समुद्र का भयंकर शोर सुना उसकी शरारत को समझा, तुरंत अपना बेड़ा उठाया और अपने परिजनों को उसपर बिठा उतर आई समुद्र में, 41 लोगों को लेकर। महज 18 साल की यह जलपरी चल पड़ी पगलाए सागर से दो-दो हाथ करने। दस मीटर से ज्यादा ऊँची सूनामी लहरें जो कोई बाधा, रुकावट मानने को तैयार नहीं थीं, इस लड़की के बुलंद इरादों के सामने बौनी ही साबित हुई।

जिस प्रकृति ने हमारे सामने भारी तबाही मचाई है, उसी ने हमें ऐसी ताकत और सूझ दे रखी है कि हम फिर से खड़े होते हैं और चुनौतियों से लड़ने का एक रास्ता ढूँढ़ निकालते हैं। इस त्रासदी से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए जिस तरह पूरी दुनिया एकजुट हुई है, वह इस बात का सबूत है कि मानवता हार नहीं मानती।
(क) कौन-सी आपदा को सूनामी कहते हैं ?
(ख) ‘दुःख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है’-आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) मैगी, मेघना और अरुण ने सूनामी जैसी आपदा का सामना किस प्रकार किया?
(घ) प्रस्तुत गद्यांश में दृढ़ निश्चय’ और ‘महत्व’ के लिए किन शब्दों का प्रयोग हुआ है ?
(ङ) इस गद्यांश के लिए एक शीर्षक ‘नाराज समुद्र’ हो सकता है। आप कोई अन्य शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) समुद्री भूकंप से उठनेवाली तूफ़ानी लहरों के प्रकोप को सूनामी कहते हैं।
(ख) इस कथन का आशय यह है कि दुख सहन करने के बाद मनुष्य में हिम्मत आ जाती है और वह विपत्तियों का सामना करते हुए जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता रहता है।
(ग) मैगी ने अपने 41 परिजनों को बेड़े में बैठाकर दस मीटर से ज्यादा ऊँची सूनामी लहरों का मुकाबला करते हुए बचाया। मेघना और अरुण दो दिनों तक अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जंतुओं से मुकाबला करते हुए किनारे पर आ लगे थे।
(घ) ‘दृढ़ निश्चय’ के लिए ‘बुलंद इरादों’ तथा ‘महत्व’ के लिए ‘अहमियत’ शब्दों का प्रयोग किया गया है।
(ङ) इस गद्यांश के लिए अन्य शीर्षक ‘साहस की विजय’ हो सकता है।

JAC Class 9 Hindi ल्हासा की ओर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
नेपाल से तिब्बत जाने वाले मुख्य मार्ग की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नेपाल से तिब्बत जानेवाला रास्ता व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था। इस रास्ते से नेपाल और हिंदुस्तान की चीजें तिब्बत जाया करती थीं। इस रास्ते पर जगह-जगह फ़ौजी चौकियाँ और किले बने हुए थे। इनमें चीनी सेना रहती थी। अब बहुत-से फ़ौजी मकान गिर चुके हैं और किले में कुछ किसानों ने अपने बसेरे बना लिए हैं।

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प्रश्न 2.
शेकर की खेती के मुखिया कौन थे ? वहाँ लेखक को क्या मिला ?
उत्तर :
शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु नम्से थे। वे बहुत भद्रपुरुष थे। वे लेखक से अत्यंत प्रेमपूर्वक मिले थे। यहाँ एक अच्छा मंदिर था। जहाँ लेखक को कन्जुर की एक सौ तीन हस्तलिखित पोथियाँ रखी हुई थीं। एक-एक पोथी पंद्रह-पंद्रह सेर की थी तथा बड़े मोटे कागज़ पर अच्छे अक्षरों में लिखी हुई थीं। वह इन पोथियों को पढ़ने में लीन हो गया।

प्रश्न 3.
‘ल्हासा की ओर’ यात्रा-वृत्तांत का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘ल्हासा की ओर’ यात्रा-वृत्तांत के माध्यम से लेखक ने तिब्बत-यात्रा की कठिनाइयों का वर्णन करते हुए वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य, सामाजिक जीवन तथा प्रशासनिक व्यवस्था से पाठकों को परिचित कराया है। तिब्बत के स्थानीय लोगों के यात्रियों के प्रति सहज व्यवहार से पाठकों को यात्रा करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 4.
ल्हासा की सामाजिक स्थिति कैसी है ?
उत्तर :
ल्हासा की सामाजिक स्थिति अन्य समाजों से अच्छी है। यहाँ जाति-पाति और छुआछूत का भेदभाव नहीं है। यहाँ की औरतें परदा नहीं करती हैं। घर में निम्न श्रेणी के भिखमंगों के अतिरिक्त किसी को भी किसी भी घर में आने की मनाही नहीं है। अपरिचित लोग भी घर के अंदर तक जा सकते हैं। वे लोग जल्दी से दूसरों पर विश्वास कर लेते हैं।

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प्रश्न 5.
ल्हासा की चाय की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
वहाँ चाय मक्खन और सोडा नमक डालकर बनाई जाती है। आप वहाँ किसी से भी कहकर चाय बनवा सकते हैं। उसके लिए चाय, मक्खन और सोडा – नमक देना पड़ता है। वे लोग चाय चोड़ी में कूटकर उसे दूधवाली चाय के रंग की बनाकर मिट्टी के टोंटीदार बरतन में रखकर आपको दे देंगे। यदि आप चूल्हे से दूर बैठे हैं और आपको डर है कि वे सारा मक्खन आपकी चाय में नहीं डालेंगी तो आप स्वयं जाकर चोड़ी में चाय मथकर ला सकते हैं। चाय का रंग तैयार हो जाने पर, उसमें नमक- मक्खन, डालने की जरूरत होती है।

प्रश्न 6.
डाँड़ा थोङ्ला क्या है ? यह डाकुओं के लिए सबसे अच्छी जगह क्यों है ?
उत्तर :
तिब्बत में डाँड़ा पहाड़ की ऊँची जमीन को कहते हैं। थोङ्ला तिब्बत की सीमा पर स्थित एक स्थान का नाम है। डाँड़े तिब्बत में सबसे खतरनाक जगह है, सोलह-सत्रह फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ मीलों तक कोई गाँव दिखाई नहीं देता है। इसे बहुत सँभलकर पार करना पड़ता है।

इस स्थान पर मीलों तक आदमी दिखाई नहीं पड़ता है इसलिए वह जगह डाकुओं के लिए अच्छी है। ऐसे निर्जन स्थानों पर डाकुओं का यात्रियों को लूटना आसान है। यहाँ पर पुलिस भी नहीं आती है। यहाँ डकैत पहले आदमी को मारता है फिर देखता है कि उसके पास कुछ है या नहीं। इसलिए यह स्थान डाकुओं के लिए उपयुक्त है। वहाँ किसी के आने का डर नहीं है।

प्रश्न 7.
तिब्बत की पुलिस के संबंध में लेखक के क्या विचार थे ?
उत्तर :
तिब्बत की पुलिस निर्जन पहाड़ों में जाने को तैयार नहीं है। उनकी खुफिया पुलिस इन जगहों के लिए पैसा खर्च करने के लिए तैयार नहीं है। यहाँ पर हथियार रखने संबंधी कोई कानून नहीं है, इसलिए सभी के बंदूक, पिस्तौल आदि हैं। पुलिस किसी भी अपराधी को पकड़ना भी चाहे तो उसे गवाही के लिए कोई आदमी नहीं मिलता है। यदि गाँव में खून हो जाए तो वहाँ खूनी को सज़ा मिल सकती है।

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प्रश्न 8.
लेखक ने सुमति को यजमानों के पास जाने से कैसे रोका ?
उत्तर :
सुमति तिरी – समाधि-गिरि के आस-पास गाँवों में जाना चाहता था। वहाँ उसके यजमान थे। वह यजमानों को गंडे देकर दक्षिणा प्राप्त करना चाहता था। परंतु लेखक ने उसे अपने यजमानों के पास जाने के लिए मना कर दिया क्योंकि सुमति एक बार यजमानों के पास चला गया तो वह सप्ताह – भर भी वापिस नहीं आएगा। इससे लेखक की यात्रा बाधित होगी। इसलिए लेखक ने सुमति को यजमानों के पास न जाने से होनेवाली हानि के बदले में ल्हासा पहुँचकर रुपए देने की बात कहकर, सुमति को जाने से रोका।

प्रश्न 9.
तिब्बत में जमीन की स्थिति कैसी है? वहाँ खेती कैसे होती है?
उत्तर :
तिब्बत की ज़मीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का बहुत बड़ा हिस्सा बौद्ध मठों के हाथ में है। अपनी-अपनी जागीर पर जागीरदार, कुछ पर स्वयं खेती करते हैं तथा कुछ पर मजदूरों से करवाते हैं। वहाँ मजदूर बेगार पर मिल जाते हैं। खेती का प्रबंध देखने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो सभी प्रबंध देखता है, वह जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता है। इस प्रकार तिब्बत में खेती का प्रबंध बौद्ध भिक्षुओं के हाथ में है।.

प्रश्न 10.
‘ल्हासा की ओर’ किस प्रकार की विधा है ? लेखक इस पाठ के माध्यम से क्या बताना चाहता है?
उत्तर :
‘ल्हासा की ओर’ राहुल सांकृत्यायन द्वारा रचित एक श्रेष्ठ यात्रा-वृत्तांत है। इसमें लेखक ने अपनी तिब्बत-यात्रा का वर्णन किया है। अपनी इस यात्रा के माध्यम से लेखक ने बताना चाहा है कि तिब्बत में यात्रियों की सुविधाओं के साथ-साथ बहुत-सी कठिनाइयों का भी सामना करना पडता है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. यह व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए जगह-जगह फ़ौजी चौकियाँ और किले बने हुए हैं, जिनमें कभी चीनी पलटन रहा करती थी। आजकल बहुत-से फ़ौजी मकान गिर चुके हैं। दुर्ग के किसी भाग में, जहाँ किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है, वहाँ घर कुछ आबाद दिखाई पड़ते हैं। ऐसे ही परित्यक्त एक चीनी किला था। हम वहाँ चाय पीने के लिए ठहरे। तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत-सी तकलीफ़ें भी हैं और कुछ आराम की बातें भी। वहाँ जाति-पाति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं। बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को लोग चोरी के डर से घर के भीतर नहीं आने देते, नहीं तो बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) चीनी पलटन कहाँ रहती थी ?
(ख) किले के कुछ भागों में किसने अपना बसेरा बना लिया है ?
(ग) लेखक चाय पीने हेतु कहाँ रुका ?
(घ) जाति-पाति – छुआछूत का भेदभाव कहाँ नहीं है ?
(ङ) तिब्बत में लोग अपने घरों में किन्हें नहीं आने देते थे और क्यों ?
उत्तर :
(क) चीनी पलटन जगह-जगह बनी फ़ौजी चौकियों और किलों में रहती थी।
(ख) किले के कुछ भागों में किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है।
(ग) लेखक चाय पीने के लिए एक चीनी किले में रुका।
(घ) तिब्बत में जाति-पाति – छुआछूत का भेदभाव नहीं है।
(ङ) तिब्बत में लोग बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को चोरी के भय से घरों के भीतर नहीं आने देते, नहीं तो बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं।

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2. अब हमें सबसे विकट डाँड़ा थोङ्ला पार करना था। डाँड़े तिब्बत में सबसे खतरे की जगहें हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उसकी दोनों तरफ़ मीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं होते। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता। डाकुओं के लिए यही सबसे अच्छी जगह है। तिब्बत में गाँव में आकर खून हो जाए, तब तो खूनी को सजा भी मिल सकती हैं, लेकिन इन निर्जन स्थानों में मरे हुए आदमियों के लिए कोई परवाह नहीं करता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) डाँड़ा थोङ्ला कैसी जगह है ?
(ख) डाँड़ा थोङ्ला में बहुत दूर-दूर तक आदमी क्यों नहीं दिखाई देते ?
(ग) डाँड़ा थोङ्ला किसके लिए सबसे अच्छी जगह है और क्यों ?
(घ) तिब्बत को निर्जन स्थानों पर किनकी परवाह नहीं होती ?
उत्तर :
(क) तिब्बत में डाँड़ा थोङ्ला सबसे खतरे की जगह है। उसकी ऊँचाई सोलह-सत्रह हज़ार फुट है।
(ख) डाँड़ा थोङ्ला की ऊँचाई अधिक होने के कारण तथा नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी दिखाई नहीं देते।
(ग) डाँड़ा थोङ्ला डाकुओं के लिए सबसे अच्छी जगह है क्योंकि यहाँ दूर-दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता।
(घ) तिब्बत को निर्जन स्थानों पर मरे हुए आदमियों की परवाह नहीं होती।

3. सर्वोच्च स्थान पर डाँड़े के देवता का स्थान था, जो पत्थरों के ढेर, जानवरों की सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों से सजाया गया .. था। अब हमें बराबर उतराई पर चलना था। चढ़ाई तो कुछ दूर थोड़ी मुश्किल थी, लेकिन उतराई बिलकुल नहीं। शायद दो-एक और सवार साथी हमारे साथ चल रहे थे। मेरा घोड़ा कुछ धीमे चलने लगा। मैंने समझा कि चढ़ाई की थकावट के कारण ऐसा कर रहा है, और उसे मारना नहीं चाहता था। धीरे-धीरे वह बहुत पिछड़ गया, और मैं दोन्क्विकस्तो की तरह अपने घोड़े पर झूमता हुआ चला जा रहा था।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) डाँड़े के देवता का स्थान किनसे सजाया गया था ?
(ख) प्रस्तुत गद्यांश का लेखक कौन हैं? यह किस शैली में रचित है ?
(ग) घोड़े को धीरे चलता देखकर लेखक ने क्या समझा ?
(घ) लेखक किसके समान घोड़े पर झूम रहा था ?
उत्तर :
(क) डाँड़े के देवता का स्थान पत्थरों के ढेर, जानवरों की सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों से सजाया गया था।
(ख) प्रस्तुत गद्यांश के लेखक राहुल सांकृत्यायन हैं। यह आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है।
(ग) घोड़े को धीरे चलता देखकर लेखक ने समझा कि घोड़ा चढ़ाई की थकावट के कारण ऐसा कर रहा है।
(घ) लेखक दोन्निक्वक्स्तो के समान घोड़े पर झूमता हुआ चला जा रहा था।

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4. आसपास के गाँव में भी सुमति के कितने ही यजमान थे, कपड़े की पतली-पतली चिरी बत्तियों के गंडे खतम नहीं हो सकते थे, क्योंकि बोधगया से लाए कपड़े के खतम हो जाने पर किसी कपड़े से बोधगया का गंडा बना लेते थे। वह अपने यजमानों के पास जाना चाहते थे। मैंने सोचा, यह तो हफ़्ता-भर उधर ही लगा देंगे। मैंने उनसे कहा कि जिस गाँव में ठहरना हो, उसमें भले ही गंडे बाँट दो, मगर आसपास के गाँवों में मत जाओ, इसके लिए मैं तुम्हें ल्हासा पहुँचकर रुपए दे दूँगा। सुमति ने स्वीकार किया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) लेखक किस स्थान के आस-पास के गाँवों की बात कर रहा है ? वहाँ की क्या विशेषता है ?
(ख) यजमान किसे कहते हैं ? सुमति उन्हें गंडे क्यों देते हैं ?
(ग) सुमति यजमानों के पास क्यों जाना चाहते हैं ? लेखक उन्हें क्यों नहीं जाने देना चाहते ?
(घ) लेखक ने सुमति को गाँवों में न जाने के लिए कैसे मनाया ?
(ङ) सुमति ने पैसा कहाँ लेना स्वीकार कर लिया था ?
उत्तर :
(क) लेखक तिड्री के आस-पास के गाँवों की बात कर रहा है। पहाड़ों से घिरे हुए तिड्री के मैदान टापू जैसे दिखाई देते थे। मैदान में एक छोटी-सी पहाड़ी थी। इस पहाड़ी को तिड्री – समाधि – गिरि कहा जाता है।
(ख) यजमान वह व्यक्ति होता है जो किसी ब्राह्मण अथवा धर्मगुरु से कोई धार्मिक कार्य करवाता है। सुमति अपने यजमानों को गंडे इसलिए देते हैं क्योंकि उनके यजमानों को यह विश्वास है कि इन गंडों को बोधगया से लाए गए कपड़े से बनाया गया है। यह गंडे उनकी रक्षा करेंगे। यजमान गंडों के बदले सुमति को दक्षिणा देते हैं।
(ग) सुमति यजमानों के पास इसलिए जाना चाहते हैं कि वे अपने यजमानों को गंडे दे सकें तथा उनसे दक्षिणा प्राप्त कर सकें। लेखक उन्हें वहाँ इसलिए नहीं जाने देना चाहता क्योंकि इस प्रकार उनकी यात्रा में बाधा आ जाएगी। सुमति वहाँ हफ़्ता – भर लगा सकते हैं।
(घ) लेखक ने सुमति को अन्य गाँवों में न जाने के लिए यह कहकर मना लिया कि जिस गाँव में ठहरना हो वहाँ के यजमानों को गंडे बाँट दो परंतु आसपास के अन्य गाँवों में मत जाओ। इससे होनेवाली हानि के बदले लेखक उसे ल्हासा पहुँचकर रुपए दे देगा।
(ङ) सुमति ने ल्हासा में पैसे लेना स्वीकार कर लिया था।

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5. तिब्बत की ज़मीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का बहुत ज्यादा हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है। अपनी- अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती खुद भी करता है जिसके लिए मज़दूर बेग़ार में मिल जाते हैं। खेती का इंतज़ाम दिखाने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है जो जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) तिब्बत में ज़मीन की स्थिति कैसी है ?
(ख) तिब्बत में जागीरदार खेती कैसे और किनसे कराते हैं ?
(ग) तिब्बत में खेती का प्रबंध देखनेवाले भिक्षुओं की क्या स्थिति है ?
(घ) ‘बेगार’ से क्या आशय है ?
(ङ) दो विदेशी शब्द चुनकर लिखिए।
उत्तर :
(क) तिब्बत की ज़मीन अनेक छोटी-बड़ी जागीरों में बँटी हुई है। इनमें से अधिकतर जागीरों पर मठों का अधिकार है। वे ही इसका प्रबंध करते हैं।
(ख) तिब्बत में जागीरदार कुछ खेती स्वयं भी करते हैं और कुछ बेगार में मिलनेवाले मज़दूरों से कराते हैं।
(ग) तिब्बत में खेती का प्रबंध देखनेवाले मठों के भिक्षुओं को वहाँ काम करनेवाले एक राजा के रूप में सम्मान देते थे। उनके लिए वे उनके अन्नदाता थे।
(घ) ‘बेगार’ उन व्यक्तियों को कहते हैं जो बिना कोई निश्चित पारिश्रमिक लिए काम करते हैं।
(ङ) जागीर, इंतज़ाम।

ल्हासा की ओर Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन – राहुल सांकृत्यायन आधुनिक हिंदी – साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म उत्तर- प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाँव में सन् 1893 ई० में हुआ था। इनका मूल नाम केदारनाथ पांडेय था। शुरू से इनके स्वभाव में घुमक्कड़ी प्रवृत्ति विद्यमान थी। इसी कारण बाद में वे साधु बन गए और नाम पड़ा दामोदर। इन्होंने आरंभिक शिक्षा रानी की सराय गाँव में ग्रहण की थी। इन्होंने मिडिल की परीक्षा निज़ामाबाद के मिडिल स्कूल से पास की और संस्कृत सीखने काशी आ गए।

ये स्वभाव से ही घुमक्कड़ थे। इन्होंने संपूर्ण भारत की और लगभग एक तिहाई विश्व के महत्त्वपूर्ण देशों की यात्रा की। श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल, ईरान, चीन, जापान, मंचूरिया, इंग्लैंड, सोवियत संघ आदि देशों की यात्राओं ने इनके जीवन-दर्शन और दिशा को निर्मित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अत्यंत कठिन परिस्थितियों में एक से अधिक बार तिब्बत की यात्रा करके वे दुर्लभ प्राचीन भारतीय ग्रंथों की प्रतियाँ खोजकर लाए। अनेक वर्षों तक वे रूस में भारतीय दर्शन के अध्यापक रहे। सन् 1930 में इन्होंने श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म ग्रहण किया, तब इनका नाम राहुल सांकृत्यायन हुआ। सन् 1963 ई० में इनका निधन हो गया।

रचनाएँ – राहुल जी सही अर्थों में महापंडित थे। उन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य की अधिकांश विधाओं को समृद्ध किया है। इनके द्वारा रचित पुस्तकों की संख्या लगभग 150 है। मेरी जीवन-यात्रा (छह भाग), दर्शन – दिग्दर्शन, बाइसवीं सदी, जय यौधेय, बोल्गा से गंगा, भागो नहीं दुनिया को बदलो, दिमागी गुलामी, घुमक्कड़ शास्त्र आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। इन्होंने आदि हिंदी की कहानियाँ, दक्खिनी हिंदी काव्य – धारा और हिंदी काव्य – धारा प्रस्तुत कर हिंदी साहित्य की लुप्तप्राय सामग्री का उद्धार किया। वे बौद्ध धर्म के विख्यात विद्वान और व्याख्याता थे। इन्होंने बौद्ध-धर्म के अनेक ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद किया जिसमें मज्झिम निकाय, दीर्घनिकाय और विनय पिटक प्रमुख हैं।

भाषा-शैली – राहुल सांकृत्यायन आलोचक, भाषाशास्त्री, समाज – चिंतक, इतिहास – वेत्ता और गद्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, जापानी, रूसी एवं सिंहली भाषाओं पर अधिकार था। इनमें विषय एवं भाव के अनुरूप भाषा प्रयोग की अद्भुत क्षमता थी। ‘ल्हासा की ओर’ यात्रा – वृत्तांत में लेखक ने सहज, सरल भाषा तथा रोचक शैली में अपनी तिब्बत – यात्रा का वर्णन किया है। लेखक ने बोलचाल के पलटन, आबाद, बरतन, तकलीफ़, फ़ौजी आदि शब्दों के अतिरिक्त परित्यक्त, भद्र, मनोवृत्ति, श्वेत, शिखर आदि तत्सम प्रधान तथा खोटी, चोङी, डाँडा, थुक्पा, कन्जुर आदि देशज शब्दों का भी प्रयोग किया है। शैली में चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है, जैसे- ” आप दो बजे सूरज की ओर मुँह करके चल रहे हैं, ललाट धूप से जल रहा है और पीछे का कंधा बरफ़ हो रहा है। ”

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पाठ का सार :

‘ल्हासा की ओर’ राहुल सांकृत्यायन द्वारा रचित यात्रा – वृत्तांत है जिसमें उन्होंने ने अपनी तिब्बत यात्रा का वर्णन किया है। लेखक नेपाल से तिब्बत जाने वाले मुख्य मार्ग से ल्हासा जा रहे हैं। फरी – कलिड्याङ् मार्ग के प्रारंभ होने से पहले भारत का व्यापार नेपाल और तिब्बत से इसी मार्ग से होता था। चीनी पलटन उस मार्ग पर बनी हुई चौकियों और किलों में रहती थी। अब फ़ौजी मकान गिर गए हैं तथा किलों में किसानों ने अपने घर बना लिए हैं। ऐसे ही किसी किले में लेखक चाय पीने के लिए रुकता है।

तिब्बत में यात्रियों को सुविधाएँ भी हैं और कुछ कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है। वहाँ छुआछूत, परदा प्रथा, जातिगत भेद आदि कुछ भी नहीं है। यात्री घर के अंदर तक जाकर बहुओं अथवा सास को चाय पकाने के लिए कह सकते हैं। वह चाय बनाकर मिट्टी के टोटीदार बरतन में लाकर दे देगी। जब वे उस किले से चलने लगे तो एक व्यक्ति ने इनसे राहदारी माँगी। इन्होंने दो चिटें उसे दे दीं। उसी दिन वे थोड्ला के पहले के अंतिम गाँव में पहुँच गए थे। यहाँ भी लेखक के साथ चल रहे बौद्ध भिक्षु सुमति के जान-पहचान के लोग रहते थे। इसलिए उन्हें ठहरने के लिए अच्छी जगह मिल गई थी।

अब लेखक और उसके साथी को बहुत मुश्किल डाँड़ा थोड्ला पार करना था। तिब्बत में डाँड़े अत्यंत खतरनाक स्थान माने जाते हैं। सोलह- सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ दूर-दूर तक कोई गाँव नहीं होता है। डाकुओं के लिए यह बहुत सुरक्षित जगह है। इन निर्जन स्थानों पर यदि किसी का खून भी कर दिया जाए तो कोई चिंता नहीं करता है। डाकू भी पहले आदमी को मार देते हैं और बाद में उसका माल लूटते हैं। लेखक और उसका साथी ऐसे किसी व्यक्ति को देखकर भिखमंगों की तरह उनसे ‘दया करके एक पैसा दे दो’ कहकर भीख माँगने लगते थे।

वहाँ पहाड़ की ऊँची चढ़ाई देखकर लेखक ने सुमति को लड्कोर तक दो घोड़ों का प्रबंध करने के लिए कहा। अगले दिन वे घोड़ों पर सवार होकर ऊपर की ओर चलने लगे। डाँडे से पहले उन्होंने एक स्थान पर चाय पी और दोपहर के समय डाँड़े के ऊपर जा पहुँचे। इनके दक्षिण की तरफ पूर्व से पश्चिम तक हिमालय की बरफ़ से ढकी हज़ारों चोटियाँ थीं तथा दूसरी ओर हरियाली और बरफ से रहित बिलकुल नंगे पहाड़ थे।

चढ़ाई कुछ कठिन थी परंतु उतराई सहज थी। लेखक अपने घोड़े पर झूमता हुआ गलत रास्ते पर चला गया। रास्ते में किसी से पूछकर लौटकर सही रास्ते पर आया। जब वह देर से पहुँचा तो सुमति लेखक पर गुस्सा होने लगा। लेखक ने सारा दोष अपने सुस्त घोड़े को दिया। सुमति शीघ्र ही शांत हो गया। लङ्कोर में इन्हें ठहरने के लिए अच्छा स्थान मिल गया। यहाँ के यजमानों ने उन्हें चाय-सत्तू और गरमा-गरम थुक्पा खाने को दिया।

इसके बाद वे तिड्री के पहाड़ों से घिरे हुए टापू जैसे विशाल मैदान में पहुँच गए। वहीं एक छोटी-सी पहाड़ी है, जिसे तिड्री-समाधि-गिरि कहते हैं। यहाँ के गाँवों में सुमति के अनेक यजमान थे। सुमति कपड़ों की पतली-पतली चिरी हुई बत्तियों के गंडे यजमानों को बाँटते थे। लेखक ने सुमति को आस-पास के गाँवों में जाने से मना कर दिया और ल्हासा पहुँचकर उसे रुपये देने की बात कही।

सुमति ने स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन वे वहाँ से चल पड़े। सुमति के परिचित यजमान तिड्री में भी थे परंतु वे शंकर विहार की ओर चलने लगे। वहाँ के भिक्षु नम्से बहुत भद्र पुरुष थे। वहाँ के मंदिर में कन्जुर मुद्धवचन की हस्तलिखित एक सौ तीन, पोथियाँ थीं। एक-एक पोथी पंद्रह- चंद्रह सेर से कम नहीं थी। सुमति आस-पास के यजमानों से मिलने चला गया और लेखक पोथियाँ पढ़ने लगा। अंत में भिक्षु नमसे से विदा लेकर वे अपना-अपना सामान पीठ पर लादकर चल पड़े।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • पलटन – सेना, फ़ौज
  • आबाद – बसा हुआ, जहाँ लोग रहते हों
  • अपरिचित – अनजान
  • भद्र – सभ्य
  • डाँड़ा – ऊँची ज़मीन
  • दोन्क्विक्स्तो – स्पेन के उपन्यासकार सावतज के उपन्यास ‘डॉन क्विकजोर’ का नायक
  • दुर्ग – किला।
  • परित्यक्त – छोड़ा हुआ
  • राहदारी – रास्ते का कर
  • विकट – भयंकर, कठिन
  • परवाह – चिंता
  • कंडे – उपले, थोपा हुआ सूखा गोबर
  • गंडे – तावीज़े

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

JAC Class 9 Hindi ग्राम श्री Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
गाँव हरियाली से भरा हुआ है। वह बहुमूल्य रत्न पन्ना के समान है, जिसके कण-कण में हरियाली बसी हुई है। वह शांत है, स्निग्ध है और इसलिए कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ कहा है।

प्रश्न 2.
कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है ?
उत्तर :
कविता में शीत ऋतु के अंत और वसंत के मौसम का वर्णन है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

प्रश्न 3.
गाँव को ‘मरकत डिब्बे-सा खुला’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
गाँव के खेत हरी-भरी लहलहाती फसलों से भरे हुए हैं। पेड़-पौधों पर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। तरह-तरह के फलों, सब्जियों और अनाज के पेड़-पौधे अपनी हरी-भरी सुंदरता से सबके हृदय को आकृष्ट करते हैं। गाँव में हरियाली की अधिकता के कारण ही उसे ‘मरकत डिब्बे-सा खुला’ कहा है।

प्रश्न 4.
अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ?
उत्तर :
कवि को अरहर और सनई के खेत सोने की करधनियों के समान शोभाशाली दिखाई देते हैं।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
(ख) हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए
उत्तर :
(क) गंगा किनारे दूर-दूर तक फैली रेत धूप में सतरंगी आभा प्रकट करती है। जब गंगा की लहरे रेत को गीलाकर पीछे हट जाती हैं, तो उन लहरियों के निशान सूखी रेत पर साँपों के समान दिखाई देते हैं।
(ख) शीत ऋतु के जाने और वसंत के आगमन पर धूप में तेजी आने लगती है। वातावरण में गरमी बढ़ने लगती है। सरदी से भयभीत-सी वनस्पतियाँ भी सुख का अनुभव करने लगती हैं। ऐसा लगता है, जैसे सरदी की धूप को पाकर हँसमुख हरियाली भी सुस्ताने लगती है; उसे हल्की-हल्की नींद-सी आने लगती है।

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प्रश्न 6.
निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार हैं ?
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक
उत्तर :
इन पंक्तियों में पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार हैं।

प्रश्न 7.
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत के किस भूभाग पर स्थित है?
उत्तर :
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत में गंगा नदी के किनारे के किसी भूभाग पर स्थित है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
‘ग्राम श्री’ भारतीय गाँवों में सर्वत्र फैली प्राकृतिक शोभा की सुंदर झाँकी है। वसंत के आगमन पर पेड़-पौधों का हरा-भरा रूप सबके मन को मोह लेता है। लहलहाती फसलें जहाँ पेट भरने का आधार बनती हैं, वहीं मन और आँखों को तृप्ति भी प्रदान करती हैं। यह कविता कल्पना के आधार पर नहीं है, बल्कि यथार्थ का चित्रण करती है। सूर्य की उजली धूप में खेतों की मखमली शोभा और अधिक निखर जाती है। नीले आकाश के नीचे हवा में हिलती हुई फसलें ऐसी प्रतीत होती हैं, जैसे वे यौवन को पाकर मस्ती में झूमने लगी हों।

सरसों के पीले-पीले फूलों की बहार, अरहर और सनई की स्वर्णिम किंकिणियाँ और अलसी की नीली कलियाँ हरी-भरी धरती पर अनूठी प्रतीत होती हैं। मटर के खेतों में रंग-बिरंगे फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ हर पल मँडराती रहती हैं। आम के पेड़ बौर से लद जाते हैं; कोयलें कूकने लगती हैं; कटहल महक उठते हैं; जामुन फूल उठते हैं; अमरूदों पर लाल-लाल चित्तियाँ पड़ जाती हैं तथा तरह-तरह की सब्ज़ियाँ अपनी शोभा बिखेरने लगती हैं। गंगा के किनारे तरबूजों की खेती लहलहाती है, तो जलीय पक्षी अपनी मस्ती में क्रीड़ा करते दिखाई देते हैं।

कवि ने प्राकृतिक रंगों को अति स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत करने में सफलता पाई है। खड़ी बोली में रचित कविता में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। छंद-बद्ध कविता में लयात्मकता की सृष्टि हुई है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कथन को सरलता और स्पष्टता दी है। निश्चित रूप से भाव और भाषा की दृष्टि से ‘ग्राम श्री’ श्रेष्ठ कविता है, जिसमें चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। यह प्रकृति का चित्रण करने वाला रंग-बिरंगा चित्र है।

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प्रश्न 9.
आप जहाँ रहते हैं उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौंदर्य का कविता या गद्य में वर्णित कीजिए।
उत्तर :
जिस क्षेत्र में मैं रहता हूँ, वह भारत का ‘धान का कटोरा’ नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ धान की श्रेष्ठ किस्में उत्पन्न होती हैं, जो केवल भारत में ही नहीं खाई जातीं बल्कि विश्व के अधिकांश देशों को भी निर्यात की जाती हैं। वर्षा ऋतु का इस फसल के लिए बहुत बड़ा योगदान है। जुलाई-अगस्त महीनों में मानसून अपने पूरे रंग में आ जाता है। कई बार तो अचानक आकाश में बादल उमड़ते हैं और भरभूर वर्षा करते हैं। बच्चों को बारिश में भीगते हुए अपने-अपने स्कूलों में जाने-आने का विशेष आनंद आता है। गाँव के जो स्कूल कच्चे हैं वहाँ छुट्टी कर दी जाती है और बच्चे गलियों में नहाते हैं, भीगते हैं, खेलते हैं। कुछ किसान खेतों की ओर चल देते हैं, तो कुछ चौपाल में बैठ कर परस्पर मनोजन करते हैं। औरतें मिल जुलकर एक साथ घर के काम निपटाती हैं, लोकगीत गाती हैं। गलियों में पानी भर-भर कर बहता है। कहीं-कहीं तो ने छोटी नहर सी प्रतीत होती हैं। भैंसों को पानी में भीगना पसंद है, पर गायें सिर छिपाने की जगह ढूँढ़कर आराम से जुगाली करती हैं।

JAC Class 9 Hindi ग्राम श्री Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कविता के आधार पर गंगा किनारे की चित्रात्मक छवि का अंकन कीजिए।
उत्तर :
कवि ने बनारस और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की थी, जहाँ उसने गंगा नदी की शोभा को निकटता से निहारा था। वहाँ की छवियाँ उसके मन में रची-बसी थीं। वसंत ऋतु आने पर पेड़-पौधों व फसलों पर ही बहार नहीं आती बल्कि जीव-जंतु भी अपने भीतर परिवर्तन को अनुभव करते हैं। गंगा की धाराएँ हर पल तटों को नहलाती हुई आगे बढ़ती हैं और उनके आगे बढ़ने से साँपों जैसे निशान रेत पर छूट जाते हैं। धूप में सूखी रेत तरह-तरह के रंगों में चमकती है। दूर-दूर से बहकर आए घास-पात और तिनके तटों की रेत पर बिखर जाते हैं। किसान नदी तट पर तरबूज उगाते हैं। बगुले अपने पंजों रूपी कंघी से अपनी कलगी सँवारते हैं। सुरखाब पानी पर तैरते हैं और पुलिया पर मगरौठी सोई रहती है।

प्रश्न 2.
‘ग्राम श्री’ कविता में कवि ने मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने कविता में जड़ व चेतन तत्वों पर मानवीय भावों संबंधी और क्रियाओं के आरोप से उन्हें मनुष्य की तरह व्यवहार करते दिखाया है। प्रस्तुत कविता में सर्वत्र मानवीकरण अलंकार दिखाई देता है। बगुलों का अपने पैरों के पंजों रूपी कंघी से अपने पंखों को संवारते दिखाया गया है। इसी प्रकार अन्य स्थानों पर प्रकृति के विभिन्न रूपों को मानव के समान क्रियाकलाप करते दिखाया है।

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प्रश्न 3.
धरती का तल श्यामल क्यों प्रतीत हो रहा था ?
उत्तर :
सारा गाँव प्राकृतिक सुषमा से ओत-प्रोत था। खेतों में दूर तक हरियाली ही हरियाली थी। रात की ओस के बाद जब सुबह-सवेरे सूर्य की किरणें उस पर पड़ती थी, तब प्रकृति ऐसे लगती थी जैसे चाँदी की चादर ओढ़े हुए हो। फसलें अपने गहरे हरे रंग से सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। इसी कारण धरती का तल श्यामल प्रतीत हो रहा था।

प्रश्न 4.
वसंत ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वसंत ऋतु में प्रकृति में निरंतर परिवर्तन होता है। कभी धूप निकलती है, तो कभी मंद-मंद हवाएँ चलने लगती हैं। धूप के निकलने पर आस-पास के पर्वत, घास, पेड़-पौधे और उन पर खिले हुए फूल बहुत सुंदर दिखाई देते हैं। चारों ओर हरियाली छा जाती है। भीनी-भीनी गंध सारे वातावरण में फैल जाती है। हरी-भरी धरती पर अलसी के पौधों की नीली-नीली कलियाँ भी झाँकने लगती हैं।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली।
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्याम भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!

शब्दार्थ : तलक – तक। रवि – सूर्य। तन – शरीर। हरित – हरे-भरे। रुधिर — रक्त। श्याम – गहरा हरा कुछ-कुछ श्याम रंग का। भू – धरती। नभ – आकाश। चिर – लंबे समय से। नील – नीला। फलक.- पर्दा, आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से लिया गया है, जिसके रचयिता सुप्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने हरे-हरे खेतों और प्रकृति की सुंदरता का मनोरम चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि खेतों में दूर तक हरी-भरी फसलों की मखमली शोभा फैली है। सुबह-सवेरे जब सूर्य की किरणें प्रकट होती हैं तो ऐसा लगता है कि उन पर चाँदी जैसी उजली जाली-सी लिपट गई हो। फसलों के हरे-भरे तन पर धूप की चमक ऐसी प्रतीत होती है, जैसे उनमें विद्यमान उनका हरा रक्त निरंतर प्रवाहित हो रहा हो। फसलें गहरे हरे रंग की हैं, जिनके कारण धरती का तल श्यामल प्रतीत हो रहा है। सदा की तरह साफ़-स्वच्छ नीला आकाश उस पर झुका हुआ-सा दिखाई दे रहा है। भाव है कि हरी-भरी फसलों से भरी धरती पर झुका हुआ नीला आकाश अद्भुत दिखाई दे रहा है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) खेतों में दूर तक फैली हरियाली कैसी दिखाई देती है ?
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में क्या झलकता प्रतीत होता है ?
(ग) साफ़-स्वच्छ नीला आकाश किस पर झुका हुआ है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) खेतों में दूर तक फैली हरियाली मखमल के समान कोमल दिखाई देती है।
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में उनकी हरी रक्त- रूपी शक्ति झलकती दिखाई देती है। इससे पौधे के स्वस्थ रूप की झलक मिलती है।
(ग) साफ़-स्वच्छ नीला आकाश हरी-भरी फसलों से भरी धरती पर झुका हुआ है।
(घ) प्रकृति चित्रण से संबंधित इस अवतरण में कवि ने गाँव की शोभा का वर्णन करते हुए हरे-भरे खेतों का सजीव चित्रण किया है। नीले आकाश और हरी फसलों के द्वारा अद्भुत रंग योजना की सृष्टि की गई है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश और रूपक अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है।

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2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली !
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !

शब्दार्थ : वसुधा – धरती। सनई – सन, जिसकी छाल के रेशे से रस्सी बनाई जाती है। किंकिणियाँ – करधनी । तैलाक्त – तेल से युक्त। तीसी – अलसी नामक तेलहन।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इन पंक्तियों में कवि ने वसंत ऋतु के आगमन पर खेतों में दिखाई देने वाले अद्भुत परिवर्तन का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि गेहूँ- जौ की फसलों पर बालियाँ लग गई हैं, इसलिए सारी धरती रोमांचित – सी प्रतीत होती है। अरहर और सनई पर सुनहरे रंग की बालियाँ लग गई हैं, जो करधनी के समान शोभादायक प्रतीत होती हैं। सारे खेत में तेल की भीनी-भीनी गंध फैली हुई है। पीली-पीली सरसों सब तरफ़ फैली हुई है। कवि आश्चर्य में भरकर कहता है कि ज़रा देखो तो ! हरी-भरी धरती पर अलसी के पौधों की नीली- नीली कलियाँ भी झाँकने लगी हैं। भाव है कि हरे-भरे खेतों में नीले, पीले व सुनहरे रंग अलग से ही अपनी सुंदरता दिखाने लगे हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि के अनुसार पृथ्वी क्या देखकर रोमांचित है ?
(ख) सोने जैसी करधनियाँ किनकी हैं ?
(ग) नीली कलियों की शोभा कवि को कहाँ दिखाई दी थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि के अनुसार गेहूँ और जौ की बालियों को देखकर पृथ्वी रोमांचित है।
(ख) सोने की करधनियाँ अरहर और सनई के पौधों की हैं।
(ग) कवि को अलसी के पौधों की नीली कलियों की शोभा हरी-भरी धरती पर दिखाई दी थी।
(घ) कवि ने वसंत ऋतु के समय खेतों की हरियाली के साथ-साथ विभिन्न पौधों पर तरह-तरह की रंग – योजना का सजीव चित्रण किया है। ‘लो’ शब्द ने नाटकीयता और हैरानी के भाव को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। गतिशील बिंब योजना है। दृश्य बिंब ने कवि के कथन को चित्रात्मकता का गुण प्रदान किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज सुंदर चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दाब्ली की अधिकता है।

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3. रंग-रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटक
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती हैं रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर
फूले गिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !

शब्दार्थ : रिलमिल – मिल-जुलकर। छीमियाँ – फलियाँ। वृंत – डंठल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने हरे-भरे खेतों में मटर की बेलों पर लटकी फलियों और फूलों पर उड़ती रंग-बिरंगी तितलियों की शोभा का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि मटर की बेलें तरह-तरह के रंगों के फूलों से मिलकर हँसती-मुस्कुराती खड़ी हैं। उनकी हरी-भरी फलियाँ अपने भीतर बीजों की लड़ियों को छिपाकर मखमल की पेटियों की तरह लटकी हुई हैं। बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर रंग- बिरंगी तितलियाँ मँडरा रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि फूलों पर फूल गिर रहे हों; डंठलों पर जैसे डंठल ही उड़-उड़कर घूम रहे हों।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने मटरों की सुंदरता का वर्णन कैसे किया है ?
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में क्या छिपाया है ?
(ग) ‘फूलों पर फूल गिरते हुए’ किसके लिए कहा गया है ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने मटरों को रंग-बिरंगे फूलों से लदी बेलों पर लटकते हुए प्रकट किया है, जो अति सुंदर हैं। मटरों की फलियाँ मखमली पेटियों
के समान कोमल हैं।
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में मटर के बीजों की लड़ियों को छिपाया है।
(ग) रंग-बिरंगी तितलियाँ मटर की बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर मँडरा रही हैं। कवि ने कल्पना करते हुए कहा है कि मानों रंग-बिरंगे फूल ही रंग-बिरंगे फूलों पर गिर रहे हों।
(घ) कवि ने मटर के खेतों में प्रकृति की अनूठी छटा का सुंदर चित्रण किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का सहज-स्वाभाविक चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। गतिशील बिंब योजना अति स्वाभाविक रूप से की गई है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद युग विद्यमान है। शांत रस है। चाक्षुक बिंब ने दृश्य को सुंदर ढंग से प्रकट किया है।

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4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली !

शब्दार्थ : रजत – चाँदी। स्वर्ण – सोना। मंजरियाँ – बौर। आम्र – आम। तरु – पेड़। दल – पत्ते। डाली – शाखा। कोकिला – कोयल। मुकुलित – अधखिला। दाड़िम – अनार।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत ऋतु के आगमन के साथ प्रकृति में आए परिवर्तन का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि आम के पेड़ों की शाखाएँ सोने-चाँदी के रंगों से युक्त बौर से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पुराने पत्ते पेड़ों से गिर रहे हैं, ताकि उनका स्थान नए पत्ते ले सकें। कोयल मस्ती से भर उठी है। कटहल पेड़ों पर चिपके-लटके महकने लगे हैं। अधखिले जामुन के पेड़ शोभा देने लगे हैं और जंगल में झरबेरी मस्ती में झूमने लगी है। पेड़ों पर आडू, नींबू और अनार झूमने लगे हैं; खेतों में आलू, गोभी, बैंगन और मूली तैयार हो गई हैं। भाव है कि सारी प्रकृति तरह-तरह के पेड़-पौधों की शोभा से भर उठी है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने आम के पेड़ों की शोभा कैसे प्रकट की है ?
(ख) किन-किन पेड़ों के पत्ते झड़ने लगे थे ?
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को किसने प्रकट किया था ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) आम के पेड़ सरदी जाते ही चाँदी और सोने जैसे रंग के बौर से लद गए हैं। कोयल उन पर मस्ती में भरकर कूकने लगी है।
(ख) ढाक और पीपल के पत्ते झड़ने लगे थे, ताकि उनकी जगह नए और सुंदर पत्ते ले सकें।
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को झरबेरी ने प्रकट किया था।
(घ) कवि ने प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का सुंदर सजीव वर्णन किया है। तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है, पर वे सभी शब्द अति सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं। अनुप्रास, मानवीकरण और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण और शांत रस है। गणन शैली का प्रयोग है। लयात्मकता की सृष्टि स्वरमैत्री के कारण हुई है।

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5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धानिया,
लौकी औं सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली !

शब्दार्थ : चित्तियाँ – धब्बे। सुनहले – सोने के रंग के। अँवली – छोटा आँवला। तरु – पेड़।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत ऋतु में तरह-तरह के फलों और सब्ज़ियों की विशेषताओं का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि अमरूद पककर पीले और मीठे हो गए हैं। उन पर छोटे-छोटे लाल धब्बे पड़ गए हैं, जिनसे उनकी सुंदरता बढ़ गई है। सुनहरे बेर पककर तैयार हो गए हैं और छोटे आँवलों से पेड़ों की शाखाएँ जड़ी गई हैं। खेतों में हरी-भरी पालक लहलहाने लगी है, तो धनिए की सुगंध महकने लगी है। लौकी और सेम की बेलें दूर-दूर तक फैल गई हैं और फल गई हैं। लाल रंग के मखमली टमाटरों से पौधे लद गए हैं। हरी मिर्चों से पौधे भर गए हैं, जिस कारण पौधे हरी-भरी थैली के समान दिखाई देने लगे हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) पके हुए अमरूद कैसे दिखाई देते हैं ?
(ख) बेर और आँवले कैसे हो गए हैं ?
(ग) खेतों में सब्ज़ियों पर कैसी-कैसी बहार है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) पके हुए अमरूद पीले रंग के हो गए हैं, जिन पर लाल-लाल चित्तियाँ हैं। वे बहुत मीठे हैं।
(ख) बेर और आँवले शोभा दे रहे हैं। बेर पककर सुनहले हो गए हैं और आँवलों से पेड़ों की डालियाँ पूरी तरह जड़ी जा चुकी हैं।
(ग) खेतों में पालक लहलहा रही है; धनिया महक रहा है; लौकी और सेम की बेलें दूर तक फैली हुई हैं। लाल-लाल मखमली टमाटरों और हरी-भरी मिर्चों पर तो मानो बहार आई हुई है।
(घ) कवि ने खेतों में उगने वाली सब्ज़ियों और फलों की शोभा का सुंदर और सहज वर्णन किया है। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। ‘लहलह’, ‘महमह’ में लयात्मकता है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण, चित्रात्मकता और दृश्य बिंब सहज सुंदर हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली भी कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!

शब्दार्थ : बालू – रेत। सरपत – घास-पात, तिनके। तट – किनारा। सुरखाब – चक्रवाक पक्षी। पुलिन – नदी का किनारा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने गंगा किनारे की रेत और वहाँ पर पक्षियों की क्रीड़ाओं का अति स्वाभाविक चित्रण किया है।

व्याख्या :कवि कहता है कि गंगा के किनारे पर सात रंगों में जगमगाती रेत पर नदी की लहरों से साँपों जैसे सुंदर लहरिया निशान बने हुए हैं। वहाँ फैली घास-पात और तिनके अति सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है। सफ़ेद बगुलों में से कई अपने पंजे रूपी उँगलियों से कलगी सँवार रहे हैं, तो चक्रवाक पक्षी जल पर तैर रहे हैं। नदी के तट पर मगरौठी सोई रहती है। भाव यह है कि गंगा – किनारे का दृश्य अति मोहक है। प्रकृति ने अपने सभी रंग वहाँ बिखेर दिए हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि द्वारा गंगा किनारे का अंकित चित्र स्पष्ट कीजिए।
(ख) बगुले गंगा किनारे क्या कर रहे हैं ?
(ग) मगरौठी क्या कर रही है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) गंगा किनारे रंग-बिरंगी रेत दूर-दूर तक फैली हुई है, जिस पर लहरों के बहाव से साँप जैसे चिह्न अंकित हैं। घास-पात और तिनके न जाने कहाँ-कहाँ से बहकर वहाँ इकट्ठे हो गए हैं, जो सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है।।
(ख) बगुले गंगा के तट पर अपने पंजे रूपी कँघी से अपनी कलगी सँवार रहे हैं।
(ग) मगरौठी नदी के तट पर आराम से सो रही है।
(घ) कवि ने गंगा तट पर प्राकृतिक दृश्य का अति सुंदर और स्वाभाविक चित्रण किया है। रेत पर साँप – सी लहरियाँ, तरबूजों की खेती और पक्षियों की क्रियाएँ अति सहज रूप से प्रस्तुत हुई हैं। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। अभिधात्मकता और प्रसादात्मकता ने कवि के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। चित्रात्मकता का गुण और चाक्षुक बिंब विद्यमान है।

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7. हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !

शब्दार्थ : हिम-आतप – सरदी की धूप। अंधियाली – अँधेरे। निशि – रात। तारक – तारे। स्वप्नों – सपनों। मरकत — पन्ना नामक रत्न। आच्छादन – छाया। निरुपम – जिसे किसी की उपमा न दी जा सके। स्निग्ध – कोमल। निज – अपनी। हरता – आकर्षित करना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत के आगमन पर ग्रामीण आँचल में बिखरी प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि प्रसन्नता से भरी हँसमुख हरियाली सरदी की धूप में सुख से अलसाई सो रही है। ओस से भीगी अँधेरी रात में आकाश में टिमटिमाते तारे भी मानो स्वप्न में खोए हुए हैं। सारा गाँव हरियाली से इस प्रकार भरा हुआ है, जैसे वह हरा-भरा बहुमूल्य पन्ना रत्न हो जिस पर नीलम ज़ैसा नीला आकाश छाया हुआ है। शीत ऋतु की समाप्ति पर सारा गाँव अनुपम प्रतीत हो रहा है। वह कोमल, अति सुंदर और शांत है; जो अपनी अपार शोभा से हर मानव के हृदय को आकर्षित करता है। भाव यह है कि शीत ऋतु की समाप्ति और वसंत के आगमन पर गाँव की शोभा अवर्णनीय व अद्भुत है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई क्यों कहा है?
(ख) ‘भीगी अँधियाली’ क्या है ?
(ग) कवि ने गाँव को ‘मरकत डिब्बे – सा’ क्यों माना है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) वसंत आगमन पर सरदियों की ठिठुरन कम हो जाती है। धूप में थोड़ी तेज़ी बढ़ने लगती है। दिन-रात सरदी से ठिठुरती खेतों की हरियाली भी मानो गरमी पाकर अलसाने लगी थी। इसलिए कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई – सी माना है।
(ख) ओस का पड़ना सरदियों का आवश्यक और स्वाभाविक गुण है। रात के अँधकार में ओस चुपचाप पेड़-पौधों तथा सारी प्रकृति को नहला देती है, इसलिए कवि ने उसे भीगी अँधियाली कहा है।
(ग) सारा गाँव हरी-भरी वनस्पतियों से भरा हुआ है। हरियाली तो उसके कण-कण में सिमटी हुई है, इसलिए कवि ने उसे ‘मरकत का डिब्बे – सा’ माना है।
(घ) कवि ने गाँव के कण-कण की शोभा का आधार प्रकृति को माना है। वसंत के आगमन पर प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, महक जाता है; कवि ने तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया है। उपमा, मानवीकरण, अनुप्रास तथा पदमैत्री का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। प्रसादगुण और अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।

ग्राम श्री Summary in Hindi

कवि-परिचय :

छायावादी काव्यधारा के कवि सुमित्रानंदन पंत कोमल भावों और सौंदर्य के कवि माने जाते हैं। इनका जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में सन् 1900 में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई थी। बाद में इन्होंने बनारस और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की थी, पर देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी के आह्वान पर इन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था। इनका देहांत 28 दिसंबर, सन् 1977 में हुआ था।

पंत जी ने साहित्य को काव्य के अतिरिक्त आलोचक, कहानी, आत्मकथा आदि गद्य विधाओं की रचनाएँ दी हैं। इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं – वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, उत्तरा, कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा, लोकायतन आदि। सन 1961 में इन्हें पद्मभूषण की उपाधि दी गई थी। इन्हें ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा ‘चिदंबरा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया था। इन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

पंत द्वारा प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति चित्रण को विशेष महत्व दिया गया। इन्होंने प्रकृति को नारी रूप में चित्रित किया था। ये प्रगतिवादी कविता से प्रभावित होकर रूढ़ियों को समाज से मिटा देने के लिए तैयार थे। इनके प्रारंभिक काव्य में जो कोकिला मीठे गीत गाती थी, वही बाद में क्रांति के लिए उकसाने लगी थी –

गा कोकिल बरसा पावक कण
नष्ट भ्रष्ट हों जीर्ण पुरातन।

महर्षि अरविंद से भेंट करने के पश्चात ये अध्यात्मवादी हो गए। इनकी कविता में चिंतन की प्रधानता हो गई थी। ये सत्य पर विश्वास रखते हुए भौतिक समृद्धि की आवश्यकता को स्वीकार करते थे। लोकायतन लोक संस्कृति का महाकाव्य है।
वास्तव में पंत एक महान कवि थे, जिन्होंने प्रारंभिक सौंदर्य भावना के युग से आज के चेतना प्रधान युग तक की महान यात्रा की। वे भाषा का प्रयोग करने में अति निपुण थे। उन जैसा शब्द चयन की क्षमता से युक्त कवि बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है।

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कविता का सार :

सुमित्रानंदन पंत द्वारा चौथे दशक में लिखी गई यह कविता प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि का मनोरम वर्णन करने में सक्षम है। खेतों में दूर तक लहलहाती फसलें, फल-फूलों से लदी पेड़-पौधों की डालियाँ और गंगा की रेत कवि को गहराई से प्रभावित करती है। कवि को दूर-दूर तक खेतों में फैली हुई हरियाली मखमल के समान कोमल प्रतीत होती है, जिस पर सूर्य की किरणें चाँदी की जाली के समान बिखरी हुई हैं। हरी-भरी धरती पर नीले आकाश का पर्दा-सा फैला हुआ है। गेहूँ की बालियाँ, अरहर और सनई की सोने जैसी किंकिणियाँ शोभा देने वाली हैं।

मटर और छीमियों पर रंग-बिरंगी सुंदर तितलियाँ मँडराती फिरती हैं। आम की डालियाँ चाँदी-सोने की मंजरियों से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पेड़ों से पत्ते झड़ने लगे हैं। कोयल मस्ती में डूबकर कूक रही है। कटहल, जामुन, झरबेरी, आडू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन और मूली अपना रंग-रूप बिखेरने लगे हैं। पीले-पीले अमरूदों पर लाल-लाल चित्तियाँ पड़ गई हैं। पीले-पीले बेर पक गए हैं। पेड़ों पर आँवले झूल रहे हैं।

पालक, धनिया, लौकी, सेम, टमाटर, मिर्च आदि सब ऋतु परिवर्तन के साथ अपनी-अपनी शोभा को लेकर प्रकट हो गए हैं। गंगा नदी के किनारे रेत पर पानी के बहाव से सतरंगी साँप से अंकित हो गए हैं। नदी के तट पर तरबूजों की खेती की गई है। किनारों पर बगुले अपने पैरों की उँगलियों रूपी कंघी से अपने पंख सँवारते शोभा देते हैं। जल में तैरती सुरखाब और पुल पर सोई मगरौठी सुंदर लगती है। सरदियों की धूप फैल गई है।

हरियाली अलसाई-सी प्रतीत हो रही है। सारा गाँव पन्ना का खुला डिब्बा-सा प्रतीत होता है, जिस पर साफ़-स्वच्छ आकाश रूपी नीलम फैला हुआ है। शीत ऋतु बीत जाने के बाद प्राकृतिक शोभा सभी के हृदय को अपने बस में कर रही है। सर्वत्र सुंदरता बिखरी हुई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं

JAC Class 9 Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
सर्दियों की धुंध-भरी सड़क पर छोटे-छोटे बच्चों को काम पर जाते देखना दुखदायी है। उनकी आयु अभी काम पर जाने की नहीं बल्कि खेलने-कूदने और विद्यालय जाने की है। यदि वे अभी से बड़ों वाला कार्य करने को विवश कर दिए गए हैं तो उनके बचपन का क्या हुआ ?

प्रश्न 2.
कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?’ कवि की दृष्टि में किसी बात का विवरण न देते हुए उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए ?
उत्तर :
छोटे बच्चों को काम पर भेजने का कार्य उनके माता-पिता, अभिभावक और जीवन की विवशताएँ हैं इसलिए समाज से प्रश्न किया जाना चाहिए कि ‘बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं ?’ यदि बच्चों ने काम पर जाना आरंभ कर दिया तो उनका बचपन कहाँ गया ? उनके जीवन के लिए शिक्षा – प्राप्ति का समय कहाँ गया ? उनकी खेल-कूद कहाँ गई ? वे बच्चे तो अपना बचपन खोकर जल्दी ही बड़े हो गए।

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प्रश्न 3. :
सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?
उत्तर :
बच्चे सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से वंचित हैं। उनके माँ-बाप गरीब हैं। उनके पास पेट भरने के लिए रोटी नहीं है तो उनके पास उनके लिए खेल-खिलौने कहाँ से आ सकते हैं? इसलिए उनके बच्चे खेलते नहीं, बल्कि काम करने के लिए जाते हैं।

प्रश्न 4.
दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रही है/ देख रहा है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर :
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में प्राप्त किए जाने वाले सुखों तक ही सीमित है। उसे दूसरों के बच्चों के स्कूल जाने या न जाने से कोई मतलब नहीं है। वे सब स्वार्थी हैं। घरों – दुकानों उद्योगों में छोटे-छोटे बच्चे कम वेतन पर काम करते हैं। वे खेतों में काम करते हैं; कूड़ा बीनते हैं; भीख माँगते हैं पर पढ़ते नहीं हैं। माँ – बाप भी खुश हैं कि वे कुछ तो कमाकर लाते हैं। उनसे खाना तो नहीं माँगते। उन सब की उदासीनता के अपने-अपने कारण हैं, पर सबसे बड़ा कारण तो ग़रीबी है।

प्रश्न 5.
आपने अपने शहर में बच्चों को कब-कब और कहाँ-कहाँ काम करते हुए देखा है ?
उत्तर :
हमने अपने शहर में बच्चों को दुकानों में काम देखा है; घर-बाहर की सफ़ाई करते देखा है; कूड़ा बीनते और बोझ ढोते देखा है। उन्हें घरों में नौकर के रूप में देखा है; ढाबों पर खाना पकाते-परोसते देखा है।

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प्रश्न 6.
बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है ?
उत्तर :
बच्चों का काम पर जाना एक भयानक प्रश्न है, यह एक हादसे के समान है। यदि वे अभी से काम पर जाने लगेंगे तो वे स्कूल जा सकेंगे; खेल-कूद नहीं सकेंगे। उनका बचपन अधूरा रह जाएगा। वे अनपढ़ रह जाएँगे और जीवन में उचित मार्ग प्राप्त नहीं कर सकेंगे। बचपन में ही बिगड़े हुए लोगों की संगत पाकर बिगड़ जाएँगे। उनकी बुद्धि का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो सकेगा।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 7.
काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने-आपको रखकर देखिए। आपको जो महसूस होता है उसे लिखिए।
उत्तर :
यदि मैं अपने-आपको काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर रखूं तो मेरा रोम-रोम काँप उठता है। मुझे अपने तन पर मैले-कुचैले कपड़े, पाँव में टूटी हुई चप्पल, मैला-गंदा शरीर और उलझे हुए बाल अनुभव कर स्वयं से ऐसा एहसास होता है जो सुखद नहीं है। मेरा पेट खाली हो और मन में नौकरी देने वाले मालिक की गालियाँ गरज रही हों तो मेरे मन में पीड़ा का उठना स्वाभाविक ही है। कोहरे या कीचड़ से भरी सड़क पर अकेले पैदल ही काम करने के लिए आगे बढ़ना निश्चित रूप से बहुत भयानक है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 8.
आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए ? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए ?
उत्तर :
मेरे विचार में बच्चों को काम पर नहीं भेजा जाना चाहिए। उन्हें पढ़ने-लिखने का पूरा मौका मिलना चाहिए ताकि वे शिक्षा प्राप्त कर अपने जीवन को सँवार सकें। उन्हें खेलने-कूदने का उचित अवसर मिलना चाहिए ताकि वे तन-मन से स्वस्थ बन सकें। उन्हें अपने माता-पिता, सगे-संबंधियों और पास-पड़ोस से पूरा प्रेम मिलना चाहिए। ऐसा होने से ही उन के व्यक्तित्व का समुचित विकास हो सकेगा।

यह भी जानें –

संविधान के अनुच्छेद 24 में कारखानों आदि में बालक/बालिकाओं के नियोजन के प्रतिषेध का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार ‘चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।’

JAC Class 9 Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने कविता में किस सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत किया है ? कवि क्या चाहता है ?
उत्तर :
हमारे समाज में व्याप्त निर्धनता ही बच्चों को स्कूल जाने से रोकने की प्रमुख अवरोधक है। आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के लोग अपने साथ छोटे-छोटे बच्चों को भी सहायता के लिए लगा लेते हैं। उनके द्वारा कमाए गए थोड़े से पैसे भी उनके जीवन का आधार बनने लगते हैं। वे उन्हें इसी लालच में पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजते।

वे बच्चों को उचित दिशा नहीं दिलाते। जिन स्थानों पर छोटे-छोटे बच्चे काम करते हैं वहाँ के लोग भी कम पैसों से अधिक काम करवाने की स्वार्थ सिद्धि में आत्मिक प्रसन्नता प्राप्त कर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित नहीं करते। कवि ने इसी सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत करते हुए इसे भयानक माना है और चाहा कि बच्चे शिक्षा प्राप्त करें; खेलें कूदें और अपने बचपन से दूर न हों।

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प्रश्न 2.
कवि ने किसे भयानक माना है और इस बात को किस रूप में प्रकट करना चाहता है ?
उत्तर :
कवि ने छोटे-छोटे बच्चों का पढ़ाई-लिखाई और खेल-कूद छोड़कर, परिवार की आर्थिक मजबूरी के कारण मेहनत-मज़दूरी के लिए जाना बहुत भयानक माना है। कवि बाल मज़दूरी की बात समाज के समक्ष एक विकराल प्रश्न के रूप में उपस्थित करना चाहता है। वह समाज से पूछना चाहता है कि छोटे बच्चों से इस प्रकार उनका बचपन क्यों छीन लिया गया है ?

प्रश्न 3.
कवि समाज से क्या जानना चाहता है ?
उत्तर :
कवि छोटे-छोटे बच्चों को काम पर जाते देखकर, समाज से यह जानना चाहता है कि इन बच्चों का बचपन कहाँ खो गया है। क्या इनकी गेंदें आकाश में खो गई हैं? क्या इनकी पुस्तकों को दीमकों ने खा लिया है? यदि नहीं, तो ये बच्चे अन्य बच्चों की तरह खेलते क्यों नहीं हैं, पढ़ते क्यों नहीं हैं? इन पर कैसी मजबूरी आ गई है जिसके कारण यह काम पर जाने लग गए हैं?

प्रश्न 4.
कवि के अनुसार दुनिया किसके बिना अधूरी है ? कैसे ?
उत्तर :
कवि के अनुसार दुनिया स्वच्छंद और स्वाभाविक बचपन के बिना अधूरी है। बच्चों का बचपन तभी खिल सकता है जब बच्चे खेल के मैदान और स्कूलों में विद्या – प्राप्ति के लिए दिखाई दें। इस दुनिया का अस्तित्व बच्चों की खिलखिलाहट, भोलेपन तथा स्वाभाविक जीवन से है। यदि बच्चों का बचपन ही उनके पास नहीं है, तो दुनिया बेजान है, अधूरी है।

प्रश्न 5.
‘हैं सभी चीजें हस्वमामूल’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
‘हैं सभी चीजें हस्वमामूल’ से अभिप्राय यह है कि छोटे बच्चों के लिए खेलों और मनोरंजन के लिए आवश्यक सभी सामग्रियाँ अभी भी वैसी हैं जैसी पहले थीं। उनमें कोई कमी नहीं हुई है। अभी भी उनके लिए विद्यालय है; मैदान है; घरों के आँगन हैं पर उनमें विवशता के मारे बच्चे नहीं हैं अर्थात् बच्चे वहाँ जाने की अपेक्षा काम पर जाने के लिए विवश हैं।

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प्रश्न 6.
यदि आपके घर में ऐसा कोई बच्चा कार्य कर रहा है तो आप उसके लिए क्या करना चाहेंगे ?
उत्तर :
यदि हमारे घर ऐसा कोई बच्चा कार्य कर रहा है तो उसकी देखभाल भी अपने बच्चों के समान करेंगे। उसकी पढ़ाई के लिए प्रबंध करेंगे। उससे वही काम करवाए जाएँगे जो उसके उम्र के अनुसार सही होंगे। उसे खेलने-कूदने का उचित अवसर देंगे। उसके बचपन को पूरा ध्यान रखेंगे, जिससे वह अपना बचपन पूरी तरह जी सके और अपना व्यक्तित्व निखार सके।

प्रश्न 7.
‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कविता का मूल भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कवि राजेश जोशी की रचना है। इसमें कवि ने समाज की सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत किया है। आज के भौतिकवादी युग में मानव मानव से दूर तो हुआ ही है, पर साथ ही उसने बच्चों के बचपन को भी छीन लिया है। घर की आर्थिक स्थिति ने बच्चों को खेल-कूद और शिक्षा से दूर कर दिया है। सर्दियों के कोहरे में बच्चे स्कूल और खेलने का मैदान छोड़कर काम के लिए जा रहे हैं जो आज के समाज के लिए सबसे भयानक बात है।

बच्चों के खेल-खिलौने, पुस्तकें नष्ट हो गई हैं क्या ? तभी तो बच्चे काम के लिए जा रहे हैं। यदि वास्तव में ऐसा ही है तो दुनिया अधूरी हो जाएगी। दुनिया का अस्तित्व बच्चों के स्वाभाविक बचपन है। बच्चों का काम पर जाना बहुत भयानक बात है, इसे रोकना चाहिए। कवि कविता के माध्यम से दुनिया के सामने बाल मजदूरी के विकट विषय को रखना चाहता है तथा उनके लिए कुछ करने के लिए दूसरों को प्रेरित करना चाहता है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. कोहरे से ढकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह-सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?

शब्दार्थ : कोहरा – धुंध। विवरण- वर्णन, विस्तार। सवाल – प्रश्न।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से लिया गया है, जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। कवि को छोटे-छोटे बच्चों का खेल – कूद और पढ़ाई छोड़कर काम पर जाना बहुत बुरा लगता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि सर्दियों में धुंध से ढकी सड़क पर सुबह-सुबह छोटे-छोटे बच्चे मेहनत-मज़दूरी करने जा रहे हैं। बच्चों का पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद को छोड़कर काम करने के लिए जाना हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है। इसे बढ़ा-चढ़ाकर लिखना और विवरण की तरह लिखना बहुत भयानक है। इसे इस प्रकार नहीं लिखा जाना चाहिए बल्कि इसे प्रश्न के रूप में लिखा जाना चाहिए कि बच्चे अपनी छोटी-सी आयु में काम करने के लिए क्यों जा रहे हैं ? भाव है कि उन्हें काम पर नहीं जाना चाहिए, बल्कि उन्हें भी अन्य बच्चों की तरह ही भोला-भाला जीवन जीना चाहिए।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) बच्चे किस समय कहाँ जा रहे हैं ?
(ख) कवि ने किसे भयानक माना है ?
(ग) कवि इस बात को किस रूप में प्रकट करना चाहता है ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) बच्चे सर्दियों की सुबह-सवेरे धुंध में काम करने जा रहे हैं, ताकि वे अपना और अपनों का पेट भर सकें; घर का खर्च चला सकें।
(ख) कवि ने बच्चों के द्वारा विवशतावश पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद छोड़कर काम करने के लिए जाना बहुत भयानक माना है।
(ग) कवि इस बात को समाज के समक्ष प्रश्न के रूप में उपस्थित करना चाहता है और उससे पूछना चाहता है कि बच्चों से इस प्रकार उनका बचपन क्यों छीन लिया गया है ?
(घ) कवि को बच्चों के बचपन नष्ट होने और छोटी आयु में उन पर काम-काज का बोझ लादने से बहुत पीड़ा है। वह इसे भयानक मानता है। इससे बच्चे बचपन का अर्थ ही नहीं समझ पाएँगे। चित्रात्मकता के गुण से युक्त खड़ी बोली में रचित अवतरण में तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है। अनुप्रास और प्रश्न अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण विद्यमान है। अतुकांत छंद का प्रयोग है।

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2. क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग-बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?

शब्दार्थ : अंतरिक्ष – आकाश। भूकंप – आकाश। भूकंप – भूचाल। मदरसों- विद्यालयों। एकाएक – अचानक।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से अवतरित है जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। अपने माता-पिता की सहायता करने के लिए बच्चे पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद छोड़कर नौकरी करने लगे हैं। उनका बचपन खो गया है। कवि ने इसीलिए समाज से प्रश्न किया है।

व्याख्या : कवि जानना चाहता है कि बच्चों की सारी गेंदें क्या आकाश में खो गई हैं? क्या उनकी रंग-बिरंगी पुस्तकों को दीमकों ने खा लिया है या उनके सारे खिलौने बड़े-बड़े काले पहाड़ों के नीचे दबकर नष्ट हो गए हैं ? बच्चे अब खेलते क्यों नहीं ? वे पढ़ते क्यों नहीं ? क्या उनके विद्या – प्राप्ति के स्थान अर्थात विद्यालय किसी भयंकर भूकंप के कारण ढह गए हैं ? क्या खेलने के लिए सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन अचानक ही समाप्त हो गए हैं ? यदि वास्तव में ऐसा ही है तो इस दुनिया में बाकी बचा ही क्या है ? यह दुनिया बच्चों के कारण ही है। यदि बच्चों का बचपन उनके पास नहीं तो दुनिया किसलिए है ? इसका कोई औचित्य शेष नहीं रहा।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में बच्चों के लिए क्या करना आवश्यक है ?
(ख) बच्चों की प्रिय वस्तुओं के बारे में कवि क्या जानना चाहता है ?
(ग) एकाएक क्या नष्ट हो गया प्रतीत होता है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में बच्चों के लिए खेलना-कूदना और पढ़ना आवश्यक है।
(ख) कवि बच्चों की प्रिय वस्तुओं के बारे में जानना चाहता है कि वे सब कहाँ नष्ट हो गई हैं। बच्चों की गेंदें, रंग-बिरंगी पुस्तकें, खिलौने आदि कहाँ गए, जिनसे खेल – कूदकर बच्चे प्रसन्न होते थे, उनका बचपन उनके पास रहता था।
(ग) विद्यालयों की इमारतें, मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन एकाएक नष्ट हो गए प्रतीत होते हैं
(घ) कवि को बच्चों के बचपन नष्ट हो जाने पर गहरी पीड़ा है। वह जानना चाहता है कि उनके खेलने की सामग्री कहाँ गई। अतुकांत छंद का प्रयोग है। सामान्य बोल-चाल की शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है। उर्दू की शब्दावली का सहजता से प्रयोग सराहनीय है। प्रश्न अलंकार के प्रयोग ने कवि के विस्मय को जागृत किया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं

3. कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीजें हस्बमामूल
पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे-छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।

शब्दार्थ : अगर – यदि। हस्बमामूल – चीजें, यथावत्, वस्तुएँ वैसी ही हैं जैसी होनी चाहिए।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। कवि को बच्चों का नौकरी पर जाना बहुत दुखदायी प्रतीत होता है क्योंकि उनका समय खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने का है न कि मेहनत-मज़दूरी करने का।

व्याख्या : कवि कहता है कि यदि बच्चों की गेंदें, रंग-बिरंगी पुस्तकें, खिलौने, विद्यालय, मैदान, बाग़-बगीचे और घरों के आँगन एकाएक समाप्त हो गए हैं तो यह बहुत भयानक है, क्योंकि इस कारण बच्चे खेलने और पढ़ने से वंचित हैं। उससे भयानक बात यह है कि ये सारी वस्तुएँ ज्यों की त्यों हैं। इनमें से कुछ भी नष्ट नहीं है, हुआ है पर दुनिया के हजारों छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। वे अपनी भूख मिटाने और अपने माता-पिता के बोझ को कम करने के लिए काम पर सड़कों से गुज़रते हुए जा रहे हैं। उनका बचपन तो न जाने कहाँ पीछे छूट गया है ? यह बहुत भयानक बात है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में अधिक भयानक क्या है ?
(ख) ‘हैं सभी चीजें हस्बमामूल’ का भावार्थ क्या है ?
(ग) छोटे-छोटे बच्चे कहाँ जा रहे हैं और क्यों ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में भयानक यह है कि छोटे-छोटे बच्चों की गेंदें, खिलौने, रंग-बिरंगी पुस्तकें आदि सब पहले की तरह हैं, पर उन सबको छोड़कर उन्हें काम करने के लिए जाना पड़ रहा है। वे असमय ही अपना बचपन खो बैठे हैं।
(ख) ‘ हैं सभी चीज़ें हस्बमामूल’ का भावार्थ है कि छोटे बच्चों के लिए खेलों और मनोरंजन के लिए आवश्यक सारी सामग्रियाँ अभी भी वैसी हैं जैसे पहले थीं। उनमें कोई कमी नहीं हुई है। अभी उनके लिए विद्यालय हैं; मैदान हैं; घरों के आँगन हैं पर उनमें विवशता के मारे बच्चे नहीं हैं।
(ग) छोटे-छोटे बच्चे काम करने के लिए जा रहे हैं, ताकि वे अपनी भूख मिटाने के लिए खाना प्राप्त कर सकें; अपने माता-पिता की सहायता कर सकें।
(घ) कवि ने छोटे बच्चों के द्वारा काम पर जाने पर दुख प्रकट किया है और माना है कि उन्हें खेल-कूद और पढ़ने-लिखने के कार्य में समय लगाना चाहिए। तद्भव शब्दावली के साथ विदेशी शब्दावली का प्रयोग किया है। अतुकांत छंद का प्रयोग हुआ है। पुनरुक्ति – प्रकाश का प्रयोग स्वाभाविक है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति ने काव्य को सरलता – सरसता प्रदान की है।

बच्चे काम पर जा रहे हैं Summary in Hindi

कवि-परिचय :

आधुनिक युग की पीड़ा और आपाधापी से उत्पन्न परेशानी को वाणी प्रदान करने में सक्षम कवि राजेश जोशी का जन्म सन् 1946 में मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ था। अध्यापन कार्य के अलावा इन्होंने पत्रकारिता भी की। इन्होंने रूसी और जर्मन भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त किया था जिनका सदुपयोग इन्होंने साहित्यिक रचनाओं के सृजन में किया था।

श्री राजेश जोशी ने काव्य-लेखन के अतिरिक्त कहानियाँ, नाटक, लेख, टिप्पणियाँ भी लिखी हैं। इन्होंने कुछ नाट्य रूपांतर भी किए हैं तथा कुछ लघु फ़िल्मों के लिए पटकथाएँ भी लिखी हैं। इन्होंने संस्कृत में लिखित भर्तृहरि के काव्य की अनुरचना ‘भूमि का कल्पतरु यह भी’ नाम से की है। मायकोवस्की की कविता का अनुवाद ‘पतलून पहिना बादल’ नाम से किया है। इनके द्वारा भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, रूसी और जर्मन भाषाओं में अनूदित साहित्य भी हिंदी साहित्य को दिया गया है।

श्री राजेश जोशी के प्रमुख काव्य संग्रह हैं – एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी और दो पंक्तियों के बीच साहित्य अकादमी के द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। कवि की कविता में समाज-चित्रण पर विशेष बल दिया गया है। इसमें मानव के प्रति गहरी निष्ठा का भाव और जीवन के प्रति आस्था का स्वर विद्यमान है। मानवता की रक्षा के सद्प्रयास और निरंतर संघर्ष के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है। कवि को विश्व के नष्ट होने का खतरा जितना अधिक प्रतीत होता है, उतना ही अधिक वे जीवन की संभावनाओं की खोज के लिए बेचैन दिखाई देता है। कवि की भाषा में सहजता है, गति है, सरलता और सरसता है। उसमें स्थानीय बोली की पुट है। सीधे-सादे शब्दों में गहरे भावों को वहन करने की क्षमता विद्यमान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं

कविता का सार :

आज के भौतिकतावादी युग में मानव मानव से दूर तो हुआ ही है, पर साथ ही उसने बच्चों के बचपन को भी छीन लिया है। सामाजिक और आर्थिक विषमताओं ने बच्चों को खेल-कूद और शिक्षा से दूर कर दिया है। सर्दियों की कोहरे से भरी सड़क पर ‘बच्चे सुबह-सवेरे काम पर जा रहे हैं’ जो समय की सबसे भयानक बात है। कवि जानना चाहता है कि क्या बच्चों की खेलने की सारी गेंदें अंतरिक्ष में खो गई हैं या दीमकों ने उनकी रंग-बिरंगी किताबों को खा लिया है? क्या उनके सारे खिलौने नष्ट हो गए हैं? क्या सारे विद्यालय, बाग-बगीचे और घरों के आँगन अचानक समाप्त हो गए हैं? यदि बच्चों से उनके बचपन में ही काम लिया जाने लगा तो यह विश्व के लिए बहुत खतरनाक है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

JAC Class 9 Hindi कैदी और कोकिला Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी ?
उत्तर :
आधी रात के गहरे अँधेरे में कोयल की कूक सुनकर कवि जानना चाहता था कि वह क्यों कूक रही है ? उसे क्या कष्ट है ? वह किसका संदेश देना चाहती है ? कवि स्वयं तो कारावास की पीड़ा झेलने के कारण आधी रात तक जागने के लिए विवश था, पर वह जानना चाहता था कि कोयल के लिए ऐसी कौन-सी विवशता है ?

प्रश्न 2.
कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई ?
उत्तर :
कवि ने कोकिल के बोलने का कारण यह बताया कि वह किसी पीड़ा के बोझ से दबी हुई है, जिसे वह अपने भीतर सहेजकर नहीं रख सकती। उसने गुलामी व अत्याचार की आग की भयंकर लपटों को देखा है या उसे भी सारा देश एक कारागार के रूप में दिखाई देने लगा है।

प्रश्न 3.
किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई और क्यों ?
उत्तर :
कवि ने अंग्रेज़ी शासन की तुलना तम अर्थात अंधकार के प्रभाव से की है। अंधकार निराशा का प्रतीक है; दुखों का आधार है। अंग्रेजी शासन ने भारतवासियों के हृदय में निराशा का अंधकार भर दिया था। देशभक्तों को दुखों के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

प्रश्न 4.
कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
पराधीन भारत की जेलों में अंग्रेज़ी शासन ने भयंकर यंत्रणाओं का प्रबंध किया था, ताकि देशभक्त उनसे भयभीत हो जाएँ तथा अपने उद्देश्य से पीछे हट जाएँ। जेलों में कैदियों की छाती पर बैलों की तरह फीता लगाकर चूना आदि पिसवाया जाता था; पेट से बाँधकर हल जुतवाया जाता था; कोल्हू चलवाकर तेल निकलवाया जाता था; ईंटों और पत्थरों की गिट्टियाँ तुड़वाई जाती थीं; उन्हें भूखा-प्यासा रखा जाता था; उनके हँसने- रोने पर भी रोक थी। वे अपने हृदय के भावों को प्रकट नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मृदुल वैभव की रखवाली-सी, कोकिल बोलो तो!
(ख) हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कुँआ।
उत्तर :
(क) कवि कोयल से जानना चाहता है कि वह रात के अंधकार में अचानक क्यों कूक पड़ी। वह तो प्रकृति के कोमल सौंदर्य रूपी वैभव की रक्षा करती है। उसे अचानक क्या हो गया कि आधी रात को ऊँचे स्वर में कूक उठी।
(ख) कवि ने अंग्रेजी शासनकाल में जेलों में ढाए जाने वाले अत्याचारों का उल्लेख करते हुए कहा है कि उसे पेट पर फीता बाँधकर पशुओं की तरह कोल्हू चलाना पड़ता है, पर ऐसा करके भी वह अंग्रेज सरकार की अकड़ को तोड़ता है।

प्रश्न 6.
अर्ध रात्रि में कोयल की चीख से कवि को क्या अंदेशा है ?
उत्तर :
अर्ध रात्रि में कोयल की चीख से कवि को अंदेशा है कि या तो वह पागल हो गई है या उसने जंगल की आग की विनाशकारी ज्वालाओं को देख लिया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

प्रश्न 7.
कवि को कोयल से ईर्ष्या क्यों हो रही है ?
उत्तर :
कवि को कोयल से ईर्ष्या हो रही है, क्योंकि कवि के अनुसार कोयल को हरे-भरे पेड़ों पर रहने का अवसर मिलता है, जबकि वह दस फुट की अँधेरी कोठरी में रह रहा है। वह सारे आकाश में उड़ने के लिए स्वतंत्र है, जबकि कवि के पास काल कोठरी का सीमित स्थान है। कोयल का कूकना मधुर गीत कहलाता है, जबकि कवि का रोना भी गुनाह माना जाता है।

प्रश्न 8.
कवि के स्मृति – पटल पर कोयल के गीतों की कौन-सी मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं, जिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है ?
उत्तर :
कवि के स्मृति – पटल पर कोयल के गीतों की अनेक मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं। वह हर रोज़ सुबह-सवेरे कूककर लोगों को नींद से जगाती थी; उन्हें कर्मक्षेत्र की ओर प्रवृत्त करती थी। सुबह-सवेरे जब घास के तिनकों पर सूर्य की किरणें टकराती थीं, तो ओस की बूँदें जगमगा उठती थीं; तब विंध्य पर्वत के झरनों और पर्वतों पर उसकी कूक के मधुर गीत बिखर जाते थे।

प्रश्न 9.
हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयासरत देशभक्तों को हथकड़ियों में जकड़ दिया गया था, जो उनके लिए गहने के समान थे। वे उन्हें सदा याद करबाती थीं कि जिस प्रकार वे बँधे हुए हैं, उसी प्रकार सारा देश गुलामी के बंधनों में जकड़ा हुआ है। इससे उनके मन में देश भक्ति का भाव बढ़ता था। उन्हें हथकड़ियाँ अपना गहना लगती थीं, वही उनका श्रृंगार थीं।

प्रश्न 10.
‘काली तू … ऐ आली!’ – इन पंक्तियों में ‘काली’ शब्द की आवृत्ति से उत्पन्न चमत्कार का विवेचन कीजिए।
उत्तर :
कवि ने अपनी पंक्तियों में ‘काली’ विशेषण का प्रयोग अति सुंदर ढंग से चमत्कार उत्पन्न करने के लिए किया है। कोयल का रंग काला है, तो रात भी काली है। रात के कालेपन में निराशा और पीड़ा का भाव भी छिपा हुआ है। अंग्रेज़ी शासन की काली करतूत के कारण ही देशभक्तों को चोर-लुटेरों के साथ काली काल कोठरियों में बंद किया गया था। सारे देश को उन्होंने अपने काले कार्यों से ही गुलाम बना रखा था।

अंग्रेजी राज्य की काली वैचारिक लहरें और उनकी काली कल्पनाएँ हमारे देश के लिए भयावह थीं। कवि की काल कोठरी भी काली थी; उसकी टोपी काली थी और ओढ़ा जाने वाला कंबल भी काला था। उसको बाँधी गई लोहे की जंजीरें भी काली थीं। पहरे के लिए अंग्रेज़ों के द्वारा नियुक्त पहरेदार भी सर्पिणी के समान काली प्रवृत्ति से युक्त थे, जो दिन-रात गालियाँ देते रहते थे। कवि ने ‘काली’ शब्द से चमत्कार की सृष्टि करने में पूर्ण सफलता पाने के साथ-साथ अपने परिवेश को चित्रात्मकता के गुण से प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है।

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प्रश्न 11.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं ?
(ख) तेरे गीत कहावें वाह, रोना भी है मुझे गुनाह !
देख विषमता तेरी-मेरी, बजा रही तिस पर रणभेरी!
उत्तर :
(क) काली कोयल अँधेरी काली रात में कूक उठी। कवि जानना चाहता है कि उसने किस जंगल में लगी आग की लपटों को देख लिया? सारा देश अंग्रेजों के द्वारा दी जाने वाली गुलामी रूपी आग में झुलस ही रहा है। क्या उसका प्रभाव जंगल के प्राणियों पर भी कपड़ा है या सारा देश ही कारावास बन चुका है ? प्रश्न-शैली का प्रयोग कवि के कथन को प्रभावात्मकता देने में सफल हुआ है। तत्सम शब्दों का प्रयोग सहज है। अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है। प्रतीक योजना विद्यमान है।

(ख) कवि कोयल से कहता है कि जब वह गाती है, तो उसकी प्रशंसा की जाती है; पर जेल में उसका रोना भी गुनाह माना जाता है। दोनों की स्थिति में बड़ा अंतर है। इस पर भी देश की स्वतंत्रता के लिए बजाई जाने वाली रणभेरी रूपी प्रयत्न निरंतर चल रहे हैं। अंग्रेज़ी शासन स्वतंत्रता सेनानियों को कष्ट दे रहा है, पर वह उन्हें अपनी राह में आगे बढ़ने से रोक नहीं पा रहा। खड़ी बोली के प्रयोग में तत्सम शब्दावली के प्रयोग के साथ उर्दू शब्दों का प्रयोग भी अति सहज है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। अनुप्रास और पदमैत्री का स्वाभाविक प्रयोग है। अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता – सरसता दी है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 12.
कवि जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना भी सुनता होगा, लेकिन उसने कोकिला की ही बात क्यों की है ?
उत्तर :
कवि ने निश्चित रूप से जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना सुना होगा, पर वे दिन के उजाले में चहकते होंगे। वे आधी रात के अंधकार में नहीं चहके होंगे। कोकिला रात को तब कुहकी थी, जब कवि अपनी पीड़ा की गहराई को अनुभव कर रहा था। उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि उसकी तरह कोयल भी स्वयं को देश रूपी कारागार में अनुभव कर रही है। कोयल बाहर रो रही थी और कवि कारागार के भीतर। इसलिए एक-सी स्थिति को अनुभव करने के कारण कवि ने कोकिला की ही बात की थी।

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प्रश्न 13.
आपके विचार से स्वतंत्रता सेनानियों और अपराधियों के साथ एक-सा व्यवहार क्यों किया जाता होगा ?
उत्तर :
ब्रिटिश शासन के अंतर्गत स्वतंत्रता सेनानियों को अपराधी माना जाता था और उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाता था, जैसा चोर- डाकुओं व बटमारों से किया जाता था। चोर, डाकू और बटमारों के द्वारा गिने-चुने लोगों की ही धन-संपत्ति छीनी जाती है पर स्वतंत्रता सेनानी तो अंग्रेज़ सरकार को ही निर्मूल कर देना चाहते थे।

पाठेतर सक्रियता –

पराधीन भारत की कौन-कौन सी जेलें मशहूर थीं, उनमें स्वतंत्रता सेनानियों को किस-किस तरह की यातनाएँ दी जाती थीं ? इस बारे में जानकारी प्राप्त कर जेलों की सूची एवं स्वतंत्रता सेनानियों के नामों को राष्ट्रीय पर्व पर भित्ति पत्रिका के रूप में प्रदर्शित करें।
स्वतंत्र भारत की जेलों में अपराधियों को सुधारकर हृदय परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता है। पता लगाइए कि इस दिशा में कौन-कौन से कार्यक्रम चल रहे हैं ?
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

JAC Class 9 Hindi कैदी और कोकिला Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कविता के आधार पर कवि की चरित्रगत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
कवि माखनलाल चतुर्वेदी देशभक्त थे, जिन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर देश की परतंत्रता को समाप्त करने के लिए जी-जान से प्रयत्न किया था। अंग्रेज़ी शासन द्वारा उन्हें कारागार में चोर, डाकुओं और बटमारों के साथ बंद किए जाने पर भी वे हताश नहीं हुए थे। वे संवेदनशील थे। कोकिल के रात के समय कूकने पर उनकी संवेदना उससे भी जुड़ गई थी। वे कल्पनाशील थे। अंग्रेजी सरकार के द्वारा दिए जाने वाले कष्ट उन्हें तोड़ नहीं पाए थे। वे वचन के पक्के थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए एक बार मन में ठान लेने पर वे इस मार्ग से पीछे नहीं हटे थे।

प्रश्न 2.
कारागार में कवि की कैसी दशा थी ?
उत्तर :
स्वतंत्रता सेनानी होने के बाद भी कारागार में कवि को डाकू, चोर व ठगों के साथ बंद किया गया था। उसे पेट भर भोजन भी नहीं दिया जाता था। रात-दिन उस पर कड़ा पहरा रहता था। उसे हथकड़ियों में जकड़कर रखा गया था। इसके अतिरिक्त उसे कोल्हू चलाना पड़ता था तथा हथौड़े से ईंट-पत्थर भी तोड़ने पड़ते थे।

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प्रश्न 3.
बंदी जीवन में भी कवि निरुत्साहित क्यों नहीं था ?
उत्तर :
बंदी जीवन में अनेक कष्टों को सहन करते हुए भी कवि निरुत्साहित नहीं था। उसका मन देश को स्वतंत्र करवाने के लिए बिगुल बजा रहा था। वह गाँधी जी के देश की स्वतंत्रता हेतु लिए गए व्रत में अपने प्राणों को पूर्ण रूप से समर्पित कर उसमें अपना पूरा सहयोग देना चाहता था।

प्रश्न 4.
‘कैदी और कोकिला’ कविता का संदेश / उद्देश्य/मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कैदी और कोकिला’ कविता के माध्यम से कवि ने तत्कालीन ब्रिटिश शासकों द्वारा किया है। स्वतंत्रता आंदोलन करने वाले देशभक्तों पर किए जाने वाले अत्याचारों का वर्णन किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि स्वतंत्रता सेनानी जेल में बंद होने पर भी अपना साहस नहीं खोते थे तथा महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए अहिंसापूर्ण स्वतंत्रता संग्राम में सहर्ष अपना पूरा योगदान देने के लिए तत्पर रहते थे।

प्रश्न 5.
कवि ने रात के अँधेरे में किसे संबोधित किया है और क्यों ?
उत्तर :
कवि अंग्रेजी शासन में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों के कारण जेल में बंद है। जेल के सभी कैदी सो गए हैं; केवल कवि जाग रहा है। कवि ने रात के समय में कोयल की उपस्थिति अनुभव की। उसने बात करने के उद्देश्य से कोयल को संबोधित किया था। कवि कोयल से पूछता है कि वह इतनी रात को क्यों जाग रही है ? उसे नींद क्यों नहीं आ रही है ?

प्रश्न 6.
कोयल से क्या जानना चाहता है ?
उत्तर :
कवि कोयल से यह जानना चाहता है कि वह आधी रात को क्यों जाग रही है ? वह किस पीड़ा से परेशान होकर कूकी है ? क्या उसे नींद नहीं आ रही या वह पागल है या उसे जंगल में लगी आग की लपटें दिखाई दी हैं ? वह क्यों इतनी बेचैन है ?

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प्रश्न 7.
कवि ने ‘दावानल की ज्वालाएँ’ किसे कहा है ?
उत्तर :
कवि के समय में हमारा देश गुलाम था। देश को आज़ाद करवाने के प्रयत्न किए जा रहे थे, जिससे भारतीयों को भयंकर और दुखदायी कष्टों का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए कवि के लिए परतंत्रता ही ‘दावानल की ज्वालाएँ’ थीं।

प्रश्न 8.
कवि किन कष्टों के कारण रात भर जागता रहता था और कोयल से वह क्या जानना चाहता था ?
उत्तर :
अंग्रेज़ी सरकार ने कवि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद किया था। जेल में अंग्रेज़ अधिकारी कैदियों को तरह- तरह के कष्ट देते थे। कैदियों को पेट भर खाना नहीं मिलता था। कवि वहाँ के कष्टों से परेशान रात भर जागता रहता था। कवि ने कोयल से उसके आधी रात के समय कूकने का कारण जानने की इच्छा व्यक्त की। वह उससे उसके कष्टों के विषय में जानना चाहता था, जिससे परेशान होकर वह रात के समय जाग रही थी।

प्रश्न 9.
कवि को कारागार में दंड रूप में कौन-कौन से शारीरिक परिश्रम के काम करने पड़ते थे ?
उत्तर :
कवि देश की स्वतंत्रता के प्रयत्नों के कारण जेल में बंद था। जेल में कैदियों को कई तरह से शारीरिक कष्ट दिए जाते थे। ये कष्ट उनसे काम करवाकर दिए जाते थे। कवि को जेल में तेल निकालने के लिए पशुओं की तरह कोल्हू चलाना पड़ता था; हथौड़ों से ईंट-पत्थर की गिट्टियाँ तोड़ना, पेट की सहायता से हल जोतना, बैलों की तरह छाती से फीता लगाकर चूना आदि पीसने का काम करना पड़ता था।

प्रश्न 10.
रात के समय कोकिला किस कारण आई थी ?
उत्तर :
कवि ने कोकिला को स्वतंत्रता से प्यार करने वाले पक्षी के रूप में चित्रित किया है। कवि के अनुसार वह भी देश को गुलामी में बँधे देखकर रो रही थी। जो लोग देश आज़ाद करवाने का प्रयत्न कर रहे थे, उन्हें ब्रिटिश अधिकारी कष्ट दे रहे थे। कोयल आधी रात को कारागार में बंद स्वतंत्रता सेनानियों के कष्टों में सहभागी बनने और उनके कष्टों पर मरहम लगाने के लिए आई थी। वह उनके साथ मिलकर रोना चाहती थी।

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प्रश्न 11.
कवि ने अपने आस-पास के वातावरण में किन-किन काली वस्तुओं की गणना की है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार ब्रिटिश शासन में चारों ओर गुलामी का अंधकार फैला हुआ था, जहाँ सभी ओर काला – ही – काला दिखाई देता था। कवि ने अपने आस-पास के वातावरण में कोयल को काला माना है; रात काली है, अंग्रेज़ी शासन काला है, लहर काली है, कवि की कल्पना काली है, काल-कोठरी काली है, उसकी टोपी काली है, कंबल काला है और उसको बाँधने वाली जंजीरें भी काली हैं।

प्रश्न 12.
कोयल की कूक ‘चमकीला गीत’ क्यों है ?
उत्तर :
आधी रात में कवि को कोयल के कूकने की आवाज सुनाई देती है। कवि अपना दुख कोयल के साथ बाँटना चाहता था। कवि में कोयल की कूक आशा व उत्साह का भाव और स्वर प्रदान करती थी, जिस कारण वह अपनी निराशा से मुक्ति पाता था। वह उसे प्रेरणा प्रदान करती थी। कवि को कोकिला का स्वर देशभक्ति में डूबा हुआ-सा प्रतीत होता था। इसलिए कवि को लग रहा था कि वह अपने ‘चमकीले गीत’ से उसमें कष्टों को सहने का उत्साह भरने आई है।

प्रश्न 13.
कवि ने अपनी और कोकिला की अवस्थाओं में किस प्रकार तुलना की है ?
उत्तर :
कवि ने अपनी और कोकिला की अवस्था में बहुत अंतर माना है। कोकिला को रहने के लिए पेड़ की हरी-भरी शाखाएँ मिली हैं, जबकि कवि दस फुट की काली कोठरी में रहता है। कोकिल खुले आसमान में विचरण करती है और वह काली कोठरी में बंद है, जहाँ सब कुछ काला ही काला है। कोकिल कूकती है, तो सबको अच्छा लगता है, उसमें जीवन का रंग दिखाई देता है। परंतु कवि रोता है, तो उसमें दुख दिखाई देता है और उसका रोना गुनाह माना जाता है।

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प्रश्न 14.
कवि ने किसके व्रत का पालन करने का निश्चय किया था और कैसे ?
उत्तर :
कवि ने महात्मा गांधी के द्वारा देश की आज़ादी हेतु लिए गए व्रत का पालन करने का निश्चय किया था। कवि कारागार में बंद था, परंतु उसका हृदय देश की आज़ादी के लिए कुछ करने के लिए मचल रहा था। वह वहाँ बंद रहकर भी अपनी रचना के माध्यम से आज़ादी की रणभेरी बजाना चाहता था। वह लोगों को जागृत करना चाहता था कि वें महात्मा गाँधी के आज़ादी के स्वप्न को पूरा करने में सहयोग दें।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. क्या गाती हो ?
क्यों रह-रह जाती हो ?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो ?
संदेशा किसका है ?
कोकिल बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन, या तम का प्रभाव गहरा है ?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?

शब्दार्थ : कोकिल – कोयल। बटमारों – रास्ते में यात्रियों को लूट लेने वाले। तम – अंधकार। हिमकर – चंद्रमा। कालिमामयी – काली। आली – सखी।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से लिया गया है, जिसके रचयिता श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण ब्रिटिश सरकार ने कवि को जेल की कोठरी में बंद कर दिया था। आधी रात के समय किसी कोयल के कूकने की आवाज़ को सुनकर कवि को ऐसा अहसास हुआ कि कोयल भी पूरे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है, इसलिए वह आधी रात में चीख उठी है।

व्याख्या – कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे काली कोयल ! तुम क्या गाती हो ? कुछ कूक कर फिर चुप हो जाती हो। तुम अपनी बात एक साथ क्यों नहीं कह पाती ? क्यों रह रह जाती हो ? अरी कोयल ! बताओ कि तुम अपने साथ किसका संदेश लाई हो ? तुम किसकी बात सुनाना चाहती हो ? मैं तो कारागार की इन ऊँची-ऊँची काली दीवारों के घेरे में बंद हूँ; जहाँ डाकू, चोर और राह चलते लोगों को ठगने वाले ठगों का डेरा है। अपराधियों के बीच मैं भी बंद हूँ। कारागार के अधिकारी जीने के लिए आवश्यक खाना नहीं देते; पेट भूख के कारण खाली रहता है। ये न हमें जीने देते हैं और न मरने देते हैं। हम तड़पकर रह जाते हैं। हमारे ऊपर दिन- रात कड़ा पहरा रहता है। यह अंग्रेज़ी शासन की व्यवस्था है या अंधकार का गहरा प्रभाव है – कुछ समझ में नहीं आता। आकाश में कुछ समय पहले चंद्रमा दिखाई दिया था, पर वह भी निराश कर चला गया। बस, सब तरफ़ रात का गहरा अंधकार छाया हुआ है। इस अँधेरी – काली रात में हे सखी रूपी कोयल ! तू क्यों जाग रही है ? ज़रा बता कि तुझे किस कारण नींद नहीं आई ?

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने रात के अँधेरे में किसे संबोधित किया है और क्यों ?
(ख) कवि को कारागार में किसके साथ बंद किया गया था ?
(ग) कवि ने अंग्रेज़ी शासन की तुलना किससे की है ?
(घ) कवि को जेल में क्यों बंद किया गया था ? कोयल की कूक का कवि पर क्या प्रभाव पड़ा था ?
(ङ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने रात में कोयल की उपस्थिति अनुभव की थी और उसे संबोधित किया था। कारागार में शेष सब सो रहे थे; केवल कवि जाग रहा था और कोयल भी रात के अँधेरे में कूक रही थी।
(ख) कवि को कारागार में डाकुओं, चोरों और राह चलते लोगों को लूटने वाले लुटेरों के साथ बंद किया गया था।
(ग) कवि ने अंग्रेज़ी शासन की तुलना गहरे अँधेरे से की है।
(घ) ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आंदोलनों में लिप्त होने के कारण कवि को जेल की कोठरी में बंद कर दिया गया था। आधी रात के समय किसी कोयल के कूकने की आवाज़ को सुनकर कवि को ऐसा अहसास हुआ कि कोयल भी पूरे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है, इसलिए वह आधी रात में चीख उठी है।
(ङ) कवि ने अंग्रेज़ों के कारागार में अत्याचारों और अपमान को झेला था। उसे चोर – लुटेरों के साथ बंद किया गया था। दिन-रात उस पर कड़ा पहरा रहता था। भूख-प्यास के कारण कवि न तो जी पाता था और न ही मर पाता था। वह निराशा के भावों से भर गया था। कवि ने खड़ी बोली का प्रयोग किया है, जिसमें तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता – सरसता से प्रकट किया है। अनुप्रास और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों के स्वाभाविक प्रयोग ने काव्य-सौंदर्य में वृद्धि की है। गेयता का गुण विद्यमान है। करुण रस है।

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2. क्यों हूक पड़ी ?
वेदना बोझ वाली – सी;
कोकिल बोलो तो!
क्या लूटा ?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!
क्या हुई बावली ?
अर्धरात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं ?
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : हूक – चीख। वेदना – पीड़ा। मृदुल – कोमल। बावली – पागल। अद्धर्धात्रि – आधी रात। दावानल – जंगल की आग।

प्रसंग : प्रस्तुत प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसे श्री माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा है। अंग्रेज़ी सरकार ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण कवि को कारागार में बंद कर दिया था। कवि वहाँ के कष्टों से परेशान रात-भर जागता रहता था। कवि ने आधी रात के समय कूकने वाली कोयल को संबोधित करते हुए उसके कष्टों के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की थी।

व्याख्या – कवि पूछता है कि अरी कोयल ! तू अचानक क्यों कूक पड़ी? क्या कोई पीड़ा का भाव तुझे बोझ तले दबा रहा है ? तू बता तो सही कि वह क्या है ? तेरा क्या लूट गया है और तुझे किसने लूट लिया है ? तू आधी रात को भी जाग रही है। किसी कोमल वैभव की रक्षा करने वाली जैसी कोयल ! तुम बताओ तो सही। क्या तुम पागल हो गई हो, जो आधी रात के समय इस प्रकार ज़ोर से चीखी थी ? तुझे जंगल में लगी किस आग की लपटें दिखाई दी थीं? बताओ तो सही। भाव यह है कि अंग्रेज़ी शासन की गुलामी की आग की लपटें देशवासियों को जला रही थीं, पर जंगलं में ऐसी कौन-सी लपटें प्रकट हो गई थीं जिनसे परेशान होकर कोयल को आधी रात के समय कूकना पड़ा था।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि कोयल से क्या जानना चाहता है ?
(ख) कवि ने कोयल के लिए किस विशेषण का प्रयोग किया है ?
(ग) कवि ने ‘दावानल की ज्वालाएँ’ किसे माना है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि किन कष्टों में कहाँ रातभर जागता रहता था और कोयल से वह क्या जानना चाहता था ?
(च) कवि ने कोयल की कूक’ को ‘हूक’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
(क) कवि कोयल से जानना चाहता है कि वह आधी रात के समय किस पीड़ा से परेशान होकर कूकी थी ? क्या वह पागल है या उसे जंगल में लगी आग की लपटें दिखाई दी थीं?
(ख) कवि ने कोयल के लिए ‘मृदुल वैभव की रखवाली-सी’ विशेषण का प्रयोग किया है।
(ग) कवि ने भयंकर और दुखदायी संकटों को ‘दावानल की ज्वालाएँ’ माना है। हमारा देश उस समय अंग्रेजी शासन का गुलाम था, इसलिए हमारे लिए परतंत्रता ही ‘दावानल की ज्वालाएँ’ थीं। कवि नहीं जानता कि आधी रात के समय कूकने वाली कोयल के लिए ‘दावानल की ज्वालाएँ’ क्या थीं।
(घ) स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने के कारण विदेशी सरकार द्वारा कवि को कारागार में बंद कर दिया गया था। वह परेशान था और उसे आधी रात के समय कूकने वाली कोयल भी परेशान प्रतीत हुई थी। मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि किसी दुख से पीड़ित व्यक्ति को अन्य प्राणी भी उसी दुख से पीड़ित प्रतीत होने लगता है। कवि ने उपमा और अनुप्रास अलंकारों का सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है। लयात्मकता का प्रयोग किया गया है। तत्सम शब्दावली की अधिकता है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द-शक्ति और बेचैनी का भाव प्रस्तुत हुआ है।
(ङ) अंग्रेज़ी सरकार ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण कवि को कारागार में बंद कर दिया था। कवि वहाँ के कष्टों से परेशान रातभर जागता रहता था। आधी रात के समय कूकने वाली कोयल को संबोधित करते हुए कवि ने उसके कष्टों के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की थी।
(च) कवि स्वयं अंग्रेज़ी शासन के व्यवहार से परेशान था। उसे कोयल की कूक भी परेशानी से भरी हुई प्रतीत होती है। इसलिए कवि ने उसे हूक कहा है।

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3. क्या ? – देख न सकती जंजीरों का गहना ?
हथकड़ियाँ क्यों ? यह ब्रिटिश राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ ? – जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर कूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गजब ढा रही आली ?
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो !
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : मोट खींचना – चरस खींचना (जेल में बैल की तरह छाती से फीता लगाकर चूना आदि पीसना )। गिट्टी – ईंट-पत्थर के टुकड़े। जूआ वह लकड़ी जो पाट को घुमाने का काम करती है; हल चलाने वाले बैलों के गले पर रखी जाने वाली लकड़ी। आली – सखी।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। कवि ने कैदियों को कारागार में दिए जाने वाले तरह-तरह के कष्टों की ओर संकेत किया है।

व्याख्या : कवि कोकिल को संबोधित करता हुआ कहता है कि क्या तुम अंग्रेज़ी शासकों के द्वारा जेल में मुझे पहनाए हुए जंजीररूपी गहनों को नहीं देखती ? ये हथकड़ियाँ नहीं हैं, बल्कि ये ब्रिटिश राज के द्वारा पहनाए गए गहने हैं। जब हम कोल्हू चलाते हैं; तेल निकालते हैं, तो उसके घूमने से उत्पन्न ‘चर्रक चूँ’ की आवाज़ ही जीवन की तान है। उससे हमें जीवन जीने का उत्साह मिलता है। हम ईंट-पत्थरों को हथौड़ों से तोड़ते हैं। हमारी अँगुलियों पर उनके द्वारा चोटों के रूप में गीत लिखे गए हैं। मैं जेल में बैलों की तरह छाती से फीता लगाकर चूना आदि पीसता हूँ। मैं इससे परेशान नहीं होता, बल्कि मुझे तो इससे संतोष होता है कि ऐसा कर मैं अंग्रेज़ राज की अकड़ का कुआँ खाली कर रहा हूँ।

दिन के समय काम करते हुए मुझे दुख देने वाली और आँखों में आँसू लाने वाली करुणा का भाव क्यों जगे ? मैं नहीं चाहता कि अंग्रेज़ी-राज के पहरेदार मेरी पीड़ा को देखें पर कोयल रूपी मेरी सखि ! हृदय में छिपा पीड़ा का भाव रात के अँधेरे में गज़ब ढा रहा है। मैं दुख की अधिकता से फूट रहा हूँ, आँसू बहा रहा हूँ। अरी कोयल ! तुम बताओ कि अँधेरे को भेद कर इस शांत समय में तुम क्यों रो रही हो ? पता नहीं, तुम चुपचाप इस प्रकार मधुर विद्रोह के बीज क्यों बो रही हो ? अरी कोयल ! तुम कुछ तो बोलो और बताओ कि रात के अँधेरे में क्यों कूक रही हो ?

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने किसे गहने कहा है ?
(ख) कवि को कारागार में दंड रूप में कौन-कौन से शारीरिक परिश्रम के काम करने पड़ते थे ?
(ग) कवि दिन के समय अपनी पीड़ा के भावों को क्यों नहीं प्रकट करना चाहता ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि ने कारागार में किन कष्टों की ओर संकेत किया है ?
(च) कवि के अनुसार ब्रिटिश अकड़ का कुआँ किस प्रकार खाली हुआ ?
(छ) रात के समय कोकिल किस कारण से आई थी ?
(ज) ‘मोट’ और ‘जूआ’ क्या है ?
(झ) कवि ने कोकिल के कूकने को ‘रो रही क्यों हो’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
(क) कवि ने ब्रिटिश सरकार द्वारा पहनाई गई लोहे की हथकड़ियों को गहने है।
(ख) कवि को कारागार में तेल निकालने के लिए पशुओं की तरह कोल्हू चलाना पड़ता था; हथौड़ों से ईंट-पत्थर की गिट्टियाँ बनानी पड़ती थी। इसके अतिरिक्त उसे पेट की सहायता से हल जोतने, बैलों की तरह छाती से फीता लगाकर चूना पीसने आदि का काम करना पड़ता था।
(ग) कवि नहीं चाहता था कि कारागार की कठिनाइयों से व्यथित उसके मन की दशा कारागार के पहरेदार जानें। इसलिए वह दिन के समय अपनी पीड़ा के भावों को प्रकट नहीं करना चाहता था।
(घ) कवि ने कारागार में स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाने वाली यातनाओं का सजीव चित्रण किया है, जिससे उनकी क्रूरता का परिचय मिलता है। चित्रात्मकता के गुण ने कवि के कथन में छिपी पीड़ा को वाणी प्रदान की है। रूपक और अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। करुण रस विद्यमान है। तद्भव और सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया गया है, जिससे कथन को सरलता और स्वाभाविकता प्राप्त हुई है। अभिधा शब्द – शक्ति का प्रयोग है।
(ङ) कवि ने कारागार में कैदियों को दिए जाने वाले तरह-तरह के कष्टों की ओर संकेत किया है।
(च) स्वाधीनता प्राप्त करने के लिए देशभक्तों ने ब्रिटिश सरकार के द्वारा दी जाने वाली यंत्रणाओं को चुपचाप झेला था, जिससे उन्होंने ब्रिटिश अकड़ का कुआँ खाली किया था।
(छ) रात के समय कोकिल स्वतंत्रता सेनानियों के कष्टों में सहभागी बनने और उनके कष्टों पर मरहम लगाने के लिए आई थी। वह उनके साथ मिलकर रोना चाहती थी।
(ज) ‘मोट’ कुएँ से पानी निकालने के लिए चमड़े का बना डोल है और ‘जूआ’ लकड़ी का मोटा लट्ठा है, जो बैलों के कंधे पर रखा जाता है। उसमें हल बाँधकर खेत जोता जाता है।
(झ) कवि ने कोकिल के कूकने को ‘रो रही हो क्यों’ इसलिए कहा है क्योंकि मधुर स्वर में कूकने वाली कोकिल उनके विद्रोही स्वर को प्रेरणा दे रही थी; अंग्रेज़ी शासन के प्रति उनके आक्रोश को बढ़ा रही थी। कवि के अनुसार कोयल की ब्रिटिश अत्यचारों और अनाचार में त्रस्त है। इसलिए कवि को उसका स्वर रोने जैसा प्रतीत होता है।

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4. काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह – श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
इस काले संकट – सागर पर
मरने की, मदमाती !
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती !
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : रजनी – रात। शृंखला – जंजीर। हुंकृति – हुँकार। ब्याली – सर्पिनी। आली – सखी।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता
श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने कारागार के वातावरण का चित्रण किया है

व्याख्या : कवि कहता है कि हे कोकिल ! तू काले रंग की है और यह रात भी काली और अँधेरी है। अंग्रेज़ी शासन द्वारा किए जाने वाले अत्याचारपूर्ण कार्य भी काले हैं। मेरे मन में उत्पन्न होने वाली कल्पनाएँ भी काली हैं तथा सारे वातावरण में भी निराशा भरी हुई है। मैं जिस काल कोठरी में बंद हूँ, वह काली है। मेरी टोपी काली है और कंबल भी काला है। जिन लोहे की जंजीरों से मैं बँधा हुआ वे भी काली हैं।

कारागार के पहरेदार सर्पिनी जैसी हुँकारें भरते रहते हैं। हे कोयल रूपी सखी! वे पहरेदार इस पर भी गालियाँ देते रहते हैं; कड़वा और भद्दा बोलते हैं। देश के परतंत्रता रूपी इस काले संकट – सागर पर मरकर इसे आजाद करवाने की मदमाती इच्छा जागृत होती है। हे कोयल ! तुम बताओ कि इस अँधेरी रात में अपने चमकीले गीतों को क्यों तैरा रही हो ? सब दिशाओं में कूक – कूक कर क्यों फैला रही हो ? अरी कोयल ! तुम कुछ तो बोलो।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने अपने आस-पास की किन-किन काली वस्तुओं की गणना की है ?
(ख) पहरेदारों की हुँकार कवि को कैसी प्रतीत होती है ?
(ग) ‘काला संकट – सागर’ क्या है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि ने किस वातावरण का चित्रण किया है ?
(च) ‘काली’ विशेषण किन-किन अर्थों को स्पष्ट करता है ?
(छ) कोयल की कूक ‘चमकीला गीत’ क्यों है ?
उत्तर :
(क) कवि के अनुसार कोयल काली है; रात काली है; अंग्रेज़ी शासन काला है, लहर काली है, कवि की कल्पना काली है; काल कोठरी काली है, उसकी टोपी काली है, कंबल काला है और उसको बाँधने वाली जंज़ीरे भी काली हैं।
(ख) पहरेदारों की हुँकार, कवि को सर्पिणी जैसी विषैली प्रतीत होती है।
(ग) देश पर विदेशी शासन ‘काला संकट – सागर’ है, जिसमें सारे देशवासी निरंतर डूब रहे हैं।
(घ) कवि ने कारागार में तरह-तरह के कष्ट उठाए थे। उसे प्रतीत होता था कि वह पीड़ा के अँधेरे में डूबा हुआ है, जिसके चारों तरफ़ गहरा कालापन छाया हुआ है। दृश्य बिंब योजना है, जिससे निराशा का भाव टपकता है। अनुप्रास, रूपक और पदमैत्री का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। अभिधा शब्द का प्रयोग कथन की सरलता – सरसता का आधार बना है। प्रसाद गुण तथा करुण रस विद्यमान है। तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित रूप प्रकट किया गया है।
(ङ) कवि ने कारागार के वातावरण का चित्रण किया है।
(च) कवि ने ‘काली’ विशेषण का साभिप्राय प्रयोग किया है, जो निम्नलिखित अर्थों को प्रकट करता है –
(1) काला रंग – कोकिल, रात, टोपी, कंबल, लोहे की जंज़ीर।
(2) भयानकता – काली लहर, काली कल्पना, काली काल – कोठरी।
(3) अन्याय / क्रूरता – शासन की करनी, संकट – सागर।
(छ) कोकिल की कूक कवि को आशा व उत्साह का भाव और स्वर प्रदान करती थी, जिस कारण वह अपनी निराशा से मुक्ति पाता था। वह उसे प्रेरणा प्रदान करती थी। कवि को कोकिल का स्वर देशभक्ति में डूबा हुआ प्रतीत होता था, इसलिए उसने उसे ‘चमकीला गीत’ कहा है।

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5. तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी!
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : नसीब – भाग्य, प्राप्त होना। नभ – आकाश। गुनाह – अपराध। विषमता – कठिनाई। हुंकृति – हुँकार। कृति – रचना। मोहन – मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात महात्मा गांधी। आसव – रस। कोकिल – कोयल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। कवि कारागार की पीड़ा से पीड़ित है। वह चाहकर भी अपने सुख-दुख को प्रकट नहीं कर पाता।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे कोकिल, तुम्हें तो रहने के लिए पेड़ों की हरी-भरी शाखाएँ मिली हैं, पर मुझे यहाँ कारागार की काली कोठरी प्राप्त हुई है; जिसमें मैं बंद रहता हूँ। तुम सारे आकाश में उड़ती-फिरती हो; संचरण करती हो, पर मेरा संसार इस दस फुट की जेल की कोठरी तक सीमित रह गया है। जब तू कूकती है, तो लोग उसे मधुर गीत कहते हैं; जब मैं दुख में भरकर रोता हूँ, तो उसे भी गुनाह माना जाता है।

ज़रा तू अपनी और मेरी विषमता को देख। कितना बड़ा अंतर है हम दोनों में ! पर इस अवस्था में भी मैं निरुत्साहित नहीं हूँ। मेरा मन देश की आज़ादी के लिए रणभेरी बजा रहा है। मैं अपने मन में उत्पन्न होने वाली हुँकार पर अपनी रचना से और क्या प्रदान करूँ। अरी कोकिल ! मुझे बताओ कि मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात महात्मा गांधी ने देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जो व्रत लिया है, उसे मैं किसके प्राणों में रस रूप में भर दूँ। अरी कोकिल! तुम बोलो तो सही।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने अपनी और कोकिल की अवस्थाओं में किस प्रकार तुलना की है ?
(ख) कवि का हृदय क्या कर रहा है ?
(ग) कवि ने किसके व्रत का पालन करने का निश्चय किया था ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि किस पीड़ा से पीड़ित है ?
(च) ‘नभ-भर का संचार’ से क्या आशय है ?
(छ) कवि के लिए ‘दस फुट का संसार’ क्या है ?
(ज) ‘मोहन का व्रत’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
(क) कवि कहता है कि कोकिल को रहने के लिए हरी-भरी शाखाएँ प्राप्त हुईं, तो उसे काली कोठरी मिली। कोकिल का संचरण सारे आकाश में होता है, तो कवि का संसार दस फुट की कोठरी है। कोकिल का कूकना गीत कहलाता है, तो कवि का रोना भी गुनाह है।
(ख) कवि का हृदय देश की आज़ादी का आह्वान करते हुए रणभेरी बजा रहा है।
(ग) कवि ने महात्मा गांधी द्वारा लिए गए आज़ादी के व्रत का पालन करने का निश्चय किया है।
(घ) कवि ने देश की आज़ादी के लिए उसी रास्ते को अपनाने का निश्चय किया था, जो महात्मा गांधी ने निर्धारित किया था। पंक्तियों में कवि ने सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया है। लयात्मकता की सृष्टि हुई है। अभिधात्मकता ने कवि के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। पदमैत्री और अनुप्रास का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण विद्यमान है।
(ङ) कवि कारागार में बंद होने की पीड़ा से पीड़ित है। वह चाहकर भी अपना दुःख-सुख व्यक्त नहीं कर पाता।
(च) ‘नभ- भर का संचार’ से कवि का तात्पर्य स्वतंत्रता से है; खुले आकाश में विहार करने से है।
(छ) छोटी-सी काल कोठरी कवि के लिए ‘दस फुट का संसार’ है।
(ज) ‘मोहन का व्रत ‘ महात्मा गाँधी (मोहनदास करमचंद गाँधी ) के द्वारा स्वतंत्रता के लिए निरंतर अहिंसात्मक संघर्ष करते रहना है।

कैदी और कोकिला Summary in Hindi

कवि-परिचय :

गांधीवादी विचारधारा से गहरे प्रभावित श्री माखनलाल चतुर्वेदी देश की स्वतंत्रता से पूर्व युवा वर्ग में संघर्ष और बलिदान की भावना भरने में समर्थ कवि और प्रखर पत्रकार थे। इनका जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले के बाबई गाँव में सन् 1889 ई० में हुआ। इनका बचपन आर्थिक अभावों में बीता था। जीवन के संघर्षों ने इनकी पत्नी को टी०बी० का शिकार बना दिया था। इन्हें केवल 16 वर्ष की अवस्था में ही शिक्षक बनना पड़ा था। बाद में इन्होंने अध्यापन का कार्य छोड़कर ‘प्रभा’ नामक पत्रिका का संपादन सँभाल लिया। इन्होंने ‘कर्मवीर’ और ‘प्रताप’ पत्रिकाओं का भी संपादन किया था। ‘कर्मवीर’ में राष्ट्रीय भावनाएँ भरी रहती थीं। इनका देहांत सन् 1968 में हुआ। श्री चतुर्वेदी की प्रमुख रचनाएँ हैं – हिम किरीटनी, साहित्य देवता, हिम तरंगिनी, वेणु लो गूँजे धरा, माता, युग चरण, मरण, ज्वार, बिजुली काजर आँज रही आदि। इनकी संपूर्ण रचनाएँ माखनलाल चतुर्वेदी ग्रंथावली के खंडों में संकलित हैं।

इनकी रचनाओं में ब्रिटिश राज्य के प्रति विद्रोह का भाव मुखरित हुआ है। भले ही इनका जीवन छायावादी युग में विकसित हुआ, पर इनका काव्य छायावाद से अलग रहा। इनके काव्य में राष्ट्रीय और सांस्कृतिक भावों की प्रमुखता है। इनमें स्वतंत्रता की चेतना के साथ देश के लिए त्याग और बलिदान की भावना प्रमुख है। इसलिए इन्हें ‘एक भारतीय आत्मा’ भी कहा जाता है। ‘पुष्प की अभिलाषा’ नामक कविता के माध्यम से इन्होंने राष्ट्र के प्रति त्याग और बलिदान की भावना को अभिव्यक्त किया है –

मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक।

श्री चतुर्वेदी स्वाधीनता आंदोलन के दौरान अनेक बार जेल गए थे। उन्होंने प्रेम, भक्ति-भाव और प्रकृति-संबंधी काव्य की रचना भी की थी। वे कष्टों को जीवन में आने वाला आवश्यक हिस्सा मानते थे। वे नवयुवकों को संकटों से जूझने की प्रेरणा देते थे और इसे ही सच्चा सौंदर्य मानते थे। वे नवयुवकों को मातृभूमि की पूजा के लिए स्वयं को अर्पित करने के लिए प्रेरित करते थे।

इन्होंने अपने काव्य की रचना खड़ी बोली में की। ये कविता में शिल्प की अपेक्षा भावों को महत्व देते थे। इन्होंने परंपरागत छंद योजना की थी। इन्होंने कविता में उर्दू और फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग करने के साथ-साथ तत्सम शब्दावली का भी पर्याप्त प्रयोग किया था, पर फिर भी इन्हें बोलचाल के सामान्य शब्दों के प्रति विशेष मोह था जिस कारण इनकी भाषा जनसामान्य में प्रचलित हुई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

कविता का सार :

कवि ने यह कविता ब्रिटिश उपनिवेशवाद के शोषण- तंत्र का विश्लेषण करने हेतु लिखी थी। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ ब्रितानी शासन ने क्रूरता का व्यवहार करते हुए उन्हें दमन चक्र में पीस डालने का प्रयत्न किया था। उन्हें तरह-तरह की यातनाएँ दी थीं। कवि ने जेल में एकांकी और उदास जीवन व्यतीत करते हुए कोकिल (कोयल) से अपने हृदय की पीड़ा और असंतोष का भाव व्यक्त किया था।

कोकिल जब आधी रात में कूकती थी, तो कवि को प्रतीत होता था कि वह भी सारे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है और मधुर गीत गाने के स्थान पर मुक्ति के लिए चीखने लगी है। कवि कोकिल से पूछता है कि वह बार-बार क्यों कूकती है ? वह किसका संदेश लाई है? देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों को डाकू, चोरों व बटमारों के लिए बनाई जेलों में बंदकर अंग्रेजों ने उन पर तरह-तरह के

अत्याचार ढाए हैं। क्या कोकिल भी स्वयं को कैदी अनुभव करती है? अंग्रेजों ने देशभक्तों को हथकड़ियों में जकड़ दिया था। उनसे बलपूर्वक मज़दूरों का कार्य लिया जाता था। कोयल काले रंग की थी, तो विदेशी शासन भी काला था। कवि की काल-कोठरी काली थी; टोपी काली थी; कंबल काला था और पहरेदारों की हुँकार भी नागों के समान काली थी। कवि का संसार बस दस फुट की कोठरी ही था, जहाँ उसका रोना भी गुनाह था। जेल में बस कष्ट-ही-कष्ट थे, पर फिर भी गांधीजी के आह्वान पर देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न तो करना ही था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

JAC Class 9 Hindi यमराज की दिशा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई ?
उत्तर :
कवि की माँ ने उसे समझाया था कि कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोना नहीं चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा यमराज की है और यमराज को क्रोधित करना उचित नहीं। दक्षिण दिशा के प्रति वह सदा सचेत रहा और वह कभी भी उस दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया, इसलिए उसे दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई।

प्रश्न 2.
कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था ?
उत्तर :
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था क्योंकि वह उस छोर को नहीं पा सकता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 3.
कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गई है ?
उत्तर
पहले लोग मानते थे कि मौत के देवता यमराज की दिशा दक्षिण है पर अब तो हर दिशा ही मौत की दिशा है। मौत तो सर्वव्यापक है। सभी तरफ फैलते विध्वंस, नाश, हिंसा, मृत्यु आदि के चिह्नों को साफ-स्पष्ट देखा जा सकता था। यमराज के आलीशान महल सभी दिशाओं में हैं और सभी महलों में यमराज विद्यमान है, इसलिए आज हर दिशा दक्षिण दिशा हो गई है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
उत्तर :
धरती पर प्रत्येक दिशा मौत के चिह्नों से युक्त है। कोई भी तो ऐसा स्थान नहीं बचा जहाँ मानव-मानव आपस में उलझते न हों, लड़ते- झगड़ते न हों। हर तरफ घृणा और हिंसा का राज्य फैला है। मौत का देवता यमराज अपने आलीशान महलों में हर दिशा में दहकती आँखों सहित एक साथ विराजमान है। सर्वत्र मौत का ही राज है

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग-दर्शन देती है। आप की माँ भी समय-समय पर आप को सीख देती होंगी –
(क) वह आपको क्या सीख देती हैं ?
(ख) क्या उसकी हर सीख आप को उचित जान पड़ती है ? यदि हाँ, तो क्यों और नहीं तो क्यों नहीं ?
उत्तर :
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा प्राप्त कर उसे मार्ग-निर्देश नहीं देती थी बल्कि सभी की माँ ऐसा ही करती है। हर माँ अपने बच्चों की सलामती चाहती है, उन के स्वस्थ जीवन की कामना करती है। वह कदापि नहीं चाहती कि उस के बच्चों पर किसी प्रकार का कभी कोई कष्ट आए। वह उन कष्टों को अपने ऊपर ले लेना चाहती है। उसने जो संस्कार अपने पूर्वजों से पाया था उसे अपने बच्चों को देती है।

(क) मेरी माँ भी मुझे सदा तरह-तरह की सीख देती है। ईश्वर के प्रति श्रद्धा-विश्वास करना, अपने से बड़ों का कहना मानना, उन का आदर करना, समय का पालन करना, साफ-स्वच्छ रहना, अच्छा खाना, पढ़ाई करना, दूसरों की सहायता करना, खेलना-कूदना, देश-भक्ति, मीठा बोलना, लड़ाई-झगड़े से बचना, बुराइयों से दूर रहना आदि न जाने कितनी बातों के बारे में वह सीख देती रहती है।

(ख) मुझे अपनी माँ की हर सीख उचित जान पड़ती है। उसके पास जीवन का अनुभव है। वह उसी अनुभव की सीख ही तो मुझे देती है। माँ से बढ़ कर मेरा हितैषी कौन हो सकता है? मुझे उस ने जन्म दिया है, मेरा पालन-पोषण किया है। वह मेरी सहारा है। वह मेरे जीवन को सँवारना चाहती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 6.
कभी-कभी उचित – अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर :
ईश्वर सर्वव्यापक है पर वह भी दिखाई नहीं देता। उसे अपने भावों – विचारों से समझा जा सकता है। कभी-कभी उचित – अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक होता है। ऐसा करने से मन को दृढ़ता प्राप्त होती है, दिशा निर्देश मिलता है और हम मानसिक सहारा प्राप्त करते हैं। मानव के चंचल मन पर नियंत्रण पाने का रास्ता मिलता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मनुष्य को प्रत्येक कार्य स्वयं करना होता है, पर मन की शक्ति कोई सहारा तो अवश्य पाना चाहती है। वह सहारा ही ईश्वर है जिसे दिशा देने के लिए ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है।

JAC Class 9 Hindi यमराज की दिशा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘यमराज की दिशा’ कविता के भाषा-शिल्प पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
कविता में भाव सीधे होकर भी गंभीर हैं तथा भाषा आसान होकर गहरी है। कवि ने खड़ी बोली का प्रयोग किया है जिसमें तत्सम, तद्भव शब्दावली के प्रयोग के साथ-साथ सरल उर्दू के शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। मुक्त छंद का प्रयोग करने में कवि को निपुणता प्राप्त है। अभिधा के प्रयोग ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। प्रसाद गुण सर्वत्र विद्यमान है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, स्मरण अलंकारों के सहज प्रयोग ने कथन को सरसता प्रदान की है।

प्रश्न 2.
कवि ने अपनी माँ के परमात्मा के प्रति आस्था और विश्वास को किस प्रकार प्रकट किया है ?
उत्तर :
कवि की माँ को परमात्मा में आस्था और विश्वास था। वह अपना सुख-दुःख सभी कुछ परमात्मा से बाँटती थी। वह ऐसा दिखाती थी कि वह ईश्वर को जानती है, उनसे बात करती है, प्रत्येक कार्य में उनसे सलाह लेती है और उनकी सलाह के अनुसार कार्य करती है। ईश्वर पर विश्वास करती हुई वह जिंदगी जीने और दुःख सहने के रास्ते ढूँढ़ लेती थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 3.
क्या कवि अपनी माँ की बात मानता था ? कैसे ?
उत्तर :
कवि ने छोटेपन से ही अपनी माँ को सभी प्रकार की समस्याओं से लड़ते हुए देखा था। उसके लिए माँ की बात सत्य थी। उसकी माँ जो कहती थी उसे वह मान लेता था। बचपन में उसकी माँ ने उसे दक्षिण दिशा में पैर करके सोने को मना किया था, क्योंकि यह दिशा यमराज देवता की है। वह यमराज का अनादर करके उन्हें क्रोधित करना नहीं चाहती थी। कवि उनकी बात मानकर कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया।

प्रश्न 4.
कवि ने ऐसा क्यों कहा है कि आज प्रत्येक दिशा दक्षिण दिशा है ?
उत्तर :
कवि को उसकी माँ ने बताया था कि दक्षिण दिशा यमराज की है, वह मौत का देवता है। इस दिशा में पैर करके सोना ठीक नहीं है परंतु कवि के अनुसार वर्तमान समय सभी दिशाएँ दक्षिण दिशा हो गई हैं। इसका कारण यह है कि आज सभी दिशाओं में मौत बसती है। चारों ओर विध्वंस, हिंसा, मार-काट, दंगे-फसाद हो रहे हैं। सारे संसार में मौत किसी-न-किसी रूप में तांडव कर रही है। मनुष्य-मनुष्य को मार रहा है इसलिए कवि को आज सभी दिशाएँ दक्षिण ही लगती हैं। आज चारों ओर मृत्यु का देवता अपने आलीशान महल में विराजमान है।

प्रश्न 5.
क्या आपकी माँ आपको सीख देती है ? यदि हाँ, तो उस सीख के विषय में लिखिए।
उत्तर :
संसार में सभी माएँ अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देती हैं। मेरी माँ ने भी मुझे अच्छी शिक्षा दी है। मुझे उनकी हर बात उचित लगती है क्योंकि उनके पास अपने जीवन का अनुभव होता है। वे मेरी शुभचिंतक भी हैं, वे मुझे तरह-तरह की सीख देती है, जैसे- ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास करना, अपने से बड़ों का सम्मान करना और कहना मानना, समय पर सभी काम करना, दूसरों की मदद करना, सभी प्रकार की बुराइयों से बचकर रहना, एक अच्छा इंसान बनकर देश की सेवा करना आदि।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 6.
‘यमराज की दिशा’ का मूल भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘यमराज की दिशा’ कविता के कवि चंद्रकांत देवताले हैं। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए चेतावनी- भरे स्वर में कहा है कि वर्तमान में मानव कहीं भी सुरक्षित नहीं है। जीवन-विरोधी ताकतें संसार में चारों ओर फैल रही हैं। कवि की माँ के अनुसार मृत्यु की दिशा दक्षिण थी। वे उसका सम्मान करने के लिए कहती थी। परंतु आज सभी दिशाएँ यमराज का घर बन चुकी हैं। विश्व के प्रत्येक कोने में हिंसा, विध्वंस तथा नाश और मौत का साम्राज्य है, इसलिए आज सभी दिशाएँ दक्षिण दिशा बन चुकी हैं।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बरदाश्त करने के
रास्ते खोज लेती है

शब्दार्थ : ईश्वर भगवान। जताती प्रकट करती। बरदाश्त – सहन।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से अवतरित है, जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ की सहनशक्ति और समझ के साथ-साथ उसकी आस्तिकता के भाव को प्रकट किया है। वह जीवन की प्रत्येक विपरीत स्थिति को आसानी से अपने आपको अनुकूल बना लेती थी।

व्याख्या : कवि कहता है कि यह कहना तो कठिन है कि उसकी माँ की कभी ईश्वर से भेंट हुई थी या नहीं, पर वह सदा ऐसा प्रकट करती थी जैसे वह ईश्वर को जानती थी और उसकी उससे बातचीत होती रहती थी। माँ के जीवन में जो-जो कष्ट आते थे वह ईश्वर को बताती थी, उस की सलाह लेती थी और सलाहों के अनुसार ही कार्य करती थी। वह जिंदगी जीने और दुख सहने के रास्ते ढूंढ़ लेती थी। ईश्वर पर विश्वास करती हुई वह सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर लेती थी।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
(क) माँ क्या जताया करती थी ?
(ख) माँ ईश्वर से क्या प्राप्त किया करती थी ?
(ग) माँ दुख सहन करने के रास्ते किस प्रकार खोज लेती थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) माँ जताया करती थी कि वह ईश्वर को जानती थी और उसकी उससे प्रायः बातचीत होती रहती थी।
(ख) माँ ईश्वर से सलाह प्राप्त किया करती थी कि किस प्रकार वह जीवन में आए कष्टों का निवारण कर सके और अपने परिवार को सुख-भरा जीवन दे सके।
(ग) माँ ईश्वर की सलाह पर जीवन में आए तरह-तरह के दुख सहने के रास्ते खोज लेती थी।
(घ) कवि ने अपनी माँ के परमात्मा के प्रति आस्था और विश्वास को प्रकट करते हुए माना है कि वह परिवार के सुखों के लिए सदा प्रयत्न करती थी और उसमें कष्टों को सहने की अपार क्षमता थी। सामान्य बोल-चाल के शब्दों का सहज प्रयोग किया गया है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। ‘मुलाकात’, ‘सलाह’, ‘बरदाशत’, ‘खोज’ जैसे सामान्य उर्दू शब्दों का प्रयोग कथन को स्वाभाविकता प्रदान करता है। अतुकांत छंद का प्रयोग है। स्मरण अलंकार विद्यमान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

2. माँ ने एक बार मुझे कहा था –
दक्षिण की तरफ़ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है।
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था –
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में

शब्दार्थ : क्रुद्ध – कुपित, नाराज।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ के विचारों और भावों को प्रकट किया है और कहा है कि वह यमराज को कभी क्रोधित नहीं करना चाहती थी।

व्याख्या – कवि पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहता है कि एक बार उसकी माँ ने उससे कहा था कि दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके कभी मत सोना, क्योंकि दक्षिण दिशा मौत के देवता यमराज की है। मौत के देवता को क्रोधित करना अकलमंदी नहीं है। तब कवि आयु में छोटा था। उसने अपनी माँ से यमराज के घर का पता पूछा था तो उसने कहा था कि वह जहाँ भी है, उसके दक्षिण में ही यमराज रहता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य- सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) कवि की माँ ने कवि को क्या कभी न करने को कहा था ?
(ख) माँ ने किसे बुद्धिमानी की बात नहीं माना था ?
(ग) कवि ने अपनी माँ से क्या जानने की इच्छा की थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की माँ ने उसे कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके न सोने की बात कही थी।
(ख) माँ ने मौत के देवता यमराज को नाराज करना बुद्धिमानी की बात नहीं मानी थी।
(ग) कवि ने अपनी माँ से जानना चाहा था कि मौत के देवता यमराज का घर कहाँ है।
(घ) कवि की माँ ने समझाया था कि दक्षिण दिशा यमराज की है। उस तरफ कभी भी पैर करके नहीं सोना चाहिए। तत्सम और तद्भव शब्दावली के सहज – समन्वित प्रयोग द्वारा कवि ने अपनी बात सरलता – सरसता से प्रकट की है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण का प्रयोग है। अतुकांत छंद है। कथोपकथन शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

3. माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फ़ायदा ज़रूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता

शब्दार्थ : समझाइश – समझाने। फ़ायदा – लाभ। छोर – किनारा।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ की सीख को जीवन भर माना था और कभी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया था।

व्याख्या : कवि कहता है कि माँ के द्वारा समझा देने के बाद वह कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोया था। इससे और कोई लाभ हुआ हो या नहीं पर इतना अवश्य हुआ कि उसे कभी भी दक्षिण दिशा को पहचानने में दिक्कत नहीं हुई। कवि कहता है कि वह दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक घूमा है और उसे दक्षिण दिशा में लाँघ लेना संभव नहीं था। यदि ऐसा होता तो वह उस छोर पर पहुँच कर यमराज का घर देख लेने में सफल हो जाता, पर ऐसा हो नहीं सका।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(क) माँ के समझाने के बाद कवि ने क्या काम कभी नहीं किया ?
(ख) कवि को किस बात को करने में कभी कठिनाई नहीं हुई ?
(ग) कवि यमराज का घर देखने में सफल क्यों नहीं हुआ ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) माँ के समझाने के बाद कवि कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोया।
(ख) कवि को कभी भी दक्षिण दिशा को ढूँढ़ने में कठिनाई नहीं हुई।
(ग) कवि कभी यमराज का घर देखने में सफल नहीं हुआ, क्योंकि वह दक्षिण दिशा के पार कभी पहुँच ही नहीं पाया।
(घ) कवि ने माँ के समझाने के बाद कभी भी दक्षिण में पैर करके सोने का साहस तो नहीं किया, पर यमराज के घर के विषय में जानने की जिज्ञासा अवश्य की जिसे वह कभी ढूँढ़ नहीं पाया। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास अलंकारों का सहज प्रयोग किया गया है। तत्सम और तद्भव शब्दों के साथ उर्दू के सरल शब्दों का समन्वित प्रयोग है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द – शक्ति ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। अतुकांत छंद है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

4. पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
माँ अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी वह नहीं रही
जो माँ जानती थी।

शब्दार्थ दहकती – जलती।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि का मानना है कि चाहे यमराज की दिशा दक्षिण है पर आज तो उसका साम्राज्य तो सारी दिशाओं में हो गया है। आज सभी दिशाओं में विध्वंस, हिंसा और मौत का तांडव हो रहा है। मौत तो सर्वत्र अपना राज्य जमा चुकी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि आज तो जिधर भी पैर करके सोओ वही दिशा दक्षिण हो जाती है। हर दिशा में मौत बसती है। हर दिशा में यमराज का आलीशान महल है और अपने हर महल से यह अपनी दहकती आँखों के साथ विराजते हैं। कवि की माँ अब जीवित नहीं है। वह यमराज की जिस दिशा के बारे में जानती थी वह भी अब यमराज की नहीं रही। यमराज की दिशाएँ तो सभी हैं। वह तो सारे विश्व में हर तरफ है, वह तो सर्वव्यापक हो गया है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
(क) कवि के लिए हर दिशा दक्षिण क्यों हो जाती है ?
(ख) यमराज की दिशा अब कौन-सी है ?
(ग) कवि की माँ कहाँ गई ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) विध्वंस, हिंसा, मार-काट, दंगे-फसाद आदि के कारण सारे संसार में मौत का तांडव हो रहा है। मनुष्य मनुष्य को मार रहा है, इसलिए कवि के लिए केवल दक्षिण दिशा ही यमराज की दिशा नहीं रही बल्कि हर दिशा ही दक्षिण दिशा हो गई है।
(ख) कवि के अनुसार सभी दिशाएँ ही अब यमराज की दिशाएँ हैं।
(ग) कवि की माँ यमराज के घर जा चुकी है।
(घ) कवि का मानना है कि अब यमराज केवल दक्षिण दिशा में नहीं रहता है। इस संसार में व्याप्त हिंसा ने उसके आलीशान महल भी सभी दिशाओं में बनवा दिए हैं, जिनमें यमराज अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं। कवि की भाषा में लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है जिसने कथन को गहनता – गंभीरता प्रदान की है। प्रसाद गुण और अतुकांत छंद का प्रयोग है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग किया गया है।

यमराज की दिशा Summary in Hindi

कवि-परिचय :

निम्न मध्य वर्ग के जीवन की नस-नस से परिचित कवि श्री चंद्रकांत देवताले प्रयोगधर्मी कविता के जाने-माने हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म सन् 1936 में गाँव जौलखेड़ा, जिला बैतूल, मध्यप्रदेश में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने उच्च शिक्षा इंदौर से प्राप्त की थी। इन्होंने हिंदी विषय में अपनी पीएच० डी० की उपाधि सागर विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। इन्होंने जीविकोपार्जन के लिए अध्यापन-कार्य को चुना था। साठोत्तरी हिंदी कविता के क्षेत्र को इन्होंने विशिष्ट योगदान दिया।

श्री देवताले के द्वारा रचित प्रमुख रचनाएँ हैं – हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बेंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि। इनके द्वारा रचित कविताएँ अति मार्मिक और सामयिक हैं जिनका सीधा संबंध आम आदमी और युग से है। इनकी कविताओं का अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं में और अनेक विदेशी भाषाओं में हुआ है। कवि को अपने लेखन कार्य के लिए ‘माखन लाल चतुर्वेदी पुरस्कार’, ‘मध्य प्रदेश का शासन का शिखर सम्मान’ आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

श्री देवताले की कविता का सीधा संबंध गाँवों, कस्बों और निम्नमध्य वर्ग के जीवन से है। उसमें मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। कवि को व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार, बेईमानी आदि के प्रति गहरा आक्रोश है। मानवीय संवेदनाओं से भी कवि का हृदय भरा हुआ है। वह असहाय और निर्धन वर्ग के प्रति विशेष प्रेम के भावों को अपने हृदय में संजोए हुए है।

उसकी वाणी में लुकाव – छिपाव नहीं है। वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहता है। कवि की भाषा खड़ी बोली है। सरल-सरस और भावपूर्ण भाषा में उसने अपनी बात को कहने का गुण प्राप्त किया है। उसकी भाषा में पारदर्शिता है। तत्सम और तद्भव शब्दावली को समन्वित प्रयोग के साथ-साथ उर्दू शब्दावली का प्रयोग भी सहज रूप से करने की क्षमता कवि ने दिखाई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

कविता का सार :

कवि ने अपनी कविता में सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए चेतावनी भरे स्वर में कहा है कि इस युग में मानव कहीं भी सुरक्षित नहीं है। इसका जीवन चारों ओर से संकट में घिरा हुआ है। जन-विरोधी ताकतें निरंतर फैलती जा रही हैं। कवि अपनी माँ को याद करते हुए कहता है कि वह ईश्वरीय भक्ति-भाव और आस्था के सहारे जीवन-शक्ति प्राप्त कर लेती थी। उसमें दुखों को सहन करने की अपार शक्ति थी।

वह मानती थी कि दक्षिण दिशा मृत्यु के देवता की है, इसलिए उस तरफ पैर करके कभी नहीं सोना चाहिए। यमराज को नाराज करना बुद्धिमत्ता नहीं है। कवि इसके बाद कभी भी दक्षिण दिशा में पाँव करके नहीं सोया, पर कवि मानता है कि अब तो सभी दिशाओं में यमराज हैं। आलीशान महल है और वे हर दिशा में अपनी दहकती आँखों के साथ विराजते हैं। अब तो हर दिशा में हिंसा, विध्वंस, नाश और मौत के चिह्न फैले हुए हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

JAC Class 9 Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द-चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभर कर आती हैं ?
उत्तर :
इस पाठ के आधार पर हम कह सकते हैं कि प्रेमचंद एक सीधे-सादे व्यक्ति थे। वे धोती-कुरता पहनते थे। वे सिर पर मोटे कपड़े की टोपी और पैरों में केनवस का साधारण जूता पहनते थे। अपनी वेशभूषा पर वे विशेष ध्यान नहीं देते थे। उनके फटे जूते से उनकी अँगुली बाहर निकली होने पर भी उन्हें संकोच या लज्जा नहीं आती थी। उनके चेहरे पर सदा बेपरवाही तथा विश्वास का भाव रहता था। वे जीवन-संघर्षों से नहीं घबराते थे। वे निरंतर कार्य करते रहते थे।

प्रश्न 2.
सही उत्तर के सामने (✓) का निशान लगाइए –
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुस्कान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो ?
उत्तर :
(क) ✗
(ख) ✓
(ग) ✗
(घ) ✗

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प्रश्न 3.
नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए –
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो ?
उत्तर :
(क) लेखक यह कहना चाहता है कि जूता टोपी से महँगा होता है, इसलिए एक सामान्य व्यक्ति के लिए जूता खरीदना आसान नहीं होता। एक जूते की कीमत में अनेक टोपियाँ खरीदी जा सकती हैं। टोपी तो नई पहनी जा सकती है पर जूता नया नहीं लिया जा सकता।
(ख) लेखक कहता है कि आज के युग में सभी अपनी कमियों, कमजोरियों तथा बुराइयों को छिपाकर रखते हैं इसलिए सभी परदे के महत्व को स्वीकार करते हैं परंतु प्रेमचंद किसी प्रकार के दिखावे में विश्वास नहीं रखते थे, इसलिए परदे का महत्व नहीं समझते थे। आज के आडंबर- प्रिय लोग बाहरी तड़क-भड़क में विश्वास करते हैं इसलिए परदे की प्रथा पर न्योछावर हो रहे हैं।
(ग) प्रेमचंद की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। वे जिसे पसंद नहीं करते थे उसकी खुलकर आलोचना करते थे। इसलिए लेखक ने लिखा है कि जिसे प्रेमचंद घृणा करते थे, उसकी ओर हाथ की नहीं पैर की अंगुली से संकेत करते थे।

प्रश्न 4.
पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी ? लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजह हो सकती है ?
उत्तर :
प्रेमचंद के बारे में लेखक का विचार इसलिए बदल गया, क्योंकि उसे लगा कि प्रेमचंद एक सीधे-साधे व्यक्ति थे। वे अपनी वेशभूषा के बारे में अधिक ध्यान नहीं देते थे। वे एक सामान्य व्यक्ति के समान उपलब्ध साधनों के अनुसार ही वेशभूषा धारण करते थे। उन्हें दिखावे में विश्वास नहीं था। वे जैसे हैं वैसे ही दिखाई देना चाहते थे

प्रश्न 5.
आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं ?
उत्तर :
इस व्यंग्य को पढ़कर मुझे लेखक की निम्नलिखित बातें आकर्षित करती हैं –
1. लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व का शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है- ‘सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं।’
2. लेखक ने प्रेमचंद के जूते का पूरा विवरण दिया है। जूता केनवस का है। इसके बंध उन्होंने बेतरतीब बाँधे हैं। बंध के सिरे की लोहे की पतरी निकल गई है। जूते के छेदों में बंध डालने में परेशानी होती है। दाहिने पाँव का जूता ठीक है, परंतु बाएँ जूते के आगे बड़ा-सा छेद है, जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
3. लेखक ने प्रचलित अंग्रेजी शब्दों का सहज रूप से प्रयोग किया है, जैसे- ‘रेडी प्लीज़’, ‘क्लिक’, ‘थैंक्यू’, ‘ट्रेजडी, फोटो।
4. गोदान, पूस की रात, कुंभनदास आदि के उदाहरण।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 6.
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा ?
उत्तर :
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग जीवन में आनेवाले संघर्षों, मुसीबतों, कठिनाइयों, समस्याओं, परेशानियों आदि के लिए किया गया है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 7.
प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर :
अपनी मनपसंद पोशाक पहनना सबकी निजी पसंद होती है। कोई कुछ भी पहने इस पर किसी को कुछ कहने का अधिकार तो नहीं है परंतु पोशाक की विचित्रता पर हँसा तो जा ही सकता है। मेरे पड़ोसी लगभग साठ वर्ष के हैं; व्यापारी हैं और वर्षों से यहीं रह रहे हैं। उनकी लाल पैंट पर भड़कीली हरी कमीज़ और सिर पर पीली टोपी सहसा सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। पता नहीं उनके पास इस तरह की रंग-बिरंगी पोशाकें कितनी हैं पर जब-जब वे बाहर निकलते हैं, सड़क पर चलती-फिरती होली के रंगों की बहार लगते हैं। जो उन्हें पहली बार देखता है वह तो बस उनकी ओर देखते ही रह जाता है, पर इसका कोई असर उनकी सेहत पर नहीं पड़ता।

प्रश्न 8.
आपकी दृष्टि में वेशभूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है ?
उत्तर :
आजकल लोग अपनी वेशभूषा के प्रति बहुत जागरूक हो गए हैं। वे अवसर के अनुकूल वेशभूषा का चयन करते हैं। विद्यालयों में निश्चित वेशभूषा पहनकर जाना होता है। घरों में तथा विभिन्न त्योहारों, शादियों, सभाओं, समारोहों आदि के अवसर पर हम अपनी पसंद की वेशभूषा धारण कर सकते हैं। लड़के अधिकतर पैंट-शर्ट अथवा जींस तथा टी-शर्ट पहनना पसंद करते हैं। वे अच्छे जूते पहनते हैं। लड़कियाँ भी सलवार-सूट के साथ मैचिंग दुपट्टा और सैंडिल अथवा टॉप- जींस अथवा साड़ी पहनती हैं। सबको अपने व्यक्तित्व को निखारने वाले रंगों के वस्त्र पहनने अच्छे लगते हैं। आज वेशभूषा से ही किसी व्यक्ति के स्वभाव, स्तर आदि का ज्ञान हो जाता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी वेशभूषा के प्रति बहुत सजग हो गया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 9.
पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :

  • न्योछावर होना – माँ अपने बेटे की वीरता पर न्योछावर हो रही थी।
  • ठाठ से रहना – अनिल दस लाख रुपए की लॉटरी निकलते ही ठाठ से रहने लग गया है।
  • चक्कर काटना – शौकत से अपना कर्जा वसूलने के लिए पठान बार-बार उसके घर के चक्कर काट रहा है।
  • ठोकर मारना – सीमा ने ठोकर मारकर रोशनी को गिरा दिया।
  • भरा-भरा – शेर सिंह का चेहरा उसकी घनी मूँछों के कारण भरा-भरा लगता है।

प्रश्न 10.
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
उत्तर :
मोटे, चिपकी, घनी, फटा, तीखा।

JAC Class 9 Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पठित पाठ के आधार पर प्रेमचंद के व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
इस पाठ में प्रेमचंद को एक साधारण व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। उनके सिर पर मोटे कपड़े की टोपी है। वे कुरता-धोती पहनते हैं। उनकी कनपटी चिपकी हुई तथा गालों की हड्डियाँ उभरी हुई हैं। उनकी घनी मूँछें उनके चेहरे को भरा-भरा बना देती हैं। वे केनवस के जूते पहनते हैं। उन्हें जूतों के फटे होने की भी चिंता नहीं रहती है। उनके चेहरे पर सदा बेपरवाही और विश्वास का भाव रहता है। उन्हें अपनी इस सामान्य वेशभूषा पर लज्जा अथवा संकोच नहीं होता है।

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प्रश्न 2.
लेखक के विचार में फ़ोटो कैसे खिंचवानी चाहिए ?
उत्तर :
लेखक का विचार है कि फ़ोटो खिंचवाने के लिए ठीक वेशभूषा पहननी चाहिए। यदि अपने पास अच्छे वस्त्र और जूते न हों तो किसी से माँग लेने चाहिए, क्योंकि लोग तो वर दिखाई देने के लिए कोट और बारात निकालने के लिए मोटर तक माँग लेते हैं कुछ लोग तो इत्र लगाकर फोटो खिंचवाते हैं कि शायद फोटो में सुगंध आ जाए।

प्रश्न 3.
लेखक के विचार में प्रेमचंद का जूता कैसे फटा होगा ?
उत्तर
लेखक का विचार है कि प्रेमचंद का जूता परिस्थितियों से समझौता न कर सकने के कारण फट गया होगा। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि वे नया जूता ख़रीद सकते। वे अपने फटे जूते को तब तक पहने रखना चाहते थे जब तक कि वह पूरी तरह फट न जाए।

प्रश्न 4.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के माध्यम से लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी का वर्णन करते हुए लेखकों की दयनीय आर्थिक स्थिति पर कटाक्ष किया है। प्रेमचंद युग-प्रवर्तक कथाकार एवं उपन्यास सम्राट कहे जाते हैं, परंतु उन्हें फटे जूते पहनकर अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा। वे इतने सहज थे कि उन्हें अपनी फटेहाली पर लज्जा या संकोच नहीं होता था। वे बेपरवाह तथा दृढ़ विश्वासी थे। इसके विपरीत आज का समाज प्रदर्शन-प्रधान हो गया है। प्रेमचंद की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था।

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प्रश्न 5.
लेखक का साहित्यिक पुरखे से क्या अभिप्राय है और वह उसे क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
लेखक का साहित्यिक पुरखे से अभिप्राय मुंशी प्रेमचंद से है क्योंकि वे लेखक से पहले के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, कथाकार, निबंधकार और युग प्रवर्तक साहित्यकार थे। लेखक उन्हें यह समझाना चाहता है कि उनका जूता फटा हुआ था जिसमें से अँगुली बाहर दिखाई दे रही थी। वह उसी फटे जूते को पहनकर फोटो खिंचाने चले गए। उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए था। फोटो खिंचाते समय धोती को थोड़ा नीचे खींच लेते तो अँगुली ढँक सकती थी।

प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार मुंशी प्रेमचंद का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर :
मुंशी प्रेमचंद बहुत ही सीधे स्वभाव के व्यक्ति थे। वे अपने में मस्त रहते थे। उन्हें अपने पहनावे की कोई चिंता नहीं रहती थी। उन्हें फटा जूता पहनने में भी कोई लज्जा या संकोच नहीं था। वह अपनी ग़रीबी छिपाने के लिए कोई प्रबंध नहीं करते थे। उनके चेहरे पर बेपरवाही और विश्वास दिखाई देता था।

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प्रश्न 7.
लोग क्या- क्या माँगकर अपनी आर्थिक स्थिति छिपाते हुए कार्य पूरे करते हैं ?
उत्तर :
लेखक कहता है कि प्रेमचंद जी को फोटो खिंचवाने के लिए जूते माँग लेने चाहिए थे। लोग तो बहुत कुछ माँगकर अपने जीवन के बड़े- से- बड़ा काम पूरे करते हैं। कोट माँगकर वर दिखाई करते हैं। मोटर माँग कर बारात निकालते हैं। कई बार फोटो अच्छी आए, इसलिए बीवी तक माँग ली जाती है। इस तरह लोग अपने जीवन की कमी को छिपाकर बड़े-से-बड़ा काम पूरा कर लेते हैं।

प्रश्न 8.
लेखक को आज क्या बात चुभ रही है और क्यों ?
उत्तर :
फोटो में प्रेमचंद का जूता फटा हुआ है। यह देखकर लेखक को उसके जीवन की दयनीय स्थिति बहुत चुभ रही थी। इसका कारण यह था कि मुंशी प्रेमचंद महान कथाकार, उपन्यास सम्राट, युग प्रवर्तक लेखक आदि थे परंतु विडंबना यह थी कि ऐसे महान साहित्यकार ने संपूर्ण जीवन संघर्षमय व्यतीत किया है।

प्रश्न 9.
लेखक और मुंशी प्रेमचंद के जूते में क्या समानता और अंतर था ?
उत्तर :
लेखक और मुंशी प्रेमचंद दोनों के जूते फटे हुए थे। उनके संघर्षमय जीवन की कथा का वर्णन कर रहे थे। एक साहित्यकार दूसरों के जीवन की प्रेरणा बनता है परंतु स्वयं जीवन की कठिनाइयों से जूझता रहता है। दोनों के फटे जूते में अंतर यह था कि मुंशी प्रेमचंद का जूता सामने से फटा हुआ था, जिससे पैर की अंगुली बाहर निकल रही थी जबकि लेखक का जूता नीचे से घिसने के कारण उसका तला फट गया था, जिससे उसकी अँगुली ढकी रहती थी परंतु पंजा नीचे से घिसता रहता था।

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प्रश्न 10.
प्रेमचंद तथा गोदान के पात्र होरी की क्या कमज़ोरी थी ?
उत्तर :
दोनों सामाजिक तथा सांस्कृतिक मर्यादाओं में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। अपनी नैतिकता बिल्कुल भी नहीं छोड़ते। अपना संपूर्ण जीवन गरीबी में व्यतीत करते हैं, परंतु दोनों की कमज़ोरी के दायरे भिन्न थे। होरी की कमज़ोरी एक बंधन बन गई जिससे वह लड़ता हुआ अंत में मर जाता है जबकि प्रेमचंद के लिए उसकी कमज़ोरी बंधन नहीं बन पाती, बल्कि ताकत बन जाती है इसलिए वे आजादी भरा जीवन व्यतीत करते थे। यह सब उन्हें अच्छा लगता था।

प्रश्न 11.
प्रेमचंद ने यह क्यों कहा कि मैं चलता रहा ? मगर तुम चलोगे कैसे?
उत्तर :
प्रेमचंद ने ऐसा इसलिए कहा है कि वे अपने जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयों से लड़ते हुए आगे बढ़ते रहे। उन्होंने कभी भी तंगहाली को छिपाने का प्रयास नहीं किया है। वे जिस हाल में रहे, सदा सहज भाव से निरंतर आगे ही बढ़ते रहे परंतु उसकी मुसकान दूसरे लोगों को कह रही है कि दिखावा – पसंद जीवन व्यतीत करने वाले लोग समझौता करते रहते हैं। अपनी तंगहाली को छिपाकर दुनिया में अपनी शान बढ़ाना चाहते हैं परंतु एक दिन सब कुछ सामने आने पर वे लोग जीवन में आगे बढ़ना भूल जाएँगे। वे चल भी नहीं पाएँगे।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. मैं चेहरे की तरफ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अँगुली बाहर दिख रही है ? क्या तुम्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है ? ज़रा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है ? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अँगुली ढक सकती है ? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है !

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक ने ‘साहित्यिक पुरखे’ किसे कहा है ?
2. लेखक किस लज्जा की बात करता है ?
3. लेखक के अनुसार अँगुली कैसे ढक सकती थी ?
4. लेखक क्यों कहता है कि मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है ?
उत्तर :
1. लेखक ने मुंशी प्रेमचंद को साहित्यिक पुरखे कहा है।
2. लेखक देखता है कि प्रेमचंद का जूता फट गया जिससे उनकी अँगुली बाहर दिख रही है। इस पर उन्हें लज्जा आनी चाहिए थी, मगर उनके चेहरे पर लज्जा, संकोच या झेंप नजर नहीं है
3. लेखक के अनुसार यदि प्रेमचंद अपनी धोती थोड़ा नीचे खींच लेते तो उनकी जूते से बाहर दिख रही अँगुली ढक सकती थी।
4. लेखक देखता है कि प्रेमचंद का जूता फट गया है और उनकी अँगुली दिख रही है। उन्हें इस बात का ज़रा भी अहसास नहीं। उनके चेहरे पर लज्जा, संकोच या झेंप का कोई निशान नहीं। इसलिए लेखक उन्हें कहता है कि मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है।

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2. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है। जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. जूते उस जमाने में कितने रुपये के मिलते होंगे ?
2. लेखक क्यों कहता है कि एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं ?
3. लेखक को कौन-सी विडंबना चुभ रही है और क्यों ?
उत्तर :
1. जूते उस जमाने में पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे।
2. जूते हमेशा टोपियों से कीमती रहे हैं। एक जोड़ी जूते की कीमत में पच्चीसों टोपियाँ आ सकती हैं। इसलिए लेखक कहता है कि एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
3. लेखक जब प्रेमचंद का फटा जूता देखता है तो उसे यह विडंबना लगती है। उसे लगता है कि प्रेमचंद भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। इसलिए वह फटा जूता पहने हुए है। लेखक की यही विडंबना चुभ रही है।

3. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा ज़मीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं !

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कौन और कैसे लहूलुहान हो जाता है ?
2. ‘हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।’ आशय स्पष्ट कीजिए।
3. लेखक का जूता कैसा है ?
4. गद्यांश किस शैली का है ? अपना विचार लिखिए।
उत्तर :
1. लेखक के जूते का तला घिस गया है, जिस कारण उसका अँगूठा ज़मीन से घिसता है और कभी-कभी पैनी मिट्टी से रगड़ खाकर लहुलूहान
हो जाता है।
2. यहाँ परदे से आशय दिखावे की प्रवृत्ति से है। अंदर से इनसान चाहे कितना भी कमज़ोर या गरीब हो, वह बाहर से स्वयं को बलशाली और अमीर दिखाना चाहता है।
3. लेखक का जूता फटा हुआ है।
4. यह गद्यांश व्यंग्यात्मक शैली का है। इसमें लेखक ने प्रेमचंद और खुद के फटे जूते के बहाने समाज में व्याप्त दिखावे और आत्म-प्रदर्शन की प्रवृत्ति पर कड़ा प्रहार किया है।

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4. तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमज़ोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही ‘नेम-धरम’ वाली कमज़ोरी ? ‘नेम-धरम’ उसकी भी जंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुस्करा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति भी !

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
1. होरी की क्या कमज़ोरी थी ?
2. होरी को उसकी कमज़ोरी कैसे ले डूबी ?
3. प्रेमचंद के लिए ‘नेम-धरम’ क्या और क्यों था ?
4. ‘नेम धरम’ उसकी भी जंज़ीर थी। आशय स्पष्ट कीजिए।
5. होरी कौन था जिसका उल्लेख किया गया है ?
उत्तर :
1. ‘नेम – धरम’ होरी की कमज़ोरी थी।
2. सामाजिक मर्यादाओं के बंधनों में बँधे रहने के कारण होरी को सारा जीवन ग़रीबी में व्यतीत करते हुए बिताना पड़ा और अंत में अभावों से लड़ता हुआ मर गया।
3. प्रेमचंद के लिए अपने नैतिक मूल्यों का पालन करना तथा सामाजिक मर्यादाओं के अनुसार जीवन-यापन करना बंधन न होकर मुक्ति थी। यह सब उन्हें अच्छा लगता था।
4. वह सामाजिक एवं सांस्कृतिक मर्यादाओं के बंधनों में बँधकर जीवन व्यतीत करता था।

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5. होरी मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ का नायक था जिसका दीन-हीन जीवन प्रेमचंद से मिलता-जुलता था। तुम मुझ पर या हम सभी पर हँस रहे हो, उन पर जो अँगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं। तुम कह रहे हो – मैंने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अँगुली बाहर निकल आई, पर पाँव बचा रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अँगुली को ढाँकने की चिंता में तलुवे का नाश कर रहे हो। तुम चलोगे कैसे?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. प्रेमचंद किन पर और क्यों हँस रहे हैं ?
2. ‘टीले को बरकाकर बाजू से निकलने से क्या तात्पर्य है ?
3. प्रेमचंद ने यह क्यों कहा कि मैं चलता रहा ?
4. प्रेमचंद को यह चिंता क्यों है कि तुम चलोगे कैसे?
5. लेखक के भाव किस प्रकार के हैं ?
उत्तर :
1. प्रेमचंद उन सब पर हँस रहे हैं जो अपनी कमजोरियाँ छिपाते हैं तथा दिखावा करते हैं। इस प्रकार ये लोग अपना ही नुकसान करते हैं। ये लोग अँगुली ढाँकने की चिंता में अपना तलुआ घिसा देते हैं।
2. इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि आज समाज में हम लोग समस्याओं को अनदेखा करते हैं। उनका कोई हल नहीं निकालते हैं। हम समझौतावादी बनकर उनसे बच निकलते हैं।
3. प्रेमचंद ने यह इसलिए कहा है कि वे समस्याओं से जूझते रहे हैं तथा जमाने को ठोकरें मारकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे हैं। उन्होंने कभी किसी प्रकार का दिखावा नहीं किया। वे जिस हाल में रहे, सदा सहज भाव से निरंतर आगे ही बढ़ते रहे।
4. प्रेमचंद को यह चिंता इसलिए है कि आजकल लोग आडंबर अधिक करते हैं। अपनी प्रदर्शनप्रियता के कारण वे जीवन में संघर्ष करने के स्थान पर निरंतर समझौते करते चलते हैं। इस कारण वे अपने लक्ष्य तक भी नहीं पहुँच पाते।
5. लेखक के भाव व्यंग्य से भरे हैं जिनमें पीड़ा के भाव छिपे हुए हैं।

प्रेमचंद के फटे जूते Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन परिचय – हिंदी के सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त सन् 1922 ई० को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई थी। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आपने कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य किया परंतु बार-बार स्थानांतरणों से तंग आकर अध्यापन कार्य छोड़ स्वतंत्र लेखन कार्य करने का निर्णय किया।

परसाई जी जबलपुर में बस गए और वहीं से कई वर्षों तक ‘वसुधा’ नामक पत्रिका निकालते रहे। आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें यह पत्रिका बंद करनी पड़ी। परसाई जी की रचनाएँ प्रमुख पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। सन् 1984 ई० में ‘साहित्य अकादमी’ ने इन्हें इनकी पुस्तक ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए पुरस्कृत किया था। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने इन्हें इक्कीस हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया, जिसे वहाँ के मुख्यमंत्री ने स्वयं इनके घर जबलपुर आकर दिया। इन्हें बीस हजार रुपए के ‘चकल्लस पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। परसाई जी प्रगतिशील लेखक संघ के प्रधान भी रहे।

हिंदी व्यंग्य लेखन को सम्मानित स्थान दिलाने में परसाई जी का महत्वपूर्ण योगदान है। सन् 1995 ई० में इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – परसाई जी का व्यंग्य हिंदी साहित्य में अनूठा है। सुप्रसिद्ध पत्रिका ‘सारिका’ में इनका स्तंभ ‘तुलसीदास चंदन घिसे’ अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था। इन सामाजिक विकृतियों को इन्होंने सदा ही अपने पैने व्यंग्य का विषय बनाया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है –

कहानियाँ – ‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’, ‘दो नाकवाले लोग’, ‘माटी कहे कुम्हार से’।

उपन्यास – ‘रानी नागफनी की कहानी’ तथा ‘तट की खोज’।

निबंध संग्रह – ‘ तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेइमानी की परत’, ‘पगडंडियों का जमाना’, ‘सदाचार का ताबीज़’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘निठल्ले की डायरी’।

भाषा-शैली – परसाई जी की भाषा अत्यंत व्यावहारिक तथा सहज है किंतु इनके व्यंग्य – बाण बहुत तीखे हैं। ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ लेख में लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी तथा एक लेखक की फटेहाली का यथार्थ अंकन किया है। लेखक ने उपहास, आग्रह, आनुपातिक, प्रवर्तक जैसे तत्सम शब्दों के साथ-साथ फ़ोटो, केनवस, पोशाक, अहसास, क्लिक, ट्रेजडी, बरकरार जैसे विदेशी तथा पन्हैया, पतरी जैसे देशज शब्दों का प्रयोग भी किया है। हौसले पस्त होना, चक्कर काटना आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा में पैनापन आ गया है।

लेखक की शैली व्यंग्यात्मक है, जिसमें कहीं-कहीं चित्रात्मकता के भी दर्शन हो जाते हैं, जैसे प्रेमचंद के व्यक्तित्व का यह शब्द – चित्र उनके रूप को स्पष्ट कर देता है – ‘सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं।’ इस प्रकार इनकी भाषा सामान्य बोलचाल की भाषा होते हुए भी किसी भी स्थिति पर कटाक्ष करने में सक्षम है –

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

पाठ का सार :

हरिशंकर परसाई ने ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में प्रेमचंद की सादगी का वर्णन करते हुए समाज में व्याप्त दिखावे की प्रवृत्ति कर कटाक्ष किया है। लेखक प्रेमचंद और उनकी पत्नी का फोटो देखकर सोचता है कि यदि प्रेमचंद की फोटो खिंचाने की पोशाक सिर पर मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती, केनवस के जूते और बाएँ जूते के बड़े से छेद में से बाहर निकलती हुई अँगुली है तो, उनकी आम पहनने की पोशाक कैसी होगी ?

लेखक को हैरानी होती है कि क्या प्रेमचंद को फोटो खिंचवाते समय यह पता नहीं था कि उनका जूता फटा हुआ है जिसमें से अँगुली बाहर दिखाई दे रही है ? उन्हें इस पर न लज्जा आई, न संकोच हुआ। वे यदि धोती को जरा नीचे खींच लेते तो अँगुली ढक सकती थी। फोटो खिंचवाते समय इनके चेहरे पर बेपरवाही और बहुत विश्वास दिखाई देता है। इनके चेहरे पर एक अधूरी मुस्कान है जो किसी का उपहास करती प्रतीत होती है।

लेखक सोचता है कि यह कैसा आदमी है जो फटे हुए जूते पहनकर फोटो खिंचवा रहा है और किसी पर हँस भी रहा है। इसे ठीक जूते पहनकर फोटो खिंचवानी चाहिए थी। लगता है कि पत्नी के आग्रह पर जैसा वह था, वैसे ही फोटो खिंचवाने चल पड़ा होगा। उसे इस बात का दुख है कि इस आदमी के पास फोटो खिंचवाने के लिए भी अच्छा जूता न था। उसे लगता है कि प्रेमचंद फोटो का महत्व नहीं समझते, नहीं तो किसी से जूते माँगकर ही फोटो खिंचवाते। लोग माँगे के कोट से वर दिखाई देते हैं और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। प्रेमचंद के समय में टोपी आठ आने में और जूते पाँच रुपए में मिल जाते होंगे।

अब तो एक जूते की कीमत में पच्चीसों टोपियाँ आ जाती हैं। प्रेमचंद जैसे कथाकार, उपन्यास सम्राट्, युग प्रवर्तक को फोटो में फटे जूते पहने देखकर लेखक बहुत दुखी है। लेखक का अपना जूता भी कोई खास अच्छा नहीं है। वह ऊपर से अच्छा है परंतु उसके अँगूठे के नीचे का तला घिस गया है। प्रेमचंद के जूते से अँगुली बाहर निकली हुई थी परंतु लेखक का पंजा नीचे से घिस रहा है। उसे अपनी अँगुली ढके होने का लाभ यह है कि उसके जूते के फटे हुए तले का किसी को पता नहीं चलता, क्योंकि वह परदे में है।

प्रेमचंद फटा जूता ठाठ से पहनते हैं पर लेखक को ऐसा करने में संकोच का अनुभव होता है। वह आजीवन ऐसा फोटो नहीं खिंचवाएगा। प्रेमचंद की मुसकान उसे चुभती हुई लगती है। वह सोचता है कि इस मुसकान का अर्थ यह तो नहीं है कि होरी का गोदान हो गया अथवा पूस की रात में नीलगाय हल्कू का खेत चर गईं या डॉक्टर के न आने से सुजान भगत का लड़का मर गया। उसे लगता है कि जब माधो औरत के कफ़न के चंदे से शराब पी गया था तो यह उस समय की मुसकान है।

लेखक फिर से प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर सोचता है कि शायद बनिए के तगादे से बचने के लिए मील- दो-मील का चक्कर लगाकर घर लौटने के कारण इनके जूते फट गए थे। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी जाने-आने में घिस गया होगा तो उन्हें कहना पड़ा- ‘आवत जात पन्हैया घिस गई बिसर गयो हरि नाम।’

जूता तो चलने से घिसता या फटता नहीं, तो तुम्हारा जूता कैसे फटा ? लेखक को लगता है कि प्रेमचंद किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे होंगे जिससे उनका जूता फट गया होगा। वे उस सख्त चीज़ को ठोकर मारे बिना भी निकल सकते थे, जैसे नदियाँ पहाड़ फोड़ने के स्थान पर रास्ता बदलकर घूम कर चली जाती हैं। प्रेमचंद समझौतावादी नहीं थे। इसलिए उनके पाँव की अँगुली उस ओर संकेत करती हुई लगती है कि जो घृणित है, उसकी ओर हाथ की नहीं पाँव की अँगुली से तुम इशारा करते हो।

वास्तव में तुम उन सब पर हँसते हो जो अँगुली छिपाते हैं और तलुआ घिसते हैं, जो समझौतावादी हैं। प्रेमचंद ने तो अँगुली जूते को फाड़कर बाहर निकाल ली पर पाँव तो बचा लिया था, परंतु जो तलुवे घिस रहे हैं उनका तो पाँव ही घिस जाएगा। वे चलेंगे कैसे ? लेखक प्रेमचंद के फटे जूते और अँगुली के इशारे को समझ रहा है और उनकी व्यंग्य-भरी मुसकान का अर्थ भी जानता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • चित्र – फोटो
  • उपहास – मजाक उड़ाना
  • ट्रेजडी – दुखद घटना
  • महसूस – अनुभव
  • कुर्बान – न्योछावर
  • पन्हयया – जूती
  • उपजत – पैदा होना
  • मुक्ति – आजादी
  • बंद – फीते
  • आग्रह – अनुरोध
  • क्लेश – दुख, कष्ट
  • विडंबना – हँसी उड़ाना
  • तगादे – तकाज़े
  • बिसर – भूल
  • नेम – नियम
  • बरकरार – सुरक्षित