JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

बहुचयनात्मक प्रश्न 

1. द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत दो महाशक्तियाँ उभर कर सामने आयी थीं-
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ
(ब) सोवियत संघ और ब्रिटेन
(द) सोवियत संघ और चीन
उत्तर:
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ

2. क्यूबा प्रक्षेपास्त्र संकट किस वर्ष उत्पन्न हुआ था ?
(अ) 1967
(ब) 1971
(स)1975
(द) 1962
उत्तर:
(द) 1962

3. बर्लिन दीवार कब खड़ी की गई थी?
(अ) 1961
(बं) 1962
(स) 1960
(द) 1971
उत्तर:
(अ) 1961

4. उत्तर एटलांटिक संधि-संगठन की स्थापना की गई थी-
(अ) 1962 में
(ब) 1967 में
(स) 1949 में
(द) 1953 में
उत्तर:
(स) 1949 में

5. वारसा संधि कब हुई ?
(अ) 1965 में
(ब) 1955 में
(स) 1957 में
(द) 1954 में
उत्तर:
(ब) 1955 में

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6. तीसरी दुनिया से अभिप्राय है-
(अ) अज्ञात और शोषित देशों का समूह
(ब) विकासशील या अल्पविकसित देशों का समूह
(स) सोवियत गुट के देशों का समूह
(द) अमेरिकी गुट के देशों का समूह
उत्तर:
(ब) विकासशील या अल्पविकसित देशों का समूह

7. द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की प्रमुख
(अ) एकध्रुवीय विश्व राजनीति
(ब) द्वि-ध्रुवीय राजनीति
(स) बहुध्रुवीय राजनीति
(द) अमेरिकी गुट विशेषता है
उत्तर:
(ब) द्वि-ध्रुवीय राजनीति

8. गुटनिरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन हुआ था।
(अ) नई दिल्ली में
(ब) द्वि- ध्रुवीय राजनीति
(स) अफ्रीका में
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं

9. वर्तमान में गुटनिरपेक्ष आंदोलन में कितने सदस्य हैं। के देशों का समूह
(अ) 115
(ब) 116
(स) 117
(द) 120
उत्तर:
(द) 120

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. प्रथम विश्व युद्ध ………………….. से………………….. के बीच हुआ था।
उत्तर:
1914, 1918

2. शीतयुद्ध ……………….. और ……………….. तथा इनके साथी देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता, तनाव और संघर्ष की श्रृंखला
उत्तर:
अमरिका, सोवियत संघ

3. धुरी – राष्ट्रों की अगुआई जर्मनी, ………………….. और जापान के हाथ में थी।
उत्तर:
इटली

4. …………………. विश्व युद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरुआत हुई।
उत्तर:
द्वितीय

5. जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम का गुप्तनाम …………………. तथा ……………………. थी।
उत्तर:
लिटिल ब्वॉय, फैटमैन

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नाटो का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
नाटो का पूरा नाम है। उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन)।

प्रश्न 2.
‘वारसा संधि’ की स्थापना का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर:
‘वारसा संधि’ की स्थापना का मुख्य कारण नाटो के देशों का मुकाबला करना था।

प्रश्न 3.
भारत के पहले प्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर:
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे।

प्रश्न 4.
यूगोस्लाविया में एकता कायम करने वाले नेता कौन थे?
उत्तर:
जोसेफ ब्रॉज टीटो।

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प्रश्न 5.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक वामे एनक्रूमा थे।

प्रश्न 6.
शीतयुद्ध का चरम बिन्दु क्या था?
उत्तर:
क्यूबा मिसाइल संकट।

प्रश्न 7.
क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु हथियार तैनात करने की जानकारी संयुक्त राज्य अमेरिका को कितने समय बाद लगी?
उत्तर:
तीन सप्ताह बाद।

प्रश्न 8.
शीतयुद्ध के काल के तीन पश्चिमी या अमेरिकी गठबंधनों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो )।
  2. दक्षिण-पूर्व एशियाई संगठन ( सेन्टो)।
  3. केन्द्रीय संधि संगठन (सीटो )।

प्रश्न 9.
मार्शल योजना क्या थी?
उत्तर:
शीतयुद्ध काल में अमेरिका ने पश्चिमी यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन हेतु जो आर्थिक सहायता की, वह मार्शल योजना के नाम से जानी जाती है।

प्रश्न 10.
परमाणु अप्रसार संधि कब हुई?
उत्तर;
परमाणु अप्रसार संधि 1 जुलाई, 1968 को हुई।

प्रश्न 11.
शीतयुद्ध का सम्बन्ध किन दो गुटों से था?
उत्तर:
शीत युद्ध का सम्बन्ध जिन दो गुटों से था, वे थे

  1. अमेरिका के नेतृत्व में पूँजीवादी गुट और
  2.  सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी गुट।

प्रश्न 12.
शीतयुद्ध के दौरान महाशक्तियों के बीच
1. 1950-53
2. 1962 में हुई किन्हीं दो मुठभेड़ों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. 1950-53 कोरिया संकट
  2. 1962 में बर्लिन और कांगो मुठभेड़।

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प्रश्न 13.
नाटो में शामिल किन्हीं चार देशों के नाम लिखिय।
उत्तर:

  1. अमेरिका
  2.  ब्रिटेन
  3. फ्रांस
  4. इटली।

प्रश्न 14.
शीत युद्ध के युग में एक पूर्वी गठबंधन और तीन पश्चिमी गठबंधनों के नाम लिखिये।
उत्तर:
पूर्वी गठबंधन – वारसा पैक्ट, पश्चिमी गठबंधन

  1. नाटो,
  2. सीएटो और
  3. सैण्टो।

प्रश्न 15.
वारसा पैक्ट में शामिल किन्हीं चार देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. सोवियत संघ
  2. पोलैण्ड
  3. पूर्वी जर्मनी
  4. हंगरी।

प्रश्न 16.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के किन्हीं चार अग्रणी देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. भारत
  2. इण्डोनेशिया
  3. मिस्र
  4. यूगोस्लाविया।

प्रश्न 17.
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के कोई दो नकारात्मक प्रभाव लिखिये।
उत्तर:

  1. दो विरोधी गुटों का निर्माण।
  2. शस्त्रीकरण की प्रतिस्पर्धा का जारी रहना।

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प्रश्न 18.
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के कोई दो सकारात्मक प्रभाव लिखिये।
उत्तर:

  1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जन्म
  2. शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को प्रोत्साहन।

प्रश्न 19.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रणेता कौन थे?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रणेता थे

  1. जवाहरलाल नेहरू
  2. मार्शल टीटो
  3. कर्नल नासिर और
  4. डॉ. सुकर्णो।

प्रश्न 20.
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान को कब घुटने टेकने पड़े?
उत्तर:
सन् 1945 में अमेरिका ने जब जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये तो जापान को घुटने टेकने पड़े।

प्रश्न 21.
शीत युद्ध में पश्चिमी गठबंधन की विचारधारा क्या थी?
उत्तर:
शीत युद्ध काल में पश्चिमी गठबंधन उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवाद का समर्थक था।

प्रश्न 22.
सोवियत गठबंधन की विचारधारा क्या थी?
उत्तर:
सोवियत संघ गुट की वैचारिक प्रतिबद्धता समाजवाद और साम्यवाद के लिए थी।

प्रश्न 23.
पारमाणविक हथियारों को सीमित या समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों द्वारा किये गये किन्हीं दो समझौतों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि
  2. परमाणु अप्रसार संधि।

प्रश्न 24.
1960 में दो महाशक्तियों द्वारा किये गए किन्हीं दो समझौतों का उल्लेख करें।
उत्तर:

  1. परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि
  2. परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि।

प्रश्न 25.
पृथकतावाद से क्या आशय है?
उत्तर:
पृथकतावाद का अर्थ होता है। अपने को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से काटकर रखना।

प्रश्न 26.
गुटनिरपेक्षता पृथकतावाद से कैसे अलग है?
उत्तर:
पृथकतावाद अपने को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से काटकर रखने से है जबकि गुट निरपेक्षता में शांति और स्थिरता के लिए मध्यस्थता की सक्रिय भूमिका निभाना है।

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प्रश्न 27.
अल्प विकसित देश किन्हें कहा गया था?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकांश देशों को अल्प विकसित देश कहा गया था।

प्रश्न 28.
अल्प विकसित देशों के सामने मुख्य चुनौती क्या थी?
उत्तर:
अल्पं विकसित देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और ज्यादा विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी।

प्रश्न 29.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में शीत युद्ध के दौर में भारत ने क्या भूमिका निभाई?
उत्तर:
भारत ने एक तरफ तो अपने को महाशक्तियों की खेमेबन्दी से अलग रखा तो दूसरी तरफ अन्य नव स्वतंत्र देशों को महाशक्तियों के खेमों में जाने से रोका।

प्रश्न 30.
भारत ‘नाटो’ अथवा ‘सीटो’ का सदस्य क्यों नहीं बना?
उत्तर:
भारत ‘नाटो’ अथवा ‘सीटो’ का सदस्य इसलिए नहीं बना क्योंकि भारत गुटनिरपेक्षता की नीति में विश्वास रखता है।

प्रश्न 31.
शीत युद्ध किनके बीच और किस रूप में जारी रहा?
उत्तर:
शीत युद्ध सोवियत संघ और अमेरिका तथा इनके साथी देशों के बीच प्रतिद्वन्द्विता, तनाव और संघर्ष की एक श्रृंखला के रूप में जारी रहा।

प्रश्न 32.
द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की अगुवाई कौन-से देश कर रहे थे?
उत्तर:
अमरीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन और फ्रांस।

प्रश्न 33.
शीतयुद्ध के काल में पूर्वी गठबंधन का अगुआ कौन था तथा इस गुट की प्रतिबद्धता किसके लिए थी?
उत्तर:
शीतयुद्ध के काल में पूर्वी गठबंधन का अगुआ सोवियत संघ था तथा इस गुट की प्रतिबद्धता समाजवाद तथा साम्यवाद के लिए थी।

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प्रश्न 34.
अमरीका ने जापान के किन दो शहरों पर परमाणु बम गिराया?
उत्तर:
हिरोशिमा तथा नागासाकी।

प्रश्न 35.
द्वितीय विश्व युद्ध कब से कब तक हुआ था?
उत्तर:
1939 से 1945।

प्रश्न 36.
वारसा संधि से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सोवियत संघ की अगुआई वाले पूर्वी गठबंधन को वारसा संधि के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 37.
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन को पश्चिमी गठबंधन भी कहा जाता है, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि पश्चिमी यूरोप के अधिकतर देश अमरीका में शामिल हुए।

प्रश्न 38.
भारत ने सोवियत संध के साथ आपसी मित्रता की संधि पर कब हस्ताक्षर किय ?
उत्तर:
1971 में।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध का क्या अर्थ है?
शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?
अथवा
उत्तर:
शीत युद्ध वह अवस्था है जब दो या दो से अधिक देशों के मध्य तनावपूर्ण वातावरण हो, लेकिन वास्तव में कोई युद्ध न हो। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वाद-विवाद, रेडियो प्रसारणों तथा सैनिक शक्ति के प्रसार द्वारा लड़े गये स्नायु युद्ध को शीत युद्ध कहा जाता है।

प्रश्न 2.
अपरोध का तर्क किसे कहा गया?
उत्तर:
अगर कोई शत्रु पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने की कोशिश करता है तब भी दूसरे के पास उसे बर्बाद करने लायक हथियार बच जायेंगे। इसी को अपरोध का तर्क कहा गया।

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प्रश्न 3.
सीमित परमाणु परीक्षण संधि के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सीमित परमाणु परीक्षण संधि – वायुमण्डल, बाहरी अंतरिक्ष तथा पानी के अन्दर परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमरीका, ब्रिटेन तथा सोवियत संघ ने मास्को में 5 अगस्त, 1963 को इस संधि पर हस्ताक्षर किये। यह संधि 10 अक्टूबर, 1963 से प्रभावी हो गई।

प्रश्न 4.
शीत युद्ध के दायरे से क्या आशय है?
उत्तर:
शीत युद्ध के दायरे से यह आशय है कि ऐसे क्षेत्र जहाँ विरोधी खेमों में बँटे देशों के बीच संकट के अवसर आए, युद्ध हुए या इनके होने की संभावना बनी, लेकिन बातें एक हद से ज्यादा नहीं बढ़ीं।

प्रश्न 5.
तटस्थता से क्या आशय है?
उत्तर:
तटस्थता का अर्थ है – मुख्य रूप से युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना ऐसे देश युद्ध में न तो शामिल होते हैं और न ही युद्ध के सही-गलत होने के बारे में अपनी कोई राय देते हैं।

प्रश्न 6.
शीत युद्ध की कोई दो सैनिक विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
शीत युद्ध की दो सैनिक विशेषताएँ ये थीं:

  1. सैन्य गठबंधनों का निर्माण करना तथा इनमें अधिक से अधिक देशों को शामिल करना।
  2. शस्त्रीकरण करना तथा परमाणु मिसाइलों को बनाना तथा उन्हें युद्ध के महत्त्व के ठिकानों पर स्थापित करना।

प्रश्न 7.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की आलोचना के दो आधारों को स्पष्ट कीजिये किन्हीं दो को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की आलोचना के दो आधार निम्नलिखित हैं-

  1. सिद्धान्तहीनता: गुटनिरपेक्ष आंदोलन की गुटनिरपेक्षता की नीति सिद्धान्तहीन रही है।
  2. अस्थिरता की नीति: भारत की गुटनिरपक्षता की नीति में अस्थिरता रही है।

प्रश्न 8.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने दो-ध्रुवीयता को कैसे चुनौती दी थी?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने

  1. एशिया, अफ्रीका व लातिनी अमरीका के नव स्वतंत्र देशों को गुटों से अलग रखने का तीसरा विकल्प देकर तथा
  2. शांति व स्थिरता के लिए दोनों गुटों में मध्यस्थता द्वारा दो – ध्रुवीयता को चुनौती दी थी।

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प्रश्न 9.
शीत युद्ध में विचारधारा के स्तर पर क्या लड़ाई थी?
उत्तर:
शीत युद्ध में विचारधारा की लड़ाई इस बात को लेकर थी कि पूरे विश्व में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का सबसे बेहतर सिद्धान्त कौनसा है? अमरीकी गुट जहाँ उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवाद का हामी था, वहाँ सोवियत संघ गुट की प्रतिबद्धता समाजवाद और साम्यवाद के लिए थी।

प्रश्न 10.
किस घटना के बाद द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत हुआ?
उत्तर:
अगस्त, 1945 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये और जापान को घुटने टेकने पड़े। इन बमों के गिराने के बाद ही दूसरे विश्व युद्ध का अन्त हुआ।

प्रश्न 11.
मार्शल योजना के तहत पश्चिमी यूरोप के देशों को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
1947 से 1952 तक जारी की गई अमरीकी मार्शल योजना के तहत पश्चिमी यूरोप के देशों को अपने पुनर्निर्माण हेतु अमरीका की आर्थिक सहायता प्राप्त हुई।

प्रश्न 12.
शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों के बीच हुई किन्हीं चार मुठभेड़ों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों के बीच निम्न मुठभेड़ें हुईं-

  1. 1950-53 का कोरिया युद्ध तथा कोरिया का दो भागों में विभक्त होना।
  2. 1954 का फ्रांस एवं वियतनाम का युद्ध जिसमें फ्रांसीसी सेना की हार हुई।
  3. बर्लिन की दीवार का निर्माण।
  4.  क्यूबा मिसाइल संकट (1962 )

प्रश्न 13.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए:
(i) जवाहरलाल नेहरू मिस्र
(ii) जोसेफ ब्रॉज टीटो
(iii) गमाल अब्दुल नासिर
(iv) सुकर्णो
उत्तर:
(i) जवाहरलाल नेहरू – मिस्र
(ii) जोसेफ ब्राज टीटो – इण्डोनेशिया
(iii) गमाल अब्दुल नासिर – भारत
(iv) सुकर्णो – यूगोस्लाविया

प्रश्न 14.
महाशक्तियों के बीच गहन प्रतिद्वन्द्विता होने के बावजूद शीत युद्ध रक्तरंजित युद्ध का रूप क्यों नहीं ले सका?
उत्तर:
शीत युद्ध शुरू होने के पीछे यह समझ भी कार्य कर रही थी कि परमाणु युद्ध की सूरत में दोनों पक्षों को इतना नुकसान उठाना पड़ेगा कि उनमें विजेता कौन है यह तय करना भी असंभव होगा इसलिए कोई भी पक्ष युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता था।

प्रश्न 15.
“शीत युद्ध में परस्पर प्रतिद्वन्द्वी गुटों में शामिल देशों से अपेक्षा थी कि वे तर्कसंगत और जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार करेंगे।” यहाँ तर्कसंगत और जिम्मेदारी भरे व्यवहार से क्या आशय है?
उत्तर:
यहाँ तर्कसंगत भरे व्यवहार से आशय है कि आपसी युद्ध में जोखिम है। पारस्परिक अपरोध की स्थिति में युद्ध लड़ना दोनों के लिए विध्वंसक साबित होगा। इस संदर्भ में जिम्मेदारी का अर्थ है- संयम से काम लेना और तीसरे विश्व युद्ध के जोखिम से बचना। बताइये।

प्रश्न 16.
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों को छोटे देशों ने क्यों आकर्षित किया? कोई दो कारण
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों को छोटे देशों ने निम्न कारणों से आकर्षित किया

  1. महाशक्तियाँ इन देशों में अपने सैनिक अड्डे बनाकर दुश्मन के देशों की जासूसी कर सकती थीं।
  2. छोटे देश सैन्य गठबन्धन के अन्तर्गत आने वाले सैनिकों को अपने खर्चे पर अपने देश में रखते थे। इससे महाशक्तियों पर आर्थिक दबाव कम पड़ता था।

प्रश्न 17.
शीत युद्ध के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय गठबंधनों का निर्धारण कैसे होता था?
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय गठबंधनों का निर्धारण महाशक्तियों की जरूरतों और छोटे देशों के लाभ- हानि के गणित से होता था।

  1. दोनों महाशक्तियाँ विश्व के विभिन्न हिस्सों में अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाने के लिए तुली हुई थीं।
  2. छोटे देशों ने सुरक्षा, हथियार और आर्थिक मदद की दृष्टि से गठबंधन किया।

प्रश्न 18.
उत्तर – एटलांटिक संधि संगठन (नाटो) कब बना तथा इसमें कितने देश शामिल थे?
उत्तर:
नाटो (NATO) : अप्रैल, 1949 में अमेरिका के नेतृत्व में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की स्थापना हुई जिसमें 12 देश शामिल थे। ये देश थे: संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड, डेनमार्क, नार्वे , फिनलैंड,

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प्रश्न 19.
वारसा संधि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
नाटो के जवाब में सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों के गठबंधन ने सन् 1955 में ‘वारसा संधि’ की। इसमें ये देश सम्मिलित हुए – सोवियत संघ, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, चैकोस्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया और बुल्गारिया इसका मुख्य काम था – ‘नाटो’ में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना।

प्रश्न 20.
शीतयुद्ध के कारण बताएँ।
उत्तर:
शीत युद्ध के कारण – शीत युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. अमेरिका और सोवियत संघ के महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले में खड़े होना शीत युद्ध का कारण बना।
  2. विचारधाराओं के विरोध ने भी शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।
  3. अपरोध के तर्क ने प्रत्यक्ष तीसरे युद्ध को रोक दिया। फलतः शीतयुद्ध का विकास हुआ।

प्रश्न 21.
शीतयुद्ध के अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन करें। उत्तर – शीतयुद्ध के अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव निम्नलिखित थे-

  1. विश्व का दो गुटों में विभाजन: शीतयुद्ध के कारण अमेरिका और सोवियत संघ के नेतृत्व में विश्व दो खेमों में विभाजित हो गया। एक खेमा पूँजीवादी गुट कहलाया और दूसरा साम्यवादी गुट कहलाया।
  2. सैनिक गठबन्धनों की राजनीति: शीतयुद्ध के कारण सैनिक गठबंधनों की राजनीति प्रारंभ हुई।
  3. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की उत्पत्ति: शीतयुद्ध के कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन की उत्पत्ति हुई एशिया- अफ्रीका के नव-स्वतंत्र राष्ट्रों ने दोनों गुटों से अपने को अलग रखने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा बनाया।
  4. शस्त्रीकरण को बढ़ावा: शीत युद्ध के प्रभावस्वरूप शस्त्रीकरण को बढ़ावा मिला। दोनों गुट खतरनाक शस्त्रों का संग्रह करने लगे।

प्रश्न 22.
शीत युद्ध की तीव्रता में कमी लाने वाले कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
निम्न कारणों से शीतयुद्ध की तीव्रता में कमी आयी-
1. अपरोध का तर्क:
अपरोध ( रोक और सन्तुलन ) के तर्क ने शीत युद्ध में संयम बरतने के लिए दोनों गुटों को मजबूर कर दिया । अपरोध का तर्क यह है कि जब दोनों ही विरोधी पक्षों के पास समान शक्ति तथा परस्पर नुकसान पहुँचाने की क्षमता होती है तो कोई भी युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता।

2. गठबंधन में भेद आना:
सोवियत संघ के साम्यवादी गठबंधन में भेद पैदा होने की स्थिति ने भी शीत युद्ध की तीव्रता को कम किया। साम्यवादी चीन की 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध में सोवियत संघ से अनबन हो गयी।

3. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का विकास: गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने भी नव-स्वतंत्र राष्ट्रों को दो ध्रुवीय विश्व की गुटबाजी से अलग रहने का मौका दिया।

प्रश्न 23.
शीत युद्ध के काल में ‘अपरोध’ की स्थिति ने युद्ध तो रोका लेकिन यह दोनों महाशक्तियों के बीच पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता को नहीं रोक सकी। क्यों? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
अपरोध की स्थिति शीत युद्ध काल में दोनों महाशक्तियों की प्रतिद्वन्द्विता को निम्न कारणों से नहीं रोक सकी-

  1. दोनों ही गुटों के पास परमाणु बमों का भारी भण्डारण था। दोनों एक- दूसरे से निरंतर सशंकित थ। इसलिए प्रतिस्पर्द्धा बनी रही, यद्यपि सम्पूर्ण विनाश के भय ने युद्ध को रोक दिया।
  2. दोनों महाशक्तियों की पृथक्-पृथक् विचारधाराएँ थीं। दोनों में विचारधारागत प्रतिद्वन्द्विता जारी रही क्योंकि उनमें कोई समझौता संभव नहीं था।
  3. दोनों महाशक्तियाँ औद्योगीकरण के चरम विकास की अवस्था में थीं और उन्हें अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल विश्व के अल्पविकसित देशों से ही प्राप्त हो सकता था। इसलिए सैनिक गठबंधनों के द्वारा इन क्षेत्रों में दोनों अपने- अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए छीना-झपटी कर रहे थे।

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प्रश्न 24.
महाशक्तियों ने ‘अस्त्र- नियंत्रण’ संधियाँ करने की आवश्यकता क्यों समझी?
उत्तर:
यद्यपि महाशक्तियों ने यह समझ लिया था कि परमाणु युद्ध को हर हालत में टालना जरूरी है। इसी समझ के कारण दोनों महाशक्तियों ने संयम बरता और शीत युद्ध एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र की तरफ खिसकता रहा; तथापि दोनों के बी प्रतिद्वन्द्विता जारी थी। इस प्रतिद्वन्द्विता के चलते रहने से दोनों ही महाशक्तियाँ यह समझ रही थीं कि संयम के बावजूद गलत अनुमान या मंशा को समझने की भूल या किसी परमाणु दुर्घटना या किसी मानवीय त्रुटि के कारण युद्ध हो सकता है! इस बात को समझते हुए दोनों ही महाशक्तियों ने कुछेक परमाणविक और अन्य हथियारों को सीमित या समाप्त करने के लिए आपस में सहयोग करने का फैसला किया और अस्त्र नियंत्रण संधियों द्वारा हथियारों की दौड़ पर लगाम लगाई और उसमें स्थायी संतुलन लाया है।

प्रश्न 25.
1947 से 1950 के बीच शीतयुद्ध के विकास का वर्णन करें।
उत्तर:
1947 से 1950 के बीच शीतयुद्ध का विकास:

  1. मार्शल योजना (1947): अमेरिका ने यूरोप में रूसी प्रभाव को रोकने की दृष्टि से 1947 में पश्चिमी यूरोप के पुनर्निर्माण हेतु मार्शल योजना बनायी।
  2. बर्लिन की नाकेबन्दी: सोवियत संघ ने 1948 में बर्लिन कीं नाकेबंदी कर शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।
  3. नाटो की स्थापना: 4 अप्रैल, 1949 को अमेरिकी गुट ने नाटो की स्थापना कर शीत युद्ध को बढ़ावा
  4. कोरिया संकट: 1950 में उत्तरी तथा दक्षिणी कोरिया के बीच हुए युद्ध ने भी शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 26.
क्यूबा का मिसाइल संकट क्या था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्यूबा का मिसाइल संकट 1962 में सोवियत संघ के नेता नीकिता ख्रुश्चेव ने अमरीका के तट पर स्थित एक द्वीपीय देश क्यूबा को रूस के सैनिक अड्डे के रूप में बदलने हेतु वहाँ परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं। हथियारों की इस तैनाती के बाद सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमरीका के मुख्य भू-भाग के लगभग दो गुने ठिकानों या शहरों पर हमला बोल सकता था। क्यूबा में मिसाइलों की तैनाती की जानकारी अमरीका को तीन हफ्ते बाद लगी।

इसके बाद अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी ने आदेश दिया कि अमरीकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाय। इस चेतावनी से लगा कि युद्ध होकर रहेगा। इसी को क्यूबा संकट के रूप में जाना गया। लेकिन सोवियत संघ के जहाजों के वापसी का रुख कर लेने से यह संकट टल गया।

प्रश्न 27.
1960 के दशक को खतरनाक दशक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
निम्न घटनाओं के कारण 1960 का दशक खतरनाक दशक कहा जाता है-

  1. कांगो संकट: 1960 के दशक के प्रारंभ में ही कांगो सहित अनेक स्थानों पर प्रत्यक्ष रूप से मुठभेड़ की स्थिति पैदा हो गई थी।
  2. क्यूबा संकट: 1961 में क्यूबा में अमरीका द्वारा प्रायोजित ‘बे ऑफ पिग्स’ आक्रमण और 1962 में ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ ने शीतयुद्ध को चरम पर पहुँचा दिया।
  3. अन्य: सन् 1965 में डोमिनिकन रिपब्लिक में अमेरिकी हस्तक्षेप और 1968 में चेकोस्लोवाकिया में सोवियत संघ के हस्तक्षेप से तनाव बढ़ा।

प्रश्न 28.
गुटनिरपेक्षता क्या है? क्या गुटनिरपेक्षता का अभिप्राय तटस्थता है?.
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का अर्थ- गुटनिरपेक्षता का अर्थ है कि महाशक्तियों के किसी भी गुट में शामिल न होना तथा इन गुटों के सैनिक गठबंधनों व संधियों से अलग रहना तथा गुटों से अलग रहते हुए अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करना तथा विश्व राजनीति में भाग लेना। गुटनिरपेक्षता तटस्थता नहीं है – गुट निरपेक्षता तटस्थता की नीति नहीं है।

तटस्थता का अभिप्राय है युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना। ऐसे देश न तो युद्ध में संलग्न होते हैं और न ही युद्ध के सही-गलत के बारे में अपना कोई पक्ष रखते हैं। लेकिन गुटनिरपेक्षता युद्ध को टालने तथा युद्ध के अन्त का प्रयास करने की नीति है।

प्रश्न 29.
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की पाँच विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की विशेषताएँ-

  1. भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने की नीति है।
  2. भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति एक स्वतंत्र नीति है तथा यह अन्तर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता हेतु अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय सहयोग देने की नीति है
  3. भारत की गुटनिरपेक्ष विदेश नीति सभी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने पर बल देती है।
  4. भारत की गुटनिरपेक्ष नीति नव-स्वतंत्र देशों के गुटों में शामिल होने से रोकने की नीति है।
  5. भारत की गुटनिरपेक्ष नीति अल्पविकसित देशों को आपसी सहयोग तथा आर्थिक विकास पर बल देती है।

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प्रश्न 30.
भारत के गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कोई चार कारण बताओ। भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति क्यों अपनाई?
अथवा
उत्तर-भारत के गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. राष्ट्रीय हित की दृष्टि से भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति इसलिए अपनाई ताकि वह स्वतंत्र रूप से ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले ले सके जिनसे उसका हित सधता हो; न कि महाशक्तियों और खेमे के देशों का।
  2. दोनों महाशक्तियों से सहयोग लेने हेतु भारत ने दोनों महाशक्तियों से सम्बन्ध व मित्रता स्थापित करते हुए दोनों से सहयोग लेने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति अपनायी।
  3. स्वतंत्र नीति-निर्धारण हेतु भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि भारत स्वतंत्र नीति का निर्धारण कर सके।
  4. भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए – भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

प्रश्न 31.
बेलग्रेड शिखर सम्मेलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये|
उत्तर:
बेलग्रेड शिखर सम्मेलन;
सन् 1961 में गुटनिरपेक्ष देशों का पहला शिखर सम्मेलन बेलग्रेड में हुआ। इसी को बेलग्रेड शिखर सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। यह सम्मेलन कम-से-कम निम्न तीन बातों की परिणति था

  1. भारत, यूगोस्लाविया, मिस्र, इण्डोनेशिया और घाना इन पाँच देशों के बीच सहयोग।
  2. शीत युद्ध का प्रसार और इसके बढ़ते दायरे।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर बहुत से नव-स्वतंत्र अफ्रीकी देशों का नाटकीय उदय।

बेलग्रेड शिखर सम्मेलन में 25 सदस्य देश शामिल हुए। सम्मेलन में स्वीकार किये गये घोषणा-पत्र में कहा गया कि विकासशील राष्ट्र बिना किसी भय व बाधा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास को प्रेरित करें।

प्रश्न 32.
सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता ‘साल्ट प्रथम’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता (साल्ट ) प्रथम सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता (साल्ट) का प्रथम चरण सन् 1969 के नवम्बर में प्रारंभ हुआ सोवियत संघ के नेता लियोनेड ब्रेझनेव और अमरीका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने मास्को में 26 मई, 1972 को निम्नलिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए

  1. परमाणु मिसाइल परिसीमन संधि (ए वी एम ट्रीटी) – इस संधि के अन्तर्गत दोनों ही राष्ट्रों ने हवाई सुरक्षा एवं सामरिक प्रक्षेपास्त्र सुरक्षा को छोड़कर सामरिक युद्ध कौशल के प्रक्षेपास्त्रों व प्रणालियों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
  2. सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन के बारे में अंतरिम समझौता हुआ जो 3 अक्टूबर, 1972 से प्रभावी हुआ।

प्रश्न 33.
” गुटनिरपेक्ष आंदोलन वैश्विक सम्बन्धों में खतरनाक दुश्मनी के युग में एक संस्थात्मक आशावादी अनुक्रिया के रूप में सामने आया। इसका मुख्य सिद्धान्त यह था कि जो महाशक्ति नहीं है या जिनके सदस्यों की किसी भी गुट में शामिल होने की अपनी कोई इच्छा नहीं थी। हमारे नेताओं ने किसी गुट में शामिल होने से मना करके तटस्थ रहना स्वीकार किया, इस तरह उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना की। ” ऊपर लिखित अनुच्छेद को पढ़ें एवं निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
(क) अनुच्छेद में संकेत दिए गए वैश्विक दुश्मनी का नाम लिखें।
(ख) दो महाशक्तियों का नाम लिखें, जिनका आपस में तनाव था।
(ग) भारत द्वारा गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल होने के कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:
(क) इस पैरे में वैश्विक दुश्मनी का अर्थ अमेरिका एवं सोवियत संघ के बीच चल रहे शीत युद्ध से है।

(ख) अमेरिका एवं सोवियत संघ के बीच तनाव था।

(ग) भारत निम्नलिखित कारणों से गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल हुआ-
(i) भारत गुटों की राजनीति से अलग रहना चाहता था।
(ii) भारत दोनों शक्ति गुटों से लाभ प्राप्त करना चाहता था।

प्रश्न 34.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन को अनवरत जारी रखना द्वि-ध्रुवीय विश्व में एक चुनौती भरा काम था। क्यों? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
शीत युद्ध काल के द्विध्रुवीय विश्व में गुटनिरपेक्ष आंदोलन को चलाये रखना एक चुनौती भरा काम था, क्योंकि:

  1. विश्व की दोनों महाशक्तियाँ नवस्वतंत्रता प्राप्त तीसरे विश्व के अल्पविकसित देशों को लालच देकर, दबाव डालकर तथा समझौते कर अपने-अपने गुट में मिलाने का प्रयास कर रही थीं।
  2. शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों द्वारा अनेक देशों पर हमले किये गये थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में गुट- निरपेक्ष आंदोलन को निरन्तर जारी रखना स्वयं में एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।
  3. पाँच सदस्य देशों ने मिलकर गुट निरपेक्ष आंदोलन का सफर शुरू किया था जिसकी संख्या बढ़ते हुए 120 तक हो गई है। शीतयुद्ध काल में अपने समर्थक देशों की इतनी संख्या बनाना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।

प्रश्न 35.
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से अभिप्राय है। ऐसी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था जिसमें नवोदित विकासशील राष्ट्रों का राष्ट्रीय विकास पूँजीवादी राष्ट्रों की इच्छा पर निर्भर न रहे। विश्व आर्थिक व्यवस्था का संचालन एक-दूसरे की संप्रभुता का समादर, अहस्तक्षेप एवं कच्चे माल व उत्पादन राष्ट्र का पूर्ण अधिकार आदि सिद्धान्तों पर आधारित हो। नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के मूल सिद्धान्त हैं।

  1. अल्प विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त हो, जिनका दोहन पश्चिम में विकसित देश करते हैं।
  2. अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक हो।
  3. पश्चिमी देशों से मंगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम हो।
  4. अल्प विकसित देशों की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़े।

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प्रश्न 36.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य लिखिये।
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के उद्देश्य – नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित

  1. नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार हेतु प्रस्तावित की गई थी।
  2. इसमें अल्पविकसित देशों को उनके उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होने का उद्देश्य रखा गया है जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं।
  3. इसमें अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी।
  4. इसमें पश्चिमी देशों से मंगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी।
  5. अल्प विकसित देशों की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़ेगी।
  6. विकसित देश विकासशील देशों में पूँजी का निवेश करेंगे, उन्हें न्यूनतम ब्याज की शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराया जायेगा तथा उनके पुनर्भुगतान की शर्तें भी लचीली होंगी।

प्रश्न 37.
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के समर्थन में दो तर्क दीजिये।
उत्तर:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के समर्थन में तर्क-

  1. गुटनिरपेक्षता के कारण भारत ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले ले सका जिनसे उसका हित सता था न कि महाशक्तियों और उनके खेमे के देशों का।
  2. इसके कारण भारत हमेशा इस स्थिति में रहा कि एक महाशक्ति उसके खिलाफ हो जाए तो वह दूसरी महाशक्ति के नजदीक आने की कोशिश करे। अगर भारत को महसूस हो कि महाशक्तियों में से कोई उसकी अनदेखी कर रहा है या अनुचित दबाव डाल रहा है तो वह दूसरी महाशक्ति की तरफ अपना रुख कर सकता था। दोनों गुटों में से कोई भी भारत को लेकर न तो बेफिक्र हो सकता था और न ही धौंस जमा सकता था।

प्रश्न 38.
दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि संगठन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
शीतयुद्ध के दौरान अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों का निर्धारण महाशक्तियों की जरूरतों और छोटे देशों के लाभ-हानि के गणित से होता था। महाशक्तियों के बीच की तनातनी का मुख्य अखाड़ा यूरोप बना। कई मामलों में यह भी देखा गया है कि अपने गुट में शामिल करने के लिए महाशक्तियों ने बल प्रयोग किया। सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप में अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया। इस क्षेत्र के देशों में सोवियत संघ की सेना की व्यापक उपस्थिति ने यह सुनिश्चित करने के लिए अपना प्रभाव जमाया कि यूरोप का पूरा पूर्वी हिस्सा सोवियत संघ के दबदबे में रहे। पूर्वी और दक्षिण-पूर्व एशिया तथा पश्चिम एशिया में अमरीका ने गठबंधन का तरीका अपनाया। इन गठबंधनों को दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि संगठन (SEATO) और केन्द्रीय संधि संगठन कहा जाता है।

प्रश्न 39.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सटीक परिभाषा कर पाना मुश्किल है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समय के साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्यों की संख्या बढ़ती गई। 2019 में अजरबेजान में हुए 18वें सम्मेलन में 120 सदस्य देश और 17 पर्यवेक्षक देश शामिल हुए। जैसे-जैसे गुटनिरपेक्ष आंदोलन एक लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में बढ़ता गया वैसे-वैसे इसमें विभिन्न राजनीतिक प्रणाली और अलग-अलग हितों के देश शामिल होते गए। इससे गुटनिरपेक्ष आंदोलन के मूल स्वरूप में बदलाव आया इसी कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सटीक परिभाषा कर पाना मुश्किल है।

प्रश्न 40.
गुटनिरपेक्षता के आंदोलन की बदलती प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समय बीतने के साथ गुटनिरपेक्षता की प्रकृति भी बदली तथा इसमें आर्थिक मुद्दों को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा। बेलग्रेड में हुए पहले सम्मेलन (1961) में आर्थिक मुद्दे ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं थे। सन् 1970 के दशक के मध्य तक आर्थिक मुद्दे प्रमुख हो उठे। इसके परिणामस्वरूप गुटनिरपेक्ष आंदोलन आर्थिक दबाव समूह बन गया। सन् 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध तक नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को बनाये चलाये रखने के प्रयास मंद पड़ गए।

प्रश्न 41.
” अमरीका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराना एक राजनीतिक खेल था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अगस्त, 1945 में अमरीका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए और तब जापान को आत्मसमर्पण करना पड़ा इसके साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति हो गई। यद्यपि अमरीका इस बात को जानता था कि जापान आत्मसमर्पण करने वाला है। अमरीका की इस कार्रवाई का लक्ष्य सोवियत संघ को एशिया तथा अन्य जगहों पर सैन्य और राजनीतिक लाभ उठाने से रोकना था। वह सोवियत संघ के सामने यह भी जाहिर करना चाहता था कि अमरीका ही सबसे बड़ी ताकत है। अर्थात् यह कहा जा सकता है कि अमरीका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराना एक राजनीतिक खेल था।

प्रश्न 42.
हथियारों की होड़ पर लगाम लगाने हेतु महाशक्तियों द्वारा किए गए प्रयत्नों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दोनों महाशक्तियों को इस बात का अंदाजा था कि परमाणु युद्ध दोनों के लिए विनाशकारी होगा। इस कारण, अमेरिका और सोवियत संघ ने कुछेक परमाण्विक और अन्य हथियारों को सीमित या समाप्त करने हेतु आपस में सहयोग का फैसला किया। अतः दोनों ने ‘अस्त्र – नियन्त्रण’ का फैसला किया। इस प्रयास की शुरुआत 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में हुई और एक ही दशक के भीतर दोनों पक्षों ने तीन अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। ये समझौते थे– परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि, परमाणु अप्रसार सन्धि और परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन सन्धि तत्पश्चात् महाशक्तियों ने ‘अस्त्र परिसीमन के लिए वार्ताओं के कई दौरे किए और हथियारों पर अंकुश रखने के लिए अनेक सन्धियाँ कीं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्यूबा का मिसाइल संकट क्या था? यह संकट कैसे टला ? क्यूबा का मिसाइल संकट
उत्तर:
क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु मिसाइलें तैनात करना: सोवियत संघ के नेता नीकिता ख्रुश्चेव ने अमरीका के तट पर स्थित एक छोटे से द्वीपीय देश क्यूबा को रूस के ‘सैनिक अड्डे’ के रूप में बदलने हेतु 1962 में क्यूबा परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं।

अमरीका का नजदीकी निशाने की सीमा में आना: मिसाइलों की तैनाती से पहली बार अमरीका नजदीकी निशाने की सीमा में आ गया। अब सोवियत संघ पहले की तुलना में अमरीका के मुख्य भू-भाग के लगभग दोगुने ठिकानों या शहरों पर हमला बोल सकता था।

अमरीका की प्रतिक्रिया तथा सोवियत संघ को संयम भरी चेतावनी: क्यूबा में इन परमाणु मिसाइलों की तैनाती की जानकारी अमरीका को तीन हफ्ते बाद लगी। इसके बाद अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी ने आदेश दिया कि अमरीकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाये। अमरीका की इस चेतावनी से ऐसा लगा कि युद्ध होकर रहेगा। इसी को क्यूबा मिसाइल संकट के रूप में जाना गया।

सोवियत संघ का संयम भरा कदम और संकट की समाप्ति: अमरीका की गंभीर चेतावनी को देखते हुए सोवियत संघ ने संयम से काम लिया और युद्ध को टालने का फैसला किया। सोवियत संघ के जहाजों ने या तो अपनी गति धीमी कर ली या वापसी का रुख कर लिया। इस प्रकार क्यूबा मिसाइल संकट टल गया।

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प्रश्न 2.
शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं? अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर इसके प्रभाव का परीक्षण कीजिये । उत्तर- शीत युद्ध का अर्थ – द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से लेकर 1990 तक विश्व राजनीति में दो महाशक्तियों- अमेरिका और सोवियत संघ के नेतृत्व में उदारवादी पूँजीवादी गुट तथा साम्यवादी समाजवादी गुट के बीच जो शक्ति व प्रभाव विस्तार की प्रतिद्वन्द्विता चलती रही, उसे शीत युद्ध का नाम दिया गया। दोनों के बीच यह वाद-विवादों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो प्रसारणों तथा भाषणों से लड़ा जाने वाला युद्ध; शस्त्रों की होड़ को बढ़ाने वाली एक सैनिक प्रवृत्ति तथा दो भिन्न विचारधाराओं का युद्ध था। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीतयुद्ध का प्रभाव: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव पड़े। यथा
(अ) नकारात्मक प्रभाव:

  1. शीत युद्ध ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भय और सन्देह के वातावरण को निरन्तर बनाए रखा।
  2. इसने सैनिक गठबन्धनों को जन्म दिया; सैनिक अड्डों की स्थापना की, शस्त्रों की दौड़ तेज की और विनाशकारी शस्त्रों के निर्माण को बढ़ावा दिया।
  3. इसने विश्व में दो विरोधी गुटों को जन्म दिया।
  4. इसके कारण सम्पूर्ण विश्व पर परमाणु युद्ध का भय छाया रहा।
  5. शीत युद्ध ने निःशस्त्रीकरण के प्रयासों को अप्रभावी बना दिया।

(ब) सकारात्मक प्रभाव-

  1. शीत युद्ध के कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जन्म तथा विकास हुआ।
  2. इसकी भयावहता के कारण शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को प्रोत्साहन मिला।
  3. इसके कारण आणविक शक्ति के क्षेत्र में तकनीकी और प्राविधिक विकास को प्रोत्साहन मिला।
  4. इसने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना को प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 3.
शीतयुद्ध के उदय के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
शीत
युद्ध
शीत युद्ध के उदय के कारण के उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:

  1. परस्पर सन्देह एवं भय: दोनों गुटों के बीच शीत युद्ध के प्रारंभ होने का प्रमुख कारण परस्पर संदेह, अविश्वास तथा डर का व्याप्त होना था।
  2. विरोधी विचारधारा: दोनों महाशक्तियों के अनुयायी देश परस्पर विरोधी विचारधारा वाले देश थे। विश्व में. दोनों ही अपना-अपना प्रभाव – क्षेत्र बढ़ाने में लगे थे।
  3. अणु बम का रहस्य सोवियत संघ से छिपाना: अमरीका ने अणु बम बनाने का रहस्य सोवियत संघ से छुपाया। जापान पर जब उसने अणु बम गिरा कर द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त किया तो सोवियत संघ ने इसे अपने विरुद्ध भी समझा। इससे दोनों महाशक्तियों के बीच दरार पड़ गयी।
  4. अमेरिका और सोवियत संघ का एक-दूसरे का प्रतिद्वन्द्वी बनना: अमरीका और सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले खड़ा होना शीत युद्ध का कारण बना।
  5. अपरोध का तर्क: शीत युद्ध शुरू होने के पीछे यह समझ भी कार्य कर रही थी कि परमाणु युद्ध की सूरत में दोनों पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। इसे अपरोध का तर्क कहा गया।

प्रश्न 4.
शीत युद्धकालीन द्वि-ध्रुवीय विश्व की चुनौतियों का वर्णन करें।
उत्तर:
शीत युद्धकालीन द्वि-ध्रुवीय विश्व की चुनौतियाँ – शीत युद्ध के दौरान विश्व दो प्रमुख गुटों में बँट गया एक गुट का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था और दूसरे गुट का नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था। लेकिन शीत युद्ध के दौरान ही द्विध्रुवीय विश्व को चुनौतियाँ मिलना शुरू हो गयी थीं। ये चुनौतियाँ निम्नलिखित थीं-
1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन:
शीत युद्ध के दौरान द्विध्रुवीय विश्व को सबसे बड़ी चुनौती गुटनिरपेक्ष आंदोलन से मिली। गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने अल्पविकसित तथा विकासशील नव-स्वतंत्र देशों को दोनों गुटों से अलग रहने का तीसरा विकल्प दिया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के देशों ने स्वतंत्र विदेश नीति अपनायी; शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिद्वन्द्वी गुटों के बीच मध्यस्थता में सक्रिय भूमिका निभायी।

2. नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था ने भी द्विध्रुवीय विश्व को चुनौती दी। मई, 1974 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के छठे विशेष अधिवेशन में महासभा ने पुरानी विश्व अर्थव्यवस्था को समाप्त करके एक नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए विशेष कार्यक्रम बनाया; गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने भी इसकी स्थापना के लिए दबाव बनाया।

3. साम्यवादी गठबंधन में दरार पड़ना:
साम्यवादी चीन की 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध में सोवियत संघ से अनबन हो गई। 1971 में अमरीका ने चीन के नजदीक आने के प्रयास किये इस प्रकार साम्यवादी गठबंधन में दरार पड़ने से भी द्विध्रुवीय विश्व को चुनौती मिली।

प्रश्न 5.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रकृति एवं सिद्धान्तों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का अर्थ- गुटनिरपेक्षता का अर्थ है। दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहना। यह महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने तथा अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपनाते हुए विश्व राजनीति में शांति और स्थिरतां के लिए सक्रिय रहने का आंदोलन है। अतः गुटनिरपेक्षता का अर्थ है – किसी भी देश को प्रत्येक मुद्दे पर गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय हित एवं विश्व शांति के आधार पर गुटों से अलग रहते हुए स्वतन्त्र विदेश नीति अपनाने की स्वतन्त्रता।

गुटनिरपेक्षता की प्रकृति एवं सिद्धान्त; गुटनिरपेक्षता की प्रकृति को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-

  1. गुटनिरपेक्षता पृथकतावाद नहीं: पृथकतावाद का अर्थ होता है कि अपने को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से काटकर रखना। जबकि गुटनिरपेक्षता की नीति विश्व के मामलों में सक्रिय रहने की नीति है।
  2. गुटनिरपेक्ष तटस्थता नहीं है: तटस्थता का अर्थ होता है। मुख्य रूप से युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना। जबकि गुटनिरपेक्ष देश युद्ध में शामिल हुए हैं। इन देशों ने दूसरे देशों के बीच युद्ध को होने से टालने के लिए काम किया है और हो रहे युद्ध के अंत के लिए प्रयास भी किये हैं।
  3. विश्व शांति की चिन्ता: गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रमुख चिंता विश्व में शांति स्थापित करना है।
  4. आर्थिक सहायता लेना: गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल देश अपने आर्थिक विकास के लिए आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं, ताकि वे अपना आर्थिक विकास कर आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर हो सकें।
  5. नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना: गुटनिरपेक्ष देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की धारणा का समर्थन किया और इसकी स्थापना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में दबाव बनाया।

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प्रश्न 6.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक नेता कौन थे? गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका बताइये
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की जड़ में यूगोस्लाविया के जोसेफ ब्रॉज टीटो, भारत के जवाहर लाल नेहरू और मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर प्रमुख थे। इंडोनेशिया के सुकर्णो और घाना के वामे एनक्रूमा ने इनका जोरदार समर्थन किया। ये पांच नेता गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक कहलाये।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-

  1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक – भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक सदस्य रहा है। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गुटनिरपेक्षता की नीति का प्तिपादन किया।
  2. स्वयं को महाशक्तियों की खेमेबन्दी से अलग रखा – शीत युद्ध के दौर में भारत ने सजग और सचेत रूप से अपने को दोनों महाशक्तियों की खेमेबन्दी से दूर रखा।
  3. नव – स्वतंत्र देशों को आंदोलन में आने की ओर प्रेरित किया- भारत ने नव-स्वतंत्र देशों को महाशक्तियों के खेमे में जाने का पुरजोर विरोध किया तथा उनके समक्ष तीसरा विकल्प प्रस्तुत करके उन्हें गुटनिरपेक्ष आंदोलन का सदस्य बनने को प्रेरित किया।
  4. विश्व शांति और स्थिरता के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन को सक्रिय रखना – भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय हस्तक्षेप की नीति अपनाने पर बल दिया।
  5. वैचारिक एवं संगठनात्मक ढाँचे का निर्धारण- गुटनिरपेक्ष आंदोलन के वैचारिक एवं संगठनात्मक ढाँचे के निर्धारण में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  6. समन्वयकारी भूमिका – भारत ने समन्वयकारी भूमिका निभाते हुए सदस्यों के बीच उठे विवादास्पद मुद्दों को टालने या स्थगित करने पर बल देकर आंदोलन को विभाजित होने से बचाया।

प्रश्न 7.
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का आलोचनात्मक विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का आलोचनात्मक विवेचना:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का आलोचनात्मक विवेचन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया गया है। भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के लाभ गुटनिरपेक्षता की नीति ने निम्न क्षेत्रों में भारत का प्रत्यक्ष रूप से हित साधन किया है।

  1. राष्ट्रीय हित के अनुरूप फैसले: गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण भारत ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले और पक्ष ले सका जिनसे उसका हित सधता था, न कि महाशक्तियों और उनके खेमे के देशों का।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में अपने महत्त्व को बनाए रखने में सफल: गुटनिरपेक्ष नीति अपनाने के कारण भारत हमेशा इस स्थिति में रहा कि अगर भारत को महसूस हो कि महाशक्तियों में से कोई उसकी अनदेखी कर रहा है या अनुचित दबाव डाल रहा है, तो वह दूसरी महाशक्ति की तरफ अपना रुख कर सकता था। दोनों गुटों में से कोई भी भारत सरकार को लेकर न तो बेफिक्र हो सकता था और न ही धौंस जमा सकता था।

भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना: भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की निम्नलिखित कारणों से आलोचना की गई है।
1. सिद्धान्तविहीन नीति:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति सिद्धान्तविहीन है। कहा जाता है कि भारत के अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के नाम पर अक्सर महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर कोई सुनिश्चित पक्ष लेने से बचता रहा।

2. अस्थिर नीति: भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति में अस्थिरता रही है और कई बार तो भारत की स्थिति विरोधाभासी रही।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 8.
शीत युद्ध काल में दोनों महाशक्तियों द्वारा निःशस्त्रीकरण की दिशा में किये गये प्रयासों का उल्लेख कीजिये
उत्तर:
निःशस्त्रीकरण के प्रयास: शीत युद्ध काल में दोनों पक्षों ने निःशस्त्रीकरण की दिशा में निम्नलिखित प्रमुख प्रयास किये
1. सीमित परमाणु परीक्षण संधि (एलटीबीटी):
1963, वायुमण्डल, बाहरी अंतरिक्ष तथा पानी के अन्दर परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमरीका, ब्रिटेन तथा सोवियत संघ ने मास्को में 5 अगस्त, 1963 को इस संधि पर हस्ताक्षर किये। यह संधि 10 अक्टूबर, 1963 से प्रभावी हो गयी।

2. परमाणु अप्रसार संधि, 1967: यह संधि केवल पांच परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों को ही एटमी हथियार रखने की अनुमति देती है और शेष सभी देशों को ऐसे हथियार हासिल करने से रोकती है। यह संधि 5 मार्च, 1970 से प्रभावी हुई। इस संधि को 1995 में अनियतकाल के लिए बढ़ा दिया गया है।

3. सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता – I ( स्ट्रेटजिक आर्म्स लिमिटेशन टॉक्स – साल्ट – I) सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता का पहला चरण सन् 1969 के नवम्बर में आरंभ हुआ सोवियत संघ के नेता लियोनेड ब्रेझनेव और अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने मास्को में 26 मई, 1972 को निम्नलिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए-
(क) परमाणु मिसाइल परिसीमन संधि (एबीएम ट्रीटी)।
(ख) सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन के बारे में अंतरिम समझौता। ये अक्टूबर, 1972 से प्रभावी

4. सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता – II ( स्ट्रेटजिक आर्म्स लिमिटेशन टॉक्स – सॉल्ट – II ) यह संधि अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर और सोवियत संघ के नेता लियोनेड ब्रेझनेव के बीच 18 जून, 1979 को हुआ था। इस संधि का उद्देश्य सामरिक रूप से घातक हथियारों पर प्रतिबंध लगाना था।

5. सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि – I: अमरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश (सीनियर) और सोवियत संघ के राष्ट्रपति गोर्बाचेव ने 31 जुलाई, 1991 को घातक हथियारों के परिसीमन और उनकी संख्या में कमी लाने से संबंधित संधि पर हस्ताक्षर किए।

6. सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि – II: सामरिक रूप से घातक हथियारों को सीमित करने और उनकी संख्या में कमी करने हेतु इस संधि पर रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन और अमरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश (सीनियर) ने मास्को में 3 जनवरी, 1993 को हस्ताक्षर किए।

प्रश्न 9.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? इसके बुनियादी सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से आशय – नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में जिन बातों पर जोर दिया गया है, वे हैं। विकासशील देशों को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना; साधनों को विकसित देशों से विकासशील देशों में भेजना अल्प विकसित देशों का अपने उन प्राकृतिक साधनों पर नियंत्रण प्राप्त हो, जिनका दोहन पश्चिमी विकसित देश करते हैं; अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक हो तथा पश्चिमी देशों से मंगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम हो। नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद तथा नव उपनिवेशवाद व नव-साम्राज्यवाद को उनके सभी रूपों में समाप्त करना चाहती है। यह न्याय तथा समानता पर आधारित, लोकतंत्र के सिद्धान्त पर आधारित अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था है।

नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धान्त: नवीन अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धान्त इस प्रकार हैं-

  1. खनिज पदार्थों और समस्त प्रकार के आर्थिक क्रियाकलापों पर उसी राष्ट्र की संप्रभुता की स्थापना करना।
  2. कच्चे माल और तैयार माल की कीमतों में ज्यादा अन्तर न होना।
  3. विकसित देशों के साथ व्यापार की वरीयता का विस्तार करना।
  4. विकासशील देशों द्वारा उत्पादित औद्योगिक माल के निर्यात को प्रोत्साहन देना।
  5. विकासशील देशों द्वारा विकसित देशों के मध्य तकनीकी विकास की खाई को पाटना।
  6. विकासशील देशों पर वित्तीय ऋणों के भार को कम करना।
  7. बहुराष्ट्रीय निगमों की गतिविधियों पर समुचित नियंत्रण लगाना।

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प्रश्न 10.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हेतु विभिन्न संगठनों द्वारा किये गये प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हेतु विभिन्न संगठनों द्वारा किये गये प्रयास 70 के दशक में नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना के लिए विभिन्न स्तरों पर अनेक प्रयास हुए हैं।

1. संयुक्त राष्ट्र संघ के स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के स्तर पर ‘अंकटाड’ तथा ‘यू.एन.आई.डी. ओ. के माध्यम से अनेक प्रयत्न किये गये:
(अ) अंकटाड के स्तर पर 1964 से लेकर कई सम्मेलन हुए जिनका उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को संप्रभुता सम्पन्न, समानता तथा सहयोग के आधार पर पुनर्गठित करना रहा है जिससे इसको न्याय पर आधारित बनाया जा सके। 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार एवं विकास से संबंधित सम्मेलन वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव किया गया ताकि अल्प विकसित देशों के अपने समस्त प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त हो सके, वे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपना माल बेच सकें। कम लागत से उन्हें प्रौद्योगिकी मिल सके आदि।

(ब) यू.एन.आई.डी.ओ. के माध्यम से विकासशील देशों में औद्योगीकरण की गति को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया हैं

2. गुटनिरपेक्ष आंदोलन के स्तर पर: 1970 के दशक में गुटनिरपेक्ष आंदोलन आर्थिक दबाव समूह बन गया । इन देशों की पहल के क्रियान्वयन के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा का छठा अधिवेशन बुलाया गया जिसने ‘नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था’ स्थापित करने की घोषणा की।

3. विकासशील राष्ट्रों के स्तर पर: 1982 में दिल्ली में हुए विकासशील देशों के सम्मेलन में इनको आत्मनिर्भर बनाने के लिए आह्वान किया गया और नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था में सहयोग हेतु आठ सूत्री कार्यक्रम रखा गया। इसमें संरक्षणवाद की समाप्ति पर भी बल दिया गया।

प्रश्न 11.
‘अपरोध’ का तर्क किसे कहा गया है? विस्तार में समझाइये।
उत्तर:
दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरुआत हुई। विश्वयुद्ध की समाप्ति के कारण कुछ भी हो परंतु इसका परिणामस्वरूप वैश्विक राजनीति के मंच पर दो महाशक्तियों का उदय हो गया। जर्मनी और जापान हार चुके थे और यूरोप तथा शेष विश्व विध्वंस की मार झेल रहे थे। अब अमरीका और सोवियत संघ विश्व की सबसे बड़ी शक्ति थे। इनके पास इतनी क्षमता थी कि विश्व की किसी भी घटना को प्रभावित कर सके। अमरीका और सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले खड़ा होना शीतयुद्ध का कारण बना। शीतयुद्ध शुरू होने के पीछे यह समझ भी काम कर रही थी कि परमाणु बम होने वाले विध्वंस की मार झेलना किसी भी राष्ट्र के बूते की बात नहीं।

जब दोनों महाशक्तियों के पास इतनी क्षमता के परमाणु हथियार हों कि वे एक-दूसरे को असहनीय क्षति पहुँचा सके तो ऐसे में दोनों के बीच रक्तरंजित युद्ध होने की संभावना कम रह जाती है। उकसावे के बावजूद कोई भी पक्ष युद्ध का जोखिम मोल लेना नहीं चाहेंगा क्योंकि युद्ध से राजनीतिक फायदा चाहे किसी को भी हो, लेकिन इससे होने वाले विध्वंस को औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता। परमाणु युद्ध की सूरत में दोनों पक्षों को इतना नुकसान उठाना पड़ेगा कि उनमें से विजेता कौन है – यह तय करना भी मुश्किल होगा। यदि कोई अपने शत्रु पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने की कोशिश करता है तब भी दूसरे के पास उसे बर्बाद करने लायक हथियार बच जाएँगे। इसे ‘अपरोध’ का तर्क कहा गया है।

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