JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran अलंकार Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran अलंकार

परिभाषा – अलंकार का सामान्य अर्थ होता है-शोभा, शृंगार, आभूषण या अलंकृत करना। लोकभाषा में इसे गहना कहते हैं। अलंकार कविता की शोभा को बढ़ाने का काम करते हैं। ये स्वयं शोभा नहीं होते अपितु कविता की शोभा बढ़ाने वाले तत्व होते हैं। संस्कृत के विद्वानों ने इसीलिए कहा है- ‘अलंकरोति इति अलंकार:’ अर्थात जो शोभा बढ़ाए उसे अलंकार कहते हैं।
कविता में कभी शब्द विशेष का प्रयोग कविता को शोभा प्रदान करता है तो कभी अर्थ अर्थात शब्द और अर्थ में चमत्कार उत्पन्न कर कविता की शोभा बढ़ाने वाले तत्व को अलंकार कहते हैं।

कविता में चमत्कार और सौंदर्य उत्पन्न करने में शब्द और अर्थ दोनों का समान महत्व होता है। कहीं शब्द विशेष के प्रयोग के कारण कविता की शोभा बढ़ जाती है तो कहीं अर्थ चमत्कार के कारण। जहाँ शब्द विशेष के कारण चमत्कार उत्पन्न होता है, वहाँ शब्दालंकार होते हैं। जब अर्थ विशेष आकर्षण को उत्पन्न करता है, वहाँ अर्थालंकार होता है। कविता में जहाँ चमत्कार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित होता है, उन्हें उभयालंकार कहते हैं। अलंकार के प्रमुख रूप से दो भेद माने जाते हैं-शब्दालंकार और अर्थालंकार।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

शब्दालंकार :

काव्य में जहाँ शब्द विशेष से चमत्कार की उत्पत्ति होती है, वहाँ शब्दालंकार होता है। यदि किसी शब्द विशेष को हटाकर वहाँ कोई अन्य समानार्थी शब्द रख दिया जाए तो वहाँ अलंकार नहीं रहता। प्रमुख शब्दालंकार हैं- अनुप्रास, यमक, श्लेष।

1. अनुप्रास अलंकार

लक्षण – जहाँ व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण –

चारु चंद्र की चंचल किरणें,
खेल रही थीं जल-थल में।

यहाँ ‘च’ व ‘ल’ वर्ण की आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हुआ है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

विशेष – व्यंजनों की आवृत्ति के साथ स्वर कोई भी आ सकता है अर्थात् जहाँ स्वरों की विषमता होने पर भी व्यंजनों की एक क्रम से आवृत्ति हो वहाँ ‘अनुप्रास’ अलंकार होता है; जैसे –

क्या आर्यवीर विपक्ष वैभव देखकर डरते नहीं।

यहाँ ‘व’ के साथ भिन्न-भिन्न स्वरों का प्रयोग होने पर भी ‘अनुप्रास’ अलंकार है। विद्यार्थी सुविधानुसार निम्नलिखित उदाहरण कंठस्थ कर सकते हैं –

1. तरनि- तनूजा – तट तमाल तरुवर बहु छाए।
2. तजकर तरल तरंगों को,
इंद्रधनुष के रंगों को। (‘त’ की आवृत्ति)
3. साध्वी सती हो गई। (‘स’ की आवृत्ति)
4. तुम तुंग हिमालय श्रृंग,
और मैं चंचल गति सुर- सरिता। (‘त’ और ‘स’ की आवृत्ति)
5. मैया मैं नहिं माखन खायो। (‘म’ की आवृत्ति)
6. बसन बटोरि बोरि – बोरि तेल तमीचर। (‘ब’ की आवृत्ति)
7. सत्य सनेहसील सुख सागर। (‘स’ की आवृत्ति)
8. मुदित महीपति मंदिर आए।
सेवक सचित सुमंत बुलाए। (‘म’ और ‘स’ की आवृत्ति)
9. संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो। (‘स’ और ‘ध’ की आवृत्ति)
10. मधुर मधुर मुस्कान मनोहर। (‘म’ की आवृत्ति)
11. बंदऊँ गुरुपद पदुम परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा। (‘प’ तथा ‘स’ की आवृत्ति)
12. रघुपति राघव राजा राम। (‘र’ वर्ण की आवृत्ति)
13. सखी, निरख नदी की धारा। (‘न’ वर्ण की आवृत्ति)
14. सठ सुधरहिं सत संगति पाई।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥ (‘स’ तथा ‘प’ वर्ण की आवृत्ति)
15. सुधा सुरा सम साधु असाधू।
जनक एक जग जलधि अगाधू। (‘स’ और ‘ज’ वर्ण की आवृत्ति)
16. सुरभित सुंदर सुखद सुमन तुझ पर खिलते हैं (‘स’ वर्ण की आवृत्ति)
17. इस सोते संसार बीच (‘स’ वर्ण की आवृत्ति)
18. बैठे किंशुक छत्र लगा बाँध पाग – पीला। (‘प’ वर्ण की आवृत्ति)
19. भज दीनबंधु दिनेश दानव दैत्यवंश निकनंदनम। (‘द’ वर्ण की आवृत्ति)
20. कितनी करुणा कितने संदेश। (‘क’ वर्ण की आवृत्ति)

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2. यमक अलंकार

यमक अलंकार में एक ही शब्द या शब्दांश की आवृत्ति होती है परंतु प्रत्येक बार शब्द या शब्दांश का अर्थ भिन्न-भिन्न होता है।

लक्षण – जहाँ एक शब्द अथवा शब्द- समूह का एक से अधिक बार प्रयोग हो परंतु प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न-भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। जहाँ पर निरर्थक अथवा भिन्न-भिन्न अर्थ वाले सार्थक समुदाय का अनेक बार प्रयोग हो, वहाँ यमक अलंकार होता है।

इसे याद रखने का सूत्र है – वह शब्द पुनि-पुनि परै अर्थ भिन्न ही भिन्न।

उदाहरण –

कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय,
या खाए बौराय नर, वाह पाए बौराय।

‘सोने’ में ‘ धतूरे’ से भी सौ गुना नशा अधिक होता है। उसको (धतूरे को) खाने से मनुष्य पागल अर्थात् नशे का अनुभव करता है। इसको (सोने को) प्राप्त कर लेने मात्र से नशे का अनुभव करने लगता है।
यहाँ ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है परंतु प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न-भिन्न है।
पहले ‘कनक’ का अर्थ ‘ धतूरा’ है तथा दूसरे ‘कनक’ का अर्थ ‘सोना’ है।
अतः यहाँ यमक अलंकार का चमत्कार है।

अन्य उदाहरण –

तो पर वारौं उरबसी, सुन राधिके सुजान।
तू मोहन के उरबसी, है उरवसी समान ॥

उरबसी –

(क) उर्वशी नामक अप्सरा।
(ख) उर (हृदय) में बसी हुई।
(ग) गले में पहना जाने वाला आभूषण।

उदाहरण –

1. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ॥
(मनका माला का दाना, मन का = हृदय का)
(फेर = हेरा-फेरी, चक्कर, फेर = फेरना)

2. कहे कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराई लीनी।
(बेनी = कवि का नाम, चोटी)

3. तीन बेर खाती थीं वे तीन बेर खाती हैं।
(तीन बेर = तीन बार, बेर के तीन फल)

4. काली घटा का घमंड घटा।
(घटा = बादल, कम होना)

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5. रति रति सोभा सब रति के शरीर की।
(रति-रति = ज़रा-ज़रा-सी, कामदेव की पत्नी)

6. जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं।
(तारे = उद्धार किया, सितारे)

7. खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा।
(कुल = परिवार, कुल-कुल = पक्षियों की चहचहाहट)

8. लहर-लहर कर यदि चूमे तो, किंचित विचलित मत होना।
(लहर तरंग, मचलना)

9. गुनी गुनी सब के कहे, तिगुनी गुनी न होतु।
सुन्यो कहुँ तरु अरक तैं, अरक समानु उदोतु ॥
(अरक = आक का पौधा, सूर्य)

10. ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।
(मंदर = महल, = महल, पर्वत)

11. जगती जगती की मूक प्यास।
(जगती जागती, जगत, संसार)

3. श्लेष अलंकार

लक्षण – श्लेष का अर्थ है – चिपका हुआ। काव्य में जहाँ एक शब्द के साथ अनेक अर्थ चिपके हों, अर्थात् जहाँ एक ही शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलें, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

उदाहरण –

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुस, चून ॥

(कवि रहीम कहते हैं कि मनुष्य को पानी अर्थात अपनी इज्जत अथवा मान-मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए। बिना पानी के सब सूना है, व्यर्थ है। पानी के चले जाने से मोती का, मनुष्य का और चूने का कोई महत्त्व नहीं।)

यहाँ ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ हैं।

(1) मोती के पक्ष में ‘पानी’ का अर्थ है ‘चमक’, (2) मनुष्य के पक्ष में ‘पानी’ का अर्थ है ‘इज्जत’, (3) चून (आटा) के पक्ष में ‘पानी’ का अर्थ है पानी (जल)। पानी के बिना आटा नहीं गूँधा जा सकता।
यहाँ ‘पानी’ शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलते हैं। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
श्लेष अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण हैं –

विपुल धन अनेकों रत्न हो साथ लाए।
प्रियतम बतला दो लाल मेरा कहाँ है ॥

यहाँ ‘लाल’ शब्द के दो अर्थ पुत्र और मणि हैं।

को घटि ये वृष भानुजा, वे हलधर के वीर।

यहाँ वृषभानु की पुत्री अर्थात् राधिका और वृष की अनुजा अर्थात् बैल की बहन है। हलधर से बलराम और हल को धारण करने वाले का अर्थ है।

नर की अरु नल नीर की, गति एके कर जोय।
जेतो नीचो ह्वै चले, तेतो ऊँचो होय।

यहाँ ‘नीचो’ का अर्थ नीचे की तरफ़ तथा नम्र और ‘ऊँचो’ का अर्थ ऊँचाई की ओर तथा सम्मान है।

पी तुम्हारी मुख बास तरंग, आज बौरे भौरे सहकार।

हे सखि ! तुम्हारे मुख की सुगंध की तरंगों से भौरे बौरा गए हैं अर्थात मस्त हो गए हैं, उधर सहकार अर्थात् आम भी बौरा रहे हैं अर्थात् आमों पर मंजरियाँ निकल रही हैं। यहाँ ‘बौरे’ शब्द के दो अर्थ हैं। अतः ये श्लेष अलंकार हैं।

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अन्य उदाहरण –

1. मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
(कलियाँ खिलने से पूर्व की अवस्था, यौवन की अवस्था, यौवन पूर्व की अवस्था)

2. मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोइ।
जा तन की झाँईं परै, स्यामु हरित दुति होय ॥
(स्याम = श्रीकृष्ण, काला / गहरा नीला, दुख, पीड़ा)

3. बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बड़ाई पाइ।
कहत धतूरे सौं कनक, गहनौ गढ्यो न जाइ ॥
(कनक = सोना, धतूरा)

4. सुबरन को ढूँढ़त फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।
(सुबरन के तीन अर्थ हैं-‘कवि’ के संदर्भ में, ‘सुबरन’ का अर्थ है – अच्छा शब्द, ‘व्यभिचारी’ के संदर्भ में ‘सुबरन’ का अर्थ है – अच्छा रूप रंग तथा ‘चोर’ के संदर्भ में ‘सुबरन’ का अर्थ है – स्वर्ण (सोना)।

अर्थालंकार

अर्थालंकार का संबंध भावों की सुंदरता से है। इसके द्वारा भावों की अनुभूति चमत्कारपूर्ण ढंग से व्यक्त होती है। अर्थात् जहाँ काव्य में अर्थ के कारण आकर्षण उत्पन्न होता है, उसे अर्थालंकार कहते हैं। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति आदि इसके विभिन्न प्रकार हैं।

1. उपमा अलंकार :

जिस काव्य पंक्ति में किसी जग प्रसिद्ध व्यक्ति या वस्तु की तुलना सामान्य वस्तु को अच्छा बताने के लिए असामान्य वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।

उपमा – उपमा अलंकार के चार अंग हैं –
(1) उपमेय (2) उपमान (3) वाचक शब्द (4) साधारण धर्म।

1. उपमेय – जिसकी समता की जाती है, उसे उपमेय कहते हैं।
2. उपमान – जिससे समता की जाती है, उसे उपमान कहते हैं।
3. वाचक शब्द – उपमेय और उपमान की समता प्रकट करने वाले शब्द को वाचक शब्द कहते हैं।
4. साधारण धर्म -उपमेय और उपमान में गुण (रूप, रंग आदि) की समानता को साधारण धर्म कहते हैं।

उपमा अलंकार का लक्षण – जहाँ रूप, रंग या गुण के कारण उपमेय की उपमान से तुलना की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है। उदाहरण – पीपर पात सरिस मन डोला।
(पीपल के पत्ते के समान मन डोल उठा)
उपमेय – मन
उपमान – पीपर पात
वाचक शब्द – सरिस (समान)
साधारण धर्म – डोला

जिस उपमा में चारों अंग होते हैं, उसे पूर्णोपमा कहते हैं। इनमें से किसी एक अथवा अधिक के लुप्त होने से लुप्तोपमा अलंकार होता है। अत: उपमा दो प्रकार की होती है – (1) पूर्णोपमा (2) लुप्तोपमा।

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अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण –

1. हो क्रुद्ध उसने शक्ति छोड़ी एक निष्ठुर नाग-सी।
(उसने क्रोध से भरकर एक शक्ति (बाण) छोड़ी जो साँप के समान भयंकर थी।) यहाँ ‘शक्ति’ उपमेय की ‘नाग’ उपमान से तुलना होने के कारण उपमा अलंकार है।
2. वह किसलय के से अंग वाला कहाँ है।
(यहाँ ‘ अंग’ उपमेय की ‘किसलय’ उपमान से तुलना है।)
3. यहाँ कीर्ति चाँदनी-सी, गंगा जी की धारा-सी
सुचपला की चमक से सुशोभित अपार है।
(धर्मलुप्त है अतः यहाँ लुप्तोपमा अलंकार है।)
4. मुख बाल – रवि सम
लाल होकर ज्वाला-सा बोधित हुआ।
(यहाँ क्रोध से लाल मुख की प्रातः कालीन सूर्य से तुलना है।)
5. नील गगन सहृदय शांत-सा सो रहा।
6. हरिपद कोमल कमल से।
7. गंगा का यह नीर अमृत के सम उत्तम है।
8. कबीर माया मोहिनी, जैसे मीठी खांड।
9. तारा – सी तुम सुंदर।
10. नंदन जैसे नहीं उपवन है कोई।
11. सिंहनी – सी काननों में, योगिनी-सी शैलों में,
शफरी-सी जल में,
विहंगिनी – सी व्योम में,
जाती अभी और उन्हें खोज कर लाती मैं।
12. रति सम रमणीय मूर्ति राधा की।
13. पड़ी थी बिजली-सी विकराल।
14. वह नव नलिनी से नयन वाला कहाँ है ?
15. नदियाँ जिनकी यशधारा-सी, बहती हैं अब भी निशि – बासर।
16. सूरदास अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यों पागी।
17. असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
18. सिंधु – सा विस्तृत और अथाह,
एक निर्वासित का उत्साह।
19. हाय फूल – सी कोमल बच्ची।
हुई राख की थी ढेरी ॥
20. वह दीपशिखा -सी शांत भाव में लीन।
21. यह देखिए, अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे।
22. तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा।
23. चाटत रह्यौ स्वान पातरि ज्यौं, कबहूँ न पेट भरयो।
24. माबूत शिला-सी दृढ़ छाती।
25. मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला।
26. लघु तरणि हंसिनी-सी सुंदर,
तिर रही खोल पालों के पर ॥
27. कंचन जैसी कामिनी, कमल सुकोमल रूप।
बदन बिलोको चंद्रमा, वनिता बनी अनूप ॥
28. लावण्य भार थर-थर
काँपा कोमलता पर सस्वर
ज्यों मालकोश नववीणा पर
29. यों ताशों के महलों-सी मिट्टी की वैभव बस्ती क्या।
30. किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा में।

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2. रूपक अलंकार :

जब प्रसिद्ध वस्तु से गुणों की समानता को दर्शाने के लिए किसी सामान्य वस्तु पर उसकी समानता दर्शाने के बदले सीधा आरोपण कर दिया जाता है, तो वहाँ रूपक अलंकार होता है।
अर्थात रूपक अलंकार में दो वस्तुओं अथवा व्यक्तियों में अद्भुतता को प्रकट किया जाता है। नाटक को भी रूपक कहते हैं क्योंकि वहाँ एक व्यक्ति के ऊपर दूसरे व्यक्ति का आरोप होता है, जैसे कोई राम का अभिनय करता है तो कोई रावण का।
लक्षण – जहाँ उपमेय में उपमान का आरोप हो, वहाँ रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण – चरण-कमल बंदौं हरि राई।
(मैं भगवान के कमल रूपी चरणों की वंदना करता हूँ।)
यहाँ ‘ चरण’ उपमेय पर ‘कमल’ उपमान का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

अन्य उदाहरण –

1. बीती विभावरी जाग री।
अंबर – पनघट में डुबो रही तारा-घट उषा नागरी।
यहाँ अंबर पर कुएँ का सितारों पर घड़े का तथा उषा पर नागरी का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।

2. दुख हैं जीवन-तरु के मूल।
‘जीवन’ उपमेय पर ‘तरु’ उपमान का आरोप है। अतः यहाँ भी रूपक अलंकार है।

3. मैया मैं तो चंद्र – खिलौना लैहौं।
चंद्र उपमेय पर खिलौना उपमान का आरोप होने के कारण यहाँ रूपक अलंकार है।
मेखलाकार पर्वत अपार, अपने सहस्त्र दृग सुमन फाड़,

4. अवलोक रहा था बार-बार, नीचे जल में महाकार।
यहाँ दृग (आँखें) उपमेय पर फूल उपमान का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

5. मेरे अंतर में आते ही देव निरंतर कर जाते हो व्यथा – भार।
लघु बार-बार कर- कंज बढ़ा कर।
यहाँ कर (हाथ) उपमेय पर कंज (कमल) उपमान का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

6. मन – मधुकर पन करि तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं।
मन उपमेय पर मधुकर (भ्रमर) तथा पद (चरण) उपमेय पर कमल उपमान का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

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7. विषय – नारि मन-मीन भिन्न गति होत पल एक।

8. यहाँ विषय-वासना के ऊपर वारि (जल) तथा मन के ऊपर मीन (मछली) का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है। प्रेम-सलिल से द्वेष का सारा मल धुल जाएगा।
यहाँ प्रेम उपमेय पर सलिल अर्थात जल उपमान का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।

9. संत – हंस गुन गहहिं पय परिहरि वारि विकार।
यहाँ संत पर हंस का, गुण पर पय (दूध) का और वारि (जल) पर विकार का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।

10. माया दीपक नर पतंग,
श्रमि भ्रमि इमै पड़त।
यहाँ ‘माया’ उपमेय पर ‘दीपक’ उपमान का तथा ‘नर’ उपमेय पर ‘पतंग’ उपमान का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।

11. भजु मन चरण कंवल अविनासी।
यहाँ ‘ चरण’ उपमेय पर ‘कमल’ उपमान का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।

12. दुख – जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है ?
यहाँ दुख में जलनिधि (समुद्र) का आरोप होने से रूपक अलंकार है।

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3. उत्प्रेक्षा अलंकार –

जहाँ एक वस्तु में दूसरी की कल्पना या संभावना हो, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

लक्षण – जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना पाई जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इस अलंकार में मानो, मनो, मनु, मनहुँ, जनु, जानो आदि शब्दों के द्वारा उपमेय को उपमान मान लिया जाता है।

उदाहरण –
सिर फट गया उसका वहीं
मानो अरुण रंग का घड़ा।

यहाँ ‘ फटा हुआ सिर’ उपमेय में ‘लाल रंग का घड़ा’ उपमान की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

अन्य उदाहरण –

1. सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।
मनो नीलमणि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात।
यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले रूप तथा उनके पीले वस्त्रों में प्रातः कालीन सूर्य की धूप से सुशोभित नीलमणि पर्वत की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

2. कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिमकणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।
यहाँ आँसुओं से भरे उत्तरा के नेत्रों उपमेय में ओस की बूँदों से युक्त कमलों की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

3. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा।
यहाँ क्रुद्ध अर्जुन उपमेय में सागर उपमान की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

4. पद्मावती सब सखी बुलाई।
मनु फुलवारी सबै चलि आई।
यहाँ सखियाँ उपमेय में फुलवारी उपमान की संभावना है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

5. नील परिधान बीच सुकुमार
खुल रहा मृदुल अधखुला अंग,
खिला हो ज्यों बिजली का फूल
मेघ वन बीच गुलाबी रंग।
यहाँ नील परिधान उपमेय में बादल के भीतर चमकने वाली बिजली उपमान की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

6. जान पड़ता, नेत्र देख बड़े-बड़े,
हीरकों में गोल नीलम हैं जड़े।
यहाँ नेत्रों उपमेय में हीरों में जड़े नीलम उपमान की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

7. बहुत काली सिल
ज़रा-से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो।

8. ले चला साथ मैं तुझे कनक
ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण झनक।

9. पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

10. चम चमाए चंचल नयन बिच घूँघट पट झीन। मानहु सुरसरिता विमल जल बिछुरत जुग मीन ॥

11. लंबा होता ताड़ का वृक्ष जाता,
मानो नभ छूना चाहता वह तुरंत ही।

12. हरि मुख मानो मधुर मयंक

13. लट- लटकानि मनु मत्त मधुमगन मादक मधुहि पिए।

14. चमचमात चंचल नयन बिच घूँघट पट झीन।
मानो सुरसरिता विमल जल उछलत जुग मीन।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

15. मनु दृग फारि अनेक जमुन निरखत ब्रज सोभा।

16. पुलक प्रकट करती है धरती,
हरित तृणों की नोकों से,
मानो झूम रहे हैं तरु भी,
मंद पवन के झोंकों से।

4. अतिशयोक्ति अलंकार – 

अतिशयोक्ति = अतिशय उक्ति। अतिशय का अर्थ है – अत्यधिक और उक्ति का अर्थ है कथन। इस प्रकार अतिशयोक्ति का अर्थ हुआ बढ़ा-चढ़ाकर कहना अर्थात् जब किसी गुण या स्थिति को बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाए तो वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

लक्षण – जहाँ किसी वस्तु या विषय का इतना बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए कि लोक मर्यादा का उल्लंघन हो जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण –

देख लो साकेत नगरी है यही।
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही ॥

साकेत नगरी में स्वर्ग जैसा गुण नहीं हो सकता। लेकिन कवि ने साकेत अर्थात् अयोध्या का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है, इसलिए यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

अन्य उदाहरण –

1. हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग ॥

प्रस्तुत उदाहरण में हनुमान की पूँछ में आग लगते ही लंका का जल जाना और राक्षसों का भाग जाना आदि बातें बहुत ही बढ़ा-चढ़ा कर कही गई हैं। अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

2. पंखुरी लगे गुलाब की परिहैं गात खरोट।
गुलाब की पंखुरी से शरीर में खरोट पड़ जाएगी, यह संभव नहीं। यहाँ शरीर की सुकुमारता की अत्यंत प्रशंसा की गई है। अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

3. वह शर इधर गांडीव – गुण से भिन्न जैसे ही हुआ।
धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।
यहाँ बाण का छूटना तथा सिर का गिरना एक साथ दिखाए गए हैं। अतः यह अतिशयोक्ति अलंकार है।

4. प्राण छुटै प्रथमै रिपु के रघुनायक सायक छूट न पाए।
राम के बाण छोड़ने से पहले ही शत्रु के प्राण निकल जाने में अतिशयोक्ति है।

5. मानवीकरण अलंकार – 

जहाँ जड़ वस्तुओं की भी मानव के समान जीवित मानते हुए मानवीय भावनाएँ निरूपित की जाती हैं, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
लक्षण – जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप होता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है; जैसे-

दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है,
वह संध्या सुंदर परी-सी
धीरे-धीरे – धीरे।

यहाँ सूर्यास्त के समय संध्या को एक परी के समान धीरे-धीरे आकाश में उतरते हुए चित्रित किया गया है, अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।

अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण –

1. चंचल पग दीपशिखा के घर गृह, मग, वन में आया बसंत !
2. सुलगा फाल्गुन का सूनापन सौंदर्य शिखाओं में अनंत !
3. उदयाचल से किरन – धेनुएँ, हाँक ला रहा प्रभात का ग्वाला !
4. पूँछ उठाए, चली आ रही क्षितिज जंगलों से टोली।
5. अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कंप होले,
6. या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले। 7. आए महंत वसंत
8. मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
9. लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
10. कार्तिक की एक हँसमुख सुबह
नदी तट से लौटती गंगा नहाकर।
11. तन कर भाला यह बोला, राणा मुझको विश्राम न दे।
मुझको शोणित की प्यास लगी, बढ़ने दे शोणित पीने दे।
12. बीती विभावरी जाग री,
अंबर पनघट में डुबो रही। तारा-घट ऊषा नागरी।
13. प्राची का मुख तो देखो।
14. मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या सुंदरी परी -सी धीरे-धीरे।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

अभ्यास के लिए प्रश्नोत्तर –

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
अलंकार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कविता की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहते हैं।

प्रश्न 2.
शब्दालंकार से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
शब्दालंकार का तात्पर्य है- जहाँ शब्दों के कारण कविता में चमत्कार उत्पन्न हो।

प्रश्न 3.
अर्थालंकार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अर्थालंकार का तात्पर्य है – जहाँ अर्थ के कारण किसी कविता या काव्यांश में चमत्कार उत्पन्न हो।

प्रश्न 4.
उपमान किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिससे उपमेय की समता की जाती है, उसे उपमान कहते हैं।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

प्रश्न 5.
उपमा तथा रूपक अलंकार में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अत्यंत सादृश्य (समता) के कारण जहाँ एक वस्तु या प्राणी की तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है। अत्यंत समानता प्रकट करने के लिए रूपक अलंकार द्वारा उपमेय तथा उपमान में अभेद स्थापित किया जाता है।

प्रश्न 6.
दो अर्थालंकारों तथा दो शब्दालंकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :
अर्थालंकार – उपमा, उत्प्रेक्षा।
शब्दालंकार – यमक, श्लेष।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में प्रयुक्त अलंकारों के नाम बताइए –
1. तरनि- तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
2. मृदु मंद-मंद मंथर मंथर, लघु तरणि हंस-सी सुंदर प्रतिभट – कटक कटीले कोते काटि काटि
3. कालिका -सी किलकि कलेऊ देती काल को।
4. रावनु रथी विरथ रघुबीरा
5. रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून, पानी गए न उबरे मोती मानुस चून।
6. उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग, विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग।
7. वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी,
वह दीप शिखा – सी शांत भाव में लीन
वह टूटे तरु की छूटी लता-सी दीन,
दलित भारत की विधवा है।
8. सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात
मनो नीलमणि शैल पर आतप पड्यो प्रभात।
9. माली आवत देखकर कलियाँ करें पुकार
फूले-फूले चुन लिए काल्हि हमारी बार।
10. राम नाम – अवलंब बिनु, परमारथ की आस,
बरसत बारिद बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास।
11. पच्छी परछीने ऐसे परे परछीने बीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
उत्तर :
1. अनुप्रास
2. उपमा
3. अनुप्रास
4. अनुप्रास
5. श्लेष
6. रूपक
7. उपमा
8. अतिशयोक्ति
9. अन्योक्ति
10. अनुप्रास
11. यमक।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

2. निम्नलिखित पदों में अलंकार पहचानिए –

प्रश्न :
1. निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है।
2. विज्ञान-यान पर चढ़ी सभ्यता डूबने जाती है।
3. चमक गई चपला चम-चम।
4. काँपा कोमलता पर सस्वर ज्यों मालकौश नव वीणा पर।
5. सुनहु सखा कह कृपा निधाना जेहि जप होइ सो स्यंदन आना।
6. जहाँ कली तू खिली, स्नेह से हिली पली।
7. ईस भजन सारथी सुजाना।
8. ले चला साथ तुझे कनक।
ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण झनक।
9. वन-शारदी चंद्रिका चादर ओढ़े।
10. नभ-मंडल छाया मरुस्थल-सा
11. जगकर सजकर रजनी बाले।
12. चँवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत।
13. महा अजय संसार रिपु।
14. तपके जगती-तल जावे जला।
उत्तर :
1. उपमा
2. रूपक
3. अनुप्रास,
4. उपमा, उत्प्रेक्षा
5. अनुप्रास
6. अनुप्रास
7. अनुप्रास
8. उत्प्रेक्षा
9. रूपक
10. उपमा
11. रूपक
12. उपमा
13. रूपक
14. अनुप्रास

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

3. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम बताइए –

प्रश्न :
1. मुख बाल – रवि सम होकर,
ज्वाला – सा बोधित हुआ।
2. मुदित महीपति मंदिर आए, सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
3. गिर पड़ा मैं पाद- पद्मों में पिता सब जानते हो।
4. कूकि कूकि केकी कलित, कुंजन करत कलोल।
5. युग नेत्र उनके जो अभी थे पूर्ण जल की धारा से,
अब रोष के मारे हुए वे दहकते अंगार से।
6. मनौ नील मनि सैल पर आतप पर्यो प्रभात।
7. हरि नीके नैनानुतें, हरि नीके ए नैन।
8. रानी मैं जानी अज्ञानी महा,
पवि पाहन हूँ तें कठोर हियो है।
9. चरण कमल बंदौं हरि राई।
10. आहुति सी गिर चढ़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला सी।
11. छलकती मुख की छवि पुंजता, छिटकती छिति छू तन की छटा।
12. पंखुरी लगे गुलाब की परिहैं गात खरौट।
13. चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल-थल में।
14. करि कर सरिस सुभग भुजदंडा।
15. या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोई।
ज्यों-ज्यों बूढ़े स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होई ॥
16. बंद नहीं अब भी चलते हैं,
नियति नटी के कार्य कलाप।
17. तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
18. तीन बेर खाती थी। वे तीन बेर खाती हैं।
19. काली घटा का घमंड घटा।
20. कहे कवि बेनी बेनी व्याल की चुराई लीनी।
21. मधुवन की छाती को देखो,
सुखी कितनी इसकी कलियाँ।
22. हाय फूल – सी कोमल बच्ची ! हुई राख की थी ढेरी।
23. नदियाँ जिनकी यशधारा- सी
बहती है अब भी निशि – बासर।
24. मखमल के झूल पड़े हाथी – सा टीला।
25. सब प्राणियों के मत्त मनोमयूर अहा नचा रहा।
26. मृदु मंद-मंद मंथर, लघु प्राणि हंस-सी सुंदर।
27. कलिका-सी कलेऊ देती काल को।
28. रावनु रथी विरथ रघुवीरा।
29. उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग ॥
30. वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी,
वह दीपशिखा – सी शांत भाव में लीन।
वह टूटे तरु की छूटी लता-सी दीन,
दलित भारत की विधवा है।
31. सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात,
मनो नीलमणि शैल पर आतप परयो प्रभात।
32. माली आवत देखकर कलियाँ करें पुकार,
फूले-फूले चुन लिए, कालि हमारी बार।
33. राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस,
बरसत वारिद बूँद गहि, चाहत चढ़त आकास।
34. पक्षी परछीने पर परछीने बीर।
तेरी बरछी ने वर छीने खलन के।
35. हनुमान की पूँछ में लग न पाई आग,
लंका सिगरी जरि गई, गए निसाचर भाग।
36. आवत-जात कुंज की गलियन रूप-सुधा नित पीजै।
37. हृदय यंत्र निनादित हो गया,
तुरत ही अनियंत्रित भाव से।
38. नभ – मंडल छाया मरुस्थल-सा,
दलबाँध अंधड़ आवैचला।
39. वह बाँसुरी की धुनि कानि परै,
कुल कानि हियो तजि भाजति हैं।
40. गोपी पद – पंकज पावन की रज जा में सिर भीजै।
41. सिंधु – सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह।
42. गुरु पद पंकज रेनु।
43. रती – रती सोभा सब रती के सरीर की।
44. तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा।
45. तुमने अनजाने वह पीड़ा
छवि के सर से दूर भगा दी।
46. वह जिंदगी क्या जिंदगी, सिर्फ़ जो अपानी – सी बही।
47. निसि – बासर लाग्यो रहे कृष्ण चंद्र की ओर।
48. एक राम घनस्याम हित चातक तुलसीदास।
49. कितनी करुणा कितने संदेश।
50. परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाए।
51. विमल वाणी ने वीणा ली. कमल कोमल कर।
52. बरषत बारिद बूँद।
53. जुड़ गई जैसे दिशाएँ।
54. आए महंत बसंत।
55. यह देखिए अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे ?
56. भगन मगन रत्नाकर में वह राह।
57. बाल्य की केलियों का प्रांगण।
58. कूकै लगी कोइलें कदंबन पै बैठि फेरि।
59. यवन को दिया दया का दान।
60. निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है।
61. प्रातः नभ था बहुत गीला, शंख जैसे।
62. रामनाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार।
63. झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका।
64. वन शारदी चंद्रिका ओढ़े लसै समलंकृत कैसे भला।
65. राख का लीपा चौका।
66. तब सिव तीसरा नेत्र उभारा।
चितवत काम भयो जरि छारा।
उत्तर :
1. उपमा
2. अनुप्रास
3. रूपक
4. अनुप्रास
5. उपमा
6. उत्प्रेक्षा
7. यमक
8. उपमा
9. रूपक
10. उपमा
11. अनुप्रास
12. अतिशयोक्ति
13. अनुप्रास
14. उपमा
15. श्लेष
16. रूपक
17. अनुप्रास
18. यमक
19. यमक
20. यमक
21. अन्योक्ति
22. उपमा
23. उपमा
24. उपमा
25. रूपक अनुप्रास
26. अनुप्रास, उपमा
27. उपमा
28 अनुप्रास
29. रूपक
30. उपमा
31. उत्प्रेक्षा
32. अन्योक्ति
33. रूपक
34. यमक
35. अतिशयोक्ति
36. रूपक
37. रूपक
38. उपमा
39. यमक
40. रूपक
41. उपमा
42. रूपक
43. यमक
44. उपमा
45. रूपक
46. उपमा
47. रूपक
48. रूपक
49. अनुप्रास
50. उपमा
51. अनुप्रास
52. अनुप्रास
53. उपमा
54. रूपक
55. उपमा
56. अनुप्रास
57. उपमा
58. अनुप्रास
59 अनुप्रास
60. उपमा
61. उपमा
62. रूपक
63. उत्प्रेक्षा
64. उत्प्रेक्षा
65. उत्प्रेक्षा
66. अतिशयोक्ति।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
1. (क) चारु चंद्र की चंचल किरणें
(ख) चंचल अंचल – सा नीलांबर
(ग) मैया मैं चंद्र खिलौना लैहों।
(घ) रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानुस चून।
(ङ) मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा।

2. (क) लट-लटकनि मनु मत्त मधुपगन मादक मधुहिं पिए।
(ख) मुख बाल रवि सम लाल होकर ज्वाल – सा बोधित हुआ।
(ग) संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो।
(घ) भज मन चरण कमल अविनासी।
(ङ) औषधालय अयोध्या में बने तो थे सही।
किंतु उनमें रोगियों का नाम तक भी था नहीं।

3. (क) कल कानन कुंडल।
(ख) बढ़त – बढ़त संपति सलिल, मन सरोज बढ़ जाइ। (रूपक)
(ग) या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोइ।
ज्यौं – ज्यौँ बूढ़े स्याम रंग त्यौं त्यौं उज्जलु होइ। (श्लेष)
(घ) कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा पाए बोराय नर वा खाए बौराय। (यमक)
(ङ) सिंधु – सा विस्तृत और अथाह। (उपमा)
उत्तर :
1. (क) अनुप्रास (ख) उपमा (ग) रूपक (घ) श्लेष (ङ) उत्प्रेक्षा
2. (क) अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा (ख) उपमा (ग) अनुप्रास (घ) रूपक (ङ) अतिशयोक्ति
3. (क) अनुप्रास (ख) रूपक (ग) श्लेष (घ) यमक (ङ) उपमा

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) निमिष में वन व्यापित वीथिका।
विविध धेनु विभूषित हो गई।
(ख) भजन कह्यो ताते, भज्यो न एकहुँ बार।
दूर भजन जाते कह्यो, सो तू भज्यो गँवार ॥
(ग) चंचल है ज्यों मीन, अरुणोद पंकज सरिस।
(घ) गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन।
(ङ) बान न पहुँचे अंग लौ। अरि पहले गिर जाहिं।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) यमक
(ग) उपमा
(घ) अनुप्रास
(ङ) अतिशयोक्ति

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) रघुपति राघव राजा राम।
(ख) रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरे मोती मानुस चून ॥
(ग) कमल-सा कोमल गात सुहाना।
(घ) चरण-कमल बंदौं हरि राई।
(ङ) जिन दिन देखे वे कुसुम गई सु बीति बहार।
अब अलि रही गुलाब की अपत कँटीली डार ॥
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) श्लेष
(ग) उपमा
(घ) रूपक
(ङ) अन्योक्ति

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) सकल सुमंगल मूल जग।
(ख) आवत जात कुंज की गलियन रूप – सुधा नित पीजै।
(ग) सिंधु – सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह।
(घ) कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
या खाए बौराय जग, वा पाए बौराय ॥
(ङ) कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) रूपक
(ग) उपमा
(घ) यमक
(ङ) उत्प्रेक्षा

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए-
(क) चरण-कमल बंदौ हरि राई।
(ख) नदियाँ जिनकी यशधारा-सी बहती हैं अब भी निशि – बासर।
(ग) कहे कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराइ लीनी।
(घ) कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि।
(ङ) सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात,
मनो नीलमणि शैल पर आतप पर्यो प्रभात।
उत्तर :
(क) रूपक
(ख) उपमा
(ग) यमक
(घ) अनुप्रास
(ङ) उत्प्रेक्षा

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) तरनि- तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
(ख) यह देखिए, अरविंद से शिशु वृंद कैसे सो रहे।
(ग) राम नाम – अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
(घ) काली घटा का घमंड घटा।
(ङ) मधुवन की छाती को देखो, सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) उपमा
(ग) रूपक
(घ) यमक
(ङ) श्लेष

प्रश्न 10.
(क) निम्नलिखित अलंकारों की परिभाषा देकर उदाहरण दीजिए –
यमक और उत्प्रेक्षा
(ख) निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए।
1. तरनि- तनूजा तट तमाल- तरुवर बहु छाए।
2. एक राम – घनश्याम हित चातक तुलसीदास।
उत्तर :
(क) यमक – जहाँ एक शब्द का एक से अधिक बार प्रयोग हो, पर प्रत्येक बार अर्थ में भिन्नता हो, वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण: तीन बेर खाती थीं, वे तीन बेर खाती हैं।
उत्प्रेक्षा – जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना हो, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण: लंबा होता ताड़ का वृक्ष जाता,
मानो गम छूना चाहता वह तुरंत हो।
(ख) 1. अनुप्रास 2. रूपक।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अलंकार

प्रश्न 11.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) चारु चंद्र की चंचल किरणें
(ख) चंचल अंचल सा नीलांबर
(ग) मैया, मैं चंद्र – खिलौना लैहों।
(घ) रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानस, चून॥
(ङ) मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) उपमा
(ग) रूपक
(घ) श्लेष
(ङ) उत्प्रेक्षा।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन

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JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन

→ घनाभ : यदि समान्तर षट्फलक का प्रत्येक फलक आयत हो, तो उसे घनाभ कहते हैं। घनाभ को आयत फलकी ठोस भी कहते हैं।
जैसे ईंट, सन्दूक, कमरा आदि।
घनाभ के 6 पृष्ठ (फलक) 8 शीर्ष एवं 12 कोरें होती हैं।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 1

→ घन : यदि घनाभ का प्रत्येक फलक वर्गाकार हो, तो उसे घन कहते हैं अर्थात् घन की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई बराबर होती है।
द्विविमीय : समतल में स्थित प्रत्येक आकृति द्विविमीय (Two Dimensional) कहलाती हैं क्योंकि उनमें केवल दो विमाएँ (लम्बाई तथा चौड़ाई) होती है।
त्रिविमीय : दैनिक जीवन में प्रयोग की जाने वाली समस्त वस्तुएँ त्रिविमीय (Three Dimensional) होती हैं। इनमें लम्बाई चौड़ाई के साथ-साथ ऊँचाई भी होती हैं। द्विविमीय वस्तुओं द्वारा केवल समतल में स्थान घेरा जाता है, किन्तु त्रिमीय वस्तुओं में ऊँचाई होने के कारण, समतल से ऊपर भी स्थान घेरा जाता है।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 2

→ बेलन : बेलन एक ऐसी त्रिविमीय ठोस आकृति होती है, जो दो वृत्त तथा एक वक्र आयत से मिलकर बनी होती है। इसके दो सिरे समान त्रिज्या वाले वृत्त होते हैं एवं पार्श्व पृष्ठ वक्र (curved) होता है।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 3

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन

→ शंकु : एक त्रिविमीय संरचना है, जो शीर्ष बिन्दु और एक आधार (आश्वयक नहीं कि यह वृत्त ही हो) को मिलाने वाली रेखाओं द्वारा निर्मित होती है। यदि किसी शंकु का आधार एक वृत्त हो तो उसे लम्ब वृत्तीय शंकु कहते हैं।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 4

→ गोला : किसी वृत्त को उसके व्यास के अनुदिश घुमाने से प्राप्त ठोस आकृति को गोला कहते हैं। वृत्त का व्यास, त्रिज्या और केन्द्र ही प्राप्त गोले के क्रमशः व्यास, त्रिज्या और केन्द्र होते हैं।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 5

→ अर्द्धगोला : किसी भी गोले को यदि उसके व्यास से काटकर दो भागों में विभक्त कर दिया जाए तो प्राप्त दोनों भाग समान आयतन और पृष्ठीय क्षेत्रफल के अर्द्धगोला कहलाते हैं।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 6

महत्वपूर्ण सूत्र :
→ घनाभ : यदि किसी घनाभ की लम्बाई = l, चौड़ाई = b तथा ऊँचाई = h हो तो
घनाभ का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2 (ल × चौ + चौ × ॐ + ॐ × ल)
(S.A) = 2(lb + bh + hl) वर्ग इकाई
आयतन = ल. × चौ. × ॐ.
v = lbh घन इकाई
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 7
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 8

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन

→ घन : यदि किसी घन की प्रत्येक भुजा की लम्बाई a इकाई हो तो-
घन का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 6 (भुजा)2 वर्ग इकाई
S.A. = 6a2
आयतन = भुजा × भुजा × भुजा
[V = a × a × a = a3 घन इकाई]
विकर्ण = भुजा × \(\sqrt{3}\) इकाई
D = \(\sqrt{3}\)a इकाई
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 9

→ बेलन : यदि बेलन की त्रिज्या = r तथा ऊँचाई = h हो तो,
वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2 × π × त्रिज्या × ऊँचाई
C.S.A. = 2πrh वर्ग इकाई
आयतन = π × त्रिज्या × त्रिज्या × ऊँचाई
V = πr2h घन इकाई
सम्पूर्ण पृष्ठ = 2π × त्रिज्या (ऊँचाई + त्रिज्या)
T.S.A. = 2πr (h + r) वर्ग इकाई
बेलन का सम्पूर्ण पृष्ठीय क्षेत्रफल = पृष्ठीय क्षेत्रफल + दोनों आधारों का क्षेत्रफल
= 2πrh + 2πr2
= 2πr (h + r) वर्ग इकाई
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 10

→ खोखले बेलन : यदि खोखले बेलन की बाह्य त्रिज्या = R
तथा आन्तरिक त्रिज्या = r एवं ऊँचाई = है तो,
आयतन = π(बाह्य त्रिज्या2 – आन्तरिक त्रिज्या2)h
= π(R2 – r2) h
= π(R + r) (R – r)h घन इकाई.
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 11

→ लम्ब वृत्तीय शंकु :
यदि त्रिज्या = r, ऊँचाई = h तथा प्रियंक ऊँचाई = l हो तो
लम्ब वृत्तीय शंकु का वक्रपृष्ठ = π × त्रिज्या × त्रियक ऊँचाई
S.A. = πrl वर्ग इकाई
आयतन = \(\frac{1}{3}\) × π × त्रिज्या × त्रिज्या × ऊँचाई
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 12
V = \(\frac{1}{3}\)πr2h घन इकाई
सम्पूर्ण पृष्ठ = π × त्रिज्या (त्रिर्यक ऊँचाई + त्रिज्या)
T.S.A. = πr (l + r) वर्ग इकाई
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 13

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन

→ गोला :
गोले का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 4πr2 वर्ग इकाई
गोले का आयतन = \(\frac{4}{3}\)πr3 घन इकाई
अर्द्धगोले का वक्रपृष्ठ = 2πr2 वर्ग इकाई
⇒ अर्द्धगोले का सम्पूर्ण पृष्ठ = 2πr2 + πr2
= 3πr2 वर्ग इकाई
अर्द्धगोले का आयतन = \(\frac{2}{3}\)πr3 घन इकाई
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 14

JAC Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran प्रत्यय Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran प्रत्यय

परिभाषा – जो शब्दांश धातु रूप या शब्दों के अंत में लगकर उनके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं व नए शब्दों को बनाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं कृते प्रत्यय, तद्धित प्रत्यय।

(क) कृत प्रत्यय – जो प्रत्यय क्रिया के मूल धातु रूप के साथ लगकर संज्ञा और विशेषण को बनाते हैं, उन्हें कृत प्रत्यय कहते हैं। जैसे –
बुलवा – बोल + आवा, दौड़ना – दौड़ + ना!

(ख) तद्धित प्रत्यय – जो प्रत्यय क्रिया के धातु रूपों को छोड़कर संज्ञा, विशेषण, सर्वनाम आदि के साथ लगकर नए शब्द बनाते हैं, उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं। जैसे – गुस्सैल – गुस्सा + ऐल, रंगत – रंग + ता।

1. हिंदी के कृत प्रत्यय – अंत, अक्कड, अन्, आलू, आवा, आवना, आवट, आ, आई, आऊ, आक, आका, आक्, आन, आव, आस, आहट, इयल, इया, ई, उ, एटा, ऐत, ऐया, ऐल, धौती, औना, क, या, वाई, ना, ती, ता, त, कर।
2. संस्कृत के कृत प्रत्यय – अन, अना, अनीय, आ, ई, उक, ऐया, क, ता, ति, य, र, व्य, स्थ।
3. हिंदी के तद्धित प्रत्यय – आ, आई, आऊ, आना, आनी, आर, आरी, आस, आहट इक, इन, इया, ई, ईना, ईला, अ, ऐं एटा, एल, ऐल, क, कार, खोर, गुना, गर, चो, डा, डी, त, तया, दार, पन, पा, रौं, री, ला, वाँ, वान, वाला, सरा, सार, हरा, हार, हारा।
4. संस्कृत के तद्धित प्रत्यय – अ, आलु, इक, इत, इमा, इल, ईय, तः, तम, ता, त्व, नीय, मान, य, व, वान।
5. उर्दू के प्रत्यय – आना, इंदा, इश, ई, ईना, दान, मंद, बाज।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय

1. कर्तृवाचक तद्धित

जो शब्द क्रिया के अतिरिक्त अन्य शब्दों में प्रत्यय लगने से बनते हैं और संज्ञा बनकर वाक्यों में कर्ता के रूप में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें कर्तृवाचक तद्धित कहते हैं।
ये शब्द प्रायः जातिवाचक और व्यक्तिवाचक संज्ञाओं से बनते हैं।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय 1

JAC Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय

2. भाववाचकतद्धित

संज्ञा और विशेषण या क्रिया – शब्दों में प्रत्यय लगाने से जो शब्द बनते हैं, वे भाववाचक तद्धित होते हैं ।
भाववाचक संज्ञाएँ निम्नलिखित तीन रीतियों से बनाई जाती हैं –

1. जातिवाचक संज्ञा से

JAC Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय 2

2. विशेषण शब्दों से

JAC Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय 3

3. क्रिया शब्दों से

JAC Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय 4

उर्दू के भाववाचक प्रत्यय

JAC Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय 5

3. विशेषण प्रत्यय

संज्ञा या क्रिया शब्दों में जिन प्रत्यय को लगाने से विशेषण शब्द बनाए जाते हैं, उन्हें विशेषण प्रत्यय कहते हैं।

संज्ञा से विशेषण

JAC Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय 6

क्रिया से विशेषण

JAC Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय 7

4. लघुतावाचक तद्धित – जातिवाचक

संज्ञाओं में इया, ई, डा, री आदि प्रत्ययों के प्रयोग से लघुतावाचक तद्धित शब्द बनते हैं।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय 8

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

JAC Class 9 Hindi वाख Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
उत्तर :
‘रस्सी’ यहाँ निरंतर चलनेवाली साँसों के लिए प्रयुक्त किया गया है जो स्वाभाविक रूप से बहुत कमज़ोर है।

प्रश्न 2.
कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जानेवाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं ?
उत्तर :
कवयित्री स्वाभाविक रूप से कमज़ोर साँसों रूपी रस्सी से जीवन रूपी नौका को भवसागर के पार ले जाना चाहती है पर शरीर रूपी कच्चे बरतन से जीवन रूपी जल टपकता जा रहा है, इसलिए उनके प्रयास व्यर्थ होते जा रहे हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

प्रश्न 3.
कवयित्री का ‘घर जाने की चाह से’ क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
सभी संतों के समान कवयित्री भी मानती है कि उसका वास्तविक घर तो वह है जहाँ परमात्मा बसते हैं क्योंकि जीवात्मा वहीं से आई थी और उसे वहीं लौट जाना है इसलिए उसकी उसी घर जाने की चाह है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
उत्तर :
(क) इस संसार में रहते हुए माया के जाल से मुक्ति ही नहीं पाई। परमात्मा के प्रति ध्यान ही नहीं लगाया; सत्कर्म नहीं किए। जब आत्मलोचन किया तो पता लगा कि हमने जीवन व्यर्थ गँवा दिया है।
(ख) इस मायात्मक संसार में सुखों की प्राप्ति की कामना ही करते रहे। तरह-तरह के सुख उपभोग के साधन जुटाते रहे जिनसे परमात्मा नहीं मिलते। बाह्याडंबर करते हुए व्रत और साधना का सहारा लिया। स्वयं को कष्ट देकर सिद्धि पानी चाही। भूखे रहकर ब्रह्म पाना चाहा पर इससे और तो कुछ नहीं मिला। बस स्वयं को संयमी समझकर अहंकार का भाव मन में अवश्य समा गया।

प्रश्न 5.
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है ?
उत्तर :
कश्मीरी संत कवयित्री ललद्यद ने सुझाया है कि मानव तू अपने अंतःकरण और बाह्य इंद्रियों का निग्रह कर, अपने तन-मन पर नियंत्रण रख। जब तेरी चेतना व्यापक हो जाएगी; तेरे भीतर समानता की भावना उत्पन्न हो जाएगी। तब तेरे मन रूपी बंद द्वार की साँकल खुल जाएगी। आडंबर करने से तुझे कुछ प्राप्त नहीं होगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

प्रश्न 6.
ईश्वर-प्राप्ति के लिए बहुत-से साधक हठयोग जैसी साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है ?
उत्तर :
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह,
सुषुम – सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
जेब टटोली कौड़ी न पाई,
माझी को दूँ क्या उतराई ?

प्रश्न 7.
‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर
कवयित्री का ‘ज्ञानी’ से अभिप्राय उस मानव से है जो बिना आडंबर रचाए सच्चे मन से परमात्मा को अपने भीतर खोजने की चेष्टा करता है। वह माया जाल से दूर रहता है। जात-पात और भेद-भाव से दूर रह आत्मलोचन करता हुआ सत्कर्मों में लीन रहता है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होता; लेकिन
आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है –
(क) आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है ?
(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।
उत्तर :
(क) यद्यपि संतों, भक्तों और महापुरुषों ने मनुष्यों को आपसी भेदभाव दूर करने के लिए बार-बार चेताया पर फिर भी जात-पात, छोटे-बड़े, गरीब-अमीर, शिक्षित-अशिक्षित, ऊँच-नीच आदि तरह-तरह के भेदभाव उन्हें सदा घेरे रहते हैं। इस कारण लोगों में मानसिक विद्वेष बढ़ता है; वे एक-दूसरे से घृणा करने लगते हैं। इसका सीधा प्रभाव उनके जीवन और काम-काज पर पड़ता है। संकीर्ण विचारधारा मनुष्य को मनुष्य का दुश्मन बना देती है। मनुष्य हीन बुद्धि के हो जाते हैं। वे एक-दूसरे को छूने से भी परहेज़ करने लगते हैं। ऐसे लोग मिल-बाँटकर खाते-पीते नहीं; पारिवारिक संबंध नहीं बनाते। इससे समाज छोटे-छोटे टुकड़ों में बँटने लगता है। जिस समाज या देश में जितने छोटे टुकड़े होंगे वह उतना ही कमजोर होगा और समुचित उन्नति नहीं कर पाएगा।

(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए शिक्षा का व्यापक प्रचार सबसे महत्त्वपूर्ण है। अशिक्षित व्यक्ति का बौद्धिक विकास पूरी तरह नहीं हो पाता इसलिए अच्छे-बुरे के बीच भेद करने का विवेक उन्हें प्राप्त नहीं होता। वे कुएँ के मेंढक की तरह संकुचित मानसिकता के हो जाते हैं। आपसी भेद-भाव मिटाने के लिए आर्थिक विषमता का दूर होना भी आवश्यक है। गरीबी-अमीरी के बीच की खाई भेद-भाव को बढ़ाती है। नर-नारियों पर लगे तरह-तरह के सामाजिक-धार्मिक प्रतिबंध पूर्ण रूप से मिटा दिए जाने चाहिए। नारी-शिक्षा को अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए ताकि नारी शिक्षित होकर अपने परिवेश से ऐसे विचारों को दूर कराने में सहायक बन सके। कुछ स्वार्थी लोगों के द्वारा भेद-भावों को बढ़ाने संबंधी भ्रामक विचारों के प्रसारण पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इसे दंडनीय अपराध मानना चाहिए ताकि वे भोली-भाली जनता को बहका न सकें। सरकार के द्वारा दूर-दराज के क्षेत्रों में ऐसे सजगता संबंधी कार्यक्रम कराने चाहिए जिनसे वे जागरूक हो सकें।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न :
भक्तिकाल में ललद्यद के अतिरिक्त तमिलनाडु की आंदाल कर्नाटक की अक्क महादेवी, और राजस्थान की मीरा जैसी भक्त कवयित्रियों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए एवं उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
ललद्यद कश्मीरी कवयित्री हैं। कश्मीर पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
छात्र / छात्राएँ अपने अध्यापक / अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi वाख Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘ललद्यद ने संकीर्ण मतभेदों के घेरों को कभी स्वीकार नहीं किया’- इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
ललद्यद की शैवधर्म में आस्था थी पर उसने संकीर्ण मतवादों के घेरों को कभी स्वीकार नहीं किया था। उसने जो कहा वह सार्वभौम महत्त्व रखता था। किसी धर्म या संप्रदाय विशेष को अन्य धर्मों या संप्रदायों से श्रेष्ठ मानने की भावना का उसने खुलकर विरोध किया। वह उदात्त विचारोंवाली उदार संत थी। उसके अनुसार ब्रह्म को चाहे जिस नाम से पुकारो वह ब्रह्म ही रहता है। सच्चा संत वही है जो प्रेम और सेवा भाव से सारी मानव जाति के कष्टों को दूर करे तथा ईश्वर को मतभेद से दूर होकर स्वीकार करे।

प्रश्न 2.
ललद्यद के क्रांतिवादी व्यक्तित्व पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
ललद्यद में विभिन्न धर्मों के विचारों को समन्वित करने की अद्भुत शक्ति थी। वह धार्मिक रूढ़ियों, अंधविश्वासों, रीति-रिवाजों पर कड़ा प्रहार करती थी। धर्म के नाम पर ठगनेवाले लोग उसकी चोट से तिलमिला उठते थे। वह मानती थी कि धार्मिक बाह्याडंबरों का धर्म और ईश्वर से कोई संबंध नहीं है। तीर्थ यात्राओं और शरीर को कष्ट देकर की जानेवाली तपस्याओं से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। बाहरी पूजा एक ढकोसला मात्र है। वह देवी-देवताओं के लिए पशु-बलि देना सहन नहीं करती थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

प्रश्न 3.
‘पानी टपके कच्चे सकोरे’ से क्या आशय है ?
उत्तर :
‘पानी टपके कच्चे सकोरे से’ कवयित्री का आशय यह है कि मानव शरीर धीरे-धीरे कच्चे सकोरे की तरह कमज़ोर हो रहा है और एक दिन वह नष्ट हो जाएगा। जिस प्रकार कच्चे सकोरे से धीरे-धीरे पानी टपकने से वह नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार उसका शरीर भी धीरे-धीरे अपनी निश्चित आयु को प्राप्त हो कमज़ोर हो रहा है। यह प्राकृतिक नियम है और प्राणी को यह पता भी नहीं चलता है कि उसकी आयु समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 4.
कवयित्री ने ‘न खाकर बनेगा अहंकारी’ कहकर किस तथ्य की ओर संकेत किया है ?
उत्तर :
‘न खाकर बनेगा अहंकारी’ में कवयित्री ने इस बात की ओर संकेत किया है कि मानव परमात्मा को प्राप्त कराने के लिए तरह-तरह के बाह्य आडंबर करता है। भूखे रहकर व्रत करता है परंतु उसे वह स्वयं को संयमी और शरीर पर नियंत्रण रखनेवाला मान लेता है। इससे उसके मन में अहंकार उत्पन्न हो जाता है। वह स्वयं को योगी पुरुष मान लेता है।

प्रश्न 5.
‘खा-खाकर’ कुछ प्राप्ति क्यों नहीं हो पाती ?
उत्तर :
मनुष्य को लगातार खाने से भी परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती है। यह भोग-विलास का प्रतीक है। मनुष्य का जीवन जितना अधिक भोग-विलास में डूबता जाता है, उतना ही भगवान से दूर हो जाता है। उसका मन ईश्वर की भक्ति में नहीं लगता है और ईश्वर की प्राप्ति के बिना इस दुनिया से पार हो संभव नहीं है। इसलिए खा-खाकर भी कुछ प्राप्त होनेवाला नहीं है।

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प्रश्न 6.
कवयित्री क्या प्रेरणा देना चाहती है ?
उत्तर :
कवयित्री मनुष्य को यह प्रेरणा देना चाहती है कि बाहरी आडंबरों से कुछ भी संभव नहीं है। मानव को अपने जीवन में सहजता बनाए रखनी चाहिए। संयम का भाव श्रेष्ठ होता है। और इसी से वह परमात्मा को प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 7.
‘गई न सीधी राह’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
‘गई न सीधी राह’ से कवयित्री का तात्पर्य है कि परमात्मा ने उसे जब संसार में भेजा था तो वह सीधी राह पर चल रही थी परंतु संसार के मायात्मक बंधनों ने उसे अपने बस में कर लिया और वह चाहकर भी परमात्मा को प्राप्त करने के लिए भक्ति मार्ग पर नहीं बढ़ सकी। दुनियादारी में उलझकर सत्कर्म नहीं किया।

प्रश्न 8.
मनुष्य मन-ही-मन भयभीत क्यों हो जाता है ?
उत्तर :
परमात्मा जब मनुष्य को धरती पर भेजता है, उसका मन साफ़ हो जाता है; उसे दुनियादारी से कोई मतलब नहीं होता है परंतु धीरे-धीरे वह संसार के मोह-माया के बंधनों में उलझ जाता है। वह सत्कर्मों से दूर हो जाने पर मन-ही-मन भयभीत होता है कि अब उसका समय पूरा होने वाला है, उसे परमात्मा के पास वापिस जाना है, परमात्मा जब उसके कर्मों का लेखा-जोखा देखेगा, वह क्या बताएगा। भव सागर से पार जाने के लिए मनुष्य के सत्कर्म ही उसके काम आते हैं। यही सोच मनुष्य को मन-ही-मन भयभीत करती रहती है।

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प्रश्न 9.
ईश्वर वास्तव में कहाँ है ? उसकी पहचान कैसे हो सकती है ?
उत्तर :
ईश्वर वास्तव में संसार के कण-कण में समाया हुआ है। वह तो प्रत्येक मनुष्य के भीतर है इसलिए उसे कहीं बाहर ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं है। उसे तो अपने भीतर से ही पाने की कोशिश की जानी चाहिए। ईश्वर के सच्चे स्वरूप की पहचान अपनी आत्मा को पहचानने से संभव हो सकती है। आत्मज्ञान ही उसकी प्राप्ति का एकमात्र रास्ता है।

प्रश्न 10.
‘भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां’ में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां’ इस पंक्ति में कवयित्री यह कहना चाहती है कि सभी के लिए परमात्मा एक है। चाहे हिंदू हो या मुसलमान उनके लिए परमात्मा के स्वरूप के प्रति कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। कवयित्री ने अपनी वाणी से यह स्पष्ट किया है कि धर्म के नाम पर परमात्मा के प्रति आस्था नहीं बदलनी चाहिए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

प्रश्न 11.
ईश्वर के प्रति भक्ति कब दृढ़ हो जाती है ?
उत्तर :
कवयित्री ललद्यद का मत है कि जब ईश्वर विरह में जलनेवाला ऐसे ही दूसरे व्यक्ति से मिलता है तो ईश्वर के प्रति भक्ति दृढ़ हो जाती है उनमें विचारों का आदान-प्रदान होता है। दोनों अपने अनुभवों को बताते हैं और इस प्रकार अधिक प्रगाढ़ हो जाता है। इससे ईश्वर के प्रति भक्ति को दृढ़ता मिलती है।

प्रश्न 12.
परमात्मा के न मिलने पर कवयित्री की स्थिति कैसी हो गई है ?
उत्तर :
परमात्मा के न मिलने पर कवयित्री की स्थिति अत्यंत दुःखदायी हो गई है। उसकी स्थिति उस प्यासे व्यक्ति के समान हो गई है जो प्यास से अत्यधिक व्याकुल है। कवयित्री की आत्मा ईश्वर से कहती है कि उनके बिना वह अत्यधिक परेशान है। उसका जीवन घटता जा रहा है। उसे परमात्मा की प्राप्ति अभी तक नहीं हो पाई। उसे हृदय से रह-रहकर पीड़ाभरी आवाज़ उत्पन्न होती है। उसे परमात्मा से मिलने की इच्छा है लेकिन वह इस इच्छा को चाहकर भी पूरी नहीं कर पा रही है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

प्रश्न 13.
ललद्यद की कविता ‘वाख’ का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवयित्री ने अपनी कविता ‘वाख’ में पदों के रूप में भक्ति को प्रधानता देते हुए अपने मन की पीड़ा को प्रकट किया है। लक्षणा शब्द-शक्ति का पर्याप्त प्रयोग किया गया है। प्रतीकात्मकता विद्यमान है। भक्ति के विप्रलंभ का निरुपण किया गया है। अनुप्रास, रुपक, उपमा आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। शांत रस, भक्ति रस तथा करुण रस विद्यमान है। गीतिकाव्य की विशेषताएँ विद्यमान हैं। तद्भव शब्दावली का सटीक एवं भावानुकूल प्रयोग हुआ है। भाषा सरल, सहज तथा विचारानुकूल है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे ॥

शब्दार्थ : रस्सी कच्चे धागे की – कमज़ोर और नाशवान सहारे। नाव – जीवन रूपी नौका। भवसागर – दुनिया रूपी सागर। कच्चे सकोरे – स्वाभाविक रूप से कमज़ोर। व्यर्थ – बेकार। प्रयास – प्रयत्न।

प्रसंग : प्रस्तुत वाख हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित किया गया है जिसकी रचयिता कश्मीरी संत ललद्यद हैं। मानव ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है और उसे पाने के लिए तरह-तरह के प्रयत्न करता है पर उसके द्वारा किए गए प्रयत्नों से उसे सफलता नहीं मिलती। कवयित्री ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किए जानेवाले ऐसे ही प्रयत्न की व्यर्थता को प्रकट किया है।

व्याख्या : कवयित्री दुखभरे स्वर में कहती है कि मैं अपनी जीवन रूपी नौका को कमज़ोर और नाशवान कच्चे धागे की साँसों रूपी रस्सी से लगातार खींच रही हूँ। मैं इसे उस पार लगाना चाहती हूँ पर पता नहीं परमात्मा कब मेरी पुकार सुनेंगे और मुझे दुनिया रूपी सागर को पार कराएँगे। स्वाभाविक रूप से कमज़ोर कच्चे बरतन रूपी शरीर से निरंतर पानी टपक रहा है; मेरा जीवन घटता जा रहा है; आयु व्यतीत होती जा रही है पर मेरे द्वारा परमात्मा को प्राप्त करने के लिए किए गए सभी प्रयत्न असफल होते जा रहे हैं। मेरे हृदय से रह-रहकर पीड़ाभरी आवाज़ उत्पन्न होती है। परमात्मा से मिलने और इस संसार को छोड़कर वापस जाने की मेरी इच्छा बार-बार मुझे घेर रही है पर वह इच्छा चाहकर भी पूरी नहीं हो रही है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) ‘रस्सी कच्चे धागे की’ तथा ‘नाव’ में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(ख) कवयित्री के हृदय से बार-बार हूक क्यों उत्पन्न होती है ?
(ग) कवयित्री किस ‘घर’ में जाना चाहती है ?
(घ) वाख में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) पानी टपकने से क्या तात्पर्य है ?
(च) कवयित्री का घर कहाँ स्थित है ?
(छ) ‘कच्चे सकोरे’ से क्या आशय है ?
उत्तर :
(क) ‘रस्सी कच्चे धागे की’ का अर्थ कमज़ोर और नाशवान रूपी रस्सी साँस से है जो हर समय चल तो रही हैं पर पता नहीं कब तक वे चलेगी। ‘नाव’ शब्द का अर्थ जीवन रूपी नौका से है।
(ख) कवयित्री हर क्षण ईश्वर से एक ही प्रार्थना करती है कि वह परमात्मा की शरण प्राप्त कर इस जीवन को त्याग दे पर ऐसा हो नहीं रहा।
(ग) इसी कारण उसके हृदय से बार- बार हूक उत्पन्न होती है।
(घ) कवयित्री परमात्मा के पास जाना चाहती है। यह संसार तो उसका घर नहीं है। उसका घर तो वह है जहाँ परमात्मा है। कवयित्री ने अपने रहस्यवादी वाख में परमात्मा की शरण प्राप्त करने की कामना की है। वह भवसागर को पार कर जाना चाहती है पर ऐसा संभव नहीं हो पा रहा। प्रतीकात्मक शब्दावली का प्रयोग सहज रूप से किया गया है। कश्मीरी से अनूदित वाख में तत्सम शब्दावली की अधिकता है। लयात्मकता का गुण विद्यमान है। शांत रस और प्रसाद गुण ने कथन को सरसता प्रदान की है। पुनरुक्ति, प्रकाश, रूपक, प्रश्न और अनुप्रास अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है
(ङ) ‘पानी टपकने’ से तात्पर्य धीरे-धीरे समय का व्यतीत होना है। प्राणी जान भी नहीं पाता और उसकी आयु समाप्त हो जाती है।
(च) कवयित्री का घर परमात्मा के पास है। वही परमधाम है और उसे वहीं जाना है।
(छ) ‘कच्चे सकोरे’ से तात्पर्य मानवीय शरीर से है जो स्वाभाविक रूप से कमज़ोर है और निश्चित रूप से नष्ट हो जाने वाला है।

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2. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं
न खाकर बनेगा अहंकारी,
सम खा तभी होगा समभावी
खुलेगी साँकल बंद. द्वार की।

शब्दार्थ : अहंकारी – घमंडी। सम (शम ) – अंतःकरण तथा बाह्य-इंद्रियों का निग्रह। समभावी – समानता की भावना। खुलेगी साँकल बंद द्वार की – मन मुक्त होगा; चेतना व्यापक होगी।

प्रसंग : प्रस्तुत वाख हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ से लिया गया है जो कश्मीरी संत ललद्यद के द्वारा रचित है। मानव परमात्मा की प्राप्ति के लिए तरह-तरह के आडंबर रचता है पर उसे परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती। परमात्मा की प्राप्ति तो मानव की चेतना अंतःकरण से समभावी होने पर ही व्यापक हो सकती है।

व्याख्या : कवयित्री कहती है कि हे मानव ! यह संसार तो मायात्मक है। तू इसके भ्रम में रहकर परमात्मा की प्राप्ति नहीं कर पाएगा। सुखों की प्राप्ति करता हुआ और नित तरह-तरह के व्यंजन खाकर तू कुछ नहीं पाएगा। यदि बाह्याडंबर करता हुआ तू व्रत के नाम पर कुछ नहीं खाएगा तो स्वयं को संयमी मानकर तू अहंकार का भाव अपने मन में लाएगा। स्वयं को योगी- तपी मानने लगेगा। यदि तू परमात्मा को वास्तव में पाना चाहता है तो अपने अंतःकरण और बाह्य – इंद्रियों को अपने बस में कर; अपने तन – मन पर नियंत्रण कर। जब समानता की भावना तेरे भीतर उत्पन्न होगी तभी तेरा मन मुक्त होगा, तेरे मन रूपी बंद द्वार की साँकल खुलेगी, तेरी चेतना व्यापक होगी। बाह्याडंबरों से तुझे कुछ नहीं मिलेगा।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) कवयित्री ने ‘न खाकर बनेगा अहंकारी’ कहकर किस तथ्य की ओर संकेत किया है ?
(ख) ‘सम खा’ से क्या तात्पर्य है ?
(ग) कवयित्री किस द्वार के बंद होने की बात कहती है ?
(घ) वाख में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) ‘खा-खाकर’ कुछ प्राप्ति क्यों नहीं हो पाती ?
(च) मनुष्य अहंकारी क्यों बनता है ?
(छ) कवयित्री क्या प्रेरणा देना चाहती है ?
(ज) ‘समभावी’ किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
(क) कवयित्री ने इस तथ्य की ओर संकेत किया है कि मानव ब्रह्म की प्राप्ति के लिए तरह-तरह के बाह्याडंबर रचते हैं। भूखे रहकर व्रत करते हैं पर इससे उनमें संयमी बनने और अपने शरीर पर नियंत्रण प्राप्त करने का अहंकार मन में आ जाता है।
(ख) ‘सम खा’ से तात्पर्य मन का शमन करने से है। इससे अंत: करण और बाह्य इंद्रियों के निग्रह का संबंध है।
(ग) कवयित्री मानव मन के मुक्त न होने तथा उसकी चेतना के संकुचित होने को ‘द्वार के बंद होने से’ संबोधित करती है।
(घ) संत ललद्यद जीवन में बाह्याडंबरों को महत्त्व न देकर समभावी बनने का आग्रह करती है। उनके काव्य उपदेशात्मकता की प्रधानता है। कश्मीरी से अनूदित वाख में संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है। पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक और अनुप्रास अलंकारों का सहज प्रयोग किया गया है। लाक्षणिकता ने कथन को गहनता प्रदान की है। प्रसाद गुण और शांत रस की प्रधानता है। प्रतीकात्मकता ने कथन को गंभीरता प्रदान की है।
(ङ) ‘खा-खाकर ‘ कुछ प्राप्त नहीं हो पाता। यह भोग-विलास का प्रतीक है। जीवात्मा जितनी भोग-विलास में लिप्त होती जाती है उतनी ही परमात्मा से दूर होती जाती है। वह ईश्वर की ओर अपना मन लगा ही नहीं पाता और ईश्वर को पाए बिना वह कुछ नहीं पाता।
(च) इंद्रियों पर संयम रखने और तपस्या का जीवन जीने से मनुष्य स्वयं को महात्मा और त्यागी मानने लगता है और इससे वह अहंकारी बनता है।
(छ) कवयित्री प्रेरणा देना चाहती है कि मानव को अपने जीवन में सहजता बनाए रखनी चाहिए। संयम का भाव श्रेष्ठ हो जाता है और इसी से वह ईश्वर की ओर उन्मुख हो सकता है।
(ज) समभावी वह है जो भोग और त्याग के बीच के रास्ते पर आगे बढ़े।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

3. आई सीधी राह से, गई न सीधी राह,
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
जेब टटोली कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई ?

शब्दार्थ : गई न सीधी राह – जीवन में सांसारिक छल-छद्मों के रास्ते चलती रही। सुषुम-सेतु – सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल; हठयोग के अनुसार शरीर की तीन प्रधान नाड़ियों (इंगला, पिंगला और सुषुम्ना) में से जो नासिका के मध्य भाग (ब्रहमरंध्र) में स्थित है। जेब टटोली – आत्मालोचन किया। कौड़ी न पाई – कुछ प्राप्त न हुआ। माझी – ईश्वर गुरु; नाविक। उत्तराई – सत्कर्म रूपी मेहनताना।

प्रसंग : प्रस्तुत वाख हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित है जिसकी रचयिता कश्मीरी संत ललद्यद हैं। परमात्मा जब मानव को धरती पर भेजता है तो वह साफ़-स्वच्छ मन का होता है पर दुनियादारी उसे बिगाड़ देती है। वह सत्कर्मों से दूर हो जाता है जिस कारण वह मन-ही-मन भयभीत होता है कि परमात्मा के पास जाने पर वह वहाँ क्या बताएगा ? भवसागर से पार जाने के लिए सत्कर्म ही सहायक होते हैं।

व्याख्या : कवयित्री दुखभरे स्वर में कहती है कि जब परमात्मा ने मुझे संसार में भेजा था तो मैं सीधी राह से यहाँ आई थी पर मोह माया से ग्रसित इस संसार में सीधी राह पर न चली। मैं सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल पर खड़ी रही और मेरा जीवन रूपी दिन बीत गया अर्थात हठयोग ने मुझे रास्ता तो दिखाया था पर मैं ही अज्ञान वश उस मार्ग पर पूरी तरह चल नहीं पाई। मैं माया रूपी संसार में उलझ गई।

अब जब इस संसार को छोड़कर वापस जाने का समय आया है तो मेरे द्वारा आत्मालोचन करने से पता चला कि मैंने इस संसार कुछ नहीं पाया; जीवनभर भक्ति नहीं की इसलिए मुझे उसका फल नहीं दिया। मुझे नहीं पता कि अब मैं उतराई के रूप में नाविक रूपी ईश्वर को क्या दूँगी। भाव है कि मैंने अपना जीवन व्यर्थ ही गवाँ दिया है और मेरे पास सत्कर्म रूपी मेहनताना भी नहीं है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) ‘गई न सीधी राह’ से क्या तात्पर्य है ?
(ख) ‘माझी’ और ‘उतराई’ क्या है ?
(ग) कवयित्री को जेब टटोलने पर कौड़ी भी क्यों न मिली ?
(घ) साख में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) मनुष्य मन-ही-मन भयभीत क्यों हो जाता है ?
(च) ‘सुषुम-सेतु’ क्या है ?
(छ) कवयित्री का दिन कैसे व्यतीत हो गया ?
उत्तर :
(क) ‘गई न सीधी राह’ से तात्पर्य है कि संसार के मायात्मक बंधनों ने मुझे अपने बस में कर लिया और मैं चाहकर भी परमात्मा को प्राप्त करने के लिए भक्ति मार्ग पर नहीं बढ़ी। मैंने सत्कर्म नहीं किया और दुनियादारी में उलझी रही।
(ख) ‘माझी’ ईश्वर है; गुरु है जिसने इस संसार में जीवन दिया था और जीने की राह दिखाई थी। ‘उतराई’ सत्कर्म रूपी मेहनताना है जो संसार को त्यागते समय मुझे माझी रूपी ईश्वर को देना होगा।
(ग) कवयित्री ने माना है कि उसने कभी आत्मालोचन नहीं किया; सत्कर्म नहीं किए। केवल मोह-माया के संसार में उलझी रही इसलिए अब उसके पास कुछ भी ऐसा नहीं है जो उसकी मुक्ति का आधार बन सके।
(घ) संत कवयित्री ने स्वीकार किया है कि वह जीवनभर मोह-माया में उलझकर परमात्मा तत्व को नहीं पा सकी। उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया जो उसे भक्ति मार्ग में उच्चता प्रदान करा सकता। वह तो सांसारिक छल-छद्मों की राह पर ही चलती रही। प्रतीकात्मकता ने कवयित्री के कथन को गहनता प्रदान की है। अनुप्रास और स्वरमैत्री ने कथन को सरसता दी है। लाक्षणिकता के प्रयोग ने वाणी को गहनता – गंभीरता से प्रकट किया है। ‘सुषुम – सेतु’ संतों के द्वारा प्रयुक्त विशिष्ट शब्द है।
(ङ) परमात्मा जब मानव को धरती पर भेजता है तो वह साफ़-स्वच्छ मन का होता है पर दुनियादारी उसे बिगाड़ देती है। वह सत्कर्मों से दूर हो जाता है जिसके कारण वह अपने मन-ही-मन भयभीत होता है कि परमात्मा के पास वापस जाने पर वहाँ क्या बताएगा ? भवसागर से पार जाने के लिए सद्कर्म ही सहायक होते हैं।
(च) हठयोगी सुषुन्ना नाड़ी के माध्यम से कुंडलिनी जागृत कर परमात्मा को पाने की योग साधना करते हैं। ‘सुषुम-सेतु’ सुषुन्ना नाड़ी की साधना को कहते हैं।
(छ) कवयित्री ने अपना दिन (जागृत अवस्था) व्यर्थ की हठयोग-साधना में व्यतीत कर दिया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

4. थल-थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान ॥

शब्दार्थ : थल-थल – सर्वत्र। शिव – ईश्वर। भेद – अंतर। साहिब – स्वामी, ईश्वर।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ से अवतरित है जिसे ‘वाख’ के अंतर्गत संकलित किया गया है। संत कवयित्री ललद्यद ने शैव दर्शन के आधार पर चिंतन किया था। वह मानती है कि परमात्मा शिव रूप में संसार के कण-कण में विद्यमान है।

व्याख्या : कवयित्री कहती है कि शिव तो इस संसार में सर्वत्र विद्यमान हैं। प्रभु का स्वरूप तो प्रत्येक वस्तु के कण-कण में सिमटा हुआ है। आप चाहे हिंदू हैं या मुसलमान – उस परमात्मा को जानने पहचानने में कोई अंतर न करो। यदि आप ज्ञानवान हैं तो स्वयं को पहचानो। स्वयं को पहचानना ही परमात्मा को पहचानना है क्योंकि परमात्मा ही तो आपके जीवन का आधार है। वही आपके भीतर है और आपके जीवन की गति का आधार है। ईश्वर सर्वव्यापक है इसलिए धर्म के आधार पर उसमें भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। आत्मज्ञान ही सर्वोपरि है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवयित्री के द्वारा परमात्मा के लिए ‘शिव’ प्रयुक्त किए जाने का मूल आधार क्या है ?
(ख) ‘भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां’ में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(ग) ईश्वर वास्तव में कहाँ है ?
(घ) वाख में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) ईश्वर की पहचान कैसे हो सकती है ?
(च) कवयित्री सांप्रदायिक भेद-भाव को दूर किस प्रकार करती है ?
(छ) ज्ञानी को क्या जानने की प्रेरणा दी गई है ?
(ज) कवयित्री ईश्वर के विषय में क्या मानती थी ?
उत्तर :
(क) कवयित्री शैव मत से संबंधित शैव यौगिनी थी। उसके चिंतन का आधार शैव दर्शन था इसलिए उसने परमात्मा के लिए ‘शिव’ प्रयुक्त किया है।
(ख) परमात्मा सभी के लिए एक ही है। चाहे हिंदू हों या मुसलमान- उनके लिए परमात्मा के स्वरूप के प्रति कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। उपदेशात्मक स्वर में यही स्पष्ट किया गया है कि धर्म के नाम पर परमात्मा के प्रति आस्था नहीं बदलनी चाहिए।
(ग) ईश्वर वास्तव में संसार के कण-कण में समाया हुआ है। वह तो हर प्राणी के शरीर के भीतर भी है इसलिए उसे कहीं बाहर ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं है। उसे तो अपने भीतर से ही पाने की कोशिश की जानी चाहिए।
(घ) कवयित्री ने भेदभाव का विरोध तथा ईश्वर की सर्वव्यापकता का बोध कराने का प्रयास उपदेशात्मक स्वर में किया है और माना है कि ईश्वर संसार के कण-कण में विद्यमान है। उसे पाने के लिए आत्मज्ञान की आवश्यकता है। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास अलंकारों का सहज प्रयोग किया गया है। अभिधा शब्द – शक्ति ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। शांत रस और प्रसाद गुण विद्यमान हैं। अनुदित अवतरण में तत्सम शब्दावली का प्रयोग अधिक है।
(ङ) ईश्वर की पहचान अपनी आत्मा को पहचानने से संभव हो सकती है। आत्मज्ञान ही उसकी प्राप्ति का एकमात्र रास्ता है।
(च) कवयित्री सर्वकल्याण के भाव से सांप्रदायिक भेद-भाव को दूर करती है। उसके अनुसार हिंदू-मुसलमान दोनों शिव आराधना से आपसी दूरियाँ मिटा सकते हैं।
(छ) कवयित्री के द्वारा व्यक्ति को अपने आपको पहचानने की प्रेरणा दी गई है। अपने भीतर स्थित आत्मा को पहचानने के पश्चात ही ईश्वर को पाया जा सकता है।
(ज) संत कवयित्री ललद्यद ने शैव दर्शन के आधार पर चिंतन किया था। वह मानती है कि परमात्मा शिव रूप में संसार के कण-कण में विद्यमान है।

वाख Summary in Hindi

कवयित्री – परिचय :

ललद्यद कश्मीरी भाषा में रचना करनेवाली प्रथम कवयित्री थी जिन्होंने आज से लगभग 700 वर्ष पहले कश्मीरी जनता पर अपने विचारों से गहरा प्रभाव छोड़ा था। उनकी वाणी से तत्कालीन समाज ही प्रभावित नहीं हुआ था बल्कि अब भी उनकी रचनाएँ कश्मीर की जनता में गाई जाती हैं।

इनके जीवन के विषय में अन्य संतों के समान प्रामाणिक जानकारी बहुत कम मात्रा में प्राप्त हुई है। इनका जन्म कश्मीर स्थित पांपोर के सिमपुरा गाँव में लगभग 1320 ई० में हुआ था। इनका देहावसान सन् 1391 ई० के आसपास माना जाता है। इन्हें केवल ललद्यद नाम से ही नहीं जाना जाता बल्कि लल्लेश्वरी, लाल्ल योगेश्वरी, ललारिका आदि नामों से भी जाना जाता है। इनके द्वारा रचित काव्य का वहाँ के लोक जीवन पर गहरा प्रभाव है। इनकी काव्य- शैली ‘वाख’ नाम से प्रसिद्ध है।

जिस प्रकार हिंदी में कबीर के दोहे, मीराबाई के पद, तुलसीदास की चौपाइयाँ और रसखान के सवैये प्रसिद्ध हैं उसी प्रकार ललद्यद के ‘वाख’ प्रसिद्ध हैं। इन्होंने इनके द्वारा तत्कालीन समाज में प्रचलित भेद-भावों और धार्मिक संकीर्णताओं को दूर करने का प्रयास किया था। इन्होंने समाज को भक्ति की उस राह पर चलाने में सफलता प्राप्त की थी जो अपने-आप में उदार थीं। इनकी भक्ति का जन-जीवन से संबंध था। इन्होंने धार्मिक आडंबरों का विरोध किया था तथा प्रेम को मानव जीवन का सबसे बड़ा उपहार माना था।

इन्होंने लोक जीवन के तत्वों से प्रेरित होकर तत्कालीन पंडिताऊ भाषा संस्कृत और दरबार के बोझ से दबी फ़ारसी को अपनी कविता के लिए स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने इनके स्थान पर सामान्य जनता की भाषा का प्रयोग करते हुए अपने भावों को अभिव्यक्त किया था। भाषा और विषय की सरलता और सहजता के कारण शताब्दियों बाद भी इनकी वाणी जीवित है। इनके भाव और भाषा की प्रासंगिकता इसी तथ्य से समझी जा सकती है कि ये आधुनिक कश्मीरी भाषा की प्रमुख आधार स्तंभ स्वीकार की जाती हैं।

ललद्यद के ‘वाख’ भक्ति भाव से परिपूर्ण हैं। वे जीवन को अस्थिर मान परम ब्रह्म को पाना चाहती थीं। वे शैवयोगिनी थी। इनका चिंतन का आधार शैवधर्म था। इनकी कविता केवल पुस्तक वर्णित धर्म नहीं है बल्कि इसमें लोगों के विश्वास – विचार और आशा-निराशा का स्पंदन है। इन्होंने शैवधर्म की दीक्षा अपने कुलगुरु बूढ़े सिद्ध श्री कंठ से ली थी। इनका काव्य जीवन और संसार को असत्य न मानकर उसमें आस्था रखना सिखाता है। ये कबीर की तरह क्रांतिकारी व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं। इन्होंने लोगों को समझाया था कि बाह्याडंबरों का धर्म और ईश्वर से कोई संबंध नहीं है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

कविता का सार :

कश्मीरी भाषा की प्रथम संत कवयित्री ललद्यद ने भक्ति के क्षेत्र में व्यापक जन-चेतना को जगाने में सफलता प्राप्त की थी। उनके पहले वाख में ईश्वर-प्राप्ति के लिए किए जानेवाले प्रयासों की व्यर्थता की चर्चा की गई है। अपनी जीवन रूपी नाव को कच्चे धागे की रस्सी से खींच रही है पर पता नहीं ईश्वर उसके प्रयास को सफलता प्रदान करेंगे या नहीं। उसके सारे प्रयत्न असफल सिद्ध हो रहे हैं। वह परमात्मा के घर जाना चाहती है पर जा नहीं पा रही। दूसरे वाख में बाह्याडंबरों का विरोध करते हुए कहा गया है कि अंतःकरण से समभावी होने पर ही मनुष्य की चेतना व्यापक हो सकती है।

माया के जाल में व्यक्ति को कम-से-कम लिप्त होना चाहिए। व्यर्थ खा-खाकर कुछ प्राप्त नहीं होगा जबकि कुछ न खाकर व्यर्थ अहंकार बढ़ेगा। जीवन से मुक्ति तभी प्राप्त होगी जब बंद द्वार की साँकल खुलेगी। तीसरे वाख में माना गया है कि दुनिया रूपी सागर से पार जाने के लिए सत्कर्म ही सहायक सिद्ध होते हैं। ईश्वर की प्राप्ति के लिए अनेक साधक हठयोगी जैसी कठिन साधना करते हैं पर इससे लक्ष्य की प्राप्ति सरल नहीं हो जाती। चौथे वाख में भेदभाव का विरोध और ईश्वर की सर्वव्यापकता को प्रकट किया गया है। ईश्वर सभी के भीतर विद्यमान है पर मानव स्वयं उसे पहचान नहीं पाता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

JAC Class 9 Hindi साखियाँ एवं सबद Textbook Questions and Answers

साखियाँ – 

प्रश्न 1.
‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
‘मानसरोवर’ संतों के द्वारा प्रयुक्त प्रतीकात्मक शब्द है जिसका अर्थ हृदय के रूप में लिया जाता है जो भक्ति भावों से भरा हुआ हो।

प्रश्न 2.
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है ?
उत्तर :
सच्चा प्रेमी संसार की सभी विषय-वासनाओं को समाप्त कर देने की क्षमता रखता है। वह बुराई रूपी विष को अमृत में बदल देता है।

प्रश्न 3.
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है?
उत्तर:
कबीर की दृष्टि में ऐसा ज्ञान अति महत्त्वपूर्ण है जो हाथी के समान समर्थ और शक्तिमान है। जो भक्ति मार्ग की ओर प्रवृत्त होकर भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ता है; जीवात्मा को परमात्मा की प्राप्ति कराता है और राह में व्यर्थ की आलोचना करने वालों की जरा भी परवाह नहीं करता।

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प्रश्न 4.
इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है ?
उत्तर :
इस संसार में सच्चा संत वही है जो पक्ष-विपक्ष के विवाद में पड़े बिना सबको एकसमान समझता है; वह लड़ाई-झगड़े से दूर रहकर ईश्वर की भक्ति में अपना ध्यान लगाता है और दुनियादारी के झूठे झगड़ों में कभी नहीं बढ़ता।

प्रश्न 5.
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस प्रकार की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है ?
उत्तर :
मनुष्य ईश्वर को पाना चाहता है पर वह सच्चे और पवित्र मन से ऐसा नहीं करना चाहता। वह दूसरों के बहकावे में आकर आडंबरों के जंजाल को स्वीकार कर लेता है तथा धर्म के अलग-अलग आधार बना लेता है। हिंदू काशी से तो मुसलमान काबा से जुड़कर ब्रह्म को पाना चाहते हैं। वे उस ब्रह्म को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारकर स्वयं को दूसरों से अलग कर लेते हैं। वे भूल जाते हैं कि ब्रहम एक ही है। जिस प्रकार मोटे आटे से मैदा बनता है पर लोग उन दोनों को अलग मानने लगते हैं। उसी प्रकार मनुष्य अलग-अलग धर्म स्वीकार कर परमात्मा के स्वरूप को भी भिन्न-भिन्न मानने लगते हैं। जन्म से कोई छोटा-बड़ा, अच्छा-बुरा नहीं होता। हर व्यक्ति अपने कर्मों से जाना-पहचाना जाता है और उसी के अनुसार फल प्राप्त करता है, समाज में अपना नाम बनाता है। किसी ऊँचे वंश में उत्पन्न हुआ व्यक्ति यदि बुरे कर्म करे तो वह ऊँचा नहीं कहलाता। नीच कर्म करने वाला नीच ही कहलाता है।

प्रश्न 6.
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है न कि उसके कुल से। ऊँचे कुल में उत्पन्न होनेवाला व्यक्ति यदि नीच कर्म करता है तो उसे ऊँचा नहीं माना जा सकता। वह नीच ही कहलाता है। सोने के बने कलश में यदि शराब भरी हो तो भी उसकी निंदा ही की जाती है। सज्जन उसकी प्रशंसा नहीं करते। व्यक्ति अपने कर्मों से ऊँचा बनता है। किसी भी कुल में जनमा व्यक्ति यदि पवित्र कर्म तथा सत्कर्म करता है तो वह ऊँचा व महान बनता है।

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प्रश्न 7.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
उत्तर :
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज- दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि ॥
देखिए साखी संख्या तीन के साथ दिया गया सराहना संबंधी प्रश्न ‘घ’।

सबद –

प्रश्न 8.
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है ?
उत्तर
मनुष्य ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उसे मंदिर-मस्जिद में ढूँढ़ता है। वह उसे काबा में ढूँढ़ता है, कैलाश पर्वत पर ढूँढ़ता है, वह उसे क्रिया-कर्म में ढूँढ़ता है, योग-साधनाओं में पाना चाहता है। वह उसे वैराग्य मार्ग पर चलकर पाना चाहता है।

प्रश्न 9.
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है ?
उत्तर :
कबीर ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है जो समाज में युगों से प्रचलित हैं। विभिन्न धर्मों को मानने वाले अपने-अपने ढंग से धार्मिक स्थलों पर पूजा-अर्चना करते हैं। हिंदू मंदिरों में जाते हैं तो मुसलमान मस्जिदों में। कोई ब्रह्म की प्राप्ति के लिए तरह-तरह के क्रिया-कर्म करता है तो कोई योग-साधना करता है। कोई वैराग्य को अपना लेता है पर इससे उसकी प्राप्ति नहीं होती। कबीर का मानना है कि ईश्वर हर प्राणी में स्वयं बसता है। इसलिए उसे कहीं बाहर ढूँढ़ने का प्रयत्न पूरी तरह व्यर्थ है।

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प्रश्न 10.
कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ क्यों कहा है?
उत्तर :
ईश्वर हर प्राणी में है, वह कहीं भी बाहर नहीं है। वह तो उनकी स्वाँसों की साँस में है। जब तक जीव की साँस चलती है तब तक वह जीवित है, प्राणवान है और सभी प्राणियों में ब्रह्म का वास है। इसीलिए कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ कहा है।

प्रश्न 11.
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की ?
उत्तर :
सामान्य हवा जीवन के लिए उपयोगी है। वह जीवन का आधार है पर उसमें इतनी क्षमता नहीं होती कि दृढ़ता से बनी किसी छप्पर की छत को उड़ा सके, उसे नष्ट-भ्रष्ट कर सके। कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना आँधी से की है ताकि उससे भ्रम रूपी छप्पर उड़ जाए। माया उसे सदा के लिए बाँधकर न रख सके। ज्ञान के द्वारा ही मन की दुविधा मिटती है, कुबुद्धि का घड़ा फूटता है।

प्रश्न 12.
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
ज्ञान की आँधी से भक्त के जीवन के भ्रम दूर हो जाते हैं। माया उसे बाँधकर नहीं रख सकती। उसके मन की दुविधा मिट जाती है। वह मोह-माया के बंधनों से छूट जाता है। अज्ञान और विषय-वासनाएँ मिट जाती हैं, उनका जीवन में कोई स्थान नहीं रह जाता। शरीर कपट से रहित हो जाता है। ईश्वर के प्रेम और अनुग्रह की वर्षा होने लगती है। ज्ञान रूपी सूर्य के उदय हो जाने से अज्ञान का अंधकार क्षीण हो जाता है। परमात्मा की भक्ति का सब तरफ उजाला फैल जाता है।

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प्रश्न 13.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा
(ख) आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
उत्तर :
(क) जब ज्ञान रूपी आँधी बहने लगती है तब माया के द्वारा जीव को बहुत देर तक बाँधकर नहीं रखा जा सकता। इससे मन के दुविधा रूपी दोनों खंभे गिर जाते हैं जिन पर भ्रम रूपी छप्पर टिकता है। छप्पर का आधारभूत मोह रूपी खंभा टूट गया जिस कारण तृष्णा रूपी छप्पर भूमि पर गिर गया।
(ख) ज्ञान की आँधी के बाद भगवान के प्रेम और अनुग्रह की जो वर्षा हुई उससे भक्त पूरी तरह प्रभु-प्रेम के रस में भीग गए। उनका अज्ञान पूरी तरह मिट गया।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 14.
संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
कबीर निर्गुण काव्य-धारा के संत थे। जिन्होंने बड़े स्पष्ट रूप से अपने विचारों को प्रकट किया था। संकलित साखियों और पदों के आधार पर उनके धार्मिक और सांप्रदायिक भेद-भाव संबंधी विचार प्रकट किए जा सकते हैं। उन्होंने प्रेम के महत्त्व, संत के लक्षण, ज्ञान की महिमा, बाह्याडंबरों का विरोध आदि का वर्णन अपनी साखियों तथा पदों में किया है। वे मानते हैं कि जब हृदय में भक्ति- भाव पूर्ण रूप से भरे होते हैं तब हंस रूपी आत्माएँ कहीं भी और नहीं जाना चाहतीं बल्कि वहीं से मुक्ति रूपी मोतियों को चुनना चाहती हैं।

जब भक्त परस्पर मिल जाते हैं तो प्रभु भक्ति परिपक्व हो जाती है, तब उन्हें मायात्मक संसार के प्रति कोई रुचि नहीं रह जाती है। तब संसार की सभी विषय-वासनाएँ मिट जाती हैं। मानव को ज्ञान रूपी हाथी पर सवार होकर भक्ति मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते जाना चाहिए। उसे आलोचना करनेवालों की कदापि परवाह नहीं करनी चाहिए। संत जन कभी पक्ष-विपक्ष के विवाद में नहीं पड़ते। जो व्यक्ति निरपेक्ष होकर ईश्वर के नाम में लीन हो जाते हैं वही चतुर ज्ञानी होते हैं। हिंदू और मुसलमान ईश्वर के वास्तविक सत्य को समझे बिना एक-दूसरे के प्रति दुराग्रह करते हैं।

मनुष्य को इनसे दूर रहकर सार्वभौम सत्य को समझना चाहिए। परमात्मा शाश्वत सत्य है। उसमें कोई भेद नहीं पर अलग-अलग धर्मों को माननेवाले परमात्मा के स्वरूप में भी भेद करते हैं। इस संसार में व्यक्ति अपनी करनी से बड़ा बनता है न कि अपने ऊँचे परिवार से। ऊँचे परिवार में उत्पन्न सदा ऊँचा नहीं होता। मानव परमात्मा को प्राप्त करने के लिए तरह- तरह के रास्ते अपनाते हैं। वे बाह्याडंबरों को अपनाते हैं पर इससे परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती। परमात्मा न तो मंदिर में बसता है और न ही मस्जिद में।

वह क्रिया-कर्मों, योग-साधना और वैराग्य से भी प्राप्त नहीं होता। वह तो हर प्राणी में है। यदि उसे प्राप्त करने की भावना हो तो वह मन की पवित्रता से पाया जा सकता है। जब हृदय में ज्ञान रूपी आँधी चलने लगती है तो सभी प्रकार के भ्रम दूर हो जाते हैं। और माया जीव को बाँधकर नहीं रख पाती। दुविधाएँ समाप्त हो जाती हैं। जब परमात्मा के प्रेम की वर्षा होती है तो भक्त उसमें पूरी तरह से भीग जाते हैं। ज्ञान का सूर्य उदित हो जाने पर अज्ञान का अंधकार मिट जाता है और परमात्मा की भक्ति का सर्वत्र उजाला हो जाता है।

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भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 15.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए –
पखापखी, अनत, जोग, जुगति, बैराग, निरपख।
उत्तर :

  • घखापखी – पक्ष-विप
  • अनत – अन्यत्र
  • जोग – योग
  • चुताति – युक्ति
  • बैराग – वैराग्य
  • निरपख – निरपेक्ष

JAC Class 9 Hindi साखियाँ एवं सबद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
साखी का क्या अर्थ है ? कबीर के दोहे साखी क्यों कहलाते हैं ?
उत्तर :
साखी’ शब्द ‘साक्षी’ का तद्भव रूप है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-आँखों से देखा गवाह या गवाही। कबीर अशिक्षित थे, जिसे उन्होंने ‘मसि कागद छुऔ नहिं, कलम गहि नहिं हाथ’ कहकर स्वयं स्वीकार किया है। उन्होंने अपने परिवेश में जो कुछ घटित हुआ उसे स्वयं अपनी आँखों से देखा और उसे अपने ढंग से व्यक्त किया। इसे साक्षात्कार का नाम भी दिया जा सकता है। स्वयं कबीर के शब्दों में ‘साखी आँखी ज्ञान की’, ‘कबीर के दोहे साखी इसलिए कहलाते हैं क्योंकि इनमें कबीर की कल्पना मात्र का उल्लेख नहीं है बल्कि केवल दो-दो पंक्तियों में जीवन का सार व्यंजित किया गया है। उनका साखियों में व्यंजित ज्ञान ‘पोथी पंखा’ नहीं है प्रत्युत’ आँखों देखा’ है। यह भी माना जाता है कि इनकी साखियों का सीधा संबंध गुरु के उपदेशों से है। कबीर ग्रंथावली में साखियों को अनेक उपभोगों में बाँटा गया है।

प्रश्न 2.
पद के लिए ‘सबद’ शब्द का प्रयोग कबीर की वाणी में किन अर्थों में हुआ है ? कबीर के पदों में किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
कंबीर के ‘बीजक’ में सबद भाग पदों में कहा गया है। ये सभी गेयता के गुणों से संपन्न हैं और इनकी रचना विभिन्न राग-रागिनियों के आधार पर हुई है। इनमें कबीर के दर्शन – चिंतन का विस्तृत अंकन हुआ है। ‘सबद’ का प्रयोग दो अर्थों में हुआ है- एक तो पद के रूप में और दूसरा परम तत्व के अर्थ में।

पदों के द्वारा कबीर के दृष्टिकोण बड़े सुंदर ढंग से व्यंजित हुए हैं। इनमें उन्होंने आत्मा के ज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु के प्रति श्रद्धा को आवश्यक बतलाया है क्योंकि – ‘ श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्।’ इन्होंने पदों में माया संबंधी विचारों को गंभीरतापूर्वक व्यक्त किया है और गुरु को गोविंद से भी बड़ा माना है। पदों में ब्रह्म संबंधी विचारों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। पदों में कबीर ने रहस्यवाद के प्रकाशन के साथ-साथ तत्कालीन समाज की झलक भी प्रस्तुत की गई है।

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प्रश्न 3.
कबीर की भाषा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
कबीर अशिक्षित थे-ऐसा उन्होंने स्वयं ‘मसि कागद छुऔ नहिं’ कहकर स्वीकार किया है। संभवतः इसीलिए उन्होंने किसी परिनिष्ठित भाषा का प्रयोग अपनी काव्य-रचना के लिए नहीं किया। उन्होंने कई भाषाओं के शब्दों को अपने काव्य में व्यवहृत किया, जिस कारण उनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ अथवा ‘खिचड़ी’ कहा जाता है।

कबीर की भाषा के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। कबीर ने स्वयं अपनी भाषा के विषय में कहा है –

बोली हमारी पूरब की, हमें लखै नहिं कोय।
हमको तो सोई लखे, धुर पूरब का होय ॥

भाषा का निर्णय प्रायः शब्दों के आधार पर नहीं किया जाता। इसका आधार क्रियापद संयोजक शब्द तथा कारक-चिह्न हैं, जो वाक्य विन्यास के लिए आवश्यक होते हैं। कबीर की भाषा में केवल शब्द ही नहीं, क्रियापद, कारक आदि भी अनेक भाषाओं के मिलते हैं, इनके क्रियापद प्राय: ब्रजभाषा और खड़ी बोली के हैं; कारक-चिह्न अवधी, ब्रज और राजस्थानी के हैं। वास्तव में उनकी भाषा भावों के अनुसार बदलती दिखाई देती है।

डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा उसे उसी रूप में भाषा से कहलवा दिया।” परंतु डॉ० रामकुमार वर्मा को इनकी भाषा में कोई विशेषता दिखाई नहीं देती। उनके अनुसार, “कबीर की भाषा बहुत अपरिष्कृत है, उसमें कोई विशेष सौंदर्य नहीं है।”
भाषा में भाव उत्पन्न करनेवाली अन्य शक्तियों में शब्द, अलंकार, छंद, गुण, मुहावरे, लोकोक्ति आदि प्रमुख हैं। कबीर की भाषा में वही स्वर व्यंजन प्रयुक्त हुए हैं जो आदि भारतीय आर्य भाषा से चले आए हैं। इन्होंने तत्सम शब्दों का पर्याप्त प्रयोग किया पर तद्भव शब्दों का प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक किया है। क्योंकि ये साहित्य के नहीं, जनसाधारण के कवि थे। इनके श्रोता साधारण वर्ग के थे। कबीर घुमक्कड़ प्रकृति के थे। अतः इन्होंने देशज शब्दों का काफ़ी प्रयोग किया है। पंजाबी और राजस्थानी के बहुत अधिक शब्दों को इन्होंने प्रयोग किया। साथ ही सामाजिक परिस्थितियों के कारण अरबी और फ़ारसी के बहुत-से शब्दों का प्रयोग किया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

प्रश्न 4.
कबीर की दृष्टि में ‘मानसरोवर’ और ‘सुभर जल’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
कबीर जी के अनुसार ‘मानसरोवर’ से अभिप्राय है कि किस भक्त का मन है जो भक्ति रूपी जल से पूरी तरह भरा हुआ है। ‘सुभर जल’ से अभिप्राय यह है कि भक्त का मन भक्ति के भावों से परिपूर्ण रूप से भर चुका है। वहाँ अब और किसी प्रकार के भावों की कोई जगह नहीं है अर्थात भक्ति के भावों से घिरे व्यक्ति के लिए सांसारिक विषय वासनाएँ कोई स्थान नहीं रखती हैं।

प्रश्न 5.
‘मुकुताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं ॥”
उपरोक्त व्यक्ति में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
यह पंक्ति कबीर द्वारा रचित है। इसमें दोहा छंद है। जिसमें स्वरमैत्री का सहज प्रयोग है इसी कारण लयात्मकता की सृष्टि हुई है। अनुप्रास और रूपक का सहज स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। लक्षणा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को गंभीरता और भाव प्रवणता प्रदान की है। शांत रस विद्यमान है। तद्भव शब्दों की अधिकता है।

प्रश्न 6.
विष कब अमृत में बदल जाता है ?
उत्तर :
मानव में छिपे पाप, बुरी भावना, विषय वासना रूपी विष उस समय अमृत बन जाते हैं, जब एक परम भक्त दूसरे परम भक्त से मिल जाता है। उस समय सभी प्रकार के अँधेरे समाप्त हो जाते हैं, मन के विकार दूर हो जाते हैं। इस तरह उनका विषय-वासना रूपी विष समाप्त हो जाता है और वे अमृत समान हो जाते हैं।

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प्रश्न 7.
कवि ने संसार के किस व्यवहार को अनुचित और उचित माना है ?
उत्तर :
कवि ने संसार के उस व्यवहार को अनुचित माना है जो व्यर्थ ही दूसरों की आलोचना करता रहता है। वह अपने इस व्यवहार के कारण अच्छे-बुरे में भेद नहीं कर पाता है।
उस मानव का व्यवहार उचित है जो दूसरों के बुरे व्यवहार को अनदेखा करके, अपना वक्त बरबाद किए बिना, भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ता हैं तथा सबके साथ एकसमान व्यवहार करता है।

प्रश्न 8.
‘स्वान रूप संसार है’ – ऐसा क्यों कहा गया है ? हमें क्या करना चाहिए ?
उत्तर :
कवि ने इस संसार को ‘स्वान’ कहा है अर्थात कुत्ते के समान कहा है क्योंकि इस संसार में मनुष्य का व्यवहार कुत्ते के समान है। वह स्वयं को ठीक मानता है और दूसरों को बुरा-भला कहता है। वह उनकी आलोचना करता रहता है।
हमें दूसरों के द्वारा की जानेवाली निंदा – उपहास की परवाह नहीं करनी चाहिए। अपने मन में आए भक्ति और साधना के भावों पर स्थिर रहकर कर्म करना चाहिए।

प्रश्न 9.
पखापखी क्या है ? इसमें डूबकर सारा संसार किसे भूल रहा है ?
उत्तर :
पखापखी से अभिप्राय यह है कि मनुष्य के मन में छिपे तेरे-मेरे, पक्ष-विपक्ष और परस्पर लड़ाई-झगड़े हैं। मनुष्य इस पखापखी के चक्कर में पड़कर ईश्वर के नाम और भक्तिभाव को भूल जाता है, मनुष्य को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसकी भक्ति और सत्कर्म उसके साथ जाएँगे।

प्रश्न 10.
कवि ने हिंदू-मुसलमान को मरा हुआ क्यों मान लिया है और उनके अनुसार जीवित कौन है ?
उत्तर :
कवि ने हिंदू-मुसलमान दोनों को मरा हुआ माना है क्योंकि दोनों ही ईश्वर के वास्तविक सच को समझे बिना आपसी भेद-भाव में उलझकर ईश्वर के नाम को भूल गए हैं। कवि के अनुसार केवल वही मनुष्य जीवित है, जो धार्मिक भेद-भावों से दूर रहकर, प्रत्येक प्राणी के हृदय में बसनेवाले चेतन राम और अल्लाह का स्मरण करता है।

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प्रश्न 11.
कबीर ने किस बात का विरोध किया है और मनुष्य को किस बात की प्रेरणा दी है ?
उत्तर :
कबीर ने अपनी रचना में इस बात का विरोध किया है कि ईश्वर के रूप, नाम, स्थल अनेक हैं, उनको मानने वाले भी अलग-अलग हैं। वास्तव में ईश्वर एक है उसमें कोई अंतर नहीं है। इसीलिए उन्होंने मनुष्य को आपस में हिंदू-मुसलमान का आपसी भेदभाव मिटाकर, ईश्वर के सच्चे रूप की भक्ति करने की प्रेरणा दी है।

प्रश्न 12.
ऊँचे कुल से क्या तात्पर्य है ? कबीर ने किस व्यक्ति को ऊँचा नहीं माना ? कोई व्यक्ति किस कारण से महान बन सकता है ?
उत्तर :
सामान्यतः आर्थिक और सामाजिक रूप से श्रेष्ठ और प्रतिष्ठित परिवारवाले व्यक्ति को ऊँचे कुल का माना जाता है। कबीर जी के अनुसार ऊँचे कुल में जन्म लेने पर कोई व्यक्ति ऊँचा नहीं बन जाता है। ऊँचा और महान बनने के लिए व्यक्ति को सत्कर्म और परमार्थ करने चाहिए तथा सद्गुणों को अपनाना तथा दुर्गुणों से बचाना चाहिए।

प्रश्न 13.
कबीर जी की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कबीर जी द्वारा रचित साखियों की भाषा सधुक्कड़ी है। इनमें ब्रज, खड़ी बोली, पूर्वी हिंदी तथा पंजाबी के शब्दों का सुंदर प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं इन्होंने आम बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग किया है। इनकी साखियों की भाषा में कहीं-कहीं बौद्धिकता के दर्शन भी गुण भी होते हैं। यह बौद्धिकता प्रायः उपदेशात्मक साखियों में द्रष्टव्य है। इनमें मुक्तक शैली का प्रयोग है। इनमें नीति तत्व के सभी विद्यमान हैं।

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प्रश्न 14.
‘कबीर जी एक समाज सुधारक भी थे।’ क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर :
कबीरदास एक संत, महात्मा, साधक और कवि थे। कबीरदास का काव्य समाज के लिए एक निश्चित संदेश लिए हुए है। उन्होंने अपने युग के समाज को सुधारने का प्रयास किया। उन्होंने धर्म के क्षेत्र में फैले अंध-विश्वासों, रूढ़ियों तथा कर्म-कांडों का विरोध किया। संत कबीर ने मानव – मात्र की एकता एवं भ्रातृत्व का प्रचार किया। उन्होंने जन्म पर आधारित ऊँच-नीच की मान्यताओं का खंडन किया। इस प्रकार संत कबीर एक समाज सुधारक ठहरते हैं।

प्रश्न 15.
कबीर जी ने किस प्रकार के ब्रह्म की आराधना की है ?
उत्तर :
कबीर जी निर्गुणवादी थे। उन्होंने कहीं भी सूरदास तथा तुलसीदास की भाँति निर्गुण- सगुण का समन्वय स्थापित करने का प्रयास नहीं किया। उनका ब्रह्म अविगत है। वह संसार के कण-कण में हैं। उसे कहीं बाहर ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकुताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं॥

शब्दार्थ : सुभर – अच्छी तरह भरा हुआ। केलि – क्रीड़ा, खेल। हंसा – हृदय रूपी जीव। मुकुताफल – मोती। उड़ि – उड़कर। अनत – अन्यत्र कहीं और।

प्रसंग – प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित ‘साखियाँ’ से ली गई है जिसके रचयिता संत कबीर हैं। जब मानव के हृदय में भक्ति का भाव पूरी तरह से भरा होता है तो उसका ध्यान किसी दूसरी तरफ़ नहीं जाता। वह तो भक्ति भाव में डूबा रहना चाहता है।

व्याख्या – कबीर कहते हैं कि हृदय रूपी मानसरोवर जब भक्ति के जल से पूरी तरह भरा हुआ होता है तो हंस रूपी आत्माएँ उसी में क्रीड़ाएँ करती हैं। वे आनंद में भरकर मुक्ति रूपी मोतियों को वहाँ से चुगते हैं। वे उड़कर, विमुख होकर अब अन्य साधनाओं को नहीं अपनाना चाहतीं। भाव है कि परमात्मा के नाम में डूब जाने वाले भक्त स्वयं को भक्ति भाव में ही लीन रखने के प्रयत्न करते हैं तथा सांसारिक विषय-वासनाओं से दूर ही रहते हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में ‘मानसरोवर’ और ‘सुभर जल’ का क्या गहन अर्थ है ?
(ख) कवि ने हंस किसे माना है ?
(ग) हंस कहीं भी उड़कर क्यों नहीं जाना चाहते ?
(घ) साखी में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) ‘मुकुताफल मुकता चुगैं’ से क्या तात्पर्य है ?
(च) इस साखी का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में मानसरोवर किसी भक्त का वह मन है जिसमें भक्ति रूपी जल पूरी तरह से भरा हुआ है। ‘सुभर जल’ से यह प्रकट होता है कि भक्त के हृदय में भक्ति भावों के अतिरिक्त किसी प्रकार के विकारी भाव नहीं हैं। वह भक्ति भाव से इतना अधिक भरा हुआ है कि वहाँ सांसारिक विषय-वासनाओं के समाने का कोई स्थान ही नहीं है।
(ख) कवि ने भक्तों, संतों और साधुओं को हंस माना है जो भक्ति भाव में डूबे रहते हैं।
(ग) भक्त रूपी हंस मुक्ति रूपी मोतियों को चुगने के कारण कहीं भी उड़कर नहीं जाना चाहते।
(घ) कबीर के द्वारा रचित साखी में दोहा छंद है जिसमें स्वरमैत्री का सहज प्रयोग किया गया है जिस कारण लयात्मकता की सृष्टि हुई है। अनुप्रास और रूपक का सहज स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। लक्षणा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को गंभीरता और भाव प्रवणता प्रदान की है। शांत रस विद्यमान है। तद्भव शब्दों की अधिकता है।
(ङ) इस कथन का तात्पर्य है कि जीवात्माएँ सांसारिकता से मुक्त होकर ईश्वर के नामरूपी मोती चुग रही हैं। वे प्रभु-भक्ति में लीन हैं।
(च) कवि ने ईश्वर के ध्यान में लीन भक्तों की मानसिक दशा का वर्णन किया है कि वे अपने हृदय में मुक्ति का आनंददायी फल अनुभव कर परम सुख और आत्मिक शुद्धता को अनुभव कर रहे हैं। वे पवित्रता से परिपूर्ण अपने मन को कहीं और नहीं लगाना चाहते।

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2. प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ॥

शब्दार्थ : विष – विषय-वासनाएँ।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित ‘साखियाँ’ से ली गई है जिसके रचयिता संत कबीर हैं। ईश्वर भक्त सदा अपने जैसे भक्त को ढूँढ़ता रहता है और जब भी उसे अपने उद्देश्य में सफलता मिल जाती है वह पूरी तरह से इस संसार से विमुख हो जाता है।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि मैं परमात्मा के नाम से प्रेम करनेवाला अपने जैसे किसी प्रभु के प्रेमी को खोज रहा हूँ पर मुझे कोई प्रभु – प्रेमी मिल नहीं रहा। जब एक भक्त को दूसरा भक्त मिल जाता है तो उसके लिए संसार की सभी विषय-वासनाएँ मिट जाती हैं। उनका विषय-वासना रूपी विष समाप्त हो जाता है तथा वे अमृत के समान हो जाती हैं। भाव है कि जब किसी प्रभु प्रेमी को अपने जैसा प्रभु – प्रेमी मिल जाता है तो उन दोनों की प्रभु भक्ति परिपक्व हो जाती है और फिर उन्हें माया से भरे संसार के प्रति कोई रुचि नहीं रह जाती।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कबीर ने प्रेमी किसे कहा है ?
(ख) प्रेमी को अपने-सा प्रेमी क्यों नहीं मिलता ?
(ग) प्रेमी को प्रेमी मिल जाने से सारा विष अमृत क्यों हो जाता है ?
(घ) साखी में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) साखी का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(च) ‘मैं’ में छिपा अर्थ किसके लिए है ?
(छ) ‘विष’ और ‘अमृत’ की प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
(ज) विष कब अमृत में बदल जाता है ?
उत्तर :
(क) कबीर ने परमात्मा के भक्त को प्रेमी कहा है।
(ख) परमात्मा का भक्त अपने जैसे भक्त को पाना चाहता है पर वह सरलता से नहीं मिलता क्योंकि संसार के अधिकांश लोग तो भक्ति से दूर रहकर विषय-वासनाओं में डूबे रहते हैं
(ग) ईश्वर प्रेमी को ईश्वर प्रेमी मिल जाने से सारा विष अमृत हो जाता है क्योंकि उन्हें भक्ति रूपी अमृत की प्राप्ति की ही इच्छा होती है; विषय-वासनाओं की नहीं।
(घ) कबीर ने सीधी-साधी सरल भाषा में भक्ति रस के महत्त्व को प्रतिपादित किया है। ‘प्रेमी’ में लाक्षणिकता विद्यमान है। तत्सम और तद्भव शब्दों का समन्वित प्रयोग किया गया है। प्रसाद गुण तथा शांत रस विद्यमान हैं। दोहा छंद का प्रयोग है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है।
(ङ) कबीर ने प्रभु-भक्त का साथ प्राप्त करना चाहा है पर वह प्रयत्न करके भी ऐसा करने में सफल नहीं हो पाया। वह ईश्वर-प्रेमी को प्राप्त न करने के कारण परेशान है।
(च) ‘मैं’ में छिपा अर्थ किसी भी ईश्वर भक्त को प्रकट करता है। वह केवल कवित की ओर संकेत नहीं करता।
(छ) ‘विष’ मानव मन में छिपे पापों, बुरी भावनाओं, बुराइयों, वासनाओं आदि का प्रतीक है और ‘अमृत’ पुण्य, मुक्ति, सद्भावना, भक्ति आदि को प्रकट करता है।
(ज) ईश्वर भक्तों के परस्पर मिल जाने से मन के पाप मिट जाते हैं और तब विष अमृत में बदल जाता है।

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3. हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि॥

शब्दार्थ : हस्ती – हाथी। दुलीचा – कालीन, छोटा आसन, गलीचा। डारि – डालकर, रखकर। स्वान – कुत्ता। भूँकन दे – भौंकने दो। झख मारि – मज़बूर होना; वक्त बेकार करना।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी संत कबीरदास के द्वारा रचित है जिसे हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में ‘साखियाँ’ नामक पाठ में संकलित किया गया है। कवि का मानना है कि यह संसार तो अज्ञानी है और सभी के प्रति व्यर्थ ही कुछ-न-कुछ कहता रहता है। इसलिए इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि हे मानव, तुम ज्ञान रूपी हाथी पर सहज स्वरूप स्थिति का गलीचा डालो। यह संसार तो अज्ञानी है जो कुत्ते के समान व्यर्थ ही भौंकता रहता है। उसकी परवाह किए बिना तुम उसे व्यर्थ भौंककर अपना वक्त बेकार करने दो और तुम भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ते जाओ।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर  –

प्रश्न :
(क) कवि ने संसार के व्यवहार को कैसा माना है ?
(ख) कवि की दृष्टि में ज्ञान का रूप कैसा है ?
(ग) ‘सहज दुलीचा’ क्या है ?
(घ) साखी में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ङ) ‘स्वान रूप संसार है’ – ऐसा क्यों कहा गया है ? हमें क्या करना चाहिए ?
(च) कवि ने मानव को क्या प्रेरणा दी है ?
(छ) कवि ने किस ज्ञान को श्रेष्ठ माना है ?
(ज) इस साखी का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने संसार के उस व्यवहार को अनुचित माना है जो व्यर्थ ही दूसरों की आलोचना करता रहता है। वह तो अच्छे-बुरे के बीच भेद भी नहीं कर पाता।
(ख) कवि की दृष्टि में ज्ञान हाथी के समान सबल है जो अपना मार्ग खुद बना सकता है जिसे किसी की परवाह नहीं होती।
(ग) ‘सहज दुलीचा’ ईश्वर के नाम की वह सहज स्वरूप स्थिति है जो भक्त के मन को ईश्वर की ओर बढ़ाती है।
(घ) कबीर ने भक्ति के मार्ग में आगे बढ़नेवालों को प्रेरणा दी है कि वे व्यर्थ की आलोचनाओं की परवाह न करें। दोहा छंद में तत्सम और तद्भव शब्दों का सहज प्रयोग किया गया है। लाक्षणिकता ने भाव गहनता को प्रकट किया है। स्वर मैत्री ने गेयता का गुण उत्पन्न किया है। शांत रस का प्रयोग है।
(ङ) कवि ने इस संसार को स्वान रूप कहा है क्योंकि इस संसार में हम सभी लोग अपने-आप को ठीक मानते हुए दूसरों को बुरा-भला कहते हैं। व उनकी आलोचना करते रहते हैं। हमें दूसरों के द्वारा की जानेवाली निंदा – उपहास की परवाह नहीं करनी चाहिए। अपने मन में आए भक्ति और साधना के भावों पर स्थिर रहकर कर्म करना चाहिए।
(च) कवि ने मानव को प्रेरणा दी है कि वह लोकनिंदा की परवाह न करे और ईश्वर के नाम में डूबा रहे।
(छ) कवि ने साधना से प्राप्त उस ज्ञान को श्रेष्ठ माना है जो मानव स्वयं प्राप्त करता है।
(ज) कवि ने प्रभु भक्तों को अपनी भक्ति में डूबे रहने की सलाह देते हुए निंदकों और आलोचकों को बुरा माना है।

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4. पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान॥

शब्दार्थ : पखापखी – पक्ष-विपक्ष जग – संसार। कारनै – कारण। सोई – वही। सुजान – चतुर, ज्ञानी।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित ‘साखियाँ’ से ली गई है जिसके रचयिता निर्गुण भक्ति के संत कबीर हैं। यह संसार आपसी लड़ाई-झगड़े और तेरा मेरा करते हुए भक्ति मार्ग से दूर होता जा रहा है जो उसके लिए उचित नहीं है।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि यह संसार पक्ष-विपक्ष के झगड़े में उलझकर ईश्वर के नाम को भुलाकर इससे दूर होता जा रहा है। उसके लिए तेरे-मेरे का भेद ही प्रमुख है। जो व्यक्ति निरपक्ष होकर ईश्वर का नाम भजता है वही चतुर – ज्ञानी संत है। भाव यह है कि यह संसार तो झूठा है और इसे यहीं रह जाना है। इस संसार को छोड़ने के बाद मनुष्य के साथ यह नहीं जाएगा बल्कि उसकी भक्ति और सत्कर्म जाएँगे। इसलिए उसे ईश्वर के नाम की ओर उन्मुख होना चाहिए।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) ‘पखापखी’ क्या है ?
(ख) सारा संसार किसे भुला रहा है ?
(ग) संत – सुजान कौन हो सकता है ?
(घ) साखी में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) सच्चा संत कौन है ?
(च) ईश्वर के नाम-स्मरण के लिए किस प्रकार की भावना होनी चाहिए ?
(छ) संसार किस कारण से भूला हुआ है ?
उत्तर :
(क) मानव मन में छिपी तेरे-मेरे, पक्ष-विपक्ष और परस्पर लड़ाई-झगड़े का भाव ही पखापखी है।
(ख) सांसारिकता में उलझकर यह सारा संसार ईश्वर के नाम और भक्ति भाव को भुला रहा है।
(ग) संत – सुजान वही हो सकता है जो अपसी भेद-भाव को त्याग कर परमात्मा के नाम के प्रति स्वयं को लगा दे।
(घ) कबीर ने दोहा छंद का प्रयोग करते हुए उपदेशात्मक स्वर में प्रेरणा दी है कि मानव को आपसी लड़ाई-झगड़े और भेद-भाव को मिटाकर ईश्वर के नाम की ओर उन्मुख होना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करता है वही ‘संत सुजान’ कहलाने के योग्य है। तद्भव शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है। अनुप्रास अलंकार का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण और शांत रस विद्यमान है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता का गुण प्रदान किया है।
(ङ) सच्चा संत वह है जो किसी वैर – विरोध, पक्ष-विपक्ष की परवाह किए बिना ईश्वर की भक्ति में डूबा रहता है।
(च) ईश्वर के नाम-स्मरण के लिए मानव को निरपेक्ष होना चाहिए। उसे किसी के विरोध- समर्थन, निंदा – प्रशंसा आदि की परवाह नहीं करनी चाहिए।
(छ) यह संसार आपसी लड़ाई-झगड़े, तर्क-वितर्क आदि के कारण ईश्वर को भूला हुआ है।

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5. हिंदू मुआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकट न जाइ ॥

शब्दार्थ : मुआ – मर गया। खुदाइ – परमात्मा। निकट – पास।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित ‘साखियाँ’ से ली गई है जिसके रचयिता निर्गुण संत कबीर हैं। मनुष्य परमात्मा के रहस्य को बिना समझे धर्म के बंधन में पड़ा रहता है और स्वयं को परमात्मा के नाम से दूर कर लेता है।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि हिंदू और मुसलमान ईश्वर के वास्तविक सच को समझे बिना क्रमशः राम और अल्लाह शब्दों को दुराग्रहपूर्वक पकड़कर डूब मरे। इस संसार में वह सावधान है जो इन दोनों के फैलाए धोखे के जाल में नहीं फँसता और सार्वभौमिक सत्यता को समझता है कि प्रत्येक प्राणी के हृदय में बसनेवाला चेतन ही राम और अल्लाह है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) हिंदू और मुसलमान ईश्वर को किस-किस नाम से पुकारते हैं ?
(ख) कवि के अनुसार कौन-सा मानव सावधान है ?
(ग) कवि ने किस सार्वभौमिक सत्य को प्रकट करने का प्रयत्न किया है ?
(घ) साखी में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि ने हिंदू-मुसलमान दोनों को मरा हुआ क्यों माना है ?
(च) कवि के अनुसार जीवित कौन है ?
(छ) कवि मनुष्य से क्या अपेक्षा करता है ?
उत्तर :
(क) हिंदू ईश्वर को ‘राम’ नाम से और मुसलमान ‘खुदा’ नाम से पुकारते हैं।
(ख) कवि के अनुसार वह मानव सावधान है जो हिंदुओं और मुसलमानों के राम और अल्लाह शब्दों को दुराग्रहपूर्वक स्वीकार नहीं करता।
(ग) परमात्मा तो हर प्राणी के हृदय में बसता है। वह किसी धर्म विशेष के अधिकार में नहीं है। यह एक सार्वभौमिक सत्य है। कवि ने इसी सत्य को इस साखी के द्वारा प्रकट किया है।
(घ) कबीर ने माना है कि परमात्मा घट-घट में समाया हुआ है। वह केवल ‘राम’ या ‘अल्लाह’ नामों में छिपा हुआ नहीं है। उसे तो हर कोई पा सकता है। अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है। प्रसाद गुण और शांत रस विद्यमान है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग है। गेयता का गुण विद्यमान है।
(ङ) कवि के हिंदू-मुसलमान दोनों को मरा हुआ माना है क्योंकि वे दोनों आपसी भेद-भाव में उलझकर ईश्वर को भूल गए हैं।
(च) कवि ने अनुसार जीवित केवल वह है जो धार्मिक भेद-भावों से दूर रहकर ईश्वर का नाम लेते हैं।
(छ) कवि मनुष्य से अपेक्षा करता है वह जात-पात को भुलाकर ईश्वर के नाम में डूबा रहे।

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6. काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम॥

शब्दार्थ काबा – मुसलमानों का पवित्र तीर्थस्थल। कासी काशी, वाराणसी। भया हो गया। मोट – मोटा। चून – आटा।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी महात्मा कबीर के द्वारा रचित है जिसे हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित ‘साखियाँ’ पाठ से लिया गया है। परमात्मा घट-घट में समाया हुआ है। न तो वह किसी विशेष तीर्थस्थान पर है और न ही किसी विशेष नाम से जाना जाता है। उसे मन की भावना और भक्ति के भाव से स्मरण करो तो वह तुम्हें प्राप्त हो जाएगा।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि चाहे मुसलमानों के पवित्र धार्मिक स्थल काबा में जाओ या हिंदुओं की धार्मिक नगरी काशी में; चाहे उसे राम के नाम से ढूँढ़ो या रहीम में – वह वास्तव में एक ही है। उसमें कोई भेद नहीं है। वह तो सार्वभौमिक सत्य है जो सब जगह एक-सा ही है। मनुष्य अपनी भिन्न सोच के कारण उसे अलग-अलग चाहे मानता रहे। मोटा आटा ही तो मैदे में बदलता है। उन दोनों में कोई मौलिक भेद नहीं है। है, मानव! तू उन्हें बैठकर बिना किसी भेद-भाव के खा; अपना पेटभर। भाव है कि परमात्मा को चाहे कही भी ढूँढ़ो और किसी भी नाम से पुकारो पर वास्तव में वह एक ही है

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने ‘काबा’, ‘कासी’, ‘राम’, ‘रहीम’ शब्दों के माध्यम से क्या प्रकट करना चाहा है ?
(ख) ‘मोट चून मैदा भया’ में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(ग) कबीर ने किस भाव का विरोध किया है ?
(घ) साखी में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कबीर ने क्या प्रेरणा दी है ?
(च) काबा कासी कैसे हो गया ?
उत्तर :
(क) कवि ने ‘काबा’ और ‘कासी’ के माध्यम से प्रकट करना चाहा है कि परमात्मा किसी विशेष धार्मिक स्थल पर प्राप्त नहीं होता बल्कि वह तो सभी जगह ही मिलता है। ‘राम’ और ‘रहीम’ शब्दों के माध्यम से यह कहना चाहा है कि परमात्मा तो प्रत्येक धर्म में एक ही है। उसके नाम बदलने से वह नहीं बदल जाता। उसे किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है।
(ख) जिस प्रकार मोटा आटा ही मैदा में बदल जाता है उसी प्रकार विभिन्न धर्मों को माननेवाले ईश्वर को भिन्न नामों से पुकार लेते हैं और उसके स्वरूप में भेद मानते हैं पर वास्तव में उसमें कोई भेद नहीं है। ईश्वर तो एक ही है।
(ग) कबीर ने इस भाव का विरोध किया है कि ईश्वर के रूप, नाम अनेक हैं; स्वरूप अलग हैं और वह भिन्न धर्मों को मानने वालों के धर्म – स्थलों पर रहता है। वास्तव में ईश्वर एक ही है। उसमें कोई अंतर नहीं है।
(घ) कबीर मानते हैं कि परमात्मा सर्वत्र है। हिंदू-मुसलमान चाहे उसे अलग-अलग नाम से पुकारते हैं पर वास्तव में उसमें कोई अंतर नहीं है। अनुप्रास और दृष्टांत अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द – शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता और सरसता प्रदान की है। प्रसाद गुण और शांत रस का प्रयोग है, स्वरमैत्री ने लय की उत्पत्ति की है।
(ङ) कबीर ने हिंदू-मुसलमान को आपसी भेदभाव मिटाने और ईश्वर का स्मरण करने की प्रेरणा दी है।
(च) जब हिंदू – मुसलमान में भेद-भाव समाप्त हो गया तो काबा काशी के समान हो गया।

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7. ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊंच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ॥

शब्दार्थ : जनमिया जन्म लिया। करनी कार्य। सुबरन – स्वर्ण, सोना। सुरा – मदिरा, शराब। सोइ – उसकी।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित ‘साखियाँ’ से ली गई है। जिसे हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित किया गया है। इसमें कवि ने सज्जन और दुर्जन की संगति के परिणामों का वर्णन किया है।

व्याख्या : इस साखी में कवि कहता है कि ऊँचे वंश में जन्म लेने से कर्म ऊँचे नहीं हो जाते हैं। सोने का कलश मदिरा से भरा हो तो भी सज्जन उसकी भी निंदा ही करते हैं। क्योंकि केवल ऊँचे वंश में जन्म लेने से ही कोई महान नहीं हो जाता उसे ऊँचा उसके महान कार्य बनाते हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कबीर ने किस व्यक्ति को ‘ऊँचा’ नहीं माना ?
(ख) साधु किसकी निंदा करते हैं ?
(ग) कोई व्यक्ति किस कारण महान बन जाता है ?
(घ) साखी में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) ‘ऊँचे कुल’ से क्या तात्पर्य है ?
(च) सोने का कलश भी बुरा क्यों कहलाता है ?
(छ) मनुष्य की श्रेष्ठता किसमें छिपी है ?
उत्तर :
(क) कबीर ने उस व्यक्ति को ऊँचा नहीं माना जो अवगुणों से भरा हुआ हो। किसी भी व्यक्ति को केवल ऊँचे परिवार में जन्म लेना ही महान नहीं बनाता।
(ख) साधु प्रत्येक उस व्यक्ति की निंदा करते हैं जो दुर्गुणों से भरे हुए हैं।
(ग) कोई व्यक्ति अपने द्वारा किए जानेवाले सत्कर्मों और अपने सद्गुणों से महान बन जाता है।
(घ) कबीर के द्वारा रचित उपदेशात्मक शैली की साखी में किसी व्यक्ति की श्रेष्ठता उसके सद्गुणों में मानी गई है, उसके ऊँचे परिवार में नहीं। स्वरमैत्री के प्रयोग ने कवि की वाणी को लयात्मकता प्रदान की है। अनुप्रास का सहज प्रयोग किया गया है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द – शक्ति ने कथन को सरलता और सरसता प्रदान की है। शांत रस विद्यमान है। तद्भव शब्दावली की अधिकता है।
(ङ) आर्थिक और सामाजिक रूप से श्रेष्ठ और प्रतिष्ठित परिवार के व्यक्ति को ऊँचे कुल का माना जाता है।
(च) सोने का कलश तब बुरा माना जाता है जब उसमें समाज के द्वारा निंदनीय शराब भरी हुई हो।
(छ) मनुष्य की श्रेष्ठता उसके द्वारा किए जाने वाले ऊँचे कामों में छिपी रहती है।

2. सबद (पद)

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पलभर की तालास में।
कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में ॥

शब्दार्थ : मोकों – मुझे। बंदे – मानव। देवल – मंदिर। काबे – काबा, मुसलमानों का पवित्र तीर्थस्थल। कैलास – कैलाश पर्वत। कौने – किसी। बैराग – वैराग्य। तुरतै – शीघ्र, तुरंत ही। तालास – खोज।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ से संकलित है जिसे संत कबीर ने रचा है। कवि का मानना है कि ईश्वर की प्राप्ति कहीं बाहर से नहीं होती बल्कि वह तो सर्वत्र विद्यमान है। उसे तो अपने भीतर की पवित्रता से ही प्राप्त किया जा सकता है।

व्याख्या : कबीर के अनुसार निर्गुण ब्रह्म मानव को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मानव! तुम मुझे कहाँ ढूँढ़ते फिरते हो ? मैं तो तुम्हारे ही पास हूँ। मैं न तो मंदिर में हूँ और न ही मस्जिद में। मैं न मुसलमानों के पवित्र तीर्थस्थल काबा में बसता हूँ और न ही हिंदुओं के धार्मिक स्थल कैलाश पर्वत पर। मैं किसी भी क्रिया-कर्म और आडंबर में नहीं हूँ और न ही मेरी प्राप्ति योग-साधनाओं से हो सकती है। मैं वैराग्य धारण करने से भी नहीं मिलता। यदि तुम वास्तव में ही मुझे खोजना चाहते हो तो मैं तुम्हें पलभर की तलाश में मिल जाऊँगा। तुम अपने मन की पवित्रता से मुझे प्राप्त करने का प्रयत्न करो। कबीर कहते हैं कि हे भाई, साधुओ, सुनो। मैं तो तुम्हारी साँसों के साँस में बसता हूँ। मुझे अपने भीतर से ही खोजने का प्रयत्न करो।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने किस शैली में किसे संबोधित किया है ?
(ख) निर्गुण ब्रह्म कहाँ-कहाँ पर नहीं मिलता है ?
(ग) ब्रह्म की प्राप्ति कहाँ हो सकती है ?
(घ) पद में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) ‘मैं’ और ‘तेरे’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुए हैं ?
(च) व्यक्ति किसे पलभर में नहीं ढूँढ़ सकता ?
उत्तर :
(क) कवि ने निर्गुण ब्रह्म के द्वारा आत्मकथात्मक शैली में उन मानवों को संबोधित किया है जो परमात्मा को प्राप्त करना चाहते हैं।
(ख) निर्गुण ब्रह्म को मंदिर, मस्जिद, काबा, कैलाश, क्रिया-कर्म, आडंबर, योग, वैराग्य आदि में नहीं पाया जा सकता।
(ग) ब्रहम की प्राप्ति तो पलभर की तलाश से ही संभव है क्योंकि वह तो हर प्राणी के भीतर उसकी साँसों की साँस में बसता है। हर प्राणी को ब्रह्म अपने भीतर से ही प्राप्त होता है।
(घ) कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की प्राप्ति के लिए किसी भी प्रकार के आडंबर का विरोध किया है और माना है कि उसे अपने हृदय की पवित्रता से अपने भीतर ही ढूँढ़ा जा सकता है। कवि ने तद्भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया है। लयात्मकता का गुण विद्यमान है। अनुप्रास अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द – शक्ति और शांत रस ने कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है।
(ङ) कवि ने ‘मैं’ का प्रयोग ईश्वर और ‘तेरे’ का प्रयोग मनुष्य के लिए किया है।
(च) व्यक्ति ईश्वर को पलभर में ढूँढ़ सकता है क्योंकि वह तो हर व्यक्ति में बसता है। वह साँस – साँस में पहचान कर ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

2. संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी॥
हिति चित्त की वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिँडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि पर घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा॥
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी॥
आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदति भया तम खीनाँ॥

शब्दार्थ : भ्रम – धोखा। टाटी – छप्पर, परदे के लिए लगाया हुआ बाँस आदि की फट्टियों का पल्ला। दुचिते – दुविधा से ग्रस्त। द्वै – दोनों। थूँनि – स्तंभ, खंभे, जिन पर छप्पर टिकता है। गिराँनी – गिर गए। बलिँडा – छप्पर को सँभालनेवाला आधारभूत म्याल (खंभा)। त्रिस्नाँ – तृष्णा, लालच। छाँनि – छप्पर। दुमिति – बुद्धि। भाँडाँ फूटा – भेद खुल गया। निरचू – थोड़ा भी। चुवै – रिसता है, चूता है। बूठा – बरसा। पीछै – पीछे, बाद में। भाँन – सूर्य। तम – अँधेरा। खीनाँ – क्षीण हुआ।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक में महात्मा कबीरदास के द्वारा पदों से संकलित किया गया है। इनमें रहस्यात्मकता तथा तत्कालीन परिस्थितियों की सुंदर अभिव्यक्ति हो पाई है। यह पद कबीर की दार्शनिक मान्यताओं का प्रतिनिधित्व करता है। ज्ञान के प्रभाव से अज्ञान और भ्रम रूपी छप्पर उड़ जाता है और जीवात्मा की तृष्णा मिट जाती है।

व्याख्या : हे संतो! मेरे हृदय में ज्ञान रूपी आँधी चलने लगी है। इससे भ्रम रूपी छप्पर उड़ गया है, जिसमें ब्रह्म छिपा हुआ था। माया अब जीव को बाँधकर नहीं रख सकती। इस छप्पर की सारी सामग्री छिन्न-भिन्न हो गई हैं। मन के दुविधा रूपी दोनों खंभे गिर गए हैं जिन पर यह टिका हुआ था। इस छप्पर का आधारभूत मोह रूपी ‘खंभा’ भी टूट गया है और तृष्णा रूपी छान ज्ञान की आँधी से टूटकर भूमि पर गिर गया है।

कुबुद्धि का घड़ा फूट गया है अर्थात अज्ञान और विषय-वासना का जीवन में कोई स्थान नहीं रहा है। शरीर कपट से रहित हो गया है। ज्ञान की आँधी के पश्चात भगवान के प्रेम और अनुग्रह की वर्षा हुई है जिससे भक्तजन प्रभु- प्रेम के रस में भीग गए हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि ज्ञान रूपी सूर्य के उदय होते ही अज्ञान का अंधकार क्षीण हो गया है अर्थात ज्ञान और परमात्मा की भक्ति का सर्वत्र उजाला हो गया।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने भ्रम नष्ट होने तथा ज्ञान की प्राप्ति का रूपक किसकी सहायता से बाँधा है ?
(ख) तृष्णा रूपी छप्पर को भूमि पर किसने गिरा दिया ?
(ग) अज्ञान का अंधकार किस कारण क्षीण हुआ था ?
(घ) पद में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कबीर ने ‘छप्पर’ किस प्रकार बाँधा था ?
(च) मनुष्य में कौन-कौन से विकार थे ?
(छ) कबीर ने किस ज्ञान की बात कही है ?
(ज) ‘भाँन’ किसका प्रतीक है ?
उत्तर :
(क) कवि ने भ्रम नष्ट होने तथा ज्ञान की प्राप्ति का रूपक मानव मन में भ्रम रूपी छप्पर के उड़ जाने से बाँधा है।
(ख) तृष्णा रूपी छप्पर को ज्ञान की तेज़ आँधी ने भूमि पर गिरा दिया था।
(ग) अज्ञान का अंधकार ज्ञान रूपी सूर्य के उदय होने से क्षीण हुआ था।
(घ) कबीर ने ज्ञान और भक्ति के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए माना है कि इन्हीं से अज्ञान का नाश हो सकता है। तद्भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है। लौकिक बिंबों की योजना बहुत सटीक और सार्थक है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। अनुपात, सांगरूपक और रूपकातिशयोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। लाक्षणिकता ने कवि के कथन को गहनता प्रदान की है।
(ङ) कबीर ने भ्रम रूपी छप्पर, दुविधा रूपी खंभों, तृष्णा रूपी छान तथा माया रूपी रस्सी से बाँधा था, जिसमें मोह रूपी आधार खंभा था।
(च) मनुष्य माया, मोह, तृष्णा, दुर्बुद्धि, अज्ञान आदि विकारों से युक्त था।
(छ) कबीर ने प्रभु-भक्ति रूपी ज्ञान की बात कही है।
(च) ‘भाँन’ ज्ञान रूपी सूर्य का प्रतीक है।

साखियाँ एवं सबद Summary in Hindi

कवि-परिचय :

संत कबीर हिंदी – साहित्य के भक्तिकाल की महान विभूति थे। उन्होंने अपने बारे में कुछ न कहकर भक्त, सुधारक और साधक का कार्य किया था। माना जाता है कि उनका जन्म सन् 1398 ई० में काशी में हुआ था तथा उनकी मृत्यु सन् 1518 में काशी के निकट मगहर में हुई थी। उनका पालन-पोषण नीरू और नीमा नामक एक निस्संतान बुनकर दंपति के द्वारा किया गया था। कबीर विवाहित थे। उनकी पत्नी का नाम लोई था। कबीर ने स्वयं संकेत दिया था कि उनका एक पुत्र और एक पुत्री थी जिनका नाम कमाल और कमाली था।

कबीर निरक्षर थे पर उनका ज्ञान किसी विद्वान से कम नहीं था। वे मस्तमौला, फक्कड़ और लापरवाह फ़कीर थे। वे जन्मजात विद्रोही, निर्भीक, परम संतोषी और क्रांतिकारी सुधारक थे। उन्हें न तो तत्कालीन शासकों का कोई भय था और न ही विभिन्न धार्मिक संप्रदायों का। कबीर की प्रामाणिक रचना ‘बीजक’ है, जिसके तीन भाग हैं – साखी, सबद और रमैनी। इनकी कुछ रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहब में भी संकलित हैं।

कबीर निर्गुणी थे। उनका मानना था कि ईश्वर इस विश्व के कण-कण में विद्यमान है। वह फूलों की सुगंध से भी पतला, अजन्मा और निर्विकार है। उसे कहीं बाहर ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह तो सदा हमारे साथ है। कबीर ने गुरु को परमात्मा से भी अधिक महत्त्व दिया है क्योंकि परमात्मा की कृपा होने से पहले गुरु की कृपा का होना आवश्यक है। गुरु ही अपने ज्ञान से शिष्य के अज्ञान को समाप्त करता है। कबीर ने हिंदू-मुसलमानों में प्रचलित विभिन्न अंधविश्वासों, रूड़ियों और आडंबरों का कड़ा विरोध किया था।

वे बहुदेववाद और अवतारवाद में विश्वास नहीं करते थे। वे मानवधर्म की स्थापना को महत्त्व देते थे इसलिए उन्होंने जाति-पाति और वर्ग-भेद का विरोध किया। वे हिंदू-मुसलमानों में एकता स्थापित करना चाहते थे। उनका मत था कि भजन सदा मन में होना चाहिए। दिखावे के लिए चिल्ला-चिल्लाकर भक्ति का ढोंग करने से भगवान नहीं मिलते। आत्मशुद्धि अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। मानवतावादी समाज की स्थापना की जानी चाहिए। वे शासन, समाज, धर्म आदि समस्त क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन चाहते थे।

कबीर की भाषा जन – भाषा के निकट थी। उन्होंने साखी, दोहा, चौपाई की शैली में अपनी वाणी प्रस्तुत की थी। उसमें गति तत्व के सभी गुण विद्यमान हैं। उनकी भाषा में अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, पूर्वी हिंदी, फ़ारसी, अरबी, राजस्थानी, पंजाबी आदि के शब्द बहुत अधिक हैं। इनकी भाषा को खिचड़ी भी कहते हैं। निश्चित रूप से कबीर युग प्रवर्तक क्रांतिकारी थे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

1. साखियाँ

साखियों का सार :

संत कबीर ने निर्गुण भक्ति के प्रति अपनी आस्था के भावों को प्रकट करते हुए माना है कि हृदय रूपी का मानसरोवर भक्ति जल से पूरी तरह भरा हुआ है जिसमें हंस रूपी आत्माएँ मुक्ति रूपी मोती चुनती हैं। अपार आनंद प्राप्त करने के कारण वे अब उसे छोड़कर कहीं और नहीं जाना चाहतीं। जब परमात्मा से प्रेम करनेवाले साधुजन आपस में मिल जाते हैं तो जीवन में सुख ही सुख शेष रह जाते हैं।

जब भक्ति ज्ञानमार्ग पर आगे बढ़ती है तो संसार में विरोध करनेवाले उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते। पक्ष-विपक्ष के कारण सभी परमात्मा के नाम से दूर रहते हैं। इससे दूर होकर जो परमात्मा का स्मरण करता है वहीं संत कहलाता है। आडंबरों और परमात्मा का नाम लेने के लिए ढोंग करने से उसकी प्राप्ति नहीं होती। यदि कोई ऊँचे परिवार में जन्म लेकर श्रेष्ठ कार्य नहीं करता तो पूजनीय नहीं हो सकता। सोने के कलश में भरी शराब की भी निंदा की जाती है; प्रशंसा नहीं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

2. सबद (पद)

पदों का सार :

निर्गुण भक्ति के प्रति अपने निष्ठाभाव को प्रकट करते हुए कबीर मानते हैं कि ईश्वर को मनुष्य अपने अज्ञान के कारण इधर-उधर ढूँढ़ने का प्रयास करता है। वह नहीं जानता कि ईश्वर तो उसके अपने भीतर ही छिपा हुआ है। न तो वह मंदिर में है और न ही मस्जिद में, न काबा में और न ही कैलाश पर्वत पर वह किसी आडंबर, योग, विराग और क्रिया-कर्म से प्राप्त नहीं होता। यदि उसे अपने भीतर से ही ढूँढ़ने का प्रयत्न किया जाए तो वह सरलता से प्राप्त हो सकता है क्योंकि वह तो प्रत्येक व्यक्ति के श्वासों में बसता है। पलभर की तलाश से ही उसे पाया जा सकता है।

कबीर मानते हैं कि उनके हृदय में ज्ञान की आँधी चलने लगी है जिस कारण भ्रम रूपी छप्पर उड़ गया है, जिसमें ब्रहम छिपा हुआ था। अब माया उसे बाँधकर नहीं रख सकती। ज्ञान की आँधी के बाद शरीर कपट से रहित हो गया और ईश्वर के प्रेम की उस पर वर्षा हो गई। इससे भक्तजन प्रभु के प्रेम-रस में भीग गए। परमात्मा की भक्ति का उजाला सर्वत्र हो गया।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण उपसर्ग

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran उपसर्ग Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran उपसर्ग

परिभाषा – उपसर्ग उस शब्दांश अथवा अव्यय को कहते हैं, जो किसी शब्द से पूर्व जुड़कर विशेष अर्थ प्रकट करता है।
उपसर्ग निम्नलिखित कार्य करते हैं –

  1. उपसर्ग के प्रयोग से शब्द के अर्थ में नवीनता आ जाती है।
  2. उपसर्ग के प्रयोग से शब्द के अर्थ में कोई अंतर नहीं आता।
  3. उपसर्ग के प्रयोग से शब्द के अर्थ में विपरीतता आ जाती है।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण उपसर्ग

तत्सम उपसर्ग (संस्कृत के उपसर्ग)

JAC Class 9 Hindi व्याकरण उपसर्ग 1

संस्कृत में कभी-कभी एक से अधिक उपसर्गों का प्रयोग भी होता है, जैसे –

निर् + अप + राध = निरपराध
वि + आ + करण = व्याकरण
सम + आ + लोचना = समालोचना
सु + वि + ख्यात = सुविख्यात

JAC Class 9 Hindi व्याकरण उपसर्ग

उपसर्ग के समान कुछ अन्य अव्यय

ये शब्दांश विशेषण अथवा अव्यय हैं, जो उपसर्ग के रूप में प्रयुक्त होते हैं।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण उपसर्ग 2

हिंदी के उपसर्ग

JAC Class 9 Hindi व्याकरण उपसर्ग 3

उर्दू के उपसर्ग

JAC Class 9 Hindi व्याकरण उपसर्ग 4

अंग्रेज़ी के उपसर्ग

JAC Class 9 Hindi व्याकरण उपसर्ग 5

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 12 हीरोन सूत्र

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JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 12 हीरोन सूत्र

प्रस्तावना (Introduction) : किसी समतल में बनी आकृति को समतलीय आकृति कहते हैं।

  • यदि आकृति के शीर्ष मुक्त न हों तो उसे संवृत्त आकृति कहते हैं।
  • यदि किसी समतलीय आकृति की सीमाएँ परस्पर प्रतिच्छेदित नहीं होती हैं तो वह सरल आकृति कहलाती है।
  • यदि हम किसी समतलीय आकृति की भुजाओं पर चल कर एक पूरा चक्कर लगा लेते हैं, तो वह आकृति का परिमाप कहलाता है।
  • आकृति की सीमाओं से घिरे हुए क्षेत्र को आकृति का क्षेत्रफल कहते हैं।

→ त्रिभुजों का क्षेत्रफल : त्रिभुज का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × आधार × ऊँचाई

→ त्रिभुज का क्षेत्रफल : यदि किसी त्रिभुज की तीन भुजाएँ ज्ञात हों, तो हेरोन के सूत्र की सहायता से त्रिभुज का क्षेत्रफल ज्ञात किया जा सकता हैं।
ΔABC का क्षेत्रफल = \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\)
जहाँ s = \(\frac{a+b+c}{2}\) त्रिभुज का अर्द्ध परिमाप a, b एवं c उसकी भुजाओं की लम्बाइयाँ हैं।
हेरोन्स फार्मूला उन त्रिभुओं का क्षेत्रफल ज्ञात करने में अत्यन्त सहायक है, जिनकी ऊँचाई ज्ञात करना सुगम नहीं है।

→ हेरोन्स फार्मूले (हीरोन के सूत्र) द्वारा समस्त चतुर्भुजों का क्षेत्रफल सरलता से ज्ञात किया जा सकता है। इसके लिए चतुर्भुज के किन्हीं दो शीर्षों को मिलाकर विकर्ण द्वारा उसे दो त्रिभुआकार आकृतियों में विभक्त करके हेंरोन्स फार्मूले के द्वारा सम्पूर्ण आकृति का क्षेत्रफल ज्ञात किया जाता है।
यही विधि अन्य बहुभुओं का क्षेत्रफल ज्ञात करने के हेतु भी अपनायी जाती है।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 12 हीरोन सूत्र

अन्य महत्त्वपूर्ण सूत्र :

  1. समद्विबाहु त्रिभुज का क्षेत्रफल = \(\frac{b}{4} \sqrt{4 a^2-b^2}\), जहाँ a समान भुजा एवं b अन्य भुजा है।
  2. समबाहु त्रिभुज का क्षेत्रफल = \(\frac{a^2 \sqrt{3}}{4}\), जहाँ a भुजा है।
  3. समकोण त्रिभुज का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × आधार × ऊँचाई
  4. चतुर्भुज का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × विकर्ण × (विकर्ण पर डाले गये लम्बों का योग)
  5. समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 6 दिये जल उठे

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 6 दिये जल उठे Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 6 दिये जल उठे

JAC Class 9 Hindi दिये जल उठे Textbook Questions and Answers

बोध-प्रश्न –

प्रश्न 1.
किस कारण से प्रेरित होकर स्थानीय कलेक्टर ने पटेल को गिरफ्तार करने का आदेश दिया ?
उत्तर :
सरदार वल्लभभाई पटेल महात्मा गांधी द्वारा चलाए जाने वाले दांडी कूच की तैयारी के सिलसिले में रास नामक स्थान पर गए थे। वहाँ जैसे ही उन्होंने बोलना आरंभ किया तो स्थानीय मैजिस्ट्रेट ने निषेधाज्ञा लागू कर दी और पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया। सरदार पटेल को स्थानीय कलेक्टर शिलंडी के आदेश पर गिरफ्तार किया गया था। इसका मुख्य कारण यह था कि वह सरदार पटेल से ईर्ष्या रखता था। सरदार पटेल ने पिछले आंदोलन के समय उसे अहमदाबाद से भगा दिया था। अब जब सरदार पटेल रास पहुँचे तो उसने मौका देखकर उन्हें वहाँ गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया।

प्रश्न 2.
जज को पटेल की सज़ा के लिए आठ लाइन के फैसले को लिखने में डेढ़ घंटा क्यों लगा ?
उत्तर :
वल्लभभाई पटेल को रास से गिरफ़्तार करके पुलिस के पहरे में बोरसद की अदालत में लाया गया था। जज को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह उन्हें किस धारा के तहत और कितनी सजा दे। साथ ही बिना मुकदमा चलाए जेल भेज दिए जाने पर जनता के भड़कने का डर था। इसी कारण जज को अपने आठ लाइन के फैसले को लिखने में डेढ़ घंटा लगा। उसने पटेल को 500 रुपये जुर्माने के साथ तीन महीने की जेल की सजा सुनाई।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 6 दिये जल उठे

प्रश्न 3.
“मैं चलता हूँ। अब आपकी बारी है।” यहाँ पटेल के कथन का आशय उद्धृत पाठ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सरदार वल्लभभाई पटेल के इस कथन का आशय यह है कि वे तो अब जेल जा रहे हैं किंतु देश की आज़ादी के लिए आंदोलन को जारी रखने का कार्य अब महात्मा गांधी और साबरमती आश्रम के लोगों को करना है। जब सरदार पटेल को साबरमती जेल लाया गया तो उन्होंने महात्मा गांधी और आश्रमवासियों को संबोधित करते हुए यह कहा था। वे चाहते थे कि देश को आज़ाद कराने का जो आंदोलन चल रहा था वह उनके जेल जाने के बाद भी चलता रहे। देश की स्वतंत्रता के आंदोलन को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से ही पटेल ने यह कहा था।

प्रश्न 4.
” इनसे आप लोग त्याग और हिम्मत सीखें” – गांधी जी ने यह किसके लिए और किस संदर्भ में कहा ?
उत्तर :
गांधी जी को यह कथन रास में रहने वाले दरबार समुदाय के लोगों से कहा। गांधी जी ने रास पहुँचकर वहाँ के लोगों को देश की आज़ादी के विषय में बताया। वे जानते थे कि वहाँ दरबार समुदाय के लोग अधिक संख्या में रहते हैं। अतः उन्होंने दरबार समुदाय के लोगों के विषय में बताया कि वे बड़ी-बड़ी रियासतों के मालिक थे। उनकी ऐशो-आराम की ज़िंदगी थी किंतु वे देश की आज़ादी के लिए सब कुछ छोड़ आए। अतः सब लोगों को दरबार समुदाय के त्याग और हिम्मत से सबक सीखना चाहिए। गांधी ने लोगों को देश की आज़ादी के लिए प्रोत्साहित करने के संदर्भ में यह सब कहा था।

प्रश्न 5.
पाठ द्वारा यह कैसे सिद्ध होता है कि- ‘कैसी भी कठिन परिस्थिति हो उसका सामना तात्कालिक सूझबूझ और आपसी मेल-जोल से किया जा सकता है।’ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
गांधी जी को रात के अंधेरे में महिसागर नदी पार करनी थी। उनके साथ कुछ सत्याग्रही भी थे। अँधेरा इतना घना था कि हाथ को हाथ नहीं सूझता था। थोड़ी देर में कई हजार लोग नदी के तट पर पहुँच गए। उन सबके हाथों में दीये थे। यही दृश्य नदी के दूसरे किनारे का भी था। इस प्रकार सारा वातावरण दीयों की रोशनी से जगमगा उठा और महात्मा गांधी की जय, सरदार पटेल की जय, जवाहर लाल नेहरू की जय के नारों के बीच सबने महिसागर नदी को पानी और कीचड़ में चलकर पार कर लिया। इससे यही सिद्ध होता है कि कैसी भी कठिन स्थिति क्यों न हो, यदि उसका सामना सूझबूझ और आपसी मेलजोल से किया जाए तो उस स्थिति का मुकाबला किया जा सकता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 6 दिये जल उठे

प्रश्न 6.
महिसागर नदी के दोनों किनारों पर कैसा दृश्य उपस्थित था ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
महिसागर नदी के तट पर घनी अंधेरी रात में भी मेला-सा लगा हुआ था। नदी के दोनों किनारों पर लोगों के हाथों में टिमटिमाते दीये थे। वे लोग गांधी जी और अन्य सत्याग्रहियों का इंतजार कर रहे थे। जब गांधी जी नाव पर चढ़ने के लिए नाव तक पहुँचे तो महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और वल्लभभाई पटेल की जय-जयकार के नारे लगने लगे। थोड़ी ही देर में नारों की आवाज़ दूसरे तट से भी आने लगी। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह नदी का तट न होकर पहाड़ों की घाटी हो, जहाँ से टकराकर आवाज़ वापस लौट आया करती है। आधी रात के समय नदी के दोनों किनारों पर हाथों में दीये लेकर खड़े लोग इस बात के प्रतीक थे कि उनके मन में अपने देश को आज़ाद कराने की कितनी ललक थी। नदी के दोनों किनारों पर खड़े लोगों के हाथों में टिमटिमाते दीये बहुत आकर्षक लग रहे थे।

प्रश्न 7.
” यह धर्मयात्रा है। चलकर पूरी करूंगा।”- गांधीजी के इस कथन द्वारा उनके किस चारित्रिक गुण का परिचय प्राप्त होता है ?
उत्तर :
महिसागर नदी का क्षेत्र दलदली और कीचड़ से युक्त मिट्टी वाला था। इसमें लगभग चार किलोमीटर पैदल चलना होता था। लोगों ने गांधी जी से कहा कि वे उन्हें कंधे पर उठा कर ले चलते हैं, परंतु गांधी जी ने इसे धर्मयात्रा कहा और कहा कि वे स्वयं चलकर इसे पूरा करेंगे। उनके इस कथन से उनके चरित्र की इस विशेषता का पता चलता है कि वे अंग्रेजों के विरुद्ध अपने आंदोलन को धर्म की लड़ाई मानते थे तथा अपना प्रत्येक कार्य स्वयं करना चाहते थे। वे किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे। वे अपने लक्ष्य की ओर स्वयं बढ़कर जाना चाहते थे।

प्रश्न 8.
गांधी को समझने वाले वरिष्ठ अधिकारी इस बात से सहमत नहीं थे कि गांधी कोई काम अचानक और चुपके से करेंगे। फिर भी उन्होंने किस डर से और क्या एहतियाती कदम उठाए ?
उत्तर :
जब गांधी जी ने दांडी यात्रा आरंभ की तो ब्रिटिश साम्राज्य के कुछ लोगों का मत यह था कि गांधी जी और उनके सत्याग्रही महिसागर नदी के किनारे जाकर अचानक नमक बनाकर कानून तोड़ देंगे। गांधी को समझने वाले वरिष्ठ अधिकारियों का मत इससे विपरीत था। वे जानते थे कि गांधी जी कोई भी काम अचानक और चुपके से नहीं करते। इस बात को भली-भाँति जानते हुए भी उनके मत में गांधी जी द्वारा नमक कानून तोड़े जाने का डर था। अतः उन्होंने एहतियात बरतते हुए महिसागर नदी के तट से सारे नमक भंडार हटा दिए और उन्हें नष्ट करा दिया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 6 दिये जल उठे

प्रश्न 9.
गांधी जी के पार उतरने पर भी लोग नदी के तट पर क्यों खड़े रहे ?
उत्तर :
महात्मा गांधी और उनके साथ अनेक सत्याग्रहियों ने आधी रात को महिसागर नदी को पार किया। नदी के दोनों किनारों पर लोग अपने हाथों में दीये लेकर खड़े थे। जब गांधी जी ने नदी को पार कर लिया तब भी लोग तट पर दीये लेकर खड़े थे। उनके वहाँ खड़े रहने का कारण यह था कि उन लोगों को कुछ और सत्याग्रहियों के वहाँ आने की आशा थी। उन लोगों को नदी पार कराने के उद्देश्य से ही वे वहाँ खड़े थे।

JAC Class 9 Hindi दिये जल उठे Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
जब पटेल को साबरमती जेल लाया जाना था तो आश्रम का वातावरण कैसा था ?
उत्तर :
सरदार पटेल को बोरसद से साबरमती जेल लाया जाना था। साबरमती जेल का रास्ता साबरमती आश्रम के सामने से ही होकर जाता था। आश्रम के लोग बड़ी बेसब्री से पटेल का इंतजार कर रहे थे। वे बार-बार हिसाब लगा रहे थे कि पटेल कितनी देर में उनके आश्रम के पास से गुजरेंगे। आश्रम के लोग पटेल की एक झलक पाने के लिए लालायित थे। समय का अनुमान लगाकर स्वयं महात्मा गांधी भी आश्रम से बाहर निकल आए। उनके पीछे-पीछे आश्रम के सभी लोग सड़क के किनारे खड़े हो गए थे। सबमें पटेल की एक झलक पाने की उत्सुकता थी।

प्रश्न 2.
पटेल की गिरफ़्तारी पर देश के अन्य नेताओं की क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर :
पटेल की गिरफ़्तारी पर देश के आम लोगों के साथ-साथ सभी नेताओं में भी गहरा रोष था। दिल्ली में मदन मोहन मालवीय ने केंद्रीय असेंबली में एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें बिना मुकदमा चलाए पटेल को जेल भेजने के सरकारी कदम की कड़ी निंदा की गई थी। मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा कि सरदार पटेल की गिरफ़्तारी आम व्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांत पर हमला है। महात्मा गांधी भी पटेल की गिरफ़्तारी पर बहुत नाराज हुए थे।

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प्रश्न 3.
त्याग और हिम्मत का मानव जीवन में क्या स्थान है? जीवन मूल्यों के आधार पर बताइए कि मानव के सर्वांगीण विकास में त्याग और हिम्मत का क्या स्थान है?
उत्तर :
मनुष्य त्यांग एक प्रकार का समर्पण भाव है। यह भाव मानव में तब आता है जब वह पूर्णतः स्वार्थ रहित हो जाता है। उसके मन में किसी प्रकार का कोई छल-कपट नहीं होता। तब वह समाज तथा सामाजिक कल्याण के कार्यों से जुड़ जाता है। के सर्वांगीण विकास में त्याग का अपना अहम स्थान है। त्याग मानव को अन्य मनुष्यों से श्रेष्ठ बनाता है। उसे सामाजिक कल्याण की भावना से जोड़ता है। त्याग व्यक्ति के अंदर हिम्मत तथा साहस का संचार करता है। उसे बल प्रदान करता है। समाज में सम्मान तथा सत्कार दिलाता है। त्याग की भावना से ओत-प्रोत होकर व्यक्ति स्वयं के लिए न जीकर देश तथा उसके हितों के लिए जीता है।

उसका जीवन अन्य लोगों के लिए मार्ग-दर्शन का काम करता है। वह उन्हें नई शक्ति तथा प्रेरणा देने का काम करता है। अतः स्पष्ट है कि व्यक्ति का सर्वांगीण विकास तभी संभव है जब उसमें त्याग की भावना का समावेश हो। यही त्याग की भावना स्वतः उसमें हिम्मत का संचार करके उसे सेवा के पथ पर अग्रसर करती है। उसके मनोबल को ऊँचा करते हुए उसे कर्तव्यपरायण बनाती है। स्वयं के हित उसके लिए निरर्थक हो जाते हैं। राष्ट्रहित, समाज कल्याण तथा सामाजिक उन्नति ही उसका ध्येय बनकर रह जाता है।

प्रश्न 4.
“ दिये जल उठे” शीर्षक पाठ प्रतीकात्मक है। मूल्य-बोध के आधार पर बताइए कि विश्वास और आपसी एकता कब और कैसे क्रांति अथवा बदलाव का रूप ले लेती है?
उत्तर :
विश्वास मानव मन का आंतरिक भाव है। यह भाव सहसा किसी में नहीं जगता। इसके लिए परिश्रम करना पड़ता है। वर्णित पाठ में सरदार पटेल और महात्मा गांधी का आचरण ही उन्हें लोगों से जोड़ता है। उनका देश के प्रति त्याग तथा समर्पण भाव लोगों में विश्वास जगाता है कि वे उनके सहयोग से देश के लिए कुछ भी कर सकते हैं। उनके इसी भाव के कारण लोगों का विश्वास उन पर जम जाता है। उनके इसी विश्वास का प्रमाण उनका एकजुट होना है।

उनकी एकजुटता तब परिलक्षित होती है जब वे अपने विश्वास और सहयोग भाव से युक्त होकर नदी के दोनों किनारे हाथ में दीये लेकर खड़े हो जाते हैं। घोर अंधकार को अपने विश्वास की रोशनी से जगमगा देते हैं। उनका यही विश्वास आपसी सहयोग से युक्त होकर एक बदलाव का सूचक बनता है कि अब बहुत हुआ, हमें आजादी चाहिए। गुलामी के अंधकार को समाप्त कर आजादी की सुनहरी रोशनी चाहिए। यह बदलाव की स्थिति क्रांति का रूप बन जाती है तब ताकतवर से ताकतवर व्यक्ति भी विश्वास और एकता के समक्ष ढेर हो जाता है।

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प्रश्न 5.
गांधी जी ने ब्रिटिश शासन के विषय में जनसभा में क्या कहा ?
उत्तर :
महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन को कुशासन बताया। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश राज में तो निर्धन व्यक्ति से लेकर राजा तक सभी दुखी हैं। किसी को सुख प्राप्त नहीं हो रहा है। देश के सभी नवाब अंग्रेज़ी सरकार के हाथ की कठपुतली बनकर रह गए हैं। उन्होंने कहा कि अंग्रेज़ी राज तो राक्षसी राज है और इसका नाश कर देना चाहिए।

प्रश्न 6.
ब्रिटिश शासकों में किस-किस वर्ग के लोग थे ?
उत्तर :
ब्रिटिश शासकों में विभिन्न राय रखने वाले लोग थे। उन लोगों में गांधी जी को लेकर विभिन्न राय थी। एक वर्ग ऐसा था, जिन्हें लगता था कि गांधी जी और उनके सत्याग्रही महिसागर नदी के किनारे नमक बनाने के कानून का उल्लंघन करके नमक बनाएँगे। गांधी जी को अच्छा समझने वाले अधिकारी इस बात से सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि गांधी जी कोई भी काम कानून तोड़कर नहीं करेंगे।

प्रश्न 7.
उन दिनों नमक की रखवाली के लिए चौकीदार क्यों रखे जाते थे ?
उत्तर :
उन दिनों नमक बनाना सरकारी काम था। महिसागर नदी के किनारे समुद्री पानी काफ़ी नमक छोड़ जाता था। इसलिए उसकी रखवाली के लिए सरकारी नमक- चौकीदार रखे जाते थे। यह सब इसलिए भी किया जाता था कि आम आदमी नमक की चोरी न कर ले।

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प्रश्न 8.
गांधी जी को नदी पार कराने की ज़िम्मेदारी किसे सौंपी गई ?
उत्तर :
गांधी जी को नदी पार कराने की ज़िम्मेदारी रघुनाथ काका को सौंपी गई थी। उन्होंने इस काम के लिए एक नई नाव खरीदी। गांधी जी को नदी पार कराने के काम के कारण रघुनाथ काका को निषादराज कहा जाने लगा था।

प्रश्न 9.
नदी के दोनों ओर दिये क्यों जल रहे थे ?
उत्तर :
आधी रात के समय नदी के किनारे पर बहुत अँधेरा था। समुद्र का पानी भी बहुत चढ़ गया था। छोटे-मोटे दियों से अँधेरा दूर नहीं होने वाला था। थोड़ी देर में उस अँधेरी रात में गांधी जी को आगे का सफ़र तय कराने के लिए दोनों किनारों पर हजारों की संख्या में दिये जल उठे। एक किनारे पर वे लोग थे जो गांधी जी को विदा करने आए थे। दूसरे किनारे पर वे लोग थे जो गांधी जी का स्वागत करने आए थे।

प्रश्न 10.
‘दिये जल उठे’ – पाठ के आधार पर महिसागर नदी के किनारे के दृश्यों का वर्णन करें।
उत्तर :
महिसागर नदी के तट पर घनी अंधेरी रात में भी मेला-सा लगा हुआ था। नदी के दोनों किनारों पर लोगों के हाथों में टिमटिमाते दिये थे। वे लोग गांधी जी और अन्य सत्याग्रहियों का इंतजार कर रहे थे। जब गांधी जी नाव पर चढ़ने के लिए नाव तक पहुँचे तो महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और वल्लभभाई पटेल की जय-जयकार के नारे लगने लगे। थोड़ी ही देर में नारों की आवाज़ दूसरे तट से भी आने लगी। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह नदी का तट न होकर पहाड़ों की घाटी हो, जहाँ से टकराकर आवाज़ वापस लौट आया करती है। आधी रात के समय नदी के दोनों किनारों पर हाथों में दिये लेकर खड़े लोग इस बात के प्रतीक थे कि उनके मन में अपने देश को आज़ाद कराने की कितनी ललक थी। नदी के दोनों किनारों पर खड़े लोगों के हाथों में टिमटिमाते दिये बहुत आकर्षक लग रहे थे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 6 दिये जल उठे

प्रश्न 11.
‘दिये जल उठे’-पाठ के आधार पर स्पष्ट करें कि गांधीजी प्रत्येक स्थिति का सामना करना जानते थे।
उत्तर :
महिसागर नदी का क्षेत्र दलदली और कीचड़ से युक्त मिट्टी वाला था। इस में लगभग चार किलोमीटर पैदल चलना होता था। लोगों ने गांधी जी से कहा कि वे उन्हें कंधे पर उठा कर ले चलते हैं, परंतु गांधी जी ने इसे धर्मयात्रा कहा और कहा कि वे स्वयं चलकर इसे पूरा करेंगे। उनके इस कथन से उनके चरित्र की इस विशेषता का पता चलता है कि वे अंग्रेजों के विरुद्ध अपने आंदोलन को धर्म की लड़ाई मानते थे तथा अपना प्रत्येक कार्य स्वयं करना चाहते थे। वे किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे।

वे अपने लक्ष्य की ओर स्वयं बढ़कर जाना चाहते थे। उन्हें रात के अंधेरे में महिसागर नदी पार करनी थी। उनके साथ कुछ सत्याग्रही भी थे। अँधेरा इतना घना था कि हाथ को हाथ नहीं सूझता था। थोड़ी देर में कई हज़ार लोग नदी के तट पर पहुँच गए। उन सबके हाथों में दिये थे। यही दृश्य नदी के दूसरे किनारे का भी था। इस प्रकार सारा वातावरण दीयों की रोशनी से जगमगा उठा और महात्मा गांधी की जय, सरदार पटेल की जय, जवाहर लाल नेहरू की जय के नारों के बीच सबने पानी और कीचड़ में चलकर महिसागर नदी को पार कर लिया। इससे यही सिद्ध होता है कि कैसी भी कठिन स्थिति क्यों न हो, यदि उसका सामना सूझबूझ और आपसी मेलजोल से किया जाए तो उस स्थिति का मुकाबला किया जा सकता है।

दिये जल उठे Summary in Hindi

पाठ का सार :

‘दिये जल उठे’ पाठ मधुकर उपाध्याय द्वारा लिखित है जिसमें उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने में तत्कालीन नेताओं के योगदान को दर्शाया है। सरदार वल्लभभाई पटेल, महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ने देश को आजाद कराने के लिए समय-समय पर अनेक आंदोलन किए। इन आंदोलनों में एक दांडी कूच भी था। सरदार पटेल इसी दांडी कूच की तैयारी के सिलसिले में गुजरात के रास नामक स्थान पर गए थे।

वहाँ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 500 रुपये जुर्माने के साथ तीन महीने की सज़ा सुनाई गई। पटेल की इस गिरफ़्तारी से लोगों में बड़ा रोष था। देश भर में उनकी गिरफ्तारी पर अनेक प्रतिक्रियाएँ हुईं। मदनमोहन मालवीय ने केंद्रीय सभा में एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें बिना मुकदमा चलाए पटेल को जेल भेजने के सरकारी कदम की निंदा की गई। उधर मोहम्मद अली जिन्ना ने सरदार वल्लभभाई पटेल की गिरफ़्तारी को अभिव्यक्ति के सिद्धांत पर हमला बताया।

सरदार पटेल को रास से बोरसद की अदालत लाया गया और वहाँ से उन्हें साबरमती जेल भेज दिया गया। जेल का रास्ता साबरमती आश्रम के सामने से होकर जाता था। आश्रमवासी अपने प्रिय नेता पटेल की एक झलक पाने के लिए उत्सुक थे। वे सड़क के दोनों किनारे खड़े हो गए। वहाँ पटेल और गांधी की एक संक्षिप्त मुलाकात हुई। पटेल ने गांधी जी और आश्रमवासियों से कहा, “मैं चलता हूँ।

अब आपकी बारी है।” पटेल के गिरफ्तार होने के बाद सारी जिम्मेवारी गांधी जी ने संभाल ली। वे रास पहुँचे और उन्होंने दरबार समुदाय के लोगों को देश को आजाद कराने में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया। इस बीच जवाहर लाल नेहरू ने गांधी जी से मिलने की इच्छा व्यक्त की किंतु गांधी जी ने मना कर दिया। गांधी जी ने दांडी कूच शुरू करने से पहले ही निश्चय किया कि वे अपनी यात्रा ब्रिटिश अधिकार वाले भू-भाग से ही करेंगे। गांधी जी और अन्य सत्याग्रही गाजे-बाजे के साथ रास पहुँचे।

गांधी जी ने वहाँ जनसभा को संबोधित करके लोगों को सरकारी नौकरियाँ छोड़ने के लिए प्रेरित किया गांधी जी और सत्याग्रही जब रास से चलकर कनकपुरा पहुँचे तो एक वृद्धा ने गांधी जी को देश से आज़ाद कराने की बात कही। उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वे अब देश को आजाद कराके ही लौटेंगे। गांधी जी ने अपनी दांडी यात्रा को धर्मयात्रा की संज्ञा दी और उसमें किसी प्रकार का आराम न करने की बात कही। गांधी और अन्य सत्याग्रही अंततः मही नदी के किनारे पहुँचे। वहाँ उनके स्वागत में बहुत सारे लोग खड़े थे। आधी रात के समय मही नदी के तट पर अद्भुत नजारा था।

सभी लोग अपने हाथों में दिये लेकर खड़े थे। जैसे ही महात्मा गांधी नाव से नदी पार करने के लिए नाव तक पहुँचे तो महात्मा गांधी, पटेल और नेहरू के जयकारों से मही नदी के दोनों किनारे गूँज उठे। गांधी जी नदी पार करके विश्राम करने के लिए झोंपड़ी में चले गए। गांधी जी के पार उतरने के बाद भी लोग हाथों में दीये लिए खड़े रहे। वे अन्य सत्याग्रहियों के पार उतरने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उस समय महीं नदी के दोनों किनारों पर हाथों में दिये लिए खड़े लोग इस बात के प्रतीक थे कि उनके हृदय में अपने देश को आजाद कराने वाले नेताओं के प्रति कितनी श्रद्धा थी। साथ ही वे देश को शीघ्र आजाद हुआ देखना चाहते थे।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

  • सत्याग्रह – गांधी जी द्वारा देश की स्वतंत्रता के लिए चलाया गया आंदोलन।
  • कबूल – स्वीकार।
  • निषेधाज्ञा – मनाही का आदेश।
  • क्षुब्ध – नाराज़।
  • संक्षिप्त – छोटी-सी।
  • प्रतिक्रिया – किसी कार्य के परिणामस्वरूप होने वाला कार्य।
  • भर्त्सना – निंदा।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – बोलने की आज़ादी।
  • नज़ीर – उदाहरण।
  • भव्य – शानदार।
  • रियासतदार – रियासत या इलाके का मालिक।
  • प्रयाण – प्रस्थान।
  • पुश्तैनी – पीढ़ियों से चला आ रहा।
  • इस्तीफ़ा – त्याग-पत्र।
  • आधिपत्य – प्रभुत्व।
  • जिक्र – वर्णन।
  • तुच्छ – हीन।
  • ठंडी बयार – ठंडी हवा।
  • स्वराज – स्वराज्य, अपना राज्य।
  • कुशासन – बुरा शासन।
  • रंक – गरीब, निर्धन व्यक्ति।
  • संहार – नाश करना।
  • हुक्मरानों – शासकों।
  • परिवर्तन – बदलाव।
  • नज़ारा – दृश्य।
  • प्रतिध्वनि – किसी शब्द के उपरांत सुनाई पड़ने वाला, उसी से उत्पन्न शब्द, गूँज, अनुगूँज।
  • संभवत: – शायद।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

JAC Class 9 Hindi हामिद खाँ Textbook Questions and Answers

बोध-प्रश्न –

प्रश्न 1.
लेखक का परिचय हामिद खाँ से किन परिस्थितियों में हुआ ?
उत्तर :
हामिद खाँ से लेखक दो साल पहले तक्षशिला के नजदीक एक गाँव में मिला था। लेखक का कड़कड़ाती धूप और भूख-प्यास, से बुरा हाल था। उसने गाँव के तंग बाजार के चारों ओर चक्कर लगा लिया था लेकिन उसे कहीं कोई होटल दिखाई नहीं दिया था। अचानक लेखक को एक दुकान से चपातियाँ सिंकने की सोंधी महक आई। वह दुकान के अंदर गया। वहाँ दुकान का मालिक हामिद खाँ खाना बना रहा था। उसी दुकान पर लेखक का हामिद खाँ से परिचय हुआ। हामिद खाँ ने लेखक से खाने के पैसे भी नहीं लिए थे।

प्रश्न 2.
‘काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता।’ हामिद ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर :
लेखक ने हामदि खाँ को बताया कि हमारे देश में हिंदू-मुसलमान में कोई फ़र्क नहीं है तथा वहाँ सभी मिल-जुलकर रहते हैं और बेखटके मुसलमानी होटल में जाया करते हैं। भारत में मुसलमानों की पहली मस्जिद का निर्माण भी लेखक के ही राज्य में हुआ था तथा वहाँ कभी भी हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे नहीं होते। यह सब सुनकर हामिद खाँ यह कहता है कि काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब देख सकता। उसके देश में यह सब कुछ नहीं है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

प्रश्न 3.
लेखक कि यह बात कि उसके देश में हिंदू-मुसलमान मिलकर रहते हैं सुनकर हामिद खाँ को आश्चर्य हुआ और उसके मुख से पीड़ा युक्त स्वर निकला कि “काश, मैं आपके मुल्क में आकर यह सब देख सकता” हामिद के इस वाक्य में एक पीड़ा छिपी है। अपने विवेक के आधार पर बताइए कि वह पीड़ा क्या है और क्यों है?
उत्तर :
मानव एक विवेकशील प्राणी है। एक-दूसरे से लगाव करना और जोड़ना उसके स्वभाव में है। लेखक जब हामिद को यह बताता है कि उसके भारत देश में हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते हैं तो मनुष्यता का यही लगाव हामिद को उसकी ओर खींचता है। उसके अंतर की पीड़ा उसके मुख पर आ जाती है। वह सहसा बोल पड़ता है कि काश वह हिंदू-मुसलमान एकता का यह दृश्य अपनी आँखों से देख पाता। वह ऐसा इसलिए कहता है क्योंकि उसके अपने देश में हिंदू-मुसलमान की एकता की बात तो दूर रही, आपसी प्रेम तक नहीं है। चहुँ ओर मार-काट, शत्रुता तथा आतंक का साया है। ऐसे में लेखक का प्रेम तथा सौहार्दयुक्त वातावरण की बात करने से हामिद की पीड़ा का मुखरित होना सहज स्वाभाविक है। हामिद की यह पीड़ा उसे अपने देश में उचित प्रेम, आदर तथा सम्मान न मिल पाने के कारण सामने आई है। हामिद ही क्यों, प्रत्येक मनुष्य प्यार और सम्मान का भूखा होता है।

प्रश्न 4.
मालाबार में हिंदू-मुसलमानों के परस्पर संबंधों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
हामिद खाँ लेखक से कहता है कि वे हिंदू होकर मुसलमान के यहाँ खाना खा रहे हैं। उस समय लेखक विश्वास और गर्व के साथ हामिद खाँ को बताते हैं कि हमारे यहाँ तो बढ़िया चाय पीनी हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बिना झिझक मुसलमानी होटल में जाते हैं। वहाँ हिंदू-मुसलमान लोग आपस में कोई फ़र्क नहीं समझते हैं। दोनों संप्रदायों में दंगे न के बराबर होते हैं। भारत में मुसलमानों ने पहली मस्जिद केरल राज्य के ‘कोडुंगल्लूर’ नामक स्थान पर बनाई थी। मालाबार में हिंदू-मुसलमान भाईचारे के साथ रहते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

प्रश्न 5.
तक्षशिला में आगजनी की खबर पढ़कर लेखक के मन में कौन-सा विचार कौंधा ? इससे लेखक के स्वभाव की किस
विशेषता का परिचय मिलता है ?
उत्तर :
तक्षशिला में सांप्रदायिक दंगों में आगजनी का समाचार पढ़कर लेखक को हामिद खाँ की याद आती है। उन्हें हामिद खाँ की मेहमाननवाजी तथा स्नेह याद आता है। वह भगवान से प्रार्थना करता है कि हामिद खाँ तथा उसकी दुकान आगजनी में बच जाए क्योंकि उसी दुकान में कड़कड़ाती धूप में छाया तथा भूखे पेट को खाना मिला था। लेखक का हामिद खाँ के लिए प्रार्थना करना यह दर्शाता है कि लेखक का हृदय मानवीय संवेदना से भरा हुआ है। उसके लिए हिंदू और मुसलमान में कोई अंतर नहीं है। उसे जहाँ प्यार, मान-सम्मान एवं विश्वास मिलता है उससे इंसानियत का संबंध बना लेता है। लेखक विश्व बंधुत्व एवं भाईचारे की भावना में विश्वास रखता है।

JAC Class 9 Hindi हामिद खाँ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार गाँव का बाज़ार कैसा था ?
उत्तर :
लेखक तक्षशिला की कड़कड़ाती धूप तथा भूख-प्यास से बेहाल रेलवे स्टेशन से करीब पौना मील दूर एक गाँव में पहुँचा। वहाँ के बाज़ार की गलियाँ हाथ की रेखाओं के समान तंग थीं। चारों तरफ धुआँ, मच्छर तथा गंदगी थी। कहीं-कहीं से चमड़े की बदबू भी उठ रही थी। वहाँ लंबे कद के पठान अपनी सहज अलमस्त चाल में चलते नज़र आ रहे थे।

प्रश्न 2.
लेखक ने दुकान के अंदर क्या देखा ?
उत्तर :
लेखक को दुकानदार ने बेंच पर बैठने के लिए कहा। वहाँ से लेखक ने भीतर झाँककर देखा कि आँगन बेतरतीबी से लीपा हुआ था। दीवारों पर धूल चढ़ी हुई थी। एक कोने में चारपाई पर एक दढ़ियल बुड्ढा आदमी हुक्का पी रहा था। उसने हुक्के की आवाज़ में अपने आपको ही नहीं पूरे जहान को भुला रखा था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

प्रश्न 3.
हामिद खाँ को लेखक के हिंदू होने का विश्वास क्यों नहीं है ?
उत्तर :
लेखक हामिद खाँ को अपने यहाँ के हिंदू-मुसलमान संबंधों के विषय में बताता है तो उसे लेखक के हिंदू होने में विश्वास नहीं होता क्योंकि तक्षशिला में तो कोई हिंदू इतने गर्व तथा विश्वास से हिंदू-मुसलमानों के आपसी संबंधों की बात नहीं करता है। वहाँ हिंदू उन लोगों को आततायियों की संतान समझते हैं, इसलिए उन्हें भी अपनी आन के लिए लड़ना पड़ता है। लेखक को हामिद खाँ की बातों में सच्चाई नज़र आती है।

प्रश्न 4.
हामिद खाँ के अनुसार ईमानदारी और मुहब्बत का मानवीय रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
हामिद खाँ लेखक से बहुत प्रभावित होता है। वह लेखक से कहता है कि हम किसी पर धौंस जमाकर या मज़बूर करके उससे प्यार मोल नहीं कर सकते हैं। जिस ईमान और मुहब्बत से आप खाना खाने होटल में आए उसका मेरे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा है। यदि हिंदू-मुसलमान ईमान से आपस में मुहब्बत करें तो कितना अच्छा होगा। हामिद खाँ भी आपसी भाईचारे तथा विश्व-बंधुत्व की भावना में विश्वास रखता है, इसीलिए मानवीय रिश्तों की परिभाषा को समझता है।

प्रश्न 5.
हमें इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर :
‘हामिद खाँ’ कहानी के लेखक ने इस कहानी के माध्यम से हिंदू-मुसलमान एकता तथा भाईचारे का संदेश दिया है। लेखक ने पाया है कि चारों तरफ मानवीय समस्याएँ तथा संवेदनाएँ समान हैं, उन्हें केवल आपसी प्यार से समझा जा सकता है। हम किसी पर धौंस जमाकर तथा उसे मजबूर करके उससे प्यार नहीं पा सकते। प्यार एवं मान-सम्मान पाने के लिए सौहार्दपूर्ण तथा आत्मीय व्यवहार करना पड़ता है। इस कहानी में लेखक तथा हामिद खाँ अनजान होते हुए भी छोटी-सी मुलाकात में एक-दूसरे से इंसानियत का संबंध जोड़ लेते हैं। दोनों एक-दूसरे के सौहार्दपूर्ण तथा आत्मीय व्यवहार से प्रभावित होते हैं। इसलिए लेखक दो वर्ष बाद भी हामिद खाँ को याद रखता है तथा उसकी सलामती की दुआ माँगता है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से विश्वास, भाईचारे तथा विश्व- बंधुत्व की शिक्षा दी है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार परदेश में क्या चीज़ आपकी रक्षा करती है ?
उत्तर :
लेखक ने अपने अनुभव से यह बात अच्छी तरह समझ ली थी कि परदेश में अपनी रक्षा के लिए कोई हथियार सहायक नहीं होता है। परदेश में यदि आपकी कोई रक्षा कर सकता है तो वह है आपकी मुस्कुराहट। मुस्कुराहट से सामने खड़े अजनबी को अपनेपन का एहसास करवाकर अपना बनाया जा सकता है। इसलिए अजनबियों के बीच मुस्कुराहट ही आपकी रक्षा करती है।

प्रश्न 7.
‘हामिद खाँ’ कहानी के आधार पर आप हामिद खाँ के विषय में क्या सोचते हैं ?
उत्तर :
हामिद खाँ पाकिस्तान के तक्षशिला के छोटे-से गाँव का रहने वाला था। हामिद खाँ की एक छोटी-सी दुकान थी। हामिद खाँ देखने में साधारण व्यक्ति लगता है, परंतु वह एक नेक दिल मुसलमान था जिसके दिल में विश्वबंधुत्व की भावना थी। वह भी आम लोगों की तरह मिल-जुलकर रहने में विश्वास करता था। उसे इस बात पर हैरानी हुई कि एक हिंदू मुसलमान की दुकान पर खाना खाने आया था, परंतु लेखक की बातें सुनकर उसे प्रसन्नता होती है। वह सोचता है कि कहीं तो हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

प्रश्न 8.
लेखक तक्षशिला के सांप्रदायिक दंगों की आग से हामिद खाँ की दुकान के बचे रहने की प्रार्थना क्यों करता है ?
उत्तर :
लेखक दो साल पहले तक्षशिला के खंडहर देखने गया था। वहाँ उसकी मुलाकात हामिद खाँ से होती है। हामिद खाँ की दुकान में लेखक को जो अपनापन और शांति मिली, वह आज तक नहीं भूल पाया था। इसलिए वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि जिस दुकान ने उस भूखे को दोपहर में छाया और खाना देकर उसकी आत्मा को तृप्त किया था, वह दुकान सांप्रदायिक दंगों से बची रहे।

प्रश्न 9.
हामिद खाँ कहानी में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘हामिद खाँ’ कहानी के माध्यम से लेखक हिंदू-मुसलमानों के बीच एकता तथा भाईचारे को दर्शाया है। लेखक ने पाया है कि चारों तरफ मानवीय समस्याएँ तथा संवेदनाएँ समान हैं। उन्हें आपसी प्यार से समझा जा सकता है। हम किसी पर धौंस जमाकर तथा उसे मज़बूर करके उससे प्यार नहीं पा सकते हैं। प्यार एवं मान-सम्मान पाने के लिए सौहार्दपूर्ण तथा आत्मीय व्यवहार करना पड़ता है। इस कहानी में लेखक तथा हामिद खाँ अनजान होते हुए भी छोटी-सी मुलाकात में एक-दूसरे से आत्मीय संबंध जोड़ लेते हैं। दोनों एक-दूसरे के सौहार्दपूर्ण तथा आत्मीय व्यवहार से प्रभावित होते हैं। इसलिए लेखक दो वर्ष बाद भी हामिद खाँ को याद रखता है तथा उसकी सलामती की दुआ माँगता है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से विश्वास, भाईचारे तथा विश्व- बंधुत्व की शिक्षा दी है।

प्रश्न 10.
‘हामिद खाँ’ को लेखक के हिंदू होने का विश्वास क्यों नहीं हो रहा था ? लेखक का हामिद खाँ पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
लेखक हामिद खाँ को अपने यहाँ के हिंदू-मुसलमानों के बीच के संबंधों के विषय में बताता है तो उसे लेखक के हिंदू होने पर विश्वास नहीं होता क्योंकि तक्षशिला में तो कोई हिंदू इतने गर्व तथा विश्वास से हिंदू-मुसलमानों के आपसी संबंधों की बात ही नहीं करता है। वहाँ हिंदू उन लोगों को आततायियों की संतान समझते हैं। इसलिए उन्हें भी अपनी आन के लिए लड़ना पड़ता है। लेखक को हामिद खाँ की बातों में सच्चाई नज़र आती है। वह लेखक से बहुत प्रभावित होता है। वह लेखक से कहता है कि हम किसी पर धौंस जमाकर या मज़बूर करके उससे प्यार मोल नहीं खरीद सकते हैं।

जिस ईमान और मुहब्बत से आप खाना खाने होटल में आए उसका मेरे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा है। यदि हिंदू-मुसलमान ईमान से आपस में मुहब्बत करें तो कितना अच्छा होगा। हामिद खाँ भी आपसी भाईचारे तथा विश्व बंधुत्व की भावना में विश्वास रखता है। इसीलिए मानवीय रिश्तों के महत्व को समझता है। वह लेखक से खाने के पैसे नहीं ले रहा था क्योंकि वह लेखक को अपना मेहमान मान रहा था। लेकिन लेखक दुकानदार होने के कारण हामिद खाँ को रुपया देना चाहता था। हामिद ने सकुचाते हुए रुपया लिया और फिर वापस कर दिया और कहा कि मैं चाहता कि यह आपके हाथों में रहे। जब आप वापस पहुँचे तो किसी मुसलमानी होटल में जाकर पुलाव खाएँ तो उसको दें और तक्षशिला के इस भाई हामिद को याद कर लें।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

प्रश्न 11.
‘हामिद खाँ’ कहानी का ‘हामिद खाँ’ आपको कैसा लगा ?
उत्तर :
हामिद खाँ पाकिस्तान के तक्षशिला के छोटे-से गाँव का रहने वाला था। हामिद खाँ की एक छोटी-सी दुकान थी। हामिद खाँ देखने में साधारण व्यक्ति लगता है, परंतु वह एक नेकदिल मुसलमान था, जिसके दिल में विश्व बंधुत्व की भावना थी। वह भी आम लोगों की तरह मिल-जुलकर रहने में विश्वास करता था। उसे इस बात पर हैरानी हुई कि एक हिंदू मुसलमान की दुकान पर खाना खाने आया था, परंतु लेखक की बातें सुनकर उसे प्रसन्नता होती है। वह सोचता है कि कहीं तो हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते हैं। वह धर्म, जाति आदि के भेदभाव में विश्वास नहीं रखता। उसका हृदय मानवीय संवेदना से भरा हुआ है। उसे विश्व-बंधुत्व में विश्वास है। उसे इंसानियत के संबंधों में विश्वास है।

हामिद खाँ Summary in Hindi

पाठ का सार :

‘हामिद खाँ’ कहानी के रचयिता ‘श्री एस० के० पोट्टेकाट’ हैं। प्रस्तुत कहानी में लेखक को जाति, धर्म और संप्रदाय से दूर मानवीय सौहार्द को उभारने में सफलता मिली है। इस कहानी में लेखक ने बड़ी सादगी से हिंदू और मुसलमान दोनों के भीतर धड़कते हुए मानव हृदय की एकता का चित्रण किया है। लेखक तक्षशिला (पाकिस्तान) में हामिद खाँ के होटल में खाना खाने जाता है। इसी मुलाकात में दोनों के हृदय में एक-दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना प्रकट होती है। लेखक ने पाया कि सभी जगह मानव की समस्याएँ और संवेदनाएँ समान हैं।

तक्षशिला में आगजनी का समाचार पढ़ते ही लेखक को हामिद खाँ की याद आती है। वह उसकी एवं दुकान की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना करता है। लेखक दो साल पहले तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने गया था। वहाँ की कड़कड़ाती धूप और भूख-प्यास के कारण उसका बुरा हाल हो गया था। लेखक पौना मील दूरी पर बसे एक गाँव में गया। वहाँ का बाज़ार हस्त रेखाओं के समान तंग था। चारों ओर धुआँ, मच्छर और गंदगी थी। कहीं-कहीं चमड़े की बदबू भी थी। बाज़ार में लंबे कद के पठान अपनी अलमस्त चाल से चलते दिखाई दे रहे थे।

लेखक एक दुकान में गया, वहाँ चपातियाँ बन रही थीं। उसने काफ़ी विदेश भ्रमण किया था, इसलिए उसे पता था कि परदेश में मुस्कुराहट ही रक्षक और सहायक होती है। लेखक ने मुस्कुराते हुए दुकान में प्रवेश किया। अंदर एक पठान अंगीठी के पास बैठा चपातियाँ सेंक रहा था। लेखक को देखकर उसने अपना काम छोड़ दिया और उसकी ओर देखने लगा। लेखक के ‘खाने को कुछ मिलेगा’ पूछने पर उसने बताया कि चपाती और सालन है और बेंच पर बैठने का इशारा किया। लेखक ने दुकान के अंदर झाँककर देखा कि आँगन बेतरतीबी से लीपा हुआ था, दीवारें धूल से भरी हुई थीं और एक कोने में चारपाई पर एक दढ़ियल बुड्ढा हुक्का गुड़गुड़ा रहा था।

उसने हुक्के की आवाज में सारे जहान को भुला रखा था। अधेड़ उम्र के पठान ने लेखक से पूछा कि कहाँ के रहने वाले हो ? लेखक ने बताया हिंदुस्तान के दक्षिणी छोर मद्रास से आगे मालाबार का रहने वाला हूँ। वह पठान पूछता है कि आप हिंदू हो ? लेखक के हाँ कहने पर वह फीकी मुस्कुराहट से पूछता है कि आप मुसलमानी होटल में खाना खाओगे। लेखक उसे गर्व से बताता है कि हमारे यहाँ बढ़िया चाय पीना हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग मुसलमानी होटल में जाते हैं। हमारे यहाँ हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते हैं।

भारत में मुसलमानों की पहली मस्जिद का निर्माण हमारे ही राज्य कोडुंगल्लूर में हुआ था। वहाँ दोनों संप्रदाय में झगड़े न के बराबर होते हैं। लेखक की बात सुनकर पठान कहता है कि काश ! वह भारत में आकर सब कुछ अपनी आँखों से देख सकता। लेखक को लगता है कि उसे उनकी बात पर विश्वास नहीं है। यह पूछने पर वह पठान कहता है कि मुझे आपकी बात पर यकीन है लेकिन आपके हिंदू होने पर शक है। क्योंकि यहाँ पर कोई भी हिंदू इतने विश्वास से मुसलमानों से इस तरह बात नहीं कर सकता है। वे हमें आततायियों की संतान समझते हैं।

हमारी नियति यह है कि हमें अपनी आन के लिए उनसे लड़ना पड़ता है। लेखक को उसकी आवाज में सच्चाई लगती है। लेखक को वह अपना नाम हामिद खाँ बताता है। वह कहता है कि हम किसी पर धौंस जमाकर प्यार नहीं कर सकते हैं। आपकी ईमानदारी और मुहब्बत ने मेरे दिल पर गहरा प्रभाव डाला है। यदि सब इसी प्रकार मुहब्बत करते तो कितना अच्छा होता। एक छोटे लड़के ने लेखक के सामने खाने की थाली लगा दी। उसने बड़े चाव से खाना खाया।

लेखक ने हामिद खाँ से खाने के पैसे पूछे तो उसने मुस्कुराते हुए हाथ पकड़ लिया और बोला, “आपसे पैसे नहीं लूँगा। आप तो मेरे मेहमान हैं। ” लेकिन लेखक अपनी मुहब्बत की कसम देकर दुकानदार होने के कारण खाने के पैसे लेने को कहता है। हामिद खाँ ने रुपया लेकर लेखक को वापस कर दिया और कहा कि इस रुपए से आप वापस जाकर किसी मुसलमानी होटल में खाना खाएँ तो उसे दे देना और मुझे याद कर लेना। लेखक तक्षशिला के खंडहरों की ओर लौट गया। उसके बाद वह कभी हामिद खाँ से नहीं मिला। लेकिन लेखक को आज भी हामिद खाँ की आवाज एवं उसके साथ बिताए क्षणों की याद है। लेखक भगवान से प्रार्थना करता है कि तक्षशिला के सांप्रदायिक दंगों में हामिद खाँ और उसकी दुकान बच जाए क्योंकि उस दुकान ने लेखक को दोपहर के समय छाया तथा खाना देकर तृप्त किया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • आगजनी – आग लगाने का काम।
  • खबर – समाचार।
  • आलम – दशा, हालत।
  • विनती – प्रार्थना।
  • बेहाली – दुर्दशा।
  • सहज – स्वाभाविक।
  • सड़ाँध – सड़ने की दुर्गध।
  • उम्र – आयु।
  • अलसाई चाल – सुस्त चाल।
  • बेपरवाही – बिना किसी चिंता के।
  • संजीदगी – शिष्टता, गंभीरता।
  • दढ़ियल – दाड़ी वाला।
  • सालन – सब्ज़ी।
  • मेहमाननवाजी – अतिथि-सत्कार।
  • नियति – भाग्य।
  • सकून – शांति, सुख।
  • तृप्त – संतुष्ट।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त

Students should go through these JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त will seemingly help to get a clear insight into all the important concepts.

JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त

→ वृत्त (Circle) : वृत्त एक समतल में स्थित उन बिन्दुओं का समुच्चय (Set) होता है, जो समतल में दिए गए एक स्थिर बिन्दु से दी हुई नियत दूरी पर होते हैं।
स्थिर बिन्दु को वृत्त का केन्द्र (Centre) और उस केन्द्र से वृत्त के प्रत्येक बिन्दु की नियत दूरी को वृत्त की त्रिज्या (Radius) कहते हैं।
(i) वृत्त की परिभाषा एक बिन्दुपध के रूप में भी दी जा सकती है।
परिभाषा : यदि एक समतल में कोई बिन्दु इस तरह गतिमान होता है कि समतल में दिए गए एक स्थिर बिन्दु से उसकी दूरी सदा ही नियत रही है, तो उस बिन्दु के पथ को वृत्त कहते हैं।
(ii) समुच्चय संकेतन में वृत्त को इस प्रकार लिखा जाता है:
C(O, r) = {X : OX = r}
(iii) एक वृत्त की सभी त्रिज्याएँ समान होती हैं। आकृति में,
OX = OY = OZ = r
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 1

→ वृत्त का अन्तः और बाह्य भाग (Interior and Exterior of a Circle) :
बिन्दु को, जहाँ OP <r, वृत्त का अन्तः बिन्दु कहते हैं। वृत्त के अन्तःबिन्दु को I1 से प्रदर्शित करते हैं। बिन्दु Q को, जहाँ OQ > r वृत्त का बाह्य बिन्दु कहते हैं। वृत्त के बाह्य भाग को I2 से दशति हैं।
सांकेतिक रूप में,
I1 = {P: OP < r } तथा
I2 = {P: OP > r}
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 2

→ गोल चक्रिका (Circular Disc) वृत्त C (O, r) के अन्तःभाग और वत्त पर स्थित बिन्दुओं के समुच्चय को केन्द्र O तथा त्रिज्या r वाली एक गोल चक्रिका कहते हैं।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त

→ संकेन्द्रीय वृत्त (Concentric Circles): एक ही केन्द्र वाले दो या दो से अधिक वृत्तों को संकेन्द्रीय वृत्त कहते हैं।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 3

→ वृत्त का चाप (Arc of Circle) : यदि PQ वृत्त C (O, r) पर कोई दो बिन्दु हों तो वृत्त दो भागों में बँट जाता है, जिनमें से प्रत्येक भाग को वृत्त का चाप कहते हैं। छोटे भाग को लघु चाप (Minor arc) तथा बड़े भाग को दीर्घ चाप (Major arc) कहते हैं। चाप को प्रायः JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 4 से प्रदर्शित करते हैं। आकृति में \(\overparen{P X Q}\) लघु चाप तथा \(\overparen{P Y Q}\) दीर्घ चाप है।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 5

→ दक्षिणावर्त दिशा और वामावर्त दिशा (Clockwise Direction and Counter Clockwise or Anticlockwise Direction) : जिस दिशा में घड़ी की मिनट वाली सुई घूमती है, उसे दक्षिणावर्त दिशा तथा उसकी उलटी दिशा को वामावर्त दिशा कहते हैं। आकृति में P से Q की ओर की दिशा वामावर्त दिशा तथा Q से P की ओर की दिशा दक्षिणावर्त दिशा है।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 6

→ वृत्त की जीवा (Chord of a Circle): वृत्त के दो बिन्दुओं को मिलाने वाले रेखाखण्ड को वृत्त की जीवा कहते हैं। आकृति में वृत्त पर स्थित प्रदत्त दो बिन्दुओं P तथा Q से खींची गयी रेखा जीवा PQ है।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 7

→ वृत्त का व्यास (Diameter of a Circle) : वृत्त के केन्द्र से होकर जाने वाली जीवा को वृत्त का व्यास कहते हैं। आकृति में XY वृत्त का व्यास है। यदि वृत्त C (O, r) का व्यास हो, तो
d = 2r.
नोट:

  • एक वृत्त के अनेक व्यास होते हैं।
  • वृत्त के समस्त व्यास लम्बाई में समान होते हैं।
  • वृत्त का व्यास उस वृत्त की सबसे बड़ी जीवा होती है।
  • वृत्त का व्यास वृत्त की त्रिज्या का दोगुना होता है।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त

→ अर्द्धवृत्त (Semicircle) : व्यास वृत्त को दो बराबर चापों में विभाजित करता है। प्रत्येक चाप अर्द्धवृत्त कहलाता है।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 8
आकृति में \(\overparen{P Q}\) तथा \(\overparen{Q P}\) अर्द्धवृत्त हैं।

→ वृत्तखण्ड (Segment) वृत्त की जीवा वृत्ताकार चक्रिका को दो भागों में विभक्त करती है उन दो भागों में से प्रत्येक भाग को वृत्तखण्ड कहते हैं। छोटे भाग को लघु वृत्तखण्ड (Minor segment) और बड़े भाग को दीर्घ वृत्तखण्ड (Major segment) कहते हैं।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 9
इन खण्डों में से प्रत्येक खण्ड को दूसरे खण्ड का एकान्तर वृत्तखण्ड (Alternate segment) कहते हैं।

→ त्रिज्यखण्ड (Sector) किसी वृत्त के चाप तथा उसके अन्त्यबिन्दु से जाने वाली त्रिज्याओं से बनी आकृति त्रिज्यखण्ड कहलाती है। आकृति में OAQB लघु त्रिज्यखण्ड (Minor Sector) तथा OAPB दीर्घ त्रिज्यखण्ड (Major Sector) है।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 10

→ चाप का अंशमाप (Degree Measure of an Arc) मान लीजिए C(O, r) एक वृत्त है, तो उस कोण को जिसका शीर्ष O है, वृत्त का केन्द्रीय कोण (Central angle) कहा जाता है। वृत्त की अंश माप 365° तथा अर्द्धवृत्त की अंशमाप 180° होती है चाप की अंश माप को M \(\overparen{A B}\) से प्रकट करते हैं। यदि चाप द्वारा केन्द्र पर अन्तरित कोण अंशों में दिया हों अथवा अंशों में ज्ञात किया जाए तो वह कोण चाप का अंशमाप कहलाता है।
अतः m\(\overparen{A B}\) = ∠AOB का मान अंशों में।

→ सर्वांगसम वृत्त (Congruent Circles) ऐसे दो या दो से अधिक वृत्त सर्वांगसम वृत्त कहलाते हैं, जिनकी त्रिज्याओं की माप समान हों। आकृति में, OA = O’C।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 11

→ सर्वांगसम चाप (Congruent Arcs) : दो सर्वांगसम वृत्तों के ऐसे चाप जिनके अंशमाप समान हों, सर्वागसम चाप कहलाते हैं। आकृति में चाप AB, चाप CD के सर्वागसम है इसे “\(\overparen{A B}\) ≡ \(\overparen{C D}\)” भी लिखा जा सकता है।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त

→ वृत्त की परिधि (Circumference of a Circle) : वृत्त के परिमाप को परिधि कहते हैं।
यदि त्रिज्या r होता
परिधि = 2πr ⇒ πd
यहाँ π = \(\frac{22}{7}\) या 3.1416.

→ चक्रीय चतुर्भुज (Cyclic Quadrilateral) : किसी चतुर्भज को चक्रीय चतुर्भुज कहते हैं, यदि उसके चारों शीर्ष बिन्दु वृत्त पर स्थित हों। आकृति में ABCD चक्रीय चतुर्भुज है।
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 12

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

JAC Class 9 Hindi मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Textbook Questions and Answers

बोध-प्रश्न –

प्रश्न 1.
लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन क्यों हिचक रहे थे ?
उत्तर :
जुलाई, सन् 1989 में लेखक को एक साथ तीन हार्ट अटैक हुए। उसकी नब्ज, साँस और धड़कन लगभग बंद हो गई। तब डॉक्टर बोर्नेस ने प्रयोग के तौर पर लेखक को नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स दिए जिससे उसके प्राण लौट आए। इस प्रक्रिया में लेखक के हार्ट का लगभग साठ प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो गया था। अब केवल चालीस प्रतिशत हार्ट बचा था और उसमें भी तीन अवरोध थे। इसी कारण ओपन हार्ट ऑपरेशन करने से सर्जन हिचक रहे थे। उन्हें डर था कि कहीं यह चालीस प्रतिशत हार्ट भी धड़कना बंद न कर दे। अंत में कुछ अन्य विशेषज्ञों की राय लेकर कुछ दिन बाद ऑपरेशन करने का निर्णय लिया गया।

प्रश्न 2.
‘किताबों वाले कमरे में रहने के पीछे लेखक के मन में क्या भावना थी ?
उत्तर :
लेखक को अर्द्धमृत्यु की स्थिति में वापस घर लाया गया। जब उसे बेडरूम में लिटाया जाने लगा तो लेखक ने किताबों वाले कमरे में रहने की इच्छा व्यक्त की। उसे चलने, बोलने और पढ़ने की सख्त मनाही थी। वह चुपचाप उन किताबों को देखता रहता था। किताबों वाले कमरे में रहने का मुख्य कारण उसका किताबों के प्रति लगाव था। उसे किताबों से अत्यधिक प्रेम था और किताबों के बीच रहकर वह अपने आपको भरा-भरा महसूस करता था। पिछले कई वर्षों से एक-एक करके उसने इन किताबों को जमा किया था। प्रत्येक किताब से उसका एक भावनात्मक रिश्ता था। इसी कारण उसने किताबों वाले कमरे में रहने की जिद्द की थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

प्रश्न 3.
लेखक के घर में कौन-कौन सी पत्रिकाएँ आती थीं ?
उत्तर :
लेखक के पिता गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे और आर्य समाज रानीमंडी के प्रधान थे। उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर भी कुछ पत्र-पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं। इनमें ‘आर्यमित्र’ साप्ताहिक, ‘वेदोदय’, ‘सरस्वती’, ‘गृहिणी’ आदि के साथ-साथ दो बाल-पत्रिकाएँ ‘बालसखा’ और ‘चमचम आती थीं। इन बाल-पत्रिकाओं में परियों, राजकुमारों, दानवों और सुंदर राजकन्याओं की कहानियाँ और रेखाचित्र होते थे।

प्रश्न 4.
लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक कैसे लगा ?
उत्तर :
लेखक के घर में बाल-पत्रिकाएँ आती थीं जिनमें मज़ेदार कहानियाँ होती थीं। लेखक हर समय उन्हें पढ़ता रहता। यहाँ तक कि खाना खाते समय भी वह थाली के पास पत्रिकाएँ रखकर पढ़ता। धीरे-धीरे उसने घर में आने वाली अन्य पत्रिकाओं ‘सरस्वती’ और आर्यमित्र’ को भी पढ़ना शुरू कर दिया। उसे सबसे अधिक प्रिय स्वामी दयानंद की जीवनी पर लिखी एक पुस्तक थी। इसमें अनेक चित्र थे और रोचक शैली में उनके जीवन की अनेक घटनाओं का वर्णन था। ये सभी घटनाएँ लेखक को प्रभावित करती थीं। इसी कारण वह बार-बार उसे पढ़ता। इस प्रकार उसे किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक लग गया।

प्रश्न 5.
माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर क्यों चिंतित रहती थी ?
उत्तर :
लेखक अपने घर में आने वाली पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने में ही व्यस्त रहता था और स्कूल की पुस्तकों की ओर कम ध्यान उसकी माँ स्कूली पढ़ाई पर जोर देती। उसे डर था कि कहीं उसका बेटा फेल न हो जाए। वह लेखक के कक्षा की किताबें न पढ़ने के कारण चिंतित रहती। उसे यह भी डर था कि कहीं उसका पुत्र साधु बनकर घर से भाग न जाए। लेखक के पिता के समझाने पर लेखक ने कक्षा की किताबों को भी पढ़ना आरंभ किया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

प्रश्न 6.
स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने किस प्रकार लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए ?
उत्तर :
स्कूल में अंग्रेज़ी में सबसे अधिक अंक प्राप्त करने के लिए इनाम के रूप में लेखक को दो अंग्रेज़ी की पुस्तकें मिलीं। इन पुस्तकों में पशु-पक्षियों तथा पानी के जहाज़ों का वर्णन था। उसके पिता ने अपनी अलमारी के एक खाने से चीजें हटाकर उन दो किताबों के लिए जगह बनाई। इस प्रकार अलमारी में किताबें रखने का सिलसिला आरंभ हो गया। लेखक किताबें इकट्ठी करने लगा और उन्हें अलमारी में रखता गया। धीरे-धीरे उसके पास एक समृद्ध पुस्तकालय हो गया। इस प्रकार स्कूल से मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए। यही दो पुस्तकें उसके समृद्ध पुस्तकालय का आधार बनी थीं।

प्रश्न 7.
‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी’ – पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली ?
उत्तर :
पिता के इस कथन से लेखक को पुस्तकें इकट्ठा करने की प्रेरणा मिली। पिता द्वारा अपनी अलमारी से एक खाना लेखक को किताबों के लिए दिए जाने पर लेखक बहुत खुश हुआ। उसने उस खाने में रखने के लिए अधिक-से-अधिक पुस्तकें इकट्ठी करना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, उसकी लाइब्रेरी में पुस्तकें भी बढ़ती चली गईं। एक-एक करके उसने लगभग एक हज़ार पुस्तकों की लाइब्रेरी बना ली। इस प्रकार पिता के स्नेहपूर्ण कहे गए उस कथन ने लेखक को पुस्तकें इकट्ठा करने और उन्हें पढ़ने की प्रेरणा दी।

प्रश्न 8.
लेखक की पहली पुस्तक खरीदने की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
लेखक को किताबें पढ़ने और इकट्ठा करने का बहुत शौक था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह किताबें खरीद नहीं पाता था। एक बार वह शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के ‘देवदास’ उपन्यास पर आधारित फ़िल्म का गीत गुनगुना रहा था। लेखक की माँ ने उसे फ़िल्म देखने की स्वीकृति दे दी। लेखक सिनेमाघर में फ़िल्म देखने चला गया। पहला शो छूटने में समय बाकी था, इसलिए वह आस-पास टहलने लगा। वहीं उसके एक परिचित की पुस्तकों की दुकान थी। उसने उसके काउंटर पर शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित ‘देवदास’ उपन्यास पड़ा देखा। लेखक के पास दो रुपये थे। दुकानदार उसे उस पुस्तक को दस आने में देने के लिए तैयार हो गया। फ़िल्म देखने में डेढ़ रुपया लगता था। तब लेखक ने दस आने में ‘देवदास’ उपन्यास खरीदने का निर्णय लिया। यह उसके द्वारा अपने पैसों से खरीदी गई पहली पुस्तक थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

प्रश्न 9.
‘इन कृतियों के बीच अपने को कितना भरा-भरा महसूस करता हूँ’ – का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि अनेक विद्वानों द्वारा लिखी पुस्तकें उसे बहुत ताजगी प्रदान करती थीं। उसकी लाइब्रेरी में रखी इन पुस्तकों को देखकर उसे बड़ा सुख मिलता था। ये पुस्तकें ही उसकी संचित पूँजी थीं। इन पुस्तकों को देखकर वह बहुत खुश होता था। अनेक लेखकों और चिंतकों की पुस्तकें उसके खालीपन को दूर कर देती थीं। अपनी इन पुस्तकों के बीच पहुँचकर वह नयापन महसूस करता था। वहाँ उसके जीवन की रिक्तता और नीरसता अपने आप दूर हो जाया करती थी। लेखक को अपने द्वारा संचित की गई पुस्तकों से बहुत अधिक प्रेम था।

JAC Class 9 Hindi मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
डॉक्टर बोर्जेस ने लेखक को शॉक्स क्यों दिए ? उससे लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
सन् 1989 में लेखक को तीन हार्ट अटैक हुए। सभी डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। डॉक्टर बोर्जेस ने हिम्मत नहीं हारी। उसने लेखक की धड़कन लौटाने के लिए नौ सौ वाल्ट्स के शॉक्स दिए। उसका मत था कि यदि शरीर मृत है तो उसे दर्द महसूस ही नहीं होगा किंतु यदि एक कण प्राण भी शेष होंगे तो हार्ट रिवाइव कर सकता है। डॉक्टर बोर्जेस के इस प्रयोग से लेखक के प्राण तो लौटे किंतु उसका साठ प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

प्रश्न 2.
अस्पताल से घर आकर लेखक कहाँ रहा और उसने क्या महसूस किया ?
उत्तर :
लेखक अस्पताल से अर्धमृत हालत में घर लाया गया और उसे पूर्ण रूप से विश्राम करने के लिए कहा गया। उसके चलने, बोलने और पढ़ने पर मनाही थी। अस्पताल से घर लाकर उसे किताबों वाले कमरे में रखा गया। वहाँ वह दिन-भर खिड़की के बाहर हवा में झूलते सुपारी के पेड़ के पत्ते और कमरे में रखी किताबों से भरी अलमारियों को देखता रहता। लेखक ने महसूस किया कि बचपन में पढ़ी परी – कथाओं में जिस प्रकार राजा के प्राण तोते में रहते थे, उसी प्रकार उसके प्राण भी मानो कमरे में रखी इन किताबों में बसे हैं। इन किताबों को लेखक ने बड़ी कठिनाई से एक-एक करके इकट्ठे किए थे।

प्रश्न 3.
पुस्तकालय अपने आपमें ज्ञान का संचित कोष होता है। वहाँ अथाह पुस्तकों का भंडार होता है। अपने विवेक के आधार पर बताइए कि पुस्तकालय का मानव जीवन में क्या स्थान है?
उत्तर :
पुस्तकालय आज जीवन का एक आवश्यक अंग बन गए हैं। इनमें अपार ज्ञान का कोष है। आज के आधुनिक तथा प्रतिस्पर्धा-युक्त वातावरण में इसका और भी अधिक महत्व है। व्यक्ति पुस्तकालय में जाकर उसमें रखी पुस्तकों का अध्ययन करता है। एक व्यक्ति इतनी अधिक मात्रा एवं संख्या में पुस्तकों को न खरीद सकता है और संजोकर रख सकता है। यह विद्यार्थियों तथा आम जन मानस के लिए शिक्षक, थियेटर, आदर्श तथा उत्प्रेरक है।

यह परामर्शदाता तथा उनका साथी भी है। सही अर्थों में पुस्तकालय जनता तथा विद्यार्थियों को विवेकशील तथा ज्ञानवान बनाने का काम करता है तथा कर रहा है। इनमें लेखकों के लेख, नेताओं के भाषण, व्यापार और मेलों की सूचनाएँ, स्त्रियों और बच्चों के उपयोग की अनेक पत्र-पत्रिकाएँ, नाटक, कहानी, उपन्यास हास्य व्यंग्यात्मक लेख आदि विशेष सामग्री रहती हैं। अतः इनके प्रयोग से व्यक्ति ज्ञानवान बनता है। यदि यह कहा जाए कि पुस्तकालय आज सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में बड़ा सहायक है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति न होगी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

प्रश्न 4.
पुस्तकें इकट्ठी करना तथा उन्हें क्रमबद्ध रूप में अलमारी में सजाकर रखना मानव की आदत में है। अपने विवेक के आधार पर बताइए कि क्या पुस्तकों को इकट्ठा करना या उन्हें सजाकर रखना ही उनका सही प्रयोग है या उनके अंदर के ज्ञान को आत्मसात् करना उसका प्रयोग है?
उत्तर :
हाँ, यह अक्सर देखा जाता है कि बहुत से लोग किताबे खरीदते हैं। उन्हें अलमारी में सजाकर रखते हैं किंतु पुस्तक के अंदर के ज्ञान को समझ नहीं पाते। वे ऐसे लोग होते हैं जो पुस्तकें इकट्ठी करने के तो शौकीन होते हैं किंतु उन्हें पढ़कर उनके ज्ञान को आत्मसात् नहीं करना चाहते। आज समाज के अधिकतर लोग दिखावे और प्रदर्शनी हेतु पुस्तकों का संचय करते हैं। पुस्तकें धूल चाटती रहती हैं किंतु उनके पास उन्हें पढ़ने का समय नहीं होता। वे उस ज्ञान से वंचित हो जाते हैं जिसे वे अपने साथ पुस्तक के रूप में घर तो ले आए किंतु उन्हें पढ़कर आत्मसात् नहीं कर पाए।

सच्चा ज्ञान पुस्तक के अंदर निहित उस शब्दावली में है जो मानव को कल्याणकारी बनाने का संदेश देती है, उसे सन्मार्ग पर आने के लिए प्रेरित करती है, उसकी इच्छा-शक्ति तथा आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम करती है। अतः स्पष्ट है कि पुस्तकों को इकट्ठा करना इतना आवश्यक नहीं जितना आवश्यक पुस्तकों में निहित ज्ञान को आत्मसात् करना है।

प्रश्न 5.
मराठी के वरिष्ठ कवि विंदा करंदीकर ने लेखक की लाइब्रेरी देखकर लेखक से क्या कहा था ?
उत्तर :
मराठी के वरिष्ठ कवि विंदा करंदीकर ने लेखक से कहा था- ” भारती, ये सैकड़ों महापुरुष जो पुस्तक रूप में तुम्हारे चारों ओर विराजमान हैं, इन्हीं के आशीर्वाद से तुम बचे हो। इन्होंने तुम्हें पुनर्जीवन दिया है। ” तब लेखक ने कवि विंदा तथा पुस्तकों के महान लेखकों को मन-ही-मन प्रणाम किया था।

प्रश्न 6.
लेखक के प्राण कहाँ रहते थे और क्यों ?
उत्तर :
लेखक को लगता था कि उसकी स्थिति बिल्कुल उस राजा की तरह है जिसके प्राण तोते में थे और उसके अपने पुस्तकालय में रखी किताबों में थे। इसी कारण लेखक बीमारी के बाद अपने निजी पुस्तकालय में रहना चाहता था। वह इन किताबों के बिना अपने जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

प्रश्न 7.
लेखक के माता-पिता क्या काम करते थे ?
उत्तर :
लेखक के पिता सरकारी नौकरी में थे। उन्होंने बर्मा रोड बनाते समय बहुत पैसा बनाया था। गाँधी जी के आह्वान पर उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। बाद में उनके पिता आर्य समाज रानीमंडी के प्रधान बने। उनकी माता ने स्त्री-शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी।

प्रश्न 8.
लेखक के पिता ने उन्हें आरंभ में स्कूल क्यों नहीं भेजा ?
उत्तर :
लेखक के पिता ने उन्हें बचपन में स्कूल नहीं भेजा था। उनके विचार में छोटे बच्चे स्कूल में ग़लत बातें सीखते हैं। पिता के अनुसार वे ग़लत संगत में पड़कर कहीं गाली-गलौच करना न सीख ले या फिर कहीं बुरे संस्कार न ग्रहण कर लें, इसलिए उन्हें पढ़ाने के लिए घर में ही अध्यापक रखा गया था।

प्रश्न 9.
लेखक के पिता ने उनसे क्या वचन लिया ?
उत्तर :
लेखक ने कक्षा दो तक की पढ़ाई घर पर की थी। तीसरी कक्षा में उन्हें स्कूल भेजा गया। स्कूल के पहले दिन उनके पिता ने उनसे वचन लिया कि वे स्कूल में मन लगाकर पढ़ेंगे। अन्य किताबों की तरह पाठ्यक्रम की किताबें भी ध्यान से पढ़ेंगे और अपनी माँ की उनके भविष्य को लेकर हो रही चिंताओं को दूर करेंगे।

प्रश्न 10.
क्या लेखक ने अपना निजी पुस्तकालय का सपना पूरा किया ?
उत्तर :
हाँ, लेखक ने अपना निजी पुस्तकालय का सपना पूरा किया। लेखक को पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए वह मोहल्ले की लाइब्रेरी में बैठकर किताबें पढ़ता था। कई बार कोई उपन्यास अधूरा रह जाता तो वह सोचता कि पैसे होते, तो वह खरीदकर पढ़ लेता। धीरे-धीरे उसने बचत करके अपने लिए किताबें खरीदनी शुरू की और अपना सपना पूरा किया।

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प्रश्न 11.
‘मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ पाठ के आलोक में अपने विद्यालय के पुस्तकालय का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
हमारे विद्यालय का पुस्तकालय विद्यालय के प्रथम तल पर एक बहुत बड़े सभा भवन में स्थित है। इसमें विभिन्न विषयों की पुस्तकों और संदर्भ ग्रंथों से अलमारियाँ भरी हुई हैं। बीच में समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ आदि पढ़ने के लिए मेज़ – कुर्सियाँ लगी हुई हैं। प्रवेश-द्वार के पास पुस्तकालयाध्यक्ष अपने सहयोगियों के साथ बैठते हैं। यहाँ विभिन्न भाषाओं के समाचार-पत्र तथा अनेक विषयों से संबंधित पत्रिकाएँ आती हैं, जिनसे हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है तथा मनोरंजन भी होता है। हमें घर पर पढ़ने के लिए पंद्रह दिनों के लिए दो पुस्तकें भी मिलती हैं। हमें हमारे पुस्तकालय से ज्ञान – प्राप्ति में बहुत सहायता मिलती है।

प्रश्न 12.
‘मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ में लेखक फ़िल्म न देखकर पुस्तक क्यों खरीदता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक को किताबें पढ़ने और इकट्ठा करने का बहुत शौक था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह किताबें खरीद नहीं पाता था। एक बार वह शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के ‘देवदास’ उपन्यास पर आधारित फ़िल्म का गीत गुनगुना रहा था। लेखक की माँ ने उसे फ़िल्म देखने की स्वीकृति दे दी। लेखक सिनेमाघर में फ़िल्म देखने चला गया। पहला शो छूटने में समय बाकी था, इसलिए वह आस-पास टहलने लगा।

वहीं उसके एक परिचित की पुस्तकों की दुकान थी। उसने उसके काउंटर पर शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित ‘देवदास’ उपन्यास पड़ा देखा। लेखक के पास दो रुपये थे। दुकानदार उसे उस पुस्तक को दस आने में देने के लिए तैयार हो गया। फ़िल्म देखने में डेढ़ रुपया लगता था। तब लेखक ने दस आने में ‘देवदास’ उपन्यास खरीदने का निर्णय लिया। यह उसके द्वारा अपने पैसों से खरीदी गई पहली पुस्तक थी। इस प्रकार वह पैसों की बचत कर लेता है और देवदास फ़िल्म जिस पुस्तक पर आधारित थी, वह भी उसे प्राप्त हो जाती है।

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प्रश्न 13.
आपको कौन-सी पुस्तक अच्छी लगती अच्छी लगती है और क्यों ?
उत्तर :
मेरी प्रिय पुस्तक तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस है क्योंकि उसमें केवल राम की कथा ही नहीं है बल्कि अनेक आदर्शों की स्थापना भी की गई है, जिनसे हमें अपना जीवन सँवारने की प्रेरणा मिलती है। हनुमान जैसा सेवक – धर्म, भरत लक्ष्मण का भाई के प्रति प्रेम, राम का मर्यादित स्वरूप, सुग्रीव – राम की मित्रता, शबरी के प्रति राम की भावनाएँ तथा राम-राज्य की परिकल्पना, रावण के वध द्वारा बुराई पर अच्छाई की विजय आदि सभी इन सब घटनाओं से जीवन को सद्आचरण से युक्त बनाने की प्रेरणा मिलती है तथा इनका अनुपालन करके देश और समाज को आदर्श बनाया जा सकता है।

मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Summary in Hindi

पाठ का सार :

‘मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ पाठ धर्मवीर भारती द्वारा लिखित है। इसमें भारती जी ने अपनी पढ़ने-लिखने और पुस्तकें इकट्ठा करने की रुचि का वर्णन किया है। लेखक कहता है कि उसने एक-एक पुस्तक को बड़ी मेहनत से इकट्ठा किया है। अब उसके निजी पुस्तकालय में अनेक विधाओं से संबंधित लगभग एक हजार पुस्तकें इकट्ठा हो गई हैं।

जुलाई, 1989 को लेखक को तीन जबरदस्त हार्ट-अटैक हुए। सभी डॉक्टरों ने घोषित कर दिया कि अब उसमें प्राण नहीं रहे। पर एक डॉक्टर बोर्जेस ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने लेखक को नौ सौ वाल्ट्स के शॉक्स दिए। इस भयानक प्रयोग से लेखक के प्राण तो लौट आए किंतु उसका साठ प्रतिशत हृदय सदा के लिए नष्ट हो गया। दोबारा ऑपरेशन करने में खतरा था। अतः अन्य विशेषज्ञों की राय लेने के लिए ऑपरेशन कुछ दिन बाद करने का निर्णय लिया गया और लेखक को अस्पताल से घर लाया गया। उसे बिना हिले-डुले विश्राम करने की सलाह दी गई। लेखक ने जिद्द करके अपना बिस्तर किताबों वाले कमरे में लगवाया। वह सारा दिन किताबों को देखकर सोचता रहता कि शायद उसके प्राण इन किताबों में ही बसे हुए हैं।

लेखक अपने किताबें पढ़ने और सहेजने के शौक के बारे में बताता है कि उसके पिता सरकारी नौकरी करते थे। बाद में गांधी जी के प्रभाव में आकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी। उस आर्थिक संकट के दौर में भी उनके घर में कई पत्र-पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं। इनमें दो पत्रिकाएँ ‘बाल सखा’ और ‘चमचम’ बाल पत्रिकाएँ थीं जो लेखक के लिए आती थीं। लेखक को उन्हें पढ़ने में बड़ा मज़ा आता था। इसके अतिरिक्त उसे स्वामी दयानंद की जीवनी पढ़ने में भी बड़ा आनंद आता था। लेखक सारा दिन वही पत्रिकाएँ पढ़ता था। लेखक की माँ उसकी कक्षा की किताबें न पढ़ने के कारण चिंतित रहती थी। एक दिन पिता द्वारा समझाने पर उसने स्कूली पुस्तकों को पढ़ना शुरू किया। स्कूल में अंग्रेजी में सबसे अधिक अंक पाने के कारण उसे दो अंग्रेज़ी की पुस्तकें इनाम में मिलीं। उसके पिता ने अपनी अलमारी का एक खाना उसे उन पुस्तकों को रखने के लिए दिया। तब से लेखक ने लगातार पुस्तकों को इकट्ठा करना आरंभ कर दिया।

लेखक बताता है कि उसके पिता की मृत्यु के बाद परिवार आर्थिक संकट में घिर गया। ऐसे में किताब खरीदकर पढ़ना उसके लिए असंभव था। अतः वह मुहल्ले की लाइब्रेरी में बैठकर घंटों पुस्तकें पढ़ता रहता। लेखक अपनी पहली खरीदी हुई पुस्तक के विषय में बताता है कि वह पुस्तक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित उपन्यास ‘देवदास’ था। उसकी माँ ने उसे दो रुपये ‘देवदास’ फ़िल्म देखने के लिए दिए। शो छूटने में देर होने के कारण वह आस-पास टहलने लगा। तब उसने एक किताबों की दुकान के काउंटर पर ‘देवदास’ उपन्यास पड़ा देखा। दुकानदार ने उसे वह दस आने में किताब दे दी। लेखक ने फ़िल्म देखने की बजाय किताब खरीदना बेहतर समझा।

इस प्रकार यह उसकी खरीदी हुई पहली पुस्तक थी। धीरे-धीरे उसका पुस्तकालय समृद्ध होता गया। उसके पास उपन्यास, नाटक तथा प्रत्येक विधा से संबंधित लगभग एक हजार पुस्तकों का निजी पुस्तकालय बन गया। लेखक इन पुस्तकों के बीच अपने आपको भरा-भरा महसूस करता है। लेखक का ऑपरेशन सफल होने पर उनसे मिलने आए मराठी के कवि विंदा करंदीकर ने लेखक के पुस्तकालय को देखकर कहा कि इन पुस्तकों के महान लेखकों के आशीर्वाद से ही उसे पुनर्जीवन मिला है। लेखक ने तब विंदा करंदीकर और पुस्तकों के रूप में उसके पुस्तकालय में विराजमान महापुरुषों को मन ही मन प्रणाम किया।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

  • हार्ट-अटैक – दिल का दौरा।
  • शॉक्स – झटके।
  • मृत – मरा हुआ, जिसमें प्राण न बचे हों।
  • अवरोध – रुकावट।
  • अदर्धमृत्यु – अधमरा।
  • बेडरूम – सोने का कमरा।
  • आह्वान – बुलावा।
  • आर्थिक – रुपये-पैसे से संबंधित।
  • रोचक – मनोरंजन।
  • सुसज्जित – सजी हुई।
  • तत्कालीन – उस समय के।
  • पाखंड – बाहरी आडंबर।
  • अदम्य – जिसे दबाया न जा सके।
  • प्रतिमाएँ – मूर्तियाँ।
  • तमाम – सारा।
  • हिमशिखर – बर्फ़ की चोटी।
  • रूढ़ियाँ – प्रथाएँ।
  • रोमांचित – पुलकित।
  • नासमझ – जिसे कोई समझ न हो।
  • फर्स्ट – प्रथम।
  • द्वीप – वह भू-भाग जो चारों ओर से पानी से घिरा हो।
  • लाइब्रेरी – पुस्तकालय।
  • यूनिवर्सिटी – विश्वविद्यालय।
  • सनक – धुन।
  • प्रख्यात – प्रसिद्ध।
  • दिवंगत – स्वर्गीय।
  • अनूदित उपन्यास – जिस उपन्यास का एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद किया गया हो।
  • आकर्षक – लुभावना।
  • अनिच्छा – बेमन, इच्छा न होते हुए भी।
  • कसक – पीड़ा।
  • देहावसान – मृत्यु।
  • विपन्न – गरीब।
  • सहसा – अचानक।
  • दाम – मूल्य, कीमत।
  • हज़ारहा – हज़ार से अधिक।
  • वरिष्ठ – बड़ा, पूजनीय।
  • पुनर्जीवन – दोबारा जीवन।