Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ
Jharkhand Board Class 12 History यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ In-text Questions and Answers
पृष्ठ संख्या 116
प्रश्न 1.
अल-बिरुनी की कृति का अंश पढ़िए (स्रोत – 5) तथा चर्चा कीजिये कि क्या यह कृति इन उद्देश्यों को पूरा करती है ?
उत्तर:
अल-बिरुनी द्वारा ‘किताब – उल – हिन्द’ नामक पुस्तक लिखने के दो प्रमुख उद्देश्य थे –
(1) उन लोगों की सहायता करना जो हिन्दुओं से धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते थे तथा
(2) ऐसे लोगों के लिए सूचना का संग्रह करना, जो हिन्दुओं के साथ सम्बद्ध होना चाहते थे।
अल बिरूनी ने अपनी कृति के ‘अंश स्रोत – 5’ में भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था तथा समाज में ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों तथा शूद्रों के स्थान का वर्णन किया है। इस दृष्टि से अल-बिरुनी की कृति तत्कालीन वर्ण व्यवस्था को समझने में उपयोगी है।
पृष्ठ संख्या 117 : चर्चा कीजिए
प्रश्न 2.
यदि अल-बिरुनी इक्कीसवीं शताब्दी में रहता, तो वही भाषाएँ, जानने पर भी उसे विश्व के किन क्षेत्रों में आसानी से समझा जा सकता था ?
उत्तर:
यदि अल-बिरुनी इक्कीसवीं शताब्दी में रहता, तो उसे इजरायल, सीरिया, मिस्र, साउदी अरेबिया, लेबेनान, ईरान, इराक, खाड़ी देश भारत, पाकिस्तान आदि देशों में आसानी से समझा जा सकता था।
पृष्ठ संख्या 117
प्रश्न 3.
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 117 पर चित्र संख्या 5.2 में सोलोन तथा उनके विद्यार्थियों के कपड़ों को ध्यान से देखिए । क्या ये कपड़े यूनानी हैं अथवा अरबी ?
उत्तर:
उपर्युक्त चित्र को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कपड़े अरबी हैं।
पृष्ठ संख्या 118
प्रश्न 4.
आप डाकुओं को यात्रियों से कैसे अलग करेंगे ?
उत्तर:
- पाठ्य पुस्तक के चित्र 53 में दिखाया गया है
- कि कुछ यात्रियों के हाथों में
- सामान है तथा डाकू लोग उ
- डाकू उनका पीछा कर रहे हैं।
- पर हमला कर रहे हैं। यात्री अपने प्राण बचाने के लिए आगे-आगे दौड़ रहे हैं तथा
पृष्ठ संख्या 119
प्रश्न 5.
आपके मत में कुछ यात्रियों के हाथों में हथियार क्यों हैं ?
उत्तर:
पाठ्य पुस्तक के चित्र 54 में कुछ व्यापारी एक नाव में बैठ कर यात्रा कर रहे हैं। इस चित्र में कुछ यात्रियों के हाथों में हथियार दिखाए गए हैं क्योंकि उस समय समुद्री यात्रा करना अत्यन्त जोखिम भरा कार्य था। अतः वे समुद्री डाकुओं से अपने माल व प्राणों की रक्षा के लिए हथियारों से सुसज्जित होकर यात्रा करते थे।
पृष्ठ संख्या 121 चर्चा कीजिए
प्रश्न 6.
आपके विचार में अल-विरुनी और इब्नबतूता के उद्देश्य किन मायनों में समान / भिन्न थे?
उत्तर:
समानताएँ-अल-विरुनी और इब्नबतूता के उद्देश्यों में निम्नलिखित समानताएँ थीं –
(1) अल-बिहनी और इब्नबतूता ने अपने ग्रन्थ अरबी भाषा में लिखे।
(2) दोनों ने ही भारतीय सामाजिक जीवन, रीति- रिवाज, प्रथाओं, धार्मिक जीवन त्यौहारों आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।
(3) दोनों ही उच्चकोटि के विद्वान थे तथा दोनों की भारतीय साहित्य, सम्मान, धर्म तथा संस्कृति में गहरी रुचि थी।
असमानताएँ –
(1) अल बिरुनी संस्कृत भाषा का अच्छा ज्ञाता था। उसने अनेक संस्कृत ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद किया था। परन्तु इब्नबतूता संस्कृत से अनभिज्ञ था।
(2) अल बिरूनी ने ब्राह्मणों, पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताए और संस्कृत धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया। परन्तु इब्नबतूता को इस प्रकार का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।
(3) अल बिरुनी का भारतीय विवरण संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित था परन्तु इब्नबतूता ने संस्कृतवादी परम्परा का अनुसरण नहीं किया।
(4) अल बिरानी ने अपने ग्रन्थ के प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया, जिसमें आरम्भ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित वर्णन और अन्त में अन्य संस्कृतियों से तुलना करना दूसरी ओर इब्नबतूता ने नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं तथा मान्यताओं आदि के विषय में अपने अभिमत का सावधानी तथा कुशलतापूर्वक वर्णन किया है।
पृष्ठ संख्या 123
प्रश्न 7.
स्रोत चार में बर्नियर द्वारा दी गई सूची में कौनसी वस्तुएँ हैं, जो आज आप यात्रा में साथ ले जायेंगे?
उत्तर:
स्रोत चार में वर्नियर द्वारा दी गई सूची में वर्णित निम्नलिखित वस्तुओं को मैं यात्रा में साथ लेकर चलूँगा
- दरी
- बिहीना
- तकिया
- अंगोछे/ नैपकिन
- झोले
- वस्त्र
- चावल
- रोटी
- नींबू
- चीनी
- पानी
- पानी पीने का
पृष्ठ संख्या 125 चर्चा कीजिए
प्रश्न 8.
एक अन्य क्षेत्र से आए यात्री के लिए स्थानीय क्षेत्र की भाषा का ज्ञान कितना आवश्यक है?
उत्तर:
एक अन्य क्षेत्र से आए यात्री के लिए स्थानीय क्षेत्र की भाषा का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। अन्य क्षेत्र से आए यात्री को लोगों के धर्म और दर्शन, रीति-रिवाजों, मान्यताओं, प्रथाओं, सामाजिक जीवन, कला कानून आदि का विवरण प्रस्तुत करना होता है परन्तु स्थानीय क्षेत्र की भाषा के ज्ञान के अभाव में इनका यथार्थ, युक्तियुक्त और सटीक वर्णन करना अत्यन्त कठिन होता है। परिणामस्वरूप उसका वृत्तान्त अपूर्ण, संदिग्ध और भ्रामक होता है। उसे अपने ग्रन्थों में सुनी-सुनाई बातों पर अवलम्बित होना पड़ता है वह उनका उचित विश्लेषण नहीं कर पाता और तथ्यों की जांच-पड़ताल किये बिना ही उसे अपने ग्रन्थ में वर्णित करता है। अतः यात्री के लिए स्थानीय भाषा का पर्याप्त ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है।
पृष्ठ संख्या 126
प्रश्न 9.
नारियल कैसे होते हैं अपने पाठकों को यह समझाने के लिए इब्नबतूता किस तरह की तुलनाएँ प्रस्तुत करता है? क्या ये तुलनाएँ वाजिब हैं? वह किस तरह से यह दिखाता है कि नारियल असाधारण फल है? इब्नबतूता का वर्णन कितना सटीक है?
उत्तर:
इब्नबतूता ने लिखा है कि नारियल का वृक्ष बिल्कुल खजूर के वृक्ष जैसा दिखता है। इनमें अन्तर यह है कि एक से काष्ठ फल प्राप्त होता है जबकि दूसरे से खजूर इब्नबतूता ने नारियल को मानव सिर से तुलना करते हुए लिखा है कि नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मिलता-जुलता है क्योंकि इसमें भी दो आँखें और एक मुख है। इसके अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है और इससे जुड़ा रेशा बालों जैसा दिखाई देता है। इब्नबतूता की तुलनाएँ वाजिब प्रतीत होती हैं। इब्नबतूता के अनुसार नारियल एक असाधारण फल है क्योंकि लोग इससे रस्सी बनाते हैं और इनसे जहाजों को सिलते हैं। उसका वर्णन बिल्कुल सटीक है।
पृष्ठ संख्या 126
प्रश्न 10.
आपके विचार में इसने इब्नबतूता का ध्यान क्यों खींचा? क्या आप इस विवरण में कुछ और जोड़ना चाहेंगे ?
उत्तर:
इब्नबतूता के देश के लोग पान से अपरिचित थे क्योंकि वहाँ पान नहीं उगाया जाता था अतः पान ने इब्नबतूता का ध्यान खींचा सुपारी के अतिरिक्त इलायची, गुलकन्द, मुलहठी, सौंफ आदि वस्तुएँ भी पान में डाली जाती हैं। पान में जर्द आदि का भी प्रयोग किया जाता है।
पृष्ठ संख्या 127
प्रश्न 11.
स्थापत्य के कौनसे अभिलक्षणों पर इब्नबतूता ने ध्यान दिया?
उत्तर:
इब्नबतूता ने स्थापत्य कला के विभिन्न अभिलक्षणों पर ध्यान दिया है; जैसेकि किले की प्राचीर, प्राचीर में खिड़की प्राचीरों में उपलब्ध विभिन्न सामग्री, प्राचीरों तथा इनके निर्माण की वास्तुकला, किले के विभिन्न प्रवेश द्वार, मेहराब, मीनारें, गुम्बद आदि ।
पृष्ठ संख्या 128
प्रश्न 12.
अपने वर्णन में इब्नबतूता ने इन गतिविधियों को उजागर क्यों किया?
उत्तर:
इब्नबतूता ने अपने यात्रा-वृत्तान्त में उन सभी गतिविधियों को सम्मिलित किया जो उसके पाठकों के लिए अपरिचित थीं। इब्नबतूता दौलताबाद में गायकों के लिए निर्धारित बाजार, यहाँ की दुकानों, अन्य वस्तुओं, गायिकाओं द्वारा प्रस्तुत संगीत व नृत्य के कार्यक्रमों को देखकर अत्यधिक प्रभावित हुआ। अतः उसने इन गतिविधियों से अपने देशवासियों को परिचित कराने के लिए इन गतिविधियों को उजागर किया।
पृष्ठ संख्या 129
प्रश्न 13.
क्या सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की पैदल डाक व्यवस्था पूरे उपमहाद्वीप में संचालित की जाती होगी?
उत्तर:
यह सम्भव नहीं है कि सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की पैदल डाक व्यवस्था पूरे उपमहाद्वीप में संचालित की जाती होगी। इसके लिए निम्नलिखित तर्फ प्रस्तुत किए जा सकते हैं–
- मुहम्मद बिन तुगलक का साम्राज्य सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में फैला हुआ नहीं था। विजयनगर, बहमनी आदि दक्षिण भारत के राज्य सुल्तान के साम्राज्य में सम्मिलित नहीं थे। सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर भी मुहम्मद तुगलक का आधिपत्य नहीं था।
- भारत एक विशाल देश था। एक ओर यहाँ कठिन पर्वतीय क्षेत्र तथा रेगिस्तानी क्षेत्र स्थित थे, तो दूसरी ओर कुछ क्षेत्र समुद्रों से घिरे हुए थे इन सभी क्षेत्रों में पैदल डाक व्यवस्था का संचालन करना अत्यन्त कठिन था।
- मुहम्मद तुगलक को अपने शासन काल में निरन्तर विद्रोहों का सामना करना पड़ा। इसके अतिरिक्त उसकी योजनाओं की असफलता के कारण भी उपमहाद्वीप में अशान्ति, अराजकता एवं अव्यवस्था फैली हुई थी। अतः इन परिस्थितियों में सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में मुहम्मद बिन तुगलक की पैदल डाक व्यवस्था का संचालित होना सम्भव नहीं था।
पृष्ठ संख्या 131
प्रश्न 14.
बर्नियर के अनुसार उपमहाद्वीप में किसानों को किन-किन समस्याओं से जूझना पड़ता था? क्या आपको लगता है कि उसका विवरण उसके पक्ष को सुदृढ़ करने में सहायक होता?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार उपमहाद्वीप में किसानों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता था –
- विशाल ग्रामीण अंचलों की भूमियाँ रेतीली या बंजर, पथरीली थीं।
- यहाँ की खेती अच्छी नहीं थी।
- कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग भी श्रमिकों के अभाव में कृषि विहीन रह जाता था।
- गवर्नरों द्वारा किए गए अत्याचारों के कारण अनेक श्रमिक मर जाते थे।
- जब गरीब कृषक अपने स्वामियों की माँगों को पूरा करने में असमर्थ होते थे तो उन्हें जीवन निर्वाह के साधनों से वंचित कर दिया जाता था तथा उनके बच्चों को दास बना कर ले जाया जाता था।
- सरकार के निरंकुशतापूर्ण व्यवहार से हताश होकर अनेक किसान गाँव छोड़कर चले जाते थे।
बनिंदर निजी स्वामित्व का प्रबल समर्थक था। उसके अनुसार राजकीय भू-स्वामित्व ही भारतीय कृषकों को दयनीय दशा के लिए उत्तरदायी था। वह चाहता था कि मुगलकालीन भारत से सम्बन्धित उसका विवरण यूरोप में उन लोगों के लिए एक चेतावनी का कार्य करेगा, जो निजी स्वामित्व की अच्छाइयों को स्वीकार नहीं करते थे अतः हमें लगता है कि बर्नियर का विवरण उसके पक्ष को सुदृढ़ करने में सहायक रहा।
पृष्ठ संख्या 132
प्रश्न 15.
बर्नियर सर्वनाश के दृश्य का चित्रण किस प्रकार करता है?
उत्तर:
बर्नियर ने मुगल शासकों की नीतियों के कारण भारतीय उपमहाद्वीप की भयावह स्थिति का चित्रण किया है उसके अनुसार मुगल शासकों की नीतियाँ कतई हितकारी नहीं हैं; उनका अनुसरण करने पर उनके राज्य इतने सुशिष्ट और फलते-फूलते नहीं रह जाएंगे तथा वह भी मुगल शासकों की तरह जल्दी ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जायेंगे। पृष्ठ संख्या 133
प्रश्न 16.
इस उद्धरण में दिया गया विवरण स्रोत 11 में दिए गए विवरण से किन मायनों में भिन्न है?
उत्तर:
इस उद्धरण में दिया गया विवरण स्रोत 11 के उद्धरण में दिए गए विवरण के बिल्कुल विपरीत है। एक तरफ तो बर्निचर स्रोत 11 में भारत की सामाजिक-आर्थिक विपन्नता का वर्णन करता है, दूसरी तरफ इस खोत में दिए गए विवरण में बर्नियर ने भारत की सामाजिक-आर्थिक सम्पन्नता का वर्णन किया है। इस स्त्रोत में बर्नियर ने भारत की उच्च कृषि, शिल्पकारी, वाणिज्यिक वस्तुओं का निर्यात जिसके एवज में पर्याप्त सोना, चाँदी भारत में आता था आदि का वर्णन किया है।
बर्नियर के वर्णन में यह भिन्नता सम्भवत: इसलिए है कि बर्नियर ने सर्वप्रथम जिस क्षेत्र का भ्रमण किया; वहाँ की सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक परिस्थितियाँ इतनी उच्च नहीं थीं। बाद में वह ऐसे क्षेत्र में पहुँचा जहाँ कि विकास से सम्बन्धित परिस्थितियाँ बेहतर थीं। जैसेकि उपजाऊ कृषि भूमि, पर्याप्त श्रम उपलब्धता, विकसित शिल्पकारी इसलिए वहाँ की सम्पन्नता को देखकर बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में इसका वर्णन किया है।
पृष्ठ संख्या 134
प्रश्न 17.
बर्नियर इस विचार को किस प्रकार प्रेषित करता है कि हालांकि हर तरफ बहुत सक्रियता है, परन्तु उन्नति बहुत कम ?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार शिल्पकार अपने कारखानों में प्रतिदिन सुबह आते थे जहाँ ये पूरे दिन कार्यरत रहते थे और शाम को अपने-अपने घर चले जाते थे। इस प्रकार नौरस वातावरण में कार्य करते हुए उनका समय बीतता जाता था। बर्नियर के अनुसार यद्यपि हर ओर बहुत सक्रियता है, परन्तु शिल्पकारों के जीवन में बहुत अधिक प्रगति दिखाई नहीं देती थी। वास्तव में कोई भी शिल्पकार जीवन की उन परिस्थितियों में सुधार करने का इच्छुक नहीं था जिनमें वह उत्पन्न हुआ था।
पृष्ठ संख्या 134
प्रश्न 18.
आपके विचार में बर्नियर जैसे विद्वानों ने भारत की यूरोप से तुलना क्यों की ?
उत्तर:
बर्नियर ने अपने ग्रंथ ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ में भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से की है। वह पश्चिमी संस्कृति का प्रबल समर्थक था उसने महसूस किया कि यूरोपीय संस्कृति के मुकाबले में भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति निम्न कोटि की है अतः उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखलाया है अथवा फिर यूरोप का विपरीत दर्शाया है। उसने भारत में जो भिन्नताएँ देखीं, उन्हें इस प्रकार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत पश्चिमी संसार को निम्न कोटि का प्रतीत हो।
पृष्ठ संख्या 136 चर्चा कीजिए
प्रश्न 19.
आपके विचार में सामान्य महिला श्रमिकों के जीवन ने इब्नबतूता और बर्नियर जैसे यात्रियों का ध्यान अपनी ओर क्यों नहीं खींचा?
उत्तर:
तत्कालीन युग में यात्रा-वृत्तान्त लिखने वाले यात्री राजदरबार, अभिजात वर्ग के लोगों की गतिविधियों का चित्रण करने में अधिक रुचि लेते थे। वे पुरुष प्रधान समाज का चित्रण करना ही अपना प्रमुख कर्तव्य समझते थे। अतः उन्होंने सामान्य महिला श्रमिकों के जीवन से सम्बन्धित गतिविधियों पर ध्यान नहीं दिया।
पृष्ठ संख्या 136
प्रश्न 20.
यहाँ यातायात के कौन-कौनसे साधन अपनाए गए हैं ?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के चित्र 5.13 में यातायात के निम्नलिखित साधन अपनाए गए हैं-घोड़ा, घुड़सवार, घोड़ा- गाड़ी अथवा रथ, हाथी, महावत
Jharkhand Board Class 12 History यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ Text Book Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100 से 150 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न 1.
‘किताब-उल-हिन्द’ पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
(1) ‘किताब-उल-हिन्द’ अरबी में लिखी गई अल बिरूनी की कृति है। इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रन्थ है जिसमें धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, रीति-रिवाज तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, भार तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विवेचन किया गया है। यह ग्रन्थ अम्मी अध्यायों में विभाजित है।
(2) अल बिरनी ने प्राय: प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैल का प्रयोग किया. जिसमें आरम्भ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित वर्णन था और अना में अन्य संस्कृतियों के साथ तुलना की गई थी। विद्वानों के अनुसार यह लगभग एक ज्यामितीय संरचना है, जिसका मुख्य कारण अल बिरूनी का गणित की ओर झुकाव था। यह ग्रन्थ अपनी स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता के लिए प्रसिद्ध है।
(3) अल बिरूनी ने सम्भवतः अपनी कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं। यह संस्कृत, प्राकृत तथा पालि ग्रन्थों के अरजी भाषा में अनुवादों तथा रूपान्तरणों से परिचित था। इनमें दंत कथाओं से लेकर खगोल विज्ञान और चिकित्सा सम्बन्धी कृतियाँ भी शामिल थीं।
प्रश्न 2.
इब्नबतूता और बर्नियर ने जिन दृष्टिकोण से भारत में अपनी यात्राओं के वृत्तान्त लिखे थे, उनकी तुलना कीजिए तथा अन्तर बताइये।
उत्तर:
(1) इब्नबतूता अन्य यात्रियों के विपरीत, पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से अर्जित अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था उसने नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं आदि के विषय में अपने विचारों को सावधानी तथा कुशलतापूर्वक व्यक्त किया। राजाओं तथा सामान्य पुरुषों और महिलाओं के बारे में उसे जो कुछ भी विचित्र लगता था, उसका यह विशेष रूप से वर्णन करता था, ताकि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से पूर्ण रूप से प्रभावित हो सकें। उसके पाठक नारियल तथा पान से अपरिचित थे अतः उसने इनका बड़ा रोचक वर्णन किया है। उसने कृषि, व्यापार तथा उद्योगों के उन्नत अवस्था में होने का वर्णन भी किया है। उसने भारत की डाक प्रणाली की कार्यकुशलता का भी वर्णन किया है जिसे देखकर वह चकित हो गया था।
(2) जहाँ इब्नबतूता ने हर उस चीज का वर्णन किया जिसने उसे अपने अनूठेपन के कारण प्रभावित और उत्सुक किया, वहीं दूसरी ओर बर्नियर ने भारत में जो भी देखा, वह उसकी सामान्य रूप से यूरोप और विशेषकर फ्रांस में व्याप्त स्थितियों से तुलना तथा भिन्नता को उजागर करना चाहता था। उसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय समाज और संस्कृति की त्रुटियों को दर्शाना तथा यूरोपीय समाज, प्रशासन तथा संस्कृति की सर्वश्रेष्ठता का प्रतिपादन करना था।
प्रश्न 3.
बर्नियर के वृत्तान्त से उभरने वाले शहरी केन्द्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
शहरी केन्द्र
(1) बर्नियर ने मुगलकालीन शहरों को ‘शिविर नगर’ कहा है जिससे उसका आशय उन नगरों से था, जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे। उसकी मान्यता थी कि वे नगर राजदरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे तथा इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे उसका यह भी कहना था कि इन नगरों का सामाजिक और आर्थिक आधार व्यावहारिक नहीं होता था और ये राजकीय संरक्षण पर आश्रित रहते थे। परन्तु बर्नियर का यह विवरण सही प्रतीत नहीं होता।
(2) वास्तव में उस समय सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र तीर्थ स्थान आदि।
(3) सामान्यतः नगर में व्यापारियों का संगठन होता था पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को ‘महाजन’ कहा जाता था तथा उनके मुखिया को ‘सेट’ अहमदाबाद जैसे शहरी केन्द्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे ‘नगर सेठ’ कहा जाता था।
(4) अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे। इनमें से कुछ वर्गों को राज्याश्रय प्राप्त था तथा कुछ सामान्य लोगों की सेवा करके जीवनयापन करते थे।
प्रश्न 4.
इब्नबतूता द्वारा दास प्रथा के सम्बन्ध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) बाजारों में दास अन्य वस्तुओं की भाँति खुलेआम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंट स्वरूप दिए जाते थे।
(2) सिन्ध पहुँचने पर इब्नबतूता ने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के लिए भेंट स्वरूप घोड़े, ऊँट तथा दास खरीदे थे।
(3) इब्नबतूता बताता है कि सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने नसीरुद्दीन नामक एक धर्मोपदेशक के प्रवचन से प्रसन्न होकर उसे एक लाख टके (मुद्रा) तथा दो सौ दास प्रदान किए थे।
(4) इब्नबतूता के विवरण से ज्ञात होता है कि दास भिन्न-भिन्न प्रकार के होते थे सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहिन की शादी के अवसर पर दासियों के घरेलू श्रम के लिए प्रदर्शन से अत्यधिक आनन्दित हुआ। सुल्तान अपने अमीर की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था।
(5) सामान्यतः दासों का ह प्रयोग किया जाता था। ये दास पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने का काम करते थे। दासों विशेषकर उन दासियों की कीमत बहुत कम होती थी, जिनकी आवश्यकता घरेलू श्रम के लिए होती थी। अधिकांश परिवार कम से कम एक या दो दासों को तो रखते ही थे।
प्रश्न 5.
सती प्रथा के कौन से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा?
अथवा
सती प्रथा के बारे में बर्नियर ने क्या लिखा था ?
उत्तर:
लाहौर में वर्नियर ने एक अत्यधिक सुन्दर 12 वर्षीय विधवा को सती होते हुए देखा। इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सती प्रथा के निम्नलिखित तत्त्वों ने बर्निवर का ध्यान अपनी ओर खींचा –
- बर्नियर के अनुसार अधिकांश विधवाओं को सती होने के लिए बाध्य किया जाता था।
- अल्पवयस्क विधवा को जलने के लिए बाध्य किया जाता भी आग में जीवित था उसके रोने, चिल्लाने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था उसके मस्तिष्क की पीड़ा अवर्णनीय थी।
- इस प्रक्रिया में ब्राह्मण तथा बूढ़ी महिलाएँ भी भाग लेती थीं।
- विधवा को उसकी इच्छा के विरुद्ध चिता में जलने के लिए जबरन ले जाया जाता था।
- सती होने वाली विधवा के हाथ-पांव बाँध दिए जाते थे, ताकि वह भाग न जाए।
- इस कोलाहलपूर्ण वातावरण में सती होने वाली विधवा के करुणाजनक विलाप की ओर किसी का ध्यान नहीं जा पाता था।
निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में)
प्रश्न 6.
भारतीय जाति व्यवस्था के बारे में अल- बिरुनी का यात्रा वर्णन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
अथवा
जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में अल-बिरुनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में अल-विरुनी की व्याख्या अल बिरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के द्वारा जाति व्यवस्था को समझने और उसकी व्याख्या करने का प्रयास किया।
(1) प्राचीन फारस में सामाजिक वर्गों को मान्यता- अल बिरुनी के अनुसार प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता प्राप्त थी।
ये चार वर्ग निम्नलिखित थे-
- घुड़सवार और शासक वर्ग
- भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक
- खगोल शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक
- कृषक तथा शिल्पकार।
(2) अल बिरुनी का उद्देश्य फारस के सामाजिक वर्गों का उल्लेख करके अल-बिरनी यह दिखाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे अपितु अन्य देशों में भी थे। इसके साथ ही उसने यह भी बताया कि इस्लाम में सभी लोगों को समन माना जाता था और उनमें भिन्नताएँ केवल धार्मिकता के पालन में थीं।
(3) अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार करना- यद्यपि अल बिरूनी जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानता था, फिर भी उसने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया। उसने लिखा कि प्रत्येक यह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। उदाहरण के लिए सूर्य वायु को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गन्दा होने से बचाता है। अल-विरुनी इस बात पर बल देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता, तो पृथ्वी पर जीवन असम्भव हो जाता। अल बिरूनी का कहना था कि जाति व्यवस्था में संलग्न अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।
(4) भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था-अल-विरुनी ने भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था का उल्लेख निम्न प्रकार से किया है –
- ब्राह्मण-ब्राह्मणों की जाति सबसे ऊँची थी हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से उत्पन्न हुए थे। इसी वजह से हिन्दू ब्राह्मणों को मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं।
- क्षत्रिय अल बिरूनी के अनुसार ऐसी मान्यता थी कि क्षत्रिय ब्रह्मन् के कंधों और हाथों से उत्पन्न हुए थे। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचे नहीं है।
- वैश्य क्षत्रियों के बाद वैश्य आते हैं। वैश्य ब्रह्मन् की जंघाओं से उत्पन्न हुए थे।
- शूद्र इनका जन्म ब्रह्मन् के चरणों से हुआ अल बिरुनी के अनुसार अन्तिम दो वर्गों में अधिक अन्तर नहीं था परन्तु इन वर्गों के बीच भिन्नता होने पर भी शहरों और गांवों में मिल-जुल कर रहते थे।
जाति व्यवस्था के बारे में अल बिरूनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित होना-जाति-व्यवस्था के विषय में अल बिरूनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्णतथा प्रभावित था। परन्तु वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी कठोर नहीं थी। उदाहरण के लिए, अन्त्यज (जाति व्यवस्था में सम्मिलित नहीं की जाने वाली जाति) नामक श्रेणियों से सामान्यतया यह अपेक्षा की जाती थी कि वे कृषकों और जमींदारों के लिए सस्ता श्रम प्रदान करें।
प्रश्न 7.
क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्नबतूता का वृत्तांत सहायक है? अपने उत्तर के कारण दीजिए।
उत्तर:
समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली को समझने में इब्नबतूता के वृत्तान्त का सहायक होना हो, हमें लगता है कि समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्नबतूता का वृत्तांत काफी सहायक है। इसका कारण यह है कि उसने समकालीन शहरी केन्द्रों का विस्तृत विवरण दिया है उसकी जानकारी का मुख्य आधार उसका व्यक्तिगत सूक्ष्म अध्ययन एवं अवलोकन था। इब्नबतूता वृत्तान्त समकालीन शहरी केन्द्रों की जीवन-शैली के बारे में निम्नलिखित जानकारियाँ प्राप्त होती है –
(1) घनी आबादी वाले तथा समृद्ध शहर इब्नबतूत के अनुसार तत्कालीन नगर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे। परन्तु कभी-कभी युद्धों तथा अभियानों के कारण कुछ नगर नष्ट भी हो जाया करते थे।
(2) भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले बाजार अधिकांश शहरों में
भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे। ये बाजार विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे।
(3) बड़े शहर इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली एक बहुत बड़ा शहर था जिसकी आबादी बहुत अधिक थी। उसके अनुसार दिल्ली भारत का सबसे बड़ा शहर था दौलताबाद (महाराष्ट्र में भी कम नहीं था और आकार में वह दिल्ली को चुनौती देता था।
(4) सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्रबाजार केवल आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे, बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे। अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा एक मन्दिर होता था और उनमें से कम से कम कुछ में तो नर्तकों, संगीतकारों तथा गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए स्थान भी निर्धारित थे।
(5) इतिहासकारों द्वारा इब्नबतूता के वृत्तान्त का प्रयोग करना – इतिहासकारों ने उसके वृत्तान्त का प्रयोग यह तर्क देने में किया है कि शहर अपनी सम्पत्ति का एक बड़ा भाग गाँवों से अधिशेष के अधिग्रहण से प्राप्त करते थे।
(6) कृषि का उत्पादनकारी होना इब्नबतूता के अनुसार भारतीय कृषि के बहुत अधिक उत्पादनकारी होने का कारण मिट्टी का उपजाऊपन था। इसी कारण किसान एक वर्ष में दो फसलें उगाते थे।
(7) उपमहाद्वीप का व्यापार तथा वाणिज्य के अन्तर- एशियाई तन्त्रों से जुड़ा होना इब्नबतूता के अनुसार उपमहाद्वीप का व्यापार तथा वाणिज्य अन्तर- एशियाई तत्वों से भली-भांति जुड़ा हुआ था। भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में बहुत माँग थी। इससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी लाभ होता था भारतीय सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक मांग थी। इब्नबतूता लिखता है कि महीन मलमल की कई किस्में तो इतनी अधिक महँगी थीं कि उन्हें अमीर वर्ग के तथा बहुत धनी लोग ही पहन सकते थे।
प्रश्न 8.
चर्चा कीजिए कि बर्निचर का वृत्तान्त किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है?
अथवा
बर्नियर के अनुसार मुगलकालीन भारत में किसानों की क्या समस्याएँ थीं?
अथवा
बर्नियर के वृत्तान्त में समकालीन भारतीय समाज का जो चित्र उभरता है, उसकी चर्चा कीजिये।
उत्तर:
बर्नियर ने समकालीन ग्रामीण समाज का जो वृत्तान्त प्रस्तुत किया है, वह सर्वथा सत्य नहीं है इसलिए क बर्नियर का वृत्तान्त इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में आंशिक रूप से ही सक्षम करता है, पूर्ण रूप से नहीं। बर्नियर ने तत्कालीन ग्रामीण समाज का जो वृत्तान्त प्रस्तुत किया है, उसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत वर्णित किया जा सकता है-
(1) भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव बर्नियर न्द्र के अनुसार भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव था। न्दर उसके अनुसार मुगल साम्राज्य में सम्राट सम्पूर्ण भूमि का कों, स्वामी था सम्राट इस भूमि को अपने अमीरों के बीच बाँटता था। इसके अर्थव्यवस्था तथा समाज पर हानिप्रद प्रभाव पड़ते थे।
(2) भूधारकों पर प्रतिकूल प्रभाव बर्नियर के अनुसार राजकीय भूस्वामित्व के कारण भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे। परिणामस्वरूप निजी भू- स्वामित्व के अभाव से बेहतर भूधारकों के वर्ग का उदय नहीं हो सका, जो भूमि के रख-रखाव तथा सुधार के लिए प्रयास करता। इस वजह से कृषि का विनाश हुआ, किसानों का अत्यधिक उत्पीड़न हुआ और समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर में निरन्तर पतन की स्थिति उत्पन्न हुई। परन्तु शासक वर्ग पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा।
(3) भारतीय समाज दरिद्र लोगों का जनसमूह- बर्नियर के अनुसार भारतीय समाज दरिद्र लोगों के जनसमूह से बना था। यह समाज अत्यन्त अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग के अधीन था। वर्नियर के अनुसार “भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं हैं।”
(4) मुगल साम्राज्य का रूप बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा ‘भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था। इसके शहर तथा नगर विनष्ट थे तथा खराब हवा’ से दूषित थे। इसके खेत ‘शाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से भरे हुए थे, इसका केवल एक ही कारण था- राजकीय भूस्वामित्व बर्नियर के अनुसार ” यहाँ की खेती अच्छी नहीं है।
यहाँ तक कि कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा भी श्रमिकों के अभाव में कृषि-विहीन रह जाता है। इनमें से कई श्रमिक गवर्नरों द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के फलस्वरूप मर जाते हैं गरीब लोग जब अपने लोभी मालिकों की माँगों को पूरा नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें न केवल जीवन निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता है, बल्कि उन्हें अपने बच्चों से भी हाथ धोना पड़ता है, जिन्हें दास बनाकर ले जाया जाता है।”
(5) बर्नियर के वृत्तान्त की अन्य साक्ष्यों से पुष्टि नहीं होना आश्चर्य की बात यह है कि एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज यह संकेत नहीं करता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। बर्नियर का ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर होना वास्तव में बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण समाज का यह चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे तथा दूसरी ओर अस्पृश्य’ भूमिविहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था। इसके साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से अपने गुजारे के योग्य उत्पादन कर पाते थे।
प्रश्न 9.
यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है – “ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुन्दर शिल्प कारीगरी के बहुत उदाहरण हैं, जिनके पास औजारों का अभाव है, और जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है कभी- कभी वे यूरोप में तैयार वस्तुओं की इतनी निपुणता से नकल करते हैं कि असली और नकली के बीच अन्तर कर पाना मुश्किल हो जाता है। अन्य वस्तुओं में भारतीय लोग बेहतरीन बन्दूकें और ऐसे सुन्दर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि सन्देह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है। मैं अक्सर इनके चित्रों की सुन्दरता, मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ।” उसके द्वारा उल्लिखित शिल्प कार्यों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसकी तुलना अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर ने इस उद्धरण में बन्दूकें बनाने तथा सुन्दर स्वर्णाभूषण बनाने आदि शिल्प कार्यों का उल्लेख किया है। उसने लिखा है कि भारतीय स्वर्णकार ऐसे सुन्दर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि सन्देह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है।
तुलना –
इस अध्याय में वर्णित अन्य शिल्प गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं –
- कसीदाकारी
- चित्रकारी
- रंग-रोगन करना
- बद्देगिरी
- खरादी
- कपड़े सीन
- जूते बनाना
- रेशम, जरी और बारीक मलमल का काम
- सोने और चांदी के वस्त्र बनाना
- गलीचे बनानें का काम
- सोने के बर्तन बनाना आदि।
बर्नियर के अतिरिक्त मोरक्को निवासी इब्नबतूता ने भी भारतीय वस्तुओं की अत्यधिक प्रशंख की है। इब्नबतूता ने शिल्प गतिविधियों का उल्लेख किया है उसके अनुसार सूती वस्त्र, महीन मलमल, रेशम के वस्त्र, जरी साटन आदि की विदेशों में अत्यधिक मांग थी। राजकीय कारखाने यनियर ने राजकीय कारखानों में होने वाली विविध शिल्प गतिविधियों का उल्लेख किया है शिल्पकार प्रतिदिन सुबह कारखानों में आते थे तथा वहाँ वे पूरे दिन कार्यरत रहते थे और शाम को अपने-अपने घर चले जाते थे।
यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ JAC Class 12 History Notes
→ मध्यकालीन भारत में विदेशी यात्रियों का आगमन मध्यकाल में भारत में अनेक विदेशी यात्री आए, जिनमें अल- विरुनी, इब्नबतूता तथा फ्रांस्वा बर्नियर उल्लेखनीय हैं। इनके यात्रा वृत्तान्तों से मध्यकालीन भारत के सामाजिक जीवन के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
→ अल बिरूनी- अल बिरुनी का जन्म आधुनिक उत्बेकिस्तान में स्थित ख़्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था। अल बिरुनी सीरियाई, फारसी, हिब्रू, संस्कृत आदि भाषाओं का जाता था। 1017 में ख़्वारिज्य पर आक्रमण के बाद सुल्तान महमूद गजनवी अल बिरुनी आदि अनेक विद्वानों को अपने साथ गजनी ले आया था। अल-बिरुनी ने भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृत आदि का ज्ञान प्राप्त किया।
→ किताब-उल-हिन्द-अल-बिरूनी ने अरबी भाषा में किताब-उल-हिन्द नामक पुस्तक की रचना की। यह ग्रन्थ अस्सी अध्यायों में विभाजित है। इसमें धर्म, दर्शन, त्यौहारों, खगोल विज्ञान, रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सामाजिक जीवन, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का वर्णन है।
→ इब्नबतूता इनका जन्म मोरक्को के सैंजियर नामक नगर में हुआ था। वह 1333 ई. में सिन्ध पहुँचा। सुल्तान महमूद तुगलक ने उसकी विद्वता से प्रभावित होकर उसे दिल्ली का काशी या न्यायाधीश नियुक्त किया। 1342 में उसे सुल्तान के दूत के रूप में चीन जाने का आदेश दिया गया 1347 में उसने वापस अपने घर जाने का निश्चय कर लिया 1354 में इब्नबतूता मोरक्को पहुँच गया। उसने अपना यात्रा-वृत्तान्त अरबी भाषा में लिखा, जो ‘रिला’ के नाम से प्रसिद्ध है। उसने अपने या वृत्तान्त में नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं आदि के बारे में लिखा है।
→ फ्रांस्वा बर्नियर-फ्रांस का निवासी फ्रांस्वा बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा इतिहासकार था। वह 1656 से 1668 तक भारत में 12 वर्ष तक रहा और मुगल दरबार से निकटता से जुड़ा रहा।
→ ‘पूर्व’ और ‘पश्चिम’ की तुलना बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया। परन्तु उसका आकलन हमेशा सटीक नहीं था। बर्नियर के कार्य प्रांस में 1670-71 में प्रकाशित हुए थे और अगले पाँच वर्षों में ही अंग्रेजी, डच, जर्मन तथा इतालवी भाषाओं में इनका अनुवाद हो गया।
→ भारतीय सामाजिक जीवन को समझने में बाधाएँ अल बिरुनी को भारतीय सामाजिक जीवन को समझने में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा। ये बाधाएँ थीं –
(1) संस्कृत भाषा की कठिनाई
(2) धार्मिक अवस्था और प्रथाओं में मित्रता
(3) अभिमान
→ अल बिरूनी का जाति व्यवस्था का विवरण अल बिरूनी ने जाति-व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी सिद्धान्तों को स्वीकार किया; परन्तु उसने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया। उसके अनुसार प्रत्येक वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। जाति व्यवस्था के विषय में अल बिरुनी का विवरण उसके नियामक संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्ण रूप से प्रभावित था।
→ इब्नबतूता तथा अनजाने को जानने की उत्कंठा इब्नबतूता ने अपनी भारत यात्रा के दौरान जो भी अपरिचित था, उसे विशेष रूप से रेखांकित किया ताकि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से प्रभावित हो सकें।
→ इब्नबतूता तथा नारियल और पान इब्नबतूता ने नारियल और पान दो ऐसी वानस्पतिक उपजों का वर्णन किया है, जिनसे उसके पाठक पूरी तरह से अपरिचित थे उसके अनुसार नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मेल खाता है क्योंकि इसमें भी मानो दो आँखें तथा एक मुख है और अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है। उसके अनुसार पान एक ऐसा वृक्ष है, जिसे अंगूर लता की तरह ही उगाया जाता है।
→ इब्नबतूता और भारतीय शहर इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे। अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे इब्नबतूता दिल्ली को बड़ा शहर, विशाल आबादी वाला तथा भारत में सबसे बड़ा बताता है। दौलताबाद (महाराष्ट्र) भी कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था। बाजार केवल आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे, बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे। दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार था जिसे ‘तारावबाद’ कहते थे।
→ कृषि और व्यापार इब्नबतूता के अनुसार कृषि बड़ी उत्पादनकारी थी। इसका कारण मिट्टी का उपजाऊपन था। किसान वर्ष में दो फसलें उगाते थे। भारतीय माल को मध्य तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया दोनों में बहुत माँग थी जिससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी मुनाफा होता था। भारतीय कपड़ों विशेष रूप से सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक माँग थी महीन मलमल की कई किस्में इतनी अधिक महँगी होती थीं कि उन्हें अमीर वर्ग के तथा बहुत ही धनाढ्य लोग ही पहन सकते थे।
→ संचार की एक अनूठी प्रणाली इब्नबतूता के अनुसार लगभग सभी व्यापारिक मार्गों पर सराय तथा विश्राम गृह बने हुए थे। इब्नबतूता भारत की डाक प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर चकित हुआ। डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की खबरें सुल्तान तक इस डाक व्यवस्था के माध्यम से मात्र पाँच दिनों में पहुँच जाती थीं। इब्नबतूता के अनुसार भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी। अश्व डाक व्यवस्था जिसे ‘उलुक’ कहा जा था, हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती थी पैदल डाक व्यवस्था में प्रति मील ती / अवस्थान होते थे, जिसे ‘दावा’ कहा जाता था। यह एक मील का एक तिहाई होता था।
→ इब्नबतूता और बर्नियर जहाँ इब्नबतूता ने हर उस बात का वर्णन किया जिसने उसे अपने अनूठेपन के कारण प्रभावित किया, वहीं बर्नियर एक भिन्न बुद्धिजीवी परम्परा से सम्बन्धित था। उसने भारत में जो भी देखा, उसको उसने यूरोप में व्याप्त स्थितियों से तुलना की। उसका उद्देश्य यूरोपीय संस्कृति की श्रेष्ठता प्रतिपादित करना था।
→ ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर बर्नियर ने ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ अपने गहन प्रेक्षण, आलोचनात्मक अन्तर्दृष्टि तथा गहन चिन्तन के लिए उल्लेखनीय है। बर्नियर ने अपने ग्रन्थ में मुगलों के इतिहास को एक प्रकार के वैश्विक ढाँचे में स्थापित करने का प्रयास किया है। इस ग्रन्थ में बर्नियर ने मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से की है तथा प्रायः यूरोप की श्रेष्ठता को दर्शाया है। उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया है अथवा फिर यूरोप का विपरीत दर्शाया है। उसने भारत में जो भिन्नताएँ देखीं, उन्हें इस प्रकार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत पश्चिमी संसार को निम्न कोटि का प्रतीत हो।
→ भूमि स्वामित्व का प्रश्न बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था। बर्नियर के अनुसार भूमि पर राजकीय स्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक था। राजकीय भू-स्वामित्व के कारण, भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें वृद्धि करने के लिए दूरगामी निवेश के प्रति उदासीन रहते थे। इस प्रकार निजी भूस्वामित्व के अभाव ने बेहतर भू-धारकों के वर्ग के उदय को रोका। इसके परिणामस्वरूप कृषि का विनाश हुआ तथा किसानों का उत्पीड़न हुआ।
→ बर्नियर द्वारा मुगल साम्राज्य का चित्रण वर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था। इसके शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब हवा’ से दूषित थे। इसके खेत ‘झाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से भरे हुए थे तथा इसका मात्र एक ही कारण था- राजकीय भूस्वामित्व। परन्तु किसी भी सरकारी मुगल दस्तावेज से यह बात नहीं होता कि राज्य ही भूमि का एक मात्र स्वामी था।
→ बर्नियर के विवरणों द्वारा पश्चिमी विचारकों को प्रभावित करना वर्नियर के विवरणों ने पश्चिमी विचारकों को भी प्रभावित किया। फ्रांसीसी दार्शनिक मॉटेस्क्यू ने उसके वृत्तांत का प्रयोग प्राच्य निरकुंशवाद के सिद्धान्त को विकसित करने में किया। इसके अनुसार एशिया में शासक अपनी प्रजा के ऊपर अपनी प्रभुता का उपभोग करते थे, जिसे दासता तथा गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था। इस तर्क का आधार यह था कि समस्त भूमि पर राजा का स्वामित्व होता तथा निजी सम्पत्ति अस्तित्व में नहीं थी। इसके अनुसार राजा और उसके अमीर वर्ग को छोड़कर प्रत्येक व्यक्ति कठिनाई से जीवन-यापन कर पाता था। उन्नीसवीं शताब्दी में कार्ल माक्र्स ने इस विचार को एशियाई उत्पादन शैली के सिद्धांत के रूप में और आगे बढ़ाया।
→ बर्नियर द्वारा ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से दूर होना बर्नियर द्वारा ग्रामीण समाज का यह चित्रण सच्चाई से दूर था। एक ओर बड़े जमींदार थे जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे और दूसरी ओर ‘अस्पृश्य’, भूमि विहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था, जो किराए के श्रम का प्रयोग करता था और माल उत्पादन में लगा रहता था। कुछ छोटे किसान भी थे जो बड़ी कठिनाई से अपने जीवन निर्वाह के योग्य उत्पादन कर पाते थे।
→ एक अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई बर्नियर के विवरण से कभी-कभी एक अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई भी उजागर होती है। उसका कहना है कि यद्यपि उत्पादन हर जगह पतनोन्मुख था, फिर भी सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चांदी के बदले निर्यात होता था। उसने एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व को भी स्वीकार किया है।
→ नगरों की स्थिति सत्रहवीं शताब्दी में जनसंख्या का लगभग पन्द्रह प्रतिशत भाग नगरों में रहता था। यह औसतन उसी समय पश्चिमी यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से अधिक था। इतने पर भी बनिंवर ने मुगलकालीन शहरों को शिविर नगर’ कहा है जी अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे उसका विश्वास था कि ये शिविर नगर राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे उस समय सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे जैसे उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र तीर्थ स्थान आदि।
→ व्यापारी वर्ग वर्नियर के अनुसार व्यापारी प्रायः सुद्द सामुदायिक अथवा बन्धुत्व के सम्बन्धों से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को महाजन कहा जाता था और उनका मुखिया सेठ कहलाता था।
→ व्यावसायिक वर्ग-अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद्, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे।
→ राजकीय कारखाने सम्भवतः बर्नियर एकमात्र ऐसा इतिहासकार है जो राजकीय कारखानों की कार्य प्रणाली का विस्तृत विवरण देता है। उसने लिखा है कि कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते हैं, जिन्हें कारखाना अथवा शिल्पकारों की कार्यशाला कहते हैं। एक कक्ष में कसीदाकार, एक अन्य में सुनार, तीसरे में चित्रकार, चौथे में प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले पाँचवें में बढ़ई, छठे में रेशम, जरी तथा महीन मलमल का काम करने वाले रहते हैं।
→ महिलाएँ दासियाँ, सती तथा श्रमिक बाजारों में दास खुले आम बेचे जाते थे सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहिन की शादी के अवसर पर दासियाँ के संगीत और नृत्य के प्रदर्शन से खूब आनन्दित हुआ। सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था। दासों का सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयोग किया जाता था। मुगलकालीन भारत में सती प्रथा प्रचलित थी। बर्नियर ने लिखा है कि यद्यपि कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से मृत्यु को गले लगा लेती थीं, परन्तु अन्यों को मरने के लिए बाध्य किया जाता था। महिलाओं का श्रम कृषि तथा कृषि के अलावा होने वाले उत्पादन दोनों में महत्त्वपूर्ण था। व्यापारिक परिवारों से आने वाली महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भाग लेती थीं। अतः महिलाओं को उनके घरों के विशेष स्थानों तक परिसीमित कर नहीं रखा जाता था।
काल-रेखा |
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दसरीं-ग्यारहवीं शताब्दियाँ 973-1048 | मोहम्मद इब्न अहमद अबू रेहान अल-बिरुनी (उज्ञेकिस्तान से) |
तेरहवीं शताब्दी 1254-1323 | मार्को पोलो (इटली से) |
चौदहर्वीं शताब्दी 1304-77 | इब्नतूता (मोरक्को से) |
पन्द्रहवीं शताब्दी 1413-82 | अब्द अल-रज़्जाक कमाल अल-दिन इब्न इस्हाक अल-समरकन्दी (समरकन्द से) |
1466-72 | अफानासी निकितिच निकितिन (पन्द्रहर्वीं शताब्दी, रूस से) |
(भारत में बिताये वर्ष) | दूरते बारबोसा, मृत्यु 1521 (पुर्तगाल से) |
सोलहवीं शताब्दी 1518 (भारत की यात्रा) | सयदी अली रेइस (तुर्की से) |
1562 (मृत्यु का वर्ष) | अन्तोनियो मानसेरते (स्पेन से) |
1536-1600 | महमूद वली बलखी (बल्खू से) |
सत्रहवीं शताब्दी 1626-31 (भारत में बिताए वर्ष) | पींटरमुंडी (इंग्लैण्ड से) |
1600-67 | ज्यौं बैप्टिस्ट तैवर्नियर (फ्रांस से) |
1605-89 | फ्रांस्वा बर्नियर (फ्रांस से) |
1620-88 | मोहम्मद इब्न अहमद अबू रेहान अल-बिरुनी (उज्ञेकिस्तान से) |
नोट-जहाँ कोई अन्य संकेत नहीं है तिथियाँ यात्री के जीवन काल को बता रही हैं। |