JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ
बहुविकल्पीय
प्रश्न 1.
समकालीन विश्व में शासन का एक प्रमुख रूप है
(क) लोकतंत्र
(ख) तानाशाह
(ग) राजतंत्र
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) लोकतंत्र
2. अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के समक्ष प्रमुख चुनौती है
(क) लोकतंत्र को मजबूत करना
(ख) विस्तार की चुनौती
(ग) बुनियादी आधार बनाने की चुनौती
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी
3. वर्तमान में लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर सक्रिय है
(क) सूचना का अधिकार
(ख) स्वतन्त्रता का अधिकार
(ग) सम्पत्ति का अधिकार
(घ) शिक्षा का अधिकार
उत्तर:
(क) सूचना का अधिकार
4. निम्न में कौन-सी चुनौती प्रत्येक लोकतंत्र के समक्ष किसी न किसी रूप में है
(क) लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती
(ख) विस्तार की चुनौती
(ग) बुनियादी आधार बनाने की चुनौती
(घ) इनमें से काई नहीं
उत्तर:
(क) लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती
5. नेल्सन मंडेला का संबंध किस देश से है
(क) दक्षिण अफ्रीका
(ख) इराक
(ग) मैक्सिको
(घ) चीन
उत्तर:
(क) दक्षिण अफ्रीका
रिक्त स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पर्ति कीजिए:
1. वह मुश्किल जिससे छुटकारा मिल सके,…………..कहलाती है।
उत्तर:
चुनौती,
2. सूचना का अधिकार…………वह अंकुश लगाता है।
उत्तर:
भ्रष्टाचार,
3. लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के बारे में सभी सुझाव या प्रस्ताव………सुधार कहलाते है।
उत्तर:
राजनीतिक या लोकतांत्रिक,
4. सरकारों और सामाजिक समूहों के मध्य सत्ता की साझेदारी………..के लिए अति आवश्यक है।
उत्तर:
लोकतंत्र
अति लयूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लोकतंत्र के सन्दर्भ में कोई दो चुनौतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- विस्तार संबंधी चुनौती
- लोकतंत्र को मजबूत करने से संबंधित चुनौती।
प्रश्न 2.
उन दो लोकतांत्रिक देशों के नाम बताइए जिन्हें विस्तार की चुनौती का सामना करना पड़ा।
उत्तर:
- भारत,
- संयुक्त राज्य अमेरिका।
प्रश्न 3.
किस देश में महिलाओं को सार्वजनिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं है?
उत्तर:
सऊदी अरब में महिलाओं को सार्वजनिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं है।
प्रश्न 4.
लोकतांत्रिक सुधार क्या हैं?
उत्तर:
लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के बारे में समस्त सुझाव या प्रस्ताव लोकतांत्रिक सुधार कहलाते हैं।
प्रश्न 5.
सबसे अच्छे कानून कौन से होते हैं?
उत्तर:
सबसे अच्छे कानून वे होते हैं जो लोगों को लोकतांत्रिक सुधारों की शक्ति देते हैं।
प्रश्न 6.
शासन का वह स्वरूप कौन-सा होता है जिसमें लोग स्वयं अपने शासक का चुनाव करते हैं?
उत्तर:
लोकतंत्र शासन में लोग स्वयं अपने शासक का चुनाव करते हैं।
प्रश्न 7.
कौन-सा कानून भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का कार्य कर रहा है?
उत्तर:
सूचना का अधिकार कानून।
प्रश्न 8.
सूचना के अधिकार कानून की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- यह लोगों को जागरूक बनाने व लोकतंत्र के रक्षक के रूप में सक्रिय करने का कार्य करता है।
- यह भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाता है।
प्रश्न 9.
लोकतांत्रिक सुधारों का कार्य कौन करता है?
उत्तर:
- राजनीतिक कार्यकर्ता,
- राजनीतिक दल,
- आन्दोलन,
- राजनीतिक रूप से सक्रिय नागरिक।
लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)
प्रश्न 1.
“लोकतंत्र शासन का वह स्वरूप है जिसमें लोग अपने शासकों का चुनाव करते हैं।” इस परिभाषा में आप क्या जोड़ना चाहेंगे?
अथवा
एक लोकतंत्र के लिए आवश्यक कुछ महत्त्वपूर्ण योग्यताओं को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
- जनता द्वारा चुने गए शासकों को ही समस्त प्रमुख फैसले लेने चाहिए।
- चुनाव द्वारा जनता को अपने द्वारा चुने हुए शासकों को बदलने का विकल्प एवं अवसर उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
- ये विकल्प एवं अवसर समस्त लोगों को समान रूप से उपलब्ध होने चाहिए।
- विकल्प चुनने के इस तरीके से ऐसी सरकार का गठन होना चाहिए जो संविधान के बुनियादी नियमों एवं नागरिकों के अधिकारों को मानते हुए कार्य करे।
प्रश्न 2.
‘अच्छे लोकतंत्र’ को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अच्छे लोकतंत्र की परिभाषा-एक अच्छा लोकतंत्र वह है जिसमें जनता द्वारा निर्वाचित शासक जनता की इच्छाओं तथा आशाओं को पूरी करने के लिए, संवैधानिक ढाँचे के अन्तर्गत, मुख्य फैसले लेते हैं। यदि ये शासक जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते तो इस स्थिति में, जनता को उन्हें वापिस बुला सकने का प्रावधान होना चाहिए।
लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)
प्रश्न 1.
‘लोकतंत्र की चुनौतियाँ’ शब्द से क्या अभिप्राय है ? लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के कोई दो उदाहरण दीजिए। “चुनौती प्रगति के लिए एक सुअवसर है।” इस कथन के पक्ष में अपने तर्क दीजिए।
अथवा
“चुनौती उन्नति के लिए अवसर है।” इस कथन को न्यायसंगत ठहराइए।
अथवा
“चुनौती कोई समस्या नहीं है, बल्कि उन्नति का अवसर है।” कथन का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
लोकतन्त्र चुनौतियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“चुनौती प्रगति के लिए एक सुअवसर है।” अपने तर्कों सहित इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
चुनौती का शाब्दिक अर्थ है-एक चुनौतीपूर्ण परिस्थिति जिसमें किसी प्रकार की प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। लोकतंत्र में चुनौती शब्द का आशय है-एक देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए आने वाली विभिन्न कठिनाइयाँ। चुनौतियाँ किसी आम समस्या जैसी नहीं हैं। हम आमतौर पर उन्हीं मुश्किलों को चुनौती कहते हैं जो महत्त्वपूर्ण तो हैं लेकिन जिन पर विजय प्राप्त की जा सकती है। यदि किसी मुश्किल के भीतर ऐसी सम्भावना है कि उस मुश्किल से छुटकारा मिल सके तो उसे हम चुनौती कहते हैं। एक बार जब हम चुनौती से पार पा लेते हैं तो हम पहले की अपेक्षा कुछ कदम आगे बढ़ जाते हैं।
उदाहरण
- निर्धनता,
- बेरोजगारी,
- भ्रष्टाचार। ये चुनौतियाँ हमें बंताती हैं कि इनका समाधान करके हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं।
प्रश्न 2.
लोकतंत्र को किस प्रकार राजनीतिक तौर पर सुधारा जा सकता है? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
लोकतंत्र शासन की वह व्यवस्था है जिसमें शासन की अन्तिम शक्ति जनता के हाथों में रहती है। लोकतंत्र को राजनैतिक सुधार करते समय निम्न बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए
1. कानूनों का निर्माण:
राजनीतिक सुधारों के मामले में कानून भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। सावधानीपूर्वक बनाए गए कानून गलत राजनीतिक आचरणों को हतोत्साहित करते हैं तथा अच्छे काम-काज को प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।
2. राजनीतिक दलों में सुधार:
लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए राजनीतिक दलों में सुधार आवश्यक है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में राजनीतिक सुधार तो मुख्य रूप से राजनीतिक दल ही करता है। इसलिए राजनीतिक सुधारों का जोर मुख्य रूप से लोकतांत्रिक व्यवहार को अधिक मजबूत बनाने पर होना चाहिए।
3. राजनीतिक सुधारों को लागू करने की उचित व्यवस्था:
राजनीतिक सुधारों के प्रस्ताव में उनके समाधान होने के साथ-साथ उन्हें लागू करने वाले प्रशासनिक तंत्र की उचित व्यवस्था करना अति आवश्यक है। यह मान लेना समझदारी है कि संसद प्रत्येक राजनीतिक दल एवं सांसदों के हितों के विरुद्ध कोई कानून बनाएगी, लेकिन लोकतांत्रिक आन्दोलन, नागरिक संगठन एवं मीडिया पर विश्वास करने वाले उपायों के सफल होने की संभावना अधिक होती है।
प्रश्न 3.
“कानून बनाकर राजनीति को सुधारना अति कठिन है।” कथन का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
कानून बनाकर राजनीति को सुधारने की बात सोचना बड़ा लुभावना लग सकता है। नए कानून सभी अवांछित चीजों को समाप्त कर देंगे यह सोचना सुखद हो सकता है परन्तु ऐसा पूर्णतः सही नहीं है। यह सही है कि कानून की सुधारों के मामलों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
सावधानीपूर्वक बनाए कानून गलत राजनीतिक आचरणों को हतोत्साहित तथा अच्छे कामों को प्रोत्साहित करेंगे। लेकिन लोकतंत्र की चुनौतियों को हल करने के लिए विधिक-संवैधानिक बदलाव करना पर्याप्त नहीं है। यह बिल्कुल क्रिकेट के नियमों के जैसा है। बल्लेबाजों द्वारा अपनाए जाने वाले बल्लेबाजी के नकारात्मक दाँव-पेच को एल.बी.डब्ल्यू के नियम में बदलाव कर कम किया जा सकता है।
लेकिन सिर्फ नियमों में बदलाव करने भर से क्रिकेट का खेल सुधरने की बात कोई नहीं सोच सकता। यह काम तो मुख्य रूप से खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों तथा क्रिकेट-प्रशासकों के करने से ही हो पाएगा। इसी तरह राजनीतिक सुधारों का काम भी मुख्य रूप से राजनीतिक कार्यकर्ता, दल, आन्दोलन तथा राजनीतिक रूप से जागरूक नागरिक ही कर सकते हैं। अत: यह कहना या सोचना सही है कि कानून बनाकर राजनीति को सुधारना अति कठिन है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लोकतंत्र की तीन चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
भारत में लोकतंत्र के समक्ष मुख्य चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय लोकतंत्र के समक्ष वर्तमान में प्रस्तुत चुनौतियों को रेखांकित कीजिए।
अथवा
भारतीय लोकतन्त्र के सम्मुख तीन प्रमुख चुनौतियों की विवेचना कीजिए।
अथवा
विश्व के अधिकतर देशों में लोकतन्त्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र के सम्मुख प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
1. बुनियादी चुनौतियाँ:
विश्व के एक-चौथाई भाग में भी शासन व्यवस्था नहीं है। इन राज्यों में लोकतंत्र के लिए बहुत ही मुश्किल चुनौतियाँ हैं। इन देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरफ जाने एवं लोकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए आवश्यक बुनियादी आधार बनाने की चुनौती है। इनमें वर्तमान गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को सत्ता से हटाने, सत्ता पर से सेना के नियंत्रण को समाप्त करने एवं एक प्रभुत्व पूर्ण शासन व्यवस्था स्थापित करने की चुनौती है।
2. विस्तार की चुनौती:
भारत जैसी अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के समक्ष अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धान्तों के सभी क्षेत्रों, सामाजिक समूहों एवं विभिन्न संस्थाओं में लागू करना सम्मिलित है। स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार सम्पन्न बनाना, महिलाओं तथा अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना, कम-से-कम निर्णयों को लोकतांत्रिक नियंत्रण के बाहर रखना आदि सम्मिलित हैं।
3. लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती:
भारतीय लोकतंत्र के समक्ष यह चुनौती किसी-न-किसी रूप में है। इसके अन्तर्गत लोकतांत्रिक संस्थाओं एवं व्यवहारों को मजबूत करना जो लोकतंत्र को बढ़ावा देते हैं। सरकार में धनवान लोगों एवं शक्तिशाली लोगों के प्रभाव एवं नियंत्रण को कम करना तथा स्थानीय सरकारों को अधिक शक्तियाँ प्रदान करना आदि सम्मिलित हैं। तभी इस चुनौती का सामना किया जा सकता है।
प्रश्न 2.
विश्व में लोकतंत्र की दो चुनौतियाँ एवं उनके समाधान बताइए।
अथवा
भारतीय लोकतन्त्र के समक्ष वर्तमान में प्रस्तुत चुनौतियों को रेखांकित कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र की चुनौतियाँ- लोकतन्त्र के सम्मुख विश्व में लोकतंत्रों के सम्मुख प्रमुख दो चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं
1. विस्तार की चुनौती:
भारत तथा संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के समक्ष अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धान्तों को सभी क्षेत्रों, सामाजिक समूहों एवं विभिन्न संस्थाओं में लागू करना सम्मिलित है। स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार सम्पन्न बनाना, महिलाओं तथा अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना, कम-से-कम निर्णयों को लोकतांत्रिक नियंत्रण के बाहर रखना . आदि सम्मिलित हैं।
2. लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती:
भारतीय लोकतंत्र के समक्ष यह चुनौती किसी-न-किसी रूप में है। इसके अन्तर्गत लोकतांत्रिक संस्थाओं एवं व्यवहारों को मज़बूत करना जो लोकतंत्र को बढ़ावा देते हैं। सरकार में धनवान लोगों एवं शक्तिशाली लोगों के प्रभाव एवं नियंत्रण को कम करना तथा स्थानीय सरकारों को अधिक शक्तियाँ प्रदान करना आदि सम्मिलित हैं। तभी इस चुनौती का सामना किया जा सकता है।
विश्व में लोकतंत्र की चुनौतियों के समाधान
1. कानूनों का निर्माण:
विश्व में लोकतंत्र की चुनौतियों के समाधान के लिए राजनीतिक सुधारों के मामले में कानून की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सावधानीपूर्वक बनाये गये कानून गलत राजनीतिक आचरणों को हतोत्साहित एवं अच्छे कामकाज को प्रोत्साहित करेंगे। कानून बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए
(अ) कानूनों में बदलाव या परिवर्तन हेतु राजनीतिक कार्यकर्ता, राजनीतिक दल, राजनीतिक आन्दोलन एवं राजनीतिक रूप से जागरूक नागरिकों का योगदान होना चाहिए।
(ब) राजनीतिक कार्यकर्ताओं को अच्छे कार्य करने के लिए बढ़ावा देने वाले या लाभ पहुंचने वाले कानूनों के सफल होने की अधिक सम्भावना होती है।
(स) सबसे अच्छे कानून वे होते हैं जो लोगों को लोकतान्त्रिक सुधार करने की ताकत देते हैं। उदाहरण, सूचना का अधिकार कानून।
2. राजनीतिक दलों में सुधार:
लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में राजनीतिक सुधार तो मुख्य रूप से राजनीतिक दलों द्वारा ही किये जाते हैं। इसलिए राजनीतिक सुधारों का जोर मुख्यतः लोकतांत्रिक व्यवहार को अधिक मज़बूत बनाने पर होना चाहिए जिससे सामान्य जनता की राजनीतिक भागीदारी के स्तर एवं गुणवत्ता में सुधार हो। उदाहरणार्थ, राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की स्थापना की जानी चाहिए।
प्रश्न 3.
“लोकतंत्र के सामने कोई गंभीर चुनौती नहीं है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि इसे किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ता है।” इस कथन की व्याख्या करते हुए लोकतंत्र की विस्तार सम्बन्धी चुनौती का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र के सामने कोई गंभीर चुनौती नहीं है। समकालीन विश्व में लोकतंत्र शासन का एक प्रमुख रूप है, परन्तु लोकतंत्र का संकल्प वास्तविकता से परे है। इसे निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है
1. बुनियादी आधार बनाने की चुनौती लोकतंत्र में परिवर्तन ला रही है तथा उसके पश्चात् लोकतांत्रिक सरकार का गठन होता है।
2. विस्तार सम्बन्धी चुनौती का अर्थ होता है-लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धान्तों को सभी क्षेत्रों में लागू करना जिसके अन्तर्गत स्थानीय सरकारों को अधिक-से-अधिक शक्ति प्रदान करना, संघ के सिद्धान्तों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना तथा महिलाओं व अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना आदि सम्मिलित हैं।
3. लोकतंत्र की मज़बूती से तात्पर्य है, लोकतांत्रिक संस्थाओं एवं व्यवहारों को मजबूत बनाना। लोकतंत्र के विस्तार संबंधी चुनौती-लोकतंत्र के विस्तार संबंधी चुनौती से तात्पर्य है लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धान्तों को सभी क्षेत्रों, सामाजिक समूहों एवं विभिन्न संस्थाओं में लागू करना। राज्य तथा स्थानीय सरकार को अधिकार सम्पन्न बनाना।
महिलाओं तथा अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागदारी सुनिश्चित करना तथा कम-से-कम निर्णयों को लोकतांत्रिक नियंत्रण के बाहर रखना आदि हैं। अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक संस्थाओं के समक्ष अपने विस्तार की चुनौती है। यह समस्या भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों के सामने भी प्रमुख चुनौती के रूप में है।
प्रश्न 4.
भारत में राजनीतिक सुधारों के लिए तरीका एवं जरिया ढूँढ़ते समय किन दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखना चाहिए? विस्तारपूर्वक बताइये।
अथवा
‘राजनीतिक सुधार’ या ‘लोकतान्त्रिक सुधार’ से आप क्या समझते हैं? क्या सभी देशों को एक ही जैसे राजनीतिक सुधार अपनाने चाहिए।
उत्तर:
भारत में राजनीतिक सुधारों के लिए तरीका एवं जरिया ढूँढ़ते समय निम्नलिखित निर्देशों को ध्यान में रखना चाहिए:
1. कानून का निर्माण कर राजनीति को सुधारने की बात सोचना बहुत लुभावना लग सकता है। नए कानून समस्त अवांछित चीजें खत्म कर देंगे। यह सोच भले ही सुखद हो लेकिन इस लालच पर नियंत्रण स्थापित करना ही बेहतर है।
निश्चित रूप से सुधारों के मामले में कानून की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सावधानी से निर्मित किए गए कानून गलत राजनीतिक आचरणों को हतोत्साहित और अच्छे कामकाज को प्रोत्साहित करेंगे पर विधिक-संवैधानिक परिवर्तनों को लाने से लोकतंत्र की चुनौतियों को हल नहीं किया जा सकता।
2. कानूनी बदलाव करते समय इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि राजनीति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। कई बार परिणाम बिल्कुल विपरीत निकलते हैं, जैसे-हमारे देश के कई राज्यों में दो से अधिक बच्चों वाले लोगों के पंचायत चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है। इसके चलते अनेक गरीब लोग और महिलाएँ लोकतांत्रिक अवसर से वंचित हुईं जबकि ऐसा करने के पीछे ये इरादा नहीं था। आमतौर पर किसी चीज की मनाही करने वाले कानून राजनीति में अधिक सफल नहीं होते।
राजनीतिक कार्यकर्ताओं को अच्छे काम करने के लिए बढ़ावा देने वाले या लाभ पहुंचाने वाले कानूनों के सफल होने की संभावना ज्यादा होती है। सबसे अच्छे कानून वे हैं जो लोगों को लोकतांत्रिक सुधार करने की ताकत देते हैं। सूचना का अधिकार कानून लोगों को जानकार बनाने और लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर सक्रिय करने का अच्छा उदाहरण है। ऐसा कानून भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाता है और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने तथा कठोर दण्ड प्रदान करने वाले वर्तमान कानूनों की मदद करता है।
3. लोकतांत्रिक सुधार तो मुख्यतः राजनीतिक दल ही करते हैं। इसलिए आम नागरिक की राजनीतिक भागीदारी के स्तर और गुणवत्ता में सुधार लाकर लोकतांत्रिक कामकाज को अधिक मजबूत बनाना ही राजनीतिक सुधारों का लक्ष्य होना चाहिए।
4. राजनीतिक सुधार के किसी भी प्रस्ताव में अच्छे समाधान की चिंता होने के साथ-साथ यह सोच भी होनी चाहिए कि इन्हें कौन और क्यों लागू करेगा। यह मान लेना समझदारी नहीं है कि संसद ऐसा कोई कानून बना देगी जो प्रत्येक राजनीतिक दल एवं संसद सदस्यों के हितों के खिलाफ है। पर लोकतांत्रिक आन्दोलन, नागरिक संगठन एवं जनसंचार माध्यमों पर भरोसा करने वाले उपायों के सफल होने की संभावना होती है।
प्रश्न 5.
लोकतंत्र की परिभाषा दीजिए। वर्तमान में इसको पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता बताइए।
अथवा
आपके मतानुसार लोकतन्त्र को पुनर्परिभाषित करने में किन बातों को जोड़ा जा सकता है?
उत्तर:
लोकतन्त्र की परिभाषा-लोकतंत्र शब्द अंग्रेजी भाषा के Democracy का हिन्दी रूपान्तरण है जो ग्रीक – भाषा के डिमोस (Demos) और क्रेशिया (Kratia) से मिलकर बना है। डिमोस अर्थात् जनता या लोक तथा क्रेशिया अर्थात् जनता की शक्ति।
इस प्रकार से शब्द व्युत्पत्ति के आधार पर लोकतंत्र शासन का वह स्वरूप है, जिसमें शासन की सत्ता स्वयं जनता के पास रहती है तथा जिसका प्रयोग जनता स्वयं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करती है। वर्तमान लोकतंत्र को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता-निम्नलिखित कारणों से वर्तमान में लोकतंत्र को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता है
- लोकतंत्र में राजनीतिक दल एवं चुनाव में सुधार की आवश्यकता है। राजनीतिक दल के कार्य करने के तरीके एवं चुनावों में होने वाली अनियमितताओं में सुधार अपेक्षित है।
- कई बार सरकार का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार जनता के लिए भारी पड़ जाता है। अतः सरकार के उत्तरदायित्वों को और अधिक पारदर्शी तरीके से सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- लोकतंत्र में आर्थिक संवृद्धि के साथ-साथ धनिक एवं निर्धन वर्ग के बीच की खाई भी चौड़ी हुई है। यह लोकतंत्र की एक महत्त्वपूर्ण कमी है।
- लोकतंत्र में जनता के वे प्रतिनिधि जो निर्वाचित होने के पश्चात् निकम्मै साबित होते हैं उन्हें वापस बुलाने का अधिकार जनता के पास नहीं है। अतः लोकतंत्र की परिभाषा में निम्नलिखित बातें जोड़कर उसे पुनर्परिभाषित किया जा सकता है
- जनता द्वारा चुने हुए शासकों को ही समस्त प्रमुख निर्णय अवश्य लेने चाहिए।
- चुनाव द्वारा जनता को अपने द्वारा चुने हुए शासकों को बदलने का विकल्प एवं अवसर उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
- ये विकल्प एवं अवसर सभी लोगों को समान रूप से उपलब्ध होने चाहिए।
- इस विकल्प को व्यवहार में लाने से निश्चित ही एक ऐसी सरकार का निर्माण होगा जो संविधान के मौलिक सिद्धान्तों एवं नागरिकों के अधिकारों से बँधी हुई होगी।
प्रश्न 6.
लोकतंत्र से क्या आशय है? लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
लोकतंत्र की कुछ विशेषताएँ बताइए।
अथवा
लोकतन्त्र की किन्हीं पाँच विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र का आशय-लोकतंत्र शासन का वह स्वरूप है जिसमें लोग अपने शासकों को स्वयं चुनते हैं। लोगों को चुनाव में प्रतिनिधियों को चुनने के पर्याप्त विकल्प मिलते हैं। ये निर्वाचित प्रतिनिधि ही शासन के समस्त निर्णय लेते हैं एवं वे संविधान के मूलभूत नियमों एवं नागरिकों के अधिकारों को मानते हुए शासन संचालित करते हैं। लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ-लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. जनता का शासन:
लोकतंत्र जनता का शासन है जिसमें जनता अपने देश का शासन संचालित करने के लिए सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है।
2. नियतकालीन निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव:
लोकतंत्र में एक निश्चित समय पर चुनाव कराये जाते हैं। ये चुनाव निष्पक्ष एवं स्वतंत्र होते हैं। भारत में लोकसभा, विधानसभा तथा स्थानीय निकायों के चुनाव प्रति 5 वर्ष पश्चात् कराये जाते हैं।
3. संविधान-प्रत्येक लोकतंत्र में एक
औपचारिक संविधान होता है जिसे देश की जनता के समस्त वर्गों के प्रतिनिधियों द्वारा बनाया जाता है। इस संविधान के नियमों के आधार पर ही सरकार का गठन होता है। संविधान के माध्यम से ही सरकार अपनी शक्तियाँ ग्रहण करती है।
4. मूल अधिकार:
प्रत्येक लोकतंत्र में नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान किये जाते हैं। भारतीय संविधान में नागरिकों को 6 मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं। जिनमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
5. समानता:
लोकतंत्र में जाति, धर्म, लिंग, वंश आदि के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। सभी को समानता का अधिकार प्राप्त है।
प्रश्न 7.
21वीं सदी में भारतीय लोकतंत्र को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिए।
अथवा
आज के सन्दर्भ में भारतीय लोकतन्त्र में कौन-से वांछित सुधार किये जा सकते हैं? किन्हीं तीन सम्भावित सुधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र शासन का वह स्वरूप है जिसमें शासन की सत्ता स्वयं जनता के पास रहती है तथा जिसका प्रयोग जनता स्वयं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करती है। 21वीं सदी में भारतीय लोकतंत्र को सफल बनाने हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं
1. शिक्षा एवं साक्षरता में वृद्धि करना:
लोकतंत्र के लिए जागरूक नागरिकों की आवश्यकता होती है। जागरूक तथा अपने अधिकारों व कर्त्तव्यों के प्रति सजग नागरिक ही उत्तम शिक्षा की व्यवस्था कर सकता है। अतः सरकार तथा स्वयंसेवी संस्थाओं को इस ओर ध्यान देना चाहिए। शिक्षा की मात्रा के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता पर भी ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
2. सामाजिक तथा आर्थिक समानता की स्थापना करना:
सरकार को यह प्रयास करना चाहिए कि समाज में सामाजिक एवं आर्थिक समानता की स्थापना हो। किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, सम्प्रदाय, नस्ल एवं लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। सरकार को आर्थिक विषमता को दूर करने के प्रयासों में तीव्रता लानी चाहिए तथा प्रत्येक नागरिक की मूलभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए।
3. जातिवाद एवं सम्प्रदायवाद को समाप्त करना:
सम्प्रदायवाद को समाप्त कर दिया जाए तो लोकतंत्र को कभी खतरा उत्पन्न नहीं होगा तथा इसकी जड़ें और भी गहरी होती चली जाएँगी। सरकार को धार्मिक समभाव एवं धार्मिक सहिष्णुता का व्यापक प्रचार-प्रसार करना चाहिए।
4. जागरूक, प्रबुद्ध एवं स्वस्थ जनमत का निर्माण करना:
यदि स्वस्थ व जागरूक जनमत होगा तो लोकतंत्र के विकृत होने की संभावनाएँ क्षीण हो जाएँगी तथा लोकतंत्र में जनता की आस्था एवं विश्वास में वृद्धि होगी। लोकतंत्र जनता की इच्छाओं, भावनाओं एवं आकांक्षाओं पर खरा उतरेगा।
5. उच्च नैतिक चरित्र की व्यवस्था करना:
जिस समाज में नागरिक का उच्च नैतिक चरित्र होगा, उसमें लोकतंत्र फलता-फूलता रहेगा तथा इसकी जड़ें और भी गहरी होती चली जाएँगी। उच्च नैतिक चरित्र वाले नागरिकों में ही ईमानदारी, साहस, त्याग, बलिदान, प्रेम, सहानुभूति, करुणा एवं सहयोग की भावनाएँ पाई जाती हैं। अतः सरकार को जनसंचार के साधनों एवं शिक्षा के माध्यम से नागरिकों के चरित्र को उत्तम बनाने का प्रयास करना चाहिए।
6. स्थानीय स्वायत्त शासन को प्रोत्साहन:
21वीं सदी में भारतीय लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए स्थानीय स्वायत्त शासन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। लोकतंत्र को सतही स्तर पर लागू करके ही उसको मज़बूत बनाया जा सकता है।