Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Important Questions and Answers.
JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति
बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)
प्रश्न – दिए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत में पौधों की कितनी जातियां हैं?
(A) 42,000
(B) 45,000
(C) 47,000
(D) 50,000.
उत्तर:
(C) 47,000.
2. डैल्टा प्रदेशों में किस प्रकार की वनस्पति मिलती है?
(A) कोणधारी
(B) मानसून
(C) कंटीली झाड़ियां
(D) मैंग्रोव।
उत्तर:
(D) मैंग्रोव।
3. हिमालय पर्वत की कौन-सी ढलान पर घने वन हैं?
(A) उत्तरी
(B) पूर्वी
(C) पश्चिमी
(D) दक्षिणी।
उत्तर:
(D) दक्षिणी।
4. ऊष्ण कटिबन्ध में तापमान किस मात्रा से कम नहीं होता?
(A) 35°C
(B) 30°C
(C) 28°C
(D) 18°C.
उत्तर:
(D) 18°C.
5. किस राज्य में वनों के अधीन क्षेत्र सबसे अधिक है?
(A) मानसून
(B) मेघालय
(C) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(D) बिहार।
उत्तर:
(C) ऊष्ण कटिबन्धीय सदाहरित।
6. सिनकोना वृक्ष किस वनस्पति से सम्बन्धित हैं?
(A) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(B) मानसून
(C) ज्वारीय
(D) टुंड्रा
उत्तर:
(A) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
7. किन वनों में हाथी अधिक पाए जाते हैं?
(A) मानसून
(B) पतझड़ीय
(C) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(D) शुष्क।
उत्तर:
(C) ऊष्ण कटिबन्धीय सदाहरित।
8. देवदार वृक्ष किस ऊंचाई पर मिलते हैं?
(A) 500-1000 मीटर
(B) 1000-1500 मीटर
(C) 1500-3000 मीटर
(D) 3000-4000 मीटर।
उत्तर:
(C) 1500-3000 मीटर|
9. कौन – सी जाति खानाबदोश है?
(A) पिग्मी
(C) मसाई
(B) बकरवाल
(D) रैड इण्डियन
उत्तर:
(B) बकरवाल।
10. रायल बंगाल टाइगर कहां मिलता है?
(A) महानदी डेल्टा
(B) कावेरी डेल्टा
(C) सुन्दर वन
(D) कृष्णा डैल्टा।
उत्तर:
(C) सुन्दर वन।
11. गिर वन किसके लिए प्रसिद्ध है?
(A) चूहों के लिए
(B) गधों
(C) ऊंट
(D) शेर
उत्तर:
(D) शेर।
12. इनमें से कौन – सा पक्षी आश्रय स्थल है?
(A) कान्हासिली
(C) कावल
(B) भरतपुर
(D) शिवपुरी।
उत्तर:
(B) भरतपुर।
13. पहला जैव- आरक्षित क्षेत्र कहां स्थगित किया गया?
(A) नीलगिरी
(B) सिमलीपाल
(C) नाकरेक
(D) पंचमड़ी।
उत्तर:
(A) नीलगिरी।
14. रबड़ का सम्बन्ध किस प्रकार की वनस्पति से है?
(A) टुण्ड्रा
(B) हिमालय
(C) मैंग्रोव
(D) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन।
उत्तर:
(D) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन।
15. सिनकोना के वृक्ष कितनी वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं?
(A) 100 सें० मी०
(B) 70 सें० मी०
(C) 50 सें० मी०
(D) 50 सें०मी० से कम वर्षा
उत्तर:
(A) 100 सें० मी०।
16. सिमलीपाल जीव मण्डल निचय कौन-से राज्य में स्थित है
(A) पंजाब
(C) उड़ीसा
(B) दिल्ली
(D) पश्चिम बंगाल
उत्तर:
(C) उड़ीसा
17. भारत के कौन-से जीव मण्डल निचय विश्व के जीव मण्डल निचयों में लिए गए हैं?
(A) मानस
(B) मन्नार की खाड़ी
(C) दिहांग – दिबांग
(D) नन्दा देवी
उत्तर:
(D) नन्दा देवी।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत का कुल कितना भौगोलिक क्षेत्र वनों के अन्तर्गत है?
उत्तर:
22%.
प्रश्न 2.
भारत का कुल कितना क्षेत्र (हेक्टेयर में ) वनों के अन्तर्गत है?
उत्तर:
750 लाख हेक्टेयर।
प्रश्न 3.
लकड़ी के दो प्रयोग लिखो।
उत्तर:
(i) इमारत निर्माण के लिये
(ii) ईंधन के लिये लकड़ी।
प्रश्न 4.
लकड़ी का एक औद्योगिक प्रयोग लिखो।
उत्तर:
खेलों का सामान बनाना, रेयॉन उद्यो।
प्रश्न 5.
बाँस तथा वन के घास के दो उपयोग लिखो।
उत्तर:
- कागज़ बनाने के लिये
- कृत्रिम रेशा।
प्रश्न 6.
वनों से प्राप्त तीन उत्पादों के नाम लिखो।
उत्तर:
रबड़, गोंद तथा चमड़ा रंगने वाले पदार्थ।
प्रश्न 7.
उन दो भौगोलिक तत्त्वों के नाम लिखो जो वनों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
- वर्षा की मात्रा
- ऊंचाई
प्रश्न 8.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों के लिये आवश्यक वार्षिक वर्षा तथा तापमान लिखो
उत्तर:
- 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा
- 25° – 27°C.
प्रश्न 9.
पतझड़ीय मानसून वनों के लिये आवश्यक वार्षिक वर्षा तथा तापमान बताओ।
उत्तर:
150-200 सेंटीमीटर।
प्रश्न 10.
उस राज्य का नाम बताओ जहां उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
केरल
प्रश्न 11.
भारत के एक प्रदेश का नाम बताओ जहां काँटे तथा झाड़ियों के वन पाये जाते हैं।
उत्तर;
थार मरुस्थल।
प्रश्न 12.
हिन्द महासागर में द्वीपों के समूह बताएं जहां उष्ण कटिबन्धीय वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
अण्डमान-निकोबार द्वीप।
प्रश्न 13.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों में पाये जाने वाले तीन महत्त्वपूर्ण पेड़ों के नाम लिखो।
उत्तर:
रोज़वुड, गुर्जन, आबनूस।
प्रश्न 14.
मानसून वनों को पतझड़ीय वन क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि ये गर्मियों में अपने पत्ते गिरा देते हैं।
प्रश्न 15.
उन तीन राज्यों के नाम बताएं जहां मानसून वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड।
प्रश्न 16.
मध्य प्रदेश के एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक वृक्ष का नाम बताएं।
उत्तर:
सागवान।
प्रश्न 17.
भारत के दो राज्य बतायें जहां देवदार के वृक्ष मिलते हैं।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश
प्रश्न 18.
काँटेदार वन के दो पेड़ों के नाम बतायें।
उत्तर:
खैर तथा खजूरी।
प्रश्न 19.
बबूल के वृक्ष से कौन-से उत्पाद प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
गोंद तथा रंगने वाले पदार्थ।
प्रश्न 20.
ज्वारीय वन में गुंझलदार जड़ों का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह कीचड़ में वृक्षों का संरक्षण करती हैं।
प्रश्न 21.
भारत का वन अनुसंधान केन्द्र कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
देहरादून में।
प्रश्न 22.
ज्वारीय वन में पाये जाने वाले दो पेड़ों के नाम लिखो।
उत्तर:
सुन्दरी, गुर्जन।
प्रश्न 23.
वैज्ञानिक नियम पर वनों के अन्तर्गत कुल कितना क्षेत्र होना चाहिये?
उत्तर:
33%.
प्रश्न 24.
कोणधारी वन के तीन वृक्षों के नाम लिखो।
उत्तर:
पाइन, देवदार, सिल्वर फ़र्र।
प्रश्न 25.
3500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर किस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है?
उत्तर:
एल्पाइन चरागाह।
प्रश्न 26.
उन दो राज्यों के नाम लिखो जहां देवदार पाये जाते हैं।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश।
प्रश्न 27.
मयरो बोलान वृक्ष का उपयोग बताओ।
उत्तर:
रंगने वाले पदार्थ प्रदान करना
प्रस्न 28.
ज्वारीय वातावरण में कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
मैंग्रोव वन।
प्रश्न 29.
भारत में आर्थिक पक्ष से कौन-सा वनस्पति क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
पतझड़ीय वन।
प्रश्न 30.
अंग्रेज़ों ने उत्तर-पूर्वी भारत में वनों को क्यों साफ़ किया?
उत्तर:
चाय, कहवा व रबड़ के बागान लगाने के लिए।
प्रश्न 31.
चिनार की लकड़ी का क्या प्रयोग है?
उत्तर:
हस्तशिल्प के लिए।
प्रश्न 32.
हिमालय की अधिक ऊंचाई पर ऋतु- प्रवास करने वाली तीन जातियां बताओ।
उत्तर:
गुज्जर, बकरवाल, भुटिया।
प्रश्न 33.
नीलगिरी पहाड़ियों पर कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
शोलावन (शीत-उष्ण कटिबन्धीय वन)।
प्रश्न 34.
वन आवरण क्षेक्षों को चार वर्गों में बांटो।
उत्तर:
प्रदेश | वन आवरण का \% |
1. अधिक वन संकेन्द्रण क्षेत्र | >40 |
2. मध्यम वन संकेन्द्रण क्षेत्र | 20-40 |
3. कम वन संकेन्द्रण क्षेत्र | 10-20 |
4. अति कम वन संकेन्द्रण क्षेत्र | <10 |
प्रश्न 35.
राष्ट्रीय वन नीति में किस उद्देश्य पर अधिक बल है?
उत्तर:
सतत पोषणीय वन का प्रबन्ध।
प्रश्न 36.
सामाजिक वानिकी को किन तीन वर्गों में बांटा गया है?
उत्तर:
- शहरी वानिकी
- ग्रामीण वानिकी
- फार्मवानिकी।
प्रश्न 37.
किन चार जीव मण्डल निचयों को द्वारा मान्यता प्राप्त है?
उत्तर:
- नीलगिरी
- नन्दा देवी
- सुन्दर वन
- मन्नार की खाड़ी।
प्रश्न 38.
वनों का जीवन और पर्यावरण के साथ जटिल संबंध है। उपरोक्त पंक्तियों को पढ़ो तथा निम्नलिखित के उत्तर दो
(क) नई वन नीति का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
सतत् पोषणीय वन प्रबंध।
(ख) वन संरक्षण की एक विधि बताओ।
उत्तर:
सामाजिक वानिकी।
प्रश्न 39.
किन मूल्यों को आधार बनाकर हम यह कह सकते हैं कि वन संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
- बढ़ती हुई जनसंख्या का प्राकृतिक वनस्पति पर दुष्प्रभाव।
- वनों की अत्यधिक कटाई के वातावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव।
प्रश्न 40.
राष्ट्रीय वन नीति कब लागू हुई?
उत्तर:
सन् 1988.
प्रश्न 41.
बाघ परियोजना कब शुरू की गई?
उत्तर:
सन् 1973.
प्रश्न 42.
नन्दा देवी जीवमण्डल किस राज्य में है?
उत्तर:
उत्तराखंड|
प्रश्न 43.
भारत में कुल कितने जीवमंडल निचय हैं?
उत्तर:
-18
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में वनों के क्षेत्र के कम होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
किसी प्रदेश के कुल क्षेत्र के कम-से-कम 1/3 भाग में वनों का विस्तार होना चाहिए ताकि उस प्रदेश में पारिस्थितिक स्वास्थ्य कायम रखा जा सके। भारत में कई कारणों से वन सम्पत्ति का कम विस्तार है।
- वनों के विशाल क्षेत्र की कटाई
- स्थानान्तरित कृषि की प्रथा
- अत्यधिक मृदा अपरदन
- चरागाहों की अत्यधिक चराई
- लकड़ी एवं ईंधन के लिए वृक्षों की कटाई
- मानवीय हस्तक्षेप
प्रश्न 2.
वन सम्पदा के संरक्षण के लिए क्या तरीके अपनाए जा रहे हैं?
उत्तर:
जनसंख्या के अत्यधिक दबाव तथा पशुओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण वन सम्पदा का संरक्षण आवश्यक है। वन संरक्षण कृषि एवं चराई के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण आवश्यक है। इसके लिए वनवर्द्धन के उत्तम तरीकों को अपनाया जा रहा है। तेज़ी से उगने वाले पौधों की जातियों को लगाया जा रहा है। घास के मैदानों का पुनर्विकास किया जा रहा है। वन क्षेत्रों का विस्तार किया जा रहा है।
प्रश्न 3.
भारत में विभिन्न प्रकार के घासों का वर्णन करो।
उत्तर:
घासें बारहमासी घासों की 60 प्रजातियां हैं। इनसे मिलकर ही हमारा पारितन्त्र बना है, जो हमारे पशुधन के जीवन का आधार है। वास्तविक चरागाह और घास भूमियां लगभग 12.04 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तीर्ण हैं। चराई के लिए अन्य भूमि, वृक्ष – फसलों और उद्यानों, बंजर भूमि तथा परती भूमि के रूप में हैं। जिनका क्षेत्रफल क्रमश: 37 लाख हेक्टेयर, 15 लाख हेक्टेयर और 23.3 लाख हेक्टेयर है। वनों के अपकर्ष (डिग्रेडेशन) और विनाश के परिणामस्वरूप ही चरागाह और घास भूमियां विकसित हुई हैं। कालान्तर में चरागाह सवाना में बदल जाते हैं। हिमालय की अधिक ऊंचाइयों वाले उप – अल्पाइन और अल्पाइन क्षेत्रों में वास्तविक चरागाह पाए जाते हैं। भारत में घास के तीन पृथक् आवरण हैं। उष्ण कटिंबधीय – यह मैदानों में पाया जाता है। उपोष्ण कटिबंधीय तथा शीतोष्ण कटिबंधीय घास भूमियां मुख्य रूप से हिमालय की पर्वत में ही पाई जाती हैं।
प्रश्न 4.
वन संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
वनों का संरक्षण – मनुष्यों और पशुओं की बढ़ती हुई संख्या का प्राकृतिक वनस्पति पर दुष्प्रभाव पड़ा है। जो क्षेत्र कभी वनों के ढके थे, आज अर्द्ध-मरुस्थल बन गए हैं। राजस्थान में भी कभी वन थे पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए वन अनिवार्य हैं। मानव का अस्तित्व और विकास पारिस्थितिक सन्तुलन पर निर्भर है। सन्तुलित पारितन्त्र और स्वस्थ पर्यावरण के लिए भारत के कम-से-कम एक तिहाई भाग पर वन होने चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे देश के एक चौथाई भाग पर भी वन नहीं हैं। इसीलिए वन संसाधनों के संरक्षण और प्रबन्धन के लिए एक नीति की आवश्यकता है।
प्रश्न 5.
भारत की वन नीति के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
सन् 1988 में नई राष्ट्रीय वन नीति, वनों के क्षेत्रफल में हो रही कमी को रोकने के लिए बनाई गई थी।
- इस नीति के अनुसार देश के 33 प्रतिशत भू-भाग को वनों के अन्तर्गत लाना था संसार के कुल भू-भाग का 27 प्रतिशत तथा भारत का लगभग 19 प्रतिशत भू-भाग वनों से ढका है।
- वन नीति में आगे कहा गया है कि पर्यावरण की स्थिरता कायम रखने का प्रयत्न किया जाएगा तथा जहां पारितन्त्र का सन्तुलन बिगड़ गया है, वहां पुनः वनारोपण किया जाएगा।
- आनुवंशिक संसाधनों की जैव विविधता को देश की प्राकृतिक विरासत कहा जाता है। इस विरासत का संरक्षण, वन नीति का अन्य उद्देश्य है।
- इस नीति में मृदा अपरदन, मरुभूमि के विस्तार तथा सूखे पर नियन्त्रण का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है।
- इस नीति में जलाशयों में गाद के जमाव को रोकने के लिए बाढ़ नियन्त्रण का भी प्रावधान है।
- नीति के और भी उद्देश्य हैं जैसे: अपरदित और अनुत्पादक भूमि पर सामाजिक वानिकी और वनरोपण द्वारा वनावरण में अभिवृद्धि, वनों की उत्पादकता बढ़ाना, ग्रामीण और जन- जातीय जनसंख्या के लिए इमारती लकड़ी, जलावन, चारा और भोजन जुटाना
- यही नहीं इस नीति में महिलाओं को शामिल करके, व्यापक जनान्दोलन द्वारा वर्तमान वनों पर दबाव कम करने के लिए भी बल दिया गया है।
प्रश्न 6.
नम उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार वनों की दो मुख्य विशेषताएं बताइए ये भी बताइए कि ये मुख्यतः किन प्रदेशों में पाए जाते हैं?
उत्तर:
नम उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन – ये वन उष्ण कटिबन्धीय वनों के समान सदाबहार घने वन होते हैं। उष्ण- आर्द्र जलवायु के कारण ये वन तेज़ी से बढ़ते हैं तथा अधिक ऊंचे होते हैं। भारत में पाए जाने वाले ये वन कुछ खुले तथा दूर-दूर पाए जाते हैं। इन वनों में कठोर लकड़ी के वृक्ष मिलते हैं जिनके शिखर पर छाता जैसा आकार बन जाता है। भारत में ये वन पश्चिमी घाट के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में (केरल तथा कर्नाटक) पाए जाते हैं। ये वन शिलांग पठार के पर्वतीय प्रदेश में पाए जाते हैं। महोगनी, खजूर, बांस मुख्य वृक्ष हैं। अर्द्ध- सदाबहार वन – ये वन पश्चिमी घाट तथा उत्तर-पूर्वी भारत में कम वर्षा के क्षेत्रों में मिलते हैं। ये मानसूनी पतझड़ीय वन हैं।
प्रश्न 7.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन कहां पाए जाते हैं? ऐसे वनों की वनस्पति भूमध्यरेखीय वनों से किस प्रकार समान है तथा किस एक प्रकार से असमान है?
उत्तर:
भारत में उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में शिलांग पठार, असम प्रदेश तथा पश्चिमी घाट पर पाए जाते हैं। ये वन भूमध्य रेखीय वनों से मिलते-जुलते हैं क्योंकि ये कठोर लकड़ी के वन हैं तथा ये अधिक आर्द्र क्षेत्रों में मिलते हैं जहां 200 सें० मी० से अधिक वार्षिक वर्षा होती है। ये वन भूमध्य रेखीय वनों की भान्ति घने नहीं हैं, परन्तु ये वन अधिक खुले – खुले मिलते हैं तथा इनका उपयोग आसान हो जाता है।
प्रश्न 8.
सामाजिक वानिकी पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
सामाजिक वानिकी (Social Forestry):
- 1976 के राष्ट्रीय कृषि आयोग ने पहले-पहल ‘सामाजिक वानिकी’ शब्दावली का प्रयोग किया था इसका अर्थ है ग्रामीण जनसंख्या के लिए जलावन, छोटी इमारती लकड़ी और छोटे-छोटे वन उत्पादों की आपूर्ति करना।
- नेक राज्य सरकारों ने सामाजिक वानिकी के महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किए हैं। अधिकतर राज्यों में वन विभागों के अन्तर्गत सामाजिक वानिकी के अलग से प्रकोष्ठ बनाए गए हैं।
- सामाजिक वानिकी के मुख्य रूप से तीन अंग हैं: कृषि वानिकी किसानों को अपनी भूमि पर वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करना; वन – भूखण्ड (वुडलाट्स) वन विभागों द्वारा लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सड़कों के किनारे, नहर के तटों तथा ऐसी अन्य सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण; सामुदायिक वन – भूखण्ड लोगों द्वारा स्वयं बराबर की हिस्सेदारी’ के आधार पर भूमि पर वृक्षारोपण।
- सामाजिक वानिकी योजनाएं असफल हो गईं, क्योंकि इसमें उन निर्धन महिलाओं को शामिल नहीं किया गया, जिन्हें इससे अधिकतर फायदा होना था यह योजना पुरुषोन्मुख हो गई। यही नहीं, यह कार्यक्रम लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने वाले कार्यक्रम के स्थान पर किसानों का धनोपार्जन कार्यक्रम बन गया।
- सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के द्वारा उत्पादित लकड़ी ग्रामीण भारत के ग़रीबों को न मिलकर, नगरों और कारखानों में पहुंचने लगी है। इससे गांवों में रोज़गार के अवसर घटे हैं और अन्न- उत्पादन करने वाली भूमि पर पेड़ लग गए हैं। इससे अनिवासी भू-स्वामित्व को बढ़ावा मिला है।
प्रश्न 9.
कौन-सी वनस्पति जाति बंगाल का आतंक मानी जाती है और क्यों?
उत्तर:
कुछ विदेशज वनस्पति जाति के कारण कई प्रदेशों में समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। भारत में वनस्पति का 40% भाग विदेशज है। ये पौधे चीनी-तिब्बती, अफ्रीका तथा इण्डो- मलेशियाई क्षेत्र से लाए गए हैं। जलहायसिंथ पौधा भारत में बाग के सजावट के पौधे के रूप में लाया गया था। इस पौधे के फैल जाने के कारण पश्चिमी बंगाल में जलमार्गों, नदियों, तालाबों तथा नालों के मुंह बड़े पैमाने पर बन्द हो गए हैं। इस पौधे के हानिकारक प्रभावों के कारण इसे “बंगाल का आतंक” (Terror of Bengal) भी कहा जाता है।
प्रश्न 10.
“हमारी अधिकांश प्राकृतिक वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है।” इस कथन की व्याख्या करो यह कथन काफ़ी हद तक सही है कि भारत में अधिकांश ‘प्राकृतिक’ वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है। इस देश में मानवीय निवास के कारण प्राकृतिक वनस्पति का अधिकतर भाग नष्ट हो गया है या परिवर्तित हो गया है अधिकांश वनस्पति अपनी कोटि तथा गुणों के उच्च स्तर के अनुसार नहीं है। केवल हिमालय प्रदेश के कुछ अगम्य क्षेत्रों में एवं थार मरुस्थल के कुछ भागों को छोड़ कर अन्य प्रदेशों में प्राकृतिक वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है। इन प्रदेशों की वनस्पति स्थानिक जलवायु तथा मिट्टी के अनुसार पनपती है तथा इसे प्राकृतिक कहा जा सकता है1
प्रश्न 11.
भारत में मुख्य वनस्पतियों के प्रकार को प्रभावित करने वाले भौगोलिक घटकों के नाम बताइए तथा उनके एक-दूसरे पर पड़ने वाले प्रभाव का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारत में विभिन्न प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। वनस्पति की प्रकार, सघनता आदि वातावरण में कई तत्त्वों पर निर्भर है। भारत में वनस्पति विभाजन के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार एवं मानसूनी वन, शीतोष्ण वन, घास के मैदान आदि वनस्पति प्रकार पाए जाते हैं।
इन वनस्पति को निम्नलिखित भौगोलिक घटक प्रभावित करते हैं
- वर्षा की मात्रा
- धूप
- ताप की मात्रा
- मिट्टी की प्रकृति।
जलवायुविक घटक अन्य स्थानिक तत्त्वों के साथ मिल कर एक-दूसरे पर विशेष प्रभाव डालते हैं। अधिक वर्षा तथा उच्च तापमान के कारण असम तथा पश्चिमी घाट पर ऊष्मा कटिबन्धीय सदाबहार वनस्पति पाई जाती है। परन्तु मरुस्थलीय क्षेत्रों में कम वर्षा के कारण कांटेदार झाड़ियां पाई जाती हैं। कई भागों में मौसमी वर्षा के कारण पतझड़ीय वनस्पति पाई जाती है। उष्ण जलवायु के कारण अधिकतर चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष पाए जाते हैं, परन्तु हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में कम तापमान के कारण कोणधारी वन तथा अल्पला घास पाई जाती है। स्थानीय मिट्टी के प्रभाव से नदी के डेल्टाई क्षेत्रों में ज्वारीय वन या मैंग्रोव पाई जाती है। इसी प्रकार बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में बबूल के वृक्ष मिलते हैं।
प्रश्न 12.
“हिमालय क्षेत्रों में ऊंचाई के क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति प्रदेशों तक का अनुक्रम पाया जाता है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत में दक्षिणी ढलानों से लेकर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है। ऊंचाई के क्रम के अनुसार वर्षा तथा ताप की मात्रा में अन्तर पड़ता है। इस अन्तर के प्रभाव से वनस्पति में एक क्रमिक अन्तर पाया जाता है। धरातल के अनुसार तथा ऊंचाई के साथ-साथ वनों के प्रकार में भिन्नता आ जाती है। इस क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का विस्तार पाया जाता है।
- उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन: हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर 1200 मीटर की ऊंचाई तक उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती प्रकार के वन पाए जाते हैं। यहां वर्षा की मात्रा अधिक होती है। यहां सदाबहार घने वनों में साल के उपयोगी वृक्ष पाए जाते हैं।
- शीत उष्ण कटिबन्धीय वन: 2000 मीटर की ऊंचाई पर नम शीत उष्ण प्रकार के घने वन पाए जाते हैं । इनमें ओक, चेस्टनट और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं।
- शंकुधारी वन: दो हज़ार से अधिक ऊंचाई पर शंकुधारी वृक्षों का विस्तार मिलता है। यहां कम वर्षा तथा अधिक शीत के कारण वनस्पति में अन्तर पाया जाता है। स्परूस, देवदार, चिनार और अखरोट के वृक्ष पाए जाते हैं। हिम रेखा के निकट पहुंचने पर बर्च, जूनीपर आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
- अल्पाइन चरागाहें: 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई के कई भागों में छोटी-छोटी घास के कारण चरागाहें पाई जाती हैं। पश्चिमी हिमालय में गुजरों जैसी जन-जातियां मौसमी पशु चारण द्वारा इन चरागाहों का उपयोग करते हैं।
प्रश्न 13.
कृषि वानिकी तथा फ़ार्म वानिकी में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
कृषि वानिकी का अर्थ है कृषि योग्य तथा बंजर भूमि पर पेड़ और फ़सलें एक साथ लगाना वानिकी और खेती साथ-साथ करना जिसे – चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी और फलों का उत्पादन एक साथ किया जाए। समुदाय वानिकी में सार्वजनिक भूमि जैसे – गांव – चरागाह, मन्दिर – भूमि, सड़कों के दोनों ओर नहर किनारे, रेल पट्टी के साथ पटरी और विद्यालयों में पेड़ लगाना शामिल है। इसका उद्देश्य पूरे समुदाय को लाभ पहुंचाना है। इस योजना का एक उद्देश्य भूमिविहीन लोगों को वानिकीकरण से जोड़ना तथा इससे उन्हें वे लाभ पहुंचाना जो केवल भूस्वामियों को ही प्राप्त होते हैं
फार्म वानिकी: फार्म वानिकी के अन्तर्गत किसान अपने खेतों में व्यापारिक महत्त्व वाले या दूसरे पेड़ लगाते हैं। वन विभाग, इसके लिए छोटे और मध्यम किसानों को निःशुल्क पौधे उपलब्ध कराता है। इस योजना के तहत कई तरह की भूमि, जैसे- खेतों की मेड़ें, चरागाह, घासस्थल, घर के पास पड़ी खाली ज़मीन और पशुओं के बाड़ों में भी पेड़ लगाए जाते हैं।
प्रश्न 14.
वन्य प्राणी संरक्षण के लिए टाईगर प्रोजैक्ट तथा एलीफैन्ट प्रोजैक्ट का वर्णन करो।
उत्तर:
यूनेस्को के ‘मानव और जीवमण्डल योजना’ (Man and Biosphere Programme) के तहत भारत सरकार ने वनस्पति ज्ञात और प्राणी जात के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। देश के 92 नैशनल पार्क, 492 वन्य प्राणी अभयवन 1.57 करोड़ हैक्टेयर भूमि पर फैले हैं। प्रोजैक्ट टाइगर (1973) और प्रोजैक्ट एलीफेंट (1992) जैसी विशेष योजनाएं इन जातियों के संरक्षण और उनके आवास के बचाव के लिए चलाई जा रही हैं। इनमें से प्रोजैक्ट टाइगर 1973 से चलाई जा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में बाघों की जनसंख्या का स्तर बनाए रखना है, जिससे वैज्ञानिक, सौन्दर्यात्मक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक मूल्य बनाए रखे जा सकें।
इससे प्राकृतिक धरोहर को भी संरक्षण मिलेगा जिसका लोगों को शिक्षा और मनोरंजन के रूप में फायदा होगा। शुरू में यह योजना नौ बाघ निचयों (आरक्षित क्षेत्रों) में शुरू की गई थी और ये 16,339 वर्ग किलोमीटर पर फैली थी। अब यह योजना 27 बाघ निचयों में चल रही है और इनका क्षेत्रफल 37,761 वर्ग किलोमीटर है और 17 राज्यों में व्याप्त है । देश में बाघों की संख्या 1972 में 1,827 से बढ़कर 2001-02 में 3,642 हो गई। यह योजना मुख्य रूप से बाघ केन्द्रित है, परन्तु फिर भी पारिस्थितिक तन्त्र की स्थिरता पर जोर दिया जाता है। बाघों की संख्या का स्तर तभी ऊंचा रह सकता है जब पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न पोषण स्तरों और इसकी भोजन कड़ी को बनाए रखा जाए।
निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत के विभिन्न प्रकार के वनों के भौगोलिक वितरण तथा आर्थिक महत्त्व का वर्णन करो
उत्तर:
भारत की वन सम्पदा (Forest Wealth of India ):
प्राचीन समय में भारत के एक बड़े भाग पर वनों का विस्तार था, परन्तु अब बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वन क्षेत्र घटता जा रहा है। इस समय देश में 747 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर वनों का विस्तार है जो कि देश के कुल क्षेत्रफल का 22.7% भाग है। भारत में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र लगभग 0.1 हेक्टेयर है जो कि बहुत कम है। भौगोलिक दृष्टि से मध्य प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र हैं। भारतीय वनों का वर्गीकरण – भारत में वनों का वितरण वर्षा, तापमान तथा ऊंचाई के अनुसार है। भारत में निम्नलिखित प्रकार के वन पाए जाते हैं।
1. उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक, वर्षा 200 सें०मी० से अधिक तथा औसत तापमान 24°C है। इन वनों का विस्तार अग्रलिखित प्रदेशों में है।
Based upon the Survey of India map with the permission of the Surveyor General of India. The responsibility for the correctness of internal details rests with the publisher. The territorial waters of India extend into the sea to a distance of twelve nautical miles measured from the appropriate base line.
- पश्चिमी घाट तथा पश्चिमी तटीय मैदान
- अण्डमान द्वीप समूह
- उत्तर-पूर्व में हिमालय पर्वत की ढलानों पर।
अधिक वर्षा तथा ऊंचे तापमान के कारण ये वन बहुत घने होते हैं। ये सदाबहार वन हैं तथा भूमध्य रेखीय वनों की भान्ति कठोर लकड़ी के वन हैं। वृक्षों की ऊंचाई 30 से 60 मीटर तक है। इन वनों में रबड़, महोगनी, आबनूस, लौह- काष्ठ, ताड़ तथा चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। इन वृक्षों की लकड़ी फर्नीचर, रेल के स्लीपर, जलपोत निर्माण, नावें बनाने में प्रयोग की जाती है।
2. पतझड़ीय मानसूनी वन (Monsoon Deciduous Forests):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक वर्षा 100 सें० मी० से 200 सें० मी० तक होती है। इन वनों में वृक्ष ग्रीष्मकाल में अपने पत्ते गिरा देते हैं। इसलिए इन्हें पतझड़ीय वन कहते हैं। ये वन निम्नलिखित प्रदेशों में मिलते हैं।
- तराई प्रदेश
- डेल्टाई प्रदेश
- पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलान
- प्रायद्वीप का पूर्वी भाग मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु।
ये वन अधिक घने नहीं होते। इनमें वृक्ष कम ऊंचे होते हैं। ये वृक्ष लगभग 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं। इन वृक्षों को सुगमतापूर्वक काटा जा सकता है। कई भागों में कृषि के लिए इन वनों को साफ कर दिया गया है।
आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ): इन वनों में साल, सागौन, चन्दन, रोज़वुड, आम, महुआ आदि वृक्ष पाए जाते हैं। साल वृक्ष की लकड़ी रेल के स्लीपर तथा डिब्बे बनाने के काम आती है। सागौन की लकड़ी बहुत मज़बूत होती है। इसका प्रयोग इमारती लकड़ी तथा फर्नीचर में किया जाता है। इन वृक्षों पर लाख, बीड़ी, चमड़ा रंगने तथा कागज़ बनाने के उद्योग आधारित हैं।
3. शुष्क वन (Dry Forests ):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक वर्षा 50 सें० मी० से 100 सें० मी० तक होती है। ये वन निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलते हैं।
- पूर्वी राजस्थान
- दक्षिणी हरियाणा
- दक्षिणी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश
- कर्नाटक पठार
ये वृक्ष वर्षा की कमी के कारण अधिक ऊंचे नहीं होते। इन वृक्षों की जड़ें लम्बी तथा छाल मोटी होती है। ये वृक्ष अधिक गहराई से पानी प्राप्त करते हैं तथा वाष्पीकरण को रोकते हैं।
आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ): इन वनों में शीशम, बबूल, कीकर, हल्दू आदि वृक्ष पाए जाते हैं। ये कठोर तथा टिकाऊ लकड़ी के वृक्ष होते हैं। इनका उपयोग कृषि यन्त्र, फर्नीचर, लकड़ी का कोयला, बैलगाड़ियां बनाने में किया जाता है।
4. डेल्टाई वन (Deltaic Forests): ये वन डेल्टाई क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन्हें ज्वारीय वन (Tidal Forests) भी कहते मैं। मैनग्रोव वृक्ष के कारण इन्हें मैंग्रोव वन (Mangrove Forests) भी कहते हैं। ये वन निम्नलिखित डेल्टाई क्षेत्रों में मिलते हैं।
- गंगा – ब्रह्मपुत्र डेल्टा (सुन्दर वन)
- महानदी, कृष्ण, गोदावरी डेल्टा
- दक्षिणी-पूर्वी तटीय क्षेत्र ये वन प्रायः दलदली होते हैं।
गंगा – ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुन्दरी नामक वृक्ष मिलने के कारण इसे ‘सुन्दर वन’ कहते हैं। आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ) इन वनों में नारियल, मैंग्रोव ताड़, सुन्दरी आदि वृक्ष मिलते हैं। ये वन आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इनका प्रयोग ईंधन, इमारती लकड़ी, नावें बनाने तथा माचिस उद्योग में किया जाता है।
5. पर्वतीय वन (Mountain Forests ):
ये वन हिमालय प्रदेश की दक्षिणी ढलानों पर कश्मीर से लेकर असम तक पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय में वर्षा की मात्रा अधिक है। वहां सदाबहार तथा चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों की अधिकता के कारण कोणधारी वन पाए जाते हैं। इस प्रकार पूर्वी हिमालय तथा पश्चिमी हिमालय के वनों में काफ़ी अन्तर मिलता है। हिमालय प्रदेश में दक्षिणी ढलानों से लेकर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है। ऊंचाई के क्रमानुसार वर्षा तथा ताप की मात्रा में भी अन्तर पड़ता है । धरातल के अनुसार तथा ऊंचाई के साथ-साथ वनों के प्रकार में भिन्नता आ जाती है। इस क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का विस्तार पाया जाता है।
1. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन:
हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर 1200 मीटर की ऊंचाई तक उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती प्रकार के वन पाए जाते हैं। वहां वर्षा की मात्रा अधिक होती है। वहां सदाबहार घने वनों में साल के उपयोगी वृक्ष पाए जाते हैं।
2. शीत उष्ण कटिबन्धीय वन:
2000 मीटर की ऊंचाई पर नम शीत उष्ण प्रकार के घने वन पाए जाते हैं। इनमें ओक, चेस्टनट और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। चीड़ के वृक्ष से बिरोज़ा तथा तारपीन का तेल प्राप्त किया जाता है। इसकी हल्की लकड़ी से चाय की पेटियां बनाई जाती हैं।
3. शंकुधारी वन:
दो हज़ार से अधिक ऊंचाई पर शंकुधारी वृक्षों का विस्तार मिलता है। यहां कम वर्षा तथा अधिक शीत के कारण वनस्पति में अन्तर पाया जाता है। स्परूस, देवदार, चिनार और अखरोट के वृक्ष पाए जाते हैं। हिम रेखा के निकट पहुंचने पर बर्च, जूनीपर आदि वृक्ष पाए जाते हैं। देवदार की लकड़ी रेल के स्लीपर, पुल डिब्बे बनाने में प्रयोग की जाती है। सिवर फर का प्रयोग कागज़ की लुग्दी, पैकिंग का सामान तथा दियासलाई बनाने में किया जाता है।
4. अल्पाइन चरागाहें:
3000 मीटर से अधिक ऊंचाई के कई भागों में छोटी-छोटी घास के कारण चरागाहें पाई जाती हैं। पश्चिमी हिमालय में गुजरों जैसी जन-जातियां मौसमी पशु चारण द्वारा इन चरागाहों का उपयोग करते हैं।
प्रश्न 2.
भारत में वास्तविक वनावरण का वितरण बताओ।
उत्तर;
वनक्षेत्र की भांति वनावरण में भी बहुत अन्तर है। जम्मू और कश्मीर में वास्तविक वनावरण एक प्रतिशत है, जबकि अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह की 92 प्रतिशत भूमि पर वास्तविक वनावरण है। परिशिष्ट में दी गई सारणी से स्पष्ट है कि 9 ऐसे राज्य हैं जहां कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई भाग से अधिक पर वनावरण है। एक तिहाई वनावरण पारितन्त्र का सन्तुलन बनाए रखने के लिए मानक आवश्यकता है। चार राज्य ऐसे हैं जहां वन का प्रतिशत आदर्श स्थिति जैसा ही है।
अन्य राज्यों में वनों की स्थिति असंतोषजनक या संकटपूर्ण है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि तीन नवीन राज्यों उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ में प्रत्येक के कुल क्षेत्रफल के 40 प्रतिशत भाग पर वन हैं। इन राज्यों के पृथक् आँकड़े न मिलने के कारण इन्हें इनके पूर्व राज्यों में ही सम्मिलित किया गया है।
वास्तविक वनावरण के प्रतिशत के आधार पर भारत के राज्यों को चार प्रदेशों में विभाजित किया गया है।
- अधिक वनावरण वाले प्रदेश
- मध्यम वनावरण वाले प्रदेश
- कम वनावरण वाले प्रदेश
- बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश।
1. अधिक वनावरण वाले प्रदेश:
इस प्रदेश में 40 प्रतिशत से अधिक वनावरण वाले राज्य सम्मिलित हैं। असम के अलावा सभी पूर्वी राज्य इस वर्ग में शामिल हैं। जलवायु की अनुकूल दशाएँ मुख्य रूप से वर्षा और तापमान अधिक वनावरण में होने का मुख्य कारण हैं। इस प्रदेश में भी वनावरण भिन्नताएँ पाई जाती हैं। अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह और मिज़ोरम, नागालैण्ड तथा अरुणाचल प्रदेश के राज्यों में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 80 प्रतिशत भाग पर वन पाए जाते हैं। मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम और दादर और नागर हवेली में वनों का प्रतिशत 40 और 80 के बीच है।
2. मध्यम वनावरण वाले प्रदेश:
इसमें मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गोवा, केरल, असम और हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। गोवा में वास्तविक वन क्षेत्र 33.79 प्रतिशत है, जो कि इस प्रदेश में सबसे अधिक है। इसके बाद असम और उड़ीसा का स्थान है। अन्य राज्यों में कुल क्षेत्र के 30 प्रतिशत भाग पर वन हैं ।
3. कम वनावरण वाले प्रदेश:
यह प्रदेश लगातार नहीं है। इसमें दो उप- प्रदेश हैं : एक प्रायद्वीप भारत में स्थित है। इसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु शामिल हैं। दूसरा उप- – प्रदेश उत्तरी भारत में हैं। इसमें उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य शामिल हैं।
4. बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश:
भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग को इस वर्ग में रखा जाता है। इस वर्ग में शामिल राज्य हैं – राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात इसमें चंडीगढ़ और दिल्ली दो केन्द्र शासित प्रदेश भी हैं। इनके अलावा पश्चिम बंगाल का राज्य भी इसी वर्ग में हैं। भौतिक और मानवीय कारणों से इस प्रदेश में बहुत कम वन हैं।
प्रश्न 3.
भारत में राष्ट्रीय उद्यान तथा जीव आरक्षित क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर:
आज भारत में 104 राष्ट्रीय उद्यान और 543 वन्य जीव अभयारण्य हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल क्रमशः 40,60,000 हेक्टेयर तथा 1,15,40,000 हेक्टेयर है। दोनों का कुल क्षेत्रफल 1,56,00,000 हेक्टेयर होता है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.74 प्रतिशत है। भारत के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों का विवरण मानचित्र 2 में दिया गया है। सन् 1973 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने कुछ देशों में मनुष्य और जैव मण्डल पर एक कार्यक्रम शुरू किया था।
इसी के परिणामस्वरूप इनके अतिरिक्त 18 जीव आरक्षित क्षेत्र भी बनाए गए हैं। इनका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 43 लाख हेक्टेयर है। इनका कुछ क्षेत्र सुरक्षित क्षेत्र में भी शामिल हो गया। कुछ आरक्षित क्षेत्र इस प्रकार है- नीलगिरि (तमिलनाडु), नोक्रेक (मेघालय), नामदफा (अरुणाचल प्रदेश), नंदा देवी (उत्तराखंड), ग्रेट निकोबार तथा मन्नार की खाड़ी (तमिलनाडु)। विगत कुछ वर्षों में सुरक्षित क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सन् 1990 में भारत ने 1977 विश्व दाय (हैरिटेज) समझौते का अनुसमर्थन कर दिया है। इस समझौते के अनुसार श्रेष्ठ सार्वभौम महत्त्व के चार प्राकृतिक स्थलों को चिह्नित किया गया है।
1. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान:
यह असम के नागाँव और गोलाघाट जिलों में मिकिर पहाड़ियों की तलहटी में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट के साथ विस्तृत है। काजीरंगा ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ क्षेत्र के मैदानों में स्थित है। इस नदी आवास में ऊंची व सघन घास वाली घास भूमियां हैं। इनके बीच-बीच में खुले वन हैं। यहाँ एक-दूसरे से जुड़ी नदियां तथा छोटी-छोटी अनेक झीलें हैं। इसका तीन चौथाई या इससे भी अधिक क्षेत्र प्रतिवर्ष ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ के पानी में डूब जाता है। लैंडसैट के 1986 के आंकड़ों के अनुसार इस के 41 प्रतिशत भाग में ऊंची घास, 11 प्रतिशत में छोटी घास, 29 प्रतिशत में खुले वन, 4 प्रतिशत में दल – दल, 8 प्रतिशत में नदियां और जलाशय तथा शेष 7 प्रतिशत में अन्य लक्षण हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान के मुख्य जन्तु एक सींग वाला गैंडा तथा हाथी हैं।
2. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान:
यह राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के भरतपुर में अलवणजल की दल-दल है, जो सिन्धु गंगा के मैदान का भाग है। जुलाई से लेकर सितम्बर के मानसूनी वर्षा के महीनों में यह क्षेत्र एक से लेकर 2 मीटर की गहराई तक पानी से भर जाता है। अक्तूबर से जनवरी तक जहां जल स्तर धीरे-धीरे घटने लगता है तथा फरवरी के महीने में भूमि सूखने लगती है। जून के महीनों में कुछ गड्ढों में ही पानी रह जाता है। यहां का पर्यावरण अंशत: मानव-निर्मित है। छोटे-छोटे बांधों से पूरे क्षेत्र को 10 भागों में विभाजित कर लिया गया है। जल स्तर के नियंत्रण के लिए प्रत्येक भाग में जल कपाटों की व्यवस्था है।
3. सुन्दर वन जीव आरक्षित क्षेत्र:
यह पश्चिम बंगाल में भारत की दो बड़ी नदियां गंगा और ब्रह्मपुत्र के दलदली डेल्टाई क्षेत्र में स्थित है। यह मैंग्रोव वनों, दल- दलों और वनाच्छादित द्वीपों के एक विशाल क्षेत्र में फैला है। इसका कुल क्षेत्रफल 1,300 वर्ग कि०मी० है। यहां लगभग 200 रॉयल बंगाल टाइगर (बाघ) निवास करते हैं। इस वन का कुछ भाग बांग्लादेश में हैं। ऐसा अनुमान है कि इस प्रदेश के बाघों की संयुक्त संख्या लगभग 400 हो सकती है। बाघों ने अपने आप को खारी और अलवणजल के अनुकूल बना लिया है। इस जीव आरक्षित क्षेत्र के बाघ अच्छे तैराक हैं।
4. नन्दा देवी जीव आरक्षित क्षेत्र:
यह जीव आरक्षित क्षेत्र ऋषि गंगा के जल-ग्रहण क्षेत्र में स्थित है। यह धौलीगंगा की पूर्वी सहायक है। धौलीगंगा जोशी मठ के पास अलकनंदा में मिल जाती है। यह हिमनदीय द्रोणी का विस्तृत क्षेत्र है। उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली पहाड़ियों की समान्तर शृंखलाओं द्वारा यह क्षेत्र विभाजित है। यहां 6,400 मी० से ऊंची लगभग एक दर्जन चोटियां हैं। इनमें दूनागिरि (7,066 मी०), चंगबंग (6,864 मी०) तथा नन्दा देवी पूर्व (7,434 मी०) उल्लेखनीय हैं। हिमालय की आन्तरिक घाटी होने के कारण नन्दा देवी द्रोणी में सामान्य शुष्क दशाएं पाई जाती हैं। मानसून की अवधि को छोड़कर वार्षिक वर्षण का औसत कम रहता है। चारों ओर छाई धुंध और मानसून की ऋतु में कम ऊंचाई वाले बादलों के कारण मृदा आर्द्र बनी रहती है। वर्ष के 6 महीनों तक यह द्रोणी हिम से ढकी रहती है।
प्रश्न 4.
जीव मण्डल निचय क्या है? भारत में इनके विस्तार का वर्णन करो।
उत्तर:
जीव मण्डल निचय – जीवमण्डल निचय (आरक्षित क्षेत्र) विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तन्त्र हैं, जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) के मानव और जीव मण्डल प्रोग्राम (MAB) के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त है। जीव मण्डल निचय के तीन मुख्य उद्देश्य हैं।
भारत में 18 जीव मण्डल निचय हैं इनमें से 4 जीव मण्डल निचय
- नीलगिरी;
- नन्दा देवी;
- सुन्दर वन;
- मन्नार की खाड़ी को।
यूनेस्को द्वारा जीव मण्डल निचय विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त हैं।