Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 10th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला
JAC Class 10th Sanskrit जननी तुल्यवत्सला Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखिए)
(क) वृषभः दीन इति जानन्नपि कः तम् नुद्यमानः आसीत्? (बैल कमजोर है, ऐसा जानते हुए भी कौन उसे कष्ट दे रहा था?)
उत्तरम् :
कृषक: (किसान)।
(ख) वृषभः कुत्र पपात? (बैल कहाँ गिर गया?)
उत्तरम् :
क्षेत्रे (खेत में)।
(ग) दुर्बले सुते कस्याः अधिका कृपा भवति? (दुर्बल बेटे पर किसकी अधिक कृपा होती है?)
उत्तरम् :
मातुः (माता की)।
(घ) कयोः एक शरीरेण दुर्बलः आसीत्? (किनमें से एक शरीर से कमजोर था?)
उत्तरम् :
बलीवर्दयोः (दो बैलों में से)।
(ङ) चण्डवातेन मेघरवैश्च सह कः समजायत? (तीव्र वायु और बादल की गर्जना के साथ क्या होता था?)
उत्तरम् :
प्रवर्षः (तेज वर्षा)।
प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृत भाषया लिखत – (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए।)
(क) कृषकः किं करोति स्म?
(किसान क्या कर रहा था?)
उत्तरम् :
कृषक: क्षेत्रकर्षणं करोति स्म।
(किसान खेत जोत रहा था।)
(ख) माता सुरभिः किमर्थमश्रूणि मुञ्चति स्म?
(माता सुरभि किसलिए आँसू बहा रही थी?)
उत्तरम् :
माता सुरभिः स्वपुत्रं भूमौ पतितं दृष्ट्वा नेत्राभ्याम् अश्रूणि मुञ्चति स्म।
(माता सुरभि अपने पुत्र को धरती पर गिरे हुए को देखकर आँखों से आँसू बहा रही थी।)
(ग) सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य किम् उत्तरं ददाति?
(सुरभि इन्द्र के प्रश्न का क्या उत्तर देती है?)
उत्तरम् :
अहं तु पुत्रं शोचामि तेन रोदिमि।
(मैं पुत्र का शोक कर रही हूँ, अतः रोती हूँ।)
(घ) मातुः अधिका कृपा कस्मिन् भवति?
(माता की अधिक-कृपा किस पर होती है?)
उत्तरम् :
दुर्बले सुते मातुः अधिका कृपा भवति।
(दुर्बल बेटे पर माता की अधिक कृपा होती है।)
(ङ) इन्द्रः दुर्बल वृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं किं कृतवान्?
(इन्द्र ने दुर्बल बैल के कष्टों को दूर करने के लिए क्या किया?)
उत्तरम् :
इन्द्रेण दुर्बल वृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं वृष्टिः कृता।
(इन्द्र ने दुर्बल बैल के कष्ट दूर करने के लिए वर्षा कर दी।)
(च) जननी कीदृशी भवति?
(जननी कैसी होती है?)
उत्तरम् :
जननी तुल्यवत्सला भवति।
(माता समान वात्सल्य प्रदान करने वाली होती है।)
(छ) पाठेऽस्मिन् कयोः संवादः विद्यते?
(इस पाठ में किनका संवाद है?)
उत्तरम् :
पाठेऽस्मिन् सुरभीन्द्रयोः संवादः विद्यते।
(इस पाठ में सुरभि और इन्द्र का संवाद है।)
प्रश्न 3.
‘क’ स्तम्भे दत्तानां पदानां मेलनं ‘ख’ स्तम्भे दत्तैः समानार्थक पदैः करुत –
‘क’ स्तम्भ | ‘ख’ स्तम्भ |
(क) कृच्छ्रेण | 1. वृषभः |
(ख) चक्षुभ्या॑म् | 2. वासवः |
(ग) जवेन | 3. नेत्राभ्याम् |
(घ) इन्द्रः | 4. अचिरम |
(ङ) पुत्राः | 5. द्रुतगत्या |
(च) शीघ्रम् | 6. काठिन्येन |
(छ) बलीवर्दः | 7. सुताः |
उत्तरम् :
‘क’ स्तम्भ | ‘ख’ स्तम्भ |
(क) कृच्छ्रेण | 6. काठिन्येन |
(ख) चक्षुभ्या॑म् | 3. नेत्राभ्याम् |
(ग) जवेन | 5. द्रुतगत्या |
(घ) इन्द्रः | 2. वासवः |
(ङ) पुत्राः | 7. सुताः |
(च) शीघ्रम् | 4. अचिरम |
(छ) बलीवर्दः | 1. वृषभः |
प्रश्न 4.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत (मोटे पदों को आधार मानकर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) सः कुच्छ्रेण भारम् उद्वहति। (वह कठिनाई से बोझ उठाता है।)
(ख) सुराधिपः ताम् अपृच्छत्। (देवराज ने उससे पूछा।)
(ग) अयम् अन्येभ्यो दुर्बलः। (यह औरों से कमजोर है।)
(घ) धेनूनाम् माता सुरभिः आसीत्। (गायों की माता सुरभि थी।)
(ङ) सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुखी आसीत्। (हजारों से अधिक पुत्र होने पर भी वह दुखी थी।)
केन भारं उदवहति? (वह किससे भार उठाता है?)
(ख) कः ताम् अपृच्छत? (किसने उससे पूछा?)
(ग) अयम् केभ्यो दुर्बलः? (यह किनसे कमजोर है?)
(घ) कासाम् माता सुरभिः आसीत्। (सुरभि किनकी माता थी?)
(ङ) कतिषु पुत्रेषु सत्स्वपि सः दुखी आसीत् ? (कितने पुत्र होने पर भी वह दुखी थी?)
प्रश्न 5.
रेखाङ्कित पदे यथास्थानं संधि-विच्छेद/सन्धिं वा कुरुत।
(रेखांकित पद में संधि अथवा संधि विच्छेद कीजिए।)
(क) कृषकः क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्+आसीत्।
(ख) तयोरेकः वृषभः दुर्बलः आसीत्।
(ग) तथापि वृषः न उत्थित।
(घ) सत्स्वपि बहुषु पुत्रेषु अस्मिन् वात्सल्यं कथम्?
(ङ) तथा अपि+अहम् एतस्मिन् स्नेहम् अनुभवामि।
(च) मे बहूनि अपत्यानि सन्ति।
(छ) सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः।
उत्तराणि :
(क) कुर्वन्नासीत्
(ख) तयोः एकः
(ग) नोत्थितः
(घ) सत्सु अपि
(ङ) तथाप्यहमेतस्मिन्
(च) बहून्यपत्यानि
(छ) जल+उपप्लवः।
प्रश्न 6.
अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखांकित सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित सर्वनाम पद किसके लिए प्रयोग हुए हैं ?)
(क) सा च अवदत् भो वासवः अहं भृशं दुखिता अस्मि।
(ख) पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहम् रोदिमि।
(ग) सः दीनः इति जानन् अपि कृषकः तं पीडयति।
(घ) मे बहूनि अपत्यानि सन्ति।
(ङ) सः च ताम् एवम् असान्त्वयत्।
(च) सहस्रेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन् प्रीतिः अस्ति ।
उत्तराणि :
(क) सुरभिः
(ख) सुरभिः
(ग) वृषभः
(घ) सुरभेः
(ङ) इन्द्रः
(च) सुरभेः
प्रश्न 7.
‘क’ स्तम्भे विशेषण पदं लिखितम् ‘ख’ स्तम्भे पुनः विशेष्य पदं। तयोः मेलनं कुरुत।
(क स्तम्भ में विशेषण पद लिखे हैं, ख स्तम्भ में पुनः विशेष्य पद हैं, उन दोनों का मेल करो।)
‘क’ स्तम्भ | ‘ख’ स्तम्भ |
(क) कश्चित् | 1. वृषभम् |
(ख) दुर्बलम् | 2. कृपा |
(ग) क्रुद्ध | 3. कृषीवलः |
(घ) सहस्राधिकेषु | 4. आखण्डलः |
(ङ) अभ्याधिकाः | 5. जननी |
(च) विस्मितः | 6. पुत्रेषु |
(छ) तुल्यवत्सला | 7. कृषक: |
उत्तरम् :
‘क’ स्तम्भ | ‘ख’ स्तम्भ |
(क) कश्चित् | 7. कृषक: |
(ख) दुर्बलम् | 1. वृषभम् |
(ग) क्रुद्ध | 3. कृषीवल: |
(घ) सहस्राधिकेषु | 6. पुत्रेषु |
(ङ) अभ्याधिकाः | 2. कृपा |
(च) विस्मितः | 4. आखण्डल: |
(छ) तुल्यवत्सला | 5. जननी |
JAC Class 10th Sanskrit जननी तुल्यवत्सला Important Questions and Answers
शब्दार्थ चयनम् –
अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित पदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थ चित्वा लिखत –
प्रश्न 1.
कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्।
(अ) कर्मकरः
(ब) कृषिबल
(स) वर्दयोः
(द) दुर्बलः
उत्तरम् :
(ब) कृषिबल
प्रश्न 2.
सः ऋषभः हलमूदवा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात।
(अ) अपतत्
(ब) आसीत्
(स) वृषभं
(द) प्रपात
उत्तरम् :
(अ) अपतत्
प्रश्न 3.
मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्।
(अ) पतिते
(ब) वृषभः
(स) अविरत
(द) कामधेनोः
उत्तरम् :
(द) कामधेनोः
प्रश्न 4.
विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिप!
(अ) अपृच्छत्
(ब) रोदिषि
(स) इन्द्रः
(द) निपातः
उत्तरम् :
(स) इन्द्रः
प्रश्न 5.
भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि।
(अ) वीक्ष्य
(ब) कृत्वा
(स) दीनः
(द) जानन्नपि
उत्तरम् :
(अ) वीक्ष्य
प्रश्न 6.
सः कृच्छ्रेण भारमुबहति।
(अ) कृषक:
(ब) पीडयति
(स) इतरमिव
(द) कष्टेन
उत्तरम् :
(द) कष्टेन
प्रश्न 7.
इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्।
(अ) अनुयुक्ताः
(ब) वोढुम
(स) शक्नोति
(द) भवान्
उत्तरम् :
(अ) अनुयुक्ताः
प्रश्न 8.
यदि पुत्रसहस्रं मे, सर्वत्र सममेव मे।
(अ) मह्यम्
(ब) नूनम्
(स) सत्वसपि
(द) एतादृशं
उत्तरम् :
(अ) मह्यम्
प्रश्न 9.
बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम्।
(अ) सत्यम्
(ब) उचितम्
(स) विशिष्य
(द) असत्यम्
उत्तरम् :
(ब) उचितम्
प्रश्न 10.
गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।
(अ) तथापि
(ब) सहजैव इति
(स) सान्त्वयत्
(घ) कल्याणम्
उत्तरम् :
(स) सान्त्वयत्
संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि –
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
प्रश्न 1.
कृषक: बलीवर्दाभ्यां किं कुर्वन्नासीत्? (किसान बैलों से क्या कर रहा था?)
उत्तरम् :
क्षेत्रकर्षणम् (खेत की जुताई)।
प्रश्न 2.
जवेन गन्तुं कोऽसमर्थः आसीत्? (तेज चलने में कौन असमर्थ था?)
उत्तरम् :
बलीवर्दः (बैल)।
प्रश्न 3.
वृषभं पतितमवलोक्य का रोदिति स्म (बैल को गिरा हुआ देखकर कौन रोई?)
उत्तरम् :
सुरभिः (गोवंश की माँ)।
प्रश्न 4.
धेनूनाम् माता का? (गायों की माता कौन है?)
उत्तरम् :
सुरभिः (कामधेनु)।
प्रश्न 5.
वृषभं कः पीडयति? (बैल को कौन पीड़ा देता है)
उत्तरम् :
कृषक: (किसान)।
प्रश्न 6.
पतितो वृषभः कथं भारं वहति? (गिरा हुआ बैल भार को कैसे ढोता है?)
उत्तरम् :
कृच्छ्रेण (कठिनाई से)।
प्रश्न 7.
‘बहून्यपत्यानि मे’ इति केनोक्तम्?
(‘बहून्यपत्यानि मे’ पद किसने कहा?)
उत्तरम् :
सुरभ्या (सुरभि द्वारा)।
प्रश्न 8.
जननी कीदृशी भवति?
(जननी कैसी होती है?)
उत्तरम् :
तुल्यवत्सला (समान प्रेम वाली)।
प्रश्न 9.
लोकानां पश्यताम् सर्वत्र किमभवत्?
(लोगों के देखते-देखते सब जगह क्या होता गया?)
उत्तरम् :
जलोपप्लवा (जलभराव)।
प्रश्न 10.
केन सह प्रवर्षः समजायत?
(किसके साथ वृष्टि हुई?)
उत्तरम् :
मेघरवैः
(मेघध्वनि के साथ)।
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)
प्रश्न 11.
सुरभिः कस्मात् रोदिषि?
(सुरभि क्यों रोती है?)
उत्तरम् :
सुरभिः पुत्राय शोचति अत: रोदिषि।
(सुरभि पुत्र का शोक करती है, अत: रोती है।)
प्रश्न 12.
दीनं वृषभं कृषकः कथं व्यवहरति ?
(दीन बैल के साथ किसान कैसा व्यवहार करता है?
उत्तरम् :
सः दीनः इति जानन्नपि तं बहुधा पीडयति।
(वह दीन है, यह जानते हुए भी उसे अनेक प्रकार से पीड़ा देता है।)
प्रश्न 13.
शक्रः सुरभिं कथमसान्त्वयत्?
(इन्द्र ने सुरभि को कैसे सान्त्वना दी?) ।
उत्तरम् :
शक्रः सुरभिमसान्त्वयत्-“गच्छ वत्से? सर्वं भद्रं जायेत।
(इन्द्र ने सुरभि को सान्त्वना दी-जाओ पुत्री! सब कल्याण (भला) हो।
प्रश्न 14.
कथं सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः।
(किस प्रकार सब जगह जल भराव हो गया?)
उत्तरम् :
लोकानां पश्यताम् सर्वत्र जलोपप्लवः अभवत्।
(लोगों के देखते-देखते सब जगह जलप्लावन हो गया।)
प्रश्न 15.
एकः बलीवर्दः कीदृशः आसीत्? (एक बैल कैसा था?) ।
उत्तरम् :
एक: बलीवर्दः दुर्बल: जवेन गन्तुमसमर्थः आसीत्।
(एक बैल कमजोर था जो तेज गति से नहीं चल सकता था)
प्रश्न 16.
सुरभिः का आसीत्? (सुरभि कौन थी?)
उत्तरम् :
सुरभिः सर्वधेनूनां जननी आसीत्।
(सुरभि सब गायों की माँ थी।)
प्रश्न 17.
एतस्मिन्नेव वृषभे कस्मात् इयती कृपा? (इस बैल पर इतनी कृपा क्यों है।)
उत्तरम् :
दीनस्थ तुसतः पुत्रस्य अत्यधिका कृपा।
(बेटा अधिक दीन हो तो उस पर अधिक कृपा होती है।)
प्रश्न 18.
कीदृशे पुत्रे जननी अधिकतरं स्नियति?
(कैसे पुत्र पर माँ अधिक प्यार करती है?)
उत्तरम् :
दुर्बले पुत्रे मातुः अत्यधिक कृपा भवेत्।
(कमजोर बच्चे पर माता की अधिक कृपा होती है।)
प्रश्न 19.
दीने पुत्रे माता कीदृशी भवेत्?
(दीनपुत्र पर माता को कैसा होना चाहिए?)
उत्तरम् :
दीनेपुत्रे तु माता कृपार्द्रहृदया भवेत्।
(दीन पुत्र पर तो माता को कृपालु होना चाहिए।)
अन्वय-लेखनम् –
अधोलिखित श्लोकस्य अन्वयमाश्रित्य रिक्तस्थानानि पूरयत् –
(क) विनिपातो ……… कौशिकः!
मञ्जूषा – रोदिमि, दृश्यते, पुत्रम्, विनिपातो।
त्रिदशाधिप! वः कश्चिद (1) ……….. न (2) ………..। कौशिकः। अहं तु (3) ………… शोचामि तेन (4) ………….।
उत्तरम् :
1. विनिपातो 2. दृश्यते 3. पुत्रम् 4. रोदिमि।
(ख) यदि ………….. कृपा।।
मञ्जूषा – दीनस्य, पुत्रसहस्रं, अभ्यधिका, सर्वत्र।
यदि मे (1) …………., मे (2) ………… सममेव। शक्र ! (3) …………. पुत्रस्य सत (4)………… कृपा।
उत्तरम् :
1. पुत्रसहस्रं 2. सर्वत्र 3. दीनस्य 4. अभ्यधिका।
मञ्जूषा – दीने, अपत्येषु, कृपाहृदयाभवेत्, तुल्यवत्सला।
(ग) अपत्येषु ……………………… भवेत्।
सर्वेषु (1) ………च जननी (2) ………..। सा माता (3) ……….. पुत्रे तु (4) …………भवेत।
उत्तरम् :
1. अपत्येषु 2. तुल्यवत्सला 3. दीने 4. कृपाईहृदयाभवेत्।
प्रश्ननिर्माणम् –
अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
1. कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत? (किसान उस दुर्बल बैल को कष्ट देकर धकेल रहा था।)
2. पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा रोदिमि। (पुत्र की दीनता को देखकर रोती हैं।)
3. इन्द्रेण पृष्टा सुरक्षित प्रत्यवोचत्। (इन्द्र द्वारा पूछी हुई सुरभि बोली।)
4. यतो हि अयमन्येभ्यः दुर्बलः। (क्योंकि यह अन्यों से दुर्बल है)
5. स च तामेवमसान्त्वयत्। (और उसने उसे इस प्रकार सान्त्वना दी।)
6. कृषक: हर्षातिरेकेण गृहमगात्। (किसान अति प्रसन्नता से घर चला गया।)
7. पुत्रे दीने तु सा माता कृपार्द्र हृदया भवेत्। (दीनपुत्र पर तो उस माता को और भी कृपा होना चाहिये।)
8. वृषभः हलमूदवा क्षेत्रे पपात। (बैल हल को उठाकर खेत में गिर गया।)
9. क्रुद्धः कृषीवलः तमुत्थापयितुं यत्नमकरोत् । (क्रुद्ध किसान ने उसे उठाने का प्रयत्न किया।)
10. भूमौः पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सुरभिरागच्छत्। (धरती पर पड़े हुए अपने पुत्र को देखकर सुरभि आ गई।)
उत्तराणि :
1. कृषक: तं दुर्बलं वृषभं केन नुद्यमानः अर्तत?
2. कस्य दैन्यं दृष्ट्वा रोदिमि?
3. केन पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्?
4. यतो हि कः अन्येभ्यः दुर्बलः?
5. स च काम् एवम् असान्त्वयत्?
6. कृषक: केन गृहमागच्छत् ?
7. पुत्रे कीदृशे तु सा माता कृपाई हृदया भवेत् ?
8. वृषभ: हलमूदवा कुत्र अपतत् ?
9. कीदृशः कृषीवल: तमुत्थापायितुं यत्नमकरोत् ?
10. कुत्र पतितं स्वपुत्रं दृष्ट्वा सुरभिरगाच्छत् ।
भावार्थ-लेखनम् –
अधोलिखित पद्यांशानां संस्कृते भावार्थं लिखत –
(i) विनिपातो न वः …………………………. तेन रोदिमि कौशिक!।।
भावार्थ – कामधेनोः अवदत्-‘हे देवराज इन्द्र युष्माकं कोऽपि अधःपतन हानिर्वा अहं द्रष्टुं शक्न मि (पश्यामि) हे कुशिक नन्दन! अहं तु आत्मजस्य परितापं करोमि तस्मात् रुदनं करोमि।
(ii) यदि पुत्र सहस्रं ………………………. पुत्रस्याभ्यधिका कृपा।।
भावार्थ – हे देवराज इन्द्र! यद्यपि (चेत्) मे दशशताधिकात्मजा: सर्वेषु स्थानेषु सन्ति परञ्च मह्यं सर्वे एव समानमेव । हे इन्द्र! यदि कश्चित् पुत्र दीनः दयनीयः वा भवति सः अधिकतरं मर्षणीयं भवति।।
(ii) अपत्येषु च सर्वेषु …………………………. कृपाईहदया भवेत् ।।
भावार्थ-माता सर्वासु सन्ततीषु समानभावेन वात्सल्यं प्रदायनी भवति । परञ्च असौ निर्बले आत्मजे अति कृपालु भवेत्।
पाठ-सार –
प्रश्न :
‘जननी तुल्य वत्सला’ इति पाठस्य-सारांशः हिन्दी भाषायां लिखत।
उत्तर :
कोई किसान भूमि जोत रहा था। उन बैलों में से एक शरीर से कमजोर तथा तेज चलने में असमर्थ था। इसी कारण से किसान उस कमजोर बैल को पीड़ा या कष्ट देकर हाँक रहा था। वह बैल हल को धारण करके चलने में असमर्थ धरती पर गिर गया। क्रोधित किसान ने उसे उठाने का अनेक बार प्रयत्न किया फिर भी बैल नहीं उठा। धरती पर गिरे हुए पुत्र (बैल) को देखकर सभी गायों की जननी कामधेनु की आँखों से आँसू प्रकट हो गए। कामधेनु की यह दशा देखकर उससे पूछा “हे कल्याणी! ऐसे क्यों रो रही हो। कहो!” वह बोली-“हे देवराज इन्द्र आपका कोई अध:पतन (हानि) नजर नहीं आ रही है।
मैं तो अपने पुत्र का शोक कर रही हूँ, इस कारण से रो रही हूँ।” हे देवराज! मैं पुत्र की दीनता को देखकर विलाप कर रही हूँ। वह दुखी है, ऐसा जानकर भी किसान उसे कष्ट देता है। वह बैल बड़ी कठिनाई से भार को उठा सकता है। दूसरे बैल की तरह वह बोझा अथवा धुरी को वहन करने योग्य नहीं है। यह सब तुम स्वयं भी देख रहे हो। इस प्रकार उसने उत्तर दिया। कल्याणि यद्यपि तेरे हजारों बेटे हैं फिर भी इस पर ही इतना वात्सल्य क्यों? इन्द्र द्वारा पूछी हुई कामधेनु ने इस प्रकार उत्तर दिया- “यद्यपि मेरे हजारों पुत्र सभी स्थानों पर हैं परन्तु मेरे लिए सभी समान हैं।
हे इन्द्र ! कोई पुत्र दीन अथवा दयनीय हो तो वह अधिक दया का पात्र होता है। बहुत-सी सन्तान मेरी हैं यह उचित ही है फिर भी मैं इस बेटे पर विशेष रूप से अपनी पीड़ा अनुभव क्यों करती हूँ? क्योंकि यह दूसरों से कमजोर है। सभी पुत्रों पर माता समान स्नेह देने वाली होती है। अतः निर्बल पुत्र पर माँ का अनुग्रह स्वाभाविक होता है। कामधेनु के वाक्य को सुनकर अत्यधिक आश्चर्यचकित इन्द्र का हृदय भी द्रवित हो गया तथा वह उस सुरभि को इस प्रकार सान्त्वना देने लगा-जाओ, बेटी सब ठीक हो जायेगा।
शीघ्र ही तेज हवा से मेघ गर्जना के साथ जोर की वर्षा होने लगी। लोगों के देखते-देखते सब जमह पानी भर गया। किसान अत्यधिक प्रसन्न होता हुआ खेत की जुताई छोड़कर बैलों को लेकर घर चला गया। माता सभी सन्तानों पर समान भाव से वात्सल्य प्रदान करने वाली होती है परन्तु उसे निर्बल बेटे पर अत्यधिक कृपालु होना चाहिए।
जननी तुल्यवत्सला Summary and Translation in Hindi
पाठ-परिचय – कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास चारों वेदों और अठारह पुराणों के सम्पादक और रचयिता हैं। अत: वेदों का व्यसन करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्हीं महर्षि वेद व्यास की महान रचना है- महाभारत। यह वृहदाकार होने के कारण विश्वकोश माना जाता है। महाभारत में ही कहा गया है –
धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्ति तदन्यत्र, यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्।।
प्रस्तुत पाठ महर्षि वेदव्यास विरचित ऐतिहासिक ग्रन्थ महाभारत के ‘वन पर्व’ से लिया गया है। यह कथा सभी प्राणियों में समान दृष्टि की भावना का बोध कराती है। इसका वांछित अर्थ है कि समाज में विद्यमान दुर्बल प्राणियों के प्रति भी माँ का वात्सल्य उत्कृष्ट ही होता है।
मूलपाठः,शब्दार्थाः,सप्रसंग, हिन्दी-अनुवादः
1. कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत्। अत: कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत। सः ऋषभः हलमूदवा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात। क्रुद्धः कृषीवल: तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्। तथापि वृषः नोत्थितः।
शब्दार्थ: – कश्चित् = कोऽपि (कोई), कृषकः = कृषिवल: (किसान), क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत् = भूमि कर्षति स्म (खेत जोत रहा था) तयोः = अमुयोः (उन दोनों में), बलीवर्दयोः = वृषभयोः (बैलों में), एकः = (एक), शरीरेण = वपुसा (शरीर से)। दुर्बलः = निर्बल: (कमजोर), जवेन = वेगेन (तेज), गन्तुम् = गमनाय (जाने में), अशक्त: = असमर्थः (कमजोर) आसीत् = अभवत् (था), अतः = अनेनैव कारणेन (इसलिए), कृषकः = कृषीवल: (किसान), तम् = अमुम् (उसको)। दुर्बलम् =अशक्तम् (कमजोर को), वृषभं = बलीवर्दम् (बैल को)। तोदनम् = वेदनां, कष्टं (कष्ट), नुद्यमानः = प्रेरयन् (हाँकता हुआ), अवर्तत = अभवत् (रहता)। सः वृषभः = असौ बलीवर्दः (वह बैल), हलमूदवा = लाङ्गलं धृत्वा, संधार्य (हल वहन करके), गन्तुमशक्तः = गमनेऽसमर्थः (जाने में असमर्थ)। क्षेत्रे पपात = भूमौ अपतत् (धरती पर गिर गया), क्रुद्धः = प्रकुपितः (नाराज), कृषीवलः = कृषक: (किसान ने), तमुत्थापयितुम् = अमुम् उत्थापनाय (उसे उठाने के लिए), बहुवारम् = अनेकशः (अनेक बार), यत्नमकरोत् = प्रयास कृतवान् (प्रयास किया), तथापि = पुनरपि (फिर भी), वृषः = बलीवर्दः (बैल), नोत्थितः= न उत्थितवान् (नहीं उठा)।
सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वेदव्यास-कृत महाभारत के वनपर्व से संकलित है। इस गद्यांश में दुर्बल बैल के साथ किसान का व्यवहार वर्णित है।
हिन्दी अनुवादः – कोई किसान दो बैलों से खेत जोत रहा था। उन बैलों में से एक शरीर से कमजोर था, तेज गति से चलने में असमर्थ था। अतः किसान उस कमजोर बैल को कष्ट देता हुआ हाँकता रहता था। हल वहन कर चलने में असमर्थ वह खेत में गिर गया। नाराज हुये किसान ने (उसे) उठाने के लिए अनेक बार प्रयत्न किया फिर भी बैल नहीं उठा।
2. भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्। सुरभेरिमामवस्थां दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्-“अयि शुभे! किमेवं रोदिषि? उच्यताम्” इति। सा च
विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिप!।
अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!।।
शब्दार्थाः – भमौ = धरायाम (धरती पर). पतिते = गलिते (गिरने पर), स्वपत्रम = आत्मजम (बे सर्वधेनूनां = सर्वासां गवाम् (सब गायों की), मातुः = जनन्या (माता), सुरभैः = कामधेनोः (कामधेनु के) नेत्राभ्याम् = नयनाभ्याम् (आँखों में), अश्रूणिः = वाष्पं, नेत्रजलम् (आँसू), आविरासन् = प्रकटिताः (निकल आये)। सुरभेः = कामधेनोः (कामधेनु की), इमां = एतद् (इस), अवस्थाम् = दशां, स्थितिम् (हालत को), दृष्ट्वा = विलोक्य (देखकर), ताम् = अमूम् (उसको), अपृच्छत् = पृष्टवान् (पूछा), अयि = भोः (अरी), शुभे = कल्याणि (कल्याणी), किम् एवम् = कस्मात् अनेन प्रकारेण (इस प्रकार क्यों),
रोदिषि = रोदनं करोषि (रो रही हो), उच्यताम् = कथ्यताम्, ब्रूहि (कहो), इति = एवम् (इस प्रकार), सा च = असौ च (और वह), त्रिदशाधिपः = देवराजः इन्द्रः (देवराज इन्द्र), वः = युष्माकम् (तुम्हारा), कश्चिद् = कोऽसि (कोई कुछ भी), विनिपातः = अनादरः, अध: पतनं (हानि, बर्वादी), दृश्यते = द्रष्टुं शक्नोति (देख सकता), कौशिकः = हे कुशिक नन्दन (हे विश्वामित्र), अहम् तु = (मैं तो) पुत्रं = आत्मजम् (बेटे का), शोचामि = परितापं करोमि (शोक कर रही हूँ), तेन = तस्मात् कारणात् (उसकी वजह से), रोदिमि = रुदनं करोमि (रोती हूँ)।
सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – (यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वेदव्यास-कृत महाभारत के वनपर्व से सङ्कलित है। इस गद्यांश में गायों में प्रमुख कामधेनु का वात्सल्य वर्णन है।
हिन्दी अनुवादः – भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र (बैल) को देखकर सभी गायों की माता कामधेनु की आँखों में आँस भर आये। कामधेनु की इस अवस्था को देखकर देवराज इन्द्र बोले-अरी कल्याणी! ऐसे क्यों रो रही हो। कहो। और वह (बोली) “हे देवराज इन्द्र तुम्हारा कोई अनादर (क्षय) दिखाई नहीं देता।” हे विश्वामित्र! मैं तो बेटे का शोक कर रही हूँ। अतः रो रही हूँ।
3. “भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। सः दीन इति जानन्नपि कृषकः तं बहुधा पीडयति। सः कृच्छ्रेण भारमुबहति। इतरमिव धुरं वोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?” इति प्रत्यवोचत्।
“भद्रे! नूनम्! सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?” इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्।
यदि पुत्रसहस्रं मे, सर्वत्र सममेव मे।
दीनस्य तु सतः शुक्र! पुत्रस्याभ्यधिका कृपा।।
शब्दार्था: – भो वासव! = हे देवराज इन्द्र! (हे इन्द्र), पुत्रस्य = आत्मजस्य (पुत्र की), दैन्यम् = दीनताम् (दीनता को), दृष्ट्वा वीक्ष्य (देखकर), अहं रोदिमि = अहम् विलपामि (विलाप कर रही हूँ), स: = असौ (वह), दीनः विषण्णः (दुखी), इति एव (इतना), जानन्नपि ज्ञात्वापि (जानते हुए भी), कृषक: कृषीवल (किसान), तम् अमुम् (उसे), पीडयति = तुदति, क्लिश्नाति (दुख देता है), सः = असौ वृषः (वह बैल), कृच्छ्रेण = काठिन्येन, कष्टेन (कठिनाई से), भारमुवहति = भारमुत्थापयति (वजन उठाता है), इतरमिव अपरमिव (दूसरे बैल के समान), सः = असौ (वह), धुरम् अक्षम्, भारम् (धुरी को, बोझ को) वोढुम वहनाययोग्य (वहन करने योग्य), न = नैव (नहीं), शक्नोति = सकता, एतत् इदम् (इसे), भवान् त्वम् (तुम), पश्यति न = अवलोकयसि न (देख रहे हो न), इति एवं (इस प्रकार), प्रत्यवोचत् = उत्तरं दत्तवती (जवाब दिया), भद्रे = कल्याणि (कल्याणी), नूनम् निश्चयेन (निश्चित ही), सहस्राधिकेषु = दशशताधिकेषु (हजारों से अधिकों में),
पुत्रेषु = आत्मजेषु, सुतेषु, तनयेषु (बेटों में/पर), सत्वसपि भवत्स्वपि (होते हुए भी), तवते (तेरा), अस्मिन्ने = अस्योपरि एव (इस पर ही), एतादृशं इयत् (इतना, ऐसा), वात्सल्यम् वत्सलता, स्नेहभावः (प्रेम), कथम् कस्मात् (कैसे), इति एवं (इस प्रकार), इन्द्रेण वासवेन (इन्द्र द्वारा), पृष्टा = अनुयुक्ता (पूछी गई), सुरभिः = कामधेनुः (कामधेनु), प्रत्यवोचत् उत्तरं दत्तवती (उत्तर दिया, जवाब में बोली), यदि-चेत् (यदि), मे = मम (मेरे), पुत्रसहस्र-दशशत् आत्मज (हजारों पुत्र), सर्वत्र सर्वेषु स्थानेषु (सब जगह), मे मह्यम् (मुझे, मेरे लिए), सममेव = समानमेव (समान ही है), शक्र! हे इन्द्र (हे इन्द्र), दीनस्य तु पुत्रस्य = यदि पुत्रः दीनः भवति (यदि पुत्र दुखी हो तो), अत्यधिका कृपा = अधिकतरः मर्षणीयम्, मर्षणम् (और भी अधिक कृपा होती है।)
सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जननी तुल्य वत्सला’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वेदव्यास-कृत महाभारत के वनपर्व से सङ्कलित है। इस गद्यांश में सुरभि शोक और रोदन का कारण बताती है।
हिन्दी अनुवादः – “हे इन्द्र! पुत्र की दीनता देखकर मैं रो रही हूँ। वह दीन है, ऐसा जानते हुए भी किसान उसे बहुत पीड़ा दे रहा है। वह कठिनाई से बोझ उठाता है। दूसरे बैल की तरह से वह धुर को वहन नहीं कर सकता है। यह आप देख रहे हैं न”। ऐसा उत्तर दिया।
“कल्याणि! नि:संदेह हजारों पुत्र होते हुए भी तुम्हारा इस पर इतना प्रेम (वात्सल्य) क्यों है? ऐसा इन्द्र के पूछने पर सुरभि ने उत्तर में कहा
यदि (यद्यपि) हजारों पुत्र हैं मेरे। वे सब जगह मेरे लिए समान हैं। हे इन्द्र! पुत्र के दीन होने पर तो उस पर और भी अधिक कृपा होती है।
4. ‘बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम्। तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनाममनुभवामि। यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बलः। सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव। तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव’ इति। सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत्। स च तामेवमसान्त्वयत्- “गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।”
शब्दार्था: – बहून्यपत्यानि = बहवः पुत्राः, सन्ततयः (बहुत से बच्चे), मे = मम् (मेरे), सन्ति वर्तन्ते (हैं), सत्यम्-उचितम् (सच), तथापि = पुनरपि (फिर भी), अहमेतस्मिन् = अहमस्मिन् (मैं इसमें, इस पर), पुत्रे-आत्मजे (बेटे पर), विशिष्य-विशेष रूपेण (विशेष रूप से), आत्मवेदनाम् स्वस्यपीडाम् (अपनी पीड़ा का), अनुभवामि = अनुभवं करोमि (अनुभव कर रही हूँ), यतोहि = यस्मात् हि (क्योंकि), अयम् एषः (यह), अन्येभ्य = अपरेभ्यः (और से), दुर्बल: = अशक्तः, निर्बलः (कमजोर), सर्वेषु = अखिलेषु (सभी में), अपत्येषु = पुत्रेषु, जातेषु (बच्चों में), जननी = माता (माँ), तुल्यवत्सला एव = समान स्नेहवती (एक समान) स्नेह करने वाली होती है), तथापि पुनरपि (फिर भी), दुर्बले निर्बले (कमजोर), सुते = पुत्रे (बेटे पर), मातुः जनन्याः (माँ की), अभ्यधिका = प्रभूताम् (अधिकतर), कृपा अनुग्रहः (महरबानी), सहजैव इति स्वाभाविकी एव (स्वाभाविक है), सुरभिवचनं कामधेनोः वाक्यं (कामधेनु की बात), श्रुत्वा = आकर्ण्य, निशम्य (सुनकर), भृशं = अत्यधिकम् (बहुत), विस्मितस्याखण्डलस्यापि आश्चर्यचकितस्य इन्द्रस्य अपि (आश्चर्यचकित इन्द्र का भी), हृदयम् = मानसम् (हृदय), अद्रवत् = द्रवितोऽभवत् (पिघल गया), सः च असौ च (और उसने), ताम् अमूम् (उसे), एवम् अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), सान्त्वयत् सान्त्वनां प्रदत्तवान् (सान्त्वना प्रदान की) गच्छ याहि (जाओ) वत्से बालिके (बच्ची), सर्वम्स कलम् (सब), भद्रम् कल्याणम् (भला), जायेत = भवेत (हो)।
सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वेदव्यास-कृत् महाभारत के वनपर्व से सङ्कलित है। इस गद्यांश में इन्द्र सुरभि के तुल्य वात्सल्य भाव को जानकर उसे सान्त्वना प्रदान करता है।
हिन्दी अनुवादः – यह सच है कि मेरे बहुत सी सन्तान हैं, फिर भी मैं इस बेटे पर विशेष रूप से आत्मवेदना का अनुभव कर रही हूँ। क्योंकि यह औरों से कमजोर है, सभी सन्तानों पर माता का समान वात्सल्य होता है। फिर भी कमजोर बेटे पर अधिक महरबानी स्वाभाविक होती है। सुरभि के वचन सुनकर अत्यधिक आश्चर्यचकित इन्द्र का भी हृदय द्रवित हो गया (पिघल गया) और उसने उसे इस प्रकार सान्त्वना प्रदान की- ‘जाओ बेटी! सब का कल्याण हो।
5. अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत। लोकानां पश्यताम् एव सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः। कृषकः हर्षातिरेकेण कर्षणविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।
अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपाईहृदया भवेत् ।।
शब्दार्थाः – अचिरादेव = शीघ्रमेव (जल्दी ही), चण्डवातेन-वेगयुता वायुना, तीव्र वायुना (तेज हवा द्वारा), मेघरवैः = वारिद गर्जनेन (मेघों की गर्जना से) सह प्रवर्षः = वृष्टिसहितम् (वर्षा समेत), समजायत = समभवत् (हो गई), लोकानाम् मनुष्याणाम् (लोगों के), पश्यताम् पश्यन्नेव (देखते-देखते), सर्वत्र = सर्वेषु स्थानेषु (सब जगह) जलोपप्लव: = जलप्लाव (जलोत्पात), सञ्जातः = अभवत् (हो गया), कृषक: = कृषिवल: (किसान), हर्षातिरेकेण = अत्यधिक प्रसन्नतया (अत्यधिक प्रसन्नता से), कर्षण विमुख = कर्षण कार्यात् विमुखः सन् (जोतने से रुककर), वृषभौ = बलीवी (बैलों को लेकर), गृहमगात् = गृहमगच्छत् (घर को चला गया), जननी = माता (माता), सर्वेषु = सकलेषु (सभी पर), अपत्येषु = सन्ततीषु आत्मजेषु (सन्तान पर), तुल्य = समान भावेन (समान भाव से), वत्सला = वात्सल्य स्नेह भावेन, युता भवति (वात्सल्य या स्नेह से युक्त होती है), परञ्च (परंतु) दीन = दयनीय (निर्बल), पुत्रे = आत्मजे (बेटे पर), तुसा = तु असौ (तो वह), कृपा = कृपया आर्द्र हृदयं यस्याः सा (कृपा से जिसका हृदय आर्द्र है), भवेत् = स्यात् (होनी चाहिए)।
सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वेदव्यास-कृत महाभारत के वनपर्व से सङ्कलित है। इस गद्यांश में वर्णित है कि भाग्य से वर्षा हो जाती है, प्रसन्न किसान बैलों को लेकर घर चला गया, जिससे दीन बैल की जान सुरक्षित हो जाती है।
हिन्दी अनुवादः – शीघ्र ही तेज वायु से मेघों की गर्जना के साथ वर्षा हो गई। लोगों के देखते-देखते सब जगह जलभराव हो गया। किसान अत्यन्त प्रसन्नता के साथ हल जोतना छोड़कर बैलों को लेकर घर चला गया। माता सभी सन्तानों को समान वात्सल्य (स्नेह) प्रदान करती है। परन्तु जो पुत्र दीन होता है उस माता को उस पुत्र पर तो अधिक कृपा से आर्द्र हृदय (कृपालु) होना चाहिए।