Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली
JAC Class 9 Hindi माटी वाली Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘शहरवासी सिर्फ़ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं, आपकी समझ में वे कौन-से कारण रहे
होंगे जिनके रहते ‘माटी वाली’ को सब पहचानते थे ?
उत्तर :
भागीरथी और भीलांगना नामक दो नदियों के तटों पर बसे टिहरी शहर की मिट्टी पूरी तरह रेतीली है जिससे चूल्हों पर लिपाई का काम नहीं हो सकता। शहर के हर घर में सुबह-दोपहर-शाम चूल्हा जलता है और हर बार उसकी लिपाई-पुताई के लिए लाल मिट्टी की आवश्यकता होती है। कभी-कभी घरों के कमरों की दीवारों की गोबरी- लिपाई में भी लाल मिट्टी की आवश्यकता अनुभव होती थी। सारे शहर में ‘माटी वाली’ ही एक ऐसी औरत है जो हर घर जाकर लाल मिट्टी पहुँचाती है। शहर का हर वासी उसे और उसके कंटर लगभग रोज़ देखता है। वर्षों से लगातार प्रतिदिन माटी वाली और उसके ढक्कन-कटे कंटर को देखने के कारण सारे शहरवासी उन दोनों को भली-भाँति पहचानते हैं।
प्रश्न 2.
माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था ?
उत्तर :
माटी वाली का गाँव टिहरी नगर से इतना दूर था कि उसे वहाँ पहुँचने में कम-से-कम एक घंटा अवश्य लगता था। इतना ही समय उसे घर वापिस आने में लगता था। वह सारा दिन माटाखान से खोद – खोदकर लाल मिट्टी अपने कनस्तर में भरती और फिर उसे अपने सिर पर रखकर घर-घर बेचती। उसे अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में सोचने का समय ही नहीं था। वैसे भी उसके पास न कोई ज़मीन थी और न झोंपड़ी। सारे टिहरी नगर में वह अकेली ही थी जो लाल मिट्टी पहुँचाती थी। अति व्यस्तता और अपने विशिष्ट स्वभाव के कारण उसके पास ज्यादा सोचने का समय ही नहीं था।
प्रश्न 3.
‘भूख मीठी कि भोजन मीठा’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
भूख किसी स्वाद को नहीं पहचानती। जब कोई व्यक्ति वास्तव में ही भूखा हो, उसका पेट पूरी तरह लंबे समय से खाली हो तो वह उसे भरने के लिए स्वाद नहीं माँगता। वह किसी भी तरह भरना चाहता है। उसे रूखी-सूखी रोटी भी अच्छी लगती है। उसे तब किसी दाल-सब्जी की आवश्यकता नहीं होती। जब पेट भरा हो तो व्यक्ति को स्वाद सूझता है और वह स्वाद को अच्छा या बुरा बताता है।
‘भूख मीठी कि भोजन मीठा’ से यही तात्पर्य है कि जब भूख सता रही हो तो हर प्रकार का रूखा-सूखा भी मीठा लगता है
प्रश्न 4.
‘पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीज़ों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता।’ – मालकिन के इस कथन के आलोक में विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
मध्यवर्गीय या निम्नवर्गीय परिवारों में धन कमाने के लिए खूब पसीना बहाना पड़ता है। एक-एक पैसा जोड़कर घर के लिए उपयोगी और आवश्यक सामान खरीदा जाता है। उसे ठोक-बजा कर खरीदा जाता है कि वह लंबे समय तक टिकाऊ बना रहे। घर की मालकिन ने घर में पीतल और काँसे के बर्तनों को सहेजकर रखा हुआ था क्योंकि वह पुरखों की मेहनत से कमाई हुई संपत्ति के महत्व को भली-भाँति समझती थी। पता नहीं उन्होंने कितनी कठिनाई से उन बर्तनों को खरीदा होगा। वह अपने पुरखों की मेहनत की कमाई को मिट्टी के भाव नहीं बेचना चाहती थी। विरासत में प्राप्त धन-संपत्ति का उपयोग मानव के द्वारा सोच-समझकर किया जाना चाहिए। उसके साथ पूर्वजों का स्नेह, यादें और मान भी जुड़ा होता है। वे उनके परिश्रम, पसंद और भविष्य के प्रति लगाव के प्रतीक होते हैं। उसका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। नयेपन के मोह में अपनों की स्मृतियों को नहीं भुलाया जाना चाहिए।
प्रश्न 5.
माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है?
उत्तर :
माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी निर्धनता, अभावग्रस्तता और असहायता को प्रकट करता है। उसका पति बहुत कमज़ोर और बुड्ढा था। अशक्त होने के कारण वह काम नहीं कर सकता था इसीलिए माटी वाली को जी-तोड़ शारीरिक मेहनत करनी पड़ती थी, फिर भी वह पेट भर रोटी नहीं कमा पाती थी।
प्रश्न 6.
आज माटी वाली बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी – इस कथन के आधार पर माटी वाली के हृदय के भावों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
माटी वाली आर्थिक दृष्टि से असहाय है। वह अति निर्धन है और चाहकर भी अपने बुड्ढे पति के लिए ठीक से रोटी नहीं कमा पाती। बुड्ढा अति कमज़ोर था और इस कारण वह डेढ़ से अधिक रोटी नहीं खा सकता था। आज बुढ़िया के पास तीन रोटियाँ थीं। उसके पास मिट्टी बेचने से प्राप्त कुछ पैसे भी थे। वह आज गठरी में बाँधे गए अपने बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं खिलाएगी। उसने एक पाव प्याज खरीदे और सोच लिया कि वह उन्हें कूटकर जल्दी-जल्दी तल लेगी। वह पहले उसे रोटियाँ दिखाएगी ही नहीं। सब्ज़ी तैयार होते ही दो रोटियाँ उसे परोस देगी। माटी वाली के हृदय में अपने पति के प्रति गहरा लगाव था। वह उसकी पीड़ा से पीड़ित थी, पर चाहकर भी उसकी भूख और पीड़ा को दूर नहीं कर पाती थी। उसका इस दुनिया में सिवाय बुड्ढे के कोई भी नहीं था।
प्रश्न 7.
‘गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।’ इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
गरीब आदमी के पास रहने और सिर छिपाने के लिए अपना कोई सहारा नहीं होता। कुछ भी तो नहीं होता उसके पास, जिसे वह अपना कह सके। श्मशान ही एक ऐसी जगह है जहाँ मरने के बाद उसे जगह अवश्य मिलती है-चाहे अपने वहाँ छोड़ आएँ या पराए। ऐसा नहीं होता कि गरीब की लाश सदा के लिए वहीं पड़ी रहे जहाँ वह मरा हो। माटी वाली का बुड्ढा मरा और उसे श्मशान में जगह मिली, चाहे माटी वाली के पास पैसे नहीं थे। अब जब टिहरी में पानी भरने लगा तो सबसे पहले पानी में श्मशान डूबा। माटी वाली को लगा कि अब तो उसे वहाँ भी स्थान नहीं मिल पाएगा। इसीलिए उसने अपने हृदय की व्यथा को प्रकट करते हुए कहा कि ‘ग़रीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।’
प्रश्न 8.
‘विस्थापन की समस्या’ पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
विस्थापन है – अपना घर और स्थान छोड़ना। दो-चार दिन के लिए नहीं बल्कि हमेशा के लिए। यह बहुत दुखदायी स्थिति है जिससे कोई भी व्यक्ति अपने जीवन काल में नहीं गुज़रना चाहता। अपने घर से सभी को लगाव होता है, चाहे वह टूटा-फूटा और दूसरों की दृष्टि में बेकार ही क्यों न हो। वह उसे सिर छिपाने की जगह देता है। जब-जब कोई राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक या प्राकृतिक विपदा आती है तब-तब विस्थापन की समस्या लोगों के सामने सिर उठा कर खड़ी हो जाती है। बाढ़, तूफान, भूकंप आदि की स्थितियों में लोगों को अपने घर से विस्थापित होना पड़ता है, पर सदा के लिए नहीं बल्कि कुछ देर के लिए।
इन स्थितियों में आर्थिक नुकसान होता है पर व्यक्ति फिर सामान्य स्थिति हो जाने पर वापिस लौट आता है। अपना टूटा-फूटा और उजड़ा आशियाना फिर से तैयार कर लेता है, पर राजनीतिक कारणों से कभी-कभी स्थायी रूप से विस्थापन हो जाता है। जब हमारे देश का बँटवारा अंग्रेज़ सरकार ने कर दिया था तब लाखों परिवारों को अपना बसा-बसाया घर छोड़ रातों-रात दूसरी जगह जाना पड़ा था। तब आसमान ही सिर पर छत का काम करता है। सन 1972 में जब बांग्लादेश बना था तब भी लाखों लोग विस्थापित होकर भारत आ गए थे। राजनीतिक अशांति के कारण लोग अपना घर छोड़ अन्यत्र विस्थापित होने के लिए विवश होते हैं।
विस्थापन की स्थिति मनुष्य को मानसिक रूप से तोड़ देती है। व्यक्ति जहाँ कहीं भी बसने के लिए जाता है उसे वहाँ की परिस्थितियों में स्वयं को ढालना पड़ता है, नये सिरे से स्थापित होना पड़ता है। किसी पौधे को उखाड़कर दूसरी जगह लगाया जाए तो वह भी कई दिनों तक मुर्झाया रहता है। उसकी पुरानी पत्तियाँ पीली होकर झड़ जाती हैं और फिर धीरे-धीरे नई पत्तियाँ निकलनी शुरू होती हैं। बाहर से घर के भीतर आ जाने वाले किसी कीड़े-मकोड़े को भी जगह ढूँढ़ने में परेशानी होती है। मनुष्य तो अति संवेदनशील प्राणी है इसलिए विस्थापन की स्थिति में उसका विचलित हो जाना सहज – स्वाभाविक है। टिहरी नगर के डूब जाने से लोग विस्थापित हुए हैं। चाहे सरकार ने उनके पुनर्वास का प्रबंध किया है, उनकी हुई क्षति की पूर्ति की है पर वे लोग इस विस्थापन को कभी नहीं भूल पाएँगे।
JAC Class 9 Hindi माटी वाली Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘माटी वाली’ के आधार पर मुख्य पात्रा की चरित्रगत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
‘माटी वाली’ कहानी की मुख्य पात्रा है-बुढ़िया। कहानीकार ने पूरी कहानी में उसका नाम नहीं लिया है। मुख्य पात्रा होकर भी वह नाम-रहित है। उसकी चरित्रगत प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. बाह्य व्यक्तित्व-बुढ़िया मैली-कुचैली छोटे कद की महिला थी जो अति साधारण व्यक्तित्व की स्वामिनी थी। सारे नगरवासियों को उसकी अच्छी पहचान है क्योंकि वह टिहरी नगर के हर घर में जाती थी। उसका जन्म हरिजन परिवार में हुआ था।
2. परिश्रमी – माटी वाली बहुत परिश्रमी औरत थी। वृद्धावस्था में भी वह दिन-भर कठोर परिश्रम करती थी। माटाखान से मिट्टी खोदना और सिर पर कनस्तर रख शहर में जगह-जगह जाना उसका कार्य था।
3. अभावग्रस्त और असहाय- माटी वाली पूर्ण रूप से अभावग्रस्त थी। उसके पास धन के नाम पर कुछ नहीं था। वह जिस झोंपड़ी में रहती थी वह ठाकुर की ज़मीन पर बनी थी। उसके लिए भी उसे बेगार करनी पड़ती थी। अपनी असहायावस्था के कारण ही वह कहती है-
“गरीब, आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।”
4. डरपोक माटी वाली स्वभाव से डरपोक थी। जब वह ठकुराइन के घर मिट्टी देने के लिए गई तो उसे वहाँ दो रोटियाँ दी गईं और ठकुराइन उसके लिए चाय लेने गई। माटी वाली ने एक रोटी झट से छिपाकर अपने डिल्ले में बाँध ली और झूठ-मूठ ही मुँह हिलाने लगी जैसे वह रोटी को चबा-चबाकर खा रही हो। जब गृहस्वामिनी ने स्वयं ही उसे रोटी दी थी, तो उसे रोटी छिपाने और डरने की क्या बात थी।
5. पति के प्रति लगाव – बुढ़िया का बुड्ढा पति बहुत कमज़ोर था। वह अपनी झोंपड़ी में पड़ा रहता था पर बुढ़िया का मन उसके आस-पास मँडराता रहता था। वह स्वयं रोटी न खा उसके लिए रोटी लाने का प्रयत्न करती थी। उसके प्रति उसके हृदय में अगाध लगाव था। तभी तो वह उसके लिए एक पाव प्याज खरीदती है ताकि वह कोरी रोटी न खाए। उसकी बात ‘भूख मीठी कि भोजन मीठा ?’ उसके कानों में गूँजता रहता है।
वास्तव में बुढ़िया गरीबी, असहायावस्था और पीड़ा की प्रतीक है जिसके जीवन में दुख ही दुख हैं।
प्रश्न 2.
कहानी के आधार पर बुड्ढे की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
1. बीमार और अशक्त – माटी वाली का पति बहुत अशक्त और बीमार था। वह चलने-फिरने के योग्य नहीं था। इसलिए ठाकुर की ज़मीन पर बनी झोंपड़ी में दिन-रात पड़ा रहता था।
2. सचेत – बुड्ढा चाहे कमज़ोर और विवश था, पर सचेत था। जब माटी वाली बुढ़िया वापिस झोंपड़ी में पहुँचती तो आहट होते ही वह चौंक जाया करता था और नारें उठाकर उसकी तरफ देखा करता था।
3. भूख से त्रस्त – बुड्ढा भूख से त्रस्त रहता था। जब बुढ़िया उसके लिए रोटी लेकर पहुँचती थी तो वह खिल उठता था। सब्ज़ी न मिलने पर भी वह संतुष्ट रहता था और कहता था-
‘भूख मीठी कि भोजन मीठा। ”
प्रश्न 3.
टिहरी शहर के पास गाँव में रहने वाली बुढ़िया को विस्थापित क्यों होना पड़ा ?
उत्तर :
भागीरथी और भीलांगना नदियों के तटों पर टिहरी शहर बसा हुआ था। बिजली उत्पादन के लिए जब वहाँ बाँध बनाया गया तो टिहरी शहर को मानव निर्मित झील में समा जाना था। जिन लोगों की जमीन थी, उन्हें तो उनकी संपत्ति के आधार पर सरकार ने पुनर्वास दे दिया, पर बुढ़िया के पास तो कुछ भी नहीं था इसलिए उसे विस्थापित होना पड़ा।
प्रश्न 4.
ठकुराइन ने बुढ़िया को भाग्यवान क्यों कहा था ?
उत्तर :
जब ठकुराइन के घर ‘माटी वाली’ मिट्टी का कनस्तर लेकर पहुँची तब चाय का समय हो चुका था। भारतीय संस्कृति में मेहमान को भगवान का ही रूप मानते हैं। इसलिए उसने कहा था, ” तू बहुत भाग्यवान है। चाय के टैम पर आई है हमारे घर। भाग्यवान आए खाते वक्त।”
प्रश्न 5.
शहर वालों को लाल मिट्टी की जरूरत क्यों होती थी ?
उत्तर :
दो नदियों के बीच बसे टिहरी शहर की ज़मीन रेतीली थी। वे लोग खाना पकाने के लिए चूल्हा जलाते थे और हर बार उन्हें चूल्हों की लाल मिट्टी से पुताई करनी पड़ती थी क्योंकि रेतीली मिट्टी से पुताई नहीं हो सकती। साथ ही वे कमरों और दीवारों की गोबरी- लिपाई करने के लिए भी लाल मिट्टी का प्रयोग करते थे।
प्रश्न 6.
टिहरी शहर में आपाधापी कब मची थी ?
उत्तर :
जब टिहरी बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया तो शहर में पानी भरने लगा। शहरवासी अपने घरों को छोड़कर वहाँ से भागने लगे। इस कारण सारे शहर में आपाधापी मच गई थी।
प्रश्न 7.
नगर वालों के लिए माटी वाली क्या महत्व रखती थी ?
उत्तर :
नगर वालों के लिए माटी वाली बहुत महत्व रखती थी। माटी वाली की मिट्टी से नगर वालों के चूल्हे जलते थे। लोगों को रसोई के चूल्हे-चौकों की लिपाई के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती थी। इसलिए घर में साफ़ लाल मिट्टी का होना जरूरी थी। साल दो साल में मकान की दीवारों को गोबरी- लिपाई करने के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती थी। इसलिए नगर वालों के लिए माटी वाली उनके जीवन में बहुत महत्व रखती थी।
प्रश्न 8.
माटी वाली ने मालकिन द्वारा दी गई दो रोटियों का क्या किया ?
उत्तर :
माटी वाली जिस घर में मिट्टी डालने गई थी, उस घर की मालकिन ने उसे रोटी खाने के लिए दी। मालकिन के घर के अंदर जाते ही उसने अपने सिर पर रखने वाला कपड़ा निकाला, उसमें से एक रोटी मोड़ कर अपने पति के लिए उस कपड़े में रख लिया। मालकिन के आने पर वह ऐसे मुँह चलाने लगी जैसे उसने एक रोटी समाप्त कर ली है। दूसरी रोटी उसने चाय के साथ खाई।
प्रश्न 9.
आजकल घरों में से कौन बरतन दिखाई नहीं देते हैं और उनकी जगह किस धातु के बरतन आ गए हैं ?
उत्तर :
आजकल घरों में पीतल, काँसे और ताँबे के बरतन दिखाई नहीं देते हैं। किसी-किसी के घर में सजावट के रूप में यह बरतन दिखाई देते हैं। आजकल अधिकतर घरों में स्टील, काँच और ऐल्युमीनियम ने बरतन दिखाई देते हैं।
प्रश्न 10.
घर की मालकिन ने यह क्यों कहा कि अपनी चीज का मोह बहुत बुरा होता है ?
उत्तर :
घर की मालकिन दूर की बात सोचने वाली महिला थी। उसके घर में पीतल के बरतन थे। वह सोचती थी कि उसके पूर्वजों ने यह बरतन पता नहीं किस प्रकार पेट काट-काट कर इकट्ठे किए होंगे। उसे इन बरतनों से बहुत लगाव था। वह उसके पुरखों की गाढ़ी कमाई के थे। अब टिहरी पर बाँध बन रहा था जिस कारण उसे मकान छोड़ना पड़ेगा। वह इस उम्र में दूसरी नई जगह जाने को तैयार नहीं है। इसलिए वह माटी वाली से कहती है कि अपनी चीज़ का मोह बहुत बुरा होता है।
प्रश्न 11.
माटी वाली चाय किस ढंग से पी रही थी ?
उत्तर :
घर की मालकिन माटी वाली के लिए पीतल के गिलास में चाय लेकर आई थी। माटी वाली ने खुले कपड़े से पूरी गोलाई में गरम चाय का गिलास पकड़ लिया। गरम चाय पीने से पहले, वह गिलास के अंदर रखी चाय को ठंडा करने के लिए सू-सू करके, उस पर लंबी-लंबी फूकें मारने लगी। फिर धीरे-धीरे रोटी के साथ चाय सुड़कने लगी।
प्रश्न 12.
मादी वाली की आर्थिक स्थिति कैसी थी ?
उत्तर :
माटी वाली की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उसका पति बीमार तथा कमज़ोर था। उससे कोई काम नहीं होता था। माटी वाली मिट्टी ढोकर घर का गुजारा चलाती थी। उसके पास अपना कोई खेत भी नहीं था। जिस जमीन पर उसकी झोंपड़ी थी वह गाँव के ठाकुर की थी। ठाकुर ज़मीन के एवज में उससे कई तरह के काम करवा लेता था। उसके पैसे भी नहीं देता था। इस प्रकार माटी वाली बड़ी तंगी से अपने घर का निर्वाह करती थी।
प्रश्न 13.
माटी वाली के बुड्ढे को अब रोटी की ज़रूरत क्यों नहीं थी ?
उत्तर :
माटी वाली रोटियों का हिसाब लगाते हुए घर पहुँची। उसने सोचा था कि आज वह बुड्ढे को सूखी रोटी नहीं देगी। उसने एक पाव प्याज खरीद लिए। उसने सोचा कि वह प्याज की सब्ज़ी बनाकर अपने पति को रोटी के साथ देगी। परंतु घर पहुँचकर प्रतिदिन की तरह बुड्ढे ने उसकी आहट सुनकर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। माटी वाली ने उसका बदन छूकर देखा तो उसका पति अपनी मिट्टी छोड़कर जा चुका था अर्थात् मर गया था। इसलिए, अब उसके बुड्ढे को रोटी की ज़रूरत नहीं थी।
प्रश्न 14.
टिहरी बाँध पुनर्वास वाले साहब किन लोगों को मुआवजा दे रहे थे ?
उत्तर :
टिहरी बाँध बनने से नीचे के शहरों में पानी भर गया था, इसलिए वहाँ के लोगों को दूसरी जगह विस्थापित किया गया। टिहरी बाँध वाले साहब उन लोगों का मुआवजा दे रहे थे जिनके पास जमीन, घर और दुकान संबंधी कागज थे। जिन लोगों के पास कुछ नहीं था उनके लिए सरकार कुछ नहीं कर रही थी। माटी वाली के पास भी किसी प्रकार की संपत्ति नहीं थी, इसलिए बाँध बनने के बाद वह अपना गुजारा कैसे करे, उसे इस बात की चिंता सताने लगी।
माटी वाली Summary in Hindi
पाठ का सार :
विस्थापन की समस्या पर आधारित ‘माटी वाली’ स्वतंत्र भारत के अनियोजित विकास और उससे प्रभावित आम आदमी की पीड़ा से संबंधित कहानी है। बड़ी-बड़ी योजनाएँ किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए अनिवार्य होती हैं पर उनकी बलिवेदी पर न जाने कितने निरीह प्राणियों को स्वयं को मिटाना पड़ता है। उनकी पीड़ा को कोई नहीं समझता, कोई नहीं जानना चाहता।
‘माटी वाली’ सारे टिहरी शहर में जगह-जगह घूमकर लाल मिट्टी बेचती थी। नगर में कोई भी ऐसा घर नहीं था जहाँ वह लाल मिट्टी बेचने न जाती हो। सारे टिहरीवासी उसे बरसों से जानते-पहचानते थे क्योंकि हर घर में चूल्हों के लिए लाल मिट्टी वही पहुँचाती थी 4 हर बार खाने पकाने के बाद चूल्हे पर इस मिट्टी को पोता जाता था। उस सारे क्षेत्र में रेतीली मिट्टी पाई जाती थी, उससे चूल्हों पर लिपाई नहीं की जा सकती थी।
लोग इस मिट्टी को अपने घरों की गोबरी-लिपाई में भी प्रयुक्त करते थे। शहर के सेमल का तप्पड़ मोहल्ले की ओर बने आखिरी खोली में पहुँचकर मिट्टी वाली हरिजन बुढ़िया अपने सिर पर रखे मिट्टी से भरे कनस्तर को नीचे उतारा। कनस्तर पर कोई ढक्कन नहीं था। ढक्कन को वह काटकर उतार देती थी क्योंकि वह मिट्टी भरने और फिर खाली करने में रुकावट बनता था। घर की मालकिन ने मिट्टी वाली से मिट्टी का कनस्तर कच्चे आँगन के एक कोने में उड़ेलने के लिए कहा। उसने मिट्टी वाली को खाने के लिए दो रोटियाँ दीं।
उसने एक रोटी को अपने सिर पर रखे डिल्ले को खोलकर उसके कपड़े में लपेट लिया और दूसरी को घर की मालकिन के द्वारा दी गई पीतल के गिलास में चाय के साथ निगल लिया। चाय के साथ रोटी खाते हुए उसने कहा कि चाय तो बहुत अच्छा साग है तो मालकिन ने कहा कि भूख तो अपने आप में एक साग होती है। सामान्य बातचीत में घर की मालकिन ने उसे बताया कि चाहे बाकी लोगों ने अपने घर की पीतल और काँसे के बर्तन बेचकर स्टील और चीनी मिट्टी के बर्तन खरीद लिए थे, पर वह अपने पूर्वजों की मेहनत से खरीदे बर्तनों को नहीं बेचेगी।
उसे पुरानी चीज़ों के प्रति मोह था पर अब वह सोच-सोचकर परेशान थी कि अब जब टिहरी बाँध के कारण यह जगह उसे छोड़कर जाना पड़ेगा तो वह क्या करेगी। मिट्टी वाली वहाँ से दूसरे घर में गई जहाँ उसे अगले दिन मिट्टी लाने का आदेश मिला। वहाँ से उसे दो रोटियाँ भी मिलीं जिन्हें उसने अपने कपड़े के दूसरे छोर में बाँध लिया। लोग नहीं जानते थे कि उसने रोटियाँ अपने साथ ले जाने के लिए क्यों बाँधी थीं। घर में उसका बुड्ढा पति था। वह रोटी का इंतज़ार कर रहा होगा। आज तो उसे खाने के लिए तीन रोटियाँ मिल जाएँगी जिन्हें देख वह प्रसन्न हो जाएगा।
उसका गाँव टिहरी शहर से दूर था। तो चलने पर भी एक घंटा तो लग ही जाता है। वह हर रोज अपने घर से माटाखान में मिट्टी खोदने जाती। फिर वहाँ से उसे सिर पर ढोकर दूर-दूर बेचने जाती। उसके पास अपना कोई झोंपड़ी या जमीन का टुकड़ा नहीं था। वह तो ठाकुर की जमीन पर झोंपड़ी बनाकर रहती थी जिसके बदले उसे कई काम बेगार करने पड़ते थे।
माटी वाली ने रास्ते में एक पाव प्याज खरीदे ताकि वह अपने बुड्ढे को रोटियों के साथ तले हुए प्याज दे सके। उसका बुड्ढा बहुत कमजोर हो चुका था। अब तो वह डेढ़ से अधिक रोटी खा ही नहीं सकता था। वह अपनी झोंपड़ी में पहुँची। रोज की तरह आज उसका बुड्ढा आहट सुनकर चौंका नहीं। माटी वाली ने घबराकर उसे छू कर देखा। वह तो सदा के लिए जा चुका था। अब उसे किसी रोटी की आवश्यकता नहीं थी।
टिहरी बाँध के पुनर्वास के साहब ने उसे बता दिया था कि जब वहाँ पानी भर जाएगा तो उसके पास रहने के लिए कोई स्थान नहीं होगा। उसे रहने-खाने के लिए स्वयं कहीं प्रबंध करना होगा। टिहरी बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया। शहर में पानी भरने लगा। सारे शहर में आपाधापी मच गई। लोग वहाँ से भागने लगे। सबसे पहले पानी में श्मशान डूब गए। माटी वाली अपनी झोंपड़ी के बाहर हर आने-जाने वाले से यही कहती रही- “गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।”
कठिन शब्दों के अर्थ :
- धरा – रखा
- तलक – तक
- अलावा – अतिरिक्त
- माटी – मिट्टी
- टैम – समय
- बेगार – बिना मज़दूरी काम करना
- कंटर – कनस्तर
- मुशिकल – कठिन
- नाटे – छोटे, ठिगने
- डिल्ले – सिर पर बोझे के नीचे रखने के लिए कपड़े की गद्दी
- गाढ़ी कमाई – परिश्रम से कमाया हुआ धन
- तमाम – सारी