JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

JAC Class 9 Hindi उपभोक्तावाद की संस्कृति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से अभिप्राय उत्पादों का भोगकर उनसे सुख प्राप्त करना है। इस प्रकार वर्तमान जीवन में आधुनिक उपभोगों का भोग करना ही आज सुख है।

प्रश्न 2.
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ?
उत्तर :
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को बहुत अधिक प्रभावित कर रही है। लोग प्रत्येक वस्तु विज्ञापनों से प्रभावित होकर खरीदते हैं। वे वस्तु के गुण-अवगुण का विचार किए बिना ही उस वस्तु के प्रचार से प्रभावित हो जाते हैं। वे बहुविज्ञापित वस्तु खरीदने में ही अपनी विशिष्टता अनुभव करते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 3.
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है ?
उत्तर :
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि वे चाहते थे कि हम अपनी परंपराओं पर दृढ़ रहें तथा नवीन सांस्कृतिक मूल्यों को अच्छी प्रकार से जाँच-परखकर ही स्वीकार करें। हमें बिना सोचे-समझे किसी का भी अंधानुकरण नहीं करना चाहिए अन्यथा हमारा समाज पथभ्रष्ट हो जाएगा।

आशय स्पष्ट कीजिए –

(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
उत्तर :
उपभोग भोग को ही सुख मानने के कारण आज का मनुष्य अधिक-से-अधिक भौतिक सुख-सुविधाओं को जुटाने में लगा हुआ है। इस प्रकार आज के इस उपभोक्तावादी वातावरण में न चाहते हुए भी प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र भी बदल रहा है और न चाहने पर भी हम सभी उत्पाद को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हैं और उसके भोग को ही सुख मान बैठे हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हों।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि लोग प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। उनके कुछ कार्य तो इतनी अधिक मूर्खतापूर्ण हरकतों से युक्त होते हैं कि उन्हें देखकर ही हँसी आ जाती है। इससे उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि नहीं होती बल्कि उनका मजाक ही बन जाता है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी० वी० पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं। क्यों ?
उत्तर :
टी० वी० पर किसी भी वस्तु का विज्ञापन इतने आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि उस विज्ञापन को देखकर हम उस विज्ञापन से इतने अधिक प्रभावित हो जाते हैं कि आवश्यकता न होने पर भी हम उस वस्तु को खरीदने के लिए लालायित हो उठते हैं। विज्ञापन का प्रस्तुतीकरण हमें उस अनावश्यक वस्तु को खरीदने के लिए बाध्य कर देता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 6.
आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन। तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर :
मेरे विचार में किसी भी वस्तु को खरीदने से पहले उसकी गुणवत्ता पर विचार करना चाहिए। इसके साथ ही उस वस्तु की उपयोगिता के संबंध में भी सोचना चाहिए। केवल विज्ञापन से प्रभावित होकर कुछ नहीं खरीदना चाहिए। क्योंकि विज्ञापन में तो उत्पादक अपनी वस्तु को इस प्रकार के लुभावने रूप में प्रस्तुत करता है कि उपभोक्ता उसकी चमक-दमक देखकर ही उसे खरीदने के लिए लालायित हो उठता है। वह उस वस्तु की उपयोगिता तथा गुणों पर विचार नहीं करता है। यदि वह वस्तु हमारे लिए उपयोगी नहीं है तथा उसकी गुणवत्ता से हम संतुष्ट नहीं हैं तो वह वस्तु हमें खरीदनी नहीं चाहिए।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
आज के इस उपभोक्तावादी युग में प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से होड़ लगाने में लगा हुआ है। वह अपनी छोटी गाड़ी के सुख से सुखी नहीं है बल्कि दूसरे की बड़ी गाड़ी देखकर दुखी होता रहता है। एक ने विवाह में जितना खर्च किया तथा शान दिखाई दूसरा उससे दुगुनी शान दिखाना चाहता है चाहे इसके लिए उसे ऋण ही क्यों न लेना पड़े। इस प्रकार आज के इस उपभोक्तावादी युग में दिखावे की संस्कृति पनप रही है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 8.
आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाज और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
कुछ दिन पहले मुझे श्री संतोष कुमार के पुत्र के मुंडन का निमंत्रण पत्र प्राप्त हुआ। यह निमंत्रण पत्र सुनहरे अक्षरों में छपा हुआ तथा बहुमूल्य मखमल के बने लिफ़ाफ़े में था। जब मैं आयोजन – स्थल पाँच सितारा क्लब में पहुँचा तो वहाँ की सजावट देखकर दंग रह गया। मुंडन से पूर्व शहनाई वादन, संगीत – नृत्य तथा अन्य कार्यक्रम होते रहे। बाद में भव्य पंडाल के नीचे मंत्रोच्चारण में मुंडन संस्कार हुआ।

बच्चे के ननिहाल वालों ने सोने हीरे के उपहारों के अतिरिक्त लाखों के अन्य उपहार दिए। अन्य लोगों ने छोटे साइकिल से लेकर बच्चे के वस्त्रों सहित अनेक उपहार दिए। इसके पश्चात भोजन की अनेक प्रकार की व्यवस्था थी। भारतीय से लेकर चाइनीज़ तक। मैं उपभोक्ता संस्कृति में पनपते दिखावे की प्रवृत्ति को देखता ही रह गया। मुंडन पर ही लाखों खर्च कर दिए गए, जबकि पहले किसी तीर्थ स्थान पर जाकर अथवा घर में ही पूजा करके परिवार जनों के बीच सादगी से मुंडन संस्कार संपन्न हो जाता था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 9.
धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
उत्तर :
इस वाक्य में बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रियाविशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रियाविशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रियाविशेषण कहलाता है।

(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए। उत्तर :
1. साबुन आपको दिनभर तरोताजा रखता है।
2. पेरिस से परफ्यूम मँगवाइए, इतना ही खर्च हो जाएगा।
3. विकास के विराट उद्देश्य पीछे हट रहे हैं।
4. अमेरिका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है
5. जैसे-जैसे दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति बढ़ेगी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

(ख) धीरे-धीरे, ज़ोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज़्यादा, यहाँ, उधर, बाहर – इन क्रियाविशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
उत्तर :

  • धीरे-धीरे – धीरे-धीरे चलो, नहीं तो गिर जाओगे।
  • ज़ोर से – कल ज़ोर से बारिश हुई थी।
  • लगातार – सोहन लगातार तीन घंटे साइकिल चलाता रहा।
  • हमेशा – सुषमा हमेशा कक्षा में देर से आती है।
  • आजकल – आजकल महँगाई बढ़ गई है।
  • कम – लाला रामलाल कम तोलता है।
  • ज़्यादा – रमेश को ज्यादा बुखार नहीं था।
  • उधर – उधर बरफ़ पड़ रही है।
  • यहाँ – यहाँ सरदी अधिक नहीं है।
  • बाहर – तुम्हें कोई बाहर बुला रहा है।

(ग) नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रियाविशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए –

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति 1

पाठेतर सक्रियता – 

‘दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों पर बढ़ता प्रभाव’ विषय पर अध्यापक और विद्यार्थी के बीच हुए वार्तालाप को संवाद – शैली में लिखिए।
उत्तर :
अध्यापक – अच्छे स्वास्थ्य के लिए हरी सब्ज़ियाँ अवश्य खानी चाहिए। इनसे पेट ही नहीं भरता बल्कि विटामिन भी मिलते हैं।
अनुज – सर, मैगी खाने में क्या बुराई है ? उसमें भी तो कार्बोहाइड्रेट्स हैं।
अध्यापक – इससे शरीर को उतने लाभ नहीं मिलते जितने तुम्हें चाहिए। तुम्हें लंबा कद भी तो चाहिए।
अनुज – उसके लिए तो हार्लिक्स ले लेंगे। टी०वी० रोज़ यही तो कहता है कि लटकने से कद नहीं बढ़ेगा। बल्कि हार्लिक्स से कद बढ़ेगा।

इस पाठ के माध्यम से आपने उपभोक्ता संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अब आप अपने अध्यापक की सहायता से सामंती संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करें और नीचे दिए गए विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कक्षा में अपने विचार व्यक्त करें।
क्या उपभोक्ता संस्कृति सामंती संस्कृति का ही विकसित रूप है ?
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

आप प्रतिदिन टी० वी० पर ढेरों विज्ञापन देखते – सुनते हैं और इनमें से कुछ आपकी ज़बान पर चढ़ जाते हैं। आप अपनी पसंद की किन्हीं दो वस्तुओं पर विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

यह भी जानें –

सांस्कृतिक अस्मिता – अस्मिता से तात्पर्य है पहचान। हम भारतीयों की अपनी एक सांस्कृतिक पहचान है। यह सांस्कृतिक पहचान भारत की विभिन्न संस्कृतियों के मेल-जोल से बनी है। इस मिली-जुली सांस्कृतिक पहचान को ही हम सांस्कृतिक अस्मिता कहते हैं।

सांस्कृतिक उपनिवेश – विजेता देश जिन देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करता है, वे देश उसके उपनिवेश कहलाते हैं। सामान्यतः विजेता देश की संस्कृति विजित देशों पर लादी जाती है, दूसरी तरफ़ हीनता ग्रंथिवश विजित देश विजेता देश की संस्कृति को अपनाने भी लगते हैं। लंबे समय तक विजेता देश की संस्कृति को अपनाए रखना सांस्कृतिक उपनिवेश बनना है।

बौद्धिक दासता – अन्य को श्रेष्ठ समझकर उसकी बौद्धिकता के प्रति बिना आलोचनात्मक दृष्टि अपनाए उसे स्वीकार कर लेना बौद्धिक दासता है।

छद्म आधुनिकता – आधुनिकता का सरोकार विचार और व्यवहार दोनों से है। तर्कशील, वैज्ञानिक और आलोचनात्मक दृष्टि के साथ नवीनता का स्वीकार आधुनिकता है। जब हम आधुकिता को वैचारिक आग्रह के साथ स्वीकार न कर उसे फ़ैशन के रूप में अपना लेते हैं तो वह छद्म आधुनिकता कहलाती है।

JAC Class 9 Hindi उपभोक्तावाद की संस्कृति Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ निबंध का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ निबंध में श्यामाचरण दुबे ने विज्ञापन की चकाचौंध में भ्रमित समाज का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। लेखक का विचार है कि आज हम विज्ञापनों से प्रभावित होकर वस्तुओं को खरीदने में लगे हैं, उन वस्तुओं की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देते हैं। समाज का उच्चवर्ग प्रदर्शनपूर्ण जीवनशैली अपना रहा है जिस कारण उच्च और निम्नवर्ग में दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं। इससे जो संपन्न नहीं हैं वे अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए गलत मार्ग अपना लेंगे। इससे समाज में सामाजिक अशांति और विषमता बढ़ेगी। इसलिए लेखक गांधी जी के द्वारा दिखाए गए स्वस्थ सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है जिससे हमारे समाज की नींव सुदृढ़ हो सके।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 2.
उपभोक्तावाद की संस्कृति के फैलाव का परिणाम क्या होगा ?
उत्तर :
उपभोक्तावाद की संस्कृति के फैलाव से आपस में दिखावे की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलेगा। जीवन बहुविज्ञापित वस्तुओं को खरीदने में लगा रहेगा। वस्तुओं की गुणवत्ता पर हमारा ध्यान नहीं रहेगा। इससे धन का अपव्यय होगा। डिब्बा बंद खाद्य-पदार्थों को खाने से हमारे स्वास्थ्य की हानि होगी। एक-दूसरे से अधिक दिखावा करने की होड़ से सामाजिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो जाएगा। व्यक्ति केंद्रिकता बढ़ेगी। स्वार्थ के लिए सब कुछ किया जाएगा। मर्यादाएँ टूटेंगी तथा नैतिक मानदंड ढीले पड़ जाएँगे। सर्वत्र भोग की प्रधानता हो जाएगी। इससे हमारी सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा नष्ट हो जाएगी।

प्रश्न 3.
उपभोक्तावाद क्या है? यह हमारी जीवन-शैली को कैसे प्रभावित कर रहा है ?
उत्तर :
उपभोक्तावाद से अभिप्राय यह है कि जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति उत्पादित की गई वस्तु के उपभोग से आनंद तथा सुख की प्राप्ति का अनुभव करने लगता है और व्यक्ति को जीवन में केवल भोग के द्वारा ही संतोष मिलता है। वह सदा भोग-विलास में डूबा रहता है। उपभोक्तावाद ने हमारी जीवन शैली को प्रभावित किया है। हम अधिक-से-अधिक उत्पादों का आनंद लेने में सुख अनुभव करने लगे हैं। इसके कारण चारों ओर उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। जिससे हम अधिक-से-अधिक उपभोग कर सकें। हमारी स्थिति ऐसी हो गई है कि हमारा जीवन उत्पाद को ही समर्पित हो गया है।

प्रश्न 4.
‘अमेरिका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी हो सकता है’। लेखक किस बात की संभावना व्यक्त कर रहा है ?
उत्तर :
लेखक इस बात की संभावना व्यक्त कर रहा है कि भारत में भी अमेरिका की तरह मरने से पहले ही अपनी कब्र के लिए स्थान और अनंत विश्राम का प्रबंध एक निश्चित कीमत पर कर सकते हैं। साथ में आपकी कब्र और भी कई सुविधाओं में उपलब्ध हो सकती है। लेखक यह इसलिए भी कह रहा है क्योंकि आज का युग दिखावे का युग है। हम लोगों की आदत भी दूसरों की आदतों का अनुसरण करना है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 5.
आज समाज में व्यक्ति की प्रतिष्ठा का मानदंड क्या है ?
उत्तर :
आज समाज में व्यक्ति की प्रतिष्ठा का चिह्न उसका मान, शान या सम्मान नहीं है। आज के समय में उसी व्यक्ति की समाज में प्रतिष्ठा होती है जिसके पास दिखावे का अधिक-से-अधिक सामान हो। जो एक रुपए का सामान सौ में खरीद सकता हो। जिसकी पसंद फैशन के अनुसार बदलती रहती है। यही आज के समाज में प्रतिष्ठा के चिह्न माने जाते हैं और सामान्य लोगों में सम्मान प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 6.
‘यह विशिष्ट जन का समाज है पर सामान्य जन भी इसे ललचाई आँखों से देखता है।’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर :
‘यह विशिष्ट जन का समाज है पर सामान्य जन भी इसे ललचाई आँखों से देखता है।’ लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है कि आज साधारण मानव भी उच्च लोगों की तरह दिखावे की संस्कृति में दौड़ पड़ा है। उसे भी पाँच सितारा होटलों में जाना अच्छा लगता है। विदेशी सामान का पिटारा उसे भी लुभाता है। वह भी उपभोक्तावादी संस्कृति से प्रभावित होकर नित नए उत्पादों का प्रयोग करने के लिए लालायित है। वह भी अपना जीवन सुख से व्यतीत करना चाहता है, इसलिए सामान्य व्यक्ति भी विशिष्ट जन के समाज को जीने के लिए ललचाई आँखों से देखते हैं।

प्रश्न 7.
सांस्कृतिक अस्मिता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
‘अस्मिता’ का शाब्दिक अर्थ है पहचान। सांस्कृतिक अस्मिता से अभिप्राय अपनी संस्कृति की पहचान। भारतवासियों की अपनी एक पहचान है। यह पहचान विभिन्न भारतीय संस्कृतियों के मेल-जोल से बनी है। इसी मिली-जुली संस्कृति का नाम सांस्कृतिक अस्मिता है। इस पर कभी भी दूसरे लोगों की दृष्टि ने क्षीण अवश्य किया है परंतु समाप्त नहीं किया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 8.
हम बौद्धिक दासता के शिकार किस प्रकार हो रहे हैं ?
उत्तर :
बौद्धिक दासता से अभिप्राय यह है कि दूसरे व्यक्ति को अपने से बुद्धिमान समझकर उसके तर्क या आलोचना को ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लेना तथा बाद में उसी प्रकार का आचरण करना आरंभ कर देना है। हम लोग दूसरे देशों के उत्पादों का उपयोग, उनके कहे अनुसार कि यह बहुत अच्छा है, करने लग जाते हैं। इस स्थिति में हम अपनी बुद्धि का बिलकुल प्रयोग नहीं करते हैं।

प्रश्न 9.
हम पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश कैसे बन रहे हैं ?
उत्तर :
सांस्कृतिक उपनिवेश से अभिप्राय है कि किसी देश द्वारा अपनी संस्कृति को दूसरे देश पर लाद देना है। ऐसा उन देशों में पाया जाता है जो देश किसी अन्य देश के गुलाम रहे हों या उनकी संस्कृति से प्रभावित हों। भारत लगभग 200 सालों से अंग्रेज़ों का गुलाम रहा है इसलिए यहाँ के लोगों पर पश्चिम की संस्कृति का बहुत अधिक प्रभाव रहा है। देश के आज़ाद होने पर भी हम अपनी मानसिकता को नहीं बदल पाए हैं। आज भी हम पश्चिमी सभ्यता का दिखावा करते हुए अपने देश की संस्कृति को भूल रहे हैं। आधुनिकता की दौड़ में कहीं हम अन्य देशों से पिछड़ न जाएँ इसलिए पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश बन रहे हैं।

प्रश्न 10.
जीवन-स्तर के अंतर के बढ़ने से समाज की स्थिति कैसी हो गई ?
उत्तर :
जीवन-स्तर के अंतर के बढ़ने से समाज के वर्गों से दूरी बढ़ रही है जिससे चारों ओर आक्रोश और अशांति फैल रही है। वर्तमान समाज में जैसे-जैसे यह दिखावे की संस्कृति फैलेगी, वैसे-वैसे सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी। इसका कारण एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति का बढ़ना है। ईर्ष्या की भावना भी समाज में अशांति बन रही है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 11.
“स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है।” कैसे ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार आज मनुष्य का स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। मनुष्य समाज के सुख को न सोचकर केवल अपने ही सुख- सुविधाओं को जुटाने में लगा रहता है। वह समाज कल्याण के स्थान पर केवल अपने ही कल्याण के विषय में सोचने लगता है। उसे दूसरों से कोई भी मतलब नहीं रहता है वह केवल अपने अच्छे-बुरे के विषय में सोचता है उसकी इसी स्वार्थी सोच ने परमार्थ की भावना को समाप्त कर दिया है।

प्रश्न 12.
गांधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति के विषय में क्या कहा था ?
उत्तर :
गांधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति के विषय में कहा था कि हमें अन्य संस्कृतियों की अच्छी बातें ग्रहण करने में संकोच नहीं करना चाहिए तथा अपनी परंपराओं का भी हाथ नहीं छोड़ना चाहिए। उपभोक्ता संस्कृति को संपूर्ण रूप से जीवन में समाहित करने से हम अपने परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों को भूल जाएँगे। इसके लिए हमें खुले मन से किसी की बात सुननी चाहिए या उसके प्रभाव से प्रभावित होकर उसकी बात ग्रहण करनी चाहिए। यह सच हम लोगों की सोच पर निर्भर करता है, इसीलिए गाँधी जी ने इस उपभोक्ता संस्कृति के लिए पहले से ही सचेत कर दिया था।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। एक नई जीवन-शैली अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है। उसके साथ आ रहा है एक नया जीवन-दर्शन उपभोक्तावाद का दर्शन। उत्पादन बढ़ाने पर जोर है चारों ओर। यह उत्पादन आपके लिए है, आपके भोग के लिए है, आपके सुख के लिए है। ‘सुख’ की व्याख्या बदल गई है। उपभोग भोग ही सुख है। एक सूक्ष्म बदलाव आया है नयी स्थिति में। उत्पाद तो आपके लिए हैं, पर आप यह भूल जाते हैं कि जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कौन धीरे-धीरे अपना वर्चस्व स्थापित कर रही थी ?
(ख) जीवन-शैली के साथ किसका पदार्पण हो रहा है ?
(ग) समाज में क्या बढ़ाने की होड़ है ?
(घ) सुख की परिभाषा बदल गई है। कैसे ?
(ङ) उपभोक्तावादी दर्शन के परिणामस्वरूप मानव का क्या परिवर्तित हो रहा है ?
उत्तर :
(क) नवीन जीवन शैली धीर-धीरे अपना वर्चस्व स्थापित कर रही थी।
(ख) नवीन जीवन शैली के साथ उपभोक्तावादी दर्शन का पदार्पण हो रहा था।
(ग) समान में उत्पादन बढ़ाने की होड़ है।
(घ) सुख की परिभाषा बदल गई है। अब माना जाने लगा है कि उत्पादन का उपभोग ही सुख है।
(ङ) उपभोक्तावादी दर्शन के परिणामस्वरूप जाने-अनजाने मानव का चरित्र भी परिवर्तित हो रहा है और हम उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

2. कल भारत में भी यह संभव हो। अमरीका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है। प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं। चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हों। यह है एक छोटी-सी झलक उपभोक्तावादी समाज की। यह विशिष्ट जन का समाज है पर सामान्य जन भी इसे ललचाई निगाहों से देखते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) विशिष्ट जन का समाज कौन-सा है ?
(ख) जनसामान्य किसे ललचाई आँखों से देखता है और क्यों ?
(ग) भारत में क्या संभव है ?
उत्तर :
(क) विशिष्ट जन का समाज उपभोक्तावादी समाज है।
(ख) अमेरिका में आज जो हो रहा है, वह कल भारत में भी संभव है।
(ग) सामान्य जन विशिष्ट जन के समाज को ललचाई आँखों से देखता है क्योंकि वह उसे आकर्षक लगता है। वह समाज उपभोक्तावाद की झलक दिखलाता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

3. हम सांस्कृतिक अस्मिता की बात कितनी ही करें, परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है। कड़वा सच तो यह है कि हम बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं। पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश बन रहे हैं। हमारी नई संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है। हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं। प्रतिष्ठा की अंधी प्रतिस्पर्धा में जो अपना है उसे खोकर छद्म आधुनिकता की गिरफ़्त में आते जा रहे हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) लेखक के अनुसार भारतीय किस दासता को स्वीकार रहे हैं ?
(ख) भारतीय नवीन संस्कृति कैसी है ?
(ग) हम किसे गँवाकर छद्म आधुनिकता की ओर प्रवेश कर रहे हैं ?
(घ) उपभोक्तावादी दर्शन का क्या प्रभाव हुआ है ?
उत्तर :
(क) लेखक के अनुसार भारतीय बौद्धिक दासता को स्वीकार कर रहे हैं।
(ख) नवीन भारतीय संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है। हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं।
(ग) हम जो कुछ भी अपना है, उसे खोकर छद्म आधुनिकता की गिरफ्त में आते जा रहे हैं।
(घ) उपभोक्तावादी दर्शन से हमारी परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है साथ ही आस्थाओं का भी क्षरण हुआ है। हम बौद्धिक दास बनने के साथ-साथ पश्चिम का सांस्कृतिक उपनिवेश बनते जा रहे हैं।

4. जीवन-स्तर का यह बढ़ता अंतर आक्रोश और अशांति को जन्म दे रहा है। जैसे-जैसे दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी। हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का ह्रास तो हो ही रहा है, हम लक्ष्य-भ्रम से भी पीड़ित हैं। विकास के विराट उद्देश्य पीछे हट रहे हैं, हम झूठी तुष्टि के तात्कालिक लक्ष्यों का पीछा कर रहे हैं। मर्यादाएँ टूट रही हैं, नैतिक मानदंड ढीले पड़ रहे हैं। व्यक्ति-केंद्रिकता बढ़ रही है, स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। भोग की आकांक्षाएँ आसमान को छू रही हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) जीवन स्तर में उत्पन्न अंतर से क्या हानियाँ हैं ?
(ख) ‘लक्ष्य-भ्रम’ से क्या तात्पर्य है ? इससे क्या होगा ?
(ग) झूठी तुष्टि क्या है ? इसका क्या परिणाम होता है ?
(घ) व्यक्ति केंद्रिकता का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
(ङ) दो तत्सम शब्द चुनकर लिखिए।
उत्तर :
(क) जीवन-स्तर में बढ़नेवाले अंतर से चारों ओर आक्रोश और अशांति फैल रही है। वर्तमान जीवन स्तर दिखावे की होड़ में आगे दे बढ़ रहा है। इस कारण एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ईर्ष्या की भावना समाज में अशांति को बढ़ावा रही है।

(ख) ‘लक्ष्य-भ्रम’ का अर्थ अपने लक्ष्य को ठीक से न पहचानकर इधर-उधर भटकते रहना है। इस भ्रम के कारण मनुष्य अपने उद्देश्य से भटक गया है और केवल भोग-विलास को ही अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य मान रहा है। इस कारण समाज का नैतिक पतन हो रहा है।

(ग) झूठी तुष्टि से तात्पर्य क्षणिक सुख अथवा अस्थाई सुख की अनुभूति से है। मनुष्य जब झूठे सुख को सच्चा मान बैठता है तो उसे वास्तविक सुख अथवा आनंद का अनुभव कभी नहीं होता है। वह सदा भौतिक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने में और उन्हीं में सुख ढूँढ़ता रहता है।

(घ) जब मनुष्य समाज के सुख की न सोचकर केवल अपने ही सुख-सुविधाओं को जुटाने तथा उन सुख-सुविधाओं का उपभोग करने में लगा रहता है और समाज कल्याण के स्थान पर केवल अपना ही कल्याण सोचता रहता है तब मनुष्य आत्म- केंद्रित हो जाता है। अपने स्वार्थ में लिप्त रहने के कारण ही आज समाज में व्यक्ति केंद्रिकता बढ़ रही है।

(ङ) दो तत्सम शब्द हैं-मर्यादाएँ, आकांक्षाएँ।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

5. गांधी जी ने कहा था कि हम स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए अपने दरवाजे-खिड़की खुले रखें पर अपनी बुनियाद पर कायम रहें। उपभोक्ता संस्कृति हमारी सामाजिक नींव को ही हिला रही है। यह एक बड़ा खतरा है। भविष्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) गांधी जी ने क्या कहा था ?
(ख) उपभोक्ता संस्कृति से किसे और क्या खतरा है ?
(ग) भविष्य के लिए क्या चुनौती है ?
(घ) ‘दरवाज़े – खिड़की खुले रखने से क्या तात्पर्य है ?
(ङ) बुनियाद से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) गांधी जी ने कहा था कि हमें अन्य संस्कृतियों की अच्छी बातें ग्रहण करते हुए संकोच नहीं करना चाहिए तथा अपनी परंपराओं को भी नहीं छोड़ना चाहिए।
(ख) उपभोक्तावादी संस्कृति से हमारे सामाजिक जीवन को यह खतरा है कि हम अपने परंपरागत सांस्कृतिक जीवन मूल्यों को भूल जाएँगे।
(ग) उपभोक्तावादी संस्कृति से हम भोगवादी बन जाएँगे तथा भविष्य में अपनी परंपराओं को भूलकर अपनी सांस्कृतिक विरासत खो देंगे।
(घ) दरवाज़े-खिड़की खुले रखने से तात्पर्य यह है कि हमें खुले मन से किसी की बात सुननी चाहिए अथवा किसी प्रभाव से प्रभावित होकर उसे ग्रहण करना चाहिए।
(ङ) इन पंक्तियों में ‘बुनियाद’ का तात्पर्य हमारे जीवन-मूल्यों से है जिन पर टिककर हम जीवन में आगे बढ़ते आए हैं।

उपभोक्तावाद की संस्कृति Summary in Hindi

लेखक – परिचय :

जीवन – सुप्रसिद्ध समाज वैज्ञानिक श्यामाचरण दुबे का जन्म सन 1922 ई० में मध्य प्रदेश में हुआ था। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में पी एच०डी० की उपाधि प्राप्त की थी। इन्होंने देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया था। इनका अनेक संस्थानों से भी संबंध रहा है। सन् 1996 ई० में इनका निधन हो गया था।

रचनाएँ – डॉ॰ श्यामाचरण दुबे ने भारत की जनजातियों तथा ग्रामीण समाज का गहन अध्ययन किया है। इनसे संबंधित इनकी रचनाओं ने समाज का ध्यान इनकी समस्याओं की ओर आकर्षित किया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ – मानव और संस्कृति, परंपरा और इतिहास बोध, संस्कृति तथा शिक्षा, समाज और भविष्य, भारतीय ग्राम विकास का समाजशास्त्र, संक्रमण की पीड़ा और समय और संस्कृति हैं।

भाषा-शैली – डॉ० श्यामाचरण दुबे का अपने विषय और भाषा पर पूर्ण अधिकार है। ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ में लेखक ने विज्ञापन की चमक-दमक के पीछे भागते हुए लोगों को सावधान किया है कि इस प्रकार से अंधाधुंध विज्ञापनों से प्रभावित होकर कुछ खरीदना समाज में दिखाने की प्रवृत्तियों को बढ़ावा देगा तथा सर्वत्र सामाजिक अशांति और विषमता फैल जाएगी। लेखक ने मुख्य रूप से तत्सम प्रधान शब्दों का प्रयोग किया है, जैसे- उपभोक्ता, संस्कृति, समर्पित, चमत्कृत, प्रसाधन, परिधान, अवमूल्यन, अस्मिता, दिग्भ्रमित संसाधन, उपनिवेश आदि।

कहीं-कहीं लोक प्रचलित विदेशी शब्दों का प्रयोग भी प्राप्त होता है, जैसे- माहौल, टूथ पेस्ट, ब्रांड, माउथवाश, सिने स्टार्स, परफ्यूम, म्यूजिक सिस्टम आदि। लेखक ने अत्यंत रोचक एवं प्रभावपूर्ण शैली में अपनी बात कही है। कहीं-कहीं तो चुटीले कटाक्ष भी किए गए हैं, जैसे- ‘संगीत की समझ हो या नहीं, कीमती म्यूजिक सिस्टम ज़रूरी है। कोई बात नहीं यदि आप उसे ठीक तरह चला भी न सकें। कंप्यूटर काम के लिए तो खरीदे जाते हैं, महज़ दिखावे के लिए उन्हें खरीदनेवालों की संख्या भी कम नहीं है।’ इस प्रकार लेखक ने सहज एवं रोचक भाषा-शैली का प्रयोग किया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

पाठ का सार :

‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के लेखक डॉ० श्यामाचरण दुबे हैं। इस पाठ में लेखक ने विज्ञापनों की चमक-दमक से प्रभावित होकर खरीदारी करनेवालों को सचेत किया है कि इस प्रकार गुणों पर ध्यान न देकर बाहरी दिखावे से प्रभावित होकर कुछ खरीदने की प्रवृत्ति से समाज में दिखावे को बढ़ावा मिलेगा तथा सर्वत्र अशांति और विषमता फैल जाएगी। लेखक का मानना है कि आज चारों ओर बदलाव नज़र आ रहा है। जीवन जीने का नया ढंग अपनाया जा रहा है। सभी सुख प्राप्त करने के लिए उपभोग की वस्तुओं को खरीद रहे हैं। बाज़ार में विलासिता की सामग्रियों की खूब बिक्री हो रही है।

विज्ञापनों के द्वारा इन वस्तुओं का प्रचार हो रहा है, जैसे-टूथ-पेस्ट के ‘दाँतों को मोती जैसा चमकीला बनाता है’, ‘मुँह की दुर्गंध हटाता है’, ‘मसूड़े मज़बूत बनाता है’, ‘बबूल या नीम के गुणों से युक्त है’ आदि विज्ञापन उपभोक्ताओं को आकर्षित करते हैं। इसी प्रकार से टूथ ब्रश, माउथवाश तथा अन्य सौंदर्य प्रसाधनों के विज्ञापन भी देखे जा सकते हैं। साबुन, परफ्यूम, तेल, आफ़्टर शेव लोशन, कोलोन आदि अनेक सौंदर्य प्रसाधन की सामग्रियों के लुभावने विज्ञापन उपभोक्ता को इन्हें खरीदने के लिए आकर्षित करते रहते हैं। उच्च वर्ग की महिलाओं की ड्रेसिंग टेबल तीस-तीस हज़ार से भी अधिक मूल्य की सौंदर्य सामग्री से भरी रहती है।

इसी प्रकार से परिधान के क्षेत्र में जगह-जगह खुल रहे बुटीक महँगे और नवीनतम फ़ैशन के वस्त्र तैयार कर देते हैं। डिज़ाइनर घड़ियाँ लाख- डेढ़ लाख की मिलती हैं। घर में म्यूजिक सिस्टम और कंप्यूटर रखना फ़ैशन हो गया है। विवाह पाँच सितारा होटलों में होते हैं तो बीमारों के लिए पाँच सितारा अस्पताल भी हैं। पढ़ाई के लिए पाँच सितारा विद्यालय तो हैं ही शायद कॉलेज और विश्वविद्यालय भी पाँच सितारा बन जाएँगे।

अमेरिका और यूरोप में तो मरने से पहले ही अंतिम संस्कार का प्रबंध भी विशेष मूल्य पर हो जाता है। लेखक इस बात से चिंतित है कि भारत में उपभोक्ता संस्कृति का इतना विकास क्यों हो रहा है? उसे लगता है कि उपभोक्तावाद सामंती संस्कृति से ही उत्पन्न हुआ है। इससे हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को खोते जा रहे हैं। हम पश्चिम की नकल करते हुए बौद्धिक रूप से उनके गुलाम बन रहे हैं। हम आधुनिकता के झूठे मानदंड अपनाकर मान-सम्मान प्राप्त करने की अंधी होड़ में अपनी परंपरा को खोकर दिखावटी आधुनिकता के मोह बंधन में जकड़े जा रहे हैं।

परिणामस्वरूप दिशाहीन हो गए हैं और हमारा समाज भी भटक गया है। इससे हमारे सीमित संसाधन भी व्यर्थ ही नष्ट हो रहे हैं। लेखक का मानना है कि जीवन में उन्नति आलू के चिप्स खाने अथवा बहुविज्ञापित शीतल पेयों को पीने से नहीं हो सकती। पीजा, बर्गर को लेखक कूड़ा खाद्य मानता है। समाज में परस्पर प्रेमभाव समाप्त हो रहा है। जीवनस्तर में उन्नति होने से समाज के विभिन्न वर्गों में जो अंतर बढ़ रहा है उससे समाज में विषमता और अशांति फैल रही है। हमारी सांस्कृतिक पहचान में गिरावट आ रही है।

मर्यादाएँ समाप्त हो रही हैं तथा नैतिक पतन हो रहा है। स्वार्थ ने परमार्थ पर विजय प्राप्त कर ली है और भोग प्रधान हो गया है। गांधी जी ने कहा था कि हम सब ओर से स्वस्थ सांस्कृतिक मूल्य ग्रहण करें परंतु अपनी पहचान बनाए रखें। यह उपभोक्ता संस्कृति हमारी सामाजिक नींव को ही हिला रही है। इसलिए हमें इस बड़े खतरे से बचना होगा क्योंकि भविष्य में यह हमारे लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • उपभोक्ता – उपभोग करनेवाला
  • वर्चस्व – श्रेष्ठता, प्रधानता
  • माहौल – वातावरण
  • बहुविज्ञापित – बहुत अधिक प्रचारित
  • चमत्कृत – हैरान, चकित, विस्मित
  • परिधान – वस्त्र
  • हास्यास्पद – हँसी उत्पन्न करने वाला
  • सामंत – ज़मींदार, योद्धा
  • अवमूल्यन – गिरावट
  • क्षरण – क्षीण होना, धीरे-धीरे नष्ट होना
  • अनुकरण – नकल
  • प्रतिस्पर्धा – होड़, मुकाबला
  • गिरफ़्त – पकड़
  • सम्मोहन – मुग्ध करना
  • ह्रास – गिरावट
  • अपव्यय – फ़िजूलखर्ची
  • स्वार्थ – अपना भला
  • उपभोग – किसी वस्तु के व्यवहार का सुख या आनंद लेना, काम में लाना
  • सूक्ष्म – बहुत कम, बहुत छोटा दुर्गध – बदबू
  • सौंदर्य-प्रसाधन – सुंदरता बढ़ानेवाली वस्तुएँ
  • माह – महीना
  • हैसियत – आर्थिक योग्यता
  • विशिष्टजन – खास लोग
  • अस्मिता – अस्तित्व, पहचान
  • आस्था – श्रद्धा, विश्वास
  • उपनिवेश – एक देश के लोगों की दूसरे देश में आबादी
  • प्रतिमान – मानदंड
  • छद्म – नकली, बनावटी
  • दिग्भ्रमित – दिशाहीन, मार्ग से भटका हुआ
  • वशीकरण – वश में करना
  • तुष्टि – संतुष्टि
  • तात्कालिक – तुरंत का, उसी समय का
  • परमार्थ – दूसरे का भला, परोपकार

Leave a Comment