JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

→ आर्थिक कार्यों के क्षेत्रक

  • जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं, तो उसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। उदाहरण-कपास की खेती, डेयरी उत्पाद (दूध) आदि।
  • प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है, क्योंकि हम अधिकतर प्राकृतिक उत्पाद कृषि, डेयरी, मत्स्यन तथा वनों से प्राप्त करते हैं। द्वितीयक क्षेत्र में वे गतिविधियाँ सम्मिलित होती हैं जिनके द्वारा प्राकृतिक उत्पादों को अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है, जैसे-कपास के पौधों से प्राप्त रेशे का प्रयोग सूत कातना एवं कपड़ा बुनना, गन्ने से चीनी व गुड़ बनाना आदि।
  • द्वितीयक क्षेत्रक में विनिर्माण की प्रक्रिया अपरिहार्य है। यह क्षेत्रक क्रमशः संवर्धित विभिन्न प्रकार के उद्योगों से संबद्ध है, इसी कारण यह औद्योगिक क्षेत्रक भी कहलाता है।
  • तृतीयक क्षेत्रक उपर्युक्त दोनों ही क्षेत्रकों से भिन्न है। इस क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं। ये गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करतीं वरन् वस्तुओं के उत्पादन में सहायता करती हैं। उदाहरण- परिवहन, संचार, बैंक सेवाएँ, भण्डारण, व्यापार आदि।
  • तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है। सेवा क्षेत्रक में कुछ ऐसी अति आवश्यक सेवाएँ भी हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करती हैं, जैसे-शिक्षक, वकील, डॉक्टर, धोबी, नाई, मोची आदि।

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→ आर्थिक क्षेत्रकों की तुलना

  • प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक के विभिन्न उत्पादन कार्यों से बहुत अधिक मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है तथा अनेक लोग इस कार्य में संलग्न हैं। मध्यवर्ती वस्तुओं का उपयोग अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्माण में किया जाता है। इन वस्तुओं का मूल्य अन्तिम वस्तुओं के मूल्य में पहले से ही शामिल होता है।
  • किसी वर्ष विशेष में प्रत्येक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य उस वर्ष में क्षेत्रक के कुल उत्पादन की जानकारी प्रदान करता है।
  • सकल घरेलू उत्पादन (जी.डी.पी.) तीनों क्षेत्रकों के उत्पादनों का योगफल होता है जो किसी देश के अन्दर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य होता है।

→ क्षेत्रकों में परिवर्तन

  • भारत के पिछले चालीस वर्षों के आँकड़ों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में सबसे अधिक योगदान तृतीयक क्षेत्रक से उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का है जबकि रोजगार अधिकांशतः प्राथमिक क्षेत्रक में मिलता है।
  • सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) अर्थव्यवस्था की विशालता को प्रदर्शित करता है। इसका प्रकाशन केन्द्र सरकार द्वारा किया जाता है।
  • उत्पादन में तृतीयक क्षेत्रक (सेवा क्षेत्रक) का महत्त्व लगातार बढ़ता जा रहा है। सेवा क्षेत्रक की सभी सेवाओं में समान दर से संवृद्धि नहीं हो पा रही है।
  • द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है।
  • हमारे देश में आधे से अधिक श्रमिक प्राथमिक क्षेत्रक (मुख्यतः कृषि क्षेत्र) में कार्यरत हैं।
  • कृषि क्षेत्र का जी.डी.पी. में योगदान लगभग एक-छठा भाग है जबकि शेष द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रक का योगदान है।
  • कषि क्षेत्रक के श्रमिकों में अल्प बेरोजगारी देखने को मिलती है अर्थात् कृषि क्षेत्र से कुछ लोगों को हटा देने पर भी उत्पादन
  • प्रभावित नहीं होगा। अल्प बेरोजगारी को प्रच्छन बेरोजगारी भी कहते हैं।

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→ रोजगार का सृजन

  • नीति (योजना) आयोग द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार अकेले शिक्षा क्षेत्र में लगभग 20 लाख रोजगारों का
  • सृजन किया जा सकता है।
  • हमारे देश में कार्य का अधिकार लागू करने के लिए एक कानून बनाया गया है जिसे महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाता है।
  • आर्थिक कार्यों को विभाजित करने का एक अन्य तरीका संगठित एवं असंगठित के रूप में क्षेत्रकों का विभाजन है।
  • संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान सम्मिलित हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है।
  • असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयाँ, जो अधिकाशंतः राजकीय नियन्त्रण से बाहर होती हैं, से निर्मित होता है। इन कार्यों में रोजगार की अवधि नियमित नहीं होती तथा रोजगार की सुरक्षा भी नहीं है।
  • सन् 1990 से हमारे देश में यह देखा गया है कि संगठित क्षेत्रक के अत्यधिक श्रमिक अपना रोजगार खोते जा रहे हैं। ये लोग असंगठित क्षेत्रक में कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर हैं। अतः असंगठित क्षेत्रक में रोजगार बढ़ाने की आवश्यकता के अतिरिक्त श्रमिकों को संरक्षण एवं सहायता की भी आवश्यकता है।
  • भारत में लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवार छोटे तथा सीमान्त किसानों की श्रेणी में आते हैं।
  • हमारे देश में बहुसंख्यक श्रमिक अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़ी जातियों से हैं, जो असंगठित क्षेत्रक में कार्य करते हैं।

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→ स्वामित्व आधारित क्षेत्रक:

  • स्वामित्व के आधार पर क्षेत्रक को सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक में बाँटा जा सकता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्रक में परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व रहता है एवं सरकार ही समस्त सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
  • निजी क्षेत्रक में परिसम्पतियों पर स्वामित्व एवं सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी एकल व्यक्ति अथवा कम्पनी के हाथों में होती है।
  • भारत सरकार किसानों से उचित मूल्य पर गेहूँ तथा चावल आदि खरीदती है। इसे अपने गोदामों में भण्डारित करती है तथा राशन की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को कम कीमत पर बेचती है।
  • अधिकांश आर्थिक गतिविधियों की प्राथमिक जिम्मेदारी सरकार पर होती है जिस पर व्यय करना सरकार की अनिवार्यता होती है।
  • सरकार को सुरक्षित पेयजल, निर्धनों के लिए आवासीय सुविधाएँ, भोजन व पोषण जैसे मानव विकास के पक्षों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

1. प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। उदाहरण-कृषि, खनन, मत्स्य पालन, डेयरी, शिकार आदि।

2. द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
इससे उत्पन्न प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली द्वारा अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण-कपास से कपड़ा, गन्ने से चीनी एवं लौह अयस्क से इस्पात बनाना आदि ।

3. तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
इसके अन्तर्गत सभी सेवाओं वाले व्यवसाय सम्मिलित हैं। उदाहरण-परिवहन, संचार, व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं प्रबन्धन आदि ।

4. सूचना प्रौद्योगिकी:
सूचना प्रौद्योगिकी किसी इलेक्ट्रानिक विधि से सूचना भेजने, प्राप्त करने एवं संग्रहित करने की एक पद्धति है। जिसमें कम्प्यूटर, डाटाबेस एवं मॉडम का उपयोग किया जाता है। इसमें सूचनाओं का तीव्रगति से त्रुटिरहित एवं कुशलतापूर्वक सम्पादन होता है।

5. सकल घरेलू उत्पाद:
किसी देश के भीतर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सकल घरेलू उत्पाद (स. घ. उ. अथवा जी. डी. पी.) कहलाता है।

6. बेरोजगारी:
जब प्रचलित मजदूरी पर काम करने के इच्छुक व सक्षम व्यक्तियों को कोई कार्य उपलब्ध नहीं होता तो ऐसे व्यक्ति बेरोजगार एवं ऐसी स्थिति बेरोजगारी कहलाती है।

7. छिपी हुई बेरोजगारी:
जब किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे रहते हैं तो उसे छिपी हुई अथवा प्रच्छन्न बेरोजगारी कहा जाता है। यदि इन लोगों को वहाँ से स्थानान्तरित कर दिया जाए तो कुल उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसे अल्प बेरोजगारी भी कहा जाता है। इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पायी जाती है।

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8. मध्यवर्ती वस्तुएँ:
मध्यवर्ती वस्तुएँ वे उत्पादित वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग उत्पादक कच्चे माल के रूप में उत्पादन की प्रक्रिया में करता है अथवा उन्हें फिर से बेचने के लिए खरीदा जाता है।

9. अन्तिम वस्तुएँ:
अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग अन्तिम उपभोग अथवा पूँजी निर्माण में होता है, इन्हें फिर से नहीं बेचा जाता है।

10. बुनियादी सेवाएँ:
किसी भी देश में अनेक सेवाओं; जैसे-अस्पताल, शैक्षिक संस्थाएँ, डाक व तार सेवा, थाना, न्यायालय, ग्रामीण प्रशासनिक कार्यालय, नगर निगम, रक्षा, परिवहन, बैंक, बीमा कम्पनी आदि की आवश्यकता होती है, इन्हें बुनियादी सेवाएँ माना जाता है।

11. संगठित क्षेत्रक: संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है। काम सुनिश्चित होता है और सरकारी नियमों व विनियमों का पालन किया जाता है।

12. असंगठित क्षेत्रक असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयों से जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं से निर्मित होता है। इस क्षेत्रक के नियम व विनियम तो होते हैं परन्तु उनका अनुपालन नहीं होता।

13. सार्वजनिक क्षेत्रक: सार्वजनिक क्षेत्रक में उत्पादन के साधनों पर सरकार का स्वामित्व, प्रबन्धन व नियन्त्रण होता है।

14. निजी क्षेत्रक: निजी क्षेत्रक में उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है। इसके अन्तर्गत उपक्रमों का प्रबन्ध उपक्रम के स्वामी द्वारा ही किया जाता है।

15. खुली बेरोजगारी: जब देश की श्रम शक्ति रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं कर पाती है तो इस स्थिति में इसे खुली बेरोजगारी कहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी देश के औद्योगिक क्षेत्रों में पायी जाती है।

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