JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता Textbook Exercise Questions and Answers.

Jharkhand Board Class 11 Political Science धर्मनिरपेक्षता InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
कुछ ऐसे तरीकों की सूची बनाओ जिनके माध्यम से साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा दिया जा सकता है।
उत्तर:
साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए निम्न तरीके अपनाये जा सकते हैं।
(1) हम आपसी जागरूकता के लिए एक साथ मिलकर काम करें।
(2) लोगों की सोच को बदलने के लिए शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर बल दें
(3) साझेदारी और पारस्परिक सहायता के व्यक्तिगत उदाहरण भी विभिन्न समुदायों के बीच पूर्वाग्रह और संदेहों को कम करने में योगदान दे सकते हैं।
(4) आधुनिक समाज में धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना करके हम साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं।

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प्रश्न 2.
क्या आप ऐसी धर्म निरपेक्षता की कल्पना कर सकते हैं, जो आपको अपनी पहचान से जुड़ा नाम रखने और आपको पसंद के कपड़े पहनने की आजादी न दे और आपकी बोलचाल की भाषा ही बदल डाले ? आपके खयाल से अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता भारतीय धर्म निरपेक्षता से किन मायनों में भिन्न है?
उत्तर:
हाँ, हम ऐसी धर्म निरपेक्षता की कल्पना कर सकते हैं। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद तुर्की में अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता इसी प्रकार की धर्म निरपेक्षता थी। यथा- – 20वीं सदी के प्रारंभ में मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने तुर्की में धर्म में हस्तक्षेप के माध्यम से धर्म निरपेक्षता की हिमायत की। उसने इस तरह की धर्म निरपेक्षता न केवल प्रस्तुत की बल्कि उस पर अमल भी किया। उसकी धर्म निरपेक्षता की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार थीं

  1. मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने सर्वप्रथम अपना नाम मुस्तफा कमाल पाशा से बदलकर कमाल अतातुर्क कर लिया। अतातुर्क का अर्थ होता है। तुर्कों का पिता।
  2. हैट कानून के जरिए मुसलमानों द्वारा पहनी जाने वाली परंपरागत फैज टोपी को प्रतिबंधित कर दिया गया।
  3. स्त्री-पुरुषों के लिए पश्चिमी पोशाकों को बढ़ावा दिया गया।
  4. तुर्की पंचांग की जगह पश्चिमी (ग्रिगेरियन) पंचांग लाया गया।
  5. 1928 में नई तुर्की वर्णमाला को संशोधित लैटिन रूप में अपनाया गया।

वे तुर्की के सार्वजनिक जीवन में खिलाफत को समाप्त कर देने के लिए कटिबद्ध थे। वे मानते थे कि परम्परागत सोच-विचार और अभिव्यक्ति से नाता तोड़े बगैर तुर्की को उसकी दुःखद स्थिति से नहीं उबारा जा सकता। परिणामतः उसने तुर्की में उक्त किस्म की धर्म निरपेक्षता को लागू किया। अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता और भारतीय धर्म निरपेक्षता में अन्तर

  1. भारतीय धर्म निरपेक्षता न तो नाम बदलने से सम्बन्धित है। वह अपने पहचान से जुड़े नाम रखने की पूर्ण आजादी प्रदान करती है, जबकि अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता अपनी पहचान से जुड़े नाम बदलने पर बल देती है।
  2. भारतीय धर्म निरपेक्षता आपको अपने पसंद के कपड़े पहनने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करती है। यहाँ कोई भी धर्मावलम्बी अपनी पहचान से जुड़े तथा अपने पसंद के कपड़े पहन सकता है। लेकिन कमाल अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता आपको परम्परागत विचारों व सोचों से जुड़े कपड़ों को पहनने की आजादी को खत्म करती है। इसीलिए उसने मुसलमानों की परम्परागत फैज टोपी को पहनने को प्रतिबंधित कर दिया तथा पश्चिमी परिधानों को पहनने को बढ़ावा दिया।
  3. भारतीय धर्म निरपेक्षता आपको अपनी बोल-चाल की भाषाओं को बनाए रखनी की आजादी देती है जबकि अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता ने तुर्की लोगों की बोलचाल की भाषा को ही बदल दिया।

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प्रश्न 3.
क्या धर्म निरपेक्षता नीचे लिखी बातों के संगत है।
1. अल्पसंख्यक समुदाय की तीर्थ यात्रा को आर्थिक अनुदान देना।
2. सरकारी कार्यालयों में धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन करना।
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता उक्त दोनों बातों के लिए संगत नहीं है क्योंकि धर्म निरपेक्षता धर्म और राज्य सत्ता के बीच सम्बन्ध विच्छेद पर बल देती है। साथ ही राज्य को किसी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक गठजोड़ से परहेज करना भी आवश्यक है। उक्त दोनों बातों को राज्य द्वारा करने पर धर्म निरपेक्षता के इस सिद्धान्त का उल्लंघन होता है।

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प्रश्न 4.
राज्य धर्मों के साथ एक समान बरताव किस तरह कर सकता है। क्या हर धर्म के लिए बराबर संख्या में छुट्टी कर देने से ऐसा किया जा सकता है? या सार्वजनिक अवसरों पर किसी भी प्रकार के धार्मिक समारोह पर रोक लगाकर समान बरताव किया जा सकता है?
उत्तर:
राज्य धर्मों के साथ एक समान बरताव: सभी धर्मो को समान संरक्षण देकर, सभी धर्मों की हिफाजत कर, अन्य धर्मों की कीमत पर किसी एक धर्म की तरफदारी न करके तथा स्वयं किसी भी धर्म को राज्य धर्म के रूप में स्वीकार न करके कर सकता है। राज्य द्वारा हर धर्म के लिए बराबर संख्या में छुट्टी देना तथा सार्वजनिक अवसरों पर किसी प्रकार के धार्मिक समारोह की रोक लगाना सभी धर्मों के साथ समान बर्ताव के व्यवहार के अन्तर्गत ही आते हैं।

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प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी बातें धर्म निरपेक्षता के विचार से संगत हैं? कारण सहित बताइये
(क) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना।
(ख) किसी धर्म को राज्य के धर्म के रूप में मान्यता देना।
(ग) सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय होना।
(घ) विद्यालयों में अनिवार्य प्रार्थना होना।
(ङ) किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पृथक् शैक्षिक संस्थान बनाने की अनुमति होना।
(च) सरकार द्वारा धार्मिक संस्थाओं की प्रबंधन समितियों की नियुक्ति करना।
(छ) किसी मंदिर में दलितों के प्रवेश के निषेध को रोकने के लिए सरकार का हस्तक्षेप।
उत्तर:
निम्नलिखित बातें धर्म निरपेक्षता के विचार से संगत हैं
(क) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना।
(ग) सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय होना।
(ङ) किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पृथक् शैक्षिक संस्थान बनाने की अनुमति देना।
(छ) किसी मंदिर में दलितों के प्रवेश के निषेध को रोकने के लिए सरकार का हस्तक्षेप।

(क) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना:
प्रत्येक प्रकार की धर्म निरपेक्षता के रूप में यह मूल सिद्धान्त निहित है कि धर्म निरपेक्षता अन्तर- धार्मिक वर्चस्व का विरोध करती है। यह कथन कि किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व नहीं है, इस सिद्धान्त का पालन करता है। अतः यह धर्म निरपेक्षता के विचार से संगत है।

(ग) सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय होना:
धर्मनिरपेक्ष होने के लिए राज्य सत्ता को किसी भी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से परहेज करना आवश्यक है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि राज्य का अपना कोई धर्म न हो बल्कि वह सभी धर्मों को समान संरक्षण व आश्रय प्रदान करे। इस दृष्टि से यह कथन कि ‘सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय है’ धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त से संगत है।

(ङ) किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पृथक् शैक्षिक संस्थान बनाने की अनुमति देना:
यदि हम यूरोपीय मॉडल की धर्म निरपेक्षता की दृष्टि से विचार करें तो यह कथन धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त से असंगत है क्योंकि यूरोपीय संकल्पना में स्वतंत्रता और समानता का तात्पर्य है। व्यक्तियों की स्वतंत्रता व समुदाय को अपनी पसंद का आचरण करने की स्वतंत्रता रहे। समुदाय आधारित अधिकारों अथवा अल्पसंख्यक अधिकारों की वहाँ कोई गुंजाइश नहीं है। लेकिन यदि हम भारतीय मॉडल की धर्म निरपेक्षता की संकल्पना की दृष्टि से विचार करें तो यह कथन धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त से संगत है क्योंकि भारतीय धर्म निरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी से ही नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी से भी है। इसके अन्तर्गत धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी अपनी खुद की. संस्कृति और शैक्षिक संस्थाएँ कायम करने का अधिकार है।

(छ) किसी मंदिर में दलितों के प्रवेश के निषेध को रोकने के लिए सरकार का हस्तक्षेप:
पश्चिमी धर्म निरपेक्षता की संकल्पना की दृष्टि से यह कार्य धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त से असंगत है क्योंकि इस तरह की धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन भारतीय धर्म निरपेक्षता की संकल्पना की दृष्टि से यह कार्य संगत है क्योंकि भारतीय धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश भी है और अनुकूलता भी।

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प्रश्न 2.
धर्म निरपेक्षता के पश्चिमी और भारतीय मॉडल की कुछ विशेषताओं का आपस में घालमेल हो गया है। उन्हें अलग करें और एक नई सूची बनाएँ।

पश्चिमी धर्म निरपेक्षता भारतीय धर्म निरपेक्षता
धर्म और राज्य का एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति
करने की अटल नीति एक धर्म के भिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना
विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता एक मुख्य सरोकार होना समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान देना
अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देना व्यक्ति और धार्मिक समुदायों दोनों के अधिकारों का संरक्षण
व्यक्ति और उसके अधिकारों को केन्द्रीय महत्त्व देना भारतीय धर्म निरपेक्षता

उत्तर:
धर्म निरपेक्षता के पश्चिमी और भारतीय मॉडल की विशेषताओं को निम्न प्रकार सूचीबद्ध किया गया है।

पश्चिमी धर्म निरपेक्षता भारतीय धर्म निरपेक्षता
1. धर्म और राज्य का एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अंटल नीति 1. राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति
2. विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता एक मुख्य सरोकार होना 2. एक धर्म के भिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना
3. समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान देना 3. अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देना।
4. व्यक्ति और उसके अधिकारों को केन्द्रीय महत्त्व दिया जाना 4. व्यक्ति और धार्मिक समुदाय दोनों के अधिकारों का संरक्षण

प्रश्न 3.
धर्म निरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? क्या इसकी बराबरी धार्मिक सहनशीलता से की जा सकती
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता से आशय:
धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त का पहला पक्ष यह है कि यह अन्तर धार्मिक वर्चस्व का विरोध करता है और इसका दूसरा पक्ष यह है कि यह अन्तः धार्मिक वर्चस्व यानी धर्म के अन्दर छुपे हुए वर्चस्व का विरोध करता है। इस प्रकार यह अवधारणा संस्थाबद्ध धार्मिक वर्चस्व के सभी रूपों का विरोध करती है। यह धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देती है। धर्म निरपेक्षता और धार्मिक सहनशीलता में अन्तर

  1. धार्मिक सहनशीलता धार्मिक वर्चस्व की विरोधी नहीं है, जबकि धर्म निरपेक्षता धार्मिक वर्चस्व की विरोधी है।
  2. धार्मिक सहनशीलता में धार्मिक स्वतंत्रता प्रायः सीमित होती है, जबकि धर्म निरपेक्षता में धार्मिक सहनशीलता अपेक्षाकृत अधिक होती है। हो सकता है कि धार्मिक सहनशीलता में हर किसी को धार्मिक स्वतंत्रता के अवसर मिल जाएँ लेकिन ऐसी स्वतंत्रता प्रायः सीमित होती है, जबकि धर्म निरपेक्षता में राज्य सत्ता धर्मसत्ता के मामले में हस्तक्षेप नहीं करती और किसी धर्म का धार्मिक वर्चस्व नहीं होता है, इसलिए इसमें धार्मिक स्वतंत्रता के सभी को समान अवसर प्राप्त हैं।
  3. धार्मिक सहनशीलता हममें उन लोगों को बर्दाश्त करने की क्षमता पैदा करती है, जिन्हें हम बिल्कुल नापसंद करते हैं; जबकि धर्म निपरेक्षता में ऐसे बर्दाश्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इससे स्पष्ट होता है कि सहिष्णुता या धार्मिक सहनशीलता तथा धर्म निरपेक्षता में काफी अन्तर है तथा धर्म निरपेक्षता की बराबरी धार्मिक सहनशीलता से नहीं की जा सकती।

प्रश्न 4.
क्या आप नीचे दिए गए कथनों से सहमत हैं? उनके समर्थन या विरोध के कारण भी दीजिए।
(क) धर्म निरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति नहीं देती है।
(ख) धर्म निरपेक्षता किसी धार्मिक समुदाय के अन्दर या विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच असमानता के खिलाफ है।
(ग) धर्म निरपेक्षता के विचार का जन्म पश्चिमी और ईसाई समाज में हुआ है। यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं है।
उत्तर:
(क) धर्म निरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति नहीं देती है। हम इस कथन से सहमत नहीं हैं क्योंकि धर्म निरपेक्षता धर्म और राज्य का एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने तथा विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता और एक धर्म के विभिन्न पंथों के बीच समानता तथा किसी धर्म के वर्चस्व का विरोध करने की नीति है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म को अपनाने के लिए स्वतंत्र है। वह इस प्रकार उसे अपनी धार्मिक पहचान बनाए रखने की पूर्ण स्वतंत्रता देती है। इसलिए यह कहना गलत है कि धर्म निरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति नहीं देती है।

(ख) धर्म निरपेक्षता किसी धार्मिक समुदाय के अन्दर या विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच असमानता के खिलाफ है। हम इस कथन से सहमत हैं क्योंकि धर्म निरपेक्षता का विचार धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और
उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देता है तथा असमानता का विरोध करता है। यह अन्तर: धार्मिक तथा अन्तः धार्मिक दोनों तरह के वर्चस्वों के खिलाफ है तथा दोनों तरह के वर्चस्वों से रहित समाज बनाना चाहता है।

(ग) धर्म निरपेक्षता के विचार का जन्म पश्चिमी और ईसाई समाज में हुआ है। यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं है। हम इस विचार से सहमत नहीं हैं। यद्यपि भारतीय धर्म निरपेक्षता के सम्बन्ध में यह आलोचना की जाती है कि यह ईसाइयत से जुड़ी है, पश्चिमी चीज है और इसीलिए भारतीय परिस्थितियों के लिए अनुपयुक्त है। लेकिन इस विचार से हम असहमत हैं क्योंकि।

  1. पतलून से लेकर इंटरनेट और संसदीय लोकतंत्र तक लाखों पश्चिमी चीजें भारत में प्रचलित हैं जिनकी जड़ें पश्चिम में हैं, क्या वे भारतीयों के लिए अनुपयुक्त हैं।
  2. धर्म निरपेक्ष होने के लिए प्रत्येक राष्ट्र का अपना स्वयं का लक्ष्य होता है। पश्चिमी धर्म निरपेक्षता का लक्ष्य ईसाइयत से राज्य का सम्बन्ध विच्छेद करना था। धर्म और राज्य का पारस्परिक निषेध पश्चिमी धर्म निरपेक्ष समाजों का आदर्श है; लेकिन भारत ने इस सिद्धान्त को उतनी कट्टरता के साथ नहीं अपनाया है।
  3. भारतीय धर्म निरपेक्षता में राज्य सत्ता धर्म से सैद्धान्तिक दूरी बनाए रखते हुए भी खास समुदायों की रक्षा के लिए उसमें हस्तक्षेप भी कर सकती है। यह भारतीय धर्म निरपेक्षता न तो ईसाइयत से पूरी तरह जुड़ी हुई है और न भारतीय जमीन पर सीधा-सीधा पश्चिमी आरोपण ही है।

प्रश्न 5.
भारतीय धर्म निरपेक्षता का जोर धर्म और राज्य के अलगाव पर नहीं वरन् उससे अधिक किन्हीं बातों पर है। इस कथन को समझाइये
उत्तर:
भारतीय धर्म निरपेक्षता पश्चिमी धर्म निरपेक्षता से बुनियादी रूप से भिन्न है। भारतीय धर्म निरपेक्षता केवल धर्म और राज्य के बीच सम्बन्ध विच्छेद पर बल नहीं देती। अन्तर- धार्मिक समानता भारतीय धर्म निरपेक्षता की संकल्पना के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। भारतीय धर्म निरपेक्षता की संकल्पना की विशिष्ट बातें निम्नलिखित हैं।
1. अन्तर-धार्मिक सहिष्णुता:
भारतीय धर्म निरपेक्षता का विचार गहरी धार्मिक विविधता के संदर्भ में उदित हुआ है। यह विविधता पश्चिमी आधुनिक विचारों और राष्ट्रवाद के आगमन से पहले की चीज है। भारत में पहले से ही अन्तर- धार्मिक सहिष्णुता की संस्कृति मौजूद थी। यह संस्कृति धार्मिक वर्चस्व की विरोधी नहीं है तथा इसमें धार्मिक आजादी प्रायः सीमित होती है तथा यह लोगों में बर्दाश्त करने की क्षमता पैदा करती है।

2. अन्तर-सामुदायिक समानता:
पश्चिमी आधुनिकता के आगमन ने भारतीय चिंतन में समानता की अवधारणा को सतह पर ला दिया। उसने इस धारणा को धारदार बनाया और हमें समुदाय के अन्दर समानता पर बल देने की ओर अग्रसर किया। उसने हमारे समाज को मौजूद श्रेणीबद्धता को हटाने के लिए अन्तर-सामुदायिक समानता के विचार को भी उद्घाटित किया। इस तरह भारतीय समाज में पहले से विद्यमान धार्मिक विविधता और पश्चिम से आए विचारों के बीच अंतर्क्रिया शुरू हुई; जिसके फलस्वरूप भारतीय धर्म निरपेक्षता ने विशिष्ट रूप ग्रहण किया।

3. यह अंतः धार्मिक और अन्तर:
धार्मिक वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केन्द्रित करती है। भारतीय धर्म निरपेक्षता में अन्त:धार्मिक और अन्तर- धार्मिक वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केन्द्रित किया गया है। इसने हिन्दुओं के अन्दर दलितों और महिलाओं के उत्पीड़न और भारतीय मुसलमानों अथवा ईसाइयों के अन्दर महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न किये जा सकने वाले खतरों का समान रूप से विरोध किया । इस प्रकार यह पश्चिमी धर्म निरपेक्षता से भिन्न हो गई।

4. व्यक्तियों और अल्पसंख्यक समुदायों दोनों प्रकार की धार्मिक स्वतंत्रता से सम्बद्ध:
पश्चिमी धर्म निरपेक्षता का सम्बन्ध केवल व्यक्तियों की धार्मिक स्वतंत्रता से ही है जबकि भारतीय धर्म निरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी से भी है। इसके अन्तर्गत हर आदमी को अपने पसंद का धर्म मानने के अधिकार के साथ-साथ धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी अपनी स्वयं की संस्कृति और शैक्षिक संस्थाएँ कायम करने का अधिकार है।

5. राज्य समर्थित धार्मिक सुधार:
भारतीय धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश भी है और अनुकूलता भी। इसीलिए भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगाया है। भारतीय राज्य ने बाल विवाह के उन्मूलन और अन्तर्जातीय विवाह पर हिन्दू धर्म के द्वारा लगाए गए निषेध को खत्म करने हेतु अनेक कानून बनाए हैं।

6. न धर्मतांत्रिक और न धर्म से विलग:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता का चरित्र धर्मतांत्रिक नहीं है क्योंकि यह किसी धर्म को राजधर्म नहीं मानता है। यह पूर्णतः धर्म से विलग भी नहीं है। यह धर्म से विलग भी हो सकता है और जरूरत पड़ने पर उसके साथ सम्बन्ध भी बना सकता है।
इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता का जोर धर्म और राज्य के अलगाव पर नहीं वरन् राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति देने, अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देने, व्यक्ति और धार्मिक समुदाय दोनों के अधिकारों के संरक्षण देने पर अधिक है।

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प्रश्न 6.
‘सैद्धान्तिक दूरी’ क्या है ? उदाहरण सहित समझाइये
उत्तर:
सैद्धान्तिक दूरी से आशय:
धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त यह मांग करता है कि राज्य धर्म से दूरी बनाए रखे। इसका आशय यह है कि राज्य और धर्म में पृथकता होनी चाहिए। पाश्चात्य धर्म निरपेक्षता के मॉडल में राज्य और धर्म के बीच अटल या पूर्ण पृथकता या पूर्ण दूरी पर बल दिया जाता है। लेकिन भारतीय धर्म निरपेक्षता के मॉडल में राज्य और धर्म की पूर्ण पृथकता को नहीं अपनाया गया है। इसमें सैद्धान्तिक दूरी के सिद्धान्त पर बल दिया गया है। सैद्धान्तिक दूरी से आशय यह है कि सामान्यतः राज्य धर्म से एक दूरी बनाए रखता है और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है। लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में राज्य धार्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप भी कर सकता है। ये विशिष्ट परिस्थितियाँ हैं—भेदभाव, शोषण और असमानता की।

उदाहरण के लिए भारत में राज्य ने हिन्दुओं में अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए संविधान में अस्पृश्यता को अपराध घोषित कर दिया है। इसी प्रकार राज्य ने हस्तक्षेप करके दलितों को मंदिरों में प्रवेश, सार्वजनिक स्थलों के उपयोग, कुओं, तालाबों तथा शैक्षिक संस्थाओं के प्रयोग के लिए अनुमति प्रदान की है। इसी प्रकार राज्य ईसाइयत और इस्लाम में भी हस्तक्षेप कर सकता है, जब वह देखता है कि धर्म व्यक्ति के मूल अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है, अन्याय या शोषण कर रहा है। दूसरे, भारतीय राज्य सुधारों को समर्थन करके धर्म का विकास भी कर सकता है अर्थात् वह धर्म सुधार हेतु हस्तक्षेप कर सकता है। इसी को सैद्धान्तिक दूरी कहा जाता है।

धर्मनिरपेक्षता JAC Class 11 Political Science Notes

→ धर्म निरपेक्षता क्या है?
धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त के दो पक्ष हैं। इसका पहला पक्ष यह है कि यह अन्तर- धार्मिक वर्चस्व का विरोध करता है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि यह अंतः धार्मिक वर्चस्व यानी धर्म के अंदर छुपे हुए वर्चस्व का विरोध करता है। इस प्रकार धर्म निरपेक्षता संस्थाबद्ध धार्मिक वर्चस्व के सभी रूपों की विरोधी है। यह धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देती है। इस प्रकार धर्म निरपेक्षता की अवधारणा को नकारात्मक और सकारात्मक दोनों ही दृष्टि से स्पष्ट किया जाता है। यथा

  • नकारात्मक अर्थ में धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त संस्थागत धार्मिक वर्चस्व के सभी रूपों का विरोधी होने के नाते यह अन्तर- धार्मिक वर्चस्व तथा अन्तः धार्मिक वर्चस्व दोनों को नकारता है।
  • सकारात्मक अर्थ में धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त धर्मों के अन्दर की आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देता ह।

→ धर्मों के बीच वर्चस्ववाद:
धर्मों के बीच वर्चस्ववाद से यह आशय है कि एक क्षेत्र में बहुसंख्यक धर्म वाला सम्प्रदाय अल्पसंख्यक धर्मावलम्बियों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेता है और फिर वह अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों का उत्पीड़न करता है। उदाहरण के लिए, इसी धार्मिक वर्चस्ववाद के चलते

  • 1984 में दिल्ली में हजारों सिखं मारे गए;
  • हजारों कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपना घर विवश होकर छोड़ना पड़ा;
  • सन् 2002 में गुजरात में लगभग 2000 मुसलमान मारे गये आदि।

→ धर्म के अन्दर वर्चस्व:
कई धर्म संप्रदायों में विभाजित हो जाते हैं और निरन्तर आपसी हिंसा तथा भिन्न मत रखने वाले अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न में लगे रहते हैं। इस प्रकार यह धर्म के अन्दर वर्चस्व का रूप ग्रहण कर लेता है। धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त धर्म के अन्दर के वर्चस्व के रूप का भी विरोध करता है। इस प्रकार धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त संस्थागत धार्मिक वर्चस्व के सभी रूपों का विरोध करता है। इस प्रकार धर्म निरपेक्षता ऐसा नियामक सिद्धान्त है जो धर्म निरपेक्ष समाज, उक्त दोनों तरह के वर्चस्वों से रहित समाज बनाना चाहता है जिसमें धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा दिया जाता हों।

→ धर्म निरपेक्ष राज्य:
धार्मिक भेदभाव को रोकने के लिए आपसी जागरूकता, शिक्षा, साझेदारी, पारस्परिक सहायता, भलाई की भावना का विकास आदि रास्तों को अपनाया जा सकता है। लेकिन इनसे अधिक शक्तिशाली रास्ता धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना करना है। एक धर्म निरपेक्ष राज्य सत्ता में निम्न विशेषताएँ होनी आवश्यक हैं।

  • राज्य सत्ता किसी खास धर्म के प्रमुखों द्वारा संचालित नहीं हो। धार्मिक संस्थाओं और राज्यसत्ता की संस्थाओं के बीच सम्बन्ध नहीं होना चाहिए।
  • राज्य सत्ता को किसी भी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से परहेज करना होगा।
  • धर्म निरपेक्ष राज्य को ऐसे सिद्धान्तों और लक्ष्यों के लिए अवश्य प्रतिबद्ध होना चाहिए जो गैर धार्मिक स्रोतों से निकलते हों, जैसे शांति, धार्मिक स्वतंत्रता; धार्मिक उत्पीड़न, भेदभाव और वर्जना से आजादी ; तथा अन्तर- – धार्मिक व अन्तः धार्मिक समानता। धर्म निरपेक्ष राज्य का कोई एक निश्चित मॉडल नहीं बताया जा सकता। राजनैतिक धर्म निरपेक्षता किसी भी रूप में स्थापित हो सकती हैं। यहाँ अग्रलिखित दो मॉडलों को स्पष्ट किया गया है।

→ धर्म निरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल:

  • यूरोपीय मॉडल के सभी धर्म निरपेक्ष राज्य न तो धर्मतांत्रिक हैं और न किसी खास धर्म की स्थापना करते हैं।
  • इसमें राज्य सत्ता धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती है और न धर्मसत्ता राज्य के मामलों में दखल देती है। दोनों के अपने अलग-अलग क्षेत्र तथा सीमाएँ हैं।
  • राज्य न तो धर्म के आधार पर कोई नीति बनायेगा और न किसी धार्मिक संस्था को मदद देगा।
  • देश के कानून की सीमा के अन्दर संचालित धार्मिक समुदायों की गतिविधियों में राज्य व्यवधान पैदा नहीं कर सकता।
  • यह संकल्पना स्वतंत्रता और समानता की व्यक्तिवादी ढंग से व्याख्या करती है। इसमें समुदाय आधारित अधिकारों या अल्पसंख्यकों के अधिकारों की कोई गुंजाइश नहीं है। इस तरह की धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार के लिए कोई जगह नहीं है।

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→ धर्म निरपेक्षता का भारतीय मॉडल:
भारतीय धर्म निरपेक्षता में अंतः धार्मिक और अन्तर- धार्मिक वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केन्द्रित किया गया है। परिणामस्वरूप भारतीय धर्म निरपेक्षता पश्चिमी धर्म निरपेक्षता से निम्न रूपों में भिन्न रूप में सामने आई हैं।

  • इसने पिछड़ों और अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न किये जाने वाले खतरों का समान रूप से विरोध किया।
  • भारतीय धर्म निरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी से ही नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी से भी है।
  • भारतीय धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश भी है और अनुकूलता भी। इसीलिए भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगाया है। राज्य ने बाल विवाह के उन्मूलन और अन्तर्जातीय विवाह पर हिन्दू धर्म द्वारा लगाए निषेध को खत्म करने हेतु अनेक कानून बनाए हैं।

इस प्रकार भारतीय राज्य के धर्म निरपेक्ष चरित्र की प्रमुख विशेषता यह है कि वह न तो धर्मतांत्रिक है और न ही किसी धर्म को राजधर्म मानता है। लेकिन वह धार्मिक समानता हासिल करने के लिए अमेरिकी शैली में धर्म से विलग भी हो सकता है और आवश्यकता पड़ने पर उसके साथ सम्बन्ध भी बना सकता है। वह धार्मिक अत्याचार का विरोध करने हेतु धर्म के साथ निषेधात्मक सम्बन्ध भी बना सकता है और वह जुड़ाव की सकारात्मक विधि भी अपना सकता है। अस्पृश्यता का निषेध जहाँ निषेधात्मक जुड़ाव है, वहीं धार्मिक अल्पसंख्यकों को शिक्षा संस्थाएँ खोलने व चा का अधिकार देना सकारात्मक जुड़ाव को दर्शाता है। भारतीय धर्म निरपेक्षता तमाम धर्मों में राजसत्ता के सैद्धान्तिक हस्तक्षेप की अनुमति देती है।

→भारतीय धर्म निरपेक्षता की आलोचनाएँ:
धर्म विरोधी: कुछ लोग यह कहते हैं कि भारतीय धर्म निरपेक्षता धर्म विरोधी है क्योंकि यह संस्थागत धार्मिक वर्चस्व का विरोध करती है। लेकिन इसके आधार पर इसे धर्म विरोधी नहीं कहा जा सकता। कुछ लोग इस आधार पर इसे धर्म विरोधी कहते हैं कि यह धार्मिक पहचान के लिए खतरा पैदा करती है। लेकिन यह विचार भी त्रुटिपरक है क्योंकि यह धार्मिक स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देती है। अतः यह धार्मिक पहचान के लिए खतरा नहीं बल्कि उसकी हिफाजत करती है। हाँ, वह धार्मिक पहचान के मतांध, हिंसक, दुराग्रही, औरों का बहिष्कार करने वाले और अन्य धर्मों के प्रति घृणा उत्पन्न करने वाले रूपों पर अवश्य चोट करती है।

→ पश्चिम से आयातित:
दूसरी आलोचना यह है कि यह पश्चिम से आयातित है। इसीलिए भारतीय परिस्थितियों के लिए अनुपयुक्त है। लेकिन यह विचार त्रुटिपरक है क्योंकि यहाँ ऐसी धर्म निरपेक्षता विकसित हुई है जो न तो पूरी तरह ईसाइयत से जुड़ी है और न भारतीय जमीन से। तथ्य यह है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता में पश्चिमी और गैर-पश्चिमी दोनों मार्गों का अनुसरण किया गया है।

→ अल्पसंख्यकवाद:
भारतीय धर्म निरपेक्षता की तीसरी आलोचना अल्पसंख्यकवाद सम्बन्धी है। इसके तहत कहा जाता है कि यह अल्पसंख्यक अधिकारों की पैरवी करती है। इसके प्रत्युत्तर में यह कहा जा सकता है कि अल्पसंख्यक अधिकारों को विशेष अधिकारों या विशेष सुविधाओं के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसके पीछे सिर्फ यह धारणा है कि अल्पसंख्यकों के सर्वाधिक मौलिक हितों की क्षति नहीं होनी चाहिए और संवैधानिक कानून द्वारा. उनकी हिफाजत की जानी चाहिए।

→ अतिशय अहस्तक्षेपकारी:
चौथी आलोचना यह की जाती है कि धर्म निरपेक्षता उत्पीड़नकारी है और समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता में अतिशय हस्तक्षेप करती है। लेकिन यह आलोचना भी त्रुटिपरक है क्योंकि भारतीय धर्म निरपेक्षता धर्म से सैद्धान्तिक दूरी कायम रखने पर चलती है जो हस्तक्षेप की गुंजाइश भी बनाती है लेकिन यह हस्तक्षेप अपने आप में उत्पीड़नकारी हस्तक्षेप नहीं होता।

→ वोट बैंक की राजनीति:
पांचवीं आलोचना यह की जाती है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देती है। लेकिन लोकतंत्र में राजनेताओं के लिए वोट पाना जरूरी है। यह उनके काम का अंग है और लोकतांत्रिक राजनीति बड़ी हद तक ऐसी ही है। यह तथ्य कि धर्म निरपेक्ष दल वोट बैंक का इस्तेमाल करते हैं, कष्टकारक नहीं है। भारत में हर समुदाय के संदर्भ में सभी दल ऐसा करते हैं।

→ एक असंभव परियोजना:
भारतीय धर्म निरपेक्षता की एक अन्य आलोचना यह की जाती है कि “यह धर्म निरपेक्षता नहीं चल सकती क्योंकि यह बहुत कुछ करना चाहती है, यह ऐसी समस्या का हल ढूँढ़ना चाहती है, जिसका समाधान है ही नहीं।” क्योंकि गहरे धार्मिक मतभेद वाले लोग कभी भी शांति से एक साथ नहीं रह सकते। लेकिन यह दावा गलत है। भारत में इस तरह साथ-साथ रहना बिल्कुल संभव रहा है। दूसरे, भारतीय धर्म निरपेक्षता एक असंभव परियोजना का अनुसरण नहीं है बल्कि यह भविष्य की दुनिया का प्रतिबिंब प्रस्तुत कर रही है।

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