JAC Board Class 9th Social Science Solutions Civics Chapter 2 संविधान निर्माण
JAC Class 9th Civics संविधान निर्माण InText Questions and Answers
विद्यार्थियों हेतु आवश्यक निर्देश:
पाठ्य-पुस्तक के इस अध्याय में विभिन्न पृष्ठों पर लड़के/लड़की के कार्टून चित्रों के नीचे अथवा ‘खुद करें, खुद सीखें’ शीर्षक से बॉक्स में अथवा ‘कार्टून बूझें शीर्षक के नीचे अथवा कहाँ
पहुँचे? क्या समझे? शीर्षक से बॉक्स में प्रश्न दिए हुए हैं। इन प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर निम्न प्रकार से हैं
पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 22
प्रश्न 1.
नेल्सन मण्डेला के जीवन और संघर्षों पर एक पोस्टर बनाएँ।
उत्तर:
छात्र इस प्रश्न को अध्यापकों की सहायता से स्वयं हल करें।
प्रश्न 2.
अगर उनकी आत्मकथा, ‘द लाँग वाक टू फ्रीडम’ उपलब्ध हो तो कक्षा में उसके कुछ हिस्से पढ़कर आपस में चर्चा करें।
उत्तर:
छात्र, इस प्रश्न को अध्यापकों की सहायता से स्वयं हल करें।
प्रश्न 3.
अगर दक्षिण अफ्रीका के बहुसंख्यक काले लोगों ने गोरों से अपने दमन और शोषण का बदला लेने का निश्चय किया होता तो क्या होता?
उत्तर:
ऐसा करने पर दक्षिण अफ्रीका में हर तरफ युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो जाती। हर तरफ खून ही खून दिखाई पड़ता। हर तरफ विनाश तथा अराजकता का माहौल होता, किन्तु दक्षिण अफ्रीकी लोगों ने हिंसा की जगह अहिंसा का सहारा लिया तथा अपनी समस्याओं का हल ढूँढ़ निकाला।
पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 23
प्रश्न 4.
आज का दक्षिण अफ्रीका : यह तस्वीर आज के दक्षिण अफ्रीका की सोच को उजागर करती है। आज का दक्षिण अफ्रीका खुद को ‘इन्द्रधनुषी देश’ कहता है। क्या आप बता सकते हैं, क्यों?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीकी लोग स्वयं को ‘इन्द्रधनुषी देश’ कहकर बुलाते हैं, क्योंकि रंगभेदी सरकार के समय अपने कडुवे अनुभवों को भुलाकर गोरे, काले, दूसरे वर्ण के लोग तथा भारतीय मूल के लोग सभी मिलकर काम करते हुए लोकतान्त्रिक मूल्यों पर आधारित एक नये राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रयासरत हैं।
प्रश्न 5.
क्या दक्षिण अफ्रीका के स्वतन्त्रता संग्राम से आपको भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की याद आई? इन बिन्दुओं के आधार पर दोनों संघर्षों में समानताएँ और असमानताएँ बताएँ
1. विभिन्न समुदायों के बीच सम्बन्ध
2. नेतृत्व-गाँधी/मंडेला
3. संघर्ष का नेतृत्व करने वाली पार्टी-अफ्रीकी नेशनल काँग्रेस/भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस
4. संघर्ष का तरीका उपनिवेशवाद का चरित्र।
उत्तर:
हाँ, दक्षिण अफ्रीका के स्वतन्त्रता संग्राम की कहानी हमें भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की याद दिलाती है।
1. विभिन्न समुदायों के बीच सम्बन्ध | समानता | असमानता भारत के कुछ लोगों ने भी दक्षिण अफ्रीकी स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया, लेकिन किसी भी दक्षिण अफ्रीकी ने भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग नहीं लिया। |
2. नेतृत्व | दोनों ही देशों में गोरे शासकों द्वारा वहाँ की जनता को हीन दृष्टि से देखा जाता था। | मंडेला को आजीवन कारावास की सजा दी गई। उन्होंने जेल से ही आन्दोलन का नेतृत्व किया। गाँधीजी कई बार जेल गये, लेकिन उन्होंने जेल से आन्दोलन का नेतृत्व नहीं किया बल्कि वे जनता के बीच जाकर आन्दोलन का नेतृत्व करते थे। |
3. संघर्ष नेत्रत्व करने वाली पार्टी | गाँधी/मंडेला-गाँधी तथा मंडेला दोनों ने अपने देश के राष्ट्रीय आन्दोलनों में अहिंसा के माध्यम से संघर्ष किया तथा दोनों ही जनता के बीच बहुत ही लोकप्रिय थे। भारत में गाँधी तथा दक्षिण अक्रीका में मंडेला। | अफ्रीका में केवल अफ्रीकी नेशनल काँग्रेस ही एकमात्र पार्टी थी, जबकि भारत में दूसरी अन्य राजनीतिक पार्टियाँ तथा चरमपंथी दल थे जिन्होंने आन्दोलन में अपनी-अपनी तरह से भाग लिया। |
4. संघर्ष तरीका | अफ्रीकी नेशनल काँरेस। भारतीय राष्ट्रीय कँग्रेस-दोनों पार्टियों ने अपने-अपने देश में जन आन्दोलनों का नेतृत्व किया तथा उचित समय पर उचित कार्यक्रम द्वारा उन्हें निर्देशित किया। दोनों ही संगठन आम जनता के सामान्य हितों की रक्षा करते हुए संघर्ष कर रहे थे। | भारत में कुछ आदिवासी संगठन भी थे जिन्होंने हिंसक तरीकों से अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्वतन्त्रता की लड़ाई में अपना योगदान दिया। |
5. उपनिवेशवाद का चरित्र | दोनों ही देशों में स्वतन्त्रता की लड़ाई अधिकतर लोकतान्त्रिक तथा अहिंसक तरीकों से लड़ी गई। इन तरीकों में धरना, प्रदर्शन व हड़ताल आदि थे। | भारत में यूरोपीय लोग बसे नहीं हैं। लेकिन यूरोपीय लोग दक्षिण अफ्रीका में बस गये तथा वहाँ के स्थानीय शासक बन गये। |
पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 24
प्रश्न 6.
अपने इलाके के किसी क्लब, सहकारी संगठन अथवा मजदूर संघ या राजनीतिक दल के दफ्तर में जाएँ और उनसे संविधान या संगठन के नियमों की पुस्तिका माँगें तथा उसका अध्ययन करें।
क्या उसके नियम लोकतान्त्रिक नियमों के अनुकूल हैं? क्या वे बिना भेदभाव के सभी को सदस्यता देते हैं?
उत्तर:
छात्र इस प्रश्न को अध्यापकों की सहायता से स्वयं हल करें।
प्रश्न 7.
यह तो गड़बड़ हो गई। अगर सभी बुनियादी बातों पर पहले ही फैसला हो गया था तो संविधान सभा बनाने का क्या औचित्य था?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद भारत एक लोकतान्त्रिक देश बनने जा रहा था। अतः सर्वप्रथम यह आवश्यक था कि नीचे से ऊपर तक भारतीय जनता के सभी वर्गों के विचारों एवं समस्याओं को समझा जाए। इसके उपरान्त बहस व चर्चा द्वारा उनके लिए निर्धारित नियमों में सुधार किया जाए। अतः बुनियादी बातों पर पहले ही फैसला हो जाने के बावजूद संविधान सभा का गठन किया गया।
पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 25
प्रश्न 8.
अपने दादा-दादी, नाना-नानी या इलाके के किसी बुजुर्ग से बात कीजिए। उनसे पूछिए कि क्या उनको आजादी या बँटवारे या संविधान निर्माण के बारे में कुछ बातें याद हैं। उस समय लोगों को किन बातों की उम्मीद थी और क्या-क्या अंदेशे थे ? अपनी कक्षा में इन बातों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
छात्र, इस प्रश्न को अध्यापकों व अपने बुजुर्गों की सहायता से स्वयं हल करें।
पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 27
प्रश्न 9.
अपने राज्य या इलाके से संविधान सभा में गये ऐसे सदस्य का नाम पता करें जिनका जिक्र यहाँ नहीं किया गया है। उस नेता की तस्वीर जुटाएँ या उनका स्केच बनाएँ। हमने जिस तरह संक्षेप में कुछ नेताओं के बारे में सूचना दी है उसी तरह उनके बारे में भी ब्यौरा दें। यानि नाम (जन्म वर्ष-मृत्यु वर्ष), जन्म स्थान ( वर्तमान राजनैतिक सीमाओं के आधार पर), राजनीतिक गतिविधियों का संक्षिप्त विवरण, संविधान सभा के बाद की भूमिका।
उत्तर:
छात्र इस प्रश्न को अध्यापकों की सहायता से स्वयं हल करें।
पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 28
प्रश्न 10.
भारतीय संविधान निर्माताओं के बारे में यहाँ दी गई जानकारियों को पढ़ें। आपको यह जानकारी कंठस्थ करने की जरूरत नहीं है। इस आधार पर निम्नलिखित कथनों के पक्ष में उदाहरण प्रस्तुत करें
1. संविधान सभा में ऐसे अनेक सदस्य थे जो कांग्रेसी नहीं थे।
2. सभा में समाज के अलग-अलग समूहों का प्रतिनिधित्व था।
3. सभा के सदस्यों की विचारधारा भी अलग-अलग थी।
उत्तर:
1. संविधान सभा में ऐसे अनेक सदस्य थे जो कांग्रेसी नहीं थे। इन सदस्यों में वल्लभभाई झावरभाई पटेल (1875-1950), जयपाल सिंह (1903-1970), भीमराव रामजी अम्बेडकर (1891-1956), श्यामा प्रसाद मुखर्जी (1901-1953) आदि प्रमुख थे।
2. सभा में समाज के अलग:
अलग समूहों का प्रतिनिधित्व था। इन समूहों व उनके नेताओं में
- वल्लभभाई झावरभाई पटेल-किसान सत्याग्रह के नेता।
- अबुल कलाम आजाद-धर्मशास्त्री, अरबी के विद्वान्।
- जयपाल सिंह-आदिवासी महासभा के संस्थापक अध्यक्ष।
- भीमराव रामजी अम्बेडकर-सामाजिक क्रान्तिकारी चिंतक तथा जाति-विभाजन एवं जाति-आधारित असमानता के प्रखर विरोधी।
- श्यामा प्रसाद मुखर्जी-हिन्दू महासभा के सदस्य। आदि प्रमुख थे।
3. सभा के सदस्यों की विचारधारा भी अलग:
अलग थी। कुछ अलग विचारधारा वाले नेताओं में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (1889-1963), एच. सी. मुखर्जी (1887-1956), जी. दुर्गाबाई देशमुख (1909-1981), जवाहरलाल नेहरू (1889-1964), सरोजिनी नायडू (1879-1949) आदि प्रमुख थे।
पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 29
प्रश्न 1.
पहले दिए तीनों उद्धरणों को गौर से पढ़ें। पहचानिए कि कौन-सा एक विचार इन तीनों उद्धरणों में उपस्थित है। इन तीनों उद्धरणों में इस साझे विचार को व्यक्त करने का तरीका किस तरह एक-दूसरे से भिन्न है?
उत्तर:
विद्यार्थी इस प्रश्न को अपने शिक्षकों की सहायता से स्वयं हल करें।
प्रश्न 2.
संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत और दक्षिण अफ्रीका के संविधानों की प्रस्तावना की तुलना कीजिए।
1. इन सभी में जो विचार साझा है, उनकी सूची बनाएँ।
2. इन सभी में कम-से-कम एक बड़े अन्तर को रेखांकित करें।
3. तीनों में से कौन-सी प्रस्तावना अतीत की ओर संकेत करती है?
4. इन प्रस्तावनाओं में कौन-सी ईश्वर का आह्वान नहीं करती?
उत्तर:
- इन तीनों में मिले-जुले विचार हैं:
- इन तीनों संविधानों की शुरुआत प्रस्तावना से हुई है।
- इन तीनों संविधानों की प्रस्तावना की शुरुआत ‘हम (देश का नाम) के लोग’ से हुई है।
- इनके बीच एक प्रमुख अन्तर है-‘समाजवादी विचारधारा का प्रयोग सिर्फ भारतीय संविधान की प्रस्तावना में हुआ
- दक्षिण अफ्रीकी संविधान की प्रस्तावना अतीत की ओर संकेत करती है।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ईश्वर का आह्वान नहीं किया गया है।
JAC Class 9th Civics संविधान निर्माण Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
नीचे कुछ गलत वाक्य दिए गए हैं। हर एक में की गई गलती पहचानें और इस अध्याय के आधार पर उसको ठीक करके लिखें।
(क) स्वतन्त्रता के बाद देश लोकतान्त्रिक हो या नहीं, इस विषय पर स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेताओं ने अपना दिमाग खुला रखा था।
(ख) भारतीय संविधान सभा के सभी सदस्य संविधान में कही गई हरेक बात पर सहमत थे।
(ग) जिन देशों में संविधान है वहाँ लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था ही होगी।
(घ) संविधान देश का सर्वोच्च कानून होता है इसलिए इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता।
उत्तर:
(क) स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेताओं की इस बारे में स्पष्ट धारणा थी कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश में लोकतन्त्र होना चाहिए।
(ख) भारतीय संविधान सभा के सभी सदस्यों की संविधान के सभी उपबन्धों को लेकर अलग-अलग धारणाएँ थीं।
(ग) जिन देशों में संविधान है वहाँ लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था का होना जरूरी नहीं है।
(घ) यह सत्य है कि संविधान देश का सर्वोत्तम कानून होता है परन्तु संविधान में संशोधन की व्यवस्था होती है, क्योंकि इसे लोगों की इच्छाओं तथा समाज में आए परिवर्तन के अनुसार होना चाहिए।
प्रश्न 2.
दक्षिण अफ्रीका का लोकतान्त्रिक संविधान बनाने में इनमें से कौन-सा टकराव सबसे महत्वपूर्ण था
(क) दक्षिण अफ्रीका और उसके पड़ोसी देशों का।
(ख) स्त्रियों और पुरुषों का।
(ग) गोरे अल्पसंख्यक और अश्वेत बहुसंख्यकों का।
(घ) रंगीन चमड़ी वाले बहुसंख्यकों और अश्वेत अल्पसंख्यकों का।
उत्तर:
(ग) गोरे अल्पसंख्यक और अश्वेत बहुसंख्यकों का।
प्रश्न 3.
लोकतान्त्रिक संविधान में इनमें से कौन-सा प्रावधान नहीं रहता
(क) शासन प्रमुख के अधिकार
(ख) शासन प्रमुख का नाम
(ग) विधायिका के अधिकार
(घ) देश का नाम।
उत्तर:
(ख) शासन प्रमुख का नाम।
प्रश्न 4.
संविधान निर्माण में इन नेताओं और उनकी भूमिका में मेल बैठाएँ
(क) मोतीलाल नेहरू | 1. संविधान सभा के अध्यक्ष |
(ख) बी. आर. अम्बेडकर | 2. संविधान सभा की सदस्य |
(ग) राजेन्द्र प्रसाद | 3. प्रारूप कमेटी के अध्यक्ष |
(घ) सरोजिनी नायडू | 4. 1928 ई. में भारत का संविधान बनाया। |
उत्तर:
(क) मोतीलाल नेहरू | 4. 1928 ई. में भारत का संविधान बनाया। |
(ख) बी. आर. अम्बेडकर | 3. प्रारूप कमेटी के अध्यक्ष |
(ग) राजेन्द्र प्रसाद | 1. संविधान सभा के अध्यक्ष |
(घ) सरोजिनी नायडू | 2. संविधान सभा की सदस्य |
प्रश्न 5.
जवाहरलाल नेहरू के नियति के साथ साक्षात्कार वाले भाषण के आधार पर निम्नलिखित का जवाब
(क) नेहरू ने क्यों कहा कि भारत का भविष्य सुस्ताने और आराम करने का नहीं है?
(ख) नये भारत के सपने किस तरह विश्व से जुड़े हैं?
(ग) वे संविधान निर्माताओं से क्या शपथ चाहते थे?
(घ) “हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की कामना हर आँख के आँसू पोंछने की है।” वे इस कथन में किसका जिक्र कर रहे थे?
उत्तर:
(क) नेहरू ने यह बात ‘भारत का भविष्य सुस्ताने और आराम करने का नहीं है। इसलिए कहा था कि भारत के लोग अपने वायदों को पूरा करने के लिए निरन्तर प्रयास करते रहें।
(ख) नये भारत के सपने दरिद्रता का, अज्ञान का, बीमारियों का और अवसर की असमानता का अन्त करना है। विश्व शान्ति और समृद्धि के लिए भी यह आवश्यक है।
(ग) वह संविधान के निर्माताओं से यह शपथ लेना चाहते थे कि वे भारत के संसाधनों तथा जनता के हित में अपने आपको समर्पित कर दें।
(घ) वह इस कथन में महात्मा गाँधी की ओर संकेत कर रहे थे।
प्रश्न 6.
हमारे संविधान को दिशा देने वाले ये कुछ मूल्य और उनके अर्थ हैं। इन्हें आपस में मिलाकर दोबारा लिखिए।
(क) संप्रभु | 1. सरकार किसी धर्म के निर्देशों के अनुसार काम नहीं करेगी। |
(ख) गणतन्त्र | 2. फैसले लेने का सर्वोच्च अधिकार लोगों के पास है। |
(ग) बंधुत्व | 3. शासन प्रमुख एक चुना हुआ व्यक्ति है। |
(घ) धर्मनिरपेक्ष | 4. लोगों को आपस में परिवार की तरह रहना चाहिए। |
उत्तर:
(क) संप्रभु | 2. फैसले लेने का सर्वोच्च अधिकार लोगों के पास है। |
(ख) गणतन्त्र | 3. शासन प्रमुख एक चुना हुआ व्यक्ति है। |
(ग) बंधुत्व | 4. लोगों को आपस में परिवार की तरह रहना चाहिए। |
(घ) धर्मनिरपेक्ष | 1. सरकार किसी धर्म के निर्देशों के अनुसार काम नहीं करेगी। |
प्रश्न 7.
कुछ दिन पहले नेपाल से आपके एक मित्र ने वहाँ की राजनीतिक स्थिति के बारे में आपको पत्र लिखा था। वहाँ अनेक राजनीतिक पार्टियाँ राजा के शासन का विरोध कर रही थीं। उनमें से कुछ का कहना था कि राजा द्वारा दिये गये मौजूदा संविधान में ही संशोधन करके चुने हुए प्रतिनिधियों को ज्यादा अधिकार दिये जा सकते हैं। अन्य पार्टियाँ नया गणतान्त्रिक संविधान बनाने के लिए नई संविधान सभा गठित करने की माँग कर रही थीं। इस विषय में अपनी राय बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।
उत्तर:
प्रिय मित्र, आपने अपने पत्र में जिन मुद्दों की चर्चा की है। उनके विषय में मैं अपनी राय को निम्न रूप में प्रेषित कर रहा हूँ नेपाल में लोगों के विचार अलग-अलग हैं। कुछ लोगों का कहना है कि राजा ने जो संविधान बनाया है, उसी में थोड़ा सुधार करके चुने हुए लोगों को अधिक शक्ति दे दी जाये, लेकिन दूसरी पार्टियाँ चाहती हैं कि नई संविधान सभा का गठन किया जाये।
मेरी राय में मौजूदा संविधान में संशोधन कर जन प्रतिनिधियों को अधिक अधिकार दे देना उचित है। कुछ सालों के बाद स्वतन्त्र चुनाव कराने चाहिए। तब राजा के पास निर्णय लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए, राजा सिर्फ सलाहकार की भूमिका निभायेगा। अतः वर्तमान संविधान में उपयुक्त संशोधन ही नेपाल के हित में उपयुक्त फैसला होगा।
प्रश्न 8.
भारत के लोकतन्त्र के स्वरूप में विकास के प्रमुख कारणों के बारे में कुछ अलग-अलग विचार इस प्रकार हैं। आप इनमें से हर कथन को भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कितना महत्वपूर्ण कारण मानते हैं?
(क) अंग्रेजी शासकों ने भारत को उपहार के रूप में लोकतान्त्रिक व्यवस्था दी। हमने ब्रिटिश हुकूमत के समय बनी प्रान्तीय असेंबलियों के जरिए लोकतान्त्रिक व्यवस्था में काम करने का प्रशिक्षण पाया।
(ख) हमारे स्वतन्त्रता संग्राम ने औपनिवेशिक शोषण और भारतीय लोगों को तरह-तरह की आजादी न दिये जाने का विरोध किया। ऐसे में स्वतन्त्र भारत को लोकतान्त्रिक होना ही था।
(ग) हमारे राष्ट्रवादी नेताओं की आस्था लोकतन्त्र में थी। अनेक नव स्वतन्त्र राष्ट्रों में लोकतन्त्र का न आना हमारे नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
उत्तर:
(क) अंग्रेजी शासकों के योगदान को कुछ सीमा तक स्वीकार किया जा सकता है। हालांकि इसे अंग्रेजों की देन नहीं माना जा सकता है। यदि हमें पूर्व प्रशिक्षण प्राप्त नहीं होता तो भारत जैसे विशाल देश में आरम्भिक दौर में प्रजातान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना बहुत ही मुश्किल कार्य होता।
(ख) इस तथ्य का भारत में प्रजातन्त्र की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान है। चूँकि हमारे संघर्ष का तरीका लोकतान्त्रिक था, हमारे राजनीतिक दलों की संरचना भी लोकतान्त्रिक थी, अतः प्रजातन्त्र की अच्छाइयों को हम अनुभव कर रहे थे। दूसरी ओर, चूँकि लोगों को विभिन्न स्वतन्त्रताएँ नहीं मिली थीं, अतः प्रजातन्त्र ही एकमात्र ऐसी व्यवस्था थी जो लोगों की इच्छाओं को पूरा कर सकती थी।
(ग) स्वतन्त्रता प्राप्ति के दौरान यह बहुत आवश्यक था कि सच्चे लोकतन्त्र की स्थापना के लिए लोकतान्त्रिक विचारों वाले नेता हों, जिससे इन मूल्यों की स्थापना के लिए दूसरों को भी प्रेरित कर सकें। अतः इस कारण का योगदान भी महत्वपूर्ण था।
प्रश्न 9.
1912 में प्रकाशित विवाहित महिलाओं के लिए आचरण’ पुस्तक के निम्नलिखित अंश को पढ़ें “ईश्वर ने औरत जाति को शारीरिक और भावनात्मक, दोनों ही तरह से ज्यादा नाजुक बनाया है, उन्हें आत्मरक्षा के भी योग्य नहीं बनाया है। इसलिए ईश्वर ने ही उन्हें जीवनभर पुरुषों के संरक्षण में रहने का भाग्य दिया है-कभी पिता के, कभी पति के और कभी पुत्र के। इसलिए महिलाओं को निराश होने की जगह इस बात से अनुगृहीत होना चाहिए कि वे अपने आपको पुरुषों की सेवा में समर्पित कर सकती हैं।” क्या इस अनुच्छेद में व्यक्त मूल्य संविधान के दर्शन से मेल खाते हैं या वे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं ?
उत्तर:
इस पाठ्यांश में व्यक्त मूल्य हमारे संविधान के मूल्यों को प्रदर्शित नहीं करते क्योकि हमारा संविधान पुरुष तथा महिला को प्रत्येक दृष्टि से समान मानता है। भारतीय संविधान में पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार और अवसर प्रदान किए गए हैं।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। क्या आप उनसे सहमत हैं? अपने कारण भी बताइए।
(क) संविधान के नियमों की हैसियत किसी भी अन्य कानून के बराबर है।
(ख) संविधान बताता है कि शासन व्यवस्था के विविध अंगों का गठन किस तरह होगा।
(ग) नागरिकों के अधिकार और सरकार की सत्ता की सीमाओं का उल्लेख भी संविधान में स्पष्ट रूप में है।
(घ) संविधान संस्थाओं की चर्चा करता है, उसका मूल्यों से कुछ लेना-देना नहीं है।
उत्तर:
(क) यह कथन ठीक नहीं है, क्योंकि संवैधानिक नियम मौलिक नियम हैं, जबकि दूसरे अन्य नियमों की वैधानिकता इस आधार पर तय होती है कि वे संवैधानिक नियमों के अनुरूप हैं अथवा नहीं है।
(ख) यह कथन ठीक है, क्योंकि हमारे संविधान में सरकार के तीनों अंगों-विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के गठन तथा शक्ति की चर्चा की गई है।
(ग) यह कथन सही है, क्योंकि हमारे संविधान में नागरिकों को दिये गये विभिन्न अधिकारों और सरकार की सत्ता की सीमाओं का उल्लेख भी स्पष्ट रूप से है।
(घ) यह कथन गलत है, क्योंकि संविधान जिन मूल्यों पर आधारित है उनकी चर्चा संविधान की प्रस्तावना में की गई है तथा प्रस्तावना हमारे संविधान का हिस्सा है।
आइए, अखबार पढ़ें
प्रश्न 1.
संविधान संशोधन के किसी प्रस्ताव या किसी संशोधन की माँग से सम्बन्धित अखबारी खबरों को ध्यान से पढ़िए। आप किसी एक विषय पर, जैसे-संसद/विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण विषय पर छपी खबरों पर गौर कर सकते हैं। क्या इस सवाल पर कोई सार्वजनिक चर्चा हुई थी? संशोधन के पक्ष में क्या-क्या तर्क दिए गए हैं ? संविधान पर विभिन्न दलों की क्या प्रतिक्रिया थी? क्या यह संशोधन हो गया है?
उत्तर:
विद्यार्थी इस प्रश्न को शिक्षकों की सहायता से स्वयं हल करें।