JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions )
प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत में सबसे ठण्डा स्थान कौन-सा है?
(A) श्रीनगर
(B) शिमला
(C) द्रास
(D) शिलांग
उत्तर:
(C) द्रास।

2. भारत में सबसे गर्म स्थान कौन-सा है?
(A) नागपुर
(B) बंगलुरु
(C) बाड़मेर
(D) कानपुर
उत्तर:
(C) बाड़मेरर।

3. ग्रीष्मकालीन मानसून की दिशा कौन-सी है?
(A) दक्षिण-पश्चिम
(B) उत्तर-पूर्व
(C) दक्षिण-पूर्व
(D) उत्तर-पश्चिम
उत्तर:
(A) दक्षिण-पश्चिम

4. काल बैसाखी किस राज्य से सम्बन्धित है?
(A) केरल
(C) तमिलनाडु
(B) असम
(D) पंजाब
उत्तर:
(A) पेरू

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5. एलनीनो किस देश के तट पर प्रवाहित है?
(A) पेरू
(B) दक्षिण अफ्रीका
(C) आस्ट्रेलिया
(D) यूरोप
उत्तर:
(C) बाड़मेर।

6. उत्तर – पश्चिम भारत में शीतकाल में कौन-सी वर्षा होती है?
(A) संवाहिक
(C) चक्रवातीय
(B) पर्वतीय
(D) पूर्व – मानसून
उत्तर;
(C) चक्रवातीय।

7. शीतकालीन चक्रवातीय वर्षा किस फसल की उपज के लिए लाभदायक है?
(A) चावल
(B) मक्का
(C) गेहूं
(D) कपास
उत्तर:
(C) गेहूं।

8. कर्नाटक राज्य में पूर्व- मानसून वर्षा को कहते हैं
(A) चक्रवातीय
(B) काल बैसाखी
(C) लू
(D) आम की बौछार
उत्तर:
(D) आम की बौछार।

9. किस स्थान पर अधिकतर वर्षा हिमपात में होती है?
(A) अमृतसर
(B) शिमला
(C) लेह
(D) कोलकाता
उत्तर:
(C) लेह

10. किस राज्य में लू चलती है?
(A) मध्यप्रदेश
(B) तमिलनाडु
(C) पंजाब
(C) गुजरात
उत्तर:
(C) पंजाब।

11. कौन-सा क्षेत्र वर्षा छाया क्षेत्र है?
(A) दक्कन पठार
(B) असम
(C) गुजरात
(D) केरल
उत्तर:
(A) दक्कन पठार।

12. उत्तर-पश्चिमी भारत से कब मानसून पवनें पीछे हटती हैं?
(A) जनवरी में
(B) अगस्त में
(C) अक्तूबर में
(D) अप्रैल में
उत्तर:
(C) अक्तूबर में।

13. भारत में मानसून पवनों की अवधि है
(A) 61 दिन
(B) 90 दिन
(C) 120 दिन
(D) 150 दिन
उत्तर:
(C) 120 दिन

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14. जाड़े के आरम्भ में तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में वर्षा किस कारण होती है?
(A) दक्षिण-पश्चिम मानसून
(C) शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून
(D) स्थानीय वायु परिसरण।
उत्तर:
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में किस प्रकार का जलवायु मिलता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु।

प्रश्न 2.
भारत के मध्य से कौन-से अक्षांश की अक्षांश रेखा गुज़रती है?
उत्तर:
कर्क रेखा।

प्रश्न 3.
कर्क रेखा द्वारा निर्मित दो जलवायु क्षेत्रों के नाम लिखो।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय।

प्रश्न 4.
भारत में सबसे गर्म स्थान का नाम बताएं।
उत्तर:
राजस्थान में बाड़मेर (50° C)।

प्रश्न 5.
भारत में सबसे अधिक ठण्डे स्थान का नाम लिखो।
उत्तर:
द्रास (कारगिल) 45°C 1

प्रश्न 6.
भारत में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान का नाम लिखो।
उत्तर:
चिरापूंजी के निकट मासिनराम – 1080 सेंटीमीटर वर्षा

प्रश्न 7.
उस राज्य का नाम लिखो जहां सबसे कम तापमान अन्तर होता है।
उत्तर:
केरल

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प्रश्न 8.
भारत में सम जलवायु वाले तटीय राज्य का नाम लिखो।
उत्तर:
तमिलनाडु

प्रश्न 9.
देश के आन्तरिक भाग के एक राज्य का नाम लिखो जहां महाद्वीपीय जलवायु है।
उत्तर:
पंजाब।

प्रश्न 10.
उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों में होने वाली वर्षा का क्या कारण है?
उत्तर;
उत्तर-पश्चिमी विक्षोभ (चक्रवात)।

प्रश्न 11.
भारत के दक्षिण पूर्व तट पर सर्दियों में होने वाली वर्षा का कारण लिखें।
उत्तर:
उत्तर- पूर्व मानसून।

प्रश्न 12.
मानसून शब्द कहां से बना?
उत्तर:
अरबी भाषा का शब्द – मौसिम।

प्रश्न 13.
किस प्रकार की पवनें मानसून होती हैं?
उत्तर:
मौसमी पवनें।

प्रश्न 14.
गर्मियों की मानसून की क्या दिशा होती है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम से उत्तर – पूर्व

प्रश्न 15.
सर्दियों की मानसून की क्या दिशा होती है?
उत्तर;
उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम।

प्रश्न 16.
ऊपरी वायुमण्डल की वायुराशि बताओ जो भारत में मानसून पवनें लाती है।
उत्तर:
जैट प्रवाह

प्रश्न 17.
उस राज्य का नाम बतायें जो सबसे पहले दक्षिण-पश्चिम मानसून प्राप्त करता है।
उत्तर:
केरल

प्रश्न 18.
एक राज्य बताओ जहां से मानसून पवनें सबसे पहले लौटती हैं।
उत्तर:
पंजाब

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प्रश्न 19.
मानसून वर्षा पर निर्भर रहने वाली दो खरीफ़ फसलों के नाम लिखो।
उत्तर: चावल और मक्का।

प्रश्न 20.
भारत में चार वर्षा वाले महीने लिखो।
उत्तर:
जून से सितम्बर।

प्रश्न 21.
200 cm से अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
पश्चिमी तट, उत्तर पूर्व पहाड़ी क्षेत्र।

प्रश्न 22.
नार्वेस्टर तथा काल बैसाखी कहां चलते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी बंगाल तथा असम

प्रश्न 23.
पूर्व – मानसून पवनों की वर्षा का एक उदाहरण दो।
उत्तर:
Mango Showers.

प्रश्न 24.
किन प्रदेशों में शीतकाल में रात को पाला पड़ता है?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा।

प्रश्न 25.
लू से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गर्मियों में गर्म धूल भरी चलने वाली पवनें।

प्रश्न 26.
उस क्षेत्र का नाम बताओ जो दोनों ऋतुओं में वर्षा प्राप्त करता है।
उत्तर:
तमिलनाडु।

प्रश्न 27.
जलवायु से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी स्थान पर लम्बे समय का औसत मौसम

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प्रश्न 28.
मानसून प्रस्फोट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम मानसून का अचानक पहुंचना।

प्रश्न 29.
अक्तूबर गर्मी से क्या भाव है?
उत्तर;
अधिक आर्द्रता तथा गर्मी के कारण अक्तूबर का घुटन भरा मौसम।

प्रश्न 30.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों द्वारा किन तटीय प्रदेशों में प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा

प्रश्न 31.
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु की क्या मुख्य विशेषता है?
उत्तर:
गर्म आर्द्र गर्मियां तथा ठण्डी शुष्क सर्दियां।

प्रश्न 32.
उन पवनों का नाम बताओ जो ग्रीष्म ऋतु में चलती हैं।
उत्तर:
समुद्र से स्थल की ओर चलने वाली दक्षिण पश्चिम मानसून।

प्रश्न 33.
भारतीय जलवायु में विशाल विविधता क्यों है?
उत्तर:
विशाल आकार के कारण।

प्रश्न 34.
देश के किस भाग में ‘लू’ चलती है?
उत्तर:
उत्तरी मैदान।

प्रश्न 35.
उन दो शाखाओं के नाम बतायें जिनमें दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें विभाजित होती हैं।
उत्तर:

  1. बंगाल की खाड़ी शाखा
  2. अरब सागर शाखा।

प्रश्न 36.
उन पवनों का नाम बताओ जो तमिलनाडु में वर्षा प्रदान करती हैं।
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी मानसून।

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प्रश्न 37.
वृष्टि छाया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पर्वतीय भागों की विमुख ढलान।

प्रश्न 38.
वृष्टि छाया क्षेत्र का एक नाम बतायें।
उत्तर:
दक्कन पठार

प्रश्न 39.
किस पर्वत के कारण दक्कन पठार वृष्टि छाया है?
उत्तर:
पश्चिमी घाट।

प्रश्न 40.
प्रायद्वीपीय भारत में अधिकतर कुएं क्यों सूख जाते हैं तथा नदियां छोटे मार्ग में क्यों सिकुड़ जाती हैं?
उत्तर:
अधिक गर्मी होने के कारण

प्रश्न 41.
पठार तथा पहाड़ियां गर्मियों में ठण्डे क्यों होते है ?
उत्तर:
अधिक ऊंचाई होने के कारण।

प्रश्न 42.
सम में कौन-सी फसल गर्मियों की वर्षा से लाभ प्राप्त करती है?
उत्तर:
चाय

प्रश्न 43.
Mango Showers किन फसलों के लिये लाभदायक है?
उत्तर:
चाय तथा कहवा

प्रश्न 44.
भारत में जून सबसे अधिक गर्म महीना होता है जुलाई नहीं, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि जुलाई महीने में भारी वर्षा होने के कारण तापमान 10°C तक कम हो जाता है।

प्रश्न 45.
कौन – सा तटीय मैदान दक्षिण पश्चिम मानसून से अधिकतर वर्षा प्राप्त करता है?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान।

प्रश्न 46.
पूर्व मानसून से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानसून का समय से पहले आने के कारण कुछ स्थानीय पवनें पूर्व – मानसून वर्षा करती हैं।

प्रश्न 47.
बाड़मेर (राजस्थान) में दिन का उच्चतम तापमान कितना है?
उत्तर:
50°C.

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प्रश्न 48.
कारगिल (कश्मीर) में दिसम्बर मास में रात का तापमान कितना है?
उत्तर:
40°C.

प्रश्न 49.
मासिनराम (मेघालय) में वार्षिक वर्षा कितनी है?
उत्तर:
1080 सें०मी०।

प्रश्न 50.
भारत के किस भाग में शीतकाल में उच्च वायु दाब होता है?
उत्तर:
उत्तर- पश्चिमी भारत।

प्रश्न 51.
भारत में सबसे अधिक वार्षिक वर्षा वाला स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
मासिनराम (मेघालय)।

प्रश्न 52.
जेट प्रवाह की फरवरी मास में स्थिति बताओ।
उत्तर:
25°N अक्षांश।

प्रश्न 53.
भारत में जुलाई मास में किस भाग में न्यून वायु दाब होता है?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिमी भारत|

प्रश्न 54.
उत्तरी भारत से कब मानसून पवनें लौटती हैं?
उत्तर:
सितम्बर मास में।

प्रश्न 55.
भारत के किस भाग में पश्चिमी विक्षोभ वर्षा करते हैं?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिमी भारत।

प्रश्न 56.
भारत के किस भाग में शीतकाल में लौटती मानसून पवनें वर्षा करती हैं?
उत्तर:
कोरोमण्डल तट पर।

प्रश्न 57.
इलाहाबाद नगर के समीप कौन-सी सम-वर्षा रेखा स्थित है?
उत्तर:
100 सेंमी०।

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प्रश्न 58.
राजस्थान में वर्षा की परिवर्तनशीलता का गुणांक क्या है?
उत्तर:
50-80 प्रतिशत।

प्रश्न 59.
लू भारत में कब चलती है?
उत्तर:
ग्रीष्म ऋतु में (मई-जून)।

प्रश्न 60.
भारत के किन राज्यों में ‘आम्र वर्षा’ होती है?
उत्तर:
केरल, कर्नाटक एवं गोआ।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘मानसून’ शब्द से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मानसून शब्द वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ‘मौसम’ से बना है। मानसून शब्द का अर्थ है मौसम के अनुसार पवनों के ढांचे में परिवर्तन होना मानसून व्यवस्था के अनुसार पवनें या मौसमी पवनें (Seasonal winds) चलती हैं जिनकी दिशा मौसम के अनुसार विपरीत हो जाती है। ये पवनें ग्रीष्मकाल के 6 मास समुद्र से स्थल की ओर तथा शीतकाल के 6 मास स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को प्रभावित करने वाले तीन महत्त्वपूर्ण कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को निम्नलिखित तीन कारक प्रभावित करते हैं।

  1. दाब तथा हवा का धरातलीय वितरण जिसमें मानसून पवनें, कम वायु दाब क्षेत्र तथा उच्च वायु दाब क्षेत्रों की स्थिति महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
  2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air circulation) में विभिन्न वायु राशियां तथा जेट प्रवाह महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।
  3. विभिन्न वायु विक्षोभ (Atmospheric disturbances) में उष्ण कटिबन्धीय तथा पश्चिमी चक्रवात द्वारा वर्षा होना महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

प्रश्न 3.
भारत में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
भारत में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान मासिनराम ( Mawsynram) है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 1080 सें० मी० है। यह स्थान मेघालय में खासी पहाड़ियों की दक्षिणी ढाल कर 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मासिनराम में वर्षा की मात्रा 1080 सें०मी० है।

प्रश्न 4.
भारतीय मानसून की तीन प्रमुख विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
भारतीय मानसून व्यवस्था की तीन प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. वायु दिशा में परिवर्तन ( मौसम के अनुसार )।
  2. मानसून पवनों का अनिश्चित तथा संदिग्ध होना।
  3. मानसून पवनों का प्रादेशिक स्वरूप भिन्न-भिन्न होते हुए भी जलवायु की व्यापक एकता।

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प्रश्न 5.
पश्चिमी विक्षोभ क्या है? भारत के किस भाग में वे जाड़े की ऋतु में वर्षा लाते हैं?
उत्तर:
वायु मण्डलों की स्थायी दाब पेटियों में कई प्रकार के विक्षोभ उत्पन्न होते हैं। पश्चिमी विक्षोभ भी एक प्रकार के निम्न दाब केन्द्र (चक्रवात) हैं जो पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर के निकट के प्रदेशों में उत्पन्न होते हैं ये चक्रवात पश्चिमी जेट प्रवाह (Jet Stream) के कारण पूर्व की ओर ईरान, पाकिस्तान तथा भारत की ओर आते हैं। भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में जाड़े की ऋतु में ये चक्रवात क्रियाशील होते हैं। इन चक्रवातों के कारण जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में वर्षा होती है । यह वर्षा रबी की फसल (Winter Crop) विशेषकर गेहूं के लिए बहुत लाभदायक होती है। औसत वर्षा 20 सें० मी० से 50 सें० मी० तक होती है

प्रश्न 6.
लू (Loo) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
लू एक स्थानीय हवा है। यह ग्रीष्मकाल में उत्तरी भारत के कई भागों में दिन के समय चलती है। यह एक प्रबल, गर्म, धूल भरी हवा है जिसके कारण प्रायः तापमान 40°C से अधिक रहता है। लू की गर्मी असहनीय होती है जिससे प्रायः लोग इस से बीमार पड़ जाते हैं।

प्रश्न 7.
‘मानसून प्रस्फोट’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर की मानसून पवनें दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में चलती हैं। यहां ये पवनें जून के प्रथम सप्ताह में अचानक आरम्भ हो जाती हैं। मानसून के इस अकस्मात आरम्भ को ‘मानसून प्रस्फोट’ (Monsoon Burst) कहा जाता है क्योंकि मानसून आरम्भ होने पर बड़े ज़ोर की वर्षा होती है । जैसे किसी ने पानी से भरा गुब्बारा फोड़ दिया हो।

प्रश्न 8.
मानसूनी वर्षा की तीन प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
मानसूनी वर्षा की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  1. मौसमी वर्षा
  2. अनिश्चित वर्षा
  3. वर्षा का असमान वितरण
  4. वर्षा का लगातार न होना
  5. तट से दूर क्षेत्रों में कम वर्षा होना।

प्रश्न 9.
भारत में कितनी ऋतुएं होती हैं? क्या उनकी अवधि में दक्षिण से उत्तर कोई अन्तर मिलता है? अगर हां तो क्यों?
उत्तर:
भारत के मौसम को ऋतुवत् ढांचे के अनुसार चार ऋतुओं में बांटा जाता है।

  1. शीत ऋतु – दिसम्बर से फरवरी तक
  2. ग्रीष्म ऋतु – मार्च से मध्य जून तक
  3. वर्षा ऋतु – मध्य जून से मध्य सितम्बर तक
  4. शरद् ऋतु – मध्य सितम्बर से दिसम्बर तक।

इन ऋतुओं की अवधि में प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए विभिन्न प्रदेशों की ऋतुओं की अवधि में अन्तर पाया जाता है। दक्षिणी भारत में कोई स्पष्ट शीत ऋतु ही नहीं होती। तटीय भागों में कोई ऋतु परिवर्तन नहीं होता दक्षिण भारत में सदैव ग्रीष्म ऋतु रहती है। इसका मुख्य कारण यह है कि दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। यहां सारा साल ग्रीष्म ऋतु रहती है, परन्तु उत्तरी भारत शीत-उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। यहां स्पष्ट रूप से दो ऋतुएं हैं – ग्रीष्म तथा शीत ऋतु।

प्रश्न 10.
जेट प्रवाह क्या है? समझाइए।
उत्तर:
मानसून पवनों की उत्पत्ति का एक कारण ‘जेट प्रवाह’ भी माना है। ऊपरी वायुमण्डल में लगभग तीन किलोमीटर की ऊंचाई तक तीव्रगामी धाराएं चलती हैं जिन्हें जेट प्रवाह (Jet Stream) कहा जाता है। ये जेट प्रवाह 20° S, 40°N अक्षांशों के मध्य नियमित रूप से चलता है। हिमालय पर्वत के अवरोध के कारण ये प्रवाह दो भागों में बंट जाते हैं – उत्तरी जेट प्रवाह तथा दक्षिणी जेट प्रवाह दक्षिणी प्रवाह भारत की जलवायु को प्रभावित करता है।

प्रश्न 11.
पश्चिमी जेट प्रवाह जाड़े के दिनों में किस प्रकार पश्चिमी विक्षोभ को भारतीय उपमहाद्वीप में लाने में मदद करते हैं?
उत्तर:
जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा भारत में हिमालय पर्वत के दक्षिणी तथा पूर्वी भागों में बहती है। जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा की स्थिति 25° उत्तरी अक्षांश के ऊपर होती है। जेट प्रवाह की यह शाखा भारत में शीतकाल में पश्चिमी विक्षोभ लाने में सहायता करती है। पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर के निकट निम्न दाब तन्त्र में ये विक्षोभ उत्पन्न होते हैं। ये जेट प्रवाह के साथ-साथ ईरान तथा पाकिस्तान को पार करते हुए भारत आ जाते हैं। जेट प्रवाह के प्रभाव से उत्तर-पश्चिमी भारत में शीतकाल में औसत रूप से चार-पांच चक्रवात पहुंचते हैं जो इस भाग में वर्षा करते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 12.
अन्तर- उष्ण कटिबंधीय अभिसरण कटिबन्ध (I. I. C. Z.) क्या है?
उत्तर:
अन्तर- उष्ण कटिबंधीय अभिसरण कटिबंध ( I. T. C. Z. ):
भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध है जो धरातल के निकट पाया जाता है। इसकी स्थिति उष्ण कटिबन्ध के बीच सूर्य की स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। ग्रीष्मकाल में इसकी स्थिति उत्तर की ओर तथा शीतकाल में दक्षिण की ओर सरक जाती है। यह भूमध्य रेखीय निम्न दाब द्रोणी दोनों दिशाओं में हवाओं के प्रवाह को प्रोत्साहित करती है।

प्रश्न 13.
कौन-कौन से कारण भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान वितरण को नियन्त्रित करते हैं?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान वितरण में काफ़ी अन्तर पाए जाते हैं। भारत मुख्य रूप से मानसून खण्ड में स्थित होने के कारण गर्म देश है, परन्तु कई कारकों के प्रभाव से विभिन्न प्रदेशों में तापमान वितरण में विविधता पाई जाती है। ये कारक निम्नलिखित हैं

  1. अक्षांश या भूमध्य रेखा से दूरी
  2. धरातल का प्रभाव
  3. पर्वतों की स्थिति
  4. सागर से दूरी
  5. प्रचलित पवनें
  6. चक्रवातों का प्रभाव।

प्रश्न 14.
भारत के अत्यधिक ठण्डे भाग कौन-कौन से हैं और क्यों?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पश्चिमी पर्वतीय प्रदेश में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा हिमालय पर्वतीय प्रदेश में अधिक ठण्डे तापक्रम पाए जाते हैं। कश्मीर में कारगिल नामक स्थान पर तापक्रम न्यूनतम – 40°C तक पहुंच जाता है। इन प्रदेशों में अत्यधिक ठण्डे तापक्रम होने का मुख्य कारण यह है कि ये प्रदेश सागर तल से अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं। इन पर्वतीय प्रदेशों में शीतकाल में हिमपात होता है तथा तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है।

प्रश्न 15.
भारत के अत्यधिक गर्म भाग कौन-कौन से हैं और उसके कारण क्या हैं?
उत्तर:
भारत में सबसे अधिक तापमान राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाए जाते हैं। यहां ग्रीष्म ऋतु में बाड़मेर क्षेत्र में दिन का तापमान 48°C से 50°C तक पहुंच जाता है। इस प्रदेश में उच्च तापमान मिलने का मुख्य कारण समुद्र तल से दूरी है । यह प्रदेश देश के भीतरी भागों में स्थित है। यहां सागर का समकारी प्रभाव नहीं पड़ता । ग्रीष्म काल लू के कारण भी तापमान बढ़ जाता है। रेतीली मिट्टी तथा वायु में नमी की कमी के कारण भी तापमान ऊंचे रहते हैं।

प्रश्न 16.
उन चार महीनों के नाम बताइए जिन में भारत में अधिकतम वर्षा होती है।
उत्तर:
भारत में मौसमी वर्षा के कारण अधिकतर वर्षा ग्रीष्म काल में चार महीनों में होती है। इसे वर्षा ऋतु कहा जाता है। अधिकतम वर्षा जून-जुलाई, अगस्त तथा सितम्बर के महीनों में ग्रीष्मकाल की मानसून पवनों द्वारा होती है।

प्रश्न 17.
कोपेन की जलवायु वर्गीकरण की पद्धति किन दो तत्त्वों पर आधारित है?
उत्तर”:
कोपेन ने भारत के जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण किया है। इस वर्गीकरण का आधार दो तत्त्वों पर आधारित है। इसमें तापमान तथा वर्षा के औसत मासिक मान का विश्लेषण किया गया है। प्राकृतिक वनस्पति द्वारा किसी स्थान के तापमान और वर्षा के प्रभाव को आंका जाता है।

प्रश्न 18.
भारत में अधिकतम एवं निम्नतम वर्षा प्राप्त करने वाले भाग कौन-कौन-से हैं? कारण बताइए।
उत्तर:
अधिकतम वर्षा वाले भाग- भारत में निम्नलिखित प्रदेशों में 200 से० मी० से अधिक वर्षा होती है

  1. उत्तर-पूर्वी हिमालयी प्रदेश ( गारो – खासी पहाड़ियां )।
  2. पश्चिमी तटीय मैदान तथा पश्चिमी घाट।

कारण:
ये प्रदेश पर्वतीय प्रदेश हैं तथा मानसून पवनों के सम्मुख स्थित हैं। उत्तर- र-पूर्वी हिमालय प्रदेश में खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट की सम्मुख ढाल पर अरब सागर की मानसून शाखा अत्यधिक वर्षा करती है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु  2
निम्नतम वर्षा वाले भाग: भारत के निम्नलिखित भागों में 20 सें० मी० से कम वर्षा होती है

  1. पश्चिमी राजस्थान में थार मरुस्थल ( बाड़मेर क्षेत्र),
  2. कश्मीर में लद्दाख क्षेत्र,
  3. प्रायद्वीप में दक्षिण पठार

कारण: राजस्थान में अरावली पर्वत अरब सागर की मानसून पवनों के समानान्तर स्थित है। यह पर्वत मानसून पवनों को रोक नहीं पाता। इसलिए पश्चिमी राजस्थान शुष्क क्षेत्र रह जाता है। प्रायद्वीपीय पठार पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया में स्थित होने के कारण शुष्क रहता है। इसी प्रकार लद्दाख हिमालय की वृष्टि छाया में स्थित होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 19.
भारतीय मानसून पर एल-नीनो का प्रभाव बताओ।
उत्तर:
एल-नीनो और भारतीय मानसून:
एल-नीनो एक जटिल मौसम तन्त्र है। यह हर पाँच या दस साल बाद प्रकट होता रहता है। इसके कारण संसार के विभिन्न भागों में सूखा, बाढ़ और मौसम की चरम अवस्थाएं आती हैं। महासागरीय और वायुमण्डलीय तन्त्र इसमें शामिल होते हैं। पूर्वी प्रशान्त महासागर में यह पेरू के तट के निकट कोष्ण समुद्री धारा के रूप में प्रकट होता है। इससे भारत सहित अनेक स्थानों का मौसम प्रभावित होता है। भारत में मानसून की लम्बी अवधि के पूर्वानुमान के लिए एल-नीनो का उपयोग होता है। सन् 1990-91 में एल-नीनो का प्रचंड रूप देखने को मिला था । इसके कारण देश के अधिकतर भागों में मानसून के आगमन में 5 से 12 दिनों तक की देरी हो गई थी।

प्रश्न 20.
कोपेन द्वारा जलवायु के प्रकारों के लिए अक्षरों का संकेत किस प्रकार प्रयोग किया गया?
उत्तर:
कोपेन ने जलवायु के प्रकारों को निर्धारित करने के लिए अक्षरों का संकेत के रूप में प्रयोग किया जैसा कि ऊपर दिया गया है। प्रत्येक प्रकार को उप-प्रकारों में विभाजित किया गया है। इस विभाजन में तापमान और वर्षा के वितरण में मौसमी भिन्नताओं को आधार बनाया गया है। उसने अंग्रेज़ी के बड़े अक्षर S को अर्द्ध मरुस्थल के लिए और W को मरुस्थल लिए प्रयोग किया। इसी तरह उप-विभागों को परिभाषित करने के लिए अंग्रेज़ी के निम्नलिखित छोटे अक्षरों का उपयोग किया है जैसे – f (पर्याप्त वर्षण), m ( शुष्क मानसून होते हुए भी वर्षा वन) w (शुष्क शीत ऋतु ), h (शुष्क और गरम ), c (चार महीनों से कम अवधि में औसत तापमान 10° से अधिक) और g (गंगा का मैदान)।

प्रश्न 21.
भारत में गरमी की लहर का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत के कुछ भागों में मार्च से लेकर जुलाई के महीनों की अवधि में असाधारण रूप से गरम मौसम के दौर आते हैं। ये दौर एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश की ओर खिसकते रहते हैं। इन्हें गरमी की लहर कहते हैं। गरमी की लहर से प्रभावित इन प्रदेशों के तापमान सामान्य से 6° से अधिक रहते हैं । सामान्य से 8° से या इससे अधिक तापमान के बढ़ जाने पर चलने वाली गरमी की लहर की प्रचंड (severe) माना जाता है। इसे उत्तर भारत में ‘लू’ कहते हैं।

प्रचंड गरमी की लहर की अवधि जब बढ़ जाती है तब किसानों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा हो जाती हैं। बड़ी संख्या में मनुष्य और पशु मौत के मुंह में चले जाते हैं। दक्षिण के केरल और तमिलनाडु राज्यों तथा पांडिचेरी, लक्षद्वीप तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को छोड़कर देश के लगभग सभी भागों में गरमी की लहर आती है। उत्तर-पश्चिम भारत और उत्तर-प्रदेश में सबसे अधिक गरमी की लहरें आती हैं। साल में कम-से-कम गरमी की एक लहर तो आती ही है।

प्रश्न 22.
भारत में शीत लहर का वर्णन करो।
उत्तर:
उत्तर पश्चिम भारत में नवम्बर से लेकर अप्रैल तक ठंडी और शुष्क हवाएं चलती हैं। जब न्यूनतम तापमान सामान्य से 6° से नीचे चला जाता है, तब इसे शीत लहर कहते हैं। जम्मू और कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ठिठुराने वाली शीत लहर चलती है। जम्मू और कश्मीर में औसतन साल में कम-से-कम चार शीत लहर तो आती हैं। इसके विपरीत गुजरात और पश्चिमी मध्य प्रदेश में साल में एक शीत लहर आती है। ठिठुराने वाली शीत लहरों की आवृत्ति पूर्व और दक्षिण की ओर घट जाती है। दक्षिणी राज्यों में सामान्य शीत लहर नहीं चलती।

प्रश्न 23.
भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेशों में वार्षिक वर्षा के विचरण गुणांक न्यूनतम तथा कच्छ और गुजरात में अधिक क्यों हैं?
उत्तर:
भारतीय वर्षा की मुख्य विशेषता इसमें वर्ष-दर- वर्ष होने वाली परिवर्तिता है। एक ही स्थान पर किसी वर्ष वर्षा अधिक होती है तो किसी वर्ष बहुत कम इस प्रकार वास्तविक वर्षा की मात्रा औसत वार्षिक वर्षा से कम या अधिक हो जाती है। वार्षिक वर्षा की इस परिवर्तनशीलता को वर्षा की परिवर्तिता (Variability of Rainfall) कहते हैं। यह परिवर्तिता निम्नलिखित फार्मूले से निकाली जाती है
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु  9

इस मूल्य को विचरण गुणांक ( Co-efficient of Variation ) कहा जाता है। भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेश में यह विचरण गुणांक 15% से कम है। यहां सागर से समीपता के कारण मानसून पवनों का प्रभाव प्रत्येक वर्ष एक समान रहता है तथा वर्षा की मात्रा में विशेष परिवर्तन नहीं होता। कच्छ तथा गुजरात में विचरण गुणांक 50% से 80% तक पाया जाता है। यहां मानसून पवनें बहुत ही अनिश्चित होती हैं। इन पवनों को रोकने के लिए ऊंचे पर्वतों का अभाव है। इसलिए वर्षा की मात्रा में अधिक उतार-चढ़ाव होता रहता है।

प्रश्न 24.
राजस्थान का पश्चिमी भाग क्यों शुष्क है?
अथवा
‘दक्षिण-पश्चिमी मानसून की ऋतु में राजस्थान का पश्चिमी भाग लगभग शुष्क रहता है’ इस कथन के पक्ष में तीन महत्त्वपूर्ण कारण दीजिए।
उत्तर:
राजस्थान का पश्चिमी भाग एक मरुस्थल है। यहां वार्षिक वर्षा 20 सेंटीमीटर से भी कम है। राजस्थान में अरावली पर्वत दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन पवनों को रोक नहीं पाता। इसलिए यहां वर्षा नहीं होती। खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें इस प्रदेश तक पहुंचते-पहुंचते शुष्क हो जाती हैं। ये पवनें नमी समाप्त होने के कारण वर्षा नहीं करतीं। यह प्रदेश हिमालय पर्वत से अधिक दूर है। इसलिए यहां वर्षा का अभाव है।

प्रश्न 25.
मासिनराम संसार में सर्वाधिक वर्षा क्यों प्राप्त करता है?
उत्तर:
मासिनराम खासी पहाड़ियों (Meghalaya) की दक्षिणी ढलान पर 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 1187 सेंटीमीटर है तथा यह स्थान संसार में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान है। यह स्थान तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां धरातल की आकृति कीपनुमा (Funnel Shape) बन जाती है। खाड़ी बंगाल से आने वाली मानसून पवनें इन पहाड़ियों में फंस कर भारी वर्षा करती हैं। ये पवनें इन पहाड़ियों से बाहर निकलने का प्रयत्न करती हैं परन्तु बाहर नहीं निकल पातीं। इस प्रकार ये पवनें फिर ऊपर उठती हैं तथा फिर वर्षा करती हैं। सन् 1861 में यहां 2262 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा रिकार्ड की गई।

प्रश्न 26.
तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में अधिकांश वर्षा जाड़े में क्यों होती है?
उत्तर:
तमिलनाडु राज्य भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है। यहां शीतकाल की उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें ग्रीष्मकाल की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों की अपेक्षा अधिक वर्षा करती हैं। ग्रीष्मकाल में यह प्रदेश पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया (Rain Shadow) में स्थित होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करती हैं। शीतकाल में लौटती हुई मानसून पवनें खाड़ी बंगाल को पार करके नमी ग्रहण कर लेती हैं। ये पवनें पूर्वी घाट की पहाड़ियों से टकरा कर वर्षा करती हैं। इस प्रकार शीतकाल में यह प्रदेश आर्द्र पवनों के सम्मुख होने के कारण अधिक वर्षा प्राप्त करता है, परन्तु ग्रीष्मकाल में वृष्टि छाया में होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।

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प्रश्न 27.
भारत में उत्तर-पश्चिमी मैदान में शीत ऋतु में वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
भारत में उत्तर- पश्चिमी भाग में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शीतकाल में चक्रवातीय वर्षा होती है। ये चक्रवात पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर में उत्पन्न होते हैं तथा पश्चिमी जेट प्रवाह के साथ-साथ भारत में पहुंचते हैं। औसतन शीत ऋतु में 4 से 5 चक्रवात दिसम्बर से फरवरी के मध्य इस प्रदेश में वर्षा करते हैं। पर्वतीय भागों में हिमपात होता है। पूर्व की ओर इस वर्षा की मात्रा कम होती है। इन प्रदेशों में वर्षा 5 सेंटीमीटर से 25 सेंटीमीटर तक होती है।

प्रश्न 28.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की एक परिघटना इसकी क्रम भंग ( वर्षा की अवधि के मध्य शुष्क मौसम के क्षण ) की प्रवृत्ति क्यों है?
उत्तर:
भारत में अधिकतर वर्षा ग्रीष्मकाल की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा होती है। इन पवनों द्वारा वर्षा निरन्तर न होकर कुछ दिनों या सप्ताहों के अन्तर पर होती है। इस काल में एक लम्बा शुष्क मौसम (Dry Spell) आ जाता है। इससे इन पवनों द्वारा वर्षा का क्रम भंग हो जाता है। इसका मुख्य कारण उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Depressions) हैं जो खाड़ी बंगाल या अरब सागर में उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात मानसून वर्षा की मात्रा को अधिक करते हैं। परन्तु इन चक्रवातों के अनियमित प्रवाह के कारण कई बार एक लम्बा शुष्क समय आ जाता है जिससे फसलों को क्षति पहुंचती है।

प्रश्न 29.
” जैसलमेर की वार्षिक वर्षा शायद ही कभी 12 सेंटीमीटर से अधिक होती है।” कारण बताओ।
उत्तर;
जैसलमेर राजस्थान में अरावली पर्वत के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह प्रदेश अरब सागर की मानसून पवनों के प्रभाव में है। ये पवनें अरावली पर्वत के समानान्तर चलती हुई पश्चिम से होकर आगे बढ़ जाती हैं जिससे यहां वर्षा नहीं होती। खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें यहां तक पहुंचते-पहुंचते शुष्क हो जाती हैं। यह प्रदेश पर्वतीय भाग से भी बहुत दूर है। इसलिए यह प्रदेश वर्षा ऋतु में शुष्क रहता है जबकि सारे भारत में वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा 12 सेंटीमीटर से भी कम है। इसके विपरीत गारो, खासी पहाड़ियों में भारी वर्षा होती है। इसलिए यह कहा जाता है कि गारो पहाड़ियों में एक दिन की वर्षा जैसलमेर की दस साल की वर्षा से अधिक होती है।

प्रश्न 30.
भू-मण्डलीय तापन का प्रभाव बताओ।
उत्तर:
भू-मण्डलीय तापन का प्रभाव (Global warming):
प्राचीन काल में जलवायु में परिवर्तन हुआ है इसमें आज भी परिवर्तन हो रहे हैं। भारत में जलवायु परिवर्तन के अनेक ऐतिहासिक और भू-वैज्ञानिक प्रमाण मिलते हैं। इस परिवर्तन के लिए अनेक प्राकृतिक एवं मानवकृत कारक उत्तरदायी हैं। ऐसा कहा जाता है कि भू-मण्डलीय तापन के प्रभाव से ध्रुवीय व हिम की चादरें और पर्वतीय हिमानियां पिघल जाएंगी। इसके परिणामस्वरूप समुद्रों में जल की मात्रा बढ़ जाएगी। आजकल संसार के तापमान में काफ़ी वृद्धि हो रही है। मानवीय क्रियाओं द्वारा उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि चिन्ता का प्रमुख कारण है।

जीवाश्म ईंधनों के जलने से वायुमण्डल में इस गैस की मात्रा क्रमशः बढ़ रही है। कुछ अन्य गैसें जैसे मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, ओज़ोन और नाइट्रस ऑक्साइड, वायुमण्डल में अल्प मात्रा में विद्यमान हैं। इन्हें तथा कार्बन डाइऑक्साइड को हरितगृह गैसें कहते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में अन्य चार गैसें दीर्घ तरंगी विकिरण का ज्यादा अच्छी तरह से अवशोषण करती हैं। इसीलिए हरित गृह प्रभाव को बढ़ाने में उनका अधिक योगदान है। इन्हीं के प्रभाव से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।

विगत 150 वर्षों में पृथ्वी की सतह का औसत वार्षिक तापमान बढ़ा है। ऐसा अनुमान है कि सन् 2100 में भू-मण्डलीय तापमान में लगभग 2° सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी। तापमान की इस वृद्धि से कई अन्य परिवर्तन भी होंगे। इनमें से एक है गरमी के कारण हिमानियों और समुद्री बर्फ के पिघलने से समुद्र तल का ऊंचा होना प्रचलित पूर्वानुमान के अनुसार औसत समुद्र तल 21वीं शताब्दी के अन्त तक 48 से०मी० ऊंचा हो जाएगा। इसके कारण प्राकृतिक बाढ़ों की संख्या बढ़ जाएगी। जलवायु परिवर्तन के कीटजन्य मलेरिया जैसी बीमारियां बढ़ जाएंगी।

साथ ही वर्तमान जलवायु सीमाएं भी बदल जाएंगी, जिसके कारण कुछ भाग अधिक जलसिक्त (Wet) और कुछ अधिक शुष्क हो जाएंगे। कृषीय प्रतिरूपों के स्थान बदल जाएंगे। जनसंख्या और पारितन्त्र में भी परिवर्तन होंगे। यदि आज का समुद्र तल 50 से०मी० ऊंचा हो जाए, तो भारत के तटवर्ती जल निम्न हो जाएंगे।

प्रश्न 31.
भारतीय मानसून की प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानसून की प्रवृत्ति के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि इसके आगमन के समय और निवर्तन (समाप्त) होने के समय में प्रत्येक वर्ष परिवर्तन होता रहता है, कभी अतिवृष्टि और कभी अनावृष्टि की समस्या उत्पन्न होती है जो बाढ़ और सूखे का भी कारण है। मानसूनी वर्षा का रुक-रुक कर होना भी एक समस्या है। अर्थात् मानसूनी वर्षा लगातार नहीं होती। इसमें एक अंतराल पाया जाता है, कभी जून में औसत वर्षा अच्छी होती है, लेकिन जुलाई-अगस्त सूखा पड़ जाता है। स्पष्टतः मानसून की प्रकृति में अस्थिरता पाई जाती है और मानसूनी वर्षा परिवर्तनशील है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए और देश की कृषि अर्थव्यवस्था में इसका महत्त्व बताइए
उत्तर:
भारतीय वर्षा की विशेषताएं (Characteristics of Indian Rainfall):
1. मानसूनी वर्षा (Dependence on Monsoons ): भारत की वर्षा का लगभग 85% भाग ग्रीष्म काल की मानसून पवनों द्वारा होता है। यह वर्षा 15 जून से 15 सितम्बर तक प्राप्त होती है जिसे वर्षा – काल कहते हैं।

2. अनिश्चितता (Uncertainty ): भारत में मानसून वर्षा समय के अनुसार एकदम अनिश्चित है। कभी मानसून पवनें जल्दी और कभी देर से आरम्भ होती हैं जिससे नदियों में बाढ़ें आ जाती हैं या फसलें सूखे से नष्ट हो जाती हैं। कई बार मानसून पवनें निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती हैं जिससे खरीफ की फसल को बड़ी हानि होती है।

3. असमान वितरण (Unequal Distribution ): भारत में वर्षा का प्रादेशिक वितरण असमान है। कई भागों में अत्यधिक वर्षा होती है जबकि कई प्रदेशों में कम वर्षा के कारण अकाल पड़ जाते हैं। देश के 10% भाग में 200 से० मी० से अधिक वर्षा होती है जबकि 25% भाग में 75 से० मी० से भी कम।

4. मूसलाधार वर्षा (Heavy Rains): मानसून वर्षा प्रायः मूसलाधार होती है। इसलिए कहा जाता है, “It pours, it never rains in India. ” मूसलाधार वर्षा से भूमि कटाव तथा नदियों में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

5. पर्वतीय वर्षा (Relief Rainfall): भारत में मानसून पवनें ऊंचे पर्वतों से टकरा कर भारी वर्षा करती हैं, परन्तु पर्वतों के विमुख ढाल वृष्टि छाया (Rain Shadow) में रहने के कारण शुष्क रह जाते हैं।

6. अन्तरालता (No Continuity ): कभी – कभी वर्षा लगातार न होकर कुछ दिनों या सप्ताहों के अन्तर पर होती है। इस शुष्क समय (Dry Spells) के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं।

7. मौसमी वर्षा (Seasonal Rainfall): भारत की 85% वर्षा केवल चार महीनों के वर्षा काल में होती है । वर्ष का शेष भाग शुष्क रहता है। जिससे कृषि के लिए जल सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। साल में वर्षा के दिन बहुत कम होते हैं।

8. संदिग्ध वर्षा (Variable Rainfall ): भारत के कई क्षेत्रों की वर्षा संदिग्ध है। यह आवश्यक नहीं कि वर्षा हो या न हो। ऐसे प्रदेशों में अकाल पड़ जाते हैं। देश के भीतरी भागों में वर्षा विश्वासजनक नहीं होती।

भारतीय कृषि – व्यवस्था में मानसून वर्षा का महत्त्व (Significance of Monsoons in Agricultural System):
भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर करती है। कृषि की सफलता मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। मानसून पवनें जब समय पर उचित मात्रा में वर्षा करती हैं तो कृषि उत्पादन बढ़ जाता है। मानसून की असफलता के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। देश में सूखा पड़ जाता है तथा अनाज की कमी अनुभव होती है । मानसून पवनों के समय से पूर्व आरम्भ होने से या देर से आरम्भ होने से भी कृषि को हानि पहुंचती है। कई बार नदियों में बढ़ें आ जाती हैं जिससे फसलों की बुआई ठीक समय पर नहीं हो पाती।

वर्षा के ठीक वितरण के कारण भी वर्ष में एक से अधिक फसलें उगाई जा सकती हैं। इस प्रकार कृषि तथा मानसून पवनों में गहरा सम्बन्ध है । जल सिंचाई के पर्याप्त साधन न होने के कारण भारतीय कृषि को मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर करना पड़ता है। कृषि पर ही भारतीय अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर कई उद्योग निर्भर करते हैं। कृषि ही किसानों की आय का एकमात्र साधन है। मानसून के असफल होने की दशा में सारे देश की आर्थिक व्यवस्था नष्ट- भ्रष्ट हो जाती है। इसलिए देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर तथा कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। इसलिए कहा जाता है कि भारतीय बजट मानसून पवनों पर जुआ है। (Indian budget is a gamble on monsoon.)

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 2.
भारत की जलवायु किन-किन तत्त्वों पर निर्भर है?
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। “यहां पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है।” (‘“There is great diversity of climate in India. ” ) एक कथन के अनुसार, “विश्व की लगभग समस्त जलवायु भारत में मिलती है। ” कहीं समुद्र के निकट सम जलवायु है तो कहीं भीतरी भागों में कठोर जलवायु है। कहीं अधिक वर्षा है तो कहीं बहुत कम। परन्तु भारत, मुख्य रूप से मानसून खण्ड (Monsoon Region) में स्थित होने के कारण, एक गर्म देश है। निम्नलिखित तत्त्व भारत की जलवायु पर प्रभाव डालते हैं

1. मानसून पवनें (Monsoons ):
भारत की जलवायु मूलतः मानसूनी जलवायु है। यह जलवायु विभिन्न मौसमों में प्रचलित पवनों द्वारा निर्धारित होती है। शीत काल की मानसून पवनें स्थल की ओर से आती हैं तथा शुष्क और ठण्डी होती हैं, परन्तु गीष्मकाल की मानसून पवनें समुद्र की ओर से आने के कारण भारी वर्षा करती हैं। इन्हीं पवनों के आधार पर भारत में विभिन्न मौसम बनते हैं।

2. देश का विस्तार (Extent ):
देश के विस्तार का विशेष प्रभाव तापक्रम पर पड़ता है। कर्क रेखा भारत के मध्य से होकर जाती है। देश का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में और दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। इसलिए उत्तरी भाग में शीतकाल तथा ग्रीष्म काल दोनों ऋतुएं होती हैं, परन्तु दक्षिणी भाग सारा वर्ष गर्म रहता है। दक्षिणी भाग में कोई शीत ऋतु नहीं होती।

3. भूमध्य रेखा से समीपता (Nearness to Equator ):
भारत का दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा के बहुत निकट है, इसलिए सारा वर्ष ऊंचे तापक्रम मिलते हैं। कर्क रेखा (Tropic of Cancer) भारत के मध्य में से गुज़रती है। इसलिए इसे एक गर्म देश माना जाता है।

4. हिमालय पर्वत की स्थिति (Location and Direction of the Himalayas ):
हिमालय पर्वत की स्थिति का भारत की जलवायु पर भारी प्रभाव पड़ता है। (“The Himalayas act as a climatic barrier. ” ) यह पर्वत मध्य एशिया से आने वाली बर्फीली पवनों को रोकता है और उत्तरी भारत को शीत लहर से बचाता है। हिमालय पर्वत बहुत ऊंचा है तथा खाड़ी बंगाल से उठने वाली मानसून पवनें इसे पार नहीं कर पातीं जिससे उत्तरी भारत में घनघोर वर्षा करती हैं। यदि हिमालय पर्वत न होता तो उत्तरी भारत एक मरुस्थल होता।

5. हिन्द महासागर से सम्बन्ध (Situation of India with respect to Indian Ocean ): भारत की स्थिति हिन्द महासागर के उत्तर में है। ग्रीष्म काल में हिन्द महासागर पर अधिक वायु दबाव होने के कारण ही मानसून पवनें चलती हैं। खाड़ी बंगाल, तमिलनाडु राज्य में शीतकाल की वर्षा का कारण बनता है। इसी खाड़ी से ग्रीष्म काल में चक्रवात (Depressions) चलते हैं जो भारी वर्षा करते हैं।

6. चक्रवात (Cyclones): भारत की जलवायु पर चक्रवात का विशेष प्रभाव पड़ता है। शीतकाल में पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में रूम सागर से आने वाले चक्रवातों द्वारा वर्षा होती है। अप्रैल तथा अक्तूबर महीने में खाड़ी बंगाल से चलने वाले चक्रवात भी काफ़ी वर्षा करते हैं।

7. धरातल का प्रभाव (Effects of Relief):
भारत की जलवायु पर धरातल का गहरा प्रभाव पड़ता है। पश्चिमी घाट तथा असम में अधिक वर्षा होती है क्योंकि ये भाग पर्वतों के सम्मुख ढाल पर है, परन्तु दक्षिणी पठार विमुख ढाल पर होने के कारण वृष्टि छाया (Rain Shadow) में रह जाता है जिससे शुष्क रह जाता है। अरावली पर्वत मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन्हें रोक नहीं पाता जिससे राजस्थान में बहुत कम वर्षा होती है। इस प्रकार भारत के धरातल का यहां के तापक्रम, वायु तथा वर्षा पर स्पष्ट नियन्त्रण है । पर्वतीय प्रदेशों में तापमान कम है जबकि मैदानी भाग में अधिक तापक्रम पाए जाते हैं। आगरा तथा दार्जिलिंग एक ही अक्षांश पर स्थित हैं, परन्तु आगरा का जनवरी का तापमान 16°C है जबकि दार्जिलिंग का केवल 4°C है।

8. समुद्र से दूरी (Distance from Sea ):
भारत के तटीय भागों में सम जलवायु मिलता है। जैसे – मुम्बई में जनवरी का तापमान 24°C है तथा जुलाई का तापमान 27°C है। इलाहाबाद समुद्र से बहुत दूर है, वहां जनवरी का तापमान 16°C तथा जुलाई का तापमान 30° C है। इसलिए दक्षिणी भारत तीन ओर समुद्र से घिरा होने के कारण ग्रीष्म में कम गर्मी तथा शीत ऋतु में कम सर्दी पड़ती है।

प्रश्न 3.
“व्यापक जलवायविक एकता के होते हुए भी भारत की जलवायु में प्रादेशिक स्वरूप पाए जाते हैं।” इस कथन की पुष्टि उपयुक्त उदाहरण देते हुए कीजिए।
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहां पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है। परन्तु मुख्य रूप से भारत मानसून पवनों के प्रभावाधीन है। यह मानसून व्यवस्था दक्षिण – पूर्वी एशिया के मानसूनी देशों से भारत को जोड़ती है। इस प्रकार मानसून पवनों के प्रभाव के कारण देश में जलवायविक एकता पाई जाती है। फिर भी देश के विभिन्न भागों में तापमान, वर्षा आदि जलवायु तत्त्वों में काफ़ी अन्तर पाए जाते हैं। विभिन्न प्रदेशों की जलवायु के अलग-अलग प्रादेशिक स्वरूप मिलते हैं। ये प्रादेशिक अन्तर कई कारकों के कारण उत्पन्न होते हैं। जैसे- स्थिति, समुद्र से दूरी, भूमध्य रेखा से दूरी, उच्चावच आदि। ये प्रादेशिक अन्तर एक प्रकार से मानसूनी जलवायु के उपभेद हैं। आधारभूत रूप से सारे देश में जलवायु को व्यापक एकता पाई जाती है।

प्रादेशिक अन्तरं मुख्य रूप से तापमान, वायु तथा वर्षा के ढांचे में पाए जाते हैं।
1. राजस्थान के मरुस्थल में, बाड़मेर तथा चुरू जिले में ग्रीष्म काल में 50°C तक तापमान मापे जाते हैं। इसके पर्वतीय प्रदेशों में तापमान 20°C सैंटीग्रेड के निकट रहता है।

2. दक्षिणी भारत में सारा साल ऊंचे तापमान मिलते हैं तथा कोई शीत ऋतु नहीं होती। उत्तर-पश्चिमी भाग में शीतकाल में तापमान हिमांक से नीचे चले जाते हैं। तटीय भागों में सारा साल समान रूप से दरमियाने तापमान पाए जाते हैं।

3. दिसम्बर मास में द्रास, लेह एवं कारगिल में तापमान – 45°C तक पहुंच जाता है जबकि तिरुवनन्तपुरम तथा चेन्नई में तापमान + 28°C रहता है।

4. इसी प्रकार औसत वार्षिक वर्षा में भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। एक ओर मासिनराम में (1080 सेंटीमीटर) संसार में सबसे अधिक वर्षा होती है तो दूसरी ओर राजस्थान शुष्क रहता है। जैसलमेर में वार्षिक वर्षा शायद ही 12 सेंटीमीटर से अधिक होती है। गारो पहाड़ियों में स्थित तुरा नामक स्थान में एक ही दिन में उतनी वर्षा हो सकती है जितनी जैसलमेर में दस वर्षों में होती है।

5. एक ओर असम, बंगाल तथा पूर्वी तट पर चक्रवातों के कारण भारी वर्षा होती है तो दूसरी ओर दक्षिण तथा पश्चिमी तट शुष्क रहता है।

6. कई भागों में मानसून वर्षा जून के पहले सप्ताह में आरम्भ हो जाती है तो कई भागों में जुलाई में वर्षा की प्रतीक्षा हो रही होती है। अधिकांश भागों में ग्रीष्म काल में वर्षा होती है तो पश्चिमी भागों में शीतकाल में वर्षा होती है। ग्रीष्म काल में उत्तरी भारत में लू चल रही होती है परन्तु दक्षिणी भारत के तटीय भागों में सुहावनी जलवायु होती है।

7. तटीय भागों में मौसम की विषमता महसूस नहीं होती परन्तु अन्तःस्थ स्थानों में मौसम विषम रहता है। शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी भारत में शीत लहर चल रही होती है तो दक्षिणी भारत में काफ़ी ऊंचे तापमान पाए जाते हैं। इस प्रकार विभिन्न प्रदेशों में ऋतु की लहर लोगों की जीवन पद्धति में एक परिवर्तन तथा विभिन्नता उत्पन्न कर देती है। इस प्रकार इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि भारतीय जलवायु में एक व्यापक एकता होते हुए भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 4.
भारतीय मौसम रचना तन्त्र का वर्णन जेट प्रवाह के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर:
भारतीय मौसम रचना तन्त्र – मानसून क्रियाविधि निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है-

  1. वायु दाब ( Pressure) का वितरण।
  2. पवनों (Winds) का धरातलीय वितरण।
  3. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air circulation)।
  4. विभिन्न वायु राशियों का प्रवाह।
  5. पश्चिमी विक्षोभ (चक्रवात) (Cyclones)।
  6. जेट प्रवाह (Jet Stream)।

1. वायु दाब तथा पवनों का वितरण (Distribution of Atmospheric Pressure and Winds):
शीत ऋतु में भारतीय मौसम मध्य एशिया तथा पश्चिमी एशिया में स्थित उच्च वायु दाब द्वारा प्रभावित होता है। इस उच्च दा केन्द्र से प्रायद्वीप की ओर शुष्क पवनें चलती हैं। भारतीय मैदान के उत्तर पश्चिमी भाग में से शुष्क हवाएं महसूस की जाती हैं। मध्य गंगा घाटी तक सम्पूर्ण उत्तर – पश्चिमी भारत उत्तर – पश्चिमी पवनों के प्रभाव में आ जाता है। ग्रीष्म काल के आरम्भ में सूर्य के उत्तरायण के समय में वायुदाब तथा पवनों के परिसंचरण में परिवर्तन आरम्भ हो जाता है।

उत्तर-पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब केन्द्र स्थापित हो जाता है। भूमध्य रेखीय निम्न दाब भी उत्तर की ओर बढ़ने लगता है। इस के प्रभावाधीन दक्षिणी गोलार्द्ध से व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा को पार करके निम्न वायु दाब की ओर बढ़ती हैं। इन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहते हैं। ये पवनें भारत में ग्रीष्म काल में वर्षा करती हैं।

2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper Air Circulation ):
वायुदाब तथा पवनें धरातलीय स्तर पर परिवर्तन लाते हैं। परन्तु भारतीय मौसम में ऊपरी वायु परिसंचरण का प्रभाव भी महत्त्वपूर्ण है। ऊपरी वायु में जेट प्रवाह भारत में पश्चिमी विक्षोभ लाने में सहायक हैं। ये जेट प्रवाह भारत के मौसम रचना तन्त्र को प्रभावित करता है।

3. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances ):
भारत में शीतकाल में निम्न वायुदाब केन्द्रों का विस्तार होता है। ये अवदाब या विक्षोभ भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं। ये ईरान, पाकिस्तान से होते हुए भारत में जनवरी-फरवरी में वर्षा करते हैं।

4. जेट प्रवाह (Jet Stream ):
जेट प्रवाह धरातल के लगभग 3 किलोमीटर की ऊंचाई पर बहने वाली एक ऊपरी वायु- धारा है। यह वायु-धारा क्षोभ मण्डल के ऊपरी वायु भाग में बहती है। यह वायु धारा पश्चिमी एशिया तथा मध्य एशिया के ऊपर बहने वाली पश्चिमी पवनों की एक शाखा है। यह शाखा हिमालय पर्वत के दक्षिण की ओर पूर्व दिशा बहती है। इस वायु -धारा की स्थिति फरवरी में 25° उत्तरी अक्षांश के ऊपर होती है। यह जेट प्रवाह भारतीय मौसम रचना तन्त्र पर कई प्रकार से प्रभाव डालती है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु  3

  1. इस जेट प्रवाह के कारण उत्तरी भारत में शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी पवनें चलती हैं।
  2. इस वायु -धारा के साथ-साथ पश्चिम की ओर से भारतीय उपमहाद्वीप में शीतकालीन चक्रवात आते हैं। ये चक्रवात भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात शीतकाल में हल्की-हल्की वर्षा करते हैं।
  3. जुलाई में जेट प्रवाह भारतीय प्रदेशों से लौट चुका होता है। इसका स्थान भूमध्य रेखीय निम्न दाब कटिबन्ध ले लेता है, जो भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर सरक जाता है। इसे अन्तर- उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (I.T.C.Z.) कहा जाता है।
  4. इस निम्न दाब के कारण भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें, वास्तव में दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों का उत्तर की ओर विस्तार ही है।
  5. हिमालय तथा तिब्बत के उच्च स्थलों के ग्रीष्म काल में गर्म होने तथा विकिरण के कारण भारत में पूर्वी जेट प्रवाह के रूप में एक वायु धारा बहती है। यह पूर्वी जेट प्रवाह उष्ण कटिबन्धीय गर्तों को भारत की ओर लाने में सहायक है। ये गर्त दक्षिण-पश्चिमी मानसून द्वारा वर्षा की मात्रा में वृद्धि करते हैं।

प्रश्न 5.
कोपेन (Koeppen) द्वारा भारत के विभाजित जलवायु प्रदेशों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत मुख्य रूप से एक मानसूनी प्रदेश है। इस विशाल देश में जलवायु की भिन्नता तथा कई प्रादेशिक अन्तरों का होना स्वाभाविक है। देश में मानसूनी जलवायु के कई उप-प्रकार देखे जा सकते हैं। इनके आधार पर भारत को विभिन्न जलवायु विभागों में बांटा जा सकता है। कोपेन का जलवायु वर्गीकरण – जर्मनी के प्रसिद्ध जीव-विज्ञानवेत्ता कोपेन द्वारा संसार को जलवायु विभागों में बांटा गया है। इस विभाजन में मासिक तापमान और वर्षा के औसत मूल्यों के विश्लेषण के आधार पर जलवायु के पांच मुख्य प्रकार माने गए हैं। इस जलवायु प्रदेशों के वर्गों को अंग्रेजी वर्णमाला के बड़े अक्षरों A, B, C, D तथा E द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इन वर्गों के उप प्रकार छोटे अक्षरों द्वारा दिखाए गए हैं। संसार को निम्नलिखित पांच जलवायु वर्गों में बांटा गया है।

(A) उष्ण कटिबन्धीय जलवायु।
(B) शुष्क जलवायु।
(C) गर्म जलवायु।
(D) हिम जलवाय।
(E) बर्फीली जलवायु।

कोपेन द्वारा तैयार किए गए जलवायु मानचित्र में भारत को निम्नलिखित जलवायु विभागों में बांटा गया है:

  1. लघु-शुष्क ऋतु वाला मानसून प्रदेश (Amw): इस प्रकार की जलवायु भारत के पश्चिमी तट पर गोआ के दक्षिण में पाई जाती है। यहां ग्रीष्म ऋतु में अधिक वर्षा होती है तथा शुष्क ऋतु बहुत छोटी होती है।
  2. अधिक गर्मी की अवधि में शुष्क ऋतु वाला मानसून प्रदेश (AS): इस प्रकार की जलवायु कोरोमण्डल तट पर तमिलनाडु राज्य में मिलती है। वहां ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है तथा शीत ऋतु में वर्षा होती है।
  3. उष्ण कटिबन्धीय सवाना प्रकार की जलवायु (AW): यह जलवायु प्रायद्वीपीय पठार के अधिकतर भागों में पाई जाती है। यहां शीत ऋतु शुष्क होती है।
  4. आर्द्र शुष्क स्टैपी जलवायु (Bshw): यह जलवायु राजस्थान तथा हरियाणा के मरुस्थलीय भागों में पाई जाती है।
  5. उष्ण मरुस्थलीय प्रकार की जलवायु (Bwhw): यह जलवायु राजस्थान के थार मरुस्थल में बहुत ही कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
  6. शुष्क शीत ऋतु वाला मानसून प्रदेश (Cwg): यह जलवायु भारत के उत्तरी मैदान में पाई जाती है। यहां अधिकतर वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है।
  7. लघु ग्रीष्म के साथ शीतल आर्द्र शीत वाली जलवायु (Dfc): यह जलवायु भारत के उत्तरी-पूर्वी भाग में पाई जाती है। यहां शीत ऋतु ठण्डी, आर्द्र तथा ग्रीष्म ऋतु छोटी होती है।
  8. ध्रुवीय प्रकार (E): यह जलवायु कश्मीर तथा उसकी निकटवर्ती मालाओं में पाई जाती है। यहां वर्षा हिमपात के रूप में होती है।

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प्रश्न 6.
भारत में वार्षिक वर्षा के वितरण के बारे में बताइए यह देश के उच्चावच से किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
भारत में वार्षिक वर्षा का वितरण जलवायु तथा कृषि व्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है। भारत में वार्षिक वर्षा का औसत 110 सें० मी० है। परन्तु धरातलीय विभिन्नताओं के कारण इस वितरण में प्रादेशिक अन्तर जाते हैं। वार्षिक वर्षा का स्थानिक तथा मौसमी वितरण असमान है। वार्षिक वर्षा की मात्रा के आधार पर भारत के प्रमुख वर्षा विभाग क्रमशः इस प्रकार हैं

(i) अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Heavy Rain):
ये वे क्षेत्र हैं जिन में वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है। ये क्षेत्र हैं – मेघालय, असम, अरुणाचल, पश्चिमी बंगाल का उत्तरी भाग, हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानें, पश्चिमी तटीय मैदान तथा पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानें।

(ii) मध्य वर्षा वाले क्षेत्र ( Areas of Moderate Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जिनमें वार्षिक वर्षा 100 से 200 सेंटीमीटर के बीच होती है। ये क्षेत्र हैं- पश्चिमी बंगाल का दक्षिणी भाग, उड़ीसा, उत्तर-पूर्वी मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश का पूर्वी, एवं उत्तरी भाग, दक्षिणी हिमाचल के पर्वत, पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलानें तथा तमिलनाडु के तटीय क्षेत्र। इन क्षेत्रों में वर्षा की वार्षिक मात्रा 100 से 200 सेंटीमीटर के बीच है।

(iii) साधारण वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Average Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जिनमें वार्षिक वर्षा 50 से 100 सेंटीमीटर के बीच होती है। ये क्षेत्र हैं-उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग, हरियाणा, पंजाब एवं कश्मीर, राजस्थान के पूर्वी भाग, गुजरात तथा दक्षिणी पठार।

(iv) अति न्यून वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Scanty Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जहां वार्षिक वर्षा 50 सेंटीमीटर से कम होती है। ये क्षेत्र हैं-कश्मीर से लद्दाख, दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब, दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान में विस्तृत थार मरुस्थल तथा गुजरात में कच्छ का रन।
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उच्चावच का वर्षा पर प्रभाव – वार्षिक वर्षा के वितरण से स्पष्ट है कि धरातलीय दिशाओं का वर्षा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भारत में पर्वतीय उच्च प्रदेशों में वर्षा की मात्रा अधिक होती है। जैसे पश्चिमी घाट, गारो, खासी की पहाड़ियां तथा हिमालयी क्षेत्र मैदानी प्रदेशों में कम वर्षा होती है। इसलिए उत्तरी मैदान से दक्षिण की ओर वर्षा कम होती जाती है। जल से भरी मानसून पवनें मार्ग में पड़ने वाले पर्वतों की सम्मुख ढाल पर अधिक वर्षा करती हैं, जबकि इन पर्वतों के विमुख वृष्टि छाया में रहने के कारण शुष्क रहते हैं।

इसी कारण गारो खासी पहाड़ियों में वार्षिक वर्षा की मात्रा 1000 सेंटीमीटर है, परन्तु ब्रह्मपुत्र घाटी तथा शिलांग पठार में यह मात्रा घट कर 200 सेंटीमीटर रह जाती है पश्चिमी घाट के अग्र भाग में मालाबार तट पर वर्षा की मात्रा 300 सें० मी० है। परन्तु पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया में पठार पर यह मात्रा केवल 60 सें० मी० है। राजस्थान में अरावली पर्वत मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन पवनों को रोक नहीं पाता तथा ये प्रदेश शुष्क हैं।
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प्रश्न 7.
मानसून पवनों से क्या अभिप्राय है? ये किस प्रकार उत्पन्न होती हैं? शीतकाल तथा ग्रीष्मकाल की मानसून पवनों का वर्णन करो।
उत्तर:
परिभाषा (Definition ) :
मानसून वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ” मौसिम” से बना है। इसका सर्वाधिक प्रयोग अरब सागर पर चलने वाली हवाओं के लिए किया गया था। मानसून पवनें वे मौसमी पवनें हैं जिनकी दिशा 6 मास समुद्र से स्थल की ओर तथा शीतकाल
मौसम के अनुसार बिल्कुल विपरीत होती है। ये पवनें ग्रीष्म काल के के 6 मास स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

कारण (Causes): मानसून पवनें वास्तव में एक बड़े पैमाने पर स्थल समीर (Land Breeze) तथा जल समीर (Sea Breezes) हैं। इनकी उत्पत्ति का कारण जल तथा स्थल के गर्म व ठण्डा होने में विभिन्नता (Differences in the cooling and heating of Land and Water ) है। जल और स्थल असमान रूप से गर्म और ठण्डे होते हैं। इस प्रकार मौसम के अनुसार वायुदाब में भी अन्तर हो जाता है जिससे हवाओं की दिशा पलट जाती है।

स्थल भाग जल की अपेक्षा जल्दी गर्म तथा जल्दी ठण्डा होता है। दिन के समय समुद्र के निकट स्थल पर कम दबाव (Low Pressure) तथा समुद्र पर उच्च वायु दबाव (High Pressure) होता है। परिणामस्वरूप, समुद्र से स्थल की ओर जल समीर (Sea Breeze) चलती है, परन्तु रात में दिशा विपरीत हो जाती है तथा स्थल से समुद्र की ओर स्थल – समीर (Land Breeze) चलती है। इस प्रकार प्रत्येक दिन वायु में दिशा बदलती रहती है। परन्तु मानसून पवनों की दिशा मौसम के अनुसार बदलती रहती है। ये पवनें तट के समीप के प्रदेशों में नहीं परन्तु एक पूरे महाद्वीप पर चलती हैं इसलिए मानसून पवनों को स्थल- समीर (Land Breeze) तथा जल समीर (Sea Breezes) का एक बड़े पैमाने का दूसरा रूप कह सकते हैं।

मानसून की उत्पत्ति के लिए आवश्यक दशाएं (Necessary Conditions ): मानसून पवनों की उत्पत्ति के लिए ये दशाएं आवश्यक हैं।

  1. एक विशाल महाद्वीप का होना।
  2. एक विशाल महासागर का होना।
  3. स्थल तथा जल भागों के तापमान में काफ़ी अन्तर होना चाहिए।
  4. एक लम्बी तट – रेखा।

मानसूनी क्षेत्र (Areas):
मानसूनी पवनें उष्ण कटिबन्ध से चलती हैं। परन्तु एशिया में ये पवनें 60° उत्तरी अक्षांश तक चलती हैं। इसलिए मानसूनी क्षेत्र दो भागों में बंटे हुए हैं। हिमालय पर्वत इन्हें पृथक् करता है।

1. पूर्वी एशियाई मानसून (East Asia Monsoons ): हिन्द – चीन (Indo-China), चीन तथा जापान क्षेत्र।
2. भारतीय मानसून (India Monsoons ): भारत, पाकिस्तान, बंगला देश तथा म्यांमार क्षेत्र, आस्ट्रेलिया का उत्तरी भाग।

ग्रीष्मकालीन मानसून पवनें (Summer Monsoons ): मौनसून पवनों के उत्पन्न होने तथा इनके प्रभाव को एक ही वाक्य में कहा जा सकता है, “The chain of events is from temperature through pressure and winds to rainfall.”
अथवा
Temp.-Pressure – Winds — Rainfall.
इन मानसूनी पवनों की तीन विशेषताएं हैं

  1. मौसम के साथ दिशा परिवर्तन।
  2. मौसम के साथ वायु दबाव केन्द्रों का उल्ट जाना।
  3. ग्रीष्मकाल में वर्षा।

तापक्रम की विभिन्नता के कारण वायुभार में अन्तर पड़ता है तथा अधिक वायु भार से कम वायु भार की ओर पवनें चलती हैं। समुद्र से आने वाली पवनें वर्षा करती हैं। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं। इसलिए भारत, चीन तथा मध्य एशिया के मैदान गर्म हो जाते हैं । इन स्थल भागों में वायु दबाव केन्द्र (Low Pressure Centres) स्थापित हो जाते हैं। अतः हिन्द महासागर तथा प्रशान्त महासागर से भारत तथा चीन की ओर समुद्र से स्थल की ओर पवनें (Sea to Land winds) चलती हैं।

भारत में इन्हें दक्षिण-पश्चिमी ग्रीष्मकालीन मानसून (South-West Summer Monsoons) कहते हैं। चीन में इनकी दिशा दक्षिण-पूर्वी होती है। भारत में ये पवनें मूसलाधार वर्षा करती हैं जिसे ” मानसून का फटना” (Burst of Monsoon) भी कहा जाता है। भारत में यह वर्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय कृषि इसी वर्षा पर आधारित है। इसलिए ” भारतीय बजट को मानसून का जुआ” (“Indian budget is a gamble of monsoon”) कहा जाता है।

शीतकालीन मानसून पवनें (Winter Monsoons ):
शीतकाल में मानसून पवनों की उत्पत्ति स्थल भागों पर होती है। सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी चमकती हैं, इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध के स्थल भाग आस-पास के सागरों की अपेक्षा ठण्डे हो जाते हैं। मध्य एशिया तथा भारत में राजस्थान प्रदेश में उच्च वायु दबाव हो जाता है। इसलिए इन स्थल भागों से समुद्र की ओर पवनें (Land to Sea Winds) चलती हैं। ये पवनें शुष्क तथा ठण्डी होती हैं। भारत में इन्हें उत्तरी-पूर्वी शीतकालीन मानसून (North East Winter Monsoons) कहते हैं। ये पवनें खाड़ी बंगाल को पार करने के पश्चात् तमिलनाडु प्रदेश में वर्षा करती हैं। भूमध्य रेखा पार करने के पश्चात् आस्ट्रेलिया के तटीय भागों में भी इन्हीं पवनों से वर्षा होती है।

फ्लॉन की विचारधारा (Flohn’s Concept ): मानसून पवनों के तापीय उत्पत्ति में निम्नलिखित त्रुटियां पाई जाती

  1. ग्रीष्मकाल में मानसून वर्षा निरन्तर तथा समान नहीं होती यह वर्षा किसी और तत्त्व जैसे चक्रवात पर निर्भर करती है।
  2. उच्च दाब तथा निम्न दाब केन्द्र इतने अधिक शक्तिशाली नहीं होते कि मौसम के अनुसार पवनों की दिशा उल्ट हो जाए।
  3. उच्च दाब तथा निम्न दाब केन्द्रों की उत्पत्ति केवल तापीय नहीं है।
  4. दैनिक ऋतु मानचित्रों पर ग्रीष्म ऋतु में अनेक तीव्र चक्रवात दिखाए जाते हैं।
  5. यह विचार है कि मानसून किसी मूल पवन व्यवस्था पर आरोपित है।

इन त्रुटियों को देखते हुए फ्लॉन नामक विद्वान् ने तापीय विचारधारा का खण्डन किया और एक नई विचारधारा को जन्म दिया। इसके अनुसार व्यापारिक पवनों के अभिसरण के कारण डोलड्रम के क्षेत्र के दोनों ओर एक सीमान्त उत्पन्न हो जाता है जिसे अन्तर – उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (Inter Tropical Convergence) कहते हैं। ग्रीष्म ऋतु में यह अभिसरण क्षेत्र सूर्य की स्थिति के साथ-साथ उत्तर की ओर खिसक जाता है। फलस्वरूप दक्षिणी गोलार्द्ध से दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें तथा पश्चिमी भूमध्य रेखीय पवनें उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। इस अभिसरण क्षेत्र में चक्रवात् उत्पन्न हो जाते हैं जो भारी वर्षा करते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि दक्षिण-पश्चिम व्यापारिक पवनें तथा चक्रवात ही मानसून पवनों की उत्पत्ति का आधार हैं।

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