JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

→ मुद्रा विनिमय माध्यम के रूप में

  • हमारे दैनिक जीवन में मुद्रा का बहुत अधिक प्रयोग होता है। मुद्रा के माध्यम से ही वस्तुएँ खरीदी क बेची जाती हैं।
  • जब दोनों पक्ष एक-दूसरे से वस्तुएँ खरीदने और बेचने पर सहमति र त्रते हैं तो इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं।
  • वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा का उपयोग किये बिना वस्तुओं का विनमय किया जाता है।
  • मुद्रा, विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है इसलिए इसे रनिमय का माध्यम कहा जाता है।
  • मुद्रा वह चीज है जो लेन-देन में विनिमय का माध्यम बन सकती है। सिक्कों के प्रचलन में आने से पहले विभिन्न प्रकार की चीजों को मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाता था; जैसे-अनाज पशु, सोना, चाँदी तथा ताँबे के सिक्के आदि।
  • मुद्रा के कई आधुनिक रूप हैं जिनमें करेंसी, कागज के नोट और सिके प्रमुख हैं।
  • मुद्रा को देश की सरकार प्राधिकृत करती है इसलिए इसे विनिमय का माध्यम स्वीकार किया जाता है।
  • हमारे देश में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है।

→ बैंक की भूमिका

  • बैंक लोगों से जमा स्वीकार करते हैं एवं उस पर ब्याज भी प्रदान कर हैं।
  • बैंक खातों में जमा धन को माँग के द्वारा निकाला जा सकता है, इस कारण इस जमा को माँग जमा कहते हैं।
  • चेक एक ऐसा कागज का टुकड़ा है जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष रकम का भुगतान करने का आदेश देता है।
  • चेक को भी आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा समझा जाता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

→ बैंक ऋण

  • बैंक अपने यहाँ जमा नगद राशि के एक बड़े भाग को ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं।
  • बैंक जमा पर जो ब्याज देते हैं उससे अधिक ब्याज ऋण पर लेते हैं।
  • जमाकर्ताओं को दिये गये ब्याज और कर्जदारों से लिए गए ब्याज के बीच का अन्तर बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में साख की मुख्य माँग फसल उगाने के लिए होती है।

→ ऋण की शर्ते

  • प्रत्येक ऋण समझौते में ब्याज दर निश्चित कर दी जाती है, जिसे कर्जः महाजन को मूल रकम के साथ अदा करता है।
  • ब्याज दर, समर्थक ऋणाधार, जरूरी कागजात तथा भुगतान के तरीकों को सम्मिलित रूप से ऋण की शर्त कहते हैं। ये शर्ते उधारदाता तथा कर्जदार की प्रकृति पर भी निर्भर करती है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों में अतिरिक्त सस्ते ऋण का एक अन्य स्रोत सहकारी समितियाँ हैं जो अपने सदस्यों को ऋण प्रदान करती हैं।

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→ भारत में औपचारिक क्षेत्रक में साख

  • विभिन्न प्रकार के ऋणों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
  • औपचारिक एवं अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण। औपचारिक क्षेत्रक ऋण में बैंकों व सहकारी समितियों से लिए गए ऋणों को सम्मिलित किया जाता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण में साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार व दोस्त आदि से लिए गए ऋण आते हैं।
  • हमारे देश में भारतीय रिजर्व बैंक ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्य प्रणाली पर नियन्त्रण रखता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्रक में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देखरेख करने वाली कोई संस्था नहीं है। फलस्वरूप कर्जदार का शोषण होता है।
  • ऋण की ऊँची लागत का अर्थ है-कर्जदार की आय का ज्यादातर हिस्सा ऋण की अदायगी में खर्च होना।
  • देश के विकास के लिए सस्ता तथा सामर्थ्य के अनुकूल कर्ज (ऋण) अति आवश्यक है।
  • वर्तमान समय में धनिक वर्ग ही औपचारिक स्रोतों से ऋण प्राप्त करते हैं जबकि निर्धन वर्ग को अनौपचारिक स्रोतों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
  • स्वयं सहायता समूह कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या से उबारने में सहायता करते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. मुद्रा: मुद्रा से अभिप्राय उस वैधानिक वस्तु से है, जिसका उपयोग सामान्यतः विनिमय माध्यम के रूप में किया जाता है।

2. विनिमय: दो पक्षों के बीच होने वाले वस्तुओं व सेवाओं के लेन-देन को विनिमय कहते हैं।

3. वस्तु विनिमय: जब चीजों का लेन-देन बिना मुद्रा के प्रयोग से आपस में ही हो जाता है तो ऐसी व्यवस्था को वस्तु विनिमय कहते हैं।

4. मुद्रा विनिमय: जब वस्तुओं का लेन-देन मुद्रा के माध्यम से होता है तो उसे मुद्रा विनिमय कहते हैं।

5. करेंसी: मुद्रा का आधुनिक रूप-कागज के नोट व सिक्के।

6. माँग जमा: जब बैंक खातों में जमा धन को ग्राहक द्वारा माँग अनुसार निकाला जाता है तो इसे माँग जमा कहते हैं।

7. चेक: यह एक ऐसा कागज है, जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष रकम का भुगतान करने का आदेश देता है।

8. व्यावसायिक बैंक: वह संस्था जो कि मुद्रा की प्राप्ति एवं ग्राहकों की माँग पर उसका भुगतान करता है।

9. ऋण: ऋण या उधार का तात्पर्य एक सहमति से है जहाँ साहूकार कर्जदार को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ उपलब्ध कराता है और बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वायदा लेता है।

10. पूँजी: उत्पादन का एक प्रमुख साधन, जिसके अन्तर्गत मुद्रा तथा वस्तुओं का भंडार आता है और जिसका प्रयोग उत्पादन हेतु होता है।

11. सहकारी समितियाँ: यह लोगों का एक ऐच्छिक संगठन होता है जिसमें वे अपने आर्थिक हितों की पूर्ति हेतु एक साथ मिलकर काम करते हैं।

12. समर्थक ऋणाधार: समर्थक ऋणाधार वह सम्पत्ति है जिसका मालिक कर्जदार है (जैसे-भूमि, मकान, गाड़ी, पशु व बैंकों में पूँजी आदि) तथा इसका इस्तेमाल वह ऋणदाता को गारण्टी के रूप में करता है जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता।

13. बैंक जमा राशि बैंक कुल जमा का एक छोटा: सा हिस्सा जमाकर्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने पास रखते हैं। कुल जमा का वह हिस्सा जो बैंक अपने पास नकद के रूप में रखते हैं, बैंक जमा राशि कहलाती है।

14. विनिमय प्रणाली वस्तुओं के आदान: प्रदान की प्रणाली को विनिमय प्रणाली कहते हैं।

15. कृषक सहकारी समिति: वह सहकारी समिति जो कृषि उपकरण खरीदने, खेती, कृषि व्यापार करने, मछली पकड़ने, – घर बनाने एवं अन्य विभिन्न प्रकार के खर्चों के लिए ऋण उपलब्ध कराती है।

16. निक्षेप जमा करना। बैंक में राशि जमा करना।

17. आर. बी. आई: भारतीय रिजर्व बैंक 1 अप्रैल, 1935 को स्थापित भारत का केन्द्रीय बैंक। यह देश में करेन्सी नोटों का निर्गमन करता है।

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 1 लोकतंत्र क्या? लोकतंत्र क्यों?

JAC Board Class 9th Social Science Important Questions Civics Chapter 1 लोकतंत्र क्या? लोकतंत्र क्यों?

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित विकल्पों में से उपयुक्त उत्तर चुनिए
1. डेमोक्रेसी किस भाषा का शब्द है
(क) हिन्दी
(ख) संस्कृत
(ग) अरबी
(घ) यूनानी।
उत्तर:
(घ) यूनानी।

2. ‘जनता का, जनता के लिए एवं जनता द्वारा शासन’ यह कथन किस प्रसिद्ध राजनेता का है
(क) जवाहरलाल नेहरू
(ख) जार्ज वाशिंगटन
(ग) अब्राहम लिंकन
(घ) जार्ज बुश।
उत्तर:
(ग) अब्राहम लिंकन।

3. ‘जनता का शासन’ किस प्रकार की शासन व्यवस्था में होता है
(अ) राजतन्त्र
(ख) लोकतन्त्र तत्र
(ग) तानाशाही
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ख) लोकतन्त्र।

4. अक्टूबर 1999 में पाकिस्तान में सैनिक तख्तापलट की अगुवाई की थी
(क) बेनजीर भुट्टो ने
(ख) नवाज शरीफ ने
(ग) परवेज मुशर्रफ ने
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) परवेज मुशर्रफ ने।

5. किस देश की संसद को कवांगुओ रेममिन दाइवियाओ दाहुई (राष्ट्रीय जन संसद)कहा जाता है
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) रूस
(द) कोरिया।
उत्तर:
(क) चीन।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘डेमोक्रेसी’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘डेमोक्रेसी’ शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के ‘डेमोक्रेसी’ से हुई है। यूनानी भाषा में डेमो का अर्थ होता है, जनता तथा क्रेशिया का अर्थ होता है, शासन अर्थात् डेमोक्रेसी शब्द का अर्थ होता है ‘जनता का शासन’।

प्रश्न 2.
चीन में चुनाव लड़ने से पहले किससे अनुमति लेनी होती है?
उत्तर:
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से।

प्रश्न 3.
लोकतन्त्र की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव,
  2. समय पर चुनाव।

प्रश्न 4.
लोकतन्त्र की ऐसी परिभाषा दीजिए जो लोकतान्त्रिक देशों को गैर-लोकतान्त्रिक देशों से अलग करती हो?
उत्तर:
लोकतन्त्र सरकार का एक ऐसा रूप है | जिसमें जनता अपने शासकों का चुनाव करती है।

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प्रश्न 5.
वयस्क मताधिकार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वयस्क मताधिकार में सभी वयस्कों को बिना किसी भेदभाव के मतदान करने का अधिकार दिया जाता है जिसके द्वारा वे अपने प्रतिनिधियों का चयन करते

प्रश्न 6.
राजशाही तथा सैनिक शासन में चुनी हुई संसद एवं सरकार होने के बावजूद उन्हें लोकतन्त्र नहीं कहा जा सकता। क्यों?
उत्तर:
क्योंकि चुनी हुई संसद नाममात्र की होती है, वास्तविक सत्ता उन्हीं लोगों के हाथ में होती है जिन्हें जनता ने नहीं चुना होता है।

प्रश्न 7.
लोकतन्त्र में अन्तिम निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होती है।
उत्तर:
लोकतन्त्र में अन्तिम निर्णय लेने की शक्ति जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में ही होती है।

प्रश्न 8.
सउदी अरब में औरतों को वोट देने का अधिकार कब प्राप्त हुआ?
उत्तर:
सन् 2015 में।

प्रश्न 9.
क्या समकालीन इराक को एक लोकतान्त्रिक देश कहा जा सकता है?
उत्तर:
नहीं, यद्यपि इराक में चुनी हुई सरकार है परन्तु वास्तविक शक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका एवं मित्र देशों के पास ही है न कि चुने हुए स्थानीय प्रतिनिधियों के पास।

प्रश्न 10.
मताधिकार लोकतन्त्र से किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
लोकतन्त्र में प्रत्येक वयस्क नागरिक के पास एक मत होना चाहिए एवं प्रत्येक मत का मूल्य एक समान होना चाहिए।

प्रश्न 11.
चीन में नियमित रूप से चुनाव होते हैं? क्या इसे एक लोकतन्त्र कहा जा सकता है?
उत्तर:
नहीं, क्योंकि चुनाव सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी एवं उससे सम्बद्ध कुछ छोटी पार्टियों के सदस्यों के बीच लड़ा जाता है और हमेशा सरकार कम्युनिस्ट पार्टी की ही बनती है।

प्रश्न 12.
लोकतन्त्र के समर्थन में एक तर्क दीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र बेहतर निर्णय लेने की सम्भावना बढ़ाता है।

प्रश्न 13.
लोकतन्त्र के विरोध में एक तर्क दीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र में नेता बदलते रहते हैं। इससे अस्थिरता पैदा होती है।

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प्रश्न 14.
लोकतान्त्रिक व्यवस्था दूसरों से बेहतर क्यों है?
उत्तर:
क्योंकि यह शासन का अधिक जवाब देही वाला स्वरूप है।

प्रश्न 15.
लोकतंत्र में अन्तिम निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होती है?
उत्तर:
लोकतंत्र में अन्तिम निर्णय लेने की शक्ति चुने हुए प्रतिनिधियों के पास होती है।

प्रश्न 16.
चीन में हमेशा किस पार्टी की सरकार बनती है?
उत्तर:
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की।

प्रश्न 17.
आप लोकतन्त्र को सरकार के दूसरे रूपों से किस प्रकार अलग करेंगे?
उत्तर:
सरकार के दूसरे रूप; जैसे-राजशाही, तानाशाही, सैनिक शासन आदि में सभी नागरिक राजनीति में भाग नहीं लेते हैं जबकि लोकतन्त्र सभी नागरिकों की राजनीतिक सहभागिता पर निर्भर करता है।

प्रश्न 18.
स्थानीय लोकतन्त्र का क्या अर्थ है?
उत्तर:
ग्राम तथा नगरों के स्तर पर चुनी हुई स्वशासनिक संस्थाओं की प्रणाली को स्थानीय लोकतन्त्र कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतन्त्र, राजतन्त्र और सैनिक शासन से किस प्रकार भिन्न है? शासन के प्रत्येक रूप का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
1. लोकतन्त्र:
यह सरकार का एक ऐसा रूप है जिसमें जनता पर उसके चुने हुई प्रतिनिधियों द्वारा शासन किया जाता है, जैसे-भारत। राजतन्त्र-यह सरकार का एक ऐसा रूप है जिसमें राज्य के प्रमुख या शासक को शासन का अधिकार जन्म के आधार पर (वंशानुगत परम्परा) अपने पूर्ववर्ती शासक से प्राप्त होता है। इसमें जनता का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होता, जैसे-सऊदी अरब।

2. सैनिक शासन:
सैनिक शासन में एक तानाशाह जनता की अनुमति के स्थान पर अपनी शक्ति के बल पर राज्य पर शासन करता है। यह शासन सेना पर नियन्त्रण वाले लोगों द्वारा संचालित होता है, जैसे-म्यांमार।

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प्रश्न 2.
लोकतन्त्र राजनीतिक समानता के बुनियादी सिद्धान्त पर आधारित है। इस सिद्धान्त के उल्लंघन के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र राजनीतिक समानता के बुनियादी सिद्धान्त पर आधारित है। इस सिद्धान्त के उल्लंघन के निम्न तीन उदाहरण हैं

  1. एशियाई देश सऊदी अरब में महिलाओं को मत देने का अधिकार सन् 2015 से पहले नहीं था।
  2. एस्टोनिया ने अपना नागरिक कानून इस तरह बनाया है कि रूसी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मतदान का अधिकार प्राप्त करना बहुत कठिन हो गया है।
  3. फिजी की चुनाव प्रणाली इस तरह की है कि स्थानीय निवासी के मत का मूल्य भारतीय मूल के फिजी नागरिक के मत से अधिक होता है।

प्रश्न 3.
लोकतन्न की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. जनता द्वारा चुनी हुई सरकार।
  2. जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथों में निर्णय करने की शक्ति।
  3. स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव।
  4. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
  5. प्रत्येक व्यक्ति के मत का मूल्य एक समान।
  6. कानून द्वारा शासन का संचालन।

प्रश्न 4.
लोकतान्त्रिक एवं अलोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लोकतान्त्रिक एवं अलोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में निम्नलिखित अन्तर हैंलोकतान्त्रिक

लोकतान्त्रिक अलोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था
1. लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में चुनाव नियमित अंतराल पर होते हैं। 1. अलोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में चुनाव का कोई महत्व नहीं होता है।
2. लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में सत्ता के पदों पर पहुँच सबके लिए खुली होती है। 2. अलोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में सत्ता के पदों पर पहुँच सबके लिए ख़ुली नहीं होती है। केवल शक्तिशाली व्यक्ति या वंशानुगत आधार पर व्यक्ति सर्वोच्च पद पर पहुँच सकता है।
3. लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में राज्य के समस्त नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। 3. अलोकतान्त्रिक शासन-व्यवस्था में नागरिकों को समान अधिकार नहीं दिये जाते हैं।
4. लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में नागरिकों को सरकार का विरोध करने का अधिकार होता है। 4. अलोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में नागरिक सरकार के कार्यों का विरोध नहीं कर सकते।

प्रश्न 5.
लोकतन्त्र के विपक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र के विपक्ष में चार तर्क निम्नलिखित हैं

  1. लोकतन्त्र में नेतृत्व परिवर्तन होता रहता है जिससे अस्थिरता पैदा होती है।
  2. लोकतन्त्र में नैतिकता का कोई स्थान नहीं होता है।
  3. जनता द्वारा चुने हुए नेताओं को लोगों के हित की जानकारी नहीं होती है जिस कारण उनके द्वारा गलत फैसले लिए जाते हैं।
  4. लोकतन्त्र मूलत: चुनावी प्रतियोगिता पर आधारित होता है अत: इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।

प्रश्न 6.
“निश्चित रूप से लोकतन्त्र सभी समस्याओं को खत्म करने वाली जादू की छड़ी नहीं है।” उक्त कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निश्चित रूप से लोकतन्त्र सभी समस्याओं को खत्म करने वाली जादू की छड़ी नहीं है। क्योंकि जनता का शासकों को चुनने का फैसला हमेशा सही होगा यह नहीं कहा जा सकता है अर्थात् जनता भी गलत लोगों को चुन सकती है। इसके अतिरिक्त यह भी हो सकता है कि चुने हुए लोग जनता की समस्याओं से अनभिज्ञ हों या वे समाधान के लिए सक्षम ही न हों। कभी-कभी लम्बे समय में होने वाले परिवर्तनों पर नेतृत्व परिवर्तन का भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 7.
लोकतन्त्र राजनीतिक समानता के सिद्धान्त पर आधारित है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र राजनीतिक समानता के सिद्धान्त पर आधारित है। लोकतन्त्र में सबसे निर्धन एवं अशिक्षित व्यक्ति को भी वही दर्जा प्राप्त है जो धनवान और शिक्षित लोगों को है। लोग किसी शासक की प्रजा न होकर स्वयं अपने शासक हैं। अगर वे गलतियाँ करते हैं तब भी वे स्वयं इसके लिए जवाबदेह होते हैं।

प्रश्न 8.
जनता लोकतान्त्रिक सरकार क्यों चाहती है?
उत्तर;
जनता निम्नलिखित कारणों से लोकतान्त्रिक सरकार चाहती है

  1. लोकतन्त्र सभी लोगों के साथ समानता का व्यवहार करता है।
  2. लोकतन्त्र में बहुमत के सिद्धान्त के आधार पर फैसले लिये जाते हैं।
  3. लोकतन्त्र सरकार को अधिक जवाबदेह एवं सक्रिय बनाता है।
  4. लोकतन्त्र में सरकार को अपनी समस्त जनता के हितों की सुरक्षा करनी पड़ती है।
  5. लोकतन्त्र खुली बहस व विचार-विमर्श आदि में विश्वास करता है।

प्रश्न 9.
प्रतिनिधित्व लोकतन्त्र क्या है? यह क्यों जरूरी है?
उत्तर:
प्रतिनिधित्व लोकतान्त्रिक वह व्यवस्था है जिसमें सभी लोगों द्वारा शासन नहीं किया जाता है। जनता की ओर से एक बहुमत को निर्णय लेने की अनुमति प्रदान की जाती है।
प्रतिनिधित्व लोकतन्त्र इसलिए जरूरी है क्योंकि

  1. वर्तमान लोकतन्त्र व्यवस्था में इतने अधिक लोग होते हैं कि प्रत्येक बात के लिए सबको साथ बैठाकर सामूहिक फैसला कर पाना असम्भव है।
  2. यदि सभी लोग साथ बैठ भी लें तो निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने के लिए अपेक्षित समय, इच्छा या योग्यता और कौशल आदि का उनमें अभाव होता है।

प्रश्न 10.
वर्तमान समय में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र के स्थान पर किस लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपनाया गया है? इस व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
वर्तमान समय में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र के स्थान पर प्रतिनिधित्व लोकतन्त्र व्यवस्था को अपनाया गया है। इस व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इस शासन व्यवस्था में सर्वोच्च शक्ति जनता में ही निहित होती है। भले ही इस शक्ति का प्रयोग उनके प्रतिनिधियों के द्वारा किया जाये।
  2. यदि सरकार लोकहित के कार्य करने में असफल रहती है तो उसे बदला जा सकता है एवं उसके स्थान पर कोई दूसरा शासन स्थापित किया जा सकता है।
  3. इस शासन व्यवस्था में जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है जो व्यवस्थापिका का निर्माण करते हैं। व्यवस्थापिका का कार्य कानून बनाना एवं सरकार के कार्यों पर निगरानी रखना है।
  4. इस व्यवस्था में चुनाव स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष होते हैं। किसी भी राजनीतिक दल को चुनाव में भाग लेने से नहीं रोका जा सकता।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 1 लोकतंत्र क्या? लोकतंत्र क्यों?

प्रश्न 11.
लोकतन्त्र के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

  1. लोकतान्त्रिक शासन पद्धति अधिक जवाबदेही वाला स्वरूप है।
  2. लोकतन्त्र बेहतर निर्णय लेने की सम्भावना बढ़ाता है।
  3. लोकतन्त्र मतभेदों और टकरावों को संभालने का तरीका उपलब्ध कराता है।
  4. लोकतन्त्र नागरिकों का सम्मान बढ़ाता है।
  5. लोकतन्त्र में गलती ठीक करने का अवसर भी मिलता है।

प्रश्न 12.
‘लोकतन्त्र बेहतर निर्णय लेने की सम्भावना में वृद्धि करता है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गैर-लोकतान्त्रिक सरकारों की तुलना में लोकतान्त्रिक सरकारें बेहतर फैसला लेती हैं। बेहतर लोकतन्त्र का मूल आधार व्यापक चर्चा एवं बहसें हैं। लोकतान्त्रिक फैसले में हमेशा अधिक लोग सम्मिलित होते हैं। उनकी बैठकें होती हैं एवं चर्चा करके फैसले लिये जाते हैं। अगर किसी एक विषय पर अनेक लोगों की सोच सम्मिलित है तो उसमें गलतियाँ होने की गुंजाइश कम से कम रहती है।

इसमें समय जरूर अधिक लगता है पर महत्वपूर्ण विषयों पर थोड़ा अधिक समय लेकर फैसला करने के अपने लाभ भी हैं। इससे ज्यादा अच्छे फैसले होते हैं तथा गैर-जिम्मेदार व अधिक उग्र फैसले लेने की सम्भावना घटती है। इस प्रकार लोकतन्त्र बेहतर निर्णय लेने की सम्भावना में वृद्धि करता है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित देश लोकतान्त्रिक क्यों नहीं कहला सकते? कारण स्पष्ट कीजिए
1. फिजी,
2. एस्टोनिया,
3. सऊदी अरब।
उत्तर:
फिजी, एस्टोनिया एवं सऊदी अरब निम्नलिखित कारणों से लोकतान्त्रिक देश नहीं कहला सकते

  1. फिजी-फिजी की चुनाव प्रणाली में वहाँ के मूल निवासियों के मत का मूल्य भारतीय मूल के फिजी नागरिकों के मत से अधिक है।
  2. एस्टोनिया-एस्टोनिया ने नागरिकता के नियम कुछ इस तरह बनाये हैं कि रूसी अल्पसंख्यक समाज के एस्टोनियाई नागरिकों को मतदान का अधिकार प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
  3. सऊदी अरब-सऊदी अरब में 2015 के बाद महिलाओं को वोट देने का अधिकार तो दे दिया गया है लेकिन अब भी वहाँ शासन के महत्वपूर्ण अधिकार राजा में ही निहित हैं, जो पैत्रिक रूप से चुना जाता है।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 1 लोकतंत्र क्या? लोकतंत्र क्यों?

प्रश्न 14.
जिम्बाब्वे को लोकतान्त्रिक देश क्यों नहीं कहा जा सकता? कारण दीजिए।
उत्तर:
जिम्बाब्वे को लोकतान्त्रिक देश निम्नलिखित कारणों से नहीं कहा जा सकता

  1. जिम्बाब्वे में नियमित चुनाव होते हैं परन्तु केवल एक ही पार्टी जानु-पीएफ द्वारा ही चुनाव जीते जाते हैं। यह दल चुनावों में गलत तरीके अपनाता है। यह बात लोकतन्त्र के नियमों के विरुद्ध है।
  2. जिम्बाब्वे में टेलीविजन एवं रेडियो पर वहाँ की सरकार का नियन्त्रण है।
  3. लोकतन्त्र में जनता और विपक्ष सरकार की आलोचना कर सकते हैं परन्तु ऐसा करने की जिम्बाब्वे में अनुमति नहीं है।
  4. जिम्बाब्वे में अखबार स्वतन्त्र हैं पर सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को परेशान किया जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतन्त्र क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र से आशय: जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता की शासन व्यवस्था लोकतन्त्र कहलाती है। इसमें शासन के सभी निर्णयों में जनता के बहुमत की राय को ही सर्वोपरि माना जाता है। लोकतन्त्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. प्रमुख फैसले निर्वाचित नेताओं के हाथ:
लोकतन्त्र में सभी प्रमुख निर्णय जनता द्वारा निर्वाचित नेताओं द्वारा किये जाते हैं। ये नेता जनता की राय को ध्यान में रखकर ही निर्णय लेते हैं। अत: नेताओं के सभी फैसलों में उनको वोट देने वाली जनता का हित शामिल होता है।

2. एक व्यक्ति एक वोट:
एक मोल-लोकतन्त्र के लिए यह आवश्यक है कि देश के सभी नागरिकों को वोट देने तथा चुनाव में खड़े होने एवं जीतकर सत्ता में शामिल होने के समान अवसर दिये जायें। इसमें किसी विशेष आधार पर नागरिकों को कम या अधिक महत्व देकर विभाजन नहीं किया जा सकता है।

3. स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनावी मुकाबला:
चीन में प्रति 5 वर्ष बाद चुनाव होते हैं लेकिन वहाँ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की अनुमति के बिना कोई चुनाव नहीं लड़ सकता है अत: इसे लोकतंत्र नहीं कह सकते। लोकतन्त्र में सत्ता में बैठे लोगों तथा अन्य शेष लोगों को जीत-हार के समान अवसर मिलने चाहिए। यदि सत्ता में बैठे लोग सत्ता का दुरुपयोग करके पुन: सत्ता प्राप्त कर लेते हैं तो ऐसी स्थिति को लोकतन्त्र नहीं कहा जा सकता है।

4. कानून का राज और अधिकारों का आदर:
जिंबाब्वे में राष्ट्रपति मुगाबे स्वतन्त्रता के बाद से सन् 2017 तक गलत तरीके अपनाकर तथा अपने पक्ष में बार-बार संविधान में परिवर्तन करके राष्ट्रपति बने रहे, यह स्वस्थ लोकतंत्र नहीं है। एक लोकतान्त्रिक सरकार को संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं के अन्दर ही कार्य करना चाहिए तथा राष्ट्र के सभी लोगों को न्याय प्रदान करना चाहिए। लोकतान्त्रिक सरकार को अपनी आलोचना सुननी चाहिए तथा लोगों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।

JAC Class 9 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

→ आर्थिक कार्यों के क्षेत्रक

  • जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं, तो उसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। उदाहरण-कपास की खेती, डेयरी उत्पाद (दूध) आदि।
  • प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है, क्योंकि हम अधिकतर प्राकृतिक उत्पाद कृषि, डेयरी, मत्स्यन तथा वनों से प्राप्त करते हैं। द्वितीयक क्षेत्र में वे गतिविधियाँ सम्मिलित होती हैं जिनके द्वारा प्राकृतिक उत्पादों को अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है, जैसे-कपास के पौधों से प्राप्त रेशे का प्रयोग सूत कातना एवं कपड़ा बुनना, गन्ने से चीनी व गुड़ बनाना आदि।
  • द्वितीयक क्षेत्रक में विनिर्माण की प्रक्रिया अपरिहार्य है। यह क्षेत्रक क्रमशः संवर्धित विभिन्न प्रकार के उद्योगों से संबद्ध है, इसी कारण यह औद्योगिक क्षेत्रक भी कहलाता है।
  • तृतीयक क्षेत्रक उपर्युक्त दोनों ही क्षेत्रकों से भिन्न है। इस क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं। ये गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करतीं वरन् वस्तुओं के उत्पादन में सहायता करती हैं। उदाहरण- परिवहन, संचार, बैंक सेवाएँ, भण्डारण, व्यापार आदि।
  • तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है। सेवा क्षेत्रक में कुछ ऐसी अति आवश्यक सेवाएँ भी हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करती हैं, जैसे-शिक्षक, वकील, डॉक्टर, धोबी, नाई, मोची आदि।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

→ आर्थिक क्षेत्रकों की तुलना

  • प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक के विभिन्न उत्पादन कार्यों से बहुत अधिक मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है तथा अनेक लोग इस कार्य में संलग्न हैं। मध्यवर्ती वस्तुओं का उपयोग अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्माण में किया जाता है। इन वस्तुओं का मूल्य अन्तिम वस्तुओं के मूल्य में पहले से ही शामिल होता है।
  • किसी वर्ष विशेष में प्रत्येक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य उस वर्ष में क्षेत्रक के कुल उत्पादन की जानकारी प्रदान करता है।
  • सकल घरेलू उत्पादन (जी.डी.पी.) तीनों क्षेत्रकों के उत्पादनों का योगफल होता है जो किसी देश के अन्दर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य होता है।

→ क्षेत्रकों में परिवर्तन

  • भारत के पिछले चालीस वर्षों के आँकड़ों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में सबसे अधिक योगदान तृतीयक क्षेत्रक से उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का है जबकि रोजगार अधिकांशतः प्राथमिक क्षेत्रक में मिलता है।
  • सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) अर्थव्यवस्था की विशालता को प्रदर्शित करता है। इसका प्रकाशन केन्द्र सरकार द्वारा किया जाता है।
  • उत्पादन में तृतीयक क्षेत्रक (सेवा क्षेत्रक) का महत्त्व लगातार बढ़ता जा रहा है। सेवा क्षेत्रक की सभी सेवाओं में समान दर से संवृद्धि नहीं हो पा रही है।
  • द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है।
  • हमारे देश में आधे से अधिक श्रमिक प्राथमिक क्षेत्रक (मुख्यतः कृषि क्षेत्र) में कार्यरत हैं।
  • कृषि क्षेत्र का जी.डी.पी. में योगदान लगभग एक-छठा भाग है जबकि शेष द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रक का योगदान है।
  • कषि क्षेत्रक के श्रमिकों में अल्प बेरोजगारी देखने को मिलती है अर्थात् कृषि क्षेत्र से कुछ लोगों को हटा देने पर भी उत्पादन
  • प्रभावित नहीं होगा। अल्प बेरोजगारी को प्रच्छन बेरोजगारी भी कहते हैं।

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→ रोजगार का सृजन

  • नीति (योजना) आयोग द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार अकेले शिक्षा क्षेत्र में लगभग 20 लाख रोजगारों का
  • सृजन किया जा सकता है।
  • हमारे देश में कार्य का अधिकार लागू करने के लिए एक कानून बनाया गया है जिसे महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाता है।
  • आर्थिक कार्यों को विभाजित करने का एक अन्य तरीका संगठित एवं असंगठित के रूप में क्षेत्रकों का विभाजन है।
  • संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान सम्मिलित हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है।
  • असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयाँ, जो अधिकाशंतः राजकीय नियन्त्रण से बाहर होती हैं, से निर्मित होता है। इन कार्यों में रोजगार की अवधि नियमित नहीं होती तथा रोजगार की सुरक्षा भी नहीं है।
  • सन् 1990 से हमारे देश में यह देखा गया है कि संगठित क्षेत्रक के अत्यधिक श्रमिक अपना रोजगार खोते जा रहे हैं। ये लोग असंगठित क्षेत्रक में कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर हैं। अतः असंगठित क्षेत्रक में रोजगार बढ़ाने की आवश्यकता के अतिरिक्त श्रमिकों को संरक्षण एवं सहायता की भी आवश्यकता है।
  • भारत में लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवार छोटे तथा सीमान्त किसानों की श्रेणी में आते हैं।
  • हमारे देश में बहुसंख्यक श्रमिक अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़ी जातियों से हैं, जो असंगठित क्षेत्रक में कार्य करते हैं।

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→ स्वामित्व आधारित क्षेत्रक:

  • स्वामित्व के आधार पर क्षेत्रक को सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक में बाँटा जा सकता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्रक में परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व रहता है एवं सरकार ही समस्त सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
  • निजी क्षेत्रक में परिसम्पतियों पर स्वामित्व एवं सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी एकल व्यक्ति अथवा कम्पनी के हाथों में होती है।
  • भारत सरकार किसानों से उचित मूल्य पर गेहूँ तथा चावल आदि खरीदती है। इसे अपने गोदामों में भण्डारित करती है तथा राशन की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को कम कीमत पर बेचती है।
  • अधिकांश आर्थिक गतिविधियों की प्राथमिक जिम्मेदारी सरकार पर होती है जिस पर व्यय करना सरकार की अनिवार्यता होती है।
  • सरकार को सुरक्षित पेयजल, निर्धनों के लिए आवासीय सुविधाएँ, भोजन व पोषण जैसे मानव विकास के पक्षों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

1. प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। उदाहरण-कृषि, खनन, मत्स्य पालन, डेयरी, शिकार आदि।

2. द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
इससे उत्पन्न प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली द्वारा अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण-कपास से कपड़ा, गन्ने से चीनी एवं लौह अयस्क से इस्पात बनाना आदि ।

3. तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
इसके अन्तर्गत सभी सेवाओं वाले व्यवसाय सम्मिलित हैं। उदाहरण-परिवहन, संचार, व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं प्रबन्धन आदि ।

4. सूचना प्रौद्योगिकी:
सूचना प्रौद्योगिकी किसी इलेक्ट्रानिक विधि से सूचना भेजने, प्राप्त करने एवं संग्रहित करने की एक पद्धति है। जिसमें कम्प्यूटर, डाटाबेस एवं मॉडम का उपयोग किया जाता है। इसमें सूचनाओं का तीव्रगति से त्रुटिरहित एवं कुशलतापूर्वक सम्पादन होता है।

5. सकल घरेलू उत्पाद:
किसी देश के भीतर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सकल घरेलू उत्पाद (स. घ. उ. अथवा जी. डी. पी.) कहलाता है।

6. बेरोजगारी:
जब प्रचलित मजदूरी पर काम करने के इच्छुक व सक्षम व्यक्तियों को कोई कार्य उपलब्ध नहीं होता तो ऐसे व्यक्ति बेरोजगार एवं ऐसी स्थिति बेरोजगारी कहलाती है।

7. छिपी हुई बेरोजगारी:
जब किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे रहते हैं तो उसे छिपी हुई अथवा प्रच्छन्न बेरोजगारी कहा जाता है। यदि इन लोगों को वहाँ से स्थानान्तरित कर दिया जाए तो कुल उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसे अल्प बेरोजगारी भी कहा जाता है। इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पायी जाती है।

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8. मध्यवर्ती वस्तुएँ:
मध्यवर्ती वस्तुएँ वे उत्पादित वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग उत्पादक कच्चे माल के रूप में उत्पादन की प्रक्रिया में करता है अथवा उन्हें फिर से बेचने के लिए खरीदा जाता है।

9. अन्तिम वस्तुएँ:
अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग अन्तिम उपभोग अथवा पूँजी निर्माण में होता है, इन्हें फिर से नहीं बेचा जाता है।

10. बुनियादी सेवाएँ:
किसी भी देश में अनेक सेवाओं; जैसे-अस्पताल, शैक्षिक संस्थाएँ, डाक व तार सेवा, थाना, न्यायालय, ग्रामीण प्रशासनिक कार्यालय, नगर निगम, रक्षा, परिवहन, बैंक, बीमा कम्पनी आदि की आवश्यकता होती है, इन्हें बुनियादी सेवाएँ माना जाता है।

11. संगठित क्षेत्रक: संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है। काम सुनिश्चित होता है और सरकारी नियमों व विनियमों का पालन किया जाता है।

12. असंगठित क्षेत्रक असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयों से जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं से निर्मित होता है। इस क्षेत्रक के नियम व विनियम तो होते हैं परन्तु उनका अनुपालन नहीं होता।

13. सार्वजनिक क्षेत्रक: सार्वजनिक क्षेत्रक में उत्पादन के साधनों पर सरकार का स्वामित्व, प्रबन्धन व नियन्त्रण होता है।

14. निजी क्षेत्रक: निजी क्षेत्रक में उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है। इसके अन्तर्गत उपक्रमों का प्रबन्ध उपक्रम के स्वामी द्वारा ही किया जाता है।

15. खुली बेरोजगारी: जब देश की श्रम शक्ति रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं कर पाती है तो इस स्थिति में इसे खुली बेरोजगारी कहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी देश के औद्योगिक क्षेत्रों में पायी जाती है।

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JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 6 जनसंख्या

JAC Board Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 6 जनसंख्या

→ मानव, संसाधनों का निर्माण एवं उपयोग करने के साथ-साथ, वे स्वयं भी विभिन्न गुणों वाले संसाधन होते हैं। इसलिए यह जानना आवश्यक है कि हमारे देश में कितने लोग निवास करते हैं, वे कैसे एवं कहाँ रहते हैं।

→ एक निश्चित समयांतराल में जनसंख्या की आधिकारिक गणना ‘जनगणना’ कहलाती है।

→ भारत में सर्वप्रथम जनगणना सन् 1872 ई. में की गई थी परन्तु सन् 1881 ई. में प्रथम बार एक सम्पूर्ण जनगणना की गयी थी। उसी समय से प्रत्येक 10 वर्ष बाद हमारे देश में जनगणना होती है।

→ भारतीय जनगणना हमारे देश की जनसंख्या से सम्बन्धित विभिन्न जानकारियाँ हमें प्रदान करती है।

→ मार्च 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 1.21 अरब थी जो समस्त विश्व की कुल जनसंख्या का का 17.5 प्रतिशत थी।

→ भारत में लगभग 32.8 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर विश्व की लगभग 2.4 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।

→ सन् 2011 की जनगणना के अनुसार देश का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश है। यहाँ देश की 16 प्रतिशत आबादी निवास करती है।

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→ क्षेत्रफल की दृष्टि में राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है। यहाँ भारत की जनसंख्या को केवल 5.5 प्रतिशत लोग निवास करते हैं।

→ सन् 2011 में भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. था।

→ सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व बिहार में 1,102 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. एवं न्यूनतम अरुणाचल प्रदेश में 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है।

→ प्रत्येक वर्ष या एक दशक में बढ़ी जनसंख्या, कुल संख्या में वृद्धि का परिमाण है पहले की जनसंख्या को बाद की जनसंख्या से घटाकर इसे प्राप्त किया जाता है। इसे ‘निरपेक्ष वृद्धि’ कहते हैं।

→ प्रत्येक 100 व्यक्तियों पर एक वर्ष में जितनी वृद्धि होती है उसे वार्षिक वृद्धि दर कहते हैं।

→ पिछले कुछ वर्षों में जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आयी है फिर भी भारत की जनसंख्या वृद्धि जारी है।

→ जनसंख्या में होने वाले परिवर्तन की तीन मुख्य प्रक्रियाएँ होती हैं-जन्म-दर, मृत्यु-दर एवं प्रवास।

→ एक वर्ष में प्रतिहजार व्यक्तियों में जितने जीवित बच्चे जन्म लेते हैं उसे ‘जन्मदर’ कहते हैं तथा एक वर्ष में प्रतिहजार व्यक्तियों में मरने वालों की संख्या को ‘मृत्युदर’ कहते हैं।

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→ लोगों के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चले जाने के प्रवास कहते हैं। प्रवास आन्तरिक (देश के भीतर) तथा अन्तर्राष्ट्रीय हो सकता है।

→ प्रति एक हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या को ‘लिंग अनुपात’ कहा जाता है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में एक हजार पुरुषों पर 943 महिलाएँ थीं।

→ साक्षरता किसी जनसंख्या का बहुत ही महत्वपूर्ण गुण है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार एक व्यक्ति जिसकी उम्र 7 वर्ष या उससे अधिक है जो किसी भी भाषा को समझकर लिख या पढ़ सकता है उसे साक्षर की श्रेणी में माना जाता है। भारत की साक्षरता दर में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।

→ व्यवसायों को सामान्यतः प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।

→ भारत में कुल जनसंख्या का 64 प्रतिशत भाग कृषि पर निर्भर है।

→ स्वास्थ्य जनसंख्या की संरचना का एक महत्वपूर्ण घटक है। भारत में मृत्युदर में कमी आयी है लेकिन कुपोषण एवं स्वास्थ्य रक्षा सुविधाओं के लिए काफी काम करना बाकी है।

→ राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 निःशुल्क शिक्षा, शिशु मृत्यु दर, टीकाकरण, शादी की उम्र को बढ़ाने तथा परिवार नियोजन को एक जनकेन्द्रित कार्यक्रम बनाने के लिए नीतिगत ढाँचा प्रदान करती है।

→ जनसंख्या – किसी प्रदेश या देश में रहने वाले लोगों की कुल संख्या को जनसंख्या कहते हैं।

→ जनसंख्या घनत्व – प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में रहने वाले लोगों की संख्या को जनसंख्या घनत्व कहते हैं।

→ जन्म-दर – किसी क्षेत्र, प्रदेश अथवा देश में एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों में जीवित जन्मे बच्चों की संख्या को जन्म-दर कहते हैं। इसे प्रति हजार में व्यक्त किया जाता है। मृत्यु-दर-एक वर्ष की जनसंख्या में प्रति हजार लोगों में मरने वाले लोगों की संख्या को मृत्यु-दर कहते हैं। इसे प्रति हजार में व्यक्त किया जाता है।

→ प्राकृतिक वृद्धि-किसी क्षेत्र अथवा देश की जनसंख्या में जन्म-दर एवं मृत्यु-दर के बीच का अन्तर जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि कहलाता है।

→ निरपेक्ष वृद्धि-पहले की जनसंख्या (2001) को बाद की जनसंख्या (2011) में से घटाकर जो जनसंख्या आती है उसे निरपेक्ष वृद्धि कहते हैं।

→ प्रवास – व्यक्तियों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चले जाने को प्रवास कहते हैं।

→ लिंग अनुपात – प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या लिंग अनुपात कहलाती है।

→ व्यावसायिक संरचना – विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के अनुसार किए गए जनसंख्या के वितरण को व्यावसायिक संरचना कहते हैं।

→ प्राथमिक क्रियाएँ – कृषि, पशुपालन, वानिकी, खनन एवं मत्स्य पालन आदि व्यवसाय प्राथमिक क्रियाएँ अथवा प्राथमिक व्यवसाय माने जाते हैं।

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→ द्वितीयक क्रियाएँ – उद्योग, भवन एवं वस्तु निर्माण कार्य आदि को द्वितीयक क्रियाएँ कहा जाता है।

→ तृतीयक क्रियाएँ – परिवहन एवं संचार के साधन, वाणिज्य, प्रशासन एवं सेवाएँ आदि तृतीयक व्यवसाय कहे जाते

→ जनसंख्या वृद्धि – किसी विशेष समय अन्तराल में किसी देश अथवा राज्य के निवासियों की संख्या में धनात्मक परिवर्तन।

→ जनगणना – किसी प्रदेश अथवा देश में किसी विशेष दिन आर्थिक एवं सामाजिक सांख्यिकी सहित जनसंख्या की सरकारी गणना को जनगणना कहते हैं।

→ आयु संरचना – किसी देश में विभिन्न आयु समूहों के लोगों की संख्या।

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JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीवन

JAC Board Class 9th Social Science Notes  Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीवन

→ भारत विश्व के मुख्य 12 जैव विविधता वाले देशों में से एक है।

→ भारत में लगभग 47,000 विभिन्न जातियों के पेड़-पौधे तथा लगभग 90,000 जातियों के जानवर तथा विभिन्न प्रकार की मछलियाँ ताजे एवं समुद्री पानी में पायी जाती हैं। इस दृष्टि से भारत एशिया में चौथा एवं विश्व में दसवाँ स्थान रखता है।

→ बिना फूल वाले पेड़-पौधे जैसे शैवाल (एलेगी) एवं कवक (फंजाई) भी बहुत बड़ी संख्या में हमारे देश में पाये जाते हैं। प्राकृतिक वनस्पति का आशय वनस्पति के उस भाग से है जो मनुष्य की सहायता के बिना अपने आप पैदा होता है

→ और लम्बे समय तक उस पर मानवीय प्रभाव नहीं पड़ता। वनस्पति तथा वन्य प्राणियों में इतनी विविधता भू-भाग, मृदा, तापमान, सूर्य का प्रकाश, वर्षण आदि के कारण है।

→ सन् 2003 में वनों का कुल क्षेत्रफल 68 लाख वर्ग किमी. था।

→ सन् 2011 में भारत में वनों का कुल क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल का 21.05 प्रतिशत था। पृथ्वी पर पादपों एवं जीवों का वितरण मुख्यतः जलवायु द्वारा निर्धारित होता है।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीवन

→ हमारे देश में 5 प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ पायी जाती हैं जिनमें उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन, उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन, कंटीले वन एवं झाड़ियाँ, पर्वतीय वन एवं मैंग्रोव वन हैं।

→ उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन पश्चिमी घाटों के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों, लक्षद्वीप, अंडमान, और निकोबार द्वीप समूहों, असम के ऊपरी भागों तथा तमिलनाडु के तट तक सीमित है।

→ उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन भारत के सबसे बड़े क्षेत्र में फैले हैं इन्हें मानसूनी वन भी कहते हैं।

→ जिन क्षेत्रों में 70 से. मी से कम वर्षा होती है वहाँ कंटीले वन तथा झाड़ियाँ पायी जाती हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान तथा ऊँचाई के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी अन्तर पाया जाता है।

→ तटवर्तीय क्षेत्रों में जहाँ ज्वार-भाटा आता है वहाँ मैंग्रोव वन पाये जाते हैं।

→ भारत में मछलियों की लगभग 2,546 प्रजातियाँ पायी जाती हैं जो संसार में पाई जाने वाली कुल मछलियों का 12 प्रतिशत है। भारत में अनेक प्रकार के सरीसृप, उभयचरी एवं स्तनधारी जीव पाये जाते हैं जो संसार के कुल प्राणियों का 5 से 8 प्रतिशत है।

→ धरातल पर एक विशिष्ट प्रकार की वनस्पति या प्राणी जीवन वाले विशाल पारिस्थितिक तंत्र को ‘जीवोम’ कहते हैं।

→ भारतीय जीव सुरक्षा अधिनियम सन् 1972 में लागू किया गया था।

→ भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ शेर और बाघ दोनों पाये जाते हैं।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीवन

→ एशियाई शेर केवल गुजरात के ‘गिर’ जंगलों में पाये जाते हैं। भारत सरकार ने पादप और जीव सम्पत्ति की सुरक्षा हेतु अनेक उपाय किये हैं जिनमें 18 जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र
स्थापित करना प्रमुख है।

→ भारत में 103 नेशनल पार्क, 535 वन्य प्राणी अभयारण्य एवं कई चिड़ियाघर राष्ट्र की पादप और जीव सम्पत्ति की सुरक्षा हेतु बनाए गए हैं।

→ हम सभी को अपनी अतिजीविता के लिये प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के सन्तुलन हेतु प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवों के महत्व को समझना चाहिये। यह पर्यावरण के विशिष्ट उपहार एवं देश की समृद्धि का आधार हैं। महत्वपूर्ण भौगोलिक शब्दावली

→ जैव विविधता सन्तुलित पर्यावरण निर्मित करने वाले भिन्न-भिन्न किस्म के जन्तु और पेड़-पौधों का बड़ी संख्या में अस्तित्वशील रहना।

→ वनस्पति जगत – किसी विशिष्ट प्रदेश, क्षेत्र अथवा काल के किसी विशिष्ट जाति के पेड़-पौधे जिन्हें एक समूह में रखा जाता है।

→ प्राकृतिक वनस्पति – किसी स्थान, क्षेत्र या प्रदेश में जलवायु के अनुसार स्वत: ही उत्पन्न हुए पेड़-पौधे, झाड़ियाँ, घास आदि को उस प्रदेश की प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं।

→ अक्षत वनस्पति – मानव की सहायता के बिना प्राकृतिक रूप से उत्पन्न पादप समुदाय।

→ देशज वनस्पति – वह वनस्पति जो मूल रूप से भारत में ही जन्मी एवं विकसित हुई हैं।

→ विदेशज पौधे-भारत के बाहर से लाये गये पेड़-पौधे।

→ शंकुधारी वन-वे सदाहरित वृक्ष जिनके पत्ते सुई के समान नुकीले होते हैं।

→ पर्णपाती वन-ऐसे वृक्ष जो प्रत्येक वर्ष किसी समय विशेष पर अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।

→ अल्पाइन वनस्पति-3,600 मीटर से अधिक ऊँचाई पर पर्वतीय क्षेत्रों में पायी जाने वाली वनस्पति।

→ नवीकरण योग्य संसाधन-वह संसाधन जिनका नये सिरे से पुनर्निर्माण सम्भव है।

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→ पारिस्थितिक तंत्र-एक तंत्र जो भौतिक पर्यावरण एवं उसमें रहने वाले पादप एवं जीव-जन्तुओं से मिलकर बना

→ जीवोम – धरातल पर एक विशिष्ट प्रकार की वनस्पति या प्राणी जीवन वाले विशाल पारिस्थितिक तंत्र को जीवोम कहते हैं।

→ मृदा – पृथ्वी की ऊपरी सतह, जो मूल चट्टानों के विखण्डित पदार्थों, वनस्पति और जीव-जन्तुओं के अवशेषों से बनती है।

→ वन – वृक्षों से परिपूर्ण एक गहन क्षेत्र।

→ नेशनल पार्क – वह आरक्षित क्षेत्र जहाँ प्राकृतिक वनस्पति, प्रकृति की सुन्दरता और वन्य जीवों को उनके प्राकृतिक पर्यावरण में संरक्षित रखा जाता है।

→ विनष्ट प्रजातियाँ – पादप और जीवों की वह प्रजातियाँ जो नष्ट हो गई हैं।

→ संकटापन्न प्रजातियाँ – पादप और प्राणियों की वे प्रजातियाँ जिनके लुप्त होने की आशंका है।

→ वन्य प्राणी अभयवन – वह प्राकृतिक वन्य क्षेत्र जिसमें वन्य प्राणियों को पकड़ना एवं शिकार करना पूर्णरूपेण प्रतिबन्धित होता है।

→ वन्य प्राणी-पशु – पक्षी और समस्त प्रकार के जीव-जन्तु जो अपने प्राकृतिक पर्यावरण में स्वतन्त्र रूप से विचरण करते हैं।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीवन

→ जीवमण्डल – वायुमण्डल, स्थलमण्डल और जलमण्डल के मध्य एक संकरी पट्टी जहाँ समस्त जीव-जन्तु पाये जाते हैं।

→ स्तनधारी – शिशुओं को जन्म देने एवं उन्हें स्तनपान कराने वाले जन्तुओं का जैविक वर्गीकरण।

→ उभयचर – स्थल एवं जल क्षेत्रों पर रहने में सक्षम जन्तु।

→ पशु-पक्षी – किसी दिये हुए क्षेत्र की जैव सम्पदा।

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JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 4 जलवायु

JAC Board Class 9th Social Science Notes  Geography Chapter 4 जलवायु

→ मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का एक विशाल क्षेत्र में लम्बी समयावधि (लगभग 30 वर्ष से अधिक) का कुल योग ही जलवायु है।

→ मौसम एक विशेष समय में एक क्षेत्र के वायुमंडल की अवस्था को बताता है। मौसम तथा जलवायु के तत्व एक ही होते हैं; जैसे-तापमान, वायुमंडलीय दाब, पवन, आर्द्रता, वर्षण आदि।

→ महीनों के औसत वायुमण्डलीय अवस्था के आधार पर वर्ष को ग्रीष्म/शीत या वर्षा ऋतु में विभाजित किया गया है।

→ भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है।

→ देश के जलवायु प्रतिरूप में सामान्यतया एकरूपता होते हुए भी जलवायु अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक भिन्नताएँ हैं।

→ वर्षण की दृष्टि से देश में वर्षण के रूप, प्रकार, मात्रा तथा वितरण में ऋतुवत् भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 4 जलवायु

→ गर्मियों में राजस्थान के मरुस्थलीय प्रदेश का तापमान 50° सेण्टीग्रेड तक पहुँच जाता है जबकि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20° सेण्टीग्रेड तक रहता है।

→ शीत ऋतु में जम्मू-कश्मीर में द्रास का तापमान – 45° सेण्टीग्रेड तक हो जाता है, जबकि तिरुवनंतपुरम् में यह 22″ सेण्टीग्रेड तक बना रहता है।

→ सामान्यतया देश के तटीय क्षेत्रों के तापमान में अन्तर कम रहता है।

→ किसी भी देश की जलवायु को नियन्त्रित करने वाले कारकों में अक्षांश, ऊँचाई, वायुदाब, पवन तंत्र, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ एवं उच्चावच आदि प्रमुख हैं।

→ जेट धाराएँ लगभग 27° से 30° उत्तर अंक्षाशों के बीच स्थित होती हैं इसलिए इन्हें उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएँ कहा जाता है।

→ भारत की जलवायु मानसूनी पवनों से बहुत अधिक प्रभावित होती है।

→ भारत में मानसून का समय जून के आरम्भ से लेकर सितम्बर के मध्य तक होता है। इसके आगमन के समय वर्षा में वृद्धि हो जाती है।

→ भारत में मुख्यतः चार ऋतुएँ होती हैं-शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु तथा मानसून आगमन एवं मानसून वापसी की ऋतु।

→ शीत ऋतु नवम्बर के मध्य से प्रारम्भ होकर फरवरी तक रहती है तथा ग्रीष्म ऋतु मार्च से मई तक रहती है।

→ लू, ग्रीष्मकाल का एक महत्वपूर्ण लक्षण है। ये धूल भरी गर्म एवं शुष्क पवनें होती हैं जो कि दिन के समय भारत के उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में चलती हैं।

→ भारत में मेघालय राज्य में स्थित मॉसिनराम विश्व में सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करने वाला क्षेत्र है।

→ मानसनी पवनें समस्त भारतवासियों को जल प्रदान कर कृषि प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करती हैं एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधती हैं। भारतीय प्रायद्वीप पर मानसून की एकता का प्रभाव बहुत ही स्पष्ट है।

→ मौसम – किसी क्षेत्र में एक विशेष समय में वायुमण्डल की अवस्था को मौसम कहते हैं।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 4 जलवायु

→ जलवायु – किसी विस्तृत क्षेत्र में एक लम्बी अवधि (सामान्यत: 30 वर्ष से अधिक) में पाई जाने वाली मौसम की औसत अवस्थाओं के कुल योग को जलवायु कहते हैं।

→ वर्षण – वह जल जो वायुमण्डल से धरातल पर वर्षा, हिम, ओले एवं ओस के रूप में गिरता है।

→ मानसून – मानसून अरबी भाषा के मौसिम शब्द से बना है, जिसका अर्थ है-वर्षभर पवनों का ऋतु-अनुसार परिवर्तन है।

→ मानसून पवनें मौसम के अनुसार अपनी दिशा बदलने वाली पवनों को मानसूनी पवनें कहते हैं। ये पवनें ग्रीष्म ऋतु में समुद्र से स्थल की ओर एवं शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर प्रवाहित होती हैं।

→ व्यापारिक पवनें – उपोष्ण उच्च दाब कटिबन्ध से विषुवत् रेखीय निम्न दाब कटिबन्ध की ओर सदैव एक ही दिशा में चलने वाली पवनों को व्यापारिक पवनें कहते हैं। जेट धाराएँ-27° से 30° उत्तरी अक्षांशों के मध्य ऊपरी वायुमण्डल में बहुत तीव्र गति से चलने वाली पवनों को जेट वायुधाराएँ कहते हैं।

→ चक्रवात – निम्न वायुदाब का एक क्षेत्र जिसमें हवाएँ लगभग अण्डाकार होकर चलती हैं।

→ पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ – शीत ऋतु में भूमध्य सागर से पछुआ पवनों के साथ पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वाले चक्रवात को, जिससे उत्तरी-पश्चिमी भारत में वर्षा होती है, पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ कहते हैं।

→ उष्ण कटिबन्धीय जलवायु – सम्पूर्ण वर्ष अपेक्षाकृत उच्च तापमान एवं मुख्य रूप से शुष्क शीत ऋतु।

→ अंत: उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र-यह विषुवतीय अक्षांशों में विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है।

→ यहीं पर उत्तरी – पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें मिलती हैं। यह अभिसरण क्षेत्र विषुवत् वृत से 5° उत्तर में स्थित होता है। इसे मानसून ऋतु में मानसून गर्त के नाम से भी जाना जाता है।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 4 जलवायु

→ कोरिआलिस बल – पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिआलिस बल कहते हैं। इस बल के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं। इसे फेरेल का नियम भी कहते हैं।

→ दक्षिणी दोलन – विभिन्न ऋतुओं में विषवत् वृत के आधार पर पवनों की स्थिति बदलते रहने की प्रक्रिया को दक्षिणी दोलन कहते हैं।

→ एलनीनो – ठंडी पेरू जलधारा के स्थान पर अस्थायी रूप से गर्म जलधारा के निकास को एलनीनो कहा जाता है। एलनीनो की उपस्थिति समुद्र के तापमान को बढ़ा देती है एवं सम्बन्धित क्षेत्र में व्यापारिक पवनों को मन्द कर देती

→ मानसून – प्रस्फोट-अचानक एवं तीव्र गति के साथ घनघोर वर्षा होने की स्थिति को मानसून का प्रस्फोट कहते हैं।

→ महावट – शीतकाल में होने वाली वर्षा को महावट कहा जाता है।

→ लु-ये स्थानीय पवनें होती हैं जो उत्तरी एवं उत्तरी-पश्चिमी भारत में ग्रीष्म ऋतु के दौरान चलती हैं। ये धूलभरी, गर्म एवं शुष्क पवनें होती हैं।

→ काल वैशाखी – ग्रीष्म ऋतु में उत्तर भारत की गर्म पवनों अर्थात् लू के आर्द्र पवनों से मिलने के कारण पश्चिमी बंगाल, असम में आने वाले भीषण तूफान जिनसे कभी-कभी मानसून के पूर्व ही वर्षा हो जाती है। इन तूफानों में होने वाली मूसलाधार वर्षा को काल वैशाखी कहते हैं।

→ आम्र वर्षा – केरल एवं कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों में मानसून पूर्व होने वाली ग्रीष्मकालीन वर्षा।

→ पवनमुखी भाग – पर्वत का वह भाग जो पवनों के सामने पड़ता है। इसे पवनमुख ढाल कहते हैं। यहाँ पर पवनें अधिक वर्षा करती हैं।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 4 जलवायु

→ पवनाविमुख ढाल – पर्वत के दूसरी ओर का भाग जहाँ वर्षा करने के पश्चात् शुष्क पवनें उतरती हैं। यहाँ पर पवनें वर्षा नहीं करती हैं।

→ वृष्टि छाया क्षेत्र – पवनाविमुख ढालों पर कम वर्षा वाला क्षेत्र।

→ क्वार की उमस – वह स्थिति जब उच्च तापमान एवं आर्द्रता वाली अवस्था के कारण दिन का मौसम कष्टदायक हो जाता है। इसे सामान्यत: ‘क्वार की उमस’ के नाम से जाना जाता है।

→ यह स्थिति सामान्यत – उत्तरी भारत में अक्टूबर एवं नवम्बर के महीने में होती है।

→ जलग्रहण क्षेत्र – वह क्षेत्र जिसमें से नदी अपना जल ग्रहण करती है।

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JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 3 अपवाह 

JAC Board Class 9th Social Science Notes  Geography Chapter 3 अपवाह

→ अपवाह शब्द एक क्षेत्र विशेष के नदी तन्त्र की व्याख्या करता है।

→ अपवाह से तात्पर्य नदी एवं उसकी सहायक नदियों एवं उपनदियों द्वारा बहाकर ले जाने वाले जल के प्रवाह से है।

→ एक नदी तंत्र द्वारा जिस क्षेत्र का जल प्रवाहित होता है उसे एक अपवाह द्रोणी कहते हैं।

→ जब कोई ऊँचा क्षेत्र जैसे पर्वत आदि दो पड़ौसी अपवाह द्रोणियों को एक-दूसरे से अलग करता है तो उसे जल विभाजक कहते हैं। भारत के अपवाह तन्त्र का नियन्त्रण मुख्य रूप से भौगोलिक आकृतियों के द्वारा होता है। इस आधार पर भारतीय नदियों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है

  • हिमालय की नदियाँ,
  • प्रायद्वीपीय नदियाँ।

→ किसी नदी तथा उसकी सहायक नदियों को सम्मिलित रूप से नदी तंत्र कहा जाता है।

→ हिमालय से निकलकर बहने वाली नदियों को तीन तन्त्रों में विभाजित किया जाता है

  • सिंधु नदी तन्त्र,
  • गंगा नदी तन्त्र,
  • ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र।

→ सिंधु नदी का उद्गम मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में है। गंगा की मुख्यधारा ‘भागीरथी’ गंगोत्री हिमानी से निकलती है तथा ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत की मानसरोवर झील के पूर्व से निकलती है।

→ प्रायद्वीपीय भाग की अधिकांश नदियाँ-महानदी, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी पूर्व की ओर बहती हैं तथा बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। नर्मदा एवं तापी दो बड़ी नदियाँ पश्चिम की तरफ बहती हैं। पूर्व में बहने वाली नदियाँ डेल्टा का तथा पश्चिम की ओर बहने वाली ज्वारनद मुख का निर्माण करती हैं।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 3 अपवाह

→ नर्मदा नदी मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ी के निकट से, तापी नदी सतपुड़ा की श्रृंखलाओं से, गोदावरी महाराष्ट्र के नासिक जिले में पश्चिम घाट की ढालों से, महानदी छत्तीसगढ़ की उच्चभूमि से, कृष्णा नदी महाराष्ट्र में महाबलेश्वर के निकट से तथा कावेरी नदी महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी श्रृंखला से निकली हैं।

→ मीठे पानी की अधिकांश झीलें हिमालय क्षेत्र में हैं जो मुख्यतः हिमानी द्वारा बनी हैं।

→ भारत जैसे कृषि प्रधान देश में सिंचाई, नौ-संचालन, जलविद्युत निर्माण आदि में नदियों का महत्व बहुत अधिक है।

→ नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण इनको स्वच्छ बनाने के लिए अनेक कार्य योजनाएँ बनाकर लागू की गयी हैं।

→ विश्व की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी अमेजन नदी की है।

→ सिंधु जल समझौता संधि के अनुसार भारत सिंधु नदी प्रक्रम के सम्पूर्ण जल का मात्र 20 प्रतिशत जल उपयोग कर सकता है। इस जल का उपयोग पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम भागों में सिंचाई के लिए करते हैं।

→ सुन्दरवन डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है। यहाँ रॉयल बंगाल टाइगर पाये जाते हैं।

→ भारत में शिवसमुद्रम् जल प्रपात का निर्माण कावेरी नदी पर किया गया है।

→ पृथ्वी के धरातल का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल है, परन्तु इसका 97 प्रतिशत जल लवणीय है। केवल 3 प्रतिशत ही स्वच्छ जल है।

→ अपवाह – किसी क्षेत्र के जल का छोटी-छोटी नदियों द्वारा विकास या बहाकर ले जाना अथवा किसी क्षेत्र का नदी तन्त्र।

→ अपवाह तन्त्र – किसी क्षेत्र विशेष की जल प्रवाह प्रणाली अर्थात् किसी क्षेत्र के जल को कौन-कौनसी नदियाँ किस प्रकार बहाकर ले जाती हैं। नदी तन्त्र-मुख्य नदी, उसकी सहायक नदियों एवं वितरिकाओं के समूह को नदी तन्त्र कहते हैं।

→ अपवाह द्रोणी – एक नदी तन्त्र द्वारा जिस क्षेत्र का जल प्रवाहित होता है, उसे नदी द्रोणी या अपवाह द्रोणी कहते हैं। जल विभाजक-दो अपवाह द्रोणियों के मध्य स्थित उच्च स्थलीय भाग को जल विभाजक कहते हैं।

→ अपवाह प्रतिरूप – अपवाह तन्त्र के प्रतिरूप को अपवाह प्रतिरूप कहते हैं।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 3 अपवाह

→ द्रुमाकृतिक अपवाह प्रतिरूप – अपवाह का वह प्रतिरूप जिसमें मुख्य नदी एवं उसकी सहायक नदियाँ वृक्ष की शाखाओं के समान प्रतीत होती है, वृक्षाकार या द्रुमाकृतिक अपवाह प्रतिरूप कहलाता है।

→ जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप – जब सहायक नदियाँ मुख्य नदी से समकोण पर मिलती हैं तो जालीनुमा प्रतिरूप का निर्माण होता है।

→ आयताकार अपवाह प्रतिरूप – इस प्रकार के प्रतिरूप का विकास सामान्यतया उन क्षेत्रों में होता है जहाँ पर चट्टानों की सन्धियाँ आयत के रूप में होती हैं। अरीय अपवाह

→ प्रतिरूप – इस प्रकार के अपवाह में मुख्य नदी अपनी सहायक नदियों के साथ केन्द्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती है। इस प्रकार का अपवाह गुम्बदाकार धरातल पर पाया जाता है।

→ विसर्प – विषम तथा असमतल मार्ग में नदी का प्रवाह घुमावदार हो जाता है, इसे विसर्प कहते हैं।

→ गोखुर झील – बाढ़ के मैदान में गाय के खुर की आकृति की झील।

→ बाढ़ का मैदान – नदी के निचले भाग में नदी की चौड़ी समतल घाटी। बाढ़ के समय इसमें पानी भर जाता है।

→ मौसमी नदियाँ – वे नदियाँ जिनमें वर्षा ऋतु में ही जल रहता है।

→ गार्ज एक संकरी, गहरी और लगभग खड़े किनारे वाली घाटी। इसे महाखण्ड भी कहते हैं।

→ गुम्फित नदी – अत्यधिक मन्द ढाल पर बहने वाली नदी जो अपने तल पर अत्यधिक अवसाद जमा करने के कारण अनेक धाराओं में विभक्त हो जाती है, गुम्फित नदी कहलाती है।

→ बारहमासी नदियाँ – वे नदियाँ जो वर्षभर जल से भरी रहती हैं। डेल्टा-नदी के मुहाने पर अवसादों के जमाव से बनी त्रिभुजाकार आकृति।

→ ज्वारनदमुख – समुद्र की ओर चौड़ा होता हुआ नदी का मुहाना।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 3 अपवाह

→ जलप्रपात – नदी का जल जब एकाएक खड़े ढाल से नीचे गिरता है तो इस प्रकार की आकृति का निर्माण होता है। लैगून-खारे पानी की झील, जो समुद्र से बालू अवरोधों एवं समुद्री जीवों के कारण बनती है।

→ हिमानी – बर्फ या हिम का वह ढेर जो गुरुत्वाकर्षण के कारण अपने मूल स्थान से एक निश्चित मार्ग के सहारे धीरे-धीरे गतिशील होता है।

→ आन्तरिक अपवाह – एक ऐसा अपवाह तन्त्र जिसमें नदियों का जल महासागरों में नहीं पहुँचता वरन् आन्तरिक समुद्रों या झीलों में गिरता है। इसे अन्तः स्थलीय अपवाह भी कहते हैं।

→ झील – एक जलराशि, जो पृथ्वी की सतह के गर्त या गड्ढे में हो एवं चारों ओर से पूर्णतया स्थल से घिरी हो।

→ सहायक नदी – जब एक छोटी नदी बड़ी और मुख्य नदी से मिलती है तो छोटी नदी को सहायक नदी कहते हैं।

→ वितरिका – डेल्टा क्षेत्र में पहुँचने पर धारा में अवसादों के निक्षेपण से अवरोध आने पर नदी कई शाखाओं में बँट जाती है। ये शाखाएँ ही वितरिका कहलाती हैं।

→ नदी घाटी – नदी द्वारा बनाई गई घाटी।

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JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप 

JAC Board Class 9th Social Science Notes  Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप

→ भारत विभिन्न स्थलाकृतियों वाला एक विशाल देश है।

→ हमारे देश में पर्वत, मैदान, मरुस्थल, पठार, द्वीप समूह आदि सभी प्रकार की भू-आकृतियाँ पायी जाती हैं।

→ भारत की भौगोलिक आकृतियों को हिमालय पर्वत श्रृंखला, उत्तरी मैदान, प्रायद्वीपीय पठार, भारतीय मरुस्थल, तटीय मैदान एवं द्वीप समूह में विभाजित किया जा सकता है।

→ हिमालय पर्वत श्रृंखला का विस्तार पश्चिम-पूर्व दिशा में सिन्धु से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी तक है। यह विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी है।

→ हिमालय की सबसे बाहरी श्रृंखला को शिवालिक कहा जाता है।

→ निम्न हिमालय तथा शिवालिक के बीच स्थित लम्बवत् घाटी को दून के नाम से जाना जाता है-देहरादून, कोटलीदून एवं पाटलीदून प्रसिद्ध दून हैं।

→ सतलुज एवं सिंधु के बीच स्थित हिमालय के भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप

→ उत्तरी मैदान का निर्माण तीन प्रमुख नदी प्रणालियों सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र एवं इनकी सहायक नदियों द्वारा हुआ

→ दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार अत्यन्त प्राचीन है। यहाँ स्थित पर्वत बाह्य शक्तियों द्वारा अपरदित हो गये हैं। ये पठार क्रिस्टलीय, आग्नेय एवं रूपान्तरित शैलों से बने हैं।

→ दक्षिण का पठार एक त्रिभुजाकार भू-भाग है जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।

→ अरावली पर्वत के पश्चिमी किनारे पर थार का मरुस्थल स्थित है।

→ भारत में दो द्वीपों के समूह भी स्थित हैं अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप समूह। लक्षद्वीप समूह छोटे प्रवाल द्वीपों से बना है। यह 32 वर्ग कि. मी. के छोटे से क्षेत्र में फैला है। पहले इनको लकादीव, मीनीकाय तथा एमीनदीव के नाम से जाना जाता था, 1973 में इनका नाम लक्षद्वीप रखा गया।

→ बंगाल की खाड़ी में उत्तर से दक्षिण की तरफ फैले द्वीपों की श्रृंखला को अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के नाम से जाना जाता है। इसके उत्तरी भाग के अंडमान तथा दक्षिणी भाग को निकोबार कहा जाता है।

→ भारत के सभी भू – आकृतिक विभाग एक-दूसरे के पूरक हैं और देश को अन्न भण्डार, खनिज, मत्स्यन आदि के द्वारा समृद्ध बनाते हैं।

→ उच्चावच – धरातल अथवा समुद्र तली पर प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले ऊँचाइयों के अन्तर को उच्चावच कहते हैं।

→ अपक्षय – भौतिक अथवा रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा शैलों का अपने ही स्थान पर टूटना-फूटना या सड़ना-गलना अपक्षय कहलाता है। अपरदन-गतिशील साधनों, जैसे-बहता जल, हिमनदी, पवन आदि द्वारा शैलों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण अपरदन कहलाता है। निक्षेपण-ढाल और वेग में कमी आने पर नदी, हिमनदी या पवन आदि अपने साथ लाई गई सामग्री को जमा करने लगते हैं तो उसे निक्षेपण कहते हैं।

→ निमज्जन – धरातल की सतह के नीचे धंसने की क्रिया।

→ पर्वत – पृथ्वी के धरातल का ऊपर की ओर उठा हुआ भाग जो बहुत ऊँचा होता है और साधारणतया तीव्र ढालों वाला होता है।

→ पठार – ऊपर उठा हुआ एक विस्तृत भू-भाग जिसके ऊपर का भाग अपेक्षाकृत समतल हो एवं किनारे तेज ढाल वाले हों।

→ मैदान – समतल अथवा बहुत कम ढाल वाली भूमि का एक विस्तृत क्षेत्र।

→ जलोढ़ मैदान – नदियों द्वारा बहाकर लायी गई बारीक गाद या शिला कणों वाली काँप अथवा जलोढ़ मिट्टी के निक्षेपण से बना समतल भू-भाग।

→ नवीन/युवा पर्वत – पृथ्वी के भूपटल के नवीनतम दौर में बने मोड़दार या वलित पर्वत, जैसे—हिमालय, आल्पस, एंडीज एवं रॉकी पर्वत।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप

→ आग्नेय शैल – वे शैलें, जो मैग्मा या लावा के पृथ्वी की सतह या पृथ्वी के भीतर जम जाने से बनती हैं।

→ अवसादी शैल – अवसाद से बनी हुई शैलें जिनमें प्रायः परतदार संरचना होती है।

→ कायान्तरित शैल – पूर्व निर्मित आग्नेय अथवा अवसादी शैलों पर अधिक दबाव या ताप के कारण भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तन द्वारा बनी शैलें। इन्हें रूपान्तरित शैल भी कहते हैं।

→ महाखण्ड – नदी की अपरदन क्रिया द्वारा बनी अंग्रेजी के ‘I’ अक्षर के आकार की गहरी एवं सँकरी घाटी।

→ बेसिन (द्रोणी) – भूपृष्ठ एक बहुत बड़ा गर्त।

→ तराई यह क्षेत्र भाबर से लगा हुआ होता है जो कि अधिक नम एवं दलदली होता है, यहाँ घने वन एवं विभिन्न वन्य जीव पाये जाते हैं।

→ भाबर – पर्वतों से उतरने वाली नदियों द्वारा शिवालिक के ढाल पर गुटिका (कंकड़ियाँ) जमा हो जाने से निर्मित मैदान।

→ भांगर – उत्तरी मैदान की पुरानी जलोढ़ को भांगर या बांगर कहते हैं।

→ खादर – बाढ़ के मैदानों की नवीन जलोढ़ को खादर कहा जाता है।

→ प्रवाल जीव – अल्पजीवी सूक्ष्म समुद्री जीव जिसके ढाँचों के निरन्तर जमाव से द्वीपों आदि का निर्माण होता है।

→ झील एक जलराशि, जो पृथ्वी की सतह के गर्त/गड्ढे में हो एवं चारों ओर से पूर्णतया स्थल से घिरी हो।

→ दोआब – दो नदियों के मध्य का भाग।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप

→ सहायक नदियाँ – छोटी नदियाँ, जो एक बड़ी नदी में मिल जाती हैं।

→ डेल्टा – नदी के मुहाने पर समतल, निचला त्रिभुजाकार भू-भाग जहाँ नदी अपनी धीमी गति के कारण भारी गाद जमा करती है एवं स्वयं अनेक उपनदियों में विभाजित हो जाती है।

→ जलोढ़क – नदियों द्वारा बहाकर लायी गई बहुत ही बारीक मिट्टी को जलोढ़क अथवा अवसाद कहते हैं। दर्रा पर्वत श्रेणी का वह निचला भाग या घाटी जो पर्वत श्रेणी को पार करने हेतु प्राकृतिक मार्ग प्रदान करता है।

→ लैगून मुख्य समुद्र से बालू भित्ति अथवा रोधिका बनने के कारण अलग हुई खारे पानी की झीलें।

→ बरकान-अर्द्ध – चंद्राकार बालू के टीले।

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JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति

JAC Board Class 9th Social Science Notes History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति

→ सन् 1774 में बू| राजवंश का लुई XVI फ्रांस की राजगद्दी पर बैठा।

→अठारहवीं शताब्दी में फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स–पादरी वर्ग, कुलीन वर्ग और जनसाधारण वर्ग में बँटा हुआ था।

→ केवल तीसरे एस्टेट्स-जनसाधारण वर्ग के लोग ही शासक को ‘कर’ चुकाया करते थे।

→ लुई XVI ने 5 मई 1789 को नये करों के प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए एस्टेट्स जेनराल की बैठक बुलाई। 14 जुलाई 1789 की सुबह पेरिस नगर में आतंक का माहौल था।

→ सम्राट की निरंकुश शक्तियों के प्रतीक बास्तील के किले को लोगों ने ढहा दिया।

→ प्रजा के विद्रोह के बाद लुई XVI ने नेशनल असेंबली को मान्यता दे दी तथा अपनी सत्ता पर संविधान के अंकुश को स्वीकार कर लिया। सन् 1791 में संविधान ने कानून बनाने का अधिकार नेशनल असेंबली को दे दिया।

→ फ्रांस का संविधान “पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा-पत्र’ के साथ शुरू हुआ था। अठारहवीं शताब्दी में अधिकांश पुरुष एवं महिलाएँ पढ़े-लिखे नहीं थे। इसलिए उस समय महत्वपूर्ण विचारों का प्रचार-प्रसार करने के लिए छपे हुए शब्दों के बजाय अक्सर आकृतियों एवं प्रतीकों का प्रयोग किया जाता था।

→ अप्रैल 1792 में नेशनल असेंबली ने प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

→ 21 सितंबर 1792 को कन्वेंशन ने फ्रांस को एक गणतंत्र घोषित किया इसी के साथ राजतंत्र का अन्त हो गया।

→ लुई XVI को 21 जनवरी 1793 में देशद्रोह के आरोप में फाँसी दे दी गई।

→ फ्रांस में पाँच सदस्यों वाली कार्यपालिका–डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त किया।

→ फ्रांसीसी क्रान्ति में महिलाओं की भी सक्रिय भूमिका रही। दास व्यापार सत्रहवीं शताब्दी में प्रारम्भ हुआ था।

→ सन् 1794 ई. के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित कर दिया।

→ फ्रांसीसी उपनिवेशों में अन्तिम रूप से दास प्रथा का उन्मूलन सन् 1848 ई. में किया गया।

→ 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया।

→ नेपोलियन ने निजी सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए कानून बनाये तथा दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली चलायी।

→ स्वतन्त्रता एवं जनवादी अधिकारों के विचार फ्रांसीसी क्रान्ति की सबसे महत्वपूर्ण विरासत थे।

→ भारत के टीपू सुल्तान एवं राजा राममोहन राय ने फ्रांस में उपजे विचारों से प्रेरणा ली।

→ सन् 1774 ई. — बूढे राजवंश का लुई सोलहवाँ फ्रांस का राजा बना, जब वह राजा बना तब राज्य का खजाना खालीथा।

→ सन् 1789 ई. — एस्टेट्स जेनराल (प्रतिनिधि सभा) की बैठक , तृतीय एस्टेट द्वारा वर्साय के टेनिस-कोर्ट में नेशनल असेम्बली का गठन, जनता द्वारा लुई सोलहवें के विरुद्ध फ्रांस की राज्य-क्रान्ति, बास्तील के किले का पतन, नेशनल असेम्बली द्वारा पुरुषों एवं नागरिकों के अधिकारों की घोषणा, ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों का विद्रोह, फ्रांस में सामन्तवाद का अन्त चर्च की सम्पत्ति का अधिग्रहण।

→ सन् 1791 ई. — संविधान का निर्माण किया गया, ताकि राजा की शक्तियों को सीमित किया जा सके एवं सभी नागरिकों को मूलभूत अधिकार प्रदान किए जा सकें।

→ सन् 1792 ई. — पेरिस के निवासियों के द्वारा ‘ट्यूलेरिए के महल’ पर धावा। नवनिर्वाचित असेम्बली ‘कन्वेंशन’ द्वारा राजतन्त्र का अन्त।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति

→ सन् 1792-93 ई. — फ्रांस एक गणतन्त्र बना, लुई सोलहवें का सिर काट दिया गया, जैकोबिन-गणराज्य का तख्ता पलट दिया गया तथा फ्रांस पर एक डिरेक्ट्री का शासन स्थापित हो गया।

→ सन् 1804 ई. — नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांस का शासक बना, यूरोप के अनेक भागों पर उसने अधिकार कर फ्रांस में मिला लिया।

→ सन् 1815 ई. — वॉटर लू के युद्ध में नेपोलियन बोनापार्ट पराजित हुआ।

→ सन् 1848 ई. — फ्रांसीसी उपनिवेशों में अन्तिम रूप से दासता की समाप्ति।

→ सन् 1946 ई. — फ्रांस में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला।

→ लुई सोलहवाँ – सन् 1774 ई. में लुई सोलहवाँ फ्रांस का सम्राट बना। वह अदूरदर्शी था, परिणामस्वरूप फ्रांस की जनता में उसके प्रति असन्तोष बढ़ता गया और जनता ने राजसत्ता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

→ मेरी एन्तोएनेत – ऑस्ट्रिया की राजकुमारी, लुई सोलहवें की पत्नी।

→ रूसो – रूसो एक फ्रांसीसी दार्शनिक था। उसने जनता और उसके प्रतिनिधियों के मध्य एक सामाजिक अनुबन्ध पर आधारित सरकार का प्रस्ताव रखा। वह “सामाजिक समझौता” (The Social Contract) नामक ग्रन्थ का लेखक था।

→ आबेसिए – ‘नेशनल असेम्बली’ का नेता जिसका गठन सन् 1789 ई. में हुआ था। उसने एक प्रभावशाली पैम्फ्लेट लिखा, “वाट इज द थर्ड एस्टेट”।

→ मिराब्यो – नेशनल असेम्बली का नेतृत्व करने वाला एक नेता, वह सामंती विशेषाधिकारों वाले समाज को खत्म करने की आवश्यकता से सहमत था। उसने एक पत्रिका निकाली और वर्साय में जुटी भीड़ के समक्ष जोरदार भाषण भी दिया।

→ नेशनल असेम्बली – 20 जून, सन् 1789 ई. को वर्साय के इन्डोर टेनिस कोर्ट में तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधियों द्वारा गठित असेम्बली।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति

→ जॉन लॉक – जॉन लॉक एक दार्शनिक था, उसने अपने ग्रन्थ ‘टू ट्रीटाइजेज ऑफ गवर्नमेंट’ में राजा के ‘दैवी और निरंकुश अधिकारों’ के सिद्धान्त का विरोध किया।

→ मॉण्टेस्क्यू – मॉण्टेस्क्यू फ्रांस का एक स्वतन्त्र विचारक एवं ‘द स्पिरिट ऑफ द लॉज’ नामक ग्रन्थ का लेखक था। उसने ‘शक्ति पृथक्करण’ के सिद्धान्त का प्रतिपादन भी किया था।

→ कैमिल डेस्मॉलिन्स – फ्रांस का क्रान्तिकारी पत्रकार। रोबेस्प्येर के शासनकाल के दौरान सन् 1793 ई. में इसे फाँसी दे दी गई।

→ रोबेस्प्येर – रोबेस्प्येर जैकोबिन दल का शक्तिशाली सदस्य एवं नेता था। उसने नियन्त्रण एवं दण्ड की सख्त नीति अपनाई। रोबेस्प्येर ने हजारों निर्दोष व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया। इसने सन् 1793 ई. से सन् 1794 ई. तक फ्रांस पर शासन किया। इस काल को आतंक का युग कहा जाता है। जुलाई सन् 1794 ई. को रोबेस्प्येर को बन्दी बनाकर उसका वध कर दिया गया।

→ ओलम्प दे गूज – ‘ओलम्प दे गूज’ एक महान फ्रांसीसी महिला थो, जिसने फ्रांस की महिलाओं के अधिकारों के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया। उसे फाँसी पर लटका दिया गया।

→ आर्थर यंग – सन् 1787-1789 ई. के मध्य फ्रांस की यात्रा करने वाला एक अंग्रेज, इसने अपनी यात्रा का वृत्तान्त लिखा था।

→ नेपोलियन बोनापार्ट – सन् 1804 ई. में फ्रांस का सम्राट बना। यूरोप के कई देशों पर अधिकार कर फ्रांस में मिलाया। सन् 1815 ई. में वॉटर लू की लड़ाई में पराजित।

→ राजा राममोहन रॉय – फ्रांसीसी क्रांति के समय यूरोप में फैलने वाले विचारों से प्रभावित भारतीय नेता। लिवे-फ्रांसीसी मुद्रा जिसका सन् 1794 ई. में प्रचलन रोक दिया गया।

→ एस्टेट – फ्रांसीसी क्रान्ति से पूर्व समाज में सत्ता एवं सामाजिक हैसियत को अभिव्यक्त करने वाली श्रेणी। पादरी वर्ग-चर्च के विशेष कार्यों के करने वाले व्यक्तियों का समूह।

→ टाइल – राज्य को सीधे अदा किया जाने वाला एक प्रत्यक्ष ‘कर’। टाइद-चर्च द्वारा लिया जाने वाला धार्मिक ‘कर’ जो कृषि-उपज के दसवें हिस्से के बराबर होता था। जीविका

→ संकट – ऐसी स्थिति जन जीवित रहने के लिए आवश्यक साधन भी खतरे में पड़ने लगते हैं। अनाम-जिसका नाम मालूम न हो।

→ मार्सिले – मार्सिले फ्रांस का ‘राष्ट्रगान’ है, जिसे कवि रॉजेट दि लाइल द्वारा लिखा गया था। इसे प्रथम बार मार्सिलेस के स्वयंसेवकों ने पेरिस की ओर प्रस्थान करते समय गाया था।

→ कॉन्वेंट – धार्मिक जीवन को समर्पित समूह का भवन।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति

→ गिलोटिन – गिलोटिन एक मशीन थी जिसका आविष्कारक डॉ. गिलोटिन था। यह दो खम्भों के बीच लटकी हुई आरे वाली मशीन थी जिस पर रखकर अपराधी का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था।

→ डिरेक्ट्री – विधान परिषदों द्वारा नियुक्त पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका।

→ बास्तील – पेरिस के पूर्वी भाग में स्थित दुर्ग। यह दुर्ग बन्दीगृह के रूप में प्रयोग होता था। क्रोधित भीड़ द्वारा इसे 14 जुलाई, सन् 1789 ई. को तोड़ दिया गया।

→ जैकोबिन – फ्रांसीसी लोगों का राजनीतिक क्लब जिसका गठन सरकारी नीतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए किया गया। इसका नाम पेरिस के भूतपूर्व कॉन्वेंट ऑफ सेंट जेकब के नाम पर पड़ा।

→ सौ कुलात – जैकोबिनों को सौ कुलॉत के नाम से जाना गया। जिसका शाब्दिक अर्थ है-बिना घुटन्ने वाले। जैकोबिन पुरुष लाल रंग की टोपी पहनते थे, जो स्वतंत्रता का प्रतीक थी।

→ नीग्रो – अफ्रीका में सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में रहने वाले स्थानीय लोग।

JAC Class 9 Social Science Notes

JAC Class 9 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती 

JAC Board Class 9th Social Science Important Questions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए
1. विश्व में सबसे अधिक निर्धन निवास करते हैं
(अ) चीन में
(ब) अमेरिका में
(स) भारत में
(द) प्रत्येक देश में।
उत्तर:
(स) भारत में

2. भारत में सन् 2011-12 में निर्धनता का अनुपात था
(अ) 27.1%
(ब) 23.6%
(स) 36.0%
(द) 22%.
उत्तर:
(स) 36.0%

3. देश में प्रधानमन्त्री रोजगार योजना प्रारम्भ की गई
(अ) सन् 1995 में
(ब) सन् 1999 में
(स) सन् 2000 में
(द) सन् 1993 में।
उत्तर:
(द) सन् 1993 में।

4. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का प्रारम्भ हुआ
(अ) 1999 में
(ब) 1995 में
(ग) 2000 में
(द) 1993 में।
उत्तर:

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कोई भी व्यक्ति निर्धनता में जीना क्यों नहीं चाहता है?
उत्तर:
कोई भी व्यक्ति निर्धनता में जीना नहीं चाहता क्योंकि निर्धन लोगों के साथ खेतों, कारखानों, सरकारी कार्यालयों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों और लगभग सभी स्थानों पर दुर्व्यवहार होता है।

प्रश्न 2.
एन. एस. एस. ओ. का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
नेशनल सैंपल सर्वे आर्गनाइजेशन अर्थात् राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती 

प्रश्न 3.
निर्धनता के सामान्य सूचक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
निर्धनता के सामान्य सूचक हैं-आय और उपभोग का स्तर, निरक्षरता का स्तर, कुपोषण के कारण रोग-प्रतिरोधक क्षमता में कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, रोजगार के अवसरों की कमी, सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता तक पहुँच की कमी आदि।

प्रश्न 4.
भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता कितनी है?
उत्तर:
भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन के हिसाब से ग्रामीणों के लिए 2400 कैलोरी तक तथा नगरीय क्षेत्रों के लिए 2100 कैलोरी है।

प्रश्न 5.
ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी आवश्यकता शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक क्यों मानी गई है?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्ति शहरों की अपेक्षा अधिक शारीरिक कार्य करते हैं इसीलिए ग्रामीण क्षेत्रों के व्यक्तियों को अधिक कैलोरी की आवश्यकता मानी गई है।

प्रश्न 6.
शहरी क्षेत्र में कम कैलोरी की आवश्यकता के बाद भी निर्धनता निवारण हेतु अधिक राशि क्यों निर्धारित की गई?
उत्तर:
शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कम कैलोरी की आवश्यकता के बावजूद निर्धनता निवारण हेतु अधिक राशि निर्धारित की गई क्योकि शहरी क्षेत्रों में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें अधिक होती हैं।

प्रश्न 7.
2011-12 में किसी व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा का निर्धारण कितने रुपये प्रतिमाह पर किया गया है?
उत्तर:
वर्ष 2011-12 एक व्यक्ति के लिए निधनता रेखा का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्र में 816 रुपये तथा शहरी क्षेत्र में 1000 रुपये प्रतिमाह रखा गया है।

प्रश्न 8.
भारत में कितने प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन निर्वाह कर रहे हैं?
उत्तर:
भारत में 22 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन निर्वाह कर रहे हैं।

प्रश्न 9.
भारत के किस सामाजिक समूह के लोग सर्वाधिक गरीब है?
उत्तर:
भारत के अनुसूचित जनजाति के लोगों का प्रतिशत गरीबी में सर्वाधिक है। अनुसूचित जनजाति के 43 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन निर्वाह कर रहे है।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती 

प्रश्न 10.
निर्धनता रेखा का आकलन किसके द्वारा कितनी समयावधि में किया जाता है?
उत्तर:
निर्धनता रेखा का आकलन राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन द्वारा प्रति पाँच वर्ष में किया जाता है।

प्रश्न 11.
निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित सामाजिक समूह कौन से हैं?
उत्तर:
निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित सामाजिक समूह अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति परिवारों के हैं।

प्रश्न 12.
निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित आर्थिक समूह कौन से हैं?
उत्तर:
निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित आर्थिक समूह कृषि श्रमिक परिवार व नगरीय अनियमित मजदूर परिवार हैं।

प्रश्न 13.
आगामी 10 से 15 वर्षों में निर्धनता उन्मूलन में अधिक उन्नति की आशा किन कारणों से की जा रही है?
उत्तर:
आगामी 10 से 15 वर्षों में निर्धनता उन्मूलन में अधिक उन्नति की आशा-उच्च आर्थिक संवृद्धि, सभी के लिए निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा, जनसंख्या वृद्धि दर में कमी, महिलाओं और समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बढ़ते सशक्तीकरण के कारण यह उम्मीद की जा रही है।

प्रश्न 14.
पंजाब व हरियाणा जैसे राज्य किन कारणों से निर्धनता कम करने में सफल रहे हैं?
उत्तर:
पंजाब व हरियाणा जैसे राज्य उच्च कृषि वृद्धि दर से निर्धनता कम करने में पारम्परिक रूप से सफल

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता और असुरक्षित समूह’ विषय पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों का अनुपात भी भारत में सभी सामाजिक समूहों और आर्थिक वर्गों में एक समान नहीं है। जो सामाजिक समूह निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित है, वे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवार हैं। इसी प्रकार, आर्थिक समूहों में सर्वाधिक असुरक्षित समूह, ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार और नगरीय अनियत मजदर परिवार हैं।

यद्यपि निर्धनता रेखा के नीचे के लोगों का औसत भारत में सभी समूहों के लिए 22 है, अनुसूचित जनजातियों के 100 में से 43 लोग अपनी मूल आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हैं। इसी तरह नगरीय क्षेत्रों में 34 प्रतिशत अनियत मजदर निर्धनता रेखा के नीचे हैं। लगभग 34 प्रतिशत अनियत कृषि श्रमिक ग्रामीण क्षेत्र में और 29 प्रतिशत अनुसूचित जातियाँ भी निर्धन हैं।

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प्रश्न 2.
असुरक्षा का निर्धारण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
निर्धनता के प्रति असुरक्षा एक माप है जो कुछ विशेष समुदायों या व्यक्तियों के भावी वर्षों में निर्धन होने या निर्धन बने रहने की अधिक सम्भावना जताता है। कोई समुदाय या व्यक्ति निर्धनता से कितना असुरक्षित है इसका निर्धारण निम्नलिखित आधारों पर किया जाता है

  1. उसके पास परिसम्पत्तियों, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार के अवसरों की कितनी उपलब्धता है।
  2. भूकम्प, सुनामी एवं आतंकवाद आदि से सम्बन्धित मामलों में इन समुदायों के समक्ष कितने बड़े जोखिम हैं।
  3. इन जोखिमों से निपटने के लिए उनके पास कितनी आर्थिक एवं सामाजिक क्षमता है।

प्रश्न 3.
निर्धनता क्या है? सरकार की वर्तमान निर्धनता विरोधी रणनीति किन दो कारकों पर निर्भर करती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निर्धनता से आशय उस स्थिति से है जिसमें व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं, जैसे-भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा व स्वास्थ्य को पूरा करने में असमर्थ रहता है। सरकार की वर्तमान निर्धनता विरोधी रणनीति मुख्य रूप से निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है

  1. आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन प्रदान करना
  2. लक्षित निर्माण विरोधी कार्यक्रमों को प्रारम्भ करना।

प्रश्न 4.
सामाजिक वैज्ञानिकों की दृष्टि में निर्धनता के कौन-कौन से सूचक हैं?
उत्तर:
सामाजिक वैज्ञानिकों की दृष्टि में निर्धनता के अग्रलिखित सूचक हैं

  1. आय व उपभोग का स्तर
  2. कुपोषण के कारण रोग प्रतिरोधी क्षमता की कमी
  3. निरक्षरता स्तर
  4. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी,
  5. रोजगार के अवसरों की कमी
  6. सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता तक पहुँच की कमी।

प्रश्न 5.
किस प्रकार अत्यधिक ऋणग्रस्तता निर्धनता का कारण और प्रभाव दोनों हैं?
उत्तर:
कारण:
ऋणग्रस्त लोगों को अपनी सीमित आमदनी से ही ऋणों का भुगतान करना पड़ता है। इसलिए वे आवश्यक कृषि सम्बन्धी आगतें, जैसे-बीज, उर्वरक व कीटनाशक आदि नहीं खरीद पाते हैं। फलस्वरूप उन्हें और भी कम आय प्राप्त होती है तथा वे और अधिक निर्धन हो जाते हैं।

प्रभाव:
चूँकि निर्धन लोग कठिनाई से ही कोई बचत पर पाते हैं। आगे उन्हें कृषि आगतें, जैसे बीज, उर्वरक व कीटनाशक खरीदने के लिए ऋण लेना पड़ता है। निर्धनता के चलते पुन: भुगतान में असमर्थता के कारण वे ऋणग्रस्त हो जाते हैं। अत: अत्यधिक निर्धनता, निर्धनता का कारण और परिणाम दोनों हैं।

प्रश्न 6.
निर्धनता की अन्तर्राज्यीय असमानताओं पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारत के सभी राज्यों में निर्धनता अनुपात एक समान नहीं है कुछ राज्य जैसे मध्य प्रदेश, असम, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं ओडिशा में निर्धनता राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
जबकि केरल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और पश्चिम बंगाल में निर्धनता राष्ट्रीय औसत से कम है। अत: हम कह सकते हैं कि कुछ राज्यों ने अपने यहाँ निर्धनता को कम करने में उल्लेखनीय सफलता पायी है।

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प्रश्न 7.
वैश्विक निर्धनता परिदृश्य पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
विश्व बैंक के अनुसार प्रतिदिन $1.9 से कम पर जीवन निर्वाह करना निर्धनता के अन्तर्गत आता है। वैश्विक निर्धनता 1990 के 36% की तुलना में 2015 में 10% रह गयी है, जो निर्धनता में कमी का संकेत है। लेकिन इसमें क्षेत्रीय विभिन्नतायें हैं। चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका नेपाल, बांग्लादेश, भूटान में निर्धनता में तीव्र गिरावट देखी गयी लेकिन सब सहारा अफ्रीका, लैटिन अमरीका तथा रूस जैसे समाजवादी देशों में निर्धनता की उच्च दर अभी भी बनी हुई है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्धनता का विश्लेषण सामाजिक अपवर्जन और असुरक्षा के आधार पर कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान में निर्धनता का विश्लेषण सामाजिक अपवर्जन और असुरक्षा के आधार पर बहुत सामान्य होता जा रहा है इसे पृथक पृथक निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है सामाजिक अपवर्जन की अवधारणा के अनुसार निर्धनों को अच्छा माहौल और अधिक अच्छे वातावरण में निवास करने वाले सम्पन्न लोगों की सामाजिक समता से अपवर्जित होकर केवल निम्न वातावरण में निवास करने को विवश होना पड़ता है।

सामान्य अर्थ में सामाजिक अपवर्जन निर्धनता का एक कारण और परिणाम दोनों हो सकते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अथवा समूह सुविधाओं, लाभों तथा अवसरों से अपवर्जित रहता है जिनका उपभोग उनसे अच्छे लोग करते हैं। भारत में इसका एक विशेष उदाहरण जाति व्यवस्था की कार्य-शैली का पाया जाना है जिसमें कुछ विशेष जातियों के लोगों को समान अवसरों से अपवर्जित रखा जाता है।

इससे स्पष्ट होता है कि सामाजिक अपवर्जन से न केवल लोगों की आय बहुत कम होती है बल्कि इससे भी कहीं अधिक हानि पहुँच सकती है। असुरक्षा निर्धनता की एक माप है जो कुछ विशेष समुदायों या व्यक्तियों के आगामी वर्षों में निर्धन होने या बने रहने की सम्भावना को व्यक्त करता है। असुरक्षा का निर्धारण विभिन्न व्यक्तियों या समुदायों के पास उपलब्ध परिसम्पत्तियों, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों के रूप में जीविका खोजने के विभिन्न विकल्पों से होता है।

इनके अतिरिक्त इसका विश्लेषण प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवाद आदि के द्वारा व्यक्तियों अथवा समूहों के सामने उपस्थित बड़े जोखिमों और इनका मुकाबला करने की उनकी आर्थिक व सामाजिक क्षमता के आधार पर किया जाता है। वास्तविकता यह है कि जब समय खराब आता है तब बाढ़ हो या भूकम्प, नौकरियों की उपलब्धता में कमी या दूसरे लोगों की तुलना में प्रभावित होने की बड़ी सम्भावनाओं का निरूपण ही असुरक्षा है।

प्रश्न 2.
भारत में निर्धनता के कारणों का विस्तार से वर्णन कीजिए। उत्तर-भारत में निर्धनता के निम्नलिखित कारण हैं
1. ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा शोषण:
भारत एक लम्बे समय तक ब्रिटिश शासन के अधीन रहा है। औपनिवेशिक सरकार ने अपनी नीतियों से भारत का शोषण किया तथा यहाँ के पारम्परिक हस्तशिल्प को नष्ट कर दिया व वस्त्र उद्योग के विकास को हतोत्साहित किया जिससे देश में बेरोजगारी बढ़ी व निर्धनता में भी वृद्धि हुई।

2. जनसंख्या में उच्च दर से वृद्धि:
हमारे देश में जनसंख्या में उच्च दर से वृद्धि हो रही है, जबकि रोजगार उस गति से नहीं बढ़ पा रहे हैं। फलस्वरूप बेरोजगारी व निर्धनता की समस्या बढ़ रही है।

3. बेरोजगारी:
भारत में बेरोजगारी के कारण निर्धनता बहुत बढ़ी है। यद्यपि सिंचाई एवं हरित क्रांति के प्रसार से कृषि क्षेत्रक में रोजगार के अनेक अवसर सृजित हुए हैं, लेकिन इनका प्रभाव कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रहा है।

4. आय असमानता:
देश में भूमि और अन्य संसाधनों के असमान वितरण के कारण आय की असमानता में वृद्धि हुई है। आय की असमानता निर्धनता को और बढ़ाती है।

5. भूमि संसाधनों की कमी:
भारत में भूमि संसाधनों की कमी ने निर्धनता में वृद्धि की है। सरकार ने भूमि सुधार को ढंग से लागू नहीं किया है।

6. सामाजिक रीति-रिवाज:
भारत में सामाजिक दायित्वों एवं धार्मिक अनुष्ठानों के आयोजनों में निर्धन लोगों द्वारा बहुत अधिक खर्च किया जाता है जिससे वे ऋणग्रस्त होकर निर्धनता के कुचक्र में फंसे रह जाते हैं।

7. कृषि का पिछड़ापन:
देश की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। कृषि के क्षेत्र में हमारा देश अत्यन्त पिछड़ा हुआ है। जिस कारण निर्धनता को बढ़ावा मिलता है।

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प्रश्न 3.
भारत सरकार द्वारा संचालित महत्वपूर्ण निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में संचालित निर्धनता निरोधी कार्यक्रमों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत सरकार द्वारा संचालित निर्धनता निरोधी कार्यक्रम निम्नलिखित हैं
1. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम:
भारत सरकार ने सितम्बर 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम पारित किया। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक परिवार को वर्ष में 100 दिनों के रोजगार की गारण्टी दी गयी है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रस्तावित रोजगारों में से एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए आरक्षित रखे गये हैं।

इस योजना में यदि आवेदक को 15 दिन के अन्दर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो वह दैनिक बेरोजगार भत्ते का हकदार होगा। वर्तमान में इस योजना को ‘मनरेगा’ (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना) के नाम से जाना जाता है। इस योजना के अन्तर्गत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं का हिस्सा क्रमश: 23 प्रतिशत, 17 प्रतिशत एवं 53 प्रतिशत है।

2. राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम:
यह कार्यक्रम सन् 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धन लोगों के लिए है जिन्हें मजदूरी पर रोजगार की आवश्यकता है तथा जो अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक हैं।

3. प्रधानमंत्री रोजगार योजना:
सन् 1993 से प्रारम्भ इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों एवं छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगारों युवकों के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। इस योजना के अन्तर्गत युवकों को लघु व्यवसाय एवं उद्योग स्थापित करने में सहायता दी जाती है।

4. ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम:
इस कार्यक्रम का प्रारम्भ सन् 1995 में किया गया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों एवं छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है।

5. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना:
सन् 1999 में प्रारम्भ इस योजना का उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को स्वयं सहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण व सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा से ऊपर लाना है।

6. प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना:
यह योजना सन् 2000 से प्रारम्भ की गयी। इस योजना का उद्देश्य प्राथमिक स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, ग्रामीण आश्रय, ग्रामीण पेयजल व ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी मूलभूत सुविधाओं का विस्तार करना है। इस हेतु सरकार राज्यों को सहायता उपलब्ध कराती है।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती 

प्रश्न 4.
भारत में निर्धनता के परिप्रेक्ष्य में भावी चुनौतियों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
भारत में निर्धनता को कम करने की अनेक योजनाओं के बावजूद इस पर पूरी तरह सफलता न मिलने का मुख्य कारण कार्यान्वयन और सही लक्ष्य निर्धारण की कमी है। अच्छी नीयत के बाद भी योजनाओं का लाभ पात्र निर्धनों को पूरा नहीं मिल पाया। अनेक योजनाओं के क्रियान्वयन से निर्धनता में कमी तो आई है, लेकिन निर्धनता उन्मूलन भारत की सबसे बड़ी समस्या आज भी मुँह खोले हमारे सामने खड़ी है।

ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों और विभिन्न राज्यों की निर्धनता में व्यापक असमानताएँ मौजूद हैं। कुछ सामाजिक और आर्थिक समूह निर्धनता के प्रति अधिक असुरक्षित हैं। सरकार द्वारा क्रियान्वित निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों के आधार पर आशा की जा रही है कि निर्धनता उन्मूलन में भावी 10-15 वर्षों में अधिक सुधार होगा। इसका मुख्य आधार उच्च आर्थिक-संवृद्धि, सभी को नि:शुल्क प्राथमिक शिक्षा, जनसंख्या वृद्धि दर में कमी, तथा महिलाओं व समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में बढ़ते सशक्तीकरण के परिणामस्वरूप यह सम्भव हो पायेगा।

लोगों के लिए निर्धनता की आधिकारिक परिभाषा उनके केवल कुछ सीमित भाग पर लागू होती है। यह न्यूनतम जीवन निर्वाह के उचित स्तर की अपेक्षा जीवन निर्वाह के न्यूनतम स्तर पर आधारित है। अनेक बुद्धिजीवियों ने अपना मत दिया है कि निर्धनता की अवधारणा का विस्तार ‘मानव निर्धनता’ तक बढ़ा दिया जाना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि अनेक लोग अपना भोजन जुटा पाने में समर्थ हों लेकिन आज क्या उनके पास शिक्षा, घर, स्वास्थ्य सेवाएँ और रोजगार की सुरक्षा, आत्मविश्वास आदि उपलब्ध हैं।

क्या वे जाति, लिंग आधारित भेदभाव से मुक्त हैं, क्या वे बालश्रम से दूर हैं ? विश्वव्यापी अनुभव यह प्रमाणित करते हैं कि विकास के साथ निर्धनता की परिभाषाएँ बदल जाती हैं। निर्धनता उन्मूलन सदैव एक गतिशील लक्ष्य है इसीलिए यह उम्मीद की जा रही है कि हम अगले दशक के अन्त तक देश के सभी लोगों को केवल आय के सन्दर्भ में, न्यूनतम आवश्यक आय उपलब्ध करा सकेंगे।

सभी को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ और रोजगार सुरक्षा के साथ लैंगिक समता तथा निर्धनों को सम्मान दिलाना जैसी बड़ी चुनौतियों का सामना करना हमारा लक्ष्य होगा। अपने करोड़ों लोगों को दयनीय निर्धनता से बाहर निकालना स्वतन्त्र भारत की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रही है। महात्मा गाँधी हमेशा इस पर बल देते थे कि भारत सही अर्थों में तभी स्वतन्त्र होगा जब यहाँ का सबसे निर्धन व्यक्ति भी मानवीय व्यथा से मुक्त होगा।

JAC Class 9 Social Science Important Questions

JAC Class 9 Social Science Important Questions Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए
1. कौशल एवं उनमें निहित उत्पादन के ज्ञान का स्टॉक है
(अ) भौतिक पूँजी
(ब) प्राकृतिक संसाधनों
(स) मानव पूँजी
(द) भूमि।
उत्तर:
(स) मानव पूँजी

2. भारत की विशाल जनसंख्या को माना जाता रहा है
(अ) परिसम्पत्ति
(ब) दायित्व
(स) समस्या
(द) पूँजी।
उत्तर:
(ब) दायित्व

3. सन् 2014 में भारत में जीवन प्रत्याशा थी
(अ) 55 वर्ष
(ब) 68.3 वर्ष
(स) 75 वर्ष
(घ) 60 वर्ष।
उत्तर:
(ब) 68.3 वर्ष

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव पूँजी क्या है?
उत्तर:
शिक्षित, प्रशिक्षित एवं स्वस्थ जनसंख्या ही मानव पूँजी है।

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प्रश्न 2.
शिक्षित माँ-बाप ही अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान क्यों दे पाते हैं?
उत्तर:
शिक्षित व जागरूक माँ-बाप अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर इसलिए अधिक ध्यान दे पाते हैं क्योंकि वे स्वयं इनके महत्व का अनुभव कर चुके होते हैं।

प्रश्न 3.
जापान जैसा देश बिना किसी प्राकृतिक संसाधन के विकसित व धनी देश कैसे बना?
उत्तर:
जापान बिना किसी पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन के विकसित व धनी देश लोगों की शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश से बना। क्योंकि इन शिक्षित और स्वस्थ लोगों ने कुशलता और प्रौद्योगिकी विकसित की जिससे भूमि और पूँजी जैसे संसाधनों का बेहतर उपयोग किया गया।

प्रश्न 4.
मानव के क्रियाकलापों के कितने क्षेत्रकों में वर्गीकृत किया गया है?
उत्तर:
विभिन्न मानवीय क्रिया कलापों को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक इन तीन क्षेत्रकों में वर्गीकृत किया गया है।

प्रश्न 5.
आर्थिक क्रियाओं के तीनों क्षेत्रकों से सम्बन्धित क्रियाओं का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक-कृषि कार्य द्वितीयक क्षेत्रक-विनिर्माण तृतीयक क्षेत्रक-परिवहन सेवा।

प्रश्न 6.
आर्थिक क्रियाओं से क्या आशय है?
उत्तर:
वे क्रियाएँ जो राष्ट्रीय आय में मूल्यवर्धन करती हैं उन्हें आर्थिक क्रिया कहते हैं।

प्रश्न 7.
आर्थिक क्रियाओं के दोनों भागों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. बाजार क्रियाएं,
  2. गैर-बाजार क्रियाएँ।

प्रश्न 8.
बाजार क्रियाओं से क्या आशय है?
उत्तर:
मानव द्वारा वेतन प्राप्ति या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं को बाजार क्रियाएँ कहते हैं।

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प्रश्न 9.
गैर-बाजार क्रियाओं से क्या आशय है?
उत्तर:
गैर-बाजार क्रियाओं से अभिप्राय स्व-उपभोग के लिए किये गये उत्पादन से है।

प्रश्न 10.
जनसंख्या की गुणवत्ता किस पर निर्भर करती है?
उत्तर:
जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य एवं देश के लोगों द्वारा प्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर होती है।

प्रश्न 11.
कक्षा में बच्चों की उपस्थिति को बढ़ावा देने तथा कक्षा में ठहराव को सुनिश्चित करने के लिए कौन-सी योजना प्रारम्भ की गई है?
उत्तर:
कक्षा में बच्चों की उपस्थिति को बढ़ावा देने तथा कक्षा में ठहराव को सुनिश्चित करने के लिए “दोपहर के भोजन’ की योजना प्रारम्भ की गई है।

प्रश्न 12.
वर्ष 2019-20 में भारत में कितने विश्वविद्यालय थे?
उत्तर:
911.

प्रश्न 13.
सन् 2011 में भारत में कितने प्रतिशत साक्षरता थी?
उत्तर:
74 प्रतिशत।

प्रश्न 14.
‘शिशु मृत्यु दर’ से क्या आशय है?
उत्तर:
एक निश्चित अवधि में एक वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु को ‘शिशु मृत्यु दर’ कहते हैं।

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प्रश्न 15.
जन्म दर से क्या आशय है?
उत्तर:
एक निश्चित अवधि में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे जन्म लेने वाले शिशुओं की संख्या को जन्म दर कहा जाता है।

प्रश्न 16.
मृत्यु दर किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक निश्चित अवधि में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे मरने वाले लोगों की संख्या मृत्यु दर कहलाती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानवीय आर्थिक क्रिया-कलापों के वर्गीकरण को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मानवीय आर्थिक क्रियाकलापों को प्रमुख रूप से तीन क्षेत्रकों में विभाजित किया जाता है
1. प्राथमिक क्षेत्रक:
प्राथमिक क्षेत्रक में वे मानवीय क्रिया-कलाप हैं जो सीधे ही प्रकृति से सम्बन्धित हैं, जैसे-कृषि, वानिकी, मुर्गी पालन, पशु पालन, मछली पालन और खनन आदि की क्रियाएँ।

2. द्वितीयक क्षेत्रक:
प्राथमिक क्षेत्रक से प्राप्त पदार्थों को मानव उपयोगी पदार्थों के रूप में बदलने की क्रिया अर्थात् विनिर्माण की क्रियाएँ जिस क्षेत्र में की जाती हैं उसे द्वितीयक क्षेत्रक कहते हैं। इस क्षेत्रक की क्रियाओं में प्रमुखतः उत्खनन और विनिर्माण कार्यों को शामिल किया जाता है।

3. तृतीयक क्षेत्रक:
इस क्षेत्रक में मानव को सभी प्रकार की सेवाएं प्रदान करने के क्रियाकलापों को शामिल किया जाता है। इस क्षेत्रक में मुख्यतः व्यापार, बीमा, बैंकिंग, परिवहन, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य व पर्यटन सेवाओं को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 2.
मानव पूँजी का व्यवसाय के लिए क्या महत्व है? संक्षेप में बताएँ।
उत्तर:
देश के आर्थिक विकास के लिए जिस प्रकार भौतिक एवं पूँजीगत संसाधन आवश्यक होते हैं उसी प्रकार मानव संसाधन भी देश के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। मानव पूंजी में निवेश (शिक्षा, प्रशिक्षण एवं स्वास्थ्य सेवा के द्वारा) भौतिक पूँजी की ही भाँति प्रतिफल प्रदान करते हैं।

अधिक शिक्षित या बेहतर प्रशिक्षित कार्यों की उच्च उत्पादकता के कारण होने वाली अधिक आय एवं साथ ही अधिक स्वस्थ लोगों की उच्च उत्पादकता के रूप में इसे प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास एवं नागरिक सुविधाएँ लोगों की कार्य कुशलता व उत्पादकता में वृद्धि करते हैं जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक होते हैं।

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प्रश्न 3.
मौसमी बेरोजगारी क्या है? समझाइये।
उत्तर:
जब काम करने योग्य व्यक्तियों को वर्ष के कुछ महीने रोजगार नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति मौसमी बेरोजगारी कहलाती है। यह आमतौर पर कृषि क्षेत्र में पायी जाती है। क्योंकि बुआई, कटाई, निराई आदि के समय तो कृषि कार्य में लगे लोगों के पास रोजगार होता है लेकिन शेष समय में वे बेरोजगार ही रहते हैं। अतः इसे मौसमी बेरोजगारी कहा जाता है।

प्रश्न 4.
प्रच्छन्न बेरोजगारी से क्या आशय है?
उत्तर:
इस प्रकार की बेरोजगारी में कुछ लोग अतिरिक्त लगे होते हैं जो देखने में तो रोजगार में लगे होते हैं लेकिन वास्तव में उनके बगैर भी काम हो सकता था इसलिए वे प्रच्छन रूप से बेरोजगार होते हैं। जैसे माना कि एक कार्य को 5 लोग कर सकते हैं लेकिन उसी कार्य में यदि 8 लोग लगा दिये जायें तो 3 अतिरिक्त लगे लोग प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार कहलायेंगे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में शैक्षिक विकास हेतु क्या-क्या प्रयास किए गए हैं? विस्तार से लिखिए। उत्तर भारत में शैक्षिक विकास हेतु निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं

  1. भारत में शिक्षा पर किए जाने वाले सार्वजनिक व्यय में वृद्धि की गई है। शिक्षा पर योजना परिव्यय प्रथम पंचवर्षीय योजना में 151 करोड़ रुपये था जो ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में बढ़कर 3766.90 करोड़ रुपये हो गया।
  2. सकल घरेलू उत्पादन के प्रतिशत के रूप में शिक्षा पर व्यय सन् 1951-52 के 0.64 प्रतिशत से बढ़कर सन् 2015-16 में 3 प्रतिशत हो गया। इससे साक्षरता दर सन् 1951 में 18 प्रतिशत से बढ़कर सन् 2011 में 74 प्रतिशत हो
    गई।
  3. प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे प्रगति निर्धारक विद्यालयों की स्थापना की गई है।
  4. पर्याप्त मात्रा में हाईस्कूल के विद्यार्थियों को ज्ञान और कौशल से सम्बन्धित व्यवसाय उपलब्ध कराने के लिए व्यावसायिक शाखाएँ विकसित की गई हैं।
  5. भारत के 8.58 लाख से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्कूल प्रणाली का विस्तार किया गया है।
  6. 6-14 आयु वर्ग के सभी स्कूली बच्चों को सन् 2010 तक प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने के लिए सर्वशिक्षा अभियान चलाया गया। राज्यों, स्थानीय सरकारों एवं प्राथमिक शिक्षा सार्वभौमिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समुदाय की सहभागिता के साथ भारत सरकार की यह एक समयबद्ध पहल है।
  7. प्राथमिक शिक्षा में नामांकन बढ़ाने के लिए ‘सेतु पाठ्यक्रम’ एवं ‘स्कूल लौटो शिविर’ प्रारम्भ किए गए हैं।
  8. कक्षा में बच्चों की उपस्थिति को बढ़ावा देने, बच्चों के स्वास्थ्य एवं उनकी पोषण स्थिति में सुधार करने के लिए ‘दोपहर के भोजन’ की योजना कार्यान्वित की जा रही है।
  9. सन् 1950 से 2017 तक के 67 वर्षों में विशेष क्षेत्रों में उच्च शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई। सन् 1950-51 में यह संख्या केवल 30 थी जबकि 2018-19 में 911 हो गई थी।
  10. बारहवीं योजना में उच्च शिक्षा में 18-23 वर्ष आयु वर्ग के नामांकन में 25.2 प्रतिशत तक की वृद्धि 2017-18 में एवं 2020-21 तक 30 प्रतिशत वृद्धि तक करने का प्रयास जारी है।
  11. स्वतन्त्रता के पश्चात् विशेष क्षेत्रों में उच्च शिक्षा देने वाले शिक्षा संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

प्रश्न 2.
बेरोजगारी क्या है? भारत में बेरोजगारी के विभिन्न प्रकारों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बेरोजगारी से आशय-बेरोजगारी का आशय उस स्थिति से है जब व्यक्ति प्रचलित पारिश्रमिक पर काम करने के लिए तैयार होता है, लेकिन उसे कार्य नहीं मिलता है अर्थात् वह बेरोजगार रहता है या उसके द्वारा किए गए कार्य से उत्पादन कोई वृद्धि नहीं होती है। भारत में बेरोजगारी के प्रकार भारत में बेरोजगारी के निम्नलिखित प्रमुख प्रकार पाये जाते हैं
1. मौसमी बेरोजगारी:
मौसमी बेरोजगारी वह होती है जब लोगों को वर्ष के कुछ महीनों में तो काम मिलता है और शेष महीनों में वे कोई कार्य नहीं करते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि क्षेत्रों व मौसम के आधार पर व्यापार करने वाले लोगों में अधिक दिखाई देती है। कृषि क्षेत्र में वर्ष में कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बुवाई, कटाई, निराई एवं गुड़ाई होती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता है।

2. प्रच्छन्न बेरोजगारी:
प्रच्छन्न बेरोजगारी वह स्थिति है, जबकि व्यक्ति काम में लगा हुआ तो प्रतीत होता है लेकिन उसके कार्य से उत्पादन में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होती है अर्थात् आय में कोई बढ़ोत्तरी नहीं होती। ऐसी बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में अधिक पायी जाती है।

3. शिक्षित बेरोजगारी:
शिक्षित बेरोजगारी मुख्य रूप से शहरों में पायी जाती है। इस प्रकार की बेरोजगारी में विभिन्न शिक्षित लोगों को उसकी योग्यता के अनुरूप रोजगार नहीं मिल पाता है। उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों में बेरोजगारी का यह प्रकार अधिक पाया जाता है।

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