JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरुः

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरुः Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरुः

JAC Class 9th Sanskrit कल्पतरुः Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत-(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) जीमूतवाहनः कस्य पुत्रः अस्ति? (जीमूतवाहन किसका पुत्र है?)
उत्तरम् :
जीमूतकेतोः (जीमूतकेतु का)।

(ख) संसारेऽस्मिन् कः अनश्वरः भवति? (इस संसार में अनश्वर कौन है?)
उत्तरम् :
परोपकारः (परोपकार)।

(ग) जीमूतवाहनः परोपकारैकफलसिद्धये कम् आराधयति?
(जीमूतवाहन परोपकार की एकमात्र फलसिद्धि के लिए किसकी आराधना करता है?)
उत्तरम् :
कल्पवृक्षपादपम्। (कल्पवृक्ष के पौधे की)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

(घ) जीमूतवाहनस्य सर्वभूतानुकम्पया सर्वत्र किं प्रथितम्?
(जीमूतवाहन की सभी प्राणियों की अनुकम्पा से किसकी वृद्धि हुई ?)
उत्तरम् :
यशः। (यश की)।

(ङ) कल्पतरुः भुवि कानि अवर्ष?
(कल्पतरु ने पृथ्वी पर क्या बरसाया?)
उत्तरम् :
वसूनि। (धन)।

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) कञ्चनपुरं नाम नगरं कुत्र विभाति स्म? (कञ्चनपुर नामक नगर कहाँ सुशोभित था?)
उत्तरम् :
हिमवतः नगेन्द्रस्य सानोरुपरि कञ्चनपुरं नाम नगरं विभाति स्म। (पर्वतराज हिमालय के शिखर के ऊपर कंचनपुर नामक नगर सुशोभित था।)

(ख) जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत्? (जीमूतवाहन कैसा था?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च आसीत्। (जीमूतवाहन महान् दानवीर तथा सभी प्राणियों पर दया करने वाला था।)

(ग) कल्पतरो: वैशिष्ट्यमाकर्ण्य जीमूतवाहनः किम् अचिन्तयत्? (कल्पवृक्ष की विशेषता को सुनकर जीमूतवाहन ने क्या सोचा?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः अचिन्तयत् यत् अहम् एतत्कल्पतरोः स्वकामनां मनोरथमभीष्टं साधयामि। (जीमतवाहन ने सोचा कि मैं इस कल्पवक्ष से अपनी कामना सिद्ध करता हैं।)

(घ) हितैषिण: मन्त्रिण: जीमूतवाहनं किम् उक्तवन्तः? (हितैषी मन्त्रियों ने जीमूतवाहन से क्या कहा?)
उत्तरम् :
“युवराज! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्” इति अकथयत्। (“हे युवराज! जो यह सारी कामनाओं को पूरा करने वाला कल्पवृक्ष तुम्हारे बाग में खड़ा है, वह तुम्हारे लिए सदा पूज्य है। इसके अनुकूल होने पर इन्द्र भी हमें कोई बाधा नहीं पहुँचा सकता है।” इस प्रकार से कहा।)

(ङ) जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य किम् उवाच? (जीमूतवाहन कल्पतरु के समीप जाकर क्या बोला?)
उत्तरम् :
“देव! त्वया अस्मत्पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैकं कामं पूरय। यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि तथा करोतु देव” इति। (देव! आपने हमारे पूर्वजों की इच्छित कामनाएं पूरी की तो मेरी भी एक कामना पूरी कर दीजिए, जिस प्रकार मैं पृथ्वी को दरिद्रततारहित देखें, ऐसा कर दीजिए।)

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3. अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदानि कस्मै प्रयुक्तानि? (निम्नलिखित वाक्यों में मोटे पद किसके लिए प्रयुक्त हुए हैं ?)
(क) तस्य सानोरुपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरंम्। (उसकी चोटी के ऊपर कञ्चनपुर नामक नगर सुशोभित था)
उत्तरम् :
हिमवते नगेन्द्राय प्रयुक्तम्। (पर्वतराज हिमालय के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

(ख) राजा सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्? (राजा ने युवावस्था को प्राप्त हुए उसे युवराज के पद पर अभिषिक्त कर दिया।)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनाय प्रयुक्तम्। (जीमूतवाहन के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

(ग) अयं तव सदा पूज्यः। (यह तुम्हारा सदा पूजनीय है।)
उत्तरम् :
कल्पवृक्षाय प्रयुक्तम्। (कल्पवृक्ष के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

(घ) तात ! त्वं तु जानासि यत् धनं वीचिवच्चञ्चलम्। (हे पिताजी, तुम तो जानते हो कि धन जल की तरंग के समान चंचल है।)
उत्तरम् :
जीमूतकेतवे प्रयुक्तम्। (जीमूतकेतु के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

4. अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं पाठात् चित्वा लिखत –
(निम्नलिखित पदों के पर्यायपद पाठ से चुनकर लिखिए-)
(क) पर्वतः – …………..
(ख) भूपतिः – …………..
(ग) इन्द्रः – …………..
(घ) धनम् – ………….
(ङ) इच्छितम् – ………….
(च) समीपम् – …………..
(छ) धरित्रीम् – …………
(ज) कल्याणम् – …………..
(झ) वाणी – ………..
(ब) वृक्षः – …………
उत्तर :
(क) नगेन्द्रः
(ख) राजा
(ग) शक्रः
(घ) अर्थः, वसूनि
(ङ) अभीष्टम्
(च) अन्तिकम्
(छ) पृथ्वीम्
(ज) हितम्
(झ) वाक्
(ज) तरुः।

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5. ‘क’ स्तम्भे विशेषणानि ‘ख’ स्तम्भे च विशेष्याणि दत्तानि। तानि समचितं योजयत
(‘क’ स्तम्भ में विशेषण और ‘ख’ स्तम्भ में विशेष्य दिये हुए हैं। उन्हें ठीक से मिलाइये-)

‘क’ स्तम्भ ‘ख’ स्तम्भ
कुलक्रमागतः परोपकारः
दानवीरः मन्त्रिभिः
हितैषिभिः जीमूतवाहनः
वीचिवच्चञ्चलम् कल्पतरुः
अनश्वरः धनम्

उत्तरम् :

‘क’ स्तम्भ ‘ख’ स्तम्भ
कुलक्रमागतः कल्पतरुः
दानवीरः जीमूतवाहनः
हितैषिभिः मन्त्रिभिः
वीचिवच्चञ्चलम् धनम्
अनश्वरः परोपकारः

6. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत – (मोटे छपे पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए-)
(क) तरोः कृपया सः पुत्रम् अप्राप्नोत्।
(ख) स: कल्पतरवे न्यवेदयत्।
(ग) धनवृष्ट्या कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत्।
(घ) कल्पतरुः पृथिव्यां धनानि अवर्षत्।
(ङ) जीवानुकम्पया जीमूतवाहनस्य यशः प्रासरत्।
उत्तरम् :
प्रश्न: – कस्य कृपया सः पुत्रम् अप्राप्नोत् ?
प्रश्न: – सः कस्मै न्यवेदयत् ?
प्रश्न: – कथं कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत् ?
प्रश्न: – कल्पतरुः कुत्र धनानि अवर्षत् ?
प्रश्न: – कथं जीमूतवाहनस्य यशः प्रासरत्?

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7. (क) “स्वस्ति तुभ्यम्” स्वस्ति शब्दस्य योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति। इत्यनेन नियमेन अत्र चतुर्थी विभक्तिः प्रयुक्ता। एवमेव (कोष्ठकगतेषु पदेषु) चतुर्थी विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत –
(“स्वस्ति तुभ्यम्” स्वस्ति शब्द के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। इस नियम से यहाँ चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त हुई है। इसी प्रकार (कोष्ठक में दिये शब्दों में) चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त स्थानों को पूर्ण कीजिए
(i) स्वस्ति ………… (राजा)
(ii) स्वस्ति ………… (प्रजा)
(ii) स्वस्ति ………… (छात्र)
(iv) स्वस्ति …………… (सर्वजन)
उत्तरम् :
(i) राज्ञे
(ii) प्रजाभ्यः
(iii) छात्राय
(iv) सर्वजनेभ्यः

(ख) कोष्ठकगतेषु पदेषु षष्ठी विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत (कोष्ठक में दिये शब्दों में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त स्थानों को पूर्ण कीजिए-)
(i) तस्य ……… उद्याने कल्पतरुः आसीत्। (गृह)
(ii) सः ………… अन्तिकम् अगच्छत्। (पितृ)
(iii) …………. सर्वत्र यशः प्रथितम्। (जीमूतवाहन)
(iv) अयं ………. तरुः ? (किम्)
उत्तर :
(i) गृहस्य
(ii) पितुः
(iii) जीमूतवाहनस्य
(iv) कस्य।

JAC Class 9th Sanskrit कल्पतरुः Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
सर्वरत्नभूमिः कः अस्ति ? (सभी रत्नों का उत्पत्ति स्थान क्या है?)
उत्तरम् :
हिमवान् नाम नगेन्द्रः सर्वरत्नभूमिः अस्ति। (पर्वतराज हिमालय सभी रत्नों का उत्पत्तिस्थान है।)

प्रश्नः 2.
कल्पतरुः कुत्र स्थितः? (कल्पवृक्ष कहाँ स्थित था?)
उत्तरम् :
कल्पतरुः जीमूतकेतोः गृहोद्याने स्थितः। (कल्पतरु जीमूतकेतु के घर के बगीचे में स्थित था।)

प्रश्न: 3.
जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत् ? (जीमूतवाहन कैसा था?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च आसीत्। (जीमूतवाहन दानवीर और समस्त जीवों पर दया करने वाला था।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न: 4.
जीमूतवाहनः कल्पवृक्षविषये कैः उक्तः? (जीमूतवाहन से कल्पवृक्ष के बारे में किन्होंने कहा?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः कल्पवृक्षविषये हितैषिभिः पितृमन्त्रिभिः उक्तः। (जीमूतवाहन से कल्पवृक्ष के विषय में हितैषी पिता के मन्त्रियों ने कहा।)

प्रश्न: 5.
मन्त्रिभिः जीमूतवाहनः किम् उक्तः ? (मन्त्रियों ने जीमूतवाहन से क्या कहा?)
उत्तरम् :
मन्त्रिभिः जीमूतवाहन: उक्तः यत् योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति, स तव सदा पूज्यः।
(मन्त्रियों ने जीमतवाहन से कहा कि जो यह समस्त कामनाओं को प्रदान करने वाला कल्पवक्ष आपके बगीचे में है, वह तुम्हारा हमेशापूजनीय है।)

प्रश्न: 6.
जीमूतवाहनस्य पूर्वैः पुरुषैः कीदृशं फलं नासादितम्?
(जीमूतवाहन के पूर्वजों ने किस प्रकार का फल प्राप्त नहीं किया?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनस्य पूर्वैः पुरुषैः परोपकारस्य फलं न आसादितम्। (जीमूतवाहन के पूर्वजों के द्वारा परोपकार का फल प्राप्त नहीं किया गया।)

प्रश्न: 7.
जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य किम् उवाच? (जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष के पास जाकर क्या कहा?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच-यत् देव ! यथा पृथ्वीमदरिद्रां पश्यामि तथा करोतु। (जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष के पास जाकर कहा कि हे देव! जिससे पृथ्वी को दरिद्रता से रहित देखू, वैसा ही कीजिए।)

प्रश्न: 8.
तस्मात् कल्पवृक्षात् का वाक् उद्भूत्? (उस कल्पवृक्ष से क्या वाणी उत्पन्न हुई?)
उत्तरम् :
तस्मात् कल्पवृक्षात् “त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि” इति वाक् उद्भूत्। (उस कल्पवृक्ष से “तुम्हारे द्वारा त्यागा गया यह मैं जाता हूँ” इस प्रकार की वाणी उत्पन्न हुई।)

प्रश्न: 9.
कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य किम् अकरोत्? (कल्पवृक्ष ने स्वर्ग को उड़कर क्या किया?)
उत्तरम :
कल्पवृक्षः दिवं समुत्पत्य पृथिव्यां तथा वसूनि अवर्षत् यथा कोऽपि दुर्गतः न आसीत्। (कल्पवृक्ष ने स्वर्ग को उड़कर भूमि पर उस प्रकार से धन की वर्षा की जिससे कोई भी पीड़ित/निर्धन नहीं रहा।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न: 10.
‘कल्पतरुः’ इति कथा कस्मात् ग्रन्थात् गृहीता? (‘कल्पतरुः’ कहानी किस ग्रन्थ से ली गई है?)
उत्तरम् :
‘कल्पतरुः’ इति कथा ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ इति ग्रन्थात् गृहीता। (‘कल्पतरुः’ कथा ‘वेतालपंचविंशतिः’ कथा ग्रन्थ से ली गई है।)

प्रश्न: 11.
कल्पतरुः’ इति कथायां केषां निरूपणं वर्तते। (‘कल्पतरुः’ कथा में किनका निरूपण किया गया है?)
उत्तरम् :
‘कल्पतरुः’ कथायां जीवनमूल्यानां निरूपणं वर्तते। (‘कल्पतरुः’ कथा में जीवन-मूल्यों का निरूपण किया है।)

प्रश्न: 12.
जीमूतकेतुः केषां नृपः अभवत्? (जीमूतकेतु किनका राजा हुआ?)
उत्तरम् :
जीमूतकेतु विद्याधराणां राजा आसीत्। (जीमूतवाहन विद्याधरों का राजा था।)

प्रश्न: 13.
जीमूतवाहनः कस्य अंशात् सम्भवः आसीत्? (जीमूतवाहन किसके अंश से पैदा हुआ था?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः बोधिसत्वस्य अंशात् सम्भवः आसीत्। (जीमूतवाहन बोधिसत्व के अंश से पैदा हुआ था।)

प्रश्न: 14.
जीमूतवाहनस्य अभीष्टं किमासीत्? (जीमूतवाहन की इच्छा क्या थी?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनस्य अभीष्टं आसीत् यत् सः पृथिवीं अदरिद्रां पश्येत्। (जीमूतवाहन का अभीष्ट था कि वह धरती को दीनतारहित देखे।)

प्रश्न: 15.
जीमूतवाहनस्य प्रार्थनां श्रुत्वा कल्पतरुः किमवदत्? (जीमूतवाहन की प्रार्थना सुनकर कल्पतरु ने क्या कहा?)
उत्तरम् :
कल्पतरुः अवदत् यत्-‘त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि। (कल्पतरु ने कहा- तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ यह मैं जाता हूँ।)

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प्रश्न: 16.
कल्पतरुः उत्प्लुत्य कुत्र अगच्छत्? (कल्पवृक्ष उड़कर कहाँ चला गया?)
उत्तरम् :
कल्पतरु समुत्लुत्य दिवम् अगच्छत्। (कल्पवृक्ष उड़कर आकाश में चला गया।)

प्रश्न: 17:
जीमूतवाहनः कस्मै वरं याचते? (जीमूतवाहन किसके लिए वर माँगता है?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः सांसारिक प्राणिनां दुःखानि अपाकरणाय वरं याचते। (जीमूतवाहन सांसारित पाणिनों के दुःखों को दूर करने के लिए वर माँगता है।)

प्रश्न: 18.
लोकभोग्या भौतिक पदार्थाः कीदृशाः सन्ति?
(लोक के भोगने योग्य भौतिक पदार्थ केसे हैं?)
उत्तरम् : लोकभोग्या भौतिक पदार्थाः जलतरंगवद् अनित्याः सन्ति।
(लोक द्वारा भोग्य भौतिक पदार्थ जल की लहरों की तरह नश्वर हैं।)

रेखांकितानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित शब्दों को आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
जीमूतकेतुः कल्पवृक्षम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्र प्राप्तम्।
(जीमूतकेतु ने कल्पवृक्ष की आराधना करके जीमूतवाहन नाम के पुत्र को प्राप्त किया।).
उत्तरम् :
जीमूतकेतुः कम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्तम् ?
(जीमूतकेतु ने किसकी आराधना करके जीमूतवाहन नाम के पुत्र को प्राप्त किया?)

प्रश्न: 2.
जीमूतवाहनः दानवीरः आसीत्। (जीमूतवाहन दानवीर था।)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत् ? (जीमूतवाहन कैसा था?)

प्रश्न: 3.
कृपणैः कश्चिदपि अर्थः अर्थितः। (कंजूसों द्वारा कुछ धन माँगा गया।)
उत्तरम् :
कैः कश्चिदपि अर्थ: अर्थितः। (किनके द्वारा कुछ धन माँगा गया?)

प्रश्न: 4.
सः पितुः अन्तिकं गतः। (वह पिता के पास गया।)
उत्तरम् :
सः कुत्र गतः? (वह कहाँ गया?)

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प्रश्न: 5.
सुखमासीनं पितरम् एकान्ते न्यवेदयत। (आराम से बैठे हुए पिता से एकान्त में पूछा।)
उत्तरम् :
कीदृशम् पितरम् एकान्ते न्यवेदयत? (कैसे पिताजी से एकांत में निवेदन किया?)

प्रश्न: 6.
सर्वं धनं वीचिवत् चञ्चलम्। (सभी धन लहर की तरह चञ्चल है।)
उत्तरम् :
किं वीचिवत् चञ्चलम्? (लहरों की तरह क्या चंचल है।)

प्रश्नः 7.
परोपकार एव अस्मिन् संसारे अनश्वरः। (परोपकार ही इस संसार में अनश्वर है।)
उत्तरम् :
क एव अस्मिन् संसारे अनश्वर:? (कौन ही इस संसार में अनश्वर है?)

प्रश्न: 8.
कल्पतरुः भुवि वसूनि अवर्षत्। (कल्पतरु ने धरती पर धन बरसाया।)
उत्तरम् :
कल्पतरुः कुत्र वसूनि अवर्षत्। (कल्पतरु ने कहाँ धन बरसाया?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न: 9.
जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पयां सर्वत्र यश प्रथितम्। (जीमूतवाहन की सब प्राणियों पर दया होने से सब जगह यश फैल गया।) .
उत्तरम् :
जीमूतवाहनस्य कथं सर्वत्र यश प्रथितम्। (जीमूतवाहन का कैसे सब जगह यश फैल गया।)

प्रश्न: 10.
वाक् तस्मात् तरोः उद्भूत्। (वाणी उस वृक्ष से पैदा हुई।)
उत्तरम् :
वाक् कुतः उद्भूत? (वाणी कहाँ से पैदा हुई?)

कथाक्रम संयोजनम् अधोलिखितवाक्यानि पठित्वा कथाक्रमसंयोजनम् कुरुत –
(निम्नलिखित वाक्यों को पढ़कर कथा-क्रम संयोजन कीजिए-)

  1. योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः।
  2. यौवराज्ये स्थितः स जीमूतवाहन: कदाचित् हितैषिभिः पितमन्त्रिभिः उक्तः।
  3. तस्य गहोद्याने कलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।
  4. अस्मिन अनुकले स्थि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्।
  5. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः।
  6. स कल्पतरुम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्।
  7. जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्।
  8. कञ्चनपुरे नगरे जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म।

उत्तरम् :

  1. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः।
  2. कञ्चनपुरे नगरे जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म।
  3. तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।
  4. स कल्पतरुम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्।
  5. जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्।
  6. यौवराज्ये स्थितः स जीमूतवाहनः कदाचित् हितैषिभिः पितृमन्त्रिभिः उक्तः।
  7. योऽयं सर्वकामदः कल्पतरु: तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः।
  8. अस्मिन् अनुकूले स्थिते शक्रोऽपि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्।

योग्यताविस्तारः

(क) ग्रन्थ परिचय –
‘वेतालपञ्चविंशतिका’ पच्चीस कथाओं का संग्रह है। इस नाम की दो रचनाएँ पाई जाती हैं। एक शिवदास (13वीं शताब्दी) द्वारा लिखित ग्रन्थ है जिसमें गद्य और पद्य दोनों विधाओं का प्रयोग किया गया है। दूसरी जम्भलदत्त की रचना है, जो केवल गद्यमयी है। इस कथा में कहा गया है कि राजा विक्रम को प्रतिवर्ष कोई तान्त्रिक सोने का एक फल देता है। उसी तांत्रिक के कहने पर राजा विक्रम श्मशान से शव लाता है। जिस पर सवार होकर एक वेताल मार्ग में राजा के मनोरंजन के लिए कथा सुनाता है।

कथा सुनते समय राजा को मौन रहने का निर्देश देता है। कहानी के अन्त में वेताल राजा से कहानी पर आधारित एक प्रश्न पूछता है। राजा उसका सही उत्तर देता है। शर्त के अनुसार वेताल पुनः श्मशान पहुँच जाता है। इस तरह पच्चीस बार ऐसी ही घटनाओं की आवृत्ति होती है और वेताल राजा को एक-एक करके पच्चीस कथाएँ सुनाता है। ये कथाएँ अत्यन्त रोचक, भावप्रधान और विवेक की परीक्षा लेने वाली हैं।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

(ख) क्त, क्तवतु प्रयोग :
क्त – इस प्रत्यय का प्रयोग सामान्यतः कर्मवाच्य में होता है।
क्तवतु – इस प्रत्यय का प्रयोग कर्तृवाच्य में होता है।
क्त प्रत्ययः –

  • जीमूतवाहनः हितैषिभिः मन्त्रिभिः उक्तः।
  • कृपणैः कश्चिदपि अर्थ: अर्थितः।
  • त्वया अस्मत्कामाः पूरिताः।
  • तस्य यशः प्रथितम् (कर्तृवाच्य में क्त)

क्तवतु प्रत्ययः –

  • सः पुत्रं यौवराज्यपदेऽभिषिक्तवान्।
  • एतदाकर्ण्य जीमूतवाहनः चिन्तितवान्।
  • स सुखासीनं पितरं निवेदितवान्।
  • जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उक्तवान्।

(ग) लोक कल्याण-कामना-विषयक कतिपय श्लोक – (लोगों की कल्याण की कामना सम्बन्धी कुछ श्लोक-)

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।

हिन्दी-आशय – सभी सुख पाने वाले होवें, सभी स्वस्थ होवें। सभी कल्याण देखें, कोई भी दुःख पाने वाला नहीं होना चाहिए।)

सर्वस्तरतु दुर्गाणि, सर्वे भद्राणि पश्यतु ।
सर्वः कामानवाप्नोतु, सर्वः सर्वत्र नन्दतु।।

हिन्दी-आशय – सभी कठिनाइयों से पार होवें, सभी कल्याण देखें। सभी कामनाओं को प्राप्त करें, सभी सब जगह आनन्दित होवें।)

न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग न पुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामातिनाशनम्।।

हिन्दी-आशय – न तो मैं राज्य की कामना करता हूँ न स्वर्ग की, न पुनर् जन्म की। दुःख से पीड़ित प्राणियों के दु:ख के नाश की (मैं) कामना करता हूँ।)

कल्पतरुः Summary and Translation in Hindi

पाठ का सारांश – प्रस्तुत पाठ ‘वेतालपञ्चविंशतिः नामक कथा-संग्रह से लिया गया है, जिसमें मनोरंजक एवं आश्चर्यजनक घटनाओं के माध्यम से जीवन-मूल्यों का निरूपण किया गया है। इस कथा में हिमालय पर्वत के शिखर पर बसे कंचनपुर नामक नगर के राजा जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवाहन, जो कल्पवृक्ष की कृपा से उत्पन्न हुआ था, की उदारता का वर्णन किया गया है और बताया गया है कि परोपकार ही सर्वोत्कृष्ट एवं चिरस्थाई तत्त्व है।

मन्त्रियों की सलाह के अनुसार एवं अपने पुत्र जीमूतवाहन के गुणों पर प्रसन्न होकर राजा जीमूतकेतु युवावस्था में स्थित अपने पुत्र का युवराज पद पर अभिषेक कर देता है। मन्त्रिगण उसे कुलक्रम से प्राप्त घर के उद्यान में स्थित कल्पवृक्ष की साधना करने की सलाह देते हैं, क्योंकि यह वृक्ष समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला है। बहुत सोच-विचार करने के बाद युवराज जीमूतवाहन अपने पिता के पास जाता है और कहता है कि इस संसार में सब कुछ पानी की तरंगों के समान नष्ट होने वाला है।

केवल परोपकार ही अमर यश प्रदान करने वाला है। अत: मैं परोपकार करने के लिए कल्पवृक्ष की साधना करूँगा। पिता के ‘ऐसा ही करो’ आदेश देने पर वह कल्पवृक्ष के पास गया और वृक्ष से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की। प्रार्थना सुनकर कल्पवृक्ष ने स्वर्ग में उड़कर वहाँ से पृथ्वी पर इतना धन बरसाया कि सबकी निर्धनता दूर हो गयी। इस प्रकार सभी प्राणियों पर दया करने वाले जीमूतवाहन का यश हर जगह फैल गया।
[मूलपाठः,शब्दार्याः,सप्रसंग हिन्दी अनुवादः,सप्रसंग संस्कृत व्यारव्याः अवबोधन कार्यम् च]

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

1. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः। तस्य सानोः उपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम्। तत्र जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म। तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।. स राजा जीमूतकेतुः तं कल्पतरुम् आराध्य तत्प्रसादात् च बोधिसत्वांशसम्भवं जीमूतवाहनं नाम पुत्र प्राप्नोत्। सः जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्। तस्य गुणैः प्रसन्नः स्वसचिवैश्च प्रेरितः राजा कालेन सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्। कदाचित् हितैषिणः पितमन्त्रिणः यौवराज्ये स्थितं तं जीमतवाहनं उक्तवन्त:- “युवराज! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्” इति।

शब्दार्था: – अस्ति = वर्तते (है), हिमवान् = हिमालयः (हिमालय), नाम = अभिधानं (नामक), सर्वरत्नभूमिः = सर्वेषां रत्नानाम् उत्पत्तिस्थानम् (समस्त रत्नों का उत्पत्ति स्थान/खान), नगेन्द्रः = पर्वतराजः (पर्वतराज/पर्वतों का राजा), तस्य = अमुष्य (उसका/उसकी),सानोः = शिखरस्य (चोटी के/शिखर के), उपरि = ऊर्ध्वं (ऊपर), विभाति = शोभते (सुशोभित है), कञ्चनपुरं नाम नगरम् = कञ्चनपुरम् अभिधानं पुरम् (कञ्चनपुर नामक नगर), तत्र = तस्मिन् स्थाने (वहाँ), जीमूतकेतुः इति = जीमूतकेतुरिति (जीमूतकेतु नामक), श्रीमान् = श्रीयुतः (धनवान्),

विद्याधरपतिः = विद्याधराणां पतिः (विद्याधरों का स्वामी, विद्याधरपति), वसति स्म = वासम् अकरोत् (निवास करता था/रहता था), तस्य = अमुष्य (उसके), गृहोद्याने = गृहस्य उपवने (घर के बगीचे में), कुलक्रमागतः = कुलक्रमाद् आगतः (कुल परम्परा से प्राप्त), कल्पतरुः = कल्पवृक्षः (कल्पवृक्ष), स्थितः = विद्यमानः (स्थित था), स राजा जीमूतकेतुः = उस राजा जीमूतकेतु ने, तं कल्पतरुम् = तस्य कल्पवृक्षस्य (उस कल्पवृक्ष की), आराध्य = आराधनां कृत्वा (आराधना करके), तत्प्रसादात् = तस्य अनुग्रहेण (उसकी कृपा से), च = अपि (और), बोधिसत्वांशसम्भवम् = बोधिसत्वस्य अंशात् उत्पन्नम् (बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न), जीमूतवाहनं नाम = जीमूतवाहनं नामधेयं (जीमूतवाहन नाम का),

पुत्रम् = सुतं (पुत्र), प्राप्नोत् = अधिगतम् अकरोत् (प्राप्त किया), स महान् दानवीरः = स अत्यंतः दानशीलः (वह महान् दानवीर), सर्वभूतानुकम्पी च = सर्वेषु प्राणिषु दयावान् च (और सब प्राणियों पर दया करने वाला), अभवत् = अवर्तत (हुआ), तस्य गुणैः = अमुष्य श्रेष्ठ लक्षणैः (उसके गुणों से), प्रसन्नः = तुष्टः (प्रसन्न), स्वसचिवैः = स्वकीयैः अमात्यैः (अपने मंत्रियों से), च = और, प्रेरितः = प्रोत्साहितः (प्रेरित/प्रोत्साहित), राजा = नृपः (राजा ने), कालेन = समयेन (समय से), सम्प्राप्तयौवनम् = युवावस्थायां स्थितं (युवावस्था को प्राप्त), तम् = अमुम् (उसकी/उसको), यौवराज्ये = युवराजपदे (युवराज पद पर),

अभिषिक्तवान् = अभिषिक्तम् अकरोत् (अभिषेक कर दिया), कदाचित् = कस्मिंश्चित् काले (कभी, किसी समय), हितैषिभिः पितृमन्त्रिभिः = पितुः हितचिन्तकैः सचिवैः (पिता के कल्याण की कामना करने वाले मन्त्रियों ने), यौवराज्ये = युवराजपदे (युवराज के पद पर), स्थितंः = विद्यमानः (स्थित), तं जीमूतवाहनः = उस जीमूतवाहन से, उक्तवन्तः = अकथयन् (कहा), युवराज! = राजकुमार! (युवराज!), योऽयम् = यः अयम् (जो यह), सर्वकामदः = सर्वासां कामनानां प्रदाता (समस्त कामनाओं को प्रदान करने वाला), कल्पतरुः = कल्पवृक्षः (कल्पवृक्ष),

तवोद्याने = भवतः उपवने (आपके बगीचे में), तिष्ठति = वर्तते (है), स तव सदा पूज्यः = स भवता सर्वदा पूजनीयः (वह आपके द्वारा हमेशा पूजनीय है), अस्मिन् = एतस्मिन् (इसके), अनुकले स्थिते = अनुकूलस्थितौ वर्तमाने (अनुकूल स्थिति में रहने पर), शक्रोऽपि = इन्द्रोऽपि (इन्द्र भी), अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात् = नास्मान् बाधितुं शक्नोति (हमें बाधा नहीं पहुँचा सकता)।

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हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धत है। यह पाठ वेतालपञ्चविंशतिः’ नामक कथा-संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में राजा जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवाहन के युवराज पद पर अभिषेक तथा कल्पवृक्ष के महत्त्व का वर्णन किया गया है।

हिन्दी-अनवाद – हिमालय नाम का समस्त रत्नों का उत्पत्तिस्थान पर्वतराज है। उसकी चोटी के ऊपर कंचनपर नामक नगर सुशोभित है। वहाँ जीमूतकेतु नामक अत्यन्त धनवान् विद्याधरपति रहता था। उसके घर के बगीचे में कुल परम्परा से प्राप्त कल्पवृक्ष स्थित था। उस राजा जीमूतकेतु ने उस कल्पवृक्ष की आराधना करके और उसकी कृपा से बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न जीमूतवाहन नामक पुत्र प्राप्त किया। वह महान् दानवीर और समस्त प्राणियों पर दया करने वाला हुआ। उसके गुणों से प्रसन्न और अपने मंत्रियों से प्रेरित राजा ने समय से युवावस्था को प्राप्त उसका युवराज पद पर अभिषेक कर दिया। युवराज पद पर स्थित उस जीमूतवाहन से पिता के कल्याण की कामना करने वाले मन्त्रियों ने किसी समय कहा-“हे युवराज ! जो यह समस्त कामनाओं को प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष आपके बगीचे में है, वह आपके द्वारा हमेशा पूजनीय है। इसके अनुकूल स्थिति में रहने पर इन्द्र भी हमें बाधा नहीं पहुँचा सकता।”

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य शेमुष्याः ‘कल्पतरुः’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं “वेतालपञ्चविंशतिः’ कथा-संग्रहात् संकलितो वर्तते। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘वेताल पञ्चविंशतिः’ कथा-ग्रन्थ से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुतगद्यांशे नृपस्य जीमूतकेतोः पुत्रस्य जीमूतवाहनस्य युवराजपदे अभिषेक: कल्पवृक्षस्य महत्त्वं च वर्णितम् अस्ति। (प्रस्तुत गद्यांश में राजा जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवाहन के युवराज पद पर अभिषेक तथा कल्पवृक्ष का महत्व वर्णित

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व्याख्या: – हिमालय इति अभिधानस्य सर्वेषां रत्लानां उत्पत्तिस्थानं पर्वतराजः अस्ति। अमुष्य शिखरस्य ऊर्ध्वं कञ्चनपुरम् अभिधानं पुरं शोभते। तस्मिन् स्थाने जीमूतकेतुः इति श्रीयुतः विद्याधरपतिः वासम् अकरोत्। अमुष्य गृहस्य उपवने कुलक्रमाद् आगतः कल्पवृक्षः विद्यमानः आसीत्। स राजा जीमूतकेतुः तस्य कल्पवृक्षस्य आराधनां कृत्वा तस्य अनुग्रहेण बोधिसत्वस्य अंशात् उत्पन्नं जीमूतवाहननामधेयं सुतम् अधिगतम् अकरोत्। स अत्यन्तं दानवीरः सर्वेषु प्राणिषु च दयावान् अवर्तत।

अमुष्य श्रेष्ठलक्षणैः तुष्टः स्वकीयैः अमात्यैः च प्रोत्साहितः नृपः युवावस्थायां स्थितम् अमुं युवराजपदे अभिषिक्तम् अकरोत्। युवराजपदे विद्यमानम् अमुं जीमूतवाहनं कस्मिंश्चित् काले हितचिन्तकाः पितृसचिवाः अकथयन्-“राजकुमार! यः एष . सर्वासां कामनानां प्रदाता कल्पवृक्षः भवतः उपवने वर्तते, स भवता सर्वदा पूजनीयः। एतस्मिन् अनुकूलस्थितौ वर्तमाने इन्द्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नोति।”

(हिमालय नामक सभी रत्नों की खान पर्वतों का राजा है। इसकी चोटी पर कंचनपुर नाम का नगर शोभा देता है। उस स्थान पर जीमूतकेतु लक्ष्मी व शोभा से युक्त, विद्याधरों का स्वामी निवास करता था। इसके घर के बाग में कुल क्रम से चला आया कल्पवृक्ष विद्यमान था। यह राजा जीमूतकेतु उस कल्पवृक्ष की आराधना करके उसकी कृपा से बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न जीमूतवाहन नाम के पुत्र को प्राप्त किया।

वह अत्यधिक दान करने वाला और सभी प्राणियों पर दया करने वाला था। इसके उत्तम लक्षणों से सन्तुष्ट और अपने मन्त्रियों द्वारा प्रोत्साहित राजा ने जबानी में रहते हुए ही इसको युवराज पद पर अभिषिक्त कर दिया। युवराज पद पर आसीन इस जीमूतवाहन से किसी समय हित सोचने वाले पिता के मन्त्रियों ने कल्पतरु: ₹59 कहा-“राजकुमार, यह जो सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला कल्पवृक्ष आपके बाग में है, वह आप द्वारा सदैव पूजा के योग्य है। इस अनुकूल स्थिति में रहते हुए इन्द्र भी हमें बाधा नहीं पहुँचा सकता है।”)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) हिमवान् नगेन्द्रः किमुक्तः? (हिमवान् पर्वत क्या कहा गया है?)
(ख) जीमूतकेतुः कः आसीत् ? (जीमूत केतु कौन था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) जीमूतकेतुः कल्पतरुम् आराध्य किं प्राप्नोत्? (जीमूतकेतु ने कल्पवृक्ष की आराधना करके क्या प्राप्त किया?).
(ख) जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत् ? (जीमूतवाहन कैसा था?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘प्रतिकूले’ इति पदस्य विलोमार्थकं पदं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘प्रतिकूले’ पद का विलोमपद गद्यांश से चुनकर लिखिये।)
(ख) ‘जीमूतवाहनम् उक्तवन्तः’ उक्तवन्तः क्रियापदस्य कर्तृपदं गद्यांशात् लिखत।
(‘जीमूतवाहनम् उक्तवन्तः’ ‘उक्तवन्तः’ क्रियापद का कर्त्ता गद्यांश से लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) सर्वरत्न भूमिः (सभी रत्नों की खान) ।
(ख) विद्याधरपतिः (विद्याधरों का स्वामी)।

(2) (क) जीमूतकेतुः कल्पतरुम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्र प्राप्नोत्। (जीमूतकेतु ने कल्पवृक्ष की आराधना करके जीमूतवाहन नामक पुत्र को प्राप्त किया।)
(ख) जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी चासीत् ? (जीमूतवाहन महान दानवीर तथा सभी प्राणियों पर कृपा करने वाला था।)

(3) (क) अनुकूले (अनुरूप) ।
(ख) हितैषिणः पितृमन्त्रिणः (हितैषी पिता के मन्त्री)।

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2. एतत् आकर्ण्य जीमूतवाहनः अचिन्तयत् – “अहो ईदृशम् अमरपादपं प्राप्यापि पूर्वैः पुरुषैः अस्माकं तादृशं फलं किमपि न प्राप्तम्। किन्तु केवलं कैश्चिदेव कृपणैः कश्चिदपि अर्थः अर्थितः। तदहम् अस्मात् कल्पतरोः अभीष्टं साधयामि” इति। एवम् आलोच्य सः पितुः अन्तिकम् आगच्छत्। आगत्य च सुखमासीनं पितरम् एकान्ते न्यवेदयत्- “तात! त्वं तु जानासि एव यदस्मिन् संसारसागरे आशरीरम् इदं सर्वं धनं वीचिवत् चञ्चलम्। एकः परोपकार एव अस्मिन् संसारे अनश्वरः यो युगान्तपर्यन्तं यशः प्रसूते। तद् अस्माभिः ईदृशः कल्पतरुः किमर्थं रक्ष्यते? यैश्च पूर्वैरयं ‘मम मम’ इति आग्रहेण रक्षितः, ते इदानीं कुत्र गताः? तेषां कस्यायम्? अस्य वा के ते? तस्मात् परोपकारैकफलसिद्धये त्वदाज्ञया इमः . कल्पपादपम् आराधयामि।

शब्दार्थाः – एतत् आकर्ण्य = एतत् निशम्य (यह सुनकर), जीमूतवाहनः = (जीमूतवाहन), अचिन्तयत् = मनसि विचारम् अकरोत् (मन में विचार किया), अहो = अये (अरे), ईदृशम् अमरपादपम् = एतत्प्रकारम् अमरवृक्षं (इस प्रकार के अमर वृक्ष को), प्राप्यापि = प्राप्तं कृत्वा अपि. (प्राप्त करके भी), पूर्वैः पुरुषैः अस्माकं = अस्माकं पूर्वजाः (हमारे पूर्वजों ने), तादृशम् = तस्य प्रकारस्य (उस प्रकार का), फलम् = फल, किमपि = किञ्चिदपि (कोई भी), ना प्राप्तम् = न आसादितम् (प्राप्त नहीं किया), किन्तु = परञ्च (किन्तु), केवलम् = मात्र (केवल), कैश्चिदेव= कुछ ही,

कृपणैः = कदर्यैः (कंजूसों द्वारा), कश्चिदपि = कतिचित अपि (कुछ भी), अर्थः = धनम् (धन), अथितः = याचितः (माँगा गया), तदहम् = तदानीं अहम् (तब मैं), अस्मात् = एतस्मात् (इस वृक्ष से), अभीष्टम् = अभिलषितं (इच्छा को), साधयामि = पूर्ण करिष्यामि (पूर्ण करूँगा), एवम् आलोच्य = अनया रीत्या विचार्य (इस प्रकार से विचार कर), सः = असौ (वह), पितुः अन्तिकम् = पितुः समीपम् (पिता के पास), आगच्छत् = प्रस्थितः (आया), आगत्य = आगम्य (आकर), च = और, सुखमासीनम् = सुखपूर्वकम् उपविष्टं (सुख से बैठे हुए), पितरम् = जनकं (पिता से),

एकान्ते = निर्जनस्थाने (एकान्त में), न्यवेदयत् = निवेदनम् अकरोत् (निवेदन किया), तात! = हे जनक! (पिताजी), त्वम् = (तुम), तु = (तो), जानासि = बोधयसि (जानते हो), एव = अवश्यं (ही), यदस्मिन् = एतस्मिन् (कि इस), संसारसागरे = समुद्रभूते संसारे (संसार सागर में), आशरीरम् = आजीवनम् (आजीवन), इदम् = एतत् (यह), सर्वम् = समस्तम् (समस्त), धनम् = अर्थः (धन), वीचिवत् = तरङ्गवत् (तरंग की तरह), चञ्चलम् = अस्थिरं भवति (अस्थिर रहता है), एकः परोपकार एव = केवलं. परहितम् एव (एक परोपकार ही), अस्मिन् संसारे = एतस्मिन् जगति (इस संसार में),

अनश्वरः = अविनाशी (नष्ट न होने वाला), योः = यत् (जो), युगान्तपर्यन्तम् = युगान्तं यावत् (युगों तक), यशः = कीर्तिम् (यश/कीर्ति को), प्रसूते = जनयति (उत्पन्न करता है), तत् = तदानी (तब), अस्माभिः ईदृशः = अस्माभिः एतत् प्रकारस्य (हमारे द्वारा इस प्रकार के), कल्पतरुः = कल्पवृक्षस्य (कल्पवृक्ष की), किमर्थम् = केन कारणेन (क्यों), रक्ष्यते = रक्षा क्रियते (रक्षा की जाती है), यैश्च = यैः च (और जिन्होंने), पूर्वैरयम् = पुरा अस्य (पहले इसकी),

मम मम इति = मदीय-मदीय अनेन प्रकारेण (मेरा-मेरा इस प्रकार), आग्रहेण = तत्परतापूर्वकम् (तत्परतापूर्वक/आग्रहपूर्वक), रक्षितः = रक्षा कृता (रक्षा की थी), ते = अमी (वे), इदानीम् = अधुना (इस समय), कुत्र = कं स्थानं (कहाँ), गताः = प्रस्थिताः (गये), तेषां कस्यायम् = अमीषाम् कस्य एषः (उनमें से यह किसका है), अस्य = एतस्य (इसके), वा = किंवा (अथवा), के ते = के अमी (वे कौन हैं), तस्मात् = अमुष्मात् कारणात् (इस कारण से), परोपकारैकफलसिद्धये = एकमात्र परहितस्य फल-प्राप्त्यर्थं (मात्र परोपकार के फल की प्राप्ति के लिए), त्वदाज्ञया = भवतः स्वीकृत्या (आपकी आज्ञा से), इमम् = अस्य (इस), कल्पपादपम् = कल्पवृक्षस्य (कल्पवृक्ष की), आराधयामि = आराधनां करिष्यामि (आराधना करूँगा)।

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हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ वेतालपञ्चविंशतिः’… ‘कथा-संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन द्वारा कल्पवृक्ष से धन-प्राप्ति की कामना न करके परोपकार की कामना की गयी है एवं परोपकार की महिमा का यहाँ वर्णन किया गया है।

हिन्दी-अनुवाद – यह सुनकर जीमूतवाहन ने मन में विचार किया -“अरे आश्चर्य की बात है! इस प्रकार के अमर वृक्ष को प्राप्त करके भी हमारे पूर्वजों ने उस प्रकार का कोई भी फल प्राप्त नहीं किया किन्तु केवल किन्हीं कंजूसों द्वारा कुछ धन ही माँगा गया। तब मैं इस (वृक्ष) से मन की इच्छा को पूरी करूँगा।” इस प्रकार विचारकर वह पिता के पास आया और आकर सुख से बैठे हुए पिता से (उसने) एकान्त में निवेदन किया-“पिताजी ! आप तो जानते ही हैं कि इस संसार सागर में आजीवन यह समस्त धन तरंग की तरह अस्थिर रहता है। एक परोपकार ही इस संसार में अनश्वर (नष्ट न होने वाला) है जो युगों तक यश (कीर्ति) उत्पन्न करता रहता है। तब हम इस प्रकार के कल्पवृक्ष की क्यों रक्षा करते हैं और जिन्होंने पहले इसकी ‘मेरा-मेरा’ इस प्रकार आग्रहपूर्वक रक्षा की थी, वे इस समय कहाँ गये? उनमें से यह किसका है अथवा वे इसके कौन हैं ? इस (कारण) से एकमात्र परोपकार के फल की प्राप्ति के लिए आपकी आज्ञा से इस कल्पवृक्ष की आराधना करूँगा।

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य शेमुष्याः ‘कल्पतरुः’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं वेतालपञ्चविंशतिः कथा-संग्रहात् संकलितो वर्तते। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ कथा-संग्रह से संकलित है।) . प्रसङ्गः-प्रस्तुतगद्यांशे जीमूतवाहनेन कल्पवृक्षात् धनप्राप्तेः कामनां न कृत्वा परोपकारस्य कामना क्रियते परोपकारस्य महिमा च अत्र वर्णितः। (प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन द्वारा कल्पवृक्ष से धन-प्राप्ति की कामना न करके परोपकार की कामना की गयी है और परोपकार का यहाँ महत्व वर्णित है।)

व्याख्या: – एतत् निशम्य जीमूतवाहनः मनसि विचारम् अकरोत्-अये! विस्मयः अस्ति, एतत् प्रकारम् अमरवृक्षं प्राप्तं कृत्वा अपि अस्माकं पूर्वजाः तस्य प्रकारस्य किञ्चिदपि फलं न प्राप्तम् अकुर्वन् । परञ्च मात्र कैश्चित् एव कदर्यैः कतिचित् केवलं धनं याचितम्। तदानीं अहम् एतस्मात् (वृक्षात्) मनसा अभिलषितं पूर्णं करिष्यामि। अनया रीत्या विचार्य असौ . जनकस्य समीपं प्रस्थितः। आगम्य च सुखपूर्वकम् उपविष्टं जनकं (सः) निर्जनस्थाने निवेदनम् अकरोत्-हे जनक ! त्वं तु बोधयसि एवं यत् समुद्रभूते एतस्मिन् संसारे आजीवनम् एतत् समस्तम् अर्थम् तरङ्गवत् अस्थिरं भवति। केवलं परहितम् एव एतस्मिन् जगति अविनाशी अस्ति यत् युगान्तं यावत् कीर्तिं जनयति। तदानीम् अस्माभिः एतद् प्रकारस्य कल्पवृक्षस्य केन . कारणेन रक्षा क्रियते। यैः च पुरा अस्य मदीय-मदीय अनेन प्रकारेण तत्परतापूर्वक रक्षा कृता, अमी अधुना कं स्थानं प्रस्थिताः।। अमीषां कस्य एषः एतस्य वा के अमी। अमुष्मात् कारणात् एकमात्र परहितस्य फलप्राप्त्यर्थं भवतः स्वीकृत्या अस्य । कल्पवृक्षस्य आराधनां करिष्यामि।

(यह सुनकर जीमूतवाहन ने मन में विचार किया- अरे आश्चर्य है, इस प्रकार के कल्पवृक्ष को प्राप्त करके भी हमारे पूर्वजों ने इस प्रकार का कोई फल प्राप्त नहीं किया परन्तु मात्र कुछ लोगों (कंजूसों) द्वारा कुछ थोड़ा सा धन माँगा गया तो अब मैं इस वृक्ष से मन की अभिलाषाएँ पूरा करूँगा। इस प्रकार विचार कर वह पिताजी के पास गया और आकर सुखपूर्वक बैठे पिताजी से उसने एकान्त में निवेदन किया- ‘हे पिताजी! आप तो जानते हैं कि समुद्र की लहरों के समान इस संसार में यह जीवन, यह धन भी लहरों की तरह चलायमान होता है।

केवल परोपकार ही इस संसार में नाश न होने वाला है जो युग-युग तक कीर्ति पैदा करता है। तब हमारे द्वारा इस प्रकार के कल्पवृक्ष की किस कारण से रक्षा की जाती है? और जिन लोगों ने . पहले मेरा-मेरा इस प्रकार से तत्परतापूर्वक रक्षा की गई, अब किस स्थान पर पहुँच गये? उनमें से यह किसका है अथवा इसके कौन हैं? इस कारण से एकमात्र परोपकार फलप्राप्ति के लिए आपकी स्वीकृति से इस कल्पवृक्ष की आराधना करूँगा।)

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अवबोधन कार्यम् –

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) ‘अमरपादपम्’ अत्र कस्मै प्रयुक्तम्? (‘अमरपादपम्’ पद का प्रयोग किसके लिए किया है?)
(ख) जीमूतवाहनः कल्पतरोः किं साधयितुम् इच्छति? (जीमूतवाहन कल्पवृक्ष से क्या,साधना चाहता है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मन्त्रिणां परामर्श श्रुत्वा जीमूतवाहनः किम् अचिन्तयत् ?
(मन्त्रियों की सलाह सुनकर जीमूतवाहन ने क्या सोचा?)
(ख) अस्मिन् संसारे आशरीरं धनं कीदृशं स्मृतम्?
(इस संसार में शरीर-सहित यह धन कैसा कहा गया है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘समीपम्’ इति पदस्य पर्यायवाचे पदं गद्यांशात् चित्वा लिखत्।
(‘समीपम्’ पद का समानार्थी शब्द गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘नश्वरः’ इति पदस्य विलोमार्थकं पदं गद्यांशात् चित्वा लिखत्।
(‘नश्वरः’ पद का विलोमार्थक शब्द गद्यांश से चुनकर लिखिए।) ।
उत्तराणि-
(1) (क) कल्पतरुम् (कल्पवृक्ष को)।
(ख) अभीष्टम् (इच्छित को)।

(2) (क) अहो ईदृशम् अमरपादपं प्राप्यापि पूर्वैः पुरुषैः तादृशं फलं किमपि न प्राप्तम्?
(अरे इस अमर पौधे को प्राप्त करके भी हमारे पुरखों ने ऐसा कोई फल प्राप्त नहीं किया?) ।
(ख) अस्मिन् संसारे आशरीरं धनं वीचिवत् चञ्चलम्।
(इस संसार में शरीर सहित धन लहरों की तरह चञ्चल होता है।)

(3) (क) अन्तिकम् (समीप)।
(ख) अनश्वरः (जिसका नाश न हो)।

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3. अथ पित्रा ‘तथा’ इति अभ्यनुज्ञातः स जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच – “देव! त्वया अस्मत्यूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैक कामं पूरय। यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि, तथा करोतु देव” इति। एवंवादिनि जीमूतवाहने “त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि” इति वाक् तस्मात् तरोः उदभूत्।
क्षणेन च स कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य भुवि तथा वसूनि अवर्षत् यथा न कोऽपि दुर्गत आसीत्। ततस्तस्य जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पया सर्वत्र यशः प्रथितम्।

शब्दार्था: – अथ = तदनन्तरम् (इसके पश्चात्), पित्रा = जनकेन (पिता से), तथा इति = यथा इच्छसि इति (वैसी), अभ्यनुज्ञातः = अनुमतः (अनुमति पाया हुआ), स जीमूतवाहनः = असौ जीमूतवाहनः (वह जीमूतवाहन), कल्पतरुम् = कल्पवृक्षस्य (कल्पवृक्ष के), उपगम्य = समीपं गत्वा (पास जाकर), उवाच = अवदत् (बोला), देव! = भो देव! (हे देव!), त्वया = भवता (आपके द्वारा), अस्मत् पूर्वेषाम् = अस्माकं पूर्वजानां (हमारे पूर्वजों की), अभीष्टाः = वाञ्छिताः (इच्छित), कामाः = कामनाः (कामनाएँ), पूरिताः = पूर्णाः कृताः (पूर्ण की गई हैं), तत् = तदानीम् (तब), मम = मदीय (मेरी),

एकम् = एक, कामम् = कामनाम् (कामना), पूरय = पूर्णं कुरु (पूर्ण कीजिए), यथा = येन प्रकारेण (जिस प्रकार से), पृथ्वीम् = भूमिं (पृथ्वी को), अदरिद्राम् = दरिद्रहीनाम् (दरिद्रता से रहित), पश्यामि = ईक्षे (देखू), तथा = तद्वत् एव (वैसा ही), करोतु = कीजिए, देव! = भो देव! (हे देव!), एवंवादिनि = यावदेव एवम् अवदत् (इस प्रकार कहने पर), जीमूतवाहने = जीमूतवाहनेन (जीमूतवाहन के द्वारा), त्यक्तस्त्वया = युष्माभिः त्यक्तः (तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ), एषोऽहं = एषः अहं (यह मैं), यातोऽस्मि = गच्छामि (जाता हूँ), इति वाक = एवंविधा वाणी (इस प्रकार की वाणी),

तस्मात् = उस, तरोरुद्भूत् = वृक्षात् उत्पन्ना अभवत् (वृक्ष से उत्पन्न हुई), क्षणेन = क्षणमात्रे (क्षणभर में), स कल्पतरुः = असौ कल्पवृक्षः (उस कल्पवृक्ष ने), दिवम् = स्वर्गम् (स्वर्ग को), समुत्पत्य = उड्डीय (उड़कर), भुवि = पृथिव्यां (पृथ्वी पर), तथा = तेन प्रकारेण (उस प्रकार से), वसूनि = धनस्य (धन की), अवर्षत् = वृष्टिम् अकरोत् (वर्षा की), यथा = येन (जिससे), न = मा (नहीं), कोऽपि = कश्चन (कोई भी), दुर्गतः = दुर्गतिम् आपन्नः (पीड़ित/निर्धन), आसीत् = अभवत् (रहा था), ततः = तदनन्तरं (इसके पश्चात्), तस्य जीमूतवाहनस्य = अमुष्य जीमूतवाहनस्य (उस जीमूतवाहन का), सर्वः = समनः (समस्त), जीवानुकम्पया = जीवेषु कृपया (जीवों पर दया करने से), सर्वत्र = समस्तस्थानेषु (सब जगह), यशः = कीर्तिः (यश/कीर्ति), प्रथितम् = प्रसिद्धा अभवत् (प्रसिद्ध हो गयी।)

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ वेतालपञ्चविंशतिः’ नामक कथा-संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन कल्पवृक्ष से सम्पूर्ण भूमि के जीवों को सुखी करने के लिए प्रार्थना करता है।

हिन्दी-अनुवाद – इसके पश्चात् पिता से वैसी अनुमति प्राप्त किया हुआ वह जीमूतवाहन कल्पवृक्ष के पास जाकर बोला-“देव ! आपके द्वारा हमारे पूर्वजों की इच्छित कामनाएँ पूर्ण की गयी हैं, तब मेरी (भी) एक कामना पूर्ण कीजिये। जिस प्रकार से पृथ्वी को दरिद्रता से रहित देखू, देव! वैसा ही कीजिए।” जीमूतवाहन के ऐसा कहने पर “तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ यह मैं जाता हूँ” इस प्रकार की वाणी उस वृक्ष से उत्पन्न हुई। और क्षणभर में उस कल्पवृक्ष ने स्वर्ग को उड़कर पृथ्वी पर उस प्रकार से धन की वर्षा की, जिससे कोई भी पीड़ित/ निर्धन नहीं (रहा) था। इसके पश्चात् उस जीमूतवाहन का समस्त जीवों पर दया करने से सर्वत्र (सब जगह) कीर्ति (यश) प्रसिद्ध हो गयी।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य शेमुष्याः ‘कल्पतरुः’ नामक पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ कथा-संग्रहात् सङ्कलितो वर्तते। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ नामक कथा-संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुतगद्यांशे जीमूतवाहनः कल्पवृक्षं समस्तपृथिव्याः जीवान् सुखीकरणाय प्रार्थयति। (प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन कल्पवृक्ष से सम्पूर्ण भूमि के जीवों को सुखी करने के लिए प्रार्थना करता है।)

व्याख्या – तदनन्तरम् जनकेन यथा इच्छसि इति अनुमतः असौ जीमूतवाहनः कल्पवृक्षस्य समीपं गत्वा अवदत्-“भो देव! भवता अस्माकं पूर्वजानां वाञ्छिताः कामनाः पूर्णाः कृताः, इदानीं मदीय एकां कामना पूर्णां कुरु। येन प्रकारेण भूमि दरिद्रहीनाम् ईक्षे, भो देव! एवं कुरु।” यावदेव जीमूतवाहनः एवम् अवदत् तावदेव तस्मात् वृक्षात् एवं वाणी उत्पन्ना अभवत् यत् त्वया त्यक्तः एषः अहं गच्छामि। क्षणमात्रे च असौ कल्पवृक्षः स्वर्गम् उड्डीय पृथिव्यां तेन प्रकारेण धनस्य वृष्टिम् अकरोत् येन मा कश्चन दुर्गतिम् आपन्नः अभवत्। तदनन्तरम् अमुष्य जीमूतवाहनस्य समग्रजीवेषु कृपया समस्तस्थानेषु कीर्तिः प्रसिद्धा अभवत्।

(इसके पश्चात् पिताजी ने- ‘जैसा तुम चाहते हो” इस प्रकार आज्ञा प्राप्त किया हुआ वह जीमूवाहन कल्पवृक्ष के समीप गया और बोला- हे देव! आपके द्वारा हमारे पूर्वजों की इच्छित कामनाएँ पूरी की गईं, अब मेरी एक कामना पूरी करो। जिस प्रकार से पृथ्वी गरीबी रहित देखू, हे देव! ऐसा करो।’ जैसे ही जीमूतवाहन ने ऐसा बोला वैसे ही उस वृक्ष से वाणी (आवाज) आई कि तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ यह मैं जाता हूँ। क्षण मात्र में ही वह कल्पवृक्ष स्वर्ग को उड़कर पृथ्वी पर इस प्रकार से धन की वर्षा की जिससे कोई भी पीड़ित और निर्धन न रहे। उसके पश्चात् इस जीमूतवाहन की सभी प्राणियों पर दया के कारण कीर्ति प्रसिद्ध हो गई।)

अवबोधन कार्यम् –

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कल्पतरुः भुवि किम् अवर्षत् ? (कल्पवृक्ष ने धरती पर किसकी वर्षा की?)
(ख) जीमूतवाहनस्य केन कारणेम यशप्रथितम्? (जीमूतवाहन का यश किस कारण से फैला?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कल्पतरो: का वाक उदभत? (कल्पवक्ष से क्या वाणी निकली?)
(ख) किं फलस्य सिद्धये जीमूतवाहन पित्रोः आज्ञामयाचत् ?
(किस फल की सिद्धि के लिए जीमूतवाहन ने पिता से आज्ञा माँगी?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘पृथिव्याम्’ इति पदस्यस्थाने गद्यांशे किं पदं प्रयुक्तम्?
(‘पृथिव्याम्’ पद के लिए गद्यांश में किम् पद का प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘अभीष्टाः कामाः’ एतयो पदयोः किं विशेष्यपदम् ?
(‘अभीष्टाः कामाः’ इन पदों में विशेषण कौनसा है?)
उत्तराणि :
(1) (क) वसूनि (धन)।
(ख) सर्वजीवानुकम्पया (सभी जीवों पर दया करने के कारण)।

(2) (क) त्यक्तः त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि। (तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ, यह मैं जा रहा हूँ।)
(ख) परोपकारैकफलसिद्धये जीमूतवाहन पित्रोः आज्ञामयाचत्। (एकमात्र परोपकार फल सिद्धि हेतु जीमूतवाहन ने पिता से आज्ञा माँगी।)

(3) (क) भुवि (धरती पर)।
(ख) कामाः (कामनाएँ)।

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