JAC Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति Textbook Exercise Questions and Answers.

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Jharkhand Board Class 11 History औद्योगिक क्रांति In-text Questions and Answers

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क्रियाकलाप 1 : अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड और विश्व के अन्य भागों में हुए उन परिवर्तनों एवं विकास क्रमों पर चर्चा कीजिए जिनसे ब्रिटेन में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिला।
उत्तर:
ब्रिटेन में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिलना-ब्रिटेन में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन देने वाले परिवर्तन एवं विकास क्रम निम्नलिखित थे-
(1) सम्पूर्ण देश में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही मुद्रा प्रणाली तथा एक ही बाजार व्यवस्था का होना- इंग्लैण्ड की राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ एवं स्थिर थी। सम्पूर्ण देश में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही मुद्रा- प्रणाली और एक ही बाजार – व्यवस्था थी। इस बाजार व्यवस्था में स्थानीय प्राधिकरणों का कोई हस्तक्षेप नहीं था।

सत्रहवीं शताब्दी के संजीव पास बुक्स अन्त तक आते-आते, मुद्रा का प्रयोग विनिमय अर्थात् आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में होने लगा था। तब तक लोग अपनी कमाई, वस्तुओं की अपेक्षा, मजदूरी और वेतन के रूप में पाने लगे। इससे लोगों को अपनी आय से खर्च करने के लिए अधिक विकल्प मिल गए और वस्तुओं की बिक्री के लिए बाजार का विस्तार हो गया।

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(2) कृषि क्रांति – अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक परिवर्तन के दौर से गुजरा था जिसे ‘कृषि क्रान्ति’ के नाम से पुकारा जाता है। बड़े जमींदारों ने छोटे-छोटे खेत खरीद लिए और अपने बड़े फार्मों में मिला लिए। इससे खाद्य उत्पादन की वृद्धि हुई। इससे भूमिहीन किसानों, चरवाहों एवं पशुपालकों को अपने जीवन-निर्वाह के लिए शहरों में जाना पड़ा।

(3) नगरों का विकास- ब्रिटेन में अनेक नगरों का विकास हुआ और नगरों की जनसंख्या में काफी वृद्धि हो गई। यूरोप के जिन 19 शहरों की आबादी सन् 1750 से 1800 ई. के बीच दोगुनी हो गई थी, उनमें से 11 शहर ब्रिटेन में थे। अतः जनसंख्या बढ़ने से वस्तुओं की माँग बढ़ी जिससे उद्योगपतियों को अधिकाधिक माल तैयार करने की प्रेरणा मिली। इन शहरों में लन्दन सबसे बड़ा शहर था जो देश के बाजारों का केन्द्र था।

(4) भूमण्डलीय व्यापार का केन्द्र हो जाना – 18वीं शताब्दी तक आते-आते भूमण्डलीय व्यापार का केन्द्र इटली तथा फ्रांस के भूमध्यसागरीय बन्दरगाहों से हटकर हालैण्ड और ब्रिटेन के अटलान्टिक बन्दरगाहों पर आ गया था। लन्दन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए ऋण – प्राप्ति के प्रधान स्रोत के रूप में एमस्टरडम का स्थान ले चुका था। वह इंग्लैण्ड, अफ्रीका और वेस्ट इण्डीज के बीच स्थापित त्रिकोणीय व्यापार का केन्द्र भी बन गया।

(5) नौ-यातायात की सुविधा – इंग्लैण्ड की नदियों के सभी नौचालनीय भाग समुद्र से जुड़े हुए थे, इसलिए नदी पोतों के द्वारा ढोया जाने वाला माल समुद्र तटीय जहाजों तक सरलता से ले जाया जा सकता था।

(6) बैंकों का विकास – इंग्लैण्ड में बैंकों का विकास हो चुका था। देश की वित्तीय प्रणाली का केन्द्र बैंक ऑफ इंग्लैण्ड था। 1784 तक इंग्लैण्ड में कुल मिलाकर एक सौ से अधिक प्रान्तीय बैंक थे। बड़े-बड़े औद्योगिक उद्यम स्थापित करने तथा चलाने के लिए आवश्यक वित्तीय साधन इन्हीं बैंकों द्वारा उपलब्ध कराए जाते थे।

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(7) कारखानों के लिए श्रमिकों व पूँजी की उपलब्धता – इंग्लैण्ड में गाँवों से आए अनेक गरीब लोग नगरों में कारखानों में काम करने के लिए उपलब्ध हो गए थे। वहाँ बड़े-बड़े उद्योग-धन्धे स्थापित करने के लिए आवश्यक ऋण- राशि उपलब्ध कराने के लिए बैंक भी विद्यमान थे। वहाँ परिवहन के लिए एक अच्छी व्यवस्था उपलब्ध थी।

(8) विभिन्न आविष्कार – इंग्लैण्ड में 18वीं शताब्दी में अनेक आविष्कार हुए जिनके कारण लोहा उद्योग, वस्त्र उद्योग, भाप की शक्ति तथा रेल मार्गों के विकास आदि में अनेक परिवर्तन हुए।

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क्रियाकलाप 2 : आइरन ब्रिज गोर्ज आज एक प्रमुख विरासत स्थल है। क्या आप बता सकते हैं क्यों?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में लोहे के उत्पादन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। 1709 में प्रथम डर्बी ने धमन भट्टी का आविष्कार किया। द्वितीय डर्बी ने ढलवाँ लोहे से पिटवाँ लोहे का विकास किया। हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी तथा बेल मिल का आविष्कार किया। 1779 में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल कोलब्रुक डेल में सेर्वन नदी पर बनाया।

विल्किनसन ने पानी की पाइपें पहली बार ढलवाँ लोहे से बनाईं। उसके बाद लोहा उद्योग कुछ विशेष क्षेत्रों में केन्द्रित हो गया। यह क्षेत्र ‘आइरन ब्रिज’ नामक गाँव के रूप में विकसित हुआ। यह आज एक प्रमुख विरासत स्थल है क्योंकि यह देश की अर्थव्यवस्था का एक सुदृढ़ आधार है। यह स्थान बड़े पैमाने पर आम लोहे के उत्पादन के रूप में प्रसिद्ध है। इसके कारण इंग्लैण्ड की राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि हुई और बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ।

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क्रियाकलाप 3 : औद्योगीकरण के प्रारम्भ में ब्रिटिश शहरों और गाँवों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार करें और इसकी तुलना ठीक उसी प्रकार की परिस्थितियों में भारत के सन्दर्भ में करें।
उत्तर:
औद्योगीकरण के प्रारम्भ में ब्रिटिश शहरों और गाँवों पर प्रभाव – औद्योगीकरण के प्रारम्भ में ब्रिटिश शहरों और गाँवों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े –
(1) नगरों की जनसंख्या बढ़ गई परन्तु गाँवों की जनसंख्या कम हो गई। गाँवों के लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर भागने लगे। परिवार विघटित हो गए।

(2) नगरों में रहने वालों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। नगरों में सफाई, शुद्ध जल और शुद्ध वातावरण का अभाव हो गया। बाहर से आकर नये बसे लोगों को नगरों में कारखानों के आस-पास भीड़-भाड़ वाली गन्दी बस्तियों में रहना पड़ा। धनवान लोग नगर छोड़ कर आस-पास के उपनगरों में साफ-सुथरे मकान बनाकर रहने लगे जहाँ की हवा स्वच्छ थी और पीने का पानी भी साफ एवं सुरक्षित था।

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(3) नगरों में वेतनभोगी मजदूरों की औसत अवधि नगरों में रहने वाले अन्य सामाजिक समूहों के जीवन काल से कम थी। नए औद्योगिक नगरों में गाँव से आकर रहने वाले लोग ग्रामीण लोगों की तुलना में काफी छोटी आयु में मर जाते थे। ये मौतें हैजा, आंत्रशोथ, क्षय रोग आदि से होती थीं।

(4) नगरों में कारखानों में काम करने वाले बच्चों और स्त्रियों की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। कारखानों में काम करते समय बच्चे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते थे। उन्हें बहुत थोड़ी मजदूरी दी जाती थी तथा उन्हें साधारण-सी गल्ती करने पर बुरी तरह पीटा जाता था। स्त्रियों के बच्चे पैदा होते ही या शैशवावस्था में ही मर जाते थे और उन्हें विवश होकर शहर की घिनौनी व गन्दी बस्तियों में रहना पड़ता था। भारत के सन्दर्भ में तुलना – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत के नगरों की जनसंख्या काफी बढ़ गई। कोयला और लोहा उत्पादन करने वाले केन्द्रों के आस-पास बड़े – बड़े नगर बस गए।

रोजगार की तलाश में गाँव वालों को शहरों में आना पड़ा जिससे अनेक गाँव उजड़ गए। गाँवों में प्रचलित कुटीर उद्योग-धन्धे नष्ट हो गए तथा वहाँ और गरीब फैल गई। संयुक्त परिवार विघटित होते चले गए। पूँजीपतियों द्वारा मजदूरों का शोषण करने से उनकी स्थिति शोचनीय हो गई। जीवन निर्वाह करने के लिए स्त्रियों और बच्चों को भी कारखानों में काम करना पड़ा जिसके फलस्वरूप अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं। भारत में अधिकांश कारखानों के स्वामी विदेशी पूँजीपति थे। अतः भारत का विपुल धन इंग्लैण्ड भेजा गया जिससे भारत में पूँजी का अभाव हो गया और देश में गरीबी तथा बेकारी में वृद्धि हुई।

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क्रियाकलाप 4 : उद्योगों में काम की परिस्थितियों के बारे में बनाए गए सरकारी विनियमों के पक्ष और विपक्ष में अपनी दलीलें दें।
उत्तर-कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की दशा सुधारने के लिए सरकार ने निम्नलिखित नियम बनाए –
(1) 1819 में कुछ कानून बनाए गए जिनके तहत नौ वर्ष से कम की आयु वाले बच्चों से फैक्ट्रियों में काम करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 9 से 16 वर्ष की आयु वाले बच्चों से काम कराने की सीमा 12 घण्टे तक सीमित कर दी गई।

(2) 1833 के अधिनियम के अन्तर्गत 9 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को केवल रेशम की फैक्ट्रियों में काम पर लगाने की अनुमति दी गई, बड़े बच्चों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिए गए। कुछ फैक्टरी निरीक्षकों की व्यवस्था की गई ताकि अधिनियम के प्रवर्तन और पालन को सुनिश्चित किया जा सके।

(3) 1847 में ‘दस घण्टा विधेयक’ परित किया गया जिसके अन्तर्गत स्त्रियों और युवकों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिये और पुरुष श्रमिकों के लिए 10 घण्टे का दिन निश्चित कर दिया।

(4) 1842 के खान और कोयला खान अधिनियम के अन्तर्गत दस वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से खानों में नीचे काम लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

(5) फील्डर्स फैक्टरी अधिनियम ने 1847 में यह कानून बना दिया कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से 10 घण्टे प्रतिदिन से अधिक काम न लिया जाए।

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पक्ष में तर्क –

  • कारखानों में मजदूरों के काम करने के घण्टे निश्चित करने से उन्हें राहत मिली।
  • अब पूँजीपति अपनी इच्छानुसार मजदूरों से निर्धारित अवधि से अधिक समय तक काम नहीं ले सकते थे।
  • कारखानों में इन्स्पेक्टर नियुक्त किये गए जो सरकारी नियमों का पालन करवाते थे 1

विपक्ष में तर्क –

  1. मजदूरों के लिए 10 घण्टे का दिन निश्चित करना अधिक था।
  2. 1819 के कानून में इसका पालन कराने के लिए आवश्यक अधिकारियों की व्यवस्था नहीं की गई थी।
  3. उनके लिए अच्छे वेतन, बीमा, पेंशन आदि की व्यवस्था नहीं की गई ।
  4. कारखानों में छोटे बच्चों के काम करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया । (5) 1842 से पूर्व खानों में मजदूरों के लिए नियम नहीं बनाए गए।
  5. निरीक्षक अपना काम ईमानदारी से नहीं करते थे । उनका वेतन बहुत कम था और कारखानों के मालिक उन्हें रिश्वत देकर उनका मुँह बन्द कर देते थे।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्रिटेन 1793 से 1815 तक कई युद्धों में लिप्त रहा। इसका ब्रिटेन के उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
युद्धों का ब्रिटेन के उद्योगों पर प्रभाव – ब्रिटेन 1793 से 1815 तक कई युद्धों में लिप्त रहा। इसका ब्रिटेन के उद्योगों पर निम्न प्रभाव पड़े –
(i) इन युद्धों के कारण जो पूँजी निवेश के लिए उधार ली गई थी, वह युद्ध लड़ने में खर्च की गई। युद्ध का 35 प्रतिशत तक खर्च लोगों की आय पर कर लगाकर पूरा किया जाता था। कामगारों तथा श्रमिकों को कारखानों और खेतों में से निकाल कर उन्हें सेना में भर्ती कर लिया जाता था। परिणामस्वरूप कारखानों में उत्पादन का काम ठप हो गया । खाद्य सामग्रियों के दाम अत्यधिक बढ़ गए।

(ii) महाद्वीपीय नाकाबन्दी के कारण ब्रिटिश व्यापार को काफी क्षति पहुँची। ब्रिटेन से निर्यात होने वाला अधिकांश सामान ब्रिटेन के व्यापारियों की पहुँच से बाहर हो गया। इससे अनेक कारखाने बन्द हो गए और हजारों लोग बेरोजगार हो गए। आवश्यक वस्तुओं के दाम बहुत अधिक बढ़ गए।

प्रश्न 2.
नहर और रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ क्या-क्या हैं ?
उत्तर:
I. नहर के सापेक्षिक लाभ – नहर के सापेक्षिक लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) नहरें कोयले को शहरों तक ले जाने में बड़ी सहायक सिद्ध हुईं। कोयले को उसके परिमाण तथा भार के कारण सड़क मार्ग से ले जाने में समय बहुत लगता था और उस पर धन खर्च भी अधिक आता था। परन्तु कोयले को बज़रों में भर कर नहरों के मार्ग से ले जाने में समय भी कम लगता था तथा खर्चा भी कम आता था।

(2) प्राय: नहरें बड़े-बड़े जमींदारों द्वारा अपनी जमीनों पर स्थित खानों, खदानों या जंगलों के मूल्य को बढ़ाने के लिए बनाई जाती थीं। नहरों के आपस में जुड़ जाने से नये-नये शहरों में बाजार बन गए। इससे अनेक शहरों का विकास हुआ। बर्मिंघम शहर का विकास केवल इसीलिए तेजी से हुआ क्योंकि वह लन्दन, ब्रिस्टल चैनल और मरसी तथा हंबर नदियों के साथ जुड़ने वाली नहर प्रणाली के बीच में स्थित था।

II. रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ – रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) रेलवे परिवहन एक ऐसा साधन है, जो वर्ष भर उपलब्ध रहता है । यह सस्ता तथा तेज भी है। इससे माल देश के भीतरी भागों में भी पहुँचाया जा सकता है, जो नहरों द्वारा सम्भव नहीं है।
(2) रेलवे परिवहन माल तथा यात्री दोनों को ढो सकता है।
(3) नहरों के रास्ते परिवहन में अनेक समस्याएँ हैं । नहरों के कुछ हिस्सों में जलपोतों की भीड़-भाड़ के कारण परिवहन की गति धीमी पड़ जाती है और पाले, बाढ़ या सूखे के कारण उनके उपयोग का समय भी सीमित हो जाता है। परन्तु रेलवे परिवहन में यह समस्या नहीं है। इसलिए, रेलमार्ग ही परिवहन का सबसे सुविधाजनक विकल्प दिखाई दे रहा है।

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प्रश्न 3.
इस अवधि में किए गए ‘आविष्कारों’ की दिलचस्प विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
यह पता लगाना अवश्य ही दिलचस्प होगा कि वे लोग कौन थे जिनके प्रयत्नों से ये परिवर्तन हुए। उनमें से कुछ लोग प्रशिक्षित वैज्ञानिक थे। चूँकि इन आविष्कारों को सम्पन्न करने के लिए भौतिकी या रसायन विज्ञान के उन सिद्धान्तों या नियमों की पूर्ण जानकारी होना आवश्यक नहीं था जिन पर ये आविष्कार आधारित थे, इसलिए ये वैज्ञानिक आविष्कार प्रतिभाशाली परन्तु अन्तःप्रज्ञ विचारकों तथा लगनशील प्रयोगकर्ताओं द्वारा किए गए। थीं – आविष्कारों की दिलचस्प विशेषताएँ – इस अवधि में किए गए आविष्कारों की दिलचस्प विशेषताएँ अग्रलिखित –

  1. इस अवधि में अधिकतर आविष्कार वैज्ञानिक ज्ञान के अनुप्रयोग की अपेक्षा दृढ़ता, लगन, रुचि, जिज्ञासा तथा भाग्य के बल पर हुए।
  2. कपास उद्योग के क्षेत्र में कुछ आविष्कारक जैसे जॉन के तथा जेम्स हारग्रीव्ज बुनाई और बढ़ईगीरी से परिचित थे। परन्तु रिचर्ड आर्कराइट एक नाई था तथा बालों की विग बनाता था।
  3. सैम्युल क्राम्पटन तकनीकी दृष्टि से कुशल नहीं था।
  4. एडमंड कार्टराइट ने साहित्य, आयुर्विज्ञान तथा कृषि का अध्ययन किया था। प्रारम्भ में वह पादरी बनना चाहता था और वह यान्त्रिकी के बारे में बहुत कम जानता था।
  5. भाप के इंजनों के क्षेत्र में थामस सेवरी नामक व्यक्ति एक सैन्य अधिकारी था।
  6. थॉमस न्यूकोमेन एक लुहार तथा तालासाज था। जेम्स वाट का यन्त्र सम्बन्धी कामकाज की ओर बहुत झुकाव था। उन सबमें अपने-अपने आविष्कार के प्रति कुछ संगत ज्ञान अवश्य था।
  7. सड़क निर्माता जान मेटकाफ, जिसने व्यक्तिगत रूप से सड़कों की सतहों का सर्वेक्षण किया था और उनके बारे में योजना बनाई थी, अन्धा था।
  8. नहर निर्माता जेम्स ब्रिंडले स्वयं निरक्षर था। शब्दों की ‘वर्तनी’ के बारे में उसका ज्ञान इतना कमजोर था कि वह ‘नौ – चालन’ शब्द की सही वर्तनी कभी नहीं बता सका। परन्तु उसमें अद्भुत स्मरण शक्ति, कल्पना – शक्ति तथा एकाग्रता थी।

प्रश्न 4.
बताइए कि ब्रिटेन के औद्योगीकरण के स्वरूप पर कच्चे माल की आपूर्ति का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
ब्रिटेन के औद्योगीकरण के स्वरूप पर कच्चे माल की आपूर्ति का प्रभाव – ब्रिटेन निवासी सदैव ऊन और सन से कपड़ा बुना करते थे। सत्रहवीं शताब्दी से इंग्लैण्ड भारत से सूती कपड़ा आयात करता था। परन्तु जब भारत पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी का राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित हो गया, तो इंग्लैण्ड ने कपड़े के साथ-साथ कच्चे कपास (रुई) का आयात करना भी शुरू कर दिया। इसे इंग्लैण्ड में आने पर काता जाता था और उससे कपड़े बुने जाते थे।

कच्चे माल के रूप में इंग्लैण्ड को आवश्यक कपास का आयात करना पड़ता था और जब उनसे कपड़ा तैयार हो जाता, तो उसका अधिकांश भाग बाहर निर्यात किया जाता था। इसके लिए इंग्लैण्ड के पास अपने उपनिवेश होना आवश्यक था जिससे कि इन उपनिवेशों से कच्ची कपास बड़ी मात्रा में मंगाई जा सके और फिर इंग्लैण्ड में उससे कपड़ा बनाकर उन्हीं उपनिवेशों के बाजारों में बेचा जा सके। इस प्रकार औद्योगीकरण के फलस्वरूप इंग्लैंड में कच्चे माल की आपूर्ति उपनिवेशों से होने लगी।

निबन्धात्मक प्रश्न 

प्रश्न 5.
ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति के निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

(1) निर्धन वर्ग की स्त्रियों द्वारा कारखानों में काम करना – पुरुषों को कारखानों में साधारण मजदूरी मिलती थी जिससे अकेले घर का खर्च नहीं चल सकता था। अतः परिवार का खर्चा चलाने के लिए निर्धन वर्ग की स्त्रियों को भी कारखानों में काम करना पड़ा। कारखानों में उन्हें निरन्तर कई घन्टों तक कठोर अनुशासन में रहते हुए काम करना पड़ता था।

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उद्योगपति, पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों और बच्चों को अपने कारखानों में भर्ती करना अधिक पसन्द करते थे क्योंकि उनकी मजदूरी कम होती थी तथा वे कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शान्तिपूर्वक अपना काम करते थे। स्त्रियों और बच्चों को लंकाशायर और यार्कशायर नगरों के सूती कपड़ा उद्योग में बड़ी संख्या में काम पर लगाया जाता था। रेशम, फीते बनाने और बुनने के उद्योग-धन्धों में और बर्मिंघम के धातु उद्योगों में स्त्रियों को ही अधिकतर नौकरियाँ दी जाती थीं।

(2) स्त्रियों की दयनीय स्थिति-कारखानों में काम करने वाली स्त्रियों की स्थिति बड़ी दयनीय थी। पुरुष मजदूरों की तुलना में उन्हें कम वेतन दिया जाता था। पुरुष मजदूरों को प्रति सप्ताह 25 शिलिंग मज़दूरी दी जाती थी, परन्तु स्त्रियों को केवल 7 शिलिंग मजदूरी ही दी जाती थी। साधारण-सी गलती करने पर स्त्रियों को दण्डित किया जाता संजीव पास बुक्स था। उन्हें कारखानों में गन्दे वातावरण में काम करना पड़ता था। प्रायः उनके बच्चे पैदा होते ही मर जाते थे या शैशवावस्था में ही मर जाते थे। उन्हें विवश होकर शहर की घिनौनी एवं गन्दी बस्तियों में रहना पड़ता था। उनका पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। मिश्रित परिवार टूट गए और एकल परिवार बन गए। अब उनका पारिवारिक जीवन नीरस हो गया।

(3) मध्यम वर्ग व धनी वर्ग की स्त्रियों पर प्रभाव – मध्यम वर्ग एवं धनी वर्ग की स्त्रियाँ औद्योगिक क्रान्ति से लाभान्वित हुईं। उनके रहन-सहन, खान-पान, वस्त्रादि में परिवर्तन आ गया । अब उन्हें रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन आदि के रूप में मनोरंजन के नये साधन प्राप्त हुए। अब उनका जीवन-स्तर काफी उन्नत हो गया। अब वे विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने लगीं तथा सुन्दर वस्त्रों, आभूषणों एवं सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग करने लगी। अब घूमने और भ्रमण करने के लिए उन्हें मोटर गाड़ियों, रेलों, वायुयानों आदि की सुविधा भी उपलब्ध हो गई थी।

प्रश्न 6.
विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में रेलवे आ जाने से वहाँ के जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? तुलनात्मक विवेचना कीजिए
उत्तर:
विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में रेलवे आ जाने से वहाँ के जन-जीवन पर प्रभाव –

(अ) औद्योगिक एवं साम्राज्यवादी देशों के जीवन पर प्रभाव – रेल मार्ग परिवहन का सबसे अधिक सुविधाजनक साधन था। रेलवे के आ जाने से शक्तिशाली, औद्योगिक तथा साम्राज्यवादी देश बड़े लाभान्वित हुए। इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि अनेक देशों का कायाकल्प हो गया। रेलों के विकास के कारण इन देशों के व्यापार-वाणिज्य और उद्योग-धन्धों का विकास अत्यधिक हुआ। राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि हुई। इन देशों ने कच्चा माल प्राप्त करने तथा अपना तैयार माल बेचने के लिए अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए।

परिणामस्वरूप ये अपना तैयार माल उपनिवेशों में भेजकर भारी मुनाफा कमाने लगे। रेलवे मार्ग से सामान का आयात-निर्यात करना अधिक सुगम व सस्ता था, इसलिए विदेशी माल अन्य यूरोपीय देशों से सस्ता पड़ता था। इससे ब्रिटिश उद्योगपतियों का खूब लाभ हुआ और औद्योगीकरण की प्रक्रिया तेज हो गई। अतः रेलवे के आ जाने से इन देशों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ हो गई। इन देशों के लोगों का जीवन- स्तर उन्नत हो गया और उन्हें सभी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाएँ आसानी से मिलने लगीं।

(ब) अफ्रीका व एशिया महाद्वीप के देशों पर प्रभाव – इसके विपरीत जिन देशों में रेलों का विकास नहीं किया गया, वे देश आर्थिक क्षेत्र में पिछड़ गए। अफ्रीका, एशिया आदि महाद्वीपों के अनेक देशों में रेलों का आगमन नहीं हुआ। परिणामस्वरूप वे वाणिज्य – व्यापार एवं उद्योगों के क्षेत्र में उन्नति नहीं कर सके। औद्योगिक एवं साम्राज्यवादी देश उनका आर्थिक शोषण करते रहे। इसके परिणामस्वरूप वहाँ गरीबी तथा बेरोजगारी में वृद्धि हुई। वे अपने जीवन-स्तर को उन्नत बनाने में असफल रहे और अनेक प्रकार की रूढ़ियों तथा अन्धविश्वासों के शिकार हो गए।

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औद्योगिक क्रांति JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. औद्योगिक क्रान्ति – ब्रिटेन में, 1780 के दशक और 1850 के दशक के बीच उद्योग और अर्थव्यवस्था का जो रूपान्तरण हुआ, उसे ‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ के नाम से पुकारा जाता है। ब्रिटेन में औद्योगिक विकास का यह चरण नयी मशीनों एवं तकनीकियों से गहराई से जुड़ा है।
2. इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात – इंग्लैण्ड में ही सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ।

इसके कारण थे –

  1. इंग्लैण्ड की राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ थी।
  2. मुद्रा का प्रयोग विनिमय के रूप में होने लगा था।
  3. इंग्लैण्ड में कृषि क्रान्ति सम्पन्न हो चुकी थी।
  4. नगरों का विकास हो गया था तथा नगरों की जनसंख्या में काफी वृद्धि हो गई थी।
  5. लन्दन व्यापार का प्रमुख केन्द्र बन गया था।
  6. इंग्लैण्ड में बैंकों का विकास हो चुका था।
  7. प्रौद्योगिक परिवर्तनों की श्रृंखला।
  8. नवीन परिवहन तन्त्र का विकास।

3. कोयले एवं लोहे के क्षेत्र में परिवर्तन –

  • 1709 में अब्राहम डर्बी ने धमनभट्टी का आविष्कार किया जिसमें सर्वप्रथम कोक का प्रयोग किया गया।
  • हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी और बेलन मिल का आविष्कार किया।
  • 1779 में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल बनाया।
  • ब्रिटेन ने लौह उद्योग में 1800 से 1830 के दौरान अपने उत्पादन को चौगुना बढ़ा लिया।

4. कपास की कताई और बुनाई – 18वीं सदी में कपास की कताई व बुनाई के क्षेत्र में हुए निम्न प्रमुख आविष्कारों से कताई-बुनाई का कार्य कताईगरों और बुनकरों से हटकर कारखानों में चला गया –

  • 1733 में जॉन के ने फ्लाइंग शटल लूम (उड़न तुरी करघे) का आविष्कार किया।
  • 1765 में जेम्स हारग्रीव्ज ने स्पिन्निंग जैनी नामक मशीन का आविष्कार किया।
  • 1769 में रिचर्ड आर्क राइट ने वाटर फ्रेम नामक मशीन बनाई।
  • 1779 में सैम्युल क्राम्पटन ने ‘म्यूल’ नामक मशीन का आविष्कार किया।
  • 1787 में एडमंड कार्ट राइट ने पॉवर लूम का आविष्कार किया।

5. भाप की शक्ति – 1712 में थॉमस न्यूकामेन ने भाप का इंजन बनाया। 1769 में जेम्स वाट ने भाप के इंजन का आविष्कार किया। अब भाप का इंजन एक साधारण पंप की बजाय एक प्रमुख चालक (मूवर) के रूप में काम देने लगा, जिससे कारखानों में शक्ति चालित मशीनों को ऊर्जा मिलने लगी।

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6. नहरें-प्रारंभ में नहरें कोयले को शहरों तक ले जाने के लिए बनाई गईं क्योंकि इनमें कम समय व कम खर्च होता था। 1761 में जेम्स ब्रिंडली ने इंग्लैण्ड में पहली नहर ‘वर्सली कैनाल’ बनाई। 1760 से 1790 की अवधि में नहरें बनाने की 25 नई परियोजनाएं शुरू की गईं।

7. रेलें –
(1) 1801 में रिचर्ड ट्रेविथिक ने एक इंजन का निर्माण किया। 1814 में जार्ज स्टीफेन्सन ने एक रेल इंजन बनाया जिसे ‘ब्लुचर’ कहा जाता था।
(2) रेलवे के आविष्कार के साथ औद्योगीकरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया ने दूसरे चरण में प्रवेश कर लिया। 1830 से 1850 के बीच ब्रिटेन में रेल मार्ग कुल मिलाकर दो चरणों में लगभग 6000 मील लम्बा हो गया।

8. परिवर्तित जीवन-

  • औद्योगीकरण से ब्रिटिश पूँजी निवेशकों को भारी लाभ हुआ। उनकी पूँजी कई गुना बढ़ी।
  • धन में, माल, आय, सेवाओं, ज्ञान और उत्पादन कुशलता के रूप में वृद्धि हुई।
  • लेकिन इससे गरीब लोगों को भारी खामियाजा उठाना पड़ा।

9. मजदूर –

  • जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई।
  • बाहर से आकर बसे लोगों को नगरों में कारखानों के आस-पास भीड़-भाड़ वाली गन्दी बस्तियों में रहना पड़ा।
  • नये औद्योगिक नगरों में गाँवों से आकर रहने वाले लोग ग्रामीण लोगों की तुलना में काफी छोटी आयु में मर जाते थे।
  • मौतें अधिकतर हैजा, आन्त्रशोथ, क्षय-रोग आदि बीमारियों से होती थीं।

10. औरतें, बच्चे और औद्योगीकरण –

  • मजदूरी मामूली होने के कारण, स्त्रियों और बच्चों को भी कारखानों में काम करना पड़ता था। स्त्रियों और बच्चों को लंकाशायर तथा यार्कशायर नगरों के सूती वस्त्र उद्योग में बड़ी संख्या में काम पर लगाया जाता था।
  • बच्चों से कई-कई घण्टों तक काम लिया जाता था। कई बार बच्चों के बाल मशीनों में फँस जाते थे या उनके हाथ कुचल जाते थे।
  • कोयले की खानों में भी छोटे बच्चों को ‘ट्रैपर’ का काम करना पड़ता था।
  • स्त्रियों को औद्योगिक काम की वजह से विवश होकर शहर की गंदी बस्तियों में रहना पड़ता था।

11. विरोध आन्दोलन –
(1) इंग्लैण्ड में कारखानों में काम करने की कठोर परिस्थितियों के विरुद्ध राजनीतिक विरोध बढ़ता गया और श्रम-जीवी लोग मताधिकार प्राप्त करने के लिए आन्दोलन करने लगे। परन्तु, सरकार ने दमनकारी नीति अपनाते हुए लोगों से विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार ही छीन लिया।

(2) सरकार की दमनकारी नीति के बावजूद श्रमिक लोगों ने आन्दोलन जारी रखा। 1790 के दशक में सम्पूर्ण देश में खाद्य (ब्रेड) के लिए दंगे होने लगे। उन्होंने ब्रेड के भण्डारों पर अधिकार कर लिया और उन्हें काफी कम मूल्य में बेचा जाने लगा।

(3) कपड़ा उद्योगों में मशीनों के प्रचलन से हजारों की संख्या में हथकरघा बुनकर बेरोजगार हो गए।

(4) हताश होकर सूती कपड़ों के बुनकरों ने लंकाशायर में पावरलूमों को नष्ट कर दिया।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

(5) जनरल नेडलुड के नेतृत्व में लुडिज्म नामक एक अन्य आन्दोलन चलाया गया। लुडिज्म के अनुयायी मशीनों की तोड़-फोड़ में ही विश्वास नहीं करते थे, बल्कि न्यूनतम मजदूरी, नारी एवं बाल श्रम पर नियन्त्रण, बेरोजगार लोगों के लिए काम और मजदूर संघ बनाने के अधिकारों की भी माँग करते थे।

12. कानूनों के द्वारा सुधार –

(1) 1819 में सरकार ने कुछ कानून बनाए जिनके अन्तर्गत 9 वर्ष से कम की आयु वाले बच्चों से कारखानों में काम करवाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

(2) 9 से 16 वर्ष की आयु वाले बच्चों में काम करने की सीमा 12 घण्टे तक सीमित कर दी गई।

(3) 1833 में एक अधिनियम पारित किया गया जिसके अन्तर्गत 9 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को केवल रेशम की फैक्ट्रियों में काम पर लगाने की अनुमति दी गई, बड़े बच्चों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिये गए और कुछ फैक्ट्री निरीक्षकों की व्यवस्था कर दी गई। 1847 में एक अन्य विधेयक पारित किया गया जिसके अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से 10 घण्टे प्रतिदिन से अधिक काम न लिया जाए।

औद्योगिक क्रांति के विषय में तर्क-वितर्क –

  • दरअसल औद्योगीकरण की प्रक्रिया इतनी धीमी गति से रही कि इसे क्रांति कहना ठीक नहीं होगा।
  • ब्रिटेन में औद्योगिक विकास 18145 से पहले की अपेक्षा उसके बाद अधिक तेजी से हुआ। इसका कारण औद्योगीकरण के साथ – साथ युद्ध भी रहे।
  • इस काल में हुआ रूपान्तरण केवल आर्थिक व औद्योगिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि इसका विस्तार समाज के सर्वहारा वर्ग तथा बुर्जुआ वर्ग तक रहा। इसलिए इस क्रांति को केवल औद्योगिक नहीं कहा जा सकता।

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