JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

JAC Class 9 Hindi चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘इस विजन में…….अधिक है’ -पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों ?
उत्तर
कवि नगरीय संस्कृति के प्रति वैसे सहज भाव नहीं रखता, जैसे ग्रामीण आंचल की सुंदरता के प्रति उस के हृदय में है। नगरों में प्रत्येक वस्तु व्यापारिक दृष्टि से देखी परखी जाती है। वहाँ के जीवन में पाखंड और स्वार्थ की छाया सदा ही बनी रहती है। वहाँ का प्रेम भी बनावटी ही होता है। इसलिए कवि के हृदय में ऐसी संस्कृति के प्रति आक्रोश छिपा हुआ है।

प्रश्न 2.
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा ?
उत्तर :
कवि सरसों को सयानी कहकर यह बताना चाहता है कि उसके पीले-पीले फूलों से सारे खेत दूर-दूर तक पीले रंग में रंगे हुए दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है, जैसे प्रकृति ने उसके हाथ पीले कर देने का निश्चय कर लिया है और वह विवाह मंडप में सजी सँवरी धारी है।

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प्रश्न 3.
अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सजे-सँवरे चने के पास ही दुबले-पतले शरीर और लचीली कमर वाली अलसी अपने सिर पर नीले फूलों को सजाकर खड़ी है। वह चंचलता से परिपूर्ण है। शरारत-भरे स्वर में कहती है कि जो उसे छू देगा, वह उसे अपना हृदय दान में दे देगी।

प्रश्न 4.
अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है ?
उत्तर :
कवि ने अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग किया है क्योंकि वह यह जिद्द कर रही है कि जो कोई उसे छू देगा वह उसी को अपना हृदय दे देगी, उसी की हो जाएगी।

प्रश्न 5.
‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है ?
उत्तर :
कवि अति कल्पनाशील है। शाम का समय है और आकाश में संध्या का सूर्य जगमगाने लगा है जिसका प्रतिबिंब पोखर के जल में बन रहा है। पोखर का जल धीरे-धीरे लहरियाँ ले रहा है जिस कारण सूर्य का प्रतिबिंब हिल-हिल कर लंबे गोल खंभे के समान प्रतीत हो रहा है। कवि ने उसे ‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ कहकर अपनी सूक्ष्म कल्पना का परिचय दिया है।

प्रश्न 6.
कविता के आधार पर ‘हरे चने’ का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर :
छोटा-सा एक बलिश्त के बराबर हरा ठिगना चना अपने सिर पर छोटे गुलाबी फूल का मुरैठा बाँध कर सज-धज कर खड़ा है। उसका सौंदर्य अनुपम है। कवि उसकी सुंदरता पर मुग्ध होकर एकटक उसे निहारता है।

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प्रश्न 7.
कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है ?
उत्तर :
श्री केदारनाथ अग्रवाल के द्वारा रचित कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ वास्तव में प्रकृति के मानवीकरण का अनूठा रूप है। कवि ने सारी प्रकृति पर ही मानवीय भावनाओं का आरोप कर दिया है। बीते भर का चना गुलाबी फूलों की पगड़ी लपेटे खेत में सज-सँवर कर खड़ा है तो दुबले-पतले शरीर वाली हठीली अलसी अपने सिर पर नीले फूलों को सजाकर खड़ी है जो किसी को भी अपना दिल दे देने को तैयार है। सरसों जवान हो चुकी है जो पीले फूलों से सज-सँवर कर ब्याह मंडप में पधार गई है। प्रकृति का अनुराग-आँचल हिल रहा है। पोखर के किनारे पानी में अधडूबे पत्थर भी पानी पी रहे हैं। चित्रकूट की भूमि बाँझ है जिस पर काँटेदार कुरूप पेड़ खड़े हैं।

प्रश्न 8.
कविता में से उन पंक्तियों को ढूँढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है और चारों तरफ सूखी और उजाड़ ज़मीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है।
उत्तर :
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रींवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 9.
‘और सरसों की न पूछो’- इस उक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं?
उत्तर :
कवि के शब्द- चयन और वाक्य संरचना में नाटकीयता का समावेश हुआ है जिससे उसके हृदय में छिपे भाव एक खास अंदाज में प्रकट हुए हैं। जब वह युवा हो चुकी सरसों के लिए कहता है-‘और सरसों की न पूछो तो उससे यह स्पष्ट रूप से ध्वनित होता है कि अब इसमें कोई संदेह नहीं रह गया कि सरसों बड़ी हो गई है और विवाह के योग्य हो चुकी है। हम सामान्य बोलचाल में इस प्रकार की शैली का प्रयोग तभी और वहीं करते हैं जब हम किसी बात पर पूरी तरह विश्वस्त हो जाते हैं। उस बात की सच्चाई पर हमें तनिक भी अविश्वास या संशय नहीं होता।

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प्रश्न 10.
काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है ?
उत्तर :
कविता में वर्णित काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया चालाक, मौकापरस्त और चुस्त व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है जो उचित अवसर मिलते ही अपना स्वार्थ पूरा कर दूर भाग जाता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 11.
बीते के बराबर, ठिगना, मुरैठा आदि सामान्य बोलचाल के शब्द हैं लेकिन कविता में इन्हीं से सौंदर्य उभरा है और कविता सहज बन पड़ी है। कविता में आए ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर :
हठीली, लचीली, सयानी, फाग, फागुन, पोखर, लहरियाँ, झपाटे, उजली, चटुल, रेल की पटरी, ट्रेन का टाइम, सुग्गे, टें टें टें दें, टिस्टों टिरटों, चुप्पे-चुप्पे।

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प्रश्न 12.
कविता को पढ़ते समय कुछ मुहावरे मानस पटल पर उभर आते हैं, उन्हें लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर :
1. बीते के बराबर – छोटा।
वाक्य – अरे, इस राकेश को तो देखो! यह है तो बीते के बराबर, पर बातें कितनी बड़ी-बड़ी करता है।
2. हाथ पीले करना – विवाह करना।
वाक्य – हर माता-पिता को अपनी जवान बेटी के हाथ पीले करने की चिंता अवश्य होती है।
3. प्यास बुझना – संतोष होना, इच्छा पूरी होना।
वाक्य – शिष्य ने जैसे ही अपने गुरु जी को देखा उसकी आँखों की प्यास बुझ गई।
4. टूट पड़ना – हमला करना।
वाक्य – हमारे खिलाड़ी तो विपक्षी टीम के गोल पर टूट पड़े और एक के बाद एक लगातार चार गोल ठोक दिए।
5. जुगुल जोड़ी = प्रेम करने वाली जोड़ी
वाक्य – भक्त के हृदय में राधा-कृष्ण की जुगुल जोड़ी सदा बसी ही रहती है।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न :
प्रस्तुत अपठित कविता के आधार पर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
देहात का दृश्य
अरहर कल्लों से भरी हुई फलियों से झुकती जाती है,
उस शोभासागर में कमला ही कमला बस लहराती है।
सरसों दानों की लड़ियों से दोहरी – सी होती जाती है,
भूषण का भार सँभाल नहीं सकती है कटि बलखाती है है
चोटी उस की हिरनखुरी के फूलों से गुँथ कर सुंदर,
अन- आमंत्रित आ पोलंगा है इंगित करता हिल – हिल कर।
हैं मसें भींगती गेहूँ की तरुणाई फूटी आती है,
यौवन में माती मटरबेलि अलियों से आँख लड़ाती है।
लोने – लोने वे घने चने क्या बने बने इठलाते हैं,
हौले-हौले होली गा-गा घुँघरू पर ताल बजाते हैं।
हैं जलाशयों के ढालू भीटों पर शोभित तृण शालाएँ,
जिनमें तप करती कनक वरण हो जाग बेलि-अहिबालाएँ।
हैं कंद धरा में दाब कोष ऊपर तक्षक बन झूम रहे,
अलसी के नील गगन में मधुकर दृग-तारों से घूम
रहे। मेथी में थी जो विचर रही तितली सो सोए में सोई,
उस की सुगंध – मादकता में सुध-बुध खो देते सब कोई।

शब्दार्थ : हिरनखुरी – बरसाती लता। भीटा – बरसाती लता। भीटा – दूह, टीले के शक्ल की ज़मीन

प्रश्न :
1. इस कविता के मुख्य भाव को अपने शब्दों में लिखिए।
2. इन पंक्तियों में कवि ने किस-किसका मानवीकरण किया है ?
3. इस कविता को पढ़कर आपको किस मौसम का स्मरण हो आता है ?
4. मधुकर और तितली अपनी सुध-बुध कहाँ और क्यों खो बैठे?
उत्तर
1. कवि ने फरवरी – मार्च महीनों में कच्ची-पक्की फसलों से भरे खेतों का सुंदर चित्रण करते हुए माना है कि प्रकृति ने धरती पर अपार सोना बरसाया है। अरहर की फलियाँ अपने भार से झुकी जाती हैं। सरसों दानों के भार से दोहरी होती जा रही है। हिरनखुरी के फूलों से गुँथी वह सुंदर लगती है। गेहूँ की बालियाँ लगनी आरंभ हो गई हैं। मटर और चने की फसलें इठलाने लगी हैं। अलसी और मेथी अपने रंग-गंध से तितलियों को अपनी ओर खींच रही हैं। प्रकृति का रंग तो खेतों के कण-कण में समाया हुआ है।
2. कवि ने इस कविता में अरहर, सरसों, मटर, चने और गेहूँ का मानवीकरण किया है।
3. इस कविता को पढ़कर बसंत ऋतु का स्मरण हो आता है।
4. अलसी पर मधुकर और मेथी पर तितली ने घूमते हुए अपनी सूझ-बूझ खो दी। वे प्रकृति की सुंदरता पर अपने आप को खो बैठे हैं।

एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा कवि केदारनाथ अग्रवाल पर बनाई गई फ़िल्म देखें।

JAC Class 9 Hindi चंद्र गहना से लौटती बेर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने खेत में खड़े हरे चने और अलसी के सौंदर्य का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर :
चना एक बीते के बराबर है। उसका रंग हरा तथा कद ठिगना है। वह सिर पर गुलाबी फूल का साफा-सा बाँधे, सजा खड़ा है। अलसी हठीली, शरीर से पतली तथा लचीली है। वह नीले रंग के फूल सिर पर चढ़ाकर यह कह रही है कि जो भी मुझे छुएगा, मैं उसको अपना हृदय दान दे दूँगी।

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प्रश्न 2.
‘देखता हूँ मैं: स्वयंवर हो रहा है……..अंचल हिल रहा है’, पंक्तियों के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
इन पंक्तियों के द्वारा कवि प्रकृति के सौंदर्य का मानवी क्रियाओं का आरोप करने का अनुरागमयी चित्रण करना चाहता है।

प्रश्न 3.
कवि ने किस भूमि को प्रेम की सर्वाधिक उपजाऊ भूमि कहा है और क्यों ?
उत्तर :
कवि ने व्यापारिक नगरों से दूर ग्राम्य – प्रकृति को (एकांत को) प्रेम की सर्वाधिक उपजाऊ भूमि कहा है। प्रकृति की निश्छल गोद में प्रेम सहज व स्वाभाविक रूप में पनपता है।

प्रश्न 4.
इस कविता में ‘एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ किसके लिए प्रयुक्त किया गया है ?
उत्तर :
डूबते सूरज की परछाईं के लिए।

प्रश्न 5.
पोखर के सौंदर्य का वर्णन इस कविता के आधार पर कीजिए।
उत्तर :
पोखर में लहरें उठ रही हैं। उसके नीले जल के तले भूरी घास उगी हुई है। वह घास भी लहरों के साथ हिल-डुल रही है। उसमें डूबते सूरज परछाई एक खंभे के सदृश आँखों को आकर्षक लगती है। उसके तट पर कई पत्थर पड़े हैं। वे चुपचाप पानी का सेवन कर रहे हैं।

प्रश्न 6.
भाव स्पष्ट कीजिए-
और सरसों की न पूछो-
हो गई सबसे सयानी।
हाथ पीले कर लिए हैं,
ब्याह – मंडल में पधारी।
उत्तर :
इस कथन के द्वारा कवि ने सरसों के गदराए हुए रूप का वर्णन किया है। चारों ओर उसका पीलापन अपना प्रभाव दिखा रहा है। उसे देखकर कवि कल्पना करता है मानो कोई युवती हाथ पीले करके ब्याह मंडप में पधार चुकी है।

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प्रश्न 7.
तालाब में खड़ा बगुला नींद में होने का नाटक क्यों करता है ?
उत्तर :
बगुला एक ढोंगी पक्षी है। वह मछलियों को देखते ही नींद में होने का ढोंग करता है। जब मछली निकट आती है तो अवसर मिलते ही वह मछली को चोंच में भरकर निगल जाता है। बगुले के ढोंग के कारण ही मछलियाँ उसके नजदीक जाती हैं और उसका आहार बन जाती हैं। इसलिए बगुला तालाब में नींद में होने का नाटक करता है।

प्रश्न 8.
कवि ने चित्रकूट के क्षेत्र की जीवंतता का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर :
चित्रकूट की अनगढ़ पहाड़ियों में प्राकृतिक सुंदरता नहीं है। वहाँ की बंजर भूमि पर इधर-उधर रींवा के काँटेदार तथा कुरूप पेड़ दिखाई देते हैं। परंतु जगह-जगह पक्षियों ने सारे क्षेत्र को जीवंत बना रखा है। कवि ने तोते की रस टपकाती टें टें तथा सारस की टिरटों-टिस्टों की आवाज़ों से सारा वन क्षेत्र गूँज रहा है, जिससे वहाँ का वातावरण जीवंत बन गया है।

प्रश्न 9.
कवि किसकी प्रेम-कहानी सुनना चाहता है ?
उत्तर :
कवि अपने जीवन में पक्षियों से प्रेम-भाव की शिक्षा पाना चाहता है। इसलिए वह सारस पक्षी के साथ उड़कर हरे-भरे खेत में जाना चाहता है जहाँ उनकी जोड़ी रहती है और प्रेम व्यवहार करती है। वह उनकी प्रेम-कहानी को सुनना चाहता है ताकि वह भी अपने जीवन में उन जैसा पवित्र प्रेम-भाव प्राप्त कर सके।

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प्रश्न 10.
और सारसों की न पूछो-
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं।
ब्याह – मंडप में पधारी,
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
कवि ने वसंत ऋतु के आगमन पर खेतों में दूर-दूर तक फैली पीली-पीली सरसों का मानवीकरण करते हुए कहा है कि वह सयानी हो गई है, विवाह के योग्य हो गई है। इसलिए वह प्रकृति के द्वारा सजाए मंडप में पधारी है। फागुन का महीना फाग गाने लगा है। कवि की भाषा सरल और सरस है जिसमें सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। ‘हाथ पीले करना’ में लाक्षणिकता विद्यमान है। मुक्त छंद में भी लयात्मकता का गुण विद्यमान है। अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सुंदर प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति के कथन को सरलता और सरसता प्रदान की है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. देख आया चंद्र गहना
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सजकर खड़ा है।

शब्दार्थ : बीते – (बित्ता) अंगूठे के सिर से कनिष्ठा के सिरे तक लंबाई की नाप। ठिगना – छोटे कद का। मुरैठा – साफा, पगड़ी।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री केदारनाथ अग्रवाल हैं। इसमें उन्होंने ग्राम्य प्रकृति का बड़ा अनुरागमय चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि चंद्र गहना को देख आया है। अब वह खेत की मेंड़ पर अकेला बैठकर उस सारे दृश्य को सजीव रूप में अनुभव कर रहा है। खेतों में उगा हरा तथा ठिगना चना जो एक बीते ( बित्ता) के बराबर है, उसने अपने सिर पर छोटे गुलाबी फूल का मुरैठा (साफा, पगड़ी) बाँध रखा है। इस तरह वह सजकर खड़ा है। कवि ने खेत में उत्पन्न चने के पौधे का बड़ा सजीव एवं मनोहारी चित्र प्रस्तुत किया है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि कहाँ बैठा हुआ था ? उसके साथ कौन था ?
(ख) कवि ने खेत में किसे देखा ?
(ग) चने की शोभा वर्णित कीजिए।
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि चंद्र गहना से लौटते समय एक खेत की मेड़ पर बैठा हुआ था। उसके साथ कोई नहीं था, वह बिल्कुल अकेला था। (ख) कवि ने खेत में हरे-भरे चने को देखा था।
(ग) हरा-भरा चना ठिगना है। उसकी शोभा प्रकृति ने सुंदर ढंग से बढ़ाई है। उस पर छोटे-छोटे गुलाबी फूल लगे हैं जो उसके सिर पर गुलाबी पगड़ी के समान प्रतीत होते हैं।
(घ) कवि ने खेत में उगे चने की अद्भुत सुंदरता को प्रकट करते हुए मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है। तद्भव और तत्सम शब्दावली का मिला-जुला प्रयोग भाषा को सुंदरता प्रदान करने में सफल हुआ है। चाक्षुक बिंब विद्यमान है। अभिधा शब्द-शक्ति और प्रसाद गुण कथन को सरलता और सहजता प्रदान करने में सहायक हुए हैं। मुक्त छंद का प्रयोग है।

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2. पास ही मिलकर उगी है
बीच में अलसी हठीली।
देह की पतली कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर
कह रही है, जो छुए यह,
दूँ हृदय का दान उसको।

शब्दार्थ : अलसी तीसी, एक तिलहन का पौधा जिस पर नीला फूल आता है।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यावतरण श्री केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से अवतरित किया गया है। इसमें ग्राम्य- शोभा का बड़ा सुंदर चित्रण हुआ है।

व्याख्या : कवि कहता है कि चने के खेतों के बीच में हठीली अलसी उगी हुई है। यह अलसी शरीर से दुबली-पतली तथा लचीली कमर वाली है। उसने अपने सिर पर फूले हुए नीले फूल धारण किए हैं। वह मानो यह कह रही है जो भी मेरे इन फूलों को छुएगा, मैं उसको अपने हृदय का दान दे दूँगी। कवि ने अलसी का बड़ा सहज-सजीव चित्रण किया है। यहाँ खिली हुई अलसी में एक प्रेमिका के व्यवहार की आकर्षक कल्पना है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने अलसी को कौन-सा विशेषण दिया है ?
(ख) अलसी की सुंदरता का वर्णन कीजिए।
(ग) अलसी क्या कहना चाहती है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि ने अलसी को ‘हठीली’ विशेषण दिया है।
(ख) अलसी अति सुंदर है। उसकी देह दुबली-पतली है, कमर लचीली है तथा उसके सिर पर नीले रंग के छोटे-छोटे फूल शोभा दे रहे हैं।
(ग) अलसी कहना चाहती है कि जो भी उसके फूलों को छुएगा वह उसे अपना हृदय दान में दे देगी।
(घ) कवि ने खड़ी बोली में खेत में उगी अलसी के कोमल – सुंदर पौधों का सजीव चित्रण किया है। भाषा में चित्रात्मकता का गुण है। अभिधा शब्दशक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। तद्भव शब्दावली की अधिकता है। मानवीकरण अलंकार का प्रयोग सराहनीय है।

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3. और सरसों की न पूछो –
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह मंडप में पधारी,
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।

शब्दार्थ : सयानी जवान कन्या। हाथ पीले करना विवाह करना। फाग – होली के दिनों में गाया जाने वाला गीत।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ग्राम्य – प्रकृति एवं वहाँ की उपज का बड़ा अनुरागमय चित्रण किया है। यहाँ खिली हुई पीली सरसों का बड़ा मोहक चित्र अंकित किया गया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि सरसों की मोहकता के विषय में तो पूछो ही नहीं। वह अत्यंत आकर्षक रूप धारण किए हुए है। सरसों अब जवान हो गई है। ऐसा लगता है कि जैसे वह अपना हाथ पीला करके ब्याह मंडप में पधार चुकी है। अभिप्राय यह है कि सरसों में फूल लग गए हैं। ऐसा लगता है जैसे फागुन होली का गीत गा रहा हो। सरसों के खेत का बड़ा मोहक वर्णन है और साथ ही उसमें एक युवती की कल्पना है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में कौन सयानी हो गई है ?
(ख) शादी के मंडप में कौन पधारी है ?
(ग) फागुन का महीना क्या गा रहा है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में सरसों अब सयानी हो गई है।
(ख) शादी के मंडप में सरसों पधारी है।
(ग) फागुन का महीना फाग गा रहा है जो होली के अवसर पर गाया जाता है।
(घ) कवि ने वसंत ऋतु के आगमन पर खेतों में दूर-दूर तक फैली पीली-पीली सरसों का मानवीकरण करते हुए माना है कि वह सयानी हो गई है, विवाह के योग्य हो गई है इसलिए वह प्रकृति के द्वारा सजाए – सँवारे मंडप में पधारी है। फागुन का महीना फाग गाने लगा है। कवि की भाषा सरल और सरस है जिसमें सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। ‘हाथ पीले करना’ में लाक्षणिकता विद्यमान है। मुक्त छंद में भी लयात्मकता का गुण विद्यमान है। अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सुंदर प्रयोगं सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता और सरसता प्रदान की है।

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4. देखता हूं मैं: स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग – अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से,
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।

शब्दार्थ : स्वयंवर – विवाह का एक आयोजन जिसमें कन्या स्वयं अपने लिए वर चुनती है। विजन जंगल, सूना प्रदेश।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यावतरण ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से लिया गया है। इस कविता में केदारनाथ अग्रवाल ने ग्राम्य प्रकृति तथा वहाँ के खेतों के सौंदर्य का चित्रण अनुरागमयी शैली में किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि प्रकृति एवं खेतों के भरपूर सौंदर्य को देखकर मुझे ऐसा लगता है, जैसे स्वयंवर हो रहा हो अर्थात् इस ग्राम्य शोभा ने ऐसा रूप धारण कर लिया है जिसे देखकर एक ऐसे आयोजन का दृश्य आँखों के सामने तैर जाता है जिसमें कोई कन्या स्वयं अपने लिए वर का चुनाव करती है। प्रकृति रूपी नायिका का प्रेमपूर्ण अंचल हिल-डुलकर उसके भीतर प्रिय मिलन की तीव्र इच्छा को प्रकट कर रहा है। नगरों के पाखंडपूर्ण, स्वार्थमय, व्यापारिक जीवन की तुलना में यहाँ प्रेम की प्रिय भूमि कहीं अधिक उपजाऊ है। अभिप्राय यह है कि प्रकृति के अंचल में चलनेवाले प्रेम व्यवहार में स्थायित्व अधिक है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) किसका स्वयंवर हो रहा है ?
(ख) कवि ने किसके आँचल हिलने का वर्णन किया है ?
(ग) कवि की दृष्टि में नगरीय जीवन कैसा है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने माना है कि ग्रामीण शोभा रूपी आँचल में सरसों का स्वयंवर हो रहा है।
(ख) कवि ने प्रकृति रूपी नायिका के प्रेमपूर्ण आँचल हिलने का वर्णन किया है।
(ग) कवि की दृष्टि में नगरीय जीवन पाखंडपूर्ण, स्वार्थमय और व्यापारिक है।
(घ) कवि ने अवतरण में खेतों का चित्रात्मक और अनुरागमयी रूप अंकित किया है। अतुकांत छंद में रचित पंक्तियों में लयात्मकता विद्यमान है। तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है। मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक रूप सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है।

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5. और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।

शब्दार्थ पोखर – तालाब।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से अवतरित की गई हैं, जिसमें कवि ने गाँव की प्रकृति की सुंदरता का सहज चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि ग्राम्य प्रकृति का अनुरागपूर्ण चित्रण करता हुआ कहता है- मेरे पाँव के तले (निकट) एक सरोवर है, जिसमें लहरें उठ रही हैं। उस सरोवर के नीले तल में जो भूरी घास उग आई है, वह भी लहरियाँ ले रही है अर्थात् जल के साथ हिल-डुल रही है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि के पैरों के पास क्या है ?
(ख) पोखर की गहराई में क्या उगा हुआ है ?
(ग) तल में घास किस प्रकार का व्यवहार कर रही है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि के पैरों के पास एक पोखर है जो पानी से भरा हुआ है।
(ख) पोखर की गहराई में घास उगी हुई है जो भूरे रंग की है।
(ग) पोखर के जल के हिलने से घास भी लहरियाँ लेती हुई प्रतीत होती हैं।
(घ) अवतरण में पोखर का सजीव चित्रण किया गया है। तल में उगी हुई घास भी जल के हिलने से लहरियाँ लेने लगती है। चित्रात्मकता विद्यमान है। अनुप्रास का सहज प्रयोग किया गया है। अतुकांत छंद का प्रयोग है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द- शक्ति विद्यमान है।

6. एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी!

शब्दार्थ : चकमकाना चकाचौंध पैदा करना।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण श्री केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से अवतरित किया गया है। कवि ने गाँव की प्राकृतिक सुंदरता का सुंदर वर्णन किया है। खेतों के पास जल से भरा एक पोखर है जिसमें जल लहरा रहा है।

व्याख्या : कवि ग्राम्य प्रकृति का अनुरागमय चित्रण करता हुआ कहता है कि पोखर के पानी में डूबते हुए सूर्य का प्रतिबिंब इस प्रकार बन रहा है जैसे वह चाँदी का एक बड़ा-सा गोल खंभा हो। हलके-हलके हिलते पानी के कारण उसका आकार लंबा प्रतीत होता है और चमकीला होने के कारण वह चाँदी की तरह चमक रहा है। उसे देखने से आँखें चौंधिया रही हैं। उसकी ओर दृष्टि टिकती नहीं है। पोखर के किनारे पर कई पत्थर पड़े हैं। हवा के कारण पानी की छोटी-छोटी लहरें इन पत्थरों से स्पर्श कर रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो ये पत्थर प्यासे हों और मौन भाव से पानी पी रहे हों। पता नहीं, ये पत्थर कब से पानी पी रहे हैं पर फिर भी इनकी प्यास नहीं बुझ रही। पता नहीं इनकी प्यास कब बुझेगी ? क्या ये सदा इसी तरह प्यासे ही रहेंगे।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) कवि ने चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा किसे कहा है ?
(ख) पत्थर कहाँ पड़े हैं ?
(ग) पत्थर क्या करते प्रतीत हो रहे हैं ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा सूर्य के प्रतिबिंब को कहा है जो पोखर के जल में बिंबित हो रहा है। पानी के हिलने के कारण वह निरंतर हिलकर लंबे खंभे-सा प्रतीत हो रहा है।
(ख) पत्थर पोखर के किनारे पड़े हैं जो जल को स्पर्श कर रहे हैं।
(ग) कवि को प्रतीत होता है कि वे पत्थर पोखर के पानी को पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं।
(घ) कवि ने कल्पना की है कि पोखर के जल में आँख को चकमकाता सूर्य का प्रतिबिंब बड़े से गोल खंभे के रूप में दिखाई दे रहा है और किनारे पर पड़े पत्थर ऐसे लगते हैं जैसे पोखर के जल को पीकर अपनी प्यास को बुझाना चाह रहे हों। पता नहीं उनकी प्यास कभी बुझेगी भी या नहीं। शब्द अति सरल हैं। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण और चित्रात्मकता ने कवि के भावों को सजीवता प्रदान की है। उपमा, स्वाभावोक्ति और अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

7. चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान – निद्रा त्यागता है,
चट दबाकर चोंच में
नीचे गले के डालता है !

शब्दार्थ : ध्यान – निद्रा – ध्यान रूपी नींद

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण श्री केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से उद्धृत किया गया है। इस कविता में ग्राम्य प्रकृति का बड़ा मधुर एवं अनुरागमय चित्रण हुआ है।

व्याख्या : यहाँ कवि सरोवर का वर्णन करता हुआ कहता है कि कोई बगुला चुपचाप अपनी एक टाँग जल में डुबोए खड़ा है। वह चंचल मछली को देखते ही अपनी निद्रा का ध्यान त्यागकर झट से मछली को चोंच से पकड़कर गले में डाल देता है अर्थात् मछली को निगल जाता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) पोखर के जल में एक टाँग पर कौन खड़ा है ?
(ख) बगुला अपनी नींद को कब त्यागता प्रतीत होता है ?
(ग) तालाब में खड़ा बगुला क्या वास्तव में ही नींद में होता है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) पोखर के जल में एक टाँग पर बगुला खड़ा है।
(ख) बगुला अपनी नींद को तब त्यागता प्रतीत होता है, जब कोई चंचल मछली जल में उसके निकट से गुज़रती है।
(ग) बगुला वास्तव में नींद में नहीं होता। वह बिना हिले-डुले मछलियों को यह अहसास कराता है कि जल में ऐसा कोई खतरा नहीं जो उन्हें क्षति पहुँचा सके। किसी प्रकार के संकट की संभावना न होने के कारण ही मछलियाँ तैरती हुई बगुले के निकट आ जाती हैं।
(घ) कवि ने बगुले की ढोंगी वृत्ति का चित्रण है। वस्तुतः बगुला भोला – सा बनकर सरोवर के तट पर खड़ा हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे यह किसी को हानि नहीं पहुँचाना चाहता, पर अवसर मिलते ही वह मछली को चोंच में भरकर निगल जाता है। बगुले के माध्यम से यहाँ ढोंगी व्यक्ति के स्वभाव का चित्रण हुआ है।

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8. एक काले माथे वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन।
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबाकर
दूर उड़ती है गगन में !

शब्दार्थ : श्वेत- सफेद। चटुल – चंचल। गगन – आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से अवतरित की गई हैं। इस कविता में कवि ने ग्राम्य प्रकृति का बड़ा अनुरागमय चित्रण किया है।

व्याख्या : यहाँ मछली का भक्षण करने वाली एक चिड़िया का शब्द – चित्र कवि के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। एक चिड़िया जिसका मस्तक काला है, वह अपने सफेद पंखों को फड़फड़ाते हुए अचानक सरोवर में भरे हुए जल के ऊपर टूट पड़ती है तथा एक चंचल सफेद मछली को अपनी पीली चोंच में दबाकर कहीं दूर आकाश में उड़ जाती है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) चिड़िया का रूप कैसा है ?
(ख) कवि ने चिड़िया को चतुर क्यों कहा है ?
(ग) चिड़िया उड़ कर कहाँ जाती है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) चिड़िया सफेद पंखों वाली है जिसके माथे का काला रंग है। वह तेजी से झपटने की क्षमता रखती है। उसकी चोंच पीली है।
(ख) कवि ने चिड़िया को चतुर कहा है क्योंकि वह जल की गहराई से ही अपनी पीली चोंच में मछली को झपटकर ले जाती है और पल-भर में ही आकाश की ऊँचाई में दूर उड़ जाती है।
(ग) चिड़िया उड़कर आकाश में चली जाती है।
(घ) कवि ने काले माथे, पीली चोंच और सफेद रंग की चिड़िया की निपुणता और चपलता का वर्णन किया है। गतिशील बिंब – योजना और सुंदर रंग- योजना ने सहज रूप से चित्रात्मकता को प्रकट किया है। अनुप्रास का सहज स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द – शक्ति ने कवि के कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है।

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9. औ यहीं से
भूमि ऊँची है जहाँ से-
रेल की पटरी गई है।
ट्रेन का टाइम नहीं है।
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ जाना नहीं है।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी,
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ।
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रींवा के पेड़,
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।

शब्दार्थ : टाइम समय। स्वच्छंद – समय। स्वच्छंद – स्वतंत्र। बाँझ भूमि – बंजर भूमि। रींवा काँटेदार पेड़ विशेष।

प्रसंग : ये पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से अवतरित की गई हैं। कवि ग्राम्य प्रकृति का चित्र खींचता हुआ कहता है कि पोखर के निकट ही पहाड़ियाँ हैं जिनकी शोभा भिन्न प्रकार की है।

व्याख्या : कवि कहता है कि यहीं से, जहाँ भूमि कुछ ऊँची है जहाँ से रेल की पटरी जा रही है। यह समय किसी गाड़ी के आने-जाने का नहीं है। अतः कवि यहाँ स्वच्छंदतापूर्वक भ्रमण कर सकता है। उसे कहीं जाना नहीं है। चित्रकूट की अनगढ़ी पहाड़ियाँ जो अधिक ऊँची नहीं हैं, दूर दिशा तक फैली हुई हैं। वहाँ की बंजर भूमि पर इधर-उधर रींवा के काँटेदार तथा कुरूप पेड़ खड़े दिखाई देते हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि उस स्थान पर स्वयं को स्वच्छंद क्यों मानता है ?
(ख) चित्रकूट की पहाड़ियाँ कैसी हैं ?
(ग) काँटेदार कुरूप पौधे कहाँ पर हैं ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि स्वयं को उस ऊँची भूमि पर स्वच्छंद मानता है क्योंकि उस समय उसके पास करने के लिए कुछ भी नहीं है। वहाँ से गुजरती रेल की पटरी पर भी तब कोई गाड़ी गुजरने वाली नहीं है
(ख) चित्रकूट की पहाड़ियाँ चौड़ी और अनगढ़ हैं। उनकी ऊँचाई अधिक नहीं है और वे दूर-दूर तक फैली हुई हैं।
(ग) चित्रकूट की अनगढ़ पथरीली बाँझ भूमि पर रींवा के काँटेदार कुरूप पेड़ इधर-उधर उगे हुए हैं।
(घ) कवि ने चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी और कम ऊँची पहाड़ियों पर उगे रींवा के काँटेदार कुरूप पेड़ों का वर्णन करने के साथ-साथ अपने अकेलेपन का उल्लेख किया है। कवि ने बोलचाल की सामान्य शब्दावली का प्रयोग अति स्वाभाविक रूप से किया है। ‘रेल’, ‘ट्रेन’, ‘टाइम’ आदि विदेशी शब्दावली के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी प्रयोग किया गया है। मानवीकरण और अनुप्रास का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द-शक्ति और प्रसाद गुण का सुंदर प्रयोग कथन की सरलता का आधार है। मुक्त छंद के प्रयोग में भी लयात्मकता की सृष्टि हुई है।

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10. सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें दें,
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता,
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों,
मन होता है
उड़ जाऊँ मैं,
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम-कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे।

शब्दार्थ : वनस्थली – जंगल। सुग्गा – तोता।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ग्राम्य प्रकृति का बड़ा मनोहारी चित्र अंकित किया है। चित्रकूट की अनगढ़ पहाड़ियों में चाहे प्राकृतिक सुंदरता कम हो पर जगह-जगह पक्षियों ने सारे क्षेत्र को जीवंत बना रखा है।

व्याख्या : कवि का कथन है- मीठा-मीठा रस टपकता हुआ तोते का टें टें टें टें का स्वर जंगल के हृदय को चीरता हुआ-सा सुनाई पड़ता है। कभी उठता तथा कभी गिरता हुआ सारस की टिरटों-टिरटों की-सी आवाज़ सुनाई देने लगती है। कवि का मन चाहता है कि वह भी अपने पैरों को फैलाकर सारस के संग उड़कर वहाँ जा पहुँचे, जहाँ प्रेमियों की जोड़ी रहती है। वहाँ पहुँचकर मौन रूप से प्रेम की कहानी सुन ले उनके प्रेम में निश्छलता का भाव होगा इसलिए उसने प्रकृति के प्रांगण में चलने वाली निश्छल प्रेम कहानी सुनने की तीव्र इच्छा प्रकट की है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने किस-किस पक्षी की आवाज़ कविता में सुनाई है ?
(ख) कवि की इच्छा क्या है ?
(ग) कवि किसकी प्रेम कहानी सुनना चाहता है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने तोते की रस टपकाती टें टें टें टें तथा सारस के स्वर टिरटों टिरटों की आवाजें सुनाई हैं जो सारे वनक्षेत्र में गूँज रही हैं।
(ख) कवि की इच्छा है कि वह भी सारस पक्षी के साथ उड़ जाए और स्वच्छंद उड़ान भरे।
(ग) कवि सारस पक्षी के साथ उड़कर उन हरे-भरे खेतों में जाना चाहता है जहाँ उनकी जोड़ी रहती है और प्रेम व्यवहार करती है। वह उनकी प्रेम कहानी को सुनना चाहता है ताकि वह भी अपने जीवन में उन जैसा पवित्र प्रेम-भाव प्राप्त कर सके।
(घ) कवि ने अपने जीवन में पक्षियों से प्रेम-भाव की शिक्षा पाने की कामना की है। उनकी मधुर आवाज़ उनके हृदय के भावों को प्रकट करने में सक्षम है। ‘टें टें टें टें’ तथा ‘टिरटों टिरटों’ से श्रव्य बिंब की सृष्टि हुई है। दृश्य बिंब ने गाँव के सुंदर क्षेत्र को प्रकट करने में सफलता पाई है। अतुकांत छंद के प्रयोग में भी लयात्मकता विद्यमान है। पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। तद्भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।

चंद्र गहना से लौटती बेर Summary in Hindi

कवि-परिचय :

श्री केदारनाथ अग्रवाल आधुनिक युग के चर्चित कवियों में से एक हैं। उनका जन्म 1 अप्रैल, सन् 1911 को बाँदा जिले के कमासिन गाँव में हुआ था। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी० ए० करने के बाद आगरा विश्वविद्यालय से एल०एल०बी० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने बाँदा में वकालत करनी आरंभ की। अग्रवाल जी ने जहाँ वकालत के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की, वहीं वे काव्य – साधना में भी संलग्न रहे। हिंदी के प्रगतिशील आंदोलन के साथ वे बराबर जुड़े रहे। उनका काव्य यथार्थ की भूमि को आधार बनाकर खड़ा हुआ। वे वर्गहीन समाज के समर्थक रहे। यही कारण है कि दीन-दुखियों के प्रति उनकी सहज सहानुभूति रही। इनका देहावसान सन् 2000 में हुआ।

नींद के बादल, युग की गंगा, लोक तथा आलोक, फूल नहीं रंग बोलते हैं, आग का आईना, हे मेरी तुम, मार प्यार की थापें, कहे केदार खरी-खरी, पंख और पतवार आदि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। काव्यगत विशेषताएँ – अग्रवाल जी अपने समकालीन प्रगतिवादी कवियों से प्रेरणा लेकर काव्य-क्षेत्र में आगे बढ़े। उनकी खड़ी बोली में रचे गये कवित्त, सवैये लखनऊ की माधुरी पत्रिका में प्रकाशित हुए।

‘नींद के बादल’ उनका पहला कविता संग्रह है। इस संग्रह में उनकी प्रणय संबंधी कविताओं की प्रधानता है। दूसरे काव्य संग्रह ‘युग की गंगा’ में सामान्य जन-जीवन तथा प्रकृति के मार्मिक चित्र अंकित हुए हैं। तीसरे संग्रह ‘लोक तथा आलोक’ में प्रगतिवाद की झलक मिलती है। प्रगतिवादी रचनाओं में उन्होंने पूँजीपतियों की शोषण वृत्ति का यथार्थ चित्र अंकित किया है। प्रकृति-संबंधी कविताओं में बड़े गतिशील चित्र अंकित हुए हैं।

अग्रवाल जी की भाषा प्रायः सरल एवं सुबोध है। शब्दचयन प्रायः कलात्मक एवं भावानुरूप है। शैलीकार के रूप में उन्होंने मुक्त छंद और गीति छंद का सफल प्रयोग किया है। उनकी भाषा में शब्दों का सौंदर्य है, ध्वनियों की धारा है और स्थापत्य की कला है। संगीतात्मकता तो इनके काव्य की अनूठी विशेषता है। लोकभाषा और ग्रामीण जीवन से जुड़े बिंबों को प्रस्तुत करने में इन्हें अद्भुत क्षमता प्राप्त थी। इनकी कविता में शिल्प की जटिलता नहीं है। वे अपने भावों को सहज रूप से व्यक्त कर देते हैं।

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कविता का सार :

कवि का प्रकृति के प्रति गहरा अनुराग-भाव पाठक को सहसा अपनी ओर आकृष्ट करने की क्षमता रखता है। वह चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा था। उसका किसान मन बार-बार प्रकृति के रंगों में रंगा जा रहा था। खेत-खलिहान उसके मन से बाहर निकलते ही नहीं। उसे प्रकृति के साधारण रंगों में भी असाधारण शोभा दिखाई देती है। वह शहरी विकास की तेज गति के बीच भी उस सौंदर्य को अपनी कोमल भावनाओं और संवेदनाओं को सुरक्षित रखना चाहता है। खेत की मेड़ पर बैठे हुए उसे खेत में उगा चना ऐसे लगता है जैसे पौधों ने फूलों की पगड़ियाँ बाँधी हुई हों, वे सज-संवर कर खड़े हों।

पास ही नीले फूलों से सजी अलसी के पौधे शोभा दे रहे हैं। पीली-पीली सरसों तो मानो अपना विवाह रचाने के लिए मंडप में पधार रही हो। पोखर में छोटी-छोटी लहरियाँ उठ रही हैं। एक बगुला मछलियों की ताक में शांत भाव से एक टाँग पर खड़ा है। मछली दिखते ही उसकी ध्यान-निद्रा टूटती है। पक्षियों की तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। चित्रकूट की अनगढ़ कम चौड़ी पर ऊँची पहाड़ियों में इधर-उधर कंटीले पेड़-पौधे दिखाई देते हैं। कवि चाहता है कि सारस पक्षियों के जोड़े के साथ हरे-भरे खेतों में उनकी प्रेम-कथा को सुने। कवि कविता के माध्यम से प्राकृतिक चित्रों को अंकित करने में सफल रहा है।

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